पितृद्वय: भाग-1

प्रत्यक्षत:सब सामान्य सा लगता था पर मुंबई की रातदिन की चहलपहल भी सुहास के मन का अकेलापन खत्म नहीं कर पाती थी. उसे गांव से यहां नौकरी के लिए आए 2 साल हो गए थे पर मन नहीं लग रहा था. वह था भी अंतर्मुखी. वीकैंड की किसी पार्टी में सहयोगियों के साथ गया भी, तो बोर हो गया. सब बैचलर्स अपनीअपनी गर्लफ्रैंड के साथ आते थे और खूब मस्ती करते थे पर उस का मन कुछ और ही चाहता था. शांत, सहृदय, इंटैलिजैंट सुहास को लोग पसंद भी करते थे. लड़कियां उसे पसंद करती थीं, उस का सम्मान करती थीं. वह था भी गुडलुकिंग, बहुत स्मार्ट, पर उस का मन स्वयं को बहुत अकेला पाता था. गांव में उस के मातापिता उस का अकेलापन देखते हुए उस के पीछे भी पड़े थे पर सुहास को किसी लड़की की चाह नहीं थी. लड़कियों के लिए उस के दिल में कभी वैसी भावनाएं जगी ही नहीं थीं कि वह विवाह के लिए तैयार होता.

सोसायटी के गार्डन में डिनर के बाद सुहास टहलने जरूर जाता था. वहां खेलते बच्चे उसे बहुत अच्छे लगते थे. वहीं एक दिन घूमतेटहलते किसी और बिल्डिंग में रहने वाले नितिन से उस की मुलाकात हो गई. नितिन बैंगलुरु से आया था और अपनी विवाहित बहन के घर रहता था. दोनों को ही एकदूसरे की कंपनी खूब भाई. महीनेभर के अंदर ही दोनों अच्छे दोस्त बन गए. दोनों को ही स्पष्ट समझ आ गया कि दोनों को ही शारीरिक और मानसिकरूप से एकदूसरे के जैसा ही साथी चाहिए था.

इस बार सुहास गांव गया तो उसे खुश देख कर उस के मातापिता बहुत खुश हुए. पूछ लिया, ‘‘बेटा, कोई लड़की पसंद आ गई क्या?’’

‘‘नहीं मां, एक दोस्त मिला है नितिन… मुझे वैसा ही साथी चाहिए था. मैं उस के साथ बहुत खुश हूं,’’ फिर झिझकते हुए सुहास ने आगे कहा, ‘‘किसी लड़की से शादी कर ही नहीं सकता मैं. मैं और नितिन एकदूसरे के साथ बहुत खुश हैं.’’

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सुहास के मातापिता को बहुत बड़ा झटका लगा कि यह क्या कह रहा है उन का बेटा. कहां वे हर लड़की को देख कर बहू के सपने देख रहे हैं, कहां बेटे को तो लड़की चाहिए ही नहीं. कोई लड़का ही उस का साथी है. यह क्या हो रहा है? सुहास के मातापिता गांव में जरूर रहते थे पर सेमसैक्स रिलेशन से अनजान नहीं थे. तीव्र क्रोध और गहन निराशा में वे सिर पकड़ कर बैठ गए. लोग क्या कहेंगे? उन का कितना मजाक उड़ेगा? एक ही बेटा है, वंश कैसे चलेगा?

सुहास को अपने मातापिता की मनोदशा पर दुख तो हुआ पर वह क्या कर सकता था? नितिन से रिश्ता उसे सुख देता है तो वह क्या करे? सुहास के मातापिता उस से इतने नाराज हुए कि उस के जाने तक उस से बात ही नहीं की. वह उदास सा मुंबई वापस चला आया. सुहास ने नितिन को अपने और उस के रिश्ते पर अपने मातापिता की प्रतिक्रिया बताई तो नितिन को दुख तो बहुत हुआ पर अब दोनों के हाथ में जैसे कुछ न था. वे आपस में खुश थे और ऐसे ही खुश रहना चाहते थे.

समय अपनी रफ्तार से चल रहा था. नितिन की बहन नीला को सुहास और नितिन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका था. उसे अच्छा तो नहीं लगा पर उस ने कुछ कहा भी नहीं. उस ने अपने मातापिता को बैंगलुरु फोन कर के बताया तो वे काफी नाराज हुए. नीला के पति सुजय ने भी सुन कर मजाक बनाया, ताने कसे.

एक दिन सुहास को औफिस से लौटने पर हरारत महसूस हो रही थी. नितिन के जोर देने पर वह डाक्टर को दिखाने गया. सोसायटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में ही डाक्टर शैलेंद्र का क्लीनिक था. शैलेंद्र से उस की जानपहचान पहले से थी. उन्होंने दवा दी. एक फोन आने पर वे कुछ जल्दी में लगे तो शैलेंद्र से कारण पूछने पर उन्होंने सोरी बोलते हुए कहा, ‘‘बालनिकेतन जाना है. वहां 8 महीने का बच्चा 3-4 दिन से परेशान है. वहां मैं अपनी सेवाएं देता हूं. बच्चे के मातापिता की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. कुछ लोग उसे अनाथालय छोड़ गए हैं.’’

शैलेंद्र अपनी इस समाजसेवा के लिए बहुत प्रसिद्ध थे. सुहास घर वापस आ गया. 3 दिन बाद शैलेंद्र से उस की अचानक भेंट हुई. सुहास ने बच्चे के बारे में पूछा तो वे बोले, ‘‘छोटी सी जान संभल ही नहीं पा रही है.’’

सुहास के मन में बड़ी दया जगी. पूछा, ‘‘मैं उस के लिए कुछ कर सकता हूं? उस से मिल सकता हूं?’’

‘‘क्यों नहीं, वहां चले जाना… मैं वहां फोन कर दूंगा.’’

अगले दिन सुहास औफिस से सीधे ‘बालनिकेतन’ पहुंच गया. शैलेंद्र वहां फोन कर चुके थे. सुहास ने वहां के मैनेजर राघव से मिल कर बच्चे को देखने की इच्छा प्रकट की. कहा, ‘‘मुझे बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं. इस बच्चे के बारे में पता चला तो यों ही देखने चला आया.’’

राघव उसे एक कमरे में ले गया. एक कोने में एक बैड पर बच्चा सो रहा था.

गोल सा गोरा, मासूम, चेहरा लाल था. देखते ही सुहास के दिल में स्नेह सा उमड़ा. जरा सा बच्चा, कैसे जीएगा… सुहास ने इधरउधर नजर दौड़ाई. बाकी बच्चों के साथ वहां के कर्मचारी महिलापुरुष कुछ न कुछ कर रहे थे. सब से छोटा बच्चा यही था. सुहास ने उस के माथे को हलका सा छूते हुए कहा, ‘‘इसे अभी भी बुखार है?’’

राघव ने ‘हां’ में सिर हिलाया. बच्चा जाग कर कुनमुनाने लगा. रोना शुरू किया तो सुहास ने उसे गोद में उठा लिया. सरल हृदय सुहास उसे कंधे से लगा कर थपथपाने लगा. बच्चा चुप हो गया. ममता और स्नेह से मन भर गया सुहास का. थोड़ी देर बच्चे को सीने से लगाए खड़ा कुछ सोचता रहा. लिटाया तो बच्चा फिर रोने लगा.

राघव ने किसी को आवाज दी, ‘‘अरे मोहन, बच्चे को देखो, मैं अभी आता हूं.’’

राघव सुहास को ले कर अपने औफिस में आ गया. थोड़ी देर बाद सुहास घर लौट आया, पर उस का मन वहीं उस बच्चे में अटक कर रह गया था.

नितिन उस से मिलने आया तो उसे गंभीर, उदास देख कारण पूछा.

तब सुहास ने बताया, ‘‘बालनिकेतन से आ रहा हूं.’’

‘‘क्यों?’’ नितिन चौंका तो सुहास ने उसे पूरी बात बताई. फिर दोनों काफी देर तक इस विषय पर बात करते रहे. नितिन को भी बच्चे के बारे में सुन कर दुख हुआ.

अगले दिन भी सुहास शाम को बालनिकेतन चला गया. राघव उस से प्रसन्नतापूर्वक मिला. सुहास ने पूछा, ‘‘वह बच्चा कैसा है?’’

‘‘आज बुखार हलका था.’’

‘‘राघवजी एक जरूरी बात करने आया हूं.’’

‘‘हां, कहिए न.’’

‘‘मैं उसे गोद लेना चाहता हूं.’’

राघव बुरी तरह चौंका, ‘‘क्या?’’

‘‘जी, बताइए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘पर आप तो अनमैरिड हैं न?’’

‘‘हां, उस से क्या फर्क पड़ता है?’’

‘‘पर जब आप किसी लड़की से शादी करेंगे…’’

सुहास बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘नहीं, राघवजी. मैं किसी लड़की से शादी नहीं करूंगा.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मेरा साथी मेरे ही जैसा है नितिन.’’

‘‘ओह,’’ सारी बात समझते हुए राघव गंभीर हो गया, पूछा, ‘‘आप के घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘मैं यहां अकेला रहता हूं… पेरैंट्स गांव में रहते हैं.’’

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‘‘यह इतना आसान नहीं होता है… आप जब औफिस जाएंगे, तो बच्चे की देखभाल कौन करेगा?’’

‘‘मैं भरोसे की आया ढूंढ़ लूंगा. आप और डाक्टर शैलेंद्र, जब चाहें आ कर देख सकते हैं कि बच्चे की देखभाल ठीक से हो रही है या नहीं.’’

‘‘पर कानूनन बहुत कुछ करना होगा. इस केस में काफी मुद्दे होंगे.’’

‘‘मैं सब देख लूंगा. बस, आप मुझे बता दें क्याक्या करना है. मेरे कुलीग के भाई वकील हैं. मैं उन से सलाह ले लूंगा.’’

‘‘आप अच्छी तरह सोच लें कुछ दिन.’’

‘‘मैं आप से वीकैंड. मिलने आऊंगा. एक बार उस बच्चे को देख लूं?’’

राघव मुसकरा दिया, ‘‘हां, जरूर.’’

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महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-16

 अब तक की कथा :

ईश्वरानंद से मिल कर दिया को अच्छा नहीं लगा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि धर्मानंद क्यों ईश्वरानंद का आदेश टाल नहीं पाता. ईश्वरानंद कोई सामूहिक गृहशांति यज्ञ करवा रहे थे. उसे फिर धर्मानंद के साथ उस यज्ञ में शामिल होने का आदेश मिलता है. बिना कोई विरोध किए दिया वहां चली गई. उस पूजापाठ के बनावटी माहौल में दिया का मन घुट रहा था परंतु धर्मानंद ने उसे बताया कि प्रसाद ग्रहण किए बिना वहां से निकलना संभव नहीं. वह दिया की मनोस्थिति समझ रहा था. अब आगे…

दिया बेचैन हुई जा रही थी.  जैसेतैसे कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा हुई और भीड़ महाप्रसाद लेने के लिए दूसरी ओर लौन में सजी मेजों की ओर बढ़ने लगी. अचानक एक स्त्री ने आ कर धीरे से धर्मानंद के कान में कुछ कहा.

धर्मानंद अनमने से हो गए, ‘‘देर हो रही है.’’

‘‘लेकिन गुरुजी ने आप को अभी बुलाया है. आप के साथ में कोई दिया है, उसे भी बुलाया है.’’

एक प्रकार से आदेश दे कर वह स्त्री वहां से खिसक गई. दिया ने भी सब बातें सुन ली थीं. कहांकहां फंस जाती है वह. नहीं, उसे नहीं जाना.

‘‘आप हो कर आइए. मैं खाना खाती हूं.’’

‘‘दिया, प्लीज अभी तो चलिए. नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी.’’

‘‘मैं कोई बंदी हूं उन की जो उन का और्डर मानना जरूरी है?’’ दिया की आवाज तीखी होने लगी तो धर्मानंद ने उसे समझाने की चेष्टा की.

‘‘मैं जानता हूं तुम उन की बंदी नहीं हो पर तुम नील और उस की मां की कैदी हो. वैसे मैं भी यहां एक तरह से कैद ही हूं. इस समय मैं जैसा कह रहा हूं वैसा करो दिया, प्लीज. हम दोनों ही मिल कर इस समस्या का हल ढूंढ़ेंगे.’’

धर्मानंद दिया का हाथ पकड़ कर पंडाल के अंदर ही अंदर 2-3 लौन क्रौस कर के दिया धर्मानंद के साथ गैराजनुमा हाल में पहुंची.

धर्मानंद ने एक दीवार पर लगी हुई एक बड़ी सी पेंटिंग के पास एक हाथ से उस सुनहरी सी बड़ी कील को घुमाया जिस पर पेंटिंग लगी हुई थी. अचानक बिना किसी आवाज के पेंटिंग दरवाजे में तबदील हो गई और धर्मानंद उस का हाथ पकड़े हुए उस दरवाजे में कैद हो गया. अंदर घुसते ही पेंटिंग बिना कुछ किए बिना आवाज के अपनेआप फिर से पहली पोजीशन पर चिपक सी गई. सामने ही ईश्वरानंदजी का विशाल विश्रामकक्ष था. ईश्वरानंदजी गाव तकिए के सहारे सुंदर से दीवान पर लेटे हुए थे, उन के सिरहाने एक स्त्री बैठी थी जो उन का सिर दबा रही थी तो एक उन के पैरों की ओर बैठी पैरों की मालिश कर रही थी.

‘‘आओ, धर्मानंद, आओ दिया, क्या बात है, आज देर कैसे हो गई? काफी देर से पहुंचे आप लोग? और हम से क्या मिले बिना जाने का प्रोग्राम था?’’दिया ने देखा दोनों स्त्रियां किसी मशीन की भांति चुपचाप माथे और पैरों की मालिश कर रही थीं.

‘‘अरे भई, जरा धर्मानंद और दिया को एकएक पैग तो बना कर दो. अभी तक खड़े हो दोनों, बैठो.’’

चुपचाप दोनों सामने वाले सोफे पर बैठ गए. दिया का दिल धकधक करने लगा. अब क्या प्रसाद के नाम पर पैग भी. नहीं, उस ने धर्मानंद का हाथ फिर से कस कर दबा दिया.अचानक न जाने किधर से उस दिन वाली अंगरेज स्त्री आ कर खड़ी हो गई और मुसकराते हुए पैग तैयार करने लगी.

‘‘हैलो धर्मानंद, हाय दिया,’’ उस ने दोनों को विश किया.

‘‘प्लीज रहने दें, हम तो बस महाप्रसाद लेने ही जा रहे थे,’’ धर्मानंद ने मना किया.

‘‘ऐसे कैसे चलेगा, धर्म, तुम्हें होता क्या जा रहा है? एकएक पैग लो यार. सिर फटा जा रहा है. सुबह से ये सब विधि करवाते हुए पूरे बदन में दर्द हो रहा है. दो, दिया को भी दो, धर्म को भी,’’ ईश्वरानंद ने फिर आदेश दिया.

‘‘गुरुजी, इस समय रहने दें और दिया तो लेती ही नहीं है.’’

‘‘अरे, लेती नहीं है तो क्या, आज ले लेगी, गुरुजी के साथ.’’

‘‘यहां आओ, दिया. उस दिन भी तुम से कुछ बात नहीं हो सकी,’’ ईश्वरानंद ने उसे अपने पास दीवान पर बैठने का इशारा किया.

दिया मानो सोफे के अंदर धंस जाएगी, इस प्रकार चिपक कर बैठी रही.

‘‘मैं किसी को खा नहीं जाता, दिया. देखो ये सब, कितने सालों से मेरे साथ हैं. आज तक तो किसी को कुछ नुकसान पहुंचाया नहीं है. डरती क्यों हो?’’

‘‘लाओ, बनाओ एकएक पैग और जाओ तुम लोग भी प्रसाद ले लो, फिर यहां आ जाना.’’

गुरुजी के आदेश पर दोनों स्त्रियां ऐसे उठ खड़ी हुईं मानो किसी ने उन का कोई स्विच दबा दिया हो, रोबोट की तरह. हाय, क्या है ये सब? मानो किसी ने हिप्नोटाइज कर रखा हो. दिया ने सुना हुआ था कि ऐसे लोग भी होते हैं जो आंखों में आंखेंडाल कर अपने वश में कर लेते थे. सो, दिया ईश्वरानंद से आंखें नहीं मिला रही थी. सब के सामने पैग घूम गए. सब से पहले ईश्वरानंद ने लिया, चीयर्स कह कर गिलास ऊपर की ओर उठाया, एक लंबा सा घूंट भर लिया और धर्मानंद को लेने का इशारा किया.

‘‘प्लीज, नो,’’ दिया जोर से बोली.

धर्मानंद का उठा हुआ हाथ वहीं पर रुक गया और ईश्वरानंद भी चौंक कर दिया को देखने लगे.

‘‘प्लीज, चलो धर्मानंद, आय एम वैरी मच अनकंफर्टेबल,’’ उस के मुंह से अचानक निकल गया.

‘‘क्यों घबरा रही हो, दिया? एक पैग लो तो सही, सब डर निकल जाएगा. लो,’’ ईश्वरानंद अपने स्थान से उठ कर दिया की ओर बढ़े तो दिया धर्मानंद के पीछे छिप गई.

‘‘गुरुदेव, दिया के लिए यह सब बिलकुल अलग है, नया. प्लीज, अभी रहने दें. बाद में जब यह कंफर्टेबल हो जाएगी…’’ धर्मानंद ने ईश्वरानंद की ओर अपनी एक आंख दबा दी.

ईश्वरानंद उस का इशारा समझ कर फिर से जा कर धप्प से अपने स्थान पर विराजमान हो गए. उन के चेहरे से लग रहा था कि वे दिया व धर्म के व्यवहार से क्षुब्ध हो उठे हैं. परंतु लाचारी थी. जबरदस्ती करने से बात बिगड़ सकती थी और वे बात बिगाड़ना नहीं चाहते थे.

‘‘दिया इतनी होशियार है, मैं तो कहता हूं कि यह अगर अपना हुलिया थोड़ा सा बदलने के लिए तैयार हो तो मैं इसे अच्छी तरह से ट्रेंड कर दूंगा और फिर देखना लोगों की लाइन लग जाएगी, इस के प्रवचन सुनने और इस के दर्शनों के लिए.

‘‘दिया, तुम्हारी पर्सनैलिटी में तो जादू है जो तुम नहीं जानतीं, मैं समझता हूं. तुम्हारे लिए सबकुछ नया है पर शुरू में तो सब के लिए नया ही होता है न?’’ ईश्वरानंद प्रयत्न करना नहीं छोड़ रहा था.

‘‘गुरुजी, आज दिया को जरा घुमा लाता हूं. बेचारी घर के अंदर रह कर बोर हो जाती है. आज आप भी थके हुए हैं. मैं फिर कभी इसेले कर आऊंगा.’’

‘‘ठीक है पर प्रसाद जरूर ले कर जाना. उस के साथ आने वाले दिनों के कार्यक्रम की लिस्ट भी मिलेगी.’’

बाहर जाने वाले लोगों के हाथ पर एक मुहर लगाई जा रही थी. उन लोगों के हाथों पर भी मुहर लगाई गई. जब वे अपना जमा किया हुआ सामान लेने पहुंचे तो उन्हें उन का सामान तभी दिया गया जब उन्होंने अपने हाथ दरबानों को दिखाए. साथही एक लिस्ट भी दी गई जिस पर ईश्वरानंदजी द्वारा संयोजित होने वाले कार्यक्रमों का विवरण था और ‘परमानंद सहज अनुभूति’ के सदस्यों का उन कार्यक्रमों में उपस्थित होना अनिवार्य था.शाम के 3:30 बजे थे. धर्मानंद ने गाड़ी निकाली और बाहर निकल कर दिया चारों ओर देख कर लंबीलंबी सांसें ले रही थी. घुटन से निकल मुक्त वातावरण में वह अपने फेफड़ों के भीतर पवित्र, शुद्ध, सात्विक सांसें भर लेना चाहती थी.  गार्डन पहुंच कर दोनों गाड़ी से उतरे. लौन पर बैठते ही सब से पहले दिया ने अपना पर्स  खोला. मोबाइल देखा, कितने सारे मिसकौल्स थे.

‘‘देखिए धर्म, इस में नील की मां के भी कई मिसकौल्स हैं,’’ दिया ने धर्मानंद की ओर मोबाइल बढ़ा दिया.

‘‘अरे, मैं भूल गया दियाजी, उन्होंने कहा था न कि पूजा खत्म होते ही मुझे रिंग दे देना. मैं अभी उन्हें कौल करता हूं.’’

‘‘क्या जरूरत है, धर्म?’’

‘‘जरूरत है, दिया. इन लोगों से ऐसे छुटकारा नहीं मिल सकता. इन्हें शीशे में उतारने के बाद ही कुछ हो सकेगा.’’

आगे पढ़ें- उस ने नील की मां को फोन किया और…

पितृद्वय: भाग-2

सुहास बच्चे के पास चला गया. इस समय बच्चा बैठा हुआ किसी खिलौने में उलझा था. सुहास ने मुंह से सीटी बजाई तो बच्चे ने उसे देखा और फिर मुसकरा दिया. सुहास ने सीटी बजाते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया. सुहास के होंठों पर हाथ रख कर बच्चा मुंह से आवाजें निकालने लगा. साफ समझ आ रहा था कि सुहास को सीटी बजाने के लिए कह रहा है. सुहास ने सीटी बजाई तो बच्चा खिलखिलाने लगा.

यह मजेदार क्रम शुरू हो गया. जैसे ही सुहास रुकता बच्चा उस से सीटी बजाने के लिए उस के होंठों पर हाथ रख देता. राघव और वहां मौजूद कर्मचारी इस खेल पर हंस रहे थे. थोड़ी देर बाद सुहास ने बच्चे को वहां खड़ी एक महिला को दिया तो बच्चा रोने लगा.

सुहास को उस पर बड़ी ममता उमड़ी. राघव से कहा, ‘‘मैं इसे जल्दी ले जाऊंगा. मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे यह मेरा ही अंश है. अरे हां, मैं इस का नाम अंश ही रखूंगा.’’

राघव मुसकरा दिया. राघव ने वहां से निकलते ही अपने सहयोगी प्रकाश को फोन पर पूरी बात बताई. प्रकाश ने अपने बड़े भाई वकील आलोक का फोन नंबर देते हुए कहा, ‘‘औल द बैस्ट. अंश को संभाल पाओगे?’’

‘‘हां, मैं सब मैनेज कर लूंगा.’’

नितिन सारी बात सुन कर बहुत खुश हुआ. पूछ लिया, ‘‘सुहास, मैं तुम्हारे साथ ही शिफ्ट हो जाऊं? हम सब शेयर करते रहेंगे.’’

‘‘हां, बिलकुल, अपना सामान ले आओ.’’

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वीकैंड तक नितिन अपना सामान ले कर सुहास के पास ही आ गया. आतेजाते अपने फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाले दंपती राजीव और सुमन से सुहास की अच्छी जानपहचान हो गई थी. सुहास ने शाम को उन्हीं की डोरबैल  बजा दी. फिर एक अच्छी मेड के बारे में पूछताछ की. बात तय हो गई. सुहास ने उन्हीं के यहां काम करने वाली मंजू को कुछ समय बाद काम पर आने के लिए कह दिया. फिर उस ने आलोक से बात कर के मिलने का समय मांगा. मिलने पर आलोक ने कई कानूनी मशवरे देते हुए उस की इस इच्छा में पूर्णतया सहयोग का वादा किया.

सिंगल पेरैंट के रूप में बच्चा गोद लेने में बहुत समय लगने वाला था पर आलोक की सलाह पर जल्दी इस केस में पेपर्स तैयार होने शुरू हो गए. सुहास जल्दीजल्दी बालनिकेतन के चक्कर काटता रहता था. अंश के साथ समय बिता कर उस के दिल को बड़ा चैन मिलता. कुछ दिनों पहले मन में बसा अकेलापन खत्म हो चुका था. अब नितिन का साथ था, अंश की बातें थीं… जीवन को जैसे एक उद्देश्य मिल गया था.

सुहास और नितिन फोन पर अपने घर वालों के संपर्क में थे. कभीकभी अपनेअपने घर भी जाते. हर बार उन के व्यंग्यबाणों से आहत हो कर लौटते. धीरेधीरे उन का घर जाना कम होता जा रहा था.

दोनों ही अपनेअपने परिवार को घर के खर्चों के लिए अच्छीखासी रकम भी भेजते

पर अपने हर कर्तव्य को पूरा करने वाले 2 दोस्तों को अपनी मरजी से, अपनी इच्छा से जीने का हक नहीं था. अपनी पर्सनल लाइफ अपनों के द्वारा ही नकारे जाने का उन दोनों के दिलों में बड़ा दुख था.

सुहास राघव के लगातार संपर्क में था. पेपर्स की प्रोग्रैस से उसे अवगत कराता रहता था. सब औपचारिकताएं पूरी होने में कुछ समय तो लगा ही. सुहास और नितिन जिस दिन अंश को अपने घर लाए उन्होंने राघव, प्रकाश, आलोक, राजीव और सुमन वे कुछ खास सहयोगियों को एक छोटी सी पार्टी के लिए बुलाया. नीला नाराज थी. नहीं आई. अंश प्यारा बच्चा था. देखने वाले के दिल में उसे देखते ही उस के लिए स्नेह उमड़ता था.

आया मंजू ने भी काम पर आना शुरू कर दिया था. जितनी देर सुहास और नितिन औफिस में रहते, मंजू अंश का बहुत अच्छी तरह ध्यान रखती. सुहास, नितिन और अंश जैसे एकदूसरे के लिए ही बने थे. तीनों की एक अलग दुनिया थी. सुहास घर में जैसे ही सीटी बजाते हुए घुसता, उस की गोद में आने के लिए अंश की बेचैनी देख सब हंसते. अंश का कमरा बच्चे के हिसाब से तैयार किया जाता था. कभी उस के साथ सुहास सोता, तो कभी नितिन.

पर जैसाकि समाज है, लोग उन की पीठ पीछे उन का खूब मजाक उड़ाते. औफिस में कुछ लोग नितिन और सुहास की जोड़ी पर कहते, ‘‘इस में बुरा क्या है, सब को अपनी इच्छा से जीने का हक है. किसी लड़की को नहीं छेड़ रहे, किसी को कुछ नहीं कह रहे हैं… एक अनाथ बच्चे का जीवन भी संवार दिया. उन्हें अपनी दुनिया में खुश रहने दो, भाइयो.’’

वहीं कुछ लोग बहुत मजाक उड़ाते. ऐसा नहीं था कि सुहास और नितिन तक ये बातें नहीं पहुंचती थीं. कुछ लड़कियां उन दोनों की बहुत अच्छी दोस्त थीं, हर समय उन के किसी भी काम आने के लिए तैयार.

अंश के बारे में सुन कर दोनों के परिवार वाले बहुत नाराज हुए थे. सुहास के पिता ने कहा, ‘‘खूब मजाक उड़वाओ. हमारा भी, अपना भी… हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है. तुम पर शर्म आती है.’’

सुहास की मां भी सिर पकड़ कर बैठ गईं बोलीं, ‘‘सुहास, तुम ने तो हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. लोगों को क्या कहें कि हमारी बहू लड़का है, छि:… छि:…’’

नितिन के घर वालों की भी यही प्रतिक्रिया थी.

दोनों दोस्त सामाजिक प्रताड़ना सहते हुए अंश के साथ जीए जा रहे थे. मंजू स्नेहिल स्वभाव की महिला थी. उसे इन दोनों लड़कों का निश्छल स्वभाव, व्यवहार खूब पसंद था. वह भी दोनों का रिश्ता अच्छी तरह समझती थी. अल्पशिक्षिता होते हुए भी 2 लड़कों का एक अनाथ बच्चे को गोद लेना, उसे प्यार देना, उस के लिए बहुत बड़ी बात थी. ऐसा तो उस ने कहीं देखा ही नहीं था. वह तो सोसायटी के उच्चवर्ग के कई परिवारों में काम कर चुकी थी जहां उस ने पतिपत्नी के दिनरात के झगड़े भी देखे थे, उन के बच्चों को खूब गलत रास्ते पर जाते हुए भी देखा था. वहीं ये 2 लड़के एक बच्चे की अच्छी परवरिश करने में अपना समय बिता रहे थे.

जैसेजैसे अंश बड़ा हो रहा था, दोनों की चिंताएं अलग रूप में सामने आ

रही थीं. एक दिन सुहास ने नितिन को गंभीर देख कारण पूछा तो ठंडी सांस लेते हुए नितिन ने कहा, ‘‘यार, अभी अंश स्कूल जाएगा, वहां उस की मां के बारे में पूछा जाएगा. बच्चे 100 तरह की बात करेंगे, कहीं उसे बुली न किया जाए. 2 गे लोगों ने उसे पालापोसा है, कहीं लोगों का मजाक उस का दिल न दुखाए. आजकल मुझे इस बात की बड़ी चिंता रहती है.’’

सुहास का भी चेहरा उतर गया, ‘‘हां, ये सब बातें मेरे दिल में भी आती हैं. अंश तो हमारी जान है, हम उसे कभी दुखी नहीं देख पाएंगे. कहीं उसे कभी हम से चिढ़ न हो जाए,’’ कहतेकहते सुहास का गला भर्रा गया.

अंश स्कूल जाने लगा. खूब अच्छी आदतें, प्यारी बातें, कोमल, हंसमुख सा चेहरा, बरबस ही लोगों का ध्यान आकर्षित कर लेता. पहली पेरैंट्सटीचर्स मीटिंग में दोनों ही अंश को ले कर अतिउत्साहित से पहुंचे. टीचर गीता को सुहास ने सब स्पष्ट बता दिया. आधुनिक सोच की गीता दोनों से मिल कर बहुत खुश हुई. उस ने अंश की पढ़ाई में अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया.

अंश जब तक बच्चा था, कई बातों से अनजान था पर जैसेजैसे बड़ा हो रहा था, मां, नानानानी, दादादादी के बारे में बहुत सवाल पूछता. उस की बातों के जवाब देने में दोनों को कभी हंसी आ जाती, तो कभी पसीना छूट जाता. अनुभवी मंजू जब अंश का ध्यान किसी और बात में लगा कर उन दोनों की जान छुड़ाती तो तीनों हंस पड़ते. अंश की हैल्थ का ध्यान पूरी तरह से रखा जाता. अब वह बच्चों के साथ खेलने भी जाने लगा था.

सुहास और नितिन अपने मातापिता से फोन पर बात करते थे पर दोनों को ही अब तक डांट पड़ती थी. फोन रखते हुए दोनों ही कहते, ‘‘अब तक सब नाराज हैं, क्या इंसान को अपनी पसंद से जीने का हक भी नहीं? हम किसी के साथ क्या बुरा कर रहे हैं?’’

जैसेजैसे अंश बड़ा हो रहा था, उस का व्यक्तित्व भी निखरता जा रहा था. कौन्फिडैंट था, अपने कई काम खुद करने लगा था. समाज ने ही उसे समझा दिया था कि सुहास और नितिन की क्या स्थिति है, क्या रिश्ता है.

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नितिन और सुहास की प्रमोशन हो गई तो दोनों ने उसी बिल्डिंग में एक फ्लैट खरीद लिया. अंश अब 8वीं क्लास में था. अंश का जीवन सब सुविधाओं से युक्त था. अब घर की एक चाबी अंश के पास भी रहने लगी थी. अब मंजू सुबहशाम ही आती थी. अंश दोनों को ही पापा कहता था, नितिन पापा, सुहास पापा. कई लोग इस बात पर कभीकभी उन का खूब मजाक उड़ाते थे. कुछ संवेदनशील थे, दोनों की लाइफ का सम्मान करते थे. वैसे भी हमारे समाज में एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए प्रयासरत कुछ लोग खुली सोच रख भी कहां पाते हैं? इन लोगों का उद्देश्य ही होता है, दूसरों के जीवन की शांति भंग करना. ऐसे ही कुछ लोग एक पार्टी में थे जहां सुहास, नितिन और अंश गए हुए थे. राजीव और सुमन के विवाह की 25वीं वर्षगांठ की पार्टी थी. इन दोनों को ही इन तीनों से विशेष स्नेह था.

पार्टी में एक महिला ने पूछ लिया, ‘‘क्यों, अंश, कैसा लगता है अपने घर में? मम्मी तो है नहीं कोई तुम्हारी.’’

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महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-17

उस ने नील की मां को फोन किया और स्पीकर का बटन दबा दिया जिस से दिया भी सुन सके.

‘‘रुचिजी, पूजा हो गई है और हम वहां से निकल रहे हैं.’’

‘‘कैसी हुई पूजा, धर्मानंदजी? आप साथ ही में थे न? दिया ने कुछ गड़बड़ी तो नहीं की?’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप? मेरे साथ थी वह, क्या कर सकती थी?’’

‘‘आप के पास नहीं है क्या दिया?’’

‘‘अगर होती तो आप से ऐसे खुल कर बात कैसे कर सकता था?’’

‘‘कहां गई है?’’

‘‘जरा वाशरूम तक. मैं ने ही कहा जरा हाथमुंह धो कर आएगी तो फ्रैश फील करेगी. वहां तो उस का दम घुट रहा था.’’

‘‘यही तो धर्मानंदजी, क्या करूं, मैं तो बड़ी आफत में पड़ गई हूं. उधर…आप के पास तो फोन आया होगा नील का?’’ वे कुछ घबराए स्वर में बोल रही थीं. जब नील से फोन पर बात होती थी तब भी वे इसी स्वर में बोलने लगती थीं.

‘‘नहीं, रुचिजी, क्या हुआ? नील का तो कोई फोन नहीं आया मेरे पास. सब ठीक तो है?’’ धर्म ने भी घबराने का नाटक किया.

‘‘अरे वह नैन्सी प्रैगनैंट हो गई है. बच्चे को गिराना भी नहीं चाहती.’’

‘‘तो पाल लेगी अपनेआप, सिंगल मदर तो होती ही हैं यहां.’’

‘‘नहीं, पर वह चाहती है कि मैं पालूं बच्चे को. अगर मैं बच्चा पालती हूं तो वह नील से शादी कर लेगी वरना…’’

‘‘तो इस में आप को क्या मिलेगा?’’

‘‘मिलने की बात तो छोडि़ए, धर्मजी. मुझे तो इस लड़के ने कहीं का नहीं रखा. दिया का क्या करूं मैं?’’

‘‘हां, यह तो सोचना पड़ेगा. मैं तो समझता हूं कि रुचिजी, अब बहुत हो गया, अब तो इस के घर वालों को खबर कर ही देनी चाहिए.’’

‘‘मरवाओगे क्या? वे तो वैसे ही यहां आने के लिए तैयार बैठे हैं…और आप को पता है उन की परिस्थिति क्या चल रही है? वे तो हमें फाड़ ही खाएंगे…’’

‘‘दिया आ रही है, रुचिजी. मैं बाद में आप से बात करूंगा.’’

‘‘अरे कहीं मौलवौल में घुमाओ. बियाबान में क्या करेगी? कुछ खरीदना चाहे तो दिलवा देना. आज उसे पैसे नहीं दिए. वैसे पहले के भी होंगे ही उस के पर्स में, पूछ लेना…’’ नील की मां की नाटकीय आवाज सुनाई दी.

‘‘हां जी, देर हो जाए तो चिंता मत करिएगा.’’

‘‘चिंताविंता काहे की, मेरी तो मुसीबत बन गई है. समझ में नहीं आता और क्या पूजापाठ करवाऊं? ईश्वरानंदजी से भी मशवरा कर लेना.’’

‘‘हां जी-हां जी, जरूर. अभी रखता हूं, नमस्ते.’’

मोबाइल बंद कर के दिया की आंखों में आंखें डाल कर धर्मानंद बोला, ‘‘आई बात कुछ समझ में?’’

‘‘आई भी और नहीं भी आई, धर्मजी. जीवन कैसे मेरे प्रति इतना क्रूर हो सकता है? मेरा क्या कुसूर है? मैं कांप जाती हूं यह सोच कर कि मेरे घर वालों की क्या दशा होगी लेकिन मैं उन्हें सचाई बताने से भी डरती हूं. क्या करूं?’’

‘‘दिया, दरअसल मैं खुद यहां से निकल भागना चाहता हूं. मगर मैं यहां एक जगह फंसा हुआ हूं,’’ वह चुप हो गया.

दिया का दिल फिर धकधक करने लगा. कहीं कुछ उलटासीधा तो कर के नहीं बैठे हैं ये.

‘‘नहीं, मैं ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं दरअसल यहां एमबीए कर रहा हूं और सैटल होना चाहता हूं पर अगर ईश्वरानंद को पता चल जाएगा तो वे मेरा पत्ता साफ करवा देंगे.’’

‘‘क्यों? उन्हें क्या तकलीफ है?’’ दिया ईश्वरानंद के नाम से चिढ़ी बैठी थी.

‘‘तकलीफ यह है कि मैं उन के बहुत सारे रहस्यों से वाकिफ हूं और अगर मैं ने उन का साथ छोड़ दिया तो उन्हें डर है कि मैं कहीं उन की पोलपट्टी न खोल दूं…’’

‘‘क्या आप को यह नहीं लगता कि ये सब गलत है?’’

‘‘हां, खूब लगता है.’’

‘‘फिर भी आप इन लोगों के साथी बने हुए हैं?’’

‘‘बस, इस में से निकलने का रास्ता ढूंढ़ रहा हूं.’’

‘‘सच बताइए, धर्म, मेरा पासपोर्ट आप के पास है न?’’

दिया ने धर्म पर अचानक ही अटैक कर दिया. धर्म का चेहरा उतर गया पर फिर संभल कर बोला, ‘‘हां, मेरे पास है पर आप को कैसे पता चला?’’

‘‘मैं ने आप की और नील की मां की सारी बात सुन ली थी उस दिन मंदिर में,’’ दिया ने सब सचसच कह दिया.

‘‘और…आप उस दिन से मुझे बरदाश्त कर रही हैं?’’

‘‘मैं तो नील और उस की मां को भी बरदाश्त कर रही हूं, धर्म. मैं इन सब दांवपेचों को न तो जानती थी और न ही समझती थी परंतु मेरी परिस्थिति ने मुझे जबरदस्ती इन सब पचड़ों में डाल दिया.’’

‘‘बहुत शर्मिंदा हूं मैं, दिया. पर मैं भी आप की तरह ही हूं. मुझे भी उछाला जा रहा है. एक फुटबाल सा बन गया हूं मैं. सच में ऊब गया हूं.’’

धर्म की आंखों में आंसू भरे हुए थे. दिया को लगा वह सच कह रहा था.

‘‘मैं नील के घर से भागना चाहती हूं, धर्म,’’ दिया ने अपने मन की व्यथा धर्म के समक्ष रख दी.

‘‘कहां जाओगी भाग कर?’’

‘‘नहीं मालूम, कुछ नहीं पता मुझे. वहां मेरा दम घुटता है. मैं इंडिया वापस जाना चाहती हूं,’’ दिया बिलखबिलख कर रोने लगी, ‘‘आप नहीं जानते, धर्म, मैं किस फैमिली से बिलौंग करती हूं. और मेरी ही वजह से मेरे पापा का क्या हाल हुआ है?’’

‘‘मैं सब जानता हूं, दिया. इनफैक्ट, मुझे आप के घर में हुई एकएक दुर्घटना का पता है, यह भी कि नील व उस की मां भी ये सब जानते हैं.’’

‘‘क्या? क्या जानते हैं ये लोग? क्या इन्हें मालूम है कि मेरे पापा की…’’ दिया चकरा गई.

‘‘हां, इन्हें सब पता है और इन्हें यह सब भी पता है जो आप को नहीं मालूम,’’ धर्म ने सपाट स्वर में कहा.

‘‘क्या, क्या नहीं पता है मुझे?’’ दिया अधीर हो उठी थी.

‘‘अब मैं आप से कुछ नहीं छिपा पाऊंगा, दिया. मेरा मन वैसे ही मुझे कचोट रहा है. मैं भी तो इस पाप में भागीदार हूं.’’

‘‘पर आप तो उस दिन नील की मां से कह रहे थे कि आप यहां थे नहीं, तब किसी रवि ने मेरी जन्मपत्री मिलाई थी.’’

‘‘ठीक कह रहा था, दिया. पर सब से ऊपर तो ईश्वरानंद बौस हैं न?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि जब तक उस की मुहर नहीं लग जाती तब तक बात आगे कहां बढ़ती है. रवि भी तो इन का ही मोहरा है. उस ने भी जो किया या बताया होगा, ईश्वरानंदजी के आदेश पर ही न.’’

‘‘पर आप तो उस दिन नील की मां से कह रहे थे कि रवि आप का चेला है. आप उसे यह विद्या सिखा रहे हैं?’’

दिया चाहती थी कि जितनी जल्दी हो सके उसे ऐसा रास्ता दिखाई दे जाए जिस से वह इस अंधेरी खाई से निकल सके.

‘‘अच्छा, एक बात बताइए, धर्म. कहते हैं कि मेरे ग्रह नील पर बहुत भारी हैं और यदि वह मुझ से संबंध बनाता है तो बरबाद हो जाएगा. पर नैन्सी से उस के शारीरिक संबंध ग्रह देखने के बाद बने हैं क्या?’’

‘‘क्या बच्चों जैसी बात करती हैं? उस जरमन लड़की से वह ग्रह देखने के बाद संबंध स्थापित करता क्या?’’

‘‘तो उसे कैसे परमिशन दे दी उस की मां ने? बच्चों जैसी बात नहीं, धर्म, मूर्खों जैसी बात है. जिस लड़की को पूरी तरह ठोकपीट कर ढोलनगाड़े बजा कर लाए उस के ग्रहों के डर से अपने बेटे को बचा कर रखा जा रहा है और जिस लड़की के शायद बाप का भी पता न हो, वह नील की सर्वस्व है. क्या तमाशा है, धर्म?’’

आगे पढ़ें- तुम वैसे भी सोचो, पूरी दुनिया में ग्रह मिलाए जाते हैं क्या?

#coronavirus: वायरल होते कोरोना डांस उर्फ त्रासदी की ब्लैक Comedy

इन पंक्तियों के लिखते समय तक दुनिया में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 13 लाख के पास पहुंच गयी है (6 अप्रैल 2020 दोपहर 3 बजे भारतीय समय) करीब 70,000 लोग इससे दम तोड़ चुके हैं और हर गुजरते घंटे के साथ इस महामारी से संक्रमित होने वालों की संख्या में 10,000 नए लोगों का इजाफा हो रहा है. जबकि करीब 450 से ज्यादा लोग हर घंटे दम तोड़ रहे हैं. ये इस कोरोना त्रासदी के वे आंकड़े हैं,जिनकी शायद एक महीने पहले कल्पना तक भी नहीं की गयी थी और आज पूरी दुनिया इस भयावह हकीकत की चपेट में है. लेकिन डर और दहशत की भी एक सीमा होती है. गुस्से में तना कोई मुक्का हमेशा हमेशा के लिए तना नहीं रह सकता. यह इंसान की नियति है कि वह एक स्थिति के बाद किसी भी स्थिति के साथ तालमेल बना ही लेता है.

यही वजह है कोरोना को लेकर दुनिया का भयावह खौफ और घोर निराशा अब धीरे-धीरे एक ब्लैक कॉमेडी या त्रासद मनोरंजन का जरिया भी बनती जा रही है. शुरू में जहां लोगों ने कोरोना की दहशत में त्रासदी में नाचना गाना तो छोडिये सही से एक दूसरे से बोलना भी छोड़ दिया था, वहीं अब धीरे धीरे इस दहशत के आदी हो जाने के कारण लोगों ने न केवल इस पर खुलकर बोलना शुरू कर दिया है बल्कि व्हाट्सअप और दूसरे सोशल मीडिया माध्यमों में जमकर एक दूसरे के साथ कोरोना जोक्स शेयर कर रहे हैं. चीन, वियतनाम, कोरिया, अमरीका, भारत और कई दूसरे देशों में इन दिनों तमाम कोरोना डांस भी वायरल हो रहे हैं. दुनियाभर की मीडिया में ये खबरें भी आ रही हैं कि कोरोना लॉकडाउन के चलते बाजार से गायब हुई चीजों में कंडोम पहली पांच चीजों में से एक हैं.

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कुल मिलाकर कहना चाहिए कि लोगों ने इस त्रासदी के साथ अब जीना सीख लिया है. इंसान की शायद यही जिजीविषा है जिसके सामने कुदरत भी हार जाती है. कोरोना के साथ इंसान की इस ब्लैक कॉमेडी की शुरुआत वियतनाम के एक डांसर क्वांग डांग ने की जिसने सोशल मीडिया में कोरोना से जुड़ा एक चैलेंज शुरू किया. ‘कोविड-19 टिक टौक डांस चैलेंज टू फाइट कोरोना वायरस स्प्रेड’ शीर्षक से सोशल मीडिया में 6 मार्च 2020 को यह डांस पहली बार डाला गया था और इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय यू-ट्यूब में इसके दर्शक 10,75,078 हो गये थे. 8.6 हजार लोगों ने इसे पसंद किया था और 628 लोगों ने इसे नपसंद किया था. वास्तव में यह डांस शुरुआत में इतनी रफ्तार से अपने दर्शक नहीं बटोर रहा था, लेकिन जैसे-जैसे कोरोना का खौफ बढ़ने लगा, एक स्थिति यह आयी कि लोग इसके खौफ से निकलने के लिए इस तरह की ब्लैक काॅमेडी इंज्वाॅय करने लगे.

गौरतलब है कि वियतनामी डांसर क्वांग डांग सोशल मीडिया में पहले से ही काफी लोकप्रिय हैं. फेसबुक, यू-ट्यूब और इंस्टाग्राम पर उनकी अच्छी खासी फैन फॉलोइंग है. उनके मुताबिक शुरु में तो वह खुद भी कोरोना से बहुत डरे और कई दिनों तक अकेले घर में बिताया. फिर उन्हें लगा कि ऐसे में तो वे इमोशनल ब्लैक हाॅल में पहुंच जाएंगे. उन्होंने सोचा क्यों न कोरोना से संघर्ष करने वाले लोगों के साथ मिलकर वह भी इस जद्दोजहद में अपनी कोई भूमिका अदा करें. अब चूंकि उन्हें सबसे बढ़िया काम डांस करना ही आता है इसलिए उन्होंने सोचा क्यों न डांस के जरिये ही वे अपनी कोई भूमिका तलाशें. जल्द ही उन्हें आइडिया आ गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया के लोगों को कोरोना वायरस से निपटने के लिए स्वास्थ्य संबंधी जो सहूलियतें बरतने के लिए कही है, क्यों न वे उन्हें डांस के जरिये एक मनोरंजन शैली में लोगों तक पहुंचाएं.
इसके लिए उन्होंने वियतनाम के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट औफ आक्यूपेशन एंड एन्वार्यनमेंटल हेल्थ’ से संपर्क किया और इस संस्थान ने उन्हें खुशी खुशी इसकी इजाजत दे दी बल्कि कई मीडिया रिपोर्टों में यह कहा गया कि खुद इस संस्थान ने क्वांग डांग से इसके लिए पहल की थी. बहरहाल जो भी हो इस पूरी थीम को व्यक्त करने के लिए एक गाना लिखा गया जो वास्तव में हाथ धोने के सही तरीके को फोकस करता है. फिर इस गाने को क्वांग डांग ने अपने बेहद मोहक डांस स्टेप से इस कदर बांध दिया कि लोग उसे बस देखते ही रह गये. आज सोशल मीडिया के तमाम अलग अलग मंचों के जरिये यह गीत एक करोड़ से भी ज्यादा लोगों तक पहुंच चुका है. यह कोरोना गीत विशेषकर युवाओं को खूब पसंद आ रहा है. शुरू में इस पर प्रतिक्रियाएं धीमी रहीं लेकिन जल्द ही वैसी ही तेजी पकड़ लिया जैसी तेजी किकी चैलेंज के वक्त दिखी थी.

आज की तारीख में लोग जहां हैं, वहीं अपने दोस्तों के साथ इस गाने पर थिरक रहे हैं. यूं तो यह गाना एक मकसद को लेकर बनाया गया है कि लोग सही तरीके से हाथ धोना सीखें. लेकिन यह इतना प्यारा बन गया है कि लोग इसे किसी लेसन की तरह लेने की बजाय इसमें भावनाओं के साथ डूब उतार रहे हैं. इस गाने ने दुनियाभर में ऐसे ही कोरोना गीतों और डांस स्टेप के लिए प्रेरित किया है. यही वजह है कि आज की तारीख में सोशल मीडिया में दर्जनों कोरोना डांस स्टेप आ चुके हैं और ऐसे की प्यारे-प्यारे गीत भी बन चुके हैं. हम हिंदुस्तानी भी इसमें पीछे नहीं हैं. ऐसा ही एक डांस स्टेप भारत में पंजाब पुलिस का वायरल हुआ है, जिसमें कई पुलिस वाले ‘बारी बरसी खटन गया सी’ जैसे बोलों पर एक मस्ती भरा भागड़ा किया है जिसका उद्देश्य आम लोगों में कोरोना वायरस के प्रति चेतना जगानी है.

यह डांस स्टेप 21 मार्च 2020 को तब पूरे देश में वायरल हो गया जब पंजाब पुलिस के डायरेक्ट दिनकर गुप्ता ने अपने ट्वीटर हैंडल से इसकी एक क्लिप ट्विट की. इस भांगड़ा डांस का भी मकसद आम लोगों को गाने के सरल बोलो के जरिये यह समझाना है कि कोरोना जैसी भयानक बीमारी से सिर्फ सावधान रहने पर ही बचा जा सकता है. हालांकि एक डांस पहले वायरल नहीं हुआ था, मगर बाद के तमाम डांस स्टेप के वायरल होने पर यह भी लोगों द्वारा खूब देखा गया. यह 26 फरवरी 2020 को चीनी पैरा मेडिकल स्टाफ द्वारा 6 मरीजों के सही होने पर किया गया डांस था, जो कि बैले की शैली में है. जब वियतनामी डांस बहुत मशहूर हुआ तो लोगों ने इसे भी दुनिया के अलग अलग हिस्सों में यू-ट्यूब में देखना शुरु किया और देखते देखते यह भी दुनिया के मशहूर कोरोना वायरल डांस में से एक हो गया.

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इस चीनी डांस में तो नहीं लेकिन दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में जो लोगों को आगाह करने के लिए या उन्हें सजग करने के वास्ते कोरोना डांस मशहूर हुए हैं, उनमें आमतौर पर कोरोना से बचने के लिए क्या उपाय अपनाएं इन्हीं का विस्तार से वर्णन किया गया है मसलन- पहले वायरल कोरोना डांस का मुख्य उद्देश्य डांस के जरिये आम लोगों को यह बताना है कि वे साबुन या एंटीसेप्टिक सल्यूशन से हाथ धोएं, आंख, नाक और मुंह को बार बार न छुएं, पर्सनल हाइजीन मेंटेन करें, घर को साफ सुथरा रखें, सार्वजनिक जगहों पर जाते समय या बीमारी होने पर मास्क का इस्तेमाल करें और अपनी तथा अपने परिवार व अपने समुदाय की सेहत की रक्षा करें. शायद इसलिए भी यह ब्लैक काॅमेडी लोगों को पसंद आ रही है.

पितृद्वय: भाग-3

अंश चुप रहा. सुहास और नितिन को गुस्सा आया कि बच्चे से ऐसे सवाल करने की यह क्या तमीज है.

इतने में महिला के दोनों बच्चे भी बोल उठे, ‘‘बताओ न अंश कैसा लगता है?’’

अंश ने अपने दोनों हाथों में नितिन और सुहास का 1-1 हाथ पकड़ कहा, ‘‘अच्छा लगता है. तुम लोगों को तो एक पापा का प्यार मिलता है, मेरे तो 2-2 पापा हैं. सोचो, कितना मजा आता होगा मुझे.’’

सन्नाटा सा छा गया. सुहास ने आंखों की नमी को गले में ही उतार लिया. नितिन ने अंश के सिर पर अपना दूसरा हाथ रख दिया.

सुमन ने अंश का कंधा थपथपाते हुए कहा, ‘‘वैरी गुड, अंश, वैलसैड.’’

उस दिन जब तीनों पार्टी से लौटे, स्नेह का बंधन और मजबूत हो चुका था.

समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. एमबीए करते ही अंश को अच्छी जौब भी

मिल गई. अंश की कई लड़कियां भी दोस्त थीं. उस का फ्रैंड सर्कल अच्छा था. उस के दोस्त जब भी घर आते, उत्सव का सा माहौल हो जाता. सुहास और नितिन एप्रिन बांधबांध कर कभी किचन में घुस जाते, कभी खाना बाहर से और्डर करते. सुहास और नितिन को यह देख कर अच्छा लगता कि अंश का गु्रप उन के रिश्ते को सम्मानपूर्वक देखता है, सोच कर अच्छा लगता कि आज के युवा कितने खुले और नए विचारों के हैं. पर दोनों की चिंताओं ने अब नया रूप ले लिया था.

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एक दिन सुहास ने कहा, ‘‘नितिन, अंश की कोई गर्लफ्रैंड होगी न?’’

नितिन हंसा, ‘‘इतने हैंडसम बंदे की गर्लफ्रैंड तो जरूर होगी, शैतान है, बताता नहीं. मैं ने एक दिन पूछा भी था तो बोला, जल्दी क्या है.’’

‘‘पर यार, पता नहीं कौन होगी, हमारे रिश्ते को कैसे स्वीकारेगी? उस का परिवार क्या कहेगा? मन में यही डर लगा रहता है कि सारी उम्र का हासिल अंश का प्यार ही है हमारे पास, कहीं कभी यही हम से दूर न हो जाए.’’

फिर दोनों बहुत देर तक उदास मन से कुछ सोचतेविचारते रहे. दोनों के मन में यह संशय, डर गहरी जड़ जमा चुका था कि अंश के जीवन में आने वाली लड़की पता नहीं इन दोनों को खुले दिल से स्वीकारेगी या नहीं.

कुछ महीने और बीते. एक वीकैंड की शाम को अंश एक लड़की के साथ घर आया. सुंदर सी, स्मार्ट लड़की दोनों को ‘हैलो, अंकल’ कहती हुई घर में आई.

अंश ने परिचय करवाया, ‘‘यह लवीना है. लवीना ये सुहास पापा, ये नितिन पापा.’’

अभी तक ऐेसे मौकों पर सुहास और नितिन सामने वाले की प्रतिक्रिया जानने के लिए असहज से हो जाते थे. आज तो और भी गंभीर हुए, क्योंकि अंश पहली बार किसी लड़की को अकेले लाया था. फिर भी कहा, ‘‘हैलो लवीना, हाऊ आर यू?’’

‘‘आई एम फाइन अंकल.’’

अंश ने कहा, ‘‘लवीना आप दोनों से मिलना चाह रही थी. आज पीछे ही पड़ गई तो लाना ही पड़ा,’’ कहता हुआ अंश हंस दिया तो लवीना भी शुरू हो गई, ‘‘तो इतने दिन से सुन क्यों नहीं रहे थे? अंकल, आप लोगों की इतनी तारीफ, इतनी बातें सुनती हूं तो मिलने का मन तो करेगा ही न? यह तो टालता ही जा रहा था. आज पीछे पड़ना ही पड़ा.’’

‘‘वह इसलिए कि हमारे घर की शांति भंग न हो… हमारा इतना शांत सा घर है और तुम तो चुप रहती नहीं हो.’’

‘‘अच्छा… खुद कम बोलते हो क्या?’’

सुहास और नितिन दोनों ही छेड़छाड़ का पूरा मजा ले रहे थे. घर की दीवारें तक जैसे चहक उठी थीं. अंश और लवीना का रिश्ता साफसाफ समझ आ रहा था.

सुहास ने पूछा, ‘‘तुम लोग क्या लोगे? पहले बैठो तो सही.’’

नितिन ने भी कहा, ‘‘जो इच्छा हो, बता दो. मैं तैयार करता हूं.’’

अंश ने कहा, ‘‘लवीना बहुत अच्छी कुक है, आज यही कुछ बना लेगी.’’

लवीना भी फौरन खड़ी हो गई, ‘‘हां, बताइए, अंकल.’’

‘‘अरे नहीं, तुम बैठो, मंजू आने वाली होगी.’’

‘‘आप लोगों ने उस के हाथ का तो बहुत खा लिया, आज मैं बनाती हूं.’’

तभी मंजू भी आ गई. अब तक वह भी इस परिवार की सदस्या ही हो गई थी. लवीना ने मंजू के साथ मिल कर शानदार डिनर तैयार किया. पूरा खाना सुहास और नितिन की ही पसंद का था. दोनों हैरान थे, खुश भी… खाना खाते हुए दोनों भावुक से हो रहे थे.

अंश ने दोनों के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘क्या हुआ पापा?’’

नितिन का गला रुंध गया, ‘‘इतना प्यार, सम्मान… हमें तो हमारे अपनों ने ही भुला दिया…’’

सुहास ने माहौल को हलका किया, ‘‘कितना अच्छा लग रहा है न… यार कितनी रौनक है घर में. शुक्र है इस घर में लड़की तो दिखी.’’

लवीना ने इस बात पर खुल कर ठहाका लगाया और घर के तीनों पुरुषों को प्यार, सम्मान से देखा. आज सुहास और नितिन के दिल में भी सालों से बैठा संदेह, डर हमेशा के लिए छूमंतर हो गया था.

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लवीना ने कहा, ‘‘पापा, मेरे घर में बस मैं और मेरी मां ही हैं. मेरे पापा तो मेरे बचपन में ही चल बसे थे. अंश जब आप दोनों से मिले स्नेह, लाड़प्यार के बारे में बताता था तो मैं बहुत खुश होती थी,’’ फिर अंश को छेड़ते हुए कहने लगी, ‘‘मैं ने इस से दोस्ती ही इसलिए की है कि मुझे भी पापा का प्यार मिले और यह कमी तो अब खूब दूर होगी जब एक नहीं 2-2 पापा का प्यार मुझे मिलेगा.’’

अंश ने पलटवार किया, ‘‘ओह, चालाक लड़की, दोनों पापा के लिए दोस्ती की है… देख लूंगा तुम्हें.’’

सुहास और नितिन दोनों की छेड़छाड़ पर मुग्ध हुए जा रहे थे. घर में ऐसा दृश्य पहली बार जो देखा था. दोनों ने ही अंश और लवीना के सिर पर अपनाअपना हाथ रख दिया.

#coronavirus: हेल्थ केयर के क्षेत्र में भारत को मिली सीख 

कोविड 19 के लगातर बढ़ते केस और उसका सही इलाज और वैक्सीन अब तक न मिल पाने की वजह से पूरा विश्व लाचार है और सबने इतना समझ लिया है कि केवल सैन्य शक्ति और हथियार बढ़ा लेने से ही देश शक्तिमान या विकसित देश नहीं कहलाता, बल्कि वहाँ रहने वाले जनता को किसी बीमारी का सही इलाज देना भी उनके लिए चुनौती है. इस पेंडेमिक से लाखों लोग पीड़ित है और मौत का आंकड़ा दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. हेल्थ केयर के क्षेत्र में दुनिया के नंबर वन कहे जाने वाले लोग भी असहाय हो चुके है, ऐसे में खास कर भारत जैसे विकासशील देश जहां किसी भी बीमारी के लिए सही इलाज आज भी मुमकिन नहीं. सही हायजिन वाले अस्पताल से लेकर अनुभवी डॉक्टर, जरुरत के अनुसार उपकरण, पैरामेडिकल स्टाफ आदि सभी की कमी है. 1.3 बिलियन की जनसँख्या, जहाँ युवाओं की संख्या सभी देशों से अधिक होने पर भी सब लाचार है. सब कुछ आस्था पर भरोषा करके ही यहाँ जीना पड़ता है, ऐसे में इंडिया इज ग्रोइंग की स्लोगन भी कोई माइने नहीं रखती.

इस तरह की अवस्था में भारत को किस तरह की सीख लेनी चाहिए? हेल्थ केयर सेक्टर में कितनी तैयारी आगे करने की जरुरत है, इस विषय हर कोई आज सोचने पर मजबूर है, इसी विषय पर डॉक्टर और हेल्थ केयर के एक्सपर्ट ने आगे आने वाले समय में हेल्थकेयर में अधिक से अधिक विकास की जरुरत को महसूस करने लगे है. इस बारें में मुंबई की रिजनेरेटिव मेडिसिन रिसर्चर डॉ. प्रदीप महाजन कहते है कि इस पेंडेमिक को लोगों ने अधिक महत्व नहीं दिया था और ये इतनी जल्दी सबमें फैलेगा ये भी पता नहीं था. किसी के पास भी इसकी तैयारी नहीं थी. इसलिए मौत का आंकड़ा इतनी जल्दी बढ़ता हुआ दिख रहा है. मेडिकल डॉक्टर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ और दवाइयां जरुरत के हिसाब से नहीं मिल रही है. जर्मनी में इसे अच्छी तरह से मैनेज किया और डेथ परसेंट 0.1 से भी कम है, जबकि दूसरे देशों में 5 प्रतिशत कही 8 प्रतिशत तो कही 10 प्रतिशत है. भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से तैयारी में कमी हुई है. उसकी वजह से सबसे अधिक चुनौती हमें बेड्स और वेंटीलेटर्स, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स (PPE), टेस्ट किट आदि की हाई लेवल की मैन्युफैक्चरिंग यहाँ नहीं है. 50 हजार वेंटिलेर्स है, जबकि जरुरत लाखों में हो सकती है. ये गैप अधिक है और देश इसे ढूंढ़ता फिर रहा है. आईसीयू का बैकअप यहाँ बहुत कम है, जो चिंता का विषय है. इसके अलावा डॉक्टर्स, नर्सेज ,पैरामेडिकल स्टाफ आदि सब कम है. ये अनुपात में जो कमी है वही इस बीमारी को बढ़ाने की वजह है. सेल्फ आइसोलेशन ने देश को कुछ हद तक बचाया है और वॉल्यूम इस वजह से कम हो रहा है, नहीं तो इसे सम्हालना मुश्किल था. इस दशा को देखते हुए कुछ सीख देश की सरकार और जनता को लेनी चाहिए.जो निम्न है,

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  • इन्फ्रास्ट्रक्चर को ठीक करना,
  • क्रिटिकल मैनेजमेंट के अंतर्गत काम करने वाले लोगों को प्रशिक्षण देना,
  • मैनपॉवर को सही करना,
  • देश के नागरिकों का भी सही तरह से सरकार का साथ देना,

ऐसी बीमारी में लगने वाले ड्रग्स और उपकरण जिसमें वेंटिलेटर्स, प्रोटेक्टिव ड्रेसेज आदि की सप्लाई प्रयाप्त मात्रा में करने की व्यवस्था करने से ऐसे किसी भी महामारी से डरने की जरुरत देश को नहीं होगी.

इसके अलावा कुछ दवाइयां हमारे यहाँ अधिक मात्रा में नहीं बनते, जिसकी जरुरत इस बीमारी से पीड़ित को होती है. क्लोरोक्वीन बहुत है ,लेकिन इसके साथ में लगने वाली एंटी वायरल दवाइयां यहाँ नहीं बनती. उनके रॉ मेटेरियल बाहर से मंगाने पड़ते है, जो अब मुश्किल हो रहा है, एंटी वायरल ड्रग्स भी देश में तैयार हो इसकी व्यवस्था भी देश को करने की जरुरत है. साथ ही रिसर्च पर अधिक जोर देने की जरुरत है.

इसके आगे डॉक्टर प्रदीप कहते है कि क्रिटिकल रोगी के लिए बेड्स, अस्पताल, प्रशिक्षित स्टाफ आदि की बहुत जरुरत है, कोविड -19 के तहत जो समस्या हमें आई है, इससे देश को सीख मिलनी चाहिए . केवल सरकारी अस्पताल ही नहीं, प्राइवेट अस्पताल को भी वैसी ही सुविधा से लैस होने की जरुरत है, ताकि जरुरत के समय वे भी साथ आ सकें.

इतना ही नहीं पब्लिक को भी साथ देने के साथ की जरुरत है, वे निर्देशों का पालन किये बिना अपना टेस्ट नहीं करवा रहे है, या फिर क्वारेंटाइन से भाग रहे है, जो लोगों को इस बीमारी के बारें में कम जानकारी की वजह से है.

डॉक्टर प्रदीप इस दिशा में रिसर्च कर रहे है, जिसके तहत मेसेंसिमेल (mesenchymal) स्टेम सेल्स और नेचुरल किलर सेल्स जिसके द्वारा टारगेट कर इस सेल को मारा जा सकता है, इसे कोरोना से अधिक आक्रांत रोगी का इलाज किया जा सकता है. ये एक नयी तकनीक आ सकती है. इसके लिए सरकार की परमिशन लेने की कोशिश की जा रही है. इसमें रोगी की इम्यून सिस्टम को बढाकर इस वायरस को काबू में किया जा सकता है. इम्युन सिस्टम बढ़ा देने से वायरस आयेगा औए चला भी जायेगा किसी को पता भी नहीं लगेगा.

पुणे की मदरहुड हॉस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ.राजेश्वरी पवार बताती है कि अभी तक जो सावधानियां और इलाज़ भारत में हो रहे है वह दूसरे देश की अपेक्षा प्रसंशनीय है, क्योंकि भारत जैसे इतने बड़े देश में अचानक ऐसी महामारी से लड़ना बहुत मुश्किल का काम है, पर यहाँ लोग मास्क काफी मात्रा में बना रहे है और पहन भी रहे है. ये सही भी है अगर कोई नियमित मास्क पहनकर बाहर जाता है और घर आकर उसे साबुन से धो लेता है, तो इतनी सावधानी कोरोना संक्रमण से बचने के लिए काफी होता है. ध्यान रहे इसे किसी के साथ शेयर न करें और सोशल डिस्टेंस जरुरी है, लेकिन लॉकडाउन इसे कम करने में अवश्य बहुत हद तक सफल हुई है. ये एक सही कदम था, क्योंकि ऐसी बीमारी में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के लिंक को तोडना बहुत जरुरी होता है.

इसके आगे डॉ. राजेश्वरी कहती है कि हेल्थ केयर सेक्टर में की अगर बात करें, तो अभी सरकार बीमारी से सम्बंधित दवाओं के लिए लाईसेन्स जल्दी दे रही है, ताकि जल्द से जल्द इस बीमारी की इलाज के लिए उपकरण और सुविधाएं मिल सकें. भविष्य में भी सरकार को कुछ सीख इससे लेने की जरुरत है,

  • सरकारी अस्पतालों को अधिक से अधिक ऐसे संक्रमण युक्त बीमारी से लड़ने के लिए तैयार करना,
  • संक्रमण युक्त बीमारी के लिए अलग से अस्पताल बनाना, ताकि बाकी मरीज को इन्फेक्शन न हो,
  • उसमें स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने की जरुरत है, जो बहुत कम है,
  • इसे बढ़ाने के लिए डॉक्टर्स की हाई लेवल की पढाई के लिए संस्थान खोले जाने की जरुरत है, क्योंकि डॉक्टर की कमी भी इस बीमारी के दौरान काफी सामने आ रही है.

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विदेशों में ऐसे डॉक्टर्स की कमी इसलिए हुई है, क्योंकि वहां संक्रमण युक्त बीमारी बहुत कम होती है, ऐसे में इस तरह के वायरस से लड़ना उनके लिए काफी मुश्किल हो रहा है, जबकि वहां की हेल्थ केयर सिस्टम काफी अच्छा है, वहां भी वेंटिलेटर्स कम पड़ गए है, हालाँकि अभी हमारे यहाँ ऐसी परिस्थिति नहीं है, पर ऐसी होने पर समस्या डॉक्टर्स को आती है कि किसे बचाया जाय, युवा या बुजुर्ग को? दोनों ही केस में डॉक्टर्स में अपराध बोध जगता है और मानसिक समस्या डॉक्टर्स को आ जाती है. स्ट्रेस लेवल और उनमें रोग फैलने का डर भी मेडिकल स्टाफ को आ जाता है. केवल रोगी को ही नहीं हेल्थ केयर में काम करने वालो के लिए भी साईकोलोजिकल सपोर्ट की जरुरत होती है, ऐसी टीम निर्धारित की जानी चाहिए. इसके अलावा जनसँख्या के हिसाब से उपकरण भी हमारे देश में होनी चाहिए.

पुणे के माय लैब की साइंटिस्ट मिताली पाटिल कहती है कि देश में गहन रिसर्च सेंटर्स, उपकरणों की मैन्युफैक्चुरिंग की व्यवस्था, जिसमें थर्मामीटर, मास्क, ग्लव्स, वेंटिलेटर्स आदि सभी में सही तरीके से इन्वेस्ट करने की जरुरत है, जिससे देश ऐसे किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ा सकें.

5 टिप्स: गरमी के मौसम में ऐसे रखें अपने घर का ख्याल

गरमियां आते ही टैम्पेरेचर ज्यादा हो जाता है. ऐसे में घर हो या बाहर आप तेज धूप से बच नही सकते, लेकिन अगर आप पहले ही इन सभी प्रौब्लम से बचने के लिए तैयारी कर लें तो आपकी गरमियां आराम से बीतेंगी. इसके लिए जरूरी है कि आप अपने घर की सफाई और तेज गरमी के लिए एसी, कूलर का अरेंजमैंट पहले ही कर ले. इसके अलावा हम आपको बताएंगे गरमी में अपने घर को मेन्टेन रखने के लिए कुछ खास टिप्स…

  1. अपने घर की विंडो स्क्रीन को बदल या धो लें…

सरदी के बीत जाने के बाद खिड़कियों में धूल और मिट्टी जम जाती है, जो गरमी में कई बीमारियों का कारण बन जाती हैं, इसलिए गरमी में खिड़की से आने वाली साफ-सुथरी हवा के लिए खिड़कियों को साफ रखना जरूरी है. इसलिए गर्म साबुन के पानी और एक ब्रश की मदद से खिड़कियों को साफ करें.

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2. गटर (नाले) और डाउनस्पौट को साफ करना है जरूरी…

आपको समय-समय पर घर के नाले की सफाई करना चाहिए और अगर आपके घर में पेड़-पौधे ज्यादा हों तो सफाई करना और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि पेड़ों की सफाई न करने से मच्छर हो जातें हैं जिससे खतरनाक बीमारियां होने का खतरा होता है.

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  1. सीलिंग फैन और एसी को रखें साफ ….

गरमी में एसी और पंखा कितना जरूरी है यह सभी को पता है, लेकिन सरदियों में इनका इस्तेमाल कम होता है इसलिए इन पर धूल जम जाती है या फिर एसी में गंदगी जमा हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि फैन और एसी का इस्तेमाल करने से पहले धूल को साफ कर लें और देख लें कि पंखा और एसी ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं.

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  1. अपनी चिमनी को करें साफ

सरदी खत्म होने के बाद गरमी का टाइम चिमनी को साफ करने का सही समय है. लेकिन इतनी गरमी में खुद चिमनी को साफ करना एक मुश्किल काम हो सकता है इसीलिए चिमनी की सफाई करने वाली सेवा को कौल करना सबसे सही औप्शन है. जिसमें कम समय के साथ अच्छे से सफाई भी हो जाएगी.

  1. गरमी में अपने डेक को करें साफ…

गरमी में यह देखने के लिए कि क्या कोई बोर्ड खराब या सड़ रहे हैं, अपने डेक की सफाई जरूर करें. या उन्हें बदल दें. साथ ही चेक कर लें की कोई पेच ढीला तो नहीं है.

फेस पर चौकलेट वैक्स करवाने से जलन हो रही है है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मेरी उम्र 43 वर्ष है. पिछले सप्ताह अपनी ब्यूटीशियन की सलाह से मैंने चेहरे पर चौकलेट वैक्स करवाया, क्योंकि मेरे चेहरे पर बहुत बाल थे, जो अब डार्क और लंबे भी होते जा रहे थे. उस के बाद मेरे चेहरे पर लाल दाने व फुंसियां हो गईं. चेहरे पर कपड़ा छूने पर भी जलन होती है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

यह आप की गलतफहमी है कि आप के चेहरे पर रैशेज, दाने व बाल वैक्स के कारण हैं. आप एक बार अपने खून की जांच करवाएं, क्योंकि आप की यह प्रौब्लम हारमोन असंतुलन के कारण भी हो सकती है. हारमोंस को स्टैबिलाइज करने के लिए उचित इलाज करा सकती हैं.

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गरमी में हर लड़की स्लीवलेस या शौर्टस जैसे कपड़े पहनना पसंद करती हैं, जिसके लिए आप वैक्सिंग करवाना कभी नहीं भूलती. वैक्सिंग से आप अपनी बौडी के अनचाहे बाल तो हटा देतें हैं, लेकिन वैक्सिंग के बाद कईं ऐसी नई प्रौब्लम शुरू हो जाती हैं जो आपकी डेली लाइफ पर असर डालती है. जैसे रेडनेस होना या स्किन काली पड़ जाने जैसी आम प्रौब्लम. इसीलिए आज हम आपको कुछ ऐसी टिप्स के बारे में बताएंगे, जिससे आप वैक्सिंग के बाद होने वाली सभी प्रौब्लम से छुटकारा पा सकती हैं.

1. वैक्सिंग करवाने के बाद यह करना है जरूरी

अगर आपको वैक्सिंग करवाने के बाद स्किन पर तरह-तरह की परेशानी होती है तो आप वैक्सिंग करवाने के बाद अपनी स्किन को एक्सोफोलिएटिड यानी परत हटाने करने के लिए आप वैक्स वाली जगह पर आराम से सक्रब करें. हफ्ते में 1-2 बार ऐसे करने से आपकी स्किन सौफ्ट रहेगी.

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