Jimmy Sheirgill ने कोरोना गाइडलाइंस तोड़कर 100 लोगों के साथ पंजाब में की शूटिंग, FIR दर्ज

कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है. जहां कोरोना के मामले 3 लाख से ऊपर पहुंच गए हैं तो वहीं मौत का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है. इसी बीच राज्य सरकारे कड़ी सख्ती के साथ कोरोना गाइडलाइंस का पालन कर रही हैं. इसी बीच खबर है कि एक बौलीवुड एक्टर ने पंजाब में शूटिंग के दौरान कोरोना गाइडलाइंस को तोड़ा है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

कोरोना नियमों की उड़ाई धज्जियां

बीते दिन बौलीवुड के जाने माने एक्टर जिमी शेरगिल (Jimmy Sheirgill) पंजाब के लुधियाना में सोनी लिव की एक वेब सीरीज योर ऑनर (Your Honor) की शूटिंग करते नजर आए थे, जिसकी लोकेशन लुधियाना के आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 8 बजे तक शूटिंग कर रहे थे. वहीं इस दौरान खबर है कि वहां 100 से ज्यादा लोग मौजूद थे. दरअसल, पंजाब सरकार की कोरोना गाइडलाइंस के मुताबिक राज्य में शाम 6 बजे के बाद शूटिंग बंद है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jimmy Sheirgill (@jimmysheirgill)


ये भी पढ़ें- अनुपमा होगी Tumor की शिकार तो तलाक से इंकार करेगा वनराज

पुलिस ने की FIR

इसी मामले में पुलिस ने कोरोना दिशानिर्देशों के उल्लंघन के आरोप में पुलिस ने दो क्रू मेंबर्स को अरेस्ट भी किया है. हालांकि बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया. वहीं हाल ही में जिमी शेरगिल ने कोरोना वैक्सीन लगवाई थी, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल भी हुई थी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jimmy Sheirgill (@jimmysheirgill)

बता दें, इन दिनों सीरियल्स और फिल्मों की शूटिंग के लिए सितारे शहर-शहर घूम रहे हैं. दरअसल, मुंबई में लौकडाउन के कारण सीरियल्स की शूटिंग गोवा , हैदराबाद जैसी जगहों पर हो रही थीं. वहीं अब खबर है कि गोवा में भी वहां की सरकार ने 3 मई तक लौकडाउन लगाने का फैसला लिया है, जिसके बाद मेकर्स नई जगह तलाश रहे हैं.

ये भी पढ़ें- कार्तिक-सीरत की सगाई में होगा जोरदार जश्न, शिवांगी-मोहसिन की क्यूट फोटोज

भारतीय जनता पार्टी और चुनाव

पत्नी हो तो उत्तर प्रदेश के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर जैसे की जो पति के रेप कांड में पकड़े जाने और जेल जाने के बावजूद न केवल पति के प्रति समॢथत है, उस की पार्टी के प्रती भी. भारतीय जनता पार्टी ने उस व्यकित की पत्नी को पार्टी को पंचायत चुनावों के लिए टिकट दिया था जिस पर एक से बढ़ कर गंभीर आरोप लगे थे और जिन में रेप का आरोप भी था और अदालतों ने सजा सुना दी.

यह भी मानना पड़ेगा कि भारतीय जनता पार्टी अपने को वास्तव में वैसा अमृत मानती है जो हर पाप से मुक्ति दिला दे. कुलदीप सेंगर को कुकर्मों के लिए सजा देने की जगह पार्टी उस की पत्नी को टिकट दे कर यह साबित कर रही है कि रेप, हत्या जैसी चीजें बड़ी बात नहीं है अगर व्यक्ति भाजपा में है. पार्टी यह भी कहती है कि एक पत्नी को अपने कुख्यात पति के प्रति निष्ठावान भी रहना चाहिए और जन्मों के बंधन रेप हत्या जैसी छोटी चीजों के कारण तोड़ा नहीं जा सकता.

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट पहले या, बीजेपी की राजनीति

दरअसल पार्टी मानती है कि जो धर्म की शरण में आ जाता है चाहे वह विभीषण हो या सुग्रीव अपना हो जाता है, उस के सारे पाप धुल जाते हैं. कुंती और द्रोपदी के पाप कृष्ण के निकट आने से धुल गए थे न. कुलदीप सेंगर को देश की अदालतों ने गुनाहगार माना है, न पार्टी ने न पत्नी ने.

कुलदीप सेंगर से उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज भी जेल में मिलने गए थे और यह बता आए थे कि सुखी रहें, शीघ्र मुक्ति मिल जाएगी. वे कोई दलित या कांग्रेसी या वामपंथी या लालू यादव थोड़े ही हैं कि सदा जेल में रहेंगे.

भारतीय जनता पार्टी को अगर बुरा लगा तो यह कि खुराफाती तत्वों ने पत्नी की निष्ठा और समर्पण का आदर नहीं किया गया और पंचायत चुनाव में उसे टिकट देने पर हल्ला मचा डाला गया. ईश्वर जैसे संरक्षक होने के बावजूद संगीता सेंगर को टिकट अभी नहीं दिया गया है पर यह पक्का है कि दोषी दोषमुक्त हो चुका है. हत्या बलात्कार जैसी चीजें तो होती रहती है.

ये भी पढ़ें-  कोरोना महामारी- धार्मिक स्टंटबाजी बनी दुकानदारी

फोन पर लंबी बातचीत करना किशोरों में विकास का है एक तरीका

टीनएजर और उनके फोन पर देर तक बातचीत करने के बारे में कई किस्से कहानियां होती हैं. माता पिता द्वारा कई शिकायतें की जाती हैं और इसके बारे में वे एक दूसरे से चुटकुले भी शेयर करते हैं. चूंकि इन दिनों परिवार के ज्यादातर सदस्य कोरोना संक्रमण के कारण ज्यादातर समय घर मंे रह रहे हैं, इसलिए किशोरों की फोन पर की जाने वाली लंबी लंबी बातचीतें कुछ ज्यादा दिख भी रही हैं और सुनने में भी आ रही हैं. लेकिन यह कोरोना संकट न हो तो भी इस उम्र के बच्चे (टीनएजर) अकसर फोन पर बहुत देर तक बातें करते हैं. दरअसल बच्चे जब छोटे होते हैं तो जिस फोन पर बातचीत करने में उन्हें दिक्कत होती है, वही अब इस उम्र के उनके हाथ में होता है. इसलिए भी वे लंबे समय तक इससे चिपके रहते हैं. जाहिर है इस बातचीत में लड़के लड़कियां डेटिंग भी करते हैं अगर सब कुछ सही हो तो ये बातें भी होती हैं कि आज पार्टी कहां पर होनी है, क्या पहनना है, फलां क्या पहनकर आ रही है या आ रहा है वगैरह वगैरह.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस उम्र मंे बच्चों का फोन के साथ लगाव बढ़ जाता है; क्योंकि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ होता है. भले ही उनके माता पिता उन्हें वक्त गुजारने का एक जरिया भर समझें. कुछ हद तक यह उनके लिए फायदेमंद होता है और काफी हद तक नुकसानदायक भी क्योंकि इससे कई बार उनके आॅनलाइन पढ़ाई और होमवर्क पर भी बुरा असर होता है. वास्तव मंे टीनएजर फोन का इस्तेमाल बड़ों और बच्चों की तुलना में अलग तरह से करते हैं. घर के बड़े सदस्य जरूरत हो तभी फोन पर बातें करते हैं. लेकिन टीनएजर कोई काम न हो तो भी लंबे समय तक बातचीत करते हैं. अगर आपस में बातचीत किये काफी वक्त बीत गया है, तो इसलिए भी लंबी बातचीत करते हैं. पैरेंट्स को यह समझ ही नहीं आता कि स्कूल से तुरंत घर लौटने के बाद वे अपने उन्हीं दोस्तों से इतनी लंबी लंबी बातें कैसे कर लेते हैं, जिनके साथ अभी घंटों बिताकर आये हैं.

ये भी पढ़ें- खूबसूरत कल के लिए आज लव जिहाद है जरूरी!

पैरेंट्स इस बात को लेकर कई बार बहुत सोच में भी चले जाते हैं कि आखिर स्कूल से घर लौटने के बीच ऐसा उनके साथ क्या घटित होता है कि जिसके बारे में उन्हें अपने दोस्तों के साथ फोन पर लंबी बातचीत करनी पड़ती है. विशेषज्ञों की मानें तो इस सवाल का जवाब टीनएजर्स के जीवन में आने वाली उन मानसिक समस्याओं में है, जिन्हें वे अपने दोस्तों के साथ फोन पर छोटी छोटी बातों और अनुभवों के रूप में साझा करते हैं. वह उनसे पूछ सकते हैं कि उन्होंने जो चीज देखी क्या उसके दोस्त ने भी उसे उसी ढंग से देखा? जो उसने समझा है क्या वह भी वही समझ रहा है? बच्चों के लिए अपने इस तरह के सवालों का जवाब पाने के लिए उनके पास टेलिफोन या मोबाइल फोन, एक ऐसी चीज होती है जो उन्हें उसके साथ जोड़े रहती है या वह फोन पर उसके साथ जो बातचीत करते हैं, वह दोनो के बीच रहती है. इसके अलावा फोन ही उनके लिए एकमात्र वह जरिया होता है, जिसके द्वारा वे सामने जो बात नहीं कह सकते वह इस माध्यम से कह सकते हैं.

इससे दोस्ती बढ़ती है- फोन पर लंबी बातचीत के द्वारा टीनएजर एक दूसरे के साथ फ्रेंडशिप बनाते हैं और इससे उनमें विपरीत सेक्स के प्रति रिलेशनशिप बनाने में भी मदद मिलती है. टीनएजर अपने दोस्तों के साथ अपने विचार साझा करते हैं. यह वह उम्र होती है, जब उनके जीवन में फ्रेंडशिप के मायने बदल जाते हैं. अब वह वयस्क वाली दोस्ती होती है. इस दोस्ती को बनने और इसे मजबूती देने के लिए फोन ही उनके पास जरिया होता है.

अनुभव साझा करने में मदद मिलती है- इस उम्र में बच्चों के पास पर्याप्त समय होता है और उनमें कम्युनिकेशन स्किल का तेजी से विकास हो रहा होता है. इसलिए वह एक दूसरे के साथ खुलकर बातें करते हैं. छोटे बच्चे जहां खेलकूद की गतिविधियों में और एक दूसरे के साथ गप्पबाजी करने में अपना समय गुजारते हैं, वही टीनएजर इस गपशप में जल्द ही फ्रेंडशिप का एंगल जोड़ देते हैं. इस उम्र में उन्हें अपने अनुभव बड़े यूनीक लगते हैं और वह चाहते हैं कि उनके ये अनुभव उनके दोस्तों को भी पता चले. इसलिए भी वे फोन के जरिये इन्हें दोस्तों से साझा करते रहते हैं.

बातों से लड़कियां होती हैं परिपक्व- यदि आपकी बेटी टीनएजर है तो इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आपका लैंडलाइन या उसका मोबाइल ज्यादातर समय व्यस्त रहते होंगे. जानकारों का मानना है कि लड़कियां अपने विचारों को एक दूसरे के साथ, लड़कों की तुलना में ज्यादा साझा करती हैं. लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि लड़कों को अपनी फीलिंग्स को शेयर करने की जरूरत नहीं होती. हकीकत यही है कि लड़कियां अपनी भावनाओं का इजहार ज्यादा तेजी से करती हैं, शायद इसीलिए वे लड़कों की अपेक्षा जल्दी परिपक्व होती हैं.

उलझन में पड़ते हैं पैरेंट्स- अकसर टीनएजर बच्चों के पैरेंट्स की शिकायत होती है कि जब वह अपने फ्रेंड्स के साथ फोन पर इतनी बातें करते हैं तो वह अपने पैरेंट्स से इतने कम शब्दों में ही काम कैसे चला लेते हैं. दरअसल टीनएजर के जीवन में ऐसी बहुत सारी चीजें होती हैं जिन्हें अपने पैरेंट्स के साथ शेयर करने में वह खुद को अनकंफर्टेबल महसूस करते हैं. यह बुरी बात नहीं है. ऐसा होता है. इसलिए माता पिता को चाहिए कि बच्चों में आने वाले बदलाव को समझें और उनकी प्राइवेसी का सम्मान करे. क्योंकि एक बच्चा अपनी मां को यह बताने में शर्म महसूस कर सकता है कि उसे उसकी क्लास में पढ़ने वाली कोई खास लड़की बहुत अच्छी लगती है. वह अपनी मां से इसके बारे में कुछ बताने की बजाय अपने दोस्तों से ही बात करता है.

ये भी पढ़ें- 9 टिप्स: ऐसे रहेंगे खुश

बदलावों को समझने में मिलती है मदद- टीनएजर जब फोन पर लंबी लंबी बातें करते हैं तो उसकी एक वजह कई तरह के शारीरिक बदलावों को समझने में मदद हासिल करना भी होता है. क्योंकि वे अपने मम्मी-पापा से उन बातों में बात करते हुए तो असहज होते ही हैं, दोस्तों से भी आमने सामने ऐसी बातें करते हुए सहज नहीं होते. लेकिन फोन में उन सभी बातों को वे ईमानदारी से एक दूसरे के सामने रखते हैं और डिस्कस करते हैं. इससे उन्हें अपने ही बदलावों को समझने में मदद मिलती है.

इन बातों से साफ है कि टीनएजर आपस में फोन पर लंबी बातचीत किसी बुरी आदत के कारण नहीं करते बल्कि यह ज्यादा से ज्यादा बातचीत करना भी उनके जीवन विकास का हिस्सा है. इसलिए मां-बाप को चाहिए उन्हें फोन पर कम से कम या बिल्कुल ही बातचीत करने का लैक्चर न दें. हां, अगर वे ऐसा चाहते हों तो बच्चों को परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ समय बिताने के लिए प्रेरित करना चाहिए.

एक बार फिर: भाग 2- सुमित को क्या बताना चाहती थी आरोही

शनिवार और रविवार आरोही ने हमेशा की तरह अपने मम्मीपापा के साथ बिताए, तीनों थोड़ा घूम कर आए, बाहर खायापीया. रेखा आरोही की पसंद की चीजें बनाती रहीं, आरोही का बु  झा चेहरा देख 1-2 बार पूछा, ‘‘आरोही, सब ठीक तो है न? औफिस के काम का स्ट्रेस है क्या?’’

‘‘नहीं मम्मी, सब ठीक है.’’

रेखा सम  झदार मां थीं. सम  झ गईं, बेटी अभी अपने मन की कोई बात शेयर करने के मूड में नहीं है, जब ठीक सम  झेगी, खुद ही शेयर कर लेगी. मांबेटी की बौंडिंग अच्छी है, जब ठीक लगेगा, बताएगी. संडे की रात आरोही वापस मुंबई आने के लिए पैकिंग कर रही थी.

संजय ने कहा, ‘‘बेटा, एक परिचित हैं, उन्होंने अपने बेटे सुमित के लिए तुम्हारे लिए

बात की है. तुम जब ठीक सम  झो, उन से मिल लो, कहो तो अगली बार तुम्हारे आने पर उन्हें बुला लूं?’’

बैग बंद करते हुए आरोही के हाथ पल भर को रुके, फिर रेखा की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मु  झे थोड़ा समय दो.’’

संजय ने कहा, ‘‘अरे बेटा, अब तुम 30 की हो गई, वैलसैटल्ड हो… यह परिवार अच्छा है. एक बार मिल तो लो. सबकुछ तुम्हारी हां कहने के बाद ही होगा.’’

आरोही ने कहा, ‘‘इस समय मु  झे जाने दें, मैं बहुत जल्दी आप से इस बारे में बात कर लूंगी.’’

संजय और रेखा आज के जमाने के पेरैंट्स थे… उन्होंने बेटी पर अपनी मरजी कभी नहीं थोपी. उसे भरपूर सहयोग दिया हमेशा. यह भी एक कारण था कि आरोही बहुत स्ट्रौंग, बोल्ड और इंटैलीजैंट थी, वह अपनी शर्तों पर जीने वाली लड़की थी, फिर भी अपने पेरैंट्स की बहुत रिस्पैक्ट करती.

रेखा ने मन ही मन कुछ अंदाजा लगाया कि कोई बात है जरूर, हमेशा खिला रहने वाला

चेहरा यों ही नहीं बु  झा, फिर कहा, ‘‘ठीक है,

तुम आराम से जाओ… ये बातें तो फोन पर भी

हो जाएंगी.’’

मुंबई अपने फ्लैट पर आ कर आरोही ने देखा कि जय अपना सारा सामान ले जा चुका है… खालीखाली तो लगा पर उस ने अपनेआप को इतने समय में संभाल लिया था. उस ने यह बात स्वाभाविक तौर पर ली. खुद से ही कहा

कि इतने दिन का साथ था, कोई बात नहीं.

आदत थी उस की, छूट जाएगी. ऐसे   झूठे रिश्तों के लिए अफसोस करने में वह अपनी लाइफ नहीं बिता सकती. अभी बहुत कुछ करना है, खुश रहना है, जीना है, लाइफ जय जैसों के साथ खत्म नहीं हो जाती.

बस यह विचार आते ही आरोही रोज की तरह औफिस पहुंची. रवि ने बताया कि जय किसी दोस्त के साथ रहने चला गया है… तुम ने जो किया, ठीक किया.

जय के औफिस की बिल्डिंग से आतेजाते जब भी कभी उस का आमनासामना हुआ, आरोही के निर्विकार चेहरे को देख जय की कभी हिम्मत ही नहीं हुई उस से बात करने की. कुछ महीनों बाद आरोही ने पेरैंट्स के कहने पर सुमित से मिलना स्वीकार कर लिया.

सुमित मुंबई में ही काम करता था. वह अपने 2 दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करता था. पुणे में सुमित अपने मम्मीपापा, विकास और आरती और छोटी बहन सीमा के साथ उन के घर आया. पहली मीटिंग में तो सब एकदूसरे से मिल कर खुश हुए.

मुंबई में ही होने के कारण सुमित चाहता था कि वह मुंबई में ही जौब करने वाली लड़की के साथ शादी करे. सब को यह सोच कर अच्छा लग रहा था कि दोनों पुणे आतेजाते रहेंगे. दोनों के ही घर एक जगह थे, सबकुछ ही देखते तय होता गया. आरोही ने पेरैंट्स की पसंद का मान रखा, सुमित से जितना मिली, वह ठीक ही लगा.

आरोही चाहती थी कि नया रिश्ता वह ईमानदारी के साथ शुरू करे, वह

सुमित को जय के साथ लिव इन में रहने के बारे में बताना चाहती थी. इस बारे में जब उस ने अपने पक्के दोस्त रवि से बात की, तो रवि ने कहा, ‘‘क्या जरूरत है? मत बताओ, कोई भी लड़का कितनी भी मौडर्न हो, यह बरदाश्त नहीं करेगा.’’

‘‘क्यों? अगर वह मु  झे बताए कि वह भी किसी गर्लफ्रैंड के साथ लिव इन में रहा है, तो मैं तो कुछ नहीं कहूंगी, उलटा इस बात पर खुश होऊंगी कि मेरे होने वाले पति ने ईमानदारी के साथ मु  झ से अपना सच शेयर किया.’’

‘‘यार, तुम आरोही हो. सब से अलग, सब से प्यारी लड़की,’’ फिर आरोही को हंसाने के लिए शरारत से कहा, ‘‘मेरी बीवी आज तक मेरे कालेज की गर्लफ्रैंड को ले कर ताने मारती है… अब बोलो.’’

आरोही हंस पड़ी, ‘‘बकवास मत करो, जानती हूं मैं तुम्हारी बीवी को, वह बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘हां, यही तो… सम  झो, लड़के जल्दी हजम नहीं करते ऐसी बातों को… वह तो तुम बहुत बड़े दिल की हो.’’

रवि ने काफी सम  झाया पर आरोही जब सुमित के कहने पर उस के साथ डिनर पर गई, तो आरोही ने जय के बारे में सब बता दिया.

सुन कर सुमित मुसकराया, ‘‘तुम बहुत सच्ची हो. आरोही, मु  झे इन बातों का फर्क नहीं पड़ता, मेरे भी 2 ब्रेकअप हुए हैं, क्या हो गया. यह तो लाइफ है. होता ही रहता है. अब तुम मिली हो, बस मैं खुश हूं.’’

आरोही के दिल से जैसे बो  झ हट गया.

1-2 बार और सुमित से मिलने के बाद उस ने अपने पेरैंट्स को इस शादी के लिए हां कर दी. उन की खुशी का ठिकाना न था. 4 महीने बाद की शादी की डेट भी फिक्स हो गई.

दोनों पक्ष शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए. बहुत तो नहीं पर सुमित और आरोही बीचबीच में मिलते रहते, दोनों औफिस के काम में व्यस्त रहते पर चैटिंग, फोन कौल्स चलते रहते. शादी पुणे में ही धूमधाम से हुई. दोनों के काफी कलीग्स आए.

मुंबई आ कर आरोही के ही फ्लैट में सुमित अपने सामान के साथ शिफ्ट कर गया.

दोनों खुश थे, आरोही ने जय का खयाल पूरी तरह से दिलोदिमाग से निकाल दिया था. 1 साल बहुत खुशी से बीता.

आरोही अपनी लाइफ से अब पूरी तरह संतुष्ट व सुखी थी. दोनों छुट्टी होने पर कभी साथ पुणे निकल जाते, कभी किसी के पेरैंट्स मिलने आ जाते. सब ठीक था, आरोही की अगली 2 प्रोमोशंस तेजी से हुई, वह अब काफी अच्छे पैकेज पर थी, उस ने बहुत जल्दी अब एक अपना फ्लैट लेने की इच्छा जाहिर की.

सुमित ने कहा, ‘‘देखो आरोही, तुम्हारी सैलरी मु  झ से अब काफी ज्यादा है, तुम चाहो तो ले लो.’’

आरोही चौंकी, ‘‘अरे, मेरा पैसा तुम्हारा पैसा अलगअलग है क्या? हमारा भी प्यारा सा अपना घर होगा, कब तक इतना किराया देते रहेंगे?’’

‘‘देख लो, तुम ही सोच लो, मैं तो अपनी सैलरी से ईएमआई दे नहीं पाऊंगा, घर भी पैसा भोजना होता है मु  झे.’’

आरोही ने सुमित के गले में बांहें डाल दीं. कहा, ‘‘ठीक है, तुम बस मेरे साथ फ्लैट पसंद करते चलो, सब हो जाएगा.’’

यह सच था कि सुमित की सैलरी आरोही से बहुत कम थी और जब से आरोही की प्रोमोशंस हुई थीं, सुमित की मेल ईगो बहुत हर्ट होने लगी थी. वह अकसर उखड़ा रहता. आरोही यह सम  झ रही थी, उसे खूब प्यार करती, उस की हर जरूरत का ध्यान रखती और जब आरोही ने कहा कि सुमित, मैं सोच रही हूं, मैं औफिस जानेआने के लिए एक कार ले लूं. बस में ट्रैफिक में बहुत ज्यादा टाइम लग रहा है. मजा आएगा, फिर पुणे भी कार से जायाआया करेंगे, अभी तो बस और औटो में बैठने का मन नहीं करता.’’

सुमित ने कुछ तलख लहजे में कहा, ‘‘तुम्हारे पैसे हैं, चाहे उड़ाओ चाहे बचाओ, मु  झे क्या,’’ कह कर सुमित वहां से चला गया.

आरोही इस बदले रूप पर सिर पकड़ कर बैठी रह गई. 2 महीने में ही आरोही ने फ्लैट और कार ले ही ली. सुमित मशीन की तरह पसंद करने में साथ देता रहा.

थोड़ा समय और बीता तो आरोही को

सुमित के व्यवहार में कुछ और बदलाव दिखे, अब वह कहता, ‘‘तुम ही पुणे जा कर सब से मिल आओ, तो कभी कहता टूर पर जा रहा हूं, 2 दिनों में आ जाऊंगा.’’

आरोही ने कहा, ‘‘मैं भी चलूं? कार से चलते हैं, मैं घूम लूंगी… तुम अपना काम करते रहना. आनेजाने में दोनों का कुछ चेंज हो जाएगा.

सुमित ने साफ मना कर दिया. वह चला गया. अब वह पहले की तरह बाहर जा कर आरोही से उस की खबर बिलकुल न लेता. आरोही फोन करती तो बहुत बिजी हूं, घर आ

कर ही बात करूंगी, कह कर फोन रख देता. सुमित बहुत बदल रहा था और इस का कारण

भी आरोही के सामने जब आया, तो वह ठगी सी रह गई.

आगे पढ़ें- एक सुबह सुमित सो रहा था, उस का…

एक बार फिर: भाग 3- सुमित को क्या बताना चाहती थी आरोही

एक सुबह सुमित सो रहा था, उस का मोबाइल साइलैंट था, पर जब कविता नाम उस की स्क्रीन पर बारबार चमकता रहा, आरोही ने धीरे से फोन उठाया और दूसरे कमरे में जा कर जैसे ही हैलो कहा, फोन कट गया. आरोही ने यों ही व्हाट्सऐप चैट खोल ली और जैसेतैसे फिर कविता और सुमित की चैट पढ़ती गई, साफ हो गया कि दोनों का जबरदस्त अफेयर चल रहा है, गुस्से के मारे आरोही का खून खौल उठा.

साफसाफ सम  झ आ गया कि सुमित की बेरुखी का क्या कारण है. वह चुपचाप सोफे पर बैठी कभी रोती, कभी खुद को सम  झाती, सुमित के जागने का इंतजार कर रही थी, सुमित जब सो कर उठा, आरोही के हाथ में अपना फोन देख चौंका. आरोही का चेहरा देख उसे सब सम  झ आ गया. बेशर्मी से बोला, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘तुम बताओ, यह सब क्या चल रहा है?

‘‘तो तुम भी तो शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रही थी?’’

आरोही हैरान रह गई. बोली, ‘‘ये सब तो शादी से पहले की बात है और तुम्हें सब पता था. मैं ने तुम्हें शादी के बाद तो कभी धोखा नहीं दिया? तुम तो मु  झे अब धोखा दे रहे हो…’’

‘‘असल में मैं तुम से अलग होना चाहता हूं… मैं अब कविता से शादी करना चाहता हूं.’’

आरोही ने गुस्से से कहा, ‘‘तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आ रही है?’’

‘‘तुम्हें आई थी लिव इन में रहते हुए?’’

‘‘पहले की बात अब इतने दिनों बाद करने का मतलब? अब अपनी ऐय्याशी छिपाने के लिए मु  झ पर ऊंगली उठा रहे हो?’’

‘‘मैं ने अपना ट्र्रांसफर दिल्ली करवा लिया है. आज मैं पुणे जा रहा हूं,’’ कह कर सुमित आरोही की तरफ कुटिलता से देखते हुए मुसकराया और वाशरूम चला गया.

आरोही को कुछ नहीं सू  झ रहा था. यह क्या हो गया, अपना अफेयर चल रहा है, तो गड़े मुरदे उखाड़ कर मु  झ पर ही इलजाम डाल रहा है. मेड आ गई तो वह भी औफिस के लिए तैयार होने लगी और चुपचाप सुमित को एक शब्द कहे बिना औफिस चली गई.

रवि ने उस की उड़ी शकल देखी तो उसे कैंटीन ले गया और परेशानी का कारण पूछा. देर से रुके आंसू दोस्ती की आवाज सुन कर ही बह निकले. वह सब बताती चली गई. इतने में दोनों की एक और कलीग दोस्त सान्या भी आ गई. सब जान कर वह भी हैरान रह गई. थोड़ी देर बाद तीनों उठ कर काम में लग गए.

आरोही के दिल को चैन नहीं आ रहा था. फिर एक और धोखा. क्या करे. क्या यह रिश्ता किसी तरह बचाना चाहिए? नहीं, जबरदस्ती

कैसे किसी को अपने से बांध कर रखा जा सकता है? यह तो प्यार, विश्वास का रिश्ता है. अब तो कुछ भी नहीं बचा. वह अपना आत्मसम्मान खो कर तो जबरदस्ती इस रिश्ते को नहीं ढो सकती.. जो होगा देखा जाएगा. ऐसे रिश्ते का टूटना ही अच्छा है.

जब रात को आरोही घर लौटी, सुमित जा चुका था. वह अपनी पैकिंग अच्छी तरह

कर के गया था, लगभग सारा सामान ले गया. कुछ दिन बाद ही आरोही को तलाक के पेपर मिले तो वह रो पड़ी. यह क्या हो गया, सब बिखर गया. उस की कहां क्या गलती है.

सुमित ने उसे फोन किया और कहा, ‘‘साइन जल्दी कर देना, मैं कोर्ट में यही कहने वाला हूं कि तुम चरित्रहीन हो, तुम पहले भी लिव इन में बहुत समय रह चुकी हो और मु  झे ये सब बताया नहीं गया था.’’

‘‘पर मैं ने तुम्हें सारा सच बता दिया था और तुम्हें कोई परेशानी नहीं थी.’’

‘‘पर तुम्हारे पास कोई सुबूत नहीं है न कि तुम ने मु  झे सब बता दिया था.’’

आरोही चुप रह गई. अगले दिन रवि और सान्या ने सब जान कर अपना सिर पकड़ लिया. फिर सान्या ने पूछा, ‘‘आरोही, तुम ने कैसे बताया था सुमित को जय के बारे में?’’

‘‘मिल कर, फिर बहुत कुछ चैटिंग में भी इस बारे में बात होती रही थी.’’

‘‘चैट कहां है?’’

‘‘उन्हें तो मैं डिलीट करती रहती हूं. सुमित भी जानता है कि मु  झे चैट डिलीट करते रहने की आदत है.’’

‘‘अभी राजनीति में, ड्रग केसेज में जो इतनी चैट खंगाल दी गईं, वह भी नामी लोगों की, तो इस का मतलब यह मुश्किल भी नहीं.’’

‘‘और मेरे पास कविता और उस के अफेयर का सुबूत है… मैं ने जब उन दोनों की चैट पढ़ी, खूब सारी पिक्स ले ली थीं.’’

‘‘यह अच्छा किया तुम ने, गुस्से में होश नहीं खोया, दिमाग लगाया. भांडुप में मेरा कजिन सुनील पुलिस इंस्पैक्टर है, उस से बात करूंगी, वह तुम्हारी पुरानी चैट निकलवा पाएगा, इसे तो तलाक हम देंगे. बच्चू याद रखेगा.’’

सान्या ने उसी दिन सुनील से बात की. उस ने कहा सब हेल्प मिल जाएगी. रवि और सान्या आरोही के साथ खड़े थे. वीकैंड आरोही ने पुणे जा कर अपने पेरैंट्स से बात करने का, उन्हें पूरी बात बताने का मन बनाया.

अभी तक आरोही ने अपने पेरैंट्स से कुछ भी शेयर नहीं किया था. सुमित आरोही से अब बिलकुल टच में नहीं था. कभीकभी एक मैसेज तलाक के बारे में कर देता.

संजय और रेखा पूरी बात सुन कर सिर पकड़ कर बैठ गए. कुछ सम  झ न आया, दोनों को जय के बारे में भी अब ही पता चला था, क्या कहते, बच्चे जब आत्मनिर्भर  हो कर हर फैसला खुद लेने लगें तो सम  झदार पेरैंट्स, कुछ कहने का फायदा नहीं है, यह भी जानते हैं. जय के साथ, सुमित के साथ बेटी का अनुभव अच्छा नहीं रहा, प्यारी, सम  झदार बेटी दुखी है, यह समय उसे कुछ भी ज्ञान देने का नहीं है.

इस समय उसे अपने पेरैंट्स की सपोर्ट चाहिए. कोई ज्ञान नहीं… और सुमित तो गलत कर ही रहा था… जय की बात जरूर अजीब लगी थी, पर अब वे बेटी के साथ थे.

संजय ने कहा, ‘‘मैं आज ही वकील से बात करता हूं.’’

रेखा ने सुमित के पेरैंट्स अनिल और रमेश से बात की. मिलने के लिए कहा, उन्होंने आरोही को चरित्रहीन कहते हुए रेखा के साथ काफी अपमानजनक तरीके से बात की तो सब को सम  झ आ गया, यह रिश्ता नहीं बचेगा.

रवि और सान्या आरोही के टच में थे. सुनील ने काफी हिम्मत बंधा दी थी, बहुत कुछ सोच कर सुमित को आरोही ने फोन किया, ‘‘सुमित, मैं पुणे आई हुई हूं, कल सुबह चली जाऊंगी. आज तुम से मिलना चाहती हूं… कैफे कौफी डे में आज शाम को 5 बजे आओगे?’’

‘‘ठीक है,’’ पता नहीं क्या सोच कर सुमित मिलने के लिए तैयार हो गया.

आरोही बिना पेरैंट्स को बताए सुमित से मिलने के लिए पहुंची. दिल में अपमान और क्रोध का एक तूफान सा था. आज भड़ास निकालने का एक मौका मिल ही गया था. एक टेबल पर बैठा सुमित उसे देख कर जीत और बेशर्मी के भाव के साथ मुसकराया. उस के बैठते ही कहा, ‘‘देखो, गिड़गिड़ाना मत, मु  झे दीनहीन लड़कियां अच्छी नहीं लगतीं.’’

यह सुनते ही आरोही के दिल में कुछ बचा भी एक पल में खत्म हो गया. मजबूत स्वर में

बोली, ‘‘मु  झे भी धोखेबाज लोग अच्छे नहीं लगते. आज तुम्हें बस इतना बताने आई हूं कि मैं जा कर तलाक के पेपर साइन कर दूंगी… अभी तक पूरी तैयारी भी तो करनी थी.’’

सुमित उस की आवाज की मजबूती पर चौंका, ‘‘कैसी तैयारी?’’

‘‘तुम मु  झे चरित्रहीन बताने वाले हो न? मैं ने भी तुम्हारी और कविता की सारी चैट के फोटो ले लिए थे और इंस्पैक्टर सुनील हमारी वे चैट निकाल रहे हैं, जिन में मैं ने तुम्हें साफसाफ जय के बारे में पहले ही बता दिया था और तुम्हें

उस में कोई आपत्ति नहीं थी. तुम्हारे ऊपर तो ऐसीऐसी बात उठेगी कि किसी लड़की को आगे धोखा देना भूल जाओगे, सारी ऐयाशियां न भूल जाओ तो कहना.

‘‘मैं कभी कमजोर लड़की नहीं रही… तुम्हारे जाने का अफसोस हो ही नहीं सकता

मु  झे, मैं खुश हूं कि जल्द ही तुम से पीछा छूट गया. मैं तो एक बार फिर जीवन में आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार हूं. अब कोर्ट में अपने वकील के साथ मिलेंगे,’’ कह कर मुसकराते हुए आरोही खड़ी हो गई. फिर कुछ याद करते हुए बैठ गई. वेटर को इशारा करते हुए बिल मांगा और कहा, ‘‘कौफी भले ही ठंडी हो गई थी, भले ही पी भी नहीं, पर आज एक बार फिर मेरे आत्मविश्वास को देख कर तुम जैसे, जय जैसे पुरुष की यह उड़ी शकल देखने में बहुत मजा आया,’’ कहतेकहते उस ने पेमैंट की और वहां से निकल गई.

सुमित आने वाले तूफान से अभी से घबरा गया था.

खूबसूरत कल के लिए आज लव जिहाद है जरूरी!

कहानी थोड़ी फिल्मी प्रतीत होती है, लेकिन सच्ची है. लड़की सहारनपुर के एक संयुक्त मुस्लिम परिवार से है, जिसमें मिश्रित विवाह का इतिहास 1955 से है- हिन्दू-मुस्लिम, सिख-मुस्लिम, शिया-सुन्नी… इस परिवार में सभी रंग के जोड़े हैं. कारण- परिवार के दादा और दादी अपने समय से बहुत आगे थे. लेकिन लड़की की मां पुराने ख्यालात की है. अपनी बेटी का निकाह शरिअत (मुस्लिम कानून व रीति रिवाज) के पाबंद लड़के से करना चाहती है, जिसके लम्बी न सही मगर विराट कोहली जैसी दाढ़ी तो हो. क्या इतना काफी नहीं कि वह लगभग दो दशक से एक क्लीन शेव नास्तिक पति को बर्दाश्त करती आ रही है?

लड़का मेरठ के अग्रवाल परिवार से है. उसके संयुक्त व्यापारी परिवार को अपनी शुद्ध अग्रसेन वंशावली पर गर्व है. आज तक न वर्ण से बाहर और न ही पूर्व निर्धारित दहेज के बिना परिवार में कोई विवाह हुआ है. प्रेम विवाह की तो किसी ने कल्पना तक नहीं की है. घर में अंडे व प्याज तक का सेवन नहीं होता. लोग मांस भी खाते हैं यह सिर्फ सुना है, देखा नहीं. अब लड़का नाक कटवाने पर तुला है. वर्ण, जाति तो छोड़िये दूसरे धर्म की मांसभक्षी लड़की को दुल्हन बनाकर लाना चाहता है. क्या कलियुग है, धर्म भ्रष्ट करायेगा, पाप लगेगा.

लड़के और लड़की की मुलाकात दिल्ली में हुई थी. जब दोनों एक ही इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रहे थे. मुलाकातें प्रेम में कब बदल गईं, पता ही नहीं चला. फिर एक दूसरे के बिना रहना कठिन हो गया, दोनों ने आपस में शादी करने का फैसला किया. अपने-अपने पैरेंट्स को खबर देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, इश्क और मुश्क (सुगंध) छुपाने से कहां छुपते हैं. दोनों तरफ के पैरेंट्स इस रिश्ते से असहमत हैं. उन्हें उम्मीद है कि जवानी का जोश है कुछ समय में उतर जायेगा या योगी का एंटी रोमियो दस्ता खुद इश्क का भूत उतार देगा.

ये भी पढ़ें- 9 टिप्स: ऐसे रहेंगे खुश

हां, सावधानी जरूरी है, इसलिए दोनों के बीच सम्पर्क की राहों- मोबाइल, इंटरनेट, मिलना आदि- पर पाबंदी की कोशिशें हैं. ऐसे में साझा दोस्त बहुत काम आते हैं. लड़के को जैसे ही संदेश मिला वह अपनी बाइक पर सवार होकर लड़की के पिता से मिलने के लिए सहारनपुर के लिए निकल पड़ा. लड़की के पिता शिक्षित, सभ्य और नास्तिक होने के नाते धर्म, जाति के बंधनों से मुक्त हैं. दूरंदेश होने के कारण अपने विचार व फैसले अपने बच्चों पर थोपने के पक्ष में भी नहीं हैं. दोनों- संभावित दामाद और संभावित ससुर- की मुलाकात एक तालाब के किनारे होती है. पेड़ों के साये में, जमाने से थोड़ा छुपकर. समाज दकियानूसी और सरकार प्रेम विरोधी हो तो प्रगतिशील लोगों के लिए भी थोड़ी सावधानी बरतना लाजमी हो जाता है.
लड़का: मैं वास्तव में आपकी लड़की से बहुत प्यार करता हूं. उससे शादी करना चाहता हूं. उसे हमेशा खुश रखूंगा.

पिता: इस सबका क्या अर्थ है? तुम्हारा परिवार इस रिश्ते के खिलाफ है, मेरी पत्नी बात मानने को तैयार नहीं है. बात किस तरह से मनेगी?
लड़का: हम कोई न कोई रास्ता तो निकाल ही लेंगे…

पिता: रुको. क्या तुम उस कछवे को देख रहे हो, उसे तालाब में जिंदा रहने के लिए, दुश्मनों से बचा रहने के लिए मजबूत कवच की जरुरत होती है… लेकिन, मेरे बच्चे जब तुम्हारे अपने बच्चे होंगे तो तब क्या होगा? जब वह तुम्हारे घर जायेंगे तो उन्हें नमस्ते करना सिखाया जायेगा, हमारे घर आयेंगे तो हम अस-सलाम अलैकुम सिखाएंगे.

लड़का: दोनों संस्कृतियां सीखकर बच्चे खुले जहन के, ब्रॉड माइंडेड हो जायेंगे, जो उनके लिए अच्छा रहेगा, वह अपनी धार्मिक मान्यताएं स्वयं तय कर सकेंगे या आपकी तरह नास्तिक होने को भी चुन सकते हैं. बच्चों पर अपनी विचारधारा थोपना वैसे भी अच्छी बात नहीं है. उन्हें स्वतंत्रता से विकास करने दिया जायेगा…

पिता: एक मिनट रुको. उस पेड़ पर उस परिंदे को देख रहे हो? पक्षियों का क्या मजहब होता है? कभी मन्दिर पर जा बैठे, कभी मस्जिद पर जा बैठे… तुम परिंदों की तरह उड़ जाओ… भाग कर शादी कर लो. उसकी मां तो मानेगी नहीं. हां, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है.

लेकिन ‘दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ फिल्म से प्रभावित लड़का व लड़की नहीं भागे. पर जल्द ही दोनों को एहसास हो गया कि दोनों परिवारों की सहमति की प्रतीक्षा करना ऐसा है जैसे बस अड्डे पर खड़े होकर रेल का इंतजार किया जाये. लड़की ने अपने पिता की गुप्त मदद से अपने मामू को कॉल किया कि वह अपनी बहन को समझाएं. बड़े भाई ने रात भर अपनी बहन को किस्मत व आस्था पर उपदेश दिए, लड़की की मां न चाहते हुए भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गई. लड़के ने अपने पिता से स्पष्ट कह दिया- यह शादी या जीवनभर का ब्रह्मचर्य. वंश नहीं चला तो पुरखों का ऋण कौन उतारेगा, यह तर्क देते हुए लड़के के पिता ने मन मसोसकर हरी झंडी दिखा दी.

ये भी पढ़ें- कभी न दें बेवजह सलाह

लड़की के पिता को साथ लेकर लड़के ने मेरठ की कचहरी में कोर्ट मैरिज के लिए दस्तक दी. वकील ने दोनों को ऐसे देखा जैसे किसी ने उस पर जहरीले बिच्छू छोड़ दिए हों, “मरवाओगे यार, शहर में दंगा हो जायेगा. एंटी रोमियो दस्ता पीटता पहले है, बाद में नाम पूछता है.” कई दिन की कोशिश के बाद वकील अंतर-धर्म कोर्ट मैरिज का धूल में लिपटा रजिस्टर निकालने के लिए तैयार हुआ, लेकिन तब तक बात पूरे शहर में फैल चुकी थी यानी खतरा बढ़ चुका था, वहां से निकलने में ही समझदारी थी. लड़के ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण ली. बिना अपना सिर ऊपर उठाये रजिस्ट्रार ऑफिस के बाबू ने मालूम किया, “कौन सी तारीख चाहिए? 14 फरवरी (वेलेंटाइन डे) मत मांगना, भरी हुई है, खाली नहीं है.”

निर्धारित तारीख पर जब लड़का व लड़की दस्तखत करके अदालत से बाहर निकले तो नजारा ही बदला हुआ था. दोनों मम्मियां एक दूसरे के गले लग रही थीं, आंखों से आंसू बह रहे थे- खुशी के थे या अफसोस के, कहना कठिन है. लेकिन इतना तय है कि दो प्यार करने वाले दिलों ने न केवल दो अलग-अलग धर्म के परिवारों को एक कर दिया था बल्कि साम्प्रदायिकता के मुहं पर भी करारा तमाचा मारा था. मेरठ का एंटी रोमियो दस्ता उलझन में था कि जिस प्रेम पर वह पाबंदी लगा रहा है, वही प्रेम परिवारों, समाज व देश को सुरक्षा प्रदान कर रहा है, समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है. इसलिए लव जिहाद आज पहले से कहीं अधिक जरूरी है.

मुझे पिछले कुछ सालों से फायब्रौयड्स की समस्या है, क्या इससे प्रैग्नेंसी में परेशानी है?

सवाल

मेरी उम्र 26 साल है. पिछले महीने ही मेरी शादी हुई है. मुझे पिछले कुछ सालों से फायब्रौयड्स की समस्या है. क्या इस से मुझे गर्भधारण करने में परेशानी आएगी?

जवाब-

फायब्रौयड्स की समस्या महिलाओं में आम है. अगर हम 10 महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करते हैं तो उन में 5 महिलाओं में यह समस्या होती है. दरअसल, फायब्रौयड्स के आकार, संख्या और स्थिति पर निर्भर करता है कि गर्भधारण करने में कितनी परेशानी आएगी. अगर फायब्रौयड्स छोटे हैं और संख्या कम है तो आप को उपचार की कोई जरूरत नहीं है. आप सामान्य रूप से गर्भधारण कर सकती हैं. लेकिन अगर फायब्रौयड्स का आकार बड़ा है तो उन का उपचार कराना जरूरी हो जाता है. लैप्रोस्कोपिक तकनीक ने फायब्रौयड्स के उपचार को आसान बना दिया है. उपचार के पश्चात ऐसी स्थिति में भी सामान्य रूप से गर्भधारण करना संभव है.

ये भी पढ़ें- 

मां बनना एक बेहद खूबसूरत एहसास है, जिसे शब्दों में पिरोना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा भी प्रतीत होता है. कोई महिला मां उस दिन नहीं बनती जब वह बच्चे को जन्म देती है, बल्कि उस का रिश्ता नन्ही सी जान से तभी बन जाता है जब उसे पता चलता है कि वह प्रैगनैंट है.

प्रैग्नेंसी के दौरान हालांकि सभी महिलाओं के अलगअलग अनुभव रहते हैं, लेकिन आज हम उन आम समस्याओं की बात करेंगे, जिन्हें जानना बेहद जरूरी है.

यों तो प्रैग्नेंसी के पूरे 9 महीने अपना खास खयाल रखना होता है, लेकिन शुरुआती  3 महीने खुद पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. पहले ट्राइमैस्टर में चूंकि बच्चे के शरीर के अंग बनने शुरू होते हैं तो ऐसे में आप अपने शरीर में होने वाले बदलावों पर नजर रखें और अगर कुछ ठीक न लगे तो डाक्टर का परामर्श जरूर लें.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या हैं प्रैग्नेंसी में आने वाली परेशानियां और उसके बचाव

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

फायदों से भरपूर मूंग दाल को करें डाइट में शामिल

भारत में कई जगहों पर दाल को मेन फूड माना जाता है. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इसे किस तरह से तैयार करते हैं, लेकिन दाल आपको पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व प्रदान करती है और साथ ही आपकी प्लेट में फ्लेवर को भी ऐड करती है. वैसे तो सभी दालें प्रोटीन से भरपूर और सेहत का खजाना हैं, लेकिन इन सब में मूंग की दाल को सर्वश्रेष्ठ माना गया है. इसमें विटामिन ए, बी, सी और ई की भरपूर मात्रा होती है. भारत में मूंग दाल या हरे चने की दाल का प्रयोग मुख्य रूप से खिचड़ी, चीला या फिर स्प्राउट्स जैसे व्यंजन तैयार करने के लिए किया जाता है.ग्रीन बीन्स भारत की फलियों वाली सब्जियों में से आती हैं लेकिन अब इनके व्यंजन आपको चीन और दक्षिण पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में भी देखने को मिलते हैं. अंकुरित मूंग सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद हैं. इसमें कई चमत्कारी गुण पाए जाते हैं. यह सेहत के लिए वरदान हैं. इसे जल्दी से पकाया भी जा सकता है क्योंकि लंबे समय तक इसे भिगोना नहीं पड़ता.

* पोषक तत्वों का भंडार माना जाता है मूंग दाल को :

मूंग दाल को हमारे देश का एक सुपर फूड माना जाता है क्योंकि यह दुनिया में प्लांट बेस्ड प्रोटीन के सबसे रिचेस्ट सोर्स में से एक है. इनमें हर वो पोषक तत्व है जिससे हमारे शरीर को आवश्यकता होती है.

एक कप (200 ग्राम) उबली हुई हरी मूंग दाल में है पोषक तत्वों का खजाना

  • कैलोरी: 212
  • फैट: 0.8 ग्राम
  • प्रोटीन: 14.2 ग्राम
  • कार्ब: 38.7 ग्राम
  • फाइबर: 15.4 ग्राम
  • फोलेट (B9): RDI का 80%
  • मैंगनीज: RDI का 30%
  • मैग्नीशियम: RDI का 24%
  • विटामिन बी 1: आरडीआई का 22%
  • फास्फोरस: RDI का 20%
  • आयरन: RDI का 16%
  • जिंक : RDI का 11%

ये भी पढ़ें- ओरल हाइजीन से नो समझौता

इसके अलावा, यह सेहत के लिए जरूरी अमीनो एसिड जैसे फेनिलएलनिन, ल्यूसीन, आइसोलेसीन, वेलिन, लाइसिन, आर्जिनिन आदि से भरपूर है. यहां हम  कुछ ऐसे कारण बताएंगे जिन्हें जानकर आप समझ सकेंगे कि आपको अपनी डाइट में मूंग दाल को शामिल करना क्यों जरूरी है.

* वजन घटाने में है मददगार :

मूंग दाल फाइबर और प्रोटीन से समृद्ध है और ये दोनों चीजें फिटनेस मेनटेन करने में सहायक हैं. फाइबर की मात्रा शरीर में जाने पर जल्दी भूख नहीं लगती है. वहीं प्रोटीन हमारे शरीर की डैमेज सेल्स के रिजनरेशन और मरम्मत करने के लिए आवश्यक है. दाल और चावल में अमीनो एसिड होते हैं. वजन कम कर रहे लोगों के लिए दाल-चावल सबसे बढ़िया आहार है, क्योंकि ये प्लांट बेस्ड फूड हैं, जो हमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन देते हैं. मूंग दाल में 100 से भी कम कैलोरी होती है जो किसी भी हाल में वजन बढ़ने नहीं देती.

* डायबिटीज के लक्षणों को रोकने में है सहायक :

ग्रीन ग्राम में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है. इस दाल का जीआई 38 है, जो डायबिटीज वाले लोगों के लिए इसे अच्छा फूड ऑप्शन बनाता है. इसके अलावा हरी मूंग दाल प्रोटीन, मैग्नीशियम और फाइबर से भी भरपूर होती है जो शरीर में इंसुलिन और ब्लड ग्लूकोज को बैलेंस करने में मदद कर सकती है.

* बढ़िया रहता है पाचन :

मूंग की फलियों में पेक्टिन नाम का सॉल्युबल फाइबर होता है जो हमारी पाचन क्रिया को बैलेंस करता है. इसके अलावा, इसमें रेजिस्टेंस स्टार्च भी होता है, जो सॉल्युबल फाइबर के समान काम करता है और हेल्दी गट बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है. दूसरी दालों की तुलना में मूंग सबसे बेहतर है जिससे पाचन बढ़िया रहता है. मूंग दाल को उत्तम आहार माना गया है ,जो पाचन क्रिया को दुरुस्त करती है और पेट में ठंडक पैदा करती है , जिससे पाचन और पेट में गर्मी बढ़ने की समस्या भी नहीं होती.

* ब्लड प्रेशर को करती है  कंट्रोल :

बुढ़ापे में हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत होना आम बात है, जिसके चलते उन्हें दिल से जुड़ी बीमारियों का भी खतरा होता है. ऐसे लोग अगर अपने आहार में मूंग दाल को शामिल करते हैं तो उन्हें ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है. एक स्टडी के अनुसार, मूंग दाल में मौजूद पोटेशियम, मैग्नीशियम और फाइबर युक्त आहार लेने से हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को कम किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- दबे पांव दस्तक देता Depression

* प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए है  बहुत फायदेमंद :

फोलेट से भरपूर होने के कारण, मूंग दाल गर्भवती महिलाओं के लिए भी एक हेल्दी फूड है. गर्भावस्था के दौरान फोलेट युक्त खाद्य पदार्थ खाने से भ्रूण में पल रहे बच्चे की वृद्धि और विकास में भी सहायता मिलती है. एक कप पकी हुई मूंग दाल हमारे शरीर को 80 प्रतिशत आरडीआई देती है. आयरन और प्रोटीन से भरपूर ये दाल गर्भवती महिला के लिए बहुत ही फायदेमंद है.

* हीट स्ट्रोक से बचाए :

कड़कड़ाती धूप वाले गर्मी के दिनों में हीट स्ट्रोक आम है और अगर आप इससे बचना चाहते हैं तो मूंग की दाल को अपनी डाइट में शामिल करें. इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन से बचाने में मदद करते हैं. मूंग दाल का सूप पीने से आप लंबे समय तक हाइड्रेटेड रह सकते हैं और इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हमे फ्री रेडिकल सेल्स से होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं.

मूंग दाल को कई रूपों में आहार में शामिल किया जा सकता है. आप इसके साथ कई तरह के फूड आइटम भी बनाने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन जब आप मूंग दाल को अंकुरित करते है तो इसके पोषक तत्व और अधिक  बढ़ जाते है.

मूंग दाल को आप अपनी डाइट में शामिल करें , जिससे इम्यूनिटी होगे स्ट्रॉन्ग ,  वजन होगा कम , और कई रोगों से मिलेगी राहत.

 

कोरोना संकट पहले या, बीजेपी की राजनीति

भारत में कोरोना का कहर इस कदर फैलता जा रहा है, जिसे अब रोकना मुश्किल होता जा रहा है. आज की तारीक में 3+ लाख से ऊपर नए कोरोना केस सामने आए है, 2000 से अधिक मौतें हुईं, जिस कारण अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं. ऐसे में भाजपा शासित सरकार क्या कर रही है,वही जो वो पहले से करती आया है – राजनीति. भाजपा अपनी राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने में लगी हुई है,उनके लिए ये महामारी कुछ नहीं.

हैरानी की बात तो यह है,जब कुछ दिन पहले रात को पीएम नरेंद्र मोदी जी ने टीवी पर मूल रूप से अपनी सरकार को महामारी से निपटने के लिए, इस महामारी में एक दूसरे की सहायता करने और उत्कृष्ट कार्य करने की बधाई दी. इतना ही नहीं उन्होंने लोगों से सावधानी बरतने और कोविड–सुरक्षा नियमों का पालन करने का भी आग्रह किया. फिर भी उन्हें और उनकी पार्टी को किसी भी तरह के नियमों की न तो कोई चिंता है न ही कोई कदर है. इसका जीता जागता उदाहरण है बंगाल के इलेक्शन.

मास्क लेस इलेक्शन मेला

बंगाल में मास्क लेस इलेक्शन मेले से भले ही जीत का एक मौका महक रहा हो, जहां पीएम नरेंद्र मोदी जी के साथ उनके गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में कई दमदार रैलियां की, जिसमें बिना मास्क के लोगों की बेहिसाब भीड़ शामिल थी. जो बिना मास्क के नेताओं का उत्साह बढ़ा रही थी. चुनावी रैलियों में पूरी तरह से कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन हुआ.बंगाल में चुनावी रैलियों में जमकर भीड़ उमड़ी. इस दौरान कोरोना नियमों का पालन भी नहीं किया गया, क्योंकि राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव कराने का अधिकार चुनाव आयोग का ही होता है ऐसे में कोरोना संकट के बीच रैली, रोड शो और जनसभाओं में उमड़ती भीड़ पर काबू पाने के लिए कदम उठाना और शांति पूर्ण मतदान कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है. क्या एक मौके पर भी पीएम ने इस भीड़ के अकार के बारे में सोचा, इस भीड़ में शामिल बिना मास्क के लोगों पर ध्यान दिया, क्या यह सोचा कि इससे देश में इस महामारी का क्या प्रभाव पड़ेगा और कितना नुकसान हो सकता है.

बीते सप्ताह के आंकड़े

जब ऐसी महामारी को बुरी तरह से फैलने पर, इस तरह से प्रचार करने के खतरे के बारे में पूछा गया, तो गृहमंत्री अमित शाह जी ने साफ शब्दों में घोषणा की कि रैलियों की वजह से कोविड –19 मामलों में किसी भी तरह से कोई वृद्धि नहीं हुई है. रिकॉर्ड के अनुसार, बीते सप्ताह से पश्चिम बंगाल में आठ ही दिनों में कोरोना मामलों में दोगुनी रफ्तार से वृद्धि हुई है. एक ही दिन में लगभग 10 हजार संक्रमण मामले सामने आए हैं,जो की एक बहुत बड़ी चुनौती है. यहां कोरोना के मामलों में काफी उछाल आया है. स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कराए गए एक आंतरिक सर्वे के अनुसार बंगाल के 19 जिलों में कोरोना वायरस की स्थिति गंभीर है और यहां कोरोना के मामले में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.

अपना स्वार्थ

इसी बीच, बंगाल सरकार ने चुनाव आयोग से विनती की है कि वे बढ़ती हुई इस महामारी को ध्यान में रखते हुए, बचे हुए तीन चरणों के चुनावों को रद्द कर दिया जाए. चुनाव आयोग एक सम्मान जनक संस्था है, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन सभी जानते है की यह भाजपा है जो बंगाल में आठ चरण के इस सुपर चुनाव से सबसे अधिक लाभ हासिल करने के लिए खड़ी है.

राजनीति का खेल

इस घटक महामारी से निपटने के लिए सामूहिक टीकाकरण महत्वपूर्ण है,और दुनिया भर के देशों में सरकारें अपने नागरिकों को मुफ्त में टीका लगा रही हैं. भारत में सरकार को आदेश न देने और अपनी वयस्क आबादी को जल्दी से टीका लगाने के लिए पर्याप्त वैक्सीन खुराक खरीदने में काफी आनाकानी की है जिस वजह से सरकार की काफी आलोचना भी हुई है.देश में दवा की कमी होने के बावजूद भी केंद्र दूसरे देशों में दवा भेज रही है. परिणामस्वरूप, अब हमारे पास वैक्सीन की भारी कमी है.

भारत में नई वैक्सीन की रणनीति

सरकार के द्वारा कोविड – 19 वैक्सीन नीति जो अब 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के लिए उपलब्ध कराई गई है. अब जो वैक्सीन निर्माता है वे अपनी आपूर्ति का 50 प्रतिशत राज्य सरकार और ओपन मार्केट को देंगें एक ही मूल्य पर ( कोविशील्ड राज्यों को 400 रुपए प्रति डोज पर उपलब्ध होगी ), यह है जो, स्वास्थ्य संकट के बीच भी राजनीति को एक राष्ट्र के हितों से ऊपर रखता है.

हम क्या देख रहे हैं

कोरोना वैक्सीन पर एक राजनीतिक ब्लेम –गेम चल रहा है. कयी राज्यों को इस समय 18 –45 आयु वर्ग के टीकाकरण के लिए टीके खरीदने के लिए कहना केवल मुख्य रूप से केंद्र की जिम्मेदारी है. लेकिन इसके पीछे भी बड़ा खेल है, यदि राज्यों में टीकाकरण अभियान धीमा हो जाता है तो, सरकार के लिए राज्यों पर दोष शिफ्ट करने का यह एक अच्छा राजनीतिक प्रयास है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि, नॉन भाजपा शासित राज्यों को केंद्र सरकार के मंत्रियों द्वारा सबसे अधिक हमलों का सामना करना पड़ेगा. इसके अलावा कई राज्यों के पास मार्केट द्वारा निर्धारित कीमत पर वैक्सीन की खुराक खरीदने की क्षमता नहीं है.

दूसरे शब्दों में कहें तो, हम आने वाले राजनीतिक ब्लेम–गेम का एक तांडव देख रहे हैं – जहां केंद्र, राज्यों को टीकाकरण के लिए दोषी ठहरा रहा है , वही दूसरी ओर सभी राज्य, जिम्मेदारी को अच्छे से न निभाने के लिए केंद्र को दोषी ठहरा रहें हैं. इतना ही नहीं सभी राज्य आपस में एक दूसरे को आउट बिडिंग टीके की आपूर्ति के लिए दोषी ठहरा रहे हैं.
राजनीतिक तकरार में, यह भारतीय नागरिक है जो कोविड से पीड़ित है,और हर रोज अपनी जान गंवा रहे हैं.

दोष किसका

लेकिन यह शायद ही आश्चर्य की बात है, इस महामारी की दूसरी लहर को देश भर में तबाही मचाने में सरकार का भी बहुत अधिक दोष है. फरवरी 2021 के अंत तक, यह स्पष्ट था की कोविड 19 मामले एक बार फिर बढ़ रहे है. यह तक ही पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव बाकी थे जो होने वाले थे ऐसे में वोट मांगने के प्रचार को सख्त कोविड प्रोटोकॉल के अधीन किया जाना चाहिए था.

अनोखी बीजेपी का कहना

दोषों के लिए अपने राजनीतिक अपोनेंट को दोष दें ’. लेकिन इस बार महामारी को रोकने के लिए केंद्र ने चूक की है. केंद्र सरकार की लापरवाही के कारण कोविड 19 मामलों में वृद्धि हुई है.

जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने महागठबंधन को एक गरिमापूर्ण और पूरी तरह से राजनीति से उदासीन एक पत्र लिखा जिसमे महामारी से निपटने के लिए सुझाव पेश किए गए थे, तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसका जवाब तिरस्कार, मजाक उड़ते हुए और कांग्रेस के बारे में तीखी टिप्पणी के साथ दिया.

गंदा खेल

जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र को लिखा कि, कोविड –19 मामलों की तेजी से बढ़ती बाढ़ को मद्देनजर रखते हुए अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति को बढ़ाने का अनुरोध किया तो, कॉमर्स मंत्री पियूष गोयल ने कहा था कि: “ राज्य सरकारों को मांग करनी चाहिए ” नियंत्रण में =डिमांड – साइड मैनेजमेंट, सप्लाई – साइड मैनेजमेंट जितना ही महत्वपूर्ण है.
WHO ने पहले ऑक्सीजन स्टॉक करने के निर्देश दिए थे,तो केंद्र सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया ?
जब देश भर के अस्पताल कोविड –19 रोगियों के साथ तेजी से बढ़ रहे हैं, जिन्हे ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता है, तो राज्य सरकारें ऑक्सीजन की डिमांड साइड को ‘ मैनेज ’ कैसे करें ?

कॉमर्स मिनिस्टर की टिप्पणी से यह तो साबित होती है कि यह भाजपा की यह हमेशा की भाषा है – मुद्दा चाहे कोई भी हो, लगभग किसी भी राजनीतिक विरोधी को किसी भी तरह से दोषी ठहराना ही बीजेपी की सबसे पहली कोशिश रहती है. यह हमेशा राजनीति का पहला भाव है, और संवेदनशीलता अंतिम है.

नहीं भूलेगा इतिहास कभी

इतिहास कभी नहीं भूलेगा की सरकार की सत्ता में रहने की भूख के लालच की वजह से, जनता को इस खतरनाक महामारी की आपदा के कारण स्वास्थ्य पर भारी संकट का सामना करना पड़ा है. न जाने कितने लोगों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. न जाने कितने लोग ऑक्सीजन की कमी से तड़प कर अपनी जान गवाई हैं.

वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में, बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और प्रवीण दरेकर कथित तौर पर रेमेड्सविर की खरीद में शामिल है, जिसमें यह भी आरोप लगे है कि वे भी कालाबाजारी में शामिल हो सकते हैं.

यह सब जानते है कि राजनीति में राजनीतिक पार्टियां किसी भी हद तक जा सकती है. राजनीति में पूर्ण उद्देश्य ही राजनीति करना होता है. लेकिन यह हमेशा ही राजनीति करना जरूरी नहीं. जब तो बिलकुल नहीं जब देश स्वास्थ्य आपातकाल से उबर रहा हो.

इतिहास इस सरकार को इसकी सत्ता की भूख के लिए कभी माफ नहीं करेगा. पावर के जुनून में चूर यह सरकार, अपनी राजनीति के खेल में डूबी हुई है और यही दूसरी ओर असहाय महसूस जनता अपनी जान गंवा रही है .

10 टिप्स: चटपट होंगे घर के काम

घर के कामों को लेकर अकसर महिलाओं की शिकायत होती है कि पूरा दिन निकल जाता है, लेकिन घर के कुछ कामों को अगर स्मार्ट तरीके से किए जाएं तो घंटों का मिनटों में निपट सकता है..जरूरी है कुछ खास टिप्स की.

जानें कैसे झटपट निपट सकते हैं घर के काम:

1. घर के डिश वॉशर में बर्तन धोने के साथ ही बच्चों के खिलौने और दूसरी प्लास्टि्क के सामान को भी धो लें. इससे दूसरी चीजों में धुलाई के कामों में लगने वाला वक्त बचेगा.

2. कार्पेट, गद्दे लगे फर्नीचर और मैट्रेस पर बेकिंग सोडा छिड़क कर दस मिनट के लिए छोड़ दें. इसके बाद वैक्युम क्लीनर चला लें.

3. लिंट रोलर अगर घर में है तो हर छोटी जगह की साफ-सफाई इससे ही करें. इसकी मदद से आपका काम झटपट हो जाएगा.

ये भी पढ़ें- नौकर ही क्यों करें घर का काम

4. अगर घर में जानवर हैं तो उसके बालों की सफाई का सबसे अच्छा तरीका है कि एक गीले रबर ब्रश को हर उस जगह चला लें जहां उसके बाल झड़ते हों.

5. डैशबोर्ड में गंदे धब्बों को मिटाने के लिए एक पुरानी जुराब में कोई क्लीनिंग सॉल्युशन डालें और चलाएं. देखिए बिना किसी मेहनत के कैसे चमकने लगेगा आपको वार्डरोब.

6. घर की साफ-सफाई में अपने गैजेट्स की सफाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है.आपके फोन में शायद टॉयलेट सीट से भी ज्यादा किटाणु होते हैं और हम इसकी कभी सफाई भी नहीं करते हैं. मोबाइल, रिमोट को साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है कि एल्कोहल वाइप्स लें और उससे इन्हें साफ करें.

7. घर के साथ ही महिलाएं अपने पर्स की भी सफाई करें. पर्स का इस्तेमाल तो रोजाना होता है, लेकिन इसकी सफाई की ओर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो. महिलाओं के बैग में अकसर फेकल बैक्टीरिया हो जाते हैं. ऐसे में बहुत जरूरी है कि डिसइंफेक्टेंट वाइप्स से बैग को पांच मिनट देकर साफ करें.

8. अपने किचन के डस्टबिन को नींबू के छिलकों से साफ करें, इसकी सफाई भी अच्छे से होगी और बदबू भी कम होगी.
अपने घर के पंखों को गर्मियां खत्म होने के बाद पुराने तकिये के कवर से ढक दें.इससे इनमें धूल नहीं जमेगी और पुराने तकिए के कवर भी इस्तेमाल में आ जाएंगे.

10. सोने से पहले घर के छोटे कामों को निपटाकर सोएं. खासतौर पर कुछ मिनट देकर रसोई के कामों को निपटा लें. इससे अगले दिन के लिए काम कम होगा और सुबह उठकर रसोई भी साफ मिलेगी.

ये भी पढ़ें- 4 Tips: किचन के पौल्यूशन से भी बचना जरूरी

11, किसी से लंबी बात करते समय प्याज, लहसुन या मटर छीलें आपके दोनों काम कब निपट जायेंगे पता भी नहीं चलेगा .

12, कभी जब कोई लंबा संगीत या धारावाहिक देख रहे हों हो तो उस सम़ पुराना कपड़ा लेकर खिड़की दरवाजों की डस्टिंग कर लें . आपके दोनों काम निबट जायेंगे .

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें