5 लिपस्टिक ब्रैंड्स जो हैं बजट फ्रैंडली 

लिपस्टिक के बिना परफेक्ट आउटफिट भी अधूराअधूरा सा लगता है. तभी तो सदियों से महिलाएं लिप्स को रंगने के लिए अलगअलग तकनीक अपनाती रही हैं. क्योंकि भले ही आपने मेकअप हलका किया हो , लेकिन अगर लिप्स पर लिपस्टिक लगा ली, तो चेहरा खिल उठता है. यहीं नहीं आज अनेक ब्रैंड्स न सिर्फ लिपस्टिक को सिर्फ लिप्स को रंगने के उद्देश्य से डिज़ाइन कर रहे हैं , बल्कि लिपस्टिक्स में ऐसे इंग्रीडिएंट्स भी डाले जा रहे हैं , जिससे लिप्स की स्किन एक्सफोलिएट होने के साथ लिप्स हाइड्रेट भी रहते हैं. और ड्राई लिप्स की प्रोब्लम भी दूर हो जाती है. आज लिपस्टिक के ढेरों विकल्प उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी चोइज के हिसाब से खरीद सकती हैं. ऐसे में हम आपको टॉप 5 लिपस्टिक के ब्रैंड्स के बारे में बताते हैं , जिससे आपके लिप्स को ग्लैमर मिलने के साथसाथ प्रोटैक्शन भी मिलेगा .

1. लैक्मे  

लैक्मे, जो एक लक्ज़री ब्रैंड हैं. ये पौकेट फ्रैंडली होने के साथसाथ स्किन फ्रैंडली भी है. साथ ही लौंग लास्टिंग होने के साथसाथ आपके लिप्स को किसी भी तरह से कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है. इसमें लैक्मे एनरिच , लैक्मे अब्सोल्युट, लक्मे 9 टू 5 , लक्मे लिप पॉउट काफी रेंज हैं.  जो क्रीमी, ग्लोसी , शिमरी, मैट सभी फोर्म्स में उपलब्ध हैं. खास बात यह है कि इसमें से कुछ लिपस्टिक प्राइमर बेस्ड भी हैं , जो लिप्स को कलर करने के साथ प्रोटेक्ट करने का भी  काम करती हैं . ये आपको मार्केट में 300 रुपए से 1500 रुपए के बीच मिल जाएंगी. इसमें आपको हर शेड मिल जाएंगे. जिन्हें  आप लैक्मे स्टोर या फिर ऑनलाइन आसानी से खरीद सकती हैं.

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2. लोरियल पेरिस 

भारत में  लोरियल पेरिस का ब्यूटी प्रोडक्ट्स की दिशा में खासा नाम है. खासकर लिपस्टिक के मामले में. क्योंकि ये कस्टमर्स की डिमांड को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट्स को मार्केट में उतारती है. प्रोडक्ट क्वालिटी के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं किया जाता. इस ब्रैंड में आपको लिपस्टिक के अधिकतर शेड्स मिल जाएंगे. ये ब्रैंड लगभग हर फोर्मेट में लिपस्टिक जैसे लिक्विड, ग्लॉसी, मैट , बुलेट्स , मेल्टी बाम  में उपलब्ध करवाता है . बस जो आपकी चोइज हो, उसके अनुसार आप लिपस्टिक के टाइप व कलर शेड को चूज़ कर सकती हैं. ये आपको मार्केट से 400 से 2000 रुपए के बीच आसानी से मिल जाएंगी.

3. नायका 

भले ही ये ब्रैंड ज्यादा पुराना नहीं है, लेकिन इस ब्रैंड ने कम समय में अपने कस्टमर्स के दिलों पर ऐसी छाप छोड़ दी है, कि ये अब लोगों का पसंदीदा ब्रैंड बनता जा रहा है. ये आपको लिपस्टिक क्रीमी मैट , मैट, अल्ट्रा मैट ,  लिप क्रेयॉन, लिप प्लैट, लिक्विड, मिनी लिपस्टिक सभी में उपलब्ध करवाता है. इस ब्रैंड की खास बात यह है कि 100 पर्सेंट क्रुएल्टी और पैरेबिन फ्री है. साथ ही ये एसेंशियल आयल व एन्टिओक्सीडैंट्स में रिच होने के कारण आपके लिप्स को सोफ्ट , हाइड्रेट रखने के कारण उनकी ड्राईनेस को दूर करने का काम करता है. इनकी लिपस्टिक्स इतनी लाइटवेट होती हैं  कि लगाने के बाद आपको एहसास भी नहीं होगा कि आपने कुछ लगाया हुआ है. ये आपको 200 – 1000 रुपए के बीच आसानी से  मिल जाएंगी.

4. मैक 

कोस्मेटिक लेने की बात हो और मैक ब्रैंड का ध्यान न आए , ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि ये ब्रैंड है ही इतना विश्वसनीय.  डर्माटोलॉजिस्ट टेस्टेड होने के साथ इस ब्रैंड की लिपस्टिक्स आपके लिप्स को पूरे दिन मॉइस्चरिजे रखने का काम करती हैं . इसलिए अगर आप लिप्स की ड्राईनेस की समस्या से परेशान हैं और लिप्स को खूबसूरत भी दिखाना चाहती हैं तो आप इसे जरूर टाई करें. ये आपको साटिन , फ्रोस्ट , लस्टर , मैट, रेट्रो मैट , लिक्विड फोर्म सब में मिल जाएंगी. साथ ही ये बजट फ्रैंडली भी हैं , क्योंकि ये लंबे समय तक स्टे रहने के साथसाथ लंबे समय तक चलती जो हैं.

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5. बोडी शौप 

इसके प्रोडक्ट्स अपने काम के कारण नाम कमा रहे हैं. फिर चाहे इस ब्रैंड्स की लिपस्टिक की बात हो या फिर अन्य ब्यूटी प्रोडक्ट्स की, काफी डिमांड में रहते हैं. इसकी लिपस्टिक में  मैट लिपस्टिक, ग्लोसी लिपस्टिक, लिक्विड फॉर्म,  ग्लोसेस , लिप स्टैन आदि उपलब्ध हैं. ये पूरी तरह से क्रुएल्टी फ्री व नेचुरल हैं , जिससे लिप्स को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है. तो फिर अपने लिप्स को खूबसूरत बनाने के लिए इन्हें टाई करना न भूलें.

कदम बढ़ाइए जिंदगी छूटने न पाए

‘‘सुबह की सैर के बारे में आप का क्या खयाल है?’’

‘‘सैर, वह भी सुबह की… अरे, समय ही नहीं मिलता…’’

किसी भी महिला से पूछ कर देखिए, यही जवाब मिलेगा. अगर आप का भी यही जवाब है तो यह लेख आप के ही लिए है.

‘जीवन चलने का नाम… चलते रहो सुबहोशाम…’ 70 के दशक की हिंदी फिल्म ‘शोर’ के इस लोकप्रिय गीत में जैसे जीने का सार छिपा है. जी हां, चलना ही जीवन की निशानी है. जब तक कदम चलेंगे तब तक जिंदगी चलेगी.

आज की इस अतिव्यस्त जीवनशैली में हम जैसे चलना भूल ही गए हैं. हमें खुद से ज्यादा मशीनों पर भरोसा होने लगा है. मशीनें हमारी मजबूती नहीं, बल्कि मजबूरी बन गई हैं. इन पर हमारी निर्भरता इतनी अधिक हो गई है कि हम ने अपनी निजी मशीन यानी शरीर की साजसंभाल लगभग बंद ही कर दी है. नतीजा, इस कुदरती मशीन को जंग लगने लगा है, इस के पार्ट्स खराब होने लगे हैं.

बस इतना ध्यान रखें

आज के इस दौर में लगभग हर वह व्यक्ति जो 40 पार जाने लगा है, किसी न किसी शारीरिक परेशानी से जूझ रहा है. कई बीमारियां जैसे मानसिक तनाव, दिल की बीमारियां आदि तो 40 की उम्र का भी इंतजार नहीं करतीं. बस, जरा सी लापरवाही की नहीं की व्यक्ति को तुरंत अपनी गिरफ्त में ले लेती है.

डायबिटीज, रक्तचाप, थायराइड, मानसिक तनाव हो या गर्भावस्था, डाक्टर सब से पहले मरीज को सुबहशाम घूमने की सलाह देते हैं. यह सब से सस्ता और आसान व्यायाम है, जिसे किसी भी उम्र का व्यक्ति कर सकता है. कहते हैं कि सुबह की सैर व्यक्ति को दिनभर ऊर्जावान रखती है, मगर यदि किसी कारणवश सुबह सैर का वक्त न मिले तो शाम को भी की जा सकती है. बस, इतना ध्यान रखें कि दोपहर के भोजन और सैर के बीच कम से कम 3-4 घंटे का अंतराल अवश्य रखें.

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नियमित सैर के शारीरिक फायदे

– सैर करने से हड्डियां मजबूत होती हैं. जोड़ों और मांसपेशियों को नई ऊर्जा मिलती है.

– रक्त प्रवाह सही रहता है जो हृदय को स्वस्थ रखता है.

– पाचनतंत्र मजबूत होता है.

– रक्त में शर्करा का स्तर सामान्य रखने में भी सैर बहुत लाभदायक है.

– मोटापा कम होता है. शरीर स्वस्थ और आकर्षक रहने से आत्मविश्वास बढ़ता है.

– दिमाग तरोताजा और क्रियाशील रहता है.

– आसपास दिखने वाली हरियाली आंखों को सुकून और ठंडक देती है.

नियमित सैर के सामाजिक फायदे

सैर करने के कई सामाजिक फायदे भी हैं, मगर इस का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप अपनी सैर भूल कर गप्पबाजी करने लगें. इस के लिए सैर करने के बाद कुछ समय पार्क में शांति से बैठें, प्रकृति को नजदीक से महसूस करें और अपने आसपास के माहौल में घुलनेमिलने का प्रयास करें.

– यदि आप नियमित सैर पर जाती हैं तो बहुत से नए लोगों से आप की जानपहचान बनती है और आप का सामाजिक दायरा विस्तृत होता है.

– आसपास की वे ताजा खबरें मिल जाती हैं, जो सामान्यता अखबार में नहीं होतीं.

– विचारों का आदानप्रदान होने से नए विचार जगह बनाते हैं और आप की क्रियाशीलता बढ़ती है.

– जानेअनजाने कई सामाजिक समस्याओं के समाधान मिल जाते हैं.

– कई बार आपसी जानपहचान रिश्तेदारी में भी बदल जाती है.

– यदि आप क्रियाशील व्यक्तित्व की स्वामिनी हैं तो नियमित सैर करना आप के लिए किसी वरदान से कम नहीं. सैर करते समय दिमाग बहुत क्रियाशील रहता है

और आप को बहुत से नए आइडियाज आ सकते हैं जो आप की क्रियाशीलता को बढ़ाएंगे.

हालांकि सैर करना सब से आसान व्यायाम कहलाता है मगर फिर भी ये सावधानियां रखना अतिआवश्यक है:

सैर के दौरान क्या करें

– सैर करने का समय निश्चित रखें और इस का पालन करें.

– सैर चाहे सुबह हो या शाम, हमेशा आरामदायक जूते पहन कर ही करें.

– इस दौरान पहने जाने वाले कपड़े भी आरामदायक होने चाहिए.

– सैर के लिए किसी हरियाली वाली जगह को ही चुनें. हरेभरे पार्क आप को अपनी सैर नियमित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

– सैर करते समय थोड़ी गहरी सांसें लें.

– यदि लंबी सैर करनी हो तो अपने साथ पानी की बोतल अवश्य रखें.

– सैर के समय पेट खाली रखें.

– सर्दियां हों तो आवश्यक गरम कपड़े पहन कर सैर पर जाएं.

– अतिआवश्यक कार्य निबटा कर सैर पर निकलें ताकि दिमाग व्यर्थ में उल?ो नहीं.

सैर के दौरान क्या न करें

– पहले ही दिन ज्यादा सैर करने की न सोचें अन्यथा अधिक थकान होने से आगे के लिए उत्साह मंद पड़ सकता है.

– सैर न करने के बहाने न खोजें

– सैर करते समय बातें न करें.

– सैर करते समय पहने जाने वाले कपड़े न तो अधिक ढीले हों और न ही ज्यादा कसे हुए.

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– सैर करने के लिए ऐसी जगह न चुनें, जिस  में घुमाव या मोड़ अधिक हों. जगह समतल और एकसार होनी चाहिए ताकि गति में लय बनी रहे.

– सैर करते समय मुंह से सांस न लें.

– इयरफोन लगा कर गाने सुनें, मगर आवाज तेज न रखें.

– शारीरिक चोट के दौरान सैर करने से बचें.

दोस्ती को चालाकियों और स्वार्थ से रखें दूर

रमा उत्तर भारत से  मुंबई में नयी नयी आयी थी, वह एक ब्यूटी पार्लर में गयी तो वहां उसे एक दूसरी महिला भी अपने नंबर का इंतज़ार करती मिली, रमा की साफ़ हिंदी सुनकर उस महिला ने बात शुरू की,” आप भी नार्थ  इंडियन हैं?”

रमा ने कहा,”जी,आप भी?”

”हाँ,मेरा नाम अंजू है,मैं दिल्ली से हूं,आप कहाँ से हैं?”

”मेरठ से.‘’

दोनों में बातें शुरू हो गयीं, अंजू ने बहुत सारी बातें शुरू कीं,बताया कि वह घर में ही सूट बेचने के लिए रखती है ,उसे कुछ काम करना पसंद है, ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं है, नौकरी तो मिल नहीं सकती, तो इस काम को वह एन्जॉय करती है और उसका काम अच्छा चलता है.‘’

अंजू ने वहीँ बैठे बैठे रमा से उसका फोन नंबर और घर का पता लिया जो रमा ने ख़ुशी ख़ुशी दिया, वह भी खुश थी कि आते ही अपने एरिया की हिंदी बोलने वाली एक फ्रेंड बन गयी, दूसरे दिन ही अंजू को अपने घर आया देख रमा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा,  रमा ने अपनी फॅमिली से भी अंजू को मिलवाया,  दोनों ने एक साथ बैठ कर खाना खाते हुए बहुत सी बातें की,  इतने कम समय में दोनों एक दूसरे से खूब मिक्स हो गए, कुछ दिनों बाद अंजू ने रमा के परिवार को भी घर बुलाया, सब एक दूसरे से मिलकर खुश ही हुए. कुछ महीने यूँ ही एक दूसरे से मिलते जुलते हुए बीत  गए, रमा ने अपनी सोसाइटी में ही एक किटी ग्रुप ज्वाइन कर लिया था, अंजू को पता चला तो कहने लगी,” जब तुम्हारी किटी पार्टी का नंबर आएगा, मैं अपने कुछ सूट, ड्रेसेस बेचने के लिए ले आउंगी, हो सकता है, कोई खरीद ही ले.‘’

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रमा ने ‘ठीक है,’कह दिया, जब रमा के घर पार्टी में सोसाइटी की दस और महिलाएं आयीं तो अंजू अपना बड़ा सा बैग खोलकर ड्रेसेस दिखाने लगी , कुछ महिलाओं को यह पसंद नहीं आया, एक ने साफ़ कहा,”भाई , पार्टी को बिज़नेस से दूर ही रखो, इतने में तो हम एक गेम और खेल लेते.‘’ किसी ने कुछ नहीं खरीदा, पसंद अलग अलग थी, किसी ने यह भी कहा,”इन दस कपड़ों में से क्यों लें, भाई, दूकान पर इतनी चॉइस रहती है, वहीँ खरीदेंगें न !” रमा  को जरुरत के समय ही खरीदने की आदत थी, अभी उसके पास बहुत  कपडे  थे, फैशन आता जाता रहता है, वह ले लेकर कपडे रखने के पक्ष में नहीं रहती थी, तो भी उसने जल्दी ही अंजू की ख़ुशी के लिए कुछ कपड़े उससे ले ही लिए , पर इसके बाद अंजू कभी भी अपने कपड़ों का बड़ा बैग लिए हर दूसरे तीसरे दिन असमय आ जाती, कभी रमा अपने बच्चों को पढ़ा रही होती, कभी आराम कर रही होती और अंजू हर बार उससे यही उम्मीद करती कि रमा उससे कुछ खरीद ले, पर कितना ख़रीदा जा सकता था. एक दिन अंजू ने कहा,” एक काम करो, मुझे अपना यह ड्राइंग रूम दिन भर  के लिए दे दो, मैं यहाँ अपना सामान सजा लेती हूं, और तुम्हारी सोसाइटी बड़ी है,  तुम्हारा ड्राइंग रूम भी काफी बड़ा है, लोगों से कहकर मेरे काम का यहाँ प्रचार कर देते हैं.‘’

रमा ने विनम्र स्वर में समझाया,”यह तो बहुत मुश्किल है, अंजू, बच्चों को मैं ही पढ़ाती हूं , लोग दिन भर  आते जाते रहेंगें कपड़े देखने तो बहुत डिस्टर्ब होगा. और कई बार कोई मेहमान भी तो आ ही जाते हैं, यह तो बहुत परेशानी हो जाएगी.‘’

अंजू को रमा की बात पर इतना  गुस्सा आया कि उसने तेज आवाज में कहा,”तुम तो मेरे किसी  काम की नहीं , सोचा था मेरा काम बढ़वाओगी, मैं नए लोगों से मिलूंगी,जुलुंगी तो कुछ काम आगे बढ़ेगा पर तुम तो किसी काम की नहीं.‘’

रमा को तेज झटका लगा,कहा,”तुमने मेरे साथ दोस्ती काम सोच कर की थी?”

”हाँ, और क्या, मुझे तो नए कॉन्टेक्ट्स बनाने होते हैं, मैं अपना कपड़े बेचने का काम बहुत आगे बढ़ाना चाहती हूं , खैर छोड़ो, तुम अपनी घर गृहस्थी सम्भालो,” कहकर अंजू जो गयी, उसी समय दोनों की दोस्ती ख़तम हो गयी, रमा को आज पंद्रह सालों के बाद  भी अपना यह दुःख ताजा लगता है,वह बताती हैं,” मैं कई दिन तक एक शॉक में रही, कहाँ मैं सोच रही थी मुझे मुंबई आते ही कितना अच्छी दोस्त  मिल गयी है,यह तो मुझे बाद में समझ आया कि पार्लर से ही मेरे साथ दोस्ती अपने स्वार्थ के लिए की गयी थी,पता नहीं कैसे लोग दोस्ती जैसे रिश्ते को स्वार्थ पर टिका देते हैं ! उसके बाद कई दिन तक मैं किसी से खुल कर मिल ही नहीं पायी, सबसे भरोसा सा उठ गया था.‘’

रमा और अंजू का यह  उदाहरण काल्पनिक नहीं है,यह एक सच्ची घटना है, आज यहाँ इस लेख में मैं जितने लोगों के उदाहरण दूंगी, वे सब सत्य है, हाँ, बस नाम ही काल्पनिक हैं, देख कर दुःख होता है कि दुनिया के सबसे प्यारे रिश्ते, दोस्ती को लोग कैसे अपने स्वार्थ और चालाकियों से यूज़ करते हैं और इसमें उन्हें कोई गिल्ट भी नहीं होता. दिल्ली में रहने वाली शमा और सुनीता एक ही कॉलोनी में रहते, दोनों की दोस्ती बस रोड पर मिलने तक ही थी, घर आना जाना नहीं था, क्योंकि सुनीता एक कट्टर ब्राह्मण परिवार की महिला थी,  शमा के घर जाकर कुछ खाना पीना न पड़े  इसलिए न कभी उसके घर गयी, न उसे कभी बुलाया. फिर शमा के पति का ट्रांसफर मुंबई हुआ, करीब पंद्रह साल बाद किसी से शमा का फोन नंबर लेकर सुनीता ने उसे फोन किया और कहा,” हम मुंबई आ रहे हैं, ननद की बेटी को एक कॉलेज का काम है, ननद , उसकी बेटी, मैं और मेरे पति मुंबई आकर होटल में क्यों ठहरेंगे , जब मेरी दोस्त वहां है !” शमा ने अपने घर आने के लिए इन्वाइट किया और अपना पता लिखवा दिया , शमा बताती हैं, ”जिस महिला ने मेरे साथ कोई ख़ास सम्बन्ध कभी नहीं रखे थे, इतना तो मैं भी समझती हूं कि उन लोगों के दिलों में जातपात का चक्कर रहता है पर अब जब लगा कि मुंबई में होटल में रुकने में खूब खरचा होगा , तब हमारी याद आयी, पूरा परिवार हमारे यहाँ छह दिन रह कर गया, हमने मेहमानवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी, और एक बार यहाँ के काम निपटा कर  गए तो न कभी एक फोन,न कभी एक मैसेज ! ऐसे ऐसे स्वार्थी लोग होते हैं कि इंसानियत से विश्वास उठने लगता है.‘’

ये तो थी आम घरेलू महिलाओं की बात जिनके बारे में अक्सर सोच लिया जाता है कि आम महिलाएं तो ये सब करती ही है, ऐसा नहीं है कि तथाकथित बुद्धिजीवी महिलाएं बहुत उदार और इन सब बातों से परे होती हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है, आम महिलाओं के बारे में तो आप सुनते पढ़ते ही रहते होंगें, आज कुछ उदाहरण और देखिये जिन्हे  दोस्ती में सब सीमा रेखा पार करने में जरा हिचक नहीं होती. एक लेखिका हैं, अंजलि, पुणे में रहती हैं,सबकी हेल्प करने को हमेशा तैयार , काफी जगह उनकी रचनाएं प्रकाशित होती देख एक लेखिका भूमि ने अंजलि से दोस्ती की, फेसबुक पर उनकी दोस्त बनी, भूमि अंजलि को खूब फोन करती, उससे रचनाएं भेजने के सारे कॉन्टेक्ट्स पूछे, सारी ईमेल आई डी जानीं , लेखन के क्षेत्र में जितनी जानकारी जुटानी थी , जुटा लीं, जब लगा कि जितना पूछना था,पूछ लिया, उसके बाद अंजलि से बात करना बंद कर  दिया, उसे फेसबुक से अनफ्रेंड कर दिया और जब भी कोई अंजलि के बारे में बात करता, तो कहती, ‘कौन अंजलि, मैं को किसी अंजलि को जानती ही नहीं.‘ मतलब निकलते ही अंजलि को हर जगह से ब्लॉक कर दिया, अंजलि को जब पता चला कि भूमि तो उससे जान पहचान ही अस्वीकार कर रही है तो उसने कई लोगों को भूमि की कॉल हिस्ट्री , दिखाई, उसकी व्हाट्सएप्प चैट भी दिखाई, अंजलि कहती रह गयी कि भूमि उसकी दोस्त थी पर भूमि ने अपना मतलब निकाल कर पलट कर भी नहीं देखा, इसका प्रभाव अंजलि पर यह पड़ा कि हर बार सबकी हेल्प करने वाली अंजलि अब किसी की  भी हेल्प करने से पहले सौ बार सोचती, भूमि का ध्यान आता , हर शख्स झूठा,स्वार्थी लगता.स्वार्थी और चालाक लोग दोस्ती का मुखौटा पहने हुए आपके वह दुश्मन हैं जो दीमक की  तरह आपको अंदर ही अंदर खाते रहते हैं और आपको पता भी नहीं चलता. ऐसे लोगों से दूरी बनाये रखना बेहतर है जो दोस्ती के नाम पर स्वार्थी हों , सच्ची दोस्ती में कहीं भी स्वार्थ और चालाकियों की  जगह नहीं होती.

सच्चे दोस्त की पहचान करना बहुत जरुरी होता है और सच्चे दोस्त की पहचान करके उसके साथ दोस्ती का रिश्ता बनाना एक प्रकार की अनूठी कला है. ऐसा नहीं कि उम्र और शिक्षा स्वार्थी इंसान होने या न होने पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं, पड़ोस में एक आंटी हैं, भरा पूरा घर है पर पड़ोस की  अन्य अपनी उम्र की लड़कियों को बेटा, बेटा कहकर काम निकालने में जैसे उन्होंने कोई डिग्री हासिल की है, जैसे ही किसी को सब्जी लेने जाते देखती हैं, फौरन आवाज लगाकर अपना थैला पकड़ा देती हैं, बेटा, जरा मेरे लिए भी सब्जी ला देना, किसी को कहीं आते जाते देखेंगी तो कहेंगीं, जरा मुझे भी ड्राप कर देना, उनके घर में सब हैं, पर बाद में बड़ी शान से यह भी कहती हैं, मुझे तो अपना काम निकालना आता है, मैं कुछ कहूं तो मेरी उम्र देख कर कोई मना  ही नहीं करता.बुढ़ापे को मजे से यूज़ करती हूं,” अब मूर्ख वही बनते रह जाते हैं जो इनकी उम्र का लिहाज करते हैं, कोई महिला बच्चे को गोद में लेकर सब्जी लेने जा रही होती है तो वह इनका भी थैला संभाल रही होती है, आसपड़ोस की युवा  महिलाएं जिन्हे ये अपना दोस्त कहती हैं, इनकी उम्र देख कर कोई जवाब नहीं देतीं तो यह आराम से बताती घूमती हैं कि इनके तो सब काम आराम से होते हैं. इनके परिवार वाले भी अक्सर यह कहते सुने गए हैं कि ”माँ, आपका तो काम कोई भी कर देगा, आपमें इतना टैलेंट है !”

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ऐसा भी नहीं कि सिर्फ लड़कियां, महिलाएं ही दोस्ती में स्वार्थ और चालाकी दिखाती हैं, पुरुष भी कम नहीं होते, एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाले तीस वर्षीय अनुज अपना अनुभव बताते हैं,” मैं और मेरा कलीग सुनील एक ही सोसाइटी में रहते हैं, मैं कार से ऑफिस जाता हूं, वह  बस से जाता था, एक दिन वह ऑफिस जाने के समय मेरी कार के पास आकर खड़ा हो गया, और कहने लगा,” मैं भी साथ ही चला करूँगा, एक जगह ही तो जाना है.‘’ मुझे कोई आपत्ति नहीं थी, एक साल आना जाना रोज साथ ही होता रहा, कार उसके पास भी थी पर डीजल पेट्रोल पर ज्यादा खर्च करना उसे पसंद नहीं था,  यह उसने मुझे खुद ही बताया,  फिर मेरा एक ऑपरेशन  हुआ और डॉक्टर ने मुझे एक महीना कार चलाने को मना किया, मैंने उससे रिक्वेस्ट की कि थोड़े दिन अपनी कार निकाल ले क्यूंकि मुझे बस की भीड़  में हमेशा कुछ दिक्कत होती है, उसने कहा,” यार, तुम छुट्टी ही ले लो, आराम कर लो, मैं तो अपनी कार सिर्फ वीकेंड पर निकालता हूं, ” इतना रुखा सा जवाब सुनकर मैं उसका मुँह ही देखता रह गया, पूरा साल मैं उसे इतनी ख़ुशी से अपने साथ ले जा रहा था, और मेरी बीमारी में उसने मेरे प्रोजेक्ट में हेल्प करने से भी साफ़ साफ़ मना कर दिया, खुद बस से जाने लगा, जब मैं ठीक हो गया तो बड़ी बेशर्मी से, मेरा यार ठीक हो गया,कहकर मेरे साथ फिर मेरी कार में आने जाने लगा.‘’

दोस्ती बहुत ही प्यारा रिश्ता है, इसे स्वार्थ और चालाकियों की भेंट न चढ़ने दें, अच्छा दोस्त बनें,  इस रिश्ते को प्यार से , सच्चाई से निभाएं.  अच्छे दोस्त बन कर,  अच्छा दोस्त पाकर मन को असीम ख़ुशी मिलती है, अपने दोस्त की फीलिंग्स को कभी हर्ट न करें, इस रिश्ते में नफा नुकसान न सोचें, दोस्त के लिए दिल में करुणा और सम्मान रखें, उसके प्रति वफादार रहें, उसके साथ हंसे,बोलें, खिलखिलाएं, आपके मन को भी ख़ुशी होगी, उसकी पर्सनल बातों को अपने तक रखें, उसकी परेशानी में उसके साथ खड़े रहें,  उसकी बातों को ध्यान से सुनें,  अगर आपका दोस्त दूर भी रहता हो तो फोन,सोशल मीडिया या मेसेजस से उसे यकीन दिलाते रहें कि आप उसके साथ ही हैं. दोस्ती का रिश्ता विश्वास के आधार पर ही टिका होता है, एक सच्चा दोस्त कभी भी अपने दोस्त से न तो झूठ बोलेगा और न ही उसके साथ किसी प्रकार का छल कपट करेगा और यह सच्चे दोस्त की निशानी है.  सच्चा मित्र किसी बहुमूल्य रत्न से कम नहीं होता, स्वार्थ की भावना से दोस्ती न  करें , स्वार्थी मित्र संकट के समय साथ छोड़ देते हैं इसलिए ऐसे लोगों से दूरी बना कर रखें जो स्वार्थी हों , सच्ची दोस्ती में कहीं भी चालाकी और स्वार्थ की भावना नहीं होती. ईर्ष्या द्वेष रखने वालों से दूर  रहें,  ऐसे दोस्त या मित्र जो सामने तो मीठी मीठी बातें करते  हैं लेकिन पीठ पीछे बुराई करते हैं,  उनसे दोस्ती न करें, ऐसे लोग कभी भी आपका मन दुखा सकते हैं,  स्वार्थी और चालाक दोस्तों से जितनी जल्दी संभव हो, उतनी जल्दी दूरी बना लेनी चाहिए.

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Winter Special: इडली डाईस

अगर आप फैमिली के लिए कोई हेल्दी और टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो इडली डाईस से बेहतर रेसिपी आपके लिए कोई नही है. ये हेल्दी के साथ-साथ आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली के लिए बना सकते हैं.

हमें चाहिए-

–  1 कटोरी सूजी

–  1/2 कटोरी दही

–  पानी आवश्यकतानुसार

–  1 चम्मच ईनो

–  एकचौथाई चम्मच सरसों के दाने

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–  1 छोटा चम्मच मगज

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

–  2 आलू उबले हुए –  1 प्याज बारीक कटा –  1 हरीमिर्च बारीक कटी  –  थोड़ी सी धनियापत्ती –  एकचौथाई चम्मच जीरा –  एकचौथाई चम्मच लालमिर्च पाउडर –  एकचौथाई चम्मच चाटमसाला –  1 चुटकी हलदी पाउडर –  तेल आवश्यकतानुसार –  नमक स्वादानुसार.

विधि

सूजी में दही और पानी डाल कर इडली का घोल तैयार कर लें. एक पैन में 1 चम्मच तेल गरम करें. उस में सरसों तड़काएं और यह तड़का इडली के मिश्रण में डाल दें. नमक मिलाएं और अच्छी तरह मिक्स करें.

विधि भरावन की

भरावन के लिए एक पैन में तेल गरम कर सरसों तड़काएं. उस में प्याज डाल कर गुलाबी होने तक भूनें. बाकी सारी सामग्री डाल कर अच्छी तरह भूनें. धनिया बुरक दें और ठंडा होने दें. आलू के इस मिश्रण को हाथ से अच्छी तरह गूंथ लें और इस के चार छोटे बेलनाकार रोल बना लें. चाय के 4 मध्यम आकार के मग लें. इन में तेल लगा कर ग्रीस कर लें. सूजी के मिश्रण में ईनो मिलाएं. मग में आधी ऊंचाई तक सूजी का मिश्रण भरें. इस में आलू के आयताकार रोल रखें और ऊपर से इडली का मिश्रण और भर दें. इन मगों को माइक्रोवैव में रख कर 4 मिनट तक फुल पावर पर पका लें. ठंडा होने पर मगों को उलटा कर के बेलनाकार रूप में तैयार इडली निकाल लें. एक नौन स्टिक तवा गरम करें. उस पर थोड़ा सा तेल लगाएं. सरसों के दाने चिटकने तक भूनें. मगज और लालमिर्च पाउडर डाल कर इडली रोल्स को उस पर घुमा दें ताकि यह तड़का इडली पर चारों ओर लग जाए. फिर इडली के स्लाइस कर के परोसें.

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चश्मा: एस्थर ने किया पाखंडी गुरूजी को बेनकाब

लेखिका- प्रेमलता यदु

आज एस्थर का ससुराल में पहला दिन था. उस ने सोचा जब परिवार के हर सदस्य ने उसे खुले दिल से अपनाया है तो क्यों ना वह भी उन के ही रंग में रंग जाए और उन जैसा ही बन कर सब का दिल जीत ले. यही सोच वह भोर होने से पहले अपनी सासूमां सुनंदा की भांति ही जाग गई.

रोज सुबह 8 बजने जागने वाली एस्थर आज अलार्म लगा कर 5:30 बजे ही जाग गई. घर के सभी लोगों की सुबह की शुरुआत चाय से होती है, इसलिए वह चाय बनाने के लिए रसोईघर की ओर चल पड़ी.

उस ने कभी सोचा ही नहीं था की पराग का परिवार इतनी सहजतापूर्वक उस की और पराग की शादी के लिए स्वीकृति प्रदान कर देगा और उसे पूरे दिल से अपना लेगा, क्योंकि अकसर पराग की बातों से उसे ऐसा प्रतीत होता था कि उस का परिवार एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार है पर कल के रिसैप्शन पार्टी में एस्थर का यह भ्रम टूट गया. उसे एक पल के लिए भी यह महसूस नहीं हुआ कि वह किसी दूसरे धर्म या समुदाय में ब्याही है.

जाति, धर्म कभी भी प्यार एवं स्नेह के बीच दीवार नहीं बन सकते, पराग के परिवार ने इस बात पर मुहर लगा दी थी.

यही सब सोचती हुई अभी वह रसोईघर में प्रवेश करने ही वाली थी कि सुमित्रा बुआ जोरजोर से चिल्लाने लगीं,”अरे…अरे… बहुरिया यह क्या अनर्थ करने जा रही हो…”

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सुमित्रा बुआ अपना ससुराल छोड़ कर यहां मायके में डेरा डाले बैठी हैं. सुबहसुबह ही जाग जाती हैं और अकसर माला फेरने का ढोंग रचा हौल में धुनी रमाए बैठ जाती हैं. आज भी वह अपना आसन जमाए बैठी हुई थीं.

असल में उन का सुबह से ले कर रात तक केवल इस बात पर पूरा ध्यान रहता है कि घर में कौनकौन सदस्य क्याक्या कर रहा है? भगवान की अराधना तो सब एक आडंबर मात्र ही थी.

बुआ का चिल्लाना सुन सुनंदा दौड़ती हुई बाथरूम से वहां आ ग‌ई. एस्थर भी सुमित्रा बुआ को इस तरह चिल्लाता देख पूरी तरह से स्तब्ध रह गई और डर कर रसोईघर के दरवाजे पर ही ठिठक गई.

सुनंदा कुछ पूछती इस से पहले ही सुमित्रा बुआ गुर्राती हुईं एस्थर से बोलीं,”इस घर पर पांव धर कर तुम पहले ही हमारे भैया की जातबिरादरी में नाक कटा चुकी हो. कुल तो भ्रष्ट कर ही दिया है और अब बिन नहाए भीतर जा कर हमारा धर्म भी भ्रष्ट करने का इरादा है क्या? कुछ नियम, धर्म है कि नहीं? वैसे भी तुम्हें मोमबत्ती जलाने के अलावा कुछ मालूम ही क्या होगा पर भौजी तुम… तुम को तो इतना वर्ष हो गया है इस घर में आए फिर भी अब तक तुम हमारे घर का नियम जान नहीं पाईं क्या?

“अपनी बहुरिया को तनिक ज्ञान दो, उस को इस घर के तौरतरीके सिखाओ, बताओ उस को इस घर में क्या होता है क्या नहीं. तुम पुत्रमोह में इतनी अंधी हो गई हो कि सब भूल ग‌ईं?”

यह सुन एस्थर सहम सी गई. वह कुछ समझ ही नहीं पाई कि आखिर उस से क्या चूक हो गई कि जो बुआ कल रात तक सभी के समक्ष उस की बलाईयां लेते हुए नहीं थक रही थीं, आज अचानक सुबह होते ही ऐसा क्या हो गया कि तीखे और कड़वे वचन उगल रही है.

सुनंदा लड़खड़ाती जबान में बोलीं,”दीदी, उस का घर में आज पहला दिन है धीरेधीरे सब सीख जाएगी. आप चिंता ना करें, मैं स्वयं उसे सब बता दूंगी. इस बार माफ कर दीजिए.”

“हां…. सिखाना तो अब पड़ेगा ही. केवल विजातीय बहू नहीं लाया है तुम्हारा लाडला बेटा, बल्कि गैर धर्म की लड़की ही घर उठा लाया है.”

यह सुन सुनंदा वहां से चुपचाप जाती हुई एस्थर को भी अपने संग चलने का इशारा कर गई. एस्थर भी सुनंदा के पीछे हो ली.

एक कोने में जा कर सुनंदा अपना हाथ एस्थर के सिर पर रखती हुई बोलीं,”दीदी के बातों का बुरा नहीं मानना. उन की जबान ही थोड़ी कड़वी है लेकिन वह दिल की बहुत अच्छी हैं. तुम एक काम करो पहले नहा लो, तब तक मैं पूजा कर लेती हूं फिर दोनों मिल कर चायनाश्ता बनाते हैं,” इतना कह सुनंदा चली गई.

*एस्थर* को सुबहसुबह नहाने की आदत नहीं है पर वह क्या करे ससुराल वालों का दिल जीतना बहुत जरूरी है क्योंकि पराग पहले ही कह चुका है कि उस की वजह से परिवार के लोगों को किसी प्रकार की कोई शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए वरना वह उस की कोई मदद नहीं कर पाएगा.

घर के सदस्यों के प्रति नकारात्मक विचारों की बेल एस्थर के मन को जकड़ने लगे जिन्हें वह झटक नहाने चली गई और जब वह तैयार हो कर पहुंची तो उस ने देखा सासूमां ने सभी के लिए चायनाश्ता बना लिया है और सभी बैठक में नाश्ते के साथ चाय की चुसकियां ले रहे हैं.

सुनंदा बेचारी भागभाग कर सभी के प्लेट्स पर कभी कचौड़ियां परोस रही थीं तो कभी चटनी. कोई मीठी चटनी की फरमाइश कर रहा था तो कोई हरी धनिया की चटनी, पर उन की मदद कोई नहीं कर रहा. यहां तक कि उन की अपनी बेटी शिल्पी भी उन का हाथ बंटाने के बजाय उलटा उन से दोपहर पर बनने वाले खाने की सूची में अपनी फरमाइश जोड़ रही थी.

यह सब देख एस्थर अंदर ही अंदर क्रोध से भर गई पर स्वयं पर संयम रखती हुई शांत खड़ी रही. वह काफी देर तक वहां खड़ी रही लेकिन किसी ने भी उस से कुछ नहीं कहा.

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सभी इस प्रकार व्यवहार कर रहे थे जैसे वह वहां पर उपस्थित ही नहीं है. यहां तक कि पराग ने भी उसे अनदेखा कर दिया.

सब का रवैया देख एस्थर की आंखें नम हो गईं पर किसी को भी इस बात का आभास तक नहीं हुआ, तभी सुनंदा बोलीं,”एस्थर तुम भी चाय पी लो.”

सुनंदा का इतना कहना था कि पराग की दादी, सुमित्रा बुआ की मां, सुनंदा की सासूमां और इस घर की मुखिया गायत्री देवी भड़कती हुई सुनंदा से बोलीं,”बहू, अब तुम इस घर की केवल बहू ही नहीं रहीं सास भी बन गई हो, तो इस बात का ध्यान रखना तुम्हारी जिम्मेदारी है कि गलती से भी कोई चूक ना हो. यह तुम्हारा मायके नहीं है जहां कुछ भी चल जाएगा.”

“जी मां जी,” सुनंदा ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया.

तभी फिर दोबारा गायत्री देवी अपने रोबदार आवाज में बोलीं,”आज मैं ने अपने गुरु महाराज को घर पर बुलाया है. उस की सारी व्यवस्था तुम कर लेना. पूजा की सारी सामग्री गुरू महाराज स्वयं ही ले आएंगे. उन्होंने कहा है कि आज वे घर के साथसाथ इस छोरी का नामकरण और शुद्धिकरण भी करेंगे.”

इतना सुनते ही माला फेरतीं सुमित्रा बुआ अपनी ईश्वर अराधना पर अल्पविराम लगाते हुए बोलीं,”अम्मां, नामकरण… भला क्यों?”

“अरे भई, इस छोरी का नाम जो इतना विचित्र है पुकार लो तो ऐसा लगे है जैसे जबान ही पूरी अशुद्ध हो गई हो और फिर गुरु महाराज ने भी कहा है कि नाम बदलने से ही पराग का वैवाहिक जीवन सुखमय बना रहेगा अन्यथा नहीं और उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे कुल और पूर्वज पर जो इस छोरी की वजह से कलंक लगा है वह धुल जाएगा और हमारे पूर्वजों को वहां परलोक में किसी प्रकार की कोई यातना नहीं सहनी पड़ेगी. शिल्पी की शादी हेतु भी ग्रहशांति करने का कह रहे थे गुरूजी.

“मोहन, तुम जल्दी बैंक जा कर ₹1 लाख निकाल लाना. पूजा में जरूरत पड़ेगी.”

₹1 लाख सुनते ही पराग के पिता और गायत्री देवी के पुत्र मोहनजी के कान खड़े हो गए और उन्होंने आश्चर्य से कहा, “अम्मां ₹1 लाख वह भी पूजा के लिए… बहुत ज्यादा नहीं है क्या?”

“बहुत ज्यादा कहां है भैया…यह तो बहुत ही कम है. इस प्रकार की पूजा में ₹1-2 लाख खर्च हो जाते हैं. वह तो गुरू महाराज की हम सब पर कृपा एवं उन का आशीष है और फिर अम्मां उन की परमभक्त हैं इसलिए इतने कम में सब काम हो रहा है वरना आप और भाभी ने तो जो अपने पुत्रमोह में इस गैर धर्म की छोरी को बहू बना कर घर ले आए हैं उस के लिए तो आजीवन आप को और इस घर के पूर्वजों को सदा के लिए कष्ट भोगना पड़ता.”

यह सुन पराग बोला,”पापा, आप चिंता ना करें, मैं अपने अकाउंट से रुपए निकाल लूंगा.”

एस्थर आश्चर्य से पराग की ओर देखने लगी. उस ने आज से पहले कभी पराग का यह अंधविश्वासी अवतरण नहीं देखा था. उस ने कभी सोचा नहीं था कि इतना पढ़ालिखा और आधुनिकता का आवरण ओढ़ने वाला यह पूरा परिवार असल में पूर्ण रूप से अंधविश्वास के गिरफ्त में जकड़ा हुआ होगा.

*वह* विचार करने लगी कि इतना रूढ़िवादी और अंधविश्वासी परिवार ने उसे स्वीकार किया तो किया कैसे?

असल में वह इस सत्य से अनभिज्ञ थी कि इस ब्राह्मण परिवार का उसे अपनाना एक पाखंड था. वह तो बस यह नहीं चाहते थे कि उन का इकलौता कमाऊ बेटा शादी कर के अलग हो जाए क्योंकि अभी उन की छोटी बेटी की भी शादी होनी बाकी थी जिस में दहेज लगना था और एस्थर स्वयं भी एक कमाऊ मुरगी थी जिस का वह भरपूर इस्तेमाल कर सकते थे. इसलिए उन्होंने एस्थर को अलग धर्म का होते हुए भी अपनाने का स्वांग रचा.

इन सब बातों के बीच सहसा एस्थर को ऐसा एहसास हुआ जैसे गुरू महाराज और ग्रह शांति की बातें सुन सासूमां सुनंदा के चेहरे का रंग उड़ गया है और शिल्पी भी थोड़ी घबराई एवं असहज लगने लगी है.

अब तक जो लड़की हंसखेल रही थी, मुसकरा रही थी अचानक वह वहां से उठ कर चली गई और उसे इस प्रकार जाता देख सुनंदा भी उस के पीछे हो गईं.

दोनों को इस तरह परेशान देख एस्थर भी वहां से चली गई. जब वह शिल्पी के कमरे के करीब पहुंची तो उस ने सुना शिल्पी कह रही है,”अम्मां, मैं पूजा में ग्रहशांति हेतु नहीं बैठूंगी चाहे मेरी शादी हो या ना हो.”

सुनंदा उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कह रही थीं,”देखो शिल्पी, अम्मांजी ने गुरू महाराज को तुम्हारे ग्रहशांति हेतु पहले ही कह दिया है इसलिए इस बार तो तुम्हें बैठना ही होगा और फिर इस में तुम्हारा ही भला है. इस पूजा से तुम्हें अच्छा घरपरिवार मिलेगा.”

माजरा क्या है यह जानने के लिए एस्थर कमरे के अंदर जा अपनी सासूमां सुनंदा से बोली,”क्या बात है मम्मीजी, शिल्पी ग्रहशांति के नाम से इतना रो क्यों रही है?”

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सुनंदा ने कोई जवाब नहीं दिया बस वह लगातार शिल्पी को पूजा पर बैठने के लिए मना रही थी.

तभी शिल्पी चिढ़ती और जोर से चिल्लाती हुई बोली,”अम्मां, आप समझती क्यों नहीं. पूजा के बाद हर बार मैं बेहोश हो जाती हूं. मेरा पूरा शरीर दर्द से भर जाता है. मुझे बहुत डर लगता है मम्मी. प्लीज, मैं पूजा में नही बैठूंगी.”

शिल्पी का डर उस के शब्दों से अधिक उस की आंखों में नजर आ रहा था.

*शिल्पी* को अपनी मां के समक्ष गिड़गिड़ाता देख एस्थर ने बड़े सहज भाव से कहा,”मम्मीजी, क्या शिल्पी का पूजा में बैठना जरूरी है?”

“बस… अभी तुम्हें इस घर में आए चंद घंटे ही हुए हैं. बेहतर होगा ज्यादा सवालजवाब करना छोड़ो और मेरे साथ चल के गुरू महाराज की सेवा और उन के खानपान की व्यवस्था में मेरा हाथ बंटाओ. और हां, पराग से कहना ₹1 लाख अधिक निकाल ले क्योंकि गुरू महाराज को पूजा के उपरांत दक्षिणा भी देना होगा ताकि शिल्पी के लिए अच्छे रिश्ते आएं.”

सासूमां की बातें सुन एस्थर यह जान चुकी थी कि वक्त रहते उसे सही कदम उठाना होगा अन्यथा उस का घर बरबाद हो जाएगा. साथ ही वह अपनी पहचान खो देगी और उस का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा.

इस घरपरिवार के लोगों पर अंधविश्वास का ऐसा चश्मा लगा हुआ था जिसे उतार पाना इतना आसान नहीं था. यदि वह प्रयास भी करेगी तो सफल होना मुश्किल था, इसलिए वह यह जानते हुए कि शुद्धिकरण, नामकरण और शादी के लिए ग्रहशांति की पूजा सब बकवास एवं बेकार की बातें हैं, पूजा में हिस्सा लेने एवं अपनी सासूमां का हाथ बंटाने को वह स्वेच्छा से तैयार हो गई.

*गुरू* महाराज निर्धारित समय पर अपने 5 शिष्यों के साथ घर पहुंचे. सभी उन का चरणस्पर्श करने लगे. एस्थर दूर ही खड़ी सब देख रही थी.

तभी दादी एस्थर की ओर इशारा करती हुई बोलीं,”अरे बहूरानी, तुम्हें अलग से कहना पड़ेगा… जाओ और गुरू महाराज का आशीष लो.”

एस्थर ने जैसे ही गुरू चरणों में अपना शीश नवाया, आशीष देते हुए गुरू महाराज ने उसे जिस प्रकार से स्पर्श किया एवं उन के शिष्यों की जो दृष्टि उस पर पड़ी वह सिहर उठी. उसी क्षण गायत्री देवी ने गुरू महाराज को पूजा प्रारंभ करने का आग्रह किया तो उन्होंने एक अजीब सी मादक मुसकान लिए एस्थर की ओर इशारा करते हुए बोले,”हम पहले इस लड़की का शुद्धिकरण करेंगे फिर पूजा संपन्न होगा.”

फिर वे उस कमरे की ओर बढ़ ग‌ए जहां पहले से ही सारे कर्मकांड की व्यवस्था की गई थी. सासूमां के इशारे पर एस्थर भी गुरू महाराज के साथ उस कमरे में चली गई और घर के बाकी सदस्य वहीं हाल में ही गुरूजी के साथ आए शिष्यों के संग पूजा की बाकी तैयारियों में जुट गए.

करीब 2 घंटे बाद गुरू महाराज और एस्थर कमरे से बाहर निकले फिर गुरूजी तुरंत ही अपने शिष्यों के साथ पूजा की वेदी पर पूजा कराने लगे.

पूजा कराते हुए बारबार उन्हें एस्थर के साथ कमरे में बिताए क्षण स्मरण होने लगे कि कैसे एस्थर ने बड़ी चालाकी से अपने मोबाइल फोन का कैमरा कमरे में छिपा दिया था जिस में उन की सारी हरकतें कैद हो गई थीं. किस प्रकार उन्होंने एस्थर को भभूत का पुड़िया खाने को दिया जिस में बेहोशी की दवा थी. कैसे वे अपने साथ लाए पूजा समाग्री में नशीली मादक दवाएं ले कर आए थे और उस का सेवन कर वे एस्थर को बेहोश समझ उस के साथ दुराचार करने का प्रयत्न करने लगे.

यह सब विचार करते हुए गुरू महाराज आननफानन में पूजा निबटा जल्दी से जल्दी यहां से निकाल जाना चाहते थे क्योंकि एस्थर की दी हुई धमकी उन के कानों में गूंज रही थी,”चुपचाप शांतिपूर्ण ढंग से पूजा निबटा कर यहां से निकलो, वरना पुलिस बुला कर तुम्हारा यह वीडियो दिखा, तुम्हें पाखंड, ढोंग, मासूम लड़कियों की इज्जत से खेलने, उन्हें अपना शिकार बना और दूसरों को धर्म और ग्रहों का डर दिखा कर लूटने के नाम पर अंदर करवा दूंगी.”

पूजा संपन्न करा जब गुरू महाराज जाने लगे तो गायत्रीजी बड़ी विनम्रता पूर्वक बोलीं,”गुरूजी, आप ने इस छोरी का नामकरण और मेरी पोती का ग्रह शांति तो कराया नहीं?”

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गुरू महाराज एस्थर की ओर घूरते हुए बोले,”नामकरण की कोई आवश्यकता नहीं है. शादी बहुत ही शुभ लग्न में हुई है. यह कन्या ईश्वर का वरदान है. आप के घर पर इस के पैर पड़ते ही घर की सभी विघ्न बाधाएं दूर हो गईं. सभी ग्रह अपनेआप ठीक स्थानों पर चले गए हैं इसलिए ग्रहशांति की भी अब कोई आवश्यकता नहीं.”

इतना कह गुरू महाराज चले गए और घर के सभी सदस्यों का एस्थर की ओर देखने का नजरिया ही बदल गया. सभी बड़े प्यार से उसे देखने लगे और एस्थर यह सोच कर मुसकराने लगी कि चश्मा तो अब भी सब के आंखों पर चढ़ा हुआ है लेकिन इस चश्मे की वजह से अब ना तो शिल्पी की शादी रुकेगी और ना ही उस का दैहिक शोषण होगा, जो अब तक होता आया है.

घुटने को मोड़ने में मुश्किल होती है और सूजन भी हो गई है, मैं क्या करुं?

मेरी उम्र 42 साल है. कई दिनों से मेरे बाएं घुटने में तेज दर्द हो रहा है. घुटने को मोड़ने में मुश्किल होती है और सूजन भी हो गई है. डाक्टर को दिखाया था, उन्होंने कहा कि मामूली समस्या है जल्दी ठीक हो जाएगी. लेकिन मेरा दर्द घुटने से नीचे बढ़ने लगा है और मेरा चलना दूभर हो गया है. बताएं मैं क्या करूं?

आप जिस समस्या का जिक्र कर रही हैं उसे बेकर्स सिस्ट कहते हैं. यह एक नर्म गांठ है, जिस में दर्द और सूजन होती है. हालांकि ज्यादातर मामलों में यह समस्या खुद ठीक हो जाती है, लेकिन कुछ मामलों में यह गंभीर भी हो सकती है. दरअसल, कई बार गांठ घुटने के अंदर ही फट जाती है तो घुटना लाल पड़ जाता है और दर्द पिंडली तक पहुंच जाता है. आप के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है और यह समस्या ज्यादातर उन्हीं महिलाओं को होती है जो 40 वर्ष की उम्र पार कर चुकी होती हैं. इस की गंभीरता इस के कारण पर निर्भर करती है. सही इलाज के लिए किसी अच्छे डाक्टर से संपर्क करें. जांच करने के बाद डाक्टर आप को फिजिकल थेरैपी के साथ मेडिकेशन या द्रव को बाहर निकालने की प्रक्रिया की सलाह देगा.

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डॉक्टर अतुल मिश्रा, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा

कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान गठिया के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है. सामान्य दिनों की तुलना में लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को घुटने के दर्द से अधिक समस्या हुई है.

घुटनों और जोड़ों के दर्द के कारण उन्हें चलनेफिरने और खासतौर पर सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती है. घुटनों में दर्द का मुख्य कारण गठिया है और इसके लिए उठनेबैठने का तौर तरीका भी काफी हद तक जिम्मेदार है. नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं.

भारत के लोगों में घुटने मोड़ कर और पालथी मार कर बैठने की अक्सर आदत होती है. सामूहिक भोजन करना हो, घर के कामकाज करने हो या आपस में बातें करनी हों-इन सभी कामों में महिलाएं घुटने मोड़ कर ही बैठती है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने की यह शैली हमारी आदतों में शुमार हो गई है और इस आदत के कारण यहां लोग कुर्सी, सोफे या पलंग पर भी घुटने मोड़ कर बैठना पसंद करते हैं. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है जिससे कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है. हालांकि इस के असर तुरंत नहीं दिखते लेकिन उम्र बढ़ जाने पर घुटने की समस्या हो जाती है.”

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बैठने का तरीका दे सकता है घुटने का दर्द

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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क्यों खास हैं खिलौने

खिलौने बच्चों की सोचने की क्षमता बढ़ाने के साथसाथ उन्हें कुछ नया करने के लिए भी प्रेरित करते हैं. जानिए, कौनकौन से खिलौने कैसे हैं मददगार:

टैलीफोन गेम

बच्चा अपने खिलौने वाले टैलीफोन को अपने पास पा कर बेहद खुश होता है. उस के चेहरे की मुस्कुराहट से उस की खुशी का अंदाजा लगाया जा सकता है. यह उस के लिए सिर्फ मनोरंजन का माध्यम ही नहीं, बल्कि वह इस के जरीए नंबर्स को पहचानने की भी कोशिश करता है और धीरेधीरे रिंग बजने का मतलब फोन उठाना और बात करना है, यह समझने लगता है. अपने खिलौने वाले फोन से झूठमूठ में अपने पेरैंट्स से बात करने की भी कोशिश करता है, जिस से उसे समझ आ जाता है कि फोन के माध्यम से वह किसी से भी बात कर सकता है.

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टी सैट

मां जब घर में मेहमानों के सामने चाय लाती है तो मां को ऐसा करता देख बच्चा भी यही सोचता है कि वह भी ऐसा कर पाता. ऐसे में टी सैट जहां बच्चों को नया खेल सिखाता हैं वहीं वे भी मां व घर के अन्य सदस्यों के लिए टी सैट में झूठमूठ की चाय बना कर परोसते हैं, जिस से खेलखेल में उन्हें मां के काम में हाथ बंटाना आता है.

मैडिकल किट

डाक्टरडाक्टर खेलना बच्चों को खूब पसंद आता हैं, क्योंकि जब उन के पेरैंट्स उन्हें बीमार होने पर डाक्टर के पास ले जाते हैं, तो डाक्टर उन का चैकअप कर के उन्हें दवा देने के साथसाथ इंजैक्शन भी लगाता है ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएं. यह देख बच्चों के मन में भी ऐसा करने की इच्छा होती है. वे अपनी डौल को झूठमूठ में बीमार कर अपनी मैडिकल किट में से दवा देते हैं व इंजैक्शन लगाते हैं. वे इंजैक्शन लगाते समय यह भी एहसास कराने की कोशिश करते हैं कि इस से उसे दर्द नहीं होगा, बल्कि वह जल्दी ठीक हो जाएगी. यानी उन में इस के माध्यम से मैडिकल किट में रखी चीजों की समझ आ जाती है.

स्मार्टफोन

बच्चे कोई भी चीज जोरजबरदस्ती से सीखना पसंद नहीं करते, बल्कि वे अलग तरीके से सीखना चाहते हैं ताकि वे लर्न भी कर पाएं और उन्हें इस के साथसाथ फन भी मिले. ऐसे में वे स्मार्टफोन के जरीए नंबर्स के बारे में जानते हैं और उन में से निकलने वाली अलगअलग ध्वनि को भी पहचानने की कोशिश करते हैं, जो उन की कल्पनाशीलता को बढ़ाने का काम करती है.

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म्यूजिकल गेम्स

बच्चा जन्म के बाद सिर्फ मां के स्पर्श को पहचानता है, लेकिन धीरेधीरे परिवार के हर सदस्य के स्पर्श व उन की आवाजों को पहचानना शुरू कर देता है. ठीक ऐसे ही म्यूजिकल गेम्स से विभिन्न आवाजों की पहचान करना भी सीखता है. म्यूजिक सुन उस के चेहरे पर मुसकान आ जाती है. इस तरह खिलौने बच्चों के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं.

निशाने पर महिलाएं क्यों

सख्त सरकार के वादे करने आसान हैं पर सरकार चलाना कोई मंत्र पढ़ना या हवन पढ़ना नहीं, जिस में जजमान 501 चीजें जमा कर दे और पुजारी उन्हें आग में झोंक कर कह दे कि सबकुछ ठीक हो गया.

सरकार चलाने का मतलब है लाखों बाबुओं को मैनेज करना, सही जानकारी जमा करना, कानून और अदालतों में भरोसा पैदा करना. आजकल किसी भी दिन का अखबार खोल लें बलात्कार के मामले दिख जाएंगे. ये वे मामले हैं, जिन में औरतें और लड़कियां ही नहीं छोटी बच्चियां तक शामिल हैं जो पुलिस में जाने की हिम्मत तभी करती हैं जब वे अपने और अपने पूरे परिवार के भविष्य पर कालिख पुतवाने को तैयार हों.

देश की कानून व्यवस्था यह है कि जिद्दी सरकार लाखों किसानों को नहीं मना पा रही कि उस के कानून सही हैं और नतीजे में किसानों ने एक मुख्यमंत्री को

अपने ही राज्य में एक गांव में घुसने नहीं दिया.

कानून व्यवस्था का यह हाल है कि अदालतों को लोग अब पहचान गए हैं कि ऊपर से नीचे तक की अदालतें उन्हें बंद कर रही हैं, जो सरकार की पोल खोल रहे हैं, उन को नहीं जो गले में भगवा दुपट्टा बांधे चौराहों पर वसूली कर रहे हैं.

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महिलाएं इस गिरती कानून व्यवस्था की सब से बड़ी पीडि़ता हैं, क्योंकि उन्हें ही अपने घर पर होने वाले हमलों का खमियाजा भुगतना पड़ता है या उन का अपना कोई बेगुनाह जेल में ठूंस दिया जाए तो महीनों अदालतों के चक्कर लगाते रहना पड़ता है.

अगर हर रोज बलात्कार, हत्या, चेन झपटमारी, चोरी, फ्रौड के मामले सामने आ रहे हैं तो हर रोज अदालतों से फैसले भी आ रहे हैं कि महीनों तक जेल में सड़ रहे व्यक्ति के खिलाफ तो कोई सुबूत ही नहीं है, जिस पर उसे अपराधी ठहराया जा सके. इस का मतलब है कि पुलिस और नेताओं के पास अपार ताकत है कि वे महीनों तक किसी को बंद रखवा सकें और कोई चूं भी न कर सके.

औरतों के लिए आज की सरकारें और शासन असल में सासससुर और घर बैठी ननद जैसी हो गई हैं, जो केवल गलती निकालना जानती हैं और नईनवेली बहू को काम में जोते रखना चाहती हैं.

ये शादी के समय तो मोटा दहेज वसूल कर लेती हैं ही, हर रोज नए टैक्सों की शक्ल में भी जबरन टैक्स बढ़ाती हैं. सास की तरह मान कर चलती हैं कि बहू कोई काम ढंग से करना ही नहीं जानती.

आज आम जनता की दुर्दशा गरीब मांबाप की बेटी जो बहू बनी सी है. औरतों के हकों की बात तो इधरउधर होती है पर यह सरकार जैसे संस्कार, संस्कृति, रीतिरिवाज, धर्म का नाम ले कर सताई औरत का मुंह बंद कर देती है वैसे ही उस जनता का भी मुंह बंद कर देती है, जो सताई जा रही है. दिक्कत यह है कि कोई राजा राममोहन राय या सावित्री बाई फुले भी नहीं है, जो औरतों सरीखी जनता के हकों के लिए आगे आए.

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Bigg Boss 14: Nikki के बाद दूसरी फाइनलिस्ट बनीं ये कंटेस्टेंट, एजाज खान को लगेगा झटका

कलर्स के रियलिटी शो ‘बिग बॉस 14’ का फिनाले अब एक हफ्ते दूर है, जिसके चलते टिकट टू फिनाले का टास्क भी पूरा हो गया है. वहीं टास्क को जीतने वाली रुबीना दिलाइक ने निक्की तम्बोली को पहला फाइनलिस्ट बना दिया है. लेकिन अब खबरे हैं कि शो का दूसरा फाइनलिस्ट भी मिल गया है, जिसका नाम जानने के बाद दर्शकों को झटका लगने वाला है. आइए आपको बताते हैं कौन है दूसरा फाइनलिस्ट…

राखी बनेंगी दूसरी फाइनलिस्ट

खबरों की मानें तो आखिरी वीकेंड का वार से पहले ही दो फाइनलिस्ट की घोषणा हो जाएगी. जहां निक्की तम्बोली (Nikki Tamboli) शो की पहली फाइनलिस्ट बन चुकी हैं. तो वहीं अब राखी सावंत भी इस शो की दूसरी फाइनलिस्ट बन जाएंगी, जिसके कारण दोनों नौमिनेशन से बच जाएंगी. दरअसल, एक टास्क में राखी 14 लाख रुपए की रकम चुकाकर फाइनलिस्ट बनेंगी. वहीं यह रकम विनर के अमाउंट से कट जाएगी. राखी के इस फैसले का सीधा असर शो के दूसरे नौमिनेटिड कंटेस्टेंट पर पड़ेगा.

 

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घर से हो सकती हैं बेघर

 

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वोटिंग ट्रेंड्स के आधार पर निक्की और राखी दोनों ही बॉटम थीं. लेकिन अब सेफ होने के बाद राहुल वैद्य, रुबीना दिलाइक, अली गोनी और देवोलिना भट्टाचार्जी खतरे हैं. वहीं कुछ फैंस के मन में सवाल है कि इस हफ्ते कौन एलिमनेट होगा तो दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि एजाज खान की प्रौक्सी देवोलीना इस हफ्ते घर से बेघर होंगी.

एजाज नही लौटेंगे वापस

 

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खबरों  की मानें तो देवोलीना भट्टाचार्जी ही ऐसी कंटेस्टेंट हैं, जिन्हें इस समय सबसे कम वोट मिल रहे हैं, जिसका मतलब साफ है कि इस हफ्ते वह घर से बेघर होने की कगार पर हैं. हालांकि देवोलीना, एजाज की प्रौक्सी हैं, इसीलिए इस एलिमनेशन का सीधा असर एजाज पर पड़ेगा. वहीं एजाज का इंतजार कर रहे फैंस इस बाद से बेहद दुखी होंगे.

 

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बता दें, अगले हफ्ते शो का फिनाले हैं, जिसकी तैयारियों और टास्क में शो के कंटेस्टेंट जमकर मेहनत करते नजर आ रहे हैं. वहीं शो में इन दिनों कंटेस्टेंट का सपोर्ट करने वाले उनके दोस्त और फैमिली काफी मदद करते नजर आ रहे हैं.

बेटी पाखी के बर्ताव को देखकर दुखी हुई अनुपमा, लिया फैसला

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की टीआरपी बढ़ती जा रही हैं, जिसके कारण मेकर्स ने कहानी में नए-नए ट्विस्ट ला रहे हैं. अनुपमा की जिंदगी में कहानी में अब नया मोड़ आने वाला है, जिसके कारण पाखी और वनराज अनुपमा के खिलाफ प्लान करती नजर आने वाली है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

प्रिंसिपल चलती है ये चाल

अनुपमा के स्कूल में आग लगने के बाद प्रिसिंपल सारा दोष उसके सिर पर ही मढ़ना चाहती है. हालांकि अपने वसूलों की पक्की अनुपमा, प्रिसिंपल के दवाब में आकर भी मीडिया के सामने झूठ नहीं बोलना चाहती है. वहीं वनराज (Sudhanshu Pandey) पूरी कोशिश कर रहा है कि अनुपमा अपनी जॉब छोड़ दें.

 

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पाखी को स्कूल से निकालने पर फैसला लेगी अनुपमा

 

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अनुपमा के घर के बाहर आकर कुछ लोग उससे सवाल पूछकर शाह परिवार के बीच हंगामा करते नजर आए. इसी बीच स्कूल से पाखी को निकालने का फरमान आ आएगा, जिसके बाद पाखी घर में खूब बवाल करती नजर आई. साथ ही अपनी मां अनुपमा को जमकर खरी खोटी सुनाती दिखी. पाखी गुस्से में लेटर पर अनुपमा के अंगूठे का निशान भी ले लेती है.

अनुपमा-वनराज के बीच होगी लड़ाई

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी के बर्ताव से दुखी अनुपमा को गुस्सा आ जाता है, जिसके बाद वह स्कूल से आए कागज फाड़ देगी. वहीं इस बात से नाराज वनराज, अनुपमा को 24 घंटे की मोहलत देकर उसे अपना फैसला बदलने के लिए कहेगा.

स्कूल में अनुपमा देगी ये बयान

 

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स्कूल की प्रिंसिपल की लापरवाही की बात को मीटिंग में सामने रखते हुए अनुपमा सच बता देती है. हालांकि उससे सबूत देने की बात कहते हैं तो वह कहेगी कि मेरे पास सबूत है, जिसके बाद सभी हैरान हो जाते हैं. अब देखना ये है कि अनुपमा के इस फैसले का पाखी के भविष्य पर क्या असर पड़ने वाला है.

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