सेहत वाले अचार

चावल, दाल, रोटी या परांठा, पूरीकचौरी हो या खिचड़ी, अचार हमारे खाने को और भी स्वादिष्ठ बना देता है. आमतौर पर जो पारंपरिक अचार हम खाते हैं उन में मिर्चमसाले और तेल बहुत होता है जो स्वाद  तो बढ़ा देता हे मगर सेहत को नुकसान भी पहुंचाता है. पर कुछ अचार सिर्फ स्वाद ही नहीं बढ़ाते हैं, बल्कि इन के अन्य स्वास्थ्य लाभ भी हैं.

सब्जियों के अचार

अचार का मतलब सिर्फ आम, मिर्च, अमला या कुछ अन्य फलों या सब्जियों के मसालेदार तेल में डूबा अचार नहीं होता है. जैसा कि आमतौर पर पारंपरिक अचार में होता है. सब्जियों के अचार जैसे बंदगोभी, गाजर, खीरा, बीट्स, मूली, शलगम, फूलगोभी, स्वीट ओनियन, बींस, शिमला मिर्च आदि के फर्मेटेड अचार बहुत अच्छे होते हैं. हालांकि इन्हें गरम करने पर इन का विटामिन सी कुछ हद तक नष्ट हो जाता है, मगर विटामिन बी का फायदा हमें फिर भी मिलता है. इस के साथसाथ सब्जियों में मौजूद विटामिन ए, के और फाइबर सुरक्षित रहते हैं. फर्मेटेशन से अच्छे बैक्टीरिया की संख्या बढ़ती है और खराब बैक्टीरिया की संख्या कम हो जाती है. इस प्रक्रिया में प्रोबायोटिक बनता है जिस में अच्छे बैक्टीरिया होते हैं.

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ऐसे फर्मेटेड सब्जियों के अचार सिर्फ ब्राइन (नमकीन पानी) या विनेगर से बनते हैं जिन में सब्जी के अतिरिक्त उपरोक्त विटामिंस और प्रोबायोटिक्स भी मिलते हैं. स्वाद के लिए कुछ अन्य मसाले, सोया के बीज, सरसों, लहसुन, काली मिर्च, तेजपत्ता आदि इस में मिलाए जाते हैं.

इन के लाभ

खाने में सब्जी का होना:

ये सिर्फ अचार न हो कर खाने में सब्जी की मात्रा बढ़ाते हैं. इस अचार की थोड़ी मात्रा 1/4 कप सब्जी खाने के बराबर है.

क्रैंप में लाभ:

फर्मेन्टेड अचार का जूस डिहाईड्रेशन और मांसपेशियों के क्रैंप में बहुत लाभ देता है.

एंटिऔक्साइड:

2014 में जापान में चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि अचार के प्रोबायोटिक्स स्पाइनल कैंसर के इलाज में मददगार हैं. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि निकट भविष्य में यह मनुष्य को भी लाभ दे सकेगा.

रोग में लाभ

देखा गया है कि फर्मेटेड फूड या अचार खून में शुगर स्पाइक को रोकने में सहायक होता है जिस से शुगर लैवल मैंटेन करने में मदद मिलती है. इस के अतिरिक्त अचार के बैक्टीरिया और प्रोबायोटिक्स पाचन, त्वचा, हड्डी, आंखों, स्ट्रोक और हृदय के रोग में भी लाभदायक हैं.

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थके पैरों को आराम:

फर्मेटेड पिकल्स जूस थके पैरों या रैस्टलैस पैरों को आराम देता है.

सब्जियों के गैरपारंपरिक उपरोक्त अचार से आमतौर पर आप को पौष्टिक तत्व मिलते हैं:

– रोजाना जरूरत का करीब 23% विटामिन के मिलता है जो ब्लड क्लौटिंग और हड्डी के लिए अच्छा है.

– रोजाना जरूरत का करीब 24% विटामिन ए मिलता है जो आंख, इम्यून सिस्टम और प्रैगनैंसी में लाभदायक है.

– रोजाना जरूरत का करीब 7% कैल्सियम मिलता है जो दांत और हड्डी के लिए अच्छा है.

– रोजाना जरूरत का करीब 4% विटामिन सी मिलता है जो ऐंटीऔक्सीडैंट है.

– रोजाना जरूरत का करीब 3% पोटैशियम मिलता है जो ब्लड प्रैशर, स्ट्रैस और किडनी के लिए अच्छा है. अचार में सोडियम की मात्रा अधिक होने से ब्लड प्रैशर बढ़ता है इसलिए हृदय,डायबिटीज और किडनी रोगियों के लिए यह हानिकारक है. प्रोसैस्ड पिकल्स के सेवन से गैस बनती है.

1 जून से बदले पुराने नियम, राशन कार्ड और एलपीजी समेत इन 6 चीजों में होगा बदलाव

कोरोनावायरस के चलते भारत में लॉकडाउन का चौथा चरण भी 31 मई को खत्म हो गया है, जिसके बाद एक जून से रेलवे, रसोई गैस, राशन कार्ड समेत कई सेवाएं से जुडे नियम बदलने जा रहे हैं. जहां धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने कईं छूट दी हैं तो वहीं इसके लिए कुछ सेवाओं में बदलाव का फैसला भी लिया है. आइए आपको बताते हैं कि 1 जून से किन नियमों में बदलाव होने जा रहा है…

1. वन राशन कार्ड की स्कीम होगी शुरू

भारत में एक जून से यानी आज से वन नेशन वन राशन कार्ड की सरकारी स्कीम की शुरुआत हो जाएगी. इस योजना के चलते देशभर में एक राशन कार्ड लागू होगा, जिसमें किसी भी प्रदेश में सरकारी अनाज और राशन ले सकते हैं. वहीं इसका लाभ गरीब वर्ग और प्रवासी मजदूरों को होगा. यह योजना देशभर के 20 राज्यों में लागू होगी.

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2. रसोई घर सिलेंडर के दामों में होगा बदलाव

हर महीने की एक तारीख को गैस सिलेंडर के दाम में बदलाव होता है. इसी के साथ एक जून से एलपीजी सिलेंडर के दाम में बदलाव करते हुए एक बार फिर से एलपीजी सिलेंडर के दामों में बदलाव किया जाएगा.

3. पेट्रोल-डीजल के दामों में होगी बढ़ोत्तरी

एक जून से कई राज्यों में पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी होगी. कई राज्यों ने पेट्रोल-डीजल के दाम पर वैट बढ़ाने का फैसला लिया है, जिसके चलते वैट बढ़ने से तेल के दाम बढ़ जाएंगे.

4. भारतीय रेलवे का नया फैसला

देश के विभिन्न इलाकों में मजदूर और प्रवासी फंसे लोगों को अपने घर पहुंचाने के लिए एक जून से रेलवे  200 नई यात्री मेल, एक्सप्रेस ट्रेनों की शुरुआत कर रही है, जिसके बाद अब देश में कुल 230 ट्रेनें चलेंगी. वहीं ट्रेनों के चालन के लिए टाइम टेबल भी जारी की गई है. किस स्टेशन से कितनी ट्रेनें और कौन-कौन सी ट्रेनें कितने बजे चलेंगी. साथ ही तत्काल टिकट और एडवांस रिजर्वेशन को लेकर भी नए नियम जारी कर दिए गए हैं.

5. यूपी रोडवेज की बसें चलेंगी

एक जून से यूपी रोडवेज की बसें चलने लगेंगी. इस दौरान चलने वाली बसों में यात्रियों की संख्या सीमित होगी. साथ ही बस चालकों को निर्धारित गाइडलाइंस का पालन भी करना होगा.

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6. गो एयर शुरू करेगी हवाई उड़ान

एयरलाइंस कंपनी गो एयर एक जून से अपनी सेवा दोबारा शुरू कर रही है. जहां सरकार 25 मई से देशभर में उड़ान सेवाएं शुरू करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद गो एयर को छोड़कर करीब सभी एसरलाइंस ने अपनी सेवाएं शुरू कर दी है.

बता दें, देश में दिन पर दिन कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों के मामले बढ़ते जा रहे हैं. वहीं देश की आर्थिक अर्थव्यवस्था पर भी इस लॉकडाउन का असर हुआ है, जिसके चलते कईं लोगों की नौकरियां चली गई है.

 

कहानी में समस्या ही खलनायिकी है – गुलशन ग्रोवर

हिंदी सिनेमा जगत में बैडमैन के नाम से चर्चित एक्टर गुलशन ग्रोवर किसी परिचय के मोहताज नहीं. उन्होंने बॉलीवुड के अलावा हॉलीवुड में भी अच्छा नाम कमाया है. इतना ही नहीं उन्होंने इरानियन, मलयेशियन और कनेडियन फिल्मों में भी काम किया है.

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाले गुलशन ग्रोवर ने पढाई ख़त्म करने के बाद कैरियर की शुरुआत थिएटर और स्टेज शो से किया. इसके बाद वे मुंबई आकर एक्टिंग क्लासेस ज्वाइन किये और अभिनय की तरफ मुड़े. उन्होंने हमेशा विलेन की भूमिका निभाई और अच्छा नाम कमाया. उनका फ़िल्मी सफ़र जितना सफल था उतना उनका पारिवारिक जीवन नहीं. काम के दौरान उन्होंने शादी की और एक बेटे संजय ग्रोवर के पिता बने.  उनका रिश्ता पत्नी के साथ अधिक दिनों तक नहीं चल पाया और तलाक हो गया. उन्होंने सिंगल फादर बन अपने बेटे की परवरिश की है. 400 से अधिक हिंदी फिल्मों में काम कर गुलशन ग्रोवर इन दिनों लॉकडाउन में अपने दोस्तों के साथ बातें कर समय बिता रहे है. उन्होंने गृहशोभा मैगजीन के लिए खास बात की आइये जानते है, कैसा रहा उनका फ़िल्मी सफ़र,

सवाल-लॉक डाउन में आप क्या कर समय बिता रहे है?

लॉक डाउन के इस समय को बहुत पॉजिटिवली इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा हूं. बहुत सारी किताबें जो नहीं पढ़ी, बहुत सारी फिल्में जो नहीं देखी, बहुत सारे काम जो समय की कमी की वजह से नहीं कर पाए जैसे व्यायाम करना, परिवार के लोगों के साथ समय बिताना, ज्ञानी लोगों के साथ बातचीत करना, किसी विषय पर चर्चा करना आदि है. इसमें महेश भट्ट, अक्षय कुमार, मनीषा कोईराला, मेरा क्लास मेट जस्टिस अर्जुन सीकरी, गौतम सिंहानिया, नवाज सिंहानिया, अनिल कपूर, सुनील शेट्टी, जैकी श्रॉफ आदि सभी से उनके सम्बंधित विषयों पर बातचीत कर इस लॉक डाउन के प्रभाव और उसके बाद की स्थिति को जानने की कोशिश करता हूं.

 

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#BADMAN will be back soon on silver screen in #Sooryavanshi

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सवाल-लॉक डाउन के बाद इंडस्ट्री कैसे रन करेगी इस बारें में आपकी सोच क्या है?

लॉक डाउन कोरोना संक्रमण के समस्या का समाधान नहीं, रोग फैले नहीं इसपर लगाम लगाने की एक कोशिश है, नहीं तो पूरे विश्व का इंफ्रास्ट्रक्चर फेल हो जायेगा और त्राहि-त्राहि मच जाएगी. इसके बाद इंडस्ट्री में काम शुरू होना संभव नहीं होगा, मुझे इस बात का डर है, क्योंकि दो अलग विचारधारायें इस विषय पर चल रही है, जिसमें अर्थव्यवस्था संकट सबसे बड़ी होगी. लॉक डाउन हटने के बाद बिमारी बढ़ने के चांसेस अधिक होगी, ऐसे में लोगों को समझना पड़ेगा कि लॉक डाउन में ढील के बाद वे घर से बाहर न निकले, क्योंकि इससे वे परिवार और खुद को खतरे में डाल सकते है. फिल्म इंडस्ट्री काफी समय तक शुरू नहीं हो पायेगी, क्योंकि हमारा कोई भी काम 100-150 लोगों के बिना नहीं हो सकता. शूटिंग नहीं हो पायेगी, क्योंकि ड्रेस मैन, हेयर ड्रेसर, मेकअप मैन आदि सब कलाकारों के काफी नजदीक होते है, ऐसे में काम पर आने वाले लोग स्वस्थ है कि नहीं ये जांचना बहुत मुश्किल होगा. डर-डर के शुरू होगा, पर पहले की तरह काम होने में देर होगी. मैंने सुना है कि कुछ कलाकार अभी से वैक्सीन लगाये बगैर काम पर नहीं आने की बात सोच रहे है, जिसमें सलमान खान, ऋतिक रोशन आदि है. ये अच्छी बात है, क्योंकि खुद की और दूसरों की सेहत का ख्याल रखने की आज सबको जरुरत है. समस्या सभी को होने वाली है. चरित्र एक्टर से लेकर, लाइट मैन, स्पॉट बॉय सभी के काम बंद हो चुके है. एक निर्माता को भी समस्या है, जिसने पैसे लेकर फिल्म बनायीं और उसे रिलीज नहीं कर पा रहा है. इसका उत्तर किसी के पास नहीं है. हम सब भी इसमें शामिल है, जिन्हें जमा की हुई राशि से पैसे निकालकर खर्च करने पड़ रहे है.

सवाल-आपकी 40 साल की जर्नी से आप कितने संतुष्ट है, कोई रिग्रेट रह गया है क्या?

मेरे लिए था शब्द का प्रयोग मैं नहीं कर सकता, क्योंकि अभी भी मैं जबरदस्त काम कर रहा हूं. इस समय मैं 4 बड़ी फिल्म में खलनायक की भूमिका कर रहा हूं. फिल्म सूर्यवंशी, सड़क 2, मुंबई सागा, इंडियन 2 इन सबमें मैं काम कर रहा हूं. मैं पहले की तरह उत्साहित, खुश और व्यस्त हूं. ये दुःख की घड़ी जल्दी निकल जाए, इसकी कामना करता हूं, कोई रिग्रेट नहीं है.

सवाल-आपकी इमेज बैडमैन की है, जिसकी वजह से रियल लाइफ में भी लोग आपसे डरते है, क्या किसी भी देश या शहर में आपने इसे फेस किया?

(हँसते हुए) कैरियर के शुरुआत में हर घड़ी लगातार मैंने इसे फेस किया है, क्योंकि तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नहीं थी.फिल्म देखने के बाद लोग फ़िल्मी मैगजीन से ही कलाकारों के बारें में पढ़ते थे. जब से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया लोगों के घर तक पहुंचा और उन्होंने हमारे दिनचर्या को देखा, हमारे पार्टी में जाने और सबसे मिलने की तस्वीरें देखी तो लोग हमारी असल जिंदगी से परिचित हुए. हमारे व्यक्तित्व के बारें में उनकी धारणा बदली है, लेकिन वह भी बहुत अधिक नहीं बदला है. ब्रांड का डर हमेशा बना ही रहता है. मुझे याद आता है कि मैं अमेरिका और कनाडा में शाहरुख़ खान के साथ एक शो करने गया था. कनाडा में लड़कियां हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कलाकारों से बहुत प्रेरित होती है. शाहरुख़ खान के कमरे में लड़कियां अकेले लगातार जाती आती रही और सामने की तरफ मेरा कमरा था, जैसे ही उन्हें पता चला कि गुलशन ग्रोवर का कमरा है तो लड़कियां ऑटोग्राफ या पिक्चर लेने के लिए अपने भाई, कजिन, पेरेंट्स, होटल की सिक्यूरिटी, बॉयफ्रेंड आदि के साथ आती थी, जबकि शाहरुख़ खान के साथ अकेले खूब गपशप करती थी. इसके अलावा शुरू-शुरू में जब मैं डिनर होस्ट करता था तो कई हीरोइनों की सहेलियां उन्हें अपने माँ को साथ ले जाने की सलाह देती थी. कुछ एक्ट्रेसेस के रिश्तेदार भी मेरे यहाँ पार्टी में आने से मना करते थे.

सवाल-आपका व्यक्तित्व उम्दा होने के बावजूद क्या आपने कभी हीरो बनने की कोशिश नहीं की?

मुझे पहले ही समझ में आ गया था कि हीरो की सेल्फ लाइफ थोड़ी छोटी होती है. खलनायक की भूमिका में उम्र की कोई समस्या नहीं है. किस तरह के आप दिख रहे है, उसकी समस्या नहीं है. केवल काम अच्छा होना चाहिए. जब आप पर्दे पर आये तो उस भूमिका में जंच जाए. लम्बी सेल्फ लाइफ होने के साथ साथ भूमिका भी चुनौतीपूर्ण होती है. अधिक काम करना पड़ता है और मज़ा भी आता है.

सवाल-पहले की फिल्मों मेंलार्जर देन लाइफवाली कहानी होती थी, जिसमें हीरो, हेरोइन और विलेन हुआ करता था, अब ये कम हो चुका इसकी वजह क्या मानते है?

जो समाज में हो रहा होता है कहानी वैसी ही लिखी जाती है, समाज में उस तरह के स्मगलर, डॉन, सोने के स्मगलर के दौर चले गए. अब खलनायक कोई व्यवसायी, नेता, या भला आदमी हो गया है. जिसे बाद में कहानी में पता चलता है. खलनायक का शारीरिक रूप बदल गया है, अब खलनायक कभी ऊँची नीची जाति, कभी अमीर गरीब, दो लड़की से प्यार, किससे शादी करें या न करें आदि कई विषयों पर केन्द्रित हो गया है. कहानी में समस्या ही खलनायिकी है. अभी फिर से खलनायिकी का दौर शुरू हो चुका है.

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सवाल-क्या मेसेज देना चाहते है?

इस कठिन घड़ी में जब पूरे देश में लॉक डाउन है और इस समय डॉक्टर, नर्सेज, पुलिस और सफाईकर्मी कर्मी दिनरात मेहनत कर हमारी सुरक्षा में लगे है. वे अपने जिंदगी की परवाह किये बिना काम कर रहे है. जब वे अपने घर जाते है तो डरते है कि उनकी वजह से उनके परिवार संक्रमित न हो जाय. फिर भी वे काम कर रहे है. मेरे दिल में उनके लिए बहुत सम्मान है. मैं गृहशोभा के माध्यम से ये कहना चाहता हूं कि ऐसे सभी लोग जो एस्सेंसियल सर्विस में है. सरकार उनके वेतन डबल कर देने के बारें में सोचें,  जैसा कनाडा के प्राइम मिनिस्टर ने अपने देश के लिए किया है.

सुप्रीम कोर्ट के भीतर कुछ हाईकोर्टों पर वार

सरकारी एजेंसियों को नियंत्रित व निर्देशित करतीं सरकारें देश की अदालतों को भी नियंत्रित करने की कोशिश करती रही हैं, फिर चाहे वह सैशन कोर्ट हो, हाईकोर्ट हो और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ही क्यों न हो.

अनियोजित व अचानक लगाए गए राष्ट्रव्यापी लौकडाउन के कारण रोजीरोटी छिनने से सड़क पर गिरतेपड़ते, चलतेदौड़ते, बीमार होते, भूखप्यास से मरते माइग्रेंट लेबरों की दुखदाई हालत पर चौतरफा आलोचना और फिर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से हुई किरकिरी की वजह से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तिलमिलाई हुई है. सरकार ने आलोचना करने वालों का मुंह बंद करने की कोशिश तो की ही है, न्यायपालिका से जुड़े लोगों को भी अपने निशाने पर लिया है और उन की बेहद तीखी आलोचना की है. इतना ही नहीं, उन पर निजी हमले तक किए हैं. साथ ही, कोर्टों पर भी आरोप मढ़ा है.

मालूम हो कि कि देश के 20 बहुत ही मशहूर और बड़े वकीलों ने चिट्टी लिख कर सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि माइग्रेंट लेबरों की मौजूदा अतिदयनीय स्थिति उन के मौलिक अधिकारों का हनन है. इस के साथ ही इन वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय को उस के उत्तरदायित्व का एहसास कराते हुए कहा था कि संकट की इस घड़ी में न्यायपालिका को इन मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि यह उस का संवैधानिक कर्तव्य है.

मशहूर अधिवक्ताओं की चिट्ठी के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासियों के मामले का स्वत: संज्ञान लिया. केंद्र व राज्य सरकारों को नोटिस दिए. 28 मई को सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का रवैया बहुत आक्रामक रहा.

तीखा अटैक

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस के कौल और एम आर शाह की पीठ से मुखातिब सरकार की पैरवी कर रहे सौलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखने वाले वकीलों के नाम लिए बग़ैर कहा,
“जो लोग आप के पास आते हैं, उन से ख़ुद को साबित करने के लिए कहें. वे करोड़ों में कमाते हैं, पर उन्होंने कोरोना पीड़ितों के लिए क्या किया है, उन की क्या मदद की है या उन्हें क्या दिया है? क्या उन्होंने किसी को एक रुपया भी दिया है. लोग सड़कों पर हैं, क्या वे लोग अपने एयरकंडीशंड कमरों से निकले हैं?”

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उन्होंने न्यायिक हस्तक्षेप की माँग करने वालों को ‘आरामकुरसी पर बैठा हुआ बुद्धिजीवी’ क़रार दिया, और कहा कि उन की नज़र में जज निष्पक्ष तभी होते हैं जब वे कार्यपालिका (यानी सरकार) की आलोचना करते हैं. ये मुट्ठीभर लोग पूरी न्यायपालिका को नियंत्रित करना चाहते हैं.

गिद्ध से तुलना !

सौलिसिटर जनरल मेहता ने न्याय के पेशे से जुड़े उन महत्त्वपूर्ण लोगों पर इस से भी तीखा हमला किया और उन की तुलना सूडान भुखमरी के दौरान मरते हुए बच्चे और उस के पीछे चलने वाले गिद्ध की तसवीर खींचने वाले फ़ोटोग्राफ़र केविन कार्टर से कर दी. मेहता ने कहा कि हस्तक्षेप की मांग करने वाले सभी लोगों पर बच्चे और गिद्ध की कहानी लागू होती है.

सौलिसिटर जनरल ने कहा, “एक फ़ोटोग्राफर 1993 में सूडान गया था. वहां एक गिद्ध था और एक बीमार बच्चा था. गिद्ध उस बच्चे के मरने का इंतजार कर रहा था. फोटोग्राफर ने उस दृश्य को कैमरे में कैद किया, जिसे न्यूयौर्क टाइम्स ने छापा और उस फोटोग्राफर को पुलित्ज़र पुरस्कार मिला. पुरस्कार मिलने के 4 महीने बाद उस फोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली. किसी पत्रकार ने उस फोटोग्राफर से पूछा था कि वहां कितने  गिद्ध थे तो उस ने कहा, ‘एक.’ इस पर उस पत्रकार ने तुरंत कहा था, ‘नहीं, वहां 2 गिद्ध थे, दूसरे के हाथ में कैमरा था.”

इस तर्क से यह साफ़ है कि जिन्होंने प्रवासी मज़दूरों की बुरी स्थिति पर चिंता जताई और उन के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप करने की अपील की, सौलिसिटर जनरल की नज़र में वे उस फोटोग्राफर की तरह हैं, जो गिद्ध की तरह था और जिस ने संकट का फ़ायदा उठा कर एक बड़ा पुरस्कार जीत लिया.

अदालत या राजनीतिक या निजी मंच?

बहस को आगे बढ़ाते हुए तुषार मेहता ने कहा, “विनाश की भविष्यवाणी करने वाले कुछ लोग हैं, जो ग़लत जानकारी फैलाते रहते हैं. उन के मन में राष्ट्र के लिए कोई सम्मान नहीं है.”

तुषार मेहता ने मशहूर वकील कपिल सिब्बल से तंज करते हुए पूछा, “आप ने कितने पैसे दिए?” इस पर सिब्बल ने कहा, “4 करोड़ रुपए.” बता दें कि चिट्ठी लिखने वालों में सिब्बल भी थे.

देश के जानेमाने वकील कपिल सिब्बल 2 संगठनों की तरफ से पैरवी कर रहे थे. उन्होंने कहा,”यह मानवीय त्रासदी है और इस का राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है. इसे निजी मुद्दा भी मत बनाइए.”

ज्युडीशियरी पर सीधा वार

सौलिसिटर जनरल, जो सरकार का पक्ष रख रहे थे, ने न्यायपालिका पर सीधा वार भी किया. उन्होंने कहा, “कुछ हाईकोर्ट समानांतर सरकार चला रहे हैं.” गौरतलब है कि पिछले दिनों कोरोना संकट के मद्देनजर लौकडाउन लागू किए जाने के चलते प्रवासी मज़दूरों की हुई अतिदयनीय हालत पर सुप्रीम कोर्ट ने तो दख़ल नहीं दिया लेकिन ओडिशा, गुजरात, चेन्नई, कर्नाटक हाईकोर्टों ने राज्य सरकारों को जम कर फटकार लगाई और जवाबदेही तय करने को कहा. ख़ासतौर पर गुजरात हाईकोर्ट ने 2 बार राज्य सरकार की खिंचाई की.

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बहरहाल, प्रवासी मजदूरों (माइग्रेंट लेबरों) की हालत को ले कर सुप्रीम कोर्ट में 28 मई को हुई बहस से यह साफ़ हो जाता है कि मौजूदा केंद्र सरकार के मन में न्यायपालिका के प्रति सम्मान नहीं है, उस की निष्पक्षता पर उसे संदेह है और वह उन सब का मुंह बंद करना चाहती है, जो उस की आलोचना करते हैं, वह चाहे न्यायिक संस्था ही क्यों न हो.

दिल की कई बीमारियों के इलाज में कारगर है नॉन इनवेसिव प्राकृतिक बाइपास तकनीक

बदलती जीवनशैली के साथ लोग अक्सर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. परिणामस्वरूप पिछले एक दशक में मध्यम आयु वर्ग की आबादी के बीच विभिन्न प्रकार की बीमारियां बढ़ गई हैं. डायबीटीज, उच्च रक्तचाप और मोटापा कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो हृदय रोगों के खतरे को बढ़ाती हैं. पिछले एक दशक में, न सिर्फ इन बीमारियों की संख्या दोगुनी हो गई है बल्कि ये युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही हैं.

1.7 करोड़ के साथ हर साल मरने वालों की लिस्ट में दिल की बीमारी से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है. लगभग 3.2 करोड़ भारतीय किसी न किसी प्रकार की दिल की बीमारी से परेशान रहते हैं जबकी हर साल इनमें से केवल 1.5 लाख लोग बाइपास सर्जरी करवाते हैं.

साओल हार्ट सेंटर के निदेशक, डॉक्टर बिमल छाजेड़ ने बताया कि, “आज कम उम्र के ज्यादा से ज्यादा लोग दिल की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं, जिसका कारण केवल तनाव नहीं है. इसके कई कारण हैं जैसे कि प्रदूषण, धूम्रपान, खराब डाइट, सोने की गलत आदत आदि. भारत के लोगों की ये आदतें उनमें दिल की बीमारी का खतरा बढ़ाती हैं. दरअसल, भारतीयों में दिल की बीमारी का खतरा अन्य देशों की तुलना में ज्यादा होता है. उनमें पेट और पीठ का मोटापा भी एक आम समस्या के रूप में देखा जाता है. यह मोटापा उन्हें कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ या हार्ट अटैक के करीब लेकर जाता है.”

#coronavirus: क्या महिलाओं के साथ हमदर्दी दिखा रहा है?

दिल की बीमारी के इलाज के लिए अक्सर लोग बाइपास सर्जरी और एंजियोप्लास्टी का विकल्प चुनते हैं लेकिन कई बार ये इलाज में विफल पाए गए हैं. बाइपास के इलाज के बाद व्यक्ति को फिर से बीमारी हो सकती है इसलिए कई मरीजों के लए यह सही विकल्प नहीं है. वहीं नॉन इनवेसिव इलाज जैसे कि एक्सटर्नल काउंटर पल्सेशन (ईसीपी) एक ऐसा विकल्प है जो ऐसे मरीजों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित इलाज है.

डॉक्टर बिमल छाजेड़ ने आगे बताया कि, “ईसीपी, जिसे प्राकृतिक बाइपास तकनीक के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जो बाइपास या स्टेम सेल थेरेपी की तरह ही शरीर को नई रक्त वाहिकाओं को बढ़ाने के लिए सक्षम बनाती है. इसकी मदद से मरीज जल्दी और देर तक चल सकते हैं. मरीजों का जीवन बेहतर हो जाता है जबकी टेस्ट की मदद से दिल के स्वास्थ्य का पता चलता रहता है. पारंपरिक सीएबीजी (कोरोनरी आर्टरी बाइपास ग्राफ्टिंग) में ब्रेस्टबोन को 10 इंच लंबे चीरे से अलग किया जाता है. वहीं इसकी तुलना में प्राकृतिक बाइपास तकनीक पूरी तरह नॉन इनवेसिव है, जिसमें मरीज को दर्द न के बराबर होता है और शरीर पर कोई घाव के कोई निशान भी नहीं रहते हैं. इसमें मरीज को किसी प्रकार के संक्रमण का कोई खतरा नहीं रहता और उसे अस्पताल में ज्यादा दिन रहना भी नहीं पड़ता है. इसका फायदा 3 साल से 9 साल तक मिलता है. साओल (साइंस एंड आर्ट ऑफ लिविंग) पिछले 25 सालों से दिल के मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज करता आ रहा है.”

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‘दिया तले अंधेरा’ को सच करती एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री 

धारावाहिक ‘आदत से मजबूर’ टीवी शो के चर्चित स्टार मनमीत ग्रेवाल का सुइसाइड करना और अब ‘क्राइम पेट्रोल’ फेम 25 वर्षीय अभिनेत्री प्रेक्षा मेहता का इंदौर स्थित अपने घर पर आत्महत्या करना,  पूरी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री सदमे में है. 32 साल के मनमीत के सुइसाइड की वजह पैसे की तंगी और बिल का न चुका पाना है. इधर एक्टर आशीष रॉय भी हॉस्पिटल में डायलिसिस के लिए एडमिट हुए और मोनिटरी हेल्प के लिए सोशल मीडिया से सहयोग मांग रहे है, ताकि उनको डिस्चार्ज मिले.

लॉक डाउन का लगातार बढ़ना, आम नागरिकों से लेकर सेलिब्रिटी सभी के लिए काफी संकट भरा होता जा रहा है, यहां तक कि जहां भी थोड़ी सी ढील लॉक डाउन मिल रही है, लोग कोरोना संक्रमण की परवाह किये बिना काम पर जाने के लिए मजबूर है, क्योंकि काम कर पैसे कमाने है, नहीं तो भूखों मरने की हालात पैदा हो रही है. असल में लॉक डाउन की वजह से बहुत सारे लोग आज जॉब लेस हो गए है. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की हालत तो और भी गंभीर है. जिन लोगों ने पेंडेमिक से पहले काम किया है, उनके भी पैसे नहीं मिले है. असल में टीवी इंडस्ट्री आम दिनों में पैसे शूटिंग करने के 60 या 90 दिनों बाद देती है. लॉक डाउन की वजह से कुछ प्रोडक्शन हाउस ने पैसे कलाकारों के चुका दिए है, लेकिन कुछ निर्माताओं को बहाने मिल गए है और वे पैसे देने के विषय को टालते जा रहे है. साथ ही कलाकारों को ये भी डर सताने लगा है कि आगे काम मिलने पर भी ऐसे लोग सही पारिश्रमिक देंगे या नहीं. सभी कलाकार समस्या ग्रस्त है. फाइनेंसियल क्राइसिस के बारें में क्या कहते है, ये टीवी सितारें आइये जाने उन्हीं से,

विजयेन्द्र कुमेरिया 

पिछले 2 महीने से कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन चल रहा है, ऐसे में बहुत सारें ऐसे प्रोडक्शन हाउस है जो बकाया राशि देने के बारें में लगातार बहाने बनाते जा रहे है, उनका कहना है कि उनके पास पैसे की सोर्स नहीं है, जबकि पेंडेमिक से काफी पहले कई शो ऑफ एयर हो चुके है, उन्हें उसके पैसे मिल चुके है, पर पेमेंट अभी तक नहीं मिले. जबकि कुछ अच्छे प्रोडक्शन हाउस इस हालात में भी सबके बकाये राशि का भुगतान कर रही है. काम करवाने के बाद नियम से पेमेंट देना बहुत सारे निर्माता नहीं जानते, ऐसे में वहां काम करने वालों के लिए दुःख की बात है. लॉक डाउन ने इंडस्ट्री को बुरी तरह से प्रभावित किया है. चैनल से लेकर स्पॉट बॉय सभी लोग आज पैसे के लिए मोहताज है. कुछ लोग तो इससे निकल जायेंगे, पर डेली वेज वर्कर्स के लिए अपना जीवन गुजरना मुश्किल होगा.

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विकास सेठी  

इस तरह के आपदा के लिए कोई भी तैयार नहीं था, लेकिन इससे हम सबको सीख मिली है कि हमेशा ऐसे हालात से उबरने के लिए तैयार रहना चाहिए. अभी इस समय पैसे आ नहीं रहे है.ऐसे में हमें जरुरत के अलावा किसी भी चीज पर पैसे खर्च करने के बारें में नहीं सोचना चाहिए. हालाँकि कलाकारों को एक अलग तरीके की लाइफस्टाइल मेन्टेन करने की जरुरत होती है, पर अभी उस बारें में न सोचकर जो है उसी में गुजारा करने की आवश्यकता है, क्योंकि फाइनेंसियल क्राइसिस का असर मानसिक अवस्था पड़ता है, ऐसे में अपने आसपास के दोस्त और परिवार के साथ लगातार संपर्क बनाये रखने की जरुरत है.

केतन सिंह 

अभिनेता केतन सिंह का कहना है कि लॉक डाउन और कोरोना वायरस की वजह से इंडस्ट्री की हालत गंभीर हो चुकी है. कुछ निर्माता अपने कास्ट और क्रू को पेमेंट करने के बारें में सोच रहे है, जबकि कुछ नहीं कर रहे है, उन्हें दोषी ठहराना भी ठीक नहीं होगा, क्योंकि उन्हें चैनल ने पैसे नहीं दिए है और वे आगे हमें नहीं दे पा रहे है. मुश्किल घड़ी है, जिससे सभी को मिलकर आगे निकलना है. अभिनेता मनमीत ने बहुत कड़ा कदम उठा लिया है और मैं समझ सकता हूँ कि उसने किस मानसिक दशा में ऐसा कदम उठाने पर विवश हुआ होगा. एक्टर आशीष रॉय भी ऐसा ही कलाकार है, जिसके साथ मैंने कई शो में काम किया है, आज वह भी पैसे के लिए मोहताज है. मेरा सभी से ये कहना है कि इंडस्ट्री के सारे कलाकार जो जितना भी सहायता कर सकते है आशीष के लिए करें. इसके अलावा एसोसिएशन भी आगे आकर उन कलाकारों को सहयोग दे, जो मानसिक और वित्तीय रूप से टूट चुके है, उन्हें सहारा दें और इस विपत्ति से उन्हें उबारें.

अरुण मंडोला 

मेरे एक दोस्त के पास इतने भी पैसे नहीं थे, जिससे वह कुछ दिन लॉक डाउन में खा सकें, क्योंकि प्रोडक्शन हाउस ने उसके पैसे दिए ही नहीं थे. कलाकार हमेशा सही समय पर पैसे न मिलने की वजह से परेशान रहते है और प्रोडक्शन हाउस कभी भी समय पर पैसे का भुगतान नहीं करती. शूटिंग के बाद हमें 60 से 90 दिनों बाद पैसे मिलते है, जो एक बड़ी समस्या होती है. मुंबई के खर्चे बाकी शहरों की तुलना में अधिक है. बिना कमाई के पैसे खर्च करना बहुत बड़ी मुसीबत है. एक्टर्स के लिए भी CINTAA  को कुछ नियम बनाए जाने की जरुरत है. अगर एक एक्टर देर से सेट पर पहुंचता है तो उसे निर्माता, निर्देशक अनप्रोफेशनल कहते है, लेकिन जब प्रोडक्शन हाउस देर से पैसों का भुगतान करते है तो उन्हें कोई कुछ नहीं कहता. असल में कलाकारों में एकजुटता नहीं है. पहले मनमीत, फिर प्रेक्षा ने आत्महत्या की और अब आशीष रॉय अस्पताल में है, जिसे देखने वाला कोई नहीं. हम सबको एक प्रतिनिधि रखने की जरुरत है, जो मुश्किल घड़ी में कलाकारों का साथ दे सकें.

शरद मल्होत्रा 

अभिनेता शरद मल्होत्रा का कहना है कि ये निश्चित ही मुश्किल घड़ी है. कहा जाता है कठिन समय चला जाता है, पर टफ लोग हमारे बीच रह जाते है. ये कहना मुश्किल है कि ये लॉक डाउन कब ख़त्म होगा और कब सबकुछ पटरी पर लौटेगी. सभी इस समस्या से परेशान है. किसी भी कलाकार का वित्तीय समस्या या काम न मिलने की वजह से डिप्रेशन में जाकर आत्महत्या कर लेना इंडस्ट्री के लिए अच्छी बात नहीं.

जैस्मिन भसीन 

फाइनेंस को हमेशा सही तरह से मैनेज करना जरुरी होता है. लाइफ के बारें में कुछ भी पहले से कहना संभव नहीं होता. किसी ने लॉक डाउन के बारें में सालों से सोचा नहीं होगा. कोरोना काल समाप्त होगा और काम भी शुरू होगा. तब तक सबको संयम और धीरज से रहने की जरुरत है. पैसे आपके जीवन के लिए जरुरी है, पर किसी भी कलाकार का सुइसाइड कर लेना दुखदायी है.

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रिशिना कंधारी

जीवन में उतार-चढ़ाव आते जाते रहते है. ये कुछ दिनों के लिए ही होता है. हर किसी को अपने मेंटल हेल्थ के बारें में ध्यान रखने की जरुरत है. आत्महत्या किसी भी चीज का समाधान नहीं है. पैसों की तंगी मुश्किल घड़ी होती है और ये कलाकारों के साथ घटने वाली कड़वी सच्चाई है. उम्मीद है लॉकडाउन के बाद सब कुछ थोड़े दिनों में नार्मल हो जायेगा.

कैसे पकड़ें किसी का झूठ

शाम 7 बजे प्रिया जैसे ही घर में घुसी उस की भाभी नताशा सामने खड़ी हो गई. प्रिया नजरें चुराती हुई अंदर जाने लगी, तो नताशा ने टोका, “ननद जी, जरा यह तो बताइए कि इतनी देर तक आप कहां थीं?”

“भाभी, मैं वह… एक्चुअली वह मैं… हमारी एक्स्ट्रा क्लास थी.”

“अच्छा, किस विषय की ?”

“भाभी, …वह… ‌फिजिक्स की. निभा मैम हैं न, उन्होंने कहा था कि आज शाम को एक्स्ट्रा क्लास लेंगी, तो सारी लड़कियां वहीं चली गई थीं.”

“मगर तुम्हारी सहेली तो कुछ और ही कह रही थी.”

प्रिया पर नजरें जमाए नताशा ने पूछा तो प्रिया हड़बड़ा गई. सच उस की जबान पर आ गया. “जी भाभी, मैं अपनी फ्रेंड के साथ बर्थडे पार्टी के लिए गई थी. रजनी का बर्थडे था. वही हमें जिद कर के मौल ले गई थी.”

“प्रिया, तुम मौल गई या बर्थडे पार्टी में शामिल हुई या कुछ और किया, इस से मुझे कोई प्रौब्लम नहीं है. मुझे प्रौब्लम है झूठ बोलने से. मैं कई बार पहले भी कह चुकी हूं कि मुझ से हमेशा सच बोला करो.”

“जी भाभी, आइंदा खयाल रखूंगी,” कह कर प्रिया तेजी से अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

विकास ने प्यार से पत्नी नताशा को निहारते पूछा, “नताशा, तुम्हें यह पता कैसे चल जाता है कि प्रिया झूठ बोल रही है या सच? मैं होता तो तुरंत उस की बात मान लेता कि वह एक्स्ट्रा क्लास के लिए ही गई होगी. तुम ने पहले भी कई दफा उस का झूठ पकड़ा है और एकदो बार मेरा झूठ भी. पर मैं समझ नहीं पाता कि तुम्हें पता कैसे चल जाता है?”

हंसते हुए नताशा ने कहा,” देखो विकास, झूठ पकड़ना बहुत आसान है. सामने वाला बंदा झूठ बोल रहा है या सच, इस का इशारा वह खुद देता है.”

“इशारा, वह कैसे?”

“दरअसल, सच या झूठ का अंदाजा आप उस की बौडी लैंग्वेज यानी शरीर के हावभाव से लगा सकते हैं. इस के लिए सामने वाले बंदे की बौडी लैंग्वेज पर गौर करना पड़ता है. साधारणतया बंदा सच बोल रहा है, तो बात करते समय कुछ समझाने के लिए वह अपने हाथों का उपयोग करता है. इस समय उस के हाथ काफी हिलते हैं. मगर झूठा इंसान अपने हाथों के साथसाथ पूरे शरीर को स्थिर कर लेता है.”

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नताशा की कही इस बात में काफी सचाई है. वाकई, हम झूठे इंसान को उस के हावभाव से पहचान सकते हैं. झूठ पकड़ने के लिए हाथों के अलावा कुछ और भी हावभाव हैं जिन पर गौर करना जरूरी है.

अमेरिकन बिहेवियरल एनालिस्ट (बौडी लैंग्वेज एक्सपर्ट) और ‘बौडी लैंग्वेज औफ लायर्स’ की औथर डाक्टर लिलियन ग्लास कहती हैं कि जब कोई आप से झूठ बोलता है तो उस की सांसें भारी हो जाती हैं. जब सांस की गति बदलती है तो उस का कंधा ऊपर उठता है और आवाज धीमी हो जाती है. संक्षेप में कहा जाए तो उस का अपनी सांसों पर नियंत्रण नहीं रह जाता. ऐसा उस के हार्टरेट और ब्लडफ्लो में आए परिवर्तन के कारण होता है. इस तरह के परिवर्तन नर्वस होने या तनाव में रहने पर होता है.

शरीर स्थिर कर लेना

सामान्य रूप से माना जाता है कि नर्वस व्यक्ति का शरीर अधिक हरकतें करता है, यानी वह चंचल होता है. मगर डाक्टर ग्लास कहती हैं कि आप को ऐसे लोगों पर भी ध्यान देना चाहिए जो बिलकुल स्थिर हो कर बात कर रहे हों. इसे एक तरह के न्यूरोलौजिकल फाइट का साइन माना जा सकता है, यानी व्यक्ति अंदर ही अंदर खुद से लड़ रहा है.

जब व्यक्ति सामान्य अवस्था में बातें करता है तो यह स्वभाविक है कि उस के शरीर के कुछ हिस्से खासकर हाथों में स्वत ही मूवमेंट होते हैं. मगर जब किसी शख्स ने खुद को कंट्रोल किया हुआ हो और वह बिलकुल भी हिलडुल नहीं रहा और अपने हाथों को बांध कर रखा हो तो समझ जाइए कि दाल में कुछ काला है.

विस्तार से बताना

जब कोई शख्स बिना जरूरत किसी चीज के बारे में आप को बहुत विस्तार से बताए और तो बहुत संभावना है कि वह सच नहीं बोल रहा है. डाक्टर ग्लास कहती हैं कि झूठे अकसर बहुत ज्यादा बातें करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि खुद को काफी ओपन दिखाने से सामने वाला शख्स उन पर विश्वास कर लेगा.

लगातार देखना

जब इंसान झूठ बोलता है तो नजरें नहीं मिलाता, मगर कई दफा झूठा इंसान आप से और भी ज्यादा आई कांटेक्ट बनाता है और लगातार देखता है ताकि वह आप को कंट्रोल और मैनिपुलेट कर सके. डाक्टर ग्लास कहती हैं कि जब इंसान सच कहता है तो वह कभी आप की तरफ देखता है और कभी इधरउधर. मगर एक झूठा शख्स लगातार आप की तरफ देख कर बात करेगा ताकि वह आप को काबू में कर सके.

अपने हाथ पॉकेट में रखना

वर्ष 2015 में यूनिवर्सिटी औफ मिशिगन द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि झूठे लोग अपने हाथों को आप से दूर रखते हैं. हो सकता है कि वे अपने हाथ पौकेट के अंदर या टेबल के भीतर छिपा लें. यह भी एक सिग्नल है यह समझने के लिए कि सामने वाला शख्स आप से अपनी फीलिंग्स और जानकारियां छिपा रहा है, यानी वह आप से झूठ बोल रहा है.

सहजता की कमी

अकसर देखा गया है कि झूठा व्यक्ति सहजता से नहीं बोल पाता. वह ठहरठहर कर बोलता है. दरअसल, तनाव के समय हमारा औटोमेटिक नर्वस सिस्टम लार का स्राव घटा देता है जिस से मुंह सूखने लगता है. कई बार व्यक्ति होंठों को दांतों से काटने लगता है.

शब्दों को बारबार दोहराना

अगर कोई व्यक्ति आप को कनविंस करने के लिए कुछ खास शब्दों या बात को बारबार दोहराता है तो समझ जाइए कि मामला गड़बड़ है.

हाथ फिराना

झूठ बोलने वाले व्यक्ति की पहचान यह भी होती है कि वह झूठ बोलते समय अपने गले, सिर या सीने पर बारबार हाथ फिराता है. वह अपने मुंह पर भी हाथ रखता है.

पैरों की पोजीशन में बदलाव

इंसान झूठ तभी बोलता है जब वह कुछ छिपा रहा होता है. ऐसे में जब उस से कोई सवाल पूछा जाता है तो वह झूठ बोल कर उस स्थिति से बचने की कोशिश करता है. इस दौरान वह काफी नर्वस रहता है जिस के कारण वह अपने पैरों की पोजीशन लगातार बदलता रहता है.

यह सच है कि कई दफा एक छोटा सा झूठ भी किसी रिश्ते को खत्म करने के लिए काफी होता है. फिर भी हम आमतौर पर किसी न किसी परिस्थिति में फंस कर या किसी कारणवश झूठ बोल जाते हैं. वहीँ, यह भी देखा गया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा झूठ बोलते हैं.

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यूनिवर्सिटी एम्‍हर्स्ट मैसेचेट ने 2002 में एक रिपोर्ट जारी की थी. उस के मुताबिक, 10 मिनट की बातचीत के दौरान करीब 60 फीसदी लोग झूठ बोलते हैं. इस दौरान उन की 2 या 3 बातें झूठी निकलती हैं.

ब्रिटेन की पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब झूठ बोलने की बात आती है तो महिलाओं के मुकाबले पुरुष अधिक झूठ बोलते हैं. झूठ बोलने में माहिर पुरुष आमनेसामने ज्यादा झूठ बोलते हैं, लेकिन वे सोशल मीडिया पर ऐसा बहुत कम करते हैं.

वजह कुछ भी हो और झूठ कोई भी बोल रहा हो, सीधी सी बात है कि सच सामने आ ही जाता है. और तब व्यक्ति सामने वाले की नजरों में अपना सम्मान खो देता है. इसलिए, हमें झूठ बोलने से हमेशा बचना चाहिए.

4 टिप्स: इस गरमी बेझिझक पहनें स्लीवसेस ड्रेस

गरमियों में स्लीवलेस का फैशन औन हो गया है. कई महिलाएं बिना किसी हिचक और परेशानी के स्लीवलेस टी-शर्ट, गाउन और ब्लाउज पहनती हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं जिन्हें स्लीवलेस पहनने का मन तो होता है लेकिन अंडरआर्म्स के कालेपन की वजह से वह नही पहन पाती.

अंजरआर्म्स के कालेपन के कई कारण होते हैं, कई बार बहुत ज्यादा शेव करने से, कौस्मेटिक प्रौडक्ट का इस्तेमाल करने से, डेड-सेल्स के कारण भी अंडरआर्म्स काले हो जाते हैं. इसके अलावा अगर आप बहुत तंग कपड़े पहनने से या किसी हार्मोनल इंफेक्शन की भी वजह से ऐसा होने की आशंका होती है. इसीलिए आज हम आपकी इस प्रौब्लम के लिए कुछ होममेड टिप्स बताएंगे जिससे आप गरमी में बाहर स्लीवलेस ड्रैसेज पहन पाएंगी..

  1. वैक्सिंग का करें इस्तेमाल

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शेव करने से बेहतर है कि आप अंडरआर्म्स के अनचाहे बालों को हटाने के लिए वैक्स‍िंग का इस्तेमाल करें. इससे बाल काफी अंदर से निकल जाते हैं और साथ में डेड-सेल्स भी हट जाते हैं, जिससे स्किन साफ हो जाती है.

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  1. होममेड पैक बनाकर लगाएं

आप चाहें तो अंडरआर्म्स के कालेपन को दूर करने के लिए बेसन, दही, नींबू और हल्दी का पैक बना लें. इसे रोजान 15 से 20 मिनट तक अंडरआर्म्स में लगाने से काफी फायदा होगा.

  1. अंडरआर्म्स के लिए आलू है इफेक्टिव

आलू एक नेचुरल ब्लीच है. आप चाहें तो रोजाना नहाने से पहले आलू के कुछ टुकड़े काटकर अंडरआर्म्स में रगड़ें. ऐसा करने से कालापन कम होगा.

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  1. अंडरआर्म्स की सफाई के साथ फिटकरी करेगी पसीने की बदबू कम

कई बार डियोडोरेंट के अधिक इस्तेमाल से भी अंडरआर्म्स में कालापन आ जाता है. हो सके तो इसका संयमित इस्तेमाल करें और अंडरआर्म्स की बदबू को दूर करने के लिए दूसरे घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल करें. फिटकरी से अंडरआर्म्स की सफाई करने से बदबू कम हो जाती है.

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विश्व तंबाकू निषेध दिवस: बुरे से बुरे नतीजों के बावजूद दुनिया में रोके नहीं रुक रहा धूम्रपान

इतिहास और आंकड़े देखें तो लगता है दुनिया को तंबाकू से छुटकारा पाना लगभग असंभव है. दुनिया में तंबाकू का चलन ईसा पूर्व 3000 सालों से जारी है. साल 1987 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे रोकने की एक वैश्विक रूपरेखा बनायी और 1988 से लगातार हर साल इसके लिए विश्व तंबाकू निषेध दिवस तो मनाया ही जाता है, पूरे साल भी धूम्रपान को हतोत्साहित करने के लिए तमाम तरह की कोशिशें की जाती हैं. बावजूद इसके न तो धूम्रपान करने वालों की संख्या में कोई कमी आ रही है और न ही तंबाकू की खपत में. यह तब है जबकि हर साल 80 लाख लोग धूम्रपान के चलते अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं. इनमें करीब 70 लाख लोग सीधे तौरपर तंबाकू और तंबाकू जनित उत्पादों के उपयोेग के कारण अपनी जिंदगी गंवाते हैं. जबकि 10 से 13 लाख के बीच में ऐसे लोग अपनी जान गंवाते हैं, जो खुद तो धूम्रपान नहीं करते, लेकिन धूम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि धूम्रपान दुनिया में स्वास्थ्य के नजरिये से कितना खतरनाक है?

सबसे निराशाजनक बात तो यह है कि जब से दुनिया ने 31 मई को नो टोबेको डे यानी धूम्रपान निषेध दिवस मनाना शुरु किया, उसके बाद से भी इसकी खपत में किसी तरह की कोई कमी तो आयी ही नहीं. उल्टे ये दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. साल 2000 में जहां पूरी दुनिया में सालभर में सिर्फ 3 ट्रिलियन के आसपास सिगरेटें पी जाती थीं, वहीं साल 2016 में 5,700,000,000,000 सिगरेटें बिकी थी. जबकि उसी साल सिगरेटों सहित तमाम किस्म के धूम्रपान को हतोत्साहित करने के लिए दुनियाभर में 56 बिलियन डाॅलर खर्च किये गये. दुनियाभर की सरकारों द्वारा इतनी भारी भरकम धनराशि में से एक बड़ी राशि धूम्रपान के विरूद्ध विज्ञापनों पर खर्च की गई थी. लेकिन वक्त गवाह है कि इतनी कोशिशों के बाद भी धूम्रपान में किसी किस्म की कोई कमी नहीं आयी, उल्टे दुनिया में यह लत बढ़ती ही जा रही है.

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हर साल धूम्रपान निषेध के लिए एक विशेष थीम बनायी जाती है, जिसके आधार पर धूम्रपान के विरूद्ध तमाम विज्ञापनों, प्रचार साहित्य, सेमिनारों आदि की रूपरेखा बनायी जाती है. साल 2020 की थीम है, फेफड़ों पर तंबाकू का खतरा. इस तरह देखें तो संयोग से ही सही नो टोबेको डे की थीम कोरोना से जंग लड़ने में भी मददगार है. क्योंकि कोरोना भी उन्हीं लोगों को सबसे आसानी से दबोचता है, जिनके फेफड़े कमजोर होते हैं. कहने का मतलब यह कि अगर आपके फेफड़े मजबूत होंगे तो आपको कोरोना वायरस संक्रमित नहीं कर सकता. वास्तव में हमारे फेफड़े या जिसे चिकित्सीय भाषा फुफ्फुस कहते हैं, उनका काम हमारे श्वांस तंत्र को सुचारू रूप से चलाये रखना होता है. धरती में जितने प्राणी वायुमंडल से सांस ग्रहण करते हैं, उन सबमें फेफड़ा अनिवार्य रूप में पाया जाता है; क्योंकि इसी की बदौलत कोई धरती में मौजूद आॅक्सीजन को ग्रहण करता है और कार्बनडाइक्साइड को बाहर निकालता है.
शरीर में दो फेफड़े होते हैं यानी फेफड़ा भी उन अंगों की तरह ही होता है जो हमेशा जोड़े में होते हैं मसलन- आंखें, हाथ, कान आदि. फेफड़े की दीवार दरअसल असंख्य गुहिकाओं या कैविटीज की मौजूदगी के कारण बहुत स्पंजी होती है. इसमें रक्त का शुद्धीकरण होता है. प्रत्येक फेफड़े में एक फुफ्फुस सिरा हृदय से अशुद्ध रक्त लाती है और फेफड़े में छोड़ देती है, जहां उसका शुद्धीकरण होता है. इस शुद्धीकरण का मतलब है कि रक्त में औक्सीजन मिलाया जाता है. इसके बाद उस शुद्ध रक्त को शरीर के सारे अंगों के लिए भेज दिया जाता है. इस तरह से फेफड़ों का मुख्य काम वातावरण से आॅक्सीजन लेकर उसे शरीर में घुम रहे रक्त में मिलाना होता है. साथ में शरीर के खून से कार्बनडाइक्साइड को चूस करके उसे वातावरण में छोड़ना होता है. फेफड़ों की कार्यविधि जानकर हम समझ सकते हैं कि ये हमारे स्वस्थ होने की कितनी बड़ी जरूरत हैं. लेकिन तंबाकू का अंधाधुंध सेवन हमारे फेफड़ों को खराब कर देता है. जब हम सिगरेट पीते हैं या तंबाकू को चबाकर खाते हैं तो इससे फेफड़ों का कैंसर हो जाता है, जिसमें पहले भूख कम लगनी शुरू होती है और फिर धीरे धीरे वह स्थिति आ जाती है कि हमसे एक निवाला भी नहीं खाया जाता.

सिगरेट किस कदर हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोई ऐसा शख्स नहीं है जिसे सिगरेट या तंबाकू का सेवन किसी न किसी रूप में परेशान न करता हो. भले परेशानी इतनी बड़ी न हो मसलन कैंसर न हुआ हो या और कोई भयानक नतीजे के रूप में सामने न आया हो. मगर यह तय है कि धूम्रपान कुछ न कुछ खराब जरूर करेगा. नियमित रूप से धूम्रपान करने वाले लोगों में 10 फीसदी को पक्षाघात हो जाता है. एम्फीसिमा हो जाता है जिससे पैरों की उंगलियां गलने लगती हैं. सबसे जो आम नुकसान है, वह यह है कि एक धूम्रपान करने वाला व्यक्ति धूम्रपान न करने वाले व्यक्ति के मुकाबले 5 साल पहले बूढ़ा हो जाता है. उसकी दिमागी सेहत भी बहुत अच्छी नहीं रहती.

याद्दाश्त की उन लोगों में ज्यादा समस्या होती है, जो नियमित रूप से और दशकों तक धूम्रपान करते हैं.
एक आम सिगरेट में अमूमन 9 मिलीग्राम तक निकोटीन होता है जो जलने के बाद 1 ग्राम रह जाता है, शरीर में निकोटीन सीधा नुकसान पहुंचाता है. जैसा कि हम सब जानते हैं निकोटीन अपने आपमें भले जहर नहीं है लेकिन इसमें सैकड़ों कैमिकल होते हैं जो मिलकर एक भयानक जहर निर्मित करते हैं. निकोटीन से टाॅर बनता है और यह टौर हमारे फेफड़ों की ऊपरी परत के ऊपर चढ़ जाता है. टौर की यही परत वास्तव में हमारे फेफड़ों को धीरे धीरे खत्म कर देती है.  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को तंबाकू के नुकसानों से सजग बनाने के लिए हर साल 31 मई के दिन विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाता है. इस दिन डब्ल्यूएचओ पूरी दुनिया में मजबूत फेफड़ों की सेहत के संबंध में लोगों को खूबियां गिनाता है,उनके फायदे बताता है तथा तंबाकू से होने वाले नुकसानों को उजागर करता है. इस साल मजबूत फेफड़ों की वकालत के दोहरे फायदे हैं, एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण से पीड़ित हैं और इस संक्रमण में मजबूत फेफड़े ही कोरोना से दो दो हाथ कर सकते हैं, जिन भी लोगों का फेफड़ा मजबूत है, कोरोना उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोरोना का संकट न हो तो फेफड़ों की उपयोगिता कम है.

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सच बात तो यह है कि फेफड़े हमारे स्वास्थ्य के, हमारे अस्तित्व के केंद्र बिंदु हैं. यही वजह है कि पूरी दुनिया में 31 मई के दिन मजबूत फेफड़ों की वकालत करने वाले लाखों डौक्टर सड़क में उतरकर इसका महत्व समझायेंगे. जैसा कि हम सब जानते हैं नो टोबेको डे पहली बार 7 अप्रैल 1988 को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वर्षगांठ पर मनाया गया था, लेकिन बाद में इसे 31 मई को मनाया जाने लगा. हालांकि इस दिन की जरूरत लोगों को इसके पहले से ही महसूस होने लगी थी और 1987 में ही विश्व तंबाकू निषेध दिवस की रूपरेखा ही नहीं बल्कि इसका नाम तक भी तय कर लिया गया था. हर साल 31 मई को डब्ल्यूएचओ पूरी दुनिया में तंबाकू पर पूरी तरह से निषेध की मांग करता है, इसकी वकालत करता है. लेकिन दुनियाभर की सरकारें सिर्फ कहती हैं, इस मामले में डब्ल्यूएचओ का वास्तविक साथ नहीं देतीं.

(इनपुट्स सहयोग प्रसिद्ध डाक्टर माजिद अलीम से लिया)

Naagin 4 पर कोरोना की मार: एकता कपूर ने किया शो बंद करने का ऐलान, टीम से मांगी माफी

कोरोनावायरस लॉकडाउन के चलते कई सीरियल बंद हो रहे हैं. वहीं हाल ही में खबरें थीं कि डेलीसोप क्वीन एकता कपूर (Ekta Kapoor) का सुपरनैचुरल शो ‘नागिन 4’ (Naagin 4) भी बंद होने वाला है. जबकि ‘नागिन 4’ की क्रिएटिव हेड मुक्ता धोंड (Mukta Dhond) ने इस खबर को गलत बताया था. लेकिन अब शो की प्रोड्यूसर एकता कपूर (Ekta Kapoor) ने खुद ही नागिन 4 बंद होने की घोषणा कर दी है, जिस पर शो की कास्ट ने रिएक्शन दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

वीडियो किया शेयर

वीडियो में एकता कपूर कह रही हैं कि, ‘सोशल मीडिया पर मुझसे बार-बार पूछा जा रहा है कि क्या ‘नागिन 4’ खत्म होने वाला है? क्या ‘नागिन 5’ की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं? अगर आप सबके दिमाग में ऐसे ही ख्याल आ रहे हैं तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि हम ‘नागिन 4’ को खत्म करने जा रहे हैं. ‘नागिन 4’ के ऑफएयर होते ही हम ‘नागिन 5’ की शूटिंग शुरु कर देंगे. भले ही ‘नागिन 4′ ज्यादा दिन टीवी पर न टिक पाया हो लेकिन उस शो का अंत बहुत शानदार होने वाला है.’

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कास्ट का किया शुक्रिया

आगे एकता कपूर ने बताया कि, ‘मैं ‘नागिन 4’ पर ज्यादा काम नहीं कर पाई लेकिन मैं फैंस से वादा करती हूं कि ‘नागिन 5’ आप सबको बहुत पसंद आएगा. निया शर्मा, अनीता हसनंदानी, जैस्मीन भसीन और विजेंद्र कुमेरिया जैसे सभी सितारों ने ‘नागिन 4’ में बहुत अच्छा काम किया है. मैं इन एक्टर्स का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं. मैं फैंस से बस एक बात बोलना चाहती हूं कि ‘नागिन 4′ को लेकर किसी तरह की अफवाहें न फैलाएं.’ इस वीडियो को शेयर करते हुए एकता कपूर ने लिखा है कि, ‘क्या तुम मेरे नागिनटाइन बनना पसंद करोगें?’

वीडियो पर शो की कास्ट ने दिया ये रिएक्शन

एकता कपूर की इस वीडियो को देखकर ‘नागिन 4’ अदाकारा निया शर्मा (Nia Sharma) ने लिखा, ‘आपको किसी तरह का कोई स्पष्टीकरण देने की जरुरत नहीं है। आपने बहुत सोच समझ कर ये फैसला किया है. जो भी होगा हम आपके साथ हैं. मैं दिल से आपके इस फैसले की इज्जत करती हूं.’ निया शर्मा के बाद रश्मि देसाई (Rashami Desai) ने भी एकता कपूर ने वीडियो पर कमेंट करके एकता कपूर को थैंक्यू कहा.

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बता दें, एकता कपूर ने अपनी इस वीडियो के जरिए यह भी साफ कर दिया है कि चार एपिसोड ऑनएयर होने के बाद ‘नागिन 4’ दर्शकों से अलविदा कहेगा और ‘नागिन 5’ का नया सीजन शुरू होगा.

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