Anupamaa: इस बात से डरी काव्या, वनराज को बताई दिल की बात

स्टार प्लस के सीरियल अनुपमा में इन दिनों काव्या का गुस्सा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ वह वनराज को दोबारा अपनी जिंदगी में लाने की कोशिश कर रही है. तो वहीं अनुपमा और वनराज की नजदीकियों से वह आगबबूला होती नजर आ रही है. इसी बीच किंजल की मां राखी पूरी कोशिश कर रही है कि परितोष को अपनी तरफ कर सके. आइए आपको बताते हैं अब अनुपमा की कहानी में कौन सा नया मोड़ आने वाले…

बा और किंजल की होती है बहस

अब तक आपने देखा कि वनराज बेड से गिर जाता है, जिसे देखकर अनुपमा काफी घबरा जाती है और सारे घरवालों को आवाज देती है. सारे घरवाले ऐसे वनराज को देखकर काफी परेशान हो जाते है. वहीं बा अनुपमा से वनराज का हाथ मालिश करने बोलती है, जिसे सुनकर किंजल गुस्सा हो जाती है और बा से झगड़ पड़ती है. हालांकि अनुपमा उसे समझा देती है.

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काव्या मारती है अनुपमा को ताना

वनराज से मिलने आई काव्या, अनुपमा को ताना मारने का एक मौका नही छोड़ती कि वह वनराज की जिंदगी में दोबार आने की कोशिश कर रही है. हालांकि अनुपमा, काव्या की बात का जवाब देते हुए कहती है कि वह अपनी जिंदगी में काफी आगे बढ़ चुकी है और उसे अब वनराज से कोई फर्क नही पड़ता.

 

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वनराज करेगा कोशिश

 

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काव्या से दूर हो रहा वनराज को अब अपनी गलती का एहसास हो रहा है. वहीं आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि वह पूरी कोशिश करेगा कि अनुपमा उसे उसकी गलतियों के लिए माफ कर दे. वहीं अस्पताल जाने के लिए जब अनुपमा और वह घर से बाहर निकलेंगे तो काव्या आ जाएगी और अनुपमा, वनराज को खुद से दूर करने के लिए उसे काव्या के साथ जाने के लिए कहेगी. इसी बीच काव्या डरेगी और कहेगी कि तुम अनुपमा से दोबारा प्यार तो नही करने लगे हो. हालांकि अनुपमा अब वनराज को अपनी जिंदगी में आने नही देगी. अब देखना ये है कि क्या वनराज, अनुपमा का मन बदल पाएगा.

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Yeh Rishta… के 12 साल पूरे होते ही Mohsin Khan ने खरीदा आलीशान फ्लैट, PHOTOS VIRAL

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) दर्शकों के बीच काफी पौपुलर है, जिसके कारण सीरियल ने 12 साल भी पूरे कर लिए हैं. वहीं इन 12 सालों में कई सितारों ने शो को छोड़ा तो कई कलाकार अब तक सीरियल से जुड़े हैं. इसी बीच कार्तिक के किरदार से फैंस का दिल जीत चुके मोहसिन खान की फैन फौलोइंग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है. वहीं करियर की इस सफलता के बाद मोहसिन ने अपने लिया नया घर ले लिया है. आइए आपको दिखाते हैं मोहसिन के नए घर की झलक…

मुंबई में खरीदा अपार्टमेंट

कार्तिक यानी मोहसिन खान ने सपनों के शहर मुंबई में एक आलीशान अपार्टमेंट खरीदा है, जिसकी झलक उन्होंने अपने फैंस के साथ सोशलमीडिया पर शेयर की है.  अपने नए घर की झलक दिखाते हुए मोहसिन खान ने कैप्शन में लिखा है, ‘नए घर से खूबसूरत व्यू…अल्लहुमा बारीक….’ वहीं फोटो की बात करें तो मोहसिन खान घर की बालकनी में नजर आ रहे हैं.

 

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फैमिली के साथ रहते हैं मोहसिन

 

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ये रिश्ता क्या कहलाता है स्टार मोहसिन खान अभी तक मुंबई में अपने पूरे परिवार यानी उनके माता-पिता और भाई सज्जाद खान के साथ रहते हैं. वहीं कुछ साल पहले ही मोहसिन खान की बहन की शादी हो चुकी है.

 

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बता दें, शो में इन दिनों काफी सीरियस माहौल है. दरअसल, शो में अभी नायरा की मौत का ट्रैक दिखाया जा रहा है. हालांकि सीरियल में नायरा की मौत होना फैंस को बिल्कुल पसंद नही आ रहा है. वहीं एक इंटरव्यू में शिवांगी शो में नए ट्विस्ट आने की बात भी कह चुकी हैं. इसी बीच 12 साल पूरे होने की खुशी में जल्द जश्न भी मनाया जाएगा.

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5 TIPS: मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा

एक समय था जब बचपन बड़ा ही समृद्ध हुआ करता था. स्कूल के बाद बाहर जाकर खूब खेल कूद और उसके बाद ढेर सी किताबों के बीच पसरा हुआ बचपन बहुत ही शानदार होता था.चाचा चौधरी , बिल्लू , पिंकी , चंदा मामा,पंचतंत्र से होता हुआ ये सफर कब प्रेमचंद के गोदान और रवींद्रनाथ टैगोर की उच्च स्तरीय कहानियों तक पहुंच जाता था पता ही नहीं लगता था और फिर ये आदत ताउम्र नहीं छूटती थी .पर अब के भागदौड़ भरे समय में सबकुछ बदल गया है .

आज का बचपन ढेर सारे डिजिटल गैजेट्स में उलझकर रह गया है. हर माता पिता की ये ख़्वाहिश होती है कि उनका बच्चा अच्छे से पढ़े लिखे और उसे बहुत सारा ज्ञान हो पर ये ज्ञान उसे केवल इंटरनेट पर नहीं मिल सकता इसके लिए किताबें पढ़ना बेहद आवश्यक है.जो ज्ञान किताबों से मिल सकता है वो और कहीं से भी पाना मुश्किल होता है,किताबें बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होती हैं और बहुत हद तक उसकी सोचने समझने की क्षमता भी बढ़ाती हैं.स्कूल में केवल कोर्स की किताबें पढ़ाई जाती हैं ऐसे में बच्चा अलग से किताबें कैसे पढ़ें ये हर माता पिता की समस्या है.ऐसे में कुछ उपाय यदि अपनाए जाएँ तो ये बच्चों में पठन पाठन की रुचि बढ़ाने में कारगर हो सकते हैं.

1. ख़ुद से करें शुरुआत–

यदि आप बच्चे में कोई अच्छी आदत डालना चाहते हैं तो पहले खुद को अनुशासित होना पड़ेगा.आप थोड़ा समय निकालें और घर में ऐसा माहौल बनाएं जिस से बच्चे में पढ़ने की इच्छा जागृत हो.इसके लिए आपको एक ऐसा समय निर्धारित करना होगा जिस समय मे घर में कोई भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट जैसे कंप्यूटर मोबाइल वग़ैरह चलाने की पाबंदी होगी और उस समय मे केवल किताबें पढ़ी जायेंगी .आप भी जब इस मे शामिल होंगे तो बच्चे अपने आप रुचि लेंगे.

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2. गिफ़्ट करें किताबें–

बच्चों को समय समय पर किताबें गिफ्ट करें .याद रखें कि किताबों का चुनाव करते समय उनकी उम्र और रुचि का खयाल रखना ख़ास ज़रूरी है.बच्चे वही पढ़ना चाहते हैं जिसमें उनकी रुचि हो.वो कॉमिक्स या पत्रिका जो भी पढ़ें उनको पढ़ने दें जब आदत पड़ जाएगी तो वो अपने आप सही किताबों का चुनाव करना सीख जाएँगे.

3. लाइब्रेरी में लेकर जाएँ–

शाम को गार्डनिंग करने के बाद हर दूसरे दिन उनको लाइब्रेरी में लेकर जायेँ जिस से वहाँ उन्हें अलग अलग प्रकार की किताबों को पढ़ने का अवसर मिल पाए.बच्चों पर अपनी पसन्द न थोपें आप उन्हें पंचतंत्र पढ़ने को कहें और यदि वो स्पाइडर मैन पढ़ना चाहते हों तो उन्हें वही पढ़ने दें धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाएगी पढ़ने की.

4. पेपर पढ़ने की आदत डालें–

पढ़ने की आदत डालने की शुरुवात पेपर से करें .बच्चों को रोज पेपर पढ़ने की आदत डालें.यदि बच्चों के पास समय नही है पढ़ने का तो आप पेपर में खास खबरों को मार्कर से अंडरलाइन कर के रखें जिस से उन्हें अपना कीमती समय खराब न करना पड़े और जल्दी से वो पेपर पढ़ पाएँ.उनसे जानकारी के लिए पूछते रहें कि आज उन्होंने दिनभर में क्या पढा.

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5. कहानियाँ सुने सुनाएँ–

बच्चे कहानियों से बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं ऐसे में उन्हें पहले कहानियाँ पढ़ कर सुनाएँ जिस से उनकी रुचि बढ़ेगी फिर धीरे धीरे उनसे खुद पढ़ने को कहें और उनसे भी कहानी सुनाने को कहें इस से उन्हें किताबों से जुड़ने में मदद मिलेगी.

छोटे बच्चे माँ से बहुत जुड़े होते हैं और बचपन में बहुत जल्दी नकल करते हैं ऐसे में यदि माँ ख़ुद किताबें पढ़ेगी तो बच्चे देखकर अपने आप सीखेंगे और इस तरह उनमें ये अच्छी आदत अपने आप डल जाएगी.

सर्जरी की बाद से मेरे पीठ दर्द में दर्द रहता है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 65 साल है. 2010 में मेरी पीठ और पैर में तेज दर्द उठा था. इलाज के लिए रीढ़ की 5 बार सर्जरी की गई. हालांकि सर्जरी की मदद से मुझे पैर के दर्द से राहत तो मिल गई है लेकिन पीठ दर्द अभी भी परेशान करता है. यहां तक कि मेरा उठनाबैठना तक दूभर हो गया है. कृपया इस का इलाज बताएं?

जवाब-

सही इलाज के लिए समस्या का कारण पता होना जरूरी है. इसलिए सब से पहले इस की जांच कराएं. रेडियोफ्रीक्वैंसी एब्लेशन आरएफए, रीढ़ के जोड़ों में होने वाली दर्द से छुटकारा पाने के लिए एक अच्छा विकल्प माना जाता है. दिल्ली में ऐसे कई अस्पताल हैं, जहां इस तकनीक का उपयोग किया जाता है. इस इलाज की मदद से आप को 18 से 24 महीनों के लिए दर्द से पूरी तरह से राहत मिल जाएगी. रीढ़ की जिन नसों में दर्द होता है उन के पास खास प्रकार की सूइयां लगाई जाती हैं. खास उपकरणों की मदद से रेडियो तरंगों द्वारा निकले करंट का उपयोग कर के इन नसों के पास एक छोटे हिस्से को गरमाहट दी जाती है. यह नसों से मस्तिष्क तक जाने वाले दर्द को कम करता है, जिस से आप को दर्द से राहत मिल जाएगी. इस इलाज के कई फायदे हैं जैसेकि आप को अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल जाएगी, तेज रिकवरी होगी और कामकाज भी तुरंत शुरू कर पाएंगी.

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जो लोग कामगर हैं, जिन्हें पूरे दिन कंप्यूटर पर बैठ के काम करना पड़ता है उन्हें गर्दन और पीठ दर्द की शिकायत रहती है. पर क्या आपको पता है कि अपने बैठने की आदत में बदलाव कर के आप इस परेशानी से निजात पा सकती हैं. आपको बता दें कि कंप्यूटर के सामने अधिक देर तक बैठने से आपके गर्दन और रीढ़ की हड्डियों पर काफी नुकसान पहुंचता है. इससे आपको अधिक थकान, सिर में दर्द और एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर आप अधिक देर तक इसी अवस्था में बैठी रहती हैं तो आपके स्पाइनल कौर्ड में भी घाव हो सकता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

जब आलिया ने पहनी दीपिका जैसी ड्रैस, देखें कौन लगा बेहतर

बीते दिनों एक्टर रणबीर कपूर की फैमिली संग आलिया जहां वेकेशन मनाती नजर आईं थीं. तो वहीं रणवीर सिंह भी अपनी वाइफ दीपिका पादुकोण संग क्ववौलिटी टाइम बिताते नजर आए थे. हालांकि कुछ फोटोज में दोनों कपल साथ भी नजर आए थे. आपके बता दें दीपिका पादुकोण जहां रणबीर कपूर की एक्स गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं तो वहीं आलिया उनकी करेंट गर्लफ्रेंड हैं. लेकिन आज हम दीपिका और आलिया के किसी रिलेशनशिप की नही बल्कि उनके फैशन की बात करेंगे.

दरअसल, फैशन की बात की जाए तो बौलीवुड सेलेब्रिटीज को हर कोई कौपी करना चाहता है. हालांकि खुद बौलीवुड एक्ट्रेसेस एक दूसरे को अक्सर कौपी करती हुई नजर आती हैं. वहीं आलिया और दीपिका भी कई बार एक दूसरे को कौपी करती हुई नजर आई हैं. इसीलिए आज हम आपको दोनों के कौपी किए हुए क्लेक्शन की झलक दिखाएंगे.

1. साड़ी फैशन किया था कौपी

बीते दिनों आलिया और दीपिका एख जैसी मल्टी कलर की साड़ी पहने नजर आईं थीं. दरअसल, दीपिका एक रियलिटी शो में मल्टी कलर पैटर्न वाली साड़ी पहने जहां दिखीं तो वहीं एक अवौर्ड शो में चैक पैटर्न मल्टी कलर साड़ी के साथ आलिया सुर्खियां बटोरतीं नजर आईं थीं.

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2. कोट में था अलग लुक

कोट फैशन इन दिनों ट्रैंड में हैं. वहीं बौलीवुड एक्ट्रेसेस भी इस लुक को अक्सर ट्राय करती नजर आती हैं. दीपिका और आलिया भी रेड कलर के सूट में नजर आ चुकी हैं. हालांकि जहां दीपिका लूज सूट में सुर्खियां बटोरती दिखीं थीं तो वहीं आलिया बौडी फिट रेड सूट में फैंस का दिल जीतती नजर आईं थीं.

3. पोल्का ड्रैस का छाया जलवा

समर में पोल्का ड्रैस का काफी ट्रैंड चला था, जिसमें बौलीवुड एक्ट्रेसेस पोल्का ड्रेस कैरी करते नजर आईं थीं. वहीं दीपिका और आलिया भी इस लुक में जलवे बिखेर रही थीं.

4. फैस्टिव सीजन में शरारा है ट्रैंड

इन दिनों फैस्टिव सीजन में शरारा काफी ट्रैंड में हैं. जहां दीपिका ग्रीन कलर के शरारा में फैंस का दिल जीता था तो वहीं काले रंग के शरारा में आलिया सुर्खियां बटोरती नजर आईं थीं.

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बच्चों का उत्पीड़न हो सकता है खतरनाक

पहला भाग पढ़ने के लिए-जब मां-बाप करें बच्चों पर हिंसा

आमतौर पर माना जाता है कि बच्चों को अनजान लोगों से खतरा हो सकता है जब कि अभिभावक और रिश्तेदारों के पास उन्हें सुरक्षा मिलती है. पर हमेशा ऐसा ही हो यह जरुरी नहीं. अभिभावक, देखभाल करने वाला शख्स, ट्यूशन देने वाले टीचर या फिर बड़े भाईबहन और रिश्तेदार, इन में से कोई भी बच्चों के साथ बदसलूकी यानी बाल उत्पीड़न कर उन्हें ऐसी चोट दे सकते हैं जो बच्चों के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक सेहत और व्यक्तित्व के विकास में बाधक बन सकता है. ऐसी वजहें बच्चे की मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. बच्चों के साथ इस तरह के उत्पीड़न कई तरह के हो सकते हैं;

शारीरिक उत्पीड़न का अर्थ उन हिंसक क्रियाओं से है जिस में बच्चे को शारीरिक चोट पहुँचाने, उस के किसी अंग को काटने, जलाने , तोड़ने या फिर उन्हें जहर दे कर मारने का प्रयास किया जाता है. ऐसा जानबूझ कर या अनजाने में भी किया जा सकता है. इन की वजह से बच्चे को चोट पहुंच सकती है, खून बह सकता है या फिर वह गंभीर रूप से बीमार या घायल हो सकता है.

भावनात्मक उत्पीड़न का अर्थ है अभिवावक या देखरेख करने वाले शख्स द्वारा बच्चे को नकार दिया जाना ,बुरा व्यवहार करना, प्रेम से वंचित रखना, देखभाल न करना और बातबेबात अपमान किया जाना आदि. बच्चे को डरावनी सजा देना, गालियां देना, दोष मढ़ना, छोटा महसूस कराना, हिंसक बनने पर मजबूर करना, जैसी बातें भी इसी में शामिल हैं. इन की वजह से बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो सकता है. उस का व्यक्तित्व प्रभावित हो सकता है और उस के अंदर हीनभावना विकसित हो सकती है.

1. यौन उत्पीड़न:

बाल यौन उत्पीड़न का मतलब यौन दुर्भावना से प्रेरित हो कर बच्चे को तकलीफ पहुँचाना और शारीरिक शोषण करना  है. बचपन में यदि इस तरह की घटना होती है तो बच्चा ताउम्र सामान्य जीवन नहीं जी पाता. लम्बे समय तक ऐसी तकलीफों से उपजा हुआ अवसाद, बच्चे में अलगाव और खुद को ख़त्म कर डालने की भावनाएं पैदा कर सकती हैं. यौन समक्रमण, एच.आई.वी/एड्स या अनचाहा गर्भ बाल यौन उत्पीड़न के खतरनाक परिणाम हैं.

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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अध्ययन ‘चाइल्ड एब्यूज़ इन इंडिया’ के मुताबिक भारत में 53.22 प्रतिशत बच्चों के साथ एक या एक से ज़्यादा तरह का यौन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न हुआ है.

2. बाल विवाह:

बाल विवाह भी अभिभावक द्वारा बच्चों पर किये जाने वाले उत्पीड़न का एक रूप है. भारत के बहुत से हिस्सों में 12-14 साल या उस से भी कम उम्र की लड़कियाँ का ब्याह कर दिया जाता है. इस से पहले कि वे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से विकसित हो सकेमाँ बाप उन्हें ससुराल भेज देते हैं. कम उम्र में शादी होने से बहुत सी लड़कियां अपने सारे अधिकारों से, विद्यालय जाने से वंचित हो जाती है.

3. बच्चे की अवहेलना

अवहेलना करने का मतलब है जब अभिभावक साधनसंपन्न होने के बावजूद अपने बच्चे की शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने में असफल रहते हैं या फिर उन के द्वारा ध्यान न देने की वजह से बच्चा किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है.

4. अंधविश्वास का दंश भी झेल रहे हैं मासूम बच्चे.

सिर्फ अपेक्षाओं और प्रतियोगिताओ का बोझ ही नहीं हमारे बच्चे समाज के अंधविश्वास के भी शिकार हैं. मसलन राजस्थान में बच्चों को होने वाली निमोनिया जैसी बीमारियों का इलाज उन को गर्म सलाखों से दाग कर किया जाता है. भीलवाड़ा और राजसमंद में ऐसे कई मामले हो चुके हैं. बनेड़ा में दो साल की मासूम बच्ची पुष्पा को निमोनिया होने पर इतना दागा गया कि दर्द से तड़पते हुए उस की सांसे टूट गई. 3 महीने की परी को निमोनिया हुआ तो उस के शरीर में आधा दर्जन जगहों पर गर्म सलाखें चिपका दी गई.

5. जब मारपीट बन जाती है बच्चे की मौत का कारण

ओईसीडी कन्ट्रीज (और्गनाइजेशन फौर इकोनोमिक कोऔपरेशन & डेवलपमेंट ) द्वारा किये गए अध्ययन के मुताबिक़ 15 से 17 साल तक की उम्र के बच्चे सब से ज्यादा रिस्क में रहते हैं. इन के बाद न्यूबोर्न का नंबर आता है. 1 से 4 साल तक के बच्चों की तुलना में 1 साल तक के बच्चों की इस तरह मौत का खतरा 3 गुना तक अधिक होता है.

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6. वैसी शारीरिक हिंसा जिस में मौत का भय नहीं होता

कई दफा हिंसा से मौत का खतरा तो नहीं होता मगर बच्चे की सेहत, उस के विकास या आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है. हिटिंग ,किकिंग ,बीटिंग ,बाईटस ,बर्नस ,पोइज़निंग आदि के द्वारा तकलीफ पहुंचाई जाती है. एक्सट्रीम केसेस में इस तरह की हिंसाएं बच्चे की मौत, अपंगता या फिर गंभीर चोटों के रूप में सामने आ सकती हैं. यह उन की मानसिक सेहत और विकास को भी प्रभावित कर सकती है.

Winter Special: एगलेस चाकलेट कुकीज

बच्चों से लेकर बड़ों तक सबकी पसंद होती है चाकलेट. फिर चाहे वह चाकलेट से बनी मिल्कशेक, केक या कुकीज हो. आइए हम आपको बताते हैं एगलेस चाकेलट कुकीज कैसे बनाई जाती है.

सामग्री

3/4 कप बटर

1/2 कप पिसी हुई शक्कर

1 टी स्पून वेनीला एसेंस

3/4 कप आटा

1/4 कप कोको पाउडर

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1/4 टी स्पून बेकिंग सोडा

1 चुटकी नमक

चाकलेट के चौकोर कटे टुकड़े

विधि

बटर और शक्कर को मिलाकर पेस्ट बना लें. अब इसमें वेनीला एसेंस को अच्छे से मिक्स कर लें. आटा, कोको पाउडर, बेकिंग सोड़ा और नमक को मिला लें. इसमें बटर वाला मिक्स मिलाएं. इसका कड़ा आटा गूंध लें.

अब इसे कवर करके तीस मिनट के लिए फ्रिज में रख दें. तैयार आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाएं. इसके बाद चाकलेट के छोटे टुकड़ों को हर गोली के अंदर रखकर उसे पूरी तरह कवर करें. हल्के हाथ से दबाकर इसे कुकीज का आकार दें.

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अब इन तैयार कुकीज को बेकिंग ट्रेमें रखकर 180 डिग्री सेल्सियस पर प्रीहीटेड ओवन में बारह मिनट के लिए बेक करें. ठंडा होने के बाद सर्व करें. आप चाहें तो इस कुकीज में कुछ मेवे डाल सकती हैं.

बढ़ते वजन को कंट्रोल करने के लिए रोजाना करें ये 5 एक्सरसाइज

आजकल के व्यस्त दिनचर्या में खुद को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखना हर किसी के लिए एक बड़ा चैलेंज है. ऐसे में जरूरी है कि आप एक्सरसाइज करें. कई बार समय के अभाव में या ज्यादा खर्च के चलते हमारा जिम जाना संभव नहीं हो पाता. ऐसे में आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. ऐसे में आप खुद को ही घर पर बस 20 से 25 मिनट दें मिनट दें तो शरीर सारा दिन चुस्त बना रहेगा. आइए आपको बताते हैं कुछ ऐसी एक्सरसाइज जिन्हें आप घर पर आसानी से कर सकती हैं. यह एक्सरसाइज आपको पूरी तरह से फिट रखने और तरोताजा महसूस कराने के साथ ही आपके बढ़ते वजन को कंट्रोल करने में आपकी मदद करेगा.

1. सूर्य नमस्कार

यह एक कार्डियो-वस्कुलर व्यायाम है. इसमें 12 से ज्यादा आसन होते हैं. यदि आपके पास समय की कमी हो तो इससे बेहतर कोई व्यायाम हो ही नहीं सकता. इसे सुबह उठकर खाली पेट करें. इसे रोजाना 10-15 मिनट करें.

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2. सीढ़ियों पर चढ़े-उतरे

अगर आप मार्निग वाक पर नहीं जा सके हैं तो घर की सीढ़ियों पर ही 10 से 15 मिनट चढ़े-उतरे. ये 45 मिनट के वर्कआउट के बराबर होता है. सीढ़ियां चढ़ने से सबसे ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है. माना जाता है कि 30 सीढ़ियां चढ़ने से कम से कम 100 कैलोरी बर्न होती है.

3. प्रणाम मुद्रा

दोनों पंजे एक साथ जोड़ कर रखें और पूरा वजन दोनों पैरों पर समान रूप से डालें. अपनी छाती फुलाएं और कंधे ढीले रखें. सांस लेते वक्त दोनों हाथ बगल से ऊपर से उठाएं और सांस छोड़ते वक्त हथेलियों को जोड़ते छाती के सामने प्रणाम मुद्रा में ले आएं. यह एक्सरसाइज रोजाना करें. इससे आप कुछ ही हफ्ते में तरोताजा महसूस करने लगेंगी.

4. कूल डाडन जपिंग

इसमें पंजों के बल पर खड़े होकर जंप करना है. हाथ को मोड़कर ऊपर ले जाने हैं. इसके भी एक मिनट के तीन से चार सेट करने हैं. इससे पूरी बाडी वार्मअप होती. इससे स्टैमिना बनता है. ज्यादा देर तक करने से शरीर से वजन भी कम होता है.

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5. जंपिंग जैक

यह एक कार्डियो एक्सरसाइज है. इससे भी वजन में कंट्रोल में रहेगा और काफी एनर्जी खर्च होती है. शरीर को चुस्त व दुरुस्त बनाने के लिए जंपिंग जैक भी एक कारगर और बेहतरीन तरीका है. इसमें दोनों पैर को पंजों के पास से जोड़िए और उन्हें खोलते हुए दोनों हाथ को ऊपर लेकर जाएं. एक से डेढ़ मिनट के तीन से चार सेट करने से बौडी अच्छी खासी स्ट्रैच हो जाती है.

जब छूट जाए जीवनसाथी का साथ

पहले के समय में 50 वर्ष के बाद वानप्रस्थ का नियम घर में सही तालमेल व पारिवारिक शांति के दृष्टिकोण से बनाया गया होगा. बेटे का गृहस्थाश्रम में प्रवेश और बहू के आगमन के साथ ही परिवार की सत्ता का हस्तांतरण स्वाभाविक समझ कर वानप्रस्थ की कल्पना की गई होगी.

लेकिन, आज परिस्थितियां बदल चुकी हैं. आधुनिक मैडिकल साइंस ने विभिन्न बीमारियों से नजात दिला कर उत्तम स्वास्थ्य का विकल्प दिया है. उस ने मनुष्य को स्वस्थ जीवन दे कर उस की आयु बढ़ा दी है. आज पुरुष हो या स्त्री, स्वस्थ जीवनशैली अपना कर 80-85 वर्ष की आयु में भी वे खुशहाल जीवन जी रहे हैं.

समाज में आजकल एकल परिवारों का चलन बढ़ गया है. मांबाप बच्चे को अच्छी शिक्षा के लिए बचपन से ही होस्टल या अपने से दूर दूसरे शहर में भेज देते हैं. उच्च शिक्षा के लिए तो उसे घर से दूर जाना ही होता है, यहां तक कि महानगरों में रहने पर भी बच्चों को होस्टल में रखा जाता है. नौकरी करने के लिए तो उन्हें अपने घरों से दूर जाना ही होता है.

नतीजतन, मांबाप लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से अपना जीवन जीते हैं. घर से दूर रह कर बच्चों का भी स्वतंत्र रूप से जीने का स्टाइल और अपना अलग तौरतरीका बन जाता है.

ऐसी स्थिति में दोनों के लिए एकदूसरे की जीवनशैली के साथ सामंजस्य बिठाना कठिन होता है. इसलिए न तो मांबाप और न ही बच्चे अपनेअपने जीवन में हस्तक्षेप पसंद करते हैं. यही कारण है कि जब पतिपत्नी में से कोई एक अकेला बचता है तो अब वह क्या करे या कहां जाए जैसी समस्या उठ खड़ी होती है.

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गोंडा के सतीश और उन की पत्नी विमला खुशहाल जीवन जी रहे थे. फलताफूलता व्यापार था. 1 बेटी पूजा, 2 जुड़वां बेटे. संपन्न परिवार का समाज में मानसम्मान भी खूब था. दोनों बेटों की आंखें बचपन से कमजोर थीं.

16 वर्ष की उम्र तक आतेआते दोनों बेटे आंखों की रोशनी खो बैठे. वे बेटों के इलाज को ले कर दिल्लीमुंबई भागदौड़ कर रहे थे, तभी दबे पांव पत्नी कैंसर से पीडि़त हो गई और शीघ्र ही उन की दुनिया उजड़ गई.

23 वर्ष की पूजा मां, भाई और गृहस्थी सबकुछ संभाल रही थी. उस की शादी की उम्र हो चुकी थी. बेटी की विदाई हुई तो वे फूटफूट कर रो पड़े थे. उस समय उन की उम्र 62 वर्ष थी. वे शरीर से स्वस्थ थे. 2 बेटे जवान परंतु उन का दृष्टिहीन जीवन व्यर्थ सा था. मेड के सहारे किसी तरह दिन बीतने लगे. जीवन अव्यवस्थित था. हर नया दिन नई उलझन और परेशानी ले कर आता.

तभी उन की बहन एक 50 वर्षीय अपनी परिचित महिला को ले कर उन के घर आई और एक हफ्ते उन के घर में साथ रही. महिला के पास अपने 2 बच्चे थे. वह तलाकशुदा थी. बहन सुधा ने उन के सामने उस महिला के साथ शादी का प्रस्ताव रखा था. काफी सोचविचार कर के सतीश ने अपनी बहन के सुझाव को स्वीकार कर लिया. शादी हो गई.

उन की बेटी पूजा ने नाराज हो कर उन से रिश्ता तोड़ लिया. सगेसंबंधियों ने भी समाज में उन का मजाक बनाया परंतु वे अपने निर्णय पर दृढ़ रहे और आज प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवन जी रहे हैं. उन के  जीवन में फिर खुशियां लौट आई हैं. दूसरी पत्नी ने अपने अच्छे व्यवहार से टूटे रिश्तों को जोड़ लिया. उन की बेटी को भी उस ने अपने लाड़प्यार के बंधन में बांध कर अपना बनाया.

जिंदगी को मिली राह

इलाहाबाद की नीरजा बैंक मैनेजर की पत्नी थीं. वे दिमाग से थोड़ी कमजोर थीं और कभीकभी उन्हें हिस्टीरिया के दौरे पड़ जाते थे. पति नवीन ने प्यार से देखभाल की थी, इसलिए नीरजा की बीमारी के विषय में कोई कुछ नहीं जानता था. खुशहाल परिवार, 1 बेटी और 2 बेटे. सबकुछ सुखमय. बेटे, बेटी की शादियां संपन्न परिवारों में धूमधाम से हो चुकी थीं.

पति नवीन कैंसर रोग की गिरफ्त में आ गए और जल्द ही इस दुनिया से विदा हो गए. नीरजा को उन के छोटे बेटे ने संभाला. दोनों एकदूसरे का सहारा बन गए. 2 साल बीततेबीतते बेटे की शादी हुई. बहू के आते ही घर और रसोई के अधिकार उन के हाथ से फिसलने लगे. वे अवसाद से ग्रस्त होने लगीं. वे फुटबौल की तरह कभी बेटी, तो कभी बड़े बेटे, तो कभी छोटे बेटे के सहारे दिन गुजारने लगीं. उन को फिर से दौरा पड़ा. डाक्टर ने उन्हें अकेले न छोड़ने की सलाह दी. छोटी बहू को किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में सालभर के  लिए अमेरिका जाना था. वैसे भी नीरजा दिनभर घर में अकेली रह कर अपने जीवन से परेशान एवं निराश हो चुकी थीं.

उन्होंने स्वयं ही वृद्धाश्रम जाने का निश्चय किया. सब ने आपस में विचारविमर्श कर उन के निर्णय को स्वीकार कर लिया. अब वे वहां अन्य वृद्धों के बीच अधिक प्रसन्न व स्वस्थ हैं. उन के बच्चे आजादी से अपना जीवन जी रहे हैं. वे स्वयं भी अपने निर्णय से खुश व संतुष्ट हैं. अपने बच्चों के साथ अब उन के रिश्ते बहुत अच्छे हैं.

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फर्रूखाबाद के श्रीनिवास पेशे से इंजीनियर थे. नौकरचाकर, बंगला सबकुछ था. 2 बेटियों की शादी कर चुके थे. तीसरी बेटी की शादी की तैयारी में लगे थे. बेटा 16 वर्ष का ही था.

तभी पत्नी गीता को हृदयरोग हो गया. उसी वर्ष वे रिटायर हो कर अपने पुश्तैनी घर लौटे परंतु पत्नी को ससुराल की चौखट नहीं भायी. अच्छे से अच्छे इलाज के बाद भी 6 महीने में ही उन की मृत्यु हो गई.

श्रीनिवास अपने अकेलेपन को ले कर मानसिक रूप से तैयार थे क्योंकि डाक्टरों ने उन्हें पहले ही आगाह कर दिया था कि उन की पत्नी कुछ ही दिनों की मेहमान है. उन्होंने मेड के सहारे अकेले अपनी गृहस्थी चलाई. अपनी कंसल्टैंसी शुरू की. अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मौर्निंग वाक, कसरत, नाश्ता आदि सबकुछ समय से करते. अपने शौक पूरे किए.

वे दैनिक समाचारपत्र में शहर की समस्याओं के विषय में पत्र लिखते थे. दवाइयों पर उन की अच्छी पकड़ थी, इसलिए छोटेमोटे मर्जों के लिए लोगों को मुफ्त दवा भी दिया करते थे. उन्हें अपने अकेलेपन से कोई शिकायत नहीं थी. उन्होंने प्रसन्न मन से जीवन को जिया.

सच को स्वीकारें

ग्वालियर की सुनीता वर्मा का जीवन पलभर में बदल गया. तीनों बच्चों की शादी कर के वे पति के साथ आजाद जिंदगी जी रही थीं. बच्चे अपने जीवन में सुखी एवं व्यस्त थे और अपने घरौंदों में थे. सुनीता बड़ी सी कोठी की मालकिन थीं. आखिर, पति किसी समय में एक बड़ी कंपनी के वाइसप्रैसिडैंट रह चुके थे. सुखीसंपन्न जीवन था उन का.

पति उन पर जान छिड़कते थे. वे स्वयं अकसर बीमार रहने लगी थीं, तो बेटे को दिल्ली से भागभाग कर आना पड़ता. ढलती उम्र और बीमारी को देखते हुए बेटे ने दोनों को अपने साथ दिल्ली ले जाने का निर्णय कर लिया. बेटा सीनियर इंजीनियर था, बड़ा सा फ्लैट, वहां कोई परेशानी नहीं थी. परंतु अपनी इतनी प्यार से संजोई हुई गृहस्थी को छिन्नभिन्न होते देख वे मन ही मन बहुत आहत हो उठी थीं.

मजबूरी के कारण वे उदास मन से बेटे के घर में शिफ्ट हो गईं. वे वहां एडजस्ट होने का प्रयास कर ही रही थीं कि साल बीतने के पहले ही एक रात पति को दिल का दौरा पड़ा और लाख प्रयास करने पर भी वे उन का साथ छोड़ कर दुनिया से विदा हो गए.

सुनीता के लिए दुनिया सूनी हो गई थी. जो पति हर समय उन के आगेपीछे घूमते रहते थे उन की सारी इच्छाओं, आवश्यकताओं को बिना कहे समझ लेते थे, उन के बिना वे कैसे जिएं. वे नकारात्मक विचारों से घिर गई थीं. यद्यपि कि उन की उम्र 72 वर्ष थी परंतु सही इलाज से पूर्णतया स्वस्थ हो गई थीं.

धीरेधीरे बहू संध्या ने उन्हें अपने साथ कभी मौल, कभी फंक्शन, कभी किटी पार्टी आदि के बहाने घर से बाहर निकलने को पे्ररित किया. जल्दी ही उन्होंने सच को स्वीकार कर लिया कि अब उन्हें अकेले मजबूत बन कर जीवन जीना है.

बचपन से ही उन्हें पढ़ने व जानकारी हासिल करने का शौक था. अब वे रोज सुबह घंटों समाचारपत्र, पत्रिकाएं पढ़तीं और शाम को 5 बजे नजदीक के एक महिला क्लब में जातीं जहां महिलाएं सामाजिक विषयों पर चर्चा करती हैं. महिलाएं अपने लेख या कहीं से कुछ अच्छा विषय पढ़ कर एकदूसरे को सुनाती हैं. जीवन की इस नई पारी में वे व्यस्त एवं प्रसन्न हैं.

बेटे, बहू और बेटियां उन की व्यस्त दिनचर्या से खुश हैं. परिवार में कोई तनाव या नोकझोंक नहीं, बल्कि सबकुछ व्यवस्थित है.

चलती रहे जिंदगी

फतेहपुर के किशनपुर गांव के मदनमोहन पांडे पेशे से अध्यापक थे. अपनी पत्नी राधा के साथ सुखी जीवन जी रहे थे. दोनों एकदूसरे को पूर्णतया समर्पित थे. बच्चे हुए नहीं, परंतु उन के मन में कोई अफसोस नहीं था. अचानक एक दुर्घटना में पत्नी इस दुनिया से विदा हो गई. उसी साल उन का रिटायरमैंट हुआ था. न कोई कामकाज, न कोई जिम्मेदारी. उन की दुनिया सूनी हो गई थी.

उस समय उन के घर की मेड ने घर को संभाला. महल्ले के बच्चों के प्यारभरे अनुरोध को वे नहीं टाल सके थे और घर पर निशुल्क कोचिंग शुरू कर दी. बच्चों को अच्छी पुस्तकों के लिए यहांवहां भटकते देख उन्होंने साथी अध्यापकों और परिचितों की मदद से अपने घर में ही लाइब्रेरी बनाने का निर्णय किया.

उन का छोटा सा प्रयास जन आंदोलन बन गया. आज 75 वर्ष की अवस्था में वे अपने कार्य में लीन हैं. छोटे से गांव में समाज के विरोध को नकारते हुए उन्होंने अपनी मेड सरोज को अपने घर में रखा, उस के बेटे को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया और उसे ही अपने घर का उत्तराधिकारी बना कर वसीयत कर दी.

दैनिक समाचारपत्र, पत्रिकाओं आदि के लिए लोगों की भीड़ उन के सूने घर को रौनक से भर देती है. आज समाज में वे सम्मानित दृष्टि से देखे जाते हैं.

निष्कर्ष यह है कि यदि आप का जीवनसाथी इस दुनिया से विदा हो गया है और अब आप अकेले रह गए हैं तो इस सच को स्वीकार करना होगा कि सबकुछ समाप्त नहीं हुआ है बल्कि आगे जाना है. हमें अपने जीवन को रचनात्मकता देनी है. यदि हमें अपने बेटे या बेटी के साथ ही रहना है तो उस से अनावश्यक अपेक्षा एवं कदमकदम पर टोकाटाकी के स्थान पर स्वयं को उस की परिस्थिति पर रख कर विचार करने की जरूरत है. आज स्थितियां बदल चुकी हैं.

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जीवन के संघर्ष एवं आपाधापी में हमारे बच्चे अपने झंझावातों से गुजर रहे हैं. उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में, अपने परिवार में हर क्षण नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. यह सही है कि आप के पास अनुभव अधिक है परंतु अपने समय को याद करें जब आप को भी अपने बुजुर्गों का अनावश्यक हस्तक्षेप या मीनमेख रुचिकर नहीं लगता था. संभवतया आप ने चुप रह कर उन्हें अनसुना कर दिया था. परंतु आज की पीढ़ी चुप रहने वाली नहीं है, मुंहफट है.

यदि जीवन में नई शुरुआत करनी है तो कभी देर नहीं होती. उम्र के हर पायदान पर जीवन की खुशियां झोली फैला कर आप की राह देखती रहती हैं.

 

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