Mother’s Day Special: वीकेंड पर बनाएं मिर्ची वड़ा

जिन लोगों को तीखा और मसालेदार खाना पसंद है उनके लिए मिर्ची वड़ा एक परफेक्ट च्वाइस है. आप भी इस आसान रेसिपी को एक बार जरूर ट्राई करें.

सामग्री

हरी मिर्च- 8

बेसन- 1 कप

तेल- आधा कप

हल्दी- चुटकी भर

आलू- 2 (उबला हुआ)

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लाल मिर्च पाउडर- चुटकी भर

धनिया पत्ता- थोड़ा सा (बारीक कटा हुआ)

नमक- सवादानुसार

विधि

सबसे पहले सभी मिर्चों को बीच से काटें, उसके बीज निकालकर मिर्च को अलग रख दें.

अब उबले हुए आलू को छीलकर अच्छी तरह से मैश कर लें. इसमें लाल मिर्च पाउडर, नमक और धनिया पत्ती मिलाकर अच्छी तरह से मिक्स कर लें.

अब बेसन में हल्दी और नमक डालें और पानी डालकर गाढ़ा बैटर तैयार कर लें. अब बीच से कटी हुई हरी मिर्च के अंदर आलू का मिश्रण भर दें और उसे बेसन के मिश्रण में डिप करें.

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अब एक कढ़ाई में तेल गर्म करें और बेसन में लिपटी हुई मिर्चों को तेल में सुनहरा होने तक डीप फ्राई करें.

मिर्ची वड़ा तैयार है. इसे हरी चटनी के साथ सर्व करें.

लौट आओ मौली: भाग 3- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

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लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

एक दिन काम से लौटा तो मौली बच्चों के साथ हैप्पी बर्थडे गीत गा कर क्लैपिंग करवा रही थी. किसी बच्चे का जन्मदिन था. चौकलेट ले कर बच्चे बस घर जा ही रहे थे. उन को गेट तक छोड़ कर वह अंदर आ गई.

मलय बरस पड़ा, ‘‘मालूम है न मुझे काम से लौट कर आने पर शांति चाहिए.

ये सब ड्रामे पसंद नहीं. कल से बच्चे मेरे घर में पढ़ने नहीं आएंगे. ज्यादा शौक है तो कहीं और किराए पर रूम ले कर पढ़ाओ, मेरी खुशियों से तो तुम्हें कोई मतलब नहीं, बस अपने में ही लगी रहो…’’ वह बच्चों के सामने झल्लाता हुए अपने रूम में चला गया. मौली के दिल में खंजर की तरह बात घुस गई, मोटेमोटे आंसू गाल पर ढुलकने लगे. सब्र का बांध जैसे टूट चला था.

‘‘मेरा घर… मेरी खुशी… मैं तो अपना घर समझ ब्याह कर आई थी. मुफ्त की ड्यूटी बजाने के लिए नहीं. न ही नौकर की तरह बस तुम्हारे हुक्म की तामील करने. अपनी खुशी की बात करते हो, कभी पत्नी की खुशी सोची तुम ने?

‘‘नाजों से पली बेटी, अपना ऐशोआराम सब कुछ छोड़ पराए घर को अपना लेती है, सब की सेवा में जीजान से लगी रहती है, अपनी आदतों को दूसरों की आदतों में खुशीखुशी ढालने में हर पल प्रयासरत रहती है, खानपान, पहनावा, व्यवहार, खुशी, गम, मजबूरी सब को ही अपना लेती है और एक सैकंड में तुम ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. ऐसी ही पत्नी चाहिए थी तो किसी गरीब, बेसहारा, अनपढ़ को ब्याह लाने की हिम्मत करते, जो तुम्हारी खैरात का एहसान मान कर हाथ जोड़े बैठी रहती. लेकिन नहीं. खानदानी और संस्कारी भी चाहिए और पढ़ीलिखी, रूपसी, इज्जतदार व अच्छे घर की भी…’’ गुस्से में कांपती मौली पहली बार एक सांस में इतना कुछ बोल गई, मलय भौंचक्का सा देखता रह गया.

मगर उस की मर्दानगी ललकार उठी, पलटवार से न चूका था.

‘‘तो तुम ने क्यों नहीं किसी भिखारी से शादी कर ली? इतनी काबिल थी तो किसी अमीर से शादी करती उस पर आराम से रोब झाड़ती और उस की मुफ्त में परवरिश भी कर देती. तुम्हें भी तो…

‘‘अपने टटपूंजिए दोस्त शशांक से क्यों नहीं कर ली थी शादी, जिस का सानिध्य पाने को आज तक लालायित फिरती हो. उस के पास पहले अच्छी जौब नहीं थी इसीलिए न?’’

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‘‘अब एक लफ्ज भी मत बोलना मलय, तुम्हारी घटिया सोच पहले ही जाहिर हो चुकी है. ठीक है, मैं उसी के पास चली जाती हूं. तुम्हारे जैसी छोटी सोच का आदमी नहीं है वह. बहुत खुश रहूंगी,’’ उस ने गुस्से में शशांक को कौल मिला दी थी.

काम से लौटा तो शशांक मौली से किए प्रौमिस के अनुसार सीधा वहीं आया था. मौली को लाख समझाने की कोशिश की पर उस ने एक न सुनी. मलय से अनुनयविनय की पर वह भी टस से मस न हुआ.

‘‘अच्छा रुको, आंटी का नंबर दो उन से बात करता हूं, फिर उन के पास पहुंच जाना. प्रयाग की टिकट बुक करवा देता हूं. धीरज रखो,’’ शशांक ने समझाया.

‘‘नहीं, कुछ हो जाएगा उन्हें. सह नहीं पाएंगी,’’ मौली की आंखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.

‘‘कुछ नहीं होगा. मैं बोलूंगा कुछ दिन के लिए मन बदलने जा रही हो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. दोनों का गुस्सा भी शांत हो जाएगा,’’ उस ने त्योरियां चढ़ाए बैठे मलय की ओर देखा, तो वहां से उठ कर वह दूसरे कमरे में जा लेटा.

‘‘जाओ मौली, तुम भी आराम कर लो. अच्छे से सोच लो पहले. ठंडा पानी पीयो, मुझे भी पिलाओ. मैं वोल्वो बस की टिकट का इंतजाम कर के कल मिलता हूं तुम से.’’

‘‘ठीक है, प्रौमिस,’’ शशांक ने उस के हाथ पर हाथ रख दिया था. मौली जानती

थी वह झूठा प्रौमिस कभी नहीं करता.

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मौली को अच्छी तरह समझाबुझा कर शशांक निकला ही था कि रास्ते में तेज आती ट्रक से इतनी जबरदस्त टक्कर हुई कि वह उड़ता हुआ दूर जा गिरा. सिर पर गहरी चोट लगी थी, पैर में भी फ्रैक्चर महसूस हुआ, मोबाइल सड़क पर टुकड़ों में पड़ा था.

‘‘अच्छा हुआ एक पाप करने से बच गया,’’ पीड़ा में भी राहत की मुसकान उस के खून रिसे होंठों पर आ गई, फिर पूरे होश गुम हो गए. लोगों और पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया. तब तक वह कोमा में जा चुका था.

जब दूसरे दिन भी न शशांक आया न उस का फोन तो मलय ने मजाक बनाना शुरू कर दिया, ‘‘इसी दोस्त के प्रौमिस का गुणगान कर रही थी, भाग गया पतली गली से,’’ वह व्यंग्य से हंसा था.

‘‘वह करे या कोई और तुम को क्या? कहीं इसी डर से तो तलाक नहीं दे रहे, सारा किस्सा ही खत्म हो जाता.’’

‘‘कौन डरता है, कल चलो.’’

‘‘ठीक है… मुकर मत जाना,’’ मौली रोष में आश्वस्त होना चाहती थी.

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और सच में बात कहां से कहां पहुंच गई. अदालत में अर्जी फिर तलाक के बाद मौली हिम्मत कर के मायके पहुंची तो मां सदमे में थीं, पर मौली ने उन्हें संभाल लिया. लेकिन खुद को न संभाल सकी. महीने में ही दोनों का तलाक हो गया था. पर शरीर क्षीण होता ही जा रहा था उस का. उधर मलय भी इगो में भर कर तलाक लेने के बाद अब पछता रहा था. हर वक्त उस का दिल कचोटता रहता. उसे सब याद आता कि कितने दिलोजान से मौली ने मेरे बूढ़े, बीमार मांबाप की तीमारदारी की थी. इतना तो वह भी नहीं कर सका था. सभी का बातों से दिल जीत लेती, सभी उस से पूछते क्यों चली गई मौली, पर उसे कोई जवाब देते न बनता.

सब ने आना कम कर दिया. सूना सा घर सांयसांय करता. वही मलय जो जरा से शोर पर चिल्ला उठता वही आज एक आवाज को तरसता. पछतावे में खाट पकड़ ली थी उस ने. दिल कोसता हर वक्त पर ‘अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत.’ अब तो कोई पानी पूछने वाला भी नहीं था. अगर हिमानी दी को किसी ने खबर न दी होती तो यों ही दम तोड़ देता.

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संपूर्णा: भाग 3- पत्नी को पैर की जूती समझने वाले मिथिलेश का क्या हुआ अंजाम

सिद्धी ने उसी वक्त अपने मन के सारे दरवाजे मिथिलेश के लिए बंद कर दिए. मन के रीते कोने में सुकून की छोटी सी एक सांस बची थी और वह था चिन्मय.

आज सारे बंधन उस ने इस देहरी पर तोड़े और कुछ जरूरी सामान के साथ वह बाहर आ गई. टैक्सी कर यूनिवर्सिटी गेट के पास पहुंची. चिन्मय को उस ने पहले ही फोन कर दिया था. चिन्मय का घर यहां से करीब था, आज रविवार था, वह घर पर ही था, सो जल्दी वह यूनिवर्सिटी गेट पहुंच गया. सिद्धी को अपनी कार में बैठा कर वह अपने घर ले आया.

एक मूक वार्त्तालाप ने सिद्धी के दर्द का पूरा खुलासा कर दिया था.

चिन्मय के घर पहुंच कर वह फ्रैश हुई, कपड़े बदले और फिर फोन की सिम नष्ट कर दी और चिन्मय के  मम्मीपापा से मिलने पहुंच गई. चिन्मय ने याद दिलाया जरूरी कौंटैक्ट के बारे में. सिद्धी ने निश्चित किया कि डायरी में जरूरी नंबर उस के पास नोट हैं.

चिन्मय ने मम्मी से कहा, ‘‘देखो एक पुरानी लड़की आई है, अब कुछ दिन इसे यही रहना है.’’

मम्मी स्मृति पर बल देते हुए उसे कुछ देर देखती रही, फिर कहा, ‘‘अरे सिद्धी हो क्या?’’

सिद्धी ने उन के पैर छुए, तो मम्मी ने कहा, ‘‘बेटी ब्राह्मण हो कर हमारे पैर न छुओ.’’

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‘‘ऐसा अब कभी न कहना आंटी. मैं ने जाति के अंहकार का चाबुक पोरपोर में सहा है. जिंदगी और रिश्ते दंभ से नहीं सरलता और प्रेम से चलते हैं.’’

मम्मी ने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बिटिया तो बड़े पते की बात करती है. जा इसे ऊपर अपनी बगल वाला कमरा दे दे. जब तक चाहो रहो बेटी, हमारी दुनिया आबाद हो जाएगी.’’

सालों से अनास्था, अपमान और निराशा के तूफान में जो उलझ थी, आज इस सही किनारे पर लगने की उम्मीद ने उसे बड़ा धैर्य बंधाया.

रात को सोने से पहले चिन्मय सिद्धी का बिछावन आदि सही करने के लिए उस के कमरे में गया.

वह सो रही थी. चिन्मय ने उस के माथे पर हाथ रखा तो चौंक पड़ा, ‘‘सिद्धी तुम्हें तो बुखार है.’’

‘‘कुछ देर तुम मेरे पास रहो,’’ सिद्धी के स्वर में अनुनय था.

चिन्मय ?झिझका, ‘‘क्या हुआ? नहीं बैठोगे?’’

‘‘मैं डर रहा हूं.’’

‘‘मैं तुम्हें डराउंगी नहीं,’’ सिद्धी ने निराशा में भी परिहास किया.

‘‘मैं खुद से डर रहा हूं, कहीं पुरानी मनोदशा के भंवर में न फंस जाऊं.’’

‘‘मैं ने मना कब किया?’’

‘‘नहीं, अब मैं तुम पर कोई हक नहीं जमा सकता. तुम किसी और की हो.’’

सिद्धी ने उसे अपने पास जोर से खींच कर कहा, ‘‘जाति, परंपरा और शास्त्र से भी ऊपर होता है मनुष्य का चरित्र और उस का मन. मैं ने ऊंचनीच, परंपरा, उम्र, आदि कई आधारहीन सोचों के चलते तुम जैसे नर्मदिल, हंसमुख, सरल और जिम्मेदार इंसान को खो दिया था. मगर अब आंडबरों के बोझ से मैं ने खुद को मुक्त कर लिया है. जाति के दिखावे में मैं अपने मन से और छल नहीं कर सकती. रही बात समाज की तो कागज पर एक हस्ताक्षर और सबकुछ खत्म.’’

चिन्मय ने उठना चाहा. बोला, ‘‘कल सुबह बातें करेंगे. तुम आवेश में हो. गलती की गुंजाइश बढ़ती जा रही.’’

चिन्मय के हाथ को सिद्धी ने कस लिया था. बोली, ‘‘चिन्मय, उन लोगों ने मुझे बांझ कह कर घर से निकाला, जबकि यह सच नहीं था. मिथिलेश ने मेरी बहन के साथ रिश्ता बना कर मुझे सड़क पर फेंकने की पूरी तैयारी की. अब चाहे समाज मेरे बारे में कुछ भी राय बनाए मैं यह साबित कर के रहूंगी कि मैं नहीं थी बांझ.’’

चिन्मय दूर हटते हुए बोला, ‘‘तुम बदहवास हो रही हो, मैं अपनेआप को शायद रोक न पाऊं. यह प्यार बचपन का है सिद्धी, मेरी परीक्षा मत लो. तुम नहीं जानती तुम मेरे लिए क्या हो.’’

‘‘चिन्मय, मैं नहीं जानती तुम मुझ से क्या पाओगे, मगर मैं तुम से याचना करती हूं मुझे साबित कर दो… मुझे हीनता की बेडि़यों से मुक्त करो… यह पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी.’’

प्रेम और आंकाक्षा, ने दोनों को एक सूत्र में पिरो दिया. रात की चांदनी खिड़की से

आ कर उन की इस मधुयामिनी को स्नेहिल स्पर्श देती रही.

कुछ दिन बाद उस ने तलाक की मांग कर ली. मिथिलेश ने भी हां कर दी. 8 महीने बीत चुके थे. मिथिलेश से डिवोर्स जल्दी मिल गया. कुछ जानपहचान के वकीलों ने दोनों को अलग करा ही दिया.

सिद्धी मां बनने वाली थी. कुछ समय इंतजार फिर वह चिन्मय की अर्द्धांगिनी बनेगी. सिद्धी अपनी मां का आशीर्वाद ले चुकी थी.

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रिद्धी को भी जब मिथिलेश के अहंकार के हाथों खूब जिल्लतें उठानी पड़ीं तो वह भी उस से तोबा कर हमेशा के लिए गोवा चली गई.

बेटे के जन्म के बाद सिद्धी कुछ ठान कर चिन्मय और बेटे लावण्य को ले मिथिलेश के घर पहुंची. अच्छा ही था कि सिद्धी को पहले से पता हो गया था कि किसी लड़की वाले को उस दिन बातचीत के लिए मिथिलेश के घर वालों ने बुलाया था.

बैठक में उन तीनों को अचानक देख सब चौंक गए.

मिथिलेश ने तीव्र क्रोध में कहा, ‘‘तुम यहां क्यों आई?’’

‘‘कुछ बातें बाकी रह गई थीं उन्हें कहे बिना हिसाब का गणित मिल ही नहीं रहा था, मिथिलेश,’’ शांत और दृढ़ सिद्धी ने धीरेधीरे कहा.

मिथिलेश अपना नाम उस के मुंह से सुन अवाक रह गया.

सिद्धी ने कहा, ‘‘तुम क्या हो मिथिलेश? अंहकार में सने एक धोखेबाज व्यक्ति. अफसर की कुरसी एक पल में छिन जाए तो रह जाएगा क्या? एक दुश्चरित्र बदमिजाज आदमी?’’

‘‘तुम्हें इज्जत देना इतना भी आसान नहीं मिथिलेश… और पत्नी तो सुखदुख की सहचरी होती है. कामना के बीज से प्रेम का संसार रचने वाली. उसे क्या छोटेबड़े के जाल में उलझते हो? ‘पति का नाम लेना पाप है’ इस सोच से अब निकल जाओ आगे की राह तुम्हारी सरल नहीं होगी.’’

मिथिलेश के अंहकार और आडंबर ने कभी सिद्धी को जानने का मौका ही नहीं दिया. वह हैरान था.

सिद्धी ने लड़की वालों की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आप एक बहन को इस के हवाले करने से पहले सोचिएगा जरूर. आज मेरी गोद में मेरा बच्चा है जबकि मैं इस घर में बांझ होने के कलंक से दूषित कर धोखे का शिकार हुई और अपमानित कर निकाली गई. फिर आप की बेटी की बारी है. यह मर्द होने के अहंकार से इतना त्रस्त है कि अपनी कमी को कभी स्वीकारेगा नहीं और पत्नी पर दोष मढ़ कर स्वयं को तृप्त महसूस करेगा.’’

मिथिलेश क्रोध में तमतमाया पहले की तरह सिद्धी की ओर हाथ उठाने को दौड़ा. तुरंत चिन्मय ने सख्त हाथों से उसे रोक लिया.

मिथिलेश तड़प रहा था. बोला, ‘‘खुद के चरित्र का ठिकाना नहीं…’’

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चिन्मय तुरंत उस की बात को पकड़ते हुए बोल पड़ा, ‘‘चिन्मय प्रसाद उस का ठिकाना है. वह मेरे घर की लक्ष्मी है, मेरे मन का हार है, हम ने रजिस्टर्ड मैरिज के लिए कोर्ट में अर्जी डाल दी है. कुछ दिनों में यह मेरे सिर का ताज बन जाएगी. गलती से भी अब कभी सिद्धी के बारे में गलत बातें न कहना.’’

नए बनने वाले रिश्तेदार मिथिलेश के घर से मौका पाते ही खिसक लिए.

सिद्धी पूर्ण संतुष्ट हो गई थी. मित्रता, विश्वास और प्रेम का जो समर्पण उस के पास था उस के स्पर्श से अब वह संपूर्णा थी… सिद्ध संपूर्णा.

राम युगः धार्मिक कथा के साथ वर्तमान लोकप्रिय राजनीतिक भावनाओं का घटिया प्रस्तुतिकरण

रेटिंगःडेढ़ स्टार

निर्माताःनिहारिका कोटवाल और रवीना कोहली

निर्देशकः कुणाल कोहली

कलाकारः दिगंत मनचले,अक्षय डोगरा,ऐश्वर्या ओझा,कबीर सिंह दोहन, विवान भटेना,अनूप सोनी व अन्य.

अवधिः 32 से 42 मिनट के आठ एपीसोड,कुल अवधि लगभग पांच घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर

धार्मिक ग्रंथ ‘‘रामायण’’ पर अब तक कई फिल्मों व टीवी सीरियलों का निर्माण किया जा चुका है. अस्सी के दशक में रामानांद सागर से लेकर एकता कपूर तक कई लोग ‘रामायण’ को अपने अपने दृष्टिकोण से छोटे परदे पर ला चुके हैं. गत वर्ष कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन लगने पर दूरदर्शन ने रामानंद सागर की टीवी सीरियल ‘रामायण’का पुनः प्रसारण किया,जिसने दर्शक पाने का नया रिकार्ड बनाया. इतना ही नही अप्रैल के अंतिम सप्ताह से तीन मई तक ‘स्टार भारत’ने भी रामानंद सागर की ‘रामायण’के राम के वन जाने से लेकर लंका दहन तक का हिस्सा प्रसारित किया,जिसे काफी दर्शक मिले. ऐसे ही वक्त में फिल्मकार कुणाल कोहली ‘रामायण’की कथा को ही वर्तमान नई पीढ़ी के लिए आध्ुानिकता के रंग में रंगते हुए वेब सीरीज ‘‘रामयुग’’ लेकर आए हैं,जो कि ‘एम एक्स ओरीजनल’के तहत ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘एमएक्स प्लेअर’’ पर छह मई से स्ट्ीम होना शुरू हुई है.

‘रामायण’की कथा को यदि धर्म से इतर देखे तो यह बुराई व अच्छाई के बीच की लड़ाई है. इन दिनों हमारे देश में हर शहर में युद्ध की विभीषिका अपना रंग दिखा रही है. लोग एक दूसरे को महज धर्म के नाम पर मौत के घाट उतारने को तत्पर हैं. ऐसे में ऐसी वेब सीरीज बननी चाहिए,जो कि सही केा सही व गलत को गलत कहते हुए लोगों को कुछ ‘छद्म’वेशी लोगो से परिचित करा सके. यदि कुणाल कोहली इमानदारी से ‘रामायण’की कथा का आधुनिक रूपांतरण करते, तो शायद ‘रामयुग’की शक्ल कुछ अलग होती. माना कि कुणाल कोहली ने ‘रामयुग’में राम या भरत या हनुमान को ‘भगवान’की तरह नही बल्कि मानवीय करण कर पेश करने की कोशिश की है,पर यह सब लुक तक ही सीमित रहा. अन्यथा उन्होने रामानंद सागर की सीरियल‘रामायण’ को ही अपने अंदाज में गढ़ते हुए बीच बीच में कुछ दृश्य गायब कर दिए हैं. परिणामतः वह मात खा गए. इसके साथ ही उनके सामने इसे अति सीमित बजट में बनाने की मजबूरी भी रही होगी.

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कहानीः

यॅूं तो ‘रामायण’की कहानी से अब बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी परिचित हैं. पर ‘रामयुग’में कहानी अजीबोगरीब तरीके से बयां की गयी है. यह कहानी अयोध्या के राजकुमार राम( दिगंत मनचले)व भरत(अक्षय डोगरा) की है,जो कि गुरू विश्वामित्र के साथ राजा जनक की गनरी पहुंचकर सीता के स्वयंवर में शिव धनुष तोड़कर सुंदर राजकुमारी सीता(ऐश्वर्या ओझा)संग विवाह कर लेते हैं. लेकिन राम की सौतेली माँ अपने बेटे भरत को अयोध्या का सिंहासन देने के लिए राम को 14 वर्ष का वनवास मांग लेती है. जंगल में रावण द्वारा सीता का अपहरण कर लिया जाता है. सीता की तलाश करते हुए राम की मुलाकात वायु पुत्र हनुमान से होती है. हनुमान पता लागते है कि सीता को रावण ने लंका में रखा है. अब बंदरों और भालुओं की एक सेना एकत्र कर राम व लक्ष्मण लंका पर हमला कर रावण का वध कर सीता को लेकर अयोध्या पहुंचते हैं. राम,लंका का राज्य रावण के भाई विभीषण को दे देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

किसी भी क्लासिक कृति को आधुनिक परिवेश में पेश करने के नाम पर कथ्य व चरित्र चित्रण के साथ किस तरह खिलवाड़ किया जा सकता है,इसका सटीक उदाहरण है कुणाल कोहली निर्देशित वेब सीरीज ‘‘रामयुग’’. आठ एपीसोड के लंबे एपीसोड देखने के बाद एक बात उभरकर आती है कि इसे बनाते हुए कुणाल कोहली व इसका लेखन करते समय कमलेश पांडे पूरी तरह से दिग्भ्रमित रहे हैं. कई जगह लगता है जैसे कि हम कोई नुक्कड़ नाटक देख रहे हों. ‘रामयुग’के सर्जक का दावा है कि यह महाकाव्य प्रेम, भक्ति, त्याग और बदले की कहानी बयान करता है. और उन्होने इसके माध्यम से नई पीढ़ी को आदर्श जीवन मूल्यों व मर्यादा आदि की शिक्षा देने का प्रयास किया है. मगर वेब सीरीज देखने के बाद ऐसा कुछ नजर नही आता. ‘रामयुग’के सर्जक की सोच का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पांचवें एपीसोड में राम व लक्ष्मण अपने पिता दशरथ व मां कैकेई के चरणस्पर्श नही करते ं,बल्कि नमस्कार करते हैं. मर्यादा पुरूषोत्तम राम कभी भी शांत स्वभाव मंे नही नजर आते,बल्कि ज्यादातर दृश्यों में उनका उग्र व गुस्सैल रूप ही उभरकर आता है. आधुनिकता के नाम पर फिल्मकार युवा पीढ़ी को क्या शिक्षा देना चाहते हैं,यह तो वही जाने.

‘रामयुग’ की कहानी ही निराशाजनक है. फिल्मकार कुणाल कोहली ने इसे कथा कथन की जिस शैली को अपनाया है,उसके चलते कई दृश्यों का दोहराव होने के साथ ही कहानी बार बार कई वर्ष पीछे जाती रहती है. भगवान राम, सीता और लक्ष्मण जंगल में हैं, लेकिन ‘कैसे’ और ’क्यों’ इसे समझने के लिए दर्शक को पांचवें एपीसोड तक इंतजार करना पड़ता है. एक दृश्य में, जब दर्शक पहली बार रावण से मिलते हैं,तो रावण के दस सिर घूमते हुए और उससे बात करते हुए देखते हैं. दृश्य के प्रभाव और इस महत्वपूर्ण चरित्र के व्यक्तित्व को जोड़ने के बजाय, रावण का परिचय हास्यपूर्ण लगता है. इतना ही नहीं सागर@समुद्र की मर्यादा का जिक्र तक नही है.

आधुनिकता के नाम पर कहानी को भद्दे तरीके से तोड़ा मरोड़ा गया है. रावण को ‘आतंकी’ बताया गया है. एक संवाद है-‘रावण आतंक का निर्माण व निर्यात करता है. ’जबकि रावण का संवाद है-‘झूठी कहानियां गढ़कर मुझे आतंकी बता दिया गया. ’तो वहीं आधुनिकता के नाम पर राम व सीता के बीच भी प्रेमप्रसंग दिखाए गए है तो वहीं जब सुर्पणखा,राम व लक्ष्मण की कुटिया में आती है,तो उस वक्त केे दृश्य भी सेक्स में डूबे हुए नजर आते हैं. सुर्पणखा राम से कहती है-‘‘मैं इससे अधिक सुंदर हॅू. . . कल्पना करो मेरे आलिंगन का. . . . मेरी अंगड़ाई का स्वाद एक बार चख लो. . ’’
‘रामयुग’के हर एपीसोड को बेवजह लंबा खींचा गया है और कई जगह उपदेशात्मक भाषणबाजी है. फिल्मकार ने धार्मिक कथा में वत्रमान समय की लोकप्रिय राजनीतिक भावनाओं को मिश्रित करने का असफल प्रयास किया है.

संवादः

संवाद लेखक कमलेश पांडे आधुनिकता में इस कदर डूबे हुए हैं कि उन्हे इस बात का भी भान न रहा कि वह कौन सा संवाद किस चरित्र के लिए लिख रहे हैं. ज्यादातर संवाद चरित्रांे के स्वभाव के विपरीत हैं. एक जगह लक्ष्मण का संवाद है-‘‘हम दो लोग हैं और राक्षसों की विशाल सेना का मुकाबला कैसे करेंगे. ’’

तकनीकः

इस तरह की वेब सीरीज के लिए वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स बहुत मायने रखते हंै,मगर ‘रामयुग’का वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट कमजोर ही नहीं बल्कि अति घटिया है. कलाकारों के कास्ट्यूम व मेकअप पर ध्यान ही नही दिया गया. राम के किरदार निभाने वाले अभिनेता दिगंत मनचले जंगल में केवल धोती पहने हुए नजर आते हैं. उनके बालांे की शैली आधुनिक है ,पर दाढ़ी बढ़ी हुई है. सीता के मिलते ही दाढ़ी गायब हो जाती है. ऐसा ही हर किरदार के साथ है. हनुमान तो कहीं से भी वानर नजर नहीं आते. विभीषण को भी कई दृश्यों में धनुष बाण से लदा दिखाया गया है.
एक्शन दृश्य घटिया हैं. लगता है,जैसे किसी अनाड़ी एक्शन निर्देशक ने इन्हे गढ़ा है. कुछ दृश्यों में राक्षसों की ही तरह राम भी हवा में उंचाई तक उड़ते हुए युद्ध करते नजर आते हैं. राम व रावण के बीच धनुष बाण या तीर से नहीं तलवार व भाले से युद्ध होता है. कुणाल कोहली की आधुनिक सोच के अनुसार राम,सीता को धनुष बाण चलाना यानी कि तीरंदाजी सिखाते है और एक दिन सीता,राम से भी बड़ी तीरंदाज बन जाती हैं.

फिल्मकार का दावा है कि इसे मॉरीशस में फिल्माया गया है,मगर मेघनाद के साथ युद्ध हो अथवा रावण के साथ,ऐसा लगता है जैसे कि गोवा के किसी छोटे बीच पर फिल्माया गया हो. मगर ज्यादातर लोकेशन आंखो को सकून देते है. सोने@स्वर्ण की लंका भी काली नजर आती है.

अभिनयः

अफसोस सभी कलाकारों का अभिनय प्रभावहीन व निराशाजनक है. कैकई के किरदार में टिस्का चोपड़ा चोपड़ा जरुर अपने किरदार को मानवता के साथ जोड़कर वास्तविक बनाती है.

बौलीवुड के दिग्गज स्टार्स संग काम कर चुकीं एक्ट्रेस Sripradha का निधन, कोरोना से थीं संक्रमित

कोरोना काल में कई दिग्गज कलाकारों ने दुनिया को अलविदा कहा है. वहीं कोरोना की दूसरी लहर के आने से आम आदमी के साथ-साथ सेलेब्स भी इस कहर का शिकार हो रहे हैं. इसी बीच खबर है कि हिंदी, साउथ और भोजपुरी फिल्मों में काम कर चुकीं दिग्गज एक्ट्रेस श्रीप्रदा (Sripradha) ने भी कोरोना के चलते दुनिया को अलविदा कह दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

स्टार्स ने जताया दुख

दरअसल, सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स असोसिएशन (CINTAA) के जनरल सेक्रेटरी अमित बहल ने एक्ट्रेस श्रीप्रदा की मौत की पुष्टि करते हुए कहा है कि कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने उनकी जान ले ली हैं. वहीं भोजपुरी फिल्म ‘हम तो हो गई न तोहार’ में भोजपुरी सुपरस्टार रवि किशन के साथ नजर आ चुकी एक्ट्रेस के निधन पर रवि किशन ने दुख जताते हुए कहा है कि वे एक अच्छी एक्ट्रेस थीं. उनका व्यवहार बहुत अच्छा था. ईश्वर उनके परिवार को दुख सहन करने की हिम्मत दें.

 

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बता दें, साल 1978 में आईं फिल्म ‘पुराना पुरुष’ से श्रीप्रदा ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में डेब्यू किया था, जिसके बाद उन्होंने विनोद खन्ना, गुलशन ग्रोवर, गोविंद समेत कई बड़े स्टार्स के साथ काम किया. वहीं बेवफा सनम, शोले और तूफान, आजमाइश जैसी फिल्मों के जरिए श्रीप्रदा ने काफी सुर्खियां बटोरी. हालांकि करीब 70 फिल्मों में काम कर चुकीं कईं हौरर फिल्मों में भी काम कर चुकी हैं. वहीं साउथ से लेकर बौलीवुड में भी उनकी एक्टिंग को हर कोई पसंद करता है.

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पति ने पकड़े सुगंधा मिश्रा के पैर तो सास ने किया ये काम, देखें वीडियो

कोरोनावायरस के कहर के बीच कई सितारे शादी के बंधन में बधे हैं, जिनमें कौमेडियन और सिंगर सुगंधा मिश्रा का नाम भी शामिल है. हाल ही में सुगंधा मिश्रा के पति संकेत भोसले ने एक फनी वीडियो शेयर करते हुए ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ दिखाए थे, जिस पर फैंस ने काफी रिएक्शन दिया था. इसी बीच संकेत ने एक और वीडियो शेयर किया है, जिसे देखकर आपकी हंसी छूट जाएगी. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो…

बीवी की गुलामी पर शेयर किया वीडियो

सोशलमीडिया पर ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ (Shadi Ke Side Effects) दिखाने वाले संकेत भोसले (Sanket Bhosale) ने दो और वीडियो शेयर की है, जिसमें  से एक में वह बीवी सुगंधा मिश्रा के पैरों में नजर आ रहे हैं और बता रहे हैं कि शादी के बाद कुछ नहीं बदलता है. दरअसल, वीडियो में संकेत भोसले कहते नजर आ रहे हैं कि, ‘यार सब लोग ऐसा क्यूं सोचते हैं कि शादी के बाद पति गुलाम बन जाता है बीवी का. ऐसा कुछ नहीं है. प्यार नाम की भी कोई चीज होती है कि नहीं?’ हालांकि इसमें उनका रिएक्शन काफी मजेदार नजर आ रहा है.

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मां ने भी शादी के बाद छोड़ साथ

दूसरी वीडियो की बात करें तो इसमें दिखाया गया है कि शादी के बाद संकेत की मां ने भी उनका साथ छोड़ दिया है. दरअसल, वीडियो में सुगंधा मिश्रा और संकेत भोसले साथ में टेबल पर खाना खा रहे होते हैं तो तभी सुगंधा की सासू मां वहां आती हैं और बहूरानी से किचन में रखने के लिए उनकी प्लेट मांगती हैं. हालांकि सुगंधा मना करते हुए कहती हैं कि वह खुद रख देंगी. लेकिन तभी संकेत भी मां से कहते हैं कि मम्मी, मम्मी मेरी प्लेट रख दो. इस पर मां, संकेत भोसले से कहती हैं कि तू अपनी खुद रख दे, जा.’ इस फनी वीडियो को देखकर फैंस हंसी से लोटपोट हो रहे हैं.

बता दें, इससे पहले भी संकेत ने एक फनी वीडियो शेयर किया था, जिसमें सुगंधा उन्हें चाय बनाने के लिए कहती नजर आ रही थीं. फैंस को सुगंधा मिश्रा का ये वीडियो काफी पसंद आया था.

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90’s के मेकअप ट्रेंड को फौलो करती हैं सुहाना खान, लिप लाइनर लगाकर जीतती हैं फैंस का दिल

आपके पास लिप ग्लॉस और लिक्विड लिपस्टिक का स्टॉक हो सकता है, लेकिन अगर आप सही शुरुआत नहीं करते, तो दोपहर तक आपके होठों का लुक खराब हो सकता है. ऐसे में 90’s के ट्रेंड में मशहूर मेकअप ट्रिक डार्क शेड लिप लाइनर की आपको जरूरत होगी. तो लिप लाइनर लगाने के लिए इन बातों का रखे ख्याल.

90’s के दशक के सुपर मॉडल, पॉप स्टार को किसी डार्क शेड के लिप लाइनर के साथ अपने होंठों की आउटलाइन करते हुए काफी बार देखा गया है. यह ट्रेंड इतना लोकप्रिय था कि हम अपनी मम्मी को भी इसकी नकल करते हुए देखते थे. खैर इस बात मैं कोई शक नही की 90’s के दशक का हर फैशन ग्लॉसी और अनोखा था जिसकी अब धीरे धीरे  वापसी हो रही है और अब सभी जगह 90’s के दशक का जलवा देखने को मिल रहा है. इसी में ही लिप मेकअप का भी ट्रेंड शामिल है और जब मेकअप की बात आती है, तो शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान किसी प्रोफेशनल से कम नही है.उसकी इंस्टाग्राम पेज , मेकअप इंस्पिरेशन से भरा हुआ है. सुहाना खान आज कल ’90 के डार्क शेड लिप लाइनर के ट्रेंड को बढ़ावा दे रही है.

 

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लेकिन अगर आप लिप लाइनर को इस्तेमाल करती हैं या करना चाहती है तो आपका यह जानना जरूरी है कि इसे किस तरह से इस्तेमाल करना है. तो चलिए आज हम आपको लिप लाइनर लगाने के सही तरीके के बारे में बता रहे हैं-

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लिप्स को करें रेडी :

 

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अगर आप अपने लिप्स को  खूबसूरत बनाना चाहती हैं तो लिप लाइनर लगाने से पहले लिप्स को रेडी करें.आपके लिप्स का स्मूथ होना बहुत जरूरी है.  कुछ महिलाएं सोचती हैं कि लिप मेकअप का पहला स्टेप लिप लाइनर लगाना है, जबकि ऐसा नहीं है. लिप लाइनर लगाने से पहले आप अपने टूथब्रश पर चीनी और शहद डालें और इसे धीरे से मलें. यह आपके लिप्स के डेड स्किन सेल्स को हटाकर उसे खूबसूरत बनाएगा. इसके बाद लिप्स पर बाम लगाएं. कुछ देर बाद ही आप लिप लाइनर का यूज करें.

एक जैसे लिप लाइनर और लिप कलर का करें इस्तेमाल :

लिप लाइनर के इस्तेमाल से पहले यह जरूरी है कि आप अपने लिए सही लिप लाइनर का चयन करें. कुछ महिलाएं अपने लिपस्टिक के कलर से बिलकुल अलग  कलर के लिप लाइनर को यूज करती हैं, जिसके कारण उनके लिप्स की आउटलाइनिंग अलग से नजर आती हैं. जो देखने में बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिपस्टिक के कलर से मैचिंग लिप लाइनर को ही अपने मेकअप का हिस्सा बनाएं. लिप लाइनर गहरा होना चाहिए लेकिन लिप कलर से भी मैच होना चाहिए. अगर आप लाल रंग की लिपस्टिक लगा रही हैं तो ब्रिक कलर्ड लिप लाइनर का इस्तेमाल करें. बेज लिप्स के साथ ब्राउन लिप लाइनर का प्रयोग करें.

पहले लगाए लिप लाइनर फिर लिप्स को करें फील :

अगर आप चाहती हैं कि आपकी लिपस्टिक फैले न तो अपने होंठो पर सबसे पहले लिप लाइनर ही लगाएं. कभी भी लिप लाइनर को बार बार ना लगाएं, इससे यह मोटा हो जाएगा और अच्छा नहीं लगेगा. लिप लाइनर को वहीं से लगाएं जहां से आपके होठों की नेचुरल लिप लाइन बनी हुई है और फिर अपने लिप्स को लिपस्टिक से फील करें.

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इन टिप्स को पढ़ने के बाद आप भी अपने होंठों की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा पाएंगी. अगर आप अपने लिप्स को बेहद ब्यूटीफुल दिखाना चाहती हैं तो आपको लिप लाइनर लगाते समय इन बातों का खास ध्यान रखना होगा. इन टिप्स को फॉलो करें और अपने लिप्स को बनाए ग्लॉसी.

Mother’s Day Special: बच्चों के लिए बनाएं कैरेमल ब्रेड नगेट्स

इस समय कोरोना के कारण बच्चे बड़े सभी घरों में कैद हैं. बच्चे चाहे छोटे हों या बड़े उन्हें हर समय खाने के लिए कुछ न कुछ चाहिए होता है. ब्रेड तो बच्चों को यूं भी बहुत पसंद होती है और लगभग हर घर में उपलब्ध भी रहती है. आजकल तो ब्राउन, होल व्हीट, मल्टीग्रेन, गार्लिक, स्वीट, ओट्स जैसे कई फ्लेवर्स में ब्रेड आने लगी है. व्हाइट ब्रेड की अपेक्षा मल्टीग्रेन और ब्राउन ब्रेड खाना अधिक लाभप्रद होता है क्योंकि इसमें फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है. अधिक मात्रा में या नियमित रूप से ब्रेड का सेवन करना सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है इसलिए ब्रेड का सीमित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए. कई बार प्रयोग करने के बाद ब्रेड के कुछ स्लाइस बच जाते हैं आज हम आपको ऐसी ही एक आसान रेसिपी बता रहे हैं जिनमें आप ताजी के साथ साथ रखी और बचे ब्रेड स्लाइस का उपयोग भी कर सकतीं हैं. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाते हैं-

कितने लोंगों के लिए         6

बनने में लगने वाला समय    25 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

ब्रेड स्लाइस             4

शकर                     2 टेबलस्पून

साल्टेड बटर            1 टेबलस्पून

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दूध                         1 टीस्पून

वनीला एसेंस            1 टीस्पून

कटे बादाम पिस्ता      1 टीस्पून

पानी                         1 टीस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस को आधे इंच के चौकोर टुकड़ों में काट लें. इन्हें एक नॉनस्टिक पैन में बिना चिकनाई के करारा होने तक रोस्ट करें. इन्हें एक प्लेट में निकालकर ठंडा होने रख दें. अब पैन में शकर और पानी डालकर एकदम मंदी आंच कर दें. जब शकर पूरी तरह घुल जाए और रंग हल्का सा ब्राउन होने लगे तो दूध और बटर डालकर अच्छी तरह चलाएं. जैसे ही शकर एकदम डार्क ब्राउन रंग में बदलने लगे तो वनीला एसेंस डालकर चलाएं और रोस्टेड ब्रेड के टुकड़े डालकर चलाएं और गैस बंद कर दें. इस दौरान आंच धीमी ही रखें.  तैयार नगेट्स को एक प्लेट में निकालकर कटे पिस्ता बादाम डालें. इन्हें एक चम्मच की सहायता से अलग अलग कर दें वरना ये आपस में चिपक जाएंगे. जब बच्चे कुछ मीठा खाने को मांगे तो आप उन्हें दें. इन्हें आप एयरटाइट जार में भरकर फ्रिज में एक हफ्ते तक स्टोर कर सकतीं हैं.

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अपनी सेवा और मेहनत से समृद्ध गांव बना चुकी हैं एक्ट्रेस राजश्री देशपांडे

अ भिनेत्री राजश्री देशपांडे अभिनय के क्षेत्र में डंका बजाने के साथ ही महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त गांव पांधरी में जलसंरक्षण की व्यवस्था कर पूरा वर्ष पानी की सहूलियत मुहैया कराते हुए इस गांव में 1 नहर, 200 शौचालय और स्कूल आदि का निर्माण करवा कर इसे एक समृद्ध गांव बना दिया. तो अब वह दूसरे गांव में काम कर रही है.

हाल ही में उन्हें ‘जलसंरक्षण’ के लिए पुरस्कृत भी किया गया. 2018 में उन्होंने ‘नभांगण फाउंडेशन’ की स्थापना की. कोविड-19 व लौक डाउन के वक्त 30 गांवों में राजश्री देशपांडे ने काम किया.

प्रस्तुत हैं, उन से हुए सवालजवाब:

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?

मेरी मां का नाम सुनंदा और पिताजी का बलवंत है. मुझ से बड़ी मेरी 2 बहनें हैं. मेरे मातापिता औरंगाबाद में एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं. मेरे पिताजी भी किसानी करते थे, पर हमारी जमीन चली जाने के बाद मेरे पिता ने औरंगाबाद शहर में आ कर काम करना शुरू किया.

हमारे मातापिता ने कई तरह के हालात से गुजरते हुए हम 3 बहनों का पालनपोषण किया है. हमें बड़ा करना, उचित शिक्षा दिलाना, इस के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की. मैं उन के संघर्ष को कभी नहीं भुला सकती. मेरी सब से बड़ी बहन डाक्टर और वकील हैं. इन दिनों वे एक इंश्योरैंश कंपनी में कार्यरत हैं. मेरी बीच वाली बहन ने इंजीनियरिंग की है.

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मैं ने पुणे के सिंबौसिस लौ स्कूल से वकालत की डिगरी हासिल करने के बाद ‘सिंबौसिस इंटरनैशनल यूनिवर्सिटी से एडवरटाइजिंग में परा स्नातक की डिगरी हासिल की. कुछ समय बाद मैं ने मुंबई के ‘व्हिशलिंग वूड्स इंटरनैशनल’ से फिल्म मेकिंग में डिप्लोमा हासिल किया. पूरे 16 सालों से बाहर ही घूम रही हूं. मेरे पति नवदीप पुराणिक नौकरी कर रहे हैं और हमारा वैवाहिक जीवन काफी सुखद चल रहा है.

पिता के संघर्ष की याद के चलते गांवों की उन्नति के लिए काम करने की दिशा में सोचा?

ऐसा कह सकते हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद अच्छी जिंदगी जीने की चाहत में हम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि अपने आसपास की जिंदगियों की तरफ ध्यान ही नहीं जाता. जब मैं ने ऐडवरटाइजिंग कंपनी की नौकरी छोड़ कर अभिनय की तरफ रुख किया, तब मैं पुन: जिंदगी, किताबों, यात्रा से जुड़ सकी. सोचनेविचारने की शक्ति आने के बाद हम ने पाया कि देश को आजाद हुए 75 वर्ष के बाद आज भी किसानों की हालत ठीक नहीं है.

सरकार की अपनी नीतियां बनी हुई हैं, मगर नीचे जमीन तक वे पहुंच नहीं पा रही हैं. अगर ये नीतियां जमीनी सतह तक लागू नहीं होंगी, तो इन का क्या फायदा? मुझे लगता है कि यदि मेरे 2 हाथ गांव की तरक्की में काम आ रहे हैं, तो मेरे साथ 10 अन्य हाथ भी जुड़ें.

आप ने 5 साल पहले ‘पांधरी’ गांव को ही क्यों गोद लिया था?

देखिए, 2015 में जब नेपाल में भूकंप आया, तब मैं ने सब से पहले एक अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ के साथ नेपाल जा कर भूकंपग्रस्त क्षेत्र में काम किया था. मुंबई में बच्चों के लिए काम कर रही थी. महाराष्ट्र के बाढ़ग्रस्त इलाकों में भी काम कर चुकी थी. पर मैं ने ये सब काम वालंटियर के तौर पर किए थे. काम खत्म होने के बाद मैं इन से संपर्क नहीं रख पाई थी. तो मैं ने सोचा कि मैं जिस इलाके को जानती हूं, वहां के लोगों के लिए कुछ किया जाए.

मैं मराठवाड़ा से हूं. औरंगाबाद में मेरी शिक्षादीक्षा हुई है. किसानों के साथ गांव में ही पलीबढ़ी हूं. गांवों को अच्छी तरह से जानती हूं. इसलिए मैं ने सोचा कि महाराष्ट्र के सर्वाधिक सूखाग्रस्त मराठवाड़ा इलाके के गांवों में काम किया जाए.

फिर स्थिति का आंकलन शुरू किया. मैं करीब 3 माह तक 1 से दूसरे गांव भटकती रही. उन्हीं में से एक छोटा गांव पांधरी था, जहां की बुजुर्ग महिला ने मुझ से कहा कि आप सिर्फ बोलने आई हैं, या आप काम भी करेंगी. यों तो उस ने गलत नहीं कहा था क्योंकि आमतौर पर लोग गांव जा कर हालात देख कर उस के बारे में सोशल मीडिया पर लिख कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं.

मैं भी अपना सारा गुस्सा सोशल मीडिया पर निकाल कर उसे भूल जाती पर मैं ने सोचा कि मुझे तो इन के लिए काम करना है. फिर उस महिला की बात ने मेरे दिल को कुरेदा. दूसरी बात उस वक्त मैं बहुत बड़ा काम नहीं कर सकती थी. क्योंकि उतना धन व साधन मेरे पास नहीं थे. इसलिए मैं ने पांधरी गांव से शुरुआत की.

पांधरी गांव में जब आप ने काम करना शुरू किया था, तब गांव वालों से किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थीं?

देखिए, मैं यह मान कर चालती हूं कि जब आप सही काम करने के लिए कदम उठाएंगे, तो विरोध सहन करना पड़ सकता है. तो शुरुआत में गांव के किसानों की समझ में नहीं आ रहा था. वे कह रहे थे कि आप हम से काम क्यों करवा रही हो. यदि आप एनजीओ से हैं, तो पैसा दे कर जाइए. मैं ने कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं. हम तो आप के साथ मिलजुल कर काम करने आए हैं.

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पहले तो मेरे साथ सिर्फ 5 लोग ही खड़े हुए थे, फिर धीरेधीरे लोग मेरे साथ जुड़ते गए. मैं ने उन्हें प्यार से समझया कि ये सब उन के अपने बच्चों के लिए ही है.

आगे क्या योजना है?

हम योजना नहीं बनाते. हमें सिर्फ गांवों के विकास के लिए काम करना है. मैं व्यवसायी नहीं हूं. यदि किसी गांव का स्कूल ठीकठाक है, तो उसे तोड़ कर ठीक नहीं करना है. मेरी कोशिश यह है कि गांव में जिस चीज की जरूरत हो, उस पर काम करना.

लौट आओ मौली: भाग 2- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

पहला भाग पढ़ने के लिए- लौट आओ मौली: भाग-1

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

‘‘क्यों तुम्हारे मियां को ताजा हवा अखरती है?’’ शशांक के प्रश्न पर एक उदास मलिन सी रेखा मौली के चेहरे पर उभर आई, जिसे उस ने बनावटी मुसकान से तुरंत छिपा लिया.

‘‘अब यहीं खड़ेखड़े सब जान लोगे या कहीं बैठोगे भी?’’

‘‘अरे तो तुम बाइक पर बैठो तभी तो… या वहां तक पैदल घसीटता हुआ अपनी ब्रैंड न्यू बाइक की तौहीन करूं… हा हा…’’

‘‘कुछ ही देर में शशांक के जोक्स से हंसतेहंसते मौली के पेट में बल पड़ गए. बहुत दिनों बाद वह खुल कर हंसी थी.’’

‘‘अब बस शशांक…’’ उस ने पेट पकड़ते हुए कहा, ‘‘सो रैग्युलेटेड, हाऊ

बोरिंग… न साथ में घूमना, न मूवी, न बाहर खाना, न किसी पार्टीफंक्शन में जाना. हद है यार, शादी करने की जरूरत ही क्या थी… अच्छा उन के लिए समोसे ले चलते हैं, कैसे नहीं खाएंगे देखता हूं. तुम झट अदरकइलायची वाली चाय बनाना, कौफी नहीं…’’ वह बिना संकोच किए मौली को घर छोड़ने को क्या मलय के साथ चाय भी पीने को तैयार था. मौली कैसे मना करे उसे, पता नहीं मलय क्या सोचे इसी उलझन में थी.

‘‘सोच क्या रही हो, बैठो मेरे इस घोड़े पर… अब देर नहीं हो रही?’’ अपनी बाइक की ओर इशारा कर के वह समोसे का थैला रख मुसकराते हुए फटाफट बाइक पर सवार हो गया.

घबरातेसकुचाते मौली को मलय से शशांक को मिलाना ही पड़ा. शशांक के बहुत जिद करने पर मलय ने समोसे का एक टुकड़ा तोड़ लिया था. चाय का एक सिप ले कर एक ओर रख दिया तो मौली झट उस के लिए कौफी बना लाई. शशांक ने कितनी ही मजेदार घटनाएं, जोक्स सुनाए पर मलय के गंभीर चेहरे पर कोई असर न हुआ. उस के लिए सब बचकानी बातें थीं. उस के अनुसार तो एक उम्र के बाद आदमी को धीरगंभीर हो जाना चाहिए. बड़ों को बड़ों जैसे ही बर्ताव करना चाहिए… कितनी बार मौली को उस से झाड़ पड़ चुकी थी इस बात के लिए.

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मलय उकता कर उठने को हुआ तो शशांक भी उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं चलता हूं. काफी बोर किया आप को, मगर जल्दी ही फिर आऊंगा, तैयार रहिएगा.’’

गेट तक आ कर मौली को धीरे से बोला, ‘‘जल्दी हार मानने वाला नहीं. इन्हें इंसान बना कर ही रहूंगा. कैसे आदमी से ब्याह कर लिया तुम ने. मिलता हूं कल शाम को… बाय.’’

इस से पहले मौली कुछ कहती वह किक मार फटाफट निकल गया.

दूसरे दिन 5 ही बजे शशांक मौली के घर उपस्थित था, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, खड़ूसजी कहां हैं? उन्हें भी कहो गैट रैडी फास्ट,’’ मौली को हैरानी से अपनी ओर देखते हुए देख उस ने हंसते हुए हवा में आसमानी रंग के मूवी टिकट लहराए, जैसे कोई जादू दिखा रहा हो.़

‘‘रोहित शेट्टी की नई फिल्म की 3 टिकटें हैं.’’

‘‘तुम्हें बताया था न, नहीं जाते हैं मूवीशूवी और ऐसी कौमेडी टाइप तो बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘अरे बुलाओ तो उन्हें, ब्लैक कौफी वहीं पिलवा दूंगा और रात का डिनर भी

मेरी तरफ से. उन के जैसा सादा शुद्ध भोजन. ऐसे मत देखो, मैं यहां नया हूं यार. मेरा यहां कोई रिश्तेदार भी नहीं. वह तो अच्छा हुआ जो तुम मिल गईं…. चलोचलो जल्दी करो. कैब बुक कर दी है 20 मिनट में पहुंच जाएगी,’’ शशांक बेचैन हो रहा था.

मलय मना ही करता रह गया पर शशांक की जिद के आगे उस की एक न चली. जबरदस्ती मूवी देखनी पड़ी थी उसे. लौट कर हत्थे से उखड़ गया, खूब बरसा था मौली पर.

‘‘अपने दोस्त को समझा लो वरना मैं ही कुछ उलटा बोल दूंगा तो रोती फिरोगी कि मेरे दोस्त को ऐसावैसा बोल दिया. तुम को जाना है तो जाओ, उस के बेवकूफी भरे जोक्स तुम ही ऐंजौय करो. बहुत टाइम है न तुम्हारे पास फालतू…’’

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मांपापा के जाने का दुख मौली को भी था पर मलय जितना नहीं होगा यह भी सही है पर जिंदगी तो चलानी ही है. कब तक यों ही मुंह लटकाए रहा जा सकता है. मौली याद करती जब अपने पापा को खोया था तो उस की उम्र 20 साल की रही होगी… कुछ दिनों तक लगता था कि सब खत्म हो गया पर जल्द ही खुद को संभाल लिया. फिर पूरे घर का माहौल खुशनुमा बना दिया था. अपनी पढ़ाई भी पूरी की. टीचिंग शुरू कर मां की घर चलाने में मदद भी करने लगी थी.

यहां मलय को खुश करने की सारी कोशिश बेकार थी. 2 साल हो गए थे मगर हर समय मायूसी छाई रहती. टीवी में भी उस की कोई दिलचस्पी न थी. मौली के पसंद के शोज को वह बकवास, बच्चों वाले, मैंटल के खिताब भी दे डालता. हार कर मौली ने पास ही में स्कूल जौइन कर लिया कि कुछ तो दिल लगेगा, घर पर भी ट्यूशंस लेने लगी. अब कुछ अच्छा लगने लगा था उसे. समय कैसे गुजर जाता पता ही नहीं चलता. काम के साथसाथ सब से हंसनाबोलना भी हो जाता. पर शनिवार को मलय घर होता, बच्चों का शोरगुल उसे कतई रास न आता. भुनभुन करता ही रहता. मौली कोशिश करती कि शनिवार को बच्चों को न बुलाए पर परीक्षा हो तो बुलाना ही पड़ता.

उस के व्यस्त रहने और कुछ मलय की बेरुखी समझने के कारण शशांक का घर आना कम हो गया था. पर शनिवार को वे अवश्य मिल लेते. मौली पेट भर हंस लेती जैसे हफ्ते भर का कोटा पूरा कर रही हो. इधर स्कूल का भी काम बढ़ने लगा था. बच्चों की परीक्षाएं आ गई थीं, मौली को अधिक समय देना पड़ता.

मौली ने खाना बनाने के लिए कामवाली रख ली. लाख कोशिशों के बाद भी मौली सास के बने खाने जैसा स्वाद नहीं ला सकी थी… मलय को चिड़चिड़ तो करनी ही थी, हो सकता है कामवाली के हाथ का खाना पसंद आ जाए.

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मौली हरदम खुद को संवार के रखती कि इसी बहाने कभी तो प्यार के 2 मीठे बोल बोले, कुछ प्यारी सी टिप्पणी कर दे, पर वह कभी कुछ न बोलता. बात वह पहले भी कहां करता था. हंसीठिठोली उसे पसंद नहीं थी, यह सब उसे बचकानी हरकतें लगतीं. उस के खट्टेमीठे अनुभव में उस की कोई दिलचस्पी न थी.

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