लौट आओ मौली: भाग 2- एक गलतफहमी के कारण जब आई तलाक की नौबत

पहला भाग पढ़ने के लिए- लौट आओ मौली: भाग-1

लेखक- नीरजा श्रीवास्तव

‘‘क्यों तुम्हारे मियां को ताजा हवा अखरती है?’’ शशांक के प्रश्न पर एक उदास मलिन सी रेखा मौली के चेहरे पर उभर आई, जिसे उस ने बनावटी मुसकान से तुरंत छिपा लिया.

‘‘अब यहीं खड़ेखड़े सब जान लोगे या कहीं बैठोगे भी?’’

‘‘अरे तो तुम बाइक पर बैठो तभी तो… या वहां तक पैदल घसीटता हुआ अपनी ब्रैंड न्यू बाइक की तौहीन करूं… हा हा…’’

‘‘कुछ ही देर में शशांक के जोक्स से हंसतेहंसते मौली के पेट में बल पड़ गए. बहुत दिनों बाद वह खुल कर हंसी थी.’’

‘‘अब बस शशांक…’’ उस ने पेट पकड़ते हुए कहा, ‘‘सो रैग्युलेटेड, हाऊ

बोरिंग… न साथ में घूमना, न मूवी, न बाहर खाना, न किसी पार्टीफंक्शन में जाना. हद है यार, शादी करने की जरूरत ही क्या थी… अच्छा उन के लिए समोसे ले चलते हैं, कैसे नहीं खाएंगे देखता हूं. तुम झट अदरकइलायची वाली चाय बनाना, कौफी नहीं…’’ वह बिना संकोच किए मौली को घर छोड़ने को क्या मलय के साथ चाय भी पीने को तैयार था. मौली कैसे मना करे उसे, पता नहीं मलय क्या सोचे इसी उलझन में थी.

‘‘सोच क्या रही हो, बैठो मेरे इस घोड़े पर… अब देर नहीं हो रही?’’ अपनी बाइक की ओर इशारा कर के वह समोसे का थैला रख मुसकराते हुए फटाफट बाइक पर सवार हो गया.

घबरातेसकुचाते मौली को मलय से शशांक को मिलाना ही पड़ा. शशांक के बहुत जिद करने पर मलय ने समोसे का एक टुकड़ा तोड़ लिया था. चाय का एक सिप ले कर एक ओर रख दिया तो मौली झट उस के लिए कौफी बना लाई. शशांक ने कितनी ही मजेदार घटनाएं, जोक्स सुनाए पर मलय के गंभीर चेहरे पर कोई असर न हुआ. उस के लिए सब बचकानी बातें थीं. उस के अनुसार तो एक उम्र के बाद आदमी को धीरगंभीर हो जाना चाहिए. बड़ों को बड़ों जैसे ही बर्ताव करना चाहिए… कितनी बार मौली को उस से झाड़ पड़ चुकी थी इस बात के लिए.

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मलय उकता कर उठने को हुआ तो शशांक भी उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं चलता हूं. काफी बोर किया आप को, मगर जल्दी ही फिर आऊंगा, तैयार रहिएगा.’’

गेट तक आ कर मौली को धीरे से बोला, ‘‘जल्दी हार मानने वाला नहीं. इन्हें इंसान बना कर ही रहूंगा. कैसे आदमी से ब्याह कर लिया तुम ने. मिलता हूं कल शाम को… बाय.’’

इस से पहले मौली कुछ कहती वह किक मार फटाफट निकल गया.

दूसरे दिन 5 ही बजे शशांक मौली के घर उपस्थित था, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ, खड़ूसजी कहां हैं? उन्हें भी कहो गैट रैडी फास्ट,’’ मौली को हैरानी से अपनी ओर देखते हुए देख उस ने हंसते हुए हवा में आसमानी रंग के मूवी टिकट लहराए, जैसे कोई जादू दिखा रहा हो.़

‘‘रोहित शेट्टी की नई फिल्म की 3 टिकटें हैं.’’

‘‘तुम्हें बताया था न, नहीं जाते हैं मूवीशूवी और ऐसी कौमेडी टाइप तो बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘अरे बुलाओ तो उन्हें, ब्लैक कौफी वहीं पिलवा दूंगा और रात का डिनर भी

मेरी तरफ से. उन के जैसा सादा शुद्ध भोजन. ऐसे मत देखो, मैं यहां नया हूं यार. मेरा यहां कोई रिश्तेदार भी नहीं. वह तो अच्छा हुआ जो तुम मिल गईं…. चलोचलो जल्दी करो. कैब बुक कर दी है 20 मिनट में पहुंच जाएगी,’’ शशांक बेचैन हो रहा था.

मलय मना ही करता रह गया पर शशांक की जिद के आगे उस की एक न चली. जबरदस्ती मूवी देखनी पड़ी थी उसे. लौट कर हत्थे से उखड़ गया, खूब बरसा था मौली पर.

‘‘अपने दोस्त को समझा लो वरना मैं ही कुछ उलटा बोल दूंगा तो रोती फिरोगी कि मेरे दोस्त को ऐसावैसा बोल दिया. तुम को जाना है तो जाओ, उस के बेवकूफी भरे जोक्स तुम ही ऐंजौय करो. बहुत टाइम है न तुम्हारे पास फालतू…’’

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मांपापा के जाने का दुख मौली को भी था पर मलय जितना नहीं होगा यह भी सही है पर जिंदगी तो चलानी ही है. कब तक यों ही मुंह लटकाए रहा जा सकता है. मौली याद करती जब अपने पापा को खोया था तो उस की उम्र 20 साल की रही होगी… कुछ दिनों तक लगता था कि सब खत्म हो गया पर जल्द ही खुद को संभाल लिया. फिर पूरे घर का माहौल खुशनुमा बना दिया था. अपनी पढ़ाई भी पूरी की. टीचिंग शुरू कर मां की घर चलाने में मदद भी करने लगी थी.

यहां मलय को खुश करने की सारी कोशिश बेकार थी. 2 साल हो गए थे मगर हर समय मायूसी छाई रहती. टीवी में भी उस की कोई दिलचस्पी न थी. मौली के पसंद के शोज को वह बकवास, बच्चों वाले, मैंटल के खिताब भी दे डालता. हार कर मौली ने पास ही में स्कूल जौइन कर लिया कि कुछ तो दिल लगेगा, घर पर भी ट्यूशंस लेने लगी. अब कुछ अच्छा लगने लगा था उसे. समय कैसे गुजर जाता पता ही नहीं चलता. काम के साथसाथ सब से हंसनाबोलना भी हो जाता. पर शनिवार को मलय घर होता, बच्चों का शोरगुल उसे कतई रास न आता. भुनभुन करता ही रहता. मौली कोशिश करती कि शनिवार को बच्चों को न बुलाए पर परीक्षा हो तो बुलाना ही पड़ता.

उस के व्यस्त रहने और कुछ मलय की बेरुखी समझने के कारण शशांक का घर आना कम हो गया था. पर शनिवार को वे अवश्य मिल लेते. मौली पेट भर हंस लेती जैसे हफ्ते भर का कोटा पूरा कर रही हो. इधर स्कूल का भी काम बढ़ने लगा था. बच्चों की परीक्षाएं आ गई थीं, मौली को अधिक समय देना पड़ता.

मौली ने खाना बनाने के लिए कामवाली रख ली. लाख कोशिशों के बाद भी मौली सास के बने खाने जैसा स्वाद नहीं ला सकी थी… मलय को चिड़चिड़ तो करनी ही थी, हो सकता है कामवाली के हाथ का खाना पसंद आ जाए.

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मौली हरदम खुद को संवार के रखती कि इसी बहाने कभी तो प्यार के 2 मीठे बोल बोले, कुछ प्यारी सी टिप्पणी कर दे, पर वह कभी कुछ न बोलता. बात वह पहले भी कहां करता था. हंसीठिठोली उसे पसंद नहीं थी, यह सब उसे बचकानी हरकतें लगतीं. उस के खट्टेमीठे अनुभव में उस की कोई दिलचस्पी न थी.

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पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

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3. हौट बैग

पीरियड्स में होने वाले दर्द में हौट बैग काफी कारगर होता है. इसको पेट के उस हिस्से पर रखना होता है जहां दर्द महसूस हो रहा है. ऐसा करने से आपको आराम मिलेगा.

4. कैफीन से रहें दूर

पीरियड्स के दौरान काफीन से दूरी बनाएं रखें. इस वक्त में इसके सेवन से गैस की परेशानी होती है. गैस के कारण कई बार दर्द बढ़ जाता है.

5. एक्सरसाइज को अपनी रूटीन में शामिल करें

डेली रूटीन में एक्सरसाइज को शामिल करने से आपको दर्द में काफी राहत मिलेगी. इससे ब्लौटिंग की परेशानी में भी काफी राहत मिलती है.  ब्लौटिंग की वजह से ही दर्द महसूस होता है. ऐसे में लाइट एक्‍सरसाइज करने से आपकी मसल्‍स रिलैक्‍स महसूस करेंगी.

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6. नमक से भी बना लें दूरी

पीरियड्स में ब्लौटिंग होना एक आम बात है. ऐसे में अगर आप पीरियड्स से कुछ समय पहले ही नमक का सेवन कम कर देती हैं तो आपकी किडनी को अत्यधिक पानी निकालने में मदद मिलने के साथ आपको दर्द में भी राहत मिलेगी.

घर के इंटीरियर में जरूर शामिल करें ये 5 चीजें

पूरा साल व्यस्त रहने के कारण हम चाह कर भी घर के इंटीरियर के साथ छेड़छाड़ नहीं कर पाते और उसे देखदेख कर ऊब जाते हैं. अगर आप भी उन्हीं में शामिल हैं तो इस दीवाली अपने घर के इंटीरियर में इन 5 चीजों को शामिल कर घर को दें नया व शानदार लुक:

1. ऐंट्रैंस डोर से पाएं फैस्टिव साउंड

दीवाली के खुशनुमा माहौल में ऐंट्रैंस डोर की सजावट भी फीकी नहीं रहनी चाहिए, क्योंकि यह न सिर्फ घर में अपनों को प्रवेश देता है, बल्कि उन्हें बांधे भी रखता है. ऐसे में जरूरी है कि डोर की खास सजावट हो. आप इसे पेंट द्वारा नया बना सकते हैं, साथ ही तोरण व बंदनवार से भी सजाएं, क्योंकि इन के बिना त्योहार की सजावट अधूरी ही लगती है.

आप चाहें तो फूलों से सजा तोरण डोर पर लगा सकती हैं या फिर घंटी, रिबन, मिरर वर्क से बनी बंदनवार सभी डोर के आकर्षण को बढ़ाने का काम करेंगे. खासकर डोर पर लगी डैकोरेटिव रिंगिंग बैल्स से निकलने वाली आवाजें जब कानों में गूंजेंगी तो मन खुशी से झूम उठेगा.

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2. थोड़ा रीअरेंज थोड़ा रीलुक

एकजैसा लुक, एकजैसा स्टाइल किसी को भी बारबार देखना पसंद नहीं होता है. खासकर तब जब बात हो त्योहारों की. इस समय तो मन कुछ हट कर करने व सोचने को करता है. यहां सबकुछ बदलने की जरूरत नहीं वरन थोड़े रिअरेंज और थोड़े रीलुक से अपने लिविंगरूम को मनचाहा लुक दे सकती हैं.

इस के लिए आप सब से पहले अपने लिविंग रूम की स्पेस चैक करें. अगर रूम काफी स्पेशियस है तो आप साइड कौर्नर्स लगा कर उन की खूबसूरती को उभार सकती हैं. इस के अलावा कोई सुंदर सा इंडोर प्लांट भी घर की खूबसूरती को बढ़ाने का काम करेगा. हां, अगर रूम में स्पेस कम है, तो आप अपने सोफे की सैटिंग में थोड़ा फेरबदल कर के रूम को स्पेशियस बनाएं. सोफे के साथ बड़ी टेबल की जगह छोटी कौफी टेबल रखें, जो अलग दिखने के साथसाथ जगह भी कम घेरेगी.

रूम में चेंज लाने के लिए दीवारों पर पेंट करवाने की जगह वौलपेपर भी ट्राई कर सकती हैं, यकीन मानिए यह दीवारों के साथसाथ घर में भी नई जान डालेगा और देखने वाले भी देखते रह जाएंगे.

3. लेटैस्ट कुशन कवर्स

हर दीवाली पर सोफा चेंज करना संभव नहीं होता, मगर उस के लुक को बदलना हमारे हाथ में होता है, जो न सिर्फ सोफे को नया लुक देता है, बल्कि रूम में भी नया बदलाव लाता है. मार्केट में ढेरों लेटैस्ट डिजाइनों के कवर्स उपलब्ध हैं, जिन में प्रमुख हैं- प्रिंटेड, ऐंब्रौयडर्ड, थीम बेस्ड, स्टोन वर्क, गोटा पट्टी वर्क, मल्टी कलर्ड कुशन कवर्स, टैक्स्ट वर्क, ब्लौक प्रिंट कुशन कवर, टील कवर, सिल्क कवर, वैलवेट कुशन कवर, हैंडमेड कुशन कवर्स आदि.

4. परदों से निखारें इंटीरियर

घर में परदों के बिना खिड़कीदरवाजों की रौनक फीकी सी लगती है. ऐसे में अगर आप इस दीवाली घर को पेंट करवाने के मूड में नहीं हैं तो सिर्फ परदे बदल कर घर को दें नया लुक. इस के लिए कौटन के परदों से थोड़ा हट कर सोचें, क्योंकि अब उन की जगह नैट, टिशू, लिनेन, क्रश व सिल्क के परदों ने ले ली है. तो फिर इस फैस्टिव सीजन आप नैट के परदों के बीच सिल्क या टिशू के परदों के स्टाइल को भी कैरी कर सकती हैं.

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5. बालकनी की सजावट भी हो खास

बालकनी की सजावट के लिए शुरुआत करें गमलों को सजाने से फिर घर के मुख्यद्वार व बालकनी में रंगोली बनाएं. यह न सिर्फ आप के हुनर का प्रदर्शन करेगी, बल्कि घरको भी खूबसूरत बनाएगी. बालकनी में लाइटिंग की भी खास व्यवस्था रखें. इस बात का खास ध्यान रखें कि लडि़यां ब्रैंडेड हों ताकि उन के खराब होने पर आप की मेहनत पर पानी न फिरे. छोटेछोटे दीयों व हैंगिंग झूमर से भी बालकनी को डैकोरेट कर सकती हैं.

Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी

Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी- भाग 2

चंद्रा खड़ी थी सामने. तो क्या श्रीमती गोयल अपनी चंद्रा ही हैं जिस के लेख अकसर देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपते हैं?

‘‘जरा किस्मत देखो, पति शादी के 5 साल बाद अपने से आधी उम्र की लड़की के साथ भाग गया. औलाद कोई है नहीं. अफसोस होता है मुझे श्रीमती गोयल के लिए.’’

काटो तो रक्त नहीं रहा मेरी शिराओं में. आंखें फाड़फाड़ कर मैं अपने सहयोगी का चेहरा देखने लगा जो बड़बड़ा भी रहा था और बड़ी रुचि ले कर चंद्रा को सुन भी रहा था. इस सत्य का इतना बड़ा धक्का लगेगा मुझे मैं नहीं जानता था. ब्लड प्रेशर का मरीज तो हूं ही मैं, उसी का दबाव इतना बढ़ गया कि लंच बे्रेक तक पहुंच ही नहीं पाया मैं. तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि अस्पताल में जा कर ही मेरी आंख खुली.

‘‘सोम, क्या हो गया तुम्हें? क्या सुबह कुछ परेशानी थी?’’

चंद्रा ही तो थी मेरे पास. इतने लोगों की भीड़ में बस चंद्रा. शायद 22 वर्ष पुरानी दोस्ती का ही नाता था जिस का प्रभाव चंद्रा की आंखों में था. माथे पर उस का हाथ और शब्दों में ढेर सारी चिंता.

‘‘अब कैसे हो, सोम?’’

50 के आसपास पहुंच चुका हूं मैं. वर्माजी, वर्मा साहब सुनसुन कर कान इतने पथरा गए हैं कि अपना नाम याद ही नहीं था मुझे. मांबाप अब जिंदा नहीं हैं और छोटी बहन भाई कह कर पुकारती है. बरसों बाद कोई नाम से पुकार रहा है. कल से यही आवाज है जो कानों में रस घोल रही है और आज भी यही आवाज है जो संजीवनी सी घुल रही है कानों में.

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‘‘सोम, क्या हुआ? तुम्हारे घर में सब ठीक तो हैं न…क्या परेशानी है…मुझ से बात करो.’’

क्या बात करूं मैं चंद्रा से? समझ नहीं पा रहा हूं क्या कहूं. डाक्टर ने आ कर मेरी पूरी जांच की और बताया… अभी भी मैं पूरी तरह सामान्य नहीं हूं. सुबह तक यहीं रुकना होगा.

‘‘तुम्हारे घर से बुला लूं किसी को, तुम्हारी पत्नी को, बच्चों को, अपने घर का नंबर दो.’’

अधिकार के साथ आज भी चंद्रा ने मेरा सामान टटोला और मेरा कार्ड निकाल कर घर का नंबर मिलाया. एक बार 2 बार, 10 बार.

‘‘कोई फोन नहीं उठा रहा. घर पर कोई नहीं है क्या?’’

मैं ने इशारे से चंद्रा को पास बुलाया. बड़ी हिम्मत की मुसकराने में.

‘‘ऐसा कुछ नहीं है. सब ठीक है…’’

‘‘तो कोई फोन क्यों नहीं उठाता. तुम भी परेशान हो और मुझ से कुछ छिपा रहे हो?’’

‘‘हमारे पास छिपाने को है ही क्या, चंद्रा? तुम भी खाली हाथ हो और मैं भी. मेरे घर पर जब कोई है ही नहीं तो फोन का रिसीवर कौन उठाएगा.’’

‘‘क्या मतलब?’’

अब चौंकने की बारी चंद्रा की थी. हंसने लगा मैं. तभी हमारे कुछ सहयोगी मुझे देखने चले आए. मुझे हंसते देखा तो आंखें तरेरने लगे.

‘‘वर्माजी, यह क्या तमाशा है. हमें दौड़ादौड़ा कर मार दिया और आप यहां तमाशा करने में लगे हैं.’’

‘‘इन के परिवार का पता है क्या आप के पास? कृपया मुझे दीजिए. मैं इन की पत्नी को बुला लेना चाहती हूं. ऐसी हालत में उन का यहां होना बहुत जरूरी है.’’

पलट कर चंद्रा ने उन आने वालों से सारी बात करना उचित समझा. कुछ पल को चुप हो गए सब के सब. बारीबारी से एकदूसरे का चेहरा देखा और सहसा सब सच सुना दिया.

‘‘इन की तो शादी ही नहीं हुई… पत्नी का पता कहां से लाएंगे…वर्माजी, आप ने इन्हें बताया नहीं है क्या?’’

‘‘अपनी सहपाठी से इतने सालों बाद मिले, कल रात देर तक पुरानी बातें भी करते रहे तो क्या आप ने अपने बारे में इतना सा भी नहीं बताया?’’

‘‘इन्होंने पूछा ही नहीं, मैं बताता कैसे?’’

‘‘श्रीमती गोयल, आप वर्माजी के साथ पढ़ती थीं. ऐसी कौन लड़की थी जिस की वजह से वर्माजी ने शादी ही नहीं की. क्या आप को जानकारी है?’’

‘‘नहीं तो, ऐसी तो कोई नहीं थी. मुझे तो याद नहीं है…क्यों सोम? कौन थी वह?’’

‘‘सब के सामने क्यों पूछती हो. कुछ तो मेरी उम्र का खयाल करो. तुम्हारी यह आदत मुझे आज भी अच्छी नहीं लगती.’’

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‘‘कौन थी वह, सोम? जिस का मुझे ही पता नहीं चला.’’

‘‘बस, हो गया न मजाक,’’ मैं जरा सा चिढ़ गया.

‘‘तुम जाओ चंद्रा. मैं अब ठीक हूं. यह लोग रहेंगे मेरे पास.’’

‘‘कोई बात नहीं. मैं भी रहूंगी यहां. कुछ मुझे भी तो पता चले, आखिर इस उच्च रक्तचाप का कारण क्या है. कोई चिंता नहीं, कोई तनाव नहीं, कल ठीक थे न तुम, आज सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि सीधे यहीं आ पहुंचे.’’

मैं ने चंद्रा को बहुत समझाना चाहा लेकिन वह गई नहीं. सच यह भी है कि मन से मैं भी नहीं चाहता था कि वह चली जाए. उथलपुथल का सैलाब जितना मेरे अंदर था शायद उस से भी कुछ ज्यादा अब उस के मन में होगा.

सब चले गए तो हम दोनों रह गए. वार्ड ब्वाय मेरा खाना दे गया तो उसे चंद्रा ने मेरे सामने परोस दिया.

‘‘आज सुबह ही मुझे तुम्हारे बारे में पता चला कि श्रीमती गोयल तुम हो…तुम्हारे साथ इतना सब बीत गया. उसी से दम इतना घुटने लगा था कि समझ ही नहीं पाया, क्या करूं.’’

अवाक् सी चंद्रा मेरा चेहरा देखने लगी.

‘‘तुम्हारे सुखी भविष्य की कल्पना की थी मैं ने. तुम मेरी एक अच्छी मित्र रही हो. जब भी तुम्हें याद किया सदा हंसती मुद्रा में नजर आती रही हो. तुम्हारे साथ जो हो गया तुम उस लायक नहीं थीं.

‘‘मैं तुम्हारा सिर थपथपाया करता था और तुम मुझे ‘पापा’ कह कर चिढ़ाती थीं. आज ऐसा ही लगा मुझे जैसे मेरे किसी बच्चे का जीवन नर्क हो गया और मैं जान ही नहीं पाया.’’

‘‘वे सब पुरानी बातें हैं, सोम, लगभग 17-18 साल पुरानी. इतनी पुरानी कि अब उन का मुझ पर कोई असर नहीं होता तो तुम ने उन्हें अपने दिल पर क्यों ले लिया? वह इनसान मेरे लायक नहीं था. इसीलिए वहीं चला गया जहां उस की जगह थी.’’

उबला दलिया अपने हाथों से खिलातेखिलाते गरदन टेढ़ी कर चंद्रा हंस दी.

‘‘तुम छोटे बच्चे हो क्या सोम, जो इतनी सी बात पर इतने परेशान हो गए. जीवन में कई बार गलत लोग मिल जाते हैं, कुछ देर साथ रह कर पता चलता है हम तो ठीक दिशा में नहीं जा रहे… सो रास्ता बदल लेने में क्या बुराई है.’’

‘‘रास्ता ही खो जाए तो?’’

‘‘तो वहीं खडे़ रहो, कोई सही इनसान आएगा… सही रास्ता दिखा देगा.’’

‘‘दुखी नहीं होती हो, चंद्रा.’’

‘‘कम से कम अपने लिए तो कभी नहीं होती. खुशनसीब हूं…मेरे पास कुछ तो है. दालरोटी मिल रही है…समाज में मानसम्मान है…ढेरों पत्र आते हैं जो मुझे अपने बच्चों जैसे प्यारे लगते हैं. इतने साल कट गए हैं सोम, आगे भी कट ही जाएंगे. जो होगा देख लेंगे.’’

‘‘बस चंद्रा, और खाया नहीं जाएगा,’’ पतला दलिया मेरे गले में सूखे कौर जैसा अटकने लगा था. उस का हाथ रोक लिया मैं ने.

‘‘शुगर के मरीज हो न, भूखे रहोगे तो शुगर कम हो जाएगी…अच्छा, एक और चीज है मेरे पास तुम्हारे लिए…सुबह होस्टल में ढोकला बना था तो मैं ने तुम्हारे लिए पैक करवा लिया था…सोचा, क्या पता आज फिर से सेमिनार लंबा ख्ंिच जाए और तुम भूख से परेशान हो कर कुछ खाने को बाहर भागो.’’

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‘‘मेरी इतनी चिंता रही तुम्हें?’’

‘‘अब अपना है कौन जिस की चिंता करूं? कल बरसों बाद अपना नाम तुम्हारे होंठों से सुना तो ऐसा लगा जैसे कोई आज भी ऐसा है जो मुझे नाम से पुकार सकता है. कोई आज भी ऐसा है जो बिना किसी बनावट के बात शुरू भी कर सकता है और समाप्त भी. बहुत चैन मिला था कल तुम से मिल कर. सुबह नाश्ते में भी तुम्हारा खयाल आया.’’

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Serial Story: मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी- भाग 3

चंद्रा रो पड़ी थी. मेरा प्याला तो पहले ही छलकने के कगार पर था. सच ही तो कह रही है चंद्रा…अब अपना है ही कौन जो चिंता करे. मेरी चिंता करने वाले मेरे मांबाप भी अब नहीं हैं और शायद चंद्रा के भी अब इस संसार में नहीं होंगे.

देर तक एकदूसरे के सामने बैठे हम अपने बीते कल और अकेले आज पर आंसू बहाते रहे, न उस ने मुझे चुप कराना चाहा और न मैं ने ही उसे रोका.

काफी समय बीत गया. जब लगा मन हलका हो गया तब हाथ उठा कर चंद्रा का सिर थपथपा दिया मैं ने.

‘‘बस करो, अब और कितना रोओगी?’’

रोतेरोते हंस पड़ी चंद्रा. आंखें पोंछ अपना पर्स खोला और मेरे लिए लाया ढोकला मुझे दिखाया.

‘‘जरा सा चखना चाहोगे, मुंह का स्वाद अच्छा हो जाएगा.’’

लगा, बरसों पीछे लौट गया हूं. आज भी हम जवान ही हैं…जब आंखों में हजारोंलाखों सपने थे. हर किसी की मुट्ठी बंद थी. कौन जाने हाथ की लकीरों में क्या होगा. अनजान थे हम अपने भविष्य को ले कर और अनजाने रहने में ही कितना सुख था. आज सबकुछ सामने है, कुछ भी ढकाछिपा नहीं. पीछे लौट जाना चाहते हैं हम.

‘‘मन नहीं हो रहा चंद्रा…भूख भी नहीं लग रही.’’

‘‘तो सो जाओ, रात के 9 बज गए हैं.’’

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‘‘तुम होस्टल चली जातीं तो आराम से सो पातीं.’’

‘‘यहां क्या परेशानी है मुझे? पुराना साथी सामने है, पुरानी यादों का अपना ही मजा है, तुम क्या जानो.’’

‘‘मैं कैसे न जानूं, सारी समझदारी क्या आज भी तुम्हारी जेब में है?’’

मेरे शब्दों पर पुन: चौंक उठी चंद्रा. मुझे ठीक से लिटा कर मुझ पर लिहाफ ओढ़ातेओढ़ाते उस के हाथ रुक गए.

‘‘झगड़ा करना चाहते हो क्या?’’

‘‘इस में नया क्या है? बरसों पहले जब हम अलग हुए थे तब भी तो एक झगड़ा हुआ था न हमारे बीच.’’

‘‘याद है मुझे, तो क्या आज हारजीत का निर्णय करना चाहते हो?’’

‘‘हां, आखिर मैं एक पुरुष हूं. जाहिर सी बात है जीतना तो चाहूंगा ही.’’

‘‘मैं हार मानती हूं, तुम जीत गए.’’

‘‘चंद्रा, मेरी बात सुनो…’’ सामने बेंच की ओर बढ़ती चंद्रा का हाथ पकड़ लिया मैं ने. पहली बार ऐसा प्रयास किया है मैं ने और मेरा यह प्रयास एक अधिकार से ओतप्रोत है.

‘‘मेरे पास बैठो, यहां.’’

एक उलझन उभर आई है चंद्रा की आंखों में. शायद मेरा यह प्रयास मेरी अधिकार सीमा में नहीं आता.

‘‘सब के सामने तो तुम पूछती हो कि मेरा परिवार कहां है? मेरी पत्नी कहां है? अगर शादी नहीं की तो क्यों नहीं की? अकेले में क्यों नहीं पूछतीं? अभी हम अकेले हैं न. पूछो मुझ से कि मैं किस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र?’’

मेरे हाथ से अपना हाथ नहीं छुड़ाया चंद्रा ने. मेरी बगल में चुपचाप बैठ गई.

‘‘बरसों पहले भी मैं तुम से हारना नहीं चाहता था. तब भी मेरे जीतने का मतलब अलग होता था और आज भी अलग है…

‘‘तुम्हें हरा कर जीतना मैं ने कभी नहीं चाहा. तब भी जब तुम सही प्रमाणित हो जाती थीं तो मुझे खुशी होती थी और आज भी तुम्हारी ही जीत में मेरी जीत है.

‘‘चंद्रा, तुम्हारे सुख की कामना में ही मेरा पूरा जीवन चला गया और आज पता चला मेरा चुप रह जाना किसी भी काम नहीं आया. मेरा तो जीनामरना सब बस, यों ही…

‘‘देखो चंद्रा, जो हो गया उस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. वही हुआ जो होना था. स्वयं पर गुस्सा आ रहा है मुझे. जिस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र, कम से कम कभी उस का हाल तो पूछ लेता. तुम जैसी किसी को खोजखोज कर थक गया. थक गया तो खोज समाप्त कर दी. तुम जैसी भला कोई और हो भी कैसे सकती थी. सच तो यह है कि तुम्हारी जगह कोई और न ले सकती थी और न ही मैं ने वह जगह किसी को दी.’’

डबडबाई आंखों से चंद्रा मुझे देखती रही.

‘‘मेरे दिल पर इसी सत्य ने प्रहार किया है कि मेरा चुप रह जाना आखिर किस के काम आया. न तुम्हारे न ही मेरे. एक घर जो कभी बस सकता था… बस ही नहीं पाया… किसी का भी भला नहीं हुआ. खाली हाथ तुम भी हो और मैं भी.’’

‘‘कल से तुम्हें महसूस कर रही हूं मैं सोम. 50 के आसपास तो मैं भी पहुंच चुकी हूं. तुम जानते हो न मेरी छटी इंद्री की सूचना कभी गलत नहीं होती…जिस इनसान से मेरी शादी हुई थी वह कभी मुझे अपना सा नहीं लगा था. और सच में वह मेरा कभी था भी नहीं…उस के बाद हिम्मत ही नहीं हुई किसी पर भरोसा कर पाऊं.’’

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‘‘क्या मुझ पर भी भरोसा नहीं कर पाओगी?’’

‘‘तुम तो सदा से अपने ही थे सोम, पराए कभी लगे ही नहीं थे. आज इतने सालों बाद भी लगता नहीं कि इतना समय बीत गया. तुम पर भरोसा है तभी तो पास बैठी हूं…अच्छा, मैं पूछती हूं तुम से…

‘‘सोम, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मत पूछना, क्योंकि अपनी बरबादी का सारा जिम्मा मैं तुम्हीं पर डाल दूंगा जो शायद तुम्हें बुरा लगेगा. तुम्हारे बाद रास्ता ही खो गया. वहीं खड़ा रहा मैं…दाएंबाएं कभी नहीं देखा. तनमन से वैसा ही हूं जैसा तुम ने छोड़ा था.’’

‘‘तनमन से मैं तो वैसी नहीं हूं न. 2 संतानें मेरे गर्भ में आईं और चली गईं. पहले उन्हीं को याद कर के दुखी हो लेती थी फिर सोचा पागल हूं क्या मैं? जिंदा पति किसी बदनाम औरत का हाथ पकड़ गंदगी में समा गया. उसे नहीं बचा पाई तो उन बच्चों का क्या रोना जिन्हें कभी न देखा न सुना. कभीकभी तो लगता है पत्थर बन गई हूं जिस पर सुखदुख का कोई असर नहीं होता.’’

‘‘असर होता है. असर कैसे नहीं होता?’’ और इसी के साथ मैं ने चंद्रा को अपने पास खींच लिया. फिर सस्नेह उस का माथा सहला कर सिर थपथपा दिया.

‘‘असर होता है तुम पर चंद्रा. समय की मार से हम समझदार हो गए हैं, पत्थर तो नहीं बने. पत्थर बन जाते तो एकदूसरे के आरपार कभी नहीं देख पाते.’’

मेरे हाथों की ही सस्नेह ऊष्मा थी जिस ने दर्द की परतों को उघाड़ दिया.

‘‘यदि आज भी एकदूसरे का हम सहारा पा लें तो शायद 100 साल जी जाएं और उस हिसाब से तो अभी मध्यांतर भी नहीं हुआ.’’

नन्ही बच्ची की तरह रो पड़ी चंद्र्रा. बांहों में छिपा कर माथा चूम लिया मैं ने. छाती में जो हलकाफुलका दर्द सुबह शुरू हुआ था सहसा कहीं खो सा गया.

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‘‘आप का परिवार कहां है,

सोम? अब तो बच्चे बड़े

हो गए होंगे. मैं ने तो सोचा भी नहीं था, इस तरह अचानक हमारा मिलना हो जाएगा.’’

‘‘सब के सामने आप यह कैसा सवाल पूछने लगी हैं, चंद्राजी. कहां के बच्चे… कैसे बच्चे…अभी तो हमारी उम्र खेलनेखाने की है.’’

चंद्रा के चेहरे की मुसकान फैलतेफैलते रुक गई. उस ने आगेपीछे देखा मानो जो सुना उसी पर अविश्वास करने के लिए किसी का समर्थन चाहती हो. उस ने गौर से मेरा चेहरा देखा और बोली, ‘‘अरे भई, बाल काले कर लेना कोई बड़ी बात नहीं. उम्र छिपा कर दिखाओ तो मानें. आंखों का बढ़ता नंबर और चाल में आए ठहराव को छिपाया नहीं जा सकता. हां, अगर अपना नाम ही बदल लो तो मैं मान लूंगी कि पहचानने में मैं ही भूल कर गई हूं. आप सोम नहीं हैं न?’’

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चंद्रा के शब्दों का तर्क आज भी वही है जो बरसों पहले था. वह आज भी उतनी ही सौम्य है जितनी बरसों पहले थी. बल्कि उम्र के साथ पहले से भी कहीं ज्यादा गरिमामय लग रहा है चंद्रा का स्वरूप. मुसकरा पड़ा मैं. हाथ बढ़ा कर चंद्रा का सर थपथपा दिया.

‘‘याद है तुम मुझे क्या कहा करती थीं जब हम पीएच.डी. कर रहे थे. वह आदत आज भी बदली नहीं. निहायत निजी बातें तुम सब के सामने पूछने लगती हो…’’

‘‘पहचान लिया है मैं ने. आज भी मेरे पापा की तरह सर थपथपा रहे हो. तब भी तुम मुझे मेरे पापा जैसे लगते थे…आज भी वैसे ही हो…तुम जरा भी नहीं बदले हो, सोम.’’

20-22 साल पुरानी दोस्ती और सौहार्द्र आंखों में नमी बन कर तैरने लगा था. सुबह से सेमिनार में व्यस्त था. पहचान तो बहुत लोगों से थी लेकिन कोई अपना सा पा कर यों लगने लगा है जैसे बुझते दिए में किसी ने तेल डाल दिया हो.

‘‘तुम कहां ठहरी हो, चंद्रा?’’

‘‘यहीं होस्टल में ही हमारा इंतजाम किया गया है.’’

‘‘भूख नहीं लगी तुम्हें, 7 बज रहे हैं. आओ, चलो मेरे साथ…कुछ खा कर आते हैं.’’

मैं ने कहा तो साथ चल पड़ी चंद्रा. हम ने टैक्सी पकड़ी और 5-10 मिनट बाद ही हम उसी जगह पर खडे़ थे जहां अकसर 20-22 साल पहले हमारा गु्रप खानेपीने आया करता था.

‘‘क्या खाओगी, चंद्रा, बोलो?’’

‘‘कुछ भी हलकाफुलका मंगवा लो. भारी खाना मुझे पचता नहीं है.’’

‘‘मैं भी मीठा नहीं ले पाऊंगा, शुगर का मरीज हूं. इसीलिए भूख सह नहीं पाता. मुझे घबराहट होने लगती है.’’

डोसा और इडली मंगवा लिया चंद्रा ने. कुछ पेट में गया तो शरीर की झनझनाहट कम हुई.

‘‘तुम्हें खाने की कोई चीज पास रखनी चाहिए थी, सोम.’’

‘‘क्या पास रखनी चाहिए थी? यह देखो, है न पास में. अब क्या इन से पेट भर सकता है?’’

जेब से मीठीनमकीन टाफियां निकाल सामने रख दीं मैं ने. दोपहर में खाना खाया था. उस के बाद सेमिनार इतना लंबा ख्ंिच गया कि शाम के 7 बज गए. 6 घटे में क्या मेरी तबीयत खराब नहीं हो जाती.

मुसकरा पड़ी चंद्रा, ‘‘इस का मतलब है अब हम बूढे़ हो गए हैं. तुम्हें शुगर है, मेरा जिगर ठीक से काम नहीं करता. लगता है हमारी एक्सपायरी डेट पास आ रही है.’’

‘‘नहीं तो, ऐसा क्यों सोचती हो. हम बूढे़ नहीं हो रहे बडे़ हो रहे हैं, ऐसा सोचो. जीवन का सार हमारे सामने है. बीता कल अपना अनुभव लिए है जिस का उपयोग हम भविष्य को सुधारने में लगा सकते हैं.’’

पुरानी बातों का सिलसिला चला और खूब चला. चंद्रा के साथ विश्वविद्यालय के भव्य पार्क में हम रात 10 बजे तक बैठे रहे.

‘‘अच्छा समय था वह भी. बहुत याद आता है वह एकएक पल,’’ ठंडी सांस ली थी चंद्रा ने.

‘‘क्या बीता समय लौटाया नहीं जा सकता?’’

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‘‘हमारे बच्चे हमारा बीता कल ही तो हैं, जो हमें नहीं मिला वह बच्चों को दिला कर हम अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं. जीवन इसी का नाम है…पुराना गया नया आया.’’

मुझे होटल तक पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 बज गए. मैं थक गया हूं फिर भी मन प्रफुल्लित है. अपनी सहपाठी से जो मिला हूं इतने बरसों बाद. बहुत अच्छी दोस्ती थी मेरी चंद्रा के साथ. अच्छे इनसान अकसर कम होते हैं और इन्हीं कम लोगों में अकसर मैं चंद्रा की गिनती  किया करता था. कभीकभी हमारे बीच झगड़ा भी हो जाया करता था जिस की वजह हमारी निजी कमी नहीं होती थी. उसूलों की धनी थी चंद्रा और यही उसूल अकसर टकरा जाते थे.

मैं कभी चंद्रा को झुकने को कह देता तो उस का जवाब होता था, ‘‘मैं केंचुआ बन कर नहीं जी सकती. प्रकृति ने मुझे रीढ़ की हड्डी दी है न. मैं वैसी ही हूं जैसी मुझ से प्रकृति उम्मीद करती है.’’

‘‘तुम्हारी फिलासफी मेरी समझ में नहीं आती.’’

‘‘तो मत समझो, तुम जैसे हो रहो न वैसे. मैं ने कब कहा मुझे समझो.’’

7-8 लड़केलड़कियों का गु्रप था हमारा जिस में हर स्वभाव का इंसान था… बस, चंद्रा ही थी जो अपनी सीमाओं, अपनी दलीलों में बंधी थी.

मैं चंद्रा की नसनस से वाकिफ था. उस के चरित्र और बातों में गजब की पारदर्शिता थी, न कहीं कोई लागलपट न हेरफेर. कभी कोई गोलमोल बात करने लगता तो वह झुंझला जाती.

‘‘यह जलेबी क्यों पका रहे हो? सीधी तरह मुद्दे की बात पर क्यों नहीं आते…साफसाफ कहो क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘कोई भी बात कभीकभी इतनी सीधी सरल नहीं न होती चंद्रा जिसे हम झट से कह दें…कुछ बातें छिपानी भी पड़ती हैं.’’

‘‘तो छिपाओ उन्हें, आधीअधूरी भी क्यों बतानी. तुम्हें अगर लगता है बात छिपाने वाली है तो सब के सामने उस का उल्लेख भी क्यों करना. पूरी तरह छिपा लो न.’’

मुझे आज भी याद है जब हम आखिरी बार मिले थे तब भी झगड़ कर ही अलग हुए थे. वह दिल्ली लौट गई थी और मैं आगरा. उस के बाद कभी नहीं मिले थे. उस की शादी की खबर मिली थी जिस पर इक्कादुक्का मित्र ही पहुंच पाए थे.

दूसरे दिन विश्वविद्यालय पहुंचे तो नजरें चंद्रा को ही खोजती रहीं. कहने को तो ढेर सारी बातें कल हम ने की थीं लेकिन अपनी निजी एक भी बात हम नहीं कर पाए थे.

‘‘किसे खोज रहे हैं, वर्माजी? किसी का इंतजार है क्या?’’

मेरी नजरों को भांप गए थे मेरे एक सहयोगी.

‘‘हां, वह मेरी सहपाठी मिल गई थीं कल मुझे. आज भी उन्हीं को खोज रहा हूं.’’

‘‘लंचब्रेक में ढूंढ़ लीजिएगा. अभी जरा इन की बातें सुनिए. इन की बातों का मैं सदा ही कायल रहता हूं. मिसेज गोयल की फिलासफी कमाल की होती है. कभी इन के लेख नहीं पढे़ आप ने…कमाल की सोच है.’’

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Mother’s Day Special: रिश्तों की कसौटी- भाग 2

बड़ी होने पर मालती ने स्वयं से जीवनभर एक अच्छी और आदर्श पत्नी व मां बन कर रहने का वादा किया था, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया था. उन की शादी से पहले की दीवाली आई. मालती के ससुराल वालों की ओर से ढेरों उपहार खुद अमित ले कर आया था. अमित ने अपनी तरफ से मालती को रत्नजडि़त सोने की अंगूठी दी थी. कितना इतरा रही थीं मालती अपनेआप पर. बदले में पिताजी ने भी अमित को अपने स्नेह और शगुन से सिर से पांव तक तौल दिया.

दोपहर के खाने के बाद बूआजी के साथ घर के सामने वाले बगीचे में अमित और मालती बैठे गपशप कर रहे थे. इतने में उन के चौकीदार ने एक बड़ा सा पैकेट और रसीद ला कर बूआजी को थमा दी.

रसीद पर नजर पड़ते ही बूआ खीजती हुई बोलीं, ‘2 महीने पहले कुछ पुराने अलबम दिए थे, अब जा कर स्टूडियो वालों को इन्हें चमका कर भेजने की याद आई है,’ और पैसे लेने वे घर के अंदर चली गईं. ‘लो अमित, तब तक हमारे घर की कुछ पुरानी यादों में तुम भी शामिल हो जाओ,’ कह कर मालती ने एक अलबम अमित की ओर बढ़ा दिया और एक खुद देखने लगीं.

संयोग से मालती के बचपन की फोटो वाला अलबम अमित के हाथ लगा था, जिस में हर एक तसवीर को देख कर वह मालती को चिढ़ाचिढ़ा कर मजे ले रहा था. अचानक एक तसवीर पर जा कर उस की नजर ठहर गई. ‘यह कौन है, मालती, जिस की गोद में तुम बैठी हो?’ अमित जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा था.

‘यह मेरी मां हैं. तुम्हें तो पता ही है कि ये हमारे साथ नहीं रहतीं. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रहे हो? क्या तुम इन्हें जानते हो?’ मालती ने उत्सुकता से पूछा. ‘नहीं, बस ऐसे ही पूछ लिया,’ अमित ने कहा.

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‘ये हम सब को छोड़ कर वर्षों पहले ही मुंबई चली गई थीं,’ यह स्वर बूआजी का था. बात वहीं खत्म हो गई थी. शाम को अमित सब से विदा ले कर दिल्ली चला गया.

इतना पढ़ने के बाद सुरभी ने देखा कि डायरी के कई पन्ने खाली थे. जैसे उदास हों. फिर अचानक एक दिन अमित साहनी के पिता का माफी भरा फोन आया कि यह शादी नहीं हो सकती. सभी को जैसे सांप सूंघ गया. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. अमित 2 सप्ताह के लिए बिजनेस का बहाना कर जापान चला गया. इधरउधर की खूब बातें हुईं पर बात वहीं की वहीं रही. एक तरफ अमित के घर वाले जहां शर्मिंदा थे वहीं दूसरी तरफ मालती के घर वाले क्रोधित व अपमानित. लाख चाह कर भी मालती अमित से संपर्क न बना पाईं और न ही इस धोखे का कारण जान पाईं.

जगहंसाई ने पिता को तोड़ डाला. 5 महीने तक बिस्तर पर पड़े रहे, फिर चल बसे. मालती के लिए यह दूसरा बड़ा आघात था. उन की पढ़ाई बीच में छूट गई. बूआजी ने फिर से मालती को अपने आंचल में समेट लिया. समय बीतता रहा. इस सदमे से उबरने में उसे 2 साल लग गए तो उन्होंने अपनी पीएच.डी. पूरी की. बूआजी ने उन्हें अपना वास्ता दे कर अमित साहनी जैसे ही मुंबई के जानेमाने उद्योगपति के बेटे परेश से उस का विवाह कर दिया.

अब मालती अपना अतीत अपने दिल के एक कोने में दबा कर वर्तमान में जीने लगीं. उन्होंने कालेज में पढ़ाना भी शुरू कर दिया. परेश ने उन्हें सबकुछ दिया. प्यार, सम्मान, धन और सुरभी. सभी सुखों के साथ जीते हुए भी जबतब मालती अपनी उस पुरानी टीस को बूंदबूंद कर डायरी के पन्नों पर लिखती थीं. उन पन्नों में जहां अमित के लिए उस की नफरत साफ झलकती थी, वहीं परेश के लिए अपार स्नेह भी दिखता था. उन्हीं पन्नों में सुरभी ने अपना बचपन पढ़ा.

रात के 3 बजे अचानक सुरभी की आंखें खुल गईं. लेटेलेटे वे मां के बारे में सोच रही थीं. वे उन के उस दुख को बांटना चाहती थीं, पर हिचक रही थीं.

अचानक उस की नजर उस बड़ी सी पोस्टरनुमा तसवीर पर पड़ी जिस में वह अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी थी. वह पलंग से उठ कर तसवीर के करीब आ गई. काफी देर तक मां का चेहरा यों ही निहारती रही. फिर थोड़ी देर बाद इत्मीनान से वह पलंग पर आ बैठी. उस ने एक फैसला कर लिया था. सुबह 6 बजे ही उस ने पापा को फोन लगाया. सुन कर सुरभी आश्वस्त हो गई कि पापा के लौटने में सप्ताह भर बाकी है. वह पापा की गैरमौजूदगी में ही अपनी योजना को अंजाम देना चाहती थी.

उस दिन वह दिल्ली में रह रहे दूसरे पत्रकार मित्रों से फोन पर बातें करती रही. दोपहर तक उसे यह सूचना मिल गई कि अमित साहनी इस समय दिल्ली में अपने पुश्तैनी मकान में हैं. शाम को मां को बताया कि दिल्ली में उस की एक पुरानी सहेली एक डाक्युमेंटरी फिल्म तैयार कर रही है और इस फिल्म निर्माण का अनुभव वह भी लेना चाहती है. मां ने हमेशा की तरह हामी भर दी. सुरभी नर्स और कम्मो को कुछ हिदायतें दे कर दिल्ली चली गई.

अब समस्या थी अमित साहनी जैसी बड़ी हस्ती से मुलाकात की. दोस्तों की मदद से उन तक पहुचंने का समय उस के पास नहीं था, इसलिए उस ने योजना के अनुसार अपने ससुर ईश्वरनाथ से अपनी ही एक दोस्त का नाम ले कर अमित साहनी से मुलाकात का समय फिक्स कराया. ईश्वरनाथ के लिए यह कोई बड़ी बात न थी. अगले दिन सुबह 10 बजे का वक्त सुरभी को दिया गया. आज ऐसे वक्त में पत्रकारिता का कोर्स उस के काम आ रहा था.

खैर, मां की नफरत से मिलने के लिए उस ने खुद को पूरी तरह से तैयार कर लिया. अगले दिन पूरी जांचपड़ताल के बाद सुरभी ठीक 10 बजे अमित साहनी के सामने थी. वे इस उम्र में भी बहुत तंदुरुस्त और आकर्षक थे. पोतापोती व पत्नी भी उन के साथ थे.

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परिवार सहित उन की कुछ तसवीरें लेने के बाद सुरभी ने उन से कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे पर असल मुद्दे पर न आ सकी, क्योंकि उन की पत्नी भी कुछ दूरी पर बैठी थीं. सुरभी इस के लिए भी तैयार हो कर आई थी. उस ने अपनी आटोग्राफ बुक अमित साहनी की ओर बढ़ा दी. अमित साहनी ने जैसे ही चश्मा लगा कर पेन पकड़ा, उन की नजर मालती की पुरानी तसवीर पर पड़ी. उस के नीचे लिखा था, ‘‘मैं मालतीजी की बेटी हूं और मेरा आप से मिलना बहुत जरूरी है.’’

पढ़ते ही अमित का हाथ रुक गया. उन्होंने प्यार भरी एक भरपूर नजर सुरभी पर डाली और बुक में कुछ लिख कर बुक सुरभी की ओर बढ़ा दी. फिर चश्मा उतार कर पत्नी से आंख बचा कर अपनी नम आंखों को पोंछा.

सुरभी ने पढ़ा, लिखा था : ‘जीती रहो, अपना नंबर दे जाओ.’ पढ़ते ही सुरभी ने पर्स में से अपना कार्ड उन्हें थमा दिया और चली गई.

फोन से उस का पता मालूम कर तड़के साढ़े 5 बजे ही अमित साहनी सिर पर मफलर डाले सुरभी के सामने थे. ‘‘सुबह की सैर का यही 1 घंटा है जब मैं नितांत अकेला रहता हूं,’’ उन्होंने अंदर आते हुए कहा.

सुरभी उन्हें इस तरह देख आश्चर्य में तो जरूर थी, पर जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘सर, समय बहुत कम है. इसलिए सीधी बात करना चाहती हूं.’’ ‘‘मुझे भी तुम से यही कहना है,’’ अमित भी उसी लहजे में बोले.

आगे पढ़ें- सुन कर अमित साहनी की नजरें झुक गईं…

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पायल देव ने गाया सलमान खान की फिल्म ‘राधे’ का गाना ‘दिल दे दिया‘, पढ़ें खबर

एक बार फिर गायिका व संगीतकार पायल देव ने सलमान खान और जैकलीन फर्नांडीज पर फिल्माए गए फिल्म ‘राधे’के गाने ‘दिल दे दिया‘ को गाकर एक नए इतिहास का सूत्रपात किया है. ‘राधे‘ के इस गाने को संगीतकार हिमेश रेशमिया के निर्देशन में पायल देव ने अपनी सुमधुर आवाज से स्वरबद्ध किया है.

जीहॉ! वर्तमान समय में पायल देव की पहचान बिजी संगीतकार के रूप में होती है. जबकि  पायल ने अपने करियर की शुरुआत एक गायिका के तौर पर किया था. अपनी बेहद अलहदा आवाज के लिए जाने जानेवाली और हर तरह के गानों को गाने को बहुत ही आसानी से गाने की काबिलियत रखनेवाली संगीतकारों की पहली पसंद बन गयी. मगर देखते ही देखते वह एक गायिका के साथ एक संगीतकार के तौर पर भी पहचाने जाने लगीं. यही वजह हे कि जब फिल्म‘राधे’के गीत ‘दिल दे दिया’को हिमेश रेशमिया ने संगीतबद्ध किया, तो उन्होने इसे गवाने के लिए पायल देव को बुलाया.

 

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खुद पायल देव कहती हैं- ‘‘हर गाना अपने आप में अनूठा होता है. और हर गाने को अनूठा बनाने का काम संगीतकार और म्यूजिक  अरेंजर ही करते हैं. उसके बाद गायक से  उम्मीद की जाती है कि वह उम्दा तरीके से उस गीत को गाए. हर बार जब मैं किसी गाने को अलग अंदाज में गाती हूं, तो वह मेरे लिए जीवन को बदलकर रख देने वाला अनुभव साबित होता है. ‘‘

फिल्म‘राधे‘ के ‘दिल दे दिया‘ गाने की चर्चा करते हुए पायल कहती हैं-‘‘यह गाना मेरे लिए बहुत अहम है. क्योंकि इसके सलमान खान और हिमेश रेशमिया की जोड़ी जुड़ी हुई है. जिसके लिए मैंने अपनी आवाज दी है. हिमेश रेशमिया मेरी आवाज के टेक्सचर से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. एक संगीतकार के तौर पर वह अच्छी तरह से जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए.  उनके लिए किसी गाने को गाना बेहद आसान होता है और इसी सहज तरीके से वह एक गायक को किसी गाने को गाने के लिए निर्देशित करते हैं. ‘‘

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पायल आगे कहती हैं,  ‘‘किसी भी गाने की खूबी उसमें अंतर्निहित मूड में होता है. इस गाने का मूड ‘जुम्मे की रात‘ गाने जैसा है. मैंने ‘गेंदा फूल‘ और ‘रेस 3’ में ‘सासें हुईं धुआं धुआं‘ भी गाया था.  जैकलीन के लिए यह मेरा तीसरा,  तो वहीं सलमान के लिए यह मेरा चैथा गाना है.  इस गाने को बेहतरीन अंदाज में गाने के लिए मैंने पूरी तरह से हिमेश भाई के निर्देशों का पालन किया है. उन्हें मुझ पर पूरा भरोसा था कि मैं इस गाने के साथ न्याय करूंगी.  मुझ पर उनका यूं यकीन करना मेरे लिए बहुत मायने रखता है. उन्हें मेरी आवाज का टेक्सचर बहुत पसंद हैं और वह मेरी आवाज के नए आयामों के साथ प्रयोग करते रहते हैं. वह मेरी आवाज के अलग टेक्सचर,  अलग टोन,  अलग तरह के फील के साथ गाने को एक अलग ऊंचाई पर ले जाते हैं.  यह एक डांस ट्रैक है और जब आप इस तरह के गाने गाते हो तो उसके एक लिए एक खास तरह का मूड होना मेरी लिए बहुत जरूरी होता है.  एक गायक के तौर पर जब आप गाने के मूड को अच्छी तरह से समझ जाते हो और फिर उसे अपने अंदाज में गाते हो, तो फिर जादू होना स्वाभाविक होता है.  ऐसा ही कुछ ‘दिल दे दिया‘ है गाने के साथ भी हुआ है. ’’

सभी जानते है कि बतौर संगीतकार पायल के पहले सुपरहिट गाने ‘तुम ही आना‘ के बाजार में आते ही उनके पास बतौर संगीतकार कई गानों के अॉफरों का अंबार लग गया था.  तब से पायल ने एक के बाद एक कई हिट गाने दिए हैं, फिर चाहे वो फिल्मों के गाने हों या फिर वह गाने डिजिटल रिलीज से जुड़े हों.

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फैमिली के बाद दीपिका पादुकोण को भी हुआ कोरोना, पिता हुए अस्पताल में एडमिट

कोरोनावायरस की दूसरी लहर का कहर इन दिनों घातक देखने को मिल रहा है. जहां आम जनता औक्सीजन की कमी से परेशान है तो वहीं सेलेब्स पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. दूसरी लहर मे कई सेलेब्स कोरोना के शिकार हो गए हैं. वहीं हाल ही में खबर थी कि बौलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण की फैमिली को भी कोरोना हो गया है, जिनमें उनकी मां, पिता और बहन शामिल हैं. वहीं अब खबर है कि दीपिका भी कोरोना की शिकार हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

पिता हुए अस्पताल में भर्ती

बीते दिन दीपिका पादुकोण के पिता और पूर्व भारतीय बैडमिंटन प्लेयर प्रकाश पादुकोण, मां और बहन के कोरोना संक्रमित होने की खबर सामने आई थी. दरअसल, दीपिका के पिता पिछले हफ्ते भर से कोरोना संक्रमित हैं. वहीं हाल ही में तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल एडमिट कराया गया था. लेकिन अब उनकी तबीयत में सुधार है और 2-3 दिन बाद उन्हें छुट्टी भी मिल जाएगी. वहीं प्रकाश पादुकोण की वाइफ और बेटी अनीशा ने अपना कोरोना टेस्ट कराया जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई.

 

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दीपिका को हुआ कोरोना

 

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पिता, मां और बहन के कोरोना होने के बाद अब बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण भी कोरोना की चपेट में आ गई हैं. दरअसल, फिलहाल दीपिका पादुकोण बेंगलुरु में अपनी फैमिली के साथ हैं, जिसके चलते उन्हें भी कोरोना हो गया है. वहीं दीपिका के फैंस उनके परिवार और उनके लिए स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं.

बता दें, हाल ही में रुबीना दिलैक और हिना खान कोरोना संक्रमित हो गए थे. वहीं हाल ही में खबर थी कि एक्टर अनिरुद्ध दवे भी कोरोना के कारण अस्पताल में भर्ती हो गए हैं. हालांकि अब उनकी हालत ठीक बताई जा रही है.

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