Serial Story: न उम्र की सीमा हो- भाग 1

नलिनी औफिस पहुंच कर अपनी सीट पर बैठी. नजरें अपनेआप कोने की ओर उठ गईं. विकास उसे ही देख रहा था. नलिनी ने पहली बार महसूस किया कि आंखें मौन रह कर भी कितनी स्पष्ट बातें कर जाती हैं और बचपन से जिस उदासी ने उस के अंदर डेरा जमा रखा था, वह धीरेधीरे दूर होने लगा है. एक उत्साह, एक उमंग सी भरने लगी है उस के रोमरोम में. नलिनी का मन शायद वर्षों से कुछ मांग रहा था, सूखे पड़े जीवन के लिए मांग रहा था थोड़ा पानी और अचानक बिना मांगे ही जैसे सुख की मूसलाधार बारिश मिल गई हो.

नलिनी ने बैग खोला, फाइल निकाली और काम शुरू किया. फिर विकास की तरफ देखा. वह एक पुरुष की मुग्ध दृष्टि थी जो नारी के सौंदर्यभाव से दीप्त थी. नलिनी की आंखें झुक गईं. वह बस हलका सा मुसकरा दी. विकास वहीं उठ कर चला आया, बोला, ‘‘आज बड़ी देर कर दी?’’

‘‘हां, 2 बसें छोड़नी पड़ीं… बहुत भीड़ थी.’’

‘‘तुम से कितनी बार कहा है, मेरे साथ आ जाया करो. आज शाम को जल्दी न हो तो मेरे साथ बीच पर चलना पसंद करोगी?’’

नलिनी ने संभल कर उस की तरफ देखा. न जाने क्यों उस की आंखों का सामना न कर पाती थी. उस ने सिर झुका लिया. दोनों के बीच गहरी खामोशी छाई रही. नलिनी को लगा विकास की नजरें जैसे देखती नहीं थीं, छूती थीं. वे जहां से हो कर बढ़ती थीं जैसे उस के रोमरोम को सहला जाती थीं.

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नलिनी के मुंह से इतना ही निकल सका, ‘‘ठीक है, चलेंगे.’’

विकास थैंक्स कह कर अपनी सीट पर जा कर काम करने लगा.

पूरा दिन दोनों अपनीअपनी जगह घड़ी देखते रहे. शायद जीवन में पहली बार नलिनी ने ठीक 5 बजे अपना बैग समेट लिया. विकास तो जैसे तैयार ही बैठा था. विकास की गाड़ी से दोनों समुद्र के किनारे पहुंच गए.

शाम सी बीच पर झागदार लहरों में अपने पांव डुबोए शीतल नम हवा के स्पंदन को अपने रोमरोम में स्पर्श करने के स्वर्गिक आनंद में कुछ देर दोनों डूबे रहे. फिर दोनों एक किनारे पत्थरों पर बैठ गए. नलिनी समझ नहीं पाई वह इतना घबरा क्यों रही है. उस ने पुरुष दृष्टि का न जाने कितनी बार सामना किया था, मगर विकास की नजर उसे बेचैन कर रही थी. विकास की दृष्टि में प्रशंसा थी और वह प्रशंसा उस के शरीर को जितना पिघला रही थी उस का मन उतना ही घबरा रहा था.

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विकास कह रहा था, ‘‘तुम बहुत सुंदर हो, तन से भी और मन से भी. यहां मुंबई आए 1 साल हो गया है मुझे, कितनी बार सोचा तुम्हारे साथ यहां आऊं. आज जा कर आ पाया हूं तुम्हारे साथ.’’

अपने रूप की प्रशंसा सब को अच्छी लगती है. नलिनी भी सम्मोहित सी उसे देखती रही. सोच रही थी, वह उस से छोटा है, कई साल छोटा, चेहरे पर खुलापन था, मोह लेने वाली शराफत थी. विकास ने उसे अपने बारे में, अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के मातापिता मेरठ में रहते हैं और वह उन का इकलौता बेटा है, यहां अपने कुछ दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर कर के रहता है.

समुद्र में सूरज का गोला लालभभूका हो धीरेधीरे उतर रहा था और उस के जीवन की कहानी भी धीरेधीरे बंद किताब के पन्नों सी विकास के सामने फड़फड़ाने लगी.

शुरुआत विकास ने ही यह पूछ कर कर दी थी, ‘‘कई महीनों से देख रहा हूं तुम्हें, मुझे ऐसा लगता है तुम ने खुद को एक सख्त खोल में छिपा रखा हो जैसे तुम्हारी आंखों में रहने वाली एक उदासी, मुझे अपनी ओर खींचती है नलिनी, तुम मुझ पर विश्वास कर के अपना दिल हलका कर सकती हो.’’

‘‘मुझे अपने चारों ओर खोल बनाना पड़ा. खुद को बचाने के लिए, चोट खाने और दर्द से दूर रहने के लिए. अगर ऐसा न करती तो शायद पागल हो गई होती. मेरे पापा की मृत्यु हुई तो कुछ दिन मृत्यु और शोक के रस्मोरिवाज निभाते हुए मैं ने जैसे सारे जीवन के लिए मिले आंसू बहा दिए. अपने छोटे दोनों भाइयों को अंतिम संस्कार करते देख मैं बहुत रोई. मैं बड़ी थी. उन दोनों पर क्या जिम्मेदारी डालती. पापा की मृत्यु कार्यकाल में ही हुई थी, इसलिए मानवीय दृष्टिकोण से मुझे उन के विभाग में ही यह नौकरी मिल गई और इसी के साथ अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ पड़ी. मां को मेरा ही सहारा था. अगर मेरे लिए कोई रिश्ता आ जाता तो मां मुझे याद दिलातीं कि शादी करने और परिवार बसाने से पहले क्या तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं करनी चाहिए?’’

और मेरे दोनों भाई जब पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो गए तो मां को उन के विवाह की चिंता सताने लगी. मेरे लिए रिश्ते आते. मैं इंतजार करती कि शायद मां या मेरी छोटी बहन कुसुम कुछ कहे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा. मैं भी इस दर्द को पी गई और अपने दिल की बात अपने अंदर ही रहने दी. फिर भाइयों की भी शादी हो गई और वे अब विदेश जा बसे हैं. कुसुम की भी शादी हो गई है. मां मेरे साथ रहती हैं. अब मैं 35 साल की होने वाली हूं.’’

‘‘क्या?’’ विकास चौंक पड़ा, फिर हंसा, ‘‘अरे, लगती तो नहीं हो,’’ फिर उस के हाथ पर हाथ रख कर कहने लगा, ‘‘बहुत सोच लिया तुम ने सब के बारे में. अब दुनिया की परवाह करना बंद कर दो तो जीवन आसान हो जाएगा. बस, याद रखना कि तुम्हें ही अपना ध्यान रखना है.’’

विकास की आंखों में नलिनी ने वह सबकुछ पढ़ लिया था जिस की उम्मीद एक स्त्री किसी पुरुष से कर सकती है. वे दोनों साथसाथ चुप बैठे रहे. उस का शरीर विकास के शरीर को छू रहा था, उन के खयाल एकदूसरे के पास मंडरा रहे थे, उन का रिश्ता एक नए मोड़ पर आ पहुंचा था.

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अब अचानक नलिनी के जीवन में वसंत आ गया था. धीरेधीरे विकास उस के हर खयाल, हर पल पर छा गया. औफिस में यों ही नजर भर देखना जैसे ढेरों बातें कह जाता, हाथों के मामूली स्पर्श से भी जैसे बदन में लपटें उठने लगतीं, नन्हेनन्हे शोले भड़क उठते जो हर तर्क को जला देते. वे कभी समुद्र किनारे मिलते, कभी एकांत पार्क में, लहरों के शोर से खामोश रेत में बैठे रहते एकदूसरे का हाथ थामे. वह जानती थी उस से बड़ी होने के बावजूद उस का शरीर अभी भी सुडौल और जवान है. पहले वे इसी में खुश थे, लेकिन अब ज्यादा चाहने लगे थे. जब नलिनी घर जाने के लिए उठती तो उसे हमेशा ऐसा लगता जैसे कुछ अधूरा रह गया हो. अगले दिन जब दोनों मिलते तो यह असंतोष उन्हें और बेचैन कर देता. अब नलिनी का दिल चाहता कि वे कहीं दूर चले जाएं और रातभर साथ रहें. वह विकास की बांहों में सोए पर वह कुछ कह न पाती. प्यार में सब शक्तियां होती हैं बस एक बोलने की नहीं होती.

आगे पढ़ें- एक दिन विकास ने नलिनी के सामने…

Serial Story: न उम्र की सीमा हो- भाग 2

विकास के दिल की भी यही हालत थी. वह भी चाहता था रातदिन नलिनी के साथ रहे. वह नलिनी के प्रेम में पूरी तरह डूब चुका था और नलिनी उस के.

फिर एक दिन विकास ने नलिनी के सामने विवाह का प्रस्ताव भी रख दिया और उसे समझाया कि तुम्हारी मम्मी बाद में भी हमारे साथ रह सकती हैं. अब तुम उन से बात कर लो.

जब नलिनी ने अपनी मां से इस विवाह की बात की तो उन्होंने तूफान खड़ा कर दिया. ऐसीऐसी बातें कीं, जिन्हें सुन कर नलिनी को शर्म आ गई. उन्होंने उसे अधेड़ कुंआरी मान लिया था. दोनों बेटे विदेश में थे, कुसुम की आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी, वे अपने भविष्य की सुखसुविधाओं के लिए नलिनी के विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी.

नलिनी मां को समझासमझा कर थक गई कि विवाह के बाद भी उन का ध्यान रखेगी, लेकिन वे टस से मस नहीं हुईं और रोरो कर इतना तमाशा किया कि नलिनी ने ही हार मान ली.

विकास ने यह सब सुना तो बहुत दुखी हुआ. वह उन के मन बदलने का इंतजार करने के लिए तैयार था. औफिस में पूरा दिन दोनों उदास रहे. कुछ समझ नहीं आ रहा था.

शाम को विकास ने नलिनी को उदास व गंभीर देख कर कहा, ‘‘चलो, वीकैंड पर काशिद बीच घूम आते हैं. कुछ मन बहल जाएगा. सोचते हैं, क्या कर सकते हैं.’’

थोड़े संकोच के बाद नलिनी तैयार हो गई. वह कब तक अपनी इच्छाओं को दबाए? क्या वह अपने लिए कभी नहीं जी पाएगी? वह विकास के साथ खुशीखुशी घूम कर आएगी.

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शनिवार को निकलना था, शुक्रवार की रात उसे नींद नहीं आई. उसे अजीबअजीब एहसास होता रहा. वह सोचती रही, क्या विवाह से पहले वाली शाम को दुलहनें ऐसा ही महसूस करती होंगी. पहली बार उस ने कुछ अपनी खुशी के लिए सोचा है, क्या मां कभी नहीं सोचेंगी कि उसे भी किसी की जरूरत है, किसी का प्यार चाहिए, ये सब सोचतेसोचते उस की आंख लग गई.

नलिनी आवेगी नहीं थी, पूरा समय लगा कर हर काम करती. विकास के साथ जाने के लिए उस ने अच्छी तरह सोचसमझ लिया और जब हर कोण और नजरिए से सोच लिया था तभी फैसला लिया. उस की मां को उस का जाना अच्छा नहीं लगेगा वह जानती थी. इन दिनों वह जो भी करती या कहती, उस की मां को उस पर संदेह होता. उसे बैग पैक करते देख उस की मां की आंखों में संदेह उभर आया. वह जानती थी मां क्या सोच रही हैं, वह अकेली जा रही है या उस के साथ कोई है.

उस ने मां को इतना ही बताया, ‘‘औफिस से फैमिली पिकनिक जा रही है, मैं भी जा रही हूं.’’

‘‘आज से पहले तो कभी पिकनिक पर नहीं गई?’’ वे बोलीं.

‘‘आज जा रही हूं, पहली बार.’’

विकास की कार से ही दोनों 3 घंटे में काशिद बीच पहुंच गए. होटल में

रूम लिया, फिर खाना खाया. थोड़ा घूम कर आए. रूम में पहुंच कर विकास ने नलिनी को अपनी बांहों में ले लिया. बोला, ‘‘तुम्हारी आंखों की हसरत, दिल के रंग मुझे दिखते हैं नलिनी.’’

नलिनी कसमसा उठी. देह का अपना संगीत, अपना राग होता है. उसे पहले कभी कुछ इतना अच्छा नहीं लगा था. एक कसक भरे तनाव ने उसे जकड़ लिया, वह विकास की बांहों में बंधी झरने के पानी की तरह बहती चली गई. जीवन में पहली बार उस ने अनुभव किया कि पुरुष का शरीर तपता हुआ लोहा है और वह हर औरत की तरह मोम सी पिगलती जा रही है. उस दिन वे पहली बार एक हुए. चांद जब होटल की खिड़की से आधी रात को झांकता तो देखता, दोनों परम तृप्त, बेसुध, एकदूसरे पर समर्पित नींद में होते.

संडे दोपहर तक दोनों एकदूसरे में खोए रहे, अब वापस मुंबई के लिए निकलना था. घर आते समय नलिनी कई बातों को ले कर मन में व्यथित थी. विकास ने कई बार पूछा, लेकिन वह टाल गई. घर आ कर चुपचाप सो गई. मां ने भी थकान समझ कर कुछ नहीं कहा.

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लेकिन अगले दिन औफिस के लिए तैयार होते हुए वह शीशे के सामने बैठ गई. 2 दिन से जो बात मन में बैठ गई थी, वह साफ दिखाई देने लगी. वह अपनी आंखों के नीचे उम्र के दायरे देख थोड़ा सहमी. बारीक लकीरें उम्र की चुगली कर रही थीं. उस ने सोचा वे कैसे लगते हैं एक युवक और एक अधेड़ महिला, समय के साथ स्थिति और बिगड़ेगी ही. उसे आजकल वे सारी निगाहें चुभने लगी थीं जो अकसर होटलों,

पार्कों में उन्हें घूरती थीं. वे बेमेल थे और विकास जो चाहे कह ले इस सच को बदला नहीं जा सकता था.

अभी काशिद बीच पर लोगों की नजरें उसे याद आ रही थीं. उसे लगा वह हर समय यही सोच कर डरती रहेगी कि वह उस से पहले बूढ़ी हो जाएगी और विकास कहीं उस से मुंह न फेर ले. फिर वह विकास के बिना कैसे जी पाएगी. वह शीशे के सामने बैठी बहुत देर तक अपनी सोच में गुम रही. फिर दिल पर पत्थर रख कर एक फैसला उस ने ले ही लिया जो उस के लिए इतना आसान नहीं था.

नलिनी ने औफिस से पहली बार 1 हफ्ते की छुट्टी ले ली. विकास ने उस के मोबाइल पर कई बार फोन किया, लेकिन उस ने नहीं उठाया. वह पता नहीं किन सोचों में घिरी रहती. उस की मां चुपचाप उसे देखती रहतीं, बोलतीं कुछ नहीं.

जब विकास रातदिन कई बार फोन करता रहा तो उस ने अपनेआप को मजबूत बनाते हुए विकास से कह ही दिया, ‘‘इतने दिन से मैं खुद को समझाने की कोशिश कर रही हूं कि इस से फर्क नहीं पड़ता कि हम अपने प्यार से उम्र के फासले को पाट लेंगे पर मुझे नहीं लगता मैं ऐसा कर पाऊंगी. जब भी लोग हमें देखते हैं, मुझे उन की नजरों में प्रश्न दिखता है. यह इस औरत के साथ क्या कर रहा है, मुझे बहुत दुख होता है. मैं बड़ी हूं और मैं इस खयाल के साथ नहीं जी सकती कि एक दिन तुम इस रिश्ते पर पछताओ या मुझ से दूर हो जाओ और मैं खाली हाथ रह जाऊं. काशिद पर घूमते हुए लोगों की नजरें तुम्हें याद हैं न?’’

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विकास नलिनी को समझाता रह गया, अपने प्यार का वास्ता देता रहा पर नलिनी के मन में उम्र के फासले को ले कर जो बात बैठ गई थी उसे वह चाह कर भी निकाल नहीं पाई. विकास कभी नलिनी के घर नहीं आया था. औफिस में ही उस के आने का इंतजार करता रहा और जब नलिनी एक दिन अकेलेपन से घबरा कर औफिस चली आई तो विकास उसे देख कर अपनी जगह जमा खड़ा रह गया. नलिनी बहुत उदास और कमजोर लग रही थी. लंचटाइम में विकास उसे जबरदस्ती कैंटीन ले गया. हर तरह से उसे समझाता रहा, लेकिन नलिनी बुत बनी बैठी रही. उम्र के फर्क को नजरअंदाज करने के लिए तैयार नहीं हुई. उस ने जैसे खुद को पत्थर बना लिया था.

आगे पढ़ें- नलिनी का चेहरा आंसुओं से…

अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी की ‘चेहरे’ के टीजर को मिला जबरदस्त रिस्पौंस, पढ़ें खबर

बौलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी अभिनीत तथा रूमी जाफरी निर्देशिम फिल्म ‘‘चेहरे’का ट्रेलर 18 मार्च 2021 को बाजार में आएगा. इस बीच,  फिल्म के निर्माताओं ने अमिताभ बच्चन की आकर्षक एकल तस्वीर वाला फिल्म का पोस्टर रिलीज किया है. फिल्म में मेगास्टार के डैपर और तेजतर्रार लुक की बात की गई है.

जब से फिल्म की घोषणा हुई थी, तभी से यह फिल्म चर्चा में बनी हुई है. जबकि फिल्म के निर्माताओं ने इस फिल्म की कहानी को अब तक छिपाकर रखा है. लेकिन कहा जा रहा है कि फिल्म‘‘चेहरे’’में अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी के बीच जो खेल खेला जाएगा, वह काफी रोमांचक है. इतना ही नही ‘चेहरे’वह फिल्म है, जिसमें पहली बार अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी की जोड़ी परदे पर नजर आएगी.

‘चेहरे’’के पहले टीजर में एक गहन कथानक का वादा किया गया है. तो वहीं इस फिल्म को लेकर अमिताभ बच्चन भी काफी रोमांचित हैं.

अब इमरान हाशमी का भी एकल पोस्टर जारी कर दिया गया है. जिसमें इमरान हाशमी का तीव्र रूप निश्चित रूप से उन दर्शकों के हित को प्रभावित करेगा,  जो फिल्म को देखने के लिए बैचेन सांस के साथ इंतजार कर रहे हैं. अब तक जारी दो पोस्टर व टीजर से इस फिल्म में दोनों सितारों के बीच की दुश्मनी का आभास मिलता है.

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फिल्म‘चेहरे’’में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के संदर्भ में इमरान हाशमी कहते हैं-‘‘उन्हें देखते ही मुझे लगा कि इंतजार खत्म हो गया है. हम अमिताभ बच्चन सर के बाद बड़े हुए हैं और इंडस्ट्री का हर कलाकार उनके साथ काम करने की इच्छा रखता है. ऐसा लगता है कि मैंने अपने करियर में एक बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है. ”

वह आगे कहते हैं, ‘‘ अमिताभ बच्चन सर के पांच दशक से अधिक समय तक इंडस्ट्री में रहने के बाद भी अनुशासन को देखना इतना अद्भुत है. हमारा उद्योग बहुत अनुशासन उन्मुख नहीं है,  जो कई बार थोड़ा मुश्किल हो सकता है,  लेकिन उसने मुझे,  और इतने सारे लोगों को प्रेरित किया है,  उसी रास्ते पर चलने के लिए. वह बेहद समय के पाबंद हैं,  हमेशा निर्धारित समय पर सेट पर पहुंचते हैं. और यह एक अभ्यास है जिसका मैंने हमेशा पालन किया है. यह उनके शिल्प को मिले सम्मान को देखने के लिए प्रेरित कर रहा है,  यही वजह है कि न केवल मैं,  बल्कि उद्योग,  दर्शक,  हर किसी के पास उनके लिए इतनी उच्च प्रशंसा और सम्मान है. ”

रूमी जाफरी निर्देशित  और आनंद पंडित निर्मित फिल्म‘‘चेहरे’’ बहुप्रतीक्षित रहस्य थ्रिलर,  एक अपराध के खिलाफ न्याय के लिए लड़ रहे ध्रुवीकृत व्यक्तियों की कहानी है.

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आनंद पंडित मोशन पिक्चर्स और सरस्वती एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड निर्मित फिल्म‘‘चेहरे’’के निर्देशक रूमी जाफरी हैं. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी के अलावा अन्नू कपूर,  क्रिस्टेल डिसूजा,  धृतिमान चटर्जी, रघुबीर यादव,  और सिद्धार्थ कपूर की भी अहम भूमिकाएं हैं. यह फिल्म 9 अप्रैल 2021 को सिनेमाघरो में प्रदर्शित होगी.

https://www.youtube.com/watch?v=xi4RrxDK4mI

Ghum Hai Kisi Ke Pyaar Mein एक्ट्रेस भी हुईं कोरोना की शिकार, शूटिंग पर लगा ब्रेक

देश में कोरोना के मामले इन दिनों बढ़ते हुए देखने को मिल रहे हैं. वहीं इसका असर बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री के कलाकारों पर भी देखने को मिल रहा है. जहां बीते दिनों गुम है किसी के प्यार के लीड एक्टर नील भट्ट को कोरोना हुआ था तो वहीं अब खबरें हैं कि सीरियल की एक्ट्रेस को भी कोरोना हो गया है. आइए आपको बताते हैं कौन हैं वो एक्ट्रेस…

मंगेत्तर को हुआ कोरोना

हाल ही में ‘गुम है किसी के प्यार में'(Ghum Hai kisikey pyaar meiin) टीवी सीरियल में विराट का किरदार निभाने वाले एक्टर नील भट्ट(Neil Bhatt) कोरोना पॉजिटिव हो गए थे. वहीं अब उनकी मंगेत्तर और को स्टार ऐश्वर्या शर्मा(Aishwarya Sharma) को भी कोरोना हो गया है. पाखी के रोल में नजर में आने वाली एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा इन दिनों घर पर आराम कर रही हैं.

 

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शूटिंग पर लगा ब्रेक

 

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दरअसल, एक्टर नील भट्ट के कारण जहां शूटिंग रोक दी गई थी तो वहीं सेट के सभी लोगों का टेस्ट भी करवाया था, जिसके बाद एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा के साथ-साथ कुछ क्रू मेंबर भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं. वहीं सभी कोरोना पौजीटिव आने वाले सभी लोग क्वारंटीन हो गया है. इसी के साथ ही सेट पर कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करते हुए कुछ दिनों के लिए शूटिंग रोक दी गई है.

शो की कहानी पर पड़ेगा असर

कोरोना के केस मिलने से पहले शो में होली का ट्रैक की तैयारी की जा रही थी, जो कि हाल के लिए टाल दी गई है. हालांकि इसका असर शो की कहानी पर भी पड़ने वाला है. दऱअसल, शो के मेन कलाकारों के न होने से शो की कहानी का सारा भार सई के किरदार में नजर आने वाली आयशा सिंह पर पड़ने वाली है. वहीं आने वाले एपिसोड में शो की कहानी सई के रोल के इर्दगिर्द घूमती नजर आएगी.

 

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बता दें, ‘गुम है किसी के प्यार में'(Ghum Hai kisikey pyaar meiin) को स्टार्स नील भट्ट और ऐश्वर्या की हाल ही में रोका हुआ था, जिसकी खबर उन्होंने अपने फैंस को सोशलमीडिया के जरिए दी थी. वहीं फैंस को इनकी रियल लाइफ जोड़ी काफी पसंद है.

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अनुपमा के सामने आएगा काव्या के मोलेस्टेशन के ड्रामे का सच! आएगा नया ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ बीते कई हफ्तों से टीआरपी चार्ट्स में पहले नंबर पर बना हुआ है. जिसके चलते शो के मेकर्स पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वह सीरियल को पहले नंबर से हटने ना दें. इसी बीच शो में भी नया ट्विस्ट आने वाला है, जिसके बाद शो की कहानी में नया मोड़ आएगा. दरअसल, हाल ही हमने आपको बताया था कि अनुपमा शाह हाउस की जिम्मेदारी वनराज को छोड़कर घर छोड़ने का फैसला करेगी. लेकिन अब कुछ ऐसा होने वाला है, जिसके बाद अनुपमा ये कदम उठाने से रुक जाएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

काव्या के चलते वनराज ने लिया फैसला

करेंट ट्रैक की बात करें तो महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के मौके पर घर में काफी ड्रामा देखने को मिला. जहां समर और वनराज की बहस के कारण घर में लड़ाई देखने को मिली तो वहीं अनुपमा का गुस्सा भी देखने को मिला, जिसके कारण उसने समर पर हाथ भी उठा दिया. वहीं वनराज घर छोड़ने का फैसला भी कर लेता है. हालांकि काव्या किसी तरह उसे समझाती है, जिसके बाद वह फैसला करता है कि ना वह शाह हाउस को छोड़ेगा और ना ही काव्या घर छोड़कर जाएगी.

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राखी को होगा काव्या पर शक

शाह हाउस में लड़ाई होते देख और वनराज के फैसले के बाद जहां पूरा परिवार परेशान होता है तो वहीं किंजल की मां राखी को बार-बार काव्या की कही गई बात याद आती है कि जब वो शाह परिवार को उनकी असली औकात दिखाने का सपना देख रही थी. इसी कारण आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि राखी को बार-बार ऐसा लगेगा कि काव्या ने मोलेस्टेशन का ड्रामा सिर्फ और सिर्फ वनराज को पाने के लिए  कर रही है.

 

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अनुपमा को करेगी आगाह

 

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खबरों की मानें तो घर के बदले माहौल को देखकर राखी परेशान नजर आएगी, जिसके बाद वह अनुपमा (Rupali Ganguly) को अकेले में काव्या की सच्चाई बताती नजर आएगी और आगाह करते हुए राखी, अनुपमा से कहेगी कि काव्या बहुत ही चालाक है और उसे अब उसकी हर एक हरकत पर नजर रखनी चाहिए. हालांकि अनुपमा को इस बात पर भरोसा नही होगा. अब देखना ये है कि क्या राखी की बातों को सच मान पाएगी और क्या अपनी परिवार को टूटने से बचा पाएगी.

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जानें क्यों बंगाल टाइगर्स के कैप्टन शान ने दिया ट्रोलर्स को झन्नाटेदार जवाब

जीटीवी पिछले तीन दशकों से टेलीविजन पर नए और अनोखे कार्यक्रम दिखाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और अब एक बार फिर हर रविवार रात आठ बजे जीटीवी पर प्रसारित हो रहे नए नॉन- फिक्शन शो ‘इंडियन प्रो म्यूजिक लीग’ के साथ इस चैनल ने म्यूजिक रियालिटी शो का चेहरा ही बदल दिया है. लीक से हटकर एक अनोखा फॉर्मेट पेश करते हुए जी टीवी ने पिछले माह यानी 26 फरवरी 2021 से दुनिया का पहला ‘म्यूजिक लीग चैंपियनशिप’शुरू की है,जहां खेल की दुनिया में हमने कई लीग प्रतियोगिताएं देखी हैं,वहीं इस अनोखी म्यूजिक लीग में भारत के अलग-अलग क्षेत्रों की 6 टीमें एक म्यूजिकल चैंपियनशिप में मुकाबला करती नजर आ रही हैं.  इनमें से हर टीम को बॉलीवुड एवं स्पोर्ट्स जगत की जानी-मानी सेलीब्रिटीज सपोर्ट कर रही हैं. इस रियालिटी शो में कप्तानों के रूप में उच्च कोटी के गायकों का समावेश है. इनके अलावा हर टीम में एक रियलिटी शो स्टार और एक नई आवाज भी शामिल हैं.  इन छह जोनल टीमों की कप्तानी करने के लिए मिका सिंह, कैलाश खेर, साजिद खान, शान,अंकित तिवारी, जावेद अली, असीस कौर, भूमि त्रिवेदी, आकृति कक्कर, पायल देव, नेहा भसीन और शिल्पा राव को चुना गया है.

छह टीमों के बीच एक रोमांचक सुपर मैच के बाद आने वाले एपीसोड्स में इस प्रतियोगिता का दूसरा लीग मैच होगा,जिसमें गुजरात रॉकर्स का मुकाबला बंगाल टाइगर्स से होगा. इसकी शूटिंग के दौरान हर गायक ने दर्शकों को प्रभावित करने के लिए जी जान लगा दी. हालांकि ‘गुजरात रॉकर्स’ की टीम में शामिल हुई नई सदस्य मशहूर पाश्र्व गायिका आदिति शर्मा ने सभी का दिल जीत लिया. इस मशहूर गायक ने ‘एजेंट विनोद‘ के गाने ‘राब्ता‘ पर एक शानदार परफॉर्मेंस दी, जिसकी सभी ने बहुत तारीफ की. वैसे, यह कोई नहीं जानता कि गुजरात रॉकर्स की अदिति सिंह शर्मा और बंगाल टाइगर्स की नई सेंसेशन निकिता गांधी के बीच भी एक खास ‘राब्ता‘ है. वास्तव में ‘राब्टा’का मौलिक वर्जन अदिति ने  गाया थाफिर इसका निकिता ने दूसरा वर्जन गाया. इस खुलासे के बाद अदिति ने निखिता को मंच पर बुलाया और फिर दोनों ने बिना तैयारी के एक बेमिसाल परफॉर्मेंस दी. इन दोनों की जुगलबंदी देखकर शान ने उनकी जमकर तारीफ की और कहा कि इससे उन ट्रोर्लस को एक संदेश जाता है, जो यह दावा करते हैं कि इंडस्ट्री के नए सिंगर्स औटोट्यून की वजह से ही मशहूर हो रहे हैं.

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बंगाल टाइगर्स के कैप्टन शान ने कहा,‘‘इस परफॉर्मेंस ने सोशल मीडिया के उन सभी ट्रोल्स को गलत साबित कर दिया है. यह उनके लिए एक साफ संदेश है, जिन्हें लगता है कि सिंगर्स अपने हर गाने में औटोट्यून का इस्तेमाल करते है. यह लोग सोशल मीडिया पर कमेंट पोस्ट करके कलाकारों को ट्रोल करते हैं, लेकिन बिना तैयारी के किए गए इस एक्ट ने यह गलत धारणा तोड़ दी है और यह साबित कर दिया कि इंडस्ट्री के उभरते सिंगर्स वाकई प्रतिभाशाली हैं. अदिति और निकिता गांधी ने इस शानदार जुगलबंदी में बिना किसी प्रैक्टिस के, अपने-अपने वर्जन बखूबी गाए. मैं इनके इस शानदार एक्ट के लिए इन्हें बधाई देता हूं. ‘‘

जहां अदिति और निकिता की परफॉर्मेंस आपके होश उड़ा देगी, वहीं थोड़ा इंतजार कीजिए और गुजरात रॉकर्स और बंगाल टाइगर्स का म्यूजिकल मुकाबला जरूर देखिए.  टीम गुजरात के जावेद अली, भूमि त्रिवेदी, हेमंत बृजवासी और अदिति सिंह शर्मा का मुकाबला टीम बंगाल के शान, आकृति कक्कर, ऋतुराज मोहंती और निकिता गांधी से होगा.

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उम्र में हैं समझदार तो ऐसी हो आपकी छवि

लेखिका- प्रीता जैन

ध्यान से आना, ट्रेन में खाने-पीने का सामान अच्छे से रख लेना 1-2 बॉटल पानी की रखना कहीं भी स्टेशन पर मत उतरना, दिल्ली तो हम मिल ही जाएं गे कोई चिंता ना करना आराम से बिना टेंशन आ ही जाना मिलना हो जाएगा.

यह हिदायतें किसी बच्चे के लिए ना होकर 45 साल की विनीता के लिए थी जो अपने मायके अके ली जा रही थी. बड़े भैया अपनी तरफ से तो उसके भले के लिए ही कह रहे थे पर विनीता को अब तो सुन-सुन कभी हसी आती कि कै से बच्चों की तरह हमेशा समझाते रहते हैं तो कभी खीज भी आने लगती, जब बच्चे तक उसकी तरफ देख-देख मुस्कु राने लगते या फिर पितदेव उसे बेचारी समझ खुद भी समझाने लगते. यह सिफर् एक ही दिन की बात ना होकर रोज़ ही की है, जब भी भैया या भाभी का फ़ोन आता इधर-उधर की बातें ना कर विनीता को समझाते ही रहते ऐसा किया कर वैसा किया कर ये करना वो मत करना, यहां जाना वहां मत जाना यह सामान लेना वो ना खरीदना वगैरा-वगैरा. कहने का तात्पयर् है छोटी से छोटी बात को हर वक्त समझाकर ही कहना कुछ भी समझाते ही रहना.

इसी तरह दीपा की जेठानी रीना जो उससे 1-2 साल ही बड़ी है वह भी आज उसे बच्चों की परविरश के बारे में बता रही थी. सफर उसी दिन नहीं बल्कि जब भी उसका फ़ोन आता किसी न किसी बात पर समझाना शुरू कर देती सुबह जल्दी उठा कर नाश्ते में या खाने में यह बनाया कर,
घर को ऐसे सजाया कर यह काम ऐसे किया जाता है वह काम वैसे किया जाता है, सबके साथ ऐसा व्यवहार रख वैसा ना रख वगैरा वगैरा . शुरू-शुरू में तो विनीता सुनती रहती पर अब उसे भी
लगता कि हमउम्र ही तो है यिद और भी इधर-उधर की पढ़ाई या मनोरंजन की बातें हो तो ज़्यादा अच्छा है किन्तु ऐसा होता कहाँ है? वह सुनाती रहती विनीता सुनती रहती, कभी ना बता पाती या उसकी बातों से आभास नहीं होता कि वह भी एक सुघड़ गृहणी या मिहला है जो अपने फ़र्ज़-जिम्मेदारी निभाना बखूबी जानती है शायद आपसे भी ज़्यादा.

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ऐसा सफर विनीता ही नहीं वरन हममें से अधिकतर के साथ होता है, कई दफा बचपन से पचपन तक सभी से अपने लिए कुछ ना कुछ सुनने-समझने की आदत हमारे स्वभाव में विकिसत

होती जाती है धीरे-धीरे हम सुनने के लिए “ना” नहीं कर पाते. जो जैसा कहता जाता है स्वयं अच्छा ना महसूस करते हुए भी सुन-सुनकर सिर हिलाने लगते हैं जैसे समझने की कोशिश की जा रही है, इसीलिए हर कोई नासमझ और बेचारा मान अपनी सलाह बारम्बार देने ही लगते हैं और फिर जब भी बातचीत होती है ऐसा ही होता रहता है.

किन्तु यह उिचत नहीं है- ना तो हर वक्त किसी को सलाह-मशिवरा देते रहना ना ही हर समय औरों की सलाह-मशिवरा को मानना. जीवन है तो जीने के लिए हरेक व्यक्ति ज़रूरतानुसार व्यक्तिगत कायर् करता ही है अिधकतर लोग उम्र के साथ-साथ इतने समझदार व पिरपक्व हो ही जाते हैं कि अपने कायोर्ं को भलीभांति कर सकें , किसी पर भी बेवजह निभर्र ना रहना पड़े. साधारण किन्तु अहम् बात है कि किसी कार्य के बारे में जानना या कोई जानकारी लेनी हो तभी अन्य व्यक्ति से पूछना चाहिए अथवा सलाह-मशवरा करना चाहिए इसी तरह अपनी तरफ से भी दू सरे व्यक्ति को बेवजह ना बताते हुए तभी राय देनी चाहिए जब वह खुद से सुनना चाहे या आवश्यकतानुसार सलाह देने की ज़रूरत महसूस की जा रही हो.

सलाह देने वाले से ज़्यादा गलती उस व्यक्ति की है जो दू सरे की ही हिदायतें सुनता रहता है व इस तरह का व्यवहार करता है जैसे-नासमझ है अनजान है, सदैव ही दू सरे के द्वारा कही हर बात का अनुसरण करना ही करना है. यह भी नहीं कहा जा रहा कि अन्य व्यक्ति की सुनना या मानना नहीं चाहिए बल्कि कहने का तात्पर्य यह है कि वही सलाह मानो जो वास्तव में मानने लायक हो जिससे आपके रोज़मर्रा की जिन्दगी या फिर जीवन में नई दिशा मिले अथवा जिसके सुनने या अमल करने पर मानिसक शांति-संतुष्टि मिलने की सम्भावना हो अन्यथा “ना” सुनने तथा “ना” कहने की आदत खुद में विकिसत करना अत्यंत आवश्यक है.

हर शख्स का व्यवहार व आदतें अलग-अलग होती हैं कुछ अच्छी तो कुछ हमारे व्यक्तित्व के विकास में बाधक भी होने लगती हैं उदहारण के लिए— यिद हम आपसी समझ ना रख औरों का ज़रूरत से ज़्यादा अपनी निजी जिन्दगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं तो प्रभावहीन व श्रेष्ठहीन व्यक्तित्व के होकर रह जाते हैं स्वयं की पहचान खोने लगते हैं जीवन में बहुत कुछ हम जानते-समझते बड़े होते रहते हैं अनुभव व समय सबको दुनियादारी सिखा ही देता है फिर भी माता-पिता या अपने से बड़ों की सलाह तथा उनकी कही बातें भलीभांति ध्यान से सुन उन पर अमल करना चाहिए, हमउम्र या सिर्फ 2-4 साल ही बड़ों की जब-तब सुनना उिचत नहीं माना जाता. इससे आपका व्यक्तित्व कमज़ोर व प्रभावहीन होता जाता है अतः बेवजह की सलाह या टोकाटाकी से बचें और अपनी छवि आकषर्क व प्रभावशील बनाए रखें.

कुछेक प्रयास से अपनी विशष्टता और प्रभाव बरक़रार रखने में सफल हो सकते हैं.

1. माता-पिता या बुज़ुर्गों के अलावा किसी के भी सामने बच्चे अथवा बेचारे बनने से बचें.

2. हर किसी के सामने अपनी छिव अनिभज्ञ व असहाय ना होने दें. यिद आप स्विनभर्र व सक्षम है तो अन्य व्यक्ति को सलाह देने पर “ना” कहना सीखें और ना ही दू सरे को बात-बात पर सलाह-मशिवरा देते रह.

3. यिद कुछ समझ नहीं आए तभी अन्य की सलाह लें और अमल करें, बात-बात पर सदैव ऐसा ना होने दें. स्वच्छिव ऐसी हो कि आपकी उम्र व बड़प्पन झलके ताकि हर कोई आते-जाते आपको नासमझ मानने की भूल ना करे.

4. स्वयं पर भरोसा व आत्मिवश्वास रखते हुए जिन्दगी के साथ कदम दर कदम बनाते हुए आगे बढ़ें, खुद व खुद रास्ते निकलेंगे मंजिल मिलेगी. जिन्दगी आपकी है अपनी मज़ीर् से जिएं , छोटे-बड़े फै सले खुद करें अन्य का हस्तक्षेप ना होने दें. यिद आवश्यकता महसूस हो तब कभी-कभार दू सरों की राय ली जा सकती है किन्तु सुनें सबकी करें मन की.

5. बेवजह औरों की राय लेकर स्वयं के आत्मसम्मान व आत्मिवश्वास को कम ना होने देवें. इसी में आपका हित है, अच्छाई है.

उपरोक्त कथन पर दृढ़ संकल्प होकर जिन्दगी का हर पल खुशनुमा गुज़ारें.

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Holi Special: बच्चों के लिए बनाएं मूंग दाल ट्राइ एंगल

अगर आप अपने बच्चों के लिए हेल्दी और टेस्टी रेसिपी की तलाश कर रही हैं तो मूंग दाल ट्राई एंगल की ये रेसिपी आपके लिए अच्छा औप्शन है. ये आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जो आपके बच्चों को बेहद पसंद आएगी.

हमें चाहिए

–  1 कप मिली मूंगदाल की पीट्ठी

–  1/2 कप मिलीजुली सब्जियां

–  1 बड़ा चम्मच मिक्स हर्ब

–  1 बड़ा चम्मच मक्खन

–  2 बड़े चम्मच चीज कसा

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–  1 बड़ा चम्मच शेजवान सौस

–  1 बड़ा चम्मच टोमैटो कैचअप

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

मूंगदाल पीट्ठी में नमक मिला कर अच्छी तरह फेंट कर एक ओर रख दें. सब्जियों में नमक, शेजवान सौस, टोमैटो सौस, सीजनिंग और थोड़ा मक्खन मिला कर रख लें. तवे पर थोड़ा सा तेल लगाएं और मूंगदाल के कुछ मोटेमोटे चीले बना लें. इन चीलों को आधा कच्चापक्का ही रखें.

1 कप बटर से लगभग 3 चीले बन जाएंगे. इन चीजों को ट्राइऐंगल टुकड़ों में काट कर एक प्लेट में रखें. तैयार सब्जियां इस पर फैलाएं. चीज बुरक लें और गरम नौनस्टिक पैन में थोड़ा सा बटर लगा कर चीलों को ढक कर सुनहरा होने व ऊपर का चीज पिघलने तक सेंक लें. चटनी के साथ गरमगरम परोसें.

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फेस में पोर्स और बालों में डैंड्रफ की प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल- 

मेरी उम्र 38 साल है और मेरे फेस के पोर्स बहुत बड़े हैं जो दिखने में बहुत खराब लगते हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

पोर्स के लिए सब से अच्छा है कि आप लेजर ट्रीटमैंट लें. इस ट्रीटमैंट से स्किन सैल्स रिजनरेट होते हैं और साथ ही यंग स्किन मासक यानी कोलोजन सीरम ऐंड कोलोजन मास्क लें. इस से आप के पोर्स की प्रौब्लम हमेशा के लिए ठीक हो सकती है.

सवाल-

मेरी उम्र 42 साल है. बालों में डैंड्रफ की वजह से मेरे बाल बहुत ड्राई रहते हैं. क्या कोई ऐसा शैंपू है जिसे यूज करने से बाल सौफ्ट भी हो जाएं और शाइन भी करें?

जवाब- 

बालों में होने वाली रूसी से बचने के लिए आप रात में सोने से पहले नीबू का रस नारियल के तेल में मिला कर बालों की जड़ों में अच्छी तरह मालिश करें और पूरी रात लगा रहने दें. सुबह होने पर किसी अच्छे शिकाकाई शैंपू से अपने बालों को धो लें. ऐसा करने से आप को रूसी से राहत मिलेगी और बालों में शाइन भी आएगी.

-समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा 

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अगर त्‍वचा पर पोर्स न हों तो हमारी त्‍वचा सांस नहीं ले पाएगी. दरअसल हमारे चेहरे की त्‍वचा के रोम छिद्र ही बता सकते हैं कि हमारी त्‍वचा कितनी स्‍वस्‍थ्‍य है. इसके साथ ही बुढ़ापे की निशानी भी हमारे स्किन पोर्स से ही पता चलती है. यह बताया जाता है कि अगर आपके चेहरे पर बड़े रोम छिद्र हैं तो आप बूढी होने लग गई हैं. इसलिए अगर आप को खिली और स्‍वस्‍थ्‍य त्‍वचा चाहिये तो अभी से ही उसका ख्‍याल रखना शुरु कर दें.

1. ब्‍लैकहेड हटाना : गंदगी से चेहरे पर ब्‍लैकहेड हो जाता है, जो अगर न हटाया गया तो पूरे चेहरे पर धब्‍बा छोड़ जाता है. इसको हटाने के लिए चेहरे को स्‍टीम करना चाहिये और उंगलियों से उसे दबा कर निकालना चाहिये. इसके आलावा आप घरेलू नुस्‍खे जैसे, बेकिंग पाउडर या फ्रूट पील का प्रयोग कर सकती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- इन 5 टिप्स से स्किन पोर्स का रखें ख्याल

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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कचरे वाले: कौन हैं आखिर कचरा फैलाने वाले लोग

मंगलवार की सुबह औफिस के लिए निकलते वक्त पत्नी ने आवाज दी, ‘‘आज जाते समय यह कचरा लेते जाइएगा, 2 दिनों से पड़ेपड़े दुर्गंध दे रहा है.’’ मैं ने नाश्ता करते हुए घड़ी पर नजर डाली, 8 बजने में 10 मिनट बाकी थे. ‘‘ठीक है, मैं देखता हूं,’’ कह कर मैं नाश्ता करने लगा. साढ़े 8 बज चुके थे. मैं तैयार हो कर बालकनी में खड़ा मल्लपा की राह देख रहा था. कल बुधवार है यानी सूखे कचरे का दिन. अगर आज यह नहीं आया तो गुरुवार तक कचरे को घर में ही रखना पड़ेगा.

बेंगलुरु नगरनिगम का नियम है कि रविवार और बुधवार को केवल सूखा कचरा ही फेंका जाए और बाकी दिन गीला. इस से कचरे को सही तरह से निष्क्रिय करने में मदद मिलती है. यदि हम ऐसा नहीं करते तो मल्लपा जैसे लोगों को हमारे बदले यह सब करना पड़ता है. मल्लपा हमारी कालोनी के कचरे ढोने वाले लड़के का नाम था. वैसे तो बेंगलुरु के इस इलाके, केंपापुरा, में वह हमेशा सुबहसुबह ही पहुंच जाता था लेकिन पिछले 2 दिनों से उस का अतापता न था. मैं ने घड़ी पर फिर नजर दौड़ाई,

5 मिनट बीत चुके थे. मैं ने हैलमैट सिर पर लगाया और कूड़ेदान से कचरा निकाल कर प्लास्टिक की थैली में भरने लगा. कचरे की थैली हाथ में लिए 5 मिनट और बीत गए, लेकिन मल्लपा का अतापता न था.

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मैं ने तय किया कि सोसाइटी के कोने पर कचरा रख कर औफिस निकल लूंगा. दबेपांव मैं अपने घर के बरामदे से बाहर निकला और सोसाइटी के गेट के पास कचरा रखने लगा. ‘‘खबरदार, जो यहां कचरा रखा तो,’’ पीछे से आवाज आई. मैं सकपका गया. देखा तो पीछे नीलम्मा अज्जी खड़ी थीं. ‘‘अभी उठाओ इसे, मैं कहती हूं, अभी उठाओ.’’

‘‘पर अज्जी, मैं क्या करूं, मल्लपा आज भी नहीं आया,’’ मैं ने सफाई देने की कोशिश की. ‘‘जानती हूं, लेकिन सोसाइटी की सफाई तो मुझे ही देखनी होती है न. तुम तो यहां कचरा छोड़ कर औफिस चल दोगे, आवारा कुत्ते आ कर सारा कचरा इधरउधर बिखेर देंगे, फिर साफ तो मुझे ही करना होगा न,’’ उन का स्वर तेज था. मैं ने कचरा वापस कमरे में रखने में ही भलाई समझी.

‘‘तुम तो गाड़ी से औफिस जाते हो, इस कूड़े को रास्ते में किसी कूडे़दान में क्यों नहीं फेंक देते,’’ उन्होंने सलाह दी. ‘‘बात तो ठीक कहती हो अज्जी, घर में रखा तो यह ऐसे ही दुर्गंध देता रहेगा,’’ यह कह कर कचरे का थैला गाड़ी की डिग्गी में डाल लिया, सोचा कि रास्ते में किसी कूड़े के ढेर में फेंक दूंगा. सफाई के मामले में वैसे तो बेंगलुरु भारत का नंबर एक शहर है, लेकिन कूड़े का ढेर ढूंढ़ने में ज्यादा दिक्कत यहां भी नहीं होती. मैं अभी कुछ ही दूर गया था कि सड़क के किनारे कूड़े का एक बड़ा सा ढेर दिख गया. मैं ने कचरे से छुटकारा पाने की सोच, गाड़ी रोक दी. अभी डिग्गी खोली भी नहीं थी कि एक बच्ची मेरे सामने आ कर खड़ी

हो गई. ‘‘अंकल, क्या आप मेरी हैल्प कर दोगे, प्लीज.’’

‘‘हां बेटा, बोलो, आप को क्या हैल्प चाहिए,’’ मैं ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. उस ने झट से अपने साथ के 2 बच्चों को बुलाया जो वहां सड़क के किनारे अपनी स्कूलबस का इंतजार कर रहे थे. उन में से एक से बोली, ‘‘गौरव, वह बोर्ड ले आओ, अंकल हमारी हैल्प कर देंगे.’’

गौरव भाग कर गया और अपने साथ एक छोटा सा गत्ते का बोर्ड ले आया. उस के साथ 3-4 बच्चे और मेरी गाड़ी के पास आ कर खड़े हो गए. छोटी सी एक बच्ची ने वह गत्ते का बोर्ड मुझे थमाते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप यह बोर्ड यहां ऊपर टांग दीजिए, प्लीज.’’

‘‘बस, इतनी सी बात,’’ कह कर मैं ने वह बोर्ड वहां टांग दिया. बोर्ड पर लिखा था, ‘कृपया यहां कचरा न फेंकें, यह हम बच्चों का स्कूलबस स्टौप है.’

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बोर्ड टंगा देख सभी बच्चे तालियां बजाने लगे. मैं ने एक नजर अपनी बंद पड़ी डिग्गी पर दौड़ाई और वहां से निकल पड़ा. कोई बात नहीं, घर से औफिस का सफर 20 किलोमीटर का है, कहीं न कहीं तो कचरे वालों का एरिया होगा, यह सोच मैं ने मन को धीरज बंधाया और गाड़ी चलाने लगा.

आउटर रिंग रोड पर गाड़ी चलते समय कहीं भी कचरे का ढेर नहीं दिखा तो हेन्नुर क्रौसिंग से आगे बढ़ने पर मैं ने लिंग्रज्पुरम रोड पकड़ ली. मैं ने सोचा कि रैजिडैंशियल एरिया में तो जरूर कहीं न कहीं कचरे का ढेर मिलेगा या हो सकता है कि कहीं कचरे वालों की कोई गाड़ी ही मिल जाए. अभी थोड़ी दूर ही चला था कि रास्ते में गौशाला दिख गई. साफसुथरे कपड़े पहने लोगों के बीच कुछ छोटीमोटी दुकानें थीं और पास ही कचरे का ढेर भी लगा था, लेकिन यह क्या, वहां तो गौशाला के कुछ कर्मचारी सफाई करने में लगे थे.

मैं ने गाड़ी की रफ्तार और तेज कर दी और सोचने लगा कि इस कचरे को आज डिग्गी में ही ढोना पड़ेगा. लिंग्रज्पुरम फ्लाईओवर पार करने के बाद मैं लेजर रोड पर गाड़ी चला रहा था. एमजी रोड जाने के लिए यहां से 2 रास्ते जाते थे. एक कमर्शियल स्ट्रीट से और दूसरा उल्सूर लेक से होते हुए. उल्सूर लेक के पास गंदगी ज्यादा होगी, यह सोच कर मैं ने गाड़ी उसी तरफ मोड़ दी.

अनुमान के मुताबिक मैं बिलकुल सही था. रोड के किनारे लगी बाड़ के उस पार कचरे का काफी बड़ा ढेर था. थोड़ा और आगे बढ़ा तो 2-3 महिलाएं कचरे के एक छोटे से ढेर से सूखा व गीला कचरा अलग कर रही थीं. उन्हें नंगेहाथों से ऐसे करते देख मुझे बड़ी घिन्न आई. थोड़ी ग्लानि भी हुई. हम अपने घरों में छोटीछोटी गलतियां करते हैं सूखे और गीले कचरे को अलग न कर के. यहां इन बेचारों को यह कचरा अपने हाथों से बिनना पड़ता है.

मुझे डिग्गी में रखे कचरे का खयाल आया, जो ऐसे ही सूखे और गीले कचरे का मिश्रण था. मन ग्लानि से भर उठा. धीमी चल रही गाड़ी फिर तेज हो गई और मैं एमजी रोड की तरफ बढ़ गया.

एमजी रोड बेंगलुरु के सब से साफसुथरे इलाकों में से एक है. चौड़ीचौड़ी सड़कें और कचरे का कहीं नामोनिशान नहीं. सफाई में लगे कर्मचारी वहां भी धूल उड़ाते दिख रहे थे. लेकिन मुझे जेपी नगर जाना था. इसीलिए मैं ने बिग्रेड रोड वाली लेन पकड़ ली. सोचा शायद यहां कहीं कूड़ेदान मिल जाए, लेकिन लगता है, इस सूखेगीले कचरे के मिश्रण की लोगों की आदत सुधारने के लिए नगरनिगम ने कूड़ेदान ही हटा दिए थे.

शांतिनगर, डेरी सर्किल, जयदेवा हौस्पिटल होते हुए अब मैं अपने औफिस के नजदीक वाले सिग्नल पर खड़ा था. सामने औफिस की बड़ी बिल्ंिडग साफ नजर आ रही थी. वहां कचरा ले जाने की बात सोच कर मन में उथलपुथल मच गई. आसपास नजर दौड़ाई तो सामने कचरे की एक छोटी सी हाथगाड़ी खड़ी थी और गाड़ी चलाने वाली महिला कर्मचारी पास में ही कचरा बिन रही थी. यह सूखे कचरे की गाड़ी थी.

मैं ने मन ही मन सोचा, ‘यही मौका है, जब तक वह वहां कचरा बिनती है, मैं अपने कचरे की थैली को उस की गाड़ी में डाल के निकल लेता हूं,’ था तो यह गलत, क्योंकि उस बेचारी ने सूखा कचरा जमा किया था और मैं उस में मिश्रित कचरा डाल रहा था, लेकिन मेरे पास और कोई उपाय नहीं था. मैं ने साहस कर के गाड़ी की डिग्गी खोली, लेकिन इस से पहले कि मैं कचरा निकाल पाता, सिग्नल ग्रीन हो गया.

पीछे से गाडि़यों का हौर्न सुन कर मैं ने अपनी गाड़ी वहां से निकालने में ही भलाई समझी. अब मैं औफिस के अंदर पार्किंग में था. कचरा रखने से कपड़े की बनी डिग्गी भरीभरी दिख रही थी.

मैं ने गाड़ी लौक की और लिफ्ट की तरफ जाने लगा, तभी सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे टोक दिया, ‘‘सर, कहीं आप डिग्गी में कुछ भूल तो नहीं रहे,’’ उस ने उभरी हुई डिग्गी की तरफ इशारा किया. ‘‘नहींनहीं, उस में कुछ इंपौर्टेड सामान नहीं है,’’ मैं ने झेंपते हुए कहा और लिफ्ट की तरफ लपक लिया.

औफिस में दिनभर काम करते हुए एक ही बात मन में घूम रही थी कि कहीं, कोई जान न ले कि मैं घर का कचरा भी औफिस ले कर आता हूं. न जाने इस से कितनी फजीहत हो. बहरहाल, शाम हुई. मैं औफिस से जानबूझ कर थोड़ी देर से निकला ताकि अंधेरे में कचरा फेंकने में कोई दिक्कत न हो.

गाड़ी स्टार्ट की और घर की तरफ निकल लिया, फिर से वही रास्ता. फिर से वही कचरे के ढेर. इस बार कोई बंदिश न थी और न ही कोई रोकने वाला, लेकिन फिर भी मैं कचरा नहीं फेंक पाया. कचरे के ढेर आते रहे और मैं दृढ़मन से गाड़ी आगे बढ़ाता रहा. न जाने क्या हो गया था मुझे.

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अब कुछ ही देर में घर आने वाला था. सुबह निकलते वक्त पत्नी की बात याद आई, ‘अंदर से आवाज आई, छोड़ो यह सब सोचना. एक तुम्हारे से थोड़े न, यह शहर इतना साफ हो जाएगा.’ मैं ने सोसाइटी के पीछे वाली सड़क पकड़ ली. लगभग 1 किलोमीटर दूर जाने के बाद एक कचरे का ढेर और दिखा. मैं ने गाड़ी रोकी, डिग्गी खोली और कचरा ढेर के हवाले कर दिया.

सुबह से जो तनाव था वह अचानक से फुर्र हो गया. मन को थोड़ी राहत मिली. रास्तेभर से जो जंग मन में चल रही थी, वह अब जीती सी लग रही थी.

तभी सामने एक औटोरिकशा आ कर रुका, देखा तो मल्लपा अपनी बच्ची को गोद में लिए उतर रहा था. ‘‘नमस्ते सर, आप यहां.’’

‘‘नहीं, मैं बस यों ही, और तुम यहां? कहां हो इतने दिनों से, आए नहीं?’’ ‘‘मेरा तो घर यहीं पीछे है. क्या बताऊं सर, मेरी बच्ची की तबीयत बहुत खराब है. बस, इसी की तिमारदारी में लगा हूं 2 दिनों से.’’

‘‘क्या हुआ इसे?’’ ‘‘संक्रमण है, डाक्टर कहता है कि गंदगी की वजह से हुआ है.’’

‘‘ठीक तो कहा डाक्टर ने, थोड़ी साफसफाई रखो,’’ मैं ने सलाह दी. ‘‘अब साफ जगह कहां से लाएं. हम तो कचरे वाले हैं न, सर,’’ यह कह कर मुसकराता हुआ वह अपने घर की ओर चल दिया.

सामने उस का घर था, बगल में कचरे का ढेर. वहां खड़ा मैं, अब, हारा हुआ सा महसूस कर रहा था.

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