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Serial Story: प्रतिवचन (भाग-2)

मेरी ननद भी अपनी मां की आज्ञा का पूरा पालन करती थीं, साल में 6-7 महीने यहीं गुजरते थे उन के.

मेरा मायके जाना मेरी सास को पसंद नहीं था, परंतु हर तीजत्योहार पर मेरे मायके से आने वाले तोहफों से उन्हें कोई परेशानी नहीं थी.

‘अरे, कमलेशजी आप इतना सब क्यों ले आते हैं?’ मेरे सहृदय ससुरजी कहा करते थे.

सासूजी कहां चुप रहने वाली, ‘अरे, क्यों नहीं लाएंगे,’ बोल पड़तीं, ‘बेटी के घर क्या खाली हाथ आएंगे? अब हम क्या विमला की ससुराल इतना कुछ भेजते नहीं हैं. इन की उतनी औकात तो नहीं है पर जो लाए हैं…’

यह सुन कर मैं कट के रह जाती, जी करता था कि बाबूजी के जुड़े हाथों को पकड़ कर उन्हें इस घर से चले जाने को कह दूं. नहीं देखा जाता था मुझ से उन का यह अपमान.

मेरे दुख को मेरी छोटी ननद जया और देवर समय समझते थे, परंतु जब आप खुद के लिए खड़े नहीं हो सकते तो किसी और से क्या उम्मीद कर सकते हैं. सुमित ने तो बहुत पहले ही अपना फैसला मुझे सुना दिया था.

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जब भी बाबूजी मेरी ससुराल से अपमानित हो कर जाते, मेरे अंदर कुछ टूट जाता और कानों में विवाह के दूसरे वचन की ध्वनि सुनाई पड़ती थी. ‘जिस प्रकार आप अपने मातापिता का आदर करते हो उसी प्रकार मेरे मातापिता का आदर करो.’

जब सुमित का तबादला नोएडा हुआ तब पहली बार मेरे ससुर अपनी पत्नी के खिलाफ बोले थे, ‘सरला, जाने दो माधुरी को सुमित के साथ. अपनी गृहस्थी संभालेगी और तुम्हें सुमित के खानेपीने की चिंता भी नहीं रहेगी.’

‘अरे वाह, मां, पापा को तो भाभी की बड़ी चिंता है,’ विमला ने व्यंग्य कसा था.

‘जिसे जहां जाना है जाए. मुझे तो सारी उम्र रोटियां ही बेलनी हैं,’ सासूजी बड़बड़ाती रहीं.

मेरे आज्ञाकारी पति कैसे पीछे रह जाते, ‘नहीं मां, माधुरी यहां रहेगी आप के पास. मैं ने वहां एक कुक का इंतजाम कर लिया है. वैसे भी, रमेश के साथ रहूंगा तो पैसे कम खर्च होंगे.’

‘मेरा राजा बेटा, यह जानता है कि इस पर अपने छोटे भाईबहनों की जिम्मेदारी है.’

‘तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मैं निठल्ला बैठा हूं…घर जैसे इस की कमाई से चलता है,’ ससुरजी ने एक कोशिश और की.

‘चुप होगे अब. हर शनिवार को तो घर आ ही जाएगा,’ सासूजी ने यह कह कर पति की बोलती बंद कर दी.

सुमित नोएडा चले गए थे. अपनी छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मैं अपनी सास पर मुहताज थी. कई बार सुमित से कहा भी कि मुझे कुछ पैसे भेज दिया करो.

‘तुम्हें क्या जरूरत है पैसों की? जब कभी जरूरत हो तो मां से मांग लिया करो. मां ने कभी मना किया है क्या?’

उन्होंने कभी किसी वस्तु के लिए मना नहीं किया. परंतु उस वस्तु की उपयोगिता बताने के क्रम में जो कुछ भी मुझे सहना पड़ता था, वह मैं सुमित को नहीं समझा सकती थी.

मैं कपड़ों की जगह सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करना चाहती थी. हिम्मत बटोर कर यह बात जब मैं ने अपनी सास को बताई थी, उन की प्रतिक्रिया आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देती है-

‘अरे, सुनते हो…समय…जया…’

घर के सभी लोग, नौकर तक, बरामदे में आ गए थे.

‘मांजी गलती हो गई, माफ कर दीजिए, प्लीज चुप हो जाइए.’

‘तू होती कौन है मुझे चुप कराने वाली…’

‘अरे, बताओगी भी हुआ क्या?’ ससुरजी की आवाज थी.

‘आप की बहू को अपना मैल उतारने के लिए पैसे चाहिए.’

‘मांजी, प्लीज चुप हो जाइए,’ रो पड़ी थी मैं. ‘तेरे बाप ने भी देखा है कभी पैड, बेटी को पैड चाहिए.’

सारा माजरा समझते ही मेरे ससुर और देवर सिर झुका कर अंदर चले गए थे और मेरे बगल में खड़ी जया मेरे आंसू पोंछती रही थी.

कई घंटे तक वे लगातार मुझे अपमानित करती रही थीं.

इस घटना के बाद मैं ने अपनी सारी अभिलाषाओं तथा जरूरतों को एक संदूक में बंद कर के दफन कर दिया था.

मेरे बेटे के जन्म ने मुझे मां बनने का गौरव तो प्रदान किया परंतु जब उस की छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मुझे हाथ फैलाना पड़ता, तब मेरा हृदय चीत्कार कर उठता था.

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विवाह का तीसरा वचन भी मेरे कानों के पास आ कर दबी आवाज में चीखा करता था. ‘आप अपनी युवावस्था से ले कर वृद्धावस्था तक कुटुंब का पालन करोगे.’

मेरी एक पुरानी सहेली रम्या मुझे एक दिन बाजार में घूमते हुए मिल गई. औपचारिकतावश मैं ने उसे घर आने को कह दिया था. परंतु मैं उस समय अवाक रह गई जब शनिवार को वह अपने पति व बच्चों के साथ अचानक आ गई.

मेरा आधुनिक वस्त्र पहनना न तो सुमित को पसंद था और न ही उन की मां को. बिना बांहों का ब्लाउज पहनना भी उन के परिवार में मना था. रम्या को जींस और स्लीवलैस टौप में देख कर मैं समझ गई कि आज पति और सास दोनों की ही बातें सुननी पड़ेंगी.

परंतु उस दिन मैं ने सुमित का अलग ही रूप देखा था. जितने वक्त रम्या रही, सुमित मेरे कमरे में ही मौजूद रहे. दिन के समय सुमित हमारे कमरे में बहुत कम आते थे, इसलिए यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य था. रम्या की तारीफ करते नहीं थक रहे थे वे. और तो और, अगले दिन बाहर घूमने का प्लान भी बना लिया उन्होंने.

रात में मैं ने सुमित से पूछा भी था, ‘बिना मां से पूछे कल घूमने का प्लान कैसे बना लिया तुम ने?’

‘ उस की चिंता तुम छोड़ो. क्या औरत हैं रम्याजी, कितना मेंटेन किया है. उन की फिगर को देख कर कौन कहेगा कि 2 बच्चों की मां हैं.’

‘सौरभजी भी तो कितने अच्छे हैं.’

‘क्या अच्छा लगा तुम्हें सौरभजी में?’

‘नहीं, बस रम्या से पूछ कर निर्णय…’

‘जोरू का गुलाम है. और तुम्हें शर्म नहीं आती अपने पति के सामने किसी और मर्द की तारीफ करती हो. सो जाओ चुपचाप.’

अगले दिन पिकनिक में बातोंबातों के दौरान रम्या ने सुमित को मेरे बारे में बताया कि मैं अपने कालेज की मेधावी छात्राओं में आती थी. इतना सुनना था कि सुमित जोरजोर से हंसने लगे.

‘रम्याजी, क्या आप के कालेज में सभी गधे थे? माधुरी और मेधावी में सिर्फ अक्षर की समानता है. रसोई में खाने में नमक तो सही से डाल नहीं पाती. न चलने का ढंग, न कपड़े पहनने की तमीज. शरीर पर चरबी देखिए, कितनी चढ़ा रखी है,’ इतना कह कर वे अपनी बात पर खुद ही हंस पड़े थे. मेरा चेहरा शर्म और अपमान से काला पड़ गया था.

‘चलिए, बातें बहुत हो गईं, अब बैडमिंटन खेलते हैं,’ सौरभजी ने बात बदलते हुए कहा.

खेल के दौरान सुमित ने फिर एक ऐसी हरकत कर दी जिस की उम्मीद मुझे भी नहीं थी. स्त्री के चरित्र का आकलन आज भी उस के पहने गए कपड़ों से किया जाता है. सुमित ने भी रम्या को ले कर गलत विचारधारा बना ली थी. खेल के दौरान सुमित ने कई बार रम्या को छूने की कोशिश की थी, यह बात मुझ से भी छिपी नहीं रह पाई थी.

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इसलिए जब रम्या सुमित को किनारे पर ले जा कर दबे परंतु कड़े शब्दों में कुछ समझा रही थी, मैं समझ गई थी कि वह क्या कह रही है.

घर लौटते ही सुमित की मां रम्या की चर्चा ले कर बैठ गईं. सुमित जैसे इंतजार ही कर रहे थे.?‘अरे मां, बड़ी तेज औरत है. उस से तो दूर रहना ही ठीक होगा.’

‘मैं न कहती थी. अरी ओ माधुरी, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हें चरित्रवान पति मिला है.’

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Serial Story: प्रतिवचन (भाग-1)

कमरे का वातावरण बाहर के मौसम की ही तरह गरम था. मेरी बहू द्वारा लिया गया एक निर्णय मुझे बिलकुल नागवार गुजरा था. मैं इस बात से ज्यादा नाराज थी कि मेरे बेटे की भी इस में मूल सहमति थी. ऐसा नहीं था कि मैं पोंगापंथी विचारधारा की कोई कड़क सास थी. परंतु बात ही कुछ ऐसी थी कि आधुनिक विचारधारा तथा स्त्री स्वतंत्रता का हिमायती मेरा मन मान ही नहीं पा रहा था.

‘‘मम्मी आप समझ नहीं रही हैं…’’

‘‘मैं नहीं समझ रही हूं, यह सही कह रही हो तुम. मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि तुम्हें अकेले ही क्यों घूमने जाना है? सप्तक नहीं जाना चाहता तो अगले महीने स्नेहल और अपनी बाकी दोस्तों के साथ चली जाना.’’

‘‘मम्मी, स्नेहल या कोई और ट्रेकिंग पर जाना पसंद नहीं करती.’’

‘‘तो तुम्हें क्यों जाना है? वैसे भी शादी के बाद यह सब ठीक नहीं है. अनजान लोगों के साथ रातरात भर अकेले रहने में भला कौन सी समझदारी है.’’

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‘‘मधु एकदम ठीक कह रही है.’’ सुमित, मेरे पति बोल पड़े थे.

‘‘पापाजी, मेरी जानपहचान का गु्रप है. ग्रुप के सदस्यों के साथ पहले भी गई हूं मैं.’’

‘‘बात जानपहचान की नहीं है, अलीना. मैं ने क्या कभी तुम्हें किसी भी काम के लिए मना किया है? परंतु बच्चे, शादी के बाद कुछ चीजें सही नहीं लगतीं. सप्तक साथ होता तो बात अलग होती. मैं तो तुम्हें रजामंदी नहीं दूंगी, बाकी तुम खुद समझदार हो अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो, वयस्क हो.’’

‘‘मम्मी, शादी का क्या अर्थ होता है?’’ काफी देर से शांत हो कर हमारी बातें सुन रहा मेरा बेटा सप्तक अचानक बोला.

‘‘अर्थ…’’

‘‘हां मम्मी, क्या यह अर्थ स्त्री और पुरुष के लिए भिन्न होता है?’’

‘‘नहीं, ऐसा तो मैं ने नहीं कहा.’’

‘‘आज तक मुझे तो मेरी किसी पसंद को भूलने को नहीं कहा आप लोगों ने. फिर अलीना के साथ यह अलग व्यवहार क्यों? शादी का अर्थ अपनी पसंदनापसंद को पति के अनुरूप बदलना तो नहीं होता.’’

फिर वह मेरे घुटनों के पास आ कर बैठ गया और बोला, ‘‘इस रिश्ते से विलग स्त्री का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण रिश्ता स्वयं से भी है. शादी का अर्थ उस रिश्ते को तो भुला देना कदापि नहीं है. पता नहीं हमारा समाज स्त्रियों से ही सदा त्याग की उम्मीद रखना कब छोड़ेगा? वे भी पुरुषों की तरह इंसान हैं. उन की भी इच्छाएं हैं. अपने पति से इतर उन का एक अलग व्यक्तित्व भी है.’’

‘‘बेटा…’’ मैं ने कुछ कहना चाहा, लेकिन वह बोल पड़ा, ‘‘मम्मी, आप को तो पता है मुझे एक्रोफोबिया है, मुझे ऊंचाई से घबराहट होती है. परंतु अलीना तो कई सालों से ट्रेकिंग पर जाती रही है, उस का पहला प्यार ही ट्रेकिंग है. हिमालय की चोटी पर चढ़ना तो उस का ख्वाब रहा है और आज उस का यह सपना पूरा होने जा रहा है, मैं उसे यह कह कर रोक दूं कि तुम अब किसी घर की बहू हो, इसलिए तुम अपना सपना भूल जाओ.

‘‘स्त्री को त्याग की देवी, परिवार की धुरी और ममता की छांव बता कर पुरुष और यह समाज अपने स्वार्थ की पूर्ति कब तक करता रहेगा.

‘‘मेरे अनुसार, अलीना सही है और उसे जाना ही चाहिए. मम्मा, इस बार आप गलत हैं.’’

बात उस दिन यहीं समाप्त हो गई थी. अलीना के जाने में अभी 15 दिन का समय बाकी था. रात को खाने के बाद मैं लेटने जा ही रही थी कि सुमित ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया, ‘‘देख लिया अपने बेटे को, तुम्हारा बेटा जोरू का गुलाम हो गया है. तुम्हारा बुढ़ापा तो कष्टमय गुजरने वाला है. नाक कटा दी खानदान की. मैं ने तो कभी भी अपनी मां की बात नहीं काटी और इसे देखो. मधु, सोचा था मेरा बेटा मेरे जैसा बनेगा, परंतु यह तो…’’

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शुरू से ही सप्तक बड़ा हो कर क्या बनेगा, यह निर्णय मैं ने पूरी तरह सप्तक की खुद की पसंद पर छोड़ रखा था. परंतु वह कैसा पुरुष बनेगा, इस की एक छवि मैं ने अपने मन में बना रखी थी, और वह छवि कहीं भी सुमित से मेल नहीं खाती थी.

सुमित के बड़बड़ाने की आवाज अभी भी नेपथ्य में आ रही थी, परंतु मैं 30 साल पहले की अपनी दुनिया में पहुंच चुकी थी.

संगीत मेरे शरीर में लहू की तरह बहता था. पिताजी संगीत शिक्षक थे और मां गृहिणी. हम चारों बहनों के नाम भी संगीतात्मक थे. बड़ी दीदी सुरीली, मंझली दीदी स्वरा, छोटी दीदी संगीता और मैं सब से छोटी माधुरी. परंतु संगीत से मन भले ही संतुष्ट होता हो, पेट नहीं भरता. और जब गरीब के घर में शादी करने के लायक 4 बेटियां हों तो उन का गुण भी अवगुण बन जाता है.

बड़ी मुश्किल से पिताजी हम बहनों को शिक्षा दिला पाए थे. कन्यादान करने के लिए उन्हें न जाने कहांकहां से उधार लेना पड़ा था. पूरे विश्व में शायद भारत ही एक ऐसा देश होगा जहां दान देने के लिए भी दाता को ग्रहीता को शुल्क अदा करना पड़ता है.

स्त्री वह वस्तु नहीं, कर दिया जिसे तुम ने दान दे कर दान में उसे तुम ने, छीन लिया उस का स्वाभिमान…

शादी के सात फेरों के साथ सात वचन ले कर मैं ने सुमित के घर में प्रवेश किया. सात वचन तो हम दोनों ने लिए थे परंतु निभाने की एकमात्र उम्मीद मुझ से ही की गई थी. मेरी ससुराल वालों को मेरा गाना बिलकुल पसंद नहीं था, विशेषकर मेरी सास को. उन का मानना था कि यह काम अच्छे घर की कुलवधू को शोभा नहीं देता. उन के आदेश की अवहेलना जब कभी भी उन के पति नहीं कर पाए तो फिर मेरे पति क्या कर पाते. वैसे मैं ने एक कमजोर ही सही, परंतु प्रयास किया था, सुमित से कहा था अपनी माताजी से बात करने को.

‘माधुरी, मैं एक आदर्शवादी पुत्र हूं, मुझे तुम जोरू का गुलाम नहीं बना पाओगी. मां ने जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है.’

‘चाहे वह गलत ही क्यों न हो,’ मैं ने कहा था.

‘हां, आज के बाद इस बारे में कोई भी बात नहीं होगी. किसी भी बात में तुम मुझे सदा मां के साथ ही खड़ा पाओगी. प्रेम मैं तुम से करता हूं पर खानदानभर में मैं तुम्हारी वजह से बदनाम नहीं होना चाहता.’

विवाह के समय कन्या वामांग में आने के लिए सात वचन मांगती है. प्रथम वचन मेरे कानों में उस समय गूंज गया था. ‘हर निर्णय आप मुझे साथ ले कर करोगे, तभी मैं आप के वाम भाग में आना स्वीकार करूंगी.’ मेरी सास को शब्दों के व्यंगबाण से मुझे मारना बहुत पसंद था. मेरी बड़ी ननद विमला भी मेरी सास का इस में पूर्ण सहयोग करती थीं. उन की शादी मेरठ में ही हुई थी. एक ही शहर में मायका और ससुराल होने की वजह से लगातार उन का मायके चक्कर लगता रहता था. हालांकि मेरा मायका भी मेरठ ही था परंतु मेरी सास को मेरा वहां ज्यादा आनाजाना पसंद नहीं था.

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वे कहा करती थीं, ‘बहू को अपने मायके ज्यादा नहीं जाने देना चाहिए. मायके वाले बिगाड़ देते हैं. वैसे भी शादी हो गई है, सासससुर की सेवा करो, मांबाप को भूलो.’

परंतु ननद के समय वे यह सब बातें भूल जाया करती थीं. तब उन का वाक्य होता था, ‘घर में रौनक तो बेटियों से ही होती है. अपनी सास की मत सुना कर ज्यादा. जब दिल करे आ जाया कर.’

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हुंडई i20 में है कुछ खास, बेफिक्र होकर करें यात्रा

हुंडई i20 का इंटीरियर अब तक का बेस्ट इंटीरियर है. लेकिन इस कार में लगा इलेक्टिरक सनरूफ इसकी खूबसूरती को और बढ़ा देता है. साथ ही कार के अंदर धूप और प्रयाप्त मात्रा में हवा भी आती है.
इसके रियर सीट में काफी ज्यादा स्पेस दिया गया है जिससे आपको आराम महसूस होगा. जिसमें दो लोग आराम से बैठ सकते हैं.

i20 हमेशा से एक शानदार सवारी वाली कार रही है. शायद ही कभी ऐसा होता है कि आपको कार के अंदर उसके कम और ज्यादा गति के बारे में पता चलता हो.

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इस नए जेनेरेशन के i20 की बॉडी को एक मजबूत स्टील से बनाया गया है जिससे कार के अंदर यात्रा के दौरान आपको किसी तरह कि कोई परेशानी नहीं होगी. इसका मकसद है कि आप एक सुरक्षित कार के साथ सेफ यात्रा का आनंद उठा सकें.

REVIEW: औरत की गरिमा, आत्मसम्मन व अस्तित्व की कहानी ‘क्रिमिनल जस्टिस-बिहांइड द क्लोज्ड डोर ’’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः समीर नायर, दीपक सहगल

निर्देशकः रोहण सिप्पी व अर्जुन मुखर्जी

कलाकारः कीर्ति कुल्हारी, पंकज त्रिपाठी,  अनुप्रिया गोयंका, मीता वशिष्ठ,  जिशू सेन गुप्ता,  दीप्ति नवल.

अवधिः 40 से 53 मिनट के आठ एपीसोड,  कुलन अवधि छह घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉटस्टार डिजनी

महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा व प्रताड़ना के कई रूप हो सकते हैं. तो वहीं समाज का नामचीन व आदर्शवादी पुरूष अपने घर के अंदर एक औरत की गरिमा व उसके आत्मसम्मान को हर दिन कितनी निर्दयता के साथ तार तार करता रहता है, इन दो मुद्दों को लेखक अपूर्वा असरानी और निर्देशक द्वय रोहण सिप्पी व अर्जुन मुखर्जी ने वेब सीरीज‘क्रिमिनल जस्टिस’में खास तौर पर उठाया है. तो वहीं यह वेब सीरीज भारतीय समाज में विवाह व वैवाहिक संबंधों पर भी बहुत कुछ कह जाती है.

कहानीः

विक्रम चंद्रा (जिशू सेन गुप्ता ) मुंबई शहर के अति लोकप्रिय वकील हैं. वह कोई मुकदमा नहीं हारते. हर वकील उनकी इज्जत करता है. विक्रम चंद्रा की पत्नी अनुराधा चंद्रा(कीर्ति कुल्हारी) और बारह साल की बेटी रिया चंद्रा(आदिजा सिन्हा) है. बेटी रिया चंद्रा की करीबी सहेली रिद्धि है. रिद्धि के पिता डॉ. मोक्ष शहर के जाने माने मनोचिकित्सक हैं, जिनसे  विक्रम चंद्रा अपनी पत्नी अनुराधा चंद्रा का इलाज करा रहे हैं. विक्रम चंद्रा की मां विद्या चंद्रा (दीप्ति नवल ) और भाई ध्रुव अलग रहते हैं. एक दिन हालात कुछ ऐसे बदलते हैं कि रात में अनुराधा चंद्रा अपने पति विक्रम चंद्रा के पेट में चाकू भोंकने के बाद पुलिस व अस्पताल को फोन करके घर से बाहर चली जाती है. उनकी बेटी रिया, अनुराधा को विक्रम के कमरे से बाहर निकलते देखती है और पिता के कमरे में जाकर उनके पेट से चाकू निकालती है. तभी पुलिस इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान(जीत सिंह पलावत) तथा उनकी सहायक महिला पुलिस अफसर व पत्नी गौरी प्रधान(कल्यासणी मुले) के साथ पहुंचता है, तो उन्हें रिया अपने हाथ में खून से सने चाकू के साथ मिलती है. गौरी उसे पुलिस हिरासत में लेती है. विक्रम चंद्रा को अस्पताल ले जाया जाता है. जहां अनुराधा चंद्रा पहुंचती है और विक्रम से सॉरी बोलती है. पर पुलिस इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान(जीत सिंह पलावत ), अनुराधा चंद्रा को गिरफ्तार कर लेते हैं. और सुबह होते ही पुलिस रिया चंद्रा को सीडब्लूसी यानी कि बाल कल्याण केंद्र भेज देती है. जबकि रात में ही हर्ष प्रधान अपने तरीके से अनुराधा चंद्रा से गुनाह की कबूली वाला बयान ले लेता है. अनुचंद्रा अपनी बेटी रिया को पुलसिया उत्पीड़न से बचाने के लिए हर्ष की हर बात को आंख मूंदकर मान लेती है. एसीपी सालियान( पंकज साराश्वत) को यह केस इतना आसान नही लगता. वह इस केस को लड़ने के लिए वकील माधव मिश्रा ( पंकज त्रिपाठी ) को फोन करते हैं, जो कि उस वक्त पटना के पास भरतपुर गांव में अपनी शादी के बाद सुहागरात मनाने वाले थे. पर सालियान का फोन पाते ही पत्नी रत्ना के बार बार मना करने के बावजूद माधव मिश्रा प्लेन पकड़कर मुंबई पहुंच जाते हैं.  माधव मिश्रा, अनुचंद्रा का मुकदमा लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. माधव मिश्रा महिला वकील निखत हुसेन( अनुप्रिया गोयंका ) को अपना सहायक बनाते हैं, जिससे नाराज होकर मशहूर वकील मंदिरा ठाकुर(मीता वशिष्ठ) ने अपनी टीम से बाहर कर दिया है.

वहीं माधव मिश्रा की नई नवेली पत्नी रत्ना बिहार से उनके पीछे पीछे मुंबई आ धमकती है और अपने पति का रहन सहन देख रोती नहीं है, अपने अधिकार को हासिल करने की लड़ाई हंसते हुए लड़ती है.

विद्या चंद्रा व मंदिरा चाहती हैं कि अनुचंद्रा को अदालत से मौत की सजा मिले. इसलिए वह वकील प्रभु (आशीश विद्यार्थी)से मुकदमा लड़ने के लिए कहती हैं. वकील प्रभु हर खेल में माहिर हैं. वह मीडिया को कहानियां भी अपरोक्ष रूप से उपलब्ध कराते रहते हैं. इसके लिए वह अपने पिता की हत्या के आरोप में जेल में बंद इशानी नाथ(शिल्पा शुक्ला) को जेल के अंदर और बाद में अदालत के अंदर अनुचंद्रा के  खिलाफ खड़ा करते हैं. इन सभी के साथ ही इंस्पेक्टर हर्ष प्रधान पूरी कोशिश कर रहा है कि अनुचंद्रा को सजा हो जाए. गौरी को कई बार लगता है कि हर्ष गलत कर रहा है. एसीपी सान्याल के इशारे पर गौरी प्रधान अलग से जांच करती रहती है और कुछ तस्वीरों व सीसीटी फुटेज की बारीकियों से वह सान्याल को अवगत कराती है. जो कि बाद में माधव मिश्रा को मिल जाती हैं. अंततः अदालत में विक्रम चंद्रा का बंद कमरे के अंदर छिपा हुआ चेहरा सभी के सामने आता है, जिसे खुद को बुरी तरह फंसती देखकर भी महज शर्मिंदगी के चलते अनुचंद्रा अब तक हर किसी से छिपाती आ रही थी. विक्रम का यह सच सामने आने पर खुद उनकी मां विद्या भी लज्जित होती हैं. यहंा तक मंदिरा ठाकुर भी गिल्टी फील करती हैं. अदालत अपना निर्णय सुनाती है. .

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन पटकथा लेखन के ेलिए अपूर्वा असरानी बधाई के पात्र हैं. उनका लेखन बहुत ही सशक्त है. यदि यह कहा जाए कि कोर्ट रूम ड्रामा प्रधान वेब सीरीज ‘‘क्रिमिनल जस्टिसःबिहाइंड द क्लोज्ड डोर’’ अमीर व संभ्रात परिवारों तथा समाज के तथा कथित सफेद पोश पुरूषों की कलई खोलती है, तो कुछ भी अतिशयोक्ति नही होगी. यह वेब सीरीज बंद दरवजों के पीछे महिलाओं के साथ होने अनदेखी हिंसा के महत्वपूर्ण मुद्दे को सामने लाकर हर इंसान को सोचने पर मजबूर करती है.

लेखक व निर्देशक ने नारी की गरिमा, उसके अस्तित्व व उसके आत्मसम्मान सहित कई संवेदनशील मुद्दांे को काफी बेहतर तरीके से उकेरा है. लेखक व निर्देशक ने भारतीय जेलों के अंदरूनी हालात का सजीव वयथार्थ परक चित्रण करने में सफल रहे हैं

कोर्टरूम ड्रामा प्रधान इस वेब सीरीज में कहीं कोई रहस्य या रोमांचक का तड़का नही है. पहले एपीसोड में ही दर्शक को पता चल जाता है कि अनुचंद्रा दोषी हंै और उसे सजा होनी ही है, फिर भी लेखक व निर्देशक अपने कौशल से दर्शकों को लंबे लंबे आठ एपीसोड तक बांधकर रखते हैं.

इस वेब सीरीज की सबसे बडी कमजोरी बहुत धीमी गति से आगे बढ़ना है. यदि इसे एडीटिंग टेबल पर कसा जाता तो और बेहतर बन सकती थी. इतना ही नही इस वेब सीरीज को ठीक से प्रचारित न कर न सिर्फ इस वेब सीरीज को बल्कि इसके मूल संदेश व मकसद को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने से रोकने का काम किया गया है.

सीरीज में मंदिरा का वकील प्रभू से सवाल करना कि-‘‘बतौर वकील आपको नही लगता कि कानून सिर्फ पुरूषों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए नही बना है?;अपने आप मे कई सवाल खड़ा कर जाता है. तो वही एक संवाद है-सालों से एक औरत के अस्तित्व को दबाया गया’ भी काफी कुछ कहता है.

अभिनयः

पंकज त्रिपाठी के चेहरे पर आने वाले हावभाव उनके अभिनय के विस्तार को नया आयाम पहनाते हैं. उनका अभिनय जानदार है. माधव मिश्रा की सहायक निखत हुसैन के किरदार में अनुप्रिया गोयंका अपने बेहतरीन अभिनय से लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं कि अब तक फिल्मकार उनकी प्रतिभा को अनदेखा क्यों  करते रहे हैं. सारे ऐशो आराम पाने के बावजूद एक वकील की अंदर ही अंदर घुटती और पति द्वारा एब्यूज होती पत्नी अनुचंद्रा के किरदार में कीर्ति कुल्हारी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान करने के साथ ही भारतीय विवाह संस्था व संभ्रात परिवारों पर कई तरह के सवाल उठाने में सफल रही है. दीप्ति नवल व मीता वशिष्ठ ने जिन किरदारों को निभाया है, वह इनके लिए बाएं हाथ का खेल है. एक पुलिस अफसर होते हुए भी अपने पति व पुलिस अफसर हर्ष के गलत व्यवहार के साथ संघर्ष करती गौरी के किरदार में कल्याणी मुले प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं. वह आम औरतो की तरह आंसू बहाने या रोने चिल्लाने की बजाय अपनी आंखों के माध्यम से बहुत कुछ कह जाती हैं. किशोर रिया के किरदार में आदिजा सिन्हा ने असाधारण काम किया हैं.

पति की मौत के बाद ससुरालवालों ने किया था सोनाली फोगाट को टौर्चर, बिग बौस में किया खुलासा

बिग बौस 14 के घर पर बीते दिनों विकास गुप्ता और बीजेपी लीडर और टिकटॉक स्टार सोनाली फोगाट की एंट्री हुई है. लेकिन एंट्री से पहले सोनाली ने अपनी आपबीती और पति की मौत के बाद बदली जिंदगी को लेकर कई खुलासे किए हैं. इसी के साथ उन्होंने अपने ऊपर हुए टौर्चर को लेकर कई खुलासे भी किए हैं, जिसे सुनकर सभी हैरान हैं.

पति की मौत के बाद बदली जिंदगी

हाल ही में घर में एंट्री करने से पहले सोनाली फोगाट ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके ससुरालवाले नहीं चाहते थे कि वह फिल्मी दुनिया में आएं, लेकिन उनके पति ने उनका हर कदम पर सपोर्ट किया. लेकिन पति की मौत के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई, जिसके चलते उनके ससुरालवालों ने उन्हें घर पर बैठने को मजबूर कर दिया. हालांकि उन्होंने कहा कि ‘मेरे सास-ससुर ने मुझे आगे पढ़ने के लिए तो प्रोत्साहित किया पर वो नहीं चाहते थे कि मैं बाहर जाकर काम करूं. हरियाणा में सिर्फ पुरुष ही घर के बाहर जाते हैं. ऐसा ही हमारे परिवार में भी था.’

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10वीं के बाद हुई थी शादी

सोनाली ने अपनी जिंदगी को लेकर खुलासे करते हुए आगे कहा, ‘मेरा जन्म एक किसान परिवार में हुआ था, जिसके चलते 10वीं तक की पढ़ाई एक सरकारी स्कूल से की थी. वहीं इसके तुरंत बाद मेरी शादी कर दी गई. हालांकि शादी के बाद आगे पढ़ने के लिए मैंने पति को मनाया और मुझे परमिशन भी मिल गई. वहीं स्ट्रगल की शुरुआत के बारे में बताते हुए सोनाली ने बताया कि मैंने एक्टिंग लाइन में एंट्री की और कोई भी मदद के लिए नहीं था.’ इसके बाद ‘फिर मैं राजनीति में आ गई, जिसे लेकर भी मेरे पति ने मेरा सपोर्ट किया. पर जब उनकी मौत हो गई तो उसके बाद मैंने देखा कि वो लोग एक औरत को कैसी नजर से देखते हैं.

महिला की खूबसूरती के कारण लोग जीने नही देते

वहीं आगे सोनाली कहती हैं कि अगर एक महिला खूबसूरत और अकेली है तो लोग उसे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करते हैं और उनके चरित्र को लेकर गलत बातें बोली जाती हैं. हर कदम पर लोग आपका फायदा उठाने और आपको घर बिठाने की कोशिशें करते रहते हैं. पति की मौत के बाद मैंने ऐसी कई मुश्किलें झेलीं और इसी के कारण आज मैं इतनी मजबूत हूं.

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बता दें, हाल ही में एक वीडियो के चलते सोनाली फोगाट सुर्खियों में आईं थीं, जिसमें वह एक सरकारी अधिकारी को चप्पलों से पीटते हुए नजर आईं थीं.

Anupamaa: काव्या देगी वनराज को धोखा तो किंजल की प्रेग्नेंसी से Shocked होंगे घरवाले

सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) में इन दिनों जहां शाह परिवार खुश है तो वहीं वनराज की जिंदगी में उथल पुथल देखने को मिल रही है. दरअसल, सीरियल में अनुपमा को एक जॉब मिल गई है. तो दूसरी तरफ वनराज की नौकरी खतरे में पड़ गई है, जिसके साथ काव्या के साथ उसके रिश्तों पर असर देखने को मिल रहा है. वहीं अब शो में नए ट्विस्ट देखने को मिलने वाले हैं.

नौकरी बचाने की कोशिश करता है वनराज

जहां वनराज सोचता है कि वह बौस को मनाकर अपनी नौकरी बचा लेगा तो वहीं काव्या चाल चलकर अपनी नौकरी बचाने के लिए अपने नए बॉस को इंप्रेस करना शुरू कर देती है, जिसके लिए वह वनराज को धोखा देकर नए बॉस के साथ करीबियां बढ़ाने लगी है.

 

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किंजल की प्रैग्नेंसी का होगा खुलासा

 

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एक तरफ जहां किंजल को घर की जिम्मेदारियां समझा रही अनुपमा नौकरी कर रही है तो वहीं आने वाले एपिसोड में परितोष को किंजल की प्रेग्‍नेसी की खुशखबरी मिलेगी, जिससे कपल और परिवार खुश होता नजर आएगा. लेकिन इसी खुशी के बीच सभी को पता चलेगा कि परितोष बेरोजगार हो गया है, जिससे सभी परेशान हो जाएंगे.

 

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इस कारण परेशान होगी अनुपमा

 

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जहां परितोष की नौकरी के कारण अनुपमा, किंजल और उसके बच्‍चे की देखभाल की जिम्‍मेदारी लेने का फैसला करेगी तो वहीं लेकिन राखी पूरी कोशिश करेगी कि अनुपमा और किंजल के रिश्ते में दरार डाल सके. इसी कारण अब वह किंजल को अनुपमा से दूर करने की बजाय उसके बेटे परितोष को सहारा लेती नजर आएगी.

 

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बता दें, जौब जाने को लेकर जहां वनराज परेशान है तो वहीं काव्या से उसके रिश्ते खराब होते नजर आ रहे हैं. वहीं इस कारण वह अनुपमा की कमी को महसूस कर रहा है.

International Iconic Awards 2020 में छाया TV एक्ट्रेसेस का जलवा, Photos Viral

टीवी एक्ट्रेसेस आए दिन अपने लुक को लेकर सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं. लेकिन हाल ही में हुए इंटरनेशनल आइकॉनिक अवॉर्ड्स 2020 में टीवी एक्ट्रेसेस के हौट अवतार ने बौलीवुड एक्ट्रेसेस को पीछे छोड़ दिया है. वहीं ‘कुछ रंग प्यार के ऐसे भी’ और ‘कसौटी जिंदगी के 2’ फेम एरिका फर्नांडिस से लेकर ये रिश्ता क्या कहलाता है की शिवांगी जोशी ने अपने लुक से फैंस को दिल जीत लिया है. आइए आपको दिखाते हैं टीवी एक्ट्रेसेस को पार्टी लुक, जिसे आप भी ट्राय कर सकती हैं.

एरिका लुक था कमाल

टीवी एक्ट्रेस एरिका फर्नांडिस आए दिन अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर फोटोज शेयर करती रहती हैं, जिसमें वह अपने लुक से फैंस की तारीफें बटोरती नजर आती हैं. वहीं ऐसा ही कुछ अवौर्ड शो में देखने को मिला. इंटरनेशनल आइकॉनिक अवॉर्ड्स 2020 में एरिका फर्नांडिस ब्लैक कलर की सैक्सी ड्रैस में नजर आईं, जिसमें वह बेहद खूबसूरत और हौट लग रहीं थीं.

 

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गाउन में जीता फैंस का दिल

इंटरनेशनल आइकॉनिक अवॉर्ड्स 2020 में हिस्सा लेने के लिए शिवांगी जोशी एक डिजाइनर गाउन पहने नजर आईं, जिसका शिमरी लुक उनकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहा था. वहीं इस लुक के साथ  लाइट ज्वैलरी कैरी की थी, जो उनके लुक को स्टाइलिश के साथ- साथ कंफरटेबल बना रही थी.

 

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3. प्रीता भी नही रहीं पीछे

 

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सीरियल कुंडली भाग्य की प्रीता यानी श्रद्धा आर्या भी अवौर्ड शो में शिमरी शौर्ट ड्रेस पहने नजर आईं, जिसमें उनका लुक बेहद खूबसूरत लग रहा था. वहीं इस लुक के साथ ज्वैलरी न पहनकर श्रद्धा ने इस लुक पर चार चांद लगा दिए.

अशनूर कौर का लुक था खास

 

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गाउन को न्यू लुक में पहनने का अगर आपका भी मन है तो अशनूर कौर का ये लुक आप किसी भी पार्टी में ट्राय कर सकती हैं. सिंपल लेकिन शाइनी ड्रैस आपके लुक को स्टाइलिश और कंफरटेबल बनाने में मदद करेगी.

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साड़ी में छाया गुड्डन का जलवा

ड्रैसेस की बजाय इस बार गुड्डन तुमसे ना हो पाएगा एक्ट्रेस कनिका मन ने अपने फैंस का दिल साड़ी से जीत लिया. बेबी पिंक कलर की प्लेन साड़ी के साथ शिमरी ब्लाउज ने कनिका के लुक पर चार चांद लगा दिया. वहीं फैंस उनके लुक की तारीफें करते नही थक रहे हैं.

सर्दियों में वुडेन फ्लोर की इन 6 तरीकों से करें देखभाल

आजकल वुडेन फ्लोरिंग का ट्रेंड जोरों पर हैं. सर्दियों में वुडन फ्लोर की देखभाल और ज्यादा जरूरी हो जाती है. सर्दियों में हार्डवुड फ्लोर को नुकसान पहुंचने की ज्यादा आशंका रहती है. नोर्मली भी फ्लोरिंग को टिकाऊ बनाने के लिए सही देखभाल बहुत जरूरी है.

ऐसे करें सर्दियों में वुडेन फ्लोर की देखभाल

1. लगायें थर्मोस्टेट

कम नमी का स्तर होने पर वुड फ्लोर में सिकुड़न हो सकती है, जिससे दरारे या फर्श के बीच में खाली जगह बन जाती है. इसलिए घर में थर्मोस्टेट लगायें, इससे तापमान कंट्रोल में रहता है. थर्मोस्टेट के तापमान को बढ़ाना या घटाना नहीं चाहिए.

2. जूतों की जगह शू रैक में ही है

फर्श की चमक को बरकरार रखने के लिए खुद के जूते शू रैक में रखें. अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से भी रिक्वेस्ट करें कि वे जूतों को दरवाजे पर खोल कर घर के अंदर आयें.

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3. फर्श पर कालीन बिछायें

घर के जिन हिस्सों में ज्यादा आवाजाही रहती है, वहां फर्श पर कालीन, दरी या फ्लोर मैट बिछा दें. इससे गंदे जूतों, गंदे पैरों के साथ गंदगी फैलने की आशंका कम हो जाती है.

4. मुलायम तौलिए से साफ करें फर्श

फर्श पर पानी, धूल, कीचड़ लग जाने या नमक आदि गिर जाने पर इसे मुलायम तौलिया से साफ करें.

5. रोजाना वैक्यूम करें

धूल, मिट्टी से बचाने के लिए रोजाना वैक्यूम क्लीनर या झाड़ू से साफ करें. रोजाना फर्श की सफाई नहीं करने से फर्श पर निशान पड़ सकते हैं औऱ फर्श अपनी चमक खो सकती है.

6. वैक्स पॉलिश का करें इस्तेमाल

फर्श को साफ करने के लिए फ्लोर क्लीनर और चमक बनाए रखने के लिए अच्छी कंपनी का वैक्स पॉलिश का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

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मैं 2 सालों से गर्भवती होने की कोशिश कर रही हूं?

सवाल

मेरी उम्र 34 साल है. मैं 2 सालों से गर्भवती होने की कोशिश कर रही हूं, लेकिन अब उम्मीद हार रही हूं. मेरी सहेली ने मुझे आईवीएफ तकनीक के बारे में बताया. मैं जानना चाहती हूं कि आईवीएफ तकनीक में कोई रिस्क तो नहीं? यह तकनीक मेरे स्वास्थ्य को नुकसान तो नहीं पहुंचाएगी?

जवाब-

जी हां, आईवीएफ तकनीक भले ही मां बनने में एक वरदान की तरह है, लेकिन इस के कुछ साइड इफैक्ट भी हो सकते हैं. लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि आईवीएफ कराने वाले हर मरीज को इन साइड इफैक्ट्स से गुजरना पड़े. आईवीएफ ट्रीटमैंट में प्रीमैच्योर बेबी जन्म ले सकता है, इसलिए आप को पूरी प्रैगनैंसी के दौरान खास खयाल रखने को कहा जाता है. बारबार जांच की जाती है ताकि आप की और आप के बच्चे के स्वास्थ्य की हर खबर रखी जा सके. इस के अलावा इस में व्यवहार में बदलाव, थकान, नींद आना, सिरदर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द, चक्कर आना आदि समस्याएं भी शामिल हैं. यदि आप को इन में से कोई भी समस्या हो तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें. खुद का खास खयाल रखने से आप इन समस्याओं से बच सकती हैं.

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सदियों से यह चलन है कि महिला के गर्भवती होते ही घर की अन्य औरतें उस के खानेपीने का खास खयाल रखने लगती हैं. पुराने वक्त में चना, गुड़, दूध, मावा, फल, पंजीरी का सेवन करना गर्भवती के लिए जरूरी था ताकि उस के शरीर में खून की कमी न होने पाए, मगर आजकल जब संयुक्त परिवार टूट चुके हैं और शहरों और महानगरों में महिलाएं एकल परिवार में हैं और ऊपर से नौकरीपेशा हैं तो किचन में अपने लिए इतना  झं झट करने का न तो उन के पास वक्त होता है और न जानकारी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कालेज के मायने बदल देगी औनलाइन शिक्षा

नोवल कोरोना वायरस के चलते पारंपरिक शिक्षा पद्धति में बदलाव किए जा रहे हैं. न केवल लौकडाउन के दौरान क्लासेस औनलाइन हुई हैं बल्कि अब यूनिवर्सिटीज भी तकरीबन 6 महीने तक सभी कोर्सेस औनलाइन करने के बारे में सोच रही हैं. आईआईएम तिरूचिरापल्ली के डायरैक्टर भीमराया मैत्री का कहना है कि उन का इंस्ट्टियूट अपने काम करने वाले एग्जिक्यूटिव्स के लिए एग्जिक्यूटिव एमबीए प्रोग्राम औनलाइन मोड में औफर करेगा और इसी तरह का प्लान रैगुलर एमबीए कोर्सेस के लिए भी बनाया जा रहा है. ‘‘हम औनलाइन परीक्षाएं भी करा रहे हैं, विद्यार्थी अपने घर बैठे टैस्ट दे सकते हैं. हम विद्यार्थियों के लिए ईबुक्स भी तैयार करा रहे हैं,’’ मैत्री ने बताया.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पहले ही घोषणा कर चुकी हैं कि देश की 100 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज अपने ऐनुअल एग्जाम और रैगुलर क्लासेस औनलाइन मोड में करेंगी. बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के औनलाइन एग्जाम में मुख्य सर्वर ही काम नहीं कर रहा था, जिस के बाद विद्यार्थियों ने सोशल मीडिया पर अपना रोष जताया था. कुछ इसी तरह की दिक्कत विद्यार्थियों को औनलाइन मौक टैस्ट देने में भी आई थी. अगर यही औनलाइन एग्जाम का अर्थ है तो यकीनन यह नई परेशानियां खड़ी करने जैसा है, उन्हें सुलझाने वाला नहीं.

यदि दिल्ली यूनिवर्सिटी की बात करें तो एक क्लास में 70 से 110 के बीच बच्चे होते हैं जिन्हें यदि सब्जैक्ट के अनुसार सैक्शंस में बांटा जाए तो तकरीबन एक क्लास में 60 बच्चे होते हैं. इन 60 बच्चों का आमतौर पर क्लास में एकसाथ पढ़ना मुश्किल होता है. ऐसे में ये औनलाइन कैसे पढ़ेंगे? इस में दोराय नहीं कि कालेज में हर युवा पढ़ने नहीं जाता, बल्कि इस उम्मीद से जाता है कि वहां वह अपनी पढ़ाई के साथसाथ अपनी रुचि की चीजें सीखेगा और आगे बढ़ेगा. क्या औनलाइन शिक्षा उन की यह ख्वाहिश पूरी कर पाएगी?

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी (सीएमआईई) के अनुसार, देश के ग्रैजुएट युवाओं  की बेरोजगारी दर 2017 के 12.1 के मुकाबले 2018 में 13.2 फीसदी हो चुकी थी. इन में सब से ज्यादा बेरोजगारी दर ग्रैजुएट युवाओं की है क्योंकि अनपढ़ या 5वीं और 10वीं कक्षा पास युवा बेलदारी, रिकशा चालक, डिलिवरी बौय या फैक्ट्रियों में नौकरी कर रहे हैं. ग्रैजुएट युवा अपनी महत्त्वाकांक्षा के अनुसार नौकरी करना चाहते हैं, इसलिए उस से कम की नौकरी नहीं कर रहे. जो ग्रैजुएट युवा नौकरीपरस्त हैं, उन में से ज्यादातर अपनी पसंद की नौकरी नहीं कर रहे हैं. इस का स्पष्ट अर्थ है कि भारत अपने ग्रैजुएट युवाओं के लिए उन की साक्षरता के अनुसार नौकरियां उत्पन्न नहीं कर पा रहा है. ऐसे में यह औनलाइन शिक्षा आंकड़ों को सुधार पाएगी या बेरोजगारी दर और बढ़ा देगी, चिंता का विषय है.

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विकास और वृद्धि में अवरोध

सीखना या लर्निंग संसाधन और वातावरण पर निर्भर करता है. हमें बचपन से पढ़ाया गया है कि बच्चे के विकास और वृद्धि को मुख्यतया 4 तत्त्व प्रभावित करते हैं, जो ये हैं – वंशानुक्रम, वातावरण, पोषण और विभिन्नता. इन में वातावरण का मुख्य स्थान है. इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि हर युवा के घर में पढ़ाई का माहौल नहीं होता. पढ़ाई के लिए हर किसी के घर में उपयुक्त स्थान भी नहीं होता. औनलाइन पढ़ाई करते समय शायद उसे शोर से दूर पढ़ने को मिल जाए लेकिन उस के बाद क्या? न उस के पास लाइब्रेरी होगी जहां से वह जब चाहे जो किताब उठा कर पढ़ ले, न साथ में बैठ कर कोई पढ़ने और समझाने वाला होगा, न किसी तरह का डिस्कशन हो पाएगा और न ही टीचर्स से हर सवाल का जवाब मांगा जा सकेगा.

जैसा कि ऊपर कहा गया कि हर युवा कालेज पढ़ने के मकसद से नहीं जाता. किसी की रुचि डांस में होती है, किसी की गाने में, किसी की थिएटर में तो किसी की लिखने में. हर कालेज में 9-10 एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटीज की सोसाइटीज होती हैं और हर क्लास का अपना डिपार्टमैंट होता है. इन सोसाइटीज में युवा अपने शौक और काबिलीयत से जाते हैं. इन में वे अपना असली हुनर दिखा पाते हैं, परफौर्म करते हैं. कई युवाओं के लिए उन की कालेज की जिंदगी ही ये सोसाइटीज होती हैं. वे अपनी हौबी को अपना कैरियर बनाते हैं. इन सोसाइटीज के औडिशन नए सैमेस्टर शुरू होने के पहले 2 महीनों में हुआ करते थे, जो औनलाइन पढ़ाई में नहीं होंगे. और अगर होंगे भी, तो उन का कोई मतलब नहीं होगा खासकर डांस या थिएटर सोसाइटी का.

कई मध्य और निम्नवर्गीय परिवारों से आए बच्चे कालेज में खुद को पूरी तरह से बदल लेते हैं. नए खुले परिवेश में वे अपने लिए नई राह बना लेते हैं. पढ़ने में अच्छे होने के चलते या अपने हुनर के चलते उन की पारिवारिक हैसियत उन के रास्ते का कांटा नहीं बनती. वे अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं, जिस के बल पर उन्हें नौकरी हाथ लगती है. इस बात से तो हम सभी भलीभांति परिचित हैं कि नौकरी व्यक्ति की डिग्री के साथसाथ उस के आत्मविश्वास और सामर्थ्य से मिलती है जो कालेज का माहौल उसे देता है. यही डिस्टैंस लर्निंग और रैगुलर लर्निंग के विद्यार्थियों को एकदूसरे से अलग बनाता था. लेकिन, क्या यह औनलाइन शिक्षा से मुमकिन है, लगता तो नहीं है.

दोस्ती किताबों का शब्द बन कर रह जाएगी

अगर मैं अपनी पक्की दोस्त की बात करूं तो वह वही है जो मुझे कालेज के दूसरे दिन मिली थी. लगभग सभी दोस्त मुझे अपने कालेज के पहले एक महीने में ही मिले थे. एकसाथ क्लास बंक करना, कैंटीन में गप मारना, मूवी देखने जाना, क्लास में जो समझ नहीं आया उसे साथ बैठ कर डिस्कस करना, बैस्टफ्रैंड के साथ लाइब्रेरी में बैठ कर बातें करना, फैस्ट में नाचना, ग्राउंड में सर्दी की धूप खाना और बौल लग जाए तो गुस्सा दिखाना. कितना सब होता है कालेज में, जो दोस्ती गहरी बनाता है.

कालेज के पहले 2 महीने दोस्ती करने में ही निकल जाते हैं, कभी क्लास में आए नए स्टूडैंट से तो दूसरे कोर्स के स्टूडैंट्स से. एक खासीयत कालेज की यह भी है कि वहां आप अपने सीनियर्स को भी दोस्त बनाते हैं. सीनियर्स की खासीयत ही यह होती है कि वे अपने अनुभव तो बताते ही हैं साथ ही गाइडैंस देते हैं जो बहुत काम की होती है, बहुतकुछ सिखाती है.

अब औनलाइन क्लासेस में आप के पास किसी से दोस्ती करने का मौका नहीं होगा. ग्रुप बन भी गया तो आप हर किसी को मैसेज नहीं कर सकते. किसी से बातें करने में रुचि भी तब आती है जब आप जानते हों कि वह व्यक्ति असल में कैसा है. वैसे भी, किसी की सीरत उस की सूरत पर लिखी नहीं होती. हर कोई औनलाइन बात करने में रुचि नहीं रखता. कुछ स्टूडैंट्स तो कालेज में भी इतने शांत होते हैं कि उन की सोशल लाइफ उन के एक्स्ट्रोवर्ट दोस्तों पर निर्भर करती है.

फर्स्ट ईयर के स्टूडैंट्स के लिए कालेज में यह सब नहीं होगा. वे अपने कंप्यूटर या लैपटौप पर पढ़ाई करेंगे और क्लास खत्म होने के बाद अपने दूसरे कामों में लग जाएंगे. एकदो क्लासमेट्स से बात कर भी ली, तो वह दोस्ती साथ निभाने वाली नहीं, बल्कि काम चलाने वाली होगी.

अब नहीं मिलेंगे अनुभव

किसी किस्से को सुनने और उस घटनाक्रम को जीने में बहुत फर्क होता है. आप कह सकते हैं कि कालेज में यह होता है वह होता है, लेकिन जब तक आप खुद कालेज नहीं जाते तब तक आप को असल में पता ही नहीं होता कि कालेज असल में क्या है.

कालेज में पढ़ाई के साथसाथ कई कंपीटिशन होते हैं जिन में प्रोफैसर केवल परमिशन देते हैं और बाकी सारे काम स्टूडैंट्स खुद करते हैं. किसी कंपीटिशन को और्गेनाइज करने के लिए सूची तैयार करना, स्पौंसर्स ढूंढ़ना, क्लासरूम की परमिशन के लिए कालेज के लौजिस्टिक डिपार्टमैंट से बात करना, पोस्टर्स बनाना, प्रोमोशंस करना, अलगअलग स्टूडैंट को काम बांटना, आपस में मीटिंग्स करना, कंपीटिशन वाले दिन सभी क्लासेस में बच्चों को भाग लेने के लिए कहना, जज बनने के लिए प्रोफैसर्स के चक्कर काटना, प्राइज मनी देने के लिए अकाउंट डिपार्टमैंट से फौर्म्स ले कर आना, अलगअलग कालेज के बच्चों से मिलना और अपने कालेज को उन के सामने रिप्रेजैंट करना आदि सभी काम स्टूडैंट्स खुद करते हैं. ऐसा वे साल में एक बार नहीं, कम से कम 4 बार करते हैं.

इस पूरी भागदौड़ से मिले अनुभव उन्हें जीवनभर की सीख दे जाते हैं. बीए के बच्चे मार्केटिंग सीख जाते हैं, साइंस के बच्चे कविताएं लिखने लगते हैं, कौमर्स वाले हौस्पिटैलिटी में हाथ आजमाते हैं. यह सभी घर बैठे क्या हो सकता है? कालेज में फर्स्ट ईयर में जो युवा शांत स्वभाव का होता है वह एक्स्ट्रोवर्ट बन कर निकलता है और एक्स्ट्रोवर्ट इंट्रोवर्ट हो जाता है. फेयरवैल के दिन वह विद्यार्थी स्टेज पर खड़ा मिलता है जिसे कालेज के पहले महीने में क्लास में खड़े होने में भी झिझक महसूस होती थी. प्यार में गिरतेपड़ते युवा संभलना सीख जाते हैं, जो गिरेंगे ही नहीं, वे भला उठना कैसे सीखेंगे? कोई दुख में लिखना सीख जाता है तो कोई गा कर दर्द बयां करता है. रिलेशनशिप के पहले 3 महीने की खुशी भी सब को दिखती है और आखिर के 3 महीनों का दुख भी. लेकिन, इस पूरे प्रोसैस में कितनी ही बातें हैं जो व्यक्ति समझने लगता है, परिपक्व होने लगता है. औनलाइन रिलेशनशिप्स का क्या हाल है, यह तो किसी से छिपा नहीं है.

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विचार उन्मुक्त नहीं होंगे

स्कूल से निकले किशोर और कालेज से निकले युवा के विचारों में उतना ही अंतर है जितना हमारे देश के अमीर और गरीब में है, एक की बात सरकार भी सुनती है और दूसरे की उस के अपने पड़ोसी तक नहीं. स्कूल में बच्चों को नैतिक शिक्षा दी जाती है, किताबें प्रशासन की बढ़ाई और इतिहास मैसोपोटामिया के महत्त्व से भरा होता है. वह किशोर न तो सरकार से सवाल करना जानता है न देश में व्याप्त धर्मकर्म की त्रुटियों को पहचानने की क्षमता रखता है (कम से कम सीबीएसई बोर्ड का स्टूडैंट तो नहीं). जबकि इस से बिलकुल उलट कालेज का युवा अपने विचारों को उड़ान देना जानता है, वह लाल सलाम को भी समझता है और मनुस्मृति को नकारना भी जानता है.

देश की सरकार कैंटीन में समोसे की चटनी के लिए लड़ने वाले इन युवाओं से थरथर कांपती है. जितनी बेबाक इन युवाओं की आवाज है, क्या उतनी बेबाकी उन युवाओं में आ पाएगी जो कालेज का मुंह न देख कर कंप्यूटर की स्क्रीन देखा करेंगे?

धर्म, जाति, राजनीति, सैक्स, लड़कियों की आजादी आदि मामलों में हमारे देश के लोगों की सोच संकीर्ण है. जो कुछ युवा इन विषयों के बारे में सोचनेसमझने की शक्ति रखते हैं उन की गिनती पहले ही बहुत कम है जो औनलाइन शिक्षा के चलते आने वाले समय में शायद और कम हो जाएगी.

घर में बैठे ये युवा न सवालजवाब करेंगे, न प्रोफैसर बारबार कट रही आवाज या नैटवर्क की कमी में अपनी समझाने की शक्ति व्यर्थ करेंगे, न युवाओं को सही माहौल मिलेगा, न वे नए लोगों से मिल खुद को नए वातावरण में ढालने की कोशिश करेंगे, न उन्हें सही गाइडैंस मिलेगी और न ही वे अपने मन की कर सकेंगे. सो, औनलाइन शिक्षा के नतीजे में घर की चारदीवारी में युवाओं के दिमाग की चारदीवारी के किवाड़ भी नहीं खुलेंगे.

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