वनराज की दूसरी पत्नी बनकर काव्या ने कराया ब्राइडल फोटोशूट, फोटोज वायरल

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ एक बार फिर टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचा रहा है. सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो काव्या और वनराज की शादी और अनुपमा का बदलाव फैंस को काफी पसंद आ रहा है. इसी बीच शूटिंग के बीच एक्ट्रेस मदालसा शर्मा मस्ती करती हुई नजर आईं, जिसमें वह अपने ब्राइडल लुक में पोज देती दिखीं. आइए आपको दिखाते हैं वनराज की दूसरी पत्नी काव्या के फैशन की झलक…

काव्या ने पहना गुलाबी जोड़ा

सीरियल में काव्या (Madalsha Sharma) ने अपनी शादी के लिए गुलाबी जोड़ा पहना था, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं इस लहंगे के साथ कुंदन की सी ग्रीन पैटर्न वाली ज्वैलरी उनके लुक पर चार चांद लगा रही थी.

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शादी के लहंगे में दिया पोज

सीरियल में शादी के ट्रैक के बीच दुल्हन बनकर काव्या जहां बेहद खुश थी तो वहीं एक्ट्रेस मदालसा शर्मा को अपना ब्राइडल लुक बेहद पसंद आया था. इस लुक के साथ जमकर फोटोज क्लिक करवाते हुए नजर आईं थीं.

पीली साड़ी में दिखा काव्या का खास लुक

शादी के अलावा हल्दी सेरेमनी में भी काव्या (Madalsha Sharma) बेहद खूबसूरत लुक में नजर आईं थीं. पीले रंग की साड़ी में काव्या यानी मदालसा शर्मा अपने लुक की फोटोज क्लिक करवाते दिखीं थीं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत हैं.

सगाई में भी था अलग अंदाज

शादी में जहां काव्या ब्राइडल लुक में जलवे बिखेर रही थीं तो वहीं सगाई में स्टाइलिश लुक में मदालसा फैंस का दिल जीत रही थीं. इस लुक में फैंस उनकी तारीफों के पुल बांधते नजर आए थे.

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स्टाइलिश हैं मिथुन चक्रवर्ती की बहू

काव्या जहां सीरियल में बेहद स्टाइलिश लुक में नजर आती हैं तो वहीं मिथुन चक्रवर्ती की बहू मदालसा पार्टी हो या कोई अवौर्ड शो अपने लुक से फैंस के दिल पर बिजलियां गिराती दिखतीं हैं.

5 Tips: नारियल तेल से बढाएं खूबसूरती

सेहत से लेकर सुंदरता तक के लिए नारियल तेल प्रकृति का बेहद अनमोल उपहार है. इसके करिश्माई फायदों को जानकर आप हैरान रह जाएंगे.

जानिए नारियल तेल के कमाल के सौंदर्य लाभ

1. प्राइमर के रूप में प्रयोग करें

जब आप बाहर जाने के लिए तैयार हों, तब आप फाउंडेशन लगाने से पहले नारियल तेल को प्राइमर के तौर पर लगाएं. इसकी सिर्फ कुछ बूंदें अपने चेहरे पर थपकाकर पूरे चेहरे पर फैला लें. यह फाउंडेशन के लिए बेस का काम करेगा और साथ ही चेहरे को मॉइश्चराइजर भी प्रदान करेगा. आप इसे चिक बोन पर थोड़ा ज्यादा लगा सकती हैं जिससे यह हाईलाइट हो जाए.

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2. बालों के लिए है संजीवनी बूटी

नियमित रूप से नारियल तेल का प्रयोग बालों की खूबसूरती को बढ़ाता है. उन्हें अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचाता है और उन्हें नरम और सिल्की बनाता है. डस्ट, प्रदूषित वातावरण से बचाता है. आपके बालों को प्रोटीन देता है और उन्हें मजबूत, चमकदार और स्वस्थ बनाता है. यह आपके बालों से दो मुंहे बालों वाली समस्या को पूरी तरह समाप्त करने का अद्भुत काम कर सकता है.

3. आपकी त्वचा के लिए

यदि आप अपनी त्वचा से प्यार करते हैं तो नारियल तेल आपके लिए कुंजी है. यह आपकी त्वचा को हाइड्रेटेड रखता है और प्रदूषण से बचाता है. बदलते मौसम में त्वचा की रक्षा करता रहता है. यह एक प्राकृतिक मॉइस्चराइजर है. नारियल तेल का त्वचा को डिटॉक्सीफाय करता है इसलिए नहाने के बाद नियमित रूप से त्वचा पर नारियल तेल लगाएं.

4. बॉडी स्क्रब बनाएं

नारियल तेल में शक्कर मिलाएं और जब यह शक्कर घुलने लगे तब पूरे शरीर पर इसे धीरे-धीरे रगड़ें और धो लें. प्राकृतिक स्क्रब का प्रयोग कर आपकी त्वचा पर जादुई चमक आ जाएगी.

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5. मेकअप रिमूवर के रूप में

नारियल तेल सबसे अच्छा क्लिंजर माना जाता है. मैकअप उतारने के लिए एक कॉटन पैड पर तेल लें और मैकअप रिमूव करें. यह मैकअप तो हटाएगा ही, साथ ही त्वचा के भीतर से गंदगी और बैक्टीरिया भी हटाएगा.

Fashion Tips: जंक ज्वैलरी का टशन

यह ठीक है कि गहने न सिर्फ हमारी खूबसूरती बढ़ाते हैं, बल्कि हमारे मुश्किल दिनों को भी आसान बनाते हैं पर सुरक्षा कारणों के चलते आजकल सोने, चांदी, हीरे आदि के महंगे गहने पहन कर महिलाएं बाहर निकलने से कतराती हैं. ऐसे में बाजार में आजकल ऐसी ज्वैलरी भी उपलब्ध है, जो न सिर्फ सोनेहीरे जैसी दिखती है, बल्कि आधुनिक और स्टाइलिश भी है. ऐसी ही ज्वैलरी है जंक ज्वैलरी. आइए, जानते हैं इस के बारे में:

कैसीकैसी जंक ज्वैलरी

ब्रास ज्वैलरी है खास

यह ऐसी ज्वैलरी है, जिसे हर महिला पसंद करती है, क्योंकि एक तो सस्ती ऊपर से इस की अट्रैक्टिव डिजाइनें हर किसी को आकर्षित करती हैं. जैसे हाथ का बाजूबंद जहां बाजू की खूबसूरती को बढ़ाता है वहीं खनखन करतीं ब्रास की चूडि़यां व कड़े महिलाओं के शृंगार को पूरा करने का काम करते हैं. नोजपिन व डिफरैंट डिजाइनों की रिंग्स अपनी ड्रैस के हिसाब से चूज कर सकती हैं.

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बीड्स बढ़ाएं खूबसूरती

अलगअलग रंगों के मोती जब किसी भी ज्वैलरी का आकार लेते हैं खासकर जंक ज्वैलरी के साथ तब उस ज्वैलरी की ग्रेस कई गुणा बढ़ जाती है. मनमोहक कलर्स में होने के साथसाथ विभिन्न डिजाइनें व शेप्स इसे खास बनाती हैं. फिर चाहे बात गले की खूबसूरत माला की हो, कानों के कुंडल्स की हो, आंखों को लुभाए बिना नहीं रह पाते हैं. इन से बनी जंक ज्वैलरी को आप किसी भी मौके पर कैरी कर सकती हैं खासकर साड़ी, सूट के साथ यह खूब जंचती है.

वुडन ज्वैलरी दे ट्रैंडी लुक

वुड से बनी ज्वैलरी टिकाऊ होने के साथसाथ नैचुरल लुक देने का भी काम करती है. इस ज्वैलरी की खासीयत यह होती है कि इस का शेड और वुड का टच काफी यूनीक फील देने का काम करता है. स्मूद फिनिशिंग देने के लिए वुडन ज्वैलरी को बीज्वैक्स से पौलिश किया जाता है.

रेसिन

रेसिन एक ऐसी वस्तु है, जिसे अपने मनमुताबिक विभिन्न आकारों में ढाला जा सकता है. ज्वैलरी बनाने के लिए इस में कुछ अन्य धातु मिला कर इसे खास फिनिशिंग देने का काम किया जाता है. सिर्फ फिनिशिंग ही नहीं, बल्कि विभिन्न रंगों में भी रंगा जाता है. इस के लचीलेपन के कारण यह आभूषण निर्माताओं के लिए पसंदीदा सामग्री है.

क्या है खास

पौकेट फ्रैंडली: जंक ज्वैलरी की खासीयत यह है कि यह पौकेट फ्रैंडली है. किसी के लिए भी इसे अफोर्ड करना आसान है. कोई भी मौका हो आप अपनी ड्रैस के साथ मैचिंग जंक ज्वैलरी खरीद सकती हैं. इस से ड्रैस को भी न्यू टच मिल जाता है और बारबार ज्वैलरी के रिपीट होने का भी झंझट नहीं रहता. यह आप को मार्केट में ₹150 से ले कर ₹500, ₹1000, ₹2000 तक में आसानी से मिल जाएगी.

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वैराइटी भी ढेरों: अगर हम गोल्ड या डायमंड की ज्वैलरी खरीदते हैं तो उसे एक लिमिट तक ही खरीद व कभीकभार ही पहन सकते हैं. लेकिन जंक ज्वैलरी में हमारे पास ढेरों औप्शंस होते हैं. हम जब मरजी तब ज्वैलरी खरीद सकते हैं.

खोने का डर नहीं: महंगी ज्वैलरी को भले ही हम विभिन्न अवसरों पर पहन लेते हैं, लेकिन इस के खोने का डर हमेशा मन में बना रहता है. मगर जंक ज्वैलरी को बिना डरे कैरी कर के खुद को स्टाइलिश दिखा सकती हैं.

कहीं यह प्यार तो नहीं- भाग 2 : विहान को किससे था प्यार

विहान का मन विरक्त हो रहा था. उसे कल सुगंधा की कही हुई बातें याद आने लगीं. विहान की तारीफ कर उसे तरहतरह से खुश करते हुए वह काम निबटाने में उस की मदद लेना चाह रही थी. सुगंधा पर एक हिकारत भरी नजर डाल वह मन ही मन खिन्न हो उठा.

घर आ कर भी वह स्वयं को उपेक्षित सा महसूस करता रहा. रात को जूही से वीडियो कौल करने का मन हुआ. उस समय जूही सोने की तैयारी कर रही थी. कौल कनैक्ट हुई तो जूही को अपने कमरे में स्किन कलर की औफ शोल्डर नाइट ड्रैस में बैठे देख विहान की सांस ठहर गई. जूही का गोरा तन ऐसा लग रहा था जैसे संगमरमर की कोई प्रतिमा हो. विहान ने सुगंधा वाली घटना बताने के लिए वीडियो चैट करने का निर्णय लिया, लेकिन मंत्रमुग्ध सा वह कुछ बोल ही नहीं पा रहा था, ‘‘आज तुम बोलती रहो, मैं सिर्फ सुनूंगा,’’ कहते हुए वह अपलक उस के रूपलावण्य को निहारता ही रहा.

चैट के बाद सोते हुए वह सोच रहा था कि जिस निगाह से सुगंधा को देखा था, उस नजर से शायद मैं ने जूही को कभी देखा ही नहीं था. जूही तुम कितनी खूबसूरत हो.

उधर जूही विहान के चले जाने से अकेली पड़ गई थी. मन लगाने के लिए एक दिन उस ने सहेलियों के साथ घूमने का कार्यक्रम बना लिया. मौल में घूमते हुए खूब मस्ती हो रही थी, फिर भी विहान उसे याद आ ही जाता था. किसी शौप में कोई भी आकर्षक सामान देख विहान को बताने की इच्छा होती.

कपड़ों के शोरूम में एक डमी को वायलेट शर्ट और ब्लैक ट्राउजर्स में देख अपनी उंगली से इशारा करते हुए वह सहेलियों से बोल पड़ी कि उस मैनेकिन की जगह विहान होता तो इन कपड़ों की वैल्यू बढ़ जाती… इस पुतले पर तो ये बिलकुल जम ही नहीं रहे. सहेलियों ने एक बार नजर घुमा कर उधर देखा और फिर बातों में लग गईं. जूही का मन उदास हो गया.

सभी सहेलियों ने अपने लिए कुछ न कुछ खरीदा, लेकिन जूही को विहान की पसंदनापसंद जाने बिना जैसे शौपिंग करने की आदत ही नहीं थी.

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खरीदारी पूरी कर वे सब खाना खाने फूड कोर्ट में पहुंच गए. इस से पहले कि जूही अपनी पसंद बताती, गु्रप की सभी सहेलियों ने एकमत हो पिज्जा और कोल्डड्रिंक का और्डर दे दिया. जूही को वहां के चाट कौर्नर की आलूटिक्की और लच्छा टोकरी बहुत स्वादिष्ठ लगती थी. विहान के साथ जब भी वह उस मौल में आती, विहान उस की पसंद को ध्यान में रख सब से पहले चाट की दुकान पर जाता था.

जब तक वे सब मौल में रहे, जूही को उदासी ने घेरे रखा. उस का जी चाह रहा था कि अभी विहान को कौल कर ले, लेकिन औफिस में उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं यह सोच कर मोबाइल नहीं निकाला. उसे क्या पता था कि बैंगलुरु में बैठा विहान भी उस समय जूही को याद कर उस से बात करने को अधीर हो रहा है.

विहान जब बीटैक कर रहा था तब जूही और वह दिन में कई बार एकदूसरे के पास पहुंच कर बातें शेयर किया करते थे. कालेज पासपास होने से कोई असुविधा भी नहीं होती थी उन्हें, लेकिन उन का यह मिलनाजुलना जूही के साथ पढ़ने वाले राहुल को बहुत खटकता था. जूही की सुंदरता पर मुग्ध राहुल को विहान के रहते हुए जूही के निकट आने का कभी अवसर नहीं मिला था. विहान के जाते ही धीरेधीरे वह जूही से मित्रता बढ़ाने लगा. जूही तो पहले ही एक करीबी दोस्त की कमी महसूस कर रही थी.

अपने जन्मदिन पर राहुल ने दोस्तों को क्नाट प्लेस के एक महंगे रैस्टोरैंट में ट्रीट देने का प्रोग्राम बनाया. जूही भी आमंत्रित थी. बहुत दिनों बाद आज अपने भीतर वह एक उमंग का अनुभव कर रही थी. वार्डरोब से उस ने वही मिनी स्कर्ट निकाली जिसे एक बार तब पहना था जब विहान के साथ आर्ट गैलरी में लगी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी देखने गई थी. प्रदर्शनी में उन की भेंट राहुल से हो गयी थी. राहुल ने ही आज उसे वही एग्जीबिशन वाली ड्रैस पहनने को कहा था.

जूही जब घर से निकल रही थी तो राहुल का मैसेज आ गया कि वह राजीव चौक मैट्रो स्टेशन के बाहर उस की प्रतीक्षा करेगा. जूही मैट्रो में चढ़ी तो सैकड़ों घूरती आंखों से बचने का असफल प्रयास करती रही. उसे याद आ रहा था जब पहले उस ने वह ड्रैस पहनी थी तो विहान उसे देखते ही बोला था, ‘‘आज तो हमें कैब करनी पड़ेगी.’’

‘‘क्यों?’’ पूछ बैठी थी जूही.

‘‘मिनी स्कर्ट में इतनी क्यूट लग रही हो कि मैट्रो में सब तुम्हें घूरघूर कर देखेंगे, मु झे अच्छा नहीं लगेगा.’’

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तब जूही की हंसी रोके नहीं रुकी थी, लेकिन आज सचमुच कुछ लोगों की लोलुप दृष्टि उसे निरंतर उद्विग्न किए थी. वह बेसब्री से राजीव चौक आने की प्रतीक्षा कर रही थी. जानती थी कि वहां राहुल मिल जाएगा. अच्छा दोस्त कवच के समान होता है, यही कहता था उस का अनुभव. स्टेशन आया तो उस की जान में जान आ गई. बाहर निकली तो राहुल खड़ा था. साथ में कुछ अन्य युवक भी थे. उन में से कोई भी उन के कालेज का नहीं था.

‘‘अपने गु्रप के बाकी लोग कहां हैं?’’ जूही ने घबराते हुए पूछा.

‘‘उन्हें नहीं बुलाया. आज अपने पुराने साथियों को तुम से मिलवाना था,’’ कहते हुए राहुल ने जूही का हाथ पकड़ लिया.

जब जूही ने कसमसा कर हाथ छुड़ाना चाहा तो उन में से एक दोस्त हंसते हुए बोला, ‘‘शाय गर्ल.’’

राहुल सब के सामने उस से ऐसे बात कर रहा था जैसे वह उस की गर्लफ्रैंड हो. जूही ने बातोंबातों में सब को एहसास दिलाना चाहा कि वे दोनों किसी रिलेशनशिप में नहीं हैं, लेकिन राहुल निर्लज्जता से उस पर अधिकार जमाने का प्रयास कर रहा था.

रैस्टोरैंट में अपनी चेयर से जूही की चेयर सटा कर बैठा राहुल बारबार उस का स्पर्श कर रहा था. उस के दोस्त जूही की सुंदरता की प्रशंसा करते हुए एक ओर राहुल की पसंद की दाद दे रहे थे तो दूसरी ओर मिनीस्कर्ट में दिख रहे उस के पैरों को बेहूदगी से ताक रहे थे. राहुल सब सम झते हुए भी अनजान बना बैठा था.

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बंदिनी- भाग 3 : रेखा ने कौनसी चुकाई थी कीमत

औरतों के लिए कू्ररता करने में स्वयं औरतें पुरुषों से कहीं आगे हैं. वे शायद यह नहीं जानतीं कि इसी वजह से पुरुषों के लिए उन की नाकदरी और उन का शोषण करना इतना आसान हो जाता है. औरतों का शोषण करने के लिए पुरुषों को साथ भी औरतों का ही मिलता है.

रेखा का शारीरिक शोषण घर के पुरुष करते थे, परंतु घर की स्त्रियां भी उस का जीवन नारकीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थीं. वे सभी घर के पुरुषों के अत्याचार के खिलाफ तो कभी एकजुट नहीं हो पाईं, परंतु एक निरपराधी को सजा देने में एकजुट हो गई थीं. पुरुषों की शारीरिक भूख रात में शांत कर, दिन में उसे घर के बाकी काम भी निबटाने पड़ते थे.

10 वर्षों के अमानुषिक शोषण के बाद एक दिन एकाएक अनुबंध समाप्त होने का हवाला देते हुए रेखा को वापस उस के परिवार के पास छोड़ दिया गया था. इन 10 सालों में उस के 8 गर्भपात भी हुए थे. कारण जो भी बताया गया हो परंतु रेखा शायद अनुबंध समाप्त करने की सही वजह समझ रही थी.

जब रेखा मोहनलाल के घर पर थी, उस समय एक एनजीओ की मैडम ने एकदो बार उस से संपर्क करने का प्रयास किया था. परंतु उन्हें बुरी तरह प्रताडि़त कर निकाल दिया गया था. बड़ी मुश्किलों से अपने प्राण बचा कर निकल पाई थी बेचारी, परंतु जातेजाते भी न जाने कैसे अपना फोन नंबर कागज पर लिख कर फेंक गई थी. 5वीं तक की गई पढ़ाई काम आई थी उस के, रेखा ने नंबर कंठस्थ करने के बाद कागज को जला दिया था.

ग्वालियर एक शहर था और वहां इस के बाद बात का छिपना आसान नहीं था. सो, रेखा को वापस भेज दिया गया था, वैसे भी, अब तक रेखा का पूर्ण इस्तेमाल हो चुका था.

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10 सालों में रेखा का परिवार भी बदल चुका था. उन की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई थी. कल्पना भी अपने 5वें अनुबंध के खत्म होने के बाद घर आ गई थी. उस की अब एक बेटी भी थी, पूजा.

दोनों ही बहनें जानती थीं कि कुछ ही दिनों में उन्हें उन के नए सहचरों के साथ चले जाना होगा. इसलिए अब अपना पूरा समय दोनों पूजा पर मातृत्व लुटाने में व्यतीत करने लगीं थीं. किंतु अति शीघ्र ही रेखा ने आने वाली विपत्तियों को भांप लिया था, जब उस ने अशोक को अपने द्वार पर खड़ा पाया था, ‘‘तुम हो मेरे नए ग्राहक?’’

अशोक ने रेखा की विदाई के कुछ दिनों बाद ही विवाह कर लिया था. सो, आज वह फिर यहां क्यों आया था, यह समझने में रेखा को थोड़ी देर लगी थी.

‘‘मैं यहां तेरे लिए नहीं आया हूं. वैसे भी तेरे पास बचा क्या है,’’ उस ने बड़ी ही हिकारत से उत्तर दिया था.

‘‘फिर किस लिए आए हो?’’

‘‘मैं पूजा के लिए आया हूं.’’

रेखा सब समझ गई थी. प्रतिदिन की वे गोष्ठियां कल्पना और रेखा के लिए नहीं, बल्कि पूजा के लिए हो रही थीं. अशोक से लड़ना मूर्खता थी. वह सीधा अपने भाइयों के पास गई और बड़े भाई की गरदन दबोच ली.

‘‘9 साल की बच्ची है पूजा, मामा है तू उस का. लज्जा न आई तुझे?’’

एक झटके में उस के भाई ने अपनी गरदन से रेखा का हाथ हटा लिया था. लड़खड़ा गई थी रेखा, कल्पना ने संभाला नहीं होता तो गिर ही जाती.

‘‘दोबारा हिम्मत मत करना, वरना हाथ उठाने के लायक नहीं रहेगी.’’

भाई से इंसानियत की अपेक्षा उस की भूल थी. उस ने कल्पना से बात करनी चाही, ‘‘दीदी, तुम ने सुना, ये लोग पूजा के साथ क्या करने वाले हैं?’’

उत्तर में कल्पना ने मात्र सिर झुका दिया था.

हमारे समाज की ज्यादातर स्त्रियां अपनी कमजोरी को मजबूरी का नाम दे देती हैं. बिना कोशिश किए अपनी हार स्वीकार करने की सीख तो उन्हें जैसे घुट्टी में मिला कर पिलाई जाती है. परजीवी की तरह जीवन गुजारती हैं और फिर एक दिन वैसे ही मृत्यु का वरण कर लेती हैं. हमेशा एक चमत्कार की उम्मीद करती रहती हैं, जैसे कोई आएगा और उन के कष्टों का समाधान हो जाएगा. आत्मनिर्भरता तो वे खुद भीतर कभी जागृत नहीं कर पातीं. कल्पना भी अपवाद नहीं थी.

रेखा और कल्पना के विरोध के बावजूद पूजा का विवाह मोहनलाल के छोटे बेटे से तय कर दिया गया था. वह मंदबुद्धि था. किसी महान पंडित ने उन्हें बताया था कि यदि उस का विवाह एक नाबालिग कुंआरी कन्या से हो जाए तो वह बिलकुल स्वस्थ हो जाएगा. शादी जैसे संजीवनी बूटी हो, खाया और एकदम फिट. रेखा यह भी जानती थी कि उस घर के बंद दरवाजों के पीछे कितना भयावह सत्य छिपा था.

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शादी का मुहूर्त 3 महीने बाद का निकला था. इसी बीच रेखा और कल्पना को भी बेचने की तैयारियां चल रही थीं. रेखा जानती थी कि उस के पास समय कम है, जो करना है जल्द ही करना होगा.

परंतु इस बार रेखा किसी भी तरह का विरोध झेलने के लिए मजबूती के साथ तैयार थी. पिछली बार खुद के लिए लड़ी गई जंग वह हार गई थी, परंतु इस बार उस ने अंतिम सांस तक प्रयत्न करने का निश्चय कर लिया था. पुलिस और पंचायत से तो रेखा ने उसी समय उम्मीद छोड़ दी थी जब उसे जबरदस्ती प्रथा के नाम पर बलि चढ़ा दिया गया था. सभी प्रथाओं की लाश स्त्रियों के कंधों पर ही तो ढोई जाती है.

अपने भाइयों की नजर बचा कर उस ने अपने भाई के मोबाइल से आरतीजी को फोन किया. उस की आपबीती सुन कर आरती ने भी मदद ले कर शीघ्र आने का आश्वासन दिया था. परंतु नियति उस की चौखट पर खड़ी अलग ही कहानी रच रही थी.

वह रात पूनम की थी जो उस घर में अमावस ले कर आई थी. जिस प्रथा को छिपा कर रखने के लिए पूरा गांव कुछ भी करने को तैयार था, उस एक घटना ने इस प्रथा की कलई पूरे देश के सामने खोल कर रख दी थी. इस एक घटना से यह प्रथा समाप्त तो नहीं हुई थी, परंतु वह भारत जो ऐसी किसी प्रथा के अस्तित्व के बारे में अनभिज्ञ था, इस के बारे में बात करने लगा था.

उस रात जब रेखा सोने के लिए अपने कमरे में गई थी, सबकुछ स्वाभाविक ही था. परंतु खुद सुप्त ज्वालामुखी को नहीं पता होता कि उस के किसी हिस्से में आग अभी भी बाकी है. असहनीय पीड़ा की परिणति कभीकभी भयावह होती है. ऐसी बात तो सभी करते हैं, परंतु अगली सुबह जब लोगों ने उस घर में 6 लाशें देखीं, तो मान भी गए थे.

रेखा के अलावा घर के सभी लोग मौत की स्याह चादर ओढ़ कर सो गए थे. उन के वजूद की मृत्यु तो बहुत पहले हो चुकी थी, आज शरीर खत्म हुआ था. एकएक कर पुलिस शिनाख्त कर रही थी.

पहली चादर उस मां के चेहरे पर डाली गई जिस ने अपनी बेटियों को जन्म देने की कीमत उन के शरीर की बोली लगा कर वसूल की थी. कल्पना को मारे गए कई थप्पड़ आज जीवंत हो कर उसी के चेहरे को स्याह कर रहे थे.

अगली चादर उस पिता के ऊपर डाली गई जिस ने पिता होने का कर्तव्य तो कभी नहीं निभाया, परंतु पुत्री के शरीर को भेडि़यों के बीच फेंक कर उस की कीमत वसूलने को अपना अधिकार अवश्य माना था.

फिर चादर उन 2 भाइयों के चेहरों पर डाली गई जो खुद अपनी बहनों के दलाल बने घूमते थे.

चादर उस भाभी के चेहरे पर भी डाली गई जो एक स्त्री थी और मां बनने के लिए न जाने कितने तांत्रिकों व पंडितों के चक्कर लगा रही थी. परंतु जब एक छोटी बच्ची की बोली उस का पति लगा रहा था, वह न केवल मौन थी बल्कि आने वाले धन के मधुर स्वप्नों में खोई हुई थी.

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लड़की- भाग 2 : क्या परिवार की मर्जी ने बर्बाद कर दी बेटी वीणा की जिंदगी

लेखक- रमणी मोटाना

सुधाकर पहले ही ज्योतिषी से मिल चुके थे और उस की मुट्ठी गरम कर दी थी. ‘महाराज, कन्या एक गलत सोहबत में पड़ गई है और उस से शादी करने का हठ कर रही है. कुछ ऐसा कीजिए कि उस का मन उस लड़के की ओर से फिर जाए.

‘आप चिंता न करें यजमान,’ ज्योतिषाचार्य ने कहा.

ज्योतिषी ने वीणा की जन्मपत्री देख कर बताया कि उस का विदेश जाना अवश्यंभावी है. ‘तुम्हारी कुंडली अति उत्तम है. तुम पढ़लिख कर अच्छा नाम कमाओगी. रही तुम्हारी शादी की बात, सो, कुंडली के अनुसार तुम मांगलिक हो और यह तुम्हारे भावी पति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. तुम्हारी शादी एक मांगलिक लड़के से ही होनी चाहिए वरना जोड़ी फलेगीफूलेगी नहीं. एक  बात और, तुम्हारे ग्रह बताते हैं कि तुम्हारी एक शादी ऐनवक्त पर टूट गई थी?’

‘जी, हां.’

‘भविष्य में इस तरह की बाधा को टालने के लिए एक अनुष्ठान कराना होगा, ग्रहशांति करानी होगी, तभी कुछ बात बनेगी.’ ज्योतिषी ने अपनी गोलमोल बातों से वीणा के मन में ऐसी दुविधा पैदा कर दी कि वह भारी असमंजस में पड़ गई. वह अपनी शादी के बारे में कोई निर्णय न ले सकी.

शीघ्र ही उसे अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से वजीफे के साथ वहां दाखिला मिल गया. उसे अमेरिका के लिए रवाना कर के उस के मातापिता ने सुकून की सांस ली.

‘अब सब ठीक हो जाएगा,’ सुधाकर ने कहा, ‘लड़की का पढ़ाई में मन लगेगा और उस की प्रवीण से भी दूरी बन जाएगी. बाद की बाद में देखी जाएगी.’

इत्तफाक से वीणा के दोनों भाई भी अपनेअपने परिवार समेत अमेरिका जा बसे थे और वहीं के हो कर रह गए थे. उन का अपने मातापिता के साथ नाममात्र का संपर्क रह गया था. शुरूशुरू में वे हर हफ्ते फोन कर के मांबाप की खोजखबर लेते रहते थे, लेकिन धीरेधीरे उन का फोन आना कम होता गया. वे दोनों अपने कामकाज और घरसंसार में इतने व्यस्त हो गए कि महीनों बीत जाते, उन का फोन न आता. मांबाप ने उन से जो आस लगाई थी वह धूलधूसरित होती जा रही थी.

समय बीतता रहा. वीणा ने पढ़ाई पूरी कर अमेरिका में ही नौकरी कर ली थी. पूरे 8 वर्षों बाद वह भारत लौट कर आई. उस में भारी परिवर्तन हो गया था. उस का बदन भर गया था. आंखों पर चश्मा लग गया था. बालों में दोचार रुपहले तार झांकने लगे थे. उसे देख कर सुधाकर व अहल्या धक से रह गए. पर कुछ बोल न सके.

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‘अब तुम्हारा क्या करने का इरादा है, बेटी?’ उन्होंने पूछा.

‘मेरा नौकरी कर के जी भर गया है. मैं अब शादी करना चाहती हूं. यदि मेरे लायक कोई लड़का है तो आप लोग बात चलाइए,’ उस ने कहा.

अहल्या और सुधाकर फिर से वर खोजने के काम में लग गए. पर अब स्थिति बदल चुकी थी. वीणा अब उतनी आकर्षक नहीं थी. समय ने उस पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी थी. उस ने समय से पहले ही प्रौढ़ता का जामा ओढ़ लिया था. वह अब नटखट, चुलबुली नहीं, धीरगंभीर हो गई थी.

उस के मातापिता जहां भी बात चलाते, उन्हें मायूसी ही हासिल होती थी. तभी एक दिन एक मित्र ने उन्हें भास्कर के बारे में बताया, ‘है तो वह विधुर. उस की पहली पत्नी की अचानक असमय मृत्यु हो गई. भास्कर नाम है उस का. वह इंजीनियर है. अच्छा कमाता है. खातेपीते घर का है.’

मांबाप ने वीणा पर दबाव डाल कर उसे शादी के लिए मना लिया. नवविवाहिता वीणा की सुप्त भावनाएं जाग उठीं. उस के दिल में हिलोरें उठने लगीं. वह दिवास्वप्नों में खो गई. वह अपने हिस्से की खुशियां बटोरने के लिए लालायित हो गई.

लेकिन भास्कर से उस का जरा भी तालमेल नहीं बैठा. उन में शुरू से ही पटती नहीं थी. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. भास्कर बहुत ही मितभाषी लेकिन हमेशा गुमसुम रहता. अपने में सीमित रहता.

वीणा ने बहुत कोशिश की कि उन में नजदीकियां बढ़ें पर यह इकतरफा प्रयास था. भास्कर का हृदय मानो एक दुर्भेध्य किला था. वह उस के मन की थाह न पा सकी थी. उसे समझ पाना मुश्किल था. पति और पत्नी में जो अंतरंगता व आत्मीयता होनी चाहिए, वह उन दोनों में नहीं थी. दोनों में दैहिक संबंध भी नाममात्र का था. दोनों एक ही घर में रहते पर अजनबियों की तरह. दोनों अपनीअपनी दुनिया में मस्त रहते, अपनीअपनी राह चलते.

दिनोंदिन वीणा और उस के बीच खाई बढ़ती गई. कभीकभी वीणा भविष्य के बारे में सोच कर चिंतित हो उठती. इस शुष्क स्वभाव वाले मनुष्य के साथ सारी जिंदगी कैसे कटेगी. इस ऊबभरे जीवन से वह कैसे नजात पाएगी, यह सोच निरंतर उस के मन को मथते रहती.

एक दिन वह अपने मातापिता के पास जा पहुंची. ‘मांपिताजी, मुझे इस आदमी से छुटकारा चाहिए,’ उस ने दोटूक कहा. अहल्या और सुधाकर स्तंभित रह गए, ‘यह क्या कह रही है तू? अचानक यह कैसा फैसला ले लिया तू ने? आखिर भास्कर में क्या बुराई है. अच्छे चालचलन का है. अच्छा कमाताधमाता है. तुझ से अच्छी तरह पेश आता है. कोई दहेजवहेज का लफड़ा तो नहीं है न?’

‘नहीं. सौ बात की एक बात है, मेरी उन से नहीं पटती. हमारे विचार नहीं मिलते. मैं अब एक दिन भी उन के साथ नहीं बिताना चाहती. हमारा अलग हो जाना ही बेहतर है.’

‘पागल न बन, बेटी. जराजरा सी बातों के लिए क्या शादी के बंधन को तोड़ना उचित है? बेटी शादी में समझौता करना पड़ता है. तालमेल बिठाना पड़ता है. अपने अहं को त्यागना पड़ता है.’

‘वह सब मैं जानती हूं. मैं ने अपनी तरफ से पूरा प्रयत्न कर के देख लिया पर हमेशा नाकाम रही. बस, मैं ने फैसला कर लिया है. आप लोगों को बताना जरूरी समझा, सो बता दिया.’

‘जल्दबाजी में कोई निर्णय न ले, वीणा. मैं तो सोचती हूं कि एक बच्चा हो जाएगा तो तेरी मुश्किलें दूर हो जाएंगी,’ मां अहल्या ने कहा.

वीणा विद्रूपता से हंसी. ‘जहां परस्पर चाहत और आकर्षण न हो, जहां मन न मिले वहां एक बच्चा कैसे पतिपत्नी के बीच की कड़ी बन सकता है? वह कैसे उन दोनों को एकदूसरे के करीब ला सकता है?’

अहल्या और सुधाकर गहरी सोच में पड़ गए. ‘इस लड़की ने तो एक भारी समस्या खड़ी कर दी,’ अहल्या बोली, ‘जरा सोचो, इतनी कोशिश से तो लड़की को पार लगाया. अब यह पति को छोड़छाड़ कर वापस घर आ बैठी, तो हम इसे सारा जीवन कैसे संभाल पाएंगे? हमारी भी तो उम्र हो रही है. इस लड़की ने तो बैठेबिठाए एक मुसीबत खड़ी कर दी.’

‘उसे किसी तरह समझाबुझा कर ऐसा पागलपन करने से रोको. हमारे परिवार में कभी किसी का तलाक नहीं हुआ. यह हमारे लिए डूब मरने की बात होगी. शादीब्याह कोई हंसीखेल है क्या. और फिर इसे यह भी तो सोचना चाहिए कि इस उम्र में एक तलाकशुदा लड़की की दोबारा शादी कैसे हो पाएगी. लड़के क्या सड़कों पर पड़े मिलते हैं? और इस में कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो इसे कोई मांग कर ले जाएगा,’ सुधाकर बोले.

‘देखो, मैं कोशिश कर के देखती हूं. पर मुझे नहीं लगता कि वीणा मानेगी. वह बड़ी जिद्दी होती जा रही है,’ अहल्या ने कहा.

‘‘तभी तो भुगत रही है. हमारा बस चलता तो इस की शादी कभी की हो गई होती. हमारे बेटों ने हमारी पसंद की लड़कियों से शादी की और अपनेअपने घर में खुश हैं, पर इस लड़की के ढंग ही निराले हैं. पहले प्रेमविवाह का खुमार सिर पर सवार हुआ, फिर विदेश जा कर पढ़ने का शौक चर्राया. खैर छोड़ो, जो होना है सो हो कर रहेगा.’’ बूढ़े दंपती ने बेटी को समझाबुझा कर वापस उस के घर भेज दिया.

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एक दिन अचानक हृदयगति रुक जाने से सुधाकर की मौत हो गई. दोनों बेटे विदेश से आए और औपचारिक दुख प्रकट कर वापस चले गए. वे मां को साथ ले जाना चाहते थे पर अहल्या इस के लिए तैयार नहीं हुई.

अहल्या किसी तरह अकेली अपने दिन काट रही थी कि सहसा बेटी के हादसे के बारे में सुन कर उस के हाथों के तोते उड़ गए. वह अपना सिर धुनने लगी. इस लड़की को यह क्या सूझी? अरे, शादी से खुश नहीं थी तो पति को तलाक दे देती और अकेले चैन से रहती. भला अपनी जान देने की क्या जरूरत थी? अब देखो, जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है. अपनी मां को इस बुढ़ापे में ऐसा गम दे दिया.

कोरोना काल में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं का ‘सहारा’ बनी योगी सरकार

लखनऊ . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर यूपी में कुपोषण के खात्मे के लिए पोषण अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान में कुपोषितों को पोषण युक्त आहार मिल रहा है. वहीं, गांवों में काम कर रही स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को रोजगार भी मिला है. कोरोना काल में भी कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं का ‘सहारा’ योगी सरकार बनी है.

सीएम योगी के निर्देश पर प्रदेश से कुपोषण के खात्मे के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं भी जुटी हैं. प्रदेश के 75 जिलों के सभी विकास खंडों में 63,000 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा कोटेदार के यहां से ड्राई राशन, गेहूं, चावल और नाफेड से मिले चना, दाल, एडिबले आयल का उठान कर उसकी पैकिंग की जा रही है. छह माह से तीन वर्ष तक के बच्चों, तीन से छह साल तक के बच्चों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं, अति कुपोषित बच्चों और किशोरी बालिकाओं के कुल 1,47,99,150 लाभार्थियों के लिए 1,64,714 आंगनबाड़ी केन्द्रों से ड्राई राशन वितरित किया जा रहा है. सरकार की ओर से शुरू की गई ड्राई राशन परियोजना से करीब 6,30,000 महिलाओं को रोजगार भी मिला है.

राज्य सरकार कोरोना काल में भी कुपोषण की शिकार मां, बच्चे और लड़कियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रही है. बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग को इसके लिए सरकार ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है. प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को फील्ड में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषक आहार वितरण में लगाया गया है. पोषण का लाभार्थियों को वितरण के लिए ऑनलाइन मॉनीटरिंग भी की जा रही है.

3060 महिलाओं को और मिलेगा रोजगार, आय में होगी वृद्धि

रेसिपी बेस्ट टेक होम राशन के लिए प्रदेश के 43 जिलों के 204 विकास खंडों में उत्पादन ईकाई की स्थापना कर 15 से 20 महिलाओं द्वारा रेसिपी तैयार कर आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरित किया जाना है. प्रथम चरण में फतेहपुर के विकास खंड मलवां और उन्नाव के विकास खंड बीघापुर में उत्पादन ईकाई की स्थापना की गई है. शेष 202 विकास खंडों में भी जल्द उत्पादन ईकाई की स्थापना होने वाली है. हर ईकाई में 15 से 20 महिलाएं काम करेंगी, जिससे करीब 3060 महिलाओं को रोजगार मिलेगा और उनकी आय में वृद्धि होगी.

सरकार के लगातार प्रयासों से कुपोषण में आ रही कमी

योगी सरकार ने कोरोना काल में कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को पोषण युक्त आहार पहुंचाने के लिए हाल ही में तीन महीने की राशि जारी की है. कुपोषित बच्चों और गर्भवती महिलाओं को अनाज, दाल, घी और दूध पाउडर बांटा जाता है. सरकार के लगातार किए जा रहे प्रयासों से गांवों में लगातार कुपोषण में कमी आ रही है.

काव्या को छोड़ अनुपमा की जान बचाने के लिए तैयार हुआ वनराज, क्या बच जाएगी जान

सीरियल अनुपमा में इन दिनों कई ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिल रहे हैं. जहां मेकर्स शो की कहानी में नए-नए ट्विस्ट लाने की तैयारी कर रहे हैं तो वहीं शो की टीआरपी में भी एक बार फिर उछाल देखने को मिला है. दूसरी तरफ शो की कहानी में अनुपमा जिंदगी और मौत से जूझ रही हैं तो वहीं काव्या की वनराज को पाने की कोशिशे तेज हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे..

सुहागरात की तैयारियां करती है काव्या

अब तक आपने देखा कि वनराज औऱ काव्या की शादी हो जाती हैं, जिसके बाद काव्या अनुपमा को ताने मारती हुई नजर आती है. हालांकि अनुपमा उसे करारा जवाब देती है. इसी बीच वनराज काव्या को वार्निंग देता है कि आज के बाद वह उसके परिवार के साथ ऐसा बर्ताव ना करे वरना बेहद बुरा होगा, जिसके बाद काव्या उसे मनाने की कोशिश करती है और अपनी सुहागरात की तैयारियां करती हैं. लेकिन इसी दौरान अनुपमा बेहोश हो जाती है और वनराज और पूरा शाह परिवार उसे अस्पताल ले जाता है.

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अनुपमा को खून देता है वनराज

अस्पताल पहुंचने के बाद डौक्टर अद्वैत बताता है कि अनुपमा को खून की जरुरत है, जिसके बाद वनराज उसे अपना खून देता है. दूसरी तरफ काव्या अपनी पहली रसोई बनाती है और बा बापूजी को खिलाने की कोशिश करती है. लेकिन कोई उसकी तरफ नहीं होता, जिसके कारण काव्या एक बार फिर भड़क जाती है.

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खतरे में पड़ी अनुपमा की जान

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सर्जरी के बाद भी अनुपमा की हालत में कोई सुधार नहीं आता. वहीं अचानक अनुपमा की हालत खराब होने लगेगी, जिसके कारण वनराज और समर परेशान और टूटते नजर आएंगे. इसी बीच अनुपमा की धड़कने रुक जाएंगी. अब देखना होगा कि जिंदगी की नई शुरुआत से पहले क्या अनुपमा अपनी जिंदगी हार जाएगी.

तुषार कपूर के इंडस्ट्री में हुए 20 साल पूरे, सिंगल फादर का निभा रहे हैं फर्ज

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 20 साल पूरे कर चुके अभिनेता और निर्माता तुषार कपूर को ख़ुशी इस बात से है कि उन्होंने एक अच्छी जर्नी इंडस्ट्री में तय किया है. हालांकि इस दौरान उनकी कुछ फिल्में सफल तो कुछ असफल भी रही, पर उन्होंने कभी इसे असहज नहीं समझा, क्योंकि सफलता और असफलता नदी के दो किनारे है. सफलता से ख़ुशी मिलती है और असफलता से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया, जिसमें उनके साथ अभिनेत्री करीना कपूर थी. पहली फिल्म सफल रही, उन्हें सर्वश्रेष्ठ डेब्यू कलाकार का ख़िताब मिला. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की, जो असफल साबित हुई. करीब दो वर्षों तक उन्हें असफलता मिलती रही, लेकिन फिल्म ‘खाकी’ से उनका कैरियर ग्राफ फिर चढ़ा और उन्होंने कई सफल फिल्में मसलन, ‘क्या कूल है हम’, गोलमाल, गोलमाल 3, ‘शूट आउट एट लोखंडवाला’ ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘गोलमाल रिटर्न्स’,आदि फिल्में की.तुषार की कोशिश हमेशा अलग-अलग फिल्मों में अलग किरदार निभाने की रही,लेकिन उन्हें कई बार टाइपकास्ट का शिकार होना पड़ा, क्योंकि कॉमेडी में वे अधिक सफल रहे और वैसी ही भूमिका उन्हें बार-बार मिलने लगी थी, जिससे निकलना मुश्किल हो रहा था. तब तुषार ने इसे चुनौती समझ,सफलता के बारें में न सोचकर अलग भूमिका करने लगे, क्योंकि वे फिल्म मेकिंग प्रोसेस को एन्जॉय करते है. शांत और विनम्र तुषार फ़िल्मी परिवार से होने के बावजूद उन्हें लोग कैरियर की शुरुआत में खुलकर बात करने की सलाह देते थे, जो उन्हें पसंद नहीं था.

कैरियर के दौरान एक समय ऐसा आया, जब तुषार कपूर अपने जीवन में कुछ परिवर्तन चाहते थे, जिसमें उनकी इच्छा एक बच्चे की थी. सरोगेसी का सहारा लेकर वे सिंगल फादर बने.उनका बेटालक्ष्य कपूर अभी 5 साल के हो चुके है. तुषार बेटे को भी वही आज़ादी देना चाहते है, जितना उन्हें अपनी माँ शोभा कपूर,पिता जीतेन्द्र और बहन एकता कपूर से मिला है. 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर उन्होंने बात की,जो बहुत रोचक थी पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-आपको सिंगल फादर होने की वजह से किस तरह के फायदे मिले?

टाइम मेनेजमेंट अच्छी तरह से हो जाता है. छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न देकर जरुरी चीजों पर अधिक ध्यान देने लगा हूं. अब अच्छी ऑर्गनाइज्ड, फोकस्ड,कॉन्फिडेंस और पर्पजफुल लाइफ हो चुकी है, जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था.

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सवाल-इतने सालों में इंडस्ट्री में किस प्रकार का बदलाव देखते है?

मोटे तौर पर कहा जाय तो इंडस्ट्री के नियम सालों से एक जैसे ही होती है, केवल पैकेजिंग बदल जाती है. ओटीटी माध्यम जुड़ गया है, पहले सिंगल स्क्रीन था, अब मल्टीप्लेक्स का समय आ गया है. इसके अलावा लोगों तक पहुँचने का जरिया, फिल्म मेकिंग का तरीका बदला है, लेकिन कहानियां वही बनायीं जाती है, जो दर्शकों को पसंद आये और कलाकारों के अभिनय का दायरा वही रहता है. मनोरंजन के साथ अच्छी कहानी की मांग कभी कम नहीं होती.

सवाल-आज से 21 साल पहले दिन की शूटिंग के अनुभव क्या थे?

पहला शॉट मैंने जून साल 2000 को फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ के लिए दिया था, जिसे करते हुए 21 साल हो गए. शूटिंग के पहले दिन मेरा पहला शॉट एक छड़ी पकड़कर करीना के घर आना था और करीना को प्यार का इजहार कर देना था. वह गुस्सा हो जाती है और मैं शॉक्ड होकर नींद से उठ जाता हूं और समझ में आता है कि ये एक सपना था, हकीकत नहीं और मैंने सोच लिया था कि उसे मैं कभी भी प्रपोज नहीं करूँगा. एक नाईटमेयर वाला सीक्वेंस था. उसे करने से पहले मैं बहुत खुश था, लेकिन अंदर से नर्वस भी था. सेट का वातावरण बड़ा फ़िल्मी लग रहा था. ये बहुत गलत कहा जाता है कि स्टार किड को रेड कारपेट दिया जाता है,जबकि सभी को जीरो से ही शुरू करना पड़ता है. जब समस्या आती है तो कोई सामने नहीं आता और मुझे वहां खड़े होकर सब कुछ सम्हालना पड़ा था. पहला दिन बहुत ख़राब गया, लेकिन धीरे-धीरे ये ठीक होता गया.

सवाल-आपने फिल्म ‘लक्ष्मी’ को प्रोड्यूस किया है, क्या अभिनय में आना नहीं चाहते?

मैं अभिनय अवश्य करूँगा,लेकिन लक्ष्मी की कहानी मुझे अच्छी लगी थीऔर अक्षय कुमार इसे करने के लिए राज़ी हुए इसलिए मैंने प्रोड्यूस किया. रिलीज में समस्या कोविड की वजह से आ गयी थी, लेकिन मुझे रिलीज करना था और मैंने ओटीटी पर रिलीज कर दिया और लोगों ने लॉकडाउन में इस फिल्म को देखकर हिट बना दिया.फिल्म को लेकर जितनी कमाई हुई, उससे मैं संतुष्ट हूं. मैं प्रोड्यूस अभिनय छोड़कर नहीं करना चाहता. अभी फिल्म ‘मारीच’  का काम मैंने ख़त्म किया है, जिसमें मैं अभिनय और प्रोड्यूस दोनों कर रहा हूं. अभिनय मेरे खून में है, जो कभी जा नहीं सकता. मैं अधिकतर साल में एक फिल्म या दो साल में एक फिल्म ही करता हूं. फिल्म प्रोड्यूस करना भी मुझे पसंद है, क्योंकि इसमें मैं कई तरह की फिल्मों का निर्माण कर सकता हूं. इस पेंडेमिक में ओटीटी और सेटेलाइट ही फिल्मों को रिलीज करने में वरदान सिद्ध हो रही है.

सवाल-आप विदेश में पढने गए और आकर फिल्में की, वहां की पढ़ाई से आपको अभिनय में किस प्रकार सहायता मिली और फिल्मों में अभिनय करने का फैसला कैसे लिया?

मैं वहां चार्टेड एकाउंटेंट बनने गया था, मेनेजमेंट किया और चार्टेड एकाउंटेंसी पढ़ा, जिसका फायदा मुझे बहुत मिला है. मैं अपनी एकाउंट, पिता और माँ की एकाउंट को सम्हालता हूं. फिल्म प्रोड्यूस करने में भी बजट के पूरा ख्याल, मैंने इस शिक्षा की वजह से कर पाया, क्योंकि किसी भी काम में पैसा सही जगह लग रहा है कि नहीं, देखना जरुरी होता है. केवल हस्ताक्षर कर देने से कई बार समस्या भी आती है. एजुकेशन हमेशा ही किसी न किसी रूप में काम आती है.

डिग्री लेने के बाद मैंने एक जॉब अमेरिका में लिया, उसे करने के बाद लगा कि कोर्पोरेट वर्ल्ड में काम करना संभव नहीं. कुछ क्रिएटिव काम करने की इच्छा होती थी. फिर मैं इंडिया आकर डेविड धवन के साथ एसिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया. उस दौरान ‘मुझे कुछ कहना है’ में मुझे अभिनय का अवसर मिला. मैंने उसे जॉब के रूप में लिया और अभिनय को समझा.

सवाल-आपके पिता ने आपको अभिनय में किस तरह का सहयोग दिया?

मेरे पिता ने मेरी पहले काम की प्रसंशा की और आगे और अच्छा करने की सलाह दी. फिर एक्टिंग क्लासेस, फाइट क्लासेस की शुरुआत कर दी और थोड़े दिनों बाद मैंने एक्टिंग शुरू किया. उनका कहना है कि मुझे खुद काम करके ही खुद की कमी को समझकर ठीक कर सकता हूं.उन्होंने हमेशा मेहनत से काम किया है और मुझे भी करने की सलाह दी.

सवाल-कब शादी करने वाले है?

मैं आज अपने बेटे के लिए काफी हूं और वैसे ही जीना चाहता हूं, क्योंकि शादी कर मैं अपने बेटे को किसी के साथ शेयर नहीं कर सकता. मुझे शादी करना है या नहीं,अभी इस बारें में सोचा नहीं है. मैंने कभी नहीं कहा है कि मैं शादी नहीं करूँगा. हर कोई अपना लाइफ पार्टनर चाहता है, फिर मैं क्यों नहीं चाहूंगा.

सवाल-आपके अभिनय को लेकर क्या किसी ने कुछ सलाह दी?

हाँ कुछ ने कहा था कि मैं थोडा शांत हूं, मुझे फिल्मी हो जाना चाहिए,क्योंकि शांत इंसान हीरो नहीं बन सकता, जो शरारती, शैतान टाइप के होते है, वे ही हीरो बनते है, लेकिन मुझे ये बात समझ में कभी नहीं आई. वे शायद मुझे पहले के हीरो के जैसे देखना चाहते थे, जो अकेला होकर भी कईयों को पीट सकता है. उसकी लम्बाई 6 फीट की हो और मीडिया में हमेशा उसके अफेयर की चर्चा हो आदि. उस समय हीरो मटेरियल होना जरुरी होता था. आज लोग हर तरह की कहानियों की एक्सपेरिमेंट कर रहे है. अभी दर्शकों की पसंद के आधार पर कोई हीरो बनता है.

सवाल-लॉकडाउन में अपने परिवार और बेटे के साथ समय कैसे बिताया?

मैंने लक्ष्य के साथ काफी समय बिताया, उसके स्कूल की पढाई पर ध्यान दिया. मेरे माता- पिता के साथ लक्ष्य दिन में रहता है, इसलिए मैं वहां जाकर समय बिता लेता हूं. जिम जाता हूं, स्क्रिप्ट पढता हूं, डबिंग करता हूं. इस तरह कुछ न कुछ चलता रहता है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि मैं बेटे के साथ कम समय बिता रहा हूं.

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सवाल-अभी कोविड कि तीसरी लहर आने वाली है, जो बच्चों के लिए खतरनाक है,लोग डरे हुए है, आपने लक्ष्य के लिए क्या तैयारी की है?

मैंने कोविड को खतरनाक हमेशा से ही माना है और सावधानी से बच्चे को दोस्त या दादी के घर ले जाते है. अधिक दूर मैं उसे लेकर नहीं जाता, जहाँ हायजिन और वैक्सीन लगाये लोग है, वहां ले जाता हूं.ऐसी कोई पक्की सबूत नहीं है कि तीसरा वेव आएगा और बच्चों के लिए खतरनाक है. सभी को सावधान रहने की जरुरत है. हमारे व्यवहार से ही वायरस को बढ़ने का मौका मिलता है. डर लगना जरुरी है, ताकि लोग घर से न निकले.

सवाल-आपकी पहली फिल्म की कुछ यादगार पल जिसे आप शेयर करना चाहे?

मेरी करीना के साथ कई यादें है, वह एक खुबसूरत अभिनेत्री है,मेरे साथ उसकी भी पहली फिल्म थी. उसकी फ्रेशनेस और ग्लैमर बहुत ही अलग थी. फिल्म के सफल होने में उसका काम दर्शकों को पसंद आना था. तब अधिक बात मैंने नहीं की थी. गोलमाल फिल्म के बाद हमारी अच्छी दोस्तीहो गयी थी.लॉकडाउन से पहले तैमूर और मेरा बेटा लक्ष्य साथ-साथ खेलते थे,लेकिन अभी कोरोना की वजह से जाना नहीं होता.

सवाल-फिल्मों की असफलता को आपने कैसे लिया?

कुछ फिल्मों के असफल होने पर मैंने परिवार से मोरल सपोर्ट लिया.असल में खुद को ही किसी असफलता की कर्व से गुजर कर आगे बढ़ना पड़ता है. सबसे बड़े स्टार भी कई बार गलत फिल्म ले लेते है और उससे निकलकर एक अच्छी फिल्म करते है और खुद को स्थापित करते है. मुझे थोडा समय लगा, क्योंकिमैं भी वैसी ही एक फिल्म चाहता था, ताकि लोग मुझे पसंद करने लगे और वह मेरी फिल्म ‘खाकी’ से हुआ.

सवाल-इन 20 सालों में फ़िल्मी कहानियों में कितना बदलाव देखते है?

कमर्शियल कहानियों में बदलाव आया है. पैकेजिंग पहले से अलग हो गयी है.आज किसी एक्शन फिल्म के लिए टीम को विदेश ले जाया जाता है, लेकिन हमारे देश के दर्शक इमोशनल है, इसलिए उन्हें इमोशन वाली कहानियां, जो मिट्टी से जुडी हुई हो, आज भी चलती है और कहानियों में जो ग्लैमर है, उसे भी नहीं जाना चाहिए. आज भी हीरो रोमांस, एक्शन और कॉमेडी करता है. ये भी सही है कि अभी ऑफ़बीट, रीयलिस्टिक फिल्मों को भी दर्शक पसंद करने लगे है, जिसे पहले लोग देखना पसंद नहीं करते थे.

कोरोना की नई लहर बदहाली में फंसे सिनेमाघर

कोरोना संक्रमण के डर से 2-3 माह सिनेमाघर खुले रहे पर उन के अंदर देखने के लिए दर्शक नहीं आ रहे थे. उम्मीद थी कि ‘राधे,’ ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के प्रदर्शन से दर्शक सिनेमाघर की तरफ लौटेंगे और इस से सिनेमाघर की रौनक लौटने के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को भी कुछ राहत मिलेगी, मगर कोरोना की नई लहर के चलते महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के सिनेमाघर 25 मार्च से बंद कर दिए गए. परिणामत: अब ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी,’ ‘थलाइवी’ जैसी बड़े बजट की फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चित काल के लिए टल गया है.

सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि मराठी भाषा की ‘जोंमीवली,’ ‘फ्री हिट डंका,’ ‘झिम्मा,’ ‘बली,’ ‘गोदावरी’ फिल्मों का प्रदर्शन भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया.

सलमान खान ने अपनी फिल्म ‘राधे’ को ले कर यहां तक कह दिया है कि इस ईद पर हालात बेहतर नहीं रहे तो इसे अगली ईद पर सिनेमाघरों में ही रिलीज किया जाएगा. ‘सूर्यवंशी’ और ‘चेहरे’ के निर्माता भी कह रहे हैं कि मई से हालात बेहतर हो जाएंगे तब फिल्में सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करेंगे.

यों तो ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म इन बड़े बजट वाली फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रदर्शित करने का अपने हिसाब से निर्माताओं पर जोरदार दबाव बना रहे हैं. मगर एक कड़वा सच यह है कि ओटीटी पर बड़े बजट की फिल्म के आने से फिल्म इंडस्ट्री का भला कदापि नहीं हो सकता.

फिल्म इंडस्ट्री को खत्म करने की साजिश

वास्तव में इस वक्त बरबादी के कगार पर पहुंच चुकी फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा के लिए खत्म करने की साजिश के तहत कुछ लोगों द्वारा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का एक खतरनाक प्रयास किया जा रहा है. यह फिल्म इंडस्ट्री के लिए अति नाजुक मोड़ है.

निर्माता को यकीनन अपनी फिल्म को बड़े परदे यानी सिनेमाघरों में प्रदर्शन पर ही दांव लगाना चाहिए. अगर बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए नहीं बचीं तो सिंगल थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स को तबाह होने से कोई नहीं बचा पाएगा. यदि थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स खत्म होना शुरू हुए तो फिल्म उद्योग की कमर टूटने से कोई नहीं बचा सकता. इस से फिल्म इंडस्ट्री हमेशा के लिए तबाह हो जाएगी और इस का पुन: उठना शायद संभव न हो पाए. ओटीटी प्लेटफौर्म का मकसद फिल्म इंडस्ट्री को बचाना कदापि नहीं है. इन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से कोई सराकोर ही नहीं है. ये तो हौलीवुड के नक्शेकदम पर काम कर रहे हैं. हौलीवुड ने अपनी कार्यशैली से पूरे यूरोप के सिनेमा को खत्म कर हर जगह अपनी पैठ बना ली.

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एक कड़वा सच

यह एक कड़वा सच है. फिल्मों के ओटीटी पर आने से निर्माता को भी कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. अब तक अपनी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म ‘हौटस्टार प्लस डिजनी’ पर आनंद पंडित की फिल्म ‘बिग बुल’ आई थी. मगर अब आनंद पंडित अपनी अमिताभ बच्चन व इमरान हाशमी के अभिनय से सजी फिल्म ‘चेहरे’ को किसी भी सूरत में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने को तैयार नहीं हैं, जबकि ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से उन पर काफी दबाव बनाया जा रहा है.

खुद आनंद पंडित कहते हैं, ‘‘यह सच है कि हम पर फिल्म ‘चेहरे’ को ओटीटी पर लाने का जबरदस्त दबाव है. इस की मूल वजह यह है कि हमारे देश मे 5-6 बड़ी ओटीटी कंपनियां हैं. इन्हें बड़ी फिल्में ही चाहिए. खासकर रोमांच थ्रिलर की और जिन में उत्तर भारत की पहाडि़यों का एहसास हो.

मगर ‘द बिग बुल’ से हमें कटु अनुभव हुए. फिल्म ‘बिग बुल’ से हमें टेबल प्रौफिट हुआ है, मगर इस का उतना फायदा नहीं हुआ जितना सिनेमाघर के बौक्स औफिस से मिल सकता था. इसलिए हम ने ‘चेहरे’ को सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करने के लिए रोका है. वैसे हमें भरोसा है कि मई के अंतिम सप्ताह तक सिनेमाघर खुल जाएंगे तो हम जून या जुलाई तक फिल्म को सिनेमाघर में ले कर जाएंगे.’’

आनंद पंडित की बातों में काफी सचाई है. माना कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म को देने से निर्माता को तुरंत लाभ मिल जाता है, मगर किसी भी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म उतना लाभ नहीं दे सकता जितना सिनेमाघरों के बौक्स औफिस से मिल सकता है.

इस का सब से बड़ा उदाहरण राजकुमार राव की फिल्म ‘स्त्री’ है. इस फिल्म की निर्माण लागत 2 करोड़ रुपए थी और इस ने सिनेमाघर के बौक्स औफिस पर 150 करोड़ रुपए कमाए थे. जबकि ओटीटी पर इसे अधिकाधिक 15 करोड़ रुपए ही मिलते. सूत्रों के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्र यह मान कर चल रहे हैं कि

यदि ‘सूर्यवंशी’ ओटीटी पर आई तो 50 करोड़ रुपए और अगर सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई तो 100 करोड़ रुपए का फायदा होगा.

हमें यहां यह भी याद रखना होगा कि फिल्म इंडस्ट्री को बंद होने के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक है कि फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हों और अपनी गुणवत्ता के आधार पर अधिकाधिक कमाई करें.

बेदम फिल्म इंडस्ट्री

यों तो कोरोना की वजह से पिछले 1 साल से जिस तरह के हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए इस बात की कल्पना करना कि 2021 में फिल्मों को बौक्स औफिस पर बड़ी सफलता मिलेगी सपने देखने के समान ही है. ‘राधे’ या ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघरों में प्रदर्शन की खबरों से कुछ उम्मीदें जरूर बंधी थीं पर उस पर कोरोना की नई लहर ने कुठाराघात कर दिया.

सिनेमाघर भी तबाह

कोरोना महामारी के चलते 17 मार्च से पूरी तरह से बंद हो चुके मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर के मालिकों व इन से जुड़े कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ी है. मल्टीप्लैक्स चला रहे लोगों की कमाई व इन के कर्मचारियों के वेतन ठप्प हुए और ऊपर से कर्ज भी हो गया.

नवंबर माह से सरकार द्वारा सब कुछ खोल देने व सिनेमाघरों में 50% दर्शकों की उपस्थिति की शर्त से सिनेमाघर मालिकों की कमाई बढ़ने के बजाय उन का संकट बढ़ गया. ऐसे में कोई भी सिनेमाघरों के हालात पूरी तरह से सुधरने तक उन्हें नहीं खोलना चाहता था. कई शहरों के कई मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर नवंबर या फरवरी 2021 में भी नहीं खुले.

तो फिर सवाल उठता है कि जो मल्टीप्लैक्स खुले हैं वे क्यों खुले हैं और इन की स्थिति क्या है? देखिए, पूरे देश में पीवीआर के सर्वाधिक मल्टीप्लैक्स हैं और ये मल्टीप्लैक्स किसी न किसी शौपिंग मौल में हैं और किराए पर लिए गए हैं. जब शौपिंग मौल्स खुल गए तो इन पर मल्टीप्लैक्स खोलने का दबाव बढ़ा.

शौपिंग मौल के मालिक को किराया चाहिए. अब पूरे माह मल्टीप्लैक्स में भले ही 1-2 शो हो रहे हों पर उन्हें कोरोना की एसओपी के तहत सैनीटाइजर से ले कर साफसफाई पर पैसा खर्च करना पड़ रहा है. कर्मचारियों को पूरे माह की तनख्वाह देनी पड़ रही है.

बिजली का लंबाचौड़ा बिल भरना पड़ रहा है, जबकि हर शो में 3-4 ज्यादा दर्शक नहीं आ रहे हैं. परिणामत: सिनेमाघर वालों को अपनी जेब से सारे खर्च वहन करने पड़ रहे हैं. तो यह इन के लिए पूर्णरूपेण का सौदा है. इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ रहा है. सिनेमाघर फायदे में तब होंगे जब उन के सभी शो चलें और हर शो में काफी दर्शक हों.

सिनेमाघर में इन दिनों दर्शक न पहुंचने की कई वजहें हैं. पहली वजह तो दर्शक के मन में कोरोना का डार. दूसरी वजह कोरोना महामारी व लौकडाउन के चलते सभी की आर्थिक हालत का खराब होना है. ऐसे में दर्शक सिनेमाघर जा कर फिल्म देखने के लिए पैसे खर्च करने से पहले दस बार सोचता है. तीसरी वजह अच्छी फिल्मों का अभाव.

कुछ फिल्में लौकडाउन के वक्त निर्माताओं की जल्दबाजी के चलते पहले ही ओटीटी पर आ गईं. ‘राधे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी फिल्में सिनेमाघर में आने से पहले हालात बेहतर होने का इंतजार कर रही थीं, तो वहीं पूरे 6 माह तक एक भी शूटिंग न हो पाने के चलते भी फिल्मों का अभाव हो गया है.

कुछ फिल्मों की शूटिंग चल रही थी तो अनुमान था कि ‘राधे’ व ‘सूर्यवंशी’ के प्रदर्शन से एक माहौल बनेगा, दर्शक सिनेमाघरों की तरफ मुड़ेंगे और फिर जूनजुलाई 2021 से नई फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार हो जाएंगी. मगर अब यह उम्मीद भी खत्म हो चुकी है, क्योंकि कोरोना की नई लहर के चलते फिल्मों की शूटिंग में काफी बड़ा अड़ंगा लग चुका है.

अब तो कुछ जगह सिनेमाघर पूर्णरूपेण बंद हो चुके हैं. कुछ जगह पर नाइट कर्फ्यू है तो दिन में मुश्किल से ही 2 शो हो सकते हैं पर उन शो के लिए फिल्में नहीं हैं.

सिनेमाघरों की माली हालत तभी सुधरेगी और सभी सिनेमाघर तब खुल सकते हैं जब बड़े बजट या अच्छी कहानी वाली बेहतरीन फिल्में लगातार कई हफ्तों तक सिनेमाघरों मे प्रदर्शित होने के लिए उपलब्ध होंगी जोकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 2021 में तो नामुमकिन ही लग रहा है. इस से भी फिल्म इंडस्ट्री की नैया डूबी है.

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यहां इस बात पर भी विचार करना होगा कि जो सिनेमाघर बंद हैं क्या उन से फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान नहीं हो रहा है? ऐसा नहीं है. जो सिनेमाघर किराए पर नहीं हैं उन के मालिकों ने फिलहाल बंद रखा हुआ है, क्योंकि उन्हें किराया तो देना नहीं है.

सिनेमाघर जब तक बंद रहेंगे तब तक उन्हें बिजली का बिल भी न्यूनतम यानी यदि सिनेमाघर खुले रहने पर हजार रुपए देने पड़ते थे तो अब बंद रहने पर सिर्फ 100 रुपए देने पड़ते होंगे.

इस के अलावा इन्हें अपने कर्मचारियों को तनख्वाह भी नहीं देनी है. इस तरह ये खुद कम नुकसान में हैं, मगर इन की कमाई पूरी तरह बंद है. इस से फिल्म वितरक भी नुकसान में हैं. इस से घूमफिर कर फिल्म इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंच रहा है.

बड़े कलाकारों की भूमिका

कोरोना महामारी की वजह से फिल्मों व टीवी सीरियल के बजट में भी कटौती की गई है. जुलाई, 2020 माह में तय किया गया था कि कलाकार और वर्कर हर किसी की फीस में कटौती की जाएगी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के सूत्रों की मानें तो ऐसा सिर्फ वर्कर व तकनीशियन के साथ हुआ है.

फिल्म हो या टीवी सीरियल हर जगह कोरोना लहर की वापसी के बाद भी दिग्गज कलाकार अपनी मनमानी कीमत ही निर्माता से वसूल रहे हैं और निर्माता भी इन बड़े कलाकारों के सामने नतमस्तक हैं.

कोरोना लहर के दौरान फिल्मकार पहले की तरह अपनी फिल्म का प्रचार नहीं कर रहे हैं. फिल्म के विज्ञापन नहीं दे रहे हैं. मगर वे फिल्म के सिनेमाघर में प्रदर्शन के बाद अपने पीआरओ के माध्यम से जुटाए गए स्टार की सूची का विज्ञापन सोशल मीडिया के हर प्लेटफौर्म के अलावा चंद अंगरेजी के अखबारों में जरूर दे रहे हैं. जबकि दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.

हाल ही में जब हम ने एक ऐसे ही पत्रकार के यूट्यूब चैनल पर जा कर उस की फिल्म ‘बिग बुल’ की समीक्षा देखी जिसे उस ने साढ़े तीन स्टार दिए थे तो पाया कि कई दर्शकों ने उस के कमैंट बौक्स में सवाल पूछा था कि क्या आप बता सकते हैं कि आप ने किस फिल्म को तीन से कम स्टार दिए हैं? यानी खराब से खराब फिल्म की समीक्षा में अच्छे स्टार दिलाने का भी एक नया व्यापार शुरू हो गया है. मगर इस संस्कृति से भी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है.

फिल्म इंडस्ट्री तभी संकट से उबर सकेगी जब उस से जुड़े हर तबके, वर्कर, तकनीशियन, निर्माता, निर्देशक व कलाकार के साथसाथ फिल्म वितरक, ऐग्जिविटर व सिनेमाघर मालिकों के हितों का भी ध्यान रखा जाए. मगर कोरोना की नई लहर के साथ जिस तरह का माहौल बना है उस से यही आभास होता है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर नहीं पाएगी.

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