दिमाग की दुश्मन हैं ये आदतें

कभी-कभी औफिस में काम करतेकरते अचानक मूड औफ हो जाता है या फिर घर में कोई नईपुरानी बात याद कर मन बेचैन हो उठता है तो आप को सतर्क हो जाना चाहिए. सतर्क तो आप को उस वक्त भी हो जाना चाहिए जब खुद आप को ऐसा लगने लगे कि आप की रूटीन जिंदगी में बेवजह का खलल पड़ने लगा है.

आप वक्त पर अपने तयशुदा काम नहीं कर पा रही हैं, भूख कम या ज्यादा लग रही है, नींद पूरी नहीं हो पा रही है, आप पति, घर बच्चों पर पहले जैसा ध्यान नहीं दे पा रही हैं, बातबात पर चिड़चिड़ाहट, गुस्से या डिप्रैशन का शिकार होने लगी हैं तो तय मानिए आप अपनी ब्रैन सैल्स को मैनेज नहीं कर पा रही हैं. यह एक ऐसी वजह है जिसे हरकोई नहीं जानता, लेकिन इस का शिकार जरूर होता है.

इन लक्षणों में से आप किसी एक का भी शिकार हैं तो  तय यह भी है कि आप की ही कुछ आदतें आप की ब्रेन सैल्स को नुकसान पहुंचा रही हैं, जिस का एहसास या अंदाजा आप को जानकारी के अभाव के चलते नहीं होता. लेकिन ये सबकुछ सामान्य है और वक्त रहते आदतें सुधार ली जाएं तो सबकुछ ठीक और आप के कंट्रोल में भी हो सकता है.

क्या हैं ब्रेन सैल्स

नुकसान चाहे जिस भी वजह से हो रहा है उसे अगर वैज्ञानिक और तकनीकी तौर पर सम झ लिया जाए तो फिर कोईर् खास मुश्किल नुकसान से बचने में पेश नहीं आती. बात जहां तक ब्रेन सैल्स को सम झने की है तो उन के बारे में इतना जानना ही काफी है कि वे हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं जो हमें हर फीलिंग से न केवल परिचित कराती हैं, बल्कि उन से होशियार रहने के लिए भी सचेत करती हैं.

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मनोविज्ञान की जटिल भाषा को सरल करते हुए भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक विनय मिश्रा बताते हैं कि ब्रेन सैल्स 2 तरह की होती हैं- पहली ब्रेन सैल्स को रिसैप्टर कहा जाता है, जिन का काम रिसीव करना होता है और दूसरी को इफैक्टर कहा जाता है, जो मस्तिष्क को निर्देशित करती हैं. इसे भी सरलता से इस उदाहरण से सम झा जा सकता है कि जब हम किसी गरम चीज पर हाथ रखते हैं तो रिसैप्टर गरमी का एहसास कराती हैं और इफैक्टर हमें उस गरम चीज से तुरंत हाथ हटा लेने को कहती हैं.

नुकसानदेह आदतें

क्या हमारी आदतें ब्रेन सैल्स को प्रभावित करती हैं? इस का जवाब हां में है कि करती हैं खासतौर से बुरी आदतें, जिन के चलते ब्रेन सैल्स डैमेज हो कर हमें गड़बड़ाने लगती हैं. इन नुकसानदेह आदतों को वक्त रहते सम झ लिया जाए तो जिंदगी बहुत आसान हो जाती है.

कई बार हम खुद तनाव पाल लेते हैं और कई बार हालात की देन होता है. दौड़तीभागती लाइफ में हालांकि तनाव से खुद को बचा पाना मुश्किल है, लेकिन इसे आदत बना लिया जाए तो ब्रेन सैल्स का बैलेंस बिगड़ने लगता है. जब हम तनाव में होते हैं तो शरीर में कोर्टिसोल नाम का रसायन बनना शुरू होता है, जो ब्रैन सैल्स को काफी नुकसान पहुंचाता है.

तनाव से बचने का कारगर तरीका यह है कि हम हर वक्त तनाव से बचने की कोशिश करते रहें न कि उसे बढ़ाते रहें. एक छोटे से उदाहरण से इसे यों सम झा जा सकता है कि बच्चे की स्कूल बस तयशुदा वक्त पर नहीं आई और आप को तनाव होने लगता है कि बस जाने क्यों लेट हो रही है. कहीं ऐक्सीडैंट न हो गया हो, बस टै्रफिक जाम में न फंस गई हो या फिर कहीं ऐसा न हो कि बस निकल गई हो और बच्चा उस से उतर ही न पाया हो.

इस तरह की कई फुजूल आशंकाएं बहुत कम समय में ब्रेन सैल्स को प्रभावित करती हैं. ऐसे तनाव से बचने की कोशिश करते रहें न कि उसे बढ़ाते रहें.

ऐसे वक्त में आप को चाहिए कि धैर्य रखें, क्योंकि जब थोड़ी देर में बच्चा घर आ जाता है तो आप चंद मिनटों पहले की घबराहट या तनाव भूल जाती हैं, क्योंकि तनाव के दूर होते ही ब्रेन सैल्स संतुलित हो जाती हैं, इसलिए तनाव को आदत में शुमार न करें.

दूसरी अहम वजह है वक्त पर पर्याप्त नींद न लेना, देर से सोने की आदत ब्रेन सैल्स को गड़बड़ाती है, इसलिए देर रात तक न जागें और कम से कम 7 घंटे की क्वालिटी नींद जरूर लें. इस से ब्रेन सैल्स को अपना काम सुचारु ढंग से करने में सहूलियत रहती है.

क्या करें क्या नहीं

डाइट पर ध्यान दें: जंक और फास्ट फूड, मसालेदार भोजन और बेवक्त का खाना ब्रेन सैल्स के काम में बाधा डालता है. ज्यादातर फास्ट फूड और प्रिजर्वेटिव खाना ब्रेन सैल्स की प्रगति को बाधित करता है, क्योंकि उस में मौजूद ऐक्सोटाकिल ब्रेन सैल्स को ब्लौक करता है. इसलिए खानपान की आदतों को सुधारें.

आलस: यह एक ऐसी आदत या अवस्था है, जिस से ब्रेन सैल्स भी निष्क्रिय हो कर अपना असर स्वभाव या मूड पर जरूर दिखाती हैं. हर कोई जानता है कि ऐक्सरसाइज करने से स्ट्रैस लैवल कम होता है और न करने से बढ़ता है, इसलिए ब्रेन सैल्स की सक्रियता के लिए नियमित व्यायाम करें. ऐक्सरसाइज से दिमाग में खून की सप्लाई बढ़ती है. ब्रेन सैल्स को सुचारु रूप से काम करने देने के लिए वैज्ञानिक सब से बढि़या ऐक्सरसाइज पैदल चलने को मानते हैं. रोजाना 3-4 किलोमीटर चलने से ब्रेन सैल्स बेहतर तरीके से काम कर पाती हैं.

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उत्तेजना किसी भी तरह से हो सकती है. अगर आप भी बातबात पर उत्तेजित होने की आदत का शिकार हो चली हैं तो संभल जाएं, क्योंकि इस में भी ब्रेन सैल्स गड़बड़ाती हैं.

कम पानी पीने की आदत भी ब्रेन सैल्स के काम में बाधक बनती है, इसलिए प्रतिदिन कम से कम 8 गिलास पानी पीएं ताकि शरीर डिहाइड्रेशन का शिकार न हो. कई महिलाएं विशेष हालात में इसलिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीतीं, क्योंकि उन्हें यह डर सताता रहता है कि इस से बारबार यूरिन के लिए जाना पड़ेगा. लेकिन सोचें यह कि यह आजकल कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है. टौयलेट हर कहीं आसानी से उपलब्ध हैं. जानबू झ कर पानी न पीने से ब्रेन सैल्स किसी दूसरी वजह के मुकाबले जल्दी निष्क्रिय होने लगती हैं और कभीकभी बेहोशी के बाद मृत्यु तक हो जाती है.

यह भी ध्यान रखें

ये ऐसी नुकसानदेह आदतें या स्थितियां हैं, जिन की जिम्मेदार आप खुद होती हैं और इन से ब्रेन सैल्स को कैसेकैसे नुकसान होते हैं यह नहीं सम झ पातीं. लेकिन बात सम झ आ जाए तो कई परेशानियों से बचा जा सकता है.

ब्रेन सैल्स की सक्रियता बढ़ाने के लिए पौष्टिक भोजन लेना बहुत जरूरी है. जंक और फास्ट फूड के बजाय फल और ड्राईफू्रट्स लेना बेहद फायदेमंद साबित होता है. हरी सब्जियां और बींस भी ब्रेन सैल्स के मित्र हैं. दिन में 2-3 बार चाय पीना भी ब्रेन सैल्स के लिए फायदेमंद है.

डायबिटीज, ब्लड प्रैशर और दिल के मरीजों के लिए तो और भी ज्यादा एहतियात बरतते हुए नुकसानदेह आदतों से बचना चाहिए. फायदेमंद आदतों को अपना कर नुकसानदेह आदतों को हटाया जा सकता है और यह मुश्किल भी नहीं है. पर्याप्त नींद, पौष्टिक खाना, व्यवस्थित दिनचर्या, ऐक्सरसाइज और पर्याप्त पानी पीना अच्छी आदतें हैं.

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यंग गर्ल्स पर खूब जमेंगे ये 5 हेयर स्टाइल

कौलेज में हेयर स्टाइल आपके पूरे लुक को बदल देता है. ऐसे में हर लड़की चाहती है दूसरों से थोड़ा अलग और आकर्षित दिखाना ताकि लोग उनकी तारीफ भी करें और उनके स्टाइल को आजमाये भी. चेहरे पर तो हम काजल लिपस्टिक से काम चला लेते हैं, लेकिन आपका परफेक्ट लुक तब ही आता है जब आपका हेयर स्टाइल सबसे डिफरेंट और आकर्षित हो. ज्यादातर लड़कियां हेयर स्टाइल बनाना नहीं जानती या उनके बाल ऐसे होते हैं जिसपर हेयर स्टाइल बनाना थोड़ा मुश्किल हो जाता हैं. इसलिए इन्हें एक-दो ही लुक में देखा जाता हैं, लेकिन हेयर स्टाइलिस्ट आरिफ ने कुछ ऐसे आसान उपाय बताए है जिनकी मदद से आप भी बालों के स्टाइल के साथ खुद को एक आकर्षक लुक दे सकती हैं. आरिफ ने कुछ ऐसे हेयर स्टाइल बताए हैं, जो चोटी के अलावा कर्ल बालों, या लंबे, छोटे, खुले बालों में भी आजमाई जा सकती हैं. और कौलेज गर्ल्स इसे आसानी से ट्राई कर सकती हैं.

हेयर स्टाइल बनाने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातें…

  • जब भी शादी पार्टी के लिए हेयर स्टाइल बनाए, तो ध्यान रखे आपके बाल अच्छी तरह धुले हुए हो.
  • बालों में तेल न हो.
  • हेयर स्टाइल से पहले ड्रायर का इस्तेमाल करे.
  • यदि आप कर्ल कर रही हैं तो कर्ल करने से पहले हेयर मूस का यूज कर सकती है. इससे कर्ल ज्यादा देर तक टिका रहता है.
  • बाल ज्यादा ड्राई है तो सीरम का इस्तेमाल करें.

1. सिम्पल चोटी को बनाए स्टाइलिश

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स्कूल में हम सभी चोटी बना कर जाया करते थे. उस वक्त तो हमे चोटी बनाना बहुत बोरिंग लगता था, लेकिन चोटी स्कूल की तरह बोरिंग नहीं हैं. फैशनेबल ड्रेस के साथ बौलीवुड सेलिब्रिटी भी चोटी करती है. आप भी हाई पोनी टेल, फिश टेल, सागर चोटी बना सकती हैं. इससे आपके बाल बिखरे हुए नहीं लगेंगे और आप बहुत अट्रेक्टिव भी लगेंगी.

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2. हाफ बन

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सेलेब्स से लेकर आम लड़कियों तक हर किसी को हौफ बन बनाना पसंद है. इस तरह का हेयरस्टाइल बनाने के लिए अपने आगे के बालों को बन की तरह बांध लें और पीछे के बालों को खूला ही रहने दें. इस हेयरस्टाइल को वेस्टर्न लुक से साथ ट्राई करें. बन को ज्यादा देर टीके रहने के लिए आप हेयर स्प्रे और सीरम का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

 3. मैसी लुक हेयर स्टाइल

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मैसी लुक के लिए आप बालो को 6-7 भाग में उल्टा गूंथ करके चोटी बना कर पूरी रात रहने दें और सुबह इनको खोल कर इन्हे सेट कर लें. अगर आपको तुरंत मैसी लुक चाहिए तो आप कर्ल करले, कर्ल के बाद अपने फिंगर्स की हेल्प से इन्हें सीधा करे. आप परफैक्ट मेसी लुक में नजर आएंगी.

4. सेलिब्रिटी लुक हेयर स्टाइल

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सेलिब्रिटी लुक हेयर स्टाइल वेस्टर्न ड्रेस हो या फौर्मल ड्रेस दोनों के साथ ये लुक अच्छा लगता है. इस लुक के लिए आप बीच की मांग निकाल कर दो पार्ट में बांट ले, बालो को नीचे के साइड से कर्ल करले, और पीछे के बालों को पोनी कर लें. याद रखे हाई पोनी नहीं करना. हेयर स्प्रे का यूज करके बालों को सेट कर लें.

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5. वेस्टर्न बन

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पार्टी लुक हेयर स्टाइल के लिए हम ज्यादातर बन बनाना पसंद करते है. बन की खासियत है की ये वेस्टर्न हो या इंडियन ड्रेस दोनों पर ही अच्छा लगता हैं. बन हेयर स्टाइल कई तरह के होते हैं, यदि आप हेयर स्टाइल बनाने मे ज्यादा कन्फ्यूज हैं तो आप वेस्टर्न बन ट्राइ कर सकती हैं. इस हेयर स्टाइल में आप बेहद खूबसूरत और ग्लैमर्स दिखेंगी.

तेरा यार हूं मैं

अक़्सर देखा जाता है कि बच्चे अपने दिल की बात जितना खुलकर अपने दोस्तों के साथ कर लेते हैं, उतना खुलकर वह अपने माता पिता से नहीं कह पाते. कई बार तो बच्चे अपने माता-पिता के सामने इतना संकोच करते हैं कि वह अपनी बात तक नहीं रख पाते. आजकल इसीलिए ये जरूरी हो गया है कि पेरेंट्स अपने बच्चों के दोस्त बनकर रहें. जब दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता होता है तो संवाद भी काफी आसान हो जाता है. इस से माहौल सहज होने से दोनों एक दूसरे की बात को समझने का प्रयास करते हैं. लेकिन बड़ा प्रश्न ये है कि बच्चों से दोस्ती की किस तरह जाए. यदि आप भी चाहते हैं बच्चों के दोस्त बनना तो जरूरत है बस कुछ कदम बढ़ाने की उसके बाद बच्चों से दोस्ती का रिश्ता कायम करना मुश्किल नहीं है तो चलिए जानते हैं कुछ आसान तरीके जिनसे  ये करना आसान हो जाएगा.

अधिक नियंत्रण से बचें

कई माता पिता अपने बच्चों को कड़े अनुशासन के नाम पर कठोर नियंत्रण में रखते हैं जिस से वो गलत राह पर न जाएँ पर इसके परिणाम ठीक उलट हो जाते हैं. बच्चे बहुत जिद्दी और गुस्से वाले बन जाते हैं.इसलिए धैर्य रखें और उन्हें अपना जीवन अपने अनुरूप जीने दें. कोई गलती हो जाने पर उन्हें डांटने की बजाय प्यार से समझाएँ. उन्हें उस गलती से होने वाले नुकसान बता कर अगली बार उस गलती को न करने सलाह दें.उन्हें यकीन दिलाएं कि आपको उन पर पूरा विश्वास है कि अब वो ये ग़लती नहीं दोहरायेंगे .

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करें जीवन भर का वादा

अगर आप सच में बच्चों के नजदीक जाना चाहते हैं तो पहल आपको ही करनी होगी इसकी शुरूआत कुछ ऐसे करें कि उन्हें ये अहसास कराएँ कि जीवन के किसी भी वक़्त में आप उनके साथ होंगे. मसलन आप उन्हें कहें कि जीवन में चाहे कोई भी परिस्थिति हो वो अपनी हर छोटी बड़ी परेशानी या खुशी आपसे बाँट सकते हैं और यदि उनसे कोई छोटी या बड़ी ग़लती भी होती है तो आपके प्यार में कमी नहीं आएगी बल्कि आप उस से बाहर निकलने में उनकी मदद करेंगे . वैसे तो माता-पिता का प्यार बिना शर्त और जीवन भर के लिए ही होता है, लेकिन बच्चे को ये जताना  भी जरूरी होता है  इससे आपसी बॉन्ड मजबूत होता है. इसी तरह आप उन्हें कह सकते हैं कि एक दोस्त की तरह वो आपसे गंदी बात भी बांट सकते हैं आप उसे सुनकर उन्हें समझने का प्रयास करेंगे और उनके प्रति जजमेन्टल नहीं होंगे.

साथ समय बिताएँ

आज के इस भागमभाग वाले समय में पेरेंट्स बच्चों से दोस्ती तो करना चाहते हैं पर समय की कमी उनकी राह का रोड़ा होती है. हम यह नहीं कहते कि आप अपना सारा काम छोड़कर बच्चों के पास सारा दिन बैठे रहें पर दिन भर में कम से कम एक घंटा सिर्फ और सिर्फ उन्हीं के लिए सुरक्षित रखें, फिर भले ही वह आपका डिनर टाइम ही क्यों ना हो.इस तरह पूरे साल में आप अपने बच्चों के साथ पूरे 365 घंटे बिता पाएँगे जो कि आपके बीच दोस्ती विकसित करने में बेहद मददगार होगा. ध्यान रखें कि दोस्ती का रिश्ता एक दिन में नहीं बनता इसको पक्का बनाने के लिए लगातार प्रयास करने होते हैं.

बच्चों के लिए हमेशा उपलब्ध रहें

दिन में एक घंटा बच्चों के लिए निकल लेने भर से आपकी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती. आपको बच्चों में ये भरोसा जगाना होगा कि आप हमेशा उनके लिए मौजूद हैं. आपने कभी महसूस किया है की आपके दोस्तों से भले ही कई दिनों तक बात ना करें, लेकिन अगर आप किसी मुश्किल में हैं तो आपको यकीन होता है कि वह आपके लिए उपलब्ध होंगे, ठीक उसी तरह, बच्चों को भी यह विश्वास होना चाहिए कि अगर वह किसी तरह की मुश्किल में हैं या फिर उन्हें कोई बात आपसे शेयर करनी है तो आप उनके लिए हमेशा उपलब्ध रहेंगे.

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प्यार भरा स्पर्श

बच्चों के साथ एक प्यार भरे और दोस्ती के रिश्ते के लिए आपका स्पर्श भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जब आप अपने बच्चे को प्यार से स्पर्श करते हैं तो इससे उसके मस्तिष्क में कई सन्देश जाते हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि जब बच्चा गुस्से में होता है या फिर रो रहा होता है, ऐसे में अगर आप उसे प्यार से गले लगा लें तो वह एकदम से शांत हो जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को दिन में कम से कम पांच या छह बार प्यार से गले लगाते हैं या स्पर्श करते हैं उनका जीवन काल पांच या छह साल बढ़ जाता है. आज के दौर में बच्चों में कई भावनात्मक समस्याओं से जूझना पड़ता है जिसका  मुख्य कारण सिर्फ स्पर्श, स्नेह भरे स्पर्श की कमी और प्यार को महसूस न कर पाना है. जब आप उन्हें प्यार से गले लगाते हैं तो इससे आपका बच्चा न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से भी लाभान्वित होता है.

इन कुछ बातों का ध्यान रखने से आपके बच्चे न सिर्फ आपके अच्छे दोस्त बन जायेंगे बल्कि वो आपका अधिक सम्मान करने लगेंगे.

गार्डनिंग: प्रकृति का बसेरा

गार्डनिंग किसी भी तरह की हो, करने वाले की कलात्मक रुचि व प्रकृति प्रेम का आईना होती है. पेड़पौधे हमें जीवनवायु यानी औक्सीजन देते हैं. वैज्ञानिक तथ्यों से यह भी साबित हो चुका है कि हमारे चारों ओर पेड़पौधों की उपस्थिति हमें विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त रखने के साथसाथ तापमान को कम करती है और हरियाली हमारे मानसिक तनाव को कम करती है. अपने हाथों से गार्डनिंग करना न केवल आप को मानसिक संतुष्टि प्रदान करेगा बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से भी मुक्त रखेगा.

घर का आंगन छोटा हो या बड़ा, आप अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रकार की गार्डनिंग जैसे टैरेस गार्डन, रौक गार्डन, वाटर गार्डन या संकन गार्डन इत्यादि बना सकते हैं. परंतु यदि आप के घर में आंगन नहीं है और आप बहुमंजिली इमारत में रहते हैं तो भी बिलकुल निराश न हों. आधुनिकता की दौड़ में आज ऐसे बहुत से विकल्पों का सृजन हो गया है जिन से आप घर के अंदर, टेबल पर बौटल गार्डन, खिड़कियों में विंडो गार्डन, दीवारों पर वर्टिकल गार्डन या छतों पर रूफ गार्डन बना कर प्रकृति का भरपूर आनंद उठा सकते हैं.

विंडो गार्डन

इस में विंडो के बाहर गार्डनिंग की जाती है. इसे 2 तरह से किया जा सकता है, पहली खिड़की के बाहर लकड़ी, मैटल या सीमेंट का बौक्स बना कर, सीधे ही मिट्टी का उपजाऊ मिश्रण डाल कर पौधे लगाएं. दूसरा, इस बौक्स को प्लांटर की तरह उपयोग करें, जिस में विभिन्न प्रकार के पौधे पहले गमलों में लगाएं और फिर इन गमलों को विंडो बौक्स में करीने से सजाएं. दूसरा तरीका अधिक कामयाब है क्योंकि गमलों को फेरबदल कर विंडो गार्डन को हर मौसम में नवीन बनाया जा सकता है.

विंडो गार्डन के लिए पौधों का चुनाव करने से पहले खिड़की की दिशा, प्रकाश व धूप का समय इत्यादि जानकारी अवश्य इकट्ठी करें. आमतौर पर अगर खिड़की उत्तरपूर्व दिशा में हो तो धूप व प्रकाश प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहते हैं. ऐसी खिड़की में विभिन्न रंगों के मौसमी या बहुवार्षिक पौधे जैसे गुलाब, जिरेनियम, मौसमी फूल लगाएं. दक्षिण दिशा की खिड़की में कम प्रकाश व धूप होती है, इसलिए इस विंडो में कम प्रकाश पसंद करने वाले पौधे जैसे हाईड्रेंजिया, सैंसेविएरिया, बिगोनिया लगा सकते हैं. खिड़कियां चूंकि ऊंचाई पर स्थित होती हैं तो इन में पौधे जैसे नौस्टरशियम, एप्टीनिया, सिनेशियो या वारनोमिया भी खूब फबते हैं.

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बौटल गार्डन/टैरेरियम

क्या आप ऐसे बागीचे की परिकल्पना कर सकते हैं जो आप के ड्राइंगरूम की सैंटर टेबल या डाइनिंग टेबल की शान बढ़ाए? जी हां, इस का एक अनूठा विकल्प है बौटल गार्डन व टैरेरियम. जब बागीचा कांच की पारदर्शी बोतल के अंदर बना हो तो इसे बौटल गार्डन कहा जाता है, जबकि अगर यह एक बड़े चौकोर आयताकार कांच के बौक्स में बना हो तो इसे टैरेरियम कहा जाता है. इसे बनाना बहुत ही सरल है. सब से पहले कांच के बरतन का चुनाव करें. रुचि के अनुसार गोल, चपटी या चौकोर बोतल लें. बोतल का मुंह इतना बड़ा अवश्य हो कि जिस से चिमटी अंदर जा सके. सब से पहले बोतल को अच्छी प्रकार साफ करें व सुखा लें. इस गार्डन के लिए पौधों का चुनाव महत्त्वपूर्ण है. इस प्रकार के पौधों को चुनें जो कम प्रकाश या फिल्टर्ड प्रकाश में भी जीवित रह सकें व जिन का फैलाव या बढ़त बहुत कम या न के बराबर हो. बौटल गार्डन में हरे, दोरंगे या रंगबिरंगे पत्तों वाले पौधे अत्यंत आकर्षक लगते हैं. इन में पैपरोमिया, क्लोरोफाइटम, हिड्रा, एडिएंटम, पीलीया और छोटे आकार के क्रोटन प्रमुख हैं.

टैरेरियम के आकार के अनुसार इस के लिए सब से पहले एक कागज पर पौधों को नियोजित करने की योजना बना लें. चूंकि बौटल गार्डन में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं होती इसलिए इसे बनाते समय पहले छोटेछोटे कंकड़, पत्थरों की एक सतह बनाएं. इस के लिए इमारतों के फर्श में इस्तेमाल होने वाले रंगबिरंगे, चिप्स, जोकि लगभग हर घर में उपलब्ध रहते हैं, प्रयोग किए जा सकते हैं. बौटल के अंदर सामान पहुंचाने के लिए कागज की कीप का प्रयोग करें. इस के ऊपर पहले से गीली की गई मौस बिछाएं, ताकि मिट्टी का मिश्रण नीचे की सतह पर न पहुंचे. मौस के ऊपर चारकोल की 0.5 से 1.0 सैंटीमीटर ऊंची सतह बनाएं और आखिर में मिट्टी व सड़ीगली पत्तों की खाद का मिश्रण डालें. इन सभी सतहों को बोतल के 1/3 भाग तक ही डालें, ऊपर का भाग पौधों के लिए रहने दें.

अब एक लंबी चिमटी ले कर पौधों को बौटल के अंदर उतारें और लगा दें. चुने हुए पौधों को इस प्रकार लगाएं कि ऊंचे पौधे पीछे व छोटे पौधे आगे आएं. यदि बौटल गार्डन आप की सैंटर टेबल की शान बढ़ाने वाला है तो पौधों को इस प्रकार लगाएं कि चारों ओर से दृश्य मनोरम लगे. पौधारोपण के पश्चात पतली नली से पानी दें या हलका स्प्रे करें. पानी उतना दें कि जिस से मिश्रण गीला हो, उस से अधिक नहीं.

बौटल गार्डन का मुंह बंद रखना चाहते हैं तो इसे कई सप्ताह तक पानी देने की आवश्यकता नहीं है, यद्यपि आवश्यकतानुसार स्प्रे से नमी बनाए रखें. बौटल गार्डन को कभी भी सीधे प्रकाश या धूप में न रखें.

ग्रीन रूफ या रूफ गार्डन

साल 2005 में यूनिवर्सिटी औफ टोरंटो, अमेरिका द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रीनरूफ गार्डन हवा में मौजूद कार्बन डाईऔक्साइड व दूसरे प्रदूषणों को कम करता है. यह गरमी में ठंडक और सर्दियों में हीटिंग के व्यय को कम करता है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, ग्रीन रूफ से घर के अंदर का तापमान 1.4 से 4.4 डिगरी सैल्सियस तक कम किया जा सकता है. इन्हीं शोधों और आंकड़ों के आधार पर जरमनी, स्विट्जरलैंड व अन्य यूरोपीय देशों ने शहरों की बहुमंजिली इमारतों पर ग्रीन रूफ अनिवार्य कर दिया है. विश्व के सभी देशों में जरमनी में सर्वाधिक ग्रीन रूफ हैं.

आधुनिक युग में शहरों में इमारतों का निर्माण ही इस प्रकार किया जाता है कि उन की छतें जल प्रतिरोधी यानी वाटरप्रूफ व मिट्टी व पेड़पौधों का भार सहन करने की क्षमता रखती हों. इस प्रकार का गार्डन बनाने के लिए पूर्व योजना बनाएं और इंजीनियर की मदद से इमारत की भार सहने की क्षमता व वाटर प्रूफिंग का प्रबंधन करें. रूफ गार्डन को ग्रीन रूफ भी कहा जाता है, जोकि प्रकृति, कला और विज्ञान का अनुपम संगम है.

ये 2 प्रकार के होते हैं, इंटैंसिव रूफ गार्डन व एक्सटैंसिव रूफ गार्डन. इंटैंसिव प्रकार का रूफ गार्डन थोड़ा महंगा होता है और इस में मिट्टी के मिश्रण की मोटी परत 50 सैंटीमीटर से 1 मीटर तक बिछाई जाती है. इस प्रकार के गार्डन में छोटे पौधों के साथसाथ पेड़ भी लगाए जा सकते हैं. इसे बनाने के लिए सर्वप्रथम इंजीनियर की मदद से वाटर प्रूफिंग की जाती है. इस के ऊपर बारीबारी विभिन्न सतहें जैसे पौंड लाइनर, फिल्टर लेयर व इंसुलेशन बिछाई जाती हैं, जिन के ऊपर मिट्टी या मिट्टी रहित हलका मिश्रण बिछाया जाता है. पहले कागज पर नक्शा बनाया जाता है और उस के अनुसार पौधों का चुनाव किया जाता है.

गार्डन के नक्शे के मुताबिक मिश्रण की ऊंचाई तय की जाती है. नन्हीनन्ही पहाडि़यां, रूफ गार्डन को अधिक प्राकृतिक बनाती हैं. रूफ गार्डन में विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए जा सकते हैं. वृक्षों में कम गहरी जड़ों वाले पाम, क्यूप्रेसस, फूलदार टीकोमा स्टांस, प्लूमेरिया लगाएं. वृक्षप्रेमी विभिन्न प्रकार के वृक्षों के बोनसाई रख कर भी वृक्षों का आनंद उठा सकते हैं. फूलदार, अलंकृत बांस की प्रजातियां रूफ गार्डन की शान दोगुना कर देती हैं. रूफ गार्डन में लगा लौन, गार्डन की जान है. नर्सरियों में लौन टाइल के रूप में भी उपलब्ध रहता है, जोकि इस गार्डन में सब से सफल है. मौसमी फूलों के रंगों से कोई भी गार्डन जीवंत हो उठता है. इन्हें छोटी क्यारियों के गमलों में लगाएं. फूलदार व खुशबूदार हलकी लताएं भी लगाएं, ये विंड ब्रेक का काम करने के साथसाथ अनचाहे दृश्यों से स्क्रीनिंग भी करेंगी.

रूफ गार्डन या ग्रीन रूफ बनाने के लिए बड़ेबड़े शहरों में बहुत सी व्यावसायिक कंपनियां स्थापित की गई हैं जो आप के घर की छत को नया रूप देने में सक्षम हैं.

वर्टिकल गार्डन

शहरों में भूमि की उपलब्धता कम होने से वैज्ञानिकों ने अब पौधों को दीवारों पर लगाने की वर्टिकल गार्डन प्रणाली विकसित की है. इस में दीवारों पर पौधे लगाए जाते हैं. इस के लिए पौधों की जानकारी होने के साथ इंजीनियरिंग की निपुणता की भी आवश्यकता है. इस प्रकार के गार्डन बनाने के लिए रेडिमेड वर्टिकल पैनलों का प्रयोग किया जाता है. इन पर पौधों के लिए पर्याप्त स्थान बना होता है. ड्रिप नलियों द्वारा पानी की व्यवस्था होती है.

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विभिन्न प्रकार के सीडम, सीनेशियों, एप्टीनिया, ट्रैडेसकैंशिया इत्यादि का प्रयोग इस गार्डन में किया जाता है. ये अनूठे गार्डन खूबसूरत दिखने के साथसाथ पर्यावरण व वातावरण को शुद्ध करते हैं और बड़ीबड़ी बिल्डिंग के एअरकंडीशनिंग के खर्चे की बचत करते हैं. ग्रीन रूफ या रूफ गार्डन की तरह ही इस गार्डन को बनाने के लिए आप व्यावसायिक कंपनियों व इंजीनियरों की मदद लें. कुछ लोग पत्तेदार बेलों जैसे फाइकस रैपेंस को दीवारों पर चढ़ा देते हैं, इसे भी वर्टिकल गार्डन कहा जा सकता है.

जिन इमारतों पर ग्रीन रूफ वर्टिकल गार्डन बनाए जाते हैं, उन्हें ग्रीन बिल्ंिडग कहा जाता है. मौसम के बदलते परिवेश में ग्रीन बिल्डिंग्ज का अपना महत्त्व है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, ये ‘हीट आइलैंड इफैक्ट’ को भी कम करने में कारगर हैं. यह समय की मांग है, इसीलिए कुछ देशों ने इन्हें बनाना अनिवार्य कर दिया है.

अगर लगाना चाहती हैं परफेक्ट विंग आई लाइनर, तो ट्राय करें यह 5 तरीके

अगर आप एक परफेक्ट मेकअप लूक पाना चाहती हैं तो इसके लिए आपको आई लाइनर भी परफेक्ट ही होना चाहिए. बहुत सी महिलाओं को पूरा मेकअप करते समय आई मेकअप सबसे अधिक कठिन लगता है और आई मेकअप में भी आई लाइनर. किसी से विंग नहीं बन पाता है तो किसी के विंग दोनों आंखों पर एक समान नहीं हो पाते हैं. अगर आप परफेक्ट लाइनर लगाना चाहती हैं तो आपको कॉन्फिडेंस की कमी या प्रोफिशिएंसी की कमी नहीं दिखानी होती है. इसके लिए आप आज के आई लाइनर लगाने के तरीकों का प्रयोग कर सकती हैं. आइए जानते हैं एक परफेक्ट लाइनर लगाने का राज.

 1. एंगल्ड आई लाइनर ब्रश के साथ लगाएं लाइनर :

यह लाइनर लगाने का सबसे आसान और सिंपल तरीका है और अगर आपसे लाइनर नहीं लग पाता है तो यह तरीका बेस्ट है. अपने आई लाइनर में एक एंगल ब्रश को डुबोएं और इसे अपनी आउटर आई पर लगाएं और बाहर की साइड निकालते हुए एक विंग शेप बना लें और अंदर की साइड भी फिल कर लें. आप इसे अपनी मर्जी अनुसार छोटा या बड़ा और गहरा या लाइट कर सकती हैं.

2. फ्री हैंड गाइड :

इस तरीके के अनुसार आपको प्रैक्टिस और एक जंचा हुआ हाथ चाहिए होता है. अगर आप एकदम नीट और क्लीन लाइनर लगाना चाहती हैं तो यह तरीका बेस्ट रहने वाला है. एक पेंसिल लाइनर लें और अपनी आंखों के किनारे से शुरू करके एक लाइन को एक्सटेंड कर लें. आप इसकी लेंथ को एडजस्ट कर सकती हैं. अब जहां आप की यह लाइन खत्म होती है वहां पेंसिल रखें और थोड़ी सी कर्व ले जाते हुए अपनी इनर कॉर्नर की ओर पेंसिल को ले कर जाएं. हो सकता है एक साथ पूरी लाइन बना पाना आपके लिए मुश्किल हो इसलिए आप थोड़े थोड़े प्वाइंट बनाएं और फिर पॉइंट्स को ज्वाइन कर दें.

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3. टेप के द्वारा करें आई लाइनर ड्रॉ :

यह तरीका भी आई लाइनर से डरने वाली महिलाओं के लिए बहुत अच्छा तरीका है. इस तरीके के अनुसार आपको आई लाइनर लगाने से पहले अपनी आंखों के किनारे जहां आप विंग बनाती हैं वहां आपको एक टेप लगानी है. फिर आपको जैसे आप लाइनर ड्रॉ करती हैं वह कर लेना है और आपको एक दम परफेक्ट और इक्वल लाइनर मिलेगा. लाइनर लगाने के बाद आपको टेप हटा देनी है.

 4. चम्मच के साथ लगाएं आई लाइनर :

अगर हमेशा से सोचा हुआ परफेक्ट आई लाइनर लगाना चाहती हैं तो आपको एक चम्मच लेनी है. अब चम्मच का आगे वाला भाग जहां से आप खाते हैं उसे आप अपनी आंखों पर रखें जहां आप लाइनर लगाने वाली हैं. अब इस चम्मच को यहीं रखें और अपने दूसरे हाथ से लाइनर ड्रॉ करें. आपको चम्मच की वजह से लाइनर की परफेक्ट शेप मिलेगी. इस तरीके से लाइनर लगाना भी काफी सिंपल है.

 5. स्वाइप कार्ड की मदद से लगाएं लाइनर :

यह तरीका भी आपकी आई लाइनर लगाने की समस्या को काफी हद तक खत्म कर देता है. इसके लिए आपको केवल एक स्वाइप कार्ड की आवश्यकता होगी और कार्ड के एक कोने को अपनी आंख के आउटर कॉर्नर पर रखें ताकि वह आपकी आई ब्रो की तरफ जा रहा हो और आपके लाइनर को एकदम सीधी शेप मिल सके. इसके बाद आपको लाइनर लगा लेना है और फिर इस कार्ड को हटा देना है. अगर आपका लाइनर कहीं से खराब हो जाता है तो आप किसी टिश्यू पेपर की मदद से उसे साफ भी कर सकती हैं.

इन तरीकों का प्रयोग करके मेकअप का यह स्टेप बहुत अच्छे से पूरा हो जाता है और बहुत आसान भी लगता है.

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 1- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

जयंत औफिस के बाद पुलिस थाने होते हुए घर पहुंचे थे. बहुत थक गए थे. शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत ज्यादा थके थे. शारीरिक श्रम जीवन में प्रतिदिन करना ही पड़ता है, परंतु पिछले 1 महीने से जयंत के जीवन में शारीरिक व मानसिक श्रम की मात्रा थकान की हद तक बढ़ गई थी. घर पर पत्नी मृदुला उन की प्रतीक्षा कर रही थी. प्रतिदिन करती है. उन के आते ही जिज्ञासा से पूछती है, ‘‘कुछ पता चला?’’ आज भी वही प्रश्न हवा में उछला. पत्नी को उत्तर पता था. जयंत के चेहरे की थकी, उदास भंगिमा ही बता रही थी कि कुछ पता नहीं चला था.

जयंत सोफे पर गिरते से बोले, ‘‘नहीं, परंतु आज पुलिस ने एक नई बात बताई है.’’

‘‘वह क्या?’’ पत्नी का कलेजा मुंह को आ गया. जिस बात को स्वीकार करने में जयंत और मृदुला इतने दिनों से डर रहे थे, कहीं वही सच तो सामने नहीं आ रहा था. कई बार सच जानतेसमझते हुए भी हम उसे नकारते रहते हैं. वे दोनों भी दिल की तसल्ली के लिए झूठ को सच मान कर जी रहे थे. हृदय की अतल गहराइयों से वे मान रहे थे कि सच वह नहीं था जिस पर वे विश्वास बनाए हुए थे. परंतु जब तक प्रत्यक्ष नहीं मिल जाता, वे अपने विश्वास को टूटने नहीं देना चाहते थे.

पत्नी की बात का जवाब न दे कर जयंत ने कहा, ‘‘एक गिलास पानी लाओ.’’

मृदुला को अच्छा नहीं लगा. वह पहले अपने मन की जिज्ञासा को शांत कर लेना चाहती थी. पति की परेशानी और उन की जरूरतों की तरफ आजकल उस का ध्यान नहीं जाता था. वह जानबूझ कर ऐसा नहीं करती थी, परंतु चिंता के भंवर में फंस कर वह स्वयं को भूल गई थी, पति का खयाल कैसे रखती?

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जल्दी से पानी का गिलास ला कर पति के हाथ में थमाया और फिर पूछा, ‘‘क्या बताया पुलिस ने?’’

पानी पी कर जयंत ने गहरी सांस ली, फिर लापरवाही से कहा, ‘‘कहते हैं कि अब हमारा बेटा जीवित नहीं है.’’

मृदुला उन को पकड़ कर रोने लगी. वे उस को संभाल कर पीछे के कमरे तक लाए और बिस्तर पर लिटा कर बोले, ‘‘रोने से क्या फायदा मृदुल, इस सचाई को हम स्वयं नकारते आ रहे थे, परंतु अब हमें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए.’’

मृदुला उठ कर बिस्तर पर बैठ गई, ‘‘क्या उन को कोई सुबूत मिला है?’’

‘‘हां, प्रमांशु के जिन दोस्तों को पुलिस ने पकड़ा था, उन्होंने कुबूल कर लिया है कि उन्होंने प्रमांशु को मार डाला है.’’

सुन कर मृदुला और तेजी से रोने लगी. इस बार जयंत ने उसे चुप कराने का प्रयास नहीं किया, बल्कि आगे बोलते रहे, ‘‘लाश नहीं मिली है. पुलिस ने कुछ हड्डियां बरामद की हैं, उन से पहचान असंभव है.’’

मृदुला का विलाप सिसकियों में बदल गया. फिर नाक सुड़कती हुई बोली, ‘‘हो सकता है, वे प्रमांशु की हड्डियां न हों.’’

‘‘हां, संभव है, इसीलिए पुलिस उन का डीएनए टैस्ट कर के पता करेगी कि वे प्रमांशु के शरीर की हड्डियां हैं या किसी और व्यक्ति की. उन्होंने हमें कल बुलाया है. हमारे ब्लड सैंपल लेंगे.’’

‘‘ब्लड सैंपल…’’ मृदुला चौंक गई. उस ने आतंकित भाव से जयंत को देखा.

जयंत ने आश्वासन देते हुए कहा, ‘‘इस में डरने की क्या बात है? ब्लड सैंपल देने में कोई तकलीफ नहीं होती.’’

‘‘नहीं, लेकिन…’’ मृदुला का स्वर कांप रहा था.

‘‘इस में परेशानी की कोई बात नहीं है. डीएनए मिलेगा तो वह हमारा प्रमांशु होगा, नहीं मिलेगा तो कोई अनजान व्यक्ति होगा.’’ जयंत के कहने के बावजूद मृदुला के चेहरे से भय का साया नहीं गया. उस का हृदय ही नहीं, पूरा शरीर कांप रहा था. उस के शरीर का कंपन जयंत ने भी महसूस किया. उन्होंने समझा, बेटे की मृत्यु से मृदुला विचलित हो गई है. उन्होंने उस को दवा दे कर बिस्तर पर लिटा दिया. नींद कहां आनी थी, परंतु जयंत उसे अकेला छोड़ कर ड्राइंगरूम में आ गए. सोफे पर अधलेटे से हो कर वे अतीत के जाल में उलझ गए.

जयंत का पारिवारिक जीवन काफी सुखमय रहा था. मनुष्य के पास जब धन, वैभव और वैचारिक संपन्नता हो तो उस के जीवन में आने वाले छोटेछोटे दुख, कष्ट और तकलीफें कोई माने नहीं रखतीं. उन के पिताजी केंद्र सरकार की सेवा में उच्च अधिकारी थे. मां एक कालेज में प्रोफैसर थीं. उन की शिक्षा शहर के सब से अच्छे अंगरेजी स्कूल और फिर नामचीन कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने भी प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की और आज राजस्व विभाग में उच्च अधिकारी थे. उन की पत्नी मृदुला भी उच्च शिक्षित थी, परंतु वह नौकरी नहीं करती थी. वह समाजसेवा और घूमनेफिरने की शौकीन थी. शादी के बाद जब उस का उठनाबैठना जयंत के सीनियर अधिकारियों की बीवियों के साथ हुआ, तो उस की पहचान का दायरा बढ़ा और वह शहर के कई क्लबों और सभासमितियों की सदस्या बन गई थी. जयंत खुले विचारों के शिक्षित व्यक्ति थे, सो, पत्नी की आधुनिक स्वतंत्रता के पक्षधर थे. वह पत्नी के घूमनेफिरने, अकेले बाहर आनेजाने पर एतराज नहीं करते थे. पत्नी के चरित्र पर वे पूरा भरोसा करते थे.

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शादी के 5 साल तक उन के घर बच्चे का पदार्पण नहीं हुआ. जयंत इच्छुक थे, परंतु मृदुला नहीं चाहती थी. शादी के तुरंत बाद वह बच्चा पैदा कर के अपने सुंदर, सुगठित शरीर को बेडौल नहीं करना चाहती थी. वैसे भी वह घर और पति की तरफ अधिक ध्यान नहीं देती थी. इस के बजाय वह किटी पार्टियों व क्लबों में रमी खेलने में ज्यादा रुचि लेती थी. तब जयंत के मातापिता जीवित थे, परंतु मृदुला अपने ऊपर किसी का प्रतिबंध नहीं चाहती थी. वह वैचारिक और व्यावहारिक स्वतंत्रता की पक्षधर थी. इसलिए बाहर आनेजाने के मामले में वह किसी की बात नहीं सुनती थी. जयंत बेवजह घर में कोई झगड़ा नहीं चाहते थे, इसलिए पत्नी को कभी टोकते नहीं थे. उन का मानना था कि एक बच्चा होते ही वह घर और बच्चे की तरफ ध्यान देने लगेगी और तब वह क्लब की मौजमस्ती और किटी पार्टियां भूल जाएगी.

परंतु ऐसा नहीं हो सका. शादी के 5 साल बाद उन के यहां बच्चा हुआ, तो भी मृदुला की आदतों में कोई सुधार नहीं आया. कुछ दिन बाद ही उस ने क्लबों की पार्टियों में जाना प्रारंभ कर दिया. बच्चा आया (मेड) और जयंत के भरोसे पलने लगा. जब तक जयंत के मातापिता जीवित रहे तब तक उन्होंने प्रमांशु को संभाला, परंतु जब वह 10 साल का हुआ तो उस के दादादादी एकएक कर दुनिया से चल बसे. बच्चा स्कूल से आ कर घर में अकेला रहता, टीवी देखता या बाल पत्रिकाएं पढ़ता, जिन को जयंत खरीद कर लाते थे ताकि प्रमांशु का मन लगा रहे. वह आया से भी बहुत कम बात करता था.

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 2- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

शाम को जयंत घर लौटते तो वे उस का होमवर्क पूरा करवाते, कुछ देर उस के साथ खेलते और खाना खिला कर सुला देते. रात के 10 बजने के बाद कहीं मृदुला किटी पार्टियों या क्लब से लौट कर आती. तब उसे इतना होश न रहता कि वह प्रमांशु के साथ दो शब्द बोल कर उस के ऊपर ममता की दो बूंदें टपका सके. उस ने तो कभी यह जानने की कोशिश भी नहीं की कि उस का पेटजाया बच्चा किस प्रकार पलबढ़ रहा था, उसे कोई दुख या परेशानी है या नहीं, वह मां के आंचल की ममतामयी छांव के लिए रोता है या नहीं. वह मां से क्या चाहता है, कभी मृदुला ने उस से नहीं पूछा, न प्रमांशु ने कभी उसे बताया. उन दोनों के बीच मांबेटे जैसा कोई रिश्ता था ही नहीं. मांबेटे के बीच कभी कोई संवाद ही नहीं होता था.

धीरेधीरे प्रमांशु बड़ा हो रहा था. परंतु मृदुला उसी तरह क्लबों व किटी पार्टियों में व्यस्त थी. अब भी वह देर रात को घर लौटती थी. जयंत ने महसूस किया कि प्रमांशु भी रात को देर से घर लौटने लगा है, घर आते ही वह अपने कमरे में बंद हो जाता है, जयंत मिलने के लिए उस के कमरे में जाते तो वह दरवाजा भी नहीं खोलता. पूछने पर बहाना बना देता कि उस की तबीयत खराब है. खाना भी कई बार नहीं खाता था. जयंत की समझ में न आता कि वह इतना एकांतप्रिय क्यों होता जा रहा था. वह हाईस्कूल में था. जयंत को पता न चलता कि वह अपना होमवर्क पूरा करता है या नहीं. एक दिन जयंत ने उस से पूछ ही लिया, ‘बेटा, तुम रोजरोज देर से घर आते हो, कहां रहते हो? और तुम्हारा होमवर्क कैसे पूरा होता है? कहीं तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ?’

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‘पापा, आप मेरी बिलकुल चिंता न करें, मैं स्कूल के बाद अपने दोस्तों के घर चला जाता हूं. उन्हीं के साथ बैठ कर अपना होमवर्क भी पूरा कर लेता हूं,’ प्रमांशु ने बड़े ही आत्मविश्वास से बताया. जयंत को विश्वास तो नहीं हुआ, परंतु उन्होंने बेटे की भावनाओं को आहत करना उचित नहीं समझा. बात उतनी सी नहीं थी, जितनी प्रमांशु ने अपने पापा को बताई थी. जयंत भी लापरवाह नहीं थे. वे प्रमांशु की गतिविधियों पर नजर रखने लगे थे. उन्हें लग रहा था, प्रमांशु किन्हीं गलत गतिविधियों में लिप्त रहने लगा था. घर आता तो लगता उस के शरीर में कोई जान ही नहीं है, वह गिरतापड़ता सा, लड़खड़ाता हुआ घर पहुंचता. उस के बाल उलझे हुए होते, आंखें चढ़ी हुई होतीं और वह घर पहुंच कर सीधे अपने कमरे में घुस कर दरवाजा अंदर से बंद कर लेता. जयंत के आवाज देने पर भी दरवाजा न खोलता. दूसरे दिन भी दिन चढ़े तक सोता रहता.

यह बहुत चिंताजनक स्थिति थी. जयंत ने मृदुला से इस का जिक्र किया तो वह लापरवाही से बोली, ‘इस में चिंता करने वाली कौन सी बात है, प्रमांशु अब जवान हो गया है. अब उस के दिन गुड्डेगुडि़यों से खेलने के नहीं रहे. वह कुछ अलग ही करेगा.’

और उस ने सचमुच बहुतकुछ अलग कर के दिखा दिया, ऐसा जिस की कल्पना जयंत क्या, मृदुला ने भी नहीं की थी.

प्रमांशु ने हाईस्कूल जैसेतैसे पास कर लिया, परंतु नंबर इतने कम थे कि किसी अच्छे कालेज में दाखिला मिलना असंभव था. आजकल बच्चों के बीच प्रतिस्पर्धा और कोचिंग आदि की सुविधा होने के कारण वे शतप्रतिशत अंक प्राप्त करने लगे थे. हाई स्कोरिंग के कारण 90 प्रतिशत अंक प्राप्त बच्चों के ऐडमिशन भी अच्छे कालेजों में नहीं हो पा रहे थे. जयंत ने अपने प्रभाव से उसे जैसेतैसे एक कालेज में ऐडमिशन दिलवा दिया, परंतु पढ़ाई जैसे प्रमांशु का उद्देश्य ही नहीं था. उस की 17-18 साल की उम्र हो चुकी थी. अब तक यह स्पष्ट हो चुका था कि वह ड्रग्स के साथसाथ शराब का सेवन भी करने लगा था. जयंत के पैरों तले जमीन खिसक गई. प्यार और ममता से वंचित बच्चे क्या इतना बिगड़ जाते हैं कि ड्रग्स और शराब का सेवन करने लगते हैं? इस से उन्हें कोई सुकून प्राप्त होता है क्या? अपने बेटे को सुधारने के लिए मांबाप जो यत्न कर सकते हैं, वे सभी जयंत और मृदुला ने किए. प्रमांशु के बिगड़ने के बाद मृदुला ने क्लबों में जाना बंद कर दिया था. सोसायटी की किटी पार्टियों में भी नहीं जाती थी.

प्रमांशु की लतों को छुड़वाने के लिए जयंत और मृदुला ने न जाने कितने डाक्टरों से संपर्क किया, उन के पास ले कर गए, दवाएं दीं, परंतु प्रमांशु पर इलाज और काउंसलिंग का कोई असर नहीं हुआ. उलटे अब उस ने घर आना ही बंद कर दिया था. रात वह अपने दोस्तों के घर बिताने लगा था. उस के ये दोस्त भी उस की तरह ड्रग एडिक्ट थे और अपने मांबाप से दूर इस शहर में पढ़ने के लिए आए थे व अकेले रहते थे. जयंत के हाथों से सबकुछ फिसल गया था. मृदुला के पास भी अफसोस करने के अलावा और कोई चारा नहीं था. प्रमांशु पहले एकाध रात के लिए दोस्तों के यहां रुकता, फिर धीरेधीरे इस संख्या में बढ़ोतरी होने लगी थी. अब तो कई बार वह हफ्तों घर नहीं आता था. जब आता था, जयंत और मृदुला उस की हालत देख कर माथा पीट लेते, कोने में बैठ कर दिल के अंदर ही रोते रहते, आंसू नहीं निकलते, परंतु हृदय के अंदर खून के आंसू बहाते रहते. अत्यधिक ड्रग्स के सेवन से प्रमांशु जैसे हर पल नींद में रहता. लुंजपुंज अवस्था में बिस्तर पर पड़ा रहता, न खाने की सुध, न नहानेधोने और कपड़े पहनने की. उस की एक अलग ही दुनिया थी, अंधेरे रास्तों की दुनिया, जिस में वह आंखें बंद कर के टटोलटटोल कर आगे बढ़ रहा था.

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जयंत के पारिवारिक जीवन में प्रमांशु की हरकतों की वजह से दुखों का पहाड़ खड़ा होता जा रहा था. जयंत जानते थे, प्रमांशु के भटकने की असली वजह क्या थी, परंतु अब उस वजह को सुधार कर प्रमांशु के जीवन में सुधार नहीं लाया जा सकता था. मृदुला अब प्रमांशु के ऊपर प्यारदुलार लुटाने के लिए तैयार थी, इस के लिए उस ने अपने शौक त्याग दिए थे, परंतु अब समय उस के हाथों से बहुत दूर जा चुका था, पहुंच से बहुत दूर. इस बात को ले कर किसी को दोष देने का कोई औचित्य भी नहीं था. जयंत और मृदुला परिस्थितियों से समझौता कर के किसी तरह जीवन के साथ तालमेल बिठा कर जीने का प्रयास कर रहे थे कि तभी उन्हें एक और झटका लगा. पता चला कि प्रमांशु समलैंगिक रिश्तों का भी आदी हो चुका था.

जयंत की समझ में नहीं आ रहा था, यह कैसे जीन्स प्रमांशु के खून में आ गए थे, जो उन के खानदान में किसी में नहीं थे. जहां तक उन्हें याद है, उन के परिवार में ड्रग्स लेने की आदत किसी को नहीं थी. पार्टी आदि में शराब का सेवन करना बुरा नहीं माना जाता था, परंतु दिनरात पीने की लत किसी को नहीं लगी थी. और अब यह समलैंगिक संबंध…?

जयंत की लाख कोशिशों के बावजूद प्रमांशु में कोई सुधार नहीं हुआ. घर से उस ने अपना नाता पूरी तरह से तोड़ लिया था. उस की दुनिया उस के ड्रग एडिक्ट और समलैंगिक दोस्तों तक सिमट कर रह गई थी. उन के साथ वह यायावरी जीवन व्यतीत कर रहा था. बेटा चाहे घरपरिवार से नाता तोड़ ले, मांबाप के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो जाए, परंतु मांबाप का दिल अपनी संतान के प्रति कभी खट्टा नहीं होता. जयंत अच्छी तरह समझ गए थे कि प्रमांशु जिस राह पर चल पड़ा था, उस से लौट पाना असंभव था. ड्रग और शराब की आदत छूट भी जाए तो वह अपने समलैंगिक संबंधों से छुटकारा नहीं पा सकता था. इस के बावजूद वे उस की खोजखबर लेते रहते थे. फोन पर बात करते और मिल कर समझाते, मृदुला से भी उस की बातें करवाते. वे दोनों ही उसे बुरी लतों से छुटकारा पाने की सलाह देते.

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Family Story In Hindi: उनका बेटा- भाग 3- क्यों हैरान थे जयंत और मृदुला

जयंत और मृदुला को नहीं लगता था कि प्रमांशु कभी अपनी लतों से छुटकारा पा सकेगा. परंतु नहीं, प्रमांशु ने अपनी सारी लतों से एक दिन छुटकारा पा लिया. उस ने जिस तरह से अपनी आदतों से छुटकारा पाया था, इस की जयंत और मृदुला को न तो उम्मीद थी न उन्होंने ऐसा सोचा था. एक दिन प्रमांशु के किसी मित्र ने जयंत को फोन कर के बताया कि प्रमांशु कहीं चला गया है और उस का पता नहीं चल रहा है. जयंत तुरंत उस मित्र से मिले. पूछने पर उस ने बताया कि इन दिनों वह अपने पुराने दोस्तों को छोड़ कर कुछ नए दोस्तों के साथ रहने लगा था. इसी बात पर उन लोगों के बीच झगड़ा और मारपीट हुई थी. उस के बाद प्रमांशु कहीं गायब हो गया था. उस मित्र से नामपता ले कर जयंत उस के नएपुराने सभी दोस्तों से मिले, खुल कर उन से बात की, परंतु कुछ पता नहीं चला. जयंत ने अनुभव किया कि कहीं न कहीं, कुछ बड़ी गड़बड़ है और हो सकता है, प्रमांशु के साथ कोई दुर्घटना हो गई हो.

दुर्घटना के मद्देनजर जयंत ने पुलिस थाने में प्रमांशु की गुमशुदगी की रपट दर्ज करा दी. जवान लड़के की गुमशुदगी का मामला था. पुलिस ने बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया. परंतु जब जयंत ने प्रमांशु की हत्या की आशंका व्यक्त की और पुलिस के उच्च अधिकारियों से बात की तो पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया और प्रमांशु के दोस्तों से गहरी पूछताछ की. जयंत लगभग रोज पुलिस अधिकारियों से बात कर के तफ्तीश की जानकारी लेते रहते थे, स्वयं शाम को थाने जा कर थाना प्रभारी से मिल कर पता करते. थानेदार ने उन से कहा भी कि उन्हें रोजरोज थाने आने की जरूरत नहीं थी. कुछ पता चलनेपर वह स्वयं उन को फोन कर के या बुला कर बता देगा, परंतु जयंत एक पिता थे, उन का दिल न मानता.

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और आज पुलिस ने संभावना व्यक्त की थी कि प्रमांशु की हत्या हो चुकी थी. उस के दोस्तों की निशानदेही पर पुलिस ने कुछ हड्डियां भी बरामद की थीं. चूंकि प्रमांशु की देह नहीं मिली थी, उस की पहचान सिद्ध करने के लिए डीएनए टैस्ट जरूरी था. जयंत और मृदुला का खून लेने के लिए पुलिस ने कल उन्हें थाने बुलाया था. वहां से अस्पताल जाएंगे. रात में फिर मृदुला ने शंका व्यक्त की, ‘‘पता नहीं, पुलिस किस की हड्डियां उठा कर लाई है और अब उन्हें प्रमांशु की बता कर उस की मौत साबित करना चाहती है. मुझे लगता है, हमारा बेटा अभी जिंदा है.’’

‘‘हो सकता है, जिंदा हो. और पूरी तरह स्वस्थ हो. फिर भी मैं चाहता हूं, एक बार पता तो चले कि हमारे बेटे के साथ क्या हुआ है. वह जिंदा है या नहीं, कुछ तो पता चले.’’

‘‘परंतु जंगल से किसी भी व्यक्ति की हड्डियां उठा कर पुलिस कैसे यह साबित कर सकती है कि वे हमारे बेटे की ही हड्डियां हैं?’’

‘‘इसीलिए तो वह डीएनए परीक्षण करवा रही है,’’ जयंत ने मृदुला को आश्वस्त करते हुए कहा.

दूसरे दिन वे दोनों ब्लड सैंपल दे आए. एक महीने के बाद जयंत के पास थानेदार का फोन आया, ‘‘डीएनए परीक्षण की रिपोर्ट आ गई है. आप थाने पर आ कर मिल लें.’’

‘‘क्या पता चला?’’ उन्होंने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘आप आ कर मिल लें, तो अच्छा रहेगा,’’ थानेदार ने गंभीर स्वर में कहा. जयंत औफिस में थे. मन में शंका पैदा हुई, थानेदार ने स्पष्ट रूप से क्यों नहीं बताया? उन्होंने मृदुला को फोन कर के बताया कि डीएनए की रिपोर्ट आ गई है. वे घर आ रहे हैं, दोनों साथसाथ थाने चलेंगे. घर से मृदुला को ले कर जंयत थाने पहुंचे. थानेदार ने उन का स्वागत किया. मृदुला कुछ घबराई हुई थी, परंतु जयंत ने स्वयं को तटस्थ बना रखा था. किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए वे तैयार थे.

थानेदार ने जयंत से कहा, ‘‘आप मेरे साथ आइए,’’ फिर मृदुला से कहा, ‘‘आप यहीं बैठिए.’’ जयंत को एक अलग कमरे में ले जा कर थानेदार ने जयंत से कहा, ‘‘सर, बात बहुत गंभीर है, इसलिए केवल आप से बता रहा हूं. हो सकता है सुन कर आप को सदमा लगे, परंतु सचाई से आप को अवगत कराना भी मेरा फर्ज है. डीएनए परीक्षण के मुताबिक जिस व्यक्ति की हड्डियां हम ने बरामद की थीं, वे प्रमांशु की ही हैं.’’

जयंत को यही आशंका थी. उन्होंने अपने हृदय पर पत्थर रख कर पूछा, ‘‘परंतु उस की हत्या कैसे और क्यों हुई?’’

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‘‘उस के जिन दोस्तों को हम ने पकड़ा था, उन से पूछताछ में यही पता चला था कि प्रमांशु ने अपने कुछ पुराने दोस्तों से संबंध तोड़ कर नए दोस्त बना लिए थे. पुराने दोस्तों को यह बरदाश्त नहीं हुआ. उन्होंने उस से संबंध जारी रखने के लिए कहा, तो प्रमांशु ने मना कर दिया. यही उस की हत्या का कारण बना.’’

‘‘क्या हत्यारे पकड़े गए?’’

‘‘हां, वे जेल में हैं. अगले हफ्ते हम अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर देंगे.’’ जयंत ने गहरी सांस ली.

‘‘सर, एक और बात है, जो हम आप से छिपाना नहीं चाहते क्योंकि अदालत में जिरह के दौरान आप को पता चल ही जानी है.’’

‘क्या बात है’ के भाव से जयंत ने थानेदार के चेहरे को देखा.

‘‘सर, प्रमांशु आप की पत्नी का बेटा तो है, परंतु वह आप का बेटा नहीं है,’’ थानेदार ने जैसे धमाका किया. जयंत की आंखें फटी की फटी रह गईं और मुंह खुला का खुला रहा गया. उन्हें चक्कर सा आया. कुरसी पर न बैठे होते तो शायद गिर जाते. जयंत कई पल तक चुपचाप बैठे रहे. थानेदार भी नहीं बोला, वह जयंत के दिल की हालत समझ सकता था. कुछ पल बाद जयंत ने शांत स्वर में कहा, ‘‘थानेदार साहब, जो होना था, हो गया. अब प्रमांशु कभी वापस नहीं आ सकता, परंतु जिस झूठ को अनजाने में हम सचाई मान कर इतने दिनों से जी रहे थे, वह झूठ सचाई ही बना रहे तो अच्छा है. यह हमारे दांपत्य जीवन के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘क्या मतलब, सर?’’ थानेदार की समझ में कुछ नहीं आया.

‘‘आप मेरी पत्नी को यह बात मत बताइएगा कि मुझे पता चल गया है कि मैं प्रमांशु का पिता नहीं हूं.’’

थानेदार सोच में पड़ गया, फिर बोला, ‘‘जी सर, यही होगा. मैं आप की पत्नी को गवाह नहीं बनाऊंगा.’’

‘‘हां, यही ठीक होगा. बाकी मैं संभाल लूंगा.’’

‘‘जी सर.’’

जयंत थके उदास कदमों से मृदुला को कंधे से पकड़ कर थाने के बाहर निकले. मृदुला बारबार उतावली सी पूछ रही थी, ‘‘क्या हुआ? थानेदार ने क्या बताया? डीएनए परीक्षण से क्या पता चला? क्या वह हमारा प्रमांशु ही था?’’

गाड़ी में बैठते हुए जयंत ने मृदुला के सिर को अपने कंधे पर टिकाते हुए कहा, ‘‘मृदुल, तुम अपने को संभालो, वह हमारा ही बेटा था. अब वह इस दुनिया में नहीं रहा.’’ मृदुला हिचकियां भर कर रोने लगी.

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हिबिस्कस फ्लावर से बने नेचुरल हेयर कलर अपनाए और बालों को बनाएं हेल्दी

आज के समय में बालों को कलर करना एक आम फैशन है, लेकिन कैमिकल युक्त कलर बालों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में आप कैमिकल वाले कलर प्रयोग करने के बजाय कुछ नेचुरल हेयर कलर भी अपना सकते हैं. नेचुरल हेयर कलर से आपके बालों को कोई नुकसान भी नहीं होता और आपके बाल भी स्वस्थ रहते है. ऐसे में मेहंदी के अलावा आप हिबिस्कुस यानि गुडहल के फूल से अपने बालों को कलर कर सकती है. ये आपके बालों को कोई नुकसान भी नही पहुंचता और रखता है स्वस्थ. इसके क्या फायदे है इस बारे में बता रहें हैं. विश्व प्रसिद्ध डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन, संस्थापक और निदेशक, आईएलएएमईडी के डॉ. अजय राणा.

गुडहल के फूल से बना हेयर कलर कितना फायदेमंद

यहां हम आपको गुडहल के फूल से नेचुरल हेयर कलर बनाने का तरीका बता रहे हैं, जिससे कि आप आसानी से घर पर ये हेयर कलर बना सकते हैं.

1. हिबिस्कस में पॉलीफेनोल कंपाउंड्स होते हैं, इसकी एंटी इंफ्लेमेटरी फीचर्स बालों के सफ़ेद होने के साथ-साथ बालों के झड़ने से भी रोकते है.

2. स्कैल्प पर हिबिस्कस पाउडर का पेस्ट लगाने से थायराइड के कारण होने वाले बालों का झड़ना ठीक हो सकता है.

3. यह बालों के जड़ों को मजबूत करता है और बालों को मजबूत, घना और अधिक सुंदर बनाता है.

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4. हिबिस्कस ब्लड प्रोडक्शन को बढ़ाता है और जिससे सबसे महत्वपूर्ण मिनरल्स हेयर फॉसिल्स के गहराई तक पहुंचते हैं और बालों के सफ़ेद होने को रोकता है.

5. निम्बू के रस में मिला हुआ हिबिस्कस पाउडर एक बेहतरीन हेयर मास्क है जो न केवल आपके बालों को कंडीशन करता है बल्कि डैंड्रफ की स्थिति को प्रभावी रूप से ठीक करने में भी मदद करता है.

6. हिबिस्कस तेल स्कैल्प को फिर से जीवंत करता है और बालों के ग्रोथ को बढ़ावा देता है. सप्ताह में तीन बार इसका इस्तेमाल करने से यह ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाता है और बालों को डीप नॉरिशमेंट भी देता है.

7. हिबिस्कस फूलों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले अमीनो एसिड बालों को पोषण प्रदान करने के साथ बालों के ग्रोथ को बढ़ावा देने में मदद करते हैं. ये अमीनो एसिड एक विशेष प्रकार के स्ट्रक्चरल प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जिसे केराटिन कहा जाता है, जो बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में काम करता है.

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8. हिबिस्कस के फूलों और पत्तियों में अधिक मात्रा में श्लेष्मा होता है जो नेचुरल कंडीशनर का काम करता है.

क्यों, आखिर क्यों : भाग 3- मां की ममता सिर्फ बच्चे को देखती है

ममता भरा स्पर्श पा कर उस की आंखें भर आईं. मैं ने सोचा शायद पढ़ाई में कोई मुश्किल सवाल रहा होगा, जिस का हल वह नहीं ढूंढ़ पा रही होगी.

‘‘बेटा, क्या मैं आप की कोई मदद कर सकती हूं?’’

‘‘नो, थैंक्स मम्मा,’’ उस के शब्द गले में ही अटक गए.

‘‘चलो, मैं प्रियंका को फोन कर देती हूं. वह आप की समस्या का कोई हल ढूंढ़ पाएगी, क्या उस से झगड़ा हुआ है?’’ मैं फोन की ओर बढ़ी, ‘‘उसे मैं कह देती हूं कि वह जल्दी आ जाए ताकि मैं आप दोनों को स्कूल में ड्राप कर दूं.’’

‘‘मम्मा,’’ वह चीख उठी, ‘‘प्रियंका अभी नहीं आ सकेगी.’’

‘‘क्यों…?’’ मुझे धक्का लगा.

‘‘सौरी, मम्मा,’’ वह धीरे से बोली, ‘‘प्रियंका लाइफ लाइन अस्पताल में है.’’

आश्चर्य का इतना तेज झटका मैं ने महसूस किया कि मैं संभल नहीं पाई, ‘‘क्या हुआ है उसे?’’

हमारे पड़ोस में ही निर्मल परिवार रहता है जिन की बड़ी बेटी प्रियंका  करिश्मा की खास सहेली है. दोनों एकसाथ 7वीं कक्षा में पढ़ती हैं.

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पता चला कि प्रियंका ने मिट्टी का तेल छिड़क कर खुद को जलाने की कोशिश की थी जिस में उस का 80 प्रतिशत बदन आग की लपेट में आ गया था. मेरा दिमाग सुन्न हो गया. मेरी नजरों के सामने प्रियंका का चेहरा उभर आया. इतनी कम उम्र और इतना भयानक कदम…? इतना सारा साहस उस फू ल सी बच्ची ने कहां से पाया होगा? न जाने किस पीड़ादायी अनुभव से वह गुजर रही होगी जिस से छुटकारा पाने के लिए उस ने यह अंतिम कदम उठाया होगा? लगातार रोए जा रही करिश्मा को बड़ी मुश्किल से चुप करा कर उसे स्कूल के गेट तक छोड़ दिया. फिर मैं प्रियंका को देखने अस्पताल के लिए चल पड़ी.

अस्पताल के गेट पर ही मुझे मेरी एक अन्य पड़ोसिन ईराजी मिल गईं. उन से जो हकीकत पता चली उसे जान कर तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए, कल्पना से परे एक हकीकत जिसे सुन कर पत्थर दिल इनसान का भी कलेजा फट जाएगा.

प्रियंका की मम्मी को एक के बाद एक कर के 4 बेटियां हुईं. जाहिर है, इस के पीछे बेटा पाने की भारतीय मानसिकता काम कर रही होगी. धिक्कार है ऐसी घटिया सोच के साथ जीने वाले लोगों को…मेरे समग्र बदन में नफरत की तेज लहर दौड़ गई.

उन की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं चल रही थी. इस महंगाई के दौर में 4 बेटियां और आने वाली 5वीं संतान की, सही ढंग से परवरिश कर पाना उन के लिए मुश्किल था. ऐसे में राजनजी के किसी मित्र ने उन की चौथी बेटी सोनिया को गोद लेने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने मान लिया. क्या सोच कर उन्होंने ऐसा निर्णय किया यह तो वही जानें लेकिन प्रियंका इस बात के लिए हरगिज तैयार नहीं थी. उस ने साफ शब्दों में मम्मीपापा से कह दिया था कि यदि उन्होंने सोनिया को किसी और को सौंपने की बात सोची भी  तो वह उन्हें माफ नहीं करेगी.

प्रियंका बेहद समझदार और संवेदनशील बच्ची थी. वह उम्र से कुछ पहले ही पुख्ता हो चुकी थी. घर के उदासीन माहौल ने उसे कुछ अधिक ही संजीदा बना दिया था. बचपन की अल्हड़ता और मासूमियत, जो इस उम्र में आमतौर पर पाई जाती है, उस के वजूद से कब की गायब हो चुकी थी.

अपने को आग की लपटों के हवाले करने से पहले उस ने अपने हृदय की सारी पीड़ा शब्दों के माध्यम से बेजान कागज के पन्ने पर उड़ेल दी थी, अपने खून से लिखी उस चिट्ठी ने सब का दिल दहला दिया :

‘‘श्रद्धेय मम्मीपापा, अब मुझे माफ कर दीजिए, मैं आप सब को छोड़ कर जा रही हूं. वैसे मैं आप के कंधों से अपनी जिम्मेदारी का कुछ बोझ हलका किए जा रही हूं ताकि आप के कमजोर कंधे सोनिया का बोझ उठाने में सक्षम बन सकें. अपनी तीनों बहनों को मैं अपनी जान से भी ज्यादा चाहती हूं. किसी को भी परिवार से अलग होते हुए मैं नहीं देख पाऊंगी. सोनिया न रहे उस से अच्छा है कि मैं ही न रहूं…अलविदा.’’

आप की लाड़ली बेटी,

प्रियंका.’’

4 दिन तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करती हुई प्रियंका आखिर हार गई और जिंदगी का दामन छोड़ कर वह मौत के आगोश में हमेशा के लिए समा गई पर वह मर कर भी एक मिसाल बन गई. उस की कुरबानी ने हमारे परंपरागत, दकियानूसी समाज पर हमेशा के लिए कलंक का टीका लगा दिया, जिसे अपने खून से भी हम कभी न मिटा पाएंगे.

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प्रियंका की मौत के ठीक एक हफ्ते बाद मेरे भतीजे तेजस ने भी बेहोशी की हालत में ही दम तोड़ दिया. तेजस हमारे परिवार का एकमात्र जीवन ज्योति था, जो अपनी उज्ज्वल कीर्ति द्वारा हमारे परिवार को समृद्धि के उच्च शिखर पर पहुंचाता. हमारे समाज के फलक पर रोशन होने वाला सूर्य अचानक ही अस्त हो गया फिर कभी उदित न होने के लिए.

दिनरात मेरी नजर के सामने उन दोनों के हंसते हुए मासूम चेहरे छाए रहते. हर पल अपनेआप से मैं एक ही सवाल करती, क्यों? आखिर क्यों ऐसा होता है जिसे हम चाह कर भी स्वीकार नहीं कर पाते? उन की मौत क्या हमारे समाज के लिए संशोधन का विषय नहीं?

दादीमां की पीढ़ी से ले कर प्रियंका के बीच कितने सालों का अंतराल है? दादीमां 85 वर्ष की हो चली हैं. तेजस सिर्फ 20 वसंत ही देख पाया और प्रियंका सिर्फ 12. इस लंबे अंतराल में क्या परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं थी?

दादीमां औरत थीं फिर भी मानती थीं कि संसार पुरुष से ही चलता है. हर नीतिनियम, रीतिरिवाज सिर्फ पुरुष के दम से है फिर मालती का पति तो पुरुष है. उस का यह मानना लाजमी ही था कि जो पुरुष बेटा न पैदा कर पाए वह नामर्द होता है. प्रियंका के मातापिता भी तो इसी मानसिकता का शिकार हैं कि वंश की शान और नाम आगे बढ़ाने के लिए बेटा जरूरी है. क्या सोनिया की जगह अगर उन्होंने बेटा पैदा किया होता तो उसे किसी और की गोद में डालने की बात सोच सकते थे? या उस के बाद और बच्चा पैदा करने की जरूरत को स्वीकार कर पाते? नहीं, कभी नहीं….

भला हो मालती का जिस ने मेरी आंखें खोल दीं वरना जानेअनजाने मैं भी इन तमाम लोगों की तरह ही सोचती रह जाती. अपनी कुंठित मान्यताओं के भंवर से बाहर निकालने वाली मालती का मैं जितना शुक्रिया अदा करूं कम ही है.

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तेजस की अकाल मौत ने दादी मां को यह सोचने पर मजबूर किया कि जिस कुलदीपक की चाह में उन्होंने अतीत में एक मासूम बच्ची के साथ अन्याय किया था उस कुलदीपक की जीवन ज्योति को अकाल ही बुझा कर नियति ने उन की करनी की सजा दी थी.

प्रियंका भी पुकारपुकार कर पूछ रही है, हर नारी और हर पुरुष यही सोचे और चाहे कि उन के घर बेटा ही पैदा हो तो भविष्य में कहां से लाएंगे हम वह कोख जो बेटे को पैदा करती है?

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