जापान ओलंपिक में यूपी के विजेताओं को मिलेगी इनामी धनराशि

खेलों को बढ़ावा देने वाली प्रदेश सरकार इस साल टोकियो (जापान) में होने वाले ओलंपिक गेम्स में भाग लेने वाले प्रत्येक खिलाड़ी को 10 लाख रुपये देगी. एकल और टीम खेलों में पदक लेकर लौटने वाले खिलाड़ियों का भी उत्साह बढ़ाएगी. यूपी से 10 खिलाड़ी विभिन्न स्पर्धाओं में भाग लेने के लिये टोकियो जाएंगे. राज्य सरकार ओलंपिक खेलों में होने वाले एकल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को 6 करोड़ रुपये, रजत पाने वालों खिलाड़ी को 4 करोड़ रुपये और कांस्य पदक लाने वाले खिलाड़ियों को 2 करोड़ रुपये देगी.

सीएम योगी ने प्रदेश की कमान संभालने के बाद से लगातार खिलाड़ियों की सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की है. खिलाड़ियों की प्रतिभा को और निखारने और सुविधाओं को बढ़ाने का भी काम किया है. सरकार ने टोकियो में आयोजित होने वाले ओलंपिक में टीम खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर लाने वाले खिलाड़ी को 3 करोड़ रुपये, रजत लाने पर 2 करोड़ रुपये और कांस्य लाने पर 1 करोड़ रुपये देने का निर्णय लिया है.

‘खूब खेलो-खूब बढ़ो’ मिशन को लेकर यूपी में खिलाड़ियों को राज्य सरकार बहुत मदद दे रही है. खेल में निखार लाने के लिये खिलाड़ियों के बेहतर प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है. प्रशिक्षण देने वाले विशेषज्ञ कोच नियुक्त किये गये हैं. छात्रावासों में खिलाड़ियों की सहूलियत बढ़ाने के साथ-साथ नए स्टेडियमों का निर्माण भी तेजी से कराया है. गौरतलब है कि अपने कार्यकाल में योगी सरकार ने 19 जनपदों में 16 खेलों के प्रशिक्षण के लिये 44 छात्रावास बनवाए हैं. खेल किट के लिये धनराशि को 1000 से बढ़ाकर 2500 रुपये किया गया है.

आशा वर्कर जानेंगी बुजुर्गों की सेहत का हाल

बुजुर्गों की बेहतर सेहत के लिए प्रदेश सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. खासकर कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे और डायलिसिस करवा रहे बुजुर्गों की तीमारदारी में अब आशा वर्कर तैनात की जाएंगी. प्रदेश भर में आशा वर्कर इन बीमारियों से जंग लड़ रहे बुजुर्गों की सूची तैयार करेंगी और इनसे संवाद स्‍थापित कर रोजाना सेहत का हाल जानेंगी. साथ ही दवा और जांच कराने में भी इन बुजुर्गों की मदद करेंगी. मुख्‍यमंत्री ने एक उच्‍च स्‍तरीय बैठक में यह निर्देश जारी किए हैं.

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने प्रदेश के वरिष्‍ठ नागरिकों की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को और बेहतर बनाने के निर्देश दिए हैं. चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य विभाग को वरिष्‍ठ नागरिकों की सूची बनाने को कहा गया है. इससे जरूरत पड़ने पर हर संभव मदद पहुंचाने में आसानी होगी. इस काम में आशा वर्कर अहम रोल अदा करेंगी. अभी तक प्रदेश की 10 लाख 71 हजार से अधिक आशा वर्कर ग्रामीण व शहरी इलाकों में महिलाओं व बच्‍चों को स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी सेवाएं मुहैया कराने में मदद करती है. अब आशा वर्कर प्रदेश के वरिष्‍ठ नागरिकों की सेहत का ख्‍याल भी रखेंगी. आशा वर्कर अपने इलाके के वरिष्‍ठ नागरिकों की सूची तैयार करेंगी. खासकर कैंसर व डायलिसिस पीडि़त मरीजों पर इनका विशेष ध्‍यान होगा. इसके बाद आशा वर्कर रोजाना इनसे संवाद स्‍थापित करेंगी और सेहत का हालचाल पूछेंगी. वरिष्‍ठ नागरिकों को दवा व जांच कराने में सहयोग करेंगी.

एक कॉल पर मिलेगी एम्‍बुलेंस व दवा

चिकित्‍सा एवं स्‍वास्‍थ्‍य विभाग वरिष्‍ठ नागरिकों की बेहतर सेहत के लिए बनाई गई विशेष हेल्‍पलाइन नम्‍बर 14567 को और प्रभावी बनाने जा रहा है. ताकि सेहत से जुड़ी कोई समस्‍या होने पर बुजुर्गों तक फौरन मदद पहुंचाई जा सके. इसके अलावा हेल्‍पलाइन नम्‍बर की जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए बड़ा जन जागरूकता अभियान भी शुरू किया जाएगा, ताकि अधिक लोगों को इस सेवा का लाभ मिल सके. हेल्‍पलाइन के जरिए विशेष परिस्थितियों में बुजुर्गों को एक कॉल पर एम्बुलेंस और दवा भी पहुंचाने का काम विभाग करेगा. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग अगले 8-10 महीने में इसे लेकर अपनी कार्ययोजना तैयार करेगा.

अकेले रहने वाले बुजुर्गों के लिए योजना बनेगी वरदान

प्रदेश सरकार अकेले रहने वाले बुजुर्गों की बेहतर सेहत के लिए विशेष योजना तैयार कर रही है. इस योजना के तहत ऐसे बुजुर्गों की देखरेख के लिए एक व्‍यक्ति तैनात किया जाएगा. जो अकेले रह रहे बुजुर्ग को जरूरत पड़ने पर दवा पहुंचाने के साथ जांच के लिए अस्‍पताल ले जाएगा और उनको घर तक पहुंचाएगा. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग अगले 8-10 महीने में इसे लेकर अपनी कार्ययोजना तैयार करेगा.

डॉ. गूगल आम आदमी के लिए सुरक्षित हैं या खतरनाक

एक नहीं बल्कि यह कई शोध और सर्वेक्षणों से साबित हो चुका है कि आम से आम व्यक्ति अगर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है, वह सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों में सक्रिय है और अपने तमाम दूसरे कामों में इंटरनेट की सहायता लेता है तो निश्चित रूप से वह जब भी किसी स्वास्थ्य संबंधी समस्या का शिकार होता है या उसके घर परिवार के लोग होते हैं, तो वह सबसे पहले इस समस्या की बुनियादी जानकारी और इलाज संबंधी जानकारियां डॉ. गूगल से ही जानना चाहते हैं. उसके पास बहुत सारे सवाल होते हैं और उसे डॉ. गूगल से ही इन तमाम सवालों को पूछना आसान लगता है. ऐसा वो लोग भी करते हैं, जो बात-बात पर दूसरों को ऐसा न करने की सलाह देते हैं.

सवाल है क्या लोग यह गलत करते हैं? शायद तब तक नहीं, जब तक उनके सवाल बीमारी की बुनियादी जानकारी तक ही सीमित रहती है. जब लोग डॉ. गूगल से तुरत फुरत यानी रेडिमेड इलाज पूछते हैं और आंख मूंदकर उस पर अमल भी कर लेते हैं, तो समझिये बहुत बड़ा ब्लंडर करते हैं. लेकिन शुरुआती जानकारी खास करके लक्षणों को स्पष्टता से समझने के लिए डॉ. गूगल की सहायता लेना जरा भी गलत नहीं है. लेकिन अगर आप किसी प्रशिक्षित डॉ. से इस संबंध में पूछेंगे तो वह छूटते ही कहेगा कि यह भी गलत है. कोई भी डॉ. नहीं चाहता कि दुनिया का एक भी मरीज अपनी बीमारी के बारे में जानें और किसी और से जाने या तो बिल्कुल ही नहीं जाने. इसलिए पारंपरिक डॉक्टरों ने भी डॉ. गूगल को कुछ ज्यादा ही बदनाम कर रखा है. क्योंकि डॉ. गूगल इन डॉक्टरों की कमायी में आड़े आते हैं.

बहरहाल पिछले कुछ सालों में पूरी दुनिया में डॉ. गूगल से जानकारियां हासिल करने और उनके नुस्खों पर अमल करने की बढ़ती संख्या के कारण पूरी दुनिया में आज यह बहस का विषय है कि डॉ. गूगल हमारे स्वास्थ्य के दोस्त हैं या दुश्मन. जाहिर है पढ़ा-लिखा यानी प्रशिक्षित डॉक्टर इसे दुश्मन ही बताता है. लेकिन अब सवाल यह है कि लोग इस दुश्मन डॉक्टर के पास जाते क्यों हैं? इसकी कई वजहें होती है. एक तो डॉक्टरों से अपाॅइंटमेंट पाना आसान नहीं होता. जो जितना प्रसिद्ध होता है, उससे अपाॅइंटमेंट पाना उतना ही मुश्किल होता है. एक तो डॉक्टर मरीज को या आशंकित मरीज को उसकी सुविधा का समय नहीं देते. साथ ही अच्छी खासी फीस चार्ज करते हैं, चाहे मरीज या आशंकित मरीज देने की स्थिति में हो या न हो. जबकि डॉ.गूगल 24 घंटे किसी को भी अपनी सेवा देने के लिए हाजिर रहते हैं और वह भी बिल्कुल मुफ्त.

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जैसा कि हम सब जानते हैं दुनिया में करीब एक तिहाई गरीब लोग इस वजह से गरीब होते हैं कि उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते उनके सारे आर्थिक स्रोत खर्च हो गये होते हैं. डॉ. गूगल के पास न जाने की डॉक्टरों की बार बार दी गई सलाह को इसलिए भी लोग नहीं मानते. एक कारण यह भी है कि जहां कोई डॉक्टर इलाज का सिर्फ एक तरीका और कुछ गिनी चुनी दवाईयों के बारे में ही बताता है, वहीं डॉ. गूगल कई किस्म के इलाजों का विकल्प बताते हैं और तमाम तरह की दवाईयों के बारे में भी बताते हैं, जो सस्ती होती हैं. एक बात यह भी है कि अगर इसी समय किसी बीमारी के बारे में बहुत गंभीर चर्चा छिड़ी हो, उसे बहुत खतरनाक माना जा रहा हो और कोई आम आदमी महसूस करता है कि उसे भी यह बीमारी है, तो ऐसा आदमी भी किसी पड़ोस के डॉक्टर के पास जाने की बजाय डॉ. गूगल के पास ही जाता है. इसमें आशंकित मरीज को यह डर भी होता है कि कहीं उसकी आशंका सच न निकल जाए.

हमें यह मानने में भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि टेक्नोलाॅजी ने हम सबको कामचलाऊ स्मार्ट तो बना ही दिया है. ऐसे में हम किसी पर निर्भर रहने की बजाय डॉ. गूगल से कंसल्ट करना ज्यादा आसान समझते हैं. आजकल शायद ही कोई शख्स हो जो अपनी मेडिकल रिपोर्ट के नतीजे डॉ. गूगल पर चेक न करता हो. इसकी एक वजह लगातार बढ़ता भ्रष्टाचार भी है. आये दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं कि फलानी लैब में बिना कोई जांच किये जांच रिपोर्ट बना दी या किसी क्लीनिक में तमाम सैंपल फेंक दिये जाते हैं और मनमानी रिपोर्ट दे दी जाती है. इस तरह की घटनाओं और अफवाहों से भी लोग डॉ. गूगल के पास जाना पसंद करते हैं.

कुछ दिनों पहले हुए एक बड़े सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी थी कि डॉ. गूगल से इलाज करवाने में महिलाएं पुरुषों से कहीं आगे हैं. इस सर्वे के मुताबिक 25 प्रतिशत महिलाओं ने डॉ. गूगल के बताय रास्ते पर चलकर अपने लक्षणों का गलत नतीजा निकाला और न सिर्फ खुद को गंभीर रूप से बीमार मानकर अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ किया बल्कि परिवार को भी सांसत में डाला. आम तौरपर जिन बीमारियों को लेकर आम इंटरनेट सैवी गलतफहमी का शिकार होता है, वे बीमारियां कुछ यूं हैं- ब्रेस्ट कैंसर तथा दूसरे तमाम किस्म के कैंसर, वैजाइनल इंफेक्शन, हाई ब्लड प्रेशर, अस्थमा, आर्थराइटिस, डायबिटीज, सेक्सुअल हेल्थ प्राॅब्लम्स और थायराॅइड जैसी प्राॅब्लम्स को लेकर आम लोग हमेशा चिंतित रहते हैं और इन्हीं चीजों में सबसे ज्यादा डॉ. गूगल का सहारा लेते हैं.

डॉ. गूगल की ज्यादा मदद लेने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाओं ने माना है कि कुछ ऐसी हेल्थ प्राॅब्लम्स होती हैं, जिन्हें वो परिवार या दोस्तों की बजाय डॉ.गूगल से बताने में अधिक सहजता महसूस करती हैं. 50 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि ऐसी हेल्थ प्राॅब्लम्स, जिसे दूसरी को बताने में उन्हें शर्म आती है, उसका इलाज करने की जो खूब कोशिश करती है. ऐसे एक सर्वे के मुताबिक डॉ. गूगल का इस्तेमाल करने वाले आम लोग खुद ही मेडिकल स्टोर से दवा खरीदकर अपना इलाज शुरु कर देती हैं. हालांकि अभी तक कोई नहीं जानता कि इस तरह के इलाजों का कितना बुरा नतीजा भी हो सकता है. क्योंकि जरूरी नहीं होता कि इंटरनेट पर दी गई सारी जानकारी सही ही हो. बहुत सी बोगस वेबसाइट्स महज अपने प्रोडक्ट्स की बिक्री के लिए ऐसी सनसनीखेज खबरें प्रकाशित करती रहती हैं.

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कहने का मतलब यह कि डॉ. गूगल वाकई खतरनाक है. मगर सवाल है कि क्या यह बात आम लोग नहीं जानते? निश्चित रूप से जानते हैं और कोई भी जो इस सच को जानता है, खुद को इसके चक्रव्यूह में नहीं फंसाना चाहता. मगर मजबूरी यह है कि वास्तविक डॉक्टर यानी डिग्रीधारी पढ़े लिखे डॉक्टर आम आदमी को अपनी जानकारियां देने के एवज में उन्हें इतना लूटता है कि न चाहते हुए भी वो डॉ. गूगल के चक्रव्यूह में फंस जाता है. इसलिए डॉ. गूगल की आलोचना करने वाले पूरे दुनिया के डॉक्टर ईमानदारी से यह स्वीकारें तो कि लोग डॉ. गूगल के पास इसलिए जा रहे है. क्योंकि असल डॉक्टर उन्हें जीने ही नहीं दे रहा.

ऑफिस की दोस्ती जब मानसिक रूप से परेशान करने लगे तो क्या करें?

अगर आपका ऑफिस में कोई दोस्त है तो वह आपका ऑफिस में काम में हाथ बंटाने में और आपके हौसले को बुलंद करने में बहुत मदद करता होगा. लेकिन इस ऑफिस वाली दोस्ती के काफी ज्यादा नुकसान भी हो सकते हैं. अगर आप इस दोस्ती में इमोशनल रूप से शामिल हो जाते हैं तो क्या होगा और अगर आप का वह दोस्त आपको काम करने के दौरान परेशान करता है या आप उसकी वजह से काम नहीं कर पाती हैं तो क्या करें? क्या आप जानती हैं इस प्रकार की दोस्ती में भी आपको एक रेखा बनानी होती है और इस रेखा को अगर आप पार करेंगी तो उसमें आपका ही नुकसान होगा.

एक्सपर्ट्स का इस बारे में क्या कहना है?

अगर आप किसी जगह काम कर रही हैं तो वहां पर सभी लोगों के साथ दोस्ताना भाव रखना और उनके साथ इंटरेक्ट करना एक अच्छी बात होती है. लेकिन आप शायद यह नहीं चाहती होंगी कि आपके जज्बातों का कोई फायदा उठा ले या उन्हें फालतू में प्रयोग किया जाए. आपको काम करते हुए किसी से इतना इमोशनल रूप से अटैच भी नहीं होना चाहिए कि इससे आपका काम करने का मन ही न करे और आपकी प्रोडक्टिविटी पर फर्क पड़े. ऑफिस में दोस्त बनाना अच्छी बात होती है लेकिन अगर आप उनके काम में या वह आपके काम में ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे हैं या आप पर या आप किसी अन्य पर एक बोझ की तरह ट्रीट हो रही हैं तो यह मानसिक रूप से थोड़ा परेशानी देने वाला हो सकता है.

अगर आपको भी यह लगता है कि आप एक साथ काम करने वाले व्यक्ति या स्त्री से बहुत अधिक अटैच हो गई हैं और अब इस अटैचमेंट का आपके वर्क पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है तो आपको निम्न टिप्स का प्रयोग करना चाहिए.

 कुछ संकेतों की ओर ध्यान दें :

सबसे पहले आपको कुछ ऐसे संकेतों की ओर ध्यान देना चाहिए जिनसे आपको पता लगे कि आप सच में ही किसी व्यक्ति से अटैच हैं. इसके लिए आप देख सकते हैं कि आप उनके लिए अपने काम छोड़ रही हैं या आप इमोशनल रूप से स्थिर नहीं है. किसी के साथ अटैच होना बुरी बात नहीं है लेकिन खुद से यह बात जरूर पूछें कि क्या आप इस रिलेशन में होकर खुद को कैरियर के उस मुकाम पर पहुंचा पाएंगी जो आपने सोचा है?  क्या आप दोनों ही एक जैसे प्रयास कर रही हैं? अगर हां तो आप इस रिश्ते के लिए आगे बढ़ सकती हैं और न है तो आपको खुद ही समझ जाना चाहिए.

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 दूसरे व्यक्ति को सारा दोष न दें :

अगर आप सोच रही हैं कि अब इस रिश्ते से आप परेशान हो रही हैं तो गुस्सा होना कभी कभार बनता है लेकिन इसमें सामने वाले व्यक्ति का कोई दोष नहीं है. आपको जबरदस्ती पकड़ कर वह व्यक्ति नहीं लाए थे यह आपकी भी जिम्मेदारी बनती है.  आप अपनी दोनो की पर्सनालिटी, आदतें और कार्य और कैरियर के बारे में समानताएं और असमानताएं देख कर एक निर्णय ले सकती हैं कि क्या आप सच में ही उनके साथ रह कर खुद के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

 उनसे एकदम से पूरी तरह अलग मत हो जाएं :

अगर आप खुद के होने वाले नुकसान को बचाने के लिए उनसे अलग होना चाहती हैं तो एकदम से ही उन्हें बेस्ट फ्रेंड से अनजान व्यक्ति न बना दें. आपको ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है. आप उन्हें बुरा महसूस कराए बिना भी यह काम कर सकती हैं. केवल अपने और अपने करियर के ऊपर अधिक ध्यान देने लग जाएं और उनके साथ भी बातें जारी रखें.

 बातें करने के अंदाज को बदल दें :

अगर आप किसी से दूर होना चाहती हैं तो उन्हें साफ साफ यह बताना थोड़ा अच्छा नहीं लगेगा लेकिन अगर आप अपनी बात करने का अंदाज बदल देंगी तो वह खुद ही समझ जाएंगे. जैसे आप अगर साथ रह रही हैं तो अधिक बातें अब साथ रहने के साथ नहीं बल्कि फोन कॉल पर करें. उन्हें कभी कभी अपने काम के लिए नजर अंदाज भी करें ताकि वह खुद समझ जाएं.

 खुद को स्ट्रॉन्ग बना कर रखें :

आपके प्रिय मित्र की भी अब आपके साथ गहरी दोस्ती हो गई होगी और जब उन्हें पता चलेगा कि आप उनके साथ नहीं रहना चाहती तो हो सकत है उनके लिए विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो गया हो इसलिए आपको थोड़ा स्ट्रॉन्ग बन कर रहना होगा. आपको उन्हें अपनी हालत समझानी होगी. और वह आप को इतनी आसानी से नहीं जाने देंगे इसलिए आपको उनके कहने पर खुद को उसी स्थान पर नहीं रोक देना है. खुद को मजबूत बनाएं रखें.

 इन बातों को ध्यान में रखें :

इन संकेतों पर ध्यान दें कि आप अपने करियर और काम में उनकी वजह से कम समय लगा पा रही हैं जिस कारण आपकी प्रोडक्टिविटी को नुकसान पहुंच रहा है.

अपने बात करने का अंदाज सभी के साथ बदल दें ताकि उन्हें भी अजीब न लगे.

उन्हें किसी और के साथ जुड़ने का मौका दें.

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 क्या न करें

उन पर सारा इल्जाम न लगाएं.

उनका साथ एकदम से न छोड़ दें.

अगर वह दुबारा आपके साथ आने की कोशिश करें तो वापिस न जाएं.

अगर आप धीरे धीरे इन टिप्स को अपनाएंगी तो थोड़े समय के बाद आपके मित्र को भी यह अहसास हो जायेगा कि अब आप उनके साथ समय बिताना पसंद नहीं करते हैं और वह खुद ही आपसे दूर रहने लग जायेंगे.

Monsoon Special: नाश्ते में बनाएं पनीर चीज कटलेट

आज हम आपको पनीर चीज कटलेट की रेसिपी बता रहे हैं जिसे बनाना भी आसान है और इसमें पौष्टिकता भी भरपूर है तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं.

हमें चाहिए

–  50 ग्राम पनीर

–  4 पीस सैंडविच ब्रैड

–  2 हरीमिर्चें बीच से कटी

–  1/2 प्याज कटा

–  थोड़ा सी धनियापत्ती कटी

–  20 ग्राम चौकोर  टुकड़ों में कटा मोजरेला चीज

–  100 ग्राम ब्रैडक्रंब्स

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–  साल्ट पैपर  सीजनिंग स्वादानुसार.

फिलिंग की विधि

सब से पहले पनीर को छोटे चौकोर टुकड़ों में काटें. फिर इन में हरीमिर्च, साल्ट पैपर सीजनिंग, मोजरेला चीज, प्याज, धनियापत्ती डाल कर पनीर के साथ अच्छी तरह मिक्स करें. फिलिंग तैयार है.

कटलेट की विधि

सब से पहले ब्रैडस्लाइसेज के किनारों को निकाल दें. फिर इन्हें पानी में थोड़ा सा गीला कर के बीच में पनीर की फिलिंग भरें. फिर उसे दोनों हाथों की मदद से बौल के आकार में फोल्ड करते हुए उसे ब्रैडकं्रब्स में लपेटें. सभी स्लाइस के साथ ऐसा करें. अब कड़ाही में औयल को गरम कर के उस में कटलेट बौल्स को क्रिस्पी व सुनहरा होने तक फ्राई करें. तैयार कटलेट्स को कैचअप, मेयोनीज व पुदीना चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें.

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‘आपकी नजरों ने समझा’ फेम ऋचा राठौर का बदला लुक, फोटोज वायरल

इन दिनों सोनाली जाफर निर्मित ‘‘स्टार प्लस’’के सीरियल ‘‘आपकी नजरों ने समझा’’में मुख्य भूमिका निभाते हुए शोहरत बटोर रही अदाकारा ऋचा राठौर ने 2015 में रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण के साथ इम्तियाज अली निर्देशित फिल्म‘‘तमाशा’’में अभिनय कर चुकी हैं.

 

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मूलतः शिमला निवासी और इंजीनियरिंग की छात्रा ऋचा राठौर ने कभी नहीं सोचा था कि वह अभिनय करने के लिए एक दिन मुंबई जाएंगी.  लेकिन नियति ने उन्हे अभिनेत्री बना दिया. खुद ऋचा राठौर बताती हैं- “अभिनय का सिलसिला इम्तियाज अली की फिल्म ‘तमाशा’से शुरू हुआ.  मैं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर रही थी, जब इम्तियाज अली की टीम हमारे कॉलेज में ऑडीशन लेने आयी थी. फिल्म की शूटिंग शिमला में ही हो रही थी. इसलिए हंसी में मैंने भी ऑडीशन दिया और मुझे एक छोटा सा किरदार निभाने का ऑफर मिल गया, जिसे मैंने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.  मैंने टीम के साथ एक हफ्ते तक शूटिंग की और अपने आसपास जो कुछ हो रहा था,  उससे मैं हैरान थी. तीन दिन के अंदर मुझे अहसास हुआ कि मुझे तो अभिनय को ही कैरियर बनाना है. ’’

 

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वह आगे बताती हैं- ‘‘इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैने नौकरी कर ली. लेकिन अभिनेत्री बनने का ख्याल मेरे दिमाग में कहीं न कहीं था. फिर एक दिन मेरे पास सीरियल‘कुमकुम भाग्य’के लिए ऑडीशन देने के लिए फोन आया. फिर मैं मुंबई आ गयी. मैने कई टीवी सीरियल में कुछ छोटे किरदार निभाए और आखिरकार मुझे ‘आपकी नजरों ने समझा’ में पहली बार मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला. ’’

 

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शिमला से मुंबई आकर खुद को स्थापित करना काफी कठिन रहा. इस पर वह कहती हैं-यूं तो मैं मेट्रो शहरों में रही हूं, लेकिन मुंबई शहर का जीवन बिल्कुल अलग है. शुरूआत में मेरे लिए भी यह आसान नहीं था, लेकिन मैं कामयाब रही. अब मुझे मुंबई की गति में काम करने की आदत हो गयी है. हाल ही में कोरोना महामारी व लॉक डाउन की वजह से मैं अपने घर शिमला में थी, तो वहां लोगों को देखकर मुझे वास्तव में अहसास हुआ कि इस तरह की जगहों पर लोग कितनी धीमी जिंदगी जीते हैं. ‘‘

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ट्रैकिंग के शौकीन हैं, तो हिमाचल जरूर जायें

ट्रैवलिंग और ट्रैकिंग के शौकीन लोगों के लिए हिमाचल जाना बेहतरीन ऑप्शन साबित हो सकता है. यहां आप अपने पैशन को पूरा कर सकते हैं. बर्फ से ढ़के ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ना, वहां से आसपास के नजारों को देखना बहुत ही अच्छा एक्सपीरिएंस होता है. हिमाचल जाकर आप बहुत ही कम समय में बहुत सारी जगहें घूम सकते हैं.

1. पिन पार्वती पास

ऊंचाई- 5319 मीटर

यह एक चैलेजिंग ट्रैक है. इस ट्रैकिंग में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के जंगली रास्ते, बिना पुल के नदिओं को पार करना और ग्लेशियर का सामना करना पड़ता है. इस ट्रैकिंग में शामिल जोखिम भी सुकून देने का काम करता है, क्योंकि ट्रैकर को हिमालय के दो पूरी तरह से विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं.

रिओ पुरगयिल पर्वत

ऊंचाई- 6816 मीटर

2. ट्रैकिंग टाइम– 6 दिन

यह पर्वत हिमाचल प्रदेश का सबसे ऊंचा पर्वत है. यह पर्वत हिमाचल प्रदेश और तिब्बत की सीमा पर है, जहां जाने के लिए विदेशी पर्यटकों को इनर लाइन परमिट लेनी पड़ती है. इस ट्रैक की शुरुआत किन्नौर जिले के नाको गांव से होती है. यहां से 5500 मीटर तक लगातार चढ़ाई देखने को मिलती है.

किन्नौर कैलाश पर्वत

ऊंचाई- 6349 मीटर

ट्रैकिंग टाइम– 7 दिन

किन्नौर कैलाश हिमाचल के उत्तर पूर्व हिस्से में पड़ता है. इस पर्वत के लिए सबसे सही ट्रैक शिमला से शुरू होती है, जहां से पर्यटक सांगला जा सकते हैं. सांगला से थांगी जाकर ट्रैकिंग की शुरुआत होती है. कुछ दिनों की ट्रेकिंग के बाद छरंग ला पास (5300 मीटर) तक पहुंचने के बाद गहरी घाटियां देखने को मिलती है.

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3. मनी महेश ट्रैक

ऊंचाई– 4,080 मीटर

ट्रैकिंग टाइम– 5 दिन

मनी महेश लेक को डक लेक के नाम से भी जाना जाता है. जो हिमालय के पिर पंजाल रेंज के पास चंबा जिले में स्थित है. मनी महेश, मानसरोवर लेक के भी काफी पास है इसलिए इसकी अपनी एक धार्मिक मान्यता भी है. इसकी ट्रैकिंग के लिए भानलौर-हड़सर मनी महेश रूट को फॉलो किया जाता है जिसके लिए 13 किमी का रास्ता तय करना होता है. वैसे लाहौल और स्पीती रूट को भी इस ट्रैकिंग के लिए फॉलो किया जा सकता है. कांगड़ा और मंडी से आने वाले लोगों के लिए करवारसी पास और जलसू पास रूट ज्यादा सुविधाजनक है.

4. चन्द्रतल ट्रैक

ऊंचाई– 14,1000 फीट

ट्रैकिंग टाइम– 4 दिन

चंद्रतल यानि चांद पर चलना, और सच में यहां ट्रैकिंग करने पर ऐसा ही अहसास होता है. स्पीती वैली के पास स्थित है. बीन्स के आकार का ये लेक 2.8 किलोमीटर में फैला हुआ है. जिसका पानी क्रिस्टल जैसा क्लियर है और इसे ब्लू रंग के कई शेड्स में भी देखा जा सकता है. लेक के आसपास ट्रैकिंग के दौरान कैंप लगाकर यहां के खूबसूरत नजारों का भी आनंद लिया जा सकता है. ट्रैकिंग के लिए मई से अक्टूबर तक का टाइम बेस्ट होता है. कुंजुम पास और बातल पास रूट को ट्रैकिंग के लिए फॉलो किया जाता है.

5. त्रिउंड ग्लेशियर

ऊंचाई– 2827 मीटर

ट्रैकिंग टाइम– 4 दिन

त्रिउंड, भागसू नाग(बाहर से आने वाले टूरिस्ट की फेवरेट जगह) से महज 9 किमी की दूरी पर है. मैकलोड़गंज से यहां पहुंचने में पूरी 4 घंटे का समय लगता है. यहां ट्रैकिंग करते वक्त धौलाधार रेंज और कांगड़ा घाटी के बहुत सारे खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं. बिना गाइड के भी यहां ट्रैकिंग पॉसिबल है. पहाड़ों पर चलने के दौरान यहां स्नो बर्ड्स और कस्तूरी और काले हिरणों को आसानी से देखा जा सकता है.

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Makeup Tips: ऐसे बढ़ाएं कौस्मैटिक्स की उम्र

माना कि हर मेकअप प्रोडक्ट की अपनी उम्र होती है जैसे मसकारे की 3 महीने, आईलाइनर की 6 महीने, तो फाउंडेशन की साल भर. लेकिन कई बार महंगे से महंगा कौस्मैटिक प्रोडक्ट भी डेट ऐक्सपायर होने से पहले खराब हो जाता है.

इस का सब से बड़ा कारण है कौस्मैटिक्स के रखरखाव और देखभाल की कमी. आप अपने मेकअप प्रोडक्ट्स की उम्र उन की ऐक्सपायर्ड डेट से भी आगे बढ़ा सकती हैं. कैसे, बता रहे हैं मेकअप आर्टिस्ट अजय बिष्ट.

लिपस्टिक

अगर आप चाहती हैं कि आप की लिपस्टिक और लिपस्टिक का शेड दोनों ही हमेशा फ्रैश रहें, तो उसे ड्रैसिंगटेबल की दराज में रखने के बजाय फ्रिज में रखें. गरम जगह या धूप के संपर्क में रखने से लिपस्टिक मैल्ट हो कर खराब हो जाती है. कई बार मौइश्चर उभर आने से भी लिपस्टिक का शेड बदल जाता है.

आईलाइनर

अगर आप चाहती हैं कि आप का आईलाइनर लंबे समय तक चले तो लिक्विड आईलाइनर के बजाय पैंसिल आईलाइनर खरीदें. अगर आप लिक्विड आईलाइनर खरीद रही हैं, तो उसे हवा से बचा कर रखें वरना ड्राई हो सकता है. यदि कभी आईलाइनर सूख जाए तो उसे कुछ सैकंड्स के लिए माइक्रोवेव में रख दें. इस से वह फिर से नौर्मल टैक्स्चर में आ जाएगा.

आईशैडो

आईशैडो को लंबे समय तक सेफ रखना चाहती हैं, तो क्रीमी आईशैडो के बजाय पाउडर बेस्ड आईशैडो खरीदें. वह न तो जल्दी खराब होता है और न ही उस के मैल्ट या ड्राई होने की संभावना रहती है. साफसुथरे और नए ब्रश का इस्तेमाल कर के भी आईशैडो की उम्र को बढ़ा सकती हैं.

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फाउंडेशन

फाउंडेशन की उम्र इस बात पर निर्भर करती है कि वह वाटर बेस्ड है या फिर औयल बेस्ड. चूंकि औयल बेस्ड फाउंडेशन में औयल होता है, इसलिए वह जल्दी खराब नहीं होता, जबकि वाटर बेस्ड फाउंडेशन में पानी की मौजूदगी उस के जल्दी खराब होने का कारण है. वैसे दोनों ही फाउंडेशन को फ्रिज में रख कर जल्दी खराब होने से बचाया जा सकता है.

लिप पैंसिल

लिपलाइनर की उम्र बढ़ाने के लिए उसे शार्पनर से शार्प करने के बाद उस की नोक पर थोड़ी सी वैसलीन या फिर हलका सा औलिव औयल लगा दें. ऐसा करने से इस्तेमाल करते वक्त पैंसिल आसानी से मूव करेगी. इस से न तो आप

को पैंसिल रगड़ने की जरूरत होगी और न ही उसे बारबार शार्प करने की.

नेलपौलिश

नेलपौलिश अप्लाई करते वक्त उस की बोतल को किसी चीज से कवर कर दें वरना हवा के संपर्क में आने से नेलपौलिश अपनी ऐक्सपायरी डेट से पहले खराब हो सकती है. अगर नेलपौलिश सूख जाए तो उस में थोड़ा सा एसीटोन मिला कर उसे अच्छी तरह हिलाएं. इस से वह पहले की तरह नजर आएगी.

मसकारा

बाकी कौस्मैटिक के मुकाबले मसकारे की उम्र बहुत कम होती है. उस की उम्र बढ़ाने के लिए उसे हवा के संपर्क में न आने दें. इस के लिए मसकारे के ब्रश को बारबार बोतल में डालने और निकालने की भूल न करें. मसकारे के जल्दी खराब होने की एक वजह ऐप्लिकेटर भी है. अगर हर बार आप नए ऐप्लिकेटर का इस्तेमाल करती हैं तो उस की उम्र और भी बढ़ाई जा सकती है.

यों बचाएं खराब होने से कौस्मैटिक्स को खराब होने से बचाने के लिए इन बातों का ध्यान रखें.

उंगलियों के इस्तेमाल से बचें

किसी भी कौस्मैटिक का इस्तेमाल करने के लिए उंगलियों का प्रयोग न करें. उंगलियों में एक तरह का औयल होता है, जिस के संपर्क में आने से प्रोडक्ट्स में बैक्टीरिया पनपने लगते हैं, जिस से प्रोडक्ट्स जल्दी खराब हो जाते हैं.

मेकअप प्रोडक्ट्स शेयर न करें

अपने मेकअप प्रोडक्ट्स किसी के साथ शेयर न करें खासकर ऐसे प्रोडक्ट्स जिन का इस्तेमाल

बिना किसी ब्रश, स्पंज के सीधे त्वचा पर किया जाता है.

मेकअप ब्रश को हमेशा क्लीन रखें: मेकअप करने के लिए न सिर्फ क्लीन ब्रश का इस्तेमाल करें, बल्कि ब्रश को हमेशा क्लीन भी रखें. इस के लिए गरम पानी में कुछ देर ब्रश को भिगो कर रखें, और माइल्ड शैंपू से धोएं. फिर कौटन के कपड़े से पोंछ कर इस्तेमाल करें. सप्ताह में 2 बार ब्रश की सफाई जरूरी है.

बारबार डिप करने से बचें

किसी भी लिक्विड मेकअप प्रोडक्ट को जैसे आईलाइनर, आईशैडो, लिपग्लौस, मसकारा, नेलपौलिश को यूज करते वक्त बारबार ऐप्लिकेटर को बोतल में डिप न करें. ऐसा करने से बाहर की हवा बोतल के अंदर जाती है और बोतल बंद करने पर उसी में रह जाती है, जिस से प्रोडक्ट्स खराब हो जाते हैं.

इन बातों के अलावा यह भी ध्यान रखें कि आप के कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स के ढक्कन अच्छी तरह बंद हैं या नहीं. अगर वे खुले हैं, तो हवा अंदर जा सकती है और प्रोडक्ट्स के खराब होने के चांसेज बढ़ जाते हैं.

स्मार्ट आइडियाज

मेकअप प्रोडक्ट्स की उम्र बढ़ाने के कुछ स्मार्ट आइडियाज.

स्पंज नहीं ब्रश यूज करें

फाउंडेशन, ब्लशऔन जैसे मेकअप प्रोडक्ट्स लगाने के लिए स्पंज के बजाय ब्रश का इस्तेमाल करें. स्पंज इस्तेमाल करने पर वह मेकअप को सोख लेता है, जिसे यूज नहीं किया जा सकता, जबकि ब्रश बालों से बनाया जाता है, इसलिए वह मेकअप को सोख नहीं पाता, जिस से आप पूरी तरह से प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर पाती हैं.

न्यू कंटेनर का इस्तेमाल करें

कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स की सलामती के लिए न्यू कंटेनर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं जैसे लिक्विड फाउंडेशन, आईशैडो, लिपग्लौस, ब्लशऔन जैसे लिक्विड प्रोडक्ट्स के आधे हिस्से को एक अलग कंटेनर में निकाल कर रखें और उसे डेली बेसिस पर यूज करें. इस से औरिजिनल बोतल में रखा मेकअप प्रोडक्ट ज्यों का त्यों फ्रैश रहेगा.

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पाउडर बेस्ड प्रोडक्ट्स को दें प्राथमिकता

अगर आप कोई मेकअप प्रोडक्ट रोजाना यूज नहीं करने वाली हैं, तो वाटर या क्रीमी बेस्ड मेकअप प्रोडक्ट्स खरीदने के बजाय पाउडर बेस्ड मेकअप प्रोडक्ट्स खरीदें. वाटर और क्रीमी बेस्ड मेकअप प्रोडक्ट की तुलना में पाउडर बेस्ड प्रोडक्ट लंबे समय तक चलता है, जल्दी खराब नहीं होता.

पैक इस्तेमाल के वक्त ही खोलें

अगर आप किसी खास मौके पर लगाने के लिए लिपस्टिक, आईलाइनर या कोई अन्य मेकअप प्रोडक्ट ऐडवांस में ले रही हैं, तो खरीदने के तुरंत बाद उस की पैक को खोलने के बजाय उसी दिन खोलें, जिस दिन आप उसे इस्तेमाल करने वाली हैं. इस से मेकअप प्रोडक्ट की उम्र बढ़ सकती है.

गरम पानी में भिगो दें

मसकारा, लिपग्लौस, लिक्विड लिपस्टिक, लिक्विड आईलाइनर जैसे मेकअप प्रोडक्ट्स अगर ऐक्सपायरी डेट से पहले सूख जाएं, तो उन के ढक्कन अच्छी तरह से बंद कर के गरम पानी से भरे बाउल में कुछ देर के लिए डाल दें. इस से वे मैल्ट हो कर पहले वाले टैक्स्चर में आ जाएंगे.

कूल और ड्राई जगह रखें

कौस्मैटिक्स और स्किन केयर प्रोडक्ट्स को ठंडी और सूखी जगह पर रखें. सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में न आने दें. सूर्य की किरणों से क्रीमी कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स जैसे लिपस्टिक मैल्ट हो सकती है, तो टोनर जैसे प्रोडक्ट्स ड्राई हो सकते हैं.

कब समझें प्रोडक्ट खराब हो गया है

बदबू

अगर मेकअप प्रोडक्ट से बदबू आ रही है, तो इस का मतलब वह खराब हो चुका है.

लुक

अगर कौस्मैटिक का कलर बदला नजर आ रहा है, उस में मौइश्चर आ गया है, वह पैची और ड्राई दिख रहा है, तो उसे तुरंत बदल दें.

टच

अगर मेकअप प्रोडक्ट बहुत ज्यादा चिपचिपा लग रहा है या फिर बहुत ज्यादा सूखा, तो उसे फेंकने में देरी न करें.

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महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन का बढ़ता जोखिम

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन या यूटीआई (यह ट्रैक्ट शरीर से मुख्यरूप से किडनी, यूरेटर ब्लैडर और यूरेथरा से मूत्र निकालता है) एक प्रकार का विषाणुजनित संक्रमण है. यह ब्लैडर में होने वाला सब से सामान्य प्रकार का संक्रमण है लेकिन कई बार मरीजों को किडनी में गंभीर प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है जिसे पाइलोनफ्रिटिस कहते हैं.

यौनरूप से सक्रिय महिलाओं में यह अधिक होता है क्योंकि यूरेथरा सिर्फ 4 सैंटीमीटर लंबा होता है और जीवाणु के पास ब्लैडर के बाहर से ले कर भीतर तक घूमने के लिए इतनी ही जगह होती है. डायबिटीज होने से मरीजों में यूटीआई होने का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है.

डायबिटीज से बढ़ता है जोखिम

–     डायबिटीज के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, इसलिए शरीर जीवाणुओं, विषाणुओं और फुंगी से मुकाबला करने में अक्षम हो जाता है. इस वजह से डायबिटीज से पीडि़त मरीजों को अकसर ऐसे जीवाणुओं की वजह से यूटीआई हो जाता है. इस में सामान्य एंटीबायोटिक काम नहीं आते हैं.

–     लंबी अवधि की डायबिटीज ब्लैडर को आपूर्ति करने वाली नसों को प्रभावित कर सकती है जिस की वजह से ब्लैडर की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं जो यूरिनरी सिस्टम के बीच सिग्नल को प्रभावित कर ब्लैडर को खाली होने से रोक सकती हैं. परिणामस्वरूप, मूत्र पूरी तरह से नहीं निकल पाता है और इस की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है.

–     मेटाबोलिक नियंत्रण खराब होने से डायबिटीज से पीडि़त मरीज में किसी प्रकार के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है.

–     कुछ नई एंटीडायबिटीक दवाओं की वजह से मामूली यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन हो सकता है.

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क्या हैं लक्षण

लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

–     पेशाब करते हुए दर्द होना.

–     पेशाब में जलन महसूस होना.

–     तत्काल पेशाब करने की जरूरत महसूस होना.

–     असमंजस.

–     क्लाउडी यूरिन.

–     पेशाब में से अजीब सी बदबू आना.

–     पेशाब में खून.

–     पेट के निचले हिस्से में दर्द.

–     पीठ में दर्द.

अपर यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

–     सर्दी के साथ तेज बुखार.

–     उलटी होना.

–     पेट के निचले हिस्से में दर्द.

–     बगल में दर्द.

आमतौर पर इन लक्षणों का मतलब होता है कि संक्रमण किडनी तकपहुंच चुका है. इस गंभीर समस्या से नजात पाने के लिए अस्पताल में भरती होने की जरूरत हो सकती है. तत्काल उपचार से लक्षणों से भी छुटकारा मिल सकता है और संक्रमण के फैलने से भी बचा जा सकता है. कई दुर्लभ मामलों में यूटीआई की वजह से गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे किडनी को नुकसान या फिर किडनी फेल होना. यूटीआई का पता लगाने के लिए बैक्टीरिया और पस के लिए एक अत्यंत साधारण मूत्र परीक्षण काफी है. एंटीबायोटिक को ले कर संवेदनशीलता के लिए यूरिन कल्चर, पेट का अल्ट्रासाउंड और गंभीर मामलों में सीटी स्कैन किया जाता है.

उपचार

लोअर यूटीआई, जो जटिल नहीं होता है, का उपचार बाहरी रोगी के तौर पर ओरल एंटीबायोटिक के साथ डाक्टर की उचित देखरेख में किया जा सकता है. कोई भी रेनल या कार्डिएक बीमारी न होने पर विभिन्न प्रकार के ओरल फ्लुइड्स लेने की सलाह दी जा सकती है. उपचार करने वाले डाकटर की अनुमति से दर्द में राहत देने वाली सुरक्षित दवाएं दी जा सकती हैं. दर्दनिवारक दवाओं से आमतौर पर बचना चाहिए क्योंकि इन से किडनी को नुकसान हो सकता है.

जटिल यानी अपर यूटीआई के लिए अस्पताल में भरती होने के साथ लंबे समय तक एंटीबायोटिक लेनी पड़ती है.

पौलीस्टिक ओवरियन सिंड्रोम और डायबिटीज का संबंध

यह ऐसी परिस्थिति है जो बच्चे पैदा करने की उम्र की महिलाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित करती है जहां उन के अंडाशय की सतह पर असामान्य छोटे दर्दरहित सिस्ट होते हैं. इस के अलावा उन में असामान्यरूप से अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरौन होते हैं और अन्य हार्मोन का असामान्य अनुपात होता है जिस के परिणामस्वरूप शरीर में इंसुलिन की मात्रा उच्च होने के साथ ही अनियमित मासिकचक्र होता है.

संकेत

–     अनियमित मासिकधर्म.

–     ओलिगोमेनोहोयिया यानी मासिकचक्र के दौरान कम रक्तस्राव.

–     चेहरे, छाती और निपल के पास अधिक बाल.

–     एक्ने.

–     बांझपन.

–     अधिक वजन.

कारक

इंसुलिन प्रतिरोध और वजन बढ़ना पौलीसिस्टिक ओवरियन सिंड्रोम यानी पीसीओएस के 2 प्रमुख कारक हैं. इंसुलिन प्रतिरोध की वजह से शरीर में सामान्य से अधिक इंसुलिन का उत्पादन होता है जिसे हाइपरइंसुलिनेमिया कहते हैं. अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से अंडाशय में अत्यधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरौन होता है जिस की वजह से सामान्य अंडोत्सर्ग पैदा हो सकता है.

अधिक मात्रा में इंसुलिन की वजह से वजन भी बढ़ सकता है जिसे टाइप 2 डायबिटीज और पीसीओएस से जोड़ा जा सकता है. पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कम उम्र में डायबिटीज होने का जोखिम चारगुना अधिक होता है.

पीसीओएस से पीडि़त कई मरीजों में मेटाबोलिक सिंड्रोम होते हैं जिन में पेट पर मोटापा, बैड कोलैस्ट्रौल सीरम ट्रिगलीसेराइड्स का बढ़ना, गुड कोलैस्ट्रौल का घटना, सीरम हाई डैंसिटी लिपोप्रोटिन और रक्तचाप बढ़ना शामिल हैं.

पीसीओएस से पीडि़त महिलाओं में कोरोनरी आर्टरी कैल्शिफिकेशन और बढ़ा हुआ कैरोटिड इंटिमा की मोटाई देखने को मिलती है.

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बचाव

–     जीवनशैली प्रबंधन, खाने पर ध्यान और व्यायाम करें.

–     वजन कम करें.

–     डाक्टर से सलाह कर इंसुलिन सैंसिटाइजर्स मैडिकेशन मेटफौर्मिन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

–     हार्मोनली मैडिकेशन.

जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस

जब गर्भवती मां में गर्भवती होने के दौरान पहली बार ग्लूकोज प्रतिरोध अनियमित पाया जाता है तो उसे जेस्टेशन डायबिटीज कहते हैं. ऐसी महिलाओं में भ्रूण द्वारा अधिक मात्रा में ग्लूकोज लेने के परिणामस्वरूप बड़े आकार के बच्चे को जन्म देने का जोखिम होता है. अधिक ब्लड ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित न करने पर नवजात बच्चे की मौत का खतरा बना रहता है.

जेस्टेशनल डायबिटीजका इलाज

–     औब्सेट्रेटीशियन की सलाह के साथ नियमित व्यायाम करें.

–     न्यूट्रीशनिस्ट के पास जाएं और कम कार्बोहाइड्रेट अनुपात वाला डाइट चार्ट बनवाएं.

–     हर दिन ब्लड ग्लूकोज का स्तर जांचें.

–     नियमितरूप से अपने डायबिटीज डाक्टर और औब्सेट्रेटीशियन से मिलें.

–     जरूरत पड़ने पर आप को इंसुलिन लेने की सलाह दी जा सकती है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान एंटी डायबिटीक दवाएं नहीं ली जा सकती हैं.

डिलीवरी के बाद क्या करें

–     जेस्टेशन डायबिटीज वाली महिलाओं में डायबिटीज होने का जोखिम सामान्य जेस्टेशन वाली महिलाओं के मुकाबले कम रहता है.

–     डिलीवरी के 6-12 हफ्तों बाद पोस्ट पारटम ओरल ग्लूकोज टौलरैंस किया जाना चाहिए और उस के बाद प्रत्येक 3 वर्षों में एक बार.

–     महिला को सख्त जीवनशैली का पालन अवश्य करना चाहिए और अपना वजन कम करने की कोशिश करनी चाहिए व बीएमआई बरकरार रखनी चाहिए.

–     नियमित एरोबिक और मांसपेशियों को मजबूती देने वाले व्यायाम अवश्य करने चाहिए.

–     महिलाओं में धूम्रपान अधिक नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि इस से इंसुलिन का स्तर बढ़ता है जिस से इंसुलिन प्रतिरोध पैदा होता है जिस के परिणामस्वरूप डायबिटीज बढ़ सकती है. या इस से ठीक उलट भी हो सकता है क्योंकि डायबिटीज से पीडि़त मरीज, जो धूम्रपान करता है, की बीमारी ठीक करना बहुत मुश्किल होता है.

–     धूम्रपान करने वाली महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले कार्डियोवैस्क्यूलर जटिलताएं विकसित होने का खतरा अधिक रहता है.

–     धूम्रपान करने वाली महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन का खतरा अधिक रहता है जिस की वजह से समय से रजोनिवृत्ति, हड्डियों में कमजोरी यानी ओस्टियोपोरोसिस जैसी चीजें हो सकती हैं.

–     कुछ अध्ययन बताते हैं कि मासिकचक्र में अनियमितता, ओवरियन सिस्ट इंफर्टिलिटी धूम्रपान से जुड़ी हैं.

–     गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने वाली महिलाओं में समय से पहले जन्म देने, अस्थानिक गर्भावस्था, मृतबच्चे का जन्म, बच्चे के कम वजन जैसे खतरे होते हैं.

यूटीआई से कैसे बचें

–     सख्त ग्लाइकैमिक नियंत्रण.

–     अगर कोई रेनल या कार्डिएक समस्या न हो तो अधिक मात्रा में तरल लें.

–     अच्छा जेनाइटल हाइजिन बनाए रखें.

–     सैनिटरी नैपकिंस को बारबार बदलें.

–     ब्लैडर को लगातार खाली करती रहें.

–     प्रसूति रोग विशेषज्ञ से चर्चा करने के बाद रजोनिवृत्त हो चुकी महिलाएं एस्ट्रोजेन क्रीम का इस्तेमाल कर सकती हैं.

–     यौनसंबंध बनाने के बाद उचित साफसफाई पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

–     यूटीआई का खतरा पैदा करने वाली एंटीडायबिटीक दवाओं के बारे में डायबिटीक विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लें.

–     लैक्स ब्लैडर का उपचार किया जाना चाहिए.

थायरायड और डायबिटीज

–     थायरायड विकार एक पैथोलौजिकल स्थिति है जो डायबिटीज नियंत्रण को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और इस में मरीज के परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने की क्षमता होती है.

–     थायरायड बीमारी डायबिटीज के सब से सामान्यरूप में पाई जाती है और यह अधिक उम्र के साथ जुड़ी होती है. खासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज और टाइप 1 डायबिटीज में औटोइम्यून बीमारियां जुड़ी होती हैं.

–     थायरायड विकार शरीर के मेटाबोलिक नियंत्रण को प्रभावित करता है और इसलिए ब्लड ग्लूकोज को नियंत्रित करना मुश्किल होता है.

–     थायरायड प्रोफाइल मरीजों को औटोइम्यूनिटी पर संशय होने पर थायरायड औटोएंटीबौडी की भी जांच करानी चाहिए.

–     ब्लड ग्लूकोज प्रबंधन के साथ उचित ढंग से नजर रखने के साथ ही थायरायड का उचित उपचार किया जाना चाहिए.

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जेस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस की स्थिति में गर्भधारण के दौरान नवजात को जान का खतरा रहता है.

-डा. अमृता घोष, डा. अनूप मिश्रा

(फोर्टिस अस्पताल, दिल्ली)

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