छठी लाश को देख कर प्रशासन और गांव वाले सभी चकित थे. वह लाश बड़े मंदिर के पुजारी और मोहनलाल के सलाहकार गोपाल चतुर्वेदी की थी. वे नीची जाति से बात करना तो दूर, उन की छाया से भी परहेज करते थे. वे ही अनुबंध के बाद मोहनलाल के घर जाने से पहले सभी लड़कियों का शुद्धि हवन करवाते थे. उन्होंने ही पूजा को चुना था. ऐसा धार्मिक पुरुष इन लोगों के घर क्या करने आया था, इस बात ने सब को अचंभे में डाल दिया था. परंतु क्या वो लोग नहीं जानते थे कि दलाल भी रातों में ही काम करते हैं.
कल्पना और उस की बेटी पूजा घर से लापता थीं. पुलिस वाले एक स्वर में कल्पना को ही अपराधी मान रहे थे. प्रथम दृष्टया में हत्या विष दे कर की गई लगती थी.
काफी देर से कोने में खामोश बैठी रेखा अचानक ही बोल पड़ी थी, ‘‘कल्पना पिछली रात ही अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. इन सब को मैं ने मारा है.’’
रेखा की आवाज में लेश मात्र भी कंपन नहीं था. ‘‘ऐ लड़की, तुझे पता भी है क्या कह रही है, फांसी भी हो सकती है,’’ एक पुलिस वाली चिल्ला कर बोली.
रेखा ने एक गहरी सांस ले कर उत्तर दिया, ‘‘वैसे भी, बस सांस ले रही हूं. मैं एक मुर्दा ही हूं.’’
अपराध स्वीकार कर लेने के कारण रेखा को उसी पल गिरफ्तार कर लिया गया. कोर्ट में भी वह अपने बयान से नहीं पलटी थी. पूरे आत्मविश्वास के साथ जज की आंखों में आंखें डाल कर अपनी हर बात स्पष्ट रूप से सामने रखी थी. चाहे वह प्रथा की बात हो, चाहे वह कल्पना और पूजा को घर से भागने में सहयोग की बात हो या खुद उन सभी के खाने में विष मिलाने की बात हो.
उस का कहना था कि यदि रेखा भी कल्पना के साथ भाग जाती, तो परिवार वाले कुछ न कुछ कर के उन्हें ढूंढ़ ही लाते. इसी कारण से रेखा ने यहां रहने का निश्चय किया था. परंतु कल्पना भी यह नहीं जानती थी कि रेखा के मन में कब इस योजना ने जन्म ले लिया था.
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इस स्वीकारोक्ति के बाद रेखा को जेल हो गई थी. पिछले 4 सालों से रेखा इस जेल में बंद थी. अपने मधुर व्यवहार की बदौलत रेखा ने सभी का दिल जीत लिया था. आरती की पहल पर ही एक समाजसेवी संगठन के तत्त्वावधान में रेखा की पढ़ाई भी शुरू हो गई थी. जेल की सुपरिटैंडैंट एम के गुप्ता रेखा की स्थिति से अवगत थीं, उन्हें उस से लगाव भी हो गया था. उन्हीं की पहल पर रेखा को खाना बनाने वालों की सहायता में लगा दिया गया था.
इधर, रेखा अविचलित अपने जीवन में आगे बढ़ रही थी, उधर आरती निरंतर उस की रिहाई के प्रयत्न में लगी हुई थी. काफी दिनों के अथक परिश्रम के बाद आज रेखा के केस का फैसला आने वाला था. पिछली बार की सुनवाई में आरोप तय हो गए थे, परंतु आरती न जाने किनकिन से मिल कर रेखा की सजा कम कराने को प्रयत्नशील थीं. फैसले वाले दिन रेखा का जाना आवश्यक नहीं था, वह जाना भी नहीं चाहती थी.
रेखा मनयोग से रोटी बेलने में लगी हुई थी कि तभी लेडी कांस्टेबल ने उसे आरती के आने की सूचना दी थी, ‘‘रेखा, चल तुझ से मिलने तेरी आरती दीदी आई हैं.’’
प्रसन्न मुख के साथ रेखा उस लेडी कांस्टेबल के पीछे चल दी थी.
आरती के मुख पर स्याह बादलों को देख लिया था रेखा ने, परंतु जाहिर में कुछ बोली नहीं थी.
‘‘कैसी हो रेखा?’’
आरती की आवाज की पीड़ा को भी रेखा ने भांप लिया था.
‘‘दीदी, आप परेशान न हों. मैं खुश हूं.’’
‘‘हम्म.’’
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद आरती ने दोबारा बोलना शुरू किया, ‘‘कल्पना का पता चल गया है. वो और पूजा रमन के साथ भागी थीं.’’
‘‘दीदी, इतने दिनों में पहली अच्छी खबर सुनी है. वह रमन ही पूजा का बाप है, कल्पना का दूसरा ग्राहक.’’
रेखा के चेहरे पर मुसकान खिल गई थी. परंतु अपने केस के फैसले के बारे में उस की कोई जिज्ञासा न देख कर आरती ने खुद ही पूछ लिया था.‘‘रेखा, अपने केस के फैसले के बारे में नहीं पूछोगी?’’
‘‘वह क्या पूछना है?’’
‘‘तुम कल्पना को बुलाने क्यों नहीं देतीं. वह तो आने…’’
‘‘नहीं दीदी, आप ने मुझ से वादा किया था,’’ रेखा ने आरती का हाथ थाम लिया था.
‘‘हां, तभी तो जब आज कोर्ट में जज फैसला सुना रहा था, मैं चाह कर भी नहीं कह पाई कि उन सभी लोगों को जहर तुम ने नहीं, कल्पना ने दिया था.’’ इस बार आरती की आवाज में रोष स्पष्ट था. पिछले कुछ सालों में रेखा के साथ उस का एक खूबसूरत रिश्ता बन गया था, जो खून से नहीं दिल से जुड़ा हुआ था.
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‘‘नाराज न हों दीदी, अच्छा बताइए क्या फैसला आया है?’’ रेखा ने आरती के हाथों को सहलाते हुए कहा.
‘‘आजीवन कारावास,’’ इतना कह कर आरती ने रेखा के चेहरे की तरफ देखा. किंतु रेखा के चेहरे पर शांति और संतोष के भाव एकसाथ थे. आरती ने आगे कहा, ‘‘पर तू चिंता मत कर. हमारे पास बड़ी अदालत का विकल्प शेष है.’’
आरती जैसे रेखा को नहीं स्वयं को समझाने लगी थी. रेखा के चमकते मुख को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे अकस्मात ही सूर्य के ऊपर से बादलों का जमावड़ा हट गया हो और उस की समस्त किरणों का प्रकाश रेखा के चेहरे पर सिमट आया हो.
उस ने पूर्ण आत्मविश्वास के साथ आरती की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘दीदी, आप अब कहीं अपील नहीं करेंगी. मुझे यह फैसला स्वीकार है.’’
‘‘तू यह क्या…’’
‘‘दीदी, मेरे केस ने शायद देश के सामने इस कुप्रथा को उजागर कर दिया है. परंतु यह प्रथा तब तक नहीं थमेगी जब तक सरकार तक हमारी बात नहीं पहुंचेगी. धर्म और संस्कृति के ठेकेदार इस मार्ग में चुनौती बन कर खड़े हैं. आप से बस इतनी प्रार्थना है, यह लौ, जो जलाई है, बुझने मत देना.’
आरती उसे आश्चर्य से देख रही थी. ‘‘तुम शायद समझीं नहीं. अब तुम आजीवन बंदिनी ही रहोगी,’’ आरती की आवाज में कंपन था.
आरती की आवाज सुन कर दो पल को थम गई थी रेखा, फिर उस के होंठों पर एक मनमोहक मुसकान फैल गई थी. ‘‘मुझे भी ऐसा ही लगा था कि मैं आजीवन बंदिनी ही रह जाऊंगी. परंतु…’’
‘‘परंतु क्या?’’ आरती उस साहसी स्त्री को श्रद्धा के साथ देखते हुए बोली, ‘‘आज का दिन पावन है, आज बंदिनी की रिहाई की खबर आई है.’’
जीवन की मुसकान
मैं बच्चों के साथ उदयपुर (राजस्थान) गया था. वहां हमारा 3-4 दिनों का कार्यक्रम था. मगर पहले ही दिन जब हम घूमफिर कर वापस होटल पहुंचे ही थे कि मेरे भांजे संजय का फोन आया, ‘‘डैडी (मेरे जीजाजी) के हृदय की शल्य चिकित्सा होने वाली है, सो आप को कल ही दिल्ली पहुंचना है.’’
वापसी में हमें रात 12 बजे की बस की पिछली सीट मिली. सुबह घर पहुंच कर रिकशे वाले को पैसे देने के लिए ज्यों ही पौकेट में हाथ डाला, मेरे होश उड़ गए. पर्स गायब था. उलटेपांव उसी रिकशे से मैं वापस बसस्टैंड गया. देखा, बस अड्डे से बाहर निकल रही है. मैं झट बस पर चढ़ गया और पीछे की सीट पर नजर दौड़ाने लगा. इतने में कंडकटर ने पूछा, ‘‘साहब, क्या देख रहे हैं?’’
मैं ने बताया कि रात को इसी बस से हम उदयपुर से आए थे. अंतिम सीट थी. वहां मेरा पर्र्स गिर गया. इतना जान कर कंडक्टर ने अपनी जेब से निकाल कर पर्स मुझे पकड़ा दिया. पर्स पा कर मैं खुशी से झूम उठा. मैं ने कंडक्टर को बख्शिश देनी चाही, मगर उस ने लेने से मना कर दिया, कहा कि आप को अपना सामान मिल गया, इसी में उसे खुशी है.
उस ने कुछ भी लेने से मना कर दिया. मैं ने सोचा कि आज की इस लालची व स्वार्थभरी दुनिया में इतने ईमानदार लोग भी हैं. राजकुमार जैन
मेरे दोस्त के बेटे की जन्मदिन की पार्र्टी थी. मैं पूरे परिवार के साथ बर्थडे पार्टी में गया था.
हम सब खाना खा रहे थे. मेरे दोस्त ने शराब की भी व्यवस्था कर रखी थी. कुछ लोग शराब पी रहे थे और मुझे
भी पीने के लिए बारबार बोल रहे
थे. मेरे पास ही मेरा बेटा भी खाना खा रहा था.
बेटे ने कहा, ‘‘मेरे पापा शराब नहीं पीते है. पापा कहते हैं, शराब पीने से कैंसर और कई भयानक बीमारियां होती हैं, जो जानलेवा होती हैं. शराब पी कर लोग घर में बीवीबच्चों से गालीगलौज और मारपीट करते हैं, जो बुरी बात है. आप लोग भी शराब मत पीजिए, सेहत के लिए खराब है.’’
वहां बैठे सभी लोगों का सिर शर्म से झुक गया. जहां बेटे की बात दिल को छू गई वहीं इस बात की भी खुशी हुई कि आज का युवावर्ग शराब जैसी गंभीर समस्याओं के प्रति जागरूक है.
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