औरतें, पुरूषों से ज्यादा स्ट्रांग हैं -अक्षय कुमार

कभी एक्शन स्टार व खिलाड़ी कुमार के रूप में मशहूर रहे अक्षय कुमार पिछले कुछ सालों से लगातार उन फिल्मों को तवज्जो दे रहे हैं, जो बेहतरीन कहानी व संदेश परक होने के साथ ही नारी सशक्तिकरण की भी बात करती हैं. इन दिनों अक्षय कुमार फिल्म ‘‘मिशन मंगल’’को लेकर चर्चा में हैं. 15 अगस्त को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘मिशन मंगल’’की कहानी 5 नवंबर 2013 को ‘‘इसरो’’ की पांच महिला वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से मंगल ग्रह पर भेजे गए मंगलयान से प्रेरित है. अक्षय कुमार इस फिल्म के निर्माता होने के साथ साथ विद्या बालन,तापसी पन्नू,सोनाक्षी सिन्हा,कीर्ति कुल्हारी व नित्या मोहन के साथ अभिनय भी किया है.  हाल ही में अक्षय कुमार से उनके आफिस में एक्सक्लूसिव बातचीत हुई,जो कि इस प्रकार रही….

फिल्म ‘‘केसरी’’ के बाद अब ‘‘मिशन मंगल’’ की है. इनमें आप क्या अंतर देखते हैं?

-दोनों फिल्मों की कहानी अलग है. दोनों में एक ही समानता है कि इनके किरदार देश के लिए काम करते हैं. फिल्म ‘केसरी’ का नायक आर्मी से जुड़ा है. इसकी कहानी उन 21 सिखों की है, जिन्होंने दस हजार अफगानी सैनिकों, जो कि आततायी थे, हमारे देश के दुश्मन थे से युद्ध करते हुए देश की सुरक्षा की थी.  जबकि फिल्म ‘‘मिशन मंगल’’ पांच औरतों की कहानी है, जो कि वैज्ञानिक हैं. फिल्म ‘केसरी’ के सिखों ने देश की जमीन को सुरक्षित रखने के लिए लड़ा था. तो ‘मिशन मंगल’ की पांच वैज्ञानिक औरतें अंतरिक्ष में पहुंचाने की लड़ाई लड़ती हैं और यान को अंतरिक्ष में पहुंचाने में सफल होती है. दोनों फिल्मों की कहानियां अलग हैं. दोनों के कालखंड अलग हैं. ‘केसरी’ का कालखंड 1897, तो ‘मिशन मंगल’ 5 नवंबर 2013 है. हां! मेरी नजर में दोनों के बीच समनता सिर्फ सिर्फ यह है कि दोनों यथार्थप्रद कहानियां हैं, सत्यघटनाक्रम की कहानियां हैं.

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‘‘मिशन मंगल’’ की किस बात ने आपको इस फिल्म से जुड़ने के लिए प्ररित किया?

-इन पांच औरतों के जीवन की निजी कहानियों ने मुझे बहुत पे्ररित किया. दूसरी बात निर्देशक ने सभी कहानियों को जिस तरह से एक कहानी का हिस्सा बनाया. तीसरी बात हिंदुस्तान के वैज्ञानिकों ने वह काम कर दिखाया,जिसे दुनिया के किसी वैज्ञानिक ने नही किया. हमारी पांच महिला वैज्ञानिकों ने महज 450 करोड़ रूपए की लागत से मंगल यान को मंगल ग्रह तक भेजा. जबकि दुनिया के वैज्ञानिकों ने 6 से 7 हजार करोड़ रूपए खर्च किए. हमारे वैज्ञानिकों ने 450 करोड रूपए में एक पूरा सेटेलाइट मंगल ग्रह पर पहुंचा दिया और आज भी वह सेटेलाइट हमें वहां की तस्वीरें भेज रहा है. यह बजट मेरी फिल्म ‘2. 0’के बजट से भी कम है. क्योंकि हमारी फिल्म‘2. 0’पांच सौ करोड़ की लागत से बनी थी. ‘2. 0’ तो एक फिल्म थी यानी कि रील थी,जबकि सेटेलाइट तो रीयल है,यथार्थ है. तो मुझे लगा कि आखिर इस बात को क्यों ना हम लोगों के सामने पहुंचाएं.

दूसरी बात बचपन से यानी कि जबसे मैंने होश संभाला है,तब से जो बात मेरे दिल और दिमाग में खटकती रही हैं,उसका एक सार मेरे दिमाग को मिला कि हमारे देश में बचपन से ही बच्चों के दिमाग में एक गलत बात डाल दी जाती है कि यह काम सिर्फ लड़का ही करेगा और यह काम सिर्फ लड़की करेगी. हमें सिखाया गया कि कुछ नौकरीयां या काम सिर्फ लड़के यानी मर्द कर सकते हैं. यदि बेटी कहती है कि मुझे इंजीनियर बनना है,तो माता पिता कहते हैं कि डॉक्टर बन या बैंक में नौकरी कर या टीचर या नर्स बन, इंजीनियर तो बेटा बनेगा. यदि बेटी कहे कि उसे वैज्ञानिक बनना है,तो मां बाप उसे यह कह कर मना करेंगे कि वैज्ञानिक तो सिर्फ लड़के बनते हैं. पहले तो पायलट भी सिर्फ मर्द ही बनते थे. पर पिछले कुछ वर्षो से बदलाव आया है.

आपको इस तरह की सोच की वजहें क्या में आयीं?

-इस पर मैंने काफी शोध किया. तो मैंने पाया कि खामियां हमारी शिक्षा व्यवस्था में रही है. बचपन से स्कूलों में जो किताबें पढ़ाई जाती थीं,उसमें सारी कहानियां सिर्फ पुरूष प्रधान होती थीं. सिर्फ पुरूषों के कारनामों का जिक्र होता था. बचपन से ही हम लोगों के दिमाग में यह बात घर कर दी जाती थी कि कोई भी बड़ा काम पुरूष ही करेगा. पर अब कुछ किताबें भी बदली हैं. कहानियंा बदली हैं.

यह बदलाव कब शुरू हुआ और कैसे?

-मैं तो अपनी दिमागी सोच बदलने की बात कर सकता हूं. मैं अपने घर में अपनी पत्नी, बेटी,मां,सास और अपनी बहन के साथ रहता हूं. मेरा बेटा तो लंदन में पढ़ाई कर रहा है,तो वह लंदन मेंं ही रहता है. हम छह लोग जब कमरे में होते हैं,तो मैं सोफे पर बैठकर इन पांच औरतों के बीच आपस में हो रही बातचीत सुनता रहता हूं. हमें इनके बीच बोलने का मौका तो मिलता नही है. सिर्फ बातें सुन लेता हूं. इनसे ही मुझे पता चलता है कि अब समाज में क्या बदलाव आ रहा है. इनके बीच जो बातचीत होती है,उससे ही मुझे हमारी फिल्म की कहानी या स्क्रिप्ट की आइडिया मिलती है. मैं अपनी बहन,पत्नी व सास की बातों से पे्ररित होता हूं. मैंने वैज्ञानिक की बातें भी इन्ही के मुंह से सबसे पहले सुनी थी.

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तो क्या किसी फिल्म को करने से पहले आप फिल्म की स्क्रिप्ट इन लोगों को सुनाकर राय लेते हैं?

-ऐसा मौका अभी तक नहीं आया.  लेकिन फिल्म‘‘पैडमैन’’की कहानी तो मेरी पत्नी ने ही दी थी. पर मैं कभी कभी अपनी फिल्मों की जानकारी इनको दे देता हूं.

जगन शक्ति की यह पहली फिल्म है,तो इस तरह के विषय पर उनके साथ फिल्म करते हुए आपको यकीन कैसे आया?

मैने नये पुराने का भेद कभी नहीं किया. मैंने 22 नए निर्देशकों और करीबन 17 से अधिक नई हीरोइनों साथ काम किया है. सच कहूं तो नए निर्देशक और नए कलाकारों के साथ काम करते हुए मैं कुछ ज्यादा ही इंज्वौय करता हूं. आप यकीन करें या ना करें,पर नए कलाकार या निर्देशकों में जो कुछ करने की भूख होती हैं, कुछ नया करने का जो माद्दा होता है, वह बहुत अलग होता है. वह तो काम मिलते ही, उस पर मेहनत करने के लिए टूट पड़ते हैं. फिल्म ‘‘मिशन मंगल’’ के निर्देशक जगन को ना सोए हुए करीबन सवा महिना हो चुका है.  वह सिर्फ काम ही कर रहा है. इस वक्त बेचारा डिजिटल पर लगा हुआ है. कभी कभी वह स्टूडियो में तीन घंटे के लिए सो जाता है. उसकी कड़ी मेहनत ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया. इसी वजह से अब मैं उनके साथ दूसरी फिल्म‘‘इक्का’’भी करने जा रहा हूं.

फिल्म‘‘मिशन मंगल’’की कहानी में क्या खास रहा?

-पहली बात तो पांच महिला वैज्ञानिकों की कहानी है, जो कि मंगल यान को मंगल ग्रह पर भेजने में सफलता पाती हैं. मुझे एक साधारण से असाधारण बनने की यह जो कथा है, उसने प्रभावित किया.

फिल्म के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

-मैंने वैज्ञानिक राकेश धवन का किरदार निभाया है. एक तरह से इन पांचों का बौस हूं, जो यह मंगल यान का मिशन है, उसका मुखिया है, जिसे मिशन निदेशक कहा गया है.

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मिशन निदेशक और किसी भी फिल्म को सफलता की ओर ले जाने की जिम्मेदारी को किस तरह से देखते हैं?

-दोनों की जिम्मेदारी एक ही है. दोनों की जिम्मेदारी आगे बढ़ने की है. एक अपनी फिल्म को आगे ले जाना चाहता है, दूसरा अपने मिशन को. वैज्ञानिक अपने सेटेलाइट या रौकेट को मुकाम तक पहुंचाना चाहता है. फिल्म का नायक अपनी फिल्म को मुकाम तक पहुंचाना चाहता है.

फिल्मों के विभाजन को आप कितना उचित मानते हैं. कहीं सोनाक्षी सिन्हा ने कहा है कि अक्षय कुमार की फिल्मों को पुरूष प्रधान क्यों नही कहा जाता?

-आए दिन हजारों बयान आते रहते हैं. इन बयानों पर ध्यान नहीं देता. मेरे हिसाब से तो फिल्मों का विभाजन नहीं होना चाहिए. क्योंकि महिला प्रधान या पुरूष प्रधान फिल्म नहीं होती, सिर्फ कहानी प्रधान फिल्म होती है.

गंभीर विषयों पर काम करते हुए अचानक आप‘‘हाउसफुल 4’’जैसे कॉमेडी फिल्म कर लेते हैं. तो क्या यह रिलेक्स करने का मसला है?

-रिलेक्स करने का मसला है. इसके अलावा मैं एक ही ढर्रे पर काम नहीं करना चाहता. इसीलिए दो इस तरह की फिल्में कर लीं,दो उस तरह की. सच यह है कि मैं तो फिल्म इंडस्ट्री में सांस ले रहा हूं. देखिए,हम कभी दाई नाक से, तो कभी बांई नाक से सांस लेते हैं. यही वजह है कि कभी मैं ‘ट्वौयलेट एक प्रेम कथा’ व ‘पैडमैन’ जैसी फिल्म करता हूं. जब रिलेक्स होना होता है तो ‘हाउसफुल’ जैसी फिल्म कर लेता हूं. इसी तरह से मेरे करियर का ग्राफ बनता रहता है.

आपने कल एक बाइक की एड फिल्म की है. शायद अपनी पत्नी के साथ ऐसा पहली बार आपने एड किया है?

-जी नहीं!मैंने अपनी पत्नी के साथ इससे पहले तीन विज्ञापन फिल्में की हैं, जिसमें से एक ‘पी सी ज्वेलर्स’ की एड है. उनके साथ यह मेरी चौथी एड है.

आपको नहीं लगता कि आपको बहुत पहले बाइक की ऐड मिलनी चाहिए थी?

-सर जी. . मैं पिछले नौ साल से हौंडा कंपनी का ब्रांड अम्बेसडर हूं. पर यह पहली बार है,जब इस एड में मेरी पत्नी मेरे साथ हैं.

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अपने तीस साल के करियर में किसे टर्निंग प्वाइंट मानते हैं?

-आप तो बहुत पुराने हैं. आपने मेरे कई इंटरव्यू किए हैं. मेरे बारे में तो आप बहुत कुछ जानते हैं. फिर भी सवाल कर रहे हैं. मेरे करियर में तो  हर पांच छह साल में टर्निंग प्वाइंट आता रहा है. मेरे कैरियर में टर्निंग प्वाइंट बहुत रहे हैं. मैने 16 असफल फिल्में दी. लोगों ने कह दिया कि अब तो ‘यह गया’. पर मैंने फिर से धुंआधार सफलता पायी. एक दो नहीं बल्कि 12 सुपरहिट फिल्में दीं. उसके बाद लगातार कई असफल फिल्में दी. मैने अपने करियर में ‘गया . . . गया’ की आवाजें बहुत सुनी हैं. और कुछ समय बाद ‘फिर आ गया. फिर आ गया’भी बहुत सुना. मेरे साथ ऐसा दो तीन बार हो गया. जबकि अमूमन किसी के करियर में इतनी बार नही होता है.

किस फिल्म को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं?

-मेरी दो फिल्में हैं. ‘जानवर’और ‘संघर्ष’. इनकी वजह से मेरे करियर में बहुत कुछ बदलाव आया.

आप एक फिल्म ‘‘गुडन्यूज’’कर रहे हैं, जो कि महिलाओं से संबंधित हैं और संभवतः सरोगेसी पर है?

-आप कहानी के काफी नजदीक हो, पर कुछ गलत हैं. जब इस फिल्म को लेकर हम चर्चा करेंगे, तभी बात करेंगे. मेरी राय में आप अभी भी थोड़ा गलत हो. पर जो आप बोल रहे हैं, उसी के इर्द-गिर्द कहानी है.

‘‘मिशन मंगल’’से आप लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

-हमारी फिल्म ‘‘मिशन मंगल’’ का संदेश साफ है कि औरतें, पुरूषों से ज्यादा ताकतवर हैं.  मैं लोगों से कहना चाहता हूं कि हमारा देश अब साइंस, टेक्नोलौजी शिक्षा, गणित में तेजी से आगे बढ़ रहा है. मैं कहना चाहता हूं कि हमारी सरकार इस पर काफी ध्यान दे रही है. मैनें कहीं अच्छी बात पढ़ी कि पहले अंतरिक्ष तकनीक को लेकर सरकार का बजट सिर्फ दो तीन प्रतिशत होता था. पर इस नयी सरकार ने इसका बजट 18 प्रतिशत कर दिया है. क्योंकि अब हमारी सरकार यकीन करती है कि हमारे जो वैज्ञानिक हैं,हमारा जो दिमाग है,वह बहुत तेज है और बहुत तेजी से काम कर सकता है. अब हमारे वैज्ञानिक वह काम कर सकते हैं, जिसे विश्व में किसी ने न किया हो.

सरकार मंदिरों के चढ़ावे का भी ले हिसाब

जगन्नाथपुरी, तिरुपति बालाजी, पद्मनाभस्वामी जैसे मंदिरों की संपत्ति कितनी है, इस के बारे में केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. किसी को अनुमति ही नहीं है कि उसे आंकने की कोशिश करे. वैसे भी गिनती कर के करना क्या है, क्योंकि यह सारी संपत्ति चंद पुजारियों की है जो खुद नहीं जानते कि वे इस बिना कमाई के पैसे का क्या कर सकते हैं.

मंदिरों को आज से नहीं हजारों सालों से भरपूर चंदा मिलता रहा है. धर्म की सफलता ही इस बात में रही है कि इस ने घरों से, औरतोंबच्चों के मुंह से निवाला छीनने में कसर नहीं छोड़ी. मिस्र के विशाल मंदिर और पिरामिड इस बात के सुबूत हैं कि घरों की मेहनत को निठल्ले पुजारियों के कहने पर राजाओं ने निरर्थक चीजों पर बरबाद कर दिया.

आज हम इन मंदिरों को देख कर आश्चर्य प्रकट कर लें पर सवाल उठता है कि इतनी मेहनत कराई क्यों गई थी? इस से जनता को क्या मिला?

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जैसे तब के मंदिरों को जम कर लूटा गया और हर राजा विशाल और विशाल मंदिर बनाता रहा कि उस में चोरी न हो पाए ऐसे ही आज के मंदिरों में चोरियों का डर लगा रहता है. किसी भी मंदिर में चले जाएं, वहां बढि़या से बढि़या तिजोरी मिलेगी जिस पर 8-8, 10-10 ताले लगे होंगे. मोटी स्टील की बनी इन हुंडियों में डाले पैसे पर न तो चोरों से भरोसा है न पुजारियों से. आज भी हर मंदिर चढ़ावे का हिसाब देने से कतराता है.

जगन्नाथपुरी मंदिर के रत्न भंडार की चाबियां सालभर से गायब हैं और उच्च न्यायालय व सरकार दोनों माथापच्ची कर रहे हैं कि चाबियां कौन ले गया, क्यों ले गया और कैसे डुप्लिकेट चाबियों से काम चलाया जा रहा है जबकि डुप्लिकेट चाबियां होनी ही नहीं चाहिए.

होना तो यह चाहिए कि मंदिर अगर सचमुच में किसी भगवान का केंद्र है तो वहां न संपत्ति होनी चाहिए और न ही कोई निर्माण. अगर प्रकृति का निर्माता हजारोंलाखों दूसरी चीजें बना सकता है तो अपने बनाए इंसान से अपनी पूजा करवाने के लिए मंदिर क्यों बनवाता है? मंदिर तो सदियों से चली आ रही धार्मिक चाल का परिणाम हैं जहां लोगों को इकट्ठा कर के खुशीखुशी लूटा जाता है. लोगों को कच्चे घरों में भूखा रख कर पक्के मंदिरों में भरपूर खाने के साथ ला कर सिद्ध किया जाता है कि देखो, मंदिर कितना शक्तिशाली है.

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औरतों को इसीलिए धर्म का अंधा बनाया जाता है ताकि वे अपना और बच्चों का पेट काट कर मंदिर में तनमन और धन तीनों दें. इस का हिसाब कोर्ट न ले.

पुरानी ‘कोमोलिका’ से डरे ‘अनुराग-प्रेरणा’, वीडियो वायरल

सीरियल क्वीन कही जाने वाली एकता कपूर के आइकौनिक टीवी शो ‘कसौटी जिंदगी का’ का रीबूट वर्जन यानी ‘कसौटी जिंदगी का 2’ लोगों के बीच खासा पौपुलर हो रहा है. वहीं शो के ‘अनुराग-प्रेरणा’ यानी पार्थ समथान और एरिका फर्नौंडिस की जोड़ी भी लोगों के बीच पौपुलर हो गई है. हाल ही में पार्थ और एरिका ‘नच बलिए 9’ के सेट पर पहुंचे, जिसके बाद पुरानी ‘कोमोलिका’ यानी उर्वशी ढोलकिया अपने ‘कोमोलिका’ के कैरेक्टर में अनुराग प्रेरणा को परेशान करती नजर आईं. आइए आपको बताते हैं पूरा किस्सा…

नच बलिए 9 के सेट पर पहुंचे ‘अनुराग-प्रेरणा’

‘कसौटी जिंदगी की 2’ के एक्टर्स पार्थ समथान हाल ही में अपनी को-स्टार एरिका फर्नांडिस के साथ ‘नच बलिए 9’  के सेट पर पहुंचे थे, जिसमें टीवी की दुनिया की ओरिजनल ‘कोमोलिका’ उर्वशी ढोलकिया प्रतियोगी के तौर पर नजर आ रही हैं.

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”कोमोलिका” के कैरेक्टर में आई उर्वशी

उर्वशी ढोलकिया ने आज के जमाने के अनुराग और प्रेरणा को सेट पर देखा, वैसे ही उनके अंदर की कोमोलिका जाग उठी और सेट पर सभी की सांसे थम गई, जिसके बाद ‘कोमोलिका’ के अवतार में ‘अनुराग और प्रेरणा’ को परेशान करना शुरू कर दिया.

सोशल मीडिया पर उर्वशी ने शेयर की वीडियो

उर्वशी ढोलकिया ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो भी पोस्ट किया है. उर्वशी ने ये वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ‘भरोसा रखिए ‘कोमोलिका’ ‘अनुराग’ को कभी भी नहीं छोड़ेगी…’ के कैप्शन के साथ शेयर किया है. वीडियो में ‘अनुराग और प्रेरणा’ दोनों मिलकर भी असली ‘कोमोलिका’ का सामना नहीं कर पा रहे हैं.

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बता दें, ‘कसौटी जिंदगी की सीजन 2’ की बात की जाए तो यह औडियंस के बीच काफी पौपुलर हो रहा है. शो हर हफ्ते टीआरपी लिस्ट में भी अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रहा है. वहीं ‘कोमोलिका’ के कैरेक्टर में हिना खान भी औडियंस के बीच जगह बना चुकी हैं. साथ ही अब ‘मिस्टर बजाज’ यानी करण सिंह ग्रोवर भी लोगों को अपनी ओर अट्रेक्ट करने में कामयाब हो रहे हैं.

शादी के 2 महीने बाद हनीमून पर नुसरत जहां, फोटोज वायरल

एक्टिंग के करियर से राजनीति में कदम रखने वाली टीएमसी सांसद नुसरत जहां की हाल ही में बिजनेस मैन निखिल जैन से शादी हुई थी, जिसके बाद वह अक्सर सुर्खियों में रहने लगीं हैं. अपनी शादी के बाद कुछ दिन बिजी रहने के बाद अब नुसरत अपने पति के साथ हनीमून पर वेकेशन मना रही हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर उनके हनीमून की वेकेशन मनाने की फोटोज वायरल हो रही हैं, जिसमें वह अलग अंदाज में नजर आ रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनके वेकेशन की खास फोटोज…

वैस्ट्रन लुक के साथ हाथ में दिखा चूड़ा

 

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हनीमून की फोटोज में नुसरत साड़ी को छोड़कर वैस्ट्रन लुक में नजर आई. धूप में खड़ी नुसरत का यह लुक उन पर काफी जंच रहा है. साथ ही वेस्टर्न लुक के साथ हाथ में लाल चूड़े से साफ पता चल रहा है कि नुसरत अपने पति के लिए सभी रस्मों को बड़े ही शान से निभा रही हैं.

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पति निखिल का हाथ थामें नजर आईं नुसरत

 

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शादी के काफी दिन बिजी रहने के बाद नुसरत पति निखिल के साथ क्वौलिटी टाइम बिताती हुई नजर आईं. जहां एक तरफ वह हर जगह इंडियन लुक में नजर आती थीं. वहीं अपने हनीमून पर नुसरत वेस्टर्न लुक में पति निखिल का हाथ थामें नजर आईं.

रिलेक्स करने हुए नजर आईं नुसरत 


अपने वेकेशन पर नुसरत बोट पर रिलेक्स करते नजर आईं. साथ ही उनका बिकिनी लुक लोगों को खासा पसंद आ रहा था. सोशल मीडिया वायरल फोटोज पर उनके फैंस उनके लुक की तारीफें करते नही थक रहे हैं.

धूप को इन्जौय करती दिखीं नुसरत

पति के साथ घूमते हुए नुसरत कोल्डड्रिंक के जरिए खुद को गर्मी से बचाती दिखीं तो वहीं काले चश्में से अपनी आंखों को धूप से बचाती दिखीं. यहां पर नुसरत का यह अंदाज लोगों को बड़ा ही पसंद आ रहा है.

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बता दें, टीएमसी सांसद नुसरत जहां ने पति निखिल जैन से भारत से दूर तुर्की में शादी की थी, जिसके बाद वह बासिरहौट सीट से सीट जीत कर सांसद बनी. वहीं हाल ही में उनकी शादी के ग्रैंड रिसेप्शन की फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. जिसके बाद उनके फैंस उनकी हर जानकारी से अपडेट रहना चाहते हैं.

सभ्यता औरतों के हकों के खिलाफ क्यों?

आज भी किसी औरत से मिलते हुए पहला नहीं तो दूसरा सवाल यही होता है कि आप के पति क्या करते हैं? आज भी औरतों का अकेले होना न समाज को स्वीकार है और न ही कानून को. कानून भी बारबार पूछता है कि आप के पति कौन हैं, कौन थे और अगर नहीं तो पिता कौन हैं? एक आदमी से कभी नहीं पूछा जाता कि आप की पत्नी कौन है, क्या करती है?

इस मामले ने हमेशा ही औरतों को अकेला रखा है मानो यदि पति न हो तो पत्नी की सुरक्षा हो ही नहीं सकती. यह तब है जब निर्भया कांड में बलात्कार की शिकार के साथ एक पुरुष मित्र था यानी पुरुष का सान्निध्य औरत की शारीरिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है. आजकल सोशल मीडिया पर सैकड़ों वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिन में 3-4 भगवा गमछाधारियों ने लड़केलड़की को पकड़ कर लड़की का लड़के के सामने बलात्कार किया और लड़का कुछ न कर पाया.

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घरों में चोरी होने पर अकसर ऐसे मामले ही ज्यादा होते हैं जब औरतों के साथ पूरा परिवार होता है. औरतों के साथ किसी पुरुष का होना कोई सुरक्षा की गारंटी नहीं है. सदियों से दलितों की औरतों का उन के पतियों के सामने अपहरण किया जाता रहा है. यहां तक कि हमारी धार्मिक कहानियों में सीता का अपहरण विवाहित होने के बावजूद हुआ था. इस के मुकाबले तो शूर्पणखा अच्छी थी जो अकेले जंगल में राम और लक्ष्मण के साथ प्रेम निवेदन कर सकी थी या हिडिंबा भीम के समक्ष अपनी इच्छानुसार बिना शर्म के संबंध बना सकी थी.

आज अकेली औरतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है पर समाज का दृष्टिकोण नहीं बदल रहा और कानून भी बहुत धीरेधीरे बदल रहा है. काफी जद्दोजहद के बाद कानूनी दस्तावेजों में पिता के स्थान पर मां का नाम लिखने की अनुमति मिली है पर अभी भी पत्नी की पहचान पति से ही हो रही है.

विवाह न औरतों की खुशी के लिए होता रहा है न उन की इच्छा पर. यह तो समाज का दबाव है कि पिता बेटी से छुटकारा पाना चाहता है. यदि समाज का दबाव न हो तो पिता बेटी को जिस से मरजी शादी की अनुमति दे देता पर भारत से ले कर तुर्की, इजिप्ट और यहां तक कि चीन और अमेरिका में भी पिताओं को यह चिंता रहती है कि कहीं बेटी का मनचाहा उन के परिवार व स्तर का नहीं हुआ तो क्या होगा.

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आदमियों को छूट है कि वे कुछ दिन खिलवाड़ कर लें किसी भी लड़की के साथ और कहते रहें कि वे सीरियस नहीं हैं पर अगर लड़की किसी के साथ 4 बार चाय भी पी ले तो मांबाप पीछे पड़ जाते हैं कि लड़का शादी लायक मैटीरियल है या नहीं? अकेली औरतों का वजूद ही नहीं है.

जेम्स बौंड की सीरीज में अब तक जेम्स बौंड 007 केवल गोरा पुरुष होता था. अब बदलाव की हवा को देखते हुए एक अश्वेत युवती को जेम्स बौंड की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे हमारे देश में नाडिया को कालीसफेद फिल्मों के युग में एक बार किया गया था.

अकेली औरतों की दुर्दशा सभ्य समाजों में ज्यादा हुई है. दुनियाभर में आदिवासी समाजों में औरतों को बराबर के हक मिले हैं. सभ्यता औरतों के हकों और उन के व्यक्तित्व पर भारी पड़ी है, जहां वे गुलाम और खिलौना बन कर रह गई हैं.

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जानिए क्यों बच्चे के लिए जरुरी है मां का दूध

ब्रेस्टफीडिंग कराने की सलाह डौक्टर प्रत्येक महिला को देते हैं चाहे वे किसी भी धर्म और संस्कृति की क्यों न हों. ब्रेस्टफीडिंग से शिशु और मां दोनों को बहुत-से लाभ होते हैं. ब्रेस्टफीडिंग कराने के कई लाभों के बावजूद, ब्रेस्टफीडिंग संस्कृति धीरे-धीरे कम हो रही है और बोतल-फीडिंग संस्कृति द्वारा इसे खत्म किया जा रहा है. यह निम्नलिखित तरीकों से बच्चे को लाभान्वित करता है –

1. डाइजेशन के लिए है बेस्ट

कोलोस्ट्रम यानी दूध, जो ब्रेस्ट, शुरुआती दिनों में बनाते हैं, वे बच्चे के पाचनतंत्र को विकसित करने और उसके अनेक क्रिया-कलाप करने में सहायता करता है. यह भी देखा जाता है कि ब्रेस्टफीडिंग करने वाले शिशुओं को बोतल से दूध पिलाने वाले शिशुओं की तुलना में कम कब्ज और पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं.

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2. बेबी रहता है बीमारियों से दूर

ब्रेस्ट के दूध में मौजूद एंटी-बायोटिक बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता अर्थात बिमारी से लड़ने की क्षमता के निर्माण में मदद करता है जिससे बच्चे को संक्रमण, दस्त, अस्थमा, मोटापा, एलर्जी आदि होने का खतरा कम हो जाता है.

3. बेबी के विकास में करता है मदद

यह बच्चे के मस्तिष्क के प्रारंभिक विकास में भी मदद करता है. हालांकि, संज्ञानात्मक कौशल और इसके बाद के प्रभाव के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता.

4. SIDS (सडन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम) का शिकार होने से बचते हैं बेबी

जिन शिशुओं को ब्रेस्टफीडिंग करवाई जाती है, उनमें SIDS (सडन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम) का शिकार होने की कम संभावना रहती है. SIDS (सडन इन्फैंट डेथ सिंड्रोम), एक ऐसी स्थिति है जिसमें शिशु के पीड़ित होने के कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है लेकिन बिस्तर पर रखे जाने के बाद मृत पाया जाता है.

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इसके अतिरिक्त, ब्रेस्टफीडिंग कराने से मां को भी होता है लाभ –

5. बेबी के साथ गहरा होता है रिलेशन

यह मां और बच्चे के बीच एक अद्वितीय भावनात्मक बंधन बनाने में मदद करता है और प्रसव के बाद के अवसाद की घटनाओं को भी रोकता है. यह आपके ब्रेस्ट में हमेशा उपलब्ध है और बोतल के दूध की तुलना में सस्ता भी है और पोषक तत्वों से भरपूर है.

6. डिलीवरी के बाद कम होती है ब्लीडिंग

ब्रेस्ट का दूध औक्सीटोसिन नामक एक हार्मोन भी छोड़ता है जो गर्भाशय को सिकोड़ने में मदद करता है और अपनी पिछली स्थिति में तेजी से वापस लौटता है. इसके अतिरिक्त यह प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव को कम करने में भी मदद करता है.

7. मां भी बची रहती हैं बीमारियों से  

बढे हुए वजन को भी तेजी से कम करने में मदद करता है. यह गर्भाशय और डिम्बग्रंथि के कैंसर के साथ-साथ ब्रेस्ट कैंसर के विकास के जोखिम को भी कम करता है.

डॉ. रीता बक्शी, स्त्री रोग विशेषज्ञ व आईवीएफ एक्सपर्ट, इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर से की गई बातचीत पर आधारित

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38 की उम्र में फिर ‘दुल्हन’ बनीं ‘नागिन’ फेम अनीता हसनंदानी, फोटोज वायरल

बौलीवुड से लेकर टीवी तक अपना नाम बनाने वाली एक्ट्रेस अनीता हसनंदानी इन दिनों स्टार प्लस के रियलटी शो नच बलिए 9 में नजर आ रही हैं, जिसमें वह अपने हस्बैंड के साथ डांस करती हुई दिख रही हैं. वहीं हाल ही में खबरें हैं कि पति रोहित की बीमारी के चलते अनीता इस हफ्ते शो का हिस्सा नही बन पाएंगी. अब बात शो से हटके उनके फैशन से करें तो हाल ही में अनीता ने एक ब्राइडल आउटफिट में फोटो शूट करवाया, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. अनीता के इस ब्राइडल फैशन को आप अपनी शादी या किसी करीबी की शादी में ट्राय कर सकती हैं.

1. अनीता हसनंदानी का peach कलर का लहंगा करें ट्राय

अगर आप अपनी शादी में कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो अनीता का ये peach कलर का लहंगा आपके लिए परफेक्ट रहेगा. आजकल ट्रेंड में लाउड कलर नही बल्कि सिंपल कलर हैं. अनीता का ये सिंपल सिलवर एम्ब्रायडरी वाला लहंगा आपके लिए बेस्ट है. अगर आप का कलर डार्क या सांवला है तो लाइट कलर का ये लहंगा आपके लिए अच्छा औप्शन है.

 

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2. ज्वैलरी रखें हैवी

ध्यान रखें कि अगर आप लहंगा लाइट कलर पसंद कर रहे हैं तो ज्वैलरी हैवी होनी चाहिए क्योंकि ये आपके लहंगे को आपके लुक से बैलेंस करेगा. साथ ही आपके लुक को ब्यूटीफुल और ट्रैंडी बनाएगा.

3. अनीता की तरह मेकअप रखें सिंपल 

अगर आप का कलर डार्क या सांवला है तो कोशिश करें की मेकअप सिंपल रखें. हैवी ज्वैलरी आपके सिंपल और न्यूड मेकअप को आपके ब्राइडल लुक से बैलेंस करने में मदद करेगा. अनीता की तरह आपका लुक भी सिंपल, एलिगेंट और ब्यूटीफुल लुक भी लोगों को हैरान कर देगा,

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बता दें, अनीता हसनंदानी ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत बौलीवुड में साल 1999 की फिल्म ताल से की थी, जिसमें अनीता ने बौलीवुड की फेमस एक्ट्रेस ऐश्वर्या की बहन का किरदार निभाया था. वहीं  अनीता हसनंदानी एकता कपूर के भाई तुषार कपूर के साथ फिल्म ‘कुछ तो है’ में भी नजर आईं. टेलीविजन इंडस्ट्री में आने के बाद भी अनीता का जलवा कायम रहा और आज भी वह सफल एक्ट्रेसेस में से एक मानी जाती हैं.

पत्नियों की इन 7 आदतों से चिढ़ते हैं पति

पति और पत्नी का रिश्ता भी अनोखा है. यह कुछ खट्टा है, तो कुछ मीठा. पति पत्नी के बिना रह भी नहीं सकते हैं, तो उन की कई आदतों से पतियों को चिढ़न भी होती है. कभीकभी पति झगड़े के दौरान अपनी नापसंद का खुलासा कर देते हैं, तो कभी कलह के डर से चुप रह कर मन ही मन कुढ़ते रहते हैं. आइए, जानते हैं कि पत्नियों की वे कौन सी आदतें हैं, जो पतियों को पसंद नहीं होतीं और उन से वे परेशान हो उठते हैं:

1. दूसरी महिलाओं की प्रशंसा से ईर्ष्या

अकसर दूसरी किसी महिला की प्रशंसा अपने पति के मुंह से सुनते ही पत्नी के चेहरे का रंग बदल जाता है. उस के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है. मन में शक का बीज पनप जाता है. उसे लगने लगता है कि अवश्य ही पति उस महिला की ओर आकर्षित हो रहा है. कुछ महिलाएं भावुक हो कर पति को खरीखोटी भी सुनाने लगती हैं या फिर मुंह फुला कर बैठ जाती हैं. बहुत सी तो आंखों से आंसू बहाते हुए यह भी कहने लगती हैं कि तुम्हें तो मेरी कोई चीज अच्छी ही नहीं लगती. सारा दिन उसी के गुण गाते रहते हो. उसी के पास चले जाओ. पतियों को पत्नियों की यह आदत बिलकुल अच्छी नहीं लगती.

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2. सैक्स को हथियार बनाना

सैक्स पति और पत्नी दोनों की नैसर्गिक जरूरत होती है. लेकिन पत्नियां कई बार इस प्राकृतिक जरूरत को अपना हथियार बना लेती हैं. कोई भी ऐसी बात मनवानी हो या हलकी सी भी झड़प हो जाए तो वे पति को सब से पहले सैक्स से ही वंचित करती हैं. एक ही बिस्तर पर होने के बावजूद मुंह विपरीत दिशा में कर के सो जाती हैं. पत्नियों की यह आदत पतियों को नागवार लगती हैं.

3. बात घुमाफिरा कर कहना

कई पत्नियां किसी भी बात को साफसाफ नहीं कहतीं. हमेशा घुमाफिरा कर संकेत देने की कोशिश करती हैं. ऐसे में जब पति उन का मकसद नहीं समझ पाते, तो वे ताने कसने लगती हैं. फिर भी पति इशारे को समझ नहीं पाते तो वे चिड़चिड़ी हो कर गलत व्यवहार करने लगती हैं. अत: पति चाहते हैं कि पत्नी जो भी कहना चाहे साफसाफ कहे.

4. पर्सनल चीजों से छेड़छाड़

अपनत्व, एकाधिकार जताने के लिए जब पत्नियां औफिस बैग, पैंटशर्ट की जेब, पर्स, मोबाइल, लैपटौप जैसी चीजों से छेड़छाड़ करती हैं या उन की स्कैनिंग करती हैं, तो इस से पतियों को मन ही मन बहुत कोफ्त होती है. ज्यादा परेशानी तो तब महसूस होती है जब वे किसी महिला फिर चाहे वह कोई क्लाइंट ही क्यों न हो, का फोन एसएमएस, फोटो या कोई कागजात देख कर उस के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करने लगती हैं. पर्स में ज्यादा रुपए देख कर पूछने लगती हैं कि ये कहां से आए, किस ने दिए आदि.

5. लगातार बोलते रहना

कई पत्नियां एक बार बोलना शुरू हो जाए, तो नौनस्टौप बोलती रहती हैं. पता नहीं उन के पास इतनी बातों का स्टौक कहां से आता है. सहेली की शादी में जा कर आएं, डाक्टर को दिखा कर आएं, पड़ोसी के घर में नया टीवी आए, विषय कोई भी हो, वे उस की रनिंग कमैंट्री शुरू कर देती हैं. 1-1 मिनट का ब्योरा पूरे विस्तार के साथ देने लगती हैं. जबकि पति चाहते हैं कि बातचीत सीमित हो. टू द पौइंट हो.

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6. हर वक्त टोकाटाकी

कुछ पत्नियां हर वक्त टोकाटाकी करती रहती हैं. मानों उन्हें अपने पति की हर गतिविधि या आदत पर एतराज होता है. जैसे आज यह ड्रैस क्यों पहनी? आज जल्दी क्यों जा रहे हो? आज देर से क्यों आए? इतने फोन क्यों करते हो? 2-2 मोबाइल क्यों रखते हो? ऐसे सवालों की बहुत लंबी लिस्ट है, जिन्हें पूछपूछ कर पत्नियां पतियों को पका देती हैं.

7. शौपिंग की लत

शौपिंग करना पत्नियों की बड़ी कमजोरी है. कई बार तो वे टाइमपास या मन बहलाने के लिए शौपिंग करती हैं. उन की शौपिंग बड़ी बोरिंग होती है. 1-1 चीज को ध्यान से देखना और उस की कीमत पूछना, कपड़ों को अपने शरीर से लगालगा कर देखना, बिना जरूरत खानेपीने की चीजों को खरीदना, डिस्काउंट के लालच में अधिक मात्रा में खरीद लेना और फिर फेंक देना आदि सचमुच इरिटेटिंग आदतें हैं. पति इन से बहुत ज्यादा चिढ़ते हैं.

Friendship Day Selfie: एक कविता दोस्त के नाम

डौक्टर प्रीती प्रवीण खरे (भोपाल)

दुख की रात विफल करता, सुख की भोर धवल करता

मुश्किल सारी हल करता

धूप हमारी वो हर लेता, छांव हमेशा हमको देता

धोखा हमसे कभी न करता, सच्चाई के रस्ते चलता

दिल में वो उल्लास जगाये, ख़ुशियों वाले दीप जलाये

मुस्कानों से प्यार लुटाये, साथ सदा त्यौहार मनाये

महकाये संसार हमारा,  दूर करे अंधियार हमारा

विश्वासों का सार हमारा, मित्र ही है घर बार हमारा

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Friendship Day Selfie: इस दोस्ती को किसी की नजर न लगे

Friendship Day Selfie: हर रिश्ते से बढ़कर है दोस्ती

पूनम पाठक           

दोस्ती जैसे रिश्ते को शब्दों में बांध पाना मुश्किल है. सच्चा दोस्त वही होता है जो खुशियों से अधिक परेशानी के वक्त आपके साथ खड़ा हो. एक ऐसा दोस्त जो आपके ‘ठीक हूं’ कहने के बाद भी आपकी आंखों को नमी को महसूस कर ले. यूं तो मेरे दोस्तों की संख्या बहुत कम है. लेकिन जो हैं वे सभी दिल के बहुत करीब हैं. ऐसी ही एक दोस्त है राखी.

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राखी से अकस्मात हुई अपनी दोस्ती को मैं कभी नही भूल पाती. उसके घर के सामने वाली सड़क पर अपनी बेटी की स्कूल बस का इंतजार किया करती थी मैं और ऐसे ही एक दिन उससे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ जो कभी न खत्म होने वाले किसी मूल्यवान खजाने में तब्दील हो गया. हम एक दूसरे के साथ खुल कर अपनी भावनाओं और विचारों की साझेदारी करते हैं. जहां एक दूसरे के गुणों की प्रशंसा करते हैं वहीं एक दूसरे की गलतियों की खुलकर आलोचना भी करते हैं. वक्त पड़ने पर एक दूसरे को सही सलाह देते है भले ही वह उस वक्त उसे थोड़ी कड़वी ही क्यों न लगे.

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जिंदगी के कई मुश्किल दौर में राखी ने नाते रिश्तेदारों से पहले मेरी ओर मदद का हाथ बढ़ाया है. हमारी दोस्ती सभी मानको से परे है. वो मेरी सफलता में शामिल होकर मेरी खुशियों को दुगुना कर देती है, जबकि दुखो को बांटकर उन्हें आधा कर देती है. इस तरह उसके साथ बिताया हर पल मेरे लिये खूबसूरत याद बन जाता है. भले ही कभी हम महीनों न मिले हों लेकिन दिल में उसकी याद हर लम्हा बरकरार रहती है. उसकी दोस्ती ने मुझे कई मानो में तराशा है. एक तरफ़ मानसिक तौर पर मुझे मजबूत बनाया है तो दूसरी ओर जिंदादिली से जीना सिखाया है. उसकी सबसे बड़ी खूबी है कि वह अपने सभी रिश्तों के प्रति ईमानदार है. फ्रेंडशिप डे पर मैं उसे खूब सारी बधाई और ढेर सा प्यार कहना चाहूंगी. सच उसकी दोस्ती मेरे लिए प्रकृति का अनमोल उपहार है जिसे मैं ताउम्र संभाल कर रखना चाहूंगी.

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एडिट- निशा 

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