सरकारी अंकुश का असली सच

जब से ट्विटर और व्हाट्सऐप पर सरकारी अंकुश की बात  हुई है, लोगों की जो भी मरजी हो इन सोशल मीडिया प्लेटफौर्मों पर बकवास डालने की आदतों पर थोड़ा ठंडा पानी पड़ गया है. हमारे यहां ऐसे भक्तों की कमी नहीं जो अपनी जातिगत श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को आंख मूंद कर समर्थन कर रहे थे और विरोधियों के बारे में हर तरह की अनापशनाप पोस्ट क्रिएट करने या फौरवर्ड करने में लगे थे. अब यह आधार ठंडा पड़ने लगा है.

सरकारी अंकुश इसलिए लगा है कि अब सरकारी प्रचार की पोल खोली जाने लगी है. कोविड से मरने वालों की गिनती जिस तरह से बढ़ी थी उस से भयभीत हो कर लोगों को पता लगने लगा कि मंदिर और हिंदूमुसलिम करने में जानें जाती हैं क्योंकि सरकार की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. भक्त तो कम बदले पर जो सम झदार थे उन की पूछ बढ़ने लगी है और उन्हें जवाबी गालियां मिलनी बिलकुल बंद हो गई हैं.

जैसे पहले  झूठ के बोलबाले ने सच को दबा दिया था वैसे ही सच का बोलबाला  झूठ को दबा रहा है और सरकार को यह मंजूर नहीं.

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हमारे धर्मग्रंथ और धार्मिक मान्यताएं  झूठ के महलों पर खड़ी हैं. कोईर् भी धार्मिक कहानी पढ़ लो  झूठ से शुरू होती है और  झूठ पर खत्म होती है और उसे ही आदर्श मान कर सरकार ने  झूठ पर  झूठ बोला जो अब ट्विटर और व्हाट्सऐप पर जम कर परोसा जा रहा है.

ट्विटर ने भाजपा के संबित पात्रा के ट्विट्स को मैनिपुलेटेड कह डाला तो सरकार अब महल्ले की सासों की सरदार बन कर उतर आई है और पढ़ीलिखी बहुओं का मुंह बंद करने की ठान ली है.

‘हमारे रीतिरिवाज तो यही हैं और यही चलेंगे’ की तर्ज पर सरकार भी यही संविधान है और हम ही तय करेंगे कि यह संविधान किस तरह पढ़ा जाएगा. सासें तय करेंगी कि कौन क्या पहनेगा क्योंकि संस्कृति की रक्षा तो उन्हीं के हाथों में है चाहे वे सारे महल्ले में सब के बारे में सच बताने के नाम पर अफवाहें फैलाती रहती हों.

अब देश में एक तरफ कट्टरपंथी सासनुमा सरकार है, तो दूसरी तरफ बहुएं हैं, जो आजादी भी मांग रही हैं और तर्क भी पेश कर रही हैं और दोनों का युद्ध ट्विटर और व्हाट्सऐप की गली के आरपार हो रहा है. आप घूंघट वालियों के साथ हैं या जींस वालियों के साथ?

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गांरटीड नौकरी चाहिए तो करियर को दें अप्रेंटिस का कवच

अगर आपने हाल में ही 10 वीं या 12वीं पास की है या पहले से ही ग्रेजुएट हैं.लेकिन नौकरी न मिलने से परेशान हैं तो यह लेख आपके लिए ही है.यूं तो कहा जा सकता है कि इस भीषण बेरोजगारी के दौर में नौकरी मिलने की गारंटी किसी भी डिग्री या डिप्लोमा में नहीं है और यह सच भी है है.लेकिन इस बड़े सच के परे भी एक सच है.वह यह कि अगर आपने अपरेंटिस की हुई है तो समझिये नौकरी की गारंटी है.दूसरे शब्दों में अगर गारंटीड नौकरी चाहिए तो 10 वीं के बाद कभी भी किसी अपरेंटिस प्रोग्राम का हिस्सा बन जाइए नौकरी हर हाल में मिलेगी.

बेरोजगारी के इस भीषण दौर में भी अपरेंटिस किये लोगों को 100 फीसदी रोजगार मिल रहा है. 24 जून 2021 तक रेलवे में करीब 4000 अपरेंटिस की भर्ती होने जा रही है.एक रेलवे ही नहीं मई और जून के महीने में ऐसी दर्जनों सरकारी, गैर सरकारी, सार्वजनिक उपक्रम और मल्टीनेशनल कंपनियां तक अपरेंटिसशिप की रिक्तियां निकालती हैं. अपरेंटिसशिप का मतलब होता है एक किस्म का ट्रेनिंग प्रोग्राम.इस कार्यक्रम के तहत बिल्कुल नये लोगों को किसी क्षेत्र विशेष के काम की ट्रेनिंग दी जाती है.

लेकिन यह ट्रेनिंग विद्यार्थियों के सरीखे नहीं मिलती. यह ट्रेनिंग दरअसल ट्रेंड लोगों के साथ पूरे समय नियमित कर्मचारियों की तरह किये जाने वाले काम के रूप में मिलती है.यहां इन ट्रेनीज से पूरे समय एक नियमित कामगार के तौरपर काम कराया जाता है. जिस संस्थान में अपरेंटिसशिप होती है वहां इन ट्रेनीज पर वही नियम लागू होते हैं,जो नियमित कामगारों पर लागू होते हैं सिवाय वेतनमान के.अपरेंटिस संस्थान के नियमित कर्मचारियों की तरह ही भीकाम में आते हैं और उन्हीं की तरह उनकी भी छुट्टी होती है.

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अपरेंटिसशिप छह महीने से लेकर चार साल तक के लिए होती है.अलग अलग संस्थानों में,इसके अलग अलग नियम हैं. मगर आमतौर पर रेलवे, स्टील ऑथोरिटी आफ इंडिया[सेल] भारत हैवी इलेक्ट्रिक्ल लिमिटेड(भेल), जैसे संस्थानों में तीन से चार साल तक की अपरेंटिसशिप ट्रेनिंग होती है.इस ट्रेनिंग कार्यक्रम में प्रवेश पाने के लिए भी यूं तो बहुत मारामारी है,लेकिन अगर आप सेलेक्ट हो गए हैं तो समझिये अब नौकरी मिलनी की गारंटी है.

दरअसल कोई भी कंपनी अकुशल कामगार चुनेगी ही नहीं यदि यदि विकल्प के रूप में उसके सामने कुशल कामगार मौजूद होंगे.अपरेंटिसशिप करने के बहुत फायदे हैं.एक तो सही मायनों में एक सामान्य व्यक्ति उस काम विशेष की कुशलता हासिल कर लेता है, चार साल की इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद भी जो इंजीनियर नहीं हासिल कर पाता. क्योंकि भारत में कितने अच्छे तकनीकी संस्थान हों हर जगह प्रैक्टिकल की सुविधा वैसी है ही नहीं जैसी होनी चाहिए.लेकिन अपरेंटिसशिप में बिलकुल परफेक्ट ट्रेनिंग होती है.

इसीलिये अपरेंटिसशिप के बाद नौकरी मिलनी  लगभग गारंटीड होती है.भले अपरेंटिसशिप के दौरान इसका कोई लिखित आश्वासन न दिया जाता हो.लेकिन रेलवे करीब करीब 100 फीसदी अपने अपरेंटिस को अपने यहां नौकरी में रख लेता है.यही बात अपरेंटिसशिप कराने वाले दूसरे संस्थानों में भी लागू होती है.लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप जहां अपरेंटिस करें वहीं परमानेंट नौकरी करें.यह आपकी मर्जी है. दूसरे अनगिनत प्राइवेट संस्थान भी अपरेंटिसशिप किये लोगों को भागकर नौकरी देते हैं.अपरेंटिस किये लोगों को हमेशा तमाम संस्थान अपने दरवाजे खोलकर रखते हैं.

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अपरेंटिसशिप का एक फायदा यह है कि आप काम तो सीखते ही हैं, इस दौरान नियमित तौरपर हर महीने एक वेतन भी मिलता है, जो आमतौर पर 5000 रुपये से ऊपर और 9 से 10 हजार रुपये प्रतिमाह तक होता है. कई जगहों पर कुछ ज्यादा भी मिलता है. कहने का मतलब यह है कि अपरेंटिसशिप एक ऐसा सुनहरा मौका होता है, जो आपको किसी क्षेत्र विशेष का प्रैक्टिकल नाॅलेज तो देता ही है, इस दौरान के काम के पैसे भी देता है और भविष्य की स्थायी नौकरी के लिए एक मुकम्मिल गारंटी भी इससे मिलती है.आपने अकसर देखा होगा कि कई कंपनियां किसी फ्रेशर को नौकरी देती ही नहीं है.वास्तव में वह इन्हीं अप्रेंटिसों की बदौलत बिना फ्रेशर को नौकरी दिये अपनी जरूरत पूरी कर लेती हैं. क्योंकि हर साल लाखों की तादाद में अपरेंटिस खत्म करने वाले युवा भी नौकरी पाने वालों की होड में होते हैं जाहिर है,उन्हें सबसे पहली प्राथमिकता दी जाती है. तो उम्मीद है आपने अपरेंटिसशिप के फायदे अच्छी तरह से समझ लिए होंगे.

सौतेले रिश्ते बेकार नहीं होते

मनोज के मन में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. बीते 10 वर्ष उस ने अपने ननिहाल में बिताए थे. यहां आ कर अपने पिता को सौतेली मां के प्रति स्नेह लुटाते और अपने सौतेले 2 छोटे भाइयों के प्रति दुलार करते देखना उस के लिए बहुत कठिन हो रहा था. वह 16 वर्षीय किशोर है. बीते दिनों नानी के गुजर जाने के बाद वह अपने घर वर्षों बाद लौट कर आया है.

मगर घर पर दूसरी स्त्री और उस के बच्चों का अधिकार उसे बरदाश्त नहीं हुआ. उस के ननिहाल में सभी उसे चेताया करते थे कि उसे अपनी सौतेली मां से संभल कर रहना होगा. बेचारा बिन मां का बच्चा. सौतेली मां तो सौतेली ही रहेगी. यही बातें उस के जेहन में घर कर गईं. नतीजतन उसे अपनी मां की हर बात उलटी लगती, छोटे भाई बिना बात पिट जाते.

एक दिन पिताजी ने उसे पलट कर डपटा तो उस ने अपने पिता के बिस्तरे पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. तो कोई हताहत नहीं हुआ, मगर सब अवाक रह गए.

40 वर्षीय अविवाहित अलका ने जिस विधुर से विवाह किया उस की पत्नी 4 बच्चों को छोड़ कर कैंसर पीडि़त हो इस दुनिया से चली गई. घर में 10, 12 और 14 वर्षीय पुत्रियों और  5 वर्षीय पुत्र के अतिरिक्त बूढ़े मातापिता भी मौजूद थे. अलका से सभी को बहुत अपेक्षाएं थीं. मगर 2 बड़ी पुत्रियां अपनी सौतेली मां के हर काम में मीनमेख निकालतीं.

अलका को सम झ ही नहीं आता कि उस ने विवाह के लिए हामी क्यों भर दी, सिवा उस पल के जब छोटा बेटा उस की गोद में आ दुबकता.

न पालें पूर्वाग्रह

सौतेली मां पर लिखी कहानियों के सिंड्रेला या राखी जैसे पात्र अकसर हमारे बालमन में अवचेतन रूप से मौजूद रहते हैं. उसे ही चंद रिश्तेदार या पड़ोसी अपनी सलाह दे कर मानो आग में घी का काम कर देते हैं.

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‘अब तो सौतेली मां का राज चलेगा,’ ‘पहली बीवी तो सेवा के लिए, दूसरी मेवा खाने के लिए होती है,’ ‘अब तो पिता भी पराया हो जाएगा’ इस प्रकार की नकारात्मक बातों से अपने मन में कोई पूर्वाग्रह न पालें.

सम झें नए रिश्तों की अहमियत

अपनी मां या पिता की दूसरी शादी की अहमियत को सम झें. इस नए रिश्ते से प्राप्त सुविधाओं पर ध्यान दें. जैसे नई मां के आने से घर की चाकचौबंद व्यवस्था, घर के छोटे बच्चे का उचित पालनपोषण, घर के बुजुर्गों की सेहत का खयाल जैसे कार्य बेहद सुगम रूप से होने लगते हैं. घर की आर्थिक व्यवस्था, सुरक्षा जैसे पहलू नजरअंदाज नहीं किए जा सकते.

संबंध सामान्य बनाने को दें समय

किसी भी रिश्ते को पारस्परिक रूप से मजबूत होने के लिए थोड़ा समय अवश्य लगता है.

यदि हम आपसी गलतफहमी को न पाल कर आपस में खुल कर बात करें. अपनी पसंदनापसंद एकदूसरे को बता दें तो रिश्ते बहुत जल्दी बेहतर बन जाएंगे. रिश्ते बेहतर बनाने के लिए स्वयं भी पहल करें. नए सदस्य से पहल की उम्मीद न करें.

अपने मातापिता के बीच वक्तबेवक्त न बैठें. उन्हें भी साथ बैठ कर बातचीत करने का मौका दें.

बड़ों के नजरिए को सम झें

अपने को बड़ों की जगह पर रख कर सोचें कि यह रिश्ता उन के लिए कितनी अहमियत रखता है. कल को आप भी अपने लक्ष्य के पीछे घर से दूर निकल जाओगे या फिर इसी घर में अपनी गृहस्थी में मग्न हो जाओगे. उस समय आज का निर्णय उचित प्रतीत होगा.

भावुकता से काम न लें

घर में अपनी मां से जुड़ी वस्तुओं को किसी अन्य महिला को इस्तेमाल करते देख या पिता को नए रिश्तों में ढलते देख कर भावुक न हों. यह सोचें कि घर का नया सदस्य अपना पुराना घर छोड़ कर आप के बीच आप सभी की उपस्थिति को स्वीकार कर अपने को ढालने में लगा है तो उसे भी सहज होने का मौका दें.

वर्तमान को स्वीकारें

जो सामने है, वही सच है. मातापिता भी अपने नए रिश्ते को ही अहमियत देंगे, गुजरे वक्त को कौन पकड़ पाया है.

पहले संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने से विधवा, विधुर या आजीवन कुंआरे व्यक्ति की सुखसुविधाओं में कमी नहीं आती थी. वे आराम से अपना जीवनयापन कर लेते थे. उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा जैसे आर्थिक, सामाजिक अथवा समय से भोजन, बीमार होने पर सेवा का लाभ मिल जाता था.

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अब एकल परिवारों के कारण अपनी अधूरी गृहस्थी संभालना जब कठिन हो जाता है तभी व्यक्ति पुनर्विवाह का निर्णय लेता है. ऐसे में बच्चों से भी यह उम्मीद की जाती है कि वे रिश्तों की अहमियत को सम झें और उन्हें मन से स्वीकार करें.

दूरदराज बैठे रिश्तेदार अपनी गृहस्थी छोड़ कर हमेशा के लिए नहीं आ सकते हैं. ऐसी परिस्थितियों में बच्चों को भी सच को स्वीकार कर अपने भविष्य को बेहतर बनाने की ओर ध्यान देना चाहिए.

REVIEW: जानें कैसी है विद्या बालन की Film ‘शेरनी’

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः भूषण कुमार, किशन कुमार,  विक्रम मल्होत्रा, अमित मसूरकर

निर्देशकः अमित वी मसूरकर

कलाकारः विद्या बालन, शरत सक्सेना,  विजय राज, ब्रजेंद्र काला, इला अरूण , नीरज काबी, मुकुल चड्ढा व अन्य.

अवधिः दो घंटे दस मिनट 44 सेकंड

ओटीटी प्लेटफार्मः अमेजॉन प्राइम वीडियो

एक तरफ देश के राष्ट्ीय पशुं टाइगर(बाघ )की प्रजाति खत्म होती जा रही है. तो दूसरी तरफ विकास के नाम पर जंगल खत्म हो रहे हैं, ऐसी परिस्थितियों में हर जानवर के सामने समस्या है कि वह कहां स्वच्छंदतापूर्ण विचरण करे. जंगल के खत्म होने से टाइगर, भालू आदि हिंसक जानवर खेतों व आबादी की तरफ बढ़ रहे हैं. जिसके चलते पशु और इंसान के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. तो वहीं इस समस्या का सटीक हल ढूढ़ने की बनिस्बत राजनेता अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं, जिसका फायदा अवैध तरीके से टाइगर का शिकार करने वाला शिकारी उठा रहा है. इन्ही मुद्दों व पशु व इंसान के बीच  संघर्ष को खत्म कर संतुलन बनाने का संदेश देने वाली फिल्म ‘‘शेरनी’’ लेकर आए हैं फिल्म निर्देशक अमित वी मसुरकर, जो कि 18 जून से ‘‘अमैजॉन प्राइम’’पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

कहानी शुरू होती है विजाशपुर वन मंडल के जंगलों से, जहां कुछ पुलिस  की टीम व वन संरक्षण अधिकारी टाइगर की आवाजाही को समझने के लिए वीडियो कैमरा लगा रही है. उसी वक्त नई वन अधिकारी विद्या विंसेट(विद्या बालन) भी वहां पहुंचती है और हालात का जायजा लेती है. वाटरिंग होल सूखा हुआ है. क्योंकि स्थानीय विधायक जी के सिंह(अमर सिंह परिहार  )का साला मनीष उस जंगल में सुविधाएं देखने वाला ठेकेदार है. वह किसी नही सुनता. उधर जंगल के नजदीक में बसे गांव वासी अपने मवेशियों को चारा खिलाने इसी जंगल में कई वर्षों से जाते रहे हैं. मगर अब राष्ट्रीय पार्क और इस जंगल के बीच हाइवे सहित कई विकास कार्य संपन्न हो चुके है, जिसकी वजह से जंगल कें अंदर मौजूद टाइगर व भालू जैसे हिंसक पशु नेशनल पार्क नही जा पा रहे हैं और वह ग्रामीणों का भक्षण करने लगे हैं. पूर्व विधायक पी के सिंह(सत्यकाम आनंद)  ग्रामीणों के जीवन की सुरक्षा के नाम पर वन अधिकारियों को धमकाते हुए अपनी राजनीति को चमकाने में लगे हैं. वन अधिकारी विद्या विंसेट चाहती है कि इंसानों और पशुओं के बीच संघर्ष खत्म हो और एक संतुलन बन जाए. इसके लिए वह अपने हिसाब से प्रयास शुरू करती हैं, जिसमें वन विभाग से ही जुड़े मोहन, हसन दुर्रानी(  विजय राज )  व अन्य लोगों की मदद से प्रयासरत हैं. पर विधायक जी के सिंह के चमचे व वन विभाग के अधिकारी बंसल(ब्रजेंद्र काला )  व अन्य अपने हिसाब से टंाग अड़ाते रहते हैं. तभी चुनाव जीतने के लिए विधायक जी के सिंह शिकारी पिंटू को लेकर आते हैं.  विद्या चाहती है कि नर भक्षी बन चुकी बाघिन टी 12 व उसके दो नवजात बच्चों को इस जंगल से निकालकर नेशनल पार्क भेज दिया जाए, जिससे ग्रामीणों की भी सुरक्षा हो सके. जबकि बंसल व पिंटू(शरत सक्सेना) की इच्छा टाइगर यानी कि शेरनी को बचाने में बिलकुल नही है. इसी बीच अपने उच्च अधिकारी नंागिया(नीरज काबी )  की हरकत से विद्या विंसेट को तकलीफ होती है. अब राजनीतिक कुचक्र और नेताओं के इशारे पर नाच रहे कुछ भ्रष्ट वन अधिकारियों व इमानदार वन अधिकारी विद्या विंसेट में से किसकी जीत होती है, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

लेखन व निर्देशनः

‘‘सुलेमानी कीड़ा’’ और ऑस्कर के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में भेजी जा चुकी फिल्म‘‘ न्यूटन’’के निर्देशक अमित वी मसूरकर  इस बार मात खा गए हैं. फिल्म की कमजोर पटकथा के चलते फिल्म काफी नीरस और धीमी है. जंगल में  नरभक्षी टाइगर की मौजूदगी के चलते जो डर व रोमांच पैदा होना चाहिए, उसे पैदा कर पाने में अमित वी मसूरकर असफल रहे हैं. शेरनी की आंखों से पैदा होने वाला सम्मोहन भी नदारद है. दो राजनेताओं के बीच की राजनीतिक चालों का भी ठीक से निरूपण नही हुआ है.

फिल्म‘‘शेरनी’’ अवनी या टी1 के मामले की याद दिलाती है. जब बाघिन पर 13 लोगों की हत्या का आरोप लगा था. महीनों के लंबे शिकार के बाद,  2018 में महाराष्ट्र के यवतमाल में एक नागरिक शिकारी के नेतृत्व में वन विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. कई कार्यकर्ताओं ने इसे ‘कोल्ड ब्लडेड मर्डर‘ बताया और मामला भारत के सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया. यह मामला अभी भी चल रहा है और अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि अवनी नामक बाघिन आदमखोर थी या नहीं. लेकिन फिल्मकार इस सत्य घटनाक्रम को सही अंदाज में नही उठा पाए.

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फिल्म का संवाद ‘‘विकास के साथ जाओ, तो पर्यावरण को नहीं बचा सकते. और यदि पर्यावरण के साथ जाएं, तो विकास बेचारा उदास हो जाता है. ’’कई सवाल उठाता है, मगर अफसोस की बात यह है कि इस तरह की बात करने वाले नंागिया का कार्य इस संवाद से मेल नही खात. यानी कि चरित्र चित्रण में भी फिल्मकार ने गलतियंा की हैं. फिल्म में पशुओं को लेकर मनुष्य की संवेदनहीनता, वन विभाग में भ्रष्टाचार, राजनेताओं की नकली नारेबाजियां, जैसे मुद्दे उठाए गए हैं मगर बहुत ही सतही तौर पर. बीच बीच में फिल्म पूरी तरह से डाक्यूमेंट्री बनकर रह जाती है.

कैमरामैन राकेश हरिदास बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विद्या बालन का अभिनय शानदार है. उन्होने वन अधिकारी विद्या विसेंट को जीवंतता प्रदान की है. फिर चाहे डर का भाव हो या कुछ न कर पाने की विवशता. मगर लेखक व निर्देशक ने विद्या बालन के किरदार को भी ठीक से नही गढ़ा है. वह कहीं भी दहाड़ती नही है, उसके कारनामे ऐसे नही है जो कि याद रह जाएं. नीरज काबी व मुकुल चड्ढा की प्रतिभा को जाया किया गया है. हसन दुर्रानी के किरदार मे विजय राज एक बार फिर अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. ब्रजेंद्र काला को अवश्य कुछ अच्छे दृश्य मिल गए हैं.

अनुपमा के घरवालों की लाइफ में हलचल मचाएगी नई एंट्री, काव्या का है नया प्लान

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ की टीआरपी इस हफ्ते भी पहले नंबर पर बनी हुई है. वहीं मेकर्स टीआरपी ना गिरने देने के लिए सीरियल की कहानी में नए मोड़ ला रहे हैं. सीरियल की बात करें तो काव्या की मुसीबतें शादी के बाद बढ़ रही है. वहीं शाह परिवार उसकी जिंदगी में नई-नई परेशानियां ला रहे हैं. इसी बीच काव्या के नये प्लान के चलते घर में नई एंट्री देखने को मिली है, जिसके आने से शाह परिवार हैरान है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या ने की ये मांग

 

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अब तक आपने देखा कि काव्या घर और किचन संभालने के कारण परेशान है, जिसके बाद वह घर के लिए 24 घंटे शाह हाउस (Shah House) को संभालने वाली मेड की तलाश कर रही थी. हालांकि अनुपमा इस फैसले के खिलाफ थी लेकिन वो अपनी बात पर अड़ी हुई है. इसी बीच काव्या ने नई मेड की एंट्री भी करवा दी है.  अपकमिंग एपिसोड में शाह हाउस में एक धमाकेदार एंट्री होने वाली है.

 

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नई मेड की एंट्री से शाह परिवार परेशान

दरअसल, अपकमिंग एपिसोड में काव्या शाह हाउस में एक मेड को लेकर आएगी, जिससे वह पूरे शाह हाउस पर कंट्रोल करने की कोशिश करेगी. वहीं काव्या के इस फैसले से परेशान अनुपमा और शाह परिवार मेड को देखकर खुश नहीं होगा क्योंकि वो चौबीसों घंटे उनके साथ ही रहेगी.

अनुपमा करेगी वनराज की मदद

दूसरी ओर अनुपमा अपना स्टूडियो खोलने के बाद बेहद खुश नजर आएगी. वहीं नौकरी के कारण परेशान वनराज को हताश ना होने की सलाह देती दिखेगी. और वनराज को खुश रहने के लिए कहेगी, जिसे काव्या देख लेगी और नई नौकरानी को अनुपमा पर नजर रखने के लिए कहती हुई नजर आएगी.

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Barrister Babu के मेकर्स की तलाश हुई खत्म! ये एक्ट्रेस निभाएंगी यंग बोंदिता का रोल

बीते दिनों कलर्स के सीरियल बैरिस्टर बाबू (Barrister Babu) की नई बोंदिता को लेकर खबरें छाई हुई हैं. जहां सीरियल में लंबा लीप लेने की तैयारी की जा रही है तो वहीं नई बोंदिता के लिए मेकर्स की तलाश खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. इसी बीच खबरे हैं कि एक्ट्रेस आंचल साहू को यंग बोंदिता के रोल के लिए अप्रोच किया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

इस एक्ट्रेस को मिला मौका

बीते 3 हफ्ते से सीरियल बैरिस्टर बाबू के मेकर्स नई बोंदिता के लिए एक्ट्रेस की तलाश किए जा रहे हैं. वहीं इस सिलसिले में कई एक्ट्रेस के नाम सामने आए हैं. इस बीच खबरे हैं कि एक्ट्रेस आंचल साहू ये रोल साइन कर सकती हैं. ‘क्यों उत्थे दिल छोड़ आए’, ‘बेगुसराय’, ‘लाजवंती’ और मेरी दुर्गा जैसे शोज में काम कर चुकी एक्ट्रेस आंचल साहू बोंदिता के रोल में अनिरुद्ध-बोंदिता की कहानी को आगे बढ़ाती नजर आएंगी. देखा जा चुका है.

 

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ये एक्ट्रेस कर चुकी हैं रोल के लिए मना

 

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बीते दिनों सीरिल्स के मेकर्स ने कई एक्ट्रेसेस को बड़ी बोंदिता का रोल औफर किया था, जिनमें कनिका मान (Kanika Mann) का नाम भी शामिल है. वहीं कहा जा रहा था कि उनके नाम को फाइनल कर लिया गया है. लेकिन बाद में कनिका मान ने इस शो को मना कर दिया. दूसरी तरफ इस रोल के लिए कनिका मान के अलावा अदा खान (Adaa Khan), अनुष्का सेन (Anushka Sen), अशनूर कौर और रीम शेख (Reem Sheikh) भी इस रोल को ठुकरा चुकी हैं.

छोटी बोंदिता का रोल भी ठुकरा चुकी हैं कई एक्ट्रेस

 

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बड़ी बोंदिता से पहले छोटी बोंदिता के रोल के लिए भी कई एक्ट्रेसेस के नाम सामने आए थे. हालांकि बाद में यह रोल एक्ट्रेस औरा भटनागर के हाथ लगा था. वहीं अब वह फैंस के दिल में जगह बना चुकी हैं.

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ताकि पत्नियों की हैसियत बनी रहे

एक समाजसेवी संस्था के दिल्ली के संभ्रांत इलाके में सर्वे से पता  चला है कि 63% घरेलू कामगारों की नौकरी चली गई है क्योंकि अब मालकिनें कोविड-19 के घर में घुसने के भय से किसी को नहीं आने दे रही हैं. कई जगह तो पूरी सोसायटियों ने बाहरवालियों पर ब्रेक लगा दिया है. सिर्फ बिजली वाले और प्लंबर ही बाहर से इमरजैंसी में बुलाए जा रहे हैं.

इन कामवालियों के लिए ये आफत के दिन हैं, क्योंकि उन का वेतन चाहे जितना भी कम क्यों न हो परिवार के पेट भरने के लिए जरूरी था. इसी वेतन के सहारे लोगों ने बचत कर के छोटा टीवी खरीद लिया, मोबाइल ले लिया, 3 अच्छे कपड़े सिला लिए और बच्चे हैं तो उन्हें साफसुथरे कपड़े पहना कर स्कूल भेज दिया. अब यह आय गायब हो गई है.

मालकिनें बहुत लालची हैं, ऐसा नहीं है. अधिकांश मालकिनों की खुद की इनकम कम हो गई है और उन्हें पिछली बचत से काम चलाना पड़ रहा है. काफी लोगों के व्यापार ठप्प हो गए, नौकरियों की बाढ़ खत्म हो गई और वर्क फ्रौम होम के बावजूद कटौतियां हो गईं क्योंकि व्यवसायों को भारी नुकसान हो रहा है. मालकिनों को खुद घर का काम करना पड़ रहा है और उन्हें कामवालियों की कमी खल रही है.

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एक तरह से इन घरेलू कामवालियों ने घरों की औरतों को निकम्मा बनाया है. 1970 के बाद जब से एकल परिवार ज्यादा बढ़ने लगे घरेलू कामवालियों की जरूरत बेतहाशा बढ़ गई क्योंकि एकल परिवारों में आय का स्तर कुछ ज्यादा बढ़ने लगा. निठल्लों को एकल परिवारों में पनाह नहीं मिलती है. औरतें खुद भी कमाने लगीं और रसोई,  झाड़ूपोंछा कम पढ़ीलिखी कामवालियों पर आ गया पर इस से औरतों की अपनी मांसपेशियां ढुलमुल होने लगीं.

जो औरतें कमाऊ नहीं थीं वे कामवालियों के वेतन के लिए पतियों पर और ज्यादा निर्भर हो गईं. जिस मौजमस्ती के समय को वे आजादी मानती हैं असल में वह उन की सोने की जंजीर है क्योंकि जो भी पैसा कमाऊ पति हाथ पर रखता है, बदले में पूरी आजादी ले लेता है. अगर औरतें ज्यादा धार्मिक बनीं तो इसलिए कि वे मानसिक गुलामी से छटपटाने लगीं और उन्हें लगा कि धर्म प्रवचन उन्हें रास्ता दिखाएंगे.

धर्म के ठेकेदारों ने इस आपदा का लाभ उठाया और औरतों को पतियों के प्रति और ज्यादा समर्पित होने का निर्देश दिया.

पारिवारिक राजनीति में औरत की जगह उस सुषमा स्वराज की तरह हो गई जिस ने मोदी के रहम पर अंतिम साल गुजारे थे और वे विदेश मंत्री की जगह सिर्फ वीजा मंत्री बन कर रह गई थीं.

घरों में पत्नियां बराबरी का स्तर खो कर केवल सिल्क की साड़ी पहने ड्राइंगरूम की सजावटी गुडि़या बन कर रह गईं, जो न हाथपैर चलातीं न मुंह खोलतीं.

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घरेलू कामवालियों ने चूंकि रसोई मुस्तैदी से संभाल ली थी, पतियों को अच्छे खाने, साफ कपड़ों और साफसुथरे घर के लिए भी पत्नी का मुंह नहीं देखना पड़ रहा था. जो राजा की स्थिति पहले रजवाड़ों में रानियों और ठकुराइनों की होती थी वह हर मध्यवर्ग के घर में होने लगी. घरेलू कामवालियों ने एक तरह से पत्नियों की आवश्यकता 50-60% कम कर डाली और घरवालियां घरों में फालतू की चीज बन कर रह गईं.

कोविड-19 ने अगर पाठ पढ़ा दिया कि घर का काम औरतों को ही नहीं, आदमियों व बच्चों को भी मिल कर करना चाहिए और दिन में 1 घंटा यदि इस में लगाना पड़े तो इसे आफत नहीं आनंद सम झा जाए.

पत्नियों की हैसियत तभी रहेगी जब पति को एहसास हो कि उस के बिना जिंदगी अधूरी है, 4 दिन भी नहीं चलेगी. जो पति यह सम झते हैं कि वे पत्नियों को अधिकार भी देते हैं, बराबर का भी सम झते हैं वे ज्यादा सुखी भी रहते हैं. इस सुख में कामवालियों का न होना ज्यादा जरूरी है बशर्ते कि पति भी रसोई में काम करता नजर आए.

डैंड्रफ के कारण बाल ज्यादा झड़ रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरे बालों में बहुत ज्यादा डैंड्रफ है. स्कैल्प इरिटेशन के कारण सिर में लगातार खुजली होती रहती है, जिस से मेरे बाल लगातार झड़ रहे हैं. कई उपाय अपनाने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ. कृपया मुझे इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कोई उपाय बताएं?

जवाब-

आप के सिर में खुजली होने और बाल झड़ने का कारण डैंड्रफ है. ऐसे में आप अपने सिर में नीम के तेल का उपयोग करें. इस से आप को बहुत लाभ होगा.

बहुत अधिक डैंड्रफ होने पर आप नीम पाउडर को दही के साथ मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को स्कैल्प पर लगाएं. अब इस लेप को 20 से 30 मिनट तक लगा रहने दें. उस के बाद ताजे पानी से बालों को धो लें.

सप्ताह में 2 बार ऐसा करने से 2 सप्ताह में आप की समस्या दूर हो जाएगी. नीम स्कैल्प को गहराई तक साफ करता है, जिस से बालों से जुड़ी कई समस्याएं दूर हो जाएंगी. नीम के पत्ते में ऐंटीइनफ्लैमेटरी, ऐंटीबायोटिक और ऐंटीऔक्सीडैंट गुण होते हैं, जो बालों का झड़ना रोकने में मदद करते हैं.

नीम में विभिन्न फैटी ऐसिड जैसे लिनोलिक ऐसिड, फौलिक ऐसिड और स्टीयरिक ऐसिड होते हैं, जो बालों को घना करते हैं और ड्राई व डैमेज बालों को शाइनी बनाते हैं.

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बालों से जुड़ी सब से बड़ी समस्या हेयर फौल की है. हेयर फौल के भी कई कारण हैं इसलिए हर केस में इलाज भी अलगअलग होना चाहिए, लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं देता जिस वजह से यह समस्या और ज्यादा बढ़ती जा रही है. यहां हम कुछ बातों पर चर्चा करेंगे ताकि इस बात को स्पष्ट रूप से समझा जा सके कि किस समस्या के लिए आप को किस दिशा में कदम बढ़ाना है:

केयर की कमी

जानेमाने हेयर स्टाइलिस्ट नील डेविल कहते हैं कि आज युवाओं में बालों की समस्या इसलिए ज्यादा बढ़ गई है, क्योंकि आज हर कोई अपने बालों को बहुत अच्छा व सुंदर लुक देना चाहता है. इसलिए हेयर स्टाइलिंग उत्पादों का यूज बढ़ गया है.

आज स्थिति यह है कि हम बालों को सुंदर तो दिखाना चाहते हैं लेकिन उन की केयर नहीं करना चाहते. यहां वे जोर दे कर कहते हैं कि आप बालों में अलगअलग कलर यूज करते हैं, जल्दीजल्दी बालों का कलर बदलना चाहते हैं तो साथ में इन की खूब केयर भी कीजिए.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- हेयर फौल अब नहीं

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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क्या है ग्रीन फंगस और मंकीपॉक्स वायरस?

कोरोना के और कई रूप एक- एक करके सामने आते जा रहे हैं….एक संक्रमण खतम होता नहीं है कि दूसरा मुसीबत बनकर सामने आ जाता है.ऐसे में देश कब तक इस संक्रमण से बाहर निकल पाएगा इस पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता है.डेल्टा प्लस जैसा वैरिएंट तो सामने आए ही हैं लेकिन उसके साथ ही ब्लैक फंगस, वाइट फंगस और यलो फंगस के बाद इंदौर में अब ग्रीन फंगस का एक मरीज मिला है.. देश में ग्रीन फंगस का यह पहला मामला सामने आया है साथ ही मंकीपॉक्स फंगस भी सामने आए हैं. दरअसल इंदौर में ग्रीन फंगस से ग्रसित मरीज की पुष्टी की गई थी…उसे इंदौर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन मरीज को बेहतर इलाज के लिए एयरलिफ्ट कर अब मुंबई भेजा दिया गया है.

दरअसल,ये मरीज माणिकबाग इलाके में रहने वाला 34 साल का मरीज है जो कि कोरोना से संक्रमित हुआ था, उसके फेफड़े में 90 फिसदी तक संक्रमण फैल चुका था… लेकिन दो महिने तक चले इलाज के बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी कर दी गई ये कहकर कि वो अब ठीक है साथ ही वो बेहतर भी महसूस कर रहा था… लेकिन 10 दिनों के बाद मरीज की हालत फिर से बिगड़ने लगी उसके दाएं फेफड़े में मवाद भर गया था….वहीं,उसके फेफड़े और साइनस में एसपरजिलस फंगस हुआ था, जिसके कारण उसे मुंबई भेजा गया. विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रीन फंगस ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक बिमारी है. फेफड़े में ये ग्रीन कलर का दिखता है जिसके कारण इसे ग्रीन फंगस नाम दिया गया है.जिसकी वजह से मरीज की हालात लगातार बिगड़ती जाती है…कोरोना की रफ्तार तो कम हो चुकी है. लेकिन ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या में कमी नहीं आ रही है और ग्रीन फंगस का डिडेक्ट होना चिंताजनक है…हालाकिं उस मरीज को बेहतर इलाज के लिए मुंबई जरूर भेजा गया है लेकिन वो ठीक हो पाएगा या नहीं कहा नहीं जा सकता है.

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ग्रीन फंगस के लक्षण कुछ ऐसे होते हैं…

मरीज को खखार और गुदाव्दार से खून आने लगा है, बुखार भी 103 डिग्री हो जाता है, वहीं ग्रीन फंगस पर एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन भी काम नहीं करता. प्रदेश में ग्रीन फंगस का ये पहला मामला है. जो कि पोस्ट कोविड मरीजों में देखा गया है.

अब बात आती है मंकीपॉक्स वायरस की. वैज्ञानिकों के सामने कोराना का पुख्ता इलाज ढूंढना अभी भी संभव नहीं हुआ है…वो अभी भी कोशिश कर रहे हैं …तो वहीं अब एक नए वायरस की एंट्री हो गई है और इस बेहद खतरनाक नए वायरस का नाम है मंकीपॉक्स. मंकीपॉक्स के दो मामले ब्रिटेन के वेल्स में मिले हैं… वैज्ञानिकों के मुताबिक यह वायरस ज्यादातर अफ्रीका में पाया जाता है. खास बात यह है कि जिन लोगों में इस नए वायरस की पहचान हुई है वे दोनों घर पर ही रहते थे…उनका कहीं भी घर से बाहर आना-जाना नहीं होता था इसके बावजूद भी वो इस वायरस के चपेट में आ गए. कोरोना के कहर के बीच मंकीपॉक्स वायरस की एंट्री ने देश को और भी ज्यादा खतरे में डाल दिया है.

क्या है ‘मंकीपॉक्स’ ?

एक रिपोर्ट के मुताबिक मंकीपॉक्स जानवरों से इंसानों में फैलने वाला वायरस है

सबसे पहले 1970 में अफ्रीकी देश कांगो में इसकी पहचान हुई थी. उसके बाद 2003 में मध्य और पश्चिमी अफ्रीकी देशों में , अमेरिका और दूसरे देशों में भी इसके ज्यादातर मामले सामने आए थें.मंकीपॉक्स में डेथ रेट 11 फीसदी तक जा सकती है. स्मालपॉक्स की वैक्सीन मंकीपॉक्स पर भी कारगर हो सकती है.

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‘मंकीपॉक्स’ के लक्षण

क्या हैं ?

स्मॉलपॉक्स यानी चेचक की तरह ही इसके लक्षण

हैं, शरीर पर लाल चकत्ते होने लगते हैं, फिर वो चकत्ते घाव में तब्दील हो जाते हैं.

बुखार आता है, सिर दर्द होने लगता है, कमर में दर्द ,

मांसपेशियों में अकड़न और कमजोरी
होने लगती है.

जानें कैसे धोएं महंगे कपड़े

अधिकांश महिलाएं कपड़े धोते समय सही तरीका नहीं अपनातीं. वे कपड़े मंहगे हों या सस्ते सब की धुलाई एक ही तरह से करती हैं. इस वजह से न सिर्फ कपड़ों की आयु कम होती है, उन का रंग भी बहुत जल्दी फेड हो जाता है. ऐसा करने से आप जितने पैसे खर्च कर के ड्रैस लाई हैं उतनी दफा आप उसे पहन भी नहीं पातीं. ऐसा करने के पीछे खास वजह यह हो सकती है कि लौंड्री में मंहगे कपड़ों धुलाई के अधिक पैसे लगते हैं. लेकिन इस का समाधान है. आप घर पर ही अपने महंगे कपड़ों की धुलाई सही व सुरक्षित तरीके से कर सकती हैं. इस से आप के कपड़े अच्छी तरह साफ भी हो जाएंगे और आप लंबे समय तक उन्हें इस्तेमाल भी कर सकेंगी.

आइए जानते हैं कि महंगे कपड़ों को कैसे साफ किया जाए:

अलग बिन में रखें

महंगे कपड़ों को कभी भी उस बिन में न डालें जहां आप रोजमर्रा के कपड़ों को रखती हैं. इन की बिन अलग होनी चाहिए.

इस बात का भी ध्यान रखें कि महंगे कपड़े अधिक दिन तक बिन में एक ही स्थिति में न पड़े रहें. ऐसा होने पर उन में परमानैंट क्रीज पड़ जाती है.

बिन को साफ स्थान पर रखें ताकि कपड़ों पर कोई दाग या निशान न पड़े.

बिन में अगर 2 अलग फैब्रिक के कपड़े डाल रही हों तो उन के बीच एक पेपर पार्टीशन जरूर दें.

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लेबल जरूर पढ़ें

हर ब्रैंडेड आउटफिट में एक लेबल लगा होता है, जिस पर उसे स्टोर करने और साफ करने के निर्देश लिखे होते हैं. उन्हें जरूर पढ़ें.

यदि आप कपड़े मेड से धुलवाती हैं तो जाहिर है कि वह उस लेबल को नहीं पढ़ पाएगी. इस स्थिति में या तो आप खुद उस कपड़े को साफ करें या अपनी मेड को समझाएं.

अकसर लेबल पर अक्षरों की जगह चिह्नों का इस्तेमाल होता है. उन्हें समझने की कोशिश करें या किसी लौंड्री में जा कर उन चिह्न का अर्थ समझ लें.

लेबल पर बने जिस चिह्न पर (?) का निशान हो उस का अर्थ यह होता है कि संबंधित आउटफिट को साफ करने का यह तरीका गलत है.

धोने की तकनीक

कुछ कपड़े बहुत ही डैलिकेट होते हैं. ऐसे कपड़ों को मशीन की जगह हाथ से साफ करना चाहिए.

इन कपड़ों को न तो बहुत अधिक ठंडे पानी न ही अधिक गरम पानी में धोएं. इन के लिए पानी को हलका कुनकुना कर लें और उसी से इन्हें साफ करें.

कपड़े धोते समय अगर आप यह सोचती हैं कि झाग न उठने तक डिटर्जैंट डालते रहो, तो ऐसा करना गलत है. जितने कम डिटर्जैंट में कपड़ों को साफ किया जाएगा, उतना ही कम कैमिकल कपड़ों तक पहुंचेगा.

कपड़े को जिस टब में साफ किया जाए उस का खुद भी साफ होना जरूरी है. इसी तरह साफ पानी से ही कपड़े की धुलाई करें.

बारबार एक ही पानी से कपड़े को साफ न करें. कपड़े को पूरी तरह साफ होने में लगभग 3 से 4 बार साफ पानी से धोना जरूरी होता है.

कपड़े में से पूरी तरह डिटर्जैंट निकलना जरूरी होता है वरना फैब्रिक के खराब होने का डर रहता है.

ध्यान रखें, महंगे कपड़ों पर कभी भी ब्रश न चलाएं. यह फैब्रिक को खराब करता है.

इनरवियर की धुलाई करते वक्त उन के हाइजीन का भी ध्यान रखें. सप्ताह में कम से कम 2 बार इन को कुनकुने पानी में सौफ्ट डिटर्जैंट मिला कर 15 मिनट के लिए रखें. बाद में पानी से धो कर सुखाएं.

दाग को दें प्री ट्रीटमैंट

आप के किसी महंगे कपड़े पर खानेपीने की या कोई और चीज गिर जाए तो उस के दागधब्बे से बचने के लिए उसे प्री ट्रीटमैंट जरूर दें.

इस के लिए दाग को कस कर रगड़ें नहीं बल्कि उस पर पानी डालें और आहिस्ताआहिस्ता उंगलियों से उस स्थान को रगड़ें.

यदि दाग डिटर्जैंट से ही साफ हो सकता है तो उस स्थान पर तुरंत थोड़ा डिटर्जैंट लगा कर उसे साफ कर लें.

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धोने से पहले

यह मिथ है कि कपड़ों को पानी में भिगोने से वे खराब हो जाते हैं. बल्कि कपड़े अधिक गंदे न हुए हों तो उन्हें 15 मिनट तक पानी में डूबा रहने देने से उन में लगी गंदगी निकल जाती है.

कपड़ों से आने वाली किसी भी प्रकार की महक को दूर करने के लिए भी पानी में कुछ देर कपड़ों को भिगो देने से काम बन जाता है.

पानी में भिगोने के साथ ही आप उस में कलर सौफ्टनर या फैब्रिक सौफ्टनर डाल सकती हैं. बाजार में स्काईलैब या कंफर्ट जैसे ब्रैंड के सौफ्टनर और ब्राइटनर मौजूद हैं.

कपड़ों को भिगोने के बाद उन्हें एक बार साफ पानी में भी धो लें.

कपड़ों को सही तरीके से सुखाएं

कई लोग कपड़ों को जल्दी सुखाने के लिए उन्हें निचोड़ना शुरू कर देते हैं. यह गलत है. निचोड़ने से कपड़े के धागे टूट जाते हैं और कपड़ा कमजोर हो जाता है.

कपड़ों को सूरज की तेज रोशनी में कभी न सुखाएं. ऐसा करने से उन का रंग फेड होने और फैब्रिक के खराब होने का खतरा रहता है.

कई लोग कपड़ों को विंडो एसी के पीछे सूखने को डाल देते हैं. लेकिन क्या आप जानती हैं कि एसी से निकलने वाली गैस न केवल आप के कपड़ों बल्कि आप की त्वचा को भी नुकसान पहुंचा सकती है?

कपड़ों को हमेशा शेड में सूखने के लिए डालें. शेड में डालने का मतलब यह भी नहीं है कि आप कपड़ों को बंद कमरे में सूखने को डाल दें. ऐसे में कपड़ों में महक आने लगती है और वे पूरी तरह सूख भी नहीं पाते.

कपड़ों को सुखाते समय यह ध्यान जरूर रखें कि आसपास बिजली का तार न गुजर रहा हो. काम के साथ यह सतर्कता भी जरूरी है.

कपड़े चाहे कितने ही महंगे क्यों न हों, अपने हाथों से धुलाई करने से वे सुरक्षित तरीके से साफ भी हो जाते हैं और आप के पैसे भी बच जाते हैं. तो जब पैसे बच ही गए हैं, तो क्यों न खरीदें एक और नई ड्रैस.

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