डैंड्रफ के कारण बाल ज्यादा झड़ रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरे बालों में बहुत ज्यादा डैंड्रफ है. स्कैल्प इरिटेशन के कारण सिर में लगातार खुजली होती रहती है, जिस से मेरे बाल लगातार झड़ रहे हैं. कई उपाय अपनाने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ. कृपया मुझे इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप के सिर में खुजली होने और बाल झड़ने का कारण डैंड्रफ है. ऐसे में आप अपने सिर में नीम के तेल का उपयोग करें. इस से आप को बहुत लाभ होगा.

बहुत अधिक डैंड्रफ होने पर आप नीम पाउडर को दही के साथ मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को स्कैल्प पर लगाएं. अब इस लेप को 20 से 30 मिनट तक लगा रहने दें. उस के बाद ताजे पानी से बालों को धो लें.

सप्ताह में 2 बार ऐसा करने से 2 सप्ताह में आप की समस्या दूर हो जाएगी. नीम स्कैल्प को गहराई तक साफ करता है, जिस से बालों से जुड़ी कई समस्याएं दूर हो जाएंगी. नीम के पत्ते में ऐंटीइनफ्लैमेटरी, ऐंटीबायोटिक और ऐंटीऔक्सीडैंट गुण होते हैं, जो बालों का झड़ना रोकने में मदद करते हैं.

नीम में विभिन्न फैटी ऐसिड जैसे लिनोलिक ऐसिड, फौलिक ऐसिड और स्टीयरिक ऐसिड होते हैं, जो बालों को घना करते हैं और ड्राई व डैमेज बालों को शाइनी बनाते हैं.

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बालों से जुड़ी सब से बड़ी समस्या हेयर फौल की है. हेयर फौल के भी कई कारण हैं इसलिए हर केस में इलाज भी अलगअलग होना चाहिए, लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं देता जिस वजह से यह समस्या और ज्यादा बढ़ती जा रही है. यहां हम कुछ बातों पर चर्चा करेंगे ताकि इस बात को स्पष्ट रूप से समझा जा सके कि किस समस्या के लिए आप को किस दिशा में कदम बढ़ाना है:

केयर की कमी

जानेमाने हेयर स्टाइलिस्ट नील डेविल कहते हैं कि आज युवाओं में बालों की समस्या इसलिए ज्यादा बढ़ गई है, क्योंकि आज हर कोई अपने बालों को बहुत अच्छा व सुंदर लुक देना चाहता है. इसलिए हेयर स्टाइलिंग उत्पादों का यूज बढ़ गया है.

आज स्थिति यह है कि हम बालों को सुंदर तो दिखाना चाहते हैं लेकिन उन की केयर नहीं करना चाहते. यहां वे जोर दे कर कहते हैं कि आप बालों में अलगअलग कलर यूज करते हैं, जल्दीजल्दी बालों का कलर बदलना चाहते हैं तो साथ में इन की खूब केयर भी कीजिए.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- हेयर फौल अब नहीं

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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क्या है ग्रीन फंगस और मंकीपॉक्स वायरस?

कोरोना के और कई रूप एक- एक करके सामने आते जा रहे हैं….एक संक्रमण खतम होता नहीं है कि दूसरा मुसीबत बनकर सामने आ जाता है.ऐसे में देश कब तक इस संक्रमण से बाहर निकल पाएगा इस पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता है.डेल्टा प्लस जैसा वैरिएंट तो सामने आए ही हैं लेकिन उसके साथ ही ब्लैक फंगस, वाइट फंगस और यलो फंगस के बाद इंदौर में अब ग्रीन फंगस का एक मरीज मिला है.. देश में ग्रीन फंगस का यह पहला मामला सामने आया है साथ ही मंकीपॉक्स फंगस भी सामने आए हैं. दरअसल इंदौर में ग्रीन फंगस से ग्रसित मरीज की पुष्टी की गई थी…उसे इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन मरीज को बेहतर इलाज के लिए एयरलिफ्ट कर अब मुंबई भेजा दिया गया है.

दरअसल,ये मरीज माणिकबाग इलाके में रहने वाला 34 साल का मरीज है जो कि कोरोना से संक्रमित हुआ था, उसके फेफड़े में 90 फिसदी तक संक्रमण फैल चुका था… लेकिन दो महिने तक चले इलाज के बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी कर दी गई ये कहकर कि वो अब ठीक है साथ ही वो बेहतर भी महसूस कर रहा था… लेकिन 10 दिनों के बाद मरीज की हालत फिर से बिगड़ने लगी उसके दाएं फेफड़े में मवाद भर गया था….वहीं,उसके फेफड़े और साइनस में एसपरजिलस फंगस हुआ था, जिसके कारण उसे मुंबई भेजा गया. विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रीन फंगस ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक बिमारी है. फेफड़े में ये ग्रीन कलर का दिखता है जिसके कारण इसे ग्रीन फंगस नाम दिया गया है.जिसकी वजह से मरीज की हालात लगातार बिगड़ती जाती है…कोरोना की रफ्तार तो कम हो चुकी है. लेकिन ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या में कमी नहीं आ रही है और ग्रीन फंगस का डिडेक्ट होना चिंताजनक है…हालाकिं उस मरीज को बेहतर इलाज के लिए मुंबई जरूर भेजा गया है लेकिन वो ठीक हो पाएगा या नहीं कहा नहीं जा सकता है.

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ग्रीन फंगस के लक्षण कुछ ऐसे होते हैं…

मरीज को खखार और गुदाव्दार से खून आने लगा है, बुखार भी 103 डिग्री हो जाता है, वहीं ग्रीन फंगस पर एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन भी काम नहीं करता. प्रदेश में ग्रीन फंगस का ये पहला मामला है. जो कि पोस्ट कोविड मरीजों में देखा गया है.

अब बात आती है मंकीपॉक्स वायरस की. वैज्ञानिकों के सामने कोराना का पुख्ता इलाज ढूंढना अभी भी संभव नहीं हुआ है…वो अभी भी कोशिश कर रहे हैं …तो वहीं अब एक नए वायरस की एंट्री हो गई है और इस बेहद खतरनाक नए वायरस का नाम है मंकीपॉक्स. मंकीपॉक्स के दो मामले ब्रिटेन के वेल्स में मिले हैं… वैज्ञानिकों के मुताबिक यह वायरस ज्यादातर अफ्रीका में पाया जाता है. खास बात यह है कि जिन लोगों में इस नए वायरस की पहचान हुई है वे दोनों घर पर ही रहते थे…उनका कहीं भी घर से बाहर आना-जाना नहीं होता था इसके बावजूद भी वो इस वायरस के चपेट में आ गए. कोरोना के कहर के बीच मंकीपॉक्स वायरस की एंट्री ने देश को और भी ज्यादा खतरे में डाल दिया है.

क्या है ‘मंकीपॉक्स’ ?

एक रिपोर्ट के मुताबिक मंकीपॉक्स जानवरों से इंसानों में फैलने वाला वायरस है

सबसे पहले 1970 में अफ्रीकी देश कांगो में इसकी पहचान हुई थी. उसके बाद 2003 में मध्य और पश्चिमी अफ्रीकी देशों में , अमेरिका और दूसरे देशों में भी इसके ज्यादातर मामले सामने आए थें.मंकीपॉक्स में डेथ रेट 11 फीसदी तक जा सकती है. स्मालपॉक्स की वैक्सीन मंकीपॉक्स पर भी कारगर हो सकती है.

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‘मंकीपॉक्स’ के लक्षण

क्या हैं ?

स्मॉलपॉक्स यानी चेचक की तरह ही इसके लक्षण

हैं, शरीर पर लाल चकत्ते होने लगते हैं, फिर वो चकत्ते घाव में तब्दील हो जाते हैं.

बुखार आता है, सिर दर्द होने लगता है, कमर में दर्द ,

मांसपेशियों में अकड़न और कमजोरी
होने लगती है.

जानें कैसे धोएं महंगे कपड़े

अधिकांश महिलाएं कपड़े धोते समय सही तरीका नहीं अपनातीं. वे कपड़े मंहगे हों या सस्ते सब की धुलाई एक ही तरह से करती हैं. इस वजह से न सिर्फ कपड़ों की आयु कम होती है, उन का रंग भी बहुत जल्दी फेड हो जाता है. ऐसा करने से आप जितने पैसे खर्च कर के ड्रैस लाई हैं उतनी दफा आप उसे पहन भी नहीं पातीं. ऐसा करने के पीछे खास वजह यह हो सकती है कि लौंड्री में मंहगे कपड़ों धुलाई के अधिक पैसे लगते हैं. लेकिन इस का समाधान है. आप घर पर ही अपने महंगे कपड़ों की धुलाई सही व सुरक्षित तरीके से कर सकती हैं. इस से आप के कपड़े अच्छी तरह साफ भी हो जाएंगे और आप लंबे समय तक उन्हें इस्तेमाल भी कर सकेंगी.

आइए जानते हैं कि महंगे कपड़ों को कैसे साफ किया जाए:

अलग बिन में रखें

महंगे कपड़ों को कभी भी उस बिन में न डालें जहां आप रोजमर्रा के कपड़ों को रखती हैं. इन की बिन अलग होनी चाहिए.

इस बात का भी ध्यान रखें कि महंगे कपड़े अधिक दिन तक बिन में एक ही स्थिति में न पड़े रहें. ऐसा होने पर उन में परमानैंट क्रीज पड़ जाती है.

बिन को साफ स्थान पर रखें ताकि कपड़ों पर कोई दाग या निशान न पड़े.

बिन में अगर 2 अलग फैब्रिक के कपड़े डाल रही हों तो उन के बीच एक पेपर पार्टीशन जरूर दें.

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लेबल जरूर पढ़ें

हर ब्रैंडेड आउटफिट में एक लेबल लगा होता है, जिस पर उसे स्टोर करने और साफ करने के निर्देश लिखे होते हैं. उन्हें जरूर पढ़ें.

यदि आप कपड़े मेड से धुलवाती हैं तो जाहिर है कि वह उस लेबल को नहीं पढ़ पाएगी. इस स्थिति में या तो आप खुद उस कपड़े को साफ करें या अपनी मेड को समझाएं.

अकसर लेबल पर अक्षरों की जगह चिह्नों का इस्तेमाल होता है. उन्हें समझने की कोशिश करें या किसी लौंड्री में जा कर उन चिह्न का अर्थ समझ लें.

लेबल पर बने जिस चिह्न पर (?) का निशान हो उस का अर्थ यह होता है कि संबंधित आउटफिट को साफ करने का यह तरीका गलत है.

धोने की तकनीक

कुछ कपड़े बहुत ही डैलिकेट होते हैं. ऐसे कपड़ों को मशीन की जगह हाथ से साफ करना चाहिए.

इन कपड़ों को न तो बहुत अधिक ठंडे पानी न ही अधिक गरम पानी में धोएं. इन के लिए पानी को हलका कुनकुना कर लें और उसी से इन्हें साफ करें.

कपड़े धोते समय अगर आप यह सोचती हैं कि झाग न उठने तक डिटर्जैंट डालते रहो, तो ऐसा करना गलत है. जितने कम डिटर्जैंट में कपड़ों को साफ किया जाएगा, उतना ही कम कैमिकल कपड़ों तक पहुंचेगा.

कपड़े को जिस टब में साफ किया जाए उस का खुद भी साफ होना जरूरी है. इसी तरह साफ पानी से ही कपड़े की धुलाई करें.

बारबार एक ही पानी से कपड़े को साफ न करें. कपड़े को पूरी तरह साफ होने में लगभग 3 से 4 बार साफ पानी से धोना जरूरी होता है.

कपड़े में से पूरी तरह डिटर्जैंट निकलना जरूरी होता है वरना फैब्रिक के खराब होने का डर रहता है.

ध्यान रखें, महंगे कपड़ों पर कभी भी ब्रश न चलाएं. यह फैब्रिक को खराब करता है.

इनरवियर की धुलाई करते वक्त उन के हाइजीन का भी ध्यान रखें. सप्ताह में कम से कम 2 बार इन को कुनकुने पानी में सौफ्ट डिटर्जैंट मिला कर 15 मिनट के लिए रखें. बाद में पानी से धो कर सुखाएं.

दाग को दें प्री ट्रीटमैंट

आप के किसी महंगे कपड़े पर खानेपीने की या कोई और चीज गिर जाए तो उस के दागधब्बे से बचने के लिए उसे प्री ट्रीटमैंट जरूर दें.

इस के लिए दाग को कस कर रगड़ें नहीं बल्कि उस पर पानी डालें और आहिस्ताआहिस्ता उंगलियों से उस स्थान को रगड़ें.

यदि दाग डिटर्जैंट से ही साफ हो सकता है तो उस स्थान पर तुरंत थोड़ा डिटर्जैंट लगा कर उसे साफ कर लें.

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धोने से पहले

यह मिथ है कि कपड़ों को पानी में भिगोने से वे खराब हो जाते हैं. बल्कि कपड़े अधिक गंदे न हुए हों तो उन्हें 15 मिनट तक पानी में डूबा रहने देने से उन में लगी गंदगी निकल जाती है.

कपड़ों से आने वाली किसी भी प्रकार की महक को दूर करने के लिए भी पानी में कुछ देर कपड़ों को भिगो देने से काम बन जाता है.

पानी में भिगोने के साथ ही आप उस में कलर सौफ्टनर या फैब्रिक सौफ्टनर डाल सकती हैं. बाजार में स्काईलैब या कंफर्ट जैसे ब्रैंड के सौफ्टनर और ब्राइटनर मौजूद हैं.

कपड़ों को भिगोने के बाद उन्हें एक बार साफ पानी में भी धो लें.

कपड़ों को सही तरीके से सुखाएं

कई लोग कपड़ों को जल्दी सुखाने के लिए उन्हें निचोड़ना शुरू कर देते हैं. यह गलत है. निचोड़ने से कपड़े के धागे टूट जाते हैं और कपड़ा कमजोर हो जाता है.

कपड़ों को सूरज की तेज रोशनी में कभी न सुखाएं. ऐसा करने से उन का रंग फेड होने और फैब्रिक के खराब होने का खतरा रहता है.

कई लोग कपड़ों को विंडो एसी के पीछे सूखने को डाल देते हैं. लेकिन क्या आप जानती हैं कि एसी से निकलने वाली गैस न केवल आप के कपड़ों बल्कि आप की त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकती है?

कपड़ों को हमेशा शेड में सूखने के लिए डालें. शेड में डालने का मतलब यह भी नहीं है कि आप कपड़ों को बंद कमरे में सूखने को डाल दें. ऐसे में कपड़ों में महक आने लगती है और वे पूरी तरह सूख भी नहीं पाते.

कपड़ों को सुखाते समय यह ध्यान जरूर रखें कि आसपास बिजली का तार न गुजर रहा हो. काम के साथ यह सतर्कता भी जरूरी है.

कपड़े चाहे कितने ही महंगे क्यों न हों, अपने हाथों से धुलाई करने से वे सुरक्षित तरीके से साफ भी हो जाते हैं और आप के पैसे भी बच जाते हैं. तो जब पैसे बच ही गए हैं, तो क्यों न खरीदें एक और नई ड्रैस.

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स्टाइलिंग से पहले कैसे करें बालों को Ready

बालों की स्टाइलिंग महिलाओं की खूबसूरती का अहम हिस्सा है. मगर इसे करते समय बालों में बहुत से हीट जैनरेटिंग टूल्स का इस्तेमाल होता है जो हमारे बालों को नुकसान पहुंचाने के साथसाथ उन की जड़ों को भी नुकसान पहुंचाते हैं. मौडर्न टूल्स हमारे बालों की नमी खत्म कर उन को मुरझाने, सूखने और टूटने पर भी मजबूर कर देते हैं.

ऐसे में कुछ उपचार आप के बालों को स्टाइलिंग से पहले मजबूत व स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होंगे:

अंडे का प्रयोग: अपने बालों की स्थिति में सुधार लाने के लिए अंडे का प्रयोग करें. इस से आप के बाल मुलायम बनेंगे और हीटिंग टूल्स का बालों पर असर कम होगा. यदि आप के बाल रूखे और डल हैं, तो अपने बालों को मौइश्चराइज करने के लिए अंडे के सफेद हिस्से का उपयोग करें.

इस के लिए अंडे को अच्छी तरह से फैंट कर दही या दूध के साथ मिला कर अपने बालों  पर लगाएं.

इस मिश्रण को 20 मिनट तक बालों में लगा छोड़ दें और फिर ठंडे पानी से धो लें.

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बादाम के तेल से मजबूत होंगे बाल: शुष्क और झड़ते बालों के इलाज के लिए बादाम के तेल का प्रयोग करें.

थोड़ा सा बादाम का तेल गरम कर 20 मिनट तक बालों में लगा छोड़ दें और फिर शैंपू और कंडीशनर से धो लें. बादाम का तेल बालों की जड़ों को पोषण देता है और स्कैल्प में रक्तप्रवाह भी नियंत्रित करता है.

यूवीए/यूवीबी किरणों से बालों को बचाएं: हानिकारक यूवीए/यूवीबी किरणों से बालों को बचाने के लिए शहद, जैतून का तेल और अंडे का मिश्रण बना कर अपने बालों पर

20 मिनट तक लगा कर अच्छी तरह धो लें. यह प्रक्रिया महीने में 2-3 बार जरूर दोहराएं. आप के बालों को प्रोटीन के रूप में भरपूर पोषण मिलेगा.

सफाई के महत्त्व को समझें: जिस प्रकार हमारे शरीर की सफाई जरूरी होती है उसी प्रकार हमारे बालों की भी सफाई बहुत जरूरी है. बालों के गिरने का सब से प्रमुख कारण डैंड्रफ है जोकि गंदगी से स्कैल्प पर जमा होने लगता है.

गरम पानी को करें बायबाय: गरम पानी हमारे बालों के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं होता, क्योंकि यह बालों को रूखासूखा बना देता है और बालों के नैचुरल औयल को भी नुकसान पहुंचाता है.

बालों को टाइट न बांधें: बालों को टाइट बांधने से वे भंगुर हो कर टूटने लगते हैं. वे अपनी जड़ों से खिंचने लगते हैं, जिस से बालों की जड़ें कमजोर होने लगती हैं.

उचित ब्रशिंग तकनीक अपनाएं: अपने बालों को ब्रश करने का सब से अच्छा तरीका सब से पहले उन के सिरों को ब्रश करने का होता है और फिर बालों की जड़ों से शुरू कर सिरे तक ब्रश को ले कर जाना चाहिए. यह तकनीक बालों के प्राकृतिक तेल को फैलने में मदद करती है और बालों को टूटने से भी बचाती है.

दिन में 2 बार बालों को ब्रश करने से बाल भी स्वस्थ रहते हैं और स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छा रहता है.

बालों को नियमित रूप से ट्रिम करें: शुष्क और विभाजित सिरों से मुक्ति पाने के लिए 3 से 4 महीनों में 1 बार अपने बालों को जरूर ट्रिम करवाएं. इस से दोमुंहे बाल खत्म होते हैं और साथ ही वे तेजी से बढ़ते भी हैं. नियमित ट्रिमिंग हमारे बालों के लिए बहुत अच्छी होती है और बालों को बाउंसी भी बनाती है.

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बालों को मौइश्चराइज करें: मौइश्चराइजिंग से बाल मुलायम होते हैं. इस के लिए अपने गीले बालों में औयल से 20 मिनट तक मालिश करें. फिर पानी से धो लें. सैलून जैसे चिकने बालों के लिए सप्ताह में एक बार यह प्रक्रिया जरूर करें.

बालों को ब्लो ड्राई न करें: हेयर ड्रायर या रोलर का उपयोग करने के बजाय अपने बालों को प्राकृतिक रूप से सूखने दें. बालों को सुखाने के इस कृत्रिम तरीके का उपयोग करने से आप के बाल भंगुर और रूखे हो जाते हैं. यदि आप के पास अपने बालों को सुखाने के लिए समय नहीं है, तो थोड़ी देर के लिए धूप में खड़ी हो जाएं या फिर ड्रायर का उपयोग करें जोकि ज्यादा गरम न हो.

-डा. अरविंद पोसवाल

फाउंडर, डाक्टर एस क्लीनिक

Summer क्लेक्शन के लिए परफेक्ट है ये येलो कौम्बिनेशन

गरमियों में अगर आप भी अपने वार्डरोब में कुछ ड्रेसेज का कलर चेंज करने की सोच रही हैं तो आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे. गरमियों में ज्यादातर लोग लाइट लेकिन ब्राइट कलर पहनना पसंद करते है, जिससे वह सुंदर दिखने के साथ-साथ ब्यूटीफुल और एलीगेंट भी दिखें. तो आज हम आपको ट्रेंडी कलर के कुछ पार्टी, वेडिंग और औफिस के लिए येलो के कुछ कौम्बिनेशन बताते हैं, जो आपके लुक को और भी ब्यूटिफुल बना देगा.

1. beach पर करनी हो पार्टी तो करें येलो रफल गाउन ट्राई

 

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आजकल फैशन में गाउन बहुत पौपुलर है. हर कोई गरमी में हल्की और कम्फरटेबल ड्रैसेज पहनना चाहता है. तो उसके लिए आप सनशाइन येलो कलर की औफ-स्लीव फ्लौवर प्रिंटेड गाउन को एक सुंदर कैप के साथ ट्राई कर सकती हैं, जिसमें आप खूबसूरत और ग्लोइंग लगेंगी.

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2.औफिस के लिए भी ट्राई कर सकती हैं येलो ड्रैस

आपका सोचना होगा की हम येलो कलर को औफिस के लिए कैसे पहन सकते हैं. तो ये एक्स्ट्रा स्लीव विद वी नैक वाली ड्रैस आपके लुक को ट्रैंडी बना देगा. साथ ही अगर इसे हील्स के साथ इस ड्रैस को कैरी करेंगी तो ब्यूटीफुल के साथ-साथ आप एलिगेंट दिखेंगी.

3. अगर दिखाना चाहती है अपने आप को सेक्सी

malaika

फैशन को लेकर दोस्तों के बीच बनानी है जगह तो जरूर ट्राई करें मलाइका अरोड़ा की येलो थाईं हाई स्लिट डीप क्लीवेज वाले स्ट्रैपलेस फ्लोई गाउन, जिसे पहनकर आप मलाइका की तरह हौट एंड सेक्सी दिख सकती हैं.

4. शादियों के लिए बेस्ट है येलो कलर  

हर भारतीय शादी में इंडियन और ट्रैडिशन ड्रेस पहनी जाती है, लेकिन अगर आप उसमें येलो कलर के लहंगे या सूट के साथ ट्रेडिशनल ज्वैलरी ट्राई करेंगी तो यह आपके लुक में चार चांद लगा देगा. समर वेडिंग के लिए आप चाहें तो आलिया के लुक को कौपी कर सकती हैं.

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दूरी- भाग 3 : समाज और परस्थितियों से क्यों अनजान थी वह

लेखक- भावना सक्सेना

बस चल पड़ी थी, वह दूर तक हाथ हिलाती रही. मन में एक कसक लिए, क्या वह फिर कभी इन परोपकारियों से मिल पाएगी? नाम, पता, कुछ भी तो न मालूम था. और न ही उन दोनों ने उस का नामपता जोर दे कर पूछा था. शायद जोर देने पर वह बता भी देती. बस, राह के दोकदम के साथी उस की यात्रा को सुरक्षित कर ओझल हो रहे थे.

बस खड़खड़ाती मंथर गति से चलती रही. वह 2 सीट वाली तरफ बैठी थी और उस के साथ एक वृद्धा बैठी थी. वह वृद्धा बस में बैठते ही ऊंघने लगी थी, बीचबीच में उस की गरदन एक ओर लुढ़क जाती. वह अधखुली आंखों से बस का जायजा ले, फिर ऊंघने लगती. और वह यह राहत पा कर सुकून से बैठी थी कि सहयात्री उस से कोई प्रश्न नहीं कर रहा. स्कूल के कपड़ों में उस का वहां होना ही किसी की उत्सुकता का कारण हो सकता था.

वह खिड़की से बाहर देखने लगी थी. किनारे के पेड़ों की कतारें, उन के परे फैले खेत और खेतों के परे के पेड़ों को लगातार देखने पर आभास होता था जैसे कि उस पार और इस पार के पेड़ों का एक बड़ा घेरा हो जो बारबार घूम कर आगे आ रहा हो. उसे सदा से यह घेरा बहुत आकर्षक लगता था. मानो वही पेड़ फिर घूम कर सड़क किनारे आ जाते हैं.

खेतों के इस पार और उस पार पेड़ों की कतारें चलती बस से यों लगतीं मानो धरती पर वृक्षों का एक घेरा हो जो गोल घूमता जा रहा हो. उसे यह घेरा देखते रहना बहुत अच्छा लगता था. वह जब भी बस में बैठती, बस, शहर निकल जाने का बेसब्री से इंतजार करती ताकि उन गोल घूमते पेड़ों में खो सके. पेड़ों और खयालों में उलझे, अपने ही झंझावातों से थके मस्तिष्क को बस की मंथर गति ने जाने कब नींद की गोद में सरका दिया.

आंख खुली तो बस मथुरा पहुंच चुकी थी. बिना किसी घबराहट के उस ने अपनेआप को समेट कर बस से नीचे उतारा. एक पुलकभर आई थी मन में कि नानीमामी उसे अचानक आया देख क्या कहेंगी, नाराज होंगी या गले से लगा लेंगी, वह सोच ही न पा रही थी. रिकशेवाले को देने के पैसे नहीं थे उस के पास, पर नाना का नाम ही काफी था.

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इस शहर में कदम रखने भर से एक यकीन था शंकर विहार, पानी की टंकी के नजदीक, नानी के पास पहुंचते ही सब ठीक हो जाएगा. नानीनाना ने बहुत लाड़ से पाला थाउसे. बचपन में इस शहर की गलियों में खूब रोब से घूमा करती थी वह. नानाजी कद्दावर, जानापहचाना व बहुत इज्जतदार नाम थे. शहरभर में नाम था उन का. तभी आज बरसों बाद भी उन का नाम लेते ही रिकशेवाले ने बड़े अदब से उसे उस के गंतव्य पर पहुंचा दिया था.

रिकशेवाले से बाद में पैसे ले जाने को कह कर वह गली के मोड़ पर ही उतर गई थी और चुपचाप चलती हमेशा की भांति खुले दरवाजे से अंदर आंगन में दाखिल हो गई थी. शाम के 4 बज रहे थे शायद, मामी आंगन में बंधी रस्सी पर से सूखे कपड़े उतार रही थीं. उसे देखते ही कपड़े वहीं पर छोड़ कर उस की ओर बढ़ीं और उसे अपनी बांहों में कस कर भींच लिया और रोतेरोते हिचकियों के बीच बोलीं, ‘‘शुक्र है, तू सहीसलामत है.’’ वे क्यों रो रही हैं, उस की समझ में न आया था.

वह बरामदे की ओर बढ़ी तो मामी उस का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले जाते हुए बोलीं, ‘‘जरा ठहर, वहां कुछ लोग बैठे हैं.’’ नानी को इशारे से बुलाया. उन्होंने भी उसे देखते ही गले लगा लिया, ‘‘तू ठीक तो है? रात कहां रही? स्कूल के कपड़ों में यों क्यों चली आई?’’ न जाने वो कितने सवाल पूछ रही थीं.

उसे बस सुनाई दे रहा था, समझ नहीं आ रहा था. शायद एकएक कर के पूछतीं तो वह कुछ कह भी पाती. आखिरकार मामा ने सब को शांत किया और उस से कपड़े बदलने को कहा. वह नहाधो कर ताजा महसूस कर रही थी. लेकिन एक अजीब सी घबराहट ने उसे घेर लिया था. घर में कुछ बदलाबदला था. कुछ था जो उसे संशय के घेरे में रखे था.

आज वह यहां एक अजनबी सा महसूस कर रही थी, मानो यह उस का घर नहीं था. ऐसा माहौल होगा, उस ने सोचा नहीं था. सब के सब कुछ घबरा भी रहे थे. वह नानी के कमरे में चली गई. पीछेपीछे मामी चाय और नाश्ता ले कर आ गईं. तीनों ने वहीं चाय पी. मामी और नानी शायद उस के कुछ कहने का इंतजार कर रहे थे और वह उन के कुछ पूछने का. कहा किसी ने कुछ भी नहीं.

मामी बरतन वापस रखने गईं तो वह नानी की गोद में सिर टिका कर लेट गई. सुकून और सुरक्षा के अनुभव से न जाने कब वह सो गई. आंख खुली तो बहुत सी आवाजें आ रही थीं. और उन के बीच से मां की आवाज, रुलाईभरी आवाज सुनाई दे रही थी. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी, लगता था उस की सारी शक्ति किसी ने खींच ली हो. काश, वह यहां न आ कर किसी कब्रिस्तान में चली गई होती.

मां और मामा उस के व्यवहार और चले आने के कारणों का विश्लेषण कर रहे थे. उसे उठा देख मां जोरजोर से रोने लगी थी और उसे उठा कर भींच लिया था. तेल के लैंप की रोशनी के रहस्यमय वातावरण में सब उसे समझाने लगे थे, वापस जाने की मनुहार करने लगे थे. वह चीख कर कहना चाहती थी कि वापस नहीं जाएगी लेकिन उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी.

कस कर आंखें मींचे वह मन ही मन से मना रही थी कि काश, यह सपना हो. काश, तेल का लैंप बुझ जाए और वे सब घुप अंधेरे में विलीन हो जाएं. उस की आंख खुले तो कोई न हो. लेकिन वह जड़ हो गई थी और सब उसे समझा रहे थे. हां, सब उसे ही समझा रहे थे. वह तो वैसे भी अपनी बात समझा ही नहीं पाती थी किसी को. सब ने उस से कहा, उसे समझाया कि मां उस से बहुत प्यार करती है.

सब कहते रहे तो उस ने मान ही लिया. उस के पास विकल्प भी तो न था. वह मातापिता के साथ लौट आई. अब मां शब्दों में ज्यादा कुछ न कहती. बस, एक बार ही कहा था, हम तो डर गए हैं तुम से, तुम ने हमारा नाम खराब किया, सब कोई जान गए हैं. वह घर में कैद हो गई. कम से कम स्कूल में कोई नहीं जानता. प्रिंसिपल जानती थी, उसे एक दिन अपने कमरे में बुलाया था.

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अपने को दोस्त समझने को कहा था. वह न समझ सकी. दिन गुजरते रहे. बरस बीतते रहे. जिंदगी चलती रही. पढ़ाई पूरी हुई. नौकरी लगी. विवाह हुआ. पदोन्नति हुई. और आज जब उस के दफ्तर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने छुट्टी मांगते हुए बताया कि वह अपनी एक वर्ष की बिटिया को नानी के घर में छोड़ना चाहती है तो ये बरसों पुरानी बातें उस के मस्तिष्क को यों झिंझोड़ गईं जैसे कल की ही बातें हों.

आज एक बड़े ओहदे पर हो कर, बेहद संजीदा और संतुलित व्यवहार की छवि रखने वाली, वह अपना नियंत्रण खोती हुई उस पर बरस पड़ी थी, ‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकती, सुवर्णा. यदि तुम्हारे पास बच्चे की देखभाल का समय नहीं था तो तुम्हें एक नन्हीं सी जान को इस दुनिया में लाने का अधिकार भी नहीं था. और जब तुम ने उसे जन्म दिया है तो तुम अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती.

‘‘नानी, मामी, दादी, बूआ सब प्यार कर सकती हैं, बेइंतहा प्यार कर सकती हैं पर वे मां नहीं हो सकतीं. आज तुम उसे छोड़ कर आओगी, वह शायद न समझ पाए. वह धीरेधीरे अपनी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठा लेगी. खुश भी रहेगी और सुखी भी. तुम भी आराम से रह सकोगी. लेकिन तुम दोनों के बीच जो दूरी होगी उस का न आज तुम अंदाजा लगा सकती हो और न कभी उसे कम कर सकोगी. ‘‘जिंदगी बहुत जटिल है, सुवर्णा, वह तुम्हें और तुम्हारी बच्ची को अपने पेंचों में बेइंतहा उलझा देगी. उसे अपने से अलग न करो.’’ वह बिना रुके बोलती जा रही थी और सुवर्णा हतप्रभ उसे देखती रह गई.

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पतझड़ में वसंत- भाग 2 : सुषमा और राधा के बनते बिगड़ते हालात

लेखिका- मृदुला नरुला

आज जब राधा को, सुषमा का मेल आया तो वह लाइब्रेरी में ही थी. ट्रस्ट के मैनेजर कई बार उस से कह चुके हैं ‘मैडम, हमें कोई लाइब्रेरियन बताएं. हमारे पास कोई लाइब्रेरियन नहीं है.’ वह सोच रही थी, ‘काश, आज सुषमा होती…’ ईमेल फिर से पढ़ कर सोचने लगी, ‘क्या जवाब दूं?’

‘प्रिय सुषमा

‘तेरी तरह मैं भी तुझे कभी नहीं भूली. यह दिल, घर का यह दरवाजा हमेशा ही तेरे स्वागत में खुला है. यह हिंदुस्तान है, यहां लोग किसी के घर पूछबता कर नहीं आते. फिर तू ने क्यों पूछा? शायद, विदेशी सभ्यता में ढल गई है. आएगी तो कान खींचूंगी, भला अपनी सभ्यता क्यों भूली.

‘तेरी अपनी राधा.’

एक दिन सुबहसुबह दरवाजे पर सुषमा को देख राधा चौंक पड़ी

‘‘अरे, यह कैसा सुखद संयोग.’’

‘‘लो, तूने ही तो मुझे याद दिलाया था कि यह हिंदुस्तान है. बस, मुंह उठाए चली आई. कोई शक?’’

‘‘नहीं, कोई शक नहीं,’’ राधा ने देखा, दोनों के मिलनसुख में सुषमा के नयन कटोरे छलछला रहे हैं. राधा भी अपने को रोक न सकी. दोनों सहेलियां बहुत देर तक अनकहे दुख से एकदूसरे को भिगोती रहीं. पतियों की बातें, उन की मृत्यु का दुखद आगमन, फिर बच्चे. बच्चों की बात पर सुषमा चुप हो गई. राधा को कुछ अजीब सा लगा.

सो, आगे कुछ भी न बोली. सोचा, थकी है शायद, जैटलैग उतरेगा, तभी सामान्य हो पाएगी. बच्चों की बातें फिर कभी.

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सुषमा को आए डेढ़ महीना गुजर गया था. पर चेहरे की उदासी न गई. हंसताखिलखिलाता चेहरा जैसे वह अमेरिका में ही छोड़ आई थी.

‘‘क्या तुझे यहां मेरे घर में कुछ परेशानी है?’’ राधा के मन में कहीं अपराधबोध भी था.

‘‘अरे नहीं, बस यों ही,’’ सुषमा बात को टालना चाहती थी.

एक दिन एनजीओ से लौटी तो देखा सुषमा फूटफूट कर रो रही थी.

उसे रोता देख राधा घबरा गई, ‘‘क्या हुआ? बताती क्यों नहीं. मुझ से तो कहती है, मैं तेरी सहेली हूं. फिर क्यों अंदर ही अंदर घुट रही है?’’

यह सुन कर सुषमा का रोना और तेज हो गया.

राधा ने उसे झकझोर कर कहा, ‘‘मैं जो समझ पा रही हूं वह शायद यह है कि कोई ऐसी बात तो जरूर है जो तू मुझ से छिपा रही है. वैसे, मैं होती कौन हूं यह सब पूछने वाली? मैं तेरी कलीग ही तो हूं. बहुत बदल गईर् है, तू.’’

‘‘राधा, नहीं ऐसा मत कह, तू ही तो है जिस से आज तक मैं ने हर बात साझा की है,’’ वह बताने लगी, ‘‘10 साल पहले हम ने इंडिया छोड़ने से पहले देहरादून में फ्लैट खरीदा था. यह सोच कर कि कभी इंडिया आएंगे तो ठाठ से रहेंगे. जाते समय फ्लैट की चाबी जेठ के बेटे रवि को दे गई थी. यहां आने से पहले मैं ने रवि से फोन पर कहा, साफसफाई करा कर रखना. मैं इंडिया आ रही हूं. काफी समय से मैं उस के संपर्क में हूं. कुछ दिनों पहले कहता था, घर तैयार नहीं है.

‘‘आज फोन किया तो बताया, ‘आंटी, वह मकान मैं ने बेच दिया है. जल्दी दूसरा खरीद दूंगा. मुझे एक महीने का समय दो.’ राधा, मैं तो कहीं की नहीं रही. पहले तो मेरे बच्चों ने दुत्कार दिया, अब यहां ये सब…’’

‘‘क्या? बेटों ने तुझे दुत्कारा? मुझे कुछ अंदाजा तो था कि आज डेढ़ महीने से अंदर ही अंदर किसी दर्द को ले कर तू तड़प रही है,’’ राधा ने मन की बात कह दी.

‘‘हां, आज मैं तुझे सारी कहानी सुनाऊंगी, 10 वर्षों पहले मेरे बेटों ने खूबसूरत साजिश रची थी. हम दोनों को इमोशनल ब्लैकमेल कर के, हमें अमेरिका आने का निमंत्रण दिया. हम ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया तो कहा, ‘आप दोनों के नाम से हम एक होटल खोलना चाहते हैं. इस में आप का शेयर भी होगा.’ रमेश को लगा, बच्चों ने ठीक सोचा है. घर का पैसा घर में ही रहेगा. कुछ पैसे से हम ने देहरादून में फ्लैट खरीद लिया. जिस के बारे में बच्चों को आज भी जानकारी नहीं है. हां, कुछ पैसे हम ने यहां बैंक में भी छोड़ दिए थे.

‘‘अमेरिका पहुंच कर हम दोनों की खुशी दूनी हो गई जब पता लगा हम दोनों दादादादी बनने वाले हैं. बड़े बेटे विशाल के घर मेहमान आने वाला है. सोच कर मैं ने बहू को अपने गले की चेन देने का मन बना लिया था. बहू के घर बेटा हुआ. मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था. बहू की सेवा में मैं दिनरात लगी रहती थी.

‘‘बच्चा 6 महीने का हो गया तो बहू औफिस जाने लगी. दिनभर बच्चा मेरे पास रहता, रात को बहू के आने पर मैं रसोई में घुस जाती. पर अब तक मैं थक कर चूर हो चुकी होती थी. बच्चा 2 साल का हो गया तो नर्सरी जाने लगा. मैं ने राहत की सांस ली. तभी एक दिन छोटी बहू का फोन आया, ‘मांजी, आप फिर से दादी बनने वाली हैं. मैं आप को आ कर ले जाऊंगी.’

‘‘ठीक है, बहू की बात सुन कर मन तो खुश हुआ पर याद आया, कुछ दिनों पहले इसी के पति (मेरे बेटे) ने बताया था. ‘इंडिया से मेरी सास आई हैं. कुछ महीने रहेंगी.’ क्या बहू अपनी मां को प्रसव तक रोक नहीं सकती थी?

‘‘पहली बार लगा, मुझे इन लोगों ने फालतू समझा है? चुप रही. छोटे के घर बेटी ने जन्म लिया. मैं पिछला सब भूल कर फिर अपनी पुरानी फौर्म में आ गई. सोचने लगी, मेरे पास और काम ही क्या है, ये तो अपने बच्चे हैं. मैं जब नौकरी करती थी, तब मेरी सास बच्चों को संभालती थीं. मैं कुछ अनोखा तो कर नहीं रही. हां, यह जरूर था अब मैं पहले की अपेक्षा थकने लगी थी. मेरी थकान से जिसे सब से ज्यादा तकलीफ होती थी, मेरे पति थे. वे कहते, ‘क्यों सारा दिन खटती हो. बिलकुल नौकरमाई बन गई हो. छोड़ोे सब.’ मैं जानती थी. मेरी तकलीफ पति के सिवा कोई नहीं समझता.

‘‘एक दिन रमेश को दिल का दौरा पड़ा. बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका. मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गईर् थी. दिनरात अकेले पड़ी रोती रहती. कभी कोई बेटा या बहू पूछने भी न आते. कभीकभार छोटी बिटिया मेरे आंसू पोंछ कर तोतली भाषा में पूछ लेती, ‘दादी मम्मा, आप क्यों रो रही हो?’ मन करता खूब चिल्लाचिल्ला कर रोऊं. कितनी दुखी और बेबस हूं मैं. इन सब से तो यह 5 वर्ष की बिटिया भली है जो मेरे आंसू देख कर बेचैन हो जाती है. राधा, मैं बिलकुल टूट चुकी थी. तब मुझे यहां की बहुत याद आई. जी करता पंख लगा कर उड़ जाऊं, इंडिया पहुंच जाऊं.

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‘‘एक रोज बीच वाली बहू ने फोन किया, ‘मम्मी, अब आप मेरे पास रहेंगी.’

‘‘‘नहीं बेटा, मुझे माफ करो. अब मैं तुम लोगों की सेवा न कर पाऊंगी.’

‘‘‘क्यों?’

‘‘मैं रुलाई रोक न पाई. उधर से बहू ने फोन पलट दिया. मैं रोती रही. उस दिन मुझे यकीन हो गया कि इन बच्चों ने मुझे आयानौकर से ज्यादा कुछ भी नहीं समझा. ये बच्चे मेरे दुख को क्यों नहीं समझते? पति को गए सिर्फ 6 महीने हुए हैं. मुझे तो दोशब्द संवेदना के चाहिए. ये फोन पटक कर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं.

‘‘राधा, इस घटना के बाद सब के चेहरे का नकाब उतरने लगा. मुझे ले कर बहूबेटों में खुसरफुसुर होने लगी. परोक्ष से कई बार सुना. ‘मम्मी, हम तीनों के पास 4-4 महीने रहेंगी.’ एक बहू बोली, ‘न, न, न.’ दूसरी ने कहा, ‘तो क्या करें?’

‘‘राधा, बस, मैं ने समझ लिया था कि यहां रुकना ठीक नहीं हैं. किंतु जाऊंगी कहां? कोई न कोई रास्ता तो निकालना होगा.

‘‘एक दिन बड़े बेटे विशाल ने कहा, ‘मम्मी, हम नया हौस्पिटल खोल रहे हैं. हमें कुछ पैसा चाहिए. पापा के जो 20 लाख रुपए जमा हैं, उन में से 15 लाख रुपए दे दो.’

‘‘‘सोचूंगी.’

‘‘मैं ने सोच रखा था, इन्हें तो अब एक कौड़ी न दूंगी. एक दिन छोटे बेटे विभव ने कहा, ‘मम्मी, एक  और बात, हम लोगों का छोटे फ्लैट में शिफ्ट होने का इरादा है. ऐसे में हम तीनों के साथ आप रह न सकोगी. सो, 6 महीने के लिए आप ओल्डएज होम में रह लो. नया घर बनते ही हम आप को ले आएंगे.’

‘‘मैं निशब्द, लगा, सारे शरीर का खून निचुड़ गया है. मैं ने हिम्मत दिखाई. मन के भीतर जो उमड़ रहा था, सब कह देना चाहती थी. सो, ‘ठीक है बेटा, तुम सब ने मिल कर बढि़या खेल रचा है. पहले हमें इमोशनल ब्लैकमेल कर के बच्चे पालने के लिए यहां बुला लिया. 10 वर्षों तक तुम हम से काम लेते रहे. जब मैं ने मानसिक व शारीरिक असमर्थता दिखाई, तो ओल्डएज होम का रास्ता दिखा दिया. अरे, गोरों के साथ रह कर तुम्हारे तो खून भी सफेद हो गए हैं. लानत है मुझ पर, मेरी कोख पर, जिस ने ऐसी निकम्मी औलादें पैदा कीं.’

‘‘‘कहां गए वे संस्कार, वे भारतीयों के जीवन मूल्य? थू है तुम पर, तुम्हारी शिक्षा पर.’ मेरी तीखी आवाज सुन कर बेटे इधरउधर हो गए थे. बहुएं तो पहले ही खिसक गई थीं. मैं बड़ी देर तक अकेली रोती रही. कमरे से बाहर आ कर किसी ने संवेदना के दोशब्द भी न कहे.

‘‘राधा, विश्वास नहीं होता था ये हमारे बेटे हैं. मैं ने तय कर लिया था, मैं इंडिया वापस जाऊंगी, यहां रही तो घुटघुट कर मर जाऊंगी. पर सवाल यह था, जाऊंगी कहां, रहूंगी कहां? मन अतीत के पन्ने पलटने लगा.

‘‘मन की लिस्ट में सब से ऊपर तेरा नाम था. इसीलिए मेल डाला था, ‘इंडिया पहुंच कर क्या मैं तेरे पास रुक सकती हूं? शुक्र है, अंतिम समय, अपनी धरती तो नसीब हो गई. नहीं तो किसी ओल्डएज होम की दीवारों से टक्कर मारमार कर मर जाती.’’

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पापा जल्दी आ जाना- भाग 1: क्या पापा से निकी की मुलाकात हो पाई?

‘‘पापा, कब तक आओगे?’’ मेरी 6 साल की बेटी निकिता ने बड़े भरे मन से अपने पापा से लिपटते हुए पूछा.

‘‘जल्दी आ जाऊंगा बेटा…बहुत जल्दी. मेरी अच्छी गुडि़या, तुम मम्मी को तंग बिलकुल नहीं करना,’’ संदीप ने निकिता को बांहों में भर कर उस के चेहरे पर घिर आई लटों को पीछे धकेलते हुए कहा, ‘‘अच्छा, क्या लाऊं तुम्हारे लिए? बार्बी स्टेफी, शैली, लाफिंग क्राइंग…कौन सी गुडि़या,’’ कहतेकहते उन्होंने निकिता को गोद में उठाया.

संदीप की फ्लाइट का समय हो रहा था और नीचे टैक्सी उन का इंतजार कर रही थी. निकिता उन की गोद से उतर कर बड़े बेमन से पास खड़ी हो गई, ‘‘पापा, स्टेफी ले आना,’’ निकिता ने रुंधे स्वर में धीरे से कहा.

उस की ऐसी हालत देख कर मैं भी भावुक हो गई. मुझे रोना उस के पापा से बिछुड़ने का नहीं, बल्कि अपना बीता बचपन और अपने पापा के साथ बिताए चंद लम्हों के लिए आ रहा था. मैं भी अपने पापा से बिछुड़ते हुए ऐसा ही कहा करती थी.

संदीप ने अपना सूटकेस उठाया और चले गए. टैक्सी पर बैठते ही संदीप ने हाथ उठा कर निकिता को बाय किया. वह अचानक बिफर पड़ी और धीरे से बोली, ‘‘स्टेफी न भी मिले तो कोई बात नहीं पर पापा, आप जल्दी आ जाना,’’ न जाने अपने मन पर कितने पत्थर रख कर उस ने याचना की होगी. मैं उस पल को सोचते हुए रो पड़ी. उस का यह एकएक क्षण और बोल मेरे बचपन से कितना मेल खाते थे.

मैं भी अपने पापा को बहुत प्यार करती थी. वह जब भी मुझ से कुछ दिनों के लिए बिछुड़ते, मैं घायल हिरनी की तरह इधरउधर सारे घर में चक्कर लगाती. मम्मी मेरी भावनाओं को समझ कर भी नहीं समझना चाहती थीं. पापा के बिना सबकुछ थम सा जाता था.

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बरामदे से कमरे में आते ही निकिता जोरजोर से रोने लगी और पापा के साथ जाने की जिद करने लगी. मैं भी अपनी मां की तरह जोर का तमाचा मार कर निकिता को चुप करा सकती थी क्योंकि मैं बचपन में जब भी ऐसी जिद करती तो मम्मी जोर से तमाचा मार कर कहतीं, ‘मैं मर गई हूं क्या, जो पापा के साथ जाने की रट लगाए बैठी हो. पापा नहीं होंगे तो क्या कोई काम नहीं होगा, खाना नहीं मिलेगा.’

किंतु मैं जानती थी कि पापा के बिना जीने का क्या महत्त्व होता है. इसलिए मैं ने कस कर अपनी बेटी को अंक में भींच लिया और उस के साथ बेडरूम में आ गई. रोतेरोते वह तो सो गई पर मेरा रोना जैसे गले में ही अटक कर रह गया. मैं किस के सामने रोऊं, मुझे अब कौन बहलानेफुसलाने वाला है.

मेरे बचपन का सूर्यास्त तो सूर्योदय से पहले ही हो चुका था. उस को थपकियां देतेदेते मैं भी उस के साथ बिस्तर में लेट गई. मैं अपनी यादों से बचना चाहती थी. आज फिर पापा की धुंधली यादों के तार मेरे अतीत की स्मृतियों से जुड़ गए.

पिछले 15 वर्षों से ऐसा कोई दिन नहीं गया था जिस दिन मैं ने पापा को याद न किया हो. वह मेरे वजूद के निर्माता भी थे और मेरी यादों का सहारा भी. उन की गोद में पलीबढ़ी, प्यार में नहाई, उन की ठंडीमीठी छांव के नीचे खुद को कितना सुरक्षित महसूस करती थी. मुझ से आज कोई जीवन की तमाम सुखसुविधाओं में अपनी इच्छा से कोई एक वस्तु चुनने का अवसर दे तो मैं अपने पापा को ही चुनूं. न जाने किन हालात में होंगे बेचारे, पता नहीं, हैं भी या…

7 वर्ष पहले अपनी विदाई पर पापा की कितनी कमी महसूस हो रही थी, यह मुझे ही पता है. लोग समझते थे कि मैं मम्मी से बिछुड़ने के गम में रो रही हूं पर अपने उन आंसुओं का रहस्य किस को बताती जो केवल पापा की याद में ही थे. मम्मी के सामने तो पापा के बारे में कुछ भी बोलने पर पाबंदियां थीं. मेरी उदासी का कारण किसी की समझ में नहीं आ सकता था. काश, कहीं से पापा आ जाएं और मुझे कस कर गले लगा लें. किंतु ऐसा केवल फिल्मों में होता है, वास्तविक दुनिया में नहीं.

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उन का भोला, मायूस और बेबस चेहरा आज भी मेरे दिमाग में जैसा का तैसा समाया हुआ था. जब मैं ने उन्हें आखिरी बार कोर्ट में देखा था. मैं पापापापा चिल्लाती रह गई मगर मेरी पुकार सुनने वाला वहां कोई नहीं था. मुझ से किसी ने पूछा तक नहीं कि मैं क्या चाहती हूं? किस के पास रहना चाहती हूं? शायद मुझे यह अधिकार ही नहीं था कि अपनी बात कह सकूं.

मम्मी मुझे जबरदस्ती वहां से कार में बिठा कर ले गईं. मैं पिछले शीशे से पापा को देखती रही, वह एकदम अकेले पार्किंग के पास नीम के पेड़ का सहारा लिए मुझे बेबसी से देखते रहे थे. उन की आंखों में लाचारी के आंसू थे.

मेरे दिल का वह कोना आज भी खाली पड़ा है जहां कभी पापा की तसवीर टंगा करती थी. न जाने क्यों मैं पथराई आंखों से आज भी उन से मिलने की अधूरी सी उम्मीद लगाए बैठी हूं. पापा से बिछुड़ते ही निकिता के दिल पर पड़े घाव फिर से ताजा हो गए.

जब से मैं ने होश संभाला, पापा को उदास और मायूस ही पाया था. जब भी वह आफिस से आते मैं सारे काम छोड़ कर उन से लिपट जाती. वह मुझे गोदी में उठा कर घुमाने ले जाते. वह अपना दुख छिपाने के लिए मुझ से बात करते, जिसे मैं कभी समझ ही न सकी. उन के साथ मुझे एक सुखद अनुभूति का एहसास होता था तथा मेरी मुसकराहट से उन की आंखों की चमक दोगुनी हो जाती. जब तक मैं उन के दिल का दर्द समझती, बहुत देर हो चुकी थी.

मम्मी स्वभाव से ही गरम एवं तीखी थीं. दोनों की बातें होतीं तो मम्मी का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज हो जाता और पापा का धीमा होतेहोते शांत हो जाता. फिर दोनों अलगअलग कमरों में चले जाते. सुबह तैयार हो कर मैं पापा के साथ बस स्टाप तक जाना चाहती थी पर मम्मी मुझे घसीटते हुए ले जातीं. मैं पापा को याचना भरी नजरों से देखती तो वह धीमे से हाथ हिला पाते, जबरन ओढ़ी हुई मुसकान के साथ.

मैं जब भी स्कूल से आती मम्मी अपनी सहेलियों के साथ ताश और किटी पार्टी में व्यस्त होतीं और कभी व्यस्त न होतीं तो टेलीफोन पर बात करने में लगी रहतीं. एक बार मैं होमवर्क करते हुए कुछ पूछने के लिए मम्मी के कमरे में चली गई थी तो मुझे देखते ही वह बरस पड़ीं और दरवाजे पर दस्तक दे कर आने की हिदायत दे डाली. अपने ही घर में मैं पराई हो कर रह गई थी.

एक दिन स्कूल से आई तो देखा मम्मी किसी अंकल से ड्राइंगरूम में बैठी हंसहंस कर बातें कर रही थीं. मेरे आते ही वे दोनों खामोश हो गए. मुझे बहुत अटपटा सा लगा. मैं अपने कमरे में जाने लगी तो मम्मी ने जोर से कहा, ‘निकी, कहां जा रही हो. हैलो कहो अंकल को. चाचाजी हैं तुम्हारे.’

मैं ने धीरे से हैलो कहा और अपने कमरे में चली गई. मैं ने उन को इस से पहले कभी नहीं देखा था. थोड़ी देर में मम्मी ने मुझे बुलाया.

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‘निकी, जल्दी से फे्रश हो कर आओ. अंकल खाने पर इंतजार कर रहे हैं.’

मैं टेबल पर आ गई. मुझे देखते ही मम्मी बोलीं, ‘निकी, कपड़े कौन बदलेगा?’

‘ममा, आया किचन से नहीं आई फिर मुझे पता नहीं कौन से…’

‘तुम कपड़े खुद नहीं बदल सकतीं क्या. अब तुम बड़ी हो गई हो. अपना काम खुद करना सीखो,’ मेरी समझ में नहीं आया कि एक दिन में मैं बड़ी कैसे हो गई हूं.

‘चलो, अब खाना खा लो.’

आगे पढ़ें- मम्मी अंकल की प्लेट में जबरदस्ती खाना डाल कर…

Dipika Kakar का Sasural Simar Ka 2 से रातों रात कटा पत्ता! पढ़ें खबर

कलर्स के ‘ससुराल सिमर का’ की सिमर यानी दीपिका कक्कड़ फैंस के बीच काफी पौपुलर रही हैं. वहीं इसका दूसरा सीजन ‘ससुराल सिमर का 2’ (Sasural Simar Ka 2) भी लोगों के दिलों में खास जगह बनाता जा रहा है. हालांकि इसका कुछ श्रेय सिमर यानी दीपिका कक्कड़ को भी जाता है. लेकिन खबर है कि एक्ट्रेस दीपिका कक्कड़ जल्द ही शो को अलविदा कहने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

सिमर की कहानी होगी खत्म

खबरों की मानें तो  ‘ससुराल सिमर का 2’ (Sasural Simar Ka 2)  में सिमर यानी दीपिका कक्कड़ (Dipika Kakar) का रोल कुछ ही एपिसोड्स के लिए था, जिसके कारण मेकर्स ने उनके किरदार को खत्म करने का फैसला किया है. वहीं कहा जा रहा है कि इस दीपिका कक्कड़ का किरदार फिल्मी अंदाज में दर्शकों को अलविदा कहेगा.

 

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इस तरह होगा ट्रैक खत्म!

 

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दूसरी तरफ सीरियल की बात करें तो ससुराल सिमर का 2 के अपकमिंप एपिसोड में गीतांजलि सभी के सामने बड़ी सिमर की खूब बेइज्जती करेगी. सिमर अपना पक्ष रखने की कोशिश करेगी, लेकिन गीतांजलि उसकी नहीं सुनेगी. दरअसल, इसी के चलते सिमर घर छोड़ने का फैसला करेगी, जिसके बाद दीपिका का किरदार खत्म हो जाएगा.

बता दें,  आरव और छोटी सिमर की शादी हो गई है. हालांकि अब तक इस बात से बेखबर आरव को पता चल गया है कि सिमर से उसकी शादी हो चुकी है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में फैंस को दोनों की बौंडिंग देखने को भी मिलेगी. लेकिन इससे पहले कहानी में कई मोड़ आएंगे, जो दर्शकों को एंटरटेन करेंगे.

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आखिर एक्ट्रेस विद्या बालन क्यों बनी ‘शेरनी’, पढ़ें खबर

अभिनेत्री विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ की एक टाइटल म्यूजिकका लौंच अमेजन प्राइम विडियो पर किया गया, जिसमें विद्या ने फारेस्ट ऑफिसर विद्या विंसेट की भूमिका निभाई है, जो अपनी बात सबके सामने एक शेरनी की तरह रख सकती है.उनके साथ 9 ऐसी महिलायें है, जो कठिन परिस्थिति से गुजर कर अपनी मंजिल पायी है. विद्या कहती है कि मैं एक अभिनेत्री होने की वजह से लोग मुझे और मेरे काम को देखते और सराहते है, लेकिन ऐसी बहुत सी महिलाएं है जिन्हें हम नहीं जानते और उन्होंने भी अपने रास्ते एक शेरनी की तरह तय कर अपनी मंजिल पायी है.

असल में हर महिला में एक शेरनी होती है और वे इसे समझती नहीं. ऐसी महिलाएं बिना कुछ कहे लगातार चुनौती का सामनाकरती रहती है.मैंने देखा है कि अधिकतर घरेलू महिलाएं चुपचाप, शांत और अपनी भावनाओं को बिना बताये रहती है और वह परिवार में अदृश्य रहती है, कोई उसकी मौजूदगी को महसूस नहीं करता. मैं उन सभी महिलाओं को इस संगीत के द्वारा सैल्यूट करना चाहती हूं. मेरे जीवन में मेरी माँ शेरनी है, उन्होंने बिना कुछ कहे समस्याओं का सामना कर मुझे बड़ा किया और हमेशा मेरा साथ दिया है. उम्र के इस पढ़ाव में भी वह डांस, फिटनेस, संगीत सीखती और खुश रहती है. माँ हमेशा कहती है कि जितना तुम झुकोगे, लोग उतना ही तुमको झुकायेंगे. इसलिए डटकर किसी समस्या का समाधान करो. इसके अलावा मेरी बहन और भतीजी भी शेरनी की तरह घने जंगल में अपना रास्ता बना लेने में सक्षम है.

 

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इसके आगे विद्या कहती है कि इस म्यूजिक वीडियो को करते वक्त जब मैं जंगल में गयी, तो वहां की ताज़ी हवा, आकर्षक हरियाली, पर्वत, जलाशय आदि को देखकर मैंने प्रकृति के इस क्रिएशन को धन्यवाद दिया. इसके अलावा मेरे अंदर एक शक्ति है, जो किसी भी समस्या का हल निकाल सकती है, क्योंकि जंगल नष्ट कर दिए जाने पर भी प्रकृति उसे बार-बार सहेजती है.

 

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15 साल के इस कैरियर में विद्या ने फिल्म ‘परिणीता’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अभिनय कीलोहा मनवा चुकी है. फिल्म‘लगे रहो मुन्ना भाई’विद्या कैरियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उसे पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.उसने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते.साल 2014 में उसे पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. विद्या ने फिल्म ‘मिशन मंगल’ और ‘शकुंतला’ जैसी महिला प्रधान फिल्में की है, इसकी वजह के बारें में वह कहती है किमैं महिला प्रधान फिल्म सोचकर नहीं करती. मैं उन कहानियों को चुनती हूं, जो सबको कही जाय और सब पसंद करें, ऐसे में अगर महिला प्रधान फिल्म हो तो मुझे कोई समस्या नहीं और जिस फिल्म में मेरी भूमिका मेरे लायक हो, उसे मैं चुनती हूं. हर चरित्र कुछ न कुछ सिखाती है. मैंने इस फिल्म से भी बहुत कुछ सीखा है. ऐसी फिल्में आपको अंदर से पूरा करती है. इसके अलावा एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है.

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