ब्रेन टीबी एक खतरनाक बीमारी, जानें इसके लक्षण और उपचार

लेखिका-प्रिया अग्रवाल

ट्यूबरक्लोसिस यानी कि टीबी एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो कि सामान्यतः हमारे फेफड़ों को प्रभावित करती है. इस घातक बीमारी का सही समय पर सही इलाज ना करने पर जान भी जा सकती है. टीबी केवल फेफड़ों को ही नहीं हमारे दिमाग को भी प्रभावित कर सकती है. ऐसे में दिमाग के ऊतकों में सूजन आ जाती है. जिसे मेनिनजाइटिस ट्यूबरक्लोसिस, मेनिनजाइटिस या ब्रेन टीबी भी कहा जा सकता है.

आपके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि यह बिमारी बच्चों और हर वर्ग के वयस्कों को हो सकती है. डाक्टर्स का कहना है कि भारत में टीबी के हर 70 मामलों में से बीस मरीज ब्रेन टीबी के होते हैं. आज हम आपको ब्रेन टीबी के लक्षणों और उसके उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं.

ब्रेन टीबी के रिस्क फैक्टर्स

ज्यादा मात्रा में एल्कोहल का सेवन करने, एचआईवी एड्स, कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता और डायबिटीज मेलिटस ब्रेन टीबी के प्रमुख रिस्क फैक्टर्स हैं.

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ब्रेन टीबी के लक्षण

ब्रेन टीबी के लक्षण शरीर में धीरे-धीरे उबरते हैं. शुरुआत में थकान, कम तीव्रता का बुखार, हमेशा बीमार बने रहना, मिचली, उल्टी, चिड़चिडापन और आलस जैसी समस्याएं सामने आती हैं. दिन-ब-दिन ये लक्षण और भी सख्त और खतरनाक होते जाते हैं.

सही डाइट से संभव है इलाज

आपकी सही डाइट ब्रेन टीबी के इलाज में अहम भूमिका निभा सकती है. इसके लिए रोगी को अपने डाइट में ताजे फल, सब्जियां और काफी मात्रा में प्रोटीन आदि खास तरह के पोषक तत्वों को जरूर शामिल करें. इनसे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और बीमारी से लड़ने में मदद मिलती है.

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डाइट में इन्हें करें शामिल

ताजे रसदार फल जैसे- अंगूर, सेब, संतरे, तरबूज और अनानास को अपने डाइट में शामिल करें. दूध कैल्शियम का भरपूर भंडार होता है. ऐसे में ब्रेन टीबी से निपटने के लिए यह बेहतरीन विकल्प हो सकता है. स्ट्रान्ग चाय या काफी के सेवन से भी परहेज करें. इसके अलावा शुगर और डिब्बाबंद फूड्स से परहेज करने की कोशिश करें.

खतरनाक हो सकता है फेसवॉश से चेहरा धोना

आमतौर पर चेहरा साफ करने के लिए हम फेसवॉश या साबुन का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं साबुन और फेसवॉश में कई ऐसे रसायनिक तत्व होते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं? इससे त्वचा रूखी-बेजान हो सकती है. साथ ही इनके बहुत अधिक इस्तेमाल से झुर्रियां भी जल्दी पड़ जाती हैं.

फेसवॉश और साबुन में मौजूद रसायनिक तत्व त्वचा से नेचुरल ऑयल सोख लेते हैं जिससे त्वचा बेजान नजर आने लगती है. ऐसे में चेहरे को साफ करने के लिए आप घरेलू उपाय अपना सकते हैं. इनके इस्तेमाल से चेहरे की सफाई तो हो ही जाती है साथ ही त्वचा से जुड़ी कई समस्याएं भी दूर हो जाती हैं.

चेहरे की सफाई के लिए साबुन की जगह आप इस्तेमाल कर सकते हैं ये घरेलू उत्पाद

1. दूध

त्वचा की सफाई के लिए कच्चे दूध का इस्तेमाल करना बहुत अच्छा है. इससे डेड स्क‍िन तो साफ हो ही जाती है साथ ही त्वचा की नमी भी बरकरार रहती है. ये एक नेचुरल क्लींजर है.

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2. चीनी

चीनी के इस्तेमाल से भी साफ त्वचा पा सकते हैं. चीनी को महीन पीस लें और और इससे चेहरे की सफाई करें. चीनी डेड स्क‍िन को साफ करने में मददगार है. आप चाहें तो चीनी और एलोवेरा को एकसाथ मिलाकर चेहरे की सफाई कर सकते हैं.

3. पपीता

पपीते में मौजूद कैरोटेनॉएड्स और विटामिन नेचुरल क्लींजर की तरह काम करते हैं. इससे त्वचा पर निखार आता है. पपीते के कुछ टुकड़ों को शहद के साथ मिलाकर हल्के हाथों से चेहरे की मसाज करें. इससे चेहरा तो साफ होगा ही साथ ही झांइयों की समस्या में भी फायदा होगा.

4. शहद

शहद का इस्तेमाल कई तरह की स्किन प्रॉब्लम को दूर करने के लिए किया जाता है. ये त्वचा की नेचुरल नमी को खोने नहीं देता. साथ ही ये त्वचा को साफ भी करता है. शहद की कुछ बूंदें हाथ में लेकर उससे मसाज करें. कुछ देर के लिए इसे यूं ही छोड़ दें. उसके बाद चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें.

5. नारियल तेल

नारियल तेल से मसाज करना बहुत फायदेमंद है. इससे त्वचा की नमी बनी रहती है और रोम छिद्रों में मौजूद गंदगी भी साफ हो जाती है.

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मेरी पीठ में दर्द होने से जकड़न भी महसूस होती है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. लौकडाउन के दौरान मैं अपना सारा काम घर से ही कर रहा था. मेरा काम लैपटौप पर होता है. मेरी पीठ में दर्द होने लगता है. जकड़न भी महसूस होती है. ऐसे में काम करने में मुश्किल होती है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

गतिहीन जीवनशैली, गलत मुद्रा में बैठना, लेट कर लैपटौप पर काम करना, लगातार एक ही मुद्रा में काम करना और उठनेबैठने के गलत तरीकों के कारण घर से काम कर रहे लोगों में रीढ़ की समस्याएं विकसित हो रही हैं. ये सभी फैक्टर रीढ़ और पीठ की मांसपेशियों पर तेज दबाव बनाते हैं. सभी काम झुक कर करने से रीढ़ के लिगामैंट्स में ज्यादा खिंचाव आ जाता है, जिस से पीठ में तेज दर्द के साथ अन्य गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं. सर्वाइकल पेन भी इसी से संबंधित एक समस्या है, जो गरदन से शुरू होता है. यह दर्द व्यक्ति को परेशान कर देता है. हालांकि एक स्वस्थ और सक्रिय जीवनशैली के साथ इस समस्या से बचा जा सकता है. रोज ऐक्सरसाइज करना, बौडी स्ट्रैच, सही तरीके से उठनाबैठना, सही तरीके से झुकना और शरीर को सीधा रखने से आराम मिलता है.

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डॉ. मनीष वैश्य, सह-निदेशक, न्युरो सर्जरी विभाग, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वैशाली,

सिरदर्द के बाद कमर दर्द आज सब से आम स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या बनती जा रही है. बढ़ती उम्र के लोगों को ही नहीं युवाओं को भी यह दर्द बहुत सता रहा है. महिलाएं कमर दर्द की आसान शिकार होती हैं 90 प्रतिशत महिलाएं अपने जीवन के किसी न किसी स्‍तर पर कमर दर्द से पीड़ित रहती हैं. खासकर कामकाजी महिलाएं जो ऑफिसों में बैठ कर लगातार काम करती हैं. उन में रीढ़ की हड्डी पर दबाव बढ़ने से कमर दर्द की समस्या हो जाती है.

कमर दर्द

हमारी रीढ़ की हड्डी में 32 कशेरूकाएं होती हैं जिस में से 22 गति करती हैं जब इन की गति अपर्याप्‍त होती है या ठीक नहीं होती तो कई सारी समस्‍याएं पैदा हो जाती हैं रीढ़ की हड्डी के अलावा हमारी कमर की बनावट में कार्टिलेज (डिस्‍क), जोड़, मांसपेशियां, लिगामेंट आदि शामिल होते हैं इस में से किसीकिसी में भी समस्या आने पर कमर दर्द हो सकता है इस से खड़े होने, झुकने, मुड़ने में बहुत तकलीफ होती है अगर शुरूआती दर्द में ही उचित कदम उठा लिए जाएं तो यह समस्‍या गंभीर रूप नहीं लेगी

पूरी खबर पढ़ने के लिए- क्या करें जब सताए कमर दर्द

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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इनसे सीखें सवरने की कला 

अगर कहा जाए कि माधुरी दीक्षित, मलाइआ, रेखा  जैसी अभिनेत्रियां  उम्र को ठेंगा दिखा रही हैं तो गलत नहीं होगा. ये बढ़ती उम्र के लोगों के लिए रोल मोडल हैं. क्योंकि इनकी गिनती खूबसूरत और फिट अबिनेत्रियों में की जाती है. भले ही माधुरी दीक्षित 50 की उम्र को पार कर गई हैं ,मलाइआ 45 की उम्र को और रेखा 60 की उम्र को , लेकिन इन्हें देखकर लगता ही नहीं है , जोकि इनके लिए बहुत बड़ा कोम्प्लिमेंट है, जो इनके कोन्फिडेन्स को और बढ़ाने का काम करता है.

आखिर सही ही तो है कि अगर आप फिट होने के साथ साथ खूबसूरत भी हो, तो लोग आपके कायल हुए बिना नहीं रह पाते, ये कहने से नहीं चूकते कि क्या पर्सनिलिटी है, क्या जलवा है. लेकिन क्या आप इनकी खूबसूरती का राज जानते हैं.  आइए हम बात करते हैं धकधक गर्ल के बारे में कि कैसे वे उम्र को ठेंगा दिखा रही हैं और आप भी उनके इन टिप्स को अपने जीवन में शामिल करके उम्र को पीछे छोड़ सकते हैं.

1.  नृत्य जुनून भी और फिटनेस मंत्र भी 

माधुरी दीक्षित जो अपने अभिनय और शानदार नृत्य से देश के लोगों की धड़कन बन गई हैं.  उनमें छोटी उम्र से ही  नृत्य का शौक था, जो समय के साथसाथ और बढ़ता चला गया. उनकी ट्रेनिंग और उनका अभ्यास उन्हें अपने नृत्य में और परिपकव करता रहा. वे कभी हार नहीं मानती. उनका मानना है कि बार बार गिर कर उठने वाला ही सफल होता है. उनका मानना है कि प्रैक्टिस मैक्स का मेन परफेक्ट. आप चाहे नृत्य के शौकीन हो या फिर किसी अन्य कला के, अपने हुनर को छिपाएं नहीं बल्कि उसे खुलकर बाहर आने दें. इससे आपका जोश आपके कोन्फिडेन्स को बढ़ाकर आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचाने का काम करेगा. और एक बार आप अपनी मंजिल के करीब पहुंच गए , फिर आप खुद को और शाइन करने के लिए वे सभी चीज़ें करेंगे, जिन्हें अब तक आपने करने के बारे में सोचा भी न था.

वे अपने नृत्य के जुनून को फिटनेस के लिए बहुत अच्छा मानती हैं. क्योंकि नृत्य जिसमें कत्थक भी  शामिल है, को वे अपने वर्कआउट में शामिल करके न सिर्फ मन को शांत अवस्था में पाती हैं , बल्कि ये वर्कआउट उन्हें भीतर से मजबूत बनाने का भी काम करता है. वे ग्लोइंग स्किन पाने के लिए कार्डिओ वर्कआउट पर भी काफी फोकस करती हैं. उनका मानना है कि जीवन में अगर कुछ अलग करना है तो सोचने से नहीं मेहनत करने से बात बनती है.

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2.  एवरीथिंग इस इम्पोसिबल 

चलो डांस का ही उदहारण लेते हैं. अकसर फैमिली फंक्शंस में, पार्टीज में आपने महिलाओं को ये कहते हुए सुना होगा कि हमें डांस नहीं आता, हमें आता तो है लेकिन शर्म आती है. लेकिन क्या कभी अपने उस छोटे से बच्चे को देखा है जो म्यूजिक ओन होते ही बस नाचना शुरू कर देता है, ये सोचे बगैर कि उसे तो डांस आता ही नहीं है. तो फिर चाहे आप पतले हो या मोटे , अगर शौक है तो डांस जरूर करें. इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा. ये बात सिर्फ डांस पर ही लागू नहीं होती, बल्कि हर उस चीज पर होती है , जिसे आप करना चाहते हैं , लेकिन शर्म और लोगों की परवाह आपको वो सब करने से रोकती है. भले ही आपके अपने आपको ये कहें , ये काम तुम्हारे बस का नहीं है , फिर भी मन में इस बात को याद करना न भूलें कि कुछ भी असंभव नहीं है. एक बार अगर आपने मन में किसी काम को करने की ठान ली और लग गए उसे मेहनत से करने के लिए, फिर आप खुद को एक शाइननिंग स्टार से कम नहीं मानेंगे.  इसलिए हार न माने बल्कि मुसीबतो से लड़कर सफलता हासिल करने की कोशिश करें. यही आपकी इनर ब्यूटी को बढ़ाने का काम करेगा.

3.  फेसिअल एक्सप्रेशन को दें बढ़ावा 

चाहे आप कितने भी टैलेंटेड क्यों न हो, लेकिन अगर आपके फेसिअल एक्सप्रेशन न दिखे तो आपमें वो बात नहीं आ पाती. इसलिए अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी खूबसूरती के कायल हो, तो अपने  फेसिअल एक्सप्रेशन पर जरूर ध्यान दें. क्योंकि जब आप अपनी किसी बात को  फेसिअल एक्सप्रेशन के साथ एक्सप्रैस करते हैं तो उस बात में काफी वजन होता है, लोग आप पर ज्यादा फोकस करते हैं. आपके इमोशंस को समझ पाते हैं , जिससे आपसे अपनापन बढ़ता है और बोलते वक़्त आपकी खूबसूरती भी नजर आती है.

4.  ग्लोइंग स्किन का राज, दादी मां के नुस्खे 

दिल की धड़कन यानि माधुरी को जो एक बार देख ले, बस उसे देखता ही रह  जाता है. ऐसा ग्लो है  उनकी स्किन में.  50 की उम्र जिसमें महिलाओं की स्किन लटक जाती है, चेहरे पर झुर्रियां नजर आने लगती है, चेहरा धागधब्बों से भर जाता है. देख कर ऐसा लगता है, जैसे बुढ़ापा आ गया हो. जबकि 50 के बाद भी माधुरी का चेहरा स्पोटलेस व ग्लोइंग नजर  आता है.  ऐसा सिर्फ सिल्वर स्क्रीन पर मेकअप के कारण नहीं बल्कि असल में भी उनकी स्किन पर  वही ग्लो  है. जो उनके स्किन केयर के कारण ही है. वे अपनी स्किन को हाइड्रेट रखने के लिए खूब पानी पीती हैं, ताकि जब शरीर भीतर से हाइड्रेट रहेगा तो चेहरे पर ड्राईनेस नहीं आएगी , जो एजिंग का सबसे बड़ा कारण बनता है. वे अपनी स्किन को आज भी यंग बनाए रखने के लिए नेचुरल चीज़ों जैसे खीरे व दूध से  फेस पर मसाज, ग्लो लाने के लिए बेसन पैक यानि नेचुरल चीजों का इस्तेमाल , चेहरे में कसावट लाने के लिए अंडे की जर्दी में एसेंशियल आयल का इस्तेमाल व हैल्थी चीजों को अपनी डाइट में शामिल करती हैं. उनका जोर हमेशा नेचुरल चीजों से बने ब्यूटी प्रोडक्ट्स को इस्तेमाल करने पर ही जाता है , तभी तो ब्यूटी इंडस्ट्री में काम करते हुए भी उनकी स्किन आज भी 25 की तरह लगती है. वे हमेशा spf वाले मोइस्चराइज़र का ही इस्तेमाल करती हैं , ताकि उनकी स्किन लाइट्स और यूवी किरणों से बच सके और स्किन पर कभी भी उम्र की झलक न दिखें. क्योंकि हमारी ये छोटीछोटी गलतियां ही हमारी स्किन को समय से पहले बूढ़ा बना देती है.

5.   ईटिंग हैबिट्स , जो रखे फिटनेस का खयाल 

अकसर हमारी  ईटिंग हैबिट्स यानि ज्यादा मात्रा में कार्ब्स का सेवन, खाने के सही समय को फॉलो नहीं करना, जो मिल गया वही खा लेना , धीरे धीरे आपको अंदर से कमजोर और बाहर से थुलथुला बना देता है. लेकिन अगर आप सेलिब्रिटीज जैसे माधुरी जैसे फिट रहकर हमेशा वाहवाही लूटना चाहती हैं तो अपने दिन की शुरुवात हैल्थी चीजों से करें. जैसे माधुरी टी की जगह हर्बल टी को ज्यादा महत्व देती हैं . क्योंकि ये विटामिन्स और एन्टिओक्सीडैंट्स में रिच होने के कारण न सिर्फ ये बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं बल्कि स्ट्रेस लेवल को कम करके फेस के ग्लो को बढ़ाने का काम करते हैं. इसके साथ ग्रीन वेजी, वाइट एग्स , ओटमील, दही, दाल रोटी , स्माल अमाउंट में चिकन को अपने मील में शामिल करना नहीं भूलती. इससे खुद को अंदर से मजबूत भी महसूस करती हैं , साथ ही अपनी फिटनेस का भी खूब ध्यान रख पाती हैं. उनका मानना है कि अगर शरीर से विषैले प्राधारतो को बाहर निकालना है तो खूब पानी पीते रहें. ताकि हैल्थी सेल्स का निर्माण हो और स्किन हमेशा यंग व फ्रेश दिखे.

6.  कैसे करती हैं मेकअप 

वे खुद का अलग अंदाज में मेकअप करवाना पसंद करती हैं. उनका मानना है कि सिर्फ मेकअप करने से खूबसूरत नहीं दिखते हैं बल्कि जिस तरह अपनी फिजिक के हिसाब से ऑउटफिटस पहनकर आप ज्यादा अट्रैक्टिव दिख सकते हैं , उसी तरह मेकअप हमेशा ओकेज़न व फेस के टाइप के हिसाब से करना चाहिए, ताकि आपके फीचर्स निखर कर आ सके. वे अपने चेहरे पर अपनी स्किन टोन से मैच करता फाउंडेशन लगाती हैं. उनका चेहरा ओवल शेप का है तो चीक बोन्स के नीचे गहरे रंग का फाउंडेशन लगाकर हाईलाइटर का इस्तेमाल करती हैं. और अपनी नाक को पतला दिखाने के लिए हल्के डार्क शेड का फाउंडेशन लगाकर ड्रैस से मैचिंग का आईशैडो लगाकर खुद को मेकअप से खूबसूरत लुक देने की कोशिश करती हैं. कोशिश करती हैं कि सिंपल लुक में रहने की.

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7. खुबसूरत मुस्कराहट का राज 

लोग सिर्फ उनकी ब्यूटी के ही दीवाने नहीं है बल्कि उनकी  खुबसूरत मुस्कराहट के भी कायल हैं. जिसका राज स्ट्राबेरी है. क्योंकि  स्ट्राबेरी में मेलिक एसिड  नामक  वाइटनिंग एनजाइम होते हैं , जो दांतों को बिना नुकसान पहुंचाएं उन्हें सफेद बनाकर आपकी स्माइल को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं. वे रोजाना स्ट्राबेरी से दांतों की मसाज करके अपनी मुस्कराहट को हमेशा यूही खिलाखिला बनाए रखना चाहती हैं.

8. हमेशा रहे पॉजिटिव 

शायद ही ऐसा कोई इंसान होगा, जिसने जिंदगी में उतारचढ़ाव न देखे हो, मुश्किलों का सामना न किया हो, जीत के करीब होते हुए भी हार का मुंह न देखना पड़ा हो. लेकिन सफल वही होता है , जो हार को भी अपनी जीत समझकर सक्सेस पाने के लिए जीतोड़ मेहनत करने में जुट जाए. खुद को इतना पोजिटिव रखे कि देखने वाले उसके आत्मविश्वास की तारीफ किए बिना न रह सके. क्योंकि जब हम पॉजिटिव रहना सीख जाते हैं  तो उसकी साफ झलक हमारे चेहरे पर दिखाई देती है, जो हमें अंदर व बाहर से खूबसूरत बनाने का काम करती है. इसलिए चाहे कितनी भी मुश्किले क्यों न आए लेकिन खुद को हमेशा पॉजिटिव रखें. तभी आप अंदर व बाहर से खूबसूरत बन पाएंगे.

बेटियों तुम अपने लिए एक घर बना लो…

रीना ने कॉल करके मुझे गृहप्रवेश का न्योता दिया. मैंने सोचा चलो वो ‘सेटल’ हो गई.अरे, कहीं आपका भी सेटल होने का मतलब “शादी”से तोनहीं. नहीं भई उसने अभी शादी नहीं की.ऐसा नहीं है कि उसे शादी से कोई समस्या है कर लेगी जब करना होगा. घरवालों का चलता तो 10 साल पहले ही उसकी शादी करवा दी होती. तब तो वो कॉलेज में थी, बड़ी जिद्द और मेहनत ने उसने खुद को सेटल किया है.

खैर, यह तो एक ऐसी लड़की की कहानी है जो जिसने आज एक मुकाम हांसिल कर लिया है. एक दूसरी कहानी है कोमल की, जिसकी शादी के 2 साल बाद ही उसके पति गुजर गए. अब वो अपने मायके आ गई, उसे लगा ये तो अपना घर है बाकी की जिंदगी यहीं बिता दूंगी अपनों के साथ. लेकिन हमारे समाज का खेल भी अनोखा है शादी से पहले जो घर की लाडली था वो अब उनके लिए उनके लिए कब बोझ बन गई उसे भी पता न चला. कभी इज्जत तो कभी धर्म के नाम पर मजबूरी ने उसे जकड़ लिया और उसकी पूरी जिंदगी ऐसे ही गुजर गई. उसके होने या ना होने से किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ता.

ये दो कहानियां इसलिए ताकि हम समझ सके कि कानून ने भले पिता की संपत्ति पर बेटियों का हक बराबर कर दिया, लेकिन असलियत क्या है सभी को पता है. दहेज के नाम पर लाखों का सौदा तो कर लेगें लेकिन प्रॉपर्टी पर बेटी का नाम कितने माता-पिता करते हैं…ये पिता की बात हो गई ससुराल में बहू के नाम पर कितने प्रॉपर्टी का हक दिया जाता है. हमारे समाज में कहा कुछ और जाता है और किया कुछ और…

जिस घर को बेटियां बचपन से सजाती-संवारती आता हैं अपना मानती हैं. एक दिन कन्यादान के साथ ही उनको बोल दिया है अब तुम पराया धन हो, तुम उस घर की हो गई. जब बेटी शादी करके ससुराल जाती हैं तो उनको सुनने को मिलता है तुम तो दूसरे घर से आई हो पराई हो. तमाम बेटियांइसका सामना करती हैं और पूरी जिंदगी भर घरवालों का दिल जीतने में लगा देती है कि अपना मान लें. पिता, भाई या पति पर वित्तीय रूप से निर्भरता सालों से महिलाओं की मुश्किलों की जड़ रही है.

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मायका-ससुराल और उन पर निर्भरता तब हाल बुरा कर देती है जब पति कुछ साल बाद तलाक ले ले, दूसरी शादी कर ले या फिर उसकी आकस्मिक मौत हो जाए. घर को संभालने का काम भले महिलाओं का हो लेकिन जब हक की बात आती है तो नाम पुरुष का आता है. लड़कियों को बस अपने घर वाली फीलिंग मिल जाए इतने में खुश हो जाएं. घर में सबका कमरा होती है नहीं होता तो मां का कमरा. भाई-बहन एक ही घर में बचपन से रहते हैं लेकिन बात क्या होती है भविष्य के की, यहां मोनू का कमरा होगा, विकेक ले लिए उपर वाले फ्लोर पर घर बनेगा.

अरे अधिकार तो छोड़ो भले बेटी की शादी न हुई हो फिर भी जब नया घर बनता है तो कौन से रंग की पेंटिंग, किचन का मॉडल क्या होगा, पर्दे का रंग कौन सा होगा, ये बस भी उससे नहीं पूछा जाता वोतो शादी करके चली जाएगी. बस यहीं से पराया होने का अहसास करवा दिया जाता है. शादी के बाद भी बेटी एक रूम रहे ये कौन सोचता है.

या अगर बहू ही शादी करके आ गई हो तो भी उससे कौन पूछता है कि यह कमरा तुम्हारा है क्या-क्या तुमहारे हिसाब से होगा. अगर कुछ बोल दिया तो अरे पूरा घर ही तुम्हारा है अब कितना सच में तुम्हारा है वो तो उसे ही पता है.

वे लोग जो नारीवाद की बात करते हैं न अगर लड़कियां अपने घर से ही ये सारे फैसले लेने लगे तो यहीं से शुरु होगा नारीवाद, जब घर से बदलाव होगा तभी तो समाज बदलेगा.

इन चीजों में बदलाव केलिए सरकार ने महिलाओं के हक में फैसले भी दिए हैं. जैसे अगर महिला के नाम पर होम लोन लेते हैं तो उस पर ब्याज दर कम लगता है. यह एक प्रतिशत तक भी जा सकती है. वहींअगर पत्नी भी कमाती है और उसके आय का स्रोत अलग है तो टैक्स में भी बचत हो सकती है. साथ ही अगर पत्नी के नाम पर घर की रजिस्ट्री करवाई जाए तो1-2 प्रतिशत तक स्टैंप ड्यूटी बच सकती है. दिल्ली में तो स्टैंप ड्यूटी की दर 4 प्रतिशत और पुरुषों के लिेए 6 प्रतिशत है.

कई पतिलोग तो सिर्फ पैसे बचाने के लिए रजिस्ट्री पत्नी के नाम करवा देते हैं ना कि इसलिए कि उस पर उसका भी हक है. बस ले गए रजिस्ट्री करवाई और बात खत्म. न प्रापर्टी के बारे में बात होगी न घर बनाने के फैसले को लेकर.

एक घर में तीन बहनों की शादी होती है. एक शारीरिक भोग के लिए शादी करता है तो दूसरा समाज और तीसरा पैसे के लिए. एक साल तक सब ठीक चलता और फिर तीनों को घर से तमाम आरोपों के साथ घर से निकाल दिया जाता है. आरोप क्या है कि एक बदचलन है दूसरी झगड़ालू औत तीसरी घर तोड़ने वाली और भी दस बहाने… अब तीनों बेटियां अपने पिता के घर आकर रह रही है. तीनों ने उत्पीड़न का केस भी किया लेकिन अपने यहां जो टीवी चैलन या फिल्मों में दहेज हिंसका के खिलाफ तुरंत एक्शन लेती पुलिस सिर्फ चैलन तक की सीमित है. असल जिंदगी में तो इंसाफ मिलते-मिलते पूरी जवानी गुजर जाती है. वैसे भी जब तक किसी महिला का सर फूटा न हो तब तक हिंसा माना कहां जाता है. अब कोई अपना सर खुद तो फोड़ने से रही, किसकी हिम्मत है. मानसिक उत्पीड़न किसी को दिखता कहां है. वैसे भी तलाक लिए बिना पत्नी को छोड़ने औऱ दूसरी शादी करने का ट्रेंड भी चालू हो गया है. ज्यादा- से ज्यादा क्या होगा दो-तीन साल की सजा और फिर बेल.संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरी दुनिया में करीब 35 प्रतिशत महिलाएं किसी ना किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती हैं.

तो फिर उपाय क्या है

तो बेटियों तुम खुद का अफना एक घर क्यों नहीं बना लेती. जरूरी नहीं है कि वो घर बहुत बड़ा हो, या बड़े शहर में हो. छोटे शहर में ही सही छोटा सा घर ही सही, एक कमरे का ही सही पर अपना तो अपना ही होता है. जहां तुम्हारा हक हो, जहां घर के बहाने तुम्हें छोटी-छोटी खुशियों से बैर न करना पड़े. जहां थोड़ा लेट से आना भी चल जाए, जहां तुम्हारा कमरा फूलों नहीं किताबों से भरा हो, जहां सादगी भी हो और श्रृंगार भी. जहां तुम गिरना सीखो और संभलना भी. जहां अधिकार भी हो और सम्मान भी.

पॉसिबल कैसे होगा

सुना होगा न तुमने की दुनियां में कुछ भी असंभव नहीं. इसिलए लड़कियों मजबूत बनो. आत्मनिर्भर सिर्फ भारी भरकम बोलने या सुनने वाला शब्दी नहीं है बल्कि जीवन में अपनाए जाने वाला शब्द है. कोई भी काम करो पूरे दिल से और इमानदारी से करो. हाउस वाइफ के लिए कई ऑप्शन मौजूद हैं. बेचारी बनकर मत रहो. हम ये नहीं कहते कि अपनी पहचान बनाओ तुम लड़की हो ये पहचान पहले से ही तुम्हारी है, बस अपने होने का अहसास करो. काम करो पैसा कमाओ माता-पिता का ख्याल रखो और अपने लिए घर भी बनाओ. अभी सरकार ने कई योजनाएं भी लागू की है जिसके तहत सस्ते लोन और ईएमआई की सुविधा है. अगर बैंक वाला बोले कि तुम लड़की हो लोन कैसे मिलेगा पिता या पति का आधार कार्ड दो तो उसे समझाना नौकरी हमारी सैलरी हमैरी घर हमारा है.

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देखो, यही ताकत है जब एक बेटी मजबूत होती है, टीना और अतहर दो साल बाद शादी के रिश्ते से अलग हो रहै हैं. दोनों ने तलाक की अर्जी लगाई है, सोचिए अगर टीना भी कमजोर होती उसके पास भी वो मुकाम न होता तो कहां जाती? वो भी उन करोड़ो बेटियों की तरह घर की चारदीवारी में कैद होकर सिसकती, हर दिन सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद करती फिर शाम ढलते ढलते उदासी की चादर ओढ़ती और सो जाती.टीना भी कमजोर होती तो हर दिन सोचती की बस आज सबकुछ छोड़कर निकल जाऊंगी वहां से, पर उसकी आंखों के  सामने क्या होता? आगे जीवन कैसे चलेगा इस बात की चिंता और मुझे इस आदमी के बगैर छांव भी आखिर कौन देगा ऐसे सैकड़ों सवाल.

बेटियों को तो अक्सर यहां तक पति सुना देते है की भाग जाओ यहां से, तुम्हारा चेहरा तक नहीं देखना मुझे, या तुम मनहूस हो, जब से आई सब बुरा हो रहा, ऐसी बहुत सी बातें,  पर वो सब कुछ सह जाती है, पी जाती है, और उसी को अपनी किस्मत मान लेती हैं.

टीना ने ऐसा फैसला इसलिए लिया कि वो काबिल है आईएएस है, योग्य है और दुनियां को अपने कदमों में झुकाने की ताकत रखती है. इसलिए उसने जिंदगी अपनी मर्जी से जीने का रास्ता चुना. इसलिए बेटियों शादी से पहले खुद को उस काबिल जरूर कर लेना जब तुम अपनी जिंदगी अपने सहारे खुशी-खुशी बिता सको. तुम्हें साथी मिले सहारा नहीं. टीना जैसे हजारों लड़कियों के साथ समस्याएं आती हैं इसका किसी धर्म या जाति से लेना देना नहीं है, क्योंकि लड़कियों की बस एक ही जाति है और वो है लड़की.

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यूं तो गाजर आजकल वर्ष भर बाजार में उपलब्ध रहती है परंतु चूंकि गाजर सर्दियों की मौसमी सब्जी है इसलिए इस समय कोल्ड स्टोर की अपेक्षा बाजार में देशी और ताजी गाजर बहुतायत में उपलब्ध होती है. गाजर में प्रोटीन, बसा, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और अनेकों विटामिन्स पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक लाभकारी होते हैं इसलिए किसी न किसी रूप में गाजर को अपने भोजन में अवश्य शामिल करना चाहिए. गाजर सदैव सुर्ख लाल रंग वाली ही लेना चाहिए क्योंकि यह स्वाद में बहुत मीठी होती है. आमतौर पर गाजर को सलाद, हलवा या ज्यूस के रूप में खाया जाता है परन्तु आज हम आपको इसे खाने के कुछ ऐसे तरीके बताएंगे जिससे बड़े तो क्या बच्चे भी बड़े स्वाद से खाएंगे-

-केरट बाइट्स

कितने लोंगो के लिए 8
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज/डेजर्ट

सामग्री

ताजी लाल गाजर 500 ग्राम
बारीक सूजी 1/4 कप
घी 2 टीस्पून
मिल्क पाउडर 2 टेबलस्पून
गुनगुना दूध 1/2 कप
शकर 2 टेबलस्पून
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
बारीक कटे पिस्ता और बादाम 1 टेबलस्पून

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विधि

गाजर को छीलकर किस लें. सूजी को हल्का ब्राउन होने तक बिना घी के भून लें. अब एक नॉनस्टिक पैन में घी डालकर गाजर को धीमी आंच पर 5 मिनट तक पकाएं. अब दूध डालकर पुनः 5 मिनट तक पकाएं. जब दूध पूरा सूख जाए तो शकर डाल दें. कुछ ही देर में शकर पानी छोड़ देगी . भुनी सूजी और इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह चलाएं और 5 मिनट के लिए ढक दें ताकि सूजी भली भांति फूल जाए. आंच को धीमा ही रखें. 5 मिनट बाद चलाकर मिल्क पाउडर डाल दें और मद्धिम आंच पर लगातार चलाते हुए 2 से 3 मिनट तक भूनें. जब मिश्रण पैन के किनारे छोड़ने लगे तो गैस बंद कर दें और एक चिकनाई लगी ट्रे में जमाकर ऊपर से कटे पिस्ता बादाम से गार्निश करें. ठंडा होने पर 1-1इंच के चौकोर बाइट काटकर सिल्वर फॉयल या चॉकलेट पेपर में लपेटकर फ्रिज में रखें.

-कैरेट चीज ट्रायंगल

कितने लोंगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

किसी गाजर 250 ग्राम
कटी प्याज 1
कटी हरी मिर्च 4
कटी हरी धनिया 1 टेबलस्पून
चीज क्यूब 4
नमक स्वादानुसार
चिली फ्लैक्स 1/4टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/2टीस्पून
जीरा 1/4टीस्पून
मूंग दाल पापड़ 4
तलने के लिए तेल

विधि

एक नॉनस्टिक पैन में 1 टीस्पून तेल गरम करके प्याज को सॉते करें. जीरा और हरी मिर्च को भूनकर किसी गाजर डाल दें. नमक डालकर 2 से 3 मिनट तेज आंच पर चलाते हुए भूनें. गैस बंद करके अमचूर पाउडर, चिली फ्लैक्स और हरा धनिया डालकर चलाएं. अब पापड़ के बीच में एक टीस्पून गाजर का मिश्रण रखकर ऊपर से एक चीज क्यूब किसें. पापड़ के किनारों पर अच्छी तरह पानी लगाएं. दोनों किनारों से फोल्ड करके नीचे से फोल्ड करके ट्राइंगल का शेप दें. इसी प्रकार सारे ट्राइएंगल तैयार करें. गर्म तेल में इन्हें तलकर चाय या कॉफी के साथ सर्व करें.

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Serial Story: मंजरी की तलाश

Serial Story: मंजरी की तलाश (भाग-1)

ट्रेन उस छोटे से स्टेशन पर रुकी तो सांझ घिरने लगी थी. सुनहरे अतीत में लिपटी रेशमी हवाओं ने मेरी अगवानी की. मैं अपने ही शहर में देर तक खड़ा चारों ओर देखता रहा. मेरे सिवा वहां कुछ भी तो नहीं बदला था. मेरे आने के बाद हुई बूंदाबांदी तेज बारिश में बदल गई थी. यहां टैक्सी की जगह रिकशे मिलते हैं. बारिश के कारण वे भी नजर नहीं आ रहे थे. मैं पैदल ही चल दिया. पानी के साथ भूलीबिसरी यादोें की बौछारें मुझे भिगोने लगी थीं.

कालेज के दिनों में मेरे सूखे जीवन में पुरवाई के झोंके की तरह मंजरी का प्रवेश हुआ था. बनावटीपन से दूर, बेहद भोली और मासूम लगी थी वह. पता नहीं कैसा आकर्षण था उस के रूपरंग में कि मेरे भीतर प्रपात सा झरने लगा था.

कुछ दिन में वह खाली समय में लाइब्रेरी में आने लगी थी. उस की उपस्थिति में वहां का जर्राजर्रा महकने लगता था. जितनी देर वह लाइब्रेरी में रुकती मेरी सुधबुध खोई रहती थी.

कुछ दिनों तक मंजरी नजर नहीं आई तो कालेज सूनासूना सा लगने लगा था. पढ़नेलिखने से मेरा जी उचट गया. ऐसे ही एक दिन मैं निरुद्देश्य…लाइब्रेरी में गया तो एकांत में किताब लिए वह बैठी दिखाई दी. अगले ही पल मैं ठीक उस के सामने खड़ा था.

‘कहां थीं इतने दिन तक? तुम नहीं जानतीं उस दौरान मैं कितना अपसैट हो गया था. मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो गया. बता कर तो जाना चाहिए था…’ मैं एक सांस में बिना रुके जाने क्याकुछ कहता चला गया.

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‘क्यों परेशान हो गए थे आप?’ उस ने मासूमियत से पूछा.

मैं बगलें झांकने लगा. एकदम से मुझे कोई जवाब नहीं सूझा था.

‘कुछ दिन पहले ही हम यहां शिफ्ट हुए हैं. सारा सामान अस्तव्यस्त पड़ा था. उसे करीने से लगाने में कुछ वक्त तो लगना ही था,’ वह बोली, ‘खड़े क्यों हैं आप?’

मैं निशब्द उस के समीप बैठ गया. हम दोनों चुप थे. देर तक ऐसे ही बुत बने बैठे रहे. केवल पलकें झपक रही थीं हमारी. मेरे मन में बहुत कुछ घुमड़ रहा था…शायद उस के भी. मेरे बंद होंठों से शब्द झरने लगे थे…शायद उस के भी. मैं उस की धड़कनें महसूस कर रहा था… शायद वह भी मेरी धड़कनों को महसूस कर रही थी. हमारे बीच बोलने से कहीं अधिक मूक संवेदनाएं मुखरित होने लगी थीं.

महकते हुए 3 वर्ष कब फिसल गए पता ही नहीं चला. गुजरे वक्त के एकएक पल को हम ने हिफाजत से सहेज कर रखा था. इस बीच हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ चुके थे.

एक दिन वह मुझे अपने घर ले गई. वे दिन मेरे इम्तिहान के दिन थे. मैं नर्वस था. मन में शंकाओं के बादल घुमड़ रहे थे. ऐसी ही कुछ हालत मंजरी की भी थी. पर सबकुछ ठीक रहा, उस के पापा सुलझे हुए इनसान थे. बिलकुल मेरे बाबूजी की तरह. मंजरी मेरे घर में सब को पसंद थी. फाइनल इयर की परीक्षा के बाद हमारी सगाई हो गई.

शादी से पहले मुझे कैरियर संवारना था. हमारे घर वालों के साथ मंजरी भी यही चाहती थी.

‘भविष्य के बारे में क्या सोचा है, श्रेयांश?’ उस ने पूछा.

‘मैं एम.बी.ए. करूंगा,’ मैं ने उस की आंखों में झांका, ‘कुछ वक्त के लिए, तुम से और इस शहर से दूर जाना पड़ेगा.’

‘मैं इंतजार करूंगी तुम्हारा,’ उस की आंखों में नमी उतर आई, ‘मेरा शरीर मात्र यहां रहेगा…मन से हर पल मैं तुम्हारे साथ रहूंगी.’

मैं ने उसे बांहों में जोर से भींच कर चूम लिया.

दिल्ली के शुरुआती दिन बेहद संघर्ष भरे रहे. एम.बी.ए. में प्रवेश के बाद कुछ राहत मिली. कालेज के निकट होस्टल में कमरा मिल गया था. वहां मैस में खाने का इंतजाम था. दिन में मैं कालेज में रहता, रात को देर तक पढ़ाई करता और जब सोता तो आसपास तैर रहे मंजरी की यादों के साए मुझ से लिपट जाते.

एम.बी.ए. के बाद मुझे ज्यादा भटकना नहीं पड़ा. थोड़ी सी कोशिश और भागदौड़ के बाद अच्छीखासी नौकरी हासिल हो गई थी. अब मेरे और मंजरी के बीच के सारे फासले खत्म होने को थे.

कुछ दिन की छुट्टी ले कर मैं कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाता वापस आ गया. मंजरी स्टेशन पर इंतजार करती मिली. मुझ से लिपट कर वह रो पड़ी थी.

मेरे पास वक्त कम था सो सीमित समय में विवाह की सारी रस्में पूरी की गईं. हंसीखुशी के माहौल में सबकुछ अच्छे से निबट गया था.

वापसी में मंजरी को साथ लाने में मुझे हिचक हो रही थी. अभीअभी शादी हुई है. पता नहीं लोग क्या सोचेंगे?

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बाबूजी ने मीठी झिड़की दी, ‘अपना स्वास्थ्य देखा है…होटल में खाखा कर कैसा बिगाड़ लिया है. बहू को साथ ले कर जा. घर का खाना मिलेगा तो सेहत सुधरेगी.’

मेरा मन भर आया, यह सोच कर कि बड़ेबुजुर्ग अपने बच्चों का कितना खयाल रखते हैं.

मंजरी की देहगंध से ईंटपत्थरों का बना 2 कमरों का छोटा सा फ्लैट मधुवन बन गया था. मेरी हर सुबह बसंती, हर दिन ईद और हर रात दीवाली हो गई थी. फिर भी एक बात सालती थी मुझे और वह थी मंजरी का अकेलापन. मैं सारा दिन आफिस में व्यस्त रहता और वह घर में अकेली.

मैं ने उसे ‘लेडीज डे क्लब’ जौइन करने की राय दी, जहां संपन्न घरों की औरतें साफसुथरे मनोरंजन के लिए जमा होती थीं. हर रोज कुछ नया होता था वहां.

वह हंस कर टाल गई.

साहित्य और लेखकों के प्रति मंजरी के मन में श्रद्धा की हद तक लगाव था. प्रेमचंद, गोर्की, चेखब, शरत बाबू, रेणू, महादेवी से ले कर अमृता प्रीतम, विष्णु प्रभाकर…और भी बहुत से नाम जो याद नहीं, उस के पसंदीदा थे. उस की अलमारी गोदान, ध्रुवस्वामिनी…सरीखी किताबों के साथसाथ सरिता और गृहशोभा जैसी पत्रिकाओं से भरी थी.

‘इन रूखी किताबों को पढ़ कर तुम बोर नहीं होतीं?’ मैं ने हंस कर पूछा.

‘इन में हर किताब अपने में पूरा दर्शन है, श्रेयांश,’ वह गंभीरता से बोली, ‘इन के कथानक लेखकों की कठोर तपस्या का प्रतिफल होते हैं जिन्हें वे अपना तनमन जला कर रचते हैं. आज लोगों में तनाव और हताशा हावी है तो इसलिए कि वे किताबों से दूर हो गए हैं.’

मैं निरुत्तर हो गया था.

मेरे आफिस में पुराने बौस के स्थानांतरण के रूप में नई घटना हुई. उन की जगह रागिनी ने ली थी. 30 साल की नई बौस जितनी सुंदर और स्मार्ट थी उतनी ही ऐक्टिव और त्वरित निर्णय लेने में सक्षम भी थी. मैनेजमैंट में उस की गजब की पकड़ थी. इस का असर कुछ ही दिनों में आफिस के कामकाज में दिखाई देने लगा था. मैं उस की असाधारण योग्यता का प्रशंसक था.

उस ने एक अभिनव प्रयोग और किया. हर शख्स को उस ने नए सिरे से जिम्मेदारी सौंपी थी.

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Serial Story: मंजरी की तलाश (भाग-3)

मैं मूकदर्शक बना रहा.‘मेरे बारे में अभी तुम जानते ही क्या हो, मेरा पति अमेरिका में है. 5 साल पहले हमारा प्रेमविवाह हुआ था. शादी से पहले ही तय हो गया था कि वैल सैटल होने के बाद ही मैरिजलाइफ को ऐंजौय करेंगे. इस बीच एकदूसरे के व्यक्तिगत जीवन को कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा. मैं ने अपने सपनों को विस्तार देने के लिए अपना देश चुना और वह अमेरिका चला गया.

‘शुरुआत के कुछ महीनों तक तो हम संपर्क में रहे फिर काम में ऐसे डूबे कि अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिली. आज मेरे पास लाखों का बैंक बैलेंस है. ऐशोआराम की हर चीज है. मेरी अपनी एक पहचान है पर मानसिक शांति नहीं है. मैं भीतर से बिलकुल खोखली हूं.’

उस की आंखों में सुरूर के लाल डोरे उभरने लगे थे.मैं चुपचाप खाना खाने लगा. वह भी खाती और पीती रही.‘सच कहूं श्रेयांश,’ वह बोली, ‘उस दिन तुम्हारी बातें मुझे मूर्खतापूर्ण लगी थीं. फिर धीरेधीरे तुम्हारी भावनाओं की मैं मुरीद होती गई. अपने प्यार के लिए कैरियर दांव पर लगाना मामूली बात नहीं है. यह काम तुम्हारे जैसा व्यक्ति ही कर सकता है. सोचती हूं वह लड़की कितनी खास होगी जिसे तुम ने प्यार किया.’

‘तुम्हारे पति भी तो तुम्हें प्यार करते होंगे?’ पानी पी कर मैं ने धीरे से पूछा.

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‘वह जिस कल्चर में रहता है वहां प्यार का अर्थ मतलबपरस्ती से है. पलक झपकते महिला और पुरुष पार्टनर बदल जाते हैं. बस, फायदा दिख रहा होना चाहिए. किसी की बीवी का दूसरे की बांहों में चले जाना आम बात है. बड़ी से बड़ी डील चुटकियों में हो जाती है. वहां पार्टियों का आयोजन होता ही इसलिए है कि जिस की बीवी जितनी सुंदर और बोल्ड वह उतना ही कामयाब. सब के सब जानवर हैं,’ उस ने घृणा से मुंह बनाया.

‘तुम्हें एक राज की बात बताऊं, श्रेयांश. मेरे प्रमोशन का लैटर कई दिन पहले आ चुका है. मैं ने उसे फाड़ कर डस्टबिन में फेंक दिया. तुम से दूर जाने का साहस नहीं जुटा पाई मैं. मैं ने कभी हारना नहीं सीखा पर तुम से हारना अच्छा लगा. तुम से बहुत कुछ सीखने को मिला है…आगे भी सीखती रहूंगी. यू आर माई आइडियल…’ उस ने अधूरी बात छोड़ कर मेरी आंखों में झांका.

मैं सन्नाटे में आ गया.

‘तुम्हें लगता होगा मैं पागल हो गई हूं. तुम में बात ही कुछ ऐसी है कि कोई भी पागल हो जाए.’

‘स्टौप इट,’ मैं सख्ती से बोला, ‘इस वक्त तुम होश में नहीं हो. चलो, तुम्हें रूम तक छोड़ दूं.’

‘नो, आई एम ओ.के.,’ वह झूमती हुई बोली, ‘यू नो, इतना ऊपर मैं स्टैप बाई स्टैप नहीं, एक छलांग में आई हूं. कंपनी के मालिक उस बुड्ढे की मुझे देखते ही लार टपकती है. होटल के ऐसे कमरों में उस ने सैकड़ों बार भोगा है मुझे. न चाहते हुए भी मुझे उस के सामने बिछना पड़ा. सफलता की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. मैं अपनी योग्यता के बलबूते पर भी यहां तक पहुंच सकती थी पर मेरी मांसल देह के आगे मेरी योग्यता किसी को दिखाई ही नहीं देती.’

उस का यह रूप आज मैं पहली बार देख रहा था. मुझे उबकाई आने लगी थी.

उस ने मुझे अपनी ओर खींच लिया, ‘हरिश्चंद्र का चरित्र घर तक ठीक है. यहां हमारे अलावा और कोई नहीं है. और हम मौजमस्ती करते हैं.’

उसे परे धकेल कर मैं अपने कमरे में आ गया. मेरा मूड खराब हो गया था. उस भोली सी दिखने वाली लड़की के दिमाग में कितने छलप्रपंच भरे थे. वह नफा- नुकसान का हिसाबकिताब लगा कर संबंध जोड़ती थी. उसे शरीर को गणित के फार्मूले की तरह इस्तेमाल करना आता था. बाजारवाद की मानसिकता उस पर इतनी हावी थी कि उस से इतर कुछ सोच ही नहीं सकती थी.

दिल्ली पहुंचते ही उस की मेज पर अपना त्यागपत्र रख कर नौकरी से नमस्ते कर लूंगा…मैं सोच चुका था. मुझे कोई वास्ता नहीं रखना ऐसी खतरनाक लड़की से.

मेरी आंखों से नींद उड़ गई थी. मैं ने परदा खींच कर खिड़की खोली. दूरदूर तक फैला सागर अब भी शांत था. आसमान में पूरी आभा के साथ चमकता चांद थोड़ा नीचे की ओर झुक आया था. विशाल सागर मानो हाथ पसारे उस की प्रतीक्षा कर रहा था. रात ढलने के बाद एक वक्त ऐसा भी आएगा जब चांद सागर की लहरों को स्पर्श करता हुआ उसी में एकाकार हो जाएगा. शायद यही प्रेम का शाश्वत रूप है…जिसे रागिनी देह की आंच में झोंक देना चाहती है.

अचानक चांद में मंजरी का चेहरा उभर आया. खोईखोई सी…उदास रंगत लिए. उस की सूनी आंखें एकटक मेरी ओर निहार रही थीं. एकसाथ कई तीर मेरे दिल को बेध गए.

‘तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता, मंजरी,’ मेरे होंठ कांपने लगे थे.

हम सुबह की पहली फ्लाइट से दिल्ली रवाना हुए. रागिनी की सूरत बिलकुल बदली हुई थी. रात की घटना का उसे क्षोभ नहीं था. रात गई बात गई. रास्ते में वह ज्यादातर लैपटौप में उलझी रही थी. उसी दौरान चंद काम की बातें हुईं. मैं ने उस से अघोषित दूरी बना ली थी.

एअरपोर्ट से मैं सीधा घर पहुंचा. मेन गेट पर ताला लटक रहा था. ऐसा पहली बार हुआ था. मैं अभी सोच ही रहा था कि पड़ोस की लड़की चाबी और एक लिफाफा दे गई.

‘आंटी कल सुबह से कहीं गई हैं,’ मुझे उलझन में खड़े देख कर वह बोली.

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मंजरी बहुत कम ही कहीं आतीजाती थी. वह भी कभीकभार घंटे आधघंटे के लिए. किसी अज्ञात आशंका से मेरा दिल धड़कने लगा. मैं जल्दी से ताला खोल कर अंदर आया. लिफाफे के भीतर मंजरी के हाथ का लिखा एक कागज रखा था. मैं कांपते हाथों से उसे निकाल कर पढ़ने लगा :

‘श्रेयांश,

‘याद करो कालेज के वे दिन. उन दिनों का पागलपन, मेरी देहगंध पाने की छटपटाहट, जो तुम्हें मेरे करीब खींच लाई थी. वह प्यार, वह कशिश, वे महकते लम्हे, मैं हर पल यहां तलाशती रही…यह मेरी भूल थी. वे सब तो तुम वहीं छोड़ आए हो…उसी छोटे से शहर की सरहद में जहां हमारा प्रेम अंकुरित हुआ था. यहां अकेली चलतेचलते थक गई हूं इसलिए वापस जा रही हूं…उन्हीं यादों की छाया तले विश्राम करने. इस शहर ने तुम्हें मुझ से छीन लिया पर उस धरोहर से मुझे कोई अलग नहीं कर सकता, जो उस शहर के चप्पेचप्पे में बिखरी है. यहां चैन से जी नहीं सकी…वहां यादों से लिपट कर सुकून से मर तो सकती हूं. यह अधिकार मुझ से कोई नहीं छीन सकता…तुम भी नहीं.

-मंजरी’

मैं निर्जीव सा सोफे पर पसर गया.

पत्र हाथ में लिए मैं कई पलों तक किंकर्त्तव्यविमूढ़ सा बैठा रहा था. फिर होश आते ही स्टेशन पहुंचा और जो पहली ट्रेन मिली उसी में बैठ गया. अपने पीछे उन तमाम बंधनों को तोड़ आया जिन के कारण मेरा जीवन इस दोराहे तक आ पहुंचा था. दोराहे से पलट कर भी अपने शहर के पुराने रास्तों पर मेरी निगाहें अपनी मोहब्बत के दीदार के बिना इधरउधर भटक रही थीं.

मोहब्बत तो एक नाजुक सा एहसास होता है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. मंजरी ने डूब कर जिया था इस एहसास को. वह मुझे हृदय की असीम गहराइयों से प्रेम करती रही और मैं उस की भावनाओं को आहत करता रहा. मेरे दिल में टीस उठ रही थी. घटाएं घुमड़ कर आंखों में उतर आई थीं. हवा के तेज झोंके उन्हें बरसने से पहले ही सोखने लग गए थे.

सहसा एक सम्मोहक सी गंध फिजाओं में घुलने लगी. मेरी चिरपरिचित गंध. मेरी आत्मा में गहरे तक बिखरी हुई गंध. मेरे जीवन को ऊर्जावान कर देने वाली गंध…मंजरी की देहगंध. मैं पगलाया सा दौड़ने लगा. बारिश के कारण सड़क के दोनों ओर दुकानों के छज्जों के नीचे खड़े लोग मुझे कौतूहल से देख रहे थे. उन से बेपरवाह में दौड़ता ही रहा…जल्दी से जल्दी मंजरी के करीब पहुंचने और उसे सदा के लिए बांहों में समेट लेने के जनून में.

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Serial Story: मंजरी की तलाश (भाग-2)

मेरा कद बढ़ गया था. आफिस से संबंधित हर छोटेबड़े निर्णय में मेरी राय खास माने रखने लगी थी. बिजनेस टूर में रागिनी के साथ मेरा जाना लगभग अनिवार्य था. मैं उस का पर्सनल सेक्रेटरी हो गया था. कंपनी से मुझे शानदार बंगला और गाड़ी सौगात में मिली थी. वेतन की जगह भारीभरकम पैकेज ने ले ली थी.

इस नई भूमिका से जहां मैं बेहद उत्साहित था वहीं मंजरी की कठिनाइयां बढ़ गई थीं. कईकई दिन तक उसे अकेले रहना पड़ता था. व्यस्तता के कारण आफिस से मेरा देर रात तक लौटना संभव हो पाता. मंजरी उस वक्त भी उनींदी पलकों से मुझे प्रतीक्षा करती मिलती. खाने की मेज पर ही उस से चंद बातें हो पाती थीं.

रागिनी के आग्रह पर मैं जबतब बाहर खा कर आता तो वह उस से भी महरूम रह जाती थी. फिर वह भूखी सो जाती. मैं ने उस से कई बार कहा कि मुझ से पहले खा लिया करे पर वह अपनी जिद पर कायम रही. उसे भूखा रहने में क्या सुख मिलता था मैं समझ नहीं सका या मेरे पास समझने का वक्त ही नहीं था.

मैं इनसान से मशीन में तब्दील हो गया था.

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‘तुम इतने बदल जाओगे मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी,’ मेरी उपेक्षा से आजिज आ कर अंतत: एक दिन उस के सब्र का बांध टूट गया, ‘मुझ से बात करने को चैन के तुम्हारे पास दो पल भी नहीं हैं. जब से आई हूं इस चाहरदीवारी में कैद हो कर रह गई हूं. कहीं घुमाने तक नहीं ले गए मुझे.’

‘मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करो. ऐसी नौकरी और ऐसे अवसर मुश्किल से मिलते हैं. यही मौका है खूब आगे, आगे से और आगे… ऊंचाई पर जाने का.’

‘तुम पहले ही इतना आगे जा चुके हो कि मुड़ कर देखने से मैं दिखाई नहीं देती और आगे चले गए तो…’ उस का गला रुंध गया.

‘यह क्या कह रही हो?’

‘अब और सहन नहीं होता, श्रेयांश,’ उस की आंखें भर आईं, ‘मैं कोई बुत नहीं हूं जो कोने में अकेला पड़ा रहे. हाड़मांस की बनी जीतीजागती इनसान हूं मैं. मेरे सीने में धड़कता दिल हर क्षण तुम्हारी मदभरी बातें सुनने को तरसता है. कभी मेरे मन में जमी राख को कुरेद कर देखते तो समझ पाते कि मैं पलपल किस भीषण आग से सुलग रही हूं.’

उस की हालत देख कर मैं दहल गया. यकीनन मैं इतनी गहराई तक नहीं पहुंचा था जितना वह सोचती थी. उस के अंतर्मुखी स्वभाव के कारण मैं कभी ठीकठीक अंदाजा ही नहीं लगा सका कि क्या कुछ दहक रहा था उस के भीतर. जब स्थिति बदतर हो गई तभी उस के मन का ज्वालामुखी फटा था. मैं ने उस के आंसू पोंछे. उसे अंक में समेट कर देर तक डूबा रहा उस की देहगंध में. उस पूरी रात वह अबोध शिशु की तरह मेरे पहलू में दुबकी रही.

अगले दिन मैं ने रागिनी को फोन कर आफिस आने से मना कर दिया. उस ने बहुत सारे आवश्यक कामों का हवाला दे कर हीलहुज्जत की थी पर मुझे नहीं जाना था, सो नहीं गया.

वह पूरा दिन मंजरी के लिए रिजर्व था.

मैं उसे कई जगह घुमाने ले गया. हम थिएटर भी गए. वहां प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का मंचन हो रहा था.

‘दिल्ली के लोग इस युग में भी संवेदनाओं को जीवित रखे हैं,’ वह रोमांचित हो गई थी.

अंत में हम ने ढेर सारी शौपिंग की और कैंडल डिनर का लुत्फ उठाया. लौटते वक्त वह चहक रही थी. उस का खिला चेहरा कभी मुरझाने न देने का मैं निश्चय कर चुका था.

अगले दिन मैं आफिस पहुंचा. पिछले रोज आफिस न आने का कारण बताया.

‘तुम होश में तो हो, श्रेयांश?’ मेरी बात सुन कर रागिनी भड़क गई थी, ‘आज आफिस में तुम जिस लैबल पर हो उस पर तुम्हें गर्व होना चाहिए.’

‘प्लीज मैडम, मेरी बात समझने की कोशिश करें.’

‘देखो श्रेयांश, जल्दबाजी में लिए गए फैसले अकसर गलत साबित होते हैं. यहां काम करने वालों की कमी नहीं है. एक से बढ़ कर एक हैं. तुम में मुझे अपार संभावनाएं नजर आ रही हैं इसलिए नेक राय दे रही हूं. आने वाले सुनहरे कल को यों ठोकर मारना उचित नहीं है.

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‘तुम्हारी पत्नी छोटे शहर से आई है इसलिए ऐडजस्ट करने में उसे समस्या हो रही है. धीरेधीरे परिस्थितियां सब को अपने अनुरूप ढाल लेती हैं.’

‘मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूं. ऐसा कभी नहीं हो सकेगा.’

‘कोशिश कर के देखने में क्या हर्ज है?’

मैं ने घर आ कर मंजरी को सारी स्थिति और अपनी मजबूरी बता दी.

‘मुझे तुम पर भरोसा है,’ मेरे सीने से लग कर वह बोली थी.

रागिनी ने मेरे सामने जो परिस्थितियां उत्पन्न कर दी थीं उन में मंजरी के भरोसे को कायम रख पाना मेरे लिए बेहद मुश्किल भरा काम था. न चाहते हुए भी मेरा काम करने का रुटीन पहले से और भी अधिक संघर्षमय होता जा रहा था.

धीरेधीरे समय गुजरता गया. साथ ही मंजरी से दूरी बढ़ती गई. मेरा ज्यादातर समय रागिनी के साथ बीतता था. मैं फिर उसी भंवर की गहराई में डूब गया था जिस से उबरने के स्वप्न मंजरी की आंखों में झिलमिला रहे थे. मेरे मन के किसी कोने में दबी महत्त्वाकांक्षा जोर मारने लगी थी. इस उफान में मंजरी हाशिए पर चली गई. उस के मुसकराते होंठ थरथराने लगे थे जैसे मुझ से कुछ कहना चाहते हों. मैं ने दोएक बार पूछा भी पर वह खामोश रही. मैं ज्यादा कुरेदता तो वह किसी बहाने से उठ कर चली जाती थी. उस की पलकों का गीलापन मुझ से छिप नहीं पाता था. उन में कई अनबूझे सवाल तैरते देखे थे मैं ने.

‘मंजरी प्लीज, संभालो अपने आप को,’ उस की उदासी से तिक्त हो कर मैं ने कहा, ‘कुछ दिन बाद तुम्हारे सारे गिलेशिकवे दूर हो जाएंगे.’

‘उन्हीं कुछ दिनों का इंतजार है मुझे,’ वह भावहीन स्वर में बोली.

मैं फ्रीज हो कर रह गया था.

3 दिन के टूर पर मैं रागिनी के साथ मुंबई में था. जिस होटल में हम ठहरे थे उस में अंतिम दिन एक खास मीटिंग रखी गई थी. रात के लगभग 12 बजे तक मीटिंग चली. उस के बाद डिनर था. विशाल डाइनिंग हाल में खिड़की के बगल वाली सीट हमारे लिए रिजर्व थी. वहां से समुद्र का दिलकश नजारा साफ दिखाई देता था.

बैरा खाना लगा गया तो रागिनी ने उस से सोडा लाने को कहा और पर्स से महंगी विदेशी शराब की छोटी बोतल निकाल कर 2 गिलास सीधे किए.

‘मैं नहीं लूंगा,’ उस का आशय समझ कर मैं बोला तो उस ने जिद नहीं की. बैरे को बुला कर मेरे लिए कोल्ड ड्रिंक मंगवाई और अपने लिए पैग तैयार किया.

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दो घूंट गटक कर रागिनी बोली, ‘मुझे शौक नहीं है पीने का. पर क्या करूं, काम के बोझ और थकान के कारण पीनी पड़ती है. शरीर तो आखिर शरीर है, उस की भी अपनी सीमाएं हैं. दो घूंट अंदर और सब टैंशन बाहर,’ वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

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