Mother’s Day Special: मैंगो कोकोनट बर्फी

इस समय आम बहुतायत में बाजार में उपलब्ध है. सफेदा, केसर, अल्फांजो, दशहरी, तोतापरी, नीलम आदि आम की प्रमुख किस्में हैं. आम में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अनेकों पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने के साथ साथ शरीर में खून की मात्रा को बढ़ाने में भी मददगार होते हैं. इसलिए आम को अपने भोजन में नियमित रूप से शामिल करना चाहिए. यूं भी डॉक्टर्स सीजनल फलों का भरपूर मात्रा में सेवन करने की सलाह देते हैं क्योंकि मौसमी फल हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं. आम से अनेकों लजीज व्यंजन भी बनाये जा सकते हैं…आज हम आपको ऐसी ही एक रेसिपी को बनाना बता रहे हैं-

बनाने में लगने वाला समय  20 मिनट

कितने लोंगों के लिए          20

मील टाइप                        वेज

सामग्री

पका आम                      1 बड़ा

दूध                                 1कप

शकर                               1 कप

किसा ताजा नारियल           3 कप

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इलायची पाउडर                  1/4 टीस्पून

केसर के धागे                       8

बारीक कटे पिस्ता                1 टेबलस्पून

विधि

आम को छीलकर छोटे छोटे टुकड़ों में काटकर 1/2 कप दूध के साथ मिक्सी में अच्छी तरह ब्लेंड कर लें. बचे आधा कप दूध में केसर के धागे डालकर रख दें. आम की प्यूरी में शकर डालकर तब तक चलाते हुए पकाएं जब तक कि शकर घुल न जाये. अब इसमें किसा नारियल और केसर युक्त दूध डालकर मिश्रण के गाढ़ा होने तक चलाते हुए मध्यम आंच पर  पकाएं. जब मिश्रण पैन में चिपकना छोड़ दे तो इलायची पाउडर डालकर चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं.

ऊपर से पिस्ता से गार्निश करके 30 मिनट तक ठंडा होने दें. चौकोर टुकड़ों में काटकर सर्व करें. इसे आप एयरटाइट जार में भरकर फ्रिज में रखकर 15-20 दिन तक प्रयोग कर सकतीं हैं.

यदि आपके पास ताजा नारियल नहीं है तो नारियल बुरादे को गर्म पानी में आधा घण्टा रखकर पानी छानकर प्रयोग करें इससे आपको ताजे नारियल का फ्लेवर मिल जाएगा.

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हेल्दी स्किन के लिए बनाएं ये 3 होममेड फ्लोरल फेस पैक

कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन लागू किया गया है. लॉकडाउन के वजह से बाजार पूरी तरह से बंद है. ऐसे में अपने स्किन का ध्यान रखने के लिए घर में ही कुछ न कुछ घरेलू उपाय करना होगा.हर लड़की का ख्वाब चमकदार और हेल्दी स्किन पाना होता है. अगर स्किन स्वस्थ है तो खुद के अंदर आत्मविश्वास आता है और मूड भी बढ़िया रहता है.ऐसा चेहरा पाने के लिये आपको किसी पार्लर जाने की जरुरत नहीं है. तो बस करना सिर्फ इतना है कि उनकी पंखुडियों का या तो पेस्ट बना कर इस्तमाल करें या फिर उन्हें सुखा कर पाउडर बना कर लगाएं. यहां तीन फूल दिए गए हैं जिनका उपयोग आप फेस पैक बनाने में कर सकते हैं.

1.गुलाब का फू

गुलाब जल के सौंदर्य लाभों के बारे में हम सभी जानते हैं.गुलाब जल स्किन के लिए एक टॉनिक की तरह काम करता है और स्किन को भीतर से साफ़ करके खूबसूरती प्रदान करता है, वहीं गुलाब की ताज़ी पत्तियों से तैयार फेस पैक का चेहरे पर इस्तेमाल करने से स्किन संबंधी कई समस्याओं से मुक्ति मिलती है. इसमें मौजूद एंटी-बैक्टीरियल, एंटी- एंटी-इंफ्लेमेट्री व एंटी-एजिंग गुण स्किन की गहराई से सफाई करते हैं. चेहरे पर पड़े दाग, धब्बे, सनटैन, डार्क सर्कल, ब्लैकहेड्स, व्हाइटहेड्स, पिंपल्स दूर होने में मदद मिलती है. सबसे पहले गुलाब की पंखुड़ियों को अच्छे से मसल लें और उसमे एक चम्मच दूध और ग्लिसरीन डाल कर अच्छे से मिक्स करें. 30 मिनट के लिए इस फेस पैक लगाएं और फिर इसे धो लें.गुलाब की पंखुड़ियों में मौजूद प्राकृतिक तेल आपकी स्किन को भीतर से गहराई तक नमी देते हैं और चेहरे की खूबसूरती व स्किन का स्वास्थ्य बढ़ाता है.

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2.कमल का फू

हाल ही में फैटी एसिड और प्रोटीन सामग्री के उच्च स्तर के कारण, स्किन के लिए कमल का इस्तेमाल प्रचलित हुआ है. यह न केवल स्किन को गहराई से हाइड्रेट करता है, बल्कि सूखापन और फाइन लाइनों को भी कम करता है. इसमें मौजूद एंटी-एजिंग गुण स्किन को गहराई से साफ करके लंबे समय तक नमी बरकरार रखने में मदद करते हैं. साथ ही दाग-धब्बे, पिंपल्स, झाइयां, झुर्रियां, ब्लैक व व्हाइट हेड्स से छुटकारा दिलाते हैं. कुछ कमल की पंखुड़ियों को लें और उन्हें मसल लें.  इसे मसलते हुए थोड़ा पानी डालें और फिर एक बड़ा चम्मच दूध और मसूर दाल पाउडर डालें. 15 मिनट के लिए फेस पैक को अपने चेहरे पर लगा रहने दें और फिर ठंडे पानी से धो लें. स्किन पर कमल की पंखुड़ियों का नियमित उपयोग आपकी स्किन का निखार बढ़ाएगा और फाइन लाइंस भी खत्म कर देगा.

3.चमेली का फू

चमेली के फूल की पंखुड़ियों को उनके मॉइस्चराइजिंग गुणों के लिए जाना जाता है. यह स्किन के लिए एक अच्छे क्लींजर के रूप में भी काम करता है और स्किन को चमकदार बनाने में मदद करता है. चमेली का फूल, जिसे जैस्मिन भी कहते हैं, सफेद रंग का फूल बहुत ही खुशबूदार होता है. इसलिए इसका प्रयोग परफ्यूम बनाने में भी किया जाता है. चमेली के फूल को ब्यूटी ट्रीटमेंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. चमेली के फूल में ऐटीमाइक्रोबियल और एंटीसेप्टिक गुण पाये जाते हैं. चमेली के फूलों की पंखुड़ियों का फेस पैक बनाने के लिए, कुछ पंखुड़ियों को चुनें और उन्हे अच्छे से  मैश करें. इसमें एक बड़ा चम्मच कच्चा दूध और बेसन या चने का आटा मिलाएं और अपने चेहरे पर लगाएं. इसे 15 से 20 मिनट के बाद निकालें.

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यह सभी फेस पैक का इस्तेमाल पूरी तरह से प्राकृतिक है और इसका चेहरे पर कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता.आप इनके इस्तेमाल से हेल्दी स्किन आसानी से पा सकते हैं.

जानें कैसे हो सकता है कोविड –19 के मरीजों में ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल में सुधार

सवाल 1 – प्रोन पोजिशन क्या है?

जवाब 1 – यह एक सरल तकनीक है जिससे मरीजों को पेट के बल लेटना होता है और उनकी छाती और चेहरा नीचे की ओर होता है. रोगी को प्रोन पोजिशन में रखने पर उनके रक्त में ऑक्सीजन की आपूर्ति में सुधार होता है जिससे श्वसन में मदद मिलती है.

सवाल 2 – ऑक्सीजन स्तर को बढ़ाने में प्रोन पोजिशन कैसे काम करता है?

जवाब 2 – जब हम चित सीधे लेटे होते हैं जिसमें चेहरा और छाती ऊपर की ओर होता है, तो हृदय का दबाव फेफड़ों पर पड़ता है क्योंकि यह फेफड़ों के ऊपर होता है. जिसके कारण हृदय फेफड़े को दबाता है और फेफड़ों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पूरी तरह से फैल नहीं पाता है या पूरी तरह से फुल नहीं पाता है. लेकिन, जब हम चेहरा नीचे कर (पेट के बल) लेटते हैं, तो हृदय के वजन को हमारे पंजर (रिब केज) और रीढ़ (स्पाइन) द्वारा सपोर्ट मिलता है. हृदय अब फेफड़ों पर पूरी तरह से दबाव नहीं डाल रहा होता है जिससे फेफड़ों का पूरी तरह फुलना और ठीक से काम करना आसान होता है. ऑक्सीजन की आपूर्ति शरीर के सभी भागों में समान रूप से पहुंचना बहुत महत्वपूर्ण है जो कि परफ्युजन प्रक्रिया के द्वारा रक्त परिसंचरण के माध्यम से होती है. प्रोन पोजिशन में, रक्त परिसंचरण, और ऑक्सीजन की आपूर्ति दोनों उत्कृष्ट स्तर पर होती हैं जिससे शरीर के सभी हिस्सों में पर्याप्त रक्त पहुंचता है. वेंटिलेशन (फेफड़ों में और फेफड़ों की दीवारों के बाहर हवा का प्रवाह) और परफ्युजन (फेफड़ों की दीवार के केशिकाओं में रक्त का प्रवाह) के बीच संतुलन प्रोन पोजिशन में काफी अच्छा हाेता है.

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सवाल 3 – क्या आप हमें घर में किये जा सकने वाले सेल्फप्रोनिंग के लिए चरणदरचरण दिशानिर्देश दे सकते हैं?

जवाब 3 – कृपया इस पूरी प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन के स्तर को मापने के लिए ऑक्सीमीटर का उपयोग करें –

  • पोजिशन 1: अपने पेट के बल 30 मिनट से 2 घंटे तक लेटें.

यदि रोगी पहले से ही ऑक्सीजन के सपोर्ट पर है, तो ऑक्सीजन को इस पोजिशन में नहीं निकाला जाना चाहिए, सिर को बाईं ओर / दाईं ओर घुमाएं और ऑक्सीजन का सपोर्ट जारी रखें. सपोर्ट के लिए सिर, छाती और पेल्विस के नीचे तकिया रखें लेकिन पेट पर दबाव नहीं पड़ना चाहिए.

  • पोजिशन 2: 30 मिनट से 2 घंटे तक अपनी बाईं करवट लेटें.
  • पोजिशन 3: 30 मिनट से 2 घंटे तक उठते–लेटते रहें.
  • पोजिशन 4: 30 मीटर से 2 घंटे तक अपनी दाईं करवट लेटें.
  • पोजिशन 5: पोजिशन 1पर वापस जाएं 1- अपने पेट के बल 30 मिनट से 2 घंटे तक लेटें.

सवाल 4 – क्या सभी रोगियों को प्रोन पोजिशन से लाभ हो सकता है?

जवाब 4 – इसका लाभ एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग– अलग होता है जिसे केवल रोगी को प्रोन पोजिशन में रहने पर निर्धारित किया जा सकता है. प्रोन पोजिशन में रहने पर कुछ लोगों के ऑक्सीजन के स्तर में बहुत सुधार होता है, लेकिन कुछ लोगों के ऑक्सीजन के स्तर में बहुत अंतर दिखाई नहीं देता है, और इसी से यह पता लगाया जा सकता है कि यह उन पर काम कर रहा है या नहीं.

सवाल 5 – प्रोन पोजिशन में रहने से किसे बचना चाहिए?

जवाब 5 – निम्न लोगों के लिए प्रोन पोजिशन उचित नहीं है –

  • गर्भवती महिला
  • गंभीर हृदय रोग वाले रोगी
  • अस्थिर रीढ़ या रीढ़ में फ्रैक्चर वाले रोगी
  • पेल्विक फ्रैक्चर वाले रोगी.

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सवाल 6 – सेल्फ प्रोनिंग के दौरान किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?

जवाब 6 – यदि आप घर में सेल्फ प्रोनिंग की योजना बना रहे हैं तो कुछ महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखें –

  • भोजन के बाद कम से कम 2 घंटे के लिए सेल्फ प्रोनिंग से बचें.
  • सेल्फ प्रोनिंग की केवल उतनी ही प्रक्रिया दोहराएं जितना करना आसानी से संभव हो या सहन हो सके. अपने आप पर अधिक दबाव नहीं डालें.
  • सेल्फ प्रोनिंग के दौरान दबाव के कारण होने वाले किसी घाव या चोट की जाँच कर लें.
  • सुनिश्चित करें कि प्रक्रिया के दौरान रक्तचाप और हाइड्रेशन बना रहे.

जरूरी बात

आंख मूंद कर किसी भी प्राकृतिक या हर्बल उपाय को बनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें आजकल सोशल मीडिया यूट्यूब हर जगह बाबा रामदेव के बनाए हुए नुस्खों की भरमार है. वह एक ऐसा टीवी व्यक्तित्व है जिसका सच्चाई के साथ संबंध ही काफी लोचदार है. हकीकत में तो वह ब्रांडिंग का कोई अवसर नहीं खोना चाहते. तभी तो उनका नाम और चेहरा भारत में हर जगह दिख जायेगा. चाहे स्वदेशी सिम कार्ड हो या पैकेज्ड नूडल्स या हर्बल कब्ज उपचार या फिर गाय के मूत्र से बना फर्श क्लीनर ही क्यों न हो वह अपनी ब्रांडिंग कभी नहीं छोड़ते और जब से देश महामारी के जाल में फंसा है तब से तो आए दिन कोविड से बचने के नुस्खे बताते रहते हैं. उनके बताए हुए नुस्खों की बानगी तो देखिए.

यदि गिलोय, तुलसी और काली मिर्च से बना काढ़ा पियेंगे तो कोविड भाग जायेगा. साथ में हल्दी का दूध या काढ़ा भी फायदेमंद है. रामदेव के अनुसार यदि गिलोय का रस पिया जाए रोज सुबह शाम दो चम्मच तो आपके शरीर की इम्यूनिटी स्ट्रांग हो जाएगी और आप इन सब विधियों को अपनाकर कोरोनावायरस को मात दे सकते हैं.

इसलिए हम तो यही कहना चाहेंगे कि आप किसी भी नुस्खे को अपनाने से पहले एक बार डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

डॉ राजेश कुमार पांडे, वरिष्ठ निदेशक और विभागाध्यक्ष, बीएलके – मैक्स सेंटर फॉर क्रिटिकल केयर,

बीएलके – मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल से बातचीत पर आधारित

मेहनत ही मंजिल तक पहुंचाती है- मान्या सिंह

मान्या सिंह

रनर अप, मिस इंडिया 2020

ज  ब आप के सपने हकीकत में बदल जाते हैं, तो जिंदगी खूबसूरत लगने लगती है. कुछ ऐसा ही अनुभव किया है उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के देवरिया जिले की मिस इंडिया 2020 रनर अप मान्या सिंह ने, जो इस ताज को पहन कर बहुत उत्साहित हैं. उन के हिसाब से हर लड़की के सिर के ऊपर एक ताज होता है, जिसे मेहनत और लगन से ही पाया जा सकता है. मान्या अभी मुंबई में रहती हैं. उन के पिता ओमप्रकाश सिंह मुंबई में औटोरिकशा चलाते हैं और मां मनोरमा देवी पार्लर में काम करती हैं.

हंसमुख स्वभाव की मान्या इस लंबी जर्नी के बारे में बताते हुए भावविभोर हुईं और आंखों से आंसू भी छलके, लेकिन जीत की चमक उन के चेहरे पर थी. बातचीत के कुछ खास अंश इस प्रकार हैं:

जब आप का नाम ले कर अवार्ड की घोषणा की गई, तब आप को कैसा लगा?

यह मेरे जीवन का सब से सुंदर तोहफा है, जिसे मैं ने काफी सालों की कोशिश के बाद पाया है. इस के द्वारा मैं यह सिद्ध करना चाहती हूं कि कोई भी व्यक्ति रंगरूप, नैननक्श, अमीरगरीब आदि से नहीं आंका जाता, बल्कि उस की मेहनत और लगन ही उसे मंजिल तक पहुंचाने में मदद करती है.

जब मेरे नाम की घोषणा की गई, तो मुझे थोड़ी दूर स्टेज तक जाने में मुश्किल हो रही थी और इतने समय में मेरे जीवन का पूरा संघर्ष मेरी आंखों के आगे घूम गया. मुझे लगा कि अंत में मैं ने बाजी जीत ली है. फिर मैं ने क्राउन को अपने हाथों से पकड़ा, एक सुंदर एहसास था.

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क्राउन पहनने के बाद अब आप ने आगे क्याक्या करने के बारे में सोचा है?

जितना मैं ने सोचा था, उस से कहीं अधिक मुझे मिला और मेरा सबकुछ पूरा हो गया है. यह क्राउन मुझे मेरे पक्के इरादे की वजह से मिला है, इसलिए आने वाले समय में जो भी मुझे मिलेगा, उस का मैं दोनों हाथों से वैलकम करूंगी. मेरी इस जीत के बाद हर लड़का, हर लड़की यह सोच पाएगी कि अगर मान्या को सफलता मिल सकती है, तो मुझे भी मिलेगी.

क्या आप को स्टेज पर जाने से पहले इस जीत का अंदाजा था?

बिलकुल भी नहीं था, लेकिन जब मैं स्टेज पर गई, तो रिजल्ट कुछ भी हो, पता था कि मैं अपना बैस्ट ही दूंगी.

गांव से शहर कैसे आना हुआ? शहर में कैसे सर्वाइब किया?

पैसे के अभाव में मैं ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और बूआ के घर जा कर रहने लगी थी. वहां मैं दिन में काम करती और रात में तेल की ढिबरी के आगे पढ़ती, पर बूआ को मिट्टी के तेल की गंध पसंद नहीं थी, इसलिए मैं बाहर लैंप पोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ने लगी. कुछ दिनों बाद मैं वापस गांव आ गई और मेरी मां ने स्कूल अथौरिटी से बात कर मुझे बिना एडमिशन के क्लास में जाने की अनुमति मांगी, जो मुझे मिल गई. मैं केवल परीक्षा की फीस दे कर ऐग्जाम देती थी.

ऐसा करतेकरते मैं ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की. उस दौरान घर में कुछ कहासुनी होने की वजह से मैं 14 साल की उम्र में महिला जनरल बोगी ट्रेन में बैठ कर मुंबई आ गई. मैं ने उस दिन मन में सोच लिया कि अगर मैं आज घर से निकलने का यह निर्णय नहीं ले सकी, तो आगे कभी भी लेना संभव नहीं हो सकेगा. इसी सोच के साथ बिना टिकट 3 दिन बिना खाए मुंबई आ गई. हालांकि मातापिता और भाई भी मेरे पीछेपीछे आ गए थे, क्योंकि उन्हें पता था कि मैं मुंबई में ही मिलूंगी.

यहां आने पर पिता औटोरिकशा चलाने लगे, जिस से घर का खर्च पूरा नहीं हो पा रहा था, इसलिए मैं ने पिज्जा हट में काम करना शुरू किया. वहां भी पहले दिन एक बौक्स भर नीबू निचोड़ने को कहा गया.

उस दिन मेरे हाथ में छाले पड़ गए. इस के बाद मैं ने कौलसैंटर में काम किया, साथ में पढ़ाई भी चलती रही. ब्यूटी पेजैंट में जाना मेरा सपना था, इसलिए मुझे उस के लिए खुद को ग्रूम करना जरूरी था. कौलसैंटर ने इस में बहुत सहयोग दिया.

वहां मैं ने लोगों से बातें करना, कंप्यूटर चलाना, भाषा को ठीक करना आदि छोटीछोटी चीजों को सीखा. मेरा अलगअलग जगह पर काम करने का मतलब खुद को ग्रूम करना ही प्रमुख था. इतना ही नहीं मैं ने कई जगह ब्यूटी पेजैंट में अपना नाम दिया, वहां कुछ में मैं जीती, तो कुछ ने मेरे चेहरे, रंग और बोलचाल को ले कर मजाक बनाया. इस सब के बावजूद मैं कभी टूटी नहीं.

परिवार का सहयोग कितना रहा?

मेरे परिवार ने हमेशा मेरा साथ केवल परिवार बन कर नहीं वरन एक दोस्त बन कर दिया. मेरी मां हमेशा कहती रहीं कि जो मेहनत अधिक करते हैं, उन्हें ही समस्या आती है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि मुझ से बढ़ कर उन के जीवन में कोई नहीं है. मेरी यह कोशिश मुझे मंजिल तक अवश्य पहुंचाएगी. आज मेरी कामयाबी ने मातापिता को खुशी के आंसू दिए हैं और वे गर्वित भी हैं.

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आप की इस जीत से यूथ को कितना प्रोत्साहन मिलेगा?

वे यह सोचने पर मजबूर होंगे कि वे जिस किसी भी बैकग्राउंड या स्थान से आए हों, अपने सपने को पूरा कर सकते हैं. उन्हें कोई नहीं रोक सकता. ड्रीम बियौंड योर इमैजिनेशन होता है.  उसे प्राप्त करने की कोशिश करें और खुद पर विश्वास रखें.

गृहशोभा के जरीए क्या मैसेज देना चाहती हैं?

‘‘तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल, तेरे वजूद को समय की भी तलाश है.’’ इन पंक्तियों को आप याद रखें

और जो भी सपना है, उसे पूरा करने की  कोशिश करें.

Mother’s Day Special: मां बनना औरत की मजबूरी नहीं

मातृत्व का एहसास औरत के लिए कुदरत से मिला सब से बड़ा वरदान है. औरत का सृजनकर्ता का रूप ही उसे पुरुषप्रधान समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान देता है. मां वह गरिमामय शब्द है जो औरत को पूर्णता का एहसास दिलाता है व जिस की व्याख्या नहीं की जा सकती. यह एहसास ऐसा भावनात्मक व खूबसूरत है जो किसी भी स्त्री के लिए शब्दों में व्यक्त करना शायद असंभव है.

वह सृजनकर्ता है, इसीलिए अधिकतर बच्चे पिता से भी अधिक मां के करीब होते हैं. जब पहली बार उस के अपने ही शरीर का एक अंश गोद में आ कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उसे छूता है और जब वह उस फूल से कोमल, जादुई एहसास को अपने सीने से लगाती है, तब वह उस को पैदा करते समय हुए भयंकर दर्द की प्रक्रिया को भूल जाती है.

लेकिन भारतीय समाज में मातृत्व धारण न कर पाने के चलते महिला को बांझ, अपशकुनी आदि शब्दों से संबोधित कर उस का तिरस्कार किया जाता है, उस का शुभ कार्यों में सम्मिलित होना वर्जित माना जाता है. पितृसत्तात्मक इस समाज में यदि किसी महिला की पहचान है तो केवल उस की मातृत्व क्षमता के कारण. हालांकि कुदरत ने महिलाओं को मां बनने की नायाब क्षमता दी है, लेकिन इस का यह मतलब कतई नहीं है कि उस पर मातृत्व थोपा जाए जैसा कि अधिकांश महिलाओं के साथ होता है.

विवाह होते ही ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ के आशीर्वाद से महिला पर मां बनने के लिए समाज व परिवार का दबाव पड़ने लगता है. विवाह के सालभर होतेहोते वह ‘कब खबर सुना रही है’ जैसे प्रश्नचिह्नों के घेरे में घिरने लगती है. इस संदर्भ में उस का व्यक्तिगत निर्णय न हो कर परिवार या समाज का निर्णय ही सर्वोपरि होता है, जैसे कि वह हाड़मांस की बनी न हो कर, बच्चे पैदा करने की मशीन है.

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समाज का दबाव

महिला के शरीर पर समाज का अधिकार जमाना नई बात नहीं है. हमेशा से ही स्त्री की कोख का फैसला उस का पति और उस के घर वाले करते रहे हैं. लड़की कब मां बन सकती है और कब नहीं, लड़का होना चाहिए या लड़की, ये सभी निर्णय समाज स्त्री पर थोपता आया है. वह क्या चाहती है, यह कोई न तो जानना चाहता है और न ही मानना चाहता है, जबकि सबकुछ उस के हाथ में नहीं होता है, फिर भी ऐसा न होने पर उस को प्रताडि़त किया जाता है.

यह दबाव उसे शारीरिक रूप से मां तो बना देता है परंतु मानसिक रूप से वह इतनी जल्दी इन जिम्मेदारियों के लिए तैयार नहीं हो पाती है. यही कारण है कि कभीकभी उस का मातृत्व उस के भीतर छिपी प्रतिभा को मार देता है और उस का मन भीतर से उसे कचोटने लगता है.

कैरियर को तिलांजलि

परिवार को उत्तराधिकारी देने की कवायद में उस के अपने कैरियर को ले कर देखे गए सारे सपने कई वर्षों के लिए ममता की धुंध में खो जाते हैं. यह अनचाहा मातृत्व उस की शोखी, चंचलता सभी को खो कर उसे एक आजाद लड़की से एक गंभीर महिला बना देता है.

लेकिन अब बदलते समय के अनुसार, महिलाएं जागरूक हो ई हैं. आज कई ऐसे सवाल हैं जो घर की चारदीवारी में कैद हर उस औरत के जेहन में उठते हैं, जिस की आजादी व स्वर्णिम क्षमता पर मातृत्व का चोला पहन कर उसे बाहर की दुनिया से महरूम कर दिया गया है.

आखिर क्यों औरत की ख्वाहिशों को ममता के खूंटे से बांध कर बाहर की दुनिया से अनभिज्ञ रखा जाता है? जैसे कि अब उस का काम नौकरी या उन्मुक्त जिंदगी जीना नहीं, बल्कि अपने बच्चे की परवरिश में अपना अस्तित्व ही दांव पर लगा देना मात्र रह गया हो.

बच्चे को अपने रिश्ते का जामा पहना कर उस पर अपना अधिकार तो सभी जमाते हैं, लेकिन जो बच्चे के पालनपोषण से संबंधित कर्तव्य होते हैं, उन का निर्वाह करने के लिए तो पूरी तरह से मां से ही अपेक्षा की जाती है. क्या परिवार में अन्य कोई बच्चे का पालनपोषण नहीं कर सकता. यदि हां, तो फिर इस की जिम्मेदारी अकेली औरत ही क्यों ढोती है?

निर्णय की स्वतंत्रता

दबाव में लिया गया कोई भी निर्णय इंसान पर जिम्मेदारियां तो लाद देता है परंतु उन का वह बेमन से वहन करता है. जब हम सभी एक शिक्षित व सभ्य समाज का हिस्सा हैं तो क्यों न हर निर्णय को समझदारी से लें तथा जिम्मेदारियों के मामले में स्त्रीपुरुष का भेद मिटा कर मिल कर सभी कार्य करें. ऐसे वक्त में यदि उस का जीवनसाथी उसे हर निर्णय की आजादी दे व उस का साथ निभाए तो शायद वह मां बनने के अपने निर्णय को स्वतंत्रतापूर्वक ले पाएगी.

एक पक्ष यह भी

कानून ने भी औरत के मां बनने पर उस की अपनी एकमात्र स्वीकृति या अस्वीकृति को मान्यता प्रदान करने पर अपनी मुहर लगा दी है.

मातृत्व नारी का अभिन्न अंश है, लेकिन यही मातृत्व अगर उस के लिए अभिशाप बन जाए तो? वर्ष 2015 में गुजरात में एक 14 साल की बलात्कार पीडि़ता ने बलात्कार से उपजे अनचाहे गर्भ को समाप्त करने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति मांगी थी, लेकिन उसे अनुमति नहीं दी गई. एक और मामले में गुजरात की ही एक सामूहिक बलात्कार पीडि़ता के साथ भी ऐसा हुआ. बरेली, उत्तर प्रदेश की 16 वर्षीय बलात्कार पीडि़ता को भी ऐसा ही फैसला सुनाया गया. ऐसी और भी अन्य दुर्घटनाएं सुनने में आई हैं.

बलात्कार पीडि़ता के लिए यह समाज कितना असंवेदनशील है, यह जगजाहिर है. बलात्कारी के बजाय पीडि़ता को ही शर्म और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. ऐसे में अगर कानून भी उस की मदद न करे और बलात्कार से उपजे गर्भ को उस के ऊपर थोप दिया जाए तो उस की स्थिति की कल्पना कीजिए, वह कानून और समाज की चक्की के 2 पाटों के बीच पिस कर रह जाती है. लड़की के पास इस घृणित घटना से उबरने के सारे रास्ते खत्म हो जाते हैं और ऐसे बच्चे का भी कोई भविष्य नहीं रह जाता जिसे समाज और उस की मां स्वीकार नहीं करती.

पिछले साल तक आए इस तरह के कई फैसलों ने इस मान्यता को बढ़ावा दिया था कि किस तरह से महिला के शरीर से जुड़े फैसलों का अधिकार समाज और कानून ने अपने हाथ में ले रखा है. वह अपनी कोख का फैसला लेने को आजाद नहीं है. अनचाहा और थोपा हुआ मातृत्व ढोना उस की मजबूरी है.

लेकिन 1 अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार की शिकार एक नाबालिग लड़की के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के असामान्य भू्रण को गिराने की इजाजत दे दी. कोर्ट ने यह आदेश इस आधार पर दिया कि अगर भू्रण गर्भ में पलता रहा तो महिला को शारीरिक व मानसिक रूप से गंभीर खतरा हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 के प्रावधान के आधार पर यह आदेश दिया है. कानून के इस प्रावधान के मुताबिक, 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति उसी स्थिति में दी जा सकती है जब गर्भवती महिला की जान को गंभीर खतरा हो. 21 सितंबर, 2017 को आए मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले ने स्थिति को पलट दिया.

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न्यायालय ने महिला के शरीर और कोख पर सिर्फ और सिर्फ महिला के अधिकार को सम्मान देते हुए यह फैसला दिया है कि यह समस्या सिर्फ अविवाहित स्त्री की नहीं है, विवाहित स्त्रियां भी कई बार जरूरी कारणों से गर्भ नहीं चाहतीं.

कोई भी महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, अवांछित गर्भ को समाप्त करने के लिए स्वतंत्र है, चाहे वजह कोई भी हो. इस अधिकार को गरिमापूर्ण जीवन जीने के मूल अधिकार के साथ सम्मिलित किया गया है. महिलाओं के अधिकारों और स्थिति के प्रति बढ़ती जागरूकता व समानता इस फैसले में दिखाई देती है. अविवाहित और विवाहित महिलाओं को समानरूप से यह अधिकार सौंपते हुए उच्च न्यायालय ने लिंग समानता और महिला अधिकारों के पक्ष में एक मिसाल पेश की है.

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

28 अक्तूबर, 2017 को गर्भपात को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, अब किसी भी महिला को अबौर्शन यानी गर्भपात कराने के लिए अपने पति की सहमति लेनी जरूरी नहीं है. एक याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह फैसला लिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भी बालिग महिला को बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार है. गर्भपात कराने के लिए महिला को पति से सहमति लेनी जरूरी नहीं है. बता दें कि पत्नी से अलग हो चुके एक पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. पति ने अपनी याचिका में पूर्व पत्नी के साथ उस के मातापिता, भाई और 2 डाक्टरों पर अवैध गर्भपात का आरोप लगाया था. पति ने बिना उस की सहमति के गर्भपात कराए जाने पर आपत्ति दर्ज की थी.

इस से पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी याचिकाकर्ता की याचिका ठुकराते हुए कहा था कि गर्भपात का फैसला पूरी तरह महिला का हो सकता है. अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस ए एम खानविलकर की बैंच ने यह फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात का फैसला लेने वाली महिला वयस्क है, वह एक मां है, ऐसे में अगर वह बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती है तो उसे गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है. यह कानून के दायरे में आता है.

हम यह स्वीकार करते हैं कि आज कानून की सक्रियता ने महिलाओं को काफी हद तक उन की पहचान व अधिकार दिलाए हैं परंतु आज भी हमारे देश की 40 प्रतिशत महिलाएं अपने इन अधिकारों से महरूम हैं, जिस के कारण आज उन की हंसतीखेलती जिंदगी पर ग्रहण सा लग गया है.

बच्चे के जन्म का मां और बच्चे दोनों के जीवन पर बहुत गहरा और दूरगामी प्रभाव पड़ता है. इसलिए मातृत्व किसी भी महिला के लिए एक सुखद एहसास होना चाहिए, दुखद और थोपा हुआ नहीं.

हर सिक्के के दो पहलू

बच्चा पैदा करना पूरी तरह से महिलाओं के निर्णय पर निर्भर होने से परिवार में कई विसंगतियां पैदा होंगी.

बच्चे की जरूरत पूरे परिवार को होती है, और उसे पैदा एक औरत ही कर सकती है. ऐसे में उस के नकारात्मक रवैए से पूरा परिवार प्रभावित होगा.

मातृत्व का खूबसूरत एहसास मां बनने के बाद ही होता है. नकारात्मक निर्णय लेने से महिला इस एहसास से वंचित रह जाएगी.

सरोगेसी इस का विकल्प नहीं है, मजबूरी हो तो बात अलग है.

अपनी कोख से पैदा किए गए बच्चे से मां के जुड़ाव की तुलना, गोद लिए बच्चे या सरोगेसी द्वारा पैदा किए गए बच्चे से की ही नहीं जा सकती.

आज के दौर में महिलाएं मातृत्व से अधिक अपने कैरियर को महत्त्व देती हैं. उन की इस सोच पर कानून की मुहर लग जाने के बाद अब परिवार के विघटन का एक और मुद्दा बन जाएगा और तलाक की संख्या में बढ़ोतरी होनी अवश्यंभावी है.

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रेहड़ी दुकानदारों की आर्थिक मदद करेगी उत्तर प्रदेश सरकार

लखनऊ . कोविड संक्रमण से मुक्त कुछ लोगों में ब्लैक फंगस नाम की नई बीमारी के प्रसार की जानकारी भी मिली है. राज्य स्तरीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों की परामर्शदात्री समिति से संवाद बनाते हुए इसके उपचार हेतु आवश्यक गाइडलाइंस आज ही जारी कर दी जाएं. आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. उत्तर प्रदेश को इस मामले में प्रो-एक्टिव रहना होगा.इसके बचाव, उपचार आदि की समुचित व्यवस्था पूरी तत्परता के साथ किया जाए.

ब्लैक फंगस बीमारी के उपचार सम्बंध में प्रशिक्षण आवश्यक है. सभी मेडिकल कॉलेजों, सीएमओ, इलाज में संलग्न अन्य चिकित्सकों को एसजीपीजीआईपीजीआई से जोड़ते हुए इस सम्बन्ध में आवश्यक चिकित्सकीय प्रशिक्षण कराने की कार्यवाही तत्काल कराई जाए.

कतिपय जनपदों में कुछ निजी कोविड अस्पतालों द्वारा सरकार द्वारा तय दर से अधिक की वसूली करने की शिकायतें मिल रही हैं. लखनऊ में ऐसे ही कुछ अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. सभी जिलाधिकारी यह सुनिश्चित करें कि मरीज और उसके परिजनों का किसी भी प्रकार उत्पीड़न न हो. ऐसे असंवेदनशील अस्पतालों से मरीजों को अन्यत्र शिफ्ट करके, अस्पताल के विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई की जाए.

बहुत से मरीज कोविड संक्रमण से मुक्त हो चुके हैं किंतु अभी भी उन्हें चिकित्सकीय निगरानी को जरूरत होती है. ऐसे मरीजों को उनकी मेडिकल कंडीशन के.आधार पर एल-1 हॉस्पिटल में ऑक्सीजन युक्त बेड पर भर्ती जरूर कराया जाए. उनके सेहत की पूरी देखभाल हो.

कोविड प्रबंधन में निगरानी समितियों की भूमिका अति महत्वपूर्ण है और इन समितियों ने  प्रशंसनीय कार्य किया है. इन्हें और प्रभावी बनाने के लिए बेहतर मॉनीटरिंग की जरूरत है. प्रत्येक जिले के लिए सचिव अथवा इससे ऊपर स्तर के एक-एक अधिकारी को नामित किया जाए. जबकि न्याय पंचायत स्तर पर जनपद स्तरीय अधिकारियों को सेक्टर प्रभारी के रूप में तैनात किया जाए. यह प्रभारी अपने क्षेत्र में मेडिकल किट वितरण, होम आइसोलेशन व्यवस्था, क्वारन्टीन व्यवस्था, कंटेनमेंट ज़ोन को प्रभावी बनाने तथा आरआरटी की संख्या बढाने के लिए सभी जरूरी प्रयास करेंगे. जो अधिकारी हाल ही में कोविड संक्रमण से मुक्त होकर स्वस्थ हुआ हो, उनकी तैनाती इस कार्य में न की जाए.

कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने और गांवों को कोरोना से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से वर्तमान में 97,000 से अधिक राजस्व गांवों में वृहद टेस्टिंग अभियान संचालित किया जा रहा है. इस अभियान के सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा नीति आयोग ने भी हमारे इस अभियान की सराहना की है. व्यापक जनमहत्व के इस अभियान को कोरोना कर्फ्यू की पूरी अवधि में तत्परता के साथ संचालित किया जाए. हर लक्षणयुक्त/संदिग्ध व्यक्ति की एंटीजन जांच की जाए. आरआरटी टीम की संख्या बढ़ाई जाए.

कोविड मरीजों के लिए बेड बढ़ोतरी की दिशा में प्रयास और तेज किए जाने की आवश्यकता है. मार्च से अब तक 30000 से अधिक बेड बढ़ाये गए हैं. हर दिन इसमें बढ़ोतरी हो रही है. बीते 24 घंटे में विभिन्न जिलों में करीब 250 बेड और बढ़े हैं. भविष्य की जरूरत को देखते हुए बेड बढ़ोतरी के लिए सभी विकल्पों पर ध्यान देते हुए कार्यवाही की जाए. चिकित्सा शिक्षा मंत्री स्तर से इसकी दैनिक समीक्षा की जाए.

ऑक्सिजन प्लांट की स्थापना की कार्यवाही तेजी से की जाए. भारत सरकार द्वारा स्थापित कराए जा रहे प्लांट के संबंध में मुख्य सचिव सतत अनुश्रवण करते रहें. पीएम केयर्स के अतर्गत लग रहे ऑक्सीजन प्लांट लखनऊ, जौनपुर, फिरोजाबाद, सिद्धार्थ नगर आदि में जल्द ही क्रियाशील हो जाएंगे. सहारनपुर में प्लांट चालू हो चुका है. सीएसआर की मदद और राज्य सरकार द्वारा स्थापित कराए जा रहे प्लांट्स की कार्यवाही तेज की जाए.  कोविड के उपचार हेतु एयर सेपरेटर यूनिट, ऑक्सीजन प्लांट की स्थापना आदि के संबंध में सांसद/विधायक निधि से सहयोग लिया जा सकता है.

निगरानी समितियां जिन्हें मेडिकल किट दे रही हैं, उनका नाम और फोन नम्बर आइसीसीसी को उपलब्ध कराएं. आइसीसीसी इसका पुनरसत्यापन करे. इसके अतिरिक्त जिलाधिकारी के माध्यम से इसकी एक प्रति स्थानीय जनप्रतिनिधियों को उपलब्ध कराया जाए, ताकि सांसद/विधायकगण मेडिकल किट प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ कर रहे लोगों से संवाद कर सकें. इससे व्यवस्था का क्रॉस वेरिफिकेशन भी हो सकेगा. हर संदिग्ध लक्षणयुक्त व्यक्ति की एंटीजन टेस्ट जरूर हो.

सभी जिलों में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराए गए हैं. एसीएस स्वास्थ्य, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा प्रत्येक दशा में इन उपकरणों को क्रियाशील होना सुनिश्चित कराएं. संबंधित जिलों से संपर्क कर इस संबंध में उनकी समस्याओं का निराकरण कराएं. इसके उपरांत भी यदि वेंटिलेटर/ऑक्सीजन कंसंट्रेटर क्रियाशील न होने की सूचना प्राप्त हुई तो संबंधित डीएम/सीएमओ की जवाबदेही तय की जाएगी.

आंशिक कोरोना कर्फ्यू को दृष्टिगत रखते हुए रेहड़ी, पटरी, ठेला व्यवसायी, निर्माण श्रमिक, पल्लेदार आदि के भरण-पोषण की समुचित व्यवस्था की जाए. सभी जिलों में कम्युनिटी किचेन संचालित किए जाएं. निजी स्वयंसेवी संस्थाओं से भी सहयोग प्राप्त करना उचित होगा.

‘सफाई, दवाई, कड़ाई, के मंत्र के अनुरूप प्रदेशव्यापी स्वच्छता, सैनीताइजेशन का अभियान चल रहा है. लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने की जरूरत है. कोरोना कर्फ्यू को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए. स्वच्छता, सैनिटाइजेशन से जुड़े कार्यों का दैनिक विवरण स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी उपलब्ध कराया जाए. ताकि आवश्यकतानुसार वह भौतिक परीक्षण कर सकें.

ब्लैक फंगस से निपटने को योगी सरकार ने कसी कमर

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर एसजीपीजीआई, लखनऊ में ब्लैक फंगस के मरीजों के उपचार की दिशा तय करने के लिए 12 सदस्यीय वरिष्ठ चिकित्सकों की टीम गठित कर दी गई है. इस टीम से अन्य चिकित्सक मार्गदर्शन भी ले सकेंगे.

एसजीपीजीआई के निदेशक डॉ. आरके धीमन की अध्यक्षता में विशेष टीम ने प्रदेश के विभिन्न सरकारी व निजी मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों के डॉक्टरों को इलाज के बारे में प्रशिक्षण दिया. ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यशाला में डॉक्टरों को ब्लैक फंगस के रोगियों की पहचान, इलाज, सावधानियों आदि के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई.

इंतजाम में देरी नहीं: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ब्लैक फंगस की स्थिति की जानकारी लेते हुए इस मामले में ‘प्रो-एक्टिव’ रहने के निर्देश दिए है. सीएम योगी ने कहा कि विशेषज्ञों के मुताबिक कोविड से उपचारित मरीजों खासकर अनियंत्रित मधुमेह की समस्या से जूझ रहे लोगों में ब्लैक फंगस की समस्या देखने मे आई है. उन्होंने स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिए कि विशेषज्ञों के परामर्श के अनुसार इसके उपचार में उपयोगी दवाओं की उपलब्धता तत्काल सुनिश्चित कराई जाए. उन्होंने कहा है कि लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए आवश्यक गाइडलाइन जारी कर दी जाएं. सभी जिलों के जिला अस्पतालों में इसके उपचार की सुविधा दी जाए.

प्लास्टिक सर्जन डॉ. सुबोध कुमार सिंह बताते हैं कि म्यूकर माइकोसिस अथवा ब्लैक फंगस, चेहरे, नाक, साइनस, आंख और दिमाग में फैलकर उसको नष्ट कर देती है. इससे आँख सहित चेहरे का बड़ा भाग नष्ट हो जाता है और जान जाने का भी खतरा रहता है. इसके लक्षण दिखते ही तत्काल उचित चिकित्सकीय परामर्श लेना बेहतर है. लापरवाही भारी पड़ सकती है.

इन मरीजों को बरतनी होगी खास सावधानी:

1- कोविड इलाज के दौरान जिन मरीजों को स्टेरॉयड दवा जैसे, डेक्सामिथाजोन, मिथाइल प्रेड्निसोलोन इत्यादि दी गई हो.

2- कोविड मरीज को इलाज के दौरान ऑक्सीजन पर रखना पड़ा हो या आईसीयू में रखना पड़ा हो.

  1. डायबिटीज का अच्छा नियंत्रण ना हो.
  2. कैंसर, किडनी ट्रांसप्लांट इत्यादि के लिए दवा चल रही हो.

यह लक्षण दिखें तो तुरंत लें डॉक्टरी सलाह:-

  1. बुखार आ रहा हो, सर दर्द हो रहा हो, खांसी हो, सांस फूल रही हो.
  2. नाक बंद हो. नाक में म्यूकस के साथ खून आ रहा हो.
  3. आँख में दर्द हो. आँख फूल जाए, एक वस्तु दो दिख रही हो या दिखना बंद हो जाए.
  4. चेहरे में एक तरफ दर्द हो , सूजन हो या सुन्न हो (छूने पर छूने का अहसास ना हो)
  5. दाँत में दर्द हो, दांत हिलने लगें, चबाने में दर्द हो.
  6. उल्टी में या खांसने पर बलगम में खून आये.

क्या करें :-

कोई भी लक्षण होने पर तत्काल सरकारी अस्पताल में या किसी अन्य विशेषज्ञ डॉक्टर से तत्काल परामर्श करें. नाक, कान, गले, आँख, मेडिसिन, चेस्ट या प्लास्टिक सर्जरी विशेषज्ञ से संपर्क कर तुरंत इलाज शुरू करें.

बरतें यह सावधानियां :-

  1. स्वयं या किसी गैर विशेषज्ञ डॉक्टर के, दोस्त मित्र या रिश्तेदार की सलाह पर स्टेरॉयड दवा कतई शुरू ना करें.
  2. लक्षण के पहले 05 से 07 दिनों में स्टेरॉयड देने से दुष्परिणाम होते हैं. बीमारी शुरू होते ही स्टेरॉयड शुरू ना करें.

इससे बीमारी बढ़ जाती है.

  1. स्टेरॉयड का प्रयोग विशेषज्ञ डॉक्टर कुछ ही मरीजों को केवल 05-10 दिनों के लिए देते हैं, वह भी बीमारी शुरू होने के 05-07 दिनों बाद केवल गंभीर मरीजों को. इसके पहले बहुत सी जांच आवश्यक है.
  2. इलाज शुरू होने पर डॉक्टर से पूछें कि इन दवाओं में स्टेरॉयड तो नहीं है. अगर है, तो ये दवाएं मुझे क्यों दी जा रही हैं?
  3. स्टेरॉयड शुरू होने पर विशेषज्ञ डॉक्टर के नियमित संपर्क में रहें.
  4. घर पर अगर ऑक्सीजन लगाया जा रहा है तो उसकी बोतल में उबाल कर ठंडा किया हुआ पानी डालें या नार्मल सलाइन डालें. बेहतर हो अस्पताल में भर्ती हों.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी सराहा ‘यूपी मॉडल’

उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण से लोगों तथा बच्चों को बचाने और कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए प्रदेश की सरकार ने जो मॉडल अपनाया है उसका अब बॉम्बे हाईकोर्ट भी कायल हो गया हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और देश का नीति आयोग कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की तारीफ कर चुका है. आयोग ने यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बताया है. वही बॉम्बे हाईकोर्ट ने यूपी मॉडल के तहत बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए किए गए प्रबंधों का जिक्र करते हुए वहां की सरकार से यह पूछा है कि महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती?

यूपी सरकार ने कोरोना संक्रमण से बच्चों का बचाव करने के लिये सूबे के हर बड़े शहर में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने का फैसला किया है. यूपी सरकार के इस फैसले को डॉक्टर बच्चों के लिये वरदान बता रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बच्चों को बीमारी से बचाने को लेकर हमेशा ही बेहद गंभीर रहे हैं. इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी से बच्चों को बचाने के लिए उन्होंने इस बीमारी के खात्मे को लेकर जो अभियान चलाया उससे समूचा पूर्वांचल वाकिफ हैं.

इसी क्रम में जब मुख्यमंत्री कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए ट्रिपल टी यानि ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट की रणनीति तैयार करा रहे थे, तब ही उन्होंने कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों को अलग से एक योजना तैयार करने का निर्देश दिया. जिसके तहत ही चिकित्सा विशेषज्ञों ने उन्हें बताया कि कोरोना संक्रमण से बच्चों बचाने और उनका इलाज करने के लिए हर जिले में आईसीयू की तर्ज पर सभी संसाधनों से युक्त पीडियाट्रिक बेड की व्यवस्था अस्पताल में की जाए. चिकित्सा विशेषज्ञों की इस सलाह पर मुख्यमंत्री ने सूबे के सभी बड़े शहरों में 50 से 100 बेड के पीडियाट्रिक बेड (पीआईसीयू) बनाने के निर्देश दिये हैं. यह बेड विशेषकर एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए होंगे. इनका साइज छोटा होगा और साइडों में रेलिंग लगी होगी. गंभीर संक्रमित बच्चों को इसी पर इलाज और ऑक्सीजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी.

सूबे में बच्चों के इलाज में कोई कमी न आए इसके लिए सभी जिलों को अलर्ट मोड पर रहने के लिये कहा गया है. इसके तहत ही मुख्यमंत्री अधिकारियों को बच्चों के इन अस्पतालों के लिए मैन पावर बढ़ाने के भी आदेश दिये हैं. मुख्यमंत्री ने कहा है कि जरूरत पड़े तो इसके लिए एक्स सर्विसमैन, रिटायर लोगों की सेवाएं ली जाएं. मेडिकल की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों को ट्रेनिंग देकर उनसे फोन की सेवाएं ले सकते हैं. लखनऊ में डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान खान ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तत्काल सभी बड़े शहरों में 50 से 100 पीडियाट्रिक बेड बनाने के निर्णय को बच्चों के इलाज में कारगर बताया है. उन्होंने बताया कि एक महीने से ऊपर के बच्चों के लिए पीआईसीयू (पेडरिएटिक इनटेन्सिव केयर यूनिट), एक महीने के नीचे के बच्चों के उपचार के लिये एनआईसीयू (नियोनेटल इनटेन्सिव केयर यूनिट) और महिला अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के लिये एसएनसीयू (ए सिक न्यू बार्न केयर यूनिट) बेड होते हैं. जिनमें बच्चों को तत्काल इलाज देने की सभी सुविधाएं होती हैं.

बच्चों के इलाज को लेकर यूपी के इस मॉडल का खबर अखबारों में छपी. जिसका बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ ने संज्ञान लिया. और बीते दिनों इन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने कहा कि यूपी में कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों को खतरा होने की आशंका के चलते एक अस्पताल सिर्फ बच्चों के लिए आरक्षित रखा गया है. महाराष्ट्र सरकार यहां ऐसा करने पर विचार क्यों नहीं करती. महाराष्ट्र में दस साल की उम्र के दस हजार बच्चे कोरोना का शिकार हुए हैं. जिसे लेकर हो रही सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने यह महाराष्ट्र सरकार से यह सवाल पूछा हैं.

जाहिर है कि हर अच्छे कार्य की सराहना होती हैं और कोरोना से बच्चों को बचाने तथा उनके इलाज करने की जो व्यवस्था यूपी सरकार कर रही है, उसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने उचित माना और उसका जिक्र किया. ठीक इसी तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और नीति आयोग ने भी कोविड प्रबंधन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के ‘यूपी मॉडल’ की जमकर तारीफ की है. इस दोनों की संस्थाओं ने कोरोना मरीजों का पता लगाने और संक्रमण का फैलाव रोकने के किए उन्हें होम आइसोलेट करने को लेकर चलाए गए ट्रिपल टी (ट्रेस, टेस्ट और ट्रीट) के महाअभियान और यूपी के ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट ट्रैकिंग सिस्टम की खुल कर सराहना की. नीति आयोग ने तो यूपी के इस मॉडल को अन्य राज्यों के लिए भी नज़ीर बताया है. यह पहला मौका है जब डब्लूएचओ और नीति आयोग ने कोविड प्रबंधन के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देखरेख में तैयार कराए गए यूपी मॉडल की सराहना की है. और उसके बाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट बच्चों का इलाज करने को लेकर यूपी मॉडल’ का कायल हुआ है.

पार्टी डांस ड्रिंक: भाग 3- क्या बेटे का शादीशुदा घर टूटने से बचा पाई सोम की मां

लेकिन वाणी बोली, ‘‘देखिए सोम, आप का जीने का ढंग मुझे पसंद नहीं और मेरी स्टाइल आप को पसंद नहीं. इसलिए अच्छा यही है कि हम दोनों अलग हो जाएं.’’ मन ही मन खुश होता हुआ सोम बोला, ‘‘वाणी तुम से सौरी बोल तो दिया, अब मान भी जाओ.’’ ‘‘सोम, आज आप ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. यदि कुहू गोद में न होती तो मैं बहुत पहले आप का घर छोड़ चुकी होती. कुहू की ममता के कारण ही इस समय तक मैं आप का अत्याचार झेलती रही.’’

‘‘बहुत दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा, मुझ से जबान लड़ाती हो.’’

‘‘सोम, आज आखिरी बार मैं आप से कह रही हूं कि तमीज से बात करो. नहीं तो मैं क्या करूंगी, इस का आप को अनुमान भी नहीं है. मुझे कमजोर मत समझिएगा. इतने दिन मैं चुप और शांत इसलिए रही कि शायद आप सुधर जाओगे, लेकिन आप ने तो न सुधरने की कसम खा ली है.’’ वाणी का कड़ा रुख देख सोम चुपचाप अपने कमरे में चला गया. परंतु उस की आंखें क्रोध से लाल हो रही थीं. दोनों में बोलचाल बंद थी. घर में शांति छा गई थी. वाणी को सीक्रेट सर्विस वालों की रिपोर्ट का इंतजार था. वह जब उसे मिली तो उस का शक सही निकला था. उन लोगों ने सोम और नैना के रिश्तों की बात सच बताई. साथ ही नैना के अन्य संबंधों की सीडी उस को दे कर गए. अब वह आश्वस्त थी कि अपने और सोम के रिश्ते को या तो बचा लेगी या तोड़ लेगी. तभी मम्मीजी का फोन आ गया कि पापा को हार्टअटैक पड़ा है, इसलिए तुम दोनों तुरंत आओ. सोम और वह दोनों तुरंत वहां पहुंच गए थे. पापाजी एक हफ्ते नर्सिंग होम में रहने के बाद डिस्चार्ज हो कर घर आ गए थे. सोम के पिता महेंद्रजी बहुत जल्दी स्वस्थ हो गए. नैना के नशे में डूबा सोम वाणी को वहीं छोड़ मुंबई चला आया. वाणी के उतरे हुए चेहरे और गुमसुम रहने से सरिताजी का माथा ठनका. उन्होंने पूछा, ‘‘वाणी, तुम्हारे और सोम के बीच सब ठीक तो है न?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘सोम तो तुम्हें फोन भी नहीं करता?’’

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‘‘वे काम में बहुत बिजी रहते हैं, इसलिए नहीं कर पाए होंगे.’’

‘‘तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. सचसच बताओ. मैं अपने बेटे के स्वभाव को अच्छी तरह जानती हूं.’’

अब वाणी अपने को रोक न पाई तो एकदम से उबल पड़ी, ‘‘मम्मीजी, मैं सोम से तलाक लेना चाहती हूं. मैं उन के साथ अब नहीं निभा सकती.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘प्लीज, आप पापाजी से कुछ मत कहिएगा. अभी उन की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है.’’ वाणी ने सीक्रेट सर्विस वालों द्वारा दी हुई सीडी उन के हाथ में रख दी और फूटफूट कर रो पड़ी. सरिताजी ने वाणी के आंसू पोछे और बोलीं, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारी समस्या का समाधान मैं करूंगी.’’ सरिताजी ने आहत मन से उस सीडी को देखा. वे वाणी से बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे शरीर में कोई रोग या बीमारी हो जाने पर उस का इलाज करने के लिए कड़वी दवा पीनी पड़ती है, वैसे ही यदि सोम के कदम बहक गए हैं, तो हम सब को मिल कर उसे सही रास्ते पर लाना होगा. तुम्हें मेरा साथ देना होगा. मेरा विश्वास है कि सोम बहुत जल्द तुम्हारे पास होगा. बस थोड़ा धीरज रखो.’’ उन्होंने वाणी को इंगलिश स्पीकिंग और व्यक्तित्व विकास की क्लासेज जौइन करवा दीं. सुंदर तो वह थी ही अब उस का व्यक्तित्व भी निखर उठा था, क्योंकि उस का आत्मविश्वास बढ़ चुका था. सरिताजी वाणी के बदले हुए व्यक्तित्व से बहुत खुश थीं. कुछ दिनों बाद वे बेटे के घर अकेले पहुंच गईं. घर पर नैना की यहांवहां बिखरी चीजें देख वे सोम से बोलीं, ‘‘बेटा, यहां तुम्हारे साथ कौन रहता है?’’

सकपकाया सा सोम बोला, ‘‘कोई नहीं मौम? मेरी एक दोस्त किसी मीटिंग में यहां आई है. उसी का सामान यहांवहां बिखरा हुआ है. 3-4 दिनों से वह यहां है, आज उसे जाना है.’’ ‘‘साफ शब्दों में क्यों नहीं कहते कि मेरी गर्लफ्रैंड मेरे साथ रह रही है. वैसे बेटा यह तुम ने बड़ा अच्छा किया कि अपने लिए एक पार्टनर ढूंढ़ लिया. लेकिन तुम्हें पार्टनर बड़ी जल्दी से मिल गई. अभी तो वाणी को गए 2 महीने भी नहीं हुए. चलो मेरी चिंता समाप्त हुई. मैं सोचती थी कि मेरा इतना मौडर्न बेटा कैसे उस देहाती लड़की के साथ गुजर कर रहा होगा?’’

‘‘नहीं मां, ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन वाणी के साथ रहना तो वास्तव में बहुत मुश्किल है. पक्की घरेलू और देहातिन लड़की है. मैं तो उस के साथ खून का घूंट पी कर रहता हूं.’’

‘‘तो ठीक है, तुम उस से तलाक ले लो.’’

‘‘हां, मैं मन ही मन यह सोचता तो था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती थी. अब आप मेरे फेवर में हैं तो मैं कल ही वकील से मिल कर बात करूंगा. लेकिन मौम, आप पापा के सामने अपने कदम पीछे तो नहीं कर लेंगी? मुझे पापा से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हां, तुम्हारे पापा को समझाना तो थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि वाणी ने उन पर न जाने कौन सा जादू कर रखा है. वे तो रातदिन उस की तारीफ करते रहते हैं. चलो देखती हूं, लेकिन अपनी दोस्त से कब मिलवाओगे?’’

‘‘शुभ काम में देरी कैसी डियर मौम. मैं ने तो उसे न आने के लिए मैसेज कर दिया था पर अब उसे आने के लिए बोल देता हूं.’’ ‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन वाणी तो आदर्श हिंदू लड़की है. वह तो मरते दम तक तुम्हें तलाक नहीं देगी और साथ में तुम्हारी बेटी कुहू का जीवन संकट में पड़ जाएगा.’’

‘‘मौम, आज नैना बिजी है, इसलिए वह नहीं आएगी.’’

‘‘रात में वह कहां बिजी रहती है?’’

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‘‘मुझे क्या मालूम. किसी क्लाइंट के साथ उस की मीटिंग होगी. हम लोग पर्सनल बातें आपस में डिस्कस नहीं करते.’’

‘‘फिर तो वह अमीर लड़की होगी. चलो अच्छा है तुम्हारी नौकरी चली गई तो वह तुम्हारा खर्च तो उठा लेगी.’’

‘‘मौम, आप तो न जाने क्या कहना चाह रही हैं.’’

‘‘देखो सोम, जब किसी ऐसे काम को करने जा रहे हो, जिस का फैसला कोई दूसरा करने वाला हो, तो उस के नकारात्मक पहलू पर भी विचार करना चाहिए. जरा वह ब्रेसलेट ले आओ.’’ सोम ने ब्रेसलेट ला कर सरिताजी की हथेली पर रखा. उन्होंने ब्रेसलेट को उलटपलट कर और यहांवहां जरा सा घिस कर देखा. फिर बोलीं, ‘‘इस ब्रेसलेट पर तो सोने की पौलिश भी नहीं है. इस की कीमत तो क्व100, क्वडेढ़ 100 होगी. चलो इस को ज्वैलर के यहां परखवा लेते हैं.’’

‘‘छोड़ो मौम, नैना ने शायद मुझ पर इंप्रैशन जमाने के लिए यह नकली ब्रेसलेट दिया होगा.’’

‘‘मेरे लाल, असलीनकली को पहचानना सीखो. कब तक नकली तड़कभड़क के पीछे भागते रहोगे?’’

‘‘आप ने तो जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया. दोस्तों के बीच तो यह सब चलता ही रहता है.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. अब छोड़ो भी ये सब बातें. जरा यह सीडी वीडियो प्लेयर में लगा दो. आते समय तेरे पापा ने यह कह कर दी थी कि इस सीडी को अपने लायक बेटे के साथ ही बैठ कर देखना. जरा देखूं तो इस सीडी में ऐसा क्या है.’’

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सोम ने सीडी चालू की. टीवी में सब से पहले नैना का फोटो उस के पूर्व पति के साथ था, जिस में वह साधारण परिवार की वेशभूषा में थी. उस का पति कोई क्लर्क था. उसे छोड़ कर नैना ने किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह रचाया था. उस का भी फोटो था. उसे छोड़ने के बाद किसी अधेड़ रईस के साथ रहने लगी थी. वह उस के पैसे पर ऐश करती रही. जब उस की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, उस को पैरालाइसिस हो गया, तो उस को छोड़ कर अब इधरउधर रईस, स्मार्ट लड़कों के संग रोमांस का नाटक कर के उन्हें लूट रही थी. नाइटक्लब के भी कई वीडियो थे, जिस में वह अलगअलग लड़कों के साथ अश्लील नृत्य कर रही थी. सोम ने मां के हाथ से रिमोट ले कर टीवी बंद कर दिया. वह गुमसुम हो गया था. उस की आंखों से आंसू बह निकले थे. ‘‘मौम, मैं भटक गया था. असली हीरे को छोड़ मैं नकली की चमकदमक में भटक गया था. मैं वाणी का गुनहगार हूं. मुझे उस से माफी मांगनी है, कहीं देर न हो जाए.’’ वह सोच रही थी कि मां के इस कदम ने उस की टूटती शादी को बचा लिया था. तभी सोम के दोस्त रुचिर और भुवन के सम्मिलत स्वर से उस की तंद्रा टूटी, ‘‘थैंक्स भाभी. आप के कड़े रुख के कारण सोम ने हम सब के सामने शर्त रख दी थी कि या तो दोस्ती या ड्रिंक. ड्रिंक पर दोस्ती भारी पड़ी.’’

वाणी प्यार भरी निगाहों से सोम को देख कर उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘थैंक्स सोम.’’

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उस की सुंदरता में खोए सोम को सब सपना सा लग रहा था, लेकिन वह भी बोला, ‘‘हैलो, माईसैल्फ सोम.’’ दोनों में दोस्ती होते देर न लगी. सोम उस की सुंदरता पर मर मिटा था, तो नैना सोम की स्मार्टनैस और जवानी पर. उन दोनों ने बेखौफ ड्रिंक और डांस का अच्छी तरह आनंद लिया. फोन नंबर का आदानप्रदान हुआ और शुरू हो गया दोनों का मिलनाजुलना. सोम सब कुछ भूल कर नैना के प्यार में खो गया. वह मीटिंग और अधिक काम के बहाने घर देर से पहुंचने लगा. दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते बन चुके थे, इसलिए सोम उस के नशे में डूबा रहता. दोनों अकसर साथ में लंच करते, तो कभी पिक्चर, कभी थिएटर, कभी मौल में घूमते. वाणी को पति के आचरण पर शक होने लगा था. वह कभीकभी उस के फोन काल और एसएमएस चैक करती, परंतु चौकन्ना सोम पत्नी के लिए कोई निशान नहीं छोड़ता था. एक दिन शाम को अचानक सोम बोला, ‘‘वाणी, मैं दिल्ली जा रहा हूं. वहां न्यूयार्क से एक डैलिगेशन आया है. उन के साथ मेरी मीटिंग है. मुझे वहां 2-3 दिन लगेंगे.’’ वाणी ने पति को शक की नजर से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं सिर्फ धीमी आवाज में बाय कह दिया. बाद में उस ने सोम की सेक्रेटरी से पता लगा लिया कि वह छुट्टी ले कर गया हुआ है, तो उस का शक विश्वास में बदल गया.

इधर सोम प्लेन की सीट पर बैठते ही नैना के ख्वाबों में खो गया. उस ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और वह नैना के सान्निध्य के खूबसूरत एहसास को जी रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बज उठी थी. उधर नैना थी. वह बोली, ‘‘डियर, मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा है. मेरी फ्लाइट में अभी देर है.’’ सोम ने एहतियातन दोनों की अलगअलग फ्लाइट बुक करवाई थी. वह आने वाले कल के रंगीन सपनों में खोया नैना के साथ बिताने वाले समय की रूपरेखा मन ही मन बना रहा था. वह दिल्ली पहुंचा ही था कि फिर से नैना का फोन आ गया, ‘‘डियर, तुम कहां तक पहुंचे?’’

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‘‘मैं दिल्ली पहुंच गया हूं. जब तुम्हारी फ्लाइट पहुंचेगी मैं एअरपोर्ट पर तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलूंगा.’’

‘‘तुम बहुत अच्छे हो. तुम मुझे यूज कर के फिर अपनी बीवी के आंचल में तो नहीं लौट जाओगे?’’

‘‘नहीं…’’

नैटवर्क की प्रौब्लम के चलते फोन कट चुका था, लेकिन नैना के नशे में डूबे सोम ने वाणी से तलाक लेने का मन बना लिया था. वह सोच रहा था कि दिल्ली से लौटते ही वह अपने वकील से कागज तैयार करवा लेगा. नैना को लेने वह एअरपोर्ट पर पहुंचा. उस के हाथ में एक बड़ा सा बुके था. आज वह अपने नए जीवन की शुरुआत करने जा रहा था. यहां पर केवल वह होगा और उस की नैना. आज तो नैना शौर्ट स्कर्ट और टौप पहन कर आई थी. सोम उत्तेजनावश उस को निहारता ही रह गया. नैना ने पास आते ही उसे अपने आलिंगन में जकड़ लिया. रात में जिस 5 सितारा होटल में वे ठहरे थे, उस के विशेष कक्ष में दोनों ने डिनर लिया. तभी नैना ने अपने पर्स से एक सुंदर सा ब्रेसलेट निकाल कर सोम की कलाई में पहना दिया.

‘‘डियर सोम, यह ब्रेसलेट मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा है. यह हर समय तुम्हें मेरी याद दिलाता रहेगा.’’ ब्रेसलेट पहन सोम अचकचा उठा. उसे भी तो नैना के लिए कोई महंगा गिफ्ट खरीदना पड़ेगा. यह मस्ती तो उस पर भारी पड़ रही थी. रात में नैना उस को एक नाइट क्लब में ले गई. यह उस के लिए नया अनुभव था, लेकिन शायद नैना इन पार्टियों और क्लबों की अभ्यस्त थी. वहां सहजता से वह एक के बाद एक पैग चढ़ा रही थी, साथ ही सोम को भी पिला रही थी. दोनों मदहोशी में थे और गहरे नशे में डूब चुके थे. होटल में लौटने पर सोम अपने फोन पर कुछ कर रहा था कि नैना उस के हाथ से फोन खींच कर बोली, ‘‘तुम भी खूब हो. मुझ जैसी हसीना के बजाय फोन से खेल रहे हो.’’ फिर वह उस के और करीब खिसक कर बोली, ‘‘मुझे एक लंबे इंतजार के बाद तुम जैसा साथी मिला है. तुम अपनी बीवी से कब तलाक लोगे? बहुत हो गई लुकाछिपी. अब तुम से दूरी मुझ से बरदाश्त नहीं हो रही है.’’

‘‘नैना, यह बताओ कि आज तक तुम्हारे जीवन में कोई और तो नहीं आया?’’

‘‘नहीं यार, मैं सिंगल हूं. तुम्हें देखते ही मुझे जाने क्या हो गया. मैं तुम्हारे प्यार में पड़ कर सारी दुनिया भूल गई. दिन भर तुम्हारे ख्वाबों में खोई रहती हूं. औफिस के काम में भी मेरा मन नहीं लगता,’’ यह सब कहतेकहते उस ने सोम के होंठों पर अपने दहकते हुए होंठ रख दिए. फिर दोनों बेसुध हो कर सो गए. सुबह सोम के पास औफिस से जरूरी मीटिंग के लिए फोन आ गया. वह जाना नहीं चाहता था, क्योंकि अभी नैना के साथ और समय बिताना चाह रहा था, लेकिन उस का लौटना जरूरी था, इसलिए वह नैना से बोला, ‘‘नैना, मुझे औफिस की मीटिंग की वजह से आज ही मुंबई पहुंचना होगा.’’

‘‘ठीक है, तुम चले जाओ. मैं 2 दिन बाद पहुंचूंगी.’’

सोम फ्लाइट से अगले दिन सुबह जब घर पहुंचा तो नैना को छोड़ कर आने की वजह से खिसियाया हुआ था. फिर जब औफिस के लिए तैयार हो रहा था, वाणी किचन में गई. उस ने चायनाश्ता बनाया और डाइनिंग टेबल पर रख दिया. सोम हड़बड़ाता हुआ कमरे से निकला तो कप में चाय देखते ही चिल्लाया, ‘‘बदतमीज औरत, जब तुझे पता है कि मैं इस तरह की चाय नहीं पीता, तो क्यों बना कर रख देती हो?’’ और गुस्से में चाय का कप और नाश्ता दोनों को उठा कर जमीन में फेंक दिया. वाणी किचन से बाहर आई और सोम से बोली, ‘‘सोम मैं आप की पसंद की पौट वाली चाय बना कर लाती हूं, प्लीज रुक जाइए. घर से इस तरह चायनाश्ते के बिना मत जाइए.’’ सोम ने वाणी को सामने से हटाने के लिए धक्का दिया और बिना पीछे देखे गाड़ी स्टार्ट कर के चला गया. वाणी जमीन पर गिर गई और टेबल का कोना माथे पर चुभ जाने से उस के माथे से खून बह निकला. कुछ पलों के लिए वह बेहोश हो गई. फिर होश आने पर उस ने चोट पर दवा लगाई और लेट कर अपने जीवन के बारे में सोचने लगी. वह कब तक इस तरह से अपमानित होहो कर जीती रहेगी? उसे अपने भविष्य के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा. सोम उस पर हाथ भी उठाने लगे हैं. वह किस तरह से सोम को सही रास्ते पर लाए.

तभी उस का मोबाइल बज उठा. उधर उस की सासूमां सरिताजी थीं.

‘‘कैसी हो वाणी?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मेरे नालायक बेटे का क्या हाल है?’’

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‘‘वे भी ठीक हैं.’’

‘‘तेरा खयाल रखता है मेरा अकड़ू बेटा?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘उसे बता देना कि मैं उसे याद कर रही थी.’’ उन की बात यहीं खत्म हो गई पर मम्मीजी के अकड़ू शब्द ने वाणी की चेतना को जगा दिया. उस ने नैट पर प्राइवेट डिटैक्टिव एजेंसी को ढूंढ़ व उस से संपर्क कर सोम और उस की महिला मित्र के विषय में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए कहा. उस के लिए उस ने मुंहमांगी फीस भी दी. उस के बाद उस ने अपना सामान गैस्टरूम में शिफ्ट कर लिया. शाम को जब सोम आया तो सारे घर में अंधेरा देख उस का माथा ठनका. फिर वाणी को गैस्टरूम में देखा तो बोला, ‘‘यह सब क्या नाटक है?’’

‘‘जो देख रहे हो. जल्दी ही मैं अपनी व्यवस्था कर लूंगी. फिर यहां से हमेशा के लिए आप की नजरों से दूर हो जाऊंगी.’’ अपनी सुबह की गलती का एहसास होते ही उस ने वाणी से आज पहली बार माफी मांग कर समझौता करना चाहा.

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