इन बातों पर करेंगी अमल, तो मिसाल बन जाएगा सास बहू का रिश्ता

भावना दिल्ली की थीं, पर इटली में काम करती थीं. वहीं उन्होंने एक रैस्टोरैंट के मालिक से प्रेम विवाह किया. अब दोनों मिल कर अपना काम करते हैं. भावना कहती हैं, ‘‘मुझे शुरूशुरू में बड़ा अचरज हुआ जब पता चला कि यहां इटली में भी सासबहू की बातें भारत जैसी ही हैं. मैं काफी सांवली हूं जबकि मेरे पति आंद्रयै काफी गोरेचिट्टे, लंबेचौड़े और हैंडसम हैं. मेरी सास ने जब मुझे पहली बार देखा तो वे खुश नहीं थीं. अपने बेटे को उन्होंने समझाने की भरसक कोशिश की. उन का कहना था कि बहू ऐसी तो होनी चाहिए, जो आंखों को अच्छी लगे. तुम इतने मूर्ख होगे यह मुझे मालूम न था. जब इस के जैसे सांवले और नाटे बच्चे हमारे घर में घूमेंगे तो मैं उन्हें प्यार नहीं कर पाऊंगी. इस ने कोई काला जादू कर के तुम्हें फंसा तो नहीं लिया? तुम ढंग से सोच लो…

‘‘इत्तफाक से मेरे दोनों बच्चे प्यारे, सुंदर और उन लोगों जैसे हैं तो गाड़ी चल रही है. फिर भी मेरी सास ने अपने बेटे का मुझ से प्यार देख कर मुझे काफी तराशा और निखारा. जिम जौइन कराया. 10 किलो वजन कम कराया. हेयरस्टाइल और ऐसे ही तमाम नुसखों से मुझे निखारा. वे आज भी यानी शादी के 11 साल बाद भी मेरे प्रति मुस्तैद और चौकन्नी रहती हैं. वे देखती रहती हैं कि मैं पति का ध्यान रखती हूं कि नहीं. उस की कमाई फालतू तो नहीं उड़ाती और उन के पोतेपोतियों की परवरिश कैसी है वगैरह.

‘‘वहां भी नईपुरानी किसी भी उम्र की बहुएं मिलती हैं तो सास, ननद, देवर की खूब बातें करती हैं. वहां के पतियों की भी अपेक्षा रहती है कि उन के घर वालों का ध्यान रखा जाए.’’

लेनदेन भी है मुद्दा

ऐलियाना (बदला हुआ नाम) विदेश प्रसारण सेवा में हैं. वे कहती हैं, ‘‘मैं वैसे तो इंगलैंड की हूं पर इधर 4 साल से दिल्ली में हूं. मैं कई देशों में सेवाएं दे चुकी हूं और इस क्षेत्र से जुड़ी होने के कारण किसी भी देश के समाज को मुझे नजदीक से देखने का अवसर मिलता है. हालांकि भारत जैसी दहेज प्रथा विदेशों में नहीं है फिर भी वहां काफी लेनदेन है.

‘‘मेरी सास अपना स्टेटस खूब ऐंजौय करती है. मैं हिंदुस्तान में रहने के कारण कई बार वहां के त्योहार या स्पैशल डेज भूल जाती हूं, तो वे बाकायदा फोन या मेल के जरीए एतराज जताती हैं. वे मदर्स डे, क्रिसमस या ऐसे ही किसी मौके पर दिए जाने वाले उपहार खुद साथ चल कर खरीदना चाहती हैं. वहां भी बेटे द्वारा दिए गए उपहार की चर्चा आम बात है और बहू के कारण बेटे की नजरें बदल गई हैं, यह माना जाना भी आम है.

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‘‘मैं भारत से अपनी सास के लिए छोटीछोटी चीजें ले कर जाती हूं तो वे बच्चों की तरह चहक उठती हैं. ससुर भी घर में आनेजाने वालों को गर्व से बताते हैं कि ये चीजें उन की बहू ले कर आई है. वे मुझ से और मेरे पति से उम्मीद करती हैं कि हम क्रिसमस जैसे बड़े मौके पर पार्टी करें और इन के कजिन्स को भी उपहार दें. हर बहू की तरह मैं ने भी ससुराल वालों से अपनी सास के बहू रूप में बिताए समय की पड़ताल की तो जाना कि वे अपनी सास की काफी अच्छी बहू रही हैं. दोनों साथसाथ घूमनाफिरना, सिनेमा देखना, बाहर खाना ऐंजौय करती रही हैं. शायद इसीलिए वे मुझे भी ऐसी बहू के रूप में देखना चाहती हैं. पर मैं थोड़ी रिजर्व हूं जिस की कमी मेरे पति अपनी उदारता से पूरी करते हैं.’’

ऐलियाना की एक कुलीग ओलिविया कहती हैं, ‘‘बच्चे के बड़े हो जाने पर भी मां का दिल उसे बच्चा ही मानता रहता है. मेरी सास मुझ में अपना रूप खोजती हैं. वे चाहती हैं मैं उन के बेटे की देखरेख उन की तरह ही करूं. उन्हें यह अच्छा नहीं लगता कि उन का सुबह जल्दी उठने वाला बेटा मुझ से शादी के बाद देर से उठने वाला बन गया है. मैं ने पाया है कि सासबहू के रिश्ते में लेनदेन कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. मुद्दा भावनाओं का है कि आप किस तरह अपना प्यार जताते हो.

‘‘मैं कुर्ग, चिकमगलूर और ऐसे ही प्रसिद्ध जगहों की कौफीचाय वगैरह ले कर जाती हूं तो वे बागबाग हो जाती हैं. कई लोगों को वे ये चीजें बना कर पिलाती हैं. कई बार तो इन छोटी सी चीजों के लिए वे अपनी ओर से पार्टी रख लेती हैं. वे अपनी ओर से भी मुझे कभी खाली हाथ विदा नहीं करतीं. मैं अब समझ पाई हूं कि आप को प्यार जताना भी आना चाहिए. गिफ्ट तथा फोन आदि के जरीए उसे जल्दी व ज्यादा आसानी से जताया जा सकता है.’’

अपेक्षाएं भी खूब

अकसर सास चाहती है कि बहू उस से कुछ हुनर सीखे. मार्टिना अमेरिकन बहू हैं. वे कहती हैं, ‘‘मेरी सास मेरे मां बनने के बाद मेरी देखरेख के लिए आईं, तो उन्हें बच्चे को बौटल से दूध पिलाना नहीं रुचा. इसी तरह मेरा किचन में जा कर मनपसंद खाना खाना भी नहीं रुचा. इस कारण पति की और मेरी अनबन होने लगी. जब पति ने मेरा ध्यान इस ओर दिलाया कि 60 की उम्र में भी लोग मेरी मम्मी को 30 का समझते हैं, जिस का कारण उन का हुनरमंद होना ही है, तो मैं ने कुछ दिनों के लिए उन की बात मान ली. पर अगली बार मां बनने पर मैं ने अपनी मां को बुलाया. मेरे पति को दुख है कि मैं उन की मां को नहीं समझ पाई. साथ ही उम्र से पहले मैं अधेड़ दिखने लगी हूं.’’

दिल्ली के एक परिवार की नीदरलैंड की बहू केन्यूसी कहती हैं, ‘‘वहां तो सासें अपने बेटों से ही नहीं बहुओं से भी पर्सनल बातें पूछ लेती हैं. वहां भी सासससुर चाहते हैं कि उन का आदर व लिहाज किया जाए. दुखसुख के बारे में पूछा जाए. पोतेपोतियों को उन के पास छोड़ा जाए. उन के दूसरे बेटेबहू या बेटियों के प्रति भी प्यार रखा जाए. ‘पति का पैसा केवल मेरा है’ जैसी स्थितियां वहां भी झिकझिक व तलाक का कारण बनती हैं. अभी दुनिया भर में मंदी का दौर चला तो कई सासों ने बेटेबहुओं से अपने दूसरे बेटेबेटियों की मदद की अपेक्षाएं की. दूसरे देश, कल्चर और नस्ल की बहू आने पर भी वहां अपेक्षा की जाती है कि बहू उन के बेटे व उस के देश तथा कल्चर के अनुरूप ढले. उन के बेटे को ऐसा न करना पड़े. जब कभी मौका आए तो वह परिवार के और लोगों का भी सहयोग करे तथा उदारता का परिचय दे.’’

तुलना भी खूब

विदेशों में देवरानीजेठानी व बहूबेटी की तुलना भी खूब है. रेशम ने अपने ही कुलीग अमेरिकन युवक से शादी की. वे कहती हैं, ‘‘वहां 4 सासें मिलते ही बहुओं के लेनदेन तथा स्वागतसत्कार की तुलना करने लगती हैं. मेरी सास तो मुझ से मेरे मुंह पर ही कह देती हैं कि मैं सोचती थी कि भारतीय लड़की मेरा ज्यादा ध्यान रखेगी पर तुम्हारी तुलना में जरमन बहू ज्यादा अच्छी है. वह भले ही तुम्हारे जितना लेनादेना नहीं करती पर मुझे आदरमान देती है. जिंदगी के मेरे 70 सालों के अनुभव से लाभ उठाती है. कहीं जानेआने से पहले बताती है, शेयर करती है.

‘‘तब मैं ने सोचना शुरू किया कि दुनिया भर की मांएं एक जैसी हैं. अगर बेटों को बहू चुनने की और उस से छुटकारा पाने की आजादी है तो इस का मतलब यह नहीं कि वे मनमानी करते फिरें. वहां सासें बहुओं पर निगरानी रखती हैं कि उन का कहीं और अफेयर न हो जाए, वे उन के बेटों को ठग न लें, डाइवोर्स के मामलों में भी देवरानीजेठानी या आसपड़ोस के अच्छे रिश्तों का हवाला दे कर संबंधों को निभाने की कोशिशें करवाती हैं.’’ रशियन मूल की श्रीमती आला कहती हैं, ‘‘रशियन सासों को अभी भी बच्चों के पालने की पुरानी स्टाइल और नुसखों पर गर्व है. वे घरेलू बहू भी पसंद करती हैं और जरूरत पड़ने पर जितना हो सकता है बहुओं का घर भी संभालती हैं. इस कारण नई पीढ़ी की बहुओं और पुरानी पीढ़ी की सासों में बहस व द्वंद्व आदि आम हैं.’’

शोषण, दोहन तो नहीं

विदेशों में नौकर आसानी से नहीं मिलते. ऐसी स्थिति में काम को ले कर पतिपत्नी और घर के और लोगों में लड़ाइयां आम हैं. बच्चा होने पर बहुएं उम्मीद करती हैं कि सासें आ कर उन की सारसंभाल करें. सासों को लगता है कि बहू उन्हें केवल बेबी सीटर न समझे. अगर वे अपना घर छोड़ कर आएं तो अपने पति के साथ रहने खानेपीने व सोने की व्यवस्था भी आरामदायक हो. उन की सेवा का मोल भी बहू समझे. इसी तरह नौकरीशुदा बहू टूअर या किसी कारण से उन के पास बच्चा छोड़ जाए तो उन पर भरोसा करे. 2 पैसा भी हाथ पर रखे. उन के खर्चों और सुविधाओं का भी ध्यान रखें. दुनिया इस हाथ ले उस हाथ दे के सिद्धांत पर अच्छी चलती है. शोषणदोहन कर के कोई कितना ही खुश हो ले पर वह लंबी रेस का घोड़ा साबित नहीं हो सकता.

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भारत मूल के जरमन काउंसलर प्रभु कई देशों का भ्रमण कर चुके हैं और कई सासबहुओं को परामर्श दे चुके हैं. वे कहते हैं कि पति और बेटे पर प्रभुत्व जमाने की चाह सासबहू रिश्ते का मूल है. चाहे नकारात्मक स्थिति हो चाहे सकारात्मक कई बहुएं मांबेटे की सहज आत्मीयता को गलत रिश्ते का नाम दे देती हैं, तो कहींकहीं सासें बहू को बेटे को लूटने, ठगने वाली के रूप में देखती हैं. भावात्मक रिश्ते पूरी दुनिया में एक जैसे हैं. उन्हें समझदारी, सूझबूझ तथा प्यार से हैंडल करना आना चाहिए या सीखना चाहिए वरना इन के बीच पुरुष 2 पाटों के बीच पिसने जैसा महसूस करता है.

#lockdown: दही और पुदीने की सीक्रेट चटनी

पुदीना एक ऐसा पौधा है, जिसका उपयोग भारतीय रसोईघरों में मुख्य रूप से चटनी के रूप में किया जाता है.इसकी अनेक खूबियां हैं. यह भोजन को पचाने में तो कारगर है ही, पेट में होने वाले काफी रोगों के उपचार में भी उपयोगी साबित होता है.

पुदीने में मेंथोल, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-ए, कॉपर, आयरन आदि पाये जाते हैं.पुदीना के पत्तों का सेवन कर उल्टी को रोका जा सकता है और पेट की गैस को भी दूर किया जा सकता है.यह जमे हुए कफ को बाहर निकालता है. वहीँ दूसरी ओर दही भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी होता है.इसका उपयोग हर घर में होता है.लेकिन क्या आपको पता है दही में कई प्रकार के पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं जिनको खाने से शरीर को फायदा होता है.दही में कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन पाया जाता है.दूध के मुकाबले दही सेहत के लिए ज्यादा फायदा करता है.दही में दूध की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में कैल्शियम होता है.इसके अलावा दही में प्रोटीन, लैक्टोज, आयरन, फास्फोरस पाया जाता है.

खून के अंदर की वसा की मात्रा घटाने की क्षमता दही में होती है.इसलिये दही के सेवन से दिल के बीमारी की संभावना कम होती है और रक्तचाप भी नियंत्रण में रहता है. ज्यादातर लोगों को खाने के साथ चटनी खाना बहुत पसंद होता हैं या यूं कहें कि भारतीय थाली में चटनी की अपनी एक अलग ही जगह होती है.

दही और पुदीने का मेल बहुत अनोखा होता है .इससे बनी चटनी पेट के लिए काफी फायदेमंद होती है. यह आपकी पाचन क्रिया को दुरुस्तस रखती हैं और आपकी भूख बढ़ाती है. हम अक्सर रेस्टोरेंट या ढाबे में स्टार्टर के साथ इस चटनी को खाते है. पर हम समझ ही नहीं पाते की यह किस तरह से बनती है.आइये आज हम इस सीक्रेट चटनी को बनाने की विधी जानते हैं-

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हमें चाहिए-

पुदीने की पत्तियां-1 कप

हरे धनिया की पत्तियां-1/2 कप

हरी मिर्च-2

दही -1 ½

अदरक-1/2 इंच कटा हुआ

पिसा जीरा -1/2 छोटी चम्मच

काला नमक- ½ छोटी चम्मच

नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि-

1-सबसे पहले मिक्सर जार में पुदीने की पत्तियां,हरा धनिया,हरी मिर्च ,अदरक और थोड़ा सा पानी डालकर बारीख पीस ले.

2-अब एक कटोरी में दही ,डाले फिर उसमे तैयार किया हुआ धनिया और पुदीने का पेस्ट डालें .

3-अब उसमे पिसा हुआ जीरा ,काला नमक और स्वादानुसार सफ़ेद नमक डालकर अच्छे से फेट ले.

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4-तैयार है दही और पुदीने की स्वादिष्ट चटनी.

5-इसको आप किसी भी स्नैक्स या स्टार्टर के साथ खा सकते है.

#lockdown: प्रवासी मजदूर आखिर क्यों बन गये हैं सरकारी रणनीति की कमजोर कड़ी?

21 दिन के भीतर दूसरी बार सरकार से यह बड़ी चूक हुई. एक बार फिर न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें, ये अनुमान लगा पायीं कि प्रवासी मजदूर लाॅकडाउन-2 के बाद भी लाॅकडाउन-1 की तरह ही सरकार और व्यवस्था की परवाह किये बिना अपने घरों के लिए निकल पड़ेंगे. हालांकि इस बार प्रवासी मजूदरों को उम्मीद थी कि केंद्र और राज्य सरकारें उनकी परेशानियांे और 21 दिनों की बाडेबंदी के दौरान आयी मुश्किलों को समझेंगी तथा उन्हें उनके घर जाने का कोई बंदोबस्त करेंगी. भूल जाइये कि इस संबंध में किसी ने अफवाह उड़ायी थी. यह अफवाह का मसला नहीं था, वास्तव में देश के तमाम शहरो में अब भी 8 करोड़ से ज्यादा रह रहे दिहाड़ी मजदूरों की यह दिली ख्वाहिश थी कि सरकार उनकी मुश्किलों को समझेगी और उन्हें उनके घर तक पहुुंचाने का कोई सुरक्षित बंदोबस्त करेगी. लेकिन सरकार की तो दूर दूर यह प्राथमिकता में ही नहीं था, चाहे वह राज्यों की सरकारें हों या केंद्र की सरकार.

यही वजह है कि देश का मीडिया और मध्यवर्ग मजूदरों के इस तरह निकलकर सड़कों, स्टेशनों और बस अड्डों में पहुंच जाने से हैरान है. लेकिन यह हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए; क्योंकि दिल्ली जैसे शहर में जहां माना जा रहा है कि राज्य सरकार मजदूरों के खानेपीने की भरपूर व्यवस्था कर रही है, वहां भी अव्वल तो सैकड़ों शिकायते हैं कि जरूरतमंद लोगों को खाना नहीं मिल रहा. गैर जरूरतमंद लोग ही खाने को झटक देते हैं. दूसरी शिकायत यह भी है कि एक बार खाना पाने के लिए लोगों को डेढ़-डेढ़ दो-दो घंटे लाइन में लगना पड़ रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो लोग लाॅकडाउन की स्थिति में अपने घर नहीं जा पाये, वे लोग यहां रहते हुए किस तरह परेशानियों और उपेक्षा का शिकार हैं. शायद यही वह कारण है कि जैसे ही जरा सी उम्मीद बंधी कि सार्वजनिक परिवहन शुरु हो सकता है तो मजदूर सारी नाकेबंदी, बाड़ेबंदी तोड़कर बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों और उन जगहों में पहुंच गये, जहां से उन्होंने उम्मीद की थी. कोई न कोई सवारी उन्हें अपने गांव तक जाने के लिए मिल जायेगी.

देश में सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से सबसे मजबूत माने जाने वाले शहरों, मुंबई, हैदराबाद, सूरत और कुछ हद तक बंग्लुरु में भी बड़ी संख्या में मजदूर घरों से सड़क पर निकल आये. वे मोदी जी के भाषण के पहले ही बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों में आ गये थे क्योंकि उन्हें हालत में अपने घर जाने की चाह थीं. लेकिन न तो लाॅकडाउन खुला और न ही उनके घर जाने की व्यवस्था हुई. उल्टे उन्हें तमाम परेशानियों और भूखे पेट सोने के बावजूद पुलिस की मार खानी पड़ी, अपमान सहना पड़ा और एक अनिश्चित दहशत में कैद हो जाना पड़ा. आप कह सकते हैं कि मीडिया में या सरकार की तरफ से आ रही हिदायतों में तो  जरा भी कोई ऐसा संकेत नहीं था कि लाॅकडाउन में छूट मिलेगी. फिर मजदूरों ने यह कैसे अनुमान लगाया. इसका जवाब यह है कि मजदूर न तो हमारी इस व्यवस्था के दायरे में है और न ही वो किसी तरह की सरकारी, गैरसरकारी कम्युनिकेशन व्यवस्था का भी हिस्सा हैं. यह हैरान करने वाली बात लग सकती है लेकिन सच्चाई यही है कि देश के करोड़ों मजदूर देश में रहते हुए भी उस मध्यवर्ग से बिल्कुल एक अलहदा और कटा हुआ जीवन जी रहे हैं, जिस मध्यवर्ग को अपने देश होने का गुमान है. मजदूर न तो इनसे कोई संपर्क करता है और न ही इनके द्वारा संपर्क किये जाने की कोई उम्मीद करता है.

यह हाहाकारी सामाजिक स्थिति है. भले हम इसे न जानते हों या जानकर भी इससे मुंह मोड़ रखा हो. कोरोना एक ऐसी भयावह सामाजिक स्थिति है, जब हिंदुस्तान में कैसे अलग अलग वर्ग अपने में सिमटकर रहता है, इसका खुलासा हो रहा है. लाॅकडाउन-1 के बाद सरकार ने और प्रशासन ने यह स्वीकारा था कि उसे मजदूरों की मनःस्थिति की भनक नहीं लगी थी. लेकिन वाकई अगर सरकार ने या प्रशासन ने लाॅकडाउन-1 के समय खुद से हुई गलतियों को गलती माना होता और यह सोचा होता कि मजदूरों का कभी कोई भावनात्मक और सामाजिक पक्ष है तो निश्चित रूप से उन्हें लाॅकडाउन-2 के पहले मजदूरों का ख्याल रहा होता. लेकिन सच्चाई यही है कि सरकार हो या प्रशासन वह मीडिया के सामने आम लोगों और मजदूरों के लिए भले घड़ियाली आंसू बहाते दिखते हों, लेकिन प्रवासी मजदूरों की उनके लिए कोई महत्ता नहीं है.

क्योंकि लाॅकडाउन-1 के बाद भी यही स्थिति थी कि प्रवासी मजदूर, चाहे जहां भी हों, उनके पास न काम था और न बचत. इसलिए इनका पेट भरना बड़ी चुनौती बन गई थी. गृह मंत्रालय ने सभी केंद्र शासित प्रदेशों व राज्यों से प्रवासी मजदूरों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए कहा है. इसके लिए एक केन्द्रीय कंट्रोल रूम भी स्थापित किया गया है जो प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को केंद्र, राज्यों व जिलों की संबंधित एजेंसीज तक पहुंचायेगा. चूंकि केवल सरकार व एनजीओ लम्बे समय तक प्रवासी मजदूरों को मुफ्त भोजन उपलब्ध नहीं करा सकते, इसलिए कॉर्पोरेट हाउसेस को इस काम में शामिल करने का प्रस्ताव है कि वह सीएसआर फंड इसमें इस्तेमाल करें. देश के 150 जिलों से अधिक में से मजदूर काम की तलाश में बाहर निकलते हैं. यह सिलसिला पिछले सौ वर्षों से चला आ रहा है. यह मुख्यतः उत्तर प्रदेश व बिहार के गरीब जिले हैं, लेकिन अब अधिक सम्पन्न क्षेत्रों से भी मजदूर बाहर निकलने लगे हैं. पहले इनकी दौड़ दिल्ली व आसपास के शहरी क्षेत्रों तक ही होती थी, फसल के सीजन में पंजाब व अन्य उत्तरी क्षेत्रों तक भी जाया जाता था, लेकिन अब यह भाषा की तंगी के बावजूद दक्षिण भारत के शहरों जैसे बंग्लुरु, चेन्नै व हैदराबाद भी जा रहे हैं.

केरल में भी 20 लाख से अधिक प्रवासी मजदूर काम कर रहे हैं, जो बिहार व उत्तर प्रदेश के हैं. केरल में प्रवासी मजदूरों की संख्या अधिक होने के दो मुख्य कारण हैं- एक, खाड़ी से आये पैसे की वजह से प्रवासी मजदूरों को अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा मेहनताना मिलता है. दूसरा यह कि केरल में साक्षरता दर शत प्रतिशत है और शिक्षित स्थानीय लोग मजदूरी जैसा ‘छोटा’ काम नहीं करना चाहते. उत्तर भारत के अशिक्षित प्रवासी इन कामों को करने के इच्छुक हैं. यही वजह है कि केरल में प्रवासी मजदूरों के लिए इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा कैंप हैं. वैसे कोविड-19 से सबसे ज्यादा ‘सर्कुलर माइग्रेशन’ प्रभावित हुआ है. ‘सर्कुलर माइग्रेशन’ भी लगभग सौ वर्षों से जारी है और इसका अर्थ यह है कि परिवार के वयस्क पुरुष काम की तलाश में बड़े शहरों में चले जाते, जहां वह हर प्रकार का काम करते हैं जैसे सिक्यूरिटी गार्ड, निर्माण मजदूर आदि.

चूंकि इन कामों की सीमित आय के कारण वह अपने परिवार के रहने का ठिकाना शहरों में नहीं कर सकते, इसलिए उनका परिवार पीछे गांव में ही रहता है, जिसे वह खर्चे के लिए पैसे भेजते रहते हैं. साल में कुछ सप्ताह या माह के लिए ये अपने परिवार के पास चले जाते हैं. काम और घर के बीच चक्कर लगाने का यह सिलसिला जीवनभर जारी रहता है, इसे ही ‘सर्कुलर माइग्रेशन’ कहते हैं. 2017 के आर्थिक सर्वे के अनुसार भारत में 10 करोड़ से अधिक ‘सर्कुलर प्रवासी’ हैं. अनुमान यह है कि कोरोना खतरा समाप्त होने पर ये ‘सर्कुलर प्रवासी’ वापस शहरों में आ जायेंगे. भारत में वैसे भी फसल कटाई के महीनों (अप्रैल व मई) में प्रवासी अपने गांव लौट जाते हैं. चूंकि अब हम अप्रैल के मध्य में हैं और यह प्रवासी शहर छोड़ चुके हैं, इसलिए उन्होंने इस वर्ष के लिए अपनी प्रवासी योजना बदल दी है. काफी अनिश्चितता है.

कोरोना से अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट होने जा रही है और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रवासी मजदूरों की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसलिए जरूरत है कि सरकार प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को तुरंत संबोधित करे. ग्रामीण भारत से मजदूर दो मुख्य कारणों से बाहर निकलते हैं- अपनी आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए और अपने मूल स्थान की बदहाली से बचने के लिए. किसी भी देश के विकास व प्रगति के लिए प्रवास जरूरी है, लेकिन डिस्ट्रेस माइग्रेशन (अपनी जगह की बदहाल स्थिति के कारण प्रवास) को कम करने की जरूरत है. बहरहाल, इस समय दो काम बहुत जरूरी हैं- एक, दैनिक मजदूरों के लिए जो 21,000 कैंप हैं, उन्हें बंद कर दिया जाये. फंसे हुए छह लाख से अधिक प्रवासी मजदूर जब अपने घर लौटेंगे तभी उनमें फिर से काम पर लौटने का हौसला आयेगा. दूसरा यह कि प्रवासी मजदूरों के लिए चल कल्याण योजनाएं हों ताकि वह जहां काम पर जाएं वहीं उनको राशनकार्ड से फूड आदि मिल जाये, जो इस समय उनको सिर्फ रिहायश के मूल स्थान पर ही मिलता है.

लॉकडाउन-2 के पहले ही दिन जिस तरह एक बार फिर मुंबई, सूरत, हैदराबाद और कई दूसरे शहरों में मजदूरों का हुजूम अपने गांवों को जाने के लिए उमड़ा, उससे साफ है कि तमाम कोशिशों के बाद भी अभी तक प्रवासी मजदूर सरकारों पर चाहे वो राज्य की सरकारें हों या केंद्र की सरकार, यकीन नहीं कर पा रहे. आज भी मजदूर अपनी जान की कीमत पर भी अपने गांवों को जाने के लिए तैयार हैं. ऐसा क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि मजदूरों के दिल-दिमाग में यह बात बहुत गहरे तक धंसी हुई है कि चाहे वे कुछ भी कर लें, लेकिन शहरी मध्यवर्ग उनके प्रति कोई अपनत्व या लगाव नहीं रखता. सरकारें भी अपनी तमाम नीतियां और रणनीतियां खाते पीते मध्यवर्ग को ध्यान में रखकर ही बनाती है. यह बहुत बड़ी फांस है, यह फांस मजदूरों के दिल से तभी निकल सकती है, जब हम वाकई ईमानदारी से उनके प्रति अपनत्व दर्शाएं ही नहीं बल्कि वाकई में रखें.

’ये रिश्ता…’ फेम Mohena Kumari की शादी को हुए 6 महीने पूरे, शेयर किया शादी का वीडियो

स्टार प्लस के पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Ye Rishta Kya Kehlata Hai) फेम एक्ट्रेस मोहेना कुमारी सिंह (Mohena Kumari Singh) की शादी को 6 महीने पूरे हो गए है. इस बीच वह अपने ससुराल में मस्ती और किस तरह अपनी जिंदगी जी रही हैं, इसकी फोटोज और वीडियो शेयर करके फैंस को दी. जो उन्हें काफी पसंद आती हैं. वहीं अब शादी के 6 महीने बाद मोहेना (Mohena Kumari Singh) ने अपने इंस्टाग्राम पर एक टीजर वीडियो शेयर किया है, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है. आइए आपको दिखाते हैं मोहेना की ये खास वीडियो….

वेडिंग टीजर वीडियो किया शेयर

 

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Six months ago was literally the biggest day of my life…a day full of nervousness, laughter , hugs & tears a lot of things changed, a lot of new things began. My family did so much for me and my happiness and gave me so much love.I will never be able to thank them enough. My new family supported me and took me in with so much love that I will be indebted with love for life. Thanks to all my friends who made it for my big day , I literally couldn’t do it without you’ll, love you guys so much. All our staff – my extended family- that was there working tirelessly day in and day out to make these days and this day especially , so wonderful for us.A big thank you to all the Premi’s of Manav Dharam @manavdharam who came from all over the world to celebrate our day with us thank you for all the love. And now for the one and only , the one who has been my pillar , my buddy , my partner in crimes and good deeds @suyeshrawat, my love, my everything. Thank you for sharing and cherishing the best moment of my life. I love you My Pati. So much ♥️ #happysixmonths #sumo #sumokishaadi Thanks for the Lovely Teaser @storiesbyjosephradhik Eagerly waiting for The Wedding Film 🎥🌸

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एक्ट्रेस मोहेना कुमारी (Mohena Kumari Singh) ने प्री वेडिंग से लेकर विदाई तक का एक वीडियो शेयर किया है. इसमें एक मिनट 19 सेकंड के ब्लैक एंड व्हाइट वीडियो को शेयर करते हुए मोहेना ने लिखा कि 6 महीने पहले मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा दिन था. एक ऐसा दिन जिसमें मैं घबराई हुई थी, हंस रही थी, गले लग रही थी और आंखों से आंसू भी आ रहे थे. बहुत चीजें बदलने वाली थीं और कुछ नई चीजों की शुरुआत होने वाली थी. मेरे परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया. मुझे हमेशा खुश रखा और बहुत प्यार भी दिया. मैं उसका कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगी. इसके लिए मेरा उन्हें धन्यवाद करना भी कम ही होगा. मेरे नए परिवार ने भी मुझे उतना ही प्यार दिया. मैं अपने सभी दोस्तों का शुक्रिया करना चाहूंगी जो मेरी शादी में शामिल हुए. शायद मैं आप सभी के बिना यह नहीं कर पाती. सभी को प्यार.

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फैंस को मिलवाया फैमिली से

हाल ही में मोहेना ने अपने चैनल पर अपने ससुराल के सदस्यों से अपने फैंस को मिलवाया. वहीं फैंस को भी इन से मिलकर बेहद खुशी हुई और वह वीडियो वायरल हुई.

 

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💜 My Son turned Sweet Six 💜 Since we missed it earlier….we will celebrate today ! #bagelthebeagle

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बता दें, मोहेना की शादी 14 अक्टूबर को हरिद्वार में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री और आध्यात्मिक गुरु सतपाल महाराज के छोटे बेटे सुयश रावत के साथ हुई थी, जिसमें उनके करीबी दोस्तों और परिवार वालों ने शिरकत की थी.  वहीं शादी के बाद मोहेना ने एक्टिंग की दुनिया से विदा लेने की बात भी कही थी, हालांकि वह फैंस को अपने अपडेट्स सोशल मीडिया के जरिए देती रहती हैं.

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‘रामायण’ के ‘लक्ष्मण’ पर बने मजेदार मीम्स तो एक्टर सुनील लहरी ने दिया ऐसा रिएक्शन

देश में बढ़ते कोरोनावायरस के बढ़ते केस के कारण लॉकडाउन को 3 मई तक बढ़ा दिया गया है. वहीं इस कारण आम आदमी समेत बौलीवुड और टीवी इंडस्ट्री को भी इसका खामियाजा उठाना पड़ रहा है. इसी बीच दूरदर्शन पर एक बार फिर ‘रामायण’ (Ramayan) और ‘महाभारत’ जैसे एतिहासिक सीरियल्स को दोबारा शुरू किया गया है, जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं. वहीं फैंस ने इन सीरियलों के मीम्स भी बनाना शुरू कर दिए हैं, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहे हैं. आइए आपको दिखाते वायरल मीम्स की झलक….

शो के कैरेक्टर्स पर बनें मजेदार मीम्स…

 

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लखन भैया की जय 😄😄🤗🤗🤗🙏🙏🙏🌋🌋🙏🙏🙏

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हाल ही में रामायण के राम, जिसका किरदार अरुण गोविल (Arun Govil) ने निभाया था और  लक्ष्मण यानी सुनील लहरी (Sunil Lahiri)के मीम्स ट्विटर पर वायरल हो गए थे, जिस पर अब सुनील लहरी का रिएक्शन आया है.

 

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लक्ष्मण ने कही ये बात

 

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जय हो 🤗🤗🌋🌋🙏🙏

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लक्ष्मण के रोल में नजर आने वाले सुनील लहरी ने इन मीम्स को लेकर कहा कि 30 साल बाद दर्शकों से इतनी अटेंशन मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है. सोशल मीडिया पर ‘लक्ष्मण’ के किरदार से जुड़े कई मीम्स बन रहे हैं. लोगों ने मेरे पास भेजे हैं, जिन्हें देखकर अच्छा लग रहा है. बुरा बिलकुल नहीं लगा रहा. मेरे भाई के बच्चे भी मुझे ये मीम्स भेजते रहते हैं. मैं इन्हें एंजॉय करता हूं.

 

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जय हो 🤗🤗🌋🌋🙏🙏

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बता दें, ‘रामायण’ को लेकर फैंस का जबरदस्त रिएक्शन आ रहा है, वहीं इसी के साथ दर्शकों के लिए  कुछ पुराने शोज़ जिसमें ‘शक्तिमान’, ‘बुनियाद’, ‘देख भाई देख’, ‘ऑफिस-ऑफिस’, ‘श्रीमान-श्रीमती, ‘अखबर और बीरबल’ शामिल हैं, उन्हें दोबारा दिखाया जा रहा है. इसी के साथ ही दूरदर्शन की टीआरपी में भी उछाल आ गया है, वहीं फैंस भी इन शोज को दोबारा देखने के बाद बेहद खुश हैं.

Serial Story: उड़ान (भाग-1)

घर्रघर्र की आवाज करती बस कच्ची सड़क पर बढ़ती जा रही थी. उस में बैठी अरुणा हिचकोले खाती बाहर का दृश्य एकटक देख रही थी. नारियल के पेड़ों के झुंड, कौफी के बागान, अमराइयां, सुपारी के पेड़, लहलहाते धान के खेत, चारों तरफ हरियाली और प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य देख कर अरुणा की आंखें भर आईं.

बचपन में यही सफर वह बैलगाड़ी में तय करती थी. उस के गांव तिरुपुर में तब बस और मोटरें नहीं चलती थीं. आसपास के गांवों तक लोग बैलगाड़ी में ही आयाजाया करते थे.

अरुणा की आंखें शून्य में जा टंगीं. वह अतीत की यादों में खो गई.

वह अभी 16 साल की थी कि उस के मातापिता ने उस का ब्याह तय कर दिया. उस ने बहुत नानुकुर की पर उस की एक न चली. उस का मन आगे पढ़ने का था पर पिता बोले, ‘आगे पढ़ कर क्या करना है, वही चूल्हाचक्की न. बस, बहुत हो गया.’

इस बात की जानकारी जब उस के चाचा गोविंद को हुई तो वे शहर से दौड़े चले आए.

‘अन्ना, यह क्या करते हो? इतनी छोटी उम्र में बेटी की शादी?’

‘अरे, मेरा बस चलता तो इसे छुटपन में ही ब्याह देता,’ कृष्णस्वामी बोले, ‘लड़की रजस्वला हो उस से पहले उस का विवाह होना कल्याणकारी होता है. ऐसे ही विवाह को  ‘गौरी कल्याणम’ कहा जाता है और इसे बहुत श्रेष्ठ माना जाता है.’

‘लेकिन आजकल ये सब कौन करता है. अरुणा को आगे पढ़ने दीजिए.’

‘देखो गोविंद, बेटी को आगे पढ़ाने का मतलब है उसे शहर भेजना, क्योंकि हमारे गांव में कालेज तो है नहीं.’

‘इसे मेरे पास बेंगलुरु भेज दीजिए.’

‘नहीं, तुम्हारा अपना परिवार है.

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तुम उस को देखो. अरुणा मेरी जिम्मेदारी है. उस के लिए अच्छा घरवर ढूंढ़ लिया है. और फिर अरुणा ठिकाने से लगेगी तभी न उस की छोटी बहनों के लिए रास्ता खुलेगा.’

शादी के 1 वर्ष बाद ही अरुणा के पति की एक ट्रेन दुर्घटना में मृत्यु हो गई. उस के ससुराल वालों का तो उस पर कहर ही टूट पड़ा, ‘अरे, कैसी सत्यानाशी, कुलक्षणी लड़की निकली यह जो आते ही हमारे बेटे को खा गई. हमें नहीं चाहिए यह मनहूस कुलनाशिनी,’ ससुराल में उस का जीना दूभर कर दिया गया.

पिता उसे ससुराल से घर ले आए.

‘तू फिक्र न कर मेरी बच्ची,’ उन्होंने उसे दिलासा दिया था, ‘जब तक

मांबाप का साया तेरे सिर पर है, तुझे किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं. हम हैं न तेरी सरपरस्ती के लिए.’

‘हां अक्का,’ छोटे भाई राघव ने आश्वासन दिया, ‘मैं और केशव भी हैं जो आजन्म तुम्हें संभालेंगे.’

लेकिन क्या इन खोखले शब्दों से उस के आंसू थमने वाले थे? मांबाप का संरक्षण था, पर साथ ही बंदिशें भी थीं. उसे अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता था.

पिता कृष्णस्वामी के धर्मगुरु स्वामी अनंताचार्य घर आए. पूरा घर हाथ जोड़े उन के स्वागत में लग गया.

‘यजमान, तुम्हारी बेटी के बारे में सुना, बड़ा दुख हुआ. पर होनी को कौन टाल सकता है. अब तुम लोगों को चाहिए कि बिटिया को धैर्य बंधाओ. पिछले जन्म के कर्मों की सजा इस जन्म में मिल रही है. इस जन्म में नेमधरम से रहेगी तभी अगला जन्म संवरेगा. हां, तो बिटिया के केशकर्तन कब करवा रहे हो?’

कृष्णस्वामी भारी सोच में पड़ गए. बेटी का उदास चेहरा, सूना माथा और  गला देख कर ही उन का कलेजा मुंह को आता था. उस के केश उतारे जाने की कल्पना से वे थर्रा गए.

अरुणा ने सुना तो वह बिलखबिलख कर रोने लगी, ‘पिताजी, मेरे केश मत उतरवाओ. मैं यह सह नहीं पाऊंगी.’

उस के लिए यही क्या कम था कि भरी जवानी में वैधव्य दुख भोग रही थी. पति के मरते ही उस की चूडि़यां तोड़ दी गई थीं. मंगलसूत्र गले से उतार लिया गया था. उसे सादे कपड़े पहनने के लिए बाध्य कर दिया गया था. माथे से सुहाग का चिह्न पोंछ दिया गया था सौंदर्य प्रसाधन, आमोदप्रमोद सब वर्जित हो गए. जब उस की सखीसहेलियां शादीब्याह में बनठन कर अठखेलियां करतीं तो वह उपेक्षित सी घर में मुंह लपेट कर पड़ी रहती.

उस के गोविंद चाचा जब शहर से गांव आए तो देखा कि सारा घर शोक में डूबा हुआ था.

‘यह क्या अन्ना, हमारे धर्मशास्त्रों में लिखा है कि जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता बसते हैं. लेकिन तुम्हारे घर की स्त्रियों की दयनीय दशा देखी नहीं जाती. एक तरफ भाभी रो रही हैं. बेटी अलग अपने गम में घुलती जा रही है और तुम हो कि उन की ओर से बिलकुल उदासीन हो.’

‘मैं क्या करूं गोविंद, मुझे तो कुछ सूझता नहीं है,’ कृष्णस्वामी ने बुझे हुए स्वर में कहा.

‘तुम अब अरुणा को मेरे जिम्मे छोड़ दो. मैं उसे शहर ले जाऊंगा. उसे कालेज में भरती कराऊंगा. बिटिया वहीं पढ़ाई करेगी.’

‘लेकिन…’

‘अब लेकिनवेकिन नहीं. मैं तुम्हारी एक न सुनूंगा.’

मांबाप ने भारी मन से अरुणा को विदा किया. सौ हिदायतें दीं. घर में थी तो बात और थी. वे उस के ऊपर कड़ा नियंत्रण रखते. पगपग पर टोकाटाकी करते. जवान लड़की के कहीं कदम बहक न जाएं, इस बात का उन्हें हमेशा डर लगा रहता.

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अरुणा के चाचा उसे बेंगलुरु ले कर चले गए. उसे कालेज में दाखिला दिला दिया.

इस दौरान एक दिन अरुणा की मुलाकात श्रीकांत से हुई. वह पास के कालेज में पढ़ता था. सुदर्शन और मेधावी था. लड़कियां उस के पीछे दीवानी थीं. पर उस ने सब को छोड़ अरुणा को चुना था. वे चोरीछिपे मिलने लगे.

एक दिन श्रीकांत बोला, ‘तुम ने उडुपी कृष्णभवन का मसाला डोसा खाया है कभी?’

‘नहीं.’

‘चलो, आज चलते हैं.’

‘नहीं बाबा, तुम्हारे साथ रेस्तरां गई और किसी ने देख लिया तो?’

‘देख ले, हमारी बला से. कोई हमारा क्या कर लेगा? हम दोनों तो शादी करने वाले हैं.’

‘शादी,’ उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘श्रीकांत, यह तुम क्या कह रहे हो? क्या तुम जानते नहीं कि मैं विधवा हूं?’

‘जानता हूं. पर वह तुम्हारा गुजरा हुआ कल था. मैं तुम्हारा आने वाला कल हूं.’

उस के प्यार की भनक आखिर एक दिन घरवालों को लग ही गई. उस दिन घर में एक तूफान आ गया था.

‘विधवा का पुनर्विवाह,’ पिताजी गरजे थे, ‘असंभव. अरे पगली, तू उस देश में जन्मी है जहां स्त्रियां पति की चिता पर सहगमन करती थीं. हमारे वंश में न कभी ऐसा हुआ न कभी होगा. हम लोग ऐसेवैसे नहीं हैं. हम उच्च कोटि के ब्राह्मण हैं. मेरे दादा मैसूर महाराजा के राजपुरोहित थे. सभी काम नेमधरम से करते थे तब कहीं जा कर राजकाज संभालते थे. और तुझे मेरी मां की याद है?’

‘हां,’ उस ने अस्फुट स्वर में कहा.

अरुणा को अपनी दादी भलीभांति याद हैं. 20 साल की आयु में विधवा हुईं. घुटा हुआ सिर, एकवसना, एक जून खाना.

8 गज की तांत की साड़ी में अपना तन और सिर ढकतीं. हमेशा नेमधरम से रहतीं. वे सांध्य बेला में मंदिर जाना नहीं भूलतीं. एक दिन मंदिर में ही एक खंभे के सहारे बैठेबैठे, प्रवचन सुनते हुए उन के प्राणपखेरू उड़ गए थे.

आगे पढ़ें- लेकिन जैसे अरुणा का मन अंदर से चीख उठा था…

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Serial Story: उड़ान (भाग-2)

लेकिन जैसे अरुणा का मन अंदर से चीख उठा था, ‘वह जमाना और था’. उसे इस बात का ज्ञान था कि वह आज के युग की नारी है, उस में सोचनेसमझने की शक्ति है, वह अपना भलाबुरा जानती है. वह नियति के आगे सिर कैसे झुका दे. वह कैसे एक अज्ञात मनुष्य के नाम की माला जपते हुए अपने बचेखुचे दिन गुजार दे.

माना कि वह पुरुष उस का पति था. अग्नि को साक्षी मान कर उस ने उस के साथ सात फेरे लिए थे. पर था तो वह उस के लिए एक अजनबी ही. यह जानते हुए कि यही विधि का विधान है, वह मन मार कर नहीं रह सकती. उस का मन विद्रोह करना चाहता है.

उसे अपने हिस्से की धूप चाहिए. उसे वे सभी खुशियां, वे सभी नेमतें चाहिए जिन पर उस का जन्मसिद्ध अधिकार हैं. उसे एक जीवनसाथी चाहिए, एक सहचर जिस के साथ वह अपना सुखदुख बांट सके. जिस पर अपना प्यार लुटा सके, जिस पर वह अपना अधिकार जमा सके, उसे चाहिए एक नीड़ जहां बच्चों का कलरव गूंजे.

वह यह सब अपने मातापिता से कहना चाहती थी. पर उस के मांबाप पुरातनपंथी थे, रूढि़वादी थे, संकीर्ण विचारों वाले परले सिरे के अंधविश्वासी थे. पिता उग्र स्वभाव के थे जिन के सामने उस की जबान न खुलती थी. मां पिता की हां में हां मिलातीं. वे उस की सुनने को तैयार ही न थे. श्रीकांत का उन्होंने जम कर विरोध किया.

‘देख अरुणा, हम तुझे बताए देते हैं, इस लड़के से ब्याह का विचार त्याग दे. हमारे जीतेजी यह मुमकिन नहीं. हमें बिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा. जाने कहां का आवारा, लफंगा तुझे अपने जाल में फंसाना चाहता है. हम ठहरे ब्राह्मण, वह नीच जाति का. मैं कहे देता हूं, यदि तू ने उस छोकरे से ब्याह करने की जिद ठानी तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा. मैं अपनी बात का धनी हूं. इस से पहले कि कुल पर आंच आए या कोई हम पर उंगली उठाए, हम मर जाएंगे. मैं कुएं में छलांग लगा दूंगा या आमरण अनशन करूंगा.’

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अरुणा सहम गई. मांबाप के प्रति विद्रोह करने की उस में हिम्मत न थी. उस ने श्रीकांत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

स्वामी अनंताचार्य घर आए. उन्होंने अरुणा के बारे में सुना.

‘देख वत्स, इसीलिए मैं कहता था कि बिटिया के केश उतरवा दो. विधवाओं के लिए यह नियम मनुस्मृति में लिखा गया है. लेकिन उस वक्त तुम ने मेरी बात नहीं मानी. अब देख लिया न परिणाम? तुम्हारी बेटी का  रूप व घनी केशराशि देख कर ऋषिमुनियों के मन भी डोल जाएं, मनुष्य की बिसात ही क्या?’

उन्होंने अरुणा से कहा, ‘बेटी, अब ईश्वर में लौ लगाओ. रोज मंदिर जाओ. भगवत सेवा करो. वही मुक्तिमार्ग है.’

कुछ रोज तो वह मंदिर जाती रही पर सांसारिक मोहमाया न त्याग सकी. मंदिर में भी उस का मन भटकता रहता था. आंखें प्रतिमा पर टिकी रहतीं पर मन में श्रीकांत की छवि बसी थी. कानों में स्वामीजी के प्रवचन गूंजते और वह श्रीकांत के खयालों में खोई रहती.

समय सरकता रहा. उस के भाईबहन अपनेअपने परिवार को ले कर मगन थे. मातापिता का देहांत हो चुका था. अरुणा ने पढ़ाई पूरी कर के अपने ही कालेज में व्याख्याता की नौकरी कर ली थी. पठनपाठन में उस का मन लग गया था. किताबें ही उस की मित्र थीं. पर कभीकभी उस का एकाकी जीवन उसे सालता था.

बस अचानक एक झटके से रुकी और अरुणा वर्तमान में लौट आई. उस का गांव आ गया था. उस के भाई व भाभी ने उस का स्वागत किया.

‘‘आओ अक्का, अब तो वापस शहर नहीं जाओगी न?’’ राघव ने उस के हाथ से बैग लेते हुए कहा.

‘‘नहीं, नौकरी से रिटायर हो चुकी हूं. मैं काम करकर के थक गई थी. अब यहीं शांति से रहूंगी.’’

‘‘अच्छा किया, मुझे भी आप की मदद की जरूरत है,’’ नागमणि बोली, ‘‘आप तो जानती हैं कि श्रीधर की शादी तय हो गई है. उस की तैयारी करनी है. जया के भी पांव भारी हैं. वह भी जचकी के लिए आने वाली है. आप को ही सब करनाकराना है.’’

‘‘तुम सब कुछ मुझ पर छोड़ दो, भाभी. मैं संभाल लूंगी.’’

वह बड़े उत्साह से शादी की तैयारी में लग गई. वधू के लिए गहने गढ़वाना, मेहमानों के लिए पकवान बनाना, रंगोली सजाना आदि ढेरों काम थे.

बहू बिदा हो कर आई थी. घर में गांव की स्त्रियों का जमघट लगा हुआ था.

वरवधू द्वाराचार के लिए खड़े थे.

‘‘अरे भई, आरती कहां है? कोई तो आरती उतारो,’’ किसी ने गुहार लगाई.

अरुणा ने सुना तो थाल उठा कर दौड़ी.

नागमणि ने झटके से उस के हाथ से थाली छीन ली, ‘‘यह क्या कर रही हैं अक्का? आप को कुछ होश है कि नहीं? यह काम सुहागिनों का है. आप की तो छाया भी नववधू पर नहीं पड़नी चाहिए. अपशकुन होगा.’’

अरुणा पर घड़ों पानी पड़ गया. कुछ क्षणों के लिए वह भूल बैठी थी कि वह विधवा है. शुभ अवसरों पर उसे ओट में रहना चाहिए. उसे याद आया कि घर में जब भी पिता बाहर निकलते और वह उन के सामने पड़ जाती तो वे उलटे पैरों लौट आते और थोड़ी देर बैठ कर पानी पी कर फिर निकलते.

शहर में लोग इन बातों की परवा नहीं करते थे, पर गांव की बात और थी. यहां लोग अभी भी कुसंस्कारों में जकड़े हुए थे. लीक पीटते जा रहे थे.

कुछ दिनों बाद नागमणि ने फिर

उस के रहनसहन पर आपत्ति खड़ी कर दी.

‘‘अक्का, आप रसोईघर और पूजाघर में न जाया करें.’’

‘‘क्यों भला?’’

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‘‘स्वामी अनंताचार्यजी कह रहे थे कि आप ने विधवा हो कर भी केशकर्तन नहीं कराए जो हमारे शास्त्रों के विरुद्ध है और आप को अशुद्ध माना जा रहा है.’’

अरुणा के हृदय पर भारी चोट लगी. इतने सालों बाद यह कैसी प्रताड़ना? अभी भी उस के आचार पर लोगों की निगाहें गड़ी हैं. जीवन के संध्याकाल में इस दौर से भी गुजरना होगा, यह उस ने सोचा न था. उसे अपने ही लोगों ने अछूत की तरह जीने पर मजबूर कर दिया था. पगपग पर लांछन, पगपग पर तिरस्कार.

आगे पढ़ें- आखिर एक दिन उस का मन इतना विरक्त हुआ कि उस ने…

#lockdown: गरमियों में घर पर ऐसे रखें हेल्थ का ख्याल

गरमी का मौसम हेल्थ से जुड़ी बहुत सी परेशानियां लेकर आता है.आजकल वैसे भी सब लोग लाक डाउन के चलते घर में रहने को मजबूर हैं. ज़्यादातर लोग समझ नहीं पा रहे के इस  समय अपने आहार और जीवनशैली में किस तरह बदलाव लाएं.  इन दिनों के मौसम के साथ जीवनशैली में भी ज़रूरी बदलाव लाने चाहिए. क्योंकि हमारा शरीर बदलते मौसम के लिए संवेदनशील होता है. इन गर्मियों के मौसम के भी अपने फायदे हैं.

गर्मियों के फल और सब्ज़ियां पोषक पदार्थों- जैसे फाइटोन्यूट्रिएन्ट्स और एंटीऔक्सीडेन्ट से भरपूर होती हैं, जो एजिंग की प्रक्रिया को धीमा करती हैं, शरीर को कैंसर जैसी बीमारियों से बचाती हैं, ब्लड प्रेशर को नियन्त्रित और दिल को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती हैं. आइए मौसम को ध्यान में रखते हुए अपने शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए अपनी जीवनशैली में कुछ सकारात्मक बदलाव लाएं.

बैरीज़ और नारियल पानी

रसबैरी, स्ट्रौबैरी, मलबैरी और इण्डियन बैरी में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है, जो टिश्यूज़ यानि उतकों की मरम्मत करता है. इनके एंटीऔक्सीडेन्ट गुण प्रदूषण से सुरक्षित रखते हैं. स्ट्रौबैरी में विटामिन सी ज़्यादा मात्रा में होता है, इसके अलावा इनमें मौजूद फोलेट दिल की बीमारियों की संभावना को कम करता है. गर्मियों में मौसम में खूब नारियल पनी पीएं. इसमें कैलोरीज़ नहीं होती और यह प्राकृतिक एंटीऔक्सीडेन्ट है. कोला और सोडा जैसे पेय के बजाए नारियल पानी का सेवन करें और फ़र्क देखें.

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अपने आप को फूड पौइज़निंग से बचा कर रखें

गर्मियों के मौसम में फूड पौइज़निंग एक आम समसया है. इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि  बचा हुआ बासा खाना न खाएं, क्योंकि इस मौसम में खाना जल्दी खराब होता है. प्रदूषित पानी के सेवन से बचें. इसके बावजूद गैस्ट्रोएंट्राइटिस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

मेवों के बजाए प्याज़ और योगहर्ट का सेवन करें

मेवों में तेल और कार्बोहाइड्रेट अधिक मात्रा में होता है, जो शरीर की गर्मी बढ़ाते हैं. इसलिए गर्मियों में मेवों का सेवन न करें. इसके बजाए कच्चे प्याज़ में प्रोटीन, सोडियम, पोटेशियम, सैल्युलोज़, एक फिक्स और एक असेन्शियल औयल, 80 फीसदी से ज़्यादा पानी होता है. इन्हें खाने से भूख बढ़ती है, पाचन में सुधार आता है, शरीर का इलेक्ट्रोलाईट संतुलन बना रहता है. योगहर्ट के सेवन से आहार नाल में अच्छे बैक्टीरिया पनपते हैं, जो शरीर को ठंडा रखते हैं और पाचन में सुधार लाते हैं. अगर आपको इसका स्वाद पसंद नहीं है तो आप छाछ का सेवन कर सकते हैं.

डॉ. पी वेंकट कृष्णन, इंटरनल मेडिसिन, पारस अस्पताल गुड़गांव

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#lockdown: बच्चों के लिए बनाएं चाकलेटी ब्रेड रोल

आज हम आपको ब्रैड और चौकलेट का कौम्बिनेशन करके कैसे रोल बनाएं, इसकी खास रेसिपी बताएंगे.

हमें चाहिए

4 ब्रेड स्लाइस

2 टी स्पून कोको पाउडर

1 टेबल स्पून कटी मेवा

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1 टी स्पून पिसी शकर

1 टी स्पून मलाई

1 टी स्पून नारियल बुरादा या काजू पाउडर

1 टी स्पून घी.

विधि-ब्रेड स्लाइस को मिक्सी में बारीक पीस लें. अब इसमें कोको पाउडर, कटी मेवा, पिसी शकर और मलाई अच्छी मरह मिलाएं. हाथों में चिकनाई लगाकर तैयार मिश्रण के रोल बनाएं और नारियल बुरादा में लपेटकर सर्व करें.

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नोट-कोको पाउडर के स्थान पर आप डार्क चाकलेट या चाकलेटी सॉस तथा मलाई के स्थान पर मिल्कमेड या घर पर तैयार कंडेस्ट मिल्क आदि घर में जो भी उपलब्ध हो उनका भी प्रयोग किया जा सकता है.

#lockdown: ये हैं पत्नी का गुस्सा शांत करने के 5 जबरदस्त टिप्स

शादी के बाद लोगों की जिंदगी में कई बदलाव आते हैं और इसी के साथ ही कई जिम्मेदारियां भी आती हैं. पति हो या पत्नी दोनों को अपने रिश्ते को बनाए रखने के लिए कई बातों का ख्याल रखना पड़ता हैं. पति-पत्नी का रिश्ता नोंक-झोंक का रिश्ता होता हैं, जिसमें कभीकभार पति को पत्नी की नाराजगी भी झेलनी पड़ती हैं.

ऐसे में पति को समझदारी दिखाते हुए समय रहते पत्नी का गुस्सा शांत करने की जरूरत होती हैं, नहीं तो यह बड़ी लड़ाई बन सकती हैं. इसलिए आज हम आपके लिए कुछ टिप्स लेकर आए हैं कि किस तरह से आप अपनी पत्नी का गुस्सा शांत कर सकते हैं.

1. कभी-कभी पत्नी को दें आराम

घर संभालना भी कोई आसान काम नहीं है,सारा दिन परिवार की देखभाल करने के बाद पत्नी थक जाती है. कभी-कभी उसे इन कामों से छुट्टी दें क्योंकि सबको खुश करने के चक्कर में हो सकता है वह चिड़चिडी हो गई हो. आप पत्नी का ध्यान रखेंगे तो उसकी आदत भी ठीक होनी शुरू हो जाएगी.

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2. जानें नराजगी के पीछे की वजह

पत्नी अगर गुस्से में है तो पहले खुद से सवाल करें कि कहीं इसके पीछे आपकी कोई गलती तो नहीं. उसके बाद उससे कारण पूछें. इसके पीछे की वजह जायज लगती है तो उससे बैठकर बात करें. गलती अगर आपकी है तो उसे शांत करने के लिए सॉरी बोल दें. गुस्सा शांत होने पर उसे समझाएं कि बात-बात पर नराज होने सही नहीं है.

3. बच्चों की लें मदद

आप पत्नी को हैंडल करने के लिए बच्चों का सहारा भी ले सकते हैं. जब पत्नी गुस्से में हो तो बच्चों की तरफ ज्यादा ध्यान दें. बच्चे आसापास होंगे तो वह ऊंची आवाज में आपसे कोई भी नहीं कहेंगी. अपनी बीवी का मूड ठीक करने के लिए उसे घर से बाहर ले जाएं.

4. पत्नी के साथ समय बिताएं

अपनी पत्नी का मूड ठीक करने के लिए आप उनके साथ समय बिताएं. उनसे बात करें, हो सकता है उसके गुस्से के पीछे की वजह आपकी पत्नी का समय न देना हो.

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5. कभी-कभी पत्नी की अनदेखी करें

वाइफ को हैंडल करने का तरीका खोज रहे हैं तो कभी-कभी उसे इग्नोर भी करें. इससे उसका गुस्सा जल्दी शांत हो जाएगा और वह बाद में समझ पाएगी कि वह बेवजह आप पर गुस्सा कर रही है.

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