मां की इस एक गलती से बच्चे हो सकते हैं मोटापे का शिकार

धूम्रपान सेहत के लिए बेहद हानिकारक होता है, फिर चाहे वो पुरुष हो या महिला, धूम्रपान सभी की सेहत को बुरी तरह से प्रभावित करता है. खास कर के गर्भवती महिलाओं को और अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए. जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त स्मोकिंग करती हैं वो अपनी सेहत के साथ साथ अपने बच्चे की भी सेहत के साथ खिलवाड़ करती हैं. हाल ही में सामने आई एक स्टडी में ये बात सामने आई की जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के वक्त धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चे बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं.

क्या कहती है रिपोर्ट

स्टडी की रिपोर्ट में बताया गया है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं उनके बच्चे की स्किन में केम्रीन प्रोटीन फैल जाता है. बता दें यह एक तरह का प्रोटीन है जो शरीर में फैट कोशिकाओं द्वारा बनता है.

smoking of mother causes obesity in child

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कहीं आपके प्रेग्नेंट ना होने का कारण आपके पति की ये कमी तो नहीं?

क्या कहती है पहले की रिपोर्ट

इसी मामले में आई पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि मोटापे से पीड़ित लोगों के ब्लड में केम्रीन प्रोटीन भारी मात्रा में पाया जाता है. जबकि हाल में इसपर आई नई रिपोर्ट के मुताबिक प्रेग्नेंसी के दौरान स्मोकिंग करने से बच्चों की जींस में बदलाव आते हैं, जो शरीर की फैट कोशिकाओं को बनाने में अहम भूमिका निभाती हैं.

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बच्चों की अच्छी सेहत के लिए इस खबर को पढ़ें

क्या कहते हैं जानकार

शोध में शामिल जानकारों की माने तो स्टडी के आधार पर ये कहा जा सकता है कि जो महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती हैं, उनके बच्चों को मोटे होने का अधिक खतरा होता है. हालांकि, इसके पीछे के कारण की अभी पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो पाई है.

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ये हैं सैंपल

बता दें, इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 65 प्रेग्नेंट महिलाओं को शामिल किया. नतीजों में सामने आया कि स्टडी में शामिल आधी से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाएं प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करती थीं.

अगर मां को है डायबिटिज तो बच्चों को हो सकती है ये बीमारी

आजकल लोगों में शुगर की शिकायत बेहद आम हो गई है. खानपान और खराब लाइफस्टाइल इसका सबसे बड़ा कारण है. ये परेशानी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. ऐसे में गर्भवती महिलाएं जो शुगर से पीड़ित हैं उनके लिए खतरा और अधिक हो जाता है. हाल ही में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि गर्भवती महिलाएं जिनको शुगर की बीमारी है उनके बच्चों में अटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऔर्डर (एएसडी) का खतरा बढ़ जाता है.

क्या है अटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऔर्डर (एएसडी)

ये एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें व्यक्ति को समाजिक संवाद स्थपित करने में परेशानी आती है और वो आत्मकेंद्रित बन जाता है.

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क्या कहता है शोध

इस शोध में ये बात सामने आई कि यह खतरा टाइप-1 और टाइप-2 के विकार और गर्भावस्था के दौरान मधुमेह से पीड़ित होने से संबंधित है. शोध में पाया गया कि एएसडी का खतरा मधुमेह रहित महिलाओं के बच्चों की तुलना में उन गर्भवती महिलाओं के बच्चों में ज्यादा होता है, जिनमें 26 सप्ताह के गर्भ के दौरान मधुमेह की शिकायत पाई जाती है.

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कौन हैं सैंपल

इस शोध में 4,19,425 बच्चों को शामिल किया गया, जिनका जन्म 28 से 44 सप्ताह के भीतर हुआ था. यह शोध 1995 से लेकर 2012 के दौरान किया गया.

5 टिप्स: गरमी में फटी एड़ियों को ऐसे कहें बाय…

लेडीज की बौडी के साथ-साथ अगर पैर भी सुंदर हो तो वह पर्सनेलिटी में चार-चांद लगा देती है, लेकिन अगर क्रैक हील्स हो तो वह न केवल शर्मनाक महसूस कराता हैं, बल्कि दर्दनाक भी साबित होता हैं. आप जानते हैं कि क्रैक हील्स के साथ घूमना मुश्किल होता है. इसलिए, आप अपने पैर के क्रैक हील्स को छिपाने के लिए नए-नए तरीके आजमाते हैं, और जितना ज्यादा आप उन्हें छिपाते हैं, उतना ही अजीब महसूस करते हैं. क्रैक हील्स के डिहाइड्रेशन, डाइड प्रौपर न होने के कारण और गलत टाइप के शूज पहनने से हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि हील्स बुरी तरह क्रैक, दर्द और खून निकलने से पहले ही आप अपनी हील्स का ख्याल रखना शुरू कर दें. लगभग लोग घर पर नौर्मल पेडीक्योर टिप्स के बारे में जानते होंगे. पर आज हम आपको पेडिक्योर के अलावा कुछ और फुट केयर टिप्स के बारे में भी बताएंगे.

  1. बेकिंग सोडा का करें इस्तेमाल

हर घर के किचन में मिलने वाला बेकिंग सोडा आपके पैरों से क्रैक हील्स को कम करने के साथ-साथ हील्स को सौफ्ट बनाएगा.

ऐसे करें इस्तेमाल…

गुनगुने पानी में बेकिंग सोडा के दो बड़े चम्मच मिलाएं. जिसके बाद अपने पैरों को लगभग आधे घंटे तक बेकिंग सोडा वाले गुनगुने पानी में रखें. ज्यादा फायदे के लिए आप इसमें बाजार में आसानी से मिलने वाले बाथ सौल्ट (नहाने में इस्तेमाल होने वाला नमक) को भी मिला सकते हैं. जो स्किन को सौफ्ट बनाने और मांसपेशियों को आराम देने में मदद करता है. इसे रोजाना दोहराए.

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  1. केले का मैजिक

केला एक ट्रौफिकल फ्रूट है जो कई हेल्थ से जुड़ी प्रौब्लम के लिए फायदेमंद साबित होता है. यह बिना किसी प्रौब्लम के क्रैक हील्स को ठीक करने में भी मदद करता है और मुलायम रखता है.

ऐसे करें इस्तेमाल…

एक पके केले को मिक्सी में डालकर उसका पेस्ट बनाकर अपने पैरों पर 10 मिनट तक लगाएं और फिर इसे गर्म पानी से धो लें. हफ्ते में एक बार इसे आजमाएं.

3. औलिव औयल का है कमाल

औलिव औयल एक बहुत अच्छा मौइस्चराइजर है, खासकर शुष्क त्वचा के लिए. जो आपके हील्स को नेचुरली मुलायम बनाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल…

सबसे आसान तरीका है एक कौटन बौल को औलिव औयल में डुबोएं और इसे प्रभावित हिस्सों पर लगाएं. हील्स पर धीरे-धीरे औयल लगाकर मालिश करें और मालिश के बाद स्किन पर पूरी तरह तेल सोखने के लिए  मोजे पहनें और एक घंटे के बाद पैरों को धो लें. ज्यादा फायदे के लिए रात भर पैरों पर औयल लगाकर रखें और अगली सुबह धो दें.

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4. हनी का करें इस्तेमाल

शहद में कईं हीलिंग प्रौप्टीज होती है जो स्किन के लिए बेस्ट प्रौडक्ट हैं. इससे आपके पैरों को नेचुरल तरीके से मुलायम रखने में मदद मिलेगी.

ऐसे करें इस्तेमाल…

एक बाल्टी गर्म पानी में एक कप कच्चा शहद मिलाकर अपने पैरों को उस बाल्टी में डालें. इसे हर दिन लगभग 10 से 15 मिनट तक करें और क्रैक हील्स को कहे बाय-बाय.

5. बेस्ट नेचुरल मौइस्चराइजर है दूध

दूध ड्राई स्किन को हाइड्रेट करता है, मैच्योर स्किन को एक्सफोलिएट करता है, इचिंग स्किन को शांत करता है और डार्क स्किन को लाइट करता है. साथ ही आपकी स्किन को मौइस्चराइज करके मुलायम बनाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल…

एक कप गर्म दूध में कुछ देर के लिए अपने पैरों को भिगोएं. हर दिन ऐसा करें और आप जल्द ही आपको मुलायम पैरों का एहसास होगा.

टेस्टी कौलीफ्लौवर सिगार्स के साथ शाम बनाएं मजेदार

आजकल बच्चों के सामने अगर सब्जियों का नाम लें, तो वह खाने से दूर-दूर भागना शुरू कर देते हैं. हर किसी को बाहर बने पिज्जा, बर्गर और पकौड़े पसंद आते हैं. इसलिए आज हम आपको एक ऐसी रेसेपी के बारे में बताएंगे, जिसे देखकर न ही आपके बच्चे खाने से दूर भागेंगे और न ही खाने में नखरे दिखाएंगे.

सामग्री

1 कप कसा गोभी

1-2 हरीमिर्च

1 आलू

4-5 स्प्रिंग रोल शीट्स

तलने के लिए तेल

2 बड़े चम्मच मैदा

1 बड़ा चम्मच तेल

नमक स्वादानुसार

बनाने का तरीका

सबसे पहले आलू को छील कर कस लें. और कड़ाई में तेल गरम करके फूलगोभी, आलू, मिर्च और नमक डाल कर 5-6 मिनट तक धीमी आंच में ढक कर पकाएं. ठंडा होने के बाद एक कटोरी में मैदे में पानी डाल कर पेस्ट बनाएं. इसके बाद स्प्रिंग रोल शीट्स में गोभी की फिलिंग डालकर रोल करके मैदा के पेस्ट से सील कर लें. कड़ाई में तेल गरम कर सभी तैयार रोल्स को सुनहरा होने तक तलें. और चटनी या सौस के साथ गरमा-गरम परोसें.

खारा पानी

मुंबई की चाल में पैदा हुई शालिनी, बबलू मास्टर की देखरेख में शालिनी से डांसर शालू और फिर फिल्म स्टार बन गई. विदेशी डेविड को समीप से देखने का मौका मिला तो शालू उस की नीली आंखों में ऐसा खोई कि अपना सबकुछ भूल गई. शालू को क्या पता था कि जिसे वह अपना समझ रही है वह उसे नहीं उस की शोहरत और दौलत को चाहता है…

भाग-1

शालू को पता नहीं क्या हो गया था. 50वीं बार उस ने जिगनेश से किलक कर कहा, ‘‘अमेरिका जा कर सब से पहले डिजनीलैंड देखूंगी.’’

जिगनेश ने जवाब नहीं दिया. इस से पहले वे कई बार कह चुके थे, ‘‘हां, जरूर, उसी के लिए तो हम अमेरिका जा रहे हैं.’’

लेकिन शालू की अमेरिका जाने की वजह कुछ और थी. वह सालों बाद अपने बेटे बौबी और उस के परिवार से मिलने जा रही थी. पिछली बार कब मिली थी बौबी से? वह दिमाग पर जोर डाल कर सोचने लगी. शायद 8 साल पहले. बौबी अकेला ही मुंबई उस से मिलने आया था. बौबी के आने की वजह थी कि वह अमेरिका में एक घर खरीदना चाहता था और उस के पास पैसे नहीं थे. शालू ने अपने लाड़ले बेटे का माथा चूमते हुए तब कहा था, ‘तो क्या हुआ बौबी, मैं हूं न. एकदो धारावाहिक में ज्यादा काम कर लूंगी. तू अपने लिए घर ले, पैसे मैं दूंगी.’

बौबी खुश हो कर 2 दिन बाद ही वापस चला गया था. जिंदगी यों ही बीतती गई. महीने में एकाध बार मांबेटे से बात हो जाती, बस. महीना भर पहले जब शालू ने जिगनेश से शादी करने का निश्चय किया, तब फोन किया था बौबी को. उसे पता था कि उस के निर्णय से बौबी जरूर खुश होगा. बौबी ने उस का संघर्ष और अकेलापन देखा है.

बौबी ने उस से सिर्फ एक सवाल किया, ‘‘मां, तुम सोचसमझ कर शादी कर रही हो ना?’’

‘‘हां, बेटे, जिगनेश ने और मैं ने 3 धारावाहिकों में एकसाथ काम किया है. बहुत अच्छे आदमी हैं. खुले दिल के, हंसते रहते हैं और मेरा बहुत खयाल रखते हैं,’’ शालू उत्साह से बोली थी.

‘‘वह तो ठीक है मां, पर इस उम्र में? वे तुम से क्या चाहते हैं?’’

शालू हंसी थी, ‘‘अरे, पागल, वे मुझ से उम्र में 3 साल छोटे हैं. मुझ से क्या चाहेंगे? बस, हम दोनों एकदूसरे को चाहते हैं, साथ रहना चाहते हैं, बस.’’

उस समय शालू को यह कतई नहीं लगा था कि बौबी उस की शादी से नाखुश है. जब उस ने बताया कि वे दोनों उस से मिलने अमेरिका आ रहे हैं तो वह चौंका.

शालू प्यार से बोली, ‘‘बौबी, मैं ने तेरी बेटी को नहीं देखा. बहू से भी नहीं मिली. वहां आऊंगी तो सब से मिलना भी हो जाएगा और मेरा डिजनीलैंड देखने का सपना भी पूरा हो जाएगा. तू चिंता मत कर. मैं वीजा वगैरह यहीं से बनवा रही हूं. टिकट भी बुक करवा लिया है. बस, तुझे आने की तारीख और फ्लाइट के बारे में बता दूंगी. मैं तो पागल हो रही हूं तुझ से मिलने के लिए. तुझे यहां से क्याक्या चाहिए, बता दे. मैं सब ले आऊंगी.’’

और उत्साह से निकल पड़ी थी शालू अपने बेटे से मिलने अमेरिका.

शालू जब एअर इंडिया के विमान में पति जिगनेश की बगल में बैठी, तो उस की निगाह अपनेआप लगातार उसे घूरते हुए एक अधेड़ व्यक्ति पर पड़ गई. शालू ने निगाह बचानी चाही…बेवजह जिगनेश से बात करने की कोशिश करने लगी कि वह आदमी उठ कर उस के सामने ही आ गया.

उस ने विनीत भाव से कहना शुरू किया, ‘‘क्षमा कीजिए, आप शालू हैं न, फिल्म हीरोइन?’’

शालू नहीं चाहती थी कि उस की इस यात्रा में उसे कोई भी पहचाने, पर अब जवाब तो देना ही था. वह जरा सी हंसी और बोली, ‘‘काहे की हीरोइन? वह जमाना तो गया.’’

‘‘अरे, नहीं, आप क्या कहती हैं शालूजी? आप के कैबरे देखदेख कर तो हम जवां हुए हैं.’’

उस ने सीधे शालू के मर्म पर चोट कर दी. शालू चुप लगा गई. पर उस ने यह भी देख लिया था कि उस के 50 साल के पति जिगनेश को यह सुन कर अच्छा नहीं लगा.

‘‘मैं तो फिल्मों और टीवी में मां और दादी का रोल करती हूं. आप यह कहां की पुरानी बात ले बैठे. अच्छा, आप अपनी जगह जा कर बैठिए. एअर होस्टेस इशारा कर रही है.’’

वह आदमी बेमन से अपनी जगह चला गया. शालू ने नजरें फेर लीं और सोचने लगी कि क्या वाकई उस आदमी की नजरों ने 35 साल पहले की शालू को पहचान लिया था. शालू यानी शालिनी. साथ में कोई नाम नहीं. मुंबई की एक चाल में पैदा हुई थी शालिनी और उस की बहन कामिनी. दोनों गरीबी और अभावों में पलीं. पिता स्टेशन पर कुली का काम करते थे. शालिनी जब 7 साल की थी तो पिता चल बसे थे. मां के बस की बात नहीं थी कि 2 लड़कियों को अपने दम पर पालतीं. वे दोनों बच्चियों को ले कर अपने भाई के घर चली आईं.

बस, वहां पेट भरने लायक खाना मिल जाता था. स्कूल जाने का तो कभी सवाल ही नहीं उठा. 12 साल की शालिनी को मामा फिल्मों में ग्रुप डांस करवाने वाले बबलू मास्टर के पास ले कर गए. बबलू मास्टर 40 साल के अनुभवी व्यक्ति थे. डरीसहमी शालिनी में न जाने उन्होंने क्या देखा कि मामा को कह दिया, ‘इसे कल से मेरे पास भेज दो, कुछ बन जाएगी.’

बबलू मास्टर के पास शालिनी कथक सीखने लगी और साल भर बाद मास्टरजी उसे हीरोइन के पीछे खड़ा कर नचवाने लगे. शालिनी अपनी उम्र की दूसरी लड़कियों के मुकाबले लंबी थी. सलोना चेहरा. हमेशा चुप रहती. धीरेधीरे वह बबलू मास्टर की प्रिय शिष्या बन गई. जब हाथ में थोड़ा पैसा आने लगा तो उस ने अपनी छोटी बहन कामिनी को पढ़ने स्कूल भेज दिया. उसी के साथ बैठ कर थोड़ा पढ़ना भी सीख लिया.

शालिनी ने कभी नहीं सोचा था कि ग्रुप डांस करतेकरते एक दिन वह एक नायिका बन जाएगी. हालांकि उस के सामने ही ऐक्स्ट्रा की भूमिका निभाने वाली मुमताज नायिका बनी थीं लेकिन अपने लिए उस ने इतना सबकुछ सोचा ही नहीं था.

वह दूर से देखती थी चमचमाती गाडि़यों में सितारों को स्टूडियो आतेजाते. सेट पर उन के आते ही भगदड़ मच जाती थी. निर्मातानिर्देशक जोर से चिल्ला उठते, ‘अरे, कोई है? ठंडा लाओ, कुरसी लाओ.’

शालिनी को अच्छा लगता था दूर से यह सबकुछ देखना. बबलू मास्टर अकसर उसे नसीहतें देते, ‘बेटी, फिल्मी चकाचौंध से जितना दूर रहोगी उतना ही खुश रहोगी. यह कभी मत सोचना कि उन के पास सबकुछ है, तुम्हारे पास कुछ नहीं.’

शालिनी के साथ काम करने वाली दूसरी ग्रुप डांसर कभी किसी जूनियर आर्टिस्ट के साथ घूमने चल देती, तो कभी आगे बढ़ कर किसी हीरो से बात करने की कोशिश करती. बबलू मास्टर उसे समझाते कि इन सब से कुछ नहीं होगा. फिल्मी दुनिया में लड़कियों को संभल कर रहना चाहिए.

2 साल बतौर ग्रुप डांसर काम करने के बाद अचानक एक दिन उस की किस्मत ने पलटा खाया. एक नामी निर्माता की फिल्म में बबलू मास्टर डांस डायरेक्टर थे. फिल्म में एक कैबरे था जो बिंदु को करना था, लेकिन ऐनवक्त पर बिंदु बीमार पड़ गई. सैट लग चुका था, सारी तैयारी हो चुकी थी. निर्माता मुरली भाई परेशान हो उठे और उन्होंने बबलू मास्टर से कहा, ‘मास्टरजी, कुछ करो. बेशक किसी नई लड़की को ले आओ पर मुझे समय पर शूटिंग करनी है, नहीं तो बहुत नुकसान हो जाएगा.’

बबलू मास्टर ने रातोंरात शालिनी को इस कैबरे के लिए तैयार कर लिया. तब शालिनी 16 साल की नहीं हुई थी, लेकिन देहयष्टि कमनीय थी. चेहरा सुंदर था और नाचने में उस का कोई सानी नहीं था. मेकअप आदि के बाद जब मास्टरजी ने शालिनी को कैबरे की पोशाक दी तो छोटी पोशाक देख कर उस का चेहरा सन्न रह गया.

मास्टरजी ने जैसे उस के दिल की बात समझ ली, ‘बेटी, इस से अच्छा मौका तुझे नहीं मिलेगा. पोशाक में क्या रखा है? दिल साफ होना चाहिए.’

शालिनी ने सुनहरे रंग की पोशाक पहन ली. बालों पर सुनहरा ताज, पैरों में सुनहरी जूती. जब मुरली भाई ने उसे देखा तो एकदम से खुश हो गए, ‘वाह, यह लड़की तो गजब ढा देगी. पर इस का नाम ठीक नहीं है, बहुत बड़ा है. हम इसे शालू कहेंगे.’

उस दिन शालिनी से वह शालू बन गई. बबलू मास्टर के नृत्यनिर्देशन में किए गए उस के कैबरे बहुत लोकप्रिय हुए. इस के बाद उसे न जाने कितनी फिल्मों में कैबरे और डांस करने का मौका मिला. जब वह कमर लचकाती, तो लाखों दिल हिल जाते. देखतेदेखते उस की तसवीर फिल्मी पत्रिकाओं में छपने लगी, उस के पोस्टर बिकने लगे.

कभीकभी तो खुद को इस रूप में देख उसे शर्म आती पर धीरेधीरे वह आदी हो गई और उसे अपने काम में मजा आने लगा. बबलू मास्टर हर कदम पर उस के साथ थे. उन से पूछे बिना वह कोई फिल्म साइन नहीं करती थी. चाल से निकल कर वह फ्लैट में आई, छोटी सी गाड़ी भी ली. मामा और मामी भी उस के साथ रहने आ गए.

शालू को पहले तो एक हौरर फिल्म में हीरोइन की भूमिका करने को मिली. बबलू मास्टर नहीं चाहते थे, पर मामा की ख्वाहिश थी कि वह सिर्फ एक डांसर बन कर न रहे. अब मामा ही उस के रुपएपैसे का हिसाब देखने लगे थे. पहली 2-3 फिल्में उस की बी ग्रेड की थीं. एक में वह दस्यु सुंदरी बनी थी, दूसरी में तांत्रिक की बेटी और तीसरी में सरकस की कलाकार. इसी समय उस का परिचय कामेडियन नजाकत अली से हुआ.

नजाकत नामी हास्य अभिनेता थे और एक कामेडी फिल्म बना रहे थे. नायक के लिए उन्होंने एक नए चेहरे बृजेश को चुन लिया था. जब उन्होंने शालू को नायिका बनने का प्रस्ताव दिया तो उसे विश्वास नहीं हुआ. फिल्म बड़े बजट की थी. भूमिका भी अच्छी थी. पहली बार उसे फिल्म में साड़ी पहनने का मौका मिला. शालू ने दिल लगा कर काम किया. फिल्म खूब चली और शालू बन गई एक सफल नायिका. बृजेश के साथ उस की कई फिल्में आईं. उन दोनों की जोड़ी हिट मानी जाने लगी.

शालू को याद नहीं कि वे दिन इतनी जल्दी और कहां उड़ गए. खूब पैसा कमाती थी वह और हमेशा शूटिंग में व्यस्त रहती थी. मुंबई के बांद्रा इलाके में बड़ा सा फ्लैट ले लिया. मामा के लिए एक गाड़ी, कामिनी के लिए दूसरी. खुद वह इंपाला में आतीजाती. बबलू मास्टर से जब कभी मुलाकात होती, वे कहते, ‘बेटी, जरा धीरे चलो. इतना तेज भागोगी तो गिर जाओगी.’

शालू हंस देती, ‘दादा, अब गिरने से डर नहीं लगता.’

लेकिन गिर ही तो गई थी शालू. कहते हैं न, सिर पर जब इश्क का जनून सवार हो जाता है तो आदमी को फिर कुछ नजर नहीं आता. ऐसा ही कुछ हुआ शालू के साथ. डेविड स्वीडन से मुंबई आया था. यहां मायानगरी पर वह एक डाक्यूमैंट्री फिल्म बना रहा था. बबलू मास्टर के यहां ही डेविड से पहली बार मिली थी शालू. उसे देखते ही डेविड अपनी कुरसी से उठ खड़ा हुआ, ‘ओह, सो यू आर द ग्रेट डांसिंग क्वीन.’

शालू सकुचा गई. बबलू मास्टर के कहने पर उस ने डेविड की एक फिल्म में डांस कर लिया.

वह पहली मुलाकात ऐसी थी कि शालू की आंखों की नींद उड़ गई. उस ने जिंदगी में पहली बार किसी विदेशी पुरुष को इतने समीप से देखा था. उस की सांसों की गरमाहट, बात करने का बेतकल्लुफ अंदाज और लहीमशहीम कदकाठी… शालू उस की ओर खिंचती चली गई. डेविड ने न जाने क्या जादू कर दिया उस के ऊपर.

दूसरी मुलाकात के बाद डेविड ने प्रस्ताव रखा कि शालू उसे आगरा ले जाए. वह संसार का 7वां आश्चर्य शालू के संगसाथ खड़ा हो कर देखना चाहता है. शालू आगरा पहले भी जा चुकी थी. ताजमहल के ठीक सामने उस ने एक मुजरा किया था, लेकिन डेविड के साथ ताजमहल देखने का रोमांच वह छोड़ नहीं पाई.

मुंबई से दिल्ली तक विमान से और फिर वहां से टैक्सी ले कर दोनों आगरा पहुंचे थे. शालू डेविड के प्यार में डूब चुकी थी. डेविड का उसे प्यार से बेबी कह कर पुकारना, उस की हर जरूरत का खयाल रखना और सब से जरूरी उस का अतीत जानने के बाद भी उस का साथ देना, उसे भा गया.

आगरा मेें वे दोनों फाइव स्टार होटल में ठहरे. डेविड ने अपने दोनों के लिए अलगअलग कमरे बुक किए थे, लेकिन वहां वे दोनों रुके एक ही कमरे में और उसी दिन यह तय कर लिया कि मुंबई जाते ही दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे. डेविड को उस के फिल्मों में काम करने से आपत्ति नहीं थी बल्कि वह खुद भी मुंबई में ही रह कर कुछ काम करना चाहता था.

ताजमहल जहां प्रेम का आगाज होता है और परवान चढ़ता है. शालू ने मुग्ध भाव से सफेद संगमरमर की इमारत को रात के अंधेरे में चांदनी बन चमकते देखा. ‘वाह’, डेविड ने उस का हाथ पकड़ कर कहा था, ‘अमेजिंग.’

शालू को मतलब समझ में नहीं आया, लेकिन इतना एहसास हुआ कि वह ताजमहल की तारीफ कर रहा था. उस रात दोनों देर तक ताज के सामने बैठे रहे और डेविड बारबार उसे जतलाता रहा कि वह उस से कितनी मोहब्बत करता है.

शालू ने मुंबई लौटने के बाद जैसे ही मामा को बताया कि वह डेविड से शादी करने जा रही है, वे एकदम फट पड़े, ‘तेरा दिमाग तो नहीं खराब हो गया, शालिनी? एक गोरे से शादी कर रही है, वह भी कैरियर के इस मोड़ पर? शादीशुदा हीरोइनों को फिल्म लाइन में कोई नहीं पूछता. इस समय तुझे पूरा ध्यान फिल्मों में लगाना चाहिए. मैं नहीं करने दूंगा तुझे शादी.’

मां, मामी और कामिनी ने भी उसे काफी कुछ सुनाया. शालू एकदम से सकते में आ गई. इतने बरस तक उस ने जो कुछ किया कमाया, घरवालों के हाथ में रखा. कभी अपने पैसे का हिसाब नहीं पूछा और आज जब वह अपनी गृहस्थी बसाने की सोच रही है, कोई उसे उस की जिंदगी नहीं जीने देना चाहता. रात भर बिस्तर पर पड़ीपड़ी रोती रही शालू.

सुबह हुई. दर्द से आंखों के पपोटे दुखने लगे थे. मन हुआ कि एक कप चाय पी ले. उस ने अपने कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश की लेकिन वह तो बाहर से बंद था.

वह अपने ही घर में कैद कर ली गई थी. शालू के दिमाग ने जैसे सोचना- समझना बंद कर दिया. 10 बजे मां कमरे में आईं, चाय और नाश्ता ले कर और सीधे स्वर में बोलीं, ‘देख शालिनी, तुम्हारे मामा बहुत गुस्से में हैं, वह तो तुम पर उन का हाथ उठ जाता, पर मैं ने ही रोक लिया कि…’

शालू धीरे से बुदबुदाई, ‘सोने का अंडा देने वाली मुरगी को कैसे मारेंगे,  अम्मां?’

दोपहर को मामा उसे स्टूडियो छोड़ने आए. आज उसे एक गंभीर सीन करना था पर शालू हर बार गड़बड़ा जाती. एक बार तो सीन करतेकरते वह गिर पड़ी. उस का हाल देख कर शूटिंग कैंसिल कर दी गई. शालू कपडे़ बदलने के बहाने स्टूडियो के पिछले रास्ते से बाहर निकल एक आटो पकड़ कर सीधे डेविड के होटल पहुंच गई.

डेविड को जैसे उस का ही इंतजार था. तुरंत वे दोनों वहां से एक टैक्सी ले कर लोनावाला के लिए निकल गए. अगले दिन लोनावाला के एक मंदिर में माला बदल शादी कर ली और शालू ने एक पत्रकार को अपनी शादी की खबर बता दी.

अगले दिन सभी अखबारों में शालू की शादी की खबर छप गई. शादी के पहले कुछ दिन अच्छे गुजरे. 2 महीने बीततेबीतते डेविड ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वह मामा और मां से अपने पैसों का हिसाब ले. अपना घर होते हुए भी वह किराए के घर में क्यों रहती है? इस बीच शालू को एहसास हो गया कि वह मां बनने वाली है. उस के हाथ जो बचीखुची फिल्में थीं, वे भी निकलती चली गईं.

इधर डेविड के रोज के तानों से वह आजिज आती चली गई. शादी से पहले जिस व्यक्ति की रोमांटिक बातें, रूपरंग उसे लुभाते थे, अब उसी व्यक्ति का यह रूप उसे डराने लगा. हर समय वह पैसे की बात करता. डेविड ने मामा को कानूनी नोटिस भेज दिया कि वह शालू के पैसे और घर वापस करें, लेकिन मामा ने कुछ भी शालू के नाम नहीं किया था. घर उन के नाम था और सेविंग परिवार के दूसरे सदस्यों के नाम. ज्यादातर तो कामिनी और मामा के ही नाम पर था.

डेविड के हाथ कुछ न लगा. वह बौखला गया और शालू पर दबाव बनाने लगा कि वह गर्भपात करवा ले, जिस से उसे फिल्मों में काम मिल सके.

शालू के लिए बहुत मुश्किल भरे दिन थे. बस, एक अंतिम फिल्म थी उस के हाथ ‘जादूगरनी.’ इस में वह नायिका थी. सुबह उठने का जी नहीं करता. वह उलटियां करती हुई शूटिंग करने जाती. सूखा चेहरा, हाथपांवों में थकान और मन में उदासी. डेविड ने अल्टीमेटम दे दिया था कि वह इस सप्ताह गर्भपात करवा ले.

शालू की आंखों में हर समय तूफान भरा रहता. क्या इस दिन के लिए उस ने अपने परिवार वालों से लड़झगड़ कर शादी की थी? अपना कैरियर दांव पर लगाया था? जिस प्यार के लिए जिंदगी भर तरसी उस का यह हश्र?

यह तो उस के दुखों की शुरुआत भर थी. जैसे ही शालू ने गर्भपात कराने से इनकार किया, डेविड का व्यवहार ही बदल गया. अब शालू के सामने था एक क्रूर और स्वार्थी इनसान, जिसे मतलब था तो सिर्फ शालू की कमाई से. शालू दिन भर शूटिंग में उलझी रहती, शाम को थकीहारी घर आती. डेविड शराब के नशे में चूर उसे दुत्कारता, गालियां सुनाता. जिस दिन शालू ‘जादूगरनी’ की शूटिंग पूरी कर के घर आई, डेविड ने उसे यहां तक कह दिया कि वह कहीं से भी उसे कमा कर दे, अगर फिल्मों से नहीं कमाती तो अपना शरीर बेचे…

शालू ने अपने कानों पर हाथ रख लिया. अंदर तक छलनी कर दिया था डेविड ने उसे. मामा और परिवार के दूसरे सदस्यों के मुकाबले कहीं अधिक स्वार्थी निकला था उस का डेविड. उस रात बाथरूम में अपने को बंद कर रोती रही थी शालू. सुबह हुई तो उठ नहीं पाई. शरीर गरम तवे सा जल रहा था. लग रहा था मानो उस के अंदर एक ज्वालामुखी भर गया हो, जो किसी भी वक्त फट पड़ेगा. डेविड की चिल्लाने की आवाज लगातार आती रही पर इस समय शालू को न उस की आवाज से डर लग रहा था न उस के होने की दहशत.

शालू उठी, धीरे से दरवाजा खोला. दरवाजे के सामने ही डेविड बदहवास सोया पड़ा था. किसी तरह उस के शरीर को लांघ कर शालू बाहर सड़क पर आ गई और आटो पकड़ सीधे वह बबलू मास्टर के घर पहुंची.

दादर में एक पुरानी इमारत में दूसरे माले पर बबलू मास्टर रहते थे. लकड़ी की सीढि़यां पार कर शालू उन के घर के सामने खड़ी हुई. अंदर से बबलू मास्टर के खांसने की आवाज आ रही थी. दरवाजा खुला था. शालू को देख बबलू मास्टर की बहू ने पूछा, ‘कौन? क्या मांगता है?’

शालू किसी तरह दरवाजे की टेक लगाए इतना ही बोल पाई, ‘मैं, शालू.’

अस्तव्यस्त कपड़े, बिखरे बाल और बुखार से तपता शरीर, इस समय शालू एक फिल्म की तारिका नहीं, बल्कि किस्मत की मारी दुखियारी लग रही थी.

बबलू मास्टर के सामने शालू फूटफूट कर रो पड़ी. उन्होंने उस के सिर पर हाथ रख कर सिर्फ इतना ही कहा, ‘इस बूढ़े, बीमार आदमी की बात मान जाती बेटी तो…’

शालू बिलखने लगी, ‘दादा, मुझे बचा लो. वह आदमी मेरे बच्चे को मार डालेगा.’

बबलू मास्टर को धीरेधीरे शालू ने पूरी बात बताई. यह तो वे भी जानते थे कि शालू के हाथ कोई फिल्म नहीं रही. वैसे भी शादीशुदा नायिकाओं को कोई अपनी फिल्म में लेना पसंद नहीं करता है, वह भी ग्लैमरयुक्त भूमिकाओं में.

बबलू मास्टर की एक मौसी रत्नागिरी में रहती थीं. तय हुआ कि शाम की बस से उन की पत्नी और बहू के साथ शालू रत्नागिरी जाएगी और बच्चा होने तक वहीं रहेगी.

बबलू मास्टर ने शालू को समझाते हुए कहा, ‘देख बेटी, शूटिंग पूरी होने के बाद डबिंग होने में काफी समय लगता है. तब तक तो तू लौट आएगी. इस के बाद देखते हैं क्या करना है.’

शालू के पास इस के अलावा कोई रास्ता नहीं था. बस, इतना भर याद रहा कि रत्नागिरी पहुंचतेपहुंचते उस के तन में ताकत रही न मन में जीने की आशा. बबलू मास्टर की बहू तारा उस का खूब खयाल रखती. बच्चे की दुहाई दे कर खिलातीपिलाती. शालू का दिमाग कुंद पड़ता जा रहा था. अपने बच्चे को बचाने की खातिर वह सब से भाग कर यहां तो आ गई, पर आगे क्या करेगी? मुंबई में न उस का घर रहा न कोई काम, जिस के भरोसे बच्चे को पाल सके. फिर डेविड क्या उसे इतनी आसानी से छोड़ देगा? डेविड की याद आते ही पूरे शरीर में झुरझुरी सी आ जाती. कई बार उस का मन किया कि मां को फोन करे, कामिनी से बात करे पर वह रुक जाती. इन में से किसी ने उस का तब साथ नहीं दिया था जब वह डेविड से शादी करने जा रही थी. सब उसे बांध कर रखना चाहते थे, ताकि वह पैसा कमा कर उन्हें देती रहे. क्या अब उस का साथ देंगे? कहीं वे भी उस के बच्चे के पीछे तो नहीं पड़ जाएंगे?

दिन भर बिस्तर पर पड़ीपड़ी यही सब सोचती रहती शालू. शाम को तारा उसे जबरदस्ती बाहर अपने साथ घुमाने ले जाती. शालू ने यहां आने के बाद अपने हाथ और कानों का सोना बेच अपने लिए कुछ कपड़े खरीदे और बाकी पैसे बबलू मास्टर की पत्नी के हाथ में रख दिए. इस के अलावा उस के पास देने के लिए था ही क्या?

आखिर 5 महीने बाद शालू के मन की मुराद पूरी हुई. उसे बेटा हुआ, अपने बाप की तरह गोराचिट्टा, नीली आंखों वाला. उसे देखते ही शालू अपने सारे गम भूल गई.

तारा ने ही उस का नाम बौबी रखा. अपनी गोद में बच्चे को ले कर तारा चहकते हुए बोली, ‘देखो, शालू दीदी, यह बिलकुल बौबी फिल्म के हीरो ऋषि कपूर की तरह लगता है. इतना सुंदर बच्चा मैं ने कभी नहीं देखा. इस का नाम बौबी रखो, दीदी.’

शालू को बौबी का कोई काम नहीं करना पड़ा. दिनभर तारा उस की देखभाल करती. बबलू मास्टर की पत्नी उस की मालिश करती, नहलातीधुलाती.

बौबी 1 महीने का हुआ. अब मुंबई वापस जाने का समय आ गया था. इस कल्पना से ही शालू को दहशत होने लगी.

लौट कर सब बबलू मास्टर के ही घर आए. इस बीच बबलू मास्टर ने ‘जादूगरनी’ के निर्माता को बता दिया कि शालू बच्चे के जन्म के लिए बाहर गई है, लेकिन डेविड ने खूब तमाशा किया, कहांकहां नहीं ढूंढ़ा उसे. शालू के बारे में उसे कहीं से कोई खबर नहीं मिली.

बबलू मास्टर के घर एक दिन रुक कर अगले दिन शालू बौबी को ले कर अपने मामा के घर गई. वह घर, जिसे उस ने तिनकातिनका जोड़ कर संवारा था. मां उसे देखते ही रो पड़ीं, भाग कर बौबी को गोद में उठा लिया लेकिन मामा और कामिनी का बरताव बेहद रूखा था.

कामिनी की शादी होने वाली थी और मामा नहीं चाहते थे कि उस समय शालू वहां रहे भी. ‘तुम्हारी शादी की वजह से वैसे भी बहुत बदनामी हो चुकी है हमारी. तुम्हारा पति आएदिन यहां आ कर शोर मचाता रहता है. इस समय हमें कोई झमेला नहीं चाहिए,’ मामा इतना बोल कर चले गए थे.

शालू की आंखें भर आईं. उस से यह भी कहते नहीं बना कि ये शानोशौकत और घर उस की कमाई के हैं. वह अपने बच्चे को गोद में उठाए चलने को हुई, मां ने उस की बांह पकड़ ली, ‘शालू, कहां जा रही है? मैं भी चलूंगी तेरे साथ.’

शालू अपनी मां के साथ घर से बाहर निकल आई. इस के बाद शुरू हुआ संघर्ष का लंबा दौर. इस बीच डेविड न जाने कहां निकल गया था. किराए के घर में अपने दुधमुंहे बच्चे को मां के पास छोड़ कर शालू निर्मातानिर्देशकों के पास काम मांगने जाती लेकिन हर तरफ से निराशा मिलती. चंद महीने पहले की कामयाब और चर्चित नायिका को पूछने वाला कोई न था. उस की फिल्म ‘जादूगरनी’ भी बीच में ही अटक गई थी. कई निर्माताओं ने तो उस पर कटाक्ष भी कर दिया कि अब वह पहले की तरह सैक्सी नहीं दिखती. मां बन गई है तो मां की ही भूमिकाएं मिलेंगी उसे.

2 महीने बाद उसे एक फिल्म में छोटी सी भूमिका मिली. जिस नायक के साथ साल भर पहले वह मुख्य नायिका थी, आज उस की भाभी का किरदार कर रही थी शालू. लेकिन काम तो करना ही था. घर का किराया, बच्चे का खर्च इन सब की जिम्मेदारी उठानी थी उसे. 22 साल की उम्र में भाभी और बहन की भूमिकाएं निभाने के बाद वह मां की भी भूमिका निभाने लगी. काम वह दिल लगा कर करती, लेकिन जैसे हंसना ही भूल गई थी शालू. अपना काम निबटा कर घर आने की जल्दी होती उसे. बौबी बड़ा हो रहा था और अब तुतला कर बोलने लगा था.

हर समय उसे एक ही आशंका बनी रहती कि अगर किसी दिन डेविड लौट आया तो?

एक दिन उस की आशंका सही निकली. जिंदगी पटरी पर चलने लगी थी. वह फिल्मों में छोटीमोटी भूमिकाएं करने लगी. भूल चली थी कि एक समय वह इसी फिल्म इंडस्ट्री में नायिका हुआ करती थी. पुराने सारे तार काट डाले. मुश्किल था उस के लिए यह सब करना. अभी वह युवा थी, एक बच्चे की मां, और वह भी अकेली औरत. रोज ही उस के सामने लुभावने प्रस्ताव आते, कई निर्माता- निर्देशक तो साफ कहते कि अगर वह बेहतर रोल और पैसा चाहती है तो उसे समझौता करना होगा.

शालू का चेहरा कठोर हो चला था. वह बेहद विनम्रता से उन की बात ठुकरा देती. उसे कम पैसों में एक बार फिर जिंदगी चलाना आ गया.

इस बीच, मां बीमार रहने लगीं, बौबी की जरूरतें बढ़ने लगीं और एक दिन…

शाम की शिफ्ट थी. महबूब स्टूडियो में वह हीरो की मां का रोल कर रही थी. बालों में सफेद विग, सफेद साड़ी पहने और पूरी बांह का ब्लाउज. उस से उम्र में बस 1 साल छोटी निकिता फिल्म की नायिका थी. हाथ में चाय का गिलास लिए छोटीछोटी चुस्कियां भर रही थी शालू कि अचानक सामने डेविड नजर आ गया.

और शालू के हाथ से चाय का गिलास फिसल कर साड़ी पर बिखर गया. दिल जोरों से धड़कने लगा. हां, पूरे 4 साल बाद उसे देख कर उस की तरफ चला आया डेविड.

शालू को काटो तो खून नहीं. इतने में स्पौट बौय उस के पास आ कर उस की साड़ी साफ करने लगा.

डेविड आ कर सीधे उस के कदमों में बैठ गया. पहले से कहीं दुबलापतला, अधमरा, बढ़ी दाढ़ी, पिचके गाल और खिचड़ी बाल. जैसे ही उस ने शालू के कदमों पर अपना सिर रखा, वह चिहुंक कर उठ खड़ी हुई.

डेविड कुछ लरजता सा बोला, ‘शालू डार्लिंग, मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया है. तुम्हारी जिंदगी तबाह कर दी. प्लीज…मुझे अपना लो.’

शालू इस के लिए तैयार नहीं थी. उस ने हमेशा डेविड को गरजते, झगड़ते ही देखा था. डेविड का यह नया रूप था लेकिन उस की आंखें वही थीं. संशय से भरी आंखें. शालू ने धीरे से कहा, ‘मेरा पीछा छोड़ दो. मेरे पास अब तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है.’

डेविड चिरौरी करने लगा, रोने लगा, ‘शालू, मैं ने बहुत धक्के खाए हैं. अब कभी मैं तुम्हें तंग नहीं करूंगा. मुझे घर ले चलो.’

‘कौन सा घर?’ शालू के होंठों पर विद्रूप मुसकान तैर आई, ‘तुम ने मेरे लिए कुछ छोड़ा ही नहीं.’

वह उठी और लंबे डग भरती वहां से चली गई. शौट खत्म कर जब वह आई तो मन में हलचल मची थी कि कहीं डेविड बाहर उस का इंतजार तो नहीं कर रहा? किसी तरह उस ने मेकअप आर्टिस्ट लतिका को अपने साथ चलने के लिए राजी किया. स्टूडियो के बाहर से वह रोज घर जाने के लिए आटो लेती थी. उस ने लतिका से कहा कि वह आटो वाले को बुलाए, सिर पर आंचल रख कर शालू वहां से निकली और सीधे आटो में बैठ गई.

असल जिंदगी में भी मिट सकता है ‘कलंक’- माधुरी दीक्षित

बौलीवुड की धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित की फिल्म कलंक 17 अप्रैल को रिलीज होने वाली है. माधुरी इस फिल्म में बहार बेगम के रोल में नजर आएंगी. फिल्म के जरिए माधुरी और संजय दत्त करीब 22 साल बाद साथ नजर आने वाले हैं. हाल ही में हमने माधुरी से इस फिल्म को लेकर खास बातचीत की. जहां माधुरी ने कई दिलचस्प खुलासे किए. जिनमें से एक खुलासा असल जिंदगी के कलंक को लेकर था. तो जानिए क्या कहा माधुरी ने…

माधुरी जी, अगर हम निजी जिंदगी की बात करें तो आप किसे कलंक कहेंगी?

माधुरी दीक्षित- ‘‘मुझे लगता है कि ‘कलंक’ बहुत ही ज्यादा कठोर शब्द है. क्योंकि इंसान की एक गलती से अगर किसी की जिंदगी खराब होती है या कोई बर्बाद हो जाता है, तो वो कलंक हो जाता है. लेकिन ‘कलंक’ जो शब्द है, उसका मतलब यह नहीं कि यह कभी मिट नहीं सकता. आप अच्छे कर्म करो. आपको अगर अपनी गलती का अहसास है, पछतावा है, आप चाहते हैं कि आपकी जिंदगी अच्छी हो जाए और उस हिसाब से आप जिंदगी जीते हैं, तो आपकी जिंदगी का कलंक मिट सकता है.’’

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शादी के बाद किया कमबैक…

अपनी एक्टिंग के साथ ही अपने नृत्य कौशल के चलते ‘‘धक धक’’ गर्ल के रूप में मशहूर अदाकारा माधुरी दीक्षित अपने करियर की दूसरी पारी से काफी खुश है. माधुरी दीक्षित ने ‘तेजाब’, ‘साजन’, ‘मृत्युदंड’ सहित पचास से अधिक फिल्मों में अभिनय कर बौलीवुड में अपनी अलग पहचान बनायी थी. लेकिन फिर वह डाक्टर श्रीराम नेने के साथ शादी करके अमरीका बस गयी थीं. लेकिन कुछ साल पहले वह वापस बौलीवुड पहुंच गयी. तब से वह अपनी उम्र के किरदार निभाते हुए फिर से शोहरत बटोर रही हैं.

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बता दें कि करण जौहर के प्रोडक्शन में बनी फिल्म कलंक को अभिषेक वर्मन ने निर्देशित किया है. फिल्म में माधुरी के अलावा संजय दत्त, आलिया भट्ट, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रौय कपूर व वरूण धवन भी नजर आएंगे.

कपड़ों पर जाह्नवी का ट्रोलर्स को करारा जवाब, इतनी अमीर नहीं हूं…

बौलीवुड में फिल्म ‘धड़क’ से डेब्यू करने वाली जाह्नवी कपूर हमेशा किसी न किसी कारण खबरों में बनी रहती हैं. यंगस्टर्स के बीच अपने स्टाइलिश अंदाज के लिए मशहूर जाह्नवी की फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती हैं. लेकिन इस बार जाह्नवी कपूर अपनी इसी स्टाइल और कपड़ों की वजह से ट्रोलिंग का शिकार हो गई हैं. जानें क्या है पूरा मामला…

इस वजह से हुई ट्रोल…

दरअसल, मामला ये है कि हाल ही में जाह्नवी को एक ऐसी ड्रेस पहने देखा गया था. जो वो पहले भी पहन चुकी थीं. जाह्नवी के बार-बार कपड़े रिपीट करने की वजह से ही सोशल मीडिया यूजर्स ने उन्हें ट्रोल कर दिया. लेकिन इस मामले में जाह्नवी चुप नहीं रही और उन्होंने ट्रोलर्स को करारा जवाब दिया.

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श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी ने दिया ये जवाब…   

जब एक इवेंट में जाह्नवी से इस पर सवाल किया गया तो उन्होंने ट्रोलर्स को करारा जवाब देते हुए कहा, वह कैसे कह सकते है ऐसा…? मैंने इतना भी पैसा नहीं कमाया कि हर रोज नए कपड़े खरीद सकूं! साथ ही जाह्नवी ने ये भी कहा कि उन्हें इन ट्रोलर्स से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

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बता दें, इन दिनों जाह्नवी अपनी नई फिल्म कारगिल गर्ल की शूटिंग में बिजी हैं. जिसमें वह आईएएफ पायलट गुंजन सक्सेना के किरदार में नजर आएंगी. इस फिल्म का निर्देशन शरन शर्मा कर रहे है और धर्मा प्रोडक्शन के यह फिल्म बना रही है.

 

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इन फिल्मों में भी नजर आएंगी जाह्नवी

इसके अलावा, कारगिल गर्ल के बाद जाह्नवी धर्मा प्रोडक्शन की ही तीसरी फिल्म तख्त की शूटिंग शुरु करेंगी. जिसमें जाह्नवी, रणवीर सिंह और विक्की कौशल जैसे नौजवान एक्टर्स के साथ स्क्रीन शेयर करती हुई नजर आएंगी. इसमें करीना कपूर खान, आलिया भट्ट और भूमि पेडनेकर जैसे सितारे भी हैं. वहीं, जाह्नवी ने हाल ही में राजकुमार राव की नई फिल्म रुह-अफ्जा को भी साइन किया है. जिसमें वह पहली बार राजकुमार के साथ स्क्रीन शेयर करती नजर आएंगी.

नाखून चबाने की आदत है तो जरूर पढ़ें ये खबर

बहुत से लोगों को नाखून चबाने की बुरी लत होती है. कुछ लोग खाली वक्त में तो कुछ जब टेंशन में होते हैं नाखून खाते हैं. पर क्या आपको पता है कि इससे आपका कितना नुकसान होता है? ये गंदी आदत सेहत के लिए बहुत खतरनाक होती है. डाक्टरों और जानकारों की माने तो जिन लोगों को ये आदत है उन्हें कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं.

इस खबर में हम आपको नाखून चबाने से होने वाले स्वास्थ हानियों के बारे में बताएंगे.

खराब होते हैं नाखून

उंगली के नीचे की एक परत होती है जिसे हम मैट्रिक्स कहते हैं. हमेशा नाखून चबाने से ये परत पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है. आगे चलकर इनसे इनग्रोन नेल्स जैसी समस्याएं हो जाती है.

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फैलता है इंफेक्शन

नाखून चबाने वक्त नाखून में मौजूद बैक्टीरिया आपके मुंह में चली जाती हैं. इससे आपके पेट में इंफेक्शन फैलने का खतरा होता है. इससे पैरोनशिया नामक इन्फेक्शन हो जाता है जिसमें सूजन, दर्द, रेडनेस और पस से भरे हुई गांठे पड़ जाती हैं.

हो सकता है जिन्जवाइटिस

नाखून काटने की वजह से दांतों की जड़ों में मौजूद सौकेट्स खराब हो जाते हैं, जिस वजह से आपके दांत टेढ़े हो जाते हैं. अमेरिका में हुए एक अध्ययनके अनुसार बार बार नाखून काटने की आदत की वजह से आपको जिन्जवाइटिस (gingivitis) जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

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खराब हो सकती हैं उंगलियां

हमेशा नाखून चबाने से आपकी उंगलियां खराब हो सकती हैं. आपके मुंह से निकलने वाले लार में मौजूद रसायन आपकी उमगलियों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. इससे आपकी उंगली की त्वचा में खुरचन के निशान आते हैं और ये देखने में काफी घिनौनी होती हैं.

 

हिंदी व्याकरण में सियासत

मैं जब भी किसी नेता को यह कहते हुए सुनता हूं कि वे तो राजनीति छोड़ना चाहते हैं, पर राजनीति उन्हें नहीं छोड़ती, मुझे उस गरीब की याद आ जाती है जो घोर सर्दी में कहीं से एक कंबल पा गया था. उस से अगर कोई पूछता था, ‘‘बहुत सर्दी है क्या?’’ तो उस का जवाब होता था, ‘‘कतई नहीं.’’ अगला सवाल, ‘‘तो कंबल में यों ठिठुर क्यों रहे हो?’’ उस का जवाब होता, ‘‘मैं तो यह कंबल छोड़ना चाहता हूं पर यह कंबल मुझे नहीं छोड़ता.’’

उक्त प्रसंग का एक खास कारण है कि मेरी भी दशा उन नेताओं जैसी बरबस होती जा रही है. मैं कतई राजनीति नहीं पसंद करता. मैं आजीवन हिंदी लेखन का एक छात्र बना रहना चाहता हूं पर मुसीबत तो यह है कि यह राजनीति मेरे व्याकरण पर भी सवार हो चुकी है. अब क्योंकि हिंदी लेखन तो मैं छोड़ नहीं पाऊंगा लिहाजा, इस से भी पिंड छूटता नजर नहीं आता.

गौर कीजिए, जब देश के राष्ट्रपति के पद के लिए प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के नाम का प्रस्ताव आया था तो राजनीतिक हलकों में एक बहस छिड़ गई थी कि अगर उस खास पद पर एक पुरुष हो तो राष्ट्रपति कहा जाना तर्कसंगत है पर जब उस पर कोई महिला हो तो क्या उसे राष्ट्रपत्नी कहा जाना चाहिए? भाई लोगों ने चटखारे लेले कर इस सियासती व्याकरण की खूब खिल्ली उड़ाई थी. प्रतिभा पाटिल के बहाने चली बहस में महात्मा गांधी को भी लपेट लिया गया था कि अगर वे राष्ट्रपिता थे तो क्या कस्तूरबा गांधी राष्ट्रमाता थीं. ऐसी बचकाना हरकत  इंदिरा गांधी के समय में भी एक बार उछाली गई थी. यह एक व्याकरणात्मक राजनीति थी.

अगर इसे आधार मान लिया जाए तो जवाहर लाल नेहरू क्योंकि चाचा नेहरू के नाम से मशहूर हो गए थे, तो क्या उन की पत्नी कमला नेहरू चाची कहलाई गईं?

हरियाणा के एक नेता देवीलाल ताऊ कहलाए जाने लगे थे तो क्या उन की पत्नी ताई कहलाई गईं?

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक नेता राजा भैया के नाम से मशहूर हैं. सवाल है कि क्या उन की पत्नी को राजा बहन कहा जाए या रानी भैया कहा जाए या रानी बहन कहा जाए? ये सभी मामले विशुद्ध व्याकरणात्मक राजनीति के हैं जिन से मेरा कोई लेनादेना नहीं है पर जब ये लिखने वाली भाषा के व्याकरण में आने लगते हैं तो मेरी तकलीफ नाजायज नहीं कही जाएगी.

अब गौर कीजिए साली का पुल्ंिलग, साला हुआ पर गाली का गाला नहीं हुआ. गठरी का गट्ठा तो हुआ लेकिन मठरी का मट्ठा नहीं हो सकता. लंगड़ी का लंगड़ा तो हुआ, पर गृहिणी का गृहणा नहीं हो सकता, पत्नी का पत्ना भी नहीं हो सकता. पुत्री का पुत्र तो होता है पर नेत्री का नेत्र नहीं हो सकता. खाली का खाला नहीं हो सकता और राजनीति का राजनीता भी नहीं हो सकता. इसी तरह कोयल का कोयला भी नहीं हो सकता.

चाचा का स्त्रीलिंग चाची तो होता है, मामा का मामी भी होता है पर बप्पा का बप्पी कतई नहीं होता. सरकारी कार्यालयों में जूता बोलता है, वह चाहे चांदी का हो या चमड़े का या फिर चाचा, दादा का, पर जूती कतई नहीं बोलती. जबकि दूसरी तरफ दबंग की तूती बोलती है, पर किसी का तूता बोलते आप ने कभी नहीं सुना होगा.

यह समस्या केवल पुल्ंिलग और स्त्रीलिंग में ही नहीं है, एकवचन और बहुवचन में भी है. गाड़ी का बहुवचन गाडि़यां होता है, साड़ी का साडि़यां होता है पर कबाड़ी का कबाडि़यां नहीं होता. बात का बातें तो होता है, लात का लातें भी होता है पर तात (पिता) का तातें नहीं हो सकता. पेड़ का बहुवचन भी पेड़ ही है. आप यह नहीं कह सकते कि इस बाग में 10 पेड़ें हैं, सही तो यही होगा कि इस बाग में 10 पेड़ हैं, ‘जंगल में मोर नाचा’ का बहुवचन होगा ‘जंगल में मोर नाचे’ न कि मोरें नाचे.

अब आप ही बताइए, जैसे दबंग सियासतदां कभी भी और कहीं भी अवैध कब्जों के लिए अलिखित अधिकार पाए हुए होते हैं इसी तरह यह सियासत भी कहीं भी अवैध कब्जा करने के लिए आजाद है. वह लेखन के क्षेत्र में ही नहीं, नदी, तालाब या पाताल तक भी जा सकती है. मामला लिंग का जो ठहरा, इस के पास सत्ता होती है. अब सत्ता का शब्द खुद ही पुल्ंिलग जैसा दिखता है, इस का पुल्ंिलग कैसे बनाया जा सकता है. यह एक व्याकरणात्मक समस्या है राजनीतिक नहीं.

कुछ ऐसा ही मामला विलोम शब्दों के साथ भी है. अंकुश का निरंकुश तो होता है पर माता का निर्माता नहीं हो सकता आदि.

‘‘प्यार की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती..’’-आलिया भट्ट

फिल्म राजी और गली बौय की सुपर सक्सेस के बाद आलिया भट्ट का नाम बौलीवुड की ए-लिस्ट एक्ट्रेसेस में शामिल हो चुका है. आलिया की नई फिल्म कलंक जल्द ही रिलीज होने वाली है. ऐसे में हमने उनसे एक खास बातचीत की, जिसमें आलिया ने अपने एक्सपीरीयंस, पर्सनल लाइफ और अपकमिंग फिल्म कलंक से जुड़ी कई अहम बातें शेयर की.

फिल्म ‘‘कलंक’’ में किस कलंक की बात है?

-इसका जवाब पाने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. इस फिल्म में मेरे अलावा माधुरी दीक्षित, संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, आदित्य रौय कपूर व वरूण धवन जैसे बड़े कलाकार हैं. मगर इसमें कोई हीरो नहीं है. फिल्म के सभी किरदार महत्वपूर्ण हैं. इन छह किरदारों की जर्नी  है ‘कलंक’. अंत में फिल्म ‘‘कलंक’’ प्रेम कहानी है. इसमें इंटरनल लव की बात की गयी है. इसमें निडर व बेपनाह प्यार की बात की गयी है. फिल्म की कहानी 1940 की है, तो स्वाभाविक तौर पर इसमें आपको आजादी से पहले का माहौल नजर आएगा.

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‘‘कलंक’’ की कहानी 1940 की है. 1940 में जो प्यार था और अब जो प्यार है, इसमें आपको कितना फर्क नजर आता है?

-पहले के प्यार में सिम्पलीसिटी थी. अभी हम बहुत ज्यादा कनेक्ट रहते हैं. फोन पर एसएमएस भेजकर या बातें करके जुड़े रहते हैं. अब तो वीडियो कौलिंग के साथ ही मिलना-जुलना काफी होता है. लेकिन 1940 में ऐसा नहीं था, यहां तक कि 90 के दशक में मेरे मम्मी व पापा के पास भी फोन नहीं था. यह दोनों कई दिनों तक बात नहीं करते थे. लेकिन इसके यह मायने नहीं होते थे कि प्यार चला गया. पर आज की तारीख में लोग सोचते हैं कि प्यार में एक दूसरे से ज्यादा जुड़े रहना अच्छा होता है, पर मैं इसे सही नहीं मानती. जरुरी यह है कि जब आप प्यार में हैं, तो आप अकेले भी और सामने वाले के साथ भी खुश रह सकते हो. मजबूत प्यार हमेशा दूरी से ही आता है. उस वक्त लोग दूर रह कर ही अपने प्यार को मानते थे और उनके प्यार में ज्यादा मजबूती होती थी. उस वक्त जब लोग प्यार करते थे, तब उनके लिए प्यार में कोई ‘एक्सपायरी डेट’ नहीं हुआ करती थी. लेकिन आज लोग प्यार में कमिटमेंट करने से झिझकते हैं. मैं भी आज के दौर, आज की ही पीढ़ी की हूं, पर मैं भी इस बात को देख रही हूं कि आज की पीढ़ी का युवा कमिटमेंट करने से झिझकता है.

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फिल्मों के चयन में आपके परिवार से कौन मदद करता है?

-देखिए, मैं इस बारे में सिर्फ तीन लोगों से बात करती हूं. एक हैं अयान मुखर्जी, जो कि फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र’ के निर्देशक हैं,  दूसरे हैं अभिषेक वर्मन, जो कि फिल्म ‘कलंक’ के निर्देशक हैं और तीसरे करण जोहर. मैं इन तीन लोगों से ही अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट को लेकर बातें करती हूं. अपनी पसंद को लेकर भी बात करती हूं. मैं इनसे सलाह लेती हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि यह तीनों ही अलग इंसान है और इसी वजह से तीनो की सोच में अंतर है और तीनों मुझे बहुत अच्छी तरह से समझते भी हैं. मैं जब उनसे बात करती हूं, तो मुझे अहसास होता है कि मैं खुद से बातें कर रही हूं. मुझे अंदर से पता होता है कि मुझे क्या करना है. पर इन तीनों से बात करके मुझे एक प्रस्पेक्टिब मिल जाता है. जो कि हमेशा मेरे लिए मददगार होता है.

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फिल्म ‘‘कलंक’’ के किरदार पर रोशनी डालेंगी?

-मैंने इसमें रूप का किरदार निभाया है. पीरियड फिल्म होने की वजह से उसकी बौडी लैंगवेज में एक ग्रेस है. ठहराव है. पर आंखों में काफी पावर है. वह अपनी आंखों से बहुत कुछ कह जाती है. वह निडर है. रूप बहुत अलग किरदार है. रूप अपनी जिंदगी में जो कुछ करती है, वह प्यार की वजह से करती है. वह कुछ सहन या बर्दाश्त करती है, तो प्यार की वजह से. वह कोई कदम उठाती है, तो वह भी प्यार की ही वजह से. वह मौडर्न डे लड़की है, पर वह चालीस के दशक में जन्मी है. उसका स्वभाव क्रांतिकारी है. वह हमेशा अपने मन की ही करती है. वह जो भी कदम उठाती है, उसके लिए निडर व बहादुर होना जरुरी है. रूप मोहब्बत का प्रतीक है. रूप का किरदार काफी जटिल है.

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फिल्म ‘‘कलंक’’ के गीत ‘‘घर मोरे परदेसिया’’ की काफी चर्चाएं हैं?

-मुझे यह डांय माधुरी दीक्षित के संग करना था. मैं बहुत नर्वस थी. लेकिन माधुरी दीक्षित ने मुझे काफी सहज बनाया. वह लगातार मुझे समझा रहीं थी कि मुझे क्या करना है. वह चेहरे के भावों से लेकर कदम ताल को लेकर भी मुझे सलाह दे रही थी. इस नृत्य को करने से पहले मैंने एक साल तक शस्त्रीय नृत्य की ट्रेनिंग हासिल की. उसके बाद पूरे दो माह तो मैने सिर्फ इस नृत्य के लिए समर्पित कर प्रशिक्षण लिया. मैने बिरजू महाराज से भी नृत्य की कुछ बारीकियों को समझा. मुझे पता था कि मैं चाहे जितना प्रयास कर लूं, मगर मैं माधुरी दीक्षित मैम के स्तर का नृत्य नही कर सकती. मगर मेरा प्रयास यह रहा कि इस नृत्य से मैं अपने नृत्य का स्तर कुछ तो आगे बढ़ा सकूं. मेरी खुशकिस्मती यह रही कि माधुरी मैम मेरे साथ नृत्य नहीं कर रहीं थीं. यदि वह मेरे साथ नृत्य कर रही होती, तब तो मैं नर्वसनेस के चलते मर ही जाती. पर जैसे ही रेमो डिसूजा ने मुझे समझाया और शूटिंग शुरू हुई, उसके बाद तो मेरी नर्वसनेस खत्म हो गयी.

अब तक के निभाए गए किरदारों में सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण किरदार कौन सा रहा?

-फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ के बाद ‘‘कलंक’’ सर्वाधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण किरदार है. ‘उड़ता पंजाब’ चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि मैं नहीं जानती थी कि पंजाब में यह सब होता है. ‘‘कलंक’’एक पीरियड ड्रामा है, उस काल के किरदार को कई लेअर के साथ परदे पर निभाना आसान नहीं था. अमूमन मैं हर सीन को एक या दो टेक में ही ओके कर देती हूं. मगर ‘कलंक’ में हर सीन के लिए मुझे ग्यारह से बारह टेक देने पड़ते थे,  इसके वजनदार कास्ट्यूम व ज्वेलरी वगैरह के साथ सीन देने थे. पर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला.

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