बच्चों को सिखाएं इंटरनेट एटीकेट्स

कोरोना काल के बाद से बच्चों से कुछ हद तक दूर रहने वाला इंटरनेट अब उनकी जरूरत बन गया है. आज उनकी एकेडमिक क्लास से लेकर समर कैम्प और हॉबी क्लासेज सभी ऑनलाइन ही हो रहीं हैं ऐसे में अब इंटरनेट, लेपटॉप और मोबाइल उनकी जिंदगी का एक आवश्यक हिस्सा बन चुका है. यूं तो तकनीक के मामले में बच्चे बड़ो से काफी आगे होते हैं परन्तु इंटरनेट के खतरों और उसे यूज करते समय बरतने वाली सावधानियों से वे अनजान रहते हैं इसलिए उन्हें इंटरनेट एटिकेट्स का बताया जाना अत्यंत आवश्यक है-

-बच्चों के द्वारा प्रयोग में लाये जा रहे गजेट्स में पेरेंटल फीचर का उपयोग अवश्य करें  ताकि एडल्ट कंटेंट से वे बचे रहें.

-उन्हें बताएं कि नेट पर किसी से भी घर का पता, मोबाइल नम्बर, ईमेल एड्रेस तथा व्यक्तिगत जानकारी  न शेयर करें.

-गेम खेलते समय आने वाले पॉप अप, एड या साइट पर क्लिक न करें.

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-स्क्रीन पर दिखने वाले किसी अनजान लिंक पर क्लिक न करने के स्थान पर केवल परिचित लोगों को ही कॉन्टेक्ट करें.

-किसी भी प्रकार की सेल्फी आदि को पोस्ट न करें क्योंकि आजकल नेट से किसी भी फोटो को लेकर उसका दुरुपयोग किया जाना कठिन कार्य नहीं है.

-अक्सर अभिभावक स्वयम तो टी वी और मोबाइल में लगे रहते हैं परन्तु बच्चों से उनसे दूर रहने को कहते हैं इसके स्थान पर खुद को भी स्क्रीन से दूर रखकर उनके साथ समय व्यतीत करें.

-ऑनलाइन क्लास के समय बच्चों से अटेंटिव और प्रजेंटबल रहने को कहें क्योंकि आगे आने वाले समय में अधिकांश कार्य ऑनलाइन ही होंगे इसलिए उनमें अभी से इसकी आदत डाल दें.

-प्रयोग करने के बाद बैटरी कम होने पर गजेट्स को चार्ज करके यथास्थान रखने की आदत विकसित करें.

-यदि आप वाई फाई के स्थान पर मोबाइल डाटा का प्रयोग करतीं हैं तो बच्चों को प्रयोग करने के बाद इंटरनेट बंद करने की आदत सिखाएं.

-अंत में बच्चा जब भी इंटरनेट का प्रयोग करे आप अप्रत्यक्ष रूप से उस पर नजर रखें, साथ ही इंटरनेट का बहुत अधिक प्रयोग करने के स्थान पर उन्हें रचनात्मक कार्यों में व्यस्त करने का प्रयास करें.

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लहंगा पहनकर Rubina Dilaik ने दिखाईं अदाएं, फैंस हुए फिदा

टीवी की पौपुलर एक्ट्रेसेस में से एक रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik) आए दिन अपनी फोटोज और वीडियोज को लेकर सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. वहीं फैंस के लिए वह सोशलमीडिया पर एक्टिव रहना भी पसंद करती हैं. फैशन हो या डांस रुबीना दिलैक का हर अंदाज फैंस को पसंद आता है. वहीं हाल ही में फैंस को समर वेडिंग पार्टी लुक की झलक दिखाई है, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं रुबीना दिलैक की लेटेस्ट फोटोज…

समर वेडिंग के लिए परफेक्ट है लुक

 

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हाल ही में रुबीना दिलैक ने सोशलमीडिया पर कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही हैं. खूबसूरत लहंगे के साथ स्टाइलिश पेस्टल ब्लाउज औक उसके साथ मैहरून वेलवेट बूट्स एक्ट्रेस के लुक पर चार चांद लगा रहे हैं. वहीं इन फोटोज को शेयर करते हुए रुबीना दिलैक ने लिखा… लाइफ एक सुंदर डांस है.’

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सीरियल से जीता है फैंस का दिल

 

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सीरियल शक्ति अस्तित्व के एहसास की में किन्नर सौम्या के रोल में रुबीना दिलैक आज घर-घर में पहचान बना चुकी हैं. वहीं सौम्या का अंदाज और लुक फैंस के बीच आज भी पौपुलर है, जिसे फैंस काफी पसंद करते हैं.

सूट में लगती हैं खूबसूरत

 

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हाल ही में अनारकली ब्लैक सूट के साथ रेड कलर के दुपट्टे में रुबीना दिलैक ने फोटोज शेयर की थीं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. उनका ये लुक फैंस को काफी पसंद आया था.

फैंस को देती हैं फैशन टिप्स

 

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बिग बौस का खिताब अपने नाम करने वालीं एक्ट्रेस रुबीना दिलैक का फैशन शो में बेहतरीन देखने को मिला था. इंडियन हो या वेस्टर्न हर लुक में फैंस ने उन्हें पसंद किया था. वहीं रुबीना भी अपने फैंस को खुश करने औऱ फैशन टिप्स देने का एक भी मौका नहीं छोड़ती.

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Health Tips: Nails से जानिए सेहत का राज

गलत खान-पान और गलत जीवनशैली का प्रभाव हमारे शरीर पर हमेशा पड़ता है, जिसे हम नहीं जान पाते और जब तक इस बारें में पता चलता है, तब तक बहुत देर हो जाती है. हमारे नाखून भी ऐसे ही है, जो हमारे शरीर की आधी बीमारी को बताने में सफल होते है. असल में नाखून हमारे शरीर में किस चीज की कमी है या कौन सी बिमारी दस्तक दे रही है, उसकी कंडीशन क्या है आदि सभी बातें आसानी से बता देती है. इसके अलावा सालों साल आप क्या खा रहे है या किसे अधिक खा रहे है, इन सबका असर नाखूनों पर पड़ता है. नाखून की सतह पर सफेद दाग या धब्बे या नाखूनों का ‘ब्रिटल’ होना या नीला पड़ जाना, उसके आकार में परिवर्तन होना आदि शामिल है.

इस बारें में मुंबई की ‘द स्किन इन’ की डर्मेटोलोजिस्ट डा. सोमा सरकार बताती है कि नाखूनों की सहायता से मिनरल्स, विटामिन्स की कमी के अलावा मालन्युट्रिशन, थाइरोइड डिसआर्डर, एनीमिया, कार्डियाक डिसीज, लंग्स डिसआर्डर आदि बीमारियों का पता आसानी से लगाया जाता है. हेल्दी नाखून का रंग हमेशा हल्का गुलाबी होता है. हर दिन हेल्दी नाखून 0.003 मिलीमीटर से 0.01 मिलीमीटर तक बढ़ता है, लेकिन ये व्यक्ति की उम्र और स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. कम उम्र में नाखून जल्दी बढ़ते है जबकि अधिक उम्र होने पर इसके बढ़ने की रफ्तार कम हो जाती है. ठंडी में नाखून जल्दी नहीं बढ़ पाते, जबकि गर्मी के मौसम में ये जल्दी बढ़ते है. यहां कुछ बातें निम्न है, जिसे जानना जरुरी है,

– अगर नाखून के आकार तोते की चोंच के तरह हो रहे है तो, व्यक्ति को कार्डिएक की बीमारी या लंग्स डिसआर्डर होने की संभावना होती है,

– नाखून की सतह पर सफेद स्पाट या लकीरे होने पर बायोटिन की कमी होती है, बायोटिन हमारे शरीर में उपस्थित बैड कोलेस्ट्रोल को घटाकर शरीर को उर्जा प्रदान करती है, इसके अलावा ऐसे नाखून लीवर सम्बन्धी बिमारी की ओर इशारा करते है, इसके लिए फ्रेश वेजिटेबल्स और सलाद का खाना लाभदायक होता है.

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– कैल्शियम, प्रोटीन और विटामिन्स की कमी से नाखून ‘ब्रिटल’ हो जाते है, इसमें नाखून के ऊपर से पपड़ी निकलने लगते है, असल में ऐसे नाखूनों में ब्लड सर्कुलेशन कम होता है, ऐसे नाखून वाले व्यक्ति अधिकतर थाइरोइड या आयरन की कमी के भी शिकार होते है, जिसे समय रहते इलाज करना जरुरी है, एग, फिश, बादाम, आलमंड्स आदि का सेवन भी इसमें लाभदायक होता है.

– नीले रंग के नाखून वाले अधिकतर व्यक्ति श्वास की बिमारी, निमोनिया या दिल से सम्बंधित बिमारियों से पीड़ित होने की संभावना होती है.

– पीले नाखून वाले व्यक्ति अधिकतर पीलिया के शिकार होते है, इसके अलावा सिरोसिस और फंगल इन्फेक्शन जैसी बीमारियां उन्हें हो सकती है, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के नाखून भी पीले या बदरंग हो जाते है.

– आधे सफेद और आधे गुलाबी रंग के नाखून वाले व्यक्ति को किडनी से सम्बंधित बीमारियां हो सकती है, ऐसे नाखून खून की कमी को भी संकेत देती है.

– सफेद रंग के नाखून लीवर से सम्बंधित बिमारियों जैसे हेपेटाइटिस की खबर देते है.

– कई बार नाखूनों के आस-पास की त्वचा सूखने लगती है, इसे अनदेखा न करें, ये विटामिन सी, फोलिक एसिड या प्रोटीन की कमी से होती है, इसलिए अपने आहार में प्रोटीनयुक्त पदार्थ, पत्तेदार सब्जियां आदि लें.

इसके आगे डा. सोमा कहती है कि महिलाएं खासकर पानी में अधिक काम करती है. इसलिए उनमें नाखून की बिमारी अधिक देखी जाती है, ऐसे में उन्हें अपने नाखूनों की देखभाल अच्छी तरह से करनी चाहिए, जो निम्न है.

– काम करने के बाद हल्के गरम पानी से नाखूनों को साफ करने के बाद, नेल क्रीम या किसी भी कोल्ड क्रीम से अपने नाखूनों को मोयास्चराइज करें.

-एसीटोन युक्त नेल रिमूवर से नेलपॉलिश कभी साफ न करें.

– नाखूनों को समय-समय पर काटकर उसे नेल फाइलर द्वारा साफ करें.

– नेल पालिश लगाने से पहले नेल हार्डर लगाकर नेलपालिश लगायें, जिससे नाखून केमिकल से सुरक्षित रहे.

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– नाखून की बाहरी त्वचा का खास ध्यान रखें, नेल क्यूटिकल्स ही नाखूनों को फंगल और बेक्टेरिया के इन्फेक्शन से बचाते है.

– खाने में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स वाले पदार्थ अधिक लें.

नाखून, हेयर और स्किन हमारे अंदर की स्वस्थता को प्रतिबिंबित करते है, इसलिए उसमें आये किसी भी परिवर्तन को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और समय रहते डाक्टर की सलाह ले लेनी चाहिए.

बच्चों के आपसी झगड़े को कंट्रोल करने के 7 टिप्स

रश्मि अपने बच्चों के परस्पर होने वाले झगड़े से हरदम इतनी परेशान रहती है कि कभी कभी वह गुस्से में कहने लगती है कि उसने दो बच्चे पैदा करके ही जीवन की बहुत बड़ी गल्ती की है. रश्मि ही नही प्रत्येक घर में आजकल अभिभावक बच्चों के रोज रोज होने वाले झगड़ों से परेशान हैं. एक तो वैसे भी कोरोना के कारण सभी स्कूल लंबे समय से बंद हैं ऊपर से लॉक डाउन के कारण बच्चे भी घरों में कैद रहने को मजबूर हैं. वास्तव में देखा जाए तो बच्चों का परस्पर झगड़ना उनके समुचित विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. परन्तु अक्सर घर के कामकाज में उलझी रहने वाली माताएं परेशान होकर अपना भी आपा खो देतीं हैं जिससे समस्या गम्भीर रूप धारण कर लेती है. यहां पर प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिनका प्रयोग करके आप बच्चों के झगड़े को आराम से निबटा सकतीं हैं-

1-बच्चों के कार्य, व्यवहार और पढ़ाई की बाहरी या घर के ही दूसरे बच्चे से कभी तुलना न करें क्योंकि प्रत्येक बच्चे का अपना पृथक व्यक्तित्व होता है.

2-बच्चे किसी भी उम्र के क्यों न हों आप उनसे उनकी उम्र के अनुसार घर के कार्य अवश्य करवाएं इससे वे व्यस्त भी रहेंगे और कार्य करना भी सीखेंगे.

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3-बच्चा यदि आपसे कुछ कहे तो उसे ध्यान से सुनें फिर समझाएं बीच में टोककर उसे शान्त कराने का प्रयास न करें.

4-टी. वी और खिलौने बच्चों में झगड़े का प्रमुख कारण होते हैं, इसलिए उनके बीच में  खिलौनों का बंटवारा कर दें और टी वी देखने का समय निर्धारित कर दें.

5-वे चाहे जितना भी लड़ें झगड़ें परन्तु आप अपना आपा खोकर हाथ उठाने या चीखने चिल्लाने की गल्ती न करें अन्यथा आपको देखकर वे भी परस्पर वैसा ही व्यवहार करेंगे.

6-किसी अतिथि अथवा दूसरे बच्चों के सामने  अपने बच्चे को डांटने से बचें….बाद में उसे प्यार से समझाने का प्रयास करें.

7-आप स्वयम भी आपसे में न झगड़कर बच्चों के सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें क्योंकि अनेकों रिसर्च में यह सिद्ध हो चुका है कि बच्चे अपने माता पिता का अनुकरण करते हैं.

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मेरे बेटे के दूध के दांत में कीड़ा लगा है, क्या यह इलाज जरूरी है?

सवाल

मेरे 9 वर्षीय बेटे के दूध के दांत में कीड़ा लगा है. घर में सभी बड़ों का कहना है कि हमें अनावश्यक ही उस का इलाज कराने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. दूध का दांत है निकल ही जाना है. पर जब जब किसी कारण हम उसे बच्चों के डाक्टर के पास ले जाते हैं, तो वह हमें इस का इलाज कराने की सलाह देता है. क्या यह इलाज सचमुच जरूरी है?

जवाब

आप के बेटे का डाक्टर बिलकुल सही सलाह दे रहा है. दांत में कीड़ा लगे रहने से बच्चे के स्वास्थ्य पर कई तरह से बुरा असर पड़ सकता है. उस के मुंह से बास आने से दूसरे बच्चे उस से कन्नी काटने लग सकते हैं, बच्चे को भोजन चबाने में दिक्कत हो सकती है, जिस के चलते उस के जबड़े का विकास ठीक से नहीं हो पाएगा. यह इन्फैक्शन दांत की मज्जा से जबड़े की हड्डी में भी फैल सकता है. इतना ही नहीं, कुछ नए शोध अध्ययनों के अनुसार इस के फलस्वरूप आगे चल कर शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर दुष्प्रभाव भी देखने में आ सकते हैं. अत: समय से इलाज करा लेने से बच्चा इन सब परेशानियों से आसानी से बच सकता है.

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बच्चों को भी साफसफाई और स्वस्थ आदतों के बारे में समझाना चाहिए. साफसुथरा रहने से वे न केवल स्वस्थ रहेंगे, बल्कि उन का आकर्षण और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. बचपन की आदतें हमेशा बनी रहती हैं इसलिए जरूरी है कि वे बचपन से ही हाइजीन के गुर सीखें.

ओरल हाइजीन

ओरल हाइजीन प्रत्येक बच्चे की दिनचर्या का एक प्रमुख अंग होना चाहिए. ऐसा करने से बच्चा कई बीमारियों जैसे कैविटी, सांस की बदबू और दिल की बीमारियों से बचा रहेगा.

क्या करें

– बच्चे ध्यान रखें कि रोजाना दिन में 2 बार कम से कम 2 मिनट के लिए अपने दांतों को ब्रश से साफ करें. खासतौर पर खाना खाने के बाद सफाई बहुत ही जरूरी है.

– बच्चे कम उम्र से ही रोजाना ब्रश और कुल्ला करने की आदत डालें.

– टंग क्लीनर से जीभ साफ करना सीखें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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अंतिम स्तंभ- भाग 3 : बहू के बाद सास बनने पर भी क्यों नहीं बदली सुमेधा की जिंदगी

दुख और क्षोभ में भरी सहेली कुछ पल खामोश खड़ी देखती रही. आंखों में पानी उतर आया. आंखें पोंछ कर प्लेटों में पकौड़े डाले. चटनी निकाली. ले जा कर सहेलियों को परोसा और हाथ जोड़ कर आग्रह किया, ‘‘यही स्वागत कर पा रही हूं तुम लोगों का.’’ फिर किचन में जा कर हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, ‘‘कृपा कर के अब बनाना बंद करो. माफी चाहती हूं मैं ने तुम्हें डिस्टर्ब किया.’’

सहेलियां तो दुखी मन से उस की चर्चा करते शाम की ट्रेन से चली गईं अपनेअपने शहर, पर मैं परेशान ही रही. अगली शाम को वह खुद आ गई मेरे घर. वैसे ही जर्जर शरीर ढोते, हांफतेहांफते. बोली, ‘बच्चे स्कूल से आ गए, बहू भी. तब आ पाई हूं. चाय पिला.’

मैं ने जल्दी से चाय बनाई. नाश्ता बनाने के लिए चूल्हे पर कढ़ाई चढ़ाई कि वह बोली, ‘‘बनाना छोड़, घर में कुछ हो तो वही दे दे.’’

मुझे संकोच हो आया, ‘‘सवेरे मेथी के परांठे बनाए थे. जल्दी काम निबटाने के चक्कर में आखिरी लोइयों को मसल कर 2 मोटेमोटे परांठे बना लिए थे. वही हैं. तू दो मिनट रुक न. मैं बढि़या सा कुछ बनाती हूं.’’

एकदम अधीर सी वह कहने लगी, ‘‘मुझे मेथी के मोटे परांठे ही अच्छे लगते हैं. तू दे तो सही.’’

उस की बेताबी देख मैं ने वही मोटेमोटे परांठे परोस दिए. चटनी थी. वह धड़ल्ले से खाने लगी. खा कर चाय पीने लगी तो मैं ने पूछा, ‘‘तू भूखी थी क्या?’’

उस की आंख में पानी उतर आया, बोली, ‘‘हां.’’

‘‘हो क्या गया?’’

उस का गला भर आया. कुछ रुक कर बोली, ‘‘कांड ही हो गया था. मेरे हाथ जोड़ कर माफी मांगने के बाद बहू अपने कमरे में जा कर मुंह लपेट कर औधेमुंह पलंग पर पड़ गई. मैं ने जा कर चौका समेटा. बचे हुए ढेर सारे घोल में से कुछ फ्रिज में रखा. बाकी कामवाली को दे दिया. पकौड़ों में से भी कुछ रखा, बाकी कामवाली को दिया. रात का खाना बना कर बच्चों को खिलाया.

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‘‘उसे खाने के लिए बुलाया तो भड़क गई, ‘मुझे चैन से जीने देना है कि नहीं. नम्रता का आवरण ओढ़े मुझे टौर्चर करती रहती है धूर्त बुढि़या.’ मैं भी पगला गई, ‘तुम चाहती हो कि मैं मर जाऊं. मौत आएगी तभी न मरूंगी.’

‘‘अपनी दयनीय विवशता पर मैं रोती जाऊं और लड़ती जाऊं. वह भी रोती जाए और लड़ती जाए. उस का मुख्य आरोप था कि मैं पाखंडी हूं. अपने को श्रेष्ठ समझती हूं और उसे हमेशा नीचा दिखाने के चक्कर में रहती हूं. दुख से मेरा कलेजा फटा जा रहा था. मैं भी अपने कमरे में जा कर बिस्तर में रोती पड़ी रही. रातभर नींद नहीं आई. मुझ से कहां गलती होती है, यही समझ में नहीं आया.

‘‘आधी रात के करीब बेटा आया. सीधे अपने कमरे में गया. मैं सहमीसटकी आहट लेती रही, क्या खाना परोसने जाऊं. मगर कुछ देर बाद बेटा खुद कमरे में आ गया, बोला, ‘मां, तुम लोग मुझे जीने दोगी कि नहीं. मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि उस में सहनशक्ति नहीं है. उसे डिस्टर्ब मत किया करो. वह भूखीप्यासी स्कूल से आई कि लड़के चले आए. किसी तरह लड़कों को पढ़ा रही थी कि तुम ने अपनी सहेलियों के लिए नाश्ता बनाने का फरमान सुना दिया. मां, आखिर तुम चाहती क्या हो? तुम हम को छोड़ कर तो रह नहीं सकतीं, तुम खुद जानती हो. तुम समय से पिछड़ चुकी हो. तुम्हें तो एटीएम से पैसा निकालना तक नहीं आता.’

‘‘तुझे एटीएम से पैसा निकालना नहीं आता सुमेधा?’’ मैं हैरान हो गई.

‘‘मैं कभी गई ही नहीं. तेरे जीजाजी के बाद से बैंक वगैरह के सारे कागजात बेटे के पास ही रहते हैं. मुझ से सिर्फ दस्तखत लेता रहा है. एटीएम से पैसा निकाल कर वही देता रहा है. वह न हो, तो बहू ला देती है.’’

‘‘तुझे पता है वे कितना निकालते हैं, तुझे कितनी पैंशन मिलती है?’’

‘‘वे मेरे हाथ में वही रकम थमा देते हैं, जो मुझे शुरू में मिलती थी.’’

मैं सिर पकड़ कर बैठ गई, बोली, ‘‘वह सब मैं तुझे सिखा दूं. मगर यह बता, क्या तू इन को छोड़ कर कहीं अलग सच में नहीं रह सकती?’’

‘‘फायदा क्या है. यहां मैं बेटे की सूरत तो देख सकती हूं. पोतेपोती से बोलबतिया तो लेती हूं. मैं जानती हूं, ये लोग मुझे मूर्ख, गंवार और अवांछित प्राणी समझ कर अपमानित करते रहते हैं. कुत्ता भी इन का अपना है, दुलारा है. मगर मैं नहीं. मैं क्या करूं. मुझ में इन के लिए ही प्रेम उमड़ता है. फिर बीचबीच में बेटियां आ जाती हैं. दामाद और बच्चे भी. मेरी छाती भर आती है. बेहद सुख लगता है. कभी देवरजेठभतीजेभतीजी वगैरह भी आ जाते हैं.

‘‘बहू अपने मायके वालों के अतिरिक्त किसी का आना पसंद नहीं करती. कई बार अपने कमरे से बाहर भी नहीं निकलती. मगर ये लोग बहुत समझदार हैं. उस के कमरे में जा कर खुद बोलबतिया लेते हैं. बेटियां तो अकसर भाभी के लिए तोहफे ले कर आती हैं. भरेपूरे मायके में आने से उन का भी तो ससुराल में मान बढ़ता है. इन्हीं सब से इस परिवार की प्रतिष्ठा बनी हुई है.

‘‘बहू को तो परिवार की प्रतिष्ठा की समझ नहीं है. शायद आजकल की अधिकतर युवतियों को ही नहीं है. अपना पति, अपने बच्चे, अपनी शानशौकत से भरी जिंदगी, अपना अधिकार, अपनी सत्ता. इन सब के लिए चाहिए पैसा. बटोर सको तो बटोरो. इसी में चौंधियाई हुई हैं. प्रतिष्ठा की फिक्र तो हम जैसों को होती है. सच तो यह है, मुझे जितना प्रेम अपने बेटेबेटी, नातीपोते से है, उतना ही परिवार की प्रतिष्ठा से है. बल्कि कुछ ज्यादा ही. अपने जीतेजी तो मैं इस प्रतिष्ठा को बचाए ही रखूंगी.’’

उस की आंखों में पानी छलछला आया था, ‘‘जाने मेरी मौत के बाद इस परिवार की प्रतिष्ठा का क्या होगा?’’

परिवार की प्रतिष्ठा. अच्छे से जानती हूं कि यह तो उस की घुट्टी में रही है. याद आया, कालेज के दूसरे साल में थी कि वह पड़ोस के एक लड़के से प्रेम कर बैठी थी. लड़का एमए का छात्र था. यह कुछकुछ पूछने उस के पास जाती थी. भीतर ही भीतर प्रेम का सागर हिलोरें ले रहा था. मगर बातें हो पातीं सिर्फ पढ़ाई की. मुझ से कहने लगी, ‘तू उस से पूछ न, क्या वह मुझे चाहता है.’

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लड़का पहले ही मुझे अपने जज्बात बता चुका था, मैं बोली, ‘अगर वह ‘हां’ में जवाब दे तो क्या तू उस से शादी कर सकेगी?’ वह एकदम खामोश हो गई. फिर बोली, ‘मैं ऐसा नहीं कर सकती. वह दूसरी बिरादरी का है. बाबूजी को बहुत दुख होगा. समाज में हमारे परिवार की बदनामी होगी.’ उस की आंखें छलछलाने लगी थीं, आगे बोली, ‘मैं इस दारुण दुख को चुपचाप पी लूंगी, मगर परिवार की प्रतिष्ठा कलंकित नहीं कर सकती.’

और आज…?

आज भी उस की आंखों में पानी छलछला आया था, ‘‘जाने मेरी मौत के बाद इस परिवार की प्रतिष्ठा का क्या होगा?’’

भीगे नेत्रों से देखती रह गई मैं. परिवार की प्रतिष्ठा का भारी बोझ उठाए उस जर्जर अंतिम स्तंभ को. घर में दुपहिया वाहन और एक नईनवेली कार थी. मगर वह मेरे घर पैदल ही आती, पोते, पोती और बहू के स्कूल से लौटने के बाद. उस की ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी थी. बुढ़ापे पर पहुंचा जर्जर शरीर. मेरे घर पहुंचते ही पस्त पड़ जाती.

यह भी खूब रही. मेरे बेटे का मित्र आशीष, दिल्ली के इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर यूरोप के एक देश की एयरलाइंस कार्यालय में नौकरी करता है. यह एयरलाइंस अपने कर्मचारियों को अपने देश में घूमने के लिए डिस्काउंट टिकट और होटल में ठहरने की सुविधा भी देती है.

इसी सुविधा के अंतर्गत जब वह पहली बार यूरोप में उन के देश घूमने गया तो होटल के कमरे में अपना समान रख कर बालकनी की तरफ लगे शीशे के दरवाजे के हैंडल को नीचे की ओर शीघ्रता से घुमा कर खोलने लगा तो ऊपर की ओर से पूरा का पूरा दरवाजा दोनों ओर से खुल गया और उस के ऊपर गिरने लगा. उस ने दरवाजे को कई बार टिकाना चाहा लेकिन जैसे ही वह उसे छोड़ने का प्रयास करता वह तेजी से उस के ऊपर गिरने लगता.

अपने दोनों हाथों से उस ने दरवाजों को संभाल रखा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, तभी किसी ने मुख्य दरवाजे की घंटी बजाई. आशीष ने जोर से चिल्लाते हुए उसे अंदर आने को कहा. जैसे ही दरवाजा खुला तो होटल का वह कर्मचारी भीतर का दृश्य देख कर चौंक गया. वह कर्मचारी उस के पास आया और उस ने आशीष का हाथ पकड़ कर उसे वहां से हटाया और उसे दरवाजे की तकनीक समझाई.

नया व्यक्ति, जो इस तकनीक को नहीं जानता है, वह आम दरवाजे जैसे ही हैंडल नीचे की ओर कर, दरवाजे को खोलने की कोशिश करता है, तो उसे पूरा का पूरा दरवाजा खुल कर नीचे गिरने जैसा लगता है. आज भी यूरोप घूमने जाने पर ऐसे दरवाजेखिड़कियां खोलते ही यह वाकेआ ताजा हो जाता है और सब आशीष का नाम ले कर खूब ठहाके लगाते हैं.

मेरे एक बहुत ही घनिष्ठ मित्र हड्डी रोग विशेषज्ञ हैं. उन का क्लिनिक घर के पास ही है. उन की नईनई शादी हुई थी. कुछ दिनों बाद उन की पत्नी की मौसी उन के यहां आईं. जब भी वे मरीजों के प्लास्टर चढ़ाते तो घर पास में होने के कारण घर आ जाते और स्नान वगैरह करते. जब वे घर आते तो उन के कपड़े चूने से सने होते थे. उन्हें ऐसी हालत में मौसी रोज देखतीं.

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लौट कर मौसी अपनी बहन के घर जा कर बोलीं, ‘‘तुम तो कहती हो कि लड़का डाक्टर है, पर मुझे तो लगता है वह सफेदी करने वाला है. घर में जब भी आता है, सारे कपड़े चूने से सने रहते हैं.’’

आज भी डाक्टर साहब इस बात को याद कर के हंस पड़ते हैं.

क्या बच्चों का भविष्य खतरे में है, जानें एक्सपर्ट की राय

मुंबई की एक पॉश एरिया की बिल्डिंग में रहने वाला 10 साल का सूरज, जो कक्षा 4 में पढता है, दिन-भर खेलना चाहता है, उसे ऑनलाइन पढाई पसंद नहीं. उसकी माँ नीता हमेशा सूरज को लेकर परेशान रहती है और स्कूल खुलने के बारें में सोचती है, क्योंकि वह टीवी के आगे या कम्प्यूटर के आगे बैठना पसंद करता है और तब केवल गेम खेलना या कार्टून देखना चाहता है. उसकी माँ नीता का कहना है कि जब से कोरोना संक्रमण शुरू हुआ है. तब से लेकर आजतक स्कूल नहीं खुले, बच्चे को स्कूल जाने की आदत ख़त्म हो गयी है और ऑनलाइन परीक्षा जैसा भी दे, उन्हें पास कर दिया जाता है. ये बात सूरज को भी पता है और वह इसका फायदा उठा रहा है.

सूरज ही नहीं कॉलेज जाने वाले मिहिर की भी ऐसी ही हालत है. बी,कॉम फाइनल इयर का  छात्र मिहिर पढाई ख़त्म होने के बाद कैंपस प्लेसमेंट से कोई नौकरी कर, कुछ पैसे जोड़कर, एम बी ए की एजुकेशन के लिए विदेश जाना चाहता था, लेकिन कोरोना ने उसकी इच्छा पर पानी फेर दिया है. उसका डेढ़ साल पूरा ख़राब हो गया. परीक्षा भी ऑनलाइन हो रहा है, जिसमें सभी को अच्छे अंक मिल रहे है. प्रतियोगिता की भावना अब किसी में नहीं है. घर पर रहकर उसे पढने में मन नहीं लगता और जब वह इस अनिश्चित लॉकडाउन और महामारी से देश की लोगों की हालत देखता है, तो वह सबकुछ ठीक होने के बारें में सोचता रहता है, क्योंकि इस महामारी के बाद क्या उसे नौकरी मिलेगी? क्या ऑनलाइन परीक्षा का परिणाम विदेश में मान्य होगा? ऐसी कई बातें वह अपने दोस्तों से बिल्डिंग के बेसमेंट में खड़े होकर चर्चा करता रहता है.

अनिश्चित भविष्य  

असल में कोविड 19 महामारी ने पूरे विश्व में कोहराम मचा दिया है, खासकर हमारे देश में इसका प्रभाव लोगों के सावधान न रहने, टीकाकरण की समुचित व्यवस्था का न होने और संक्रमित लोगों की सही आंकड़ों के न मिलने से बहुत अधिक है.  संक्रमितों कि संख्या और मृत्यु दर के बढ़ने की वजह से सभी डरे हुए है, ऐसे में बच्चों की शिक्षा या भविष्य के बारें में सोच पाना संभव नहीं.  कोविड महामारी की वजह से पिछले डेढ़ साल से जितनी क्षति छात्रों की शिक्षा को लेकर हुई है, उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. यूनिसेफ के अनुसार महामारी और गरीबी अधिक होने की वजह से पूरी एक पीढ़ी का भविष्य खतरे में है. ऐसे में इस दिशा में सही कदम उठाने की जरुरत हर देश को है, क्योंकि कोविड 19 दुनिया भर में बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के लिए अपरिवर्तनीय नुकसान का कारण बन सकती है. इस बारें में ‘विब्ग्योर ग्रुप ऑफ़ स्कूल’ की ‘वाईस चेयरपर्सन’ ‘कविता सहाय केरावाला’ कहती है कि केवल शिक्षा ही नहीं हर क्षेत्र में कोविड महामारी का प्रभाव पड़ा है. भविष्य के बारें में आज किसी को कुछ पता नहीं है, क्योंकि ऐसी महामारी 100 साल बाद ही आती है. अभी सब स्थिर सा हो गया है, ऐसे में बच्चों की शिक्षा, कैरियर, सेटलमेंट आदि के बारें में पेरेंट्स का सोचना सही है.

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लायक बनने की सलाह 

इसके आगे कविता सहाय कहती है कि अधिकतर पेरेंट्स बच्चों को पढाई कर लायक बनने की सलाह देते आये है. अब इस लायक शब्द पर प्रश्न चिह्न लग चुका है. आगे क्या होगा, इसकी चिंता सभी को है. इसमें अच्छी बात यह है कि आज के बच्चे तकनीक को जल्दी समझते है. ऑनलाइन क्लासेस भी कमोवेश कर, परीक्षा दे देते है. मैं आज भी बच्चों से तकनीक की जानकारी लेती रहती हूँ. तकनीक की ये जानकारी आज बच्चों में है और ये एक प्लस पॉइंट है. ये जानकारी इन्हें किसी भी परिस्थिति में इन्हें आगे ले जायेगी. ये सही है कि स्कूल में शिक्षा के अलावा सामाजिक, नैतिक आदि बच्चों को सिखाई जाती है. इसमें रिश्तों की अहमियत, अनुशासन में रहना, लीडरशिप क्वालिटी का विकसित होना आदि ऐसी कई सारी बातें ग्रुप में सीखते है, जो घर पर नहीं हो सकता. उसका प्रभाव बच्चों पर हो रहा है.

बच्चों में है अधिक तकनीकी ज्ञान 

हर जगह बच्चों में तकनिकी ज्ञान अधिक है, क्योंकि आज सबके पास स्मार्ट मोबाइल है. कविता का आगे कहना है कि अगले 3 या 4 महीने में स्कूल अवश्य खुलेगा, तब तक पेरेंट्स की जिम्मेदारी अधिक रहेगी. हमारे स्कूल में करिकुलम हम तैयार कर देते है, टीचर्स को कुछ करना नहीं पड़ता, इसलिए जितने भी स्कूल इस ग्रुप में है, सब स्कूल और कक्षाओं में पढाई एक जैसी होती है. ऑनलाइन शिक्षा होने पर सभी स्कूल टीचर्स को रातों-रात खुद को तैयार करना पड़ा है, जबकि टीचर्स की आदत बच्चों को अपने सामने बैठाकर पढ़ाने की होती है. पिछले साल लॉकडाउन के समय गर्मी की छुट्टी में पूरा करिकुलम तैयार कर बच्चों को पढ़ाने का मौका मिला. ऑनलाइन पढाई के लिए बच्चों से अधिक टीचर्स को मेहनत करनी पड़ती है. छोटे बच्चों के लिए पेरेंट्स को साथ लेना पड़ता है, क्योंकि बच्चे थोड़ी देर बैठकर उठ जाते है, ऐसे में पेरेंट्स को गाइड करना पड़ता है. ये सही है कि मेरे स्कूल में एक खास वर्ग के बच्चे पढ़ते है, लेकिन सरकारी स्कूलों और गांव में पढने वाले बच्चों को काफी समस्या हो रही है. वहां चुनौती है, पर अगले 6 महीने में सब अच्छा हो जाएगा. किसी भी बच्चे का नुकसान नहीं होगा, क्योंकि आज के बच्चे 4 कदम आगे है.

पहली बार स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता को वैसे ही काम अधिक होता है, इस महामारी में पेरेंट्स का योगदान बच्चों के विकास में बहुत अधिक है और आज के बच्चे भी प्रतिभावान है, चिंता की कोई बात नहीं है. स्कूल खुलते ही कुछ दिनों में सभी बच्चे फिर से पढाई शुरू कर देंगे.

प्रभाव परीक्षा रद्द करने का 

कक्षा 10 और कक्षा 12 की परीक्षा रुक गयी है, इसका प्रभाव बच्चों के भविष्य पर कैसा होगा?पूछे जाने पर कविता सहाय बताती है कि अभी किसी को पता नहीं, क्योंकि परीक्षा दिए बिना उनको पास करना और आगे कॉलेज में एडमिशन का मिलना कैसे होगा. ये चिंता का विषय है. असल में  बच्चों के परफोर्मेंस की बात माने, तो पिछले 3 साल में टीचर्स ने हमेशा कम मार्क्स दिया है, ताकि उनका बोर्ड अच्छा हो और बच्चे पढ़े. ये एक तरीके का मनोवैज्ञानिक दबाव छात्रों पर दिया जाता रहा है, इसलिए जो भी नंबर मिले है, वह कम ही होते है, ऐसे में बच्चे का नंबर बोर्ड में देने से उन्हें कम नंबर मिलेगा. बच्चे भी इसे लेकर बहुत कंफ्यूज्ड है. मेरा सुझाव है कि कॉलेज में एडमिशन के लिए हर एक बच्चे की प्रवेश परीक्षा और इंटरव्यू होना जरुरी है, ताकि सही बच्चे एडमिशन ले सकें. किसी स्ट्रीम को पकड़ने के लिए हमेशा प्रवेश परीक्षा होती है. वैसा ही नार्मल स्नातक के लिए भी शुरू होना चाहिए.

वोकेशनल ट्रेनिंग है जरुरी 

महामारी की वजह से सभी बच्चों को पास करवा दिया जाएगा और कुछ बच्चे इस बात से खुश है, क्योंकि उन्हें परीक्षा दिए बिना ही उत्तीर्ण होने का मौका मिल रहा है. जबकि कुछ बच्चों के परीक्षा की तैयारी काम नहीं आई. कविता आगे कहती है कि कक्षा 12 की पढाई पूरी करने के बाद किसी भी छात्र को आगे की पढाई का पता चल जाता है. कोरोना उनके कैरियर पर अधिक प्रभाव नहीं डाल सकता, क्योंकि कैरियर केवल डिग्री के अलावा बहुत सारी चीजों को शामिल कर होता है. न्यू एजुकेशन पालिसी आने पर शिक्षा के साथ-साथ अब वोकेशनल ट्रेनिंग को भी शामिल किया जायेगा, जिससे बच्चों को नौकरी मिलना आसान होगा. इसके अलावा बिना परीक्षा के मार्क्स देने पर एक ही मार्क्स के कई बच्चे होंगे और मुश्किल नार्मल स्नातक के लिए एडमिशन में होगी.

एडमिशन की होगी होड़

कोचिंग क्लासेस में जाने वाले कक्षा 12 के बच्चे स्कूल नहीं जाते, उनका नाम केवल रजिस्टर में होता है, ऐसे छात्र स्कूल की किसी भी परीक्षा में शामिल नहीं होते,  ऐसे छात्रों को आगे कुछ समस्या होगी या नहीं,  पूछने पर कविता कहती है कि जो बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षा के लिए पढ़ रहे है, उनकी प्रवेश परीक्षा होगी और उन्हें कक्षा 12 के अंक का खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. केवल स्नातक करने वाले बच्चे को ही एडमिशन में अधिक परेशानी होगी. मेरा सुझाव ये भी है कि अगर किसी को कॉलेज में किसी छात्र को एडमिशन नहीं मिलता है, तो वह वोकेशनल ट्रेनिंग के लिए जा सकता है. इससे उन्हें आगे मंजिल मिल जाएगी.

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प्रभाव ऑनलाइन स्टडी का 

कोविड महामारी में ऑनलाइन स्टडी का बच्चों के मानसिक विकास पर बहुत प्रभाव पड़ा है, क्योंकि पिछले साल से स्कूल, कॉलेज खुले नहीं है, ऐसे में बच्चे घर में कैद है. इस बारें में मुंबई की सैफी हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. होज़ेफा भिंडरवाला कहते है कि पिछले साल की तरह इस बार का एकेडेमिक सेशन जून 2021 से मार्च 2022 तक ऐसे ही बंद रहने की उम्मीद है, क्योंकि कोविड महामारी में बढ़त 3 गुना हुई है. दादागिरी कर इससे निजात नहीं पाया जा सकता. इसे काबू में लाने के लिए  समय देना पड़ेगा. सबको वैक्सीन लगाना पड़ेगा. पढाई की प्राथमिकता माता-पिता के लिए होती है, बच्चों को नहीं. इसे पूरे विश्व में मनोवैज्ञानिक मानते है. रिसर्च में भी इसी बात की पुष्टि हुई है.

दरअसल 17 बर्ष तक बच्चों में 3 प्राथमिकताएं होती है.

  • खेलना, जिसमें वे जल्दी सब सीख जाते है और इस लॉक डाउन में स्कूल में जाकर नैचुरल खेल, दोस्तों के साथ मिलना, घर से स्कूल जाना और स्कूल से घर आना आदि से उन्हें जो अनुभव मिलते है, उससे वे वंचित हो रहे है और उसका असर बच्चों पर हो रहा है.
  • इसके अलावा पेरेंट्स को पूरा दिन उन्हें देखना पड़ रहा है. पहले माँ बच्चे के पीछे दूध का गिलास लेकर सुबह और शाम को दौड़ती थी, अब दोपहर को भी दौड़ती है. इससे बच्चे का घर में रहना कठिन हो रहा है. इससे बच्चे से लेकर बड़े हर कोई परेशान है. इसे समस्या या मौका कुछ भी समझा जा सकता है.
  • कुछ लोगों ने पहले लॉकडाउन में इसे मुश्किल समझा, लेकिन अभी वही लोग इस लॉकडाउन को अच्छा समझ रहे है और पेरेंट्स का अपने बच्चे के प्रति व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिल रहा है, बच्चे भी पेरेंट्स को सही समझ रहे है.

नहीं मिल रही आज़ादी   

इसके आगे डॉक्टर होज़ेफा कहते है कि बच्चों को फ्रीडम नहीं मिल रहा है , जिससे वे चिडचिडे हो रहे है, इसका मानसिक के अलावा फिजिकल अवस्था पर भी बहुत प्रभाव पड़ रहा है. वे मोटापे के शिकार हो रहे है. इसके अलावा बच्चे टेक्नोसेवी भी अधिक हो रहे है. जिसे वे 3 साल की उम्र में सीखते थे, उससे अभी ही परिचित हो जा रहे है. पूरी दुनिया भी तकनीक की तरफ ही जा रही थी, पेंडेमिक ने इसे और उसके अधीन बना दिया है. इससे बच्चों को सामाजिक गतिविधियों में रहना कम हो चुका है. मानसिक विकास के लिए सामाजिक व्यवहार की जानकारी होना बहुत जरुरी है.

प्रभाव इनिशिएटिव और इंडस्ट्री पर 

ऐसा देखा गया है कि एक साल से कम उम्र के बच्चा पेरेंट्स पर भरोषा करना सीखता है, उन्हें पता है कि भूख लगने पर खाना, मल और पिशाब होने पर नैपी बदले जायेंगे. एक साल के बाद बच्चे में ऑटोनोमी आती है, वे थोड़ी इंडिपेंडेंट हो जाते है. यहाँ तक बच्चे घर में रहे तो मुश्किल नहीं, लेकिन 4 से 8 साल में उनके अंदर इनिशिएटिव का विकास होता है, जिससे उनके अंदर गिल्ट होता है, 8 से 12 साल में इंडस्ट्री का विकास यानि खुद कुछ करने के बारें में बच्चा सोचने लगता है. इनिशिएटिव और इंडस्ट्री पर पेंड़ेमिक का प्रभाव अधिक पड़ रहा है. बाहर जाकर पढने और घर से पढाई करने में बहुत अंतर होता है.

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इलास्टिक की तरह युवा पीढ़ी  

डॉक्टर चिंतित होकर कहते है कि बढती युवा पीढ़ी इलास्टिक की तरह है और वे आसानी से सब सम्हाल लेती है, लेकिन मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढाई करने वाले छात्र, जिन्हें लैब की जरुरत होती है, उन्हें एक्सपेरिमेंट सबके साथ करना जरुरी होता है, उन बच्चों का एक साल व्यर्थ हो गया. अध्यापक ऑनलाइन कितनी भी पढाई कराये, लेकिन मेडिकल के छात्रों को सेकंड इयर में रोगी के साथ बात कर निरिक्षण करना होता है और ये उसे खो रहे है. मैं उन बच्चों के लिए अधिक फिक्रमंद हूँ. कोविड अगर 3 से 4 साल चला और लोग वर्क फ्रॉम होम या ‘टीच फ्रॉम होम’ कर रहे है, तो अगला बेचारा डॉक्टर बिना प्रैक्टिकल ज्ञान के अंधे व्यक्ति की तरह होगा.

पेरेंट्स के लिए कुछ सुझाव निम्न है,

  • इस समय को वरदान समझे, क्योंकि परिवार के साथ रहने और बच्चों के साथ समय बिताने का इससे सुनहरा मौका नहीं मिलेगा,
  • खुद विहैवियर के द्वारा बच्चों के लिए उदहारण सेट करें,
  • बच्चे की परेशानी को सुनने का प्रयास अवश्य करें,   .
  • पेरेंट्स खुद हेल्दी हैबिट्स को विकसित करें.

बेबी बंप फ्लॉन्ट करती दिखीं Shaheer Sheikh की वाइफ Ruchika Kapoor, फोटोज वायरल

जहां एक्टर शाहीर शेख (Shaheer Sheikh) का सीरियल कुछ रंग प्यार के ऐसे भी  (Kuch Rang Pyaar Ke Aise Bhi 3) का तीसरा सीजन जल्द ही फैंस को एंटरटेन करने के लिए आने वाला है. तो वहीं जल्द ही उनके घर नन्हा मेहमान भी आने वाला है. हालांकि एक्टर शाहीर शेख अपनी पर्सनल लाइफ के बारे में मीडिया से बात करना पसंद नहीं करते. लेकिन पिछले दिनों सोशलमीडिया पर खबरें थीं कि वह जल्दी पिता बनने वाले हैं. वहीं अब इस बात पर मोहर खुद रुचिका कपूर के बेबी बंप फोटोज ने लगा दी है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल फोटोज…

बेबी बंप किया फ्लौंट

प्रैग्नेंसी की खबर के बीच शाहीर शेख की वाइफ रुचिका कपूर की बेबी बंप फोटोज सोशलमीडिया पर छा गई हैं. दरअसल, हाल ही में रुचिका कपूर अपनी दोस्त एकता कपूर के बर्थडे बैश में नजर आईं थीं. जहां से उनकी ये फोटोज वायरल हो रही हैं.  वीडियो में रुचिका कपूर पर्पल कलर के आउटफिट में नजर आ रही हैं, जिसमें उनका बेबी बंप साफ नजर आ रहा है.

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वीडियो हुई वायरल

 

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एकता कपूर की बर्थडे में पार्टी में रुचिका कपूर भी बाकी सितारों के साथ पहुंची जहां एकता कपूर का बर्थडे  सेलिब्रेट किया गया. इस पार्टी की वीडियो एक्ट्रेस अनीता हसनंदानी ने अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसमें रुचिका कपूर के साथ शोभा कपूर, तुषार कपूर, जितेंद्र, अनीता हसनंदानी, रोहित रेड्डी, क्रिस्टल डिसूजा, मुश्ताक शेख और रिद्धि डोगरा जैसे सितारे नजर आए. हालांकि रुचिका कपूर के साथ उनके पति शाहीर शेख नहीं दिखे.

बता दें, हाल ही में शाहीर शेख का एक्ट्रेस हिना खान का म्यूजिक वीडियो रिलीज हुआ है, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

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लड़की- भाग 1 : क्या परिवार की मर्जी ने बर्बाद कर दी बेटी वीणा की जिंदगी

मुंबई स्थित जसलोक अस्पताल के आईसीयू में वीणा बिस्तर पर  निस्पंद पड़ी थी. उसे इस हालत में देख कर उस की मां अहल्या का कलेजा मुंह को आ रहा था. उस के कंठ में रुलाई उमड़ रही थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे एक दिन ऐसे दुखदायी दृश्य का सामना करना पड़ेगा.

वह वीणा के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. ‘मेरी बेटी,’ वह बुदबुदाई, ‘तू एक बार आंखें खोल दे, तू होश में आ जा तो मैं तुझे बता सकूं कि मैं तुझे कितना चाहती हूं, तू मेरे दिल के कितने करीब है. तू मुझे छोड़ कर न जा मेरी लाड़ो. तेरे बिना मेरा संसार सूना हो जाएगा.’

बेटी को खो देने की आशंका से वह परेशान थी. वह व्यग्रता से डाक्टर और नर्सों का आनाजाना ताक रही थी, उन से वीणा की हालत के बारे में जानना चाह रही थी, पर हर कोई उसे किसी तरह का संतोषजनक उत्तर देने में असमर्थ था.

जैसे ही उसे वीणा के बारे में सूचना मिली वह पागलों की तरह बदहवास अस्पताल दौड़ी थी. वीणा को बेसुध देख कर वह चीख पड़ी थी. ‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’ उस के होंठों पर हजारों सवाल आए थे.

‘‘मैं आप को सारी बात बाद में विस्तार से बताऊंगा,’’ उस के दामाद भास्कर ने कहा था, ‘‘आप को तो पता ही है कि वीणा ड्रग्स की आदी थी. लगता है कि इस बार उस ने ओवरडोज ले ली और बेहोश हो गई. कामवाली बाई की नजर उस पर पड़ी तो उस ने दफ्तर में फोन किया. मैं दौड़ा आया, उसे अस्पताल लाया और आप को खबर कर दी.’’

‘‘हायहाय, वीणा ठीक तो हो जाएगी न?’’ अहल्या ने चिंतित हो कर सवाल किया.

‘‘डाक्टर्स पूरी कोशिश कर रहे हैं,’’  भास्कर ने उम्मीद जताई.

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भास्कर से कोई आश्वासन न पा कर अहल्या ने चुप्पी साध ली. और वह कर भी क्या सकती थी? उस ने अपने को इतना लाचार कभी महसूस नहीं किया था. वह जानती थी कि वीणा ड्रग्स लेती थी. ड्रग्स की यह आदत उसे अमेरिका में ही पड़ चुकी थी. मानसिक तनाव के चलते वह कभीकभी गोलियां फांक लेती थी. उस ने ओवरडोज गलती से ली या आत्महत्या करने का प्रयत्न किया था?

उस का मन एकबारगी अतीत में जा पहुंचा. उसे वह दिन याद आया जब वीणा पैदा हुई थी. लड़की के जन्म से घर में किसी प्रकार की हलचल नहीं हुई थी. कोई उत्साहित नहीं हुआ था.

अहल्या व उस का पति सुधाकर ऐसे परिवेश में पलेबढ़े थे जहां लड़कों को प्रश्रय दिया जाता था. लड़कियों की कोई अहमियत नहीं थी. लड़कों के जन्म पर थालियां बजाई जातीं, लड्डू बांटे जाते, खुशियां मनाई जाती थीं. बेटी हुई तो सब के मुंह लटक जाते.

बेटी सिर का बोझ थी. वह घाटे का सौदा थी. एक बड़ी जिम्मेदारी थी. उसे पालपोस कर, बड़ा कर दूसरे को सौंप देना होता था. उस के लिए वर खोज कर, दानदहेज दे कर उस की शादी करने की प्रक्रिया में उस के मांबाप हलकान हो जाते और अकसर आकंठ कर्ज में डूब जाते थे.

अहल्या और सुधाकर भी अपनी संकीर्ण मानसिकता व पिछड़ी विचारधारा को ले कर जी रहे थे. वे समाज के घिसेपिटे नियमों का हूबहू पालन कर रहे थे. वे हद दर्जे के पुरातनपंथी थे, लकीर के फकीर.

देश में बदलाव की बयार आई थी, औरतें अपने हकों के लिए संघर्ष कर रही थीं, स्त्री सशक्तीकरण की मांग कर रही थीं. पर अहल्या और उस के पति को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा था.

अहल्या को याद आया कि बच्ची को देख कर उस की सास ने कहा था, ‘बच्ची जरा दुबलीपतली और मरियल सी है. रंग भी थोड़ा सांवला है, पर कोई बात नहीं.

2-2 बेटों के जन्म के बाद इस परिवार में एक बेटी की कमी थी, सो वह भी पूरी हो गई.’

जब भी अहल्या को उस की सास अपनी बेटी को ममता के वशीभूत हो कर गोद में लेते या उसे प्यार करते देखतीं तो उसे टोके बिना न रहतीं, ‘अरी, लड़कियां पराया धन होती हैं, दूसरे के घर की शोभा. इन से ज्यादा मोह मत बढ़ा. तेरी असली पूंजी तो तेरे बेटे हैं. वही तेरी नैया पार लगाएंगे. तेरे वंश की बेल वही आगे बढ़ाएंगे. तेरे बुढ़ापे का सहारा वही तो बनेंगे.’

सासूमां जबतब हिदायत देती रहतीं, ‘अरी बहू, बेटी को ज्यादा सिर पे मत चढ़ाओ. इस की आदतें न बिगाड़ो. एक दिन इसे पराए घर जाना है. पता नहीं कैसी ससुराल मिलेगी. कैसे लोगों से पाला पड़ेगा. कैसे निभेगी. बेटियों को विनम्र रहना चाहिए. दब कर रहना चाहिए. सहनशील बनना चाहिए. इन्हें अपनी हद में रहना चाहिए.’

देखते ही देखते वीणा बड़ी हो गई. एक दिन अहल्या के पति सुधाकर ने आ कर कहा, ‘वीणा के लिए एक बड़ा अच्छा रिश्ता आया है.’

‘अरे,’ अहल्या अचकचाई, ‘अभी तो वह केवल 18 साल की है.’

‘तो क्या हुआ. शादी की उम्र तो हो गई है उस की, जितनी जल्दी अपने सिर से बोझ उतरे उतना ही अच्छा है. लड़के ने खुद आगे बढ़ कर उस का हाथ मांगा है. लड़का भी ऐसावैसा नहीं है. प्रशासनिक अधिकारी है. ऊंची तनख्वाह पाता है. ठाठ से रहता है हमारी बेटी राज करेगी.’

‘लेकिन उस की पढ़ाई…’

‘ओहो, पढ़ाई का क्या है, उस के पति की मरजी हुई तो बाद में भी प्राइवेट पढ़ सकती है. जरा सोचो, हमारी हैसियत एक आईएएस दामाद पाने की थी क्या? घराना भी अमीर है. यों समझो कि प्रकृति ने छप्पर फाड़ कर धन बरसा दिया हम पर. ‘लेकिन अगर उस के मातापिता ने दहेज के लिए मुंह फाड़ा तो…’

‘तो कह देंगे कि हम आप के द्वारे लड़का मांगने नहीं गए थे. वही हमारी बेटी पर लार टपकाए हुए हैं…’

जब वीणा को पता चला कि उस के ब्याह की बात चल रही है तो वह बहुत रोईधोई. ‘मेरी शादी की इतनी जल्दी क्या है, मां. अभी तो मैं और पढ़ना चाहती हूं. कालेज लाइफ एंजौय करना चाहती हूं. कुछ दिन बेफिक्री से रहना चाहती हूं. फिर थोड़े दिन नौकरी भी करना चाहती हूं.’

पर उस की किसी ने नहीं सुनी. उस का कालेज छुड़ा दिया गया. शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं.

वर के मातापिता ने एक अडं़गा लगाया, ‘‘हमारे बेटे के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं. लाखों का दहेज मिल रहा है. माना कि हमारा बेटा आप की बेटी से ब्याह करने पर तुला हुआ है पर इस का यह मतलब तो नहीं कि आप हमें सस्ते में टरका दें. नकद न सही, उस की हैसियत के अनुसार एक कार, फर्नीचर, फ्रिज, एसी वगैरह देना ही होगा.’’

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सुधाकर सिर थाम कर बैठ गए. ‘मैं अपनेआप को बेच दूं तो भी इतना सबकुछ जुटा नहीं सकता,’ वे हताश स्वर में बोले.

‘मैं कहती थी न कि वरपक्ष वाले दहेज के लिए मुंह फाड़ेंगे. आखिर, बात दहेज के मुद्दे पर आ कर अटक गई न,’ अहल्या ने उलाहना दिया.

‘आंटीजी, आप लोग फिक्र न करें,’ उन के भावी दामाद उदय ने उन्हें दिलासा दिया, ‘मैं सब संभाल लूंगा. मैं अपने मांबाप को समझा लूंगा. आखिर मैं उन का इकलौता पुत्र हूं वे मेरी बात टाल नहीं सकेंगे.’ पर उस के मातापिता भी अड़ कर बैठे थे. दोनों में तनातनी थी.

आखिर, उदय के मांबाप की ही चली. वे शादी के मंडप से उदय को जबरन उठा कर ले गए और सुधाकर व अहल्या कुछ न कर सके. देखते ही देखते शादी का माहौल मातम में बदल गया. घराती व बराती चुपचाप खिसक लिए. अहल्या और वीणा ने रोरो कर घर में कुहराम मचा दिया.

‘अब इस तरह मातम मनाने से क्या हासिल होगा?’ सुधाकर ने लताड़ा, ‘इतना निराश होने की जरूरत नहीं है. हमारी लायक बेटी के लिए बहुतेरे वर जुट जाएंगे.’

वीणा मन ही मन आहत हुई पर उस ने इस अप्रिय घटना को भूल कर पढ़ाई में अपना मन लगाया. वह पढ़ने में तेज थी. उस ने परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की. इधर, उस के मांबाप भी निठल्ले नहीं बैठे थे. वे जीजान से एक अच्छे वर की तलाश कर रहे थे. तभी वीणा ने एक दिन अपनी मां को बताया कि वह अपने एक सहपाठी से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है.

जब अहल्या ने यह बात पति को बताई तो उन्होंने नाकभौं सिकोड़ कर कहा, ‘बहुत खूब. यह लड़की कालेज पढ़ने जाती थी या कुछ और ही गुल खिला रही थी? कौन लड़का है, किस जाति का है, कैसा खानदान है कुछ पता तो चले?’

और जब उन्हें पता चला कि प्रवीण दलित है तो उन की भृकुटी तन गई, ‘यह लड़की जो भी काम करेगी वह अनोखा होगा. अपनी बिरादरी में योग्य लड़कों की कमी है क्या? भई, हम से तो जानबूझ कर मक्खी निगली नहीं जाएगी. समाज में क्या मुंह दिखाएंगे? हमें किसी तरह से इस लड़के से पीछा छुड़ाना होगा. तुम वीणा को समझाओ.’

‘मैं उसे समझा कर हार चुकी हूं पर वह जिद पकड़े हुए है. कुछ सुनने को तैयार नहीं है.’

‘पागल है वह, नादान है. हमें कोई तरकीब भिड़ानी होगी.’

सुधाकर ने एक तरीका खोज  निकाला. वे वीणा को एक  ज्योतिषी के पास ले गए.

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कभी नहीं- भाग 3 : गायत्री को क्या समझ आई मां की अहमियत

उस के शब्द सुन कर गायत्री भी रो पड़ी. स्वयं को छुड़ा नहीं पाई बल्कि धीरे से अपने हाथों से उस का चेहरा थपथपा दिया.

‘‘ऐसा लगता है, आज तक जितना जिया सब झूठ था. किसी ने मेरी छाती में से दिल ही खींच लिया है.’’

‘‘ऐसा मत सोचो, रवि. तुम्हारी मां जिंदा हैं. वे बीमार हैं. तुम कुछ नहीं खाते तो उन्होंने भी खानापीना छोड़ रखा है. उन के पास क्यों नहीं जाते? उन में तो तुम्हारे प्राण अटके हैं न? फिर क्यों उन्हें इस तरह सता रहे हो?’’

‘‘वे मेरी मां नहीं हैं, पिताजी ने बताया.’’

‘‘बताया, तो क्या जुर्म हो गया? एक सच बता देने से सारा जीवन मिथ्या कैसे हो गया?’’

‘‘क्या?’’ रवि टुकुरटुकुर उस का मुंह देखने लगा. क्षणभर को हाथों का दबाव गायत्री के शरीर पर कम हो गया.

‘‘वे मुझ बिन मां के बच्चे पर दया करती रहीं, अपने बचों के मुंह से छीन मुझे खिलाती रहीं, इतने साल मेरी परछाईं बनी रहीं. क्यों? दयावश ही न. वे मेरी सौतेली मां हैं.’’

‘‘दया इतने वर्षों तक नहीं निभाई जाती रवि, 2-4 दिन उन के साथ रहे हो क्या, जो ऐसा सोच रहे हो? वे बहुत प्यार करती हैं तुम से. अपने बच्चों से बढ़ कर हमेशा तुम्हें प्यार करती रहीं. क्या उस का मोल इस तरह सौतेला शब्द कह कर चुकाओगे? कैसे इंसान हो तुम?’’ एकाएक उसे परे हटा दिया गायत्री ने. बोली, ‘‘उन्हें सौतेला जान जो पीड़ा पहुंची थी, उस का इलाज उन्हीं की गोद में है रवि, जिन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया. मेरी गोद में नहीं जिस से तुम्हारी जानपहचान कुछ ही महीनों की है. तुम अपनी मां के नहीं हो पाए तो मेरे क्या होगे, कैसे निभाओगे मेरे साथ?’’

लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया रवि ने, ‘‘मैं अपनी मां का नहीं हूं, तुम ने यह कैसे सोच लिया?’’

‘‘तो उन से बात क्यों नहीं करते? क्यों इतना रुला रहे हो उन्हें?’’

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‘‘हिम्मत नहीं होती. उन्हें या भाईबहन को देखते ही कानों में सौतेला शब्द गूंजने लगता है. ऐसा लगता है मैं दया का पात्र हूं.’’

‘‘दया के पात्र तो वे सब बने पड़े हैं तुम्हारी वजह से. मन से यह वहम निकालो और मां के पास चलो. आओ मेरे साथ.’’

‘‘न,’’ रवि ने गरदन हिला दी इनकार में, ‘‘मां के पास नहीं जाऊंगा. मां के पास तो कभी नहीं…’’

‘‘इस की वजह क्या है, मुझे समझाओ? क्यों नहीं जाओगे उन के पास? क्या महसूस होता है उन के पास जाने से?’’ एकाएक स्वयं ही उस की बांह सहला दी गायत्री ने. निरीह, असहाय बालक सा वह अवरुद्ध कंठ और डबडबाए नेत्रों से उसे निहारने लगा.

‘‘तुम्हें 2 महीने का छोड़ा था तुम्हारी मां ने. उस के बाद इन्होंने ही पाला है न. तुम तो इन्हें अपना सर्वस्व मानते रहे हो. तुम ही कहते थे न, तुम्हारी मां जैसी मां किसी की भी नहीं हैं. जब वह सच सामने आ ही गया तो उस से मुंह छिपाने का क्या अर्थ? वर्तमान को भूत में क्यों मिला रहे हो? ‘‘अब तुम्हारा कर्तव्य शुरू होता है रवि, उन्हें अपनी सेवा से अभिभूत करना होगा. कल उन्होंने तुम्हें तनमन से चाहा, आज तुम चाहो. जब तुम निसहाय थे, उन्होंने तुम्हें गोद में ले लिया था. आज तुम यह प्रमाणित करो कि सौतेला शब्द गाली नहीं है. यह सदा गाली जैसा नहीं होता. बीमार मां को अपना सहारा दो रवि. सच को उस के स्वाभाविक रूप में स्वीकार करना सीखो, उस से मुंह मत छिपाओ.’’

‘‘मां मुझे इतना अधिक क्यों चाहती रहीं, गायत्री? मेरे मन में सदा यही भाव जागता रहा कि वे सिर्फ मेरी हैं. छोटे भाईबहन को भी उन के समीप नहीं फटकने दिया. मां ने कभी विरोध नहीं किया, ऐसा क्यों, गायत्री? कभी तो मुझे परे धकेलतीं, कभी तो कहतीं कुछ,’’ रवि फिर भावुक होने लगा.

‘‘हो सकता है वे स्वाभाविक रूप में ही तुम्हें ज्यादा स्नेह देती रही हों. तुम सदा से शांत रहने वाले इंसान रहे हो. उद्दंड होते तो जरूर डांटतीं किंतु बिना वजह तुम्हें परे क्यों धकेल देतीं.’’

‘‘गायत्री, मैं इतना बड़ा सच सह नहीं पा रहा हूं. मैं सोच भी नहीं सकता. ऐ लगता है, पैरों के नीचे से जमीन ही सरक गई हो.’’

‘‘क्या हो गया है तुम्हें, इतने कमजोर क्यों होते जा रहे हो?’’कुछ ऐसी स्थिति चली आई. शायद उस का यही इलाज भी था. स्नेह से गायत्री ने स्वयं ही अपने समीप खींच लिया रवि को. कोमल बाहुपाश में बांध लिया.भर्राए स्वर में गिला भी किया रवि ने, यही सब सुनाने तुम्हारे पास भी तो गया था. सोचा था, तुम से अच्छी कोई और मित्र कहां होगी, तुम ने सुना नहीं. मैं कितने दिन इधरउधर भटकता रहा. मैं कहां जाऊं, कुछ समझ नहीं पाता?’’

‘‘मां के पास चलो, आओ मेरे साथ. मैं जानती हूं, उन्हीं के पास जाने को छटपटा रहे हो. चलो, उठो.’’

रवि चुप रहा. भावी पत्नी की आंखों में कुछ ढूंढ़ने लगा.

गायत्री तनिक गुस्से से बोली, ‘‘जीवन में बहुतकुछ सहना पड़ता है. यह जरा सा सच नहीं सह पा रहे तो बड़ेबड़े सच कैसे सहोगे? आओ, मेरे साथ चलो?’’ रवि खामोशी से उसे घूरता रहा.

‘‘देखो, आज तुम्हारी मां इतनी मजबूर हो गई हैं कि मेरे सामने हाथ जोड़े हैं उन्होंने. तुम्हें समझाने के लिए मुझे बुला भेजा है. तुम तो जानते हो, हम लोगों में शादी से पहले एकदूसरे के घर नहीं जाते. परंतु मुझे बुलाया है उन्होंने, तुम्हें समझाने के लिए. अपनी मां का और मेरा मान रखना होगा तुम्हें. मेरे साथ अपनी मां और भाईबहन से मिलना होगा और बड़ा भाई बन कर उन से बात करनी होगी. उठो रवि, चलो, चलो न.’’ अपने अस्तित्व में समाए बालक समान सुबकते भावी पति को कितनी देर सहलाती रही गायत्री. आंचल से कई बार चेहरा भी पोंछा.

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रवि उधेड़बुन में था, बोला, ‘‘मां मेरे पास क्यों नहीं आतीं, क्यों नहीं मुझे बुलातीं?’’

‘‘वे तुम्हारी मां हैं. तुम उन के बेटे हो. वे क्यों आएं तुम्हारे पास. तुम स्वयं ही रूठे हो, स्वयं ही मानना होगा तुम्हें.’’

‘‘पिताजी मां को मेरे कमरे में नहीं आने देना चाहते, मुझे पता है. मैं ने उन्हें मां को रोकते सुना है.’’

‘‘ठीक ही तो कर रहे हैं. उन की भी पत्नी के मानसम्मान का प्रश्न है. तुम उन के बच्चे हो तो बच्चे ही क्यों नहीं बनते. क्या यह जरूरी है कि सदा तुम ही अपना अधिकार प्रमाणित करते रहो? क्या उन्हें हक नहीं है?’’

बड़ी मुश्किल से गायत्री ने उसे अपने शरीर से अलग किया. प्रथम स्पर्श की मधुर अनुभूतियां एक अलग ही वातावरण और उलझे हुए वार्त्तालाप की भेंट चढ़ चुकी थीं. ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार उसे छुआ है. साधिकार उस का मस्तक चूम लिया गायत्री ने. गायत्री पर पूरी तरह आश्रित हो वह धीरे से उठा, ‘‘तुम भी साथ चलोगी न?’’

‘‘हां,’’ वह तनिक मुसकरा दी.

फिर उस का हाथ पकड़ सचमुच वह बीमार मां के समीप चला आया. अस्वस्थ और कमजोर मां को बांहों में बांध जोरजोर से रोने लगा.

‘‘मैं ने तुम से कितनी बार कहा है, तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाया करो,’’ उसे गोद में ले कर चूमते हुए मां रोने लगीं. छोटी बहन और भाई शायद इस नई कहानी से पूरी तरह टूट से गए थे. परंतु अब फिर जुड़ गए थे. बडे़ भाई ने मां पर सदा से ही ज्यादा अधिकार रखा था, इस की उन्हें आदत थी. अब सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे.

‘‘तुम कहीं खो सी गई थीं, मां. कहां चली गई थीं, बोलो?’’

पुत्र के प्रश्न पर मां धीरे से समझाने लगीं, ‘‘देखो रवि, सामने गायत्री खड़ी है, क्या सोचेगी? अब तुम बड़े हो गए हो.’’

‘‘तुम्हारे लिए भी बड़ा हो गया हूं क्या?’’

‘‘नहीं रे,’’ स्नेह से मां उस का माथा चूमने लगीं.

‘‘आजा बेटी, मेरे पास आजा,’’ मां ने गायत्री को पास बुलाया और स्नेह से गले लगा लिया. छोटा बेटा और बेटी भी मां की गोद में सिमट आए. पिताजी चश्मा उतार कर आंखें पोंछने लगे.गायत्री बारीबारी से सब का मुंह देखने लगी. वह सोच रही थी, ‘क्या शादी के बाद वह इस मां के स्नेह के प्रति कभी उदासीन हो पाएगी? क्या पति का स्नेह बंटते देख ईर्ष्या का भाव मन में लाएगी? शायद नहीं, कभी नहीं.’

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