जानें क्या होती है लीडरशिप ? क्या आपके अन्दर भी है एक प्रभावी लीडर बनने की क्वालिटी?

एक अच्छा इम्प्लोयी (Employee) कैसे बने? अपने बॉस का favourite बनने के लिए क्या करें? बेस्ट इम्प्लोयी (Employee) की क्या क्वालिटी होती है? और भी न जाने कितना कुछ .इन सब पर न जाने कितने लेख लिखे जा चुके है.पर आज का मेरा ये लेख ‘एक अच्छा लीडर कैसे बने ‘ इस पर आधारित है.

एक बार एक बड़ी कंपनी के ओनर एक नयी ब्रांड-Mercedes में अपने ऑफिस पहुंचे.ऑफिस के गेट पर खड़े उनके कुछ इम्प्लोयीस में से एक ने कार को देखकर कहा “वाह,कितनी शानदार कार है.
कंपनी के ओनर ने यह सुनकर कहा , “अच्छा……. अगर इस वर्ष भी आप कठिन परिश्रम करे और पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने सभी घंटे लगा दें, और उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें. तो मुझे अगले वर्ष भी ऐसे ही 2 ,3 मौके और मिलेंगे …….”

शायद आपको ये छोटी सी कहानी मजाकिया लग रही हो पर दुर्भाग्य से हकीकत इससे कही हद तक मेल खाती है.ये उन लोगों पर काफी सूट करती है जिन्हें शायद ये पूरी तरह एहसास ही नहीं होता की उनके आगे बढ़ने में किसी और का भी योगदान है.और हो सकता है की उन्हें इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता….. .पर एक चीज़ तो तय है की अपने इस रवैये से वो ज्यादा आगे तक नहीं जा रहे.

आखिर एक लीडर क्या है?

अपने ऑफिस के केबिन के एक कोने में बैठ कर दूसरों को काम सौपना बहुत आसान है लेकिन इससे आप प्रभावी लीडर नहीं बनते. सच्चे नेतृत्व का अर्थ बाहरी दुनिया के अधिकार और मान्यता से बहुत अधिक है. सही अर्थ में एक लीडर वो है जो अपने प्रभावी नेतृत्व से अपनी टीम को विकसित करने और उनको उनकी पूरी क्षमता तक पहुंचाने में मदद करता है है. सच कहूं तो एक लीडर के रूप में, आपके पास हर एक दिन किसी के जीवन को बदलने का अविश्वसनीय अवसर है.

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कैसे जाने की आपको अपनी लीडरशिप में सुधार लाने की आवश्यकता है?

मुझे लगता है कि एक प्रभावी लीडर वह है जो अपने आसपास के लोगों को बेहतर बनाता है.सच कहूं तो प्रभावी लीडर के लिए कई लिटमस परीक्षण होते हैं. वो हमेशा अपनी टीम को देखकर ये निश्चित करता है की क्या वे बढ़ रहे हैं, क्या वे खुद में एक बेहतर लीडर बनने के लिए तैयार है ?क्या उनके आत्मविश्वास में कोई कमी तो नहीं है.?

अगर आप ये देखते हैं की

1-आपकी टीम के सदस्य अपने काम में असंतुष्ट या स्थिर हो गए हैं.
2- आपकी टीम के किसी भी व्यक्ति ने पिछले कुछ समय से आपके विचारों की आलोचना नहीं की है.
3- अगर आपकी टीम के सदस्य असफल होने से डरते हैं.
तो यह आपकी रणनीतियों को फिर से आश्वस्त और सुधारने का समय हो सकता है.

आइये जानते है की एक प्रभावी लीडर बनने के लिए हमे किन चीज़ों पर ध्यान देने की जरूरत है?

1-फ्लेक्सिबिलिटी(लचीलापन) बहुत जरूरी है-

लचीला होने की क्षमता शायद अच्छे नेतृत्व के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है. सब कुछ आपकी योजना के अनुसार नहीं होता. प्रतियोगी रणनीति बदलते हैं…… सरकारें व्यापार पर नए नियमों को लागू करती हैं…हड़तालें उत्पादों के प्रवाह को रोकती हैं,…..और कभी-कभी प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं…… उस समय आप किस प्रकार प्रतिक्रिया देते है?
यह आपके लीडरशिप के स्तर को तय करता है. यहाँ यह मायने नही रखता की ये परिस्थिति क्यों और कैसे है? बल्कि मायने यह रखता है की आप एक लीडर के रूप में उसपर किस तरह प्रतिक्रिया देते है और कैसे खुद को और अपनी टीम को आगे बढाकर एक नया रास्ता खोजने में सक्षम होते है?

2-सिर्फ एक अच्छा वक्ता होना जरूरी नहीं, अच्छे श्रोता भी बनें

कुछ लीडर एक महान वक्ता होते हैं, लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं होता. आप कंपनी में अच्छी पोजीशन पर हैं तो इसका यह अर्थ नहीं है कि आप अपने से नीचे काम करने वालों को सुनना बंद कर दें. एक प्रभावी लीडर वो है जो न सिर्फ अपने कर्मचारियों के साथ अपने विचारों को साझा करते हैं, बल्कि उनकी बातों और उनके तर्कों को भी बखूबी सुनते है और उस पर अमल भी करते हैं.ऐसा करने से आपके टीम के सदस्यों का आत्मविश्वास बहुत बढेगा और आपका ये व्यक्तिगत चरित्र अपनी टीम का सशक्त मार्गदर्शन करेगा.

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3- छिपे हुए लीडर को खोजें

लॉस एंजेलेस के प्रोफेसर रोजर हर्मन ने एक अध्ययन के दौरान ये बताया की 75 % कर्मचारी जो अपनी नौकरी स्वेच्छा से छोड़ते हैं, काम की वजह से नहीं निकलते, वे अपने लीडर्स की वजह से निकल जाते हैं. एक चीज़ हमेशा याद रखें ‘नेतृत्व का अर्थ अधिक लीडर्स का उत्पादन करना है, न कि अधिक अनुयायियों का’
अपनी टीम के चीयरलीडर के रूप में कार्य करना एक प्रभावी लीडर होने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. प्रभावी लीडर अपने कर्मचारियों को चुनौतीपूर्ण अवसर प्रदान करते है और आवश्यकतानुसार उनका मार्गदर्शन भी करते हैं.

एक बात हमेशा याद रखें की अपनी टीम को जिम्मेदार और जवाबदेह बनाने से न केवल अपने और अपने नेता के प्रति कर्मचारियों का विश्वास बढ़ता है, बल्कि उनका प्रदर्शन भी बढ़ता है.

4- अपने टीम के सदस्यों के साथ जुड़ें

अपनी टीम का नेतृत्व करने के लिए नेता और उनकी टीम के सदस्यों के बीच विश्वास और आपसी समझ की भावना की आवश्यकता होती है. अपनी टीम के प्रत्येक सदस्यों के व्यक्तित्व, रुचियों, शक्तियों, कमजोरियों और वरीयताओं को जानने की कोशिश करें. यदि आप अपने नेतृत्व में सुधार करना चाहते हैं, तो अपने संबंधों में सुधार करें.

5-विनम्रता और उपस्थिति

एक अच्छा लीडर अक्सर पूरे कमरे का ध्यान बिना कुछ बोले भी अपनी और आकर्षित कर लेता है.. उपस्थिति का यह स्तर जन्मजात नहीं होता बल्कि यह एक ऐसी गुणवत्ता है जिसे आप अपने कर्मचारियों के सम्मान के माध्यम से अर्जित कर सकते है.

6- नए विचारों के लिए तैयार रहे

अच्छे लीडर्स को यह समझने और स्वीकार करने में समय नहीं लगता की परिवर्तन अपरिहार्य है. स्थिरता की बजाय नए विचारों और सोच के लिए मार्ग खुले रखें क्योंकि ये जरूरी नहीं की आपकी टीम के हर सदस्य की प्रतिभा एक जैसी हो क्योंकि हर किसी का अपना एक अलग दृष्टिकोण होता है.अपने टीम के सदस्यों को उनकी क्षमताओं और उनकी उपयोगिताओं का अहसास करवाएं ,और उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रेरित करें.
जिस दिन आपकी टीम के सदस्यों को ये लगेगा की वो अपने नए विचारों को खुल कर आपके सामने ला सकते है उस दिन उनमे एक नए नेता का जन्म होगा.इसलिए उन्हें हतोत्साहित करने की बजाय प्रोत्साहित करें.
एक चीज़ हमेशा याद रखें ,” एक आश्वस्त लीडर एक आत्मविश्वास से भरी टीम बनाता है और एक डरा हुआ लीडर हमेशा एक घबराई हुई टीम बनाता है.“

लीडरशिप का कोई जादुई फार्मूला नहीं है जो आपको तुरंत एक प्रभावी लीडर बना देगा. इसके लिए समय और समर्पण दोनों लगता है. कड़ी मेहनत, समर्पण और रणनीतिक योजना के साथ, आप अपनी टीम को सफलता की ओर ले जा सकते हैं.

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थोड़ा ब्रेक तो बनता है : घर संभाल रही गृहिणी को भी दें स्पेस

गृहिणी पूरे परिवार की धुरी होती है. खुद की परवाह किए बिना वह अपने पति, सासससुर और बच्चों की देखरेख में लीन रहती है. सुबह से शाम तक चकरघिन्नी की तरह सारे घर में घूमती और सब का ध्यान रखती गृहिणी के पास अपने लिए वक्त ही कहां होता है कि वह अपनी मनमरजी से थोड़ा वक्त निकाल कर अपना मनपसंद काम कर सके.

सारे परिवार की अपेक्षाएं पूरी करतेकरते उस की सारी जिंदगी बीत जाती है. अगर वह अपनी मनमरजी करने लगे तो यह सभी को अखरने लगता है. क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं? उस की अपनी इच्छाएं या आकांक्षाएं नहीं हो सकतीं? सब के लिए जीने वाली को क्या थोड़ा समय भी अपने लिए जीने का हक नहीं?

पति का एकाधिकार

हर पति की चाह होती है कि वह जब औफिस से घर आए तो पत्नी उस का पूरा खयाल रखे और अकसर हर पत्नी यह करती भी है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि वह पति के सोने तक हाथ बांध कर उस की जीहुजूरी करती रहे. विभा जो एक गृहिणी हैं उन की यही शिकायत है कि उन के पति का शादी के दूसरे दिन से यही रवैया है. उन्हें विभा का हर वक्त अपने आगेपीछे घूमना और जरूरत के वक्त उन की हर चीज हाजिर करना जरूरी है. यहां तक कि उन के सो जाने के बाद भी अगर वह कुछ पढ़नालिखना चाहे या संगीत सुनना चाहे तो उसे अगले दिन ताना सुनने को मिल जाता है.

इस सब से तंग आ चुकी विभा झल्ला कर कहती है कि मुझे जीने दो. मेरा अपना भी कोई वजूद है, अपनी इच्छाएं हैं, मुझे भी स्पेस चाहिए. मैं उन की पत्नी हूं कोई गुलाम नहीं.

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बच्चों की मनमानी

संगीता को पुराने हिंदी गीत सुनने का बेहद शौक है. वह अकसर अपने मोबाइल पर पुराने गीत, गजलें डाउनलोड कर के सुनना पसंद करती है. पर बच्चों को ये गीत बोरिंग लगते हैं. वे आपत्ति करते हैं तो संगीता का दिल टूट जाता है, पर जब पति और बच्चे घर में नहीं होते तो वह अपनी मनमरजी से जीती है, पुराने गीत सुनते हुए खुशीखुशी सारे काम करती है. पति और बच्चों के घर में न रहने पर उसे लगता है कि वह आजाद है. अपनी मरजी से अपना समय व्यतीत कर सकती है.

वह कहती, ‘‘सारे दिन में बस यही कुछ घंटे होते हैं जब मैं अपनी मनमरजी से जी सकती हूं. इस तन्हाई का भी अलग ही मजा होता है.’’

बच्चों की पढ़ाई

आजकल कंपीटिशन का जमाना है. सभी अभिभावक अपने बच्चों को सब से आगे देखना चाहते हैं. ऐसे में गृहिणी की जिम्मेदारी सब से ज्यादा अहम मानी जाती है. बच्चे का अच्छा या खराब प्रदर्शन गृहिणी की ही जिम्मेदारी मानी जाती है वरना यह सुनने को मिलता है कि सारा दिन करती ही क्या हो. बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दो. खासकर परीक्षा के दिनों में तो गृहिणी को ऐसा लगता है जैसे उसी की परीक्षा चल रही है और इस परीक्षा में अव्वल आने का पूरा दबाव उस के ऊपर होता है. इन दिनों तो वह सब से ज्यादा बंध जाती है.

परिवार का स्वास्थ्य

अगर बच्चे बीमार हो गए तो यह भी गृहिणी की गलती मानी जाती है कि उस ने ध्यान नहीं रखा. अगर वह रोज सादा खाना बनाए तो भी किसी को पसंद नहीं आता और अगर उस ने कभी कुछ स्पैशल बनाया और सब के पेट खराब हो गए तो भी उसे ही सुनने को मिलता है कि यह बनाने की क्या जरूरत थी. ऐसे में गृहिणियां कभीकभी उलझन में पड़ जाती हैं. एक तो सुबहशाम रसोई से छुट्टी नहीं मिलती ऊपर से कोई बीमार हो जाए तो भी उन्हीं की गलती.

अगर पति को अपने दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती का हक है और बच्चों को भी पर्याप्त स्पेस मिल जाती है, तो गृहिणी को क्यों नहीं? कुछ पल तो उसे भी अपने लिए जीने का पूरा हक है. उसे भी स्पेस चाहिए.

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Festival Special: मराठी मुल्गी बनीं अंकिता लोखंडे ने बटोरीं सुर्खियां, नई दुल्हन के लिए है परफेक्ट लुक

ज़ी टीवी के सीरियल ‘पवित्र रिश्ता’ से बौलीवुड फिल्म ‘मणिकर्णिका’ और ‘बागी 3’ से फैंस के बीच जगह बनाने वाली एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे इन दिनों सुर्खियों में हैं. एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के लिए इंसाफ के लिए वह लड़ रही हैं. लेकिन आज हम अंकिता की किसी कौंट्रवर्सी या फिल्म की नहीं बल्कि उनके ड्रेसिंग स्टाइल की बात कर रहे हैं. वेस्टर्न से लेकर इंडियन आउटफिट में नजर आने वाली अंकिता के हर स्टाइल को फैंस पसंद करते हैं. इसीलिए आज हम आपको अंकिता के फेस्टिव स्पेशल के कुछ लुक बताएंगे, जिसे नई नवेली दुल्हन ट्राय कर सकती हैं.

मराठी मुल्गी लुक है परफेक्ट

हाल ही में एक फेस्टिवल के दौरान अंकिता लोखंडे ने ट्रेडिशनल लुक कैरी किया, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया. अंकिता ने महाराष्ट्रीयन लुक के लिए ट्रेडिशनल साड़ी से लेकर जूलरी तक शामिल की थी. इस दौरान वह मैरून रंग की नौवारी साड़ी को पहनें नजर आईं, जिसमें उनकी सुंदरता देखते ही बन रही थी. इस साड़ी की सबसे खास बात यह थी कि इसके बॉर्डर पर चांदी के तारों का कशीदाकारी काम किया गया था, जिसमें बीचों-बीच बूटी प्रिंट की कढ़ाई थी.

 

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Maaaaaa❤️ @vandanaphadnislokhande

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जवैलरी है खास

 

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Killing the look @lokhandeankita 🥺 #btown#news#gossip#ankitalokhande#ig#feed#gupshup

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खूबसूरत साड़ी के साथ अंकिता के ओवरऑल लुक की बात करें तो वह पारंपरिक ज्वैलरी के साथ सोने का चोकर, कमर-बंद, पारंपरिक मराठी नथ और अर्धचंद्र बिंदी से खुद को मराठी मुलगी टच देती नजर आईं थीं. यही नहीं, मिनिमल मेकअप, स्मोकी आईज, रेड लिप्स, हाथों में लाल चूड़ियां और मेसी बन उनके लुक में चार चांद लगा रहा था.

पहले भी आ चुकी हैं इस लुक में नजर

 

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I’m waiting to meet my ganpatibappa this year ❤️ganpati Bappa laukar ya 😍 #throwback 2019 ganpatibappa

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अंकिता का पारंपरिक मराठी अवतार पहली बार नहीं सामने आया है. इससे पहले भी उन्होनें सुशांत के केस को लेकर इंसाफ मांगते हुए एक फोटो शेयर की थी, जिसमें वह बेहद खूबसूरत पीले कलर के साथ हरे बौर्डर वाली साड़ी पहनें नजर आईं थीं.

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मेरे बाल तेजी से टूटने लगे हैं और वे बेजान भी दिखने लगे हैं?

सवाल-

मेरे बाल तेजी से टूटने लगे हैं और वे बेजान भी दिखने लगे हैं. क्या कोई ऐसा उपाय है, जो मेरे बालों को हैल्दी तो रखे ही, साथ ही उन की ग्रोथ में भी मदद करे?

जवाब-

बाल तेजी से टूटने लगें और वे बेजान हो जाएं, तो आप उन में करीपत्तों का पैक लगा सकती हैं. करीपत्तों के तेल में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व बालों के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं. इस से स्कैल्प हैल्दी रहती है, जिस से हेयर फौलिकल्स भी मजबूत होते हैं और बालों का  झड़ना भी बंद हो जाता है. यह पैक बालों को पतला होने से भी बचाता है.

करीपत्तों का पैक बनाने के लिए 1 चम्मच मेथीदाना रातभर आधा कप पानी में भिगोए रखें. सुबह मेथीदाने को करीपत्तों के साथ पीस लें. अब इसे बालों की जड़ों में अच्छी तरह लगाएं. फिर हेयर कैप पहन लें. 2 घंटों बाद सिर को साफ पानी से धो लें. इस के बाद शैंपू करें और फिर बालों को अच्छी तरह धो लें. ऐसा हफ्ते में कम से कम 3 बार जरूर करें.

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सुंदर और मजबूत बाल भला किसे अच्छे नहीं लगते. लेकिन बदलते मौसम और भाग दौड़ भरी जिंदगी के चलते बालों के झड़ने और डैंड्रफ की समस्या पैदा हो जाती है. ऐसे में प्राकृतिक उपचारों को आजमाना बहुत आवश्‍यक है क्‍योंकि इसका ना तो कोई साइड इफेक्‍ट होता है और ना ही यह बहुत खर्चीला होता है.

आइये जानते हैं कुछ ऐसे प्राकृतिक हेयर मास्‍क जिन्‍हें नियमित लगाने से बालों का झड़ना रूक जाता है.

1. अंडे का मास्‍क

एक कटोरे में 1 अंडा फोड़ कर उसमें थोड़ा सा दूध, 2 चम्‍मच नींबू का रस और जैतून का तेल मिक्‍स करें. फिर इस मिश्रण को सिर पर लगा कर थोड़ा मसाज करें. उसके बाद एक शावर कैप से अपने सिर को ढंक लें और 20 मिनट के बाद बालों को ठंडे पानी से धोएं.

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शिशु के विकास के लिए ब्रेस्टफीडिंग है जरुरी

स्तनपान शिशु के पोषण और विकास के लिए बहुत आवश्यक है, इसलिए हर साल इसे पूरे अगस्त महीने सेलिब्रेट किया जाता है, ताकि अधिक से अधिक माएं अपने बच्चों को स्तनपान करायें. नेशनल ब्रेस्टफीडिंग मंथ(राष्ट्रीय स्तनपान माह)की वजह से आज काफी महिलाएं सजग हुई है, जो अच्छी बात है. कोविड-19 के बीच स्तनपान को लेकर महिलाओं ने चिंता जताईहै, पर डॉक्टर्स समय-समय पर इसकी उपयोगिता को बताते हुए इस चिंता को कम करने में कामयाब रहे. इस बारें में मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल की स्त्री रोग और प्रसूतिरोग विशेषज्ञ डॉ. नेहा पवार ने स्तनपान,मां और शिशु के संपर्क के महत्व पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी है, जो निम्न है,

  • नई माताओं, जिन्हें कोविड-19 संक्रमण का सन्देह है या पॉजिटिव पाई गई है, उनके बीच स्तनपान कराने और न कराने को ले कर काफी दुविधा की स्थिति देखी गई,हालांकि डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देश बताते हैं कि नई माताएं पहले दिन से ही शिशुओं को स्तनपान करा सकती हैं. प्रसव के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराना शुरू कर देना चाहिए और प्रसव के बाद 6 महीने तक स्तनपान निश्चित ही जारी रखना चाहिए.

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  • माताओं को अनिवार्य रूप से हाथ की स्वच्छता (हैंड हाइजीन) का पालन करने की आवश्यकता होती है. बच्चे को संभालने से पहले और बाद में, उन्हें न्यूनतम 40 सेकंड के लिए अपने हाथ धोने की आवश्यकता होती है. स्तनपान कराने के दौरान मास्क पहनना चाहिए.
  • शिशुओं को कोविड​​ 19 संक्रमण का जोखिम बहुत कम होता है,स्तनपान से जुड़े लाभों की ताकत इस जोखिम को और कम कर देती हैं, क्योंकि स्तन का दूध शिशुओं के पोषण का सबसे अच्छा स्रोत है और बच्चे में इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद करता है. इसके अलावा अगर बच्चे में कोविड-19 संक्रमण के कुछ लक्षण विकसित होते भी है, तो भी माताओं को स्तनपान कराना जारी रखना चाहिए.
  • मां और बच्चे को भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचना चाहिए और केवल डॉक्टर के पास जाने के लिए ही बाहर जाना चाहिए. मां को पर्याप्त आराम मिले, और अन्य संक्रमणों के संपर्क से बचाव निश्चित करने के लिए बच्चे के साथ देखभाल करने वाला केवल एक व्यक्ति और मां ही होनी चाहिए.
  • मां को अच्छी तरह से हाइड्रेटेड रहने के लिए पर्याप्त पानी और तरल पदार्थ लेते रहने चाहिए और सभी प्रकार के भोजन को शामिल करके संतुलित आहार लेना चाहिए.
  • यदि मां अस्वस्थ है और उसे लगातार सर्दी और खांसी है, तब भी वह आवश्यक सावधानी बरतते हुए स्तनपान करवा सकती है. हालांकि, अगर मां बहुत बीमार है, तो मां का दूध एक कटोरी में निकाल कर बच्चे को दिया जा सकता है. इसके अलावा वेट नर्सिंग, जहां कोई नर्स मां के बदले बच्चे को स्तनपान करासकें,एक बार स्वास्थ्य बेहतर होने के बाद मां स्तनपान फिर से शुरू कर सकती है.
  • शुरुआती छह महीनों के दौरान फॉर्मूला दूध, पानी और शहद, बॉटल्स, पेसिफायर्स से बचा जाना चाहिए, क्योंकि बच्चे के संक्रमित होने की अधिक संभावना होती है, खासकर फॉर्मूला दूध के कारण.

स्तनपान से लाभ

इसके आगे डॉक्टर नेहा कहती है कि स्तनपान के लाभ कई है, जिसका फायदा माँ को मिलता है, जो निम्न है,

  • एक तरफ जहां स्तन के दूध से बच्चे को बहुत लाभ होता है, वहीं मां को अतिरिक्त कैलोरी बर्न होती है, जो गर्भावस्था के वजन को तेज़ी से कम करने में मदद मिलता है.
  • स्तनपान की गतिविधि ऑक्सीटोसिन हार्मोन जारी करती है, जो गर्भाशय को प्री-प्रेग्नेंसी साइज में लौटाने में सहायता करती है.

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  • बच्चे को स्तनपान कराने के लिए किसी प्रकार की निश्चित सूची नहीं होती,शिशु के मांग के अनुसार स्तनपान कराया जाना चाहिए, जब बच्चे को भूख लगे उसे स्तनपान कराएं,
  • लगातार स्तनपान कराने से मां और बच्चे के बीच मजबूत बोन्डिंग का विकास होता है.
  • मां और बच्चे के बीच शुरुआती और स्किन टू स्किन कॉन्टैक्टबच्चे के संपूर्ण विकासमें उपयोगी होता है,पूरे दिन और रात मां और शिशु को एक साथ रहने की कोशिश करनी चाहिए. खासकर जन्म के तुरंत बाद और स्तनपान के दौरान ये नजदीकियां शिशु में सुरक्षा और आत्मविश्वास का आभास करवाती है, जिसका असर बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है.

Serial Story: धोखा (भाग-2)

दूसरे दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे तो रश्मि ने रोहन से कहा, ‘‘सुनिए, मेरे खयाल में अब तो काफी दिन हो चुके हैं, अगर शालिनी का काम बाकी है तो वह किसी गर्ल्स होस्टल में इंतजाम कर लेगी?’’

‘‘क्यों ऐसी भी क्या जल्दी है?’’ रोहन ने कहा.

‘‘बात कुछ नहीं बस बच्चों के ऐग्जाम सिर पर हैं… उन की पढ़ाई नहीं हो पा रही… फिर मेहमान कुछ दिन के ही अच्छे होते हैं.’’

‘‘कैसी बातें कर रही हो रश्मि? क्या शालिनी से यह सब कहते ठीक लगेगा? फिर एक तो वह तुम्हारी सहेली है… इस नए शहर में कहां जाएगी?’’

‘‘कहीं भी जाए या कहीं भी इंतजाम करे यह हमारी सिरदर्दी नहीं,’’ रश्मि ने कुछ झल्ला कर कहा.

‘‘ठीक है कुछ दिन और देखो या तो वह कोई इंतजाम कर लेगी या फिर मैं  ही उस का कोई इंतजाम कर दूंगा. तुम परेशान न हो,’’ रोहन उसे दिलासा दे कर औफिस चला गया.  रोहन का सारा दिन उधेड़बुन में बीता. अब उसे शालिनी का साथ अच्छा लगने लगा था. वह उस के बिना नहीं रहना चाहता था, परंतु रश्मि का क्या इलाज किया जाए? बहुत सोचने के बाद रोहन ने एक उपाय सोचा. उस ने शहर से बाहर बनी नई कालोनी में एक मकान किराए पर लिया और उस में शालिनी को शिफ्ट कर दिया.

एक बार को शालिनी हिचकिचाई. कहा, ‘‘रोहन, क्या यह ठीक होगा?’’

‘‘देखो शालिनी तुम्हारा कोई नहीं है और अब न ही मैं तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम बताओ क्या तुम मेरे बिना रह पाओगी? इतने दिन साथ गुजारने के बाद क्या हम दोनों को एकदूसरे की आदत नहीं हो गई है?’’

‘‘यह तो ठीक है, परंतु रश्मि और बच्चे. ऊपर से यह समाज क्या हमें जीने देगा?’’ शालिनी कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘देखो शालिनी अब मेरीतुम्हारी बात बहुत बढ़ गई है. अब न तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं और न ही तुम्हारे बिना रह सकता हूं. तुम्हारी तो तुम ही जानो पर मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम्हारे विचार भी यही हैं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, परंतु रश्मि मेरी सहेली है और उस के साथ यह अन्याय होगा.’’

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‘‘तुम्हें अब सिर्फ अपने और मेरे बारे में सोचना है शालिनी,’’ रोहन ने बात खत्म करते हुए कहा, ‘‘अब देखो इस शहर में कितने ही लोगों से तुम्हें मिलवा दूंगा, जिन्होंने न सिर्फ 2-2 शादियां कर रखी हैं वरन दोनों निभा भी रहे हैं.’’

‘‘परंतु लोग क्या कहेंगे?’’ शालिनी बोली.

‘‘देखो शालिनी, अब तुम कुछ मत सोचो. सोचो तो सिर्फ अपनी नई जिंदगी के बारे में.’’  रोहन की बात सुन कर शालिनी ने उस से सोचने के लिए 2 दिन का समय मांगा.

‘‘ठीक है, मैं चलता हूं. तुम्हारी जरूरत का सारा सामान यहां है.’’  रोहन घर पहुंचा तो रश्मि और बच्चे उसे अकेला देख कर बहुत खुश हुए. उन्होंने सोचा कि शालिनी चली गई है अपने शहर.

रश्मि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आज अकेले? क्या शालिनी वापस चली गई?’’

रोहन चुप रहा और अपने कमरे में कपड़े चेंज करने चला गया. रश्मि कुछ सोचती रह गई. जब वह वापस आया तो रश्मि ने फिर दोहराया, ‘‘आप ने बताया नहीं कि शालिनी वापस चली गई क्या?’’  ‘‘देखो रश्मि, तुम ने चाहा कि शालिनी यहां से चली जाए और वह चली गई. अब वह कहां गई और क्यों गई, इस से तुम्हें मतलब नहीं होना चाहिए. रहा मेरे जल्दी आने का प्रश्न तो आज मैं यह फैसला कर के आया हूं कि अब मैं शालिनी से शादी कर रहा हूं. तुम साथ रहोगी या अलग यह फैसला तुम्हें करना है.’’  रश्मि और बच्चे यह सुन कर हैरान रह गए.

‘‘तुम्हें पता भी है कि तुम क्या कह रहे हो?’’ रश्मि ने लगभग चीखते हुए कहा. दोनों बच्चे शलभ और रीतिका डर गए. तभी रश्मि को लगा कि उन्हें बच्चों के सामने ये सब बातें नहीं करनी चाहिए. अत: उस ने सामान्य होने की कोशिश की और बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, आप अपने कमरे में जा कर पढ़ाई करो.’’

अब बच्चे इतने भी छोटे नहीं थे कि वे अपनी मां की बात न समझ सकें. दोनों  सिर झुकाए अपने कमरे में चले गए.  ‘‘हां, अब बताओ कि तुम क्या कह रहे थे? तुम्हें शालिनी से शादी करनी है? तुम इतनी बड़ी सजा मुझे कैसे दे सकते हो? सिर्फ तुम्हारे कारण मैं अपने मातापिता और घरपरिवार को छोड़ कर आई थी.’’

‘‘हां तुम आई थीं पर यह फैसला भी तुम्हारा था. फिर मैं कब मना कर रहा हूं, क्या बिगड़ जाएगा अगर शालिनी भी हमारे साथ रहे?’’ रोहन ने कहा.  ‘‘यह कभी नहीं हो सकता रोहन, तुम मुझे इतना बड़ा धोखा नहीं दे सकते.’’

‘‘धोखा, जो धोखा करता है उसे धोखा ही तो मिलता है. यही दुनिया का सत्य है. तुम ने भी तो अपने मातापिता को धोखा दिया था. तुम्हारी मां असमय गुजर गईं. वे क्या जी पाईं और पिताजी? वे भी जैसे जी रहे हैं वह जीना नहीं होता. क्या तुम ने उन के लिए सोचा? आज बात करती हो धोखे की.’’

‘‘उस की वजह भी तुम थे रोहन… तुम ने तो मुझे न घर का छोड़ा और न घाट का,’’ रश्मि ने सिर थामते हुए कहा.

‘‘अब यह फैसला तुम्हारा है रश्मि तुम साथ रहो या अलग. हां यह जरूर है कि तुम्हारे और बच्चों के खर्च का पैसा मैं तुम्हें देता रहूंगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘बस करो रोहन… तुम क्या दोगे, जाओ आज मैं ने तुम्हें शालिनी दी, तुम्हारा नया घर, नई पत्नी, तुम्हें मुबारक… मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए. चले जाओ यहां से अभी इसी वक्त,’’ रश्मि ने चिल्ला कर कहा तो रोहन चला गया.  रश्मि की आंखों के सामने सब कुछ घूमने लगा. उस की बनाई दुनिया, उस का घर, उस के सपने सब कुछ भरभरा कर ढह गया.  तभी बिल्ली ने कूद कर फ्लौवर पौट गिरा दिया तो रश्मि की तंद्रा भंग हुई.

‘‘फिरफिर क्या हुआ रश्मि,’’ मैं ने पूछा.

‘‘होना क्या था रोहन मुझे अधर में छोड़ कर चला गया और आज मैं अपने बच्चों के साथ अकेले जिंदगी गुजार रही हूं. सारे दुख, सारा अकेलापन अपने अंदर समेटे चलती जा रही हूं बस.’’

‘‘परंतु कब तक?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जब तक जीवन है… न मैं हारूंगी, न रोहन के पास जाऊंगी और न ही अपने पिता के पास.’’

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‘‘चल जाने भी दे. जब भी कभी तू अकेलापन महसूस करेगी मुझे अपने करीब पाएगी.’’  उधर रोहन ने शालिनी से शादी कर ली और अपने नए घर में मगन हो गया. धीरेधीरे उन का रिश्ता सभी को मालूम हो गया. सामने तो कोई कुछ नहीं कहता था, परंतु पीठ पीछे सभी उस की बुद्धि पर तरस खाते, ‘‘देखो रोहन ने इस उम्र में अपनी इतनी सुंदर, सुघड़ पत्नी व 2 बच्चों को छोड़ कर नई शादी कर ली,’’ नरेंद्रजी बोले.  ‘‘भई, हम तो रश्मि भाभी के बारे में सोचते हैं… वे अकेली ही हर हालात का सामना कर रही हैं,’’ निरंजन कुछ सोचते हुए बोले.  ऐसा नहीं था कि रोहन को इन सब बातों का पता नहीं था, परंतु वह बड़ी चतुरता से सफाई दे देता था.  एक दिन रोहन लौटा तो उस के हाथ में शिमला के 2 टिकट थे. घर में घुसते ही  चिल्लाया, ‘‘शालिनी… ओ शालू देखो मैं क्या लाया हूं?’’

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Serial Story: धोखा (भाग-4)

दवा चलती रही. रोहन हर संभव कोशिश करता कि शालिनी खुश रहे. पर कहीं न कहीं से कुछ ऐसा हो जाता कि शालिनी को रश्मि का बुझा चेहरा और रितिका के शब्द याद आ जाते. उस की हालत बद से बदतर होती जा रही थी. अब इस बात की चर्चा आसपास भी होने लगी थी. अभी दोपहर को वह बालकनी में खड़ी थी कि रूहेला ने इशारा करते हुए नीलिमा से कहा, ‘‘सुना है शालिनी न्यूरोलौजिस्ट के पास गई थीं. उन्हें कुछ दिमागी बीमारी है.’’  ‘‘अरे भई किसी का बुरा कर के कोई सुखी हुआ है कभी? मुझे तो बेचारी रश्मि पर तरस आता है. इस ने उस का पति छीन कर उसे और उस के 2 बच्चों के साथ बुरा किया. अब भरेगी भी तो यही,’’ नीलिमा बोलीं.

इतना सुन कर शालिनी कमरे में आ गई और आते ही बस्तर पर पड़ गई. जब लंच के लिए रोहन आया तो उस ने देखा और तुरंत उसे ले कर डाक्टर के यहां गया.  डाक्टर साहब चिंतित हो कर बोले, ‘‘रोहन इतनी दवा के बावजूद शालिनी में कोई सुधार नहीं हो रहा है. मुझे लगता है कि इन्हें हौस्पिटीलाइज करना पड़ेगा.’’

‘‘कुछ भी कीजिए डाक्टर साहब, परंतु शालिनी को ठीक कर दीजिए.’’

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उसी समय डाक्टर ने शालिनी को दाखिल कर लिया.  रोहन अब तिहरी मुसीबत में फंस गया. एक तरफ उस का काम, दूसरी तरफ घर और अब अस्पताल भी सुबहशाम जाना. वह बुरी तरह थक चुका था. उस दिन के बारे में सोचता जब वह शालिनी को ले कर घर और बच्चों को छोड़ कर आया था. विवाहेतर संबंधों का सच अब उस की समझ में अच्छी तरह से आ रहा था, परंतु क्या हो सकता था. अब गले पड़े ढोल को बजाने के सिवा कोई चारा नहीं था. न तो वह शालिनी को छोड़ कर वापस रश्मि के पास जा सकता था और शालिनी थी कि वह ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही थी. खैर जैसेतैसे वह अपनी तीनों जिम्मेदारियां निभाने की कोशिश कर रहा था.  एक दिन रश्मि बाजार गई वहीं उसे कविता मिली. दोनों ही बड़ी गर्मजोशी से मिलीं. तभी कविता बोली, ‘‘चल, बहुत दिनों के बाद मिली हैं कहीं बैठ कर कौफी पीती हैं.’’

‘‘नहीं कविता, जल्दी घर जाना है. बच्चों के पेपर चल रहे हैं,’’ रश्मि ने जवाब दिया.

‘‘चल भी न… कितने दिनों बाद तो मिली हैं… थोड़ी गपशप हो जाएगी,’’ और फिर दोनों एक कैफे हाउस में चली गईं.  बातें करतेकरते बात शालिनी पर आ कर ठहर गई. अचानक कविता बोली, ‘‘सुना है रश्मि आजकल रोहन बहुत परेशानी में है.’’

‘‘क्यों? अब तो उसे खुश रहना चाहिए. उस ने शालिनी से शादी भी कर  ली जो वह चाहता था और मैं भी उस से कोई वास्ता नहीं रखती जिस का उसे डर था…’’

‘‘अरे, यह सब तो ठीक है परंतु सुना है शालिनी डिप्रैशन में आ गई है और आजकल सिटी अस्पताल में दाखिल है.’’

‘‘डिप्रैशन में वह? परंतु उसे तो वह सब प्राप्त है जिस की उस को चाह थी… अब उसे और क्या चाहिए? देखा जाए तो डिप्रैशन में तो मुझे आना चाहिए… मेरा तो सब कुछ उस ने छीन लिया है. खैर, छोड़ो सब समय का खेल है नहीं तो मैं क्यों अपना घर छोड़ कर रोहन के साथ घर बसाती? पर कविता यह तो बता कि तुझे कैसे पता चला कि वह सिटी अस्पताल में दाखिल है?’’

‘‘अरे मैं तो इन के एक दोस्त को देखने गई थी तो वहां रोहन मिले थे. वही बता रहे थे.’’

‘‘अच्छा किस वार्ड में है? रूम नंबर क्या है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘क्यों अब भी तुझे उस से मिलने जाना है?’’ कविता ने पूछा.

‘‘हां, यार सोच रही हूं मिल लेती हूं. कुछ भी हो वह मेरी सहेली है और उस की देखभाल करने वाला कोई भी तो नहीं. उस की करनी उस के साथ और मेरी करनी मेरे साथ,’’ कह रश्मि शालिनी का रूम नंबर ले कर घर आ गई.  शलभ और रितिका ने उस से बहुत मना किया, परंतु उस ने यही कहा कि इस सारे किस्से में जितनी गुनहगार शालिनी है उस से कहीं अधिक गुनहगार रोहन है और इस का खमियाजा अकेली शालिनी उठा रही है.  अकेले दिन वह शालिनी से मिलने अस्पताल पहुंची. वहां उस ने देखा कि शालिनी चीखचिल्ला रही है. तभी डाक्टर आए और उसे नींद का इंजैक्शन लगा दिया. धीरेधीरे शालिनी नींद के आगोश में चली गई. रश्मि वहां रखी कुरसी पर बैठ कर गहरी सोच में डूब गई. उसे शालिनी पर बड़ा तरस आ रहा था.  वह सोच रही थी क्या यह वही शालिनी है, जो उस के पास आई थी तब कितनी निर्मल, कितनी खुशमिजाज और सुंदर थी और आज ऐसे पड़ी है बेचारी… रश्मि का दिमाग कुछ कह रहा था और दिल कुछ और. दिल तो कह रहा था कि यह उस की सहेली है उसे ऐसी हालत में नहीं छोड़ना चाहिए, मगर दिमाग में तो चल रहा था कि उस ने उस के साथ क्या किया था. वह बड़ी दुविधा में पड़ी थी, परंतु उस के पैर डाक्टर के कैबिन की तरफ चल पड़े.

‘‘डाक्टर साहब मैं अंदर आ सकती हूं?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘यस, कम इन,’’ डाक्टर बोले.

उस ने डाक्टर साहब से शालिनी के बारे में सारी जानकारी ली और उसे डिस्चार्ज करा लिया. अगले दिन जब रोहन शालिनी के कमरे में पहुंचा तो शालिनी वहां नहीं थी. उस ने नर्स से पूछा तो उस ने बताया कि कल कोई मेम साहब आई थीं. अपने को उस का दूर का रिश्तेदार बता रही थीं. वे ही उसे अपने साथ ले गई हैं.  रोहन ने बहुत खोजबीन की, परंतु कुछ हासिल न हुआ. उस ने बहुत हंगामा भी किया, किंतु कुछ हाथ न लगा तो उस ने डाक्टर को धमकी दी कि वह लापरवाही के तहत पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएगा परंतु डाक्टर ने उसे न जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि वह चुपचाप अपने घर चला गया.  रोहन घर पहुंचा तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे. उस का तो यह हाल हो गया कि धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. खाली घर उसे काटने को दौड़ रहा था. एक ओर शालिनी जिस का कुछ पता न था तो दूसरी ओर रश्मि उस के पास जाने का उस में साहस न था.

एक डर यह भी रोहन को सता रहा था कि कहीं कोई शालिनी के बारे में न पूछ ले. शालिनी कहां गई कहां नहीं, उसे यह पता नहीं था. कहीं उस का कोई रिश्तेदार न आ धमके. रोहन अपने स्तर पर चुपचाप उस की खोजबीन में लगा था. इसी उधेड़बुन में वह चला जा रहा था. देखा सामने से रश्मि आ रही है. वह उस से बचना चाहता था कि वह सामने आ गई और उसे देख कर बोली, ‘‘कैसे हो रोहन?’’

‘‘ठीक हूं,’’ रोहन ने जवाब दिया.

‘‘और शालिनी कैसी है?’’

‘‘प्रश्न सुन कर रोहन को काटो तो खून नहीं. सारी बातें यहीं पूछोगी…

रश्मि चलो कहीं बैठ कर कौफी पीते हैं,’’ रोहन ने कहा.

‘‘इस की जरूरत नहीं,’’ रश्मि बोली.

‘‘रश्मि सच तो यह है कि शालिनी की तबीयत बहुत खराब थी. उसे मैं ने सिटी अस्पताल में दाखिल कराया था, किंतु पता नहीं उस की कौन सी दूर की रिश्तेदार वहां आई और मेरी गैरमौजूदगी में उसे अपने साथ ले गई.’’

‘‘फिर तुम ने ढूंढ़ा नहीं शालिनी को?’’

‘‘बहुत ढूंढ़ रहा हूं, परंतु कुछ पता नहीं चल रहा,’’ रोहन परेशान सा बोला.

‘‘अब क्या करोगे? पुलिस में रिपोर्ट करोगे?’’

‘‘यही तो नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘क्यों?’’ रश्मि ने पूछा.

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‘‘क्योंकि डाक्टर और उस की अनजानी रिश्तेदार मुझे धमकी दे रहे हैं कि वह मुझे दफा 420 के केस में फंसा देंगे, क्योंकि एक पत्नी  और बच्चों के होते हुए मैं ने दूसरी शादी की. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया… मुझे माफ कर दो रश्मि.’’  ‘‘रोहन तुम तो वह इनसान हो जो किसी का भी सगा नहीं हो सकता न मेरा और न शालिनी का. जानना चाहते हो शालिनी कहां है? वह मेरे पास है और धीरेधीरे स्वास्थ्य लाभ कर रही है. किंतु अब वह तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती. जैसे ही वह ठीक हो जाएगी वापस दिल्ली चली जाएगी… और तुम अपना स्वयं सोच लो.’’  रोहन कोई जवाब देता उस से पहले ही रश्मि उस की नजरों से दूर जा चुकी थी. उस के चेहरे पर संतोष की रेखा थी. जो धोखा रोहन ने उसे दिया था आज उस का जवाब उस ने दे दिया था.

Serial Story: धोखा (भाग-3)

‘‘क्या लाए हैं?’’ शालिनी ने पूछा.

‘‘सोचो क्या हो सकता है?’’

शालू मुसकरा कर बोली, ‘‘क्या होगा सिनेमा के टिकट होंगे या फिर होटल में डिनर का औफर.’’

‘‘नहीं डार्लिंग, हम कल 1 हफ्ते के लिए शिमला जा रहे हैं. क्या नजारा होगा तुम कल्पना भी नहीं कर सकतीं. चलो फटाफट पैकिंग कर लो.’’  दूसरे दिन जब वे शिमला पहुंचे तो लगभग सारे होटल बुक थे और फिर औटो वाले की सहायता से जो होटल मिला उसे देख कर रोहन को जबरदस्त झटका लगा. वही होटल और तो और वही कमरा जहां वह पहली बार रश्मि को ले कर आया था.

उसे सकते में देख कर शालिनी बोली, ‘‘क्या हुआ, आप कहां खो गए?’’

‘‘कुछ नहीं बस यों ही जरा सोच रहा था कि देखो वक्त भी क्याक्या खेल दिखाता है. अभी कुछ दिन की तो बात है. मैं किसी काम से शिमला में आया था और उस वक्त भी यही होटल और तो और यही कमरा था शालिनी,’’ रोहन ने आधा झूठ और आधा सच बोला. वह उसे यह कैसे बताता कि यहां इसी कमरे में उस ने और रश्मि ने अपना हनीमून मनाया था. झूठ तो उस ने कह दिया, किंतु उस का मन उखड़ गया था.  दूसरे दिन दोनों घूमने निकल गए. यह भी अजीब बात थी जिस रश्मि को छोड़ कर शालिनी के लिए वह बेताब था और उस के साथ शादी कर के उस के साथ हनीमून मनाने आया था उसे छोड़ कर हर जगह उसे रश्मि नजर आ रही थी. वह काफी परेशान हो रहा था. उस के अंदर यह बदलाव शालिनी भी महसूस कर रही थी, परंतु उस ने सोचा कि हो सकता है कोई औफिस की बात उसे परेशान कर रही हो. उस ने बहुत पूछा भी परंतु उस ने उसे टाल दिया.  आज उसे लगा कि 2-2 नावों पर सवार होना कितना कठिन है. होटल आ कर वह बिस्तर पर ढेर सा हो गया.

‘‘क्या बात है रोहन, काफी थकेथके से लग रहे हो और काफी परेशान भी?’’

रोहन ने कहा, ‘‘हां थक तो गया हूं… ऐसा करते हैं शालिनी वापस चलते हैं.’’

‘‘क्यों?’’

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‘‘बस, औफिस का एक जरूरी काम याद आ गया… जाना जरूरी है, फिर कभी प्रोग्राम बना लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ शालिनी बोली और फिर पैकिंग करने लगी. दूसरे दिन वापस आ गए. सब काम अपने ढर्रे पर चलने लगे.

एक दिन रोहन व शालिनी शौपिंग के लिए गए तो उन्होंने रितिका को देखा. वह अपनी सहेली के साथ स्कूटी पर जा रही थी. तभी एक बाइक सवार ने उस की स्कूटी में टक्कर मार दी और वे दोनों गिर पड़ीं. रोहन और शालिनी उस की तरफ दौड़े. उसे उठाने के लिए शालिनी ने हाथ बढ़ाया तो उस ने बड़ी नफरत से उस का हाथ झटक दिया.

शालिनी ने कहा, ‘‘रितिका, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘तुम तो ठीक हो… मैं ठीक हूं या नहीं इस से तुम्हें क्या फर्क पड़ता है,’’ रितिका ने गुस्से और नफरत से कहा.

‘‘ऐसा न कहो बेटा… मैं तुम्हारी मां के समान हूं,’’ शालिनी ने कुछ मायूसी से कहा.

‘‘आप जानती हैं कि मां क्या होती है? कभी आप ने जाना मां को? मां तो बस देना ही जानती है और आप ने तो बस छीनना ही जाना है… हम से हमारे पापा को छीना, हमारे घर की सुखशांति छीनी, मेरी मां का सुहाग छीना, आप क्या जाने मां और मां के त्याग को.’’  ‘‘रितिका क्या तुम ने बात करने की तमीज छोड़ दी,’’ रोहन ने चिल्लाते हुए कहा.

‘‘पापा, मैं ने तो सिर्फ बात करने की तमीज छोड़ी है, किंतु आप ने तो हम सब को छोड़ दिया,’’ और सिसकते हुए रितिका अपने जख्म को बिना देखे चली गई.  दोनों का मूड खराब हो गया था. दोनों वापस घर आ गए. दूसरे दिन रोहन अपने  औफिस चला गया. शालिनी के कानों में रितिका के कहे शब्द हथौड़े की तरह पड़ रहे थे. ‘जानती हो मां क्या होती है? तुम ने तो बस छीना है… तुम ने मेरे पापा को छीना है, हमारे घर की सुखशांति छीनी है.’

‘‘छीनी है… छीनी है… छीनी है… हां मैं ने अपनी सहेली का घर उजाड़ा है… उसे बरबाद कर दिया है, मैं दोषी हूं,’’ एकाएक शालिनी अपना सिर पकड़ कर जोरजोर से चिल्लाई.

तभी अचानक रोहन आ गया. बोला, ‘‘क्या हुआ शालू, तुम चिल्ला क्यों रही थीं? क्यों परेशान लग रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं बस यों ही कुछ पुरानी यादें याद हो आई थीं. मगर तुम कैसे आ गए?’’

‘‘वे अपने कुछ जरूरी कागजात घर भूल गया था… शालिनी लिफाफे में कुछ कागज थे… तुम ने देखे क्या?’’

‘‘नहीं तो? कहां रखे थे?’’

‘‘अलमारी में थे. जरा देखो तो,’’ रोहन ने कहा और फिर सोफे पर बैठ गया. शालिनी बैडरूम की तरफ थी. थोड़ी दूर ही चली थी कि गिर पड़ी.

‘‘अरे, क्या हुआ?’’ रोहन तेजी से उस की तरफ लपका. शालिनी को उठा कर बैड पर लिटाया और पानी ला कर उस के चेहरे पर छींटे मारने लगा. शालिनी ने धीरे से आंखें खोलीं.

‘‘क्या हुआ शालू? तबीयत खराब थी तो मुझे बताया होता. मैं पहले तुम्हें डाक्टर के पास ले जाता. खैर, कोई बात नहीं, अब चलते हैं.’’

‘‘नहीं रोहन, मुझे नहीं जाना डाक्टर के पास. कोई खास बात नहीं है… मैं ठीक हूं.’’

रोहन उस का माथा सहलाने लगा, ‘‘देखो शालिनी, लगता है अकेलेपन की वजह से तुम्हारी तबीयत खराब हो गई है… कुछ व्यस्त रहा करो.’’

‘‘रोहन मैं ने बहुत गलत काम किया है न… बहुत बड़ी गलती की है.’’

‘‘कौन सी गलती शालू?’’

‘‘मैं ने अपनी सहेली का पति छीना… उस का घर उजाड़ा दिया… उस की हाय लगेगी मुझे.’’

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‘‘हम ने कोई गलत काम नहीं किया है शालू… हम ने प्यार किया है… दोनों एकसाथ जीवन गुजारना चाहते हैं… शादी की है क्या गलत किया है? मैं ने तो रश्मि को भी कहा था कि वह हमारे साथ रहे. क्या 2 पत्नियां एकसाथ नहीं रह सकतीं और यदि नहीं तो हम क्या कर सकते हैं? मैं तो उस का खर्चा भी उठाने को तैयार था, किंतु वह ज्यादा स्वाभिमानी बनना चाहती है तो उस में हमारा क्या दोष?’’  उस के बाद रोहन उसे समझाबुझा कर वापस अपने औफिस चला गया. शालिनी ने एक नौवल उठाया, परंतु उस का मन फिर किसी भी काम में नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन फिर किसी भी काम नहीं लगा. बारबार उसे रितिका की बात याद आ रही थी. उस का मन भी बारबार उसे ही दोषी मान रहा था. जैसेतैसे शाम हुई और रोहन औफिस से आ गया. उस ने चाय बनाई और दोनों अपनाअपना कप ले कर टैरेस में आ गए.

‘‘क्या बात है, आज कुछ परेशान दिखाई दे रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही मन नहीं लग रहा.’’

‘‘चलो तो आज कहीं घूमफिर आते हैं… तुम्हारा मन भी बहल जाएगा,’’ और फिर दोनों तैयार हो कर बाहर निकल गए. पास ही एक पार्क था. दोनों जा कर नर्म घास पर बैठ गए.

अभी कुछ देर ही हुई थी उन्हें वहां बैठे तभी एक तरफ कुछ शोर सा हुआ.  उत्सुकतावश दोनों भी वहां पहुंच गए. बड़ा ही अजीब नजारा था. एक औरत अपने पति के साथ मारपीट कर रही थी. उन्होंने कारण पूछा तो पता चला कि उस ने अपने पति को दूसरी औरत के साथ पकड़ लिया था. यह कहने को तो एक साधारण बात थी, परंतु इस बात ने शालिनी के मनमस्तिष्क पर उलटा प्रभाव डाला. उस के दिमाग में रश्मि का चेहरा घूम गया. उसे और गिल्टी महसूस होने लगी.  अब यह रोज का नियम हो गया था कि शालिनी चुपचाप अपने काम निबटा कर उदास सी रहती. उस की इस हालत से रोहन परेशान रहने लगा. जो जीवन उन्होंने चुना था वह उन्हें बजाय खुशी देने के परेशानी देने लगा और हद तो तब हुई जब शालिनी न सिर्फ डिप्रैशन में, बल्कि आक्रामक भी हो गई. छोटीछोटी बातों पर नाराज हो जाना, गुस्से में कोई भी चीज उठा कर फेंक देना उस का नियम बन गया.  एक दिन तो छोटी सी कहासुनी पर शालिनी ने कप उठा कर रोहन को दे मारा. तब रोहन को लगा कि अब कुछ ठीक नहीं है. वह उसे ले कर न्यूरोलौजिस्ट के पास गया.  डाक्टर ने शालिनी की जांच कर के कहा, ‘‘रोहन, शालिनी के दिमाग को कोई सदमा लगा है, जिस की वजह से इन की यह दशा हुई है,’’ फिर डाक्टर ने कुछ दवाएं लिखीं और कहा, ‘‘इन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखने की कोशिश करें.’’

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Serial Story: धोखा (भाग-1)

हमेशाखुद भी खुश रहने वाली तथा औरों को भी खुश रखने वाली रश्मि को न जाने आजकल क्या हुआ है कि हमेशा खोईखोई सी रहती, पूछने पर टाल जाती.  आखिर जब मुझ से रहा न गया तो एक दिन मैं उसे पकड़ कर बैठ गई और फिर पूछा, ‘‘रश्मि, आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं, बता न आखिर हुआ क्या है?’’

‘‘कुछ भी नहीं कविता, तू तो यों ही परेशान हो रही है.’’

‘‘कुछ तो हुआ है, तू बताती क्यों नहीं? देख आज मैं तुझे छोड़ने वाली नहीं.’’

‘‘जाने भी दे… अपने लिए मैं किसी को दुखी नहीं करना चाहती,’’ रश्मि ने कुछ उदास स्वर में कहा.

‘‘रश्मि, तू मुझे अब अपना नहीं मानती, ऐसा लगता है. देख हमारी दोस्ती आज की नहीं है और मरते दम तक हम दोस्त रहेंगे.’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘देख अपना दुख मुझे नहीं बताएगी तो किसे बताएगी?’’ उस के कंधे पर हाथ रखते हुए मैं ने कहा.

‘‘हां, तुझ से तो बताना पड़ेगा वरना मेरा दम घुट जाएगा,’’ रश्मि बोली, ‘‘तू तो जानती है कि क्या कुछ नहीं गुजरा मुझ पर परंतु वक्त का खेल समझ कर सब स्वीकार करती रही. रोहन 2 बच्चे दे कर मुंह मोड़ गया और दूसरी शादी कर ली. मैं ने सह लिया. सब रिश्तेदार 1-1 कर के चले गए. किसी ने भी यह नहीं सोचा कि मैं अपने 2 बच्चों के साथ कैसे जीऊंगी? क्या करूंगी? वह तो भला हो नेहा का जिन्होंने अपने पति से कह कर मुझे यह नौकरी दिलवा दी और मेरे घर की गाड़ी चल पड़ी.’’

‘‘यह तो मैं भी जानती हूं और तेरे साहस की मिसाल मैं ही नहीं, बल्कि जितने भी परिचित हैं, सब देते हैं,’’ मैं ने उसे सहारा देते हुए कहा, ‘‘पर अब जब सब कुछ ठीक हो गया, फिर तेरी उदासी की बात समझ में नहीं आ रही. इतना सब कुछ सहते हुए भी तूने अपना जीवन बड़ी जिंदादिली से जीया ही नहीं, उस के हर पल को महसूस भी किया,’’ मैं ने कहा, ‘‘अपने बच्चों के कैरियर को बहुत ऊपर पहुंचाया. यही नहीं कालोनी में अच्छी इज्जत भी कमाई. अब तो सब ठीक है, फिर क्या बात है?’’

‘‘तू ठीक कह रही है पर एक बात तो है न कि कब्र का हाल मुरदा ही जानता है,’’ उस ने कुछ हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा ऐसा क्या है? देख बहुत देर हो गई अब रुक मत.’’

रश्मि खयालों में खो गई. मानो उस का जीवन उस के सामने चलचित्र की तरह घूम रहा हो…

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रोहन का उस की जिंदगी में आना… वह उस की तरफ यों खिंचती चली गई जैसे पतंग के साथ डोर. दुनिया के रिवाज सब उस के लिए बेमानी हो गए थे. मम्मीपापा ने कितना डांटा था. जमाने की ऊंचनीच सब समझाई थी. पर वह तो जैसे दीवानी हो गई थी जैसे ही मोबाइल की घंटी बजती बस उसे रोहन ही दिखाई देता और वह पागलों की तरह दौड़ी चली जाती. पापा गुस्सा होते, मम्मी अपना वास्ता देतीं, पर उस के लिए सब बेकार था सिवा रोहन के.  एक दिन जब वह रोहन से मिलने जा रही थी तो पापा ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम नहीं मानोगी… क्या है उस आवारा लफंगे में जो तुम्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा?’’

‘‘पापा मैं उस से बहुत प्यार करती हूं और उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘बहुत पछताओगी तुम… बेटा मान जाओ वह अच्छा लड़का नहीं है,’’ पापा ने समझाते हुए कहा.

‘‘पापा वह मेरी जिंदगी है,’’ रश्मि जिद करते हुए बोली.

‘‘तो खत्म कर दो अपनी जिंदगी,’’ झल्लाते हुए पापा बोले.

‘‘क्या कह रहे हो जी? कुछ भी हो रश्मि हमारी इकलौती बेटी है,’’ मम्मी बोलीं.

‘‘उसी का तो फायदा उठा रही है… पर जीते जी कैसे कुएं में धकेल दें अपनी बेटी को?’’

‘‘पापा कुछ भी हो मैं रोहन से ही शादी करूंगी.’’

‘‘तो फिर अपना चेहरा हमें कभी न दिखाना,’’ पापा क्रोध से बोले.

‘‘ऐसा मत कहो मैं अपनी बेटी के बिना नहीं रह सकूंगी,’’ मम्मी ने सिसकते हुए कहा.

‘‘चुप रहो. तुम्हारे ही लाड़ का नतीजा हमें भुगतना पड़ रहा है,’’ पापा गरजते हुए बोले. और रश्मि सब को अनदेखा कर रोहन के साथ चली गई. बाद में पता चला कि दोनों ने शादी कर ली है और झांसी में बस गए हैं. भानू प्रताप ने अपने सीने पर पत्थर रख लिया परंतु उन की पत्नी चंद्रिका बेटी की याद में बीमार पड़ गईं और एक दिन उस की याद को अपने साथ लिए दुनिया से विदा हो गईं.   उधर रश्मि रोहन के साथ बहुत खुश थी. लेकिन जब उसे अपने मातापिता की  याद आती तो उदास हो जाती. शुरूशुरू में रोहन उस का बहुत ध्यान रखता था. समय के साथ वह 1 बेटी और 1 बेटे की मां बन गई.

कुछ दिनों से रश्मि नोट कर रही थी कि रोहन अब उस का उतना ध्यान नहीं रखता जितना पहले रखता था. कुछ दिन तो इसे हलके में लिया. सोचा शायद काम का बोझ ज्यादा है, परंतु फिर यह रोज का नियम बन गया.

‘‘रोहन, आजकल तुम बहुत व्यस्त रहने लगे हो,’’ रश्मि ने कुछ उदास हो कर कहा.

‘‘भई घर चलाना है तो काम तो करना ही पड़ेगा,’’ रोहन ने कहा.

‘‘काम तो पहले भी होता था, पर आजकल कुछ ज्यादा हो रहा है क्या?’’

रोहन टाल कर चला गया. पर आज रश्मि ने इसे कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लिया. अब तो रात को भी देर से आना रोहन का नियम बन गया था. रश्मि पूछने की कोशिश करती तो झगड़ा होने लगता.  उस दिन तो हद ही हो गई… उस की सहेली आई थी. मुसकराते हुए रश्मि ने पहले तो परिचय कराया, ‘‘रोहन, यह मेरी सहेली है. शिमला से आई है. यहां इसे कुछ काम है. करीब हफ्ता भर रहेगी.’’

‘‘रश्मि यह मेरा घर है कोई धर्मशाला नहीं जो कोई भी यहां आ कर रहे.’’

रश्मि देखती रह गई.

‘‘रोहनजी आप चिंता न करें मैं मैनेज कर लूंगी,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रहा था,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा.  सब ने इसे मजाक में ले लिया, पर रश्मि नहीं जानती थी कि उस ने अपने लिए कितनी

बड़ी खाई खोद ली है. जो रोहन रोज देर रात आता था, वह शाम की चाय घर में ही पीने लगा. शुरू में तो रश्मि खुश हुई. पर फिर धीरेधीरे उसे समझ में आने लगा कि रोहन उस के लिए नहीं बल्कि शालिनी के लिए जल्दी आता है. चाय पीने के बाद दोनों ही किसी न किसी बहाने निकल जाते. कभी बाहर से खाना खा कर आते कभी उसे आदेश दे कर बनवाते.

‘‘मम्मी, ये आंटी और कितने दिन रहने वाली हैं?’’ एक दिन रश्मि के बेटे शलभ ने पूछा.

‘‘क्यों बेटे, आंटी से तुम्हें क्या तकलीफ है?’’ रश्मि ने पूछा.

‘‘मम्मी जब देखो आप आंटी की सेवा में लगी रहती हो जैसे वे कोई नवाब हों,’’ शलभ ने कुछ चिढ़ते हुए कहा.

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‘‘हां मम्मी और वे तो कोई काम नहीं करतीं. बस पापा से बातें करती रहती हैं जैसे वे ही इस घर की मालिक हों.’’

‘‘बेटा ऐसा नहीं कहते. वे मेहमान हैं, उन्हें कुछ काम है यहां. जब हो जाएगा तो चली जाएंगी,’’ रश्मि ने बच्चों को तो दिलासा दे दिया, किंतु अपने को न समझा सकी. सारी रात बड़ी बेचैनी में काटी और फैसला किया कि सुबह शालिनी और रोहन से बात करेगी.

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Review: जानें कैसी है बॉबी देओल की Web Series ‘आश्रम’

रेटिंगः तीन

निर्माताः प्रकाश झा प्रोडक्शन

निर्देशकः प्रकाश झा

कलाकारः बॉबी देओल, चंदन राय सान्याल, अदिति सुधीर पोहणकर, दर्शन कुमार, अध्ययन सुमन.

अवधिः लगभग छह घंटे 45 मिनट, चालिस से पचास मिनट के नौ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः एमएक्स प्लेअर

राजनीति व सामाजिक मुद्दों पर बेहतरीन फिल्मों के सर्जक के रूप में पहचान रखने वाले निर्माता निर्देशक प्रकाश झा ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर कुछ दिन पहले आयी फिल्म ‘‘परीक्षा’’ने लोगों के दिलों तक अपनी पहुॅच बना ली थी, मगर यह बात उनकी ‘‘एम एक्स प्लेअर’’पर 28 अगस्त से प्रसारित वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’को लेकर नहीं कहा जा सकता. अभी ‘आश्रम’’के पहले सीजन का भाग एक ही आया है, जिसके 40 से 50 मिनट के बीच के नौ एपीसोड यानीकि लगभग पौने सात घंटे हैं.

खुद को भगवान का दर्जा देकर धर्म, अंध विश्वास व आस्था के नाम पर मासूमों की भावनाओं का हनन करने वाले धर्म के तथाकथित ठेकेदारों व उनके अनुयायियों का पर्दाफाश करने वाली वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’लेकर आए हैं प्रकाश झा. इसमें विश्वास पर आघात, शडयंत्र की राजनीति, सच्चाई के कैसे दफन किया जाता है, आदि का बेहतरीन चित्रण है.

कहानीः

कहानी शुरू होती है उत्तर भारत के एक गांव की दलित लड़की परमिंदर उर्फ पम्मी( अदिति सुधीर पोहणकर) से. जिसे कुश्ती के दंगल में विजेता होते हुए भी उसे नहीं बल्कि उंची जाति की लड़की को विजेता घोषित किया जाता है. शाम को एक शादी के लिए घोड़ी पर बैठकर उंची जति के मोहल्ले से गुजरने पर उसके भाई को उंची जाति के लोग पीट पीटकर अधमरा कर देते हैं. अस्पातल में उसका इलाज नही हो रहा है, तब निराला बाबा(बॉबी देओल) यानी कि काशीपुर वाले बाबा जी का आगमन होता है, लड़के का इलाज होता है, इससे मुख्यमंत्री सुंदरलाल हरकत में आ जाते हैं और उंची जाति के लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश देते हैं, मगर बाबा अपना पैंतरा खेलकर मामला रफादफा कर देते हैं और पम्मी उनकी भक्त हो जाती है. उधर मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार करते हुए जंगल की जमीन एक बिल्डर ‘‘मिश्रा गोबल प्रोजेक्ट’’को देते हैं, जहंा पर खुदाई में एक नर कंकाल मिलता है, पुलिस इंस्पेक्टर उजागर सिंह(दर्शन कुमार) अपने सहयोगी साधू( विक्रम कोचर) के साथ जंाच शुरू करते हैं. मुख्यमंत्री के दबाव पर उजागर सिंह को जांच से रोका जाता है. उधर पूर्व मुख्यमंत्री हुकुम सिंह(सचिन श्राफ) वहां पहुॅचकर जांच की मांग करते हैं. नर कंकाल की फोरंसिक जांच कर डाक्टर नताशा कटारिया अपनी रिपोर्ट बनाती हैं.

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पुलिस के दबाव में वह रिपोर्ट नहीं बदलती. इस नर कंकाल के मिलने से निराला बाब उर्फ काशीपुर वाले बाबा उर्फ गरीबों के बाबा परेशान हैं कि उनकी असलियत सामने न आ जाए. तो वहीं कुर्सी बचाए रखने के लिए मुख्यमंत्री सुंदर लाल, हुकुम सिंह के साथी दिलावर सहित कुछ लोगों को अपने साथ कर लेता है. अब पम्मी अपने भाई शक्ति के साथ बाबा के आश्रम में काम करते हुए वहीं रहने लगती है. मुख्यमंत्री के आदेश पर बाबा के खिलाफ जंाच जारी है. उजागर सिंह मोहिनी की हत्या की जांच कर रहा है. आई जी शर्मा जांच करते हुए बाबा सिंह की पूर्व पत्नी के पास पहुंच जाते हैं, जो कि बताती हैं कि बाबा का असली नाम मोंटी सिंह है और उनके सहयोगी भूपेंदर सिंह उर्फ भोपी(चंदन रॉय सान्याल) भी गलत काम कर रहे थे, इसलिए वह उन्हे छोड़कर अपने बेटों के साथ अलग रह रही है. काशीपुर वाले बाबा जी की पत्नी ने तीन अरब का मकान लंदन में खरीद कर देने की मांग की है, बाबा देना नहीं चाहते. अब भोपी एक गणिका यानी कि कालगर्ल लूसी की मदद से होटल के कमरे में लूसी संग आई जी शर्मा का सेक्स करते हुए वीडियो बनवाकर आई जी शर्मा को धमकाते हैं, आई जी शर्मा डरकर सारी जांच रपट मूल सबूतों के साथ बाबा के चरणों में रख देते हैं. पर बाद में खबर मिलती है कि वह आश्रम के अस्पताल में आईसीयू में भर्ती हैं.

उधर हुकुमसिंह को काशीपुर वाले बाबा जी का चुनाव में वरदहस्त चाहिए. क्योंकि बाबा जी के 44 लाख अनुयायी हैं. इसलिए आश्रम में नारी सशक्तिकरण के नाम पर आयोजित 1100 लड़कियों के सामूहिक विवाह का आयोजन होता है, जिसमें हुकुमसिंह मुख्य अतिथि बनकर आते हैं और एक करोड़ ग्यारह लाख एक सौ इक्कीस रूपए आश्रम को देते हैं. इसी समारोह में शक्ति को एक वेश्या बबिता(त्रिधा चैधरी)के साथ जबरन विवाह करना पड़ता है. फिर बंद कमरे में बाबा जी तीन करोड़ रूपए के बदले में एक सीट की दर से हुकुमसिंह को बीस सीटें जितवाकर देने का सौदा करते हैं. उधर हुकुम सिंह चालाकी से मुख्यमंत्री व मिश्रा ग्लोबल के बीच हुए भ्रष्टाचार के दस्तावेज हासिल कर मीडिया में हंगामा कर देते हैं. उजागर सिंह की जांच के चलते बाबा व भूपी खुद को फॅंसते हुए पा कर गृहमंत्री से बात कर एक हरिजन पुलिस इंस्पेक्टर हरिचरन दास का प्रमोशन करवाकर उजागर सिंह के उपर बैठवा देते हैं, जो कि उजागर सिंह के खिलाफ ही काररवाही करने लगता है. उधर आश्रम की ही लड़की कविता(अनुरीता झा ) भी इंस्पेक्टर उजागर सिंह से मिलती है, पर बाद में कविता को बंदी बनाकर आश्रम में डाल दिया जाता है. अब बाबा अपने रास्ते से डाॅक्टर नताषा व मोहिनी की बहन सुहानी को हटाने की चाल चलते है. उजागर इन्हे बचाते हुए अपनी जांच जारी रखता है. तो वहीं बाबा अपने आश्रम के साथ युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए बॉलीवुड गायक टीका सिंह(अध्ययन सुमन ) को मजबूरन अपने साथ आने पर मजबूर करते हैं.

लेखनः

वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ में प्रकाश झा ने अपनी पुरानी फिल्मों के सारे मसाले भरे हैं. पूरी सीरीज आयोध्या में तैयार किए गए एक आश्रम व आउटडोर में फिल्मायी गयी है.
इस वेब सीरीज में इस बात का उत्कृष्ट चित्रण है कि किस तरह इमानदार पुलिस अफसरो पर राजनीतिज्ञ, नौकरशाही व धर्म के ठेकेदार दबाव डालकर उन्हे उनका काम करने से रोकते है. इसमें जाति गत विभाजन का भी संुदर चित्रण है. यानी कि वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ जातिगत राजनीति के लिए अनैतिकता की गहन अंतर्धारा के साथ स्वच्छ रूपक का काम करती है. इसमें डेमोक्रेसी/लोकतंत्र पर भी कटाक्ष किया गया है. कुत्सित राजनीति का स्याह चेहरा लोगों के सामने लाने में लेखक व निर्देशक सफल रहे हैं. पहले एपीसोड में ही दर्षक समझ जाता है कि ‘काशीपुर वाले बाबा’कोई संत या महात्मा या समाज सुधारक नहीं, बल्कि एक चालाक, तेजतर्रार, धूर्त, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाला कौनमैन है. एक संवाद-‘‘एक बार जब आप आश्रम में आते हैं, तो आप कभी वापस नही जा सकते. ’ निराला बाबा और आश्रम के संबंध में बहुत कुछ कह जाता है. नारी सशक्तिकरण के नाम पर पितृसत्तात्मक सोच व सेक्स के भूखे भेड़िए क्या करते हैं, उसका भी एक आइना है.

एपीसोड नंबर पांच में पुलिस आई जी शर्मा और लूसी के बीच का पूरा प्रकरण बेवकूफी भरा है. और आई जी शर्मा को लूसी द्वारा होटल में बुलाने के बाद ही समझ में आ जाता है कि अब क्या होने वाला है. इससे दर्शक की रूचि कम होती है. यह पूरा प्रकरण महज सेक्स व बोल्ड दृश्य परोसने के लिए ही रखा गया है. बोल्ड सेक्स दृश्यों व गंदी गालियों का भरपूर समावेश किया गया है. और ऐसे दृश्य महज सेक्स को भुनाने के लिए ही रखे गए हैं, इससे फिल्मकार का नेक मकसद कमजोर हो जाता है.

सुखद बात यही है कि धर्म की आड़ में तथाकथित धर्म गुरूओं की काली दुनिया के खतरनाक रहस्य दर्शकों के सामने आते हैं और यह भी पता चलता है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते किस तरह ऐसे भ्रष्ट धर्मगुरूओं को राजनेताओं और शासन का वरदहस्त हासिल रहता है. लेकिन‘हिंदू फोबिया’वाले नाराज हो सकते हैं.

निर्देशनः

प्रकाश झा एक बेहतरीन निर्देशक हैं, इसमें कोई दो राय नही. वह इससे पहले भी राजनीति, पुलिस महकमे व आरक्षण आदि पर फिल्में बना चुके है और लोग उनकी फिल्मों के प्रश्ंासक भी है. मगर इस वेब सीरीज के कई दृश्यांे मंे प्रकाश झा की निर्देशकीय छाप नजर नही आती है. कुछ दृश्य बेवकूफी भरे व बहुत ही निराश करने वाले है. किरदार काफी हैं. कुछ किरदारों का चरित्र चित्रण कमतर नजर आता है.
कुछ एपीसोड बहुत धीमी गति से आगे बढ़ते हैं. इन्हे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.

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अभिनयः

चालाक, तेजतर्रार, धूर्त, धर्म को निजी स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाले, शांतचित्त, काॅनमैन काशीपुर वाले यानी कि निराला बाबा के किरदार में बॉबी देओल ने काफी मेहनत की है. मगर ‘सेके्रड गेम’के बाबा यानीकि पंकज त्रिपाठी से तुलना करने पर वह काफी पीछे रह जाते हैे. कई दृश्यों में वह निराश करते है. पर कुछ दृश्यों में कृटिल बाबा के रूप में उन्होने शानदार अभिनय किया है. निराला बाबा के सहयोगी और हर गलत काम को अंजाम देने के चक्रब्यूह को रचने वाले भूपेंद्र सिंह उर्फ भूपी के किरदार में चंदन राॅय सान्याल ने सशक्त अभिनय किया है. पम्मी के किरदार में अदिति सुधीर पोहरणकर के अभिनय का लोग कायल बन जाते हैं. इमानदारी से सच की तलाश में जुटे पुलिस इंस्पेक्टर उजागर सिंह अपने ही महकमे के लोगों के दबाव के चलते किस तरह अपने काम को करने में मजबूर व बेबस होता है, इसका सजीव चित्रण अपने अभिनय से दर्शन कुमार ने किया है. तो वहीं निडर व सत्य को सामने लाने के दृढ़ प्रतिज्ञ डाक्टर नताशा के किरदार में अनुप्रिया गोयंका ने शानदार अभिनय किया है. बबिता के किरदार मेे त्रिधा चैधरी लोगों का ध्यान खींचने में सफल रही है. ड्ग एडिक्ट गायक टिंका सिंह के किरदार में अध्ययन सुमन ने ठीक ठाक अभिनय किया है. विक्रम कोचर, तन्मय रंजन, जहांगीर खान व अन्य कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही हैं.

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