तलाक के 12 अजीब कारण

देश में शादियां टूटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. किसी भी इंसान के लिए अपनी शादी को तोड़ने से ज्यादा कष्टदायक और कुछ नहीं हो सकता. यह बहुत ही मुश्किल भरा फैसला होता है. फिर भी पतिपत्नी में झगड़े के कारण पिछले 1 दशक में देश में तलाक की दर 3 गुना बढ़ गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि तलाक के अधिकांश मामलों का आधार हिंसा, जिसे कानूनी भाषा में कू्ररता कहते हैं, होती है.

बिहार के आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने शादी के 6 महीने के भीतर ही कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल दी. उन्होंने यह अर्जी कू्ररता के आधार पर डाली. सोशल मीडिया पर पोस्ट में उन्होंने अपने दर्द का इजहार भी किया था. हालांकि यहां कू्ररता को परिभाषित करना जरा मुश्किल है, क्योंकि रोटी का साइज मनमुताबिक न होना कू्ररता कैसे हो सकती है? कई बार लोग ऐसी ही अजबगजब वजहों से इतने अहम रिश्ते को खत्म करने का फैसला ले लेते हैं. देश में ढेरों ऐसे मामले हैं, जहां पति या पत्नी में से किसी एक ने किसी अजीब कारण के चलते कोर्ट में तलाक की अर्जी दे डाली या फिर ऐसा हुआ कि दोनों में से कोई एक किसी अजीब वजह से अपने साथी को परेशान करता हो और इस से तंग आ कर दूसरे साथी ने कू्ररता के आधार पर तलाक की मांग कर दी हो.

1. रिश्तेदारों का मामूली झगड़ा बना तलाक का कारण:

अहमदाबाद के गोंडल में एक पति और पत्नी शादी के चंद मिनटों में ही एकदूसरे से तलाक ले कर अलग हो गए. वर पक्ष की लड़की वालों से खाने को ले कर मामूली बहस हुई जो इतनी बढ़ गई कि बात तलाक तक आ गई. दोनों पक्षों ने अपनेअपने वकील को बुलाया और मिनटों में नवविवाहित जोड़े का तलाक हो गया.

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2. जरा सा मजाक बना तलाक की वजह:

एक कुवैती जोड़े ने कोर्ट में शादी की और कोर्टरूम से बाहर आते वक्त पत्नी का पांव फिसल गया और वह गिर पड़ी. उस का हाथ पकड़ कर उठाने के बजाय पति ने कह दिया कि बेवकूफ कहीं की. यह बात पत्नी को बहुत नागवार गुजरी. उसे लगा जिस शादी में उस की अभी इज्जत नहीं हो रही है तो आगे चल कर क्या होगी और फिर फौरन उस ने कोर्टरूम में वापस जा कर तलाक की मांग की. यह शायद इतिहास की सब से छोटी शादी होगी, क्योंकि यह शादी सिर्फ 3 मिनट ही चल पाई.

3. रोटी का साइज बना तलाक का कारण:

पिछले साल पुणे कोर्ट में एक अजीब केस आया. इस में तलाक की मांग कर रही पत्नी के अनुसार उस का पति उसे एक खास साइज की रोटी बनाने को कहता था. रोटी उस से छोटी या बड़ी होने पर पत्नी को सजा मिलती. यहां तक कि घरबाहर के कामों के लिए पत्नी को ऐक्सेल शीट भरनी होती थी, जिस में काम हुआ या नहीं जैसे कालम थे.

4. पार्टी बना तलाक का कारण:

मुंबई हाई कोर्ट ने 2011 में एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिस में एक भारतीय नौसैनिक को तलाक की इजाजत दे दी गई थी. उस ने अपनी पत्नी पर लगातार पार्टी करने का आरोप लगाया था. 42 साल के उस आदमी की शादी 1999 में हुई थी और वह भी मस्ती के लिए पार्टियों में जाने का आदी था. तभी कोर्ट ने कहा कि यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि महिला ने उस आदमी को किसी प्रकार से शारीरिक या मानसिक हिंसा का शिकार बनाया.

5. पैंटशर्ट बनी तलाक का कारण:

मुंबई में एक आदमी ने अपनी पत्नी को पोशाक पहनने के आधार पर कू्ररता का आरोप लगाते हुए तलाक मांगा. कथित तौर पर वह आदमी अपनी पत्नी से इसलिए नाराज था, क्योंकि वह काम पर पारंपरिक भारतीय पोशाक पहनने के बजाय पैंट और शर्ट पहन कर जाती थी. एक ?फैमिली कोर्ट ने तलाक का आदेश जारी किया, लेकिन मुंबई कोर्ट इस पर सहमत नहीं हुआ.

6. मुंहासे बने तलाक का कारण:

एक पति ने अपनी पत्नी से तलाक की अपील की और कारण बताया कि उसे पत्नी के मुंहासों से सदमा झेलना पड़ रहा है. अपने तलाक की अर्जी में उस ने तर्क दया कि उस की पत्नी के चेहरे पर मुंहासे और दानों की वजह से 1998 में उसे अपने हनीमून के दौरान वैवाहिक संबंध बनाने में रुकावटें आई थी. पति के पक्ष में फैसला देते हुए फैमिली कोर्ट ने कहा कि बेशक स्थिति पत्नी के लिए बहुत दुखद है, लेकिन यह पति के लिए भी बहुत सदमा पहुंचाने वाली है. कोर्ट ने कहा कि महिला ने अपनी बीमारी के बारे में पति को न बता कर अपने पति के साथ फ्रौड किया. लेकिन जब यह मामला मुंबई हाई कोर्ट में पहुंचा तो वहां खारिज हो गया.

7. अधिक सैक्स की मांग बना तलाक का कारण:

दुनियाभर में आमतौर पर यौन असंतुष्टि तलाक का कारण बनती है. लेकिन मुंबई में एक शख्स ने अपनी पत्नी से इस आधार पर तलाक की मांग की, क्योंकि उस की पत्नी बहुत अधिक सैक्स की मांग थी. अपनी तलाक की अर्जी में उस ने अपनी पत्नी के बारे में कहा कि जब से शादी हुई है वह बहुत अधिक सैक्स और इस के प्रति कभी न संतुष्ट होने वाली महिला रही. उस ने आरोप लगाया कि वह सैक्स के लिए तब भी मजबूर करती थी जब वह बीमार होता था और मना करने पर दूसरे पुरुष के साथ सोने की धमकी देती थी. मुंबई के एक फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला दिया और पत्नी के पेश न होने पर उसे तलाक की इजाजत दे दी.

8. चाय बनाने से मना करना बना तलाक का कारण:

इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक मामला आया, जिस में पत्नी के अपने पति के दोस्तों के लिए चाय बनाने से मना करने पर पति ने तलाकनामा दायर कर दिया. शादी के डेढ़ महीने बाद ही पति इस बात पर भड़क गया. उस का कहना था कि पत्नी का उस के दोस्तों की खातिरदारी करने से मना करना बहुत बड़ी कू्ररता है. इस के अलावा पति को बिना बताए पत्नी ने गर्भपात भी करवा लिया था. बात 1980 की है, जिस में पति को तलाक की मंजूरी मिल गई थी.

9. गुलमंजन बना तलाक का कारण:

बाराबंकी में दहेज और गुलमंजन की आदत के चलते एक नवविवाहिता को उस के पति ने बेरहमी से पीटा और तलाक दे कर घर से भाग गया.

सब्जी के लिए 30 रुपए मांगना बना तलाक का कारण: एक महिला ने अपने पति से सब्जी खरीदने के लिए 30 रुपए मांगे तो गुस्से में आ कर पति ने पत्नी को तलाक दे दिया और उस से पहले उस ने पत्नी की जम कर पिटाई की.

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पत्नी का साफसुथरा नहीं रहना बना तलाक का कारण: 1 साल पहले हुई शादी में एक पति का कहना है कि उस की पत्नी कईकई दिनों तक नहाती नहीं है और न ही बाल धोती है. उस के बदन से बदबू आती है, जिस के कारण उस के साथ रहना मुश्किल हो रहा है. यही नहीं, घर के कामों में भी वह हाथ नहीं बांटती है. वहीं पत्नी का कहना है कि वह अपने मायके में ऐसे ही रहती थी.

10. करवाचौथ न मनाना बना तलाक का कारण:

चंडीगढ़ में एक व्यक्ति ने कोर्ट में पत्नी के करवाचौथ न मनाने पर तलाक की अर्जी दे दी. उस का कहना था कि उस के ऐसा करने से उसे और परिवार को तकलीफ हुई है. ऐसे कई मामले पंजाब और हरियाणा से लगातार आए, जिन पर कोर्ट ने साफ कहा कि करवाचौथ न मनाना या फिर किसी एक साथी का शादी की सालगिरह मनाने जैसी बातों पर यकीन न होना तलाक का आधार बिलकुल नहीं हो सकता है.

11. मीट न बनाना बना तलाक का कारण:

एक पति को अपनी पत्नी इसलिए नहीं भाई, क्योंकि उस के हाथों में मां के हाथों जैसा स्वाद नहीं था. ?2012 में यह मामला मुंबई कोर्ट में आया. यहां पति ने अपनी पत्नी से तलाक की इसलिए मांग की, क्योंकि वह उस की मां की तरह स्वादिष्ठ खाना और मीट नहीं बना

सकती थी. पति का कहना था कि वह इतना खराब खाना बनाती है कि कोई भी उलटी कर दे. ऐसे में साथ रहना मुमकिन नहीं.

12. भाषा बनी तलाक का कारण:

फिल्म ‘टू स्टेटस’ की तर्ज पर मुंबई में रहने वाले एक उत्तर और दक्षिण भारतीय युवकयुवती शादी के बंधन में बंध तो गए, लेकिन जल्द ही दोनों में भाषा को ले कर अनबन होने लगी. पत्नी को गुस्सा आता था जब दक्षिण भारतीय पति अपने डाक्टर या सीए से अपनी भाषा में बात करता था. गुस्सा इतना बढ़ गया कि पत्नी ने तलाक की अर्जी दे दी.

#coronavirus: घर से ऐसे करें कीटाणुओं का सफाया

मशहूर कहावत है कि चैरिटी बिगिंस एट होम, लेकिन आज के माहौल को देख कर कहा जा सकता है कि सेफ्टी बिगिंस एट होम. यानी घर साफ है तो आप भी सुरक्षित हैं और कोई भी बीमारी, वायरस, बैक्टीरिया आप को बीमार नहीं कर सकता, इसलिए घर के हर कोने, हर जगह को साफ करें. तभी आप खुद को व अपने परिवार को बीमारियों से बचा पाएंगे.

घर में किस तरह के कीटाणु

अकसर हम यही सोचते हैं कि हमारा घर साफ होता है और बाहर ही गंदगी का जमावड़ा होता है, जिस की वजह से हम बीमार होते हैं. जब कि सचाई इस के विपरीत है. अनेक शोधों में यह साबित हुआ है कि घर में बाहर से ज्यादा बैक्टीरिया, फंगी के होने का डर रहता है. जिस का कारण हम खुद हैं, क्योंकि हम जिस घर में रहते हैं, जिन चीजों को छूते हैं, जिन के संपर्क में ज्यादा आते हैं उन की सफाई का खास ध्यान नहीं रखते तो घर में पनपने वाले बैक्टीरिया जिस में यीस्ट, मोल्ड, कैलिफोर्म बैक्टीरिया, सालमोनेला, इकोली शामिल हैं का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है. इन से बचाव हेतु घर की अच्छे से सफाई करना बहुत जरूरी है.

किन जगहों पर पनपते कीटाणु

डिश स्पौंज: हर किचन में आप को डिश स्पौंज मिल जाएगा, जिस से न सिर्फ आप बरतन बल्कि किचन का स्लैब भी साफ करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस में हर समय थोड़ा बहुत खाना रहने के कारण इस में मौइस्चर रहने से यह बैक्टीरिया को पनपने देता है. जो सिर्फ बीमारियों को न्यौता देने का काम करता है.

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नैशनल सैनिटाइजेशन फाउंडेशन के अनुसार, स्पौंज में मोल्ड, यीस्ट और कैलिफोर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो पेट दर्द, उल्टी और डायरिया का कारण बनते हैं. कई बार इस के कारण इंफैक्शन इतना अधिक बढ़ जाता है कि जान पर आ बनती है.

अगर आप खुद को इस से बचाना चाहते हैं तो हर हफ्ते इसे बदलते रहें और इसे इस तरह साफ करें कि इस में बैक्टीरिया शरण न ले पाएं. क्योंकि स्पौंज में बैक्टीरिया काफी तेजी से बढ़ते हैं.

किचन सिंक: रिसर्च में यह साबित हुआ है कि किचन सिंक में कैलिफोर्म बैक्टीरिया और मोल्ड होता है. और यही वह जगह है जहां सब से ज्यादा बैक्टीरिया के पैदा होने के चांसेज होते हैं, क्योंकि सिंक में हम फल, सब्जियों को धोने के साथसाथ खाने के बर्तनों को भी साफ करते हैं. इसलिए जरूरी है कि सिंक को हर रोज बैक्टीरिया को नष्ट करने वाले डिश वाशर से अच्छे से साफ करें.

टूथब्रश होल्डर: आप सोच रहे होंगे कि वाशरूम तो बंद ही रहता है तो फिर वहां बैक्टीरिया कैसे पहुंच सकते हैं तो आप को बता दें कि जो टूथब्रश होल्डर होता है वो टौयलेट सीट के काफी करीब होता है तो जब भी हम फ्लश करते हैं तो हवा में मौजूद कण उड़ कर होल्डर पर जा कर चिपक जाते हैं. जिस से कैलिफोर्म बैक्टीरिया पनपने लगते हैं.

यूनिवर्सिटी औफ मैनचेस्टर की रिसर्च के अनुसार, बिना ढके हुए टूथब्रश पर 10 मिलियन से भी ज्यादा बैक्टीरिया, वायरस होते हैं.

इसलिए जब भी होल्डर में से ब्रश यूज करें तो उसे वाश करना न भूलें. और हफ्ते में एक बार टूथब्रश होल्डर को लिक्विड सोप से जरूर साफ करें.

बाथरूम फौसेट हैंडल्स: नैशनल सैनिटाइजेशन फाउंडेशन की स्टडी के अनुसार, 27 परसैंट फौसेट हैंडल्स में स्टैफ और 9% में कैलिफौर्म बैक्टीरिया पनपते हैं और जब भी हम उसे हाथ लगाते हैं तो उस से वह हमारे संपर्क में आ कर हमें बीमार कर देते हैं. इसलिए जरूरी है कि इसे रोजाना डिसइनफैक्टैंट स्प्रे या फिर वाइप्स से साफ करें.

स्टोव नोब्स: जब भी हम किचन को साफ करते हैं तो हम स्टोव नोब्स को साफ करना भूल जाते हैं. जबकि स्टोव नोब्स में मोल्ड, यीस्ट और कैलिफौर्म बैक्टीरिया होता है. इसलिए हर हफ्ते इसे साबुन के पानी से साफ करें.

काउंटर टौप: घर में किचन ऐसी जगह होती है जहां पर महिलाएं सब से अधिक समय बिताती हैं. लेकिन अकसर हम यह भूल कर देते हैं कि जब भी बाहर से कोई सामान लाते हैं तो उसे नीचे रखने के बजाय काउंटर टौप पर ही रख देते हैं और फिर उसे बिना साफ किए खाना बनाना शुरू कर देते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि इस पर कैलिफौर्म बैक्टीरिया और मोल्ड होता है. जो आप को बीमार करने का कारण बन सकता है. इसलिए जब भी खाना बनाएं तो काउंटर टौप को डिसइनफैक्टैंट स्प्रे या वाइप्स से क्लीन जरूर करें. ताकि बैक्टीरिया खाने के जरिए आप के शरीर में प्रवेश न कर सके.

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किचन की सफाई का खास ध्यान कैसे रखें

घर में किचन वह जगह होती है, जहां हम न सिर्फ स्वादिष्ठ डिश बनाते हैं, बल्कि अपने परिवार को हैल्थी डिशेस बना कर उन की सेहत का खास ध्यान भी रखते हैं. अगर खाना बनाते वक्त स्लैब या यूज की गई चीजें साफ नहीं की गईं तो आप कीटाणुओं को ही न्यौता देंगे. इसलिए किचन की साफसफाई का खास ध्यान रखें. इस के लिए आप ये प्रयास कर सकते.

चाकू को दिन में एक बार गरम पानी में साबुन मिला कर उस से साफ करें. इस से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं.

सब्जियों के कटिंग बोर्ड को यूज करने से पहले उसे गीले कपड़े से साफ जरूर करें. इस से उस में लगी गंदगी दूर होगी.

डस्टबिन को हर 3-4 दिन बाद साफ करें, क्योंकि उस में कूड़ा फेंकने के कारण कीटाणु हो जाते हैं. जिन्हें नष्ट करना बहुत जरूरी है.

गैस, बरतन स्टैंड व अन्य स्टैंड्स को हफ्ते में एक दिन जरूर साफ करें.

माइक्रोवेव व चिमनी की अच्छे से सफाई करें, क्योंकि उस पर जमी गंदगी के खाने में गिरने से आप बीमार हो सकते हैं.

दालों व मसालों के डब्बों को 15 दिन में साफ करें. इस तरह आप अपनी किचन को साफ रख सकते हैं.

क्यों जरूरी है होम सैनिटाइजेशन

घर ही वह जगह होती है, जहां हमें सब से ज्यादा सुकून मिलता है. ऐसे में अगर घर साफ सुथरा होगा तो वह अच्छा दिखेगा, घर में सकारात्मक ऊर्जा का भी अहसास होगा.

कीटाणुओं को दूर करें

जान लें कि कीटाणु हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर बना कर हमें बीमार करने का काम करता है. अगर हम रोजाना डिसइंफैक्टैंट स्प्रे से घर को साफ करते हैं तो हम कीटाणुओं से खुद को दूर रख कर खुद को व अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं.

इंडोर एयर को करें साफ

घर की हवा अगर साफ नहीं होगी तो आप को ऐलर्जी या फिर अस्थमा हो सकता है. लेकिन होम सैनिटाइजेशन से घर की हवा साफ होती है. इस के लिए आप वैक्यूम क्लीनर का यूज कर सकते हैं. यह कारपेट, सोफा इत्यादि पर जमी धूल व गंदगी को हटा कर वातावरण को साफ करता है. एयर प्यूरीफायर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

हर कोई यही चाहता है कि उस का परिवार हमेशा हैल्थी रहे और इस में घर की साफसफाई का अहम रोल होता है. साथ ही घर को नियमित साफ करते रहने से चीजें फैली हुए नहीं रहतीं और समय पर मिल भी जाती हैं. इसलिए घर की साफसफाई का हमेशा ध्यान रखें. सब्जी कटिंग बोर्ड पर टौयलेट सीट से 200 गुणा ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं. इसलिए बोर्ड की साफसफाई का खास ध्यान रखें. यही नहीं बल्कि फ्रिज का डोर भी साफ करना न भूलें, क्योंकि हम उस में बिना हाथ धोए उसे छूते हुए कच्चे फल व सब्जियां रखते हैं. इसलिए सावधान हो जाएं.

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2009 में यूनिवर्सिटी औफ कोलोराडो के अध्ययन के अनुसार, 30% शावर हैड्स में मैकोबैक्टेरियम अवियम होता है, जो सांस लेने में दिक्कत पैदा करने का कारण बनता है.

नारी भोग्या: कल भी आज भी

लेखिका- रोचिका अरुण शर्मा   

गत दिसंबर माह में एक अखबार में खबर छपी कि मुंबई के एक नामी इंटरनैशनल विद्यालय के 13-14 साल के कुछ छात्रों के चैट किसी अभिभावक ने पढ़े तो उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. यह बात उन्होंने विद्यालय के प्रधानाचार्य तक पहुंचाई और अखबार ने मीडिया तक. वैसे तो यह वीडियो उतना ज्यादा फौरवर्ड न हो सका, क्योंकि मामला नामी स्कूल का था तो हो सकता है किसी तरह दबा दिया गया हो. इतनी बात भी आगे इसलिए पहुंच सकी, क्योंकि सैलिब्रिटीज के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं और इन में से ही एक सैलिब्रिटी की मां ने चैट देख कर मामला प्रधानाचार्य तक पहुंचाया.

बात कुछ इस तरह से थी कि कक्षा 7-8 के विद्यार्थी जिन के पास अपने पर्सनल फोन भी हैं उन के सामूहिक चैट में बेहद चौंकाने वाले शब्दों समेत चौंकाने वाली बातें की गई थी. इन छात्रों ने अपनी सहपाठी लड़कियों को अपनी मापतोल के हिसाब से कुछ रेटिंग दी. किसी सैलिब्रिटीज की बेटी के लिए जब रेटिंग तय की जा रही थी तो छात्रों ने यह भी कहा कि शी इज टू फ्लैट और उस रेटिंग के हिसाब से सब से अच्छी लड़की का बलात्कार किस तरह करेंगे, यह भी तय किया गया. सिर्फ बलात्कार ही नहीं अपितु किस तरह से इस कुकृत्य के लिए रौड का इस्तेमाल किया जाएगा, यह भी डिस्कस किया गया. सामूहिक बलात्कार का नाम उन्होंने ‘गैंगबैंग’ दिया. ये छात्र ‘वन नाइट स्टैंड’ के बारे में बात करते हैं. किस छात्रा के साथ वन नाइट स्टैंड करना है बताते हैं. वे छात्राओं के प्राइवेट पार्ट्स और बौडी कौंटूर यानि रूपरेखा के बारे में बात करते हैं.

इस के बाद भी प्रिंसिपल ने कोई बड़ा ऐक्शन नहीं लिया, बस छात्रों को मामूली सजा दी गई और लड़कियों को निर्देश दिए गए कि अंगदिखाऊ कपड़े न पहना करें. इस पर उन की मांएं गुस्सा हो गईं और मामला मीडिया तक पहुंच गया.

वीडियो पर लोगों की राय

जब यह वीडियो व्हाट्सऐप पर देखा गया तो जितने मुंह उतनी बातें. कुछ लोगों ने बड़ा ही आश्चर्य जताया कि इतने बड़े रुतबे वाले लोगों के बच्चे ऐसे? ये कामवालियों और आयाओं के भरोसे पले बच्चे हैं. मातापिता ने बस पैदा कर के छोड़ दिया है.

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कुछ लोगों का कहना था कि यह बड़े ही शर्म की बात है कि लड़कों की गलती की सजा लड़कियों को दी जा रही है कि वे ढंग के कपड़े पहनें.

वहीं कुछ लोगों ने कहा कि इस कच्ची उम्र में स्मार्ट फोन और इंटरनैट के इस्तेमाल से बच्चे न जाने क्याक्या सीख लेते हैं और उस का बुरा असर उन की मानसिकता पर पड़ता है.

मनोचिकित्सक दीपक रहेजा कहते हैं, ‘‘ऐसा कहने और करने वाले छात्र सोचते हैं कि वे मैचो मैन हैं, वे बड़े हो गए हैं. बच्चे अनुशासित नहीं हुए हैं. बच्चे जिस तरह से सैक्स की बातें स्कूल में कर रहे हैं यह चिंता का विषय है. पेरैंटिंग के मानदंड बदल चुके हैं. इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है. हम अपनेआप को मौडर्न समझ रहे हैं, किंतु ये बातें स्कूल, पासपड़ोस में हो रही हैं तो अब समय बेटों और बेटियों को समझाने का है.’’?

अमीरी या इंटरनैट का दोष नहीं

क्या गांवों में इस तरह की बातें नहीं होती हैं? समस्या इंटरनैटजनित नहीं है. समस्या है कि लड़कियों को सैक्स औब्जैक्ट मान लिया गया है. यहां बात अमीर और गरीब परिवारों की नहीं है. निर्भया बलात्कार कांड में बलात्कारी अमीर नहीं थे और न ही डाक्टर प्रियंका रैड्डी के बलात्कारी अमीर थे. समस्या यह है कि स्त्री को सदियों से भोग की वस्तु माना जा रहा है. वह पुरुष पर ही आश्रित रहती आई है.

इस विषय पर जब कुछ महिलाओं से बात की गई जिन में कुछ महिलाएं ग्रामीण इलाकों से भी ताल्लुक रखती थीं तो कुछ नए केस सामने आए:

– एक महिला जो अब 40 साल की उम्र की है बताया कि वह मात्र दूसरी कक्षा में थी, उस का परिवार एक संयुक्त परिवार था. उस की मां को जब कहीं बाहर जाना होता तो बच्चों को उन के दादाजी के भरोसे छोड़ जाती. मौका पा कर दादाजी उस के कपड़ों में हाथ डाला करते. वह कुछ समझ नहीं पाती थी. फिर कभीकभी उस का बड़ा भाई जो उस समय 7 या 8वीं में रहा होगा वह भी उस के कपड़ों में हाथ डालने लगा. उसे ये सब अच्छा नहीं लगता था. वह अपने भाई से कहती भी थी कि मुझे अच्छा नहीं लगता पर कोई उस की सुनने वाला नहीं था. एक दिन उस के भाई ने यही हरकत बड़ी बहन के साथ कर दी. तब बड़ी बहन ने अपने पिता को बताया और घर वाले यह सब सुन कर हैरान रह गए.

– ऐसा ही केस करीब 27 वर्ष पुराना है जब एक मां ने अपनी बेटी को पढ़ने के लिए दूसरे शहर में अपनी बहन के पास भेजा और वह भी नौकरी करती थी. एक दिन बहन जब किसी कारण से जल्दी घर पहुंच गई तो देखा उस के पति और भानजी संदिग्ध अवस्था में थे. यह मौसा और भानजी के बीच का केस है. कालेज में पढ़ने वाली लड़की और विवाहित मौसा, सोच कर ही आश्चर्य होता है. किंतु यह सत्य है घर में रहने वाली लड़की को उस मौसा ने भोग की वस्तु समझा और अपनी पत्नी की गैरमौजूदगी में उस का भोग भी किया.

– एक महिला अपने आसपास की घटना बताते हुए कहती है कि उस के एक पड़ोसी का बेटा किसी कारणवश बच्चे पैदा करने में असक्षम था. सास ने पहले ससुर और बहू के संबंध बनवाए ताकि घर को एक वारिस मिल जाए. उस के बाद बहू को ससुर से दूर रहने की हिदायत दे दी गई. मामला तब सामने आया जब बहू हर बात में सास की अवमानना कर ससुर की सपोर्ट लेने लगी. सास को यह बात जमी नहीं और फिर ससुरबहू की पोलपट्टी खोल दी.

– 45 वर्षीय एक महिला का कहना है कि उस के यहां रिश्तेदारों का अकसर आनाजाना लगा रहता था. उस की मां नौकरी करती थी. मां की गैरमौजूदगी में उस के एक रिश्तेदार जोकि पिता की उम्र के थे उस से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते थे. एक दिन वह बहुत डर गई और कुछ कह न पाई तो वे बोले कि अच्छा पहले मोमबत्ती इस्तेमाल कर के देख लो. आज भी वह उस घटना को याद कर के खीज उठती है और अपने स्त्री होने पर दुखी होती है.

– 50 वर्षीय एक महिला का कहना है कि उस के एक मामा ने जब वह मात्र चौथी कक्षा में थी तो उस से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की. उस की मां ने देख भी लिया, किंतु कोई ऐक्शन नहीं लिया, क्योंकि परिवार की इज्जत का सवाल था. यही कोशिश मामा ने दोबारा की जब वह 10वीं कक्षा में थी. उस महिला ने अपनी मां को इस बारे में बताया, किंतु तब भी कोई ऐक्शन नहीं लिया गया. तीसरी बार उस के मामा ने फिर कोशिश की जब वह कालेज में थी और मामा भी विवाहित था. तब तक वह सयानी हो चुकी थी और उस ने मामा को लताड़ा. तब मामा ने परिवार की इज्जत और घर में कलेश होने का वास्ता देते हुए कहा कि किसी को न बताना.

साफ समझ में आता है कि मामा उसे भोग की वस्तु समझ भोगना तो चाहता ही?था और साथ ही यह भी चाहता था कि बात दबी रहे. उस की मां भी रिश्ते निभाने में भरोसा रखती थी, किंतु अपनी बेटी के प्रति कैजुअल थी. एक मां यदि अपनी बेटी के मर्म को न समझे तो फिर इस समाज में स्त्री तो भोग्या ही रहेगी.

– ऐसा ही एक केस 50 वर्षीय महिला ने बताया कि जब वह 8वीं कक्षा में थी, तो स्कूल की तरफ से पिकनिक में गई थी, उस के अध्यापक ने उसे बस में अपनी गोद में बैठा लिया और फिर सब से नजर बचा कर उस के अंगों से छेड़छाड़ करता रहा. जब उस ने घर आ कर अपनी मां को बताया कि वह अध्यापक की गोद में बैठी थी तो मां को समझते देर न लगी. किंतु मां ने उसे समझा दिया कि किसी को न कहना वरना इज्जत खराब होगी और पिता को मालूम हुआ तो वे स्कूल जा कर झगड़ा न कर बैठे.

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यहां मैं ने सभी मामले 40 पार की महिलाओं के लिए है ताकि यह समझा जा सके कि उस जमाने में इंटरनैट नहीं था, न ही महिलाएं आज जितने अंगदिखाऊ कपड़े पहनती थीं. यहां तक कि स्कूलों में भी सलवारकुरता और दुपट्टा की यूनिफौर्म होती थी. स्कूल भी कोएड कम ही होते थे. लेकिन इस तरह की छेड़छाड़ घर में रह रहे परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों द्वारा की जाती थी या फिर जहां कहीं भी लड़की जाए वहां आसपास के लोंगों द्वारा. मैं कहूंगी मौलेस्टर या रैपिस्ट घर के सदस्य या नजदीकी पहचान वाले ही होते थे.

चूंकि अब महिलाएं बाहर निकलने लगी है तो घर के बाहर भी उन के साथ ऐसे हादसे होने लगे और मीडिया उन्हें दिखाने लगा तो लोगों की नजर इन हादसों पर पड़ने लगी.

धार्मिक ग्रंथों में नारी

बात करें धार्मिक ग्रंथों की तो महाभारत में द्रौपदी के 5 पति थे. जबकि यदि स्त्री अपनी मरजी से 5 पति बना ले तो वह कुलटा और कलंकिनी बता दी जाती है. फिर धर्मराज युधिष्ठिर ने जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया और उसे हार गए. दुशाशन ने उस का चीर हरण किया. ये सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि स्त्री उस समय भी भोग्य ही थी. हालांकि उस समय भी युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी को जुए में दांव पर लगाना और फिर उसे हार जाना, फिर दुशाशन द्वारा चीरहरण गलत ही ठहराया गया पर स्त्री भोग्या तब भी थी, इस तरह की घटनाएं तब भी होती थीं.

सीता का उस जमाने में रावण द्वारा अपहरण करना भी इसी तरह का उदाहरण है. रावण भी तो परस्त्री का भोग करना चाहता था, जबकि सीता इस के लिए राजी न हुई. सीता को इस के लिए देवी माना गया और रावण को राक्षस यानि कि उस जमाने में भी स्त्री यदि परपुरुष के साथ संबंध रखे तो कलंकिनी और कुलक्षिणी अन्यथा देवी. किंतु पुरुष 3 रानियां रख सकते थे जोकि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पिता दशरथ ने रची थीं. राम को मर्यादा पुरुषोत्तम माना गया, क्योंकि उन्होंने एक पत्नी व्रत का पालन किया.

हो सकता है अन्य धर्मों के ग्रंथों में भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएं, क्योंकि मुझे इन की जानकारी है सो यहां इन का जिक्र किया.

इतिहास में भी नारी भोग्या

अब यदि इतिहास खंगाला जाए तो रानी पद्मावती ने जौहर किया था. इस के पीछे कारण यही थे कि अल्लाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती को अपने हरम में शामिल करना चाहता था इसलिए उस ने चित्तौड़ पर हमला बोल दिया. इस युद्ध में राव रतन सिंह मारे गए और तत्पश्चात रानी समेत हजारो दासियों ने जौहर किया, क्योंकि वे भलीभांति समझती थीं कि खिलजी के पास जा कर वे मात्र एक भोग्या बन कर रह जाएंगी और यह उसे मंजूर नहीं था. इसीलिए आज भी रानी पद्मावती का नाम वीरांगना के रूप में लिया जाता है.

इसी प्रकार जब ब्रिटिशर्स झांसी के महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मी बाई से झांसी हड़प लेना चाहते थे तो रानी ने इन का डट कर मुकाबला किया और कहा कि मैं अपनी झांसी हरगिज न दूंगी. यहां भी जाहिर है स्त्री को कमजोर समझ उस पर आक्रमण किया गया. जब तक राजा रहे ब्रिटिशर्स उन के मित्र रहे. निश्चित रूप से यदि रानी लक्ष्मीबाई मुकाबला न करती और घुटने टेक देती तो यह ब्रिटिशर्स की दासी बन कर रहती.

नारी की आज स्थिति

विलियम डैलीरिंयल की नई पुस्तक ‘अनार्की’ जो ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने के समय पर इतिहास को समेटती है. हर सेना के आम लोगों की औरतों के बलात्कारों के किस्सों से भरी है और इन में ब्रिटिश सैनिक भी शामिल हैं.

आज भी विवाह बाद पुरुष घर का मुखिया होता है. अच्छी बात है कि वह घर का मुखिया है, किंतु स्त्री को समान हक नहीं मिलता है. उसे तो पुरुष की अनुगामिनी ही बनना होता है. अन्यथा बिगड़ैल, चरित्रहीन बहू या पत्नी का खिताब दे दिया जाता है. स्त्री का विवाह होते ही उस का सरनेम और गोत्र बदल जाता है. उसे सभी धार्मिक आयोजनों में ससुराल के नियमों का पालन करना होता है.

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यहां तक कि नौकरीपेशा महिलाएं दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं. वे रुपए कमा कर तो लाती ही हैं, उस के बाद भी परिवार के हर सदस्य की जिम्मेदारी तो उसी पर डाल दी जाती है. वहां मैं एक बात और कहना चाहूंगी कि अपने पति के बराबर कमाने वाली महिला भी अपने पति की अनुमति और पसंदनापसंद का खयाल रखना अपना फर्ज समझती है. उसे पतिव्रता कहलाना अच्छा लगता है. इस मानसिकता के पीछे यही कारण है कि वह अपने घरों में ऐसे ही माहौल में पलीबढ़ी है. हर धार्मिक आयोजन में उसे पति, भाई, पिता पर आश्रित रख कर उस का स्थान पीछे ही रखा गया है.

यदि बात करें जायदाद में हिस्से की तो उस में भी बेटों का ही मुख्य स्थान है. आजकल कानून तो बन गए कि बेटियों का भी जायदाद में हक है, किंतु उन्हें खुशी से यह हक दिया नहीं जाता है. यदि वे अपने हक की मांग करें तो भाई और मातापिता उन्हें यह हक देने से कतराते हैं और नाराज भी होते हैं. कुल मिला कर मायके से उन के संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.

एक और बहुत ही अहम और जरूरी बात यह है कि जब महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं तो अकसर दोष उन का ही दिखाया जाता है. डा. प्रियंका रेड्डी बलात्कार केस में भी यही हुआ. उन की हत्या के बाद यह सुनने में आया कि जब वे दूर गई थीं तो घर क्यों फोन किया पुलिस को क्यों नहीं?

दोष भी अकसर महिलाओं द्वारा दिया जाता है. यदि महिला अपने पुरुष सहकर्मी के साथ मेलजोल बढ़ाती है तो भी उसे भोग की वस्तु समझ लिया जाता है. यह कोई सोच ही नहीं पाता कि जिस तरह एक महिला की सहेली महिला उन के आपसी विचार मेल खाने से बन सकती है, उसी प्रकार यदि एक महिला और पुरुष के विचार मेल खाएं तो वे भी मित्र हो सकते हैं. अकसर इस रिश्ते को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और कई बार पुरुष मित्र इस नजदीकी का फायदा भी उठा लेना चाहता है. मीटू केसेज इसी सोच का परिणाम है.

कुछ दिनों पहले ही एक नई बात पता चली. मैट्रो सिटी के पढ़ेलिखे, नौकरीपेशा मातापिता की पौश सोसायटी में रहने वाली एक 11 वर्षीय बेटी से जब यह पूछा गया कि तुम्हारे मातापिता तुम पर हाथ उठाते हैं तो उस का जवाब था कि मां तो नहीं उठातीं, किंतु पिताजी उठाते हैं.

जब पूछा कि क्यों? तो उस ने जवाब दिया कि यदि मैं मेकअप करूं तब.

तो तुम्हारी मां मेकअप नहीं करतीं? उस का जवाब था कि नहीं मेरे पिता को पसंद नहीं, इसलिए वे भी नहीं करतीं?

कहने का मतलब यह है कि 11 वर्षीय बच्ची जो सजनासंवरना चाहती है, एक औरत जो पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर घर चलाने में मदद करती है उसे सजनेसंवरने के लिए अपने पति की अनुमति की आवश्यकता है और उस के इस शौक पर उस के घर में रोक है. यहीं यदि 15 वर्ष का बेटा मातापिता को सम्मान न दे और शराब पी कर आए, टैटू बनवा आए या बाल कलर करवा ले तो मातापिता सिर पीटने के सिवा कुछ नहीं कर सकते.

नैट और गैजेट्स कहां दोषी

ऐसे में यदि बड़े रसूखदार परिवारों और स्कूलों के बच्चे इस तरह का आचरण करते हैं. सैक्स चैट करते हैं तो यह कोई नई बात नहीं है. उन्होंने अपने घरों, आसपास और आज के मीडिया की मार्फत जो देखासीखा उसी का प्रतिफल है यह चौंका देने वाली चैट. हम इंटरनैट और मोबाइल फोन या उन की अमीरी, आया और नौकरों को दोष दे कर अपना पल्ला झाड़ सकते हैं.

क्या हैं समाधान

– सब से पहले घरों में हरेक सदस्य को परिवार की महिलाओं के लिए उचित सम्मानजनक व्यवहार रखना होगा. यदि परिवार का मुखिया पत्नी को कमतर समझेगा तो वही आचरण बच्चे भी अपनाएंगे.

– परिवार में भाईबहन दोनों को एक सा दर्जा

दिया जाए.

– ससुराल में ननद और बहू का स्थान बराबर का हो. लड़की के मातापिता और लड़के के मातापिता का भेद खत्म किया जाए. अकसर बेटी के ससुराल में उस के पिता को जबतब कोसा जाता है, उन्हें तुच्छ दिखाने की कोशिश की जाती है, जबतब उन से माफी मंगवाई जाती है.

– यदि लड़केलड़की की सगाई होने के बाद टूट जाए तो लड़की को दोषी करार दिया जाता है और यदि विवाह उपरांत तलाक हो जाए तो भी पत्नी को ही दोषी माना जाता है. यहां यह दोष कोई अन्य नहीं देता उस के अपने मायके वाले ही देते हैं और कोसते भी हैं कि तुम ने ससुराल मे एडजस्ट नहीं किया. यहां मै कहूंगी कोई भी लड़की अपनी गृहस्थी में स्वयं आग नहीं लगाएगी. वह भी सामाजिक नियमों को समझती है. किंतु आत्मसम्मान तो उस का भी होता है.

शारीरिक रूप से पुरुष, स्त्री की अपेक्षा ज्यादा बलवान है. उस का भी पुरुष को फायदा मिलता है, किंतु यदि मानसिकता बदल दी जाए तो सुधार होने के आसार है अन्यथा इस तरह के चैट आम बात थी है और रहेगी.

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कोरोनावायरस के साइलैंट कैरियर्स

कोरोना वायरस का फैलाने में मूक वाहक यानि साइलैंट कैरियर्स का भी योगदान रहा है. कुछ लोगों में खांसी, बुखार या कोई अन्य कोरोना का सिम्पटम नहीं होता है पर वे इस वायरस के प्रसार में सक्षम हैं. वाशिंगटन डीसी की जौर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अनुसार यह संभव है. ऐसे साइलैंट कैरियर्स बेरोकटोक समाज में अपने दोस्तों या प्रियजनों से मिलते हैं और अनजाने में कोरोना का प्रसार करते हैं. हालांकि कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद रोग के सिम्पटम नहीं होना अचंभित करता है फिर भी यह सच है.

कितने लोग मूक वाहक श्रेणी में आते हैं और उन में कितनों का कोरोना के फैलाव में योगदान है, इस बारे में कुछ निश्चित नहीं है और इस दिशा में और ज्यादा जानने का प्रयास हो रहा है. मूक वाहकों को 3 श्रेणियों में रख कर इस का विश्लेषण किया गया है.

एसिम्पटोमैटिक: ये वे लोग हैं जिन के शरीर में कोरोना वायरस है पर उन में कभी भी वायरस का कोई लक्षण नहीं प्रकट होता है. चीन से मिले एक आंकड़े के अनुसार कहना है कि covid-19 के रोगियों के संपर्क में रहे कुछ लोगों में वायरस का कोई भी सिम्पटम नहीं रहा था. ऐसे लोगों का टेस्ट करने पर वे पौजिटिव पाए गए. फिर बाद में भी फौलोअप के लिए उन्हें बुला कर टेस्ट करने पर भी उन में वायरस का कोई सिम्पटम नहीं था. 1 अप्रैल को ङ्ख॥हृ के अनुसार चीन में ऐसे 24 लोगों की जांच करने पर करीब 3 सप्ताह बाद तक भी 25% में कोई सिम्पटम नहीं था और आश्चर्य की बात तो यह है कि उन की औसत उम्र 14 साल थी.

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प्रीसिम्पटोमैटिक: ये वे व्यक्ति हैं जो वायरस से संक्रमित हैं और वायरस को शरीर के अंदर पाल रहे हैं पर उन में रोग का कोई भी सिम्पटम नहीं होता है. वायरस से ग्रस्त होने पर भी इन मेंकोई लक्षण नहीं होता है क्योंकि वायरस के लक्षण 5 दिनों से 14 दिनों के बाद देखने को मिलते हैं. वायरस पकड़ने और उस के सिम्पटम दिखने के बीच का समय प्रीसिम्पटोमैटिक पीरियड है. इस बीच ऐसे लोगों से भी वायरस का प्रसार होता है.

1 अप्रैल की एक न्यूज कौंफ्रैंस में ङ्ख॥हृ के प्रवक्ता के अनुसार कोरोना वायरस के सिम्पटम दिखने के बाद उस से संक्रमण फैलने का सब से ज्यादा खतरा है. पर प्रीसिम्पटोमैटिक लोगों से भी वायरस के संक्रमण के प्रमाण मिले हैं, खास कर लक्षण प्रकट होने से एक से तीन दिन पहले एसिम्पटोमैटिक की तुलना में प्रीसिम्पटोमैटिक लोगों की संख्या ज्यादा है. 75% एसिम्पटोमैटिक लोग, जो बिना सिम्पटम के भी पौजिटिव पाए गए, बाद में प्रीसिम्पटोमैटिक होते हैं और आगे चल कर फौलोअप टेस्ट के दौरान उन में वायरस के लक्षण देखने को मिले. इस का मतलब यह हुआ कि सिम्पटम न होने के कारण जिन्हें आइसोलेट नहीं किया गया उन से भी वायरस का प्रसार हुआ है.

वैरी माइल्ड सिम्पटोमैटिक: ये वे लोग हैं जिन में वायरस के शुरुआती मामूली सिम्पटम दिखने के बावजूद आइसोलेट नहीं किए गए और अन्य लोगों के संपर्क में रहे हैं. इन से संक्रमित लोग जल्द ही covid-19 से बीमार हुए और दोनों पौजिटिव पाए गए. ऐसे लोगों ने कोरोना के लक्षणों को न समझ कोई अन्य गड़बड़ी की और गलतफहमी में अनजाने में वायरस फैलाया. ध्यान रहे यहां उन की चर्चा नहीं हो रही है जिन्होंने जानबूझ कर रोग छिपाए-ऐसे भी कुछ मामले हैं.

उलझन: यह मालूम करना लगभग असंभव है कि हमारे बीच कितने साइलैंट कैरियर्स हैं और समाज में covid-19 रोग जानेअनजाने फैला रहे हैं. अमेरिका के वाशिंगटन प्रांत में सब से पहले कोरोना वायरस मिला था, वहां के अनेक लोगों का टेस्ट करने पर 56% ऐसे लोग पौजिटिव पाए गए जिन में वायरस का कोई सिम्पटम मौजूद न था. फरवरी महीने में जापान में डायमंड प्रिंसेज क्रूज के यात्रियों में कुछ एसिम्पटोमैटिक रह गए. चीन और सिंगापुर से मिली रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के प्रसार में करीब 13% योगदान प्रीसिम्पटोमैटिक लोगों का था.

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जौर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अनुसार साइलेंट कैरियर्स से कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में अभी और जानने और समझने की जरूरत है. फिर भी इस से ग्रस्त कुछ लोग स्वस्थ दिखने और महसूस करने के बावजूद अन्य स्वस्थ लोगों में वायरस फैला सकते हैं और उन में स्पष्ट सिम्पटम शुरू से ही दिखते हैं.

एक नया साइलेंट कैरियर

मृत व्यक्ति से भी संक्रमण का खतरा: कोरोना के पहले भी ऐसा मामला देखने को मिला था. इस से मिलतेजुलते वायरस जिस के चलते इबोला रोग हुआ था, उस के मृत रोगी से संक्रमण हुआ था और ङ्ख॥हृ ने इस के लिए दिशानिर्देश भी जारी किया था. 13 अप्रैल के एक समाचार के अनुसार थाईलैंड में इस तरह का पहला केस नजर आया है जिस में कोरोना से संक्रमित एक मृत रोगी के द्वारा एक डाक्टर में संक्रमण पाया गया है. यह एक अतिरिक्त चिंता का विषय है क्योंकि मृत व्यक्ति के पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार तक जो उस के शरीर के संपर्क में आएंगे उन में भी संक्रमण की आशंका रहेगी. अभी तक यह भी ठीक से पता नहीं लग सका है कि मृत शरीर में वायरस कब तक जीवित रह सकता है.

फिलहाल इस का कोई समाधान भी नहीं है और असमंजस की स्थिति बनी हुई है. सैद्धांतिक रूप से सभी लोगों का वायरस टेस्ट करना होगा जो लगभग असंभव है. इस के अतिरिक्त एक सिंगल टेस्ट से इस के बारे में ठीक से नहीं कहा जा सकता है. अभी तक इस से बचने की कोई सटीक दवा या टीका भी उपलब्ध नहीं है. एक भी वायरस पौजिटिव व्यक्ति समाज में वायरस फैला सकता है. इसलिए वर्तमान में सफाई आदि समुचित सुरक्षा के उपाए अपनाना ही उचित है.

Hyundai #WhyWeLoveTheVenue: Visibility

एक SUV खरीदने का मुख्य कारण है SUV द्वारा दी जाने वाली सड़क के कमांडिंग व्यू . हुंडई वेन्यू एक ऊंचाई वाली एडजस्टेबल ड्राइवर सीट के साथ आता है. जिसे आप अपने अनुसार सेट कर सकते है और सामने का दृश्य आसानी से देख सकते है. 

वेन्यू पर एक ए-पिलर और एक लंबे ग्रीनहाउस के आकार का पिलर्स है जिसका मतलब है की जो भी आपके आस-पास हो रहा है वो 360 डिग्री का दृश्य है.

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इसके अलावा इस में एक ड्राइवर रियर व्यू मॉनिटर भी है, जो बैक साइड कैमरे का लाभ उठाता है, अगर पीछे सीट में तीन लंबे कद वाले यात्री भी बैठे है, तो आपको हमेशा पता चल जाएगा कि कार के पीछे क्या हो रहा है.

हुंडई आता है एक्सीलेंट विजिबिलिटी के साथ. #WhyWeLoveTheVenue

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देहरी के भीतर: भाग-2

लेखिका: नीलम राकेश

परिवार का हर सदस्य किसी न किसी बहाने से मुझे ऊपर की मंजिल दिखाने से कतरा जाता था. ऐसा मुझे लग रहा था. मैं भी बारबार नहीं कह पा रही थी. पर मेरा डर और जिज्ञासा दोनों ही बढ़ती जा रही थी.
उस दिन सुबहसुबह मैं बीच के दालान में आई तो पहली मंजिल पर रहने वाली लीना मिल गई.
“भाभी, मैं आप को ही बुलाने आ रही थी. आज आप लंच मेरे साथ करिएगा तो मुझे खुशी होगी. जब से

आप की शादी हुई है मैं आप को बुलाना चाह रही थी.”
“मैं मां से…”
मेरी बात बीच में काट कर लीना बोली, “आंटीजी से व तारा से मेरी बात हो गई है. मैं आप की प्रतीक्षा करूंगी. मैं ने आप के लिए कुछ खास बनाया है.”
“ठीक है‌.” मैं मुसकराई.

हम तीनों गपशप के साथ पिज्जा का आनंद ले रहे थे कि कमरे का दरवाजा अचानक धीरे से खुला और एक हाथ जिस में एक डब्बा और फूलों का गुलदस्ता था दिखाई दिया. मेरी तो सांस ही अटक गई. लीना और तारा ने एकदूसरे की ओर देखा. तब तक उस हाथ से जुड़ा शरीर भी सामने आ गया और लीना व तारा दोनों एक साथ बोलीं, “ओह तुम हो. डरा ही दिया था.”
सौम्य, जो कि इसी मंजिल पर दूसरी ओर रहता था हड़बड़ाया सा खड़ा था.
“यह…मैं…” वह कुछ बोल नहीं पा रहा था.
“हां, हां, सौम्य लाओ. भाभी यह गुलदस्ता मैं ने आप के लिए मंगाया था. आप पहली बार आई हैं न.” लीना ने बात संभाली और आगे बढ़ कर सौम्य से सामान ले लिया.
“ये…इमरती…” अटकता हुआ सौम्य बोला.
दोनों की हड़बड़ाहट छिपाए नहीं छिप रही थी.

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“आओ बैठो सौम्य.” तारा बोली.
“भाभी, यहां की इमरती मशहूर है. इसलिए खास आप के लिए मंगवाई है.” कहते हुए लीना ने दोनों चीजें मुझे पकड़ा दीं.
हम चारों थोड़ी देर बातें करते रहे. पर सौम्य सामान्य नहीं हो पा रहा था . उस की नजर मेरे पास रखे गुलदस्ते पर बारबार जा कर अटक रही थी. चलती हुई जब मैं ने गुलदस्ता उठाया तो उस से लटकता हुआ छोटा सा कार्ड उन की चुगली कर गया, जिसे मैंने धीरे से निकाल लिया और लीना को गले लगा कर धीरे से सब की नजर बचा कर उस के हाथ में पकड़ा कर बोली, “यह तुम्हारे लिए है.”
कार्ड पर लिखा था, फौर माई लव.”

धीरेधीरे तीनों किराएदार मुझ से खुलने लगे थे. लीना और सौम्य तो अपनेअपने हिस्से में अकेले ही रहते थे और उन के बीच पक रही खिचड़ी अब मेरे सामने थी. दूसरी मंजिल पर ही एक बड़े हिस्से में मोहन रहता था जो किसी बैंक में काम करता था. उस के साथ उस की माताजी रहती थीं.
दिन के खाली समय में मैं अब अकसर उन के पास थोड़ी देर के लिए चली जाती. सासूमां आजाद खयाल की थीं. ज्यादा टोकाटाकी नहीं करती थीं. बस अपने काम से काम . राजसी ठसक में ही रहती थीं. घर में भी जेवरों से लदी रहती थीं. तारा कालेज चली जाती और मांजी आराम करने तो मैं ऊपर वाली माताजी के पास जा धमकती. उन के पास ढेरों किस्से थे.
“बहु तुम तीसरी मंजिल पर गईं कभी?” एक दिन अचानक उन्होंने पूछा.
“नहीं माताजी. कोई ले ही नहीं जाता मुझे.” मेरा लहजा शिकायती भरा था.
“जाना भी मत बहू.”
“ऐसा क्या है वहां?” मैं ने पूछा तो वे अजीब निगाहों से मुझे देखने लगीं.
“बताइए न,” मैं ने जोर दिया.
“फिर कभी बताऊंगी बहू, अभी तो मुझे आराम करना है.”
मैं चली तो आई पर मुझे ऊपरी मंजिल का रहस्य जानने का रास्ता मिल गया था.

मेरे बारबार कुरेदने पर उस दिन माताजी बोलीं, “देखो बहू, किसी से कहोगी नहीं तो तुम्हें बताऊं.”
“नहीं माताजी, आप की बात मैं किसी को क्यों बताने लगी भला.” मैं उत्साहित थी.
“जानती हो ऊपर की मंजिल पर न, रात में कुछ लोग आते हैं.”
“कौन लोग? और क्यों आते हैं माताजी?”
“पता नहीं पर आते तो हैं.” माताजी बोलीं.
“आप ने देखा है?’ मैं सीधे माताजी की आंखों में देख रही थी.
“और क्या, यहां सब ने देखा है. तुम्हें  भी दिख जाएंगे जल्दी ही.” माताजी के स्वर में विश्वास था.
उसी समय लीला के कमरे की खुलने की आवाज आई.
“सुन बहू, यह लीना तुम्हें कैसी लगती है?”
“बहुत मस्त लड़की है. मुझे अच्छी लगती है.”
“बता तो जरा मेरे मोहन के लिए कैसी रहेगी?” अब माताजी मेरी आंखों में देख रही थीं.
“माता जी, आजकल शादीब्याह में बच्चों की पसंद का ध्यान रखना चाहिए. उन से ही पूछना चाहिए. आप मोहन से बात करिए. क्या पता उसे कोई लड़की पसंद हो.”
“पसंद है, तभी तो तुम से पूछ रही हूं.” माता जी बोलीं.

“मतलब, मोहन ने आप को बताया है कि उसे लीना पसंद है? उन दोनों के बीच कुछ चल रहा है?” मैं ने आश्चर्य से पूछा.
“नहीं, ऐसे कौन बताता है. मां हूं न. उस का मन पढ़ सकती हूं.” स्नेह उन की आंखों में तैर रहा था.
“फिर…?”
“तुम तो अभी बच्ची हो. पता है मोहन को हमेशा लीना की फिक्र रहती है. कुछ भी फलवल लाता है तो लीना को देने को कहता है. और यह जो दूसरा लड़का रहता है न, मुझे तो फूटी आंख नहीं भाता. जाने क्या नाम है.”
“सौम्य…”
“हां, जो भी है.” रोष स्पष्ट था.
मैं उठने लगी तो माताजी बोलीं, “सुनो, अपनी सास से कह कर इस सौम्य को निकलवा दो. मैं न बहुत अच्छा किराएदार दिलवा दूंगी. किराया भी मोटी देगा. तुम बात करो उन से.”
“अरे मैं क्या कहूंगी?” मैं चकित थी.
“कहना क्या है. कह देना तारा को गलत नजर से देखता है. तुरंत हटा देंगी.”

“पर यह सच नहीं है. बरसों से तारा से राखी बंधवाता है. बहुत मानता है उसे. सुना भी है और देखा भी है मैं ने.” मैं ने स्पष्ट किया.
“अरे तो तुम झूठ कहां बोलेगी. बस लीना की जगह तारा का नाम बदल देना.” माताजी फिर से बोलीं.
“नहींनहीं यह मुझ से नहीं होगा. मैं चलती हूं.” मैं झटके से उठ भागी और हड़बड़ाहट में सामने से आ रहे पतिदेव से टकरा गई. पूरी बात सुन कर वे बोले, “अच्छा चलो तुम्हें तीसरी मंजिल दिखाता हूं.”
मैं काफी डरीडरी ऊपर पहुंची. मेरा चेहरा देख कर पतिदेव खिलखिलाए, “इतना डरती हो, तो देखने की जिद क्यों?”
“सच बताइए इस में भूत है क्या?”
“नहीं यार, सब बकवास है. भूत होता तो मैं तुम्हें यहां लाता? भूतवूत कुछ नहीं होता…” कहते हुए उन्होंने कमरे के विशाल दरवाजे को धक्का दिया. दरवाजा आवाज के साथ खुल गया. घबराहट में मैं ने पति की कमीज पीछे से पकड़ ली. वे मुसकराए और मेरा हाथ थाम कर अंदर बढ़े. अंदर आते ही आश्चर्य से मेरा मुंह खुला का खुला रह गया. मैं एक बड़ी लाइब्रेरी के अंदर खड़ी थी. लकड़ी की नक्काशीदार अलमारियों के ऊपर खूबसूरत फ्रेम में महान क्रांतिकारियों की अनेक फोटो लगी थीं. कुछ को मैं पहचान रही थी और ज्यादातर को नहीं. एक किनारे पर मोटा गद्दा बिछा था जिस पर खूबसूरत कालीन बिछी थी और कई तकिए रखे हुए थे. मैं कल्पना कर सकती थी कि यहीं पर सब बैठते और बातचीत करते होंगे. आगे बढ़ कर पतिदेव ने एक अलमारी का दरवाजा खोल दिया. अंदर किताबें भरी पड़ी थीं.

“यह हमारे परिवार का गौरवपूर्ण इतिहास का पन्ना है जिस पर हम सब को गर्व है. यह वह स्थान है जहां नेहरू, गांधी, पटेल सरीखे महान नेता आते थे और आजादी की योजना बनाते थे. हमारे पर बाबा आजादी की लड़ाई के एक सैनिक थे. इस कमरे में कैद उन की यादें हमारी बेशकीमती धरोहर हैं.”
“और यह भूत वाली बात?”
“सब बकवास है. पहले सामने वाले भाग में दूसरे किराएदार थे.  बहुत पुराने. पर उन की नियत में खोट आ गया था. लोगों को डराने के लिए वही ऐसी अनर्गल बातें फैलाते रहते थे कि सफेद धोतीकुरते में कुछ लोग रात में तीसरी मंजिल पर आते हैं. जब पानी सिर के ऊपर हो गया तब हम ने उन्हें निकाल दिया. जब से लीना और सौम्य आए हैं सब ठीक है.”
“पर माता जी…” मैं ने बात अधूरी छोड़ दी.

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“हां माताजी थोड़ा इधरउधर की बातें करती हैं. पर उन का ज्यादा किसी से मिलनाजुलना नहीं है और उन का बेटा मोहन बहुत नेक इंसान है. सब की मदद को हमेशा तैयार रहता है. और उस के पिता, बाबूजी के अच्छे मित्र थे इसलिए…”
मैं सबकुछ ध्यान से सुन रही थी.
“अच्छा श्रीमतीजी, आप का डर और भ्रम दूर हुआ या फिर भूत को बुलाऊं?” हंसते हुए वे बोले.
“मैं यहां से किताबें ले कर पढ़ सकती हूं न?” अपनी झेंप छिपाते हुए मैं ने पूछा.
“हांहां, तुम मालकिन हो यहां की. सुना था तुम्हें पढ़ने का शौक है. खूब पढ़ो. चाहो तो यहां की सफाई करा के यहीं बैठ कर पढ़ो.”
“नहीं,अपने कमरे में ही पढ़ूंगी. यहां ज्यादा एकांत है.”
“ठीक है. हां एक बात याद रखना. यह सौम्य, लीना और मोहन की प्रेम कहानी उन्हें ही सुलझाने देना, तुम बीच में मत पड़ना.”
और हम एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले नीचे की ओर चल दिए, डर का भूत भाग गया था.

Vivo V19 भारत में 15 मई से बिक्री को तैयार, जानें क्या हैं खास फीचर्स

खूबियों से भरपूर स्मार्टफोन की चाहत रखनें वालों के लिए इस लॉक डाउन के बीच एक खुशखबरी आई है. वह खुशखबरी यह है की चीनी टेक कंपनी वीवो (Vivo) नें अपने  V सीरीज के माडल में लेटेस्ट स्मार्टफोन वी19 (Vivo V19) को भारत में लॉन्च कर दिया है जिसकी ऑनलाइन व ऑफलाइन बिक्री 15 मई से शुरू की जायेगी. इस स्मार्टफोन के लांचिंग का इंतज़ार भारत में लम्बे समय से किया जा रहा था.

फोटोग्राफी के शौक़ीन लोगों के लिए है खास

यह स्मार्ट फोन फोटोग्राफी का शौक रखनें वालों के लिए भी सबसे उम्दा साबित होने वाला है, क्यों की इस फ़ोन के कैमरे की खासियत इसे और भी ख़ास बनाती है. इस स्मार्ट फोन में कुल 6 कैमरों का सेटअप दिया है. जिसमें 48 मेगापिक्सल का प्राइमरी सेंसर, 8 मेगा पिक्सल का वाइड-एंगल लेंस, 2 मेगापिक्सल का मैक्रो लेंस और 2 मेगापिक्सल यानी (48MP(मेन लेंस)+8MP(वाइड-एंगल)+2MP+2MP ) का बोकेह लेंस शामिल हैं. इसके अलावा सेल्फी के लिए इसमें फ्रंट में ड्यूअल कैमरा सेटअप दिया है जिसमें 32 मेगापिक्सल और 8 (32MP(मेन लेंस)+8MP ) मेगापिक्सल के कैमरे दिए गए हैं.

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यह है फीचर्स

स्मार्टफोन Vivo V19 के अगर फीचर्स की बात की जाए तो कंपनी ने इस फोन में 6.44 इंच का फुल एचडी प्लस डिस्प्ले दिया है, जिसका रिजॉल्यूशन 2400 x 1080 पिक्सल का है. इसमें सुपर एमोलेड होल-पंच डिस्प्ले विद 6th जनरेशन कॉर्निंग गोरिल्ला ग्लास लगाया गया है. इस फोन में डुअल नैनो सिम लगाया जा सकता है.

इसके अलावा इस स्मार्टफोन को जो चीज ख़ास बनाती है वह है की इसमें दो रेंज में लांच किया गया है जिसमें पहली रेंज 8 जीबी रैम और 128 जीबी स्टोरेज वाला है. जबकि दूसरी रेंज में 8GB रैम और 256GB स्टोरेज है. इस फोन का ओएस एंड्ऱॉयड 10 बेस्ड फनटच ओएस 10 है. इस स्मार्टफोन में स्नैपड्रैगन 712 का प्रोसेसर है. यह एंड्रॉयड 9 पाई पर आधारित फनटच 9.2 ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता है।

इस फोन को इन-डिस्प्ले फिंगरप्रिंट सेंसर द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है. इसमे ब्लूटूथ 5.0, यूएसबी टाइप-सी, ओटीजी, 2.4GHz और 5GHz डुअल बैंड वाई-फाई की कनेक्टिविटी सुविधा भी दी गई है. इस फोन का वजन महज 186.5 ग्राम ही है. वहीँ इस इस फोन में 4,500mAh की बैटरी लगाईं गई है, जो 33 वॉट के फास्ट चार्जिंग फीचर से लैस है.

लॉक डाउन के टल गई थी लांचिंग

वीवो (Vivo)  के V सीरीज के इस स्मार्टफोन Vivo V19 को 26 मार्च के दिन भारतीय बाजार में उतारा जाना था, लेकिन कोरोना वायरस के चलते लगाये गए लॉक डाउन के चलते लॉन्चिंग कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था.

ऐसे में  देश में लॉक डाउन में ढील दिए जानें के बाद इसे लांच करने का निर्णय लिया गया और यह अब 15 मई से भारतीय ग्राहकों के लिए उपलब्ध होगी.

यह होगी कीमत, मिलेगा ऑफर का लाभ

कम्पनी नें अपने वेबसाइट पर इस नए माडल के बारे में पूरी जानकारी दी है जिसे कंपनी के https://shop.vivo.com/in/sp/vivo_v19_launch पर जाकर पता किया जा सकता है. वीवो (Vivo)  नें इस नए माडल के बारे में जो जानकारी दी है उसमें यह दर्शाया गया है की नया Vivo V19 दो वेरिएंट में उपलब्ध होगा. जिसमें पहला 8 GB रैम + 128 GB स्टोरेज में 27,990 रुपये और 8 GB रैम + 256 GB स्टोरेज वाला 31,990 रुपये में उपलब्ध होगा. इस स्मार्ट फोन में दो कलर मिलेगा जिसमें पहला Piano Black और दूसरा Mystic silver कलर ऑप्शन में मिलेगा. अभी यह माडल 15 मई से कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट व अमेजन, फ्लिपकार्ट के साथ ऑफ लाइन स्टोर्स पर शुरू की जायेगी.

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कम्पनी नें अपने वेबसाइट पर यह जानकारी दी है की लांचिंग ऑफर के तहत इसके साथ HDFC और ICICI क्रेडिट कार्ड से खरीदारी करने पर 10% कैशबैक दिया जाएगा. जबकि वन-टाइन स्क्रीन रिप्लेसमेंट ऑफर और 13 महीने के लिए नो-कॉस्ट ईएमआई ऑप्शन भी उपलब्ध रहेगा. एयरटेल नें भी इसके खरीददारी के साथ ऑफर दिया है. जिसके साथ डबल डेटा, फ्री एयरटेल एक्सट्रीम प्रीमिएम सब्सक्रिप्शन, शॉ एकेडमी का एक महिने का फ्री सब्सक्रिप्शन, विंक म्यूजिक और एयरटेल सिक्योर लाइट भी मिलेगा.

 

Lockdown के चलते बढ़ी ITR फाइल करने की समयसीमा, जानें क्या है बढ़ी तारीखें

Lockdown के चलते देश की पूरी अर्थव्यवस्था धड़ाम होने के कगार पर है. देश के अधिकाँश व्यवसाय और उद्द्योग धंधे बंद है और फैक्ट्रियों में ताला लगा हुआ है. वहीँ नौकरी से जुड़े लोग भी असमंजस की स्थिति में हैं क्यों की उन्हें भी कई तरह की कटौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

इन स्थितियों में घर से न निकल पाने के चलते Taxpayers भी बहुत परेशान थे. क्यों की आयकर रिटर्न की जो तारीखें तय की गई थीं वह 31 जुलाई 2020 तक ही थी. ऐसे में तय समय सीमा में रिटर्न भरना  भी एक चुनौती थी. इन आशंकाओं का समाधान करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बुधवार शाम अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कई बड़ी घोषणाएं की. इन घोषणाओं में आयकर रिटर्न भरनें की तिथियों में बढ़ोतरी भी शामिल है.

वित्तमंत्री की घोषणा के अनुसार वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए सभी आयकर रिटर्न फाइल करने की तारीख को 31 जुलाई 2020 को समय सीमा को बढ़ाकर अब 30 नवंबर 2020 कर दिया गया है. वहीं जिन फर्म या संस्थानों का आडिट होता है उनको अब 31 अक्टूबर तक अपना रिटर्न दाखिल करने का समय दिया गया है.

ईपीएफ पर भी मिली छूट

वित्त मंत्री नें प्रेस वार्ता के दौरान बताया की सरकार अगले तीन महीनें यानी अगस्‍त तक कंपनी और कर्मचारियों की तरफ से 12 फीसदी के साथ ही 12 फीसदी की रकम EPFO में जमा करेगी. वित्त मंत्री के इस घोषणा का लाभ करीब 3.67 लाख प्रतिष्ठानों और 72.2 लाख से अधिक कर्मचारियों को फायदा मिलेगा. इसके लिए 2500 करोड़ रूपये के राहत पैकेज की व्यवस्था की गई है.

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इसके पहले भी सरकार नें Lockdown के दौरान तीन महीनें के लिए मार्च, से मई तक ईपीएफ की राशि जमा किया था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के घोषणा का लाभ सिर्फ उन्हीं कंपनियों को मिलेगा, जिनके पास 100 से कम कर्मचारी है और 90 फीसदी कर्मचारी की सैलरी 15,000 रुपये से कम है. यानी 15 हजार से ज्यादा तनख्वाह पाने वालों को इसका फायदा नहीं मिलेगा.

TDS की दरों में भी कटौती

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नें जो घोषणाएं की हैं उसमें TDS की दरों में कटौती भी शामिल है. इसके तहत मार्च 2021 तक TDS-TCS की दरों में 25 फीसदी की कटौती किये जाने का प्राविधान किया गया है. सरकार TDS के के माध्यम से टैक्स जुटाने का काम करती है जिसे विभिन्न तरह के आय के स्रोत पर काटा जाता है. टीडीएस की इस घटी हुई दर का लाभ ब्याज, किराया, प्रोफेशनल फीस, आदि के लिए मिल सकेगा.

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इस बीमारी के कारण Shilpa Shetty ने लिया सेरोगेसी का सहारा, हो चुके थे कई Miscarriage

ये तो हम सभी जानते हैं की एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी 15 फरवरी 2020 को एक बेटी की मां बनीं. और जब ये खबर आई कि शिल्‍पा ने सरोगेसी का रास्‍ता अपनाया तो वो सवालों से घिर गईं . शिल्‍पा ने सरोगेसी से बेटी क्‍यों पैदा की…….. वो क्‍यों खुद गर्भ धारण कर मां नहीं बनीं.  उन्‍हें अपने फिगर की चिंता है. इस तरह के तमाम सवाल उनसे पूछे जाने लगे . शिल्‍पा ने लंबे समय बाद अब इस मामले में अपनी चुप्‍पी तोड़ी है और बताया है कि आखिर दूसरे बच्चे के लिए उन्होंने सरोगेसी का रास्ता क्यूँ चुना?

एक वेब पोर्टल से इंटरव्यू के दौरान शिल्पा ने इस बारे में दिल खोलकर बात की.उन्होंने बताया की
“ मै हमेशा से दो बच्चे चाहती थीं, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी वियान सिंगल चाइल्ड बड़ा हो. क्योंकि हम भी दो बहनें थीं. मुझे पता है कि दूसरे भाई बहन का होना कितना जरूरी होता है.”

शिल्पा शेट्टी ने अपनी प्रेग्नेंसी के कॉम्पलिकेशन के बारे में बताया. एक्ट्रेस ने कहा,” वियान के पैदा होने के बाद मैं लंबे समय से दूसरा बच्चा चाहती थी. लेकिन मुझे कुछ हेल्थ इश्यू थे. मुझे ऑटो इम्यून बीमारी थी जिसे APLA भी कहते हैं. मेरे शरीर में लगातार बनते ऑटो इम्यून APLA के कारण जब भी मै प्रेग्नेंट होतीं, ये बीमारी मुझे अपनी चपेट में ले लेती और हर बार मेरा मिसकैरेज हो जाता “.

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शिल्पा ने कहा- इसके मद्देनजर मैंने दूसरे आइडियाज पर भी गौर किया, लेकिन वे सक्सेस नहीं हुए. एक समय मैंने बच्चा गोद लेने की भी सोची, मुझे बस अपना नाम देना था, सब कुछ होने ही वाला था. लेकिन तभी क्रिश्चियन मिशिनरी बंद हो गई. मुझे चार साल तक इंतजार करना पड़ा. इसके बाद मैं बहुत इरिटेट हो गई थी. इसके बाद मैंने सरोगेरी का सहारा लेने का फैसला किया.
शिल्पा ने कहा- तीन बार कोशिश करने के बाद हमें समीशा मिली. एक बार तो ऐसा भी पल आया जब तमाम कोशिशों के बाद मुझे लगा दूसरे बच्चे का ख्याल दिमाग से निकालना पड़ेगा.

आइये जानते है की APLA यानि (ऐंटिफॉस्फोलिपिड एंटीबाडी सिंड्रोम) क्या है और इससे क्यूँ होता है महिलाओं में बार-बार गर्भपात ?
ऐंटिफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम (APS) क्या है?
जब शरीर में रोगों से लड़ने वाला प्रतिरक्षा तंत्र खून में मौजूद सामान्य प्रोटीन पर गलती से हमला करके उन्हें नष्ट करने लगता है, तब यह समस्या पैदा होती है. ऐसा करने के लिए वह कई हानिकारक प्रोटीन बनाता है, जिन्हें ऐंटीबॉडी कहते हैं. इन्हीं ऐंटीबॉडी के बढ़ते स्तर के कारण गर्भाशय में गर्भ विकसित ही नहीं हो पाता और वह नष्ट हो जाता है.
एंटीफास्फोलिपिड सिंड्रोम के कारण नसों और अंगों के भीतर खून के थक्के बन सकते हैं . इससे ग्रस्त महिला को बार बार गर्भपात या मृत बच्चा पैदा होने या फिर गर्भावस्था के दौरान हाई ब्लड प्रेशर व समय से पहले बच्चे का जन्म होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

पर डॉक्टरों का कहना है की अगर गाइनकॉलजिस्ट और रूमेटॉलजिस्ट के परामर्श को ध्यानपूर्वक माने तो ऐंटीफॉस्फोलिपिड सिंड्रोम के होते हुए भी रोगियों में सफलतापूर्वक गर्भावस्था को पूरा करके शिशु को जन्म दिया जा सकता है. पर सबसे पहले ध्यान यह रखना है कि गर्भ प्लानिंग के अनुसार हो और फिर पूरे नौ महीने, पीड़िता दोनों डॉक्टरों के लगातार सम्पर्क में रहे. गाइनकॉलजिस्ट इन रोगियों में जच्चा-बच्चा, दोनों के स्वास्थ्य पर ज्यादा नजदीकी नजर रखती हैं. लेकिन उपचार के पहले कोई अन्य रोग जैसे हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा ,डायबिटीज ,अगर साथ में हो, तो उसकी रोकथाम जरूरी है.

 

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The best way to spend time with your kids is to figure out what they like doing the most. Then go ahead & do it with them… build pillow forts, draw, paint, sing or dance! As for me, the one thing Viaan loves doing the most is baking, so here we go… presenting the chewy “Peanut Butter Choco-Oat Cookies”😁! It has no refined sugar, can be dairy-free if you skip the butter for oil, is gluten-free, & loaded with healthy goodness. It’s highly nutritious, is absolutely satiating, and can be gorged on at tea time by us too (I devoured this batch🤦🏽‍♀️) If you’d like to make it at home, here’s all the info you’ll need: ~ INGREDIENTS: * 1/2cup natural (unsweetened) peanut butter * 1/2cup real maple syrup OR HONEY * 4 tbsp coconut oil (OR 4 tablespoons melted butter) * 1 tsp baking powder * 1/2 tsp fine-grain sea salt * 1 1/2 cup old-fashioned rolled oats, ground for 30 seconds in a food processor or blender * 5 tbsp semi-sweet chocolate chips * 1 tbsp vanilla extract * 2 tbsp coconut sugar * 4 tbsp roasted almonds (ground) * 1 egg (or 1 tbsp flaxseed powder soaked in 3 tbsp of water is the equivalent) [I added 2 tbsp of flaxseeds to make it more fibrous] * 2 tbsp of almond milk (to smoothen the texture) INSTRUCTIONS: 1. Preheat the oven to 160° Celsius with two racks in the middle. Line 2 baking sheets with parchment paper (if you don’t have parchment paper, lightly grease the baking sheets). 2. Measure out the peanut butter and maple syrup. 3. Pour the peanut butter, coconut oil, & maple syrup mixture into a mixing bowl. Add the melted butter & whisk until the mixture is well blended. Use your whisk to beat in the egg, scraping down the side of the bowl once it’s incorporated, then whisk in the vanilla, & salt. Switch to a big spoon & stir in the ground oats, add the baking powder, flaxseed powder, coconut sugar, & chocolate chips until they are evenly combined. Drop the dough by the tablespoon or ice cream scooper (grease your fingers with some coconut oil so it doesn’t stick when you flatten them) onto your prepared baking sheets. 4. Bake the cookies for 12-15 mins total. Swap sides after 7 mins. Remove from the oven to cool. #TastyThursday #SwasthRahoMastRaho

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एंटीफास्फोलिपिड सिंड्रोम से पीड़ित गर्भवती महिला में खून का थक्का बनने से रोकने के लिए ब्लड थिनर (खून को पतला करने वाली दवा )का उपयोग किया जाता है, इन्हें थक्का रोधी दवाएं भी कहा जाता है. थक्के को दोबारा विकसित होने से रोकने के लिए कुछ लोगों को खून पतला करने की दवाई लंबे समय तक खानी पड़ती है.

कुछ गर्भवती महिलाओं को खून पतला करने के इंजेक्शन लगाए जाते हैं और डिलीवरी से कुछ समय पहले तक एस्पिरिन की कम खुराक दी जाती है.

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डॉक्टर बताते हैं कि गर्भ के पूरे होने के बाद भी खतरा टल गया हो, ऐसा नहीं होता. डिलिवरी के समय और उसके बाद भी रोग के बाबत कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है और दवाओं को रोकना और बदलना पड़ता है .इस तरह की जटिल प्रेगनेंसी के बारे में सामान्य जन तो क्या, बहुत से डॉक्टरों को भी सीमित पता होता है, इसलिए ऐसी जच्चा –बच्चा की देखभाल विशेषज्ञों के हाथ में ही देनी चाहिए .बच्चे के जन्म के बाद इलाज को फिर से शुरू कर दिया जाता है.

बदल रहे हैं नई पीढ़ी के पति-पत्नी

 ऋचा की सास उस के पास 1 महीने के लिए रहने आई थीं. उन के वापस जाते ही ऋचा मेरे पास आई और रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘आज मुझे 1 महीने बाद चैन मिला है. पता नहीं ये सासें बहुओं को लोहे का बना क्यों समझती हैं, यार. हम भी इंसान हैं. खुद तो कोई काम करना नहीं चाहती और यदि उन का बेटा जरा भी मदद करे तो भी अपने जमाने की दुहाई दे कर तानों की बौछार से कलेजा छलनी कर देती हैं. वे यह नहीं समझतीं कि उन के जमाने में उन के कार्य घर तक ही सीमित थे, लेकिन अब हमें जीवन के हर क्षेत्र में पति का सहयोग करना पड़ता है. आर्थिक सहयोग करने के साथसाथ बाहर के अन्य सभी कार्यों में कंधे से कंधा मिला कर भी चलना पड़ता है. ऐसे में पति घर के कार्यों में अपनी पत्नी का सहयोग करे तो सास को क्यों बुरा लगता है? उन की सोच समय की मांग के अनुसार क्यों नहीं बदलती? बेटे भी अपनी मां के सामने मुंह नहीं खोलते.’’

उस के धाराप्रवाह बोलने के बाद मैं सोच में पड़ गई कि सच ही तो है कि पुरानी पीढ़ी की सोच में आज की पीढ़ी की महिलाओं की जीवनशैली में बदलाव के अनुसार परिवर्तन आना बहुत आवश्यक है.

1. पतिपत्नी की बदली जीवनशैली

नई टैक्नोलौजी के कारण एकल परिवार होने के कारण युवा पीढ़ी के पतिपत्नी की जीवनशैली में अत्यधिक बदलाव हो रहे हैं, लेकिन अधिकतर नई पीढ़ी की जीवनशैली के इस बदलाव को पुरानी पीढ़ी द्वारा नकारात्मक दृष्टिकोण से ही आंका जा रहा है, क्योंकि सदियों से चली आई परंपराओं के इतर उन्हें देखने की आदत ही नहीं है, इसलिए बदलाव को वे स्वीकार नहीं कर पाते, लेकिन समय के साथ हमारे शरीर में परिवर्तन आना अनिवार्य है. प्रकृति में भी बदलाव आता है, तो अपने आसपास के बदले नए परिवेश के अनुसार अपनी सोच में भी बदलाव को अनिवार्य क्यों नहीं मानते? क्यों हम पुरानी मान्यताओं का बोझ ढोते रहना ही पसंद करते हैं? जो हम देखते आए हैं, सुनते आए हैं, सहते आए हैं. वह उस समय के परिवेश के अनुकूल था, लेकिन आज के परिवेश के अनुसार बदलाव को हम क्यों पुराने चश्मे से ही धुंधला देख कर उन के क्रियाकलापों पर टिप्पणी कर रहे हैं? अफसोस है कि युवा पीढ़ी की अच्छी बातों की तारीफ करने के लिए न तो हमारे पास दृष्टि है न मन, है तो सिर्फ आलोचनाओं का भंडार.

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2. पुरानी पीढ़ी में कार्यों का विभाजन

पहले जमाने में लड़के और लड़की के कार्यों का विभाजन रहता था, क्योंकि लड़कियां घर से निकलती ही नहीं थी. इसलिए गृहकार्यों का भार पूर्णतया उन के जिम्मे रहता था और इस के लिए उन दोनों के बीच अच्छीखासी लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती थी, लेकिन अब जब लड़कियां लड़कों के बराबर पढ़ाई के साथसाथ नौकरी भी कर रही है तो यह विभाजन समाप्त हो जाना चाहिए.

3. आधुनिक युवा पीढ़ी में कार्यविभाजन नहीं

युवा पीढ़ी की लड़कियों ने पढ़लिख कर आत्मनिर्भर हो कर जागरूकता के कारण कार्यविभाजन के लिए विद्रोह करना आरंभ किया ही था कि कब समय ने बदलाव की अंगड़ाई ली और यह सोच दबे पांव हमारे घरों में घुसपैठ करने लगी, कब पुरुष सोफे से उठ कर किचन में दखल देने पहुंच गया, पता ही नहीं चला, क्योंकि इस की चाल कछुए की चाल थी. निश्चित रूप से यह पश्चिमी सभ्यता की देन है, जहां कार्य विभाजन होता ही नहीं है.

4. स्त्रीपुरुष की बराबरी को लेकर शोध

स्त्रीपुरुष की बराबरी को ले कर शोधों में भले ही सकारात्मक नतीजे दिख रहे हों, लेकिन वास्तविकता थोड़ी अलग है. पिछले दिनों नेल्सन इंडिया द्वारा भारत के 5 अलगअलग शहरों में कराए गए एक सर्वे में लगभग दोतिहाई स्त्रियों ने माना कि उन्हें घर में असमानता का सामना करना पड़ता है. इस सर्वे में मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद और बैंगलुरु जैसे बड़े शहर शामिल हैं. सर्वे में शिल्पा शेट्टी, मंदिरा बेदी और नेहा धूपिया जैसी सैलिब्रिटीज को भी शामिल किया गया. लगभग 70% स्त्रियों ने कहा कि उन का ज्यादातर समय घर के कामों में बीत जाता है और पति के साथ वक्त नहीं बिता पातीं.

दिलचस्प बात यह है कि 76% पुरुष भी यही मानते हैं कि खाना बनाने, कपड़े धोने या बच्चों की देखभाल जैसे कार्य स्त्रियों के हैं. छोटे शहरों में तो अभी भी पुरुष यदि स्त्रियों के घरेलू कार्यों में मदद करें तो उन का मजाक उड़ाया जाता है. नौकरी करने वाली औरतें दोगुनी जिम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर हैं. वैसे एकल परिवारों का चलन बढ़ने से थोड़ा बदलाव भी दिख रहा है. पुरुष घरेलू कार्यों में सहयोग दे रहे हैं लेकिन इसे पूरी तरह बराबरी नहीं माना जा सकता.

5. इस बदलाव की शुरुआत अच्छी है

अभी यह बदलाव कुछ प्रतिशत तक ही सीमित है, लेकिन यह शुरुआत अच्छी है और पूरा विश्वास है कि यह सुखद बदलाव की आंधी पूरे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लेगी. यह बदलाव पतिपत्नी के रिश्तों में भी सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है. उन के बीच स्वस्थ दोस्ती का रिश्ता कायम हो रहा है. उन में आपस में एकदूसरे के लिए समर्पण की, त्याग की भावना और सहयोग की प्रवृत्ति बढ़ने के साथसाथ स्त्री का सामाजिक स्तर भी बढ़ रहा है.

6. पतिपत्नी के रिश्ते दोस्ताना

आरंभ में इस ने उच्चवर्गीय समाज में पांव पसारे, जहां समाज का हस्तक्षेप न के बराबर होता है. उस के बाद मध्यवर्गीय परिवारों में भी इस बदलाव के लिए क्रांति सी आ गई. अब पतिपत्नी मानने लगे हैं कि उन्हें एकदूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए. समय के साथ पुराने मूल्यों, मान्यताओं, परंपराओं को बदलना आवश्यक है.

7. युवा पीढ़ी के पिता की भूमिका बदली

पहले जमाने के विपरीत पिता की भूमिका बच्चों के बाहरी कार्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों की तरह अस्पतालों में प्रसव के समय मां के साथ पिता को भी बच्चों के पालनपोषण से संबंधित हर क्रियाकलाप करने की ट्रेनिंग दी जाने लगी है. औफिस वाले भी कर्मचारी की पत्नी के प्रसव के समय बच्चे और मां की देखरेख के लिए उसे छुट्टियों से भी लाभान्वित करते हैं. अब बच्चे का पालनपोषण करना केवल मां का ही कर्तव्य नहीं रह गया, बल्कि पति भी बराबर का भागीदार हो रहा है. पहले बच्चों के डायपर बदलना पुरुषों की शान के खिलाफ था, लेकिन अब वे सार्वजनिक रूप से भी ऐसा करने में संकोच नहीं करते. शोध यह भी कहते हैं कि चाइल्ड केयर के मामले में स्त्रियों की जिम्मेदारियां हमेशा पुरुषों से अधिक रही हैं. भले ही वे होममेकर हों या नौकरीपेशा.

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8. बदलाव के परिणाम परिवार के लिए सुखद

जौर्जिया यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के शोधकर्ता डेनियल कार्लसन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘‘दृष्टिकोण को बदलना और एकदूसरे को सहयोग देना परिवार और रिश्तों की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी है. यदि पतिपत्नी में एक खुश और दूसरा नाखुश होगा तो रिश्ते कभी बेहतर नहीं होंगे. पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए भी ऐसा जरूरी होता है. दोनों परिवाररूपी गाड़ी के 2 पहिए हैं. परिवार को सुचारु रूप से चलाने के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है. नए परीक्षणों, शोधों के बाद समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस नतीजे तक पहुंच रहे हैं कि पत्नी को बराबरी का दर्जा देने वाले पुरुष ज्यादा सुखी रहते हैं. ऐसे पुरुषों का सैक्स जीवन औरों के मुकाबले बेहतर होता है.

9. पुरानी पीढ़ी भी लाभान्वित

स्त्रीपुरुष में घरेलू कार्यों को ले कर तालमेल रहे तो पुरानी पीढ़ी को भी बहुत लाभ हैं. पुरुष भी रिटायरमैंट के बाद स्त्रियों की तरह घरेलू कार्यों में व्यस्त रह कर अपने खालीपन को भर सकते हैं. परिवार के बड़ेबूढ़ों को पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने के कारण आरंभ में उन्हें यह बदलाव अजीब सा लगा. लेकिन धीरेधीरे उन की आंखों को सब देखने की आदत सी पड़ रही है. रिटायरमैंट के बाद बेटेबहू द्वारा सारे कार्य सुचारू रूप से करने के कारण उन की जिम्मेदारी कम हो रही है और वे अपनी उम्र के इस पड़ाव को समय दे पा रहे हैं. इसलिए इस बदलाव को हितकर समझ कर स्वीकार करना ही उचित है और इस का स्वागत किया जाने लगा है. इस बदलाव को जिस पति और उस के परिवार वालों ने स्वीकार लिया, वे ही रिश्ते स्थाई होते हैं वरन तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में देर नहीं होती.

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