बापूजी से शाह हाउस वापस मांगेगा वनराज, क्या होगा अनुपमा का फैसला

सीरियल अनुपमा (Anupama) में आए दिन नए ट्विस्ट एंड टर्न्स आ रहे हैं. जहां काव्या धीरे-धीरे शाह हाउस में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं. तो वहीं वनराज के दिल में परिवार के खिलाफ जहर घोलने का काम भी कर रही है. इसी कारण आने वाले एपिसोड में वनराज अपना हिस्सा मांगता हुआ नजर आने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा ने लिया घर ना छोड़ने का फैसला

अब तक आपने देखा कि अनुपमा अपना सारा सामान पैक करके घर छोड़ने का फैसला लेती है. वहीं काव्या इस बात से बेहद खुश होती है. हालांकि पूरा परिवार उसे रोकने की कोशिश भी करता है. लेकिन वह नहीं सुनती. इसी बीच बापूजी, अनुपमा से कहते हैं कि जाने से पहले तुम मुझे बता दो कि पाखी जब वापस आएगी तो उसे क्या जवाब देना है, जिसे सुनकर अनुपमा काफी इमोशनल हो जाती है और अपना घर छोड़ने का फैसला बदल देती है.

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राखी को पता चलता है काव्या का सच

समर और वनराज की लड़ाई के बीच राखी को काव्या पर शक होता है. हालांकि अनुपमा के घर छोड़ने की बात पर राखी को पूरा यकीन हो जाता है कि काव्या मोलेस्टेशन का ड्रामा कर रही है. वहीं इस बात को लेकर वह अनुपमा को आगाह करने की कोशिश करती हुई भी नजर आती है. साथ ही अब वह काव्या पर पूरी नजर रखते हुए नजर आएगी.

प्रौपर्टी अपने नाम करवाएगा वनराज

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां अनुपमा के डांस क्लास के 100 दिन पूरे होने पर घरवाले जश्न मनाते नजर आएंगे तो वहीं काव्या के कहने पर वनराज बापूजी से प्रौपर्टी अपने नाम करने की बात कहेगा. हालांकि देखना होगा कि क्या बापूजी दोबारा वनराज के नाम घर करेंगे या नहीं.

बता दें, शो में जल्द ही एक नई एंट्री होने वाली है, जिसका नाम अनुज होगी. वहीं इस नए किरदार के आने से अनुपमा की जिंदगी में नया मोड़ आएगा.

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सच्ची घटना से प्रेरित है एक्ट्रेस श्रिया पिलगांवकर की ‘हाथी मेरे साथी’, पढ़े खबर  

बचपन से अभिनय के क्षेत्र में काम करने की इच्छा रखने वाली अभिनेत्री श्रिया पिलगांवकर ने अपने कैरियर की शुरुआत मराठी फिल्म से की, जिसमे उनके काम को काफी सराहना मिली और बेस्ट न्यू कमर का अवार्ड भी मिला. फिल्मों के अलावा उन्होंने कई विज्ञापनों में भी काम किया है. अभिनय के अलावा श्रिया निर्माता, निर्देशक और स्टेज परफ़ॉर्मर भी है. हालाँकि वह अभिनेत्री सुप्रिया पिलगांवकर और सचिन पिलगांवकर की बेटी है, पर किसी फिल्म में काम करने का निर्णय वह खुद लेती है. फिल्म में काम की ड्यूरेशन भले ही कम हो, पर उसका महत्व फिल्म में अधिक होने पर उसे करना पसंद करती है, ताकि दर्शक श्रिया को याद रख सके. फिल्म ‘फैन’ में एक छोटी सी भूमिका से वह सबकी नजर में आई और आगे कई फिल्में की. अभी उनकी फिल्म हाथी मेरे साथी रिलीज पर है, जिसमें जंगल और उससे जुड़े वन्य जंतुओं की महत्व को दिखाने की कोशिश की गई है. विनम्र और हंसमुख श्रिया से बात हुई पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?

इस फिल्म में मैंने एक इमानदार रिपोर्टर की भूमिका निभाई है, जो किसी के दबाव में  आना नहीं चाहती, लेकिन उसे इस कहानी को किसी भी तरह से रिपोर्टिंग करना है, कैसे वह कर पाती है, उसे ही दिखाने की कोशिश की गयी है.

सवाल-क्या इसके लिए कुछ खास तैयारियां की है? तीन भाषाओँ में सेट पर एक दृश्य को शूट करना कितना कठिन रहा?

इस फिल्म को पहले तमिल फिर तेलगू और बाद में हिंदी में शूटिंग किया गया है, इसलिए हर भाषा में एक ही दृश्य को शूट करना कठिन रहा. दृश्य में एक जैसे भाव लाने के लिए तैयारी करनी पड़ी, लेकिन इसमें निर्देशक का बहुत बड़ा हाथ होता है, क्योंकि वह पूरी फिल्म को सामने से देख रहा होता है. भाषा मेरे लिए बहुत अधिक माइने नहीं रखती, क्योंकि मैं थिएटर आर्टिस्ट हूं और मुझे अलग-अलग भाषा में काम करना पसंद है. तैयारी भाषा को लेकर भी करनी पड़ी, क्योंकि मैंने 3 फिल्मों की शूटिंग की है, दृश्य वही थे, लेकिन भाषा अलग होने से शब्दों की बारीकियों को दृश्य में उतारना चुनौती होती है. मैं तमिल, तेलगू में पहली बार फिल्म कर रही हूं, इसलिए मैं बहुत उत्साहित थी और मज़ा भी आया.

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सवाल-आपकी फिल्म का शीर्षक हाथी मेरे साथी नाम से पहले भी फिल्म आ चुकी है, ये फिल्म उससे कितनी अलग है?

काफी अलग फिल्म है, इसमें हाथियों को अवैध तरीके से शिकार और मनुष्य का प्राणी जगत के साथ बोन्डिंग को दिखने की कोशिश की गयी है, जिसमें पर्यावरण के लिए कोई नहीं सोचता, पहाड़ और जंगलों को काटकर लोग विकास करने में जुटे है. ये कहानी आसाम के जादव मोलाई पायेंग पर आधारित एक सच्ची घटना से प्रेरित है, जिन्होंने एलिफेंट कोरिडोर को बचाने के लिए बहुत काम किये है और उन्हें ‘फारेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया कहा जाता है.

सवाल-हाथियों का अवैध शिकार सालों से होता आ रहा है, क्या आप इस दिशा में कुछ करने की इच्छा रखती है?

मुझे बचपन से ही हाथी पसंद है और मैं चाहती हूं कि जंगल के जानवरों को बचाने के लिए लोग जागरूक हो और उनके महत्व को समझे. विकास के नाम पर जंगल फटाफट काटे जा रहे है, जबकि हम सब जंगल और उसके प्राणी के साथ जुड़े हुए है. मुझे बहुत अधिक ख़राब लगता है, जब मैं हाथियों का अवैध शिकार करते हुए. जंगलो को काटकर बिल्डिंग बनाते हुए लोगों को कही देखती हूं.

सवाल-आप एक स्टेट लेबल की स्विमर, निर्देशक और अभिनेत्री है, किस काम में आपको सबसे अधिक ख़ुशी मिलती है?

अभिनय मेरी पहली पसंद है, लेकिन मैंने किसी नयी चीज को सीखना कभी नहीं छोड़ा है. शूटिंग के दौरान सेट पर मैं निर्देशन की बारीकियों को सीखती हूं, क्योंकि ये सब जानना जरुरी है, ताकि आगे चलकर मैं एक फिल्म का निर्देशन करूँ. अभी वो समय गया, जब कलाकार सिर्फ अभिनय ही करते थे, जबकि आज के आर्टिस्ट अभिनय के साथ-साथ नयी चीज को सीखना पसंद करते है.

सवाल-फिल्मों में कम दिखाई पड़ने की वजह क्या है?

मैंने कई प्रोजेक्ट किये है, जिसे कोविड की वजह से बाहर निकलने में समय लग रहा है. मैं जल्दबाजी में कोई काम नहीं उठाती, क्योंकि कई बार फिल्में बनकर डिब्बे में बंद रह जाती है, इसलिए सब देखकर फिर काम को चुनती हूं. मैं चाहती हूं कि जल्दी से मेरे काम बाहर आ जाय, जिससे दर्शक मेरा काम देख सकें. इस फिल्म को बाहर आने में दो साल लगे है. यही इस इंडस्ट्री की पहचान है, लेकिन जब फिल्म आती है , तो अपनी पहचान छोड़कर अवश्य जाती है.

सवाल-किस फिल्म ने आपकी जिंदगी बदल दी?

फिल्म ‘मिर्ज़ापुर के बाद मेरे काम को दर्शकों ने अधिक नोटिस किया और मेरे काम को सराहा गया. मिर्ज़ापुर मेरे कैरियर का टर्निंग पॉइंट रहा है.

सवाल-आपके पेरेंट्स इंडस्ट्री के सफल कलाकार है, क्या आपको कभी इसका प्रेशर रहा?

इसमें मैं इतना सोचती हूं कि मैं अपनी कैरियर ग्राफ को अच्छी तरह से अपने हिसाब से आगे ले जाऊं. मेरे वर्ताव और बातचीत को मैं हमेशा अच्छी रखूँ, क्योंकि ये चीज उनके लिए अधिक माइने रखती है. उन्होंने जो लेगेसी बनाई है, उसे मैं एक कलाकार के रूप में आगे ले जाने की कामना करती हूं. फिल्मों का सफल होना और असफल होना मेरे हाथ में नहीं होता, पर मैं एक अच्छा कलाकार और अच्छा नागरिक बनना चाहती हूं.

सवाल-क्या कभी काम को लेकर पेरेंट्स से चर्चा करती है?

पेरेंट्स ने हमेशा मुझे काम की आज़ादी दी है. मुझे जो पूछने की जरुरत है, वह पूछ लेती हूं, जबकि निर्णय मेरा ही होता है. असल में मुझे पता होना चाहिए कि मैं क्या करने जा रही हूं और इसमें गलतियाँ होने पर भी मुझे ही उसे ठीक करना है. पेरेंट्स मेरे साथ हमेशा गाइड करने के लिए होते है और वह मेरे लिए बहुत अधिक जरुरी है.

सवाल-कोविड की वजह से ओटीटी अधिक पोपुलर हो गया है, इससे कलाकारों को कितना फायदा हो रहा है?

अधिक छोटी-छोटी फिल्मे या वेब सीरीज कम बजट में बन रही है, जिससे काफी लोगों को काम मिल रहा है. स्टार सिस्टम अब करीब खत्म हो गया है. अब केवल एक या दो स्टार नहीं, अभिनय करने वाले सभी स्टार है. ये सही है कि थिएटर में जाकर बड़े पर्दे पर फिल्में देखने का मजा कुछ और ही होता है, लेकिन अभी कोरोना के समय सबको इसके निर्देश के अनुसार हॉल में जाने की जरुरत है.

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सवाल-कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान आपने क्या-क्या किया है?

वह समय सभी के लिए बहुत ही ख़राब था. मैं खुद को खुशनसीब मानती हूं कि मैं अपने परिवार के साथ थी, क्योंकि काम के दौरान हम सबको एक साथ रहने का समय नहीं मिलता था, जो उस दौरान मिला है. मुझे आगे क्या करना है, उसके बारें में सोची, सेहत का ध्यान रखा और मेरी डौगी जैक के साथ समय बिताया है. इसके अलावा पेंटिंग और रीडिंग भी की है. साथ ही एक सीरीज की शूटिंग की, जो ऑनलाइन रिलीज भी हो गयी.

Holi Special: घर पर ही बनाएं रेस्टोरेंट स्टाइल कर्ड मिंट चटनी

हरी चमकदार पत्तियों वाला पुदीना भोजन का मुख्य अंग तो नहीं है परन्तु इसकी चटनी जहां भोजन का स्वाद बढ़ा देती है वहीं इसकी खुशबू किसी भी खाद्य पदार्थ के स्वाद को दोगुना कर देती है. इसकी जड़ को घर में बड़ी ही आसानी से लगाया जा सकता है. कुछ ही समय में यह काफी फैल जाता है साथ ही इसे बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता भी नहीं होती. इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन सी, डी, और बी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

पाचन तंत्र और त्वचा संबंधी रोगों में पुदीने का सेवन काफी लाभदायक होता है. इसके नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है. बाजार में यह कैप्सूल और अर्क के रूप में भी मिलता है. इसकी पत्तियों को सुखाकर पाउडर बनाकर एयरटाइट जार में भरकर किसी भी सब्जी दाल में प्रयोग किया जा सकता है. रेस्टोरेंट में अक्सर स्टार्टर के साथ दही वाली मिंट चटनी सर्व की जाती है,जो खाने में बहुत स्वादिष्ट लगती है परन्तु घर पर वैसी गाढ़ी चटनी नहीं बन पाती. आज हम आपको बिल्कुल रेस्टोरेंट जैसी गाढ़ी और स्वादिष्ट चटनी बनाना बता रहे हैं-

कितने लोंगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 10 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

ताजा दही 500 ग्राम
ताजा पुदीना 1 कप
ताजा हरा धनिया 1 कप

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हरी मिर्च 4
अदरक 1 छोटी गांठ
नीबू का रस 1 टीस्पून
नमक 1/4 टीस्पून

विधि

दही को एक बड़ी छलनी में डालकर 3 से 4 घण्टे के लिए एक भगौने के ऊपर रख दें ताकि इसका पूरा पानी नीचे निकल जाए. अब इस हंग कर्ड को एक बाउल में निकाल लें. हरा धनिया, पुदीना, हरी मिर्च , नीबू का रस, अदरक और नमक को 1 टेबलस्पून पानी के साथ मिक्सी में दरदरा सा पीस लें. पिसे पोदीना के मिश्रण को पानी निकले दही में भली भाँति मिलायें. तैयार चटनी को किसी भी स्टार्टर के साथ सर्व करें.
नोट-सभी सामग्री को एक साथ मिक्सी में पीसने की गल्ती न करें वरना चटनी बहुत पतली हो जाएगी.
केवल पानी निकले ताजे दही का ही प्रयोग करें.

पुदीना और धनिया की मात्रा आप अपनी इच्छानुसार घटा बढ़ा सकतीं हैं.

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‘दुल्हन’ बनीं सारा अली खान, मनीष मल्होत्रा के लहंगा पहनकर गिराईं बिजलियां

बौलीवुड एक्ट्रेस सारा अली खान अक्सर सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. जहां फैंस उनकी लुक्स की तारीफें करते हैं तो वहीं हर कोई उनके सिंपल फैशन को अपनाने की ख्वाहिश रखता है. इसी बीच सारा अली खान ने एक फोटोशूट में ब्राइडल कलेक्शन से फैंस का दिल धड़का दिया है. दरअसल, बौलीवुड के फेमस फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने हाल ही में अपना नया ब्राइडल कलेक्शन ‘नूरानियत’ लॉन्च किया है, जिसमें ब्राइडल लुक में सारा अली खान जलवे बिखेरती नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं सारा अली खान के ब्राइडल कलेक्शन की झलक…

 सारा ने ब्लैक लहंगे में दिखाया जलवा

 

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मनीष मल्होत्रा के नए ब्राइडल कलेक्शन में सारा का ब्लैक बेस्ड लहंगे में जलवे बिखेरती नजर आ रही हैं. सारा के लहंगे को वलूमनस कट दिया गया है तो वहीं ब्लाउज में डीप प्लंजिंग कट से उनके लुक पर हौटनेस का तड़का लगाया गया है. लहंगे पर की गई गोल्डन, सिल्वर ऐंड ब्रॉन्ज कॉम्बिनेशन की कढ़ाई की गई है, जो उसे रॉयल लुक दे रही है.

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श्रग के साथ खूबसूरत है सारा का लुक

वेडिंग कलेक्शन में सारा ने ब्लैक कलर का एक और लहंगा पहना था, जिसके लहंगे पर हैवी वर्क किया गया था. वहीं इसके ब्लाउज को सिंपल रखा गया था. लेकिन इस लुक को दुपट्टे की बजाय श्रग के साथ पेयर किया गया था, जो की उनके लुक पर चांद लगा रहा था.

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मिरर वर्क में नजर आईं सारा अली खान

ब्लैक कलर के अलावा सारा लाइट पिंक कलर के लहंगे में भी नजर आईं, जिसमें वह किसी परी से कम नहीं लग रही थीं. मिरर वर्क की कारीगरी वाले इस लहंगे के साथ सारा अली खान ने मिरर पैटर्न वाला ब्लाउज कैरी किया था, जिसमें उनकी लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था.


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आओ, नरेगा नरेगा खेलें: मजदूरों ने जब खेला नेताओं और ठेकदारों संग खेल

आज देश में अगर हर जगह किसी चीज की चर्चा है तो वह नरेगा यानी नेशनल रूरल एंप्लायमेंट गारंटी ऐक्ट ही है. स्वाइन फ्लू व बर्ड फ्लू आदि तो बरसाती मेढक की तरह हैं जो कुछ समय के लिए टर्रटर्र करने के बाद इतिहास में उसी तरह विलीन हो जाते हैं जैसे भारत का किसी भी ओलिंपिक खेलों में प्रदर्शन विलीन हो जाता है. इतिहास को बदलने की शुरुआत जरूर निशानेबाज अभिनव बिंद्रा व मुक्केबाज बिजेंद्र कुमार ने की, नहीं तो हमारा ओलिंपिक में पदक के मामले में निल का स्वर्णिम इतिहास रहा है.

हां, ओलिंपिक खेलों में हमारा दल जरूर सदलबल रहा है. यानी अगर 50 खिलाड़ी गए तो अधिकारी 49 कभी नहीं रहे, 50 को तो पार कर ही जाते थे. आखिर हर खिलाड़ी के पीछे एक अधिकारी तो होना चाहिए न. उसे असफल होने पर धक्का लगाने के प्रयोजन से. एक कहावत है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है. हमारे यहां हर असफल खिलाड़ी के आगे एक अधिकारी होता है.

वैसे हम अपने राष्ट्रीय खेल हाकी में फिसड्डी हो गए हैं तो अब सभी के प्रिय खेल ‘नरेगानरेगा’ को राष्ट्रीय खेल घोषित कर दिया जाए. वैसे अघोषित रूप से यह राष्ट्रीय क्या अंतर्राष्ट्रीय खेल हो गया है क्योंकि कई अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ नरेगा की समस्याओं, उलझनों की आग में अपनी रोटी सेंक रहे हैं.

कहां नरेगा, कहां खेल. आप को यह अटपटा लग रहा होगा. पर सच है, बहुत से लोगों के लिए नरेगा ने एक नए खेल के रूप में जन्म लिया है. नरेगा में सरकार ने कानूनी रूप से मजदूर को, जो अपने ही क्षेत्र में काम करना चाहता है, 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी है. नहीं तो सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता है. नरेगा के वास्तविक हकदार वे मजदूर हैं जिन की रोजीरोटी की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है और वे शारीरिक श्रम करने को मजबूर व सहमत हैं.

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लगता है, मजदूर शब्द की उत्पत्ति मजा+दूर से हुई है. केवल कमरतोड़ मेहनत का काम करने के लिए जहां मजा नाम की कोई चीज नहीं है अर्थात मजा बहुत दूर है इसलिए नाम है मजदूर.

नरेगा में सरकार ने मजा का बंदोबस्त किया है. मसलन, कार्यस्थल पर दवाइयों की किट, बच्चों के लिए झूलाघर, पानी की व्यवस्था, पूरी न्यूनतम मजदूरी लेकिन मजदूर शब्द का कैरेक्टर ही ऐसा है कि मजा उस से दूर हो जाता है व उसे सजा के रूप में कम मजदूरी, विलंब से मजदूरी मिलती है.

नरेगा का मजा परदे के पीछे रह कर मजदूरों का भला चाहने वालों को मिलता है. ये कौन लोग हैं? ये हैं मजदूर का जाबकार्ड बनाने, बैंक में खाते खुलवाने के मददगार. नरेगा की रेलमपेल में अपनी मशीनरूपी रेल झोंक देने वाले तसले, फावड़े, कुदाल बेचने वाले व्यापारी, मुद्रण के अलगअलग कार्य करने वाले, कुकुरमुत्तों की तरह पैदा हो गए कंसल्टेंट, एन.जी.ओ. आदि, नरेगा का मजा ले रहे हैं और बेचारे मजदूर सजा पा रहे हैं.

नरेगा का नाम मरेगा कर देना चाहिए क्योंकि इस में बाकी सबकुछ दिन दूना रात चौगुना बढ़ेगा पर मजदूर तो मरेगा ही. मशीनबाज ठेकेदार मशीन से करवा कर मजदूर को आधी मजदूरी काम घर बैठे दे कर जाबकार्ड पर उस का अंगूठा लगवा लेता है. जाबकार्ड भी ठेकेदार या ठेकेदाररूपी सरपंच के पास ही रहता है. यहां एक बात समझ में नहीं आई कि जो जिले शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य कई साल पहले प्राप्त कर चुके हैं वहां भी नरेगा में मजदूर अंगूठा ही लगा रहा है यानी उस समय साक्षरता अभियान चलाने वालों ने सरकार को ठेंगा ही (अंगूठा) दिखाया है.

जितना काम नहीं हो रहा उस से ज्यादा उस का हिसाब रखने के लिए मस्टररोल, रजिस्टर छप रहे हैं. नरेगा मजदूरों के अलावा सब के लिए है. विपक्षी दल के विधायक के लिए भी है. उसे विधानसभा में उठाने के लिए कोई विषय नहीं मिलता तो नरेगा से संबंधित कुछ भी पूछ लेता है. मसलन, फलां जिले के रेलवे स्टेशन में मजदूर गठरी लिए क्यों बड़ी संख्या में खड़े रहते हैं जब नरेगा उन के जिले में चल रही है.

अब उन्हें कौन समझाए कि पेट को दो वक्त की रोटी के हिसाब से देखें तो साल में 730 बार खाना चाहिए. नरेगा अधिक से अधिक केवल 200 बार रोटी देता है. वे तो गले तक भर पेट ले कर प्रश्न पूछते हैं. इसलिए मजदूर का 265 दिन का पिचका पेट उन्हें नहीं दिखता है. ये ऐसे ही प्रश्न हैं जैसे फ्रांस की राजकुमारी ने फ्रांसीसी क्रांति के समय अपनी जनता के बारे में कहा कि रोटी नहीं है तो ये केक क्यों नहीं खाते.

सरकाररूपी सिस्टम मजबूरी में नरेगा में सुधार के समयसमय पर फैसले लेता है पर जैसे पुलिस व चोरों के बीच चूहेबिल्ली का खेल चलता है, वैसे ही नरेगा के परदे के पीछे के हितलाभी ‘तू डालडाल मैं पातपात’ की तर्ज पर सरकारी नियंत्रण की तोड़ निकाल लेते हैं. लगे हाथ एकदो उदाहरण भी देख लें.

सरकार ने सोचा कि जाबकार्ड सभी को दे दो, चाहे मजदूर आए या न आए क्योंकि जाबकार्ड बनाने में मजदूर को पासपोर्ट बनवाने से ज्यादा चक्कर सचिव, सरपंच और पटवारी आदि के लगाने पड़ेंगे तो सयानों ने ठेकेदारों को अपने जाबकार्ड किराए पर दे दिए. मजदूर भी बड़े सरकारी ठेकेदार की तरह अपने विशेषाधिकार को पेटी कांट्रैक्टर को हस्तांतरित करने की तर्ज पर काम कर रहा है. चलो, नरेगा ने एक हथियार तो मजबूर, अरे नहीं मजदूर को दिया कि वह बिना हाड़मांस का शरीर हिलाए कुछ रुपए पा जाए.

सरकार ने मजदूर के खाते खोलना अनिवार्य कर दिया और भुगतान खाते से होगा. यह भी जरूरी कर दिया तो कई मजदूर ठेकेदारों के चंगुल में आ गए. बिना काम किए निश्चित प्रतिशत ठेकेदार से ले कर बैंक से निकाली राशि उसे सौंप दी.

सरकारी या प्राइवेट क्षेत्र में जैसे कोई बहुत बड़ी पूंजी वाला कारखाना खुल जाता है वैसे ही नरेगा रूपी विशाल उद्योग खुलने से कई उद्यमियों को घरबैठे उद्योग स्थापित करने का अवसर मिला है. ये कौनकौन हैं नीचे क्रमबद्ध सुशोभित हैं:

पत्रकारिता के व्यापारियों ने ‘नरेगा टाइम्स’ या ‘नरेगा पन्ना’ नाम से नियमित अखबार शुरू कर दिया है.

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मुद्रणालयों ने अनापशनाप रजिस्टरों, फार्मों के स्कोप को देखते हुए, अपनी पिं्रटिंग इकाइयों का विस्तार कर लिया. कई बीमार प्रिंटिंग इकाइयां जो बी.आई.एफ.आर. के पास थीं, वापस क्रियाशील घोषित हो गईं. बी.आई.एफ.आर. वह संस्थान है जो बीमार औद्योगिक इकाइयों को पुनर्जीवित करने का कार्य करता है.

अचानक कई शहरों में जे.सी.बी. यानी कि नईनई एजेंसियां खुल गईं. उन्हें देख कर ऐसा लगा मानो छोटे शहर भी औद्योगिक क्रांति की ओर दौड़ पड़े हैं, क्योंकि अब बैंक भी जे.सी.बी. को उसी तरह फाइनेंस करने लगे हैं जैसे ट्रैक्टर आदि को करते थे. जे.सी.बी. कंपनी के हेडआफिस में भी आपातकालीन बैठक बुला कर नरेगा के कारण बिक्री लक्ष्य 500 नग कर दिया गया है. इस बैठक में यह बात भी निकल कर आई कि धारा 40 के मामलों की बाढ़ आ गई है. यदि पंचायत में काम करने वाले मजदूर नहीं हैं तो भी प्रशासन सरपंच को दोषी मान कर नोटिस दे देता है. अत: वकीलों को भी भरपूर रोजगार मिल रहा है. जय हो नरेगा. जो सब का ध्यान रखता है. अल्टीमेटली काम मशीनों से होंगे क्योंकि उतने मजदूर हैं नहीं जितने सरकार सोचती है और जो हैं भी, उन में से ज्यादातर में ‘जितना काम उतना दाम’ के सिद्धांत व कमतर होती शारीरिक क्षमता के कारण काम करने की इच्छा नहीं है.

नरेगा जिलों में पोस्ंिटग का वैसा ही क्रेज है, जैसा गुजरात, जहां दारू निषेध है, के अवैध शराब की ज्यादा बिक्री वाले क्षेत्र के थानों में पोस्ंिटग के लिए होता है. स्थानांतरण कार्य का स्कोप बढ़ गया है. नरेगा जिले के मुख्य अधिकारी को आंखें दिखाओ तो वह वशीकरण मंत्र के प्रभाव की तरह जो बोला जाए वही करने लगता है. आखिर वह भी सिविल सेवा में, देश सेवा के लिए ही तो आया है, नहींनहीं, सात पुश्तों की सेवा के लिए आया है.

दोपहिया, चार पहिया वाहन वालों, रिएल एस्टेट वालों की पौबारह है. सरपंच, अधिकारी, शिकायतकर्ता, एन.जी.ओ. और पत्रकार सभी नरेगा के कारण वाहन, जमीनजायदाद खरीद रहे हैं. नरेगा के कारण आटो मोबाइल में एक्साइज ड्यूटी कम होने के बावजूद डीलरों ने रेट बढ़ा दिए हैं. फिर भी बिक्री का ग्राफ बढ़ गया है.

कलक्टर, जिला पंचायत कार्यालय में स्थापना का कार्य देख रहे बाबू का कार्य बढ़ गया है क्योंकि नरेगा के कारण रोज किसी न किसी अधिकारी की जांच चल रही है. अधिकारी व कर्मचारी प्रभावशील व्यक्ति की मशीन को काम नहीं देते हैं तो वे शिकायत करवा देते हैं, मजिस्ट्रेट के न्यायालय में काम बढ़ गया है.

नरेगा क्रिटिक का एक नया क्षेत्र रोजगार के लिए खुल गया है. एक कंसल्टेंसी फर्म ने तो बाकायदा विज्ञापन दे कर ऐसे व्यक्तियों की सेवाएं लेनी चाही हैं. नरेगा ने सरपंच की औकात बढ़ा दी है. एक छोटे से क्षेत्र का जनप्रतिनिधि होने के कारण तथा नरेगा में लाखोंकरोड़ों का आबंटन मिलने से बहुत बड़े क्षेत्र के जनप्रतिनिधि, विधायक व सांसद को उस ने आंखें दिखाना शुरू कर दिया है. अब वह विधायक व सांसद से अपने यहां की पंचायत में कार्य करवाने की मिन्नत नहीं करता बल्कि कभीकभी वह यह इच्छा पाल लेता है कि विधायक व सांसद उस से निवेदन की भाषा में कोई कार्य स्वीकृत करने की बोलें तो वह कार्य स्वीकृत उसी अंदाज में कर देगा जिस में पहले वे लोग किया करते थे, क्योंकि हर सांसद व विधायक के निर्वाचन क्षेत्र में सैकड़ों पंचायतें हैं. इस तरह से देखें तो प्रति ग्राम पंचायत उन के फंड का पैसा मामूली सा रह जाता है.

न्यायपालिका की सक्रियता से नरेगा भी नहीं बचा है. न्यायालयों में ट्रायल चलतेचलते ही कई लोग वास्तविक सजा से ज्यादा समय जेल में गुजार लेते हैं फिर भी मामले का फैसला नहीं होता है. उस पर न्यायपालिका की दिलेरी देखिए कि नरेगा के हर मामले में सक्रिय है.

नरेगा होने से सिविल सोसायटी बहुत सिविल हो गई है. क्योंकि हर स्तर पर कमी निकालने का हथियार नरेगा ने इन को दे दिया है. दुनिया में और भी मुद्दे हैं जिन्हें ये पकड़ना नहीं चाहते, सब नरेगा के पीछे चल पड़े हैं क्योंकि मजदूरों के साथ इन की भी रोजीरोटी इसी से चल रही है. यह योजना कैसे प्रभावी ढंग से चले इस के उलट कैसे उस में पोल बनी रहे? लोग परेशान हों? इस बात में ये ज्यादा रुचि रखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे सरकारी अस्पताल का डाक्टर इस कोशिश में रहता है कि अस्पताल के कुप्रबंधन में उस का योगदान कम न रहे जिस से उस के क्लीनिक में सरकारी अस्पताल के मरीज आते रहें व उस के घर का प्रबंधन सुचारु रहे.

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एन.जी.ओ. में से कई ऐसी संस्था थीं जो लाखों का घपला कर माल डकार गईं और दफ्तर बंद कर गायब हो गईं. अब फिर नए नाम से नया संगठन बना कर नरेगा के घपलों में अपने घपले को फिर अंजाम देने की जुगत में हाथपैर चला रहे हैं. स्विस बैंक के अधिकारियों को अब ज्यादा घमंड नहीं करना चाहिए. उन के यहां जितना काला धन जमा है उस से ज्यादा नरेगा का बजट हो जाएगा.

अरे, मेरे देश के पत्रकारो, एन.जी.ओ., ठेकेदारो, अधिकारियो, छात्रो, एक्टिविस्टो, शिक्षाविदो और बहुत से दूसरे भी, तुम नरेगा को प्रभावी बनाने में अपना सकारात्मक योगदान दो तो वह दिन दूर नहीं कि देश का मजदूर भी नैनो से नरेगा में काम करने आएगा तो सोने की चिडि़या का संबोधन पुन: देश को मिलना शुरू हो जाएगा.

बदन संवारें कपड़े नहीं

टीवी एक्ट्रेस शिखा सिंह आज के समय में टीवी का जानामाना नाम बन चुकीं हैं. वैसे भले ही इन्होंने अब तक किसी भी शो में लीड किरदार न निभाया हो फिर भी टीवी जगत में वह काफी लोकप्रिय है खास कर ज़ी टीवी के शो कुमकुम भाग्य में आलिया के किरदार से इन्हे पहचान मिली है.

हाल ही में उन्होंने कहा कि उन्हें हर चीज महंगी ही अच्छी लगती है. खास कर अपने कपड़ों के लिए वह सब से ज़्यादा पैसे खर्च करती हैं. सामान्यतः  शिखा के एक ड्रेस की कीमत 80 हजार से 1 लाख तक होती है क्योंकि वह अपने ड्रेस विदेश से मंगवाती है और इस तरह के महंगे ड्रेस पहनना ही उन को पसंद आता है. उसकी कीमत कुछ भी क्यों न हो.

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बौलीवुड एक्ट्रेस करीना की बात करें तो सब को पता है कि वह पार्टियों में लाखों की ड्रेस पहन कर पहुंचती हैं. लेकिन क्या आपने सुना है कि वह जिम में भी 45 हजार तक की टीशर्ट पहन कर जा चुकी हैं.

महंगे कपड़ों से सुर्खियां बटोरने की चाह

करीब 2 साल पूर्व ‘द मैन विद द गोल्डन शर्ट’ के नाम से मशहूर महाराष्ट्र के मशहूर व्यवसायी और राजनेता पंकज पारेख का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल हो गया. उन्होंने सबसे महंगी सोने की शर्ट रखने के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकार्ड बनाने का दावा किया जिसकी मौजूदा कीमत 1.3 करोड़ रूपये से ज्यादा आंकी गयी है.

नासिक से करीब 70 किलोमीटर दूर येओला के 47 साल के पंकज पारेख ने 2014 में अपने 45 वें जन्मदिन पर यह विशेष शर्ट बनवायी थी और इस के दो साल बाद 98,35,099 रूपये की चार किलोग्राम सोने की शर्ट ने सब से महंगी शर्ट होने का रिकौर्ड बनाया. पंकज पारेख ने यह शर्ट एक अगस्त 2014 को खरीदी थी. शुद्ध सोने से बनी इस शर्ट के भीतरी हिस्से में कपड़े की बेहद महीन परत है. पारेख को जिस शर्ट के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड मिला है उस का वजन 4.10 किलोग्राम है. इसे तैयार करने के लिए 20 कारीगरों ने दो महीनों में 3200 घंटों तक काम किया. इस शर्ट को तैयार करने के लिए 18-22 कैरेट सोने का इस्तेमाल हुआ.

पारेख जब भी अपने सोने के परिधान के साथ येयोला की सड़कों पर निकते हैं उन के साथ एक लाइसेंसी रिवाल्वर होता है. पारेख स्वीकार करते हैं कि येयोला के पुरुष व महिलाएं उन्हें घूरते हैं इसलिए वह प्राइवेट बॉडीगार्ड ले कर चलते हैं.

पारेख का परिवार उनके इस शौक को गैरजरूरी जुनून करार देता है. उन के रिश्तेदार भी उन्हें झक्की करार देते हैं.

अजब गजब फैशन पर लाखों का खर्च

हाल ही में प्रियंका का एक लुक खासा चर्चा में रहा। मेट गाला में प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण काफी अतरंगी बन कर पहुंचीं।

प्रियंका ने क्रिश्चियन डिओर की सिल्वर रंग की पंखनुमा ड्रेस पहनी थी. मेकअप थोड़ा अलग किस्म का था. अपनी भंवों को प्रियंका ने सफ़ेद कर रखा था. बाल भी ऐसे लग रहे थे जैसे अभीअभी उन्हें इलेक्ट्रिक शॉक लगा हो. प्रियंका अपनी इस ड्रेस और मेकअप के लिए काफ़ी ट्रोल भी हुई. इंटरनेट पर उन के मीम चले. वहीं दूसरी तरफ़ दीपिका ने ज़ैक पोसेन का गुलाबी गाउन पहना था.

मेट गाला को फैशन का वर्ल्डकप फाइनल समझ लीजिए. मेट गाला हर साल मई के पहले मंडे को होता है. न्यूयॉर्क में एक जगह है, मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ़ आर्ट नाम की. मेट नाम इसी से निकला है. अंग्रेज़ी में गाला का मतलब हुआ पर्व. दोनों शब्दों को जोड़ कर बनता है मेट गाला. इस इवेंट का मकसद फंडरेजिंग है. यह आर्ट म्यूजियम अपने फैशन कलेक्शन के लिए पैसे जोड़ता है. हर साल यह एक थीम तय करता है. सब इसी थीम के मुताबिक कपड़े पहन कर आते हैं. इस साल की थीम थी ,‘कैंप: नोट्स ऑन फैशन.’ मेट गाला की शुरुआत साल 1946 में हुई थी. इस को एक तरह से ‘फैशन पार्टी ऑफ़ द इयर’ समझा जाता है.

दुनियाभर के तुर्रमखान जिन्हें फैशन में दिलचस्पी होती है वे मेट गाला में हिस्सा लेते हैं. ज्यादातर म्यूजिक इंडस्ट्री के सितारे, फिल्मों के जानेमाने चेहरे, फैशन की दुनिया के बड़े नाम या किसी भी वजह से फेमस लोग इस इवेंट में शामिल होते हैं. हर साल मेहमानों की लिस्ट बदलती है.

मेट गाला में जो मेहमान आते हैं उन्हें एक टेबल ख़रीदनी पड़ती है. इस को एंट्री टिकट समझ लीजिए. इस की कीमत एक करोड़ से ऊपर है. यहां आने के लिए आप को डिज़ाइनर गाउन, गहने वगैरह भी खरीदने ही पड़ते हैं. हालांकि टिकट एंट्री वाला रूल सेलिब्रिटीज़ पर लागू नहीं होता. उन्हें तो उल्टा यहां आने के पैसे दिए जाते हैं. यहाँ सब बड़ेबड़े डिज़ाइनर्स के रंगबिरंगे फॅशनेबल और महंगे से महंगए कपड़े पहन कर अपना जलवा दिखाते हैं.

कान्स फिल्म फेस्टिवल 2019 के लिए दीपिका की पहनी हुई हर ड्रेस, ज्वैलरी और फुटवेयर की कीमत लाखों में रही. दीपिका पादुकोण ने अपने दूसरे दिन के रेड कार्पेट वॉक के लिए लाइम ग्रीन कलर ट्यूल गाउन पहना था. उन का यह गाउन गियमबटिस्टा वाली (Giambattista Valli ) ने डिजाइन किया था. इस लुक में उन्होंने गाउन के साथ ही सिर पर एक गुलाबी पगड़ी पहनी थी। अपने इस लुक को पूरा करने के लिए उन्होंने एक लग्जरी हेयरबैंड भी पहना हुआ था. अगर बात करें इस छोटे से हेयरबैंड की तो उस की अकेले की कीमत ही 585 पाउंड्स बताई जा रही है. इस कीमत को अगर भारतीय करेंसी में बदल कर देखा जाए तो यह हेयरबैंड लगभग 52,338 रुपए का है. इतनी कीमत में एक शानदार बाइक खरीदी जा सकती है. दीपिका के लिए यह हेयर बैंड एमिली बक्सेंडले (Emily Baxendale) ने डिजाइन की थी.

कुछ दिनों पहले महिला दिवस के अवसर पर प्रियंका सोहो हाउस पार्टी में पहुंची थी. इस दौरान वह ब्राउन कलर के बेहद ड्रेस में नजर आईं. उन्‍होंने अपने लुक को कंप्‍लीट करने के लिए बूट्स पहने थे और मैचिंग बैग कैरी किया था. उन के इस लुक की तसवीरें जम कर वायरल हुई. सोशल मीडिया पर कुछ लोगों को उन का यह लुक पसंद आया और कुछ ने  सोशल मीडिया पर उन की ड्रेस का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. उन के इस लुक को किसी ने ‘कोकाकोला’ कहा तो किसी ने ‘चिड़िया’ बताया।

प्रियंका के इस ड्रेस की कीमत जान कर आप हैरान रह जायेंगे. प्रियंका की यह ड्रेस एट्रो (ETRO ) ब्रांड की थी जिस की कीमत $2,750 यानी तकरीबन 1,90,155 रुपये है.

एक्टर रणवीर सिंह अक्सर अतरंगी पोशाके पहनने के कारण सुर्खियों में रहते हैं. हाल ही में रणवीर ने एक ऐसी तस्वीर इंस्टाग्राम पर अपलोड कर दी है जिस की वजह से वह सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगे। फोटो में रणवीर फर वाली जैकेट पहने नजर आ रहे हैं जिस पर तरहतरह के स्टिकर्स लगे हुए हैं. व्हाइट पैंट, व्हाइट स्वेटर और कलरफुल सनग्लासेज लगाए रणवीर बड़े डिफरेंट लग रहे थे. सोशल मीडिया पर यूजर्स को उन का यह लुक रास नहीं आया.

लोगों ने रणवीर को कार्टून किरदार सुविलियन से कंपेयर किया . रणवीर के इस लुक का लोगों ने जम कर मजाक उड़ाया जब कि उन की पत्नी दीपिका पादुकोण को वह इस जैकेट में बहुत अच्छे लगे.

बदन पर खर्च करें रूपए कपड़ों पर नहीं

इस तरह के फैशन और परिधानों को देख कर क्या आप के दिल में यह ख्याल नहीं आता कि सजीधजी कोई दुकान तो नहीं चली आ रही है? आप कपड़े खरीदती हैं अपने शरीर को खूबसूरत दिखाने के लिए मगर जब कपड़ों की कीमत लाखों में हो तो क्या यह नहीं लगता कि हम उस दुकान या डिजाइनर का प्रचार करने वाले कैनवस पेपर बन गए हैं.

वस्तुत यदि आप बेहतर दिखना चाहती हैं तो अपने शरीर पर काम कीजिए। रुपए खर्च करने हैं तो अपने शारीरिक दोषों को दूर करने पर खर्च कीजिए। आकर्षक दिखना है तो फिटनेस कायम कर अपने शरीर को सुडौल और आकर्षक बनाइये. मगर इस तरह की बनावटी खूबसूरती का जामा पहन कर आप किसे भ्रमित कर रही हैं ?

महिलाएं खासतौर पर अपनी सैलरी और कमाई का सब से बड़ा हिस्सा अपने मेकअप के सामानो और परिधानों पर खर्च करती है. घंटों का समय लगा कर कोई ड्रेस खरीदती है. उस ड्रेस के लिए बड़ी से बड़ी कीमत अदा करती है। बारबार टेलर या डिज़ाइनर के पास जा कर उस की फिटिंग सही कराती हैं. फिर उस ड्रेस को और आकर्षक बनाने के लिए उस से मैच करते एक्सेसरीज और ज्वेलरीज खरीदती हैं. इस काम में भी घंटों का समय लगता है। तब जा कर उन की एक ड्रेस तैयार होती है.

पर क्या आप ने यह सोचा है कि यदि इतना समय और इतने रुपए आप ने अपने बदन को खूबसूरत और हैल्दी बनाने में खर्च किए होते, अपने चेहरे के नेचुरल आकर्षण को बढ़ाने में रूपए लगाए होते तो नतीजा कितना अलग निकलता। तब आप की खूबसूरती बनावटी और अस्थाई नहीं होती। आप अंदर से खूबसूरत महसूस करती। आप का रियल कॉन्फिडेंस बढ़ता।

फैशन के नाम पर कुछ भी पहन लेना आप के व्यक्तित्व की गरिमा को घटाता है. अपने बदन पर रूपए खर्च कर आप किसी भी उम्र में खूबसूरत दिख सकती हैं. आप 15 की हों , 25 की या 50 की. आज कल नएनए तकनीक उपलब्ध हैं. उन का प्रयोग करें. जिस तरह कपड़ों और मेकअप के फील्ड में लेटेस्ट तकनीक हावी हो रही हैं वैसे ही हेल्थ और कोस्मैटिक सर्जरी के फील्ड में भी हर समस्या का निदान है. आप को फिटनेस ट्रेनर के पास जाना पड़े , कॉस्मेटिक सर्जन के पास या फिर डॉक्टर्स के पास मगर अपने बदन के आकर्षण और सेहत को इग्नोर न करें. क्यों कि वक्त हाथ से निकल गया तो फैशन के जलवे भी आप को खूबसूरत नहीं दिखा पायेगा। जब कि बदन पर खर्च कर आप साधारण से साधारण कपड़ों में भी सब से बढ़ कर दिखेंगी.

Edited by Rosy

जानें कौन सा चौपिंग बोर्ड है आपके किचन के लिए बेस्ट

आप अपने किचन के लिए एक चौपिंग बोर्ड खरीदना चाहती हैं. लेकिन बाजार में सबसे अच्छे और आपके चाकुओं के लिए सबसे कम नुककसानदेह चौपिंग बोर्ड खरीदने के लिए मिलने वाली तरह-तरह की सलाह आपको परेशानी में डाल सकती है. ऐसे में ये टिप्स आपको अच्छा चौपिंग बोर्ड चुनने में मदद कर सकते हैं.

1. प्लास्टिक चौपिंग बोर्ड

पेशेवर शेफ अक्सर सबसे टिकाऊ और लंबे समय तक चलने वाला प्लास्टिक से बना हुआ कटिंग बोर्ड खरीदने की सलाह देते हैं. प्लास्टिक कटिंग बोर्ड के लिए सबसे अच्छा माना जाता है.

2. ऐसे करें प्लास्टिक चौपिंग बोर्ड की सफाई

एक चम्मच बेकिंग सोडा, नमक, और पानी के पेस्ट से बोर्ड को साफ करें. गर्म पानी से अच्छी तरह धोएं.

3. बांस के चौपिंग बोर्ड

बांस के बने हुए बोर्ड ईको-फ्रेंडली होते हैं. ये हल्के होते हैं और सख्त घास के होते हैं जो कि बार-बार उपयोग किया जा सकता है. वे लकड़ी के बोर्ड की तुलना में कम लिक्विड सोखते हैं और इस लकड़ी के बोर्ड के जैसे ही सैनिटरी माने जाते हैं. हालांकि इसमें दोष यह है कि बांस सख्त होता है जिससे कि चाकू खराब हो जाता है.

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4. सफाई

केवल साबुन के गर्म पानी से धोएं, और धीरे-धीरे मलें और तुरंत सूखाने के बाद तेल लगाएं.

5. लकड़ी की बनी चौपिंग बोर्ड

सुंदर दिखने के कारण लकड़ी सबसे ज्यादा उपयोग की जाती है. ये बोर्ड बार-बार उपयोग किेए जा सकते हैं जो कि मिलों की ऐसी लकड़ियों से बने हैं जिन्हें अन्यथा फेंक दिया जाता. एक भारी सौफ्टवुड बोर्ड चाकू के लिए भी अच्छा होता है जिससे वे अधिक समय तक तेज बने रहते हैं. अगर आपको एक अच्छा कटिंग बोर्ड मिलता है तो इसपर प्लास्टिक के बोर्ड के विपरीत आसानी से निशान नहीं पड़ेंगे.

6. सफाई

काटने के बोर्ड पर नमक छिड़कें और आधे नींबू से सतह को अच्छी तरह से रगड़ें. इसे पांच मिनट तक रहने दें और फिर एक स्क्रेपर का उपयोग करके ग्रे अवशेषों को खरोंच कर निकाल दें. अंत में साफ गीले स्पंज के साथ साफ कर दें.

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प्रेग्नेंसी में होती है मौर्निंग सिकनेस? ऐसे करें ठीक

27 वर्षीय अंजलि को प्रैगनैंट होते ही मौर्निंग सिकनेस की समस्या शुरू हो गई, लेकिन उस ने इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि परिवार वालों ने कहा था कि यह आम बात है. 2-3 महीनों में यह समस्या ठीक हो जाती है. मगर अंजलि के साथ ऐसा नहीं हुआ. धीरेधीरे वह कमजोर होती गई. और फिर एक वक्त ऐसा आया कि चलने फिरने में भी असमर्थ महसूस करने लगी.

परेशान हो कर जब डाक्टर के पास आई तो उन्होंने बताया कि वह डिहाइड्रेशन की शिकार हो चुकी है, जो इस अवस्था में बिलकुल ठीक नहीं है और किसी भी वक्त मिस कैरेज हो सकता है. अंजलि को हौस्पिटल में दाखिल कर आईवी के द्वारा पानी और दवा दी गई. 2-3 दिनों में वह स्वस्थ हो गई. बाद में एक हैल्दी बच्चे को जन्म दिया.

बीमारी नहीं है यह

असल में प्रैगनैंसी में मौर्निंग सिकनेस आम बात है. यह कोई बीमारी नहीं, क्योंकि इस दौरान महिलाएं कई हारमोनल बदलावों से गुजरती हैं. पहली तिमाही में मौर्निंग सिकनेस ज्यादा होती है. इस बारे में मुंबई की ‘वर्ल्ड औफ वूमन क्लीनिक’ की डाइरैक्टर और स्त्रीरोग विशेषज्ञा बंदिता सिन्हा बताती हैं कि गर्भावस्था में मौर्निंग सिकनेस को अच्छा माना जाता है, करीब 60 से 80% महिलाओं को यह होती है, लेकिन बारबार होने पर शरीर से अधिक मात्रा में पानी बाहर निकल जाता है, जिस से निर्जलीकरण हो जाता है और इस का प्रभाव बच्चे और मां दोनों पर पड़ने लगता है.

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कुछ महिलाओं को सवेरे ही नहीं, पूरा दिन यह समस्या होती रहती है. लेकिन यह अधिक और 3 महीने के बाद भी होती है, तो डाक्टर की सलाह लेना जरूरी होता है, क्योंकि हारमोनल बदलाव 4-5 महीने तक ही रहता है. इस के बाद शरीर इसे एडजस्ट कर लेता है.

बारबार उलटियां होने पर महिला थकान और कमजोरी महसूस करती है. इस से गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर असर पड़ता है. वह कुपोषण का शिकार हो सकता है, जिस से मिस कैरेज या समय से पहले डिलिवरी होने का डर रहता है.

गंभीर मौर्निंग सिकनेस को हाइपरमेसिस ग्रैविडेरम कहते हैं. इस का इलाज समय रहते करा लेना चाहिए ताकि बच्चा और मां दोनों स्वस्थ रहें. यह समस्या उन महिलाओं को अधिक होती है, जिन के जुड़वां या ट्रिप्लेट बच्चे होते हैं.

ऐसे करें काबू

इन बातों का ध्यान रखने से मौर्निंग सिकनेस को काबू में किया जा सकता है:

  • सुबह बिस्तर से उठते ही तुरंत ड्राई प्लेन बिस्कुट, ड्राई फ्रूट्स, सेब, इडली आदि का सेवन करें. बाद में कोई तरल पदार्थ या पानी पीएं.
  • थोड़ीथोड़ी देर बाद कुछ न कुछ खाती रहें.
  • जिस फूड की गंध से उलटी आती हो उसे न खाएं.
  • बाहर का खाना न खाएं, क्योंकि इस से अपच होने पर ऐसिडिटी की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से उलटियां होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है.
  • खाना अधिक गरम न खाएं. हमेशा हलका ठंडा भोजन करें.
  • पानी, सूप, नारियल पानी, इलैक्ट्रोल पाउडर आदि का अधिक सेवन करें. फ्रूट जूस न लें, क्योंकि इस में कैमिकल होता है, जो कई बार नुकसानदायक साबित होता है.
  • वजन अधिक होने पर उलटियां होने के चांस अधिक रहते हैं, इसलिए वजन को काबू में रखें.
  • जिन्हें माइग्रेन या ऐसिडिटी अधिक होती हो, उन्हें भी उलटियां अधिक हो सकती हैं.
  • तनाव को दूर रखें.
  • पूरी नींद लें.

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ये घरेलू नुसखे भी अपना सकती हैं:

  • अदरक को नमक के साथ लेने पर काफी हद तक इस परेशानी को दूर किया जा सकता है.
  • पानी, नीबू और पुदीने के रस को मिला कर लेने से भी मौर्निंग सिकनेस दूर होती है.

इस के बाद भी अगर मौर्निंग सिकनेस की समस्या रहती है, तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

घरेलू काम में क्या हो पति की भूमिका

मेरी दीदी को औफिस के लिए जीजाजी से पहले निकलना होता था. अत: सुबह के नाश्ते की जिम्मेदारी जीजू पर थी. एक दिन सुबहसुबह किसी कारणवश जीजाजी को नीचे जाना पड़ा. उस समय उन के हाथों में आटा लगा था. बस फिर क्या था. जैसे ही वे नीचे पहुंचे उन की पड़ोसिन ने उन के हाथों में आटा लगा देखा तो हैरान हो बोलीं, ‘‘भैया, क्या आप रोटियां बना रहे थे?’’

वे इस तरह से बोल रही थीं जैसे जीजू ने कोई बड़ा गलत काम कर दिया हो. आसपास कुछ और महिलाएं भी थीं. अत: सब को बातें बनाने का मौका मिल गया.

यह देख जीजाजी भी दुविधा में पड़ गए कि क्या सच में उन्होंने कुछ गलत कर दिया है. दरअसल, वे हैरान इसलिए भी थे, क्योंकि वे शादी से पहले भी अपना खाना खुद बनाते थे. आसपास के लोग यह जानते थे.

खैर, हद तो उस दिन हुई जब इसी बात पर सोसाइटी के पुरुषों ने उन्हें समझाया, ‘‘आप औरतों वाले काम न किया करें. घर की सफाई और रसोई का काम तो औरतों को ही करना चाहिए. आप ऐसा क्यों करते हैं? क्या आप दोनों के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है? क्या आप की पत्नी की कमाई आप से ज्यादा?’’

इतना ही नहीं. पासपड़ोस की औरतों ने दीदी को भी समझाया गया कि पति की इज्जत करनी चाहिए. औरतों के काम मर्दों से नहीं कराने चाहिए.

दीदी व जीजू दोनों ने आसपास के लोगों को समझाने की बहुत कोशिश कि पतिपत्नी दोनों को घर के काम मिल कर करने चाहिए, बावजूद इस के वे कई बार मजाक के पात्र बने. दीदी को खासतौर पर सुनने को मिला कि वह एक संवेदनहीन पत्नी हैं.

बदलनी होगी सोच

दरअसल, इस सोच के पीछे कई कारण हैं जैसे लिंग के आधार पर काम का विभाजन, महिलाओं से संबंधित हर काम, हर चीज को निचले दर्जे का मानना, बदलते परिवेश के साथ खुद की सोच को न बदलना आदि.

मगर जब पत्नी कामकाजी बन कर पति को आर्थिक सहयोग दे सकती है, तो पति से घरेलू कामों में मदद की उम्मीद भी कर सकती है. इस में कोई बुराई नहीं है. पतिपत्नी दोनों मिल कर अपना घर बसाते हैं. फिर घर की जिम्मेदारियां सिर्फ पत्नी के हिस्से ही क्यों रहें?

जमाना बदल रहा है. अब घर के कामकाज में पति की भागीदारी भी बढ़ रही है. आप भी इस के लिए अपने पति को प्रोत्साहित करें ताकि आप का वर्कप्रैशर थोड़ा कम हो.

पत्नियां पति से घर के काम कराने के लिए निम्न तरीके अपना सकती हैं:

विवाद का विषय न बनाएं: पति के काम करने का तरीका अजीब भी हो सकता है. अत: इस बात को विवाद का विषय न बनाएं. पहले काम कराने की आदत डालें. धीरेधीरे काम करने का सलीका भी आ जाएगा.

गलती न निकालें: काम गलत होने पर पति की गलती निकालने के बजाय दोनों मिल कर काम करें.

लंबी लिस्ट न हो: पति के औफिस से आते ही उन्हें कामों की लंबी लिस्ट न पकड़ाएं. पहले चायनाश्ता कराएं. फिर प्यार से कहें कि प्लीज फलां काम कर देना.

जिम्मेदारियां बांट लें: जिम्मेदारियों का बंटवारा कर लें ताकि पति समझ जाएं कि ये काम उन्हीं के हैं, क्योंकि अगर आप ने सभी कामों की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली तो वे जिम्मेदारी लेने से बचेंगे. आप चाहे कामकाजी हों या फिर गृहिणी घर के कामों में पति की मदद जरूर लें.

किन कामों में लें मदद

सवाल यह उठता है कि ऐसे कौन से काम हैं जिन में पति की मदद ली जा सकती है? अगर आप उन पर काम का बोझ नहीं डालना चाहती हैं तो छोटेमोटे काम जैसे घर की डस्टिंग, बच्चों का होमवर्क, कपड़े ठीक करना, बाजार से सामान लाना आदि कामों में आप उन की मदद ले सकती हैं.

अगर आप किचन में खाना बना रही हैं तो पति से सब्जी कटवा सकती हैं या फिर फ्रिज से जरूरत का सामान निकलवा सकती हैं. किचन समेटने में उन की मदद ले सकती हैं. ये छोटेमोटे काम कराने से ही आप का वर्कलोड काफी कम हो जाएगा. इस का एक फायदा यह भी होगा कि आप पति की मदद से घर के कामों से जल्दी फ्री हो जाएंगी और फिर आप पति के साथ ज्यादा समय बिता सकेंगी. इस के अलावा आप के इस कदम से आप का रिश्ता मजबूत होगा. घर में शांति और खुशहाली रहेगी.

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