10 मिनट दीजिए और समय बचाइए

महिला चाहे गृहिणी हो या कामकाजी घर के कामकाज उसका पीछा नहीं छोड़ते. धुले कपड़ों का अंबार लगा रहता है तो सिंक बर्तनों से भरा रहता है. हर दिन वह यही सोचती है कि कैसे काम करे कि उसका कुछ समय बच पाए. यहां हम आपको 10 टिप्स बता रहे हैं जिनमें आपको केवल10 मिनट देने हैं परन्तु ये 10 मिनट आपके समय को भी बचाएंगे और घर को व्यवस्थित भी रखेंगे. यूं तो 10 मिनट कोई मायने नहीं रखते परन्तु निम्न कार्यों में 10 मिनट देने से आपके कार्यों का बोझ काफी हद तक हल्का हो जाएगा.

1-नहाने के बाद बाथरूम में साबुन, शैम्पू आदि को जगह पर रखकर वाइपर चलाने में केवल 10 मिनट देने से अगले दिन तक बाथरूम सूखा और साफ रहेगा.

2-खाना बनाने के बाद 10 मिनट देकर गैस, प्लेटफॉर्म और चिमनी को सर्फ के घोल से साफ कीजिये और हरदम चमकती किचिन पाइए.

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3-मशीन में धुलकर सूखे कपड़ों को यूं ही बेड पर डाल देने की अपेक्षा 10 मिनट में यथास्थान रख देने से वे बेड पर पड़े आपको मुंह नहीं चिढाएंगे.

4-शादी, ब्याह जैसे फंक्शन से वापस आने पर 10 मिनट में अपनी ज्वैलरी, ड्रेस आदि को उनके जोड़े के साथ ही यथास्थान रखने से अगली बार उपयोग करने में होने वाली असुविधा से आप बची रहेंगी.

5-मेहमानों के जाने के बाद ड्राइंग रूम से नाश्ते की प्लेटों को खाली करने और कप प्लेट धोने में मात्र 10 मिनट लगते हैं परन्तु इससे आपका किचिन और ड्राइंग रूम दोनों ही साफ सुथरे और व्यवस्थित रहते हैं.

6-ऑफिस से आकर पर्स, मोबाइल, घड़ी, लेपटॉप, फ़ाइल और लंचबॉक्स आदि को जगह पर रखने में मात्र 10 मिनट दीजिए और अगले दिन होने वाली असुविधा से बचिए.

7-किराना और सब्जी की लिस्ट बनाने से पूर्व 10 मिनट देकर किचिन में उनकी उपलब्धता जांच लें ताकि अनावश्यक सामान आने से बच जाए.

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8-भोजन समाप्त होने के बाद 10 मिनट देकर बचा भोजन फ्रिज में रखने और डायनिंग टेबल को साफ करने से इनके लिए आपको अतिरिक्त समय नहीं देना पड़ेगा.

9-डॉक्टर के पास जाने से पूर्व आप 10 मिनट देकर अपनी बीमारी के लक्षणों को एक कागज पर लिख लें इससे आप डॉक्टर के सामने सोचने विचारने से बच जाएंगे.

10-सुबह सोकर उठने के बाद 10 मिनट देकर बेड की चादर को व्यवस्थित कर देने से पूरे दिन बेडरूम साफ साफ नजर आता है.

एक नन्ही परी- भाग 2 : क्यों विनीता ने दिया जज के पद से इस्तीफा

लेखिका- रेखा

शाम के वक्त काजल के साथ बैठ कर विनी उन का सूटकेस ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने शृंगार का सामान तो खरीदा ही नहीं है. मेहंदी की भी व्यवस्था नहीं है. वह काकी से बात कर भागीभागी बाजार से सारे सामान की खरीदारी कर लाई. विनी ने रात में देर तक बैठ कर काजल दीदी को मेहंदी लगाई. मेहंदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं. शायद किसी और ने पहन ली होंगी. शादी के घर में तो यह सब होता ही रहता है. घर मेहमानों से भरा था. बरामदे में उसे किसी की चप्पल नजर आई. वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई. रात में वह दीदी के बगल में रजाई में दुबक गई. न जाने कब बातें करतेकरते उसे नींद आ गई.

सुबह, जब वह गहरी नींद में थी, किसी ने उस की चोटी खींच कर झकझोर दिया. कोई तेज आवाज में बोल रहा था, ‘अच्छा, काजल दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थीं.’

हैरान विनी ने चेहरे पर से रजाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा. उस की आखों में अभी भी नींद भरी थी. तभी काजल दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गईं, ‘अतुल, यह विनी है. श्रीकांत काका की बेटी और विनी, यह अतुल है. मेरे छोटे चाचा का बेटा. हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है. छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्होंने अतुल को भेज दिया.’

अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला, ‘मुझे लगा, दीदी तुम सो रही हो. दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था.’

विनी को बड़ा गुस्सा आया. उस ने दीदी से कहा, ‘मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं. उस समय मुझे जो चप्पलें नजर आईं, मैं ने पहन लीं. मैं ने इन की चप्पलें पहनी हैं, किसी का खून तो नहीं किया. सुबहसुबह नींद खराब कर दी. इतने जोरों से झकझोरा है. सारी पीठ दुख रही है,’ गुस्से में वह मुंह तक रजाई खींच कर सो गई.

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अतुल हैरानी से देखता रह गया. फिर धीरे से दीदी से कहा, ‘बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है.’ तबतक काकी बड़ा पैकेट ले कर विनी के पास पहुंच गईं और रजाई हटा कर उस से पूछने लगीं, ‘बिटिया, देख मेरी साड़ी कैसी है?’

विनी हुलस कर बोल पड़ी, ‘बड़ी सुंदर साड़ी है. पर काकी, इस में फौल तो लगी ही नहीं है. हद करती हो काकी. सारी तैयारी कर ली और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है. मुझे दो, मैं जल्दी से फौल लगा देती हूं.’

विनी पलंग पर बैठ कर फौल लगाने में मशगूल हो गई. काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गईं और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगीं.

विनी ने पूछा, ‘काकी, तुम्हारे पैर दबा दूं क्या?’

वे बोलीं, ‘बिटिया, एकसाथ तू कितने काम करेगी. देख न पूरे घर का काम पड़ा है और अभी से मैं थक गई हूं.’

सांवलीसलोनी काकी के पैर उन की गोलमटोल काया को संभालते हुए थक जाएं, यह स्वाभाविक ही है. छोटे कद की काकी के ललाट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी.

तभी काजल की चुनरी में गोटा और किरण लगा कर छोटी बूआ आ पहुंचीं, ‘देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी. फैला कर देखो न,’ छोटी बूआ कहने लगीं.

पूरे पलंग पर सामान बिखरा था. काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘इस के ऊपर ही डाल कर दिखाओ, छोटी मइयां.’

सिर झुकाए, फौल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बूआ ने फैला दी.

चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी. काकी बोल पड़ीं, ‘देख तो, विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग.’

विनी की नजरें अपनेआप ही सामने रखी ड्रैसिंग टेबल के शीशे में दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ीं. उस का चेहरा गुलाबी पड़ गया. उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा. तभी अचानक किसी ने उस की पीठ पर मुक्के जड़ दिए.

‘तुम अभी से दुलहन बन कर बैठ गई हो, दीदी,’ अतुल की आवाज आई. वह सामने आ कर खड़ा हो गया. अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया. विनी की आंखों में आंसू आ गए थे. अचानक हुए मुक्केबाजी के हमले से सूई उंगली में चुभ गई थी. उंगली के पोर पर खून की बूंद छलक आई थी. अतुल बुरी तरह हड़बड़ा गया.

‘बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था. मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुलहन बनने की जल्दी है. पर मुझ से गलती हो गई.’ वह काकी से बोल पड़ा. फिर विनी की ओर देख कर न जाने कितनी बार ‘सौरीसौरी’ बोलता चला गया. तब तक काजल भी आ गई थी. विनी की आंखों में आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली, ‘अतुल, तुम्हें इस बार सजा दी जाएगी. बता विनी, इसे क्या सजा दी जाए?’

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विनी बोली, ‘इन की नजरें कमजोर हैं क्या? अब इन से कहो सभी के पैर दबाएं.’ यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे में जा कर फौल लगाने लगी.

अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, बोला, ‘वाह, क्या बढि़या फैसला है जज साहिबा का. बड़ी अम्मा, देखो, मैं हुक्म का पालन कर रहा हूं.’

‘तू हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है, अतुल?

काजल दीदी की आवाज विनी को सुनाई दी.

‘दीदी, इस बार मेरी गलती नहीं थी,’ अतुल सफाई दे रहा था.

फौल का काम पूरा कर विनी हलदी की रस्म की तैयारी में लगी थी. बड़े से थाल में हलदी मंडप में रख रही थी. तभी काजल दीदी ने उसे आवाज दी. विनी उन के कमरे में पहुंची. दीदी के हाथों में बड़े सुंदर झुमके थे. दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा, ‘ये कैसे हैं, विनी? मैं तेरे लिए लाई हूं. आज पहन लेना.’

‘मैं ये सब नहीं पहनती, दीदी,’ विनी झल्ला उठी. सभी को मालूम था कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है. पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गईं. दीदी ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके ड्रैसिंग टेबल पर पटक दिए. फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा. दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था. तेजी से बाहर निकलने की कोशिश में वह सीधे अतुल से जा टकराई. उस के दोनों हाथों में लगी हलदी के छाप अतुल की सफेद टीशर्ट पर उभर आए.

वह हलदी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी. पर हलदी के दाग और भी फैलने लगे. अतुल ने उस की दोनों कलाइयां पकड़ लीं और बोल पड़ा, ‘यह हलदी का रंग जाने वाला नहीं है. ऐसे तो यह और फैल जाएगा. आप रहने दीजिए.’ विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई.

बड़ी धूमधाम से काजल की शादी हो गई. काजल की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा. कुछ दिनों से अम्मा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चैकअप का सुझाव दिया था. काजल की शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था. काजल की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था.

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एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दी. विनी को देखने लड़के वाले अभी कुछ देर में आना चाहते हैं. घर में जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई. पर विनी बड़ी परेशान थी. न जाने किस के गले बांध दिया जाएगा? उस के भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. अम्मा उस से तैयार होने को कह कर रसोई में चली गईं. तभी मालूम हुआ कि लड़का और उस के परिवार वाले आ गए हैं. बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंगरूम में बातें कर रहे थे.

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यूपी में कोरोना कर्फ्यू खत्म होने टीकाकरण और ट्रेसिंग पर जोर

उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव ‘सूचना’ श्री नवनीत सहगल ने बताया कि मुख्यमंत्री जी नेतृत्व में प्रदेश में 3 टी के अभियान से प्रदेश में अन्य प्रदेशों की तुलना में कोविड संक्रमण सबसे कम समय में नियत्रण में आया है. देश में सबसे कम समय में प्रतिदिन आने वाले सक्रिय मामलों में कमी आई है. उन्होंने कहा कि प्रदेश का 3 टी अभियान अन्य प्रदेशों के लिए एक माॅडल के रूप में सामने आया है.

सर्विलांस से ट्रेसिंग :

सर्विलांस के माध्यम से निगरानी समितियों द्वारा ट्रेसिंग के तहत घर-घर जाकर संक्रमण की जानकारी ली जा रही है. उन्होंने बताया कि इसके साथ-साथ 05 मई, 2021 से ग्रामीण क्षेत्रों में एक विशेष अभियान चलाकर, जिसमें निगरानी समितियों द्वारा घर-घर जाकर उन लोगों का जिनमें किसी प्रकार के संक्रमण के लक्षण होने पर उनका एन्टीजन टेस्ट भी कराया जा रहा है. अगर एन्टीजन टेस्ट निगेटिव आ रहा है और लक्षण हैं तो उनका आरटीपीसीआर टेस्ट भी कराया जा रहा है, इसके साथ-साथ उनको 11 लाख से अधिक मेडिकल किट भी बांटी गयी है.

प्रदेश में संक्रमण कम होने पर भी कोविड-19 के टेस्टों की संख्या में निरन्तर बढ़ोत्तरी की जा रही है, ताकि संक्रमित व्यक्ति की पहचान करके इलाज किया जा सके. उन्होंने बताया कि 31 मार्च से अब तक 70 प्रतिशत टेस्ट ग्रामीण क्षेत्रों में किये गये है.

श्री सहगल ने बताया कि प्रदेश के सभी जनपदों में कोविड के एक्टिव केसों की संख्या 600 से कम होने पर जनपदों में आंशिक कोरोना कफ्र्यू हटाकर पूर्व की तरह साप्ताहिक बंदी लागू कर दी गयी है. उन्होंने बताया कि साप्ताहिक बंदी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों व शहरी क्षेत्रों मंे फोगिंग, सैनेटाइजेशन व साफ-सफाई का अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान में लगभग 1.50 लाख से अधिक कर्मचारी लगाये गये है. प्रदेश में कोविड टीकाकरण अभियान तेजी से चलाया जा रहा है.

टीकाकरण पर जोर :

माह जून में 01 करोड़ टीकाकरण का लक्ष्य रखा गया है. अगले माह से प्रतिदिन 10 लाख से अधिक टीके लगाने का लक्ष्य रखा गया है. बड़े औद्योगिक ईकाइयों को कहा गया है कि वे अपनी ईकाइयों में कार्य कर रहे कर्मचारियों का टीकाकरण करायें सरकार द्वारा आवश्यक सहयोग दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि प्रदेश में आॅक्सीजन युक्त बेडों की संख्या मंे निरन्तर बढ़ोत्तरी की जा रही है. जिसके क्रम में कल 106 बेडों की बढ़ोत्तरी की गयी है. कोविड-19 संक्रमण से बच्चों के उपचार के लिए पीकू/नीकू बेड भी तैयार किये जा रहे है.

श्री सहगल ने बताया कि आंशिक कोरोना कफ्र्यू के बावजूद भी औद्योगिक गतिविधियां में तेजी से कार्य किया जा रहा है. प्रदेश में आने वाले नये निवेशकों के प्रस्तावों पर सहमति अथवा अनुमति तत्काल दिये जाने के निर्देश मुख्यमंत्री जी द्वारा दिये गये हैं. लगभग 66,000 करोड़ के नये प्रस्ताव पर कार्यवाही चल रही है.

उन्होंने बताया कि एमएसएमई एक्ट में संसोधन करते हुए नये उद्योगों को लगाने को सरल किया गया है, जिसमें 1000 दिन तक किसी प्रकार के कागज की आवश्यकता नहीं है. जो एमओयू किये गये हैं उन्हें धरातल पर उतारा जा रहा है. उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में 15 लाख मजदूर मनरेगा के तहत कार्य कर रहे हैं. मुख्यमंत्री जी द्वारा मनरेगा के माध्यम से स्थानीय स्तर पर रोजगार देने के कार्यों का और तेजी से अमल में लाने के निर्देश दिये गये हैं.

कमजोर वर्गों पर नजर :

श्री सहगल ने बताया कि मुख्यमंत्री जी द्वारा कल संगठित और असंगठित श्रमिकों को 1000 रुपये भत्ता दिया जा रहा है, जिसके तहत डीबीटी के माध्यम से 30 लाख से अधिक लोगों को सीधे उनके खातों में भत्ता दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत अब तक 2 करोड़ 17 लाख पात्र लोगों को खाद्यान्न वितरित किया गया है.

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 3 करोड़ 20 लाख से अधिक पात्र लोगों को खाद्यान्न वितरण किया जाना है. उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा भी पात्र लोगों को खाद्यान्न वितरण किया जायेगा. मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के माध्यम से कोविड संक्रमित मरीजों का हालचाल जानने के साथ-साथ खाद्यान्न योजना का भी फीडबैक लिया जा रहा है. सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से 41 हजार लोगों से वार्ता की गई है.

श्री सहगल ने बताया कि प्रदेश सरकार किसानों के हितों के लिए कृतसंकल्प है और किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उनकी फसल को खरीदे जाने की प्रक्रिया कोविड प्रोटोकाल का पालन करते हुए तेजी से चल रही है. 01 अप्रैल से 15 जून, 2021 तक गेहँू खरीद का अभियान जारी रहेगा. गेहँू क्रय अभियान में 10 लाख से अधिक किसानों से 46,96,521.87 मी0 टन गेहूँ खरीदा गया है, जो विगत वर्ष से डेढ़ गुना अधिक है.

Shilpa Shetty ने कुछ इस अंदाज में मनाया 46वां बर्थडे, देखें फोटोज

बौलीवुड की फिटनेस एंड फैशन के लिए फैंस के बीच पौपुलर एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने हाल ही में अपना 46वां बर्थडे सेलिब्रेट किया है. कोरोना से जंग जीतने के बाद शिल्पा शेट्टी(Shilpa Shetty) का ये बर्थडे और भी खास बन गया है, जिसके चलते शिल्पा ने जर्नलिस्ट्स के साथ मिलकर अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया. इसी बीच उनके बर्थडे सेलिब्रेशन की इन्साइड फोटोज भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं बर्थडे की लेटेस्ट फोटोज…

मीडिया के साथ मनाया बर्थडे

एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty)ने मीडियावालों के साथ भी अपने बर्थडे के मौके पर जश्न मनाया. दरअसल, अदाकारा बर्थडे के मौके पर अपने घरवालों के साथ ही नजर आईं. वहीं शिल्पा शेट्टी के जन्मदिन पर बहन शमिता शेट्टी केक लेकर आई थीं. हालांकि इस दौरान शिल्पा शेट्टी ने कोरोना नियमों का पालन भी किया.

 

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 फैमिली के संग भी किया सेलिब्रेट

मीडिया के अलावा शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने अपना बर्थडे खास अंदाज में सेलिब्रेट किया. इस दौरान केवल उनकी फैमिली साथ नजर आईं. वहीं ढेर सारे केक को देखकर शिल्पा बेहद खुश दिखीं, जिसका अंदाजा उनकी बर्थडे वीडियो से लगाया जा सकता है. वहीं अपने बर्थडे पर विश करने वाले सभा लोगों को शिल्पा ने सोशलमीडिया के जरिए थैंक्यू भी कहा.

पति ने ऐसे किया विश

 

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सोशलमीडिया पोस्ट को लेकरअक्सर सुर्खियों में रहने वाले राज कुंद्रा ने वाइफ शिल्पा को सोशलमीडिया पर एक प्यारा सा वीडियो शेयर करके किया, जिसमें वह बेहद खुश लग रही थीं.

बता दें, बीते दिनों एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty) का पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आ गया था, जिसमें उनका छोटा बेटा भी शामिल था. हालांकि शिल्पा ने पूरे परिवार के हेल्दी होने की जानकारी फैंस को दे दी थी और कहा था कि वह मेरी फैमिली के लिए प्रार्थना करें.

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अनुपमा पर फूटेगा काव्या का गुस्सा, घरवालों के सामने करेगी वनराज की बेइज्जती

Star Plus के टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ की कहानी दिलचस्प होती जा रही है. जहां काव्या और वनराज की शादी हो गई है तो वहीं अनुपमा मौत के मुंह से लौटकर वापस घर लौट चुकी है. वहीं आने वाले एपिसोड में सीरियल की कहानी में नया मोड़ आने वाला है, जिसके चलते काव्या की नई साजिशें और अनुपमा की जिंदगी की नई शुरुआत होते हुए नजर आएगी. आइए आपको बताते क्या होगी शो की नई कहानी…

अनुपमा होगी ठीक

अब तक आपने देखा कि वनराज की पत्नी बनने के बावजूद काव्या की जिंदगी में चैन नही हैं. जहां अनुपमा के लिए वनराज अपनी सुहागरात छोड़ चला गया था तो वहीं अनुपमा के लिए वह ब्लड डोनेट करता हुआ भी नजर आया था, जिसे देखकर काव्या का गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुंच गया था.

 

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अनुपमा का हाथ थामेगा वनराज

अपकिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अफनी बीमारी की जंग जीत चुकी अनुपमा से डॉक्टर वनराज (Sudhanshu Pandey) किसी भी तरह से मेंटल स्ट्रेस से दूर रखने के लिए कहेंगे. वहीं वनराज भी पूरी कोशिश करेगा कि वह उसे किसी भी तरह का मेंटल स्ट्रेस देने से बचेगा. इसी बीच अनुपमा अपने परिवार के साथ वक्त बिताते हुए नजर आएगी. जहां  अचानक अनुपमा (Rupali Ganguly) चेयर से गिर जाएगी लेकिन वनराज (Sudhanshu Pandey) उसे चोट लगने से बचा लेगा.

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काव्या करेगी ये काम

 

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वनराज और अनुपमा को करीब देखकर काव्या गुस्सा हो जाएगी और अनुपमा और बाकी घरवालों के सामने हनीमून का जिक्र करते हुए कहेगी कि हम जल्द ही अपने हनीमून पर जाएंगे क्योंकि यहां रिसॉर्ट में हमें प्राइवेसी नहीं मिल रही है. वहीं इस बात को सुनकर वनराज हैरान हो जाएगा और हनीमून पर जाने से मना कर देगा. दूसरी ओर बा भी काव्या को अपनी हद में रहने के लिए कहेंगी कि अगर उसे थोड़ा शर्म और लिहाज है तो वो वनराज के बच्चों के सामने तो हनीमून की बात ना करें. बा को जवाब देते हुए काव्या कहेगी कि आपका बेटा ही बेशर्म है.

डौक्टर अद्वैत की होगी विदाई

हाल ही में सीरियल अनुपमा में डौक्टर अद्वैत के रोल में नजर आ रहे अपूर्वा अग्निहोत्री ने भी अब शो को अलविदा कह दिया है. दरअसल, डौक्टर अद्वैत का किरदार अब खत्म होने वाला है, जिसके चलते अपूर्वा अग्निहोत्री ने सोशलमीडिया के जरिए शो की कास्ट को शुक्रिया कहते हुए अलविदा कहा है.

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पापा जल्दी आ जाना- भाग 2: क्या पापा से निकी की मुलाकात हो पाई?

मम्मी अंकल की प्लेट में जबरदस्ती खाना डाल कर खाने का आग्रह करतीं और मुसकरा कर बातें भी कर रही थीं. मैं उन दोनों को भेद भरी नजरों से देखती रही तो मम्मी ने मेरी तरफ कठोर निगाहों से देखा. मैं समझ चुकी थी कि मुझे अपना खाना खुद ही परोसना पड़ेगा. मैं ने अपनी प्लेट में खाना डाला और अपने कमरे में जाने लगी. हमारे घर पर जब भी कोई आता था मुझे अपने कमरे में भेज दिया जाता था. मैं टीवी देखतेदेखते खाना खाती रहती थी.

‘वहां नहीं बेटा, अंकल वहां आराम करेंगे.’

‘मम्मी, प्लीज. बस एक कार्टून…’ मैं ने याचना भरी नजर से उन्हें देखा.

‘कहा न, नहीं,’ मम्मी ने डांटते हुए कहा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा.

खाने के बाद अंकल उस कमरे में चले गए तथा मैं और मम्मी दूसरे कमरे में. जब मैं सो कर उठी, मम्मी अंकल के पास चाय ले जा रही थीं. अंकल का इस तरह पापा के कमरे में सोना मुझे अच्छा नहीं लगा. जाने से पहले अंकल ने मुझे ढेर सारी मेरी मनपसंद चाकलेट दीं. मेरी पसंद की चाकलेट का अंकल को कैसे पता चला, यह एक भेद था.

वक्त बीतता गया. अंकल का हमारे घर आनाजाना अनवरत जारी रहा. जिस दिन भी अंकल हमारे घर आते मम्मी उन के ज्यादा करीब हो जातीं और मुझ से दूर. मैं अब तक इस बात को जान चुकी थी कि मम्मी और अंकल को मेरा उन के आसपास रहना अच्छा नहीं लगता था.

एक दिन पापा आफिस से जल्दी आ गए. मैं टीवी पर कार्टून देख रही थी. पापा को आफिस के काम से टूर पर जाना था. वह दवा बनाने वाली कंपनी में सेल्स मैनेजर थे. आते ही उन्होंने पूछा, ‘मम्मी कहां हैं.’

‘बाहर गई हैं, अंकल के साथ… थोड़ी देर में आ जाएंगी.’

‘कौन अंकल, तुम्हारे मामाजी?’ उत्सुकतावश उन्होंने पूछा.

‘मामाजी नहीं, चाचाजी…’

‘चाचाजी? राहुल आया है क्या?’ पापा ने बाथरूम में फे्रश होते हुए पूछा.

‘नहीं. राहुल चाचाजी नहीं कोई और अंकल हैं…मैं नाम नहीं जानती पर कभी- कभी आते रहते हैं,’ मैं ने भोलेपन से कहा.

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‘अच्छा,’ कह कर पापा चुप हो गए और अपने कमरे में जा कर तैयारी करने लगे. मैं पापा के पास पानी ले कर आ गई. जिस दिन पापा मेरे सामने जाते मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं उन के आसपास घूमती रहती थी.

‘पापा, कहां जा रहे हो,’ मैं उदास हो गई, ‘कब तक आओगे?’

‘कोलकाता जा रहा हूं मेरी गुडि़या. लगभग 10 दिन तो लग ही जाएंगे.’

‘मेरे लिए क्या लाओगे?’ मैं ने पापा के गले में पीछे से बांहें डालते हुए पूछा.

‘क्या चाहिए मेरी निकी को?’ पापा ने पैकिंग छोड़ कर मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा. मैं क्या कहती. फिर उदास हो कर कहा, ‘आप जल्दी आ जाना पापा… रोज फोन करना.’

‘हां, बेटा. मैं रोज फोन करूंगा, तुम उदास नहीं होना,’ कहतेकहते मुझे गोदी में उठा कर वह ड्राइंगरूम में आ गए.

तब तक मम्मी भी आ चुकी थीं. आते ही उन्होंने पूछा, ‘कब आए?’

‘तुम कहां गई थीं?’ पापा ने सीधे सवाल पूछा.

‘क्यों, तुम से पूछे बिना कहीं नहीं जा सकती क्या?’ मम्मी ने तल्ख लहजे में कहा.

‘तुम्हारे साथ और कौन था? निकिता बता रही थी कि कोई चाचाजी आए हैं?’

‘हां, मनोज आया था,’ फिर मेरी तरफ देखती हुई बोलीं, ‘तुम जाओ यहां से,’ कह कर मेरी बांह पकड़ कर कमरे से निकाल दिया जैसे चाचाजी के बारे में बता कर मैं ने उन का कोई भेद खोल दिया हो.

‘कौन मनोज, मैं तो इस को नहीं जानता.’

‘तुम जानोगे भी तो कैसे. घर पर रहो तो तुम्हें पता चले.’

‘कमाल है,’ पापा तुनक कर बोले, ‘मैं ही अपने भाई को नहीं पहचानूंगा…यह मनोज पहले भी यहां आता था क्या? तुम ने तो कभी बताया नहीं.’

‘तुम मेरे सभी दोस्तों और घर वालों को जानते हो क्या?’

‘तुम्हारे घर वाले गुडि़या के चाचाजी कैसे हो गए. शायद चाचाजी कहने से तुम्हारे संबंधों पर आंच नहीं आएगी. निकिता अब बड़ी हो रही है, लोग पूछेंगे तो बात दबी रहेगी…क्यों?’

और तब तक उन के बेडरूम का दरवाजा बंद हो गया. उस दिन अंदर क्याक्या बातें होती रहीं, यह तो पता नहीं पर पापा कोलकाता नहीं गए.

धीरेधीरे उन के संबंध बद से बदतर होते गए. वे एकदूसरे से बात भी नहीं करते थे. मुझे पापा से सहानुभूति थी. पापा को अपने व्यक्तित्व का अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उस दिन के बाद वह तिरस्कार सहतेसहते एकदम अंतर्मुखी हो गए. मम्मी का स्वभाव उन के प्रति और भी ज्यादा अन्यायपूर्ण हो गया. एक अनजान व्यक्ति की तरह वह घर में आते और चले जाते. अपने ही घर में वह उपेक्षित और दयनीय हो कर रह गए थे.

मुझे धीरेधीरे यह समझ में आने लगा कि पापा, मम्मी के तानों से परेशान थे और इन्हीं हालात में वह जीतेमरते रहे. किंतु मम्मी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ा. उन का पहले की ही तरह किटी पार्टी, फोन पर घंटों बातें, सजसंवर कर आनाजाना बदस्तूर जारी रहा. किंतु शाम को पापा के आते ही माहौल एकदम गंभीर हो जाता.

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एक दिन वही हुआ जिस का मुझे डर था. पापा शाम को दफ्तर से आए. चेहरे से परेशान और थोड़ा गुस्से में थे. पापा ने मुझे अपने कमरे में जाने के लिए कह कर मम्मी से पूछा, ‘तुम बाहर गई थीं क्या…मैं फोन करता रहा था?’

‘इतना परेशान क्यों होते हो. मैं ने तुम्हें पहले भी बताया था कि मैं आजाद विचारों की हूं. मुझे तुम से पूछ कर जाने की जरूरत नहीं है.’

‘तुम मेरी बात का उत्तर दो…’ पापा का स्वर जरूरत से ज्यादा तेज था. पापा के गरम तेवर देख कर मम्मी बोलीं, ‘एक सहेली के साथ घूमने गई थी.’

‘यही है तुम्हारी सहेली,’ कहते हुए पापा ने एक फोटो निकाल कर दिखाया जिस में वह मनोज अंकल के साथ उन का हाथ पकड़े घूम रही थीं. मम्मी फोटो देखते ही बुरी तरह घबरा गईं पर बात बदलने में वह माहिर थीं.

‘तो तुम आफिस जाने के बाद मेरी जासूसी करते रहते हो.’

‘मुझे कोई शौक नहीं है. वह तो मेरा एक दोस्त वहां घूम रहा था. मुझे चिढ़ाने के लिए उस ने तुम्हारा फोटो खींच लिया…बस, यही दिन रह गया था देखने को…मैं साफसाफ कह देता हूं, मैं यह सब नहीं होने दूंगा.’

‘तो क्या कर लोगे तुम…’

‘मैं क्या कर सकता हूं यह बात तुम छोड़ो पर तुम्हारी इन गतिविधियों और आजाद विचारों का निकी पर क्या प्रभाव पड़ेगा कभी इस पर भी सोचा है. तुम्हें यही सब करना है तो कहीं और जा कर रहो, समझीं.’

‘क्यों, मैं क्यों जाऊं. यहां जो कुछ भी है मेरे घर वालों का दिया हुआ है. जाना है तो तुम जाओगे मैं नहीं. यहां रहना है तो ठीक से रहो.’

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और उसी गरमागरमी में पापा ने अपना सूटकेस उठाया और बाहर जाने लगे. मैं पीछेपीछे पापा के पास भागी और धीरे से कहा, ‘पापा.’

वह एक क्षण के लिए रुके. मेरे सिर पर हाथ फेर कर मेरी तरफ देखा. उन की आंखों में आंसू थे. भारी मन और उदास चेहरा लिए वह वहां से चले गए. मैं उन्हें रोकना चाहती थी, पर मम्मी का स्वभाव और आंखें देख कर मैं डर गई. मेरे बचपन की शोखी और नटखटपन भी उस दिन उन के साथ ही चला गया. मैं सारा समय उन के वियोग में तड़पती रही और कर भी क्या सकती थी. मेरे अपने पापा मुझ से दूर चले गए.

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दिशा की दृष्टिभ्रम- भाग 2 : क्या कभी खत्म हुई दिशा के सच्चे प्यार की तलाश

लेखक- राम महेंद्र राय

दिशा ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

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दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा. इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो.

मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं. दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया.

वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था.

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वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरीचोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

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कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

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Corona: औरत के कंधे पर बढ़ा बोझ

कोरोना ने भारत की गृहणियों की प्राथमिकताओं, आवश्यकताओं, आदतों और नीतिनियमों में बहुत बड़ा परिवर्तन किया है. मात्र डेढ़ साल में सदियों की मजबूत परंपराएं, जिन्हें निभाना भारतीय औरत की मजबूरी बन चुकी थी, चरमरा कर टूट गयी हैं. इस आपदा काल में बहुत से परिवार बिखर गए हैं. बहुतेरे आर्थिक तंगी और कर्ज की चपेट में हैं. बहुतों ने अपनों को खो दिया है.

घर का कमाऊ व्यक्ति कोरोना के कारण अकाल ही काल का ग्रास बन गया तो घर, बच्चों और वृद्धों की देखभाल का जिम्मा अकेली औरत के कंधों पर आ गया है. कोरोना ने कई दिशाओं से महिलाओं को प्रभावित किया है. कोरोना से उपजी त्रासदी से कुछ महिलाएं बहुत मजबूर और निराश हैं तो कुछ जिम्मेदार और मजबूत हो गई हैं.

देश में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा सवा दो लाख के पार हो चुका है. हर दिन यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है. पिछले साल जहां मरने वालों में ज्यादा संख्या बुजुर्गों की थी, वहीं इस साल कोरोना का नया स्ट्रेन जवान लोगों को अपना ग्रास बना रहा है. मरने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा है.

ऐसे में भरी जवानी में सुहाग उजड़ जाने से जवान औरतें जहां एक ओर पति को खो देने के गम से निढाल हैं, तो वहीं दूसरी ओर अब भविष्य का क्या होगा, बच्चों की परवरिश, उन की पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह कैसे होगा, बुजुर्गों का दवाइलाज कैसे होगा, घर चलाने के लिए पैसे कहां से आएंगे, इन चिंताओं ने उन्हें बेहाल कर रखा है.

उजड़ गया परिवार

लखनऊ की रूपाली पांडेय की उम्र अभी सिर्फ 28 साल की है. गोद में 3 साल का बच्चा है. पिछले साल मई माह में रूपाली के पति श्याम पांडेय को कोरोना हुआ. पासपड़ोस को पता न लग जाए और उन के परिवार का घर से निकलना बाधित न हो जाए, लिहाजा कोरोना टैस्ट नहीं करवाया. घर में ही बुखारखांसी की दवाएं लेता रहा. बाहर जा कर रोजमर्रा के सामान की खरीदारी करना भी जारी रहा.

जब सांस लेने में तकलीफ होने लगी और कमजोरी के कारण सुबह बिस्तर से उठना भी मुश्किल होने लगा तब सिविल अस्पताल के कोरोना वार्ड में भरती हुआ. 1 हफ्ता रूपाली बच्चे को ले कर सिविल अस्पताल के चक्कर लगाती रही, मगर कोरोना वार्ड में पति से मिलने में असफल रही. 8 दिन बाद पता चला पति की मौत हो गई.

रूपाली की ससुराल और मायका फरूखाबाद में है. उस के मातापिता नहीं हैं. मायके में बड़ा भाई और उस का परिवार है. भाई से कोई ज्यादा सपोर्ट नहीं है.

वहीं ससुराल में उस के पति के नाम पर थोड़ी जमीन है, जिस पर ननद और उस का परिवार लंबे समय से काबिज है. बूढ़ी सास है, जो ननद के ऊपर आश्रित है और उस के साथ ही रहती है और उसी की बात सुनती है. भाभी अपनी जमीन न मांग ले इस डर से भाई की मौत पर रूपाली की ननद लखनऊ भी नहीं आई. बहाना था लाकडाउन का.

पति के दाहसंस्कार का सारा काम नगर निगम के लोगों की मदद से रूपाली ने अकेले किया. कुछ समय बाद भाई मिलने आया और  5 हजार रुपए उस के हाथ पर रख गया.

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बड़ी चिंता

रूपाली के आगे बड़ी चिंता अब अकेले अपने बेटे को पालने की है. रूपाली 12वीं पास है, मगर शादी से पहले या बाद में उसे कभी नौकरी करने की जरूरत नहीं पड़ी थी. परिवार की औरतों ने कभी बाहर नौकरी की भी नहीं. रूपाली का पति एक फैक्टरी में काम करता था, जहां कोई प्रौविडैंट फंड या अन्य भत्ते नहीं थे.

महीने की सूखी तनख्वाह थी जो महीना खत्म होतेहोते खत्म हो जाती थी. बैंक में भी बड़ी मुश्किल से जोड़े हुए 8-10 हजार रुपए ही हैं. लेदे कर एक कमरे का छोटा सा घर ही है, जो उस का अपना है. बीते 10 महीनों से रूपाली ने कुछ आसपास के बड़े घरों में खाना बनाने का काम शुरू किया है. वह 5 घरों में अलगअलग समय पर जा कर खाना बनाती है, कुछ में दोपहर का और कुछ में रात का, जिस से महीने के करीब क्व10 हजार मिल जाते हैं. इसी से गुजारा चल रहा है. मगर कोरोना जैसेजैसे अपना खतरनाक रूप दिखा रहा है, लोग बाहर से कामवालियों का घर आना बंद कर रहे हैं तो रूपाली को भी डर  सताने लगा है

कि वह जिन घरों में जाती है अगर उन्होंने भी उस का आना बंद कर दिया तो वह क्या करेगी.

दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहने वाली रेखा के आगे भी कोरोना ने पैसों का बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. रेखा विधवा है और 2 बेटियों की मां है. वह कोरोनाकाल से पहले तक डोर टु डोर ब्यूटीशियन का काम करती थी. इस में अच्छी कमाई हो जाती थी. बीते डेढ़ साल से उस का यह काम ठप्प हो गया है.

कोरोना के डर से क्लाइंट अब उसे घर नहीं बुलाते हैं. ऐसे में 2 छोटी बेटियों के साथ जीवन निर्वाह में कठिनाई पैदा हो गई है. बैंक में जो थोड़ी बचत थी वह इस दौरान खत्म हो चुकी है.

अब रेखा ने घर के ही एक हिस्से को ब्यूटीपार्लर बना दिया है. मगर उस की मुश्किल यह है कि आसपास की आबादी गंवई है, जिस की पार्लर आदि में कोई दिलचस्पी नहीं है और उस के पास पैसे भी नहीं हैं. रेखा का 1-1 दिन चिंता और परेशानी में गुजर रहा है. बीते 1 हफ्ते से उस ने पार्लर के बाहर दूध बेचना शुरु कर दिया है, मगर उस में मुनाफा बहुत कम है ऊपर से एकाध पैकेट फट जाए तो मुनाफे से ज्यादा नुकसान हो जाता है.

रेखा कहती है कि दोनों बेटियों की औनलाइन पढ़ाई बंद कर दी है. न फीस देने के पैसे हैं न उन के मोबाइल फोन बारबार रिचार्ज कराने के. आने वाले दिन पेट भर खाना मिल जाए इसी चिंता में हूं.

कन्नी काट लेते रिश्तेदार

लखनऊ की ही 38 साल की अपराजिता मेहरा के पति 7 दिन तक कोरोना से जूझने के बाद चल बसे. अपराजिता के परिवार के सभी पुरुष सदस्य कोरोना संक्रमित हैं और ऐसे में पति के शव की अंतिम क्रिया करवाने को ले कर वह, उस की सास और 9 साल का बेटा खुद को असहाय महसूस कर रहे थे.

घर में पति की लाश पड़ी थी और अंतिम क्रिया में उन की मदद के लिए कोई दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार आगे नहीं आ रहा था. अपराजिता सब को फोन कर के हार गई. सब  ने कोरोना इन्फैक्शन का बहाना कर खुद को दूर कर लिया.

दरअसल, सभी को संक्रमण का डर था. तब अपराजिता को एक स्वयं सेवी संस्था ‘एक कोशीश ऐसी भी’ के बारे में फेसबुक फ्रैंड से पता चला जो कोरोना से जान गंवाने वालों का दाहसंस्कार करवाती है. अपराजिता ने फोन लगा कर मदद मांगी तो उधर से संस्था की अध्यक्षा वर्षा वर्मा ने तुरंत पहुंचने का वादा किया.

कुछ ही देर में वर्षा वर्मा अपनी टीम के साथ अपराजिता के बताए पते पर पहुंच गई और लाश को प्लास्टिक में रैप कर के श्मशान घाट ले गई. अपराजिता उन के साथ गई, जहां उस ने धार्मिक मान्यताओं को एक तरफ रख कर दाहसंस्कार की सारी रस्में खुद निभाईं.

अपराजिता अभी भी सदमे से उबर नहीं सकी है. उस की आंखों के सामने से वह दृश्य नहीं हट रहा है जब वह अकेली अपने पति की चिता के सामने खड़ी थी.

भविष्य अब अनिश्चित सा है. 9 साल का बेटा है उस की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी अब अकेले अपराजिता के ऊपर है. अपराजिता और उस के परिवार के कई दोस्त और रिश्तेदार शहर में हैं, मगर जो मुश्किल की घड़ी में पास नहीं फटके उन से और क्या उम्मीद की जा सकती है.

टूटी हैं धार्मिक रस्में

कोरोनाकाल में बहुत सी धार्मिक रस्में टूटी हैं. जिन घरों में पुरुष कोरोना की भेंट चढ़ गए और परिजनों ने जान के डर से दूरी बना ली, उन की चिताओं को श्मशान घाटों पर औरतें ही मुखाग्नि दे रही हैं. इन घटनाओं ने अंतिम क्रिया में सिर्फ पुरुषों की भागीदारी की परंपरा को खत्म कर दिया है वरना पहले स्त्री कभी श्मशान कब्रिस्तान नहीं जाती थी. उस के वहां जाने पर धर्म के ठेकेदारों ने पाबंदी लगा रखी थी.

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आज कोरोना ने औरत को मजबूत और हिम्मती बना दिया है. वह अपनों के लिए घर, बाहर, अस्पताल, श्मशान आदि हर जगह लड़ रही है. वहीं पति की नौकरी न रहने पर बहुतेरी औरतें ठेला लगा कर घर चलाने लायक पैसे कमा रही है. टिफिन सिस्टम चला रही हैं. घर में सिलाई का काम करने लगी हैं.

कोरोना के कारण लाखों की तादाद में मध्यवर्गीय नौकरीपेशा महिलाओं की समस्याएं भी दोगुनी हो गई हैं. अब उन्हें घर से औफिस का काम करने के साथ ही घर का भी सारा काम संभालना पड़ रहा है. बाई के न आने से झड़ूबरतन भी करना पड़ रहा है.

कोरोना वायरस का आतंक बढ़ने के बाद महानगरों और शहरों की तमाम हाउसिंग सोसायटियों और कालोनियों में घरेलू काम करने वाली नौकरानियों के प्रवेश पर पाबंदी है. कइयों ने डर के मारे खुद ही आना बंद कर दिया है. इस की वजह से महिलाओं को अब झड़ूपोंछा से ले कर कपड़े धोने तक के तमाम काम भी करने पड़ रहे हैं.

सरकारी नौकरी करने वाली प्रीति कहती है कि बहुत मुश्किल समय है. मैं और मेरा पूरा परिवार कोरोना की चपेट में है. सभी को बुखारखांसी और कमजोरी आ रही है. मेरे पति और बच्चे अलगअलग कमरों में आइसोलेट हैं, मगर मुझे इस संक्रमण के साथ सब के लिए खाना भी बनाना है, सब को गरम पानी भी देना है. घर की साफसफाई भी करनी पड़ रही है. कपड़े भी धो रही हूं. कमजोरी के कारण हाल बुरा है, मगर सब का खयाल भी रखना है. रिश्तेदारों से ऐसे वक्त में कोई मदद नहीं ले सकती हूं. किसी को बुलाऊं तो उसे भी संक्रमण का डर रहेगा.

प्रीति जैसी हजारों महिलाएं हैं, जो खुद कोरोना संक्रमण की शिकार हैं, मगर काम से फिर भी छुटकारा नहीं है. अपनी जान दांव पर लगा कर वे अपने पति, बच्चों और घर के बुजुर्गों की ??जिंदगी बचाने में लगी हैं.

धर्म से ही है लैंगिक असमानता

हमारा समाज दोहरे मानदंड का चैंपियन है. यहां कभी औरत को छलकपट से मर्द को अपने वश में करने वाली बना दिया जाता है तो कभी एक मजबूत, बलवान, खुशमिजाज मर्द को अवसादग्रस्त, कमजोर शख्स बना कर दिखाने वाली. सदियों से चली आ रही विचहंट की प्रक्रिया, जिस में हर बुराई, हर आघात, यहां तक कि प्राकृतिक आपदा के लिए भी किसी न किसी औरत को दोषी ठहरा कर उस की बली दे दी जाती रही है, कभी उसे नंगा कर के पूरे गांव में घुमाया जाता है, तो कभी चुड़ैल बता कर पीटपीट कर उस की हत्या कर दी जाती है.

क्या आप ने कभी समाज में किसी पुरुष को ऐसे कारणों के लिए इस तरह प्रताडि़त होते सुना है? गलती किसी की भी हो, दोष औरत के सिर ही क्यों?

हमारा समाज जैंडर लिंगभेद में बहुत पिछड़ा हुआ है. विकसित देश स्त्रियों को केवल औरत न मान कर, मर्द की तरह एक इंसान मानते हैं. यही कारण है कि महिलाओं को काफी हद तक वे सभी अधिकार मिले हुए हैं, जो वहां के समाज में पुरुषों को मिले हुए हैं. रेप हो जाने पर वहां औरत को एक पीडि़ता की तरह देखा जाता है, न कि उसी की गलती निकालने की कोशिश की जाती है. हमारा समाज और उस में गुंथा हुआ धर्म अकसर औरत को ही उस के ऊपर बीती व्यथा का जिम्मेदार ठहराता है.

क्या यह सही है

कितनी बार खाप पंचायतें, नेतागण, महल्ले के लोग, यहां तक कि औरतें खुद पीडि़ता के कपड़े, उस के अंधेरा होने पर अकेले बाहर जाने, सुनसान रास्ते पर जाने या फिर उस के चालचलन को अपराध का कारण सिद्ध करने लगती हैं. रेप जैसे घिनौने अपराध पर हम अपराधियों की गलती के पीछे पीडि़ता की तरफ से हुई लापरवाही को ढूंढ़ने लगते हैं. क्या यह सही है?

पहली बात तो यह कि लड़कों की तरह लड़कियों को भी बाहर आनेजाने, देर रात घर से बाहर होने, नौकरी करने, पार्टी करने या फिर दोस्तों के साथ आनंद उठाने का अधिकार होना चाहिए, क्योंकि लड़कियां भी इस समाज का उतना ही हिस्सा हैं जितना लड़के. लेकिन इस तरह का दोहरा मानदंड, हमारे समाज में बहुत पुराना है और काफी गहरी पैठ लिए हुए है.

एक बहुत पुरानी और लिजलिजी कहावत है, छुरी खूरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर, कटता खरबूजा ही है. इस चिढ़ा देने वाली कहावत को अकसर लोग लड़कियों की सुरक्षा को ले कर उपयोग करते हैं. क्या उन की दृष्टि में जीतीजागती लड़कियों और फलसब्जी में कोई अंतर नहीं?

लड़कियों को एक सुरक्षित समाज देने  की जगह हमारा समाज उन्हें ही घर के अंदर  बंद कर के अपनी जिम्मेदारी की पुष्टि कर  देता है. क्या हमें अपने गांवोंकसबोंशहरों को लड़कियों के लिए सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर  नहीं बनाना चाहिए?

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गलत की जिम्मेदारी औरत की

जब सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर सामने आई, तो सब से पहले मीडिया उस की गर्लफ्रैंड रिया चक्रवर्ती के पीछे लग गया कि रिया ने सुशांत को पूरी तरह कंट्रोल कर रखा था, रिया हर मेहमान के आनेजाने पर नजर रखती थी, रिया ने सुशांत को पूरी तरह अपने ऊपर आश्रित कर लिया था. ऐसी अनेक बातें उठाई जा रही थीं. बाद में जब यह बात सामने आई कि सुशांत सिंह ड्रग्स लेता था तो इस का जिम्मेदार भी रिया को ठहराया जाने लगा.

अब इस स्थिति को उलट कर सोचिए. यदि एक ड्रग्स लेने वाली लड़की ने आत्महत्या की होती, जिस का बायफ्रैंड उस के लिए वही सब करता था जो रिया ने सुशांत के लिए किया तब हमारे समाज की क्या प्रतिक्रिया होती. क्या तब लोग उस लड़की पर ड्रग्स लेने की बात को ले कर उंगली नहीं उठाते? क्या उसे अपनी स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराते? बल्कि मुझे लगता है कि लोग उस के बायफ्रैंड को केयरिंग, उस से प्यार करने वाला और उस का ध्यान रखने वाला मानते.

सुशांत सिंह राजपूत के परिवार के वकील ने तो यहां तक कहा, ‘‘रिया का वीडियो उन के बयान नहीं, उन के कपड़ों के बारे में है, मुझे नहीं लगता उन्होंने जिंदगी में कभी ऐसे कपड़े पहने होंगे, उन का मकसद बस खुद को एक सीधीसादी औरत जैसा पेश करना था.’’

उन के इस कथन को वरिष्ठ वकील  करुणा नंदी ने कानून के दायरे में औरतों को नीचा देखना, करार दिया. उन्होंने लिखा कि कम कपड़े मतलब अपराधी, सलवारकमीज मतलब अपराध छिपाने की कोशिश.

कुछ समय पूर्व सुनील गावस्कर ने एक  बार विराट कोहली के अपने खेल में खराब प्रदर्शन के लिए अनुष्का शर्मा को जिम्मेदार ठहराया था. सोचिए, यदि अनुष्का शर्मा की  कोई फिल्म पिट जाए तो क्या उस के लिए  विराट कोहली को जिम्मेदार माना जाएगा?  शायद नहीं.

तब समाज यह कहेगा कि शादी के बाद अनुष्का शर्मा ने अपने काम के प्रति गैरजिम्मेदारी दिखाई, शादी के बाद वह अपने काम को ले कर उतनी मेहनत नहीं करती, उतनी संजीदा नहीं  रही. अर्थ साफ है कि गलती चाहे औरत खुद करे या उस का मर्द पार्टनर, ठीकरा औरत के सिर पर ही फूटेगा.

सुंदरता का आत्मिक बोझ

हमारे चारों ओर हर वक्त सुंदर चेहरों की तारीफ, सुंदर न होने की हीनभावना और सुंदरता निखारने के तरीकों की नुमाइश की वजह से सुंदरता एक बोझ सरीखी लगने लगती है. औरत कितनी भी पढ़ीलिखी हो, अपने काम में निपुण हो, पर थोड़ा सुंदर भी हो जाती तो बेहतर होता वाली विचाराधारा औरतों को पीछे धकेलने का काम करती है.

एक बहुप्रचलित विचारधारा और है कि यदि औरत चेहरे से सुंदर है तो दिमाग से जरूर बंदर होगी. उसे मौका केवल उस की सुंदरता के कारण मिलता है. वह कुछ खास काम नहीं कर सकती, क्योंकि काबिलीयत के नाम पर सुंदरता ही तो है, जबकि किसी भी पुरुष के आगे बढ़ने के पीछे केवल उस की काबिलीयत को ही श्रेय दिया जाता है.

औरतों के ऊपर सुंदर रहने, खूबसूरत दिखने, सही फिगर मैंटेन करने आदि का इतना बोझ बना रहता है कि उन्हें अकसर हीनभावना अपना शिकार बनाए रखती है.

औरतें बच्चों को जन्म देती हैं तब भी उन का बढ़ा हुआ पेट शर्मिंदगी का कारण होता है. आप अकसर लोगों, खासकर औरतों को कहते सुनेंगे कि बढ़े पेट के साथ यह ड्रैस उन पर फबती नहीं है, जबकि बिना ऐसे किसी कारण के जब आदमियों की तोंद बढ़ी रहती है और वे तंग शर्ट या टीशर्ट पहने रहते हैं, तब उन्हें कोई भी ऐसी बात नहीं कहता.

राजनीति में अडिग औरतें

औरतों के प्रति दोहरे मानदंड तब भी देखने को मिलते हैं जब औरतें राजनीति में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास करती हैं. जब प्रियंका गांधी को कांग्रेस का महासचिव बनाया गया तब भारतीय जनता पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की टिप्पणियां इस प्रकार थीं-

‘‘लोक सभा चुनाव में कांग्रेस चौकलेट जैसे चेहरे सामने ला रही है.’’

‘‘इस से उत्तर प्रदेश में बस यह फायदा होगा कि कांग्रेस की चुनाव सभाओं में कुरसियां खाली नहीं दिखेंगी.’’

‘‘वोट चेहरों की सुंदरता के बल पर नहीं जीते जा सकते.’’

किंतु ऐसा भी नहीं कि महिला नेता ‘सुंदर’ की परिभाषा में फिट न होती हो तो इज्जत मिल जाएगी. समाजवादी पार्टी (सपा) नेता मुलायम सिंह यादव ने राजस्थान में कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया मोटी हो गई हैं, उन्हें आराम करने देना चाहिए. यानी कोई फर्क नहीं पड़ता कि पार्टी कौन सी है या फिर राजनेता कौन है. बात बस इतनी सी है कि ऐसे पुरुषों की कमी नहीं जो यह मानते हैं कि राजनीति में औरतें पुरुषों से कमतर हैं और उस के लिए वे कोई भी तर्क रख सकते हैं.

किसी जगह आप को इतना बेइज्जत किया जाए, आप के शरीर पर बेहिचक भद्दी बात हो और आप के काम को इसी बल पर नीचा दिखाए जाए तो क्या आप वहां का रुख करना चाहेंगे? शायद नहीं. पर इन औरतों को देखो, ये उस राह पर चल ही नहीं रहीं, डटी हुई हैं. चमड़ी गोरी हो या सांवली, मोटी जरूर कर ली है. तादाद में अभी काफी कम हैं. पहली लोक सभा में 4 फीसदी से बढ़ कर 17वीं लोक सभा में करीब 14 फीसदी महिला सांसद हैं.

अब जरा अपने आसपास के छोटे देशों में झांकते हैं- नेपाल की संसद में 38 फीसदी, बंगलादेश और पाकिस्तान में 20 फीसदी महिलाएं हैं. यहां तक कि अफ्रीकी देश रवांडा की संसद में 63 फीसदी महिलाएं हैं. तो क्यों न हम अपनी चाहत की उड़ान को और पंख देने को मचल जाएं.

आर्थिक दौड़ में पिछड़ती औरत

आर्थिक दौड़ में औरतों की स्थिति इतनी कमजोर क्यों है? इस का सीधा सा कारण है कि गृहस्थी के कार्यों को हमारा समाज आर्थिक नजरिए से नहीं तोलता. पुरुष नौकरी करता है, कमा कर लाता है. स्त्री घर संभालती है, घर के काम, बाजार के काम, बच्चों को पालना, पढ़ाना, वृद्धों की देखभाल, खाना पकाना, साफसफाई, घर की देखरेख, कपड़ों की धुलाई प्रैस और न जाने ऐसे कितने काम होंगे जो इस लिस्ट में शामिल हो सकते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक औरत रोज करीब 4 घंटे 25 मिनट अवैतनिक कार्य करती हैं जबकि पुरुष केवल 1 घंटा 23 मिनट. इन सभी कार्यों को यदि बाहर से करवाया जाए तो इन में कितने पैसे खर्च होंगे, इस का हिसाब लगाना मुश्किल नहीं.

लेकिन जब एक गृहिणी इन सभी कार्यों  को बिना शिकन के संभालती है तो उस के  हिस्से में केवल जिम्मेदारियां आती हैं. यदि वह घर खर्च से कुछ पैसे बचा कर अपने पास रख लेती है तो उसे भी हमारा समाज हंस कर चोरी का उपनाम दे देता है. मोदीजी के विमुद्रीकरण ने इन बेचारी औरतों से यह जरा सा संबल भी छीन लिया था.

कोरोना के चलते बहुत सी महिलाओं की नौकरियां छिन गईं, क्योंकि करीब 60% महिलाएं अनौपचारिक क्षेत्रों में नौकरियां करती हैं जहां वर्क फ्रौम होम करना संभव नहीं. ऐसे में तनाव और आर्थिक परेशानियों से घिरी, घर पर बैठने को मजबूर ये महिलएं फिर घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होंगी तो क्या होगा?

धर्म और समाज की मारी औरत

धर्म के अनुसार वही स्त्री ‘अच्छी’ है जो अपने पति, पिता और बेटे के कहे अनुसार  अपना जीवन जीए. ऐसी स्त्री का गुणगान करते  न जाने कितने किस्सेकहानियां मिल जाते हैं. लगभग हर धार्मिक कथा केवल महिलाओं को ज्ञान और शिक्षा देती है. घर के मर्दों के लिए व्रतउपवास करो, घरेलू कार्य करो, बचे हुए

समय को धर्म में लगाओ, प्रश्न मत करो, केवल आज्ञा मानो, यही सब औरत की नियति में लिख दिया गया है और जब घरेलू कामकाज केवल औरत का कर्तव्य है तो उस में न तो कोई उस  की प्रशंसा का प्रश्न उठता है और न ही वाहवाही का, उलटा यदि कोई औरत घरेलू कामों में  निपुण नहीं है तो उस की भद्द जरूर उड़ती है, क्योंकि वह औरत ही क्या जो घर के, रसोई के, धर्म के और रीतिरिवाजों के सभी कार्यों में होशियार न हो. धर्म ने औरत को आगे बढ़ने  से रोक कर, केवल चारदीवारी में निहित कर छोड़ा है.

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गीता में एक उपदेश में उक्त है कि

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यंती कुलस्त्रीय:

स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकर:

अर्थात हे कृष्ण, पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती हैं और हे वार्ष्णेय, स्त्रीयोन के दूषित हो जाने पर वर्णसंकर उत्पन्न होता है.

एक अन्य श्लोक कहता है इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं. अर्थ स्पष्ट है कि कुल की शुद्धता, मर्यादा और गुण को नष्ट करने की पूरी जिम्मेदारी केवल और केवल स्त्री को सौंप दी गई. पुरुषों की भटकन से इस का कोई लेनादेना नहीं. बस, स्त्री को स्वयं को बनीबनाई सीधी लकीर पर आंख मूंदे चलते  रहना होगा.

गालियां हमेशा महिलाओं को ले कर

इसी तरह गालियां भी हमारे पितृसत्तात्मक समाज की देन हैं, इसलिए अमूमन हर गाली महिला को टार्गेट करते हुए होती है. जिस समाज में महिलाओं को देवी की तरह पूजने की बात होती हो, वहीं पुरुषों को दी जाने वाली गालियों  में घर की माताबहनों को निशाना बनाना उचित  है क्या?

जैसे हिंदी भाषा में कुलटाकुलक्षिणी जैसे उपनाम पुरुषों के लिए हैं ही नहीं, वैसे ही तमिलनाडु स्थित केरला विश्वविद्यालय में असोसिएट प्रोफैसर टी विजयलक्ष्मी का कहना है कि वेश्या शब्द का कोई पुल्लिंग नहीं.

इन्होंने 2017 में कुछ कविताएं लिखीं  और प्रकाशित कीं जिन में इन्होंने वेसी  (वेश्या) के लिए वेसन (पुल्लिंग) तथा मूली (उपशगुनी औरत) के लिए मूलन शब्दों का आविष्कार किया.

हेमंग दत्ता, भाषा विज्ञान में समाजशास्त्री ने भी इसी तरह मलयालम व असमिया भाषाओं में यह जाना कि कुछ शब्द जैसे ओक्सोटी यानी व्यभिचारिणी या फिर ‘बोनोरी’ यानी चरित्रहीन महिला जैसे शब्दों का कोई पुल्लिंग नहीं है.

2016 में अभिनेत्री श्रुति हसन ने एक वीडियो निकाला, ‘बी द बिच’ जिस में उन्होंने बिच यानी कुतिया जोकि एक गाली की तरह उपयोग किया जाता है को एक नई परिभाषा दी, वह औरत जो अपनी जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने की हिम्मत रखती हो.

मदुरै के समाजशास्त्री चित्राराज जोसफ कहते हैं कि केवल पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी औरतों के लिए गालियों को प्रयोग करती हैं, क्योंकि वे भी तो इसी पितृसत्तात्मक समाज का हिस्सा हैं. इन का मत है कि जो महिलाएं अपनी स्वाधीनता व अपने वजूद में विश्वास नहीं रखतीं, वे दूसरे पुरुषों या महिलाओं से लड़ते समय ऐसी गालियां बेझिझक देती हैं जो औरत के चरित्र, उस की जननक्षमता, उस की शारीरिक बनावट आदि को निशाना बनाती हैं.

पीपल्स लिंगुइस्टिक सर्वे औफ इंडिया के चेयरमैन गणेश डेवी एक बहुत रोचक तथ्य को सामने रखते हुए कहते हैं कि कई भारतीय भाषाओं में ‘गुण’ को पुल्लिंग और ‘गलती’ को स्त्रीलिंग के रूप में बोला व लिखा जाता है.

अनमोल पहलू को नकारता

कब तक समाज में आगे बढ़ती हिम्मती महिला को मर्दानी कह कर उस के स्त्रीत्व के इस अनमोल पहलू को नकारा जाएगा? बेटी ने अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली तो वह बेटों सी लायक हो गई, बेटी ने घर की जिम्मेदारी उठाई तो वह बेटे की तरह सक्षम निकली, लेकिन वहीं यदि कोई बेटा भावुक प्रवृत्ति का निकला तो उसे औरत की तरह कमजोर कह कर गाली दी जाती है. औरतों के लिए ‘मर्दानी’ एक मैडल है, लेकिन ‘हाथों में चूडि़यां पहनना’ पुरुषों के लिए गाली और फिर भी हमारे समाज में औरतों के लिए चूडि़यां व अन्य शृंगार बेहद आवश्यक माना जाता है, उन के पूरे व्यक्तित्व का अहम हिस्सा समझा जाता है. विधवा का मुंह देखना अपशकुन माना जाता है, जबकि विधुर पुरुषों के लिए ऐसी कोई बाधा नहीं है.

जैंडर असमानता क्यों

जैंडर असमानता पर अपने अध्ययन में मारथा फोशी कहती हैं कि दफ्तरों में अच्छे पदासीन पुरुष की आक्रामक कार्यप्रणाली को निर्णयात्मक रूप में सराहा जाता है, किंतु एक स्त्री यदि ऐसा ही रवैया अपनाए तो उसे हावी होने वाली, गुस्सैल और नकारात्मक ढंग से देखा जाता है. महिलाओं से अधिक संवेदनशीलता की अपेक्षा की जाती है. साथ ही उन से एक आदर्श व्यवहार, सम्मानजनक दूरी बनाए रखना और चुपचाप काम करने की उम्मीद भी की जाती है.

जब किसी औरत के कपड़ों की, उस के राजनीतिक विकल्पों की, उस की नौकरी की, उस  के मनोरंजन की आलोचना की जाती है तो यह आलोचना दरअसल उस के निर्णय लेने की क्षमता की होती है. समाज यह दर्शाना चाहता है कि तुम में इतनी अक्ल नहीं कि तुम अपने फैसले खुद ले सके. तुम सदियों पुरानी घिसीपिटी मान्यताओं को तोड़ कर आगे नहीं बढ़ सकती. तुम वही करो जो करती आई हो. कुछ नया सोचना या करने की तुम्हें इजाजत नहीं है. मगर ऐसा कब तक चलता रहेगा?

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आज हमें अपने घरों में पत्नी बन कर, मां बन कर और गृहिणी बन कर बदलाव लाना होगा. आज हमें अपनी बेटियों को गाय सी सीधी नहीं, शेरनी सी तेज बनाना होगा. धर्म और समाज का यह दोगलापन खत्म करने का समय हमें ही तय करना होगा.

Father’s day Special: पिता की सोच अपने जीवन में उतारती हैं स्वरा भास्कर

‘निल बट्टे सन्नाटा’ फिल्म से चर्चा में आईं अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने आज अपने अभिनय के बल पर एक अलग मुकाम हासिल कर लिया है. तेलुगु परिवार में जन्मी स्वरा का पालनपोषण दिल्ली में हुआ. वहां से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर अभिनय की इच्छा से मुंबई आईं और कुछ दिनों के संघर्ष के बाद फिल्मों में काम करने लगीं. उन की पहली फिल्म कुछ खास नहीं रही, पर ‘तनु वैड्स मनु’ में कंगना राणावत की सहेली पायल की भूमिका निभा कर उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया.

स्वरा भास्कर के पिता उदय भास्कर नेवी में औफिसर थे. अब वे रक्षा विशेषज्ञ हैं और मां इरा भास्कर प्रोफैसर हैं. पेश हैं, स्वरा से हुई मुलाकात से कुछ अहम अंश:

सवाल- फिल्मों में कैसे आना हुआ?

मैं बॉलीवुड से बहुत प्रभावित थी. ‘चित्रहार’ और ‘सुपरहिट मुकाबला’ मेरे मनोरंजन के 2 स्रोत थे. जैसेजैसे बड़ी होती गई मेरी पसंद बदलती गई. पहले मैं सोचती थी टीचर बनूंगी, फिर वेटरनरी डाक्टर. लेकिन जेएनयू में पढ़ते समय मैं ने इफ्टा के साथ थिएटर करना शुरू किया. वहां के गुरु कहे जाने वाले पंडित एन.के. शर्मा ‘एक्ट वन’ नामक संस्था चलाते हैं. उन के साथ मैं ने एक नाटक किया. मुझे लगा कि मुझे ऐक्टिंग के क्षेत्र में कोशिश करनी चाहिए.

सवाल- मुंबई कैसे आना हुआ?

मैं और मेरी एक सहेली जिसे वकील की जौब मिली थी मुंबई आ गईं. मेरी मां यहां किसी को जानती थीं. लेकिन उन के घर पर गैस्ट आने की वजह से उन्होंने मुझे और मेरी दोस्त को अपने औफिस में ठहरा दिया जहां मैं औफिस टाइम में बाहर घूमा करती थी. 20 दिनों के बाद मुझे रहने की जगह मिली. मुझे शुरुआती दौर में असिस्टैंट डायरैक्टर रवींद्र रंधावा और राइटर अंजुम राजावली का बहुत सहयोग मिला. मुंबई आने के बाद मैं ने कई जगहों पर अपना पोर्टफोलियो भेजा. सारा अच्छा काम मुझे औडिशन के सहारे ही मिला है.

सवाल- कितना संघर्ष रहा?

आप अगर फिल्म इंडस्ट्री से नहीं हैं और कोई आप का जानकार यहां नहीं है, तो आप को संघर्ष करना ही पड़ता है. फिर भी मुझे काम जल्दी मिल गया और मिल भी रहा है.

सवाल- पिता की कौन सी बात जीवन में उतारती हैं?

मेरे पिता सैल्फ्मेड हैं. मैं उन की सोच को अपने जीवन में उतारती हूं. मैं पिता के बहुत क्लोज हूं. मुंबई आते वक्त उन्होंने कहा था कि तुम दूसरे शहर जा रही हो. वहां क्या होगा मुझे पता नहीं. आप को खुद हर निर्णय लेना होगा. इस तरह उन्होंने आजादी के साथसाथ जिम्मेदारी भी खूबसूरती से दे दी.

सवाल- आप अधिकतर लीक से हट कर फिल्में करती हैं, इस की वजह क्या है?

खुद से अलग चरित्र निभाने में ही चुनौती होती है. इस से आप सीखते हैं और परफौर्म करने का अवसर मिलता है. मैं हर तरह की फिल्म पसंद करती हूं लेकिन वह कहानी मेरे लिए अधिक माने रखती है जो मेरी जिंदगी से काफी दूर हो. ‘अनारकली आरा वाली’ के वक्त मुझे आरा जाना पड़ा. मैं वहां उन औरतों से मिली जो ऐसी परफौर्मैंस करती हैं. ‘निल बट्टे सन्नाटा’ के वक्त मैं आगरा गई थी. वहां नौकरानियों के साथ उन के काम पर जाती थी. उन के घर जा कर, उन के साथ खाना तक खाया. ये चीजें मुझे अच्छी लगती हैं.

सवाल- महिलाओं का शोषण आज भी होता है. इस के लिए किसे जिम्मेदार मानती हैं?

पुरुषों को लगता है कि महिलाओं के साथ कुछ भी करना उन का हक है. यह वैसा ही है जैसाकि किसी जमाने में जमींदार किसानों के साथ करते थे, ब्राह्मण नीची जातियों के साथ करते थे. यह एक मानसिकता है, जिस में एक सिरफिरा आशिक अपनी प्रेमी को मार देता है या उस पर तेजाब फेंकता है. नाराज पति अपनी पत्नी पर हाथ उठाता है या एक आशिक रेप करता है. यह वही पिता, भाई, पति या आशिक है, जो महिलाओं को इनसानियत और समानता नहीं दे पा रहा है. इस मानसिकता से जब तक अच्छी तरह डील नहीं किया जाएगा, ऐसा होता रहेगा. इस के लिए मैं पहला जिम्मेदार दुनिया के सभी धर्मों को मानती हूं. हालांकि मैं एक धर्मनिरपेक्ष लड़की हूं, लेकिन यह आप को मानना पड़ेगा कि धर्म कहीं न कहीं नारी विरोधी है. इस के बाद संस्कृति, समाज, परिवार और परंपराएं ऐसी मानसिकता को जन्म देती हैं.

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