Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं ट्रिफल पुडिंग

अगर आप अपनी फैमिली के लिए हेल्दी टेस्टी डेजर्ट बनाना चाहते हैं तो ट्रिफल पुडिंग आपके लिए बेस्ट औप्शन है. ट्रिफल पुडिंग हेल्दी और टेस्टी डिश है, जिसे बच्चे काफी पसंद करते हैं.

हमें चाहिए

–   थोड़ा सा स्पंज केक

–   व्हिपिंग क्रीम

–   1 कप मिक्स फू्रट केला, अनार, बब्बूगोसा, सेब, अंगूर

–   थोड़ा सा वैनिला कस्टर्ड पाउडर

ये भी पढ़ें- Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं दाल तड़का

–   थोड़ा सा पीला, लाल फूड कलर

–   1 गिलास दूध

–   चीनी या शहद स्वादानुसार.

विधि

दूध में  से 3-4 छोटे चम्मच दूध एक कटोरी में निकाल कर बाकी दूध एक फ्राइंगपैन में डाल कर उबलने रखें. जब दूध उबलने लगे तो आंच धीमी कर दें. कस्टर्ड पाउडर को निकाले दूध में घोल कर दूध को चलाते हुए उस में मिला दें. 5 मिनट पका कर आंच से उतार कर ठंडा होने दें. व्हिपिंग क्रीम बीट में क्रीम भर लें. अलगअलग कलर की तैयार कर लें. एक सर्विंग बाउल में स्पंज केक के टुकड़े कर के लगा लें. ऊपर से फू्रट्स सजा कस्टर्ड फैला दें. फिर अलगअलग कलर की क्रीम से सजा कर फ्रिज में चिल्ड कर सर्व करें.

ये भी पढ़ें- Winter Special: घर पर बनाएं शाही पनीर खीर 

Serial Story: बोझमुक्त (भाग-4)

दिल की धड़कनें तेज हो गईं. यह इंतजार बहुत असहनीय होने लगा. सारा दिन यों ही निकल गया. अब तो रात के खाने के बाद सोना और कल दोपहर में तो वे चले ही जाएंगे. कुछ गपशप भी नहीं हो पाएगी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. अर्चना आ गई.

अकसर औफिस से आ कर वह बेतहाशा घंटी बजाती थी. कितनी बार समझाया उसे कि इस समय मिली सोई होती है. इतनी जोर से घंटी न बजाया करे, लेकिन…सहसा मन भर आया, छोटी बहन को देखने को. उस ने नम आंखों से दरवाजा खोला. अर्चना ने अपनी दीदी को झुक कर प्रणाम किया.

‘‘सदा खुश रहो… फूलोफलो,’’ दिल भर आया आशीर्वाद देते हुए.

‘‘जी नहीं, तेरी तरह फूलने का कोई शौक नहीं है मुझे,’’ वही चंचल जवाब मिला.

गौर से अपनी ब्याहता बहन का चेहरा देखा. मांग में चमकता सिंदूर, लाल किनारी की पीली तांत साड़ी, दोनों हाथों में लाख की लाल चूडि़यां. सजीधजी प्रतिमा लग रही थी. वह लजा गई, ‘‘छोड़ दीदी, तंग मत कर. मिली कहां है?’’ और फिर मिली…मिली… पुकारती हुई वह बैडरूम में घुस गई.

मन ने टोकना चाहा कि अभी सो रही है. छोड़ दे. पर बोली नहीं. मौसी आई है. वह भी तो देखे अपनी सजीधजी मौसी को. बड़ी प्यारी लग रही है, अर्चना. सुंदर तो है ही और निखर गई है.

मौसी की गोद में उनींदी मिली आश्चर्य और कुतूहल से मौसी को निहारते हुए बोली, ‘‘मौसी, बहुत सुंदर लग रही हो, आप तो. एकदम मम्मी जैसे सजी हो.’’

उस के इस वाक्य ने सहज ही अर्चना को नई श्रेणी में ला खड़ा कर दिया. उसी एक पल में अनेक प्रतिक्रियाएं हुईं. अर्चना लजा गई. संजय ने प्यार से अपनी सुंदर पत्नी को निहारा. आकाश की नजर उन दोनों से फिसल कर सुमन पर स्थिर हो गई. सब के चेहरे पर खुशी और संतोष झलक रहा था. अर्चना के चेहरे पर लाली देख कर मन फूलों सा हलका हो गया.

ये भी पढ़ें- आवारा बादल: क्या हो पाया दो आवारा बादलों का मिलन

तभी अर्चना का अधिकार भरा स्वर गूंजा, ‘‘संजय, घर पर फोन कर दीजिए कि हम लोग पहुंच गए हैं और पूछिए बबलू की तबीयत अब कैसी है?’’

दोनों ही चौंके, अर्चना कब से लोकव्यवहार निभाने लगी. अभी 4 महीने

पहले की ही तो बात है. सुमन को बुखार हो गया था. किंतु घर में रह कर भी 3 दिन तक अर्चना को खबर नहीं हुई थी. नौकर के सहारे उस का काम चल रहा था. आकाश के हाथ में ब्लड रिपोर्ट और दवाओं को देख वह चौंकी थी. ‘‘किस की तबीयत खराब है… मिली की…’’

वही अर्चना आज चिंतातुर दिख रही थी. हमें लगा या तो यह चमत्कार है या फिर दिखावा. चाय पी कर दोनों फ्रैश होने अपने कमरे में चले गए थे. अर्चना के जाने के बाद से उस का कमरा वैसा ही था. ये दोनों भी अपने कमरे में आ गए.

आकाश अलमारी खोलते हुए बोले, ‘‘चलो तुम्हारी बहन गृहस्थी के दांवपेंच सीखने लगी है. अभी तक का परफौर्मैंस तो अच्छा है.’’

तभी अर्चना प्रकट हुई, ‘‘आप लोगों के पास मेरे अलावा और कोई बात नहीं है क्या?’’ वह इठलाते हुए बोली.

इन्होंने भी चुटकी ली, ‘‘है कैसे नहीं? अब इंटरवल के बाद का सिनेमा देखना बाकी है. फर्स्ट हाफ तो हम ने रोरो कर बहुत देखा. उम्मीद है अगला हाफ अच्छा होगा,’’ पहली बार आकाश ने प्यार से उस के सिर पर चपत लगाई और बाहर चले गए.

‘‘और बता तेरी ससुराल में सब कैसे हैं? सब से निभती है न तेरी? तू खुश तो है न?’’

अर्चना सिलसिलेवार बताती चली गई. इस 1 महीने में कब क्या हुआ? किस ने क्या कहा? उसे कैसा लगा? कैसे उस ने सहा? कैसे छिपछिप कर रोई? कैसे सिरदर्द और बुखार में न चाहते हुए भी काम करना पड़ा था. ननद के जिद्दी बच्चों की अनगिनत फरमाइशें. छोटी ननद के नखरे आदि.

वह मिली को चूमते हुए बोली, ‘‘अपनी मिली कितनी अच्छी है, जरा भी जिद नहीं करती.’’

अपनी प्रशंसा सुन मिली खुश हो गई. मौसी का लाया प्यारा सा लहंगा पहनने लगी.

एकाएक अर्चना दार्शनिक अंदाज में बोली, ‘‘दीदी, तुम ही कहती थी, न कि

कुछ बातें लोकव्यवहार और कुछ शालीनता या कहो फर्ज के दायरे में आ कर जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं. इन के परिवार का अधिकार है मेरे आज के जीवन पर उसी के एवज में तो पति का स्नेहमान पाती हूं. ये तमाम सुखसुविधाएं, गहनेजेवर, घूमनाफिरना, होटलों में खाना सब सासससुर की कृपा से ही तो है. उन्होंने ही मेरे पति पर अपना प्रेम, पैसा, मेहनत लुटाई तभी तो वे इस काबिल हुए कि मैं सुख भोग रही हूं…

‘‘तुम ठीक कहती थीं, दीदी. ससुराल वालों के लिए करने का कोई अंत नहीं है. बस चेहरे पर मुसकान लिए करते जाओ. पर सब अपनेआप हो गया. मैं तुम्हें कितना कमेंट करती थी कि बेकार अपना पैसा लुटाती हो, व्यर्थ सब के लिए मरती हो. किंतु, जब खुद पर पड़ी तो तुम्हारी स्थिति समझ आई…’’

इन चंद दिनों में ही वह कितना कुछ बटोर लाई थी कहनेसुनने को. फिर वह संजीदा हो कर बोली, ‘‘तुम्हारी बातों को अपना कर अब तक तो सब ठीक ही रहा है. मैं अपनी सारी बदतमीजियों के लिए दीदी माफी मांगती हूं.’’

ये भी पढ़ें- ट्रिक: मां और सास के झगड़े को क्या सुलझा पाई नेहा?

‘‘चल पगली कहीं की…मुझे तेरी किसी बात का दुख नहीं. बस तुम अच्छे से सामंजस्य बैठा कर चलना. तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है. और…बता…संजय अच्छे स्वभाव के तो हैं न…बेंगलुरु जा कर…फिर जौब ढूंढ़नी पड़ेगी तुझे,’’ आंसू छिपाते हुए सुमन ने बात बदली.

‘‘हां. नौकरी तो मिल जाएगी. लेकिन अभी नए घर की सारी व्यवस्था देखनी होगी. अब वे दिन लद गए जो कमाया उसे उड़ाया. तुम यही चाहती थीं न, दीदी. इसलिए मेरी शादी की इतनी जल्दी थी तुम्हें.’’

दोनों बहनों की आंखें सजल हो उठीं. तभी संजय ने पुकारा, ‘‘अर्चना…’’

अर्चना आंखें पोंछती हुई उठ खड़ी हुई. चंद ही महीनों में कितना बदलाव आ गया था उस में… उसे अपनी कमाई का कितना गर्व था.

एक बार उसे फुजूलखर्ची न करने की सलाह दी तो पलट कर यह टका सा जवाब दे कर मुंह बंद कर दिया था उस ने, ‘‘मेरा पैसा है मेरी मरजी जो करूं. मेरी मानो दीदी, तुम भी कोई नौकरी कर लो. नौकरी करोगी तो इन छोटीछोटी चिंताओं में नहीं पड़ोगी. जब देखो यही रोना. इस की क्या जरूरत है? कोई शौक नहीं. क्या सिर्फ जरूरत के लिए ही आदमी जीता है. इच्छाएं कुछ नहीं होती हैं जीवन में?’’

उस वक्त अर्चना की बातों ने अंदर तक चोट की थी. उसे लगा ठीक ही तो

कहती है. वह हर चीज जरूरत भर की ही तो खरीदती है… उसे कमी तो किसी बात की नहीं थी पर हां, अर्चना जैसी स्वतंत्र भी तो नहीं. तुरंत जो जब चाहती है वह तब ही कहां ले पाती है.

अर्चना नौकरी करती है तो उसे किसी के मशवरे की जरूरत नहीं रहती. उस के अंदर एक टीस सी उठी थी. वह उस दिन बिना बात ही आकाश से लड़ पड़ी थी.

वही अर्चना अब कह रही है कि नौकरी देखेगी. सच है. हर नारी स्वाभाविक रूप से ही परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढाल लेती है. अर्चना ने अपना कहा सच कर दिखाया था कि जब पड़ेगी न, तो तुम से बेहतर सब संभाल लूंगी. मन पर लदा बोझ पूरी तरह से हट गया.

आकाश ने आ कर टोका, ‘‘भई, घर में मेहमान हैं जरा, उन की तरफ ध्यान दो.

अर्चना की चिंता छोड़ो. उसे अपनी समझ से अपनी गृहस्थी बसाने दो. मुझे तो आशा है वह अच्छी पत्नी साबित होगी. शादी ऐसा बंधन है, जो, वक्त के साथ सब निभाना सिखा देता है.’’

तभी बगल वाले कमरे से चूडि़यों की खनखनाहट गूंजी. आकाश शरारत से होंठ दबा कर मुसकराए, ‘‘अब तो हम पर से भी धर्मपत्नीजी का सैंसर खत्म हो जाएगा वरना कैसे दूर भागती थीं. शर्म करो अर्चना घर में है. अब देखते हैं कैसे भगाती हैं,’’ कह कर वे बांहें फैला कर आगे बढ़े तो सुमन भी बिना किसी दुविधा के उन बांहों के घेरे में बंध गई.

ये भी पढ़ें- परख: प्यार व जुनून के बीच क्यों डोल रही थी मुग्धा की जिंदगी

क्या है सोशल मीडिया एडिक्शन

अकसर हम अपना अकेलापन या बोरियत दूर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं और फिर धीरेधीरे हमें इस की आदत हो जाती है. हमें खुद एहसास नहीं होता कि कैसे समय के साथ यही आदत एक नशे की तरह हमें अपने चंगुल में फंसा लेती है. तब हम चाह कर भी इस से दूर नहीं हो पाते. ड्रग एडिक्शन की तरह सोशल मीडिया एडिक्शन भी शारीरिक व मानसिक सेहत के साथसाथ सामाजिक स्तर पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.

हाल ही में अमेरिकी पत्रिका ‘प्रिवेंटिव मैडिसिन’ में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक यदि हम सोशल मीडिया प्लेटफौर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, गूगल, लिंक्डइन, यूट्यूब, इंस्टाग्राम आदि पर अकेलापन दूर करने के लिए अधिक समय बिताते हैं, तो परिणाम उलटा निकल सकता है.

शोध के निष्कर्ष में पता चला है कि वयस्क युवा जितना ज्यादा सोशल मीडिया पर समय बिताएंगे और सक्रिय रहेंगे, उन के उतना ही ज्यादा समाज से खुद को अलग थलग महसूस करने की संभावना होती है.

शोधकर्ताओं ने 19 से 32 साल की आयु के 1,500 अमेरिकी वयस्कों द्वारा 11 सब से लोकप्रिय सोशल मीडिया वैबसाइट इस्तेमाल करने के संबंध में उन से प्राप्त प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया.

अमेरिका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रमुख लेखक ब्रायन प्रिमैक के मुताबिक, ‘‘हमें स्वाभाविक रूप से सामाजिक प्राणी हैं, लेकिन आधुनिक जीवन हमें एकसाथ लाने के बजाय हमारे बीच दूरियां पैदा कर रहा है जबकि हम ऐसा महसूस होता है कि सोशल मीडिया सामाजिक दूरियां को मिटाने का अवसर दे रहा है.’’

सोशल मीडिया और इंटरनैट की काल्पनिक दुनिया युवाओं को अकेलेपन का शिकार बना रही है. अमेरिका के संगठन ‘कौमन सैस मीडिया’ के एक सर्वेक्षण ने दिखाया कि किशोर नजदीकी दोस्तों से भी सामने मिलने के बजाय सोशल मीडिया और वीडियो चैट के जरिए संपर्क करना पसंद करते हैं. 1,141 किशोरों को अध्ययन में शामिल किया गया था और उन की उम्र 13 से 17 साल के बीच थी.

35% किशोरों को सिर्फ वीडियो संदेश के जरिए मित्रों से मिलना पसंद है. 40% किशोरों ने माना कि सोशल मीडिया के कारण मित्रों से नहीं मिल पाते. 32% किशोरों ने बताया कि वे फोन व वीडियो कौल के बिना नहीं रह सकते.

ये भी पढ़ें- स्मार्ट वाइफ: सफल बनाए लाइफ

इंटरनैट की लत किशोरों के दिमागी विकास अर्थात सोचनेसमझने की क्षमता पर नकारात्मक असर डाल सकती है. लगातार आभासी दुनिया में रहने वाले किशोर असल दुनिया से दूर हो जाते हैं. इस से वे निराशा, हताशा और अवसाद के शिकार बन सकते हैं.

जरा ध्यान दीजिए कि कैसे सोशल मीडिया का जाल धीरे धीरे हमें अपनी गिरफ्त में ले कर हमारा कितना नुकसान कर रहा है. आजकल घरों में सदस्य कम होते हैं, तो अकसर या तो मातापिता ही बच्चे का मन लगाने के लिए उन्हें स्मार्टफोन थमा देते हैं या फिर अकेलेपन से जूझते बच्चे स्वयं स्मार्टफोन में अपनी दुनिया ढूंढ़ने लगते हैं. शुरू शुरू में तो सोशल मीडिया पर नएन ए दोस्त बनाना बहुत भाता है, मगर धीरेधीरे इस काल्पनिक दुनिया की हकीकत से हम रूबरू होने लगते हैं. हमें एहसास होता है कि एक क्लिक पर जिस तरह यह काल्पनिक दुनिया हमारे सामने होती है वैसे ही एक क्लिक पर यह गायब भी हो जाती है और हम रह जाते हैं अकेले, तनहा, टूटे हुए से.

जिस तरह रोशनी के पीछे भागने से हम रोशनी को पकड़ नहीं सकते ठीक उसी तरह ऐसे नकली रिश्तों के क्या माने जो मीलों दूर हो कर भी हमारे दिलोदिगाम को जाम किए रहते हैं?

किसी को यदि एक बार सोशल मीडिया की लत लग जाए तो बेवजह बारबार वह अपना स्मार्ट फोन चैक करता रहता है. इस से उस का वक्त तो जाया होता ही है कुछ रचनात्मक करने की क्षमता भी खो बैठता है, जिस से रचनात्मक काम करने से मन को मिलने वाली खुशी से सदा वंचित रहता है.

इंसान एक सामाजिक प्राणी है. आमनेसामने मिल कर बातें कर इंसान को जो संतुष्टि, अपनेपन और किसी के करीब होने का एहसास होता है वह सोशल मीडिया में बने रिश्तों से कभी नहीं हो सकता.

जब आप सोशल मीडिया पर होते हैं तो आप को समय का एहसास नहीं होता. आप घंटों इस में लगे रहते हैं. लंबे समय तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने पर कई तरह की शारीरिक व मानसिक समस्याएं भी पैदा होती हैं.

स्वास्थ्य पर पड़ता है असर

स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से नींद में कमी आ जाती है. आंखें कमजोर होने लगती हैं. शारीरिक गतिविधियों की कमी से तरहतरह की बीमारियां पैदा होने लगती हैं. याददाश्त तक कमजोर हो जाती है.

आजकल लोग किसी भी समस्या का तुरंत समाधान चाहते हैं. उन्हें इंटरनैट पर हर सवाल का तुरंत जवाब मिल जाता है. इसीलिए वे अपनी सोचनेसमझने की शक्ति खोने लगते हैं. दिमाग का प्रयोग कम हो जाता है. यह एक नशे की तरह है. लोग घंटों अनजान लोगों से चैट करते रहते हैं पर हासिल कुछ नहीं होता.

ये भी पढ़ें- मेरे जुनून ने मुझे फुटबौल का खिलाड़ी बनाया-सोना चौधरी

मेकअप करने से पहले जान लें ये 10 Rules

मेकअप के कुछ Rules होते हैं और ज्यादातर महिलाओं को इन के बारे में पता ही नहीं है. एक सर्वे से पता चला है कि 5 में से 1 को भी इन की कोई जानकारी नहीं थी और ज्यादातर लोगों ने तो इस बारे में सुना भी नहीं था. ये कीमती टिप्स अपना कर आप भी अपनी सुंदरता कामय रख सकती हैं.

1. फाउंडेशन पूरे चेहरे पर नहीं लगाना चाहिए

फाउंडेशन का इस्तेमाल सिर्फ उन जगहों पर करना चाहिए जहां स्किन के रंग में फर्क हो. फाउंडेशन शेड आप की स्किन से मिलता हुआ होना चाहिए. मान लीजिए कि आप की नाक के पास वाली स्किन हलकी सी काली है तो आप वहां पर फाउंडेशन लगा कर उसे आसपास फैला लें ताकि पूरी स्किन इकसार हो जाए.

2. आईब्रो पैंसिंल

इस का इस्तेमाल आईब्रोज को उभारने के लिए करें न कि आईब्रो बनाने के लिए. आईब्रोज चेहरे को साफसुथरा लुक देती हैं तो पैंसिल का प्रयोग उन के नैचुरल लुक को उभारने के लिए ही करें.

ये भी पढ़ें- सर्दियों में बालों की केयर के लिए ट्राय करें ये 7 होममेड टिप्स

3. प्राइमर का महत्त्व

अगर आप चाहती हैं कि आप का मेकअप ज्यादा देर तक टिके या जल्दी खराब न हो तो मेकअप करने से पहले प्राइमर लगाना न भूलें. यह आप के चेहरे को इकसार करेगा और आप का मेकअप भी टिका रहेगा. मेकअप से पहले आइस क्यूब चेहरे पर लगाने से भी मेकअप ज्यादा देर टिकता है और स्किन भी हाइड्रेटेड रहती है.

4. हम मेकअप पर तो ध्यान देते हैं पर उन के ब्रशेज पर नहीं

हम ब्रशेज की साफसफाई पर ध्यान नहीं देते और उन्हें ऐसे ही इस्तेमाल करते रहते हैं जिस से उन पर बैक्टीरिया पनपते रहते हैं और हमारी स्किन को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए मेकअप करने से पहले ब्रशेज को साबुन मिले गरम पानी में भिगो कर रखें. आप एक अच्छा ब्रश क्लीनर भी ले सकती हैं.

5. मसकारा लगाने से पहले आईलाइनर लगाएं

मसकारा लगा कर आईलाइनर लगाना थोड़ा मुश्किल है तो बेहतर यही होगा कि आप पहले आईलाइनर लगाएं फिर मसकारा.

6. मेकअप हमेशा हाइड्रेटेड स्किन पर ही करें

आप की स्किन पर मेकअप टिका रहे तो यह बहुत जरूरी है कि आप उस की देखभाल रोज करें. सीटीएम (क्लीनिंग, टोनिंग और मौइस्चराइजिंग) हमेशा याद रखें. इस से आप को मेकअप करने में आसानी होगी.

7. पाउडर का इस्तेमाल कम करें

चेहरे की कमियों को छिपाने के लिए लिक्विड फाउंडेशन का प्रयोग ठीक रहता है. इस से चेहरे के दाग और बाकी कमियां छिप जाती हैं. इस के बाद पाउडर लगाकर अच्छा बेस तैयार हो जाता है और मेकअप भी ज्यादा देर टिकता है.

ये बी पढ़ें- सर्दियों में विंटर वेडिंग के लिए जान लें मेकअप से जुड़ी ये जरूरी बातें

8. ब्राइट लिपस्टिक या ब्राइट ब्लशर

हमेशा ध्यान रखें कि मेकअप करते समय या तो ब्राइट लिपस्टिक लगानी है या फिर ब्राइट ब्लशर. दोनों एक साथ कभी भी आप को पिक्चर परफैक्ट लुक नहीं देंगे. अच्छा होगा कि मेकअप करने से पहले आप डिसाइड कर लें कि आप को ब्राइट लुक चाहिए या डस्की.

9. स्किन के मुताबिक ही स्क्रब खरीदें और इस का इस्तेमाल भी कम करें

ज्यादातर लोग सोचते हैं कि रोज स्क्रब करने से इन की स्किन चमकेगी. ऐसा नहीं है रोज स्क्रब करने से स्किन से जरूरी तेल निकल जाता है. इसलिए हफ्ते में 2-3 बार स्क्रब करना पर्याप्त है. बादाम को भिगो कर पीस कर स्क्रब बना कर लगाने से पोषण भी मिलेगा और स्किन को कोई नुकसान भी नहीं होगा.

10. लिप लाइनर और लिपिस्टक

ये दोनों एकदूसरे को कौंप्लिमैंट करते हैं, इसलिए इन का शेड भी मैच करें. आप ने देखा होगा महिलाएं एक लिप लाइनर खरीद लेती हैं फिर सभी लिपस्टिक की आउटलाइन उसी से करती हैं. अगर आप एक शेड डार्कर लिप लाइनर इस्तेमाल करेंगी तो यह आप के लिप्स की सुंदरता बढ़ा देगा.

ये भी पढ़ें- विंटर वेडिंग के लिए ऐसे करें तैयारी

बहुत आरामदायक है ये मौड्यूलर किचन

हर गृहिणी की इच्छा होती है कि उस के घर की किचन उस की इच्छा के अनुरूप सुव्यवस्थित तरीके से बनाई जाए. इस के लिए मौड्युलर या स्टाइलिश किचन से बैस्ट कुछ नहीं, क्योंकि इस से किचन आकर्षक व स्टाइलिश जो लगती है और साथ ही इसे इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि चाहे स्पेस कम हो या ज्यादा चीजें आसानी से रखी जा सकती हैं. मौड्युलर किचन की खास बात है इस का सुविधाजनक होना. जरा सोचिए खाना बनाना कितना मजेदार होगा जब सामग्री और बरतन हाथ बढ़ाते ही मिल जाएंगे. वरना तो आमतौर पर होता यह है कि मसाले के डिब्बों में वही डिब्बा सब से नीचे होता है जिस की जरूरत तुरंत होती है और उसी समय वह डिब्बा पाने की जद्दोजहद में कड़ाही में पक रही सब्जी जल जाती है. आइए, जानते हैं मौड्युलर किचन के फायदों के बारे में:

1. बदला बरतन रखने का अंदाज

पहले किचन बहुत सिंपल तरीके से डिजाइन की जाती थी, जिस में बरतन रखने के लिए स्टील के रैक्स लगाए जाते थे, जो न तो दिखने में अच्छे लगते थे और फिर सामान भी सामने रखा दिखाई देता था, मगर अब किचन प्लैटफौर्म के नीचे बरतनों की साइज, उन के इस्तेमाल के हिसाब से सुविधाजनक रैक बनाई जाती हैं. अलगअलग तरह के बरतनों के लिए उन के अनुसार जगह होती है. इन रैक्स की फिनिशिंग इतनी लाजवाब होती है कि इन्हें हर मेहमान के सामने फ्लौंट करने का मन करता है.

ये भी पढ़ें- कपड़ों में नहीं आएंगी सिलवटें

2. ज्यादा वर्क स्पेस

मौड्युलर किचन में ज्यादा स्पेस मिलने के बाद साथसाथ वर्क स्पेस भी अच्छी होती है. इसमें हर चीज के लिए जैसे बोतल रैक्स, प्लेट होल्डर्स, कटलरी कंपार्टमैंट, गारबेज होल्डर्स इत्यादि के लिए अलग से स्पेस होती है, जिस से चीजें इधरउधर बिखरी नहीं रहतीं व समय पर मिल जाती हैं. आजकल इंटरनैट व पत्रिकाओं के जरीए फ्यूजन, बेक्ड व फ्राइड रैसिपीज बनाने के नएनए तरीके गृहिणियां जाननेपढ़ने लगी हैं. नईनई रैसिपीज बनाने के नएनए उपकरण भी किचन में रखने का ट्रैंड बढ़ने लगा है. ओवन, ग्रिलरटोस्टर, डीप फ्रायर, ब्लैंडर जैसे उपकरणों को मौड्युलर किचन में इतने करीने के साथ लगाया जाता है कि जब मन चाहा इन का इस्तेमाल किया, वह भी किचन स्लैब पर बिना सामान फैलाए.

3. कुकटौप से बदली कुकिंग स्टाइल

जिस तरह पुरुष औफिस में अपने वर्क स्टेशन को सुविधाजनक और आधुनिक बनाने के प्रयास में रहते हैं, ठीक उसी तरह गृहिणी अपने वर्क स्टेशन यानी किचन को भी आधुनिक बनाना चाहती है. आजकल मल्टीबर्नर कुकटौप काफी ट्रैंड में हैं. इन की कोटिंग इतनी लाजवाब होती है कि एक बार साफ करने से ही चमक उठती है. ट्रैडिशनल स्टील कुकटौप पर खाना बनाने के बाद तो उसे साफ करना भी गृहिणी के लिए किसी टास्क से कम नहीं होता.

4. मेंटेन करने में आसान

स्टाइलिश किचन जहां दिखने में अच्छी लगती है वहीं इसे मैंटेन करना भी काफी आसान होता है, क्योंकि हलके कैबिनेट्स व काउंटर्स काफी स्मूद होते हैं व पानी से उन्हें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता. इसलिए उन्हें गीले कपड़े से भी बड़ी आसानी से साफ किया जा सकता है.

5. साइज व कलर औप्शंस भी ढेरों

अकसर जब भी हम मौड्युलर किचन बनवाने के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में यही सवाल उठता है कि क्या इस का खाका हमारी किचन को सूट करेगा या नहीं. आप को बता दें कि यह खास कर छोटी किचन को ध्यान में रख कर ही डिजाइन किया जाता है. इस में किचन में लंबी यूनिट्स, कैबिनेट्स, ड्रोअर्स इत्यादि वगैरा बनाए जाते हैं, जिन में सामान आसानी से सैट हो जाता है. वह बिखरा नहीं रहता. साथ ही इस में ढेरों कलर औप्शंस व डिजाइंस भी होते हैं, जैसे प्लेन व कलरफुल या फिर प्रिंट्स वाले भी होते हैं और अगर आप इस की बाहरी सतह पर मैट या ग्लौसी टच चाहती हैं, तो भी यह आप की पसंद पर ही निर्भर करता है. पति के औफिस और बच्चों के स्कूल जाने से पहले और बाद में भी गृहिणी का ज्यादातर समय किचन में ही बीतता है. ऐसे में इस जगह यानी अपने वर्क स्टेशन को आधुनिक और सुविधाजनक जरूर बनाएं.

ये भी पढ़ें- क्यों खास हैं खिलौने

शादी की खबरों की बीच सोशलमीडिया पर छाए Mouni Roy के इंडियन लुक्स, देखें फोटोज

टीवी से लेकर बौलीवुड में अपनी एक्टिंग का जलवा बिखेर चुकीं एक्ट्रेस मौनी रॉय (Mouni Roy) इन दिनों सुर्खियों में हैं. हालांकि इस बार उनके सुर्खियों में रहने का कारण उनकी शादी है. दरअसल, हाल ही में खबरें हैं कि मौनी जल्द ही अपने रुमर्ड बॉयफ्रेंड सूरज नांबियार (Suraj Nambiar) से शादी करने वाली हैं. हालांकि अभी तक इस पर एक्ट्रेस ने किसी भी तरह का कोई बयान नही दिया है. इसी बीच सोशलमीडिया पर फैंस के बीच उनके इंडियन लुक्स छा गए हैं. हर कोई उनके शादी के बाद के लुक्स को इमैजिन करता नजर आ रहा है. इसीलिए आज हम आपको शादी के बाद नई दुल्हन के लिए लुक्स दिखाएंगे.

1. मौनी रौय का लुक है स्टाइलिश

अगर आप ये जानना चाहती हैं कि सिंपल साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज को कैसे कैरी करें तो मौनी रौय का लुक आपके लिए एक उदाहरण साबित कर सकता है. ये लुक आपके लिए कम्फरटेबल के साथ-साथ स्टाइलिश भी साबित होगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 14 में अपने फैशन से फैंस का दिल जीत चुकीं हैं जैस्मीन भसीन, देखें फोटोज

2. लहंगे का औप्शन करें ट्राय

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

अगर आप वेडिंग सीजन में अपने लुक पर चार चांद लगाना चाहती हैं तो मौनी रॉय का ये लहंगा आपके लिए परपेक्ट औप्शन है. ये आपके लुक को स्टाइलिश के साथ-साथ खूबसूरत बनाएगा.

3. लाइट वेट लहंगा भी है परफेक्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

अगर आप वेडिंग सीजन में लाइट वेट वाला लहंगा ट्राय करना चाहती हैं तो मौनी रॉय का ये लहंगा आपके लिए अच्छा औप्शन है. प्लेन प्रिंटेड वाले इस लहंगे के साथ आप हैवी ज्वैलरी ट्राय कर सकती हैं. इससे आपके लुक को वेडिंग टच मिलेगा.

4. रफ्फल साड़ी करें ट्राय 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

अगर आप नए पैटर्न की साड़ी ट्राय करना चाहती हैं तो मौनी रॉय की ये रेड साड़ी देखें. इस लुक के साथ आपको हैवी ज्वैलरी की बजाय एक हैवी मांगटीका ट्राय करना चाहिए.

ये भी पढे़ं- शादी सीजन के लिए परफेक्ट हैं एक्ट्रेसेस के ये लोहड़ी लुक्स, देखें PHOTOS

5. वेडिंग के लिए ये लुक है परफेक्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

अगर आप वेडिंग सीजन में कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं. तो लाइट कलर की मौनी की ये लाइट कलर की साड़ी परफेक्ट है. सिंपल लाइट यैलो कलर की साड़ी के साथ गोल्डन एम्ब्रौयडरी वाली इस साड़ी के साथ आप गोल्डन झुमके ट्राय कर सकती हैं. साथ ही आप इस साड़ी के साथ ग्रीन को कौम्बिनेशन दे सकती हैं मौनी की तरह.

6. नई दुल्हन के लिए मौनी का लुक है परफेक्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

अगर आप नई नवेली दुल्हन हैं. और शादी के कुछ दिन बाद रिश्तेदारों से मिलने के लिए लाइट लेकिन परफेक्ट लुक चाहती हैं तो मौनी की ये रेड कौटन साड़ी परफेक्ट औप्शन है. आप इस साड़ी के साथ गोल्डन झुमके पहनकर मौनी की तरह बालों में जूड़ा बनाकर गजरा लगा सकती हैं.

7. वेडिंग में ट्राय करें मौनी की ये साड़ी

 

View this post on Instagram

 

A post shared by mon (@imouniroy)

अगर आप वेडिंग के लिए साड़ी के औप्शन तलाश रही हैं तो मौनी की ये गोल्डन कौम्बिनेशन वाली ये साड़ी आप ट्राय कर सकते हैं. ये आपके लुक को सिंपल के साथ-साथ ट्रेंडी के साथ-साथ ट्रेडिशनल है. इसके साथ आप हैवी गोल्डन ज्वैलरी ट्राय कर सकते हैं.

बोझमुक्त: क्या सुमन के खिलाफ जाकर शादी करना अर्चना का सही फैसला था?

Serial Story: बोझमुक्त (भाग-2)

कुछ ही दिनों में नए काम पर जाने लगी थी वह. अच्छी नौकरी का गरूर स्वभाव में भी झलकने लगा था. वह जबतब ऊंचे स्वर में नौकर पर चिल्लाती. ‘चाय नहीं बनी अभी तक?’, ‘मेरा नहाने के पानी का क्या हुआ?’, ‘मैं कह कर गई थी, मेरा कमरा क्यों नहीं ठीक किया?’, ‘आज का पेपर कहां है?’, ‘मेरे जूते किस ने हटाए?’ आदि.

अर्चना ऊंचे स्वर में अपनी बौखलाहट दिखाती और सुमन सारे काम छोड़ दौड़ कर उस की परेशानी दूर करने में लग जाती. ममता में अंधी जान ही नहीं पाई कि कब और कैसे वह अपनी छोटी बहन के हाथों की कठपुतली बन गई. यहां तक कि नौकर भी उस की अवहेलना कर अर्चना का काम पहले करता. अपने घायल स्वाभिमान की रक्षा वह नौकर को डांट कर या मिली को पीट कर करती.

मन ही मन सुमन अर्चना को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगी. अकसर दोनों में कहासुनी हो जाती. आकाश चुटकी लेते, ‘‘भई, तुम दोनों पहले एक ही घर में एकसाथ रहा करती थीं न… पर लगता नहीं.’’

पर क्या सारा कुसूर सुमन का ही था. अर्चना का रूखा व्यवहार ही उसे उकसाता. बड़ी बहन का आदर करना तो दूर, उलटा उस में दोष ढूंढ़ने में उसे आनंद आता.

‘‘दीदी, तुम कैसे आउटडेटेड कपड़े पहनती हो. जरा लेटैस्ट ट्राई करो. क्या आंटी बनी घूमती रहती हो, चलो, तुम्हारा हुलिया चेंज करवा कर आते हैं.’’

ये भी पढे़ं- मन की खुशी: मणिकांत के साथ आखिर ऐसा क्या हो रहा था

अपनी बिंदास पर्सनैलिटी का वह बड़े फख्र से प्रदर्शन करती, इतना ही नहीं, सब के सामने बातबात में दीदी के लिए ‘ईडियट’, ‘स्टूपिड’ और ‘शटअप’ जैसे संबोधनों का भी प्रयोग करने से वह नहीं चूकती.

एक दिन तो खाने की टेबल पर आकाश से परिहास कर बैठी कि क्या जीजाजी, किस से शादी कर ली. आप की बीवी को तो न घर सजाना आता है न ढंग का खाना बनाना.

‘‘सारे अदबलिहाज ताक पर रख दिए तुम्हारी बहन ने. क्या कहना चाहती थी… वह बहुत काबिल है तुम से? तुम्हारे कारण बरदाश्त करता हूं उस को वरना…क्या मुसीबत मोल ले ली.’’

पति का प्रेम भरा स्पर्श पा कर सुमन रो पड़ी, ‘‘देखो सुमन, तुम बहुत इमोशनल हो और वह तुम्हारी इसी भावुकता का फायदा उठा कर तुम्हें बेवकूफ बनाती है. तुम उस के लिए बस एक सुविधा का साधन मात्र रह गई हो.’’

अब तक सुमन आकाश के सामने बात न बढ़े, यह सोच कर मन मसोस कर रह जाती थी. सोचती, व्यक्ति का व्यवहार उस की परवरिश का ही परिचायक होता है. क्या सोचेंगे वे जराजरा सी बात पर लड़ पड़ती हैं दोनों बहनें. इसलिए कभी हंस कर तो कभी क्रोध जता कर शांत रहती. पर आकाश, वे तो सब जानते थे कि कैसे उस की अपनी ही बहन उस के अपने ही घर में उस के प्रभुत्व को नकार रही है.

एक दिन की घटना ने सुमन को जमीन पर ला पटका. वह अपनी सहेली से फोन पर बात कर रही थी कि अचानक उस के हाथ से रिसीवर छीनते हुए मिली बोली, ‘‘यू ईडियट. ममा, जरा चुप करोगी… मैं कार्टून देख रही हूं.’’

अपनी बेटी के मुंह से अपने लिए ‘ईडियट’ शब्द सुन सन्न रह गई थी, सुमन.

5 बरस की मिली भी मौसी से प्रभावित हो कर उसी की नकल करने लगी थी. सुमन अपमान न सह सकी और 3-4 थप्पड़ मिली के कोमल गालों पर लगा दिए.

कई घंटों की कोशिशों के बाद वह चुप हो पाई थी. सुमन मिली को सीने से चिपकाए सोचती रही कि किस कगार पर आ कर लुप्त हो गया उस का व्यक्तित्व अपने ही घर में?

5 बरस की बच्ची भी भाषा के अंतर की महिमा समझ गई थी. नौकर की दबी हंसी फांस सी चुभ गई सुमन के कलेजे में. उस के दिए संस्कारों की धज्जियां उड़ गई थीं. सारे आदर्श ताक पर रख दिए गए.

शाम को बेटी का उतरा चेहरा देख घबरा गए थे आकाश. पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा? किस ने मारा?’’

मिली ने रोरो कर पापा से सब कह दिया. उन का भी पारा चढ़ गया. दिन भर के थकेहारे वे फट पड़े, ‘‘बहन इतना कुछ बोल जाती है, मजाक उड़ाती है, इसलिए, सब सहन होता है और छोटी सी बच्ची पर हाथ उठ गया. तुम मां हो कि कसाई?’’

सहमी सी मिली और चिपट गई पापा से कि कहीं मां फिर न मार दे कि शिकायत क्यों की. इस सब से बेखबर अर्चना टीवी देख रही थी. उस पर जीजाजी के चिल्लाने का, मिली के रोने का कोई असर नहीं था.

उसे इस बात की भी परवाह नहीं थी कि घर का नौकर पीछे खड़ा नायकनायिका का झरने के नीचे चिपटने का दृश्य आंखें फाड़े देखे जा रहा है. सुमन ने जा कर टीवी बंद कर दिया.

‘‘यह क्या तरीका है, दीदी,’’ वह तमतमा कर टीवी की ओर बढ़ी.

सुमन ने बीच में ही रोक दिया, ‘‘देखो अर्चना, घर में रहने के कुछ कायदे होते हैं. तुम अकेली नहीं हो यहां और भी लोग रहते हैं. तुम्हें ध्यान रखना चाहिए कि घर में एक नौकर भी है. कम से कम ऐसे वाहियात प्रोग्राम मेरे घर में नहीं चलेंगे. थोड़ा तमीज सीखो.’’

‘‘तुम्हें नहीं देखना, तो मत देखो. नौकर के पास कोई काम नहीं है तो उसे बरामदे में बैठा दो. नौकर के डर से मैं टीवी देखना बंद नहीं कर सकती.’’

‘‘जो भी है मिली की तबीयत खराब है, टीवी नहीं चलेगा,’’ उस ने दृढ़ता से कहा.

ये भी पढे़ं- फैसला: सुरेश और प्रभाकर में से बिट्टी ने किसे चुना

रिमोट पटक कर उठ खड़ी हुई अर्चना और फिर बोली, इसीलिए मैं यहां तुम लोगों के साथ रहने आना नहीं चाहती थी. तुम सब ने ही जिद कर के मुझे बुलाया. तब तो सब की बोली में प्रेम टपक रहा था… और अब मैं बोझ लगने लगी हूं. अगर मेरे रहने से इतनी तकलीफ है तो चली जाऊंगी मैं यहां से…’’

उस दिन किसी ने खाना नहीं खाया. सुमन पति के सामने शर्म से निगाहें नहीं उठा पा रही थी. कितने प्यार और विश्वास के साथ उन्होंने अर्चना को घर में जगह दी थी. जिसे सामंजस्य बैठाना चाहिए था, वही मौज मना रहा था. उलटा घर वाले मन मसोस कर जी रहे थे. मिली का रोना भी उसे नहीं पिघलाता. महीने भर में ही वह सब के लिए सिरदर्द बन गई थी. सब उस से कन्नी काटते, जो उस के लिए अच्छा ही था. उस पर से अंकुश जो हट गया था.

‘‘मम्मी, मौसी कब आएंगी?’’ मिली बोली.

‘‘आ जाएंगी, बेटी. तुम सो जाओ. वे आएंगी तो मैं तुम्हें जगा दूंगी.’’

हलके हाथों की थपकियों ने थोड़ी ही देर में मिली को नींद के आगोश में सुला दिया. पता नहीं अब भी उस में बदलाव आया या नहीं. ससुराल में कौन उस के नखरे सहता होगा. उम्र बढ़ने के साथ थोड़ी परिपक्वता, स्वभाव में नर्मी, धैर्य तो हर लड़की में आता है, लेकिन वह इन सब किताबी बातों से अछूती थी.

आगे पढ़ें- उस से छुटकारा पाने के लिए सुमन ने…

ये भी पढ़ें- पार्टनर: पाने के लिए कुछ खोना भी तो पड़ता है

Serial Story: बोझमुक्त (भाग-1)

‘‘मम्मी, मौसी कब आएंगी?’’

‘‘बस थोड़ी देर में बेटा, पापा गए हैं लाने.’’

‘‘अब मौसाजी भी हमारे साथ ही रहेंगे जैसे मौसी रहती थीं?’’

‘‘नहीं बेटा सिर्फ 1 रात रुकेंगी. मौसी का बहुत सारा सामान है न यहां. कल वे लोग अपने घर चले जाएंगे बेंगलुरु.’’

‘‘तो फिर मौसी हमारे यहां कभी नहीं आएंगी?’’

‘‘हां बेटा, अब तंग मत करो. जा कर खेलो. मुझे काम करने दो…’’

आकाश अर्चना को लेने स्टेशन पहुंच गए. आज अर्चना आ रही थी. खुशी से सुमन की आंखें गीली हो रही थीं.

महीना भर पहले अर्चना इस घर की एक सामान्य सदस्य थी. जब वह पहली बार यहां आई थी तब भी इतनी तैयारियां नहीं हुई थीं, उस के स्वागत की. लेकिन शादीशुदा होते ही मानो उस का ओहदा बढ़ गया था. छोटी बहन की आवभगत में वह कोई कोरकसर नहीं छोड़ना चाहती थी.

आकाश ने छेड़ा भी था, ‘‘एक दिन के लिए इतनी तैयारी? कोई गणमान्य अतिथि आ रहा है क्या?’’

वह भावुक हो उठी थी, ‘‘अतिथि ही तो हो जाती है, ब्याहता बहन. अब चाह कर भी उसे और नहीं रोक पाऊंगी और न ही पहले की तरह वह जब जी चाहे छुट्टी ले कर मेरे पास आएगी. इस एक रिश्ते ने बरसों के हमारे रिश्ते और अधिकारों की परिभाषा बदल दी. पर जब रोकने का अधिकार था तब मैं ने ही तो उसे घर से निकाल दिया था…’’

ये भी पढ़ें- Short Story: बैंगन नहीं टैंगन

सुमन सुबकने लगी तो आकाश ने प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, सब ठीक होगा. तुम व्यर्थ अपने को दोषी मानती हो. अब उस के सामने इन सब बातों का जिक्र नहीं करना. उसे प्यार से विदा करना,’’ और फिर तैयार हो कर वे स्टेशन रवाना हो गए.

किंतु सुमन के मन में उथलपुथल सी मची रही. वह सोचने लगी कि यह सब वह अर्चना के प्रति अपने प्रेम के लिए कर रही है या उस ग्लानि से नजात पाने का उस का प्रयास भर है. शायद वह तब भी स्वार्थी हो उठी थी और अब भी यह उस का स्वार्थ ही है, जो वह उसे खुश कर देना चाहती है ताकि उस के पति के सामने उन के गिलेशिकवे न प्रकट हों.

सुमन सोचने लगी कि पता नहीं अर्चना कैसी होगी? शादी से खुश भी है या नहीं? उस की ही जिद के आगे मजबूर हो कर शादी की थी उस ने. कितना लड़ी थी वह उस से. जाने कितने उलाहने ले कर आएगी, अर्ची. पर मिलने की खुशी से उस की नाराजगी पल भर में छूमंतर हो गई.

फिर सुमन की सोच उड़ान भरने लगी… कि उस ने कोई गुनाह तो नहीं किया था. उस का भला ही तो चाहा था. सांसारिक नियमों का पालन करते हुए ही तो उस का विवाह कराया था. माना लड़का उस को पसंद नहीं था, पर उस की जिद के आगे कितने रिश्ते हाथ से निकल गए थे. पढ़ीलिखी एम.ए. पास, सुंदर, स्मार्ट और एक जानीमानी ऐडवर्टाइजिंग फर्म में अच्छी तनख्वाह पाने वाली अर्चना सब को भा जाती पर उसे ही कोई अच्छा नहीं लगता था.

धीरेधीरे अर्चना के अच्छे भविष्य की कामना रखने वाली, सदा ‘अपने जीवन का फैसला खुद करना चाहिए’ का पाठ पढ़ाने वाली, सुमन, अनजाने ही उस की लापरवाह, मस्त, अल्हड़ जिंदगी जीने के अंदाज से चिढ़ने लगी थी. उस की अपनी भी एक जिंदगी थी, जिस की लय बिखर रही थी. बहुत हद तक इस की जिम्मेदार वह अर्चना को मानने लगी थी. कितने समीकरण बने और बिगड़े इस 1 साल में.

आकाश एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ब्रांचमैनेजर बन कर दिल्ली आ गए. कंपनी की तरफ से फ्लैट, गाड़ी, फोन और तमाम सुविधाएं पा कर बहुत खुश थे दोनों. मिली का दाखिला भी एक अच्छे पब्लिक स्कूल में हो गया. नए घर में दिन मजे में बीत रहे थे.

एक दिन आकाश बोले, ‘‘इतना बड़ा घर कंपनी ने दिया है और हम कुल मिला कर ढाई प्राणी. यहां जौब मार्केट अच्छा है. अर्चना को भी यहीं बुला लेते हैं. उसे भी घर का माहौल मिलेगा और साथ ही तुम्हें भी बहन का साथ मिल जाएगा.’’

आकाश की बातें सुन खुशी से बौरा गई थी. सुमन शादी के इतने बरसों के बाद छोटी बहन का साथ पाने की लालसा से मन गद्गद हो उठा और फिर अगले ही पल उस ने अर्चना को फोन पर सारी बातें बताईं और आने का आग्रह किया.

‘‘थैंक्यू, सो मच दीदी. पर मैं यहां ठीक हूं. जौब अच्छी है. यहां एक रैपो बना हुआ है सब के साथ. वहां फिर से फ्रैश स्टार्ट करना पड़ेगा. आप लोगों को भी परेशानी होगी. मैं यहां सैटल हो गई हूं…’’

पर काफी जोर देने पर वह मान गई. मम्मीपापा सब इस प्रस्ताव से खुश थे. पापा ने कहा, ‘‘वह तुम्हारे साथ रहेगी तो हम चिंतामुक्त रहेंगे. अकेली लड़की घर से इतनी दूर रहती है, सोच कर मन हमेशा आशंकित रहता है.’’

मम्मी ने कहा था, ‘‘उसे कुछ घर के तौरतरीके भी सिखाना. उस के लिए लड़का भी देखना. अब वह अपने पैरों पर भी खड़ी है. एक ही जिम्मेदारी है इस से भी मुक्त हो जाएं.’’

एक महीने बाद ही इस्तीफा दे कर अर्चना अपना सारा सामान समेट कर सुमन के पास आ गई. कुछ दिन तो उस ने नएताजे अनुभव सुनने और हंसने में गुजर गए. लेकिन धीरेधीरे उस के स्वभाव की खामियां जाहिर होने लगीं. अपनी नींद, अपना आराम, अपनी सुविधाओं के साथ जरा सी भी ऐडजस्टमैंट उसे बुरी लगती.

ये भी पढ़ें- छाया: वृंदा और विनय जब बन गए प्रेम दीवाने

शुरूशुरू में उस की तमाम हरकतों और नादानियों को दोनों यह सोच कर नजरअंदाज करते रहे कि कम उम्र में परिवार से अलग रहने की वजह से वह आत्मकेंद्रित हो गई है. आखिर होस्टल की जिंदगी जहां पूरी आजादी देती है, वहीं इंसान को अकेला भी तो कर देती है. व्यक्ति जरूरत से ज्यादा आत्मनिर्भर और आत्मकेंद्रित हो जाता है. अपने अच्छेबुरे कर्मों के लिए वह स्वयं जिम्मेदार होता है. सारी तकलीफें, अकेलापन, परेशानियां, खुशियां सब अपने तक रखने की आदत हो जाती है. आखिर घर के लोगों से दूर परायों के बीच आप कितना कुछ बांट पाते हैं?

‘‘देखो, अब तक तो अपनेआप को वही संभाल रही थी न? अब उसे घर के माहौल में ढलने में तो थोड़ा वक्त लगेगा ही.’’

‘‘पर घर से बाहर तो 4-5 सालों से रह रही है. पहले तो घर में ही रहती थी.’’

‘‘तुम्हारी शादी के समय वह 15 साल की थी. मम्मीपापा की लाडली रही है. तुम खुद को परेशान मत करो.’’

किंतु, अपनी ही बहन का अजनबियों सा व्यवहार उसे सालने लगा था कि कल तक जिस बहन की काबिलीयत पर उसे इतना गुमान था, जिस की छोटीछोटी उपलब्धियां भी बड़ी लगती थीं, अब उसी लाडली बहन में उसे सौ खोट दिखाई देने लगे थे.

आगे पढ़ें- कुछ ही दिनों में नए काम पर…

ये भी पढ़ें- कफन: अपने पर लगा ठप्पा क्या हटा पाए रफीक मियां

Serial Story: बोझमुक्त (भाग-3)

उस से छुटकारा पाने के लिए सुमन ने जोरशोर से लड़का देखना शुरू किया. अच्छा रिश्ता मिलना बहुत ही कठिन काम था, लेकिन उसे हर रिश्ता ही अच्छा लगता और फिर अच्छे रिश्ते की कोई विशेष परिभाषा तो होती नहीं. उसे बस एक ही चिंता रहती कि ज्यादा देर हो गई तो अर्चना को सामंजस्य बैठाने में परेशानी होगी. कितने जतन किए थे अर्चना की शादी के लिए. कितने झूठ बोले थे.

जहां परिचय बढ़ता वह चुस्त हो जाती. अपने चेहरे की मुसकान और मधुर व्यवहार से पहली ही मुलाकात में लड़के वालों को प्रभावित कर लेना चाहती थी, मानो उस के गुणों को देख कर ही वे लोग अर्चना से रिश्ते के लिए हां कर देंगे.

सुमन कहती, ‘‘मेरी बहन बहुत जिम्मेदार और मेहनती है. जौब के साथसाथ घर के कामों में भी निपुण है. घर सजाने और नएनए व्यंजन बनाने का बहुत शौक है इसे. मेरी बहन है, इसलिए नहीं कह रही. सच में शी इज वैरी नाइस, वैरी टैलेंटेड.’’

अर्चना सिर झुकाए उस की बेबसी पर मंदमंद मुसकराती रहती. कैसी विडंबना थी? जो मन का बोझ थी, उसी की तारीफ में कसीदे पढ़ती. उस के सारे अवगुण छिपा जाती. कहती कैसे? कोई अपने सिक्के को खोटा बताता है? अपनी बहन का अच्छाबुरा सोचना सुमन का फर्ज था. किंतु अर्चना इन सब परेशानियों से बेखबर, बिंदास जीवन जी रही थी. उसे किसी से कोई सरोकार नहीं था.

कभीकभी तो सुमन चिढ़ कर कहती, ‘‘भाड़ में जाए, मेरा क्या. जब उम्र निकल जाएगी और ठोकर खाएगी तब अक्ल आएगी.’’

ये भी पढ़ें- जिंदगी कभी अधूरी नहीं होती: वही हुआ जिस का खुशी को शक था

पर तब तक तो उसे ही झेलना पड़ेगा और उस का धैर्य चुकता जा रहा था. वह जल्द से जल्द बोझमुक्त हो जाना चाहती थी या फिर अर्चना को सबक सिखाना चाहती थी. उस ने प्रयास जारी रखा.

किसी को ऐसी नहीं वैसी तसवीर चाहिए. लड़के के मांबाप पूछते, ‘‘लड़की गांवदेहात में रह लेगी?’’

कहीं मातापिता को सब भाता तो लड़के को लड़की तेज लगती. कहीं सुंदरता भाती तो हाइट कम लगती. किसी को पापा का रिटायर होना कमतर लगता, क्योंकि दहेज खास नहीं मिलेगा. किसी को उस की प्राइवेट नौकरी ही पसंद नहीं आती. सरकारी होती तो अच्छा था. बहुत समय तक बाहर रहना पड़ता है. ऐसे में घर कैसे संभालेगी? हर बार कोई न कोई कसर रह ही जाती.

एक समान प्रश्न हर लड़के की मां पूछती, ‘‘आप की बहन होस्टल में रही है. परिवार में नहीं पली है. तो क्या परिवार में सामंजस्य बैठा पाएगी? नौकरी के साथसाथ घर, रिश्तेदारी सब निभा पाएगी?’’

यह कठिन प्रश्न था, जिस का जवाब देते जबान लड़खड़ा जाती. कैसे झूठ बोले? बात तो सच थी. दिल सौ बंधनों में जकड़ जाता. इस सौदे में हर व्यक्ति थोड़ाबहुत छल तो करता ही है. किंतु उस के अंदर धोखा देने का एहसास ज्यादा गहरा जाता.

फिर भी मुसकरा कर धीमे स्वर में कहती, ‘‘परिवार में ही पली है, आंटी. होस्टल में तो कुछ साल ही रही है. अपने संस्कार तो परिवार से जुड़ कर रहना ही सिखाते हैं. मेरी ही बहन है. जैसा आप कहेंगी आप के सिखाए अनुसार सब करेगी.’’

सच तो यह था जब बात नहीं बनती तो एक प्रकार का हलकापन महसूस करती, जैसे कोई बड़ा अपराध करने से बच गई. अंतत: काफी दौड़धूप, देखनेदिखाने के बाद यह रिश्ता आया था. अर्चना को यह रिश्ता भी पसंद नहीं था. सुमन को, उस का अपने जीवन पर ऐसा नियंत्रण देख उस से ईर्ष्या होने लगी थी.

‘‘पापा, आप लोगों को मेरी शादी की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं कोई मजबूर व लाचार नहीं हूं कि आप लोग जिसतिस के पल्ले बांध कर मुझ से छुटकारा पाना चाहते हैं,’’ अर्चना ने कहा.

पापा की खामोशी ने आग में घी का काम किया. सुमन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा, ‘‘तुझ जैसी बददिमाग, जिद्दी लड़की से जो भी शादी कर रहा है, हम पर एहसान कर रहा है. उस का तो भविष्य अंधकारमय है ही… हम लोग तुम्हारे कन्यादान के कर्ज से मुक्त हो जाना चाहते हैं. तुम्हारी वजह से मेरे घर की शांति नष्ट हो रही है. तुम जल्द से जल्द इस घर से विदा होओ. फिर उस घर को जोड़ो चाहे तोड़ो, मेरी बला से. पर अब मेरा घर खाली करो.’’

डबडबाई आंखों से बिना कुछ कहे वह उठ गई थी. पापा को भी स्थिति के विस्फोटक होने का भान नहीं था. सब सहम गए थे कि कहीं वह कुछ कर न बैठे. लेकिन वह खामोश ही रही सारा दिन. पापा फैसला नहीं कर पा रहे थे. एक तरफ जान से प्यारी चांद सी अर्चना और दूसरी तरफ मनचाहे वर का मुंहमांगा दाम और अनिश्चित इंतजार. 2 दिन तक वे टकटकी लगाए दोनों बहनों का शीतयुद्ध देखते रहे.

आकाश ने इन सब से खुद को अलग कर लिया था. सुबह दफ्तर निकल जाते और शाम को दफ्तर से आते ही मिली के साथ खेलने में व्यस्त हो जाते.

एक बेटी का घर बसाने में कहीं दूसरी बेटी का बसाबसाया संसार न उजड़ जाए, यह सोच कर और उस की खामोशी का फायदा उठा कर पापा ने इस रिश्ते पर स्वीकृति की मुहर लगा दी. आननफानन में दिन भी तय कर दिया गया. बिना किसी हीलहुज्जत के यह शादी संपन्न हो गई थी.

फेरों के समय अर्चना सूनी आंखों से शून्य में देखती रही थी. उस की बेबसी सब को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. सारी यादें आंसू बन कर गालों पर बह आईं. इस 1 महीने में न जाने कितनी बार स्वयं को दोषी मान कर पछताई थी सुमन.

ये भी पढ़ें- आखिर कब तक: मनु ने शुभेंदु की ऐसी कौन सी करतूत जान ली

जिस अर्चना ने कभी नियमपूर्वक कोई काम नहीं किया था उस के हाथ में इतने बड़े परिवार की बागडोर थमा दी गई थी.

4 भाईबहनों में सब से बड़े संजय, बेंगलुरु की एक प्रतिष्ठित कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर थे. एक बहन ब्याहता, एक कुंआरी और एक ग्रेजुएट देवर. पिता रिटायर स्कूल मास्टर थे. लड़के की मां नहीं थी.

‘‘हमें और कुछ नहीं चाहिए. आप अपनी सुविधानुसार ही सब करें. संजय की मां को बस सुंदर दुलहन की आस थी,’’ संजय के पिता ने कहा तो दोनों बहनों ने भी मुसकरा कर पिता की बात का समर्थन किया था.

और पापा ने भी निरर्थक मुसकरा कर लाचार पिता की भांति अर्चना का हित नजरअंदाज कर दिया. विवाह के मामले में आज भी लड़की वाले समझौते का ही सौदा करते हैं. पर यहां तो मजबूरी और भी थी. विवाह होने तक सब अपनी राय देते रहे.

कोई कहता, ‘‘उम्र में अर्चना से 7 साल बड़ा और सुंदरता में अर्चना के बराबर नहीं है तो क्या हुआ? वह अपने पैरों पर खड़ा है और फिर आगे तरक्की ही करेगा.’’

कोई कहता, ‘‘लड़के की सुंदरता नहीं, गुण देखने चाहिए.’’

अर्चना रोधो कर अपनी ससुराल विदा हो गई थी. पर उस का मन खुद को कभी माफ नहीं कर पाया.

‘‘मेरे अहम और जिद ने क्या से क्या कर दिया. मेरे ही कारण अर्चना ने मन मार कर समझौता किया. वह कहीं से अर्चना के लायक नहीं था. इतना बड़ा परिवार…मैं ने उस की जिंदगी बरबाद कर दी…अब कभी उस को हंसतामुसकराता नहीं देख पाऊंगी…कैसे निभाएगी?’’

फोन की घंटी बजी. सुमन ने दौड़ कर रिसीवर उठाया, आकाश ने सूचना दी, ‘‘हम लोग चल पड़े हैं. बस थोड़ी देर में पहुंचते हैं.’’

आगे पढ़ें- दिल की धड़कनें तेज हो गईं. यह इंतजार…

ये भी पढ़ें- चिड़िया खुश है: बड़े घर की बहू बनते ही अपनी पहचान भूल गई नमिता

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें