मास्साबः सहज व सरल लहजे में बनी फिल्म, पढ़ें रिव्यू

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः पुरूषोत्तम स्टूडियो

लेखक व निर्देशकः आदित्य ओम

कलाकारः शिवा सूर्यवंशी, शीतल सिंह,  बेबी कृतिका सिंह, चंद्रभूषण सिंह व अन्य.

अवधिः एक घंटा 54 मिनट

प्रदर्शनः 29 जनवरी से सभी सिनेमाघरों में

समाज सेवा में संलग्न तथा तेलुगू और हिंदी के प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और निर्देशक आदित्य बतौर लेखक व निर्देशक सामाजिक सरोकार वाली फिल्में ही बनाते रहे हैं. इस बार वह शिक्षातंत्र की कलई खोलने वाली फिल्म ‘मास्साब’यानी कि मास्टर साहब उर्फ शिक्षक लेकर आए हैं. ’इसमें समाज सेवक के तौर पर वह ग्रामीण स्कूलों में जिस तरह के बदलाव के अरमान देखते थे, उन सभी का इसमें चित्रण किया है. यह सदेश परक फिल्म बड़े सहज ढंग से ग्रामीण प्राथमिक स्कूलों के हालात का सच बयां करने के साथ साथ कई अहम बातें कह जाती है. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहो में 48 पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी इस फिल्म को 29 जनवरी से देश के सभी सिनेमाघरो में देखा जा सकता है.

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कहानीः

फिल्म की शुरूआत भारत के सबसे बड़े राज्य के अंदरूनी हिस्से खुरहंद नामक गॉंव के सरकारी प्राथमिक स्कूल से होती है. जहां बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आते हैं. महिला शिक्षक बच्चों को पढ़ाने की बनिस्बत स्वेटर बुनने में व्यस्त रहती हैं. पर तभी बेसिक शिक्षा अधिकारी स्कूल में मुआयना करने आते हैं. कुछ बच्चों को पीटकर जबरन कक्षा में बैठाया जाता है. शिक्षा अधिकारी के पहुंचने के बाद धीरे धीरे रहस्य उजागर होते हैं. पता चलता है कि छात्र नकली हैं. स्कूल के शिक्षक महेंद्र यादव(चंद्रभूषण सिंह)तो ठेकेदारी के काम में व्यस्त है, उनके स्थान पर फर्जी शिक्षक के तौर पर उनका भाई जीतेंद्र स्कूल में है, प्रिंसिपल भी अपने बड़े भाई की जगह पर बैठे हुए हैं. इतना ही नही स्कूल का मुआना करने आए शिक्षा अधिकारी भी फर्जी हैं. कुछ मुट्ठी भर छात्र स्कूल महज सराकरी ‘मिड डे मील’के तहत परोसे जाने वाले दोपहर के भोजन के लिए आते हैं और भोजन कर लापता हो जाते हैं.

सरकारी प्राथमिक स्कूल की इसी हालत के चलते गांव से कुछ दूर बना निजी ‘भानु पब्लिक स्कूल’’में छात्रों की तादात काफी है और भानु पब्लिक स्कूल गॉवो के किसानों से उनके बच्चों की फीस के नाम पर मनमानी रकम वसूल कर रहा है. तभी खुरहंद के सरकारी प्राथमिक स्कूल में नए शिक्षक आशीष कुमार (शिव सूर्यवंशी) आते हैं, जो कि आईएएस की नौकरी छोड़कर शिक्षा जगत में अमूल चूल परिवर्तन करने के इरादे से आए हैं. गांव पहुंचते ही आशीष कुमार की पहली मुठभेड़ गांव की युवा महिला सरपंच उषा देवी(शीतल सिंह)से होती है. यहां शिक्षक को ‘मास्साब’ कहकर ही बुलाते हैं.

आशीष आदर्शवादी शिक्षक हैं. उनके लिए शिक्षा ही धन है. वह पहले दिन से ही अपनी कक्षा में अमूलचूल बदलाव कर देते हैं. मिड डे मील की जिम्मेदारी संभाल रहे अवधेश को अपनी तरफ से चंद रूपए हर माह देने का वादाकर उनसे कहते हैं कि वह बच्चों को सेहत वाला ‘मिड डे मील’ही परोसे. धीरे धीरे आशीष कुमार को आए दिन भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ते हुए अपनी कक्षा में नए नए प्रयोग करते रहना पड़ता है, जिसमें उन्हें गाम प्रधान उषा देवी से भी मदद मिलती है. धीरे धीरे पूरे स्कूल के बच्चे ही नही गॉंव का हर शख्स आशीष कुमार का दीवाना हो जाता है. महेंद्र यादव,  बेसिक शिक्षा अधिकारी नंद किशोर यादव के कान भरते हैं. बेसिक शिक्षा अधिकारी अचानक स्कूल का मुआयना करने पहुंच जाते हैं, जहां वह पाते हैं कि स्कूल में बहुत कुछ बदलाव आ गया है. इससे वह खुश होते हैं. बाद में आशीष कुमार को ही स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया जाता है. अब आशीष कुमार जीतेंद्र व महेंद्र दोनों को स्कूल आने से मना कर देते हैं, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी धन लेने के बावजूद महेंद्र की मदद करने से इंकार कर देता है. तब महेंद्र दबंगई दिखाते हैं, पर पूरा गांव आशीष के साथ खड़ा रहता है.

उधर भानु स्कूल के मालिक चाहते हैं कि आशीष कुमार सरकारी प्राथमिक स्कूल की नौकरी छोड़कर उनके स्कूल में शिक्षक बन जाएं, पर आशीष कुमार मना कर देते हैं. तब भानु स्कूल के प्रबंधक राणा सिंह, आशीष कुमार से कहते हैं कि वह अपने स्कूल के बच्चों को लेकर वाद विवाद प्रतियोगिता में आएं और यदि उनके स्कूल का बच्चो प्र्रतियोगिता हार जाए, तो उन्हे राणा सिंह की बात माननी होगी. आशीष कुमार गांव के पहलवान जिलेदार की बेटी रमा देवी (बेबी कृतिका सिंह)को वाद विवाद प्रतियोगिता में भेजते हैं. जिलेदार का मानना है कि उनकी बेटी को शुद्ध हिंदी बोलनी नही आती. मगर वह वाद विवाद प्रतियोगिता प्रथम स्थान से जीतती है. उसके बाद आशीष कुमार के खिलाफ बहुत गहरी साजिश रची जाती है, जिसके चलते उनका तबादला दूसरे गांव के स्कूल में हो जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

लेखक व निर्देशक ने ग्रामीण प्राथमिक स्कूलों का एक यथार्थ, सहज व सरल चित्रण किया है. फिल्म के संवाद व फिल्म की प्रस्तुति इस तरह की है कि बच्चे भी फिल्म की बात को समझ सके. लेकिन फिल्म की लंबाई कुछ अधिक हो गयी है, इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी. फिल्म सर्जक ने अपने मूल विषय से खुद को भटकने नहीं दिया, जबकि उन्होने ग्रामीण परिवेश में जाति, उंची व नीची जाति के भेदभाव से लेकर लड़कियों पढ़ाने का रिवाज न होने तक के कई छोटे छोटे मुद्दांे को भी इस कहानी में खूबसूरती से पिरोया है. फिल्मकार ने दलित शिक्षक व ठाकुर परिवार से संबंध रखने वाली ग्राम प्रधान उषा देवी के बीच रोमांस के सब प्लाट को अंत तक सुंदर ढंग से जीवंत रखा, मगर बड़ी चालाकी से इस प्लॉट में जाति के मुद्दे से दूरी बना ली, अन्यथा फिल्म में एक नया मोड़ आ सकता था और शिक्षा का मूल मुद्दा गौड़ हो जाता है. अमूमन बौलीवुड के ज्यादातर फिल्मकार फिल्म की व्यावसायिक सफलता की सोच के चलते इस तरह के मुद्दों में भटक जाते हैं.

फिल्मकार ने एक शिक्षित व समझदार इंसान आशीष कुमार को एक शांतचित्त व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हुए एक नई सोच को दिशा देने में कामयाब रहे हैं कि भ्रष्टाचार व सिस्टम से लड़ाई लड़ते समय क्रोधित या निराश होने की बजाय करूणा के साथ भी लोगों का दिल जीता जा सकता है.

बच्चों से जिस तरह निर्देशक ने अभिनय करवाया है, उसके लिए वह प्रशंसा के पात्र हैं.

फिल्म के लेखक व निर्देशक ने ग्रामीण परिवेश को एकदम यथार्थ परक तरीके से फिल्म में चित्रित किया है. इसके लिए फिल्म के कैमरामैन श्रीकांत असाती भी बधाई के पात्र हैं.

निर्देशक आदित्य ओम ने भारत के छोटे छोटे गाँवों में सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों की कठोर व कटु वास्तविकता दिखाने से कोई परहेज नहीं किया है. फिल्म बुंदेलखंड में फिल्मायी गयी है, मगर फिल्म का एक भी किरदार बुंदेलखंडी भाषा में बात करते हुए नहीं दिखता, यह बात अखरती है. मगर फिल्म जिस नेक नियति के साथ बनायी गयी है, उसे देखते हुए कुछ कमियों को नजरंदाज कर फिल्म देखनी चाहिए.

फिल्म के कुछ संवाद समाज व शिक्षा तंत्र के अंदरूनी दोषों पर कड़ा प्रहार करते हैं. मसलन-एक संवाद है-‘‘कोई भी पानी अपने आप खराब नहीं होता. ’’ दूसरा संवाद – ‘‘यदि समाज व्यक्ति को सुधरने नही देगा, तो व्यक्ति अपराधी ही रहेगा. ’

शिक्षा के संदर्भ मे आशीष कुमार का भानु पब्लिक स्कूल के संचालक को दिए गए जवाब वाला संवाद-‘‘शिक्षा व्यक्ति का मौलिक अध्किार है. जिसे आप लोगो ने व्यापार बना रखा है. . . ’’बहुत कुछ कह जाता है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो शिक्षक आशीश कुमार के किरदार में शिवा सूर्यवंशी ने कमाल का और काफी सधा हुआ अभिनय किया है. शिक्षा@पढ़ाई के प्रति जुनून व विनम्रता के अद्भुत संगम को शिवा सूर्यवंशी ने अपने अभिनय से बाखूबी उकेरा है. उषा देवी के किरदार में शीतल सिंह ने ठीक ठाक अभिनय किया है. सभी बच्चे अपने अभिनय से प्रभाव छोड़ते हैं.

Bigg Boss 14: पूल में गिरी Rubina Dilaik तो इस शख्स ने बचाया, देखते ही रह गए अभिनव

 कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो को एक्सटेंशन मिलने के बाद से शो की टीआरपी में उछाल देखने को मिल रहा है. वहीं शो के मेकर्स टीआरपी को बनाए रखने के लिए नए-नए ट्विस्ट शो के कंटेस्टेंट को देते नजर आ रहे हैं. वहीं शो की पौपुलर कंटेस्टेंट रुबीना दिलाइक को भी एक टास्क दिया गया है, जिसे देखने के लिए फैंस काफी एक्साइटेड हैं. आइए आपको दिखाते हैं शो का नया प्रोमो…

प्रोमो हुआ वायरल

हाल ही में ‘बिग बॉस 14’ (Bigg Boss 14) के मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए नए प्रोमो में रुबीना दिलाइक बिग बॉस के निर्देश पर स्विमिंग पूल में कूदती हुई दिख रही हैं. दरअसल, प्रोमो की मानें तो रुबीना दिलाइक को एक टास्क दिया जाएगा, जिसमें वह बिग बौस के एक आदेश पर पूल में कूदती नजर आएंगी. वहीं रुबीना दिलाइक को स्विमिंग पूल में गिरते हुए देखकर विकास गुप्ता और अली गोनी चीखते नजर आएंगे.  प्रोमो में भी अली गोनी स्विमिंग पूल में कूदकर रुबीना दिलाइक को बचाने की कोशिश करते हुए भी नजर आ रहे हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=MyyRoc5UWnw

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टास्क से घर होगा पागल

https://www.youtube.com/watch?v=GwuX8vstI0s

दर्शकों को एंटरटेन करने के लिए बिग बॉस जल्द ही घरवालों को एक नया टास्क देंगे, जिसके चलते बिग बौस घर में इस टास्क की घोषणा करते वक्त मेकर्स लाइट को जलाने बुझाने वाले हैं. जलती-बुझती लाइटों को देखकर घरवालों के होश उड़ जाएंगे. वहीं अगले ही पल सभी इस टास्क को पूरा करने की जद्दोजहद में जुटते हुए  सभी कंटेस्टेंट्स एक ही चीज को बार-बार दोहराते हुए नजर आएंगे.

 

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बता दें, पिछले हफ्ते जहां कम वोटों के कारण सोनाली फोगाट शो से बाहर हुई तो वहीं इस हफ्ते एजाज की प्रौक्सी देवोलीना भट्टाचार्जी, विकास गुप्ता, निक्की तम्बोली और राहुल वैद्य नॉमिनेट हुए हैं. हालांकि विकास गुप्ता के घर से जाने के ज्यादा चांस है. हालांकि खबरों की मानें तो विकास गुप्ता अपने जोकर कार्ड का इस्तेमाल इस परेशानी से निकलने के लिए कर सकते हैं.

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‘गुम है किसी के प्यार में’ के ‘विराट और पाखी’ का हुआ रोका, PHOTOS VIRAL

स्टार प्लस की सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है. जहां शो की टीआरपी धीरे-धीरे बढ़ रही है तो वहीं अब शो के लीड स्टार्स यानी एक्टर नील भट्ट (विराट) और ऐश्वर्या शर्मा (पाखी) एक रिश्ते में बंध चुके हैं. दरअसल, नील और ऐश्वर्या ने अपने रिश्ते को औफिशयल करते हुए फैंस को चौंका दिया है. आइए आपको दिखाते हैं नील और ऐश्वर्या के सगाई की फोटोज…

रोका की फोटोज से चौंके फैंस

 

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टीवी शो ‘गुम है किसी के प्यार में’ में विराट और पाखी का रोल निभाने वाले नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा ने अपना रिलेशनशिप ऑफिशल करते हुए एक फोटो शेयर की है, जिसमें दोनों ने अपने फैंस को बताया है कि हाल ही दोनों का रोका हुआ है. जहां फैंस इस खबर से चौंक गए हैं तो वहीं नील और ऐश्वर्या अपने इस रिश्ते को नाम देकर बेहद खुश हैं, जिसका अंदाजा फोटोज से लगाया जा सकता है.

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एक्स लवर्स का रोल अदा कर रहा है ये कपल

 

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शो में नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा के रोल की बात करें तो दोनों एक्स-लवर्स का रोल अदा कर रहे हैं, जिसके कारण दोनों का रोका होना फैंस के लिए किसी झटके से कम नही है. वहीं फैंस को झटका देते हुए ऐश्वर्या और नील ने रोका सेरिमनी की फोटोज शेयर करते हुए लिखा, ‘साथ में किए पागलपन से लेकर मस्ती और फिर वो प्यार जो हमारे बीच पनपा. हम जिंदगीभर के लिए एक हो गए.’

 

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बता दें, ‘ये है मोहब्बतें’ और ‘कहां हम कहां तुम’ जैसे टीवी सीरियल्स में काम कर चुके अभिषेक मलिक ने भी अपनी गर्लफ्रेंड सुहानी चौधरी से सगाई कर ली है, जिसकी फोटोज भी इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हैं. वहीं बौलीवुड की बात करें तो वरुण धवन ने भी अपनी लौंग टाइम गर्लफ्रेंड से शादी कर ली है.

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हमारी शिक्षा नहीं दे सकी है लड़कियों को बराबरी का हक़

36 साल की अनुषा देओल महिला कॉलेज में लेक्चरर है. उस ने मनोविज्ञान में पीएचडी कर के अपने लिए यह फील्ड चुना. उस का पति साधारण ग्रैजुएट है और प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता है. घर में पति के अलावा सासससुर और तलाक़शुदा जेठ है. अनुषा को घर में अक्सर कहा जाता है कि वह जॉब छोड़ दे मगर अनुषा इस के लिए तैयार नहीं होती. उसे लगता है कि जॉब के बहाने कुछ समय तो वह इस घर की चारदीवारी से दूर समय बिता सकेगी.

उस ने बहुत मुश्किल से घर में सब को राजी कर जॉब कंटीन्यू की है. कॉलेज जाने से पहले उसे घर का सारा काम करना पड़ता है. नाश्ते के साथ ही लंच की पूरी तैयारी कर दौड़तीभागती वह कॉलेज पहुँचती है. पूरे दिन काम कर शाम में थकीहारी लौटती है तो कोई उसे एक कप चाय भी बना कर नहीं देता. सास कोई न कोई शिकायत ले कर जरूर पहुँच जाती है. बेटी को पढ़ाना हो या कोई और काम सब उसे ही करना होता है. पति उस पर हर समय हुक्म चलाता रहता है.

जब भी वह किसी गलत बात का विरोध कर अपना पक्ष रखना चाहती है तो पति उसे डांटता हुआ कहता है,” खुद को बहुत पढ़ालिखा समझ कर मुझ से जुबान लड़ाती है. जुबान खींच कर हाथ में दे दूंगा. ”

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पीछे से सास भी आग में घी डालने का काम करते हुए कहती है, “कितना कहा था पढ़ीलिखी लड़कियां किसी काम की नहीं होतीं. जुबान गज भर की और काम का सलीका जरा भी नहीं। उस पर तेवर ऐसे जैसे यही हमारा घर चला रही हो. याद रख तेरे कुछ हजार रुपयों से हमारा खजाना नहीं भर गया जो आँखें दिखाएगी. बहू है तो बहू की तरह रह वरना जा अपने बाप के घर. वहीँ जा कर नखरे दिखाना.”

उसे इस तरह की धमकियां और पति के द्वारा मारपीट अक्सर सहनी पड़ती है पर वह खामोश रह जाती है. अकेले में ख़ामोशी से आंसू बहा कर जी हल्का कर लेती है और फिर काम में लग जाती है. उसे पता है कि मायके में भी कोई उस की नहीं सुनने वाला। बचपन से मांबाप ने भी भाई और उस में भेदभाव ही किए थे. वैसे वह इतना कमाती है कि अपना और बच्ची का गुजारा अच्छे से कर सकती है मगर वह जानती है कि अकेली रह रही महिलाओं के साथ समाज का नजरिया कैसा होता है.

देखा जाए तो ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाएं इसी तरह की परिस्थितियों से जूझ रही हैं. वे भले ही कितना भी पढ़लिख लें मगर जब बात आती है घर में मिलने वाले इम्पोर्टेंस और केयर की तो उन्हें निराश ही होना पड़ता है. यदि वे अविवाहित हैं तो घर में भाई की तूती बोलती है और यदि विवाहित है तो पति भले ही कम पढ़ालिखा हो मगर वह पत्नी पर अकड़ दिखाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है. महिला यदि जॉब नहीं करती तो नौकरानियों की तरह उस का पूरा दिन काम करते गुजरता है पर घर में कोई उसे अहमियत नहीं देता। यदि वह जॉब करती है तो उसे घर के साथसाथ ऑफिस का काम भी करना पड़ता है। घर में कोई उस की मदद करने का प्रयास भी नहीं करता. दोहरी जिम्मेदारियों के बावजूद कहीं भी उस की कद्र नहीं होती.

हम सब इस बात को मानते हैं कि हमारे स्वाभिमान को जगाने और आजादी दिलाने का रास्ता शिक्षा है. शिक्षा वह सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर ही महिलाओं को अपने क़ानूनी और संवैधानिक अधिकारों का पता चलता है और सफलता के नए रास्ते खुलते हैं. शिक्षा ही महिलाओं के सशक्तीकरण की पहली शर्त होती है. मगर जब शिक्षा के साथ महिलाओं की ओवरआल स्थिति पर ध्यान दें तो पता चलता है शिक्षा के बावजूद महिलाएं कितने बुरे हालातों से गुजर रही हैं.

दुनियाभर में लड़कियों की स्थिति शिक्षा के मामले में भले ही बेहतर हुई है लेकिन इस के बावजूद लड़कियों को हिंसा और भेदभाव सहना पड़ रहा है. यूनिसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनियाभर में महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा होना अब भी आम है. रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले बीस सालों में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की तादाद सात करोड़ 90 लाख कम हुई है और पिछले एक दशक में सेकेंड्री स्कूल में लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की संख्या बढ़ी है.

अगर भारत की बात की जाए तो भारत में शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों और लड़कों के लिंगानुपात की स्थिति बेहतर हुई है. प्राथमिक विद्यालयों में लैंगिक अनुपात सुधरा है. जिस के कारण बाल विवाह में कमी आई है.

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चौंकाने वाली बात ये है कि इस के बावजूद दुनियाभर में 15 से 19 साल की उम्र की एक करोड़ तीस लाख लड़कियां यानी हर 20 में से एक लड़की बलात्कार की शिकार हुई है.

भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक़ 15 साल की उम्र तक भारत में हर पाँच में से एक लड़की यानी एक करोड़ बीस लाख लड़कियों ने शारीरिक हिंसा झेली है. वहीं 15 से 19 साल की हर तीन में से एक लड़की (34%) ने चाहे वह शादीशुदा हो या परिवार के साथ रहती हो, अपने पति या पार्टनर से शारीरिक, मानसिक या यौन हिंसा की पीड़ित रही है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण की मानें तो 16 फ़ीसदी लड़कियों (15-19) ने अपने साथ हुई शारीरिक हिंसा की बात बताई है. तीन फ़ीसदी ने यौन हिंसा की बात कही है. वहीं 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से 31% ने पति की ओर से शारीरिक, यौन या मानसिक प्रताड़ना सहा है.

काम के क्षेत्र में भेदभाव

28 साल की मिस जूली ने हाल ही में कंपनी ज्वाइन की थी. वह कंपनी में ऐड डेवलेपर के तौर पर नियुक्त हुई थी. उस दिन मीटिंग में जब नए सॉफ्ट ड्रिंक के लांच की तैयारी पर बात हो रही थी और मैनेजर ने बोतल के कलर पर बात की तो जूली ने ऑरेंज कलर चूज करने की सलाह दी.

यह एक नार्मल बात थी जिसे पास बैठे एक पुरुष कुलीग ने कुछ अलग ही नजरिया देते हुए कहा,”यस मिस जूली आप तो ऑरेंज कलर कहेंगी ही। आखिर यह कलर आप की लिपिस्टिक से जो मैच करता है. ”

उस के ऐसा कहते ही मीटिंग में बैठे सभी पुरुष सदस्य ठहाके लगा कर हंस पड़े जब कि जूली झेंप गई. अक्सर महिलाओं को इस तरह की लिंग आधारित भेदभाव पूर्ण टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है. इस तरह की टिप्पणियां अक्सर पुरुष सहकर्मी महिलाओं को नीचा दिखाने या मजाक बनाने के लिए कर देते हैं. उन्हें लगता है जैसे महिलाओं को फैशन और मेकअप के अलावा कुछ नहीं दिखता. पुरुष कभी भी दिमागी तौर पर स्त्रियों को अपने बराबर या अपने से ज्यादा मानने को तैयार नहीं होते. यह मानसिकता उस पुरुषवादी सोच को प्रतिबिंबित करती है जिसे पूरी तरह से खत्म होने में सदियां लगेंगी।

हाल ही में फ़ोर्ब्स द्वारा जारी विश्व की सब से शक्तिशाली महिलाओं की सूची के टॉप 100 में सिर्फ 4 भारतीय महिलाएं ही आ सकीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो टॉप की 500 कंपनियाँ हैं उन में सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाएँ ही सीनियर मैनेजर हैं. भारत में 3 प्रतिशत से भी कम महिलाएं सीनियर मैनेजर के पद पर हैं. हकीक़त यही है कि प्रमुख निर्णायक और प्रतिष्ठित जगहों पर महिलाओं की गिनती न के बराबर रहती है. दरअसल बहुत कम पुरुष ऐसे हैं जो महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार होते हैं.

आज भले ही पुरुष और महिलाएँ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रहे हैं लेकिन समाज में लिंग आधारित भेदभाव अब भी मौजूद है. कभी योग्य कैंडिडेट को महज इसलिए पदोन्नति नहीं दी जाती क्यों कि वह लड़की है और नियोक्ता को यह भय होता है कि जल्द ही उस की शादी हो जायेगी. इस से वह अपने काम के प्रति लापरवाह हो जायेगी और ऑफिस में पूरा समय भी नहीं दे पाएगी. इसी तरह कई बार मैटरनिटी लीव के बाद महिलाओं को वापस काम पर नहीं लिया जाता. कई महिलाओं या लड़कियों को ऑफिस में पुरुष सहकर्मियों से लिंग के आधार पर भेदभाव से भरी टिप्पणियां सुनने को मिलती हैं.

अक्सर महिलाओं की कबिलियत पर भी सवाल उठाये जाते हैं, उन के सही फैसलों को गलत ठहराया जाता है. जब पुरुष दृढ़ता से फैसले लेता है तो उसे डायनेमिक समझा जाता है लेकिन जब महिला उसी किस्म की दृढ़ता प्रदर्शित करती है तो वह पुरुषों की आंख की किरकिरी बन जाती है.

कभीकभी महिलाओं को कार्यस्थल पर सेक्सुअल पॉलिटिक्स का भी सामना करना पड़ता है. कुछ पुरुष अपनी महिला कुलीग के प्रति यह राय बना कर चलते हैं कि स्त्री होने के कारण उसे बॉस का फेवर मिलता है. उस की मेहनत और कार्य के प्रति समर्पण को नज़रअंदाज़ कर पीठ पीछे उस का मजाक भी उड़ाया जाता है. जब तक इस तरह की मानसिकता नहीं बदलेगी लड़कियों को कितना भी पढ़ा लिया जाए उन के साथ भेदभाव बदस्तूर चलता रहेगा.

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बचपन से ही पढ़ाया जाता है भेदभाव

आप कभी बच्चों के स्कूल की किताबें खोल कर देखिये. ज्यादातर किताबों में लड़कियों को या तो परंपरागत भूमिकाओं में दिखाया जाता है या फिर किताब में लड़कियों की तस्वीर न के बराबर होती है. लगभग हर क्लास की किताबों में इस तरह का भेदभाव देखा जा सकता है जिस के बारे में हम कभी सोचते भी नहीं.

यूनाइटेड नेशन एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चर ऑर्गेनाइजेशन (UNESCO) ने हाल ही में अपनी ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2020 जारी की. एनुअल रिपोर्ट के इस चौथे संस्करण के मुताबिक अलगअलग देशों के पाठ्यक्रम में महिलाओं को किताबों में कम प्रतिष्ठित पेशे वाला दर्शाया गया है साथ ही महिलाओं के स्वभाव को भी अंतर्मुखी और दब्बू बताया गया. किताबों में एक ओर यदि पुरुषों को डॉक्टर दिखाया जाता है तो वहीं महिलाओं की भूमिका एक नर्स के रूप में दर्शायी जाती है. अपनी रिपोर्ट में यूनेस्को ने यह भी कहा कि महिलाओं को सिर्फ फूड, फैशन और एंटरटेनमेंट से जुड़े विषयों में दिखाया जाता है

यूनेस्को की इस रिपोर्ट के मुताबिक फारसी और विदेशी भाषा की 60, विज्ञान की 63 और सामाजिक विज्ञान की 74 फीसदी किताबों में महिलाओं की कोई तस्वीर नहीं है.

एक मलेशियाई प्राथमिक स्कूल की किताब में सलाह दी गई है कि लड़कियां अगर अपने शील की रक्षा नहीं करतीं तो उन्हें शर्मिंदा होने और बहिष्कार किए जाने का ख़तरा है.
अमरीका में अर्थशास्त्र की किताबों में महिलाओं के सिर्फ़ 18 प्रतिशत किरदार ही थे. वो भी खाने, फ़ैशन और मनोरंजन से संबंधित थे.

इस रिपोर्ट में 2019 की महाराष्ट्र की उस पहल का भी ज़िक्र किया गया है जिस में किताबों से लिंग आधारित रूढ़ियों को हटाने के लिए किताबों के चित्रों की समीक्षा की गई थी. समीक्षा के बाद किताबों में महिला और पुरुष दोनों को घर के कामों में हाथ बंटाते दिखाया गया. यही नहीं महिला एक डॉक्टर के रूप में तो पुरुष की तस्वीर शैफ के रूप में दिखाई गई. बच्चों को इन चित्रों पर ध्यान देने और इन पर चर्चा करने के लिए कहा गया.

हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच हावी है जो किताबों में भी दिखाई पड़ती है. भले ही ये किताबें शिक्षित लोग तैयार करते हैं लेकिन वे भी कहीं न कहीं पुरुषवादी सोच से संचालित होते हैं. ऐसे में महिलाओं को रुढ़िवादी भूमिकाओं में रखा जाता है और उन की भागीदारी कम दिखाई जाती है. जब बच्चे ऐसी किताबें पलटते या पढ़ते हैं तो बचपन से उन के मन में स्त्रीपुरुष से जुड़ी भेदभाव की लकीर गहरी होने लगती है. महाराष्ट्र की तरह हर जगह एक पहल करने की जरुरत है.

महिलाओं पर केंद्रित होती हैं ज्यादातर गालियां

कभी आप ने गौर किया है कि जब भी दो लोगों के बीच कोई बहस या झगड़ा होता है तो गालियां शुरू हो जाती हैं और ये गालियां ज्यादातर महिलाओं पर ही केंद्रित होती हैं. यानी झगड़ा भले ही दो मर्दों के बीच हो रहा हो मगर गालियां महिलाओं से जुड़ी ही होती हैं. शर्मनाक बात तो यह है कि ज्यादातर लोगों को इस में कोई आपत्ति भी नजर नहीं आती. इन गालियों का प्रयोग महिलाओं का अपमान करने और उन्हें छोटा दिखाने के मकसद से किया जाता है.

जाहिर है कि आप किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं, तंग करना चाहते हैं तो उन के घर की महिलाओं से केंद्रित गालियां देना शुरू कर दीजिए ताकि वह विचलित हो जाए. यह मानसिकता दिखाती है कि महिलाएं चाहें कितना भी पढ़लिख लें, ऊँचे ओहदों पर पहुँच जाएं मगर उन्हें नीचा दिखाने के लिए लोग उन्हें आपसी रंजिश में भी घसीटने से नहीं चूकते. अगर सामान्य रूप से दी गई गालियों को देखा जाए तो करीब 30 से 40 प्रतिशत गालियां महिलाओं को नीचा दिखाने वाली मिलेंगी.

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दरअसल हमारे समाज में पुराने समय से स्त्रियों को पुरुषों की संपत्ति माना जाता रहा है. मां बहन की गाली दे कर पुरुष अपने अहंकार की तुष्टि करते हैं और दूसरे को नीचा दिखाते हैं. किसी को अपमानित करना है तो उस के घर की महिला को गाली दे दो. किसी पुरुष से बदला लेना हो तो बोल दो कि तुम्हारी स्त्री/बहन को उठा लेंगे. पहले ऐसी गालियां समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोग ही देते थे लेकिन अब आम पढ़ेलिखे लोग भी देने लगे हैं. लोग अपने घर की लड़कियों को पढ़ा जरूर रहे हैं मगर उन के प्रति अपनी सोच नहीं बदल सके हैं .

जरूरी है सोच में बदलाव

दरअसल महिलाओं को शिक्षा प्रदान करना ही काफ़ी नहीं है. हमें लोगों का बर्ताव और लड़कियों के प्रति उन की सोच को भी बदलनी होगी. देखा जाए तो महिलाओं और लड़कियों के साथ हिंसा और भेदभाव होने की मूल वजह हमारा पितृसत्तात्मक समाज है. पुरुषों की यह स्वाभाविक प्रवृति होती है कि वे खुद को सुपीरियर समझते हैं. महिलाओं पर ताक़त दिखाने और नियंत्रण रखने के लिए पुरुष कभी भी उन्हें बराबरी का हक़ देना नहीं चाहते. महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव दूर करने के लिए जरूरी है कि शिक्षा के साथसाथ इस पितृसत्तात्मक सोच में बदलाव लाया जाए.

बचपन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी बच्चों को समानता का पाठ पढ़ाया जाए. लड़कों की मनमानियों पर रोक लगाईं जाए. लड़कियों को बचपन से सिखाया जाए कि जुल्म सहने के बजाय उस के खिलाफ आवाज उठाएं. यही नहीं अक्सर महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन होती हैं. घर की औरतें अपनी बेटियों को भाई से दबना सिखाती हैं. घर की सास अपनी बहू को घर के पुरुषों की दासी बन कर रहने की सीख देती है. इस तरह की सोच बदलनी होगी. महिलाओं को महिलाओं का साथ देना होगा. वरना जब तक पुरुष और महिला की बराबरी समाज में स्वीकार नहीं की जायेगी तब तक महिलाओं पर हिंसा भी होती रहेगी और भेदभाव भी चलता रहेगा.

लिपस्टिक के साथ मस्कारा पर जोर

प्रीति सेठ ( कॉस्मेटोलॉजिस्ट)

आजकल की जिंदगी में लुक्‍स का ध्‍यान रखना बहुत जरूरी है फिर चाहे ऑफिस हो, कॉलेज हो या आप एक हाउस वाइफ ही क्यों न हों. सुंदर और मुस्‍कुराता चेहरा हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है. चेहरे की चमक बढ़ाने और निखार लाने के लिए मेकअप की सहायता लेना कोई बुरी बात नहीं है. परफेक्ट मेकअप टिप्स हर महिला को ज़रूर ट्राई करने चाहिए. मेकअप करते समय लिप मेकअप के साथ ही आई मेकअप पर ज्यादा जोर देना चाहिए. चलिए जानते हैं आई मेकअप करने के तरीके और कुछ बेसिक टिप्स के बारे में;

अपने स्किन टोन के मुताबिक ही शेड्स का चुनाव और मेकअप करें. अगर आप का स्किन टोन साफ है तो थोड़ा डार्क आई मेकअप कर सकती हैं. अगर स्किन टोन मीडियम और डार्क है तो लाइट आई मेकअप करें.

कुछ लोगों की आंखे थोड़ी छोटी और अंदर की ओर आंखे धंसी हुई लगती हैं, उन्हें ज्यादा आई शैडो और लाइनर नहीं लगाना चाहिए. ऐसे में हल्का आई मेकअप करें.

हैवी ड्रेस के साथ लाइट मेकअप अच्छा लगता है. अगर आप की ड्रेस लाइट कलर की है तो बोल्ड लुक के लिए आप डार्क शेड्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

आप जैसे स्किन टोन के हिसाब से लिप शेड्स चुनती हैं उसी तरह आई मेकअप भी चुनें.

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आई शेप के हिसाब से मेकअप –

स्मोकी आइज़ देख कर आप भी इसे आज़माने के बारे में सोचती होंगी. पर जरूरी नहीं है कि यह सभी पर अच्छा लगे. हमारे कहने का मतलब यह है कि कोई भी लुक या आई मेकअप ट्रेंड अपनाने से पहले आप को अपनी आंखों का नैचुरल आईशेप पता होना चाहिए. अगर आप को यह पता होगा तो आप सही तरीके से आईशैडो व आईलाइनर लगा पाएंगी. यह आप की आंखों की खूबसूरती को और निखार देगा.

वाइड सेट आइज़

जब आंखों के इनर कॉर्नर नाक के ब्रिज से काफी दूरी पर होते हैं यानि आंखें एकदूसरे से सामान्य से ज़्यादा दूरी पर होती हैं तब उन्हें वाइड सेट आइज़ कहा जाता है. अधिकतर मॉडल्स की आई शेप यही होती है. बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट भी इस सुंदर आईशेप की मालकिन हैं.

कंसीलर से करें शुरुआत

आई मेकअप की शुरुआत कंसीलर से होनी चाहिए. आंखों के नीचे काले घेरे या किसी और तरह का कोई स्पॉट हो तो उसे कवर करने के लिए आंखों के नीचे कंसीलर का इस्तेमाल करें. कंसीलर को अच्छी तरह से आंखों के नीचे लगाएं और फिर उसके नीचे फेस पाउडर या कॉम्पैक का प्रयोग करें.

आईशैडो और आईलाइनर पहले लगाएं

आम तौर पर हम पहले काजल लगाते हैं लेकिन सही तरीका है कि पहले आईशैडो या आईलाइनर लगाएं. पार्टी या मौके के अनुसार आईलाइनर का बेस तैयार करें. यह डबल डॉट हो सकता है, प्लेन या पॉइंटेड किसी भी स्टाइल का हो सकता है. अगर फॉल्स आईलैशेज लगाना है तो पहले वह लगाएं फिर आई लाइनर लगाएं.

आइब्रो पेंसिल

आई मेकअप की शरुआत आइब्रो को हाइलाइट करने से करें. इस के लिए आप आइब्रो पेंसिल की सहायता से अपनी आइब्रो को शेप दें. आइब्रो को मोटी या पतली अपने चेहरे की शेप को ध्यान में रखते हुए करें. याद रखें आइब्रो पेन्सिल के ज्यादा इस्तेमाल से आइब्रोज बहुत भारी लगने लगेंगी.

दो बार लगाएं मस्कारा

मस्कारा दो बार लगाएं क्योंकि पहली बार में अक्सर शुरुआत की कुछ पलकें छूट जाती हैं. मस्कारे को केवल ऊपर ही नहीं बल्कि नीचे की आईलैशज पर भी लगाएं. मस्कारे का पहला कोट बाहर की तरफ से पलकों पर लगाएं और दूसरा अंदर से बाहर की तरफ.

आई मेकअप में मस्कारा अहम होता है. अगर आई मेकअप करते समय आप सही तरह से मस्कारा नहीं लगाती हैं तो आप का पूरा लुक बिगड़ जायेगा. जैसे आईलाइनर लगाना एक कला है वैसे ही मस्कारा लगाना भी कला है. कई बार देखा जाता है कि मस्कारा फैल जाता है. इस से आप के चेहरे का बाकी मेकअप भी खराब होता है. अब एक बार मस्कारा फैल जाये तो बड़ी कोफ़्त होती है. फिर से पूरा मेकअप ठीक करना पड़ता है. इसलिए मस्कारा लगाते समय विशेष सावधानी रखें. यह बात याद रखें की मस्कारा लगाने से पहले आईलेशेज़ को कर्ल कर लें. यदि आप सीधी आईलेशेज़ पर मस्कारा लगाती हैं तो आप को एक अच्छा लुक नहीं मिलता. इसलिए अपनी आईलेशेज़ को कर्ल कर के उस पर मस्कारा लगाइए. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो या तो आई लेशेज़ टूट जाती हैं या चिपक जाती हैं. आई मेकअप में इस का ध्यान ज़रूर रखें.

काजल का कोट लगा कर पूरा करें आई मेकअप

जब सारा मेकअप हो जाए तो काजल के कोट के साथ आई मेकअप पूरा करें. काजल का पहला कोट लगाने के बाद कॉटन से अगर कहीं काजल बह रहा हो तो साफ कर लें और फिर दूसरा कोट लगाएं. काजल के दोनों कोट पूरे हो जाएं तो आंखों के नीचे के हिस्से पर बहुत कम मात्रा में हल्का सा शिमर ले कर ब्रश से एक कोट लगाएं.

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आई मेकअप के टिप्स

आईशेप को ऐसे मेकअप की ज़रूरत है जो आंखों की दूरी को कम दिखाए. इस के लिए आंखों के इनर कॉर्नर पर गहरे यानी डार्क रंग के आईशैडो का इस्तेमाल करें और आउटर कॉर्नर पर हल्के रंग का इस्तेमाल करें. इनर कॉर्नर में डार्क रंग से शुरू करते हुए आउटर कॉर्नर तक आतेआते हल्के रंग के शेड में ब्लेन्ड कर सकती हैं.

ब्लैक या गहरे रंग के लाइनर को टियर डक्ट के जितना नजदीक लगाएंगी उतना बेहतर है. यही तरीका मस्कारा लगाते समय भी अपनाएं. आंखों के बीच से ले कर इनर कॉर्नर तक मस्कारा के कोट को अच्छी तरह से हर एक लैश पर लगाएं.

इस आई शेप वालों को लाइनर के विंग को बहुत लंबा नहीं रखना चाहिए क्योंकि इस से आंखें ज्यादा दूरी पर नज़र आएंगी जो नॉर्मल नहीं लगेगा.

सर्दियों में ऐसे करें अपने दिल की देखभाल

लेखक डॉ. ज़ाकिया खान, सीनियर कंसलटेंट – इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, कल्याण 

जैसे-जैसे तापमान गिरने लगता है, दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ने लगता है. ठंड का मौसम हृदय संबंधी समस्याओं के लिए जोखिम पैदा कर सकता है. यहाँ जानिए इससे संबंधित आवश्यक बातें.

ठंड का मौसम और हृदय स्वास्थ्य

ठंड का मौसम आपके हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति को कम कर सकता है. यह आपके हृदय को अधिक काम करने के लिए मजबूर कर सकता है; नतीजतन आपका दिल अधिक ऑक्सीजन युक्त रक्त की मांग करता है. दिल में ऑक्सीजन की कम सप्लाई होना फिर दिल द्वारा ऑक्सीजन की अधिक मांग हार्ट अटैक का कारण बनता है. ठंड रक्त के थक्कों को विकसित करने के जोखिम को भी बढ़ा सकती है, जिससे फिर से दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है.

ठंड का मौसम थकान पैदा करता है और हार्ट फेलियर का कारण बनता है. ठंड का मौसम आपके शरीर को गर्म रखने के लिए आपके दिल को अधिक मेहनत कराता है. आपकी रक्त वाहिकाएं संकुचित हो जाती हैं ताकि हृदय आपके मस्तिष्क और अन्य प्रमुख अंगों में रक्त पंप करने पर ध्यान केंद्रित कर सके. यदि आपके शरीर का तापमान 95 डिग्री से नीचे चला जाता है तो हाइपोथर्मिया हो सकता है, जिससे हृदय की मांसपेशियों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा सामान्य से अधिक तेजी से चलना तब आम है जब आपके चेहरे पर हवा लग रही हो. ठंड में बाहर रहना हमें अधिक काम करने के लिए उत्तेजित करता है.

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फ्लू का प्रभाव

पहले से ही हृदय रोग के जोखिम वाले लोगों में मौसमी फ्लू का होना हार्ट अटैक को ट्रिगर कर सकता है. यह बुखार का कारण बनता है जिससे आपका दिल तेजी से धड़कता है (जिससे ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है). फ्लू डिहाइड्रेशन का कारण भी बन सकता है, जो आपके रक्तचाप को कम कर सकता है (हृदय में ऑक्सीजन की आपूर्ति को कम कर सकता है). फिर जब मांग आपूर्ति से अधिक हो जाती है तो दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. यदि आपको हृदय की समस्या है तो यह सलाह दी जाती है कि आप फ्लू के टीके लगवाने के लिए अपने जीपी से बात करें.

सबसे अधिक जोखिम

बुजुर्ग लोगों और बहुत छोटे बच्चों के लिए अपने तापमान को विनियमित करना कठिन होता है. अत्यधिक तापमान उन्हें अधिक जोखिम में डालता है. अपने स्वयं के स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए, ठंड के दिनों में बुजुर्ग और अस्वस्थ्य दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और यह सुनिश्चित करें कि वे गर्म और आरामदायक माहौल में हों. सुनिश्चित करें कि आप हार्ट अटैक के लक्षणों और संकेतों को पहचान सकते हैं और तुरंत इसकी जानकारी किसी मेडिकल एक्सपर्ट को दे सकते हैं.

चेतावनी के संकेत

यदि आप सीने में दर्द महसूस कर रहे हैं जो असहनीय है और वह आपकी गर्दन, कंधे और हाथ तक रैडीऐट हो रहा है, तो यह हार्ट अटैक का सबसे आम लक्षण है. लक्षण पुरुषों और महिलाओं के लिए भिन्न हो सकते हैं. पुरुष कभी-कभी मतली और चक्कर आने की शिकायत करते हैं जबकि महिलाएं चक्कर आना और थकान जैसे असामान्य लक्षण की शिकायत करती हैं.

स्वस्थ रहें, अपने दिल के स्वास्थ्य को बनाए रखें, एक सक्रिय जीवन जीएं और इस सर्दी के मौसम में अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिए नीचे दिए गए सुझावों का पालन करें:

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● स्वस्थ आहार खाएं

• कम से कम 30 मिनट तक नियमित व्यायाम करें.

• अपने तनाव को कम करें.

• अपने रक्त शर्करा, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखें.

• यदि आप अपने शरीर में कुछ अनियमित महसूस करते हैं, तो अपने चिकित्सक से मिलें.

• त्योहारों के दौरान असंतुलित खाने से बचें; हल्का और स्वस्थ भोजन ही खाएं.

शादी में इतना खास था वरुण धवन की दुल्हन नताशा दलाल का लुक, देखें फोटोज

 साल 2021 की शुरुआत के साथ ही बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन (Varun Dhawan) और उनकी लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड नताशा दलाल (Natasha Dalal) शादी के बंधन में बंध चुके हैं, जिसकी वीडियो और फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. लेकिन शादी से ज्यादा फैंस को इस कपल के मैचिंग आउटफिट्स ज्यादा पसंद आ रहे हैं. इसीलिए आज हम आपको वरुण धवन और नताशा दलाल के आउटफिट्स की खास झलक दिखाएंगे…

कपल का शादी का हर आउटफिट था खास

वरुण और नताशा ने शादी के लिए मैचिंग ट्रैडिशनल ऑउटफिट को चुना, जो बेहद खूबसूरत लग रहा था. ऑफ वाइट जरदोजी की कढ़ाई वाले नताशा के लहंगे के साथ वरुण की शेरवानी परफेक्ट कपल आउटफिट लग रहा था.

 

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नताशा ने खुद डिजाइन किया था लहंगा

 

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बौलीवुड एक्टर वरुण ने अपनी शादी में फैशन डिज़ाइनर मनीष मल्होत्रा की शेरवानी को पहना था, तो वहीं पेशे से फैशन डिजाइनर वाइफ नताशा ने अपनी शादी की ड्रेस खुद डिज़ाइन की गई थी. नीता अंबानी से लेकर श्लोका मेहता तक के लहंगे डिजाइन कर चुकी नताशा ने अपना लहंगा भी बेहद खास तैयार करवाया था.

लहंगा था खास

 

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शादी के लिए नताशा दलाल ने ऑफ वाइट एंड गोल्डन रंग का जरदोसी लहंगा पहना था, जिसे मैचिंग के घूंघट के साथ टीमअप किया गया था. हाथ से तैयार किए गए नताशा के लहंगे पर माइक्रो बूटीदार कढ़ाई के साथ सिक्विन पैटर्न डाला गया था. साथ ही लहंगे पर हेमलाइन पर जरी का बारीक काम था, जिसे गोल्डन मोटिफ्स के साथ खूबसूरत टच दिया गया.

 

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बता दें, वरुण धवन और नताशा दलाल लंबे समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. हालांकि इससे पहले दोनों की ब्रेकअप की खबरें भी आई थीं, लेकिन ये सभी अफवाह साबित हुई थी. लेकिन अब शादी की फोटोज देखकर फैंस दोनों के पूरी उम्र साथ रहने की दुआ मांग रहे हैं.

किशोर होते बच्चों के साथ ऐसे बिठाएं बेहतर तालमेल

किशोरावस्था के दौरान बच्चे और मातापिता के बीच का रिश्ता बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा होता है. इस समय जहां बच्चे का साक्षात्कार नए अनुभवों से हो रहा होता है वहीं भावनात्मक उथलपुथल भी हावी रहती है. बच्चे इस उम्र में खुद को साबित करने और अपना व्यक्तित्व निखारने की जद्दोजहद में लगे होते है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी बढ़ रहा होता है. अगर आप जान लें कि आप के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निपटना शायद आप के लिए आसान हो जाएगा .किशोरावस्था की शुरूआत अपने साथ बहुत से शारीरिक बदलावों के साथसाथ हार्मोनल बदलाव भी लाती है जो मिजाज में उतारचढ़ाव और बिल्कुल अनचाहे बर्ताव के रूप में सामने आता है. ऐसे में बच्चे के साथ बेहतर तालमेल बैठाने के लिए पेरेंट्स को कुछ बातों का ख़याल जरूर रखना चाहिए.

1. दें अच्छे संस्कार

घर में एकदूसरे के साथ कैसे पेश आना है, जिंदगी में किन आदर्शों को अहमियत देनी है, अच्छाई से जुड़ कर कैसे रहना है और बुराई से कैसे दूरी बढ़ानी है जैसी बातों का ज्ञान ही संस्कार हैं. इस की बुनियाद एक परिवार ही रखता है. पेरेंट्स ही बच्चों में इस के बीज डालते हैं. ये कुछ भी हो सकते हैं जैसे ईमानदारी, बड़ों का आदर करना, जिम्मेदार बनना, नशे से दूर रहना ,हमेशा सच बोलना, घर में दूसरों से कैसे पेश आना है आदि , इन सभी बातों को लिख कर अपने बच्चे के कमरे में चिपका दें ताकि ये बातें बारबार उस के दिमाग में चलती रहे और वह इन बातों को जल्दी याद कर पाये.

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2. थोड़ी आजादी भी दें

घर में आजादी का माहौल पैदा करें. बच्चे को जबरदस्ती किसी बात के लिए नहीं मनाया जा सकता. मगर जब आप सही गलत का भेद समझा कर फैसला उस पर छोड़ देंगे तो वह सही रास्ता ही चुनेगा. उस पर किसी तरह का दवाब डालने से बचिए. बच्चा जितना ज्यादा अपनेआप को दबाकुचला महसूस करेगा उस का बर्ताव उतना ही उग्र होगा.

अपने किशोर/युवा बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने के लिये जरूरी छूट दें. याद रखें कि आप का बच्चा बड़ा हो रहा है. उसे अपने जज़्बात जाहिर करने दें पर उसे यह अहसास भी करायें कि वह मर्यादा की हदें न लांघे.

3. मातापिता के रूप में खुद मिसाल बनें

बच्चे के लिए खुद मिसाल बनें. बच्चे से आप जो भी कुछ सीखने या न सीखने की उम्मीद करते हैं पहले उसे खुद अपनाएं. ध्यान रखें बच्चे हमारे नक्शेकदम पर चलते हैं. आप उन्हें सफलता के लिए मेहनत करते देखना चाहते हैं तो पहले खुद अपने काम के प्रति समर्पित रहे .बच्चों से सच्चाई की चाह रखते हैं तो कभी खुद झूठ न बोले.

4. सज़ा भी दें और ईनाम भी

बच्चों को बुरे कामों के लिए डांटना जरुरी है तो वहीँ वे कुछ अच्छा करते हैं तो उन की तारीफ़ करना भी न भूलें. आप उन्हें सजा भी दें और ईनाम भी. अगर आप ऐसा करेंगे तो बच्चे को निष्चित ही इस का फायदा मिलेगा. वे बुरा करने से घबराएंगे जब कि अच्छा कर के ईनाम पाने को ले कर उत्साहित रहेंगे. यहाँ सजा देने का मतलब शारीरिक तकलीफ देना नहीं है बल्कि यह उन को मिलने वाली छूट में कटौती कर के भी दी जा सकती है, जैसे टीवी देखने के समय को घटा कर या उन्हें घर के कामों में लगा कर.

5. अनुशासन को ले कर संतुलित नज़रिया

जब आप अनुशासन को ले कर एक संतुलित नज़रिया कायम कर लेते हैं तो आप के बच्चे को पता चल जाता है कि कुछ नियम हैं जिन का उसे पालन करना है पर जरूरत पड़ने पर कभीकभी इन्हे थोड़ा बहुत बदला भी जा सकता है. इस के विपरीत यदि आप हिटलर की तरह हर परिस्थिति में उस के ऊपर कठोर अनुशाशन की तलवार लटकाये रहेंगे तो संभव है कि उस के अंदर विद्रोह की भावना जल उठे .

6. घरेलू कामकाज को जरूरी बनाना

बच्चे को शुरू से ही अपने काम खुद करने की आदत लगवाएं. मसलन अपना कमरा, कबर्ड ,बिस्तर, कपड़े आदि सही करने से ले कर दूसरी छोटीमोटी जिम्मेदारियों का भार उन पर डालें. हो सकता है कि इस की शुरूआत करने में मुश्किल हो मगर समय के साथ आप राहत महसूस करेंगे और बाद में उन्हे जीवन में अव्यवस्थित देख के गुस्सा करने की संभावना ख़त्म हो जायेगी.

7. अच्छी संगत

शुरू से ध्यान रखें और प्रयास करें कि आप के बच्चे की संगत अच्छी हो. अगर आप का बच्चा किसी खास दोस्त के साथ बंद कमरे में घण्टो का समय गुज़ारता है तो समझ जाइये कि यह ख़तरे की घण्टी है. इस की अनदेखी न करें. इस बंद दरवाजे के खेल को तुरंत रोकें. इस से पहले कि बच्चा गलत रास्ते पर चल निकले और आप हाथ मलते रह जाएँ थोड़ी सख्ती और दृढ़ता से काम लें. बच्चे को समझाएं.और सुधार के लिए जरुरी कदम उठाएं. इसी तरह दिनरात वह मोबाइल से चिपका रहे या किसी से चैटिंग में लगा रहे तो भी आप को सावधान हो जाना चाहिए.

8. सब के सामने बच्चे को कभी भी न डांटे

दूसरों के आगे बच्चे को डांटना उचित नहीं. याद रखें जब आप अकेले में समझाते हुए , वजह बताते हुए बच्चे को कोई काम से रोकेंगे तो इस का असर पॉजिटिव होगा. इस के विपरीत सब के सामने बच्चों के साथ डांटफटकार करने से बच्चा जिद्दी और विद्रोही बनने लगता है . किसी भी समस्या से निपटने की सही जगह है आप का घर. इस के लिए आप को सब्र से काम लेना होगा. दूसरों के सामने खास कर उस के दोस्तों के सामने हर बात में गल्तियां न निकालें और न ही उसे बेइज्ज़त करें.क्यों कि ऐसी बातें वह कभी भूल नहीं पायेगा और आप को अपना दुश्मन समझने लगेगा.

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9. उस की पसंद को भी मान दें

आप का बच्चा जवान हो रहा है और चीजों को पसंद और नापसंद करने का उस का अपना नज़रिया है इस सच्चाई को समझने का प्रयास करें. अपनी इच्छाओं और पसंद को उस पर थोपने की कोशिश न करें. किसी बात को ले कर बच्चे पर दवाब न डालें जब तक आप के पास इस के लिये कोई वाज़िब वजह न हो.

10. क्वालिटी टाइम बिताएं

यह सच है कि किशोर/युवा हो रहे बच्चे माता-पिता को अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात साझा करने से बचते हैं . पर इस का मतलब यह नहीं कि आप प्रयास ही न करें. प्रयास करने का मतलब यह नहीं कि आप जबरदस्ती करें और उन से हर समय पूछताछ करते रहे. इस के विपरीत जरुरत है बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और उन से दोस्ताना रिश्ता बनाने की.उन के साथ फिल्म देखना, बाहर खाने के लिए जाना और खुले में उन के साथ कोई मजेदार खेल खेलना वगैरह. इस से बच्चा खुद को आप से कनेक्टेड महसूस करेगा और खुद ही आप से अपनी हर बात शेयर करने लगेगा.

Edited by Rosy

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स्मार्ट वुमंस के लिए बेहद काम की हैं ये एप्स

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में जहां लेडिज घर और औफिस के बीच पिसती जाती हैं. वहीं अपनी हेल्थ को नजरअंदाज करके खिलवाड़ करती है. हेल्दी रहना हर किसी के लिए जरूरी है, लेकिन महिलाएं रोजाना घर और परिवार की देखभाल के कारण अपने खानपान और हेल्थ पर ध्यान नहीं दे पाती. इसीलिए अब टैक्नोलौजी इतनी बदल गई है कि महिलाएं अपने घर-परिवार का ख्याल रखते हुए अपनी हेल्थ का ध्यान रख पाएंगी. एंड्रौयड फोन्स में आजकल कई ऐसे एप आ गए हैं, जो महिलाओं की हेल्थ और पर्सनल प्रौब्लम को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, जो उनकी हेल्थ के साथ-साथ उनकी पर्सनल प्रौब्लम्स की भी जानकारी रखेगा, जिसे वह किसी के साथ शेयर नही कर सकती.

1. पीरियड ट्रैकर एप है जरूरी

ट्रैकिंग पीरियड, फर्टीलिटी और ओव्यूलेशन के अलावा, यह एप आपके मूड, दवाओं और यहां तक कि उन दिनों पर भी नज़र रखता है जब आप अपने पार्टनर के साथ इंटीमेट होते हैं.

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2. क्लू एप है आपकी हेल्थ के लिए परफेक्ट

यह एप महिलाओं को उनके सर्कल पर नज़र रखने में मदद करता है. लेडिज जितना ज्यादा डेटा एप में डालती है, और जितना ज्यादा वह एप का उपयोग करती है, उतना ही यह एप उपयोगी हो जाता है.

3. कईं लेडिज ने अपनाया है ज्ञान ज्योति एप

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आशा) द्वारा बनाया गया यह एप शादीशुदा गांव की महिलाओं को वीडियो के जरिए उनके गर्भनिरोधक औप्शन्स के बारे में बताता है. ब्लूमबर्ग स्कूल औफ पब्लिक हेल्थ के जौन हौपकिंस विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक स्टडी के अनुसार, एप ने कुछ ही महीनों में मौर्डन परिवार नियोजन विधियों का उपयोग करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ाई है.

4. हेल्थ साथी एप का करें ट्राई

इस एप में महिलाओं और बच्चों के लिए बहुत सारी सर्विसें हैं और इसका उद्देश्य पूरे परिवार के लिए एक हेल्दी साथी होना है. यह बच्चों की देखभाल की सर्विस देता है.

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5. सेक्स और पर्सनल प्रौब्लम्स के लिए ट्राय करें लवडोक्टर एप

यह एक वर्चुअल काउंसलिंग प्लेटफौर्म है जहां महिलाएं अपने सेक्स और पर्सनल प्रौब्लम्स के बारे में प्रौफेशनल्स से बात कर सकती हैं. महिलाओं के लिए बनाई गई एक नौकरी पोर्टल साइट शेरोस (Sheroes) ने हाल ही में इसका अधिग्रहण किया था. कंपनी ने हाल ही में दुनिया का पहला स्नैपचैट चैनल लौन्च किया है जो उन टीनेजर्स को एडवाइस देते हैं, जो अब्यूसिव रिलेशन में हैं.

मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 1

‘‘सुनो वह पौलिसी वाली अटैची तो लाना, जरा… रीमा सुन रही हो?’’ विवेक ने बैठक से पत्नी को आवाज लगाई.

‘‘क्या कह रहे हो… मुझे किचन में कुकर की सीटी के बीच कुछ सुनाई नहीं दिया. फिर से कहो,’’ रीमा अपने गीले हाथों को तौलिए से पोंछतेपोंछते ही बैठक में आ गई.

‘‘वह अटैची देना, जिस में बीमे की फाइलें रखी हैं… वैसे तुम कहीं भी रहो, कोई न कोई तुम्हें देख कर सीटी जरूर बजा देता है,’’ विवेक पत्नी को देख मुसकराते हुए बोला.

‘‘फालतू की बातें न करो. वैसे ही कितना काम पड़ा है… तुम्हें यह काम भी अभी करना था,’’ रीमा झुंझला पड़ी.

‘‘यह काम भी तो जरूरी है, जो पौलिसी मैच्योर हो रही है उस का क्लेम ले लूंगा.’’

‘‘तो सुनो कोई हौलिडे पैक लें? कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘और रिनी की शादी का क्या प्लान है तुम्हारा?’’ रीमा की बात सुन विवेक ने पूछा.

‘‘अभी 22 साल की ही तो हुई है. अभी 2-3 साल और हैं हमारे पास.’’

‘‘उस के बाद कौन सी खजाने की चाबी हाथ लगने वाली है? जो भी पैसा है वह सब पौलिसी, शेयर, एफडी के रूप में बस यही है,’’ विवेक के अटैची खोलते हुए कहा, ‘‘अब चाहे खुद सैकंड हनीमून मना लो या बच्चों का घर बसा दो… 1-2 साल बाद तो रोहन बेटा भी शादी लायक हो जाएगा,’’ विवेक कागजों को उलटतेपलटते बोला, ‘‘अरे हां, कल छोटू भी मिला था जब मैं औफिस से निकल रहा था. बड़ा चुपचुप सा था पहले कितना हंसीमजाक करता था. चलो अच्छा है, उम्र के बढ़ने के साथ थोड़ी समझदारी भी बढ़ गई उस की.’’

रीमा कुछ न बोल कर चुपचाप रसोई में आ गई. फिर काम करते हुए सोच में पड़ गई कि समय कितनी तेजी से बीतता है, इस का आभास सिर्फ बीते पलों को याद करने पर ही होता है. उस की शादी को भी तो 27 साल हो गए. जब शादी तय हुई थी, तो मात्र 19 वर्ष की थी. सगाई से विवाह के बीच के 6 माह उसे कितने लंबे लगे थे. विवाह करूं या न करूं, सोचसोच कर पगलाने लगी थी. जहां एक ओर विवेक का व्यक्तित्व अपनी ओर आकर्षित करता, वहीं अपने लखनऊ शहर से मीलों दूर कानपुर के एक छोटे कसबे की कसबाई जिंदगी और उस का संयुक्त परिवार उस के सुनहरे सपनों में दाग की तरह छा जाता.

अपने सपनों के साथ अपनी अधूरी पढ़ाई के बीच विदा हो वह ससुराल आ गई. यहां के घुटन भरे माहौल से निकलने का एक यही रास्ता बचा था उस के पास कि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. बस इसी बहाने मायके का रूख करने लगी. स्नातक की पढ़ाई खत्म कर कंप्यूटर डिप्लोमा में दाखिला ले लिया. विवेक ने उसे भरपूर आजादी दे रखी थी. जहां विवाह के 4 वर्ष पूरे हुए उस की झोली में स्नातक डिग्री के साथ डिप्लोमा इन कंप्यूटर और 2 नन्हेमुन्ने रोहन और रिनी भी आ गए. ससुराल में 2 जेठजेठानियां उन के 4 बच्चे, सासससुर, 1 घरेलू नौकर समेत कुल 14 सदस्य एक बड़े से घर में एक छत के नीचे जरूर थे, मगर एकसाथ नहीं. सांझा चूल्हा भी इसीलिए जल रहा था, क्योंकि अनाज, दूध, घी, दही, सब्जियां सभी तो अपने घर की ही थीं, कमीपेशी के लिए ससुरजी की पेंशन व घर खर्च के नाम पर चंद रुपए सास को पकड़ा कर उन के बेटे निश्चिंत हो जाते. बहुओं में सारा झगड़ा काम को ले कर रहता. वह फटाफट रसोई का काम निबटा कर घर आए मेहमानों का भी स्वागतसत्कार बहुत सम्मान के साथ करती. महल्ले में उस की बड़ी तारीफ होने लगी तो दोनों जेठानियां एक तरफ हो उस के काम में तरहतरह के नुक्स निकलने लगीं. इसी बीच विवेक का ट्रांसफर हैड औफिस दिल्ली हो गया. तब वह बहुत खुश हुई थी कि चलो अब तो कहीं अपने हिसाब से जिंदगी बिताएगी. किंतु विवेक ने यह कह कर साफ मना कर दिया कि दिल्ली में मकान, बच्चों के स्कूल सभी कुछ इतना आसान नहीं है. तुम्हें बाद में ले जाऊंगा.

विवेक दवा कंपनी में एरिया मैनेजर था. रीमा फिर से एक बार मन मार कर रुक गई. फिर जब ससुराल के पास ही एक नया स्कूल खुला तब स्कूल में बच्चों के एडमिशन के साथ ही उसे भी कंप्यूटर टीचर की जौब मिल गई. विवेक ने हमेशा की तरह उसे प्रोत्साहित ही किया. अब तो दोनों जेठानियों ने सास के कान भरने शुरू कर दिए कि घर के काम से बचने के लिए स्कूल चल दी महारानी. सास को सुबहशाम की रोटी से मतलब रहता जिसे रीना समय पर दे देती. दोनों बच्चे अभी छोटे ही तो थे. रोहन 4 साल का और रिनी 3 साल की. दोनों को स्कूल में दाखिल करा दिया. अब वह निश्चिंत थी. मगर घर का माहौल जमे पानी सा सड़न पैदा करता. ऐसे में छोटू की हंसीमजाक, भरपूर बातें उसे ठंडीताजी हवा के झोंके सी लगतीं.

छोटू मतलब बलवीर सिंह. इस नाम से उसे कोई नहीं पुकारता था. पूरे महल्ले का प्रिय समाजसेवक, बस पढ़ाईलिखाई में मन न लगता, न ही शांति से घर में बैठ पाता. किसी को बाइक से सब्जी मंडी पहुंचा देता तो किसी की बहू को कार से हौस्पिटल. उस की डिलिवरी के समय भी दोनों वक्त छोटू की कार काम आई थी. छोटू तो अपने पिताजी के रिटायरमैंट के बाद का अघोषित ड्राइवर हो गया था. घर में उस से बड़े

2 भाई और भी थे. मगर वे भी कार नहीं चला पाते थे. फिर जब दिन भर छोटू घर भर के कामों के लिए गाड़ी दौड़ा ही रहा था तो उन्होंने भी ड्राइविंग सीखने की जहमत न उठाई.

6 फुट लंबातगड़ा जींस और टीशर्ट पहने, आंखों में धूप के चश्मे के साथ हाथ जोड़ विनम्रता से जिस के भी आगे खड़ा हो जाता वही गद्गद हो जाता. उस की ससुराल तो दिन भर में एक चक्कर जरूर लगा जाता.

अकसर रीमा को छेड़ता, ‘‘भाभी, आप की उम्र और मेरी उम्र बराबर ही होगी. लेकिन आप को देखो कभी खाली बैठे नहीं देखा और मैं हर वक्त खाली रहता हूं.’’

‘‘तो कोई काम क्यों नहीं करते? स्कूल ही जौइन कर लो.’’

‘‘वाह भाभी, खुद तो 2 बार में इंटर पास कर पाया हूं दूसरों को क्या पढ़ाऊंगा?’’

‘‘प्राइवेट स्नातक कर लो. आजकल तरहतरह के कंप्यूटर कोर्स भी हैं. तुम्हारे लिए एक अच्छा ओप्शन मिल ही जाएगा.’’

‘‘ठीक हैं, आप भी कंप्यूटर पढ़ने में मदद करेंगी तो मैं जौइन करने की सोचूंगा.’’

‘‘अरे वहां बहुत अच्छी तरह बताते हैं. प्रैक्टिकल भी कराते हैं. फिर भी कुछ समझ न आया करे तो आ कर पूछ लिया करना.’’

‘‘मैं जानता हूं कि आप कभी मना नहीं करेंगी… आप हैं ही बहुत स्वीट.’’

वह हंस पड़ी.

‘‘आप को पता भी है कि आप की हंसी कितनी कातिलाना है? मैं ने तो आप को शादी के बाद जब हंसते हुए देखा था तो देखता ही रह गया था. विवेक भैयाजी से बड़ी जलन हो गई थी मुझे.’’

‘‘तुम कुछ भी कैसे बोल देते हो?’’ रीमा नाराजगी से बोली.

‘‘सच कह रहा हूं भाभी. आप की हंसी और आप की इन आंखों को जो कोई एक बार देख लेता होगा वह जिंदगी भर नहीं भूल सकता होगा.’’

‘‘बसबस, ज्यादा मक्खन न लगाओ… अब अपना कंप्यूटर कोर्र्स जौइन करने के बाद ही मेरा सिर खाने आना,’’ रीमा ने उसे टालना चाहा.

आगे पढ़ें- अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. रीमा…

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