Yami Gautam Wedding: यामी गौतम बनीं दुल्हन, पहाड़ों में की ‘उरी’ के डायरेक्टर से शादी

कोरोनावायरस के बढ़ते कहर के बीच कई सितारों ने शादी की है, जिनमें बौलीवुड एक्ट्रेस दिया मिर्जा का नाम भी शामिल है. इसी बीच बॉलीवुड एक्ट्रेस यामी गौतम ने भी अपनी शादी की खबर से फैंस को चौंका दिया है. दरअसल, कोरोना के बीच एक्ट्रेस यामी ने फैमिली के बीच शादी कर ली है. आइए आपको दिखाते हैं उनके पति और शादी की खास फोटोज….

डायरेक्टर से की शादी

 

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एक्ट्रेस यामी गौतम ने फैंस को अपनी शादी की न्यूज सोशलमीडिया के जरिए बताई है. दरअसल, फिल्म उरी द सर्जिकल स्ट्राइक के डायरेक्टर आदित्य धर के साथ यामी गौतम ने बीते दिन शादी की है, जिसकी फोटो एक्ट्रेस ने अपने सोशलमीडिया अकाउंट पर फैंस के लिए शेयर की है. वहीं इन फोटोज के वायरल होने के बाद सेलेब्स और फैंस उन्हें नई जिंदगी की बधाई दे रहे हैं.

 

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शादी में सिंपल दिखीं यामी गौतम

 

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यामी गौतम ने अपनी शादी की एक रोमांटिक फोटो को शेयर की, जिसमें वह लाल रंग की बनारसी साड़ी में  आदित्य को देख और मुस्कुराती हुईं आ रही थीं. वहीं आदित्या धर सफेद रंग की शेरवानी और पगड़ी पहनी हुए यामी को देख मुस्कुरा रहे थे. फोटो शेयर करते हुए दोनों ने लिखा, ‘तुम्हारी रोशनी में मैंने प्यार सीखा है. – रूमी. हमारे परिवार के आशीर्वाद के साथ हमने एक इंटिमेट सेरेमनी में शादी कर ली है. प्राइवेट इंसान होने की वजह से हम दोनों ने इस खुशी भरे मौके को अपने परिवार के साथ बांटा है. हम अपने प्यार और दोस्ती के इस सफर में आपकी दुआएं और आशीर्वाद चाहेंगे. प्यार, यामी और आदित्य.’

बता दें, टीवी से अपने करियर की शुरुआत करने वाली एक्ट्रेस यामी गौतम बौलीवुड में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुकी हैं. वहीं उरी द सर्जिकल स्ट्राइक में उनकी एक्टिंग की तारीफ आज भी फैंस करते नजर आते हैं.

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जानें कोविड ने एक्टर अविनाश द्विवेदी को क्या दी सीख

हमेशा से कुछ अलग करने की इच्छा रखने वाले अभिनेता अविनाश द्विवेदी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर से है. अभिनय के अलावा उन्होंने डांस और टायक्वोंडो में प्रशिक्षण लिया है. साथ ही वे एक लेखक भी है. उनके पिता व्यवसायी होने की वजह से थोड़े दिनों बाद परिवार के साथ दिल्ली शिफ्ट हो गए और अविनाश ने अपनी पढाई दिल्ली में की. अविनाश को बचपन से पढाई में मन नहीं लगता था, केवल माता-पिता को खुश करने के लिहाज से पढने बैठते थे. उनके पेरेंट्स चाहते थे कि वह इंजिनियर बने.ऑनलाइन डांस रियलिटी शो में भाग लेकर वे मुंबई आये और अभिनय के लिए संघर्ष करने लगे. इस बीच उन्हें कई विज्ञापनों और टीवी धारावाहिकों में काम करने का मौका मिला. काम के दौरान उनका परिचय संभावना सेठ से हुआ,प्यार हुआ और शादी की. अविनाश की फिल्म‘रिक्शावाला’ ओटीटी प्लेटफॉर्म बिग बैंग एम्युजमेंट पर रिलीज होने वाली है. ये एक आवर्ड विनिंग फिल्म है, जिसमें अविनाश ने कोलकाता के हाथ रिक्शा चलाने वाले मनोज की भूमिका निभाई है,उनसे बात करना रोचक था, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-इस फिल्म में काम करने की खास वजह क्या रही?

ये फिल्म बहुत अधिक लेयर्ड वाली है, क्योंकि इसमें इमोशन, लव और एक व्यक्ति के सपनों को भी दिखाया गया है. साथ ही रीयलिस्टिक फिल्म है, बहुत अधिक फ़िल्मी नहीं. इसमें मैंने एक गरीब लड़केकी भूमिका निभाई है, जिसका किसी से प्यार, इमोशन और सपने इन तीनो को साथ-साथ दिखाने की कोशिश की गयी है.

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सवाल-इस फिल्म को करने के लिए आपने कितनी तैयारियां की ?

इस फिल्म के लिए मुझे बहुत अधिक तैयारी करनी पड़ी है. पहले मुझे एक रिक्शा वाले की तरह लगना, उसके रहने के माहौल को समझना था, लेकिन मेरे निर्देशक राम कमल मुख़र्जी ने मुझे फिल्म को समझने में बहुत सहयोग दिया. उन्हें फिल्म की एक-एक बात पता थी, जिसे उन्होंने मेरे साथ शेयर किया. मुझे इस फिल्म के लिए बांग्ला भाषा सीखना पड़ा. उन्होंने कहा था कि मेरे लिप्सिंग के बाद वे किसी बंगाली से डबिंग करवा सकते है, लेकिन मैंने फिल्म की सारी चीजों को खुद ही करना उचित समझा और निर्देशक के भेजे हुए बांग्ला एक्सेंट को सुनकर प्रैक्टिस करता था, इसके अलावा मैंने कई बांग्ला गाने सुनकर भाषा को ठीक किया. कोलकाता जाकर हाथ रिक्शा चलाने की कोशिश की. नंगे पाँव तीन लोगों को बैठाकर रिक्शा चलाना बहुत मुश्किल था, इस दौरान मैंने कई बाइक और साइकिल तोड़ी है.

सवाल-इस फिल्म को खुद से कितना रिलेट कर पाते है?

इस चरित्र से मैं बहुत कम रिलेट कर पाता हूँ, लेकिन समानता की बात करें तो मेरा जन्म गोरखपुर में हुआ. आज से 30-35 साल पहले पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार से लोग कमाने के लिए कोलकाता जाते थे, जहाँ व्यक्ति कुछ कमा सकता है. मेरे पिता को भी कमाने के लिए कोलकाता भेजा गया था. ये कहानी भी एक बिहारी रिक्शा वाले की है, जो कोलकाता कमाने के लिए जाता है, इन सारी बातों से मैं खुद को थोडा जोड़ पाता हूँ.

सवाल-एक्टिंग में आने की इच्छा कैसे हुई?

अभिनय की इच्छा होश सम्हालते ही हो गया था, जब मैं 12 साल का था उस दौरान मैंने ऋतिक रोशन की फिल्म ‘कहो न प्यार है’ को देखकर बहुत प्रभावित हुआ और अभिनय में आने का मन बना लिया. इसके बाद मैंने दिल्ली में डांस और अभिनय की ट्रेनिंग ली. मार्शल आर्ट सीखा और पक्के इरादे के साथ अभिनय के क्षेत्र में आ गया.

सवाल-आपके अभिनय की इच्छा सुनने के बाद माता-पिता का रिएक्शन कैसा था?

उन्होंने पहले मुझे ड्रामा बंद करने के लिए कहा और अच्छी पढाई कर इंजीनियर बनने की सलाह दी, पर मेरा मन पढाई में नहीं लगता था. मैं उन्हें दिखाने के लिए ही पढता था. पहले मेरे पेरेंट्स ने मुझे सहयोग नहीं दिया, पर धीरे-धीरे मेरी अचीवमेंट को देखकर वे सहयोग करने लगे. मैं दो डांस रियलिटी शो में भाग लेकर मुंबई आ गया.

सवाल-पहला ब्रेक कैसे मिला?

पहला ब्रेक मुझे ऑडिशन के द्वारा एक टीवी विज्ञापन के लिए मिला था. इसके बाद कई विज्ञापनों में काम किया. भोजपुरी और शार्ट फिल्में भी की. अब इस फिल्म को करने का मौका मिला.

सवाल-बिग बॉस फेम संभावना सेठ से आप कैसे मिले?

मैं एक डांस रियलिटी शो के साथ एक प्रतियोगी के रूप में मुंबई आया था. उस टीम की मेंटर संभावना सेठ थी. उस रियलिटी शो में मैं पहली बार उनसे मिला था. शो ख़त्म होने के बाद भी हमदोनों की दोस्ती बनी रही और धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गयी. फिर हमदोनो ने 4 साल साथ रहने के बाद शादी की. मैं संभावना की इमानदारी और मेहनत को देखकर आकर्षित हुआ था.

सवाल-संभावना बहुत साहसी और स्पष्टभाषी है, ऐसे में दोनों एक दूसरे को कैसे समझ पाते है?

पहले मुझे भी वैसी ही लगी थी, लेकिन समय के साथ मैं उसे जान पाया और उनके साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा. हम दोनों का एक दूसरे को समझना मुश्किल नहीं है, क्योंकि हम दोनों ही स्पष्टभाषी है.

सवाल-क्या किसी प्रोजेक्ट को चुनने से पहले उसकी चर्चा संभावना के साथ करते है?

अवश्य करता हूँ, वह मेरी सबसे बड़ी आलोचक है. उसके अनुसार ही मैं फिल्मे चुनता भी हूँ. वह मेरे किसी भी काम को देखती है और अपनी राय देती है. इससे मुझे हर फिल्म में ग्रो करने का मौका मिलता है.

सवाल-आगे ड्रीम क्या है?

आगे मैं अभिनय के अलावा फिल्में बनाना और लिखने की इच्छा रखता हूँ, जहाँ लोग आकर अपनी आजादी के साथ काम कर सकें.

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सवाल-कोविड पीरियड में काम करते हुए कितना एहतियात बरतते है?

बहुत करना पड़ता है, क्योंकि अभी काम बहुत कम हो रहा है. इसलिए कहानियां भी कम लोगों को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है. टीम में जो लोग शामिल होते है उनका आरटीपीसीआर हर 14 दिन में कराया जाता है, लेकिन हर बार कोई न कोई पॉजिटिव निकल जाता है. फिर उस व्यक्ति की बदले में दूसरे को लाना पड़ता है. टीका सबको लगने के बाद कुछ नार्मल होने की संभावना है.

सवाल-एक नागरिक होने के नाते इस महामारी से आपने क्या सीखा?

अभी ऐसा समय है, लोगों के पास काम नहीं है, वे घर पर बैठे है, खाने के लिए पैसे नहीं है, लोग कहीं घूमने नहीं जा सकते. असल में जब व्यक्ति सबकुछ छोड़ देता है, तो अंत में व्यक्ति और उसका परिवार ही बचता है, जो अंत तक साथ देता है. तब उस व्यक्ति को अपने परिवार का महत्व और समय देने की बात का पता चलता है. जब व्यक्ति अपने परिवार को समय देता है, तो वह दूसरों के लिए भी बहुत कुछ कर पाता है. मैंने भी काफी लोगों की मदद की और वह तब किया जब मैंने अपने लोगों को कोविड से भुगतते हुए देखा. हर व्यक्ति को अपने माता-पिता और परिवार को उतना ही महत्व देने की जरुरत है, जितना व्यक्ति अपने काम और पैसे को देता है.

क्यों जरूरी है हाथों की सफाई

 लेखिका  -सोनिया राणा

जब से दुनियाभर में कोरोना ने दस्तक दी है तब से हाथों की साफसफाई पर लोगों ने ध्यान देना शुरू किया है. लेकिन बात सिर्फ कोविड-19 की नहीं है. हाथ धोने से ले कर घर में अकसर बड़े हमें समयसमय पर नसीहत देते और डांटते भी रहते हैं कि खाना खाने से पहले और बाद में, बाहर से घर में आने के बाद, बाहर से लाए किसी सामान को छूने के बाद और शौच जाने के बाद हाथों को अच्छी तरह साबुन लगा कर धोना चाहिए.

ऐसा इसलिए है कि जब भी हम खाना खाते हैं और उस के पहले हाथ नहीं धोते तो हाथों में लगे जर्म्स हमारे खाने के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर लेते हैं, जिस से हमें फूड पौइजनिंग समेत कई बीमारियों का सामना करना पड़  सकता है.

हो सकती हैं कई बीमारियां

हाथों की सफाई के मामले से अगर कोविड-19 जैसी महामारी को कुछ पल के लिए नजरअंदाज भी कर दें तो भी यह हमारे लिए खतरनाक साबित हो सकता है. हलके वायरल इन्फैक्शन से ले कर हैजा जैसी कई बीमारियां हैं, जो सिर्फ इस छोटी सी आदत को अपनी दिनचर्या में शुमार न करने से आप को अपनी गिरफ्त में ले सकती हैं जैसे डायरिया, गैस्ट्रोएंट्राइटिस, दस्त, हैजा, टायफाइड, हेपेटाइटिस ए और ई, पीलिया, एच1 एन1, सर्दीजुकाम.

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कैसे रखें हाथों की सफाई

यों तो हाथ धोने से संबंधित विज्ञापनों से बाजार भरा है, समाचारपत्रों या पत्रिकाओं के माध्यम से हों या फिर टैलीविजन में आने वाले विज्ञापनों के जरीए हमें हाथ अच्छे से कैसे धोने चाहिए इस के बारे में जानकारी दी जाती है. लेकिन पिछले 1 साल में न सिर्फ इन विज्ञापनों में बल्कि बाजार में उपलब्ध सैनिटाइजर और हैंड वाश की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुई है.

ऐसे में जरूरी है कि हम सभी अगर घर पर हैं तो अपने हाथों की लगातार साबुन से सफाई करें और अगर घर से बाहर हैं तो भी अब यह जरूरी हो गया है कि आप सैनिटाइजर से अपने हाथों को कीटाणुओं से मुक्त करें. इस से न सिर्फ कोविड-19 महामारी से बचे रहेंगे, बल्कि अन्य रोगों से भी अपनी रक्षा कर पाएंगे. डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस भी कहती हैं हमें अपने हाथों  को 20 सैकंड तक अच्छी तरह रगड़ कर  धोना चाहिए.

ग्लोबल हैंड वाशिंग डे

हाथ धोने से संबंधित जागरूकता फैलाने के लिए ग्लोबल हैंड वाशिंग डे मनाया जाता है. 2008 से यूएन ने इसे मनाना शुरू किया था  और जब यह पहली बार मानाया गया तो दुनियाभर में करीब 120 मिलियन बच्चों और बड़ों ने अपने हाथ धोए थे. उस के बाद इसे हर साल 15 अक्टूबर को मनाया जाता है. 2020 में ‘हैंड हाइजीन’ इस की थीम रखी गई थी.

एक छोटी सी आदत को वाशिंग डे के तौर पर मनाया जाना आप को अजीब जरूर लगा होगा. लेकिन हाथों की साफसफाई रखना आप की सेहत के लिए उतना ही जरूरी है जितना आप को व्यायाम और भोजन करना. ग्रामीण इलाकों में भी लोग हाथों के हाइजीन की इंपौर्टैंस को समझें, इसलिए डब्ल्यूएचओ ने इसे वाशिंग डे के तौर पर मनाने का संकल्प लिया.

हाथों की सेहत भी है जरूरी

कोविडकाल में हाथ धोना काफी अहम हो गया है. ऐसे में यह भी जरूरी है कि आप हाथों को धोने के साथसाथ उन की सेहत का भी खयाल करें.

हाथ धोने के बाद क्रीम लगाएं: हाथों की ऊपरी स्किन में प्राकृतिक तेल और वैक्स होता है. बारबार साबुन से हाथ धोने और सैनिटाइजर के प्रयोग से वे रूखे हो जाते हैं. अत: इस से बचने के लिए हाथ धोने या सैनिटाइजर के बाद मौइस्चराइजर का इस्तेमाल जरूर करें.

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खुशबू युक्त साबुन का प्रयोग कम करें:कोरोना संक्रमण के दौर में लोग खुशबूदार साबुन का इस्तेमाल अधिक करने लगे हैं. अत: इस का प्रयोग कम से कम करें, क्योंकि यह झाग की मोटी परत बनाता है और फिर हाथों को जब रगड़ कर धोते हैं तो उन में मौजूद प्राकृतिक तेल को भी धो देता है. लगातार ऐसा करने से हाथों की प्राकृतिक सुंदरता भी खराब हो सकती है.

हाथ फटे हैं तो सैनिटाइजर न लगाएं:हाथों की त्वचा फटी है तो अलकोहल युक्त सैनिटाइजर लगाने से बचें. हैंड सैनिटाइजर के कुछ वक्त बाद मौइस्चराइजिंग क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं. रात को सोने से पहले हाथों में मौइस्चराइजिंग क्रीम लगाएं और सूती के कपड़े से बने दस्तानों से हाथों को 20 मिनट तक ढक लें ताकि उन में नमी आ जाए.

सेहत बना सकती हैं 9 आदतें

आदतें ही आप का स्वास्थ्य बनाती हैं. जैसी हमारी आदत होती है वैसा ही हमारा स्वास्थ्य होता है. जैसे आचार होंगे वैसा विचार होंगे. आदतों का स्वास्थ्य से गहरा संबंध होता है. ऐसे में अगर आप को अपने होम हाइजीन की हैबिट्स को बदलना है, सुधारना है, तो आप को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कैसे आप को घर के 1-1 कोने को साफ रखना है, फर्श की क्लीनिंग से ले कर किचन को कैसे कीटाणुओं से बचाना है, कैसे घर में खानेपीने की चीजों को सड़नेगलने से बचाना है, हाथों की सफाई से ले कर कपड़ों की सफाई तक आप को घर से जुड़ी सभी हाइजीन का ध्यान रख कर ही आप कोरोना जैसी महामारी के समय में खुद व अपने परिवार को कीटाणुओं व वायरस से बचा पाएंगे. तो फिर आज से ही अपनी आदतों को बदल कर अपनी सेहत का रखें खास ध्यान.

1. फर्श की क्लीनिंग

घर से बाहर जानाआना लगा रहता है. ऐसे में गंदे जूतेचप्पलों आदि से फर्श ही सब से ज्यादा कीटाणुओं व वायरस के संपर्क में आता है. इसलिए उस की रोजाना ठीक से सफाई करना बहुत जरूरी है खासकर तब जब घर में छोटे बच्चों का साथ हो, क्योंकि उन पर नजर रखने के बाद भी कब वे जमीन पर पड़ी चीज को उठा कर मुंह में डाल लेते हैं, पता ही नहीं चलता. साथ ही गरमियों के मौसम व फ्लू सीजन में जर्म्स अपने अनुकूल वातावरण मिलने के कारण तेजी से पनपना शुरू हो जाते हैं.

ऐसे में रोजाना फ्लोर को डिसइन्फैक्टैंट से क्लीन करना जरूरी होता है, क्योंकि यह जर्म्स व वायरस को मारने में सक्षम होता है. इस से फ्लोर पर जमी गंदगी रिमूव होने से ऐलर्जी के चांसेज भी काफी कम हो जाते हैं. साथ ही इस की भीनीभीनी खुशबू घर के माहौल को खुशनुमा बनाने का काम करती है.

इस के लिए आप पानी में डिटोल की कुछ बूंदें डाल कर भी रोजाना फ्लोर को क्लीन कर सकती हैं या फिर मार्केट में मिलने वाले डिसइन्फैक्टैंट भी काफी असरदार माने जाते हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि घर का कोई भी कोना बचने न पाए.

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2. किचन की हैल्थ का रखें ध्यान

रिसर्च के अनुसार, कोरोना वायरस कुछ किचन सर्फेस पर कुछ घंटों से ले कर 1 दिन तक जीवित रहता है. जैसे कार्डबोर्ड पर 24 घंटे, स्टेनलैस स्टील पर 2 दिन, कौपर पर 5-6 घंटे, प्लास्टिक पर 3 दिन तक जीवित रहता है. इसलिए खुद को हैल्थी रखने के लिए किचन की हैल्थ का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है.

इस के लिए आप सब से पहले जब भी किचन में जाएं तो अपने हाथों को साबुन या फिर अलकोहल युक्त हैंड सैनिटाइजर से जरूर क्लीन करें. उस के बाद ही किसी भी चीज को टच करें. जब किचन का सारा काम हो जाए तब सर्फेस को वाइप्स की मदद से डिसइन्फैक्टैंट से क्लीन जरूर करें. साथ ही किचन के कपड़ों व स्पोंज को रोजाना साफ करें.

कटिंग बोर्ड पर साल्मोनेला वायरस, इकोली जैसे खतरनाक बैक्टीरिया होते हैं जिन के संपर्क में आने के कारण आप बीमार हो सकते हैं. इसलिए हर बार इस्तेमाल के बाद इसे गरम पानी से धोना न भूलें. कीबोर्ड्स हैंडल्स, माइक्रोवेव का हैंडल व बाहर से, नलों को भी डिसइन्फैक्टैंट से क्लीन करती रहें. सब से अहम डस्टबिन, जो बैक्टीरिया का घर माना जाता है, उसे रोजाना डिसइन्फैक्टैंट स्प्रे से क्लीन करना न भूलें.

3. दरवाजों के हैंडल्स पर नजर

चाहे हम बाजार से आएं या फिर घर में ही हों, अकसर हमारे हाथ दरवाजों के हैंडल्स पर चले ही जाते हैं और अब जब कोरोना वायरस फैला है, तो सतर्कता और ज्यादा जरूरी हो गई है. क्या आप जानती हैं कि दरवाजों के हैंडल्स पर स्टेप नामक बैक्टीरिया पनपता है, जो अगर मुंह, नाक में चला जाता है, तो आप को सांस लेने में दिक्कत जैसी गंभीर समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है.

इसलिए रोजाना हैंडल्स को ऐंटीबैक्टीरिया क्लीनर से क्लीन करना न भूलें और इन्हें क्लीन करने के बाद अपने हाथों को भी साबुन से साफ कर लें.

4. टौयलेट में रोटा वायरस

टौयलेट एक ऐसी जगह है, जहां सब से ज्यादा नमी रहती है, जो बैक्टीरिया को पनपने के लिए अनुकूल वातावरण माना जाता है. इसलिए जरूरी है कि उसे इस्तेमाल करने के बाद वाइपर की मदद से पानी निकाल कर उसे सुखाएं. हर बार टौयलेट के फ्लश बटन को छूने के बाद डिसइन्फैक्टैंट से अपने हाथों को धोना न भूलें, क्योंकि इस में रोटा वायरस होता है, जो डायरिया व पाचनतंत्र को प्रभावित करने का काम करता है. टूथब्रश होल्डर को भी नियमित रूप से पानी से साफ करती रहें. टूथब्रश का इस्तेमाल करने के बाद उसे कैप से कवर करना न भूलें. इस से आप काफी हद तक खुद को कीटाणुओं से दूर रख पाएंगी.

5. कारपेट में छिपे वायरस

कारपेट में इकोली, नोरो वायरस व साल्मोनेला वायरस छिपे रहते हैं और आप को यही लगता है कि यह तो अभी साफ है, जबकि जब आप इस पर चलती हैं तो इस में छिपे वायरस एअरबौर्न हो जाते हैं, जिस से पेट संबंधित गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

इस से बचने के लिए जरूरी है कि आप रैग्युलर वैक्यूम क्लीनर से कारपेट को क्लीन करें और जब भी इसे वाश करें तो या तो प्रोफैशनल कारपेट क्लीनर सर्विस की मदद लें या फिर आप ऐंटीबैक्टीरियल क्लीनर से क्लीन करें, जिस से धूलमिट्टी, बैक्टीरिया मरने के साथसाथ आप को ऐलर्जी का भी रिस्क नहीं रहेगा.

6. बैडरूम की खास सफाई

घर में बैडरूम वह जगह होती है, जहां हम जैसे मरजी वैसे उठबैठ सकते हैं, चैन की नींद सो सकते हैं, पर्सनल मूमैंट्स को ऐंजौय कर सकते हैं. लेकिन अगर आप ने ध्यान नहीं दिया तो जिस चादर पर आप अपने दिन के काफी घंटे बिताते हैं व जिस तकिए पर सिर रख कर खुद को रिलैक्स फील करते हैं, वे आप को बीमार कर सकते हैं. क्योंकि इन में डस्ट मायटिस, जर्म्स होते हैं, जो ऐलर्जी, फंगल इन्फैक्शन व लंग्स को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं.

इसलिए समयसमय पर गद्दों को धूप लगाएं, चादर व पिल्लो कवर को 3-4 दिन में बदलें.  इस तरह आप का बैडरूम आप को बीमार नहीं बना पाएगा.

7. शू रैक जर्म्स का घर

अधिकांश लोगों के घरों में शू रैक होता है ताकि जूतेचप्पलें इधरउधर न फैले रहें. लेकिन अगर इस पर ध्यान नहीं दिया जाता तो यह शू रैक कम और जर्म्स का घर ज्यादा बन जाता है. एक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जूतों के नीचे व अंदर बड़ी संख्या में बैक्टीरिया होते हैं. इसलिए घर की बाकी चीजों की तरह इस की भी सही से सफाई करना जरूरी होता है.

हो सके तो इसे घर से बाहर वाले स्पेस में ही रखें. इस में ऐस्चेरीचिए कोली नामक बैक्टीरिया होता है, जो आंतों को नुकसान पहुंचाने के साथसाथ यूरिन इन्फैक्शन का भी कारण बनता है. इसलिए हफ्ते में एक बार अपने शू रैक को डिसइन्फैक्टैंट स्प्रे से जरूर साफ करें. साथ ही गंदे व गीले जूतों को शू रैक में न रखें.

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8. फर्नीचर की भी क्लीनिंग

फर्नीचर में 70% एअरबौर्न और उस की सतह के ऊपर 80% बैक्टीरिया होते हैं, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं. हम जब उस पर बैठते हैं तो खुद को कभी कपड़ों के जरीए तो कभी हाथों के जरीए बेक्टीरिया के संपर्क में आने का न्यौता देते हैं, जो आप को बीमार करने का काम करता है. इसलिए जरूरी है कि आप 15-20 दिन में कुशन कवर्स, सोफे कवर्स को धोएं. साथ ही उस पर जमी गंदगी को सोफा वैक्यूम क्लीनर से साफ करें.

9. कपड़ों को कैसे करें डिसइन्फैक्टैंट

भले ही आप कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण घरों में कैद हैं, लेकिन फिर भी बहुत जरूरी चीजों के लिए कभीकभार घर से निकलना ही पड़ता है. साथ ही घर में भी हम अनजाने ही सही जर्म्स के संपर्क में आते रहते हैं. इसलिए जरूरी है बच्चों से ले कर बड़ों तक के कपड़ों की खास तरह से सफाई करने की. कपड़ों में सतह होती है, जिस में वायरस व बैक्टीरिया अपनी जगह बना लेते हैं. ऐसे में जरूरी होता है कि अच्छी गुणवत्ता वाले डिटर्जैंट का इस्तेमाल करने के साथसाथ खूब पानी से कपड़ों को धोने की.

यह भी जान लें कि मशीन में कपड़ों को धोने के लिए पानी का तापमान बिलकुल सही रखें ताकि डिटर्जैंट अच्छे से वर्क कर सके. इस बात का भी ध्यान रखें कि गंदे कपड़ों को एक अलग लौंडरी बैग में एक तरह रखें और फिर धोने के समय ही उन्हें छूएं.

10. कंप्यूटर कीबोर्ड पर सब से ज्यादा कीटाणु

टौयलेट सीट से भी ज्यादा कीटाणु कंप्यूटर के कीबोर्ड पर होते हैं, जिन्हें हम अनजाने में अपने काफी निकट लिए बैठे रहते हैं. यही नहीं बल्कि मोबाइल व रोजाना इस्तेमाल होने वाले गैजेट्स में भी बैक्टीरिया छिपे रहते हैं और जब हम इन्हें इस्तेमाल करते हैं तो ये हमारे हाथों के जरीए हमारे शरीर में जा कर हमें नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं. लेकिन हम तो इन्हें साफ देख कर इन की सफाई की तरफ ध्यान ही नहीं देते हैं. लेकिन अगर खुद को बीमारियों से बचाना है तो गैजेट्स को कपड़े या फिर कौटन से रोजाना साफ करती रहें.

पर्यावरण दिवस पर बनाएं हरे भरे मिंट राइस

5 जून को विश्व प्रति वर्ष पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. वर्तमान में निरन्तर बढ़ते प्रदूषण को रोकने का एकमात्र उपाय है….पेड़ पौधे लगाकर हरियाली को बढ़ावा देना साथ ही पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले तत्वों  प्लास्टिक, जहरीले रसायन आदि के प्रयोग को सीमित करना ताकि हमें ताजी हवा प्राप्त हो सके. आज आवश्यकता है कि जिस प्रकार हम बर्थडे, एनिवर्सरी, मदर्स डे और फादर्स डे मनाते हैं उसी प्रकार घर में हरे भरे व्यंजन बनाकर  बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बनाएं, उन्हें इस दिन का महत्त्व समझाएं ताकि बाल्यावस्था से ही वे अपने व्यवहार में पर्यावरण को लेकर अच्छी आदतों का विकास कर सकें. आज हम आपको ऐसी ही हरी भरी सेहतमंद रेसिपी के बारे में बता रहे हैं जिसे आप इस पर्यावरण दिवस पर अपने बच्चों को बनाकर खिला सकतीं हैं.

कितने लोंगों के लिए                6

बनने में लगने वाला समय        30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री

बासमती चावल                  1 कटोरी

पोदीना                              1 कप

हरा धनिया                          1 कप

हरी मिर्च                               4

अदरक                               1 छोटी गांठ

जीरा                                   1/4 चम्मच

बारीक कटा प्याज                1

लहसुन                                 4 कली

नमक                                   स्वादानुसार

मूंगफली दाना                       1 टेबलस्पून

काजू                                     8

घी                                      2 टेबलस्पून

तेजपात पत्ता                        1

बड़ी इलायची                         2

दालचीनी                               1 इंच

नीबू का रस                            1 चम्मच

विधि

चावलों को धोकर 2 कप पानी में भिगो दें. पोदीना, हरा धनिया, अदरक और हरी मिर्च को मिक्सी में पीस लें. प्रेशर कुकर में घी डालें और मूंगफली दाना व काजू को गरम घी में तलकर एक प्लेट में निकाल लें. अब घी में तेजपात, बड़ी इलायची, जीरा और दालचीनी भूनकर प्याज और लहसुन को सॉते कर लें. जब प्याज हल्का गुलाबी हो जाये तो पोदीना प्यूरी डाल दें. चलाकर घी के ऊपर आने तक मंदी आंच पर भूनें. अब चावल, काजू, मूंगफली दाना और नमक डालकर प्रेशर कुकर का ढक्कन लगा दें. तेज आंच पर एक सीटी लेकर गैस बंद कर दें. जब कुकर ठंडा हो जाये यो ढक्कन खोलकर नीबू का रस मिलाएं. ताजे दही और अचार के साथ सर्व करें.

भयंकर भूल: मोबाइल लेने की सनक का क्या हुआ अंजाम

लेखक- आशा वर्मा

पंडित रामसनेही जवानी की दहलीज लांघ कर अधेड़ावस्था के आंगन में खड़े थे. अपने गोरे रंग और ताड़ जैसे शरीर पर वह धर्मेंद्र कट केश रखना पसंद करते थे. ज्यादातर वह अपने पसंदीदा हीरो की पसंद के ही कपड़े पहनते थे लेकिन कर्मकांड कराते समय उन का हुलिया बदल जाता था और ताड़ जैसे उन के शरीर पर धोतीकुरते के साथ एक कंधे पर रामनामी रंगीन गमछा दिखाई देता तो दूसरे कंधे पर मदारी की तरह का थैला लटका होता जिस में पत्रा, जंत्री और चालीसा रखते थे. माथे पर लाल रंग का बड़ा सा तिलक लगाए रामसनेही जब घर से निकलते तो गलीमहल्ले के सारे लड़के दूर से ही ‘पाय लागे पंडितजी’ कहते थे. सफेद लिबास के रामसनेही और पैंटशर्ट के रामसनेही में बहुत फर्क था.

रामसनेही को पुरोहिताई का काम अपने पुरखों से विरासत में मिला था क्योंकि बचपन से ही उन के पिता उन को अपने साथ रखते थे. विरासत की परंपरा में रह कर उन्होंने विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और मरने के बाद के तमाम कर्मकांड कराने की दीक्षा बखूबी हासिल कर ली थी. हर कार्यक्रम पर बोले जाने वाले श्लोक उन को कंठस्थ हो गए थे.

छोटे भाई से यजमानी के बंटवारे के समय पंचायत में तिकड़म भिड़ा कर ऊंचे तथा रईस घरों की यजमानी उन्होंने हथिया ली थी. छोटे भाई को जो यजमानी मिली थी वह कम आय वालों की थी, जहां पैसे कमाने की गुंजाइश बहुत कम थी. परिवार के नाम पर रामसनेही की एक अदद बीवी और बच्ची थी.

आज की पुरोहिताई के सभी गुण रामसनेही में कूटकूट कर भरे थे. और होते भी क्यों न, आखिर 15 सालों से शंख फूंकफूंक कर पारंगत जो हो चुके थे. लड़केलड़कियों की जन्मकुंडली न मिल रही हो तो वह कोई जुगत निकाल देते थे. विवाह का मुहूर्त या तिथि इधरउधर करना उन के बाएं हाथ का खेल था. कुंडली देख कर भविष्यवाणी भी करते थे. शनी से ले कर राहूकेतू की दशा का निराकरण भी करवाते थे. झाड़फूंक, जादुई अंगूठियों से वशीकरण जैसे कार्यों में उन्हें महारत हासिल थी.

व्यावसायिक तो रामसनेही इतना थे कि कंजूस की पोटली से भी अशरफी निकाल लें. जैसा यजमान वैसा काम के सिद्धांत पर चल कर उन्होंने अपने गुणों को और भी पैना कर लिया था. वह सब तरह का नशा करते थे पर जब गांजा का नशा करते तो मन ही मन औरतों के शृंगार का आनंद भी लेते थे. कुल मिला कर उन के बारे में हम यही कह सकते हैं कि 21वीं सदी की पंडिताई के साथसाथ वह बेहतरीन हरफनमौला इनसान थे.

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इधर बीच उन्हें भी एक मोबाइल लेने की सनक सवार हुई ताकि अपने काम को वह अच्छी तरह से अंजाम दे सकें. यही नहीं व्यस्त दिनों में वह पूरे दिन का एक रिकशा किराए पर लेने की बात भी सोच रहे थे ताकि मुनाफे को अधिक से अधिक बढ़ाया जा सके.

रामसनेही को जो मोबाइल पसंद आया उस की कीमत 5 हजार रुपए थी. जोड़बटोर कर उन के पास कुल 3 हजार रुपए हो रहे थे. बाकी 2 हजार रुपए किसी से मांगना वह अपनी शान के खिलाफ समझ रहे थे. इसलिए मोबाइल के विचार को फिलहाल टाल कर किसी बड़े रईस के यहां कर्मकांड होने का इंतजार करने लगे. इस के लिए उन्हें अधिक दिन तक इंतजार नहीं करना पड़ा. जैसे ही सेठ चुन्नीलाल की गद्दी से नई कोठी में गृहप्रवेश कराने का बुलावा आया उन की बांछें खिल गईं.

चुन्नीलाल शहर के रईस आदमी थे. कोई भी कार्यक्रम रहा हो पंडितजी उन के यहां से काफी पैसे पाते रहे थे. उन के लिए यह घर मोटी यजमानी का था. चूंकि उस दिन पंडितजी का कार्यक्रम कहीं और नहीं था इसलिए समय से काफी पहले ही वह चुन्नीलाल के नए घर पहुंच गए.

गली में घुसते ही विभिन्न पकवानों की खुशबू का एहसास पंडितजी को होने लगा. दरवाजे पर पहुंचे तो चुन्नीलाल के बड़े लड़के नंदू ने पंडितजी के पैर छुए. आंगन में पहुंचे तो आकारप्रकार देख कर वह चौंधिया गए. विशालकाय आंगन में कम से कम 200 आदमी एकसाथ बैठ सकते थे. राजामहाराजाओं के महल जैसा उन का घर चमक रहा था.

घर मेहमानों से खचाखच भरा था. आंगन के एक ओर की दालान में महिलाएं बैठी थीं, तो दूसरी ओर की बड़ी दालान में पुरुष बैठे थे. सभी लोग कार्यक्रम शुरू होने का इंतजार कर रहे थे. कार्यक्रम के अनुसार यह तय हुआ कि पूजा शुरू होते ही पूडि़यां बनने का काम शुरू कर दिया जाए और पूजा खत्म होते ही मेहमानों की पंगतें बैठा दी जाएं.

इस दौरान ही पंडितजी को सेठ चुन्नीलाल नजर आ गए. वह सफेद धोतीकुरता, गले में कम से कम 10 तोले की सोने की जंजीर और हाथ की उंगलियों में हीरे की अंगूठियां पहने थे. अपने भारीभरकम शरीर के साथ चुन्नीलाल पंडितजी के पैर छूने की रस्म अदायगी के लिए झुके तो उन के हाथ पंडितजी के घुटनों तक मुश्किल से पहुंच पाए. यद्यपि चुन्नीलाल पंडित से उम्र में काफी बड़े थे पर रिवाज तो पूरा करना ही था. शायद अपने बड़प्पन की रक्षा के लिए ही उन्होंने रईसी अंदाज में पंडितजी को अपनेपन की एक मधुर धौल जमाते हुए कहा, ‘‘पंडितजी, इतनी देर कहां लगा दी.’’

पंडित रामसनेही तो समय से पहले ही पहुंचे थे इसलिए चुन्नीलाल के धौल पर थोड़ा खिसिया गए. कान के पास बजते मोबाइल के एहसास ने अपमान के इस घूंट को शरबत समझ कर पीते हुए होंठों पर मुसकान ला कर पंडितजी बोले, ‘‘सेठजी, आप चिंता क्यों कर रहे हैं. आप बैठें तो सही, देखिए कैसे जल्दी मैं काम को पूरा करता हूं.’’

आदेश के स्वर में सेठ चुन्नीलाल ने फिर मुंह खोला, ‘‘अरे, शार्टकट मत कर देना. पूरे विधिविधान से पूजा करानी है?’’

विधिविधान से पूजा कराने की बात चुन्नीलाल ने सिर्फ अपनी पत्नी को खुश करने के लिए कही थी अन्यथा मन से तो वह पूजापाठ के पक्ष में ही नहीं थे. वह तो शहर भर से आने वाले समाज के प्रतिष्ठित लोगों का स्वागत करना चाह रहे थे लेकिन घर में बड़े होने के नाते इस कार्यक्रमरूपी मटके को पत्नी के साथ बैठ कर उन्हें अपने सिर पर फोड़ना पड़ रहा था.

‘‘लालाजी, मैं आप के घर का सारा धार्मिक कार्यक्रम विधिविधान से पूरा करता हूं,’’ पंडितजी गर्व से बोले.

‘‘वह तो ठीक है पंडितजी,’’ चुन्नीलाल जल्दी में बोले, ‘‘यह तो बताइए कि कितना खर्च आएगा जिस में भेंट, पूजा का चढ़ावा, न्योछावर एवं दक्षिणा सभी कुछ शामिल हो.’’

इस सवाल पर पंडितजी थोड़ा रुके और माथे पर बनावटी सलवटें डाल कर मन ही मन कुछ गणना करते हुए बोले, ‘‘2 हजार रुपए से थोड़ा ऊपर.’’

‘‘2 हजार रुपए ज्यादा नहीं हैं. खैर, जल्दी शुरू करो. लंच का समय हो रहा है. आने वालों को समय से खाना भी खिलाना है.’’

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पंडितजी ने मंत्रोच्चारण के साथ अपना कार्यक्रम शुरू कर दिया. हवन करने के लिए एक तरफ चुन्नीलाल अपनी पत्नी कमला के साथ बैठे थे, उन से थोड़ा हट कर मुन्नीलाल पैसों की गठरी संभाले बैठा था. दूसरी ओर पंडित रामसनेही खुद विराजमान थे. उन की नजर बारबार मुन्नीलाल के हाथ की गठरी पर जा कर रुक जाती. मन में यही हूक उठती कि आज यह गठरी खाली करा लेनी है.

गृहप्रवेश के श्लोक वह निर्धारित शैली के अनुसार बोलते चले गए और यजमान को बीचबीच में आचमन करने का तो कभी चावल छिड़कने का, सिंदूर लगाने का, पान के पत्ते से पानी छिड़कने का निर्देश देते रहे. इस दौरान चढ़ावा चढ़ाने की बात भी वह नहीं भूलते.

गृहप्रवेश का धार्मिक कार्यक्रम बेरोकटोक चल रहा था लेकिन पंडितजी और चुन्नीलाल दोनों ही दिमागी उलझनों में उलझे हुए थे. चुन्नीलाल सोच रहे थे कि डेढ़ घंटे के काम के लिए पंडित ने उन से 2 हजार रुपए मांगे हैं जो इस काम को देखते हुए बहुत अधिक हैं लेकिन वह करते भी क्या, मौका ऐसा था कि जबरन उन्हें अपने मुंह पर ताला लगाना पड़ रहा था. नातेरिश्तेदार, महल्ले वालों के साथ शहर के इज्जतदार लोग भी उन की खुशी में शरीक होने आए थे. ऐसे समय पैसे के लिए पंडित से विवाद करना ठीक नहीं था. लेकिन मन ही मन फैसला ले लिया था कि आगे इस लालची पंडित को नहीं बुलाएंगे.

उधर पंडित रामसनेही मन ही मन मुसकरा रहे थे कि सेठ को तो उन्होंने यह सोच कर अधिक पैसा बताया था कि कुछ मोलतोल होगा पर यजमान ने तो कोई मोलभाव ही नहीं किया. फिर उन के दिमाग में आया कि इतने बड़े सेठ से मुझे 4 हजार रुपए बोलना चाहिए था तो बात 3 तक आ कर पट जाती. इसी विचार मंथन के क्रम में शुरू की खुशी अब पछतावे में बदल गई थी.

अचानक पंडितजी के दिमाग में बिदाई की दक्षिणा वाली बात आ गई और उन के चेहरे पर फिर से खुशी की लहर दौड़ गई. सोचने लगे, यजमान से कितनी दक्षिणा मांगी जाए. मन की बात मन में 2 हजार रुपए से शुरू हुई, लेकिन इस कार्यक्रम में हजारों रुपए पानी की तरह बहता देख कर अंतिम दक्षिणा की रकम मन ही मन 2 हजार रुपए से बढ़ कर 5 हजार रुपए हो गई.

पूजा समाप्त होने से 5 मिनट पहले ही चुन्नीलाल ने खाना शुरू करने का इशारा अपने छोटे भाई को कर दिया. मुन्नीलाल खाने की व्यवस्था करने जैसे ही ऊपरी मंजिल की ओर चले उन के साथ परिवार के दूसरे लोग भी चल दिए. चूंकि पेटपूजा का कार्यक्रम ऊपर वाली मंजिल में शुरू होने जा रहा था इसलिए आंगन से काफी लोग छंट चुके थे. पूजा खत्म होते ही पंडितजी ने अधिकार के साथ कहा, ‘‘यजमान अंतिम दक्षिणा.’’

चुन्नीलाल दरियादिली से बोले, ‘‘हां, पंडितजी, कितनी दक्षिणा चाहिए.’’

शिकारी बिल्ली की तरह चुन्नीलाल रूपी चूहे पर झपट्टा मारने को तैयार पंडितजी कुछ धीमे स्वर में बोले, ‘‘यजमान 5 हजार रुपए.’’

चुन्नीलाल समझे कि भूल से पंडितजी 500 की जगह 5 हजार रुपए कह गए होंगे इसलिए फिर से पूछा, ‘‘कितने रुपए दे दूं.’’

पंडितजी इस बार आवाज तेज कर उस में चाटुकारिता का पुट घोलते हुए बोले, ‘‘मालिक, महज 5 हजार रुपए.’’

चुन्नीलाल इतनी रकम सुन कर सन्न रह गए. भौचक हो कर बोले, ‘‘पंडित, तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. जानते हो कि तुम कितनी बड़ी रकम मांग रहे हो.’’

‘‘हुजूर, आप बड़े लोग हैं,’’ चाटुकारिता की चाशनी में अपने शब्दों को लपेट कर पंडितजी बोले, ‘‘आप के लिए 5 हजार रुपए चुटकी है. पूरे शहर में आप का नाम है. किस जमाने से हमारे बापदादों ने आप के यहां पुरोहिती शुरू की थी.’’

2 हजार रुपए के चक्कर में चुन्नीलाल तो पहले से ही पंडितजी पर खार खाए बैठे थे, इस 5 हजार रुपए की नई मांग ने आग में घी का काम किया. तमतमाए चेहरे से चुन्नीलाल दहाड़े, ‘‘पंडितजी, आप अपने आपे में रहिए. इतना तो मैं कदापि नहीं दूंगा. 5 हजार रुपए हंसीठट्ठा समझ रखा है क्या?’’

इतने में कमला पति चुन्नीलाल को इशारे से चुप कराती हुई बोलीं, ‘‘पंडितजी, यह तो संयुक्त परिवार है इसलिए आप को हम लोग धनी दिख रहे हैं. हम लोग भी घर में दालरोटी ही खाते हैं. आप तो बहुत ज्यादा मांग रहे हैं. 5 हजार रुपए आप को मैं अपने बेटे नंदू की शादी में इन्हीं से दिलवाऊंगी, अभी तो 500 रुपए आप रख लें.

पंडितजी ने कमला की कोमलता को टटोल लिया. आंतरिक शक्ति बटोर कर उन्होंने कमला की तरफ मुंह कर के कहा, ‘‘अरे, मालकिन, यह गरीब ब्राह्मण आप लोगों से नहीं मांगेगा तो इस शहर में किस के पास मांगने जाएगा. यह तो धर्मकर्म का काम है. पुरोहित को देना तो सब से बड़ा पुण्य का काम होता है. यही दिया तो आगे काम आता है.’’

इसी बीच चुन्नीलाल ने 500 रुपए पंडितजी के हाथ में पकड़ाने का प्रयास किया पर वह उन रुपयों को छूने को तैयार न थे.

लिहाजा, 500 रुपए का वह नोट जमीन पर गिर पड़ा. लक्ष्मी का इस तरह अपमान होता देख कर मुन्नीलाल भड़क उठे, ‘‘500 रुपए लेना हो तो लो नहीं तो अपने घर का रास्ता नापो.’’

मोलतोल एवं तय तोड़ की सारी गुंजाइशें खत्म हो चुकी थीं. पंडितजी हाथ आई चिडि़या को किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाह रहे थे. उधर दोनों भाई चुन्नीलाल और मुन्नीलाल वीर योद्धा की तरह अपनी बात पर डटे रहे. कमला भी अपनी दाल गलती न देख थोड़ी दूर जा कर खड़ी हो गईं. दोनों ओर आवेश बढ़ने लगा. वाक्युद्ध अपने पूरे उफान पर था. यद्यपि पंडितजी अकेले थे पर वाक्पटुता में निपुण थे, तभी तो अपनी चाटुकारिता से बात को बीच में संभाल लेते थे.

पंडित रामसनेही जब हर तरफ से यजमान को झुकाने की कोशिश में हार गए तो अपने पूर्वजों के अंतिम ब्रह्मास्त्र ‘शाप’ का सहारा लिया और फिल्मी अंदाज में भड़क कर बोले, ‘‘यजमान, यह ब्राह्मण की दक्षिणा है, मुझे नहीं दोगे तो तुम्हें कहीं और देना पड़ेगा. अगर मैं ने मन से शाप दे दिया तो सारा घर भस्म हो जाएगा.’’

यह सुन कर वहां खड़े घर के लोग अवाक् रह गए. मगर बाहर से आंगन की तरफ आता चुन्नीलाल का छोटा बेटा पल्लू का धैर्य जाता रहा. पंडितजी का आखिरी कहा शब्द उस के हृदय में भाले की तरह चुभा था इसलिए वह भी युद्ध के मैदान में कूद पड़ा.

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पंडितजी की तरफ पल्लू झपट्टा मार कर गरजते हुए बोला, ‘‘सौ जूते मारो इस ढोंगी पंडित को. इस ने अपने आप को समझ क्या रखा है?’’

इसी के साथ हाथ में चप्पल ले कर पल्लू पंडितजी पर टूट पड़ा.

बात एकदम उलटी हो गई. पंडितजी का ब्रह्मास्त्र उन्हीं पर बज्र बन कर गिर पड़ा था. सेर को सवा सेर मिल गया था. पंडितजी इस युद्ध में चारों खाने चित हो चुके थे. तभी पल्लू और पंडितजी के बीच मुन्नीलाल और चुन्नीलाल आ गए. एक ने पल्लू की कमर पकड़ी तो दूसरे ने हाथ पकड़े और मौका देख कर पंडित रामसनेही बिना झोला उठाए और चप्पलें पहने अपनी जान हथेली पर रख कर त्वरित गति से एक प्रशिक्षित धावक की तरह संकटमोचन का नाम मन में ले कर भागे तो जा कर घर की चौखट पर ही रुके. उन के कानों में मोबाइल की घंटी तो नहीं अपने ही दिल की धड़कन सुनाई दे रही थी, जो किसी धौंकनी की रफ्तार से धड़क रही थी.

पंडित रामसनेही का झोला, पुस्तकें, 500 रुपए और उन की चप्पलें शहर में लगे कर्फ्यू की तरह आंगन में अनाथ पड़ीं अपनी कहानी बयां कर रही थीं.

हम सब भी पर्यावरण को बचा सकते हैं बशर्ते प्रवचन देना बंद करके सचमुच कुछ करें

हालां कि पिछले दिनों विष्वव्यापी लाॅकडाउन के चलते काफी हद तक हवा शुद्ध हुई है. नदियों का पानी साफ हुआ है. पक्षियों का जीवन खुशहाल हुआ है और किसी हद तक ओजोन छतरी भी मजबूत हुई है. लेकिन दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने साफ-साफ कह दिया है कि इस सबसे यह न उम्मीद की जाए कि ग्लोबल वार्मिंग को इससे कुछ फर्क पड़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग को इन छोटी-छोटी बातों से फर्क तो पड़ेगा, लेकिन जब ये हमेशा के लिए हमारी जिंदगी का, हमारी चेतना के साथ हिस्सा हो जाएं. किसी महामारी के भय से घर में कैद हो जाने से साफ हुई हवा बहुत दिन तक वातावरण को जहर से मुक्त नहीं रख सकती, खासकर तब जबकि लाॅकडाउन खुलते ही दुनिया पहले से भी कहीं ज्यादा तेज रफ्तार से फिर पुराने ढर्रे पर चल पड़ी हो.

सवाल है पर्यावरण कैसे बचेगा? निश्चित रूप से पर्यावरण हम सबकी भागीदारी से बचेगा. अगर विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर हम एक नजर बिगड़ते पर्यावरण की क्रोनोलाॅजी पर डालें तो हमें आश्चर्य होगा कि पिछले लगभग 7 दशकों से हर गुजरते दिन के साथ पर्यावरण बिगड़ रहा है. मगर देखने वाली बात है कि हम यानी पूरी दुनिया कर क्या रही है? बातें, बातें और सिर्फ बातें. पर्यावरण दिवस एक मजेदार रस्म अदायगी का दिन बनकर रह गया है. यह कितनी बड़ी विडंबना है कि पूरी दुनिया बिगड़ते पर्यावरण की भयावहता को समझ रही है और इसके प्रति चेतना जगाने के लिए चीख रही है पर पता नहीं किसके लिए यह सब कुछ किया जा रहा है? क्योंकि हर कोई सिर्फ भयावहता का खाका खींच रहा है. बिगड़ते पर्यावरण की बातें कर रहा है, समझाने का प्रयास कर रहा है मगर पता यह नहीं चल रहा कि समझाया किसको जा रहा है? पर्यावरण की बिगड़ती हालत के साथ सबसे बड़ी विडंबना है कि हर कोई यह बात किसी और को बताना चाहता किसी और को इसकी भयावहता समझना चाहता है पर खुद कोई समझने को राजी नहीं.

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वक्त नाजुक मोड़ पर पहुंच चुका है. तथ्यों, तर्कों से हम बहुत एक दूसरे को डरा चुके अब समय आ गया है कि इस डर की प्रतिक्रिया में वाकई कुछ ऐसा करें कि डर कम हो. क्या कहा आप अकेले कुछ नहीं कर सकते? बहुत खूब बहाना है. यकीन मानो हर किसी का सुरक्षा कवच यही बहाना है. हर कोई यही कह रहा है कि वह अकेले क्या कर सकता है? या उसके अकेले ऐसा करने से आखिर पर्यावरण का कितना भला होगा? यह फिजूल की उलझन है और चालाक सवाल. हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए खुद को किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में बता रहा है. पर हम सब याद रखें, हम इस तमाम होशियारी से किसी और को बेवकूफ नहीं बना रहे, खुद के पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं. वक्त आ गया है कि पर्यावरण की चेतना को उसकी विराटता से समझें और उसके संरक्षण में अपने छोटे से छोटे योगदान को भगीरथ प्रयास की गरिमा के साथ नत्थी करें.

पर्यावरण संरक्षण से अभिप्राय सामान्यतः पेड़-पौधों के संरक्षण एवं हरियाली के विस्तार से लिया जाता है. परन्तु वास्तव में यह इतना ही सीमित नहीं है. यह एक विस्तृत अवधारणा है. इसका तात्पर्य पेड़-पौधों के साथ-साथ जल, पशु-पक्षी एवं सम्पूर्ण पृथ्वी की रक्षा से है. ऐसे में जरूरी नहीं है कि हर कोई पर्यावरण को बचाने के लिए या बचाने में अपना योगदान देने के लिए वैज्ञानिक ही बने. जब पर्यावरण की बात हो तो ओजोन परत की छतरी से ही शुरू करे. घर-परिवार सही अर्थों में पर्यावरण शिक्षण-प्रशिक्षण की प्रथम पाठशाला है. यहां पर्यावरण को बिगड़ते भी देखा जा सकता है और कोशिश करें तो उसे बनते हुए भी महसूस किया जा सकता है. पर्यावरण को बचाने, उसे संरक्षित करने और उसके प्रति सजग रहने के लिए जरूरी नहीं है कि हम बहुत बड़े बड़े काम ही करें या तब तक अपनी योगदान को शून्य समझें जब तक हमारे योगदान को नोबेल पुरस्कार के लायक न समझा जाए.

लब्बोलुआब यह कि पर्यावरण को हम सब भी बचा सकते है, बशर्ते हम यह मानें कि हम ऐसा कर सकते हैं और फिर इसकी शुरुआत बिल्कुल शून्य बिंदु से करें. जी, हां आपको भले लगता हो कि यह बहुत थकाऊ, उबाऊ और अनिश्चित सा उपाय है. मगर यकीन मानिए अगर हम सब बहुत छोटी छोटी सजगताओं को अपनी रोजमर्रा की जीवनशैली का हिस्सा बना लें तो धरती पर्यावरण की समस्या से मुक्त हो जायेगी. हवा, पानी, जमीन सब स्वस्थ हो जाएंगे, हवाओं से जहर गायब हो जायेगा और फिजाएं जीवनदायिनी हो जायेंगी. बस हमें बहुत मामूली छोटे छोटे ऐसे कदम उठाने हैं जो हम हंसते, खेलते बिना किसी मुश्किल के या अतिरिक्त प्रयास के उठा सकते हैं.

हां, ये वाकई उपदेश नहीं है ऐसे छोटे छोटे उपाय हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं अगर आप अब भी नहीं समझ पा रहे हैं तो हम बताते है कि ये छोटे छोटे उपाय क्या हैं और क्या हो सकते हैं?

– घर चाहे जितना छोटा हो दो चार पौधे जरूर लगाएं.

– पौधों में इस्तेमाल करने के लिए जैविक खाद अपनाएं.

– शाॅपिंग के लिए प्लास्टिक के थैले की जगह कपडे़ के थैले का इस्तेमाल करें. पोलिथिन व प्लास्टिक को पूरी दृढ़ता से न कहें.

– स्टेशनरी यानी कागज, काॅपी के दोनो साइड्स का इस्तेमाल करें. इससे कागज की खपत में कमी आयेगी मतलब सीधा है, पेड़ बचेंगे, पर्यावरण बचेगा.

– खाने को बरबाद न करें. थाली में जूंठा न छोड़ें जितना खाएं उतना ही लें, चाहे घर हो या पार्टी.

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– हममें से ज्यादातर लोग सिर्फ धुंए को ही प्रदूषण का जरिया मानते हैं. मगर रोशनी भी प्रदूषण का बड़ा जरिया है इसलिए जितना संभव हो कृत्रिम रोशनी का कम इस्तेमाल करें. दिन में सूरज की रौशनी से काम चलायें. रात की अपनी तमाम गतिविधियों को सीमित करके सोने में खर्च करें.

– जरूरी न हो तो बिजली से चलने वाले उपकरणों के स्विच बंद रखें. याद रखें अगर स्विच खुले रहते हैं तो वल्ब न जलने या कोई चीज न चलने के बाद भी बिजली इस्तेमाल होती है. ज्यादा से ज्यादा सीएफएल और एलईडी उपकरणों का उपयोग करके ऊर्जा बचाएं.

– सोलर-कुकर ऊर्जा बचाने का प्रभावी उपाय है इसका अधिकतम इस्तेमाल करें और बिजली जैसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता घटाएं. सौर-ऊर्जा का अधिकाधिक इस्तेमाल करें. यह एक अकेले आपके ही नहीं समूची मानवता के हित में है.

– अपनी लाइफस्टाल को लापरवाही के ठप्पे से बाहर निकालें. ब्रश एवं शेव करते समय बेसिन का नल बंद रखें. फोन, मोबाइल, लैपटॉप आदि का इस्तेमाल पावर सेविंग मोड पर करें. कपड़े धोने के लिए या हर मौसम में नहाने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल न करें. जहां तक हो सके पैदल चलें और पैकिंग वाली चीजों का कम से कम इस्तेमाल करें.

यकीन मानें भले ये उपाय दिखने में छोटे हों मगर एक बार आपने यदि इन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना लिया तो यकीन मानो पर्यावरण की समस्या के बारे में आप कहेंगे- कहां गए छो?

अब खुद को बदलना होगा

अपनों के बिना जीना सीखिए. कोविड-19 ने पहले घरों में  बंद कर के परिवारों को दूसरों से अलग किया अब बेसमय की मौतों ने अपनों में से 1-2 को छीन कर बिना उन के जीने पर मजबूर कर दिया है. कुछ कोविड के कारण कुछ सामाजिक बदलाव के कारण अब रिश्तेदार रिश्तेदार नहीं रह गए, दोस्त दोस्त नहीं रह गया. अगर कोई कोविड से चला गया तो अकेले ही उस की भरपाई करनी होगी, किसी का हाथ पीठ पर नहीं आएगा, किसी के 2 शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे.

जब दहशत का माहौल होता है तो लोग दुबक जाते हैं पर यही समय होता है जब दुबकने के समय किसी का हाथ साथ में हो, पर यह दिख नहीं रहा. कोविड की दहशत कि मैं किसी के पास गई तो मु झे कोविड न हो जाए तो घर में ही मर जाएंगे, क्योंकि कोई न अस्पताल ले जाएगा न वहां जगह मिलेगी.

यहां तक कि मरने के बाद भी मरी गाय की तरह कचरा गाड़ी में पटक कर 4 और लाशों के साथ जला दिया जाए तो बड़ी बात नहीं. यह डर किसी को धैर्य बंधाने से रोकता है.

समाज को पढ़ाया गया है कि तू अकेला आया है, अकेले ही जाएगा. गीता बारबार कहती है यह बंधुबांधव सब छलावा हैं. फिर अर्जुन को बहकाती हुई वही गीता दोहराती है कि तू कहां मरने वाला है, मर तो तू पहले ही चुका है. तू मरता है तो भी तेरी आत्मा नहीं मरेगी, क्योंकि आत्मा तो नश्वर है.

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यानी रोज पट्टी पढ़ाई जा रही है कि अपने में मस्त रहो, किसी पर ध्यान न दो, अपने लिए करो और अपनों के लिए जान देने की बात न करो, उन की जान ले लो. गीता का सार यही है कि जब आफत है तो खुद की सोचो.

यह गीता पढ़े या बिना पढ़े आज पूरी तरह लागू हो रहा है. एक तो लौकडाउनों की वजह से लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों के यहां गम बांटने नहीं जा सकते ऊपर से कोविड का डर और तीसरे जो धर्म का पाठ पिछले 10 सालों में जम कर पढ़ाया गया है, उस का नतीजा यह भय कि हम अकेले रह गए हैं, कुछ हो जाए तो क्या करेंगे, सब से बड़ी आपदा है, कोविड से भी बड़ी.

वास्तव में जो अकेले रह गए हैं, उन की कुछ पूछताछ नहीं हो रही है. जिन्होंने दोस्तों, संबंधियों और थोड़ी पहचान वालों के व्हाट्सऐप गु्रप बना रखे हैं, इंस्ट्राग्राम अकाउंट खोल रखे हैं, ट्विटर पर हैं, उन के यहां दुख हुआ तो मैकैनिकली सब आत्मा की शांति के हाथ जोड़े दिखा कर इतिश्रीकर लेंगे.

मरने वाले का परिवार अपने को कैसे संभाल रहा है, इस की कहीं कोई जानकारी लेने की चेष्टा नहीं, किसी भी तरह टैलीफोन पर भी 2 बोल नहीं, क्योंकि मोबाइल फोन पर ज्यादा समय तो आए मैसेजों को आगे फौरवर्ड करने में, गुड मौर्निंग बोलने में, आए मैसेजों को डिलीट करने में लग जाता है. कौन किसी को फोन कर के पूछे कि कैसे हो? कहीं उस ने कोई काम बता दिया तो क्या होगा? धर्म तो पढ़ा रहा है न कि अपने लिए जीओ.

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बिना अपनों के जीना आसान नहीं है पर करना यही पड़ेगा. औनलाइन क्लासों में गार्डनिंग, निटिंग, कुकिंग, डासिंग सीखनी होगी और बेमतलब में उसे फेसबुक, व्हाट्सऐप गु्रप में डालना होगा जहां लगभग अनजान हो चुके दोस्त, रिश्तेदार, परिचित वाहवाह कर के इतिश्री कर लेंगे. यही सुख है, यही जीवन का उद्देश्य है.

अब खुद कमाने के सूत्र सीखने होंगे. गनीमत है कि औनलाइन बहुत से तरीके हैं, बहुत से काम हैं. उद्योगों को भी ऐसे लोगों की जरूरत है, जो घर पर रह कर उन का काम कर सकें. काम छोटा हो, बड़ा हो करने को तैयार रहें, स्तर का हो या न हो, हिचकिचाहट नहीं. यह कुछ पैसे देगा, समाज से जोड़े रखेगा, आप को सारा दिन कुछ करने की प्रेरणा देगा और जो चला गया उस का अभाव भरेगा.

कोविड-19 और सत्तारूढि़यों के रूढि़वादियों के धर्म ने आज बेहद सैल्फिश बना दिया है. हमें इसी समाज में रहने की आदत डालनी होगी. समाज नहीं बदलेगा, यह गारंटी है.

तलाक के बाद करने जा रही हैं डेटिंग तो काम आ सकते हैं ये 25 टिप्स

रेखा के तलाक को 1 साल हो गया था. तलाक की इस पीड़ा से वह बड़ी मुश्किल से संभली थी. अब उस ने जीवन में आगे नए रिश्ते में बंधने का फैसला भी कर लिया. एक पार्टी में मिले अपनी जैसी ही स्थिति से गुजरे विकास से दोस्ती होने पर दोनों फर्स्ट डेट पर गए. रेखा ने उसे अपने बुरे अनुभव के बारे में बताते हुए जो पूर्व पति को कोसना शुरू कर किया उसे देख विकास सचेत हो गया. उसे रेखा का फर्स्ट डेट पर इतना नैगेटिव, गुस्सैल स्वभाव अच्छा नहीं लगा. परिणामस्वरूप बात आगे नहीं बढ़ पाई.

एक डेटिंग ऐप के जरिए मिले तलाकशुदा मीनू और राकेश जब फर्स्ट डेट पर गए तो पहली डेट पर ही उन्होंने अपनी रुचियों, दोस्तों के बारे में, एकदूसरे को जानने की इतनी कोशिश की कि दोनों ने मन ही मन तय कर लिया कि इस रिश्ते को आगे बढ़ाया जा सकता है.

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अगर तलाक के बाद किसी को डेट करने के लिए आप इमोशनली तैयार हैं, तो घर से बाहर निकलें, मन न भी हो तो भी बाहर निकलें. नए लोगों से मिलें. आर्ट, डांस, कुकिंग, कौमेडी, टैनिस, गोल्फ, पार्टी, कहीं भी जाएं, अपनी रुचि के अनुसार ही इन जगहों पर आप का नए लोगों से मिलना होगा. जब कोई अपनी रुचि, स्वभाव का मिल जाए तो उस के साथ डेट पर जाते हुए इन बातों का ध्यान अवश्य रखें:

1 छोटी-छोटी हल्की-फुल्की बातें करना शुरू करें. इस से आगे की बातचीत आसान हो जाती है. थोड़ी बहुत आम विषयों पर बात कर के आगे की बातचीत का आधार बन जाता है.

2 बौडी लैंग्वेज बहुत महत्त्वपूर्ण है. मुसकराएं पर स्वाभाविक रूप से. ऐसा कुछ न करें कि उसे लगे कि आप तो फर्स्ट डेट में ही गले पड़ रही हैं और फिर वह कभी आप से मिलना न चाहे.

3 यदि आप हंसमुख स्वभाव की हैं, तो आप के लिए कई हल्की-फुल्की बातें करना आसान होगा. अगर आप को जोक्स सुनाना पसंद है, तो सुनाएं पर अश्लील न हों, सिचुएशन में फिट बैठते हों.

4 सच लगते कौंप्लिमैंट्स दें, जैसे आप की आंखें सुंदर है, आप हंसते हैं, तो बहुत अच्छे लगते हैं.

5 आप की पर्सनैलिटी इंट्रैस्टिंग होनी चाहिए. टीवी से बाहर निकलें, शारीरिक एक्टिविटीज करें, कुछ अच्छी बुक्स पढ़ें ताकि दिमाग के सोए सैल्स जागें और आप के पास रोचक बातें हों. म्यूचुअल टौपिक पर छोटी-छोटी बातें करना शुरू करें जैसे बुक्स, मूवीज, म्यूजिक आदि पर.

6 राजनीति, धर्म और अपने पूर्व पति की बातें करने से बचें. अपने रिश्ते के बिगड़ने पर लंबी बातें बिलकुल न करें.

7 फर्स्ट डेट पर इतनी ही जानकारी दें कि आप का तलाक कब हुआ है, यह फ्रैंडली डिवोर्स था और आप अपने एक्स को आगे के जीवन के लिए शुभकामनाएं देती हूं. बस, इस से आप की डेट को पता चल जाएगा कि आप पिछले रिश्ते से आगे बढ़ चुकी हैं और आप के साथ रिश्ता रखने में उसे कोई ड्रामा देखने को नहीं मिलेगा.

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8 अपनी डेट की किसी बात पर भाषण न दें, ज्यादा सवाल न पूछें. ऐसा महसूस न कराएं कि जैसे आप उस का इंटरव्यू ले रही हों.

9 डौमिनेटिंग न हों, जितना बोल रही हों उतना सुनें भी.

10 आंखें मिला कर बात करें. आप ने दूसरी डेटिंग वैबसाइट्स पर भी कुछ किया हो तो उस की बात न करें.

11 जब तक इमरजैंसी न हो फोन यूज न करें.

12 आप का उद्देश्य एक-दूसरे को जानना होना चाहिए, अगले पति का इंटरव्यू नहीं.

13 यह धारणा न बना लें कि सब पुरुष एक जैसे ही होते हैं. यह न सोचें कि आप का तलाक हुआ है तो आप में ही कोई कमी है. अपना आत्मविश्वास कम न होने दें. तलाक जीवन का दुखद अनुभव होता है, पर प्यार के बारे में सकारात्मक ही सोचें.

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14 डेटिंग से पहले स्वयं को इस रिश्ते के लिए मानसिक रूप से तैयार कर लें. पिछले रिश्ते में हुए दुखद अनुभवों का कारण समझ लें, गुस्से से डेटिंग शुरू न करें. काउंसलिंग सैशंस ले रहा हों तो बीच में न छोड़े ताकि फिर गलत लोगों को न चुन लें. पहले अपनी पसंद की चीजों की लिस्ट बनाएं और फिर उन्हें करना शुरू करें जो आप को खुश रखेंगी.

15 तलाक के बाद डेटिंग आसान नहीं है. अपने आसपास अच्छे लोगों का ग्रुप रखें जो आप को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहे.

16 आगे बढ़ने से पहले 5-6 बार डेट पर जाएं. कैमिस्ट्री समझ आने के बाद बाहरी लुक के अलावा करुणा, विश्वसनीयता, पारदर्शिता, ईमानदारी और इंटैलिजैंस भी देख लें.

17 औनलाइन पोस्ट किए आप के फोटो अच्छे, मुस्कराते हुए हों और सिर्फ आप के ही हों. बच्चों, पालतू जानवरों, दोस्तों के नहीं.

18 मैसेज करना ठीक है पर इतना ही कि पहुंच रही हूं या लेट हो रही हूं. सारी बातचीत मैसेज में ही न हो, क्योंकि इस से इंटिमेसी खत्म हो सकती है. यदि कोई आप को बहुत मैसेज करता हो तो सुझाव दें कि इस के बजाय बात ही कर लें. किसी से बात करना और उस के साथ समय बिताना ही उसे जानने का सर्वोत्तम तरीका है.

19 नए रिश्ते में सैक्स अच्छा लग सकता है पर बहुत जल्दी इस के लिए तैयार न हों, क्योंकि औक्सीटोसिन ऐस्ट्रोजन, टेस्टोस्टेरौन और डोपामाइन अपना प्रभाव दिखा रहे होते हैं. अपनी फर्स्ट डेट पर किसी के साथ सोएं नहीं.

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20 डेटिंग एक प्रक्रिया है. सबकुछ बहुत तेज स्पीड में होने की आशा न रखें. धैर्य और सकारात्मकता से काम लें.

21 चाहे आप को औस्कर या नोबेल प्राइज ही क्यों न मिला हो, डींगे न हांकें. डींगे हांकने में असुरक्षा दिखती है.

22 इस बात से डरें नहीं कि वह आप को रिजैक्ट कर सकता है. सामान्य रहें. अपने स्वाभिमान को आहत न होने दें.

23 चूंकि एक महिला अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डेट पर समय बिताने के लिए कई बार दुविधा में रहती है तो उस की डेट पर उसे यह महसूस करवाना चाहिए कि आप उस के साथ सेफ हैं, अपने बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए जैसे कहां काम करती हैं, दोस्त कौन-कौन हैं, खाली समय में क्या करना पसंद करती हैं.

24 फर्स्ट डेट पर ऐसे सवाल पूछ सकते हैं. क्या आप ने किसी और देश की यात्रा अकेले की है? क्या आप का मन करता है कि सब छोड़ कर घूमने निकल जाएं? क्या आपको हौरर मूवीज पसंद हैं? विशेषज्ञों की राय है कि यदि कोई इन 3 सवालों के जवाब वैसे ही देता है जैसे आप देते, तो यह आप का सही मैच हो सकता है.

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25 सुस्ती, देरी डेट के प्रति असम्मान दिखाती है. इसलिए समय पर पहुंचें.

क्या चावलों को पकाने से पहले पानी में देर तक धोया जाए, तो उनके पौष्टिक गुण घट जाते हैं?

सवाल-

क्या यह बात सच है कि चावलों को पकाने से पहले यदि उन्हें पानी में देर तक धोया जाए, तो उन के पौष्टिक गुण घट जाते हैं? मेरी बुआ अकसर ही हमें इस बात के लिए टोकती रहती हैं, पर मां कहती हैं यह तो बुआ की आदत है. आप ही बताएं कि सचाई क्या है?

जवाब-

यह बात सच है कि पकाने से पहले यदि चावल पानी में अधिक धोए जाएं, तो उन के कुछ पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं. सचाई यह है कि चावल में थाइमिन और निकोटिनिक ऐसिड नामक जल में घुलनशील 2 विटामिन पाए जाते हैं. पानी में देर तक धोने से ये पौष्टिक तत्त्व 40% तक घट सकते हैं.इसी प्रकार चावलों के पकने पर उन में से मांड़ निकाल कर फेंक देना भी ठीक नहीं. इस से उन में उपस्थित कुदरती विटामिन और खनिज नष्ट हो जाते हैं. चावल के पौष्टिक गुण बनाए रखने के लिए 2 साधारण सावधानियां बरतना अच्छा है- पहला यह कि चावल कम से कम पानी में धोएं और दूसरा, उसे उबलने के लिए पतीली में रखते समय पतीली में उतना ही पानी डालें जितना कि चावलों में समा जाए.

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