Bigg Boss 14 के रनरअप रह चुके सिंगर राहुल वैद्य इन दिनों अपनी गर्लफ्रेंड दिशा परमार संग शादी को लेकर सुर्खियों में हैं. जहां जल्द ही दोनों की शादी की तैयारियां शुरु होने वाली हैं तो वहीं इसी बची दिशा और राहुल दोस्त की शादी में जमकर मस्ती करते नजर आ रहे हैं. हाल ही में दोनों की कुछ रोमांटिक फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं, जिसमें वह परफेक्ट जोड़ी के रुप में नजर आ रहे हैं. वहीं सबसे ज्यादा सुर्खियों दिशा परमार का इंडियन लुक बटोर रहा है. दरअसल, दोस्त की शादी में दिशा एकदम इंडियन लुक में नजर आ रही हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं दिशा परमार के लुक्स की झलक…
लहंगे में छाया दिशा का लुक
वेडिंग सेलिब्रेशन का हिस्सा बनने के लिए दिशा परमार ने डार्क पिंक कलर का लहंगा पहना था, जिस पर मिरर वर्क का काम किया गया था. इसके साथ दिशा ने पर्ल ज्वैलरी कैरी की थी, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.
दिशा परमार के इंडियन लुक की जहां सभी तारीफें करते नहीं थक रहे तो वहीं राहुल वैद्य संग उनके कपल फैशन को हर कोई शेयर कर रहा है. वहीं दोनों की फोटोज सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.
जहां लहंगे में दिशा परमार का लुक देखते ही बन रहा था तो वहीं लाइट पिंक कलर की साड़ी में वह जलवे बिखेरती नजर आ रही थीं. लाइट पिंक कलर की साड़ी के साथ गोल्डन ब्लाउज और उसके साथ मैचिंग झुमके उनके लुक पर चार चांद लगा रहे थे. वहीं हेयरस्टाइल की बात करें तो इस लुक के साथ दिशा का पोनी टेल हेयरस्टाइल परफेक्ट कौम्बिनेशन लग रहा था.
क्रौप टौप संग लौंग स्कर्ट में दिशा परमार का लुक बेहद सिंपल और खूबसूरत लग रहा था, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है. वहीं हर कोई उनके इस सिंपल लुक की तारीफें कर रहा है.
’जोरू का गुलाम’ जैसी कहावतों को अकसर लोग मजाक में लेते हैं, क्योकि आमतौर पर पूरी दुनिया में महिलाओं को दोयमदर्जे का समझा जाता है और पुरुष ही घर का मुखिया होता है. मगर आप को यह जान कर हैरानी होगी कि एक खप्ती से ग्रुप ने एक इलाके का नाम दे कर ऐसा तंत्र स्थापित किया है जहां वाकई पुरुष महिलाओं के गुलाम होते हैं.
‘वूमन ओवर मैन’ मोटो वाले इस तथाकथित देश का शासन भी एक महिला के हाथों में ही है. यह देश है ‘अदर वर्ल्ड किंगडम’ जो 1996 में यूरोपियन देश चेक रिपब्लिकन में एक फार्म हाउस में बना. इस देश की रानी पैट्रिसिया प्रथम हैं, पर उन का चेहरा आज तक बाहरी दुनिया ने नहीं देखा है.
इस देश की मूल नागरिक सिर्फ महिलाएं होती हैं और पुरुष महज गुलामों की हैसियत से रहते हैं. यह शगूफे की तरह का देश है पर फिर भी साबित करता है कि दुनिया में ऐसे लोग मौजूद हैं जो औरतों के संपूर्ण शासन में विश्वास रखते हैं.
भारत के मणिपुर की राजधानी इंफाल का इमा बाजार सब से बड़ा बाजार है. इसे मणिपुर की लाइफलाइन भी कह सकते हैं. इस बाजार की खासीयत यह है कि यहां ज्यादातर दुकानदार भी महिलाएं ही हैं और खरीदार भी.
4 हजार से ज्यादा दुकानों वाले इस बाजार में सागसब्जी, फल, कपड़े, राशन से ले कर हर तरह की चीज मिल जाएगी. यहां किसी भी दुकान पर पुरुषों को काम करने की इजाजत नहीं है.
इमा बाजार की बुनियाद 1786 में पड़ी थी जब मणिपुर के सभी पुरुष चीन और बर्मा की सेनाओं से युद्ध में शामिल होने चले गए और महिलाओं को परिवार संभालने के लिए बाहर आना पड़ा. उन्होंने दुकानें लगा कर धन कमाया. इस तरह जरूरत के हिसाब से सामाजिक व्यवस्था में आया यह बदलाव परंपरा में बदल गया.
दरअसल, जिस समाज में हम रहते हैं उस की संरचना हम ने ही की होती है. जिंदगी को आसान बनाने, एकरूपता लाने व दूसरी जरूरतों के लिहाज से आवश्यकतानुसार इंसान ने समाज के तौरतरीके व परंपराएं बनाईं. महिलाओंपुरुषों की भूमिकाएं तय की गईं. पुरुष चूंकि शारीरिक रूप से थोड़े ज्यादा शक्तिशाली होते थे, इसलिए उन्हें बाहर की दौड़धूप व धनसंपत्ति जुटाने का जिम्मा सौंपा गया. वहीं महिलाएं चूंकि बच्चों को जन्म देती हैं, इसलिए बच्चों का पालनपोषण और घर संभालने की जिम्मेदारी उन्हें दी गई.
मगर इस का मतलब यह नहीं कि स्त्रीपुरुष के बीच कोई जन्मजात अंतर होता है. वे हर तरह से समान हैं. समाज ही उन के स्वभावगत गुणों व भूमिकाओं से उन्हें अवगत कराता है और वैसी ही भूमिकाएं निभाने की उम्मीद रखता है.
न तो लड़कियां अधिक संवेदनशीलता और बुद्धिकौशल ले कर पैदा होती हैं और न ही लड़के सत्ता व शक्ति ले कर आते हैं. समाज ही बचपन से उन्हें इस प्रकार की सीख देता है कि वे स्त्री या पुरुष के रूप में बड़े होने लगते हैं.
क्यों बंटी भूमिकाएं
इस संदर्भ में पुराने समय की जानीमानी मानवशास्त्री और समाज वैज्ञानिक मागर्े्रट मीड का अध्ययन काफी रोचक है. मीड ने पूरी दुनिया की अलगअलग सामाजिक व्यवस्थाओं की रिसर्च कर पाया कि लगभग सभी समाजों में पुरुषों का ही बोलबाला है और स्त्रीपुरुष की भूमिकाएं भी बंटी हुई हैं.
रिसर्च के बाद मीड को कुछ ऐसी जनजातियां भी दिखीं जहां की सामाजिक व्यवस्था बिलकुल भिन्न थी. 1935 में प्रकाशित उन की किताब ‘सैक्स ऐंड टैंपरामैंट इन थ्री प्रीमिटिव सोसाइटीज’ में ऐसी 3 जनजातियों का विवरण है जहां स्त्रीपुरुष की भूमिकाएं बिलकुल अलग तरह से तय की गई थीं.
मीड ने पाया कि न्यू गुयाना आइलैंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाली अरापेश नामक जनजाति में महिलाओं और पुरुषों की भूमिकाएं एकसमान थीं. बच्चों के पालनपोषण में दोनों समान रूप से सहयोग करते, मिल कर अनाज का उत्पादन करते, खाना बनाते और कभी भी झगड़ों या विवादों में उलझना पसंद नहीं करते.
इसी तरह एक दूसरी जनजाति मुंडुगुमोर में भी स्त्रीपुरुषों की भूमिकाएं समान थीं. फर्क इतना था कि यहां स्त्रीपुरुष दोनों ही ‘पुरुषोचित’ गुणों से युक्त थे. वे योद्धाओं की तरह व्यवहार करते थे. शक्ति और ओहदा पाने के लिए प्रयासरत रहते थे और बच्चों के पालनपोषण में कोई रूचि नहीं रखते थे.
तीसरी जनजाति जिस का मार्ग्रेट मीड ने उल्लेख किया वह थी न्यू गियाना की चांबरी कम्यूनिटी. यहां स्थिति बिलकुल अलग थी. स्त्रीपुरुषों के बीच अंतर था, मगर पारंपरिक सोच से बिलकुल भिन्न.
पुरुष इमोशनली डिपैंडैंट और कम जिम्मेदार थे. वे खाना बनाने, घर की साफसफाई व बच्चों की देखभाल का काम करते थे जबकि महिलाएं अधिक लौजिकल, इंटैलिजैंट और डौमिनैंट थीं.
जैंडर इक्वैलिटी की अवधारणा
19वीं सदी में इजराइल के ‘किबुट्ज’ नामक समुदाय जैंडर इक्वैलिटी का खूबसूरत उदाहरण प्रस्तुत करते थे. यह दौर था औद्योगिकीकरण से पहले का. यहां के लोग खेती का काम कर अपना जीवननिर्वाह करते. इस समुदाय के पुरुषों को महिलाओं के पारंपरिक काम जैसे खाना बनाना, बच्चों की देखभाल आदि करने को प्रोत्साहित किया जाता. वैसे महिलाएं खुद भी ये काम करती थीं.
इस के साथ ही पुरुषों वाले काम जैसे अनाज का उत्पादन, घरपरिवार की सुरक्षा आदि स्त्रीपुरुष दोनों मिल कर करते थे. वे प्रतिदिन या सप्ताह के हिसाब से अपने काम बदलते रहते ताकि स्त्रीपुरुष दोनों ही हर तरह के कामों में अपना योगदान दे सकें. आज भी इजराइल में 200 से ज्यादा किबुट्ज समुदाय मौजूद हैं, जहां सामाजिक व्यवस्था जैंडर इक्वैलिटी के सिद्धांत पर आधारित है.
देखा जाए तो इस तरह की सामाजिक व्यवस्था ही आदर्श कही जा सकती है. पर हकीकत में ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं. पूरी दुनिया में हमेशा से आलम यही रहा है कि महिलाएं घर संभालें और पुरुष बाहर के काम करें, पैसे कमा कर लाएं. इस से पुरुषों के अंदर वर्चस्व की भावना घर करती रही. महिलाओं को परिवार व समाज में दोयमदर्जा मिला. वे घर की चारदीवारी में कैद होती गईं जबकि पुरुष घर के मुखिया बनते गए.
पिछले कुछ दशकों में स्थिति थोड़ी बदली है. कितनी ही महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने साथसाथ परिवार, देश का नाम रोशन किया. खेलकूद, मैडिकल, इंजीनियरिंग, पर्वतारोहण जैसे क्षेत्र हों या फिर ऐक्टिंग, राइटिंग, सिंगिंग जैसे कला के क्षेत्र हर जगह महिलाओं ने अपना परचम लहराया. मगर इन सब के बावजूद आज भी उन की आगे बढ़ने की राह आसान नहीं.
सामाजिक कार्यकर्त्ता शीतल वर्मा कहती हैं, ‘‘यकीनन स्त्री और पुरुष दोनों जैविक रूप से भिन्न हैं, परंतु सामाजिक भेद हमारी समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा पैदा किया जाता है. पुरुषप्रधान समाज में नारी की स्थिति दूसरे दर्जे के नागरिक की रही है और आज भी ऐसा ही है. ऐसा हर देश और हर युग में होता रहा है. नारी ने अपने अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई लड़ कर कुछ अधिकार प्राप्त किए हैं, परंतु स्थिति अब भी ज्यादा बेहतर नहीं है. हर स्तर पर महिला का संघर्ष जारी है.
सक्षम महिलाएं भी शोषित
यदि महिला आर्थिक रूप से सक्षम है तब भी उसे कार्यस्थल पर शारीरिक शोषण, अपमान, कटाक्ष आदि का सामना करना पड़ता है. यह बहुत दुखद है कि हमारे समाज में महिलाओं के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार एक परंपरा सी बन गई है.
घर, औफिस या सड़क, कहीं भी स्त्री पुरुषों द्वारा शोषण की शिकार हो सकती है. कमजोर समझ कर प्रताडि़त किए जाने के अवसर कभी भी आ सकते हैं.
इस संदर्भ में शीतल वर्मा कहती हैं, ‘‘महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाना है तो खुद महिलाओं को भी इस दिशा में प्रयास करना होगा और सकारात्मक कदम उठाने होंगे. महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा. उन्हें अपना स्वतंत्र वजूद गढ़ने और उसे कायम रखने के लिए आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होना बहुत जरूरी है.’’
सच तो यह है कि समाज में शक्तिशाली ही शक्तिहीनों का शोषण करता है. फिर क्यों न अपने अंदर वह ताकत जगाई जाए कि कोई भी शख्स किसी तरह का अन्याय करने की बात सोच भी न सके.
पुरुष सत्तावादी सामाजिक संरचना का बहिष्कार करते हुए कई महिलाओं ने अपना अलग वजूद कायम कर समाज के आगे उदाहरण पेश किए हैं.
हैदराबाद में वारंगल की डी. ज्योति रेड्डी एक ऐसा ही नाम है. 1989 तक वे रु 5 प्रति दिन पर मजदूरी करती थीं. लेकिन आज वे यूएसए की एक कंपनी की सौफ्टवेयर सौल्यूशंस की सीईओ हैं और करोड़ों के बिजनैस को हैंडल कर रही हैं.
एक ऐसे समाज, जिस में महिलाओं का सदियों से प्रतिकार किया जाता है, वहां से निकल कर एक ऊंचा मुकाम हासिल कर ज्योति रेड्डी ने साबित कर दिया कि रूढि़वादी सामाजिक संरचना से बाहर निकलना कठिन है नामुमकिन नहीं. बस जरूरत है अपनी ताकत को पहचानने की.
बुलंद हौसला है जरूरी
स्त्री या पुरुष होना माने नहीं रखता. सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि पुरुष ही शारीरिक रूप से मजबूत होते हैं और स्त्रियां कमजोर. मगर ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं, जिन्होंने इस मान्यता को गलत साबित किया है.
48 वर्षीय सामान्य कदकाठी की सीमा राव भी ऐसी ही एक शख्सीयत हैं. सैवेंथ डिग्री ब्लैक बैल्ट होल्डर, कौंबेट शूटिंग इंस्ट्रक्टर, फायर फाइटर, स्कूबा डाइवर और रौक क्लाइबिंग में एचएमआई मैडलिस्ट सीमा राव पिछले 20 सालों से भारतीय जवानों को अवेतनिक तौर पर ट्रेनिंग दे रही हैं. वे भारत की एकमात्र महिला कमांडो ट्रेनर हैं.
3 बहनों में सब से छोटी सीमा राव के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्हीं की प्रेरणा से सीमा के मन में अपने देश के लिए कुछ करने की इच्छा जगी. मैडिकल लाइन छोड़ कर वे स्वेच्छा से कमांडो ट्रेनर बनीं. अब तक वे 2 हजार से ज्यादा जवानों को ट्रेंड कर चुकी हैं.
उन्हें अपने पति मेजर दीपक राव का पूरा सहयोग मिलता है. बतौर स्त्री, घरपरिवार और बच्चों के साथ इस तरह के कामों में इन्वौल्व रहना आसान नहीं.
सीमा राव बताती हैं, ‘‘मैं ने और मेरे पति ने आपसी सहमति से यह तय किया कि हम अपनी संतान पैदा नहीं करेंगे. अपने काम के सिलसिले में अकसर हमें बाहर रहना पड़ता है. मैं साल में 8 महीने ट्रैवल करती हूं. ऐसे में सब मैनेज करना आसान नहीं. मेरे पति ने मेरी भावनाओं को मान दिया और इस अनुरूप परिस्थितियां दीं कि मैं बेफिक्र हो कर अपना काम कर सकूं.
‘‘बचपन से ही महिलाओं को यह समझाया जाता है कि उन्हें जिंदगी में शादी करनी है, बच्चे पैदा करने हैं और घर संभालना है. मगर इस का मतलब यह नहीं कि स्त्री दूसरे काम नहीं कर सकती. जब मैं फील्ड में होती हूं तो जवानों की आंखों में यह सवाल नजर आता है कि क्या एक स्त्री हमें ट्रेनिंग दे सकेगी? मगर मेरी आदत है कि कुछ भी सिखाने से पहले वह कार्यवाही मैं स्वयं कर के दिखाती हूं. इस से उन को अपने सवाल का जवाब भी मिल जाता है.’’
शारीरिक रूप से फिट रहने के लिए सीमा राव हफ्ते में 2 बार 5 किलोमीटर तक दौड़ती हैं. 2 बार जिम में जा कर वेट लिफ्टिंग करती हैं,
2-3 बार फाइटिंग, बौक्सिंग, कुश्ती करती हैं. वे अपने से दोगुने वजन और आधी उम्र के पुरुषों के साथ फाइट करती हैं.
अपनी दिनचर्या के बारे में बताते हुए सीमा कहती हैं, ‘‘ट्रेनिंग के दौरान मेरा दिन सुबह 5 बजे से शुरू हो जाता है. 6 से 7 बजे तक पहला सैशन होता है. 9 से 1 बजे तक शूटिंग और शाम 5 बजे से फिर लैक्सर्च, डैमो, वगैरह का दौर शुरू आता है. क्लोज क्वार्टर बैटल वगैरह के सैशन रात 3 बजे तक चलते रहे हैं.’’
सीमा को अब तक कई अवार्ड्स मिल चुके हैं. वे कई किताबें भी लिख चुकी हैं. उन का मानना है कि जिन लड़कियों में में आगे बढ़ने की चाह है, उन्हें पहले स्वयं को मजबूत बनाना होगा औ तय करना होगा कि यह काम करना ही है. फिर उन्हें कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता.
4 साल का रोहन बहुत ही दुबला है, क्योंकि वह खाना ठीक से नहीं खाता, उसकी माँ कोमल 2 से 3 घंटे घूम घूमकर हर रोज उसे खाना खिलाती है, वह बेटे को बहुत बार डॉक्टर के पास भी ले गयी, पर डॉक्टर की दवाई का कुछ खास फायदा नहीं हुआ. उसे चिप्स, बिस्किट , चोकलेट और बाज़ार के जंक फ़ूड पसंद है, लेकिन दाल, चावल, सब्जी नहीं खाना है. परेशान होकर माँ डॉक्टर के पास जाना भी बंद किया और वह जो भी खाता है, उसी में संतुष्ट रहने लगी. ये सही है कि आज छोटा बच्चा हो या शिशु उन्हें सही पोषण के लिए सही मात्रा में खाना खिलाना बहुत मुश्किल होता है.
घरेलू माँ घंटो बैठकर खाना खिलाती है, जबकि वर्किंग वुमन को केयर टेकर के उपर निर्भर रहना पड़ता है, अगर बच्चा खाना न खाए, तो खुद खा लेती है, या फिर फेंक देती है. इसका सही इलाज न तो पेरेंट्स के पास है और न ही डॉक्टर के पास. ऐसे बच्चे हमेशा बीमार रहते है और उनकी इम्युनिटी कम होती जाती है. इस बारें में एड्रोइट बायोमेड लिमिटेड के प्रमुख डॉ. सुनैना आनंद कहती है कि पिछले कुछ सालों में चेचक, पोलियो, और स्पेनिश फ्लू जैसी कई महामारियों को इन्युनिटी बढाकर ही निजात पायी गयी है. यही बात कोरोना वायरस के साथ भी लागू होती है. हालाँकि ये नया वायरस है और मानव में इसकी इम्युनिटी नहीं है. इसलिए ये सबके लिए घातक सिद्ध हो रही है. रोग प्रतिरोधक क्षमता ही शरीर को किसी संक्रमण से बचाती है.
इसके आगे डॉ. सुनैना कहती है कि छोटे बच्चों में इम्युनिटी कम होने की वजह से वे किसी भी इन्फेक्शन के लिए अति संवेदनशील होते है. इन्फेंट को माँ से ब्रैस्ट फीडिंग के द्वारा इम्युनिटी ट्रान्सफर होती रहती है, लेकिन समय से पहले अगर बच्चे का जन्म हुआ हो, तो उसकी इम्युनिटी अधिकतर कम होती है, क्योंकि उन्हें पूरा पोषण पेट में रहते हुए नहीं मिला है,जिससे उनमें संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. इसलिए ऐसे बच्चों की देखभाल भी अच्छी तरीके से की जानी चाहिए, इम्युनिटी बढ़ाने के कुछ सुझाव निम्न है,
अगर बच्चा छोटा है, तो उसे स्तनपान नियमित कराएं, इससे उसकी इम्युनिटी बढती है, क्योंकि माँ के दूध में प्रोटीन, वसा, शर्करा, एंटीबॉडी, प्रोबायोटिक्स आदि होता है, जो बच्चे के लिए खास जरुरी होता है.
छोटे बच्चों का टीकाकरण निर्देशों के अनुसार करवाते रहना चाहिए, क्योंकि ये गंभीर बीमारी से बच्चे को बचाने का एक प्रभावी और सुरक्षित तरीका है, हालाँकि कोरोना संक्रमण के दौरान बहुत सारे पेरेंट्स ने इन्फेक्शन के डर से बच्चों का टीकाकरण समय से नहीं करवाया, जो बच्चों के लिए ठीक नहीं रहा, बच्चे अधिकतर फर्श पर पड़ी वस्तुओं को हाथ लगते या मुंह में डालते रहते है, जिससे उन्हें कई बार खतरनाक बीमारी लग जाती है, इसके अलावा समय -समय पर उनके हाथों को धोते रहना भी बहुत जरुरी है, ताकि ये उनकी आदतों में शामिल हो जाय, खासकर भोजन से पहले और भोजन के बाद.
उचित मात्र में नींद भी बच्चों की इम्युनिटी को बढ़ाती है, अपर्याप्त नीद शरीर में साइटोकिंस नामक प्रोटीन के उत्पादन करने की क्षमता को सीमित करती है, जो संक्रमण से लड़ने और उसके प्रभाव को कम करने में मदद करती है, बच्चों को एक दिन में कम से कम 8 से 10 घंटे की नन्द लेनी चाहिए,
बच्चे की इम्युनिटी उम्र के साथ-साथ लगातार बदलती रहती है, इसमें खाने की आदतों से उन्हें प्राकृतिक रूप से इम्युनिटी मिलती है, जो किसी भी इन्फेक्शन से लड़ने में सक्षम बनाती है, संतुलित भोजन और पूरक आहार बच्चों को हमेशा संक्रमण से दूर रखती है.
बच्चे को संतुलित और पोषक आहार देना आज की माओं के लिए एक समस्या है, क्योंकि अधिकतर बच्चों को घर का बना खाना पसंद नहीं होता, पर इससे मायूस होने की कोई बात नहीं. जब आप किचन या मार्केट में जाएँ तो बच्चे को भी साथ लेकर काम करें और बच्चे से भी उसके अनुसार काम करवाएं, इससे उसकी खाना खाने की रूचि बढती है. इस बारें में डॉ. अनीश देसाई कहते है कुछ पोषक तत्व नियमित देने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे -धीरे बढती जाती है, जो निम्न है,
एस्कार्बिक एसिड के रूप में जाना जाने वाला विटामिन सी है, जो खट्टे फल, जामुन, आलू और मिर्च में पाया जाता है, इसके अलावा यह टमाटर, मिर्च, ब्रोकोली आदि प्लांट के स्त्रोतों में पाया जाता है, विटामिन सी एंटीबॉडी के गठन को एक्साईट कर इम्युनिटी को मजबूत बनाती है,
विटामिन ई एक एंटी ओक्सिडेंट के रूप में काम करता है और रोग प्रतिरोधक समझता को बढ़ाती है, फोर्टिफाईड अनाज, सूरजमुखी के बीज, बादाम तेल (सूरजमुखी या कुसुम तेल) हेजलनट्स और पीनटबटर के साथ बच्चे के आहार में विटामिन ई जोड़ने से इम्युनिटी को बढ़ावा देने में मदद मिलती है,
जिंक इम्युनिटी को प्रभावी ढंग से काम करने में मदद करता है, इसके लिए जिंक के स्त्रोत पोल्ट्री, ओसेनिक फ़ूड, दूध, साबूत अनाज, बीज और नट्स है,
प्रोटीन बच्चे की इम्युनिटी को बढ़ाती है, जो किसी बीमारी से लड़ने में मदद करती है, इसके लिए अंडे, बीन्स, मटर, सोया उत्पाद, अनसाल्टेड नट्स, बीज आदि प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करना अच्छा रहता है,
प्रोबायोटिक्स भी इम्युनिटी को बढ़ाने में कारगर सिद्ध होती है, जो दही, किमची, फरमेंटेड सोया प्रोडक्ट आदि में होता है, क्योंकि वे हानिकारक बैक्टेरिया को दूर रखते और उन्हें आंत में बसने से रोकती है,
विटामिन ए, डी, बी 12, फोलेट, सेलेनियम और आयरन सहित अन्य पोषक तत्व भी बच्चों की इम्युनिटी को मजबूत करती है.
जब दूसरे दिन इस विषय पर कोई चर्चा न हुई तो मैं ने चैन की सांस ली. परंतु तीसरे दिन सवेरा होते ही पुन: वही रट शुरू हो गई, ‘‘मां, कृपया फ्लौपी को ले लो न. हम वादा करते हैं, उस की सारी जिम्मेदारी हमारी होगी. आप को कुछ भी नहीं करना होगा,’’ दोनों भाई एकसाथ बोल पड़े. इस तरह मेरे कड़े विरोध के बावजूद उस रोज 1 घंटे के अंदर ही नन्हा फ्लौपी हमारे परिवार का सदस्य हो गया. शाम को जब यह दफ्तर से घर आए तो फ्लौपी को देख कर बोले, ‘‘तो इन दोनों ने अपनी बात मनवा कर ही दम लिया. बड़ा मुश्किल काम है इसे पालना.’’
इस बार मेरे साहित्यप्रेमी पति को पिल्ले का नाम सोचने के सुख से हमें वंचित ही रखा, क्योंकि गिरतालुढ़कता फ्लौपी अपना नामकरण तो पहले परिवार से ही करवा कर आया था. दूसरे दिन लाख कोशिशों के बावजूद राजधानी एक्सप्रेस से जब फ्लौपी की बुकिंग न हो सकी तो मैं ने पुन: खैर मनाई. सोचा, चलो सिर से बला टली. पर बबल की आंखों से बहती आंसुओं की अविरल धारा ने मेरे पति के कोमल हृदय को छू लिया और बाध्य हो कर उन्होंने वादा किया कि किसी भी हालत में वे फ्लौपी को कलकत्ता जरूर पहुंचा देंगे.
लगभग 20 रोज पश्चात जब यह दिल्ली दौरे पर गए तो फ्लौपी को लिवा लेने के लिए बच्चों ने फिर जिद की. फिर एक रात सचमुच मैं ने फ्लौपी को सुदर्शन के साथ मुख्यद्वार पर खड़ा पाया. दोनों बच्चों के मुख पर खुशी का वेग उमड़ आया, ‘‘अरे, तू तो कितना मोटू हो गया है,’’ दोनों उसे बारीबारी सहलाने लगे और बदले में फ्लौपी उन का मुख चाटचाट कर दुम हिलाता रहा.
सवेरा होते ही सारे मिंटो पार्क में हर्षोल्लास की लहर दौड़ गई. बारीबारी सब बच्चे उसे देखने आए, मानो घर में कोई नववधू विराजी हो. पड़ोस की लाहसा ऐप्सो टापिसी तो अपनी मालकिन को हमारे घर ऐसे खींच ले आई मानो फ्लौपी उस का भावी दूल्हा हो और सब बच्चों में धाक अलग से जमी कि बबल का कुत्ता हवाई जहाज से आया है. कलकत्ता में मिंटो पार्क के मैदान और बगीचे की कोई सानी नहीं. हरी मखमली घास पर जब हमारा फ्लौपी चिडि़यों के पीछे भागता तो बच्चे भी उस के साथ भागते. अच्छाखासा बच्चों का जमघट कहकहों और किलकारियों से गूंजता रहता.
एक रोज हमें कहीं बाहर जाना पड़ा तो हम फ्लौपी को एक कमरे में बंद कर के खुला छोड़ गए. सोचा, आखिर कुत्ते को घर में रह कर मकान की रखवाली करनी चाहिए. लौट कर आसपड़ोस से पता चला कि पीछे से भौंकभौंक कर उस ने सारा मिंटो पार्क सिर पर उठा लिया था. अपने प्रति अन्याय का ढोल पीटपीट कर सब को खूब परेशान किया. अब एक ही चारा था कि या तो कोई घर में सदा उस के पास रहे या फिर वह कार में हमारे साथ चले. बहुत सोचविचार करने पर दूसरा उपाय ही सब को ठीक लगा. एक रविवार हम टालीगंज क्लब गए तो उसे भी अपने साथ ले गए. मैं ने तरणताल के साथ रखी एक बेंच से उसे बांध दिया और स्वयं तैरने चली गई. तैरते हुए हंसतेखेलते बच्चों व अन्य लोगों को देख कर फ्लौपी ऐसा अभिभूत हुआ कि वहां पर आतीजाती सभी सुंदरियां उसी की हो गईं. जो भी लड़की वहां से गुजरती हम से हैलो पीछे करती, पहले फ्लौपी का मुख चूमती. क्लब का बैरा उस के लिए मीट की हड्डी ले आया. अब हम जहां भी जाते, उसे साथ ले जाते.
फिर बारी आई डाक्टर और दवाइयों के खर्चों की. परंतु जब विटामिन की ताकत उच्छृंखलता में परिवर्तित होने लगी तो मैं सकते में आ गई. अब उसे बांधा जाने लगा. परंतु जैसे ही उस नटखट पिल्ले को मौका मिलता, वह चीजों को मटियामेट करने से न चूकता. कभी जुराब तो कभी बनियान तो कभी परदा यानी जो भी उस के हाथ लगता, हम से नजर चुरा कर उस का कचूमर निकाल डालता. एक रोज एक कीमती ब्लाउज इस्तरी करने लगी. उसे खोल कर मेज पर बिछाया तो उस की हालत देख कर दंग रह गई, ‘‘ओ मंगला, यह देख इस की हालत, क्या इसे किसी काकरोच ने काट डाला?’’ मैं ने हैरानगी जाहिर की.
मंगला बेचारी सारा काम छोड़ कर भागी आई, ‘‘मेमसाहब, इसे तो फ्लौपी ने काटा है.’’ ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? देखो, गले के पीछे से और बाजुओं पर से ही तो काटा गया है.’’
‘‘हां, जहांजहां पसीने के दाग थे, वह हिस्सा चबा गया.’’ ‘‘इस मुसीबत ने तो जीना मुश्किल कर दिया है,’’ मैं ने फ्लौपी को जंजीर समेत घसीट कर अपना ब्लाउज दिखाया.
मेरी कठोर आवाज सुन कर वह सहम गया और उस ने अपना मुख दूसरी तरफ फेर लिया. मेरी गुस्से भरी आवाज सुन कर बबल भी अपने कमरे से भाग आया और गुस्से से बोला, ‘‘हमें जीने नहीं देगा. अब तू क्या चाहता है?’’ उस ने उस रात उसे पलंग के पाए से कस कर बांध दिया, ‘‘बच्चू, तेरी यही सजा है. अपनी हरकतों से बाज आ जा वरना मार डालूंगा,’’ बबल ने उंगली दिखा कर उसे कड़ा आदेश दिया. फ्लौपी दुम दबा कर पलंग के नीचे दुबक गया.
‘‘मां, आप मेरी बात मानो. इस बेवकूफ को मीट की हड्डी ला दो, सारा दिन बैठा चबाता रहेगा. याद है, माशा हड्डी से कितना खुश रहता था,’’ रात को मेरे बड़े बेटे ने खाने की मेज पर हिदायत दी. ‘‘पर माशा ने हमारी एक भी चीज खराब नहीं की थी. बड़ा ही समझदार कुत्ता था.’’
‘‘हां मां, पर वह बंगले के बाहर के बरामदे में बंधा रहता था और रात को अपना चौकीदार उस की देखभाल करता था. आप उस को घर के अंदर कहां आने देती थीं.’’ ‘‘बेटे, यही तरीका है कुत्ता पालने का और यहां इस 8वें तल्ले पर हम इस बेजबान के साथ सरासर अन्याय कर रहे हैं,’’ मैं ने जवाब दिया.
‘‘मेमसाहब. कितनी बार हम इस के साथ नीचे जाएंगे,’’ मंगला ने गुस्से में मेरी बात का समर्थन किया.
अगले दिन खरीदारी करने जब मैं बाजार गई तो 4-5 मोटीमोटी मीट की हड्डियां खरीद लाई. रोज उसे एक पकड़ा देती. हड्डी देख कर वह नाच उठता. दिन के समय वह कुरसी के पाए से बंधा रहता और रात को पलंग के पाए से. हड्डी उस के पास धरी रहती. जब उस का जी करता, चबा लेता. 5-6 रोज तक फिर उस ने कोई चीज न फाड़ी. एक सुबह सो कर उठी तो यह सोच कर बहुत प्रसन्न थी कि फ्लौपी की आदतों में सुधार हो रहा है. मैं ने उसे प्यार से सहलाया और फिर रसोई में नाश्ता बनाने चली गई. इस बीच बच्चे अपना कमरा बंद कर के पढ़ने का नाटक रचते रहे और फ्लौपी को बड़ी मेज की कुरसी के पाए से बांध गए. जब खापी कर नाश्ता खत्म हो गया तो मैं ने आमलेट का एक टुकड़ा दे कर फ्लौपी को पुचकारा, ‘‘अब तो मेरा फ्लौपी बहुत सयाना हो गया है.’’
कलकत्ता के लिए प्रस्थान करने में केवल 2 दिन शेष रह गए थे. जाती बार सुदर्शन हिदायत दे गए थे कि सांझ तक अपना पूरा काम निबटा लूं. सारे फर्नीचर को ठिकाने से व्यवस्थित कर दूं. बारबार के तबादलों ने दुखी कर रखा था. कितने परिश्रम और चाव से एक अरसे बाद घर बन कर पूरा हुआ था. अब सब छोड़छाड़ कर कलकत्ता चलो. अचानक घंटी ने ध्यान अपनी ओर खींच लिया. भाग कर किवाड़ खोला तो बबल को सामने खड़ा मुसकराता पाया. उस के हाथ में खूबसूरत सा काला और सफेद पिल्ला था. ‘‘कहां से लाए? बड़ा प्यारा है,’’ मैं ने उस के नन्हे मुख को हाथ में ले कर पुचकारा.
‘‘मां, यह बी ब्लाक वाली चाचीजी का है. पूरे साढ़े 700 रुपए का है,’’ उस ने उत्साह से भर कर उस के कीमती होने का बखान किया. ‘‘हां, बहुत प्यारा है,’’ मैं ने पिल्ले को हाथ में ले कर कहा.
‘‘गोद में ले लो. देखो, कैसे रेशम जैसे बाल हैं इस के,’’ उस ने पिल्ले के चमकते हुए बालों को हाथ से सहलाया. गोद में ले कर मैं ने उसे 3-4 बिस्कुट खिलाए तो वह गपागप चट कर गया और जब उस की आंखें डब्बे में बंद शेष बिस्कुटों की तरफ भी लोलुपता से निहारने लगीं तो मैं ने उसे डांट दिया, ‘‘बस, चलो भागो यहां से. बहुत हो गया लाड़प्यार.’’
फिर मैं ने बबल से कहा, ‘‘बबल, देखो अब ज्यादा समय नष्ट मत करो. इस पिल्ले को इस के घर छोड़ आओ और वापस आ कर अपना सामान बांधो. विकी से भी कहना कि जल्दी घर लौटे. अपने- अपने कमरों का जिम्मा तुम्हारा है, मैं कुछ नहीं करूंगी.’’ ‘‘चलो भई, मां तुम्हारे साथ खेलने नहीं देंगी,’’ उस ने पिल्ले का मुख चूम लिया और बी ब्लाक की तरफ भाग गया.
आधे घंटे बाद जब वह पुन: लौटा तो विकी उस के साथ था. दोनों अपने- अपने कमरों में जा कर सामान समेटने लगे परंतु बीचबीच में कुछ खुसुरफुसुर की आवाजों से मैं शंकित हो उठी. मैं ने आवाज दे कर पूछा, ‘‘क्या बात है. आज तो दोनों भाइयों में बड़े प्रेम से बातचीत हो रही है.’’ जब भी मेरे दोनों बेटे आपस में घुलमिल कर एक हो जाते हैं तो मुझे भ्रम होता है कि जरूर मेरे खिलाफ कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है. जैसे वे घर में देवरानी और जेठानी हों और मैं उन की कठोर सास. एक बार हंस कर मेरे पति ने पूछा भी था, ‘‘तुम इन्हें देवरानीजेठानी क्यों कहती हो?’’
‘‘इसलिए कि वैसे तो दोनों में पटती नहीं, परंतु जब भी मेरे खिलाफ होते हैं तो आपस में मिल कर एक हो जाते हैं. आप ने देखा होगा, अकसर देवरानीजेठानी के रिश्तों में ऐसा ही होता है,’’ मेरी इस बात पर घर में सब बहुत हंसे थे. ‘‘मेरी प्यारीप्यारी मां,’’ पीठ के पीछे से आ कर बबल ने मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया.
‘‘जरूर कोई बात है, तभी मस्का लगा रहे हो?’’ ‘‘फ्लौपी है न सुंदर.’’
‘‘कौन फ्लौपी?’’ ‘‘वही पिल्ला, जिसे मैं घर लाया था.’’
‘‘उस का नाम फ्लौपी है, बड़ा अजीब सा नाम है,’’ मैं ने व्यंग्य से मुंह बिचकाया. ‘‘वह गिरता बहुत है न, इसलिए चाचीजी ने उस का नाम फ्लौपी रख दिया है.’’
‘‘हमारे पामेरियन माशा के साथ उस की कोई तुलना नहीं. जैसी शक्ल वैसी ही अक्ल पाई थी उस ने. कितनी मेहनत की थी मैं ने उस पर. हमारे दिल्ली आने से पहले ही बेचारा मर गया,’’ मैं ने एक ठंडी आह भरी, ‘‘कोई भी घर आता तो कैसे 2 पांवों पर खड़ा हो कर हाथ जोड़ कर नमस्ते करता. मैं उसे कभी भूल नहीं सकती.’’ ‘‘वैसे तो मां अपना ब्ंिलकर भी किसी से कम न था, जिसे आप की एक सहेली ने भेंट किया था,’’ उस ने बात आगे बढ़ाई.
‘‘पर उस के बाल बड़े लंबे थे. बेचारा ठीक से देख भी नहीं सकता था. हर समय अपनी आंखें ही झपकता रहता था. तभी तो पिताजी ने उस का नाम ब्ंिलकर रख छोड़ा था.’’ बबल की बातें सुन कर मैं कुछ देर के लिए खो सी गई और एक ठंडी आह भर कर बोली, ‘‘1 साल बाद ब्ंिलकर चोरी हो गया और माशा को किसी ने मार डाला.’’
‘‘कई लोग बड़े निर्दयी होते हैं,’’ बबल ने मेरी दुखती रग पकड़ी. ‘‘तुम्हें याद है, जिस दिन मैं एक पत्रिका के लिए साक्षात्कार कर के लौटी तो कितनी देर तक मेरे हाथपांव चाटता रहा. जहां भी जा कर लेटती वहीं भाग आता. मैं सुबह से गायब रही, शायद इसलिए उदास हो गया था. उस रात हम किसी के घर आमंत्रित थे. चुपके से कमरे से बाहर निकल गया और लगा कार के पीछे भागने. मैं कार से उतर कर पुन: उसे घर छोड़ आई. पर वह था बड़ा बदमाश. हमारे जाते ही गेट से निकल कर फिर कहीं मटरगश्ती करने निकल पड़ा.’’
‘‘मां, उस रात आप ने बड़ी गलती की. वह आप के साथ कार में जाना चाहता था. आप उसे साथ ले जातीं तो वह बच जाता.’’ ‘‘बच्चे, अगर उसे बचना होता तो उसे एक जगह टिक कर बंधे रहने की समझ अपनेआप आ जाती. उस का सब से बड़ा दोष था कि वह एक जगह बंध कर नहीं रहना चाहता था. जब भी बांधने का नाम लो, आगे से गुर्राना शुरू कर देता. उस रात भी तो उस ने ऐसा ही किया था.’’
‘‘मां, आप मेरी बात मानो, वह किसी की कार के नीचे आ कर नहीं मरा. उस के शरीर पर एक भी जख्म नहीं था. ऐसे लगता था जैसे सो रहा हो. जरूर उस निकम्मे नौकर ने ही उसे मार डाला था. माशा उसे पसंद नहीं करता था. नौकर ने ही तो आ कर खबर दी थी कि माशा मर गया है,’’ बबल ने क्रोध में अपने दांत पीसे. ‘‘हम कुत्ता पालते तो हैं लेकिन उस का सुख नहीं भोग सकते,’’ मैं ने उदास हो कर कहा.
‘‘मां, अगर आप को फ्लौपी जैसा पिल्ला मिल जाए तो आप ले लेंगी?’’ विनम्रता से चहक कर उस ने मतलब की बात कही. ‘‘मैं साढ़े 700 रुपए खर्च करने वाली नहीं. कोई मजाक है क्या? मुझे नहीं चाहिए फ्लौपी,’’ मैं ने गुस्से में अपने तेवर बदले.
‘‘कौन कहता है आप को रुपए खर्च करने को. चाचीजी तो उसे मुफ्त में दे रही हैं.’’ ‘‘क्यों? तो फिर जरूर उस में कोई खोट होगी. वरना कौन अपना कुत्ता किसी को देता है?’’
‘‘खोटवोट कुछ नहीं. उन का बच्चा छोटा है, इसलिए उसे समय नहीं दे पातीं. आप तो बस हर बात पर शक करती हैं.’’ हम दोनों की बहस सुन कर मेरा बड़ा बेटा विकी भी उस की तरफदारी करने अपने कमरे से निकल आया, ‘‘मां, बबल बिलकुल ठीक कह रहा है. चाचीजी पिल्ले के लिए कोई अच्छा सा परिवार ढूंढ़ रही हैं. आप को शक हो तो स्वयं उन से मिल लो.’’
‘‘मुझे नहीं मिलना किसी से. माशा के बाद अब मुझे कोई कुत्ता नहीं पालना. सुना तुम ने,’’ मैं पांव पटकती पुन: सामान समेटने लगी, ‘‘कलकत्ता के 8वें तल्ले पर है हमारा फ्लैट. उसे पालना कोई मजाक नहीं. तुम्हारे पिता भी नहीं मानेंगे,’’ मैं ने कड़ा विरोध किया. परंतु उन दोनों में से मेरी बात मानने वाला वहां था कौन? ‘‘हम तो फ्लौपी को जरूर पालेंगे,’’ दोनों भाई जोरदार शब्दों में घोषणा कर के अपनेअपने कमरों में चले गए.
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मेरी बात सुन कर बबल सहम गया. पर उस के सहज होने के नाटक से मैं ताड़ गई कि कोई न कोई बात जरूर है जो मुझ से छिपाई जा रही है. चुपके से जा कर मैं ने विकी के कमरे का दरवाजा सरकाया तो दंग रह गई. हाल ही में खरीदे गए गद्दे पर विकी सफाई से पैबंद लगा रहा था. ‘‘तो यह बात है. 400 रुपए का नया गद्दा है मेरा. इस मुसीबत के कारण तो सारे घर की शांति भंग हो गई है,’’ मैं ने दोचार करारे थप्पड़ उस बेजबान के मुख पर जड़ दिए, ‘‘तू है ही नालायक.’’
रोजरोज घर की शांति भंग होने लगी. शेष बची चीजों को मैं संभालती ताकि कंबल, साडि़यां आदि पर वह अपने दांत न आजमाए. अब उस ने हमारे एक कीमती गलीचे को अपना शिकार बनाया और हमारे बारबार मना करने पर भी वह नजर चुरा कर उसे पेशाब और मल से गंदा कर देता. दिल चाहा कि फ्लौपी के टुकड़े कर दिए जाएं और बच्चों की भी जम कर पिटाई की जाए, जो उसे घर में लाने के जिम्मेदार थे.
एक रात को तो हद हो गई. रात के 3 बजे थे. यह दौरे पर थे. मेरी तबीयत खराब थी. फ्लौपी ने मुझे पांव मार कर जगाया कि उसे नीचे जाना है. मैं ने बबल को आवाज दी, ‘‘रात का समय है, मेरे साथ नीचे चलो.’’ बेचारा झट उठ खड़ा हुआ. बाहर बरामदे में जा कर देखा तो लिफ्ट काम नहीं कर रही थी. अब एक ही चारा था कि सीढि़यों से नीचे उतरा जाए. बेचारा जानवर अपनेआप को कब तक रोकता. उस ने सीढि़यों में ही ‘गंदा’ कर दिया.
मिंटो पार्क कलकत्ता की एक बेहद आधुनिक जगह है. कागज का एक टुकड़ा भी सारे अहाते में दिखाई दे जाए तो बहुत बड़ी बात है. सवेरा होते मैं डर ही रही थी कि यहां के प्रभारी आ धमके, ‘‘सुनिए, या तो आप अपने कुत्ते को पैंट पहनाइए या फिर किसी नीचे रहने वाले निवासी को सौंप दीजिए. यही मेरी राय है.’’
उस दिन से हम एक ऐसे अदद परिवार की तलाश करने लगे जो फ्लौपी को उस की शैतानियों के साथ स्वीकार कर सके. हमारे घर विधान नामक एक युवक दूध देने आता था. वह फ्लौपी को बहुत प्यार करता था. हमारी समस्या से वह कुछकुछ वाकिफ हो गया. एक रोज साहस कर के बोला, ‘‘मेमसाहब, नीचे वाला दरबान बोल रहा है कि आप फ्लौपी किसी को दे रहे हैं.’’
‘‘हां, हमारा ऊपर का फ्लैट है न, इसलिए कुछ मुश्किल हो रही है.’’ ‘‘मेमसाहब, हमारा घर तो नीचे का है. हमें दे दीजिए न फ्लौपी को.’’
‘‘पूरे 800 रुपए का कुत्ता है, भैया,’’ पास खड़ी मंगला ने रोबदार आवाज में कहा. ‘‘नहींनहीं, हमें इसे बेचना नहीं है. देंगे तो वैसे ही. जो भी इसे प्यार से, ठीक से रख सके.’’
‘‘हम तो इसे बहुत प्यार से रखेंगे,’’ विधान बोला. ‘‘पर तुम तो काम करते हो. घर पर इस की देखभाल कौन करेगा,’’ मैं ने पूछा.
‘‘घर में मां, बहन और एक छोटा भाई है.’’ ‘‘इस का खर्चा बहुत है, कर सकोगे?’’
‘‘दूध तो अपने पास बहुत है और मीट भी हम खाते ही हैं.’’ ‘‘इस की दवाइयों और डाक्टर का खर्चा?’’
‘‘आप चिंता न करें,’’ विधान ने मुसकराते हुए कहा. हम दोनों की बातें सुन कर विकी अपने कमरे से भागा आया, ‘‘मां, वह प्यार से फ्लौपी को मांग रहा है. मेरी बात मानो, दे दो इसे. मुझे घर की शांति ज्यादा प्यारी है.’’
सचमुच उस ने फ्लौपी को दोनों हाथों से उठा कर विधान के हाथों में दे दिया. मैं हतप्रभ सी खड़ी बबल के चेहरे पर उतरतेचढ़ते भावों को पढ़ कर बोली, ‘‘विधान, तुम इसे कुछ रोज अपने पास रखो, फिर मैं सोचूंगी.’’
फ्लौपी चला गया तो ऐसा लगा कि घर में कुछ विशेष काम ही नहीं. ‘चलो मुसीबत टली,’ मैं ने सोचा. पर 2 दिन पश्चात ही महसूस होने लगा कि घर का सारा माहौल ही कसैला हो गया है. बच्चे स्कूल से लौटते तो चुपचाप अपनेअपने कमरों में दुबक जाते. न कोई हंसी न खेल. 2 रोज पहले तो फ्लौपी था. बच्चों की आहट पाते ही भौंभौं कर के झूमझूम जाता था और बदले में विकी और बबल के प्रेमरस से सराबोर फिकरे सुनने को मिलते.
उल्लासरहित वातावरण मन को अखरने लगा. जब खाने की मेज पर बच्चे बैठते तो बारबार उस कोने को देख कर ठंडी आहें भरते जहां वह बंधा रहता था. मन एक तीव्र उदासी से लबालब हो उठा. अगली सुबह जब विधान दूध देने आया तो मैं ने फ्लौपी के बारे में पूछताछ की. ‘‘बहुत खुश है, मेमसाहब. मेरी बहन उसे बहुत प्यार करती है,’’ विधान ने बताया.
‘‘कल शाम को उसे मिलाने के लिए जरूर लाना. बच्चे उसे बहुत याद करते हैं.’’ ‘‘अच्छा मेमसाहब, कल शाम 4 बजे उसे जरूर लाऊंगा,’’ वह कुछ सोच कर बोला.
दूसरे दिन 3 बजते ही बच्चे फ्लौपी का बेसब्री से इंतजार करने लगे थे. इतने उत्साहित थे कि अपने मित्रों के साथ नीचे खेलने भी न गए. जरा सी आहट पाते ही मंगला बारबार दरवाजा खोल कर देखती. पहले 4 बजे, फिर 5 बज गए, पर फ्लौपी न आया और न विधान ही दिखाई दिया. हम सब का धैर्य जवाब देने लगा. बबल उदास स्वर में बोला, ‘‘अब वह लड़का फ्लौपी को कभी नहीं लाएगा.’’ ‘‘क्यों?’’ मैं हैरान हो कर बोली.
‘‘उस ने उस पर अपना हक जमा लिया है.’’ ‘‘तो क्या, 2 रोज में ही फ्लौपी विधान का हो गया. मैं कल ही उस से बात करूंगा,’’ विकी क्रोध में बोला.
‘‘कितना महंगा कुत्ता है. कहीं उस ने बेच न दिया हो, मेमसाहब,’’ मंगला ने अपनी शंका व्यक्त की. ‘‘बेच कर तो देखे. हम उस की पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे,’’ विकी ने ऊंचे स्वर में कहा.
‘‘ऐसा करो बबल, जा कर देख आओ कि सब ठीक है न,’’ इन्हीं बातों में शाम बीत गई पर विधान न आया. ‘‘मां, एक बात कहूं पर डर लगता है,’’ विकी बोला.
‘‘क्या बात है?’’ ‘‘कहीं फ्लौपी का एक्सीडेंट तो नहीं हो गया,’’ उस की बात सुन कर मेरा कलेजा धक से रह गया कि कहीं माशा वाले अंत की पुनरावृत्ति न हो जाए. मुझे तो विधान से यह भी पूछना याद नहीं रहा कि कहीं उस का घर सड़क के किनारे तो नहीं.
अज्ञात आशंका के कारण सारा उत्साह भय में तबदील हो गया. मन एक तीव्र अपराधबोध से भर उठा. एक घुटन सी मेरे भीतर गूंजने लगी. सोचा, जल्दबाजी में सब गड़बड़ हो गया. कुछ दिनों में फ्लौपी अपनेआप ठीक हो जाता. सवेरा होते ही मैं दरवाजे पर टकटकी लगाए विधान की राह देखने लगी. जैसे ही लिफ्ट की आहट हुई, मैं ने झट से किवाड़ खोला, उसे अकेला आया देख कर एक बार तो संशय तनमन को झकझोरने लगा.
‘‘फ्लौपी को क्यों नहीं लाए? सब ठीक तो है न?’’ मैं एकसाथ कई प्रश्न कर उठी. ‘‘कल कुछ मेहमान आ गए थे, मेमसाहब. इसलिए नहीं आ सका. वैसे वह ठीक है.’’
विधान की बात सुन कर मैं एक सुखद आश्चर्य से अभिभूत हो कर बोली, ‘‘देखो, आज शाम को फ्लौपी को जरूर लाना वरना बच्चे बहुत नाराज होंगे.’’
शाम को 3 बजे जैसे ही बाहर की घंटी बजी, बच्चों ने लपक कर दरवाजा खोला. फ्लौपी हम सब को देखते ही विधान की बांहों से छूट कर मेरी गोद में आ गया. मुख चाटचाट कर, दुम हिलाहिला कर और झूमझूम कर वह अपनी खुशी प्रकट करने लगा. बच्चों का उत्साह से नाचना और खिलखिलाना मुझे बड़ा भला लगा. एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि दीर्घकाल से बिछुड़ा मेरा तीसरा बच्चा मिल गया हो और हमारी ममता भरी छाया में पहुंच गया हो. आधे घंटे बाद जब विधान पुन: फ्लौपी को लेने के लिए आया तो मेरे मुख से बस इतना ही निकला, ‘‘विधान, अब फ्लौपी को यहीं रहने दो, हमारा मन नहीं मानता.’’
कोरोनावायरस की वैक्सीन आने के बाद भी कोरोना के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं. कई जगहों पर लौकडाउन लगाने का नौबत आ चुकी हैं. वहीं सेलेब्स भी इस बीमारी के चपेट में आते जा रहे हैं. हाल ही में सीरियल गुम है किसी के प्यार के में लीड रोल में नजर आने वाले नील भट्ट कोरोना पौजीटिव पाए गए थे तो वहीं अब कौमेडी शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा में दयाबेन के भाई के रोल में नजर आने वाले सुंदरलाल यानी मयूर वकाणी कोरोना पौजीटिव हो गए हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…
फैंस को दी जानकारी
दिशा वकाणी के रियल लाइफ भाई मयूर वकाणी ने फैंस को जानकारी देते हुए लिखा-, ‘COVID-19 के कुछ लक्षणों के बाद, मैंने खुद का टेस्ट करवाया और रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. मैंने खुद को आइसोलेट कर लिया है. मेरा अनुरोध है कि जो भी मेरे संपर्क में आए हैं वे सावधान रहें और प्रोटोकॉल का पालन करें. आप मेरी चिंता ना करें, आप के प्यार, प्रार्थनाओं और आशीकरण से मैं सही हूं. जल्द ही ठीक हो जाऊंगा, आप मस्त स्वस्थ रहें. ‘
Gokuldham vassiyon ko bas tha yeh plan hit hone ki aasha par Bhogilal ne palta diya poora pasa. Ab kya Jetalal zameen aur 50 lakh dono kho dega? Kya hoga aage, yeh jaanne ke liye dekhiye #TMKOC aaj raat 8:30 baje. pic.twitter.com/UNMI5MF4MM
— Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah (@TMKOC_NTF) March 12, 2021
शो पर शूटिंग करते आए थे नजर
सीरियल के ट्रैक की बात करें तो पेमेंट न होने के चलते जेठालाल काफी परेशान है. इसी कारण वह दुकान बेचने का फैसला करता है. इसलिए जेठालाल अपने पुरखों की जमीन बेचने जाता हैं. लेकिन तभी उन्हें पता चलता है कि सुंदरलाल ने जिसके साथ जमीन की डील करवाई है वो कोई और नहीं बल्कि बोगीलाल है, जिन्हें जेठालाल को 50 लाख रुपये देने है लेकिन वो खुद को दिवालिया बताकर पैसे न देने की मजबूरी बता चुका है. वहीं इसी ट्रैक में सुंदर लाल यानी मयूर वकाणी भी नजर आए थे. खबरों की मानें तो सुंदर ऊर्फ मयूर वकाणी हाल ही में शो की शूटिंग मुंबई में करने पहुंचे थे, जिसके बाद वह दोबारा अहमदाबाद चले गए थे. जहां वह कोरोना पौजीटिव हो गए और अब वह अस्पताल में भर्ती हैं.
पिछले 12 साल से फैंस को एंटरटेन कर रहा शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा आज भी उतना ही पौपुलर है, जितना पहले था. हर कोई शो के नए या पुराने सभी एपिसोड देखना पसंद करता है. वहीं सुंदर लाल यानी मयूर वकाणी भी तारक मेहता का उल्टा चश्मा कॉमेडी शो में दिशा वकाणी यानी दयाबेन के रियल भाई मयूर वकाणी (Mayur Vakani) भी काफी लंबे समय से इससे जुड़े हुए हैं.
बता दें, लौकडाउन और कोरोना के कहर के कारण शो के कई सितारों ने शो को अलविदा कह दिया है, जिनमें अंजलि भाभी और सोढ़ी का किरदार निभाने वाले सितारे शामिल हैं.
दिल्ली में जन्मी और पली-बढ़ी लेक्का की गिनती इन दिनों मशहूर पंजाबी पॉप गायक एवं गीतकार के रूप में होती है. मजेदार बात यह है कि लेक्का को बहुत ही छोटी उम्र में अहसास हो चुका था कि संगीत ही उनका प्यार व संगीत ही उनकी जिंदगी है. लेक्का ने चार साल की छोटी उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था और सात साल की उम्र में ही स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर स्टेज सिंगिंग की दुनिया में खुद को हिट बना चुकी थी. वैसे उनके अंदर इस प्रतिभा का अहसास सबसे पहले संगीतकार विशाल ददलानी ने किया था और विशाल ददलानी ने ही लेक्का को भारत के अगले पॉप स्टार के रूप में चिह्नित किया. तभी तो वीएच1 द्वारा जून 2018 में आयोजित ‘वर्ल्ड म्यूजिक वीक‘ के चंनिंदा कलाकारों में से लेक्का भी एक थीं.
लेक्का इन दिनों एक बार फिर अपनी गायकी के चलते धमाल मचा रही हैं. लेक्का ने हाल ही में दिल्ली में अपने नवीनतम हिंदी-पंजाबी मिक्स ट्रैक ‘काबिल-ए-तारीफ‘ का जबरदस्त प्रमोशन किया. दिल्ली में कनॉट प्लेस स्थित कनॉट क्लब हाउस में आयोजित प्रमोशनल कार्यक्रम में मीडिया से बात करते हुए लेक्का ने बताया, ‘इस गीत की रचना करने की प्रक्रिया वास्तव में काफी रोमांचक थी, क्योंकि हम इस गाने पर एक साल से काम कर रहे थे. तकनीकी रूप से गीत को पिछले साल ही रिलीज हो जाना चाहिए था, क्योंकि हमने पिछले वर्ष की शुरुआत में ही इस पर काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन से दुनिया मानो ठहर सी गई थी. ऐसे में हम फोन के जरिए ही आपसी संचार कर रहे थे. आखिरकार लॉकडाउन समाप्त होने पर हमने गाने को रिकॉर्ड किया, इसका वीडियो तैयार किया और अब अंत में हम इसे जारी कर रहे हैं. ‘’
स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में नए-नए ट्विस्ट देखर फैंस काफी एक्साइटेड हैं. वहीं शो के किरदार भी जमकर मेहनत करते नजर आ रहे हैं. लेकिन अब शो की कहानी में नया मोड़ आने वाला है. हाल ही में हमने बताया था कि वनराज अपने और काव्या के रिश्ते को नाम देने वाला है, जिसके बाद पूरा शाह परिवार हैरान हो गया था. वहीं अब इस फैसले के बाद अनुपमा भी बड़ा फैसला लेते हुए नजर आएगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…
अब तक आपने देखा कि शिवरात्रि के मौके पर नंदिनी को शाह हाउस में देखकर वनराज आगबबूला हो जाता है. वहीं समर भी इस मौके पर तांडव करता नजर आता है, जिसके बाद वनराज और समर के बीच झगड़ा शुरु हो जाता है. हालांकि अनुपमा पूरी कोशिश करती हैं कि दोनों की लड़ाई रुक जाए. लेकिन वनराज का गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुंच जाता है और वह घर छोड़ने का फैसला करता है. पर काव्या उसे समझाती है कि यह घर उसका है, जिसके कारण वनराज ना खुद और ना ही काव्या को घर छोड़कर जाने के लिए कहता है. और कहता है कि अब वह काव्या से शादी करके उसी घर में रहेगा.
अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज को घर छोड़कर जाने के फैसले से अनुपमा परेशान हो जाएगी औऱ बापूजी से कहेगी कि वह शाह हाउस वनराज के नाम पर कर देगी और घर को छोड़ने का फैसला करेगी. वहीं वनराज इस फैसले को जब सुनेगा तो वह कहेगा कि उसने सही फैसला किया है क्योंकि अब वह शाह हाउस को छोड़कर कहीं नही जाएगा. वहीं काव्या, अनुपमा को घर छोड़ने से रोकती नजर आएगी. हालांकि यह सब काव्या के प्लान का हिस्सा ही है. ताकि वह एक-एक करके सभी को घर से निकाल सके.
खबरों की मानें तो आनेवाले एपिसोड में वनराज पूरे परिवार के सामने काव्या को रिंग पहनाता हुआ नजर आएगा. वहीं यह सब देखकर अनुपमा टूटती हुई दिखेगी. लेकिन वो किसी को अपने दर्द को पता नहीं लगने देगी पर समर उसके दर्द को समझ जाएगा औऱ वनराज की शादी के खिलाफ खड़ा होगा.
कामसूत्र का नाम आते ही कुछ झिझक, कुछ शर्मिंदगी सा अहसास होता है. यह दरअसल नजरिया भर है. हकीकत में 2000 वर्ष पुराना यह ग्रंथ खुद में पूर्ण है. यह अच्छा खुशहाल जीवन जीने के तरीके बताता है. यह भी बताता है कि किस तरह सेक्स ऊर्जा, संतुष्टि और आनंद की अनुभूति कराता है.
समाज को दिशा देना ही है कामसूत्र का उद्देश्य
सेक्स से संबंधित कुछ हिस्सों को छोड़ दें तो कामसूत्र में अधिकतर रहन-सहन, समाज में उठने-बैठने, पहनने, सजने-संवरने और आकर्षित दिखने के नुस्खे बताए गए हैं. बताया गया है कि सुंदर और योग्य युवा कैसा होना चाहिए. इसी तरह गुणी युवती जो सभी के मन को भा जाए में क्या-क्या विशेषताएं अपेक्षित हैं. यह शास्त्र बताता है कि ज्ञान होने और उस पर अमल करने पर इन खूबियों को सीखा जा सकता है. जब अधिक से अधिक लोग इस शास्त्र के ज्ञान से लाभ उठाएंगे तो व्यक्ति के साथ ही सभ्य समाज का निर्माण होगा. ऐसा समाज जो शिक्षा, संस्कृति, उत्सव, कला और आनंद से भरा होगा.
खुशहाल वैवाहिक जीवन की नींव है
ऋषि वात्सयायन का यह प्राचीन ग्रंथ बताता है कि जीवन में सृजन और आनंद की अनुभूति देने वाला सेक्स कोई बुरी चीज नहीं है. यह तो खुशहाल वैवाहिक जीवन की नींव है. सेक्स के दौरान पति-पत्नी का एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण होता है. जिसमें शरीर से शरीर और आत्मा से आत्मा का मिलन होता है. इस मिलन से ही आनंद की अनुभूति और बच्चों का जन्म होता है. परिवार बढ़ता है, खुशहाली आती है. एक दूजे के प्रति समर्पण और निरंतर आनंद पति-पत्नी के साथ ही परिवार के लिए खुशी का आधार साबित होता है.
माना जाता है कि कामसूत्र के मूल में प्रेम है. हिंदू जीवनशैली में धर्म, अर्थ और मोक्ष के साथ काम को विशेष महत्व दिया गया है. कालांतर में काम यानि सेक्स को देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार शर्मिंदगी से देखा जाने लगा. धर्म और अर्थ के बाद हिंदू मान्यताओं में काम का विशेष स्थान है. दरअसल काम व अनुभूति है जिसमें सभी पांच इंद्रियों को आनंद की अनुभूति होती है.
अध्यात्म की ओर
काम या सेक्स ब्रह्माण्ड की सृजनात्मक शक्ति है. जो कुछ भी जीवित है वह काम की वजह से ही है. मानव में काम शक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक किसी भी रूप में हो सकती है. सृष्टि में जहां भी आकर्षण, उत्साह, प्रेरणा है वहां किसी न किसी रूप में काम ऊर्जा है. इसी लिए प्रकृति मनोहर और प्रेरक लगती है.
कब गलत हो जाता है सेक्स
जब सेक्स युवक-युवती की सहमति के बिना बलपूर्वक किया जाता है तब वह गलत हो जाता है. लगभग सभी जगह इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाता है. इसी तरह जब किसी निहित स्वार्थ, घृणा के भाव के साथ सेक्स किया जाता है तब भी इसका स्वरूप और आनंद खत्म या कम हो जाता है. सेक्स दरअसल निर्मल और निश्चल होता है. इस रूप में ही वह हर प्रकार से आनंद का अहसास कराता है.
मूल्यों का जरूर रखें ध्यान
मूल्यों के बिना सेक्स अधूरा रहता है. यह मूल्य स्त्री और पुरुष दोनों के बीच होते हैं. समाज के भी अपने मूल्य होते हैं. स्त्री को पुरुष के मूल्यों का और पुरुष को स्त्री के मूल्यों का और दोनों को समाज के मूल्यों का ध्यान रखना चाहिए. ऐसा करते हुए शारीरिक के साथ ही मानसिक आनंद की अनुभूति होती है. व्यक्ति और समाज के मूल्य या अलग-अलग व्यक्तियों और समाजों के विभिन्न मूल्य हो सकते हैं. उनका सम्मान किया जाना चाहिए.
गृह सज्जा भी सिखाता है कामसूत्र
कामसूत्र में गृह सज्जा और उसके महत्व का भी वर्णन है. अच्छे घर में एक उद्यान और एक रसोई के बगीचे या किचन गार्डन का महत्व बताया गया है. यह भी कि इन बगीचों की खूबसूरती का व्यक्ति के विकास और दिमाग पर क्या असर पड़ता है. यही नहीं, घर में साज सजावट के महत्व को भी रेखांकित किया गया है.
संगीत भी है खास
कामसूत्र में संगीत को विशेष स्थान दिया गया है. खुद के लिए तो संगीत विशेष होता ही है. अच्छा गायन, वादन दूसरों को भी मंत्रमुग्ध कर देता है. नृत्य,गायन या वादन में निपुण स्त्री या पुरुष सहज ही किसी के दिल में जगह बना लेते हैं. इसीलिए प्राचीन काल में भी राजभवनों में संगीत संध्याओं और आयोजनों का विशेष महत्व था. लोग भी अपने-अपने स्तर पर छोटे-बड़े आयोजन करते थे. कामसूत्र शाम को संगीत व मनोरंजन पर विशेष महत्व देता है.
महिलाओं के लिए स्थान
कामसूत्र प्राचीन होते हुए भी आज भी बहुत प्रासंगिक है. इस ग्रंथ में महिलाओं की खुशी पर बहुत ध्यान दिया गया है. आदर्श घर ऐसा होना चाहिए जिसमें महिलाओं के नितांत निजी पलों के लिए अलग स्थान हो. वहां पति, घर के स्वामी यहां तक की राजा के भी जाने से पहले संबंधित महिला की अनुमति जरूरी है. ऐसा इसलिए कि महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता के पल मिल सकें. उस दौरान किसी का भी कोई हस्तक्षेप न हो. वे जैसे चाहें श्रृंगार करें, कपड़े पहनें, स्नान करें. जिस भी अवस्था में रहें, मनमुताबिक गाएं, नृत्य करें या खाना खाएं उन्हें रोकने-टोकने वाला न हो.
कामसूत्र में अच्छी दिनचर्या का भी वर्णन किया गया है. इसमें स्वच्छता, स्नान आदि के बाद धार्मिक आयोजन पूजा-पाठ के साथ दिन की शुरुआत, इसके बाद राजकीय या व्यापार के कार्य शामिल हैं. दोपहर के भोजन के बाद घोड़े या अन्य प्रिय जानवरों के साथ भ्रमण, मनोरंजन के अन्य साधनों का भी जिक्र है. इसके बाद शाम को स्नान, सुगंधित द्रव्यों का उपयोग, संगीत, भजन आदि में समय व्यतीत करना अच्छा बताया गया है.
खेल, संगीत, सामान्य ज्ञान प्रतियोगिताएं भी महत्वपूर्ण
कामसूत्र के अनुसार जीवन को जीवंत बनाने में संगीत के साथ ही खेलकूद, सामान्य ज्ञान व पराक्रम से संबंधित अन्य प्रतियोगिताओं का विशेष स्थान है. इन प्रतियोगिताओं को देखने वालों का मनोरंजन तो होता ही है, इनके विजेताओं का समाज में मान-सम्मान भी बढ़ता है. नवयुवक या नवयुवती की ख्याति होती है. उसके प्रशंसक बढ़ते हैं.
सेक्स लाइफ बेहतर करने के तरीके
कामसूत्र के दूसरे भाग संप्रोगिका में ही काम या सेक्स के जरिए अपने सेक्स जीवन को बेहतर बनाने के तौर तरीके बताए गए हैं. स्त्री-पुरुष या पति-पत्नी का एक दूसरे को देखने, स्पर्श करने, लुभाने, परफ्यूम आदि का प्रयोग और प्राकृतिक संगीत या आवाजों के बीच अंतरंग पलों को अधिक से अधिक आनंद भरा बनाने के तरीके बताए गए हैं.
मंदिरों की चित्रकारी भी बयां करती महत्व
मध्य प्रदेश के खजुराहो समेत कई प्राचीन मंदिरों पर विभिन्न प्रेम मुद्राओं में युवक-युवतियों का चित्रांकन भी भारतीय समाज के काम संबंधों के प्रति स्वच्छ और स्वीकार्य नजरिए को दर्शाता है. मंदिरों में इन चित्रों की मौजूदगी दर्शाती है कि सेक्स जीवन का महत्वपूर्ण अंग है. समर्पण और जिम्मेदारी के साथ इसका निर्वाह करते हुए सांसारिक के साथ ही आध्यात्मिक आनंद भी हासिल किया जा सकता है.
कैसे चुनें बेहतर पति या पत्नी
अच्छा जीवन जीने के साथ ही कामसूत्र अच्छे जीवन साथी का चयन और मनपसंद जीवन साथी को हासिल करने के तौर तरीके भी बताता है. यह ग्रंथ विभिन्न स्वभाव व आचरण वाले स्त्री, पुरुषों के लिए उनके अनुकूल जीवन साथी की खूबियों को रेखांकित करता है. इसके साथ ही यह भी बताता है कि युवक या युवती क्या-क्या आचरण करे जिससे वह अपनी पसंद की युवती या अपने पसंद के युवक का मन जीत ले और शादी के बाद हमेशा के लिए वे एक-दूजे के हो जाएं.