#lockdown: झटपट तैयार करें आटा बोल्स, जो दे पास्ता जैसा टेस्ट

पास्ता एक ऐसा स्नैक है , जिसे न सिर्फ बच्चे बल्कि बड़े भी बड़े चाव से खाते हैं. क्योंकि इसका टेस्ट इतना यम्मी जो होता है. तभी तो बच्चे इसे हर रोज़ बनाने की फर्महिश करते रहते हैं. लेकिन एक मां की यही इच्छा होती है कि  उसका बच्चा व उसका परिवार हमेशा हैल्थी ही खाएं. इसलिए वे  हफ्ते में एक बार ही पास्ता बनाने की परमिशन देती हैं , क्योंकि वे  उन्हें ज्यादा मैदा जो नहीं देना चाहतीं ,चाहे बच्चे  उनसे रूठ क्यों न जाएं .  ऐसे में हम आपको हैल्थी पास्ता रेसिपी  के बारे में बताते हैं जो आटे से बनी  होने के साथ उसमें ढेरों सब्ज़ियां मिली होने से  यह न सिर्फ बच्चे की फ़रमाहिश को पूरा करके आपको फेवरेट मोम  बनाने का काम करेगी  बल्कि आप पास्ता को डिफरेंट तरीके से बना कर उन्हें हैल्थी फ़ूड  भी सर्व कर पाएंगी.

कैसे बनाएं पास्ता बोल्स

एक कप आटा लेकर उसमें थोड़ा सा नमक डालकर सख्त आटा गूंधे. फिर उसे कपड़े से ढककर 15 मिनट के लिए एक तरफ रख दें. फिर आटे से छोटी छोटी बोल्स बनाकर उसमें बीच में उंगली से छेद कर दें. इससे जहां पास्ता बोल्स को शेप मिल जाएगी वहीं पकने में भी आसानी होगी. जब बोल्स तैयार हो जाएं तो एक गहरा बर्तन लेकर उसमें बोल्स के हिसाब से पानी डालकर उसे गरम करें. जब पानी गरम हो जाए तब उसमें तैयार बोल्स को एक एक करके डालें. फिर उसमें थोड़ा सा आयल डालें ताकि बोल्स  आपस में न चिपके.  और  फिर ढककर उन्हें 10 -15  मिनट के लिए पकने के लिए छोड़ दें. फिर एक बोल को बाहर निकालकर  चेक करें कि वह पक गई है या नहीं. इसका पता आपको इस तरह लग जाएगा कि अगर बोल की परत खुलने लगेगी या फिर उसमे जाली जाली सी नज़र आने लगेगी  तो इसका मतलब वह अच्छे से पक गई  हैं . फिर एक छलनी की मदद से पानी और बोल्स को अलग करें. अब आपकी पास्ता बोल्स तैयार हैं.

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कैसे बनाएं पास्ता को हैल्थी व टेस्टी

सबसे पहले एक पैन में तेल को गरम करें.  जब तेल गरम हो जाए तो उसमें राई व जीरा डालकर उसे चटकाए. फिर इसमें बारीक कटा प्याज़, अदरक व लेहसुन  डालकर उसे सुनहरा होने तक चलाएं. फिर इसमें बारीक कटा शिमला मिर्च. गाजर, पत्तागोभी, बीन्स व मटर डाल कर थोड़ा सा पकाएं. इस बीच इसमें स्वाद के अनुसार नमक, हल्दी, मिर्च ऐड करें.  जब अच्छे से मसाले आपस में मिल जाएं  तब  इसमें टोमेटो प्यूरी डाल कर पकाएं. मसाले पकने पर  इसमें पास्ता बोल्स डालकर उसमें टोमेटो सोस या फिर पास्ता सोस डालें. फिर थोड़ा सा चिल्ली फ्लैक्सेस व काली मिर्च पाउडर डालकर ऊपर से  धनिया पत्ती से गार्निश करके सर्व करें. तो हुई न आसान व हैल्थी रेसिपी.

इन बातों का रखें ध्यान

– पास्ता बोल्स को ज्यादा न पकाएं वरना उनके घुलने के कारण सारा टेस्ट ख़राब हो सकता है.

– बोल्स को फ्राई नहीं करना है.

– सारा मसाला भुनने के बाद ही ऊपर से पास्ता बोल्स ऐड करें.

– पास्ता बोल्स को स्टोर करके न रखें.

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महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-8

अब तक की कथा :

फोन पर बात कर के यशेंदु संतुष्ट नहीं हो सके. आखिर उन की बेटी के भविष्य का प्रश्न उन के समक्ष अधर में लटक रहा था. मन में संदेह के बीज पड़ चुके थे. बेटी का चिड़चिड़ापन उन्हें प्रताड़ना दे रहा था. उन्होंने लंदन जा कर अपने संदेह का निराकरण करना चाहा. मानसिक तनाव व द्वंद्व में घिरे यशेंदु कार पार्क कर के सड़क पार करते समय ट्रक की चपेट में आ गए.

अब आगे…

पूजापाठ, ग्रहनक्षत्र, शुभअशुभ सब पंडितों से पूछ कर ही तो घर के सारे काम होते थे, फिर यशेंदु के साथ ऐसा अनिष्ट क्यों हुआ? कामिनी अब मांजी से इस सवाल का क्या जवाब मांगती. पंडितों ने तो उन की आंखों पर ऐसी पट़्टी बांध दी थी जिस के पार वह कुछ नहीं देख सकती थीं. लेकिन कामिनी  उस पार की तबाही साफ देख रही थी. ट्रक ड्राइवर के ब्रेक लगातेलगाते यशेंदु ट्रक से टकरा कर लगभग 4-5 फुट दूर जा गिरे और बेहोश हो गए.

यशेंदु की ट्रक से दुर्घटना की खबर डाक्टर द्वारा घरवालों को मिली तो वे घबरा गए. वे शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुंच गए. वहां कई लोग मौजूद थे.

‘‘कैसे हुआ यह सब?’’ सेठ ने अपने ड्राइवर से पूछा.

‘‘साब, पता नहीं चला कहां से ये साहब अचानक ही ट्रक के सामने आ गए और मैं ब्रेक लगा पाऊं इतनी देर में तो ये ट्रक से टकरा कर लगभग 4-5 फुट ऊपर उछल कर गिर कर बेहोश हो गए,’’ ड्राइवर को बहुत अफसोस हो रहा था. लगभग 30 वर्ष से वह यह काम कर रहा था. अभी तक इस प्रकार की कोई दुर्घटना उस से नहीं हुई थी.

दिया का रोरो कर बुरा हाल था. दादी, कामिनी, नौकर सब इस दुर्घटना से जड़ से हो गए थे. दिया जानती थी कि पापा उसे अपने साथ लंदन ले जाने के लिए यह सब भागदौड़ कर रहे थे इसलिए उस का मन और भी व्यथित हो उठा. यह प्रसाद मिला पापा को दादी की इतनी पूजा का? उस का मन हाहाकार करने लगा. वह बहुत अभागी है. अपने पिता की दुर्घटना के लिए वही जिम्मेदार है. वैसे कहीं पर कुछ भी हो सकता है परंतु दिया को इसलिए यह बात बारबार कचोट रही थी क्योंकि यह सबकुछ वीजा औफिस के बाहर ही  हुआ था. उस के अनुसार, पापा को यह सब उस की चिंता के लिए ही भोगना पड़ रहा था.

कामिनी ने आंसूभरी आंखों से औपरेशन के फौरमैलिटी पेपर्स पर हस्ताक्षर कर दिए. उस के मस्तिष्क में मानो हथौड़ी की सी मार भी पड़ने लगी. अगर लड़के के घर में सगाई या विवाह के बाद बड़ी दुर्घटना हो जाती है तो लड़की के मुंह पर कालिख पोती जाती है. इस के पैर ऐसे हैं, यह घर के लिए शुभ नहीं है आदि. परंतु जहां लड़की के घर में इस प्रकार की कोई दुर्घटना हो जाए तो क्या लड़के को भी अपशकुनी माना जाता है?

लगभग 3 घंटे के औपरेशन ने घरभर के सदस्यों को हिला कर रख दिया था. ड्राइवर और उस का मालिक दोनों ही सहृदय, संवेदनशील थे, होंठ सिए हाथ जोड़ कर, सिर झुकाए चुपचाप सबकुछ सुनते रहे. 5-7 मिनट बाद कामिनी ने सास को औपरेशन थिएटर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठा दिया और ड्राइवर व उस के मालिक के सामने हाथ जोड़ कर उन्हें वहां से जाने का इशारा किया.

कामिनी व दिया दोनों के मन में बहुत स्पष्ट था कि यह दुर्घटना क्यों हुई होगी? वे कई दिनों से यश को बहुत अधिक असहज देख रही थीं. दिया तो अपने में ही सिमट कर रह गई थी परंतु कामिनी ने पति को समझाने का भरपूर प्रयास किया था. यश थे कि बेटी को देखदेख कर भीतर ही भीतर कुढ़ रहे थे. ऊपर से उन की मां ने घर में पंडितजी को बैठा कर पूजापाठ का नाटक कर रखा था. उन्हें कभी भी पूजाअर्चना में कोई परेशानी नहीं रही परंतु यह कुछ भी हो रहा था, वह उन की समझ से बाहर था और उन की सोच उन्हें यह समझने के लिए बाध्य कर रही थी कि घंटी बजाने से काम नहीं चलेगा, उन्हें कर्मठ होना होगा. एक ओर उन के मन में सवाल पनप रहा था कि मां ने तो दिया की जन्मपत्री कई बार मिलवाई और 90 प्रतिशत गुण मिलने के बावजूद यह सब घटित हो रहा था. समय दीप व स्वदीप भी शहर में नहीं थे.

औपरेशन थिएटर के बाहर कुरसियों पर तीनों शांत बैठे हुए थे. तीनों के मस्तिष्क में एक बात अलगअलग प्रकार से उमड़घुमड़ रही थी. अचानक न जाने दिया को क्या हुआ, ‘‘दादी, आप हर चीज पंडितजी से ही पूछ कर करती हैं न? उन्होंने आप को यह नहीं बताया कि पापा पर ऐसा कोई ग्रह भारी है?’’

दादी के तो आंसू ही नहीं थम रहे थे. वे क्या उत्तर देतीं? इस उम्र में उन्हें बेटे का यह दुख देखना पड़ रहा था. इस पंडित के पिता ने जिंदगीभर उन के घर के लिए पूजाअर्चना की थी. दिया की दादी व दादाजी तो प्रारंभ से ही पंडितों के मस्तिष्क से ही चलते आए हैं. उन के द्वारा बताए हुए ग्रहों की शांति करवाना, जन्मपत्री मिलवाना व प्रतिदिन उन के द्वारा ही पूजाअर्चना करवाना. कामिनी के पिता ने अपने किसी भी बच्चे की जन्मपत्री नहीं मिलवाई थी फिर भी सब सुखी थे. उन्हें केवल कामिनी की ही जन्मपत्री मिलानी पड़ी थी और कामिनी ही जिंदगीभर इस घर के वातावरण में असहज बनी रही थी. दिया के साथ ये सबघटित तो हो ही रहा है साथ ही यश भी चपेट मेें आ गए. वह पंडित अभी भी घर पर बैठा घंटियां बजा कर भगवान को मनाने में लगा होगा.

दादी मन ही मन सोच रही थीं कि उन्हें अब कौन से जाप करवाने होंगे. यह एक लंबा दर्दीला घटनाक्रम बन गया था मानो. एक दुर्घटना का दर्द समाप्त भी नहीं हो पाता था कि दूसरी कोई दुर्घटना आ उपस्थित होती. कामिनी के लिए तो इस घर के प्रवेश का प्रथम दिवस ही दुर्घटना था बल्कि यह कहा जाए कि यश की सगाई का दिन ही दुर्घटना का दिन था. जिस पिता से वह यह अपेक्षा करती रही थी कि वे उसे किसी हताश स्थिति में डाल ही नहीं सकते उसी पिता ने उसे कहां से उठा कर कहां

पहुंचा दिया था.

बचपन में पिता रटाते थे-

वैल्थ इज लौस्ट, नथिंग इज लौस्ट,

हैल्थ इज लौस्ट, समथिंग इज लौस्ट,

इफ कैरेक्टर इज लौस्ट, एवरीथिंग इज लौस्ट.

ये पंक्तियां रटतेरटते कामिनी युवा हो चली थी. मध्यवर्गीय वातावरण में पलीबढ़ी कामिनी की विवाह के बाद बुद्धि में वृद्धि हुई और उस ने बड़ी शिद्दत के साथ यह महसूस किया था कि वैल्थ के बिना कोई पूछ नहीं है और जैसेजैसे वह इस वैल्दी घर का पुराना हिस्सा होती जा रही थी वैसेवैसे उस की यह भावना दृढ़ होती जा रही थी. कितना मानसम्मान था उस की ससुराल का इतने बड़े शहर में कि वह स्वयं को बौना महसूस करती थी. इतनी कि उस के मुख के बोल भी ‘जी हां’ और ‘जी नहीं’ तक सिमट कर रह गए थे. फिर वह इस सब की आदी हो गई थी और प्रात:कालीन मंत्रोच्चार उस के मुख से निकल कर केवल उस की आत्मा के ही साक्षी बन कर रह गए थे.

घर का संपूर्ण वातावरण सुबहसवेरे पंडितजी की घंटियों की मधुर ध्वनि से नहा उठता था. धीरेधीरे घंटियों के साथ हर घड़ी घर में पंडितों की नाटकीय आवाजें व फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं तब वह और अधिक सहज होती गई. उस ने पंडितों को मंत्रोच्चार करते हुए अकसर हंसीठिठोली करते देखा था. जैसे ही वहां घर का कोई सदस्य पहुंचता वे जोरजोर से मंत्रोच्चार करने लगते. अच्छे पल भी आए थे कामिनी के जीवन में जब उस ने 3 शिशुओं को जन्म दिया था. वास्तव में कामिनी को 2 बेटों के जन्म के बाद किसी तीसरे की कोई इच्छा ही नहीं थी परंतु घर में 1 बेटी की चाह ने पूरे वातावरण में मानो नाराजगी भर रखी थी. बेटी की चाह भी किस लिए क्योंकि 2-3 पीढि़यों से परिवार में कोई बेटी नहीं थी और इस परिवार के बुजुर्गों की कन्यादान करने में रुचि थी. पंडितजी ने उस के सासससुर के मस्तिष्क में कन्यादान की महत्ता इस कदर भर दी थी कि कन्यादान न किया तो उन का जीवन व्यर्थ था. और पंडितजी का गणित तो बिलकुल स्पष्ट था ही कि यशेंदुजी के हाथ की लकीरों में कन्या का पिता बनना स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हो रहा था. सो, कामिनी के तीसरा शिशु कन्या हुई.

न जाने क्यों कामिनी इस बात से भयभीत सी रहती थी कि इतनी लाड़प्यार से पली उस की बिटिया एक दिन दूसरे के घर चली जाएगी उस का मनउपवन खाली कर के. वह भी तो आई थी, ठीक था, परंतु इतनी शीघ्रता से यह सब होगा और इस प्रकार होगा, इस के लिए उस का मन तैयार न था. हुआ वही जो घर के बुजुर्ग ने चाहा और परिवार के सब सदस्य यह होना देखते रहे.

अस्पताल में आईसीयू के बाहर सोफे पर बैठेबैठे न जाने मांजी की वृद्ध काया कब सोफे के हत्थे पर लटक सी गई थी. झुर्री भरे मुख पर आंसुओं की गहरी लकीरें किसी झील में कंकर फेंकने पर लहरों की भांति टेढ़ीमेढ़ी हो कर चिपक सी गई थीं. कामिनी ने सास को बड़ी करुणापूर्ण दृष्टि से देखा और उस के नेत्र फिर से भर आए. मां बुरी बिलकुल न थीं, उन्होंने अपने हिसाब से उसे प्यार भी बहुत दिया था परंतु उन की सोच थी जिस ने सारे वातावरण पर अपनी मुहर चिपका रखी थी. उन का अंधविश्वास और सर्वोपरि समझने की भावना ने पूरे वातावरण पर अजीब से पहरे बिठा दिए थे.

कितनी बार सोचा था कामिनी ने, समय के अनुसार प्रत्येक में बदलाव आते हैं परंतु उन की सोच व तथाकथित परंपराओं में बदलाव क्यों नहीं आ पा रहे थे? यदि पत्थर पर भी बारबार कोई चीज घिसी जाए तो वहां भी गड्ढा हो जाता है परंतु मां… थोड़ी देर में डाक्टर आए और उन के पास ही सोफे पर बैठ गए, ‘‘मांजी, रोने से तो कुछ हो नहीं सकता? आप तो कितनी समझदार हैं.

‘‘नर्स,’’ डाक्टर ने समीप से गुजरती हुई नर्स को आवाज दी. नर्स रुक गई.

‘‘मांजी को आईसीयू के बाहर से जरा यशेंदुजी को दिखा दो, जिन का आज औपरेशन हुआ है.’’

‘‘यस, डाक्टर,’’ नर्स उन्हें सहारा दे कर आईसीयू की ओर हाथ पकड़ कर धीरेधीरे चल पड़ी.

डाक्टर खड़े हो गए और कामिनी से बोले, ‘‘एक्चुअली मिसेज कामिनी, आय वांटेड टू डिसकस सम इंपौर्टेंट इश्यू विद यू.’’

महायोग: धारावाहिक उपन्यास, भाग-7

कामिनी यश की मनोदशा समझ रही थी परंतु उस समय कुछ भी बोलने का औचित्य नहीं था, सो चुप ही रही. यश का स्वभाव था यह. वे अपने और मांपिता के सामने किसी की नहीं सुनते थे. लेकिन जब अपनी गलती का एहसास करते तो स्वयं बेचैन हो जाते और अपनेआप को सजा देने लगते. कामिनी अजीब सी स्थिति में हो जाती है. ऐसे समय में न वह यश से यह कह पाती है कि उन्होंने उन की बात नहीं मानी, यह उसी का परिणाम है. और न ही वह यश की दुखती रग पर मलहम लगा पाती है. ऐसी स्थिति में शिष्ट व सभ्य, सुसंस्कृत कामिनी अपनी ही मनोदशा में झूलती रहती है. यश रातभर करवटें बदलते रहे. कामिनी भी स्वाभाविक रूप से बेचैन थी. आखिर कामिनी से नहीं रहा गया.

‘‘इतना बेचैन क्यों हो रहे हो यश? सब ठीक हो जाएगा,’’ कामिनी ने यश के बालों को सहलाते हुए धीरे से कहा.

‘‘यह छोटी बात नहीं है, कामिनी. कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. यह मेरी बिटिया के भविष्य का प्रश्न है,’’ और अचानक यश ने पास में रखे फोन को उठा कर नंबर मिलाना शुरू कर दिया.

कामिनी ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे यानी लंदन में रात के 12 बजे होंगे.

उधर से उनींदी आवाज  आई, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘मैं, यश, इंडिया से,’’ यश ने स्पीकर औन कर दिया था. शायद कामिनी को भी संवाद सुनाना चाहते थे.

‘‘अरे, नमस्कार यशजी, इस समय कैसे? सब ठीक तो है?’’ नील की मां की उनींदी आवाज फोन पर थी.

कामिनी ने बड़ी आजिजी से यश को इशारा किया कि वे बिना बात, बात को न बिगाड़ें. आखिर उन की बेटी का सवाल है. यश को शायद कामिनी की बात कुछ जंच गई. थोड़े धीमे लहजे

में बोले, ‘‘आप ने नील की चोट के बारे में नहीं बताया?’’ यश के लहजे में शिकायत थी.

‘‘मैं ने और नील ने सोचा था यशजी कि आप चोट की बात सुन कर बेकार परेशान हो जाएंगे इसलिए…’’

यश चिढ़ गया. ‘मानो बड़ी हमदर्दी है इन्हें हमारी परेशानी से’, बहुत धीमी आवाज में उस के मुंह से निकल गया.

‘‘आप जानती हैं कि कितनी परेशान रहती है हमारी बेटी. उधर, नील भी कईकई दिनों तक फोन नहीं करते और न ही कुछ प्रोग्राम के बारे में बताते हैं?’’

‘‘क्या करें यशजी, परिस्थिति ही ऐसी थी कि जल्दी आना पड़ा.’’

‘‘क्या परिस्थिति? उस पंडित के कहने से आप ने नील और दिया को 2 दिन भी साथ रहने नहीं दिया और जानती हैं इस से हमारी बेटी पर कितना खराब असर पड़ रहा है?’’

‘‘ऐसी तो कोई बड़ी बात नहीं हो गई. हम ने तो यह ही सोचा कि आप लोग परेशान हो जाएंगे. वैसे भी न तो दिया तैयार थी इस शादी के लिए और न ही कामिनी बहनजी,’’ नील की मां की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या कहें. फिर कुछ रुक कर बोलीं, ‘‘हमारे नील की भी तो शादी हुई है. वह भी तो अपनी पत्नी को मिस कर रहा होगा.’’

‘‘ममा, किस से बात कर रही हैं, इस समय?’’ नील शायद नींद से जागा था.

‘‘तुम्हारे ससुर हैं, इंडिया से.’’

‘‘अरे, इस समय,’’ नील ने शायद घड़ी देखी होगी.

‘‘नमस्ते, डैडी. क्या बात है, इस समय फोन किया? सब ठीक है न?’’

यश नमस्ते का उत्तर दिए बिना ही असली बात पर जा पहुंचे, ‘‘आप को चोट लग गई, नील? किसी ने बताया भी नहीं. मैं टिकट का इंतजाम कर के जल्दी से जल्दी आने की कोशिश करता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, डैडी. वह लगी थी चोट, अब तो ठीक भी हो गई. अब कल या परसों से तो मैं औफिस जाना शुरू कर दूंगा,’’ नील हड़बड़ाहट में बोला.

‘‘एक बार मिल लूंगा तो तसल्ली हो जाएगी. इधर, दिया भी बहुत उदास रहती है. उस के पेपर्स कब तक तैयार हो रहे हैं?’’

‘‘बस, अब औफिस जाने लगूंगा तो जल्दी ही तैयार करवा कर भेज देता हूं. और हां, आप बेकार में यहां आने की तकलीफ न करें.’’

नील की भाषा इतनी साफ व मधुर थी कि यश उस से पहली बार में ही प्रभावित हो गए थे. अच्छा लगा था उन्हें परदेस में रह कर अपनी भाषा व संस्कारों की तहजीब बनाए रखना.

‘‘तकलीफ की क्या बात है? मैं तो वैसे भी काम के सिलसिले में बाहर जाता ही रहता हूं. वीजा की कोई तकलीफ नहीं है मुझे. मेरे पास लंदन का 10 साल का वीजा है.’’

‘‘नहीं, आप तब आइएगा न, जब दिया यहां पर होगी. अभी बिलकुल तकलीफ न करें. मैं बिलकुल ठीक हूं. मम्मी को बोलूंगा जल्दी ही पंडितजी से दिया को लाने की तारीख निकलवा लेंगी.’’

यश ने फोन रख दिया. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. आखिर, वे बेटी के पिता हैं. न तो अब उगलते बनता है और न निगलते. फिर भी उन्हें भरोसा था कि कहीं न कहीं समझनेसमझाने में ही भूल हुई होगी. हां, यह बात जरूर कचोट रही थी कि मां ने इतनी बड़ी बात उन से छिपाई. आज उन्हें महसूस हुआ कि उन के घर पर पंडित का कितना प्रभाव है. यश भी कोई कम विश्वास नहीं रखते थे इन मान्यताओं में परंतु जब मां ने छिपाया तब वे सहन नहीं कर सके. कामिनी के सामने मां के विरुद्ध कुछ बोल नहीं सकते थे. सो, मन ही मन कुढ़ते रहे.

मन में संदेहों के बीज बोए जा चुके थे. उन के अंकुर फूट कर यश के मन में चुभ रहे थे. यश स्थिर नहीं रह पा रहे थे. एक बेचैनी सी हर समय उन्हें कुरेदती रहती. कहीं भीतर से लग रहा था कुछ बहुत बड़ी गड़बड़ है.

कामिनी तो विवाह से पूर्व ही असहज ही थी. उस का कुछ वश नहीं था इसलिए वह सदा से ही सब कुछ वक्त पर छोड़ कर चुप रहती थी. परंतु वह मां थी. लाड़ से पली हुई बेटी की मां, जिस ने अपनी बिटिया के सुनहरे भविष्य के लिए न जाने कितने जिंदा स्वप्न अपनी आंखों में समेटे थे.

यश की बेचैनी भी कहां छिपी थी उस से? परंतु दोनों में से कोई भी अपने मन की बात एकदूसरे से खुल कर नहीं कह पा रहा था. मां से तो अब कुछ बोलने का फायदा ही नहीं था. हां, वे भी अब बेचैन तो थीं परंतु ताउम्र इस घर पर राज किया था उन्होंने. एक तरह की ऐंठ से सदा भरी रहीं. आसानी से अपनी बात को छोटा कैसे कर सकती थीं?

कामिनी ने मन में कई बार सोचा, ‘इस उम्र में भी मां इतनी अधिक क्यों चिपकी हुई हैं इस भौतिक, दिखावटी दुनिया से. अब यदि इस उम्र में भी वे इन सब से छूट नहीं पाएंगी तो कब स्वयं को मुक्त कर पाएंगी इन सांसारिक झंझटों से? सुबहशाम आरती गा लेना, पंडितजी को बुला कर पूजाअर्चना की क्रियाएं करना, कुछ भजन और पूजा करवा कर आमंत्रित लोगों की वाहवाही लूट लेना…’ ये सब बातें उसे विचलित करती रहती थीं. अंतर्मुखी होने के कारण जीवनभर वह अपने विचारों से ही जूझती रही. जानती थी कि इस सब में यश भी उस से भागीदारी नहीं कर पाएंगे. उस ने तो स्वयं को समय पर छोड़ दिया था. उस के हाथ में कुछ है ही नहीं. तब व्यर्थ का युद्ध कर के स्वयं को थकाने से लाभ क्या?

समय के व्यतीत होने के साथ ही दिया कुछ अधिक ही चिड़चिड़ी सी होती जा रही थी. परिवार के वातावरण में बदलाव आने लगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कारण होंगे जो नील या उस की मां का कुछ स्पष्ट उत्तर प्राप्त नहीं हो रहा था.

दिया कालेज जाने में भी आनाकानी करने लगी थी. यश जब अपनी फूल सी बिटिया को मुरझाते हुए देखते तो उन का कलेजा मुंह को आ जाता. उधर, मां ने फिर पंडितजी को बुला भेजा था और 3 दिन से न जाने उन्हें किस अनुष्ठान पर बैठा दिया था. 2 नौकर उन की सेवा में हर पल 1 टांग से मंदिर के बाहर खड़े रहते. पंडितजी ने महीनेभर का अनुष्ठान बता दिया था और मां थीं कि उन के समक्ष कोई आज तक मुंह खोलने का साहस नहीं कर पाया था तो आज तो घर की बेटी के सुख का बहाना था उन के पास.

बहाने, बहाने और बस बहाने. कामिनी का मन चीत्कार करने लगा. क्या होगा इस पूजापाठ से? अगर घंटियां बजाने से समय बदल जाता तो बात ही क्या थी? मां तो जिंदगीभर पंडितों के साथ मिल कर घंटियां ही बजाती रही थीं फिर क्यों यह अरुचिकर घटना घटी? उस का मन वितृष्णा से भर उठा. मां चाहतीं कि दिया भी इस पूजा

में सम्मिलित हो. उसे बुलाया जाता परंतु वह स्पष्ट रूप से न कह देती. कामिनी को भी बुलाया जाता फिर वह और पंडितजी मिल कर उसे सुंदर शब्दों में संस्कारहीनता की दुहाई देने लगते. वह सदा चुप रही थी, अब भी चुप रहती. हां, उस में एक बदलाव यह आया था कि अब वह कोई न कोई बहाना बना कर पूजा में सम्मिलित होने से इनकार करने लगी थी. वह अधिक से अधिक दिया के पास रहने लगी थी. नील के फोन आते परंतु कुछ स्पष्टता न होने के कारण दिया ‘हां’, ‘हूं’ कर के फोन पटक देती.

यश ने कई बार नील की मां से बात कर ली थी परंतु वही उत्तर ‘हां, बस जल्दी ही हो जाएगा.’ यश ने सोच लिया कि वे स्वयं दिया को ले कर लंदन जाएंगे. इसी सोच के तहत यश ने दिया के वीजा के लिए पूछताछ प्रारंभ कर दी थी. दिया के ससुराल जाने में समय लग सकता है, इस बात से किसी को कोई परेशानी नहीं थी. सब इस के लिए मानसिक रूप से तैयार ही थे परंतु चिंता इस बात की थी कि विवाह के बाद से तो नील और उस की मां का व्यवहार ही बदला हुआ सा प्रतीत हो रहा था.

इसी ऊहापोह में गाड़ी पार्क कर के यश वीजा औफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे थे कि अचानक ट्रक की चपेट में आ गए. ट्रक वाला भलामानुष था उस ने ट्रक रोक कर इकट्ठी हुई भीड़ में से कुछ लोगों की सहायता से यश को उन की कार में डाला और गाड़ी अस्पताल की ओर भगा दी.

डाक्टर यश के परिवार से परिचित थे. उन की सहायता से यश के मोबाइल से नंबर तलाश कर कैसे न कैसे दुर्घटना की खबर यश के घर वालों तक पहुंचा दी गई. यश बेहोश हो गए थे. डाक्टर ने पुलिस को खबर करने की फौर्मेलिटी भी पूरी कर दी. ट्रक ड्राइवर वहीं खड़ा रहा. उस ने अपने सेठ को भी दुर्घटना की जानकारी दे दी थी. कुछ ही देर में वहां सब लोग जमा हो गए. डाक्टर अपने काम में लग गए थे. थोड़ी देर में ड्राइवर का सेठ भी वहां पहुंच गया.

रहे चमकता अक्स: भाग-2

नमन हमेशा उस की तारीफ भी करता था. मगर आज उस के शरारती अंदाज में अनन्या को इस तरह खूबसूरत कहना उस पर असर छोड़ गया. उस ने अभिनव के मुंह से कभी खुल कर अपनी प्रशंसा नहीं सुनी थी.

रिप्लाई में उस ने जब नमन को थैंक्स लिखा तो उस का जवाब आया, ‘‘दोस्ती का उसूल है मैडम कि नो सौरी नो थैंक यू…‘मैं ने प्यार किया’ फिल्म में अपने सलमान भाई का कहना तो कुछ ऐसा ही है,’’ ये पंक्तियां लिखने के बाद नमन ने चुंबन की इमोजी भी सैंड कर दी.

‘‘हा… हा… दोस्ती तो ठीक है पर यह किस किसे भेजा है?’’

‘‘तुम्हें ही यार… जब दोस्त तुम सी प्यारी हो तो प्यार आ ही जाता है उस पर.’’

बात को वहीं समाप्त करने के उद्देश्य से अनन्या ने लिखा, ‘‘चलो, और पिक्स भेजो… तुम तो गु्रप के सब से अच्छे फोटोग्राफर हो… आज तुम ने भी खूब फोटो खींचे थे.’’

नमन ने ढेर सारे फोटो भेज दिए, पर वे सभी अनन्या के थे. अनन्या के दिल को ये सब अच्छा लग रहा था, पर दिमाग बारबार याद दिला रहा था कि एक शादीशुदा स्त्री को खुल कर पुरुष मित्र से पेश नहीं आना चाहिए.

मुसकराती स्माइली के साथ अनन्या ने लिखा, ‘‘अरे वाह, मेरी इतनी सारी पिक्स? जनाब, क्यों टाइम वेस्ट कर रहे हो अपना? अब ऐसा करो कि शादी कर लो तुम… फिर तुम्हारी वह दिनरात गाना गाएगी, ‘तू खींच मेरा फोटो पिया…’ और फिर लेना उस की खूब सारी पिक्स.’’

नमन का जवाब आया, ‘‘है

कोई तुम्हारे जैसी तो बता दो… कर लेता हूं शादी… ‘जग घूमेया थारे जैसा न कोई…’’’

अनन्या को नमन के शब्द ऐसे लगे जैसे मन के तपते रेगिस्तान में न जाने कहां से पानी की धारा फूट पड़ी हो. अभिनव के रूखे व्यवहार और चुप्पी साधे रखने से क्षुब्ध अनन्या को नमन की बातें अपनी ओर खींच रही थीं. वह अपने मन को वश में किए थी पर वह तो जैसे उस के हाथों से छूटा जा रहा था.

रात देर तक अनन्या नमन के साथ चैटिंग करती रही. वह कोई भी बात शुरू करती तो नमन घुमाफिरा कर उस की सुंदरता पर ले आता. एकदूसरे को ‘गुड नाइट’ भेजने के बाद जब अनन्या सोने के लिए बैड पर लेटी तो नमन के रंग में रंग कर ‘भागे रे मन कहीं…’ गाना गुनगुनाते हुए मुसकरा दी.

अगले 2-3 दिन भी नमन और अनन्या ने खूब चैटिंग की. कालेज के दिनों को याद करते हुए नमन ने उसे बताया कि एक बार उस के बचपन का एक दोस्त कालेज में उसे मिलने आया था. तब नमन ने अनन्या को अपनी गर्लफ्रैंड बता दिया था.

अनन्या ने यह पढ़ कर आंखों से आंसू बहाते हुए हंसने वाली 3 इमोजी भेजीं.

‘‘क्या यार… हंस क्यों रही हो…? मैं तो चाहता हूं कि सच में ही तुम बन जाओ मेरी गर्लफ्रैंड… लाइफ बन जाएगी अपुन की.’’

‘‘अरे…अरे… क्या कह रहे हो? एक मैरिड को प्रोपोज कर रहे हो?’’

‘‘मैं कब कह रहा हूं कि तुम अपने पति से रिश्ता तोड़ कर मुझे गाना सुनाओ कि ‘मेरे सैयांजी से आज मैं ने बे्रकअप कर लिया…’ गर्लफ्रैंड बनने को ही तो कह रहा हूं.’’

‘‘कालेज समय में यह रिक्वैस्ट क्यों नहीं की तुम ने?’’

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‘‘बस… बस… कल 1 महीने की ट्रेनिंग पर अहमदाबाद जा रहा हूं… लौट कर आते ही तुम्हें लंच पर ले कर जाऊंगा. और हां मैं रिक्वैस्ट नहीं करता. एक ही बार बोलता हूं और वह फुल ऐंड फाइनल हो जाता है.’’

‘‘वाह क्या बात है… ‘तेरे नाम’ फिल्म के सलमान खान… फुल ऐंड फाइनल है लंच तो और बाकी बातें वहीं करेंगे,’’ अनन्या ने लिखा और फिर दोनों ने कुछ दिनों के लिए एकदूसरे को बाय कर दिया.

नमन के जाने के बाद अनन्या अकेलापन सा महसूस कर रही थी. फेसबुक पर दोस्तों के स्टेटस और तसवीरों को देखते और उन पर कमैंट्स करते 2 दिन किसी तरह बीत ही गए और अभिनव के लौटने का दिन आ गया.

अभिनव ने आते ही जो खबर सुनाई उसे सुन कर अनन्या खुश होने के साथ ही मायूस भी हो गई. मीटिंग के दौरान ही अभिनव के काम से प्रभावित हो कर उसे प्रमोशन दे दी गई थी. अभिनव ने बताया कि उन्हें 15 दिनों के अंदर ही दिल्ली से हैदराबाद शिफ्ट होना पड़ेगा.

नमन की दोस्ती के रोमांच में रोमांचित अनन्या निराश थी, पर कोई चारा नहीं था उस के पास. अगले ही दिन से वह जाने की तैयारी में जुट गई.

हैदराबाद पहुंच कर अभिनव नई जिम्मेदारियां संभालते हुए बेहद व्यस्त हो गया. अनन्या सुबह से शाम तक नए मकान की सैटिंग करते हुए थक जाती. कामवाली रोजमर्रा का काम तो निबटा देती थी, पर अन्य कामों में अनन्या उस की मदद नहीं ले पा रही थी. अनन्या तेलुगु नहीं जानती थी और वह हिंदी ठीक से नहीं समझ पाती थी. अत: अनन्या के लिए बताना संभव नहीं हो पा रहा था कि वह किस काम में बाई की मदद चाहती है.

कुछ दिनों बाद अनन्या को कमजोरी महसूस होने के साथसाथ नींद भी बहुत आने लगी. दोपहर में जब वह कोई पत्रिका ले कर पढ़ने बैठती तो नींद के झोंके कुछ पढ़ने ही नहीं देते. सुबह भी उसे उठने में देरी हो रही थी. उस का मौर्निंग वाक भी छूट गया था. खुद को काम में लगाए हुए वह नींद और सुस्ती से दूर रहने का भरसक प्रयास करती, पर ऐसा हो नहीं पा रहा था. अपने में हो रहे इस परिवर्तन को ले कर वह बेहद परेशान थी. बस कभीकभी जब नमन से चैटिंग होती तभी वह कुछ पलों के लिए प्रसन्न होती थी.

उन लोगों को हैदराबाद आए

3 महीने हो चुके थे. उस दिन दोनों को पड़ोस में एक बच्चे के जन्मदिन की पार्टी में शामिल होना था. अनन्या ने पहनने के लिए ड्रैस निकाली, पर यह क्या. वह ड्रैस तो अनन्या को बहुत टाइट आ रही थी. उस ने सोचा ड्रैस धोने से सिकुड़ गई होगी, इसलिए 3-4 और ड्रैस निकाल कर पहनने की कोशिश की, पर कोई भी ड्रैस ठीक से नहीं पहनी जा रही थी. इन दिनों घर के काम में व्यस्त होने के कारण वह ढीली कुरती और गाउन ही पहन रही थी. अत: उसे पता ही नहीं लग पाया कि उस का वजन बढ़ रहा है.

अब अनन्या ने सुबहसुबह फिर से टहलना शुरू कर दिया और साथ ही व्यायाम करना भी. मगर वजन नियंत्रण में नहीं आ रहा था. थकान हो रही थी सो अलग. चेहरा भी निस्तेज पड़ गया था. जब उसे पैरों में सूजन दिखाई देने लगी तो अभिनव के साथ डाक्टर के पास गई.

डाक्टर ने उसे ब्लड टैस्ट करवाने को कहा. रिपोर्ट आने पर पता लगा

कि अनन्या को हाइपोथायराइडिज्म हो गया है. गले में पाई जाने वाली थायराइड नामक ग्लैंड जब अधिक सक्रिय नहीं रह पाती तो यह बीमारी हो जाती है, जिस कारण शरीर को आवश्यक हारमोंस नहीं मिल पाते.

डाक्टर ने रोज खाने के लिए दवा लिख दी और कुछ समय बाद फिर टैस्ट करवाने को कहा ताकि दवा की सही मात्रा निर्धारित की जा सके. साथ ही उसे यह भी बता दिया कि एक बार यह ग्रंथि निष्क्रिय हो जाती है, तो दोबारा सक्रिय होना लगभग असंभव है. लेकिन अभी घबराने वाली बात नहीं है.

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कुछ दिनों बाद अभिनव को एक कौन्फ्रैंस के सिलसिले में दिल्ली जाना था. अनन्या ने भी साथ चलने की इच्छा जताई. अपने दोस्तों खासकर नमन से मिलने का यह अच्छा मौका था. नमन उस से अकसर शिकायत करता था कि वह उस के ट्रेनिंग से लौटने से पहले ही हैदराबाद आ गई. उन का मिलना नहीं हो पाया.

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रहे चमकता अक्स: भाग-3

दिल्ली पहुंच कर वे एक होटल में ठहरे. वहां पहुंचने के अगले दिन ही अनन्या ने अपने दोस्तों को लंच पर बुलाने का कार्यक्रम रखा. जिस होटल में वह ठहरी हुई थी, उस का पता सब को बता कर उस ने वहां के डाइनिंग हौल में ही टेबल्स बुक करवा दीं. अपनी मनपसंद ड्रैस पहन अनन्या बेसब्री से दोस्तों का इंतजार करने लगी.

मनीष ने सब से पहले आ कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. अनन्या उसे देखते ही खिल उठी. पर मनीष ने उसे देख मुंह बना कर आंखें सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘अरे, यह क्या? तू… तू इतनी मोटी? क्या कर लिया?’’

इस से पहले कि अनन्या कोई जवाब देती, नमन भी आ पहुंचा. फिर 1-1 कर के सब आ गए.

‘‘मैं अनन्या से मिल रहा हूं या किसी बहनजी से… कैसी थुलथुल हो गई इतने दिनों में… आलसियों की तरह पड़ी रह कर खूब खाती है क्या सारा दिन?’’ नमन हंसते हुए बोला.

अनन्या रोंआसी हो गई, ‘‘अरे, नहीं. न मैं आलसी हूं और न ही कोई डाइटवाइट बढ़ी है मेरी… हाइपोथायरायडिज्म की प्रौब्लम हो गई है… बताया तो था नमन तुम्हें कुछ दिन पहले.’’

‘‘यह मेरी भाभी को भी है, पर तू तो कुछ ज्यादा ही…’’ अपने गालों को फुला कर दोनों हाथों से मोटापे का इशारा करती हुई स्वाति ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

सब की बातों से उदास अनन्या ने वेटर को खाना लगाने को कहा. खाना खाते हुए भी दोस्त ‘मोटी और कितना खाएगी’ जैसी बातें करते हुए उस का मजाक उड़ाने से बाज नहीं आ रहे थे. नमन भी उन का साथ देते हुए ‘बसबस… बहुत खा लिया’ कह कर बारबार उस की प्लेट उस के सामने से हटा रहा था. खाना खाने के बाद अनन्या बाहर तक छोड़ने आई.

‘‘ओके… बाय चुनचुन… नहीं टुनटुन…’’  नमन के कहते ही सब जाते हुए खूब हंसे, पर अनन्या का मन छलनी हुआ जा रहा था. उदास मन से वह अपने कमरे में आ कर बैठ गई.

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घर पहुंच कर नमन ने उसे कोई मैसेज

नहीं किया और न ही उस के किसी मैसेज का जवाब दिया.

अगले दिन दोपहर में जब अनन्या ने उसे फोन किया तो ‘बहुत बिजी हूं आजकल… टाइम मिलेगा तो खुद कर लूंगा कौल,’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

अनन्या रोज प्रतीक्षा करती, लेकिन न फोन और न ही मैसेज आया नमन का और फिर वापस जाने का दिन भी करीब आ गया.

अनन्या ने लौटने से 1 दिन पहले नमन को शिकायत भरा मैसेज भेजा.

कुछ देर बाद नमन का जवाब भी आ गया, ‘इतना गुस्सा क्यों दिखा रही हो? तुम्हारा मैसेज देख कर तो ‘जवानीदीवानी’ फिल्म का गाना याद आ रहा है- ‘खल गई, तुझे खल गई, मेरी बेपरवाही खल गई… मुहतरमा तू किस खेत की मूली है जरा बता?’ और इसे मजाक का रूप देने के लिए जीभ निकाल कर एक आंख बंद किए चेहरे वाली इमोजी जोड़ दी साथ में.

जवाब देख कर अनन्या को बहुत गुस्सा आया कि कहां तो नमन मेरे दिल्ली पहुंचने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था और अब बात करना तो दूर… किस तरह मुझे बेइज्जत कर

रहा है. मैं तो वही हूं न जो पहले थी… क्या

बाहर की खूबसूरती नमन के लिए इतनी अहमियत रखती है कि उस के लिए अनन्या मतलब गोरे रंग की 5 फुट 1 इंच की स्लिम सी लड़की थी बस… वह लुक नहीं रहा तो अनन्या, अनन्या नहीं…

रात को सोने के लिए जब वह बैड पर लेटी तो अभिनव के करीब जा कर उस के सीने में अपना मुंह छिपाए चुपचाप लेट गई.

‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है? कल वापस जा रहे हैं, इसलिए उदास हो शायद?’’ अभिनव उस की पीठ पर हाथ रख कर बोला.

अनन्या कुछ देर यों ही रहने के बाद अभिनव की ओर देखते हुए बोली, ‘‘एक बात पूछूं अभिनव? क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं इतनी मोटी हो गई हूं? फेस भी सूजा सा, कुछ बदलाबदला सा लग रहा है… तुम ने तो एक स्लिमट्रिम, गोरी लड़की से शादी की थी, पर वह क्या से क्या हो गई.’’

‘‘हा… हा…’’ पहले तो अभिनव ने एक जोरदार ठहाका लगाया. फिर मुसकरा कर अनन्या की ओर देखते हुए बोला, ‘‘उफ, अनन्या कैसा सवाल है यह? यह सच है कि तुम्हें एक बीमारी हो गई है और उस में वेट कंट्रोल करना मुश्किल होता है… पर यह बताओ कि क्या हम हमेशा वैसे ही दिखते रहेंगे जैसे शादी के वक्त थे? मेरे बाल अकसर झड़ते रहते हैं. अगर मैं गंजा हो जाऊंगा या फिर बुढ़ापे में जब मेरे दांत टूट जाएंगे तो मैं तुम्हें खराब लगने लगूंगा?’’

‘‘तुम मुझे प्यार तो करते हो न?’’ अनन्या के चेहरे पर निराशा अभी भी झलक रही थी.

अभिनव एक बार फिर खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘अनन्या सुनो, तुम इतनी समझदार हो कि मैं कब तुम से पूरी तरह जुड़ गया मैं समझ ही नहीं पाया. तुम मेरी केयर तो करती ही हो, मुझ से हर बात शेयर करती हो, बिना वजह कभी झगड़ा नहीं करती… मैं औफिस के काम में इतना बिजी रहता हूं फिर भी झेलती हो मुझे. तुम सच में अपने नाम की तरह ही सब से बिलकुल अलग, बहुत खास हो.

‘‘पर इस से पहले तो आप ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा?’’ अभिनव की प्रेममयी बातें सुन भावविभोर हो अनन्या बोली.

‘‘मैं हूं ही ऐसा… बोलना कम और सुनना बहुत कुछ चाहता हूं… अनन्या यकीन करो, मुझे बिलकुल तुम जैसी लाइफपार्टनर की जरूरत थी.’’

अनन्या मंत्रमुग्ध हुए जा रही थी.

‘‘एक बात और कहूंगा… अपने शरीर का ध्यान रखना हम सब के लिए जरूरी

है पर तन की सुंदरता कभी मन की सुंदरता पर हावी नहीं होनी चाहिए… तुम जब भी मेरे इस मन में झांक कर अपनी सूरत देखोगी, तुम्हें अपनी वही सूरत दिखाई देगी जो कल थी, आज भी वही और आने वाले कल भी…’’

‘ओह, अभिनव… और कुछ नहीं चाहिए अब… कोई मुझे कुछ भी कहता रहे परवाह नहीं… बस तुम्हारे दिल के आईने में मेरा अक्स यों ही चमकता रहे,’ सोचती हुई अनन्या नम आंखों को मूंद कर अभिनव से लिपट गई. अभिनव के प्रेम की लौ में पिघल कर वह बहुत हलका महसूस कर रही थी.

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रहे चमकता अक्स

4 टिप्स: बेबी की स्किन रहेगी हमेशा सौफ्ट

नवजात और बड़ों की स्किन में कुछ खास अंतर होते हैं जैसे नवजात की एपिडर्मिस यानी बाह्य स्किन बड़ों की तुलना में काफी पतली होती है. नवजात की पसीने की ग्रंथियां बड़ों की तुलना में कम काम करती हैं, जिस से स्किन नमी जल्दी सोखती भी है और जल्दी खो भी देती है. इस के अलावा नवजात की स्किन बहुत कोमल भी होती है. आइए, जानते हैं कि शिशु की कोमल स्किन को इन समस्याओं से कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है:

1. उत्पादों के लेबल जरूर पढ़ें

यदि किसी बेबी स्किन केयर प्रोडक्ट पर हाइपोऐलर्जिक लिखा है तो इस का मतलब यह है कि हो सकता है कि उत्पाद के इस्तेमाल से शिशु को ऐलर्जी हो जाए. जरूरी नहीं कि ऐसा उत्पाद शिशु की स्किन के लिए सुरक्षित हो. ऐसे में नैचुरल उत्पादों को प्राथमिकता दें. यदि उत्पाद की सामग्री में थैलेट और पैराबीन हो तो उसे बिलकुल न खरीदें.

यों तो नैचुरल बीबी केयर उत्पाद नवजात के लिए सुरक्षित होते हैं, लेकिन यदि परिवार में किसी को ऐलर्जिक अस्थमा इत्यादि की समस्या रही हो तो संभव है कि शिशु को भी किसी खास हर्ब से ऐलर्जी हो. ऐसे में डाक्टर की सलाह से ही बेबी स्किन केयर उत्पाद खरीदें.

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2. गरमी में बेबी मसाज

कई नई मांएं इस डर से गरमी में शिशु की मालिश करना बंद कर देती हैं कि कहीं उसे हीट रैशेज न हो जाएं. ऐसा कतई न करें, क्योंकि मालिश हड्डियों को मजबूत बनाने के साथसाथ शिशु के नर्वस सिस्टम को भी फायदा पहुंचाती है. हां, इस मौसम में मालिश के लिए नारियल तेल, औलिव औयल या फिर बाजार में मौजूद कोई भी हलका मसाज औयल इस्तेमाल करें, साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि उसे नहलाते समय तेल उस के शरीर से पूरी तरह निकल जाए. ऐसा न होने पर उस के रोमछिद्र बंद हो सकते हैं और उसे हीट रैशेज की समस्या हो सकती है.

3. बेबी ड्रैस ऐंड रूम टैंपरेचर

आप को यह नई बात लग सकती है, मगर इस का ध्यान रखना जरूरी है. इस के लिए बारबार रूम टैंपरेचर चैक करने की जरूरत नहीं है, बस उसे ब्रीदिंग फैब्रिक वाले कपड़े पहनाएं. शिशु हैड और फेस के जरीए हीट रिलीज कर बौडी टैंपरेचर को नियंत्रित करता है, इसलिए उसे सुलाते समय उस का सिर और चेहरा कवर न करें. ऐसा करने से वह ओवरहीट हो सकता है. इस का शिशु की स्किन पर भी गहरा असर पड़ता है. सौफ्ट फैब्रिक न होने से जहां शिशु को स्किन इरिटेशन की समस्या हो सकती है, वहीं कमरा ज्यादा ठंडा होने से उस की स्किन ड्राई भी हो सकती है.

4. स्किन हाइजीन के लिए वाइप्स

ज्यादातर मांएं नवजात को ब्रैस्ट फीड कराने, डायपर बदलने या उस का मलमूत्र साफ करने के लिए कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. ऐसा करना न सिर्फ शिशु के हाइजीन के लिए खतरनाक है, बल्कि उस की कोमल स्किन को भी नुकसान पहुंचाता है. कई बार तो सुबह से ले कर शाम तक शिशु के गले में एक ही बिब बंधा रहता है, जिस का इस्तेमाल दिनभर उस का मुंह साफ करने के लिए किया जाता है. ये सभी विकल्प शिशु की स्किन से कोमलता को छीन लेते हैं और उसे बैक्टीरिया के संपर्क में ला देते हैं. आजकल बाजार में खासतौर पर नवजात के लिए तैयार किए गए बेबी वेट वाइप्स उपलब्ध हैं, जो उस की स्किन को बिना नुकसान पहुंचाए उसे साफ करते हैं. इन के इस्तेमाल से शिशु की स्किन पर रैशेज भी नहीं पड़ते.

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ध्यान रखें कि जन्म से 1 साल तक नवजात की स्किन बेहद कोमल होती है और छोटीमोटी स्किन संबंधी समस्याओं के लिए स्किन बैरियर बना रही होती है. अत: इस दौरान उस की स्किन की ऐक्स्ट्रा केयर न की जाए तो उसे स्किन से जुड़ी कौमन प्रौब्लम्स का शिकार होना पड़ सकता है.

#coronavirus: हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुईं कनिका कपूर लेकिन खत्म नहीं हुई मुश्किलें

बौलीवुड सिंगर कनिका कपूर (Kanika Kapoor) हाल ही में कोरोना पौजिटिव आईं थीं, जिसके बाद कई टेस्ट लगातार पौजीटिव आए. लेकिन अब कनिका कपूर का छठा कोरोना वायरस टेस्ट की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद वह औफिशियली तौर पर अस्पताल से घर वापस आ गई है. वहीं अभी भी उनकी मुसीबतें कम नहीं हुई हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है कनिका कपूर की आने वाली मुसीबतें …

 पुलिस करेगी कनिका कपूर से पूछताछ

बौलीवुड सिंगर कनिका कपूर (Kanika Kapoor) लखनऊ स्थित संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SGPGIMS) से डिस्चार्ज कर दिया गया है. वहीं अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी कनिका कपूर की मुश्किलें अभी तक खत्म नहीं हुई है. दरअसल बहुत जल्द लखनऊ पुलिस कनिका कपूर से पूछताछ करने वाली है, जिसके चलते लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडे ने बताया है कि ‘कनिका कपूर को डिस्चार्ज कर दिया गया है और उनको 14 दिनों तक अपने घर अकेले रहना है. यह पीरियड खत्म होने के बाद लखनऊ पुलिस कनिका कपूर से पूछताछ करेगी.’

 

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मामला हुआ था दर्ज

 

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She’s cute👭😜 @tanyaganwani

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लखनऊ पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडे ने आगे कहा है कि, ‘कनिका कपूर के खिलाफ लखनऊ के सरोजिनी नगर थाने में आईपीसी की धारा 188, 269 और 270 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.14 दिनों का क्वा रेंटाइन पीरियड पूरा होने के बाद लखनऊ पुलिस उनसे पूछताछ करेगी. लापरवाही के चलते कनिका कपूर (Kanika Kapoor) के खिलाफ लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने सरोजनी नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी. सरोजनी नगर थाने के अलावा कनिका कपूर के खिलाफ हजरतगंज और महानगर थाने में भी मामला दर्ज हुआ है.’

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बता दें कि लंदन से लौटने के बाद कनिका 3 बड़ी पार्टियों का हिस्सा बनी थीं. लोग कनिका पर आरोप लगा रहे है कि बढ़ते संक्रमण के बावजूद भी कनिका खुद को आइसोलेट नहीं रख पाई थीं. जिस वजह से लोगों को शक है कि यह वायरस औऱ भी लोगों में फैल चुका है. वहीं 5 स्टार होटल में कनिका कपूर के साथ राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अपने बेटे के साथ मौजूद थीं. साथ ही और भी कई बड़ी हस्तियां उस पार्टी का हिस्सा बनी थी. जिनमें से कुछ लोगों को आइसोलेशन में रखा गया है.

#coronavirus: जानें क्या है खानपान से जुड़े वहम

कोरोना लौकडाउन के दौरान घरों में इकट्ठा परिवार के सदस्य तरहतरह की डिशें बनवाकर स्वाद के मजे ले रहे हैं. हालांकि, कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें जरूरतभर खाना नहीं मिल पा रहा. बहराल, यहां हम खानपान से जुड़ी कुछ भ्रांतियों पर रोशनी डालेंगे.

भोजन संबंधी पुरानी धारणाएं आज भी फिट बैठती हों, इसकी गारंटी नहीं मानी जा सकती. उन धारणाओं के मुताबिक, चलते रहना भी शरीर के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. आज की तेज रफ्तार जिंदगी ने लोगों के खानपान को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है. आजकल खाने के मामले में ज्यादातर लोगों का मानना यह है कि जो भी मिल जाए, उसी से पेट भर लो.

नतीजतन, कई तरह की सेहत संबंधी दिक्कतों ने लोगों को घेर लिया है. खानपान दुरुस्त करने की हड़बड़ाहट में लोग कई तरह की भ्रांतियों का शिकार हो जाते हैं. मसलन, मोटापे के शिकार व्यक्ति को यदि कोई बता दे कि खाना बंद कर देना है तो वह ऐसा करने लगता है. संतुलित भोजन न लेने पर पैदा होने वाली दिक्कतों से निबटने के लिए हर किसी की सलाह पर अमल कर लेना लोगों की आदत बन जाती है.

कई बार सलाह कारगर होती है तो कई बार सेहत पर इसका उलटा असर पड़ता है. सही जानकारी न होने की वजह से नुकसान होते रहने के बावजूद सलाह पर अमल करना जारी रहता है. आखिरकार, गंभीर नतीजे सामने आते हैं. कुल मिलाकर खानपान के मामले में बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत है.

1. कैसा पानी पिएं

शहरों में आजकल बोतलबंद पानी का इस्तेमाल बहुत होने लगा है. बोतलबंद पानी को नल के पानी से अधिक पोषक बताकर बेचा जा रहा है. हालांकि, हकीकत यह है कि नल के पानी में बोतलबंद पानी से ज्यादा खनिज होते हैं. अहम बात यह है कि बोतलबंद पानी में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जो हाई ब्लडप्रैशर की स्थिति पैदा कर सकती है.

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2. कनाई से कितना बचें

मौजूदा समय में चिकनाई को आदमी की सेहत के दुश्मन के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. यह काफी हद तक सही भी है, लेकिन इस प्रचार से प्रभावित होकर कई लोग चिकनाई वाले खाद्य पदार्थों से पूरी तरह दूरी बना लेते हैं. इस स्थिति में सेहत पर उलटा असर पड़ता है. इंसान के जिस्म को एक दिन में कम से कम 25 ग्राम चिकनाई की तथा चिकनाई में घुलने वाले विटामिन ए, डी, ई, के एवं बीटा कैरोटीन के अवशोषण की जरूरत होती है. सो, सीमित मात्रा में चिकनाई का सेवन जरूरी है.

3. कच्ची सब्जियां कितनी जरूरी

कच्ची सब्जियां खाने की सलाह हर कोई हर किसी को दे देता है. जरा सोचिए, जिनका पेट कच्ची सब्जियों को पचाने की क्षमता न रखता हो, उनका क्या होगा! बुजुर्ग, बच्चे एवं पेट की गड़बड़ी से पीड़ित लोगों के लिए कच्ची सब्जियां फायदे की जगह नुकसान कर सकती हैं. इसलिए बेहतर होगा कि थोड़ा पकाने के बाद ही सब्जियों को खाएं.

4. प्रोटीन कितना फायदेमंद

आज के दौर में लोगों में काफी ज्यादा प्रोटीनयुक्त खाद्य पदार्थ लेने की होड़ लगी रहती है. खासकर खिलाड़ी प्रोटीन का बहुत ज्यादा सेवन करने की फिराक में रहते हैं. हकीकत यह है कि खिलाड़ियों को एक्सट्रा प्रोटीन की नहीं, बल्कि एक्सट्रा ऊर्जा की जरूरत पड़ती है.  ऊर्जा का सबसे अच्छा जरिया माना जाता है कार्बोहाइड्रेट. इस को रोटी, चावल, आलू वगैरह से हासिल किया जा सकता है. बहुत ज्यादा प्रोटीन हड्डियों से अधिक मात्रा में कैल्शियम की क्षति का कारण बन सकता है.

5. कितना लें नमक

सामान्यतया खाने में नमक की मात्रा का कोई तयशुदा मापदंड नहीं अपनाया जाता. कितने लोग हैं जो विश्व स्वाथ्य संगठन की सलाह के मुताबिक दिन भर में 6 ग्राम नमक तौलकर खाते हैं? अधिकतर लोग इससे ज्यादा ही नमक का इस्तेमाल करते हैं. जरूरत से ज्यादा नमक यों तो सभी के लिए नुकसानदायक है, मगर बच्चों को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ता है. बच्चों के खाने में एक्सट्रा नमक उनमें निर्जलीकरण की समस्या पैदा कर सकता है.

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6. क्या जरूरी हैं पूरक विटामिन

आजकल कई लोग पूरक विटामिनों का सेवन करते हैं. इनमें ज्यादातर वे लोग हैं, जो आहार संबंधी खराब आदतों के शिकार होते हैं. ये लोग खानपान पर ध्यान देने के बजाय पूरक विटामिनों के सेवन से शरीर को दुरुस्त रखने में ज्यादा विश्वास करते हैं. ऐसे लोगों को एक बात दिमाग में बैठा लेनी चाहिए कि पूरक विटामिन कभी भी संतुलित आहार की जगह नहीं ले सकते. संतुलित आहार विटामिनों के साथ ही जिस्म की दूसरी जरूरतों की भी पूर्ति करता है जबकि पूरक विटामिनों के सेवन से ऐसा संभव नहीं है. इस प्रकार, ऊपर बताई गई बातों के मद्देनजर कोई भी इंसान अपने खानपान को आदर्श व पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर बनाने के साथ अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को ज्यादा मजबूत कर सकता है.

जब साथी से हो अनबन तो अपनाएं ये टिप्स

क्या आप अपने साथी से जो कुछ कहना चाहती हैं वो नहीं कह पा रही हैं. अगर आपके साथ ऐसा हो रहा है तो आपको इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है. एक अध्ययन के अनुसार बातचीत करना ना केवल किसी रिश्ते को स्वस्थ और खुशहाल रखने के लिए बल्कि इसे सफल बनाने के लिए भी जरुरी है.

बहुत से लोग अपने साथी से बात करने में झिझकते हैं या परेशानी महसूस करते हैं. आपको बता दें कि एक सुचारु और सार्थक बातचीत के लिए अधिक शब्दों की आवश्यकता नहीं होती. हम आपको कुछ आसान टिप्स बता रहे हैं जिनके जरिए आप अपने साथी से अच्छे से बातचीत कर सकती हैं और अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकती हैं.

1. छोटी-छोटी बातचीत

अपने साथी से जुड़ी छोटी-छोटी चीजों में दिलचस्पी दिखाएं. उनसे हर छोटी बात के बारे में पूछे लेकिन याद रहें कि उन्हे इस बात का एहसास ना कराएं कि आप उन पर नजर रखने की कोशिश कर रही हैं. बल्कि उन्हें महसूस कराएं कि आप उनकी चिंता करती हैं और जो चीजें उन्हें पसंद हैं उन्हें आप भी पसंद करती हैं.

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2. सुनने की आदत डालें

किसी भी रिश्ते में बातचीत कम होने या खत्म होने के पीछे का बड़ा कारण यही होता है कि लोग एक-दूसरे की बात को धैर्य और शांति से सुनना नहीं चाहते. जिसके कारण आप ना तो खुद को व्यक्त कर पाती हैं और ना ही अपने साथी को समझ पाती हैं. आपके पार्टनर के लिए ये बेहतर अनुभव हो सकता है कि आप उनकी बात ध्यान से सुनती हैं और समझती भी हैं. आप अपने पार्टनर से बात कर रही हैं तो पहले उन्हें अच्छे से सुने उसके बाद ही प्रतिक्रिया दें. अगर आप किसी बात से असहमत हैं तो बीच में दखल देने की बजाय उनकी बात खत्म होने का इंतजार करें और फिर अपना पक्ष रखें.

3. उनके अनुभवों के बारे में पूछे और अपने अनुभव साझा करें

हाल ही के एक अध्ययन में पता चला है कि जब हम किसी व्यक्ति से अपने अनुभवों के बारे में बात करते हैं तो हम काफी करीब महसूस करते हैं. इस अध्ययन में देखा गया है कि जिन लोगों के रिश्तो में उलझने थी उन्होंने अपने रिलेशन को रिपेयर करने के लिए अपने बच्चों के बारे में बातचीत करना शुरु किया और अपने अच्छे अनुभवों को साझा किया. ऐसा जरुरी नहीं है कि आप इन अनुभवों को साझा करने के लिए शब्दों का ही इस्तेमाल करें.

4. बातचीत के दौरान पौजीटिव बौडी लैंग्वेज बनाएं रखें

पौजीटिव बौडी लैंग्वेज बनाने से आप बातचीत को सकारात्मक बना सकती हैं. अपने साथी से बात करते वक्त उनकी आंखों में आंखे डालकर बात करें, अपनी बौडी उनकी तरफ रखें और अपना पूरा ध्यान उन पर रखें. आप अपनी बातों को समझाने के लिए अपने हाथों को मूव कर सकती हैं. बात करते वक्त हाथ बांधकर ना खड़े हो.

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5. इंटिमेसी भी है जरुरी

किसी भी बातचीत के दौरान अपने साथी के साथ इंटिमेसी बना कर रखना भी जरुरी है. आप उनके जितना करीब होंगे उन्हें अपनी बात समझाने और उनकी बात समझने में उतनी ही आसानी होगी. इंटिमेट होने का मतलब केवल शारीरिक सम्बंधो से नहीं है. अपने साथी का हाथ पकड़ना, उन्हें गले लगाना और अधिक समय साथ रहना भी आपके बीच बातचीत बढ़ाने का जरिया हो सकता है.

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