हर ब्राइड को खास बनाती गोल्ड ज्वैलरी

ब्राइड बनने का ख्वाब जब पूरा होने जा रहा होता है तो मन में अलग ही उत्साह होता है, क्योंकि जीवन नए रंग में रंगने जो जा रहा होता है. ऐसे में ब्राइड के रूप को निखारने में उसके मेकअप व आउटफिट्स का तो अहम रोल होता ही है लेकिन आउटफिट्स की शोभा तभी बढ़ पाती है जब ज्वेलरी का कौंबिनेशन अच्छा व खास हो. ऐसे में आपके इस खास दिन को और खास बनाएगा सेन्को गोल्ड एन्ड डायमंड.

80 वर्षों से विश्वसनीय बने सेन्को के देशभर में 100 से अधिक स्टोर्स हैं, जो हर फंक्शन के लिए यूनीक ज्वेलरी उपलब्ध कराते हैं. इसके ट्रेडिशनल डिजाइंस आधुनिक फीचर्स के साथ बने होने के साथ काफी हल्के हैं, जो आपको ट्रेडिशनल के साथ-साथ मौडर्न लुक देने का काम करेंगे और आपको इन्हें पहन कर जरा भी वजन महसूस नहीं होगा.

पंजाबी ब्राइड का अलग अंदाज

पंजाबी ब्राइड्स अपने पहनावे के लिए काफी लोकप्रिय होती हैं. यही नहीं बल्कि उनकी ज्वेलरी भी उन्हें सेंटर ऑफ अट्रेक्शन बनाने का काम करती है. उनके गले में खास डिजाइन का मंगलसूत्र जहां गले की खूबसूरती बढ़ाने का काम करेगा वहीं वह दो दिलों के बीच विश्वास का भी प्रतीक होता है. माथे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए माथापट्टी अहम है, जो कुंदन, रंगबिरंगी स्टोन्स व उसमें लटके हुए मोती के स्टाइल से उसे यूनीक बनाता है. ब्राइड जब तक खुद को चोकर सेट से, जो कलरफुल बीट्स, स्टोन्स, कुंदन व हथफूल के साथ मीनाकारी वर्क वाली झुमकियों से संवार नहीं लेतीं तब तक उन्हें अपना रूप अधूरा ही लगता है. रूप को फाइनल टच मिलता है रिंग व ब्यूटीफुल चूड़े से.

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 ब्राइड की खूबसूरती बढ़ाते गहने

अपने वैडिंग डे पर हर लड़की एलिगेंट लुक चाहती है ताकि उसके लुक को देख हर किसी के मुंह से वाह निकल जाए और वह खुद को स्पेशल फील करा पाए. इसके लिए हर हिंदू ब्राइड इस दिन के लिए रेड लहंगा ही चूज करना पसंद करती है, क्योंकि रेड लहंगे में वह खुद को ज्यादा ग्रेसफुल जो पाती है. लेकिन इसकी शोभा तब तक अधूरी रहती है जब तक ब्राइड के माथे पर कुंदन से सजा मांगटीका न हो, मोतियों और स्टोन्स में सजा चोकर सेट व सदियों से परंपरा स्वरूप चला आ रहा गोल्ड रानीहार उसकी खूबसूरती को बढ़ाने का काम न करे.

शुभ समझी गई खूबसूरत नथ व हाथों में कांच की चूडि़यों के साथ गोल्ड की डिजाइनर चूडि़यां, ब्राइडल चूडि़यां ब्राइड के लुक को पूरा करती हैं.

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5 टिप्स: चंपी करें और पाएं हेल्दी हेयर

आजकल लोग अपनी बौडी और अपने बालों की केयर की बजाय मेकअप का ख्याल रखते हैं, जिससे हमारी बौडी और बालों को नुकसान होता है. बाल हमारी ब्यूटी का हिस्सा है. शाइनी और मजबूत बालों के लिए लोग चंपी करना पसंद करते हैं. सिर दर्द हो या थकान चंपी बालों के लिए बेस्ट औप्शन माना जाता है, लेकिन इन सभी से हटकर भी चंपी के कुछ और फायदें हैं, जिसके बारे में आज हम आपको बताएंगें.

1. बालों की ग्रोथ के लिए चंपी है जरूरी

अगर बालों की जड़ें सूखी हैं तो तेल की मालिश उन्हें ताकत देती है और नए बाल निकलने में मदद करती है. तेल बालों को टूटने व उलझने से रोकता है, साथ ही तेल से सिर की मालिश करने से सिर का रक्तसंचार सुचारु रहता है.

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2. दोमुहें बालों के लिए बेस्ट है चंपी

बालों में सही मात्रा में तेल न लगाने से बाल दोमुंहे होने लगते हैं. पर्याप्त तेल लगाने से यह समस्या दूर हो जाती है. मालिश से न केवल बाल स्वस्थ होते हैं, बल्कि शरीर को भी लाभ पहुंचता है. रात को अच्छी नींद आती है. दिमाग भी शांत होता है.

3. शाइनी बालों के लिए करें चंपी

तेल से बालों में नमी आती है. वे मुलायम व चमकदार बनते हैं. जब भी बालों में तेल लगाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि एक ही बार में पूरे बालों में तेल न लगाएं वरन सैक्शन बना कर तेल लगाएं. ऐसा करने से तेल स्कैल्प तक अच्छी तरह पहुंचता है.

4. हौट स्टीम बाथ से मिलता है बालों को फायदा

बालों और सिर की त्वचा के लिए हौट स्टीम बाथ लेना भी फायदेमंद होता है. गरम तेल से सिर की त्वचा की मसाज करें और इस के बाद कुनकुने पानी से भीगे तौलिए को कुछ मिनट के लिए सिर पर लपेटें. ऐसा करने से सिर की स्किन के रोमछिद्र खुल ते हैं और बाल चमकदार बनते हैं.

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5. सिल्की बालों के लिए ऐसे करें चंपी

तेल बालों की ग्रोथ के लिए जरूरी है. इस की मालिश से आप के सिर की कोशिकाएं काफी सक्रिय हो जाती हैं, जिस से बाल जल्दी लंबे होते हैं. अगर आप की घने और सिल्की बालों की चाह है तो सरसों के तेल में दही मिला कर लगाएं. इस से बाल बढ़ेंगे भी और घने भी होंगे. रात में सोने से पहले या फिर हफ्ते भर में कम से कम 2 बार सिर में चंपी जरूर करें. इससे बालों को पोषण मिलने के साथ-साथ टेन्शन भी कम होता है.

परिंदा: भाग 3- अजनबी से एक मुलाकात ने कैसे बदली इशिता की जिंदगी

पिछला भाग पढ़ने के लिए- परिंदा भाग-2

लेखक-रत्नेश कुमार

उस की हरकतें देख मेरे चेहरे पर वे तमाम भावनाएं आ सकती थीं सिवा हंसने के. मैं ने उसे चिढ़ाने के लिए विचित्र मुद्रा में बत्तीसी खिसोड़ दी. उस ने झट बटन दबा दिया. मेरा नखरे का सारा नशा उतर गया.

रास्ते में पड़े पत्थरों को देख कर खयाल आया कि चुपके से एक पत्थर उठा कर उस का सिर तोड़ दूं. कमाल का लड़का था, जब साथ में इतनी सुंदर लड़की हो तो थोड़ाबहुत भाव देने में उस का क्या चला जाता. मेरा मन खूंखार होने लगा.

‘‘चलिए, थोड़ा रक्तदान कर दिया जाए?’’ रक्तदान का चलताफिरता शिविर देख कर मुझे जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. मैं बस, थोड़ा सा कष्ट उसे भी देना चाहती थी.

‘‘नहीं, अभी नहीं. अभी मुझे बाहर जाना है.’’

‘‘चलिए, आप न सही मगर मैं रक्तदान करना चाहती हूं,’’ मुझे उसे नीचा दिखाने का अवसर मिल गया.

‘‘आप हो आइए, मैं इधर ही इंतजार करता हूं,’’ उस ने नजरें चुराते हुए कहा.

मैं इतनी आसानी से मानने वाली नहीं थी. उसे लगभग जबरदस्ती ले कर गाड़ी तक पहुंची. नामपता लिख कर जब नर्स ने सूई निकाली तो मेरी सारी बहादुरी ऐसे गायब हो गई जैसे मैं कभी बहादुर थी ही नहीं. पलभर के लिए इच्छा हुई कि चुपचाप खिसक लूं मगर मैं उसे दर्द का एहसास कराना चाहती थी.

किसी तरह खुद को बहलाफुसला कर लेट गई. खुद का खून देखने का शौक कभी रहा नहीं इसलिए नर्स की विपरीत दिशा में देखने लगी. गाड़ी में ज्यादा जगह न होने की वजह से वह बिलकुल पास ही खड़ा था. चेहरे पर ऐसी लकीरें थीं जैसे कोई उस के दिल में सूई चुभो रहा हो.

दर्द और घबराहट का बवंडर थमा तो वह मेरी हथेली थामे मुझे दिलासा दे रहा था. मेरी आंखों में थोड़े आंसू जरूर जमा हो गए होंगे. मन भी काफी भारी लगने लगा था.

बाहर आने से पहले मैं ने 2 गिलास जूस गटक लिया था और बहुत मना करने के बाद भी डाक्टरों ने उस का ब्लड सैंपल ले लिया.

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इंडियन म्यूजियम से निकल कर हम ‘मैदान’ में आ गए. गहराते अंधकार के साथ हमेशा की तरह लोगों की संख्या घटने लगी थी और जोड़े बढ़ने लगे थे. यहां अकसर प्रेमी युगल खुले आकाश के नीचे बैठ सितारों के बीच अपना आशियाना बनाते थे. इच्छा तो बिलकुल नहीं थी लेकिन मैं ने सोच रखा था कि खानेपीने का कार्यक्रम निबटा कर ही वापस लौटूंगी. हम दोनों भी अंधेरे का हिस्सा बन गए.

मैं कुछ ज्यादा ही थकावट महसूस कर रही थी. इसलिए अनजाने ही कब उस की गोद में सिर रख कर लेट गई पता ही नहीं चला. मेरी निगाहें आसमान में तारों के बीच भटकने लगीं.

वे अगणित सितारे हम से कितनी दूर होते हैं. हम उन्हें रोज देखा करते हैं. वे भी मौन रह कर हमें बस, देख लिया करते हैं. हम कभी उन से बातें करने की कोशिश नहीं करते हैं. हम कभी उन के बारे में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि हमें लगता ही नहीं है कि वे हम से बात कर सकते हैं, हमें सुन सकते हैं, हमारे साथ हंस सकते हैं, सिसक सकते हैं. हम कभी उन्हें याद रखने की कोशिश नहीं करते हैं क्योंकि हम जानते हैंकि कल भी वे यहीं थे और कल भी वे यही रहेंगे.

मुझे अपने माथे पर एक शीतल स्पर्श का एहसास हुआ. शायद शीतल हवा मेरे ललाट को सहला कर गुजर गई.

सुबह दरवाजे पर ताबड़तोड़ थापों से मेरी नींद खुली. मम्मी की चीखें साफ सुनाई दे रही थीं. मैं भाग कर गेस्टरूम में पहुंची तो कोई नजर नहीं आया. मैं दरवाजे की ओर बढ़ गई.

4 दिन बाद 2 चिट्ठियां लगभग एकसाथ मिलीं. मैं ने एक को खोला. एक तसवीर में मैं तांबे की मूर्ति के बगल में विचित्र मुद्रा में खड़ी थी. साथ में एक कागज भी था. लिखा था :

‘‘इशिताजी,

मैं बड़ीबड़ी बातें करना नहीं जानता, लेकिन कुछ बातें जरूर कहना चाहूंगा जो मेरे लिए शायद सबकुछ हैं. आप कितनी सुंदर हैं यह तो कोई भी आंख वाला समझ सकता है लेकिन जो अंधा है वह इस सच को जानता है कि वह कभी आप को नहीं देख पाएगा. जैसे हर लिखे शब्द का कोई अर्थ नहीं होता है वैसे ही हर भावना के लिए शब्द नहीं हैं, इसलिए मैं ज्यादा लिख भी नहीं सकता. मगर एक चीज ऐसी है जो आप से कहीं अधिक खूबसूरत है, वह है आप का दिल.

हम जीवन में कई चीजों को याद रखने की कोशिश नहीं करते हैं क्योंकि वे हमेशा हमारे साथ होती हैं और कुछ चीजों को याद रखने का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि वे हमारे साथ बस, एक बार होती हैं.

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सच कहूं तो आप के साथ गुजरे 2 दिन में मैं ठीक से मुसकरा भी नहीं सका था. जब इतनी सारी हंसी एकसाथ मिल जाए तो इन्हें खोने का गम सताने लगता है. उन 2 दिनों के सहारे तो मैं दो जनम जी लेता फिर ये जिंदगी तो दो पल की है. जानता हूं दुनिया गोल है, बस रास्ते कुछ ज्यादा ही लंबे निकल आते हैं.

जब हम अपने आंगन में खड़े होते हैं तो कभीकभार एक पंछी मुंडेर पर आ बैठता है. हमें पता नहीं होता है कि वह कहां से आया. हम बस, उसे देखते हैं, थोड़ा गुस्साते हैं, थोड़ा हंसते भी हैं और थोड़ी देर में वह वापस उड़ जाता है. हमें पता नहीं होता है कि वह कहां जाएगा और उसे याद रखने की जरूरत कभी महसूस ही नहीं होती है.

जीवन के कुछ लमहे हमारे नाम करने का शुक्रिया.

-एक परिंदा.’’

दूसरी चिट्ठी में ब्लड रिपोर्ट थी. मुझे अपने बारे में पता था. अभिन्न की जांच रिपोर्ट देख कर पलकें उठाईं तो महसूस हुआ कि कोई परिंदा धुंधले आकाश में उड़ चला है…अगणित सितारों की ओर…दिल में  चुभन छोड़ कर.

परिंदा: भाग 2- अजनबी से एक मुलाकात ने कैसे बदली इशिता की जिंदगी

पहला भाग पढ़ने के लिए- परिंदा भाग-1

लेखक-रत्नेश कुमार

‘‘आइए, खाना बस, तैयार ही है,’’ उस ने मेरा स्वागत यों किया जैसे वह खुद के घर में हो और मैं मेहमान.

इतनी शर्मिंदगी मुझे जीवन में कभी नहीं हुई थी. मैं उस पल को कोसने लगी जिस पल उसे घर लाने का वाहियात विचार मेरे मन में आया था. लेकिन अब तीर कमान से निकल चुका था. किसी तरह से 5-6 घंटे की सजा काटनी थी.

मैं फ्रिज से टमाटर और प्याज निकाल कर सलाद काटने लगी. फिलहाल यही सब से आसान काम था मगर उस पर नजर रखना नहीं भूली थी. वह पूरी तरह तन्मय हो कर रोटियां बेल रहा था.

‘‘क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘आप को दिखता कम है क्या…’’ मेरे गुस्से का बुलबुला फटने ही वाला था कि…

‘‘मेरा मतलब,’’ उस ने मेरी बात काट दी, ‘‘मैं कर रहा हूं न,’’ उसे भी महसूस हुआ होगा कि उस की कुछ सीमाएं हैं.

‘‘क्यों, सिर्फ काटना ही तो है,’’ मैं उलटे हाथों से आंखें पोंछती हुई बोली. अब टमाटर लंबा रहे या गोल, रहता तो टमाटर ही न. वही कहानी प्याज की भी थी.

‘‘यह तो ठीक है इशिताजी,’’ उस ने अपने शब्दों को सहेजने की कोशिश की, ‘‘मगर…इतने खूबसूरत चेहरे पर आंसू अच्छे नहीं लगते हैं न.’’

मैं सकपका कर रह गई. सुंदर तो मैं पिछले कई घंटों से थी पर इस तरह बेवक्त उस की आंखों का दीपक जलना रहस्यमय ही नहीं खतरनाक भी था. मुझे क्रोध आया, शर्म आई या फिर पता नहीं क्या आया लेकिन मेरा दूधिया चेहरा रक्तिम अवश्य हो गया. फिर मैं इतनी बेशर्म तो थी नहीं कि पलकें उठा कर उसे देखती.

उजाले में आंखें खुलीं तो सूरज का कहीं अतापता नहीं था. शायद सिर पर चढ़ आया हो. मैं भागतीभागती गेस्टरूम तक गई. अभिन्न लेटेलेटे ही अखबार पलट रहा था.

‘‘गुडमार्निंग…’’ मैं ने अपनी आवाज से उस का ध्यान खींचा.

‘‘गुडमार्निंग,’’ उस ने तत्परता से जवाब दिया, ‘‘पेपर उधर पड़ा था,’’ उस ने सफाई देने की कोशिश की.

‘‘कोई बात नहीं,’’ मैं ने टाल दिया. जो व्यक्ति रसोई में धावा बोल चुका था उस ने पेपर उठा कर कोई अपराध तो किया नहीं था.

‘‘मुझे कल सुबह की फ्लाइट में जगह मिल गई है,’’ उसे यह कहने में क्या प्रसन्नता हुई यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मैं आशंकित हो उठी, ‘‘सौरी, वह बिना पूछे ही आप का फोन इस्तेमाल कर लिया,’’ उस ने व्यावहारिकतावश क्षमा मांग ली, ‘‘अब मैं चलता हूं.’’

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‘‘कहां?’’

अभिन्न ने मुझे यों देखा जैसे पहली बार देख रहा हो. प्रश्न तो बहुत सरल था मगर मैं जिस सहजता से पूछ बैठी थी वह असहज थी. मुझे यह भी आभास नहीं हुआ कि यह ‘कहां’ मेरे मन में कहां से आ गया. मेरी रहीसही नींद भी गायब हो गई.

कितने पलों तक कौन शांत रहा पता नहीं. मैं तो बिलकुल किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई थी.

‘‘10 बज गए हैं,’’ ऐसा नहीं था कि घड़ी देखनी मुझे नहीं आती हो मगर कुछ कहना था इसलिए उस ने कह दिया होगा.

‘‘ह…हां…’’ मेरी शहीद हिम्मत को जैसे संजीवनी मिल गई, ‘‘आप चाहें तो इधर रुक सकते हैं, बस, एक दिन की बात तो है.’’

मैं ने जोड़तोड़ कर के अपनी बात पूरी तो कर दी मगर अभिन्न दुविधा में फंस गया.

उस की क्या इच्छा थी यह तो मुझे पता न था लेकिन उस की दुविधा मेरी विजय थी. मेरी कल्पना में उस की स्थिति उस पतंग जैसी थी जो अनंत आकाश में कुलांचें तो भर सकती थी मगर डोर मेरे हाथ में थी. पिछले 15 घंटों में यह पहला सुखद अनुभव था. मेरा मन चहचहा उठा.

‘‘फिर से खाना बनवाने का इरादा तो नहीं है?’’

उस के इस प्रश्न से तो मेरे अरमानों की दुनिया ही चरमरा गई. पता नहीं उस की काया किस मिट्टी की बनी थी, मुझे तो जैसे प्रसन्न देख ही नहीं सकता था.

‘‘अब तो आप को यहां रुकना ही पड़ेगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुना दिया. वास्तव में मैं किसी ऐसे अवसर की तलाश में थी कि कुछ उस की भी खबर ली जा सके.

‘‘एक शर्त पर, यदि खाना आप पकाएं.’’

उस ने मुसकरा कर कहा था, सारा घर खिलखिला उठा. मैं भी.

‘‘चलिए, आज आप को अपना शहर दिखा लाऊं.’’

मेरे दिमाग से धुआं छटने लगा था इसलिए कुछ षड्यंत्र टिमटिमाने लगे थे. असल में मैं खानेपीने का तामझाम बाहर ही निबटाना चाहती थी. रसोई में जाना मेरे लिए सरहद पर जाने जैसा था. मैं ने जिस अंदाज में अपना निर्णय सुनाया था उस के बाद अभिन्न की प्रतिक्रियाएं काफी कम हो गई थीं. उस ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘मैं कुछ देर में आती हूं,’’ कह कर मैं फिर से अंदर चली गई थी.

आखिरी बार खुद को आईने में निहार कर कलाई से घड़ी लपेटी तो दिल फूल कर फुटबाल बन गया. नानी, दादी की मैं परी जैसी लाडली बेटी थी. कालिज में लड़कों की आशिक निगाहों ने एहसास दिला दिया था कि बहुत बुरी नहीं दिखती हूं. मगर वास्तव में खूबसूरत हूं इस का एहसास मुझे कभीकभार ही हुआ था. गहरे बैगनी रंग के सूट में खिलती गोरी बांहें, मैच नहीं करती मम्मी की गहरी गुलाबी लिपस्टिक और नजर नहीं आती काजल की रेखाएं. बचीखुची कमी बेमौसम उमड़ आई लज्जा ने पूरी कर दी थी. एक बार तो खुद पर ही सीटी बजाने को दिल मचल गया.

घड़ी की दोनों सुइयां सीधेसीधे आलिंगन कर रही थीं.

‘‘चलें?’’ मैं ने बड़ी नजाकत से गेस्टरूम के  दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘बस, एक मिनट,’’ उस ने अपनी नजर एक बार दरवाजे से घुमा कर वापस कैमरे पर टिका दी.

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मैं तब तक अंदर पहुंच चुकी थी. थोड़ी ऊंची सैंडल के कारण मुझे धीरेधीरे चलना पड़ रहा था.

उस ने मेरी ओर नजरें उठाईं और जैसे उस की पलकें जम गईं. कुछ पलों तक मुझे महसूस हुआ सारी सृष्टि ही मुझे निहारने को थम गई है.

‘‘चलें?’’ मैं ने हौले से उस की तंद्रा भंग की तो लगा जैसे वह नींद से जागा.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ उस ने इतने सीधे शब्दों में कहा कि मैं उलझ कर रह गई.

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’ मेरी सारी अदा आलोपित हो गई.

‘‘क्या हुआ? अरे मैडम, लंगूर के साथ हूर देख कर तो शहर वाले हमारा काम ही तमाम कर देंगे न,’’ उस ने भोलेपन से जवाब दिया.

ऐसा न था कि मेरी प्रशंसा करने वाला वह पहला युवक था लेकिन ऐसी विचित्र बात किसी ने नहीं कही थी. उस की बात सुन कर और लड़कियों पर क्या गुजरती पता नहीं लेकिन शरम के मारे मेरी धड़कनें हिचकोले खाने लगीं.

टैक्सी में उस ने कितनी बार मुझे देखा पता नहीं लेकिन 3-4 बार नजरें मिलीं तो वह खिड़की के बाहर परेशान शहर को देखने लगता. यों तो शांत लोग मुझे पसंद थे मगर मौन रहना खलने लगा तो बिना शीर्षक और उपसंहार के बातें शुरू कर दीं.

अगर दिल में ज्यादा कपट न हो तो हृदय के मिलन में देर नहीं लगती है. फिर हम तो हमउम्र थे और दिल में कुछ भी नहीं था. जो मन में आता झट से बोल देती.

‘‘क्या फिगर है?’’

उस की ऊटपटांग बातें मुझे अच्छी लगने लगी थीं. मैं ने शरमाते हुए कनखियों से उस की भावभंगिमाएं देखने की कोशिश की तो मेरे मन में क्रोध की सुनामी उठने लगी. वह मेरी नहीं संगमरमर की प्रतिमा की बात कर रहा था. जब तक उस की समझ में आता कि उस ने क्या गुस्ताखी की तब तक मैं उसे खींचती हुई विक्टोरिया मेमोरियल से बाहर ले आई.

‘‘मैं आप की एक तसवीर उतार लूं?’’ अभिन्न ने अपना कैमरा निकालते हुए पूछा.

‘‘नहीं,’’ जब तक मैं उस का प्रश्न समझ कर एक अच्छा सा उत्तर तैयार करती एक शब्द फुदक कर बाहर आ गया. मेरे मन में थोड़ा नखरा करने का आइडिया आया था.

‘‘कोई बात नहीं,’’ उस ने यों कंधे उचकाए जैसे इसी उत्तर के लिए तैयार बैठा हो.

मैं गुमशुम सी तांबे की मूर्ति के साथ खड़ी हो गई जहां ज्यादातर लोग फोटो खिंचवाते थे. वह खुशीखुशी कैमरे में झांकने लगा.

‘‘जरा उधर…हां, ठीक है. अब जरा मुसकराइए.’’

आगे पढ़िए- मैंने उसे चिढ़ाने के लिए विचित्र मुद्रा में बत्तीसी खिसोड़ दी. उसने…

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जानें Abuse के बारें में क्या कहती है Actress सोमी अली

मॉडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री, राइटर, फिल्म मेकर और सोशल वर्कर सोमी अली को सभी जानते है. वह अभिनेता सलमान खान की एक्स गर्लफ्रेंड है. सलमान की एक फिल्म देखकर उन्हें क्रश हुआ और फिल्मों में काम करने का मन उन्होंने सलमान खान को पाने के लिए किया था. सलमान खान मिले और दोनों ने 8 साल तक डेट किया, लेकिन सलमान के व्यवहार से दुखी होकर वापस मियामी चली गयी, पढाई पूरी की और सोशल वर्क में जुट गयी. उनकी संस्था ‘नो मोर टीयर्स’ काफी प्रचलित है, जिसमें महिलाओं के साथ हुई किसी भी ना इंसाफी का हल निकाला जाता है. सोमी को उसके जीवन का प्यार नहीं मिला, पर आज वह उन सभी महिलाओं की देखभाल करती है, जो प्रताड़ित और घर से निकाली गयी है. सोमी ने पिछले दिनों अमेरिका की मियामी से बात की अपनी जर्नी के बारें में , पेश है कुछ खास अंश.  

मिली प्रेरणा 

एक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारें में पूछे जाने पर सोमी कहती है कि मैं पाकिस्तान की हूँ और 12 साल की उम्र में मैं माँ और भाई के साथ अमेरिका शिफ्ट हो गए थे. पकिस्तान रहते हुए मैंने कई हिंदी फिल्में देखी और अमेरिका जाने के बाद भी फिल्में देखती रही. मैंने एक दिन सलमान खान की एक फिल्म ‘मैंने प्यार किया देखी’. उस रात सपने में मैंने देखा कि मुझे इंडिया जाकर सलमान खान से शादी करनी है. मैं केवल 16 साल की थी और सुबह उठकर मैं अपना सूटकेस पैक करने लगी. उस दौरान माँ के पूछने पर मैंने उन्हें सपने की बात कही. माँ को उस समय सलमान खान के बारें में पता भी नहीं था, क्योंकि तब मेरी माँ अमिताभ बच्चन, परवीन बॉबी, राजेश खन्ना आदि की फिल्में देखा करती थी. माँ ने डांटा और मुझे कमरे में जाने को कहा. उसके बाद मैंने पाकिस्तान में रह रहे पिता को फ़ोन किया और कहा कि मुझे इंडिया जाकर ताजमहल देखना है. मैने उनसे पूरी झूठी बातें कही, पर वे मेरे लिए टिकट भेजने राजी हुए और खुद भी मेरे साथ भारत जाने का प्लान बना लिया.

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किया संघर्ष 

 मैं 16 साल की उम्र में इण्डिया पहुँच गयी और मुंबई के बांद्रा इलाके के एक बड़े होटल में ठहरी, वहां लॉबी में मुझे और मेरे पिता को देखकर फिल्म प्रोड्यूसर के एक एजेंट ने मुझे अपना कार्ड देकर कहा कि अगर मेरी इच्छा फिल्मों में काम करने की हो, तो मैं उन्हें कॉल कर सकती हूँ. पिताजी ने कार्ड लेने से मना किया, पर मैंने लेकर रख लिया, क्योंकि मैं पूरी तैयारी के साथ मुंबई फिल्मों के ज़रिये सलमान से मिलने आई थी और फैशन फोटोग्राफर गौतम राजाध्यक्ष से फोटो शूट करवाने के बाद मैने उनकी सलाह पर सभी एक्टिंग एजेंसी को बांट दिया. एक फिल्म एजेंसी में मैं सलमान खान से मिली और उन्होंने फिल्म बुलंद में काम करने का ऑफर दिया. अगले दिन मैं उनके घर गयी और उनके पेरेंट्स से मिली. इस तरह से फिल्मों का सिलसिला शुरू हो गया. मैं अमेरिका के मियामी से फिल्मों में आ गयी.

मिला परिवार का सहयोग 

परिवार के सहयोग के बारें में सोमी बताती है कि शुरू में पिता बहुत गुस्सा हुए और कहा कि तुम और तुम्हारी माँ मिलकर फिल्मों में काम करने की प्लान बनायीं है, जो मुझे बताया नहीं गया है. मैंने  अभिनेता सलमान से शादी करने की बात बताई, जो उन्हें बहुत अजीब लगा था,  लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती थी. मेरी जिद यही थी. मेरी डेब्यू फिल्म बुलंद में मैंने सलमान खान के साथ अभिनय किया, जो रिलीज नहीं हुई. फिर मैंने संजय दत्त की सेक्रेटरी पंकज खरबंदा को सेक्रेटरी रखा, उन्होंने मुझे संजय दत्त, चंकी पांडे, मिठुन चक्रवर्ती, गोविंदा आदि कई बड़े-बड़े कलाकारों के साथ काम दिलवाया.

जब टूटा रिलेशनशिप 

मेरा मकसद सलमान खान से शादी करना, घर गृहस्थी सम्हालना और बच्चे पैदा करना था, लेकिन मेरे पास पकिस्तान और अमेरिका की नागरिकता होने की वजह से मुझे इंडिया में वर्क परमिट मिला था और यहाँ रहने के लिए मुझे फिल्में करनी थी. उस समय मैं सलमान खान के साथ रिलेशनशिप में थी, लेकिन कुछ वजह से साल 1999 दिसम्बर में मैं रिलेशनशिप तोड़कर अमेरिका आ गयी. रिलेशनशिप तोड़ देने के बाद वहां रहने का कोई मकसद नहीं रहा. रिश्ते टूटने की वजह से मैं बहुत हर्ट हुई थी. एक्टर्स के क्रसेज बहुत होते है और कम लोग उनतक पहुँच पाते है. मैं उस समय छोटी थी, 8 साल साथ में रहने के बाद पता चला कि इंसान अलग होता है और एक्टर अलग होता है. उस समय मुझे लगा कि ये रिश्ता सही नहीं है. उन्हें छोड़कर आने पर मैं बहुत दुखी हुई थी. मैं 6 महीने तक डिप्रेशन में रही. एक दिन भाई ने मुझे उठाया और मुझे अपनी पढाई पूरी करने की सलाह दी, क्योंकि मैं 9वीं की पढाई छोड़कर मुंबई चली गयी थी. इसके बाद मैंने पढाई पर ध्यान दिया और वर्ष 2006 तक फिल्म डिग्री भी हासिल की. मैं सलमान से कभी भी शादी नहीं करने वाली थी, क्योंकि मैंने प्यार एक एक्टर से किया था, इंसान के रूप में सलमान से नहीं.

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 संस्था है सबकुछ 

सोमी की संस्था ‘नो मोर टीयर्स’ के बारें में उनका कहना है कि दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते है, जो वायलेंस के बिना नहीं रह सकते. वे वायलेंस से प्यार करते है. खासकर पकिस्तान में हमारे कल्चर में मैंने डोमेस्टिक वायलेंस की शिकार माँ की सहेलियों को देखा है. किसी की आँख पर चोट, किसी की हाथ टूटी हुई आदि मैंने बचपन से पकिस्तान में देखती आई हूँ. अमेरिका गयी तो वहां भी मैंने डोमेस्टिक वायलेंस देखी, इंडिया गयी, तो वहां भी मैंने बच्चों और महिलाओं पर अत्याचार होते हुए देखा है. इसकी वजह पुरुष प्रधान समाज का होना है. इस विषय पर जबतक अधिक बातचीत नहीं की जाती, तबतक ये ख़त्म नहीं हो सकता. इसके अलावा महिलाये इसे छुपाती है, क्योंकि वे इसे कहने से शर्मिंदगी महसूस करती है. आज मैं भी बोल्डली कहना चाहती हूँ कि मैं भी डोमेस्टिक वायलेंस की शिकार हुई हूँ. इसके लिए सबको सच बोलना और अपनी कहानी शेयर करना पड़ेगा, नहीं तो ये सालों साल जिन्दा रहेगा. विक्टिम से अधिक एब्युजर इसमें दोषी है. आवाज महिलाओं को उठाना बहुत जरुरी है. अभी मैं 7 साल से मेरी ऑटोबायोग्राफी पर काम कर रही हूँ, इसके बाद मैं सीरीज में अपनी कहानी को कहना चाहती हूँ, क्योंकि मैंने 3 देशों में बहुत बुरा हाल महिलाओं का देखा है. 

डरे नहीं 

डोमेस्टिक वायलेंस करने वाला अपनी पत्नी या गर्ल फ्रेंड को प्यार अधिक करने के पीछे उसको बैलेंस करना है, क्योंकि जब वे मारते है, तो उन्हें अपनी पत्नी के छोड़कर जाने या  पुलिस के पास जाने का डर रहता है. वे एक थप्पड़ से फूल लाते है और एक मुक्के से अंगूठी लाते है. इसके अलावा वह डरती भी है. पहले इमोशनल एब्यूज से शुरू होकर मारपीट तक पहुँचता है. अगर समाज भी इसका साथ नहीं देता है, तो महिलाएं आवाज नहीं उठा सकती. 

महिलाओं का आत्मनिर्भर होना जरुरी 

इसके लिए महिला को वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होना बहुत जरुरी है. समाज अधिकतर विक्टिम को दोषी मानती है, ऐसे में कठिन कदम उठाना संभव नहीं होता. इसलिए मेरी संस्था उनको रहने के लिए घर देने के अलावा उन्हें पढ़ा-लिखाकर नौकरियां भी देते है. मेरी संस्था से वकील, सामाजिक कार्यकर्त्ता, टीचर आदि कई लोग निकले है. महिलाओं को आत्मनिर्भर होने पर ही डोमेस्टिक वायलेंस कम हो सकता है. वेस्टर्न देशों में कम होने की वजह वहां की महिलाओं का स्ट्रोंग होना है, जो कुछ होने पर पुलिस बुला लेती है, लेकिन मिडिल ईस्ट और साउथ ईस्ट एशिया में ऐसी सुविधा नहीं है. जालंधर के एक पति शादी कर पत्नी को अमेरिका ले आया, यहाँ उसने पत्नी को दाल में नमक कम होने की वजह से हाथ जला दिया. परिवार ने नहीं, मैंने उसे पढाया और अब वह डॉक्टर बन एक डॉक्टर से दूसरी शादी कर खुश है.

इन दिनों सोमी अमेरिका में एब्युज्ड महिलाओं, बच्चों और जानवरों के साथ काम कर रही है और इस काम की कोई समय सीमा नहीं होती. 24 घंटे नो मोर टीयर्स के साथ काम करती है. सलमान खान के साथ सोमी ने पिछले 5 साल से कोई बातचीत नहीं की है. वह कहती है कि इसकी वजह मेरी मानसिक और शारीरिक स्वाथ्य की भलाई के लिए है. उनकी माँ सलमा आंटी से मेरी मुलाकात मियामी में हुई थी. तब मुंबई की हाल-चाल का पता चल पाया था.

संस्था से की है शादी  

शादी कब करनी है, पूछे जाने पर सोमी हंसती हुई कहती है कि मैं ‘नो मोर टीयर्स’ से हैपिली मैरिड हूँ. शादी की इच्छा तब थी जब मैं 24 साल की थी. इसके बाद मैंने पढाई की नो मोर टीयर्स से जुडी. सामाजिक काम करना बहुत खतरनाक होता है. बहुत सारी धमकियाँ मुझे मार डालने की मिलती है. मैंने 29 हज़ार बच्चों को बचाया है और मैं इन सभी बच्चों की माँ हूँ. इस तरह मदरहुड मेरी पूरी हो चुकी है और शादी मेरे हिसाब से अगर कोई मिला, तो अवश्य करुँगी. अभी अमेरिका में मेरी माँ और भाई अलग-अलग जगहों पर रहते है और मेरे पिता पाकिस्तान में रहते है. मेरी माँ बचपन से लेकर 38 वर्ष तक शारीरिक,मानसिक और मौखिक यातनाएं झेली है. मेरा हौसला मेरी माँ से मिला है. उनका कहना है कि सही बात को कहने में कभी डरों नहीं. मुझे इंडिया का राजस्थान बहुत पसंद है, लेकिन जब भी मैं वीजा के लिए कोशिश करती हूँ, मेरा वीजा कैंसिल कर दिया जाता है, क्योंकि मेरा जुर्म पकिस्तान में जन्म लेने से है. मेरे पास अमेरिका का भी वीजा है. दोनों देशों के हालात बेहतर होने पर अगर मुझे इंडिया आने की परमिशन मिला तो मैं ताजमहल देखना और मुंबई के शिवसागर रेस्तरा में जाकर पाव भाजी खाना खाना चाहूंगी.

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सम्हलना है कोविड में 

कोविड पीरियड में काम करने के बारें में पूछने पर सोमी बताती है कि मुझे तो बहुत काम अपनी संस्था के लिए करना पड़ता है, इसलिए मैं हर सप्ताह अपनी कोविड टेस्ट करवाती हूँ और सारी सावधानियों का पालन करती हूँ, लेकिन मैं भारत के लोगों के लिए बहुत दुखी हूँ और जल्दी सब ठीक होने की कामना करती हूँ. इसके आगे महिलाओं के लिए सोमी का कहना है कि किसी को ये हक नहीं होता है कि कोई आपको मानसिक और सेक्सुअली एब्यूज करें और आपकी मान मर्यादा को आपसे छीन लें. फिर चाहे वह पति,दोस्त या परिवार का सदस्य हो. अगर किसी को भी कोई समस्या है, तो आप मुझसे जुड़ सकते है.  जीवन में कभी गिवअप न करें. खुद के लिए ही नहीं, बल्कि किसी भी महिला को घरेलू प्रताड़ना से बचाएँ.  

कोरोना महामारी- धार्मिक स्टंटबाजी बनी दुकानदारी

– हे परमपिता परमेश्वर हम सब आपके बच्चे हैं . हो सकता है हमसे कोई गलती हो गई हो जाने अनजाने में हमने किसी का दिल दुखाया हो . हम सब भूलनहार हैं आप बख्शन्हार हैं . बख्शो हम सभी के गुनाहों को आप मुझे मेरे परिवार को समस्त संसार के प्राणियों को इस महामारी से बचाओ . केवल आप ही हमारी रक्षा कर सकते हो .

कृपया इस प्रार्थना को हर ग्रुप में फारवर्ड करें आप जोक्स भी तो फारवर्ड करते हैं तो इस प्रार्थना को भी अवश्य फारवर्ड करें .

– जय जिनेन्द्र

श्री 1008 भगवान महावीर जयंती की शुभकामना .

यदि कोरोना का एक वायरस करोड़ों लोगों को हानि पहुंचा सकता है तो क्या हम करोड़ों लोग एक साथ मिलकर इसका मुकाबला नहीं कर सकते . ध्यान से पढ़ें आगामी 25 अप्रेल को श्री 1008 भगवान् महावीर जयंती के शुभ अवसर पर हम सब मिलकर पूरे भारत में एक साथ ठीक 7.15 बजे 9 / 11 / 51 / 108 दीपक जलाकर जोर जोर से णमोकार महामंत्र का पाठ करेंगे तो करोड़ों मुख से निकली प्रार्थना हमे इस रोग संकट से मुक्ति कराएँगे . —– जय जिनेन्द्र .

– कृपया इस प्रार्थना को रोकियेगा नहीं .

हे मेरे नाथ . मेरे प्रभु श्री राम , हे दया के सागर
पूरी दुनिया में जितने लोग कोरोना रोग से परेशान हैं तू उन पर दया कर और उनकी बीमारी और परेशानियों को ख़त्म कर दे ……
हैं तो अनगिनत लेकिन ऐसी ही एक और पोस्ट को देख लें –

– पुरी मंदिर से संबंधित इस शालिग्राम को आखिरी बार 1920 में स्पेनिश फ्लू के दौरान महामारी के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए निकाला गया था . कोविड के मद्दे नजर अब इसे फिर से निकाल लिया गया है . कृपया दर्शन करें और इसे परिवार और दोस्तों को दें ….

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी धर्म की यह प्रचिलित दुकानदारी खूब फली फूली जिससे वायरस का कहर तो रत्ती भर भी कम नहीं हुआ उलटे एक बार फिर यह जरुर साबित हो गया कि आपदा को अवसर में बदलने में ये दुकानदार जरुर कामयाब रहे जिन्होंने भगवान् के नाम पर पहले कोरोना के डर को लोगों का पाप और गलती बताते हवा दी और फिर उसके नगदीकरण यानी दान दक्षिणा का भी इंतजाम कर लिया .

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नहीं चूके ये धूर्त –

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान के तजुर्बे लोग शायद ही कभी भूल पाएंगे . यह वह दौर था जब जब सारा सिस्टम और व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुके थे . कोरोना पीड़ित और उनके परिजन अस्पतालों में लाइन लगाए बिस्तर और इलाज के लिए तरस रहे थे . दवाइयों के लिए मारामारी मची थी और आक्सीजन के अभाव में कईयों ने दम तोडा . शमसान तक में राशन की दुकानों की तरह लम्बी लम्बी लाइनें लगी .

माहौल को देखते हर कोई दुआ और प्रार्थना कर रहा था कि हे भगवान् हमे और हमारे परिजनों को इस कोरोना से बचाए रखना . लोगों की इसी कमजोरी की देन थीं वायरल होती सैकड़ों की तादाद में उक्त पोस्टें जिनका मकसद इस डर को और बढ़ाना और फिर इससे से पैसे बनाना था . समझ तो हर किसी को आ रहा था कि भगवान् भी इस भयावहता के आगे लाचार है क्योंकि वह कहीं है ही नहीं लेकिन दुकानदार मौका चूके नहीं और तरह तरह से लोगों को मूर्ख बनाते रहे .

भोपाल के एक नामी ज्योतिषी पंडित विष्णु राजोरिया ने हनुमान जयंती को भुनाते हुए एक ऐसी बात कही जिसके लिए देश जाना जाता है और जिसके चलते ही विदेशों में इसकी छवि सांप सपेरों बाली है . बकौल उक्त ज्योतिषी निरोगी रहने के लिए लोगों को नासे रोग हरे सब पीरा , जो सुमरे हनुमत बल बीरा … का पाठ करते हुए हनुमान को घर में बने पकवान खासतौर से चूरमे और बेसन के लड्डू का भोग लगाना चाहिए इससे हनुमान प्रसन्न होते हैं . बात में दम लाने ज्योतिषी जी ने उसमें नक्षत्रों का भी तड़का लगा दिया कि त्रेता युग में इसी महीने की पूर्णिमा पर चित्रा नक्षत्र में हनुमान का जन्म हुआ था इसलिए यह शुभ है गोया कि हर बार अशुभ हुआ करता था , फर्क क्या .

कितना आसान इलाज ये और ऐसे त्रिकालदर्शी बताते रहते हैं कि इम्युनिटी आक्सीजन और रेमडेसिविर के पीछे मत भागो , हनुमान को चूरमे या बेसन का लड्डू चढ़ा दो वह तुम्हारा रोग हर लेगा . देवी देवताओं की हमारे पास कमी नहीं . शिवरात्रि पर शिव का अभिषेक पूजन कर कोरोना को भगाया गया था . नवरात्रि में देश भर में सामूहिक यज्ञ हवन कर भक्तों ने हवन कुंड में कोरोना की आहुति दी थी मगर कमबख्त भस्म नहीं हुआ अब जन्माष्टमी पर कृष्ण से उसे मरवायेंगे .

विज्ञान के इस युग में धर्म के नाम पर कैसी कैसी उलूल जुलूल हरकतें देश भर में होती हैं इसकी एक मिसाल मध्यप्रदेश के रतलाम जिले से भी देखने में आई जहाँ शमशान में रहने बाला एक बाबा , नाम अघोरी चरण नाथ लाल मिर्च और शराब से हवन कर कोरोना भगाने का दावा कर हवन करता रहा . इस बाबा के पास भी हजारों की भीड़ जुटी लेकिन फायदा सिर्फ बाबा को हुआ जो जिसे जमकर चढ़ावे में मुफ्त की शराब कोरोना कर्फ्यू के दौरान मिली .

दोषी अकेले ये पंडे पुजारी धार्मिक संस्थाएं और तांत्रिक मान्त्रिक ही नहीं हैं बल्कि उत्तराखंड के अन्धविश्वासी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह जैसे नेताओं ने भी इन ठगों और धूर्तों को खूब शह दी . मध्यप्रदेश की संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर जो कभी मास्क नहीं लगातीं ने तो एक कदम आगे चलते बीती 9 अप्रेल को इन्दोर एयरपोर्ट पर सार्वजानिक रूप से ताली बजाते कोरोना भगाने पूजा कर डाली . उनके साथ एयरपोर्ट का स्टाफ भी ताली बजाते देखा गया . इसके पहले उन्होंने गाय के गोबर के उपले से हवन कर कोरोना भगाने का खूब प्रचार किया था . इस बेहूदगी ने केन्द्रीय मंत्री रामदास अठावले की याद दिला दी जो पिछले साल कोरोना के कहर की शुरुआत के साथ ही कुछ बौद्ध भिक्षुओं के साथ गो कोरोना गो का नारा देते नजर आये थे मानों कोरोना चिल्लाने से भाग जाएगा.

आम लोगों ने भी साबित कर दिया कि वे मूर्ख हैं और धूर्तों के चंगुल में फसने से उन्हें कोई परहेज नहीं क्योंकि झूठा ही सही वे भरोसा तो दिला रहे थे सरकार तो वह भी नहीं कर पा रही थी उलटे इन्हीं लोगों की शरण में जाने का मशवरा लोगों को दे रही थी . प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब उतरा सा मुंह लेकर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे तब उनकी जुबान पर भी प्रमुखता से राम और रमजान थे . एक तरह से उन्होंने मान लिया था कि सरकार फेल हो चुकी है इसलिए उसी ऊपर बाले के भरोसे लोग रहें जिससे सोशल मीडिया पर गुहार लगाई जा रही थी कि अब यही कुछ कर सकते हैं .

यह उपर बाला कुछ कर सकता होता तो पिछले साल ही कर चुका होता लेकिन उसके नीचे बाले बंदों और दलालों ने जो कर दिखाया वह हमारे देश में ही मुमकिन था जो पूरी जिन्दगी धार्मिक स्टंटों में उलझे रहते हैं क्योंकि यही उनका पेशा और रोजगार है .

मूर्खता की हद –

कोरोना की पहली लहर और कहर में भी लोग घरों में कैद थे लेकिन तब उन पर तनाव कम था सिर्फ इसलिए नहीं कि यह कहर हल्का और कम जानलेवा था बल्कि इसलिए कि जल्द ही लोगों को यह समझ आ गया था कि उपर बाला एक कल्पना भर है और कल्पनाओं से आपदा से नहीं लड़ा जा सकता . बंद पड़े धार्मिक स्थल इस बात की गवाही भी दे रहे थे और लोगों ने पहली बार महसूसा था कि बचना खुद उनके हाथ में है . यह माहौल जून जुलाई 2021 तक रहा था . ऐसी धार्मिक पोस्टें तब भी थीं लेकिन अधिकांश भक्त टाइप के लोग भी इनकी हकीकत समझते कहने और मानने लगे थे कि जब बिना भगवान् और कर्मकांडों के भी जिन्दगी चल सकती है तो क्यों पैसा और वक्त इनमें जाया किया जाए .
लेकिन जैसे ही कोरोना का कहर कम हुआ और जिन्दगी पटरी पर लौटने लगी तो धर्म के दुकानदारों ने अपनी चालबाजियां और कलाबाजियां दिखानी शुरू कर दीं कि बच गए तो यह प्रभु कृपा है इसलिए किसी भी सुख दुःख में उसे मत भूलो . देखते ही देखते यज्ञ हवन पूजा पाठ तंत्र मंत्र और स्वर्ग नरक मोक्ष आदि का कारोबार फिर चमकने लगा .

कोरोना की दूसरी लहर में भगवान जीवियों ने हाहाकार के बीच नई ट्रिक अपनाई . उन्होंने कोरोना से सुरक्षित रहे लोगों पर पांसा फेंका . चाल यह थी कि चूँकि सभी लोगों पर इसका कहर नहीं टूट रहा है इसलिए उनको लपेटे में लिया जाए जो इससे बच रहे हैं . ऐसे यानी बचे ग्राहकों की तादाद भी खासी थी इसलिए उनका फार्मूला चल निकला . लोगों ने मान लिया कि उन्हें बचाने बाला वही पालनहार है जिसकी महिमा इन मेसेज में गाई जा रही है इसलिए कुछ देकर भारी किल्लत से निजात मिल रही है तो सौदा घाटे का नहीं .

किसी ने यह नहीं सोचा और न ही पूछा कि जब बचने बाले उपर बाले यानी राम दुर्गा या महावीर की कृपा से बचे हैं तो मरने बालों की जिम्मेदारी जो हत्या ही कही जानी चाहिए उस पर क्यों नहीं थोपी जा रही . ज्यादा लोगों के मन में यह आशंकित और दुकान ख़राब करने बाला विचार न आये इसलिए उन्होंने एक फ़िल्मी गाना भी वायरल कर दिया कि , मारने बाला भगवान् और बचाने बाला भी भगवान् . बस तमाम तर्क इसी मुकाम पर आकर लोगों को दिमागी तौर पर अपाहिज बना देते हैं कि सब प्रभु की माया है जो यह तय कर रहा है कि किसे बुलाना है किसे बख्श देना है इसके लिए उसका अपना पैमाना है जिसमें आदमी के कर्मों और पापों का करंट एकाउंट सा रहता है . बचने की शर्त यही है कि घर में दुबके उसका स्मरण करते रहो और नजदीकी मंदिर में जाकर जेब ढीली कर दो जो कि लोगों ने की .

अवैज्ञानिक सोच का देश –

अप्रेल के आखिर तक हालत यह थी कि भारत में कोरोना से हुई मौतों का आंकड़ा पूरी दुनिया को मात कर रहा था जिसकी इकलौती वजह यह तो थी ही कि सरकार ने कोरोना संकट को गंभीरता से नहीं लिया बल्कि यह भी थी कि लोग हमेशा की तरह भगवान् भरोसे हो गए थे सरकार तो धार्मिक टाइप के लोगों की है ही जिस पर लापरवाही और बदइन्तजामी की उँगलियाँ उठीं पर वे इसी धार्मिक शोर शराबे में दबकर रह गईं कि हमारा धर्म और संस्कृति तो सबसे पुराने और सनातन हैं और इतना उन्नत विज्ञानं हैं कि कोई उन्हें समझ ही नहीं सकता .

अव्वल तो बात किसी सबूत की मोहताज नहीं लेकिन एक साल में फिर साबित हो गया कि हमारा देश मौजूदा सरकार की तरह वैज्ञानिक सोच बाला न होकर भाग्यवादी , मंदिरजीवी और चमत्कार जीवी है . लोगों ने तो मास्क लगाया न सेनेटाईज्रर का इस्तेमाल किया और न ही सोशल डिस्टेगिंग का पालन किया . उलटे हरिद्वार कुम्भ में 20 लाख लोग इकट्ठा हो गए अब संक्रमण तो फैलना ही था लेकिन किसी ने पिछले साल की तर्ज पर तबलीगी जमात के मुसलमानों की तरह कुम्भ के हिन्दुओं को नहीं कोसा कि ये लोग देश भर में कोरोना फैला रहे हैं .

तरस खाने बाली बात यह भी रही कि उत्तराखंड के अन्धविश्वासी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह यह कहते रहे कि गंगा मैया कोरोना से बचाएगी . अब कई साधु संतों और आम लोगों के संक्रमित होने और मरने का जिम्मेदार वे गंगा मैया को क्यों नहीं ठहरा पा रहे , सिर्फ इसलिए कि वे भी इन्ही चालाक दुकानदारों के सहयोगियों में से एक हैं . वे परम भक्त होने की वजह से थोड़े बड़े और थोड़े से ही रसूखदार दुकानदार हो गएँ हैं या जानबूझकर बना दिए गए हैं यह अलग बात है लेकिन समझदार और परिपक्व नहीं हो पाए हैं इसमें कोई शक नहीं .

इसी धर्मनगरी में कुम्भ के दौरान साधु संतों ने खूब धार्मिक स्टंट कोरोना को भगाने किये थे जिसकी शुरुआत गायत्री परिवार से हुई थी कि घर घर यज्ञ करो कोरोना भाग जाएगा . पिछले साल मई में यह सिलसिला गायत्री परिवार के मुखिया डाक्टर प्रणव पंड्या ने शुरू किया था . देश भर के साधकों ने हवन किये और रुक रुक कर अभी भी कर रहे हैं . बिजनौर के गायत्री शक्तिपीठ में तो बीती 15 अप्रेल को गायत्री परिवार ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए सामूहिक रूप से गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया था .

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भोपाल के एमपी नगर स्थित गायत्री मंदिर में हर कभी कोरोना को भस्म करने आहुतियाँ डाली जाती हैं जिनसे खत्म होने के बजाय वह और विकराल होता गया . इस संस्थान के जो कर्ता धर्ता यज्ञ से इम्युनिटी बढ़ने का दावा करते रहे थे वे भी संक्रमित होकर अस्पतालों में चक्कर काटते नजर आये .

बात हरिद्वार की ही करें तो कोरोनिल नाम की अवैज्ञानिक दवा बेचकर अरवों खरबों रु कमाने बाले बाबा रामदेव के पतंजलि संस्थान में ही 23 अप्रेल तक 86 कर्मचारी कोरोना संक्रमित निकले थे . ऐसे में सोचना स्वभाविक है कि फिर किस काम के ये धार्मिक स्टंट और आयुर्वेदिक दवाइयां जिन्होंने लोगों का कोरोना से ज्यादा नुक्सान किया हाँ पैसा बनाने के अपने मकसद में ये सभी कामयाब रहे और मूर्ख बने तो हमेशा की तरह आम लोग जिनकी नियति यही है .

किसी ने इस हकीकत पर गौर नहीं किया कि यूरोप और अमेरिका कैसे इस त्रासदी से लगभग निकल आये हैं और चीन तो दूर की बात है हमारा पडोसी बंगला देश भी क्यों हम से आगे निकल रहा है . धर्म वहां भी है और हर जगह है लेकिन लोग हमारे जितने बेवकूफ लोग कहीं नहीं हैं कि किसी देवी देवता के इंतजार में हाथ पर हाथ रखे यह सोचते बैठे रहें कि अभी एक चमचमाता त्रिशूल आसमान से आएगा और कोरोना नाम के राक्षस का वध कर देगा या कि शंकर का तीसरा नेत्र खुलेगा और उसमें से निकलती तेज रौशनी कोरोना को भस्म कर देगी जैसा कि वायरल होती पोस्टों में दावा कर दक्षिणा का इंतजाम किया जाता है .
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव खासतौर से पश्चिम बंगाल की चुनावी रैलियों और सभाओं को दोष देकर जरुर लोगों ने भड़ास निकाल ली कि ऐसे वक्त में यह गैर जरुरी था . मामले की नजाकत देखते हुए पहले कांग्रेस दिग्गज राहुल गाँधी ने रैलियां न करने की घोषणा की तो उनके पीछे भाजपा और टीएमसी भी चल पड़े लेकिन तब तक कोहराम मुकम्मलतौर पर मच चुका था और हालत देख लोग सदमे और सकते में थे . मौका ताड़ते इसी वक्त में धर्म के दुकानदारों ने अपने शटर सोशल मीडिया पर खोल लिए .
इसकी वजह बहुत साफ़ है कि देश के 95 फ़ीसदी लोग इतने अवैज्ञानिक हैं कि उन्हें हर मर्ज की दवा मंदिरों और धर्म ग्रंथों में दिखती है . वे यह मानते हैं कि जो हो रहा है वह तो भगवान् ने पहले से ही तय कर रखा है यानी नया कुछ नहीं है यह सब हमारे ही पापों की सजा है जिसे श्रीमाद्भाग्बद्गीता के अध्याय 4 श्लोक 8 में कृष्ण ने कुछ यूँ कहा है .

परित्राणाय साधूना ………………………………………………………. संभवामि युगे युगे

अर्थात – साधुओं ( भक्तों ) की रक्षा करने के लिए , पापकर्म करने बालों का विनाश करने के लिए और धर्म की भलीभांति स्थापना करने के लिए मैं युग युग में प्रगट होता हूँ .

. इस मूर्खता की सजा पूरे देश ने भयावह रूप से भुगती कि हम नया और तार्किक कुछ नहीं अपनाएंगे और अपने पापों की सजा भुगतेंगे जिससे भ्रष्ट और लुप्त होते धर्म की पुनर्स्थापना हो सके और इसके लिए कोरोना को चुनौती देते बिना मास्क के घूमेंगे और सब को संक्रमित करेंगे. भगवान् की मर्जी नहीं होगी तो कोरोना तो क्या उसका बाप भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा और हमारे पापों या गलतियों के चलते कुछ उल्टा सुलटा हुआ भी तो हजार पांच सौ की दक्षिणा यानी घूस चढ़ाकर बच जायेंगे .

कुम्भ की तर्ज पर हर जगह भीड़ इकट्ठा हुई क्योंकि भीड़ को भरोसा भगवान् का था पर जब कोरोना का कहर बरपा तो लोगों को छठी का दूध याद आ गया लेकिन उन्हीं को जो इसकी गिरफ्त में आये और जो बच गए उनसे पैसे ऐंठने उपर बताई गई पोस्टों के जरिये धर्म की दुकान खूब चली और अभी भी चल रही है और अगर यह मूर्खता जिसकी उम्मीद पंडे पुजारियों के रहते ज्यादा है जारी रही तो चलती रहेगी .
चलती इसलिए रहेगी कि आदमी कभी मरता ही नहीं है इस बात को श्रीमाद्भाग्बद्गीता के अध्याय 2 के श्लोक 20 में इस तरह कहा गया है जिसे पढ़कर किसी को भी अपने प्रियजनों की मौत को मौत मानते हुए दुखी नहीं होना चाहिए बल्कि इस बात पर खुश होना चाहिए कि मृतक फिर पैदा होने बुला लिया गया है . कोरोना तो एक बहाना है .

न जायते ……………………………………………………………………… हन्यमाने शरीरे

अर्थात – यह आत्मा किसी काल में न कभी जन्मता है और न मरता है और यह न एक बार होकर फिर अभावस्वरूप होने बाला है . यह आत्मा अजन्मा नित्य , शाश्वत और पुरातन है . शारीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता .

– विदेशी मीडिया ने की हकीकत बयां

अपने हर भाषण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की काल्पनिक ही सही बढ़ती ताकत और 130 करोड़ लोगों का जिक्र और फख्र जरुर करते कहते हैं कि आज पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है . पीपीई किट से लेकर वेक्सीन निर्माण और सप्लाई यानी विक्रय को लेकर भी उन्होंने कहा था कि पूरी दुनिया भारत की तरफ देख रही है .

तब का तो पता नहीं लेकिन मार्च अप्रेल के महीनों से लेकर अब तक वाकई पूरी दुनिया यह देख हैरान है कि भारत में एकाएक ही हालात कैसे बिगड़े और इसका जिम्मेदार कौन है . इस हडकम्प पर विदेशी मीडिया ने काफी दिलचस्पी ली क्योंकि अधिकतर देसी मीडिया तो मोदी भक्ति में लींन रहता है और मच रही अफरातफरी पर से लोगों का ध्यान भटकाने कहता रहता है कि आशावादी बनो , सकारात्मक सोचो , इस बात पर हल्ला मत मचाओ कि कितने मरे कितने परेशांन हुए , कितने आक्सीजन के लिए छटपटाये देखो यह कि कितने लोग ठीक होकर घरों की तरफ लौट रहे हैं सौ में से 4 को आक्सीजन नहीं मिल रही यह चिंता की बात नहीं 96 को मिल रही है यह ख़ुशी की बात है . बगैरह बगैरह …

नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार विदेशी मीडिया के निशाने पर रहे तो इसकी कुछ वजहें भी हैं जिन्हें उनके नजरिये से देखें तो समझ आता है कि हालात उससे कहीं ज्यादा विस्फोटक और मिसमेनेज रहे जितना कि लोग समझते रहे .

`भारत में कोविड की लहर होती भयावह , 315000 नए दैनिक मरीजों का रिकार्ड` शीर्षक से ब्रिटेन के अख़बार द गार्डियन ने कोरोना के आंकड़े देते 22 अप्रेल को लिखा कि भारत में सोशल मीडिया पर मदद मांग रहे लोगों की बाढ़ आई हुई है कोई अपने प्रियजनों के लिए आक्सीजन सिलेंडर ढूंढ रहा है तो कोई अस्पताल में बेड का बंदोबस्त कर रहा है . इस अख़बार ने साउथ केरोलाइना की मेडिकल यूनिवर्सिटी की एक असिस्टेंट प्रोफेसर कृतिका कुप्प्ली के ट्वीट का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि भारत में कोविड – 19 सार्वजानिक स्वास्थ संकट बन चुका है जिसके कारण स्वास्थ सेवा प्रणाली ढहने के कगार पर है .
एक उल्लेखनीय बात गार्डियन ने विशेषज्ञों के हवाले से यह भी कही कि , वायरस गायब हो गया है यह गलत तरीके से समझते हुए सुरक्षा उपायों में बहुत जल्द ढील दे दी गई शादियों और बड़े त्योहारों को आयोजित करने की अनुमति थी और मोदी स्थानीय चुनावों में रैलियां कर रहे थे .

यही बात उर्दू के अल जरीरा न्यूज़ चेनल ने भी कही और उसमें कुम्भ के आयोजन पर ताना कसते यह भी जोड़ा कि स्थानीय चुनावों में भीड़ भरी रैलियों को संबोधित करने और हिन्दू त्यौहार जिसमे लाखों लोग इकट्ठा होते हैं उसकी अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी खुद आलोचना का सामना कर रहे हैं .
विदेशी पत्रकारों ने तो मोदी सरकार को लेकर कोई लिहाज नहीं किया . ब्लूमर्ग न्यूज़ एजेंसी के स्तम्भकार मिहिर शर्मा ने लिखा , जैसा कि भारत में हमेशा से ही देखा गया है यहाँ के अयोग्य अफसरों की हेकड़ी , जनता में अति राष्ट्रवाद और यहाँ के राजनेताओं के लोकलुभावंनवाद ने मिलकर एक ऐसा गंभीर संकट पैदा कर दिया है जिसकी सम्भावना हमेशा से ही थी लेकिन इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर कभी कोई तैयारी नहीं की गई .

न्यूयार्क टाइम्स ने नासिक हादसे को अंडर लाइन करते लिखा , कोरोना से जंग में मोदी के मिले जुले सन्देश भी ख़राब हालत की एक वजह हैं . 20 अप्रेल के संबोधन में मोदी ने ज्यादा सावधानी सरकार के प्रयास और दूसरी हिदायतें दीं लेकिन लाक डाउन को अंतिम विकल्प बताया जबकि खुद मोदी का राज्यों के विधानसभा चुनाव में रैलियां करना और सरकार की तरफ से बड़े पैमाने पर हिन्दू त्योहारों खासतौर से हरिद्वार कुम्भ मेले को जारी रखना संक्रमण फैलाव का बहुत बड़ा कारण है .
वाशिंगटन पोस्ट और पाकिस्तान के डॉन ने भी कमोबेश यही बातें कहीं जो कम से कम उन आम लोगों के लिए तो नई नहीं थीं जिन्हें विदेशी मीडिया से कोई लेना देना नहीं होता और जिन्हें होता है वह भी देसी मीडिया पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उसका काम आलोचना या सच बयानी कम मोदी की भगवान टाइप की इमेज चमकाते रहना ज्यादा होता है .

 मोदी की ध्वस्त होती चमत्कारी इमेज

साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद ही नरेन्द्र मोदी की इमेज एक ऐसे चतुर और बुद्धिमान नेता की भगवा गेंग ने गढ़ दी थी जिसके पास हर समस्या का हल होता है और जो हमेशा दूर की सोचता है .2 साल तो यूँ ही गुजर गए लेकिन नोट बंदी के फैसले ने यह साबित कर दिया था कि उन जैसा अदूरदर्शी नेता कोई नहीं , न पहले कभी हुआ और न आगे कभी हो पायेगा . फिर जीएसटी से लेकर खासतौर से पश्चिम बंगाल चुनाव तक उन्होंने ऐसे कई अदूरदर्शी फैसले बिना किसी लिहाज या परवाह के लिए जिनका देश के भले से कोई लेना देना नहीं था . यह तो उनके शपथ लेने के बाद ही लोगों को दिख गया था कि वे आरएसएस का मोहरा भर हैं जिसका मकसद हिंदुत्व थोपकर देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना है इससे ज्यादा और इससे कम सोचने की उम्मीद बुद्धिजीवियों ने उनसे फिर कभी नहीं रखी .

लेकिनं उनके 3 – 4 करोड़ अंधभक्तों को उनसे बडी उम्मीदें हैं कि कब देश पूरे तौर पर हिन्दू राष्ट्र बने और हम सवर्ण मुद्दत बाद फिर दलित आदिवासियों और मुसलमानों सहित पिछड़ों की छाती पर मूंग दलें . कोरोना संकट के वक्त में भी जिसे सबसे बडी अदालत ने नेशनल इमरजेंसी कहा ये लोग मीडिया और सोशल मीडिया पर मोदी के बचाव में अव्यवहारिक तर्क पेश कर रहे हैं जिनका सार यही है कि कोरोना का यह कहर तो इश्वर की मर्जी है इसमें मोदी का क्या दोष वे तो दिन रात एक कर हर तरह से कोरोना पीड़ितों की मदद कर अपना राज धर्म निभा रहे हैं . एक साल की सरकारी लापरवाही के बाबत सब चुप हैं.

अपने हर भाषण की शुरुआत में नरेन्द्र मोदी एक ख़ास अदा से कहते हैं , मितरो , हमारे शास्त्रों में कहा है कि …. धर्म की यह भाषा शैली सिद्ध कर देती है कि देश संविधान या लोकतंत्र से नहीं बल्कि धर्म ग्रंथों से चल रहा है इसीलिए लोगों को गुमराह करती और बरगलाती धार्मिक पोस्टें खूब वायरल हुईं जिनमें से कुछ को उपर शुरू में बताया गया है . 20 अप्रेल को राष्ट्र के नाम संवोधन में भी धर्म , शास्त्र , मर्यादा और धैर्य जैसे शब्द थे जिनका मकसद लोगों को यह जताना भर था कि सरकार से अब कुछ होने जाना बाला नहीं . हालत बेकाबू हो चुके हैं इसलिए तुम जानो तुम्हारा काम जाने , हमें तो राम मंदिर बनाना था सो बना लिया और आगे भी कृष्ण और हनुमान बगैरह के मंदिर बनाने का सिलसिला जारी रहेगा .

लेकिन हडकम्प के दौरान सभी ने उनसे इत्तफाक नहीं रखा और सोशल मीडिया पर ही उनका तरह तरह से विरोध हुआ . भाजपा के भीतर और बाहर मोदी को अवतार और भगवान् करार देने बाले नेताओं और भक्तों ने आम लोगों को इलाज और आक्सीजन के आभाव में सड़कों पर दम तोड़ते देखा . हर किसी के मुंह से निकला कि ऐसे दृश्य देखना तो दूर की बात है हमने कभी सपने में भी इनकी कल्पना नहीं की थी . बात सही भी है लोग तो 3 साल बाद विश्व गुरु बनने की उम्मीदें पाले बैठे थे जो अब बुरे सपने की तरह टूट रहीं हैं तो लोगों के मुंह से बोल नहीं फूट रहे कि नहीं चाहिए हमें हिन्दू राष्ट्र , राम मंदिर , महंगे चुनाव, और पटेल जैसे नेताओं की महंगी मंहगी मूर्तियाँ हमें तो कोरोना के कहर से बचने दवाइयां , अस्पताल और सुकून से अंतिम यात्रा तय करने शमसान घाट ही काफी हैं .

कोरोना के मोर्चे पर सरकार की नाकामी किसी सबूत की मोहताज नहीं रह गई है जिसकी वजह सरकार का धार्मिक दिमाग है जो भगवान् भरोसे रहता है और आपदा प्रबंधन की ए बी सी डी भी नहीं जानता . वह तो घंटे घडियालों और गाय और गोबर की भाषा जानता समझता है सो यह तो होना ही था जिससे लोगों ने कितना सबक लिया इसे समझने अभी बहुत वक्त है .

कोरोना के बढ़ते कहर के बीच ‘अनुपमा’ के इस एक्टर ने किया शूटिंग करने से मना, पढ़ें खबर

भारत में कोरोना मामले बढ़ रहे हैं तो वहीं इसका असर आम जिंदगी पर देखने को मिल रहा है. वहीं बौलीवुड और टीवी सितारे भी इसके चपेट में आते जा रहे हैं. इसके कारण स्टार्स शूटिंग से परहेज कर रहे हैं. वहीं खबर है कि अनुपमा के सेट पर कोरोना के मामले बढ़ने के बाद शो के एक्टर ने शूटिंग करने से मना कर दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला..

बापूजी ने किया शूटिंग करने से मना

कोरोना के कहर के कारण महाराष्ट्र में लॉकडाउन के कारण टीवी सीरियल्स के मेकर्स दूसरे शहरों में जाकर शो की शूटिंग कर रहे हैं, जिनमें सीरियल अनुपमा(Anupamaa) भी शामिल है. वहीं इस शो की शूटिंग सिल्वासा में हो रही है. लेकिन अब शो में वनराज शाह के बापूजी का किरदार निभाने वाले सीनियर एक्टर अरविंद वैद्य(Arvind Vaidya) ने कोरोना के इस समय में शूटिंग करने से मना कर दिया है.वहीं मेकर्स ने भी उनके इस फैसले को सपोर्ट किया है.

 

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अरविंद वैद्य ने कही ये बात

 

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सीनियर एक्टर अरविंद वैद्य ने एक इंटरव्यू में कहा है कि बीते कुछ हफ्तों में टीम के कई लोग कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं. मेरी रिपोर्ट नेगेटिव आई थी तो मैं कुछ समय तक शूटिंग करता रहा. मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी हेल्थ का ध्यान रखना चाहिए और खुद को वायरस के कॉन्टैक्ट में आने से बचाना चाहिए. जिसके बाद मैंने प्रोडक्शन हाउस को इस बारे में बताया और वह मान गए.

 

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परिस्थिति ठीक होने के बाद करेंगे शूटिंग

 

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अरविंद वैद्य ने आगे शूटिंग पर लौटने को लेकर कहा- अब सरकार ने शूट करने पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसके बाद शूट सिल्वासा रिलोकेट हो गया है. मैं सीनियर एक्टर हूं और 300 से ज्यादा प्ले में काम कर चुका हूं. अगर मुझे एक हेल्दी लाइफ जीनी है तो ये जरुरी है कि मैं इस परिस्थिति में शूट के लिए ट्रैवल ना करुं. मुझे सेफ्टी प्रोटोकॉल करने होंगे. अभी के लिए मैं सिल्वासा ट्रैवल नहीं कर रहा हूं. अगर प्रोडक्शन हाउस वाले मुझे ट्रैवल करने के लिए कहेंगे तो मैं इस बारे में सोचूंगा. मैं दोबारा शूट करने के बाद तब सोचूंगा जब कुछ हफ्तों बाद परिस्थिति बेहतर हो जाएगी.

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बता दें, बीते दिनों सीरियल के लीड एक्टर्स भी कोरोना के शिकार हो गए थे. वहीं सीरियल्स के कई सदस्य एक के बाद एक कोरोना की चपेट में आते जा रहे थे, जिसके चलते शो की कहानी पर असर देखने को मिला था.

अनुपमा होगी Tumor की शिकार तो तलाक से इंकार करेगा वनराज

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा (Anupamaa) के सेट पर जहां कोरोना का कहर देखने मिला तो वहीं शो के एक्टर ने अपने पिता को खो दिया है. वहीं शो की कहानी में शाह परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटने वाला है. दरअसल, हाल ही में तलाक से पहले वनराज गायब हो गया था. हालांकि अब अनुपमा ने किसी तरह उसे ढूंढ निकाला है. लेकिन अब शो की कहानी में नया मोड़ आने वाला है, जिससे कई जिंदगियां बदल जाएंगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

अनुपमा की होती नए शख्स से मुलाकात

 

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दरअसल, अब तक आपने देखा कि पारितोष के साथ मिलकर अनुपमा, वनराज को ढूंढने के लिए एक रिजॉर्ट पहुंच जाती है, जहां उसकी मुलाकात डॉक्टर अद्वैत खन्ना से होती है, जो उसे वनराज से मिलवाता है. इसी बीच वनराज से मिलकर जहां अनुपमा काफी गुस्सा होती है तो वहीं वनराज के लिए काव्या काफी परेशान नजर आती है.

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बेहोश होती है अनुपमा

 

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दूसरी तरफ अनुपमा की नाराजगी के बीच वनराज घर वापस आने से मना कर देता है, जिससे वो और भड़क जाती है. हालांकि अनुपमा परिवार के बारे में कहकर  वनराज को घर ले जाने पर अड़ जाती है. तभी अचानक अनुपमा बेहोश होकर नीचे गिर जाती है, जिसके बाद पारितोष औऱ वनराज अनुपमा को लेकर डॉक्टर अद्वैत के पास जाते है.

अनुपमा को होगी ये बीमारी

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि बेहोश अनुपमा की बीमारी के बारे में डौक्टर अद्वैत वनराज को बताएगा. दरअसल, अनुपमा को ओवेरी कैंसर हो जाएगा, जिसके इलाज के लिए डौक्टर अद्वैत एक अहम भूमिका निभाता हुआ नजर आएगा. वहीं वनराज तलाक का फैसला छोड़ देगा और अनुपमा के बुरे वक्त में उसके साथ रहने की बात कहेगा. वहीं काव्या, अनुपमा और वनराज को साथ देखकर गुस्से में नजर आएगी.

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नौकर ही क्यों करें घर का काम

लेखिका -स्नेहा सिंह

इलैक्ट्रौनिक्स ऐप्लायंसिस

वाशिंग मशीन, डिशवाशर और माइक्रोवेव ओवंस जैसे उपकरणों ने इंसान की जरूरत काफी घटा दी है. आधुनिक इलैक्ट्रौनिक्स सामान की मदद से काम करने से इंसान का काफी समय बचने लगा है. एक गृहिणी अपने बच्चे को थोड़ी देर के लिए डे केयर सैंटर में छोड़ आती है. उतनी ही देर में वह घर के सारे काम निबटा लेती है.

ओवन, वाशिंग मशीन, फूड प्रोसैसर आदि के होने के कारण वह अपने सारे काम खुद ही कर लेती है. उसे लगता है कि कामवाली के इंतजार और उस की देखरेख में जो समय लगेगा, उतनी ही देर में सारे काम शांति से निबटाए जा सकते हैं. उस के पति भी उसे अकेली काम करते देख उस की काम में मदद करते हैं. उन के घर में कोई कामवाली नहीं आती, इसलिए पति उस के साथ काम कराने में जरा भी संकोच नहीं करते.

ऐसी तमाम महिलाएं हैं, जिन्हें यह पसंद है. ऐसी महिलाओं को कामवाली का इंतजार करना, फिर वह आएगी या नहीं आएगी, यह भी एक सवाल बना रहता है, उन्हें यह बहुत मुश्किल लगता है, इसलिए जब से बाजार में हर तरह के उपकरण उपलब्ध हुए हैं, तब से कामवाली की अनिवार्यता काफी कम हो गई है.

घर के काम खुद करने से घर में हर सदस्य के मन में अपनेपन की भावना जागती है. साथ मिल कर काम करने से संबंध मजबूत होते हैं और घर भी स्वच्छ तथा व्यवस्थित रहता है.

सुजल और सुनंदा हमेशा खुश रहने वाले पतिपत्नी हैं. इन के 2 बच्चे हैं. एक दिन हमेशा खुश रहने वाला यह युगल दुखी और परेशान हो कर आपस में  झगड़ रहा था. हर्ष और ग्रीष्मा, दोनों नौकरी करते हैं. इन का 2 साल का एक बच्चा है. ये दोनों हमेशा तनावग्रस्त और चिड़चिड़े दिखाई देते हैं. इन का बच्चा भी इन्हें  झगड़ते देख कर डरासहमा रहता है.

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अमी घर में रह कर अपना काम करती है, पर वह भी हमेशा परेशान रहती है. इन सभी की इस परेशानी की एक ही वजह है, कामवाला या कामवाली यानी नौकर या नौकरानी. अमी के यहां काम करने वाला नौकर अचानक जब उस का मन होता है, चला जाता है. वह अब तक न जाने कितनी बार घर में काम करने वालों को बदल चुकी है.

यह समस्या मात्र अमी, सुनंदा या ग्रीष्मा की ही नहीं है. हर उस नारी की है, जिस के यहां कामवाली या कामवाला आता है. जिस दिन घर का काम करने वाली नौकरानी या नौकर नहीं आता, उस दिन उन की हालत एकदम खराब हो जाती है.

यह एक ऐसी समस्या है, जो लगभग सभी की है. आज के समय में हर जगह कामवाली का ऐसा बोलबाला हो गया है कि वह एक दिन न आए या कहीं बाहर चली जाए तो उस के बिना मालकिन तकलीफ में पड़ जाती है.

घर में अनजान व्यक्तियों का प्रवेश

घर में कामवाली या कामवाले के आने का मतलब घर में अनजान व्यक्ति के आने से आप अपनी आत्मीयता और आजादी गंवा बैठती हैं. आप उस की उपस्थिति में स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकतीं यानी कामवाली आप के समय के अनुसार नहीं चलेगी, आप को उस के समय के अनुसार समय को सैट कर के चलना होगा, क्योंकि वह काम करने के लिए आनेजाने का समय अपने हिसाब से तय करती है.

इसलिए आप को अपने समय को उस के काम करने के समय से मैच कर के शैड्यूल बनाना होगा. अगर आप का अचानक कहीं बाहर जाना हुआ तो अपना घर उस के भरोसे छोड़ कर जाना होगा, क्योंकि वह अपनी फुरसत के हिसाब से ही आप के यहां काम करने आएगी. इस तरह घर का काम कराने वाले तमाम लोगों के अनुभव बताते हैं कि कामवाली की उपस्थिति एक अरुचिकर घूसखोरी के समान घटना है.

ईष्या का भाव

32 साल की रवीना एक रिटेल कंसल्टैंट हैं. उन की 6 साल की 1 बेटी है. वह 5 साल यूएसए में रह कर आई है. उस का कहना है कि यूएसए में तो वह अपने पति के साथ मिल कर घर के सारे काम करती थी. वहां सबकुछ बहुत अच्छी तरह चल रहा था. उस के बाद वे भारत आ गए. यहां आ कर उन्होंने घर के कामों में मदद के लिए एक नौकर रख लिया. परंतु कुछ दिनों बाद उन्हें लगने लगा कि नौकर रखने से उन की जिम्मेदारी घटने के बजाय अन्य तरह की नई समस्याएं खड़ी कर रही है. उस में अगर 24 घंटे का नौकर है तो किसी भी प्रकार की गोपनीयता नहीं रह जाती.

अगर पतिपत्नी मिल कर काम करते हैं तो उन के बीच आत्मीयता और प्रेम बढ़ता है. रवीना और उस के पति के बीच जो प्यार था, अब वह पहले जैसा नहीं रहा, ऊपर से नौकर की उपस्थिति तनाव का कारण बन गई है. एक अन्य गृहिणी का कहना है कि नौकर की पूरे दिन की हाजिरी से ऐसा लगता है कि हमारे ऊपर कैमरा नजर रख रहा है. हम स्वतंत्र मन से कुछ कर नहीं सकते.

एक अन्य गृहिणी का कहना है कि हमें टीवी देखने में भी परेशानी होती है, क्योंकि जब भी टीवी पर कोई कार्यक्रम देखने की सोचती हूं, कामवाली पहले ही आ कर टीवी के सामने बैठ जाती है या फिर टीवी चालू होने का बाद आ कर बैठ जाती है.

तमाम घरों में छोटे बच्चे केयरगिवर की डाह की वजह बन रहे हैं. पूरे दिन केयरगिवर के पास रहने की वजह से उन के मन में केयरगिवर के बीच संबंध का त्रिकोण बन जाता है, जिस से मां और केयरगिवर के बीच ईर्ष्या का भाव पैदा होता है. बड़े बच्चों को तो कामवाली की उपस्थिति हमेशा खलल लगती है.

आलस्य आ सकता है

अकसर गृहिणियां शिकायत करती हैं कि घर के काम में उन की कोई मदद नहीं करता. वास्तव मे कामवाली होने के कारण घर का कोई आदमी मदद करने की जरूरत ही नहीं महसूस करता. यूएसए से आई रवीना के अनुभव के अनुसार, जब तक घर में नौकर नहीं था, सब लोग मिलजुल कर काम कर लेते थे. घर के ही लोग काम करते थे, इसलिए सारे काम अच्छी तरह होते थे. कुछ देखने या चैक करने की जरूरत नहीं पड़ती थी. नौकर के काम की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं होती, इसलिए मन में असंतोष पैदा होता है. जानेअनजाने में मन में थोड़ा तनाव पैदा होता है.

जिन घरों में पूरा दिन नौकर रहता है, उन घरों की महिलाएं आलसी हो जाती हैं. उन के मन में आता है कि हम क्यों काम करें, काम करने के लिए नौकर तो रखा ही है. इस तरह मानसिक रूप से वे कोई काम करने को तैयार नहीं होतीं. परिणामस्वरूप उन की शारीरिक श्रम घट जाता है. इस की वजह से वे अनेक रोगों का शिकार हो जाती हैं. कोई काम करना नहीं होता, इसलिए तैयार हो कर घूमती रहती हैं. इसी के साथ बाहर के खानपान से उन में मोटापा आ जाता है. शारीरिक श्रम घटने से इंसान में स्थूलता आ जाती है और वह आलसी हो जाता है.

एक विशेषज्ञ के अनुसार, घर के काम करने से कैलोरी भी अच्छी बर्न होती है. वजन नियंत्रण में रहता है और मूड भी अच्छा रहता है. घर के काम करने से हर घंटे लगभग 100 से 300 कैलोरी बर्न होती है. नौकर का आदी हो जाने के कारण हम उस के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते. उस की अनुपस्थिति से हमें घबराहट होने लगती है, जो आगे चल कर तनाव और असुरक्षा की भावना पैदा करती है.

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बच्चों पर असर

कामवाली की घर में लंबे समय तक उपस्थिति बच्चों के विकास और प्रगति में रुकावट बन सकती है. एक व्यवसायी मां का कहना है कि नौकर कितना भी जरूरी हो, वह कभी मातापिता का विकल्प नहीं बन सकता. इसलिए मांबाप कितना भी व्यस्त रहते हों, उन्हें एक निश्चित समय अपने बच्चों के साथ जरूर बिताना चाहिए.

एक गृहिणी ने अपना अनुभव बताया कि उन का 4 साल का बेटा आराम से सो रहा था. अचानक आधी रात को वह उठ कर रोने लगा. पूछने पर पता चला कि उन्होंने बच्चे के लिए जो आया रखी थी, वह बच्चे को डराती, धमकाती और मारती थी, जिस से वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करता था.

दूसरी एक मां ने बताया कि जब उन की आया शादी कर के ससुराल चली गई तो उन्हें अपने बच्चे की खूब चिंता हो रही थी, क्योंकि उन का बच्चा आया से खूब हिलामिला था, पर उन्होंने देखा कि आया के जाने के बाद उन का बच्चा काफी खुश दिखाई दे रहा था. अपना काम वह खुद ही करने लगा था. दरअसल, हर समय आया की उपस्थिति की वजह से वह दूसरे पर निर्भर रहने का आदी बन गया था. वह खुद अपने काम करने लगा तो उस का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा.

आया छुट्टी पर या काम छोड़ कर चली जाए तो बच्चे खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं. ऐसे समय में उन्हें संभालना पड़ता है. मांबाप को बढ़ गई इस समस्या को दूर करने में खासी मेहनत करनी पड़ती है. एक मां ने आया के बजाय डे केयर सैंटर पसंद किया, क्योंकि जब आया काम छोड़ कर चली जाती थी तो उन का बच्चा परेशान हो जाता था. डे केयर सैंटर थोड़ा महंगे जरूर होते हैं, पर वहां इस तरह की कोई समस्या नहीं होती, जिस से मांएं निश्ंिचत हो कर अपना काम कर सकती हैं.

दाहिनी आंख: भाग 2- अनहोनी की आशंका ने बनाया अंधविश्वास का डर

सो, नैवेद्य की तो कोई दिक्कत थी नहीं. मैं उसे तैयार कर मिसेज सिंह के यहां छोड़ने जाने ही वाली थी कि दाहिनी पलक जोर से फड़की. मुझे याद आया, मां दाहिनी आंख के अपशकुन से कितना डरती थीं, खासकर हम बच्चों की सलामती के लिए.

‘इसे साथ भी तो ले जाया जा सकता है,’ मेरे भीतर से किसी ने कहा.

‘अरे, यह अपशकुन नहीं होता.’

मैं बच्चे के बालों में कंघी करने लगी. आदतन उस का माथा चूमा और उस के चेहरे को देख कर मुसकरा ही रही थी कि पलक में फिर कंपन महसूस हुई.

‘साथ ले जाने में क्या बुराई है?’

इस दफा मैं खुद पर काबू न रख सकी और मन बना लिया, नैवेद्य को अपने साथ ले जाऊंगी.

बाहर, देर से होती बारिश पूरी तरह रुक चुकी थी और आसमान से बादल छंट रहे थे. अभीअभी फिर से निकली तेज धूप में चुभन थी. मैं ने स्कूटी बाउंड्री से बाहर निकाली और स्टार्ट भी नहीं कर पाई थी कि नैवेद्य दौड़ कर उस में आगे खड़ा हो गया. दाहिनी आंख का फड़कना बदस्तूर जारी था. मन में एक आशंका जगी. अगर कहीं स्कूटी टकरा गई, फिसल या गिर पड़ी तो आगे खड़े नैवेद्य को मुझ से ज्यादा चोटें आएंगी. क्रूर कल्पना ने जैसे मेरे शरीर को निचोड़ लिया, पिंडलियों और कलाइयों में इस कदर कमजोरी महसूस हुई कि स्कूटी को स्टैंड पर खड़ी कर मैं बच्चे को देखने लगी. मन सांपछछूंदर वाली हालत में था.

मैं ने खुद से अचरज से पूछा, ‘आज क्यों मैं नैवेद्य को पड़ोस में नहीं छोड़ना चाहती?’ भीतर से तुरंत उत्तर आया, बुरेबुरे खयाल की शक्ल में, ‘मिसेज सिंह का क्या भरोसा, बुढ़ापे का शरीर है. बच्चा कहीं दौड़ कर सड़क पर आ गया तो? कोई भारी चीज अपने ऊपर गिरा ली तो? छत पर अकेला भाग गया तो?’ और भी न जाने कितने ‘तो’ दिमाग में आने लगे. मिसेज सिंह पहली बार मुझे बच्चे को संभालने में असमर्थ जान पड़ीं.

पर स्कूटी में बेटे को आगे खड़ा करना भी तो सेफ नहीं? मन बोझिल होने लगा. अपशकुन मानी जाने वाली आंख की फड़कन ने मेरे 10 साल के शानदार ड्राइविंग के अनुभव से उपजे आत्मविश्वास को धूल में मिला दिया.

अब मैं ने सोचा, क्यों न पति को फोन कर के मना कर दूं, पर यह कमजोर खयाल एक पल के पंखों पर आया और दूसरे के पंखों पर उड़ गया. एक तो मैं यह जानती थी कि काम वाकई जरूरी है. दूसरे, हफ्ते भर बाद घर लौट रहे अपने पति को मैं नाराज नहीं करना चाहती थी.

बच्चे को मैं ने स्कूटी पर अपने पीछे बैठाया. उस के नन्हे, नर्म हाथों को अपनी कमर पर कस लिया और आवाज को भरसक आदेशात्मक बनाते हुए कहा, ‘देखो नानू, चाहे कुछ भी हो जाए, तुम मुझे कस के पकड़े रहना,’ तभी बगल वाली बालकनी से मिसेज सिंह की अनमनी आवाज हम तक आई, ‘‘अरे, आज नानू को साथ ले जा रही हो?’’

‘‘हां, मैं ने सोचा घूम आएगा तो इसे अच्छा लगेगा.’’

‘‘मेरे पास भी इसे अच्छा ही लगता है,’’ एक पल को उन्होंने बुरा मान जाने वाली आवाज में कहा, फिर जैसे संभलीं और विवश प्रार्थना सी मनुहार में मेरे बेटे को पुकारा, ‘‘नानू, आ जाओ न. चोरपुलिस खेलेंगे.’’

‘‘नहीं, दादी, मैं मम्मा के साथ जाऊंगा,’’ उस ने मेरी कमर कस कर पकड़ते हुए कहा.

‘‘ठीक है, घूम आओ, पर सुनो, तुम्हारे बाबा गुब्बारों का पूरा पैकेट खरीद कर लाए हैं. लेना है तो आओ.’’

‘‘नहीं, मैं लौट कर लूंगा. आप खूब सारे, गुब्बारे फुला कर रखना दादी,’’ उस ने ऊंची आवाज में कहा.

मेरा बेटा जबजब मिसेज सिंह को ‘दादी’ कह कर पुकारता है, खासकर सड़क से, जब पड़ोसियों के घरों के भीतर तक उस का मोहक संबोधन सुनाई देता है तो मिसेज सिंह के झुर्रियों वाले पोपले चेहरे पर न जाने कौन सा भाव आता है कि वे सुंदर दिखने लगती हैं.

‘‘बाय नानू, जल्दी आना.’’

पीछे से उन की आवाज आई और नैवेद्य ने बाय करने के लिए हाथ मेरी कमर से हटाया ही था कि मैं ने स्कूटी रोक दी, ‘‘देखो बेटे, अगर तुम ठीक से नहीं पकड़ोगे तो मैं नहीं ले जाऊंगी तुम्हें. जाओ, अपनी पड़ोस वाली दादी के पास.’’

‘‘नहीं, मम्मा, प्लीज, अब नहीं छोड़ूंगा. प्रौमिस.’’

उस के चेहरे पर डर देख कर मुझे अपनेआप पर गुस्सा आया. क्या हो गया है मुझे? मैं ने उस का माथा चूमा और फिर स्कूटी स्टार्ट की.

अब हम मुख्य सड़क पर थे. दाहिनी पलक बुरी तरह फड़क रही थी. दिल ऊंची आवाज में धड़क रहा था. हाथों में खालीपन महसूस हो रहा था. तभी नैवेद्य चहका, ‘‘मम्मा, घोड़ा.’’

सामने से दुलकी चाल में आते सजीले घोड़े को उस ने हथेली की पांचों उंगलियों से इंगित किया. कोई और दिन होता तो पल दो पल मैं भी उस खूबसूरत अरबी घोड़े को निहारती. पहले दोएक बार मैं ने घोड़े वाले को 10-5 रुपए दे कर नैवेद्य को घोड़े की सवारी भी करवाई है और सैलफोन के कैमरे में इस शाही दृश्य की खुशगवार स्मृतियां कैद भी की हैं, पर उन कमजोर क्षणों में, मेरे खुदमुख्तार दिमाग ने खुद को एक भीरु मां में बदलते पाया और मुझे पता भी नहीं चला कि नन्हे परिंदे से चहकते अपने नर्म बच्चे पर मैं किस कदर चीखी, ‘‘ठीक से पकड़ो.’’

मेरी कमर के इर्दगिर्द उस की पकड़ फिर कस गई और चेहरा मेरी पीठ से सट गया, साफ था कि वह सहम गया है. मैं खुद पर फिर झल्लाई और अपने होशोहवास दुरुस्त रखने के बारे में सोचने लगी. इन 5-7 मिनटों में आंख एक बार भी नहीं फड़की थी. मैं ने स्कूटी की गति बढ़ाई और अपनेआप में लौटते हुए बेटे से पूछा, ‘‘नानू, मजा आ रहा है कि नहीं?’’

‘‘हां, मम्मा, मजा आ रहा है,’’ वह चटखती कली की तरह खिलते हुए बोला.

अब मैं तकरीबन सहज थी. यह बात और थी कि मैं ने बाजार वाला दुपहियोंचौपहियों से पटा रास्ता न चुन कर झील किनारे वाली वीआईपी सड़क चुनी थी जो दिनदोपहर लगभग सूनी रहती है.

मौसम, जैसा कि भोपाल में आमतौर पर रहता है, सुहाना था. सांवली बदली की बांहों में सूरज डूबडूब जा रहा था. झील के किनारे कमउम्र लड़केलड़कियां यहांवहां जोड़ों में टिके खड़े थे. कमसिन लड़कियों के चेहरों पर दुपट्टे थे और तरुण लड़कों की आंखों में साहस, उत्तेजना और हड़बड़ाहट. सख्त हाथों में नर्म कलाइयां थीं और सड़क की नाभिरेखा पर फूल ही फूल. शफ्फाक सफेद, चटख, किरमिजी, सुर्ख सिंदूरी और शोख नीले विदेशी फूलों पर थरथराती तितलियों के नृत्य थे. सुंदर सी रची झील में एक फौआरा आसमान को छूने का बुलंद हौसला लिए ऊंचा, और ऊंचा उठ रहा था और ऊंचाई से झरती बूंदों को हवा पानी पर ऐसे बिखेर रही थी जैसे कोई अदृश्य अप्सरा मोतियों को उछालने का खेल खेल रही हो. दूर पानी में कश्ती पर एक मांझी दिखा, जलसुंदरियों के लिए जाल बिछाता हुआ.

 

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