कोरोना काल में जब आने वाले हों मेहमान

कोरोना के कारण मार्च में जब लॉक डाउन घोषित हुआ तो जनसामान्य की समस्त गतिविधियों पर ब्रेक लग गया और लोग अपने अपने घरों में कैद हो गए परन्तु अब 5 माह बाद कोरोना हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है जिसके साथ ही हमें जीना सीखना होगा. यूँ भी जीवन चलने का नाम है अतः इंसानी गतिविधियों को रोका नहीं जा सकता. घर में अब तक कैद रहे लोग घूमने जाने का भी प्लान करने लगे हैं. कोरोना से पहले जहां लोग अतिथि के आने पर खुश होते थे वहीं अब मेहमान के आने की सूचना प्राप्त करते ही कोरोना का भूत हावी हो जाता है. आजकल ऐसा ही कुछ हाल है मेरी पड़ोसन जूही का. परसों जैसे ही उसके एक पारिवारिक मित्र ने अपने आने की सूचना दी तो जूही को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह हंसे या रोये. अब बरसों पुराने घनिष्ट संबंधों को कोरोना के नाम पर खराब भी तो नहीं किया जा सकता. यही सब बातें जब उसने अपनी सास को बतायीं तो वे बोलीं, “कोरोना तो अब हमारे साथ ही रहने वाला है बेटा, बेहतर है कि तुम आने वाले का जोश से स्वागत करो पर हां सावधानियों का दामन लेशमात्र भी न छोड़ना.”

निस्संदेह सास से बात करके उसे बहुत अच्छा लगा और वह जोश के साथ मेहमानों के स्वागत की तैयारी में लग गयी.

रक्षाबन्धन के त्यौहार पर रश्मि की ननद अपने परिवार सहित पुणे से मुम्बई आ धमकी. आने की सूचना भी रश्मि को मात्र 3 घंटे पहले दी. अब कैसे क्या करे इस कोरोना के टाइम में, कमरों के छोटे से फ्लैट में कैसे मैनेज होगा सोचकर ही उसका सिर चकरा गया. वह अभी प्लानिंग में ही लगी थी कि ननद ने ही पुनः फोन करके कहा,”भाभी चिंता मत करियेगा हम लोग कोरोना टेस्ट करवा कर ही आ रहे हैं.मैं आकर सब मैनेज कर लूंगी. तब जाकर कहीं रश्मि को चैन आया.

इसी प्रकार कई बार हमें न चाहते हुए भी कुछ जगहों पर जाना पड़ता है. देविका की ननद के बेटे की शादी थी और देविका किसी भी कीमत पर स्वयम को इंदौर से भोपाल जाने को राजी नहीं कर पा रही थी परंतु उसके पति ने समझाया,”इकलौती बहन है मेरी हमारे न जाने से जिंदगी भर के लिए सम्बन्ध खराब हो जाएंगे. सभी लोग तो आ रहे हैं , कोरोना के कारण नाते रिश्तेदारियां तो खत्म नहीं कर सकते न. हम वहां भी पूरी सावधानियां रखेंगे.”

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वास्तव में ये समय बहुत ही कठिन समय है परंतु सत्य यह भी है कि एक महामारी के कारण ज़िंदगी की किसी भी गतिविधि पर ब्रेक नहीं लगाया जा सकता क्योंकि जिंदगी चलने का नाम है. कटु सत्य है कि इस काल में भी न चाहते हुए भी आप कभी मेजबान बनेंगे तो कभी मेहमान इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखकर इस दौर को भी आनन्ददायक बनाना बेहतर है-

जब आप हों मेजबान

-जब भी कोई अतिथि आपके घर आये तो पैनिक होने के स्थान पर इसे बड़े ही सरल और सहज ढंग से लें इससे आप सामनेवाले का अच्छे से स्वागत सत्कार कर पाएंगी.

-यदि आपके पास पर्याप्त जगह है तो मेहमान के परिवार को अलग कमरा दें इससे आपकी और उनकी दोनों की ही प्राइवेसी बनी रहेगी और कुछ हद तक कोरोना से सुरक्षा भी.

-यदि जगह का अभाव है तो घर के हॉल में निर्धारित दूरी पर जमीन पर सोने की व्यवस्था करें साथ ही सभी के ओढ़ने बिछाने की अलग चादर रखें.

-घर के मुख्य द्वार पर हैंड सेनेटाइजर रखें और यदि हो सके तो बाहर ही हाथ पैर धोने के लिए पानी और साबुन की व्यवस्था करें ताकि किसी भी प्रकार के कीटाणु और वायरस का घर मे प्रवेश अवरुद्ध किया जा सके.

-भोजन करते समय कम से कम बातचीत करें और एक दूसरे का जूठा खाने से बचें.

-घूमने जाने से पहले घर पर हैवी नाश्ता करें और भोजन की पर्याप्त व्यवस्था करके ही जाएं ताकि बाहर के खाद्य पदार्थ खाने से आप बचे रहें क्योकि इस समय बाहर का भोजन खाने से बचना ही श्रेयस्कर है.

-भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें, घूमने के लिए सुबह का समय चुनें, सेनेटाइजर साथ में रखें और पर्याप्त सोशल डिस्टेंस मेंटेन रखें.

जब आप हों मेहमान

-यदि सम्भव हो तो किसी के भी घर जाने से पूर्व आप अपना कोरोना टेस्ट करवाकर ही जाएं ताकि मेजबान कोरोना की ओर से आश्वस्त होकर आपका स्वागत सत्कार कर सके.

-आप जिसके घर जा रहे हैं उनके नियम कायदों का भली भांति पालन करें ताकि आप उनके लिए सिरदर्दी या मुसीबत न बनें.

-वर्तमान काल में बस, ट्रेन और एयर से यात्रा करना लेशमात्र भी सुरक्षित नहीं है बेहतर है कि आप जाने के लिए टैक्सी अथवा अपने वाहन का प्रयोग करें इससे आप तो सुरक्षित रहेंगे ही मेजबान भी आपकी ओर से आश्वस्त रहेगा.

-यदि सम्भव हो तो परिवार के सदस्यों के अनुसार ओढ़ने बिछाने की चादर आप अपने साथ ही लेकर जाएं.

-अपने मैकअप और नहाने कपड़े धोने के साबुन साथ ही लेकर जाएं ताकि मेजबान की कम से कम वस्तुओं का आपको प्रयोग करना पड़े.

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-इस समय अधिकांश घरों में महिलाएं हाथ से समस्त कार्य कर रहीं है, ऐसे में हर समय बैठे ही न रहकर उनकी मदद करवाने का प्रयास करें ताकि उन्हें आप भारस्वरूप न प्रतीत हों.

-यथासम्भव मास्क और सेनेटाइजर का प्रयोग करें. कम से कम 4से 5 मास्क प्रत्येक सदस्य के लिए रखें क्योकि बारिश में अक्सर सूखने में समय लगता है.

-यदि मेजबान कोरोना को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरत रहा है तो उनकी इस आदत की हंसी या खिल्ली उड़ाने के स्थान पर उन्हें सहयोग करें क्योकि ध्यान रखिए सावधानी में ही सुरक्षा है, सावधानी हटी दुर्घटना घटी.

नेहा कक्कड़ के सौंग Diamond Da Challa के सूट हैं फैस्टिव स्पैशल, आप भी कर सकती हैं ट्राय

बौलीवुड सिंगर नेहा कक्कड़ के गाने हर किसी को पसंद आते हैं. हाल ही में नेहा का पंजाबी सिंगर और एक्टर परमीश वर्मा के साथ गाना ‘डायमंड दा छल्ला’ रिलीज हुआ है, जो नंबर 1 पर ट्रेंड कर रहा है. लेकिन आज हम नेहा कक्कड़ के गानों या पर्सनल लाइफ की नहीं बल्कि उनके ‘डायमंड दा छल्ला’ सौंग में पहने गए आउटफिट के बारे में बात करेंगे. नेहा ने अपने इस सौंग में नए-नए सूट पहनें हैं, जिसे फेस्टिव सीजन में आराम से कैरी कर सकते हैं. आइए आपको दिखाते हैं नेहा कक्कड़ के फेस्टिव लुक…

प्लेन सूट के साथ लहरिया दुपट्टा है परफेक्ट

नेहा ने अपने गाने में लाइट ऑलिव ग्रीन कलर के सूट और मैचिंग प्लेन सलवार के साथ बॉर्डर पर गोल्डन फ्रिंजेज़ वाला लुक तैयार किया था, जिसके साथ खास पिंक लहरिया दुपट्टा नेहा के लुक को कम्पलीट कर रहा था. नेहा कक्कड़ के इस सूट लुक को फेस्टिव सीजन में आसानी से कैरी किया जा सकता है.

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ब्लैक कुर्ता और पटियाला सलवार है फेस्टिव परफेक्ट

 

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गाने में नेहा पंजाबी लुक कैरी करते हुए ब्लैक कुर्ते और पटियाला सलवार में भी नजर आईं. कुर्ते पर ओवरऑल गोल्डन प्रिंट किया गया था, जो माइक्रो साइज का था. वहीं फुल स्लीव्स पर इसी कलर का बड़ा प्रिंट स्टाइलिश लग रहा है. कुर्ते के साथ गोल्डन पटियाला सलवार को मैच किया गया था, जिसे  सिंपल रखा गया था.

ब्राइट कलर है स्टाइलिश

आपको अगर ब्राइट कलर्स के शौकीन हैं, तो नेहा का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. Diamond Da Challa  गाने के एक सीन में नेहा ब्राइट येलो कलर का सूट पहने नजर आईं थीं, जिसमें स्पैगटी स्लीव्स वाले  एंकल लेंथ कुर्ते के साथ उन्होंने मैचिंग सलवार पहनी थी और इस पर उन्होंने कलरफुल टाई एंड डाई दुपट्टा लिया था, जो बेहद स्टाइलिश लग रहा था. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो नेहा के सिल्वर ईयररिंग्स उनके इस ब्राइट कलर लुक को कम्पलीट कर रहा है.

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वेडिंग सीजन के लिए परफेक्ट है रानी कलर सूट

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रानी कलर का सूट पहने नेहा का लुक शादी के लिए परफेक्ट औप्शन है. गोल्डन प्रिंट से माइक्रो साइज की बूटियां और अन्य डिजाइन से बने नेहा के सूट के डिजाइन को शिफॉन के दुपट्टे पर भी रिपीट किया गया था. इस आउटफिट पर गोटा-पट्टी वर्क भी किया गया था, जो उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहा था. ज्वैलरी की बात करें तो नेहा सिल्वर झुमकों और नोज रिंग के साथ मैच करती नजर आ रही हैं, जिसे वैडिंग सीजन में कैरी कर सकते हैं.

आत्मनिर्णय

मैं सोचती रह गई कि आज की नई पीढ़ी क्या हम बड़ों से ज्यादा समझदार हो गई है? आन्या ने जो फैसला लिया, शायद ठीक ही था, जबकि परिपक्व होते हुए भी आत्मनिर्णय लेने में मैं ने कितनी देर लगा दी थी.

मैं ने आन्या के पापा को उस के पैदा होने के महीनेभर बाद ही खो दिया था. हरीश हमारे पड़ोसी थे. वे विधुर थे और हम एकदूसरे के दुखसुख में बहुत काम आते थे. हरीश से मेरा मन काफी मिलता था. एक बार हरीश ने लिवइन रिलेशनशिप का प्रस्ताव मेरे सामने रखा तो मैं ने कहा, ‘यह मुमकिन नहीं है. आप के और मेरे दोनों के बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा. पति को तो खो ही चुकी हूं, अब किसी भी कीमत पर आन्या को नहीं खोना चाहती. हम दोनों एकदूसरे के दोस्त हैं, यह काफी है.’ उस के बाद फिर कभी उन्होंने यह बात नहीं उठाई.

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धीरेधीरे समय का पहिया घूमता रहा और आन्या अपनी पढ़ाई पूरी कर के नौकरी करने लगी. उसे बस से औफिस पहुंचने में करीब सवा घंटा लगता था. एक दिन अचानक आन्या ने आ कर मुझ से कहा, ‘‘मम्मी, बहुत दूर है. मैं बहुत थक जाती हूं. रास्ते में समय भी काफी निकल जाता है. मैं औफिस के पास ही पीजी में रहना चाहती हूं.’’

एक बार तो उस का प्रस्ताव सुन कर मैं सकते में आ गई, फिर मैं ने सोचा कि एक न एक दिन तो वह मुझ से दूर जाएगी ही. अकेले रह कर उस के अंदर आत्मविश्वास पैदा होगा और वह आत्मनिर्भर रह कर जीना सीखेगी, जोकि आज के जमाने में बहुत जरूरी है. मैं ने उस से कहा, ‘‘ठीक है बेटा, जैसे तुम्हें समझ में आए, करो.’’

3-4 महीने बाद उस ने मुझे फोन कर के अपने पास आने के लिए कहा तो मैं मान गई, और जब उस के दिए ऐड्रैस पर पहुंच कर दरवाजे की घंटी बजाई तो दरवाजे पर एक सुदर्शन युवक को देख कर भौचक रह गई. इस से पहले मैं कुछ बोलूं, उस ने कहा, ‘‘आइए आंटी, आन्या यहीं रहती है.’’

यह सुन कर मैं थोड़ी सामान्य हो कर अंदर गई. आन्या सोफे पर बैठ कर लैपटौप पर कुछ लिख रही थी. मुझे देखते ही वह मुझ से लिपट गई और मुसकराते हुए बोली, ‘‘मम्मी, यह तनय है, मैं इस से प्यार करती हूं. इसी से मुझे शादी करनी है. पर अभी ससुराल, बच्चे, रीतिरिवाज किसी जिम्मेदारी के लिए हम मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से परिपक्व नहीं हैं. अलग रह कर रोजरोज मिलने पर समय और पैसे की बरबादी होती है. इसलिए हम ने साथ रह कर समय का इंतजार करना बेहतर समझा है. मैं जानती हूं अचानक यह देख कर आप को बहुत बुरा लग रहा है, लेकिन आप मुझ पर विश्वास रखिए, आप को मेरे निर्णय से कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.

‘‘और मैं यह भी जानती हूं, आप पापा के जाने के बाद बहुत अकेला महसूस कर रही हैं. आप हरीश अंकल से बहुत प्यार करती हैं. आप भी उन के साथ लिवइन में रह कर अपने अकेलेपन को दूर करें. फिर मुझे भी आप की ज्यादा चिंता नहीं रहेगी.’’

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यह सब सुनते ही एक बार तो मुझे बहुत झटका लगा, फिर मैं ने सोचा कि आज के बच्चे कितने मजबूत हैं. मैं तो कभी आत्मनिर्णय नहीं ले पाई, लेकिन जीवन का इतना बड़ा निर्णय लेने में उस को क्यों रोकूं. तनय बातों से अच्छे संस्कारी परिवार का लगा. अब समय के साथ युवा बदल रहे हैं, तो हमें भी उन की नई सोच के अनुसार उन की जीवनशैली का स्वागत करना चाहिए. उन पर हमारा निर्णय थोपने का कोई अर्थ नहीं है. और यह मेरी परवरिश का ही परिणाम है कि वह मुझ से दूसरे बच्चों की तरह छिपा कर कुछ नहीं करती. मैं ने तनय को अपने गले से लगाया कि उस ने आन्या के भविष्य की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर मुझे मुक्त कर दिया है. मैं संतुष्ट मन से घर लौट आई और आते ही मैं ने हरीश के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी.

बेड़ी नहीं विवाह: शादी के बाद क्यों कठपुतली बन जाती है लड़की

महिलाओं को विवाह के बाद अपने व्यक्तित्व को, स्वभाव को बहुत बदलना पड़ता है. समाज सोचता है कि नारी की स्वयं की पहचान कुछ नहीं है. विवाह के बाद बड़े प्यारदुलार से उस की सामाजिक, मानसिक स्वतंत्रता उस से छीनी जाती है. छीनने वाला और कोई नहीं स्वयं उस के मातापिता, सासससुर और पति नामक प्राणी होता है. विदाई के समय मांबाप बेटी को रोतेरोते समझाते हैं कि बेटी यह तुम्हारा दूसरा जन्म है. सासससुर और पति की आज्ञा का पालन करना तुम्हारा परम कर्त्तव्य है.

ससुराल में साससुसर और पति कुछ स्पष्ट और कुछ संकेतों द्वारा ससुराल के अनुसार चलने की हिदायत देते हैं. मध्यवर्गीय व उच्च मध्यवर्गीय समाज की यह खास समस्या है. पत्नी विदूषी है, किसी कला में पारंगत है, तो उस में ससुराल वाले और संकुचित मानसिकता वाला पति उस की प्रतिभा का गला घोटने में देर नहीं करता. नृत्यकला या गायन क्षेत्र हो तो उसे साफतौर पर बता दिया जाता है कि ये सब यहां नहीं चलेगा. इज्जतदार खानदान के मानसम्मान की दुहाई दी जाती.

यहां तक कि कुछ घरों में बहुओं को नौकरी करने से भी मना कर दिया जाता है. भले घर में कितनी ही आर्थिक तंगी क्यों न हो. किसीकिसी घर में जहां आर्थिक तंगी, बदहाली चरम सीमा पर पहुंची होती है वे नौकरी की आज्ञा तो दे देते हैं, पर औफिस में किसी पुरुष से बात नहीं करनी और पूरा वेतन पति या सास को देने की शर्त रख दी जाती है. कठपुतली वाली जिंदगी

सुनंदा जिला स्तर की टैनिस खिलाड़ी थी. घर भर की लाडली थी. जीवन कैसे हंसखेल कर बिताया जाता है यह उस से सीखा जा सकता था पर अपनी जीवन प्रतियोगिता में वह पिछड़ गई. देखसुन कर एक सभ्रांत घर में रिश्ता तय किया गया. पति व ससुर दोनों उच्चपदाधिकारी थे. पगफेरे के लगभग 1 महीने बाद कठपुतली की तरह व्यवहार करने को मजबूर हो गई, जिस की डोर सिर्फ ससुराल वालों के हाथ में थी. क्या पहनेगी, कहां जाएगी, कितनी बात करनी है सब पति और ससुराल वाले तय करते थे. उस की भाभी ने अपना मोबाइल उसे छिपा कर दे दिया. अवसर पाते ही सुनंदा ने मायके से फोन पर अपनी व्यथाकथा कही तो भाभी हैरान रह गईं. ऊंची दुकान फीके पकवान वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी. अगर वह कुछ कहती तो ससुराल वाले उस के भाई व पिता को नुकसान पहुंचाने की धमकी देते. बेचारी डर के मारे चुप रह जाती.

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अवसर पाते ही पिता व भाई सुनंदा को ससुराल से वापस ले आए. 1 साल तक वह उन के साथ रही. जिला क्लब में टेबल टैनिस की कोच बन गई. साल भर तो ससुराल वालों की नाराजगी के कारण कोई खोजखबर नहीं ली पर बाद में एक दिन पति ही सिर झुकाए गिड़गिड़ाता हुआ आ पहुंचा और सुनंदा को ले जाने का आग्रह करने लगा. घरवालों ने लिखित रूप से उस से वे सब बातें लिखवाई जिन से पति और उस का पिता सुनंदा को धमकाता था. आइंदा सुनंदा के साथ कुछ गलत न करने का वादा रिकौर्ड करवा कर सुनंदा को उस के साथ भेज दिया.

सताने के नए पैंतरे एक और घटना में एक युवती का विवाह एक ऐसे घराने में हो गया. जो अव्वल दर्जे के धोखेबाज थे. उन्होंने अमीर और सभ्य बनने का नाटक किया था. वास्तव में वे लोग सिर से पैरों तक कर्ज में डृबे थे. शादी में उन्हें अच्छाखासा कैश मिलने की उम्मीद थी, जो पूरी नहीं हुईं. इस का आक्रोश निकाला गया.

युवती की सारी बुनियादी आवश्यकताओं पर रोक लग गई. पति और ससुर के खाने के बाद जो बचता वही वह खाती. फोन करने, बाहर जाने पर पाबंदी थी. मायका दूसरे शहर में था. ससुराल वाले जानपहचान वालों से भी नहीं मिलवाते. अगर कोई मिलने की इच्छा जाहिर करता तो वे कहते कि वह सोई हुई है या तबीयत खराब है. बड़ी कोशिशों के बाद परिवार को उसे वहां से निकालने का मौका मिला. जहां तक सैक्स की बात हो पति अपनी इच्छाओं को सर्वोपरि रखता है. पत्नी थकी हो या बीमार अथवा उस की इच्छा न हो, परंतु स्त्री को पति की जरूरत के आगे घुटने टेकने ही पड़ते हैं. यदि यह प्रस्ताव पत्नी की ओर से हो तो उसे पहले दर्जे की बेहया मान कर अपमानित किया जाता है यानी कदमकदम पर उस की स्वतंत्रता को रौंदा जाता है.

कुछ पुरुष तो अपनी पत्नी को अपनी जायदाद या संपत्ति समझते हैं. पिछले दिनों यह खबर सुर्खियों में थी कि एक सैनिक अपनी पत्नी को अपने सैनिक मित्रों, सहयोगियों के साथ यौन संबंध बनाने को बाध्य करता था. मना करने पर चाकू से उस के कपड़े काट देता था. सच में स्त्री के साथ ऐसा व्यवहार, ऐसी दरिदंगी बेहद खौफनाक है. एक औरत विवाह के बाद अगर इस तरह के पुरुषरूपी भेडि़यों के हाथ पड़ जाती है, तो उस की हर प्रकार की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है. ज्यादातर पत्नियों को स्त्री समस्या के बारे में, रेप की बढ़ती घटनाओं पर, किसी सभा में बोलने या लिखने पर भी पाबंदी लगा दी जाती है. पति शराबी है, मारपीट करता है, नपुंसक है तो भी पत्नी को उसी पति के लिए सती होना पड़ता. यानी रहने को मजबूर होना पड़ता है.

क्या करें महिलाएं विवाह के बाद महिला की स्वतंत्रता समाप्त न हो, इस के लिए स्त्रियों को स्वयं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए. कुछ दिन पहले का मामला है, विवाह के समय दूल्हा नशे में धुत्त होशहवास खो कर डांस कर रहा था. यह देख कर दुलहन ने उस से शादी करने से इनकार करते हुए मंडप छोड़ दिया. जहांतहां दहेज लोभियों को सबक सिखाने के लिए लड़की द्वारा बरात लौटा देने के समाचार आते रहते हैं, जो अच्छा संकेत हैं.

आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि अपने होने वाले पति या होने वाली पत्नी के साथ मिलबैठ कर अपनी आंकाक्षाओं, विचारधाराओं से भली प्रकार एकदूसरे को अवगत करा दें. शराबी, बेरोजगार, तथा दहेज के लोभी पुरुषों का बहिष्कार कर देना चाहिए. मातापिता भी अपनी बेटियों को बेवजह घुटने टेकने के लिए मजबूर न करें.

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जिस प्रकार हम एक पौधे को जड़ से निकाल कर दूसरी जगह रोपते हैं, तो देखते हैं कि मिट्टी, पानी, हवा सब उस पौधे के लिए अनुकूल हैं अथवा नहीं. अगर मिट्टी ठीक नहीं है, पानी ज्यादा या कम दे दिया, हवा पर्याप्त न मिली तो पौधा सूख जाता है. इसी प्रकार स्त्री भी विवाह के बाद अपनी जड़ें मायके से निकाल कर ससुरालरूपी बगीचे में रोपती है. उसे स्वतंत्रता, प्यारदुलार रूपी हवा, मिट्टी मिलनी चाहिए नहीं तो उस का व्यक्तित्व मुरझा जाएगा. विवाह नारी स्वंतत्रता का अंत नहीं. प्रत्येक स्त्री को अपनी प्रतिभा, आकांक्षाओं और सपनों को संजो कर रखने का पूरा हक है. ये उस के जीवन की अमूल्य धरोहर हैं, जिन्हें नष्ट होने से रोकना है. उन का व्यक्तित्व और अस्तित्व एक ऐसा भवन है, जिसे खंडित करने का हक किसी को नहीं है.

यदि स्त्री किसी कारणवश ऐसे नर्क से गुजर रही है, तो उसे किसी की सहायता लेनी चाहिए. अपनी निजी स्वतंत्रता का हनन होने से रोकना चाहिए. नारी एक जननी है. उस का अपमान करना, उस पर अत्याचार करना या उस की मानसिक, शारीरिक, स्वतंत्रता पर पाबंदी लगाना, जघन्य अपराध ही नहीं पूरे परिवार के विकास में भी बाधा है.

नश्तर: पति के प्यार के लिए वे जिंदगीभर क्यों तरसी थी?

लेखक- नीलम कुलश्रेष्ठ

पैरों की एडि़यां तड़कने लगी हैं, चेहरे की झुर्रियां भी जबतब कसमसाने लगी हैं. कितनी भी कोल्ड क्रीम घिसें, थोड़ी देर में ही जैसे त्वचा तड़कने लगती है. बूढ़े लोगों को देखना और बात है, लेकिन बुढ़ापे को अपने शरीर में महसूस करना और बात. सारी इंद्रियों की शक्ति धीरेधीरे जाने कहां लुप्त होने लगती है. बस, एक ही चीज खत्म नहीं होती, और वह है अंदर की चेतना.

कभीकभी उन्हें झुंझलाहट भी होती है कि सारी शक्ति की तरह यह चेतना भी क्षीण क्यों नहीं हो जाती. यदि ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो. सुबह उठ कर खाओपीओ, हलकेफुलके काम करो और सो जाओ, अवकाशप्राप्त जिंदगी में और है ही क्या, लेकिन ऐसा होता कहां है.

उन की चेतना के आंचल में ढेरों नश्तर घुसे हुए हैं. वे चाहती हैं कि उन्हें नोच कर बाहर फेंक दें. वे तो जमीन में उगे कैक्टस की मानिंद हैं, ऊपर से कितना भी काटो, फिर उग आएंगे. एक नश्तर तो उन की चेतना में पिरोए दिल की झिल्ली में जैसे बारबार दंश मारता रहता है.

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अर्चना दीदी उन से 5 वर्ष छोटी हैं. वे गौरवर्णा, चिकनी त्वचा वाली गोलमटोल महिला हैं. अकसर ऐसी स्त्रियों के गाल उन्नत होते हैं और आंखें छोटीछोटी व कटीली. वे इन का इस्तेमाल करना भी खूब जानती हैं. कहने को तो वे विजयजी की दूर के रिश्ते की बहन हैं, लेकिन जब भी घर में कदम रखेंगी, आंखें नचा कर, तरहतरह के मुंह बना कर इस तरह बात करेंगी कि विजयजी हंसतेहंसते लोटपोट हो जाते हैं.

अपनी ही बात पर मोहित हो वे विजयजी के गले में बांहें डाल देंगी, ‘क्यों भैया, मैं ने ठीक कहा न?’

‘तुम गलत ही कब कहती हो,’ विजयजी उन की ब्लाउज व साड़ी के बीच की खुली कमर को अपनी बांहों में घेर कर उन्हें अपने पास खींच लेंगे.

वे यह नाटक कुछ महीनों से देखती चली आ रही हैं. कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती. घर के किसी कोने में आंसू बहाती रहती हैं या कुढ़ती रहती हैं. इस गले लगाने या लिपटने से आगे भी उन दोनों के बीच कुछ और है, वे टोह नहीं ले पाई हैं. वैसे भी वे हर समय पति के पीछे थोड़े ही लगी रहती हैं.

कभीकभी उन्हें अपनेआप पर बेहद खीझ होती है कि क्यों उन्होंने खुद को दब्बू बना रखा है? शादी से पहले जब वे सोफे पर कूद कर ‘धम’ से बैठती तो मां बड़बड़ाया करती थीं, ‘क्या लड़कों जैसी उछलतीकूदती रहती है, जरा लड़कियों जैसी नजाकत से रहा कर.’

तीज से एक दिन पहले मां एक कटोरी में मेहंदी घोल कर बैठ जातीं. तब वे बहाना बनातीं, ‘मां, कल विज्ञान का टैस्ट है.’

‘तू हर साल बहाना करती है. लड़कियों को पता नहीं क्याक्या शौक होते हैं. नेलपौलिश लगाएंगी, लिपस्टिक लगाएंगी, चूडि़यां पहनेंगी. लेकिन एक तू…नंगे डंडे जैसे हाथ लिए घूमती रहती है. चल, आज तो मेहंदी का शगुन कर ले.’

बेहद खीझते हुए वे मां के सामने बैठ जातीं. मां मेहंदी में नीबू, चीनी, चाय का पानी और न जाने क्याक्या मिला कर उसे तैयार करतीं, पर मेहंदी लगवाते हुए वे शोर मचातीं, ‘मां, जल्दी करो, दुखता है.’

मां तो जैसे तीजत्योहारों पर तानाशाह बन जाती थीं, ‘चुपचाप बैठी रह. कल नहाने से पहले तुझे हरे रंग की चूडि़यां पहननी हैं.’

‘ठीक है, पहन लूंगी, लेकिन यह किस ने कानून बनाया है कि मेहंदी लगा कर उसे धो डालो. मुझे तो मेहंदी का हरा रंग ही लुभावना लगता है.’

‘तू बड़बड़ मत कर, मेहंदी बिगड़ जाएगी.’

मां के तानाशाही लाड़दुलार में जैसे उन का मन भीगभीग जाता था. वे हथियार डाल देती थीं. दूसरे दिन मेहंदी लगे हाथों में हरे रंग की चूडि़यों के साथ हरे रंग की साड़ी जैसेतैसे पिन लगा कर पहन लेतीं, मां निहाल हो उठतीं, ‘कैसी राजकुमारी सी लग रही है, जिस के घर जाएगी, वह धन्य हो जाएगा.’

अपनी शादी की दूसरी रात वे ऐसे ही तो नख से शिख तक तैयार हुई थीं. ननद व जेठानी उन्हें सजा कर स्वयं ठगी सी रह गई थीं.

लेकिन जिन के लिए सज कर वे बैठी थीं, उन्होंने बिना उन का चेहरा देखे रुखाई से कहा था, ‘जा कर कपड़े बदल लीजिए, भारी साड़ी में गरमी लग रही होगी.’

वे अपमान का घूंट पी दूसरे कमरे में जा कर सूती जरी की किनारी वाली साड़ी पहन कर आ गई थीं. उस निर्मोही ने फिर भी उन की तरफ नहीं देखा था. बत्ती बंद करते हुए कहा था, ‘शादी की भागदौड़ में आप भी थक गई होंगी, मैं भी थक गया हूं. मुझे जोरों की नींद आ रही है,’ 2 मिनट में ही करवट बदल कर गहरी नींद में सो गए थे.

विजयजी के साथ उन की शादी के शुरुआती 8 दिन ऐसे ही बीते थे. वे अनब्याही दुलहन की तरह मायके लौट आई थीं. घर में जरा भी एकांत मिलता तो अपनेआप झरझर आंसू बहने लगते. वे नहीं चाह रही थीं कि कोई उन के आंसू देखे, लेकिन मां की छठी इंद्रिय ने बेटी के मन की थाह को सूंघ ही लिया. एक दिन उन्होंने पूछ ही लिया था, ‘तू अकेले में क्यों रोती है?’

पहले तो वे सकुचाईं कि किस तरह कहें कि उन की देह को पति ने स्पर्श तक नहीं किया. फिर संकोच छोड़ कर सारी बात उन्हें बता दी.

‘यदि ऐसा था तो शर्म को त्याग कर उन से इस का कारण पूछना था.’

‘मैं ऐसी बात कैसे पूछ सकती थी?’

‘पतिपत्नी के संबंधों में संकोच कैसा? वैसे हम लोगों ने पैसा तो भरपूर दिया था, लेकिन हो सकता है कि कुछ लेनदेन के बारे में उन की नाराजगी हो?’

‘यदि वे ऐसे लालची हैं तो मैं वहां नहीं रहूंगी.’

‘बेटी, पहले तू पूछ कर तो देख.’

मां के प्रोत्साहन के कारण दूसरी बार ससुराल आ कर वे खुद को आश्वस्त महसूस कर रही थीं. जैसे ही विजयजी ने रात को बत्ती बुझानी चाही, उन्होंने उन का हाथ पकड़ लिया, ‘जरा, आज हम लोग बातचीत कर लें.’

विजयजी ने झुंझला कर हाथ छुड़ाया, ‘क्या बात करनी है? शादी हो गई, तुम इस घर की मालकिन बन गईं और क्या चाहिए?’

‘यदि मैं आप का मन नहीं जीत पाई तो मेरा इस घर में आना बेकार है.’

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‘तुम औरतों को चाहिए क्या, कपड़ा और खाना. इन चीजों की तुम्हें जिंदगीभर कमी नहीं होगी,’ फिर उन्होंने स्विच की तरफ हाथ बढ़ाना चाहा. पर उन्होंने उन का हाथ दृढ़ता से पकड़ लिया, ‘नहीं, आज मुझे इतना अधिकार दीजिए कि मैं आप से चंद बातें कर सकूं.’

वे बेमन पलंग पर तकिए के सहारे टिक कर बैठ गए, ‘अब कहो? मैं कहां नाराज हूं,’ वह उन्हें आग्नेय नेत्रों से देख कर बोले.

‘आप की आंखें तो कुछ और ही कह रही हैं,’ वे जैसे हर प्रहार के लिए कलेजा कड़ा कर के बैठी थीं.

‘मेरे चाचा से पूछो कि मेरी नाराजगी का कारण क्या है?’

‘मैं ने सुना तो था कि आप के पिताजी सीधेसादे हैं, शादी की हर बात तय करने के लिए आप के चाचा को आगे कर देते हैं.’

‘हां, उन्हीं चाचा ने रुपयों के लालच में मुझे तुम्हारे पिता के हाथों बेच दिया.’

उन का चेहरा भी तमतमा आया था, ‘मेरे पिता दूल्हा खरीदने नहीं निकले थे. उन्होंने तो अपनी जाति की प्रथा के हिसाब से रुपया दिया था. फिर मेरे पिता व्यापार करते हैं, उन के लिए 2 लाख रुपए अपनी मरजी से देना बड़ी बात नहीं थी.’

‘2 लाख? लेकिन चाचा ने तो हमें डेढ़ लाख रुपए ही दिए थे.’

‘नहीं, सच में मेरे पिता ने 2 लाख रुपए दिए थे.’

‘तो क्या मेरे चाचा झूठ बोलेंगे?’

‘इस बात का फैसला तो बाद में होगा. अब समसया यह है तो हम लोगों को सहज जीवन व्यतीत करना चाहिए.’

‘मैं तुम्हारे लिए बिका हूं, यह बात मुझे सहज नहीं होने दे रही.’

‘मैं आप को सहज कर दूंगी,’ कह कर उन्होंने स्वयं बिजली के बटन पर हाथ रख दिया. ऐसे में उन के कंगन बज उठे थे.

उन दिनों वे मन ही मन कितनी आहत होती थीं. पति तो नवविवाहिता पत्नी का दीवाना हो जाता है, लेकिन उन के हाथ में कुछ उलटा ही रचा था, जैसे कि उन्हें मेहंदी का भी उलटा रंग ही पसंद आता था. वे जबरदस्ती उन्हें अपने आकर्षण में बांध रही थीं. बस, ऐसे ही एक बेटे व बेटी की मां बन गई थीं.

कभी उन्होंने सुना था कि यदि दूल्हे व दुलहन के मन में ब्याह के मंडप के नीचे कोई गांठ हो तो वह जिंदगीभर नहीं खुलती. क्या यह बात सच है? उसी मंडप में चाचाजी ने 50 हजार रुपए अपनी जेब में खिसका लिए थे. यह बात पंडित की बहुत खुशामद करने के बाद पता लगी थी.

उन्होंने लाख कोशिश कर के देख ली थी, पर पति के दिल को वे पूरी तरह जीत नहीं पाई थीं. इसीलिए पास के स्कूल में उन्होंने नौकरी कर ली थी. बच्चों के लिए एक आया रख ली थी. दोपहर के खाने के लिए विजयजी घर पर आते थे, आया उन्हें खाना खिला देती व घर की देखभाल भी कर लेती थी.

तब स्कूल में बराबर की अध्यापिकाओं में उन का मन रम गया था. कभी स्कूल से ही पास के बाजार में चाट खाने का कार्यक्रम बन जाता तो कभी फिल्म देखने का. उधर विजयजी ने भी चैन की सांस ली थी कि वे उन पर अपनी खीझ नहीं उतारतीं, अपनी सहेलियों में मस्त हैं.

एक दिन एक अध्यापिका के पिता की मृत्यु के कारण स्कूल 11 बजे ही बंद हो गया. सो, वे जल्दी घर आ गईं. 5 मिनट तक वे दरवाजा खटखटाती रहीं, तब कहीं आया ने खोला. वह कुछ हकलाते हुए बोली, ‘बच्चों को स्कूल छोड़ आईर् थी. स…स…साहब जल्दी घर आ गए हैं…’

‘क्यों?’

‘उन को दर्द हो रहा है?’

‘कहां?’

‘कमर में…न…नहीं सिर में…’

उस की हकलाहट पर उन्हें आश्चर्य हुआ. उन्होंने उसे घूर कर देखा था. यह देख उन्हें कुछ ज्यादा ही आश्चर्य हुआ कि यह तो बड़े सलीके से साड़ी बांधा करती है, पर इस समय वह बेतरतीब सी क्यों  नजर आ रही है? माला का पेंडेंट सदा बीच में रहता है, वह कंधे पर क्यों पड़ा हुआ है? बाल भी बेतरतीब हो रहे हैं. उन्हें कुछ अजीब सा लगा, लेकिन वे सीधे अंदर घुसती चली गईं. कमरे में देखा, पति कुरसी पर बैठे उलटा अखबार पढ़ रहे हैं. उन्हें हंसी आ गई, ‘क्या सिर में इतना दर्द हो रहा है कि उलटे अक्षर समझ में आ रहे हैं?’

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‘किस के सिर में दर्द हो रहा है?’

‘आप के और किस के?’

‘मेरे तो नहीं हो रहा,’ खिसिया कर उन्होंने उलटा अखबार सीधा कर लिया.

‘कपिला तो ऐसा ही कह रही थी.’

‘पहले सिर में दर्द हो रहा था, लेकिन कपिला ने चाय बना दी. चाय के साथ दवा लेने से आराम है?’

उन्होंने कपड़े बदलने के लिए जैसे ही सोने के कमरे में कदम रखा, बिस्तर की सिलवटें देख कर तो जैसे उन का रक्त ही जम गया. एक झटके में कपिला की बेतरतीब बंधी साड़ी, उस का हकलाना, विजयजी का उलटा अखबार पढ़ना और बिस्तर की सिलवटें जैसे उन्हें सबकुछ समझा गई थीं. वे उसी कमरे में कपड़े बदलते हुए जारजार रो उठी थीं. उन्हें अपनेआप पर ही आश्चर्य हो रहा था कि वे कपिता के बाल पकड़ कर उसे घसीट कर घर से बाहर क्यों नहीं कर देतीं या विजयजी से लड़ कर घर में हंगामा क्यों नहीं खड़ा कर देतीं? लेकिन वे खामोश ही रहीं.

बाद में उन्होंने अचानक स्कूल से कई बार आ कर देखा, लेकिन कभी कुछ सुराग हाथ नहीं लगा.

हां, जब भी पति घर में होते, उन की आंखें हमेशा जिस ढंग से कपिला का पीछा करती रहतीं, इस से उस के प्रति उन का आकर्षण छिपा न रहता. उन दिनों वे समझ गईर् थीं कि जो पुरुष अपने मन की गांठ के कारण अपनी सुसंस्कृत पत्नी को भरपूर प्यार नहीं कर पाते, वे अपने तनमन की प्यास बुझाने के लिए अकसर भटक जाते हैं.

उस दिन को याद कर के जैसे आज भी नुकीला नश्तर उन के दिल में चुभता रहता है. जब वे कभी कपिला को टोकतीं तो वह उत्तर देती, ‘जल्दी क्या है बाईजी, अभी सारा काम हो जाएगा.’

एक बार कपिला ने एक दिन की छुट्टी मांगी, लेकिन 3 दिनों बाद काम पर लौट कर आई. वे तो मौका ही ढूंढ़ रही थीं. जानबूझ कर आगबबूला हो गईं, ‘तुझे पता नहीं है, मैं बाहर काम करती हूं?’

‘मैं ने गीता मेम की बाई को बोला तो था कि मेरे पीछे आप का काम कर ले.’

‘सिर्फ एक दिन आई थी. आज तू अपना हिसाब कर और चलती बन.’

‘पहले साहब से तो पूछ कर देख लो, मुझे निकालना पसंद करेंगे कि नहीं?’ कह कर वह कुटिलता से मुसकराई.

‘साहब कौन होते हैं घर के मामले में दखल देने वाले?’ कहते हुए उन का चेहरा तमतमा गया.

‘लो बोलो, वे तो घर के मालिक हैं…किस औरत को अपने घर में रखना है और किसे नहीं, वे ही तो सोचेंगे. मैं जब आईर् थी तो कैसे उदास रहते थे. अब कैसे खुश रहते हैं. उन की खुशी के वास्ते ही अपने घर में रख लो.’

‘तू बहुत बदतमीज औरत है.’

‘देखो, गाली मत निकालना. गाली देना हम को भी आता है,’ कपिला चिल्लाई.

उन्होंने बिना बोल मेज पर रखे पर्स में से रुपए निकाल कर उस का हिसाब चुकता कर दिया. वह बकती हुई चली गई. लेकिन क्या आज भी उन के जीवन से वह जा पाई है? उन के नारीत्व की खिल्ली उड़ाती उस की कुटिल मुसकान क्या अभी भी उन का पीछा छोड़ पाई है?

अब बुढ़ापे में यह अर्चना आ मरी है. वह अकसर अपने बचपन के किस्से सुनाती है, ‘भाभी, जब हम अपनी मौसी के यहां, यानी कि भैया की चाची के यहां गरमी की छुट्टियों में जाते थे तो जानती हो, तब ये बिलकुल जोकर लगते थे. ये किताब ले कर छत पर पढ़ने चले जाते थे. मैं पीछे से इन्हें धक्का दे कर ‘हो’ कर के डरा देती थी.’

तब हमेशा चुप रहने वाले विजयजी भी चहकते, ‘और जानती हो, इस ने मुझे भी शैतान बना दिया था. एक बार यह कुरसी पर बैठी तकिए का गिलाफ काढ़ रही थी. मैं ने इस की चोटी का रिबन कुरसी से बांध दिया था. जब यह कुरसी से उठी तो धड़ाम से ऐसे गिरी…’ विजयजी ने कुरसी पर से उठ कर गिरने का ऐसा अभिनय किया कि सीधे अर्चना की गोद में जा गिरे और दोनों देर तक खिलखिलाते, हंसते रहे.

वे क्रोध से कसमसा उठीं कि 64 वर्ष की उम्र में इस बुढ़ऊ को क्या हो गया है. फसाद की जड़ यह अर्चना ही है. इस के पति अकसर दौरे पर रहते हैं. बच्चे होस्टल में रह रहे हैं, इसलिए जबतब उन के घर आ टपकती है. बड़े अधिकार से आते ही घोषणा कर देती है, ‘आज तो हम यहीं खाना खाएंगे.’

विजयजी अवकाशप्राप्त हैं. इस उम्र में यदि कोई चुहल करने वाला मिल जाए तो फिर तो चांदी ही चांदी है. पत्नी से वे कभी ठीक से जुड़ नहीं पाए. अर्चना से मिल रहे इस खुलेदिल के प्यारदुलार से जैसे उन के चेहरे पर रंगत आ गई है.

वे मन ही मन कुढ़ती रहती हैं. वैसे पति ऐसा कुछ नहीं करते कि उन से लड़झगड़ सकें. दोनों के रिश्तों के ऊपर भाईबहन का बोर्ड लगा है. वे कहें भी तो क्या? वैसे उन के दिल के दौरे का कारण भी तो अर्चना ही थीं.

उस दिन दोपहर में खाना बन चुका था. खाना लगाने के लिए अर्चना की सहायता लेने वे कमरे में जा रही थीं. अचानक दरवाजे के परदे के पीछे ही वे अर्चना की आवाज सुन कर रुक गईं.

‘छोडि़ए भैया…’

‘तुम मुझे भैया क्यों कहती हो?’ विजयजी का अधीर स्वर सुनाई दिया था.

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‘जब हम युवा थे तो मैं ने आप को भैया कहने से इनकार किया था. खुद आगे बढ़ कर आप का प्यार मांगा था, लेकिन तब आप ने मेरा प्यार ठुकरा दिया था.’

‘हां, वह मेरी कायरता थी. तुम मुझ से उम्र में भी कितनी छोटी थीं. फिर मैं अपने रिश्तों के कारण डर गया था कि घर वाले क्या समझेंगे. बस, उन्हीं कारणों से तुम्हारी मां के सामने शादी का प्रस्ताव नहीं रख सका.’

‘तो अब मेरे पास क्यों आना चाह रहे हैं?’

‘इसलिए कि चाचाजी द्वारा रुपए के लालच में जबरदस्ती मेरे सिर मढ़ दी गई पत्नी के लिए मेरे दिल में कोई रुचि नहीं है.’

यह सुनते ही उन का सिर घूम गया. अपनी उम्र, अपना पूरा जीवन इस घर को दे दिया, फिर भी उम्र के इस मुकाम पर अब यह कह रहे हैं? उन्हें लगा था कि उन की छाती के बाईं ओर एक बवंडर उठ रहा है. फिर उन्हें कुछ याद न रहा कि वे कितनी देर बेहोश रही थीं.

दिल के पहले दौरे से उबरने में उन्हें महीनों लग गए थे. बेटी व बेटे के परिवार उन की देखरेख के लिए आ गए थे. उस समय पति उन के पलंग के आसपास ही रहते थे. उन्हें आश्चर्य होता कि कैसा होता है पतिपत्नी का रिश्ता. आपस में प्यार हो या न हो, एकदूसरे के साथ की आदत तो हो ही जाती है. एक की तकलीफ दूसरे की तकलीफ बन जाती है.

बेटे ने तो बहुत जिद की कि वे दोनों उस के साथ ही चलें, किंतु वे अड़ी रहीं. ‘बेटे, जब हाथपैर थकने लगेंगे, तब तो तुम्हारे पास ही आना है. अभी तुम आजादी से रहो.’

बच्चों के परिवारों के जाते ही फिर अर्चना दीदी का आना आरंभ हो गया था.

कुछ महीनों बाद उन्होंने अपने स्वास्थ्य पर काफी हद तक काबू पा लिया था. उन के मन में क्रोध उभरता रहता था कि उन की अब कितनी जिंदगी बची है, 4-5 या हद से हद 10-12 साल. फिर क्यों वे पति के संबंधों को ले कर कुढ़ती रहें? उन की बरदाश्त करने की सीमा चुक गई थी. वे समझ ही नहीं पा रही थीं कि अर्चना की बच्ची से कैसे पीछा छुड़ाएं. उन की उम्र भी ऐसी थी कि  यदि इस बारे में किसी से शिकायत करें तो वह उन की झुर्रियों को देख कर हंस देगा. उन्हें लगता है, अब अपनेआप ही कोई रास्ता खोजना होगा.

एक दिन उन्हें पता लगा कि अर्चना के पति दिवाकर दौरे से लौट आए हैं. उन्होंने अर्चना को फोन किया, ‘आज हम लोग शाम को खाने पर आप के यहां आ रहे हैं.’

उन्होंने अर्चना के घर पहुंच कर अपना लाया स्टील का डब्बा खोला और उस में से एक गुलाबजामुन निकाल कर दिवाकर के सामने खड़ी हो गईं, ‘मुंह खोलिए, मैं ने ये गुलाबजामुन खासतौर से आप के लिए बनाए हैं.’

दिवाकर ने उन के इस अचानक उमड़ रहे दुलार से हैरान हो कर मुंह खोल दिया. तब उन्होंने उन के मुंह में अपने हाथ से गुलाबजामुन डाल दिया, ‘बताइए कैसा लगा?’

‘बहुत ही स्वादिष्ठ.’

जब तक अर्चना रसोई में खाना बनाती रही, वे अपने से छोटे दिवाकर को बातों में उलझाए रहीं. पूर्व मुलाकातों में वे समझ गई थीं कि लंबी यात्राओं ने दिवाकर में किताबें पढ़ने का शौक पैदा कर दिया है…वे खानेपीने के भी बहुत शौकीन हैं.

जब भी दिवाकर शहर में होते, वे पति के संग वहीं चल देतीं. विजयजी अकसर उन के घर चलने से आनाकानी करते, क्योंकि वे अर्चना से खुल कर बातें न कर पाते थे. तब वे उन से कहतीं, ‘देखते नहीं हो, दिवाकर नहीं होते तो अर्चना किस तरह साधिकार हमारे घर आ जाती है. मेरा कितना समय उस की खातिरदारी में निकलता है. क्यों न हम लोग भी उस के घर जाया करें.’

अब मन ही मन कुढ़ने की अर्चना की बारी थी. वह भाभी को दिवाकर से देशविदेश की चर्चा करते देखती, किताबों का आदानप्रदान करते देखती तो हतप्रभ रह जाती. वह इतनी प्रतिभाशाली नहीं थी कि इतनी ऊंचीऊंची बातें कर सके.

दिवाकर तो उन से मिल कर निहाल हो उठते थे, ‘भाभीजी, आप से बातचीत कर के मुझे पहली बार पता लगा है कि महिलाओं का भी मानसिक स्तर ऊंचा हो सकता है,’

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जब भी वे शहर में होते तो अर्चना पर जोर डालते कि चलो, आज भाभीजी के यहां चलते हैं.

उन के घर के अंदर आते ही वे घोषणा कर देते, ‘भाभीजी, आज तो हम आप के हाथ का बना खाना खाएंगे. बहुत दिनों से लजीज खाना नहीं खाया है.’

तब अर्चना बुरा मान जाती, ‘तो क्या मैं बुरा खाना बनाती हूं?’

‘खाना तो तुम भी अच्छा बनाती हो, किंतु भाभीजी के हाथ के खाने की बात ही कुछ और है.’

जब वे दोनों किसी बहस में मशगूल होते तो उन की आंखों से छिपा न रहता कि  विजयजी व अर्चना के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं. उन्हें पति का चेहरा देख कर मन ही मन हंसी आती.

धीरेधीरे अर्चना उन के घर आना कम करती जा रही थी. यदि आती भी तो विजयजी से कुछ दूरी बनाए रखती. उस ने मन ही मन समझ लिया था कि उस के पति भाभीजी से बेहद प्रभावित हैं. वे उम्र में बड़ी हैं तो क्या हुआ, उन का बौद्धिक आकर्षण तो उन्हें बांधे ही रखता है.

एक दिन दिवाकर उन के यहां आ कर खूब हंसे, ‘भाभाजी, जानती हैं, आप की ननद उम्र से पहले ही सठिया गई है. मैं आप से अधिक बातचीत करता हूं तो इन्हें लगता है कि हमारे बीच रोमांस चल रहा है. हो…हो…हो…भाभीजी, मैं तो यहां आना चाहता हूं, लेकिन यह ही मुझे रोकती रहती है.’

‘अर्चना दीदी, आप ने ऐसा सोच भी कैसे लिया, मेरी उम्र भी तो देखी होती. कहीं ऐसा तो नहीं है कि सावन के अंधे को हमेशा हरा ही हरा दिखाई देता है?’

भोले दिवाकर कुछ समझ न पाए, लेकिन विजयजी व अर्चना पर मानो घड़ों पानी पड़ गया.

विजयजी भी उन्हें एक साधारण गृहिणी समझते थे. अब वे भी उन के बौद्धिक ज्ञान से चमत्कृत हैं. उन्होंने एक दिन पूछा, ‘तुम में इतना ज्ञान कहां से आया?’

‘आप ने तो सारा जीवन अपनी नौकरी व अपने में ही गुमसुम रह कर निकाल दिया. पर मैं बच्चों के बड़े

होने पर कैसे जीवन काटती? इन्हीं किताबों की बातों में रुचि ले कर जीवन काटा है.’

‘मैं तुम्हारे साथ रह कर भी तुम्हें समझ नहीं पाया.’

‘तो अब समझ लीजिए,’ इतना कह कर उन्होंने पति के कंधे पर सिर टिका दिया, ‘अभी देर कहां हुई है?’

जब पति ने हंस कर उन के कंधे पर हाथ रख दिया तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ, जैसे उन्होंने तमाम नश्तरों को थाम लिया है.

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मुझे किस तरह का डै्सिंग स्टाइल अपनाना चाहिए ताकि मैं स्लिम दिखूं?

सवाल-

मैं 5 फुट 3 इंच लंबी हूं और वजन 85 किलोग्राम है. मु झे किस तरह का डै्सिंग स्टाइल अपनाना चाहिए ताकि मैं स्लिम दिखूं?

जवाब

आप डार्क कलर के कपड़े पहनें. अगर आप को ब्लैक कलर पसंद है तो इस कलर की ड्रैस अपने वार्डरोब में जरूर रखें. पार्टी में जाना है और आप स्लिम दिखना चाहती हैं तो एक बार स्ट्राइप्स ड्रैस जरूर ट्राई करें. यह हमेशा फैशन में रहती है और पतला दिखाती है. आप हाई वेस्ट जींस, पैंट, स्कर्ट कुछ भी ट्राई कर सकती हैं.

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टीवी की लाफ्टर क्वीन भारती सिंह इन दिनों कपिल शर्मा के शो से लोगों को एंटरटेन कर रही हैं. वहीं पर्सनल लाइफ की बात करें तो भारती शादी के बाद से हमेशा प्रेग्नेंसी को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में बताते हुए भारती ने कहा है कि वह और उनके पति हर्ष अगले साल तक बेबी की प्लानिंग कर लेंगे. पर आज हम भारती की प्रेग्नेंसी की नही फैशन की बात करेंगे. मोटी होने के बावजूद भारती नए-नए फैशन को ट्राय करने से नही हिचकिचाती. साथ ही हर नए आउटफिट में वे बेहद खूबसूरत नजर आती हैं. आइए आपको बताते हैं भारती सिंह के कुछ आउटफिट, जिसे आप पार्टी या फेस्टिवल में आसानी से कैरी कर सकती हैं.

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Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-2)

पिछला भाग पढ़ने के लिए- महकी रात की रानी: भाग 1

‘‘अरे, किस खयाल में खो गई? मैं परेशान नहीं करना चाहता था तुम्हें… चलो किसी और टौपिक पर बात करते हैं बाहर चल कर,’’ कह कर सुजीत कुरसी से उठ गया और अमोली का हाथ पकड़ कर उसे भी उठा दिया. दोनों मुसकराते हुए रैस्टोरैंट से बाहर निकल आए.

उस रात अमोली को बहुत देर तक नींद नहीं आई. सोचती रही कि सुजीत सच ही तो कह रहा है, उसे भी तो कोई स्वप्निल स्पर्श गुदगुदाता रहा है, एक पिपासा दिनरात महसूस करती है वह. सुजीत के दिल पर क्या बीतती होगी? वह तो विवाहित है. अपनी पत्नी का साथ देते हुए भी एक अकेलापन… सचमुच रातें तो उस की छटपटाहट का पर्याय ही बन गई होंगी. उफ, कैसी विषम परिस्थिति है.

सुजीत और अमोली एकदूसरे के साथ अब और भी खुलने लगे थे. अमोली को सुजीत की आंखों में एक चाहत सी दिखाई देने लगी थी. पहले वह कौफी पीने के बाद अमोली को अपनी कार से मैट्रो स्टेशन तक ही छोड़ता था, पर अब अकसर घर तक छोड़ देने का हठ ले कर बैठ जाता. अमोली के बैठते ही वह कार में रोमांटिक गाने लगा कर मतवाला सा हो कर ड्राइविंग करने लगता. अमोली उसे देख मुसकराती रहती. घर आ कर उस की सुनहरी कल्पनाओं में अब सुजीत चला आता था.

उस दिन लंच में अमोली के पास सुजीत आया तो उस का चेहरा गुमसुम सा था. अमोली ने उसे अपने साथ खाना खाने को कहा तो बोला, ‘‘मन नहीं कर रहा आज कुछ खानेपीने को… पता है, एक वीक बिताना पड़ेगा तुम्हारे बिना मु झे… मुंबई में ट्रेनिंग के लिए जाना है परसों. घर पर तो अभी साली साहिबा की मेहरबानी से सब ठीक चल रहा है… लेकिन पता नहीं कैसे रह पाऊंगा बिना तुम्हारे?’’

‘‘इतना निर्भर हो जाओगे मु झ पर तो कैसे चलेगा? अच्छा है न, इस बहाने थोड़ा मु झ से दूर होना सीख जाओगे,’’ अमोली मेज पर सिर टिका कर

स्नेह से सुजीत की ओर देखते हुए बोली.

अमोली की हथेली अपनी दोनों हथेलियों के बीच छिपाते हुए वह बोला, ‘‘यों छिपी हो तुम मेरे मन में… दूरी नहीं, मैं तो बस अब सिर्फ करीबी के सपने देखता हूं… यह हाथ मेरा सहारा है और यह चेहरा… ये होंठ मेरा सपना.’’

सुजीत के प्रेम में भीगे शब्दों ने अमोली का मन भिगो दिया.

शाम को कौफी पीते हुए भी सुजीत 1 सप्ताह अमोली से दूर रहने पर उदास था. मैट्रो स्टेशन पर अमोली को छोड़ते हुए तो जैसे उस का कलेजा ही छलनी हुआ जा रहा था.

सुजीत के जाने के बाद अमोली भी उदास हो गई. सुजीत, अमोली और यह नया रिश्ता… पूरा सप्ताह अमोली की सोच बस इसी के इर्दगिर्द घूमती रही.

जब 1 सप्ताह बीत गया और सुजीत नहीं लौटा तो अमोली चिंतित हो गई. उस ने कई बार कौल किया, पर फोन नौट रिचेबल था. एक बार मिला भी तो ‘हैलो’ के बाद सुजीत की आवाज ही नहीं आई.

‘क्यों न एक बार सुजीत के घर चली जाऊं? उस की पत्नी से पता लग जाएगी वजह… और वहां सुजीत न सही उस की वह खुशबू तो रचीबसी होगी जो रोज मु झे अपने मोहमाश में जकड़े रहती है,’ सोचते हुए अमोली ने कंप्यूटर खोल सुजीत के घर का पता नोट कर लिया.

अगले दिन रविवार था. अमोली ने बुके खरीदा और कैब बुक कर सुजीत के घर पहुंच गई.

घर ढूंढ़ने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई. बस मन में एक  िझ झक अवश्य थी कि सुजीत की पत्नी और साली को वह अपना परिचय कैसे देगी.

डोरबैल बजाते ही दरवाजा खुला तो उस के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कालेज में उस की सहेली रही नमिता सामने खड़ी थी. ‘तो नमिता की बहन है सुजीत की पत्नी वाह,’ सोचते हुए अमोली की सारी  िझ झक दूर हो गई. अमोली को देख कर नमिता का मुंह भी प्रसन्नता से खुला का खुला रह गया.

‘‘अरे, मु झे क्या पता था कि सुजीत तेरे जीजू हैं. उन के साथ ही काम करती हूं मैं. उसी औफिस की लाइब्रेरी में लाइब्रेरियन हूं,’’ सोफे पर बैठते हुए अमोली बोली.

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‘‘हा… हा… हा… अच्छा उन से काम है तु झे. पर जीजू नहीं यार, सुजीत मेरे मियांजी हैं… मुंबई में हैं वे इन दिनों… कल आ रहे हैं वापस. पर तूने जीजू कैसे बना दिया उन्हें मेरा?’’

‘‘वह क्या है न… बात यह है कि तू तो लगती ही नहीं शादीशुदा…’’ शब्द अमोली के गले में अटके जा रहे थे.

‘‘थैंक्स डियर,’’ नमिता खिल उठी.

‘‘इन शौर्ट्स में देख कर कौन कहेगा कि तू एक नन्हेमुन्ने की मौम है,’’ अमोली संभलते हुए बोली.

‘‘अच्छा तो सुजीत ने तु झे मिंटू के बारे में भी बता दिया… बड़ा नौटी होता जा रहा है मिंटू… सुजीत के पीछे से अकेले उसे संभालना बहुत मुश्किल हो रहा है… अभी तो सो रहा है.’’

कुछ देर बातें करने के बाद, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं. आज मेड छुट्टी पर है,’’ कह कर नमिता किचन में चली गई.

अमोली का दिमाग जैसे कुछ भी सोचने की स्थिति में नहीं था.

‘नमिता… सुजीत की पत्नी… बिलकुल दुरुस्त है यह तो वह बीमारी… क्यों किया सुजीत ने ऐसा?’ वह अपने को लुटा सा महसूस कर रही थी.

नमिता से मिल कर अमोली को पुराना समय याद आ रहा था. कालेज में साथ पढ़ने वाली नमिता उस की पक्की सहेली तो नहीं थी, पर दोनों में मित्रता अवश्य थी.

‘‘क्या सोच रही है? चल आ चाय पीते हुए फिर एक बार कालेज वाली सहेलियां बन जाती हैं,’’ नमिता की खनकती आवाज सुन अमोली को ध्यान आया कि वह नमिता के ड्राइंगरूम में बैठी है.

‘‘सुजीतजी पिछले काफी समय से छुट्टी पर थे न?’’ अमोली ने अपने को संयत कर पूछा.

‘‘हां… औफिस में तो मेरी बीमारी के नाम से ली थी छुट्टियां, पर तु झ से क्या छिपाना. दरअसल, एक नई जौब औफर हुई थी उन्हें. कुछ दिन काम कर के देखना चाह रहे थे. पसंद नहीं आया वहां का माहौल, इसलिए दोबारा पुरानी जगह चले गए.’’

‘अच्छा हुआ न वरना हम कैसे मिलते,’’ अपने मुंह पर नकली मुसकान चिपकाते हुए अमोली बोली.

चाय पीते हुए नमिता से कुछ देर तक बातें करने के बाद अमोली वापस चली

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आई. उस का बेचैन मन उसे कुछ भी सोचने नहीं दे रहा था. सुजीत ने उस से इतना बड़ा छल किया है, इस बात पर उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था.

अगले दिन सुजीत वापस आ गया. अपने आने का समाचार उस ने अमोली को व्हाट्सऐप पर दिया, किंतु अमोली ने कोई जवाब नहीं दिया.

आगे पढ़ें- सुजीत की बात सुन अमोली चुपचाप बैठी रही, पर…

Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-1)

उसेलाइब्रेरी में आते देख अमोली ने सोचा कि औफिस में किसी नए औफिसर ने जौइन किया है. आसमानी शर्ट के साथ गहरे नीले रंग की टाई लगाए गौरवर्णीय वह युवक अमोली को बहुत आकर्षक लगा. लाइब्रेरी में घुसते ही वह पत्रिकाओं के रैक के पास पहुंचा और एक पत्रिका निकाल उलटपुलट कर देखने लगा. कुछ देर बाद वह पुस्तकों की ओर बढ़ गया. अमोली अपनी सीट पर बैठी कंप्यूटर में नई पुस्तकों की ऐंट्री कर रही थी. कुछ देर बाद उस युवक ने ग्राफिक डिजाइनिंग पर एक पुस्तक ला कर अमोली के सामने मेज पर रख दी.

‘‘मिल ही गई… इस बुक को मेरे नाम पर इशू कर दीजिए,’’ कहते हुए वह अमोली के सामने वाली कुरसी पर बैठ गया.

‘‘बुक इशू करवाने के लिए आप की डिटेल ऐंटर करनी पड़ेगी… अपना नाम, डिपार्टमैंट, पता वगैरह बताएं प्लीज,’’ अमोली उस की ओर देखते हुए बोली.

‘‘इस की जरूरत नहीं, औलरैडी ऐंटर्ड है सबकुछ… पिछले कई दिनों से छुट्टी पर था… वाइफ काफी बीमार हैं… मैं सुजीत कुमार… आप शायद इस औफिस में नई हैं… आप से पहले तो एक उम्रदराज मैडम बैठती थीं यहां पर…’’

अमोली ने सुजीत का नाम सर्च किया. एक व्यक्ति ही था औफिस में इस नाम का. फोटो भी था वहां. अमोली ने बुक इशू कर दी.

कुछ देर मुसकरा कर अमोली को देखने के बाद बोला, ‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर… मिलते रहेंगे और फिर तेजी से बाहर निकल गया.’’

डिजाइनिंग की एक मल्टीनैशनल फर्म में वहां काम करने वाले लोगों के लिए बनी हुई थी वह लाइब्रेरी. अमोली वहां 2 माह पहले ही आई थी. सारा दिन काम में व्यस्त रहने के कारण उस की किसी से मित्रता नहीं हो पाई थी. बुक इशू करते समय या कोई जानकारी देते हुए जब कुछ देर के लिए किसी से उस की बातचीत हो जाती तब उसे बहुत अच्छा लगता था.

सुजीत अकसर वहां आने लगा था. छुट्टियों से लौटने पर उसे नया काम दे दिया गया था जो फोटोशौप से संबंधित था. इस विषय में उसे अधिक जानकारी नहीं थी. अत: वह इंटरनैट और पुस्तकों की मदद ले रहा था. इसी सिलसिले में प्राय: लाइब्रेरी जाना हो जाता था. वहां जा कर वह कुछ देर अमोली के पास जरूर बैठता था.

बातोंबातों में अमोली को पता लगा कि सुजीत की पत्नी को एक ऐसी बीमारी है जिस में शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता शरीर की कार्यप्रणालियों पर ही आक्रमण करना शुरू कर देती है. इस बीमारी के कारण उस का अब चलनाफिरना भी कम हो गया था और वह अपना अधिकतर समय बिस्तर पर ही बिताती थी. सुजीत पिछले 3 महीनों से पत्नी के उपचार के लिए अवकाश पर था. उन का 8 महीने का 1 बेटा भी है, जिस की देखभाल के लिए इन दिनों सुजीत की साली आई हुई थी.

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सुजीत से बातें करते हुए अमोली को बहुत संतोष मिलता था. एक तो सुजीत जैसे व्यक्ति का साथ, उस पर हालात से परेशान इंसान के मन को कुछ देर तक अपनी बातों से सुकून पहुंचाना. अमोली सुजीत के साथ समय बिताते हुए सुखद एहसास से भर जाती थी. धीरेधीरे वे एकदूसरे के अच्छे मित्र बनते गए और शाम अकसर साथ कौफी पीते हुए किसी कैफे में बिताने लगे.

सुजीत के साथ कुछ समय बिताने और उस का दर्द सा झा करने के बाद अमोली शाम को घर पहुंच कर कुछ देर आराम करती और फिर काम में मां की मदद करती. थोड़ी देर बाद ही पिता दफ्तर से लौट आते और चाय पीतेपीते ही अपना लैपटौप खोल कर बैठ जाते. काफी समय से वे अमोली के लिए एक वर की तलाश कर रहे थे. अमोली को जब वे अपनी पसंद के किसी लड़के का प्रोफाइल दिखाते तो अनजाने में वह उस की तुलना सुजीत से कर बैठती.

अगले दिन जब सुजीत के साथ इस विषय में

वह चर्चा करती तो सुजीत प्रत्येक

लड़के में कोई न कोई कमी निकाल देता. अमोली मन ही मन सबकुछ सम झ रही थी. उस से दूर हो कर सुजीत एक अच्छी दोस्त को खोना नहीं चाहता था.

सुजीत अमोली के साथ अब मन की बातें सा झा करने लगा था. एक दिन पत्नी की बीमारी की चर्चा करते हुए वह बोला, ‘‘पता है अमोली, कहने को तो यह बीमारी उसे कुछ महीनों से अपने लपेटे में लिए है, पर मैं एक पत्नी का सुख विवाह के बाद कुछ दिनों तक ही भोग पाया था. शादी के बाद जल्द ही प्रैगनैंट हो गई थी वह. प्रैगनैंसी में उस ने कई तरह के कौंप्लिकेशंस का सामना किया, फिर बच्चे की देखभाल में दोनों की रतजगाई… और अब यह असाध्य रोग. कभीकभी लगता है टूट जाऊंगा मैं.’’

अमोली सुन कर बेबस हो जाती थी. वह जानती थी कि सुजीत सचमुच समय से लड़ रहा है. ‘‘तुम्हें अपने लाइफपार्टनर में कौन सी खूबियां चाहिए?’’ एक दिन रैस्टोरैंट में बैठे हुए सुजीत अमोली से पूछ बैठा.

‘‘हैंडसम हो या न हो, पर केयरिंग हो. बुरे वक्त में मेरा साथ दे, वैसे ही जैसे आप दे रहे हैं,’’ अमोली मुसकरा दी.

‘‘मैं हैंडसम नहीं हूं क्या?’’ बच्चों की तरह मासूम सा मुंह बना कर सुजीत बोला.

‘‘अरे नहीं बाबा… आप अपनी मैडम का कितना खयाल रखते हो, इसलिए कहा मैं ने ऐसा… वैसे देखने में तो जनाब हीरो लगते हैं किसी फिल्म के,’’ कहते हुए अमोली ने सुजीत का गाल पकड़ कर खींच लिया.

अमोली का हाथ अपने गाल से हटाते हुए सुजीत गंभीर हो कर बोला, ‘‘प्लीज अमोली, ऐसा न करो… अपने से दूर रखो मु झे, नहीं तो मैं भूल जाऊंगा कि हम सिर्फ दोस्त हैं.’’

‘‘भूल जाओगे? तो क्या सम झोगे मु झे?’’

अमोली उस का आशय नहीं सम झ पाई थी.

‘‘कैसे सम झाऊं तुम्हें? यह तो सम झती हो न कि फिजिकल नीड नाम की भी कोई चीज होती है. मैं भी तो एक इंसान हूं न. भीतर से एक मीठी सी  झन झनाहट महसूस होने लगी थी तुम्हारे टच से… सच बताओ अमोली, तुम्हें भी तो किसी की कमी इस उम्र में खलने लगी होगी… अकेले में किसी का साथ पाना चाहती हो न तुम भी?’’ सुजीत ठंडी आह भरते हुए बोला.

अमोली बहुत देर तक सिर  झुकाए बैठी रही.

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Serial Story: महकी रात की रानी (भाग-3)

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लंच के समय अमोली का मन कुछ खाने को नहीं कर रहा था. वह चुपचाप अपनी सीट पर बैठी थी कि सुजीत फू्रटचाट ले कर आ गया. अमोली की टेबल पर चाट की प्लेट रख वह सामने वाली कुरसी पर बैठ गया. बोला, ‘‘मु झे पता था तुम भूखी बैठी होंगी… पहले यह चाट खाओ और फिर डांट लगाना जी भर के.’’

सुजीत की बात सुन अमोली चुपचाप बैठी रही, पर मन ही मन गुस्से से उबल रही थी. ‘‘जानता हूं, बहुत नाराज हो मु झ से… सोच रही होंगी किस धोखेबाज से पाला पड़ गया. पर मेरे  झूठ बोलने की वजह नहीं जानना चाहोगी?’’

‘‘जो भी वजह हो आप ने अच्छा नहीं किया,’’ अमोली के अंदर दबा क्रोध बाहर आ गया.

‘‘मेरा कुसूर है, मानता हूं पर क्या करता मैं? मन से कभी दूर नहीं होता… तुम्हारा यलो कलर की साड़ी में दपदप करता रूप… यही कलर था न तुम्हारी साड़ी का उस फोटो में जो मैट्रीमोनियल साइट पर डाला हुआ था 2 साल पहले… उस पिक को देख कर दीवाना हो गया था मैं… कहा था मैं ने पेरैंट्स से कि पहली बार कोई लड़की पसंद आ रही है मु झे… इसी से बात आगे बढ़ाओ, मगर अपने मम्मीपापा की इकलौती बेटी नमिता का पैसा उन की आंखों को चकाचौंध किए था… बांध दिया उसे मेरे गले… फिर अचानक जब औफिस में तुम्हें देखा तो बस देखता ही रह गया… फोटो से कहीं ज्यादा सुंदर नजर आ रही थीं तुम… नहीं रोक सका खुद को… अब माफ करो या सजा दो, सब मंजूर है.’’

‘‘पर सच भी तो बोल सकते थे न तुम?’’ सुजीत के इस बार सही बात बता देने पर अमोली कुछ शांत हो गई थी. उसे याद था कि शादी.कौम पर 2 साल पहले सचमुच पीले रंग की साड़ी में तसवीर डाली थी उस की.

‘‘अगर मैं सच बोलता तो क्या इतनी क्लोज हो पातीं तुम मु झ से? तुम्हारे प्यार को बस महसूस करना चाहता था मैं. मु झे पता है कि एक दिन पराई हो जाओगी… जीवनभर के लिए बांध कर तो नहीं रख सकता हूं तुम्हें, पर सोचा कि जितना भी साथ तुम्हारा पा लूं उतना अच्छा… बीलीव मी… आई एम नौट लाइंग दिस टाइम.’’

सब सुन कर अमोली कुछ देर खामोश बैठी रही. फिर कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘सौरी, मु झे नहीं पता था कि आप मु झे पहले से ही पसंद करते हैं, माफ कर दोगे न?

‘‘थैंक यू अमोली, पर यह सवाल तो मु झे पूछना चाहिए था… चलो अंत भला तो सब भला… अब शाम को मिलते हैं कौफी शौप में… थैंक्स अगेन,’’ और मुसकरा कर लाइब्रेरी से बाहर चला गया सुजीत.

शाम को दोनों जा कर कौफी टेबल पर बैठे तो अमोली ने बात शुरू करते हुए पूछा, ‘‘और क्या बताया नमिता ने आप को मेरे बारे में?’’

‘‘बस पुराने दिनों को याद कर रही थी… कैसा कोइन्सिडैंस है न कि तुम उस की सहेली निकलीं. कह रही थी कि तुम्हें अपने घर देखते ही वह तो खुशी से पगला सी गई थी,’’ सुजीत हंसते हुए बोला.

‘‘झूठ, सफेद  झूठ बोल रही है नमिता…’’ ‘‘अरे, क्या तुम उस के साथ नहीं पढ़ती थीं?’’ आश्चर्यचकित हो सुजीत पूछ बैठा.

‘‘यह बात नहीं है. मेरा मतलब नमिता के खुश होने से था. उस का तो मूड औफ हो गया था मु झे देख कर… पता है क्यों? मेरे पहुंचते ही अक्षय को वापस जो जाना पड़ा था.’’

‘‘किस को, कहां से जाना पड़ा था वापस?’’ माथे पर त्योरियां चढ़ाता हुआ सुजीत बोला.

‘‘अरे, कालेज में था न हमारा क्लासमेट अक्षय, नमिता का पक्का दोस्त… तुम्हारे घर आया था उस दिन… मु झ से बस हैलो कर के वापस चला गया.’’

‘‘लेकिन किसी अक्षय की बात कभी नमिता ने मु झ से नहीं की… मु झे तो आज पता लगा है.’’

‘‘पर नमिता तो उस दिन मु झ से कह रही थी कि वे दोनों अकसर मिलते रहते हैं… दोनों को साउथ इंडियन खाने का शौक है, इसलिए जिस जगह जा कर वे कालेज टाइम में खाया करते थे वहीं अकसर अब भी जाते रहते हैं…इधर कुछ दिनों से बेटे के कारण नमिता नहीं जा पा रही तो वह ही आ जाता है मिलने…दोस्ती निभाना खूब जानता है अक्षय.’’

‘‘पर नमिता न जाने क्यों छिपाती रही ये सब मु झ से… आज ये सब बातें सुन कर मेरा जी तो चाह रहा है कि अभी नमिता को फोन कर कह दूं कि जाओ उसी अक्षय के पास… क्यों रह रही हो मेरे साथ,’’ सुजीत अन्यमनस्क सा दिख रहा था.

‘‘छोड़ो न गुस्सा… लो आ गई कौफी,’’ कौफी का कप सुजीत की ओर खिसकाते हुए अमोली ने कहा.

‘‘मु झे हैरानी हो रही है कि नमिता ने मु झ से कभी अक्षय का जिक्र नहीं किया… कहती रहती है हमेशा कि बहुत प्यार करती है मु झे… पर देखो उस का यह प्यार… धोखेबाज… जरूर दाल में काला है,’’ कौफी का घूंट भरते हुए सुजीत का चेहरा उस हारे हुए खिलाड़ी सा दिख रहा था, जो खीजने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाता.

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‘‘प्यार का मतलब यह तो नहीं कि नमिता की कोई पर्सनल लाइफ नहीं है… क्या हुआ अगर आप को नहीं बताया? होगी कोई वजह.’’

‘‘पर हसबैंडवाइफ में इतनी अंडरस्टैंडिंग तो होनी चाहिए कि सब बातें आपस में शेयर करें. तुम नहीं सम झोगी, अभी शादी नहीं हुई न तुम्हारी.’’

‘‘हां, नहीं हुई शादी. पर आप की इस बात से सहमत हूं कि पतिपत्नी में आपसी सम झ का होना बहुत जरूरी है. आप तो अक्षय के बारे में सुनते ही बेचैन हो गए और सोचो अगर मैं उस दिन नमिता को आप के और अपने रिश्ते के बारे में बता देती तो क्या होता? वह भी ऐसे ही निराश होती न?’’

सुजीत चुपचाप अमोली को सुन रहा था.

‘‘देखिए, पत्नी या पति के अपनेअपने अलग दोस्त हो सकते हैं, फिर दोस्त चाहे महिला हो या पुरुष, इस में कुछ गलत नहीं है. पर आप अगर नमिता को बिना बताए मु झ से दोस्ती रख सकते हैं तो नमिता किसी अक्षय से क्यों नहीं? आप मु झे पहले से पसंद करते थे और मेरा साथ चाहते थे तो नमिता को भी यह अधिकार होना चाहिए कि ऐसे किसी पसंद करने वाले से अपना संबंध न तोड़े और आप को इस की जानकारी भी न दे. क्या कुछ गलत कहा मैं ने?’’

‘‘पर नमिता से शादी मेरी मरजी के खिलाफ हुई थी.’’

‘‘तो इस में उस का क्या दोष? फिर यह भी तो हो सकता है कि वह भी किसी और से करना चाह रही हो शादी, पर उस के मम्मीपापा को आप पसंद थे.’’

कुछ देर तक सोचने के बाद सुजीत बोला, ‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो… ये

बातें तो कभी मेरे दिमाग में आई ही नहीं.’’

अमोली खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘मेरा मजाक उड़ा रही हो,’’ सुजीत के चेहरे पर बेचारगी झलक रही थी.

‘‘नहीं बाबा, खुद पर हंस रही हूं… पता है, अक्षय नामक किरदार मैं ने आज ही गढ़ा है. ऐसा कोई व्यक्ति नमिता की जिंदगी में नहीं है और कभी था भी नहीं. मेरा मकसद आप को इस रिश्ते की अहमियत तक लाना था जिसे आप भूल चुके थे.’’

‘‘तुम खूबसूरत ही नहीं गजब की सम झ भी रखती हो,’’ सुजीत अमोली को देख मुसकरा दिया.

‘‘नहीं, मैं एक औरत होने के नाते औरत के मन को सम झती हूं बस. मु झ से भी जिंदगी में कोई भूल हो सकती है… मेरे दोस्त बने रहना और ऐसे वक्त पर सही राह दिखाना मु झे,’’ अमोली भी मुसकरा दी.

कौफी पी कर दोनों बाहर आए तो हमेशा की तरह सुजीत ने अमोली को मैट्रो स्टेशन तक छोड़ने के लिए अपनी कार में बैठा लिया. रास्ते में एक जगह कार रोक कर कुछ लाने बाहर चला गया. जब लौटा तो साथ में लाए पैकेट को डैशबोर्ड पर रख दिया. अखबार के कागज में डोरी में बंधे पैकेट से  झांकते सफेद फूलों को देख अमोली सम झ गई कि सुजीत सड़क के किनारे बैठी गजरेवाली से रात की रानी के फूलों का गजरा खरीद लाया है. वह जानती थी कि नमिता को बालों में गजरा लगाना बहुत पसंद है. फूलों की सुगंध कार में फैल गई.

‘अब इन रात की रानी के फूलों की तरह सुजीत और नमिता का जीवन भी प्रेम की महक से सराबोर होने वाला है,’ सोच कर अमोली मन ही मन मुसकरा उठी.

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महकी रात की रानी: अमोली को कौन सा राज पता चल गया?

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