क्यों डराने लगा है सोशल मीडिया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर एक पत्रकार ने मजाकिया अंदाज में सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी क्या कर दी, साहब का दिमाग ही भन्ना गया. आननफानन पत्रकार को उठा कर कालकोठरी में डलवा दिया. यह तो शुक्र है कि देश में अभी कानून का राज कायम है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट की फटकार खा कर यूपी पुलिस ने उसे छोड़ दिया वरना 14 दिन में तो सत्ता के इशारे पर बेचारे की न जाने क्या हालत कर दी जाती. इसलिए इस घटना के बाद से ही सोशल मीडिया के नफेनुकसान पर बहस जारी है.

सोशल मीडिया का ही कमाल है कि उस ने रातोंरात एक अनाम से पत्रकार को मशहूर कर दिया और यह सोशल मीडिया का भय है जिस ने यूपी की सत्ता के सब से ताकतवर इंसान को ऐसा डरा दिया कि बेचारे गफलत में नियमकानून ही भुला बैठे.

जैसी टिप्पणी इस पत्रकार ने की थी, उस से भी भद्दी टिप्पणियां सार्वजनिक जीवन में लोगों पर आए दिन होती रहती हैं. उन पर अखबारोंपत्रिकाओं में कार्टून बनते हैं. कभीकभी तो कार्टूनों के साथ की गई टिप्पणियां काफी तीखी भी होती हैं, मगर ये बातें आईगई हो जाती हैं. जनता भी जानती है कि हकीकत क्या है और हंसीमजाक क्या, इसलिए ऐसी टिप्पणियों पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता. मगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रीजी तो इतना घबरा गए कि उन्होंने टिप्पणी करने वाले के पीछे पुलिस छोड़ दी.

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दरअसल, सारा मामला एक महिला के वीडियो से जुड़ा हुआ था. इस वीडियो को देखने के बाद पत्रकार महाशय ने मुख्यमंत्री पर मजाकिया टिप्पणी की थी. सोशल मीडिया पर उन की टिप्पणी पर 2-4 लोगों ने कमैंट भी दे मारे थे. बस, मुख्यमंत्री साहब तो डर गए. बात जहां एकाध दिन में आईगई हो जाती, वहीं पत्रकार की गिरफ्तारी और फिर सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ने के बाद यह घटना राष्ट्रीय स्तर के मीडिया में छा गई. बस फिर क्या था, कुतूहलवश देश के लगभग शतप्रतिशत जागरूक लोगों ने उस महिला का वीडियो देखा और जो लोग हिंदी बोलनासमझना नहीं जानते थे, उन के लिए वीडियो को अनुवादित भी किया गया.

इस घटनाक्रम के बाद जहां एक गुमनाम से पत्रकार साहब रातोंरात फेमस हो गए, वहीं मुख्यमंत्री साहब को सिवा नुकसान के कुछ नहीं मिला.

एक और उदाहरण

अब सोशल मीडिया के डर का दूसरा उदाहरण देखिए. छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव जिले के डोंगरगढ़ थाना अंतर्गत ग्राम मुसरा निवासी मांगेलाल अग्रवाल ने अपने क्षेत्र में बिजली कटौती को ले कर सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया. बेचारे उमस भरी गरमी में बिजली कटौती से परेशान थे, तो दिल का दर्द सोशल मीडिया पर जाहिर कर दिया.

वहीं महासमुंद के दिलीप शर्मा ने अपने वैब मोचा पोर्टल पर 50 गांवों में 48 घंटे बिजली बंद होने की खबर चला दी. इस बिजली के मुद्दे पर नाकाम सरकार ने बौखलाहट में भर कर घोर अलोकतांत्रिक कदम उठा लिया. इन दोनों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हो गया. बिजली कंपनी के डीई एसके साहू की शिकायत पर 12 जून की रात 11 बजे पुलिस ने दिलीप शर्मा को उन के घर से बनियानटौवेल में ही उठा लिया. बेचारे को कपड़े तक नहीं पहनने दिए.

सत्ता में बैठे लोगों पर सोशल मीडिया का भय इस तरह जारी है कि आम जनता का इस पर अपनी परेशानियां शेयर करना ही गुनाह हो गया है और चैनलों पर सच दिखाना तो कब का बंद हो चुका है. कोई गलती से सच दिखा देता है तो उस का वही हाल होता है जो दिलीप शर्मा का हुआ.

खैर, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल उठा तो यहां भी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बैकफुट पर आ गए. मजबूरीवश उन्हें दोनों मामले वापस लेने पड़े. उन्हें यह भी कहना पड़ा कि उन की सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की प्रबल पक्षधर है. खैर, दोनों गिरफ्तार प्राणियों को जमानत मिली, मगर मुकदमा अभी जारी है. विद्वेष फैलाने का आरोप अभी दोनों पर है. पुलिस ने सिर्फ राजद्रोह की धारा हटाई है.

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मजेदार बात यह है कि सोशल मीडिया से डरे राजनेता अपनी पार्टी के लोगों को भी नहीं बख्श रहे हैं. असम के मोरीगांव जिले में भाजपा आईटी सैल के सदस्य नीतू बोरा को उन के ही मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने गिरफ्तार करवा दिया.

नीतू बोरा पर आरोप है कि उन्होंने अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट किया, जिस में उन्होंने लिखा कि भाजपा सरकार प्रवासी मुसलिमों से स्थानीय असमियों की रक्षा करने में नाकाम रही है. उन्होंने यह भी लिखा कि इस स्थिति के लिए मुख्यमंत्री सोनोवाल जिम्मेदार हैं. बस फिर क्या था, नीतू बोरा को सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश और मुख्यमंत्री के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. हालांकि बाद में बोरा को भी जमानत मिली, मगर मुकदमा कायम है.

बोलोगे तो जेल जाओगे

पिछले कुछ समय से देशभर में सोशल मीडिया पर राजनेताओं के खिलाफ टिप्पणी करने वालों की गिरफ्तारी के मामले बढ़े हैं. सत्ता के इशारे पर पुलिस ऐसे लोगों से अपराधियों जैसा सुलूक करने लगी है, जबकि सोशल मीडिया पर विवादित टिप्पणी के लिए आईपीसी व अन्य कानूनों के तहत प्रावधान मौजूद हैं.

सुप्रीम कोर्ट 2015 में ही आईटी ऐक्ट की धारा 66 ए को असंवैधानिक करार दे कर रद्द कर चुका है. यह धारा सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने वालों को गिरफ्तार करने की शक्ति देती थी. जाहिर है, अब इस मामले में सामान्यतया किसी को अरैस्ट नहीं किया जा सकता है. मगर सत्ता मद में चूर लोग संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आते.

अब आलोचना को सुननेसहने और उस पर चिंतन करने का दौर नहीं है. आलोचना करने वाले की जबां काट लेने का दौर है. अपना दर्द कहने वाले को मौत की नींद सुला देने का दौर है. सोशल मीडिया पर ‘मीटू’ कैंपेन चलने के बाद से तो हर रसूखदार और तथाकथित क्लीन कौलर आदमी दहशत में है.

भारत में सोशल मीडिया का अनुभव ज्यादा पुराना नहीं है. अन्य देशों के समाज ने जहां इस के साथ स्वाभाविक संबंध बना लिए हैं और इस के लिए जरूरी सहिष्णुता भी विकसित कर ली है, वहीं भारत में सोशल मीडिया वाक्युद्ध के अखाड़े के रूप में विकसित हुआ है. इस क्रम में यहां तमाम शिष्टता और शालीनता की धज्जियां उड़ रही हैं. सोशल मीडिया पर विरोधियों को गालियां देना, उन की इमेज या उन के धर्म को टारगेट करना, उन के निजी जीवन पर हमला करना है, यहां तक कि उन के चेहरे, शरीर, पहनावे, हेयरस्टाइल तक पर कमैंट करना आम चलन हो गया है. सोशल मीडिया पर खुद को अभिव्यक्त करने की आजादी का संयमित इस्तेमाल लोगों को नहीं आता है. उन्हें नहीं पता कि विरोध की भी एक गरिमा होती है.

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हाल के दिनों में जिस तरह राजनीतिक पार्टियों और नेताओं पर अपमानजनक टिप्पणियां देखने को मिल रही हैं, उन के जिम्मेदार खुद राजनेता ही हैं, जिन्होंने पहले अपने फायदे के लिए सोशल मीडिया को राजनीति का मैदान बनाया और अब जब क्रिया पर प्रतिक्रिया हो रही है तो वे उस प्रतिक्रिया को दबाने के लिए गैरकानूनी कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं.

पिछले कुछ समय से सियासी कटुता बहुत बढ़ी है. इस माहौल का दबाव पुलिस प्रशासन पर भी काफी है. वह सत्ता पक्ष से जुड़ी किसी भी तरह की आलोचना के खिलाफ सख्त कदम उठा कर अपनी तत्परता दिखाना चाहता है. उपरोक्त सभी घटनाएं इसी का उदाहरण हैं. आज सोशल मीडिया पर अपने विरोध को सहजता से लेने के बजाय राजनेता ही नहीं, उन के तमाम समर्थक भी विरोधी पक्ष को मुंहतोड़ जवाब देने पर आमादा हो जाते हैं.

मीटू कैंपेन ने बढ़ाया डर

सोशल मीडिया पर टिप्पणियों को ले कर नेताओं और साफ कौलर आदमी में डर का माहौल ‘मीटू’ कैंपेन के बाद से दिखना शुरू हुआ है. इस कैंपेन के तहत एक के बाद एक कई फिल्मी हस्तियों, राजनेताओं, मीडियाकर्मियों पर महिलाओं ने यौन शोषण का आरोप लगाया, जिस का परिणाम यह निकला कि आरोपितों की इज्जत तो सरेबाजार उछली ही, उन के पद और सम्मान भी छिन गया, साथ ही उन का सामाजिक बहिष्कार भी हुआ.

यौन उत्पीड़न का दंश झेलने वाली महिलाओं के लिए जहां सोशल मीडिया अपना दर्द सुनाने का बढि़या प्लेटफौर्म बना वहीं मर्दों में यह डर पैदा हो गया कि पता नहीं अगला नाम किस का सामने आ जाए. हालांकि सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती कहने वाली सभी महिलाएं सच्ची हैं, यह कहना भी ठीक नहीं होगा. कइयों ने अपनी भड़ास निकालने के लिए पुरुष को बदनाम करने की नीयत से भी सोशल मीडिया का मिसयूज किया.

2019 के आम चुनाव का वक्त करीब आया तो राजनीतिक पार्टियों ने अपने विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए सोशल मीडिया का जम कर दुरुपयोग किया. सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें बहुत सस्ते में और आसानी से अपना प्रचार करने व विरोधियों पर प्रहार करने का मौका मिला. सोशल मीडिया ने उन्हें अपनी बात कहने का बड़ा मंच दिया. मगर इस साधन का लोगों ने जीभर कर दुरुपयोग किया.

आज सोशल मीडिया का सब से ज्यादा इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियों और उन के समर्थकों द्वारा ही हो रहा है, मगर जिस तरह से हो रहा है वह वाकई चिंता का विषय है. सोशल मीडिया पर राजनेता ही नहीं, बल्कि उन के समर्थक भी शालीनता की सारी हदें पार करते नजर आते हैं. किसी के निजी जीवन के साथ उन के परिवार को भी इस में घसीट लेना आम चलन हो गया है. मां, बहन, बेटी को गाली देना, गलत अफवाहें उड़ाना, अश्लील और भद्दी बातें करना, फोटो एडिट कर के कुछ का कुछ दिखा देना आज आम बात हो चुकी है.

इसी सोशल मीडिया पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गरबा करते भी पेश किया जा चुका है. सोशल मीडिया पर जिस तरह विरोधियों को आहत करने के लिए निजी हमले किए जा रहे हैं, उन के निजी जीवन में घुसपैठ की कोशिशें हो रही हैं, वह समाज के लिए बेहद सोचनीय है.

अपनी भड़ास निकालने के लिए मर्यादा का उल्लंघन करते वक्त लोग यह भी भूल जाते हैं कि इस से खुद को भी कुछ नहीं मिलना है, वहीं आप इन मामलों में जिन का कोई लेनादेना नहीं है उन्हें भी घसीट रहे हैं. यह समाज को विचारशून्यता की ओर ले जाने का प्रतीक है. यह समाज और राजनीति के गिरते स्तर का प्रतीक है.

सोशल मीडिया से हुए बड़े काम

आज के दौर में सोशल मीडिया जिंदगी का अहम हिस्सा है, जिस के बहुत सारे फीचर हैं, जैसेकि सूचनाएं प्रदान करना, मनोरंजन करना और शिक्षित करना. हम इंटरनैट के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने तक अपनी पहुंच बना सकते हैं. सोशल मीडिया एक विशाल नैटवर्क है, जो सारे संसार को जोड़े हुए है.

सोशल मीडिया के ठीक उपयोग से किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध किया जा सकता है. सोशल मीडिया के जरीए ऐसे कई विकासात्मक कार्य हुए हैं, जिन्होंने लोकतंत्र को समृद्ध बनाने का काम किया है. सोशल मीडिया के माध्यम से इस देश में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ महाअभियान चला था, जिस के कारण विशाल जनसमूह समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन से जुड़ा और उसे प्रभावशाली बनाया था.

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2012 में सोशल मीडिया के माध्यम से ही ‘निर्भया’ को न्याय दिलाने का संदेश प्रसारित हुआ था और उस के लिए विशाल संख्या में युवा सड़कों पर उतरे थे. इस से सरकार पर भी दबाव बना और इस दबाव की वजह से ही लड़कियों की सुरक्षा देने के लिए एक नया और ज्यादा प्रभावशाली कानून बन सका था.

2014 के आम चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने सोशल मीडिया का जम कर उपयोग किया और जनता को वोट डालने के लिए जागरूक किया.

2014 के आम चुनाव में सोशल मीडिया के जरीए युवाओं को उत्साहित किया गया, जिस के चलते वोटिंग प्रतिशत में जबरदस्त उछाल आया था. अन्ना के आंदोलन से उभरे और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के चुनाव में भारी सफलता मिली तो इस का श्रेय फेसबुक को जाता है. लोक सभा चुनाव के दौरान भी फेसबुक के जरीए खूब प्रचार हुआ.

पिछले एक दशक में कई बड़ी खबरें सोशल मीडिया के जरीए ही लाइमलाइट में आईं. आम आदमी को सोशल मीडिया के रूप में ऐसा टूल मिल गया, जिस के जरीए वह अपनी बात एक बड़ी आबादी तक पहुंचा सकता है. आम आदमी के साथ राजनेता भी फेसबुक, ट्विटर पर आ गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह समेत तमाम नेताओं ने फेसबुक और ट्विटर पर अपने अकाउंट्स बना लिए हैं ताकि वे सीधे आम लोगों के साथ संपर्क साध सकें.

लोक सभा चुनाव से पहले राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने भी ट्विटर पर आने की घोषणा की थी. यहां तक कि सोशल मीडिया से हमेशा दूरी बनाए रखने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती तक ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. सोशल साइट्स की लोकप्रियता ही है कि कभी कंप्यूटर का भारी विरोध करने वाले वामपंथी नेताओं को भी लोकसभा चुनाव के दौरान फेसबुक पर आना पड़ा.

माकपा नेता और सांसद मो. सलीम मानते हैं कि लोगों से संवाद करने के लिए सोशल मीडिया एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है. उन का कहना है कि सोशल मीडिया आज बहुत ही जरूरी माध्यम हो गया है. इस माध्यम के जरीए एक बड़ी आबादी से अपने विचार साझा किए जा सकते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो सभी मंत्रालयों और मंत्रियों को सोशल मीडिया पर आने को कहा है ताकि मंत्रालय के कामकाज के बारे में लोग जान सकें और काम में भी पारदर्शिता बनी रहे.

फेसबुक ने लंबे अरसे से बिछड़े पिताबेटी, भाईबहन और दोस्तों को मिलवाने का भी काम किया है. आज सोशल मीडिया संदेश के प्रसार के लिए एक बेहतरीन प्लेटफौर्म है, जहां व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा से ज्यादा लोकप्रिय बना सकता है. फिल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसार भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है. वीडियो तथा औडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हुआ है, जिन में फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्ट्राग्राम जैसे कुछ प्रमुख प्लेटफौर्म हैं. अब लोग सूचना पाने के लिए अखबार, रेडियो या टीवी चैनलों के भरोसे नहीं बैठे रहते. आज सैकंड से भी कम वक्त में सूचनाएं आप के सामने होती हैं.

तकनीक जब बन जाए अभिशाप

सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा की जाती है, जिस से जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. सांप्रदायिक उन्माद और मौब लीचिंग की कितनी घटनाएं सोशल मीडिया के कारण हुईं.

चंद मिनटों में घृणित और सांप्रदायिक संदेशों को फैला कर आम लोगों को किसी धर्म विशेष के खिलाफ उकसाने और दंगा भड़काने का काम बीते 5 सालों में सोशल मीडिया के माध्यम से कई दफा किया गया है. कई बार तो बात इतनी बढ़ गई कि सरकार को सोशल मीडिया पर बैन तक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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जम्मूकश्मीर जैसे राज्य में दंगा भड़कने पर सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा, तो वहीं मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन के दौरान भी स्थिति बेकाबू होने पर सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया गया ताकि असामाजिक तत्त्व किसान आंदोलन की आड़ में किसी बड़ी घटना को अंजाम न दे पाएं.

हाल के वर्षों में सोशल मीडिया के जरीए आपराधिक गतिविधियों में तेजी से इजाफा हुआ है. आपराधिक प्रवृत्ति के लोग येनकेनप्रकारेण दूसरों के अकाउंट्स हैक कर आपत्तिजनक तसवीरें और अन्य सामग्री डाल कर दुश्मनी निकाल रहे हैं. कम उम्र के बच्चों ने भी फेसबुक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जिस का उन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.

जब किसी भी चीज का दुरुपयोग होने लगता है तो वह वरदान नहीं अभिशाप बन जाती है. इस में कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया आज लोगों के लिए बहुत ही आवश्यक है, लेकिन इस का जो दूसरा पहलू है उस से बचने की जरूरत है. सोशल मीडिया की कार्यपद्धति और उस के इस्तेमाल करने के तरीके को समझना जरूरी है.

प्यार में कभी-कभी

प्यार एक खूबसूरत एहसास है. प्यार से सुंदर कुछ नहीं पर जिद या ग्रांटेड ले कर प्यार करना बेकार है. प्यार को प्यार की नजर से करना ही सही है. कई बार व्यक्ति प्यार समझ नहीं पाता. प्यार अचानक होता है और इस में कोई एज फैक्टर, कास्ट, क्रीड आदि कुछ मायने नहीं रखता.

प्रेम बन सकता है तनाव का सबब

प्यार किसी के लिए दवा का काम करता है तो किसी के लिए तबाही और बदले का सबब भी बन जाता है. हर इंसान अपने व्यक्तित्व और परिस्थितियों के हिसाब से प्यार को देखता है. प्यार अंधा होता है पर कितना यह बाद में पता चलता है. इस लिए फौल इन लव कहते हैं यानी आप प्यार में गिर जाते हैं. गिर जाना यानी अपनी आईडेंटिटी, अपना सब कुछ भूल जाते हैं. इस के अंदर आप खुद को भूल कर दूसरे को सिर पर चढ़ा लेते हैं. इस लिए प्यार में बहुत से लोग पागल हो जाते हैं तो कुछ आत्महत्या कर लेते हैं.

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प्यार किस तरह की पर्सनैलिटी वाले शख्स ने किया है इस पर काफी कुछ डिपेंड करता है. इमोशनली अनस्टेबल पर्सनैलिटी के लिए प्यार हमेशा डिपेंडेंट फीचर रहता है. उस की सोच होती है कि दूसरा शख्स मेरा ध्यान रखेगा, मुझे प्यार करेगा, मुझे संभालेगा. वह एक तरह से दूसरे बंदे पर पैरासाइट की तरह चिपक जाता है. इस तरह के लोग काफी कमजोर होते हैं. वे बहुत जल्द खुश हो जाते हैं तो जल्द डिप्रेशन में भी आ जाते हैं.

प्यार में 3 फैक्टर्स बहुत हाई लेवल पर रहते हैं; पहला त्याग, दूसरा कंपैटिबिलिटी और तीसरा दर्द. दूसरा बंदा आप को किस तरह से देख रहा है, आप को कितने अंको पर आंक रहा है यह भी काफी महत्वपूर्ण है. वह आप से किस लेवल तक क्या चाहता है यह देखना भी जरुरी है.

हार्मोन्स का लोचा

प्यार में कई तरह के हारमोंस निकलते हैं जिस का असर हमारी ओवरआल पर्सनैलिटी पर पड़ता है. प्यार से व्यक्ति को एक तरह का किक मिलता है. कोई सामने वाला जब आप की मनपसंद ,प्यार भरी बातें कर रहा होता है तो आप खुश हो जाते हैं. प्यार का कनेक्शन एक तरह के एन्जाइम्स से रहता है जो आप को खुश और दुखी दोनों रख सकता है. इस में जब ख़ुशी मिलती है तो डोपामाइन हार्मोन्स सीक्रेट होता है. इस से कई बार आप बहुत ज्यादा वेट गेन कर लेते हैं और प्यार में आप फिट भी हो जाते हैं क्यों कि आप को सामने वाले को खुश भी करना होता है. प्यार में कई तरह के पर्सनैलिटी चेंजेज होते रहते हैं.

असुरक्षा की भावना

प्यार में इनसिक्योरिटी लेवल यानी असुरक्षा की भावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. आप सामने वाले पर हमेशा नजर रखते हैं कि वह किसी और को तो नहीं देख रहा ,किसी और से बातें तो नहीं कर रहा ,किसी और के करीब तो नहीं हो रहा, दूसरा व्यक्ति कहीं मुझ से मेरे प्यार को छीन तो नहीं लेगा जैसी बातें आप के दिमाग में चलती रहती है. प्यार में हम डिपेंडेंट हो जाते हैं. अपना चोला बदल लेते हैं. अपना सब कुछ भूल जाते हैं यहाँ तक कि अपना काम भी. हमारा पूरा ध्यान एक ही बन्दे पर केंद्रित हो जाता है. इस से हमारा काम, हमारा शेड्यूल सब कुछ प्रभावित हो जाता है.

डिपेंडेंसी

आप किसी पर पूरी तरह डिपेंडेंट हो जाते हैं तो आप की अपनी पर्सनॅलिटी खो जाती है. आप किसी और का चोला पहन लेते हैं. उसे खुश करने के लिए आप उस की पसंद की बात कहते हैं, उस की पसंद के कपड़े पहनते हैं, दूसरों से भी उसी की बातें करते रहते हैं, उसी को समझने का प्रयास करते हैं. सारा दिन उसी के ख्यालों में रहने लगते है. दिन भर उस से फोन पर बातें कर टच में रहने की कोशिश में रहते हैं. एक समय आता है जब वह बदा कहीं न कहीं आप को यूज़ करने लगता है. आप उस के लिए फॉर ग्रांटेड हो जाते हैं. साइकोलॉजिकली आप  ड्रेंड आउट हो जाते है. आप की जिंदगी में भारी परिवर्तन होने लगता है. कोई व्यक्ति आप के सिस्टम में घुस जाता है.

जब टूटता है नशा

प्यार का नशा जब टूटता है तो हम कहते हैं कि हमारी आंखों पर पट्टी बंधी थी. हम प्यार में अंधे हो गए थे. सच्चाई से अवगत होने पर इस चीज को बर्दाश्त नहीं कर पाते कि हम कहीं न कहीं ऐसे आदमी से जुड़े थे जो डबल डेटिंग कर रहा था. आप के साथसाथ किसी और के भी क्लोज था. अक्सर लड़कियां स्मार्टनेस या पैसे देख कर फंस जाती है. प्यार एक बहुत ही मिसअंडरस्टूड शब्द है. प्यार में कभी भी आप को 100% वापस नहीं मिलता. फिर हमें इस बात का डिप्रेशन होता है कि मैं उसे जितना प्यार करती हूं वह उतना मेरा ख्याल क्यों नहीं रखता , मुझे पूछता क्यों नहीं. आप उस के लिए अपने मांबाप ,दोस्तों और जिम्मेदारियों को भी छोड़ देते हैं पर संभव है कि वह आप को ही छोड़ दे.

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प्यार में रिलीजन यानी धर्म की वजह से अक्सर ऑनर किलिंग्स के कैसेज होते हैं. सुसाइड होते है. वेबसुसाइड होते है. व्हाट्सएप पर ही इंसान दूसरे को दिखाते हुए आत्महत्या कर लेता है. प्यार में फ्रौड केसेज भी काफी होते हैं. कई बार जिस से आप प्यार कर रहे होते हैं वही व्यक्ति एक साथ कई लड़कियों के साथ डेट कर रहा होता है.

कई बार मुस्लिम युवक हिंदू लड़की को मुस्लिम बनाने के लिए प्यार का नाटक करते हैं. प्यार में कई बार बदला लेने के लिए भी लोग किसी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर आप की जिंदगी को खतरे में डाल सकते है. इसी तरह के मामलों में एसिड अटैक या मर्डर की घटनाएं होती हैं. सामने वाले को बदनाम करना या उस की हत्या कर देना ,उस के फोटो का गलत इस्तेमाल करना जैसी घटनाएं भी आम हैं. वन साइडेड लव है तो साइको लवर्स पैदा हो जाते हैं. सामने वाले पर एसिड अटैक कर देने या मार डालने की घटनाएं भी अक्सर होती रहती हैं. अपने साथी के साथ मिल कर पुराने प्रेमी का खात्मा करना जैसे क्राइम्स एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स की वजह से जन्म लेती हैं.

कैसे बचें

कभी भी किसी इंसान को अपना सब कुछ मान कर अपना पूरा वक्त न दें. हमेशा एक सीमा में रह कर ही किसी से प्यार करें.

कभी भी किसी के लिए अपनी आईडेंटिटी ख़त्म न करें. अपनी आईडेंटिटी हमेशा बचा कर रखें क्यों कि आप की पहचान आप से है किसी और से नहीं.

अपनी पसंद का काम करते रहे ताकि आप जीवन से किसी के जाने पर बिलकुल खाली और बर्बाद न हो जाएँ.

ब्रेकअप को सहजता से लें. कोई आप को छोड़ कर चला गया तो इस का मतलब यह नहीं कि कमी आप में है या आप बेचारी बन गई. अपनी जिंदगी जीना न छोड़ें. एक दिन वह आप को छोड़ने के लिए जरूर पछतायेगा.

मर जाऊं या मार दूँ जैसी भावनाएं दिलोदिमाग के आसपास भी फटकने न दें.

किसी के जाने पर उस के पीछे पड़ जाना बेवकूफी है. हर वक्त उसे मैसेज करना ,तंग करना ,तड़पना ,आहें भरना ,डिप्रेशन में आ जाना,दिन भर उसी के बारे में सोचना, साइको बन जाना, यह सब सही नहीं है. इस तरह आप खुद को नीचे गिराते हैं. इस से बचें.

क्या कहता है कानून

रेस्ट्रिक्शन आर्डर – यदि कोई ऐसा शख्स आप से प्यार करने का दावा करता है जिस के प्रति आप के मन में कोई सॉफ्ट कार्नर नहीं और वह जबरदस्ती पीछे पड़ा है और बेवजह परेशान करने लगा है तो आप उस पर रेस्ट्रिक्शन आर्डर लगवा सकती हैं. इस के तहत वह व्यक्ति 100 मीटर की दूरी तक आप के आस पास भी नहीं दिख सकता.

इस के अलावा आप दूसरे कई तरह से कानून का सहारा ले सकती हैं. मसलन ;

आईपीसी की धाराएं जैसे

धारा 509 – यदि कोई बातों से और हावभाव से आप को परेशान कर रहा हो जब कि आप का रुझान उस की तरफ नहीं है. धारा 506 – यदि कोई भी व्यक्ति धमकी देता है जैसे कि जान से मारने की धमकी ,रेप करने की धमकी तो इस तरह की धमकियां देने पर आईपीसी की धारा 506 लगती है.

धारा 376 -यदि रेप हुआ हो तो यह धारा लग सकती है.

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धारा 354 -सेक्सुअल हैरेसमेंट और स्टॉकिंग आदि के केसेस में धारा 354 लगती है.

धारा 302 – कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है.

धारा 366 – विवाह के लिए विवश करने के मकसद से किडनैप किये जाने पर धारा 366 लगाया जा सकता है.

धारा 326 – यह धारा एसिड अटैक के केसेस में लगाईं जाती है.

जानें क्या है लिपोसक्शन, जिससे मिलेगी स्लिम बौडी

लिपोसक्शन प्रक्रिया में शरीर के आकार को सुधारने के लिए वसा के जमाव को निकाला जाता है, जिसे डाइट और एक्सरसाइज से कम नहीं किया जाता सकता. यह सर्जरी आमतौर पर नितंबों, पेट, जांघें और चेहरे पर की जाती है. लिपोसक्शन के द्वारा केवल वसा निकाली जाती है सैल्युलाइट नहीं. यह सर्जरी एनेस्थीसिया दे कर की जाती है. सर्जन छोटा कट लगा कर उस में सक्शन पंप या एक बड़ी सीरिंज डाल कर अतिरिक्त वसा निकाल लेता है. इस में कितना समय लगेगा यह इस पर निर्भर करता है कि कितनी वसा निकाली जानी है.

लिपोसक्शन के प्रकार

लिपोसक्शन की कई अलगअलग तकनीकें हैं, जिन में 2 सब से प्रचलित हैं:

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ट्युमेसैंट लिपोसक्शन

इस तकनीक में शरीर के वसा वाले क्षेत्रों में सर्जरी से पहले एक घोल डाला जाता है, जिस से वसा निकालने में आसानी होती है. इस से रक्तस्राव कम होता है और सर्जरी के पहले और बाद में दर्द कम करने में मदद मिलती है.

अल्ट्रासाउंड असिस्टेड लिपोसक्शन

अल्ट्रासाउंड असिस्टेड लिपोसक्शन में वसा को तरल करने के लिए अल्ट्रासोनिक ऊर्जा का उपयोग किया जाता है. ठोस वसा की तुलना में तरल वसा को निकालना आसान होता है. यह प्रक्रिया दर्दरहित है और सर्जरी के बाद भी बहुत कम लोगों को दर्द की शिकायत रहती है. लगभग 40% लोगों को तो किसी भी दर्दनिवारक दवा की आवश्यकता नहीं पड़ती.

बैरिएट्रिक सर्जरी और लाइपोसक्शन में अंतर

लाइपोसक्शन बौडी कंटूरिंग सर्जरी है. यह न केवल भार कम करने वाली सर्जरी है, बल्कि शरीर को आकार देने के लिए की जाती है. यह कौस्मैटिक सर्जरी है, इसलिए इस के बैरिएट्रिक सर्जरी जैसे स्वास्थ्य लाभ नहीं हैं. लाइपोसक्शन के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों से वसा निकाली जाती है.

बैरिएट्रिक सर्जरी को मैटाबोलिक सर्जरी भी कहते हैं. इस का उद्देश्य केवल मोटापा कम करना ही नहीं, बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य को सुधारना और जीवनकाल बढ़ाना भी होता है. यह सर्जरी लैप्रोस्कोपिक तकनीक के द्वारा की जाती है. इस में आंत को छोटा कर दिया जाता है या उस का मार्ग बदल दिया जाता है, जिस से सर्जरी कराने के बाद भूख कम लगती है, व्यक्ति कम खाता है, जिस से वजन कम करने में सहायता मिलती है. यह सर्जरी कराने का सुझाव उन लोगों को दिया जाता है, जिन का बीएमआई 40 से अधिक होता है, जो 5 या उस से अधिक वर्ष से मोटे हैं और जिन की उम्र 18 से 65 वर्ष के बीच है. बैरिएट्रिक सर्जरी में एक बार में शरीर के कुल भार से 10% से अधिक वसा नहीं निकाली जानी चाहिए वरना यह घातक हो सकता है.

लिपोसक्शन के लिए कोई आयुसीमा निर्धारित नहीं है. 60 वर्ष की आयु के लोगों में भी इस के अच्छे परिणाम मिले हैं. दोनों ही सर्जरियां पेशेवर डाक्टर से ही कराएं.

कब जरूरी है लाइपोसक्शन

– गर्भावस्था के बाद शरीर को सही आकार देने के लिए.

– बेनिग्न फैटी ट्यूमर्स को ठीक करने के लिए.

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– उन जगहों जैसे ठुड्डी, गरदन और चेहरे से वसा को कम करना जहां से वसा निकालना कठिन हो.

– बगल से अत्यधिक पसीना निकलने की समस्या से पीडि़त लोगों के उपचार के लिए.

– शरीर के कुछ निश्चित अंगों का आकार कम करने के लिए.

– सुडौल टमी के लिए.

रिस्क फैक्टर्स

सभी सर्जरियों में कोई न कोई रिस्क होता है. लिपोसक्शन को अगर विशेषरूप से प्रशिक्षित कौस्मैटिक सर्जन से कराया जाए तो इस के अच्छे परिणाम मिलते हैं और रिस्क न्यूनतम होता है. अधिकतर लोग सर्जरी के 2 सप्ताह बाद अपनी सामान्य गतिविधियां शुरू कर सकते हैं. फिर भी इस से जुड़े कुछ रिस्क निम्न हैं:

– आमतौर पर लिपोसक्शन में सब से बड़ा खतरा संक्रमण का होता है.

– कुछ सप्ताह तक, सूजन और दर्द हो सकता है.

– स्किन का खुरदुरा हो जाना, उस का लचीलापन कम हो जाना.

– स्किन के नीचे अस्थाई पौकेट्स जिन्हें सेरोमास कहा जाता है में फ्लूड का जमा हो जाना, जिसे नीडल से निकाला जाता है.

– प्रभावित क्षेत्र में स्थाई या अस्थाई सुन्नपन.

– स्किन के संक्रमण के मामले बहुत कम देखे जाते हैं, लेकिन गंभीर स्किन संक्रमण के कारण मृत्यु भी हो सकती है.

– वसा के लूज टुकड़े रक्त नलिकाओं में फंस जाते हैं और फेफड़ों में इकट्ठे हो जाते हैं या मस्तिष्क में पहुंच जाते हैं, इसे फैट ऐंबोलिज्म कहते हैं जो एक चिकित्सीय आपात स्थिति है.

– किडनी और हृदय की समस्याएं.

– स्किन का ऊंचानीचा और बदरंग हो जाना.

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इन बातों का रखें ध्यान

डाक्टर आप को सर्जरी के लिए तैयार करने के लिए सही खानपान, अलकोहल का सेवन कम करने, कुछ विटामिनों का सेवन करने या न करने की सलाह देंगे:

– अपने डाक्टर से अपने लक्ष्य, औप्शन, रिस्क और लाभ के बारे में चर्चा करें.

– लिपोसक्शन कराने के बाद आप उसी दिन घर जा सकते हैं. हां, अगर अधिक मात्रा में वसा निकाली गई है तो आप को 1-2 दिन अस्पताल में रुकना पड़ सकता है.

– अगर सर्जन आप के शरीर की बड़ी सतह पर कार्य करता है या एक ही औपरेशन में कई प्रक्रियाएं करता है तो जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है.

– जिन लोगों में वसा के बजाय सैल्युलाइट का जमाव हो उन्हें लिपोसक्शन नहीं कराना चाहिए, क्योंकि उपचार कराए गए स्थान की स्किन पर अनियमितताएं विकसित हो सकती हैं.

– हालांकि उम्र इस में एक महत्त्वपूर्ण कारक नहीं है, लेकिन चूंकि उम्र बढ़ने के साथ स्किन का लचीलापन कम हो जाता है, इसलिए अधिक उम्र के लोगों को लिपोसक्शन के द्वारा उतने अच्छे परिणाम नहीं मिल सकते जितने युवा लोगों को मिलते हैं, क्योंकि उन की स्किन टाइट होती है.

लिपोसक्शन से रहें ये दूर

– 18 वर्ष से कम उम्र के लोग.

– गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं.

– ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं से पीडि़त जिन के घाव भरने में समय लगता है.

– ऐसे लोग जो रक्त को पतला करने वाली दवा लेना बंद नहीं कर सकते.

ये लिपोसक्शन करवाएं

– जिन का वजन सामान्य से बहुत अधिक न हो.

– जिन की स्किन दृढ़ और लचीली हो.

– जिन का संपूर्ण स्वास्थ्य अच्छा हो.

– शरीर पर जगहजगह वसा का जमाव नजर आए.

-डा. लोकेश कुमार

एचओडी डाइरैक्टर, प्लास्टिक और कौस्मैटिक सर्जरी, बीएलके सुपरस्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली –   

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घर पर बनाएं टेस्टी एंड हैल्दी मैंगो पनीर रोल्स

गरमियों में आम हर मार्केट में मौजूद होता है. आम केवल काटकर खाने में ही नही बल्कि कई डिश बनाने में भी इस्तेमाल होता है. आज हम आपको आम से बने मैंगों पनीर रोल्स की रेसिपी के बारे में बताएंगे. जिसे आप अपनी फैमिली को स्नैक्स के रूप में खिला सकते हैं. ये हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी भी होता है और इसे बनाना भी आसान है.

हमें चाहिए

– 1 दशहरी आम पका – 50 ग्राम पनीर

– 1 बड़ा चम्मच बादाम फ्लैक्स

– 2 बड़े चम्मच चीनी पाउडर\

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– 1/4 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

– थोड़ी सी स्ट्राबेरी लंबे पतले कटे टुकड़े

– थोड़ा सा बारीक कटा पिस्ता.

बनाने का तरीका

आम को छील कर लंबाई में स्लाइस कर लें. 7 स्लाइस बनेंगे. पनीर को हाथ से मसल कर इस में चीनी पाउडर, इलायची चूर्ण व बादाम के फ्लैक्स मिला दें.

प्रत्येक स्लाइस पर थोड़ा सा पनीर वाला मिश्रण रख कर रोल कर दें. पिस्ता व स्ट्राबेरी से सजा कर सर्व करें.

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मिस्ट्री बौय के साथ नजर आईं श्रीदेवी की बेटी, वायरल हुई फोटोज

बौलीवुड एक्ट्रेस श्रीदेवी की बड़ी बेटीं जाह्नवी कपूर जहां अक्सर सुर्खियों में रहती हैं तो वहीं अब छोटी बहन खुशी कपूर भी मीडिया में छा गई हैं. हाल ही में भाई अर्जुन कपूर और बहन अंशुला कपूर से मिलने पहुंची खुशी एक मिस्ट्री बौय के साथ नजर आईं, जिसके बाद उनकी फोटोज मीडिया में वायरल हो गई हैं. आइए आपको दिखाते हैं खुशी और उनके मिस्ट्री बौय की कुछ खास फोटोज…

अक्सर भाई अर्जुन कपूर से मिलने जाती हैं खुशी

 

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Khushi Kapoor was comfy & cazh AF running some errands last night ✌?

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खुशी कपूर आए दिन अपने भाई अर्जुन कपूर से मिलने जाती रहती हैं. कई बार उनको अर्जुन के घर के बाहर देखा जा चुका है. बीती रात यानी सोमवार को भी वह अपने भाई और बहन अंशुला से मिलने पहुंची थी. जहां पर खुशी एक मिस्ट्री बौय के साथ स्पौट हुई.

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मिस्ट्री बौय के साथ स्माइल करती नजर आईं खुशी

भाई अर्जुन के घर के बाहर खुशी मिस्ट्री बौय के साथ मुस्कुराती नजर आई, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं.

मिस्ट्री बौय के साथ सिंपल लुक में नजर आईं खुशी

मिस्ट्री बौय के साथ खुशी सिंपल ब्लैक कलर के टॉप के साथ ग्रे पायजामा कैरी करते हुए नजर आईं, जिसमें वह बहुत सिंपल और कूल लग रही थीं. वहीं बता दें मिस्ट्री बौय खुशी कपूर का फ्रैंड है, जो खुशी को कंपनी देने अर्जुन के घर पहुंचा था.

आए दिन दोस्तों के साथ दिखती हैं खुशी

 

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Sisters❤ #khushikapoor #anshulakapoor #janhvikapoor #shanayakapoor #khushibae #khushilo #khushijanhvi #christmas

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वैसे यह पहली बार नहीं है जब खुशी अपने दोस्तों के साथ घूमने निकली हैं. पहले भी कई बार खुशी को उनके दोस्तों के साथ मस्ती करते हुए देखा जा चुका है.

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बता दें, बौलीवुड में खबरें हैं कि खुशी कपूर भी अपनी बहन जाह्नवी की तरह बौलीवुड में डेब्यू करने वाली हैं. अब देखना ये होगा कि अगर खुशी बौलीवुड में एंट्री करती हैं तो क्या वे अपनी मम्मी श्रीदेवी और बहन जाह्नवी की तरह जगह बना पाती हैं.

औडियंस के लिए स्ट्रेसबस्टर बन रहें हैं सुनील

सुनील ग्रोवर ने अपने करियर की शुरुआत 90 के दशक में टीवी शो फुल टेंशन में दिवंगत कौमेडियन जसपाल भट्टी के साथ की थी. बहुत कम लोगों को पता था कि इन वर्षों में, वह न केवल हमारे देश के सबसे पसंदीदा कौमेडियन में से एक बन जायेंगे, बल्कि लोगों को गंभीर तनाव और पुराने अवसाद से उबरने में भी मदद करेंगे. जब एक्टर हाल ही में दुबई में  एक लाइव स्टेज परफौर्मेंस के लिए तैयार थे तब  एक महिला उसके पास गई, और उन्हें खुद को टेंशन से  बाहर निकालने के लिए  “धन्यवाद” कहके सुनील को आश्चर्यचकित किया. “एक एक्टर के रूप में, खुदको  को दूसरों के जीवन पर होने वाले प्रभाव का एहसास नहीं होता है क्योंकि हम ज्यादातर स्टूडियो जैसे बंद वातावरण में काम कर रहे होते है, लेकिन जब आप लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाते हैं, तो यह बहुत सुंदर होता है. ”

सलमान के साथ आए थे नजर

 

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A fan moment for me ❤️

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एक्टर जो आखिरी बार सलमान खान के साथ भारत में देखे गए, यह बताते  है कि यह उनके साथ पहली बार नहीं हुआ है. “कुछ दिन पहले, मैं एयरपोर्ट लाउंज में एक उड़ान पकड़ने के लिए इंतजार कर रहा था जब एक महिला मेरे पास आई और यह स्वीकार किया कि उसे 100 मिलीग्राम डिप्रेशन की गोलियां मिलती हैं, मेरे टीवी के कारण अब यह अब 10 मिलीग्राम तक कम हो गई है. शो और लाइव एक्ट करते समय के साथ मैंने महसूस किया है कि हास्य लोगों को तनाव से दूर करता  है.

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कौमेडी है लोगों के लिए एक दवा- सुनील

 

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Uff yeh moonchh …!

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सुनील ने कहा- मेरे लिए, कौमेडी एक दवा है और जो आपको हंसाती है, वह एक फार्मेसी है, “उन्होंने कहा. ऋषि कपूर से लेकर अक्षय कुमार और वरुण धवन तक, कई पीढ़ियों के एक्टरओं ने माना है कि एक एक्टर के लिए सबसे मुश्किल काम लोगों को हंसाना है. “हां, कौमेडी मुश्किल है और एक कौमेडियन होना कठिन है,” वह स्वीकार करते हैं. जब उनसे पूछा गया की वह कौमेडी में कैसे आये, और वह जवाब देते  है की , “यह स्वाभाविक रूप से मेरे अंदर से आता है, एक बच्चे के रूप में मेरे  परिवार के सदस्यों और शिक्षकों की नकल करता था और धीरे-धीरे चौराहों की प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया था और मुझे पता चले  इससे पहले, यह मेरा पेशा बन गया था, “वह मुस्कुराता है.  “मैंने बहुत कम उम्र में एक्टर बनने का फैसला किया और मैंने आठवीं कक्षा में प्रतियोगिता में भाग लिया था. मुझे अपने प्रदर्शन को सात मिनट तक सीमित करना था, लेकिन समय का ध्यान नहीं रहा. मुझे चेतावनी की घंटी भी नहीं सुनाई दी क्योंकि मैं केवल अपने सामने बैठे लोगों पर ध्यान केंद्रित कर रहा था जो हंस रहे थे. मुझे अयोग्य घोषित कर दिया गया क्योंकि मैं 12 मिनट के लिए मंच पर था, लेकिन मुझे लगता है कि मेरी सबसे बड़ी जीत है क्योंकि मैं दर्शकों को इतने लंबे समय तक पकड़ सकता था, “वह यह याद करते हुए कहते हैं कि तब  उन्हें हास्य की शक्ति का एहसास हुआ. “मुझे अभी भी उस चरित्र का नाम, मरियाल सिंह पिसादिरम याद है.”

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सुनील ने हाल ही में इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर पोस्ट की जिसमें कैप्शन “डी 3” लिखा हुआ था, जिसमें उन्होंने सलमान के पुलिस-ड्रामा, दबंग 3 मैं भी नज़र आएंगे “|

चढ़ावे के बदले प्यार पाने का धार्मिक तरीका

पुराणों, गीता, कुरान, बाइबिल जैसे धर्म ग्रंथों को व्यापार का माध्यम कहा जाए या कोई नैतिक शिक्षा ग्रहण करने का माध्यम? आज देखा जाए तो हमारे देश में ईश्वर के नाम पर सब से बड़ा धंधा पनप रहा है. अगर व्यापार करना ही है तो धर्म के नाम पर क्यों? क्यों लोग इन ग्रंथों को पढ़ते और सुनते हैं, जब आज के युग से इस का कोई मतलब ही नहीं है. ईश्वर के नाम पर एक इंसान दूसरे इंसान को लूट कर चला जाता है. धर्म के नाम पर मारापीटा जाता है. हमारे ग्रंथों में असल में यही लिखा गया है.

दरअसल, एक धार्मिक कथा जिस में एक पत्नी ने अपने पति का प्रेम पाने के लिए अपने पति का ही दान कर दिया, यह कथा पौराणिक है पर आज भी सुनाई जा रही है. फेसबुक पर आध्यात्मिक कहानियों के पेज पर पोस्ट इन कथाओं को काफी लाइक्स भी मिले हैं. क्या आज के युग, आज के समय, आज के लोगों से उस युग की कथा का कोई संबंध है?

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यह कहानी कृष्ण लीला से संबंधित है, उसी कृष्ण से जिस ने गोपियों के साथ रासलीला कर के स्नान के वक्त गोपियों के कपड़े चुरा लिए थे. कहानी का प्रारंभ का वाक्य है कि कृष्ण की 16008 पत्नियों में रानी होने का दर्जा सिर्फ

‘8’ को ही था. यह किसी भी युग में स्वीकार न होगा पर आज के समय उस का बखान इस तरह के वाक्य से करना गलत है.

लालच और ईर्ष्या

आज के युग में अगर एक पत्नी के होते हुए भी आप दूसरा विवाह करते हैं तो हमारा समाज और कानून भी उसे गुनहगार मानता है, क्योंकि आज के समय में समाज और कानून दोनों ही इस के विरुद्ध हैं. आज तो पहली पत्नी भी पुलिस थानेदार से ज्यादा उग्र हो बैठेगी, ऐसे में सत्यभामा की कहानी को कहकह कर एक से ज्यादा औरतों से संबंध को महिमामंडित क्यों किया जा रहा है?

कहानी में कहा गया है कि कृष्ण की 2 रानियों का नाम था सत्यभामा और रुक्मिणी. सत्यभामा को घमंड था कि कृष्ण उस से ही सब से अधिक प्रेम करते हैं. लेकिन जहां प्रेम है वहां सिर्फ सकारात्मकता ही होती है, जहां नकारात्मकता आ जाए वह प्रेम सच्चा हो ही नहीं सकता. वैसे यह गर्व की बात है घमंड की नहीं. पर कहानी में लेखक कहते हैं कि कृष्ण के इतने प्रेम करने के बावजूद भी सत्यभामा को और प्रेम चाहिए था और यह प्रेम सत्यभामा के जीवन में लालच और ईर्ष्या का रूप ले चुका था जो इतना बढ़ गया था कि सत्यभामा ने कृष्ण को ही दान में दे दिया.

कहानी में लेखक कहता है कि नारद को जब इस बारे में पता चला तो उस का काम तो वैसे ही पूरे देवलोक में संचार करना था, अब वह चुगली के रूप में हो या संचार के रूप में, क्या फर्क पड़ता है? नारद जैसे चरित्र की आज के युग में प्रशंसा करना ही गलत है पर कहानियों के माध्यम से उसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है. नारद ने सत्यभामा को अपने जाल में फंसा ही लिया और कहा कि उसे तुलाभ्राम व्रत करना चाहिए, जिस से श्रीकृष्ण का प्रेम सत्यभामा के प्रति कई गुणा बढ़ जाएगा.

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बेसिरपैर की कहानी

अगर आप आज इस व्रत की पूरी विधि तार्किक मन से सुनेंगे तो चकित हो जाएंगे. इस व्रत की पूरी विधि में नारद ने बताया कि पहले कृष्ण को दान कर के और फिर वापस पाने के लिए कृष्ण के वजन के बराबर का सोना देना होगा. यदि सत्यभामा यह काम पूरा करने में असफल हुई तो कृष्ण नारद के गुलाम बन जाएंगे. प्रेम का सौदा करने का पाठ कौन पढ़ा सकता है? यह तो एक तरह का जुआ है. यहां पर पौराणिक कथा के रूप में यह भी दिमाग में बैठा दिया जाता है.

अगर नारद के इस खेल को दूसरे नजरिए से देखें तो इस युग में सच में सब मोहमाया है. आज भी नारद आप को हर घर, हर मंदिर, मसजिद में बैठा दिखेगा. कहीं फकीर के रूप में, कहीं पंडित बन कर, तो कहीं केसरिया चोला पहन कर. कोई चंदन का तिलक लगा कर टीवी पर सुबहसुबह ज्ञान बखेरता है.

इस तरह की कहानियों का इतना असर है कि किसी का कोई काम पूरा नहीं हो रहा. उस पर मेहनत करने के बजाय हम हाथों की रेखाएं दिखाना जरूरी समझते हैं और हाथ देख कर भविष्य बताने वाला आप का कल और साथ में हर तकलीफों का हल आसानी से बता कर झोला लिए गलीगली घूमता है. क्यों इन के जीवन में ठहराव नहीं है?

सत्यभामा को पे्रम कृष्ण ही दे सकते थे नारद नहीं, यह बात सत्यभामा समझ ही नहीं पाई. उस के लालच और अभिमान ने उसे सोचने ही नहीं दिया. वह नारद की बातों में आती गई और भूल गई कि हम जिस से प्रेम करते हैं वही हमारी तकलीफ दूर कर सकता है, कोई दूसरा व्यक्ति नहीं.

सच्चा प्रेम और सच्ची आस्था

कहानी में सत्यभामा के व्रत के अनुसार कृष्ण को दान में दे दिया गया. अब बारी थी उन्हें तराजू पर बैठा कर उन के वजन जितना सोना दान करने की. सत्यभामा ने पूरी कोशिश की पर वह असफल रही. वह उतना सोना जुटा ही नहीं पाई. अंत में रुक्मिणी के सच्चे प्रेम और आस्था की वजह से सोना हटा कर तुलसी का एक पत्ता दूसरे पलड़े पर रख दिया और उस का वजन कृष्ण जितना हो गया. सत्यभामा का घमंड वहीं चूरचूर हो गया. इस बहाने सोने को तुच्छ दिखा दिया गया, तुलसी पूजा को श्रेष्ठ. सोना दे दो प्रेम पा लो यह भी कह दिया और तुलसी पूजो यह भी.

इस कथा में उपदेश दिया गया कि सच्चा प्रेम दिखाने से नहीं होता. प्रेम कोई वस्तु नहीं है जिसे तौला जा सकता है, जिसे परखने के लिए योजना बन सकती है जबकि यथार्थ यह है कि यह एक एहसास है जिसे महसूस किया जाता है.

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इस कहानी में छिपा उद्देश्य यह है कि साधुपंडित पति का प्रेम लौटा भी सकते हैं और छीन भी सकते हैं. इसलिए पति को खुश करने के लिए उस का प्रेम पाने के लिए ढेर सारा चढ़ावा चढ़ाओ, अंधविश्वास की राह पर चलो, यों ही किसी की बातों में आ कर अपना सबकुछ खो दो जैसा सत्यभामा ने नारद की बातों में आ कर किया.

आज के युग में लोग अगर ईश्वर को ढेर सारा सोनाचांदी दान करते हैं तो इन्हीं कहानियों से प्रभवित हो कर. यह बारबार दोहराया जाता है कि ईश्वर तो लालची है. जब तक हम उसे कुछ देंगे नहीं, तब तक वह हमारी इच्छा पूरी नहीं करेगा. ईश्वर रिश्वत लेता है और उसे उस के एजेंट आ कर ले जाते हैं. इस तरह की गप भरी कहानियों का प्रसारप्रचार आज के युग में ऊंचनीच और लूट को पुनर्स्थापित कर रही है.

सुहाने मौसम में नजदीकियां…

जी हां जब मौसम सुहाना हो तो ऐसे में आपको अपने पार्टनर के साथ समय बीताने का मन तो करता ही होगा…आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम अपने पार्टनर को उतना समय नहीं दे पाते क्योंकि हर किसी को पैसे कमाने हैं और ये तो आप बेहतर समझ सकते हैं कि बिना पैसे के जिंदगी में कुछ भी नहीं हो सकता. ये जीवन की सच्चाई है लेकिन इसके कारण हम भूल जाते हैं कि हमारी लाइफ में कोई और भी है जो बहुत खास है और हम उसको समय देना भूल जाते है….चाहे वो आपकी लाइफ फार्टनर हो या आपकी गर्लफ्रेंड आ ब्वायफ्रेंड…इनकी जिंदगी में बहुत ही खास जगह होती है इसलिए इन्हें समय देना चाहिए. क्योंकि बहुत मुश्किल से आपको कोई मिलता है जो आपको खुद से ज्यादा प्यार देता है खुद से पहले आपके बारे में सोचता है. इसलिए उनके लिए वक्त निकालिए…

  • इस वक्त बारिश का मौसम है आप चाहे तो अपने पार्टनर के साथ कहीं घूमने जा सकती हैं..उसके साथ वक्त बिता सकती है. साथ में भुट्टे खाइए बारिश के मौसम का लुत्फ उठाइए.

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  • यदि आप घर पर हैं तो वाइफ से कहिए कि वो पकौड़े बनाए और आप चाय बनाइए और अपनी वाइफ के साथ बैठकर पकौड़े और चाय के साथ मौसम का लुत्फ उठाए.
  • अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी के साथ मूवी देखने जा सकते हैं कोई भी अच्छी सी रोमांटिक मूवी… ये आपके बीच नजदीकियों को बढ़ाएगी और साथ में समय बिताने का भी अच्छा मौका मिलता है.
  • पत्नी को लेकर लॉन्ग ड्राइव पर जा सकते हैं…एक अच्छा सा सॉन्ग बजा दिजिए…ये एक बहुत अच्छा तरीका है साथ में समय बिताने का.
  • ऐसा नहीं है कि ये सारे काम की पहल एक पति ही करे पत्नी भी कर सकती है अगर आपका पति इतना रोमांटिक नहीं है तो ये सब कुछ आप भी कर सकती हैं. इससे आपके पति को भी अच्छा लगेगा. वो भी अपनी ऑफिस की थकान को भूल कर आपके साथ एक अच्छा समय गुजारेगा. उन्हें भी थोड़ी सी बोरियत से राहत मिलेगी..और वो आपके और करीब आएंगे.

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  • अच्छे मौसम में कहीं दूर कुछ दिन की छुट्टियां लेकर आप जा सकते हैं या सकती हैं वहां पर आपको प्राइवेसी भी मिलेगी और साथ में अच्छा वक्त भी बिता पाएंगे.
  • अगर आप चाहें तो वाइफ के साथ घर में ही मूवी देखकर एक अच्छा वक्त बिता सकते हैं.

इन सारे तरीकों से आप अपने रिश्ते को अच्छा बना सकते हैं साथ ही अपने बीच की दूरियों को कम कर सकते हैं. तो पकोड़े खाइए और बारिश और सुहावने मौसम का लुत्फ उठाते हुए प्यार को बढ़ाइए.

तिल पनीर क्यूब्स

मौनसून में लोग कुछ नया ट्राय करना पसंद करते हैं ताकि वह अपनी फैमिली और बच्चों को खुश कर सकें. आज हम आपको तिल पनीर क्यूब्स की रेसिपी बताएंगे, जिसे बनाकर अपनी फैमिली को खुश कर सकते हैं. तिल पनीर क्यूब्स बनाना बेहद आसान है, इसे आप स्नैक्स के रूप में झटपट बनाकर अपनी फैमिली को खिला सकते हैं. तो आइए जानते हैं तिल पनीर क्यूब्स की आसान रेसिपी…

हमें चाहिए

– 300 ग्राम पनीर के टुकड़े

– 2 बड़े चम्मच टोमैटो सौस

– 1 बड़ा चम्मच रैड चिली सौस

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– 2 बड़े चम्मच सफेद तिल

– 2 बड़े चम्मच अदरकलहसुन का पेस्ट

– स्वादानुसार कालीमिर्च पाउडर

– स्वादानुसार तेल

– नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

एक पैन में तेल गरम कर अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर भूनें. अब टोमैटो व चिली सौस के साथ पनीर के टुकड़े, नमक व कालीमिर्च पाउडर इस में मिला दें.

पनीर के टुकड़ों को सौस में अच्छी तरह कोट कर लें. अब तिल डालें और कुछ देर चलाते हुए मिक्स करें. तैयार तिल पनीर क्यूब्स को चटनी के साथ सर्व करें.

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अबौर्शन: क्या करें क्या नहीं

अबौर्शन कराने का निर्णय कठोर और साहसिक निर्णय होता है. कुछ महिलाएं विवाह से पहले अनचाहे गर्भ से, तो कुछ विवाह बाद के अनप्लान्ड गर्भ से छुटकारा पाने के लिए अबौर्शन कराती हैं. कई महिलाओं को बच्चे की चाह रखने के बावजूद चिकित्सकीय या सामाजिक दबाव के कारण यह निर्णय लेना पड़ता है. अबौर्शन में कई शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरना पड़ता है. अबौर्शन सर्जरी या दवाईयों के द्वारा किया जाता है.

ये शारीरिक लक्षण चिंता का कारण

वैसे तो अधिकतर अबौर्शन सुरक्षित होते हैं, लेकिन फिर भी दूसरे सर्जिकल प्रोसैस की तरह इस में कई जटिलताएं और जोखिम होते हैं. अबौर्शन के बाद ये शारीरिक लक्षण चिंता का कारण हो सकते हैं:

– 48 घंटे से अधिक समय तक 100 डिग्री से अधिक बुखार रहना.

– अत्यधिक ब्लीडिंग.

– वैजाइना से रक्त के बड़ेबड़े थक्के निकलना.

– अबौर्शन के 4-5 दिन बाद तक ब्लीडिंगजारी रहना.

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– पेट में मरोड़ और अत्यधिक दर्द होना.

– वैजाइना से ऊतकों का डिसचार्ज होना.

– वैजाइना से निकलने वाले डिसचार्ज सेदुर्गंध आना.

– मूत्र और मल त्याग की आदत में बदलाव आना.

– पेशाब और मल में रक्त आना.

– चक्कर आना, बेहोशी छाना.

– कमजोरी महसूस होना.

– अवसादग्रस्त अनुभव करना.

– भूख न लगना.

– सोने में समस्या आना.

अबौर्शन कराने के बाद प्रैगनैंसी हारमोन भी शरीर में रहते हैं यानी अबौर्शन के बाद शरीर और हारमोन सिस्टम को सामान्य अवस्था में आने में 1 से 6 हफ्ते लग सकते हैं. आमतौर पर अबौर्शन सुरक्षित होता है. 100 में से 1 महिला मेंही गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं. अबौर्शन के बाद के ये समस्याएं हो सकती हैं:

– मासिकधर्म का अनियमित हो जाना.

– शारीरिक संबंध बनाने के दौरान बहुत दर्द होना.

– 3 सप्ताह तक अनियमित रक्तस्राव होना.

– पहले 2 सप्ताह तक पेट में मरोड़ होना. यह लक्षण 6 सप्ताह तक भी रह सकता है.

– 2-3 सप्ताह तक भावनात्मक रूप से कमजोर अनुभव करना.

– पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज.

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अगर अबौर्शन के बाद ब्रैस्ट से मिल्की लिक्विड निकले तो घबराएं नहीं. ऐसा गर्भावस्था के दौरान हुए हारमोनल बदलाव के कारण होता है. कुछ दिनों में अपनेआप ठीक हो जाता है. अगर समस्या गंभीर हो तो डाक्टर से मिलें.

कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि जो महिलाएं अपनी पहली गर्भावस्था में अबौर्शन का विकल्प चुनती हैं वे न केवल अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालती हैं, बल्कि अपने अगले बच्चे के लिए भी कई खतरे उठाती हैं. ऐसी महिलाओं में भविष्य में प्रीमैच्योर बच्चे को जन्म देने की आशंका 37% तक बढ़ जाती है. पहली गर्भावस्था में अबौर्शन कराने वाली महिलाओं के अगले बच्चे का जन्म के समय भार कम होने का खतरा भी बढ़ जाता है. विवाह पूर्व अबौर्शन में तो यह होता ही है. अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि जो गर्भपात दवाओं के द्वारा किया जाता है उस में सर्जरी की तुलना में जोखिम कम होता है.

अगर आप ने अपने या अपने होने वाले बच्चे की किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण गर्भपात कराया है तो फिर से मां बनने का निर्णय लेने से पहले डौक्टर से संपर्क करें. ध्यान दें कि गर्भपात केवल सरकार द्वारा स्वीकृत अस्पताल से ही कराएं.

अबौर्शन के बाद चैकअप जरूर कराएं

अबौर्शन के 2 सप्ताह बाद चैकअपकराना इसलिए बहुत जरूरी है, ताकि पतालगाया जा सके कि आप के गर्भाशय में संक्रमण तो नहीं है, आप के घाव ठीक तरह से भर रहे हैं या नहीं. यह देखना भी बहुत जरूरी होता है कि आप का सर्विक्स पूरी तरह से बंद हो गयाहै. अगर यह अभी भी खुला है तो इस बात की पूरी आशंका है कि यहां से बैक्टीरिया गर्भाश में प्रवेश कर सकते हैं और यह देखना भी बहुत जरूरी होता है कि अबौर्शन पूरा हो गया है. कई बार ऐसे मामले देखे जाते हैं जिन में कुछ ऊतक गर्भाशय में ही रह जाते हैं, जिन्हें निकालना बहुत जरूरी होता है. इसलिए चैकअप जरूर कराएं.

सुरक्षित अबौर्शन

90% अबौर्शन गर्भावस्था के 13 सप्ताह तक पहुंचने के पहले किए जाते हैं. गर्भपात जितनी जल्दी कराया जाए उतना ही अच्छा रहता है. कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए. मैडिकल इंडीकेटेड अवस्था में गर्भपात 20 सप्ताह तक ही कियाजाता है. आप कितने सप्ताह की गर्भवती हैं, इस का पता लगाने के लिए आप को गणना आखिरी पीरियड के पहले दिन से करनी चाहिए. अगर आप को गर्भावस्था के स्पष्ट चरण के बारे में मालूम न हो तब अल्ट्रासाउंड स्कैन कराना चाहिए.

3 महीने तक की प्रैगनैंसी का गर्भपात करने के लिए केवल एक डाक्टर का मत ही काफी है. हां, अगर प्रैगनैंसी 13 से 20 हफ्ते की हो तो गर्भपात करने के लिए 2 डाक्टरों का मत आवश्यक होता है.

आप की सेहत के लिए यह जरूरी है कि जब आप गर्भवती नहीं होना चाहतीं तो अपने डाक्टर से सलाह ले कर अपने लिए उपयुक्त गर्भनिरोधक उपाय अपनाएं.

गर्भनिरोधक उपाय हैं बेहतर विकल्प

आजकल कई प्रकार के गर्भनिरोधक उपाय उपलब्ध हैं, जो बिलकुल सुरक्षित हैं, जिन के इस्तेमाल से आगे चल कर महिलाओं को गर्भधारण करने में समस्या भी नहीं होती. बैरियर मैथड कंडोम, हारमोनल इंजैक्शन, कौंट्रासैप्टिक इंजैक्शन, कौपर टी आदि के इस्तेमाल से अबौर्शन की स्थिति को टाला जा सकता है, जिस से स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.

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अबौर्शन के बाद इन बातों का ध्यान रखें

– ढेर सारा पानी पीएं.

– कुछ दिनों तक काम से दूर रहें.

– पूरी नींद लें.

– 2 सप्ताह तक कोई ऐक्सरसाइज न करें.

– 2 सप्ताह तक स्विमिंग के लिए न जाएं और न ही बाथ टब का इस्तेमाल करें.

– 2 सप्ताह तक भारी सामान न उठाएं

– 3-4 सप्ताह तक शारीरिक संबंध न बनाएं. इस के बाद भी अगर आप शारीरिक और भावनात्मक रूप से ठीक नहीं हैं तो सैक्स से दूर रहें.

– अबौर्शन के 2 सप्ताह बाद आप गर्भवती हो सकती हैं, इसलिए गर्भनिरोध के दूसरे उपाय अपनाएं.

-डा. निशा जैन, एचओडी, ओब्स्टेट्रिक्स ऐंड गाइनोकोलौजिस्ट, सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, दिल्ली 

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