12वीं की परीक्षा और कोरोना महामारी

सरकार ने कोविड के बढ़ते मामलों को देखते हुए 12वीं परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है और 10वीं की परीक्षाए लिए बिना सब के 11वीं में भेज दिया है. मातापिता व छात्रों ने थोड़ी राहत ली है पर यह एक बड़ा बोझ हैं जो वर्षों तक कीमत मांगेगा.

12वीं की परीक्षाओं का टलना मतलब आगे के प्रवेश बंद. कालेजों, टैक्नीकल इंस्टीट्यूटों, विदेशी कालेजों आदि सैंकड़ों एडमीशन 12वीं की समय पर होने वाली परीक्षाओं का टिकी हैं. 12वी की परीक्षा न केवल युवाओं के लिए चैलेंज है उन के मांबाप की परीक्षा भी और बेहद मोटा खर्च भी. यह परीक्षा उन सब के सिर पर सवार रहेगी और खर्च चालू रहेगा. 12वीं की परीक्षा महीने 2 महीने बाद होगी और तब तक तैयारी करते रहना होगा.

इस बीच कितनी जगह प्रवेश परीक्षाओं का शड्यूल है. कुछ पोस्टपोन कर देंगी कुछ नहीं. जब तिथि आएगी तो पता चलेगा कि डेट्स क्लैश कर रही हैं. युवाओं ने पहले फार्म भर रखे थे यह देख कर कि कोई फ्लैश न हो. अब नए सिरे से डेट्स मिलेंगी तो क्लैश तो होंगे ही.

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शिक्षा उद्योग, जी अब यह उद्योग है. सब से ज्यादा लाभदायक उद्योगों में से, बेहद क्रूर और लूटेरा है. इस में मांग ज्यादा है. सप्लाई कम. इसलिए हर व्यापारी अपने नियम बनाने में स्वतंत्र है बिना दूसरों की ङ्क्षचता किए, बिना सोचे कि यदि कोविड के कारण उद्स क्लैश कर रही है या युवा परीक्षा में आ नहीं सकता तो क्या करना है, हर व्यापारी को अपनी कमाई की लगी और हर मांबाप की जेब खाली होगी.

यह नहीं, एक साल यदि वहीं बरबाद हो गया तो जीवन भर का रास्ता हो सकता बंद हो जाए. हर संस्थान अपने नियम बनाता है और हर अपनी सुविधा के अनुसार उन्हें बदलेगा.

पिछले टाइमटेबल के अनुसार युवाओं ने कोर्स चुन लिए थे पर अब सब गढ़बढ़ हो जाएगी और कोई किसी की नहीं सुनेगा. युवाओं पर कोविड से ज्यादा कहर शिक्षा संस्थानों के नियम व हठधर्मी का वार होगा. कोविड से तो वे बच निकलेंगे पर यह असमंजसता उन्हें ले डूबेगी.

चूंकि शिक्षा संस्थानों में सीटों की सप्लाई मांग से कम है, यदि वहीं से कोई आदेश आ भी गया कि शिक्षा संस्थान लचीलापन दिखाए, युवा बिना परीक्षाओं में बैठे सीट खो देंगे क्योंकि कोई और उसे पा लेगा. जो एक बार घुस गया, उसे निकालना मुश्किल भी है, सही भी नहीं है.

युवाओं के प्रेमप्रसंग भी मार खाएंगे. एक तो कोविड की वजह से मिलनाजुलना कम हो गया ऊपर से 12वीं ही नहीं बीए, एमए आदि हर तरह की परीक्षा के टल जाने के कारण नोकरी कर घर बसाने के सपने चूर होने लगेंगे. कोविड की एक मार उन निजी संबंधों पर पड़ेंगी जिस में सरकारी दखल कम से कम सीधे तौर पर तो नहीं है.

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एक छोटी सी बिमारी कितना बड़ा कहर ढा सकती है यह आज की पीढ़ी को पता चलेगा. यह यूरोप ने 1939 से 1945 में जो सहा या वियतनाम व कंबोडियन ने 60-70 के दशक में सहा या सीरियाई आज सह रहे है उस जैसा दर्द दे रहा है. बस फर्क इतना खून नहीं बह रहा, पैसे की लूट भी हो रही है, मौतें भी आ रही हैं और भविष्य के सपने भी टूट रहे हैं.

कार्तिक-सीरत की सगाई में होगा जोरदार जश्न, शिवांगी-मोहसिन की क्यूट फोटोज वायरल

टीवी के पॉपुलर शो सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में इन दिनों कार्तिक (Mohsin Khan) और सीरत (Shivangi Joshi) की सगाई का सीक्वेंस दिखाया जा रहा है. सेट से शो के कई वीडियो और फोटोज वायरल हुए हैं जिनमे शिवांगी जोशी और मोहसिन खान शो की पूरी टीम के साथ जमकर धमाल करते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं इनकी ये बिहाइंड द सीन मस्ती…

सेट पर पहुंचे प्रोड्यूसर राजन शाही…

कार्तिक (Kartik) और सीरत (Sirat) की सगाई में शामिल होने के लिए शो के प्रोड्यूसर राजन शाही भी सेट पर पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने शिवांगी जोशी, मोहसिन खान और करण कुंद्रा के (Karan Kundrra) के साथ काफी अच्छा टाइम स्पेंड किया.

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सेट पर छाई ‘सीरत’ बनीं शिवांगी…

कार्तिक और सीरत के सगाई सीक्वेंस के लिए शिवांगी जोशी बनठन कर तैयार नजर आईं. ऑफस्क्रीन लहंगे और नेचुरल लुक में शिवांगी कमाल की खूबसूरत लग रही थीं. मोहसिन खान भी मैचिंग कपड़ों में हैंडसम लग रहे थे.

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डांस वीडियोज हुए वायरल…

सगाई वाले एपिसोड में न सिर्फ शिवांगी और मोहसिन बल्कि शो की पूरी स्टार कास्ट नाचती गाती नजर आएगी, जिसके कई वीडियो वायरल हो रहे हैं. इन वीडियो में शिवांगी का चुलबुलापन साफ नजर आ रहा हैं और वो काफी खुश भी लग रही हैं.

कार्तिक-सीरत की सगाई में होगी रणवीर की एंट्री…

कुछ वक्त पहले ही ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ का एक प्रोमो (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Promo) रिलीज हुआ था. जिसमें दिखाया गया था कि रणवीर ऐन मौके पर सीरत और कार्तिक की सगाई में पहुंच जाएगा और सीरत, कार्तिक को छोड़कर अपने पहले प्यार के पास वापस लौट जाएगी.

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कोरोना महामारी के संकट की घड़ी में क्या कर रही है सोशल वर्कर वर्षा वर्मा, पढ़ें खबर

पुरुष सत्तात्मक समाज में महिलाओं को शमशान घाट जाने की कभी इजाजत नहीं होती, लेकिन अगर कोई महिला पिछले 3 साल से लावारिस लाशों और अब कोविड महामारी में जान गवां चुके हजारों लाशों को पूरे जतन से वैकुण्ठ धाम के लिए ले जाकर, उनके दाह संस्कार करने में मदद करने वाली महिला के लिए, समाज के विशिष्ट वर्ग क्या सोचते है, इसका ध्यान वह नहीं देती. यही वजह है कि आज संकट की इस घड़ी में, ऐसे कठिन काम को अंजाम देने वाली, लखनऊ की संस्था ‘एक कोशिश ऐसी भी’ की 42 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्त्ता वर्षा वर्मा, है. उन्होंने कोविड महामारी के बीच परेशान गरीब जरुरत मंदो के लिए सुबह 9 बजे से शाम 8 बजे तक लगातार काम कर रही है.

मिली प्रेरणा  

इस काम की प्रेरणा के बारें में पूछने पर वह बताती है कि मेरे दोस्त की कुछ दिनों पहले मत्यु हो गयी और मैं उसकी लाश को ले जाने के लिए गाड़ी की व्यवस्था नहीं कर पाई, क्योंकि मार्केट में कोई भी गाडी के लिए 10 से 20 हज़ार रुपये मांग रहे थे, जबकि राम मनोहर लोहिया अस्पताल से शमशान घाट नजदीक है, ऐसे में लगा कि जिस तरह मैं परेशान हो रही हूँ, हजारों लोग भी परेशान हो रहे होंगे, क्योंकि लखनऊ में लाश ले जाने के लिए सभी गाड़ियों की रेट बहुत अधिक हो चुकी है. फिर मैंने किराये पर लेकर वैन चलवाने की सोची और सोशल मीडिया पर मैंने अपनी इच्छा को यह कहकर स्प्रेड कर दिया कि मुझे सफ़ेद रंग की एक वैन चाहिए और जब मुझे वैन मिल गयी, तो मैंने अगले दिन पीछे की सीट हटा दी और एक ड्राईवर लगाकर काम शुरू कर दिया. इसमें कोविड पोजिटिव और नॉन पोजिटिव सभी लाशों को ले जाया जाता है. सैकड़ों लोगों की सेवा मैं कर चुकी हूँ. घरों से बुलाने पर या अस्पताल से बैकुंठधाम पहुँचाने का सारा काम ये गाड़ी करती है, साथ ही जिन लावारिश लाशों की कोई नहीं होता, उनका दाह संस्कार भी मैं करती हूँ. 

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उद्देश्य, सामाजिक कार्य करना  

ये संस्था पिछले 6 साल से लखनऊ में काम कर रही है, लेकिन वर्षा को टीनेज से ही सेवा करना अच्छा लगता था. स्कूल से आने के बाद वह पास के अस्पताल में एक घंटे के लिए चली जाया करती थी. वह कहती है कि अस्पताल जाने के बाद मरीजो के रिपोर्ट लाना, उनके खाने-पीने की चीजे लाना आदि छोटे-छोटे काम करने के अलावा उनके हाथ-पाँव दबा देना आदि करती थी. वह मेरा ट्रेनिंग पीरियड था, इसके बाद धीरे-धीरे काम बढ़ता गया और पिछले 3 साल से लावारिश शव को भी ले जाकर उसका अंतिम संस्कार करती हूँ. इसमें मेरे साथ दीपक महाजन है और हम दोनों साथ मिलकर संस्था के लिए काम करते है. 

सहयोग परिवार का

परिवार के सहयोग के बारें में वर्षा हंसती हुई कहती है कि कोरोना से पहले सबने सहयोग दिया और तारीफे की, लेकिन जबसे मैंने कोरोना की लाशों को दाह संस्कार के लिए ले जाने का काम शुरू किया है, तबसे चिंता के साथ थोड़ी नाराजगी है. मैंने वैक्सीनेशन नहीं करवाया है और अब 100 में से 90 लाश कोरोना से दम तोड़ने वालों की होती है. सावधानी के लिए मैं पूरा पीपीई किट पहनती हूँ. ग्लव्स, शील्ड, मास्क आदि सब मैं पहनती हूँ. घर से निकलने से पहले नाश्ते के बाद इम्युनिटी की टेबलेट लेती हूँ, जिसे मेरे पति देते है, क्योंकि ये उनकी चिंता है. इससे मेरी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहती है और विश्वास के साथ काम पर निकल जाती हूँ.

वर्षा के परिवार में उनके पति पीडब्लुडी में अस्सिटेंट इंजिनीयर है और उनकी एक बेटी हाई स्कूल में है. कोरोना से दम तोड़ने वालों को जबसे वर्षा बैकुंठ धाम ले जा रही है, तबसे पति को चिंता के साथ नाराजगी भी है, लेकिन अब उन्होंने वर्षा के काम को स्वीकार कर लिया है. वर्षा हर दिन सुनियोजित ढंग से घर का काम निपटाकर बाहर निकल जाती है. इससे उन्हें कोई समस्या नहीं होती. 

हटती नहीं मार्मिक दृश्य आँखों से  

वह आगे दुखी होकर कहती है कि अब मैंने दो वैन इस काम में लगा दिए है, क्योंकि लाशों को ले जाने का बहुत काम था. पिछले दो दिन में कोविड से दम तोड़ने वालों की संख्या अस्पतालों और शमशान घाटों में बहुत थी. इसकी वजह समय पर इलाज का न मिलने से आंकड़ा बहुत बढ़ गया है. ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की हालत देखना, लगातार जलती हुई चिताओं को देखना, जिसमें दो चिता के बीच एक फुट की भी जगह का न होना, इतनी सारी डेड बॉडीज एक साथ जलना, परिवार जनों की चींख अस्पतालों और शमशान घाटों पर देखकर मेरा दिल दहल गया, ये चीजे मेरी आँखों के सामने से हटती नहीं है, लेकिन यही दृश्य मुझे अधिक काम करने के लिए प्रेरणा भी देती है. इसके अलावा मैं सोचती हूँ कि ऐसे जरुरत मंदों के लिए काम करना ही मेरे जीवन का हमेशा उद्देश्य रहा है.

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सशक्त होती है महिलाये   

वर्षा को कभी नहीं लगा कि वह महिला है और वह शमशान घाट नहीं जा सकती. उसका कहना है कि ये देश पुरुष प्रधान है, ऐसे में महिलाओं को कोमल और कमजोर दिल की माना जाता रहा है. इसलिए शायद महिलाओं को शमशान घाट जाने से मना किया जाता है, वैज्ञानिक रूप से महिलाएं और पुरुषों में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि महिला एक सृष्टि को जिम्मेदारी के साथ, धैर्यपूर्वक पृथ्वी पर ला सकती है. इसके अलावा महिलाएं किसी भी काम को एक मंजिल तक पहुँचाने में समर्थ होती है.

करती है कई काम 

इस काम के अलावा वर्षा की एनजीओ कई बड़े काम भी करती है, जिसमें गरीब बच्चों की शिक्षा का पूरा इंतजाम करना, जिन घरों में लोग कमाकर खा नहीं सकते, उन घरों में कच्चा राशन का पहुंचाना, मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति को भोजन देना आदि है. वर्षा कहती है कि दो बुजुर्ग महिलाये,जो मानसिक रूप से बीमार दो बहने है, कभी उनके पिता लखनऊ के सीएम्ओ हुआ करते थे, संपन्न परिवार की है. दोनों महिलाओं को छोड़ सबकी मृत्यु हो चुकी है, शायद सबको पता होगा कि इन दोनों ने 3 दिन तक अपने भाई की डेड बॉडी को जिन्दा समझकर घर में घर में रख दिया था. बहुत मुश्किल से उसे घर से निकाला गया था. इन महिलाओं की परवरिश मैं कर रही हूँ. उनके भतीजे दोनों बुजुर्ग महिला को हटाकर मकान को दखल करना चाहते है, जो मैं होने नहीं दूंगी.  इसके अलावा भिखारी प्रवृत्ति से लोगों को निकालकर उन्हें छोटे-छोटे रोजगार दिलाती हूँ, ताकि वे अपने परिवार का पेट पाल सकें. 

नहीं मिलती वित्तीय सुविधा  

वर्षा को सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन वह अपना काम लगातार कर रही है. सरकार की तरफ से बुजुर्गों को हर महीने केवल 200 रुपये मेडिकल के लिए मिलते है, जो बहुत कम है, ऐसे में वर्षा खुद फण्ड इकठ्ठा कर बुजुर्गों के हार्ट का ऑपरेशन करवाया है. 

देश को सोचने की है जरुरत 

 कोविड महामारी के लगातार बढ़ते हुए ग्राफ को देखने के बाद वर्षा कहती है कि किसी भी सरकार को देश की जनसँख्या पर लगाम लगाना उनकी पहली प्रायोरिटी होनी चाहिए, क्योंकि कोई भी स्कीम सारे लोगों तक नहीं पहुँच पाती. इसलिए उसे लागू करने से पहले जनसँख्या को सीमित करना होगा. मेरा फील्ड वर्क होने की वजह से मैंने अस्पताल, स्कूल, ऑफिस हर जगह भीड़ ही भीड़ देखी है. इतनी बड़ी जनसँख्या में ये स्कीम मुट्ठी भर है. इसके अलावा जागरूकता की कमी जनता में है. उन्हें पता नहीं होता है कि उनके लिए सरकार ने कुछ स्कीम्स निकाले है. बात चाहे कुछ भी हो मेरा काम हमेशा लोगों की सेवा करना ही रहेगा.

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दबे पांव दस्तक देता Depression

रीमा का सारा दिन चिड़चिड़ाने, छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने और बेवजह रोने लग जाने में बीत जाता था. उस के इस व्यवहार से घर के सारे लोग परेशान थे. पति चिल्लाता कि कोई कमी नहीं है, फिर भी यह खुश नहीं रह सकती है. सास अलग ताने मारती कि इसे तो काम न करने के बहाने चाहिए. जब देखो अपने कमरे में जा कर बैठ जाती है.

भौतिकतावादी संस्कृति से उपजी समस्याएं

रीमा की तरह और बहुत लोग हैं, जो इन हालात से गुजर रहे हैं और जानते तक नहीं कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं. वक्त जिस तेजी से बदला है और भौतिकवादी संस्कृति और सोशल मीडिया ने जिस तरह से हमारे जीवन में पैठ बनाई है, उस ने डिप्रेशन को बड़े पैमाने पर जन्म दिया है और हर उम्र का व्यक्ति चाहे बच्चा ही क्यों न हो, इस से जू झ रहा है.

मानसिक रूप से लड़ाई लड़ने वाले इंसान को बाहर से देखने पर अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि वह भीतर से टूट रहा है. यहां तक कि ऐसे लोग जिन की जिंदगी रुपहले परदे पर चमकती दिखाई देती है, वे भी इस का शिकार हो चुके हैं जैसे आलिया भट्ट, वरुण धवन, मनीषा कोईराला, शाहरुख खान, प्रसिद्ध लेखक जे के रौउलिंग आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जो डिप्रैशन का शिकार हो चुके हैं.

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से डिप्रेशन को ले कर समाज में चिंता और ज्यादा बढ़ गई है. केवल पैसे या स्टेटस की कमी ही अब इस की वजह नहीं रही है. भौतिकतावादी संस्कृति ने दिखावे की संस्कृति को बढ़ाया है, जिस की वजह से हर जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ी है और जो इस प्रतिस्पर्धा में खुद को असफल या पीछे रह जाने के एहसास से घिरा पाता है, वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है.

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संघर्ष करने, चुनौतियों का सामना और सहनशीलता कम होने से केवल ‘अपने लिए’ जीने की चाह ने संबंधों में दूरियां पैदा कर दी हैं. यही वजह है कि व्यक्ति समाज से कटा हुआ महसूस करता है और अकेलेपन का शिकार हो जाता है.

चिकित्सक से सलाह लें

‘मैं इन दिनों बहुत डिप्रैस्ड फील कर रही हूं.’ ‘मैं बहुत लो फील कर रहा हूं,’ ये वाक्य अकसर सुनाई देते हैं. तब इन से पता चलता है कि वह डिप्रेशन में है, लेकिन कोई इस स्थिति में जा रहा है, अगर पहले ही पता चल जाए तो समय रहते उसे संभाला जा सकता है और आत्महत्या करने जैसी दुखद पीड़ा से बचाया जा सकता है.

डा. समीर पारेख, ‘डाइरैक्टर, मैंटल हैल्थ ऐंड बिहेवियल साइंसेज, फोर्टिस हैल्थकेयर’ के अनुसार, ‘‘आज भी डिप्रैशन के लिए थेरैपिस्ट की मदद लेने की बात को ले कर एक हिचक कायम है. लेकिन डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति को यह सम झाएं कि जैसे चोट लगने पर आप डाक्टर के पास जाते हैं, उसी तरह थेरैपिस्ट से नियमित अंतराल पर मिलना जरूरी है.

यह एक बीमारी है, यह बात स्वीकार कर लेना उन के लिए आवश्यक है. फिर भी वह जाने को तैयार न हो तो उसे मैंडीटेशन करने, संगीत सीखने या किसी हौबी को अपनाने की सलाह दी जा सकती है. इस तरह उसे अपना ध्यान दूसरी जगह लगाने में मदद मिलेगी.’’

कैसे पहचानें

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है, जो आमतौर पर मनोस्थिति में होने वाले उतारचढ़ाव और कम समय के लिए होने वाली भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जबकि चिंता में व्यक्ति डर और घबराहट महसूस करता है. जब कोई व्यक्ति किसी स्थिति में खुद को बेबस महसूस करता है, तो इसे चिंता कहते हैं.

लेकिन जब व्यक्ति को लगने लगता है कि उस के जीने का कोई अर्थ नहीं है, तो यह स्थिति डिप्रेशन कहलाती है. डिप्रेशन का अर्थ होता है आशाहीनता की स्थिति.

जब मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी प्रकार की उम्मीद या आशा की संभावना नहीं दिखाई देती, तो वह डिप्रेशन की स्थिति में चला जाता है. तब व्यक्ति हमेशा उल झन में और हारा हुआ महसूस करता है. उस के अंदर आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, काम में ध्यान नहीं लगा पाता और अकेला रहना पसंद करता है.

समाजशास्त्री एमिल दुरखाइम ने अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या’ में लिखा है कि जो लोग अपने समाज से कम जुड़े या कटे होते हैं, अकसर वे ही आत्महत्या अधिक करते हैं. यदि कोई व्यक्ति उदास है, हताश महसूस कर रहा है, तो उसे नजरअंदाज करने के बजाय उसे मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएं.

भ्रम होने या किसी बात को ले कर निश्चित न हो पाने, बारबार भूलने, हर छोटी घटना पर अचानक निराश हो जाने, लगातार सोचने, तनाव में रहने. सोचते रहने से एक नकारात्मक दृष्टिकोण बन जाता है और वह हर किसी को शक की नजर से देखने लगता है.

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खुद पर उस का विश्वास उठने से उसे शंका ही घेरे रहती है और अपने ही वजूद पर सवाल खड़े करता रहता है कि मैं आखिर क्यों जी रहा/रही हूं, हर चीज इतनी बुरी क्यों है, मैं इस से बेहतर क्यों नहीं हो सकता/सकती आदि. जब कोई व्यक्ति अपने ही सवालों में उल झा दिखाई दे तो सम झ लें कि वह डिप्रेशन से घिरा है.

सोने के तरीके में आने वाला बदलाव भी इस की बड़ी पहचान है. या तो व्यक्ति बहुत ज्यादा सोएगा या नींद नहीं आएगी, रात में बेचैनी बनी रहेगी और सुबह उठने की इच्छा नहीं होगी. डिप्रेशन होने पर या तो भूख बढ़ जाती है या फिर कम हो जाती है. कुछ का वजन कम होने लगता है तो कुछ का बढ़ने. उसे लगता है वह बीमार है. सिरदर्द, पेट या पीठ दर्द हमेशा बना रहता है.

इस के अतिरिक्त ऐसे लोगों को गुस्सा बहुत आता है, वह भी बिना कारण. डा. समीर पारेख कहते हैं कि इस के शिकार लोगों में सोशल मीडिया की लत देखने को भी मिली है. वे सोशल मीडिया अपडेट के लिए लगातार उसे देखते रहते हैं. निरंतर सोशल मीडिया से जुड़े रहना अनियंत्रित डिप्रेशन को बढ़ाता है.

आप को किसी व्यक्ति में अचानक बदलाव महसूस हो तो उसे डिप्रेशन से बचाने के लिए पहले से तैयारी अवश्य कर लें.

9 टिप्स: ऐसे रहेंगे खुश

क्या आप चुपचुप रहने लगी हैं? लोग आप से शिकायत करने लगे हैं कि आप ज्यादा बात नहीं करतीं और खुद में ही खोई रहती हैं? आप का मन बेचैन रहता है और आप अकेलापन महसूस करती हैं? आप को लगता है कि अब आप खुश नहीं रह सकतीं? माना कि आज के समय में खुद के लिए समय निकालना, डिप्रैशन और तनाव से दूर रहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं. इसलिए उदास होना और अकेले में सोचना छोड़ दीजिए. साइकोलौजिस्ट डा. अनामिका पापड़ीवाल के इन टिप्स पर गौर करने से यकीनन आप को फायदा मिलेगा:

1. खुद को स्वीकार करें

आप जो भी हैं, जैसी भी हैं बहुत अच्छी हैं. कोई भी अपनेआप में पूर्ण नहीं होता. इसलिए खुद को हमेशा सर्वश्रेष्ठ समझने की कोशिश छोड़ दें.

2. सुख और दुख जीवन के दो पहलू

कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिस के जीवन में दुख नहीं आता. इसलिए खुद को दुनिया की सब से दुखी महिला न समझें. सुख और दुख ही जीवन जीने के तरीकों को बताते हैं. जिस ने सुख के समय में खुद पर नियंत्रण रखा और दुख के समय संयमित रहना समझिए खुश रहने की कुंजी उसी के पास है.

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3. खुशी आसपास ही है

आप जब भी परेशान या दुखी हों तो थोड़ा मुसकराएं. खुशी हमारे आसपास ही होती है. बस उसे स्वीकार करने की जरूरत है. जिस तरह दिन के बाद रात होती है और रात में अंधेरा होने की वजह से हम सो जाते हैं ताकि अंधेरे की वजह से कोई काम गलत न हो, ठीक उसी तरह जब कभी आप परेशान या किसी मुसीबत में हों तो यह मान कर चलें कि अभी रात है. आप को किसी भी चीज को इधरउधर नहीं करना है, बल्कि शांत रहना है, साथ ही यह यकीन रखना है कि जल्द ही सुबह होगी और आप फिर से अपनी नियमित दिनचर्या शुरू करेंगी. रात कभी हमेशा के लिए नहीं रहती, बल्कि वह तो सुबह का संदेश ले कर आती है.

4. दूसरों की खुशी में खुश

खुद को खुश रखने की सब से अच्छी दवा है दूसरों की खुशी में खुश होना. ऐसा करने से जल्द ही आप की जिंदगी में भी खुशियां आ जाएंगी. अकसर महिलाएं छोटीछोटी बातों को दिल से लगा लेती हैं और फिर घंटों सोचती रहती हैं. लेकिन जिस बात को ले कर किसी अपने के प्रति मन में कड़वाहट ले कर अंदर ही अंदर आप घुटती रहती हैं, उस से आप की हैल्थ पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही आप का किसी काम में मन भी नहीं लगता. इसलिए चाहे कितनी ही छोटी या बड़ी घटना क्यों न हो, उसे ले कर दुखी होने के बजाय उस से सबक ले कर आगे बढ़ें और उस का दुख मनाना छोड़ कर जीवन की खुशियों को ऐंजौय करें.

5. दर्द की दवा है जरूरी

जब भी खुद को परेशान महसूस कर रही हों या बहुत दुखी हों तब यह मान कर चलें कि जब दर्द होता है तभी दवा ली जाती है. जब ऐसी स्थिति से गुजरें तो अपने किसी करीबी से दर्द की दवा लें यानी अपनी परेशानी साझा करें. कोई करीबी नहीं है तो इन बातों का पालन करें:

6. बचपन में लौट जाएं

सच ही कहा गया है कि बचपन का जमाना सब से सुहाना. घर में छोटा बच्चा हो तो कहने ही क्या. बच्चे के साथ उस की टैंशनफ्री दुनिया का हिस्सा बन जाएं. यकीन मानिए अपनी सारी परेशानियां भूल

जाएंगी या फिर अपने बचपन को याद करें जब आप अकेली या बोर होती थीं तो क्या करती थीं. पेंटिंग बनाएं, कुकिंग करें या घर की साफसफाई में मन लगाएं. इस बहाने आप के कई अधूरे काम भी पूरे हो जाएंगे और अकेलापन भी महसूस नहीं होगा. इस के साथसाथ अपनी मनपसंद किताब पढ़ें, कहीं घूमने जाएं.

7. गुनगुनाएं

यदि आप के पास एफएम है तो उसे औन कर लें, क्योंकि इस से आप खुद को अकेला महसूस नहीं करेंगी, बल्कि लगेगा साथ में कोई और भी है. एफएम नहीं है तो खुद कुछ गुनगुना लें. कई शोधों में भी म्यूजिक को बैस्ट हीलर माना गया है. ऐंग्जाइटी से राहत दिलाने में गीतसंगीत का कोई तोड़ नहीं.

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8. अकेली बिलकुल न रहें

किसी अपने से बात करें, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि आप दुखी हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि सामने वाले को भी दुखी कर दें. उस से पौजिटिव बात करने की कोशिश करें.

9. नकारात्मक विचारों का सकारात्मक ट्रांसलेशन

अपने मन में आने वाले हर नकारात्मक विचार को सकारात्मक विचार में बदल कर बोलें. बिलकुल वैसे ही जैसे बचपन में हिंदी और इंगलिश में वाक्य परिवर्तन के प्रश्न करती थीं.

सब से जरूरी बात यह कि अपने दुखी होने का कारण ढूंढ़ें. यदि न ढूंढ़ पाएं तो किसी साइकोलौजिस्ट से काउंसलिंग लें, क्योंकि कारण पता लगने पर समाधान आसपास ही होता है.

शक्तिमान फेम मुकेश खन्ना के बड़े भाई का हुआ निधन, पढ़ें खबर

‘शक्तिमान’फेम मुकेश खन्ना के बड़े भाई और ‘‘इंडियन स्काउट एंड गाइड फैलोशिप’’के पूर्व अध्यक्ष सतीश खन्ना का निधन हो गया. 84 वर्षीय सतीश खन्ना 12 साल की उम्र से एक स्काउट थे. हाल ही में कोरोना वायरस की महामारी को उन्हाने मात देकर विजय हासिल की थी. लेकिन कोरोना को हराने के महज एक सप्ताह बाद सतीश खन्ना का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. उन्होंने वैक्सीन की पहली खुराक भी ली थी.

सतीश खन्ना मारवाड़ी उच्च विद्यालय,मंुबई के छात्र और स्काउट थे, जो मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से टेक्सटाइल टेक्नॉलिजी में पोस्ट ग्रेजुएट थे और टेक्सटाइल से सम्बंधित विभिन्न रिसर्च परियोजनाओं पर यूके और यूएसए में काम किया था.

सतीश खन्ना को भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के सर्वोच्च सम्मान, सिल्वर एलिफैंट से सम्मानित किया गया था. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय फैलोशिप के एशिया- पेसिफिक सदस्य देशों से कई प्रशंसा और मान्यता प्राप्त की. वह दो बार इसके अध्यक्ष चुने गए.

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‘इंडियन स्काउट एंउ गाइड फेलोशिप’के पूर्व राष्ट्ीय सचिव सुरेन्द्र कुमार अग्रवाल ने कहा-‘‘सतीश खन्ना देश के विभिन्न राज्यों और रेलवे क्षेत्रों में वयस्कों के बीच भारतीय फैलोशिप का विस्तार करने में सहायक थे. उन्होंने 1999 में अंतर्राष्ट्रीय संगठन के 19 वें विश्व सम्मेलन के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें दुनिया के 50 देशों के लगभग 500 सदस्यों ने भाग लिया. ’’

महाराष्ट्र राज्य फैलोशिप के अध्यक्ष विष्णु अग्रवाल ने कहा- ‘‘सतीश खन्ना ने 1960 के बाद से अपनी घरेलू यूनिट्स, ग्रेटर मुंबई और महाराष्ट्र राज्य फैलोशिप का पोषण किया और समाज की सेवा करने के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में हिस्सा लिया, जिसमें सुनामी, उड़ीसा सुपर साइक्लोन, भुज भूकंप, उत्तराखंड में बाढ़ और केरल में हाल ही में आई बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं में हजारों पीड़ितों को जरूरी सामान प्रदान करना शामिल था. ’’

ग्रेटर मुंबई इकाई की युवा अध्यक्ष चंचला मिस्त्री ने कहा, ‘‘हमने स्काउटिंग और गाइडिंग को बढ़ावा देने के लिए मुंबई में कई परियोजनाओं को पूरा करने के लिए अपने संरक्षक और समर्थक को खो दिया है. ‘‘

मुकेश खन्ना ने अपने बड़े भाई सतीश को श्रृद्धांजली देते हुए कहा-‘‘हालांकि सतीश भाई 84 वर्ष के थे,पर वह एक बेहतरीन टेनिस खिलाड़ी थे और उन्होंने विभिन्न वरिष्ठ नागरिक टेनिस प्रतियोगिताओं में भाग लिया. सतीश भाई ही मुझे फेलोशिप और स्काउट मूवमेंट के करीब लेकर आए थे. उन्ही की वजह से मुझे भारतीय फैलोशिप का ब्रांड अम्बेसडर नियुक्त होने का सम्मान हासिल हुआ था. मैंने हमेशा महसूस किया कि शक्तिमान एक स्काउट है. ‘‘

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1 महीने बाद ही बंद होने जा रहा है Mann Kee Awaaz Pratigya 2! पढ़ें खबर

कोरोना की कारण जहां कई सितारे अपनी जान गंवा रहे हैं तो वहीं कई शोज बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं. जहां बीते दिनों 4 सीरियल्स के बंद होने की खबर ने फैंस को चौंका दिया है तो वहीं खबर है कि हाल ही में औनएयर हुआ  पूजा गौर (Pooja Gor) और अरहान बहल (Arhaan Behll) का सीरियल मन की आवाज प्रतिज्ञा 2 (Mann Kee Awaaz Pratigya 2) भी बंद होने वाला है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

मेकर्स ने लिया ये फैसला

खबरों की मानें तो गिरती टीआरपी की कारण शो के मेकर्स ने सीरियल मन की आवाज प्रतिज्ञा 2 पर ताला लगाने का फैसला किया है. हालांकि सीरियल 15 मार्च के दिन ऑन एयर किया गया था, जिसके प्रोमो ने फैंस का दिल जीत लिया था. वहीं सीरियल के पिछले सीजन की बात करें तो शो काफी हिट रहा था. वहीं शो की कास्ट ने भी फैंस के बीच सुर्खियां बटोरी थी.

 

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तेरी लाडली मैं’ सीरियल भी हुआ बंद

टीवी सीरियल ‘तेरी लाडली मैं’ (Teri Laadli Main) पर कोरोना का कहर देखने को मिला है. दरअसल, खबरे हैं कि सीरियल को बिना क्लाइमैक्स के ही बंद कर दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना के कारण शो को अचानक ही बंद करने का फैसला किया गया है. वहीं इसकी जानकारी एक्टर गौरव वाधवा (Gaurav Wadhwa) ने देते हुए एक इंटरव्यू में कहा है कि ‘शो के ऑफ एयर होने की खबर सही है. मुझे भी इसके बारे में हाल ही पता चला. दुख है कि कोरोना महामारी के कारण यह सब हो रहा है. हम शो का क्लाइमैक्स भी शूट नहीं कर रहे हैं और बीच में ही इसे बंद किया जा रहा है.’

इन सीरियल्स पर भी गिर सकती है गाज

‘तेरी लाडली मैं’ सीरियल के अलावा खबरे हैं कि तीन और टीवी शोज जून में बंद हो सकते हैं, जिनमें ‘तुझसे है राब्ता’, ‘तेरी मेरी इक जिंदड़ी’ और ‘हमारी वाली गुड न्यूज’ के नाम शामिल हैं. खबरों के मुताबिक ‘हमारी वाली गुड न्यूज’ के एक्टर शक्ति आनंद ने जून में सीरियल बंद होने को लेकर एक इंटरव्यू में कहा है कि अगर ऐसा होता है तो उन्हें कोई हैरानी नहीं होगी क्योंकि शो की टीआरपी बहुत ही कम है. शो को बंद किए जाने से ज्यादा बड़े और ध्यान देने वाले और भी मुद्दे हैं, जिनमें कोरोना सबसे बड़ा मुद्दा है. हालांकि एक्टर ने शो बंद होने को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है.

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Anupamaa फेम इस एक्टर के पिता का हुआ निधन, शेयर किया इमोशनल पोस्ट

कोरोना वायरस का कहर धीरे-धीरे बढता जा रहा है. बीते दिनों टीवी इंडस्ट्री से बुरी खबरे सामने आ रही हैं. दरअसल, हाल ही में हिना खान के पिता का निधन हुआ था वहीं अब खबर है कि सीरियल ‘अनुपमा’ में परितोष के अहम रोल में नजर आने वाले एक्टर आशीष मेहरोत्रा (Ashish Mehrotra) के पिता का भी निधन हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

पिता के लिए शेयर किया पोस्ट

‘अनुपमा’ (Anupamaa) स्टार ने सोशल मीडिया के जरिए जानकारी देते हुए अपने पिता के लिए इमोशनल नोट शेयर किया है. आशीष मेहरोत्रा ने अपने पिता का एक वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए लिखा है, ‘आपने भले ही मुझे इस दुनिया में छोड़ दिया हो लेकिन अंदर से आप मेरे और भी क्लोज हो चुके हैं. हमारा शरीर भले अगल हो गया लेकिन आत्मा कभी नहीं हो पाएगी. यहां पर सेल्फिश होने के लिए माफ करिएगा लेकिन आप सिर्फ मेरे पापा हो. मुझे पता है कि आपने मुझे नहीं छोड़ा है. काश मैं एक बार फिर से आपको ऐसे गले लग पाता. आइ लव यू पापा यार….काफी कुछ कहना बाकी रह गया था.’

 

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फोटोज की शेयर

 

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आशीष मेहरोत्रा ने अपने पिता की कुछ अनदेखी फोटोज शेयर करते हुए एक कैप्शन में लिखा, ‘खिलखिलाता हुआ चेहरा…हर तरह खुशियां फैलाता था….आपका भांगड़ा करना…मैं आपको हमेशा ऐसे ही याद करना चाहता हूं पापा…..’

 

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बता दें, हाल ही में आशीष मेहरोत्रा कोरोना को मात देकर अनुपमा के सेट पर पहुंचे थे. वहीं उनके को-स्टार भी अपने पिता को खो चुके हैं. दरअसल, समर का रोल निभाने वाले एक्टर पारस कलनावत के पिता का भी पिछले महीने निधन हो गया था.

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Jwala Gutta ने की दूसरी शादी, मेहंदी से लेकर हल्दी तक कुछ ऐसा था अंदाज

कोरोना के बढ़ते कहर के बीच सितारों की शादी का सिलसिला जारी है. साउथ एक्टर विष्णु विशाल (Vishnu Vishal) और पौपुलर बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा (Jwala Gutta) की बीते दिन शादी हो गई हैं. वहीं सोशलमीडिया पर दोनों की शादी की फोटोज छाई हुई हैं. मेहंदी से लेकर शादी तक हर अंदाज में बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा (Jwala Gutta) बेहद खूबसूरत लग रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा (Jwala Gutta) के वेडिंग के खास लुक्स…

ज्वाला गुट्टा की मेहंदी की रस्म थी खास

सोशल मीडिया पर छाई फोटोज में ज्वाला गुट्टा (Jwala Gutta) की मेहंदी की फोटोज धमाल मचा रही हैं. सिंपल औरेंज कलर की साड़ी में नजर आईं तो वहीं मेंहदी रचने के बाद वह ब्लू कलर के लहंगे में जलवे बिखेरती दिखीं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

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हल्दी में मस्ती करती दिखीं ज्वाला

हल्दी की फंक्शन में पीले रंग की साड़ी पहन कर जहां ज्वाला बेहद खूबसूरत लग रही थीं तो वहीं मस्ती के मूड में भी नजर आ रही थीं. वहीं हल्दी की बाद वह पीले रंग के लहंगे में नजर आ रही थीं.

साउथ इंडियन दुल्हन बनीं ज्वाला

 

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साउथ एक्टर विष्णु विशाल (Vishnu Vishal) से शादी करने वाली ज्वाला गुट्टा शादी में साउथ इंडियन लुक में तैयार हुई थीं.  साउथ इंडियन साड़ी से लेकर ज्वैलरी तक हर अंदाज में ज्वाला का लुक देखने लायक था. वहीं साउथ एक्टर विष्णु विशाल (Vishnu Vishal) भी वाइट कुर्ते और धोती में बेहद हैंडसम लग रहे थे.

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मस्ती करते नजर आए दुल्हा-दुल्हन

शादी के बाद जहां सभी दुल्हा-दुल्हन को बधाई देते नजर आए तो वहीं साउथ एक्टर विष्णु विशाल (Vishnu Vishal) और पौपुलर बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा (Jwala Gutta) मस्ती के मूड में दिखे. जिसका अंदाजा वायरल फोटोज से लगाया जा सकता है.

8 Tips: घने और सौफ्ट हेयर के लिए ट्राय करें ये टिप्स

जब से मैं ने होश संभाला था, अपने बालों को एक सुनामी जैसा पाया था. 12 या 13 वर्ष की उम्र उस समय (90 के दशक में) इतनी ज्यादा नहीं होती थी कि मु  झे कुछ सम  झ आता. तेल से तो उस समय मेरा दूरदूर तक नाता नहीं था. शायद ही कभी तेल को बालों में लगाया हो. मेरे बाल बहुत घने थे जिस के लिए अधिकतर लोग तरसते हैं. मेरी सहेलियां और दूरपास की रिश्ते की बहनें मेरे जैसे बाल चाहती थीं. मेरे बाल वेवी थे, इसलिए बिना ड्रायर के ही हमेशा फूले हुए लगते थे.

बाल क्योंकि वेवी थे, इसलिए मेरी मम्मी हमेशा बौयकट ही करवाती थीं. बौयकट के कारण मु  झे अपना साधारण चेहरा और अधिक साधारण लगता था. कंडीशनर, स्पा इत्यादि का तब प्रचलन नहीं था. बाल धोने के लिए हमें हफ्ते में 1 बार ही शैंपू मिलता था. हफ्ते में बाकी दिन मु  झे नहाने के साबुन से ही बाल धोने पड़ते थे. साबुन से धोने के कारण और तेल या अन्य कोई घरेलू नुसखा न अपनाने के कारण मेरे कड़े बाल और अधिक रूखे और कड़े हो गए थे.

फिर भी बिना किसी प्रकार की देखभाल के भी मेरे बाल न   झड़ते थे, न टूटते थे. जब मैं कालेज में आई तो स्टैपकट करा लिया जो मेरे बालों के टैक्स्चर के कारण अच्छा लगता था. फिर शुरू हुआ इक्कादुक्का सफेद बालों में मेहंदी लगाना. हर 15 दिन बाद मैं मेहंदी लगा लेती थी, बाल चमकने के साथसाथ बहुत सख्त भी हो गए थे. ये सारे प्रयोग मैं चाची, नानी इत्यादि के घरेलू नुसखों की मदद से कर रही थी.

शैंपू और कंडीशनर का चुनाव

जब भी बाल कटाने जाती तो हमेशा कहा जाता कि मेहंदी की एक परत मेरे बालों पर जम गई है. अधिक मेहंदी बालों के लिए नुकसानदेह है. पर मैं ने अधिक ध्यान नहीं दिया. विवाह के बाद मेरे ब्यूटी रूटीन में कंडीशनर भी जुड़ गया. अब मैं हफ्ते में 3 दिन बाल धोती थी और बाद में कंडीशनर लगाती थी. पर यहां भी मैं ने एक गलती करी कि मैं ने शैंपू और कंडीशनर का चुनाव अपने बालों के हिसाब से नहीं, बल्कि मूल्य के हिसाब से किया.

फिर विवाह के डेढ़ साल बाद मैं ने बेटी को जन्म दिया. बाल बेहिसाब   झड़ रहे थे, सब यही कह रहे थे कि मां बनने के बाद ये बदलाव नौर्मल हैं. बेटी के जन्म के बाद मु  झे हाइपोथायरायडिज्म की समस्या भी हो गई थी. फिर भी मैं ने अपने बालों की देखभाल में कोई परिवर्तन नहीं किया. फिर धीरेधीरे जब मेहंदी की परत के कारण मेरे बाल एकदम लाल हो गए तो परिवार वालों के कहने पर मैं ने हेयर कलर करना आरंभ कर दिया. कभी घर पर कलर करती थी तो कभी पार्लर में कराती थी. जब भी पार्लर में कलर करवाने जाती, एक ही बात बताई जाती कि स्पा लेना जरूरी है.

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मगर जैसे आमतौर पर सब को लगता है, मु  झे भी यही लगा कि ये पार्लर वाले पैसा उघाहने के लिए ऐसा बोलते हैं. 32 से 40 साल तक लगातार कलर करने के कारण बाल बेहद रूखे हो गए. फिर भी मैं ने कुछ नहीं सीखा और घुस गई हेयर कैराटिन की दुनिया में. पार्लर में बोला गया यह मेरे बालों को एकदम ठीक कर देगा पर मेरे लिए स्पा कराना जरूरी है.

सही देखभाल

अब मैं एक बात बताना चाहूंगी कि कैराटिन, स्मूदनिंग या स्ट्राइटेनिंग सब में कैमिकल्स का ही प्रयोग होता है. इस भुलावे में न रहें कि कैराटिन में कैमिकल्स नहीं होते हैं. हेयर कलर हो या किसी भी प्रकार का हेयर ट्रीटमैंट सब में कैमिकल्स होते हैं. जरूरत है कि अपने बालों को सम  झ कर उस हिसाब से ही देखभाल करें.

अब इतने सालों बाद मु  झे सम  झ आया है कि अपने के बालों को अपने से बेहतर कोई नहीं सम  झ सकता है. अपने पति, बच्चों, बहन, दोस्तों या फिर पार्लर के कहने पर बालों पर कदापि प्रयोग न करें. ये बात याद रखिए ये आप के बाल हैं, कोई प्रयोगशाला नहीं है. उलटेसीधे प्रयोग बंद कीजिए.

अब 44 साल की उम्र में यह तो नहीं कहूंगी कि मेरी जुल्फें काली, रेशमी और घनी हो गई हैं, पर मैं ने अब अपने बालों को सम  झ कर उन की देखभाल आरंभ कर दी है. आइए, मैं कुछ छोटेछोटे टिप्स आप से शेयर करती हूं शायद ये आप के लिए भी फायदेमंद साबित हों. ये सारे टिप्स या सु  झाव मेरे अपने अनुभव पर आधारित हैं:

औयल मसाज है जरूरी: औयल मसाज का कोई भी विकल्प नहीं है. बाजार में उपलब्ध खुशबूदार तेल के बजाय घर में उपलब्ध सरसों का तेल या प्राकृतिक नारियल के तेल का इस्तेमाल करें. बालों को धाने से पहले मसाज आवश्यक है. अगर रातभर तेल लगा कर नहीं रख सकती हैं तो कम से कम 2 घंटे अवश्य रखें.

बालों के हिसाब से हेयर मास्क: अगर आप बाल धोने से पहले उन पर 2 चम्मच प्याज का रस लगाती हैं तो यह आप के बालों को मुलायम बनाने के साथसाथ मजबूत भी बनाता है. मेथीदाना और दही का मास्क भी रूखे बालों के लिए लाभकारी है. मुलतानी मिट्टी का पैक तैलीय बालों के लिए उत्तम है. आप की रसोई में ही सबकुछ है पर जरूरत है अपने बालों को सम  झें और फिर उन की देखभाल करें. अकसर हम दूसरों की देखादेखी कोई भी हेयर मास्क लगा लेते हैं जो सही नहीं है.

हेयर कलर और हेयर स्पा साथसाथ: अगर आप हेयर कलर करती हैं तो माह में कम से कम 1 बार हेयर स्पा जरूरी है. 3 माह में 1 बार हेयर कलर पार्लर पर करवा सकती हैं. टच अप हर 15 दिनों में घर पर कर सकती हैं. हेयर स्पा भी आप 1 माह घर पर और 1 माह पार्लर में करवाएं. बालों की सेहत बनी रहेगी.

नैचुरल बालों से ही होती है शान: जहां तक हो सके बालों पर रिबौंडिंग, कैराटिन या कर्लिंग न करवाएं. ये सब कैमिकल ट्रीटमैंट हैं, जो आप के बालों की क्वांटिटी और क्वालिटी दोनों को खराब कर देते हैं. आप के बाल चाहे सीधे हों, घुंघराले हो या फिर वेवी उन्हें वैसे ही रहने दें. ये कैमिकली ट्रीटेड बालों से अधिक मजबूत और घने होते हैं.

ट्रिमिंग है जरूरी: हर 2 या 3 माह में ट्रिमिंग अवश्य कराएं. ट्रिमिंग कराते रहने से बाल संभले हुए और बेहतर लगते हैं.

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विटामिन और मिनरल्स: विटामिंस और मिनरल्स को फल, सब्जी या कैप्सूल के रूप में अपनी थाली में शामिल कर सकती हैं. जिंक, विटामिन ई इत्यादि बालों के लिए बहुत अच्छे रहते हैं.

हारमोनल उपचार: अगर कोई हारमोनल असंतुलन है तो उस का उपचार अवश्य करवाएं.

उम्र के हिसाब से देखभाल: जो हेयर मास्क 20 की उम्र के लिए कारगर है वह 40 में नहीं होगा. अपनी उम्र व जीवनशैली के हिसाब से ही अपने बालों की देखभाल करें.

माना कि आप के बालों का टैक्स्चर आप के जीन, आप की जीवनशैली पर बहुत हद तक निर्भर करता है, पर अपने अनुभव के आधार पर यह अवश्य कह सकती हूं कि थोड़ी सी मेहनत से व कुछ सजगता से हम बालों को संभाल जरूर सकते हैं.

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