स्किन टैनिंग हटाने के लिए बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं, कोई साइडइफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

सवाल-

शादी से पहले की गई शौपिंग में व्यस्त रहने के कारण मेरी स्किन टैन हो गई है. इसलिए मैं बौडी पौलिशिंग करवाना चाहती हूं. इस का कोई साइडइफैक्ट तो नहीं पड़ेगा?

जवाब-

जी नहीं, यह पूरी तरह से एक प्राकृतिक उपचार है इसलिए शरीर पर इस का कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. इस के लिए खास तरह के प्रोडक्ट प्रयोग किए जाते हैं जैसे बौडी क्रीम, बौडी औयल, बौडी सौल्ट, बाम, बौडी पैक, ऐक्सफौलिएशन क्रीम वगैरह.

इस में सब से पहले स्क्रब को पूरे शरीर पर लगा कर हलके हाथों से हलकेहलके रगड़ा जाता है और

10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है. स्क्रबिंग की मदद से बौडी की डैड स्किन निकल जाती है और साथ ही साथ टैनिंग भी रिमूव होती है. नैचुरल तरीके से बनाया गया ये स्क्रब त्वचा की रंगत को निखारने में सहायक होता है.

इस के बाद बौडी को वाश कर के उस पर स्किन ग्लो पैक लगाते हैं और सूख जाने के बाद इसे वाश कर के हटाया जाता है. इस के बाद बौडी शाइनर लगा कर त्वचा की 5 से 10 मिनट तक मसाज की जाती है. बौडी पौलिशिंग द्वारा त्वचा की मृत कोशिकाएं हटती हैं साथ ही टैनिंग भी रिमूव होती है जिस से त्वचा में कोमलता व निखार आता है. मसाज से होने वाली दुलहन स्ट्रैसफ्री फील करती है व बौडी रीलैक्स होती है.

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क्या आप की स्किन भी बहुत डल दिखती है और उस पर समय समय पर पिंपल्स या विभिन्न प्रकार की खामियां देखने को मिलती हैं. तो हो सकता है आप का शरीर आप को यह संकेत देना चाहता हो कि उसे अब केयर की आवश्यकता है.

बॉडी पॉलिशिंग में आप के पूरे शरीर पर एक क्रीम व तेल की सहायता से मालिश की जाती है और इसके साथ उसे स्क्रब व एक्सफोलिएट भी किया जाता है ताकि आप की सारी डैड स्किन निकल जाए और आप को एक क्लीयर व साफ स्किन मिले. तो आइए जानते हैं बॉडी पॉलिशिंग के क्या क्या लाभ होते हैं और बॉडी पॉलिशिंग कैसे की जाती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या है बौडी पौलिशिंग के फायदे और इसे करने का सही तरीका

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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कोविड से जुड़े गैस्ट्रोइंटेस्टिनल लक्षण जो आपको इग्नोर नहीं करने चाहिए

कोविड-19 हमारे बीच लगभग एक साल से अधिक समय से है और समय के साथ साथ इसके लक्षण और भी गंभीर होते जा रहे हैं. हालांकि आपको डरना नहीं है बल्कि आपको सावधानियां बरतनी हैं. ताकि आप स्वयं को खतरे से बचा सकें. पहले इस वायरस के केवल गला दुखना, बुखार हो जाना, खांसी होना और थकान जैसे लक्षण ही शामिल थे. परन्तु अब इसमें कुछ अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं जिनमें से गैस्ट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं मुख्य हैं. जोकि लंबे समय तक आपको तंग कर सकती है. रिपोर्ट्स के अनुसार 5 में से एक मरीज को यह लक्षण देखने को मिलते हैं जिसमें जी घबराना, उल्टियां आना व डायरिया शामिल है.

कोविड-19 के बहुत मुख्य लक्षण

जैसे जैसे यह वायरस अधिक फैला है वैसे ही लोगों में अलग अलग लक्षण भी देखने को मिले हैं. यह लक्षण सभी में अलग अलग भी थे और कुछ ऐसे लक्षण थे जो सभी में कॉमन थे. हालांकि यह लक्षण अब भी बदलते रहते हैं परंतु कुछ लक्षण ऐसे है जो एक समान ही रहेंगे. तो आइए जानते हैं उन मुख्य लक्षणों के बारे में.

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  • बुखार होना
  • सूखी खांसी होना
  • गले में दर्द होना.
  • नाक बहना.
  • छाती में दर्द होना और सांस लेने में दिक्कत महसूस होना.
  • थकान होना.

गैस्ट्रोइंटेस्टिनल लक्षण जोकि कोविड 19 से जुड़े हुए हैं

एक स्टडी के मुताबिक जो लगभग 36 बार की गई है, 18 प्रतिशत मरीजों को गैस्ट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं होती हैं. जिनमें से केवल 16 प्रतिशत लोगों को ही इसके लक्षण देखने को मिलते हैं. हालांकि यह लक्षण हर इंसान में अलग अलग होते हैं. परन्तु कुछ लक्षण सभी में समान और बहुत गम्भीर होते हैं. निम्नलिखित कुछ ऐसी पाचन समस्याएं हैं जो वायरस से संक्रमित लोगों में बहुत आम है.

भूख लगना : यदि आपको भी कोरोना वायरस हो जाता है तो यह आपकी जिंदगी पर गहरा प्रभाव डाल सकता है जिसमें आपकी खाने की आदते भी शामिल हैं. यदि आप सूंघने व टेस्ट करने की क्षमता को खो देते हैं तो भी आपको भूख बहुत कम लगेगी. चाइना में हुई एक रिसर्च के मुताबिक जो लोग वायरस से संक्रमित हैं उनमें से लगभग 80 प्रतिशत मरीजों को यह समस्या देखने को मिलती है अर्थात उन्हें भूख बिल्कुल नहीं लगती है जिनसे उनके शरीर में कमजोरी आती है और कमजोरी आने की वजह से उन्हें थकान जैसे लक्षण और अधिक समय के लिए देखने को मिलेंगे जिससे उनकी सेहत और ज्यादा प्रभावित होती है.

जी मिचलाना : वुहान में होने वाली एक स्टडी के मुताबिक लगभग 10 प्रतिशत मरीजों में डायरिया व जी मिचलाने जैसी समस्या देखने को मिली हैं. यह दोनों ही लक्षण बुखार आने के लगभग  2 दिन पहले देखने को मिल रहे हैं.

डायरिया या पेट में दर्द होना : कोरोना वायरस में हमारे पेट मे मौजूद माइक्रोब्स को प्रभावित करने की भी क्षमता है जोकि हमारी गैस्ट्रोइंटेस्टिनल सेहत को प्रभावित कर सकता है. रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग 5 में से एक मरीज को पेट दर्द की समस्या झेलनी पड़ती है चाहे उसके पीछे का कारण  डायरिया हो या एब्डॉमिनल पेन. स्टडीज के मुताबिक जिन लोगों को यह लक्षण देखने को मिलते हैं उन्हें ठीक होने में भी दूसरे मरीजों के मुकाबले अधिक समय लगता है.

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इसलिए आपको स्वयं को वायरस से बचाने के लिए हर प्रकार की सावधानी गाइडलाइन्स का पालन अवश्य करना चाहिए. इससे आप स्वयं को इतने बड़े खतरे से टाल पाएंगे. आपको बिल्कुल भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए. और यदि आपको कोई लक्षण देखने को मिलता भी है तो डर के मारे केवल घर पर ही न बैठें. तुरन्त डॉक्टर को दिखा कर उसका इलाज भी कराएं.

भारतीय युवा: क्या आज भी मां-बाप पर बोझ हैं?

इस 21वीं शताब्दी में भी 87 फीसदी से ज्यादा भारतीय युवा अपनी शादी के लिए मां-बाप पर निर्भर हैं. जबकि अमरीका में महज 23 फीसदी, ब्रिटेन में करीब 17 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 38 फीसदी और औस्ट्रेलिया में सिर्फ 27 फीसदी नौजवान ही अपनी शादी के लिए अपने मां-बाप पर निर्भर हैं. अगर हिंदुस्तान में होने वाले 10 से 12 फीसदी प्रेमविवाहों की भी बात करें तो उनमें भी कम से कम 5 फीसदी शादियों में मां-बाप का सीधे रोल है. हिंदुस्तान में इस समय छोटे बड़े कोई 55 मैरिज ब्यूरो जैसी वेबसाइटें अस्तित्व में हैं जो शादी की उम्र के लड़कों और लड़कियों को आपस में मिलाते हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि यह काम भी 60 फीसदी से ज्यादा युवा खुद अपने लिए लड़की या लड़का नहीं ढूंढ़ते बल्कि यह काम उनके मां-बाप उनके लिए करते हैं.

सवाल है क्या यह महज हमारी पारिवारिक संस्कृति की वजह से है? क्या भारतीय युवा अपने मां-बाप से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए वो चाहते हैं कि उनकी शादी का निर्णय वही लें और इस तरह उनका अपने बच्चों के साथ लगाव और बच्चों का अपने मां-बाप के साथ निर्भरता जाहिर हो? क्या हिंदुस्तानी युवा अपनी शादी का जिम्मा अपने मां-बाप पर छोड़कर उन्हें गर्व की अनुभूति कराते हैं? या फिर इस सबके पीछे भारतीय युवाओं की एक खास किस्म की बेफिक्री और निर्णय न ले पाने की खामी है? सुनने में बुरा लग सकता है, लेकिन असली बात यही है कि आज भी भारतीय युवा अपने निजी फैसलों को लंबी उम्र तक ले पाने में हिचकिचाते है या वाकई असमर्थ रहते हैं. आखिर इसकी वजह क्या है? इसकी तह में जाएं तो सबसे बड़ी वजह भारत में बच्चों की परवरिश है.

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ऐसा नहीं है कि भारतीय युवा विदेशी युवाओं के मुकाबले कम कमाते हैं या बहुत देर से कमाते हैं. सच्चाई तो यह है कि भारतीय युवा अमेरिकन युवाओं के मुकाबले करीब 3 साल पहले ही कमाने लगते हैं. ब्रितानी युवाओं के मुकाबले करीब साढ़े तीन साल पहले और पूरी दुनिया के युवाओं को देखें तो भारतीय युवा अपने पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली जैसे समकक्षों के साथ ही दुनिया के दूसरे युवाओं के मुकाबले औसतन एक से डेढ़ साल पहले ही कमाना शुरु कर देते हैं. यही नहीं भारतीय युवा कमाये हुए पैसों को जोड़ने के मामले में दुनिया में सबसे बेजोड़ हैं. मध्यवर्ग के भारतीय युवा जो व्हाइट या ब्लू कालर जौब में अपना भविष्य सुनिश्चित करते हैं, वे अपने मां-बाप के मुकाबले औसतन 11 साल पहले गाड़ी यानी कार ले लेते हैं और करीब 12 से 13 साल पहले अपना फ्लैट ले लेते हैं. ईएमआई के मामले में भी मौजूदा भारतीय नौजवान अपने मां-बापों से 15 से 17 साल आगे हैं यानी आज के नौजवान बहुत कम उम्र से ईएमआई भरना शुरु कर देते हैं.

सवाल है आखिर ये तमाम तथ्य किस बात की तरफ इशारा करते हैं? क्या वाकई भारतीय युवा विदेशी युवाओं के मुकाबले अपने मां-बाप पर ज्यादा निर्भर हैं? इस सवाल का वाकई बड़ा मिश्रित सा जवाब है. अगर व्यवहारिक रूप से देखें तो सचमुच ऐसा है. भारतीय युवा अपने मां-बाप पर कहीं ज्यादा निर्भर दिखते हैं, लेकिन इस निर्भरता के पीछे उनकी कोई कमी नहीं बल्कि खासतौर पर परवरिश का ढांचा जिम्मेदार है. भारत में आज भी परिवार व्यवस्था में जो सामाजिक दबाव हैं, उनके चलते लंबे समय तक मां-बाप बच्चों को इस तरह परवरिश देते हैं कि बहुत दिनों तक वे स्वतंत्र रूप से कुछ करने की सोच ही नहीं पाते.

भारत में करीब 93 फीसदी बच्चे 10$2 तक की पढ़ाई अपने मां-बाप के साथ रहते हुए करते हैं. इस कारण वे अपने तमाम काम खुद कर पाने की आदत से वंचित रहते हैं. भारत में आमतौर पर पढ़ाई करने के लिए घर से दूर 12वीं के बाद ही बच्चे जाते हैं. ऐसा नहीं है कि आज की तारीख में हिंदुस्तानी युवा अपने लिए जीवनसाथी चुनने की कोशिश नहीं करते. बड़े पैमाने पर युवा ऐसा करते हैं. लेकिन सामाजिक संस्कार और संस्कृति में आज भी पारिवारिक वर्चस्व इस तरह का है कि लव मैरिज भी अंततः मां-बाप की इजाजत का हिस्सा बन जाती है. भारत में अभी भी युवाओं में सेंस आॅफ इंडीविजुअल्टी का वैसा एहसास नहीं है, जैसा दुनिया के दूसरे देशों में युवाओं को होता है.

चूंकि हमारे समाज के ज्यादातर बड़े बूढ़े लोग इस बात को एक सांस्कृतिक गर्व की तरह प्रस्तुत करते हैं, इसलिए भी भारतीय युवा अपने को ज्यादा निर्भर और खुद अपने निर्णय लेने वाला नहीं दिखना चाहता. इसके तमाम फायदे भी हैं, लेकिन इसके तमाम नुकसान भी हैं. पारिवारिकता, सामाजिकता और रिश्तों का यह चक्रव्यूह जहां कई लोगों को सामाजिक सहूलियतें देता है, वहीं कई लोगों के विकास में बाधक भी बनता है. जहां तक मां-बाप पर निर्भरता का सवाल है तो इसके पीछे सामाजिक कारणों के साथ-साथ आर्थिक कारण भी हैं. भारत में आज भी बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों की तादाद है, जो अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर परवरिश तक काफी तंग हालत में करते हैं, बच्चे इस हकीकत के गवाह होते हैं. इसलिए उनमें अकेले जीवन जीने का तो हिम्मत या हौसला होता ही नहीं है, जब थोड़े बहुत वह इस लायक हो भी जाते हैं तो भी उन्हें मां-बाप को तुरत फुरत छोड़कर अलग रहना एक अपराधबोध पैदा करता है.

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इसलिए भी भारतीय युवा आज भी दूसरे देशों के युवाओं के मुकाबले अपने मां-बाप पर ज्यादा निर्भर होते हैं. यही वजह है कि आज भी उनकी शादी के निर्णय उनसे ज्यादा उनके मां-बाप ही लेते हैं. लेकिन ये परंपरा अब धीरे धीरे टूट रही है और अगर अगले 10 सालों तक भारत में लगातार आर्थिक विकास की दर 7 फीसदी या इससे ऊपर रहे तो हिंदुस्तान के सांस्कृतिक परिदृश्य में जबरदस्त बदलाव देखा जा सकता है. बड़े पैमाने पर युवा स्वतंत्र रूप से अपनी जिंदगी जीने की शुरुआत कर सकते हैं और भारतीय युवा भी विदेशी युवाओं की तरह बहुत कम उम्र में अपने तमाम निर्णय अपने तईं लेना शुरु कर सकते हैं.

बदलता नजरिया

दीपिका औफिस से लौट रही थी, तो गाड़ी की तेज गति के साथ उस के विचार भी अनियंत्रित गति से भागे जा रहे थे. आज उसे प्रमोशन लैटर मिला था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के उसे ब्रांच मैनेजर के पद के लिए चुना गया था. उसे सफलता की आशा तो थी पर पूरी भी होगी, इस बात का मन में संशय था, क्योंकि उस से भी सीनियर औफिसर इस पद के दावेदार थे. उन सब को सुपरसीड कर के इस पद को पाना उस की अपनेआप में बहुत बड़ी उपलब्धि थी. इस उपलब्धि पर औफिस में सभी लोगों ने बधाई तो दी ही थी, ट्रीट की मांग भी कर डाली थी. उस ने उसी समय अपने चपरासी को बुला कर मिठाई लाने के लिए पैसे दिए थे तथा सब का मुंह मीठा करवाया था. यह खुशखबरी वह सब से पहले जयंत को देना चाहती थी, जिस ने हर अच्छेबुरे पल में सदा उस का साथ दिया था. चाहती तो फोन के द्वारा भी उसे यह सूचना दे सकती थी पर ऐसा करने से सामने वाले की प्रतिक्रिया तो नहीं देखी जा सकती थी.

बहुत पापड़ बेले थे उस ने. घरबाहर हर संभव समझौता करने का प्रयत्न किया था. एकमात्र पुत्र की पुत्रवधू होने के कारण सासससुर को जहां उस से बहुत अरमान थे, वहीं कर्तव्यों की अनेकानेक लडि़यां भी उसे लपेटने को आतुर थीं. विवाह से पूर्व सास अमिता ने उस से पूछा था, ‘‘अगर जौब और फैमिली में तुम्हें कोई एक चुनना पड़े, तो तुम किसे महत्त्व दोगी?’’

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‘‘फैमिली को,’’ मां के सिखाए शब्द उस के मुंह से अनायास ही निकल गए थे, क्योंकि मां नहीं चाहती थीं कि उस की किसी बेवकूफी के कारण इतना अच्छा घर व वर हाथ से निकल जाए. उन्होंने उसे पहले ही नपातुला तथा सोचसमझ कर बोलने की चेतावनी दे दी थी.

उस के ममापापा को जयंत बहुत पसंद आया था. उस का स्वभाव, अच्छा ओहदा उस से भी अधिक उस का सुदर्शन व्यक्तित्व. जयंत एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोजैक्ट मैनेजर था. जबकि वह स्वयं बैंक में प्रोबेशन अधिकारी थी. वह किसी हालत में अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी, लेकिन सास तो सास, मां का भी यही कहना था कि एक लड़की के लिए उस का घरपरिवार उस की महत्त्वाकांक्षा से अधिक होना चाहिए. हम चाहे स्वयं को कितना भी आधुनिक क्यों न मानने लगें पर मानसिकता नहीं बदलने वाली. स्त्री चाहे पुरुष से अधिक ही क्यों न कमा रही हो पर उस का हाथ और सिर सदा नीचे ही रहना चाहिए. यह बात और है कि एक स्त्री अपनी इसी विशेषता और विनम्रता के बल पर एक दिन सब के दिलों पर राज करने में सक्षम हो सकती है. बस इसी मानसिकता के तहत ममा ने सोचसमझ कर उत्तर देने के लिए कहा था और उस ने वही किया भी था.

सासूमां दीपिका के उत्तर से बेहद संतुष्ट हुई थीं और उन्होंने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. विवाह के बाद धीरेधीरे उस के लिए भी अपने कैरियर से अधिक घरपरिवार महत्त्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि उस का मानना था कि अगर घर में सुखशांति रहे तो औफिस में भी ज्यादा मनोयोग से काम किया जा सकता है. उस की ससुराल में संयुक्त परिवार और अच्छा व बड़ा 4 बैडरूम का घर था. उस के विवाह के 2 महीने बाद ही ससुरजी रिटायर हो गए थे और ननद विभा का विवाह हो गया था. पर उसी शहर में रहने के कारण उस का आनाजाना लगा रहता था. विवाह के बाद सारी जिम्मेदारी सासूमां ने उसे सौंप दी थीं. इस बात से जहां उसे खुशी का अनुभव होता था, वहीं कभीकभी कोफ्त भी होने लगती थी, क्योंकि सुबह से ले कर देर रात तक वह किचन में ही लगी रह जाती थी. कहने को तो खाना बनाने के लिए नौकरानी थी, पर उसे सुपरवाइज तथा गाइड करना, सब के मनमुताबिक नाश्ताखाना बनवा कर सर्व करना उस का ही काम था. सुबहसुबह सब को बैडटी तथा रात में गरमगरम दूध देना तो उसे ही करना पड़ता था, वह भी सब के समय के अनुसार. विवाह से पूर्व जिस लड़की ने कभी एक गिलास पानी भी खुद ले कर न पिया हो, सिर्फ पढ़ना ही जिस का मकसद रहा हो, दोहरी जिम्मेदारी निभाना तथा साथ में सब को खुश रखना किसी चुनौती से कम नहीं था. पर जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है.

दीपिका जब गर्भवती हुई तो घर भर में खुशियों के फूल खिल गए थे. सासूमां ने उस की कुछ जिम्मेदारियां शेयर कर ली थीं. डिनर अब वे अपनी देखरेख में बनवाने लगी थीं. उस दिन रविवार था. शाम की चाय सब एकसाथ बैठे पी रहे थे कि अचानक ससुरजी आलोकनाथ ने चाय का कप टेबल पर रख दिया तथा बेचैनी की शिकायत की. जब तक कोई कुछ समझ पाता वे अचेत हो गए. जयंत ने आननफानन गाड़ी निकाली और उन्हें अस्पताल ले गए. पर वे बचे नहीं. सासूमां अचानक हुई इस दुर्घटना को सह नहीं पाईं. बारबार अचेत होने लगीं, तो डाक्टर ने उन्हें नींद का इंजैक्शन दे कर सुला दिया. उस के बाद विधिविधान से सारे काम हुए पर सासूमां सामने रहते हुए भी नहीं थीं. आखिर 34 वर्षों का साथ भुलाना आसान नहीं होता. फिर वे सब से कटीकटी रहने लगीं और घर में सब कुछ बिखराबिखरा सा लगने लगा. ऐसे में दीपिका कभीकभी यह सोचती कि वह नौकरी छोड़ दे. लेकिन थोड़ी देर में उसे लगता कि ऐसी कठिनाइयां तो हर किसी की जिंदगी में आती हैं तो क्या हर कोई पलायन कर जाता है? नहीं, वह नौकरी नहीं छोड़ेगी.

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फिर वक्त गुजरता गया और दीपिका को बेटी हुई. उस का नाम कविता रखा गया. दीपिका ने 6 महीने का ब्रेक लिया. फिर औफिस जाना शुरू किया तो कविता के लिए नौकरानी की व्यवस्था कर दी. उस पर भी सासूमां के ताने कि जरा भी आराम नहीं करने देती. हर समय चिल्लपों. क्या जिंदगी है, अपने बच्चे भी पाले और अब बच्चों के बच्चे भी पालो. दीपिका यह सब सुनती पर यह सोच कर मन को शांत करने का प्रयत्न करती कि वे अभी भी अपने दुख से उबर नहीं पाई हैं. पर फिर भी मन अशांत रहने लगा था. औफिस पहुंचने में जरा भी देरी होने पर सहकर्मी ताने कसते कि ये औरतें काम करने के लिए नहीं मस्ती करने के लिए आती हैं. धीरेधीरे समय गुजरता गया और कविता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. सासूमां ने भी स्वयं को संभाल लिया. कविता के स्कूल से आने पर जहां वे कविता का खयाल रखती थीं, वहीं उस के साथ बाहर भी आनेजाने लगी थीं.

घर का वातावरण सामान्य होने और कविता के बड़ा और समझदार होने पर जयंत को उस की कंपनी के लिए एक और बच्चे की चाहत हुई. चाहत तो उसे भी थी पर फिर वही परेशानी और अस्तव्यस्त जिंदगी, यह सोच कर वह इतना बड़ा निर्णय लेने में झिझक रही थी. फिर सोचा कि अगर प्लानिंग करनी है तो अभी ही क्यों नहीं? जैसेजैसे समय गुजरता जाएगा कठिनाइयां और बढ़ती जाएंगी. उस की कोख में फिर हलचल हुई तो नवागंतुक के आने की सूचना मात्र से सासूमां चहक उठीं, लेकिन कहा, ‘‘दीपिका इस बार लड़का ही होना चाहिए, बस इतना ध्यान रखना.’’

मांजी यह मेरे बस में नहीं है, यह कहना चाह कर भी नहीं कह पाई थी दीपिका. पर इतना अवश्य मन में आया था कि हम चाहे कितना भी क्यों न पढ़लिख जाएं, आधुनिक होने का दम भर लें पर लड़कालड़की में अभी भी भेद कायम है. संयोग से इस बार उसे बेटा ही हुआ, लेकिन पहले की तरह इस बार भी अड़चनें बहुत आईं. पर अपने लक्ष्य से वह नहीं भटकी. क्योंकि उस ने मन ही मन यह फैसला किया था कि अपने कार्य और कर्तव्य का निर्वहन वह पूरी ईमानदारी से करेगी. दूसरा क्या कहता है इस पर ध्यान नहीं देगी. शायद उस की एकाग्रता और सफलता का यही मूलमंत्र था.  चौराहे पर लालबत्ती के साथ ही उस के विचारों पर भी ब्रेक लग गया. यहां से घर तक का सिर्फ 10 मिनट का रास्ता था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के ब्रांच मैनेजर बनना उस के कैरियर का अहम मोड़ था. वह इस खुशी को सब के साथ शेयर करना चाहती थी, चाहे प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी क्यों न सुनना पड़े.

दीपिका के घर के अंदर प्रवेश करते ही जयंत ने कहा, ‘‘दीपिका तुम आ गईं…कल मुझे कंपनी के काम से मुंबई जाना है. सुबह 6 बजे की फ्लाइट है. प्लीज, मेरा सूटकेस पैक कर देना… और हां कल मां को डा. पीयूष को शाम 6 बजे दिखाना है. तुम ले जाना… और प्लीज, मुझे डिस्टर्ब मत करना. कल के लिए मुझे प्रैजेंटेशन तैयार करना है.’’ जयंत का तो यह रोज का काम था… औफिस तो औफिस, वे घर में भी हमेशा ऐसे ही व्यस्त रहा करते हैं. कभी प्रैजेंटेशन, कभी कौन्फ्रैंसिंग तो कभी टूअर. और कुछ नहीं तो उन का फोन से ही पीछा नहीं छूटता. सीईओ जो हैं कंपनी के. आज वह अपने लिए उन से समय का एक टुकड़ा चाह रही थी पर वह भी नहीं मिला.

‘‘दीपिका आ गई हो तो जरा मेरे लिए अदरक वाली चाय बना देना. सिर में बहुत दर्द हो रहा है,’’ सासूमां की आवाज आई. दीपिका सासूमां को चाय दे कर लौट ही रही थी कि पल्लव ने कहा, ‘‘ममा, आज मेरे मित्र रवीश का बर्थडे है. वह होटल ग्रांड में ट्रीट दे रहा है, देर हो जाए तो चिंता मत कीजिएगा.’’ उस का लैटर पर्स में ही पड़ा रह गया. सब को व्यस्त देख कर तथा सासूमां की पिछली बातों को याद कर मन का उत्साह ठंडा पड़ गया था. अब अपनी सफलता का लैटर किसी को भी दिखाने का उस का मन नहीं हो रहा था. उस की सारी खुशियों पर मानों किसी ने ठंडा पानी डाल दिया था. बुझे मन से उस ने किचन की ओर कदम बढ़ाया. आखिर डिनर की तैयारी के साथ जयंत का सूटकेस भी तो उसे लगाना था.

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‘‘ममा, पापड़ रोस्ट करने जा रही हूं, आप लेंगी?’’ कविता ने दीपिका से पूछा. लेकिन दीपिका के कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने पर कविता ने उसे झकझोरते हुए फिर अपना प्रश्न दोहराया. फिर भी जवाब में सूनी आंखों से उसे अपनी ओर देखता पा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है ममा, क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘ठीक है. तुम अपने लिए पापड़ रोस्ट कर लो, मेरा खाने का मन नहीं है.’’

‘‘ममा, कुछ बात तो है वरना रोस्टेड पापड़ के लिए आप कभी मना नहीं करती हो.’’

‘‘कोई बात नहीं है.’’

‘‘कुछ तो है जो आप मुझे भी नहीं बताना चाहतीं. आफ्टर औल वी आर फ्रैंड… आप ही तो कहती हो.’’ कविता के इतने आग्रह पर आखिर दीपिका से रहा नहीं गया. उस ने प्रमोशन लैटर की बात उसे बता दी.

‘‘वाऊ ममा, कौंग्रैचुलेशन. यू आर ग्रेट. वी औल आर प्राउड औफ यू. मैं अभी डैड को बता कर आती हूं.’’ ‘‘उन्हें डिस्टर्ब मत करना बेटा. जरूरी काम कर रहे हैं, कल उन्हें मुंबई जाना है.’’

‘‘पल्लव…’’

‘‘वह अपने मित्र की बर्थडे पार्टी में गया है.’’

‘‘तब ठीक है, दादी को बता कर आती हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, उन के सिर में दर्द हो रहा है. उन्हें चाय और दवा दे कर आई हूं. वे आराम कर रही होंगी.’’ ‘‘ठीक है, डिनर के समय यह खुशखबरी सब के साथ शेयर करूंगी. मैं अभी आई.’’

जब तक दीपिका कुछ कहती तब तक वह जा चुकी थी. डिनर की सब्जियां बना कर रख दीं तथा जयंत का सूटकेस लगाने चली गई. लगभग 1 घंटे बाद लौट कर डिनर के लिए डाइनिंग टेबल अरेंज करने जा रही थी कि कविता को एक बड़ा सा पैकेट हाथ में ले कर अंदर प्रवेश करते हुए देखा.

‘‘यह क्या है बेटा?’’

‘‘एक सरप्राइज.’’

‘‘कैसा सरप्राइज?’’

‘‘वेट ममा, वेट.’’

‘‘ममा, दीदी ने मुझे फोन कर के जल्दी घर आने के लिए कहा था पर कारण नहीं बताया. क्या बात है ममा, सब ठीक है?’’ थोड़ी ही देर बाद पल्लव ने अंदर आते हुए कहा. उस के चेहरे पर चिंता की झलक थी. ‘‘ममा, आप अंदर जाइए. जब मैं बुलाऊं तब आइएगा,’’ उस के हाथ से डिनर प्लेट लेते हुए कविता ने कहा, ‘‘ममा प्लीज, बस थोड़ी देर,’’ दीपिका को आश्चर्य में पड़ा देख कविता ने कहा. वह अंदर चली गई. थोड़ी देर बाद कविता ने सब को बुलाया.

‘‘केक, किस का जन्मदिन है आज?’’ डाइनिंग टेबल पर केक रखा देख कर सासूमां ने प्रश्न दागा. जयंत और पल्लव भी कविता की ओर आश्चर्य से देख रहे थे. ‘‘वेट… वेट… वेट… ममा, प्लीज आप इधर आइए,’’ कहते हुए कविता दीपिका का हाथ पकड़ कर उसे डाइनिंग टेबल के पास ले गई तथा हाथ में चाकू पकड़ाते हुए कहा, ‘‘ममा, केक काटिए.’’

कविता की बात सुन कर सासूमां, जयंत और पल्लव कविता को आश्चर्य से देखने लगे. ‘‘आज मेरी ममा का जन्मदिन है. आई मीन मेरी ममा के कैरियर का नया जन्मदिन,’’ उस ने सब के आश्चर्य को देखते हुए कहा.

‘‘कैरियर का नया जन्मदिन… क्या कह रही हो दीदी?’’  आश्चर्य से पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, मैं ठीक कह रही हूं. आज मेरी ममा का प्रमोशन हुआ है. वे ब्रांच मैनेजर बन गई हैं. ममा प्लीज, इस खुशी के अवसर पर केक काट कर हम सब का मुंह मीठा करवाइए,’’ कविता ने दीपिका से आग्रह करते हुए कहा.

‘‘कौंग्रैचुलेशन ममा… वी औल आर प्राउड औफ यू…’’ पल्लव ने उस के गले लग कर बधाई देते हुए कहा.

‘‘तुम ने बताया नहीं कि तुम्हारा प्रमोशन हो गया है,’’ जयंत बोले.

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‘‘तुम बिजी थे.’’

‘‘बधाई… कब जौइन करना है?’’

‘‘कल ही अलीगंज ब्रांच में.’’

‘‘बधाई बहू… बड़ा पद, बड़ी जिम्मेदारी. पर औफिस में ही इतना मत उलझ जाना कि घर अस्तव्यस्त हो जाए. घर में तू बहू के रूप में भी सफल हो कर दिखाना.’’ ‘‘मांजी, आप निश्चिंत रहें. मैं औफिस में ही ब्रांच मैनेजर हूं, घर में तो आप की बहू ही हूं,’’ दीपिका ने उन के कदमों में झुकते हुए कहा. ‘‘वह तो मैं ने ऐसे ही कह दिया था दीपिका. सच तो यह है कि तू ने घर की सारी जिम्मेदारियों के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाई हैं. मुझे तुझ पर गर्व है. और मेरी जितनी सेवा तू ने की है, उतनी तो मेरी बेटी भी नहीं कर पाती.’’ ‘‘ऐसा मत कहिए मांजी, आप मां हैं मेरी. अगर आप पगपग पर मेरे साथ खड़ी न होतीं, तो शायद न मैं सफलता प्राप्त कर पाती और न ही अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही ढंग से कर पाती.’’

‘‘ममा, केक,’’ कविता ने कहा.

‘हां बेटा.’’ मांजी और जयंत की आंखों में स्वयं के लिए सम्मान देख कर दीपिका के मन में जमी बर्फ पिघलने लगी थी. हर उत्तरदायित्व को निभाते जाना ही एक बार फिर उस के जीवन का लक्ष्य बन गया था.

रुबीना दिलाइक से भी ज्यादा खूबसूरत हैं उनकी बहन, हर लड़की के लिए परफेक्ट हैं उनके ये लुक्स

कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो बिग बौस 14 में इन दिनों फैमिली वीक चल रहा है, जिसमें शो के कंटेस्टेंटेंस की फैमिली या दोस्त एंट्री करते हुए नजर आएंगे. इसी बीच शो में की दमदार और पौपुलर कंटेस्टेंट रुबीना दिलाइक की बहन ज्योतिका दिलाइक की भी एंट्री हुई, जिसके बाद वह काफी सुर्खियों में हैं. दरअसल, ज्योतिका शो से बाहर रुबीना के सपोर्ट में अक्सर खड़ी रहती हैं, जिसके कारण वह फैंस के बीच छाई रहती हैं. वहीं खूबसूरती की बात करें तो ज्योतिका अपनी बड़ी बहन रुबीना को टक्कर देती हैं. इसीलिए आज हम आपको ज्योतिका के कुछ लुक्स की फोटोज दिखाएंगे.

1. फंक्शन में रहती हैं खास

ज्योतिका सिंपल रहना पसंद करती हैं. इसीलिए वह वेडिंग फंक्शन में सिंपल लुक में नजर आती है. ना ज्यादा मेकअप ना कोई ज्यादा स्टाइलिश कपड़े. वह सिंपल सूट में भी बेहद खूबसूरत लगती हैं.

 

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2. सिंपल सूट पहनना पसंद करती हैं ज्योतिका

 

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ज्योतिका के डेली लुक की बात करें तो वह सिंपल सूट और प्लाजो पहनना पसंद करती हैं. लेकिन उसमें भी वह बेहद खूबसूरत लगती हैं. उनका लुक बहन रुबीना को टक्कर देता नजर आता है.

3. अनारकली सूट में लगती हैं खास

 

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अगर सूट में वैरायटी की बात की जाए तो ज्योतिका अनारकली सूट में भी बेहद खूबसूरत लगती हैं. चैक पैटर्न वाले सिंपल अनारकली सूट में उनका लुक बेहद स्टाइलिश लगता है.

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4. वैस्टर्न लुक भी होता है खास

 

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सूट के अलावा ज्योतिका वेस्टर्न लुक भी ट्राय करना पसंद करती हैं. इसीलिए वह रेड कलर की सिंपल ड्रैस के साथ खुद को स्टाइलिश दिखाती हुई भी नजर आती हैं.

5. वेडिंग सीजन में कुछ यूं होता है लुक

 

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वेडिंग सीजन की बात करें तो ज्योतिका लहंगा पहनना पसंद करती हैं, जिसमें भी उनका लुक बेहद खास होता है.

मौसमें गुल भी: ऐसा क्या हुआ कि खालिद की बांहों में लिपटी गई गजल

‘‘खालिद साहब, एक गलती तो मैं ने आप से शादी कर के की ही है, लेकिन अब आप के साथ जीवनभर सिसकसिसक कर दूसरी गलती नहीं करूंगी. बस, आप मुझे तलाक दे दें,’’ गजल बोलती रही और खालिद सुनता रहा.

थोड़ी देर बाद खालिद ने संजीदगी से समझाते हुए कहा, ‘‘गजल, तुम ठीक कह रही हो, तुम ने मुझ से शादी कर के बहुत बड़ी गलती की है. तुम्हें पहले ही सोचना चाहिए था कि मैं किसी भी तरह तुम्हारे काबिल न था. लेकिन अब जब एक गलती हो चुकी है तो तलाक ले कर दूसरी गलती मत करो. जानती हो, एक तलाकशुदा औरत की समाज में क्या हैसियत होती है?’’ खालिद ने चुभते हुए शब्दों में कहा, ‘‘गजल, उस औरत की हैसियत नाली में गिरी उस चवन्नी जैसी होती है, जो चमकतीदमकती अपनी कीमत तो रखती है, मगर उस में ‘पाकीजगी’ का वजूद नहीं होता.’’

‘‘बस या कुछ और?’’ गजल ने यों कहा जैसे खालिद ने उस के लिए नहीं किसी और के लिए यह सब कहा हो.

‘‘गजल,’’ खालिद ने हैरत और बेबसी से उस की तरफ देखा. गजल उस की तरफ अनजान नजरों से देख रही थी. जिन आंखों में कभी प्यार के दीप जलते थे, आज वे किसी गैर की लग रही थीं.

‘‘गजल, तुम्हें कुछ एहसास है कि तुम क्या चाहती हो? तुम जो कदम बिना सोचेसमझे उठाने जा रही हो उस से तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

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‘‘मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मैं कौन सा कदम उठाने जा रही हूं और मेरे लिए क्या सही और क्या गलत है. मैं अब इस घुटन भरे माहौल में एक पल भी नहीं रह सकती. रोटी, कपड़ा और एक छत के सिवा तुम ने मुझे दिया ही क्या है? जब से हमारी शादी हुई है, कभी एक प्यार भरा शब्द भी तुम्हारे लबों से नहीं फूटा. शादी से पहले अगर मुझे मालूम होता कि तुम इस तरह बदल जाओगे तो हरगिज ऐसी भूल न करती.’’

‘‘क्या?’’ हैरत से खालिद का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘तुम्हारे खयाल में यह मेहनत, दिनरात की माथापच्ची मैं किसी और के लिए करता हूं? यकीन मानो, यह सब मैं तुम्हारी खुशी की खातिर ही करता हूं, वरना दालरोटी तो पहले भी आराम से चलती थी. रही बात शादी से पहले की, तो शादी से पहले तुम मेरी महबूबा थीं, पर अब तुम मेरी जिंदगी का एक हिस्सा हो, मेरी बीवी हो. मेरे ऊपर तुम्हारा अधिकार है, मेरा सबकुछ तुम्हारा है और तुम पर मेरा पूरा अधिकार है.’’

‘‘लेकिन औरत सिर्फ एक मशीन से मुहब्बत नहीं कर सकती, उसे जज्बात से भरपूर जिंदगी की जरूरत होती है,’’ गजल ने गुस्से से कहा.

‘‘तो यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ खालिद ने दुख भरे लहजे में कहा.

‘‘हां.’’

‘‘ठीक है, फैसले का हक तुम्हें जरूर हासिल है, लेकिन मेरी एक बात मानना चाहो तो मान लो वरना तुम्हारी मरजी. शायद अभी भी तुम पर मेरा इतना हक तो बाकी होगा ही कि मैं तुम से कुछ गुजारिश कर सकूं.

‘‘तुम्हें तलाक चाहिए, इसलिए कि मैं तुम्हें जिंदगी से भरपूर व्यक्ति नजर नहीं आता. तुम्हारी हर शाम क्लबों और होटलों के बजाय घर की चारदीवारी में गुजरती है. तुम्हारी नजर में घर में रहने वाली हर औरत बांदी होती है, जबकि ऐसा हरगिज नहीं है. वैसे अगर तुम्हारा यही खयाल है तो फिर मैं कर ही क्या सकता हूं. मगर मेरी तुम से हाथ जोड़ कर विनती है कि तुम तलाक लेने से पहले कुछ दिन के लिए मुझ से अलग हो जाओ और यह महसूस करो कि तुम मुझ से तलाक ले चुकी हो, भले ही दुनिया वालों पर भी यह जाहिर कर दो.’’

कुछ क्षण रुक कर खालिद ने आगे कहा, ‘‘सिर्फ चंद माह मुझ से अलग रह कर जहां दिल चाहे रहो. जहां दिल चाहे आओजाओ. जिस से तुम्हारा मन करे मिलोजुलो और फिर लोगों का रवैया देखो. उन की निगाहों की पाकीजगी को परखो. अगर तुम्हें कहीं मनचाही पनाहगाह मिल जाए, एतबार की छांव और जिंदगी की सचाइयां मिल जाएं तो मैं अपनी हार मान कर तुम्हें आजाद कर दूंगा.

‘‘वैसे आजाद तो तुम अभी भी हो. मगर गजल, मैं तुम्हें भटकने के लिए दुनिया की भीड़ में अकेला कैसे छोड़ दूं. तलाक मांग लेना बहुत आसान है, मगर सिर्फ मुंह से तीन शब्द कह देना ही तलाक नहीं है. तलाक के भी अपने नियम, कानून होते हैं और इस तरह छोटीछोटी बातों पर न तो तलाक मांगे जाते हैं और न ही दिए जाते हैं.’’

गजल खालिद द्वारा कही बातों पर गहराई से मनन करती रही. उसे लगा कि खालिद का विचार ऐसा बुरा भी नहीं है. वह आजादी से तजरबे करेगी. वह खालिद की ओर देखते हुए बोली, ‘‘ठीक है खालिद, मैं जानती हूं कि हमें हर हाल में अलग होना है. मगर मैं जातेजाते तुम्हारा दिल तोड़ना नहीं चाहती, लेकिन मेरा तलाक वाला फैसला आज भी अटल है और कल भी रहेगा. फिलहाल, मैं तुम से बिना तलाक लिए अलग हो रही हूं.’’

‘‘ठीक है,’’ खालिद ने डूबते मन से कहा, ‘‘तुम जाना चाहती हो तो जाओ. अपना सामान भी लेती जाओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं है. जितना रुपयापैसा भी चाहिए, ले जाओ.’’

‘‘शुक्रिया, मेरे वालिद मेरा खर्च उठा सकते हैं,’’ गजल ने अकड़ कर कहा और खालिद के पास से उठ गई.

खालिद खामोशी से गजल को सामान समेटते हुए देखता रहा.

शीघ्र ही गजल ने सूटकेस उठाते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं चलती हूं.’’

‘‘गजल, तुम सचमुच जा रही हो?’’ खालिद ने दर्द भरे स्वर में पूछा.

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‘‘हां…’’ गजल ने सपाट लहजे में कहा और बाहर निकल गई.

उस के जाते ही खालिद के दिलोदिमाग में हलचल सी मच गई. उस का दिल चाहा कि दौड़ कर गजल का रास्ता रोक ले, उसे अपने प्यार का वास्ता दे कर घर में रहने के लिए विवश कर दे. उस ने गेट के बाहर झांका, लेकिन गजल उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी. उसे घर काटने को दौड़ने लगा. वहां की प्रत्येक चीज से दहशत सी होने लगी. वह आराम से कुरसी पर अधलेटा सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहा.

उधर जैसे ही गजल मायके पहुंची, उस के वालिद ने चौंक कर कहा, ‘‘अरे बेटी तुम…क्या इस बार तीनचार दिन तक रहोगी?’’ उन की नजर सूटकेस की तरफ गई.

‘‘जी हां, मेरा अब हमेशा के लिए यहां रहने का इरादा है,’’ उस ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

‘‘मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘ओह, आप तो बस पीछे ही पड़ जाते हैं. दरअसल, मैं ने आप की बात न मान कर अपनी मरजी से खालिद से शादी की थी, लेकिन यह मेरी बहुत बड़ी भूल थी, अब मैं ने खालिद से अलग होने का फैसला कर लिया है. बहुत जल्दी तलाक भी हो जाएगा.’’

‘‘क्या तुम तलाक लोगी?’’

‘‘जी हां, अब मैं घुटघुट कर नहीं जी सकती. काश, मैं ने पहले ही आप की बात मान ली होती. खैर, तब न सही अब सही.’’

‘‘देखो गजल, जिंदगी के कुछ फैसले जल्दबाजी में नहीं किए जाते. एक भूल तुम ने पहले की थी और अब जिंदगी का इतना बड़ा फैसला भी जल्दबाजी में करने जा रही हो. ऐसा न हो कि तुम्हें सारी जिंदगी रोना पड़े और तुम्हारे आंसू पोंछने वाला भी कोई न हो.

‘‘देखो बेटी, मैं ने खालिद से शादी के लिए तुम्हें क्यों मना किया था, शायद तुम उस हद तक कभी सोच नहीं सकती. दरअसल, हर मांबाप अपने बच्चे की आदत से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं. वे बखूबी जानते हैं कि उन का बच्चा किस माहौल में, किस तरह और कब तक सामंजस्य बैठा सकता है.

‘‘मैं जानता था कि तुम एक आजाद परिंदे की मानिंद हो, तुम्हारे और खालिद के खयालात में जमीनआसमान का फर्क है. तुम्हारा नजरिया ‘दुनिया मेरी मुट्ठी में’ जैसा है, जबकि खालिद समाज के साथ उस की ऊंचनीच देख कर फूंकफूंक कर कदम रखने वाला है. मैं जानता था कि जब जज्बात का नशा उतर जाएगा, तब तुम पछताओगी. वैसे खालिद में कोई कमी नहीं थी. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें शादी के बाद पछताना पड़े.’’

‘‘ओह, आप बिना वजह मुझे परेशान कर रहे हैं. मैं ने अपना फैसला आप को सुना दिया है और यही मेरे हक में सही है. पर अभी मैं रिहर्सल पर हूं, मैं अभी कुछ माह तक तलाक नहीं लूंगी. बस, उस से अलग रह कर खुशी के लिए तजरबे करूंगी.’’

‘‘तो गोया तुम्हारे दिल में उस की चाहत है, पर तुम अपने वालिद की दौलत के नशे में चूर हो.’’

‘‘अब्बाजान, आप भी कैसी दकियानूसी बातें करने लगे हैं. मुझे बोर मत कीजिए. अब मैं आजादी से चैन की सांस लूंगी.’’

दिन गुजरने लगे. घर में रोज गजल के दोस्तों की महफिलें जमतीं, उस ने भी क्लब जाना शुरू कर दिया था. भैया और भाभी अब उस से खिंचेखिंचे से रहने लगे थे. उन के प्यार में अब पहले जैसी गर्मजोशी नहीं थी, लेकिन गजल ने इन बातों पर खास ध्यान नहीं दिया. वह दोनों हाथों से दौलत लुटा रही थी. अपने पुरुष मित्रों को अपने आसपास देख कर वह खुशी से फूली न समाती.

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रात देर गए जब गजल घर लौटती तो कभीकभी जेहन के दरीचों में खालिद का वजूद अठखेलियां करने लगता. वह अकसर बगैर तकिए के सो जाती. सुबह उसे ध्यान आता कि खालिद हर रोज उस के सिर के नीचे तकिया रख देते थे.

एक दिन गजल अपनी जिगरी दोस्त निशा के घर गई. थोड़ी देर बाद एकांत में वह उस से बोली, ‘‘यह क्या, हमेशा बांदियों की तरह अपने पति के इर्दगिर्द मंडराती रहती हो?’’

‘‘यही तो जिंदगी की असली खुशी है, गजल,’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ऊंह, यह असली खुशी तुम्हीं को मुबारक हो.’’

जब वह लौटने लगी तो निशा ने कहा, ‘‘हम चारपांच सहेलियां अपनेअपने परिवार के साथ पिकनिक पर जा रही हैं… जूही, शैल, कल्पना, गजला आदि चल रही हैं. तुम भी चलो न…कल सुबह चलेंगे.’’

‘‘हांहां, जरूर जाऊंगी,’’ गजल ने मुसकराते हुए कहा.

पिकनिक पर गजल अपनेआप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी. उस की सहेलियां अपने पति और बच्चों के साथ हंसखेल रही थीं. उसे पहली बार खालिद की कमी का एहसास हुआ. उस की सहेलियों के शौहर उसे अजीब नजरों से देख रहे थे, जैसे वह कोई अजूबा हो.

वापसी पर गजल बहुत खामोश थी. घर आ कर भी वह बुझे मन से अपने कमरे में पड़ी रही. वह एकटक छत को घूरते कुछ सोचती रही. अब भैयाभाभी का सर्द रवैया भी उसे अखरने लगा था. वालिद भी उस से बहुत कम बातें करते थे. एक दिन अचानक गम का पहाड़ गजल पर टूट पड़ा. उस के पिता को दिल का दौरा पड़ा और वे हमेशाहमेशा के लिए उसे अकेला छोड़ कर चले गए.

कुछ दिन इसी तरह बीत गए. अब जब वह भैया से पैसों की मांग करती तो वे चीख उठते, ‘‘यह कोई धर्मशाला या होटल नहीं है. एक तो तुम अपना घरबार और इतना अच्छा पति छोड़ कर चली आई, दूसरे, हमें भी तबाह करने पर तुली हो.

‘‘कान खोल कर सुन लो, अब तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी,’’ तभी भाभी की कड़क आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘और तुम्हारे लफंगे दोस्त भी इस घर में कदम नहीं रखेंगे. यह हमारा घर है, कोई तफरीहगाह नहीं.’’

‘‘भाभी…’’ वह चीख पड़ी, ‘‘अगर यह आप का घर है तो मेरा भी इस में आधा हिस्सा है.’’

‘‘इस भ्रम में मत रहना गजल बीबी, तुम्हारा इस घर में अब कोई हक नहीं. यह घर मेरा है, तुम तो अपना घर छोड़ आई हो. औरत का असली घर उस के पति का घर होता है और फिर जायदाद का तुम्हारे पिता बंटवारा नहीं कर गए हैं. जाओ, मुकदमा लड़ कर जायदाद ले लो.’’

गजल हैरत से भैयाभाभी को देखती रही. फिर शिथिल कदमों से अपने कमरे तक आई और बिस्तर पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. आज उसे एहसास हुआ कि यह घर उस का अपना नहीं है. इस घर में वह पराई है. यह तो भाभी का घर है. वह देर तक आंसू बहाती रही. रोतेरोते उस की आंख लग गई. तभी टैलीफोन की घंटी से वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. न जाने क्यों, उस के जेहन में यह खयाल बारबार आ रहा था कि हो न हो, खालिद का फोन ही होगा. उस ने कांपते हाथों से रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो, मैं गजल…’’

‘‘गजल, मैं निशान बोल रहा हूं. तुम जल्दी से तैयार हो कर होटल ‘बसेरा’ में आ जाओ. हम आज बहुत शानदार पार्टी दे रहे हैं. तुम मुख्य मेहमान हो, आ रही हो न?’’

‘‘हां, निशान, मैं तैयार हो कर फौरन पहुंच रही हूं,’’ गजल ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बज रहे थे, वह स्नानघर में घुस गई.

होटल के गेट पर ही उसे निशान, नदीम, अभय और संदीप खड़े मिल गए. चारों दोस्तों ने उस का गर्मजोशी से स्वागत किया, गजल ने चारों तरफ नजर दौड़ाई, ‘‘अरे, और सब कहां हैं? शैला, जूही, निशा, कल्पना, गजला वगैरह कहां हैं?’’

‘‘गजल, किन लोगों का नाम गिनवा रही हो. क्योें उन दकियानूसी औरतों की बात कर रही हो. अरे, वे सब तुम्हारी तरह स्मार्ट और निडर नहीं हैं. वे तो इस समय अपनेअपने पतियों की मालिश कर रही होंगी या फिर बच्चों की नाक साफ कर रही होंगी. वे सब बुजदिल हैं, उन में जमाने से टकराने का साहस नहीं है.’’

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गजल दिल ही दिल में अपनी तारीफ सुन कर बहुत खुश हो रही थी.

‘‘संदीप हाल में बैठोगे या फिर यहीं लौन में,’’ गजल ने चलतेचलते पूछा.

‘‘ओह गजल, यहां बैठ कर हम बोर नहीं होना चाहते. हम ने एक कमरा बुक करवाया है, वहीं चल कर पार्टी का आनंद लेते हैं.’’

‘‘पर तुम लोगों ने किस खुशी में पार्टी दी है?’’

‘‘तुम्हें आश्चर्यचकित करने के लिए क्योंकि आज तुम्हारी शादी की वर्षगांठ है.’’

चलतेचलते गजल के कदम रुक गए, उस के अंदर कहीं कुछ टूट कर बिखर गया.

कमरे में पहुंचते ही खानेपीने का कार्यक्रम शुरू हो गया

‘‘गजल, एक पैग तुम भी लो न,’’ निशान ने गिलास उस की ओर बढ़ाया.

‘‘नहीं, धन्यवाद. मैं पीती नहीं.’’

‘‘ओह गजल, तुम तो आजाद पंछी हो, कोई दकियानूसी घरेलू औरत नहीं…लो न.’’

‘‘नहीं निशान, मुझे यह सब पसंद नहीं.’’

‘‘घबराओ मत बेबी, सब चलता है, आज के दिन तो तुम्हें एक पैग लेना ही चाहिए वरना पार्टी का रंग कैसे आएगा?’’ संदीप ने बहकते हुए कहा. तभी अभय ने बढ़ कर गजल को अपनी बांहों में जकड़ लिया. नदीम ने भरा गिलास उस के मुंह से लगाना चाहा तो वह तड़प कर एक ओर हट गई, ‘‘मुझे यह सब पसंद नहीं, तुम लोगों ने मुझे समझ क्या रखा है…’’

‘‘बेबी, तुम क्या हो, यह हम अच्छी तरह जानते हैं. ज्यादा नखरे मत करो, इस मुबारक दिन को मुहब्बत के रंगों से भर दो. तुम भी खुश और हम भी खुश,’’ अभय ने उस की ओर बढ़ते हुए कहा,

‘‘1 साल से तुम अपने पति से दूर हो, हम तुम्हारी रातें रंगीन कर देंगे.’’

गजल थरथर कांप रही थी. वह दौड़ती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी, पर उसे निशान ने बीच में ही रोक लिया. वह चीखने लगी, ‘‘छोड़ दो मुझे, मैं कहती हूं छोड़ दो मुझे.’’ तभी दरवाजे का हैंडल घूमा. सामने खालिद को देख कर सब को सांप सूंघ गया. गजल दौड़ कर उस से लिपट गई, ‘‘खालिद, मुझे इन दरिंदों से बचाओ…ये मेरी इज्जत…’’ आगे उस की आवाज गले में अटक गई.

वे चारों मौका देख कर खिसक गए थे.  ‘‘घबराओ नहीं गजल, मैं आ गया हूं. शायद अब तुम्हारा तजरबा भी पूरा हो गया होगा? 1 साल का समय बहुत होता है. वैसे अगर अभी भी तुम और…?’’

गजल ने खालिद के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. वह किसी बेल की भांति खालिद से लिपटी हुई थी. खालिद धीरे से बोला, ‘‘वह तो अच्छा हुआ कि मैं ने तुम्हें कमरे में दाखिल होते हुए देख लिया था वरना आज न जाने तुम पर क्या बीतती? मैं एक मीटिंग के सिलसिले में यहां आया था. तभी इन चारों के साथ तुम पर नजर पड़ गई.’’

‘‘मुझे माफ नहीं करोगे, खालिद?’’ गजल ने नजरें झुकाए हुए कहा, ‘‘मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं ने तुम्हें जानने की कोशिश नहीं की. झूठी आन, बान और शान में मैं कहीं खो गई थी. तुम ने सही कहा था, बगैर शौहर के एक औरत की समाज में क्या इज्जत होती है, यह मैं ने आज ही जाना है.’’

‘‘सुबह का भूला  शाम को घर लौट आए तो हर हालत में उस का स्वागत करना चाहिए.’’

‘‘तो क्या तुम ने मुझे माफ कर दिया?’’

‘‘हां, गजल, तुम मेरी अपनी हो और अपनों से गलतियां हो ही जाती हैं.’’

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5 टिप्स: नेचर थीम से ऐसे सजाएं घर

जमाना शोबाजी का है. हर कोई एक-दूसरे से बेहतर स्टेटस दिखाने को उत्सुक है. सोशल साइट्स और इंटरनैट के दौर ने शहरी रहनसहन के तौरतरीकों में काफी बदलाव ला दिया है. फेसबुक या व्हाट्सऐप पर डाले जा रहे फोटोज में खुद के फोटो से ज्यादा ध्यान इस बात का रखा जा रहा है कि बैकग्राउंड में क्याक्या सुंदर और बहुमूल्य चीजें नजर आ रही हैं. इस से व्यक्ति का स्टेटस शो होता है. इन बातों से सब से ज्यादा प्र्रभावित हैं हमारी गृहिणियां जो अपने स्वीट होम को और ज्यादा स्वीट बनाने की धुन में लगी हैं. कम बजट में घर को कैसे सुंदर बनाएं, ऐसी क्या यूनीक चीजें अपने ड्राइंगरूम में लगाएं कि आने वाले मेहमान तारीफ किए बिना न रह सकें, इस की तलाश जारी है. वैसे सुंदर दिखनेदिखाने में कोई बुराई भी नहीं है.

1. लौंटें प्रकृति की पनाह में

आइए, आप के घर को सुंदर बनाने में हम आप की मदद करते हैं. आजकल धूलमिट्टी और प्रदूषण से भरे वातावरण में भागतीदौड़ती जिंदगी प्रकृति की पनाह में लौटना चाहती है. हिल स्टेशनों पर जिस तरह आबादी बढ़ रही है, उसे देखते हुए इस बात को समझना मुश्किल नहीं है कि प्रकृति की गोद में इंसान को सुकून मिलता है. मगर अगर यही सुकून आप को अपने घर में मिल जाए तो क्या कहने.

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एक रंग से रंगी दीवारें, खिड़कीदरवाजों पर वही एक रंग वाले परदे, बाबा के जमाने के फर्नीचर में बदलाव लाने का वक्त आ गया है. इस इंटीरियर को अब बदल दीजिए. नेचर को अपने जीवन और घर में उतारने के लिए नेचर थीम पर अपने घर का कोनाकोना सजा दीजिए. पशुपक्षी, पहाड़, बर्फ, नदियां, हरीभरी घास, झूमते पेड़ अगर आप की आंखों के आगे होंगे तो मन को बहुत राहत और सुकून पहुंचेगा.

दिनभर औफिस में काम कर के थकाहारा व्यक्ति जब शाम को ऐसे घर में प्रवेश करेगा तो उसे बहुत राहत और खुशी महसूस होगी. एक क्षण में उस की सारी थकान दूर हो जाएगी. आप के बच्चे अपने कमरे की शोभा दिखाने के लिए अपने दोस्तों को ले कर आएंगे.

2. वौल पेंटिंग और डैकोरेशन

सब से पहले बात करते हैं घर की दीवारों की. सफेद, पीले या हलके नीले रंग वाली दीवारों के दिन अब लद गए हैं. अब तो चटक, शोख और चुलबुले रंगों का चलन है. आजकल बाजार में हरी वैल्वेट बैकग्राउंड पर खिलेखिले सुंदर फूलों वाले वौल पेपर्स खूब बिक रहे हैं. घर का ड्राइंगरूम अगर चटक रंगों वाला होगा तो यह पौजिटिव ऊर्जा और आशा का संचार करेगा. नेचर थीम वाले वौल पेपर्स आजकल घरों में घूब इस्तेमाल हो रहे हैं. इन्हें लगाना भी आसान है और साफसफाई करना भी.

ड्राइंगरूम की एक दीवार गहरे रंग के वौल पेपर से और अन्य तीनों दीवारें हलके रंग के प्राकृतिक चित्रों वाले वौल पेपर से सजाएं. इन्हीं कलर्स से मैच करते परदे, सोफा कवर और कुशन कवर हों तो फिर बात ही क्या है. एक कोने में बोनसाई या सुंदर गमले में छोटा पौधा रखें तो खिड़की पर भी सुंदर छोटे फूलों वाले गमले सजाएं.

3. परदे हों नेचर प्रिंट वाले

घर की शोभा में परदे अपनी खास भूमिका निभाते हैं. जरूरी नहीं कि आप अपने घर में भारी, रेशमी और महंगे परदे लगाएं, तभी आप का घर सुंदर दिखेगा. आजकल मार्केट में नेचर प्रिंट वाले परदे सस्ते दाम में भी उपलब्ध हैं, जो देखने में बेहद खूबसूरत और आंखों को सुकून पहुंचाने वाले होते हैं. घर की दीवारों से मैच करते परदे लगाने चाहिए. अगर दीवारों पर डार्क शेड वाला वौल पेपर हो, तो परदे थोड़े हलके शेड और छोटे प्रिंट वाले लेने चाहिए.

4. फूलों वाले गमले सजाएं

गार्डनिंग करना अच्छे शौक में गिना जाता है. इस से न सिर्फ मन प्रफुल्लित रहता है, बल्कि आप की मेहनत से उगाए गए पौधे जब घर के कोनों को सजातेमहकाते हैं तो उस से मिलने वाली खुशी भी असीम होती है. सीढि़यों के किनारे, बरामदे और छत को मौसमी फूलों वाले गमलों से सजाएं, ऐसा करने से आप के घर में ताजगी और खूबसूरती में बढ़ोत्तरी होती है. बैडरूम में पौधे नहीं रखने चाहिए क्योंकि रात के वक्त ये कार्बन डाईऔक्साइड छोड़ते हैं, जो फेंफड़ों के लिए ठीक नहीं है.

पौधे हमेशा खुली जगह या खिड़की के पास ही रखने चाहिए. बालकनी में लटकने वाले गमले लगाएं. अगर पेंटिंग का शौक हो तो आप अपने हाथों से गमलों को पेंट भी कर सकती हैं. इस से इन की शोभा भी बढ़ जाएगी.

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5. यों भी सजाएं एक कोना

ड्राइंगरूम या बरामदे का एक कोना पेड़पौधों और पक्षियों के पिंजरों के साथ ऐसे सजाएं कि उस में बीचबीच में मोमबत्तियों और दीयों को रखा जा सके. शीशे के छोटे सुंदर जारों में मोम बैठा कर ये सुंदर रंगीन मोमबत्तियां बनाई जा सकती हैं. शाम के वक्त इन्हें जला दें. आप देखेंगी कि इस कोने से घर के सदस्यों की नजर ही नहीं हटेगी.

कायापलट: हर्षा को नकारने वाले रोहित को क्यों हुआ पछतावा

‘बैस्टकपल’ की घोषणा होते ही अजय ने हर्षा को अपनी बांहों में उठा लिया. हर्षा भी छुईमुई सी उस की बांहों में समा गई. स्टेज का पूरा चक्कर लगा कर अजय ने धीरे से उसे नीचे उतारा और फिर बेहद नजाकत से झुकते हुए उस ने सभी का शुक्रिया अदा किया. पिछले साल की तरह इस बार भी इंदौर के लायंस क्लब में थीम पार्टी ‘मेड फौर ईचअदर’ में वे दोनों बैस्ट कपल चुने गए थे. लोगों की तारीफ भरी नजरें बहुत देर तक दोनों का पीछा करती रहीं. क्लब से बाहर आ कर अजय गाड़ी निकालने पार्किंग में चला गया. बाहर खड़ी हर्षा उस का इंतजार करने लगी. तभी अचानक किसी ने धीरे से उसे पुकारा. हर्षा मुड़ी पर सामने खड़े इंसान को यकायक पहचान नहीं पाई. लेकिन जब पहचाना तो चीख पड़ी, ‘‘रोहित… तुम यहां कैसे और यह क्या हालत बना ली है तुम ने?’’

‘‘तुम भी तो बिलकुल बदल गई हो… पहचान में ही नहीं आ रही,’’ रोहित की हंसी में कुछ खिन्नता थी, ‘‘यह है मेरी पत्नी प्रीति,’’ कुछ झिझक और सकुचाहट से उस ने पीछे खड़ी पत्नी का परिचय कराया. सामने खड़ी थुलथुल काया में हर्षा को

कहीं कुछ अपना सा नजर आया. उस ने आगे बढ़ कर प्रीति को गले लगा लिया, ‘‘नाइस टू मीट यू डियर.’’

तभी अजय गाड़ी ले कर आ गया. हर्षा ने अजय को रोहित और प्रीति से मिलवाया. कुछ देर औपचारिक बातों के बाद अजय ने उन्हें अगले दिन अपने यहां रात के खाने पर आमंत्रित किया. अजय और हर्षा के घर में घुसते ही डेढ़ वर्षीय आदी दौड़ कर मां की गोदी में आ चढ़ा. हर्षा भी उसे प्यार से दुलारने लगी. 2 घंटे से आदी अपनी दादी के पास था. हर्षा अजय के साथ क्लब गई हुई थी.

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हर्षा और अजय की शादी 4 साल पहले हुई थी. खूबसूरत शख्सियत की मालकिन हर्षा बहुत ही हंसमुख और मिलनसार थी. इस समय वह पति अजय और अपने डेढ़ साल के बच्चे आदी के साथ खुशहाल और सफल दांपत्य जीवन जी रही थी. लेकिन कुछ साल पहले उस की स्थिति ऐसी न थी. हालांकि तब भी उस की जिंदादिली लोगों के लिए एक मिसाल थी.

90 किलोग्राम वजनी हर्षा अपनी भारीभरकम काया के कारण अकसर लोगों की निगाहों का निशाना बनती थी. लेकिन अपने जानने वालों के लिए वह एक सफल किरदार थी, जो अपनी मेहनत और हौसले के बल पर बड़ी से बड़ी चुनौतियों का मुकाबला करने की हिम्मत रखती थी. अपने कालेज में वह हर दिल अजीज और हर फंक्शन की जान थी. उस के बगैर कोई भी प्रोग्राम पूरा नहीं होता था.

हर्षा दिखने में भले मोटी थी, पर इस से उस की फुरती व आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आई थी. वह और उस का बौयफ्रैंड रोहित एकदूसरे की कंपनी बहुत पसंद करते थे. बिजनैसमैन पिता ने अपनी इकलौती बेटी हर्षा को बड़े नाजों से पाला था. वह अपने मातापिता की जान थी. बिस्तर पर लेटी हर्षा रोहित से हुई आज अचानक मुलाकात के बारे में सोच रही थी. थका अजय बिस्तर पर लेटते ही नींद के आगोश में जा चुका था. हर्षा विचारों के भंवर में गोते खातेखाते 4 साल पहले अपने अतीत से जा टकराई…

‘‘रोहित क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है? क्या तुम मुझ से शादी नहीं करना चाहते?’’ फाइनल ईयर में वेलैंटाइन डे की कालेज पार्टी में उस ने रोहित को झंझोड़ते हुए पूछा था. दरअसल, उस ने उसी शाम रोहित से बाकायदा अपने प्यार का इजहार कर शादी के बारे में पूछा था. मगर रोहित की नानुकुर से उसे बड़ी हताशा हाथ लगी थी.

‘‘देखो हर्षा, यारीदोस्ती की बात अलग है, क्योंकि दोस्ती कइयों से की जा सकती है, पर शादी तो एक से ही करनी है. मैं शादी एक लड़की से करना चाहता हूं, किसी हथिनी से नहीं. हां, अगर तुम 2-4 महीनों में अपना वजन कम कर सको तो मैं तुम्हारे बारे में सोच सकता हूं,’’ रोहित बेपरवाही से बोला. हर्षा को रोहित से ऐसे जवाब की बिलकुल उम्मीद नहीं थी. बोली, ‘‘तो ठीक है रोहित, मैं अपना वजन कम करने को कतई तैयार नहीं… कम से कम तुम्हारी इस शर्त पर तो हरगिज नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारी दया की मुहताज नहीं हूं, तुम शायद भूल गए कि मेरा अपना भी कोई वजूद है. तुम किसी भी स्लिमट्रिम लड़की से शादी के लिए आजाद हो,’’ कह बड़ी सहजता से बात को वहीं समाप्त कर उस ने गाड़ी घर की दिशा में मोड़ ली थी. मगर रोहित को भुलाना हर्षा के लिए आसान न था. आकर्षक कदकाठी और मीठीमीठी बातों के जादूगर रोहित को वह बहुत प्यार करती थी. लोगों की नजरों में भले ही यह एक आदर्श पेयर नहीं था, लेकिन ऐसा नहीं था कि यह चाहत एकतरफा थी. कई मौकों पर रोहित ने भी उस से अपने प्यार का इजहार किया था.

वह जब भी किसी मुश्किल में होता तो हर्षा उस के साथ खड़ी रहती. कई बार उस ने रुपएपैसे से भी रोहित की मदद की थी. यहां तक कि अपने पापा की पहुंच और रुतबे से उस ने कई बार उस के बेहद जरूरी काम भी करवाए थे. तो क्या रोहित के प्यार में स्वार्थ की मिलावट थी? हर्षा बेहद उदास थी, पर उस ने अपनेआप को टूटने नहीं दिया. अगर रोहित को उस की परवाह नहीं तो वह क्यों उस के प्यार में टूट कर बिखर जाए? क्या हुआ जो वह मोटी है… क्या मोटे लोग इंसान नहीं होते? और फिर वह तो बिलकुल फिट है. इस तरह की सोच से अपनेआप को सांत्वना दे रही हर्षा ने आखिरकार पापा की पसंद के लड़के अजय से शादी कर ली, जो उसी की तरह काफी हैल्दी था.

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स्टेज पर उन दोनों की जोड़ी देख किसी ने पीठपीछे उन का मजाक उड़ाया तो किसी ने उन्हें यह कह कर दिली मुबारकबाद दी कि उन की जोड़ी बहुत जम रही है. बहरहाल, अजय से शादी कर हर्षा अपनी ससुराल इंदौर आ गई. शादी के बाद अजय के साथ हर्षा बहुत खुश थी. अजय उसे बहुत प्यार करता था और साथ ही उस का सम्मान भी. रोहित को वह एक तरह से भूल चुकी थी.

एक दिन अजय को खुशखबरी देते हुए हर्षा ने बताया कि उन के यहां एक नन्हा मेहमान आने वाला है. अजय इस बात से बहुत खुश हुआ. अब वह हर्षा का और भी ध्यान रखने लगा. 10-15 दिन ही बीते थे कि अचानक एक शाम हर्षा को पेट में भयंकर दर्द उठा. अजय उस वक्त औफिस में था. फोन पर हर्षा से बात होते ही वह घर रवाना हो गया. लेकिन अजय के पहुंचने तक हर्षा का बच्चा अबौर्ट हो चुका था. असीम दर्द से हर्षा वाशरूम में ही बेहोश हो चुकी थी और वहीं पास मुट्ठी भर भू्रण निष्प्राण पड़ा था. अजय के दुख का कोई ठिकाना न था. बड़ी मुश्किल से बेहोश हर्षा हौस्पिटल पहुंचाई गई.

हर्षा के होश में आने के बाद डा. संध्या ने उन्हें अपने कैबिन में बुलाया, ‘‘अजय और हर्षा मुझे बेहद दुख है कि आप का पहला बच्चा इस तरह से अबौर्ट हो गया. दरअसल, हर्षा यह वह वक्त है जब आप दोनों को अपनी फिटनैस पर ध्यान देना होगा, क्योंकि अभी आप की उम्र कम है. यह उम्र आप के वजन को आप की शारीरिक फिटनैस पर हावी नहीं होने देगी, पर आगे चल कर आप को इस वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए सही यह होगा कि नए मेहमान को अपने घर लाने से पहले आप अपने वजन को न सिर्फ नियंत्रित करें, बल्कि कम भी करें.’’ डा. संध्या ने उन्हें एक फिटनैस ट्रेनर का नंबर दिया. शुरुआत में हर्षा को यह बेहद मुश्किल लगा. वह अपनी पसंद की चीजें खाने का मोह नहीं छोड़ पा रही थी और न ही ज्यादा ऐक्सरसाइज कर पाती थी. थोड़ा सा वर्कआउट करते ही थक जाती. पर अजय के साथ और प्यार ने उसे बढ़ने का हौसला दिया.

कहना न होगा कि संयमित खानपान और नियमित ऐक्सरसाइज ने चंद महीनों में ही अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया. करीब 6 महीनों में दोनों पतिपत्नी का कायापलट हो गया. अजय जहां 75 किलोग्राम का रह गया वहीं हर्षा का वजन 60 किलोग्राम पर आ गया. हर्षा की खुशी का ठिकाना न था. प्यारी तो वह पहले भी बहुत लगती थी, पर अब उस का आत्मविश्वास और सुंदरता दोगुनी हो उठी. अपनी ड्रैसिंगसैंस और हेयरस्टाइल में चेंज कर वह और भी दमक उठी. डेढ़ साल पहले नन्हे आदी ने उस की कोख में आ कर उस के मातृत्व को भी महका दिया. संपूर्ण स्त्री की गरिमा ने उस के व्यक्तित्व में चार चांद लगा दिए. पर यह रोहित को क्या हुआ, उस की पत्नी प्रीति भी इतनी हैल्दी कैसे हो गई… हर्षा सोचती जा रही थी. नींद अभी भी उस की आंखों से कोसों दूर थी.

सुबह 9 बजे आंख खुलने पर हर्षा हड़बड़ा कर उठी. उफ कितनी देर हो गई, अजय औफिस चले गए होंगे. रोहित और उस की वाइफ शाम को खाने पर आएंगे. अभी वह इसी सोचविचार में थी कि चाय की ट्रे ले कर अजय ने रूम में प्रवेश किया.

‘‘गुड मौर्निंग बेगम, पेश है बंदे के हाथों की गरमगरम चाय.’’ ‘‘अरे, तुम आज औफिस नहीं गए और आदी कहां है? तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं?’’ हर्षा ने सवालों की झड़ी लगा दी. ‘‘अरे आराम से भई… एकसाथ इतने सवाल… मैं ने आज अपनी प्यारी सी बीवी की मदद करने के लिए औफिस से छुट्टी ले ली है. आदी दूध पी कर दादी के साथ बाहर खेलने में मस्त है… मैं ने आप को इसलिए नहीं उठाया, क्योंकि मुझे लगा आप देर रात सोई होंगी.’’

सच में कितनी अच्छी हैं अजय की मां, जब भी वह व्यस्त होती है या उसे अधिक काम होता है वे आदी को संभाल लेती हैं. उसे अजय पर भी बहुत प्यार आया कि उस ने उस की मदद के लिए औफिस से छुट्टी ले ली. लेकिन भावनाओं को काबू करती वह उठ खड़ी हुई, शाम के मेहमानों की खातिरदारी की तैयारी के लिए. सुबह के सभी काम फुरती से निबटा कर मां के साथ उस ने रात के खाने की सूची बनाई. मेड के काम कर के जाने के बाद हौल के परदे, सोफे के कवर वगैरह सब अजय ने बदल दिए. गार्डन से ताजे फूल ला कर सैंटर टेबल पर सजा दिए.

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शाम को करीब 7 बजे रोहित और प्रीति आ गए. हर्षा और अजय ने बहुत आत्मीयता से उन का स्वागत किया. दोनों मां और आदी से मिल कर बहुत खुश हुए. खासकर प्रीति तो आदी को छोड़ ही नहीं रही थी. आदी भी बहुत जल्दी उस से घुलमिल गया. हर्षा ने उन दोनों को अपना घर दिखाया. प्रीति ने खुल कर हर्षा और उस के घर की तारीफ की. खाना वगैरह हो जाने के बाद वे सभी बाहर दालान में आ कर बैठ गए. देर तक मस्ती, मजाक चलता रहा. पर बीचबीच में हर्षा को लग रहा था कि रोहित उस से कुछ कहना चाह रहा है. अजय की मां अपने वक्त पर ही सोती थीं. अत: वे उन सभी से विदा ले कर सोने चली गईं. इधर आदी भी खेलतेखेलते थक गया था. प्रीति की गोद में सोने लगा.

‘‘क्या मैं इसे तुम्हारे कमरे में सुला दूं? प्रीति ने पूछा. हर्षा ने अपना सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘श्योर.’’

तभी अजय अपनी किसी जरूरी फोनकौल पर ऐक्सक्यूज मी कहते हुए बाहर निकल गया. रोहित ने हर्षा की ओर बेचारगी भरी नजर डाली, ‘‘हर्षा मैं तुम्हारा गुनहगार हूं, तुम्हारा मजाक उड़ाया, दिल दुखाया. शायद उसी का सिला है कि आज तुम दोनों हमारी तरह हो और हम तुम्हारी तरह. बहुत गुरूर था मुझे अपनी डैशिंग पर्सनैलिटी पर. लेकिन अब देखो मुझे, कहीं का नहीं रह गया. शादी के वक्त प्रीति भी स्लिमट्रिम थी, पर वह भी बाद में ऐसी बेडौल हुई कि अब हम सोशली अपने यारदोस्तों और रिश्तेदारों से कम ही मिलते हैं.’’

कुछ देर रुक कर रोहित ने गहरी सांस ली, ‘‘सब से बड़ा दुख मुझे प्रीति की तकलीफ देख कर होता है. 2 मिस कैरेज हो चुके हैं उस के. डाक्टर ने वजन कम करने की सलाह दी है, मगर हम दोनों की हिम्मत नहीं होती कि कहां से शुरुआत करें. बहुत इतराते थे अपनी शादी के बाद हम, पर वह इतराना ऐसा निकला कि अच्छीखासी हैल्थ को मस्तीमजाक में ही खराब कर लिया और अब… जानती हो घर से दूर जैसे ही इंदौर आने का चांस मिला तो मैं ने झट से हां कह दी ताकि लोगों के प्रश्नों और तानों से कुछ तो राहत मिले. पर जानते नहीं थे कि यहां इतनी जल्दी तुम से टकरा जाएंगे. कल पार्टी में तुम्हें देख काफी देर तक तो पहचान ही नहीं पाया. लेकिन जब नाम सुना तब श्योर हो गया और फिर बड़ी हिम्मत जुटा कर तुम से बात करने की कोशिश की,’’ रोहित के चेहरे पर दुख की कोई थाह नहीं थी.

रोहित और प्रीति की परेशानी जान हर्षा की उस के प्रति सारी नाराजगी दूर हो गई. बोली, ‘‘रोहित, यह सच है कि तुम्हारे इनकार ने मुझे बेहताशा दुख पहुंचाया था, पर अजय के प्यार ने तुम्हें भूलने पर मुझे मजबूर कर दिया. आज मेरे मन में तुम्हारे लिए तनिक भी गुस्सा बाकी नहीं है.’’

तभी सामने से आ रहे अजय ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘भई कौन किस से गुस्सा है?’’ ‘‘कुछ नहीं अजय,’’ कह कर हर्षा ने अजय को रोहित और प्रीति की परेशानी के बारे में बताया. ‘‘अरे तुम दोनों हर्षा के साथ जा कर डा. संध्या से मिल लो. जरूर तुम्हें सही सलाह देंगी,’’ अजय ने कहा. तब तक प्रीति भी आदी को सुला कर आ गई थी. ‘‘हां रोहित, तुम बिलकुल चिंता न करो, मैं कल ही प्रीति और तुम्हें अपनी डाक्टर के पास ले चलूंगी… बहुत जल्दी प्रीति की गोद में भी एक नन्हा आदी खेलेगा,’’ कहते हुए हर्षा ने प्रीति को गले लगा लिया.

उन दोनों के जाने के बाद हर्षा देर तक रोहित और प्रीति के बारे में सोचती रही. वह प्रीति की तकलीफ समझ सकती थी, क्योंकि वह खुद भी कभी इस तकलीफ से गुजर चुकी थी. उस ने तय किया कि वह उन दोनों की मदद जरूर करेगी. हर्षा इसी सोच में गुम थी कि पीछे से आ कर अजय ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और उस ने भी हंसते हुए रात भर के लिए अपनेआप को उन बांहों की गिरफ्त के हवाले कर दिया.

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काउंसलिंग: सफल मैरिड लाइफ के लिए है जरूरी

ऋतु जिस की शादी तय हुए अभी 1 महीना ही हुआ था लेकिन फिर भी वह अंदर से खुश नहीं थी, क्योंकि उस के अनियमित पीरियड्स उसे परेशान जो किए हुए थे. वह अपना हाल किसी से बयां नहीं कर पा रही थी. वह अपने पति से भी मन से बात नहीं करती थी. एक दिन जब उस के पति ने उस की उदासी का कारण पूछा तो उस ने पूरा हाल सुना दिया. इस पर उस ने बिना देरी किए डाक्टर की सलाह ली.

आज दोनों हैप्पी मैरिड लाइफ बिता रहे हैं. ऐसा किसी के साथ भी न हो इसलिए प्रीमैरिटल और मैरिटल काउंसलिंग से संकोच न करें. आइए जानते हैं कोलकाता के पीजी हौस्पिटल के एक्स रेसिडेंट गायनाकोलौजिस्ट प्रोफेसर डा. एमएल चौधरी से कि क्यों जरूरी है प्रीमैरिटल व मैरिटल काउंसलिंग.

प्रीमैरिटल काउंसलिंग

1. भविष्य के लिए तैयार करे

किसी भी रिश्ते की नीव प्यार व विश्वास पर टिकी होती है और यह सब रिश्ते में तभी आ पाता है जब हम एकदूसरे को अच्छे से समझें. इस के लिए जरूरत है पहले से उन सब चीजों पर प्रकाश डालने की जो अकसर वैवाहिक जीवन में आती है. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए चीजों की समझ विकसित की जाती है, जिस से सोचने का नजरिया बदलने से जिंदगी आसान लगने लगती है.

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2. कम समय में बेहतर पल बिताने का मौका

प्यारे के रिश्ते में जब तक प्यार भरी बातें न हो तब तक रिश्ता स्ट्रौंग नहीं बन पाता. लेकिन पतिपत्नी दोनों के वर्किंग होने के कारण आज उन के पास एकदूसरे के साथ समय बिताने का समय नहीं होता, जिस से दूरियां बढ़ती हैं. ऐसे में काउंसलिंग से हम कम समय में कैसे क्वालिटी टाइम स्पेंड करें सीख पाते हैं.

3. घबराहट से राहत

अकसर शादी तय होने के बाद चाहे लड़का हो या लड़की यही सोचसोच कर घबराते रहते हैं कि हम रिश्ते पर खरे तो उतरेंगे न, हम एकदूसरे को खुश रख पाएंगे यही सोचसोच कर मन की घबराहट चेहरे पर झलकने लगती है. ऐसे में काउंसलिंग मदद करेगी कि आप घबराए नहीं बल्कि उसे फेस करना सीखें, भीतर से स्ट्रौंग बने.

4. प्रौब्लम्स का हल सुझाए

कई प्रौब्लम्स लड़कियां शादी से पहले अपने पार्टनर को बताना सही नहीं समझतीं और वही प्रौब्लम्स बाद में बड़ी बन जाती हैं. जैसे अनियमित पीरियड्स, पीसीओडी, ऐंट्रोपैटरिक सिस्ट आदि. जो न सिर्फ पीरियड्स के दौरान दर्द का कारण बनती हैं, बल्कि आगे चल कर इनफर्टिलिटी के लिए भी जिम्मेदार होती हैं. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए चीजों पर खुल कर बात करने से सही टाइम पर सही रास्ता मिल जाता है, जो वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने में सहायक है.

5. कौंफिडैंस को बढ़ाए

कई बार अनियमित पीरियड्स वगैरा के कारण चेहरे पर अनचाहे बाल उगने के साथ मुंहासे हो जाते हैं, जो कौंफिडैंस को कम करते हैं. चेहरे पर अनचाहे बालों के कारण पार्टनर के सामने खुल कर बात करने से डर लगता है और आप का व्यक्तित्व सामने नहीं आ पाता. इस के जरिए यह समझाने की कोशिश की जाती है कि भीतर की खूबसूरती व्यक्तित्व दर्शाने वाली होती है. साथ ही वे विकल्प भी बताए जाते हैं, जिस से इस समस्या से आप को निजात मिल सके.

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मैरिटल काउंसलिंग

6. समझाए रिश्ते का महत्त्व

शादी तय होने के बाद का समय हर कपल के लिए काफी बेहतरीन होता है, जिस में वे एकदूसरे के लिए हर समय तैयार रहते हैं. लेकिन शादी के कुछ महीनों बाद जीवन पटरी पर आने लगता है. यह बदलाव दोनों को ही अखरता है. जबकि काउंसलिंग के जरिए कपल को हकीकत से वाकिफ करवाया जाता है और यह समझाने का प्रयास किया जाता है कि भले ही आप पूरे दिन में 1 घंटा साथ बिताएं लेकिन उस में आप अपना पूरा दिन शेयर कर लें. यानी साथ में बिताया यह समय आप को पूरे दिन के बराबर लगे.

7. एबौर्शन के संबंध में जानकारी

कई बार प्रीकोशन लेने के बावजूद भी गर्भ ठहर जाता है और हड़बड़ी में कपल एबौर्शन करवा लेते हैं, जो कौंप्लिकेशन लाने के साथ आगे चल कर उन्हें हमेशा के लिए बच्चे के सुख से भी वंचित रख सकता है. जबकि काउंसलिंग आप को ऐसी गलती करने से बचा सकती है, क्योंकि यह आप में सही व गलत की समझ विकसित करती है.

8. राइट टाइम टु कंसीव

उम्र बढ़ने के साथ मां बनने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. आज तो पैसा कमाने के चक्कर में लड़कालड़की शादी भी देरी से करते हैं. एक तो लेट मैरिज और उस के बाद देर से फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचना जीवनभर आप को निसंतान रख सकता है. ऐसे में काउंसलिंग के जरिए समझाया जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ मां बनने के चांसेज भी कम होते जाते हैं. इसलिए अगर आप की शादी 27-28 साल की उम्र में हुई है तो कंसीव करने में देरी न करें.

9. सही समय पर सही निर्णय

सिस्ट, फौलेकल ट्यूब का बंद होना, अंडों का नहीं बनना आज महिलाओं में आम समस्या है. ऐसे में अगर कपल को सफलता नहीं मिलती तो वे निराश हो कर बैठ जाते हैं. जबकि काउंसलिंग के जरिए उन में पौजिटिविटी भर कर उन्हें सही जगह तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है ताकि वे संतान सुख से वंचित न रह सकें.

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Winter Special: तवा पिज्जा ट्राई किया है आपने!

आपने पिज्जा तो बहुत खाया होगा. चाहे कोई भी फंक्शन क्यों ना हो पिज्जा पार्टी अब आम बात हो गई है. पर क्या आपने कभी घर पर पिज्जा बनाया है. अगर बनाया भी होगा तो ओवन में बनाया होगा. क्या आपने कभी तवा पर बना पिज्जा खाया है? नहीं, तो यहां जानें तवा पिज्जा बनाने की विधि.

सामग्री

2 कप मैदा

2 चम्मच ऑलिव ऑइल

नमक स्वादानुसार

एक छोटा चम्मच चीनी

एक छोटी चम्मच यीस्ट

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टॉपिंग के लिए

1 शिमला मिर्च

3 बेबी कॉर्न

½ कप पिज्जा सॉस

½ कप मोजरेला चीज

½छोटा चम्मच इटालियन मिक्स हर्ब्स

विधि

बेस बनाने का विधि

मैदा को छान लें. एक मुट्ठी मैदा अलग रखकर बाकी में यीस्ट, ऑलिव ऑइल, नमक और चीनी डाल लें और उन्हें अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब गुनगुने पानी से चपाती जैसा आटा मलिए. इसे एकदम सॉफ्ट होने तक मलते रहें. तकरीबन 2 घंटे के लिए ढककर रख दें. इतनी देर में आटा फूलकर दोगुना हो जाएगा. पिज्जा बेस तैयार है.

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टॉपिंग बनाने का विधि

शिमला मिर्च से बीज हटाते हुए लंबाई में पतला-पतला काट लें. बेबीकॉर्न को गोल टुकड़ों में काट लें. दोनों सब्जी को तवे पर डालकर तकरीबन 2 मिनट चम्मच से चलाते हुए नरम कर लें. अब पिज्जा के आटे से गोल लोई बनाकर अलग रखे मैदे की हेल्प से आधा सेमी मोटा पिज्जा बेस तैयार कर लें.

अब पैन हल्का गर्म कर लें. पैन अगर नॉनस्टिक है, तो पैन के ऊपर थोड़ा सा तेल लगाकर पिज्जा सेकने के लिए डालिए और तकरीबन 2 मिनट तक पिज्जा को हल्के ब्राउन होने तक सेक लीजिए. अब पिज्जा को पलट लें.

कम आंच पर रखकर पिज्जा के ऊपर टॉपिंग करें. सबसे पहले सॉस की पतली सी लेयर और उसके ऊपर सब्जियां लगाएं. अब चीज डालें. पिज्जा को ढककर पांच से छह मिनट तक गैस पर सिकने दें. चीज के मेल्ट हो जाने पर और पिज्जा बेस के ब्राउन होने तक सेक लीजिए. अब ऊपर से हर्ब्स डाल दीजिए. गर्मागर्म सर्व करें.

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