Summer Tips: इन 6 फेब्रिक से मिलेगी गरमी से राहत

बसन्त के गुजरने के बाद से ही गर्मी अपनी दस्तक देनी प्रारम्भ कर देती है. होली के बाद से तो गर्मी अपना रूप दिखाने ही लगती है. घरों में गर्मी के ताप को कम करने के लिए एसी और कूलर की मरम्मत कराई जाती है. गर्मी के दिनों में सबसे बड़ी समस्या रोज में पहनने वाले वस्त्रों को लेकर होती है क्योंकि गर्मी में भी घर के कामों में कमी तो होती नहीं. इसलिए इस समय ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है जो पहनने में आरामदायक हों और जिन्हें पहनने पर शरीर को ठंडक का अहसास हो. आज हम ऐसे कुछ फैब्रिक्स के बारे में बता रहे हैं जिनसे बने कपड़े पहनने पर आप बहुत आराम महसूस करेंगी.

1. कॉटन

सूती धागे से बना यह फेब्रिक अपनी विविधता के लिए जाना जाता है, इससे बने कपड़े पूरे वर्ष भर तक पहने जाते हैं. गर्मी के लिए इसे आदर्श फेब्रिक माना जाता है क्योंकि इसमें पसीना सोखकर शरीर को ठंडा रखने की अद्भुत क्षमता होती है. इससे बने कपड़े हर रंग, स्टाइल और पैटर्न में मिलते हैं. कॉटन के हल्के रंग के कपड़े पहनते समय अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि इस पर धब्बे बहुत जल्दी लग जाते हैं.

 

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2. लिनन

 

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फ्लेक्स नामक पौधे से बनाये जाने के कारण यह एक नेचुरल फाइबर होता है. इससे बने कपड़े बहुत कूल, हवादार, फ्रेश, हल्के और आरामदायक होते हैं. आजकल बाजार में लिनन से बने हर पैटर्न के कपड़े मौजूद हैं.

3. शैम्ब्रे

डेनिम के जैसा ही दिखने वाला फेब्रिक होता है ये परन्तु डेनिम जहां वजन में भारी होती है वहीं यह एकदम हल्के वजन वाला होता है. इसीलिए इस फेब्रिक से बने कपड़े गर्मियों में पहनना आरामदायक होता है. इसकी बुनाई बेहद बारीक और थ्रेड काउंट बहुत अधिक होता है इसलिए यदि आप डेनिम जैसा लुक चाहतीं हैं तो इस फेब्रिक से बने कपड़ों का प्रयोग अवश्य करें.

4. रेयान

लकड़ी जैसे प्राकृतिक पदार्थ से मशीनों द्वारा बनाया जाने वाला रेयॉन मेन मेड फेब्रिक कहलाता है. इसके तन्तु बेहद नाजुक और गर्मियों में ठंडक देने वाले होते हैं. इस फेब्रिक से आमतौर पर स्पोर्ट्स वियर और समर ड्रेसेज बनाने में किया जाता है.

5. सिल्क जॉर्जेट

यह देखने में एकदम सिल्क जैसा प्रतीत होता है सिल्क की अपेक्षा यह बेहद हल्का, डल फिनिश और अच्छी फ्लो लेंथ वाला फेब्रिक होता है. कुर्ते, इवनिंग गाउन, और स्कर्ट जैसे पार्टी वियर ड्रेसेज इसी से बनायीं जातीं हैं.

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6. शिफॉन

 

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वजन में एकदम हल्का, पारदर्शी और हर रंग में मिलने वाला यह फेब्रिक डेली यूज के लिए उपयुक्त नहीं होता क्योंकि यह बहुत नाजुक फेब्रिक होता है जिसे बहुत देखभाल की आवश्यकता होती है. यद्यपि यह शरीर को ठंडक देता है. वास्तविक शिफॉन काफी महंगा भी होता है इसलिए हर इंसान इसे नहीं खरीद पाता परन्तु पार्टी आदि में इससे बने कपड़े अपना जलवा अवश्य दिखा देते हैं.

Summer Special: फैमिली के लिए बनाएं आलू पिज्जा

अगर आप भी बदलते मौसम में कुछ टेस्टी रेसिपी ट्राय करना चाहती हैं तो आलू पिज्जा की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन साबित होगा. आलू पिज्जा आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जिसे आप अपनी फैमिली को स्नैक्स में खिला सकते हैं.

सामग्री बेस की

–  1 कप आलू कसे

–  1-2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर

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–  1 छोटा चम्मच नीबू रस

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  नमक स्वादानुसार.

सामग्री टौपिंग की

–  1 बड़ा चम्मच बारीक कटी शिमलामिर्च

–  1 बड़ा चम्मच बारीक कटा प्याज –  1/2 कप कसा चीज –  1/4 छोटा चम्मच ओरिगैनो

–  1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी

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विधि

बेस की सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला लें. आलू पानी छोड़ें तो समझ लें बेस का बैटर तैयार हो गया. कलछी की सहायता से छोटेछोटे पुए जैसे बना लें. पैन में तेल गरम कर दोनों ओर से सेंकते हुए कुरकुरा होने तक पका लें. अब प्रत्येक बेस पर टौपिंग की सब्जी व कसा चीज डाल कर चीज पिघलने तक ढक कर पकाएं. ओरिगैनो और मिर्च डाल कर परोसें.

कहीं आप भी सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार तो नहीं

छठी कक्षा का छात्र मोहित घर से लापता हो गया. दूध लेने निकला तो वापस घर न आया. 1 सप्ताह बाद एक सज्जन मोहित को घर छोड़ गए. पूछताछ करने पर पता चला कि वह खुद ही घर से भागा था. दरअसल, परीक्षा में उस के नंबर कम आए थे. पिता के खौफ को ?ोलना उस के लिए मुश्किल हो रहा था. अत: वह घर से भाग गया.

नन्हा बंटू कभी गले में कुछ फंसने की शिकायत करता है तो कभी पेट की. हमेशा गुमसुम और उखड़ाउखड़ा सा रहता है. खाता भी ठीक से नहीं है. छोटीछोटी बातों पर रोने लगता है. डाक्टरी जांच में सब ठीक निकला. दरअसल, ये दोनों बच्चे अपने अभिभावकों के सुपर पेरैंट सिंड्रोम के शिकार हैं.

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डाक्टर मैडलिन लेविन ने अपनी पुस्तक ‘प्राइस औफ प्रिवलिन’ में लिखा है कि जो पेरैंट्स अपनी सफलता के लिए बच्चों पर बहुत ज्यादा दबाव डालते हैं वे अनजाने ही उन्हें स्ट्रैस व डिप्रैशन का शिकार बना देते हैं. उन की नजर में ये पेरैंट्स हमेशा अपने बच्चों को, दूसरों से आगे देखना चाहते हैं. चाहे पढ़ाई हो, खेल हो या कोई और ऐक्टिविटी वे हर क्षेत्र में बच्चों को पुश करते हैं. वास्तविकता से दूर जब ऐसा बच्चा मातापिता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता तो वह दुख, मायूसी व दुविधा की स्थिति का सामना करता है.

डाक्टर लेविन के अनुसार, संपन्न व धनी परिवारों के बच्चों में साधारण परिवारों के बच्चों के मुकाबले डिप्रैशन व चिंता की स्थिति 3 गुना ज्यादा देखी जाती है. ऐसे बच्चे गलत रास्ते पर जा सकते हैं. वे ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं. कभीकभी तो बच्चे स्वयं से ही नफरत करने लगते हैं. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए जिस वातावरण की जरूरत होती है वह उन्हें नहीं मिल पाता. एक के बाद एक क्लासेज उन की दिनचर्या बन जाती है. स्कूल के बाद कोचिंग, फिर क्लास के होमवर्क के बीच उन्हें अपनी क्रिएटिविटी जानने या टेलैंट पहचानने व उसे निखारने का बिलकुल समय नहीं मिल पाता.

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हर मातापिता चाहते हैं कि उन का बच्चा न सिर्फ अपनी कक्षा में पढ़ाई में शीर्ष पर हो, बल्कि अन्य ऐक्टिविटीज के प्रति भी उत्साहित व प्रोत्साहित हो. स्कूल खुले नहीं कि पेरैंट्स कमर कस लेते हैं. पिछले साल जो परफौर्मैंस रही, जैसा भी परिणाम रहा, इस साल तो बस शुरू से ही ध्यान देना है. फिर तो हर दिन की ऐक्टिविटी, होमवर्क, स्पोर्ट्स हर क्षेत्र पेरैंट्स की दिनचर्या का अहम हिस्सा बन जाता है.

अगर आप भी सुपर पेरैंट्स सिंड्रोम से घिरे हुए हैं तो मनोवैज्ञानिकों द्वारा दिए गए इन सुझावों पर ध्यान दें और अपने व्यवहार में नियंत्रण और समझादारी लाएं:

1. प्यार से समझाएं:

बच्चों के भविष्य को ले कर आप के मन में असुरक्षा का भाव स्वाभाविक है. कई बार मनोबल की कमी होने से आप खुद असुरक्षित महसूस करते हैं और यही भाव आप अपने बच्चों में भी भर देते हैं. ऐसी स्थिति में आप का बच्चा विश्वास खोने लगता है. अत: बेहतर होगा कि खुद में विश्वास रखते हुए आप अपने प्यार व स्नेह की छत्रछाया में उसे सुरक्षा का एहसास कराएं. मुसकराना व खुश रहना बड़ा पौजिटिव दृष्टिकोण है. आप मुसकराएंगे तो बच्चा भी मुसकराएगा और वही सीखेगा. उस में आत्मविश्वास और आप में भरोसा बढ़ेगा कि वह जैसा भी है आप को प्रिय है.

2. तुलना न करें:

बच्चे की तुलना किसी भी फ्रैंड या रिश्तेदार के बच्चे से न करें. यदि किसी परीक्षा या प्रतियोगिता में उसे दूसरे बच्चे से कम नंबर मिलते हैं या वह किसी प्रतियोगिता में हार जाता है तो बच्चे की तुलना जीत गए बच्चे से करने के बजाय प्यार से बच्चे के सिर पर हाथ फेर कर कहें कि कोई बात नहीं, इस बार हार गए तो क्या अगली बार कोशिश करना, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी. ऐसा करने से आप के बच्चे के आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुंचेगी.

3. लैक्चर देने से बचें:

बातचीत अनेक समस्याओं का हल है, लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप बोलते रहें और बच्चा सुनता रहे. यदि ऐसा है तो निश्चित मानिए उस ने आप की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया.

4. बच्चे की क्षमता व सीमा पहचानें:

एक के बाद एक क्लास जौइन करा कर आप ने सही किया या गलत इसे बच्चे के दृष्टिकोण से देखें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि देखादेखी या तुलना के चक्कर में आप ने ऐसा किया है. अपने बच्चे की क्षमता व सीमा समझे बिना हमेशा आगे बढ़ने के लिए उस पर दबाव डाल कर आप उस का हित करने के बजाय उस का अहित कर रहे हैं. बेहतर होगा कि अपनी सोच में बदलाव लाएं. बच्चे का स्तर दूसरे की योग्यता देख कर निर्धारित न करें, बल्कि उसे अपने स्तर को धीरेधीरे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि धैर्य से धीरेधीरे चलने वाला ही अंत में जीतता है.

5. निजता का सम्मान करें:

अनुशासन व आज्ञाकारिता महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु समयसमय पर उदारता भी जरूरी है. यदि आप का बच्चा कुछ देर अकेला रहना चाहता है, इंटरनैट और मोबाइल पर किसी के साथ चैटिंग करना चाहता है, तो उसे ऐसा करने दें. यदि आप को महसूस हो कि वह कुछ गलत कर रहा है, तो निर्देश देने या आलोचना करने के बजाय उस का मार्गदर्शन करें. कभीकभी बच्चों को पूर्ण स्वतंत्रता दे कर उन की काबिलीयत पर भरोसा रखना भी जरूरी होता है.

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6. अच्छे काम की सराहना करें:

जब आप बच्चे की गलतियों पर उसे डांटना नहीं भूलते तो अच्छे काम के लिए उस की तारीफ करना क्यों भूल जाते हैं? बच्चे की प्रशंसा को सिर्फ उस के रिजल्ट कार्ड तक ही सीमित न रखें. उस की अच्छी परफौर्मैंस पर पुरस्कार देने के साथसाथ उस की पीठ थपथपाना और गले लगाना भी न भूलें.

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार यदि आप का बच्चा अपने किसी दोस्त के साथ कोई अच्छी योजना बनाता है या उस के साथ अच्छा व्यवहार करता है, मेहमानों के साथ तमीज से पेश आता है, दूसरे की भावनाओं पर चोट पहुंचाने पर क्षमायाचना करता है तो भी उस की प्रशंसा करें. ऐसा न करने पर उस का दिल टूट जाएगा.

7. हारना भी है जरूरी:

बच्चे को जीतने के लिए नहीं, बल्कि अच्छे ढंग से प्रयास करने के लिए प्रेरित करें. अगर उसे कभी नाकामी मिलती है, तब भी उस के सामने अफसोस जाहिरन करें. हारने पर भी उस के अच्छे प्रयास की सराहना करते हुए उसे अगली बार जीतने के लिए प्रेरित करें.

कुछ पेरैंट्स अपने बच्चों के साथ खेलते वक्त उन्हें खुश करने के लिए जानबूझा कर हार जाते हैं. ऐसा कभी न करें. इस से बच्चा प्रयास करने के लिए प्रेरित नहीं होगा और हर बार मेहनत किए बगैर जीतना चाहेगा. जीतने के साथ उसे हार को भी सहजता से स्वीकारना सिखाएं.

8. जिम्मेदार घर का माहौल भी:

बच्चे का पहला स्कूल उस का घर होता है. अपने अभिभावकों की छत्रछाया में वह आत्मविश्वास, दृढ़ शक्ति, निर्णय शक्ति, साहस और स्पष्ट सोच जैसे गुणों को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाता है.

मनोचिकित्सक मनीष कांडपाल के अनुसार घर में बुजुर्गों का अपमान, छोटेबड़े झागड़े, गालीगलौच, मातापिता का शराबसिगरेट जैसे बुरे व्यसनों का आदी होना बच्चों के मन को बहुत जल्दी प्रभावित करता है. बच्चा जो देखता है, वही सीखता है.

9. अपने तक ही सीमित रखें तनाव:

औफिस और घर की टैंशन लिए जब आप अपने बच्चों के सामने आते हैं, तो वे आप के साथ बैठने के बजाय कहीं और समय बिताना पसंद करते हैं. बच्चे आप को खुश देखना चाहते हैं ताकि वे अपनी परेशानी आप के साथ शेयर कर सकें. किसी और की टैंशन या गुस्से के लिए बच्चों को डांटना या उन पर हाथ उठाना सही नहीं.

10 . खुद से तुलना कभी न करें:

जरूरी नहीं कि बचपन में आप को जो कुछ नहीं मिला वह सब आप अपने बच्चे को दे पाएं. यह भी जरूरी नहीं कि यदि आप गोल्ड मैडलिस्ट थे, अच्छे गायक या खिलाड़ी थे तो आप का बच्चा भी वैसा ही बने. हर बच्चे के अपने शौक, रुझान और सीमाएं होती हैं. उसे उसी ओर ढालने का प्रयास करें. जरूरत से ज्यादा उम्मीदें कदापि न करें. आप अपनी ड्यूटी निभाएं, उसे अपनी प्रतिभा निखारने के लिए सही प्रोत्साहन व वातावरण पैदा करें.

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तो आप कब से दे रहे हैं अपने मोबाइल को वीकली ऑफ

अलर्ट रहना आज के लाइफस्टाइल की जरूरत है. समय से अपने टार्गेट पूरा करना यह सिर्फ दबाव की बात ही नहीं है, ये काम की जरूरत भी है. इसलिए आज हर पल, हर क्षण, हर कोई उपलब्ध है. ऑनलाइन है. ऑनलाइन से कहीं ज्यादा मोबाइल ने आदमी को हर पल, हमेशा उपलब्ध बनाया है. देश में इस समय 1 अरब से ज्यादा मोबाइल फोन हैं. इससे अंदाजा लगया जा सकता है कि हमारी जिंदगी में मोबाइल कितना महत्वपूर्ण है. अगर मोबाइल ऑफ हुआ तो लगता है कि जैसे हम अपनी सक्रिय जीवंत दुनिया से कट गए हैं. इसलिए आज मोबाइल लोगों की दूसरी सांस बन चुका है. अगर 200 ग्राम का दिल बाईं छाती में धड़कता है तो 100 ग्राम का मोबाइल जेब से लेकर आपके इर्द-गिर्द कहीं भी धड़कने के लिए मौजूद रहता है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि मोबाइल ने बहुत चीजें आसान की हैं. संपर्काें को बनाए रखने में इसने एक ऐसी अदृश्य डोर का काम किया है, जो हममें से ज्यादातर को उन लोगों के साथ भी जोड़े रखती है, जिनके साथ शायद हम कभी जुड़े न रह सकें अगर यह डोर न हो. लेकिन दूसरी तरफ यह बात भी सही है कि मोबाइल ने हमें अपनी घंटियों का, अपनी धड़कनों को कुछ ज्यादा ही गुलाम बना लिया है और यह सब हमारी किसी अज्ञानता के चलते नहीं हो रहा, एक किस्म से इसका चक्रव्यूह हमीं ने रचा है. हमने अपनी कामकाजी जिंदगी को एक किस्म से इसके हवाले कर दिया है. हम पूरी तरह से इस पर निर्भर हो चुके हैं. निश्चित रूप से इसका फायदा भी है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं.

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मोबाइल की वजह से हमारी रातों की नींदें और छुट्टियों का चैन गायब हो चुका है. मल्टीनेशनल कंपनियों में खास हिदायत होती है कि हर समय मोबाइल ऑन रखें यानी आप हमेशा मोबाइल में उपलब्ध रहें. यहां तक कि कई बार इस हिदायत का आप पालन कर रहे हैं या नहीं इसकी जांच भी होती है. भले आमतौर पर इन कंपनियों में अचानक फोन करके परेशान न किया जाता हो, लेकिन सीनियर के टच में रहने का मानसिक दबाव छुट्टी के बाद भी हमें काम के बोझ से लादे रखता है. मनोविद हर समय फोन से कनेक्ट रहने से होने वाली कई तरह की मानसिक परेशानियों का जिक्र करते हैं और पूरी दुनिया में अब तो हर समय मोबाइल से चिपके रहने से पैदा होने वाले सिंड्रोम का क्लीनिकल इलाज भी होने लगा है. ऐसे में इन दिनों मनोविदों का सुझाव है कि जिस तरह सप्ताह में आपको एक दिन छुट्टी मिलती है, वैसी ही छुट्टी आप अपने मोबाइल को दें. विदेशों में लोग इस पर संजीदगी से अमल भी करने लगे हैं. ये लोग संडे के दिन आमतौर पर अपने मोबाइल का स्विच ऑफ रखते हैं. यही नहीं ये लोग अपने जानने वालों और कंपनी के लोगों से स्पष्ट रूप से कह देते हैं कि उन्हें संडे को बिल्कुल परेशान न किया जाए.

हमारे यहां हालांकि अभी आमतौर पर ऐसा नहीं है. लेकिन जिस तेजी से भागमभाग और तनावभरी जीवनशैली यहां भी हमारी सिग्नेचर टोन बनती जा रही है, उसको देखते हुए जल्द ही यह कदम अनिवार्य रूप से भारतीयों को भी उठाना होगा. ऐसे करने के एक नहीं कई फायदे हैं. कम से कम सप्ताह का एक दिन भागदौड़ और व्यस्तता वाला नहीं होगा. इससे आपको मानसिक और शारीरिक, दोनो तरह से सुकून मिलेगा. परिवार के साथ रहने का वक्त मिलेगा तो चिड़चिड़ापन दूर होगा. इससे परिवारजनों के साथ आत्मीयता बढ़ेगी. एक दिन बिल्कुल तनावरहित रहने से मन और शरीर तरोताज़ा हो जायेगा, जिससे कार्यक्षमता बढ़ेगी. एक पूरा दिन मोबाइल और दूसरे फोन से दूर रहने पर अपने घर-परिवार, कॅरियर आदि के बारे में व्यवस्थित ढंग से सोच पायेंगे.

इस सबके साथ ऐसा भी सोचा जा सकता है कि अगर एक दिन मोबाइल बंद रखेंगे तो कम से कम आपका मस्तिष्क एक दिन के लिए तो चुंबकीय तरंगों के दुष्प्रभाव से बचा रहेगा. मोबाइल बंद रखेंगे, तो एक दिन अश्लील मजाकों, ध्यान बंटाने वाले एसएमएस आदि से भी बचेंगे. अगर लेनदेन के कारोबार से जुड़े हैं तो एक दिन के लिए इसके तनाव से बचेंगे. खासकर तकादे के तनाव से. एक दिन मोबाइल से दूर रहेंगे, तो उससे पहले ही जरूरी काम निपटा लेंगे इससे काम समय से पूरा होगा. मोबाइल में अनुपलब्ध रहे तो जिसे आपसे मिलने आना है या आपको जिससे मिलने जाना है न तो वह और न ही आप कोई बहाना बनाएंगे. मोबाइल को छुट्टी दिये गये दिन कार ड्राइव करते समय दुर्घटना की आशंका कम रहेगी.

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—तो देखा आपने अपने मोबाइल को एक दिन के छुट्टी देने के कितने फायदे हैं. शायद यह पहली ऐसी छुट्टी होगी, जिसे लेने वाला भले न लेना चाहे, लेकिन अगर इसके फायदे समझ गया तो देने वाला जरूर देना चाहेगा.

आर्थराइटिस से छुटकारा पाने के लिए क्या करें?

सवाल-

मेरी उम्र 34 वर्ष है. मुझे जुवेनाइल आर्थ्राइटिस की समस्या है. मेरे घुटनों की तकलीफ लगातार बढ़ रही है. डाक्टरों ने मुझे नी रिप्लेसमैंट की सलाह दी है. मैं जानना चाहती हूं कि मेरे लिए यह उपचार कितना उपयुक्त रहेगा?

जवाब-

यह इस पर निर्भर करता है कि आप की बीमारी किस स्तर पर है. कई प्रकार के आर्थ्राइटिस में फिजियोथेरैपी बहुत कारगर होती है. इस से अंगों की कार्यप्रणाली सुधरती है और जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं. अगर आर्थ्राइटिस शुरूआती चरण में है तो उसे फिजियोथेरैपी और जीवनशैली में बदलाव ला कर नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन अगर आप को दूसरे उपचारों से आराम नहीं मिल रहा है और आप बहुत परेशानी में हैं तो नी रिप्लेसमैंट ही आप के लिए अंतिम विकल्प बचता है.

सवाल-

मेरी उम्र केवल 29 वर्ष है, डायग्रोसिस कराने पर पता चला कि मुझे औस्टियोआर्थ्राइटिस है. क्या आगे चल कर मेरे घुटने खराब हो सकते हैं? मुझे क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

जवाब-

औस्टियोआर्थ्राइटिस में जोड़ों के कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. जब ऐसा होता है तो हड्डियों के बीच कुशन न रहने से वे आपस में टकराती हैं, जिस से जोड़ों में दर्द होना, सूजन आ जाना, कड़ापन और मूवमैंट प्रभावित होने जैसी समस्याएं हो जाती हैं. औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण घुटनों के जोड़ों के खराब होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. कई उपाय हैं जिन के द्वारा आप औस्टियोआर्थ्राइटिस के कारण होने वाली जटिलताओं को कम कर सकते हैं. कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर भोजन का सेवन करें. अपना वजन न बढ़ने दें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. रोज कम से कम 1 मील पैदल चलें. इस से बोन मास बढ़ता है.

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क्या आप लंबे समय तक जमीन पर पालथी मार कर या फिर उकड़ू बैठे रहते हैं? क्या अपने कामकाज के कारण आप के घुटनों पर रोजाना ज्यादा जोर पड़ता है? यदि हां, तो आप को अन्य लोगों की तुलना में बहुत पहले औस्टियोआर्थ्राइटिस की परेशानी हो सकती है. हो सकता है कि 50 साल की उम्र तक आतेआते आप के घुटने चटक जाएं. हड्डियों और टिशूज के घिसने के कारण होने वाली औस्टियोआर्थ्राइटिस की समस्या उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है. लेकिन आनुवंशिक कारणों, जोड़ों पर अधिक जोर पड़ने, शारीरिक निष्क्रियता या शरीर का अधिक वजन होने से भी यह समस्या बढ़ सकती है. घुटनों का औस्टियोआर्थ्राइटिस सब से आम समस्या है, क्योंकि अन्य जोड़ों के मुकाबले घुटनों के जोड़ों पर पूरी जिंदगी शरीर का सब से अधिक बोझ पड़ता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- आर्थ्राइटिस : दूर रहना है आसान

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जारी है सजा: पति की हरकतों से कैसे टूट गई श्रीमती गोयल

Serial Story: जारी है सजा– भाग 1

मजदूर सारा सामान उतार कर जा चुके थे. बिखरा सामान रेलवे प्लेटफार्म का सा दृश्य पेश कर रहा था. अब शुरू कहां से करूं, यही समझ नहीं पा रही थी मैं. बच्चे साथ होते तो काफी बोझ अब तक घट भी गया होता. पूरी उम्र जो काम आसान लगता रहा था, अब वही पहाड़ जैसा भारीभरकम और मुश्किल लगने लगा है. 50 के आसपास पहुंचा मेरा शरीर अब भला 30-35 की चुस्ती कहां से ले आता. अपनी हालत पर रोनी सूरत बन चुकी थी मेरी.

‘‘कोई मजदूर ले आऊं, जो सामान इधरउधर करवा दे?’’ पति का परामर्श कांटे सा चुभ गया.

‘‘अब रसोई का सामान मजदूरों से लगवाऊंगी मैं, अलमारियों में कपड़े और बिस्तर कोई मजदूर रखेगा…आप ही क्योें नहीं हाथ बंटाते.’’

‘‘मेरा हाथ बंटाना भी तो तुम्हें नहीं सुहाता, फिर कहोगी पता नहीं कहां का सामान कहां रख दिया.’’

‘‘तो जब आप का सामान रखना मुझे नहीं सुहाता तो कोई मजदूर कैसे…’’

झगड़ पड़े थे हम. हर 3 साल के बाद तबादला हो जाता है. 4-5 हफ्ते तो कभी नहीं लगे थे नई जगह में सामान जमाने में मगर इस घर में काफी समय लग गया. एक तो घर छोटा था उस पर बारबार नई व्यवस्था करनी पड़ रही थी.

यों भी पूरी उम्र बीत गई है तरहतरह के घरों में स्वयं को ढालने में. इस का हमें फर्क ही नहीं पड़ता. पिछले घर का सुख नए घर में नहीं होता फिर भी नए घर में कुछ ऐसा जरूर मिल जाता है जो पिछले घर में नहीं होता.

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नया घर छोटा है…बाकी घर इतने पासपास हैं कि साथ के घर में हंसतेबोलते लोग इतना एहसास अवश्य दिला जाते हैं कि आप अकेली नहीं हैं.

घर के बाहर आतेजाते, सब्जी बेचने वाले से सब्जी खरीदते चेहरे जानेपहचाने लगने लगे हैं. सामने सुंदर पार्क है. बेटी की शादी हो चुकी है और बेटा बाहर पढ़ता है. पति की नौकरी ऐसी है कि रात को 8 बजे से पहले वे कभी नहीं आते.

पुरानी जगह पर थे तब बड़ा घर मुसीबत लगता था, बाई न आए तो साफसफाई ही मुश्किल हो जाती थी. बड़े घर में रहने का शौक पूरा हो गया था. इतना बड़ा घर भी किस काम का जो भुतहा महल जैसा लगे.

धीरधीरे आसपड़ोस में एकदो परिवारों से जानपहचान हो गई. बगल के परिवार के छोटेछोटे बच्चे अति स्नेह देने लगे. अब दादीनानी बनने की उम्र है न मेरी, बहुत अच्छा लगता है जब छोटेछोटे बच्चे आगेपीछे घूमें.

घर के बिलकुल सामने एक बुजुर्ग दंपती नजर आते हैं. उन का घर अकसर बंद ही रहता, सुबह जब बाई काम करने आती तभी वह गेट खुलता. सामने नजर आती है बड़ी सी महंगी गाड़ी और बड़ा सा सुंदर गमला जिस में रंगबिरंगे फूल नजर आते हैं. इस से आगे कभी मेरी नजर ही न जाती.

घर की मालकिन का स्वभाव मुझे यहीं से समझ में आता है. शौकीन तबीयत और साफसुथरा मिजाज अवश्य ही इस महिला के चरित्र का अभिन्न अंग होगा. पता चला कि इन के बच्चे अच्छे हैं, ऊंचे ओहदों पर हैं और मांबाप का बहुत खयाल रखते हैं. कभीकभार उन की गाड़ी बाहर निकलती तो लगभग 75 साल की उम्र में भी इस महिला का बननासंवरना उस की जिंदा- दिली दर्शा जाता.

‘‘देखा न, इसे कहते हैं जीना. मैं बाल काले करता हूं तो तुम मना करती हो.’’

‘‘आंखों पर केमिकल्स का असर होता है इसलिए मना करती हूं.’’

‘‘तुम अभी से अपने को बूढ़ी मानती हो…वह देखो, इन के पोतेपोती भी सुना है कालेज में पढ़ते हैं…तुम तो अभी न दादी बनी हो न नानी और इतने हलके रंग के कपड़े पहनती हो.’’

‘‘बस, मुझे किसी से मत मिलाओ. वो वो हैं और मैं मैं.’’

पति हाथ हिला कर नहाने चले गए. सुबहसुबह और बहस करने का न मेरे पास समय था और न ही इन के पास. मगर यह सत्य है कि इन का बाल काले करना मुझे पसंद नहीं.

सर्दी से पहले दीवाली पर बेटा घर आया तो दीवान गेट के पास सजा कर धूप की व्यवस्था कर गया. सर्दी बढ़ने लगी और धीरधीरे मेरा समय दीवान पर ही बीतने लगा.

एक रात सहसा किसी के झगड़े से नींद खुली. कोई भद्दीभद्दी गालियां दे रहा था. घड़ी देखी तो रात के 2 बजे थे. कौन हो सकता है. नींद ऐसी उखड़ी कि फिर देर तक सो ही नहीं पाए हम. दूसरे दिन अपने नन्हेमुन्ने मित्रों की मां से बात की. हाथ हिला कर हंस दी वह.

‘‘अरे दीदी, वह सामने वाला जोड़ा है. हां, इस बार दौरा जरा देर से पड़ा है इसलिए आप को पता नहीं चला वरना तो ये दोनों रोज ही महल्ले भर का मनोरंजन करते हैं. दरअसल, महीने भर से अंकल घूमनेफिरने बाहर गए थे, सो शांति से वक्त बीत गया.’’

अवाक् सी मैं बीना से बोली, ‘‘75-80 साल का जोड़ा जिस की एक टांग कब्र में है और दूसरी इस जहान में, क्या वह इतनी बेशर्मी से लड़ता है.’’

‘‘अरे दीदी, पिछले कई वर्षों से हम इन्हें इसी तरह लड़तेझगड़ते देख रहे हैं. जब मैं शादी कर के आई थी तभी से इन का तमाशा देख रही हूं. अब तो आसपास वालों को भी आदत सी हो गई है. कोई भी गंभीरता से नहीं लेता इन्हें.’’

‘‘लेकिन लड़ाई की वजह क्या है?’’ मैं ने कहा, ‘‘इन के पास सबकुछ तो है.’’

?‘‘खाली दिमाग शैतान का घर होता है दीदी, कहते हैं न जब शरीर की ताकत का उचित उपयोग न हो सके तो वह ताकत गलत कामों में खर्च होने लगती है.’’

बीना कालेज में मनोविज्ञान की प्राध्यापिका है. उम्र में मुझ से 15-16 साल छोटी होगी लेकिन बात इतनी गहराई से समझाने लगी कि मानना ही पड़ा मुझे.

‘‘3 बेटे हैं इन के. एक तो शहर का मशहूर डाक्टर है, दूसरा अमेरिका में और तीसरा मनोविज्ञान का प्रोफेसर है. 2 बेटे इसी शहर में हैं. प्रोफेसर बेटा तो मेरा ही वरिष्ठ सहयोगी है. अकसर मेरी उन से बात होती रहती है. इन दोनों का हालचाल मैं उन्हें बताती रहती हूं.’’

‘‘बच्चे मांबाप के साथ क्यों नहीं रहते?’’

‘‘उन के बड़े होते बच्चे हैं दीदी, दादादादी का झगड़ा उन का दिमाग खराब कर देगा.’’

‘‘अरे, झगड़ा किस घर में नहीं होता. मेरे पति और मैं भी दिन में एक बार उलझ ही जाते हैं.’’

‘‘आप की उलझन का कारण कोई बाहर की औरतें तो नहीं होंगी न.’’

‘‘तुम्हारा मतलब इस उम्र में अंकल का कहीं बाहर…’’

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‘‘जी हां, कोई पुराना रिश्ता उम्र भर साथ चलता रहे तो भी समझ में आता है कि पुरुष जबान का पक्का है. प्यार को भी दरबदर नहीं कर रहा, बीवी को भी निभा रहा है और सारी तोहमतें सिर पर ले कर भी प्रेमिका का हाथ नहीं छोड़ा. सभ्य समाज में खुलेआम इसे भी स्वीकारा नहीं जाता फिर भी एक पुरुष का चरित्र जरा सा तो समझ में आता है न. कहीं वह जुड़ा है, किसी के साथ तो बंधा है, मरेगा तो आंसू बहाने वाली 1 नहीं 2 होंगी. इन महाशय की तरह तो नहीं होगा कि मरेंगे और घर वाले शुक्र मनाएंगे. हजारों गोपियां हैं इन की. कौनकौन रोएंगी? जो सब का हो कर जीता है वह वास्तव में किसी का नहीं होता.’’

शाम को पति से इस बारे में बात की तो उन्होंने गरदन हिला दी और बोले, ‘‘मैं ने भी कुछ ऐसी ही कहानियां सुनी हैं इन के बारे में, जहां इन के बेटे का नाम आता है वहीं इस नालायक पिता के बारे में बताने से भी लोग नहीं चूकते. मुझे भी आज ही पता चला है कि मशहूर डाक्टर विजय गोयल इन्हीं का बेटा है.’’

‘‘क्या? वही जिसे आप अपनी बीमारी दिखाने गए थे?’’

कुछ दिन पहले पति की कमर में अकड़न सी थी जिसे वह हड्डी विशेषज्ञ को दिखाने गए थे. बेटा संसार भर की हड्डियां ठीक करता है और कितनी बड़ी विडंबना है कि अपने ही घर की रीढ़ की हड्डी का इलाज नहीं कर सकता.

जब कभी भी श्रीमती गोयल भीनी सुगंध महकाती गाड़ी में बैठ कर निकलती हैं तो मन होता कि उन से मिलूं और पूछूं कि कैसे जीती हैं वे जिन का पति परिवार का मानसम्मान गंदी नाली में डाल अपना और परिवार का सर्वनाश कर रहा है.

एक दिन ऐसा संयोग हुआ कि उन से मुलाकात हो गई. उन के घर की बिजली गुल हो गई थी. वे मेरे घर पूछने आई थीं कि क्या मेरी भी बिजली नहीं है या सिर्फ उन की ही गुल है.

‘‘आइए न श्रीमती गोयल, कृपया अंदर आइए,’’ यह कहते हुए उन का हाथ पकड़ कर मैं उन्हें कमरे में ले आई थी. मेरी मां की उम्र की हैं, लेकिन रखरखाव और वेशभूषा वास्तव में इतनी अच्छी थी कि मैं उन के सामने फीकी लगूं.

‘‘हम नए आए हैं न महल्ले में, बहुत इच्छा थी कि आप से मिलूं. पड़ोस में दोस्ती होनी चाहिए न. रिश्तेदारों से पहले तो पड़ोसी ही काम आते हैं.’’

‘‘हां, हां, बेटा, क्यों नहीं. तुम्हीं आ जातीं. चाय साथसाथ पीते. मैं भी तुम से मिलना चाहती थी. अकसर छत से तुम्हें अचार का मर्तबान कभी धूप में तो कभी छाया में रखते देखती हूं.’’

‘‘जी, कुछ बेटी के घर भेजूंगी, कुछ आप को भी दूंगी. कौन सा अचार पसंद है आप को.’’

अचार का सिरा पकड़ जो बात शुरू हुई तो सीधी श्रीमती गोयल तक जा पहुंची. बातचीत का दौर चला तो सारी परतें खुलती चली गईं. कुछ ही दिन में मेरी मां की उम्र की महिला मेरी अंतरंग दोस्त बन गईर्ं. वे अकसर मेरे साथ ही धूप सेंकतीं और मन की पीड़ा बांटतीं.

‘‘शर्म आती थी पहले घर से बाहर निकलते हुए. सोचती थी लोग क्या कहेंगे. घर के अंदर तो पतिपत्नी कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ते हैं और जब पत्नी सजसंवर कर बाहर निकलती है तो किस नजर से सब से नजर मिलाती है. यह तो भला हो मेरे बेटों का जिन्होंने मुझे जिंदा रखा वरना इस आदमी की वजह से कब की मर गई होती मैं.’’

‘‘क्या गोयल साहब सदा से इसी चरित्र के हैं?’’

‘‘हां, वे सदा से औरतबाज हैं…सच पूछो तो इस सीमा तक बेशर्म भी कि अपनी रासलीला चटकारे लेले कर मुझे ही सुनाते रहते हैं…उस पर दलील यह कि मैं उन का साथ नहीं दे पाती, इसीलिए जरूरत पूरी करने के लिए बाहर जाते हैं.’’

‘‘80 साल की उम्र में भी उन की जरूरत क्या इतनी तीव्र है कि मानमर्यादा सब ताक पर रख कर वे बाहर जाते हैं?’’

मां समान औरत से ऐसा प्रश्न पूछना मैं चाहती तो नहीं थी पर एक लेखिका होने के नाते मैं इस लोभ से उठ नहीं पाई कि जान पाऊं उस महिला की मानसिक स्थिति, जिस का पति ऐसा बदचलन है और जिस के सामने यह प्रश्न कोई माने नहीं रखता कि कोई उस के बारे में क्या सोचता है. समाज का डर ही तो है, जो इनसान को मर्यादा में बांधता है.

‘‘80 साल के तो वे अब हैं, जब 30 साल के थे तब तो मैं साथ देती ही थी न. तब भी तो बाहर का स्वाद उन के लिए सर्वोपरि था.’’

उन की आंखें भर आई थीं. फूटफूट कर रो पड़ी थीं वे. मेरा मन भी भर आया था उन की हालत पर.

‘‘सदा पति की रंगबिरंगी प्रेम कहानियां ही सुनती रही मैं. मेरी अपनी तो कोई प्रेम कहानी बनी ही नहीं, पति के साथ भी मैं इसी तरह जीती रही जैसे कोई पड़ोसी हो… ऐसा बदचलन पड़ोसी जो जब जी चाहे दीवार फांद कर आए और मेरा इस्तेमाल कर चलता बने.’’

‘‘तब तलाक का फैशन कहां था जो छोड़ कर ही चली जाती. 3-3 बच्चों के साथ कहां जा कर रहती. यह तो अच्छा हुआ जो मेरे घर बेटी न हुई. बेटी हो जाती तो कौन स्वीकारता उसे? जिस का ऐसा पिता हो उस से कौन इज्जतदार नाता बांधता.’’ आंखें पोंछ ली थीं श्रीमती गोयल ने.

‘‘कहते हैं न जीवन में सब का अपनाअपना हिस्सा होता है. शायद ऐसा पति ही मेरा हिस्सा था. जैसा मिला उसी को निभा रही हूं. बस, प्रकृति की आभारी हूं जो बेटे चरित्रवान और मेधावी निकल गए वरना मेरा बुढ़ापा भी जवानी की तरह ही रोतेपीटते निकल जाता. जो सुख मुझे अपने पति से मिलना चाहिए था वह मेरी बहुएं और मेरे बच्चे मुझे देते हैं.’’

‘‘मेरी मां समझाया करती थीं कि सदा बनसंवर कर रहा करूं ताकि पति पल्लू से बंधा रहे. वैसा ही आज तक कर रही हूं…पर जिस को नहीं बंधना होता वह कभी नहीं बंध सकता. घाटघाट का पानी ही जिसे तृप्ति दे उसे एक ही बरतन का जल कभी संतुष्ट नहीं कर सकता.’’

‘‘अंकल के पास इतने पैसे कहां से आते हैं. क्या बाहर का शरीरसुख मुफ्त में मिल जाता है और फिर इस उम्र में आदमी रुपए ही तो लुटाएगा, जवानी और खूबसूरती उन के पास है कहां, जिस पर कोई कम उम्र की लड़की फिसले.’’

‘‘भविष्यनिधि की अपनी सारी रकम लगा कर उन्होंने एक अलग घर बनाया है. ज्यादा समय तो वे वहीं गुजारते हैं. घर आते हैं तो वही गालीगलौज.’’

‘‘गालीगलौज की वजह क्या है?’’

‘‘वजह यह है कि मैं जिंदा क्यों हूं. मर जाऊं तो वे बाहरवालियों के साथ चैन से इस घर में रह सकते हैं न…अब मैं मर कैसे जाऊं, तुम्हीं बताओ. पहले ही इतना संताप सह रही हूं, पता नहीं वह मेरे किस दुष्कर्म का फल है. अब आत्महत्या कर के पाप का बोझ क्या और बढ़ा लूं? एकदो बार तो वे मुझे मारने की कोशिश भी कर चुके हैं. मगर मैं हूं ही इतनी सख्तजान कि मेरी जान नहीं निकलती.’’

इतना कह कर श्रीमती गोयल फिर रोने लगी थीं.

– क्रमश:

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Serial Story: जारी है सजा– भाग 2

पूर्व कथा

श्रीमान गोयल की रंगीनमिजाजी के चलते उन के बेटेबहुएं साथ नहीं रहते. पति से बहुत ही लगाव रखती व उन की खूब इज्जत करती श्रीमती गोयल के पास पति की गलत आदतोंबातों को सहने के अलावा चारा न था, जबकि उन के बच्चे पिता की गंदी हरकतों से बेहद क्रोधित रहते थे. उन के अपने बच्चों पर श्रीमान गोयल की छाया न पड़े, इसलिए वे मातापिता से अलग रहते हैं. लेकिन उन में मां की ममता में कोई कमी न थी. वे मां को बराबर पैसे भेजते रहते हैं ताकि उन के पिता, उन की मां को तंग न करें. उधर, श्रीमती गोयल का अपनी नई पड़ोसन शुभा से संपर्क हुआ तो उन्हें लगा कि गैरों में भी अपनत्व होता है. जबतब दोनों में मुलाकातें होती रहतीं और श्रीमती गोयल उन्हें पति का दुखड़ा सुना कर संतुष्ट हो लेतीं. शुभा के पूछने पर श्रीमती गोयल ने बताया, ‘‘गोयल साहब औरतबाज हैं, इस सीमा तक बेशर्म भी कि बाजारू औरतों के साथ मनाई अपनी रासलीला को चटकारे लेले कर मुझे ही सुनाते रहते हैं,’’ श्रीमती गोयल पति के साथ इस तरह जीती रहीं जैसे पड़ोसी. ऐसा बदचलन पड़ोसी जो जब जी चाहे, दीवार फांद कर आए और उन का इस्तेमाल कर चलता बने. श्रीमती गोयल सोचती हैं कि शायद ऐसा पति ही उन के जीवन का हिस्सा था, जैसा मिला है उसी को निभाना है. श्रीमती गोयल न जाने कौन सा संताप सहती रहीं जबकि उन का पति क्षणिक मौजमस्ती में मस्त रहा. कुछ भी गलत न करने की कैसी सजा वे भोग रही हैं वहीं, कुकर्म करकर के भी श्रीमान गोयल बिंदास घूम रहे हैं. लेकिन…

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अब आगे…

बातों का सिलसिला चल निकलता तो उन का रोना भी जारी रहता और हंसना भी.

‘‘आप के घर का खर्च कैसे चलता है?’’

‘‘मेरे बच्चे मुझे हर महीने खर्च भेजते हैं. बाप को अलग से देते हैं ताकि वे मुझे तंग न करें और जितना चाहें घर से बाहर लुटाएं.’’

मैं स्तब्ध थी. ऐसे दुराचारी पिता को बच्चे पाल रहे हैं और उस की ऐयाशी का खर्च भी दे रहे हैं.

अपने बच्चों के मुंह से निवाला छीन कर कौन इनसान ऐसे बाप का पेट भरता होगा जिस का पेट सुरसा के मुंह की तरह फैलता ही जा रहा है.

‘‘आप लोग इतना सब बरदाश्त कैसे करते हैं?’’

‘‘तो क्या करें हम. बच्चे औलाद होने की सजा भोग रहे हैं और मैं पत्नी होने की. कहां जाएं? किस के पास जा कर रोएं…जब तक मेरी सांस की डोर टूट न जाए, यही हमारी नियति है.’’

मैं श्रीमती गोयल से जबजब मिलती, मेरे मानस पटल पर उन की पीड़ा और गहरी छाप छोड़ती जाती. सच ही तो कह रही थीं श्रीमती गोयल. इनसान रिश्तों की इस लक्ष्मण रेखा से बाहर जाए भी तो कहां? किस के पास जा कर रोए? अपना ही अपना न हो तो इनसान किस के पास जाए और अपनत्व तलाश करे. मेकअप की परत के नीचे वे क्याक्या छिपाए रखने का प्रयास करती हैं, मैं सहज ही समझ सकती थी. जरूरी नहीं है कि जो आंखें नम न हों उन में कोई दर्द न हो, अकसर जो लोग दुनिया के सामने सुखी होने का नाटक करते हैं ज्यादातर वही लोग भीतर से खोखले होते हैं.

इसी तरह कुछ समय बीत गया. मुझ से बात कर वे अपना मन हलका कर लेती थीं.

उन्हीं दिनों एक शादी में शामिल होने को मुझे कुल्लू जाना पड़ा. जाने से पहले श्रीमती गोयल ने मुझे 5 हजार रुपए शाल लाने के लिए दिए थे. मैं और मेरे पति लंबी छुट्टी पर निकल पड़े. लगभग 10 दिन के बाद हम वापस आए.

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रात देर से पहुंचे थे इसलिए खाना खाया और सो गए. अगले दिन सुबह उठे तो 10 दिन का छोड़ा घर व्यवस्थित करतेकरते ही शाम हो गई. चलतेफिरते मेरी नजर श्रीमती गोयल के घर पर पड़ जाती तो मन में खयाल आता कि आई क्यों नहीं आंटी. जब हम गए थे तो उन्होंने सफर के लिए गोभी के परांठे साथ बांध दिए थे. गरमगरम चाय और अचार के साथ उन परांठों का स्वाद अभी तक मुंह में है. शाम के बाद रात और फिर दूसरा दिन भी आ गया, मैं ने ही उन की शाल अटैची से निकाली और देने चली गई, लेकिन गेट पर लटका ताला देख मुझे लौटना पड़ा.

अभी वापस आई ही थी कि पति का फोन आ गया, ‘‘शुभा, तुम कहां गई थीं, अभी मैं ने फोन किया था?’’

‘‘हां, मैं थोड़ी देर पहले सामने आंटी को शाल देने गई थी, मगर वे मिलीं नहीं.’’

वे बात करतेकरते तनिक रुक गए थे, फिर धीरे से बोले, ‘‘गोयल आंटी का इंतकाल हुए आज 12 दिन हो गए हैं शुभा, मुझे भी अभी पता चला है.’’

मेरी तो मानो चीख ही निकल गई. फोन के उस तरफ पति बात भी कर रहे थे और डर भी रहे थे.

‘‘शुभा, तुम सुन रही हो न…’’

ढेर सारा आवेग मेरे कंठ को अवरुद्ध कर गया. मेरे हाथ में उन की शाल थी जिसे ले कर मैं क्षण भर पहले ही यह सोच रही थी कि पता नहीं उन्हें पसंद भी आएगी या नहीं.

‘‘वे रात में सोईं और सुबह उठी ही नहीं. लोग तो कहते हैं उन के पति ने ही उन्हें मार डाला है. शहर भर में इसी बात की चर्चा है.’’

धम्म से वहीं बैठ गई मैं, पड़ोस की बीना भी इस समय घर नहीं होगी…किस से बात करूं? किस से पूछूं अपनी सखी के बारे में. भाग कर मैं बाहर गई और एक बार फिर से ताले को खींच कर देखने लगी. तभी उधर से गुजरती हुई एक काम वाली मुझे देख कर रुक गई. बांह पकड़ कर फूटफूट कर रोने लगी. याद आया, यही बाई तो श्रीमती गोयल के घर काम करती थी.

‘‘क्या हुआ था आंटी को?’’ मैं ने हिम्मत कर के पूछा.

‘‘बीबीजी, जिस दिन सुबह आप गईं उसी रात बाबूजी ने सिर में कुछ मार कर बीबीजी को मार डाला. शाम को मैं आई थी बरतन धोने तो बीबीजी उदास सी बैठी थीं. आप के बारे में बात करने लगीं. कह रही थीं, ‘मन नहीं लग रहा शुभा के बिना.’ ’’

आंटी का सुंदर चेहरा मेरी आंखों के सामने कौंध गया. बेचारी तमाम उम्र अपनेआप को सजासंवार कर रखती रहीं. चेहरा संवारती रहीं जिस का अंत इस तरह हुआ. रो पड़ी मैं, सत्या भी जोर से रोने लगी. कोई रिश्ता नहीं था हम तीनों का आपस में. मरने वाली के अपने कहां थे हम. पराए रो रहे थे और अपने ने तो जान ही ले ली थी.

दोपहर को बीना आई तो सीधी मेरे पास चली आई.

‘‘दीदी, आप कब आईं? देखिए न, आप के पीछे कैसा अनर्थ हो गया.’’

रोने लगी थी बीना भी. सदमे में लगभग सारा महल्ला था. पता चला श्रीमान गोयलजी तभी से गायब हैं. डाक्टर बेटा आ कर मां का शव ले गया था. बाकी अंतिम रस्में उसी के घर पर हुईं.

‘‘तुम गई थीं क्या?’’

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‘‘हां, अमेरिका वाला बेटा भी आजकल यहीं है. तीनों बेटे इतना बिलख रहे थे कि  क्या बताऊं आप को दीदी. गोयल अंकल ने यह अच्छा नहीं किया. गुल्लू तो कह रहा था कि बाप को फांसी चढ़ाए बिना नहीं मानेगा लेकिन बड़े दोनों भाई उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयास कर रहे हैं.’’

गुल्लू अमेरिका में जा कर बस जाना ज्यादा बेहतर समझता था, इसीलिए साथ ले जाने को मां के कागजपत्र सब तैयार किए बैठा था. वह नहीं चाहता था कि मां इस गंदगी में रहें. घर का सारा वैभव, सारी सुंदरता इसी गुल्लू की दी हुई थी. सब से छोटा था और मां का लाड़ला भी.

आगे पढें- आंखें पोंछती हुई बीना चली गई. दिल…

Serial Story: जारी है सजा– भाग 3

हर सुबह मां से बात करना उस का नियम था. आंटी की बातों में भी गुल्लू का जिक्र ज्यादा होता था.

‘‘तुम चलोगी मेरे साथ बीना, मैं उन के घर जा कर उन से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘इसीलिए तो आई हूं. आज तेरहवीं है. शाम 4 बजे उठाला हो जाएगा. आप तैयार रहना.’’

आंखें पोंछती हुई बीना चली गई. दिल जैसे किसी ने मुट्ठी में बांध रखा था मेरा. नाश्ता वैसे ही बना पड़ा था जिसे मैं छू भी नहीं पाई थी. संवेदनशील मन समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर आंटी का कुसूर क्या था, पूरी उम्र जो औरत मेहनत कर बच्चों को पढ़ातीलिखाती रही, पति की मार सहती रही, क्या उसे इसी तरह मरना चाहिए था. ऐसा दर्दनाक अंत उस औरत का, जो अकेली रह कर सब सहती रही.

‘एक आदमी जरा सा नंगा हो रहा हो तो हम उसे किसी तरह ढकने का प्रयास कर सकते हैं शुभा, लेकिन उसे कैसे ढकें जो अपने सारे कपड़े उतार चौराहे पर जा कर बैठ जाए, उसे कहांकहां से ढकें…इस आदमी को मैं कहांकहां से ढांपने की कोशिश करूं, बेटी. मुझे नजर आ रहा है इस का अंत बहुत बुरा होने वाला है. मेरे बेटे सिर्फ इसलिए इसे पैसे देते हैं कि यह मुझे तंग न करे. जिस दिन मुझे कुछ हो गया, इस का अंत हो जाएगा. बच्चे इसे भूखों मार देंगे…बहुत नफरत करते हैं वे अपने पिता से.’

गोयल आंटी के कहे शब्द मेरे कानों में बजने लगे. पुन: मेरी नजर घर पर पड़ी. यह घर भी गोयल साहब कब का बेच देते अगर उन के नाम पर होता. वह तो भला हो आंटी के ससुर का जो मरतेमरते घर की रजिस्ट्री बहू के नाम कर गए थे.

शाम 4 बजे बीना के साथ मैं डा. विजय गोयल के घर पहुंची. वहां पर भीड़ देख कर लगा मानो सारा शहर ही उमड़ पड़ा हो. अच्छी साख है उन की शहर में. इज्जत के साथसाथ दुआएं भी खूब बटोरी हैं आंटी के उस बेटे ने.

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तेरहवीं हो गई. धीरेधीरे सारी भीड़ घट गई. आंटी की शाल मेरे हाथ में कसमसा रही थी. जरा सा एकांत मिला तो बीना ने गुल्लू से मेरा परिचय कराया. गुल्लू धीरे से उठा और मेरे पास आ कर बैठ गया. सहसा मेरा हाथ पकड़ा और अपने हाथ में ले कर चीखचीख कर रोने लगा.

‘‘मैं अपनी मां की रक्षा नहीं कर पाया, शुभाजी. पिछले कुछ हफ्तों से मां की बातों में सिर्फ आप का ही जिक्र रहता था. मां कहती थीं, आप उन्हें बहुत सहारा देती रही हैं. आप वह सब करती रहीं जो हमें करना चाहिए था.’’

‘‘जिस सुबह आप कुल्लू जाने वाली थीं उसी सुबह जब मैं ने मां से बात की तो उन्होंने बताया कि बड़ी घबराहट हो रही है. आप के जाने के बाद वे अकेली पड़ जाएंगी. ऐसा हो जाएगा शायद मां को आभास हो गया था. हमारा बाप ऐसा कर देगा किसी दिन हमें डर तो था लेकिन कर चुका है विश्वास नहीं होता.’’

दोनों बेटे भी मेरे पास सिमट आए थे. तीनों की पत्नियां और पोतेपोतियां भी. रो रही थी मैं भी. डा. विजय हाथ जोड़ रहे थे मेरे सामने.

‘‘आप ने एक बेटी की तरह हमारी मां को सहारा दिया, जो हम नहीं कर पाए वह आप करती रहीं. हम आप का एहसान कभी नहीं भूल सकते.’’

क्या उत्तर था मेरे पास. स्नेह से मैं ने गुल्लू का माथा सहला दिया.

सभी तनिक संभले तो मैं ने वह शाल गुल्लू को थमा दी.

‘‘श्रीमती गोयल ने मुझे 5 हजार रुपए दिए थे. कह रही थीं कि कुल्लू से उन के लिए शाल लेती आऊं. कृपया आप इसे रख लीजिए.’’

पुन: रोने लगा था गुल्लू. क्या कहे वह और क्या कहे परिवार का कोई अन्य सदस्य.

‘‘आप की मां की सजा पूरी हो गई. मां की कमी तो सदा रहेगी आप सब को, लेकिन इस बात का संतोष भी तो है कि वे इस नरक से छूट गईं. उन की तपस्या सफल हुई. वे आप सब को एक चरित्रवान इनसान बना पाईं, यही उन की जीत है. आप अपने पिता को भी माफ कर दें. भूल जाइए उन्हें, उन के किए कर्म ही उन की सजा है. आज के बाद आप उन्हें उन के हाल पर छोड़ दीजिए. समयचक्र कभी क्षमा नहीं करता.’’

‘‘समयचक्र ने हमारी मां को किस कर्म की सजा दी? हमारी मां उस आदमी की इतनी सेवा करती रहीं. उसे खिला कर ही खाती रहीं सदा, उस इनसान का इंतजार करती रहीं, जो उस का कभी हुआ ही नहीं. वे बीमार होती रहीं तो पड़ोसी उन का हालचाल पूछते रहे. भूखी रहतीं तो आप उसे खिलाती रहीं. हमारा बाप सिर पर चोट मारता रहा और दवा आप लगाती रहीं…आप क्या थीं और हम क्या थे. हमारे ही सुख के लिए वे हम से अलग रहीं सारी उम्र और हम क्या करते रहे उन के लिए. एक जरा सा सहारा भी नहीं दे पाए. इंतजार ही करते रहे कि कब वह राक्षस उन्हें मार डाले और हम उठा कर जला दें.’’

गुल्लू का रुदन सब को रुलाए जा रहा था.

‘‘कुछ नहीं दिया कालचक्र ने हमारी मां को. पति भी राक्षस दिया और बेटे भी दानव. बेनाम ही मर गईं बेचारी. कोई उस के काम नहीं आया. किसी ने मेरी मां को नहीं बचाया.’’

‘‘ऐसा मत सोचो बेटा, तुम्हारी मां तो हर पल यही कहती रहीं कि उन के  बेटे ही उन के जीने का सहारा हैं. आप सब भी अपने पिता जैसे निकल जाते तो वे क्या कर लेतीं. आप चरित्रवान हैं, अच्छे हैं, यही उन के जीवन की जीत रही. बेनाम नहीं मरीं आप की मां. आप सब हैं न उन का नाम लेने वाले. शांत हो जाओ. अपना मन मैला मत करो.

‘‘आप की मां आप सब की तरफ से जरा सी भी दुखी नहीं थीं. अपनी बहुओं की भी आभारी थीं वे, अपने पोतेपोतियों के नाम भी सदा उन के होंठों पर होते थे. आप सब ने ही उन्हें इतने सालों तक जिंदा रखा, वे ऐसा ही सोचती थीं और यह सच भी है. ऐसा पति मिलना उन का दुर्भाग्य था लेकिन आप जैसी संतान मिल जाना सौभाग्य भी है न. लेखाजोखा करने बैठो तो सौदा बराबर रहा. प्रकृति ने जो उन के हिस्से में लिखा था वही उन्हें मिल गया. उन्हें जो मिला उस का वे सदा संतोष मनाती थीं. सदा दुआएं देती थीं आप सब को. तुम अपना मन छोटा मत करो… विश्वास करो मेरा…’’

मेरे हाथों को पकड़ पुन: चीखचीख कर रो पड़ा था गुल्लू और पूरा परिवार उस की हालत पर.

समय सब से बड़ा मरहम है. एक बुरे सपने की तरह देर तक श्रीमती गोयल की कहानी रुलाती भी रही और डराती भी रही. कुछ दिनों बाद उन के बेटों ने उस घर को बेच दिया जिस में वे रहती थीं.

श्रीमान गोयल के बारे में भी बीना से पता चलता है. बच्चों ने वास्तव में पिता को माफ कर दिया, क्या करते.

उड़तीउड़ती खबरें मिलती रहीं कि श्रीमान गोयल का दिमाग अब ठीक नहीं रहा. बाहर वालियों ने उन का घर भी बिकवा दिया है. बेघर हो गया है वह पुरुष जिस ने कभी अपने घर को घर नहीं समझा. पता नहीं कहां रहता है वह इनसान जिस का अब न कोई घर है न ठिकाना. अपने बच्चों के मुंह का निवाला जो इनसान वेश्याओं को खिलाता रहा उस का अंत भला और कैसा होता.

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एक रात पुन: गली में चीखपुकार हुई. श्रीमान गोयल अपने घर के बाहर खड़े पत्नी को गालियां दे रहे थे. भद्दीगंदी गालियां. दरवाजा जो नहीं खोल रही थीं वे, शायद पागलपन में वे भूल चुके थे कि न यह घर अब उन का है और न ही उन्हें सहन करने वाली पत्नी ही जिंदा है.

चौकीदार ने उन्हें खदेड़ दिया. हर रोज चौकीदार उन्हें दूर तक छोड़ कर आता, लेकिन रोज का यही क्रम महल्ले भर को परेशान करने लगा. बच्चों को खबर की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि वे किसी श्रीमान गोयल को नहीं जानते हैं. कोई जो भी सुलूक चाहे उन के साथ कर सकता है. किसी ने पागलखाने में खबर की. हर रात  का तमाशा सब के लिए असहनीय होता जा रहा था. एक रात गाड़ी आई और उन्हें ले गई. मेरे पति सब देख कर आए थे. मन भर आया था उन का.

‘‘वह आंटीजी कैसे सजासंवार कर रखती थीं इस आदमी को. आज गंदगी का बोरा लग रहा था…बदबू आ रही थी.’’

आंखें भर आईं मेरी. सच ही कहा है कहने वालों ने कि काफी हद तक अपने जीवन के सुख या दुख का निर्धारण मनुष्य अपने ही अच्छेबुरे कर्मों से करता है. श्रीमती गोयल तो अपनी सजा भोग चुकीं, श्रीमान गोयल की सजा अब भी जारी है.

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Shweta Tiwari का बड़ा खुलासा, पति अभिनव कोहली ने दी थी ये धमकी

टीवी की पौपुलर एक्ट्रेस श्वेता तिवारी (Shweta Tiwari) आए दिन अपनी शादीशुदा जिंदगी को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. जहां हाल ही में श्वेता के एक्स हस्बैंड राजा चौधरी ने 13 साल बाद बेटी पलक तिवारी से मिलने के बाद श्वेता की तारीफ की थी तो वहीं श्वेता तिवारी के पति अभिनव कोहली आए दिन कोई न कोई इल्जाम उन पर लगाते रहते हैं. हालांकि वह हमेशा चुप्पी साधे रखती थीं. लेकिन अब श्वेता तिवारी ने इस मामले में चुप्पी तोड़ दी है. आइए आपको बताते हैं रिश्ते को लेकर क्या कहती हैं श्वेता तिवारी…

इमेज खराब करने को लेकर दी थी धमकी

श्वेता तिवारी और अभिनव कोहली ने कई आरोप एक-दूसरे पर लगाए. वहीं हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में श्वेता ने अभिनव से धमकी मिलने पर बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि ‘मेरी बिल्डिंग की लॉबी में अभिनव ने मुझसे कहा था कि एक औरत की इमेज खराब करने में क्या लगता है, बस एक पोस्ट और तुम बर्बाद हो जाओगी. 5 से 6 दिनों के बाद उसने मेरी इमेज खराब करने के लिए पोस्ट करना शुरू कर दिया.’

 

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लोग करने लगते हैं विश्वास

 

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सोशलमीडिया पर इमेज खराब करने को लेकर एक्ट्रेस श्वेता तिवारी ने कहा, ‘जब आप सोशल मीडिया पर लोगों के साथ खुलकर बात करते हैं तो उन्हें लगता है कि यह सच्चाई है. लेकिन कोई यह क्यों नहीं सोचता कि यह गलत भी हो सकता है? कोई यह जानने की कोशिश भी नहीं करता है कि इसके पीछा क्या सच्चाई है? लोग बातों को सच मानना शुरू कर देते हैं क्योंकि दूसरा इंसान अपनी स्टोरी शेयर नहीं कर रहा है. लोग एक तरफ की बातें सुनकर विश्वास करने लगते हैं.’

 

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बता दें, श्वेता तिवारी की अभिनेता अभिनव कोहली से दूसरी शादी है, जबकि वह इससे पहले राजा चौधरी से सात फेरे लिए थे. श्वेता तिवारी ने अपने पहले पति राजा पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए उनसे तलाक लिया था जिससे उनकी पहली बेटी पलक है. वहीं अभिनव कोहली से दोनों का एक बेटा है.

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