Festive Special: मैक्रोनी से बनाएं कुरकुरा स्नैक्स

मैक्रोनी के नाम से हम सभी भली भांति परिचित हैं. पास्ता की ही भांति मैक्रोनी भी मुख्य रूप से एक इटैलियन डिश है जो पास्ता का ही एक प्रकार है. पास्ता और मैक्रोनी में मुख्य अंतर उनके आकार में होता है. ,मैक्रोनी जहां लंबी और कोहनी के आकार की होती है वहीं पास्ता विविध आकारों में उपलब्ध है.

आमतौर पर मैक्रोनी को टमाटर की ग्रेवी अर्थात रेड सॉस तथा व्हाइट सॉस में चीज डालकर बनाया जाता है जिसे बच्चे बहुत स्वाद से खाते हैं परन्तु आज हम आपको मैक्रोनी से एक ऐसा स्नैक्स बनाना बताएंगे जिसे बनाना बहुत आसान है और यह खाने में बहुत पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है. तो आइए देखते हैं कि इस कुरमुरे स्नैक्स को कैसे बनाया जाता है-

कितने लोंगों के लिए 4
बनाने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज

सामग्री

उबली हुई मैक्रोनी 2 कप
कॉर्नफ्लोर 2 टेबलस्पून
मूंगफली के दाने 2 टेबलस्पून
मखाना 1/2 कप
किशमिश 1टीस्पून
नारियल लच्छा 1 टीस्पून

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काजू 1 टीस्पून
तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में
चाट मसाला 1/4टीस्पून
काली मिर्च पाउडर 1/2 टीस्पून
काला नमक 1/4टीस्पून
टाटरी पाउडर 1/8 टीस्पून
पुदीना पाउडर 1/4टीस्पून

विधि

उबली मैक्रोनी में कॉर्नफ्लोर अच्छी तरह चलाते हुए मिलाएं ताकि मैक्रोनी पर कॉर्नफ्लोर अच्छी तरह कोट हो जाये. सभी मेवा और मूंगफली को भी अलग अलग एक नॉनस्टिक पैन में हल्का सा भून लें ताकि उनका कच्चापन निकल जाए. अब एक पैन में तेल गरम करें और मद्धिम आंच पर मैक्रोनी को सुनहरा होने तक तलकर बतरपेपर पर निकाल लें. अब एक दूसरे बाउल में तली मैक्रोनी, मूंगफली और मेवा को मिलाकर सभी मसाले मिलाएं. पुदीना पाउडर मिलाकर एयरटाइट जार में भरकर रखें और आवश्यकतानुसार प्रयोग करें.

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प्री मैच्योर बच्चे- अपरिपक्व बीमारियां

एक बच्चे को प्रीटर्म तब माना जाता है जब वह 37 सप्ताह की गर्भावस्था से पहले बच्चे जन्म ले लेता है इस समय के दौरान बच्चों के अंग  पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. इससे लॉन्ग टर्म  इन्टलेक्चुयल (बौद्धिक) और डेवलपमेंट डिसएबिलिटी (विकासात्मक विकलांगता) हो सकती है और उनके फेफड़े, ब्रेन, आंखों और अन्य अंग भी किसी न किसी समस्या से ग्रसित हो सकते हैं.

किसी नवजात बच्चे में समस्या होना इस बात पर निर्भर करता है कि वे कितनी जल्दी पैदा हुए हैं और इन बच्चों को लाइफ सपोर्ट देने के लिए उन्हें नवजात शिशु गहन केयर यूनिट (एनआईसीयू) की जरुरत पड़ सकती है   जहां पर मा के गर्भ के समान वातावरण बच्चे  लिए बनाने की कोशिश की जाती हैं.

एनआईसीयू में प्रीटरम जन्म संबंधी कॉम्प्लीकेशंस से प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है.

डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2017 से 2030 के बीच जीवन के पहले 28 दिनों के भीतर 30 मिलियन नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाएगी क्योंकि उनका जन्म नवजात अवधि (पैदा होने के  जीवन के पहले 28 दिन) हो जायेगा. बचपन के दौरान अन्य अवधि के किसी भी दिन की तुलना में इस समय में मृत्यु दर का सबसे ज्यादा खतरा होता है. शिशु मृत्यु दर (IMR) में गिरावट के बावजूद नवजात मृत्यु दर ज्यादातर स्थिर ही रही है. इसलिए यह जरूरी है कि पहले महीने में नवजात बच्चों को ज्यादा देखभाल प्रदान की जाए ताकि नवजात बच्चों की मृत्यु एस्फीक्सिया, इंफेक्शन और अपरिपक्व जन्मों (प्रीटर्म बर्थ) के कारण  न हो सके. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत नवजात बच्चों की मृत्यु दर में तेजी से कमी लाने के लिए कई पहल शुरू की गई हैं. नवीनतम मशीनों के साथ एडवांस निओनेटल केयर यूनिट की शुरूआत मैटरनिटी हॉस्पिटल में हाई एन्ड वेंटीलेटर और CPAP मशीन सहित कई कदम इस दिशा में उठायें गए हैं.

NICU से निकलने के बाद प्रीटरम बच्चों को फॉलो-अप की जरुरत होती है और इस दौरान उनमे इंटेलेक्चुयल और डेवलपमेंट डिसेबिलिटी होने की सम्भावना ज्यादा रहती है.

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मस्तिष्क (ब्रेन) के काम करने के तरीके के साथ प्रीटरम बर्थ कई समस्याओं को जन्म देता है. वे किसी व्यक्ति में निम्लिखित परेशानी का कारण बन सकते हैं:

  • शारीरिक विकास (फिजकल डेवलपमेंट)
  • लर्निंग
  • कम्युनिकेशन
  • खुद का ख्याल रखना (सेल्फ केयर)
  • दूसरों के साथ बात करने और घुलने में कमी

समय से पहले जन्म से जुड़ी लॉन्ग टर्म कंडीशन में निम्नलिखित चीजें शामिल होती हैं:

सेरेब्रल पाल्सीर: यह डिसऑर्डर का एक ग्रुप होता है जो आपके शरीर की गति (मूवमेंट) और  मुद्रा (पोश्चर) को प्रभावित करता है. यहां तक कि जिन बच्चों का  जन्म समय पर होता है, उनमे भी यह समस्या हो सकती है लेकिन यह प्रीटर्म बर्थ वाले बच्चों में ज्यादा होता है.

ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया (बीपीडी): यह एक फेफड़े की बीमारी है जो ज्यादातर प्रीटर्म बर्थ वाले बच्चों को होती है. यह उन बच्चों में कॉमन समस्या होती हैं जिनमे सांस लेने की समस्या होती है जो किसी प्रकार की श्वास मशीनों का इस्तेमाल करते हैं. इस हालत मे बच्चों के फेफड़े में सूजन से दर्द होता है. उन्हें निमोनिया होने का खतरा भी ज्यादा होता है. हालांकि उम्र के साथ बीपीडी बेहतर हो जाता है लेकिन उनमे उनके पूरे जीवन में अस्थमा या ब्रोंकाइटिस की समस्या में वृद्धि हो सकती हैं.

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आंत (इंटेसटाइन) में समस्या: यह आम तौर पर एनकोट्रॉक्टिंग एंट्रोकोलाइटिस (एनईसी) के कारण होता है जहां आंत इन्फेक्ट हो जाती हैं और ख़त्म होना शुरू हो जाती हैं. इस बीमारी का नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ता है. इन समस्याओं के इलाज के लिए सर्जरी की जरुरत पड़ सकती है. कुछ बच्चों में आंत के उस हिस्से को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है जो रोगग्रस्त  होती है.

आँखों की रोशनी संबंधी समस्याएं: रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी (जिसे आरओपी भी कहा जाता है) जैसी कई बीमारी कई समय से पहले बच्चों की आंखों को प्रभावित करती है. इस हालत में बच्चे के रेटिना जन्म के बाद के हफ्तों में पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं. ROP आमतौर पर दोनों आंखों को प्रभावित करता है. समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में यह समस्या समय पर पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में आँखों की समस्या ज्यादा होती है.

खराब मानसिक स्वास्थ्य (मेटल हेल्थ): समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों में एंग्जाइटी या डिप्रेशन की संभावना ज्यादा हो सकती है. उनमे ज्यादातर कई शारीरिक समस्या भी हो सकती है.

मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा, बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनेटोलॉजिस्ट कंसल्टेंट डॉ रमानी रंजन से बातचीत पर आधारित.

पैकेट बना पहेली: मृदंगम की क्यों चौंक गई?

 

 

 

 

 

Serial Story: पैकेट बना पहेली (भाग-3)

दोपहर को लंच कर मृदंगम ने पैठणी साड़ी निकाली और खुश हो कामेश को बताने लगी, ‘‘पता है आप को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में पैठण नगर है न, वहीं हथकरघे पर बुनाई शुरू हुई थी पैठणी साडि़यों की. प्योर सिल्क और सोनेचांदी के धागों से बुनते हुए इस के पल्लू और बौर्डर पर लताएं, कपास की कलियां, नारियल व तोते आदि का चित्रांकन किया जाता है.’’

तब तक इशू अपने कमरे से निकल कर आ गया, ‘‘जल्दी करो न मम्मा, बातें बाद में कर लेना. शाम होने लगेगी तो फोटो अच्छे नहीं आएंगे और आप दोनों मेरी गलती निकालने लगेंगे,’’  वह नाराज होने का अभिनय करता हुआ बोला.

मृदंगम तैयार होने चल दी. कामेश भी बार्डरोब से रौसिल्क का कुरता निकाल प्रैस करने लगा. कपड़े बदल कर वह इशू के साथ बालकनी में खड़ा हो मृदंगम की प्रतीक्षा करने लगा.

मृदंगम कमरे से निकली तो कामेश अपलक निहारता ही रह गया. उस की काया से लिपटी साड़ी यों दमक रही थी जैसे सूर्य की किरणों ने अपनी सारी चमक उसे ही दे दी हो. पहनने के बाद साड़ी पर उभरे गोल्डन पीकौक  बेहद मनमोहक लग रहे थे. गुलाबी बौर्डर पर रंगबिरंगी बेलबूटियां देख कर लग रहा था जैसे खूबसूरत पत्तियों और फूलों की पंखुडि़यों को बगीचे से तोड़ कर चिपका दिया है. बैगनी, सुनहरे तथा गुलाबी रंगों से बुने आंचल पर मोर का नीला व तोते का हरा रंग मिल जाने से इंद्रधनुष सी छटा बिखर रही थी. मृदंगम का सौंदर्य उस साड़ी में और भी निखर गया था. दपदप करते मुख पर लिपस्टिक में रंगे भीगे कोमल होंठ, खुशी और ब्लशर की मिलीजुली आभा लिए उजले गुलाबी गाल और काजल से सजी मुसकराती आंखें, माथे पर लगी गहरी बिंदी में वह किसी मूरत सी दिख रही थी.

इशू कैमरा ले कर तैयार खड़ा था. कामेश ने मृदंगम का हाथ पकड़ा तो लाख की बैगनी और गुलाबी चूडि़यों से सजी दूध सी कलाइयों को छोड़ने का मन ही नहीं हुआ.

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कामेश आश्चर्यचकित था कि मृदंगम सहसा सौंदर्य की प्रतिमूर्ति कैसे बन गई. वह सुंदर थी, इस में लेशमात्र भी संदेह नहीं, किंतु इन 2 साडि़यों में उसे देख कर तो ऐसा लगता था जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो. बहुत सोचविचार कर के उस ने सारा श्रेय पैकेट में आई उन 2 साडि़यों को देते हुए उस पैकेट को वापस न करने का मन बना लिया. यह बात जब मृदंगम को पता लगी तो उस की प्रसन्नता की सीमा न रही.

उस दिन के बाद मृदंगम पैकेट को ले कर कामेश की ओर से तो निश्चिंत हो गई, किंतु उस का अंतर्मन बारबार उस से कई सवाल कर रहा था. दिल और दिमाग के बीच प्राय: द्वंद्व चलता रहता था. अपने कई प्रश्नों के उत्तर वह स्वयं को भी नहीं दे पा रही थी.

एक दिन जब वह डिजाइनर साड़ी लपेटे हुए दर्पण के सामने खड़ी हो अपने ज्चैलरी

बौक्स से निकाल तरहतरह के सैट पहन कर देख रही थी, तब उस के प्रतिबिंब ने जैसे उस से ही प्रश्न कर दिया,

‘‘क्या तुम निर्भय हो कर साधिकार इन साडि़यों को किसी भी समारोह में पहन सकोगी?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. आखिर पैकेट मेरे नाम से आया था,’’ उस ने अपने प्रतिबिंब को उत्तर दे दिया.

प्रतिबिंब पुन: बोल उठा, ‘‘लेकिन भेजा किस ने? अब तक नहीं सोच सकी?’’

वह मौन थी.

‘‘तो क्या वापस नहीं कर देना चाहिए इसे?’’

‘‘लेकिन कूरियर औफिस के स्टाफ ने रख लिया और सही व्यक्ति तक न पहुंचा तो?’’

‘‘तुम भी तो वही कर रही हो.’’

‘‘चलो ठीक है मैं वापस कर भी दूं और वह सही व्यक्ति यानी किसी अन्य मृदंगम के न मिलने पर भेजने वाले तक पहुंच भी जाए, लेकिन भेजने वाला कह दे कि इस में 2 नहीं बल्कि 4 साडि़यां थीं तब क्या करूंगी मैं?’’

‘‘कह देना कि रखनी ही होतीं तो इन्हें भी रख लेती. जरा सोचो कभी इस पैकेट का राज खुल गया और सब को पता लग गया कि तुम ने केवल अपना नाम होना ही काफी समझा था और रख लिया था पैकेट, तो कितनी बदनामी होगी. वैसे भी तुम्हें किसी का हक मारना अच्छा भी तो नहीं लगता.’’

मृदंगम खामोश थी, कई प्रश्न अनुत्तरित ही रह गए थे. सत्य स्वीकार करना ही पड़ा उसे. अपने तर्कों को बुझे मन से स्वीकार करते हुए उस ने साडि़यों को वापस देने का निर्णय कर लिया. वह साडि़यां सही व्यक्ति तक पहुंचाना चाहती थी, लेकिन इस के लिए उसे करना क्या चाहिए यह नहीं समझ पा रही थी.

उस दिन सोसायटी के महिला व्हाट्सऐप ग्रुप पर चैटिंग के दौरान सभी कोरोनाकाल में किट्टी न कर पाने का अफसोस जता रहे थे. गु्रप की एक सदस्या ने सुझाव दिया कि जिस प्रकार जूम ऐप पर कार्यालयों की मीटिंग्स, औनलाइन क्लासेज व कवि सम्मेलन आदि हो रहे हैं, उसी प्रकार क्यों न वे भी किट्टी का आयोजन करें.

सभी ने एकमत हो इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया. खानापीना तो साथसाथ हो नहीं सकता था, इसलिए पहली किट्टी का विषय रखा गया कि एक व्यंजन बना कर तैयार रखना है और उसे कैमरे पर ही सखियों को दिखाते हुए उस के विषय में थोड़ीबहुत जानकारी देनी होगी.

निश्चित दिन सभी ने घर बैठे हुए समय पर किट्टी जौइन कर ली.

अपनी कुक की हुई डिश के विषय में बताने को सभी उत्सुक थे. मृदंगम के पड़ोस में रहने वाली पारुल ने फलों और सब्जियों से सलाद बना कर करीने से सजाया था. कैमरे पर सब को दिखाते हुए उस ने बताया कि इन दिनों यह कैसे इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होगा. कुछ अन्य महिलाओं ने भी अपना बनाया विशेष व्यंजन दर्शाते हुए उस की विशेषता या उस से जुड़ा अनुभव साझा किया.

मृदंगम के फ्लैट से कुछ दूर रहने वाली मधुर यादव ने जब बताया कि उस की आज की डिश ‘बेसन की कढ़ी’ है तो सभी को थोड़ा विचित्र सा लगा. जब उस ने इस से संबंधित अनुभव शेयर करना चाहा तो सुनने को सभी आतुर हो उठे. मधुर ने बताया कि लगभग 20 वर्ष पहले उस का सुरेश से प्रेमविवाह हुआ था. ससुराल उत्तर प्रदेश के उन्नाव के एक छोटे से गांव में थी. एक बार उस के सासससुर को कहीं जाना पड़ गया. पति सुरेश को कढ़ी बहुत पसंद थी. मधुर ने सुरेश के लिए उस दिन कढ़ी बनाने का फैसला कर लिया. सुरेश के यह कहने पर कि घर में दही तो है नहीं, कढ़ी कैसे बनेगी? मधुर सुरेश की खिल्ली उड़ाते हुए बोली थी कि कढ़ी तो बेसन से बनती है, दही का उस में क्या काम? पानी में जब बेसन घोल कर उस ने कढ़ी बनाई तो कढ़ी के स्थान पर जो बना, उसे याद कर सुरेश और वह अब भी हंस देते हैं.

मधुर का अनुभव सुन किट्टी में हंसी की लहर दौड़ गई. हंसी थमी तो उन में से एक महिला बोली, ‘‘आप को सुनते हुए लग रहा था जैसे आप हिंदी स्पीकिंग रीजन को बिलौंग नहीं करतीं, शायद कढ़ी के बारे में इसलिए ही न जानती हो. आप के नाम और सरनेम से मैं तो आप को हिंदीभाषी समझ रही थी.’’

मधुर ने हंसते हुए बताया कि वह तमिलनाडु की रहने वाली है, वास्तविक नाम ‘मृदंगम पार्थसारथी’ है. ‘मधुर’ नाम ससुराल वालों का दिया हुआ है, क्योंकि गांव में कोई भी ‘मृदंगम’ बोल नहीं पाता था.

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मधुर का असली नाम सुन कर मृदंगम के कान खड़े हो गए. वह समझ गई कि पैकेट मधुर का ही है. लेकिन स्वयं को वह विश्वस्त कर लेना चाहती थी. बात शुरू करते हुए बोली, ‘‘क्या आप को अभी भी मृदंगम नाम से बुलाया जाता है?’’

‘‘हां, मदर की साइड पर. अम्मां तो वहां से सांबर मसाला, रसम पाउडर और बनाना चिप्स वगैरह भेजती हैं तो बस मृदंगम लिख देती हैं. कहती हैं और कौन होगा इस नाम का तुम्हारी सोसायटी में?’’ मधुर मुसकराते हुए बोली.

‘‘आप तक पहुंच जाता है सबकुछ?’’ मृदंगम थोड़ा आगे बढ़ी.

‘‘हां, अभी तक तो पहुंच ही रहा था, लेकिन अम्मांअप्पा ने इस बार महाराष्ट्र से साडि़यां ला कर भेजी थीं, वे नहीं मिलीं,’’ मधुर ने निराश हो कर बताया.

‘‘क्या डिजाइनर साड़ी भी थी साथ में?’’

मधुर का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया, ‘‘आप कैसे जानती हैं?’’

मृदंगम ने इशू को आवाज दे अलमारी से दोनों साडि़यां लाने को कहा.

कैमरे पर उन्हें देख मधुर बोली, ‘‘अरे, ये ही हैं. अम्मां ने व्हाट्सऐप पर फोटो भेजे थे.’’

मृदंगम ने पैकेट वाली बात बता दी. कुछ देर बार किट्टी की समाप्ति मधुर को बधाइयां देते और मृदंगम की प्रशंसा करते हुए हो गई.

यद्यपि साडि़यां लौटाने का फैसला मृदंगम का ही था, किंतु उन्हें लौटा कर उस का मन विरक्त सा हो गया था. अकेले में कभीकभी आंखों के कोर भी भीग जाते थे.

इस घटना के कुछ दिनों बाद अचानक एक दिन किसी अनजान नंबर से फोन आया. मृदंगम ने हैलो कहा तो पुरुष की आवाज सुनाई दी, ‘‘मैडम, मैं एक टीवी चैनल के लिए काम करता हूं. मेरी सिस्टर आप की सोसायटी में रहती हैं, उन्होंने आप का एक साड़ी लौटाने वाला किस्सा मुझे सुनाया था. आप को ऐतराज न हो तो किसी दिन आप का औनलाइन इंटरव्यू लेना चाहूंगा.’’

‘‘मैं ने क्या इतना महान काम किया है?’’ विस्मित हो मृदंगम ने पूछा.

‘‘मैडम कुछ चैनल्स जहां राशिफल, भविष्यवाणियां, ढोंगी बाबाओं के प्रवचन व इसी प्रकार के अंधविश्वास फैलाने वाले और कार्यक्रम प्रसारित करते हैं, वहीं हम लोगों तक प्रेरणादायी घटनाएं पहुंचाना चाहते हैं. आज जब चारों ओर धोखा, अराजकता और अविश्वास का बोलबाला है, वहां आप जैसे ईमानदार भी हैं, यही दर्शाना है हमें.’’

मृदंगम ने अभिभूत हो इस साक्षात्कार के लिए हामी भर दी. उन से जुड़ने का लिंक उस के मोबाइल पर भेज दिया गया.

पैकेट न तो अब एक पहेली था और न ही बिछड़ा हुआ पीड़ादायक पार्सल. वह तो एक ऐसा सुखद एहसास था जिस ने मृदंगम को सभी की नजरों में विशेष बना दिया था.

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Serial Story: पैकेट बना पहेली (भाग-2)

दवाएं टेबल पर रखते हुए मृदंगम ने कूरियर वाला पैकेट उठा कर अलमारी में रख दिया. ‘अच्छा ही हुआ, इस समय वैसे भी बाहर से आया सामान कुछ समय बाद ही खोलना चाहिए. कोरोना वायरस साथ आ गया होगा तो कुछ दिनों बाद खत्म हो जाएगा,’ अपने मन को समझाती हुई मृदंगम किचन में चली गई.

2 दिन तक कामेश की स्थिति यथावत बनी रही. तीसरे दिन खांसी में आराम हुआ और सिरदर्द भी कम हो गया. मृदंगम ये दिन विचित्र सी ऊहापोह में बिता रही थी. कामेश के स्वास्थ्य की चिंता के साथ ही पैकेट न खोल पाने का खेद भी उसे साल रहा था. जब भी मैसेज के नोटिफिकेशन का स्वर कानों में पड़ता, उसे लगता कि मीनाक्षी का मैसेज होगा. वह जानना चाह रही होगी कि मैं गाउन में फोटो खींच कर कब पोस्ट करूंगी फेसबुक पर.

कामेश के स्वस्थ होते ही एक शाम मृदंगम ने पैकेट निकाल कर सामने रख दिया.

‘‘क्या है यह?’’ एक प्रश्नवाचक दृष्टि मृदंगम पर डालते हुए कामेश ने पूछा.

‘‘खोलो तो,’’ मृदंगम मुसकरा रही थी.

उत्सुक दृष्टि लिए कामेश ने कैंची से पैकेट के बाहरी आवरण को काट

दिया. मृदंगम दिल थामे गाउन हाथ में आने की प्रतीक्षा कर रही थी. कामेश ने गिफ्ट से टेप हटा कर जैसे ही कागज अलग किया मृदंगम की आंखें चौंधियां गईं. 2 बेहद सुंदर साडि़यां प्लास्टिक की पारदर्शक थैली से झांक रही थीं.

‘‘हाय, ये तो सोडि़यां हैं,’’ मृदंगम स्तब्ध ह गई.

‘‘हम्म… महंगी लग रही हैं. कब मंगवाई तुम ने? पेमैंट कैसे की?’’ कामेश ने एकसाथ कई सवाल दाग दिए.

मृदंगम ने पूरा किस्सा बयां कर दिया.

‘‘तुम पहले बता देतीं तो पैकेट लौटा देते. अब बात करता हूं किसी से,’’ मोबाइल हाथ में लेते हुए कामेश बोला.

‘‘रुको अभी… जब खोल ही लिया तो अच्छी तरह देखने दो न,’’ मृदंगम हड़बड़ी में साडि़यों के प्लास्टिक फाड़ते हुए बोली.

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बैड पर फटे प्लास्टिक को बिछा कर मृदंगम ने साडि़यां रख दीं. एकदूसरे से विपरीत रंगत लिए दोनों साडि़यां बेहद आकर्षक थीं. उन में से एक बैगनी रंग के गुलाबी बौर्डर वाली पैठणी साड़ी थी, जिस पर छोटेछोटे सुनहरे मोर के मोटिफ्स अंकित थे. आंचल हरे रंग के तोते और एक नाचते हुए मोर से सुसज्जित था. दूसरी लाइट पीच कलर लिए प्योर जौर्जेट की डिजाइनर साड़ी थी, जिस पर आलीशान कटदाना काम किया हुआ था. साड़ी पर लगी जरकन की चकाचौंध देख मृदंगम पलकें झपकना ही भूल गई. साडि़यां जैसे अपना दाम स्वयं ही बता रही थीं. प्राइज टैग देखा तो मृदंगम का अनुमान सही था. पैठणी साड़ी 62 हजार की तो डिजाइनर की कीमत 58 हजार थी.

‘‘देख लीं? कूरियर औफिस का नंबर पता कर फोन कर दूं?’’ कामेश व्याकुल दिख रहा था.

‘‘जल्दबाजी मत करो, आराम से सोच लेंगे. कहीं ऐसा न हो कि किसी ने मुझे ही भेजी हों और आप वापस दे दो. कूरियर वाले तो कहीं

बेच कर पैसा बांट लेंगे आपस में…और वे लोग अगर वापस करना भी चाहें तो करेंगे किस को? भेजने वाले का नामपता तो नदारद है,’’ अपने

तर्क से कामेश को चुप करा मृदंगम चेहरे पर विजयी मुसकान लिए साडि़यों को बड़े प्रेम से निहार रही थी.

‘‘काश, मैं साड़ी होता तो तुम मुझे इतने ही प्यार से देखतीं और खुश हो कर लपेट लेतीं मुझे अपने तन पर,’’ एक ठंडी आह भर कामेश

मृदंगम का ध्यान साडि़यों से हटाने का प्रयास कर रहा था.

मृदंगम तो साडि़यों के मोह में जकड़ी हुई थी. कामेश की बात सुनते ही बोली, ‘‘अरे हां, एक बार लपेट कर देखना चाहिए इन साडि़यों को, मैं ने तो 15 हजार से महंगी साड़ी कभी पहनी ही नहीं.’’

बैड से डिजाइनर साड़ी उठा ड्रैसिंगटेबल के सामने खड़े हो कर मृदंगम ने उसे लपेट

लिया. दर्पण देखा तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि दिख रहा प्रतिबिंब उस का ही है. साड़ी पर कढ़ाई का काम बहुत यत्न और कलात्मक तरीके से किया गया था. साड़ी का पीच कलर गाजर और नारंगी रंगों के मेल से बना था. उसी रंग के जरकन से पूरी साड़ी पर फूलों की बेल का जाल बना था. बौर्डर पर कटदाना काम से औरेंज व कौपर कलर के स्टोंस की तितलियां बनाई गई थीं.

कटदाना वर्क में नगों को एक विशेष आकार दे कर काटा जाता है ताकि हलकी सी रोशनी पड़ने पर ही वे हीरों जैसे चमक उठें. ऐसा हो भी रहा था. मृदंगम का चेहरा स्टोंस की दमक से लहक उठा था. उस पर कमल के फूल से खिले होंठ और हिरणी जैसी बड़ीबड़ी मासूम आंखें. मृदंगम ने बालों में लगा रफ्फल हटा कर सिर तेजी से झटका तो माथे से हो कर रेशमी लटें चेहरे पर आ गिरीं. कुछ दिन पहले ही रंग लगवाने के कारण पलकें तांबई दिख रही थीं. घर पर मृदंगम पतले स्टै्रप की कुरती पहने थी. साड़ी का पल्लू कंधे पर लिया तो अपनी चिकनी, गोरीगोरी बांहों पर साड़ी की नारंगी छाया पड़ती देख स्वयं पर ही मुग्ध हो गई. मृदंगम को लग रहा था जैसे आईने में उस का अक्स नहीं है, कोई सिनेतारिका है, जो अवार्ड लेने मंच पर आई है. साड़ी पर जड़े हुए बेशकीमती जरकन ऐसे झिलमिला रहे थे जैसे असंख्य तारे आकाश से उतर आए हों. कामेश पीछे खड़ा उसे टकटकी लगाए देख रहा था.

‘‘कैसी लग रही हूं?’’ मृदंगम ने पीछे मुड़ कर तिरछी मुसकान चेहरे पर बिखराते हुए कामेश से पूछा.

जवाब में कामेश ने शरारत से ‘बदन पे सितारे लपेटे हुए, ओ जान ए तमन्ना किधर जा रही हो…’ गीत गुनगुनाते हुए मृदंगम को आलिंगनबद्ध कर लिया.

कुछ दिनों तक पैकेट को ले कर दोनों के बीच कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन मृदंगम के नैनों में दिनरात साडि़यां ही छाई रहती थीं. कामेश के औफिस चले जाने के बाद कुछ देर तक साडि़यों को निहारना उस की दिनचर्या में सम्मिलित हो गया था.

उस दिन रविवार था. कामेश ने सुबह की चाय पीते हुए फिर से बात छेड़ दी, ‘‘क्या सोचा फिर मृदु? कैसे पीछा छूटेगा उस गुमनाम पैकेट से?’’

‘‘गुमनाम कैसे हुआ? मेरा नाम लिखा है न उस पर,’’ तुनकते हुए मृदंगम ने उत्तर दिया.

‘‘अरे भई जब ऐड्रैस नहीं, भेजने वाले का अतापता नहीं तो गुमनाम कहना ही पड़ेगा न उसे.’’

‘‘मैं सोच कर बता दूंगी कि किस ने भेजा होगा. इस महीने मेरा बर्थडे है और अगले महीने हमारी मैरिज ऐनिवर्सरी, तो भेज दी होगी किसी ने हर मौके के लिए 1-1 साड़ी,’’ मृदंगम आंखें नचाते हुए बोली.

‘‘इतनी महंगी साडि़यां देने वाला कौन आशिक है तुम्हारा? एक दिन तुम्हें ही न ले जाए चुरा कर. नाम तक नहीं पता होगा मुझे तो उस बंदे का,’’ कामेश शरारती अंदाज में बोला.

‘‘किसी ने भी भेजा हो पैकेट, रख लेती हूं न थोड़े दिन और. फोटो तो खिंचवा लूं कम से कम किसी एक साड़ी में,’’ ठुनकते हुए मृदंगम कह उठी.

‘‘अच्छा बाबा मान लिया. तो आज हो जाए फोटोसैशन,’’ कामेश हाथ जोड़ कर खड़ा था.

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‘‘डिजाइनर साड़ी तो मैं ने लपेट कर देख ली थी, आज पैठणी साड़ी पहन लेती हूं अपने गोल्डन ब्लाउज के साथ. फोटो भी शायद बौर्डर वाली साड़ी में ही ज्यादा सुंदर आएगा. थोड़ा मेकअपशेकअप भी कर लूंगी,’’ मृदंगम अपनी जीत पर प्रसन्न थी.

‘‘चलेगा… मैं भी ड्रैसअप हो जाऊंगा. इशू एक पेयर फोटो खींच देगा तो अगले महीने मैं उसे व्हाट्सऐप की डीपी बना लूंगा. शादी की सालगिरह पर कोरोना टाइम में बाहर जाना तो ठीक नहीं होगा, लेकिन सुंदर पत्नी का इतना फायदा तो होना ही चाहिए.’’

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Serial Story: पैकेट बना पहेली (भाग-1)

‘‘मैडम, मैं सुनील… आप का एक पैकेट आया है कूरियर से,’’ सिक्युरिटी गार्ड ने इंटरकौम पर बताया.

मृदंगम ने मोबाइल उठा पति कामेश को फोन कर दिया, जो कुछ देर पहले ही औफिस जाने के लिए घर से निकला था, ‘‘आप

आसपास ही हों तो मेरा एक पैकेट गेट से ले कर घर दे जाओ, अभीअभी डिलिवरीमैन वहां दे कर गया है.’’

‘‘मैं तो काफी आगे निकल चुका…. आजकल ट्रैफिक कम होने से जाम नहीं मिला कहीं भी,’’ कामेश बोला.

मृदंगम ने बेटे इशू के कमरे का दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर झांका. औनलाइन क्लास चल रही थी.

‘मैं ही चली जाती हूं पैकेट लेने, वेट ज्यादा हुआ तो घर तक लाने में किसी गार्ड की मदद ले लूंगी,’ सोचते हुए मृदंगम ने मास्क लगाया और तेजी से लिफ्ट से नीचे आ गई.

दिल्ली में वैशाली सोसायटी के एक फ्लैट में रहने वाली मृदंगम छोटे कद की आकर्षक महिला थी. देखने में जितनी प्यारी थी, बोली भी उतनी ही मधुर थी उस की. पति कामेश, 14 वर्षीय बेटा इशू और वह, 3 प्राणी थे परिवार में. पहले अनलौक के बाद कामेश औफिस जाने लगा था, लेकिन बेटे के स्कूल नहीं खुले थे. कोरोनाकाल के कारण घर पर लगभग सारा सामान औनलाइन मंगवाया जा रहा था. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बाहरी व्यक्तियों को सोसायटी के भीतर आने की परमिशन नहीं थी. गेट पर ही

सामान दे जाते और बाद में सिक्युरिटी गार्ड्स पता देख इंटरकौम कर देते थे.

मृदंगम गार्डरूम के पास पहुंची तो 4-5 लोग लाइन बना कर खड़े थे. सभी अपनाअपना फ्लैट नंबर बताते और गार्ड उन का पैकेट छांट कर निकाल देता. मृदंगम की बारी आई तो उस के फ्लैट नंबर बताने से पहले ही गार्ड ने अलग रखा हुआ एक पैकेट थमा दिया.

‘‘यह क्या? मैं ने तो नंबर भी नहीं बताया अभी? मेरा पैकेट एक साइड में क्यों रखा है?’’ मृदंगम ने आश्चर्यचकित हो पूछ लिया.

गार्ड मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैडम देखिए तो अपना पैकेट. आप का और सोसायटी का नाम ही लिखा है इस पर, फ्लैट का नंबर नहीं लिखा. कूरियर वाला सोसायटी का नाम देख कर यहां आया था, मुझे आप का नाम याद था तो मैं ने उस से ले कर रख लिया था.’’

मृदंगम ने देखा तो सचमुच ‘मृदंगम, वैशाली अपार्टमैंट्स नई दिल्ली-62’ के अतिरिक्त कुछ नहीं लिखा था.

‘‘क्या यह मेरा ही पैकेट है? मृदंगम नाम किसी और का भी तो हो सकता है?’’ आशंकित हो मृदंगम गार्ड से बोली.

‘‘आप का ही है पैकेट, मैडम. सोसायटी में यह नाम किसी और का नहीं है, हमें पता है.’’

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मृदंगम पैकेट ले कर घर आ गई. सैनिटाइजर से पैकेट को साफ कर अपने कमरे में टेबल पर रखने के बाद हाथ धोते हुए सोच में डूबी थी कि 2 दिन पहले उस ने शैंपू, दालें, कुछ मसाले और सौस आदि का और्डर दिया था, लेकिन यह पैकेट तो उन वस्तुओं का लग ही नहीं रहा. पैकेट हलका था और देख कर लग रहा था जैसे अंदर कोई कपड़ा है. कुछ देर बाद मेड आ गई. मृदंगम भी काम में व्यस्त हो गई, लेकिन मन उस पैकेट के आसपास मंडरा रहा था.

मेड के जाते ही असमंजस में पड़ी मृदंगम पैकेट हाथ में ले सोच रही थी कि उसे खोले या नहीं. एक ओर इस प्रकार का कोई औनलाइन और्डर नहीं किए जाने से खोलने में संकोच हो रहा था तो दूसरी ओर अपना नाम लिखा होने से लग रहा था कि पूरा अधिकार है उसे पैकेट खोलने का.

कुछ देर की उधेड़बुन के बाद उस ने सोचा कि इस विषय में कामेश से पूछ लेती हूं, लेकिन तुरंत मन में दूसरा विचार आ गया कि यदि कामेश ने इसे कूरियर कंपनी को वापस करने को कह दिया तो? लौटाने का तो अब सवाल ही नहीं उठता. हो सकता है उस की किसी मित्र या रिश्तेदार ने इसे भेजा हो और फ्लैट नंबर लिखना भूल गए हों. हां, ऐसा ही कुछ हुआ है.

अचानक याद आया कि कुछ दिनों पहले

कामेश ने भागलपुर में रहने वाले अपने बड़े भैया से फोन पर कहा था कि जो सिल्क की चादरें वह पिछली बार वहां से खरीद कर लाया था, अब घिस चुकी हैं. इस बार भागलपुर आना होगा तो चादरें जरूर खरीद लेंगे.

मृदंगम ने अनुमान लगाया कि जेठजी ने सोचा होगा कोरोनाकाल में आनाजाना नहीं हो सकेगा, इसलिए भेज दी होंगी चादरें. ‘एक फोन थैंक्स का कर दूं. तब मैं आश्वस्त हो जाऊंगी कि पैकेट उन के द्वारा ही भेजा गया है. उस के बाद बेहिचक खोल लूंगी,’ सोचते हुए मृदंगम ने जेठानी को फोन कर लिया और ‘हैलो’ सुनते ही बोल पड़ी, ‘‘हाय भाभी, वे सिल्क की चादरें…’’

जेठानी बात काटते हुए बोली, ‘‘हां मृदु, मजबूरी है. तुम लोग अभी घिसीपिटी चादरों से ही काम चलाओ. देखो कब रुकता है कोरोना का कहर. अनलौक हो गया, फिर भी केस तो लगातार बढ़ रहे हैं. सब ठीक हो जाए, तब तुम लोग आना भागलपुर. मिलना भी हो जाएगा और तुम्हारी चादरों की शौपिंग भी.’’

‘यानी इन्होंने नहीं भेजा वह पैकेट,’ सोचते हुए मृदंगम ने 2-4 बातें कर फोन काट दिया.

फिर से वह अपना दिमाग दौड़ाने लगी, ‘अरे, मैं भी कैसी पागल हूं. भूल ही गई कि इस मंथ मेरा जन्मदिन है. हो न हो दीदी ने जम्मू से कश्मीरी कढ़ाई वाली शौल भेजी है. वाऊ दीदी, लव यू…’ मृदंगम आंखें मूंद होठों को सिकोड़ कर खयालों में अपनी बहन को चूमने लगी.

‘‘क्या हुआ मम्मा? चुम्मी किसे कर रही हो?’’ इशू की आवाज सुन उस ने आंखें खोलीं तो लजा गई.

‘‘मैं समझ गया, टिया को न? मौसी ने आप को भी टिया का फोटो भेजा है व्हाट्सऐप पर? कितनी प्यारी है मेघा दीदी की बेटी. मुझे भी सैंड की हैं उस की पिक्स मौसी ने. आप की तरह मेरा भी मन कर रहा था छुटकी को प्यार करने का.’’

इशू की बात सुन मृदंगम को याद आया कि दीदी तो इन दिनों

फ्रांस में हैं. पिछले महीने ही उन की बेटी मेघा ने प्यारी टिया को जन्म दिया था. इसी काम के लिए वे मार्च से ही उस के पास रह रही हैं.

तो किस ने भेजा है यह पैकेट? मृदंगम का दिल बैठा जा रहा था. किसी भी स्थिति में वह कूरियर वापस नहीं करना चाहती थी. मन बहलाने के लिए फेसबुक खोल कर बैठी तो अपनी सखी मीनाक्षी की प्रोफाइल पिक देख आंखें चमक उठीं. याद आया कि गत सप्ताह ही मीनाक्षी ने अपनी यह तसवीर पोस्ट की थी और मृदंगम ने उस के वनपीस पर प्रशंसाभरा कमैंट किया था.

रिप्लाई में मीनाक्षी ने एक शौपिंग साइट का नाम बताते हुए लिखा था, ‘‘औनलाइन मंगवाया था. तुम भी ऐसा ही गाउन खरीद लो, उसे पहन कर सैल्फी लेना और उसे अपनी प्रोफाइल पिक बना देना. मजा आ जाएगा दोनों सहेलियां एक रंग में रंगी हुई दिखाई देंगी.’’

‘अरे वाह, मीनाक्षी ने सेम गाउन खरीद कर भेज दिया. अभी पैकेट खोल कर पहन लेती हूं. इशू से लगे हाथ फोटो भी खिंचवा लूंगी,’ सोच मृदंगम उत्साहित हो पैकेट की ओर बढ़ गई.

‘नहीं, अभी नहीं. इन दिनों पार्लर जाना नहीं हुआ. चेहरा मुरझाया सा है, फोटो में जान नहीं आएगी. आज ही फोन कर ब्यूटीशियन को बुला लेती हूं. फिर शाम को कामेश के सामने खोलूंगी पैकेट. कामेश जब देखेंगे कि सहेली ने बिना कहे ही फरमाइश पूरी कर दी तो कितने शर्मिंदा होंगे. आगे से मुझे उन के सामने बारबार अपनी मांगें दोहरानी नहीं पड़ेंगी, दौड़ कर पूरी करेंगे हर इच्छा मेरी या हो सकता है स्वयं ही पूछना शुरू कर दें कि मुझे किस वस्तु की आवश्यकता है?’ मृदंगम कल्पना कर दी.

कुछ देर बाद ब्यूटीशियन आ गई. मृदंगम ने फेशियल, वैक्ंिसग, थ्रैडिंग करा कर बालों में अपना पसंदीदा बरगंडी रंग लगवा लिया और अपने को फोटोसैशन के लिए तैयार कर लिया. शाम अब होने की बेचैनी से प्रतीक्षा कर रही थी.

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उस दिन कामेश औफिस से जल्दी लौट आया, क्योंकि सिर में तेज दर्द था. खांसी के साथ बारबार छींकें भी आ रही थीं.

‘‘मम्मा, कोरोना के सिमटम्स,’’ इशू ने आंखें फाड़ते हुए कहा तो मृदंगम का कलेजा मुंह को आ गया. सोसायटी में रहने वाले डाक्टर को फोन लगाया. डाक्टर ने मशवरा दिया कि 2-3 दिन तक कामेश को अलग कमरे में रखा जाए. उस के बाद यदि हालत न सुधरी या फीवर आने लगा तब देखेंगे क्या करना है. कुछ दवाइयां उस ने अपने सरवैंट के हाथ भिजवा दीं.

आगे पढ़ें- दवाएं टेबल पर रखते हुए मृदंगम ने….

देशभर में 7 महीने बाद खुलेंगे सिनेमा हॉल, हुए ये बड़े बदलाव

कोरोनावायरस के चलते पूरे देश में लौकडाउन किया गया था, जिसके बाद अनलौक की प्रक्रिया शुरू की गई थी. बीते सात महीनों से कई चीजों पर बंदिशे लगाई गई थीं. लेकिन अब सरकार द्वारा जारी की गई ‘अनलॉक- 5’ की गाइडलाइंस के तहत सिनेमा प्रेमियों के लिए खुशखबरी लेकर आई है. दरअसल, ‘अनलॉक- 5’ में सरकार ने देशभर में सिनेमा हॉल्स और मल्टीप्लेक्स खोलने का फैसला लिया है. हालांकि इसके साथ कुछ गाइडलाइन्स शेयर की गई हैं, जिसमें कहा गया है कि सिनेमा हॉल्स खोलना हैं या फिर नहीं!  ये पूरा फैसला राज्य सरकारों पर निर्भर होगा. जानें क्या- बदल जाएगा सिनेमा घरों में…

सिनेमाघरों में बदलेंगी ये चीजें

सात महीने बाद सिनेमा हॉल्स खुलने के कारण कई चीजें बदलने वाली हैं. दरअसल, अब हॉल में फिल्म देखने वालों को ई-टिकट से ही एंट्री मिल पाएगी. यहां तक  कि विंडो पर भी ई-टिकट ही जारी किया जाएगा. इसी के चलते  6 साल से ऊपर और 60 साल से नीचे की उम्र के लोगों को हौल में एंट्री दी जाएगी.

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कम लोग ले पाएंगे मजा

कोरोनावायरस के कहर को देखते हुए सिनेमा हौल्स में भी सीटिंग अरेंजमेंट में बदलाव किए गए हैं, जिसके तहत अब सिनेमाहॉल्स में क्षमता के आधे लोग यानी 50% ही लोग फिल्म देखने का मजा उठा पाएंगे. वहीं कहने का मतलब है कि मैट्रो की तरह सिनेमाघरों में भी अब दर्शकों को एक सीट छोड़कर बिठाया जाएगा. वहीं  हौल में एंट्री के दौरान सभी लोगों को फेस मास्क और मोबाइल में आरोग्य सेतु एप रखना अनिवार्य होगा.

ये फिल्में नही देख पाएंगे दर्शक

बीते दिनों मल्टीप्लेक्स चेन ने फैसला लिया है कि साल 2020 में ओटीटी पर रिलीज हुई फिल्मों को सिनेमाघरों में दोबारा नही दिखाया जाएगा. हालांकि पहले कई मेकर्स इससे उलट ऐलान किया था. लेकिन अब इनसे घाटे का सौदा देखते हुए इन नियमों में बदलाव किए गए हैं.

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पति की इस खूबी पर फिदा हैं मोहेना कुमारी, मना रही हैं 1st एनिवर्सरी

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में कीर्ति के रोल में नजर आ चुकी एक्ट्रेस मोहेना कुमारी सिंह ने बीते दिन यानी 14 अक्टूबर को अपनी शादी की पहली सालगिरह मनाई है. शादी के बाद एक्टिंग करियर को अलविदा कहने वाली मोहेना इन दिनों उत्तराखंड की वादियों का लुत्फ पति संग उठा रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनकी शादी से लेकर अब तक की खास फोटोज…

मोहेना ने की थी अरेंज मैरिज

14 अक्टूबर के दिन ही मोहेना कुमारी सिंह ने उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री व आध्यात्मिक गुरु सतपाल महाराज के छोटे बेटे सुयश रावत से शादी की थी. वहीं दोनों की शादी हरिद्वार में बहुत ही भव्य तरीके से की गई थी. वहीं दोनों की पहली मुलाकात की बात करें तो दोनों के परिवार ने दिल्ली में करवाई थी, जिसके बाद मोहेना और सुयश का रिश्ता पक्का हो गया था.

 

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Happy anniversary sumo 🥰♥ @mohenakumari @suyeshrawat #sumo

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सुयश रावत पर फिदा हैं मोहेना कुमारी सिंह

 

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🌱☀️🕶 @welcomhotelthesavoy

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एक इंटरव्यू में मोहेना कुमारी सिंह ने बताया था कि वह सुयश रावत के शांत व्यवहार को बहुत पसंद करती हैं. सुयश रावत ने कभी भी मोहेना कुमारी सिंह को कोई काम करने से मना नहीं किया है. इतना ही नहीं वह मोहेना कुमारी सिंह को नई नई चीजें सीखने के लिए प्रेरित करते हैं.

इन चीजों को अलविदा कह चुकी हैं मोहेना कुमारी सिंह

 

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Sharing some of the most beautiful moments in my life. Our Wedding. @suyeshrawat Link in Bio.

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टीवी इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना चुकी मोहेना कुमारी सिंह ने शादी के बाद डांस और एक्टिंग को अलविदा कह दिया है लेकिन मौका मिलने पर वह आज भी अपने इस शौक को पूरा कर लेती हैं और अपने फैंस के साथ हर पल शेयर करती रहती हैं.

 

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joyeux anniversaire mon Cheri spending time with you is like an experience that I cherish

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शादी के बाद ये काम करती हैं मोहेना

खाली समय की बात करें तो मोहेना कुमारी सिंह अपने यू ट्यूब चैनल के लिए वीडियोज बनाने के अलावा उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों का लुत्फ उठाती हैं. साथ ही अपने सोशलमीडिया अकाउंट पर फोटोज भी शेयर करती हैं.


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बता दें, बीते दिनों मोहेना और उसके ससुराल वालों को कोरोनावायरस का शिकार होना पड़ा था. हालांकि अब उनका पूरा परिवार स्वस्थ है.

जानें कब करना होता है बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर का इस्तेमाल

हर घर के किचन में बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर दोनों ही मौजूद होते हैं. क्योंकि इन दोनों चीज़ों का इस्तेमाल अधिकतर करना ही पड़ता है. इसी कारण आमतौर पर लोगों को लगता है कि बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर एक ही चीज होती है जबकि ऐसा नहीं है. हालांकि, इन दोनों का रंग एक जैसा ही होता है, लेकिन दोनों के स्वाद में और स्वभाव में बहुत फर्क होता है. दोनों चीजों में फर्क क्या है? और इनमें से कौन सी चीज का इस्तेमाल कब किया जाता है. चलिए जानते हैं-

जानें बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर में अंतर-

बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर सफेद रंग का पाउडर होता है जिस वजह से कई लोग बेकिंग सोडा और पाउडर को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन दोनों सामग्रियों के अंतर को छूने भर से ही पता लगाया जा सकता हैं, क्योंकि बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर दोनों अलग अलग चीजें होती है इसलिए दोनों ही चीजों का इस्तेमाल भी अलग-अलग कामों के लिए किया जाता है, क्योंकि दोनों के कार्य करने की क्षमता अलग-अलग होती है. इसलिए जान लें कि बेकिंग सोडा हल्का दरदरा होता है, जबकि बेकिंग पाउडर मैदे जैसा मुलायम होता है.

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बेकिंग सोडा

बेकिंग सोडा सोडियम बाइकार्बोनेट नामक रसायन से बनता है, जो नमी और खट्टे पदार्थों से संपर्क में आकर खाने को स्पंजी बनता है. ये ठोस क्रिस्टल की तरह होता है लेकिन बाद में इसे पीसकर चूर्ण बना दिया जाता है. इसके अल्काइन सब्सटेंस में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीसेप्टि क और एंटी-इंफ्लेमेट्री गुण मौजूद होते हैं.

कब करते हैं इसका इस्तेमाल

बेकिंग सोडा का इस्तेमाल खट्टी चीजों जैसे- दही, छाछ और नींबू के रस में किया जाता है.
कोई भी नान, भटूरा जैसी चीजों को बनाने के लिए बेकिंग सोडा का इस्तेमाल किया जाता है.
बेकिंग सोडा को आटा गूंथते हुए इस्तेमाल किया जा सकता है.
बेक करके बनाने वाली सामग्रियों में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
बेकिंग सोडा पीने के फायदे भी होते हैं, इसलिए इसे पानी में मिलाकर पी सकते हैं.
इसके अलावा अगर कपड़े ज्यादा गंदे हैं तो उन्हें साफ करने के लिए बेकिंग सोडा का इस्तेमाल किया जा सकता है.
घर की फ्लोर और टाइल्स को चमकाने के लिए भी बेकिंग सोडा का इस्तेमाल किया जाता है.
अगर बर्तन ज्यादा जल गए हैं तो बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर आप उन जले बर्तनों को साफ कर सकते हैं.

बेकिंग पाउडर

बेकिंग पाउडर में सोडियम बाई कार्बोनेट के साथ ही अल्यूमिनियम सलफेट, कॉर्न स्टार्च भी होता है. अगर हम किसी डिश को बनाने में बेकिंग पाउडर का इस्तेमाल कर रहे है तो हमें अलग से किसी एसिड जैसे नींबू, दही या मठ्ठा डालने की जरुरत नहीं होती है. बेकिंग सोडा से अधिक एसिडिक होता है. इसलिए यह नमी के संपर्क में आने भर से खाने को स्पंजी बनाने में मदद करता है.

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कब करते हैं इसका इस्तेमाल

बेकिंग पाउडर का इस्तेमाल नमी वाली चीजों के लिए किया जाता है.
केक और बेकरी जिन्हे तला नहीं जाता उनमें बेकिंग पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है.
बेकिंग पाउडर का पहला रिएक्शन उसी समय होता है जिस समय उसे घोला जाता है और दूसरा रिएक्शन तब होता है जब उसे पकाया जाता है यानि ओवन में या गर्म तेल में या स्टीम में डाला जाता है.
बेकिंग पाउडर को हमेशा उसी रेसिपी में इस्तेमाल करना चाहिए जिसे थोड़ा रेस्ट चाहिए.

बेकिंग सोडा और बेकिंग पाउडर को कैसे रखें सुरक्षित

अगर पैकेट वाला बेकिंग सोडा खरीदा है, तो उसे एयर टाइट डिब्बे में बंद करके रखें. इसके अलावा, हर बार इस्तेमाल करने के बाद डिब्बे का ढक्कन अच्छे से बंद करें, वरना उसमें नमी आ जाएगी और वो खराब हो जाएगा.

अब मेकअप करना हुआ आसान, क्योंकि सही ब्रश है आपके हाथ 

मेकअप करना एक कला है, जिसे हर कोई नहीं कर सकता. ये सही है कि मेकअप चेहरे की खूबसूरती को बढाती है और इसे सही तरह से करने के लिए सही ब्रशों का चुनाव करना जरुरी है. किसी भी ब्रश से आप मेकअप नहीं कर सकती, क्योंकि इससे मेकअप खिलने बजाय भद्दा दिखेगा. खासकर घरेलू महिलाएं, जो घर पर खुद ही मेकअप करती है. उन्हें सही ब्रशों के बारें में जानकारी लेना आवश्यक है. 

अपनी सिग्नेचर लाइन मेकअप ब्रशेज के लॉन्च पर सेलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट ओजस रजानी कहती है कि इस बार कोरोना संक्रमण है इसलिए सभी महिलाएं घर पर रहकर उत्सव मना रही है, जो अच्छी बात है. महिलाएं घर पर ही इस उत्सव के सीजन में मेकअप कर सकती है, लेकिन इसके लिए सही ब्रशों का उनके पास होना जरुरी है, जो उन्हें एक अच्छी मेकअप के लिए प्रेरित करें. इसके अलावा मेकअप ब्रश के बारें में जानने के साथ-साथ, इन ब्रशों की साफ़-सफाई पर भी ध्यान देना आवश्यक है, ताकि जरुरत के अनुसार ब्रशों का प्रयोग किया जा सकें. मेकअप ब्रश कई तरह के होते है, मसलन कंटूरिंग ब्रश, कंसीलर ब्रश, फाउंडेशन ब्रश, आई लाइनर ब्रश, आई शेडो ब्रश, ब्लशर ब्रश, लिप ब्रश, फेस पाउडर ब्रश, हाई लाइटर ब्रश आदि. हमेशा अच्छी क्वालिटी की ब्रांडेड ब्रश ही ख़रीदे, जो सालों साल चलती रहे. ब्रशेज को भी अपना गहना ही समझे, क्योंकि ये आपके सोलह श्रृंगार में शामिल है. अगर आप इतने सारें ब्रशेज नहीं खरीदना चाहती है, तो यहाँ कुछ ख़ास ब्रश, जो आपके मेकअप किट में अवश्य होने चाहिए, ताकि आप एक परफेक्ट मेकअप कर सकें. ये निम्न है. 

कंटूरिंग ब्रश 

अभी कंटूरिंग का फैशन है. यह ब्रशों के सेट का मुख्य ब्रश होता है. ये चेहरे की मेकअप को एक्स्ट्रा लुक देने के लिए प्रयोग किया जाता है.इससे चेहरे के आकार को उभारा जाता है.ये गोलाकार और पॉइंट एज वाला होता है.

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कंसीलर ब्रश

ये ब्रश कंसीलर लगाने के काम आता है. ये थोडा छोटा और कम चौड़ा होता है. इसके आगे का हिस्सा हल्का नुकीला होता है. ये आँखों के नीचे के डार्क सर्कल और दाग को छुपा देता है. 

फाउंडेशन ब्रश 

यह एक फ्लैट और राउंड ब्रश होता है, जिससे आप लिक्विड और क्रीम फाउंडेशन को सही तरीके से अप्लाई कर सकें. इसकी मोटाई अच्छी होती है और इसके द्वारा आप अपने चेहरे की दाग-धब्बों को छुपा सकते है. ये त्वचा के हर छिद्र को भर देता है, जिससे स्किन ग्लो करने लगती है. हाथ से फाउंडेशन को लगाने से बचें. 

आईलाइनर ब्रश 

आई लाइनर का फैशन हमेशा से रहा है. इसलिए इसके लिए एक सही आईलाइनर ब्रश का होना आपके मेकअप किट में बहुत जरुरी है. इसमें नेचुरल, कैट स्टाइल, विंग स्टाइल, फंकी स्टाइल आदि कई शामिल है, जिसे ब्रश के द्वारा सही तरीके से लगाया जा सकता है.

आईशेडो ब्रश 

आँखों की खूबसूरती के लिए आईशेडो का इस्तेमाल किया जाता है. आईशेडो किट में मिले ब्रश से इसे लगाना सही नहीं होता. सॉफ्ट और ब्रसल्स वाले ब्रश से ही आईशेडो लगायें. अलग रंग के लिए अलग ब्रश या उस ब्रश को साफ कर प्रयोग करें.  

मस्कारा ब्रश 

ये आँखों की लैशेज को खूबसूरत कर्ल देते है और आँखों की लैशेज को अपलिफ्ट करते है. आँखों को सुंदर लुक देने के लिए मस्कारा ब्रश का सहारा लेना पड़ता है.

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ब्लशर ब्रश 

ब्लशर का उपयोग चिक बोन्स को उभारने और स्लिम दिखने के लिए किया जाता है. चेहरे के आकार को ध्यान में रखते हुए चिक बोन्स को हाईड या हाईलाइट किया जाता है. 

लिप ब्रश 

लिपस्टिक्स मेकअप का सबसे अहम् हिस्सा होता है, इसके बिना मेकअप अधूरा लगता है. अवसर के आधार पर न्यूड से डार्क लिपस्टिक ब्रश से लगायें, ताकि ये आसपास फैले नहीं और ठीक से होंठों पर लग जाय.

ब्रशों की देखभाल 

इसके आगे ओजस कहती है कि ब्रशों को इस्तेमाल करने के बाद उसकी सही देखभाल करना जरुरी है, ताकि अगली बार मेकअप किया जा सके, क्योंकि ब्रशों को साफ़ न रखने पर कई बार चेहरे पर पिम्पल्स, फोड़े-फुंसी आदि होने की संभावना रहती है, जिससे चेहरा ख़राब हो सकता है. कुछ सुझाव निम्न है,

  • ब्रश को साफ़ करने के लिए हल्के गरम पानी और साबुन या माइल्ड शैम्पू का इस्तेमाल करें, 
  • इसे रातभर भिगोकर रख दें और सुबह धोकर नैचुरली सुखा लें,
  • ब्रशों का मुंह उल्टा करके रखे, ताकि ब्रश के बालों को नुकसान न पहुंचे, 
  • हर बार प्रयोग करने के बाद उसे साफ़कर और सुखाकर मेकअप किट में रखे,
  • हर ब्रश को धोने के लिए अलग समय लगता है, अगर आपने सूखे पावडर के लिए ब्रश का इस्तेमाल किया है, तो उसे तुरंत धोकर भी रख सकती है,
  • आँखों पर प्रयोग किये जाने वाले ब्रश को खासकर धोने की जरुरत होती है, क्योंकि इसे लिक्विड में डुबोकर प्रयोग किया जाता है,
  • कई महिलाएं ब्रश को धोने से डरती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि ब्रश ख़राब हो जायेगा. जबकि ऐसा नहीं है. अच्छे ब्रांडेड ब्रश सालों साल चलते है.

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