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‘‘तू मेरी बैस्ट फ्रैंड है या राघव की? रुखसाना मेरे पास घर छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था. शायद अब राघव की अक्ल ठिकाने आ जाएगी और वह मेरी कद्र करने लगेगा. भैयाभाभी का भी यही कहना है कि मैं ने बिलकुल ठीक किया.’’
‘‘रास्ता ढूंढ़ने से मिलता है मानसी. तूने तो बगैर सोचेसमझे वही किया जो भैयाभाभी ने तुझे करने के लिए कहा. तूने सोचा है कि तू कब तक अपने भैयाभाभी के घर में रहेगी? अभी तो वे तेरे फैसले को सही कह रहे हैं, लेकिन अगर राघव और तेरे बीच जल्दी सुलह न हुई, तो क्या तब भी वे तेरा साथ देंगे?’’
‘‘साथ क्यों नहीं देंगे? वे अब भी तो मेरा साथ दे ही रहे हैं. रुखसाना तुझे यहां आ कर देखना चाहिए भैयाभाभी और उन के दोनों बेटे किस तरह मुझ पर और मुसकान पर जान छिड़कते हैं. इस से ज्यादा मैं उन से और क्या उम्मीद करूं?’’ मानसी ने अपने मायके की तारीफ करते हुए कहा.
‘‘देखेंगे कि यह खातिरदारी और दिखावा कितने दिनों तक चलता है. एक बात याद रखना मानसी, मेहमानों की तरह मायके आई बेटी सब को अच्छी लगती, लेकिन अपना घर छोड़ कर मायके आ कर बैठी बेटी किसी को अच्छी नहीं लगती है. मेरी बात कड़वी बेशक है, मगर सच है. फिर जहां तक तेरा सवाल है, तूने तो शादी भी अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर की थी. मैं कामना करूंगी कि तुझे सही और गलत के बीच का फर्क जल्दी समझ आए,’’ कह रुखसाना ने मानसी की बात सुने बिना फोन काट दिया.
मानसी को रुखसाना पर गुस्सा आ रहा था. उस ने सोच लिया था कि अगर उसे अकड़ दिखानी है तो दिखाती रहे. अब वह उसे भी फोन नहीं करेगी.
मानसी को अपने मायके आए कई दिन हो गए थे. इतने दिनों में राघव ने एक बार भी उस से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की. उस के मन में कई बार यह खयाल आया कि रुखसाना उसे बेकार में ही डरा रही थी. भैयाभाभी का व्यवहार उस के साथ बहुत अच्छा है.
लेकिन मानसी का यह भ्रम उस दिन टूट गया जब भैयाभाभी के बेटों रौकी
और रौनी ने खेलते समय लड़ाई हो जाने पर मुसकान को धक्का दे दिया और वह 2-3 सीढि़यों से नीचे जा गिरी. मुसकान के चीखने की आवाज सुन कर मानसी वहां पहुंची तो देखा कि मुसकान जमीन पर पड़ी रो रही है और उस के घुटने से काफी खून बह रहा है.
मानसी ने उसे फौरन डाक्टर के यहां ले जा कर उस की मरहमपट्टी करवाई और फिर घर आ कर रौकी और रौनी को डांट दिया. भाभी उस दौरान शौपिंग करने गई हुई थीं. जब भाभी घर आईं तो रौकी और रौनी ने बात को मिर्चमसाला लगा कर कहा कि बूआ ने उन्हें बहुत मारा.
‘‘मानसी… मानसी…’’ भाभी को इस तरह अपना नाम ले कर चिल्लाते सुन कर मानसी फौरन अपने कमरे से बाहर आई. तब तक भैया भी औफिस से घर आ गए थे.
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‘‘क्या हुआ भाभी?’’ मानसी ने पूछा.
‘‘तुम्हारी मेरे बच्चों पर हाथ उठाने की हिम्मत कैसे हुई?’’ भाभी ने गुस्से से पूछा.
मानसी भाभी का लगाया इलजाम सुन कर चौंक गई. बोली, ‘‘भाभी, मैं ने बच्चों पर हाथ नहीं उठाया, उलटे इन्होंने ही मुसकान को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया था. उसे बहुत चोट आई है. डाक्टर के यहां ले जा कर पट्टी करानी पड़ी. बस इसीलिए मैं ने बच्चों को डांट दिया था.’’
‘‘तुम कहना क्या चाहती हो कि मेरे बच्चे झूठ बोल रहे हैं? क्या मैं इन्हें झूठ बोलना सिखाती हूं?’’ शालिनी का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था.
‘‘भाभी, मेरा यह मतलब नहीं था. अगर मैं ने बच्चों को गलती करने पर डांट दिया तो क्या गलत किया? क्या मेरा इन पर इतना भी हक नहीं है?’’ मानसी ने नरमाई से अपनी बात रखी.
‘‘नहीं, तुम्हें मेरे बच्चों को डांटने का कोई हक नहीं है. यह इन का घर है, इन के मन में जो आएगा ये वही करेंगे. इन्हें सही और गलत का पाठ पढ़ाने वाली तुम कौन होती हो? एक बात कान खोल कर सुन लो मानसी, अगर तुम्हें और तुम्हारी बेटी को मेरे घर में रहना है तो अपनी हद में रहो. अगर आज के बाद मेरे बच्चों से कुछ भी कहा तो मुझ से बुरा कोई न होगा,’’ भाभी ने मानसी को चेतावनी दी और फिर पैर पटकती हुई अपने कमरे में चली गई. भैया भी शौपिंग के बैग उठा कर भाभी के पीछेपीछे चल दिए.
मानसी अपने कमरे में आ कर धम्म से बिस्तर पर बैठ गई. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि शालिनी भाभी ने उस से किस तरह बात की. भैया वहीं खड़े सारी बातें सुन रहे थे, फिर भी उन्होंने एक बार भी भाभी को उस से इस तरह बात करने से नहीं रोका. रोकना तो दूर किसी ने एक बार यह तक नहीं पूछा कि मुसकान कैसी है.
अगले दिन से घर का माहौल बिलकुल बदल गया था. भाभी और बच्चे मानसी और मुसकान को देख कर भी अनदेखा कर रहे थे. मां तो पहले ही उस से कटीकटी सी रहती थीं. भैया भी बिना कुछ कहे औफिस चले गए. मानसी को चुप रहना ही ठीक लगा. उस ने सोचा कि शायद 1-2 दिन में सब पहले की तरह सामान्य हो जाएगा. लेकिन मानसी की यह गलतफहमी भी जल्दी दूर होने वाली थी.
कुछ ही दिनों के बाद नीरज ने नाश्ते की मेज पर उस से पूछ लिया, ‘‘मानसी, तुम ने क्या सोचा है? अब तुम्हें आगे क्या करना है?’’
‘‘भैया मैं कुछ समझी नहीं?’’
‘‘देखो मानसी, अब तुम राघव और उस के घर को तो छोड़ ही चुकी हो. फिर
बिना वजह अपने नाम के साथ उस का सरनेम जोड़े रखने का क्या फायदा. मैं ने वकील से बात कर ली है. तुम राघव से तलाक ले लो,’’ नीरज ने बड़ी सहजता से कहा.
मानसी को तो जैसे अपने भाई की बात सुन कर करंट लग गया. वह फौरन कुरसी से उठ खड़ी हुई, ‘‘तलाक, भैया यह आप क्या कह रहे हैं?’’
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‘‘इस में इतना हैरान होने वाली क्या बात है मानसी? तुम्हारे भैया ठीक ही तो कह रहे हैं,’’ शालिनी ने अपने पति की बात का समर्थन किया.
‘‘पर भाभी तलाक एक बहुत बड़ा कदम है. मैं ने इस बारे में कभी नहीं सोचा,’’ मानसी ने अपनी बात रखी.
‘‘तो अब सोच लो. वैसे भी इस रिश्ते का कोई मतलब नहीं है. तुम कितने दिनों से राघव का घर छोड़ कर हमारे घर में रह रही हो. ऐसा कब तक चलेगा? राघव से तलाक ले कर ऐलीमनी यानी निर्वाह खर्च लो और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो,’’ शालिनी ने मानसी पर दबाव बनाते हुए कहा. नीरज चुपचाप दोनों की बातें सुनता रहा.
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