शादी के 6 साल बाद मम्मी-पापा बनेंगे Kishwar Marchent और Suyyash, ऐसे दी Good News

साल 2021 में जहां एक्ट्रेस अनीता हसनंदानी एक बेटे की मां बन गई हैं तो वहीं अब टीवी का एक और कपल पेरेंट्स बनने के तैयारी कर रहा है. दरअसल, ‘बिग बॉस 9’ में नजर आ चुकी एक्ट्रेस किश्वर मर्चेंट और सुयश राय पेरेंट्स बनने वाले हैं, जिसकी न्यूज सोशलमीडिया के जरिए फैंस को दी है. आइए आपको दिखाते हैं कपल का प्यारा सा पोस्ट…

शादी के 6 साल बनेंगे पेरेंट्स

प्यार की एक कहानी सीरियल में साथ काम कर चुके किश्वर मर्चेंट और सुयश राय शादी के करीब 6 साल बाद पैरंट्स बनने वाले हैं, जिसकी खुशी शेयर करते हुए सुयश राय ने फैन्स के साथ एक फोटोज शेयर की है. सुयश ने किश्वर के साथ एक प्यारी सी फोटो शेयर की है, जिसमें दोनों समंदर किनारे नजर आ रहे हैं.

 

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कैप्शन भी था खास

 

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अपनी जिंदगी में नए मेहमान के आने की खुशी को जाहिर करते हुए सुयश ने फोटो के साथ बड़ा ही इंटरस्टिंग कैप्शन लिखा कि, ‘मैं तेरे बच्चे का बाप बनने वाला हूं किश्वर मर्चेंट. इस अगस्त को आनेवाला है.’ वहीं फोटो में भी अगस्त 2021 के साथ छोटे बच्चे के जूते रखे हुए थे. वहीं सेम फोटो को शेयर करते हुए किश्वर ने लिखा, ‘अब आप लोग मुझे ये पूछना बंद कर सकते हैं कि हम कब मां-पापा बनने वाले हैं.’

 

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बता दें कि सुयश से उम्र में करीब 8 साल बड़ी किश्वर की शादी साल 2016 में हुई थी. हालांकि उन्हें कई बार लोगों के ताने भी सुनने को मिले हैं, जिसके कारण एक बार दोनों अलग भी हो गए थे. लेकिन अपने प्यार के कारण दोनों साथ आए और समाज की सोच को परे रखते हुए दोनों ने शादी करने का फैसला लिया.

 

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World Hearing Day: बहरेपन का कारण, लक्षण और रोकथाम

वयस्कों में बहरापन

वयस्कों में बहरेपन के कई कारण कान में मोम का ढेर, मध्य कान के संक्रमण, कान का पर्दा फटने या श्रवण तंत्रिका को नुकसान जैसे कि उम्र बढ़ने, जोर से शोर, ओटोटॉक्सिक ड्रग्स या मैनिंजाइटिस हो सकते हैं. वयस्कों में बहरेपन के लिए विभिन्न उपचार विकल्प कारण और सुनने के परिमाण के आधार पर उपलब्ध हैं .

बहरेपन के तीन प्रकार हैं :

संवेदी सुनने की शक्ति की कमी

यदि आंतरिक कान की नसें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और मस्तिष्क के संकेतों को ठीक प्रकार से प्रसारित नहीं करती हैं, तो इसका परिणाम स्थायी बहरापन हो सकता है. हल्के से मध्यम बहरेपन के मामलों में श्रवण यंत्र के साथ लक्षण काफी कम हो सकते हैं. कारण हो सकते हैं:

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-उम्र बढ़ना

-चोट

-अत्यधिक शोर का जोखिम

-वायरल संक्रमण, जैसे कि खसरा या कण्ठमाला (गलसुआ)

-ओटोटॉक्सिक ड्रग्स, दवाएं जो सुनवाई को नुकसान पहुंचाती हैं

-मस्तिष्कावरण शोथ

-मधुमेह

-आघात

-उच्च बुखार

-मेनियार्स का रोग

-ध्वनिक ट्यूमर

-वंशागति

हल्के से मध्यम मामलों के लिए सुनने वाले यंत्र पर्याप्त हैं, लेकिन गंभीर हानि वाले रोगियों के लिए कर्णावत आरोपण और हड्डी स्थापित श्रवण यंत्र ही इसका उपचार है.

कंडक्टिव हियरिंग लॉस

ये विकार अस्थायी या स्थायी हो सकते हैं. वे या तो बाहरी या मध्य कान में समस्याओं के कारण होते हैं, जो ध्वनि को आंतरिक कान तक पहुंचने से रोकते हैं. कारणों में शामिल हो सकते हैं:

-कर्ण नलिका या मध्य कान का संक्रमण

-मध्य कान में द्रव

-इयरड्रम का छिद्र या निशान

-वैक्स बिल्ड-अप

-असामान्य वृद्धि या कान में ट्यूमर

-ओटोस्क्लेरोसिस, एक ऐसी स्थिति जिसमें मध्य कान की हड्डी की असामान्य वृद्धि होती है

अधिकांश कंडक्टिव हियरिंग लॉस का उपचार चिकित्सकीय या शल्य चिकित्सा द्वारा किया जा सकता है. विभिन्न मध्य कान के विकारों को हियरिंग लॉस में सुधार के लिए सर्जरी से इलाज किया जा सकता है.

मिक्स हियरिंग लॉस

कुछ लोगों को संवेदी और प्रवाहकीय हियरिंग लॉस दोनों का संयोजन होता है. सबसे अच्छा उपचार यदि आवश्यक हो, तो प्रवाहकीय हानि और श्रवण सहायता के लिए पोस्ट-सर्जरी का इलाज करने वाली सर्जरी का एक संयोजन है.

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हियरिंग लॉस अक्सर क्रमिक होती है और प्रभावित व्यक्ति द्वारा तुरंत ध्यान नहीं दिया जाता है. कभी-कभी मित्र या परिवार किसी व्यक्ति की सुनने की समस्याओं को देख पाएंगे, इससे पहले कि हियरिंग लॉस वाला व्यक्ति इसे पहचानता है. कुछ लक्षण टेलिविज़न या रेडियो को बहुत जोर से सुनने, लोगों से यह पूछने के लिए कहा जा सकता है कि उन्होंने क्या कहा है या टेलीफोन या डोरबेल का जवाब नहीं दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने इसे नहीं सुना.

डॉ नेहा सूद सीनियर कंसल्टेंट, ईएनटी एंड कोक्लेयर इंप्लांट बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल

इन 7 होममेड टिप्स से करें सफेद कपड़ों की देखभाल 

मार्केट से कपड़े खरीदना तो आसान होता है, लेकिन जब बात कपड़ों की केयर करने की आती है तो हम उनकी केयर नही करते. वहीं बात सफेद कपड़ों की करें तो सफेद कपड़ों की सही देखरेख न की जाए तो ये पीले और डल लगने लगते हैं. अगर आप बिना खर्चे के अपने सफेद कपड़ों को एक दम नए जैसा रखना चाहती हैं तो ये टिप्स आपके काम की है. आज हम आपको बिना ड्राइक्लीनिंग के खर्चे के सफेद कपड़ों को नया जैसा कैसे रखें इसके लिए आसान स्टेप्स बताएंगे, जिसे आप आसानी से ट्राय कर सकती हैं.

1. कलरफुल कपड़ों से रखें सफेद कपड़ों को दूर

किसी भी सफेद कपड़े को धोने से पहले, उसे इकठ्ठा कर लें और फिर एक साथ धोएं. कभी भी अन्‍य रंगों के कपड़ों के साथ सफेद कपड़े को न मिलाएं.

2. नींबू के रस का करें इस्तेमाल

कपड़े के रंग को सुरक्षित रखने के लिए उसमें नींबू के रस को मिलाएं और तब धोएं. इससे कपड़े पर लगा हुआ दाग भी साफ हो जाएगा.

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3. सिरका का इस्तेमाल है जरूरी

कपड़े की आखिरी धुलाई में, पानी में कुछ बूंदे सिरके की डालें. इससे उस पर लगा हुआ दाग निकल जाएगा. सिरके की महक कपड़ों के सूखने के बाद खुद ही चली जाएगी.

4. क्‍लोरीन ब्‍लीच से करें सफेद कपड़ों को क्लीन

सफेद कपड़ों को क्‍लोरीन ब्‍लीच से भी साफ किया जा सकता है. पर कभी भी लाइनिंन और इलास्‍टिक वाले कपड़ों को क्‍लोरीन ब्‍लीच से साफ नहीं करना चाहिये वरना उनकी इलास्‍टिक खराब हो जाएगी. इसको हर रोज न प्रयोग करें, बस केवल महीने में एक बार ही करें वरना सफेद कपड़ों का पीला होने का डर रहता है.

5. बेकिंग सोडा भी अच्छा औप्शन

सफेद कपड़े का रंग बनाये रखने के लिए बेकिंग सोड़े में कुछ बूंद सिरके की मिला दें और फिर उससे कपड़ा साफ करें.

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6. गरम पानी से करें क्लीन

अगर कपड़े का मटीरियल सह सकता है, तो उसे गरम पानी में भिगोएं. इससे कपड़ों पर लगा हुआ दाग आसानी से निकल जाएगा.

7. सफेद कपड़ों को ज्यादा देर धूप में सुखाएं

ध्यान रखें की सफेद कपड़े को ज्यादा देर धूप में न रखे वरना ये कपड़ों का कलर सोख लेगा और वाइट कलर डल हो जाएगा.

होम मेड और क्लीन फूड है फिटनेस का राज– डौ.रिया बैनर्जी अंकोला

इन्टरनेट से लेकर हर जगह मोटापे को कम करने के नुस्खे उपलब्ध होते है, लेकिन ये कितना सही है इसकी जानकारी किसी को नहीं होती और किये गए उपाय कारगर नहीं होते. असल में मोटापा पिछले कई सालों से समस्या बनी हुई है, इसमें सबसे अधिक समस्या किशोरावस्था की मोटापा है, जो आज की लाइफस्टाइल की वजह से बढ़ चुकी है. घर पर बना हुआ खाना, हर दृष्टि से अच्छा और सेहतमंद रहने का जरिया है. इस बारें में प्रसिद्द पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट, एडोलेसेंट एक्सपर्ट और न्यूट्रिशनिस्ट डॉ.रिया बैनर्जी अंकोला बताती है कि पिछले 6 से 7 सालों से यूथ को बहुत सारी समस्याएं है. वे लैपटॉप पर घंटो बैठे रहते है. कही खेलने या घूमने नहीं जाते. शारीरिक रूप से वे बहुत कम एक्टिव है. खासकर मेट्रो में डाइट फूड  के नाम पर जो बिक रहा है. उसे वे बिना सोचे समझे खरीद लेते है. लेकिन वह आपके लिए सही है या नहीं इसकी जानकारी उन्हें नहीं होती. वे मानसिक तनाव और मोटापे के शिकार है. जिसका सम्बन्ध उनकी जीवन चर्या और भोजन है. आपको घर के खाने पर अधिक जोर देने की जरुरत है . ओट्स आज आया है, पहले लोग दलिया खाते थे, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा था. इतना ही नहीं आज के यूथ क्विक फूड  और रेडी तो ईट फूड  अधिक खाते है, जिसमें प्रिजरवेटीव होता है,जिसका असर स्वास्थ्य पर बाद में पड़ता है. प्रोसेस्ड फूड  कभी सही नहीं होता. मैंने खुद अपना 60 किलो वजन 2 साल में कम किया है. मेरा वजन भी तनाव की वजह से बढ़ा था.

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इसके आगे डॉ.रिया कहती है कि आयल की बात करें, तो प्रोसेस्ड और रिफाइंड आयल कभी भी सही नहीं होता. पहले बादाम तेल, सरसों का तेल, तिल का तेल, नारियल का तेल आदि प्रयोग होता था, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा होता है. खाने पीने का ध्यान खुद को ही हमेशा रखना पड़ता है. एक्टर हो या डौक्टर सभी को अपने डाइट का ध्यान देना पड़ता है. लोग 25 दिन ट्रेवल कर भी अपनी सेहत का ध्यान रखते है. ये सेल्फ मोटिवेशन की वजह से ही हो पाता है. आजकल इन्टरनेट पर बहुत सारी जानकारियां होती है और लोग उसका सहारा लेते है, पर किसी के लिये वह ठीक रहता है तो किसी के लिए नहीं,क्योंकि हर व्यक्ति की बॉडी टाइप अलग होती है. किसी को कुछ डाइट सही रहता है, तो किसी को कुछ और सूट करता है. इसलिए एक्सपर्ट की राय लेना सबसे सही होता है. सबकी मेटाबोलिज्म और हेल्थ प्रॉब्लम भी अलग होती है और अपने हिसाब से भोजन करने से व्यक्ति हमेशा सेहत मंद रहता है. इसके अलावा कुछ लोग घी खाने को उचित समझते है, पर क्या आपका शरीर घी के लिए तैयार है? इसे देखने की जरुरत होती है, क्योंकि आपका कोलेस्ट्राल लेवल क्या है, उसमें घी कहाँ तक जरुरी है, इसकी जानकारी व्यक्ति को होनी चाहिए. लोगों में खान-पान को लेकर जागरूकता की कमी है और उन्हें पता नहीं होता है कि उनके शरीर को चाहिए क्या?

त्योहारों को सेलिब्रेट करना सभी को पसंद होता है और इस अवसर पर मिठाइयां और अच्छे-अच्छे पकवान भी खाने को मिल जाते है. ऐसे में तबियत बिगड़ जाने की भी सम्भावना बढ़ जाती है. ऐसे मौके पर सही खान-पान की तरफ ध्यान देने की जरुरत अधिक होती है डॉ. रिया हंसती हुई कहती है कि मैं इलाज से अधिक प्रिवेंशन पर विश्वास करती हूँ और उसी दिशा में काम करती हूँ. अगर व्यक्ति बीमार हो भी गया है, तो उसे प्रिवेंशन के द्वारा कंट्रोल कर सकते है. इसमें मैं लाइफस्टाइल चेंज पर अधिक ध्यान देती हूँ, जिसमें खाना 70 प्रतिशत मैटर करता है. पिछले 10 से 15 साल में मैंने देखा है कि लोग मेरे पास गलत जानकारी के साथ आते है. असल में दिवाली या किसी भी त्यौहार के दौरान लोग अपने रिश्तेदारों से मिलते है और खुश होते है, पर ऐसे समय में अगर कोई व्यक्ति घर में ऐसा है, जिसे कुछ चीजो से परहेज करनी है, या उसकी कोई खास इलाज हो रहा है, तो उसके डाइट का ध्यान रखना चाहिए, ताकि स्वास्थ्य ठीक रहे. मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है कि वे मधुमेह के रोगी है और दिवाली पर इतना खा लिया कि उन्हें अगले दिन हार्ट एटैक आ गया. ऐसी खुशियाँ कभी न मनाये, ताकि इसका गलत असर आप पर हो.

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5 हेल्दी टिप्स फौर फिटनेस एंड वेट लौस

  • अपने चौइस से डेली वर्कआउट करें,
  • अधिक से अधिक पानी का सेवन करें,
  • खाने में फ्रेश सब्जियों का प्रयोग अधिक से अधिक करें,जिसमें केवल सलाद नहीं, लोकल फूड खाएं,
  • समय से पेट भर भोजन करें, बीच-बीच में स्नैक्स न लें, ताकि आपका इन्सुलिन लेवल ट्रिगर न हो, तीन बार भोजन पूरे दिन में करने की कोशिश करें, भूख लगने पर ही भोजन करें,
  • नींद 7 से 8 घंटा पूरी करें, क्योंकि नींद में भी फैट बर्न होता है,

सहायक प्रबंधक: खुद को ऋणी क्यों मान रहे थे राजशेखर

चींटी की गति से रेंगती यात्री रेलगाड़ी हर 10 कदम पर रुक जाती थी. वैसे तो राजधानी से खुशालनगर मुश्किल से 2 घंटे का रास्ता होगा, पर खटारा रेलगाड़ी में बैठे हुए उन्हें 6 घंटे से अधिक का समय हो चुका था.

राजशेखरजी ने एक नजर अपने डब्बे में बैठे सहयात्रियों पर डाली. अधिकतर पुरुष यात्रियों के शरीर पर मात्र घुटनों तक पहुंचती धोती थी. कुछ एक ने कमीजनुमा वस्त्र भी पहन रखा था पर उस बेढंगी पोशाक को देख कर एक क्षण को तो राजशेखर बाबू उस भयानक गरमी और असह्य सहयात्रियों के बीच भी मुसकरा दिए थे.

अधिकतर औरतों ने एक सूती साड़ी से अपने को ढांप रखा था. उसी के पल्ले को करीने से लपेट कर उन्होंने आगे खोंस रखा था. शहर में ऐसी वेशभूषा को देख कर संभ्रांत नागरिक शायद नाकभौं सिकोड़ लेते, महिलाएं, खासकर युवतियां अपने विशेष अंदाज में फिक्क से हंस कर नजरें घुमा लेतीं. पर राजशेखरजी उन के प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर ठगे से रह गए थे. उन के परिश्रमी गठे हुए शरीर केवल एक सूती धोती में लिपटे होने पर भी कहीं से अश्लील नहीं लग रहे थे. कोई फैशन वाली पोशाक लाख प्रयत्न करने पर भी शायद वह प्रभाव पैदा नहीं कर सकती थी. अधिकतर महिलाओं ने बड़े सहज ढंग से बालों को जूड़े में बांध कर स्थानीय फूलों से सजा रखा था.

तभी उन के साथ चल रहे चपरासी नेकचंद ने करवट बदली तो उन की तंद्रा भंग हुई.

‘यह क्या सोचने लगे वे?’ उन्होंने खुद को ही लताड़ा था. कितना गरीब इलाका है यह? लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र तक नहीं है. उन्होंने अपनी पैंट और कमीज पर नजर दौड़ाई थी…यहां तो यह साधारण वेशभूषा भी खास लग रही थी.

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‘‘अरे, ओ नेकचंद. कब तक सोता रहेगा? बैंक में अपने स्टूल पर बैठा ऊंघता रहता है, यहां रेल के डब्बे में घुसते ही लंबा लेट गया और तब से गहरी नींद में सो रहा है,’’ उन के पुकारने पर भी चपरासी नेकचंद की नींद नहीं खुली थी.

तभी रेलगाड़ी जोर की सीटी के साथ रुक गई थी. ‘‘नेकचंद…अरे, ओ कुंभकर्ण. उठ स्टेशन आ गया है,’’ इस बार झुंझला कर उन्होंने नेकचंद को पूरी तरह हिला दिया.

वह हड़बड़ा कर उठा और खिड़की से बाहर झांकने लगा. ‘‘यह रहबरपुर नहीं है साहब, यहां तो गाड़ी यों ही रुक गई है,’’ कह कर वह पुन: लेट गया.

‘‘हमें रहबरपुर नहीं खुशालनगर जाना है,’’ राजशेखरजी ने मानो उसे याद दिलाया था.

‘‘रहबरपुर के स्टेशन पर उतर कर बैलगाड़ी या किसी अन्य सवारी से खुशालनगर जाना पड़ेगा. वहां तक यह टे्रन नहीं जाएगी,’’ नेकचंद ने चैन से आंखें मूंद ली थीं.

बारबार रुकती और रुक कर फिर बढ़ती वह रेलगाड़ी जब अपने गंतव्य तक पहुंची, दिन के 2 बज रहे थे.

‘‘चलो नेकचंद, शीघ्रता से खुशालनगर जाने वाली किसी सवारी का प्रबंध करो…नहीं तो यहीं संध्या हो जाएगी,’’ राजशेखरजी अपना बैग उठा कर आगे बढ़ते हुए बोले थे.

‘‘हुजूर, माईबाप, ऐसा जुल्म मत करो. सुबह से मुंह में एक दाना भी नहीं गया है. स्टेशन पर सामने वह दुकान है… वह गरम पूरियां उतार रहा है. यहां से पेटपूजा कर के ही आगे बढ़ेंगे हम,’’ नेकचंद ने अनुनय की थी.

‘‘क्या हुआ है तुम्हें नेकचंद? यह भी कोई खाने की जगह है? कहीं ढंग के रेस्तरां में बैठ कर खाएंगे.’’

‘‘रेस्तरां और यहां,’’ नेकचंद हंसा था, ‘‘सर, यहां और खुशालनगर तो क्या आसपास के 20 गांवों में भी कुछ खाने को नहीं मिलेगा. मैं तो बिना खाए यहां से टस से मस नहीं होने वाला,’’ इतना कह कर नेकचंद दुकान के बाहर पड़ी बेंच पर बैठ गया.

‘‘ठीक है, खाओ, तुम्हें तो मैं साथ ला कर पछता रहा हूं,’’ राजशेखरजी ने हथियार डाल दिए थे.

‘‘हुजूर, आप के लिए भी ले आऊं?’’ नेकचंद को पूरीसब्जी की प्लेट पकड़ा कर दुकानदार ने बड़े मीठे स्वर में पूछा था.

राजशेखरजी को जोर की भूख लगी थी पर उस छोटी सी दुकान में खाने में उन का अभिजात्य आड़े आ रहा था.

‘‘मेरी दुकान जैसी पूरीसब्जी पूरे चौबीसे में नहीं मिलती साहब, और मेरी मसालेदार चाय पीने के लिए तो लोग मीलों दूर से चल कर यहां आते हैं,’’ दुकानदार गर्वपूर्ण स्वर में बोला था.

‘‘ठीक है, तुम इतना जोर दे रहे हो तो ले आओ एक प्लेट पूरीभाजी. और हां, तुम्हारी मसालेदार चाय तो हम अवश्य पिएंगे,’’ राजशेखरजी भी वहीं बैंच पर जम गए थे.

नेकचंद भेदभरे ढंग से मुसकराया था पर राजशेखरजी ने उसे अनदेखा कर दिया था.

कुबेर बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर राजशेखरजी की नियुक्ति हुई थी तो प्रसन्नता से वह फूले नहीं समाए थे. किसी वातानुकूलित भवन में सजेधजे केबिन में बैठ कर दूसरों पर हुक्म चलाने की उन्होंने कल्पना की थी. पर मुख्यालय ने उन्हें ऋण उगाहने के काम पर लगा दिया था. इसी चक्कर में उन्हें लगभग हर रोज दूरदराज के नगरों और गांवों की खाक छाननी पड़ती थी.

पूरीसब्जी समाप्त होते ही दुकानदार गरम मसालेदार चाय दे गया था. चाय सचमुच स्वादिष्ठ थी पर राजशेखरजी को खुशालनगर पहुंचने की चिंता सता रही थी.

बैलगाड़ी से 4 मील का मार्ग तय करने में ही राजशेखर बाबू की कमर जवाब दे गई थी. पर नेकचंद इन हिचकोलों के बीच भी राह भर ऊंघता रहा था. फिर भी राजशेखर बाबू ने नेकचंद को धन्यवाद दिया था. वह तो मोटरसाइकिल पर आने की सोच रहे थे पर नेकचंद ने ही इस क्षेत्र की सड़कों की दशा का ऐसा हृदय विदारक वर्णन किया था कि उन्होंने वह विचार त्याग दिया था.

कुबेर बैंक की कर्जदार लक्ष्मी का घर ढूंढ़ने में राजशेखरजी को काफी समय लगा था. नेकचंद साथ न होता तो शायद वहां तक कभी न पहुंच पाते. 2-3-8/ए खुशालनगर जैसा लंबाचौड़ा पता ढूंढ़ते हुए जिस घर के आगे वह रुका, उस की जर्जर हालत देख कर राजशेखरजी चकित रह गए थे. ईंट की बदरंग दीवारों पर टिन की छत थी और एक कमरे के उस घर के मुख्यद्वार पर टाट का परदा लहरा रहा था.

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‘‘तुम ने पता ठीक से देख लिया है न,’’ राजशेखरजी ने हिचकिचाते हुए पूछा था.

‘‘अभी पता चल जाएगा हुजूर,’’ नेकचंद ने आश्वासन दिया था.

‘‘लक्ष्मीलताजी हाजिर हों…’’ नेकचंद गला फाड़ कर चीखा था मानो किसी मुवक्किल को जज के समक्ष उपस्थित होने को पुकार रहा हो. उस का स्वर सुन कर आसपास के पेड़ों पर बैठी चिडि़यां घबरा कर उड़ गई थीं पर उस घर में कोई हलचल नहीं हुई. नेकचंद ने जोर से द्वार पीटा तो द्वार खुला था और एक वृद्ध ने अपना चश्मा ठीक करते हुए आगंतुकों को पहचानने का यत्न किया था.

‘‘कौन है भाई?’’ अपने प्रयत्न में असफल रहने पर वृद्ध ने प्रश्न किया था.

‘‘हम कुबेर बैंक से आए हैं. लक्ष्मीलताजी क्या यहीं रहती हैं?’’

‘‘कौन लता, भैया?’’

‘‘लक्ष्मीलता.’’

‘‘अरे, अपनी लक्ष्मी को पूछ रहे हैं. हां, बेटा यहीं रहती है…हमारी बहू है,’’ तभी एक वृद्धा जो संभवत: वृद्ध की पत्नी थीं, वहां आ कर बोली थीं.

‘‘अरे, तो बुलाइए न उसे. हम कुबेर बैंक से आए हैं,’’ राजशेखरजी ने स्पष्ट किया था.

‘‘क्या भैया, सरकारी आदमी हो क्या? कुछ मुआवजा आदि ले कर आए हो क्या?’’ वृद्ध घबरा कर बोले थे.

‘‘मुआवजा? किस बात का मुआवजा?’’ राजशेखरजी ने हैरान हो कर प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही कर दिया था.

‘‘हमारी फसलें खराब होने का मुआवजा. सुना है, सरकार हर गरीब को इतना दे रही है कि वह पेट भर के खा सके.’’

‘‘हुजूर, लगता है बूढ़े का दिमाग फिर गया है,’’ नेकचंद हंसने लगा था.

‘‘यह क्या हंसने की बात है?’’ राजशेखरजी ने नेकचंद को घुड़क दिया था.

‘‘देखिए, हम सरकारी आदमी नहीं हैं. हम बैंक से आए हैं. लक्ष्मीलताजी ने हमारे बैंक से कर्ज लिया था. हम उसे उगाहने आए हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? जरा बुलाओ तो लक्ष्मी को,’’ वृद्ध अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला था.

दूसरे ही क्षण लक्ष्मीलता आ खड़ी हुई थी.

‘‘लक्ष्मीलता आप ही हैं?’’ राजशेखरजी ने प्रश्न किया था.

‘‘जी हां.’’

‘‘मैं राजधानी से आया हूं, कुबेर बैंक से आप के नाम 82 हजार रुपए बकाया है. आप ने एक सप्ताह के अंदर कर्ज नहीं लौटाया तो कुर्की का आदेश दे दिया जाएगा.’’

‘‘क्या कह रहे हो साहब, 82 हजार तो बहुत बड़ी रकम है. हम ने तो एकसाथ 82 रुपए भी नहीं देखे. हम ने तो न कभी राजधानी की शक्ल देखी है न आप के कुबेर बैंक की.’’

‘‘हमें इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है. हमारे पास सब कागजपत्र हैं. तुम्हारे दस्तखत वाला प्रमाण है,’’ नेकचंद बोला था.

‘‘लो और सुनो, मेरे दस्तखत, भैया किसी और लक्ष्मीलता को ढूंढ़ो. मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है. अंगूठाछाप हूं मैं. रही बात कुर्की की तो वह भी करवा ही लो. घर में कुछ बर्तन हैं. कुछ रोजाना पहनने के कपड़े और डोलबालटी. यह एक कमरे का टूटाफूटा झोपड़ा है. जो कोई इन सब का 82 हजार रुपए दे तो आप ले लो,’’ लक्ष्मीलता तैश में आ गई थी.

अब तक वहां भारी भीड़ एकत्रित हो गई थी.

‘‘साहब, कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है. लक्ष्मीलता तो केवल नाम की लक्ष्मी है. इसे बैंक तो छोडि़ए गांव का साहूकार 10 रुपए भी उधार न दे,’’ एक पड़ोसी यदुनाथ ने बीचबचाव करना चाहा था.

‘‘देखिए, मैं इतनी दूर से रेलगाड़ी, बैलगाड़ी से यात्रा कर के क्या केवल झूठ, आरोप लगाने आऊंगा? यह देखिए प्रोनोट, नाम और पता इन का है या नहीं. नीचे अंगूठा भी लगा है. 5 वर्ष पहले 10 हजार रुपए का कर्ज लिया था जो ब्याज के साथ अब 82 हजार रुपया हो गया है,’’ राजशेखरजी ने एक ही सांस में सारा विवरण दे दिया था.

वहां खड़े लोगों में सरसराहट सी फैल गई थी. आजकल ऐसे कर्ज उगाहने वाले अकसर गांव में आने लगे थे. अनापशनाप रकम बता कर कागजपत्र दिखा कर लोगों को परेशान करते थे.

‘‘देखिए, मैनेजर साहब. लक्ष्मीलता ने तो कभी किसी बैंक का मुंह तक नहीं देखा. वैसे भी 82 हजार तो क्या वह तो आप को 82 रुपए देने की स्थिति में नहीं है,’’ यदुनाथ तथा कुछ और व्यक्तियों ने बीचबचाव करना चाहा था.

‘‘अरे, लेते समय तो सोचा नहीं, देने का समय आया तो गरीबी का रोना रोने लगे? और यह रतन कुमार कौन है? उन्होंने गारंटी दी थी इस कर्ज की. लक्ष्मीलता नहीं दे सकतीं तो रतन कुमार का गला दबा कर वसूल करेंगे. 100 एकड़ जमीन है उन के पास. अमीर आदमी हैं.’’

‘‘रतन कुमार? इस नाम को तो कभी अपने गांव में हम ने सुना नहीं है. किसी और गांव के होंगे.’’

‘‘नाम तो खुशालनगर का ही लिखा है पते में. अभी हम सरपंचजी के घर जा कर आते हैं. वहां से सब पता कर लेंगे. पर कहे देते हैं कि ब्याज सहित कर्ज वसूल करेंगे हम,’’ राजशेखरजी और नेकचंद चल पड़े थे. सरपंचजी घर पर नहीं मिले थे.

‘‘अब कहां चलें हुजूर?’’ नेकचंद ने प्रश्न किया था.

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. क्या करें, क्या न करें. मुझे तो स्वयं विश्वास नहीं हो रहा कि उस गरीब लक्ष्मीलता ने यह कर्ज लिया होगा,’’ राजशेखरजी बोले थे.

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‘‘साहब, आप नए आए हैं अभी. ऐसे सैकड़ों कर्जदार हैं अपने बैंक के. सब मिलीभगत है. सरपंचजी, हमारे बैंक के कुछ लोग, कुछ दादा लोग. किसकिस के नाम गिनेंगे. यह रतन कुमार नाम का प्राणी शायद ही मिले आप को. जमीन के कागज भी फर्जी ही होंगे,’’ नेकचंद ने समझाया था. निराश राजशेखर लौट चले थे.

बैंक पहुंचते ही मुख्य प्रबंधक महोदय की झाड़ पड़ी थी.

‘‘आप तो किसी काम के नहीं हैं राजेशखर बाबू, आप जहां भी उगाहने जाते हैं खाली हाथ ही लौटते हैं. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता, उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है. पर आप कहीं तो गुंडों की धमकी से डर कर भाग खड़े होते हैं तो कभी गरीबी का रोना सुन कर लौट आते हैं. जाइए, विपिन बाबू से और कर्जदारों की सूची ले लीजिए. कुछ तो उगाही कर के दिखाइए, नहीं तो आप का रिकार्ड खराब हो जाएगा.’’

उन्हें धमकी मिल गई थी. अगले कुछ माह में ही राजशेखर बाबू समझ गए थे कि उगाही करना उन के बस का काम नहीं था. वह न तो बैंक के लिए नए जमाकर्ता जुटा पा रहे थे और न ही उगाही कर पा रहे थे.

एक दिन इसी उधेड़बुन में डूबे अपने घर से निकले थे कि उन के मित्र निगम बाबू मिल गए थे.

‘‘कहिए, कैसी कट रही है कुबेर बैंक में?’’ निगम बाबू ने पूछा था.

‘‘ठीक है, आप बताइए, कालिज के क्या हालचाल हैं?’’

‘‘यहां भी सब ठीकठाक है… आप को आप के छात्र बहुत याद करते हैं पर आप युवा लोग कहां टिकते हैं कालिज में,’’ निगम बाबू बोले थे.

राजशेखर बाबू को झटका सा लगा था. कर क्या रहे थे वे बैंक में? उन ऋणों की उगाही जिन्हें देने में उन का कोई हाथ नहीं था. जिस स्वप्निल भविष्य की आशा में वह व्याख्याता की नौकरी छोड़ कर कुबेर बैंक गए थे वह कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वह दूसरे ही दिन अपने पुराने कालिज जा पहुंचे थे और पुन: कालिज में लौटने की इच्छा प्रकट की थी.

प्रधानाचार्य महोदय ने खुली बांहों से उन का स्वागत किया था. राजशेखरजी को लगा मानो पिंजरे से निकल कर खुली हवा में उड़ने का सुअवसर मिल गया हो.

फिर अकेले हैं कहीं…

शादी के बाद पतिपत्नी के जीवन में एक अलग सी चाहत होती है. एकदूसरे के साथ अधिक से अधिक समय तक करीब रहना, एकदूसरे को छूना, उत्तेजित हो जाना, सैक्स के लिए पोर्न फिल्में देखना, उसी तरह की चाहत रखना सामान्य बातें होती हैं. यही वजह है कि शादी के निजी पलों को खुल कर जीने के लिए लोग हनीमून के लिए जाते हैं. शादी के बाद का सा आनंद जीवन में दोबारा तब आता है जब बच्चे होस्टल चले जाते हैं. पतिपत्नी के जीवन में आने वाला यह एकांत उन को बहका देता है.

कई कपल्स तो ऐसे मौके का लाभ उठा कर सैकंड हनीमून तक प्लान कर लेते हैं. ऐसे में कई बार वैसी ही गड़बडि़यां हो जाती हैं जैसी शादी के बाद होती हैं. शादी के बाद अबौर्शन संभव हो जाता था पर सैकंड हनीमून के बाद ऐसी गड़बड़ी भारी पड़ सकती है. इसलिए जरूरी है कि गर्भधारण से बचने वाले उपाय व साधनों का प्रयोग करें.

महिला रोग विशेषज्ञ डाक्टर नमिता चंद्रा कहती हैं, ‘‘कंडोम और पिल्स सब से अहम उपाय हैं. महिलाएं गर्भ रोकने के लिए पिल्स का प्रयोग डाक्टर की राय से करें. गर्भनिरोधक गोलियां कई बार बौडी के हार्मोंस को प्रभावित करती हैं. इन के लगातार प्रयोग से जिस्म में कैल्शियम भी प्रभावित होता है. कुछ औरतों में जल्दी मेनोपौज की शुरुआत हो जाती है. जिस से कई बार मासिकधर्म अनियमित हो जाता है. ऐसे में यह भ्रम हो जाता है कि माहवारी बंद है तो गर्भधारण कैसे हो सकता है?

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‘‘कई मामलों में देखा गया कि माहवारी बंद होने के बाद भी गर्भधारण हो गया. कई बार माहवारी न होने का कारण मेनोपौज को समझ लिया जाता है, जबकि माहवारी न होने का कारण गर्भधारण होता है. इस का पता तब चलता है जब पेट में दर्द या दूसरे कारण दिखाई देते हैं. देर से पता चलने के कारण गर्भपात कराना संभव नहीं रह जाता और बच्चा पैदा करने के बाद तमाम तरह की सामाजिक व शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है.’’

भ्रांतियों का शिकार न हों आज के दौर में 40 से 50 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं का मुकाबला 20 से 30 वर्ष की महिलाओं के साथ किया जा सकता है. दोनों ही उम्र में सैक्स को ले कर कुछ भ्रांतियां होती हैं. आमतौर पर पुरुष इस उम्र में कंडोम का इस्तेमाल पसंद नहीं करते. इस का कारण यह होता है कि कई बार उन में इरैक्शन को ले कर परेशानियां होती हैं.

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ऐसे में महिला को पिल्स का सेवन करना चाहिए. वैसे गर्भनिरोधक पिल्स के साथ ही साथ इमरजैंसी पिल्स का भी प्रयोग कर सकती हैं. इमरजैंसी पिल्स का प्रयोग सैक्स संबंध बनने के बाद जितनी जल्दी हो सके कर लें. कई बार इरैक्शन के शिकार व्यक्ति का डिस्चार्ज योनि के बाहर ही हो जाता है. वह सोचता है कि डिस्चार्ज योनि के बाहर होने से गर्भधारण का खतरा नहीं रहता. यह भी एक तरह की भ्रांति है. पुरुष का वीर्य अगर किसी भी तरह से योनि के अंदर पहुंच गया तो गर्भधारण हो सकता है. ऐसे में किसी भी तरह से वीर्यस्खलन होने पर सावधान रहें. अगर ऐसा हो जाता है तो सावधानी बरतें. गर्भधारण से बचने के लिए उचित डाक्टरी सलाह व प्रैग्नैंसी टैस्ट किट की मदद लें.

फैमिली के लिए बनाएं वैज मंचूरियन

सर्दियों में अगर कुछ टेस्टी और हेल्दी बनाना चाहते हैं तो आपके लिए ये रेसिपी काम की है. वैज मंचूरियन आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप कभी भी बनाकर अपने बच्चों को खिला सकती हैं. आइए आपको बताते हैं वैज मंचूरियन की टेस्टी रेसिपी…

मंचूरियन बौल्स बनाने के लिए हमें चाहिए

–  1 पत्तागोभी कद्दूकस की

–  2 गाजरें कद्दूकस की हुईं

–  1 गोभी कद्दूकस की हुई

–  200 ग्राम पनीर कद्दूकस किया

–  2-3 हरीमिर्चें

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–  थोड़ी सी धनियापत्ती

–  1/2 छोटा चम्मच अदरक बारीक कटा

–  1/2 छोटा चम्मच लहसुन बारीक कटा

–  6-7 छोटे चम्मच मैदा या कौर्नफ्लोर

–  कोटिंग के लिए मैदा

–  फ्राई करने के लिए औयल

–  नमक स्वादानुसार.

ग्रेवी बनाने की हमें चाहिए

–  1 छोटा चम्मच औयल

– 1 1/2 छोटे चम्मच अदरक बारीक कटा

–  2 छोटे चम्मच लहसुन बारीक कटा

–  2 प्याज कटे

–  3-4 हरीमिर्चें

–  थोड़ी सी धनियापत्ती

–  1/4 छोटा चम्मच अजीनोमोटो

–  2 छोटे चम्मच सोया सौस

–  3 छोटे चम्मच चिली सौस

–  4 छोटे चम्मच सिरका

–  4 छोटे चम्मच टोमैटो सौस

–  4 कप पानी

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–  1/2 छोटा चम्मच चीनी

–  1/2 कप पानी में 3 छोटे चम्मच कौर्नफ्लोर

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

मंचूरियन बौल्स बनाने की सारी सामग्री को मिला कर बौल्स तैयार करें. फिर बौल्स को मैदे से कोट कर के डीपफ्राई कर एक तरफ रख दें. अब एक कड़ाही में तेल गरम कर ग्रेवी बनाने वाली सारी सामग्री डाल कर गाढ़ा होने तक पकाएं. इस में मंचूरियन बौल्स डाल कर सर्व करें.

रागविराग: भाग 2- कैसे स्वामी उमाशंकर के जाल में फंस गई शालिनी

उस की आंखों में हलकी सी चमक आई.

‘‘उन के आशीर्वाद से ही तुम्हारा विवाह हो गया तथा जनार्दन का भी व्यवसाय संभल गया. मैं तो सब जगह से ही हार गया था,’’ पिता ने कहा.

एक दिन वह मां के साथ सत्संग आश्रम गई थी. वहां उमाशंकर भी आए हुए थे इसलिए बहुत भीड़ थी. सब को बाहर ही रोक दिया गया था. जब उन का नंबर आया तो वे अंदर गईं. भीतर का कक्ष बेहद ही सुव्यवस्थित था. सफेद मार्बल की टाइल्स पर सफेद गद्दे व चादरें थीं. मसनद भी सफेद खोलियों में थे. परदे भी सफेद सिल्क के थे. उमाशंकर मसनद के सहारे लेटे हुए थे. कुछ भक्त महिलाएं उन के पांव दबा रही थीं.

‘‘आप का स्वास्थ्य तो ठीक है?’’ मां ने पूछा.

‘‘अभी तो ठीक है, लेकिन क्या करूं भक्त मानते ही नहीं, इसलिए एक पांव विदेश में रहता है तो दूसरा यहां. विश्राम मिलता ही नहीं है.’’

शालिनी ने देखा कि उमाशंकरजी का सुंदर प्रभावशाली व्यक्तित्व कुछ अनकहा भी कह रहा था.

तभी सारंगदेव उधर आ गया.

‘‘तुम यहां कैसे? वहां ध्यान शिविर में सब ठीक तो चल रहा है न?’’

‘‘हां, गुरुजी.’’

‘‘ध्यान में लोग अधोवस्त्र ज्यादा कसे हुए न पहनें. इस से शिव क्रिया में बाधा पड़ती है. मैं तो कहता हूं, एक कुरता ही बहुत है. उस से शरीर ढका रहता है.’’

‘‘हां, गुरुजी मैं इधर कुरते ही लेने आया था. भक्त लोग बहुत प्रसन्न हैं. तांडव क्रिया में बहुत देर तक नृत्य रहा. मैं तो आप को सूचना ही देने आया था.’’

‘‘वाह,’’ गुरुजी बोले.

गुरुजी अचानक गहरे ध्यान में चले गए. उन के नेत्र मुंद से गए थे. होंठों पर थराथराहट थी. उन की गरदन टेढ़ी होती हुई लटक भी गई थी. हाथ अचानक ऊपर उठा. उंगलियां विशेष मुद्रा में स्थिर हो गईं.

‘‘यह तो शांभवी मुद्रा है,’’ सारंगदेव बोला. उस ने भावुकता में डूब कर उन के पैर छू लिए.

अचानक गुरुजी खिलखिला कर हंसे.

उन के पास बैठी महिलाओं ने उन से कुछ पूछना चाहा तो उन्होंने उन्हें संकेत से रोकते हुए कहा, ‘‘रहने दो, आराम आ गया है. मैं तो किसी प्रकार की सेवा इस शरीर के लिए नहीं चाहता. इस को मिट्टी में मिलना है, पर भक्त नहीं मानते.’’

‘‘पर हुआ क्या है?’’ मां को चैन नहीं था.

‘‘दाएं पांव की पिंडली खिसक गई है, इसलिए दर्द रहता है. कई बार तो चला भी नहीं जाता. शरीर है, ठीक हो जाएगा. सब प्रकृति की इच्छा है, हमारा क्या?’’

‘‘क्यों?’’ उन की निगाहें शालिनी के चेहरे पर ठहर गई थीं, ‘‘आजकल क्या करती हो?’’

‘‘जी घर पर ही हूं.’’

‘‘श्रीमानजी कहां हैं?’’

‘‘जी वे बौर्डर डिस्ट्रिक्ट में हैं, कोई अभियान चल रहा है.’’

‘‘तो कभीकभी यहां आ जाया करो.’’

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं,’’ मां ने प्रसन्नता से कहा था. और फिर उस का सत्संग भवन में आना शुरू हो गया था.

उस दिन दोपहर में वह भोजन के बाद इधर ही चली आई थी. उसे गुरुजी ने अपने टीवी सैट पर लगे कैमरे से देखा तो मोबाइल उठाया और बाहर सहायिका को फोन किया, ‘‘तुम्हारे सामने शालिनी आई है, उसे भीतर भेज देना.’’

सहायिका ने अपनी कुरसी से उठते हुए सामने बरामदे में आती हुई शालिनी को देखा.

‘‘आप शालिनी हैं?’’

‘‘हां,’’ वह चौंक गई.

‘‘आप को गुरुजी ने याद किया है,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

वह अंदर पहुंची तो देखा गुरुजी अकेले ही थे. उन की धोती घुटने तक चढ़ी हुई थी.

‘‘लो,’’ उन्होंने पास में रखी मेवा की तश्तरी से कुछ बड़े काजू, बादाम जितने मुट्ठी में आए, बुदबुदाते हुए उस की हथेली पर रख दिए.

‘‘और लो,’’ उन्होंने एक मुट्ठी और उस की हथेली पर रख दिए.

वह यंत्रवत सी उन के पास खिसकती चली आई. उसे लगा उस के भीतर कुछ उफन रहा है. एक तेज प्रवाह, मानो वह नदी में तैरती चली जाएगी. उन्होंने हाथ बढ़ाया तो वह खिंची हुई उन के पास चली आई. और उन के पांव दबाने लग गई. उन की आंखें एकटक उस के चेहरे पर स्थिर थीं और उसे लग रहा था कि उस का रक्त उफन रहा है.

तभी गुरुजी ने पास रखी घंटी को दबा दिया. इस से बाहर का लाल बल्ब जल उठा. उन की बड़ीबड़ी आंखें उस के चेहरे पर कुछ तलाश कर रही थीं.

‘‘शालू, वह माला तुम्हारी गोद में गिरी थी, जो मैं ने तुम्हें दी थी. वह तुम्हारा ही अधिकार है, जो प्रकृति ने तुम्हें सौंपा है,’’ वे बोले तो शालू खुलती चली गई. फिर उमाशंकरजी को उस ने खींचा या उन्होंने उसे, कुछ पता नहीं. पर उसे लगा उस दोपहर में वह पूरी तरह रस वर्षा से भीग गई है. उसे अपने भीतर मीठी सी पुलक महसूस हुई. वह चुपचाप उठी, बाथरूम जा कर व्यवस्थित हुई फिर पुस्तक ले कर कोने में पढ़ने बैठ गई.

सेवक भीतर आया. उस ने देखा गुरुजी विश्राम में हैं. उस ने बाहर जा कर बताया तो कुछ भक्त भीतर आए. तब शालिनी बाहर चली गई. सही या गलत प्रश्न का उत्तर उस के पास नहीं था, क्योंकि वह जानती थी कि गलती उस की ही थी. उसे अकेले वहां नहीं जाना चाहिए था. पर अब वह क्या कर सकती थी? चुप रहना ही नियति थी, क्योंकि वह उस की अपनी ही जलाई आग थी, जिस में वह जली थी. किस से कहती, क्या कहती? वही तो वहां खुद गई थी. विरोध करती पर क्यों नहीं कर पाई? उस प्रसाद में ऐसा क्या था? वह इस सवाल का उत्तर बरसों तलाश करती रही. पर उस दिन सुलभा ने ही बताया था कि मां, मुंबई की पार्टियों में कोल्डड्रिंक्स में ऐसा कुछ मिला देते हैं कि लड़कियां अपना होश खो देती हैं. वे बरबाद हो जाती हैं. मेरी कुछ सहेलियों के साथ भी ऐसा हुआ है. ये ‘वेव पार्टियां’ कहलाती हैं, तब वह चौंक गई थी. क्या उस के साथ भी ऐसा ही हुआ था? वह सोचने लगी कि कभीकभी वर्षा ऋतु न हो तो भी अचानक बादल कहीं से आ जाते हैं. वे गरजते और बरसते हैं, तो क्यारी में बोया बीज उगने लगता है.

फिर सब कुछ यथावत रहा. सुभाष भी जल्दी ही लौट आया. उसे आने के बाद सूचना मिली कि वह पिता बनने वाला है तो वह बहुत खुश हुआ और शालिनी को अस्पताल ले गया.

आगे पढ़ें- पर शालिनी भीतर से ही सहम गई थी. जब..

हर्बल टी से रोकें हेयर फौल, जानें यहां

हर्बल टी केवल आपको रीफ्रेश ही नहीं करती है बल्कि ये आपकी बॉडी को हेल्दी भी रखती है. कहने को तो यह एक कप चाय होती है लेकिन इसके फायदे अनेक होते है. जो आपकी कई बीमारियों को चुटकी में दूर कर देती है. मसलन जैसे आपको सिरदर्द होता है तो आप ग्रीन टी का सेवन करें अगर आप अपनी पाचन शक्ति दुरूस्त करना चाहते हैं तो आज से ही हर्बल टी को पीना शुरू कर दें. यही नहीं हर्बल टी से बालों की समस्या जैसे बालों का झड़ना भी रूकता है.  तो आईये आज हम आपको चार तरह की हर्बल टी के बारे में बताते हैं जो आपको उपरोक्त बीमारियों से निजात दिलायेंगे.

ग्रीन टी:

इस टी को आप रामबाण कह सकते हैं, यह आपको सिरदर्द से निजात दिलाती है. जो लोग माइग्रेन की समस्या से ग्रसित रहते हैं उन्हें तो इसका सेवन रोज करना चाहिए. ग्रीन टी वजन कम करने में भी मददगार होती है. यह आपकी पाचन शक्ति को मजबूत भी बनाती है. बस एक प्याली ग्रीन टी आपको तरोताजा औऱ सेहतमंद रखने के लिए काफी है. सबसे बड़ी बात ग्रीन टी से बालों का झड़ना कम होता है. यह बालों की लंबाई भी बढ़ाती है. यकीन नहीं होता तो आप आजमा कर देख सकते है.

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सिनमन या दालचीनी की चाय:

यह आपके मुंह के जायके को फ्रेश तो करता ही है साथ ही यह माइग्रेन के रोगियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. अगर आपके घर कोई जुकाम से पीड़ित है तो उसे बस एक कप सिनमन यानी दालचीनी की चाय बनाकर दीजिये देखिये उसका जुकाम कितनी जल्दी ठीक हो जाता है. दालचीनी में फाइबर, आयरन और कैल्शियम पाया जाता है जो आपके शरीर को मजबूत बनाते हैं. इसलिए अगर आप स्वस्थ, घने और सुंदर बाल चाहती हैं तो दालचीनी का प्रयोग शुरू कर दें.

अदरक वाली चाय:

अदरक का प्रयोग तो घर-घर में होता है अगर आप चाय में अदरक डाल कर रोजाना पीयें तो आपको जुकाम, सर्दी छू भी नहीं पायेगी. अदरक आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाती है. अदरक की चाय पीने से सरदर्द से आराम मिलता है. साथ ही बालों में रूसी की समस्या को भी रोकता है जिससे बाल मजबूत बनते हैं.

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कैमोमाइल टी:

कैमोमाइल टी माइग्रेन के रोगियों के लिए काफी अच्छी होती है. इसके अंदर ऐसे एंटीऑक्सीडेंट पाये जाते हैं जो तत्काल सिरदर्द को रोकने में कामयाब होते है. इस टी का प्रयोग करने से बालों का झड़ना रूकता है. यह सिर की बेजान त्वचा की जगह नई खाल पैदा करता है, जिससे कि कमजोर बालों की जगह नये और मजबूत बाल उगने में मदद मिलती है.

ब्राइडल ट्रैंड्स 2021 से लगाएं अपने लुक में चार चांद

शादियों के सीजन में अक्सर हम गलत कलर, डिजाइन और पैटर्न पसंद कर लेते हैं जो हमारे लुक को बिगाड़ देता है. हमें अपने फैशन को ट्रैंड के अनुसार बदलना चाहिए, लेकिन आपको कैसे पता चलेगा कि ट्रैंड है क्या? तो टेनशन मत लीजिए आज हम आपको शादियों में किस तरह के कपड़े पहने और आजकल ट्रैंड क्या चल रहा है, इसके बारे में बताएंगे. डब्ल्यू एन डब्ल्यू के डाइरैक्टर हर्ष भौतिका के अनुसार इस सीजन के लिए ब्राइडल आउटफिट्स ट्रैंड कुछ इस तरह रहेगा-

ब्लाउज स्टाइल ट्रैंड

आजकल ब्राइडल ब्लाउज में ऐल्बो लैंथ ट्रैंड में है. नैकलाइन के अंदर स्वीटहार्ट पैटर्न चोली कट में प्रचलित है. इस से ब्राइड मौडर्न और यंग लगती है. ब्लाउज के स्लीव्स, दुपट्टे के बौर्डर आदि पर भी ब्राइडल और ग्रूम का नाम लिखवा दिया जाता है. इस से एक सुनहरा लुक उभरता है.

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थीम के अनुसार चुनें कलर पैटर्न

दुपट्टा, ब्लाउज, लहंगा अलग-अलग रंगों में नहीं, बल्कि हलके रंगों में पसंद किए जा रहे हैं. शेड्स भले ही अलग-अलग हों, मगर सारी ड्रैस सिंगल कलर में ही होती है. आजकल कलर स्पैक्ट्रम काफी बढ़ गया है. ओरिजिनल ट्रैडिशनल कलर जैसे लाल, मैरून, गुलाबी के बजाय अब फ्यूशिया पिंक, लाइलैक, लैवेंडर, रौयल ब्लू, चारकोल ब्राउन, चारकोल ग्रे, आइवरी, औफव्हाइट जैसे कलर्स भी चलन में खूब हैं. वैडिंग डैकोर या वैडिंग थीम के आधार पर भी आउटफिट के कलर चुने जाते हैं, जो बहुत खूबसूरत लगते हैं.

फैंसी फैब्रिक डिजाइन का है ट्रैंड

आजकल संगीत, सगाई, मेहंदी आदि के लिए लहंगे में ड्रैप्स या अच्छे फैंसी फैब्रिक पसंद किए जाते हैं. शादी से पहले के इन समारोहों के लिए ब्लाउज पर ज्यादा वर्क पसंद किया जाता है और लहंगों पर ड्रैप और लेयरिंग का रुझान अधिक पाया जाता है. ब्लाउज स्मार्टकट वाले होते हैं. कट्स और लेयर्स पर फोकस नहीं होता. जबकि शादी के दिन वाले आउटफिट में हैवी वर्क प्रैफर किया जाता है. जरदोजी वर्क से सजे लहंगे पर दूल्हादुलहन के नाम लिखे होते हैं.

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वर्क में मौडर्न लुक

आजकल गोटे के साथ रेशम और जरदोजी मिला कर काम किया जाता है. ट्रैडिशनल मोटिफ को नए तरीके से तैयार किया जाता है जैसे हाथी, राजारानी आदि. इन्हें ऐसे स्टाइल में सिला जाता है ताकि देखने में मौडर्न लगें जैसे सीग्रीन लहंगे पर ग्रे कलर से हाथ या पूरी बरात बनाई जाती है. आजकल थीम औरिऐंटेड डिजाइनें भी बनने लगी हैं. पहले की डिजाइनों में कैरी (पेजली) की शेप, मोर आदि का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता था. मगर अब इस में भी ऐक्सपैरिमैंट्स किए जा रहे हैं. पाम ट्री, तरहतरह के फ्लौवर्स, ऊंट, हाथी आदि का प्रयोग खूबसूरती से होने लगा है.

ब्राइडल लहंगे

ब्राइडल लहंगे रौ सिल्क पर बनते हैं, क्योंकि यह फैब्रिक हैवी वर्क के लिए परफैक्ट है. इस की सिलवटें भी शानदार लगती हैं. नैचुरल और बनारसी फैब्रिक प्रीवैडिंग के लहंगों पर ज्यादा इस्तेमाल किया जाता हैं. विंटर वैडिंग्स में वैलवेट फैब्रिक ज्यादा अच्छा लगता है. समर के प्रीवैडिंग इवेंट्स जैसे संगीत, मेहंदी आदि में आरगेंजा, कोरा, मूंगा जैसा फैब्रिक इस्तेमाल किया जाता है. पहले लहंगे के बौर्डर पर काफी काम होता था. अब बौर्डर नहीं चाहिए होता. लहंगे सिंगल पीस औफ फैब्रिक में ही बनते हैं. वेस्ट से ले कर नीचे तक काम होता है. खाके में भी काफी ऐक्सपैरिमैंट्स हो गए हैं.

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स्टिचिंग

स्टिचिंग पैटर्न अब फ्रीस्टाइल हो गया है. पहले लहंगे हाफ अंब्रेला कट के होते थे. फिर हिपफिटेड लहंगे चलन में आए. मगर अब ए लाइन कलीदार लहंगों का जोर है. इन का केवल कमर का हिस्सा नाप के हिसाब से बनता है. आजकल लहंगों में वेस्टबैंड यानी कमरबंद भी पसंद किए जाते हैं.

सिंपल स्मार्ट लुक अपनाएं

आजकल की ब्राइड्स सिंपल मेकअप और मिनिमल ज्वैलरी प्रैफर करती हैं ताकि पूरे कंफर्ट के साथ सारे इवेंट्स ऐंजौय कर सकें, जम कर डांस कर सकें. उदाहरण के लिए ब्राइड्स अकसर अधिक घेर पर कम वर्क वाला लहंगा, डीपनैक ब्लाउज के साथ हीरों का हलका हार और हैवी इयररिंग्स के साथ प्रीवैडिंग इवेंट्स में कंफर्टेबल लुक अपनाती हैं. आजकल की ब्राइड्स अपने लुक और वेट को ले कर काफी कौंशस रहती हैं. अपने लिए आउटफिट्स सिलैक्ट करते समय वेट उन का फोकस एरिया होता है. वे ऐसे वर्क वाले कपड़े पसंद करती हैं जो उन का वेट अधिक न दिखाएं.

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