Serial Story: एहसास (भाग-3)

लेखिका- रश्मि राठी

सुधांशी उन दोनों को बहुत गौर से देख रही थी. आज उस का परिचय प्यार के एक नए रूप से हो रहा था. यह भी तो प्यार है कितना पवित्र, एकदूसरे के लिए समर्पण की भावना लिए हुए. उसे महसूस हो रहा था कि प्यार सिर्फ वह नहीं जो रात के अंधेरे में किया जाए. प्यार के तो और भी रूप हो सकते हैं. लेकिन उस ने तो कभी सुशांत की पसंद जानने की भी कोशिश न की. उस ने तो हमेशा अपनी आकांक्षाओं को ही महत्त्व दिया.

‘‘चलो, हम दूसरे कमरे में बैठ कर बातें करते हैं, ये लोग तो अपने दफ्तर की बातें करेंगे,’’ अमिता ने सुधांशी को उठाते हुए कहा.

अमिता और सुधांशी के विचारों में जमीनआसमान का फर्क था. अमिता घर के बारे में बातें कर रही थी, जबकि सुधांशी ने कभी घर के बारे में कुछ सोचा ही नहीं था. तभी अमिता ने कहा, ‘‘बड़ी सुंदर साड़ी है तुम्हारी, क्या सुशांत ने ला कर दी है?’’

‘‘नहीं, नहीं तो,’’ चौंक सी गई सुधांशी, ‘‘मैं ने खुद ही खरीदी है.’’

‘‘भई, ये तो मुझे कभी खुद लाने का मौका ही नहीं देते. इस से पहले कि मैं लाऊं ये खुद ही ले आते हैं. लेकिन इस बार मैं ने भी कह दिया है कि अगर मेरे लिए साड़ी लाए तो बहुत लड़ूंगी. हमेशा मेरा ही सोचते हैं. यह नहीं कि कभी कुछ अपने लिए भी लाएं. इस बार मैं उन्हें बिना बताए उन के लिए कपड़े ले आई. दूसरों की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है वह अपनी इच्छाएं पूरी करने में नहीं है.’’

‘‘चलो, आज घर नहीं चलना है क्या?’’ सुशांत ने उस की बातों में खलल डालते हुए कहा.

‘‘अच्छा, अब चलते हैं. किसी दिन आप लोग भी समय निकाल कर आइए न,’’ सुधांशी ने चलते हुए कहा.

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आज हर्षल के घर से लौटने पर सुधांशी के मन में हलचल मची हुई थी. उस के कानों में अमिता के स्वर गूंज रहे थे, ‘एकदूसरे की जरूरतें पूरी करने में जितना मजा है, अपनी इच्छाएं पूरी करने में वह नहीं है.’

लेकिन उस ने तो कभी दूसरों की जरूरतों को जानना भी नहीं चाहा था. उस ने तो यह भी नहीं सोचा कि घर में किस चीज की जरूरत है और किस की नहीं? और एक अमिता है, सुंदर न होते हुए भी उस से कहीं ज्यादा सुंदर है. जिम्मेदारियों के प्रति अमिता की सजगता देख कर सुधांशी के मन में ग्लानि का अनुभव हो रहा था.

‘‘अमिता भाभी, बहुत अच्छी हैं न,’’ सुधांशी ने मौन तोड़ते हुए कहा.

‘‘हां,’’ सुशांत ने ठंडी आह छोड़ते हुए कहा.

उस रात सुधांशी चैन से सो न सकी. सुबह उठी तो उसे तेज बुखार था. सुशांत ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने दवा दे दी. सुधांशी को आराम करने के लिए कह कर सुशांत दफ्तर चला गया. सुधांशी को बुखार के कारण सिर में बहुत दर्द था. तभी गरिमा लड़खड़ाते हुए आई, ‘‘कैसी तबीयत है, भाभी? लाओ, तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ कह कर सिर दबाने लगी.

मां भी बहुत चिंतित थीं. समयसमय पर मां दवा दे रही थीं. आज सुधांशी को महसूस हो रहा था कि उस ने कभी भी इन लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया, लेकिन फिर भी उस के जरा से बुखार ने किस तरह सब को दुखी कर दिया. अपने पैर में चोट होने के बावजूद गरिमा उस का कितना ध्यान रख रही थी. मां भी कितनी परेशान थीं उस के लिए?

3-4 दिन में सुधांशी ठीक हो गई. आज वह सुशांत से पहले ही उठ गई थी. चाय बना कर सुशांत के पास आई, ‘‘उठिए जनाब, चाय पीजिए, आज दफ्तर नहीं जाना है क्या?’’

सुशांत को तो अपनी आंखों पर यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न, आज इतनी जल्दी कैसे जाग गईं?’’ उस ने हड़बड़ाते हुए पूछा.

‘‘जल्दी कहां, मेरी आंखें तो बहुत देर में खुलीं,’’ शून्य में देखते हुए सुधांशी ने कहा.

आज उस ने घर के सारे काम खुद ही किए थे. काम करने में मुश्किल तो बड़ी हो रही थी, मगर फिर भी यह सब करना उसे अच्छा लग रहा था. आज वह पहली बार नाश्ता बनाने के लिए रसोई में आई थी.

‘‘मांजी, आज से नाश्ता मैं बनाया करूंगी,’’ मांजी के हाथ से बरतन लेते हुए सुधांशी ने कहा.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाओगी?’’ मां ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं जानती हूं, मांजी, मुझे कुछ बनाना नहीं आता, लेकिन आप मझे सिखाएंगी न? बोलिए न मांजी, आप सिखाएंगी मुझे?’’

‘‘हां बहू, अगर तुम सीखना चाहोगी तो जरूर सिखाऊंगी.’’

आज सुशांत को बड़ा अजीब लग रहा था. उस का सारा सामान उसे जगह पर मिल गया था. कपड़े भी सलीके से रखे हुए थे. जब तैयार हो कर नाश्ते के लिए आया तो सुधांशी को नाश्ता लाते देख चौंक गया.

‘‘आज तुम ने नाश्ता बनाया है क्या?’’

‘‘क्यों? मेरे हाथ का बना नाश्ता क्या गले से नीचे नहीं उतर पाएगा?’’ मुसकराते हुए सुधांशी बोली.

‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ सैंडविच उठाते हुए सुशांत बोला, ‘‘सैंडविच तो बड़े अच्छे बने हैं. तुम ने खुद बनाए हैं?’’ सुशांत ने पूछा, फिर कुछ रुपए देते हुए बोला, ‘‘तुम कल अपनी साडि़यों के लिए पैसे मांग रही थीं न, ये रख लो.’’

सुशांत के दफ्तर जाने के बाद जब सुधांशी ने सैंडविच चखे तो उस से खाए नहीं गए. नमक बहुत तेज हो गया था. उसे सुशांत का खयाल आ गया, जो इतने खराब सैंडविच खा कर भी उस की तारीफ कर रहा था, शायद उस का दिल रखने के लिए सुशांत ने ऐसा किया था. उस की पलकें भीग गईं. प्यार की भावना को देख कर उस का मन श्रद्धा से भर उठा.

उस ने जल्दीजल्दी सारा काम खत्म किया. घर का काम करने में आज उसे अपनत्व का एहसास हो रहा था. फिर उसे सुशांत के दिए गए पैसों का खयाल आया. उस ने गरिमा को साथ लिया

और बाजार गई. सुशांत के दफ्तर से लौटने से पहले उस ने सारा काम निबटा लिया था.

‘‘अपनी साडि़यां ले आईं?’’ शाम को चाय पीतेपीते सुशांत ने पूछा.

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‘‘मेरे पास साडि़यों की कमी कहां है? आज तो मैं ढेर सारा सामान ले कर आई हूं,’’ इतना कह कर उस ने सारा सामान सुशांत के सामने रख दिया, ‘‘यह मां की साड़ी है, यह गरिमा का सूट और यह तुम्हारे लिए.’’

सुशांत उसे अपलक निहार रहा था. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही सुधांशी है, जिसे अपनी जरूरतों के अलावा कुछ सूझता ही नहीं था. आज उसे सुधांशी पहले से कहीं अधिक सुंदर लगने लगी थी.

‘‘अपने लिए कुछ नहीं लाईं?’’ प्यार से पास बिठाते हुए सुशांत ने पूछा.

‘‘क्या तुम सब लोग मेरे अपने नहीं हो? सच तो यह है कि आज पहली बार ही मैं अपने लिए कुछ ला पाई हूं. यह सामान ला कर जितनी खुशी मुझे हुई है उतनी कई साडि़यां ला कर भी न मिल पाती. सच, आज ही मैं प्यार का वास्तविक मतलब समझ पाई हूं.

‘‘प्यार एक भावना है, समर्पण की चेतना, खो जाने की प्रक्रिया, मिट जाने की तमन्ना. इस का एहसास शरीर से नहीं होता, अंतर्मन से होता है, हृदय ही उस का साक्षी होता है,’’ कह कर सुधांशी ने अपना सिर सुशांत के सीने पर रख दिया.

Serial Story: एहसास (भाग-2)

लेखिका- रश्मि राठी

सोचने लगा कि अगर वह सुशी की तरह जिद करेगा तो बात और बिगड़ जाएगी. अगर उसे अपने फर्ज का एहसास नहीं तो क्या वह भी अपना फर्ज भूल जाएगा? उसे सुशी के साथ किए गए अपने व्यवहार पर गुस्सा आने लगा था. इसी कशमकश में उसे पता ही नहीं चला कि सूरज निकल आया और उस ने पूरी रात यों ही काट दी.

आज उस का दफ्तर जाने को बिलकुल मन नहीं हो रहा था. मन ही मन उस ने तय कर लिया था कि वह सुधांशी को समझा कर वापस ले आएगा. सुशी के बिना उसे एकएक पल भारी पड़ रहा था. उसे लग रहा था कि उस की दुनिया एक वृत्त के सहारे घूमती रहती है, जिस का केंद्रबिंदु सुशी है.

उधर सुशी भी कम दुखी न थी. लेकिन उस का अहं उस के और सुशांत के बीच दीवार बन कर खड़ा था. उसे लग रहा था जैसे हर पल सुशांत उस का पीछा करता रहा हो या शायद वह ही सुशांत के इर्दगिर्द मंडराती रही हो. अपने खयालों में खोई हुई ही थी कि मां ने बताया, ‘‘नीचे सुशांत आया है. तुम्हें बुला रहा है.’’

उसे तो अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई.

‘‘मैं तुम्हें लेने आया हूं. अगर तुम खुशी से अपने मांबाप के पास रहने आई हो, तो ठीक है, लेकिन अगर नाराज हो कर आई हो तो अपने घर वापस चलो,’’ सुशांत ने अधिकार से सुधांशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

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सुशांत को इस तरह मिन्नत करते देख उस के मन में फिर अहं जाग उठा, ‘‘मैं उस घर में बिलकुल नहीं जाऊंगी.

तुम इसलिए ले जाना चाहते हो ताकि अपनी मांबहन के सामने मुझे लज्जित कर सको.’’

‘‘तुम पत्नी हो मेरी और तुम्हारा पति होने के नाते इतना तो हक है मुझे कि तुम्हारा हाथ पकड़ कर जबरदस्ती ले जा सकूं. बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अपना सामान बांध कर आ जाओ,’’ कह कर सुशांत कमरे से बाहर निकल गया.

जाने की खुशी तो सुधांशी को भी कम नहीं थी, वह तो सुशांत पर सिर्फ यह जताना चाहती थी कि उसे उस का घर छोड़ने का कोई अफसोस नहीं था.

घर पहुंच कर सुशांत ने सुधांशी को कुछ नहीं कहा. मामला शांत हो गया. अब तो सुशांत ने उसे टोकना भी बंद कर दिया था.

एक दिन सुशांत दफ्तर से लौटा तो देखा, मां रसोई में काम कर रही हैं. पूछने पर पता चला कि गरिमा काम करते हुए फिसल गई थी. पैर में चोट आई है. डाक्टर पट्टी बांध गया है.

‘‘सुधांशी कहां है, मां?’’ सुधांशी को घर में न देख कर सुशांत ने पूछा.

मां ने थोड़े गुस्से में कहा, ‘‘बहू तो सुबह से अपनी किसी सहेली के यहां गई हुई है.’’

शाम के 7 बज रहे थे और सुधांशी का कोई पता न था. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला. सामने सुधांशी खड़ी थी.

‘‘अफसोस है, हम लोग फिल्म देखने चले गए थे. लौटतेलौटते थोड़ी देर हो गई. बहुत थक गई हूं आज,’’ पर्स कंधे से उतारते हुए सुधांशी ने कहा.

सुशांत चुप ही रहा. उस ने सुधांशी से कुछ नहीं कहा.

अगले दिन जब सुधांशी कमरे से बाहर आई तो डाक्टर को आते हुए देखा.

‘‘मांजी, अपने यहां कौन बीमार है?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘गरिमा के पैर में चोट लगी है,’’ मां ने सपाट लहजे में उत्तर दिया.

‘‘गरिमा को चोट लगी है और किसी ने मुझे बताया भी नहीं?’’

‘‘तुम्हें शायद सुनने की फुरसत नहीं थी, बहू,’’ मां के स्वर की तल्खी को सुधांशी ने महसूस कर लिया था.

वह तुरंत गरिमा के पास गई, ‘‘अब कैसी हो, गरिमा?’’

‘‘ठीक हूं, भाभी,’’ धीमे स्वर में गरिमा ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो तुम्हारे भैया ने भी कुछ नहीं बताया तुम्हारी चोट के बारे में,’’ सुधांशी ने थोड़ा झेंपते हुए कहा.

‘‘उन्होंने तुम्हें परेशान नहीं करना

चाहा होगा, भाभी,’’ गरिमा ने बात टालते हुए कहा.

मगर आज सुधांशी को लग रहा था कि वह अपने ही घर में कितनी अजनबी हो कर रह गई है. शायद घर वालों की बेरुखी का कारण उसे मालूम था, लेकिन वह जानबूझ कर ही अनजान बनी रहना चाहती थी.

शाम को सुशांत लौटा तो उस ने शिकायत भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं कि गरिमा को चोट लगी है?’’

‘‘तुम पहले ही थकी हुई थीं,’’ सुशांत ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘‘और हां, आज शाम को मेरे एक दोस्त ने हमें खाने पर बुलाया है. तैयार हो जाना.’’

घूमने की बात सुनते ही सुधांशी खुश हो गई. जल्दी से अंदर जा कर तैयार होने लगी. एक पल उसे गरिमा की चोट का खयाल भी आया मगर फिर उस ने नजरअंदाज कर दिया.

‘‘भई, खाने में मजा आ गया. भाभीजी तो बहुत अच्छा खाना पकाती हैं,’’ सुशांत ने उंगलियां चाटते हुए कहा, ‘‘तुम तो बहुत खुशकिस्मत हो, हर्षल, जो तुम्हें इतना अच्छा खाने को मिल रहा है.’’

‘‘यार, तुम भी तो कम नहीं हो. इतनी सुंदर भाभी हैं हमारी. जितनी सुंदर वे खुद हैं उतना ही अच्छा खाना भी पकाती होंगी,’’ हर्षल ने हंसते हुए कहा, ‘‘अमिता, खाना तो हो गया है. अब जरा हम लोगों के लिए कुछ मिठाई भी ले आओ.’’

अमिता मिठाई लाने चली गई, ‘‘और भाभीजी, अब आप कब हमें अपने हाथ का बना खाना खिला रही हैं?’’ हर्षल ने सुधांशी से पूछा.

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सुधांशी ने सुशांत की तरफ देखा और झेंप गई. अमिता का घर देख कर उसे खुद पर शर्म आ रही थी. अमिता सांवली थी और दिखने में भी कोई खास न थी, लेकिन उस ने अपना पूरा घर जिस सलीके से सजा रखा था उस से उस की सुंदरता का परिचय मिल रहा था. सारा खाना भी अमिता ने खुद ही बनाया था. लेकिन उस ने तो कभी खाना बनाने की जरूरत ही नहीं समझी थी. सुशांत को इस तरह अमिता के खाने की प्रशंसा करते देख उसे शर्मिंदगी का एहसास हो रहा था. तभी अमिता मिठाई ले आई. सब को देने के बाद एक टुकड़ा फालतू बचा था, ‘‘लो हर्षल, इसे तुम ले लो,’’ अमिता ने मिठाई हर्षल को देते हुए कहा.

‘‘भई, नहीं, तुम ने इतनी मेहनत की है, इस पर तुम्हारा ही हक है,’’ इतना कह कर हर्षल ने मिठाई का टुकड़ा अमिता के मुंह में रख दिया.

आधा टुकड़ा अमिता ने खाया और आधा हर्षल को खिलाती हुई बोली, ‘‘मेरी हर चीज में आधा हिस्सा तुम्हारा भी है.’’

यह देख सभी लोग हंस पड़े.

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Serial Story: एहसास (भाग-1)

लेखिका- रश्मि राठी

कितने चाव से इस घर में सुधांशी बहू बन कर आई थी. अपने मातापिता की इकलौती बेटी होने के कारण लाड़ली थी. उस के मुंह से बात निकली नहीं कि पूरी हो जाती थी. ज्यादा आजादी की वजह से बेपरवा भी बहुत हो गई थी. मां जब कभी पिताजी से शिकायत भी करतीं तो वे यही कह कर टाल देते, ‘‘एक ही तो है, उस के भी पीछे पड़ी रहती हो. ससुराल जा कर तो जिम्मेदारियों के बोझ तले दब ही जाना है. अभी तो चैन से रहने दो.’’

मां बेचारी मन मसोस कर रह जातीं.

आज उस ने अपनी ससुराल में पहला कदम रखा था. पति एक अच्छी फर्म में मैनेजर के पद पर कार्यरत थे. घर में एक ननद और सास थी.

शादी के बाद 1 महीना तो मानो पलक झपकते ही बीत गया. घर में सभी उसे बेहद चाहते थे. नईनवेली होने के कारण कोई उस से काम भी नहीं करवाता था. सुशांत भी उस का पूरा ध्यान रखता. उस की हर फरमाइश पूरी की जाती. सुधांशी भी नए घर में बेहद खुश थी. उस की ननद गरिमा दिनभर काम में लगी रहती, मगर भाभी से कभी कुछ नहीं कहती.

सुशांत का खयाल था कि धीरेधीरे सुधांशी खुद ही कामों में हाथ बंटाने लगेगी, लेकिन सुधांशी घर का कोई भी काम नहीं करती थी. उस की लापरवाही को देख कर सुशांत ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘देखो सुशी, गरिमा मेरी छोटी बहन है. उस के सिर पर पढ़ाई का बोझ है और फिर इस उम्र में मां से भी ज्यादा काम नहीं हो पाता. तुम कामकाज में गरिमा का हाथ बंटा दिया करो.’’

‘‘भई, मैं ने तो अपने मायके में कभी एक गिलास पानी का भी नहीं उठाया और फिर मैं ने नौकरानी बनने के लिए तो शादी नहीं की,’’ अदा से अपने बाल संवारती हुई सुधांशी ने जवाब दिया.

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सुशांत को उस से ऐसे जवाब की जरा भी उम्मीद न थी. फिर भी उस ने गुस्से पर काबू करते हुए कहा, ‘‘घर का काम करने से कोई नौकरानी नहीं बन जाती, फिर नारी का पूर्ण सौंदर्य तो इसी में है कि वह अपने साथसाथ घर को भी संवारे.’’

सुधांशी ने उस की बात का कोई जवाब न दिया और मुंह फेर कर सो गई. सुशांत ने चुप रहना ही उचित समझा. सुबह जब वह उठी तो सुशांत दफ्तर जा चुका था. सुधांशी को ऐसी उम्मीद तो जरा भी न थी. उस ने तो सोचा था कि सुशांत उसे मनाएगा. दिनभर बिना कुछ खाएपीए कमरा बंद कर के लेटी रही. गरिमा ने उसे खाना खाने के लिए कहा भी, मगर उस ने मना कर दिया.

‘‘भाभी सुबह से भूखी हैं, उन्होंने कुछ नहीं खाया,’’ शाम को सुशांत के लौटने पर गरिमा ने उसे बताया.

सुशांत तुरंत उस के कमरे में गया और स्नेह से सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘क्या अभी तक नाराज हो. चलो, खाना खा लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है, तुम खा लो.’’

‘‘अगर तुम नहीं खाओगी तो मैं भी कुछ नहीं खाऊंगा. अगर तुम चाहती हो कि मैं भी भूखा ही सो जाऊं तो तुम्हारी मरजी.’’

‘‘अच्छा चलो, मैं खाना लगाती हूं,’’ मुसकराते हुए सुधांशी उठी. बात आईगई हो गई. इस के बाद तो जैसे उसे और भी छूट मिल गई. रोज नईनई फरमाइशें करती. खाली वक्त में घूमने चली जाती. घर का उसे जरा भी खयाल न था. कई बार सुशांत के मन में आता कि उसे डांटे लेकिन फिर मन मार कर रह जाता.

आज सुशांत को दफ्तर जाने में पहले ही देर हो रही थी. उस ने कमीज निकाली तो देखा, उस में बटन नहीं थे. झल्ला कर सुधांशी को आवाज दी, ‘‘तुम घर में रह कर सारा दिन आईने के आगे खुद को निहारती हो, कभी और कुछ भी देख लिया करो. मेरी किसी  भी कमीज में बटन नहीं हैं. क्या पहन कर दफ्तर जाऊंगा?’’

‘‘लेकिन मुझे तो बटन लगाना आता ही नहीं. गरिमा से लगवा लो.’’

‘‘तुम्हें आता ही क्या है? सिर्फ शृंगार करना,’’ कह कर सुशांत बिना बटन लगवाए ही दफ्तर चला गया.

आज उस का मन दफ्तर में जरा भी नहीं लग रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि शादी कर के भी वह संतुलनपूर्ण जीवन नहीं बिता पा रहा है. उस ने जैसी पत्नी की कल्पना की थी उस का एक अंश भी उसे सुधांशी में नहीं मिल पाया था. दिखने में तो सुधांशी सौंदर्य की प्रतिमा थी. किसी बात की कोई कमी न थी, उस के रूप में. लेकिन जीवन बिताने के लिए उस ने सिर्फ सौंदर्य प्रतिमा की कल्पना नहीं की थी. उस ने ऐसे जीवनसाथी की कल्पना की थी जो मन से भी सुंदर हो, जो उस का खयाल रख सके, उस की भावनाओं को समझ सके.

‘‘अरे यार, क्या भाभी की याद में खोए हुए हो?’’ हर्षल की आवाज ने उसे चौंका दिया.

‘‘हां, नहीं, नहीं तो.’’

‘‘यों हकला क्यों रहे हो? क्या शादी के बाद हकलाना भी शुरू कर दिया?’’ हर्षल ने छेड़ते हुए कहा, ‘‘कभी भाभीजी को घर भी ले कर आओ या उन्हें घर में छिपा कर ही रखोगे?’’

‘‘नहीं यार, यह बात नहीं है. किसी दिन समय निकाल कर हम दोनों जरूर आएंगे,’’ सुशांत ने उठते हुए कहा.

आज उस का मन घर जाने को नहीं हो रहा था. खैर, घर तो जाना ही था. बेमन से घर चल दिया.

‘‘भैया, तुम्हारे जाने के बाद भाभी मायके चली गईं,’’ घर पहुंचते ही गरिमा ने बताया.

‘‘बहू बहुत गुस्से में लग रही थी, बेटा, क्या तुम से कोई बात हो गई?’’ मां ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, नहीं तो, यों ही चली गई होगी. बहुत दिन हो गए न उसे अपने मातापिता से मिले,’’ सुशांत ने बात संभालते हुए कहा.

‘‘भैया, तुम्हारा खाना लगा दूं?’’

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‘‘नहीं, आज भूख नहीं है मुझे,’’ कह कर सुशांत अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. बिस्तर पर अकेले लेटेलेटे उसे सुधांशी की बहुत याद आ रही थी.

याद करने पर बीते हुए सुख के लमहे भी दुख ही देते हैं. ऐसा ही कुछ सुशांत के साथ भी हो रहा था. सुशांत जानता था कि जब तक वह सुशी को लेने नहीं जाएगा वह वापस नहीं आएगी. लेकिन वह ही उसे लेने क्यों जाए? गलती तो सुशी की है. जब उसे ही परवा नहीं, तो वह भी क्यों चिंता करे? लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. बिस्तर से उठ कर गैलरी में आ कर टहलने लगा.

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#lockdown: अचानक इतना साफ कैसे हो गया गंगा-यमुना का पानी, विशेषज्ञ भी हैं हैरान

कोरोना वायरस की वजह से देश की लगभग 1.3 अरब आबादी, घरों में ही सिमटी हुई है. लोग सबकुछ सामान्य होने का इंतजार कर रहे हैं, ताकी एक नौर्मल लाइफ जी सकें. वहीं दूसरी तरफ प्रकृति खुद को बैलेंस करने में लगी है.

जी हां दोस्तों, लौकडाउन की वजह से पाल्यूशन में काफी कमी देखी गई है. अब रात को आसमान साफ दिखने लगा है और चांद-तारों का दिदार भी होने लगा है. ऐसा ही कुछ नज़ारा है यमुना नदी का, जो पाल्यूशन की वजह से नाले के रूप में बदल गई थी. लेकिन लौकडाउन ने जैसे यमुना नदी की काया ही पलट दी. आपको जानकर खुशी होगी कि इस समय यमुना नदी का पानी काफी साफ हो गया है. वही यमुना नदी जिसे पाल्यूशन ने बदबूदार बना दिया था, लेकिन अब वहां का वातावरण खुशबूदार हो गया है. कोरोना वायरस की वजह से 21 दिनों के लौकडाउन का यमुना नदी पर ख़ास असर देखने को मिला है.

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बता दें कि, दिल्ली में यमुना नदी  के 22 किलोमीटर सफर के दौरान 18 गंदे नाले इसमें मिल जाते हैं. साथ ही यमुना नदी को गंदा करने में सबसे बड़ा हाथ औद्योगिक प्रदूषण का है. फिलहाल ये कारखाने बंद हैं इसलिए यमुना नदी का पानी साफ नजर आ रहा है.

अगर बात करें गंगा नदी की तो यहां भी कुछ ऐसा ही नज़ारा है. विशेषज्ञों का मानना है कि देशभर में लौकडाउन के बाद से गंगा नदी की स्वच्छता में काफी सुधार देखने को मिला है, क्योंकि गंगा नदी में कारखानों का कचरा गिरना कम हो गया है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों की माने तो, लौकडाउन के बाद ज्यादातर केद्रों में गंगा नदी के पानी को नहाने लायक पाया गया है. वहीं गंगा नदी के 36 निगरानी इकाइयों में करीब 27 बिन्दुओं पर पानी की गुणवत्ता नहाने, वन्यजीव और मछली पालन के लिए अनुकूल पाई गई है.

इससे पहले की बात करें तो उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में नदी के प्रवेश करने के कुछ स्थानों को छोड़कर, बंगाल की खाड़ी में गिरने तक आने वाले रास्ते में कहीं भी नहाने लायक नहीं पाया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक क्षेत्र बंद होने के कारण गंगा नदी का पानी साफ हुआ है. साथ ही लौकडाउन की वजह से आने वाले कुछ दिनों में पानी की क्वालिटी में और सुधार हो सकता है.

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#coronavirus: लॉकडाउन से कैसे कोरोना को भगा सकते है ! 

वैश्विक महामारी के इस दौर में पुरे विश्व में लॉक डाउन लगा हुआ है , दुनिया का 90 प्रतिशत भाग आंशिक या पूर्ण लॉक डाउन लगा हुआ है, वह10 प्रतिशत भाग कोरोना से कोरोना से अपने अपने तरीके से कोरोना से लड़ाई लड़ रहे है. तो आइये जानते है लॉक डाउन से कैसे विश्व से महामारी को भगाया जा सकता है .

1. दूसरे देशों से तेजी से लॉकडाउन लागू हुआ

जिन देश ने लॉक डाउन समय रहते नहीं किया उनका हालत आप देख सकते है. भारत ने दूसरे देशों से लॉकडाउन को लागू करने पर तेजी से काम किया.इसलिए अभी भी हालत बतर नहीं है . देश में समय से लॉकडाउन हुआ है तो उसका नतीजा भी सामने आएगा. कोरोना का सामुदायिक प्रसार पर रोक लगाना संभव हुआ है. अचानक लॉक डाउन होने से समाज के हर वर्ग के सामने  कुछ परेशानियां जरूर आई है , लेकिन आप स्वास्थ्य रहेंगे  तो वह परेशानियां भी दूर हो जाएगी. जीवन अनमोल है.इसे बचाना जरुरी है.

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2. समय पर लॉक डाउन नहीं तो स्थिति बना गंभीर

अमेरिका, इटली , स्पेन ,फ़्रांस और विट्रेन की स्वास्थ्य सुविधाएं हमारे देश से बहुत ही बेहतर है , लेकिन इन देशों ने समय रहते लॉक डाउन का फैसला नहीं किया , जिसका परिणाम आज यहाँ कोरोना समुदाय स्तर पर पहुंच गया है . जिससे कोरोना मरीजों की संख्यों निरंतर बढ़ रही है. अगर अपना देश समय पर लॉक डाउन नहीं करता और जो स्थिति अमेरिका में है वह स्थिति भारत में बनती, तो क्या होता आप सोच सकते है, यहां तबाही आ सकती थी.

3. समुदाय स्तर पर वायरस को फैलने से रोकना है

लॉक डाउन को इस लिए ही लागू किया गया कि सामाजिक दुरी का पूरा ख्याल रखते हुए बीमारी को फ़ैलाने से रोका जा सके और संक्रमित लोगो को अलग आइसोलेट किया जा सके. कोरोना का वायरस लोगो से लोगो में ना फैले और  समुदाय में वायरस न फ़ैल सके . जिस देश में समुदाय में वायरस घूमता रहा वहां कोरोना का संक्रमण तेजी से फैला है और रोगियों का हालत बहुत बुरा हो चूका है .

4. सबका मदद करना है और कोरोना को हराना है

लॉकडाउन एक मुश्किल समय होता है. लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है. लेकिन बीमारी से मुकाबला करने के लिए यह जरूरी है. हम बात को समझ कर हम खुद को अपने समुदाय को बीमारी से बचा सकते हैं.  भारत की आबादी बहुत ज्यादा है. घनी आबादी की वजह से कई लोग लॉकडाउन में जहाँ -तहा फंस गए है , आये दिनों इन्हे विभिन्न रूप में देख भी गया. सरकार और सामजिक संस्थान अपने अपने स्तर पर इन लोगो का मदद कर रहे है.  नियम अनुसार लॉकडाउन को बनाये हुए है. क्यों कि कोरोना को हराना है और  हर किसी को सुरक्षित रहना है.

5. WHO ने देश में जारी लॉकडाउन का समर्थन किया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोनावायरस से मुकाबले के लिए भारत की कोशिशों की तारीफ की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने एक इंटरव्यू में कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने जहां कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम हुआ। कोरोना से मुकाबले के लिए मोदी सरकार की तरफ से उठाए गए सख्त कदमों की सराहना की। लॉकडाउन को लेकर लोगों को होने वाली परेशानियों पर उन्होंने कहा कि तकलीफ जितनी ज्यादा होगी, उससे उतनी ही जल्दी निजात मिलेगी.

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6. 59 हजार लोगो का जान बचा

‘इम्पिरियल कॉलेज लंदन’ ने अपने इसी सोमवार को एक अध्ययन में यह माना है कि  लॉक डाउन के कारण  59 हजार लोगो का जान अब तक बचाया सका है. अध्ययन में यह कहा गया है कि‘‘कम से कम मार्च के अंत तक लागू बंद के मद्देनजर हमें अनुमान है कि इससे सभी 11 देशों में 31 मार्च तक 59,000 लोगों की मौत टाली जा सकी.  अध्ययन में कहा गया है कि इटली में 38,000 लोगों , स्पेन में करीब 16,000, फ्रांस में 2,500, बेल्जियम में 560, जर्मनी में 550, ब्रिटेन में 370, स्विट्जरलैंड में 340, आस्ट्रिया में 140, स्वीडन में 82, डेनमार्क में 69 और नॉर्वे में 10 लोगों का जीवन बचाए जाने का अनुमान लगाया है.

#lockdown: क्या आपको पता हैं चंपी के ये 8 फायदे

बिजी लाइफस्टाइल में बालों की केयर करना मुश्किल है, जिसके कारण बाल जैमेज होना लाजिमी है. लेकिन कुछ चीजें ऐसी है, जिसके लिए न आपको कोई पैसा खर्च करना पड़ेगा और न ही कोई साइडइफेक्ट से गुजरना पड़ेगा. आपने औयल की चंपी बालों में तो कईं बार की होगी. चंपी से जितना हमारी बौडी को रिलेक्स मिलता है, उतना किसी चीज से नही मिलता, लेकिन क्या आपने कभी इसके फायदों के बारे में सोचा है.

1. बालों को जड़ से देता है पोषण

अगर बालों की जड़ें सूखी हैं तो औयल की मालिश उन्हें ताकत देती है और नए बाल निकलने में मदद करती है.

2. टूटते बालों के लिए बेस्ट है चंपी

औयल बालों को टूटने व उलझने से रोकता है, साथ ही औयल से सिर की मालिश करने से सिर का रक्तसंचार सुचारु रहता है.

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3. औयल को सही मात्रा में लगाने से नही होते दोमुहें बाल

बालों में सही मात्रा में औयल न लगाने से बाल दोमुंहे होने लगते हैं. पर्याप्त औयल लगाने से यह समस्या दूर हो जाती है.

4. चंपी से आती है टेंशन फ्री नींद

मालिश से न केवल बाल स्वस्थ होते हैं, बल्कि शरीर को भी लाभ पहुंचता है. रात को अच्छी नींद आती है. दिमाग भी शांत होता है.

5.बालों में नमी के लिए करें चंपी

औयल से बालों में नमी आती है. वे मुलायम व चमकदार बनते हैं. जब भी बालों में औयल लगाएं तो इस बात का ध्यान रखें कि एक ही बार में पूरे बालों में औयल न लगाएं वरन सैक्शन बना कर औयल लगाएं. ऐसा करने से औयल स्कैल्प तक अच्छी तरह पहुंचता है.

6. गरम औयल से भी होता है हेयर स्किन को फायदा

गरम औयल से सिर की स्किन की मसाज करें और इस के बाद कुनकुने पानी से भीगे तौलिए को कुछ मिनट के लिए सिर पर लपेटें. ऐसा करने से सिर की स्किन के रोमछिद्र खुल जाते हैं और बाल चमकदार बनते हैं.

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7. बालों की ग्रोथ के लिए करें चंपी

औयल बालों की ग्रोथ के लिए जरूरी है. इस की मालिश से आप के सिर की कोशिकाएं काफी सक्रिय हो जाती हैं, जिस से बाल जल्दी लंबे होते हैं.

8. टेंशन को दूर भगाने के लिए बेस्ट है चंपी

अगर आप की घने और सिल्की बालों की चाह है तो सरसों के औयल में दही मिला कर लगाएं. इस से बाल बढ़ेंगे भी और घने भी होंगे. रात में सोने से पहले या फिर हफ्ते में कम से कम 2 बार सिर की मालिश जरूर करें. इस से बालों को तो पोषण मिलता ही है, तनाव भी कम होता है.

Intimate फोटोज के कारण ट्रोलिंग का शिकार हुईं सुष्मिता सेन की भाभी, ऐसे की बोलती बंद

बौलीवुड और टीवी एक्ट्रेस का ट्रोलिंग का शिकार होना आम बात बन गया है. हाल ही में बौलीवुड एक्ट्रेस सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) के भाई राजीव सेन (Rajeen Sen) और उनकी पत्नी चारु असोपा (Charu Asopa sen) सुर्खियों में आ गए हैं. दरअसल चारु असोपा (Charu Asopa sen) इन दिनों अपनी कुछ फोटोज को लेकर ट्रोलिंग का शिकार हो रही हैं, जिसका अब उन्होंने करारा जवाब दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

इंटिमेट फोटोज को लेकर हुईं ट्रोल

कुछ समय पहले ही राजीव सेन ने अपनी कुछ निजी फोटोज सोशल मीडिया पर शेयर की थीं. इन फोटोज से कपल को ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा और लोगों के भद्दे-भद्दे कमेंट्स का सामना करना पड़ा था. वहीं अब चारु असोपा ने इस मामले में चुप्पी तोड़ने का फैसला किया और हाल ही में अपने इंटरव्यू में लोगों को करारा जवाब दिया है.

 

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in love with quarantined days 😘❤️ Ain’t you ? #stayhome

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ट्रोलर्स के लिए कही ये बात

 

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Quarantined together ❤️

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चारु असोपा ने अपनी फोटोज के बारे में बात करते हुए बताया कि, ‘हम दोनों घर में एक साथ वक्त बिता रहे थे. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इन फोटोज के लिए हम दोनों को ट्रोल क्यों किया जा रहा है ? जियो और जीने दो…. आजकल लोग बहुत निगेटिव बातें कर रहे हैं. मैं बस इस बात का ख्याल रखती हूं कि लोगों के ऐसे कमेंट्स हमारा दिन ना खराब कर सकें. मुझे लगता है लोग कोरोना वायरस की वजह से परेशान हो चुके हैं. तभी तो वो गुस्सा निकालने को लिए बस एक मौके की तलाश में रहते हैं. वैसे भी सेलेब्स को टारगेट करना सबसे आसान है.

लौकडाउन को लेकर कही ये बात

 

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We r sending love to all .. Hope this video puts a smile on you & your loved ones ❤️ 🧿

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चारु असोपा ने कोरोना वायरस लॉकडाउन पर भी बात की है और बताया है कि, ‘अब जब हम दोनों घर में बंद हैं तो राजीव मेरी हर काम में मदद करते हैं. मैं खाना बनाती हूं तो वो घर की सफाई करते हैं. घर का काम खत्म करके हम दोनों साथ में समय बिताते हैं. उसके अलावा मैं किताबें भी बढ़ती हूं तो राजीव म्यूजिक सुनते हैं. इसके अलावा लॉकडाउन में हम कर भी क्या सकते हैं.’

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बता दें, हाल ही में चारु असोपा ने गणगौर अकेले ही मनाया था, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी.

#lockdown: झटपट तैयार करें आटा बोल्स, जो दे पास्ता जैसा टेस्ट

पास्ता एक ऐसा स्नैक है , जिसे न सिर्फ बच्चे बल्कि बड़े भी बड़े चाव से खाते हैं. क्योंकि इसका टेस्ट इतना यम्मी जो होता है. तभी तो बच्चे इसे हर रोज़ बनाने की फर्महिश करते रहते हैं. लेकिन एक मां की यही इच्छा होती है कि  उसका बच्चा व उसका परिवार हमेशा हैल्थी ही खाएं. इसलिए वे  हफ्ते में एक बार ही पास्ता बनाने की परमिशन देती हैं , क्योंकि वे  उन्हें ज्यादा मैदा जो नहीं देना चाहतीं ,चाहे बच्चे  उनसे रूठ क्यों न जाएं .  ऐसे में हम आपको हैल्थी पास्ता रेसिपी  के बारे में बताते हैं जो आटे से बनी  होने के साथ उसमें ढेरों सब्ज़ियां मिली होने से  यह न सिर्फ बच्चे की फ़रमाहिश को पूरा करके आपको फेवरेट मोम  बनाने का काम करेगी  बल्कि आप पास्ता को डिफरेंट तरीके से बना कर उन्हें हैल्थी फ़ूड  भी सर्व कर पाएंगी.

कैसे बनाएं पास्ता बोल्स

एक कप आटा लेकर उसमें थोड़ा सा नमक डालकर सख्त आटा गूंधे. फिर उसे कपड़े से ढककर 15 मिनट के लिए एक तरफ रख दें. फिर आटे से छोटी छोटी बोल्स बनाकर उसमें बीच में उंगली से छेद कर दें. इससे जहां पास्ता बोल्स को शेप मिल जाएगी वहीं पकने में भी आसानी होगी. जब बोल्स तैयार हो जाएं तो एक गहरा बर्तन लेकर उसमें बोल्स के हिसाब से पानी डालकर उसे गरम करें. जब पानी गरम हो जाए तब उसमें तैयार बोल्स को एक एक करके डालें. फिर उसमें थोड़ा सा आयल डालें ताकि बोल्स  आपस में न चिपके.  और  फिर ढककर उन्हें 10 -15  मिनट के लिए पकने के लिए छोड़ दें. फिर एक बोल को बाहर निकालकर  चेक करें कि वह पक गई है या नहीं. इसका पता आपको इस तरह लग जाएगा कि अगर बोल की परत खुलने लगेगी या फिर उसमे जाली जाली सी नज़र आने लगेगी  तो इसका मतलब वह अच्छे से पक गई  हैं . फिर एक छलनी की मदद से पानी और बोल्स को अलग करें. अब आपकी पास्ता बोल्स तैयार हैं.

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कैसे बनाएं पास्ता को हैल्थी व टेस्टी

सबसे पहले एक पैन में तेल को गरम करें.  जब तेल गरम हो जाए तो उसमें राई व जीरा डालकर उसे चटकाए. फिर इसमें बारीक कटा प्याज़, अदरक व लेहसुन  डालकर उसे सुनहरा होने तक चलाएं. फिर इसमें बारीक कटा शिमला मिर्च. गाजर, पत्तागोभी, बीन्स व मटर डाल कर थोड़ा सा पकाएं. इस बीच इसमें स्वाद के अनुसार नमक, हल्दी, मिर्च ऐड करें.  जब अच्छे से मसाले आपस में मिल जाएं  तब  इसमें टोमेटो प्यूरी डाल कर पकाएं. मसाले पकने पर  इसमें पास्ता बोल्स डालकर उसमें टोमेटो सोस या फिर पास्ता सोस डालें. फिर थोड़ा सा चिल्ली फ्लैक्सेस व काली मिर्च पाउडर डालकर ऊपर से  धनिया पत्ती से गार्निश करके सर्व करें. तो हुई न आसान व हैल्थी रेसिपी.

इन बातों का रखें ध्यान

– पास्ता बोल्स को ज्यादा न पकाएं वरना उनके घुलने के कारण सारा टेस्ट ख़राब हो सकता है.

– बोल्स को फ्राई नहीं करना है.

– सारा मसाला भुनने के बाद ही ऊपर से पास्ता बोल्स ऐड करें.

– पास्ता बोल्स को स्टोर करके न रखें.

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महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-8

अब तक की कथा :

फोन पर बात कर के यशेंदु संतुष्ट नहीं हो सके. आखिर उन की बेटी के भविष्य का प्रश्न उन के समक्ष अधर में लटक रहा था. मन में संदेह के बीज पड़ चुके थे. बेटी का चिड़चिड़ापन उन्हें प्रताड़ना दे रहा था. उन्होंने लंदन जा कर अपने संदेह का निराकरण करना चाहा. मानसिक तनाव व द्वंद्व में घिरे यशेंदु कार पार्क कर के सड़क पार करते समय ट्रक की चपेट में आ गए.

अब आगे…

पूजापाठ, ग्रहनक्षत्र, शुभअशुभ सब पंडितों से पूछ कर ही तो घर के सारे काम होते थे, फिर यशेंदु के साथ ऐसा अनिष्ट क्यों हुआ? कामिनी अब मांजी से इस सवाल का क्या जवाब मांगती. पंडितों ने तो उन की आंखों पर ऐसी पट़्टी बांध दी थी जिस के पार वह कुछ नहीं देख सकती थीं. लेकिन कामिनी  उस पार की तबाही साफ देख रही थी. ट्रक ड्राइवर के ब्रेक लगातेलगाते यशेंदु ट्रक से टकरा कर लगभग 4-5 फुट दूर जा गिरे और बेहोश हो गए.

यशेंदु की ट्रक से दुर्घटना की खबर डाक्टर द्वारा घरवालों को मिली तो वे घबरा गए. वे शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुंच गए. वहां कई लोग मौजूद थे.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ सेठ ने अपने ड्राइवर से पूछा.

‘‘साब, पता नहीं चला कहां से ये साहब अचानक ही ट्रक के सामने आ गए और मैं ब्रेक लगा पाऊं इतनी देर में तो ये ट्रक से टकरा कर लगभग 4-5 फुट ऊपर उछल कर गिर कर बेहोश हो गए,’’ ड्राइवर को बहुत अफसोस हो रहा था. लगभग 30 वर्ष से वह यह काम कर रहा था. अभी तक इस प्रकार की कोई दुर्घटना उस से नहीं हुई थी.

दिया का रोरो कर बुरा हाल था. दादी, कामिनी, नौकर सब इस दुर्घटना से जड़ से हो गए थे. दिया जानती थी कि पापा उसे अपने साथ लंदन ले जाने के लिए यह सब भागदौड़ कर रहे थे इसलिए उस का मन और भी व्यथित हो उठा. यह प्रसाद मिला पापा को दादी की इतनी पूजा का? उस का मन हाहाकार करने लगा. वह बहुत अभागी है. अपने पिता की दुर्घटना के लिए वही जिम्मेदार है. वैसे कहीं पर कुछ भी हो सकता है परंतु दिया को इसलिए यह बात बारबार कचोट रही थी क्योंकि यह सबकुछ वीजा औफिस के बाहर ही  हुआ था. उस के अनुसार, पापा को यह सब उस की चिंता के लिए ही भोगना पड़ रहा था.

कामिनी ने आंसूभरी आंखों से औपरेशन के फौरमैलिटी पेपर्स पर हस्ताक्षर कर दिए. उस के मस्तिष्क में मानो हथौड़ी की सी मार भी पड़ने लगी. अगर लड़के के घर में सगाई या विवाह के बाद बड़ी दुर्घटना हो जाती है तो लड़की के मुंह पर कालिख पोती जाती है. इस के पैर ऐसे हैं, यह घर के लिए शुभ नहीं है आदि. परंतु जहां लड़की के घर में इस प्रकार की कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या लड़के को भी अपशकुनी माना जाता है?

लगभग 3 घंटे के औपरेशन ने घरभर के सदस्यों को हिला कर रख दिया था. ड्राइवर और उस का मालिक दोनों ही सहृदय, संवेदनशील थे, होंठ सिए हाथ जोड़ कर, सिर झुकाए चुपचाप सबकुछ सुनते रहे. 5-7 मिनट बाद कामिनी ने सास को औपरेशन थिएटर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठा दिया और ड्राइवर व उस के मालिक के सामने हाथ जोड़ कर उन्हें वहां से जाने का इशारा किया.

कामिनी व दिया दोनों के मन में बहुत स्पष्ट था कि यह दुर्घटना क्यों हुई होगी? वे कई दिनों से यश को बहुत अधिक असहज देख रही थीं. दिया तो अपने में ही सिमट कर रह गई थी परंतु कामिनी ने पति को समझाने का भरपूर प्रयास किया था. यश थे कि बेटी को देखदेख कर भीतर ही भीतर कुढ़ रहे थे. ऊपर से उन की मां ने घर में पंडितजी को बैठा कर पूजापाठ का नाटक कर रखा था. उन्हें कभी भी पूजाअर्चना में कोई परेशानी नहीं रही परंतु यह कुछ भी हो रहा था, वह उन की समझ से बाहर था और उन की सोच उन्हें यह समझने के लिए बाध्य कर रही थी कि घंटी बजाने से काम नहीं चलेगा, उन्हें कर्मठ होना होगा. एक ओर उन के मन में सवाल पनप रहा था कि मां ने तो दिया की जन्मपत्री कई बार मिलवाई और 90 प्रतिशत गुण मिलने के बावजूद यह सब घटित हो रहा था. समय दीप व स्वदीप भी शहर में नहीं थे.

औपरेशन थिएटर के बाहर कुरसियों पर तीनों शांत बैठे हुए थे. तीनों के मस्तिष्क में एक बात अलगअलग प्रकार से उमड़घुमड़ रही थी. अचानक न जाने दिया को क्या हुआ, ‘‘दादी, आप हर चीज पंडितजी से ही पूछ कर करती हैं न? उन्होंने आप को यह नहीं बताया कि पापा पर ऐसा कोई ग्रह भारी है?’’

दादी के तो आंसू ही नहीं थम रहे थे. वे क्या उत्तर देतीं? इस उम्र में उन्हें बेटे का यह दुख देखना पड़ रहा था. इस पंडित के पिता ने जिंदगीभर उन के घर के लिए पूजाअर्चना की थी. दिया की दादी व दादाजी तो प्रारंभ से ही पंडितों के मस्तिष्क से ही चलते आए हैं. उन के द्वारा बताए हुए ग्रहों की शांति करवाना, जन्मपत्री मिलवाना व प्रतिदिन उन के द्वारा ही पूजाअर्चना करवाना. कामिनी के पिता ने अपने किसी भी बच्चे की जन्मपत्री नहीं मिलवाई थी फिर भी सब सुखी थे. उन्हें केवल कामिनी की ही जन्मपत्री मिलानी पड़ी थी और कामिनी ही जिंदगीभर इस घर के वातावरण में असहज बनी रही थी. दिया के साथ ये सबघटित तो हो ही रहा है साथ ही यश भी चपेट मेें आ गए. वह पंडित अभी भी घर पर बैठा घंटियां बजा कर भगवान को मनाने में लगा होगा.

दादी मन ही मन सोच रही थीं कि उन्हें अब कौन से जाप करवाने होंगे. यह एक लंबा दर्दीला घटनाक्रम बन गया था मानो. एक दुर्घटना का दर्द समाप्त भी नहीं हो पाता था कि दूसरी कोई दुर्घटना आ उपस्थित होती. कामिनी के लिए तो इस घर के प्रवेश का प्रथम दिवस ही दुर्घटना था बल्कि यह कहा जाए कि यश की सगाई का दिन ही दुर्घटना का दिन था. जिस पिता से वह यह अपेक्षा करती रही थी कि वे उसे किसी हताश स्थिति में डाल ही नहीं सकते उसी पिता ने उसे कहां से उठा कर कहां

पहुंचा दिया था.

बचपन में पिता रटाते थे-

वैल्थ इज लौस्ट, नथिंग इज लौस्ट,

हैल्थ इज लौस्ट, समथिंग इज लौस्ट,

इफ कैरेक्टर इज लौस्ट, एवरीथिंग इज लौस्ट.

ये पंक्तियां रटतेरटते कामिनी युवा हो चली थी. मध्यवर्गीय वातावरण में पलीबढ़ी कामिनी की विवाह के बाद बुद्धि में वृद्धि हुई और उस ने बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस किया था कि वैल्थ के बिना कोई पूछ नहीं है और जैसेजैसे वह इस वैल्दी घर का पुराना हिस्सा होती जा रही थी वैसेवैसे उस की यह भावना दृढ़ होती जा रही थी. कितना मानसम्मान था उस की ससुराल का इतने बड़े शहर में कि वह स्वयं को बौना महसूस करती थी. इतनी कि उस के मुख के बोल भी ‘जी हां’ और ‘जी नहीं’ तक सिमट कर रह गए थे. फिर वह इस सब की आदी हो गई थी और प्रात:कालीन मंत्रोच्चार उस के मुख से निकल कर केवल उस की आत्मा के ही साक्षी बन कर रह गए थे.

घर का संपूर्ण वातावरण सुबहसवेरे पंडितजी की घंटियों की मधुर ध्वनि से नहा उठता था. धीरेधीरे घंटियों के साथ हर घड़ी घर में पंडितों की नाटकीय आवाजें व फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं तब वह और अधिक सहज होती गई. उस ने पंडितों को मंत्रोच्चार करते हुए अकसर हंसीठिठोली करते देखा था. जैसे ही वहां घर का कोई सदस्य पहुंचता वे जोरजोर से मंत्रोच्चार करने लगते. अच्छे पल भी आए थे कामिनी के जीवन में जब उस ने 3 शिशुओं को जन्म दिया था. वास्तव में कामिनी को 2 बेटों के जन्म के बाद किसी तीसरे की कोई इच्छा ही नहीं थी परंतु घर में 1 बेटी की चाह ने पूरे वातावरण में मानो नाराजगी भर रखी थी. बेटी की चाह भी किस लिए क्योंकि 2-3 पीढि़यों से परिवार में कोई बेटी नहीं थी और इस परिवार के बुजुर्गों की कन्यादान करने में रुचि थी. पंडितजी ने उस के सासससुर के मस्तिष्क में कन्यादान की महत्ता इस कदर भर दी थी कि कन्यादान न किया तो उन का जीवन व्यर्थ था. और पंडितजी का गणित तो बिलकुल स्पष्ट था ही कि यशेंदुजी के हाथ की लकीरों में कन्या का पिता बनना स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो रहा था. सो, कामिनी के तीसरा शिशु कन्या हुई.

न जाने क्यों कामिनी इस बात से भयभीत सी रहती थी कि इतनी लाड़प्यार से पली उस की बिटिया एक दिन दूसरे के घर चली जाएगी उस का मनउपवन खाली कर के. वह भी तो आई थी, ठीक था, परंतु इतनी शीघ्रता से यह सब होगा और इस प्रकार होगा, इस के लिए उस का मन तैयार न था. हुआ वही जो घर के बुजुर्ग ने चाहा और परिवार के सब सदस्य यह होना देखते रहे.

अस्पताल में आईसीयू के बाहर सोफे पर बैठेबैठे न जाने मांजी की वृद्ध काया कब सोफे के हत्थे पर लटक सी गई थी. झुर्री भरे मुख पर आंसुओं की गहरी लकीरें किसी झील में कंकर फेंकने पर लहरों की भांति टेढ़ीमेढ़ी हो कर चिपक सी गई थीं. कामिनी ने सास को बड़ी करुणापूर्ण दृष्टि से देखा और उस के नेत्र फिर से भर आए. मां बुरी बिलकुल न थीं, उन्होंने अपने हिसाब से उसे प्यार भी बहुत दिया था परंतु उन की सोच थी जिस ने सारे वातावरण पर अपनी मुहर चिपका रखी थी. उन का अंधविश्वास और सर्वोपरि समझने की भावना ने पूरे वातावरण पर अजीब से पहरे बिठा दिए थे.

कितनी बार सोचा था कामिनी ने, समय के अनुसार प्रत्येक में बदलाव आते हैं परंतु उन की सोच व तथाकथित परंपराओं में बदलाव क्यों नहीं आ पा रहे थे? यदि पत्थर पर भी बारबार कोई चीज घिसी जाए तो वहां भी गड्ढा हो जाता है परंतु मां… थोड़ी देर में डाक्टर आए और उन के पास ही सोफे पर बैठ गए, ‘‘मांजी, रोने से तो कुछ हो नहीं सकता? आप तो कितनी समझदार हैं.

‘‘नर्स,’’ डाक्टर ने समीप से गुजरती हुई नर्स को आवाज दी. नर्स रुक गई.

‘‘मांजी को आईसीयू के बाहर से जरा यशेंदुजी को दिखा दो, जिन का आज औपरेशन हुआ है.’’

‘‘यस, डाक्टर,’’ नर्स उन्हें सहारा दे कर आईसीयू की ओर हाथ पकड़ कर धीरेधीरे चल पड़ी.

डाक्टर खड़े हो गए और कामिनी से बोले, ‘‘एक्चुअली मिसेज कामिनी, आय वांटेड टू डिसकस सम इंपौर्टेंट इश्यू विद यू.’’

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-7

कामिनी यश की मनोदशा समझ रही थी परंतु उस समय कुछ भी बोलने का औचित्य नहीं था, सो चुप ही रही. यश का स्वभाव था यह. वे अपने और मांपिता के सामने किसी की नहीं सुनते थे. लेकिन जब अपनी गलती का एहसास करते तो स्वयं बेचैन हो जाते और अपनेआप को सजा देने लगते. कामिनी अजीब सी स्थिति में हो जाती है. ऐसे समय में न वह यश से यह कह पाती है कि उन्होंने उन की बात नहीं मानी, यह उसी का परिणाम है. और न ही वह यश की दुखती रग पर मलहम लगा पाती है. ऐसी स्थिति में शिष्ट व सभ्य, सुसंस्कृत कामिनी अपनी ही मनोदशा में झूलती रहती है. यश रातभर करवटें बदलते रहे. कामिनी भी स्वाभाविक रूप से बेचैन थी. आखिर कामिनी से नहीं रहा गया.

‘‘इतना बेचैन क्यों हो रहे हो यश? सब ठीक हो जाएगा,’’ कामिनी ने यश के बालों को सहलाते हुए धीरे से कहा.

‘‘यह छोटी बात नहीं है, कामिनी. कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. यह मेरी बिटिया के भविष्य का प्रश्न है,’’ और अचानक यश ने पास में रखे फोन को उठा कर नंबर मिलाना शुरू कर दिया.

कामिनी ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे यानी लंदन में रात के 12 बजे होंगे.

उधर से उनींदी आवाज  आई, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘मैं, यश, इंडिया से,’’ यश ने स्पीकर औन कर दिया था. शायद कामिनी को भी संवाद सुनाना चाहते थे.

‘‘अरे, नमस्कार यशजी, इस समय कैसे? सब ठीक तो है?’’ नील की मां की उनींदी आवाज फोन पर थी.

कामिनी ने बड़ी आजिजी से यश को इशारा किया कि वे बिना बात, बात को न बिगाड़ें. आखिर उन की बेटी का सवाल है. यश को शायद कामिनी की बात कुछ जंच गई. थोड़े धीमे लहजे

में बोले, ‘‘आप ने नील की चोट के बारे में नहीं बताया?’’ यश के लहजे में शिकायत थी.

‘‘मैं ने और नील ने सोचा था यशजी कि आप चोट की बात सुन कर बेकार परेशान हो जाएंगे इसलिए…’’

यश चिढ़ गया. ‘मानो बड़ी हमदर्दी है इन्हें हमारी परेशानी से’, बहुत धीमी आवाज में उस के मुंह से निकल गया.

‘‘आप जानती हैं कि कितनी परेशान रहती है हमारी बेटी. उधर, नील भी कईकई दिनों तक फोन नहीं करते और न ही कुछ प्रोग्राम के बारे में बताते हैं?’’

‘‘क्या करें यशजी, परिस्थिति ही ऐसी थी कि जल्दी आना पड़ा.’’

‘‘क्या परिस्थिति? उस पंडित के कहने से आप ने नील और दिया को 2 दिन भी साथ रहने नहीं दिया और जानती हैं इस से हमारी बेटी पर कितना खराब असर पड़ रहा है?’’

‘‘ऐसी तो कोई बड़ी बात नहीं हो गई. हम ने तो यह ही सोचा कि आप लोग परेशान हो जाएंगे. वैसे भी न तो दिया तैयार थी इस शादी के लिए और न ही कामिनी बहनजी,’’ नील की मां की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या कहें. फिर कुछ रुक कर बोलीं, ‘‘हमारे नील की भी तो शादी हुई है. वह भी तो अपनी पत्नी को मिस कर रहा होगा.’’

‘‘ममा, किस से बात कर रही हैं, इस समय?’’ नील शायद नींद से जागा था.

‘‘तुम्हारे ससुर हैं, इंडिया से.’’

‘‘अरे, इस समय,’’ नील ने शायद घड़ी देखी होगी.

‘‘नमस्ते, डैडी. क्या बात है, इस समय फोन किया? सब ठीक है न?’’

यश नमस्ते का उत्तर दिए बिना ही असली बात पर जा पहुंचे, ‘‘आप को चोट लग गई, नील? किसी ने बताया भी नहीं. मैं टिकट का इंतजाम कर के जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, डैडी. वह लगी थी चोट, अब तो ठीक भी हो गई. अब कल या परसों से तो मैं औफिस जाना शुरू कर दूंगा,’’ नील हड़बड़ाहट में बोला.

‘‘एक बार मिल लूंगा तो तसल्ली हो जाएगी. इधर, दिया भी बहुत उदास रहती है. उस के पेपर्स कब तक तैयार हो रहे हैं?’’

‘‘बस, अब औफिस जाने लगूंगा तो जल्दी ही तैयार करवा कर भेज देता हूं. और हां, आप बेकार में यहां आने की तकलीफ न करें.’’

नील की भाषा इतनी साफ व मधुर थी कि यश उस से पहली बार में ही प्रभावित हो गए थे. अच्छा लगा था उन्हें परदेस में रह कर अपनी भाषा व संस्कारों की तहजीब बनाए रखना.

‘‘तकलीफ की क्या बात है? मैं तो वैसे भी काम के सिलसिले में बाहर जाता ही रहता हूं. वीजा की कोई तकलीफ नहीं है मुझे. मेरे पास लंदन का 10 साल का वीजा है.’’

‘‘नहीं, आप तब आइएगा न, जब दिया यहां पर होगी. अभी बिलकुल तकलीफ न करें. मैं बिलकुल ठीक हूं. मम्मी को बोलूंगा जल्दी ही पंडितजी से दिया को लाने की तारीख निकलवा लेंगी.’’

यश ने फोन रख दिया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. आखिर, वे बेटी के पिता हैं. न तो अब उगलते बनता है और न निगलते. फिर भी उन्हें भरोसा था कि कहीं न कहीं समझनेसमझाने में ही भूल हुई होगी. हां, यह बात जरूर कचोट रही थी कि मां ने इतनी बड़ी बात उन से छिपाई. आज उन्हें महसूस हुआ कि उन के घर पर पंडित का कितना प्रभाव है. यश भी कोई कम विश्वास नहीं रखते थे इन मान्यताओं में परंतु जब मां ने छिपाया तब वे सहन नहीं कर सके. कामिनी के सामने मां के विरुद्ध कुछ बोल नहीं सकते थे. सो, मन ही मन कुढ़ते रहे.

मन में संदेहों के बीज बोए जा चुके थे. उन के अंकुर फूट कर यश के मन में चुभ रहे थे. यश स्थिर नहीं रह पा रहे थे. एक बेचैनी सी हर समय उन्हें कुरेदती रहती. कहीं भीतर से लग रहा था कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ है.

कामिनी तो विवाह से पूर्व ही असहज ही थी. उस का कुछ वश नहीं था इसलिए वह सदा से ही सब कुछ वक्त पर छोड़ कर चुप रहती थी. परंतु वह मां थी. लाड़ से पली हुई बेटी की मां, जिस ने अपनी बिटिया के सुनहरे भविष्य के लिए न जाने कितने जिंदा स्वप्न अपनी आंखों में समेटे थे.

यश की बेचैनी भी कहां छिपी थी उस से? परंतु दोनों में से कोई भी अपने मन की बात एकदूसरे से खुल कर नहीं कह पा रहा था. मां से तो अब कुछ बोलने का फायदा ही नहीं था. हां, वे भी अब बेचैन तो थीं परंतु ताउम्र इस घर पर राज किया था उन्होंने. एक तरह की ऐंठ से सदा भरी रहीं. आसानी से अपनी बात को छोटा कैसे कर सकती थीं?

कामिनी ने मन में कई बार सोचा, ‘इस उम्र में भी मां इतनी अधिक क्यों चिपकी हुई हैं इस भौतिक, दिखावटी दुनिया से. अब यदि इस उम्र में भी वे इन सब से छूट नहीं पाएंगी तो कब स्वयं को मुक्त कर पाएंगी इन सांसारिक झंझटों से? सुबहशाम आरती गा लेना, पंडितजी को बुला कर पूजाअर्चना की क्रियाएं करना, कुछ भजन और पूजा करवा कर आमंत्रित लोगों की वाहवाही लूट लेना…’ ये सब बातें उसे विचलित करती रहती थीं. अंतर्मुखी होने के कारण जीवनभर वह अपने विचारों से ही जूझती रही. जानती थी कि इस सब में यश भी उस से भागीदारी नहीं कर पाएंगे. उस ने तो स्वयं को समय पर छोड़ दिया था. उस के हाथ में कुछ है ही नहीं. तब व्यर्थ का युद्ध कर के स्वयं को थकाने से लाभ क्या?

समय के व्यतीत होने के साथ ही दिया कुछ अधिक ही चिड़चिड़ी सी होती जा रही थी. परिवार के वातावरण में बदलाव आने लगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कारण होंगे जो नील या उस की मां का कुछ स्पष्ट उत्तर प्राप्त नहीं हो रहा था.

दिया कालेज जाने में भी आनाकानी करने लगी थी. यश जब अपनी फूल सी बिटिया को मुरझाते हुए देखते तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता. उधर, मां ने फिर पंडितजी को बुला भेजा था और 3 दिन से न जाने उन्हें किस अनुष्ठान पर बैठा दिया था. 2 नौकर उन की सेवा में हर पल 1 टांग से मंदिर के बाहर खड़े रहते. पंडितजी ने महीनेभर का अनुष्ठान बता दिया था और मां थीं कि उन के समक्ष कोई आज तक मुंह खोलने का साहस नहीं कर पाया था तो आज तो घर की बेटी के सुख का बहाना था उन के पास.

बहाने, बहाने और बस बहाने. कामिनी का मन चीत्कार करने लगा. क्या होगा इस पूजापाठ से? अगर घंटियां बजाने से समय बदल जाता तो बात ही क्या थी? मां तो जिंदगीभर पंडितों के साथ मिल कर घंटियां ही बजाती रही थीं फिर क्यों यह अरुचिकर घटना घटी? उस का मन वितृष्णा से भर उठा. मां चाहतीं कि दिया भी इस पूजा

में सम्मिलित हो. उसे बुलाया जाता परंतु वह स्पष्ट रूप से न कह देती. कामिनी को भी बुलाया जाता फिर वह और पंडितजी मिल कर उसे सुंदर शब्दों में संस्कारहीनता की दुहाई देने लगते. वह सदा चुप रही थी, अब भी चुप रहती. हां, उस में एक बदलाव यह आया था कि अब वह कोई न कोई बहाना बना कर पूजा में सम्मिलित होने से इनकार करने लगी थी. वह अधिक से अधिक दिया के पास रहने लगी थी. नील के फोन आते परंतु कुछ स्पष्टता न होने के कारण दिया ‘हां’, ‘हूं’ कर के फोन पटक देती.

यश ने कई बार नील की मां से बात कर ली थी परंतु वही उत्तर ‘हां, बस जल्दी ही हो जाएगा.’ यश ने सोच लिया कि वे स्वयं दिया को ले कर लंदन जाएंगे. इसी सोच के तहत यश ने दिया के वीजा के लिए पूछताछ प्रारंभ कर दी थी. दिया के ससुराल जाने में समय लग सकता है, इस बात से किसी को कोई परेशानी नहीं थी. सब इस के लिए मानसिक रूप से तैयार ही थे परंतु चिंता इस बात की थी कि विवाह के बाद से तो नील और उस की मां का व्यवहार ही बदला हुआ सा प्रतीत हो रहा था.

इसी ऊहापोह में गाड़ी पार्क कर के यश वीजा औफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे थे कि अचानक ट्रक की चपेट में आ गए. ट्रक वाला भलामानुष था उस ने ट्रक रोक कर इकट्ठी हुई भीड़ में से कुछ लोगों की सहायता से यश को उन की कार में डाला और गाड़ी अस्पताल की ओर भगा दी.

डाक्टर यश के परिवार से परिचित थे. उन की सहायता से यश के मोबाइल से नंबर तलाश कर कैसे न कैसे दुर्घटना की खबर यश के घर वालों तक पहुंचा दी गई. यश बेहोश हो गए थे. डाक्टर ने पुलिस को खबर करने की फौर्मेलिटी भी पूरी कर दी. ट्रक ड्राइवर वहीं खड़ा रहा. उस ने अपने सेठ को भी दुर्घटना की जानकारी दे दी थी. कुछ ही देर में वहां सब लोग जमा हो गए. डाक्टर अपने काम में लग गए थे. थोड़ी देर में ड्राइवर का सेठ भी वहां पहुंच गया.

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