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औफिस गर्ल: मेकअप और हैल्दी डाइट

महिलाओं को 2 चीजें सब से ज्यादा प्यारी होती हैं, हैल्दी बौडी और मेकअप. इस से न केवल उन में निखार आता है, बल्कि वे स्मार्ट और ऐक्टिव भी नजर आती हैं. और अगर वे औफिस में काम करती हैं तो अपनी ब्यूटी को ले कर ज्यादा ही सतर्क रहती हैं.

इस सतर्कता में अच्छा खाना और सही मेकअप बहुत ज्यादा माने रखता है, वरना स्वाति जैसा हाल भी हो सकता है. स्वाति एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती है, पर औफिस में किस तरह का मेकअप करना है या क्या खानापीना है, इसे ले कर वह बेपरवाह हो जाती है. एक तो वह अपने आकार में कुछ ज्यादा ही हैल्दी है और उस पर मेकअप भी हैवी कर लेती है, इसलिए पीठ पीछे उस का बहुत ज्यादा मजाक बनता है.

पर इस का हल क्या है? क्या औफिस के लिए कोई खास तरह का मेकअप होता है? क्या सही खानपान किसी औफिस गर्ल को सब की चहेती बना सकता है? ऐसा क्या किया जाए कि कोई महिला अपने औफिस में हंसी का पात्र न बने?

इन सब सवालों का जवाब देते हुए डाइटीशियन और मेकअप आर्टिस्ट नेहा सागर ने बताया, “किसी लड़की खासकर औफिस गर्ल के लिए अच्छे खानपान और मेकअप में बैलेंस बनाना कोई रौकेट साइंस नहीं है. औफिस में काम का तनाव होने की वजह से अपनी डाइट पर पूरा ध्यान देना चाहिए. कुछ छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर कोई भी औफिस गर्ल खुद को सेहतमंद रख सकती है.

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“जहां तक मेकअप की बात है तो औफिस में ज्यादा हैवी मेकअप जरूरी नहीं है. अपने रंगरूप और बौडी शेप के हिसाब से मेकअप करने से भी बात बन सकती है.”

किसी औफिस गर्ल को अपनी डाइट और मेकअप का कैसे खयाल रखना चाहिए, इस के लिए नेहा सागर ने कुछ टिप्स दिए हैं, जो इस तरह हैं :

डाइट टिप्स

-औफिस जाने से पहले नाश्ता जरूर करें.

-ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के अलावा पूरे दिन में फ्रूट मील जरूर लें. सीजन का हर फ्रूट खाएं. इस से हमारी बौडी में मिनरल्स और विटामिन्स की मात्रा पूरी होती है. फ्रूट्स को नाश्ता, लंच और डिनर से अलग समय पर ही खाने की कोशिश करें.

-कोशिश करें कि औफिस के लिए रेडी टू ईट मील साथ रखें जैसे फ्रूट्स में केला, सेब, अमरूद, नाशपाती आदि. ज्यादा देर से कटे फल न खाएं.

-फ्रूट्स के अलावा रेडी टू ईट मील में भुने मखाने, चने और सूखे मेवे भी शामिल किए जा सकते हैं.

-रोजाना खूब पानी पीएं. बाहर से खुला पानी न पीएं, क्योंकि उस से बीमार होने का खतरा बना रहता है.

-खाना खाने के लिए कम से कम 15 मिनट का समय जरूर निकालें. चबा चबा कर खाएं. हमेशा हैल्दी फूड खाएं. इस से बौडी में ऐनर्जी बनी रहेगी.

ब्यूटी टिप्स

-औफिस के लिए हमेशा लाइट और न्यूड मेकअप ही किया जाना चाहिए, जिस में लाइट कलर के आईशैडो और लाइट कलर की लिपस्टिक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

-औफिस में फाउंडेशन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन फेस पर हाईलाइटर का इस्तेमाल न करें.

-औफिस में लिपस्टिक या लिप गलौस का खास खयाल रखें कि वह बिलकुल भी अलग कलर की न हो. औफिस के लिए पिंक, पीच, मौव और न्यूड ब्राउन कलर इस्तेमाल करें.

-औफिस के लिए फेस पर फाउंडेशन को स्किन के कलर के हिसाब से इस्तेमाल करें. कोशिश करें कि दिन में लिक्विड फाउंडेशन इस्तेमाल करें.

-अगर स्किन औयली है तो फेस को 3-4 घंटे में ड्राई टिशू पेपर से हलके हाथ से साफ करें.

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डाइटीशियन और मेकअप आर्टिस्ट नेहा सागर

Christmas Special: विंटर फैशन के लिए ट्राय करें हिना खान के ये लुक्स

टीवी की पौपुलर एक्ट्रेसेस में से एक हिना खान इन दिनों अपने बौयफ्रेंड रौकी जैसवाल के साथ हौलीडे एन्जौय कर रही थीं. वहीं सीरियल की दुनिया से दूर चल रही एक्ट्रेस हिना अक्सर अपने फैशन को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. इसीलिए आज हम आपको हिना के कुछ विंटर फैशन के बारे में बताएंगे, जिसे आप आसानी से विंटर में कैरी कर सकते हैं और अपने फैशन पर चार चांद लगा सकते हैं.

1. पिंक कलर है परफेक्ट

विंटर सीजन में अगर आप अपने लुक में चार चांद लगाना चाहते हैं तो पिंक कलर की लौंग स्वैटर के साथ लौंग ब्लैक बूट ट्राय कर सकती हैं. आप चाहें तो इसके साथ ब्लैक कलर की हैट भी ट्राय कर सकती हैं.

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2. चेक पैटर्न है परफेक्ट

अगर आप विंटर सीजन में कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो चेक पैटर्न की वूलन ड्रेस आप ट्राय कर सकते हैं. इसके साथ आप वूट भी ट्राय कर सकते हैं.

3. कलरफुल डैनिम है पौपुलर

आजकल कलरफुल डैनिम काफी पौपुलर हो रहा है. हिना की तरह कलरफुल ग्रीन डैनिम पैंट और जैकेट आप के लुक को परफेक्ट बना सकती हैं. इसके साथ आप शूज ट्राय कर सकते हैं.

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5. स्वैटर कट करें ट्राय

 

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Easy breezy ?

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आजकल अलग-अलग कट में स्वैटर काफी पौपुलर हो रही है. आप हिना खान का ये लुक विंटर सीजन में ट्राय कर सकते हैं. इसके साथ आप गर्म लैगिंग भी ट्राय कर सकते हो.

Serial Story: विरासत (भाग-2)

वक्त तेजी से आगे बढ़ रहा था. अपराजिता अब इंजीनियरिंग के आखिरी साल में थी और अपनी इंटर्नशिप में मशगूल थी. वह जिस कंपनी में इंटर्नशिप कर रही थी, प्रतीक भी वहीं कार्यरत था. कम समय में ही दोनों में गहरी मित्रता हो गई.

बीते सालों में अपराजिता नानी से 18वें जन्मदिन पर मिले सौगाती खत को अनगिनत बार पढ़ा था. क्यों न पढ़ती. यह कोई मामूली खत नहीं था. भाववाहक था नानी का. अकसर सोचती कि काश नानी ने उस के हर दिन के लिए एक खत लिखा होता तो कुछ और ही मजा होता. नानी के लिखे 1-1 शब्द ने मन के जख्मों पर चंदन के लेप का काम किया था. उस आधे पन्ने के पत्र की अहमियत किसी ऐक्सपर्ट काउंसलर के साथ हुए 10 सैशन की काउंसलिंग के बराबर साबित हुई थी. अब अपराजिता के मस्तिष्क में बचपन में झेले सदमों के चलचित्रों की छवि धूमिल सी हो कर मिटने लगी थी. मम्मीपापा की बेमेल व कलहपूर्ण मैरिड लाइफ, पापा के जीवन में ‘वो’ की ऐंट्री और फिर रोजरोज की जिल्लत से खिन्न मम्मी का फांसी पर झूल कर जान दे देना… थरथर कांपती थी वह डरावने सपनों के चक्रवात में फंस कर. नानी के स्नेह की गरमी का लिहाफ उस की कंपकंपाहट को जरा भी कम नहीं कर पाया था.

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नानी जब तक जिंदा रहीं लाख कोशिश करती रहीं उस की चेतना से गंभीर प्रतिबिंबों को मिटाने की, मगर जीतेजी उन्हें अपने प्रयासों में शिकस्त के अलावा कुछ हासिल न हुआ. शायद यही दुनिया का दस्तूर है कि हमें प्रियजनों के मशवरे की कीमत उन के जाने के बाद समझ में आती है.

प्रतीक और अपराजिता का परिचय अगले सोपान पर चढ़ने लगा था. बिना कुछ सोचे वह प्रतीक के रंग में रंग गई. कमाल की बात थी जहां इंटर्नशिप के दौरान प्रतीक उस के दिल में समाता जा रहा था तो दूसरी तरफ इंजीनियरिंग के पेशे से उस का दिल हटता जा रहा था. वह औफिस आती थी प्रतीक से मिलने की कामना में, अपने पेशे की पेचीदगियों में सिर खपाने के लिए नहीं. ट्रेनिंग बोझ लग रही थी उसे. अपने काम से इतनी ऊब होती थी कि वह औफिस आते ही लंचब्रेक का इंतजार करती और लंचब्रेक खत्म होने पर शाम के 5 बजने का. कुछ सहकर्मी तो उसे पीठ पीछे ‘क्लौक वाचर’ पुकारते थे.

जाहिर था कि अपराजिता ने प्रोफैशन चुनते समय अपने दिल की बात नहीं सुनी. मित्रों की देखादेखी एक भेड़चाल का हिस्सा बन गई. सब ने इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया तो उस ने भी ले लिया. उस ने जब अपनी उलझन प्रतीक से बयां की तो सपाट प्रतिक्रिया मिली, ‘‘अगर तुम्हें इस प्रोफैशन में दिलचस्पी नहीं अप्पू तो मुझे भी तुम में कोई रुचि नहीं.’’ ‘‘ऐसा न कहो प्रतीक… प्यार से कैसी शर्त?’’

‘‘शर्तें हर जगह लागू होती हैं अप्पू… कुदरत ने भी दिमाग का स्थान दिल से ऊपर रखा है. मुझे तो अपने लिए इंजीनियर जीवनसंगिनी ही चाहिए…’’ यह सुन कर अपराजिता होश खो बैठी थी. दिल आखिर दिल है, कहां तक खुद को संभाले… एक बार फिर किसी प्रियजन को खोने के कगार पर खड़ी थी. कैसे सहेगी वह ये सब? कैसे जूझेगी इन हालात से बिना कुछ गंवाए?

अगर वह प्रतीक की शर्त स्वीकार लेती है तो क्या उस कैरियर में जान डाल पाएगी जिस में उस का किंचित रुझान नहीं है? उस की एक तरफ कूआं तो दूसरी तरफ खाई थी, कूदना किस में है उसे पता न था.

अगले महीने फिर अपराजिता का खास जन्मदिन आने वाला था. खास इसलिए क्योंकि नानी ने अपने खत की सौगात छोड़ी थी इस दिन के लिए भी. बड़ी मुश्किल से दिन कट रहे थे… उस का धीरज छूट रहा था… जन्मदिन की सुबह का इंतजार करना भारी हो रहा था. बेसब्री उसे अपने आगोश में ले कर उस के चेतन पर हावी हो चुकी थी. अत: उस ने जन्मदिन की सुबह का इंतजार नहीं किया. जन्मदिन की पूर्वरात्रि पर जैसे ही घड़ी ने रात के 12 बजाए उस ने नानी के दूसरे नंबर के ‘लैगसी लैटर’ का लिफाफा खोल डाला.

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लिखा था:

‘‘डियर अप्पू’’ ‘‘जल्दी तुम्हारी इंजीनियरिंग पूरी हो जाएगी. बहुत तमन्ना थी कि तुम्हें डिगरी लेते देखूं, मगर कुदरता को यह मंजूर न था. खैर, जो प्रारब्ध है, वह है… आओ कोई और बात करते हैं.’’

‘‘तुम ने कभी नहीं पूछा कि मैं ने तुम्हारा नाम अपराजिता क्यों रखा. जीतेजी मैं ने भी कभी बताने की जरूरत नहीं समझी. सोचती रही जब कोई बात चलेगी तो बता दूंगी. कमाल की बात है कि न कभी कोई जिक्र चला न ही मैं ने यह राज खोलने की जहमत उठाई. तुम्हारे 21वें जन्मदिन पर मैं यह राज खोलूंगी, आज के लिए इसी को मेरा तोहफा समझना. ‘‘हां, तो मैं कह रही थी कि मैं ने तुम्हें अपराजिता नाम क्यों दिया. असल में तुम्हारे पैदा होने के पहले मैं ने कई फीमेल नामों के बारे में सोचा, मगर उन में से ज्यादातर के अर्थ निकलते थे-कोमल, सुघड़, खूबसूरत वगैराहवगैराह. मैं नहीं चाहती थी कि तुम इन शब्दों का पर्याय बनो. ये पर्याय हम औरतों को कमजोर और बुजदिल बनाते हैं. कुछए की तरह एक कवच में सिमटने को मजबूर करते हैं. औरत एक शरीर के अलावा भी कुछ होती है.

‘‘तुम देवी बनने की कोशिश भी न करना और न ही किसी को ऐसा सोचने का हक देना. बस अपने सम्मान की रक्षा करते हुए इंसान बने रहने का हक न खोना. ‘‘मैं तुम्हें सुबह खिल कर शाम को बिखरते हुए नहीं देखना चाहती. मेरी आकांक्षा है कि तुम जीवन की हर परीक्षा में खरी उतरो. यही वजह थी कि मैं ने तुम्हें अपराजिता नाम दिया… अपराजिता अर्थात कभी न पराजित होने वाली. अपनी शिकस्त से सबक सीख कर आगे बढ़ो… शिकस्त को नासूर बना कर अनमोल जीवन को बरबाद मत करो. जिस काम के लिए मन गवाही न दे उसे कभी मत करो, वह कहते हैं न कि सांझ के मरे को कब तक रोएंगे.’’

‘‘बेटा, जीवन संघर्ष का ही दूसरा नाम है. मेरा विश्वास है तुम अपनी मां की तरह हौसला नहीं खोओगी. हार और जीत के बीच सिर्फ अंश भर का फासला होता है. तो फिर जिंदगी की हर जंग जीतने के लिए पूरा दम लगा कर क्यों न लड़ा जाएं.

‘‘बहुतबहुत प्यार’’ ‘‘नानी.’’

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Serial Story: विरासत (भाग-3)

अपराजिता ने खत पढ़ कर वापस लिफाफे में रख दिया. रात का सन्नाटा गहराता जा रहा था, किंतु कुछ महीनों से जद्दोजहद का जो शिकंजा उस के दिलोदिमाग पर कसता जा रहा था उस की गिरफ्त अब ढीली होती जान पड़ रही थी. दूसरे दिन की सुबह बेहद दिलकश थी. रेशमी आसमान में बादलों के हाथीघोड़े से बनते प्रतीत हो रहे थे. चंद पल वह यों ही खिड़की से झांकती हुई आसमान में इन आकृतियों को बनतेबिगड़ते देखती रही. ऐसी ही आकृतियों को देखते हुए ही तो वह बचपन में मम्मी का हाथ पकड़ कर स्कूल से घर आती थी.

कल रात वाले लैगसी लैटर को पढ़ने के बाद से ही वह खुद में एक परिवर्तन महसूस कर रही थी… कहीं कोई मलाल न था कल रात से. वह जीवन को अपनी शर्तों पर जीने का निर्णय कर चुकी थी. औफिस जाने से पहले उस ने एक लंबा शावर लिया मानो कि अब तक के सभी गलत फैसलों व चिंताओं को पानी से धो कर मुक्ति पा लेना चाहती हो. प्रतीक के साथ औफिस कैंटीन में लंच लेते हुए उस ने अपना निर्णय उसे सुनाया, ‘‘प्रतीक मैं तुम्हें भुलाने का फैसला कर चुकी हूं, क्योंकि मेरी जिंदगी के रास्ते तुम से एकदम अलग हैं.’’

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‘‘यह क्या पागलपन है? कौन से हैं तुम्हारे रास्ते… जरा मैं भी तो सुनूं?’’ प्रतीक कुछ बौखला सा गया. ‘‘लेखन, भाषा, साहित्य ये हैं मेरे शौक… किसी वजह से 4 साल पहले मैं ने गलत लाइन पकड़ ली, लेकिन इस का यह अर्थ कतई नहीं कि मैं इस गलती के साथ उम्र गुजार दूं या इस के बोझ से दब कर दूसरी गलती करूं… अगर मैं ने तुम से शादी की तो वह मेरी एक और भूल होगी क्योंकि सच्चा प्यार करने वाले सामने वाले को ज्यों का त्यों अपनाते हैं. उन्हें अपने सांचे में ढाल कर अपनी पसंद और अपने तरीके उन पर नहीं थोपते.’’

‘‘भेजा फिर गया है तुम्हारा… जो समझ में आए करो मेरी बला से.’’ तमतमाया प्रतीक लंच बीच में ही छोड़ कर तेजी से कैंटीन से बाहर निकल गया. अपराजिता ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. इत्मीनान से अपना लंच खत्म करने में मशगूल रही. अपराजिता हर संघर्ष से निबटने को तैयार थी. सच ही तो लिखा था नानी ने कि सांझ के

मरे को कब तक रोएंगे. गलत शादी, गलत कैरियर में फंस कर जिंदगी दारुण मोड़ पर ही चली जानी थी… वह इस अंधे मोड़ के पहले ही सतर्क हो गई. ‘‘अपराजिता नानी ने तुम्हारे लिए कुछ पैसा फिक्स डिपौजिट में रखवाया था. अब तक मैं इस पौलिसी को 2 बार रिन्यू करा चुकी हूं. पर सोचती हूं अब अपनी जिम्मेदारी तुम खुद उठाओ और यह रकम ले कर अपने तरीके से इनवैस्ट करो,’’ एक शाम मौसी ने कहा.

‘‘जैसा आप चाहो मौसी. अगर आप ऐसा चाहती हैं तो ठीक है.’’ अपराजिता अब काफी हद तक आत्मनिर्भर हो चुकी थी. अब तक उस के 2 उपन्यास छप चुके थे. एक पर उसे ‘बुकर प्राइज’ मिला था तो दूसरे उपन्यास ने भी इस साल सब से ज्यादा प्रतिलिपियां बिकने का कीर्तिमान स्थापित किया. अब उसे खुद के नीड़ की तलाश थी. मौसी के प्रति वह कृतज्ञ थी पर उम्रभर उन पर निर्भर रहने का उस का इरादा न था.

बहुत दिन हो चुके थे उसे लेखनसाधना में खोए हुए. कुछ सालों से वह सिर से पांव तक काम में इतना डूबी रही कि स्वयं को पूरी तरह नजरअंदाज कर बैठी थी. इस बार उस ने 21वें जन्मदिन पर खुद को ट्रीट देने का फैसला किया. तमाम टूअर पैकेजेस देखनेसमझने के बाद उसे कुल्लूमनाली का विकल्प पसंद आ गया. कुछ दिन बस खुद के लिए… कहीं बिलकुल अलग कोलाहल से दूर. साथ में होगा तो बस नानी का 21वें जन्मदिन के लिए लिखा गया सौगाती खत :

‘‘डियर अप्पू ‘‘अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा आंसुओं में डुबोने के बाद मैं ने जाना कि 2 प्रकार के व्यक्तियों से कोई संबंध न रखो- मूर्ख और दुष्ट. इस श्रेणी के लोगों को न तो कुछ समझाने की चेष्टा करो न ही उन से कोई तर्कवितर्क करो. मानो या न मानो तुम उन से कभी नहीं जीत पाओगी.

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‘‘ऐसे आदमी से नाता न जोड़ो जिस की पहली, दूसरी, तीसरी और आखिरी प्राथमिकता वह खुद हो. ऐसे व्यक्तियों के जीवन के शब्दकोश में ‘मैं’ सर्वनाम के अतिरिक्त कोई दूसरा लफ्ज ही नहीं होता. अहं के अंकुर से अवसाद का वटवृक्ष पनपता है. अहं से मदहोश व्यक्ति अपने शब्द और अपनी सोच को अपने आसपास के लोगों पर एक कानून की तरह लागू करना चाहता है. ऐसों से नाता जुड़ने के बाद दूसरों को रोज बिखर कर खुद को रोज समेटना पड़ता है. तब कहीं जा कर जीवननैया किनारे लग पाती है उन की. ‘‘जोड़े तो ऊपर से बन कर आते हैं जमीं पर तो सिर्फ उन का मिलन होता है, यह निराधार थ्योरी गलत शादी में फंस के दिल को समझाने के लिए अच्छी है, किंतु मैं जानती हूं तुम्हारे जैसी बुद्धिजीवी कोरी मान्यताओं को बिना तार्किक सत्यता के स्वीकार नहीं कर सकती. न ही मैं तुम से ऐसी कोई उम्मीद करती हूं.

‘‘बेटा मेरी खुशी तो इस में होगी कि तुम वे बेडि़यां तोड़ने की हिम्मत रखो जिन का मंगलसूत्र पहन कर तुम्हारी मां की सांसें घुटती रहीं और आखिर में वही मंगलसूत्र उस के गले का फंदा बन कर उस की जान ले गया. ‘‘तुम्हारा बाप तुम्हारी मां की जिंदगी में था, मगर उस के अकेलेपन को बढ़ाने के लिए.

डियर अप्पू शादी का सीधा संबंध भावनात्मक जुड़ाव से होता है. जब यह भावनात्मक बंधन ही न हो तो वह शादी खुदबखुद अमान्य हो जाती है… ऐसी शादियां और कुछ भी नहीं बस सामाजिकता की मुहर लगा हुआ बलात्कार मात्र होती हैं. यह कैसा गठबंधन जहां सांसें भी दूसरों की मरजी से लेनी पड़ें? ‘‘अगर हालातवश ऐेसे रिश्तों में कभी फंस भी जाओ तो अपने आसपास उग आई अवांछित रिश्तों की नागफनियों को काटने का साहस भी रखो अन्यथा ये नागफनियां तुम्हारे पांव को लहूलुहान कर के तुम्हारी ऊंची कुलांचें लेने की शक्ति खत्म कर देंगी, साथ ही तुम्हें जीवन भर के लिए मानसिक तौर पर पंगू बना देंगी.

‘‘ढेर सा प्यार ‘‘तुम्हारी नानी.’’

कुल्लू की वादियों में झरने के किनारे एक चट्टान पर बैठी अपराजिता की आंखों से अचानक आंसू झरने लगे. जाने क्यों आज प्रतीक की याद आ रही थी. शायद यह इन शोख नजारों का असर था कि मन मचलने लगा था किसी के सान्निध्य के लिए. नामपैसा कमा कर भी वह कितनी अकेली थी… या फिर यह अकेलापन उस की सोच का खेल था? वह अकेली कहां थी. उस के साथ थे हजारोंलाखों प्रसंशक. क्यों याद कर रही है वह प्रतीक को… क्यों चाहिए था उसे किसी मर्द का संबल? ऐसा क्या था जो वह खुद नहीं कर पाई? क्या प्रतीक भी उस के बारे में सोचता होगा? ऐसा होता तो वह 10 साल पहले ही उसे ठोकर न मार गया होता. दोष क्या था उस का? सिर्फ इतना कि वह इंजीनियरिंग नहीं लेखन में आगे बढ़ना चाहती थी. ‘‘कौन जानता है प्रतीक को आज की तारीख में?

आगे पढ़ें- खुशबू को अपराजिता के आंगन में..

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Serial Story: विरासत (भाग-4)

वहीं वह खुद लेखन के क्षेत्र का प्रमुख हस्ताक्षर बन कर शोहरत का पर्यात बन चुकी थी. बड़ा गुमान था प्रतीक को अपने काबिल इंजीनियर होने पर… लकीर का फकीर कहीं का. मध्यवर्गीय मानसिकता का शिकार… जिन्हें सिर्फ इंजीनियरिंग और कुछ दूसरे इसी तरह के प्रोफैशन ही समझ में आते हैं. लेखन, संगीत और आर्ट उन की सोच से परे की बातें होती हैं. नहीं चाहिए था उसे दिखावे का हीरो अपनी जिंदगी में. रही बात अकेलेपन की तो राहें और भी थी. उस ने निश्चित किया कि वह दिल्ली लौट कर किसी अनाथ बच्ची को अपना लेगी… गोद ले कर उसे अपना उत्तराधिकारी… अपने सूने आंगन की खुशबू बना लेगी.

खुशबू को अपराजिता के आंगन में महकते हुए करीब 10 साल हो गए थे. जिस दिन अपराजिता किसी बच्चे की तलाश में अनाथाश्रम पहुंची थी तो उस 4-5 साल की पोलियोग्रस्त बच्ची की याचक दृष्टि उस के दिल को भीतर तक भेद गई थी. उस रात आंखों से नींद की जंग चलती रही थी. सारी रात करवटें लेतेलेते बदन थक गया था. दूसरे दिन बिना विलंब किए अनाथाश्रम पहुंच गई अपराजिता जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के लिए. अगले कुछ महीनों तक गंभीर कागजी कार्यवाही को पूरा करने के बाद वह कानूनी तौर पर खुशबू को अपनी बेटी का दर्जा देने में कामयाब हो गई. हैरान रह गई थी अपराजिता दुनिया का चलन देख कर तब. किसी ने छींटाकशी की कि उस का दिमाग खराब हो गया है जो वह यह फालतू का काम कर रही है.

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किसी ने यहां तक कह दिया कि यदि वह एक संस्कारित, खानदानी परिवार का खून होती तो मर्यादा में रह कर शादी कर के अपने बालबच्चे पाल रही होती. कुछ और लोगों के ऐक्सपर्ट कमैंट थे कि वह शोहरत पाने की लालसा में यह सब कर रही है. मात्र उंगलियों पर गिनने लायक ही लोग थे, जिन्होंने उस के इस कदम की दिल से सराहना की थी.

खैर, कोई बात नहीं. नेकी और बदी की जंग का दस्तूर जहां में सदियों पुराना है. बरसों के लंबे इलाज और फिजियोथेरैपी सैशंस के बाद खुशबू काफी हद तक स्वस्थ हो गई थी. गजब का आत्मविश्वास था उस में. उस की हर पेंटिंग में जीवन रमता था. वह हर समय इंद्रधनुषी रंग कैनवस पर बिखेरती हुई उमंगों से भरपूर खूबसूरत चित्र बनाती. शरीर की विकलांगता, अनाथाश्रम में बीता कोमल बचपन दोनों उस की उमंगों के वेग को बांध न सके थे.

खुशबू के प्रयासों की महक से अपराजिता की जीत का मान बढ़ता ही चला गया. अपनी शर्तों पर नेकी के साथ जिंदगी जीते हुए दोनों जहां की खुशियां पा ली थीं अपराजिता ने और अपने नाम को सार्थक कर दिखाया था. आज रात वह अपना 50वां जन्मदिन मनाने वाली थी नानी के आखिरी ‘सौगाती खत’ को खोल कर.

‘‘डियर अप्पू

तुम अब तक उम्र के 50 वसंत देख चुकी होगी और अपने रिटायरमैंट में स्थिर होने की सोच रही होगी. यह वह उम्र है जिसे जीने का मौका तुम्हारी मां को कुदरत ने नहीं दिया था. इसलिए मुबारक हो… बेटा वक्त तुम पर हमेशा मेहरबान रहे. ‘‘तुम्हारे मन में शायद अध्यात्म और तीर्थ के ख्याल भी आते होंगे. ऐसे ख्याल कई बार स्वेच्छा अनुसार आते हैं और कई बार इस दिशा में दूसरों के दबाव में भी सोचना पड़ता है. विशेषतौर पर महिलाओं से इस तरह की अपेक्षा जरूर की जाती है कि उन का आचरण पूर्णतया धार्मिक हो. यों तो धर्म एक बहुत ही व्यक्तिगत मामला है फिर भी धर्म में रुचि न रखने वाली स्त्रियों पर असंस्कारित होने की मुहर लगा दी जाती है.

‘‘मैं तुम से कहूंगी कि ये सब बकवास है. मैं ने अपने जीवन में अनेक ऐसे महात्मा, मुल्ला और पादरियों के बारे में पढ़ा और सुना है जो धर्म की आड़ में हर तरह के घृणित कृत्य करते हैं और दूसरों के बूते पर ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं. ‘‘ज्यादा दूर क्यों जाए मैं ने तो स्वयं तुम्हारे नाना को ये सब पाखंड करते देखा है. उन्होंने हवन, जप, मंत्र करने में पूरी उम्र तो बिताई पर उस के सार के एक अंश को कभी जीवन में नहीं उतारा. दूसरों को प्रताड़ना देना ही उन के जीवन का एकमात्र उद्देश्य और उपलब्धि था. अब तुम ही बताओ यह कैसा पूजापाठ और कर्मकांड जिस में आडंबर करने वाले के स्वयं के कर्म और कांड ही सही नहीं हैं.

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‘‘तो डियर अप्पू कहने का सार मेरा यह है कि धर्म, पूजापाठ कभी भी मन की शुद्धता के प्रमाण नहीं होते. मन की शुद्धता होती है अच्छे कर्मों में, अपने से कमजोर का संबल बनने में, बाकी सब तो तुम्हारे अपने ऊपर है, पर एक वचन मैं भी तुम से लेना चाहूंगी और मुझे पूरा भरोसा है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी. ‘‘बेटी यह शरीर नश्वर है, जो भी दुनिया में आया है उसे जाना ही है. इस शरीर का महत्त्व तभी तक है जब तक इस में जान है. जान निकलने के बाद खूबसूरत से खूबसूरत जिस्म भी इतना वीभत्स लगता है कि मृतक के परिजन भी उसे छूने से डरते हैं. जीतेजी हम दुनिया के फेर में इस कदर फंसे होते हैं कि कई बार चाह कर भी कुछ अच्छा नहीं कर पाते. मौत में हम सारी बंदिशों से आजाद हो जाते हैं, तो फिर क्यों न कुछ इंसानियत का काम कर जाएं और दूसरों को भी इंसान बनने का हुनर सिखा जाएं?

‘‘डियर अप्पू, संक्षेप में मेरी बात का अर्थ है कि जैसे मैं ने किया था वैसे ही तुम भी मेरी तरह मृत्यु के बाद अंगदान की औपचारिकताएं पूरी कर देना. मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे 50वें जन्मदिन को मनाने का इस से श्रेष्ठतर तरीका कोई और हो सकता है. ‘‘बस आज के लिए इतना ही अप्पू… तबीयत आज कुछ ज्यादा ही नासाज है. ज्यादा लिखने की हिम्मत नहीं हो रही… लगता है अब जान निकलने ही वाली है. कोशिश करूंगी, मगर फिलहाल तो ऐसा ही महसूस हो रहा है कि यह मेरा आखिरी खत होगा तुम्हारे लिए.

‘‘सदा सुखी रहो मेरी बच्ची. ‘‘नानी.’’

अपराजिता ने पत्र को सहेज कर सुनहरे रंग के कार्डबोर्ड बौक्स में नानी के अन्य पत्रों के साथ रख दिया. इन सभी पत्रों को आबद्ध करा के वह खुशबू के अठारवें जन्मदिन पर भेंट करेगी. अपराजिता अब तक एक बहुत ही सफल लेखिका थी. उस के लिखे उपन्यासों पर कई दूरदर्शन चैनल धारावाहिक बना चुके थे. ट्राफी और अवार्ड्स से उस के ड्राइंगरूम का शोकेस पूरी तरह भर चुका था. रेडियो, टेलीविजन पर उस के कितने ही इंटरव्यू प्रसारित हो चुके थे. देशभर की पत्रपत्रिकाएं भी उस के इंटरव्यू छापने का गौरव ले चुकी थीं.

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इन सभी साक्षात्कारों में एक प्रश्न हमेशा पूछा गया कि अपनी लिखी किताबों में उस की पसंदीदा किताब कौन सी है और इस सवाल का एक ही जवाब उस ने हमेशा दिया था, ‘‘मेरी नानी के लिखे ‘विरासती खत’ ही मेरे जीवन की पसंदीदा किताब है और मेरी इच्छा है कि मैं अपनी बेटी के लिए भी ऐसी ही विरासत छोड़ कर जाऊं जो कमजोर पलों में उस का उत्साहवर्द्धन कर उस का जीवनपथ सुगम बनाए. वह लकीर की फकीर न बन कर अपनी एक स्वतंत्र सोच का विकास करे.’’

Serial Story: विरासत (भाग-1)

अपराजिता की 18वीं वर्षगांठ के अभी 2 महीने शेष थे कि वक्त ने करवट बदल ली. व्यावहारिक तौर पर तो उसे वयस्क होने में 2 महीने शेष थे, मगर बिन बुलाई त्रासदियों ने उसे वक्त से पहले ही वयस्क बना दिया था. मम्मी की मौत के बाद नानी ने उस की परवरिश का जिम्मा निभाया था और कोशिश की थी कि उसे मम्मी की कमी न खले. यह भी हकीकत है कि हर रिश्ते की अपनी अलग अहमियत होती है. लाचार लोग एक पैर से चल कर जीवन को पार लगा देते हैं. किंतु जीवन की जो रफ्तार दोनों पैरों के होने से होती है उस की बात ही अलग होती है. ठीक इसी तरह एक रिश्ता दूसरे रिश्ते के न होने की कमी को पूरा नहीं कर सकता.

वक्त के तकाजों ने अपराजिता को एक पार्सल में तब्दील कर दिया था. मम्मी की मौत के बाद उसे नानी के पास पहुंचा दिया गया और नानी के गुजरने के बाद इकलौती मौसी के यहां. मौसी के दोनों बच्चे उच्च शिक्षा के लिए दूसरे शहरों में रहते थे. अतएव वह अपराजिता के आने से खुश जान पड़ती थीं. अपराजिता के बहुत सारे मित्रों के 18वें जन्मदिन धूमधाम से मनाए जा चुके थे. बाकी बच्चों के आने वाले महीनों में मनाए जाने वाले थे. वे सब मौका मिलते ही अपनाअपना बर्थडे सैलिब्रेशन प्लान करते थे. तब अपराजिता बस गुमसुम बैठी उन्हें सुनती रहती थी. उस ने भी बहुत बार कल्पनालोक में भांतिभांति विचरण किया था अपने जन्मदिन की पार्टी के सैलिब्रेशन को ले कर मगर अब बदले हालात में वह कुछ खास करने की न तो सोच सकती थी और न ही किसी से कोई उम्मीद लगा सकती थी.

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2 महीने गुजरे और उस की खास सालगिरह का सूर्योदय भी हुआ. मगर नानी की हाल ही में हुई मौत के बादलों से घिरे माहौल में सालगिरह उमंग की ऊष्मा न बिखेर सकी. अपराजिता सुबह उठ कर रोज की तरह कालेज के लिए निकल गई. शाम को घर वापस आई तो देखा कि किचन टेबल पर एक भूरे रंग का लिफाफा रखा था. वह लिफाफा उठा कर दौड़ीदौड़ी मौसी के पास आई. लिफाफे पर भेजने वाले का नामपता नहीं था और न ही कोई पोस्टल मुहर लगी थी.

‘‘मौसी यह कहां से आया?’’ उस ने आंगन में कपड़े सुखाने डाल रहीं मौसी से पूछा. ‘‘उस पर तो तुम्हारा ही नाम लिखा है अप्पू… खोल कर क्यों नहीं देख लेतीं?’’

अपराजिता ने लिफाफा खोला तो उस के अंदर भी थोड़े छोटे आकार के कई सफेद रंग के लिफाफे थे. उन पर कोई नाम नहीं था. बस बड़ेबड़े अंकों में गहरीनीली स्याही से अलगअलग तारीखें लिखी थीं. तारीखों को गौर से देखने पर उसे पता चला कि ये तारीखें भविष्य में अलगअलग बरसों में पड़ने वाले उस के कुछ जन्मदिवस की हैं. खुशी की बात कि एक लिफाफे पर आज की तारीख भी थी. अपराजिता ने प्रश्नवाचक निगाहों से मौसी को निहारा तो वे मुसकरा भर दीं जैसे उन्हें कुछ पता ही नहीं. ‘प्लीज मौसी बताइए न ये सब क्या है. ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि आप को इस के बारे में कुछ खबर न हो… यह लिफाफा पोस्ट से तो आया नहीं है… कोई तो इसे दे कर गया है… आप सारा दिन घर में थीं और जब आप ने इसे ले कर रखा है तो आप को तो पता ही होना चाहिए कि आखिर यह किस का है?’’

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‘‘मुझे कैसे पता चलता जब कोई बंद दरवाजे के बाहर इसे रख कर चला गया. तुम तो जानती हो कि दोपहर में कभीकभी मेरी आंख लग जाती है. शायद उसी वक्त कोई आया होगा. मैं ने तो सोचा था कि तुम्हारे किसी मित्र ने कुछ भेजा है. हस्तलिपि पहचानने की कोशिश करो शायद भेजने वाले का कोई सूत्र मिल जाए,’’ मौसी के चेहरे पर एक रहस्यपूर्ण मुस्कराहट फैली हुई थी. अपराजिता ने कई बार ध्यान से देखा, हस्तलिपि बिलकुल जानीपहचानी सी लग रही थी. बहुत देर तक दिमागी कसरत करने पर उसे समझ में आ गया कि यह हस्तलिपि तो उस की नानी की हस्तलिपि जैसी है. परंतु यह कैसे संभव है? उन्हें तो दुनिया को अलविदा किए 2 महीने गुजर गए हैं और आज अचानक ये लिफाफे… उसे कहीं कोई ओरछोर नहीं मिल रहा था.

‘‘मौसी यह हस्तलिपि तो नानी की लग रही है लेकिन…’’ ‘‘लेकिनवेकिन क्या? जब लग रही है तो उन्हीं की होगी.’’

‘‘यह असंभव है मौसी?’’ अपराजिता का स्वर द्रवित हो गया. ‘‘अभी तो संभव ही है अप्पू, मगर 2 महीने पहले तक तो नहीं था. जिस दिन से तुम्हारी नानी को पता चला कि उन का हृदयरोग बिगड़ता जा रहा है और उन के पास जीने के लिए अधिक समय नहीं है तो उन्होंने तुम्हारे लिए ये लैगसी लैटर्स लिखने शुरू कर दिए थे, साथ ही मुझे निर्देश किया था कि मैं यह लिफाफा तुम्हें तुम्हारे 18वें जन्मदिन वाले दिन उपहारस्वरूप दे दूं. अब इन खतों के माध्यम से तुम्हें क्या विरासत भेंट की गई है, यह तो मुझे भी नहीं मालूम. कम से कम जिस लिफाफे पर आज की तारीख अंकित है उसे तो खोल ही लो अब.’’

अपराजिता ने उस लिफाफे को उठा कर पहले दोनों आंखों से लगाया. फिर नजाकत के साथ लिफाफे को खोला तो उस में एक गुलाबी कागज मिला. कागज को आधाआधा कर के 2 मोड़ दे कर तह किया गया था. चंद पल अपराजिता की उंगलियां उस कागज पर यों ही फिसलती रहीं… नानी के स्पर्श के एहसास के लिए मचलती हुईं. जब भावनाओं का ज्वारभाटा कुछ थमा तो उस की निगाहें उस कागज पर लिखे शब्दों की स्कैनिंग करने लगीं:

डियर अप्पू

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‘‘जीवन में नैतिक सद््गुणों का महत्त्व समझना बहुत जरूरी है. इन नैतिक सद्गुणों में सब से ऊंचा स्थान ‘क्षमा’ का है. माफ कर देना और माफी मांग लेना दोनों ही भावनात्मक चोटों पर मरहम का काम करते हैं. जख्मों पर माफी का लेप लग जाने से पीडि़त व्यक्ति शीघ्र सब भूल कर जीवनधारा के प्रवाह में बहने लगते हैं. वहीं माफ न कर के हताशा के बोझ में दबा व्यक्ति जीवनपर्यंत अवसाद से घिरा पुराने घावों को खुरचता हुआ पीड़ा का दामन थामे रहता है. जबकि वह जानता है कि वह इस मानअपमान की आग में जल कर दूसरे की गलती की सजा खुद को दे रहा है. ‘‘अप्पू मैं ने तुम्हें कई बार अपने मांबाप पर क्रोधित होते देखा है. तुम्हें गम रहा कि तुम्हारी परवरिश दूसरे सामान्य बच्चों जैसी नहीं हुई है. जहां बाप का जिंदगी में होना न होना बराबर था वही तुम्हारी मां ने जिंदगी के तूफानों से हार कर स्वयं अपनी जान ले ली और एक बार भी नहीं सोचा कि उस के बाद तुम्हारा क्या होगा… बेटा तुम्हारा कुढ़ना लाजिम है. तुम गलत नहीं हो. हां, अगर तुम इस क्रोध की ज्वाला में जल कर अपना मौजूदा और भावी जीवन बरबाद कर लेती हो तो गलती सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही होगी. किसी दूसरे के किए की सजा खुद को देने में कहां की अक्लमंदी है?

‘‘मेरी बात को तसल्ली से बैठ कर समझने की चेष्टा करना और एकदम से न सही तो कम से कम अगले जन्मदिन तक धीरेधीरे उस पर अमल करने की कोशिश करना… बस यही तोहफा है मेरे पास तुम्हारे इस खास दिन पर तुम्हें देने के लिए. ‘‘ढेर सारा प्यार,’’

‘‘नानी.’’

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मैंने हिम्मत कर इस क्षेत्र में कदम रखा है- मृणाल ठाकुर

धारावाहिक ‘कुमकुम भाग्य’ और फिल्म ‘लव सोनिया’ से चर्चा में आने वाली मौडल और अभिनेत्री मृणाल ठाकुर महाराष्ट्र के धुले से हैं. उन्होंने हिंदी के अलावा मराठी फिल्मों और धारावाहिकों में भी काम किया है. उन के कैरियर में उन के मातापिता का पूरा सहयोग रहा है. उन्होंने मृणाल को अपनी पसंद का काम करने की आजादी दी. मृणाल को बचपन से फिल्में देखना और उन के बारे में सोचना अच्छा लगता था. आज वे वह अपनी जर्नी से खुश हैं. लौकडाउन के बाद वे कई फिल्मों के काम खत्म करने में जुटी हैं.

हंसमुख और विनम्र मृणाल ने ‘गृहशोभा’ के लिए खास बात की. पेश हैं, कुछ अंश:

 इन दिनों आप क्या कर रही हैं?

लौकडाउन के बाद मैं अपनी फिल्मों को पूरा करने में लगी हूं. मैं हमेशा से अलगअलग प्रोजैक्ट पर काम करना चाहती थी. जब से मेरी फिल्में ‘लव सोनिया,’ ‘सुपर 30’ और ‘बाटला हाउस’ रिलीज हुई हैं, अच्छीअच्छी स्क्रिप्ट्स मेरे पास आ रही हैं. अच्छे चरित्र निभाने का मौका मिल रहा है. फिल्म ‘तूफान’ रैडी है और इसे थिएटर हौल में रिलीज किया जाएगा. कोरोना संक्रमण कम होने का इंतजार हो रहा है. अभी मैं चंडीगढ़ में फिल्म ‘जर्सी’ की शूटिंग कर रही हूं. इस के अलावा ‘प्रियास मास्क’ जो इंडिया की पहली ऐनीमेटेड फिल्म 90 बच्चों के लिए बनी है, यह कोविड-19 के बारे में बच्चों को जागरूक करती है. उस में मैं ने प्रिया की आवाज दी है.

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अभी अधिकतर फिल्में ओटीटी पर रिलीज हो रही हैं, आप की राय इस बारे में क्या है?

ओटीटी छोटी और कम बजट की फिल्मों के लिए एक अच्छा प्लेटफौर्म है, पर मेरी फिल्में थिएटर में ही रिलीज होने वाली हैं ताकि दर्शक फिल्म का आनंद ले सकें. मेरी दोनों ही फिल्में खेल पर आधारित लव स्टोरी हैं, पर मेरी भूमिका दोनों में अलग है. दर्शकों को भी इन्हें देखने में मजा आएगा.

क्या कभी आप बचपन में खेल से जुड़ी रहीं?

हां, मैं एक खिलाड़ी हूं. मैं ने बास्केटबाल जिला स्तर पर और फुटबाल भी खेला है.

अभिनय में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

परिवार में कोई भी फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था. जब भी मैं कोई फिल्म देखती थी, तो हैंगओवर हो जाता था और इस से निकलने में एक सप्ताह लगता था. मैं ने फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ देखी और उस से मु झे पता चला कि आप वही काम करें, जो आप को पसंद है. यह फिल्म मेरे जीवन की टर्निंग पौइंट बनी, क्योंकि मैं 12वीं में थी और कहां क्या करना है कुछ पता नहीं था. मु झे मैडिकल एंट्रैंस में अच्छे नंबर भी मिले थे. मैं डाक्टर बन सकती थी, पर मैं ने मास मीडिया चुना ताकि अपनी इच्छा पूरी कर सकूं. फिल्में ही मु झे प्रेरित करती है और मैं इन के जरीए लोगों को प्रेरित करना चाहती हूं.

पहली बार पेरैंट को अभिनय की बात कहने पर उन की प्रतिक्रिया क्या थी?

उन्होंने पहले मना कर दिया. उन के हिसाब से मेरी किसी भी प्रकार की पब्लिसिटी उन्हें नहीं चाहिए, और वे इंडस्ट्री से डरते थे. उन के हिसाब से मु झे एक सुरक्षित जौब करनी चाहिए, क्योंकि फिल्म आज है कल नहीं. मु झे जब टीवी का काम मिला, तो मैं ने उन्हें बुला कर शूटिंग से संबंधित सारी चीजें दिखाई. इस से उन्हें मेरे काम के बारे में पता चला और उन्होंने फिर कभी मना नहीं किया. मैं ने अपने कई दोस्तोंको देखा है कि उन्हें अपने पसंदीदा काम करने के लिए अपने मातापिता से लड़ना पड़ता है. मु झे पढ़ाई की भूलभुलैया में नहीं फंसना पड़ा, क्योंकि मातापिता ने साथ दिया. केवल किताबों से ही नहीं, आप को बाहर की दुनिया से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है. समाज में एक अच्छा नाम हो, उस की कोशिश करनी चाहिए. मैं एक साधारण परिवार से हूं और बहुत हिम्मत कर इस क्षेत्र में कदम रखा है.

पहला ब्रेक कैसे मिला?

मैं मुंबई के एक कालेज में थी. तब मेरे एक दोस्त ने औडिशन के बारे में बताया. मैं वहां गई और उस मोनोलोग के लिए मैं चुन ली गई. मेरे काम को सभी ने पसंद किया और मु झे आगे भी काम मिलने लगा. मेरी हिंदी साफ नहीं थी, क्योंकि मैं मराठी हूं. इस के लिए मैं ने बहुत मेहनत कर उसे ठीक किया. इस के बाद मैं ने एक मराठी फिल्म की, इस से मेरी हिंदी फिल्मों में काम करने की इच्छा हुई. मैं ने कोशिश की और मैं आगे धारावाहिक और फिल्मों में काम करने लगी.

क्या आउटसाइडर होने पर इंडस्ट्री में अच्छा काम मिलना मुश्किल होता है?

मु झे कभी भेदभाव महसूस नहीं हुआ, क्योंकि मैं खुद को आउटसाइडर नहीं बौलीवुड इंडस्ट्री का पार्ट सम झती हूं. मेरी जर्नी बहुत अच्छी रही है. मेरे हिसाब से अगर आप में काबिलीयत है और आप खुद पर विश्वास रखते हैं, तो कोई भी चीज आप को हासिल करने में मुश्किल नहीं होगी.

किस शो ने आप की जिंदगी बदली?

धारावाहिक ‘कुमकुम भाग्य’ से मेरी जिंदगी बदली है. इस शो से मैं ने बहुत कुछ सीखा है. लोग कहते हैं कि  फिल्में करनी हैं, तो टीवी में काम नहीं करना चाहिए, लेकिन मेरा लर्निंग प्रोसैस टीवी ही है. मेरे हिसाब से नए कलाकार को टीवी में काम अवश्य कर लेना चाहिए, क्योंकि इस से वह बहुत कुछ सीख सकता है.

तनाव होने पर क्या करती हैं?

सोशल मीडिया पर ऐक्टिव हूं, लेकिन उस से दूर रहती हूं, क्योंकि कई बार बहुत ट्रोलिंग होती है, जिस से मेरी मैंटल हैल्थ खराब होती है. काम को ले कर तनाव होने पर मातापिता से बात करती हूं.

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क्या कभी रिजैक्शन का सामना करना पड़ा?

बहुत बार करना पड़ा. मैं ने उस समय  अपने पेरैंट्स से बात की, जिस से सब नौर्मल  हो गया. असल में हम सब को जीत की खुशी  का पता होता है, लेकिन हार को कैसे लेना है, यह सिखाया नहीं जाता. मैं चाहती हूं कि स्कूल  में ऐसी पाठ्यक्रम को शामिल करने की जरूरत  है ताकि बच्चे किसी भी हालत में तनावग्रस्त  न हों.

फिल्म में इंटिमेट सीन करने में कितनी सहज है?

मैं जब स्क्रिप्ट पढ़ती हूं, तो देखती हूं  कि इस में अंतरंग दृश्य जरूरी है या नहीं. लव स्टोरी में इंटिमेट सीन होने पर कर सकती हूं, लेकिन बिना जरूरत के कोई भी इंटिमेट सीन करता.

क्या कोई मैसेज देना चाहती हैं?

मातापिता से कहना चाहती हूं कि वे अपने बच्चे की इच्छा को सम झें और उसे उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए पे्ररित करें. उस पर अपनी इच्छाएं न थोपें.

हनीमून पर वाइफ श्वेता अग्रवाल संग मस्ती करते नजर आए Aditya Narayan , Video वायरल

इंडियन आइडल के होस्ट और सिंगर आदित्य नारायण (Aditya Narayan) पिछले दिनों काफी सुर्खियों में रहे थे, जिसका कारण उनकी अपनी लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड श्वेता अग्रवाल (Shweta Agarwal) से शादी थी. वहीं वह एक बार फिर अपने हनीमून की एक वीडियो के काऱण सुर्खियों में छा गए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है वीडियो में खास…

कश्मीर की वादियों में मना रहे हैं हनीमून

शादी के बाद आदित्य अपनी वाइफ श्वेता अग्रवाल संग हनीमून मनाने के लिए भारत का स्वर्ग कहे जाने वाले ‘कश्मीर’ पहुंचे हुए हैं. जहां से दोनों लगातार सोशलमीडिया पर फोटोज शेयर कर रहे हैं.  इसी बीच आदित्य ने पत्नी श्वेता के साथ गुलमर्ग की वादियों में बर्फ पर मस्ती करते हुए अपना पहला वीडियो फैंस के साथ शेयर किया है.

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वीडियो में गाना गाते नजर आए आदित्य

फैंस के साथ शेयर की गई वीडियो में आदित्य और श्वेता ‘ओ बेटा जी’ गाने पर लिपसिंक करते नजर आ रहे हैं. हालांकि यह गाना काफी पुराना है पर हाल ही रिलीज हुई अनुराग बासु की फिल्म ‘लूडो’ में आने के बाद ये गाना वायरल हो गया है. वहीं इस गाने में ये कपल मस्त करते हुए बेहद प्यारा लग रहा है. वहीं वाइफ के साथ पहली वीडियो में सेलेब्स जमकर प्यार लुटा रहे हैं, जिसमें नेहा कक्कड़ ने कमेंट करते हुए हुए लिखा ‘Awww’ और इसी के साथ एक प्यार वाला इमोजी भी शेयर किया है.

बता दें, बीते दिनों आदित्य की खास दोस्त नेहा कक्कड़ भी अपने एक फोटो को लेकर ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं, जिसमें वह बेबी बंप के साथ नजर आ रही हैं. हालांकि ये उनके नये गाने का एक सीन है. लेकिन फैंस कह रहे हैं कि हर एक टौपिक पर गाना बनाने का क्या मामला है.

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11 साल छोटे मंगेतर संग शादी करेंगी गौहर खान, रस्में हुईं शुरु

कलर्स के शो बिग बॉस में बीते दिनों नजर आ चुकीं एक्ट्रेस गौहर खान जल्द ही शादी के बंधन में बधने वाली हैं, जिसकी फोटोज इन दिनों सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. इसी बीच गौहर और 11 साल छोटे मंगेतर कोरियोग्राफर जैद दरबार की हल्दी की फोटोज फैंस को काफी पसंद आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनकी हल्दी सेरेमनी की खास फोटोज और वीडियो….

वीडियो हुआ वायरल

निकाह से पहले गौहर और जैद की चिक्सा का रस्म हुई, जिसकी फोटोज और वीडियो दोनों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की है. वहीं इस रस्म में दोनों परिवार जश्न मनाते नजर आए. वीडियो की बात करें तो होने वाली दुल्हनिया यानी गौहर खान और दूल्हे राजा जैद दरबार मस्ती में डांस करते नजर आए.

 

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लिखा प्यारा सा मैसेज

 

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गौहर और जैद के चिस्का सेरेमनी के लुक की बात करें तो दोनों पीले रंग के कपड़ों में दोनों की जोड़ी बेहद खूबसूरत लग रही है. वहीं दोनों ने लिखा पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है कि ‘जब मेरा आधा हिस्सा तुम्हारे आधे हिस्से से मिला और एक हुआ, तब बैटर हाफ बना. हमारे सबसे सुंदर पल. अलहमदुल्लिलाह. गाजा सेलिब्रेशन का पहला दिन, चिक्सा.’

फैमिली और दोस्त आए नजर

 

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शादी में कम लोगों के शामिल होने की इजाजत है इसी के चलते गौहर और जैद की शादी में भी कम लोगों को इजाजत मिली है, जिसके कारण फोटोज और वीडियो में फैमिली के अलावा कुछ ही खास सदस्य हिस्सा लेते दिखे.

 

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फैंस के साथ शेयर की अपनी लव स्टोरी

 

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गौहर के अचानक शादी के फैसले के कारण हर कोई उनकी लव स्टोरी जानने के लिए बेताब रहता है. इसी कारण गौहर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर करते हुए बताया कि उनकी मुलाकात कब और कैसे हुई.

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5 TIPS: बाथरूम को ऐसे बनाएं जर्म फ्री

रीना के घर मेहमान आए हुए थे. रीना ने जब सब को पानी वगैरह देना शुरू किया तभी रीना की सास मेहमानों के सामने रीना की तारीफ करने लगीं और बोलीं कि रीना घर में बहुत ही साफसफाई रखती है और सभी का खयाल रखती है. मेहमान भी इस बात से खुश हुए. लेकिन जब वे लोग नहाने के लिए बाथरूम में पहुंचे तो देखा कि बाथरूम बहुत गंदा था. इस बारे में उन्होंने शिकायत न करते हुए रीना को सलाह दी कि पूरे घर की साफसफाई में बाथरूम की सफाई भी सम्मिलित होती है, क्योंकि इस जगह को सभी उपयोग तो करते ही हैं, साथ ही यदि यहां गंदगी रहे तो परिवार की सेहत पर भी असर पड़ सकता है.

दागधब्बों रहित, चमकती टाइलों वाला बाथरूम दिखने में तो साफ लग सकता है पर क्या रोगाणुमुक्त भी हो सकता है? यदि माइक्रोस्कोप से देखा जाए तो ऐसे चमचमाते बाथरूम में ढेरों बैक्टीरिया दिख जाएंगे. बाथरूम ही घर का वह हिस्सा है, जिस का उपयोग परिवार का हर सदस्य करता है. ऐसे में पर्याप्त स्वच्छता के न होने से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. इस स्थिति में बाथरूम को स्वच्छ व रोगाणुमुक्त बनाने के लिए कुछ सावधानियां बरतना नितांत आवश्यक हो जाता है.

1. एक ही साबुन के प्रयोग से बचें

साबुन की एक ही टिकिया को परिवार के सभी सदस्यों द्वारा उपयोग में लाए जाने के कारण संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. यदि संभव हो तो संक्रमण से बचने के लिए लिक्विड सोप को ही प्रयोग में लाएं व उसे पतला न करें. मल के जीवाणु पानी में तेजी से बढ़ते हैं. इसलिए साबुन की टिकिया को पानी में न छोड़ कर किसी हवादार साबुनदानी में रखें. उपयोग के बाद साबुन की टिकिया को स्वच्छ पानी में खंगाल लें.

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2. अलगअलग तौलिया

एक ही तौलिया अलगअलग लोगों द्वारा इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. इस से चर्मरोग भी हो सकते हैं.

3. स्पंज की देखभाल

लगातार गीले रहने वाले स्पंज या जूना में तेजी से जीवाणु पनपते हैं, इसलिए स्पंज को अच्छी तरह से खंगालें और फिर सूखने के लिए किसी हवादार स्थान पर रखें. जब स्पंज जीवाणुओं व फंगस के कारण ब्राउन रंग का होने लगे तो उसे फेंक दें.

4. टूथब्रश का रखरखाव

याद रखें कि एक ही टूथब्रश कभी भी कई लोगों द्वारा प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए. कारण, जहां एक ओर मुंह की लार में एचआईवी वायरस हो सकते हैं, वहीं मुंह में यदि कोई घाव वगैरह है तो उस से भी संक्रमण हो सकता है. टूथब्रश को काकरोचों से बचाने के लिए उसे सदैव कवर कर के ही रखें. काकरोच ब्रश के दांतों पर मल संबंधी जीवाणु छोड़ सकते हैं.

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बाथरूम में सुरक्षा की दृष्टि से ऐसी टाइलें लगवाएं, जिन पर पैर न फिसले. बाथरूम का फर्श नियमित रूप से साफ करें और सप्ताह में एक बार किसी जीवाणुनाशक रसायन से भी उसे साफ करना चाहिए  बाथरूम की दीवारें, विशेषकर बाथटब और फुहारे के आसपास, जहां नहाते समय साबुन के छींटे लग जाते हैं, नियमित रूप से साफ करें. महीने में एक बार टाइलों के बीच के जोड़ों को किसी ब्रश से साफ करें ताकि जमी हुई गंदगी निकल जाए.

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