ससुराल में पहली रसोई के 7 टिप्स

कोरोना की दूसरी लहर के कारण शादियों पर लगा ब्रेक अब कुछ कमजोर पड़ गया है और भले ही मेहमानों की उपस्थिति कम हो परन्तु शादियां अब होने लगीं हैं. शादी के बाद दुल्हन जब ससुराल आती है तो अनेकों रस्मों के साथ ही एक रस्म बहू की पहली रसोई की भी होती है जिसमें बहू अपने हाथों से ससुराल के सदस्यों के लिए खाना बनाती है. अक्सर नवविवाहिताओं को समझ नहीं आ पाता कि क्या ऐसा बनाया जाए जो सभी को पसन्द भी आये और आसानी से बन भी जाये. पहले जहां वधू से कोई एक  मीठी डिश बनवाई जाती थी वहीं अब पूरी थाली का चलन है. यदि आप वधू बनने वालीं हैं तो ये टिप्स आपके बहुत काम के हो सकते हैं-

1. डिशेज का चयन मौसम के अनुकूल करें, मसलन गर्मियों में छाछ, मॉकटेल्स, आइसक्रीम, सर्दियों में सूप और बारिश में पकौड़े आदि को शामिल करें.

2. परिवार के सदस्यों की उम्र को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है, यदि बुजुर्ग हैं तो मेन्यू में कुछ सादा और बच्चे हैं तो चायनीज या इटैलियन डिशेज को शामिल करें ताकि सभी की पसन्द का एक कम्पलीट मील तैयार हो सके.

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3. एक कहावत है कि खाने का प्रजेंटेशन ऐसा होना चाहिए कि उसे देखकर ही भूख जाग्रत हो जाये, इसलिए परोसने से पूर्व डिशेज को मेवा, हरे धनिए या क्रीम आदि से गार्निश करके आराम से परोसें ताकि खाद्य पदार्थ नीचे न गिरने पाए.

4. मेन्यू को तय करते समय रंग संयोजन का विशेष ध्यान रखें ताकि आपकी थाली स्वाद के साथ साथ देखने में भी सुंदर लगे. हरी सब्जियों, कश्मीरी लाल मिर्च और क्रीम आदि का प्रयोग करना उचित रहेगा.

5. आजकल मेक्सिकन, चाइनीज और इटैलियन व्यंजनों का जमाना है इसलिए आप इन्हें मायके से सीखकर जाइये ताकि इन्हें बनाकर आप वहां अपना प्रभाव जमा सकें.

6. खाना बनाते समय संतुलित मिर्च मसालों का प्रयोग करें ताकि सभी आसानी से खा सकें, साथ ही कोई भी नया प्रयोग करने से बचें. आप जो भी खाना बनाएं उसे प्यार से परोसे और परिवार के सदस्यों को आग्रह करके खिलाएं.

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7. खाना बनाते समय एप्रिन अवश्य पहनें अन्यथा खाद्य पदार्थों के अवशेष आपके कपड़ों पर लगकर उन्हें खराब तो करेंगे ही साथ ही बेवजह आपके सलीके से काम न कर पाने की दास्तां भी बयान कर देंगे.

Fashion Tips: चैक प्रिंट को ऐसे करें स्टाइल

चैक प्रिंट हमेशा फैशन में रहता है और कुछ लाइंस की मदद से ही पूरा फैशन गेम पलट जाता है. आपकी अलमारी में भी बहुत सारे ऐसे कपड़े जरूर होंगे जिनमें किसी न किसी प्रकार का चैक प्रिंट तो अवश्य होगा. यह बहुत ही वर्सेटाइल होता है मतलब आप इसे बहुत तरीकों में स्टाइल कर सकती हैं और यह लगभग आपके हर टॉप या बॉटम के साथ मैच कर जाता है. चैक प्रिंट की अलग अलग वैरायटी होती हैं और आज हम उनमें से 5 प्रकार के चैक प्रिंट के बारे में जानेंगे. इसके साथ ही आपको बताएंगे कि आप अपने मन पसंद चैक प्रिंट आउटफिट को किस प्रकार स्टाइल कर सकती हैं. आइए जानते है.

1. गिंघम चैक :

यह एक कॉटन फैब्रिक होता है और डाई किए हुए धागों को बुनकारी करके तैयार किया जाता है. यह स्टाइल 18 वी सदी में फ्रांस में पहली बार आया था और यह 60 के दशक में भी ट्रेंड में था.

2. ग्लेन प्लैड :

यह ऊनी धागे से बना होता है और इसे देखने पर आपको लगेगा मानो इसमें बड़े बड़े स्क्वेयर बने हुए है. यह आम तौर पर ब्लैक और व्हाइट या ब्राउन और व्हाइट पैटर्न के साथ ही देखने को मिलता है.

3. विंडो पेन चैक :

यह प्रिंट फॉर्मल होता है और इसमें दो मोटी मोटी और चौड़ी लाइंस होती हैं जो एक दूसरे को काटती है. इसमें आपको बस बॉक्स देखने को मिलते हैं.

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4. टार्टन चैक :

इस प्रकार का चैक रंग बिरंगा होता है और यह ऐसा प्रतीत होता है मानो दो लाइंस एक क्रिस क्रॉस पैटर्न बनाती चल रही हों. इसे ऊनी और सर्दियों के कपड़ों के लिए स्टाइल किया जाता था लेकिन आजकल इसे हर तरह के कपड़ों के साथ स्टाइल किया जाता है.

5. बफैलो चैक :

यह बड़े बड़े डिब्बे के आकार में होता है और दो अलग अलग रंग के धागों के द्वारा इसकी लाइन बनी होती हैं जो एक दूसरे को काटती है. इसे सबसे पहले स्कॉटलैंड में पहना गया था.

यह सारे चैक प्रिंट के प्रकार ही अब दुबारा से ट्रेंड में हैं और अगर आपके पास इनमें से एक भी नहीं है तो आपको जल्दी से खरीद लेना चाहिए.

चैक प्रिंट को कैसे स्टाइल करें?

1. लेयरिंग करें :

अगर आप कोई शॉर्ट ड्रेस पहन रही हैं जिसमें चैक प्रिंट है तो उसके ऊपर आप एक ब्लेजर या डेनिम जैकेट पहन सकती हैं.

2. को ओर्ड सेट :

आजकल बहुत सारे को ऑर्ड सेट में चैक प्रिंट चल रहा है और आप बहुत सारे ऐसे जंप सूट भी देख सकती हैं जिनमें चैक प्रिंट है और जो आपको फॉर्मल वाइब देंगे. इसके अलावा आप चैक स्प्लिट स्कर्ट के साथ चैक प्रिंट वाला टॉप भी पहन सकती हैं.

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3. स्टेटमेंट पीस :

अगर आप अंदर बहुत शॉर्ट को ओर्ड सेट पहन रही हैं या एक क्रॉप टॉप और शॉर्ट्स का कॉम्बो पहन रही हैं तो उसके ऊपर एक बहुत बड़ा चैक का ब्लेजर या कोट डाल सकती हैं जो आपके अंदर के पूरे कपड़ों को ढंक लेगा. लेकिन आपको इसे आगे से खुला रखना है और यह आपको एक स्टेटमेंट पीस वाली वाइब देगा.

इस साल चैक प्रिंट दुबारा से ट्रेंड कर रहा है इसलिए आप जैसे इसे स्टाइल करना चाहें वैसे कर सकती हैं क्योंकि यह लगभग हर आउटफिट के साथ मैच हो जाता है और आपको एक बहुत अच्छा लुक भी देता है.

इन 8 टिप्स से पाएं नेचुरल ग्लॉसी मेकअप लुक

बरसात के मौसम में महिलाएं ज्यादा मेकअप करना पसंद नहीं करती हैं क्योंकि पसीने और ह्यूमिडिटी के कारण सारा मेकअप बिगड़ जाता है और अधिक हैवी मेकअप के कारण गर्मी भी अधिक लगती है इसलिए वे चाहती हैं कि एक बहुत ही लाइट मेकअप लुक हो जो बहुत ग्लॉसी और नेचुरल लगे. आजकल सेलिब्रिटी से लेकर इनफ्लूएंसर तक हर कोई ग्लॉसी मेकअप कर रहा है और इसे करने के ट्यूटोरियल भी दे रहे हैं. इसलिए अगर आप भी एक ऐसा ही लुक पाना चाहती हैं तो आज आप बिल्कुल सही जगह पर आई हैं क्योंकि हम आज आपको जो टिप्स देने वाले हैं उनकी मदद से आप अपने चेहरे पर बहुत कम प्रोडक्ट्स की मदद से एक ग्लॉसी मेकअप लुक अचीव कर सकती हैं. आइए जानते हैं इन टिप्स के बारे में.

1. प्राइमर के साथ अपनी स्किन को प्रिपेयर करें :

अगर आप अपने मेकअप को लंबे समय तक टिकाना चाहती हैं और एक परफेक्ट बेस चाहती हैं तो सबसे पहले अपनी स्किन को प्रिपेयर कर लें. इसके लिए आप एक अच्छे से प्राइमर का प्रयोग कर सकती हैं जो आपके पोर्स को कम कर दे और आपकी स्किन को स्मूथ कर दे.

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2. लिक्विड फाउंडेशन की बहुत लाइट लेयर अप्लाई करें :

ग्लॉसी मेकअप लुक पाने के लिए आपको लिक्विड फाउंडेशन का प्रयोग करना चाहिए और बहुत ही लाइट लेयर यानी कम प्रोडक्ट का प्रयोग करें. अगर आपको पिगमेंटेशन वाली जगह पर अधिक कवरेज की जरूरत है तो वहां केवल एक डॉट ही लगाएं और उसे एक ब्रश की मदद से ब्लेंड कर लें.

3. कंसीलर का प्रयोग करें :

अपने नाक के आस पास, होंठों के ऊपर और डार्क सर्कल्स को. छुपाने के लिए थोड़े से कंसीलर का प्रयोग करें और इसके प्रयोग से आपके यह प्वाइंट थोड़े से हाईलाइट भी हो जाते हैं जिस कारण आपको एक ग्लॉसी लुक मिलता है.

4. आईब्रो का गैप भरने के लिए ब्राउन पेंसिल का प्रयोग करें :

अगर आप अपनी आईब्रो को और अधिक डिफाइन करना चाहती हैं और उनके बीच का गैप भरना चाहती हैं तो एक ब्रॉउन पेंसिल का प्रयोग कर सकती हैं और इसे ब्लेंड करने के लिए स्पूली का प्रयोग करें.

5. क्रीमी हाईलाइटर का करें प्रयोग :

अगर आप अपने उभरे हुए पार्ट को थोड़ा अधिक हाईलाइट करना चाहती हैं तो अपनी उंगलियों पर थोड़ा सा हाईलाइटर लें और उसे अपने गालों पर , नाक पर और थोड़ा सा माथे पर लगा लें. यह आपको एक बहुत ही प्राकृतिक लुक देता है इसलिए अधिक प्रोडक्ट का प्रयोग न करें.

6. मेकअप को सेट करने के लिए ट्रांसलूसेंट पाउडर का प्रयोग करें :

अगर आप अपने मेकअप को सेट करना चाहती हैं और नहीं चाहती की यह बाद में ऑक्सीडाइज हो जाए तो उसके लिए ट्रांसलूसेंट पाउडर का प्रयोग करें. यह आपके सारे बेस मेकअप को सेट कर देगा.

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7. लिप स्क्रब का प्रयोग करें :

अगर आपके होंठ फटे हुए हैं या चैप्पी लग रहे हैं तो वहां से डेड स्किन सेल्स निकलने के लिए और सॉफ्ट लिप्स पाने के लिए लिप स्क्रब का प्रयोग करें.

8. एक क्रीमी लिप टिंट का प्रयोग करें :

आप ज्यादा डार्क शेड की लिपस्टिक की बजाए एक लिप टिंट का प्रयोग कर सकती हैं जो आपके होंठों को दूर से ही चमकते हुए दिखायेगा और इसका प्रयोग आप ब्लश के रूप में भी कर सकती हैं.

गर्मियों में हल्का मेकअप करने के लिए इन सभी टिप्स का प्रयोग करना बहुत आवश्यक होता है नहीं तो आप का सारा मेकअप आपके पसीने के साथ ही बह जाएगा.

उपवास के जाल में उलझी नारी

धर्म के नाम पर रखे जाने वाले कोई भी व्रत या उपवास से आज तक किसी का भला नहीं हुआ है . हां व्रत , उपवास के दौरान होने वाली कथा पूजन से धर्म के दुकानदारों की मौज जरूर होती रही है . इन कथा पूजन से न केवल  उन्हे दान दक्षिणा मिलती है , बल्कि पकवान युक्त मुफ्त का खाना भी मिलता है . हर धर्म के  पंडित , मौलवी , पादरी यह बात अच्छी तरह समझ गये हैं कि महिलाओं को धर्म का भय आसानी से दिखाया जा सकता है .यही बजह है कि धर्म के ये ठेकेदार उन्हें पाप का भय दिखाकर व्रत या उपवास में उलझाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं . आशाराम , रामपाल और राम रहीम जैसे  धर्मगुरू महिलाओं को धार्मिक कर्मकांड , कथा प्रवचन , व्रत उपवास का झांसा देकर उनका यौन शोषण करने से भी नहीं हिचकते.

धार्मिक कथा पुराणों और पंडे पुजारियों की बातों का असर भारतीय नारी के दिलो दिमाग पर कुछ इस तरह हावी है कि वे साल के बारह महिने संतोषी माता का व्रत,महालक्ष्मी व्रत ,संतान सप्तमी ,हरछठ ,दुर्गा पूजाजैसेकई तरह के व्रत उपवास के जाल में फंसी रहती है .इन्ही व्रत उपवासों में से एक व्रत है करवा चौथ का व्रत . दकियानूसी परम्पराओं के नाम पर मनाया जाने वाला करवा चौथ का पर्व सुहागनों के लिये भले ही सार्वजनिक तौर पर अपने आप को महिमामंडित करने का हो ,लेकिन अविवाहित ,परित्यक्ता,तलाकशुदा और बिधवा महिलाओं को अपमानित करने वाला पर्व रहता है.

मध्यप्रदेश की पिछली भाजपा सरकार में मंत्री रही कुसुम महदेले की करवा चौथ पर्व पर सोशल मीडिया पर की गई एक टिप्पणी में उन्होने लिखा कि हिन्दुस्तान में हिन्दू महिलायें अपने पति या पुत्रों की सलामती या उनकी लंबी आयु के लिये ब्रतरखती हैं ,क्या सारे पुरूष इतने कमजोर हो गये हैं?. उन्होने इस टिप्पणी के माध्यम से समाज पर सबाल उठाते हुये कहा कि पुरूष सत्तात्मक समाज में यैसा कोई व्रत नहीं है जो पुरूष महिलाओं के भले के लिये करें .जितने व्रत उपवास बनाये गये हैं वे सब महिलाओं को पुरूष की सलामती के लिये रखने पड़ते हैं . हरितालिका व्रत से लेकर करवा चौथतक सब पति की लंबी आयु के लिये रखे जाते हैं .

करवा चौथ का वैसे तो ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित है . शादी शुदा महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं. इस दिन वह सुबह से रात तक चाँद निकालने तक कुछ नहीं खाती और पानी भी नहीं पीती. रात को चाँद देखकर पति के हाथ से जल पीकर व्रत समाप्त करती हैं.हालाकि दक्षिण भारत में इस प्रकार के व्रत या त्यौहार को महत्व नहीं दिया जाता है .करवा चौथ के व्रत की कहानी अंधविश्वास के साथ एक भय भी उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते हैं.व्रत उपवास की ये परम्परायें महिलाओं को अधविश्वास की बेड़ियों में जकड़े रहने को प्रेरित करती हैं

क्या है करवा चौथ व्रत की कथा

फुटपाथों पर बीस बीस रूपयो में विकने वाली करवा चौथव्रत कथा की पुस्तक में बताया गया है कि एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी. सभी सातों भाई अपनीबहन से इतनाप्यार करते थे कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद मेंस्वयं खाते थे एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी.शाम को भाई जब अपनाकाम धंधा बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी-सभी भाईखाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन नेबताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा कोदेखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है.
सबसेछोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एकदीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है- दूर से देखने पर वह चतुर्थी का चांद जैसे प्रतीतहोता है .

बहनउसे चांद समझकर अर्घ्‍य देकरखाना खाने बैठ जाती है.वहपहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है. दूसरा टुकड़ा डालतीहै तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने कीकोशिश करती है तो पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है.उसकीभाभी उसे बताती है कि करवा चौथ काव्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं.

करवानिश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपनेसतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी.वह पूरे एक साल तक अपने पति केशव के पास बैठी रहती है. एकसाल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है. उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रतरखती हैं. जब भाभियांउससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी सेअपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसाआग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चलीजाती है.इसप्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है.यह भाभी उसे बताती है कि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा थाअतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित करसकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति कोजिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना.ऐसा कहकर वह चली जाती है.सबसे अंत में छोटी भाभी आती है. करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है.इसे देख कर वा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है.यहदेख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है.करवा का पति तुरंत उठ बैठता है.

करवा चौथ की इस काल्पनिक कहानी को पढकर अंधभक्त समाज को कैसे भरोसा हो जाता है कि अंगुली चीरने से रक्त की जगह अमृत निकलता है या मरा हुआ आदमी एक साल बाद फिर से कैंसे जीवित हो सकता है ?अपने आपको आधुनिक मानने वाली महिलायें कैंसे इस प्रकार की दकियानूसी कथा कहानियां पर विश्वास कर लेती हैं यह समझ से परे है .

बैंक में काम करने वाली सोनाली शर्मा कहती हैं कि मुझे इस तरह के व्रत उपवास पसंद नहीं है ,लेकिन आफिस की अन्य सहकर्मी और कालोनी में रहने वाली महिलायें इस व्रत को रखती हैं तो मजबूरन मुझे भी व्रत  रखना पड़ता है .क्योंकि यैसा न करने पर लोग समझते हैं कि उन्हे अपने पति की फिक्र ही नहीं है . कुछ महिलायें इस प्रकार के व्रत को पति पत्नी के बीच प्यार के रिश्ते की बकालत करते हुये कहती हैं कि हमारे साथ पति भी यह व्रत रखते हैं ,उनका कहना है कि इस व्रत के बहाने पति से अच्छी साड़ी या ज्वेलरी का गिफट भी मिल जाता है . परन्तु गांव देहात की अधिकतर महीलायों ने इस व्रत को मजबूरी बताया हैं.गांव में रहने वाली सरकारी स्कूल की टीचर अनुराधा बताती हैं कि वो इस प्रकार के कोई व्रत नहीं रखती थी . दो साल पहले उनके पति का मोटर वाईक से स्लिप होने से एक पैर में फे्रक्चर हो गया था . उनकी सास ने उससे कहा कि पति की सलामती के लिये करवा चौथव्रत रखा कर तो मजबूरन उसे रखना पड़ा . उनका मानना हैं कि यहपारंपरिक और रूढ़िवादीव्रत हैं जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ संयोग से कुछ हो गया तो उसे हर बात का शिकार बनाया जायेगा.

प्रश्न उठता है कि क्या पत्नी के भूखे प्यासे रहने से पति दीर्घायु या स्वस्थ्य हो सकता है ?यदि सच देखा जाये तो समाज में अनगिनत महिलायें यैसी हैं जो इन व्रत उपवासों को रखने के वावजूद भी अपने पति को खोकर विधवा हो चुकी हैं . सुहागनों के लिये बनाये गये जितने पर्व त्यौहार में महिलायें व्रत उपवास रखती हैं ,इसके बावजूद भी विधवा महिलाओं की संख्या हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा है .दिन भर बिना दाना ,पानी के रहना भी एक प्रकार का शारीरिक अत्याचार ही है . धर्म का मौज करने वाले दुकानदारों ने इस प्रकार के व्रतों की काल्पनिक कथायें गढकर इस देश की महिलाओं को भावनात्मक रूप से पाप पुण्य के जाल में फंसाकर यैसे पर्व त्यौहारों को बढ़ावा देने की कोशिश की है. वास्तव में इस पकार के व्रत त्यौहार आज के समय में निरर्थक ही है.

व्यवहारिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो पति की सलामती की चिंता उन्ही महिलाओं को ज्यादा रहती है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और पति के संरक्षण में रहती हैं . उन्हे हर वक्त यही डर रहता है कि पति के न रहने से वे अपना और बच्चों का पालन पोषण कैसे करेंगी . मु्फ्त की दक्षिणा वटोरने वाले पंडे इन महिलाओं को यही भय दिखाकर व्रत या उपवास के लिये उकसाते हैं . हमारी पौराणिक कथाये भी यही कहती हैं कि सती ,सीता ,उर्मिला,द्रोपदी और अहिल्या जैसी नारियां पति के संरक्षण में रहकर उनके हर एक आदेश को गुलाम बनकर स्वीकार करती रहीं . जबकि शूर्पणखा और हिडम्बा जैसी औरतें किसी के संरक्षण की बजाय अपने बलबूते पर जंगलों में अकेली रहती थी . आज भी देश विदेश में कामयाबी का परचम फहरा रही हजारों महिलायें वहीं हैं ,जिन्होने इन व्रत ,उपवासों के चोचलों से बाहर निकलकर अपनी योग्यता ,लगन और मेहनत से सफलता प्राप्त की है .

इन नये नये व्रत , पर्व और त्यौहारों को बढ़ावा देने में हमारे टीवी चैनलों के धारावाहकों की भी खास भूमिका है .महिलाओं के इन व्रत उपवासों पर आधारित सीरियलों ने निम्न मध्यम वर्ग की महिलाओं को अपने जाल में फांस लिया है.चिंता का विषय ये है कि उच्च वर्ग की महिलाओं का यह आधुनिक वर्ग करवा चौथ के बाजारीकरण से प्रभावित हो कर ज्यादा ढकोसले बाज हो गया है  .करवा चैथ के पूर्व की पार्टियां ,शापिंग ,और सजने संवरने के नाम पर व्यूटी पार्लरों में लंबी रकम खर्च कर दिन भर निर्जला उपवास कर अपने शरीर को कष्ट देकर सेहत के साथ खिलवाड़ ही है .

पुरूषवादी सोच आज भी महिलाओं के प्रति बदली नहीं है. निम्न मध्यम वर्ग के साथ पढ़े लिखे उच्च वर्ग मे भी महिलाओं के शोषण और उत्पीड़न की कहानियां आये दिन अखवारों की सुर्खियां बनती रहती हैं . समाज में महिलाओं को मानसिंक और शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है . वास्तव में इस तरह के उपवास से न तो कोई देवी देवता प्रसन्न होते हैं और न ही कोई दीर्घायु होता हैं .

महिलाओं को व्रत ,उपवास या कथा पुराण में पंडे पुजारियों को मौज का अवसर देने की बजाय अपने पति या परिवार के कामकाज में सहभागी बनकर अपने आपको आर्थिक रूप से सुदृढ बनाने पर जोर देना चाहिये . आर्थिक मजबूती से ही पति और पूरा परिवार सलामत रह सकता है .

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Travel Special: भारत के इस महल में हैं 1000 दरवाजें

किसी महल की यात्रा हमें उस समय में ले जाती है जब शाही खानदानों का बोलबाला था. भारत में तो कई ऐसे महल आज भी मौजूद हैं पर कोई समय के हाथों बर्बाद हो रहा है तो किसी पर सरकार निगेहबान है. इन्हीं सबके बीच शाही ठाठ-बाट के साथ आज भी अपनी ऐतिहासिक चमक को लिए हुए पश्चिम बंगाल में स्थापित हजारद्वारी महल खड़ा है.

जैसा कि आपको नाम से ही पता चल रहा होगा कि हजारद्वारी ऐसा महल है जिसमें हजार दरवाजे हैं. इस महल का निर्माण 19वीं शताब्दी में नवाब निजाम हुमायूं जहां के शासनकाल में हुआ जिन्होंने बंगाल. इनका राज्य बिहार और ओड़िशा तीनों तक फैला हुआ था. पुराने जमाने में इसे बड़ा कोठी के नाम से जाना जाता था. यह महल पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में स्थित है जो कभी बंगाल राजधानी हुआ करती थी. इस कृति को प्रसिद्ध वास्‍तुकार मैकलिओड डंकन द्वारा ग्रीक (डोरिक) शैली का अनुसरण करते हुए बनवाया गया था.

महल को कौन सी चीजें खास बनाती हैं?

– भागीरथी नदी के किनारे बसे इस तीन मंजिले महल में 114 कमरे और 100 वास्तविक दरवाजे हैं और बाकि 900 दरवाजे आभासी(हूबहू मगर पत्थर के बने हुए हैं). इन दरवाजों की वजह से इसे हजारद्वारी महल कहा जाता है.

– महल की रक्षा के लिए ये दरवाजे बनवाये गए थे.

– दरवाजों की वजह से हमलावर भ्रमित हो जाते थे और पकड़े जाते थे.

– लगभग 41 एकड़ की जमीन पर फैले हुए इस महल में नवाब अपना दरबार लगाते थे.

– अंग्रेजों के शासनकाल में यहां प्रशासनिक कार्य भी किये जाते थे.

– इस महल का इस्तेमाल कभी भी आवासीय स्थल के रूप में नहीं किया गया.

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महल के दीवार को निजामत किला या किला निजामत कहा जाता है. महल के अलावा परिसर में निजामत इमामबाड़ा, वासिफ मंजिल, घड़ी घर, मदीना मस्जिद और बच्चावाली तोप भी स्थापित हैं. 12-14 शताब्दी में बनी इस 16 फीट की तोप में लगभग 18किलो बारूद इस्तेमाल किया जा सकता था. कहते हैं कि इसे सिर्फ एक ही बार इस्तेमाल किया गया है और उस समय धमाका इतना बड़ा और तीव्र हुआ था कि कई गर्भवती महिलाओं ने समय से पूर्व ही बच्चों को जन्म दे दिए था, इसलिए इसे बच्चावाली तोप कहते हैं.

भागीरथी नदी के तट से लगभग 40 फीट के दूरी पर बने इस महल की नींव बहुत गहरी रखी गई थी, इसलिए आज भी यह रचना इतनी मजबूती से खड़ी है. महल की ओर जाती भव्य सीढ़ियां और भारतीय-यूरोपियन शैली इस संरचना के अन्य मुख्य आकर्षण हैं.

महल का संग्रहालय

यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सबसे बड़ा स्थल संग्रहालय है. सन् 1985 में इस महल के बेहतर परिक्षण के लिए इसे भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण को सौंप दिया गया. यह संग्रहालय भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण का सबसे बड़ा स्‍थल संग्रहालय माना जाता है और इसमें बीस दीर्घाएं प्रदर्शित हैं जिनमें 4742 पुरावस्‍तुएं मौजूद हैं जिनमें से जनता के लिए 1034 पुरावस्‍तुएं प्रदर्शित की गई हैं.

पुरावस्‍तुओ के संग्रह में विभिन्‍न प्रकार के हथियार, डच, फ्रांसिसी और इतालवी कलाकारों द्वारा बनाए गए तैल चित्र, संगमरमर की मूर्तियां, धातु की वस्‍तुएं, चीनी मिट्टी और गचकारी की मूर्तियां, फरमान, विरल पुस्‍तकें, पुराने मानचित्र, पाण्‍डुलिपियां, भू-राजस्‍व के रिकॉर्ड, पालकी आदि शामिल हैं जिनमें से अधिकतर 18वीं और 19वीं शताब्‍दियों से सम्‍बंधित हैं.

इस संग्राहलय में पर्यटक 2700 से अधिक हथियारों को देख सकते हैं. इन हथियारों में नवाब अलीवर्दी खान, सिराजुद्दौला और उनके दादाजी की तलवारें प्रमुख हैं. यहां घूमने के बाद पर्यटक विन्टेज कारों का अद्भुत संग्रह भी देख सकते हैं. इन कारों का प्रयोग शाही घराने के सदस्य किया करते थे.

संग्राहलय और पैलेस देखने के बाद पर्यटक यहां पर बने पुस्तकालय में भी घूमने जा सकते हैं. पुस्तकालय में घूमने के लिए पर्यटकों को पहले विशेष अनुमति लेनी पड़ती है. अकबरनामा की मूल प्रति भी यहीं रखी हुई है.

महल संग्रहालय के पुरावशेष में शाही परिवार के कई सामान मौजूद हैं, जिनमें दरबार हॉल में लगा हुआ खूबसूरत झूमर भी शामिल है. यह झूमर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा झूमर है, पहला बकिंघम महल में है. यह झूमर नवाब को रानी विक्टोरिया द्वारा तोहफे के रूप में भेंट किया गया था.

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संग्रहालय की गैलरियों में शस्त्रागार विंग, राजसी प्रदर्शनी, लैंडस्केप गैलरी, ब्रिटिश पोर्ट्रेट गैलरी, नवाब नाज़िम गैलरी, दरबार हॉल, समिति कक्ष, बिलबोर्ड कक्ष, पश्चिमी ड्राइंग कक्ष और धार्मिक वस्तुओं वाली गैलरी शामिल हैं. इस महल को देखने के लिए कुछ प्रवेश शुल्क भी निर्धारित है. शुक्रवार के दिन यह महल पर्यटकों के लिए बंद रहता है.

यहां आने का सही समय

महल के भ्रमण के लिए सबसे अच्छा समय सितम्बर से मार्च तक का महीना है.

8 टिप्स: दांत दर्द से पाएं तुरंत आराम

जब भी आपके दांतों में दर्द होता है आप दवाईयों का सेवन कर लेते हैं, जो कई बार आपके लिए खतरनाक भी साबित होता है. अगर आप दवाई न लेकर कुछ घरेलू नुस्खे अपनाऐं, तो भी दांतों के दर्द से जल्दी छुटकारा पाया जा सकता है. आज हम आपको उन घरेलू उपायों के बारे में जानकारी देगें जिससे आपके दांतों का दर्द कुछ ही देर में ठीक हो जाएगा और आप दवाई खाने से भी बचे रहेंगे. इन घरेलू चीजों के इस्तेमाल से आपके दांतों का दर्द आसानी से दूर हो जाएगा :

1. प्याज का करें इस्तेमाल

जब भी आपके दांतों में दर्द हो तो आपको प्याज के छोटे-छोटे टुकडें करके चबा लेने चाहिए इससे आपके दांत का दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा.

2. लहसुन है बेस्ट औप्शन

दांत दर्द होने पर लहसुन में अच्छे से नमक लगा कर चबाएं. ऐसा करने से आपके दांत का दर्द ठीक तो हो ही जाएगा और अगर आप रोजाना इसका इस्तेमाल करेंगी, तो आप के दांत भी मजबूत होंगे.

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3. लौंग का करें इस्तेमाल

जब भी दांत में दर्द शुरु हो जाए तो उस जगह पर लौंग रखने से दर्द में बहुत फायदा मिलता है, अगर दर्द अधिक हो रहा हो तो आपको लौंग का तेल लगाना चाहिए.

4. दर्द से राहत दिलाए नींबू

नींबू विटामिन सी का सबसे अच्छा स्त्रोत माना जाता है, इसलिए जब भी दांतों में दर्द हो, तो दर्द वाली जगह पर नींबू का कतरा लगाने से कुछ ही देर में दर्द ठीक हो जाता है.

5. काली मिर्च से मिलेगी दांत दर्द से राहत

काली मिर्च को पीसकर पाउडर बनाकर, उस पाउडर में थोडा सा नमक मिलाकर दर्द वाली जगह पर मंजन करने से, थोड़ी ही देर में राहत महसूस होने लगती है.

6. गर्म पानी से करें कुल्ला

दांतों में दर्द होने पर गर्म पानी में थोड़ा सा नमक मिलाकर कुल्ला करने से दांत के दर्द से राहत मिल जाती है.

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7. बर्फ की करें सिकाई 
दांतों में दर्द होने पर 15-20 मिनट तक बर्फ की सिकाई करने से आपको राहत का एहसास होता है. इस प्रक्रिया को दिन में दो से तीन बार दोहराने पर आपको दीर्घकालीन राहत भी मिलती है.

8. सरसों का तेल है बेस्ट

दांतों में दर्द होने पर थोड़ा सा सरसों का तेल लेकर, उसमे चुटकीभर नमक मिलाकर उसे दांतों में मंजन की तरह करें. ऐसा करने से आपको बहुत राहत मिलेगी.

बेटे नहीं बेटियां हैं बुढ़ापे की लाठी

कुछ अरसा पहले दिल्ली से सटे गे्रटर नोएडा की यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनी कि मां के शव को ले कर 4 बेटियां भाई के दरवाजे पर 3 घंटे तक अंतिम संस्कार के लिए रोती रहीं, लेकिन भाई ने दरवाजा नहीं खोला. सैक्टरवासियों और पुलिस के समझाने पर भी उस का दिल नहीं पसीजा, तो अंतत: बेटियों ने ही मां के शव को मुखाग्नि दी. भाई के अपनी मां को मुखाग्नि न देने का कारण चाहे जो भी हो, मगर आज भी घर में बेटा पैदा होने पर मातापिता बेहद खुश होते हैं, क्योंकि आज भी समाज में ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि बेटा घर का कुलदीपक होता है और वही वंश को आगे बढ़ाता है. जबकि आज के बदलते परिवेश में बेटों की संवेदनाएं अपने मातापिता के प्रति दिनबदिन कम होती जा रही हैं. बेटियां जिन्हें पराया धन कहा जाता है, जिन के पैदा होने पर न ढोलनगाड़े बजते हैं, न जश्न मनाया जाता है और न ही लड्डू बांटे जाते हैं. डोली में बैठ कर वे ससुराल जरूर जाती हैं पर वही आज के परिवेश में मांबाप के बुढ़ापे की लाठी बन रही हैं.

बेटियों ने दिया सहारा

कुछ महीने पहले बरेली की रहने वाली कृष्णा जिन की उम्र 80 वर्ष है, रात सोते समय पलंग से गिर गईं. डाक्टरों ने कहा कि कौलर बोन टूट गई है अत: इन्हें बैड रैस्ट पर रहना पड़ेगा. वकील बेटे की पत्नी को उन की देखरेख यानी कपड़े बदलवाना, खाना खिलाना आदि करना ठीक नहीं लगा, तो रोज पतिपत्नी के बीच झगड़ा होने लगा. अंतत: लखनऊ से बेटीदामाद ऐंबुलैंस ले कर आए और मां को अपने घर ले गए. अब बेटी के घर उन की अच्छी तीमारदारी हो रही है. पर बेटे ने वहां जाना तो दूर एक बार फोन कर के भी मां का हालचाल नहीं पूछा. जबकि मां की नजरें हर समय बेटे को खोजती रहती हैं.

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ऐसे न जाने कितने मांबाप होंगे जिन्हें उन के बेटे अपने पास नहीं रखना चाहते. अब रामकुमारजी को ही लें. 10 साल पहले रिटायर हो गए थे. सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर थे. पत्नी रही नहीं. बेटे की शादी की. फिर घर के एक कोने में पड़े रहते थे. बेटे ने पूरे घर में अपना कब्जा कर रखा था. बहू उन से बात नहीं करती थी. हाल ही में उन्हें कैंसर होने का पता चला तो बेटी आ कर ले गई. वह पिता का इलाज करवा रही है. बेटे को इस से कोई मतलब नहीं है. घर रामकुमारजी का पर अधिकार बेटे का. रामकुमारजी बताते हैं कि बेटी ने जब लव मैरिज की थी तो वे उस से काफी समय तक नाराज रहे थे. फिर भी आज वही बेटी मेरे बुढ़ापे का सहारा बन रही है. कई महिलाएं तो वृद्धाश्रम में इसलिए रह रही हैं कि उन के बेटे उन की देखभाल नहीं करते और बेटी कोई है नहीं. कर्नाटक की रहने वाली 73 वर्षीय शकुंतला बताती हैं कि उन के पति का बिजनैस था. पति के निधन के बाद इकलौते बेटे ने बिजनैस संभाला. फिर वह गुड़गांव आ कर रहने लगा और घर में पोते के लिए जगह कम होने का हवाला दे कर उसे वृद्धाश्रम में छोड़ गया. इसी तरह केरल की रहने वाली 65 वर्षीय विजयलक्ष्मी का बेटा उन्हें अपने परिवार के साथ मस्कट ले गया. वहां वे घर का काम करती थीं व बेटे के छोटे बच्चे को संभालती थीं. पर जब वे बीमार हुईं और घर का काम करने में असमर्थ हो गईं तो बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. तब केरल के ही रहने वाले एक व्यक्ति को उन पर दया आई और उस ने उन की भारत वापसी का इंतजाम कराया. अब वे अपनी बेटी के पास हैं. वही उन की देखभाल कर रही है.

इसी तरह एटा के रहने वाले शर्माजी की पत्नी नहीं रहीं तो वे अपने इंजीनियर बेटे के पास नोएडा आ गए. उन के आते ही बहू ने भी जौब शुरू कर दी और अपने बच्चे को क्रैच में न भेज कर उसे सुबह स्कूल की बस में चढ़ाना, दोपहर को घर लाना और खाना खिलाना आदि सभी काम शर्माजी पर डाल दिए. एक दिन वे गिर पडे़ और पैर की हड्डी टूट गई. बस तभी से बेटेबहू ने उन से मुंह मोड़ लिया. अपनी बेटी से मोबाइल पर बात करते थे तो मोबाइल भी उन्होंने ले लिया. वे उन से बात नहीं करते थे. खाना भी मुश्किल से एक समय और वह भी बेसमय मिलता. अंतत: बेटी आई और अपने पिता को देहरादून अपने साथ ले गई. अब वे ठीक हैं. बेटे ने तो उन का हालचाल भी नहीं पूछा. ऐसे किस्से आज समाज के हर वर्ग में और हर दूसरेतीसरे घर में घट रहे हैं.

बेटों के विचार

सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है जो बेटे अपने जन्म देने वाले मांबाप की देखभाल करना नहीं चाहते? क्या उन की संवेदनाएं मर गई हैं अथवा अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं? आइए, जानें कुछ बेटों ने इस संबंध में क्या बताया: बेटे चाहते हैं कि बुढ़ापे में अपने मातापिता की देखभाल करें, पर नौकरी के कारण दूसरे शहर में जाना, बारबार ट्रांसफर होना, छोटा घर, बच्चों की पढ़ाई का बढ़ता खर्चा और सब से मुख्य बात पत्नी का भी नौकरीपेशा होना अथवा सहयोग न देना, जिस की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते. फिर बड़े शहरों में एक तो विश्वासपात्र नौकर नहीं मिलते और अगर कोई मिल भी जाता है तो मोटा वेतन मांगता है. तो भी डर बना रहता है कि कहीं घर में कोई दुर्घटना न घट जाए. उस पर मातापिता का जिद्दी होना, हर समय की टोकाटोकी, खानपान में नुक्ताचीनी जैसी कई समस्याएं हैं. घर आने पर हर व्यक्ति सुकून चाहता है, पर ऐसे हालात में यह संभव नहीं हो पाता. कई बार मातापिता स्वयं भी साथ नहीं रहना चाहते. फिर आज के माहौल में छोटा परिवार की धारणा को भी बढ़ावा मिल रहा है.

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ऐसा क्यों हो रहा

सवाल यह उठता है कि आज के समय में ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि मातापिता भी शिक्षित हैं और बच्चे भी?

मनोचिकित्सक दिव्या बताती हैं कि बेटा और बेटी के साथ समान व्यवहार करना व बेटी को भी प्रौपर्टी में समान हिस्सा देने से लड़कों के मन में यह विचार आने लगा है कि मांबाप के देखभाल की जितनी जिम्मेदारी उन की है उतनी ही बेटी की भी यानी मांबाप की देखभाल की जिम्मेदारी अकेले उन की नहीं है. वैसे भी भावनात्मक रूप से लड़कियां अपने मातापिता से ज्यादा जुड़ी रहती हैं. दूसरे अब वे भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं, अत: ससुराल वाले भी उन से कुछ नहीं कह पाते. अब पतियों को भी यह समझ में आने लगा है कि पत्नी के मातापिता भी उतने ही जरूरी हैं जितने अपने. इसी कारण वे पत्नी को पूरापूरा सहयोग देते हैं.

मातापिता स्वयं भी जिम्मेदार होते हैं. बहू में हर समय कमी देखते हैं, उस के साथ जुड़ाव नहीं कर पाते. कोई बात करनी हो तो भी बेटे से अलग करते हैं. बहू के सामने नहीं. दूसरे हर बात में अपनी बेटी को बहू के मुकाबले ज्यादा आंकते हैं. गाहेबगाहे बेटी को तो तोहफे देते रहते हैं पर बहू को नहीं. यह सच है कि उम्र के साथ कुछ बीमारियों का लगना आम बात है तो भी वे मांबाप हैं और उन्हें भावनात्मक सहारा अपने बच्चों से मिलना ही चाहिए ताकि वे उम्र के आखिरी पड़ाव पर खुद को उपेक्षित न महसूस करें.

सहेली का दर्द: भाग 1- कामिनी से मिलने साक्षी क्यों अचानक घर लौट गई?

ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाली थी. साक्षी सामान संभाल रही थी. उस ने अपने बालों में कंघी की और अपने पति सौरभ से बोली, ‘‘आप भी अपने बाल सही कर लें. यह अपने कुरते पर क्या लगा लिया आप ने? जरा भी खयाल नहीं रखते खुद का.’’

‘‘अरे यार, रात को डिनर किया था न. लगता है कुछ गिर गया.’’

तीखे नैननक्श, सांवले रंग की साक्षी मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखती थी. पति सौरभ सरकारी विभाग में बाबू था. शादी को 15 साल होने जा रहे थे. दोनों का 1 बेटा करीब 13 साल का था. लेकिन इस वक्त उन के साथ नहीं था.

साक्षी जब पढ़ती थी तब कसबे में एक ही सरकारी गर्ल्स कालेज था. उस में ही मध्यवर्गीय और उच्चवर्ग के घरों की लड़कियां स्कूल से आगे की पढ़ाई पूरी करती थीं. कसबे के करोड़पति व्यापारी की बेटी कामिनी भी साक्षी की कक्षा में थी. वह चाहती तो यह थी कि शहर में जा कर किसी बड़े नामी कालेज में दाखिला ले, लेकिन उसे इस बात की इजाजत नहीं मिली.

साक्षी और कामिनी ने सरकारी कालेज में ही बीए किया. दोनों में इतनी गहरी मित्रता थी कि दोनों की सुबहशाम साथ ही गुजरती थीं. साथसाथ पलीबढ़ी हुई दोनों सहेलियां मित्रता की एक मिसाल थीं. बीए के बाद दोनों की शादी के रिश्ते आने लगे. कामिनी की शादी हो गई. शादी के बाद वह दिल्ली में अपनी ससुराल चली गई.

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इधर साक्षी के परिजनों के पास शादी में खर्च को ज्यादा कुछ नहीं था. उस की शादी में कुछ दिक्कतें आईं. 1 साल बाद साक्षी की शादी भी कामिनी की ससुराल के कसबे में ही हो गई. दोनों सहेलियां शादी के बाद बिछुड़ गईं. साक्षी को इतना तो पता था कि कामिनी दिल्ली में है, लेकिन पताठिकाना क्या है, यह उसे नहीं पता था. वह अपने सरकारी बाबू पति सौरभ के साथ जीवन व्यतीत कर रही थी. छोटा सा कसबा ऊपर से पति एक मामूली बाबू. सुबह से शाम, शाम से रात हो जाती. सब कुछ नीरस सा लगता साक्षी को. वह सोचती यह भी कोई जिंदगी है, कुछ भी नया नहीं. उसे रहरह कर कामिनी की याद आती. सोचती कामिनी दिल्ली में है, कितने मजे में रहती होगी.

दोनों की शादी को कई बरस गुजर गए. कामिनी का अतापता नहीं था, क्योंकि उस के पिता ने अपना कारोबार कसबे से समेट कर दिल्ली में शुरू कर लिया था. कसबे से आनाजाना छूटा तो कामिनी भी दिल्ली की हो कर रह गई.

शादी के 14 साल बाद शहर से एक दिन कामिनी के पिता किसी काम से कसबे में आए, तो साक्षी से भी मिले. वे साक्षी को भी अपनी बेटी की ही तरह मानते थे. साक्षी ने उन से कामिनी का मोबाइल नंबर लिया. साक्षी ने कामिनी से बातें कीं. जब भी टाइम मिलता दोनों मोबाइल पर बातें करतीं.

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कामिनी ने साक्षी को दिल्ली आने का निमंत्रण दिया. साक्षी कई दिनों तक टालती रही. आखिर एक दिन उस ने अपने पति सौरभ को दिल्ली ले चलने को राजी कर लिया.

कामिनी के निमंत्रण पर ही साक्षी अपने पति के साथ दिल्ली जा रही थी. कामिनी ने कहा था कि वह उसे लेने रेलवे स्टेशन पर पहुंच जाएगी. साक्षी पहली बार दिल्ली जा रही थी. वह बहुत खुश थी. उस की उम्मीदों को पंख लग रहे थे. दिल्ली जिस का अभी तक नाम सुना था, उसे देखेगी. सब से बड़ी बात कामिनी से 15 साल बाद मिलेगी. बहुत सारी बातें करेगी. उस ने सुना था खूब धनदौलत, ठाटबाट हैं कामिनी के ससुराल में. उस का पति वैभव भी काफी हैंडसम और तहजीब वाला इनसान है.

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पहुंच चुकी थी. साक्षी जैसे ही गेट पर पहुंची सामने कामिनी खड़ी नजर आई. दोनों की नजरें जैसे ही मिलीं होंठों पर मुसकान तैर गई. साक्षी को तो यों लगा जैसे जीवन में बाहर आ गई हो. कामिनी को देख कालियों की तरह उस का रोमरोम खिल उठा. कामिनी तो वैसे के वैसी थी, बल्कि उस का रंगरूप और निखर गया था. जींस और टौप पहने थी. उम्र पर तो जैसे ब्रेक ही लगा लिया था उस ने. वह आज भी कालेज बाला सी लग रही थी.

दिल्ली की सड़कों पर कामिनी की कार दौड़ रही थी, जिसे वह खुद ड्राइव  कर रही थी. बराबर में साक्षी बैठी थी और पीछे वाली सीट पर साक्षी का पति सौरभ.

‘‘जीजू क्यों नहीं आए तेरे साथ? अकेली क्यों चली आई?’’ साक्षी ने कामिनी के कंधे पर हाथ मारते हुए पूछा.

‘‘अरे यार, यह दिल्ली है. यहां सब अपनेअपने हिस्से की लाइफ जीते हैं,’’ कामिनी ने आंखें तरेरते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या जीजू से बनती नहीं तेरी?’’ साक्षी ने सवाल किया.

‘‘अरे, नहीं यार. ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, वैभव रात को देर से आते हैं. आने के बाद भी कंप्यूटर पर काम निबटाते हैं, तो सुबह जल्दी नहीं उठ पाते,’’ कामिनी ने कहा.

‘‘अच्छा… यह तो बड़ी दिक्कत है भई.’’

‘‘दिक्कत क्या है साक्षी? अब तो रूटीन लाइफ हो गई है,’’ कामिनी ने कहा.

दोनों की बातचीत में रेलवे स्टेशन और घर के बीच का रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला. कामिनी का घर, घर नहीं एक महल था. कई लग्जरी गाडि़यां खड़ी थीं. घर के बाहर गार्ड, माली अपने काम में लगे थे. जैसे ही गाड़ी रुकी, गार्ड ने बड़ा सा दरवाजा खोला. कामिनी कार को सीधा कोठी के अंदर ले गई. कार जैसे ही रुकी, 2 नौकर दौड़ कर पास आए. यह सब देख साक्षी को कामिनी से एक पल के लिए ईर्ष्या हुई कि क्या ठाट हैं यार इस के.

‘‘गाड़ी का सामान निकालो और गैस्ट हाउस में ले जाओ,’’ कामिनी ने नौकरों को आदेश दिया.

‘‘आओ साक्षी, जीजू प्लीज, आप भी आइए,’’ कामिनी ने कहा.

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साक्षी और सौरभ देखते रह गए. उन्होंने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. सब कुछ व्यवस्थित नजर आया. सौरभ ने साक्षी को कुहनी मारी और इशारों में कहा कि देखा क्या ठाट हैं, उन्हें लगा वे किसी फिल्मी सैट पर आ गए हैं. अब तक इस तरह का बंगला, गाडि़यां  फिल्मों में ही देखी थीं इन्होंने.

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आर्थिक प्रबंधन है बेहद जरूरी

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान रेवती को एक दिन अचानक कुछ कोरोना के लक्षण प्रतीत हुए तो हॉस्पिटल में एडमिड रहना पड़ा,  1सप्ताह बाद जब घर आयीं तब तक उनकी लगभग समस्त जमापूंजी इलाज पर खर्च हो चुकी थी क्योंकि उनके परिवार का कोई मेडिकल बीमा नहीं था.

कोरोना के कारण राजाराम जी की अचानक मृत्यु हो गयी. उनके जाने के बाद जब ऑफिसियल और इंश्योरेंस क्लेम करने के लिए कागजों की तलाश की गई तो पता चला कि उन्होंने किसी को अपना नॉमिनी ही नहीं बनाया था. इससे क्लेम मिलने में देरी तो हुई ही साथ ही नॉमिनी रजिस्टर करवाने के लिए अनावश्यक रूप से अनेकों ऑफिसों के चक्कर भी लगाने पड़े सो अलग.

अस्मिता के घर में वित्तीय मामले उसके पति ही सम्भालते थे. उसे न तो इन्वेस्टमेंट के बारे में कोई जानकारी थी और न ही सेविंग्स के बारे में एक दिन अचानक उसके पति को हार्टअटैक आया और वे चल बसे. उनके जाने के बाद सब कुछ समझने में उसे काफी वक्त लग गया दूसरों की अनावश्यक मदद तो लेनी ही पड़ी साथ ही कई प्लान्स की तो किश्तें भी लेट हो गई जिसके कारण पेनॉल्टी  भरनी पड़ी.

हमारे सामाजिक ढांचे में आमतौर पर भारतीय परिवार पुरुष प्रधान होते हैं घर के आर्थिक मामलों का हिसाब किताब वे ही रखते हैं. इसके अतिरिक्त कई परिवारों में जब पति अपनी पत्नियों को इस बाबत जानकारी देना भी चाहते हैं तो वे, “हमें वैसे ही घर के क्या कुछ कम काम हैं जो अब ये भी सम्भालें कहकर झिटक देतीं हैं.” परन्तु कोरोना जैसे छोटे से वायरस ने मानव जीवन की अनिश्चितता को पूरी दुनिया के सामने ला खड़ा किया है. कब परिवार पर कोरोना कहर बनकर टूट पड़ेगा ये कोई भी नहीं जानता इसलिए वर्तमान परिदृश्य में घर का वित्तीय प्रबंधन करना बेहद आवश्यक है जिसमें बचत, मेडिकल बीमा और इन्वेस्टमेंट जैसे मुद्दे अवश्य शामिल हों.

-परिवार को जानकारी देना है आवश्यक

अपने बचत खाते, डिपॉजिट, लॉकर, क्रेडिट कार्ड प्रोविडेंट फण्ड , लोन, इन्वेस्टमेंट आदि के बारे में अपने जीवन साथी , बच्चों, माता पिता अथवा किसी भरोसेमन्द को अवश्य बताएं. इस सम्बंध में सी ए रविराज जी कहते हैं, “एक डायरी में सभी इन्वेस्टमेंट, बैंक खाते, उनके पिन, और भविष्य में जमा की जाने वाली किश्तों के बारे में विस्तृत विवरण लिखा जाना चाहिए और इसके बारे में परिवार के प्रत्येक सदस्य को जानकारी होना चाहिए ताकि वक़्त पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके.”

-नामांकन करें

पासबुक, एफ डी या आपका अन्य कोई भी इन्वेस्टमेंट हो सभी जगह पर अपनी पत्नी या बच्चों को नॉमिनी अवश्य बनाएं ताकि आपके जाने के बाद क्लेम लेने में किसी भी प्रकार की परेशानी न आये. इसके साथ ही नॉमिनी को अपडेट कराना भी बेहद आवश्यक है क्योंकि विवाह से पूर्व आमतौर पर युवा अपने माता पिता को नॉमिनी बनाते  हैं, इसके अतिरिक्त कई बार जीवन के उत्तरार्द्ध में जीवनसाथी की मृत्यु हो जाती है ऐसे में अपडेट के अभाव में क्लेम लेने में परेशानी आती है

– अपनी वसीयत बनाएं

आपके जाने के बाद आपकी परिसंपत्तियों को लेकर परिवार के सदस्यों में कोई झगड़ा या मनमुटाव न हो इसके लिए वसीयत बनवाना अत्यंत आवश्यक है. कोरोना के इस भयावह काल में अनेकों बच्चों के माता पिता दोनों की मृत्यु हो गयी ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वसीयत बनाना अत्यंत आवश्यक है जिससे बच्चों की समुचित देखभाल के लिए आप परिवार के विश्वसनीय व्यक्ति को नियुक्त कर सकें

-मेडिकल बीमा करवाएं

आजकल अनेकों बीमा कम्पनियां मेडीकल बीमा करतीं हैं आप अपनी सुविधानुसार परिवार का बीमा करवाएं इससे आपकी बीमारी पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है, चूंकि इसका प्रीमियम साल में एक बार ही देना होता है इसलिए आसानी से इसे भरा जा सकता है.

-मेडिकल बजट बनाए

आजकल बीमार पड़ने पर पैथोलॉजिकल टेस्ट्स, डॉक्टर की फीस आदि पर बहुत खर्च आता है, आवश्यकता पड़ने पर इन खर्चों को सहजता से मैनेज करने के लिए घर का मेडिकल बजट बनाएं इसमें आप अपनी आय का कुछ भाग प्रतिमाह अवश्य जमा करें ताकि जरूरत पड़ने पर इस अतिरिक्त खर्च को आसानी से मैनेज किया जा सके.

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