उपहार: आनंद ने कैसे बदला फैसला?

Serial Story: उपहार– भाग 1

लेखिका- डा. ऋतु सारस्वत

‘‘तुम कहां थी. मेरा मन कितना घबरा रहा था. घड़ी देखो इरा, 8 बज चुके हैं. तुम से हजार बार कह चुकी हूं कि अंधेरा होने के बाद मुझे तुम्हारा घर से बाहर रहना पसंद नहीं है…’’ ‘‘सौरी,’’ यह कह कर मैं अपने कमरे में जा कर गुस्से में लेट गई. ‘कौन सा मैं घूमने गई थी. नोट्स ही तो बना रही थी शुभ्रा के घर. थोड़ी सी देर हो जाए तो हंगामा शुरू. हम अकेले रहते हैं तो क्या, मैं ने कहा था अकेले रहने के लिए’, मन ही मन मैं बड़बड़ाए जा रही थी कि मां ने आवाज लगाई, ‘‘इरा, खाना लग चुका है, आ जाओ.’’

इच्छा न होते हुए भी मैं किचन की ओर बढ़ गई. खाना खाते हुए मैं ने मां से पूछा, ‘‘मम्मा, कल हमारी क्लास पिकनिक पर जा रही है, मैं भी…’’

‘‘नहीं इरा, यह संभव नहीं है और प्लीज नो डिस्कशन.’’

‘‘तो ठीक है, मैं कल से घर पर ही रहूंगी, कालिज जाना बंद. वैसे भी घर से सुरक्षित जगह और कोई नहीं हो सकती. शहर भर में गुंडे मुझे ही तो ढूंढ़ रहे हैं…’’

मैं इस से आगे कुछ कहती कि मां ने मुझे गुस्से से देखा और मैं खाना छोड़ कर अपने कमरे में चली गई.

अगर मां जिद्दी हैं तो मैं भी उन की बेटी हूं, कल से कालिज नहीं जाऊंगी और यह निश्चय कर के मैं सो गई. सुबह जब आंख खुली तो 9 बज चुके थे. आज मेरी खैर नहीं. मां ने आज गुस्से में मुझे उठाया नहीं, लगता है… यह सोच ही रही थी कि मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘इरा, मैं आफिस जा रही हूं, तुम्हारा नाश्ता मेज पर रखा है.’’

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मैं ने उठ कर दरवाजा बंद किया और मां के कमरे की ओर मुड़ गई. देखा तो मां जल्दी में अलमारी की चाबी भूल गईं थीं. न जाने क्यों मैं ने मां की अलमारी खोल ली, देखा तो सामने लाल रंग की डायरी रखी थी. उत्सुकतावश मैं ने उसे उठाया और डायरी ले कर बाहर बालकनी में आ कर बैठ गई. मैं ने हिचकते हुए उसे पढ़ना शुरू किया.

‘शेखर, तुम्हें इस दुनिया से गए आज पूरे 2 महीने बीत गए हैं. तुम्हारे बगैर जीने की कतई इच्छा नहीं है पर तुम मुझे जीने की वजह दे गए हो. मेरी कोख में तुम्हारी निशानी है. घर का माहौल तनावग्रस्त रहता है. अम्मांबाबूजी को एक ओर तो तुम्हारे जाने का गम है, दूसरी ओर मेरे पापामम्मी का बढ़ता हुआ दबाव. पापा चाहते हैं कि मैं अपनी कोख को खत्म कर दूं जिस से वह मेरी दोबारा शादी कर सकें.

‘मैं जानती हूं इस संसार में सब से बड़ा दुख संतान का होता है. उन की बेटी छोटी सी उम्र में विधवा हो गई, यह दुख पहाड़ से भी बड़ा है और यही वजह है वह मेरी शादी करना चाहते हैं, पर मैं ऐसा नहीं चाहती. मैं भी तो मां बनने जा रही हूं. कैसे अपने तुच्छ स्वार्थ के लिए अपने बच्चे को…मैं ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकती. तुम ने जो मुझे प्यार दिया है मैं उस के सहारे अपना सारा जीवन निकाल लूंगी.’

10 जनवरी, 1984.

‘अम्मांबाबूजी मेरा बहुत ध्यान रखते हैं. उन की आंखें हर पल, तुम्हारे  रूप में अपने पोते का इंतजार कर रही हैं पर डर लगता है कि अगर उन की यह इच्छा पूरी नहीं हुई तो क्या होगा?’

15 अप्रैल, 1984.

‘जिस का डर था वही हुआ. अम्मांबाबूजी की उम्मीद टूट गई. मैं अपनी गोद में इरा को पा कर बहुत खुश हूं. तुम भी तो यही चाहते थे. शेखर, इरा चांद का टुकड़ा है पर चांद की तरह उस पर भी दाग है. दुर्भाग्य का दाग. इस संसार में वह बच्चा दुर्भाग्यशाली ही तो कहलाएगा जिस के पास पिता की छांव न हो. शेखर, मुझे अम्मांबाबूजी का व्यवहार पीड़ा पहुंचाता है. इरा को वह गोदी में लेना पसंद नहीं करते. उन की नजरों में वह मनहूस है जो इस दुनिया में आने से पहले अपने पिता को खा गई.’

10 अगस्त, 1984.

‘शेखर, आज मैं ने बाबूजी का घर छोड़ दिया क्योंकि मुझ से पलपल अपनी बेटी का अपमान बरदाश्त नहीं होता. इरा अभी तो छोटी है पर जिस पल उसे खुद के लिए अम्मांबाबूजी की नफरत समझ में आएगी वह टूट जाएगी. अम्मां ने कल रात को उसे अपने कमरे से यह कह कर भगा दिया कि वह मनहूस है. मैं नहीं चाहती कि मेरी बच्ची इतनी नफरत के बीच में पले.’

25 जुलाई, 1986.

मां के लिखे एकएक शब्द मेरे अस्तित्व को झकझोर रहे थे. मैं ने डायरी का अगला पन्ना पलटा.

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‘शेखर, मैं बहुत थकने लगी हूं. पिता और मां दोनों की जिम्मेदारियों का निर्वाह करतेकरते मैं खुद क्या हूं भूल जाती हूं. इरा, अपने दादादादी के बारे में पूछती है. उस की खुशी के लिए मैं ने एक दिन घर फोन कर के आने के लिए पूछा था पर बाबूजी ने कहा कि हम दोनों उन के लिए मर चुके हैं.

‘रिश्तों की भीड़ में हम अकेले हैं. मम्मीपापा के पास चाह कर भी नहीं जा सकती, क्योंकि वहां भाभी की शंकित निगाहें मुझे भीतर तक टटोल लेना चाहती हैं कि कहीं मैं उन के घर पर कब्जा जमाने तो नहीं आ गई. मम्मीपापा बेबसी से मुझे देखते हैं. वह स्वयं भैयाभाभी पर निर्भर हैं. अब इरा ही मेरा संसार है.’

30 अगस्त, 1990.

‘आज पहली बार मैं ने इरा पर हाथ उठाया है. मुझे इस का बहुत दुख है. क्या करूं, उस के परीक्षा में नंबर कम आए हैं. अगले साल बोर्ड है, अगर ऐसा ही रहा तो मैं क्या करूंगी? हर तरफ सिर्फ एक ही बात होगी कि बिन बाप की बच्ची है इसलिए ऐसा हुआ. मैं हर पल सूली पर खड़ी होती हूं, जहां मेरा चरित्र, मेरे गुणअवगुण, मेरा सबकुछ मेरे अकेले होने से मापा जाता है, यहां तक कि मेरा मातृत्व भी हमेशा प्रश्नों के कटघरे में खड़ा रहता है.’

30 अप्रैल, 1999.

‘आज इरा का कालिज का पहला दिन है. शेखर, तुम्हारी बिटिया बड़ी हो गई है और मैं कमजोर. अभी तक तो मैं ने उसे अपने आंचल में छिपा कर रखा था पर क्या अब मैं उसे समाज की गंदगी से दूर रख पाऊंगी. वह भी तो दूसरी लड़कियों की तरह जीना चाहेगी, क्या मैं उसे यह आजादी दे पाऊंगी. आज बहुत डर लग रहा है. इरा अगर भटक गई… नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता…मैं यह क्या सोच रही हूं.’

1 जुलाई, 2001.

‘आज का दिन मेरे लिए बहुत बुरा था. आज आफिस में मिसेज भटनागर कह रही थीं कि मुझे इरा पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए, बिन बाप की बच्ची कहीं भटक…मैं इस से आगे कुछ कह नहीं पाई. क्या मुझ से भूल हो गई है? क्या मुझे पापामम्मी की बात मान लेनी चाहिए थी? मैं ने खुद के लिए कभी न खत्म होने वाला अकेलापन चुना जिस से मेरी बच्ची सुरक्षित रहे, पर क्या मेरी सुरक्षा की परिभाषा गलत थी? क्या मेरे साथसाथ मेरी बच्ची को भी हरपल अग्नि परीक्षा देनी होगी? नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी, पर कैसे?’

9 नवंबर, 2001.

‘इरा 22 साल की हो गई है. मुझे उस के भविष्य की चिंता हो रही है. कुछ ही सालों में वह अपने घर चली जाएगी. कैसे उस के लिए एक अच्छा जीवनसाथी खोजूं. काश, तुम मेरे पास होते. इरा के जाने के बाद मैं क्या करूंगी. कितना अकेलापन होगा, सोच कर भी डर लगता है.’

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15 अगस्त, 2006.

यह आखिरी पन्ना था. नजरें उठा कर देखा तो 4 बजने को थे. मेरा मन ग्लानि से भरा हुआ था. क्यों नहीं समझ पाई मैं अपनी मां की तकलीफ? मां के प्रति अपने किए गए हर बुरे बरताव पर मुझे शर्मिंदगी हो रही थी.

आगे पढें- अपने कमरे में कपड़े रख कर मैं पलटी ही थी कि…

Serial Story: उपहार– भाग 2

लेखिका- डा. ऋतु सारस्वत

अब ऐसा नहीं होगा. मां, मैं आप का सहारा बनूंगी और आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. मन में यह संकल्प कर मैं ने मां की डायरी यथावत अलमारी में रख दी. हमेशा से बिलकुल अलग मैं मां का हर बोझ कम करना चाहती थी. इसलिए छत पर सूखे हुए कपड़े उतारने गई तो ट्रक की आवाज सुन कर मैं चौंकी. पर देखा तो पड़ोस के घर में सामान उतर रहा था. होगा कोई, यह सोच कर कपड़े ले कर मैं नीचे आ गई.

अपने कमरे में कपड़े रख कर मैं पलटी ही थी कि कालबेल बजी. साढे़ 5 बज गए, मां ही होंगी यह सोच कर दरवाजे की ओर बढ़ी. दरवाजा खोला तो सामने मां की उम्र के व्यक्ति खड़े थे.

‘‘नमस्ते बेटा, मैं डा. सिद्धांत हूं. मैं ने आप का पड़ोस वाला घर खरीदा है. क्या आप के पास 5 सौ रुपए के खुले होंगे,’’ उन के इस प्रश्न पर मैं ने ‘हां’ में गरदन हिलाई और थोड़ी देर में उन्हें 100-100 के 5 नोट ला कर दे दिए. इस पहले परिचय के बाद अब डा. सिद्धांत से हर सुबह मेरी मुलाकात कालिज जाते हुए होती. मैं उन्हें नमस्ते करती और वह मुसकरा कर कहते, ‘‘खुश रहो बेटा.’’

मैं अब पहले वाली इरा नहीं रही थी. मेरी मां, मेरे जीवन का केंद्रबिंदु बन गई थीं. उन के आफिस से लौटने से पहले मैं हर हालत में कालिज से लौट आती और मां के आते ही चाय बना कर लाती. जब वह खाना बनातीं तो उन के साथ किचन में उन का हाथ बंटाती. मेरा यह व्यवहार शुरू में मां को अटपटा जरूर लगा और उन्होंने 1-2 बार पूछा भी, ‘‘इरा, क्या बात है, कालिज से जल्दी आ जाती हो, किसी दोस्त से झगड़ा हो गया है क्या?’’ मां के इस सवाल पर मैं सिर्फ मुसकरा कर रह जाती.

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एक दिन जब मैं कालिज से लौट कर आई तो देखा, मां घर पर हैं. अभी तो सिर्फ 3 ही बजे हैं और मां घर पर, सब ठीक तो है? यह सोच कर मैं सीधे मां के कमरे की ओर गई. देखा, मां बिस्तर पर सो रही थीं. मैं ने जैसे ही उन्हें उठाने के लिए हाथ लगाया तो पाया कि उन्हें तेज बुखार है.

‘‘मम्मा, आप को तो बुखार है,’’ मेरे स्पर्श से मां जाग गई थीं.

‘‘हां बेटा, पर मैं जल्दी ठीक हो जाऊंगी. मैं ने दवा ले ली है.’’

रात को मां ने जैसे मुझे समझाया वैसे मैं ने उन के लिए दलिया भी बनाया.

‘‘पहली बार तुम ने कुछ बनाया है. मेरी बिटिया अब बड़ी हो गई है,’’ यह कह कर मां ने मेरे माथे को चूम लिया था. मैं रात को मां के पास ही सो गई. थोड़ी देर बाद मां के कराहने की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली. मैं ने लाइट जलाई और घड़ी की ओर देखा तो रात के 1 बज रहे थे. मां को छू कर देखा तो उन का बदन भट्ठी की तरह तप रहा था. समझ में नहीं आया कि क्या करूं. दौड़ कर डा. सिद्धांत के घर गई.

‘‘इतनी रात को, सब ठीक तो है बेटा?’’ उन्होंने मुझे देखते ही पूछा.

‘‘अंकल, मम्मा को बहुत तेज बुखार है. प्लीज, आप घर…’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं…’’ यह कह कर वह अंदर गए और अपना बैग ले कर मेरे साथ घर आ गए. मां की हालत देख कर बोले, ‘‘अच्छा किया बेटा जो तुम ने मुझे बुला लिया. थोड़ी देर में इन का बुखार उतर जाएगा. मैं ने इंजेक्शन लगा दिया है.’’

‘‘अंकल, सौरी, मैं ने आप को इतनी रात गए…’’

‘‘अंकल कहती हो तो सौरी कहने की जरूरत नहीं,’’ उन की मुसकराहट में अपनत्व का वही एहसास था जिसे मैं कितने ही दिनों से महसूस कर रही थी.

रात भर डा. सिद्धांत, मां के पास बैठे रहे और जब मैं ने उन से उन के घर जाने को कहा तो उन्होंने कहा कि जब मां का बुखार पूरी तरह उतर जाएगा तभी वह जाएंगे.

सुबह तक मां का बुखार उतर गया. तब जा कर सिद्धांत अंकल अपने घर जाने के लिए उठे पर जातेजाते वह मां को आफिस न जाने की हिदायत दे गए.

दिन में मां को दोबारा बुखार चढ़ गया. शाम को जब डा. सिद्धांत मां को देखने आए तो बोले, ‘‘बेटा, अच्छा होगा कि हम आप की मम्मा का ब्लड टेस्ट करवा लें.’’

मां का ब्लड टेस्ट हो गया और रिपोर्ट से पता चला कि उन को टाइफायड हो गया है. डा. सिद्धांत मां को देखने सुबहशाम आते. मां धीरेधीरे ठीक होने लगीं.

‘‘इरा बेटा, आप की मम्मी की तबीयत में काफी सुधार है पर मेरा तो नुकसान होने वाला है,’’ उस दिन

डा. सिद्धांत हंसते हुए बोले थे.

‘‘वो कैसे अंकल?’’ मेरे इस सवाल पर वह मुसकरा कर बोले, ‘‘भई, जब रुद्राजी पूरी तरह ठीक हो जाएंगी तो शाम को चाय मुझे खुद बना कर अकेले पीनी पड़ेगी.’’

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‘‘नहीं डा. सिद्धांत, ऐसा नहीं होगा. आप को हर शाम हास्पिटल से सीधे हमारे घर आना होगा,’’ मां की इस बात को सुन कर मैं चौंकी, क्योंकि आज पहली बार उन्होंने किसी व्यक्ति से साधिकार बात की थी.

मां पूरी तरह ठीक हो गईं. डा. सिद्धांत रोज शाम को हमारे घर आते. इस तरह महीना बीत गया. मां और डा. सिद्धांत को मैं ने कभी ज्यादा बात करते नहीं देखा. डा. सिद्धांत अपने हास्पिटल के किस्से सुनाते और मां मुसकराती रहतीं. मां ने कभी डा. सिद्धांत से उन के परिवार के बारे में नहीं पूछा और न ही डा. सिद्धांत ने अपने बारे में कुछ बताया.

एक दिन शाम को मां का फोन आया कि उन्हें आफिस से आने में देर हो जाएगी. अभी मैं ने फोन रखा ही था कि कालबेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा तो सिद्धांत अंकल खड़े थे.

‘‘रुद्राजी नहीं आईं?’’

‘‘नहीं अंकल, आज मम्मा को आफिस में कुछ काम है थोड़ी देर से आएंगी.’’

‘‘कोई बात नहीं, मम्मा को आ जाने दो, तभी चाय पीएंगे, तब तक मैं अपनी बिटिया के साथ बैठ कर ढेर सारी बातें करूंगा,’’ और यह कह कर डा. सिद्धांत ने मुझे भी सोफे पर बैठने का इशारा किया.

‘‘अंकल, क्या मैं आप से कुछ पूछ सकती हूं?’’

‘‘कुछ नहीं बेटा, बहुत कुछ पूछ सकती हो,’’ और यह कह कर डा. सिद्धांत खिलखिला कर हंस दिए.

‘‘अंकल, आंटी…’’ मैं आगे कुछ कहती इस से पहले वह बोले, ‘‘वह इस दुनिया में नहीं हैं. जब विभोर 4 साल का था तभी एक सड़क दुर्घटना…’’

‘‘आई एम सौरी अंकल, विभोर आप का बेटा है, पर वह कहां है?’’

मेरे इस सवाल को सुन कर उन्होंने कहा, ‘‘वह अमेरिका में अपनी वाइफ के साथ है.’’

‘‘आप नहीं गए उस के पास?’’

‘‘नहीं बेटा, जीवन की सांझ मैं अपने देश में ही रह कर निकाल देना चाहता हूं.’’

‘‘अंकल, मैं बहुत छोटी हूं पर फिर भी आप से पूछना चाहती हूं कि आप ने आंटी के जाने के बाद दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’ यह सवाल मैं ने अपनी सारी हिम्मत जुटा कर पूछा था. डा. सिद्धांत ने बड़ी ही सहजता से कहा, ‘‘विभोर की खातिर. मैं डरता था कि कहीं सौतेली मां उस के साथ बुरा व्यवहार न करे.’’

‘‘अंकल, मैं आप की बात से असहमत नहीं हूं, फिर भी मुझे लगता है मां तो मां होती है, सौतेली तो उसे समाज बना देता है. जिस बच्चे को मां अपनी कोख से जन्म नहीं देती यदि उस बच्चे की भलाई के लिए या किसी गलती के लिए उसे डांट देती है तो हम सब उस के पीछे का कारण उस का सौतेला होना ढूंढ़ते हैं.’’ इस के आगे डा. सिद्धांत कुछ कहते कि कालबेल बजी, ‘लगता है मम्मा आ गईं,’ यह कहते हुए मैं दरवाजे की ओर बढ़ी.

‘‘रुद्राजी, आज आप को बहुत देर हो गई. रात को अकेले आना ठीक नहीं है,’’ यह बात सुन कर मैं जोर से हंस दी. अभी तक जो बात मैं अपने लिए मां से सुनती आई थी, आज मां को वही बात सुनने के लिए मिल रही थी.

आगे पढें- मेरी बात को सुन कर मां बोलीं…

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Serial Story: उपहार– भाग 3

लेखिका- डा. ऋतु सारस्वत

दूसरे दिन जब मैं कालिज गई तो शालिनी मुझ से 6 से 9 वाले शो की मूवी देखने को बोली. मैं ने हां कर दी. पर फिर सोचने लगी कि कैसे मम्मा को मनाऊंगी. कालिज से मैं सीधे डा. सिद्धांत के घर गई. मेरी परेशानी सुन कर उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वह मम्मा को मना लेंगे. थोड़ी देर में जब वह घर आए तो मैं ने जानबूझ कर उन्हीं के सामने मूवी देखने जाने की बात की.

मेरी बात को सुन कर मां बोलीं, ‘‘इरा, तुम जानती हो यह संभव नहीं है उस पर रात का शो तो बिलकुल नहीं.’’

‘‘रुद्राजी, जाने दीजिए, मेरी बेटी बड़ी हो गई है. आप रात की चिंता मत कीजिए. मैं इरा को लेने चला जाऊंगा.’’

डा. सिद्धांत की बात को सुन कर मां ने मौन स्वीकृति दे दी. मुझे पहली बार एहसास हो रहा था कि पिता रूपी सुरक्षा कवच क्या होता है.

मुझे डा. सिद्धांत के साथ बिताया हर पल बहुत खुशी देता. क्या मां को भी

डा. सिद्धांत का साथ सुकून देता है, यह सवाल बारबार मुझे परेशान करता. मां अपने मन की हर बात अपनी डायरी में लिखती हैं यह सोच कर मां के आफिस जाने के बाद मैं ने चुपचाप अलमारी से मां की डायरी निकाली और पढ़नी शुरू की.

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‘इरा, आज पहली बार अपनी सहेलियों के साथ इतनी रात गए बाहर गई है पर आज मुझे डर नहीं लगा. क्या इस का कारण डा. सिद्धांत हैं? उन्होंने मुझे आफिस से देर से आने पर टोका. मुझे उन का टोकना बुरा क्यों नहीं लगा? बरसों बाद लगा कि मैं भी जीतीजागती इनसान हूं, जिस की किसी को परवा है. यह एहसास एक अजीब सा सुकून दे रहा है. कहीं मैं गलत तो नहीं? शेखर, क्या मैं तुम्हारी यादों के साथ अन्याय कर रही हूं? यह सब क्या है, कुछ समझ नहीं आ रहा.’

1 मई, 2007.

मैं ने डायरी बंद कर के रख दी. शाम को डा. सिद्धांत जब घर आए तो मां उन से बोलीं, ‘‘डा. सिद्धांत, इरा बड़ी हो गई है, अगर आप की नजर में कोई अच्छा लड़का हो तो…’’

‘‘मुझे शादी नहीं करनी,’’ मैं ने मां की बात काटते हुए कहा.

‘‘क्यों बेटी?’’

डा. सिद्धांत के इस सवाल पर मैं बोली, ‘‘मैं ने शादी कर ली तो मां बिलकुल अकेली हो जाएंगी.’’

‘‘ओह, तो यह बात है. तुम चिंता मत करो, मैं हूं ना,’’ डा. सिद्धांत यह कह कर एकदम से सकपका गए और उन्होंने तुरंत मां की ओर देखा. मां को तो जैसे सांप सूंघ गया.

‘‘मैं चलता हूं,’’ यह कह कर

डा. सिद्धांत उठ कर चले गए, मां भी अपने कमरे में चली गईं. रात को खाना खाते हुए मां और मेरे बीच बिलकुल बात नहीं हुई. मैं रात भर सो नहीं सकी. कभी मेरी नजरों के सामने डा. सिद्धांत आते और कभी मां.

अगले दिन मैं सुबहसुबह

डा. सिद्धांत के घर पहुंच गई और बोली, ‘‘अंकल, इस मदर्स डे पर मैं मम्मा को ऐसा तोहफा देना चाहती हूं जो आज तक किसी बेटी ने अपनी मां को नहीं दिया हो. अब आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं.’’

‘‘इरा बेटा, तुम्हें मुझ से जैसी सहायता चाहिए, बोलो, मैं अपनी बेटी के लिए सबकुछ कर सकता हूं.’’

‘‘क्या आप मेरे पापा बनेंगे?’’ मैं ने डा. सिद्धांत की आंखों में झांकते हुए पूछा.

‘‘हां बेटा,’’ और यह कह कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया. मेरी आंखों से अविरल आंसू बहने लगे. ऐसा लग रहा था कि मेरे चारों ओर एक बेहद मजबूत सुरक्षा कवच बन गया है.

‘‘इरा, क्या रुद्राजी मानेंगी?’’

‘‘उन्हें मैं मनाऊंगी अंकल.’’

मुझे हिम्मत जुटाने में कुछ समय लगा था. रविवार होने की वजह से मां उस दिन देर से उठीं. ‘‘गुडमार्निंग मम्मा,’’ मैं चाय ले कर सुबह जब उन के कमरे में पहुंची तो मां ने हैरानगी से मुझे देखा.

‘‘क्या बात है इरा, आज कोई खास बात है क्या?’’

‘‘हां, मां, मुझे आज आप से कुछ चाहिए. पर मैं मांगूंगी तभी जब आप यह विश्वास दिला दें कि मना नहीं करेंगी.’’

मां ने मुझे हां में भरोसा दिया तो मैं तपाक से बोली, ‘‘मां, मुझे पापा चाहिए.’’

‘‘तुम्हें होश भी है कि तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘होश में हूं मां, मैं चाहती हूं कि सिद्धांत अंकल मेरे पापा बन जाएं.’’

‘‘बेटा, ऐसे हर कोई पिता नहीं बन जाता.’’

‘‘आप सही कह रही हैं मम्मा, हर कोई पिता नहीं बन सकता पर सिद्धांत अंकल हर कोई नहीं हैं. अगर हालात ने मेरे जन्मदाता को मुझ से छीन लिया तो मैं जीवन भर पिता की छांव से क्यों वंचित रहूं. मम्मा, पापा वह होते हैं जो अपने बच्चे को जीवन की हर परेशानी में थाम लें. आज सिद्धांत अंकल ने मुझे वह सुरक्षा और प्यार दिया है. एक बच्चे के लिए अगर मां ममता की छांव होती है तो पिता सुरक्षा कवच,’’ मैं ने मां को समझाते हुए कहा.

‘‘बेटा, इस का मतलब मैं तुम्हारा पापा नहीं बन पाई,’’ यह कहतेकहते मां के चेहरे पर उदासी छा गई.

‘‘नहीं, मम्मा, ऐसा नहीं है, मैं सिर्फ आप को यह बताना चाहती हूं कि आप ने अपना सारा जीवन मेरे लिए समर्पित कर दिया पर अब मैं चाहती हूं कि आप अकेले न रहें.’’

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‘‘इरा, तुम सचमुच बड़ी हो गई हो. बेटा, मेरा सारा जीवन तो निकल चुका है और बाकी का जीवन…’’

‘‘ऐसा क्यों मां,’’ मैं ने मां की बात को बीच में काट कर कहा, ‘‘क्या आप सिर्फ मेरे व पापा के लिए जीना चाहती हैं. मम्मा, यही उम्र होती है जब सच्चे मानों में जीवनसाथी की जरूरत होती है. जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और अपने जीवन में मशगूल हो जाते हैं तब पतिपत्नी ही एक दूसरे का सहारा बनते हैं. मां, यादों के सहारे जीवन नहीं निकलता. जीवन जीने के लिए जीतेजागते इनसान की जरूरत होती है. आप समझ रही हैं न.’’

‘‘हां बेटा, मैं समझ रही हूं. मुझे कुछ वक्त चाहिए.’’

अगले दिन सुबह जब मैं ने अपनी आंखें खोली तो मां मेरे सामने खड़ी थीं.

‘‘हैप्पी मदर्स डे मां,’’ यह कह कर मैं मां के गले लग गई. ‘‘मां, मैं आप को क्या तोहफा दूं?’’ मैं ने मां की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘तुम तो मुझे कल ही तोहफा दे चुकी हो. किसी मां के लिए इस से बड़ा उपहार क्या हो सकता है कि उस की बेटी छोटी सी उम्र में जीवन का सार जान ले.’’

‘‘अगर मैं गलत नहीं तो अब गिफ्ट लेने की मेरी बारी है,’’ मैं चहक कर बोली.

‘‘बिलकुल,’’ मां के चेहरे की मुसकान ने जैसे सबकुछ कह दिया और मैं सिद्धांत अंकल…नहींनहीं अपने पापा के पास दौड़ पड़ा.

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Ranbir Kapoor के बाद गर्लफ्रेंड Alia Bhatt भी हुईं कोरोना की शिकार, पढ़ें खबर

कोरोना वायरस की दूसरी लहर की चपेट में हर कोई आ रहा है, जिसके कारण देशभर में कोरोना पौजीटिव मामलों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. वहीं इसका असर बौलीवुड और टीवी सितारों पर भी देखने को मिल रहा है. दरअसल, हाल ही में जहां एक्टर रणबीर कपूर कोरोना की चपेट में आ गए थे तो वहीं अब उनकी गर्लफ्रेंड और एक्ट्रेस आलिया भट्ट भी कोरोना का शिकार हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

रणबीर के बाद आलिया हुई कोरोना की शिकार

 

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एक्ट्रेस आलिया भट्ट (Alia Bhatt) ने सोशल मीडिया के जरिए अपने फैंस को दी है. आलिया भट्ट ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर पोस्ट साझा करते हुए लिखा, ‘सभी को नमस्ते, मेरा कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आया है. मैंने तुरंत खुद को आईसोलेट कर लिया है और इस वक्त मैं होम क्वारंटाइन हूं. डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक मैं अपने सभी सेफ्टी प्रोटोकॉल फॉलो कर रही हूं. आपके सभी के प्यार और समर्थन के लिए आभारी हूं. कृपया सुरक्षित रहें और अपनी देखभाल करें.’

 

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सेलेब्स भी हो चुके हैं कोरोना के शिकार

आलिया भट्ट से पहले उनके बॉयफ्रेंड रणबीर कपूर, मनोज बाजपेयी, कार्तिक आर्यन, सतीश कौशिक, परेश रावल, बप्पी लहरी और मिलिंद सोमन जैसी कई सेलेब्स कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं. वहीं बप्पी लहरी को हाल ही में अस्पताल में एडमिट भी करवाया गया है, जिसके बाद उनके फैंस उनके ठीके होने की कामना कर रहे हैं.

 

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बता दें, बीते कई दिनों से आलिया भट्ट अपकमिंग फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ (Gangubai Kathiawadi,) की शूटिंग में बिजी थीं. हालांकि इस बीच वह रणबीर कपूर के कोरोना से ठीक होने की कामना करने के लिए मंदिर में नजर आईं थीं. वहीं फिल्म की बात करें तो गंगूबाई के किरदार में जहां फैंस उनकी तारीफें कर रहे हैं तो वहीं यह फिल्म कई विवादों में भी फंसी नजर आ रही है.

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मां बनने वाली हैं Dia Mirza, डेढ़ महीने पहले की थी दूसरी शादी

2021 की शुरुआत में कई सेलेब्स ने शादी के बंधन में बंधने का फैसला लिया था, जिनमें दीया मिर्जा भी शामिल थीं. हालांकि 15 फरवरी को शादी करने वालीं दीया मिर्ज़ा(Dia Mirza) की यह दूसरी शादी थी, जिसके कारण उन्होंने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. लेकिन अब हाल ही में दीया की प्रैग्नेंसी के ऐलान ने फैंस को चौंका दीया है. आइए आपको दिखाते हैं दीया मिर्जा की प्रैग्नेंसी फोटोज…

बेबी बंप की फोटो की शेयर

दीया मिर्ज़ा(Dia Mirza)जल्द ही मां भी बनने वाली हैं, जिसका ऐलान उन्होंने अपनी बेबी बंप के साथ फोटो शेयर करते हुए किया है. दरअसल, दीया मिर्ज़ा ने एक बेहद ही खूबसूरत तस्वीर इंस्टाग्राम पर ब्रिज पर एक फोटो शेयर की है जिसके साथ उन्होंने प्यारा सा कैप्शन देते हुए लिखा, ‘पृथ्वी मां की तरह ही मुझे आशीर्वाद मिला है. अपने अंदर इस खूबसूरत एहसास को पलते हुए बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं’. वहीं फोटो वायरल होने के बाद सेलेब्स कपल को बधाई देते हुए नजर आ रहे हैं.

 

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दीया ने की है दूसरी शादी

 

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दीया मिर्जा ने इसी साल डेढ़ महीने पहले 15 फरवरी को हैदराबाद में बिजनेस मैन वैभव रेखी से शादी की थी. वहीं वैभव की एक बेटी भी हैं. शादी की बात करें तो लाल बनारसी साड़ी में में दीया का ब्राइडल लुक फैंस को जहां पसंद आया था ते वहीं कम मेहमानों के साथ दीया का ये अचानक शादी के फैसले ने लोगों को चौंका दिया था.

 

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हॉलीडे पर हैं दीया मिर्ज़ा

 

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शादी के बाद दीया इन दिनों अपने पति वैभव और उनकी बेटी के साथ मालदीव में हॉलीडे मना रही हैं. वहीं इस वेकेशन पर वह पति और बेटी के साथ कुछ फोटोज भी शेयर कर चुकी हैं, जिसे फैंस ने काफी पसंद भी किया था.

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जानें फैशन के बारें में क्या कहती है कॉस्टयूम डिज़ाइनर नीता लुल्ला

प्रसिद्ध कॉस्टयूम डिज़ाइनर, फैशन स्टाइलिस्ट नीता लुल्ला से कोई अपरिचित नहीं. उन्होंने फैशन इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है. उन्होंने 300 से अधिक हिंदी फिल्मों में कॉस्टयूम दिए है. नीता लुल्ला साल 1985 से वेडिंग ड्रेसेस डिजाईन करना शुरू किया, लेकिन उनकी पहचान वर्ष 2002 में फिल्म ‘देवदास’ में अभिनेत्री ऐश्वर्या राय और माधुरी दीक्षित के पहनने पर मिला, जो उस समय की ट्रेंड सेटर फिल्म रही. इसके बाद नीता को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. वह पूरे विश्व में मशहूर हो गई. वह देश की पहली ऐसी डिज़ाइनर है, जिन्हें 4 बार नेशनल अवार्ड खूबसूरत कारीगरी के लिए मिला है. नीता ने महाराष्ट्र की प्राचीन कारीगरी पैठनी को लेकर कई प्रयोग किये है, जिसमें कई रंगों के धागे के साथ सिल्वर और गोल्ड थ्रेड का प्रयोग कर एक नई खूबसूरत सिल्क का निर्माण करना, जो स्टाइलिश होने के साथ-साथ पारंपरिक भी लगे. नीता अभी फैशन के क्षेत्र में आने वाले छात्रों को कैरियर के बारें में शिक्षित करती है. पहली बार आयोजित वर्चुअल फैशन शो ‘हुनर ऑनलाइन’ के लॉन्च में नीता लुल्ला ने खास गृहशोभा के लिए बात की, पेश है कुछ अंश.

सवाल-इस फैशन शो से जुड़ने की खास वजह क्या है?

ये डिजिटल फैशन शो को करने वाली निष्ठा योगेश है और ये एक अच्छा प्रयास है. इसका उद्देश्य घर बैठी काम करने की इच्छुक महिलाओं के लिए, अपने परिवार को कुछ आर्थिक मदद करने से है, क्योंकि उनके पास शौक रहते हुए भी बाहर नहीं जा पाती. समय की कमी होती है और उन्हें घर परिवार की पूरी जिम्मेदारी लेनी पड़ती है. इससे वे मन मारकर घर बैठ जाती है. इस प्लेटफॉर्म से वे घर से ही फैशन के काम सीखना, डिज़ाइनर बनना और खुद कोई व्यवसाय शुरू कर सकती है. यही बात मुझे पसंद आई और मैं भी इन महिलाओं को सहानुभूति और सहारा देना चाहती हूं.

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सवाल-इससे फैशन इंडस्ट्री को कितना लाभ हो सकेगा?

हमारी कंट्री बहुत ही यंग है, यहाँ रहने वाले लोग घर सम्हालते हुए भी स्टाइलिश और अच्छा दिखना चाहते है. ये टीवी और डिजिटल मीडिया की वजह से ही संभव हुआ है. अधिकतर महिलाएं चैनल और डिजिटल मीडिया को फोलो करती है. उनकी आशा और इच्छायें, जो किसी  अभिनेत्री या मॉडल की तरह दिखने की होती है, वह पूरी हो जाती है, लेकिन कामकाजी महिला, हाउसवाइफ, कॉलेज गर्ल आदि सभी को अगर फैशन में इंटरेस्ट है, तो इस तरह के प्लेटफॉर्म से उन्हें फायदा होता है, क्योंकि छोटे शहरों और कस्बों में फैशन को सीखने की दिशा में कोई व्यवस्था नहीं होती. इसके अलावा छोटे स्तर पर ड्रेस बनाने वाली महिलाओं को अगर किसी प्रोफेशनल का हेल्प मिले, तो वे मार्केटिंग की बारीकियां सीखकर आगे बढ़ सकती है. धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़कर ही महिला कामयाब हो सकती है. छोटे कस्बों और शहरों में अधिकतर  महिला अपने पति या घर के सदस्यों के साथ किसी सामान को खरीदने जाती है. वे खुद कुछ कर लें, इसका साहस जुटा नहीं पाती, ऐसे में उनके अंदर हुनर होते हुए भी उसका प्रयोग वे नहीं कर पाती.

सवाल-फैशन इंडस्ट्री में आपने तीन दशक से अधिक समय बिताई है, पहले और आज के फैशन में कितना अंतर देखती है?

आज चीजे बहुत ही अलग तरीके से देखी जाती है. अभी फैशन को सभी स्वीकार करते है. मुझे याद आता है, जब मैंने फैशन के क्षेत्र में काम करना चाही, तो मेरे पेरेंट्स ने मुझसे कहा था कि फैशन के क्षेत्र में जाकर तुम क्या करोगी? घर बैठे अगर खुद के कपडे सिलना चाहती हो, तो टेलरिंग की ट्रेनिंग ले लो. फैशन डिज़ाइनर बनने की क्या जरुरत है, लेकिन मेरे पिता ने मुझे बहुत सहयोग दिया और कहा कि अगर तुम्हे फैशन के क्षेत्र में ही जाना है तो इसे सीख लो. इसके अलावा मेरे सास-ससुर ने भी बहुत सहारा दिया है, लेकिन उस समय से लेकर आजतक बहुत बदलाव फैशन इंडस्ट्री में आया है.

आज महिलाये खुद निर्णय लेती है कि उन्हें फैशन डिजाईनिंग सीखना है और महिला उद्यमी भी बनना है. इसके अलावा पहले डिजाईन लेकर दर्जी के पास उसे कपडे पर बनाने के लिए जाना पड़ता था, क्योंकि डिजाइनिंग को सही फीचर करना फैशन के क्षेत्र में बहुत आवश्यक होता है. अब मॉल और ब्रांड्स के आ जाने से फैशन इंडस्ट्री को बहुत लाभ हुआ है. काम भी आज बहुत निष्ठा के साथ जरुरत के अनुसार किया जाता है. ये एक बड़ी और नई बदलाव फैशन के क्षेत्र में आई है, जो पहले नहीं थी. साथ ही दुनिया अब छोटी हो गयी है, क्योंकि आज किसी भी मीडियम पर पैरिस के शो में दिखाई जाने वाली डिजाईन 5 मिनट के अंदर आपको दिखाई पड़ती है. पहले 6 महीने बाद इसे देखने को मिलता था. खुद फैशन कैसे करना है, इसकी जानकारी छोटे बच्चे से लेकर बड़ों में आ चुकी है. अभी खादी को भी फैशनेबल बना दिया गया है. मुझे उम्मीद है कि आगे चलकर भी कई बदलाव हमें देखने को मिलेगा.

सवाल-फैशन इंडस्ट्री में महिलाओं से अधिक पुरुष दिखते है, इसकी वजह क्या है?

हुनर किसी जेंडर के अधीन नहीं होता, अगर किसी पुरुष में फैशन की समझ अच्छी है, क्रिएटिविटी अच्छी है, तो वह भी एक अच्छा डिज़ाइनर बन सकता है. फैशन में क्रिएटिविटी के अलावा व्यक्ति की शारीरिक संरचना, कंटूर लाइन, कम्फर्ट आदि को देखना पड़ता है.

सवाल-कोविड के दौरान फैशन इंडस्ट्री पर बहुत बड़ी मार पड़ी है, आपने ऐसे समय में अपनी टीम को कैसे सम्हाला?

यहाँ मेरे साथ जितने भी लोग थे, उनके साथ रहकर हर महीने उनकी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश की है. काफी सारे मास्क बनाकर केवल हमारे टीम के सदस्य को ही नहीं, उनके पूरे परिवार और आसपास के लोगों में बांटा है. लॉकडाउन खुलने के बाद मैंने कारीगरों को सोशल डिस्टेंसिंग, सेनीटाईजेशन और मास्क देकर उन्हें काम करने के तरीके बतायी. चीज भले ही न बिके, मैंने उन्हें काम करवाकर पूरा वेतन दिया.

सवाल-आपने कई सामाजिक काम किये है, ऐसे में महिला सशक्तिकरण की दिशा में आपने क्या करने को सोचा है?

मुझे जब भी किसी महिला के लिए आवाज उठाने की जरुरत महसूस होती है, मैं करती हूं. लेकिन जितना मैं करना चाहती हूं, उतना मैं कर नहीं पा रही हूं, क्योंकि बहुत सारे लोग मुंबई छोड़कर छोटे-छोटे शहरों में रहते है. इसके लिए मैं कई संस्थाओं के साथ जुडी हूं, जो महिलाओं को आगे बढ़ने में सहायता करती है और मैं उन्ही महिलाओं की जरूरतों को पूरा करती हूं. इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी 80 प्रतिशत महिलाएं ही काम करती है, जिनका साथ अब मैं देती रहूंगी.

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सवाल-बॉलीवुड की कौन सी एक्ट्रेस की फैशन सेंस सबसे अच्छी है?

पहले मैं इसे बता सकती थी, पर अब नहीं, क्योंकि आज की एक्ट्रेस के साथ स्टाइलिस्ट होती है, जो उन्हें किस अवसर पर क्या पहनना है, पूरी जानकारी देती है और इस काम में 3 से 4 लोग लगे रहते है.

सवाल-कोई मेसेज जो आप देना चाहे?

मैं महिलाओं से कहना चाहती हूं कि काम सभी करते है, लेकिन जिस काम से आपको ख़ुशी मिले, उसे करें. मनपसंद काम करने और आत्मनिर्भर बनने से ही आपको ख़ुशी मिलती है और अपने परिवार और आसपास ख़ुशी बाँट सकती है.

कम उम्र में घुटनों का दर्द का कारण और इलाज बताएं?

सवाल- 

मेरी 34 वर्षीय घरेलू महिला हूं. प्रसव के बाद मेरे जोड़ों में काफी दर्द रहने लगा है. बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

गर्भावस्था और प्रसव के दौरान शरीर में कई रासायनिक और हारमोनल परिवर्तन होते हैं, जिन का प्रभाव जोड़ों पर भी पड़ता है. गर्भावस्था में वजन बढ़ने से भी कमर, कूल्हों और घुटनों के जोड़ों पर दबाव पड़ता है और उन में टूटफूट की प्रक्रिया तेज हो जाती है. कई महिलाएं गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान अपने खानपान का ध्यान नहीं रखतीं, जबकि इस दौरान उन के शरीर को पोषक तत्त्वों की काफी अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है, जिस से उन के शरीर में पोषण तत्त्वों की कमी हो जाती है और यह हड्डियों की कमजोरी का कारण बन जाता है. अपने खानपान का ध्यान रखें, बढ़े हुए वजन को कम करें और शारीरिक रूप से सक्रिय रहें.

सवाल-

मेरी उम्र 57 साल है. पिछले 1 साल से मेरे घुटनों में इतना दर्द है कि मुझे अपनी दैनिक गतिविधियां करने में भी परेशानी हो रही है. मैं जानना चाहती हूं कि मेरे लिए आंशिक घुटना प्रत्यारोपण कितना कारगर रहेगा?

जवाब-

अगर आप के घुटनों में इतनी तकलीफ है तो तुरंत किसी अच्छे और्थोपैडिक सर्जन से जांच कराएं. अगर सर्जरी कराना जरूरी हो तो उस में देरी न करें. आप के लिए कौन सी सर्जरी बेहतर रहेगी यह इस पर निर्भर करेगा कि आप के घुटनों के दर्द का कारण क्या है और समस्या किस स्तर पर है. अगर पूरा घुटना खराब नहीं है तो आंशिक घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि इस में पूरे घुटने को नहीं केवल क्षतिग्रस्त भाग को बदला जाता है. संपूर्ण घुटना प्रत्यारोपण के विपरीत, इस में घुटनों का जोड़ 70% सुरक्षित रहता है. इस में मरीज रिकवर भी जल्दी होता है और सर्जरी के बाद उसी दिन या अगले दिन घर जा सकता है.

सवाल-

मैं जानना चाहती हूं कि बोन डैंसिटी टैस्ट क्या होता है और इसे कब कराना चाहिए?

जवाब-

बोन डैंसिटी टैस्ट में एक विशेष प्रकार के ऐक्सरे जिसे डीएक्सिए कहते हैं के द्वारा स्पाइन, कूल्हों और कलाइयों की स्क्रीनिंग की जाती है. इन भागों की हड्डियों की डैंसिटी माप कर इन की शक्ति का पता लगाया जाता है ताकि हड्डियों के टूटने से पहले ही उन का उपचार किया जा सके. आप 45 साल की उम्र में बोन डैंसिटी टैस्ट करा सकती हैं और इसे हर 5 साल बाद कराएं.

-डा. गौरव गुप्ता

एमएस, और्थोपैडिक सर्जन एवं निदेशक, फ्लोरेस हौस्पिटल, प्रताप विहार, गाजियाबाद.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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लेजी गर्ल के लिए बेस्ट हैं ये 7 ब्यूटी टिप्स

जब बात हो खूबसूरत दिखने की तो कहीं न कहीं हमें इस के लिए टाइम इन्वेस्ट करना पड़ता है. घरेलु नुस्खे अपनाएं या फिर पार्लर जा कर अपने आप को ग्रूम करें. मेकअप के ज़रिये भी अपने लुक को एनहान्स कर खूबसूरत दिख सकते है. पर आज कल की भाग दौड़ भारी जिन्दगी में हम अक्सर आलस कर जाते हैं. अपने आप को इतना टाइम नहीं दे पाते है कि अपनी स्किन की देखभाल कर सके. इस लिए आज हम आप को कुछ ऐसे टिप्स और ट्रिक्स बतायंगे जो आप कम समय में बेहतर ढंग से कर सकेंगी. आइये जानते हैं मेकअप आर्टिस्ट कृति डी.एस से कि हम अपनी ब्यूटी का किस तरह ध्यान रख सकते है.

1. एलोवेरा न केवल आप के सेहत के लिए फायदेमंद होता है बल्कि यह स्किन और बालों के लिए भी काफी लाभकारी होता है.  यदि आप के चेहरे पर डार्क स्पौट्स है  तो आप को कोई भी अलग से क्रीम या कोई ट्रीटमेंट करवाने की ज़रूरत नहीं है. आप सिर्फ एलोवेरा जेल लगा कर भी इस प्रौब्लम से छुटकारा पा सकते है. एलोवेरा जेल आप के स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है यह आप के स्किन को डीपली मौइस्चराइजर करता है.

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2. अपने पिल्लो कवर को हफ्ते में दो से तीन बार बदले क्यूंकि इसी की वजह से भी हमे पिम्पल प्रॉब्लम होती है. पिल्लो कवर में सब से ज्यादा बैक्टीरिया पाए जाते है जो कि हमारी स्किन के लिए काफी हानिकारक होते है.

3. अपने बेड के साथ में हमेशा वेट वाइप्स रखें ताकि आप को अपना मेकअप निकालने में ज्यादा मेहनत न करनी पड़े.  यदि आप की स्किन ऑयली है तो आप एलो वेरा या फिर नीम के फ्लेवर वाले वाइप्स इस्तेमाल करे.

4. नहाने के पानी में नीम के पत्तों का इस्तेमाल करे ताकि आप को कोई भी स्किन एलर्जी न हो.

5. फोन का इस्तेमाल कम से कम करें क्यूं कि सब से ज्यादा बैक्टीरिया फ़ोन स्क्रीन पर ही पाएं जाते है. अपने फोन को हमेशा साफ रखें. जब भी फोन पर बात करें तो इयर-फोन का इस्तेमाल कीजिए.  रात को देर रात तक फोन यूज करना अवौइड करें. इस से आपको डार्क सर्किल की प्रौब्लम हो सकती है.

6. जितना हो सके पानी ज्यादा से ज्यादा पीजिए.  पानी आप के बौडी को हाइड्रेट रखने में आपकी मदद करता है.  हमेशा पानी को ऊबाल कर पीजिए. पानी हमारे स्किन के लिए काफी अच्छा होता है अच्छे अमाउंट में पानी पीने से स्किन का नेचुरल ग्लो बढ़ता है.

7. अगर आप रोजाना शैम्पू नहीं कर सकते है तो अपने पास हमेशा ड्राई शैम्पू रखे जिस से आप अपने बाल मैंटेन रख सकते है.

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फैशन के मामले में ‘सई’ को टक्कर देती हैं ‘गुम हैं किसी के प्यार में’ की ‘पाखी’, देखें फोटोज

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में छाया हुआ है. जहां शो की कहानी में नए-नए मोड़ आ रहे हैं तो वहीं बीते दिनों कोरोना का शिकार हुए एक्टर नील भट्ट (Neil Bhatt) और उनकी मंगेतर एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) भी सेट पर ठीक होकर पहुंच गए हैं, जिसके बाद शो की कहानी में बदलाव किया जा रहा है. लेकिन आज हम सीरियल के किसी ट्रैक की नहीं बल्कि ‘गुम हैं किसी के प्यार’ में पाखी के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) के फैशन की बात करेंगे.

सीरियल में सिंपल साड़ी में फैंस का दिल जीतने वाली पाखी यानी एश्वर्या हर लुक में खूबसूरत लगती हैं. वहीं उनके मंगेत्तर विराट यानी एक्टर नील भट्ट (Neil Bhatt) भी उनके लुक्स के कायल हैं. तो आइए आपको दिखाते हैं पाखी यानी एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा (Aishwarya Sharma) के कुछ खास इंडियन लुक्स….

1. पाखी के लुक में लगती हैं खूबसूरत

सीरियल में पाखी के अंदाज में ऐश्वर्या फैंस का दिल जीतती हैं. वहीं उनके लुक्स दर्शकों को बेहद पसंद आते हैं. पीले कलर की नेट वाली साड़ी के साथ हैवी वर्क वाला फुल स्लीव वाला ब्लाउज पाखी यानी ऐश्वर्या  के अंदाज को चार चांद लगा रहा है.

 

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2. रफ्फल साड़ी में गिराती हैं बिजलियां

 

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रफ्फल लुक इन दिनों ट्रैंड में हैं हर कोई इसे ट्राय करने का एक ना एक बार जरुर सोचता है. वहीं ऐश्वर्या भी इस लुक को ट्राय कर चुकी हैं. ब्राइट यैलो कलर की रफ्फल साड़ी के साथ औफ स्लीव्स वाला ब्लाउज ऐश्वर्या के लुक को कम्पलीट कर रहा है.

3. समर वेडिंग के लिए परफेक्ट है ये लुक

 

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अगर आप समर वेडिंग के लिए कुछ ट्रैंडी ट्राय करना चाहती हैं तो ऐश्वर्या का ये यैलो कलर का हैवी लहंगा ट्राय करना ना भूलें. ये आपके लुक के लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा.

4. फ्लावर वर्क वाली साड़ी करें ट्राय

 

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अगर आप ट्रैंडी साड़ी की तलाश कर रही हैं तो ऐश्वर्या शर्मा की फ्लावर वर्क वाली साड़ी ट्राय करना ना भूलें. ये आपके लुक को स्टाइलिश बनाने में मदद करेगी.

5. मराठी लुक करें ट्राय

 

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अगर आप मराठी वेडिंग लुक ट्राय करना चाहती हैं तो पाखी का ये लुक आपके लिए बेस्ट औप्शन है. ऐश्वर्या ने इस मराठी लुक को अच्छे से कैरी किया था, जो फैंस को काफी पसंद आ चुका है.

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