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जानें क्या है बाल झड़ने के कुछ मुख्य कारण और इससे निजात पाने का तरीका

बाल झड़ना एक आम समस्या है जिस से हर कोई परेशान है. इस के पीछे के बहुत से कारण होते हैं जिनमें से कई आप के स्वास्थ्य से सम्बन्धित भी होते हैं. आप के बाल झड़ना एक गंभीर स्थिति का लक्षण भी हो सकते हैं. इसलिए इन्हें कभी भी अनदेखा न करें. आज हम बात करने जा रहे हैं बाल झड़ने के कुछ मुख्य कारणों के विषय में और साथ ही इस बारे में भी कि इस समस्या से निजात कैसे पा सकते हैं.

आप बहुत ज्यादा स्ट्रेस लेते हैं या बीमार रहते हैं

आप का बहुत अधिक स्ट्रेस लेना भी आप के बाल झड़ने का एक कारण होता है. हमारा शरीर मानसिक स्ट्रेस को भी उसी प्रकार ट्रीट करता है जिस प्रकार वह शारीरिक स्ट्रेस को करता है. अतः यह स्ट्रेस आप के नए बालों के विकास को भी रोक सकती है और आप के पहले से ही उगे हुए बालों को भी डेमेज कर सकती है. आप के बाल बहुत अधिक स्ट्रेस लेने से लगभग 3 महीनों तक झड़ते हैं. अतः अपने बालों को झड़ने से बचाने का सबसे आसान तरीका यही है कि आप स्ट्रेस न लें.

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आप गर्भवती हैं

यदि आप गर्भवती हैं तो आप के शरीर पर शारीरिक स्ट्रेस बहुत अधिक हो जाता है और इसलिए आप के बाल झड़ना शुरू हो जाते हैं. आप के बाल बच्चा पैदा होने के बाद अधिक झड़ते हैं. यदि आप भी इस समस्या का सामना कर रही हैं तो चिंता न करें. क्योंकि आने वाले कुछ महीनों के बाद आप के बाल फिर से सामान्य रूप से बढ़ने लगेंगे और झड़ना भी बंद हो जाएंगे.

आप बहुत ज्यादा विटामिन खा रहे हैं

यदि आप विटामिन ए के सप्लीमेंट्स या दवाइयां खा रहे हैं तो आप के बाल झड़ने की सम्भावना अधिक होती है. यदि आप पर्याप्त मात्रा से अधिक विटामिन ए ग्रहण करते हैं तो आप के बाल निश्चित रूप से ही झड़ने लगते हैं. परन्तु अच्छी बात यह है कि जब वह विटामिन ए, जोकि एक्स्ट्रा मात्रा में आप के शरीर में है, वह आप के शरीर से निकल जाता है तो आप के बाल दोबारा से बढ़ने लगते हैं और झड़ना बंद कर देते हैं.

आप पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं ले रहे हैं

यदि आप अपने शरीर को प्रोटीन से वंचित रखते हैं तो भी आप के बाल झड़ने लगते हैं. जो लोग स्पेशल तरह की डायट जैसे केटो डायट आदि पालन करते हैं उन्हें यह समस्या सबसे अधिक देखने को मिलती है क्योंकि उनकी डायट में प्रोटीन इंटेक बहुत सीमित होता है. अतः यदि आप को भी लगता है कि आप कम मात्रा में प्रोटीन ले रहे हैं तो आप को अपना प्रोटीन इंटेक बढ़ा देना चाहिए.

आप की मम्मी के साथ भी यही समस्या थी

कई बार बाल झड़ने की समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी भी देखने को मिलती है. यदि आप एक ऐसे परिवार से हैं जिन्हें एक उम्र के बाद बाल झड़ने की समस्या शुरू हो जाती है तो हो सकता है आप के बाल भी इसी वजह से झड रहे हों. इस समस्या के निवारण हेतु आप अपने डॉक्टर से बात कर सकते हैं या आप मेनॉक्सिडिल का प्रयोग भी कर सकते हैं. यह बाजार में बहुत आसानी से उपलब्ध है.

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आप के हार्मोन्स बदल रहे हैं

जिस प्रकार प्रेग्नेंसी में हार्मोन्स के बदलने के कारण आप के बाल झड़ते हैं उसी प्रकार यदि किसी कारण वश जैसे बर्थ कंट्रोल पिल्स आदि लेने के कारण भी आप के हार्मोन्स बदल जाते हैं, इस कारण भी आप के बाल झड़ने लगते हैं. यह अक्सर तब भी ज्यादा होता है जब आप का मासिक धर्म बंद हो जाता है अर्थात् आप के मेनोपॉज के दौरान भी आप को बाल झड़ने की समस्या देखने की मिलती है.

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप को कहें हां या न

साल 2010 में अपर्णा सेन की एक इंडियन-जापानी रोमांटिक ड्रामा बेस्ड बंगालीहिंदी फिल्म आई थी जिस का नाम था ‘जैपनीज वाइफ.’ इस का मुख्य प्लौट लौंग डिस्टैंस लव पर था. इस में मुख्य पात्र स्नेह्मोय चटर्जी (राहुल बोस) को प्यार हो जाता है दूर स्थित जापानी मूल की लड़की मियागु (चिगुसा टकाकु) से. दोनों में लैटर्स से बातचीत होती है और इन्हीं लैटर्स के आदानप्रदान में वे एकदूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने का वचन भी ले लेते हैं. लंबी दूरी होने के कारण 17 साल बाद भी वे एकदूसरे से मिल नहीं पाते, लेकिन उन के बीच रिश्ता फिर भी मजबूत ही रहता है. फिल्म के अंत में स्नेह्मोय चटर्जी की मौत के बाद उस की जापानी मूल की पत्नी भारत लौट आती है और चटर्जी की विधवा बन कर जीने लगती है.

फिल्म चाहे कई लूपहोल्स के साथ रही हो लेकिन इस फिल्म की कहानी की खासीयत लौंग डिस्टैंस लव था जो काफी अच्छे से दिखाया गया. खैर, अब बात फिल्म के एक दशक बाद की है. 2010 की तुलना में आज काफी चीजें बदल गई हैं. आज एकदूसरे से चिट्ठियों के माध्यम से कम्युनिकेट करने का तरीका लगभग खत्म हो गया है.

आज जमाना डिजिटल युग का है जिस में दुनिया एक फोन के भीतर समा चुकी है. गांव में बैठा युवक मीलों दूर शहर या दूसरे देश में किसी से आसानी से कम्युनिकेट कर सकता है. फिर ऐसे में आशंका तो कई गुना बढ़ जाती है कि लंबी दूरी के रिश्ते अपने पंख डिजिटल के माध्यम से फैला रहे होंगे.

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आनंद पर्वत इलाके में रहने वाला सनी एक आम परिवार का लड़का है जिस के पिताजी कारपैंटर का काम करते हैं. सनी की कहानी भी कुछ ‘जैपनीज वाइफ’ फिल्म से मिलतीजुलती है. लेकिन यह आज की बात है तो मामला चिट्ठीपत्री से हट कर डिजिटल हो गया. अपना कैरियर बनाने के लिए इंग्लिश सीखने की चाहत में सनी ने पास के एक एनजीओ में फ्री कोर्स सीखने का मन बनाया. कोर्स इंस्ट्रक्टर ने उसे सुझव दिया कि अगर इंग्लिश सीखनी है तो विदेशी मूल के लोगों से कम्युनिकेट करना शुरू करो. बस, फिर क्या, सनी ने औनलाइन साइट विजिट की जहां उस की मुलाकात इंडोनेशिया की एक लड़की से हुई. दोनों एकदूसरे से लगातार बात करते रहे और धीरेधीरे एकदूसरे को पसंद भी करने लगे. लेकिन, उस के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि उस का यह लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप कितना सफल होगा. मुश्किल यह है कि इस रिश्ते में कितनी ‘हां’ और कितनी ‘न’ की गुंजाइश है.

जाहिर है आज डिजिटल टैक्नोलौजी के बढ़ते दायरे और पूरी दुनिया के फोन में सिकुड़ जाने से हमारे सामने लोगों से मेलजोल बढ़ाने व सीखने का अवसर बढ़ गया है. इन अवसरों के साथसाथ आज मौका अपने लिए प्यार चुनने का भी मिल गया है. फिर चाहे बात करने वाला या वाली कितनी ही दूर क्यों न हो. जहां पहले लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप के मौके किसी खास सिचुएशन में ही आ पाते थे, जैसे पढ़ाई या नौकरी के लिए सैकड़ों मील दूर जाना हो. आज ऐसी सिचुएशन घर बैठे सोशल मीडिया प्रोवाइड करवा देता है जिस में इंटरनैट ने चीजों को बहुत आसान कर दिया है. लेकिन लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप यानी एलडीआर सुनने में जितनी रूहानी लगती है उतना ही वह अपने साथ कुछ समस्याएं ले कर भी चलती है.

-सब से बड़ी समस्या फाइनैंशियल उभर कर आती है. इस समस्या को अगर आंका जाए तो भारत में आधे से ज्यादा एलडीआर वाले कपल एकदूसरे से मिलने की उम्मीद लगा ही नहीं पाते. यह सही है यंग एज में किसी से औनलाइन बात करना और बात का आगे बढ़ जाना सामान्य हो सकता है लेकिन उस रिश्ते को मुकाम तक पहुंचाने में सब से बड़ी अड़चन पैसों की आती है. यही बड़ा कारण इस समय सनी जैसे एलडीआर में है जिस में उन का एकदूसरे से मिलना फिलहाल असंभव दिखाई दे रहा है.

इस कारण वह चाह कर भी कोई कमिटमैंट करने की कंडीशन में नहीं है.

–  रिऐलिटी परियों की कहानियों से अलग है. हर किसी की अपनी जरूरतें होती हैं. खासकर तब जब आप रिलेशनशिप में होते हैं, तब आप की अपने पार्टनर के साथ फिजिकल होने की इच्छा प्रबल हो जाती है. लेकिन लौंग डिस्टैंस वाले रिश्तों में सिंपल टच तक के लिए तरसना पड़ता है तो सैक्स और किस करना तो दूर की बात है. शुरुआत में लगता है कि सब ठीक है लेकिन जैसे ही रिलेशन कुछ महीने आगे बढ़ता है तब इंटिमेसी लैवल भी हाई होने लगता है, जिस के पूरा न होने के कारण फ्रस्ट्रैशन लैवल भी बढ़ने लगता है.

-लौंग डिस्टैंस रिलेशन में हमेशा इनसिक्योरिटी बनी रहती है. ज्यादातर रिश्तों में यह तब होता है जब आप किसी को जानते तो हों लेकिन उस के तौरतरीकों को फेसटूफेस औब्जर्व नहीं कर पाते. लौंग डिस्टैंस रिलेशन की यही समस्या है कि सारा रिलेशन कम्युनिकेशन पर टिका रहता है. इस में ओब्जर्व करने के लिए सिर्फ बात ही एक रास्ता होता है, इसलिए डेटूडे लाइफ में आप के पार्टनर का किन से मिलना, कितने फ्रैंड, कहां विजिट किया जैसे सवाल कई शंकाओं को जन्म दे सकते हैं.

-इस तरह के रिश्तों में सब से बड़ी समस्या कम्युनिकेशन पर टिकी होती है. यानी आप किसी तकनीक की सहायता से ही एकदूसरे के रिश्ते में बंधे हैं. सोशल मीडिया या टैलीफोन से कम्युनिकेशन एक लिमिट तक ही अंडरस्टैंडिंग लैवल बढ़ा सकता है. आमतौर पर एलडीआर में डेटूडे बातचीत ही मुख्य होती है. इस का बड़ा कारण कपल के बीच फ्रैश मैमोरीज न के बराबर होती हैं. किसी मैमोरी के बनने का तरीका किसी घटना या इवैंट से जुड़ा होता है, और इवैंट ऐसा जो दोनों को रिलेट करे. किंतु ऐसी कंडीशन में इस तरह की मैमोरीज न के बराबर होती हैं, तो कम्युनिकेशन में एक समय के बाद ठहराव आ जाता है जो इरिटेट भी करने लगता है.

-ऐसे रिश्तों में ट्रस्ट लैवल कम रहता है. किसी लव रिलेशन में पार्टनर के प्रति ट्रस्ट या भरोसा होना बहुत बार सैक्सुअल रिलेशन से निर्धारित होता है, जिस में आमतौर पर यह समझ जाता है कि आप तन और मन से समर्पित हैं या नहीं. जाहिर सी बात है, पार्टनर का मन समर्पित है यह माना जा सकता है लेकिन तन समर्पित न होना, विश्वास की लकीर को कमजोर करता है. ऐसे में हमेशा अपने पार्टनर के क्लोज फ्रैंड्स को ले कर इनसिक्योरिटी रहती है, जिसे ले कर हमेशा संदेह लगा रहता है.

खैर, कुछ समस्याएं हैं जिन से एक लौंग डिस्टैंस कपल को दोचार होना पड़ता है. लेकिन, भारत में यह प्रौब्लम इस से कई गुना आगे बढ़ जाती है. भारत देश डाइवर्सिटी से घिरा हुआ है. कुछ लोग इस पर प्राउड करते हैं, वहीं कुछ डाइवर्सिटी के होने के अनेक एक्सपीरियंस तो मानते हैं लेकिन इस के साथ इसे सोशल बैरियर भी मानते हैं, जो आपस में आसानी से कनैक्ट करने से रोकते हैं. इन्हीं बैरियर्स में कास्ट, रिलीजन, एरिया, लैंग्वेज और कल्चर आता है. हमारे देश में किसी रिश्ते में बंधने का मतलब पारिवारिक मंजूरी का होना जरूरी हो जाता है. इतने सारे बैरियर्स पार करना अपनेआप में चुनौती होता है. फिर लौंग डिस्टैंस रिलेशन तो एक कदम और दूर की बात है.

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अगर आप भी लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में हैं या आना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप इन पौइंट्स को कंसीडर करें. जरूरी नहीं कि ये चीजें हर किसी के लिए समस्या हों, अगर आप इन्हें ध्यान में रखते हुए इन से टैकल कर सकते हैं तो चीजें बेहतर होंगी. लेकिन ध्यान रहे ऐसे रिश्ते ज्यादातर कंडीशन में असफल ही होते हैं. अगर लौंग डिस्टैंस में ही जाने का मन हो तो कोशिश करें कि आप का/की पार्टनर भले पास का न हो लेकिन उसी शहर से हो जहां से आप बिलोंग करते हैं. ऐसी स्थिति में इन बिंदुओं को आसानी से टैकल किया जा सकता है और संभव है कि भविष्य में आप के एकदूसरे को जीवनसाथी चुनने की संभावना भी बढ़ जाएगी.

कमीशन: दीया की मां को क्या पता चला

Serial Story: कमीशन (भाग-3)

आकाशवाणी पहुंची तो सब से पहले उन महोदय से मिली जिन से अंकल ने मुलाकात करवाई थी. उन्होंने खुद चल कर मेरी वार्ता की रिकार्डिंग करवाई और मेरे अच्छा बोलने पर मुझे बहुत सराहा भी. मुझे तो वे बड़े अच्छे लगे. उम्र यही कोई 40 के आसपास होगी. रिकार्डिंग के बाद वे मुझे अपने केबिन में ले गए. मेरे लिए चाय भी मंगवाई, शायद इसलिए कि अंकल को जानते थे. अंकल ने मेरे सामने ही उन से कहा था कि मेरी बेटी जैसी ही है. इस का ध्यान रखना.

चाय आ गई थी और उस के साथ बिस्कुट भी. उन्होंने मुझे बड़े अदब से चाय पेश की और मुझ से बातें भी करते रहे. बोले, ‘‘चेक ले कर ही जाइएगा दीयाजी. हो सकता है कि थोड़ी देर लग जाए. बहुत खुशी होती है न कुछ करने का पारिश्रमिक पा कर.’’ और तब मैं सोच रही थी कि शायद अब यह मतलब की बात करें कि बदले में मुझे उन्हें कितना कमीशन देना है. मैं तो बिलकुल ही तैयार बैठी थी उन्हें कमीशन देने को. मगर मुझ से उन्होंने उस का कुछ जिक्र ही नहीं किया. मैं ने ही कहा, ‘‘सर, मैं तो आकाशवाणी पर बस प्रोग्राम करना चाहती हूं. बाकी पारिश्रमिक या पैसे में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं है. मेरी रचनात्मक प्रवृत्ति का होना ही कुदरत की तरफ से दिया हुआ मुझे सब से बड़ा तोहफा है जो हर किसी को नहीं मिलता है. सर, यह यहां मेरा पहला प्रोग्राम है. आप ही की वजह से यह मुझे मिला है. यह मेरा पहला पारिश्रमिक मेरी तरफ से आप को छोटा सा तोहफा है क्योंकि जो मौका आप ने मुझे दिया वह मेरे लिए अनमोल है.’’

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कहने को तो मैं कह गई, लेकिन डर रही थी कि कहीं वे मेरे कहे का बुरा न मान जाएं. सब तरह के लोग होते हैं. पता नहीं यह क्या सोचते हैं इस बारे में. कहीं जल्दबाजी तो नहीं कर दी मैं ने अपनी बात कहने में. मेरे दिलोदिमाग में विचारों का मंथन चल ही रहा था कि वे कह उठे, ‘‘दीयाजी, आप सही कह रही हैं, यह लेखन और यह बोलने की कला में माहिर होना हर किसी के वश की बात नहीं. इस फील्ड से वही लोग जुड़े होने चाहिए जो दिल से कलाकार हों. मैं समझता हूं कि सही माने में एक कलाकार को पैसे आदि का लोभ संवरण नहीं कर पाता. आप की ही तरह मैं भी अपने को एक ऐसा ही कलाकार मानता हूं. मैं भी अच्छे घर- परिवार से ताल्लुक रखता हूं, जहां पैसे की कोई कमी नहीं. मैं भी यहां सिर्फ अपनी रचनात्मक क्षुधा को तृप्त करने आया हूं. आप अपने पारिश्रमिक चेक को अपने घर पर सब को दिखाएंगी तो आप को बहुत अच्छा लगेगा. यह बहुत छोटा सा तोहफा जरूर है, लेकिन यकीन जानिए कि यह आप को जिंदगी की सब से बड़ी खुशी दे जाएगा.’’ उन की बात सुन कर मैं तो सचमुच अभिभूत सी हो गई. मैं तो जाने क्याक्या सोच कर आई थी और यह क्या हो रहा था मेरे साथ. सचमुच कुछ कह नहीं सकते किसी के भी बारे में, कहीं के भी बारे में. हर जगह हर तरह के लोग होते हैं. एक को देख कर दूसरे का मूल्यांकन करना निरी मूर्खता है. जब हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं तो…यह तो मेरा वास्ता कुछ ऐसे शख्स से पड़ा, कहीं वह मेरी इसी बात का बुरा मान जाता तो. सब शौक रखा रह जाता आकाशवाणी जाने का.

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घर आ कर अंकल को यह सब बताया तो उन्हें भी मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ. मम्मीपापा तो यूरोप भ्रमण पर चले गए थे. उन से बात नहीं हो पा रही थी जबकि मैं कितनी बेचैन हो रही थी मम्मी को सबकुछ बताने को.

अब तो कई बार वहां कार्यक्रम देने जा चुकी हूं. कभी कहानी प्रसारित होती है तो कभी वार्ता. बहुत अच्छा लगता है वहां जा कर. मुझे एकाएक लगने लगा है कि जैसे मैं भी कितनी बड़ी कलाकार हो गई हूं. शान से रिकार्डिंग करने जाती हूं और अपने शौक को यों पूरा होते देख खुशी से फूली नहीं समाती. अपने दोस्तों के दायरे में रिश्तेदारों में, अगलबगल मेरी एक अलग ही पहचान बनने लगी है और इन सब के लिए मैं दिल से अंकल की कृतज्ञ थी, जिन्होंने अपने अतीत के इतने कड़वे अनुभव के बावजूद मेरी इतनी मदद की. इस बीच मम्मीपापा भी यूरोप घूम कर वापस आ गए थे. कुछ सोच कर एक दिन मैं ने मम्मी और पापा को डिनर पर अपने यहां बुला लिया. जब से हम ने यह घर खरीदा था, बस, कभी कुछ, कभी कुछ लगा रहा और मम्मीपापा यहां आ ही नहीं पाए थे. अंकल से धीरेधीरे, बातें कर के मेरा शक यकीन में बदल गया था कि मम्मी और अंकल अतीत की एक कड़वी घटना के तहत एक ही सूत्र से बंधे थे.

मम्मी को थोड़ा हिंट मैं ने फोन पर ही दे दिया था, ताकि अचानक अंकल को अपने सामने देख कर वे फिर कोई बखेड़ा खड़ा न कर दें. कुछ इधर अंकल तो बिलकुल अपने से हो ही गए थे, सो उन्हें भी कुछ इशारा कर दिया. एक न एक दिन तो उन लोगों को मिलना ही था न, वह तो बायचांस यह मुलाकात अब तक नहीं हो पाई थी. और मेरा उन लोगों को सचेत करना ठीक ही रहा. मम्मी अंकल को देखते ही पहचान गईं पर कुछ कहा नहीं, लेकिन अपना मुंह दूसरी तरफ जरूर फेर लिया. डिनर के दौरान अंकल ने ही हाथ जोड़ कर मम्मी से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप से माफी मांगने का मौका इस तरह से मिलेगा, कभी सोचा भी नहीं था. अपने किए की सजा अपने लिए मैं खुद ही तय कर चुका हूं. मुझे सचमुच अफसोस था कि मैं ने अपने अधिकार, अपनी पोजीशन का गलत फायदा उठाया. अब आप मुझे माफ करेंगी, तभी समझ पाऊंगा कि मेरा प्रायश्चित पूरा हो गया. यह एक दिल पर बहुत बड़ा बोझ है.’’

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मम्मी ने पहले पापा को देखा, फिर मुझे. हम दोनों ने ही मूक प्रार्थना की उन से कि अब उन्हें माफ कर ही दें वे. मम्मी भी थोड़ा नरम पड़ीं, बोलीं, ‘‘शायद मैं भी गलत थी अपनी जगह. समय के साथ चल नहीं पाई. जरा सी बात का इतना बवंडर मचा दिया मैं ने भी. हम से ज्यादा समझदार तो हमारे बच्चे हैं, जिन की सोच इतनी सुलझी हुई और व्यावहारिक है,’’ मम्मी ने मेरी तरफ प्रशंसा से देखते हुए कहा. फिर बोलीं, ‘‘अब सही में मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है. मेरी बेटी की इतनी मदद कर के आप ने मेरा गुस्सा पहले ही खत्म कर दिया था. अब माफी मांग कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिए. दीया की तरह मेरा भी प्रोग्राम वहां करवा सकते हैं क्या आप? मैं आप से वादा करती हूं कि अब कुछ गड़बड़ नहीं करूंगी.’’ मम्मी ने माहौल को थोड़ा सा हल्काफुल्का बनाने के लिए जिस लहजे में कहा, उसे सुन हम सभी जोर से हंस पडे़.

Serial Story: कमीशन (भाग-2)

अब तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन अब बेटी के स्कूल आदि शुरू होने को थे, सो शिप पर इधरउधर रहना मुमकिन नहीं था. इस बार यह घर अभिमन्यु ने हमारे लिए खरीद दिया था ताकि मम्मीपापा का भी साथ मिलता रहे. वे लोग भी यहीं मुंबई में थे. हीरामणि की पढ़ाई बेरोकटोक चलती रहे, ऐसा प्रयास था. अब अभिमन्यु तो सिर्फ छुट्टियों में ही घर आ सकते थे न. अब की जब 9 महीने का शिपिंग कंपनी का अपना कांट्रेक्ट पूरा कर के हम लोग आए तो 3 महीने की पूरी छुट्टियां घर तलाशने और उसे सेट करने में ही निकल गई थीं. घर वाकई बहुत खूबसूरत मिल गया था. मकान मालिक की पत्नी का देहांत कुछ समय पहले हो गया था. उन के एक बेटा था, जो अमेरिका में ही शादी कर के बस गया था. उन्हें अब इतने बड़े घर की जरूरत ही नहीं थी सो इसे हमें सेल कर दिया.

अपने लिए सिर्फ एक कमरा रखा, जिस में अटैच्ड बाथरूम वगैरह था. इस से ज्यादा उन्हें चाहिए ही नहीं था. थोड़े ही दिनों में वे हम से खुल गए थे. हम भी उन्हें घर के एक बुजुर्ग सा ही मान देने लगे थे. हीरामणि का दाखिला भी अच्छे स्कूल में हो गया था. अभिमन्यु सब तरह से संतुष्ट हो कर अपनी ड्यूटी पर चले गए. उन के जाने के बाद तो अंकल और अपने लगने लगे थे. वे मुझे और हीरामणि को अपना बच्चा ही समझते थे. हीरामणि तो उन्हें दादाजी भी कहने लगी थी. बच्चे तो वैसे भी कोमल मन और कोमल भावनाओं वाले होते हैं, जहां प्यार और स्नेह देखा, बस वहीं के हो कर रह गए.

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पहले अंकल ने टिफिन भेजने वाली लेडी से कांट्रेक्ट कर रखा था. दोनों समय का खानापीना वह ही पैक कर के भेज देती थी. नाश्ते में अंकल सिर्फ फल और टोस्ट लेते थे. उन की बेरंग सी जिंदगी देख कर कभीकभी बुढ़ापे से डर लगने लगता था. कितना भयानक होता है न बुढ़ापे का यह अकेलापन. थोड़े दिनों में जब दिल से दिल जुड़े और अपनत्व की एक डोर बंधी तो मैं ने उन का बाहर से वह टिफिन बंद करवा कर अपने साथ ही उन का भी खाना बनाने लगी. अब हम एकदूसरे के पूरक से हो गए थे. बिना अभिमन्यु के हमें भी उन से एक बड़े के साथ होने की फीलिंग होती थी और उन्हें भी हम से एक परिवार का बोध होता.

इसी बीच बातोंबातों में एक दिन पता चला कि अंकल कभी आकाशवाणी केंद्र में एक अच्छे ओहदे पर हुआ करते थे. पता नहीं क्यों उन्होंने समय से पहले ही वहां से रिटायरमेंट ले लिया था. शायद उन्हें नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं थी या फिर वहां के काम से बोर हो गए थे. खैर, जो भी हो, मैं तो बस तब से ही उन के पीछे पड़ गई थी कि मेरा भी कभीकभी कुछ आकाशवाणी में प्रोग्राम वगैरह करवा दें. उन की तो काफी लोगों से जानपहचान होगी. तब उन्होंने बताया कि वह यू.पी. के एक छोटे से आकाशवाणी केंद्र में थे. अब तो छोड़े हुए भी उन्हें काफी समय हो गया, कोई जानपहचान वाला मिलेगा भी या नहीं, लेकिन मैं थी कि बस लगी ही रही उन के पीछे. उन्होंने मुझे बहुत समझाया कि इन जगहों पर असली टैलेंट की कोई कद्र नहीं होती. बस, सब अपनेअपने सगेसंबंधियों और जानपहचान वालों को मौका देते रहते हैं और कमीशन के नाम पर उन्हें भी नहीं बख्शते. वे अपनी कहते रहे तो मैं भी बस उन से यही कहती रही, ‘‘अंकल, आज के समय में यह कोई बड़ी बात थोड़े ही है और कमीशन बताइए अंकल कि कहां नहीं है. मकान खरीदो तो प्रोपर्टी डीलर कमीशन लेता है, सरकारी आफिस में कोई टेंडर निकलवाना हो तो अफसरों को कमीशन देना पड़ता है, यहां तक कि पोस्टआफिस में भी किसी एजेंट के द्वारा कोई पालिसी खरीदो तो जहां उसे सरकार कमीशन देती है, तो उस से कुछ कमीशन पालिसीधारक को भी मिलता है. और भी क्याक्या गिनाऊं, हर जगह यही हाल है अंकल, जिस को जहां जरा सा भी मौका मिलता है वह उसे हर हाल में कैश करता ही है, तो अगर यहां भी यही हाल है तो उस में बुरा ही क्या है.

‘‘ठीक है, वह आप को, आप के टैलेंट को, आप के हुनर को बाहर निकलने का मौका दे कर बदले में अगर कुछ ले रहे हैं तो ठीक है न, फिर इस में इतना हाईपर होने की क्या बात है. उन का हक बनता है भई. गिव एंड टेक का जमाना है सीधा- सीधा. इस हाथ दो तो उस हाथ लो. इन सब से बड़ी बात तो यह है अंकल कि आप की आवाज इतने लोग सुन रहे हैं, इस से बड़ी बात और क्या हो सकती है.’’

मेरी बात सुन कर अंकल हैरत से मुझे देखते हुए बोले, ‘‘काफी प्रैक्टिकल और सुलझी हुई हो बेटी तुम. काश, उस वक्त भी तुम्हारे जैसी सोच वाले लोग होते…’’ इतना कह कर अंकल उदास हो गए तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘अंकल, बुरा न मानें तो मुझे बताइए कि आप ने आकाशवाणी की इतनी मजेदार नौकरी क्यों छोड़ दी?’’ कुछ पल वे यों ही सोचते रहे, फिर खोएखोए से बोले, ‘‘बस, बेटी, इसी लेनदेन को ले कर एक स्कैंडल खड़ा हो गया था, फिर मन ही नहीं लगा पाया वहां. आ गया सब छोड़ कर.’’

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इस से ज्यादा न उन्होंने कुछ बताया और न ही मैं ने पूछा. पता नहीं क्यों दिल में ऐसा आभास हो रहा था कि कहीं मम्मी और अंकल एक ही इश्यू से जुड़े तो नहीं हैं. मम्मी भी न…बस, अरे, उस डायरेक्टर के मुंह पर चेक फेंकने का क्या फायदा हुआ आखिर. उन का ही तो नुकसान हुआ न. इस घटना के बाद उन की रचनात्मक प्रवृत्तियां खत्म सी हो गई थीं. उन का मन ही नहीं करता था कुछ. उन की अपनी एक खास पहचान बन गई थी. सब खत्म कर दिया अपनी ऐंठ और नासमझी में. मैं तो इसे नासमझी ही कहूंगी.

कांट्रेक्ट लेटर हाथ में आते ही कल जब उन्हें फोन पर बताया तो सब से पहले वे बिगड़ने लगीं कि दीया, तुम ने मेरी बात नहीं मानी आखिर. कहा था न कि इन सब झंझटों से दूर रहना, मगर…खैर, अब जा ही रही हो तो ध्यान रखना, कोई तुम्हें जरा सा भी बेवकूफ बनाने की कोशिश करे तुम उलटे पैर लौट आना. मैं ने तो सुना था कि मुझे परेशान करने वाले उस डायरेक्टर ने तो नौकरी ही छोड़ दी थी.’’ अब मुझे बिलकुल भी शक नहीं था कि अंकल ही वह शख्स थे जिन्होंने मम्मी की वजह से नौकरी छोड़ दी थी.

खैर, अब उन से भी क्या कहती. मम्मी थीं वह मेरी. यही कहा बस, ‘‘मम्मी, मैं आप की बात का ध्यान रखूंगी. आप परेशान मत होइए.’’ मगर मन ही मन मैं ने सोच लिया था कि किसी की भी नहीं सुनूंगी. समय की जो डिमांड होगी वही करूंगी और फिर मैं कोई पैसा कमाने या कोई इश्यू खड़ा करने नहीं जा रही हूं वहां. पैसा तो अभिमन्यु ही मर्चेंट नेवी में खूब कमा लेते हैं. मुझे तो उन के पीछे बस अपना थोड़ा सा समय रचनात्मक कार्यों में लगाना है. हीरामणि के साथ मैं कहीं नौकरी कर नहीं सकती, अभिमन्यु के पीछे वह मेरी जिम्मेदारी है. बस, कभीकभी आकाश- वाणी पर कार्यक्रम मिलते रहें, लेखन चलता रहे…और इस से ज्यादा चाहिए भी क्या. समय इधरउधर क्लब, किट्टी पार्टी में गंवाने से क्या हासिल.

आगे पढें- आकाशवाणी पहुंची तो सब…

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Serial Story: कमीशन (भाग-1)

अंकल की कोशिशों से आखिर मुझे आकाशवाणी के कार्यक्रमों में जगह मिल ही गई. एक वार्ता के लिए कांट्रेक्ट लेटर मिलते ही सब से पहले अंकल के पास दौड़ीदौड़ी पहुंची तो मुझे बधाई देने के बाद पुन: अपनी बात दोहराते हुए उन्होंने मुझ से कहा, ‘‘बेटी, तुम्हारे इतना जिद करने पर मैं ने तुम्हारे लिए जुगाड़ तो कर दिया है, लेकिन जरा संभल कर रहना. किसी की भी बातों में मत आना, अपनी रिकार्डिंग के बाद अपना पारिश्रमिक ले कर सीधे घर आ जाना.’’ ‘‘अंकल, आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. कोई भी मुझे बेवकूफ नहीं बना सकता. मजाल है, जो प्रोग्राम देने के बदले किसी को जरा सा भी कोई कमीशन दूं. मम्मी ही थीं, जो उन लोगों के हाथों बेवकूफ बन कर हर कार्य- क्रम में जाने का कमीशन देती रहीं और फिर एक दिन बुरा मान कर पूरा का पूरा पारिश्रमिक का चेक उस डायरेक्टर के मुंह पर मार आईं. शुरू में ही मना कर देतीं तो इतनी हिम्मत न होती किसी की कि कोई उन से कुछ उलटासीधा कहता.’’

मेरे द्वारा मम्मी का जिक्र करते ही अंकल के चेहरे पर टेंशन साफ झलकने लगा था लेकिन अपने कांट्रेक्ट लेटर को ले कर मैं इतनी उत्साहित थी कि बस उन्हें तसल्ली सी दे कर अपने कमरे में आ कर रिकार्डिंग के लिए तैयारी करने लगी. उस में अभी पूरे 8 दिन बाकी थे, सो ऐसी चिंता की कोई बात नहीं थी. हां, कुछ अंकल की बातों से और कुछ मम्मी के अनुभव से मैं डरी हुई जरूर थी. दरअसल, मेरी मम्मी भी अपने समय में आकाशवाणी पर प्रोग्राम देती रहती थीं. उस समय वहां का कुछ यह चलन सा बन गया था कि कलाकार प्रोग्राम के बदले अपने पारिश्रमिक का कुछ हिस्सा उस स्टेशन डायरेक्टर के हाथों पर रखे. मम्मी को यह कभी अच्छा नहीं लगा था. उन का कहना था कि अपने टैलेंट के बलबूते हम वहां जाते हैं, किसी भी कार्यक्रम की इतनी तैयारी करते हैं फिर यह सब ‘हिस्सा’ या ‘कमीशन’ आदि क्यों दें भला. इस से तो एक कलाकार की कला का अपमान होता है न. ऐसा लगता है कि जैसे कमीशन दे कर उस के बदले में हमें अपनी कला के प्रदर्शन का मौका मिला है. मम्मी उस चलन को ज्यादा दिन झेल नहीं पाईं.

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उन दिनों उन्हें एक कार्यक्रम के 250 रुपए मिलते थे, जिस में से 70 रुपए उन्हें अपना पारिश्रमिक पाने के बदले देने पड़ जाते थे. बात पैसे देने की नहीं थी, लेकिन इस तरह रिश्वत दे कर प्रोग्राम लेना मम्मी को अच्छा नहीं लगता था जबकि वहां पर इस तरह कार्यक्रम में आने वाले सभी को अपनी इच्छा या अनिच्छा से यह सब करना ही पड़ता था. मम्मी की कितने ही ऐसे लोगों से बात होती थी, जो उस डायरेक्टर की इच्छा के भुक्तभोगी थे. बस, अपनीअपनी सोच है. उन में से कुछ ऐसा भी सोचते थे कि आकाशवाणी जैसी जगह पर उन की आवाज और उन के हुनर को पहचान मिल रही है, फिर इन छोटीछोटी बातों पर क्या सोचना, इस छोटे से अमाउंट को पाने या न पाने से कुछ फर्क थोड़े ही पड़ जाएगा. प्रोग्राम मिल जाए और क्या चाहिए.

पता नहीं मुझे कि उस समय उस डायरेक्टर ने ही यह गंदगी फैला रखी थी या हर कोई ही ऐसा करता था. कहते हैं न कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. मम्मी तो बस फिर वहां जाने के नाम से ही चिढ़ गईं. आखिरी बार जब वे अपने कार्यक्रम की रिकार्डिंग से लौटीं तो पारिश्रमिक के लिए उन्हें डायरेक्टर के केबिन में जाना था. चेक देते हुए डायरेक्टर ने उन से कहा, ‘अब अमाउंट कुछ और बढ़ाना होगा मैडम. इधर अब आप लोगों के भी 250 से 350 रुपए हो गए हैं, तो हमारा कमीशन भी तो बढ़ना चाहिए न.’ मम्मी को उस की बात पर इतना गुस्सा आया और खुद को इतना अपमानित महसूस किया कि बस चेक उस के मुंह पर मारती, यह कहते हुए गुस्से में बाहर आ गईं कि लो, यह लो अपना पैसा, न मुझे यह चेक चाहिए और न ही तुम्हारा कार्यक्रम. मैं तो अपनी कहानियां, लेख पत्रपत्रिकाओं में ही भेज कर खुश हूं. सेलेक्ट हो जाते हैं तो घरबैठे ही समय पर पारिश्रमिक आ जाता है.

उस के बाद मम्मी फिर किसी आकाशवाणी या दूरदर्शन केंद्र पर नहीं गईं. मैं उन दिनों यही कोई 10-11 साल की थी. उस वक्त तो ज्यादा कुछ समझ नहीं पाई थी लेकिन जैसेजैसे बड़ी होती गई, बात समझ में आती गई. मम्मी के लिए मेरे मन में बहुत दुख था. मम्मी कितनी अच्छी वक्ता थीं कि बता नहीं सकती. एक तो कुछ उन की जल्दबाजी और दूसरे वहां के ऐसे माहौल के कारण एक प्रतिभा अंदर ही अंदर दब कर रह गई.

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कहते हैं न कि एक कलाकार की कला को यदि बाहर निकलने का मौका न मिले तो वह दिल ही दिल में जिस तरह दम तोड़ती है, उस का अवसाद, उस की कुंठा कलाकार को कहीं का नहीं छोड़ती. मम्मी ने भी उस घटना को दिल से लगा लिया था. कुछ दिन तो वह काफी बीमार रहीं फिर पापा के अपनत्व और स्नेह से किसी तरह जिंदगी में लौट पाईं और पुन: लेखन में लग गईं. मम्मी के ये गुण मुझ में भी आ गए थे. मेरा भी लेखन वगैरह के प्रति झुकाव समय के साथ बढ़ता ही चला गया. साथ ही एक अच्छे वक्ता के गुणों से भी स्कूल के दिनों से ही मालामाल थी. वादविवाद प्रतियोगिता हो, गु्रप डिस्कशंस हों या कुछ और, सदा जीत कर ही आती थी. मगर इस से पहले कि मैं इस फील्ड में अपना कैरियर तलाशती, गे्रजुएशन के साथ ही पापा के ही एक खास मित्र के लड़के, जोकि मर्चेंट नेवी में था, ने एक पार्टी में मुझे पसंद कर लिया और बस चट मंगनी, पट ब्याह हो कर बात दिल की दिल में ही रह गई. इस के बाद अभिमन्यु के साथ 4-5 साल मैं शिप पर ही रहती रही. वहीं मेरी बेटी हीरामणि का भी जन्म हुआ. यों तो डिलीवरी के लिए मैं मम्मीपापा के पास मुंबई आ गई थी, मगर हीरामणि के कुछ बड़ा होने के बाद पुन: अभिमन्यु के पास शिप पर ही चली गई थी.

आगे पढ़ें- अब तक तो सब ठीकठाक चलता रहा, लेकिन….

कार ड्राइविंग के दौरान इन नियमों का करें पालन

इन दिनों ड्राइविंग करते वक्त कौन सी ऐसी चीज है जो आपको सबसे ज्यादा परेशान करती है? लॉकडाउन के बाद बहुत सारे लोग हर दिन सड़क पर बेसिक ट्रैफिक नियमों का उल्लंधन कर रहे हैं, लोग छोटी सी ट्रैफिक के नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं.

चाहे सिग्नल तोड़ना हो या ट्रैफिक में गलत तरीके से कार को निकालना हो वह अपने साथ- साथ लोगों का दिन भी खराब कर रहे है. ऐसे ही लोगों के साथ बड़ी दुर्घटना हो जाती है. तो क्यों ना इस हफ्ते हम ट्रैफिक नियमों का पालन करने का संकल्प लें. जिससे हम खुद भी दुर्घटना से बचेंगे और लोगों को भी एक्सीडेंट होने से बचाएंगे. #BeTheBetterGuy!

क्रिकेटर युजवेंद्र ने मंगेतर धनश्री वर्मा से रचाई शादी, Photos Viral

साल 2020 में शादियों का सिलसिला जारी है. जहां एक्ट्रेस गौहर खान मंगेतर जैद दरबार संग निकाह करने वाली हैं तो वहीं अब क्रिकेटर युजवेंद्र चहल ने अपनी मंगेतर धनश्री वर्मा के साथ शादी कर ली है. वहीं फोटोज शेयर होते ही शादी की फोटोज सोशलमीडिया पर भी छा गई हैं, जिसमें दुल्हा दुल्हन बेहद खुश नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं युजवेंद्र चहल और धनश्री वर्मा की वेडिंग फोटोज…

13वें IPL के सीजन से पहले की थी सगाई

 

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क्रिकेटर युजवेंद्र चहल ने IPL के 13वें सीजन से पहले धनश्री संग सगाई की थी. वहीं इसके बाद कई बार युजवेंद्र की टीम रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) का मैच देखने यूएई में नजर आईं थीं, जिसे देखकर फैंस भी काफी तारीफें करते हुए नजर आए थे. दरअसल, धनश्री एक यूट्यूबर और कोरियोग्राफर, जो अपने डांस के वीडियो शेयर करती रहती हैं. वहीं उनकी खुद की डांस कंपनी भी है.

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फोटोज हुई वायरल

शादी होते ही क्रिकेटर युजवेंद्र चहल ने अपने सोशलमीडिया अकाउंट से फैंस के लिए शादी की कुछ फोटोज शेयर की थीं, जिसके बाद फैंस के साथ-साथ सेलेब्स भी उन्हें बधाई दे रहे हैं. वहीं फोटोज की बात करें तो जहां क्रीम कलर की शेरवानी में युजवेंद्र हैंडसम लग रहे हैं तो वहीं धनश्री का लुक बेहद खूबसूरत लग रहा है. इसी के साथ दोनों की खुश फोटोज में साफ देखने को मिल रही है.

 

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दोस्तों ने दी बधाई

 

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क्रिकेटर युजवेंद्र चहल  को शादी की बधाइयां देने वालों में BCCI और RCB बधाई देते नजर आए तो वहीं शादी के दौरान भी कुछ सितारों ने महफिल में चार चांद लगा दिए, जिनमें रोहित रेड्डी और क्रिकेट की दुनिया के सितारे शामिल होते नजर आए.

 

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शादी के 10 साल बाद पापा बनने वाले हैं ‘लॉकडाउन की लव स्टोरी’ एक्टर, पढ़ें खबर

टीवी की दुनिया में साल 2020 में कई घटनाओं ने जहां लोगों को निराश किया तो वहीं कुछ खुशखबरी ने फैंस का दिल जीत लिया. इस साल कई सेलेब्स ने अपने माता-पिता बनने की खुशी को जाहिर किया है, जिनमें करीना कपूर, अनुष्का शर्मा जैसे सितारे शामिल हैं. वहीं अब इस लिस्ट में एक और टीवी सितारे का नाम शामिल होने जा रहा है, जो शादी के 10 साल बाद पेरेंट्स बनने जा रहा है. दरअसल, लॉकडाउन की लव स्टोरी सीरियल के एक्‍टर मोहित मलिक जल्द ही पापा बनने वाले हैं.

10 साल बाद बनेंगे माता-पिता

नया साल की शुरुआत होने से पहले ही एक्टर मोहित मलिक और अदिति ने फैंस को खुश कर दिया है. दरअसल, शादी के 10 साल बाद ये कपल अगले साल 2021 के मई महीने में पैरेंट्स बनने वाला है. वहीं इस खुशी की खबर से जहां फैंस खुश हैं तो वहीं मोहित इन दिनों सातवें आसमान पर हैं.

 

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ऐसे मिली थी गुडन्यूज

 

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एक इंटरव्यू में मोहित ने बताया है कि जब उन्‍होंने यह खुशखबरी सुनी थी तो वह सातवें आसमान पर पहुंच गए थे. उनका कहना है कि ‘मैं लॉकडाउन की लव स्टोरी की शूटिंग कर रहा था. अदिति का अचानक फोन आया और उसने यह खुशखबरी दी. हालांकि उसने जो कहा वह सुनकर मैं टेंशन में आ गया. दरअसल, अदिति ने कहा कि रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. चारों ओर कोरोना का माहौल है तो मुझे लगा कि वो कोविड-19 टेस्ट के बारे में बता रही है. लेकिन फिर वह हंस पड़ी और बताया कि हम पैरेंट्स बनने वाले हैं. मुझे यकीन नहीं हो रहा था और मैंने मैं दो-दिन तक उसे बार-बार यही कहा कि फिर से चेक करो.’

फैंस के साथ शेयर की थी खुशखबरी

 

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फैंस के साथ खुशी जाहिर करते हुए मोहित ने सोशल मीडिया पर वाइफ अदिति संग एक फोटो शेयर करते हुए लिखा, ‘जिस तरह मैंने तुम्हारे ऊपर हाथ रखा है… मैं शुक्रिया कहना चाहता हूं… हमें चुनने के लिए. जिस एक्‍सपीरियंस से हम अभी गुजर रहे हैं, उसके लिए थैंक्यू भगवान. थैंक्यू थैंक्यू थैंक्यू. हम अब दो से तीन होने जा रहे हैं. यह मेरे विश्वास को और मजबूत करता है कि हम एक हैं.’

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सीरियल के सेट पर मिला था ये कपल

 

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पहली मुलाकात की बात करें तो टीवी सीरियल ‘मिली’ के सेट पर मोहित और अदिति मिले थे. वहीं 4 साल तक डेट करने के बाद दोनों ने 1 दिसंबर 2010 में शादी कर ली थी, जिसके बाद अब वह पेरेंट्स बनने जा रहे हैं.

Winter Special: घर पर बनाएं अंजीर ड्राईफ्रूट बर्फी

सर्दियों में गर्म और मीठी चीज खाने का अलग ही मजा है. तो इस सर्दी ट्राय करें अंजीर ड्राईफ्रूट बर्फी. वहीं आप अंजीर ड्रायफ्रूट बर्फी को फेस्टिवल में भी घर पर बनाकर अपनी फैमिली और फ्रेंड्स को परोस सकते हैं. ये टेस्टी के साथ-साथ हेल्दी भी है.

हमें चाहिए

100 ग्राम सूखे अंजीर

50 ग्राम चीनी

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1/4 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

2 बड़े चम्मच छोटे टुकड़ों में कटे काजू व बादाम

1 बड़ा चम्मच देशी घी

बनाने का तरीका

अंजीर को 3 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. बीच में पलट दें ताकि दोनों तरफ से फूल जाएं. इन्हें मिक्सी में पीस लें.

एक नौनस्टिक कड़ाही में गरम कर के अंजीर का मिश्रण और चीनी अच्छी तरह चलाती रहें ताकि मिश्रण एकदम सूखा सा हो जाए.

इसमें काजू व बादाम हलका सा रोस्ट कर के मिला दें. साथ ही इलायची पाउडर भी. एक घी लगी थाली में जमा दें. और फिर मनपसंद आकार के टुकड़े काट लें.

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