बाली में छुट्टियां मनाती दिखीं विद्या बालन, सोशल मीडिया पर शेयर की फोटोज

काफी समय से बौलीवुड फिल्मों से दूर चल रहीं एक्ट्रेस विद्या बालन इन दिनों समर वेकेशन पर हैं. वह बाली में छुट्टियां मना रही हैं, जिसकी फोटोज विद्या अपने इंस्टाग्राम पर लगातार शेयर कर रही हैं. जहां एक तरफ फैंस विद्या की फोटोज को लेकर तारीफें करने से थक नही रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ सेलेब्स भी विद्या की फोटोज पर तारीफें कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनकी कुछ लेटेस्ट फोटोज

समर में समंदर का मज ले रही हैं विद्या बालन

एक्ट्रेस विद्या बालन इन दिनों समर वेकेशन में बाली की सैर कर रही हैं. जहां विद्या समंदर के बीच जमकर मजे कर रही है.

समंदर के बीच मस्ती कर रहीं विद्या

 

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विद्या बालन फोटोज में मस्ती करती हुई दिखाई दे रही हैं. वहीं उनके साथ उनके परिवार के लोग भी दिखाई दे रहे हैं.

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मौसम का मजा ले रहीं हैं लुत्फ विद्या

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इस दौरान विद्या ने जमकर समर वेकेशन का लुत्फ उठाते हुए नजर आईं. जिसकी फोटोज उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज शेयर करते हुए फैंस को दी.

फूलों से सजती नजर आई विद्या

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विद्या को लगता है कि फूलों से बेहद प्यार हैं तभी तो वो पूरी तरह फूलों से सजी हुई दिखाई दी. विद्या बालन यहां एकदम नए ही अंदाज में दिखाई दे रही है. एक ओर वो बालों में फूल तो दूसरी ओर आंखों पे काले सनग्लासेस लगाते हुए नजर आईं.

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बर्थडे पार्टी के बाद अब क्लीनिक सज-धज कर पहुंचीं मलाइका

बौलीवुड एक्ट्रेस मलाइका आजकल आए दिनों सुर्खियों में बनी हुई हैं. कभी अपने बेटे अपने लुक को लेकर तो कही अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर. हाल ही में मलाइका एक्टर और रूमर्ड बौयफ्रेंड अर्जुन कपूर की बहन सोनम के बर्थडे में साड़ी में सजधज कर पहुंची थी. वहीं इस बार मलाइका एक क्लीनिक के बाहर सजधज जाती हुई नजर आईं है.

बिमारी के चलते क्लीनिक के बाहर नजर आईं मलाइका

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मलाइका को मुंबई में बांद्रा के एक क्लीनिक के बाहर देखा गया. जिसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि मलाइका की हेल्थ ठीक नहीं है.

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क्लीनिक के बाहर मलाइका ने वाइट लुक में गिराईं बिजलियां

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बीते दिन मलाइका क्लीनिक के बाहर व्हाइट कलर के आउटफिट में नजर आई, जिसमें वह खूबसूरत लग रही थीं, पर मलाइका के चेहरे को देख कर साफ लग रहा था कि वह काफी बीमार हैं.

मीडिया को देख स्माइल कर के दिया पोज

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कार से क्लीनिक के बाहर उतरते हुए जैसे ही मलाइका ने मीडिया को देखा उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई.

सोनम कपूर के बर्थडे बैश में दिखाया था कमाल

 

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#malaikaarora goes all ethnic as she arrives for #sonamkapoor birthday party #viralbhayani @viralbhayani

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कुछ समय पहले ही मलाइका व्हाइट साड़ी में अर्जुन की बहन सोनम कपूर के बर्थडे बैश में नजर आई थीं. जिसकी कुछ फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी, जिसके बाद लोगों ने बर्थडे पर उनके साड़ी के लुक पर कमेंट करना शुरू कर दिया था.

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बता दें अरबाज खान से तलाक लेने के बाद मलाइका इन दिनों एक्टर अर्जुन कपूर के साथ रिलेशनशिप में हैं, जिसको लेकर फैंस मलाइका और अर्जुन के बीच एज गैप को लेकर मलाइका को कईं बार ट्रोल कर चुके हैं.

मैंगो छुंदा

अगर आपको भी आम की नई-नई डिश बनाने का शौक है, तो ये रेसिपी आपके लिए एकदम परफेक्ट है. ये टेस्टी के साथ-साथ हेल्दी भी है. मैंगो छुंदा बनाना बहुत आसान है. इसे आप किसी भी डिश के साथ मैच करके खा सकते हैं. या फिर अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

कसा हुआ कच्चा आम 250 ग्राम

चीनी 300 ग्राम

लाल मिर्च पाउडर ½ tsp

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भूना हुआ जीरा पाउडर ½ tsp

हल्दी पाउडर ¼ tsp

काला नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका

– पैन में कद्दूकस किया हुआ आम और चीनी डालें और इसे तब तक पकाएं जब तक कि यह पिघल कर गाढ़ा न हो जाए.

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– गाढ़ा होने के बाद इसमें मसाले मिलाकर रखें और इसे ठंडा होने दें और साइड डिश के रूप में फैमिली को सर्व करें.

Edited by Rosy

पीरियड्स में रखें अपनी डाइट का ख्याल

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों और मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है. टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

इन से करें परहेज

  1. व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.
  2. बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.
  3. पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.
  4. कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.
  5. ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.
  6. कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

  •  ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.
  • पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.
  • अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.
  • थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.
  • यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

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यह भी रहे ध्यान

  • 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.
  • ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.
  • 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.
  • अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

  • पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.
  • भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.
  • पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.
  • पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.
  • अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

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कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

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प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

सुष्मिता सेन के भाई ने 8 साल छोटी गर्लफ्रेंड से की शादी…

बौलीवुड इंडस्ट्री की जानी-मानी एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के भाई राजीव सेन काफी समय से अपनी शादी को लेकर चर्चा में थे. दरअसल, राजीव ने अपनी गर्लफ्रेंड चारू असोपा के साथ 16 जून को गोवा में शादी करने का फैसला किया था, लेकिन आज अचानक सोशल मीडिया पर राजीव सेन और चारू असोपा की कुछ फोटोज सामने आई जिनमें साफ नज़र आ रहा है कि दोनो नें कोर्ट मैरिज कर ली है. दोनों के गले में वरमाला साफ दिखाई दे रही थी.

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टी.वी. एक्ट्रेस है चारु असोपा…

चारू असोपा एक टी.वी. एक्ट्रेस है जिन्होनें “मेरे अंगने में”, “अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो” जैसे सीरियल्स में काफी अच्छे किरदार निभाए है. चारू असोपा ने एक फिल्म में भी काम किया है जिसका नाम था “इम्पेशैंट विवेक”. वहीं राजीव एक बेहतरीन मौडल होने के साथ-साथ एक बिजनेस मैन भी हैं. राजीव दुबई में रहते हैं और अक्सर मुंबई आते रहते हैं.

 

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You make me the happiest person alive.❤️ #rajakibittu #nothingfancyjustlove ❤️??

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राजीव से उम्र में 8 साल छोटी हैं चारु…

राजीव सेन और चारू असोपा का अफेयर लम्बे समय से चल रहा था और कुछ दिनों पहले ही इन दोनों ने शादी करने का फैसला भी किया था. चारू, राजीव से लगभग 8 साल छोटी हैं. सुष्मिता सेन भी अपने भाई के इस फैसले से काफी खुश थीं. चारू असोपा ने अपने औफिशियल इंस्टाग्राम पर अपनी और राजीव की शादी की फोटो अपलोड कर लिखा “आए चारू असोपा टेक राजीव सेन ऐज़ माई लौफुल हस्बैंड #rajakibittu”.

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चारू के इस हैश-टैग से साफ पता चल रहा है कि वे राजीव को ‘राजा’ और राजीव उनको प्यार से ‘बिट्टू’ कह कर बुलाते थे. इस फोटो में चारु रेड साड़ी और राजीव व्हाइट कुर्ता-पयजामा पहने काफी अच्छे लग रहे हैं.

 

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I Charu Asopa take Rajeev Sen as my lawful husband… ❤️?? #rajakibittu

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राजस्थानी और बंगाली रीति-रिवाज से फिर होगी शादी…

अब 16 जून को राजीव और चारू फिर से राजस्थानी और बंगाली रीति-रिवाज से शादी करेंगे. वे दोनों अपनी शादी में सिर्फ परिवार वालों और कुछ खास दोस्तों को ही बुलाना चाहते हैं.

EDITED BY- KARAN 

अब और मजबूत होंगी जाति की बेड़ियां

हिन्दू राष्ट्र की गर्जनाओं के बीच देश डर से कांप रहा है. लोग अपने-अपने दायरों में सिमटे जा रहे हैं. एकजुट होने की हिम्मत जवाब दे रही है, आवाज उठाने की ताकत दम तोड़ रही है. न्याय पाने का हक छिन रहा है… और देश विकास कर रहा है… आह!

22 मई को मुंबई में टी. एन. टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज में 26 साल की गाइनोकोलॉजी की छात्रा डॉ. पायल तड़वी ने आत्महत्या कर ली. कहा जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज में डॉ. पायल तड़वी को उनकी जाति को लेकर प्रताड़ित किया जा रहा था. पायल तड़वी उस भील समाज से थीं, जिनकी आबादी इस देश में अस्सी लाख के करीब है. अनुसूचित जनजाति में जन्मी डॉ. पायल तड़वी उत्तरी महाराष्ट्र के जलगांव की रहने वाली थीं और उन्होंने पश्चिमी महाराष्ट्र के मीराज-सांगली से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की थी. आरक्षण कोटे के तहत डौक्टरेट करने के लिए पायल ने पिछले साल ही इस अस्पताल में दाखिला लिया था. वे जलगांव में अपने समाज की सेवा के लिए एक अस्पताल खोलना चाहती थीं. तीस साल बाद इस पिछड़े दलित समाज से कोई लड़की डॉक्टर बनने वाली थी, मगर देश में फैले जाति के जहर ने उनकी इहलीला समाप्त कर दी.

ऊंची जाति की तीन डॉक्टर – डॉ. हेमा आहूजा, डॉ. अंकिता खंडेलवाल और डॉ. भक्ति मेहर को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है. महिला डॉक्टरों पर आरोप है कि वे पायल की सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रही थीं. आत्महत्या वाले दिन भी आॅपरेशन थियेटर में उनके साथ बुरा बर्ताव हुआ था और वह रोती हुई वहां से बाहर निकली थीं. पायल की मां आबेदा तड़वी कहती हैं कि उनकी बेटी को कई महीने से जातिसूचक गालियां दी जा रही थीं. उनको लगातार कमतरी का अहसास कराया जा रहा था. पायल की मां का कहना है कि इसी अस्पताल में उन्होंने अपना कैंसर का इलाज करवाया था, जहां उन्होंने खुद पायल को उत्पीड़न का सामना करते देखा था. वरिष्ठ महिला डॉक्टर मरीजों के सामने भी पायल की बेइज्जती करती थीं, जिससे वो भारी मानसिक दबाव में थी. अपनी शिकायत में आबेदा तड़वी कहती हैं, ‘मैं उस समय भी शिकायत दर्ज कराना चाहती थी, लेकिन पायल ने मुझे रोक दिया था. पायल को डर था कि अगर शिकायत की गयी तो वहां उसका और ज्यादा उत्पीड़न किया जाएगा और उसका भविष्य में डॉक्टर बन कर अपने समुदाय की सेवा करने का सपना अधूरा ही रह जाएगा.’

आत्महत्या से 9 दिन पहले डॉ. पायल तड़वे के पति सलमान ने भी टी. एन. टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज से शिकायत की थी कि उसकी पत्नी पायल को सीनियर डॉक्टर मानसिक रूप से परेशान कर रहे हैं, मगर कॉलेज प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया.

पायल जिस समाज से आती हैं, उस समाज में हर तरह का पिछड़ापन है, ऐसे में इस समाज से कोई डॉक्टर बन जाए, यह कोई साधारण बात तो नहीं थी. मुंबई में डॉ. पायल तड़वी की आत्महत्या को लेकर नागरिक समाज के एक हिस्से में बहुत बेचैनी है. कुछ लोग विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं. मगर इन बातों की कोई बहुत ज्यादा चर्चा मीडिया में नहीं है, क्योंकि देश का मीडिया फिलहाल ‘मोदी-मय’ है. वह नरेन्द्र मोदी की सत्ता में पुन:वापसी की खबरें लिखने-दिखाने में व्यस्त है. पिछड़े समाज की हाय-हाय तो वैसे भी उनके लिए आये-दिन की बात है. इनके रुटीन प्रदर्शनों से भी देश की स्थिति बदलने वाली नहीं है. ऐसा विरोध प्रदर्शन मार्च 2014 में भी हुआ था, जब तमिलनाडु के मुथुकृष्णन ने आत्महत्या कर ली थी और जनवरी 2016 में भी, जब हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के पीएचडी के छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी की खबर आयी थी. मुथुकृष्णन जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर थे. उन्होंने अपनी आखिरी पोस्ट में बड़ी बेबसी से लिखा था कि – ‘जब समानता नहीं, तो कुछ भी नहीं.’ वहीं डॉक्टरेट करने वाले रोहित वेमुला ने अपने गले में फांसी का फंदा डालने से पहले लिखा – ‘मैं तो हमेशा लेखक बनना चाहता था. विज्ञान का लेखक, कार्ल सेगन की तरह और अंतत: मैं सिर्फ यह एक पत्र लिख पा रहा हूं… मैंने विज्ञान, तारों और प्रकृति से प्रेम किया, फिर मैंने लोगों को चाहा, यह जाने बगैर कि लोग जाने कब से प्रकृति से दूर हो चुके. हमारी अनुभूतियां नकली हो गयी हैं, हमारे प्रेम में बनावट है. हमारे विश्वासों में दुराग्रह है. एक इंसान की कीमत, उसकी पहचान एक वोट… एक संख्या… एक वस्तु तक सिमट कर रह गयी है. कोई भी क्षेत्र हो, अध्ययन में, राजनीति में, मरने में, जीने में, कभी भी एक व्यक्ति को उसकी बुद्धिमत्ता से नहीं आंका गया. मेरा जन्म महज एक जानलेवा दुर्घटना थी. मैं बचपन के अपने अकेलपन से कभी बाहर नहीं आ सकूंगा. अतीत का एक क्षुद्र बच्चा, जिसकी किसी ने सराहना नहीं की. मैं न तो दुखी हूं और न उदास. मैं बस खाली हो चुका हूं. खुद से बेपरवाह हो चुका हूं.’

मुथुकृष्णन और रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद देश भर में कई बहसें हुर्इं, वार्ताएं हुर्इं, टीवी शोज हुए, लोग तख्तियां लेकर सड़कों पर भी उतरे, मगर जाति की मार से छलनी हो रही जिन्दगियों की कहानी रुकी नहीं. उसके बाद भी देश भर में दलितों, पिछड़ों, जनजातीय और अल्पसंख्यक लोगों की पिटायी, हत्याएं, बलात्कार, उत्पीड़न का सिलसिला ज्यों का त्यों चालू है. डॉ. पायल तड़वी की आत्महत्या के बाद भी कुछ लोग तख्तियों के साथ सड़कों पर हैं, मगर यह खबर लाव-लश्कर के साथ सत्ता में दोबारा पदार्पण कर रहे नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के भव्य आयोजन की खबरों के बीच दब सी गयी. यही खबर नहीं, बल्कि उस चौदह साल की मासूम बच्ची की खबर तो जिला स्तर तक भी नहीं पहुंच पायी, जिसको 24 मई 2019 की रात सामूहिक बलात्कार कर आग के हवाले कर दिया गया था. जिला मुजफ्फरनगर के ग्राम बधाई कंला में अनुसूचित जाति की एक उपजाति से सम्बन्ध रखने वाली मीनाक्षी के साथ दरिंदों ने जो हैवानियत दिखायी, उसे देखकर इन्सानियत की रूप कांप उठी. भरे गांव के बीच दरिंदों ने उससे सामूहिक बलात्कार किया और फिर उसी खाट पर बांध कर उसे आग के हवाले कर दिया. मीनाक्षी की दर्दनाक कराहें सभ्य और संभ्रात समाज के कान तक नहीं पहुंची क्योंकि पूरा देश मोदी सरकार की पुन:वापसी के जश्न में मग्न था. यह घटना कुछ वाट्सऐप ग्रुपों में सर्कुलेट होकर ही रह गयी. आरोपी अभी तक फरार हैं.

उच्च जातियों के दबंगों के कहर से पूरा राष्ट्र थर्रा रहा है. पिछड़ी जातियां, अनुसूचित जातियां, जनजातियां, आदिवासी समाज, मुसलमान सब डरे हुए हैं. अपने-अपने दायरों में सिमटे जा रहे हैं. दायरे तोड़ने की हिम्मत जवाब दे चुकी है, इसीलिए वे एकजुट नहीं हो पा रहे हैं. एक मजबूत ताकत नहीं बन पा रहे हैं. उनके नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने वाली तमाम राजनीतिक पार्टियां उन्हें उनके दायरों में ही रखना चाहती हैं. उसी में रहने को मजबूर करती हैं, ताकि उनका वोटबैंक बना रहे.

संघ की मंशा कामयाब होने की ओर

नरेन्द्र मोदी की सत्ता में वापसी के बाद जाति के दायरे और मजबूत होंगे, इसमें दोराय नहीं है क्योंकि उच्च जातियां अब पूरी ताकत और संख्या के साथ मोदी के केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में शामिल हैं. संघ की इच्छाओं को अपने कंधे पर उठा कर अपनी राजनीतिक इच्छा पूरी करने वाले मोदी गदगद हैं. राष्ट्रवाद की सूनामी चल रही है. राष्ट्रवाद यानी हिन्दूवाद. ‘गर्व से कहो कि हम हिन्दू हैं’ या ‘भारत एक हिन्दू राष्ट्र है’ या फिर भारत शीघ्र एक हिन्दू राष्ट्र बनने वाला है, अब ऐसा होने से कोई माई का लाल रोक नहीं सकता… जैसी बातें कही-सुनी जा रही हैं. सनद रहे कि संघ की परिभाषा के मुताबिक हिन्दू मतलब सवर्ण. केवल सवर्ण. संघ, जो देश को धर्म और जाति के खांचों में बांट कर देखता रहा है और हमेशा देखेगा. लोगों को जाति के शिकंजे में जकड़ कर रखने में ही उसकी सफलता निहित है. संघ की उत्पत्ति है ‘हिन्दुत्व’. उसका अपनी तरह का हिन्दुत्व यानी ब्राह्मण और वह भी सिर्फ ब्राह्मण पुरुष. संघ में दलितों-पिछड़ों, महिलाओं, मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है. संघ जिस हिन्दुत्व की बात करता है, उसका तैंतीस करोड़ देवी देवताओं वाले, सैकड़ों जातियों में बंटे, बहुतेरी भाषाओं, रीति रिवाज, परम्पराओं, धार्मिक विश्वासों वाले उदार बहुसंख्यक समाज की जीवनशैली से कोई मेल नहीं है. आदिवासी और दलित उसके हिन्दुत्व के खांचे में कभी फिट नहीं हो पाते हैं, जो पलट कर पूछते हैं कि अगर हम भी हिन्दू हैं तो अछूत और हेय कैसे हुए?

संघ के लिए सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही हिन्दू हैं. इनमें भी ब्राह्मण सर्वोपरि हैं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का रिकॉर्ड है कि सर संघचालक का पद सिर्फ ब्राह्मण के लिए रिजर्व है. साफ शब्दों में कहें तो यह ‘ब्राह्मण स्वयं सेवक संघ’ है, न कि ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’. संघ स्पष्ट रूप से ब्राह्मण-बनिया पुरुषों का संगठन है, जिसके शिखर पर महाराष्ट्रियन ब्राह्मण विराजमान होता है. आपको इसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में एक भी एससी-एसटी व्यक्ति नहीं मिलेगा. न ही कोई महिला मिलेगी. हां पिछड़ी जाति के कुछ सदस्य अवश्य हो सकते हैं, जो इनकी सभाओं में दरी और कुर्सी बिछाने का काम करते हैं.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कागज पर तो हिन्दुत्व को धर्म नहीं, बल्कि जीवनशैली कहता है, लेकिन व्यवहार में मुस्लिम तुष्टीकरण, धर्मांतरण, गौहत्या, राम मंदिर, कॉमन सिविल कोड जैसे ठोस धार्मिक मुद्दों पर ही सक्रिय रहता है, जो साम्प्रदायिक तनाव, दंगे, आपसी मनमुटाव और विघटन का कारण हैं. संघ से जुड़े तमाम संगठन चाहे वह बजरंग दल हो, विश्व हिन्दू परिषद्, हिन्दू जागरण मंच या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् इन सभी पर मारपीट, दंगे, साम्प्रदायिक तनाव फैलाने के आरोप लगते रहे हैं. बीते 90 सालों पर नजर डालें तो संघ की गतिविधियां खूनखराबे, चुनावों के वक्त धार्मिक ध्रुवीकरण और सम्प्रदायों के बीच नफरत फैलाने की रही है. संघ की एक और बड़ी मुश्किल यह है कि उसका इतिहास, उसके नेताओं की सोच और व्यवहार लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले आधुनिक भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान, कानून, अनूठी सांस्कृतिक विविधता और दिनों दिन बढ़ते पश्चिमी प्रभाव वाली जीवन शैली और समाज में बनते नये मूल्यों से बार-बार टकराते हैं. यह टकराव सवाल पैदा करते हैं. सवाल यह कि संघ का प्रमुख कोई दलित, ओबीसी या महिला क्यों नहीं बनी? क्या इसलिए कि यह ब्राह्मण वर्चस्व वाला सामंती संगठन है? अगर हां, तो क्या यह बहुलता और विविधता वाले समाज के लिए चिंता की बात नहीं है? क्या आने वाले समय में एक खास किस्म के संकीर्ण और रूढ़िवादी मनो-मस्तिष्क वाले लोग तैयार नहीं किये जाएंगे, जो चीजों को बहुत संकीर्ण और रूढ़िवादी नजरों से ही देखेंगे. क्या यह भारत में विकास की दृष्टि से बहुत बड़ा धक्का नहीं है?

मगर इन बातों की परवाह अब किसको है. पिछली बार तो भाजपा को नंगों-भूखों का वोट पाने के लिए विकास का चोला ओढ़ कर आना पड़ा था, अबकि बार इस चोले की भी जरूरत नहीं पड़ी. वह अपने नग्न रूप में सामने है. हिन्दुत्ववाद इस वक्त अपनी चरम पर है. जीत का सेहरा बांधे मोदी के पीछे संघ की बारात हर्षो-उल्लासित है. मोदी की ‘अभूतपूर्व’ जीत से संघ की छाती फूली हुई है. मोदी की राजनीतिक सफलता के साथ अब हिन्दू राष्ट्र की चाहत रखने वाले संघ का एजेंडा तेजी से आगे बढ़ेगा. मोदी के कंधे पर संघ ने बड़ी जिम्मेदारी डाली है. मोदी को सत्ता में बने रहना है तो संघ की आज्ञा को सिर झुका कर मानना है. इस जिम्मेदारी को पूरा करने की राह में अब जो भी आएगा, उसकी खैर नहीं. भारत को हिन्दू राष्ट्र में बदलने के सपने के साकार होने की घड़ी आ चुकी है. हिन्दू राष्ट्र के लक्ष्य के लिए तमाम गतिविधियों में तेजी आ चुकी है. हिन्दुत्व का ठेका लेकर बैठी उच्च जातियां गौरवांवित हैं. अपने नामों के आगे लगे जाति-सूचक शब्दों को उच्च ध्वनियों के साथ उच्चारित करते हुए वे अब भारतीय समाज को और ज्यादा विभाजित करने में जुटेंगी, ताकि उनकी तानाशाही लम्बे समय तक बरकरार रह सके.

देश को बांटने का जिम्मेदार सिर्फ संघ नहीं है

देश में जातिगत राजनीति के लिए सिर्फ संघ को दोष देना ही ठीक नहीं है. देश को जातिगत आधार पर बांटने के लिए बड़ी राजनीतिक पार्टियों में – बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, अपना दल, शिवसेना, इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन, इंडियन नैशनल कांग्रेस जैसी तमाम पार्टियां जिम्मेदार हैं, जो जाति के आधार पर ही टिकट बांटती हैं, और चुनाव लड़ती हैं. इसलिए जाति की दीवारें नहीं टूटतीं. हर चुनाव के बाद यह दीवारें और ज्यादा मजबूत हो जाती हैं.

इंडियन नैशनल कांग्रेस की छवि कुछ सेक्युलर थी, मगर अबकी बार वह भी भाजपा और संघ के हिन्दुत्व से ऐसी प्रभावित हुई कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भी धोती, कुरता पहन कर, माथे पर बड़ा सा तिलक लगा कर, आरती की थाली हाथ में लेकर मन्दिर-मन्दिर अपने फोटो सेशन के लिए मजबूर होना पड़ा. ताकि वे अपने आपको एक उच्च जाति का पंडित प्रदर्शित कर सकें. राहुल गांधी मंदिर-मंदिर घूमने लगे. लोगों के लिए यह हैरान करने वाला था क्योंकि राहुल गांधी को इससे पहले कभी इस तरह मंदिर जाते नहीं देखा गया था. चुनावों के दौरान उन्होंने 27 बार मंदिरों का दौरा किया. जिस कांग्रेस पार्टी का इतिहास अल्पसंख्यकों, गरीबों, निम्न जातियों के उद्धार की बातों से भरा हुआ था, उसके नेता का अचानक नये चोले में दिखना क्या संघ के हिन्दुत्व के एजेंडे से डर कर अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश नहीं थी? मजेदार बात तो यह रही कि सोमनाथ मंदिर में राहुल के गैरहिन्दू रजिस्टर पर नाम लिखे जाने की बात आते ही कोट के ऊपर से जनेऊ धारण किये राहुल के फोटो पेश किये गये. पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी संघ के हिन्दुत्व के एजेंडे को प्रसार देती दिखायी दीं. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान वे हर जगह प्रचार से पहले मन्दिरों के दर्शन और पूर्जा-अर्चना करती नजर आयीं. जब धर्म और जाति के जहर से ये ‘होनहार’ न बच पाये तो आम जनता कैसे बच सकती है?

खून में मिला हुआ है जाति का जहर

तीस बरस पहले की एक घटना आज भी मुझे ज्यों की त्यों याद है. मैं लखनऊ से गर्मी की छुट्टियों में अपने ननिहाल गोरखपुर गयी हुई थी. उस दिन अपने ममेरे भाई के साथ खेतों में घूम रही थी. मेरी उम्र उस वक्त कोई तेरह-चौदह बरस की थी और भाई छह-सात साल का था. जून का तपता हुआ महीना था. खेतों में घूमते हुए हम काफी दूर निकल गये थे. दूसरे गांव में पहुंच गये थे. भाई को बहुत जोर से प्यास लगी थी. एक घर के आगे हैंडपम्प देख कर हम उधर पानी पीने के लिए लपके. तभी एक औरत चीखती हुई निकली, ‘रुको, रुको, कौन जात हो?’

मैं सकपका गयी. बोली – मुसलमान हैं. वह चीखी – दूर हटो. मैं गिड़गिड़ा कर भाई की ओर इशारा करके बोली – इसको बड़ी प्यास लगी है. उसने एक नजर बच्चे पर डाली और पास पड़े लोटे में हैंडपम्प से खुद पानी निकाल कर उसने बच्चे को इशारा किया तो छोटे भाई ने तुरंत चुल्लू बना कर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया. उस औरत ने ऊपर से ही उसके हाथ में पानी गिराया, जिससे उसने अपनी प्यास बुझायी. गांव में रहने वाले उस मासूम के अन्दर उस छोटी सी उम्र में ही यह ‘नफरत’ पैदा कर दी गयी थी कि अलग धर्म-जाति के कारण वह उनके लिए अछूत है और उनके लोटे या हैंडपम्प को वह हाथ भी नहीं लगा सकता है. इस घटना ने मुझे हिला दिया. मुझे मेरे मां-बाप ने बचपन से सिखाया था कि प्यासे को पानी पिलाना सबाब का काम है. मगर इस तरह कोई अमृत भी पिलाये तो मैं क्यों पियूं? उस दिन भयानक प्यास के बावजूद मैं वहां पानी नहीं पी सकी.

कानपुर की रहने वाली हर्षाली कहती है, ‘मैं स्तब्ध थी, एक बार तो मेरे लिए यकीन करना मुश्किल था, जब मेरे आठ साल के बेटे ने मुझसे कहा कि उसकी कक्षा में दोस्ती सरनेम देखकर होती है.’ वह कहती है, ‘जब मैंने उससे विस्तार से पूरी बात पूछी तो वह बोला कि उसके स्कूल में विद्यार्थी एक सरनेम होने पर अपना अलग-अलग ग्रुप बना लेते हैं.’ हर्षाली व्यथित थी कि जब शहर के नामी पब्लिक स्कूल में यह हो रहा है तो अन्य जगहों पर क्या हालत होगी.

वरिष्ठ पत्रकार अनिल यादव अपने एक लेख में लिखते हैं – ‘मैं गाजीपुर जिले के एक इंटर कॉलेज में बच्चों को समाज में उनकी जगह बताने के लिए अपनाये जाने वाले कहीं अधिक रचनात्मक उपायों से परिचित था. एक ब्राह्मण टीचर अक्सर किसी दलित छात्र को खड़ा कर जनवरी-फरवरी के बाद वाले महीने का नाम पूछते थे. वह कहता था मार्च. वे पूछते, इसका उल्टा क्या होगा और सारी क्लास हंसने लगती थी. सबको पता था जो उल्टा है, वही उसकी सामाजिक हैसियत है.’

इस महादेश में लोगों की नसों में खून के साथ उनकी जातियां बहती हैं. कचहरी में वकील अपनी जाति का तय किया जाता है, ताकि दगा न दे. झोला छाप डॉक्टर भी अपना ही खोजा जाता है कि कमाई बिरादर की जेब में जाए. मुसलमान आदमी कहीं किराये का घर ढूंढता है तो कोशिश करता है कि उसी मोहल्ले में मिले, जहां उसकी बिरादरी की आबादी बसती हो. दूसरे से कितनी असुरक्षा महसूस करते हैं हम. वर्ष 2008 में थोराट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस देश में 69 फीसदी अनुसूचित जाति, जनजाति के छात्रों को उसके शिक्षकों का सहयोग नहीं मिलता है. 72 फीसदी छात्र पढ़ाई के समय भेदभाव की बात मानते हैं. 84 फीसदी छात्रों ने प्रैक्टिल परीक्षा में नाइंसाफी की बात कबूल की है. हर तरफ असुरक्षा व्याप्त है. और लगातार बढ़ रही है. जाति सूचक शब्दों ने समाज को टुकड़े-टुकड़े में बांट दिया है. हम ‘मूर्खो की संतान’ अपने नाम के आगे से जाति का नाम नहीं हटा पाते हैं. समझने को तैयार ही नहीं होते हैं. जो पिलाया गया, पीते गये और अब अपने ही हाथों से, हर रोज, घूंट -घूंट अपने ही बच्चों को अलगाव का, भेद का, जाति का जहर पिला रहे हैं. सवर्ण अपने नाम के आगे जाति सूचक शब्दों को बड़े घमंड के साथ चिपकाये रखते हैं. इससे उनके स्वभाव में एक रोब पैदा होता है. यही रोब निम्न जातियों को डराता है, असुरक्षित बनाता है और उन्हें अपने दायरे में ही सिमटे रहने के लिए मजबूर करता है. आने वाले वक्त में यह स्थिति और बदतर होगी, इसमें कोई दोराय नहीं है.

Father’s Day 2019: “अभी तो जानने लगा था मैं तुम्हे फिर क्यों इतनी जल्दी चले गए”

मोहित राठौर, (दिल्ली)

अभी तो जानने लगा था मैं तुम्हे
फिर क्यों इतनी जल्दी चले गए
अभी तो समझने लगा था मैं तुम्हे
फिर क्यों मुझे अकेला छोड़ के चले गए
अभी तो तुम्हारी डांंट समझने लगा था मैं
फिर क्यों मुझे प्यार से वंचित कर चले गए
अभी तो अपनी गोद में खिलाया करते थे तुम हमे
फिर क्यों हमें बीच भंवर में छोड़ चले गए
अभी तो तुम्हारी जरूरत महसूस होने लगी थी हमें
फिर क्यों दुनिया को अलविदा कह गए
आखिर क्यों पा??

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Fathers Day 2019: जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद

सरिता दीक्षित, (आगरा) 

मेरे पिता जी का जीवन ‘सादा जीवन उच्च विचार’ से प्रेरित था. वह एक ईमानदार व्यक्ति थे और जरूरतमंद की यथाशक्ति मदद करते रहते थे. कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति उनके घर से खाली हाथ नहीं जाता था. वे अक्सर यह बात कहते थे कि ‘ग़रीबी क्या होती है’ यह तुम सभी ने नहीं देखी. अपनी इसी आदत की वजह से वे अपने लिए कभी धन-दौलत का संग्रह नहीं कर पाए. पिता जी की ईमानदारी से जुड़ी एक बात मैं साझा करना चाहती हूं.

बात करीब 40 वर्ष पहले की है. मेरे घर के सामने एक बड़े से नीम के पेड़ के नीचे एक कुआं था. कुएं से पानी भरने के लिए रस्सी व बाल्टी रखी रहती थी. सामने सड़क से गुजरने वाले राहगीर के लिए उस समय पानी पीने का एकमात्र यही साधन था. कुएं के पास ही छाया में बैठने के लिए पिता जी ने खपरैल की झोपड़ी बनवाई थी.

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जब पिता जी ने की अंजान मुसाफिर की मदद…

एक दिन दोपहर में एक यात्री ने पानी पीने के लिए बस रुकवाई. उसके हाथ में एक बैग था. उसने पानी पिया और गलती से कुएं के पास रखा हुआ अपना बैग छोड़कर बस में बैठ कर चला गया कुछ समय बाद मेरे पिता जी कुएं की तरफ गये तो उन्हें वह बैग दिखाई दिया. उन्होंने इधर-उधर देखा तो वहां कोई भी नहीं दिखा.

पिता जी ने बैग खोल कर देखा तो वह सोने-चांदी के आभूषण से भरा हुआ था. पिता जी ने बैग घर पर ले जाकर रख दिया. वापस कुएं के पास बैठ कर बैग वाले यात्री का इन्तजार करने लगे. कुछ समय बाद एक आदमी बदहवास सा बस से उतरा. वहां पिता जी को बैठा हुआ देखकर बैग के बारे पूछने लगा. बात करने के बाद जब पिता जी आश्वस्त हो गए तो घर से लाकर बैग वापस किया.

आज भी साथ हैं उनके आदर्श…

वह यात्री एक सुनार थे और पास के बाजार में उनकी दुकान थी. सुनार ने अपने सभी परिचित को इस घटना के बारे में बताया. अब पिता जी इस दुनिया में नही हैं लेकिन उनके विचार व आदर्श हमेशा हमारे साथ हैं. मुझे उन पर बहुत गर्व है.

करीना की फोटो देख बोले फैंस- मैम उम्र हो रही है

बौलीवुड की ब्यूटीफुल एक्ट्रेस में से एक करीना कपूर अपनी फिल्मों के साथ-साथ पर्सनल लाइफ के लिए सुर्खिंयों में बनी रहती है. वहीं इन दिनों करीना अपनी फैमिली के साथ टस्कनी में समर वेकेशन मना रहीं, जिसकी फोटोज वह लगातार अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर पोस्ट कर रहीं हैं. जिसके चलते उनको ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा. आइए दिखाते हैं उनके समर वेकेशन से जुड़ी कुछ लेटेस्ट फोटोज…

करीना की क्लोजअप फोटोज पर लोगों ने उम्र का दिया ताना

 

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#holidayvibes ??

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हाल ही में करीना कपूर खान ने इंस्टाग्राम पर एक सेल्फी शेयर की हैं, जिसमें वह क्लोज-अप लुक में पोज देती नजर आ रही हैं. वहीं यूजरों ने इस फोटो पर करीना की उम्र पर ताना देना शुरू कर दिया.

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करीना की फोटोज पर कमेंट में लिखा ये…

 

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Sun Kissed in Tuscany ❤️❤️????

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फोटोज में करीना कपूर खान का फेस यंग नही नजर आ रहा जिसके चलते उन्हें ट्रोल कर रहे हैं. एक यूजर ने कमेंट में लिखा है, ‘आप आंटी लगने लगी हो..’, वहीं दूसरे ने लिखा, ‘अब आपके चेहरे पर उम्र साफ दिखाई देने लगी है मैम….’

टीवी पर शो में जज के रोल में आएंगी नजर

करीना वेकेशन के अलावा फिल्मों के साथ-साथ टीवी की दुनिया में भी अपने कदम रख दिए हैं. जल्द ही करीना टीवी पर ‘डांस इंडिया डांस’ को जज करते हुए दिखाई देंगी. वहीं खबरे हैं कि इस शो के लिए करीना कपूर खान ने बहुत बड़ी रकम ली है.

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बता दें, करीना कपूर खान की प्रोफेशनल लाइफ की बात की जाए तो वह जल्द ही अक्षय कुमार के साथ ‘गुड न्यूज’ में दिखाई देंगी. जिसे करण जौहर के बैनर तले बनाया जाएगा. जल्द ही करीना इरफान खान के साथ ‘अंग्रेजी मीडियम’ की भी शुरू करने वाली हैं, जो हिन्दी मीडियम का सीक्वल कहा जा रहा है.

अर्जुन की बहन की पार्टी में यूं सज-धज कर पहुंचीं मलाइका…

बौलीवुड एक्टर अर्जुन कपूर और मलाइका अरोरा के रिलेशनशिप की खबरें सोशल मीडिया पर छाई रहती हैं. जिसे नजर अंदाज करके मलाइका अपनी पर्सनल लाइफ में अर्जुन कपूर की फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम बिताती नजर आ रही हैं. हाल ही में अर्जुन कपूर की बहन और एक्ट्रेस सोनम कपूर के बर्थडे में मलाइका सज धज कर पार्टी का हिस्सा बनती दिखीं. आइए आपको दिखाते हैं उनके लुक की कुछ खास फोटोज…

सोनम कपूर की बर्थडे पार्टी में साड़ी में दिखीं मलाइका

एक्ट्रेस सोनम कपूर ने 9 जून को अपना जन्मदिन सेलिब्रेट करते हुए अपने घर पर जबरदस्त बर्थडे पार्टी रखी, जिसमें बौलीवुड के कईं सेलेब्स हिस्सा बनते नजर आए. वहीं मलाइका भी पार्टी में इंडियन लुक को प्रमोट करते हुए साड़ी में नजर आईं.

फैंस ने भी मलाइका के लुक पर उठाया सवाल 

मलाइका के साड़ी लुक को देखते हुए सोशल मीडिया पर फैंस ने सवाल करना शुरू कर दिया कि बर्थडे पार्टी में इतना साड़ी में सज-धज कर जाना का क्या मतलब है. क्या वह अर्जुन की फैमिली को इम्प्रेस करने पार्टी में पहुंची थीं.

एक्ट्रेस करिश्मा कपूर के साथ पोज देती नजर आईं मलाइका

 

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#karishmakapoor & #malaikaarora ❤❤❤

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फिल्मों से दूर चल रहीं एक्ट्रेस करिश्मा कपूर और मलाइका अरोड़ा पार्टी में शामिल हुईं. जिसमें करिश्मा इस दौरान कैजुअल लुक में दिखीं जबकि मलाइका ने रेड एंड गोल्डन फ्लोवर प्रिंट वाली सफेद सैटिन साड़ी पहने हुए नजर आईं. वहीं करिश्मा और मलाइका फोटोज के लिए लुक देते हुए दिखीं.

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लोगों ने दीपिका के लुक से की मलाइका की तुलना

पार्टी में मलाइका फ्लोरल वाइट साड़ी में नजर आईं, जिसके साथ उन्होंने गले में हैवी नेकलेस और मांग टीका लगाया हुआ था. इस लुक को मलाइका ने लाइट मेकअप और रेड लिपस्टिक से पूरा किया था. लेकिन फैंस ने उनके लुक की तुलना दीपिका से कर दी.

मलाइका के अलावा भी कईं सेलेब्स आए नजर

एक्ट्रेस सोनम कपूर के बर्थडे पार्टी में परिवार के सदस्यों के अलावा बौलीवुड के कई सेलिब्रिटीज नजर आए, जिनमें मलाइका अरोड़ा, अनन्या पांडे, वरुण धवन, शनाया कपूर, करण जौहर जैसे कईं सेलेब्स नजर आए.

बता दें, मलाइका इन दिनों अर्जुन कपूर से अपने रिश्ते को लेकर ट्रोल हो रहीं हैं. वहीं अब उनका ये साड़ी फैशन कहीं दोबारा ट्रोलिंग का कारण न बन जाए.

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