इतनी बदल गई हैं Taarak Mehta की पुरानी सोनू, Summer Look में बिखेरती हैं जलवे

सब टीवी के पौपुलर कौमेडी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) के कलाकार हर किसी की जबान पर रहते हैं. हालांकि कुछ कलाकार ने शो को इस बीच अलविदा भी कहा है. वहीं शो को अलविदा कहने के बाद कई लोगों का मेकओवर भी हुआ है, जिसमें एक्ट्रेस निधि भानुशाली (Nidhi Bhanushali) यानी पुरानी ‘​​सोनू’ का नाम भी शामिल है. दरअसल, हाल ही में पुरानी सोनू यानी निधि भानूशाली ने अपनी हौट फोटोज शेयर की हैं, जिसे देखकर फैंस हैरान हैं. आइए आपको दिखाते हैं कितना बदल गई हैं  ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की पुरानी सोनू….

नया फैशन करती हैं ट्राय

एक्ट्रेस निधि भानूशाली शो में जितनी क्यूट और फैशनेबल दिखती थीं. उतनी ही अब फैशन के मामले में टीवी एक्ट्रेसेस को टक्कर देती हैं. इंडियन ही नहीं वेस्टर्न लुक में निधि बेहद खूबसूरत लगती हैं. वहीं निधि की इस ड्रैस की बात करें तो स्किन कलर के क्रौप टौप के साथ फ्लावर प्रिंट पैटर्न स्कर्ट बेहद खूबसूरत कौम्बिनेशन है.

 

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समर में पहनती हैं ड्रैसेस

 

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समर में हर कोई अपने आपको कूल रखने के लिए ड्रैसेस पहनता है. वहीं निधि भानूशाली भी अपने लुक को कूल रखने के लिए औफशोल्डर लाइट ड्रैसेस पहनना पसंद करती हैं. उनका हर लुक फैंस को काफी पसंद आता है.

समर वेडिंग के लिए भी कूल होता है लुक

 

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समर में यैलो कलर का क्रैज एक्ट्रेसेस के बीच पौपुलर है. पार्टी हो या वेडिंग यैलो कलर कौम्बिनेशन समर में देखने को मिलता है. वहीं निधि भानुशाली भी समर वेडिंग में यैलो कलर का लहंगा पहने नजर आईं थी.

 

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फैंस को देती हैं फैशन टिप्स

 

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निधि भानुशाली का फैशन देखकर फैंस भी उनके टिप्स जानने के लिए एक्साइटेड रहते हैं. उनका हर लुक फैंस को इन्सपायर करता है. इसी लिए वह अपने सोशलमीडिया अकाउंट के जरिए फैशन टिप्स देती हुई नजर आती हैं.

बंदिनी- भाग 4 : रेखा ने कौनसी चुकाई थी कीमत

छठी लाश को देख कर प्रशासन और गांव वाले सभी चकित थे. वह लाश बड़े मंदिर के पुजारी और मोहनलाल के सलाहकार गोपाल चतुर्वेदी की थी. वे नीची जाति से बात करना तो दूर, उन की छाया से भी परहेज करते थे. वे ही अनुबंध के बाद मोहनलाल के घर जाने से पहले सभी लड़कियों का शुद्धि हवन करवाते थे. उन्होंने ही पूजा को चुना था. ऐसा धार्मिक पुरुष इन लोगों के घर क्या करने आया था, इस बात ने सब को अचंभे में डाल दिया था. परंतु क्या वो लोग नहीं जानते थे कि दलाल भी रातों में ही काम करते हैं.

कल्पना और उस की बेटी पूजा घर से लापता थीं. पुलिस वाले एक स्वर में कल्पना को ही अपराधी मान रहे थे. प्रथम दृष्टया में हत्या विष दे कर की गई लगती थी.

काफी देर से कोने में खामोश बैठी रेखा अचानक ही बोल पड़ी थी, ‘‘कल्पना पिछली रात ही अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. इन सब को मैं ने मारा है.’’

रेखा की आवाज में लेश मात्र भी कंपन नहीं था. ‘‘ऐ लड़की, तुझे पता भी है क्या कह रही है, फांसी भी हो सकती है,’’ एक पुलिस वाली चिल्ला कर बोली.

रेखा ने एक गहरी सांस ले कर उत्तर दिया, ‘‘वैसे भी, बस सांस ले रही हूं. मैं एक मुर्दा ही हूं.’’

अपराध स्वीकार कर लेने के कारण रेखा को उसी पल गिरफ्तार कर लिया गया. कोर्ट में भी वह अपने बयान से नहीं पलटी थी. पूरे आत्मविश्वास के साथ जज की आंखों में आंखें डाल कर अपनी हर बात स्पष्ट रूप से सामने रखी थी. चाहे वह प्रथा की बात हो, चाहे वह कल्पना और पूजा को घर से भागने में सहयोग की बात हो या खुद उन सभी के खाने में विष मिलाने की बात हो.

उस का कहना था कि यदि रेखा भी कल्पना के साथ भाग जाती, तो परिवार वाले कुछ न कुछ कर के उन्हें ढूंढ़ ही लाते. इसी कारण से रेखा ने यहां रहने का निश्चय किया था. परंतु कल्पना भी यह नहीं जानती थी कि रेखा के मन में कब इस योजना ने जन्म ले लिया था.

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इस स्वीकारोक्ति के बाद रेखा को जेल हो गई थी. पिछले 4 सालों से रेखा इस जेल में बंद थी. अपने मधुर व्यवहार की बदौलत रेखा ने सभी का दिल जीत लिया था. आरती की पहल पर ही एक समाजसेवी संगठन के तत्त्वावधान में रेखा की पढ़ाई भी शुरू हो गई थी. जेल की सुपरिटैंडैंट एम के गुप्ता रेखा की स्थिति से अवगत थीं, उन्हें उस से लगाव भी हो गया था. उन्हीं की पहल पर रेखा को खाना बनाने वालों की सहायता में लगा दिया गया था.

इधर, रेखा अविचलित अपने जीवन में आगे बढ़ रही थी, उधर आरती निरंतर उस की रिहाई के प्रयत्न में लगी हुई थी. काफी दिनों के अथक परिश्रम के बाद आज रेखा के केस का फैसला आने वाला था. पिछली बार की सुनवाई में आरोप तय हो गए थे, परंतु आरती न जाने किनकिन से मिल कर रेखा की सजा कम कराने को प्रयत्नशील थीं. फैसले वाले दिन रेखा का जाना आवश्यक नहीं था, वह जाना भी नहीं चाहती थी.

रेखा मनयोग से रोटी बेलने में लगी हुई थी कि तभी लेडी कांस्टेबल ने उसे आरती के आने की सूचना दी थी, ‘‘रेखा, चल तुझ से मिलने तेरी आरती दीदी आई हैं.’’

प्रसन्न मुख के साथ रेखा उस लेडी कांस्टेबल के पीछे चल दी थी.

आरती के मुख पर स्याह बादलों को देख लिया था रेखा ने, परंतु जाहिर में कुछ बोली नहीं थी.

‘‘कैसी हो रेखा?’’

आरती की आवाज की पीड़ा को भी रेखा ने भांप लिया था.

‘‘दीदी, आप परेशान न हों. मैं खुश हूं.’’

‘‘हम्म.’’

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद आरती ने दोबारा बोलना शुरू किया, ‘‘कल्पना का पता चल गया है. वो और पूजा रमन के साथ भागी थीं.’’

‘‘दीदी, इतने दिनों में पहली अच्छी खबर सुनी है. वह रमन ही पूजा का बाप है, कल्पना का दूसरा ग्राहक.’’

रेखा के चेहरे पर मुसकान खिल गई थी. परंतु अपने केस के फैसले के बारे में उस की कोई जिज्ञासा न देख कर आरती ने खुद ही पूछ लिया था.‘‘रेखा, अपने केस के फैसले के बारे में नहीं पूछोगी?’’

‘‘वह क्या पूछना है?’’

‘‘तुम कल्पना को बुलाने क्यों नहीं देतीं. वह तो आने…’’

‘‘नहीं दीदी, आप ने मुझ से वादा किया था,’’ रेखा ने आरती का हाथ थाम लिया था.

‘‘हां, तभी तो जब आज कोर्ट में जज फैसला सुना रहा था, मैं चाह कर भी नहीं कह पाई कि उन सभी लोगों को जहर तुम ने नहीं, कल्पना ने दिया था.’’ इस बार आरती की आवाज में रोष स्पष्ट था. पिछले कुछ सालों में रेखा के साथ उस का एक खूबसूरत रिश्ता बन गया था, जो खून से नहीं दिल से जुड़ा हुआ था.

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‘‘नाराज न हों दीदी, अच्छा बताइए क्या फैसला आया है?’’ रेखा ने आरती के हाथों को सहलाते हुए कहा.

‘‘आजीवन कारावास,’’ इतना कह कर आरती ने रेखा के चेहरे की तरफ देखा. किंतु रेखा के चेहरे पर शांति और संतोष के भाव एकसाथ थे. आरती ने आगे कहा, ‘‘पर तू चिंता मत कर. हमारे पास बड़ी अदालत का विकल्प शेष है.’’

आरती जैसे रेखा को नहीं स्वयं को समझाने लगी थी. रेखा के चमकते मुख को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे अकस्मात ही सूर्य के ऊपर से बादलों का जमावड़ा हट गया हो और उस की समस्त किरणों का प्रकाश रेखा के चेहरे पर सिमट आया हो.

उस ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आरती की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘दीदी, आप अब कहीं अपील नहीं करेंगी. मुझे यह फैसला स्वीकार है.’’

‘‘तू यह क्या…’’

‘‘दीदी, मेरे केस ने शायद देश के सामने इस कुप्रथा को उजागर कर दिया है. परंतु यह प्रथा तब तक नहीं थमेगी जब तक सरकार तक हमारी बात नहीं पहुंचेगी. धर्म और संस्कृति के ठेकेदार इस मार्ग में चुनौती बन कर खड़े हैं. आप से बस इतनी प्रार्थना है, यह लौ, जो जलाई है, बुझने मत देना.’

आरती उसे आश्चर्य से देख रही थी. ‘‘तुम शायद समझीं नहीं. अब तुम आजीवन बंदिनी ही रहोगी,’’ आरती की आवाज में कंपन था.

आरती की आवाज सुन कर दो पल को थम गई थी रेखा, फिर उस के होंठों पर एक मनमोहक मुसकान फैल गई थी. ‘‘मुझे भी ऐसा ही लगा था कि मैं आजीवन बंदिनी ही रह जाऊंगी. परंतु…’’

‘‘परंतु क्या?’’ आरती उस साहसी स्त्री को श्रद्धा के साथ देखते हुए बोली, ‘‘आज का दिन पावन है, आज बंदिनी की रिहाई की खबर आई है.’’

जीवन की मुसकान

मैं बच्चों के साथ उदयपुर (राजस्थान) गया था. वहां हमारा 3-4 दिनों का कार्यक्रम था. मगर पहले ही दिन जब हम घूमफिर कर वापस होटल पहुंचे ही थे कि मेरे भांजे संजय का फोन आया, ‘‘डैडी (मेरे जीजाजी) के हृदय की शल्य चिकित्सा होने वाली है, सो आप को कल ही दिल्ली पहुंचना है.’’

वापसी में हमें रात 12 बजे की बस की पिछली सीट मिली. सुबह घर पहुंच कर रिकशे वाले को पैसे देने के लिए ज्यों ही पौकेट में हाथ डाला, मेरे होश उड़ गए. पर्स गायब था. उलटेपांव उसी रिकशे से मैं वापस बसस्टैंड गया. देखा, बस अड्डे से बाहर निकल रही है. मैं झट बस पर चढ़ गया और पीछे की सीट पर नजर दौड़ाने लगा. इतने में कंडकटर ने पूछा, ‘‘साहब, क्या देख रहे हैं?’’

मैं ने बताया कि रात को इसी बस से हम उदयपुर से आए थे. अंतिम सीट थी. वहां मेरा पर्र्स गिर गया. इतना जान कर कंडक्टर ने अपनी जेब से निकाल कर पर्स मुझे पकड़ा दिया. पर्स पा कर मैं खुशी से झूम उठा. मैं ने कंडक्टर को बख्शिश देनी चाही, मगर उस ने लेने से मना कर दिया, कहा कि आप को अपना सामान मिल गया, इसी में उसे खुशी है.

उस ने कुछ भी लेने से मना कर दिया. मैं ने सोचा कि आज की इस लालची व स्वार्थभरी दुनिया में इतने ईमानदार लोग भी हैं.    राजकुमार जैन

मेरे दोस्त के बेटे की जन्मदिन की पार्र्टी थी. मैं पूरे परिवार के साथ बर्थडे पार्टी में गया था.

हम सब खाना खा रहे थे. मेरे दोस्त ने शराब की भी व्यवस्था कर रखी थी. कुछ लोग शराब पी रहे थे और मुझे

भी पीने के लिए बारबार बोल रहे

थे. मेरे पास ही मेरा बेटा भी खाना खा रहा था.

बेटे ने कहा, ‘‘मेरे पापा शराब नहीं पीते है. पापा कहते हैं, शराब पीने से कैंसर और कई भयानक बीमारियां होती हैं, जो जानलेवा होती हैं. शराब पी कर लोग घर में बीवीबच्चों से गालीगलौज और मारपीट करते हैं, जो बुरी बात है. आप लोग भी शराब मत पीजिए, सेहत के लिए खराब है.’’

वहां बैठे सभी लोगों का सिर शर्म से झुक गया. जहां बेटे की बात दिल को छू गई वहीं इस बात की भी खुशी हुई कि आज का युवावर्ग शराब जैसी गंभीर समस्याओं के प्रति जागरूक है.

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शादी के बाद पति रोहनप्रीत ने सेलिब्रेट किया Neha Kakkar का Birthday, दिए ढेरों गिफ्ट

बौलीवुड की पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ आए दिन सुर्खियों में रहती है. हाल ही में नेहा कक्कड़ ने अपना 36वां बर्थडे सेलिब्रेट किया, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. वहीं नेहा कक्कड़ के पति रोहनप्रीत की वाइफ के लिए रखी इस पार्टी की तारीफें फैंस करते नहीं थक रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं नेहा कक्कड़ की खास बर्थडे पार्टी की झलक…

शादी के बाद मनाया पहला जन्मदिन

बीते साल 2020 में रोहनप्रीत संग शादी करने वाली सिंगर नेहा कक्कड़ ने शादी के बाद अपना पहला जन्मदिन ससुराल में मनाया, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर शेयर करते हुए फैंस को अपनी पार्टी और पति के प्यार भरे गिफ्ट की झलक दिखाई.

 

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कुछ ऐसी थी नेहा की बर्थडे पार्टी की झलक

कोरोना को देखते हुए नेहा कक्कड़ ने अपनी फैमिली संग बर्थडे सेलिब्रेट किया. हालांकि इस दौरान भी उनकी पार्टी बेहद खास थी. क्योंकि इस पार्टी में जहां कई केक मौजूद थे तो वहीं पति रोहनप्रीत ने नेहा के लिए ढेर सारे गिफ्ट का इंतजाम किया था.

रोहनप्रीत ने की थी खास तैयारियां

नेहा कक्कड़ के जन्मदिन को खास बनाने के लिए पति रोहनप्रीत ने कई सारी तैयारियां की थीं. जहां रोहनप्रीत ने पत्नी नेहा कक्कड़ को जन्मदिन के मौके पर कई सारे गिफ्ट दिए. तो वहीं नेहा के फैंस ने भी उन्हें ढेर सारी बधाईयां सोशलमीडिया के जरिए दी. वहीं इन सब तैयारियों को देखकर नेहा कक्कड़ बेहद खुश नजर आईं.

भाई टोनी कक्कड़ भी बने पार्टी में मेहमान

नेहा कक्कड़ के भाई टोनी कक्कड़ इस पार्टी में मेहमान बनकर पहुंचे. जहां नेहा और उनकी फैमिली ने कई सारी फोटोज क्लिक करवाई, जिसमें उनकी खुशी देखते ही बन रही थी.

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Varun Dhawan की ऑनस्क्रीन मां Evelyn Sharma ने बॉयफ्रेंड संग की शादी, देखें फोटोज

कोरोना काल में कई स्टार्स शादी के बंधन में बंध चुके हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस यामी गौतम ने शादी की थी तो वहीं अब बौलीवुड एक्टर वरुण धवन की औनस्क्रीन मां के रोल में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस एवलिन शर्मा (Evelyn Sharma) ने अपने लॉन्ग टाइम ब्वॉयफ्रेंड तुषान भिंडी (Tushaan Bhindi) संग शादी कर ली हैं. आइए आपको दिखाते हैं इस कपल की स्मौल वेडिंग की झलक…

ऑस्ट्रेलिया में की शादी

 

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यारियां एक्ट्रेस एवलिन शर्मा ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में तुषान भिंडी के साथ शादी की है, जिसमें कोरोना वायरस के चलते परिवार के कुछ खास लोग ही शामिल हुए थे. वहीं अपने फैंस के लिए एवलिन ने अपनी शादी की झलक दिखाते हुए कुछ फोटोज शेयर की हैं, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.

 

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ऐसा था एक्ट्रेस का लुक

 

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एवलिन शर्मा ने शादी के लिए व्हाइट कलर का शानदार ब्राइडल गाउन पसंद किया. तो वहीं तुषान भिंडी ने ब्लू सूट को कैरी किया. वहीं एवलिन शर्मा सिंपल दुल्हन बनकर अपनी शादी में पोज देती हुई नजर आईं. दूसरी तरफ कपल फोटोज में दोनों की जोड़ी परफेक्ट लग रही थी.

 

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फैंस दे रहे बधाई

 

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एक्ट्रेस की शादी की खबर से जहां फैंस हैरान हैं तो वहीं सेलेब्स उन्हें शादी की बधाइयां दे रहे हैं. दूसरी तरफ कपल की बात करें तो फोटोज को साथ देखकर लग रहा है कि दोनों को शादी का बेसब्री से इंतजार था.

 

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बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी एक्ट्रेस एवलिन शर्मा कई बौलीवुड स्टार्स संग काम कर चुकी हैं. वहीं उनके पति की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले तुषान भिंडी एक डेंटल सर्जन हैं. दोनों लंबे समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. वहीं हाल ही में दोनों ने अपनी सगाई की खबर भी फैंस को दी थी.

शादी पर भारी कोरोना महामारी

विभा की शादी इस वर्ष अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में होने वाली थी. यह शादी 6 महीने पहले तय हुई थी. विवाह से संबंधित सारी बुकिंग अग्रिम हो चुकी थी. सभी आवश्यक तैयारियां अंतिम दौर में चल रही थीं कि अचानक विभा के पिता की तबीयत खराब हो गई.

जांच में पता चला कि उन्हें कोरोना हुआ है. अगले 2 ही दिनों में परिवार के 3 अन्य सदस्य भी पौजिटिव हो गए. समधियों से बातचीत कर के विवाह स्थगित करने का निर्णय लिया गया. अब यह विवाह 6 माह बाद या स्थिति सामान्य होने पर होगा. नतीजतन, आननफानन में सभी परिचितों को सूचित करने के साथसाथ सभी अग्रिम बुकिंग भी निरस्त करनी पड़ीं.

यह विभा के परिवार के लिए बहुत परेशानी की घड़ी थी, क्योंकि उन के अग्रिम भुगतान के डूबने के आसार थे. यहां उन्हें राहत इस बात की थी कि यदि अगली तिथि पर इन्हीं व्यवसायियों के साथ बुकिंग यथावत रखी जाती है तो यह सारा अग्रिम भुगतान शादी की अगली तारीख वाली बुकिंग में समायोजित कर लिया जाएगा, लेकिन इस विवाह आयोजन से जुड़े विभिन्न व्यवसायों के लिए यह और भी अधिक मुश्किल घड़ी थी, क्योंकि उन्हें एक पूरी की पूरी बुकिंग का नुकसान हो चुका था. जिस अगली तारीख पर विभा की शादी तय होगी, उस तारीख पर किसी अन्य समारोह की बुकिंग हो सकती थी.

व्यवसायों पर गाज

भारत में अप्रैलमई को शादियों का सीजन माना जाता है. इस के बाद यह सीजन सर्दियों के मौसम में ही आता है. इस वर्ष सीजन में कर्फ्यू लगने और कोरोना की सख्त गाइड लाइन के कारण न केवल शादी करने वाले युवा निराश हुए हैं, बल्कि यह समय अनेक व्यवसायों पर भी गाज बन कर गिरा है. भारत में शादियों के जश्न कईकई दिनों तक चलते हैं. इस के इर्दगिर्द एक लंबीचौड़ी अर्थव्यवस्था काम करती है. लाखों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए हैं.

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शादी समारोहों से जुड़े सभी व्यवसाय जैसे घोड़ीबाजा, फूल और सज्जा व्यवसाय, टैंट हाउस, मैरिज पैलेस, होटल, बसटैक्सी आदि सभी इस महामारी का शिकार हुए हैं. सब की अलगअलग परिस्थितियां हो सकती हैं, लेकिन जो सा  झा समस्या है वह यह कि नुकसान सभी को हुआ है. किसी को कम तो किसी को अधिक.

भारत की ‘बिग इंडियन फैट वैडिंग्स’ पूरी दुनिया में मशहूर हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 1 करोड़ शादियां होती हैं और कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इन पर प्रति शादी 5 लाख से ले कर 5 करोड़ तक का खर्च आता है.

बड़ा झटका

विभिन्न मुद्दों पर दुनियाभर में शोध कराने वाली कंपनी केपीएमजी की 2017 में की गई एक स्टडी के अनुसार, भारत में शादियों का सालाना कारोबार 36 अरब रुपयों का है. अमेरिका के बाद यह दूसरे नंबर पर आता है. ऐसे में यदि इस कारोबार पर कोरोना का साया मंडराएगा तो निश्चित रूप से इस कारोबार से जुड़े व्यवसायियों के लिए एक बड़ा   झटका होगा.

सौरभ का सूरत में इवेंट्स का कारोबार है. वह छोटीमोटी जन्मदिन की पार्टियों से ले कर शादीब्याह तक के बड़े आयोजन कराता है उस के अनुसार, कोरोना काल में उस के व्यवसाय में 25-30% तक का नुकसान हुआ है.

शादीब्याह में घोड़ी उपलब्ध करवाने वाले मुमताज अली से बात करने पर उस ने रोआंसे स्वर में बताया, ‘‘पूरा साल सीजन का इंतजार रहता है. सीजन अच्छा निकल जाए तो सालभर का खर्चा निकल आता है. हमारी मुख्य कमाई तो बरातियों के नाच और दूल्हे के ऊपर दोस्त, रिश्तेदारों द्वारा लुटाए जाने वाले रुपए होते हैं. इस सीजन एक तो बुकिंग ही कम हुई दूसरे शादी में लोगों के कम आने के कारण हमारी कमाई भी सिर्फ बुकिंग के पैसों तक ही सिमट गई. इस बार तो घोड़ी का खर्चा भी लगता है घर से ही करना पड़ेगा.’’

भारी नुकसान

इसी सिलसिले में आशियाना मैरिज पैलेस के संचालक कैलाश तिवारी से फोन पर बात हुई. उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण बहुत सी बुकिंग कैंसिल हो गई हैं. इन में सामान्य बुकिंग भी शामिल हैं. पिछले वर्ष जैसे ही कोरोना का असर कुछ कम होने लगा था तब खूब बुकिंग होने लगी थी. लगा था कि पिछले नुकसान की भरपाई हो जाएगी.

उन्हीं के मद्देनजर हम ने विभिन्न थीम के अनुसार मंडप और अन्य सैट्स आदि पर बहुत इन्वैस्ट कर दिया था. बुकिंग कैंसिल होने के कारण हमें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

स्वर्ण व्यवसायी रमेश सोनी की अपनी अलग पीड़ा है. उन का कहना है कि वैवाहिक जेवर आदि नाममात्र के अग्रिम भुगतान पर और्डर किए जाते हैं. लेकिन हमें तो पूरा सोना खरीदना पड़ता है न. अब यदि शादियां खिसक जाती हैं तो हमें तो डबल नुकसान हुआ न. एक तो हमारा पैसा ब्लौक हो गया दूसरे चाहे सोने के भाव घटें या बढे़ं, हमें तो उसी कीमत पर जेवर देने होंगे, जिस भाव पर बुकिंग हुई थी.

सुनसान हैं वैवाहिक स्थल

शहर का मशहूर वैवाहिक स्थल गंगा महल मैरिज गार्डन इन दिनों सुनसान हैं. पूरे शहर के लिए यह विवाह स्थल इतना उपयुक्त है कि लोग वर्ष भर पहले ही इसे शादी समारोह के लिए बुक करवा लेते हैं. यहां शादी होना शहर में स्टेटस सिंबल माना जाता है.

यहां के संचालक ने अपनी परेशानी सा  झा करते हुए कुछ इस तरह बताया, ‘‘इस सीजन यहां कोई बड़ी बुकिंग नही हुई. कारण, शादी में मेहमानों की सीमित संख्या की कोरोना गाइड लाइन. अब जब कुल जमा 50 से भी कम मेहमान बुलाने हैं तो फिर लोग इतना बड़ा गार्डन क्यों बुक करवाएंगे? दूसरे यह भी कि कोरोनाकाल से पहले शादीब्याह से जुड़े हर बड़े समारोह यथा तिलक, सगाई या संगीत आदि के लिए एक अलग दिन निश्चित होता था और उसी के अनुसार अलगअलग थीम पर अलगअलग दिन समारोह स्थल की साजसज्जा की जाती थी.

‘‘उसी के अनुसार एक विवाह समारोह में इन समारोह स्थलों की बुकिंग भी कम से कम 3-4 दिन के लिए की जाती थी. अब यदि पूरा विवाह समारोह ही एक दिन में समेट दिया जाएगा तो आप सम  झ सकते हैं कि हमारा कितना नुकसान हुआ होगा.’’

ऐसा ही दर्द कई होटल संचालक और टूर्स ऐंड ट्रैवल्स वालों का भी है, जो इस वैवाहिक सीजन में हनीमून के लिए आने वाले जोड़ों का इंतजार कर रहे थे. सीजन के समय इन्हें अतिरिक्त स्टाफ भी रखना पड़ता है और किचन में अतिरिक्त सामान भी.

दिल्ली की मशहूर वैडिंग प्लानर कंपनी ‘राशि एंटरटेनमैंट’ के डाइरैक्टर राजीव के अनुसार, इस व्यवसाय में लगी लगभग 50% कंपनियां बंद हो गई हैं.

कार्ड आदि के प्रिंटिंग से जुड़े ‘शील प्रिंटर्स’ के मालिक योगेंद्र भाटी के अनुसार, पहले जहां शादियों में हजारों की संख्या में कार्ड छपते थे वहीं अब यह संख्या सिमट कर 40-50 पर आ गई है. लोग सिर्फ फौर्मैलिटी के लिए ही कार्ड छपवाते हैं. इस कारण कई छोटे कारोबारियों ने या तो अपनी दुकानें बंद कर दीं या बेच दी हैं.

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आशंका सच साबित हो रही

संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने गत वर्ष अप्रैल माह में जारी एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई थी कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी के कुचक्रमें फंस सकते हैं. चूंकि शादी व्यवसाय भी ऐसा ही क्षेत्र है जहां अधिकतर लोग अनौपचारिक होते हैं. ऐसे में यह आशंका सच साबित होती दिखाई दे रही है.

शादी समारोहों के आगे खिसकने के कारण लाखों श्रमिकों के सामने परिवार पालने का संकट पैदा हो गया. सरकार का ध्यान इस तरफ भी जाना चाहिए.

सरकार की प्राथमिकता जीवन बचाना है, लेकिन जीविका को बचाना भी तो आवश्यक है. सरकार को कोरोना गाइड लाइन की पालना करते हुए विवाह समारोहों के आयोजनकर्ताओं को आवश्यक छूट देनी चाहिए ताकि इस व्यवसाय पर छाए मंदी के बादल कुछ हट सकें.

गर्मी बर्दाश्त करने के मामले में इंसान किसी पहेली से कम नहीं

दिल्ली में अगर पारा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए हर तरफ गर्मी पर ही चर्चा होने लगती है. मुंबई में यही बात पारे के 38-39 डिग्री के पार पहुंच जाने पर शुरु हो जाती है. जबकि राजस्थान मंे चुरु, टोंक, जैसलमेर, महाराष्ट्र में औरंगाबाद, नागपुर, उत्तर प्रदेश में महोबा, बांदा, इलाहाबाद आदि में गर्मी पर हर तरफ चिंता और चर्चा पारे के 41-42 डिग्री ऊपर जाने पर होती है. लेकिन क्या आपको लगता है इन अलग अलग जगहों पर लोगों की गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमताएं बस इतनी ही होंगी? जी नहीं, इस मामले में इंसान किसी पहेली से कम नहीं है.

मानव शरीर का सामान्य तापमान 37.5 से 38.3 डिग्री सेल्सियस या 98.4 डिग्री फाॅरेनहाइट होता है. ऐसे में इससे ज्यादा तापमान होने पर हमें बेचैनी महसूस होना स्वभाविक है. लेकिन हम इंसानों में ही नहीं बल्कि गर्म रक्त वाले सभी स्तनधारियों में थर्मोरेग्युलेट की खूबी होती है. कहने का मतलब यह कि गर्म रक्त वाले स्तनधारी जिसमें इंसान भी है, अपने शरीर का तापमान खुद ही नियंत्रित कर सकते हैं. शायद यही वजह है कि कम से कम इंसान को गर्मी सहन करने के मामले में किसी पहेली से कम नहीं है. जी हां, भले हम 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर बेचैनी महसूस करने लगें, लेकिन अगर जिंदा रहने की शर्त पर गर्मी बर्दाश्त करने की बात हो तो हम 55-60 डिग्री सेल्सियस तापमान तक में भी जिंदा रहेंगे. सवाल है आखिर हमारा शरीर यह सब करता कैसे है?

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यह चमत्कार हमारे शरीर की एक प्रक्रिया में छिपा है. वास्तव में हमारा शरीर बाहर के तापमान को ग्रहण ही नहीं करता. इसके लिए यह कई तरह की तरकीबों का इस्तेमाल करता है. इनमें सबसे कारगर है- शरीर से निकलने वाला पसीना. जैसे ही हम अपने शरीर के तापमान से ज्यादा तापमान के संपर्क मंे आते हंै, वैसे ही हमारे शरीर की पसीना पैदा करने वाली श्वेद ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और शरीर से ढेर सारा पसीना बहा देती हैं. पसीने के रूप मंे हमारे शरीर से निकला यही पानी हमारी त्वचा में कब्जा जमाने की कोशिश कर रही गर्मी को हजम कर जाता है. इससे हमारे शरीर का तापमान घटकर उतना ही हो जाता है, जितना कि वह हमारे लिए सहजता से सहनीय होता है. यह इसलिए संभव हो पाता है, क्योंकि हमारे शरीर की संरचना में 70 फीसदी तक पानी होता है. इसीलिए पानी को जीवन का आधार कहते हैं. शरीर का यह पानी हमें सिर्फ गर्मी से ही नहीं बल्कि कई तरह की आपातकालीन परेशानियों से भी बचाता है.

लेकिन इस बचाव की एक सीमा है. अचानक गर्मी पैदा होने पर शरीर से निकला पसीना हमारे शरीर का तापमान अनुकूल स्तर पर ला तो देता है, लेकिन अगर लगातार गर्मी बनी रही और पसीने के रूप मंे शरीर का पानी बहुत तेजी से बहता रहा तो जल्द ही हमें पानी की कमी की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. शरीर से निकलने वाला यह पानी इसलिए परेशान करता है, क्योंकि इसके साथ शरीर का नमक भी बाहर चला जाता है. मतलब यह कि गर्मी के आपातकालीन हमले से तो पसीना बचा लेता है, लेकिन अगर लगातार गर्मी बनी रही तो हमें शरीर में जरूरी पानी बनाये रखना जरूरी हो जाता है. लेकिन इस पसीने के मैकेनिज्म की भी दो शर्ते हैं. यह पसीना हमारे शरीर को बहुत ज्यादा गर्म होने से तभी बचा सकता है, जब शरीर सीधे गर्मी के स्रोत की जद में न आए और दूसरा यह कि वातावरण की हवा पूरी तरह से खुश्क हो यानी हवा में नमी न हो.

अगर हवा में नमी होगी तो हमें पसीना भी देर तक गर्मी से नहीं बचा पाता. यह अकारण नहीं है कि मई-जून के मुकाबले हमें बारिश के दिनों यानी जुलाई-अगस्त में कहीं ज्यादा गर्मी लगती है. उसका कारण यही है कि तब हवा में नमी मौजूद होती है. गर्मी में जब हम बढ़ते तापमान से बेचैन होते हैं, तो हमारा शरीर पसीना बहाकर हमें तत्काल राहत तो प्रदान कर देता है, लेकिन अगर हम काफी देर तक इसी के भरोसे रहे और शरीर का पानी कम हो गया तो कई तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं. मसलन- सिरदर्द हो जाता है, चक्कर आने लगते हैं, कई बार आदमी बेहोश हो जाता है और यह सब इसलिए होता है क्योंकि शरीर से ज्यादा पानी निकल चुका होता है. शरीर में पानी की कमी अगर काफी देर तक बनी रही तो इससे सांस लेने की पूरी प्रक्रिया प्रभावित होती है. खून के बहाव में भी इससे फर्क आता है. खून के फ्लो में कमी आ जाती है. जिस कारण दिल और फेफड़ों पर ज्यादा दबाव बनता है.

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इसलिए हमारा शरीर अचानक पैदा हुई गर्मी का मुकाबला तो कर लेता है, लेकिन स्थायी रूप से गर्मी से बचने के लिए हमंे कई उपाय आजमाने पड़ते हैं, वरना मौत तक हो जाती है. साल 2019 में केरल एक्सप्रेस में बैठे हुए 4 वरिष्ठ यात्रियों की झांसी के पास उस समय मौत हो गई थी, जब वातावरण में तापमान शरीर की सहने की क्षमता से कहीं ज्यादा था. इसलिए हमें गर्मी से बचाव की एक पूरी व्यवस्था बनानी पड़ती है. चाहे वह आधुनिक विद्युतीय व्यवस्था हो यानी एसी और कूलर या फिर खानपान और शरीर को ढके रखकर किसी भी तरीके से बाहरी उपायों से तापमान कम करने की प्रक्रिया. मतलब इंसान के शरीर के पास यह जादू तो है कि वह भयानक गर्मी से भी मुकाबला कर ले, लेकिन लगातार ऐसी स्थिति से पार नहीं पाया जा सकता.

क्या इंसानों पर राज करेंगे Future के रोबोट?

अगर रोबोट का मतलब आपके लिए एक कंप्यूटराइज्ड मशीन भर है तो जरा रोबोटिक्स के विशेषज्ञ प्रो. केविन वारविक की सुनिए ‘सन 2050 तक रोबोट इतने तेज दिमाग और कल्पनाशील हो जायेंगे कि फुटबाल की विश्व चैम्पियन टीम को हरा देंगे.’ जी, हां सुनने में यह भले अभी मजाक जैसे या हैरान करने वाली बात लग रही हो. लेकिन जिस तरह रोबोटिक्स के क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है उसे देखते हुए यह भविष्यवाणी असंभव नहीं लग रही.

गौरतलब है कि आइरिश मूल के वारविक वह इंसान हैं जिन्होंने 1998 में दुनिया के पहले सायबोर्ग यानी मशीनी मानव बनने की तरफ गंभीरता से कदम बढ़ाया था. क्योंकि उन्हीं का ही नहीं बल्कि रोबोटिक्स के कई दूसरे विशेषज्ञों का भी मानना है कि कृत्रिम बुद्धि वाली मशीनें भविष्य में इंसान से बेहतर और तीव्रतर सोचेंगी. ये विशेषज्ञ भयावहता की तस्वीर यहीं तक नहीं खींचते बल्कि इनके मुताबिक इन मशीनों के समक्ष इंसान की हैसियत आज के चिम्पैंजियों जैसी हो जायेगी. इसलिए इनका सुझाव है कि इंसान को जल्द से जल्द तकनीक फ्रेंडली रवैय्या अपना लेना चाहिए. क्योंकि जिन्हें हम मात नहीं दे सकते उनसे दोस्ती कर लेने की यह सीख पुरानी है.

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कृत्रिम बुद्धि, मशीनी मानव या सायबोर्ग ने अगर भविय के बारे में सोचते ही एक साथ भय और रोमांच की झुरझुरी पैदा कर देते हैं तो इसकी बुनियादी वजह हैं रोबोट. सन 1920 में चेक साहित्यकार द्वारा अपने उपन्यास ‘रोजोम्स यूनिवर्सल रोबोट्स’ यानी आरयूआर में पहली बार रोबोट शब्द का इस्तेमाल किया गया. कल्पित रोबोट का चेक भाषा में मतलब है, बंधुआ मजदूर. किसी भी विज्ञान फंताशी की तरह इस नाटक में भी कल्पना की गई थी कि इंसान द्वारा बनाए गए मशीनी मानव रोबोट एक दिन आदमी के विरुद्ध ही विद्रोह कर देते हैं.

हालांकि मशीनी मानव या रोबोट को तब महज एक कल्पना की उड़ान ही माना गया था. लेकिन इस कल्पना को, अमरीका में कैलीफोर्निया स्थित स्टेनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलाॅजी ने शैकी नाम के दुनिया के पहले रोबोट को बनाकर हकीकत में बदल दिया. इसके बाद तो सिलसिला ही चल निकला आज की तारीख मंे दुनिया में सैकड़ों किस्म के रोबोट मौजूद हैं. पिछले डेढ़ सालों से दुनिया मंे रह रहकर लगे लाॅकडाउन में भी रोबोटों की महत्ता को बढ़ा दिया है. पिछले लाॅकडाउन से पहले तक भारत मंे बहुत कम ऐसे रोबोट्स थे, जहां प्रतीक के तौरपर भी रोबोट रहे हों. लेकिन कोरोना महामारी के दौरान हुए लाॅकडाउन वन में ही इंसानों की आपस मंे दूरी बहुत जरूरी हो गई, ऐसे मौके पर अपनी भरपूर जरूरत के साथ रोबोट्स तमाम रेस्त्रोज में इंट्री ली और आज अकेले चेन्नई में ही 4 रेस्टोरेंटों में इंसानी वैरों की जगह रोबोट्स आपका आर्डर सर्व करते हैं.

आज दुनिया मंे ऐसे रोबोट्स आ चुके हैं जिनमें 12 से 14 साल तक के किशोर का दिमाग है. कुछ साल पहले जिस तरह अलेक्सा नाम की शी रोबोट ने इंसानों की दुनिया मंे अपनी सनसनीखेज एंट्री करायी थी, उसके बाद अब साफ लगने लगा है कि रोबोट्स अपने लिए की गई भविष्यवाणी से भी पहले बहुत कुछ अपने हाथ में लेने वाली है. रोबोट्स के परिवार का पहला रोबोट जिसमें एक डेढ़ साल के बच्चे का दिमाग था, वह असिमो था. दो पैर वाले इस रोबोट को होंडा ने विकसित किया था. यह रोबोट इंसानों के बीच उनके माहौल में आराम से घूम सकता था. असिमो के चलने की रफ्तार 1.6 किलोमीटर प्रति घंटा थी. यह आगेे-पीछे दोनों तरफ चल सकता था, मुड़ सकता था, सीढ़ियों पर उतर और चढ़ सकता था. अपनी गतिशील अवस्था में यह पूरी तरह संतुलित रहता था. 1.2 मीटर लंबे इस रोबोट का वजन 52 किलोग्राम था. यह टेबल पर भी काम कर सकता था. इंसान से संवाद स्थापित करने के लिए इसकी आंखों में इन-बिल्ट कैमरे लगे थे. इसमें कंप्यूटरीकृत होम सिक्युरिटी सिस्टम लगा था. वास्तव मंे इसी ने हमें भविष्य के काल्पनिक रोबोटों की दुनिया से परिचय कराया था.

असिमो अगर इंसानों की तरह व्यवहार करने वाला पहला रोबोट था तो इलेक्ट्राॅनिकी की मशहूर कंपनी सोनी का आईबो डाग होम रोबोट की श्रेणी में सबसे सफल रोबोट माना गया था. यह तकनीक और कृत्रिम बौद्धिकता की अद्भुत मिसाल था. इसमें नाक की जगह विशेष कैमरा और कानों की जगह दो माइक्रोफोन लगे थे. बोलने के लिए इसके मुंह में एक स्पीकर लगाया गया था. इस रोबोट की बौद्धिकता दरअसल, एक अत्याधुनिक कंप्यूटर से संचालित होती थी. इसके सिर और आंखों पर ‘टच सेंसर’ लगे होते थे. इन्हंे स्पर्श करते ही यह बोलता था. आइबो की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि आप जो पूछते थे, उसका जवाब यह खुद अपने विवेक से देता था. दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि यह एकदम ‘असली’ जैसा कुत्ता ही था. इससे भी ज्यादा दिलचस्प तथ्य यह थी कि आइबो को डिजाइन करने के पहले कई लोगों से कुत्तों के बारे में उनके अनुभव लिए गए थे. उसी के आधार पर आइबो का मूड भी बदलता रहता था. अगर इसकी बैटरी खत्म होने लगती तो यह उसे खुद ही चार्ज कर लेता था. वह भी खुद प्रयास करके.

कुछ सालों पहले एक और क्रांतिकारी रोबोट आया था-आईरोबी. इसमें ई-लर्निंग टेक्नोलाॅजी का इस्तेमाल किया गया था. बीपर के माध्यम से इसे इसके मालिक अपने पास बुला सकते थे. इसमें बिल्ट-अप-बंपर और सरफेस सेंसर लगा था, जिनकी वजह से यह खुला घूम सकता था. यह एलईडी, एलसीडी स्क्रीन और वाॅयस के जरिए इंसान की तरह की भावनाओं को व्यक्त करता था. आईरोबी खुशी, दुख, उदासी, डर, अप्रसन्नता जैसे भाव व्यक्त करता था. रिमोट कंट्रोलर के जरिए आप इसे निर्देश दे सकते थे. वायस रेकाॅगेशन के लिए इसमें इंजन लगे थे. इसे चार्ज होने में तीन घंटे का समय लगता था. लेकिन ये तमाम गतिविधियां प्रोग्राम्ड होती थी.

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हाल के सालों मंे जिन कई रोबोट्स की उपयोगिता सबसे ज्यादा साबित हुई वह हैं फ्लो रोबोट या नर्स रोबोट. यह बेहद पर्सनल किस्म का रोबोट है. जिसमें दो आन बोर्ड कंप्यूटर होते हैं. ये आपस में वायरलेस इंटरनेट लिंक के जरिये आपस में जुड़े होते हैं. इसकी आंखों में टच सेंसेटिव कलर डिसप्ले होता है और कैमरे लगे होते हैं. जिसकी वजह से यह लोगों को पहचान सकता है हाय, हैल्लो कर सकता है और वृद्ध तथा बीमार लोगों को समय से दवा लेने याद दिला सकता है. मगर यह सब पहले से प्रोग्राम्ड चिप की बदौलत होता है स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का इसमें विवेक नहीं है.

सुपर मानव की कोशिश को साकार करने में जुटे रोबोटों की श्रृंखला का एक और महत्वपूर्ण रोबोट है फरबी. यह रोबोट प्लास्टिक फर, वायर और कंप्यूटर चिपों का बना है और इसे टाइगर इलेक्ट्रोनिक्स ने डिजाइन किया है. इस रोबोट के दिमाग में कंप्यूटर लगा है. इसी से यह बोलता है और इसी कंप्यूटर से इसकी मोटर चलती है. इसमें इन्फ्रारेड सेंसर और एक फोटो इलेक्ट्रिक सेंसर लगा है, जिसकी बदौलत यह रोबोट में भी चल सकता है. सिर्फ चल नहीं काम भी कर सकता है. यह 12.7 सेंटीमीटर लम्बे खिलौने जैसा होता है और नकली आवाजें भी निकाल सकता है.

भारी भरकम दैत्यकारों की कल्पना वाले लोगों के बल की क्षमता से काम करने की कल्पना जिसे रोबोट के साथ जोड़ी गई है वह है त्मुश्क-4 यह रोबोट 1.2 मीटर लम्बा है और इसे पीएचएस नेटवर्क के माध्यम से संचालित किया जा सकता है. यह जोखिमभरी जगहों में भी काम कर सकता है. इसका वजन 99 किलो है. यह रोबोट एक कंप्यूटर और सेलफोन से संचालित होता है. ये दोनों इसमें लगे होते हैं. इसे रिमोट द्वारा संचालित भी किया जा सकता है.

इस तरह पिछले कुछ दशकों के अंदर अलग-अलग तरह के दर्जनों रोबोट विकसित किये गए हैं. ऐसे में यह असंभव सी बात नहीं लगती जो रोबोटिक्स के विशेषज्ञ केविन वारविक कहते हैं कि एक दिन इंसान घरों, खेतों, खलिहानों और कारखानों के जोखिम भरे काम कर रहा होगा और रोबोट आराम फरमा रहे होंगे.

ईवनिंग स्नैक्स में बनाएं सोया चीज मेकरोनी

दिन गर्मियों के हों या बरसात के बच्चों को शाम तक इतनी भूख लग ही आती है कि वे डिनर तक रुक नहीं पाते, इसलिए  इस समय उन्हें चाहिए होता है कुछ छोटा मोटा खाने को जिससे उनका पेट तो न भरे परन्तु भूख कुछ कम अवश्य हो जाये. कोरोना के इस काल में आज आवश्यकता है उन्हें पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ देने की ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहे. सोयाबीन में प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. आज हम आपको सोयाबीन के चंक्स (बड़ियों का चूरा) से ऐसी ही एक रेसिपी बनाना बता रहे हैं जिसमें प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, व विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. बच्चों को भी यह बहुत पसंद आती है-

कितने लोंगों के लिए           4

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

उबली मैकरोनी                   1 कप

सोया चंक्स                         1/2 कप

कटा प्याज                          1

कटी शिमला मिर्च                 1

कटी गाजर                           1

कटा टमाटर                          1

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कटी हरी मिर्च                        3

तेल                                 1 टीस्पून

हल्दी पाउडर                   1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर             1/4 टीस्पून

नमक                               स्वादानुसार

नीबू का रस                       1 टीस्पून

कटा हरा धनिया                  1 टीस्पून

चीज क्यूब                         2

विधि

बनाने से 10 मिनट पूर्व सोया चंक्स को गर्म पानी में भिगो दें. अब गर्म तेल में प्याज सॉते करके हरी मिर्च, हल्दी, नमक व सभी सब्जियां डाल कर ढक दें. सोया चंक्स का छलनी से पानी निथारकर दोनों हथेलियों के बीच में दबाकर पानी निचोड़ दें. 5 बाद जब सब्जियां नरम हो जायें तो मैकरोनी, सोया चंक्स और लाल मिर्च  डालकर पुनः 5 मिनट तक ढककर मंदी आंच पर पकाएं. नीबू का रस और हरा धनिया डालकर गर्म गर्म में ही चीज किसकर ढक दें. 5 मिनट बाद टोमेटो सॉस डालकर बच्चों को सर्व करें.

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लौकडाउन: बुआ के घर आखिर क्या हुआ अर्जुन के साथ?

लौकडाउन- भाग 1 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

2020का मार्च का महीना था. मौसम काफी सुहाना था. गुरुग्राम में अपने अपार्टमैंट के शानदार शयनकक्ष में तपेश आराम से सो रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बजी. नींद में ही जरा सी आंख खोल कर उस ने टाइम देखा. रात के 2 बज रहे थे.

‘‘इस वक्त किस का फोन आ गया यार,’’  वह बड़बड़ाया और हाथ बढ़ा कर साइड टेबल से फोन उठाया. बोला, ‘‘हैलो.’’

‘‘जी क्या आप तपेश बोल रहे हैं?’’

‘‘जी, तपेश बोल रहा हूं. आप कौन?’’

‘‘सर मैं मेदांता अस्पताल से बोल रहा हूं. क्या आप पीयूष को जानते हैं? आप का नंबर हमें उन के इमरजैंसी कौंटैक्ट से मिला है.’’

‘‘जी, पीयूष मेरा दोस्त है. क्या हुआ उस को?’’ बैड से उठते हुए तपेश घबरा कर बोला.

‘‘तपेशजी आप के दोस्त को हार्टअटैक हुआ है.’’

‘‘उफ… कैसा है वह?’’

‘‘वह अभी ठीक है. स्थिति कंट्रोल में है.’’

‘‘मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं, अभी आने की जरूरत नहीं है. हम ने उसे नींद का इंजैक्शन दिया है. वह सुबह से पहले नहीं उठेगा, तो आप सुबह 11 बजे आ जाना. उस वक्त तक डाक्टर भी आ जाएंगे. आप की उन से भी बात हो जाएगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर तपेश ने फोन रख दिया और बैड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर जा चुकी थी. उस का मन बेचैन हो गया था. बराबर में चैन से सोती हुई शालू को जगाने का भी उस का मन नहीं हुआ.

वह आंखें बंद कर के एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन नींद की जगह उस की आंखों में आ बसे थे 20 साल पुराने यूनिवर्सिटी के वे दिन जब तपेश रुड़की यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग करने गया था.

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निम्नमध्यम वर्गीय परिवार का बड़ा बेटा होने के नाते तपेश से उस के मातापिता को बहुत उम्मीदें थीं. उस का उद्देश्य अच्छी शिक्षा ले कर जल्द से जल्द अपने पैरों पर खड़ा हो कर अपने छोटे भाईबहनों की पढ़ाई में मातापिता की मदद करना था.

इसी योजना के तहत उस ने अपनेआप को इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस ऐग्जाम्स की तैयारियों में   झोंक दिया था. उस की कड़ी मेहनत का ही फल था कि पहली ट्राई में ही उस को अच्छी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल गया.

यूनिवर्सिटी में आ कर पहली बार उस का पाला उस तबके के छात्रों से पड़ा, जिन्हें कुदरत ने दौलत की नेमत से नवाजा था. उन छात्रों में से एक छात्र था पीयूष. लंबा कद, गोरा रंग और घुंघराले घने बालों से घिरा खूबसूरत चेहरा.

पीयूष जहां एक ओर आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था वहीं दूसरी ओर पढ़ाईलिखाई में भी अव्वल था. अमीर मातापिता और उन की सब से छोटी संतान पीयूष. इस नाते उसे दौलत का सुख और पूरे परिवार का अतिरिक्त प्यार हमेशा ही मिला था. हर प्रकार की कला के प्रति पारखी नजर भी उसे विरासत में मिली थी, जो उस के व्यक्तित्व को एक अलग ही निखार देती थी. अपनी तमाम खूबियों के कारण वह लड़कियों में भी खासा पौपुलर था. कालेज की सब से सुंदर और स्मार्ट लड़की रिया एक डिफैंस औफिसर की बेटी थी और कालेज के शुरू के दिनों से ही पीयूष को बहुत पसंद करती थी.

पीयूष को देख कर कभीकभी सामान्य रंगरूप वाले तपेश को ईर्ष्या होती.  उसे लगता जैसे कुदरत ने सारी नेमतें पीयूष की ही   झोली में डाल दी हैं. तपेश ने सुना था कि कुदरत ने हरेक के हिस्से में जिंदगी की सभी फील्ड्स जैसे रूप, दौलत, शिक्षा, परिवार आदि में कुल मिला कर 100 नंबर लिखे हैं.

इसलिए अगर जिंदगी की किसी एक फील्ड में किसी को 80 नंबर मिल गए. तो सम  झो बाकी फील्डस के लिए उस के पास बीस ही बचे हैं, लेकिन पीयूष को देख कर तपेश को यह फिलौसफी कन्विनसिंग नहीं लगती थी. उस के नंबर जिंदगी की किसी भी फील्ड में कटे हुए नहीं लगते थे, बल्कि हर फील्ड में पूरे सौ दिखते थे. शायद इसी को मुकम्मल जहान कहते होंगे, जो किसी को मिले न मिले पीयूष को तो मिला था.

‘‘पीयूष और तपेश में कहीं कोई समानता नहीं थी. लेकिन वह फिजिक्स का रूल है न ‘अप्पोजिट्स अट्रैक’ शायद इसीलिए इन दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी. पहले साल दोनों रूममेट्स थे, क्योंकि फर्स्ट ईयर में रूम शेयर करना होता था. उन्हीं दिनों में इन दोनों की दोस्ती कुछ ऐसी गहराई कि बाकी के 3 साल अगलबगल के कमरों में ही रहे.

तपेश, पीयूष की दोस्ती बड़ी अनोखी थी. एक अगर सोता रह गया तो मैस बंद होने के पहले दूसरा उस का खाना रूम पर पहुंचा देता. एक का प्रोजैक्ट अधूरा देख कर दूसरा उसे बिना कहे ही पूरा कर देता. अगर एक का मैथ स्ट्रौंग था तो दूसरे की ड्राइंग.

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दोनों एकदूसरे को सपोर्ट करते. अगर एक पढ़ाई में ढीला पड़ता तो दूसरा उसे पुश करता. कभी कोई   झगड़ा नहीं, कोई गलतफहमी नहीं. उन के सितारे कालेज के शुरू के दिनों से ही कुछ ऐसे अलाइन हुए थे कि आर्थिक, सामाजिक या रूपरंग, कोई भी असमानता कभी आई ही नहीं. वे दोनों अपने बाकी मित्रों के साथ भी समय बिताते, घूमतेफिरते लेकिन तपेश पीयूष की दोस्ती कुछ अलग ही थी. कभी दोनों एकदूसरे के साथ घंटों बैठे रहते और एक शब्द भी न बोलते तो कभी बातें खत्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. एक को दूसरे की कब जरूरत है यह कभी बताना नहीं पड़ता था.

एक बार गरमी की छुट्टियों में तपेश को पीयूष के घर जाने का अवसर मिला. पहली बार उस के परिवार से मिलने का मौका मिला था. उस के मातापिता और 2 बड़े भाइयों के साथ 2 दिन तक तपेश एक परिवारिक सदस्य की तरह रहा. खूब मस्ती की और पहली बार पता चला कि समाज के इतने खास लोगों का व्यवहार इतना सामान्य भी हो सकता है.

तपेश ने देखा कि पैसों के पंखों के बावजूद पीयूष के परिवार वालों के पांव जमीन पर ही टिके थे. उस की दोस्ती पीयूष के साथ क्यों फूलफल रही थी यह बात उसे अब सम  झ आई थी. वापस आने के बाद भी तपेश उस के परिवार के साथ खासकर उस की मां के साथ फोन पर जुड़ा रहा.

एक बार सेमैस्टर की फाइनल परीक्षा आने वाली थी. हर विद्यार्थी मस्ती भूल कर किताबों से चिपका हुआ था. तपेश पढ़तेपढ़ते पीयूष के कमरे से कोई किताब उठाने गया तो देखा कि वह बेहोश पड़ा था. माथा छूआ तो पता चला कि वह तो बुखार में तप रहा था.

तपेश ने बिना वक्त गंवाए, तुरंत कुछ और फ्रैंड्स को सहायता के लिए बुलाया और सब ने मिल कर उसे हौस्पिटल पहुचाया. कंपाउंडर ने जाते ही इंजैक्शन दिया और कहा, ‘‘अभी इसे ऐडमिट करना पड़ेगा. बुखार काफी ज्यादा है, इसलिए एक रात अंडर औब्जर्वेशन में रखना होगा. सुबह तक हर घंटे में बुखार चैक करना होगा. मैं इस का ध्यान रखूंगा और जरूरत पड़ने पर डाक्टर को भी बुला लूंगा. अब तुम लोग जा सकते हो.’’

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