Serial Story: जेठ जीजाजी – भाग 2

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

दरवाजे पर से जेठजी के हटते ही सास बोलीं, ‘‘जा पहले कुछ खा ले. राघव भी तेरा इंतजार कर रहा होगा. मु झे पता है अपने पिता के पास ही वह रुक गया होगा. जाने कब से उस का इंतजार कर रहे थे वे, कह रहे थे कि राघव आ जाए तो उसे शादी की जिम्मेदारियां दे कर निश्ंिचत हो जाऊंगा,’’ सास की बातों से लग रहा था जैसे ऊधव पर उन्हें बिलकुल भरोसा नहीं हो.

सास के कहने पर मैं वहां से उठ कर आंगन पार करती हुई सामने बाहरी बैठक की ओर इस आशय से जा ही रही थी कि राघव अभी बाबूजी के पास ही बैठा होगा, तभी दाहिनी तरफ बने कमरों के बाहर कवर्ड बरामदे में पड़ी बड़ी डाइनिंग टेबल के चारों ओर पड़ी 8 कुरसियों

में से एक पर बैठे जेठजी की आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘अरे प्रशोभा,

इधर आओ.’’

मेरी नजर उधर गई तो देखा राघव भी वहीं बैठे हैं और मेज पर ताजी बनी नमकअजवायन की पूरियां, उबले आलू की सूखी सब्जी, अन्य प्लेटों में मठरियां, बालूशाही, बेसन के सेव और शकरपारे सजे रखे थे.

मैं भी जा कर वहीं बैठ गई. तभी किरण दीदी अपने 4 साल के बच्चे नितिन का हाथ पकड़े उसी बरामदे के पास बने एक कमरे से निकल कर आईं. मैं जब 2 साल पहले शादी हो कर इस घर में आई थी तो उसी कमरे में मेरी सुहागरात मनी थी और किरण दीदी को जीजाजी तथा दोनों छोटे बच्चों के साथ ऊपर वाले कमरे में टिकाया गया था. मां के कमरे को मिला कर 3 कमरे नीचे बने थे और 2 ऊपर. डाइंगरूम बाहर की तरफ अलग था.

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दीदी ने कुरसी पर बैठते हुए मु झ से पूछा, ‘‘प्रशोभा, इलाहाबाद में भी ऐसी ही गरमी पड़ रही है या कुछ राहत है? यहां तो जब से आई हूं, बुरा हाल है, कूलर की हवा भी बेकार है.’’

तभी मेज पर काकी चाय भरी केतली रख गईं. मैं ने उन्हें गौर से देखा तो जेठ बोल पड़े, ‘‘शादी के घर में मैं ने उन्हीं काकी को लगा लिया जो तुम्हारी शादी में लगी थीं. बहुत बढि़या खाना, नाश्ता आदि बनाती हैं.’’

अपनी प्लेट में नाश्ता ले कर भाईसाहब इस इंतजार में बैठे थे कि मैं भी परोस लूं तो वे खाना शुरू करें.

तभी राघव ने अपनी प्लेट में सब्जीपूरी स्वयं परोसते हुए किरण दीदी से पूछा, ‘‘दीदी, जीजाजी साथ नहीं आए?’’

दीदी कुछ उत्तर देने जा ही रही थीं कि मेरी चिंता करते हुए जेठजी बोल पड़े, ‘‘अरे प्रशोभा, तुम भी कुछ लो न. इन दोनों को बस बातें करने को मिल जाएं तो यह भी नहीं देखेंगे कि दूसरा कुछ खा भी रहा है या नहीं.’’

‘‘भाईसाहब, मैं सब ले लूंगी, आप परेशान न हों,’’ मैं ने कहा तो भाईसाहब किरण की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘पता नहीं इस का ध्यान कहां रहता है. घर की बड़ी है, तो इस का भी कुछ कर्तव्य…’’

तभी  राघव बोल पड़े, ‘‘प्रशोभा, तुम अपनी प्लेट में जो भी मन करे, ले लो.’’

मैं ने अपनी प्लेट में नाश्ता ले कर खाना शुरू कर दिया. डाइनिंग टेबल के आसपास कुछ देर को चुप्पी छा गई, जिसे भंग करते हुए मैं ने भी दीदी से पूछा, ‘‘दीदी, आप ने बताया नहीं कि जीजाजी साथ क्यों नहीं आए?’’

‘‘तुम्हारे जीजाजी अपने बैंक का औडिट करवाने में फंसे थे, उन्हें छुट्टी न मिली तो मु झे पहले भेज दिया. अब वे शादी से एक दिन पहले ही आ पाएंगे.’’

दीदी की बातें सुनते हुए मैं ने 1-2 बार जेठ की तरफ देखा, वे नाश्ता तो कर रहे थे पर उन का पूरा ध्यान मु झ पर था. अपनी तरफ से उन का ध्यान हटाने के लिए मैं ने उन की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘भाईसाहब, माधव भैया नाश्ता नहीं कर रहे हैं, कहां हैं वे?’’

‘‘अरे, वह अपनी दुनिया में व्यस्त होगा, जब से शादी तय हुई है, बस, दिव्या से चैट करने में ही लगा रहता है.’’

‘‘तो इस में क्या बुराई है. यही तो दिन होते हैं जब चैटिंग का अलग ही मजा होता है,’’ किरण दीदी बोल पड़ीं तो जेठजी से बरदाश्त न हुआ. खी झते हुए वे बोले, ‘‘ऐसा भी क्या मजा जो सारी बातें शादी होने से पहले ही  कर डालो?’’

‘‘तुम नहीं सम झोगे इन बातों को क्योंकि तुम इस दौर से नहीं गुजर पाए.’’

‘‘अरे, वह तो तू आड़े आ गई और पिताजी अड़ गए कि घर में बड़ी बहन बैठी है, इसलिए तेरी शादी मैं उस से पहले नहीं कर सकता.’’

‘‘तो ऊधव, इस में पिताजी ने क्या बुरा सोचा. एक बार को मान लो, मैं उन को इस बात के लिए मना भी लेती कि मेरी शादी से पहले वे तुम्हारी शादी कर दें लेकिन तब तक तुम्हारी नौकरी भी तो नहीं लगी थी और तुम शादी की जिद पकड़ कर बैठ गए थे. फिर मु झे तो कभी ऐसा नहीं लगा कि कंचन तुम से उतना प्यार करती थी जितना तुम उस के दीवाने हो गए थे,’’ दीदी ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा.

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उन दोनों की बहस बढ़ती देख कर राघव बोल पड़ा, ‘‘दीदी, इस बहस का अब क्या मतलब है. अब तो उस की शादी हुए भी कई साल हो गए हैं.’’

‘‘राघव, अब तुम्हीं बताओ, क्या दुनिया में लड़कियों की कमी है, लेकिन पिता से ऐंठ और खुद से प्रण करे बैठे हैं कि मु झे शादी नहीं करनी है. यह भी कोई प्रण हुआ, यह तो मांबाप को दुख देना हुआ.’’

शायद किरण दीदी की यह बात भाईसाहब को चुभ गई थी. इसलिए वे उठे और उसी बरामदे से ऊपर जाने वाली सीढि़यों से चढ़ कर अपने कमरे में चले गए.

नाश्ता कर के मैं और राघव मां के पास जा कर बैठ गए. दीदी, नितिन को ले कर अपने कमरे में चली गई थीं.

मां राघव को देखते ही खुश हो गईं. मां के पैर छू कर जैसे ही राघव उन के पास बैठा, वे बोल पड़ीं, ‘‘अब मैं निश्ंिचत हो गई हूं. बहू मेहमानों को संभाल लेगी और तू बरातियों के ठहरने व उन की आवभगत की व्यवस्था संभाल लेगा.’’

‘‘हां मां, मैं बड़े भैया के साथ मिल कर सब संभाल लूंगा. तुम चिंता  मत करो.’’

‘‘तुम अपने बड़े भैया के चक्कर में न रहना. बातें ज्यादा करता है, काम कम. वह तो माधव ने कानपुर में नवीन मार्केट के पास 2 अलगअलग होटलों में समय रहते कमरे बुक न करा लिए होते तो इस समय हम परेशान हो जाते,’’ मां ने बताया.

‘‘ठीक है मां, पर बरात कन्नौज जाती तो ज्यादा मजा आता.’’ मैं ने अपने मन की बात कही तो सास बोलीं, ‘‘अरे बेटी, सब तेरे पिताजी की तरह नहीं सोचते हैं कि लड़की की बरात द्वारे आनी चाहिए. अब उन्होंने रोका के समय रुपए हमें पकड़ा दिए और जनवासा, बैंड, घोड़ी, कैटरिंग आदि की सब व्यवस्था कह कर कानपुर से ही शादी करने को कह दिया.

‘‘राघव के पिताजी ने भी उन की बात मान ली और बोले, ‘‘ठीक है फिर हम भी शादी से 2 दिनों पहले कानपुर के होटल में शिफ्ट हो जाएंगे.’’

अपनी बातें पूरी कर के सास चुप हुईं. तो राघव ने मां को तसल्ली दी, ‘‘ठीक है मां, अच्छा ही हुआ. भोगनीपुर में कानपुर जैसी व्यवस्था हो भी नहीं पाती. पिताजी ने ठीक ही किया. अब मैं आ गया हूं, कल माधव के साथ कानपुर जा कर सारी व्यवस्था सम झ लेता हूं.’’

फिर राघव मु झे बहू के नए सूटकेस में साडि़यां जमाते देख कर बोला, ‘‘अरे प्रशोभा, मां को कांजीवरम की वह साड़ी भी तो ला कर दिखाओ जो हम दिव्या को देने जा रहे हैं और चांदी की करधनी भी लेती आना.’’

राघव ने कहा तो मैं उठ कर ऊपर चली गई जहां हमारा सामान रखवा दिया गया था. ऊपर पहुंच कर मैं जेठ के कमरे के सामने से गुजरती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ ही रही थी कि मेरे पैरों से चलने के कारण बजने वाली पायल की आवाज सुन कर जेठजी ने कमरे के भीतर से पुकारा, ‘‘अरे, प्रशोभा, इधर आओ, तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है.’’

मैं उन के कमरे के दरवाजे पर खड़ी हो कर बोली, ‘‘कैसा सरप्राइज भाईसाहब?’’

‘‘अरे अंदर तो आओ,’’ कह कर वे पलंग से उठ कर खड़े हुए और अपनी वार्डरोब से एक पैकेट निकाल कर मु झे देते हुए बोले, ‘‘यह बनारसी साड़ी है और इस के साथ पेटीकोट व ब्लाउज भी है. शायद यह तुम्हारे लिए ही अब तक रखी है. इसे शादी वाले दिन जब तुम पहनोगी तो शायद ही पूरी बरात में तुम से सुंदर कोई और दिखाई दे. और वैसे भी, कंचन के बाद अगर कोई मु झे अच्छा लगा तो वह तुम ही हो.’’

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‘‘लेकिन भाईसाहब, राघव ने मु झे इलाहाबाद से मेरी पसंद का बहुत ही सुंदर लंहगाचोली सैट दिलवाया है, मैं तो बरात वाले दिन वही पहनूंगी.’’

मैं ने यह कहा तो उन के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे. वार्डरोब बंद कर के मेरी ओर बढ़ते हुए बोले, ‘‘ठीक है इसे परसों लेडीज संगीत वाले दिन पहन लेना कितने प्यार से मैं ने अब तक इसे संभाले रखा है. अब मेरी तो दुलहन आने से रही, तुम्हीं इसे पहन लो.’’

भावनाओं में बहकते हुए वे मेरी ओर साड़ी का पैकेट लिए बढ़ते चले आ रहे थे.      -क्रमश:

Serial Story: जेठ जीजाजी – भाग 1

लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर

सवेरे जब मैं उठी तो राघव सो रहा था. मैं ने उसे उठाना चाहा पर रुक गई. एक ही तो बाथरूम था, उसे उठा दूंगी तो  फिर वह मु झे भीतर नहीं जाने देगा और खुद अंदर घुस गया तो निकलने में घंटों लगा देगा. पता नहीं उसे नहानेधोने व फ्रैश होने में इतनी देर क्यों लगती है.

कल सवेरे फैक्ट्री जाने से पहले राघव ने अपने छोटे भाई माधव की शादी में एक हफ्ता पहले पहुंचने की प्लानिंग की थी और मेरे लिए शादी के बाद अपनी ससुराल जाने का पहला मौका था. शादी होते ही राघव मु झे अपने साथ ही यहां ले आया था. तब से एक साल बीत चुका था और हम कानपुर नहीं जा पाए थे. जबकि, मायके तो राघव को ले कर मैं शादी के बाद इन सालों में कई बार हो आई थी. राघव मु झे वहां 1-2 दिन रहने के लिए छोड़ भी देता था.

मु झे मायके जल्दीजल्दी मिला लाने के पीछे उस की एक लालसा थी, अपनी एकमात्र और मु झ से 2 साल बड़ी अविवाहित साली से चुहलबाजी करने का अवसर मिलना.

मेरी बड़ी बहन शोभा की शक्लसूरत बहुतकुछ मु झ से मिलती थी. पर बचपन से ही एक पैर दूसरे पैर के मुकाबले 2 इंच छोटा होने के कारण स्पैशल जूते या चप्पल पहनने के बाद ही यह ऐब छिप पाता था. लेकिन चाल में हलकी लंगड़ाहट नहीं छिप पाती थी.

शोभा पढ़ने में बहुत तेज थी. बीए व बीएड करने के बाद उस की केंद्रीय विद्यालय में टीचिंग जौब लग गई थी. लेकिन शादी करने के बहुत प्रयत्न करने के बाद मेरे मातापिता निराश हो कर बैठ गए थे.

फिर जब मैं ने साइकोलौजी से एमए कर लिया तो जो रिश्ता आता उन लोगों का पिताजी से यही जवाब होता, ‘देखिए, आप की बड़ी बेटी यों तो छोटी से सुंदर बहुत है पर उस के पैर के दोष के कारण हम अपने लड़के से उस की शादी करने में असमर्थ हैं. हां, अगर आप चाहें तो हम आप की छोटी बेटी को बहू बनाने को तैयार हैं.

इस का असर यह हुआ कि शोभा ने अपने दिल से शादी का खयाल निकाल दिया और मातापिताजी से स्पष्ट कह दिया, ‘आप लोग मेरी शादी के लिए परेशान न हों और प्रशोभा की शादी कर दीजिए.’

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फिर पिताजी भी चाहते थे कि सेवानिवृत्ति से पहले कम से कम एक लड़की की शादी तो कर ही दें.

रिश्ते बहुत से आए पर अब शोभा ने लड़के वालों के सामने आने से ही मना करना शुरू कर दिया और जब राघव का रिश्ता आया तो उस ने मु झे अपने कमरे में बुलाया और कहा, ‘प्रशोभा, मेरे कारण तू अपनी उम्र के सुंदर वर्ष क्यों खराब किए जा रही है. देख, यह लड़का नैनी कैमिकल फैक्ट्री में कैमिकल इंजीनीयर है और सुंदर भी है. तु झे मेरी कसम जो मेरे कारण तू ने इस रिश्ते से इनकार किया.’

और मेरी शादी राघव से हो गई. राघव दिल का बहुत अच्छा था. जब उसे मैं ने शोभा के बारे में बताया तो वह उस के प्रति आदर व सम्मान के भावों से भर गया और पहली बार में ही शोभा से ऐसी दोस्ती कर ली कि दोनों  खूब बतियाते.

मैं शोभा को हंसतेखिलखिलाते देख कर इसलिए खुश हो जाती कि कम से कम राघव से मिल कर उस के चेहरे पर ऐसी प्रसन्नता तो दिखती जिस का उस के जीवन में अकाल पड़ चुका था.

राघव के साथ वह अपने को बहुत ही सहज पाती थी, इसलिए अपने मोबाइल कैमरे से जब मैं उन दोनों की फोटो खींच कर उसे दिखाती तो वह बहुत खुश हो जाती.

ससुराल के मुकाबले मायका इलाहाबाद से करीब भी था. सिराथू, इलाहाबाद से 63 किलोमीटर दूर, कानपुर रूट पर था.

राघव के साथ बाइक पर पीछे बैठ कर हम 2 घंटे में सिराथू पहुंच जाते थे. जबकि, कानपुर के पास भोगनीपुर तहसील में ससुराल था जहां पहुंचने के लिए कानपुर तक ट्रेन से जाना उचित रहता था.

हमें सवेरे 7 बजे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से ट्रेन पकड़नी थी, क्योंकि राघव की एक हफ्ते की छुट्टी स्वीकृत हो गई थी.

इसलिए सवेरे मैं जब उठ गई तो चाय की चिंता छोड़ कर अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई. यह नैनी में स्थापित कैमिकल फैक्ट्री से मिला हुआ 2 छोटे कमरे, एक ड्राइंगरूम, किचन और एक बाथरूम वाला आवंटित फ्लैट था.

बाथरूम के साथ ही अटैच्ड टौयलेट था. मैं ने घड़ी देखी, 5.30 बज रहे थे. फटाफट फ्रैश हो कर नहाईधोई और तैयार हो कर राघव को जगाया. बस, बाल काढ़ने रह गए थे. मु झे पता था कि जब तक वह बाथरूम से निकलेगा, मेरे बाल भी कढ़ जाएंगे और चायनाश्ता भी तैयार हो जाएगा.

अटैची और बैग तो मैं ने कल रात ही तैयार कर लिए थे.

सोते हुए राघव को मैं ने तेजी से हिला कर जगाया, ‘सोते रहोगे क्या? उठो, ट्रेन पकड़नी है, समय हो रहा है.’

वह कुनमुना कर उठ बैठा. उसे उठता देख कर मैं ने पलट कर वापस ड्रैसिंग टेबल की तरफ बाल संवारने हेतु कदम बढ़ाया ही था कि उस ने मेरा हाथ पकड़ कर मु झे बिस्तर पर खींच लिया और दबोच कर 4-5 चुंबन ले डाले.

‘अरे, यह भी कोई समय है यह सब करने का. जल्दी से उठो और तैयार हो जाओ वरना ट्रेन छूट जाएगी,’ मैं उठ कर साड़ी ठीक करते हुए बोली.

‘मन तो नहीं कर रहा है उठने का पर तुम कहती हो तो उठना ही पड़ेगा,’ कहते हुए वह पलंग से उतरा, जम्हाई लेते हुए दोनों हाथ ऊपर कर के एक अंगड़ाई ली और समय देखता हुआ बाथरूम में घुस गया.

रोज के मुकाबले आज राघव बाथरूम से थोड़ा जल्दी निकल आया और तुरंत कपड़े पहन कर तैयार हुआ.

नाश्ता कर के हम ने घर लौक किया और औटो कर के सामान समेत समय से थोड़ा पहले स्टेशन पहुंच कर ट्रेन में बैठ गए.

शाम को समय से 45 मिनट लेट ट्रेन कानपुर पहुंची. वहां उतर कर हम टैम्पो कर के भोगनीपुर पहुंचे.

मेरे जेठ ऊधव और देवर माधव दोनों हमें देखते ही प्रसन्न होते हुए घर से बाहर निकल आए. जेठ पर नजर पड़ते ही मैं ने दुपट्टा सिर पर डाला और उन के पैर छूने को  झुकी तो पीछे हटते हुए उन्होंने हाथ बढ़ा कर मु झे रोकते हुए कहा, प्रशोभा, ‘‘तुम तो मु झे नमस्ते या फिर हैलोहाय ही किया करो. ये पैरवैर छूना मु झे ओल्ड फैशन लगता है. अब यह इंटरनैट, मोबाइल, व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब का जमाना है.’’

‘‘राघव पैर छुए और मैं हैलोहाय करूं, यह शोभा नहीं देता भाईसाहब,’’ कहते हुए मैं फिर उन के पैर छूने के लिए बढ़ी तो उन्होंने तेजी से कहा, ‘‘मु झे अपने पैर नहीं छुआने हैं.’’

‘‘तो फिर राघव से क्यों छुआए?’’

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‘‘उस की बात अलग है. अच्छा, अब घर के अंदर चलो,’’ कहते हुए वे माधव को हमारा सामान ऊपर उन के कमरे के बगल वाले कमरे में रखवाने का निर्देश देते हुए घर के अंदर चले गए.

राघव से 5 साल बड़े जेठ ऊधव ने पिता के आड़े आ जाने के कारण अपनी प्रेमिका से शादी न हो पाने की खुन्नस में आजीवन कुंआरा रहने का प्रण ले लिया था.

देवर माधव कंप्यूटर साइंस से बीई करने के बाद कानपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण में डाटा औपरेटर था.

माधव की शादी कन्नौज के इत्र व्यापारी की लड़की दिव्या से तय हो गई थी और लड़की वाले कानपुर आ कर ही शादी कर रहे थे.

माधव ने हमारा सामान ऊपर वाले कमरे में पहुंचवा दिया. यह ससुर को विरासत में मिला 5 कमरों और एक ड्राइंगरूम तथा बीच में आंगन व बरामदे वाला बड़ा सा पैतृक मकान था.

मैं ने बाहरी बैठक के कोने में पड़े एक बड़े से मोटे गद्दे और सुंदर से कालीन बिछे दीवान पर बैठे अपने ससुर के पास राघव के साथ जा कर उन के पांव छुए और फिर सास से मिलने अंदर कमरे में पहुंची तो वे अपनी बड़ी बेटी के साथ नई बहू का संदूक तैयार करने में जुटी हुई थीं.

मैं ने ननद के भी पैर छुए और फिर सास के पास जैसे ही बैठी, उन्होंने मेरा हालचाल पूछने के बाद कहा, ‘‘बड़ा अच्छा हुआ तू आ गई. मैं और किरण नई बहू की अटैची तैयार करने में जुटे थे, तेरे आ जाने से मेरा काम अब आसान हो जाएगा.’’

मां की बात खत्म होते ही ननद किरण, ‘‘मां, मैं अभी आई’’ कह कर कमरे से बाहर चली गई. उन के जाते ही मैं मां के साथ अटैची सजाने में जुट गई.

सास ने बताना शुरू किया, ‘‘प्रशोभा, मैं ने सोने के आभूषण जितने तु झे चढ़ाए थे उतने ही माधव की बहू दिव्या को भी चढ़ा रही हूं. उस की मेकअप किट भी तु झे ही सजानी है…’’

सास ये सब बातें कर ही रही थीं कि जेठ उसी कमरे में आ कर मां से बोले, ‘‘क्या मां, प्रशोभा को आते ही आप ने काम पर लगा दिया. उस ने चाय नहीं पी, हाथमुंह तक नहीं धोया…’’

मैं ने उन की बात काटते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं इलाहाबाद से नहाधो कर चली थी.’’

इस पर वे बोले, ‘‘हांहां प्रशोभा, जानता हूं नहा कर ही चली होगी लेकिन सफर कर के आ रही हो, इसलिए पहले कुछ खापी लो, फिर काम में जुटना. हमेशा याद रखो, पहले पेटपूजा फिर काम दूजा.’’

इतना कह कर वे बहुत धीरे से बड़बड़ाए, ‘यह किरण तो शादी के बाद इतनी कामचोर हो गई है कि थोड़ी देर और मां के पास नहीं बैठ सकती थी. जैसे ही देखा, प्रशोभा आ गई है, बस, मां के पास से भाग ली.’

आगे पढ़ें- सास के कहने पर मैं वहां से उठ कर….

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आखिर युवाओं पर राजद्रोही होने के आरोप क्यों बढ़ते जा रहे हैं?

आशंकाएं तो संविधान निर्माण समिति की बैठकों में भी व्यक्त की गई थीं कि राजद्रोह का मामला कभी हथियार की तरह इस्तेमाल न हो. लेकिन उस दौर में देश प्रेम से ओत प्रोत माहौल था और शायद उस माहौल में यह सोचना कुछ ज्यादा ही अविश्वासी होना होता कि भविष्य में कभी सरकारें ऐसा भी कर सकती हैं. लेकिन हाल के सालों में जिस तरह से राजद्रोह के आरोप बढ़ रहे हैं और खासकर युवाओं को में बढ़ रहे हैं, वह एक बड़ी चिंता का विषय है. पिछले दो सालों में 6,300 लोगों पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ है यानी इन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून यानी यूपीए के तहत केस दर्ज हुआ है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि ये सब राजद्रोही साबित हुए हैं. पिछले कई सालों से यूं तो राजद्रोह के आरोप में हजारों की संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है, लेकिन अदालत में बमुश्किल अभी भी एक से दो फीसदी लोगों पर ही आरोप तय किये जा सकें हैं. इससे साफ पता चलता है कि जो भी लोग सरकार के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें राजद्रोही मान लिया जाता है, फिर भले अदालत उन्हें ऐसा न माने और बाइज्जत बरी कर दें लेकिन अदालत से बरी होने के पहले तक जिस लंबे तनाव, परेशानियों और अपमान से गुजरना पड़ता है, वह किसी सजा से कम नहीं हैं.

साल 2020 में सीएए और दिल्ली दंगों के दौरान राजद्रोह के तहत 3000 लोगों को आरोपी बनाया गया. पर बाद में सीएए विरोधियों में से 25 और दिल्ली दंगों के आरोपियों में से 26 लोगों के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे दर्ज हुए और इनमें सिर्फ दो फीसदी लोगों पर अदालत में आरोप तय किये जा सके. इससे साफ पता चलता है कि किस तरह राजद्रोह कानून का इस्तेमाल बढ़ गया है. साल 2014 में 47, साल 2015 में 30, साल 2016 में 35, 2017 में 51, साल 2018 में 70, साल 2019 में 96, साल 2001 में 101 लोगों पर राजद्रोह के मुकदमे दर्ज हुए. यह तब है जबकि लगातार अदालतें चाहे वह विभिन्न हाईकोटर््स हो या सुप्रीम कोर्ट कह रही हैं कि हिंसा, असंतोष, अराजकता न फैले तो सरकार की आलोचना करना राजद्रोह नहीं है. इसके बावजूद सरकार लगातार युवाओं को राजद्रोही करार दे रही है.

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पिछले दिनों दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा की अदालत में जब 21-वर्षीय पर्यावरण एक्टिविस्ट दिशा रवि ने अपने वकील के जरिये कहा, “अगर किसानों के विरोध-प्रदर्शन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाना राजद्रोह है, तो मैं जेल में ही बेहतर हूं.” दिशा के वकील का साफ कहना था कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि किसानों के आंदोलन से संबंधित टूलकिट का 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में हुई हिंसा से कोई ताल्लुक है. लेकिन दिल्ली पुलिस का अदालत से कहना था कि दिशा रवि ‘किसान आंदोलन की आड़ में भारत को बदनाम करने व अशांति उत्पन्न करने की अंतर्राष्ट्रीय साजिश के इंडियन चैप्टर का हिस्सा हैं’. पुलिस के मुताबिक दिशा रवि उन लोगों के संपर्क में थीं, जो खालिस्तान की वकालत करते हैं. इन परस्पर विरोधी दावों पर अभी भी अंतिम फैसला नहीं आया कि कौन सही है और कौन गलत है? लेकिन जिस निरंतरता से युवाओं को राजद्रोह व यूपीए जैसे कठोर कानूनों के तहत सलाखों के पीछे भेजा जा रहा है, उन्हें जिस तरह सोशल मीडिया के जरिये सुनियोजित तरीके से बदनाम किया जा रहा है, उससे लगता है कि सरकार नहीं चाहती कि देश की नयी पीढ़ी सोचने, समझने और तर्क करने वाली हो.

इसका पता इस बात से चलता है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2019 में राजद्रोह के तहत जिन लोगों पर आरोप मढ़े गये, उनमें से ज्यादातर की उम्र 18-30 साल के बीच थी. चाहे क्लाइमेट एक्टिविस्ट दिशा रवि हों, पिंजरा तोड़ फेमिनिस्ट देवांगना कलिता व नताशा नरवाल हों, स्टूडेंट एक्टिविस्ट गुलफिशा फातिमा हों. इन सबको इन्हीं कठोर कानूनों के तहत जेल में बंद किया गया. यही नहीं इस दौरान सोशल मीडिया में इनकी नैतिकता न केवल सवाल उठाये गये बल्कि इन्हें बदनाम किया गया और किया जा रहा है. मसलन दिशा रवि के बारे में सोशल मीडिया में खूब प्रचार किया गया कि वह गर्भवती हैं. सवाल है क्या गर्भधारण करना देश में कोई कानून अपराध है? मालूम हो कि इसी तरह से सीएए एक्टिविस्ट सफूरा जरगर की प्रेग्नेंसी पर भी खूब कीचड़ उछाला गया था. साल 2017 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की छात्राओं ने जब लिंग भेदभाव के विरुद्ध प्रदर्शन किया था तो पुलिस ने न सिर्फ उनपर लाठियां बरसायी थीं बल्कि उनके ही उप-कुलपति ने उन पर ‘अपनी इज्जत नीलाम करने’ (मार्केटिंग देयर मोडेस्टी) का अति आपत्तिजनक आरोप लगाया था.

इससे साफ पता चलता है कि हमारा समाज 21वीं शताब्दी के 21वें साल में भी पितृसत्तात्मक सोच से बाहर नहीं निकल पाया. वह आज भी महिला को ‘संपत्ति’ व ‘संतान (बल्कि पुत्र) जनने की मशीन’ ही समझता है, जिसकी देखभाल व नियंत्रण की जिम्मेदारी केवल पुरुष की है. इसलिए वह नहीं चाहता कि महिलाएं इतनी स्वतंत्र हो जायें कि वह सोचने, समझने व आवाज उठाने लगें. संभवतः यही कारण है कि ‘जेल व बदनामी’ की पुरानी रणनीति अपनाते हुए कुछ युवा महिलाओं को प्रतीकस्वरूप टारगेट किया जा रहा है ताकि बाकी सब अपने आप खामोश हो जायें. लेकिन शायद बात इतनी सरल है नहीं. असल मुद्दे को समझने के लिए थोड़ा गहराई में जाने की आवश्यकता है क्योंकि निशाने पर केवल युवा महिलाएं ही नहीं हैं बल्कि युवा पुरुष भी हैं. आज अधिकतर इलेक्ट्रॉनिक चैनल तथ्यपरक व तटस्थ रिपोर्टिंग करने की बजाय अपने द्वारा निर्धारित बे-सिर पैर की बातों को मुद्दा बनाकर दिन रात बेतुकी बहसों से पब्लिक ओपिनियन बनाने का प्रयास करते रहते हैं. दैनिक अखबारों का चरित्र राष्ट्रीय कम, क्षेत्रीय अधिक हो गया है. इसलिए जनता को लगता है कि ‘ईश्वर स्वर्ग में है और संसार में सब कुशल है’. लेकिन ऐसा है नहीं. विभिन्न मुद्दों को लेकर अपने देश में अनेक जगहों पर विरोध-प्रदर्शन चल रहे हैं, और हम किसान आंदोलन की बात नहीं कर रहे हैं. मसलन, जम्मू में हाईकोर्ट का नया कैंपस बनाने के लिए बाहु कंजर्वेशन रिजर्व में राइका वन के 38,006 पेड़ काटे जा सकते हैं, जिसका विरोध करने के लिए ‘क्लाइमेट फ्रंट जम्मू’ के बैनर तले सैंकड़ों एक्टिविस्टों ने वैलेंटाइन डे पर 1973 के चिपको आंदोलन की याद दिलाते हुए पेड़ों को गले लगा लिया और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के नाम पर पेड़ों के काटे जाने व पर्यावरण को असंतुलित करने का विरोध किया.

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इन युवाओं ने वैलेंटाइन डे मनाने की बजाय पर्यावरण जागृति को वरीयता दी और कहा, “हम प्रकृति के साथ वैलेंटाइन डे मना रहे हैं. हमने पेड़ों को गले लगाकर, प्रेम की गांठ लगाकर और प्रेम पत्र लिखकर अपने प्रेम का इजहार किया ताकि यह संदेश पहुंच जाये कि हम अपने पर्यावरण की केयर करते हैं और उसकी रक्षा करना चाहते हैं.” जिस तरह आरे वन मुंबई के लंग्स हैं, जिन्हें बचाने के लिए युवा आंदोलन कर रहे हैं उसी तरह डुमना नेचर रिजर्व जबलपुर के लंग्स हैं, जिसमें 57 स्तनधारियों की प्रजातियां, 296 पक्षियों की प्रजातियां आदि का बसेरा था. एक समय था जब डुमना 10,000 हेक्टेयर में फैला हुआ था, अब सिमटकर लगभग 1800 एकड़ में रह गया और इसका भी बचा रहना मुश्किल है क्योंकि अन्य प्रोजेक्टों के लिए इसकी भूमि को आवंटित कर दिया गया, जिससे रिजर्व में वन्य जीवन को और जबलपुर में मानव जीवन को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है. डुमना को बचाने के लिए तीन जनहित याचिकाएं मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में दायर की गई हैं, और युवा मानव श्रृंखला बनाकर व अलग अलग तरह से प्रदर्शन करके प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स का विरोध कर रहे हैं.

इस प्रकार के विरोध-प्रदर्शनों की एक लम्बी सूची है, लेकिन इन सबमें एक साझा बात यह है कि इनका नेतृत्व स्वतंत्र सोच रखने वाले वह युवा कर रहे हैं जो पर्यावरण, समता, सांप्रदायिक सौहार्द, महिला सुरक्षा, मानवाधिकार, रोजगार आदि मूल्यों को समझते व महत्व देते हैं. कॉर्पोरेट जगत इन युवाओं को अपने इरादों में अड़चन के रूप में देखता है और सियासी तंत्र अच्छी तरह से समझता है कि देश में अधिकतर सफल व मजबूत आंदोलनों की नींव शिक्षित युवाओं ने ही रखी है, जैसे 1970 के दशक में गुजरात का नव निर्माण आंदोलन और बिहार की छात्र संघर्ष समिति का आंदोलन, जो बाद में जेपी नारायण के नेतृत्व में श्रीमती इंदिरा गांधी की ‘तानाशाही’ को खत्म करने की बड़ी वजह बना. अब कहीं बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, पर्यावरण से छेड़छाड़ आदि के कारण युवाओं की छोटी छोटी चिंगारियां मिलकर शोला न बन जायें, इसलिए उन्हें ‘समय-रहते नियंत्रण’ करने का प्रयास दिखायी दे रहा है.

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भांग के नशे में गुनाह कबूल करेगी भवानी तो करीब आएंगे विराट और सई

बीते दिनों सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) के विराट और पाखी यानी नील भट्ट (Neil Bhatt), ऐश्वर्या शर्मा (Aishwrya Sharma) को कोरोना हो गया था, जिसके चलते शो की शूटिंग रोक दी गई थी. वहीं इसका असर शो की कहानी में भी देखने को मिला था. लेकिन हाल ही में दोनों कलाकारों ने कोरोना को मात देकर शो की शूटिंग शुरु कर दी है, जिसके बाद अब शो की कहानी में भी नए मोड़ देखने को मिलने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

होली में आएगा नया ट्विस्ट

अब तक आपने देखा कि शो में होली का जश्न मनाया जा रहा है, जिसमें पूरा परिवार खुशी से झूमता दिख रहा है. इसी बीच आपने देखा कि अनजान इंसान बनकर सई, भवानी को ब्लैकमेल करती नजर आती है. इतना ही नहीं सई भवानी से एक करोड़ रुपए की डिमांड भी करती है. हालांकि भवानी (Kishori Shahane Vij) अपने दोनों चमचों की मदद से सारे सबूत मिटा चुकी है. दूसरी तरफ सई, पुलकित और देवयानी की शादी होली के दिन करवाने का फैसला करती नजर आती है.

 

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सई बनाएगी ये प्लान

वहीं आने वाले एपिसोड में जहां सई, भवानी की पोल खोलने के लिए उसे भांग पिलाने का प्लान बनाती दिखेगी दरअसल, देवयानी के खातिर पुलकित भवानी के खिलाफ जाने से इनकार करता नजर आएगा. साथ ही वह कहेगा कि वो भवानी के खिलाफ कोई सबूत नहीं देगा, जिसके बाद सई भवानी की ड्रिंक में भांग मिला देगी और विराट के सामने सच्चाई लाने की कोशिश करेगी.

सई विराट आएंगे करीब

भवानी की सच्चाई समाने लाने के दौरान विराट और सई भी भांग के नशे में चूर होते नजर आएंगे, जिस दौरान दोनों एक दूसरे के करीब आएंगे. वहीं विराट और सई को करीब देखकर पाखी का दिल टूटता नजर आएगा.

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तलाक से पहले बदला अनुपमा का अवतार, वनराज संग बाइक पर सैर करतीं आईं नजर

सीरियल अनुपमा में नए-नए ट्विस्ट एंड टर्न्स दर्शकों को एंटरटेन कर रहे हैं. जहां जल्द काव्या का वनराज और अनुपमा के तलाक का सपना पूरा होने वाला है तो वहीं शो के मेकर्स ने कहानी में नया मोड़ लाने का प्लान बना लिया है. दरअसल, तलाक से पहले पाखी अपने माता पिता को अलग होने से रोकने के लिए नया प्लान बनाएगी, जिसके कारण काव्या की जलन भी सातवें आसमान पर पहुंच जाएगी. आइए आपको बताते हैं शो के आने वाले एपिसोड की कहानी…

पाखी बनाती है ये प्लान

अब तक आपने देखा कि होली के बाद अनुपमा होश में आती है और बा और पूरे परिवार से भांग पीने के बाद किए गए अपने बर्ताव के लिए माफी मांगती है. हालांकि पाखी कहती है कि हमलोग आपसे नाराज नहीं है क्योंकि आपने अपने दिल की बात कही. दूसरी तरफ पाखी, वनराज से कहती है कि स्कूल में कुछ प्रोगाम हो रहा, जिसमें साथ में फैमिली भी चल सकती है तो आप भी साथ में चलिए. बा औऱ पूरा परिवार सोचता है कि उन्हें घूमने भेजकर अनुपमा और वनराज का तलाक रोक सकते है. वहीं काव्या, अनुपमा के वनराज के करीब होने से गुस्से में नजर आती है.

 

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साथ वक्त बिताएंगे वनराज-अनुपमा

इन्हीं मामलों के बीच काव्या का गुस्सा धीरे धीरे बढ़ने वाला है. दरअसल, आने वाले एपिसोड में परिवार और पाखी के कहने पर वनराज और अनुपमा बाइक पर घूमने के लिए जाएंगे. इस दौरान अनुपमा साड़ी के बजाय सूट में नजर आएगी तो वनराज जींस और टीशर्ट में दिखेगा. वहीं बाइक पर घूमने के दौरान दोनों एक दूसरे के करीब भी नजर आएंगे. दूसरी तरफ काव्या, वनराज और अनुपमा को फोन करेगी. लेकिन दोनों बाइक पर होने के कारण फोन नही उठाएंगे, जिसके बाद काव्या गुस्से से लाल पीली हो जाएगी.

 

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बता दें, जल्द ही वनराज और अनुपमा और तलाक होने वाला है, जिसके बाद शो की कहानी में नए किरदार की एंट्री होगी, जो अनुपमा की जिंदगी में प्यार की उम्मीद लेकर आएगा.

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Summer Tips: इन 6 फेब्रिक से मिलेगी गरमी से राहत

बसन्त के गुजरने के बाद से ही गर्मी अपनी दस्तक देनी प्रारम्भ कर देती है. होली के बाद से तो गर्मी अपना रूप दिखाने ही लगती है. घरों में गर्मी के ताप को कम करने के लिए एसी और कूलर की मरम्मत कराई जाती है. गर्मी के दिनों में सबसे बड़ी समस्या रोज में पहनने वाले वस्त्रों को लेकर होती है क्योंकि गर्मी में भी घर के कामों में कमी तो होती नहीं. इसलिए इस समय ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है जो पहनने में आरामदायक हों और जिन्हें पहनने पर शरीर को ठंडक का अहसास हो. आज हम ऐसे कुछ फैब्रिक्स के बारे में बता रहे हैं जिनसे बने कपड़े पहनने पर आप बहुत आराम महसूस करेंगी.

1. कॉटन

सूती धागे से बना यह फेब्रिक अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, इससे बने कपड़े पूरे वर्ष भर तक पहने जाते हैं. गर्मी के लिए इसे आदर्श फेब्रिक माना जाता है क्योंकि इसमें पसीना सोखकर शरीर को ठंडा रखने की अद्भुत क्षमता होती है. इससे बने कपड़े हर रंग, स्टाइल और पैटर्न में मिलते हैं. कॉटन के हल्के रंग के कपड़े पहनते समय अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इस पर धब्बे बहुत जल्दी लग जाते हैं.

 

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2. लिनन

 

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फ्लेक्स नामक पौधे से बनाये जाने के कारण यह एक नेचुरल फाइबर होता है. इससे बने कपड़े बहुत कूल, हवादार, फ्रेश, हल्के और आरामदायक होते हैं. आजकल बाजार में लिनन से बने हर पैटर्न के कपड़े मौजूद हैं.

3. शैम्ब्रे

डेनिम के जैसा ही दिखने वाला फेब्रिक होता है ये परन्तु डेनिम जहां वजन में भारी होती है वहीं यह एकदम हल्के वजन वाला होता है. इसीलिए इस फेब्रिक से बने कपड़े गर्मियों में पहनना आरामदायक होता है. इसकी बुनाई बेहद बारीक और थ्रेड काउंट बहुत अधिक होता है इसलिए यदि आप डेनिम जैसा लुक चाहतीं हैं तो इस फेब्रिक से बने कपड़ों का प्रयोग अवश्य करें.

4. रेयान

लकड़ी जैसे प्राकृतिक पदार्थ से मशीनों द्वारा बनाया जाने वाला रेयॉन मेन मेड फेब्रिक कहलाता है. इसके तन्तु बेहद नाजुक और गर्मियों में ठंडक देने वाले होते हैं. इस फेब्रिक से आमतौर पर स्पोर्ट्स वियर और समर ड्रेसेज बनाने में किया जाता है.

5. सिल्क जॉर्जेट

यह देखने में एकदम सिल्क जैसा प्रतीत होता है सिल्क की अपेक्षा यह बेहद हल्का, डल फिनिश और अच्छी फ्लो लेंथ वाला फेब्रिक होता है. कुर्ते, इवनिंग गाउन, और स्कर्ट जैसे पार्टी वियर ड्रेसेज इसी से बनायीं जातीं हैं.

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6. शिफॉन

 

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वजन में एकदम हल्का, पारदर्शी और हर रंग में मिलने वाला यह फेब्रिक डेली यूज के लिए उपयुक्त नहीं होता क्योंकि यह बहुत नाजुक फेब्रिक होता है जिसे बहुत देखभाल की आवश्यकता होती है. यद्यपि यह शरीर को ठंडक देता है. वास्तविक शिफॉन काफी महंगा भी होता है इसलिए हर इंसान इसे नहीं खरीद पाता परन्तु पार्टी आदि में इससे बने कपड़े अपना जलवा अवश्य दिखा देते हैं.

Summer Special: फैमिली के लिए बनाएं आलू पिज्जा

अगर आप भी बदलते मौसम में कुछ टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो आलू पिज्जा की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा. आलू पिज्जा आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली को स्नैक्स में खिला सकते हैं.

सामग्री बेस की

–  1 कप आलू कसे

–  1-2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

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–  1 छोटा चम्मच नीबू रस

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री टौपिंग की

–  1 बड़ा चम्मच बारीक कटी शिमलामिर्च

–  1 बड़ा चम्मच बारीक कटा प्याज –  1/2 कप कसा चीज –  1/4 छोटा चम्मच ओरिगैनो

–  1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी

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विधि

बेस की सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें. आलू पानी छोड़ें तो समझ लें बेस का बैटर तैयार हो गया. कलछी की सहायता से छोटेछोटे पुए जैसे बना लें. पैन में तेल गरम कर दोनों ओर से सेंकते हुए कुरकुरा होने तक पका लें. अब प्रत्येक बेस पर टौपिंग की सब्जी व कसा चीज डाल कर चीज पिघलने तक ढक कर पकाएं. ओरिगैनो और मिर्च डाल कर परोसें.

कहीं आप भी सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार तो नहीं

छठी कक्षा का छात्र मोहित घर से लापता हो गया. दूध लेने निकला तो वापस घर न आया. 1 सप्ताह बाद एक सज्जन मोहित को घर छोड़ गए. पूछताछ करने पर पता चला कि वह खुद ही घर से भागा था. दरअसल, परीक्षा में उस के नंबर कम आए थे. पिता के खौफ को ?ोलना उस के लिए मुश्किल हो रहा था. अत: वह घर से भाग गया.

नन्हा बंटू कभी गले में कुछ फंसने की शिकायत करता है तो कभी पेट की. हमेशा गुमसुम और उखड़ाउखड़ा सा रहता है. खाता भी ठीक से नहीं है. छोटीछोटी बातों पर रोने लगता है. डाक्टरी जांच में सब ठीक निकला. दरअसल, ये दोनों बच्चे अपने अभिभावकों के सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार हैं.

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डाक्टर मैडलिन लेविन ने अपनी पुस्तक ‘प्राइस औफ प्रिवलिन’ में लिखा है कि जो पेरैंट्स अपनी सफलता के लिए बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव डालते हैं वे अनजाने ही उन्हें स्ट्रैस व डिप्रैशन का शिकार बना देते हैं. उन की नजर में ये पेरैंट्स हमेशा अपने बच्चों को, दूसरों से आगे देखना चाहते हैं. चाहे पढ़ाई हो, खेल हो या कोई और ऐक्टिविटी वे हर क्षेत्र में बच्चों को पुश करते हैं. वास्तविकता से दूर जब ऐसा बच्चा मातापिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो वह दुख, मायूसी व दुविधा की स्थिति का सामना करता है.

डाक्टर लेविन के अनुसार, संपन्न व धनी परिवारों के बच्चों में साधारण परिवारों के बच्चों के मुकाबले डिप्रैशन व चिंता की स्थिति 3 गुना ज्यादा देखी जाती है. ऐसे बच्चे गलत रास्ते पर जा सकते हैं. वे ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं. कभीकभी तो बच्चे स्वयं से ही नफरत करने लगते हैं. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए जिस वातावरण की जरूरत होती है वह उन्हें नहीं मिल पाता. एक के बाद एक क्लासेज उन की दिनचर्या बन जाती है. स्कूल के बाद कोचिंग, फिर क्लास के होमवर्क के बीच उन्हें अपनी क्रिएटिविटी जानने या टेलैंट पहचानने व उसे निखारने का बिलकुल समय नहीं मिल पाता.

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हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बच्चा न सिर्फ अपनी कक्षा में पढ़ाई में शीर्ष पर हो, बल्कि अन्य ऐक्टिविटीज के प्रति भी उत्साहित व प्रोत्साहित हो. स्कूल खुले नहीं कि पेरैंट्स कमर कस लेते हैं. पिछले साल जो परफौर्मैंस रही, जैसा भी परिणाम रहा, इस साल तो बस शुरू से ही ध्यान देना है. फिर तो हर दिन की ऐक्टिविटी, होमवर्क, स्पोर्ट्स हर क्षेत्र पेरैंट्स की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन जाता है.

अगर आप भी सुपर पेरैंट्स सिंड्रोम से घिरे हुए हैं तो मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए इन सुझावों पर ध्यान दें और अपने व्यवहार में नियंत्रण और समझादारी लाएं:

1. प्यार से समझाएं:

बच्चों के भविष्य को ले कर आप के मन में असुरक्षा का भाव स्वाभाविक है. कई बार मनोबल की कमी होने से आप खुद असुरक्षित महसूस करते हैं और यही भाव आप अपने बच्चों में भी भर देते हैं. ऐसी स्थिति में आप का बच्चा विश्वास खोने लगता है. अत: बेहतर होगा कि खुद में विश्वास रखते हुए आप अपने प्यार व स्नेह की छत्रछाया में उसे सुरक्षा का एहसास कराएं. मुसकराना व खुश रहना बड़ा पौजिटिव दृष्टिकोण है. आप मुसकराएंगे तो बच्चा भी मुसकराएगा और वही सीखेगा. उस में आत्मविश्वास और आप में भरोसा बढ़ेगा कि वह जैसा भी है आप को प्रिय है.

2. तुलना न करें:

बच्चे की तुलना किसी भी फ्रैंड या रिश्तेदार के बच्चे से न करें. यदि किसी परीक्षा या प्रतियोगिता में उसे दूसरे बच्चे से कम नंबर मिलते हैं या वह किसी प्रतियोगिता में हार जाता है तो बच्चे की तुलना जीत गए बच्चे से करने के बजाय प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेर कर कहें कि कोई बात नहीं, इस बार हार गए तो क्या अगली बार कोशिश करना, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी. ऐसा करने से आप के बच्चे के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचेगी.

3. लैक्चर देने से बचें:

बातचीत अनेक समस्याओं का हल है, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप बोलते रहें और बच्चा सुनता रहे. यदि ऐसा है तो निश्चित मानिए उस ने आप की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया.

4. बच्चे की क्षमता व सीमा पहचानें:

एक के बाद एक क्लास जौइन करा कर आप ने सही किया या गलत इसे बच्चे के दृष्टिकोण से देखें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि देखादेखी या तुलना के चक्कर में आप ने ऐसा किया है. अपने बच्चे की क्षमता व सीमा समझे बिना हमेशा आगे बढ़ने के लिए उस पर दबाव डाल कर आप उस का हित करने के बजाय उस का अहित कर रहे हैं. बेहतर होगा कि अपनी सोच में बदलाव लाएं. बच्चे का स्तर दूसरे की योग्यता देख कर निर्धारित न करें, बल्कि उसे अपने स्तर को धीरेधीरे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि धैर्य से धीरेधीरे चलने वाला ही अंत में जीतता है.

5. निजता का सम्मान करें:

अनुशासन व आज्ञाकारिता महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु समयसमय पर उदारता भी जरूरी है. यदि आप का बच्चा कुछ देर अकेला रहना चाहता है, इंटरनैट और मोबाइल पर किसी के साथ चैटिंग करना चाहता है, तो उसे ऐसा करने दें. यदि आप को महसूस हो कि वह कुछ गलत कर रहा है, तो निर्देश देने या आलोचना करने के बजाय उस का मार्गदर्शन करें. कभीकभी बच्चों को पूर्ण स्वतंत्रता दे कर उन की काबिलीयत पर भरोसा रखना भी जरूरी होता है.

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6. अच्छे काम की सराहना करें:

जब आप बच्चे की गलतियों पर उसे डांटना नहीं भूलते तो अच्छे काम के लिए उस की तारीफ करना क्यों भूल जाते हैं? बच्चे की प्रशंसा को सिर्फ उस के रिजल्ट कार्ड तक ही सीमित न रखें. उस की अच्छी परफौर्मैंस पर पुरस्कार देने के साथसाथ उस की पीठ थपथपाना और गले लगाना भी न भूलें.

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार यदि आप का बच्चा अपने किसी दोस्त के साथ कोई अच्छी योजना बनाता है या उस के साथ अच्छा व्यवहार करता है, मेहमानों के साथ तमीज से पेश आता है, दूसरे की भावनाओं पर चोट पहुंचाने पर क्षमायाचना करता है तो भी उस की प्रशंसा करें. ऐसा न करने पर उस का दिल टूट जाएगा.

7. हारना भी है जरूरी:

बच्चे को जीतने के लिए नहीं, बल्कि अच्छे ढंग से प्रयास करने के लिए प्रेरित करें. अगर उसे कभी नाकामी मिलती है, तब भी उस के सामने अफसोस जाहिरन करें. हारने पर भी उस के अच्छे प्रयास की सराहना करते हुए उसे अगली बार जीतने के लिए प्रेरित करें.

कुछ पेरैंट्स अपने बच्चों के साथ खेलते वक्त उन्हें खुश करने के लिए जानबूझा कर हार जाते हैं. ऐसा कभी न करें. इस से बच्चा प्रयास करने के लिए प्रेरित नहीं होगा और हर बार मेहनत किए बगैर जीतना चाहेगा. जीतने के साथ उसे हार को भी सहजता से स्वीकारना सिखाएं.

8. जिम्मेदार घर का माहौल भी:

बच्चे का पहला स्कूल उस का घर होता है. अपने अभिभावकों की छत्रछाया में वह आत्मविश्वास, दृढ़ शक्ति, निर्णय शक्ति, साहस और स्पष्ट सोच जैसे गुणों को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाता है.

मनोचिकित्सक मनीष कांडपाल के अनुसार घर में बुजुर्गों का अपमान, छोटेबड़े झागड़े, गालीगलौच, मातापिता का शराबसिगरेट जैसे बुरे व्यसनों का आदी होना बच्चों के मन को बहुत जल्दी प्रभावित करता है. बच्चा जो देखता है, वही सीखता है.

9. अपने तक ही सीमित रखें तनाव:

औफिस और घर की टैंशन लिए जब आप अपने बच्चों के सामने आते हैं, तो वे आप के साथ बैठने के बजाय कहीं और समय बिताना पसंद करते हैं. बच्चे आप को खुश देखना चाहते हैं ताकि वे अपनी परेशानी आप के साथ शेयर कर सकें. किसी और की टैंशन या गुस्से के लिए बच्चों को डांटना या उन पर हाथ उठाना सही नहीं.

10 . खुद से तुलना कभी न करें:

जरूरी नहीं कि बचपन में आप को जो कुछ नहीं मिला वह सब आप अपने बच्चे को दे पाएं. यह भी जरूरी नहीं कि यदि आप गोल्ड मैडलिस्ट थे, अच्छे गायक या खिलाड़ी थे तो आप का बच्चा भी वैसा ही बने. हर बच्चे के अपने शौक, रुझान और सीमाएं होती हैं. उसे उसी ओर ढालने का प्रयास करें. जरूरत से ज्यादा उम्मीदें कदापि न करें. आप अपनी ड्यूटी निभाएं, उसे अपनी प्रतिभा निखारने के लिए सही प्रोत्साहन व वातावरण पैदा करें.

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तो आप कब से दे रहे हैं अपने मोबाइल को वीकली ऑफ

अलर्ट रहना आज के लाइफस्टाइल की जरूरत है. समय से अपने टार्गेट पूरा करना यह सिर्फ दबाव की बात ही नहीं है, ये काम की जरूरत भी है. इसलिए आज हर पल, हर क्षण, हर कोई उपलब्ध है. ऑनलाइन है. ऑनलाइन से कहीं ज्यादा मोबाइल ने आदमी को हर पल, हमेशा उपलब्ध बनाया है. देश में इस समय 1 अरब से ज्यादा मोबाइल फोन हैं. इससे अंदाजा लगया जा सकता है कि हमारी जिंदगी में मोबाइल कितना महत्वपूर्ण है. अगर मोबाइल ऑफ हुआ तो लगता है कि जैसे हम अपनी सक्रिय जीवंत दुनिया से कट गए हैं. इसलिए आज मोबाइल लोगों की दूसरी सांस बन चुका है. अगर 200 ग्राम का दिल बाईं छाती में धड़कता है तो 100 ग्राम का मोबाइल जेब से लेकर आपके इर्द-गिर्द कहीं भी धड़कने के लिए मौजूद रहता है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि मोबाइल ने बहुत चीजें आसान की हैं. संपर्काें को बनाए रखने में इसने एक ऐसी अदृश्य डोर का काम किया है, जो हममें से ज्यादातर को उन लोगों के साथ भी जोड़े रखती है, जिनके साथ शायद हम कभी जुड़े न रह सकें अगर यह डोर न हो. लेकिन दूसरी तरफ यह बात भी सही है कि मोबाइल ने हमें अपनी घंटियों का, अपनी धड़कनों को कुछ ज्यादा ही गुलाम बना लिया है और यह सब हमारी किसी अज्ञानता के चलते नहीं हो रहा, एक किस्म से इसका चक्रव्यूह हमीं ने रचा है. हमने अपनी कामकाजी जिंदगी को एक किस्म से इसके हवाले कर दिया है. हम पूरी तरह से इस पर निर्भर हो चुके हैं. निश्चित रूप से इसका फायदा भी है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं.

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मोबाइल की वजह से हमारी रातों की नींदें और छुट्टियों का चैन गायब हो चुका है. मल्टीनेशनल कंपनियों में खास हिदायत होती है कि हर समय मोबाइल ऑन रखें यानी आप हमेशा मोबाइल में उपलब्ध रहें. यहां तक कि कई बार इस हिदायत का आप पालन कर रहे हैं या नहीं इसकी जांच भी होती है. भले आमतौर पर इन कंपनियों में अचानक फोन करके परेशान न किया जाता हो, लेकिन सीनियर के टच में रहने का मानसिक दबाव छुट्टी के बाद भी हमें काम के बोझ से लादे रखता है. मनोविद हर समय फोन से कनेक्ट रहने से होने वाली कई तरह की मानसिक परेशानियों का जिक्र करते हैं और पूरी दुनिया में अब तो हर समय मोबाइल से चिपके रहने से पैदा होने वाले सिंड्रोम का क्लीनिकल इलाज भी होने लगा है. ऐसे में इन दिनों मनोविदों का सुझाव है कि जिस तरह सप्ताह में आपको एक दिन छुट्टी मिलती है, वैसी ही छुट्टी आप अपने मोबाइल को दें. विदेशों में लोग इस पर संजीदगी से अमल भी करने लगे हैं. ये लोग संडे के दिन आमतौर पर अपने मोबाइल का स्विच ऑफ रखते हैं. यही नहीं ये लोग अपने जानने वालों और कंपनी के लोगों से स्पष्ट रूप से कह देते हैं कि उन्हें संडे को बिल्कुल परेशान न किया जाए.

हमारे यहां हालांकि अभी आमतौर पर ऐसा नहीं है. लेकिन जिस तेजी से भागमभाग और तनावभरी जीवनशैली यहां भी हमारी सिग्नेचर टोन बनती जा रही है, उसको देखते हुए जल्द ही यह कदम अनिवार्य रूप से भारतीयों को भी उठाना होगा. ऐसे करने के एक नहीं कई फायदे हैं. कम से कम सप्ताह का एक दिन भागदौड़ और व्यस्तता वाला नहीं होगा. इससे आपको मानसिक और शारीरिक, दोनो तरह से सुकून मिलेगा. परिवार के साथ रहने का वक्त मिलेगा तो चिड़चिड़ापन दूर होगा. इससे परिवारजनों के साथ आत्मीयता बढ़ेगी. एक दिन बिल्कुल तनावरहित रहने से मन और शरीर तरोताज़ा हो जायेगा, जिससे कार्यक्षमता बढ़ेगी. एक पूरा दिन मोबाइल और दूसरे फोन से दूर रहने पर अपने घर-परिवार, कॅरियर आदि के बारे में व्यवस्थित ढंग से सोच पायेंगे.

इस सबके साथ ऐसा भी सोचा जा सकता है कि अगर एक दिन मोबाइल बंद रखेंगे तो कम से कम आपका मस्तिष्क एक दिन के लिए तो चुंबकीय तरंगों के दुष्प्रभाव से बचा रहेगा. मोबाइल बंद रखेंगे, तो एक दिन अश्लील मजाकों, ध्यान बंटाने वाले एसएमएस आदि से भी बचेंगे. अगर लेनदेन के कारोबार से जुड़े हैं तो एक दिन के लिए इसके तनाव से बचेंगे. खासकर तकादे के तनाव से. एक दिन मोबाइल से दूर रहेंगे, तो उससे पहले ही जरूरी काम निपटा लेंगे इससे काम समय से पूरा होगा. मोबाइल में अनुपलब्ध रहे तो जिसे आपसे मिलने आना है या आपको जिससे मिलने जाना है न तो वह और न ही आप कोई बहाना बनाएंगे. मोबाइल को छुट्टी दिये गये दिन कार ड्राइव करते समय दुर्घटना की आशंका कम रहेगी.

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—तो देखा आपने अपने मोबाइल को एक दिन के छुट्टी देने के कितने फायदे हैं. शायद यह पहली ऐसी छुट्टी होगी, जिसे लेने वाला भले न लेना चाहे, लेकिन अगर इसके फायदे समझ गया तो देने वाला जरूर देना चाहेगा.

आर्थराइटिस से छुटकारा पाने के लिए क्या करें?

सवाल-

मेरी उम्र 34 वर्ष है. मुझे जुवेनाइल आर्थ्राइटिस की समस्या है. मेरे घुटनों की तकलीफ लगातार बढ़ रही है. डाक्टरों ने मुझे नी रिप्लेसमैंट की सलाह दी है. मैं जानना चाहती हूं कि मेरे लिए यह उपचार कितना उपयुक्त रहेगा?

जवाब-

यह इस पर निर्भर करता है कि आप की बीमारी किस स्तर पर है. कई प्रकार के आर्थ्राइटिस में फिजियोथेरैपी बहुत कारगर होती है. इस से अंगों की कार्यप्रणाली सुधरती है और जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं. अगर आर्थ्राइटिस शुरूआती चरण में है तो उसे फिजियोथेरैपी और जीवनशैली में बदलाव ला कर नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन अगर आप को दूसरे उपचारों से आराम नहीं मिल रहा है और आप बहुत परेशानी में हैं तो नी रिप्लेसमैंट ही आप के लिए अंतिम विकल्प बचता है.

सवाल-

मेरी उम्र केवल 29 वर्ष है, डायग्रोसिस कराने पर पता चला कि मुझे औस्टियोआर्थ्राइटिस है. क्या आगे चल कर मेरे घुटने खराब हो सकते हैं? मुझे क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब-

औस्टियोआर्थ्राइटिस में जोड़ों के कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. जब ऐसा होता है तो हड्डियों के बीच कुशन न रहने से वे आपस में टकराती हैं, जिस से जोड़ों में दर्द होना, सूजन आ जाना, कड़ापन और मूवमैंट प्रभावित होने जैसी समस्याएं हो जाती हैं. औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण घुटनों के जोड़ों के खराब होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. कई उपाय हैं जिन के द्वारा आप औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण होने वाली जटिलताओं को कम कर सकते हैं. कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर भोजन का सेवन करें. अपना वजन न बढ़ने दें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. रोज कम से कम 1 मील पैदल चलें. इस से बोन मास बढ़ता है.

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क्या आप लंबे समय तक जमीन पर पालथी मार कर या फिर उकड़ू बैठे रहते हैं? क्या अपने कामकाज के कारण आप के घुटनों पर रोजाना ज्यादा जोर पड़ता है? यदि हां, तो आप को अन्य लोगों की तुलना में बहुत पहले औस्टियोआर्थ्राइटिस की परेशानी हो सकती है. हो सकता है कि 50 साल की उम्र तक आतेआते आप के घुटने चटक जाएं. हड्डियों और टिशूज के घिसने के कारण होने वाली औस्टियोआर्थ्राइटिस की समस्या उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है. लेकिन आनुवंशिक कारणों, जोड़ों पर अधिक जोर पड़ने, शारीरिक निष्क्रियता या शरीर का अधिक वजन होने से भी यह समस्या बढ़ सकती है. घुटनों का औस्टियोआर्थ्राइटिस सब से आम समस्या है, क्योंकि अन्य जोड़ों के मुकाबले घुटनों के जोड़ों पर पूरी जिंदगी शरीर का सब से अधिक बोझ पड़ता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आर्थ्राइटिस : दूर रहना है आसान

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