मन की खुशी: मणिकांत के साथ आखिर ऐसा क्या हो रहा था

Serial Story: मन की खुशी (भाग-1)

उस दिन मणिकांत का मन अशांत था. आजकल अकसर रहने लगा है, इसीलिए दफ्तर में देर तक बैठते हैं. हालांकि बहुत ज्यादा काम नहीं होता है, परंतु काम के बहाने ही सही, वे कुछ अधिक देर तक औफिस में बैठ कर अपने मन को सुकून देने का प्रयास करते रहते हैं. दफ्तर के शांत वातावरण में उन्हें अत्यधिक मानसिक शांति का अनुभव होता है. घर उन्हें काटने को दौड़ता है, जबकि घर में सुंदर पत्नी है, जवान हो रहे 2 बेटे हैं. वे स्वयं उच्च पद पर कार्यरत हैं. दुखी और अशांत होने का कोई कारण उन के पास नहीं है, परंतु घर वालों के आचरण और व्यवहार से वे बहुत दुखी रहते हैं.

जिस प्रकार का घरपरिवार वे चाहते थे वैसा उन्हें नहीं मिला. पत्नी उन की सलाह पर काम नहीं करती, बल्कि मनमानी करती रहती है और कई बार तो वे उस की नाजायज फरमाइशों पर बस सिर धुन कर रह जाते हैं, परंतु अंत में जीत पत्नी की ही होती है और वह अपनी सहीगलत मांगें मनवा कर रहती है. उस के अत्यधिक लाड़प्यार और बच्चों को अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया कराने से बच्चे भी बिगड़ते जा रहे थे.

उन का ध्यान पढ़ाई में कम, तफरीह में ज्यादा रहता था. देर रात जब वे घर पहुंचे तो स्वाति उन का इंतजार कर रही थी. नाराज सी लग रही थी. यह कोई नई बात नहीं. किसी न किसी बात को ले कर वह अकसर उन से नाराज ही रहती थी.

वे चुपचाप अपने कमरे में कपड़े बदलने लगे, फिर बाथरूम में जा कर इत्मीनान से फ्रैश हो कर बाहर निकले. पत्नी, बेटों के साथ बैठी टीवी देख रही थी.

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वे कुछ नहीं बोले तो पत्नी ने ही पूछा, ‘‘आज इतनी देर कहां कर दी?’’

‘‘बस, यों ही, औफिस में थोड़ा काम था, रुक गया,’’ उन्होंने बिना किसी लागलपेट के कहा.

पत्नी ने कहा, ‘‘मैं कब से आप का इंतजार कर रही हूं.’’

‘‘अच्छा, कोई काम है क्या?’’ उन्होंने कुछ चिढ़ने के भाव से कहा. अब उन की समझ में आया कि पत्नी उन के देर से आने के लिए चिंतित नहीं थी. उसे अपने काम की चिंता थी, इसलिए उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘हां, नवल को नई बाइक लेनी है. उस ने देखी है, कोई स्पोर्ट्स बाइक है, लगभग 1 लाख रुपए की.’’

नवल उन का बड़ा लड़का था. एक नंबर का लफंगा. पढ़ाई में कम, घूमनेफिरने और लड़कियों के चक्कर में उस का ध्यान ज्यादा रहता था.

‘‘उस के पास पहले से ही एक बाइक है, दूसरी ले कर क्या करेगा?’’ उन्हें मन ही मन क्रोध आने लगा था.

स्वाति ने बहुत ही लापरवाही से कहा, ‘‘क्या करेगा? आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे बच्चों की कोई जरूरत ही नहीं होती. जवान लड़का है, दोस्तों के साथ घूमनाफिरना पड़ता है. स्टेटस नहीं मेनटेन करेगा तो उस की इज्जत कैसे बनेगी? उस के कितने सारे दोस्त हैं, जिन के पास कारें हैं. वह तो केवल बाइक ही मांग रहा है. पुरानी वाली बेच देगा.’’

‘‘स्टेटस मोटरबाइक या कारों से नहीं बनता, बल्कि पढ़ाई में अव्वल आने और अच्छी नौकरी करने से बनता है. तभी इज्जत मिलती है. मैं हमेशा कहता रहा हूं, बहुत ज्यादा लाड़प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं, परंतु तुम ध्यान ही नहीं देतीं. अपने बेटों की हम हर  जरूरत पूरी करते हैं, परंतु क्या वे हमारी इच्छा और आकांक्षा के अनुसार पढ़ाई कर रहे हैं? नहीं. बड़ा वाला न जाने कब बीसीए पूरा कर पाएगा. हर साल फेल हो जाता है और छोटा वाला अभी तो कोचिंग ही कर रहा है. प्रेम के क्षेत्र में सभी उत्तीर्ण होते चले जा रहे हैं, परंतु पढ़ाई की परीक्षा में लगातार फेल हो रहे हैं,’’ उन का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था.

‘‘बेकार की भाषणबाजी से क्या फायदा? बच्चों की जरूरतों को पूरा करना हमारा कर्तव्य है. हमारे कमाने का क्या फायदा, अगर वह बच्चों के काम न आए,’’ फिर उस ने चेतावनी देने वाले अंदाज में कहा, ‘‘कल उस को बाइक के लिए चैक दे देना, बाकी मैं कुछ नहीं जानती,’’ पत्नी इतना कह कर चली गई.

वे धम से बिस्तर पर बैठ गए. यह उन की पत्नी है, जिस के साथ वे लगभग 25 वर्ष से गुजारा कर रहे हैं. वे दफ्तर से आए हैं और उस ने न उन का हालचाल पूछा, न चायपानी के लिए और न ही खाने के लिए. यह कोई नई बात नहीं थी. रोज ही वह अपने बेटों की कोई नई फरमाइश लिए तैयार बैठी रहती है और जैसे ही वे दफ्तर से आते हैं, फरमान जारी कर देती है. उस का फरमान ऐसा होता है कि वे नाफरमानी नहीं कर सकते थे. वे ना करने की स्थिति में कभी नहीं होते. पत्नी के असाधारण और अनुचित तर्क उन के उचित र्कों को भी काटने में सक्षम होते थे.

इस का कारण था, वे बहुत भावुक और संवेदनशील थे. उन का मानना था कि जड़ और मूर्ख व्यक्ति के साथ मुंहजोरी करने से स्वयं को ही दुख पहुंचता है.

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दूसरी तरफ बेटे उन की नाक में दम किए रहते हैं. जब भी घर पहुंचो, या तो वे टीवी देखते रहते हैं या फिर मोबाइल में किसी से बात कर रहे होते हैं या फिर होमथिएटर में आंखें और कान फोड़ते रहते हैं. इस से छुटकारा मिला तो इंटरनैट में अनजान लड़केलड़कियों से दोस्ती कायम कर रहे होते हैं. इंटरनैट ने भी यह एक अजीब बीमारी फैला दी है कि जिस व्यक्ति को हम जानतेपहचानते नहीं, उस से इंटरनैट की अंधी दुनिया में दोस्ती कायम करते हैं और जो सामने होते हैं, उन को फूटी आंख देखना पसंद नहीं करते.

उन के लड़के दुनियाभर के कार्य करते हैं, परंतु पढ़ाई करते हुए कभी नहीं दिखते. उन के समझाने पर वे भड़क जाते हैं, क्योंकि मां की शह उन के साथ होती है.

वे बिस्तर पर लेट कर विचारों में खो गए. मणिकांत 50 की उम्र पार कर रहे थे. अब तक दांपत्य जीवन और पत्नीप्रेम के अटूट बंधन पर उन्हें अति विश्वास था, परंतु अब उन का विश्वास डगमगाने लगा था. उन्हें लगने लगा था कि प्रेम एक ऐसी चीज है जो जीवनभर एकजैसी नहीं रहती है. प्रेम परिस्थितियों के अनुसार घटताबढ़ता रहता है. स्वाति उन्हें कितना प्रेम करती है, वे अब तक नहीं समझ पाए थे, परंतु अब उस के कर्कश और क्रूर व्यवहार के कारण स्वयं को उस से दूर करते जा रहे थे, तन और मन दोनों से. पत्थरों से सिर टकराना बहुत घातक होता है. अब उन्हें यह एहसास हो गया था कि वे व्यर्थ में ही एक ऐसी स्त्री के साथ दांपत्य सूत्र में बंध कर अपने जीवन को निसार बनाते रहे हैं, जो उन के मन को बिलकुल भी समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अपनी पत्नी से अब उन्हें एक विरक्ति सी होने लगी थी और जवान हो चुके बच्चों को वे एक बोझ समझने लगे थे. वे जीवनभर न केवल अपना प्यार पत्नी और बच्चों पर लुटाते रहे, बल्कि उन की सुखसुविधा की चिंता में रातदिन खटते रहे. परिवार के किसी व्यक्ति को कभी एक पैसे का कष्ट न हो, इस के लिए वे नौकरी के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से भी आय के साधन ढूंढ़ते रहे परंतु उन के स्वयं के हितों की तरफ परिवार के किसी सदस्य ने कभी ध्यान नहीं दिया. पत्नी ने भी नहीं. वह तो बच्चों के पैदा होते ही उन के प्रेमस्नेह और देखभाल में ऐसी मगन हो गई कि घर में पति नाम का एक अन्य जीव भी है, वह भूल सी गई. बच्चों की परवरिश, उन की पढ़ाईलिखाई और उन को जीवन में आगे बढ़ाने की उठापटक में ही उस ने जीवन के बेहतरीन साल गुजार दिए. मणिकांत पत्नी के लिए एक उपेक्षित व्यक्ति की तरह घर में रह रहे थे. वे बस पैसा कमाने और परिवार के लिए सुखचैन जुटाने की मशीन बन कर रह गए.

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दांपत्य जीवन के प्रारंभ से ही पत्नी का व्यवहार उन के प्रति रूखा था और कई बार तो उस का व्यवहार अपमानजनक स्थिति  तक पहुंच जाता था. पति की आवश्यकताओं के प्रति वह हमेशा लापरवाह, परंतु बच्चों के प्रति उस का मोह आवश्यकता से अधिक था. बच्चों को वे प्यार करते थे, परंतु उस हद तक कि वे सही तरीके से अपने मार्ग पर चलते रहें. गलती करें तो उन्हें समझा कर सही मार्ग पर लाया जाए, परंतु पत्नी बच्चों की गलत बातों पर भी उन्हीं का पक्ष लेती. इस से वे हठी, उद्दंड होते गए.

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Serial Story: मन की खुशी (भाग-2)

उन्होंने कभी अगर बच्चों को सुधारने के उद्देश्य के कुछ नसीहत देनी चाही तो पत्नी बीच में आ जाती. कहती, ‘आप क्यों बेकार में बच्चों के पीछे अपना दिमाग खराब कर रहे हैं. मैं हूं न उन्हें संभालने के लिए. अभी छोटे हैं, धीरेधीरे समझ जाएंगे. आप अपने काम पर ध्यान दीजिए, बस.’

अपना काम, यानी पैसे कमाना और परिवार के ऊपर खर्च करना. वह भी अपनी मरजी से नहीं, पत्नी की मरजी से. इस का मतलब हुआ पति का परिवार को चलाने में केवल पैसे का योगदान होता है. उसे किस प्रकार चलाना है, बच्चों को किस प्रकार पालनापोसना है और उन्हें कैसी शिक्षा देनी है, यह केवल पत्नी का काम है. और अगर पत्नी मूर्ख हो तो…तब बच्चों का भविष्य किस के भरोसे? वे मन मसोस कर रह जाते.

पत्नी का कहना था कि बच्चे धीरेधीरे समझ जाएंगे, परंतु बच्चे कभी नहीं समझे. वे बड़े हो गए थे परंतु मां के अत्यधिक लाड़प्यार और फुजूलखर्ची से उन में बचपन से ही बुरी लतें पड़ती गईं. उन के सामने ही उन के मना करने के बावजूद पत्नी बच्चों को बिना जरूरत के ढेर सारे पैसे देती रहती थी. जब किसी नासमझ लड़के के पास फालतू के पैसे आएंगे तो वह कहां खर्च करेगा. शिक्षा प्राप्त कर रहे लड़कों की ऐसी कोई आवश्यकताएं नहीं होतीं जहां वे पैसे का इस्तेमाल सही तरीके से कर सकें. लिहाजा, उन के बच्चों के मन में बेवजह बड़प्पन का भाव घर करता गया और वे दिखावे की आदत के शिकार हो गए. घर से मिलने वाला पैसा वे लड़कियों के ऊपर होटलों व रेस्तराओं में खर्च करते और दूसरे दिन फिर हाथ फैलाए मां के पास खड़े हो जाते.

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बचपन से ही बच्चों के कपड़ों, स्कूल की किताबों और फीस, उन के खानपान और दैनिक खर्च की चिंता में पत्नी दिनरात घुलती रहती, परंतु कभी यह न सोचती कि पति को भी दिनभर औफिस में काम करने के बाद घर पर एक पल के लिए आराम और सुकून की आवश्यकता है. उन के जीवन में आर्थिक संकट जैसी कोई स्थिति नहीं थी. परंतु अगर कभी कुछ पल या एकाध दिन के लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न होती थी, तो उन्होंने बहुत शिद्दत से इस बात को महसूस किया था कि पत्नी का मुंह तब टेढ़ा हो जाता था. वह उन की परेशानी की चिंता तो छोड़, इस बात का ताना मारती रहती थी कि उन के साथ शादी कर के उस का जीवन बरबाद हो गया, कभी सुख नहीं देखा, बस, परिवार को संभालने में ही उस का जीवन गारत हो गया.

तब पतिपत्नी के बीच बेवजह खटपट हो जाती थी. हालांकि वे तब भी चुप रहते थे, क्योंकि पत्नी को उन के वाजिब तर्क भी बुरे लगते थे. इसलिए बेवजह बहस कर के वे स्वयं को दुखी नहीं करते थे. परंतु उन के चुप रहने पर भी पत्नी का चीखनाचिल्लाना जारी रहता. वह उन के ऊपर लांछन लगाती, ‘हां, हां, क्यों बोलोगे, मेरी बातें आप को बुरी लगती हैं न. जवाब देने में आप की जबान कट जाती है. दिनभर औफिस की लड़कियों के साथ मटरगस्ती करते रहते हो न. इसलिए मेरा बोलना आप को अच्छा नहीं लगता.’

पत्नी की इसी तरह की जलीकटी बातों से वे कई दिनों तक व्यथित रहते. खैर, परिवार के लिए धनसंपत्ति जुटाना उन के लिए कोई बड़ी मुसीबत कभी नहीं रही. वे उच्च सरकारी सेवा में थे और धन को बहुत ही व्यवस्थित ढंग से उन्होंने निवेश कर रखा था और अवधि पूरी होने पर अब उन के निवेशों से उन्हें वेतन के अलावा अतिरिक्त आय भी होने लगी थी. जैसेजैसे बच्चे बड़े होते गए, उन की जरूरतें बढ़ती गईं, उसी हिसाब से उन का वेतन और अन्य आय के स्रोत भी बढ़ते गए. संपन्नता उन के चारों ओर बिखरी हुई थी, परंतु प्यार कहीं नहीं था. वे प्रेम की बूंद के लिए तरस रहे उस प्राणी की तरह थे, जो नदी के पाट पर खड़ा था, परंतु कैसी विडंबना थी कि वह पानी को छू तक नहीं सकता था. पत्नी के कर्कश स्वभाव और बच्चों के प्रति उस की अति व्यस्तताओं ने मणिकांत को पत्नी के प्रति उदासीन कर दिया था.

उधर, छोटा बेटा भी अपने भाई से पीछे नहीं था. बड़े भाई की देखादेखी उस ने भी बाइक की मांग पेश कर दी थी. दूसरे दिन उसे भी बाइक खरीद कर देनी पड़ी. ये कोई दुखी करने वाली बातें नहीं थीं, परंतु उन्होंने पत्नी से कहा, ‘लड़कों को बोलो, थोड़ा पढ़ाई की तरफ भी ध्यान दिया करें. कितना पिछड़ते जा रहे हैं. सालदरसाल फेल होते हैं. यह उन के भविष्य के लिए अच्छी निशानी नहीं है.’

पत्नी ने रूखा सा जवाब दिया, ‘आप उन की पढ़ाई को ले कर क्यों परेशान होते रहते हैं? उन्हें पढ़ना है, पढ़ लेंगे, नहीं तो कोई कामधंधा कर लेंगे. कमी किस बात की है?’

एक अफसर के बेटे दुकानदारी करेंगे, यह उन की पत्नी की सोच थी. और पत्नी की सोच ने एक दिन यह रंग भी दिखा दिया जब लड़के ने घोषणा कर दी कि वह पढ़ाई नहीं करेगा और कोई कामधंधा करेगा. मां की ममता का फायदा उठा कर उस ने एक मोबाइल की दुकान खुलवा ली. इस के लिए उन को 5 लाख रुपए देने पड़े.

परंतु बड़े बेटे की निरंकुशता यहीं नहीं रुकी. उन्हें मालूम नहीं था, परंतु स्वाति को पता रहा होगा, वह किसी लड़की से प्यार करता था. पढ़ाई छोड़ दी तो उस के साथ शादी की जल्दी पड़ गई. शायद उसे पता था कि मणिकांत आसानी से नहीं मानेंगे, तो उस ने चुपचाप लड़की से कोर्ट में शादी कर ली. अप्रत्यक्ष रूप से इस में स्वाति का हाथ रहा होगा.

जिस दिन बेटा बिना किसी बैंडबाजे के लड़की को घर ले कर आया, तो उन की पत्नी ने अकेले उन की अगवानी की और रीतिरिवाज से घर में प्रवेश करवाया. पत्नी बहुत खुश थी. छोटा बेटा भी मां का खुशीखुशी सहयोग कर रहा था. वे एक अजनबी की तरह अपने ही घर में ये सब होते देख रहे थे. किसी ने उन से न कुछ कहा न पूछा.

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पत्नी ने यह भी नहीं कहा कि वे बहू को आशीर्वाद दे दें. उन को दुख हुआ, परंतु किसी से व्यक्त नहीं कर सकते थे. बात यहां तक रहती तब भी वे संतोष कर लेते, परंतु दूसरे दिन पत्नी और बेटे की जिद के चलते परिचितों व रिश्तेदारों को शादी का रिसैप्शन देना पड़ा. इस में उन के लाखों रुपए खर्च हो गए. परिवार के किसी व्यक्ति की खुशी में वे भागीदार नहीं थे, परंतु उन की खुशी के लिए पैसा खर्च करना उन का कर्तव्य था. इसी मध्य, उन्हें छींक आई और वे भूत के विचारों की धुंध से वर्तमान में लौट आए.

मणिकांत ने जीवन के लगभग 25 वर्ष तक पूरी निष्ठा और ईमानदारी से पत्नी को प्रेम किया था. पत्नी, परिवार और बच्चों की हर जरूरत पूरी की थी परंतु अब उन्हें लगने लगा था कि उन्होंने मात्र एक जिम्मेदारी निभाई थी. बदले में जो प्यार उन्हें मिलना चाहिए था वह नहीं मिला.

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Serial Story: मन की खुशी (भाग-3)

औफिस में अधिक देर तक बैठने से उन के मन को सुकून मिलता था. उस दिन उन के एक सहकर्मी मित्र उन के कमरे में आए और सामने बैठते हुए बोले, ‘‘क्यों यार, क्या बात है, आजकल देख रहा हूं, औफिस में देर तक बैठने लगे हो. काम अधिक है या और कोई बात है?’’

मणिकांत ने हलके से मुसकरा कर कहा, ‘‘नहीं, काम तो कोई खास नहीं, बस यों ही.’’

‘‘अच्छा, तो अब भाभीजी अच्छी नहीं लगतीं और बच्चे बड़े हो गए हैं. जिम्मेदारियां कम हो गई हैं?’’ मित्र ने स्वाभाविक तौर पर कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ मणिकांत ने चौंक कर पूछा.

‘‘मतलब साफ है, यार. आदमी घर से तब दूर भागता है जब पत्नी बूढ़ी होने लगे और उस का आकर्षण कम हो जाए. बच्चे भी इतने बड़े हो जाते हैं कि उन की अपनी प्राथमिकताएं हो जाती हैं. तब घर में कोई हमारी तरफ ध्यान नहीं देता. ऐसी स्थिति में हम या तो औफिस में काम के बहाने बैठे रहते हैं या किसी और काम में व्यस्त हो जाते हैं.’’

मणिकांत गुमसुम से बैठे रह गए. उन्हें लगा कि सहकर्मी की बात में दम है. वह जीवन की वास्तविकताओं से भलीभांति वाकिफ है और वे अपनी समस्या को उस मित्र के साथ साझा कर मन के बोझ को किसी हद तक हलका कर सकते हैं. मन ही मन निश्चय कर उन्होंने धीरेधीरे अपनी पत्नी से ले कर बच्चों तक की समस्या खोल कर मित्र के सामने रख दी, कुछ भी नहीं छिपाया. अंत में उन्होंने कहा, ‘‘अमित, यही सब कारण हैं जिन से आजकल मेरा मन भटकने लगा है. पत्नी से विरक्ति सी हो गई है. उस का ध्यान बच्चों की तरफ अधिक रहता है, धनसंपत्ति इकट्ठा करने में उस की रुचि है, बच्चों के भविष्य बिगाड़ती जा रही है. बच्चों के बारे में कुछ तय करने में मेरा कोई सहयोग नहीं लेती. इस के अतिरिक्त एक पति की दैनिक जरूरतें क्या हैं, उन की तरफ वह बिलकुल ध्यान नहीं देती.’’

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‘‘बच्चों के प्रति मां की चिंता वाजिब है, परंतु मां की बच्चों के प्रति अति चिंता बच्चों को बनाती कम, बिगाड़ती ज्यादा है,’’ अमित ने स्वाभाविक भाव से कहा.

‘‘सच कहते हो. पत्नी और बच्चों के साथ रहते हुए जिस प्रकार का जीवन मैं व्यतीत कर रहा हूं, उस से मुझे लगता है कि पारिवारिक रिश्ते केवल पैसे के इर्दगिर्द घूमते रहते हैं. उन में प्रेम नाम का तत्त्व नहीं होता है या अगर ऐसा कोई तत्त्व दिखाई देता है तो केवल स्वार्थवश. जब तक स्वार्थ की पूर्ति होती रहती है तब तक प्रेम दिखाई देता है. जैसे ही परिवार में अभाव की टोली अपने लंबे पैर पसार कर बैठ जाती है वैसे ही परिवार के बीच लड़ाईझगड़ा आरंभ हो जाता है. तब प्रेम नाम का जीव पता नहीं कहां विलीन हो जाता है.’’

‘‘परिवार में इस तरह की छोटीछोटी बातें होती रहती हैं परंतु मन में गांठ बांध कर इन को बड़ा बनाने का कोई औचित्य नहीं होता,’’ अमित ने समझाने के भाव से कहा.

‘‘मैं ने अपने मन में कोई गांठ नहीं बनाई. अब तक हर संभव कोशिश की कि पत्नी के साथ सामंजस्य बिठा सकूं, बच्चों को उचित मार्गदर्शन दे सकूं, परंतु पत्नी की हठधर्मी के आगे मेरी कोई नहीं चलती. मैं जैसे अपने ही घर में कोई पराया व्यक्ति हूं. मेरी अहमियत केवल यहीं तक है कि मैं उन के लिए पैसा कमाने की मशीन हूं. इस से मेरे मन को ठेस पहुंचती है. बच्चे तो कईकई दिन तक मुझ से बात नहीं करते. मैं उन से आत्मीयता से बात करने की कोशिश करता हूं, तब भी मुझ से दूर रहते हैं. हर जरूरत के लिए वे मां के पास जाते हैं. बड़ा तो जैसेतैसे अब अपने सहीगलत मार्ग पर चल रहा है. अपनी मरजी से शादी की, खुश रहे, परंतु छोटा तो अभी किसी कोर्स के लिए क्वालीफाई तक नहीं कर पाया है. हर बार एंट्रेंस एग्जाम में फेल हो जाता है. दिनभर घूमता रहता है, पता नहीं, क्या करने का इरादा है? उस की हरकतों से मुझे असीम कष्ट पहुंचता है.’’

‘‘कभी तुम ने भाभीजी के स्वभाव का विश्लेषण करने का प्रयत्न किया या जानने की कोशिश की कि वे क्यों ऐसी हैं?’’ अमित ने पूछा.

‘‘बहुत बार किया. कई बार तो उस से ही पूछा, ‘तुम क्यों इतनी चिड़चिड़ी हो? जब देखो तब गुस्से में रहती हो. तुम्हें क्यों हर वक्त सब से परेशानी रहती है?’ तब वह भड़क कर बोली, ‘कौन कहता है कि मैं चिड़चिड़ी हूं और सदा गुस्से में रहती हूं. मेरे स्वभाव में क्या कमी है? आप को ही मेरा स्वभाव अच्छा नहीं लगता तो मैं क्या करूं.’ बाद में मैं ने उस के मायके में पता किया तो पता चला कि वह जन्म से ऐसी ही चिड़चिड़ी, गुस्सैल और जिद्दी थी. तोड़नाफोड़ना उस का स्वभाव था. मनमानी कर के अपनी सहीगलत बातें मांबाप से मनवा लेती थी. उसी चरित्र को आज भी वह जी रही है. अब उस में क्या परिवर्तन आएगा?’’

‘‘मैं कुछ हद तक तुम्हारी समस्या समझ सकता हूं. तुम्हारे परिवार की यह स्थिति पत्नी के स्वार्थी और कर्कश स्वभाव के कारण है. ऐसी पत्नी दूसरों को उपेक्षित कर के स्वयं ऊंचा रख कर देखती है. उस के लिए उस का स्वर और बच्चे ही अहम होते हैं. ऐसी स्त्रियों का अनुपात हमारे समाज में कम है, फिर भी उन की संख्या कम नहीं है. इस तरह की पत्नियां अपने पतियों का जीवन ही नहीं, पूरे ससुराल वालों का जीना दुश्वार किए रहती हैं. मुझे लगता है भाभीजी ऐसे ही चरित्र वाली महिला हैं. इस तरह की स्त्रियां चोट खा कर भी नहीं संभलतीं.’’

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‘‘तब फिर परिवार में सामंजस्य बनाए रखने और खुशियों को जिंदा रखने का क्या उपाय है?’’ मणिकांत ने पूछा.

‘‘बहुत आसान है मेरे भाई. जब घरपरिवार में पत्नी और बच्चों से खुशियां न मिलें तो आदमी अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए भी खुशी तलाश कर सकता है.’’

‘‘वह कैसे?’’ उन्होंने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की.

‘‘तुम अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए परिवार को भी खुश रख सकते हो, और स्वयं के लिए मन की खुशी भी तलाश कर सकते हो,’’ अमित ने रहस्यमयी तरीके से कहा.

‘‘मन की खुशी कैसी होती है?’’ मणिकांत की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. अमित के सामने वे एक बच्चा बन गए थे.

अमित ने एक शिक्षक की तरह उन्हें समझाया, ‘‘खुशियां केवल भौतिक चीजों से ही नहीं मिलतीं, ये मनुष्य के मन में भी होती हैं. बस, हम उन्हें पहचान नहीं पाते.’’

‘‘मन की खुशियां कैसे तलाश की जा सकती हैं? ’’ वे जानने के लिए उतावले हो रहे थे.

‘‘ऐसी खुशियां हम अपनी रुचि और शौक के मुताबिक कार्य कर के प्राप्त कर सकते हैं. प्रत्येक मनुष्य स्वभाव से कलाकार होता है, उस के चरित्र में रचनात्मकता होती है, परंतु जीवन की आपाधापी और परिवार के चक्कर में घनचक्कर बन कर, वह अपने आंतरिक गुणों को भुला बैठता है. अगर हम अपने आंतरिक गुणों की पहचान कर लें तो हर व्यक्ति, लेखक, चित्रकार, कलाकार, अभिनेता आदि बन सकता है. तुम बताओ, तुम्हारी रुचियां कौन सी हैं?’’

मणिकांत सोचने लगे. फिर कहा, ‘‘अब तो जैसे मैं भूल ही गया हूं कि मेरी रुचियां और शौक क्या हैं, परंतु विद्यार्थी जीवन में कविताएं लिखी थीं और कुछ चित्रकारी का भी शौक था.’’

अमित ने उत्साहित हो कर कहा, ‘‘बस, यही तो हैं तुम्हारे आंतरिक गुण. तुम को बहुत अधिक उलझने की आवश्यकता नहीं है. बस, तुम फिर से लिखना शुरू कर दो और पैंसिल ले कर कागज पर आकार बनाना आरंभ करो. फिर देखना, कैसे तुम्हारी कला और लेखन में निखार आता है. तुम अपने परिवार के सभी कष्ट और दुख भूल कर स्वयं में इतना मगन हो जाओगे कि चारों तरफ तुम को खुशियां ही खुशियां बिखरी नजर आएंगी.’’

मणिकांत अमित की बात से सहमत थे. मुसकराते हुए कहा, ‘‘धन्यवाद अमित, तुम ने मुझे सही रास्ता दिखाया. अब मैं परिवार के बीच भी खुशियां ढूंढ़ लूंगा.’’

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‘‘मैं ने तुम्हें कोई रास्ता नहीं दिखाया. प्रत्येक  व्यक्ति को खुशियों की मंजिल का पता होता है. बस, परिस्थितियों के भंवर में फंस कर वह अपना सही मार्ग भूल जाता है. मैं ने तो केवल तुम्हारी सोती हुई बुद्धि को जगाने का कार्य किया है.’’

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Anupamaa: इस बात से डरी काव्या, वनराज को बताई दिल की बात

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों काव्या का गुस्सा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ वह वनराज को दोबारा अपनी जिंदगी में लाने की कोशिश कर रही है. तो वहीं अनुपमा और वनराज की नजदीकियों से वह आगबबूला होती नजर आ रही है. इसी बीच किंजल की मां राखी पूरी कोशिश कर रही है कि परितोष को अपनी तरफ कर सके. आइए आपको बताते हैं अब अनुपमा की कहानी में कौन सा नया मोड़ आने वाले…

बा और किंजल की होती है बहस

अब तक आपने देखा कि वनराज बेड से गिर जाता है, जिसे देखकर अनुपमा काफी घबरा जाती है और सारे घरवालों को आवाज देती है. सारे घरवाले ऐसे वनराज को देखकर काफी परेशान हो जाते है. वहीं बा अनुपमा से वनराज का हाथ मालिश करने बोलती है, जिसे सुनकर किंजल गुस्सा हो जाती है और बा से झगड़ पड़ती है. हालांकि अनुपमा उसे समझा देती है.

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काव्या मारती है अनुपमा को ताना

वनराज से मिलने आई काव्या, अनुपमा को ताना मारने का एक मौका नही छोड़ती कि वह वनराज की जिंदगी में दोबार आने की कोशिश कर रही है. हालांकि अनुपमा, काव्या की बात का जवाब देते हुए कहती है कि वह अपनी जिंदगी में काफी आगे बढ़ चुकी है और उसे अब वनराज से कोई फर्क नही पड़ता.

 

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वनराज करेगा कोशिश

 

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काव्या से दूर हो रहा वनराज को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है. वहीं आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि वह पूरी कोशिश करेगा कि अनुपमा उसे उसकी गलतियों के लिए माफ कर दे. वहीं अस्पताल जाने के लिए जब अनुपमा और वह घर से बाहर निकलेंगे तो काव्या आ जाएगी और अनुपमा, वनराज को खुद से दूर करने के लिए उसे काव्या के साथ जाने के लिए कहेगी. इसी बीच काव्या डरेगी और कहेगी कि तुम अनुपमा से दोबारा प्यार तो नही करने लगे हो. हालांकि अनुपमा अब वनराज को अपनी जिंदगी में आने नही देगी. अब देखना ये है कि क्या वनराज, अनुपमा का मन बदल पाएगा.

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Yeh Rishta… के 12 साल पूरे होते ही Mohsin Khan ने खरीदा आलीशान फ्लैट, PHOTOS VIRAL

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) दर्शकों के बीच काफी पौपुलर है, जिसके कारण सीरियल ने 12 साल भी पूरे कर लिए हैं. वहीं इन 12 सालों में कई सितारों ने शो को छोड़ा तो कई कलाकार अब तक सीरियल से जुड़े हैं. इसी बीच कार्तिक के किरदार से फैंस का दिल जीत चुके मोहसिन खान की फैन फौलोइंग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है. वहीं करियर की इस सफलता के बाद मोहसिन ने अपने लिया नया घर ले लिया है. आइए आपको दिखाते हैं मोहसिन के नए घर की झलक…

मुंबई में खरीदा अपार्टमेंट

कार्तिक यानी मोहसिन खान ने सपनों के शहर मुंबई में एक आलीशान अपार्टमेंट खरीदा है, जिसकी झलक उन्होंने अपने फैंस के साथ सोशलमीडिया पर शेयर की है.  अपने नए घर की झलक दिखाते हुए मोहसिन खान ने कैप्शन में लिखा है, ‘नए घर से खूबसूरत व्यू…अल्लहुमा बारीक….’ वहीं फोटो की बात करें तो मोहसिन खान घर की बालकनी में नजर आ रहे हैं.

 

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फैमिली के साथ रहते हैं मोहसिन

 

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ये रिश्ता क्या कहलाता है स्टार मोहसिन खान अभी तक मुंबई में अपने पूरे परिवार यानी उनके माता-पिता और भाई सज्जाद खान के साथ रहते हैं. वहीं कुछ साल पहले ही मोहसिन खान की बहन की शादी हो चुकी है.

 

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बता दें, शो में इन दिनों काफी सीरियस माहौल है. दरअसल, शो में अभी नायरा की मौत का ट्रैक दिखाया जा रहा है. हालांकि सीरियल में नायरा की मौत होना फैंस को बिल्कुल पसंद नही आ रहा है. वहीं एक इंटरव्यू में शिवांगी शो में नए ट्विस्ट आने की बात भी कह चुकी हैं. इसी बीच 12 साल पूरे होने की खुशी में जल्द जश्न भी मनाया जाएगा.

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एक समय था जब बचपन बड़ा ही समृद्ध हुआ करता था. स्कूल के बाद बाहर जाकर खूब खेल कूद और उसके बाद ढेर सी किताबों के बीच पसरा हुआ बचपन बहुत ही शानदार होता था.चाचा चौधरी , बिल्लू , पिंकी , चंदा मामा,पंचतंत्र से होता हुआ ये सफर कब प्रेमचंद के गोदान और रवींद्रनाथ टैगोर की उच्च स्तरीय कहानियों तक पहुंच जाता था पता ही नहीं लगता था और फिर ये आदत ताउम्र नहीं छूटती थी .पर अब के भागदौड़ भरे समय में सबकुछ बदल गया है .

आज का बचपन ढेर सारे डिजिटल गैजेट्स में उलझकर रह गया है. हर माता पिता की ये ख़्वाहिश होती है कि उनका बच्चा अच्छे से पढ़े लिखे और उसे बहुत सारा ज्ञान हो पर ये ज्ञान उसे केवल इंटरनेट पर नहीं मिल सकता इसके लिए किताबें पढ़ना बेहद आवश्यक है.जो ज्ञान किताबों से मिल सकता है वो और कहीं से भी पाना मुश्किल होता है,किताबें बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होती हैं और बहुत हद तक उसकी सोचने समझने की क्षमता भी बढ़ाती हैं.स्कूल में केवल कोर्स की किताबें पढ़ाई जाती हैं ऐसे में बच्चा अलग से किताबें कैसे पढ़ें ये हर माता पिता की समस्या है.ऐसे में कुछ उपाय यदि अपनाए जाएँ तो ये बच्चों में पठन पाठन की रुचि बढ़ाने में कारगर हो सकते हैं.

1. ख़ुद से करें शुरुआत–

यदि आप बच्चे में कोई अच्छी आदत डालना चाहते हैं तो पहले खुद को अनुशासित होना पड़ेगा.आप थोड़ा समय निकालें और घर में ऐसा माहौल बनाएं जिस से बच्चे में पढ़ने की इच्छा जागृत हो.इसके लिए आपको एक ऐसा समय निर्धारित करना होगा जिस समय मे घर में कोई भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट जैसे कंप्यूटर मोबाइल वग़ैरह चलाने की पाबंदी होगी और उस समय मे केवल किताबें पढ़ी जायेंगी .आप भी जब इस मे शामिल होंगे तो बच्चे अपने आप रुचि लेंगे.

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2. गिफ़्ट करें किताबें–

बच्चों को समय समय पर किताबें गिफ्ट करें .याद रखें कि किताबों का चुनाव करते समय उनकी उम्र और रुचि का खयाल रखना ख़ास ज़रूरी है.बच्चे वही पढ़ना चाहते हैं जिसमें उनकी रुचि हो.वो कॉमिक्स या पत्रिका जो भी पढ़ें उनको पढ़ने दें जब आदत पड़ जाएगी तो वो अपने आप सही किताबों का चुनाव करना सीख जाएँगे.

3. लाइब्रेरी में लेकर जाएँ–

शाम को गार्डनिंग करने के बाद हर दूसरे दिन उनको लाइब्रेरी में लेकर जायेँ जिस से वहाँ उन्हें अलग अलग प्रकार की किताबों को पढ़ने का अवसर मिल पाए.बच्चों पर अपनी पसन्द न थोपें आप उन्हें पंचतंत्र पढ़ने को कहें और यदि वो स्पाइडर मैन पढ़ना चाहते हों तो उन्हें वही पढ़ने दें धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाएगी पढ़ने की.

4. पेपर पढ़ने की आदत डालें–

पढ़ने की आदत डालने की शुरुवात पेपर से करें .बच्चों को रोज पेपर पढ़ने की आदत डालें.यदि बच्चों के पास समय नही है पढ़ने का तो आप पेपर में खास खबरों को मार्कर से अंडरलाइन कर के रखें जिस से उन्हें अपना कीमती समय खराब न करना पड़े और जल्दी से वो पेपर पढ़ पाएँ.उनसे जानकारी के लिए पूछते रहें कि आज उन्होंने दिनभर में क्या पढा.

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5. कहानियाँ सुने सुनाएँ–

बच्चे कहानियों से बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं ऐसे में उन्हें पहले कहानियाँ पढ़ कर सुनाएँ जिस से उनकी रुचि बढ़ेगी फिर धीरे धीरे उनसे खुद पढ़ने को कहें और उनसे भी कहानी सुनाने को कहें इस से उन्हें किताबों से जुड़ने में मदद मिलेगी.

छोटे बच्चे माँ से बहुत जुड़े होते हैं और बचपन में बहुत जल्दी नकल करते हैं ऐसे में यदि माँ ख़ुद किताबें पढ़ेगी तो बच्चे देखकर अपने आप सीखेंगे और इस तरह उनमें ये अच्छी आदत अपने आप डल जाएगी.

सर्जरी की बाद से मेरे पीठ दर्द में दर्द रहता है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 65 साल है. 2010 में मेरी पीठ और पैर में तेज दर्द उठा था. इलाज के लिए रीढ़ की 5 बार सर्जरी की गई. हालांकि सर्जरी की मदद से मुझे पैर के दर्द से राहत तो मिल गई है लेकिन पीठ दर्द अभी भी परेशान करता है. यहां तक कि मेरा उठनाबैठना तक दूभर हो गया है. कृपया इस का इलाज बताएं?

जवाब-

सही इलाज के लिए समस्या का कारण पता होना जरूरी है. इसलिए सब से पहले इस की जांच कराएं. रेडियोफ्रीक्वैंसी एब्लेशन आरएफए, रीढ़ के जोड़ों में होने वाली दर्द से छुटकारा पाने के लिए एक अच्छा विकल्प माना जाता है. दिल्ली में ऐसे कई अस्पताल हैं, जहां इस तकनीक का उपयोग किया जाता है. इस इलाज की मदद से आप को 18 से 24 महीनों के लिए दर्द से पूरी तरह से राहत मिल जाएगी. रीढ़ की जिन नसों में दर्द होता है उन के पास खास प्रकार की सूइयां लगाई जाती हैं. खास उपकरणों की मदद से रेडियो तरंगों द्वारा निकले करंट का उपयोग कर के इन नसों के पास एक छोटे हिस्से को गरमाहट दी जाती है. यह नसों से मस्तिष्क तक जाने वाले दर्द को कम करता है, जिस से आप को दर्द से राहत मिल जाएगी. इस इलाज के कई फायदे हैं जैसेकि आप को अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल जाएगी, तेज रिकवरी होगी और कामकाज भी तुरंत शुरू कर पाएंगी.

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जो लोग कामगर हैं, जिन्हें पूरे दिन कंप्यूटर पर बैठ के काम करना पड़ता है उन्हें गर्दन और पीठ दर्द की शिकायत रहती है. पर क्या आपको पता है कि अपने बैठने की आदत में बदलाव कर के आप इस परेशानी से निजात पा सकती हैं. आपको बता दें कि कंप्यूटर के सामने अधिक देर तक बैठने से आपके गर्दन और रीढ़ की हड्डियों पर काफी नुकसान पहुंचता है. इससे आपको अधिक थकान, सिर में दर्द और एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर आप अधिक देर तक इसी अवस्था में बैठी रहती हैं तो आपके स्पाइनल कौर्ड में भी घाव हो सकता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जब आलिया ने पहनी दीपिका जैसी ड्रैस, देखें कौन लगा बेहतर

बीते दिनों एक्टर रणबीर कपूर की फैमिली संग आलिया जहां वेकेशन मनाती नजर आईं थीं. तो वहीं रणवीर सिंह भी अपनी वाइफ दीपिका पादुकोण संग क्ववौलिटी टाइम बिताते नजर आए थे. हालांकि कुछ फोटोज में दोनों कपल साथ भी नजर आए थे. आपके बता दें दीपिका पादुकोण जहां रणबीर कपूर की एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं तो वहीं आलिया उनकी करेंट गर्लफ्रेंड हैं. लेकिन आज हम दीपिका और आलिया के किसी रिलेशनशिप की नही बल्कि उनके फैशन की बात करेंगे.

दरअसल, फैशन की बात की जाए तो बौलीवुड सेलेब्रिटीज को हर कोई कौपी करना चाहता है. हालांकि खुद बौलीवुड एक्ट्रेसेस एक दूसरे को अक्सर कौपी करती हुई नजर आती हैं. वहीं आलिया और दीपिका भी कई बार एक दूसरे को कौपी करती हुई नजर आई हैं. इसीलिए आज हम आपको दोनों के कौपी किए हुए क्लेक्शन की झलक दिखाएंगे.

1. साड़ी फैशन किया था कौपी

बीते दिनों आलिया और दीपिका एख जैसी मल्टी कलर की साड़ी पहने नजर आईं थीं. दरअसल, दीपिका एक रियलिटी शो में मल्टी कलर पैटर्न वाली साड़ी पहने जहां दिखीं तो वहीं एक अवौर्ड शो में चैक पैटर्न मल्टी कलर साड़ी के साथ आलिया सुर्खियां बटोरतीं नजर आईं थीं.

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2. कोट में था अलग लुक

कोट फैशन इन दिनों ट्रैंड में हैं. वहीं बौलीवुड एक्ट्रेसेस भी इस लुक को अक्सर ट्राय करती नजर आती हैं. दीपिका और आलिया भी रेड कलर के सूट में नजर आ चुकी हैं. हालांकि जहां दीपिका लूज सूट में सुर्खियां बटोरती दिखीं थीं तो वहीं आलिया बौडी फिट रेड सूट में फैंस का दिल जीतती नजर आईं थीं.

3. पोल्का ड्रैस का छाया जलवा

समर में पोल्का ड्रैस का काफी ट्रैंड चला था, जिसमें बौलीवुड एक्ट्रेसेस पोल्का ड्रेस कैरी करते नजर आईं थीं. वहीं दीपिका और आलिया भी इस लुक में जलवे बिखेर रही थीं.

4. फैस्टिव सीजन में शरारा है ट्रैंड

इन दिनों फैस्टिव सीजन में शरारा काफी ट्रैंड में हैं. जहां दीपिका ग्रीन कलर के शरारा में फैंस का दिल जीता था तो वहीं काले रंग के शरारा में आलिया सुर्खियां बटोरती नजर आईं थीं.

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बच्चों का उत्पीड़न हो सकता है खतरनाक

पहला भाग पढ़ने के लिए-जब मां-बाप करें बच्चों पर हिंसा

आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को अनजान लोगों से खतरा हो सकता है जब कि अभिभावक और रिश्तेदारों के पास उन्हें सुरक्षा मिलती है. पर हमेशा ऐसा ही हो यह जरुरी नहीं. अभिभावक, देखभाल करने वाला शख्स, ट्यूशन देने वाले टीचर या फिर बड़े भाईबहन और रिश्तेदार, इन में से कोई भी बच्चों के साथ बदसलूकी यानी बाल उत्पीड़न कर उन्हें ऐसी चोट दे सकते हैं जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन सकता है. ऐसी वजहें बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. बच्चों के साथ इस तरह के उत्पीड़न कई तरह के हो सकते हैं;

शारीरिक उत्पीड़न का अर्थ उन हिंसक क्रियाओं से है जिस में बच्चे को शारीरिक चोट पहुँचाने, उस के किसी अंग को काटने, जलाने , तोड़ने या फिर उन्हें जहर दे कर मारने का प्रयास किया जाता है. ऐसा जानबूझ कर या अनजाने में भी किया जा सकता है. इन की वजह से बच्चे को चोट पहुंच सकती है, खून बह सकता है या फिर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो सकता है.

भावनात्मक उत्पीड़न का अर्थ है अभिवावक या देखरेख करने वाले शख्स द्वारा बच्चे को नकार दिया जाना ,बुरा व्यवहार करना, प्रेम से वंचित रखना, देखभाल न करना और बातबेबात अपमान किया जाना आदि. बच्चे को डरावनी सजा देना, गालियां देना, दोष मढ़ना, छोटा महसूस कराना, हिंसक बनने पर मजबूर करना, जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं. इन की वजह से बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. उस का व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है और उस के अंदर हीनभावना विकसित हो सकती है.

1. यौन उत्पीड़न:

बाल यौन उत्पीड़न का मतलब यौन दुर्भावना से प्रेरित हो कर बच्चे को तकलीफ पहुँचाना और शारीरिक शोषण करना  है. बचपन में यदि इस तरह की घटना होती है तो बच्चा ताउम्र सामान्य जीवन नहीं जी पाता. लम्बे समय तक ऐसी तकलीफों से उपजा हुआ अवसाद, बच्चे में अलगाव और खुद को ख़त्म कर डालने की भावनाएं पैदा कर सकती हैं. यौन समक्रमण, एच.आई.वी/एड्स या अनचाहा गर्भ बाल यौन उत्पीड़न के खतरनाक परिणाम हैं.

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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन ‘चाइल्ड एब्यूज़ इन इंडिया’ के मुताबिक भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज़्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है.

2. बाल विवाह:

बाल विवाह भी अभिभावक द्वारा बच्चों पर किये जाने वाले उत्पीड़न का एक रूप है. भारत के बहुत से हिस्सों में 12-14 साल या उस से भी कम उम्र की लड़कियाँ का ब्याह कर दिया जाता है. इस से पहले कि वे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से विकसित हो सकेमाँ बाप उन्हें ससुराल भेज देते हैं. कम उम्र में शादी होने से बहुत सी लड़कियां अपने सारे अधिकारों से, विद्यालय जाने से वंचित हो जाती है.

3. बच्चे की अवहेलना

अवहेलना करने का मतलब है जब अभिभावक साधनसंपन्न होने के बावजूद अपने बच्चे की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने में असफल रहते हैं या फिर उन के द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चा किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है.

4. अंधविश्वास का दंश भी झेल रहे हैं मासूम बच्चे.

सिर्फ अपेक्षाओं और प्रतियोगिताओ का बोझ ही नहीं हमारे बच्चे समाज के अंधविश्वास के भी शिकार हैं. मसलन राजस्थान में बच्चों को होने वाली निमोनिया जैसी बीमारियों का इलाज उन को गर्म सलाखों से दाग कर किया जाता है. भीलवाड़ा और राजसमंद में ऐसे कई मामले हो चुके हैं. बनेड़ा में दो साल की मासूम बच्ची पुष्पा को निमोनिया होने पर इतना दागा गया कि दर्द से तड़पते हुए उस की सांसे टूट गई. 3 महीने की परी को निमोनिया हुआ तो उस के शरीर में आधा दर्जन जगहों पर गर्म सलाखें चिपका दी गई.

5. जब मारपीट बन जाती है बच्चे की मौत का कारण

ओईसीडी कन्ट्रीज (और्गनाइजेशन फौर इकोनोमिक कोऔपरेशन & डेवलपमेंट ) द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक़ 15 से 17 साल तक की उम्र के बच्चे सब से ज्यादा रिस्क में रहते हैं. इन के बाद न्यूबोर्न का नंबर आता है. 1 से 4 साल तक के बच्चों की तुलना में 1 साल तक के बच्चों की इस तरह मौत का खतरा 3 गुना तक अधिक होता है.

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6. वैसी शारीरिक हिंसा जिस में मौत का भय नहीं होता

कई दफा हिंसा से मौत का खतरा तो नहीं होता मगर बच्चे की सेहत, उस के विकास या आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है. हिटिंग ,किकिंग ,बीटिंग ,बाईटस ,बर्नस ,पोइज़निंग आदि के द्वारा तकलीफ पहुंचाई जाती है. एक्सट्रीम केसेस में इस तरह की हिंसाएं बच्चे की मौत, अपंगता या फिर गंभीर चोटों के रूप में सामने आ सकती हैं. यह उन की मानसिक सेहत और विकास को भी प्रभावित कर सकती है.

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