लड़की- भाग 3 : क्या परिवार की मर्जी ने बर्बाद कर दी बेटी वीणा की जिंदगी

लेखक- रमणी मोटाना

आज उसे लग रहा था कि उस ने व उस के पति ने बेटी के प्रति न्याय नहीं किया. क्या हमारी सोच गलत थी? उस ने अपनेआप से सवाल किया. शायद हां, उस के मन ने कहा. हम जमाने के साथ नहीं चले. हम अपनी परिपाटी से चिपके रहे.

पहली गलती हम से यह हुई कि बेटी के परिपक्व होने के पहले ही उस की शादी कर देनी चाही. अल्हड़ अवस्था में उस के कंधों पर गृहस्थी का बोझ डालना चाहा. हम जल्द से जल्द अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. और दूसरी भूल हम से तब हुई जब वीणा ने अपनी पसंद का लड़का चुना और हम ने उस की मरजी को नकार कर उस की शादी में हजार रोडे़ अटकाए. अब जब वह अपनी शादी से खुश नहीं थी और पति से तलाक लेना चाह रही थी तो हम दोनों पतिपत्नी ने इस बात का जम कर विरोध किया.

बेटी की खुशी से ज्यादा उन्हें समाज की चिंता थी. लोग क्या कहेंगे, यही बात उन्हें दिनरात खाए जाती थी. उन्हें अपनी मानमर्यादा का खयाल ज्यादा था. वे समाज में अपनी साख बनाए रखना चाहते थे, पर बेटी पर क्या बीत रही है, इस बात की उन्हें फिक्र नहीं थी. बेटी के प्रति वे तनिक भी संवेदनशील न थे. उस के दर्द का उन्हें जरा भी एहसास न था. उन्होंने कभी अपनी बेटी के मन में पैठने की कोशिश नहीं की. कभी उस की अंतरंग भावनाओें को नहीं जानना चाहा. उस के जन्मदाता हो कर भी वे उस के प्रति निष्ठुर रहे, उदासीन रहे.

अहल्या को पिछली बीसियों घटनाएं याद आ गईं जब उस ने वीणा को परे कर बेटों को कलेजे से लगाया था. उस ने हमेशा बेटों को अहमियत दी जबकि बेटी की अवहेलना की. बेटों को परवान चढ़ाया पर बेटी जैसेतैसे पल गई. बेटों को अपनी मनमानी करने की छूट दी पर बेटी पर हजार अंकुश लगाए. बेटों की उपलब्धियों पर हर्षित हुई पर बेटी की खूबियों को नजरअंदाज किया. बेटों की हर इच्छा पूरी की पर बेटी की हर अभिलाषा पर तुषारापात किया. बेटे उस की गोद में चढ़े रहते या उस की बांहों में झूलते पर वीणा के लिए न उस की गोद में जगह थी न उस के हृदय में. बेटे और बेटी में उस ने पक्षपात क्यों किया था? एक औरत हो कर उस ने औरत का मर्म क्यों नहीं जाना? वह क्यों इतनी हृदयहीन हो गई थी?

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बेटी के विवर्ण मुख को याद कर उस के आंसू बह चले. वह मन ही मन रो कर बोली, ‘बेटी, तू जल्दी होश में आ जा. मुझे तुझ से बहुतकुछ कहनासुनना है. तुझ से क्षमा मांगनी है. मैं ने तेरे साथ घोर अन्याय किया. तेरी सारी खुशियां तुझ से छीन लीं. मुझे अपनी गलतियों का पश्चात्ताप करने दे.’

आज उसे इस बात का शिद्दत से एहसास हो रहा था कि जानेअनजाने उस ने और उस के पति ने बेटी के प्रति पक्षपात किया. उस के हिस्से के प्यार में कटौती की. उस की खुशियों के आड़े आए. उस से जरूरत से ज्यादा सख्ती की. उस पर बचपन से बंदिशें लगाईं. उस पर अपनी मरजी लादी.

वीणा ने भी कठपुतली के समान अपने पिता के सामंती फरमानों का पालन किया. अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं का दमन कर उन के इशारों पर चली. ढकोसलों, कुरीतियों और कुसंस्कारों से जकड़े समाज के नियमों के प्रति सिर झुकाया. फिर एक पुरुष के अधीन हो कर उस के आगे घुटने टेक दिए. अपने अस्तित्व को मिटा कर अपना तनमन उसे सौंप दिया. फिर भी उस की पूछ नहीं थी. उस की कद्र नहीं थी. उस की कोई मान्यता न थी.

प्रतीक्षाकक्ष में बैठेबैठे अहल्या की आंख लग गई थी. तभी भास्कर आया. वह उस के लिए घर से चायनाश्ता ले कर आया था. ‘‘मांजी, आप जरा रैस्टरूम में जा कर फ्रैश हो लो, तब तक मैं यहां बैठता हूं.’’

अहल्या नीचे की मंजिल पर गई. वह बाथरूम से हाथमुंह धो कर निकली थी कि एक अनजान औरत उस के पास आई और बोली, ‘‘बहनजी, अंदर जो आईसीयू में मरीज भरती है, क्या वह आप की बेटी है और क्या वह भास्करजी की पत्नी है?’’

‘‘हां, लेकिन आप यह बात क्यों पूछ रही हैं?’’

‘‘एक जमाना था जब मेरी बेटी शोभा भी इसी भास्कर से ब्याही थी.’’

‘‘अरे?’’ अहल्या मुंहबाए उसे एकटक ताकने लगी.

‘‘हां, बहनजी, मेरी बेटी इसी शख्स की पत्नी थी. वह इस के साथ कालेज में पढ़ती थी. दोनों ने भाग कर प्रेमविवाह किया, पर शादी के 2 वर्षों बाद ही उस की मौत हो गई.’’

‘‘ओह, यह सुन कर बहुत अफसोस हुआ.’’

‘‘हां, अगर उस की मौत किसी बीमारी की वजह से होती तो हम अपने कलेजे पर पत्थर रख कर उस का वियोग सह लेते. उस की मौत किसी हादसे में भी नहीं हुई कि हम इसे आकस्मिक दुर्घटना समझ कर मन को समझा लेते. उस ने आत्महत्या की थी.

‘अब आप से क्या बताऊं. यह एक अबूझ पहेली है. मेरी हंसतीखेलती बेटी जो जिजीविषा से भरी थी, जो अपनी जिंदगी भरपूर जीना चाहती थी, जिस के जीवन में कोई गम नहीं था उस ने अचानक अपनी जान क्यों देनी चाही, यह हम मांबाप कभी जान नहीं पाएंगे. मरने के पहले दिन वह हम से फोन पर बातें कर रही थी, खूब हंसबोल रही थी और दूसरे दिन हमें खबर मिली कि वह इस दुनिया से जा चुकी है. उस के बिस्तर पर नींद की गोलियों की खाली शीशी मिली. न कोई चिट्ठी न पत्री, न सुसाइड नोट.’’

‘‘और भास्कर का इस बारे में क्या कहना था?’’

‘‘यही तो रोना है कि भास्कर इस बारे में कुछ भी बता न सका. ‘हम में कोई झगड़ा नहीं हुआ,’ उस ने कहा, ‘छोटीमोटी खिटपिट तो मियांबीवी में होती रहती है पर हमारे बीच ऐसी कोई भीषण समस्या नहीं थी कि जिस की वजह से शोभा को जान देने की नौबत आ पड़े.’ लेकिन हमारे मन में हमेशा यह शक बना रहा कि शोभा को आत्महत्या करने को उकसाया गया.

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‘‘बहनजी, हम ने तो पुलिस में भी शिकायत की कि हमें भास्कर पर या उस के घर वालों पर शक है पर कोई नतीजा नहीं निकला. हम ने बहुत भागदौड़ की कि मामले की तह तक पहुंचें पर फिर हार कर, रोधो कर चुप बैठ गए. पतिपत्नी के बीच क्या गुजरती थी, यह कौन जाने. उन के बीच क्या घटा, यह किसी को नहीं पता.

‘‘हमारी बेटी को कौन सा गम खाए जा रहा था, यह भी हम जान न पाए. हम जवान बेटी की असमय मौत के दुख को सहते हुए जीने को बाध्य हैं. पता नहीं वह कौन सी कुघड़ी थी जब भास्कर से मेरी बेटी की मित्रता हुई.’’

अहल्या के मन में खलबली मच गई. कितना अजीब संयोग था कि भास्कर की पहली पत्नी ने आत्महत्या की. और अब उस की दूसरी पत्नी ने भी अपने प्राण देने चाहे. क्या यह महज इत्तफाक था या भास्कर वास्तव में एक खलनायक था? अहल्या ने मन ही मन तय किया कि अगर वीणा की जान बच गई तो पहला काम वह यह करेगी कि अपनी बेटी को फौरन तलाक दिला कर उसे इस दरिंदे के चंगुल से छुड़ाएगी.

वह अपनी साख बचाने के लिए अपनी बेटी की आहुति नहीं देगी. वीणा अपनी शादी को ले कर जो भी कदम उठाए, उसे मान्य होगा. इस कठिन घड़ी में उस की बेटी को उस का साथ चाहिए. उस का संबल चाहिए. देरसवेर ही सही, वह अपनी बेटी का सहारा बनेगी. उस की ढाल बनेगी. हर तरह की आपदा से उस की रक्षा करेगी.

एक मां होने के नाते वह अपना फर्ज निभाएगी. और वह इस अनजान महिला के साथ मिल कर उस की बेटी की मौत की गुत्थी भी सुलझाने का प्रयास करेगी.

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भास्कर जैसे कई भेडि़ये सज्जनता का मुखौटा ओढ़े अपनी पत्नी को प्रताडि़त करते रहते हैं, उसे तिलतिल कर जलाते हैं और उसे अपने प्राण त्यागने को मजबूर करते हैं. लेकिन वे खुद बेदाग बच जाते हैं क्योंकि बाहर से वे भले बने रहते हैं. घर की चारदीवारी के भीतर उन की करतूतें छिपीढकी रहती हैं.

Serial Story: कीर्तन, किट्टी पार्टी और बारिश- भाग 3

अगली किट्टी पार्टी का दिन आ गया. पार्टी सुरेखा के यहां थी. इस बार नेहा सब को उत्साहित हो कर बता रही थी, ‘‘मामा की शादी के 1 साल बाद ही उन का डाइवोर्स हो गया था. मामी अपने किसी प्रेमी के साथ शादी करना चाहती थी.

वह मामा के साथ एक दिन भी नहीं चाहती थी, मामा को उन्होंने बहुत तंग किया. मामी की इच्छा को देखते हुए मामा ने उन्हें चुपचाप डाइवोर्स दे दिया, उन्होंने तो अपने प्रेमी से शादी कर ली, लेकिन मामा ने उस के बाद गृहस्थी नहीं बसाई. मामा एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर हैं. बस, उन्होंने काम में ही हमेशा खुद को व्यस्त रखा.’’

सुनंदा चुपचाप देव की कहानी सुन रही थी. नेहा ने अचानक पूछा, ‘‘सुनंदाजी, आप की और मामा की शौपिंग कैसी रही?’’

‘‘बहुत अच्छी,’’ कह कर सुनंदा और बाकी महिलाएं बातों में व्यस्त हो गईं.

अगले दिन औफिस से लौट कर देव सुनंदा के घर आए, उन्हें कार की चाबी दी. कहा, ‘‘आप की गाड़ी ले आया हूं.’’

सुनंदा ने कहा, ‘‘थैंक्स, आप बैठिए. मैं चाय लाती हूं.’’

थोड़ी देर में सुनंदा चाय ले आई. बातों के दौरान पूछा, ‘‘आप कैसे जाएंगे अब?’’

देव हंसे, ‘‘आप छोड़ आइए.’’

सुनंदा ने भी कहा, ‘‘ठीक है,’’ और खिलखिला दी.

तभी सुनंदा के मोबाइल की घंटी बजी. अलका थी. हालचाल पूछने के बाद वह कह रही थी, ‘‘सुनंदा, तुम फ्री हो न?’’

सुनंदा के कान खड़े हुए, ‘‘क्यों, कुछ काम है क्या?’’

‘‘अभी से बता रही हूं, मेरी सहेली ने घर पर कीर्तन रखा है. उस ने तुम्हें भी बुलाया है. कल आ जाना, साथ चलेंगे.’’

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‘‘ओह दीदी, कल नहीं आ पाऊंगी, मेरी गाड़ी खराब है. मु  झे कल तो समय नहीं मिलेगा. कल डाक्टर के यहां भी जाना है. रैग्युलर चैकअप के लिए और गाड़ी लेने भी जाना है. बहुत काम है दीदी कल.’’

थोड़ीबहुत नाराजगी दिखा कर अलका ने फोन रख दिया. सुनंदा भी फोन रख कर मुसकराने लगी, तो देव ने कहा, ‘‘लेकिन आप की गाड़ी तो ठीक है.’’

सुनंदा ने हंसते हुए अपनी कीर्तन, प्रवचनों से दूर रहने की आदत के बारे में बताया तो देव ने भरपूर ठहाका लगाया. बोले, ‘‘  झूठ तो बहुत अच्छा बोल लेती हैं आप.’’

देव अलग फ्लैट में शिफ्ट हो चुके थे. सुनंदा उन्हें उन की कालोनी तक छोड़ आई. अब तक दोनों में अच्छी दोस्ती हो चुकी थी. कोई औपचारिकता नहीं बची थी. अब दोनों मिलते रहते, अंतरंगता बढ़ रही थी. कई जगह साथ आतेजाते. सबकुछ अपनेआप होता जा रहा था. देव कभी नेहा के यहां भी चले जाते थे. उन्होंने एक नौकर रख लिया था, जो घर का सब काम करता था.

सुनंदा ने गौरव को देव के बारे में सब कुछ बता दिया था. उन के साथ उठनाबैठना, आनाजाना सब. सुनंदा विमुग्ध थी, अपनेआप पर, देव पर, अपनी नियति पर. अब लगने लगा था शरीर की भी कुछ इच्छाएं, आकांक्षाएं हैं. उसे भी किसी के स्निग्ध स्पर्श की कामना थी. आजकल सुनंदा को लग रहा था कि जैसे जीवन का यही सब से सुंदर, सब से रोमांचकारी समय है. वह पता नहीं क्याक्या सोच कर सचमुच रोमांचित हो उठती.

देव और सुनंदा की नजदीकियां बढ़ रही थीं. देव औफिस से भी सुनंदा से फोन पर हालचाल पूछते. अकसर मिलने चले आते. सुनंदा की पसंदनापसंद काफी जान चुके थे. अत: अकसर सुनंदा की पसंद का कुछ लेते आते तो सुनंदा हैरान सी कुछ बोल भी न पाती.

एक दिन विपिन से विचारविमर्श के बाद नेहा ने सुनंदा को छोड़ कर किट्टी पार्टी की  बाकी सब सदस्याओं को अपने घर बुलाया.

सब हैरान सी पहुंच गईं.

मंजू ने कहा, ‘‘क्या हुआ नेहा? फोन पर कुछ बताया भी नहीं और सुनंदा जी को बताने के लिए क्यों मना किया?’’

नेहा ने कहा, ‘‘पहले सब सांस तो ले लो. मेरे मन में बहुत दिन से कोई बात चल रही है. मु  झे आप सब का साथ चाहिए.’’

अनीता ने कहा, ‘‘जल्दी कहो, नेहा.’’

नेहा ने गंभीरतापूर्वक बात शुरू की, ‘‘सुनंदाजी और मेरे देव मामा को आप ने कभी साथ देखा है?’’

सब ने कहा, ‘‘हां, कई बार.’’

‘‘आप ने महसूस नहीं किया कि दोनों एकदूसरे के साथ कितने अच्छे लगते हैं, कितने खुश रहते हैं एकसाथ.’’

अनीता ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ? सुनंदाजी तो हमेशा खुश रहती हैं.’’

‘‘मैं सोच रही हूं कि सुनंदाजी मेरी मामी बन जाएं तो कैसा रहेगा?’’

पूजा बोली, ‘‘पागल हो गई हो क्या नेहा? सुनंदाजी सुनेंगी तो कितना नाराज होंगी.’’

‘‘क्यों, नाराज क्यों होंगी? अगर वे देव मामा के साथ खुश रहती हैं तो हम आगे का कुछ क्यों नहीं सोच सकते? आज तक वे हमारी हर जरूरत के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. हम उन के लिए कुछ नहीं कर सकते क्या?’’

अनीता ने कहा, ‘‘तुम्हें अंदाजा है उन की सुभद्रा बूआ, जेठानी और बहन यह सुन कर भी उन का क्या हाल करेंगी?’’

‘‘क्यों, इस में बुरा क्या है? मैं आप सब से छोटी हूं. आप से रिक्वैस्ट ही कर सकती हूं कि आप लोग मेरा साथ दो प्लीज, समय बहुत बदल चुका है और सुनंदाजी तो किसी की परवाह न करते हुए जीना जानती हैं.’’

पूजा ने कहा, ‘‘गौरव के बारे में सोचा है?’’

बहुत देर से चुप बैठी सुनीता ने कहा, ‘‘जानती हूं मैं अच्छी तरह गौरव को, वह बहुत सम  झदार लड़का है, वह अपनी मां को हमेशा खुश देखना चाहता है.’’

बहुत देर तक विचारविमर्श चलता रहा. फिर तय हुआ सुनीता ही इस बारे में सुनंदा से बात करेगी.

अगले दिन सुनीता सुनंदा के घर पहुंच गई. इधरउधर की बातों के बाद सुनीता ने  पूछा, ‘‘और देव कैसे हैं? मिलना होता है या नहीं?’’

सुनंदा के गोरे चेहरे पर देव के नाम से ही एक लालिमा छा गई और वह बड़े उत्साह से देव की बातें करने लगी.

सुनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘इतने अच्छे हैं मि. देव तो कुछ आगे के लिए भी सोच लो.’’

सुनंदा ने प्यार भरी डांट लगाई, ‘‘पागल हो गई हो क्या? दिमाग तो ठीक है न?’’

‘‘हम सब की यही अच्छा है. अभी मैं जा रही हूं, अच्छी तरह सोच लो, लेकिन जरा जल्दी. हम लोग जल्दी आएंगी.’’

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सुनंदा कितने ही विचारों में डूबतीउतराती रही कि क्या करें. मन तो यही चाहता है देव को अपने जीवन में शामिल कर ले सदा के लिए, पर अब? गौरव क्या कहेगा? सुभद्रा बूआ, रमा और अलका क्या कहेंगी? वह रातभर करवटें बदलती रही. बीचबीच में आंख लगी भी तो देव का चेहरा दिखाई देता रहा.

उधर विपिन और नेहा ने देव से बात की. उम्र के इस मोड़ पर उन्हें भी किसी साथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. देव के मन में भी जीवन के सारे संघर्ष   झेल कर भी हंसतीमुसकराती सुनंदा अपनी जगह बना चुकी थी. कुछ देर सोच कर देव ने अपनी स्वीकृति दे दी.

सुबह जब सुनंदा का गौरव से बात करने का समय हो रहा था, सब पहुंच गईं और विपिन और देव के साथ. देव और सुनंदा एकदूसरे से आंखें बचातेशरमाते रहे.

सुनीता ने कहा, ‘‘सुनंदा, तुम हटो, मैं गौरव से बात करती हूं,’’ और फिर वेबकैम पर सुनीता ने गौरव को सबकुछ बताया.

सुनंदा बहुत संकोच के साथ गौरव के सामने आई तो गौरव ने कहा, ‘‘यह क्या मां, इतनी अच्छी बात, मु  झे ही सब से बाद में पता चल रही है.’’

सुनंदा की आंखों से भावातिरेक में अश्रुधारा बह निकली. वह कुछ बोल ही नहीं पाई.

सुनीता ने ही गौरव का परिचय देव से करवाया. देव की आकर्षक, सौम्य सी मुसकान गौरव को भी छू गई और उस ने इस बात में अपनी सहर्ष सहमति दे दी तो सुनंदा के दिल पर रखा बो  झ हट गया.

गौरव ने कहा, ‘‘मां, आप दादी, ताईजी और मौसी की चिंता मत करना, उन सब को मैं आ कर संभाल लूंगा. आप किसी की चिंता मत करना मां. आप अपना जीवन अपने ढंग से जीने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं. मु  झे तो अभी छुट्टी नहीं मिल पाएगी, लेकिन आप मेरे लिए देर मत करना.’’

गौरव की बातें सुनंदा को और मजबूत बना गईं.

थोड़ी देर चायनाश्ता कर सब सुनंदा को गले लगा कर प्यार करती हुईं अपनेअपने घर चली गईं.

नेहा, विपिन और देव रह गए. विपिन ने कहा, ‘‘अब देर नहीं करेंगे, कल ही मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस में चलते हैं.’’

अगले दिन सुनंदा तैयार हो रही थी. सालों पहले नीलेश की दी हुई लाल साड़ी निकाल कर पहनने का मन हुआ. फिर सोचा नहीं, कोई लाइट कलर पहनना चाहिए. मन को न सही, शरीर को उम्र का लिहाज करना ही चाहिए. वह कुछ सिहर गई, क्या देव को उस के शरीर से भी उम्मीदें होंगी? स्त्री को ले कर पता नहीं क्यों लोग हमेशा नकारात्मक भ्रांतियां रखते हैं, कभी किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि उम्रदराज स्त्री भी…

आगे कुछ सोचने से पहले ही वह खुद ही हंस दी, उम्रदराज? उम्र से क्या होता है, फिर नीलेश का चेहरा अचानक आंखों को धुंधला कर गया. नीलेश उसे हमेशा खुश देखना चाहते थे और बस वह अब खुश थी, सारे संदेहों, तर्कवितर्कों में डूबतेउतराते वह जैसे ही तैयार हुई, डोरबैल बजी. सुनंदा ने गेट खोला. देव उसे ले जाने आ गए थे.

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Naagin 3 फेम Pearl V Puri पर लगा रेप का इल्जाम! मुंबई पुलिस ने किया गिरफ्तार

टीवी की दुनिया में जहां एक्टर करण मेहरा का मामला अभी थमा नहीं था तो वहीं अब एक और एक्टर की गिरफ्तारी की खबर ने फैंस को चौंका दिया है. दरअसल, खबरें हैं कि नागिन जैसे सीरियल्स में लीड रोल में नजर आ चुके टीवी एक्टर पर्ल वी पुरी को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. आइए आपको बताते हैं पूरा मामला…

इस मामले में हुए गिरफ्तार

खबरों की मानें तो नागिन 3 स्टार पर्ल वी पुरी(Pear V Puri) पर रेप के आरोप लगे हैं, जिसके कारण उन्हें मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार क्या है. दरअसल, एक महिला ने रेप और छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए थे, जिसके बाद बीती रात मुंबई पुलिस ने पर्ल वी पुरी को अरेस्ट किया है. हालांकि फिलहाल इस केस के बारे में कोई जानकारी सामने नहीं आई है और न ही पर्ल वी पुरी ने इस बारे में कोई बात की है.

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पिता का हुआ था निधन

पर्सनल लाइफ की बात करें तो कुछ महीने पहले टीवी एक्टर पर्ल वी पुरी के पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद पर्ल पूरी तरह टूट गए थे. वहीं सोशलमीडिया पर उन्होंने एक पोस्ट भी शेयर किया था. हालांकि अब वह दोबारा अपने काम को शुरु करते हुए सीरियल ब्रह्मराक्षस 2 की शूटिंग करते हुए नजर आए थे.

बता दें, नागिन 3, बेपनाह प्यार, ब्रह्मराक्षस 2 जैसे टीवी शोज में काम कर चुके पर्ल वी पुरी बीते दिनों अपने ब्रेकअप को लेकर सुर्खियों में रहे थे. वहीं खबरों में दावा किया गया था कि पर्ल वी पुरी और करिश्मा तन्ना का ब्रेकअप हो गया है.

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Yami Gautam Wedding: यामी गौतम बनीं दुल्हन, पहाड़ों में की ‘उरी’ के डायरेक्टर से शादी

कोरोनावायरस के बढ़ते कहर के बीच कई सितारों ने शादी की है, जिनमें बौलीवुड एक्ट्रेस दिया मिर्जा का नाम भी शामिल है. इसी बीच बॉलीवुड एक्ट्रेस यामी गौतम ने भी अपनी शादी की खबर से फैंस को चौंका दिया है. दरअसल, कोरोना के बीच एक्ट्रेस यामी ने फैमिली के बीच शादी कर ली है. आइए आपको दिखाते हैं उनके पति और शादी की खास फोटोज….

डायरेक्टर से की शादी

 

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एक्ट्रेस यामी गौतम ने फैंस को अपनी शादी की न्यूज सोशलमीडिया के जरिए बताई है. दरअसल, फिल्म उरी द सर्जिकल स्ट्राइक के डायरेक्टर आदित्य धर के साथ यामी गौतम ने बीते दिन शादी की है, जिसकी फोटो एक्ट्रेस ने अपने सोशलमीडिया अकाउंट पर फैंस के लिए शेयर की है. वहीं इन फोटोज के वायरल होने के बाद सेलेब्स और फैंस उन्हें नई जिंदगी की बधाई दे रहे हैं.

 

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शादी में सिंपल दिखीं यामी गौतम

 

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यामी गौतम ने अपनी शादी की एक रोमांटिक फोटो को शेयर की, जिसमें वह लाल रंग की बनारसी साड़ी में  आदित्य को देख और मुस्कुराती हुईं आ रही थीं. वहीं आदित्या धर सफेद रंग की शेरवानी और पगड़ी पहनी हुए यामी को देख मुस्कुरा रहे थे. फोटो शेयर करते हुए दोनों ने लिखा, ‘तुम्हारी रोशनी में मैंने प्यार सीखा है. – रूमी. हमारे परिवार के आशीर्वाद के साथ हमने एक इंटिमेट सेरेमनी में शादी कर ली है. प्राइवेट इंसान होने की वजह से हम दोनों ने इस खुशी भरे मौके को अपने परिवार के साथ बांटा है. हम अपने प्यार और दोस्ती के इस सफर में आपकी दुआएं और आशीर्वाद चाहेंगे. प्यार, यामी और आदित्य.’

बता दें, टीवी से अपने करियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस यामी गौतम बौलीवुड में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुकी हैं. वहीं उरी द सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी एक्टिंग की तारीफ आज भी फैंस करते नजर आते हैं.

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जानें कोविड ने एक्टर अविनाश द्विवेदी को क्या दी सीख

हमेशा से कुछ अलग करने की इच्छा रखने वाले अभिनेता अविनाश द्विवेदी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से है. अभिनय के अलावा उन्होंने डांस और टायक्वोंडो में प्रशिक्षण लिया है. साथ ही वे एक लेखक भी है. उनके पिता व्यवसायी होने की वजह से थोड़े दिनों बाद परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए और अविनाश ने अपनी पढाई दिल्ली में की. अविनाश को बचपन से पढाई में मन नहीं लगता था, केवल माता-पिता को खुश करने के लिहाज से पढने बैठते थे. उनके पेरेंट्स चाहते थे कि वह इंजिनियर बने.ऑनलाइन डांस रियलिटी शो में भाग लेकर वे मुंबई आये और अभिनय के लिए संघर्ष करने लगे. इस बीच उन्हें कई विज्ञापनों और टीवी धारावाहिकों में काम करने का मौका मिला. काम के दौरान उनका परिचय संभावना सेठ से हुआ,प्यार हुआ और शादी की. अविनाश की फिल्म‘रिक्शावाला’ ओटीटी प्लेटफॉर्म बिग बैंग एम्युजमेंट पर रिलीज होने वाली है. ये एक आवर्ड विनिंग फिल्म है, जिसमें अविनाश ने कोलकाता के हाथ रिक्शा चलाने वाले मनोज की भूमिका निभाई है,उनसे बात करना रोचक था, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-इस फिल्म में काम करने की खास वजह क्या रही?

ये फिल्म बहुत अधिक लेयर्ड वाली है, क्योंकि इसमें इमोशन, लव और एक व्यक्ति के सपनों को भी दिखाया गया है. साथ ही रीयलिस्टिक फिल्म है, बहुत अधिक फ़िल्मी नहीं. इसमें मैंने एक गरीब लड़केकी भूमिका निभाई है, जिसका किसी से प्यार, इमोशन और सपने इन तीनो को साथ-साथ दिखाने की कोशिश की गयी है.

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सवाल-इस फिल्म को करने के लिए आपने कितनी तैयारियां की ?

इस फिल्म के लिए मुझे बहुत अधिक तैयारी करनी पड़ी है. पहले मुझे एक रिक्शा वाले की तरह लगना, उसके रहने के माहौल को समझना था, लेकिन मेरे निर्देशक राम कमल मुख़र्जी ने मुझे फिल्म को समझने में बहुत सहयोग दिया. उन्हें फिल्म की एक-एक बात पता थी, जिसे उन्होंने मेरे साथ शेयर किया. मुझे इस फिल्म के लिए बांग्ला भाषा सीखना पड़ा. उन्होंने कहा था कि मेरे लिप्सिंग के बाद वे किसी बंगाली से डबिंग करवा सकते है, लेकिन मैंने फिल्म की सारी चीजों को खुद ही करना उचित समझा और निर्देशक के भेजे हुए बांग्ला एक्सेंट को सुनकर प्रैक्टिस करता था, इसके अलावा मैंने कई बांग्ला गाने सुनकर भाषा को ठीक किया. कोलकाता जाकर हाथ रिक्शा चलाने की कोशिश की. नंगे पाँव तीन लोगों को बैठाकर रिक्शा चलाना बहुत मुश्किल था, इस दौरान मैंने कई बाइक और साइकिल तोड़ी है.

सवाल-इस फिल्म को खुद से कितना रिलेट कर पाते है?

इस चरित्र से मैं बहुत कम रिलेट कर पाता हूँ, लेकिन समानता की बात करें तो मेरा जन्म गोरखपुर में हुआ. आज से 30-35 साल पहले पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार से लोग कमाने के लिए कोलकाता जाते थे, जहाँ व्यक्ति कुछ कमा सकता है. मेरे पिता को भी कमाने के लिए कोलकाता भेजा गया था. ये कहानी भी एक बिहारी रिक्शा वाले की है, जो कोलकाता कमाने के लिए जाता है, इन सारी बातों से मैं खुद को थोडा जोड़ पाता हूँ.

सवाल-एक्टिंग में आने की इच्छा कैसे हुई?

अभिनय की इच्छा होश सम्हालते ही हो गया था, जब मैं 12 साल का था उस दौरान मैंने ऋतिक रोशन की फिल्म ‘कहो न प्यार है’ को देखकर बहुत प्रभावित हुआ और अभिनय में आने का मन बना लिया. इसके बाद मैंने दिल्ली में डांस और अभिनय की ट्रेनिंग ली. मार्शल आर्ट सीखा और पक्के इरादे के साथ अभिनय के क्षेत्र में आ गया.

सवाल-आपके अभिनय की इच्छा सुनने के बाद माता-पिता का रिएक्शन कैसा था?

उन्होंने पहले मुझे ड्रामा बंद करने के लिए कहा और अच्छी पढाई कर इंजीनियर बनने की सलाह दी, पर मेरा मन पढाई में नहीं लगता था. मैं उन्हें दिखाने के लिए ही पढता था. पहले मेरे पेरेंट्स ने मुझे सहयोग नहीं दिया, पर धीरे-धीरे मेरी अचीवमेंट को देखकर वे सहयोग करने लगे. मैं दो डांस रियलिटी शो में भाग लेकर मुंबई आ गया.

सवाल-पहला ब्रेक कैसे मिला?

पहला ब्रेक मुझे ऑडिशन के द्वारा एक टीवी विज्ञापन के लिए मिला था. इसके बाद कई विज्ञापनों में काम किया. भोजपुरी और शार्ट फिल्में भी की. अब इस फिल्म को करने का मौका मिला.

सवाल-बिग बॉस फेम संभावना सेठ से आप कैसे मिले?

मैं एक डांस रियलिटी शो के साथ एक प्रतियोगी के रूप में मुंबई आया था. उस टीम की मेंटर संभावना सेठ थी. उस रियलिटी शो में मैं पहली बार उनसे मिला था. शो ख़त्म होने के बाद भी हमदोनों की दोस्ती बनी रही और धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गयी. फिर हमदोनो ने 4 साल साथ रहने के बाद शादी की. मैं संभावना की इमानदारी और मेहनत को देखकर आकर्षित हुआ था.

सवाल-संभावना बहुत साहसी और स्पष्टभाषी है, ऐसे में दोनों एक दूसरे को कैसे समझ पाते है?

पहले मुझे भी वैसी ही लगी थी, लेकिन समय के साथ मैं उसे जान पाया और उनके साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा. हम दोनों का एक दूसरे को समझना मुश्किल नहीं है, क्योंकि हम दोनों ही स्पष्टभाषी है.

सवाल-क्या किसी प्रोजेक्ट को चुनने से पहले उसकी चर्चा संभावना के साथ करते है?

अवश्य करता हूँ, वह मेरी सबसे बड़ी आलोचक है. उसके अनुसार ही मैं फिल्मे चुनता भी हूँ. वह मेरे किसी भी काम को देखती है और अपनी राय देती है. इससे मुझे हर फिल्म में ग्रो करने का मौका मिलता है.

सवाल-आगे ड्रीम क्या है?

आगे मैं अभिनय के अलावा फिल्में बनाना और लिखने की इच्छा रखता हूँ, जहाँ लोग आकर अपनी आजादी के साथ काम कर सकें.

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सवाल-कोविड पीरियड में काम करते हुए कितना एहतियात बरतते है?

बहुत करना पड़ता है, क्योंकि अभी काम बहुत कम हो रहा है. इसलिए कहानियां भी कम लोगों को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है. टीम में जो लोग शामिल होते है उनका आरटीपीसीआर हर 14 दिन में कराया जाता है, लेकिन हर बार कोई न कोई पॉजिटिव निकल जाता है. फिर उस व्यक्ति की बदले में दूसरे को लाना पड़ता है. टीका सबको लगने के बाद कुछ नार्मल होने की संभावना है.

सवाल-एक नागरिक होने के नाते इस महामारी से आपने क्या सीखा?

अभी ऐसा समय है, लोगों के पास काम नहीं है, वे घर पर बैठे है, खाने के लिए पैसे नहीं है, लोग कहीं घूमने नहीं जा सकते. असल में जब व्यक्ति सबकुछ छोड़ देता है, तो अंत में व्यक्ति और उसका परिवार ही बचता है, जो अंत तक साथ देता है. तब उस व्यक्ति को अपने परिवार का महत्व और समय देने की बात का पता चलता है. जब व्यक्ति अपने परिवार को समय देता है, तो वह दूसरों के लिए भी बहुत कुछ कर पाता है. मैंने भी काफी लोगों की मदद की और वह तब किया जब मैंने अपने लोगों को कोविड से भुगतते हुए देखा. हर व्यक्ति को अपने माता-पिता और परिवार को उतना ही महत्व देने की जरुरत है, जितना व्यक्ति अपने काम और पैसे को देता है.

क्यों जरूरी है हाथों की सफाई

 लेखिका  -सोनिया राणा

जब से दुनियाभर में कोरोना ने दस्तक दी है तब से हाथों की साफसफाई पर लोगों ने ध्यान देना शुरू किया है. लेकिन बात सिर्फ कोविड-19 की नहीं है. हाथ धोने से ले कर घर में अकसर बड़े हमें समयसमय पर नसीहत देते और डांटते भी रहते हैं कि खाना खाने से पहले और बाद में, बाहर से घर में आने के बाद, बाहर से लाए किसी सामान को छूने के बाद और शौच जाने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन लगा कर धोना चाहिए.

ऐसा इसलिए है कि जब भी हम खाना खाते हैं और उस के पहले हाथ नहीं धोते तो हाथों में लगे जर्म्स हमारे खाने के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर लेते हैं, जिस से हमें फूड पौइजनिंग समेत कई बीमारियों का सामना करना पड़  सकता है.

हो सकती हैं कई बीमारियां

हाथों की सफाई के मामले से अगर कोविड-19 जैसी महामारी को कुछ पल के लिए नजरअंदाज भी कर दें तो भी यह हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है. हलके वायरल इन्फैक्शन से ले कर हैजा जैसी कई बीमारियां हैं, जो सिर्फ इस छोटी सी आदत को अपनी दिनचर्या में शुमार न करने से आप को अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं जैसे डायरिया, गैस्ट्रोएंट्राइटिस, दस्त, हैजा, टायफाइड, हेपेटाइटिस ए और ई, पीलिया, एच1 एन1, सर्दीजुकाम.

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कैसे रखें हाथों की सफाई

यों तो हाथ धोने से संबंधित विज्ञापनों से बाजार भरा है, समाचारपत्रों या पत्रिकाओं के माध्यम से हों या फिर टैलीविजन में आने वाले विज्ञापनों के जरीए हमें हाथ अच्छे से कैसे धोने चाहिए इस के बारे में जानकारी दी जाती है. लेकिन पिछले 1 साल में न सिर्फ इन विज्ञापनों में बल्कि बाजार में उपलब्ध सैनिटाइजर और हैंड वाश की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुई है.

ऐसे में जरूरी है कि हम सभी अगर घर पर हैं तो अपने हाथों की लगातार साबुन से सफाई करें और अगर घर से बाहर हैं तो भी अब यह जरूरी हो गया है कि आप सैनिटाइजर से अपने हाथों को कीटाणुओं से मुक्त करें. इस से न सिर्फ कोविड-19 महामारी से बचे रहेंगे, बल्कि अन्य रोगों से भी अपनी रक्षा कर पाएंगे. डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस भी कहती हैं हमें अपने हाथों  को 20 सैकंड तक अच्छी तरह रगड़ कर  धोना चाहिए.

ग्लोबल हैंड वाशिंग डे

हाथ धोने से संबंधित जागरूकता फैलाने के लिए ग्लोबल हैंड वाशिंग डे मनाया जाता है. 2008 से यूएन ने इसे मनाना शुरू किया था  और जब यह पहली बार मानाया गया तो दुनियाभर में करीब 120 मिलियन बच्चों और बड़ों ने अपने हाथ धोए थे. उस के बाद इसे हर साल 15 अक्टूबर को मनाया जाता है. 2020 में ‘हैंड हाइजीन’ इस की थीम रखी गई थी.

एक छोटी सी आदत को वाशिंग डे के तौर पर मनाया जाना आप को अजीब जरूर लगा होगा. लेकिन हाथों की साफसफाई रखना आप की सेहत के लिए उतना ही जरूरी है जितना आप को व्यायाम और भोजन करना. ग्रामीण इलाकों में भी लोग हाथों के हाइजीन की इंपौर्टैंस को समझें, इसलिए डब्ल्यूएचओ ने इसे वाशिंग डे के तौर पर मनाने का संकल्प लिया.

हाथों की सेहत भी है जरूरी

कोविडकाल में हाथ धोना काफी अहम हो गया है. ऐसे में यह भी जरूरी है कि आप हाथों को धोने के साथसाथ उन की सेहत का भी खयाल करें.

हाथ धोने के बाद क्रीम लगाएं: हाथों की ऊपरी स्किन में प्राकृतिक तेल और वैक्स होता है. बारबार साबुन से हाथ धोने और सैनिटाइजर के प्रयोग से वे रूखे हो जाते हैं. अत: इस से बचने के लिए हाथ धोने या सैनिटाइजर के बाद मौइस्चराइजर का इस्तेमाल जरूर करें.

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खुशबू युक्त साबुन का प्रयोग कम करें:कोरोना संक्रमण के दौर में लोग खुशबूदार साबुन का इस्तेमाल अधिक करने लगे हैं. अत: इस का प्रयोग कम से कम करें, क्योंकि यह झाग की मोटी परत बनाता है और फिर हाथों को जब रगड़ कर धोते हैं तो उन में मौजूद प्राकृतिक तेल को भी धो देता है. लगातार ऐसा करने से हाथों की प्राकृतिक सुंदरता भी खराब हो सकती है.

हाथ फटे हैं तो सैनिटाइजर न लगाएं:हाथों की त्वचा फटी है तो अलकोहल युक्त सैनिटाइजर लगाने से बचें. हैंड सैनिटाइजर के कुछ वक्त बाद मौइस्चराइजिंग क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं. रात को सोने से पहले हाथों में मौइस्चराइजिंग क्रीम लगाएं और सूती के कपड़े से बने दस्तानों से हाथों को 20 मिनट तक ढक लें ताकि उन में नमी आ जाए.

सेहत बना सकती हैं 9 आदतें

आदतें ही आप का स्वास्थ्य बनाती हैं. जैसी हमारी आदत होती है वैसा ही हमारा स्वास्थ्य होता है. जैसे आचार होंगे वैसा विचार होंगे. आदतों का स्वास्थ्य से गहरा संबंध होता है. ऐसे में अगर आप को अपने होम हाइजीन की हैबिट्स को बदलना है, सुधारना है, तो आप को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कैसे आप को घर के 1-1 कोने को साफ रखना है, फर्श की क्लीनिंग से ले कर किचन को कैसे कीटाणुओं से बचाना है, कैसे घर में खानेपीने की चीजों को सड़नेगलने से बचाना है, हाथों की सफाई से ले कर कपड़ों की सफाई तक आप को घर से जुड़ी सभी हाइजीन का ध्यान रख कर ही आप कोरोना जैसी महामारी के समय में खुद व अपने परिवार को कीटाणुओं व वायरस से बचा पाएंगे. तो फिर आज से ही अपनी आदतों को बदल कर अपनी सेहत का रखें खास ध्यान.

1. फर्श की क्लीनिंग

घर से बाहर जानाआना लगा रहता है. ऐसे में गंदे जूतेचप्पलों आदि से फर्श ही सब से ज्यादा कीटाणुओं व वायरस के संपर्क में आता है. इसलिए उस की रोजाना ठीक से सफाई करना बहुत जरूरी है खासकर तब जब घर में छोटे बच्चों का साथ हो, क्योंकि उन पर नजर रखने के बाद भी कब वे जमीन पर पड़ी चीज को उठा कर मुंह में डाल लेते हैं, पता ही नहीं चलता. साथ ही गरमियों के मौसम व फ्लू सीजन में जर्म्स अपने अनुकूल वातावरण मिलने के कारण तेजी से पनपना शुरू हो जाते हैं.

ऐसे में रोजाना फ्लोर को डिसइन्फैक्टैंट से क्लीन करना जरूरी होता है, क्योंकि यह जर्म्स व वायरस को मारने में सक्षम होता है. इस से फ्लोर पर जमी गंदगी रिमूव होने से ऐलर्जी के चांसेज भी काफी कम हो जाते हैं. साथ ही इस की भीनीभीनी खुशबू घर के माहौल को खुशनुमा बनाने का काम करती है.

इस के लिए आप पानी में डिटोल की कुछ बूंदें डाल कर भी रोजाना फ्लोर को क्लीन कर सकती हैं या फिर मार्केट में मिलने वाले डिसइन्फैक्टैंट भी काफी असरदार माने जाते हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि घर का कोई भी कोना बचने न पाए.

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2. किचन की हैल्थ का रखें ध्यान

रिसर्च के अनुसार, कोरोना वायरस कुछ किचन सर्फेस पर कुछ घंटों से ले कर 1 दिन तक जीवित रहता है. जैसे कार्डबोर्ड पर 24 घंटे, स्टेनलैस स्टील पर 2 दिन, कौपर पर 5-6 घंटे, प्लास्टिक पर 3 दिन तक जीवित रहता है. इसलिए खुद को हैल्थी रखने के लिए किचन की हैल्थ का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है.

इस के लिए आप सब से पहले जब भी किचन में जाएं तो अपने हाथों को साबुन या फिर अलकोहल युक्त हैंड सैनिटाइजर से जरूर क्लीन करें. उस के बाद ही किसी भी चीज को टच करें. जब किचन का सारा काम हो जाए तब सर्फेस को वाइप्स की मदद से डिसइन्फैक्टैंट से क्लीन जरूर करें. साथ ही किचन के कपड़ों व स्पोंज को रोजाना साफ करें.

कटिंग बोर्ड पर साल्मोनेला वायरस, इकोली जैसे खतरनाक बैक्टीरिया होते हैं जिन के संपर्क में आने के कारण आप बीमार हो सकते हैं. इसलिए हर बार इस्तेमाल के बाद इसे गरम पानी से धोना न भूलें. कीबोर्ड्स हैंडल्स, माइक्रोवेव का हैंडल व बाहर से, नलों को भी डिसइन्फैक्टैंट से क्लीन करती रहें. सब से अहम डस्टबिन, जो बैक्टीरिया का घर माना जाता है, उसे रोजाना डिसइन्फैक्टैंट स्प्रे से क्लीन करना न भूलें.

3. दरवाजों के हैंडल्स पर नजर

चाहे हम बाजार से आएं या फिर घर में ही हों, अकसर हमारे हाथ दरवाजों के हैंडल्स पर चले ही जाते हैं और अब जब कोरोना वायरस फैला है, तो सतर्कता और ज्यादा जरूरी हो गई है. क्या आप जानती हैं कि दरवाजों के हैंडल्स पर स्टेप नामक बैक्टीरिया पनपता है, जो अगर मुंह, नाक में चला जाता है, तो आप को सांस लेने में दिक्कत जैसी गंभीर समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है.

इसलिए रोजाना हैंडल्स को ऐंटीबैक्टीरिया क्लीनर से क्लीन करना न भूलें और इन्हें क्लीन करने के बाद अपने हाथों को भी साबुन से साफ कर लें.

4. टौयलेट में रोटा वायरस

टौयलेट एक ऐसी जगह है, जहां सब से ज्यादा नमी रहती है, जो बैक्टीरिया को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण माना जाता है. इसलिए जरूरी है कि उसे इस्तेमाल करने के बाद वाइपर की मदद से पानी निकाल कर उसे सुखाएं. हर बार टौयलेट के फ्लश बटन को छूने के बाद डिसइन्फैक्टैंट से अपने हाथों को धोना न भूलें, क्योंकि इस में रोटा वायरस होता है, जो डायरिया व पाचनतंत्र को प्रभावित करने का काम करता है. टूथब्रश होल्डर को भी नियमित रूप से पानी से साफ करती रहें. टूथब्रश का इस्तेमाल करने के बाद उसे कैप से कवर करना न भूलें. इस से आप काफी हद तक खुद को कीटाणुओं से दूर रख पाएंगी.

5. कारपेट में छिपे वायरस

कारपेट में इकोली, नोरो वायरस व साल्मोनेला वायरस छिपे रहते हैं और आप को यही लगता है कि यह तो अभी साफ है, जबकि जब आप इस पर चलती हैं तो इस में छिपे वायरस एअरबौर्न हो जाते हैं, जिस से पेट संबंधित गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इस से बचने के लिए जरूरी है कि आप रैग्युलर वैक्यूम क्लीनर से कारपेट को क्लीन करें और जब भी इसे वाश करें तो या तो प्रोफैशनल कारपेट क्लीनर सर्विस की मदद लें या फिर आप ऐंटीबैक्टीरियल क्लीनर से क्लीन करें, जिस से धूलमिट्टी, बैक्टीरिया मरने के साथसाथ आप को ऐलर्जी का भी रिस्क नहीं रहेगा.

6. बैडरूम की खास सफाई

घर में बैडरूम वह जगह होती है, जहां हम जैसे मरजी वैसे उठबैठ सकते हैं, चैन की नींद सो सकते हैं, पर्सनल मूमैंट्स को ऐंजौय कर सकते हैं. लेकिन अगर आप ने ध्यान नहीं दिया तो जिस चादर पर आप अपने दिन के काफी घंटे बिताते हैं व जिस तकिए पर सिर रख कर खुद को रिलैक्स फील करते हैं, वे आप को बीमार कर सकते हैं. क्योंकि इन में डस्ट मायटिस, जर्म्स होते हैं, जो ऐलर्जी, फंगल इन्फैक्शन व लंग्स को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं.

इसलिए समयसमय पर गद्दों को धूप लगाएं, चादर व पिल्लो कवर को 3-4 दिन में बदलें.  इस तरह आप का बैडरूम आप को बीमार नहीं बना पाएगा.

7. शू रैक जर्म्स का घर

अधिकांश लोगों के घरों में शू रैक होता है ताकि जूतेचप्पलें इधरउधर न फैले रहें. लेकिन अगर इस पर ध्यान नहीं दिया जाता तो यह शू रैक कम और जर्म्स का घर ज्यादा बन जाता है. एक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जूतों के नीचे व अंदर बड़ी संख्या में बैक्टीरिया होते हैं. इसलिए घर की बाकी चीजों की तरह इस की भी सही से सफाई करना जरूरी होता है.

हो सके तो इसे घर से बाहर वाले स्पेस में ही रखें. इस में ऐस्चेरीचिए कोली नामक बैक्टीरिया होता है, जो आंतों को नुकसान पहुंचाने के साथसाथ यूरिन इन्फैक्शन का भी कारण बनता है. इसलिए हफ्ते में एक बार अपने शू रैक को डिसइन्फैक्टैंट स्प्रे से जरूर साफ करें. साथ ही गंदे व गीले जूतों को शू रैक में न रखें.

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8. फर्नीचर की भी क्लीनिंग

फर्नीचर में 70% एअरबौर्न और उस की सतह के ऊपर 80% बैक्टीरिया होते हैं, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं. हम जब उस पर बैठते हैं तो खुद को कभी कपड़ों के जरीए तो कभी हाथों के जरीए बेक्टीरिया के संपर्क में आने का न्यौता देते हैं, जो आप को बीमार करने का काम करता है. इसलिए जरूरी है कि आप 15-20 दिन में कुशन कवर्स, सोफे कवर्स को धोएं. साथ ही उस पर जमी गंदगी को सोफा वैक्यूम क्लीनर से साफ करें.

9. कपड़ों को कैसे करें डिसइन्फैक्टैंट

भले ही आप कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण घरों में कैद हैं, लेकिन फिर भी बहुत जरूरी चीजों के लिए कभीकभार घर से निकलना ही पड़ता है. साथ ही घर में भी हम अनजाने ही सही जर्म्स के संपर्क में आते रहते हैं. इसलिए जरूरी है बच्चों से ले कर बड़ों तक के कपड़ों की खास तरह से सफाई करने की. कपड़ों में सतह होती है, जिस में वायरस व बैक्टीरिया अपनी जगह बना लेते हैं. ऐसे में जरूरी होता है कि अच्छी गुणवत्ता वाले डिटर्जैंट का इस्तेमाल करने के साथसाथ खूब पानी से कपड़ों को धोने की.

यह भी जान लें कि मशीन में कपड़ों को धोने के लिए पानी का तापमान बिलकुल सही रखें ताकि डिटर्जैंट अच्छे से वर्क कर सके. इस बात का भी ध्यान रखें कि गंदे कपड़ों को एक अलग लौंडरी बैग में एक तरह रखें और फिर धोने के समय ही उन्हें छूएं.

10. कंप्यूटर कीबोर्ड पर सब से ज्यादा कीटाणु

टौयलेट सीट से भी ज्यादा कीटाणु कंप्यूटर के कीबोर्ड पर होते हैं, जिन्हें हम अनजाने में अपने काफी निकट लिए बैठे रहते हैं. यही नहीं बल्कि मोबाइल व रोजाना इस्तेमाल होने वाले गैजेट्स में भी बैक्टीरिया छिपे रहते हैं और जब हम इन्हें इस्तेमाल करते हैं तो ये हमारे हाथों के जरीए हमारे शरीर में जा कर हमें नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं. लेकिन हम तो इन्हें साफ देख कर इन की सफाई की तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं. लेकिन अगर खुद को बीमारियों से बचाना है तो गैजेट्स को कपड़े या फिर कौटन से रोजाना साफ करती रहें.

पर्यावरण दिवस पर बनाएं हरे भरे मिंट राइस

5 जून को विश्व प्रति वर्ष पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. वर्तमान में निरन्तर बढ़ते प्रदूषण को रोकने का एकमात्र उपाय है….पेड़ पौधे लगाकर हरियाली को बढ़ावा देना साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले तत्वों  प्लास्टिक, जहरीले रसायन आदि के प्रयोग को सीमित करना ताकि हमें ताजी हवा प्राप्त हो सके. आज आवश्यकता है कि जिस प्रकार हम बर्थडे, एनिवर्सरी, मदर्स डे और फादर्स डे मनाते हैं उसी प्रकार घर में हरे भरे व्यंजन बनाकर  बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाएं, उन्हें इस दिन का महत्त्व समझाएं ताकि बाल्यावस्था से ही वे अपने व्यवहार में पर्यावरण को लेकर अच्छी आदतों का विकास कर सकें. आज हम आपको ऐसी ही हरी भरी सेहतमंद रेसिपी के बारे में बता रहे हैं जिसे आप इस पर्यावरण दिवस पर अपने बच्चों को बनाकर खिला सकतीं हैं.

कितने लोंगों के लिए                6

बनने में लगने वाला समय        30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री

बासमती चावल                  1 कटोरी

पोदीना                              1 कप

हरा धनिया                          1 कप

हरी मिर्च                               4

अदरक                               1 छोटी गांठ

जीरा                                   1/4 चम्मच

बारीक कटा प्याज                1

लहसुन                                 4 कली

नमक                                   स्वादानुसार

मूंगफली दाना                       1 टेबलस्पून

काजू                                     8

घी                                      2 टेबलस्पून

तेजपात पत्ता                        1

बड़ी इलायची                         2

दालचीनी                               1 इंच

नीबू का रस                            1 चम्मच

विधि

चावलों को धोकर 2 कप पानी में भिगो दें. पोदीना, हरा धनिया, अदरक और हरी मिर्च को मिक्सी में पीस लें. प्रेशर कुकर में घी डालें और मूंगफली दाना व काजू को गरम घी में तलकर एक प्लेट में निकाल लें. अब घी में तेजपात, बड़ी इलायची, जीरा और दालचीनी भूनकर प्याज और लहसुन को सॉते कर लें. जब प्याज हल्का गुलाबी हो जाये तो पोदीना प्यूरी डाल दें. चलाकर घी के ऊपर आने तक मंदी आंच पर भूनें. अब चावल, काजू, मूंगफली दाना और नमक डालकर प्रेशर कुकर का ढक्कन लगा दें. तेज आंच पर एक सीटी लेकर गैस बंद कर दें. जब कुकर ठंडा हो जाये यो ढक्कन खोलकर नीबू का रस मिलाएं. ताजे दही और अचार के साथ सर्व करें.

भयंकर भूल: मोबाइल लेने की सनक का क्या हुआ अंजाम

लेखक- आशा वर्मा

पंडित रामसनेही जवानी की दहलीज लांघ कर अधेड़ावस्था के आंगन में खड़े थे. अपने गोरे रंग और ताड़ जैसे शरीर पर वह धर्मेंद्र कट केश रखना पसंद करते थे. ज्यादातर वह अपने पसंदीदा हीरो की पसंद के ही कपड़े पहनते थे लेकिन कर्मकांड कराते समय उन का हुलिया बदल जाता था और ताड़ जैसे उन के शरीर पर धोतीकुरते के साथ एक कंधे पर रामनामी रंगीन गमछा दिखाई देता तो दूसरे कंधे पर मदारी की तरह का थैला लटका होता जिस में पत्रा, जंत्री और चालीसा रखते थे. माथे पर लाल रंग का बड़ा सा तिलक लगाए रामसनेही जब घर से निकलते तो गलीमहल्ले के सारे लड़के दूर से ही ‘पाय लागे पंडितजी’ कहते थे. सफेद लिबास के रामसनेही और पैंटशर्ट के रामसनेही में बहुत फर्क था.

रामसनेही को पुरोहिताई का काम अपने पुरखों से विरासत में मिला था क्योंकि बचपन से ही उन के पिता उन को अपने साथ रखते थे. विरासत की परंपरा में रह कर उन्होंने विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और मरने के बाद के तमाम कर्मकांड कराने की दीक्षा बखूबी हासिल कर ली थी. हर कार्यक्रम पर बोले जाने वाले श्लोक उन को कंठस्थ हो गए थे.

छोटे भाई से यजमानी के बंटवारे के समय पंचायत में तिकड़म भिड़ा कर ऊंचे तथा रईस घरों की यजमानी उन्होंने हथिया ली थी. छोटे भाई को जो यजमानी मिली थी वह कम आय वालों की थी, जहां पैसे कमाने की गुंजाइश बहुत कम थी. परिवार के नाम पर रामसनेही की एक अदद बीवी और बच्ची थी.

आज की पुरोहिताई के सभी गुण रामसनेही में कूटकूट कर भरे थे. और होते भी क्यों न, आखिर 15 सालों से शंख फूंकफूंक कर पारंगत जो हो चुके थे. लड़केलड़कियों की जन्मकुंडली न मिल रही हो तो वह कोई जुगत निकाल देते थे. विवाह का मुहूर्त या तिथि इधरउधर करना उन के बाएं हाथ का खेल था. कुंडली देख कर भविष्यवाणी भी करते थे. शनी से ले कर राहूकेतू की दशा का निराकरण भी करवाते थे. झाड़फूंक, जादुई अंगूठियों से वशीकरण जैसे कार्यों में उन्हें महारत हासिल थी.

व्यावसायिक तो रामसनेही इतना थे कि कंजूस की पोटली से भी अशरफी निकाल लें. जैसा यजमान वैसा काम के सिद्धांत पर चल कर उन्होंने अपने गुणों को और भी पैना कर लिया था. वह सब तरह का नशा करते थे पर जब गांजा का नशा करते तो मन ही मन औरतों के शृंगार का आनंद भी लेते थे. कुल मिला कर उन के बारे में हम यही कह सकते हैं कि 21वीं सदी की पंडिताई के साथसाथ वह बेहतरीन हरफनमौला इनसान थे.

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इधर बीच उन्हें भी एक मोबाइल लेने की सनक सवार हुई ताकि अपने काम को वह अच्छी तरह से अंजाम दे सकें. यही नहीं व्यस्त दिनों में वह पूरे दिन का एक रिकशा किराए पर लेने की बात भी सोच रहे थे ताकि मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाया जा सके.

रामसनेही को जो मोबाइल पसंद आया उस की कीमत 5 हजार रुपए थी. जोड़बटोर कर उन के पास कुल 3 हजार रुपए हो रहे थे. बाकी 2 हजार रुपए किसी से मांगना वह अपनी शान के खिलाफ समझ रहे थे. इसलिए मोबाइल के विचार को फिलहाल टाल कर किसी बड़े रईस के यहां कर्मकांड होने का इंतजार करने लगे. इस के लिए उन्हें अधिक दिन तक इंतजार नहीं करना पड़ा. जैसे ही सेठ चुन्नीलाल की गद्दी से नई कोठी में गृहप्रवेश कराने का बुलावा आया उन की बांछें खिल गईं.

चुन्नीलाल शहर के रईस आदमी थे. कोई भी कार्यक्रम रहा हो पंडितजी उन के यहां से काफी पैसे पाते रहे थे. उन के लिए यह घर मोटी यजमानी का था. चूंकि उस दिन पंडितजी का कार्यक्रम कहीं और नहीं था इसलिए समय से काफी पहले ही वह चुन्नीलाल के नए घर पहुंच गए.

गली में घुसते ही विभिन्न पकवानों की खुशबू का एहसास पंडितजी को होने लगा. दरवाजे पर पहुंचे तो चुन्नीलाल के बड़े लड़के नंदू ने पंडितजी के पैर छुए. आंगन में पहुंचे तो आकारप्रकार देख कर वह चौंधिया गए. विशालकाय आंगन में कम से कम 200 आदमी एकसाथ बैठ सकते थे. राजामहाराजाओं के महल जैसा उन का घर चमक रहा था.

घर मेहमानों से खचाखच भरा था. आंगन के एक ओर की दालान में महिलाएं बैठी थीं, तो दूसरी ओर की बड़ी दालान में पुरुष बैठे थे. सभी लोग कार्यक्रम शुरू होने का इंतजार कर रहे थे. कार्यक्रम के अनुसार यह तय हुआ कि पूजा शुरू होते ही पूडि़यां बनने का काम शुरू कर दिया जाए और पूजा खत्म होते ही मेहमानों की पंगतें बैठा दी जाएं.

इस दौरान ही पंडितजी को सेठ चुन्नीलाल नजर आ गए. वह सफेद धोतीकुरता, गले में कम से कम 10 तोले की सोने की जंजीर और हाथ की उंगलियों में हीरे की अंगूठियां पहने थे. अपने भारीभरकम शरीर के साथ चुन्नीलाल पंडितजी के पैर छूने की रस्म अदायगी के लिए झुके तो उन के हाथ पंडितजी के घुटनों तक मुश्किल से पहुंच पाए. यद्यपि चुन्नीलाल पंडित से उम्र में काफी बड़े थे पर रिवाज तो पूरा करना ही था. शायद अपने बड़प्पन की रक्षा के लिए ही उन्होंने रईसी अंदाज में पंडितजी को अपनेपन की एक मधुर धौल जमाते हुए कहा, ‘‘पंडितजी, इतनी देर कहां लगा दी.’’

पंडित रामसनेही तो समय से पहले ही पहुंचे थे इसलिए चुन्नीलाल के धौल पर थोड़ा खिसिया गए. कान के पास बजते मोबाइल के एहसास ने अपमान के इस घूंट को शरबत समझ कर पीते हुए होंठों पर मुसकान ला कर पंडितजी बोले, ‘‘सेठजी, आप चिंता क्यों कर रहे हैं. आप बैठें तो सही, देखिए कैसे जल्दी मैं काम को पूरा करता हूं.’’

आदेश के स्वर में सेठ चुन्नीलाल ने फिर मुंह खोला, ‘‘अरे, शार्टकट मत कर देना. पूरे विधिविधान से पूजा करानी है?’’

विधिविधान से पूजा कराने की बात चुन्नीलाल ने सिर्फ अपनी पत्नी को खुश करने के लिए कही थी अन्यथा मन से तो वह पूजापाठ के पक्ष में ही नहीं थे. वह तो शहर भर से आने वाले समाज के प्रतिष्ठित लोगों का स्वागत करना चाह रहे थे लेकिन घर में बड़े होने के नाते इस कार्यक्रमरूपी मटके को पत्नी के साथ बैठ कर उन्हें अपने सिर पर फोड़ना पड़ रहा था.

‘‘लालाजी, मैं आप के घर का सारा धार्मिक कार्यक्रम विधिविधान से पूरा करता हूं,’’ पंडितजी गर्व से बोले.

‘‘वह तो ठीक है पंडितजी,’’ चुन्नीलाल जल्दी में बोले, ‘‘यह तो बताइए कि कितना खर्च आएगा जिस में भेंट, पूजा का चढ़ावा, न्योछावर एवं दक्षिणा सभी कुछ शामिल हो.’’

इस सवाल पर पंडितजी थोड़ा रुके और माथे पर बनावटी सलवटें डाल कर मन ही मन कुछ गणना करते हुए बोले, ‘‘2 हजार रुपए से थोड़ा ऊपर.’’

‘‘2 हजार रुपए ज्यादा नहीं हैं. खैर, जल्दी शुरू करो. लंच का समय हो रहा है. आने वालों को समय से खाना भी खिलाना है.’’

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पंडितजी ने मंत्रोच्चारण के साथ अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया. हवन करने के लिए एक तरफ चुन्नीलाल अपनी पत्नी कमला के साथ बैठे थे, उन से थोड़ा हट कर मुन्नीलाल पैसों की गठरी संभाले बैठा था. दूसरी ओर पंडित रामसनेही खुद विराजमान थे. उन की नजर बारबार मुन्नीलाल के हाथ की गठरी पर जा कर रुक जाती. मन में यही हूक उठती कि आज यह गठरी खाली करा लेनी है.

गृहप्रवेश के श्लोक वह निर्धारित शैली के अनुसार बोलते चले गए और यजमान को बीचबीच में आचमन करने का तो कभी चावल छिड़कने का, सिंदूर लगाने का, पान के पत्ते से पानी छिड़कने का निर्देश देते रहे. इस दौरान चढ़ावा चढ़ाने की बात भी वह नहीं भूलते.

गृहप्रवेश का धार्मिक कार्यक्रम बेरोकटोक चल रहा था लेकिन पंडितजी और चुन्नीलाल दोनों ही दिमागी उलझनों में उलझे हुए थे. चुन्नीलाल सोच रहे थे कि डेढ़ घंटे के काम के लिए पंडित ने उन से 2 हजार रुपए मांगे हैं जो इस काम को देखते हुए बहुत अधिक हैं लेकिन वह करते भी क्या, मौका ऐसा था कि जबरन उन्हें अपने मुंह पर ताला लगाना पड़ रहा था. नातेरिश्तेदार, महल्ले वालों के साथ शहर के इज्जतदार लोग भी उन की खुशी में शरीक होने आए थे. ऐसे समय पैसे के लिए पंडित से विवाद करना ठीक नहीं था. लेकिन मन ही मन फैसला ले लिया था कि आगे इस लालची पंडित को नहीं बुलाएंगे.

उधर पंडित रामसनेही मन ही मन मुसकरा रहे थे कि सेठ को तो उन्होंने यह सोच कर अधिक पैसा बताया था कि कुछ मोलतोल होगा पर यजमान ने तो कोई मोलभाव ही नहीं किया. फिर उन के दिमाग में आया कि इतने बड़े सेठ से मुझे 4 हजार रुपए बोलना चाहिए था तो बात 3 तक आ कर पट जाती. इसी विचार मंथन के क्रम में शुरू की खुशी अब पछतावे में बदल गई थी.

अचानक पंडितजी के दिमाग में बिदाई की दक्षिणा वाली बात आ गई और उन के चेहरे पर फिर से खुशी की लहर दौड़ गई. सोचने लगे, यजमान से कितनी दक्षिणा मांगी जाए. मन की बात मन में 2 हजार रुपए से शुरू हुई, लेकिन इस कार्यक्रम में हजारों रुपए पानी की तरह बहता देख कर अंतिम दक्षिणा की रकम मन ही मन 2 हजार रुपए से बढ़ कर 5 हजार रुपए हो गई.

पूजा समाप्त होने से 5 मिनट पहले ही चुन्नीलाल ने खाना शुरू करने का इशारा अपने छोटे भाई को कर दिया. मुन्नीलाल खाने की व्यवस्था करने जैसे ही ऊपरी मंजिल की ओर चले उन के साथ परिवार के दूसरे लोग भी चल दिए. चूंकि पेटपूजा का कार्यक्रम ऊपर वाली मंजिल में शुरू होने जा रहा था इसलिए आंगन से काफी लोग छंट चुके थे. पूजा खत्म होते ही पंडितजी ने अधिकार के साथ कहा, ‘‘यजमान अंतिम दक्षिणा.’’

चुन्नीलाल दरियादिली से बोले, ‘‘हां, पंडितजी, कितनी दक्षिणा चाहिए.’’

शिकारी बिल्ली की तरह चुन्नीलाल रूपी चूहे पर झपट्टा मारने को तैयार पंडितजी कुछ धीमे स्वर में बोले, ‘‘यजमान 5 हजार रुपए.’’

चुन्नीलाल समझे कि भूल से पंडितजी 500 की जगह 5 हजार रुपए कह गए होंगे इसलिए फिर से पूछा, ‘‘कितने रुपए दे दूं.’’

पंडितजी इस बार आवाज तेज कर उस में चाटुकारिता का पुट घोलते हुए बोले, ‘‘मालिक, महज 5 हजार रुपए.’’

चुन्नीलाल इतनी रकम सुन कर सन्न रह गए. भौचक हो कर बोले, ‘‘पंडित, तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. जानते हो कि तुम कितनी बड़ी रकम मांग रहे हो.’’

‘‘हुजूर, आप बड़े लोग हैं,’’ चाटुकारिता की चाशनी में अपने शब्दों को लपेट कर पंडितजी बोले, ‘‘आप के लिए 5 हजार रुपए चुटकी है. पूरे शहर में आप का नाम है. किस जमाने से हमारे बापदादों ने आप के यहां पुरोहिती शुरू की थी.’’

2 हजार रुपए के चक्कर में चुन्नीलाल तो पहले से ही पंडितजी पर खार खाए बैठे थे, इस 5 हजार रुपए की नई मांग ने आग में घी का काम किया. तमतमाए चेहरे से चुन्नीलाल दहाड़े, ‘‘पंडितजी, आप अपने आपे में रहिए. इतना तो मैं कदापि नहीं दूंगा. 5 हजार रुपए हंसीठट्ठा समझ रखा है क्या?’’

इतने में कमला पति चुन्नीलाल को इशारे से चुप कराती हुई बोलीं, ‘‘पंडितजी, यह तो संयुक्त परिवार है इसलिए आप को हम लोग धनी दिख रहे हैं. हम लोग भी घर में दालरोटी ही खाते हैं. आप तो बहुत ज्यादा मांग रहे हैं. 5 हजार रुपए आप को मैं अपने बेटे नंदू की शादी में इन्हीं से दिलवाऊंगी, अभी तो 500 रुपए आप रख लें.

पंडितजी ने कमला की कोमलता को टटोल लिया. आंतरिक शक्ति बटोर कर उन्होंने कमला की तरफ मुंह कर के कहा, ‘‘अरे, मालकिन, यह गरीब ब्राह्मण आप लोगों से नहीं मांगेगा तो इस शहर में किस के पास मांगने जाएगा. यह तो धर्मकर्म का काम है. पुरोहित को देना तो सब से बड़ा पुण्य का काम होता है. यही दिया तो आगे काम आता है.’’

इसी बीच चुन्नीलाल ने 500 रुपए पंडितजी के हाथ में पकड़ाने का प्रयास किया पर वह उन रुपयों को छूने को तैयार न थे.

लिहाजा, 500 रुपए का वह नोट जमीन पर गिर पड़ा. लक्ष्मी का इस तरह अपमान होता देख कर मुन्नीलाल भड़क उठे, ‘‘500 रुपए लेना हो तो लो नहीं तो अपने घर का रास्ता नापो.’’

मोलतोल एवं तय तोड़ की सारी गुंजाइशें खत्म हो चुकी थीं. पंडितजी हाथ आई चिडि़या को किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाह रहे थे. उधर दोनों भाई चुन्नीलाल और मुन्नीलाल वीर योद्धा की तरह अपनी बात पर डटे रहे. कमला भी अपनी दाल गलती न देख थोड़ी दूर जा कर खड़ी हो गईं. दोनों ओर आवेश बढ़ने लगा. वाक्युद्ध अपने पूरे उफान पर था. यद्यपि पंडितजी अकेले थे पर वाक्पटुता में निपुण थे, तभी तो अपनी चाटुकारिता से बात को बीच में संभाल लेते थे.

पंडित रामसनेही जब हर तरफ से यजमान को झुकाने की कोशिश में हार गए तो अपने पूर्वजों के अंतिम ब्रह्मास्त्र ‘शाप’ का सहारा लिया और फिल्मी अंदाज में भड़क कर बोले, ‘‘यजमान, यह ब्राह्मण की दक्षिणा है, मुझे नहीं दोगे तो तुम्हें कहीं और देना पड़ेगा. अगर मैं ने मन से शाप दे दिया तो सारा घर भस्म हो जाएगा.’’

यह सुन कर वहां खड़े घर के लोग अवाक् रह गए. मगर बाहर से आंगन की तरफ आता चुन्नीलाल का छोटा बेटा पल्लू का धैर्य जाता रहा. पंडितजी का आखिरी कहा शब्द उस के हृदय में भाले की तरह चुभा था इसलिए वह भी युद्ध के मैदान में कूद पड़ा.

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पंडितजी की तरफ पल्लू झपट्टा मार कर गरजते हुए बोला, ‘‘सौ जूते मारो इस ढोंगी पंडित को. इस ने अपने आप को समझ क्या रखा है?’’

इसी के साथ हाथ में चप्पल ले कर पल्लू पंडितजी पर टूट पड़ा.

बात एकदम उलटी हो गई. पंडितजी का ब्रह्मास्त्र उन्हीं पर बज्र बन कर गिर पड़ा था. सेर को सवा सेर मिल गया था. पंडितजी इस युद्ध में चारों खाने चित हो चुके थे. तभी पल्लू और पंडितजी के बीच मुन्नीलाल और चुन्नीलाल आ गए. एक ने पल्लू की कमर पकड़ी तो दूसरे ने हाथ पकड़े और मौका देख कर पंडित रामसनेही बिना झोला उठाए और चप्पलें पहने अपनी जान हथेली पर रख कर त्वरित गति से एक प्रशिक्षित धावक की तरह संकटमोचन का नाम मन में ले कर भागे तो जा कर घर की चौखट पर ही रुके. उन के कानों में मोबाइल की घंटी तो नहीं अपने ही दिल की धड़कन सुनाई दे रही थी, जो किसी धौंकनी की रफ्तार से धड़क रही थी.

पंडित रामसनेही का झोला, पुस्तकें, 500 रुपए और उन की चप्पलें शहर में लगे कर्फ्यू की तरह आंगन में अनाथ पड़ीं अपनी कहानी बयां कर रही थीं.

हम सब भी पर्यावरण को बचा सकते हैं बशर्ते प्रवचन देना बंद करके सचमुच कुछ करें

हालां कि पिछले दिनों विष्वव्यापी लाॅकडाउन के चलते काफी हद तक हवा शुद्ध हुई है. नदियों का पानी साफ हुआ है. पक्षियों का जीवन खुशहाल हुआ है और किसी हद तक ओजोन छतरी भी मजबूत हुई है. लेकिन दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने साफ-साफ कह दिया है कि इस सबसे यह न उम्मीद की जाए कि ग्लोबल वार्मिंग को इससे कुछ फर्क पड़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग को इन छोटी-छोटी बातों से फर्क तो पड़ेगा, लेकिन जब ये हमेशा के लिए हमारी जिंदगी का, हमारी चेतना के साथ हिस्सा हो जाएं. किसी महामारी के भय से घर में कैद हो जाने से साफ हुई हवा बहुत दिन तक वातावरण को जहर से मुक्त नहीं रख सकती, खासकर तब जबकि लाॅकडाउन खुलते ही दुनिया पहले से भी कहीं ज्यादा तेज रफ्तार से फिर पुराने ढर्रे पर चल पड़ी हो.

सवाल है पर्यावरण कैसे बचेगा? निश्चित रूप से पर्यावरण हम सबकी भागीदारी से बचेगा. अगर विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर हम एक नजर बिगड़ते पर्यावरण की क्रोनोलाॅजी पर डालें तो हमें आश्चर्य होगा कि पिछले लगभग 7 दशकों से हर गुजरते दिन के साथ पर्यावरण बिगड़ रहा है. मगर देखने वाली बात है कि हम यानी पूरी दुनिया कर क्या रही है? बातें, बातें और सिर्फ बातें. पर्यावरण दिवस एक मजेदार रस्म अदायगी का दिन बनकर रह गया है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि पूरी दुनिया बिगड़ते पर्यावरण की भयावहता को समझ रही है और इसके प्रति चेतना जगाने के लिए चीख रही है पर पता नहीं किसके लिए यह सब कुछ किया जा रहा है? क्योंकि हर कोई सिर्फ भयावहता का खाका खींच रहा है. बिगड़ते पर्यावरण की बातें कर रहा है, समझाने का प्रयास कर रहा है मगर पता यह नहीं चल रहा कि समझाया किसको जा रहा है? पर्यावरण की बिगड़ती हालत के साथ सबसे बड़ी विडंबना है कि हर कोई यह बात किसी और को बताना चाहता किसी और को इसकी भयावहता समझना चाहता है पर खुद कोई समझने को राजी नहीं.

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वक्त नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका है. तथ्यों, तर्कों से हम बहुत एक दूसरे को डरा चुके अब समय आ गया है कि इस डर की प्रतिक्रिया में वाकई कुछ ऐसा करें कि डर कम हो. क्या कहा आप अकेले कुछ नहीं कर सकते? बहुत खूब बहाना है. यकीन मानो हर किसी का सुरक्षा कवच यही बहाना है. हर कोई यही कह रहा है कि वह अकेले क्या कर सकता है? या उसके अकेले ऐसा करने से आखिर पर्यावरण का कितना भला होगा? यह फिजूल की उलझन है और चालाक सवाल. हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए खुद को किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में बता रहा है. पर हम सब याद रखें, हम इस तमाम होशियारी से किसी और को बेवकूफ नहीं बना रहे, खुद के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं. वक्त आ गया है कि पर्यावरण की चेतना को उसकी विराटता से समझें और उसके संरक्षण में अपने छोटे से छोटे योगदान को भगीरथ प्रयास की गरिमा के साथ नत्थी करें.

पर्यावरण संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली के विस्तार से लिया जाता है. परन्तु वास्तव में यह इतना ही सीमित नहीं है. यह एक विस्तृत अवधारणा है. इसका तात्पर्य पेड़-पौधों के साथ-साथ जल, पशु-पक्षी एवं सम्पूर्ण पृथ्वी की रक्षा से है. ऐसे में जरूरी नहीं है कि हर कोई पर्यावरण को बचाने के लिए या बचाने में अपना योगदान देने के लिए वैज्ञानिक ही बने. जब पर्यावरण की बात हो तो ओजोन परत की छतरी से ही शुरू करे. घर-परिवार सही अर्थों में पर्यावरण शिक्षण-प्रशिक्षण की प्रथम पाठशाला है. यहां पर्यावरण को बिगड़ते भी देखा जा सकता है और कोशिश करें तो उसे बनते हुए भी महसूस किया जा सकता है. पर्यावरण को बचाने, उसे संरक्षित करने और उसके प्रति सजग रहने के लिए जरूरी नहीं है कि हम बहुत बड़े बड़े काम ही करें या तब तक अपनी योगदान को शून्य समझें जब तक हमारे योगदान को नोबेल पुरस्कार के लायक न समझा जाए.

लब्बोलुआब यह कि पर्यावरण को हम सब भी बचा सकते है, बशर्ते हम यह मानें कि हम ऐसा कर सकते हैं और फिर इसकी शुरुआत बिल्कुल शून्य बिंदु से करें. जी, हां आपको भले लगता हो कि यह बहुत थकाऊ, उबाऊ और अनिश्चित सा उपाय है. मगर यकीन मानिए अगर हम सब बहुत छोटी छोटी सजगताओं को अपनी रोजमर्रा की जीवनशैली का हिस्सा बना लें तो धरती पर्यावरण की समस्या से मुक्त हो जायेगी. हवा, पानी, जमीन सब स्वस्थ हो जाएंगे, हवाओं से जहर गायब हो जायेगा और फिजाएं जीवनदायिनी हो जायेंगी. बस हमें बहुत मामूली छोटे छोटे ऐसे कदम उठाने हैं जो हम हंसते, खेलते बिना किसी मुश्किल के या अतिरिक्त प्रयास के उठा सकते हैं.

हां, ये वाकई उपदेश नहीं है ऐसे छोटे छोटे उपाय हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं अगर आप अब भी नहीं समझ पा रहे हैं तो हम बताते है कि ये छोटे छोटे उपाय क्या हैं और क्या हो सकते हैं?

– घर चाहे जितना छोटा हो दो चार पौधे जरूर लगाएं.

– पौधों में इस्तेमाल करने के लिए जैविक खाद अपनाएं.

– शाॅपिंग के लिए प्लास्टिक के थैले की जगह कपडे़ के थैले का इस्तेमाल करें. पोलिथिन व प्लास्टिक को पूरी दृढ़ता से न कहें.

– स्टेशनरी यानी कागज, काॅपी के दोनो साइड्स का इस्तेमाल करें. इससे कागज की खपत में कमी आयेगी मतलब सीधा है, पेड़ बचेंगे, पर्यावरण बचेगा.

– खाने को बरबाद न करें. थाली में जूंठा न छोड़ें जितना खाएं उतना ही लें, चाहे घर हो या पार्टी.

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– हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ धुंए को ही प्रदूषण का जरिया मानते हैं. मगर रोशनी भी प्रदूषण का बड़ा जरिया है इसलिए जितना संभव हो कृत्रिम रोशनी का कम इस्तेमाल करें. दिन में सूरज की रौशनी से काम चलायें. रात की अपनी तमाम गतिविधियों को सीमित करके सोने में खर्च करें.

– जरूरी न हो तो बिजली से चलने वाले उपकरणों के स्विच बंद रखें. याद रखें अगर स्विच खुले रहते हैं तो वल्ब न जलने या कोई चीज न चलने के बाद भी बिजली इस्तेमाल होती है. ज्यादा से ज्यादा सीएफएल और एलईडी उपकरणों का उपयोग करके ऊर्जा बचाएं.

– सोलर-कुकर ऊर्जा बचाने का प्रभावी उपाय है इसका अधिकतम इस्तेमाल करें और बिजली जैसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता घटाएं. सौर-ऊर्जा का अधिकाधिक इस्तेमाल करें. यह एक अकेले आपके ही नहीं समूची मानवता के हित में है.

– अपनी लाइफस्टाल को लापरवाही के ठप्पे से बाहर निकालें. ब्रश एवं शेव करते समय बेसिन का नल बंद रखें. फोन, मोबाइल, लैपटॉप आदि का इस्तेमाल पावर सेविंग मोड पर करें. कपड़े धोने के लिए या हर मौसम में नहाने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल न करें. जहां तक हो सके पैदल चलें और पैकिंग वाली चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें.

यकीन मानें भले ये उपाय दिखने में छोटे हों मगर एक बार आपने यदि इन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना लिया तो यकीन मानो पर्यावरण की समस्या के बारे में आप कहेंगे- कहां गए छो?

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