Serial Story: पुनर्जन्म– भाग 3

लंच ब्रेक में ऋचा का फोन आया.‘‘हां भई, छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया है केरल जाने को,’’ शिखा ने उसे सब बताया.

‘‘लेकिन घर वालों के लिए आप छुट्टी पर नहीं टूर पर जा रही हैं दीदी, वरना सभी आप के साथ केरल घूमने चल पड़ेंगे,’’ ऋचा ने आगाह किया.

ऋचा का कहना ठीक था. सब तैयारी हो जाने से एक रोज पहले उस ने सब को बताया कि वह केरल जा रही है.

‘‘केरल घूमने तो हम सब भी चलेंगे,’’ शशि ने कहा.

‘‘मैं केरल प्लेन से जा रही हूं सरकारी गाड़ी से नहीं, जिस में बैठ कर तुम सब मेरे साथ टूर पर चल पड़ते हो.’’

‘‘हम क्या प्लेन में नहीं बैठ सकते?’’ यश ने पूछा.

‘‘जरूर बैठ सकते हो मगर टिकट ले कर और फिलहाल मेरा तो कल सुबह 9 बजे का टिकट कट चुका है,’’ कह कर शिखा अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह सब के सामने ड्राइवर को कुछ फाइलें पकड़ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे एअरपोर्ट छोड़ कर, मेहरा साहब के घर चले जाना, ये 2 फाइलें उन्हें दे देना और ये 2 आफिस में माधवी मेनन को.’’

प्लेन में अपनी बराबर की सीट पर बैठी युवती से यह सुन कर कि वह एक प्रकाशन संस्थान में काम करती है और एक लेखक के पास एक किताब की प्रस्तावना पर विचारविमर्श करने जा रही है, शिखा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अपने यहां लेखकों को कब से इतना सम्मान मिलने लगा?’’

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‘‘मैडम, आप शायद नहीं जानतीं,’’ युवती खिसिया कर बोली, ‘‘बेस्ट सेलर के लेखक के लिए कुछ भी करना पड़ता है. ये महानुभाव केरल से बाहर आने को तैयार नहीं होते, सो बात करने के लिए हमें ही यहां आना पड़ता है.’’

इस से पहले कि शिखा पूछती कि वे महानुभाव हैं कौन, युवती ने उस का परिचय पूछ लिया और यह जानने पर कि वह आईएएस अधिकारी है और एकांत- वास करने के लिए अथरियापल्ली जा रही है, बड़ी प्रभावित हुई और उस के बारे में अधिक से अधिक पूछने लगी. शिखा ने उसे अपना कार्ड दे दिया.

माधवी का कहना ठीक था. अथरियापल्ली वाटरफाल वैसी ही जगह थी जैसी वह चाहती थी. गेस्ट हाउस में भी हर तरह का आराम था. बगैर अपने बारे में सोचे वह अभी प्रकृति की छटा और निरंतर बदलते रंग निहारने का आनंद ले रही थी कि अगली सुबह ही सूरज को देख कर हैरान रह गई.

‘‘तुम…यहां?’’ वह इतना ही कह सकी.

‘‘हां, मैं,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो कहीं आताजाता नहीं, लेकिन यह जान कर कि तुम यहां हो, तुम से मिलने का लोभ संवरण न कर सका.’’

‘‘लेकिन तुम्हें किस ने बताया कि मैं यहां हूं?’’

‘‘पल्लवी यानी उस युवती ने जो कल तुम्हारे साथ प्लेन में थी,’’ सूरज ने सामने पत्थर पर बैठते हुए कहा, ‘‘असल में मैं उस के प्रकाशन संस्थान के लिए आईएएस प्रतियोगिता के लिए उपयोगी किताबें लिखता हूं. पल्लवी चाहती है कि प्रतियोगिता में सफल होने के बाद सफलता बनाए रखने के लिए क्या करें, इस विषय पर मैं कुछ लिखूं तो मैं ने कहा कि मुझे नौकरी छोड़े कई साल हो चुके हैं और आज के प्रशासन के बारे में अधिक जानकारी नहीं है तो उस ने तुम्हारे बारे में बताया और कहा कि आप से मिल कर आजकल के हालात के बारे में जानकारी ले लूं. पल्लवी को तो तुम्हारे एकांतवास में खलल न डालने को मना कर दिया लेकिन खुद को आने से न रोक सका. ऐसे हैरानी से क्या देख रही हो, मैं सूरज ही हूं, शिखा.’’

‘‘उस में तो कोई शक नहीं है लेकिन तुम और लेखन. यकीन नहीं होता, सूरज.’’

‘‘यकीन न होने लायक ही तो अब तक मेरी जिंदगी में होता रहा है, शिखा,’’ सूरज उसांस ले कर बोला, ‘‘पुराने परिवेश से कटने के लिए मैं ने तिरुअनंतपुरम यूनिवर्सिटी में प्रवक्ता की नौकरी कर ली थी और वक्त काटने के लिए आईएएस प्रतियोगी परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाया करता था. उन के सफल होने पर इतने विद्यार्थी आने लगे कि मुझे नौकरी छोड़ कर कोचिंग क्लास खोलनी पड़ी. मेरे एक शिष्य ने मेरे दिए क्लास नोट्स का संकलन कर प्रकाशन करवा दिया, वह बहुत ही लोकप्रिय हुआ और प्रकाशक इस विषय की और किताबों के लिए मेरे पीछे पड़ गए और इस तरह मैं सफल लेखक बन गया. अब तो पढ़ाना भी छोड़ दिया है. बस, लिखता हूं.’’

‘‘लिखने भर से घर का खर्च चल जाता है?’’

‘‘बड़े आराम से. अकेले आदमी का ज्यादा खर्च भी नहीं होता.’’

‘‘यानी तुम ने मातापिता की खुशी की खातिर शादी नहीं की?’’

‘‘शादी करने से मना भी नहीं किया,’’ सूरज हंसा, ‘‘जो लोग मुझे अपना दामाद बनाने के लिए हाथ बांधे पापा के आगेपीछे घूमते थे, वे तो मेरी नौकरी छोड़ते ही बरसात की धूप की तरह गायब हो गए, जो लोग प्रवक्ता को लड़की देने के लिए तैयार थे वे मांपापा की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उन की तलाश अभी भी जारी है लेकिन सुदूर केरल में बसे लेखक को कौन दिल्ली वाला लड़की देगा? और तुम बताओ यह एकांतवास किसलिए? संन्यासवन्यास लेने का इरादा है?’’

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शिखा हंस पड़ी, ‘‘असलियत तो इस के विपरीत है, सूरज,’’ और उस ने ऋचा के सुझाव के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘दूसरे शब्दों में कहें तो मांपापा की तलाश खत्म हो गई,’’ सूरज हंसा, ‘‘वैसे तो मैं यहां से वापस जाने वाला नहीं था लेकिन तुम्हारे साथ कहीं भी चल सकता हूं.’’

‘‘मैं भी यहां आ सकती हूं, सूरज, लेकिन क्या गुजरे कल को आज बनाना संभव होगा?’’

‘‘अगर तुम मुझे जिलाना और खुद जिंदा होना चाहो तो…’’

शिखा के मोबाइल की घंटी बजी. यश का फोन था.

‘‘दीदी, गुरमेल सिंह जब परसों दोपहर तक गाड़ी ले कर नहीं आया तो मैं ने उस के मोबाइल पर उसे आने के लिए फोन किया, लेकिन उस ने कहा कि वह मेहरा साहब की ड्यूटी में है और उन के कहने पर ही हमारे यहां आ सकता है, सो मैं ने उन से बात करनी चाही. परसों तो मेहरा साहब से बात नहीं हो सकी, वे मीटिंग में थे. कल बड़ी मुश्किल से शाम को मिले तो बोले कि वे इस विषय में कुछ नहीं कह सकते. बेहतर है कि मैं माधवी से बात करूं. माधवी कहती है कि छुट्टी पर गए किसी भी अधिकारी को गाड़ी उस के कार्यभार संभालने वाले अधिकारी को दी जाती है और परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम तो नहीं है लेकिन शिखा मैडम कहेंगी तो भिजवा देंगे. आप तुरंत माधवी को फोन कीजिए गाड़ी भिजवाने को.’’

‘‘जब परिवार के लिए गाड़ी भेजने का नियम नहीं है तो मैं उस का उल्लंघन करने को कैसे कह सकती हूं?’’ शिखा ने रुखाई से कहा.

‘‘चाहे गाड़ी के बगैर परिवार को कितनी भी परेशानी हो रही हो?’’

‘‘इतनी ही परेशानी है तो खुद ही गाड़ी का इंतजाम कर ले न भाई मेरे…’’

‘‘यह आप को हो क्या गया है दीदी? आप मां से बात कीजिए…’’

मां एकदम बरस पड़ीं, ‘‘यह क्या लापरवाही है, शिखा? हमारे लिए बगैर गाड़ीड्राइवर का इंतजाम किए, टूर का बहाना बना कर तुम छुट्टी मनाने निकल गई हो, शर्म नहीं आती?’’ शिखा तड़प उठी.

‘‘मैं ने कब कहा था मां कि मैं टूर पर जा रही हूं और काम की थकान उतारने को छुट्टी मनाने में शर्म कैसी? अगर गाड़ी के बगैर आप को दिक्कत हो रही है तो यश से कहिए, इंतजाम करे, परिवार के प्रति उस का भी तो कुछ दायित्व है.’’

‘‘यह तुझे क्या हो गया है, शिखा? यश कह रहा है, तू एकदम बदल गई है…’’

‘‘यश ठीक कह रहा है, मां,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘मेरा पुनर्जन्म हो रहा है, उस में आप को कुछ तकलीफ तो झेलनी ही पड़ेगी.’’

और वह सूरज की फैली बांहों में सिमट गई.

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Serial Story: पुनर्जन्म– भाग 2

‘‘मां के लिए पापा की पेंशन काफी है, दीदी, और जरूरत पड़ने पर पैसे से मैं और आप दोनों ही उन की मदद कर सकते हैं, उन्हें अपने पास रख सकते हैं. यश का परिवार उस की निजी समस्या है, मेहनत करें तो दोनों मियांबीवी अच्छाखासा कमा सकते हैं, उन के लिए आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है,’’ ऋचा ने आवेश से कहा और फिर हिचकते हुए पूछा, ‘‘माफ करना, दीदी, मगर मुझे याद नहीं आ रहा कि सूरज ने आप के लिए क्या किया?’’

‘‘मुझे रुसवाई से बचाने के लिए सूरज ने मेहनत से मिली आईएएस की नौकरी छोड़ दी क्योंकि हमारे सभी साथियों को हमारी प्रेमकहानी और होने वाली सगाई के बारे में मालूम था. एक ही विभाग में होने के कारण गाहेबगाहे मुलाकात होती और अफवाहें भी उड़तीं, सो मुझे इस सब से बचाने के लिए सूरज नौकरी छोड़ कर जाने कहां चला गया.’’

‘‘आप ने उसे तलाशने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘उस के किएकराए यानी त्याग पर पानी फेरने के लिए?’’

‘‘यह बात भी ठीक है. देखिए दीदी, जब आप वचनबद्ध हुई थीं तब आप की जिम्मेदारी केवल भैया और मेरी पढ़ाई पूरी करवाने तक सीमित थी, लेकिन आप ने हमारी शादियां भी करवा दीं. अब उस के बाद की जिम्मेदारियां आप के वचन की परिधि से बाहर हैं और अब आप का फर्ज केवल अपना वचन निभाना है. बहुत जी लीं दूसरों के लिए और यादों के सहारे, अब अपने लिए जी कर देखिए दीदी, कुछ नए यादगार क्षण संजोने की कोशिश करिए.’’

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‘‘कहती तो तू ठीक है…’’

‘‘तो फिर आज से ही इंटरनेट पर अपने मनपसंद जीवनसाथी की तलाश शुरू कर दीजिए. मां तो पुत्रमोह में आप की शादी करवाएंगी नहीं.’’

‘‘यही सब सोच कर तो मैं शादी नहीं करना चाहती, लेकिन तेरा यह कहना भी ठीक है कि पैसे से तो उन लोगों की मदद हमेशा की जा सकती है.’’

‘‘मैं आप को इंटरनेट पर उपलब्ध…’’

‘‘थोड़ा सब्र कर, ऋचा,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘उस से पहले मुझे स्वयं को किसी नितांत अजनबी के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा और मुझे यह भी मालूम नहीं है कि मेरी उस से क्या अपेक्षाएं होंगी या व्यक्तिगत जीवन में मेरी अपनी मान्यताएं क्या हैं? इन सब के लिए चिंतन की आवश्यकता है.’’

‘‘और उस के लिए एकांत की, जो आप को दफ्तर और घर की जिम्मेदारियों के चलते तो मिलने से रहा. आप लंबी छुट्टी ले कर या तो सुदूर पहाडि़यों में या समुद्रतट पर एकांतवास कीजिए.’’

‘‘सुझाव तो अच्छा है, सोचूंगी.’’

‘‘मगर आज ही रात को,’’ ऋचा ने जिद की.

शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में. पापा बैंक अधिकारी थे लेकिन चाहते थे कि उन के बच्चे उन से बढ़ कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बनें. शिखा का तो प्रथम प्रयास में ही चयन हो गया. ऋचा ने हाईस्कूल में ही बता दिया था कि उस की रुचि जीव विज्ञान में है और वह डाक्टर बनेगी. पापा ने सहर्ष अनुमति दे दी थी. मां के लाड़ले यश का दिल पढ़ाई में नहीं लगता था फिर भी पापा के डर से पढ़ रहा था लेकिन पापा के जाते ही उस ने पढ़ाई छोड़ कर अनुकंपा में मिली बैंक की नौकरी कर ली.

मां ने भी उस का यह कह कर साथ दिया कि वह तेरा हाथ बटाना चाह रहा है शिखा, बैंक की प्रतियोगी परीक्षाएं दे कर तरक्की भी करता रहेगा, लेकिन हाथ बटाने के बजाय यश ने अपना भार भी उस पर डाल दिया था. जहां उस की नियुक्ति होती थी, वहीं यश भी अपना तबादला करवा लेता था आईएएस अफसर बहन का रोब डाल कर. तरक्की पाने की न तो लालसा थी और न ही जरूरत, क्योंकि शिखा को मिलने वाली सब सुविधाओं का उपभोग तो वही करता था.

यश और उस के परिवार की जरूरतों के लिए मां शिखा को उसी स्वर में याद दिलाया करती थीं जिस में वह कभी पापा से घर के बच्चों की जरूरतें पूरी करने को कहती थीं यानी मां के खयाल में यश का परिवार शिखा का उत्तरदायित्व था. शिखा को इस से कुछ एतराज भी नहीं था. उस की अपनी इच्छाएं तो सूरज से बिछुड़ने के साथ ही खत्म हो गई थीं. उसे यश या उस के परिवार से कोई शिकायत भी नहीं थी, बस, बीचबीच में पापा के अंतिम शब्द, ‘जब ये दोनों अपने घरपरिवार में व्यवस्थित हो जाएंगे तो तू अकेली क्या करेगी, बेटी? जिन सपनों की तू ने आज आहुति दी है उन्हें पुनर्जीवित कर के फिर जीएगी तो मेरी भटकती आत्मा को शांति मिल जाएगी. जिस तरह तू मेरी जिम्मेदारियां निभाने को कटिबद्ध है, उसी तरह मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने को भी रहना,’ याद आ कर कचोट जाते थे.

ऐसा ही कुछ सूरज ने भी कहा था, ‘जिस तरह अपने परिवार के प्रति तुम्हारा फर्ज तुम्हें शादी करने से रोक रहा है उसी तरह अपने मातापिता की इच्छा के विरुद्ध कुछ साल तक तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी होने के इंतजार में शादी न करने के फैसले पर मैं चाह कर भी अडिग नहीं रह पा रहा. कैसे जी पाऊंगा किसी और के साथ, नहीं जानता, लेकिन फिलहाल दफ्तर और घर के दायित्व निभाने में मेरा और तुम्हारा समय कट ही जाया करेगा लेकिन जब तुम दायित्व मुक्त हो जाओगी तब क्या करोगी, शिखा? मैं यह सोचसोच कर विह्वल हो जाया करूंगा कि तुम अकेली क्या कर रही होगी.’

‘फुरसत से तुम्हारी यादों के सहारे जी रही हूंगी और क्या?’

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‘जीने के लिए यादों के सहारे के अलावा किसी अपने के सहारे की भी जरूरत होती है. मैं तो खैर सहारे के लिए नहीं मांबाप की जिद से मजबूर हो कर शादी कर रहा हूं लेकिन तुम जीवन की सांध्यवेला में अकेली मत रहना. मेरे सुकून के लिए शादी कर लेना.’

यश के परिवार के रहते अकेली होने का तो सवाल ही नहीं था लेकिन घर में अपनेपन की ऊष्मा ऋचा के जाते ही खत्म हो गई थी और रह गया था फरमाइशों और शिकायतों का अंतहीन सिलसिला. शिकायत करते हुए यश और मां को अपनी फरमाइश की तारीख तो याद रहती थी लेकिन यह पूछना नहीं कि शिखा किस वजह से वह काम नहीं कर सकी.

वैसे भी लगातार काम करतेकरते वह काफी थक चुकी थी और छुट्टियां भी जमा थीं सो उस ने सोचा कि कुछ दिन को कहीं घूम ही आएं. उस की सचिव माधवी मेनन जबतब केरल की तारीफ करती रहती थी, ‘तनमन को शांति और स्फूर्ति से भरना हो तो कभी भी केरल जाने पर ऐसा लगेगा कि आप का पुनर्जन्म हो गया है.’

अगले रोज उस ने माधवी से पूछा कि वह काम की थकान उतारने को कुछ दिन शोरशराबे से दूर प्रकृति के किसी सुरम्य स्थान पर रहना चाहती है, सो कहां जाए?

‘‘वैसे तो केरल में ऐसी जगहों की भरमार है,’’ माधवी ने उत्साह से बताया, ‘‘लेकिन आप को त्रिचूर का अथरियापल्ली वाटरफाल बहुत पसंद आएगा. वहां वन विभाग का सभी सुखसुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस भी है. तिरुअनंतपुरम के अपने आफिस वाले त्रिचूर के जिलाध्यक्ष से कह कर आप के रहने का प्रबंध करवा देंगे.’’

‘‘लेकिन वहां तक जाना कैसे होगा?’’

‘‘तिरुअनंतपुरम तक प्लेन से, उस के बाद आप को एअरपोर्ट से अथरियापल्ली तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अपने आफिस वालों की होगी. आप अपने जाने की तारीख तय करिए, बाकी सब व्यवस्था मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

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Serial Story: पुनर्जन्म– भाग 1

‘‘आ प को मालूम है मां, दीदी का प्रोमोशन के बाद भी जन कल्याण मंत्रालय से स्थानांतरण क्यों नहीं किया जा रहा, क्योंकि दीदी को व्यक्ति की पहचान है. वे बड़ी आसानी से पहचान लेती हैं कि किस समाजसेवी संस्था के लोग समाज का भला करने वाले हैं और कौन अपना. फिर आप लोग इतनी पारखी नजर वाली दीदी की जिंदगी का फैसला बगैर उन्हें भावी वर से मिलवाए खुद कैसे कर सकती हैं?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर से पूछा, ‘‘पहले दीदी के अनुरूप सुव्यवस्थित 2 लोगों को आप ने इसलिए नकार दिया कि वे दुहाजू हैं और अब जब एक कुंआरा मिल रहा है तो आप इसलिए मना कर रही हैं कि उस में जरूर कुछ कमी होगी जो अब तक कुंआरा है. आखिर आप चाहती क्या हैं?’’

‘‘शिखा की भलाई और क्या?’’ मां भी चिढ़े स्वर में बोलीं.

‘‘मगर यह कैसी भलाई है, मां कि बस, वर का विवरण देखते ही आप और यश भैया ऐलान कर दें कि यह शिखा के उपयुक्त नहीं है. आप ने हर तरह से उपयुक्त उस कुंआरे आदमी के बारे में यह पता लगाने की कोशिश नहीं की कि उस की अब तक शादी न करने की क्या वजह है?’’

‘‘शादी के बाद यह कुछ ज्यादा नहीं बोलने लगी है, मां?’’ यश ने व्यंग्य से पूछा.

‘‘कम तो खैर मैं कभी भी नहीं बोलती थी, भैया. बस, शादी के बाद सही बोलने की हिम्मत आ गई है,’’ ऋचा व्यंग्य से मुसकराई.

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‘‘बोलने की ही हिम्मत आई है, सोचने की नहीं,’’ यश ने कटाक्ष किया, ‘‘सीधी सी बात है, 35 साल तक कुंआरा रहने वाला आदमी दिलजला होगा…’’

‘‘फिर तो वह दीदी के लिए सर्वथा उपयुक्त है,’’ ऋचा ने बात काटी, ‘‘क्योंकि दीदी भी अपने बैचमेट सूरज के साथ दिल जला कर मसूरी की सर्द वादियों में अपने प्रणय की आग लगा चुकी हैं.’’

‘‘तुम तो शादी के बाद बेशर्म भी हो गई हो ऋचा, कैसे अपने परिवार और कैरियर के प्रति संप्रीत दीदी पर इतना घिनौना आरोप लगा रही हो?’’ यश की पत्नी शशि ने पूछा.

‘‘यह आरोप नहीं हकीकत है, भाभी. दीदी की सगाई उन के बैचमेट सूरज से होने वाली थी लेकिन उस से एक सप्ताह पहले ही पापा को हार्ट अटैक पड़ गया. पापा जब आईसीयू में थे तो मैं ने दीदी को फोन पर कहते सुना था, ‘पापा अगर बच भी गए तो सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे, इसलिए बड़ी और कमाऊ होने के नाते परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी मेरी है. सो, जब तक यश आईएएस प्रतियोगिता में उत्तीर्ण न हो जाए और ऋचा डाक्टर न बन जाए, मैं शादी नहीं कर सकती, सूरज. इस सब में कई साल लग जाएंगे, सो बेहतर होगा कि तुम मुझे भूल जाओ.’

‘‘उस के बाद दीदी ने दृढ़ता से शादी करने से मना कर दिया, रिश्तेदारों ने भी उन का साथ दिया क्योंकि अपाहिज पापा की तीमारदारी का खर्च तो उन के परिवार का कमाऊ सदस्य ही उठा सकता था और वह सिर्फ दीदी थीं. पापा ने अंतिम सांस लेने से पहले दीदी से वचन लिया था कि यश भैया और मेरे व्यवस्थित होने के बाद वे अपनी शादी के लिए मना नहीं करेंगी. आप को पता ही है कि मैं ने डब्लूएचओ की स्कालरशिप छोड़ कर अरुण से शादी क्यों की, ताकि दीदी पापा की अंतिम इच्छा पूरी कर सकें.’’

‘‘हमारे लिए उस के पापा की अंतिम इच्छा से बढ़ कर शिखा की अपनी इच्छा और भलाई जरूरी है,’’ मां ने तटस्थता से कहा.

‘‘पापा की अंतिम इच्छा पूरी करना दीदी की इच्छाओं में से एक है,’’ ऋचा बोली, ‘‘रहा भलाई का सवाल तो आप लोग केवल उपयुक्त घरवर सुझाइए, उस के अपने अनुरूप या अनुकूल होने का फैसला दीदी को करने दीजिए.’’

‘‘और अगर हम ने ऐसा नहीं किया न मां तो यह दीदी की परम हितैषिणी स्वयं दीदी के लिए घरवर ढूंढ़ने निकल पड़ेगी,’’ यश व्यंग्य से हंसा.

‘बिलकुल सही समझा आप ने, भैया. इस से पहले कि मैं और अरुण अमेरिका जाएं मैं चाहूंगी कि दीदी का भी अपना घरसंसार हो. आज मैं जो हूं दीदी की मेहनत और त्याग के कारण. सच कहिए, अगर दीदी न होतीं तो आप लोग मेरी डाक्टरी की पढ़ाई का खर्च उठा सकते थे?’’ ऋचा ने तल्ख स्वर में पूछा, ‘‘आप के लिए तो पापा की मृत्यु मेहनत से बचने का बहाना बन गई भैया. बगैर यह परवा किए कि पापा का सपना आप को आईएएस अधिकारी बनाना था, आप ने उन की जगह अनुकंपा में मिल रही बैंक की नौकरी ले ली क्योंकि आप पढ़ना नहीं चाहते थे. मां भी आप से मेहनत करवाना नहीं चाहतीं. और फिर पापा के समय की आनबान बनाए रखने को आईएएस अफसर दीदी तो थीं ही. नहीं तो आप के बजाय यह नौकरी मां भी कर सकती थीं, आप पढ़ाई और दीदी शादी.’’

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‘‘ये गड़े मुर्दे उखाड़ कर तू कहना क्या चाहती है?’’ मां ने झल्लाए स्वर में पूछा.

‘‘यही कि पुत्रमोह में दीदी के साथ अब और अन्याय मत कीजिए. भइया की गृहस्थी चलाने के बजाय उन्हें अब अपना घरसंसार बसाने दीजिए. फिलहाल उस डाक्टर का विवरण मुझे दे दीजिए. मैं उस के बारे में पता लगाती हूं,’’ ऋचा ने उठते हुए कहा.

‘‘वह हम लगा लेंगे मगर आप चली कहां, अभी बैठो न,’’ शशि ने आग्रह किया.

‘‘अस्पताल जाने का समय हो गया है, भाभी,’’ कह कर ऋचा चल पड़ी. मां और यश ने रोका भी नहीं जबकि मां को मालूम था कि आज उस की छुट्टी है.

ऋचा सीधे शिखा के आफिस गई.

‘‘आप से कुछ जरूरी बात करनी है, दीदी. अगर आप अभी व्यस्त हैं तो मैं इंतजार कर लेती हूं,’’ उस ने बगैर किसी भूमिका के कहा.

‘‘अभी मैं एक मीटिंग में जा रही हूं, घंटे भर तक तो वह चलेगी ही. तू ऐसा कर, घर चली जा. मैं मीटिंग खत्म होते ही आ आऊंगी.’’

‘‘घर से तो आ ही रही हूं. आप ऐसा करिए मेरे घर आ जाइए, अरुण की रात 10 बजे तक ड्यूटी है, वह जब तक आएंगे हमारी बात खत्म हो जाएगी.’’

‘‘ऐसी क्या बात है ऋचा, जो मां और अरुण के सामने नहीं हो सकती?’’

‘‘बहनों की बात बहनों में ही रहने दो न दीदी.’’

‘‘अच्छी बात है,’’ शिखा मुसकराई, ‘‘मीटिंग खत्म होते ही तेरे घर पहुंचती हूं.’’

उसे लगा कि ऋचा अमेरिका जाने से पहले कुछ खास खरीदने के लिए उस की सिफारिश चाहती होगी. मीटिंग खत्म होते ही वह ऋचा के घर आ गई.

‘‘अब बता, क्या बात है?’’ शिखा ने चाय पीने के बाद पूछा.

‘‘मैं चाहती हूं दीदी कि मेरे और अरुण के अमेरिका जाने से पहले आप पापा को दिया हुआ अपना वचन कि जिम्मेदारियां पूरी होते ही आप शादी कर लेंगी, पूरा कर लें,’’ ऋचा ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘वैसे आप की जिम्मेदारी तो मेरे डाक्टर बनते ही पूरी हो गई थी फिर भी आप मेरी शादी करवाना चाहती थीं, सो मैं ने वह भी कर ली…’’

‘‘लेकिन मेरी जिम्मेदारियां तो खत्म नहीं हुईं, बहन,’’ शिखा ने बात काटी, ‘‘यश अपना परिवार ही नहीं संभाल पाता है तो मां को कैसे संभालेगा?’’

‘‘यानी न कभी जिम्मेदारियां पूरी होंगी और न पापा की अंतिम इच्छा. जीने वालों के लिए ही नहीं दिवंगत आत्मा के प्रति भी आप का कुछ कर्तव्य है, दीदी.’’ शिखा ने एक उसांस ली.

‘‘मैं ने यह वचन पापा को ही नहीं सूरज को भी दिया था ऋचा, और जो उस ने मेरे लिए किया है उस के बाद उसे दिया हुआ वचन पूरा करना भी मेरा फर्ज बनता है लेकिन महज वचन के कारण जिम्मेदारियों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती.’’

आगे पढ़ें- शिखा ने सोचा जरूर लेकिन अपनी…

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हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग के असर को दिखाएगी फिल्म काॅमिक, सबसे उंचे गांव की है कहानी

हाल ही में उत्तराखंड के चमोली में जलजला आया था. इस तबाही की वजह ग्लेशियर का टूटना था. जून 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आई जलप्रलय को भी लोग आज तक नहीं भूले हैं. कई जानें ले चुके जलप्रलय को याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं. इतना ही नहीं 2004 में आई सुनामी की खौफनाक यादें लोगों के जेहन में अब भी ताजा हैं. ग्लोबल वार्मिंग को इन सब तबाही की वजह बताया गया. हम प्रकृति से छेड़छाड़ की काफी भारी कीमत चुका रहे हैं. हिमालय पर हो रहे ग्लोबल वार्मिंग के असर को लेकर जल्द ही एक फीचर फिल्म रिलीज होने वाली है.

हिमालय पर ग्लोबल वार्मिंग के इस असर को दिखाने वाली फिल्म का नाम काॅमिक है. इसके डायरेक्टर का नाम युवराज कुमार है. फिल्म दुनिया के सबसे उंचे टाउन की कहानी दिखाती है. काॅमिक हिमचाल प्रदेश के स्पीती में स्थित है. इसे दुनिया का सबसे उंचा गांव माना जाता है, जहां वाहन जाने के लिए रास्ता है. फिल्म में दर्शाया गया है कि अमीर युवाओं को गाड़ियां भगाना पसंद है. इन गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से हिमालय को नुकसान पहुंच रहा है. प्रदूषण की वजह से होने वाले ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय पर भूस्खलन जैसी घटनाएं हो रही है. इस कारण उत्तराखंड में अब तक कई जानें जा चुकी हैं. वाहनों से होने वाली इस तबाही को देखकर युवाओं को अपने किए पर पछतावा होता हैं और वे अपनी स्पोट्र्स कार छोड़कर स्केट बोर्ड, स्कीइंग और साइकिल को अपना लेते हैं. वे इसमें आगे बढ़ते हुए अपने देश का इन खेलों में प्रतिनिधित्व भी करते हैं. इसके साथ वे लोगों को भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले वाहनों को त्याग कर इको फ्रेंडली साधनों के इस्तेमाल का संदेश देते हैं.

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फिल्म में जय कुमार, जो सिद्धार्थ, तनीषा मीरवानी, वेंकटेश पांडे और रिव्या राय ने अभिनय किया है, जबकि युवराज कुमार ने फिल्म का निर्माण एटलांटिक फिल्म्स के बैनर तले किया है. फिल्म की मार्केटिंग लैविस्का मीडिया के सौरभ जैन कर रहे हैं.

युवराज कुमार का कहना है कि फिल्म काॅमिक नए ट्रेंड को शुरू करेगी और हमें ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में मदद करेगी. फिल्म की शूटिंग हिमाचल प्रदेश में हुई है. फिल्म का उद्देश्य हमारे ग्रह को इस विपत्ति से बचाने के लिए तुरंत कोई एक्शन लेने का संदेश देना है. फिल्म में युवा हमें हमारी पृथ्वी को बचाने का रास्ता दिखाते हैं. यह संदेश देती हुई एक अच्छी मनोरंजक फिल्म है.

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बापूजी से शाह हाउस वापस मांगेगा वनराज, क्या होगा अनुपमा का फैसला

सीरियल अनुपमा (Anupama) में आए दिन नए ट्विस्ट एंड टर्न्स आ रहे हैं. जहां काव्या धीरे-धीरे शाह हाउस में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं. तो वहीं वनराज के दिल में परिवार के खिलाफ जहर घोलने का काम भी कर रही है. इसी कारण आने वाले एपिसोड में वनराज अपना हिस्सा मांगता हुआ नजर आने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा ने लिया घर ना छोड़ने का फैसला

अब तक आपने देखा कि अनुपमा अपना सारा सामान पैक करके घर छोड़ने का फैसला लेती है. वहीं काव्या इस बात से बेहद खुश होती है. हालांकि पूरा परिवार उसे रोकने की कोशिश भी करता है. लेकिन वह नहीं सुनती. इसी बीच बापूजी, अनुपमा से कहते हैं कि जाने से पहले तुम मुझे बता दो कि पाखी जब वापस आएगी तो उसे क्या जवाब देना है, जिसे सुनकर अनुपमा काफी इमोशनल हो जाती है और अपना घर छोड़ने का फैसला बदल देती है.

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राखी को पता चलता है काव्या का सच

समर और वनराज की लड़ाई के बीच राखी को काव्या पर शक होता है. हालांकि अनुपमा के घर छोड़ने की बात पर राखी को पूरा यकीन हो जाता है कि काव्या मोलेस्टेशन का ड्रामा कर रही है. वहीं इस बात को लेकर वह अनुपमा को आगाह करने की कोशिश करती हुई भी नजर आती है. साथ ही अब वह काव्या पर पूरी नजर रखते हुए नजर आएगी.

प्रौपर्टी अपने नाम करवाएगा वनराज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां अनुपमा के डांस क्लास के 100 दिन पूरे होने पर घरवाले जश्न मनाते नजर आएंगे तो वहीं काव्या के कहने पर वनराज बापूजी से प्रौपर्टी अपने नाम करने की बात कहेगा. हालांकि देखना होगा कि क्या बापूजी दोबारा वनराज के नाम घर करेंगे या नहीं.

बता दें, शो में जल्द ही एक नई एंट्री होने वाली है, जिसका नाम अनुज होगी. वहीं इस नए किरदार के आने से अनुपमा की जिंदगी में नया मोड़ आएगा.

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सच्ची घटना से प्रेरित है एक्ट्रेस श्रिया पिलगांवकर की ‘हाथी मेरे साथी’, पढ़े खबर  

बचपन से अभिनय के क्षेत्र में काम करने की इच्छा रखने वाली अभिनेत्री श्रिया पिलगांवकर ने अपने कैरियर की शुरुआत मराठी फिल्म से की, जिसमे उनके काम को काफी सराहना मिली और बेस्ट न्यू कमर का अवार्ड भी मिला. फिल्मों के अलावा उन्होंने कई विज्ञापनों में भी काम किया है. अभिनय के अलावा श्रिया निर्माता, निर्देशक और स्टेज परफ़ॉर्मर भी है. हालाँकि वह अभिनेत्री सुप्रिया पिलगांवकर और सचिन पिलगांवकर की बेटी है, पर किसी फिल्म में काम करने का निर्णय वह खुद लेती है. फिल्म में काम की ड्यूरेशन भले ही कम हो, पर उसका महत्व फिल्म में अधिक होने पर उसे करना पसंद करती है, ताकि दर्शक श्रिया को याद रख सके. फिल्म ‘फैन’ में एक छोटी सी भूमिका से वह सबकी नजर में आई और आगे कई फिल्में की. अभी उनकी फिल्म हाथी मेरे साथी रिलीज पर है, जिसमें जंगल और उससे जुड़े वन्य जंतुओं की महत्व को दिखाने की कोशिश की गई है. विनम्र और हंसमुख श्रिया से बात हुई पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?

इस फिल्म में मैंने एक इमानदार रिपोर्टर की भूमिका निभाई है, जो किसी के दबाव में  आना नहीं चाहती, लेकिन उसे इस कहानी को किसी भी तरह से रिपोर्टिंग करना है, कैसे वह कर पाती है, उसे ही दिखाने की कोशिश की गयी है.

सवाल-क्या इसके लिए कुछ खास तैयारियां की है? तीन भाषाओँ में सेट पर एक दृश्य को शूट करना कितना कठिन रहा?

इस फिल्म को पहले तमिल फिर तेलगू और बाद में हिंदी में शूटिंग किया गया है, इसलिए हर भाषा में एक ही दृश्य को शूट करना कठिन रहा. दृश्य में एक जैसे भाव लाने के लिए तैयारी करनी पड़ी, लेकिन इसमें निर्देशक का बहुत बड़ा हाथ होता है, क्योंकि वह पूरी फिल्म को सामने से देख रहा होता है. भाषा मेरे लिए बहुत अधिक माइने नहीं रखती, क्योंकि मैं थिएटर आर्टिस्ट हूं और मुझे अलग-अलग भाषा में काम करना पसंद है. तैयारी भाषा को लेकर भी करनी पड़ी, क्योंकि मैंने 3 फिल्मों की शूटिंग की है, दृश्य वही थे, लेकिन भाषा अलग होने से शब्दों की बारीकियों को दृश्य में उतारना चुनौती होती है. मैं तमिल, तेलगू में पहली बार फिल्म कर रही हूं, इसलिए मैं बहुत उत्साहित थी और मज़ा भी आया.

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सवाल-आपकी फिल्म का शीर्षक हाथी मेरे साथी नाम से पहले भी फिल्म आ चुकी है, ये फिल्म उससे कितनी अलग है?

काफी अलग फिल्म है, इसमें हाथियों को अवैध तरीके से शिकार और मनुष्य का प्राणी जगत के साथ बोन्डिंग को दिखने की कोशिश की गयी है, जिसमें पर्यावरण के लिए कोई नहीं सोचता, पहाड़ और जंगलों को काटकर लोग विकास करने में जुटे है. ये कहानी आसाम के जादव मोलाई पायेंग पर आधारित एक सच्ची घटना से प्रेरित है, जिन्होंने एलिफेंट कोरिडोर को बचाने के लिए बहुत काम किये है और उन्हें ‘फारेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया कहा जाता है.

सवाल-हाथियों का अवैध शिकार सालों से होता आ रहा है, क्या आप इस दिशा में कुछ करने की इच्छा रखती है?

मुझे बचपन से ही हाथी पसंद है और मैं चाहती हूं कि जंगल के जानवरों को बचाने के लिए लोग जागरूक हो और उनके महत्व को समझे. विकास के नाम पर जंगल फटाफट काटे जा रहे है, जबकि हम सब जंगल और उसके प्राणी के साथ जुड़े हुए है. मुझे बहुत अधिक ख़राब लगता है, जब मैं हाथियों का अवैध शिकार करते हुए. जंगलो को काटकर बिल्डिंग बनाते हुए लोगों को कही देखती हूं.

सवाल-आप एक स्टेट लेबल की स्विमर, निर्देशक और अभिनेत्री है, किस काम में आपको सबसे अधिक ख़ुशी मिलती है?

अभिनय मेरी पहली पसंद है, लेकिन मैंने किसी नयी चीज को सीखना कभी नहीं छोड़ा है. शूटिंग के दौरान सेट पर मैं निर्देशन की बारीकियों को सीखती हूं, क्योंकि ये सब जानना जरुरी है, ताकि आगे चलकर मैं एक फिल्म का निर्देशन करूँ. अभी वो समय गया, जब कलाकार सिर्फ अभिनय ही करते थे, जबकि आज के आर्टिस्ट अभिनय के साथ-साथ नयी चीज को सीखना पसंद करते है.

सवाल-फिल्मों में कम दिखाई पड़ने की वजह क्या है?

मैंने कई प्रोजेक्ट किये है, जिसे कोविड की वजह से बाहर निकलने में समय लग रहा है. मैं जल्दबाजी में कोई काम नहीं उठाती, क्योंकि कई बार फिल्में बनकर डिब्बे में बंद रह जाती है, इसलिए सब देखकर फिर काम को चुनती हूं. मैं चाहती हूं कि जल्दी से मेरे काम बाहर आ जाय, जिससे दर्शक मेरा काम देख सकें. इस फिल्म को बाहर आने में दो साल लगे है. यही इस इंडस्ट्री की पहचान है, लेकिन जब फिल्म आती है , तो अपनी पहचान छोड़कर अवश्य जाती है.

सवाल-किस फिल्म ने आपकी जिंदगी बदल दी?

फिल्म ‘मिर्ज़ापुर के बाद मेरे काम को दर्शकों ने अधिक नोटिस किया और मेरे काम को सराहा गया. मिर्ज़ापुर मेरे कैरियर का टर्निंग पॉइंट रहा है.

सवाल-आपके पेरेंट्स इंडस्ट्री के सफल कलाकार है, क्या आपको कभी इसका प्रेशर रहा?

इसमें मैं इतना सोचती हूं कि मैं अपनी कैरियर ग्राफ को अच्छी तरह से अपने हिसाब से आगे ले जाऊं. मेरे वर्ताव और बातचीत को मैं हमेशा अच्छी रखूँ, क्योंकि ये चीज उनके लिए अधिक माइने रखती है. उन्होंने जो लेगेसी बनाई है, उसे मैं एक कलाकार के रूप में आगे ले जाने की कामना करती हूं. फिल्मों का सफल होना और असफल होना मेरे हाथ में नहीं होता, पर मैं एक अच्छा कलाकार और अच्छा नागरिक बनना चाहती हूं.

सवाल-क्या कभी काम को लेकर पेरेंट्स से चर्चा करती है?

पेरेंट्स ने हमेशा मुझे काम की आज़ादी दी है. मुझे जो पूछने की जरुरत है, वह पूछ लेती हूं, जबकि निर्णय मेरा ही होता है. असल में मुझे पता होना चाहिए कि मैं क्या करने जा रही हूं और इसमें गलतियाँ होने पर भी मुझे ही उसे ठीक करना है. पेरेंट्स मेरे साथ हमेशा गाइड करने के लिए होते है और वह मेरे लिए बहुत अधिक जरुरी है.

सवाल-कोविड की वजह से ओटीटी अधिक पोपुलर हो गया है, इससे कलाकारों को कितना फायदा हो रहा है?

अधिक छोटी-छोटी फिल्मे या वेब सीरीज कम बजट में बन रही है, जिससे काफी लोगों को काम मिल रहा है. स्टार सिस्टम अब करीब खत्म हो गया है. अब केवल एक या दो स्टार नहीं, अभिनय करने वाले सभी स्टार है. ये सही है कि थिएटर में जाकर बड़े पर्दे पर फिल्में देखने का मजा कुछ और ही होता है, लेकिन अभी कोरोना के समय सबको इसके निर्देश के अनुसार हॉल में जाने की जरुरत है.

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सवाल-कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान आपने क्या-क्या किया है?

वह समय सभी के लिए बहुत ही ख़राब था. मैं खुद को खुशनसीब मानती हूं कि मैं अपने परिवार के साथ थी, क्योंकि काम के दौरान हम सबको एक साथ रहने का समय नहीं मिलता था, जो उस दौरान मिला है. मुझे आगे क्या करना है, उसके बारें में सोची, सेहत का ध्यान रखा और मेरी डौगी जैक के साथ समय बिताया है. इसके अलावा पेंटिंग और रीडिंग भी की है. साथ ही एक सीरीज की शूटिंग की, जो ऑनलाइन रिलीज भी हो गयी.

Holi Special: घर पर ही बनाएं रेस्टोरेंट स्टाइल कर्ड मिंट चटनी

हरी चमकदार पत्तियों वाला पुदीना भोजन का मुख्य अंग तो नहीं है परन्तु इसकी चटनी जहां भोजन का स्वाद बढ़ा देती है वहीं इसकी खुशबू किसी भी खाद्य पदार्थ के स्वाद को दोगुना कर देती है. इसकी जड़ को घर में बड़ी ही आसानी से लगाया जा सकता है. कुछ ही समय में यह काफी फैल जाता है साथ ही इसे बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता भी नहीं होती. इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन सी, डी, और बी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

पाचन तंत्र और त्वचा संबंधी रोगों में पुदीने का सेवन काफी लाभदायक होता है. इसके नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है. बाजार में यह कैप्सूल और अर्क के रूप में भी मिलता है. इसकी पत्तियों को सुखाकर पाउडर बनाकर एयरटाइट जार में भरकर किसी भी सब्जी दाल में प्रयोग किया जा सकता है. रेस्टोरेंट में अक्सर स्टार्टर के साथ दही वाली मिंट चटनी सर्व की जाती है,जो खाने में बहुत स्वादिष्ट लगती है परन्तु घर पर वैसी गाढ़ी चटनी नहीं बन पाती. आज हम आपको बिल्कुल रेस्टोरेंट जैसी गाढ़ी और स्वादिष्ट चटनी बनाना बता रहे हैं-

कितने लोंगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 10 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

ताजा दही 500 ग्राम
ताजा पुदीना 1 कप
ताजा हरा धनिया 1 कप

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हरी मिर्च 4
अदरक 1 छोटी गांठ
नीबू का रस 1 टीस्पून
नमक 1/4 टीस्पून

विधि

दही को एक बड़ी छलनी में डालकर 3 से 4 घण्टे के लिए एक भगौने के ऊपर रख दें ताकि इसका पूरा पानी नीचे निकल जाए. अब इस हंग कर्ड को एक बाउल में निकाल लें. हरा धनिया, पुदीना, हरी मिर्च , नीबू का रस, अदरक और नमक को 1 टेबलस्पून पानी के साथ मिक्सी में दरदरा सा पीस लें. पिसे पोदीना के मिश्रण को पानी निकले दही में भली भाँति मिलायें. तैयार चटनी को किसी भी स्टार्टर के साथ सर्व करें.
नोट-सभी सामग्री को एक साथ मिक्सी में पीसने की गल्ती न करें वरना चटनी बहुत पतली हो जाएगी.
केवल पानी निकले ताजे दही का ही प्रयोग करें.

पुदीना और धनिया की मात्रा आप अपनी इच्छानुसार घटा बढ़ा सकतीं हैं.

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‘दुल्हन’ बनीं सारा अली खान, मनीष मल्होत्रा के लहंगा पहनकर गिराईं बिजलियां

बौलीवुड एक्ट्रेस सारा अली खान अक्सर सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. जहां फैंस उनकी लुक्स की तारीफें करते हैं तो वहीं हर कोई उनके सिंपल फैशन को अपनाने की ख्वाहिश रखता है. इसी बीच सारा अली खान ने एक फोटोशूट में ब्राइडल कलेक्शन से फैंस का दिल धड़का दिया है. दरअसल, बौलीवुड के फेमस फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने हाल ही में अपना नया ब्राइडल कलेक्शन ‘नूरानियत’ लॉन्च किया है, जिसमें ब्राइडल लुक में सारा अली खान जलवे बिखेरती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं सारा अली खान के ब्राइडल कलेक्शन की झलक…

 सारा ने ब्लैक लहंगे में दिखाया जलवा

 

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मनीष मल्होत्रा के नए ब्राइडल कलेक्शन में सारा का ब्लैक बेस्ड लहंगे में जलवे बिखेरती नजर आ रही हैं. सारा के लहंगे को वलूमनस कट दिया गया है तो वहीं ब्लाउज में डीप प्लंजिंग कट से उनके लुक पर हौटनेस का तड़का लगाया गया है. लहंगे पर की गई गोल्डन, सिल्वर ऐंड ब्रॉन्ज कॉम्बिनेशन की कढ़ाई की गई है, जो उसे रॉयल लुक दे रही है.

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श्रग के साथ खूबसूरत है सारा का लुक

वेडिंग कलेक्शन में सारा ने ब्लैक कलर का एक और लहंगा पहना था, जिसके लहंगे पर हैवी वर्क किया गया था. वहीं इसके ब्लाउज को सिंपल रखा गया था. लेकिन इस लुक को दुपट्टे की बजाय श्रग के साथ पेयर किया गया था, जो की उनके लुक पर चांद लगा रहा था.

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मिरर वर्क में नजर आईं सारा अली खान

ब्लैक कलर के अलावा सारा लाइट पिंक कलर के लहंगे में भी नजर आईं, जिसमें वह किसी परी से कम नहीं लग रही थीं. मिरर वर्क की कारीगरी वाले इस लहंगे के साथ सारा अली खान ने मिरर पैटर्न वाला ब्लाउज कैरी किया था, जिसमें उनकी लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था.


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आओ, नरेगा नरेगा खेलें: मजदूरों ने जब खेला नेताओं और ठेकदारों संग खेल

आज देश में अगर हर जगह किसी चीज की चर्चा है तो वह नरेगा यानी नेशनल रूरल एंप्लायमेंट गारंटी ऐक्ट ही है. स्वाइन फ्लू व बर्ड फ्लू आदि तो बरसाती मेढक की तरह हैं जो कुछ समय के लिए टर्रटर्र करने के बाद इतिहास में उसी तरह विलीन हो जाते हैं जैसे भारत का किसी भी ओलिंपिक खेलों में प्रदर्शन विलीन हो जाता है. इतिहास को बदलने की शुरुआत जरूर निशानेबाज अभिनव बिंद्रा व मुक्केबाज बिजेंद्र कुमार ने की, नहीं तो हमारा ओलिंपिक में पदक के मामले में निल का स्वर्णिम इतिहास रहा है.

हां, ओलिंपिक खेलों में हमारा दल जरूर सदलबल रहा है. यानी अगर 50 खिलाड़ी गए तो अधिकारी 49 कभी नहीं रहे, 50 को तो पार कर ही जाते थे. आखिर हर खिलाड़ी के पीछे एक अधिकारी तो होना चाहिए न. उसे असफल होने पर धक्का लगाने के प्रयोजन से. एक कहावत है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है. हमारे यहां हर असफल खिलाड़ी के आगे एक अधिकारी होता है.

वैसे हम अपने राष्ट्रीय खेल हाकी में फिसड्डी हो गए हैं तो अब सभी के प्रिय खेल ‘नरेगानरेगा’ को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दिया जाए. वैसे अघोषित रूप से यह राष्ट्रीय क्या अंतर्राष्ट्रीय खेल हो गया है क्योंकि कई अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ नरेगा की समस्याओं, उलझनों की आग में अपनी रोटी सेंक रहे हैं.

कहां नरेगा, कहां खेल. आप को यह अटपटा लग रहा होगा. पर सच है, बहुत से लोगों के लिए नरेगा ने एक नए खेल के रूप में जन्म लिया है. नरेगा में सरकार ने कानूनी रूप से मजदूर को, जो अपने ही क्षेत्र में काम करना चाहता है, 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी है. नहीं तो सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता है. नरेगा के वास्तविक हकदार वे मजदूर हैं जिन की रोजीरोटी की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है और वे शारीरिक श्रम करने को मजबूर व सहमत हैं.

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लगता है, मजदूर शब्द की उत्पत्ति मजा+दूर से हुई है. केवल कमरतोड़ मेहनत का काम करने के लिए जहां मजा नाम की कोई चीज नहीं है अर्थात मजा बहुत दूर है इसलिए नाम है मजदूर.

नरेगा में सरकार ने मजा का बंदोबस्त किया है. मसलन, कार्यस्थल पर दवाइयों की किट, बच्चों के लिए झूलाघर, पानी की व्यवस्था, पूरी न्यूनतम मजदूरी लेकिन मजदूर शब्द का कैरेक्टर ही ऐसा है कि मजा उस से दूर हो जाता है व उसे सजा के रूप में कम मजदूरी, विलंब से मजदूरी मिलती है.

नरेगा का मजा परदे के पीछे रह कर मजदूरों का भला चाहने वालों को मिलता है. ये कौन लोग हैं? ये हैं मजदूर का जाबकार्ड बनाने, बैंक में खाते खुलवाने के मददगार. नरेगा की रेलमपेल में अपनी मशीनरूपी रेल झोंक देने वाले तसले, फावड़े, कुदाल बेचने वाले व्यापारी, मुद्रण के अलगअलग कार्य करने वाले, कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो गए कंसल्टेंट, एन.जी.ओ. आदि, नरेगा का मजा ले रहे हैं और बेचारे मजदूर सजा पा रहे हैं.

नरेगा का नाम मरेगा कर देना चाहिए क्योंकि इस में बाकी सबकुछ दिन दूना रात चौगुना बढ़ेगा पर मजदूर तो मरेगा ही. मशीनबाज ठेकेदार मशीन से करवा कर मजदूर को आधी मजदूरी काम घर बैठे दे कर जाबकार्ड पर उस का अंगूठा लगवा लेता है. जाबकार्ड भी ठेकेदार या ठेकेदाररूपी सरपंच के पास ही रहता है. यहां एक बात समझ में नहीं आई कि जो जिले शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य कई साल पहले प्राप्त कर चुके हैं वहां भी नरेगा में मजदूर अंगूठा ही लगा रहा है यानी उस समय साक्षरता अभियान चलाने वालों ने सरकार को ठेंगा ही (अंगूठा) दिखाया है.

जितना काम नहीं हो रहा उस से ज्यादा उस का हिसाब रखने के लिए मस्टररोल, रजिस्टर छप रहे हैं. नरेगा मजदूरों के अलावा सब के लिए है. विपक्षी दल के विधायक के लिए भी है. उसे विधानसभा में उठाने के लिए कोई विषय नहीं मिलता तो नरेगा से संबंधित कुछ भी पूछ लेता है. मसलन, फलां जिले के रेलवे स्टेशन में मजदूर गठरी लिए क्यों बड़ी संख्या में खड़े रहते हैं जब नरेगा उन के जिले में चल रही है.

अब उन्हें कौन समझाए कि पेट को दो वक्त की रोटी के हिसाब से देखें तो साल में 730 बार खाना चाहिए. नरेगा अधिक से अधिक केवल 200 बार रोटी देता है. वे तो गले तक भर पेट ले कर प्रश्न पूछते हैं. इसलिए मजदूर का 265 दिन का पिचका पेट उन्हें नहीं दिखता है. ये ऐसे ही प्रश्न हैं जैसे फ्रांस की राजकुमारी ने फ्रांसीसी क्रांति के समय अपनी जनता के बारे में कहा कि रोटी नहीं है तो ये केक क्यों नहीं खाते.

सरकाररूपी सिस्टम मजबूरी में नरेगा में सुधार के समयसमय पर फैसले लेता है पर जैसे पुलिस व चोरों के बीच चूहेबिल्ली का खेल चलता है, वैसे ही नरेगा के परदे के पीछे के हितलाभी ‘तू डालडाल मैं पातपात’ की तर्ज पर सरकारी नियंत्रण की तोड़ निकाल लेते हैं. लगे हाथ एकदो उदाहरण भी देख लें.

सरकार ने सोचा कि जाबकार्ड सभी को दे दो, चाहे मजदूर आए या न आए क्योंकि जाबकार्ड बनाने में मजदूर को पासपोर्ट बनवाने से ज्यादा चक्कर सचिव, सरपंच और पटवारी आदि के लगाने पड़ेंगे तो सयानों ने ठेकेदारों को अपने जाबकार्ड किराए पर दे दिए. मजदूर भी बड़े सरकारी ठेकेदार की तरह अपने विशेषाधिकार को पेटी कांट्रैक्टर को हस्तांतरित करने की तर्ज पर काम कर रहा है. चलो, नरेगा ने एक हथियार तो मजबूर, अरे नहीं मजदूर को दिया कि वह बिना हाड़मांस का शरीर हिलाए कुछ रुपए पा जाए.

सरकार ने मजदूर के खाते खोलना अनिवार्य कर दिया और भुगतान खाते से होगा. यह भी जरूरी कर दिया तो कई मजदूर ठेकेदारों के चंगुल में आ गए. बिना काम किए निश्चित प्रतिशत ठेकेदार से ले कर बैंक से निकाली राशि उसे सौंप दी.

सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में जैसे कोई बहुत बड़ी पूंजी वाला कारखाना खुल जाता है वैसे ही नरेगा रूपी विशाल उद्योग खुलने से कई उद्यमियों को घरबैठे उद्योग स्थापित करने का अवसर मिला है. ये कौनकौन हैं नीचे क्रमबद्ध सुशोभित हैं:

पत्रकारिता के व्यापारियों ने ‘नरेगा टाइम्स’ या ‘नरेगा पन्ना’ नाम से नियमित अखबार शुरू कर दिया है.

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मुद्रणालयों ने अनापशनाप रजिस्टरों, फार्मों के स्कोप को देखते हुए, अपनी पिं्रटिंग इकाइयों का विस्तार कर लिया. कई बीमार प्रिंटिंग इकाइयां जो बी.आई.एफ.आर. के पास थीं, वापस क्रियाशील घोषित हो गईं. बी.आई.एफ.आर. वह संस्थान है जो बीमार औद्योगिक इकाइयों को पुनर्जीवित करने का कार्य करता है.

अचानक कई शहरों में जे.सी.बी. यानी कि नईनई एजेंसियां खुल गईं. उन्हें देख कर ऐसा लगा मानो छोटे शहर भी औद्योगिक क्रांति की ओर दौड़ पड़े हैं, क्योंकि अब बैंक भी जे.सी.बी. को उसी तरह फाइनेंस करने लगे हैं जैसे ट्रैक्टर आदि को करते थे. जे.सी.बी. कंपनी के हेडआफिस में भी आपातकालीन बैठक बुला कर नरेगा के कारण बिक्री लक्ष्य 500 नग कर दिया गया है. इस बैठक में यह बात भी निकल कर आई कि धारा 40 के मामलों की बाढ़ आ गई है. यदि पंचायत में काम करने वाले मजदूर नहीं हैं तो भी प्रशासन सरपंच को दोषी मान कर नोटिस दे देता है. अत: वकीलों को भी भरपूर रोजगार मिल रहा है. जय हो नरेगा. जो सब का ध्यान रखता है. अल्टीमेटली काम मशीनों से होंगे क्योंकि उतने मजदूर हैं नहीं जितने सरकार सोचती है और जो हैं भी, उन में से ज्यादातर में ‘जितना काम उतना दाम’ के सिद्धांत व कमतर होती शारीरिक क्षमता के कारण काम करने की इच्छा नहीं है.

नरेगा जिलों में पोस्ंिटग का वैसा ही क्रेज है, जैसा गुजरात, जहां दारू निषेध है, के अवैध शराब की ज्यादा बिक्री वाले क्षेत्र के थानों में पोस्ंिटग के लिए होता है. स्थानांतरण कार्य का स्कोप बढ़ गया है. नरेगा जिले के मुख्य अधिकारी को आंखें दिखाओ तो वह वशीकरण मंत्र के प्रभाव की तरह जो बोला जाए वही करने लगता है. आखिर वह भी सिविल सेवा में, देश सेवा के लिए ही तो आया है, नहींनहीं, सात पुश्तों की सेवा के लिए आया है.

दोपहिया, चार पहिया वाहन वालों, रिएल एस्टेट वालों की पौबारह है. सरपंच, अधिकारी, शिकायतकर्ता, एन.जी.ओ. और पत्रकार सभी नरेगा के कारण वाहन, जमीनजायदाद खरीद रहे हैं. नरेगा के कारण आटो मोबाइल में एक्साइज ड्यूटी कम होने के बावजूद डीलरों ने रेट बढ़ा दिए हैं. फिर भी बिक्री का ग्राफ बढ़ गया है.

कलक्टर, जिला पंचायत कार्यालय में स्थापना का कार्य देख रहे बाबू का कार्य बढ़ गया है क्योंकि नरेगा के कारण रोज किसी न किसी अधिकारी की जांच चल रही है. अधिकारी व कर्मचारी प्रभावशील व्यक्ति की मशीन को काम नहीं देते हैं तो वे शिकायत करवा देते हैं, मजिस्ट्रेट के न्यायालय में काम बढ़ गया है.

नरेगा क्रिटिक का एक नया क्षेत्र रोजगार के लिए खुल गया है. एक कंसल्टेंसी फर्म ने तो बाकायदा विज्ञापन दे कर ऐसे व्यक्तियों की सेवाएं लेनी चाही हैं. नरेगा ने सरपंच की औकात बढ़ा दी है. एक छोटे से क्षेत्र का जनप्रतिनिधि होने के कारण तथा नरेगा में लाखोंकरोड़ों का आबंटन मिलने से बहुत बड़े क्षेत्र के जनप्रतिनिधि, विधायक व सांसद को उस ने आंखें दिखाना शुरू कर दिया है. अब वह विधायक व सांसद से अपने यहां की पंचायत में कार्य करवाने की मिन्नत नहीं करता बल्कि कभीकभी वह यह इच्छा पाल लेता है कि विधायक व सांसद उस से निवेदन की भाषा में कोई कार्य स्वीकृत करने की बोलें तो वह कार्य स्वीकृत उसी अंदाज में कर देगा जिस में पहले वे लोग किया करते थे, क्योंकि हर सांसद व विधायक के निर्वाचन क्षेत्र में सैकड़ों पंचायतें हैं. इस तरह से देखें तो प्रति ग्राम पंचायत उन के फंड का पैसा मामूली सा रह जाता है.

न्यायपालिका की सक्रियता से नरेगा भी नहीं बचा है. न्यायालयों में ट्रायल चलतेचलते ही कई लोग वास्तविक सजा से ज्यादा समय जेल में गुजार लेते हैं फिर भी मामले का फैसला नहीं होता है. उस पर न्यायपालिका की दिलेरी देखिए कि नरेगा के हर मामले में सक्रिय है.

नरेगा होने से सिविल सोसायटी बहुत सिविल हो गई है. क्योंकि हर स्तर पर कमी निकालने का हथियार नरेगा ने इन को दे दिया है. दुनिया में और भी मुद्दे हैं जिन्हें ये पकड़ना नहीं चाहते, सब नरेगा के पीछे चल पड़े हैं क्योंकि मजदूरों के साथ इन की भी रोजीरोटी इसी से चल रही है. यह योजना कैसे प्रभावी ढंग से चले इस के उलट कैसे उस में पोल बनी रहे? लोग परेशान हों? इस बात में ये ज्यादा रुचि रखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे सरकारी अस्पताल का डाक्टर इस कोशिश में रहता है कि अस्पताल के कुप्रबंधन में उस का योगदान कम न रहे जिस से उस के क्लीनिक में सरकारी अस्पताल के मरीज आते रहें व उस के घर का प्रबंधन सुचारु रहे.

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एन.जी.ओ. में से कई ऐसी संस्था थीं जो लाखों का घपला कर माल डकार गईं और दफ्तर बंद कर गायब हो गईं. अब फिर नए नाम से नया संगठन बना कर नरेगा के घपलों में अपने घपले को फिर अंजाम देने की जुगत में हाथपैर चला रहे हैं. स्विस बैंक के अधिकारियों को अब ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए. उन के यहां जितना काला धन जमा है उस से ज्यादा नरेगा का बजट हो जाएगा.

अरे, मेरे देश के पत्रकारो, एन.जी.ओ., ठेकेदारो, अधिकारियो, छात्रो, एक्टिविस्टो, शिक्षाविदो और बहुत से दूसरे भी, तुम नरेगा को प्रभावी बनाने में अपना सकारात्मक योगदान दो तो वह दिन दूर नहीं कि देश का मजदूर भी नैनो से नरेगा में काम करने आएगा तो सोने की चिडि़या का संबोधन पुन: देश को मिलना शुरू हो जाएगा.

बदन संवारें कपड़े नहीं

टीवी एक्ट्रेस शिखा सिंह आज के समय में टीवी का जानामाना नाम बन चुकीं हैं. वैसे भले ही इन्होंने अब तक किसी भी शो में लीड किरदार न निभाया हो फिर भी टीवी जगत में वह काफी लोकप्रिय है खास कर ज़ी टीवी के शो कुमकुम भाग्य में आलिया के किरदार से इन्हे पहचान मिली है.

हाल ही में उन्होंने कहा कि उन्हें हर चीज महंगी ही अच्छी लगती है. खास कर अपने कपड़ों के लिए वह सब से ज़्यादा पैसे खर्च करती हैं. सामान्यतः  शिखा के एक ड्रेस की कीमत 80 हजार से 1 लाख तक होती है क्योंकि वह अपने ड्रेस विदेश से मंगवाती है और इस तरह के महंगे ड्रेस पहनना ही उन को पसंद आता है. उसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो.

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बौलीवुड एक्ट्रेस करीना की बात करें तो सब को पता है कि वह पार्टियों में लाखों की ड्रेस पहन कर पहुंचती हैं. लेकिन क्या आपने सुना है कि वह जिम में भी 45 हजार तक की टीशर्ट पहन कर जा चुकी हैं.

महंगे कपड़ों से सुर्खियां बटोरने की चाह

करीब 2 साल पूर्व ‘द मैन विद द गोल्डन शर्ट’ के नाम से मशहूर महाराष्ट्र के मशहूर व्यवसायी और राजनेता पंकज पारेख का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल हो गया. उन्होंने सबसे महंगी सोने की शर्ट रखने के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकार्ड बनाने का दावा किया जिसकी मौजूदा कीमत 1.3 करोड़ रूपये से ज्यादा आंकी गयी है.

नासिक से करीब 70 किलोमीटर दूर येओला के 47 साल के पंकज पारेख ने 2014 में अपने 45 वें जन्मदिन पर यह विशेष शर्ट बनवायी थी और इस के दो साल बाद 98,35,099 रूपये की चार किलोग्राम सोने की शर्ट ने सब से महंगी शर्ट होने का रिकौर्ड बनाया. पंकज पारेख ने यह शर्ट एक अगस्त 2014 को खरीदी थी. शुद्ध सोने से बनी इस शर्ट के भीतरी हिस्से में कपड़े की बेहद महीन परत है. पारेख को जिस शर्ट के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड मिला है उस का वजन 4.10 किलोग्राम है. इसे तैयार करने के लिए 20 कारीगरों ने दो महीनों में 3200 घंटों तक काम किया. इस शर्ट को तैयार करने के लिए 18-22 कैरेट सोने का इस्तेमाल हुआ.

पारेख जब भी अपने सोने के परिधान के साथ येयोला की सड़कों पर निकते हैं उन के साथ एक लाइसेंसी रिवाल्वर होता है. पारेख स्वीकार करते हैं कि येयोला के पुरुष व महिलाएं उन्हें घूरते हैं इसलिए वह प्राइवेट बॉडीगार्ड ले कर चलते हैं.

पारेख का परिवार उनके इस शौक को गैरजरूरी जुनून करार देता है. उन के रिश्तेदार भी उन्हें झक्की करार देते हैं.

अजब गजब फैशन पर लाखों का खर्च

हाल ही में प्रियंका का एक लुक खासा चर्चा में रहा। मेट गाला में प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण काफी अतरंगी बन कर पहुंचीं।

प्रियंका ने क्रिश्चियन डिओर की सिल्वर रंग की पंखनुमा ड्रेस पहनी थी. मेकअप थोड़ा अलग किस्म का था. अपनी भंवों को प्रियंका ने सफ़ेद कर रखा था. बाल भी ऐसे लग रहे थे जैसे अभीअभी उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक लगा हो. प्रियंका अपनी इस ड्रेस और मेकअप के लिए काफ़ी ट्रोल भी हुई. इंटरनेट पर उन के मीम चले. वहीं दूसरी तरफ़ दीपिका ने ज़ैक पोसेन का गुलाबी गाउन पहना था.

मेट गाला को फैशन का वर्ल्डकप फाइनल समझ लीजिए. मेट गाला हर साल मई के पहले मंडे को होता है. न्यूयॉर्क में एक जगह है, मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ़ आर्ट नाम की. मेट नाम इसी से निकला है. अंग्रेज़ी में गाला का मतलब हुआ पर्व. दोनों शब्दों को जोड़ कर बनता है मेट गाला. इस इवेंट का मकसद फंडरेजिंग है. यह आर्ट म्यूजियम अपने फैशन कलेक्शन के लिए पैसे जोड़ता है. हर साल यह एक थीम तय करता है. सब इसी थीम के मुताबिक कपड़े पहन कर आते हैं. इस साल की थीम थी ,‘कैंप: नोट्स ऑन फैशन.’ मेट गाला की शुरुआत साल 1946 में हुई थी. इस को एक तरह से ‘फैशन पार्टी ऑफ़ द इयर’ समझा जाता है.

दुनियाभर के तुर्रमखान जिन्हें फैशन में दिलचस्पी होती है वे मेट गाला में हिस्सा लेते हैं. ज्यादातर म्यूजिक इंडस्ट्री के सितारे, फिल्मों के जानेमाने चेहरे, फैशन की दुनिया के बड़े नाम या किसी भी वजह से फेमस लोग इस इवेंट में शामिल होते हैं. हर साल मेहमानों की लिस्ट बदलती है.

मेट गाला में जो मेहमान आते हैं उन्हें एक टेबल ख़रीदनी पड़ती है. इस को एंट्री टिकट समझ लीजिए. इस की कीमत एक करोड़ से ऊपर है. यहां आने के लिए आप को डिज़ाइनर गाउन, गहने वगैरह भी खरीदने ही पड़ते हैं. हालांकि टिकट एंट्री वाला रूल सेलिब्रिटीज़ पर लागू नहीं होता. उन्हें तो उल्टा यहां आने के पैसे दिए जाते हैं. यहाँ सब बड़ेबड़े डिज़ाइनर्स के रंगबिरंगे फॅशनेबल और महंगे से महंगए कपड़े पहन कर अपना जलवा दिखाते हैं.

कान्स फिल्म फेस्टिवल 2019 के लिए दीपिका की पहनी हुई हर ड्रेस, ज्वैलरी और फुटवेयर की कीमत लाखों में रही. दीपिका पादुकोण ने अपने दूसरे दिन के रेड कार्पेट वॉक के लिए लाइम ग्रीन कलर ट्यूल गाउन पहना था. उन का यह गाउन गियमबटिस्टा वाली (Giambattista Valli ) ने डिजाइन किया था. इस लुक में उन्होंने गाउन के साथ ही सिर पर एक गुलाबी पगड़ी पहनी थी। अपने इस लुक को पूरा करने के लिए उन्होंने एक लग्जरी हेयरबैंड भी पहना हुआ था. अगर बात करें इस छोटे से हेयरबैंड की तो उस की अकेले की कीमत ही 585 पाउंड्स बताई जा रही है. इस कीमत को अगर भारतीय करेंसी में बदल कर देखा जाए तो यह हेयरबैंड लगभग 52,338 रुपए का है. इतनी कीमत में एक शानदार बाइक खरीदी जा सकती है. दीपिका के लिए यह हेयर बैंड एमिली बक्सेंडले (Emily Baxendale) ने डिजाइन की थी.

कुछ दिनों पहले महिला दिवस के अवसर पर प्रियंका सोहो हाउस पार्टी में पहुंची थी. इस दौरान वह ब्राउन कलर के बेहद ड्रेस में नजर आईं. उन्‍होंने अपने लुक को कंप्‍लीट करने के लिए बूट्स पहने थे और मैचिंग बैग कैरी किया था. उन के इस लुक की तसवीरें जम कर वायरल हुई. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों को उन का यह लुक पसंद आया और कुछ ने  सोशल मीडिया पर उन की ड्रेस का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. उन के इस लुक को किसी ने ‘कोकाकोला’ कहा तो किसी ने ‘चिड़िया’ बताया।

प्रियंका के इस ड्रेस की कीमत जान कर आप हैरान रह जायेंगे. प्रियंका की यह ड्रेस एट्रो (ETRO ) ब्रांड की थी जिस की कीमत $2,750 यानी तकरीबन 1,90,155 रुपये है.

एक्टर रणवीर सिंह अक्सर अतरंगी पोशाके पहनने के कारण सुर्खियों में रहते हैं. हाल ही में रणवीर ने एक ऐसी तस्वीर इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दी है जिस की वजह से वह सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगे। फोटो में रणवीर फर वाली जैकेट पहने नजर आ रहे हैं जिस पर तरहतरह के स्टिकर्स लगे हुए हैं. व्हाइट पैंट, व्हाइट स्वेटर और कलरफुल सनग्लासेज लगाए रणवीर बड़े डिफरेंट लग रहे थे. सोशल मीडिया पर यूजर्स को उन का यह लुक रास नहीं आया.

लोगों ने रणवीर को कार्टून किरदार सुविलियन से कंपेयर किया . रणवीर के इस लुक का लोगों ने जम कर मजाक उड़ाया जब कि उन की पत्नी दीपिका पादुकोण को वह इस जैकेट में बहुत अच्छे लगे.

बदन पर खर्च करें रूपए कपड़ों पर नहीं

इस तरह के फैशन और परिधानों को देख कर क्या आप के दिल में यह ख्याल नहीं आता कि सजीधजी कोई दुकान तो नहीं चली आ रही है? आप कपड़े खरीदती हैं अपने शरीर को खूबसूरत दिखाने के लिए मगर जब कपड़ों की कीमत लाखों में हो तो क्या यह नहीं लगता कि हम उस दुकान या डिजाइनर का प्रचार करने वाले कैनवस पेपर बन गए हैं.

वस्तुत यदि आप बेहतर दिखना चाहती हैं तो अपने शरीर पर काम कीजिए। रुपए खर्च करने हैं तो अपने शारीरिक दोषों को दूर करने पर खर्च कीजिए। आकर्षक दिखना है तो फिटनेस कायम कर अपने शरीर को सुडौल और आकर्षक बनाइये. मगर इस तरह की बनावटी खूबसूरती का जामा पहन कर आप किसे भ्रमित कर रही हैं ?

महिलाएं खासतौर पर अपनी सैलरी और कमाई का सब से बड़ा हिस्सा अपने मेकअप के सामानो और परिधानों पर खर्च करती है. घंटों का समय लगा कर कोई ड्रेस खरीदती है. उस ड्रेस के लिए बड़ी से बड़ी कीमत अदा करती है। बारबार टेलर या डिज़ाइनर के पास जा कर उस की फिटिंग सही कराती हैं. फिर उस ड्रेस को और आकर्षक बनाने के लिए उस से मैच करते एक्सेसरीज और ज्वेलरीज खरीदती हैं. इस काम में भी घंटों का समय लगता है। तब जा कर उन की एक ड्रेस तैयार होती है.

पर क्या आप ने यह सोचा है कि यदि इतना समय और इतने रुपए आप ने अपने बदन को खूबसूरत और हैल्दी बनाने में खर्च किए होते, अपने चेहरे के नेचुरल आकर्षण को बढ़ाने में रूपए लगाए होते तो नतीजा कितना अलग निकलता। तब आप की खूबसूरती बनावटी और अस्थाई नहीं होती। आप अंदर से खूबसूरत महसूस करती। आप का रियल कॉन्फिडेंस बढ़ता।

फैशन के नाम पर कुछ भी पहन लेना आप के व्यक्तित्व की गरिमा को घटाता है. अपने बदन पर रूपए खर्च कर आप किसी भी उम्र में खूबसूरत दिख सकती हैं. आप 15 की हों , 25 की या 50 की. आज कल नएनए तकनीक उपलब्ध हैं. उन का प्रयोग करें. जिस तरह कपड़ों और मेकअप के फील्ड में लेटेस्ट तकनीक हावी हो रही हैं वैसे ही हेल्थ और कोस्मैटिक सर्जरी के फील्ड में भी हर समस्या का निदान है. आप को फिटनेस ट्रेनर के पास जाना पड़े , कॉस्मेटिक सर्जन के पास या फिर डॉक्टर्स के पास मगर अपने बदन के आकर्षण और सेहत को इग्नोर न करें. क्यों कि वक्त हाथ से निकल गया तो फैशन के जलवे भी आप को खूबसूरत नहीं दिखा पायेगा। जब कि बदन पर खर्च कर आप साधारण से साधारण कपड़ों में भी सब से बढ़ कर दिखेंगी.

Edited by Rosy

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