अकसर हवाईयात्रा करते समय मेरे कानों में दर्द होने लगता है, मुझे क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

सवाल-

अकसर हवाईयात्रा करते समय मेरे कानों में दर्द होने लगता है. मुझे क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

जवाब

हवाईजहाज में सफर के दौरान अकसर लोगों को कानों में दर्द की शिकायत होती है. कानों के परदों पर भी दबाव महसूस होता है. यह समस्या प्लेन के लैंडिंग करते समय अधिक होती है. इस से बचने के लिए इयर प्लग का इस्तेमाल करें. आप चूइंगम चबा कर भी इस समस्या से बच सकती हैं. इस के अलावा अगर कोई और समस्या हो या प्लेन में यात्रा करने के अलावा भी कानों में दर्द महसूस हो तो डाक्टर को दिखाएं.

सवाल-

पिछले महीने एक दुर्घटना में मेरे कान के परदे में छेद हो गया है. इस के उपचार के कौनकौन से विकल्प हैं?

जवाब-

अगर कोई जानलेवा घटना जैसे कि विस्फोट या वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना घटित होने से कान में अचानक तेज दर्द हो तो समझिए कि कान के मध्य भाग को नुकसान पहुंचा है. अगर कान के परदे में छोटा छेद हो गया है तो वह अपनेआप ही भर जाता है. लेकिन अगर बड़ा छेद हो तो उपचार कराना जरूरी हो जाता है. मैडिकेटेड पेपर से कान के परदे वाले स्थान पर पैचिंग कर दी जाती है. गंभीर मामले में शरीर के दूसरे भाग से ऊतक ले कर छेद को बंद करने के लिए वहां लगा दिए जाते हैं. समय रहते उपचार न कराया जाए तो कान में तेज दर्द हो सकता है और संक्रमण होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

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सवाल-

मैं एक डिस्को बार में काम करती हूं, पिछले कुछ दिनों से मुझे थोड़ा कम सुनाई दे रहा है. क्या करूं?

जवाब-

आंतरिक कान में छोटीछोटी हेयर सैल्स की एक कतार होती है. ये मस्तिष्क को संकेत पहुंचाते हैं. तेज आवाज में संगीत सुनने से ये हेयर सैल्स चपटे हो जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद फिर से अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं.

लंबे समय तक चलने वाला ध्वनि प्रदूषण इन्हें क्षतिग्रस्त कर नष्ट कर सकता है. उम्र बढ़ने के साथ यह समस्या और गंभीर हो जाती है, जिस से सुनने की क्षमता समाप्त हो जाती है.

तेज आवाज से बचाव के लिए हियरिंग प्रोटैक्शन डिवाइसेज जैसे इयर प्लग और इयर मफस का इस्तेमाल करें. अगर जौब के कारण इन का इस्तेमाल संभव न हो तो जौब बदल लें, क्योंकि युवावस्था में ही सुनने की क्षमता सुरक्षित रखने का प्रयास करना जरूरी है.

सवाल-

मेरे कानों में बहुत मैल जमा होता है. थोड़ा कड़ा भी हो जाता है. क्या करूं?

जवाब-

अधिकतर लोग सोचते हैं कि शरीर की तरह कानों को भी साफ रखना चाहिए. लेकिन कानों के मामले में आप को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ये

स्वयं अपनेआप को साफ कर लेते हैं. कई बार हम कानों को साफ करने के चक्कर में उन में कोई नुकीली चीज डाल देते हैं, जिस से अस्थायी रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है या कान का परदा फट सकता है. इसलिए कानों में बिना सोचेसमझे कुछ न डालें. इयर वैक्स अपनेआप इयर कैनल से बाहर आ जाता है. अगर इयर वैक्स कड़ा हो गया है और इयर कैनल को अवरुद्ध कर रहा है, तो डाक्टर से संपर्क करें.

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सवाल-

मेरे बेटे की उम्र 6 माह है, लेकिन वह ताली बजाने और कोई आवाज करने पर सिर नहीं घुमाता है. क्या उस की सुनने की क्षमता सामान्य नहीं है?

जवाब-

सामान्यतया 4 माह तक बच्चा ताली बजाने और आवाज करने पर उस तरफ सिर या आंख की पुतली नहीं घुमाता है. लेकिन आप का बच्चा 6 माह का हो गया है और आवाज के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो आप किसी अच्छे ईएनटी से उस की श्रवण क्षमता की जांच कराएं.

अगर वह सामान्य रूप से सुन नहीं पा रहा है तो उसे सुनने की मशीन लगवा देनी चाहिए. अगर वह अत्यधिक बहरेपन का शिकार है, तो 1 साल की उम्र में काक्लियर इंप्लांट करा देने चाहिए. इस से ऐसे बच्चे भी सामान्य रूप से बोलना और सुनना शुरू कर लेते हैं.

-डा. अभय कुमार

एमएस, वीएमसीसी और सफदर जंग अस्पताल, दिल्ली.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Summer Special: वीकेंड पर बनाएं पनीर कबाब

अगर आपको दूध नापसंद है तो पनीर से बेहतर आपके लिए और कुछ नहीं हो सकता.पनीर सिर्फ स्वाद ही नहीं बल्कि सेहत का भी पर्याय बना हुआ है. यह प्रोटीन का पावरहाउस और कैल्शियम का एक अच्छा स्रोत है जो दांतों और हड्डियों को मजबूत बनाता है. पनीर पाचन के लिए भी अच्छा होता है, इसमें बहुत अच्छी मात्रा में फास्फोरस तत्व होते है जो हमारे पेट के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते है. तो आइए आपको बताते हैं पनीर से टेस्टी कबाब बनाने की रेसिपी…

हमें चाहिए

–  250 ग्राम कद्दूकस किया पनीर

–  आलू उबले व चौकोर टुकड़ों में कटे

–   1/2 कप हरे मटर उबले

–  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

–  2 छोटे चम्मच काजू कटे

–  थोड़ी सी हरी मिर्च कटी

–  1 छोटा चम्मच अदरक कटा

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–   1/2 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर

–   1/2 छोटा चम्मच गरममसाला पाउडर

–   1/2 छोटा चम्मच जीरा

–   1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

–  एकचौथाई कप कौर्नफ्लोर

–  तलने के लिए औयल

–  नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

एक बाउल में सारी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएं, फिर इस तैयार मिश्रण से नीबू के आकार की बौल्स बनाते हुए उन्हें कबाब की शेप दें. अब पैन में औयल गरम कर के उस में कबाब डाल कर दोनों तरफ से सुनहरा और कुरकुरा होने तक फ्राई करें. फिर इन्हें टिशू पेपर पर निकालें ताकि ऐक्स्ट्रा औयल निकल जाए. अब तैयार गरमगरम कबाब को अपनी पसंद की चटनी के साथ सर्व करें.

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कोरोना और महिलाओं की हालत

आजकल कोरोना वायरस के डर के कारण औरतें भी बहुत सी किट्टी पार्टियां जूम प्लेटफौर्म पर करती है जिस में मोबाइल की छोटी सी स्क्रीन पर बोलने वाले और खुद की तस्वीर दिखती है. कंप्यूटर हो तो सब के चेहरे दिख जाते हैं पर बस उस तरह जैसे वह दिखाना चाहती है.

अगर कहीं घर दिख जाए तो पता चलने लगा कि घर की साजसज्जा कैसी है, कितना खर्च किया है और क्या स्तर है? रेस्ट्रांओं में मिलने वालियों को दिक्कत होने लगी है कि कम जान पहचान वाली भी अब एक तरह से बिन बुलाए मेहमान की तरह घरों में घुसने लगी है.

अगर काम के सिलसिले में जूम मीटिंग हो तो एक डेढ़ घंटे सीट पर बैठेबैठे पैर सुन्न हो जाते हैं और आंखें कैमरे में देखतेदेखते थक जाती हैं. अगर वीडियो औफ कर दो तो आवाज आ जाती है भई कल्पना जरा वीडियो तो औन करो, हम देखे तो इतने दिनों में कितना वेट घटाया है,’ जूम.

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अब खासा क्लोजअप भी दिखाने लगा है और कंप्यूटर हो तो स्क्रीन में बड़ी सी तस्वीर बोलने वाली भी आ जाती है. अपने से तुलना बराबर रख कर ही ली जाती है और दिमाग भटकने लगता है कि हम में से सुंदर कौन है. धाॢमक कार्यक्रम करते तो पीछे ही पड़ जाते हैं क्योंकि उन्हें तो अंत में चंदा जमा करना है. सब के सामने, सब की सुनाई में पूछ लेते हैं कि शालिनी कापडिय़ा जी आप क्या दे रही हैं? शालिनी का मन चाहे कुछ भी न देने का हो उन्हें जबरन दूसरों से ज्यादा या कम से कम बराबर का तो देना ही पड़ता है.

पंडे पुजारियों को तो मजा आ गया है क्योंकि जूम जैसे प्लैटफार्मों पर वे सैंकड़ों को जमा ही नहीं कर सकते, वे उन को मौसीटर भी कर सकते हैं. एक तो सौ बार सुन चुके क्या सुनो, दूसरे कक्षा की तरह डिसिप्लीन में बैठे. अपने नैकलेस और बालियां तो दिखानी ही होंगी न. जैसे जेवन वैसा चंदा. पंडों पुजारियों को घर बैठे कमाई होने लगी है वह भी टैक्स फ्री क्योंकि धर्म के धंधे पर न जीएसटी है न आय कर. हलाल हो रही है औरतें.

टैक्नोलौजी का गुणगान करने वाले यह नहीं जान सकते कि जब औरतें मिलती हैं चाहे आफिस की मीङ्क्षटग, या किसी श्रद्धा सभा में या किट्टी में तो वे नखशिख का मुआयना जरूर करती हैं. जूम यह सुख छीन रहा है. तनाव बेइंताह बढ़ रहा है.

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कोरोना ने घरों में बंद तो किया ही है, कोविड का डर भी बैठा दिया, कोई पकड़ा गया तो मौत का खौफ छाने लगा है और ऊपर से टैक्नोलौजी की छल्लेदार बातें. अजी ये छल्लेदार सुविधा नहीं है. यह तो धारदार व्यक्तित्व को काट कर टुकड़ेटुकड़े कर देने वाली स्क्रीम है- जो हाल कोरोनो ने देश की अर्थ व्यवस्था का किया है वही सा घर की महिला व्यवस्था का कर डाला है.

क्यों अंधविश्वास के अंधेरे में मासिक धर्म

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

मैं एक पुरुष हूं और इस नाते मुझे महिलाओं के जैसे होने वाले मासिकधर्म का कोई भी डर नहीं है, मगर 2 ऐसी घटनाएं मैं ने अपनी बहन के साथ देखीं, जिन्होंने मेरे मन को पूरी तरह न केवल हिलाया, बल्कि स्त्री के प्रति और भी श्रद्धा से भर दिया. मेरी दीदी जो मुझ से 5 साल बड़ी हैं, जब वे 10वीं कक्षा में थीं तब वे अचानक स्कूल से एक दिन जल्दी घर वापस आ गईं. उन का चेहरे का रंग उड़ा हुआ था. उन के कुरते के पिछले हिस्से पर खून के निशान थे उन्हें उन्होंने पानी से धोया था और जिस कारण उन के कपड़े पूरी तरह गीले हो गए थे. मेरे पूछने पर वे बात टाल गईं और मां ने मुझे डांट कर चुप करा दिया.

बड़ा होने पर धीरेधीरे मैं स्वयं समझ गया कि उस दिन दीदी के साथ क्या हुआ था. जो भी हुआ उस समय दीदी की मनोदशा की सोच कर मैं आज भी कांप उठता हूं.

मुझे अपने बचपन की दूसरी घटना याद आती है जब मेरी दीदी की शादी के बाद मैं पहली बार उन के घर गया था तो एक सुबह मैं

ने देखा कि दीदी जमीन पर सो रही थीं,  जबकि जीजाजी बिस्तर पर. दीदी से मैं ने इस  का कारण पूछा तो उन्होंने सहजता से बता दिया कि स्त्रियों में जब मासिकचक्र होता है तो वे अछूत हो जाती हैं और उन्हें जमीन पर ही सोना पड़ता है.

उस समय तो उन की बात बहुत अजीब लगी, पर मैं करता भी क्या. इसलिए मैं चुप ही रहा. मगर आज जब मैं बड़ा हो गया हूं तो मैं ने इस विषय पर लिख कर अंधविश्वास खत्म करने की बात सोची और इसीलिए आज यह लेख लिख रहा हूं.

सामान्य प्रक्रिया

अपने जीवनकाल में हर महिला को मासिकचक्र से गुजरना पड़ता है, जो बहुत ही सामान्य प्रक्रिया है पर धार्मिक दृष्टि से औरतों को अपवित्र माना जाता है.

मगर यदि मासिकधर्म के होने से कोई महिला अपवित्र हो जाती है तब तो इस दुनिया का हर पुरुष और महिला अपवित्र है, क्योंकि जन्म के समय हर बच्चा उसी रक्त में सना होता है.

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अगर खुले दिमाग से गौर किया जाए तो मासिकचक्र के दौरान स्त्री को अपने से अलग रखना पुरुष के झूठे अहंकार को पोषित करने के अलावा और कुछ नहीं और इस काम में  काफी हद तक पुरुषों की सहायता की है हिंदू  धर्म के पुराणों ने. पुराणों की एक कथा के अनुसार इंद्र देवता ने अपने हिस्से का पाप औरतों को भी दे दिया था और इसी कारण महिलाओं को प्रतिमाह इस मासिकधर्म की पीड़ा से गुजरना पड़ता है.

हारमोंस में बदलाव

मुंबई में महिलाओं पर किए गए एक सर्वे में एक कामकाजी महिला ईशा बताती हैं, ‘‘मैं अपने पति से कोई भी पीड़ा शेयर नहीं करती, फिर भी वे मेरी असहजता देख कर समझ जाते हैं और चूंकि मैं इन दिनों में हारमोंस में बदलाव के कारण थोड़ी चिड़चिड़ी हो जाती हूं, इसलिए वे मुझे मानसिक रूप से सहयोग देते ही घर के कामकाज में भी मेरी मदद करते हैं.’’

जबकि ईशा के साथ ही काम करने वाली नेहा कहती है, ‘‘अब क्या बताऊं आप को…मेरे  ये 6-7 दिन नर्क जैसे बीतते हैं, क्योंकि मेरे पति को इन्हीं दिनों में संबंध बनाने की प्रबल इच्छा होती है, जबकि मेरे लिए ऐसा कर पाना लगभग असंभव सा होता है और जब मैं उन्हें मना  करती हूं तो वे नाराज हो कर मारपीट पर उतर आते हैं.’’

लिव इन रिश्तों में रहने वाली एक महिला कोमल बताती है, ‘‘मैं और मेरे पार्टनर यहां मुंबई में अपने कैरियर की तलाश कर रहे हैं. ऐसे में मेरे इन दिनों में वैसे तो वह ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं देता, पर मैं उस के व्यवहार में कुछ रूखापन सा महसूस करती हूं.’’

मुंबई के ही एक कालेज में बीए तृतीय वर्ष की छात्रा सब्या बताती है कि वह और उस का बौयफ्रैंड एकदूसरे से बहुत प्रेम करते हैं और आगे चल कर शादी भी करना चाहते हैं पर जिन दिनों मैं मासिकचक्र के दौर से गुजर रही होती हूं उन दिनों बौयफ्रैंड मेरा और भी अधिक ध्यान रखता है और मेरे बदले व्यवहार और चिड़चिड़ेपन  पर नाराज नहीं होता, बल्कि और अधिक केयरिंग हो जाता है और मेरी पढ़ाई और अन्य कामों में मेरी सहायता करता है.

इन दिनों में संबंध बनाने को ले कर उस  वर्ग की महिलाओं को समस्या आती है, जिन  के पुरुष कमाने के लिए महीनों तक बाहर रहते  हैं और साल में कभीकभार ही घर आते हैं और आकस्मिक घर आने पर प्रेम से भरे पति को  ऐसे में यदि पत्नी सैक्स का सुख देने से वंचित कर दे तो यह भी पति के गुस्से का कारण  बनता है.

पैड्स पर होने वाला खर्चा भी कम तो नहीं

बाजार में मिलने वाले सैनिटरी पैड्स विभिन्न कंपनियों के होते हैं. आमतौर पैड्स का एक पैकेट क्व30 से क्व35 का आता है और एक महिला को 1 महीने में इस तरह के 2-3 पैकेट खर्च हो जाते हैं. इस प्रकार एक महीने में क्व100 से क्व150 का खर्चा हो ही जाता है.

जो महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं उन्हें तो इस खर्चे से कोई असर नहीं पड़ता पर जो गांवों में रहती हैं या जिन के पतियों के पास कोई रोजगार नहीं होता है उन के लिए पैड्स खरीदने पर आने वाला यह खर्चा सिरदर्द बन जाता है और खुद के पास रोजगार न होने की हालत में एक पति को पैसे के लिए अपने पिता पर निर्भर रहना पड़ता है और हर महीने पिता से पैसे मांगना एक बेरोजगार शादीशुदा युवक के लिए काफी शर्म भरा अनुभव होता है.

पैड्स का निस्तारण एक बड़ी समस्या

सैनिटरी पैड्स प्रयोग करने के बाद इन्हें सुरक्षित ठिकाने लगाना भी एक टेढ़ी खीर  होती है. जिन घरों में लोग संयुक्त परिवार में रहते  हैं और रूढि़वादिता से बंधे होने के कारण इन  घरों की बहुओं और बेटियों को इन दिनों में अलगथलग रहना पड़ता है और असली  परेशानी तब आती है जब इन पैड्स को प्रयोग  के बाद फेंकने की बारी आती है. ऐसे में ये महिलाएं रात होने का इंतजातर करती हैं और दबे पैर छत पर जा कर कूड़े के ढेर में फेंकती हैं.

कालोनियों में भी इन पैड्स का निस्तारण एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहा है. महिलाएं प्रयोग के बाद इन्हें सड़क के किनारे लगी डस्टबिन में फेंक देती है, जिन्हें कुत्ते मुंह में  डाल कर नोच डालते हैं और इधरउधर बिखेर  देते हैं.

हमारे समाज में बहुत से अंधविश्वास भी फैले हुए हैं, उन में से कुछ इस प्रकार हैं:

अंधविश्वास के कारण

गाय को न छूना: मासिकधर्म के समय महिलाओं को गाय तक को छूने की मनाही होती, क्योंकि अगर रजस्वला स्त्री ने गाय को छू लिया तो गाय दूध देना बंद कर देगी. तभी हास्यप्रद और अवैज्ञानिक बात है.

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तुलसी के पौधे से दूर रहना: महिलाओं को तुलसी के पौधे से दूर रहना होता है. अगर मासिकधर्म के दौरान स्त्री की छाया तुलसी के पौधे पर पड़ गई तो वह सूख जाएगा. इस  का वैज्ञानिक कारण पूछने पर कोई बता नहीं  पाता और सिर्फ यह कह कर पल्ला झड़ लेते  हैं कि यह बात उन्हें उन के बड़ेबुजुर्गों ने बताई है, इसलिए वे इसे मानते आ रहे हैं.

इन बातों के अलावा अचार न छूना, किसी को पानी तक न देना और घर के ही एक कोने में पड़े रहना जो पूरी तरह से किसी भी यातना से कम नहीं है.

इन दिनों हिंदू स्त्रियों को मंदिर जाने की  भी मनाही होती है, सबरीमाला के मंदिर में  10 साल से ले कर 50 साल की स्त्रियों को  प्रवेश की जो मनाही है वह शायद स्त्री के रजस्वला होने के कारण ही बनाई गई है और स्त्रियां घर में भी किसी प्रकार की पूजापाठ नहीं कर सकती हैं. महिलाएं इन दिनों भगवान के नाम का उच्चारण भी नहीं कर सकती हैं और अगर ऐसा कर दिया तो उन्हें एक और बड़ा पाप लग सकता है.

धर्म के नाम पर साजिश

ईसाई धर्म में स्त्रियों को किसी तरह  की खास मनाही नहीं है. अगर स्त्रियां चाहें तो  वे चर्च भी जा सकती हैं. इस पूरी दुनिया में  सिख धर्म ही ऐसा धर्म है जो एक रजस्वला स्त्री को इन दिनों में और भी ज्यादा पवित्र मानता  है. सिख धर्म के  अनुसार जिस रक्त से  जीवन पनपता है और जो स्त्री पूरे संसार को  जन्म देती है वह भला अपवित्र कैसे हो सकती  है, बल्कि वह तो इन दिनों में और भी पवित्र  हो जाती है और इसी अवधारणा के चलते  सिख महिलाओं पर कोई पाबंदी नहीं होती और  वे गुरुद्वारे भी जा सकती हैं.

ये तो वे बातें हैं, जिन्हें सदियों से मानते आ रहे हैं पर किसी भी बात को मानने से ज्यादा जरूरी है उस का वैज्ञानिक आधार जानना. आज बाजार में बहुत सी ऐसी पुस्तकें हैं जिन्हें पढ़ कर आप अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं, साथ ही आप अपनी बेटी को भी मासिकधर्म के बारे में सहीसही बताएं.

खुल कर बताएं

जब आप की बेटी 9-10 साल की हो जाए तब आप उसे मासिकधर्म के बारे में सबकुछ बताना शुरू कर दें ताकि बेटी का बालमन उसे आसानी से समझ सके.

अधिकतर हम सभी खून देख कर घबरा जाते हैं. खून का मतलब चोट लगना होता है. हमारी यही मनोदशा रहती है और जब आप की बेटी पहली बार इस अनुभव से गुजरे तो वह बिना घबराए इस प्रक्रिया से आसानी से गुजर सके इस बात की जिम्मेदारी मां और बाप दोनों पर समान रूप से होती है.

अगर मातापिता दोनों काम पर जाते हैं तो बेटी के लिए एक आकस्मिक मासिक किट तैयार कर दें, जिस में एक पैंटी का जोड़ा और 2-3 पैड्स रख दें. शुरुआत में मासिकधर्म काफी अनियमित हो सकता है.

ऐसे में यह किट आप की बेटी को स्कूल में भी भयमुक्त रखेगी और यदि हो सके तो बेटी को यह भी बताएं कि यह जीवन को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रक्रिया है और इस से शर्म महसूस करने की जगह अपनेआप को गौरवान्वित महसूस करना चाहिए. अपनी बिटिया को बताएं कि यह एक नैसर्गिक क्रिया है.

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शर्म की बात नहीं

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर ‘हैप्पी टू ब्लीड’ नामक कैंपेन काफी लोकप्रिय हुई थी.  इस कैंपेन में एक लड़की को समय से पहले मासिकधर्म होने लगा था और उस का उसे  पता नहीं चला और पुरुष उसे अजीब नजरों से घूरते रहे. उस की अनभिज्ञाता देख रास्ते में एक महिला ने उसे सैनिटरी पैड दिया तब उस की समझ में आया कि उसे मर्द रास्ते में क्यों घूर  रहे थे.

उस लड़की ने खून में भीगा अपना पाजामा सोशल मीडिया पर भी शेयर किया और लिखा कि मेरी यह पोस्ट उन महिलाओं के लिए है जिन्होंने मेरे स्त्रीत्व को छिपाने में मेरी मदद करी, मेरे लिए यह कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि हर महीने दर्द के साथ होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है.

जिस स्त्री को पीरियड नहीं आते, वह  भी तनाव में रहती है और हर महिला को इसे सामान्य ढंग से ही लेना चाहिए न कि इसे एक पाप और टैबू मान कर अंधविश्वास में जिंदगी बसर करनी चाहिए.

Anupamaa के सेट पर पहुंचे Apurva Agnihotri, Photos Viral

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में इन दिनों उथल पुथल देखने को मिल रही हैं. जहां कहानी में वनराज घर छोड़कर चला गया है तो वहीं काव्या अनुपमा पर इल्जाम लगाने पर लगी हुई है. इसी बीच शो में डौक्टर आद्विक खन्ना के रोल में एक्टर अपूर्व अग्निहोत्री धमाकेदार एंट्री होने वाली हैं. इसी बीच सीरियल के सेट से कुछ फोटोज वायरल हो रही हैं, जिसमें उनके रोल का अंदाजा लगाया जा सकता है. आइए आपको दिखाते हैं वायरल फोटोज और वीडियो…

ऐसा होगा अपूर्व अग्निहोत्री का किरदार

सीरियल अनुपमा में अपूर्व अग्निहोत्री अनुपमा के बेस्टी डॉक्टर आद्विक खन्ना का किरदार निभाएंगे, जो अनुपमा और वनराज की जिंदगी में नया मोड़ लेकर आएगा. साथ ही इस कहानी में नया ट्विस्ट लेकर आएगा.

 

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सीरियल में ऐसा होगा लुक

हाल ही में अपूर्व अग्निहोत्री सीरियल अनुपमा की शूटिंग शुरू कर चुके हैं, जिसकी फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं.  वहीं इन फोटोज में एक्टर का लुक भी फैंस को काफी पसंद आ रहा है. कैजुअल लुक के साथ लंबे बालों में एक्टर अपूर्वा अग्निहोत्री फैंस का दिल जीत रहे हैं.

3 साल बाद करेंगे टीवी पर वापसी

 

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अपूर्व अग्निहोत्री ने गुजरात के सिलवासा में स्टार प्लस के नम्बर वन शो ‘अनुपमा’ की शूटिंग कर रहे हैं. सीरियल ‘अनुपमा’ के जरिए अपूर्व अग्निहोत्री लगभग तीन साल बाद टीवी पर कमबैक कर रहे हैं.

 

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आने वाले एपिसोड की बात करें तो वनराज को ढूंढने के लिए अनुपमा जी जान लगाती हुई नजर आ रही है, जिसके चलते वह डौक्टर आद्विक से मिलती हुई भी नजर आएगी. हालांकि दोनों की मुलाकात काफी एंटरटेनिंग होने वाली है, जिसका अंदाजा प्रोमो से लगाया जा सकता है.

Imlie: आदित्य के धोखे को सह नही पाएगी मालिनी, करेगी सुसाइड!

स्‍टार प्‍लस का सीरियल इमली इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में धमाल मचा रहा है. वहीं मेकर्स भी कहानी में नया ड्रामा लाने के लिए तैयार हैं. हाल ही में मीडिया के सामने इमली के सिंदूर लगाने और शादी का सच सामने आने के बाद शो में ड्रामा देखने को मिल रहा है. वहीं मालिनी को अब इमली और आदित्य के रिश्ते पर शक भी होने लगा है. लेकिन आने वाले एपिसोड में मालिनी एक बड़ा कदम उठाने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

इमली पर गुस्सा करती है मालिनी

अब तक आपने देखा कि कॉलेज में इमली के सिंदूर लगाने के कारण काफी बवाज देखने को मिलता है. वहीं मालिनी गुस्सा करते हुए इमली से भविष्‍य में कभी सिंदूर नहीं लगाने की चेतावनी देती नजर आती हैं. साथ इमली के बैग में सिंदूर की डिब्‍बी निकालकर मालिनी फेंक देती है, जिसके बाद इमली गिरे हुए सिंदूर को भरती है. लेकिन तभी आदित्‍य आता है और वह मालिनी पर गुस्‍सा करता है.

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मालिनी को होता है शक

 

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आदित्य का बार-बार इमली का साथ देना मालिनी के दिल में शक पैदा करता जा रहा है.  वहीं आने वाले एपिसोड में इस शक को अंजाम देखने को मिल सकता है. दरअसल, आने वाले एपिसोड में इमली, मालिनी से माफी मांगने के लिए जाएगा. लेकिन वह देखेगी कि फर्श पर खून पड़ा हुआ है. और मालिनी कुर्सी पर बैठी हुई होगी जहां वह अपने हाथ की नस काट लेगी. हालांकि यह इमली का सपना होगा या सच देखना दिलचस्प होगा.

 

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बता दें, जहां आदित्या का परिवार शादी से बेखबर है तो वहीं इमली की मां को आदित्य की पहली वाइफ यानी मालिनी के बारे में पता चल गया है. वहीं इसके कारण वह सुसाइड करने की कोशिश करती है. हालांकि गांव वाले उसे रोक लेते हैं. अब देखना है कि इमली की ये कहानी कौनसा नया मोड़ लेती है.

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महिला नेताएं महिलाओं के मुद्दे क्यों नहीं उठातीं

राजस्थान की सत्ता वसुंधरा राजे के हाथों से फिसल चुकी है और इसलिए फिलहाल सिर्फ़ पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है जहां एक महिला मुख्यमंत्री है और वह हैं ममता बनर्जी. जब कि कुछ साल पहले तक भारत के चारों कोनों में एकएक महिला मुख्यमंत्री थी. साल 2011 और साल 2014 में भारत के चार राज्यों की ज़िम्मेदारी महिला मुख्यमंत्रियों के हाथों में थी.

जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ़्ती, गुजरात में आनंदीबेन पटेल, राजस्थान में वसुंधरा राजे और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी. इस से पहले तमिलनाडु में जयललिता भी थीं. आजादी के बाद से अब तक भारत में कुल 16 महिला मुख्यमंत्री हुई हैं जिन में उमा भारती, राबड़ी देवी और शीला दीक्षित जैसे नाम शामिल हैं.

भले ही भारत में महिला मुख्यमंत्रियों की संख्या उंगलियों पर गिने जाने भर की रही हो मगर हम इस से इनकार नहीं कर सकते कि ममता बनर्जी , जयललिता और मायावती जैसी महिलाएं सबसे ताकतवर मुख्यमंत्रियों में से एक रही हैं. इन का कार्यकाल काफी प्रभावी रहा है. फिर चाहे वह तमिलनाडु में जयललिता की जनवादी योजनाएं हों या उत्तर प्रदेश में मायावती का कानून-व्यवस्था को काबू में करना और ममता का हर दिल पर राज करना.

मगर जब बात उन के द्वारा महिलाओं के हित में किये जाने वाले कामों की होती है तो हमें काफी सोचना पड़ता है. दरअसल इस क्षेत्र में उन्होंने कुछ याद रखने लायक किया ही नहीं. यह बात सिर्फ मुख्यमंत्रियों या प्रधानमंत्री के ओहदे पर पहुंची महिला शख्सियतों की ही नहीं है बल्कि हर उस महिला नेता की है जो सत्ता पर आसीन होने के बावजूद महिला हित की बातें नहीं उठातीं.

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एक सामान्य सोच यह है कि यदि महिलाएं शीर्ष पदों पर होंगी तो महिलाओं के हित में फैसले लेंगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. इंदिरा गांधी जब देश की प्रधानमंत्री थीं तब कोई क्रांति नहीं आ गई या जिन राज्यों में महिलाएं मुख्यमंत्री थीं वहां महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी हो गई ऐसा भी नहीं है. हम यह भी नहीं कह सकते कि पुरुष राजनेता महिलाओं के हक़ में फ़ैसले ले ही नहीं सकते. मगर इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मुद्दों को महिला नेताओं द्वारा उठाया जाना ज्यादा प्रभावी और बराबरी का हक़ देने वाला हो सकता है.

महिला और पुरुष जिन समस्याओं का सामना करते हैं, जिन्हें वे जीते हैं वो बिल्कुल अलग होती हैं. हाल ही में लोकसभा में सेरोगेसी बिल पास किया गया. संसद में 90 प्रतिशत सांसद पुरुष थे जो चाहकर भी गर्भधारण नहीं कर सकते. फिर भी, इन पुरुषों ने महिलाओं के शरीर को नियमित करने वाला बिल पास किया. हमारी नीतियां देश की 50 प्रतिशत आबादी यानी महिलाओं की जरूरतों से मेल नहीं खातीं. इसलिए हमें ऐसी महिला नेताओं की ज्यादा जरूरत है जो महिलाओं के मुद्दों को उठा सकें.

उदहारण के लिए राजस्थान में गांवों की महिलाएं पीढ़ियों से पानी की कमी का सामना कर रही हैं. लेकिन इन महिलाओं को राहत देने के लिए वहां की सरकार द्वारा कभी कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाया गया क्योंकि सरकार में कोई महिला मंत्री नहीं है. सच यह है कि महिला मंत्री ही महिलाओं की स्थिति में कुछ बदलाव ला सकती हैं क्योंकि वे औरतों की समस्या समझ पाती हैं.

महिलाओं को लगता कि महिला प्रतिनिधि को इसलिए चुनना चाहिए क्योंकि वो महिला मुद्दों को प्रमुखता देंगी या वो कम भ्रष्ट होंगी या ज़्यादा नैतिक होंगी मगर ऐसा होता नहीं.

हाल ही में जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं की रिप्पड जींस (Ripped Jeans) को ले कर एक विवादित बयान दिया तो राजनीतिक दलों की महिला नेताओं ने उन की जम कर क्लास लगाई. सपा सांसद जया बच्चन से ले कर तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने तीरथ सिंह रावत पर निशाना साधा. किसी ने सोच बदलने की नसीहत दी तो किसी ने उन के बयान को अमर्यादित बताया. सवाल उठता है कि क्या केवल इस तरह के छोटेमोटे मुद्दों पर बयानबाजी कर के ही महिला नेताओं के कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है? क्या महिलाओं से जुड़े गंभीर मुद्दों पर उन्हें ध्यान नहीं देना चाहिए?

महिलाओं में विश्वास पैदा करना जरूरी

महिला नेताओं द्वारा महिला सुरक्षा या सम्मान पर तो काफी बात की जाती है और यह जरूरी भी है लेकिन इस के साथ ही महिलाओं के कई अहम मुद्दे होते हैं जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. जरूरी है कि उन के अधिकारों की बात को शामिल किया जाए ताकि महिलाओं को लगे कि अब कोई आ गई है जो उन के लिए सोचेगी, उन की तकलीफ महसूस कर सकेगी. इस से वोट देने में भी उन की दिलचस्पी बढ़ेगी. उन्हें इस बात का एहसास होगा कि सरकार बनाने में उन का योगदान भी ज़रूरी है और वे अपनी पसंद की प्रतियोगी को आगे ला सकती हैं.

महिला नेताएं क्यों नहीं लेतीं महिलाओं के हित में फैसले?

दरअसल जब कोई महिला नेता बनने के मार्ग में आने वाली तमाम अड़चनें पार कर के राजनीति में ऊंचे पद पर पहुंचती है तो उस की प्रतियोगिता उन तमाम पुरुषों से होती है जो पहले से सत्ता में काबिज हैं और हर तरह के हथकंडे अपना कर अपना नाम बनाए रखने में सक्षम हैं. ऐसे में महिला नेताएं भी चुनाव जीतने के लिए वही हथकंडे अपनाने लगती हैं जो पुरुष अपनाते हैं. ऐसे में इस पूरी प्रक्रिया में महिलाओं के मुद्दे कहीं पीछे चले जाते हैं.

असली फ़र्क़ तब आएगा जब महिलाओं की संख्या में बड़ा अंतर आए. पुरुष अपनी बात मनवाने में इसलिए कामयाब होते हैं क्योंकि वो राजनीति में बहुसंख्यक हैं और महिलाएं अल्पसंख्यक हैं. जब अधिक महिलाएं सत्ता पर आसीन होंगी तो वे अपने मकसद को सही दिशा दे पाएंगी. उन्हें सत्ता खोने का उतना डर नहीं रह जाएगा.

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राजनीति में महिलाएं कम क्यों हैं?

स्वतंत्रता आंदोलनों के समय से ले कर आजाद भारत में सरकार चलाने तक में महिलाओं की राजनीतिक भूमिका अहम रही है. इस के बावजूद जब राजनीति में महिला भागीदारी की बात आती है तो आंकड़े बेहद निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं. बात एक्टिव पॉलिटिक्स की हो या वोटर्स के रूप में भागीदारी की, दोनों ही स्तर पर महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है. वैसे महिला वोटरों की स्थिति पहले से थोड़ी बेहतर हुई है. मगर विश्व स्तर पर भारत की पॉलिटिक्स में सक्रिय महिलाओं की दृष्टि से भारत 193 देशों में 141 वें स्थान पर ही है.

भारत में आजादी के बाद पहली केंद्र सरकार के 20 कैबिनेट मिनिस्ट्री में सिर्फ एक महिला, राजकुमारी अमृत कौर थीं जिन्हें स्वास्थ्य मंत्री का कार्यभार सौंपा गया था. लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में एक भी महिला को जगह नहीं दी गई. यहां तक कि इंदिरा गांधी के कैबिनेट में भी एक भी महिला यूनियन मिनिस्टर नहीं थीं. राजीव गांधी की कैबिनेट में सिर्फ एक महिला (मोहसिना किदवई) को शामिल किया गया. मोदी सरकार में महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है. लेकिन अभी भी स्थिति को पूरी तरह से बेहतर नहीं माना जा सकता है. महिला वोटरों की बात करें या महिला नेताओं की, कहीं न कहीं अभी भी घर के पुरुष उन के फैसलों को प्रभावित करते हैं.

अगर भारतीय राजनीति में सक्रिय महिलाओं को देखें तो उन में से ज्यादातर सशक्त राजनीतिक परिवारों से आती हैं. फिर चाहे वह इंदिरा गांधी हों या वसुंधरा राजे. ऐसी कई वजहें हैं जो महिलाओं को राजनीति में आने से रोकती हैं, मसलन इस क्षेत्र में सफल होने के लिए जेब में पैसे काफी होने चाहिए और जरुरत पड़ने पर हिंसा का रास्ता भी अख्तियार करने की हिम्मत होनी चाहिए. .

वैसे भी राजनीति एक मुश्किल पेशा है. इस में काफ़ी अनिश्चितताएं होती हैं. जब तक आप के पास कमाई का कोई ठोस और अतिरिक्त विकल्प न हो आप सक्रिय राजनीति में ज़्यादा समय तक नहीं टिक सकते. अगर हम मायावती और जयललिता का उदाहरण लें तो उनके पास कांशीराम और एमजीआर जैसे राजनीतिक गुरु थे जिन्होंने उन की आगे बढ़ने में मदद की थी.

यही नहीं महिलाओं को राजनीति में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में दोहरा काम करना पड़ता है. महिलाओं को पुरुषों के साथ कम्पटीशन देने के लिए ख़ुद को उन से बेहतर साबित करना पड़ता है.

एक्टिव पॉलिटिक्स में महिलाओं की स्थिति

वैसे एक्टिव पॉलिटिक्स में महिलाओं का टिकना भी आसान नहीं होता. उन की बुरी स्थिति के लिए ज़िम्मेदार सिर्फ राजनीतिक पार्टियों ही नहीं बल्कि हमारा समाज भी है जो महिलाओं को राजनीति में स्वीकारने को तैयार नहीं होता है. महिला नेताओं के प्रति लोगों की सोच आज भी संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त है. हमारे देश में महिलाएं अपने काम से ज्यादा वेशभूषा और लुक के लिए जानी जाती हैं. पुरुष सहयोगी समयसमय पर टीकाटिप्पणियां करने से बाज नहीं आते. प्रियंका गांधी अगर राजनीति में आती हैं तो उन के कपड़े से ले कर उन के नैन नक्श पर टिप्पणी की जाती है. प्रियंका को ले कर यह बातें भी खूब कहीं गईं कि खूबसूरत महिला राजनीति में क्या ही कर पाएगी.

वहीं शरद यादव का वसुंधरा राजे के मोटापे पर कमेंट करते हुए कहा था कि वसुंधरा राजे मोटी हो गई हैं, उन्हें आराम की ज़रूरत है. इस तरह की टिप्पणियों का क्या औचित्य? इसी तरह ममता बनर्जी, मायावती, सुषमा स्वराज से ले कर तमाम उन महिला राजनीतिज्ञ को इस तरह के कमेंट्स झेलने पड़ते हैं. उन की किसी भी विफलता पर उन के महिला होने के एंगल को सामने ला दिया जाता है जबकि विफलता एक पुरुष राजनीतिज्ञ को भी झेलनी पड़ती है.

लोगों को लगता है कि महिला कैंडिडेट के जीतने की उम्मीद बहुत कम होती है. उन के मुताबिक़ महिलाएं अपने घरेलू काम के बीच राजनीति में एक पुरुष के मुकाबले समय नहीं दे पाती हैं. लोगों को ऐसा भी लगता है कि महिलाओं को राजनीतिक समझ कम होती है इसलिए अगर वे जीत कर भी आती हैं तो महिला विभाग, शिशु विभाग जैसे क्षेत्र तक सीमित रखा जाता है. मगर हम निर्मला सीतारमण, शीला दीक्षित, ममता बनर्जी जैसी महिला नेताओं की तरफ देखें तो ये बातें निराधार महसूस होंगी.

देखा जाए तो एक महिला कैंडिडेट को अपने क्षेत्र में एक पुरुष कैंडिडेट के मुकाबले ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है. शायद यही सारी वजहें हैं कि वे अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए महिला मुद्दों के बजाए दूसरे अधिक प्रचारित मुद्दों पर नजर बनाए रख कर खुद को सुरक्षित रखने का प्रयास करती हैं.
महिला नेताओं को वैसे भी अपनी सुरक्षा के मामले में खासकर सतर्क रहना पड़ता है.

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी

प्यू रिसर्च सेंटर के एक विश्लेषण के अनुसार ऐसी 15 महिलाएं हैं जो अपने देश की सत्ता की ताकत हैं और उन में से 8 देश की पहली महिला नेता हैं. लेकिन इस का मतलब यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में महिला नेताओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है.

सवाल यह भी उठता है कि क्या ये महिला नेताएं बाधाओं को तोड़ रही हैं और क्या ये दूसरी महिलाओं को साथ ले कर आ रही हैं? उन के हित की बातों को लोगों के सामने ला रही हैं? अधिक कुछ नहीं मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये प्रेरणा स्रोत जरूर बन रही हैं.

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दरअसल महिला नेताओं के पास नीतियों के ज़रिए महिलाओं और लड़कियों की परिस्थितियां बदलने का मौका अधिक नहीं होता है लेकिन उन की मौजूदगी युवा महिलाओं में प्रेरणास्रोत का काम करती हैं. 2012 का एक स्विस अध्ययन भी यह बताता है कि ये आम महिलाओं को प्रेरणास्रोत के रूप में प्रभावित और प्रेरित करती हैं.

चार समूहों में वर्चुअल रियलिटी वातावरण में छात्र और छात्राओं को भाषण के लिए बुलाया गया था. इन में से एक समूह को जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल की तस्वीर, दूसरे को हिलेरी क्लिंटन, तीसरे को बिल क्लिंटन और एक अन्य को कोई तस्वीर नहीं दिखाई गई थी. जिन महिलाओं ने सफल महिला नेताओं की तस्वीर देखी वे उन के मुकाबले अधिक बोलीं साथ ही उन का प्रदर्शन अच्छा रहा. जिन को पुरुष नेता या कोई तस्वीर नहीं दिखाई गई थी उन का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा.

6 टिप्स: पैसा रखें नहीं, निवेश करें

मौजूदा दौर में पैसों को सैकंड गौड कहा जाता है. यानी, पैसा है तो आप के पास काफीकुछ है. सैकंड गौड और काफीकुछ होने के बावजूद इसे रखे न रहें, वरना घाटे में रहेंगे. इसे निवेश करेंगे, तो ही फायदे में रहेंगे.

पैसों के रखने से मतलब सिर्फ घर में रखने से नहीं है, बैंक आदि में भी रखे रहने से है. चौंकिए नहीं, बचत खाते में पैसों के जमा रहने का मतलब रखा रहना ही होता है जबकि निवेश का मतलब और.

निवेश या विनियोग यानी इन्वैस्टमैंट का मतलब होता है अपने पैसों को ऐसी जगह लगाना जिस से कि लगाए हुए पैसों से भविष्य में अधिक पैसे मिल सकें. इन्वैस्ट करने वाले को जितने पैसे अधिक मिलते हैं, उन्हें निवेश पर प्राप्त प्रौफिट यानी लाभ कहा जाता है. और जो निवेश करता है उसे निवेशक या इन्वैस्टर कहा जाता है.

आप के पास पैसा है, कमाया हुआ है, बचत किया हुआ है या कहीं से मिला है और उस को इन्वैस्ट करना चाहते हैं तो इस के कई विकल्प मौजूद हैं. यहां देश की श्रेष्ठ 6 निवेश योजनाओं के बारे में जानकारी दी जा रही है.

ये ऐसी योजनाएं हैं जो दीर्घकालिक निवेश व बेहतर लाभ के लिए अच्छी तरह जानी जाती हैं.

1. सुकन्या समृद्धि योजना (एसएसवाई) :

मातापिता को अपनी बेटियों के भविष्य को सुरक्षित करने को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सुकन्या समृद्धि योजना शुरू की गई. यह योजना वर्ष 2015 में देश के प्रधानमंत्री द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत शुरू की गई थी. यह योजना नाबालिग बालिकाओं की ओर लक्षित है.

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एसएसवाई खाता जन्म से ले कर 10 वर्ष की आयु से पहले किसी भी समय लड़की के नाम से खोला जा सकता है. इस योजना के लिए न्यूनतम निवेश राशि 1,000 रुपए से अधिकतम 1.5 लाख रुपए सालाना है. सुकन्या समृद्धि योजना 21 वर्षों तक संचालित होती है.

2. राष्ट्रीय पैंशन योजना (एनपीएस) :

केंद्र सरकार की महत्त्वपूर्ण योजनाओं में से एक राष्ट्रीय पैंशन योजना या एनपीए है. यह सभी भारतीयों के लिए एक सेवानिवृत्ति बचत योजना है, लेकिन सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है. एनपीएस का उद्देश्य भारत के नागरिकों को सेवानिवृत्ति आय प्रदान करना है. 18 से 60 आयुवर्ग के भारतीय नागरिक और अनिवासी भारतीय इस योजना के लिए सदस्यता ले सकते हैं.

एनपीएस योजना के तहत आप अपने फंड को इक्विटी, कौर्पोरेट बौंड, सरकारी प्रतिभूतियों में आवंटित कर सकते हैं. 50,000 रुपए तक का निवेश आयकर कानून की धारा 80 सीसीडी (1 बी) के तहत कटौती के लिए उत्तरदायी हैं. आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1,50,000 रुपए तक का अतिरिक्त निवेश कटौतीयोग्य है.

3. सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) :

सरकार द्वारा शुरू की गईं सब से पुरानी योजनाओं में से एक सार्वजनिक भविष्य निधि या पीपीएफ है. इस योजना में निवेश की गई राशि, अर्जित ब्याज और निकाली गई राशि सभी को कर से छूट प्राप्त है. इस प्रकार, सार्वजनिक भविष्य निधि योजना न केवल सुरक्षित है, बल्कि एक ही समय में करों को बचाने में आप की मदद कर सकती है. योजना की मौजूदा ब्याजदर 7 फीसदी है. पीपीएफ में निवेश करने वाला कोई भी आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1,50,000 रुपए तक की कटौती का दावा कर सकता है.

4. राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) :

भारतीयों में बचत की आदत को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र या एनएससी को शुरू किया. इस योजना के लिए न्यूनतम निवेश राशि 100 रुपए है और अधिकतम निवेश राशि की सीमा नहीं है. एनएससी की ब्याजदर हर साल बदलती है. आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत 1.5 लाख रुपए की करकटौती का दावा किया जा सकता है. केवल भारत के निवासी इस योजना में निवेश करने के लिए पात्र हैं.

5. अटल पैंशन योजना (एपीवाई) :

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई अटल पैंशन योजना या एपीवाई एक सामाजिक सुरक्षा योजना है. एक वैध बैंकखाते के साथ 18-40 वर्ष की आयु का भारतीय नागरिक एपीवाई के लिए आवेदन करने के लिए पात्र है.

कमजोर वर्ग के व्यक्तियों को पैंशन का विकल्प देने को प्रोत्साहित करने के लिए अटल पैंशन योजना शुरू की गई है, जिस से उन्हें वृद्धावस्था के दौरान लाभ होगा. यह योजना किसी के द्वारा भी ली जा सकती है. यह स्वनियोजित है. कोई बैंक या डाकघर में एपीवाई के लिए नामांकन कर सकता है. हालांकि, इस योजना में एकमात्र शर्त यह है कि योगदान 60 वर्ष की आयु तक किया जाना चाहिए.

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6. प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) :

सौफीसदी देशवासियों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री जनधन योजना शुरू की. सरकार ने समाज के गरीब और जरूरतमंद वर्गों को बचत और जमा खाते, प्रेषण, बीमा, क्रेडिट, पैंशन जैसी वित्तीय सेवाओं तक आसान पहुंच प्रदान करने का लक्ष्य रखा है.

नाबालिग के लिए इस योजना में न्यूनतम आयुसीमा 10 वर्ष है. अन्यथा, 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी भारतीय निवासी इस खाते को खोलने के लिए पात्र है. एक व्यक्ति केवल 60 वर्ष की आयु तक पहुंचने के बाद इस योजना से बाहर निकल सकता है.

कुल मिला कर, निवेश आने वाले समय के लिए, भविष्य के लिए बहुत ही फलदायी होता है. आड़े वक्त में परिवार को इस से महत्त्वपूर्ण मदद मिलती है. निवेश कर के इंसान अपनी जरूरतों को खुद ही पूरी करने के साथसाथ अपने बुढ़ापे को सुरक्षित भी रख सकता है. सो, निवेश करना हरेक के लिए अनिवार्य है.

ट्रोलिंग के बाद Rubina Dilaik ने कराया नया फोटोशूट, Photos Viral

BIGG BOSS 14 की विनर रह चुकीं एक्ट्रेस रुबीना दिलैक (Rubina Dilaik)इन दिनों सीरियल ‘शक्ति अस्तित्व के एहसास की’ (Shakti Astitva Ke Ehsaas Ki) के जरिए खबरों में छाई हुई हैं. हालांकि इस दौरान अपने फैशन के चलते ट्रोलिंग का शिकार भी हुई हैं. लेकिन अपने फैंस को मनाने के लिए हाल ही में उनका लुक सोशलमीडिया पर धमाल मचा रहा है. रुबीना दिलैक का लेटेस्ट फैशन समर कलेक्शन के लिए परफेक्ट औप्शन साबित हो सकता है. तो आइए आपको दिखाते हैं रुबीना दिलैक के लेटेस्ट फैशन की कुछ फोटोज…

फ्लोरल पैटर्न में छाया रुबीना का लुक

रुबीना दिलैक का नया फोटोशूट फैंस के बीच छाया हुआ है. दरअसल, हाल ही में रुबीना दिलैक अपने रिप्ड जीन्स फैशन के चलते ट्रोलर्स के निशाने पर आ गई थीं. हालांकि अब उनका नया लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है. फ्लोरल पैटर्न वाली पैंट और कोट रुबीना के नए लुक पर चार चांद लगा रहा है. वहीं इस लुक की बात करें तो यह समर कलेक्शन के लिए ट्रैंडी आउटफिट में से एक है.

 

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 साड़ी में दिखा अलग लुक

 

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जहां सूट में एक्ट्रेस रुबीना दिलैक मौर्डन और स्टाइलिश लग रही हैं तो वहीं फ्लोरल पैटर्न साड़ी में रुबीना का लुक महिलाओं के पार्टी कलेक्शन के लिए बेस्ट लुक लग रहा है.  ‘शक्ति अस्तित्व के एहसास की’ की सौम्या का ये लुक फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

ड्रैस में दिखीं खूबसूरत

 

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सूट और साड़ी के अलावा रुबीना दिलैक का ब्लैक ड्रैस में ये लुक फैंस का दिल जीत रहा है. प्लेन लौंग बौडी फिट ड्रैस आपके लिए समर आउटिंग के लिए अच्छा औप्शन है. इसे आप समर कलेक्शन में जोड़ सकते हैं.

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सौम्या के अवतार में फैंस करते हैं पसंद

 

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‘शक्ति अस्तित्व के एहसास की’ के सौम्या का लुक आज भी फैंस के दिल में बसा हुआ है. वहीं हाल ही में शो में दोबारा एंट्री करने के बाद रुबीना दिलैक का ये लुक देखने को मिला. रफ्फल पैटर्न के साथ फ्लफी कौम्बिनेशन वाला ब्लाउज और उसके साथ फ्लोरल प्रिंटेड साड़ी रुबीना दिलैक के लुक को और भी खूबसूरत बना रही थी.

Serial Story: कभी-कभी ऐसा भी… – भाग 3

उस के बेढंगे बोलने के अंदाज पर मुझे बहुत ताव आया और बोली, ‘‘इंस्पेक्टर, कुछ इनसानियत के रिश्ते हर धर्म, हर जाति से बड़े होते हैं. वक्त पड़ने पर जो आप के काम आ जाए, आप का सहारा बन जाए, बस उस मानवतारूपी धर्म और जाति का ही रिश्ता सब से बड़ा होता है. कुछ दिन पहले मैं एक मुसीबत में फंस गई थी, उस समय मेरी मदद करने को तत्पर इन लड़कों ने मुझ से मेरी जाति और धर्म नहीं पूछा था. इन्होंने मुझ से तब यह नहीं कहा था कि अगर आप मुसलिम होंगी तभी हम आप की मदद करेंगे. इन्होंने महज इनसानियत का धर्म निभाया था और मुश्किल में फंसी मेरी मदद की थी.’’

‘‘इंस्पेक्टर साहब, शायद मेरी समझ से जो इस धर्म को अपना ले, वह इनसान सच्चा होता है, निर्दोष होता, बेगुनाह होता है, गुनहगार नहीं. उस वक्त अपनी खुशी से मैं ने इन्हें कुछ देना चाहा तो इन्होंने लिया नहीं और आप कह रहे हैं कि…’’

मेरी उन बातों का शायद उन पुलिस वालों पर कुछ असर पड़ा. लड़के भी मेरी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे थे. एक बोला, ‘‘मैडम, आप बचा लीजिए हमें. यह जबरदस्ती की पकड़ हमारी जिंदगी बरबाद कर देगी.’’

मैं ने भरोसा दिलाते हुए उन से कहा, ‘‘डोंट वरी, कुछ नहीं होगा तुम लोगों को. अगर उस दिन मैं ने तुम्हें न जाना होता और तुम ने मेरी मदद नहीं की होती तो शायद मैं भी कुछ नहीं कर पाती लेकिन किसी की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल तो मिलता ही है. इसीलिए कहते हैं न कि जिंदगी में कभीकभी मिलने वाले ऐसे मौकों को छोड़ना नहीं चाहिए. अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि आप के हाथों किसी का भला हो जाए.’’

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मेरी बातों के प्रभाव में आया एक पुलिस वाला नरम लहजे में बोला, ‘‘देखिए मैडम, इन लड़कों को उस पर्स वाली मैडम ने पकड़वाया है. अब अगर वह अपनी शिकायत वापस ले लें तो हम इन्हें छोड़ देंगे. नहीं तो इन्हें अंदर करने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.’’

‘‘तो वह मैडम कहां हैं? फिर उन से ही बात करते हैं,’’ मैं ने तेजी से कहा. ऐसा लग रहा था जैसे कि कुछ अच्छा करने के लिए ऊर्जा अंदर से ही मिल रही थी और रास्ता खुदबखुद बन रहा था.

‘‘वह तो इन लोगों को पकड़वा कर कहीं चली गई हैं. अपना फोन नंबर दे गई हैं, कह रही थीं कि जब ये उन के पर्स के बारे में बता दें तो आ जाएंगी.’’

‘‘अच्छा तो उन्हें फोन कर के यहां बुलाइए. देखते हैं कि वह क्या कहती हैं? उन से ही अनुरोध करेंगे कि वह अपनी शिकायत वापस ले लें.’’

पुलिस वाले अब कुछ मूड में दिख रहे थे. एक पुलिस वाले ने फोन नंबर डायल कर उन्हें थाने आने को कहा.

फोन पहुंचते ही वह मैडम आ गईं. उन्हें देखते ही मेरे मुंह से निकला, ‘‘अरे, मिसेज सान्याल…’’ वह हमारे आफिसर्स लेडीज क्लब की प्रेसीडेंट थीं और मैं सेके्रटरी. इसी चक्कर में हम लोग अकसर मिलते ही रहते थे. आज तो इत्तफाक पर इत्तफाक हो रहे थे.

मुझे थाने में देख कर वह भी चौंक गईं. बोलीं, ‘‘अरे पूरबी, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मिसेज सान्याल, मेरी गाड़ी को पुलिस वाले बाजार से उठा कर थाने लाए थे, उसी चक्कर में मुझे यहां आना पड़ा. पर ये लड़के, जिन्हें आप ने पकड़वाया है, असली मुजरिम नहीं हैं. आप देखिए, क्या इन्होंने ही आप का पर्स झपटा था.’’

‘‘पूरबी, पर्स तो वे मेरा पीछे से मेरे कंधे पर से खींच कर तेजी से चले गए थे. एक बाइक चला रहा था और दूसरे ने चलतेचलते ही…’’ इत्तफाक से मेरे पीछे से एक पुलिस जीप आई, जिस में ये दोनों पुलिस वाले बैठे थे. मेरी चीख सुन के इन्होंने मुझे अपनी जीप में बिठा लिया. तेजी से पीछा करने पर बाइक पर सवार ये दोनों मिले और बस पुलिस वालों ने इन दोनों को पकड़ लिया. मुझे लगा भी कि ये दोनों वे नहीं हैं, क्योंकि इतनी तेजी में भी मैं ने यह देखा था कि पीछे बैठने वाले के, जिस ने मेरा पर्स झपटा था, घुंघराले बाल नहीं थे, जैसे कि इस लड़के के हैं. वह गंजा सा था और उस ने शाल लपेट रखी थी, जबकि ये लड़के तो जैकेट पहने हुए हैं.

‘‘इन पुलिस वाले भाईसाहब से मैं ने कहा भी कि ये लोग वे नहीं हैं मगर इन्होंने मेरी सुनी ही नहीं और कहा कि अरे, आप को ध्यान नहीं है, ये ही हैं. जब मारमार के इन से आप का कीमती पर्स निकलवा लेंगे न तब आप को यकीन आएगा कि पुलिस वालों की आंखें आम आदमी से कितनी तेज होती हैं.’’

फिर मिसेज सान्याल ने तेज स्वर में उन से कहा, ‘‘क्यों, कहा था कि नहीं?’’

पुलिस वालों से तो कुछ कहते नहीं बना, लेकिन बेचारे बेकसूर लड़के जरूर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए बोले, ‘‘मैडम, अगर हम आप का पर्स छीन कर भागे होते तो क्या इतनी आसानी से पकड़ में आ जाते. अगर आप को जरा भी याद हो तो आप ने देखा होगा कि मैं बहुत धीरेधीरे बाइक चला रहा था क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही मेरे हाथ में फ्रैक्चर हो गया था. आप चाहें तो शहर के जानेमाने हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. संजीव लूथरा से पता कर सकते हैं, जिन्होंने मेरा इलाज किया था.

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‘‘हम दोनों यहां के एक मैनेजमेंट कालिज से एम.बी.ए. कर रहे हैं. आप चाहें तो कालिज से हमारे बारे में सबकुछ पता कर सकती हैं. इंस्पेक्टर साहब, आप की जरा सी लापरवाही और गलतफहमी हमारा कैरियर चौपट कर देगी. देश का कानून और देश की पुलिस जनता की रक्षा के लिए है, उन्हें बरबाद करने के लिए नहीं. हमें छोड़ दीजिए, प्लीज.’’

अब बात बिलकुल साफ हो चुकी थी. पुलिस वालों की आंखों में भी अपनी गलती मानने की झलक दिखी. मिसेज सान्याल ने भी पुलिस से अपनी शिकायत वापस लेते हुए उन लोगों को छोड़ देने और असली मुजरिम को पकड़ने की प्रार्थना की. मुझे भी अपने दिल में कहीं बहुत अच्छा लग रहा था कि मैं ने किसी की मदद कर एक नेक काम किया है.

सचमुच, जिंदगी में कभीकभी ऐसे मोड़ भी आ जाते हैं जो आप के जीने की दिशा ही बदल दें. पुलिस के छोड़ देने पर वे दोनों लड़के वाकई मेरे भाई जैसे ही बन गए. बाहर निकलते ही बोले, ‘‘आप ने पुलिस से हमें बचाने के लिए अपना भाई कहा था न, आज से हम आप के बस भाई ही हैं. अब आप को हम मैडम नहीं ‘दीदी’ कहेंगे और हमारे अलगअलग धर्म कभी हमारे और आप के पाक रिश्ते में आड़े नहीं आएंगे. हमारा मोबाइल नंबर आप रख लीजिए, कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय अच्छीबुरी कोई बात हो, अपने इन भाइयों को जरूर याद कर लेना दीदी, हम तुरंत आप की सेवा में हाजिर हो जाएंगे.’’

उन का मोबाइल नंबर अपने मोबाइल में फीड कर के मैं मुसकरा दी थी और अपनी पकड़ी गई गाड़ी को ले कर घर आ गई. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत में मेरे साथ हुआ, लग रहा था कि जैसे किसी फिल्म की शूटिंग देख कर आ रही हूं. घर पहुंच कर, इत्मीनान से चाय के सिप लेती हुई श्रेयस को फोन किया और सब घटना उन्हें सुनाई तो खोएखोए से वह भी कह उठे, ‘‘पूरबी, होता है, कभीकभी ऐसा भी जिंदगी में…’’

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