बिना एक्सरसाइज और डाइटिंग के ऐसे कम करें वजन

आजकल लोगों में मोटापे की समस्या आम हो गई है. जंक फूड, फास्ट फूड, खराब लाइफस्टाइल और असंतुलित आहार के कारण लोगों में ये समस्या तेजी से बढ़ रही है. समान्यत: लोगों को लगता है कि ज्यादा खाना खाने से वो मोटे हो रहे हैं, फिर पतला होने के लिए वो कम खाना खाते हैं, डाइटिंग करते हैं. पर आपके मोटापे की समस्या का ये हल नहीं है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि बिना डाइटिंग के, बिना कम खाना खाए आप कैसे अपना वजन कम कर सकेंगी.

वजन कम करने के ये हैं आसान तरीके

फाइबर युक्त डाइट

वजन घटाने में फाइबर अहम तत्व होता है. फाइबर युक्त भोजन लेने से लंबे समय तक आपको भूख नहीं लगती है. ये भूख कंट्रोल करने में काफी सहायक होता है. इसके अलावा पाचन के लिए भी फाइबर फायदेमंद होता है.

खूब पिएं पानी

वजन कम करने के लिए पानी काफी फायदेमंद है. कोशिश करें कि पूरे दिन पानी पेट में जाता रहे. इसके अलावा, भोजन से ठीक पहले पानी पीना, आपको कम कैलोरी लेने में मदद कर सकता है.

पर्याप्त नींद और स्‍ट्रेस

नींद पूरी ना होना या तनाव एपेटाइट रेगुलेटिंग हार्मोन्स के बीच असंतुलन पैदा होता है. जिसके कारण आप अधिक खाना खाते है. कोशिश करें कि दिन में छह से आठ घंटे सोने की कोशिश करें और अपने स्‍ट्रेस लेवल को कंट्रोल करें.

खाना चबा कर खाएं

आमतौर पर लोग खाना चबा कर नहीं खाते हैं. खाना चबाना उन्हें बेकार की चीज लगती है. पर अगर आप वजन घटाना चाहती हैं तो जरूरी है कि भोजन धीरेधीरे चबा कर खाएं.

लें प्रोटीन युक्त डाइट

आहार में प्रोटीन बेहद जरूरी होता है. इसमें अमीनो एसिड होता है जो हमारी मांसपेशियों को ताकत देता है और टिश्यू के लिए फायदेमंद होता है. इसके अलावा, ये भूख को कंट्रोल करता है, जिससे आप अगली डाइट में अधिक खाने से बच जाते हैं. प्रोटीन समृद्ध खाद्य पदार्थ अंडे, दूध, नट्स, चिकन और चीज डाइट में शामिल किए जाने चाहिए.

प्लास्टिक वाला चावल तो नहीं खा रहीं आप? ऐसे करें पता

आजकल बाजार में प्लास्टिक वाले चावल की सप्लाई ज्यादा हो रही है. ये नकली चावल सेहत के लिए काफी हानिकारक होते हैं. इसे देख कर ये बता पाना मुश्किल होता है कि चावल असली है या नकली.

प्लास्टिक के इस चावल में ऐसे रसायन होते हैं जिनका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. इससे हमारे हार्मोन्स बुरी तरह प्रभावित होते हैं. इसके अलावा इसका असर प्रजनन प्रणाली को भी बाधित कर सकते हैं.

आपके लिए ये जानना जरूरी है कि प्लास्टिक के चावल की पहचान कैसे की जाती है. इस खबर में हम आपको कुछ आसन टिप्स दे रहे हैं, जिनसे आप इसकी पहचान कर सकती हैं.

  • चावल बनने के बाद कुछ दिनों तक छोड़ दें. कुछ दिनों बाद इसमें से बदबू ना आए या चावल सड़े नहीं तो समझ जाएं कि वो प्लास्टिक का चावल है.
  • एक चम्मच में गर्म तेल लें और उसमें चावल के कुछ दाने डाल दें. प्लास्टिक के दाने पिघना शुरू हो जाएंगे.
  • एक गिलास पानी में एक चम्मच चावल डाल दें. अगर चावल प्लास्टिक का होगा तो वो पानी में तैरने लगेंगे.
  • थोड़ा चावल लें और उसमें हल्की आग लगा दें. अगर वो नकली चावल होगा तो उसमें से प्लास्टिक के जलने की बदबू आएगी.

ऐसे बनाए मीठी लस्सी  

स्‍वीट लस्‍सी  की रेसिपी बनाने में बेहद आसान है. और सबसे बड़ी बात यह है कि गर्मी के दिनों में ठंडे ड्रिंक्स पीने का आनंद ही कुछ और होता है. आप भी मीठी लस्सी बनाने की विधि ट्राई कर सकती हैं.

आवश्यक सामग्री:

– दही 2 कप (गाढ़ा)

– दूध ( 01 छोटा चम्मच)

– शक्कर ( 02 छोटे चम्मच)

– इलायची पाउडर ( 1/2 छोटा चम्मच)

– पिस्ता ( 02 छोटे चम्मच बारीक कतरे हुए)

– बादाम 6-7 (बारीक कटे हुए)

– केसर ( चुटकी भर)

– आइस क्यूब्स ( आवश्यकतानुसार)

मीठी लस्सी बनाने की विधि

– सबसे पहले दूध को हल्का सा गर्म करें और उसमें केसर को भि‍गो दें.

– अब मिक्सर में दही, शक्कर, इलायची पाउडर, केसर और आइस क्यूब्स डालें और अच्छी तरह से ब्लेंड     कर लें.

– अब दही के मिश्रण को सर्विंग ग्लास में निकाल लें.

– इसके बाद थोड़े से आइस क्यूब्स को क्रश करके सभी गिलास में डाल दें.

– लीजिए मीठी लस्सी बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

टेनिस बडीज रिव्यू: हौसले की कहानी कहती बेहतरीन फिल्म

फिल्म: टेनिस बडीज

रेटिंग: ढाई स्टार

कलाकार: रणवीर शौरी, दक्षता पटेल और दिव्या दत्ता

निर्देशक: सुहैल तातारी

खेल और वह भी टेनिस पर मनोरंजक फिल्म बनाना बहुत मुश्किल काम है. टेनिस की गिनती एक षु-ुनवजयक खेल के रूप में ही होती है. इसके प्रशंसको की संख्या भी कम है. लेकिन फिल्मकार सोहेल तातारी ने टेनिस के ही इर्द-गिर्द घूमने वाली वाली बुलंद हौसेलों की बात करने के साथ ही अपने पिता के सपनों को पूरा करने वाली लड़की की कहानी को रोचक तरीके से फिल्म ‘‘ टेनिस बडीज’ ’में पेश करने में सफल रहे हैं.

फिल्म ‘‘टेनिस बडीज’’की कहानी के केंद्र में 14 साल की टेनिस खिलाड़ी अनुष्का सिंह (दक्षता पटेल) है, जिसके पिता दिलीप सिंह (रणवीर शौरी) खेलों की गंदी राजनीति का शिकार होकर टेनिस के खेल से बाहर हो गए थे. अब वह अपने सपने को अपनी बेटी अनुष्का सिंह के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं.

मगर फरीदाबाद खेल क्लब के सचिव कांडा, दिलीप सिंह और अनुष्का सिंह के खिलाफ हैं. कांडा ने ही राजनीति कर दिलीप सिंह के टेनिस करियर को खत्म किया था. दिलीप स्वयं अपनी बेटी को टेनिस की कोचिंग दे रहे हैं. फरीदाबाद खेल क्लब के कौशिक चाहते हैं कि दिल्ली एनसीआर के साथ होने वाली चौदह साल के टूर्नामेंट में फरीदाबाद खेल क्लब की टीम का हिस्सा बनकर अनुष्का खेले. मगर कांडा व दिलीप इसके खिलाफ हैं.

दिलीप चाहते हैं कि उनकी बेटी अनुष्का सिंगल ही खेले. मगर कुछ काम से जब दिलीप सिंह को मुंबई जाना पड़ता है,तो अनुष्का के साथ क्लब के खिलाड़ी ध्रुव,अनुष्का से मिलकर अपनी टीम का कैप्टन बना लेते हैं, इससे कैप्टन अरविंद नाराज भी होता है.जबकि अनुष्का सिंह की मां जया सिंह (दिव्या दत्ता) का भी अनुष्का को समर्थन है. अब सभी लड़के अनुष्का सिंह के साथ ही टेनिस की प्रैक्टिस करते हैं.अंततः फरीदाबाद व दिल्ली के बीच की प्रतियोगिता में फरीदाबाद की टीम यानी कि अनुष्का सिंह की ही जीत होती है. दिलीप सिंह को क्लब का सचिव बना दिया जाता है.

टेनिस की पृष्ठभूमि में माता पिता द्वारा अपने सपनों को अपने बच्चों के माध्यम से पूरा होते देखने की कथा अनूठी नहीं है. ऐसा हर मां बाप करता है. इस पर एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी, मगर कमजोर पटकथा व मैच के बीच बीच में बार बार अतीत में जिस तरह से कहानी जाती है, उससे मजा किरकिरा होता रहता है. फिल्म के संवाद भी प्रभावशाली नही है.

एडीटिंग टेबल पर भी फिल्म को कसने की जरुरत थी. फिर भी यह फिल्म हर बच्चे के हौसले को बढ़ाने का काम करती है. कम से कम हर टीनएजर बच्चे को यह फिल्म देखनी चाहिए.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो पूरी फिल्म अनुष्का सिंह के इर्द गिर्द ही घूमती है. अनुष्का सिंह के किरदार में दक्षता पटेल हैं, जो कि मूलतः टेनिस खिलाड़ी हैं, इसलिए टेनिस खेलते हुए वह टेनिस की तकनीक पर बेहतर नजर आती हैं, मगर अन्य सीन्स में कमजोर है. अभिनय उन्हे नही आता है. अनुष्का के माता पिता के किरदार में दिव्या दत्ता और रणवीर शौरी ने बेहतरीन परफार्मेंस दी है. बाकी के बाल कलाकार सही परफार्मेंस नही दे पाएं.

एक घंटे पचास मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘टेनिस बडीज’’ का निर्माण‘‘ चिल्ड्रेन फिल्म सोसायटी’’ ‘‘बाल फिल्म सोसायटी’’ ने किया है. फिल्म के निर्माता अनूप वाधवा व अशोक वाधवा, निर्देशक सुहैल तातारी, पटकथा लेखक पवन सोनी,संवाद लेखक पवन सोनी व रोहित राणा हैं. फिल्म के कलाकार हैं. दक्षता पटेल, दिव्या दत्ता, रणवीर शौरी, शिवानी देसाई, मेजर विक्रमजीत सिंह,अमर तलवार,चारू शर्मा व अन्य.

सिर्फ बौडी बनाना ही काफी नहीं, दूसरों को सम्मान देना सीखें-विद्युत जामवाल

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म जंगली के एक्टर विद्युत जामवाल ने साल 2011 में तेलगू फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले एक्टर विद्युत् जामवाल ने तीन साल की उम्र से मार्शल आर्ट सीखना शुरू किया और 19 साल की उम्र में केरल के मार्शल आर्ट कलरिपयट्टू की ट्रेनिंग ली. पिता के आर्मी में होने की वजह से उन्होंने हमेशा एक अनुशासित जिंदगी जी है. उन्होंने जौन अब्राहम के साथ फिल्म ‘फोर्स’ से बौलीवुड डेब्यू किया था, जिसमें उन्होंने निगेटिव भूमिका निभाई, पर उनके काम को काफी सराहना मिली. हाल ही में हमने उनसे खास बातचीत की, पेश है उनसे हुई इस बातचीत के कुछ अंश…

प्र. आप फिल्म में स्टंट्स के लिए जाने जाते है,इस फिल्म में आपने इसका भरपूर प्रयोग किया है, कितना सहज और मुश्किल रहा, जानवरों के साथ स्टंट करना?

लोगों ने मेरा दूसरा रूप नहीं देखा है,जो मैं कर सकता हूँ. इसमें मैंने हिन्दुस्तानी मार्शल आर्ट्स का प्रयोग किया है और ये पहली फिल्म है, जिसमे मार्शल आर्ट्स को करने का इतना अच्छा मौका मिला. इसमें दो दोस्तों की कहानी को दिखाया गया है,जिसमें एक दोस्त जानवर और दूसरा भी जानवर ही है. ये कहानी अवैध शिकार पर है. पहले जब निर्देशक चक रसेल ने ये कहानी सुनाई थी,तो मुझे अच्छा लगा था, क्योंकि ये कहानी एक देश या लड़की के लिए लड़ने का नहीं है ,जो अधिकतर फिल्मों में होता है और मैंने भी किया है. यहां हम जानवरों के लिए लड़ रहे है और ऐसी फिल्म पहली बार करने को मिला है. जानवरों के साथ काम करना बहुत अच्छा लगा. इसमें मैंने एक्शन को एक मनोरंजक रूप से करने की कोशिश की है, ताकि जिसे एक्शन पसंद भी न हो, वे भी इस फिल्म को देखकर आनंद महसूस करें.

Vidyut Jamwal, Vidyut Jamwal interview

प्र. आजकल लोग जानवरों पर कम ध्यान देते है, आबादियां जंगलों को काटकर घर बना रही है, ऐसे में ये जानवर शहर की ओर आ जाते है, जिससे आम जनजीवन के लिए खतरा महसूस होने लगा है, इस फिल्म के बाद आपका जुड़ाव उनसे कितना हुआ और वन्य जीवन को सहेज कर रखना कितना जरुरी है?

मुझे जानवरों के बारें में बचपन से ही अधिक जानकारी है और फौजी का बेटा होने के नाते और भी अधिक रूचि उनमें रहती है. केवल समाचारों में ही नहीं, मैंने कई डौक्युमेंट्री फिल्मों में भी जानवरों के अवैध शिकार को देखा है. काम करने के बाद ये समझ में आया कि जंगल का राजा शेर नहीं, हाथी है, क्योंकि कई सारे शेर मिलकर एक हाथी को मारते है. इस फिल्म के जरिये बच्चों और बड़ों को भी बहुत कुछ जानवरों के बारें में सीखने को मिलेगा. मेरी बहन एक कौकरोच को देखकर डर जाती है, कौकरोच ने आजतक किसी को कभी काटा नहीं होगा. लोग चूहों से डरते है,जबकि चूहा खुद घबरा कर भागता रहता है. ऐसे में बच्चों को सिखानी चाहिए कि वे इन चीजो से डरे नहीं, अगर आपने उन्हें छेड़ा नहीं है, तो वे आपको कुछ नहीं करेंगे. वे आपसे डर कर ही आप पर आक्रमण करते है. वन्यजीव हमारे लिए जरुरी है,क्योंकि इससे पृथ्वी का संतुलन बना रहता है. केवल 5 हजार रुपये लेकर साउथ अफ्रीका में लोग हाथी के मुंह को आरी से काट देते है और उनके दांतों का सौदा करते है, जो दुःख की बात है. इन्हें बचाने के लिए विश्व स्तर पर सभी को आगे आने की जरुरत है. अगर हमने हाथी और शेरों को नहीं बचाया, इनके अवैध शिकार को नहीं रोका, तो ये भी डायनोसौर की तरह लुप्त हो जायेंगे.

Vidyut Jamwal, Vidyut Jamwal interview

प्र. इस फिल्म के लिए आपने कितनी ट्रेनिंग ली है?

ट्रेनिंग से अधिक गाइडेंस ली है,क्योंकि हाथी का शरीर बड़ा होने की वजह से अधिक दिखता नहीं है, ऐसे में उनके पांव के बीच में न आना, उन्हें सम्मान देना आदि कई चीजे वहां जाकर मैंने महसूस किया और सीखा है.

प्र. आप स्टंट खुद करते है, क्या कभी डर लगा? जो लोग मस्ती के लिए स्टंट करते है उनके लिए क्या संदेश देना चाहते है? मार्शल आर्ट की सही जानकारी कितना जरुरी है?

मैं कभी डरा नहीं हूं. कोई भी व्यक्ति अपने आपको दर्द नहीं दे सकता और ये प्रशिक्षण के समय सीखा जाता है, जो लोग ट्रेन पर सवार होकर स्टंट करते है,उन्हें मैं मूर्खों की संज्ञा देना चाहता हूं. मार्शल आर्ट की बहुत बड़ी ट्रेनिंग होती है,जिसमें आप अपने शरीर की हर कोशिका को जान सकते है और उसी के अनुसार स्टंट करने में कोई समस्या नहीं होती.

प्र. आपकी फिल्में बौक्स ऑफिस पर बहुत अधिक सफल न होने पर भी दर्शक आपको देखना पसंद करते है, इसे कैसे लेते है?

ये सही है कि आउटसाइडर होने के बावजूद मुझे फिल्में मिल रही है और मैं काम कर रहा हूँ. किसी भी फिल्म का प्रेशर हमेशा रहता है और अगर ये बौक्स ऑफिस पर न चले तो दुःख होता है, पर मैं इस पर अधिक ध्यान नहीं देता, क्योंकि मैं इसके प्रोसेस को एन्जौय करता हूं और हर फिल्म के लिए पूरी मेहनत करता हूं.

Vidyut Jamwal, Vidyut Jamwal interview

प्र. क्या कोई सामाजिक कार्य करने की इच्छा रखते है?

सामाजिक कार्य से अधिक मैं यूथ की माइंड सेट को बदलने की इच्छा रखता हूं. उन्हें किसी को कैसे सम्मान दिया जाय, उसे समझाने की जरुरत है. उन्हें बहुत अधिक गलतफहमी होती है. मैं उन्हें कहना चाहता हूं कि आप अपने आसपास के किसी को भी खासकर महिलाओं और बुजुर्गों को सम्मान देना सीखे. अपनी सीमाओं को जाने. जब मैं किसी कौलेज में सेल्फ डिफेन्स प्रोग्राम करता हूं, वहां मैं जाकर कहता हूं कि केवल जिम में जाकर अपनी बौडी बना लेना काफी नहीं. आपको अपने व्यक्तित्व को भी निखारने की जरुरत है, जिसे आपका परिवार और समाज महसूस कर सकें.

प्र. आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं जिस भी काम की इच्छा करता हूँ, उसे अवश्य करता हूँ. इससे मुझे संतुष्टि मिलती है और मैं पूरे दिन एनर्जेटिक रहता हूं. मेरा ट्रेनिंग सूची अलग है. कोई भी काम करने से पहले मैं अपने माइंड को तैयार करता हूं, उसके बाद बौडी उसे फोलो करती रहती है. मैं वेजिटेरियन हूँ और हर तरह का फूड खाता हूं.

हाथियों के अवैध शिकार पर बनी फिल्म ‘जंगली’

हर 15 मिनट में एक हाथी का शिकार उसके दांतों के लिए होता है, इसलिए हाथी दांत से बने सामानों का प्रयोग न करने की सलाह देती फिल्म ‘जंगली’ को अमेरिकन फिल्म मेकर और निर्देशक चक रसेल ने ‘जंगली प्रोडक्शन हाउस’ के तहत एक्शन पैक्ड मनोरंजक फिल्म बनायी. ये सही भी है कि जानवरों का अवैधशिकार विश्व में सभी स्थानों पर होता आया है और इसमें सुरक्षा अधिकारी से लेकर सभी शामिल होते हैं और ऐसे में उन्हें पकड़ना किसी भी सरकार या संस्था के लिए मुमकिन नहीं. ये कहानी कोई नयी नहीं, पर इसमें हाथियों की सुरक्षा जरुरी है, इसे स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए अभिनेता विद्युत् जामवाल ने अपने उम्दा और भावनात्मक अभिनय को जानवरों की भावना से जोड़ने की कोशिश की है. जो काबिले तारीफ है. विद्युत जामवाल से अधिक कोई भी अभिनेता इस किरदार में फिट नहीं बैठ सकता था.

ये फिल्म वाकई पारिवारिक फिल्म है. इसमें बच्चों को जानवरों के प्रति सहानुभूति, स्नेह और संवेदनशीलता को बनाये रखने की दिशा में सीख देती है. इसके अलावा फिल्म में पत्रकार के रूप में आशा भट्ट, महावती के रूप में मराठी एक्ट्रेस पूजा सावंत, मकरंद देशपांडे और अतुल कुलकर्णी ने काफी अच्छा काम किया है. कहानी इस प्रकार है,

राज नायर (विद्युत् जामवाल) मुंबई का रहने वाला एक वेटेनरी डौक्टर है और वह जानवरों की  मानसिकता को अच्छी तरह समझता है. अपनी मां की मौत के बाद वह शहर आ जाता है और 10 साल बाद वह ओड़िसा के ‘चन्द्रिका एलीफैंट सेंचुअरी’ जाता है. जहां उसका पिता और महावती के रूप में शंकरा (पूजा सावंत) हाथियों की देखभाल करते है. वहां टीवी जर्नलिस्ट मीरा ( आशा भट्ट) भी पहुंचती हैं, जो जंगल की पूरी कहानी को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं. राज वहां आने पर कुछ शिकारियों द्वारा हाथी दांत के लिए हाथियों के अवैध शिकार को देखकर मर्माहत होता है और उन्हें सजा देने की कसम खाता है. इसी तरह कहानी कई परिस्थितियों से गुजर कर अंजाम तक पहुंचती है.

इस फिल्म की शूटिंग थाईलैंड में की गयी है, जिसे सिनेमेटोग्राफर मार्क इरविन ने बहुत ही शानदार तरीके से जानवरों और कलाकारों के तालमेल, साथ ही कलरीपट्टू की भव्यता को अंजाम दिया है, पर फिल्म में एक्शन को थोड़ा कम कर जानवरों के भावनात्मक जुड़ाव को थोड़ा अधिक दिखाया जाता तो फिल्म शायद थोड़ी और अच्छी लगती. इसके अलावा निर्देशक ने हिंदी फिल्म को पहली बार भारतीय परिवेश में बनाते हुए आत्मशक्ति को बढाने के लिए गणपति का अचानक प्रकट होना,ऐसी फिल्म के लिए अजीब लगा. फिल्मके संगीत काहानी के अनुरूप है. बहरहाल फिल्म परिवार के साथ देखने योग्य है. इसे थ्री स्टार दिया जा सकता है.

फिल्म समीक्षा : नोटबुक

रेटिंग: दो स्टार

‘फिल्मिस्तान’और ‘‘मित्रों’’ जैसी फिल्मों के सर्जक नितिन कक्कड़ इस बार प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘नोटबुक’’ में अपना जादू जगाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. अफसोस की बात यह है कि 2014 में औस्कर तक पहुंची थाई फिल्म ‘‘टीचर्स डायरी’’ का सही ढंग से भारतीयकरण नहीं कर पाए.

फिल्म ‘‘नोटबुक’’की कहानी शुरू होती है दिल्ली में अपने घर के अंदर नींद में सपना देख रहे कश्मीरी पंडित कबीर(जहीर इकबाल) से. सपने में कबीर एक सैनिक की पोशाक में है, सीमा पार से आया एक मासूम बालक उसे देखकर भागता है और जमीन पर पडे एक बम पर उसके पैर के पड़ने से वह मारा जाता है. तभी श्रीनगर से आए फोन की घंटी से कबीर की नींद टूटती है. फोन पर बात करने के बाद वह श्रीनगर के लिए रवाना होता है. श्रीनगर में वह अपने पुश्तैनी मकान पर पहुंचता है, जिसकी देखभाल एक मुस्लिम शख्स कर रहा है. कई साल पहले कुछ कश्मीरी मुस्लिमों ने ही उसके परिवार को श्रीनगर छोड़ने पर मजबूर किया था. अब एक मुस्लिम ही उसके मकान को सुरक्षित रखे हुए हैं. श्रीनगर की एक झील के बीचो बीच कबीर के पिता का ‘वूलर स्कूल’ है,जिसमें सात बच्चे नाव से पढ़ने आते जाते हैं. लेकिन जुनैद सेश्शादी तय होने पर स्कूल की शिक्षक फिरदौस (प्रनूतन बहल) ने वूलर स्कूल छोड़कर अपने होने वाले शौहर जुनैद के डीपीएस स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया है.वूलर स्कूल में कोई शिक्षक नही है. यूं तो स्कूल अब सरकार के कब्जे में है, मगर कबीर के घर की सुरक्षा कर रहे शख्स की इच्छा है कि कबीर वूलर स्कूल के बच्चों को पढ़ाए, जिससे बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो. कबीर प्रयास करता है और उसे वूलर स्कूल में नौकरी मिल जाती है. स्कूल के बच्चे फिरदौस शिक्षक को भूले नहीं हैं, इसलिए वह कबीर को स्वीकार करने को तैयार नही है. कबीर को कक्षा में फिरदौस की नोटबुक मिलती है, जिसमें फिरदौस ने हर दिन की कथा व अपने मन के विचार लिख रखे हैं. इस नोटबुक को पढ़कर कबीर उसी तरह बच्चों के साथ व्यवहार कर बच्चों का दिल जीत लेता है. इतना ही नही वह फिरदौस से प्यार कर बैठता है और फिरदौस का पता लगाकर उससे मिलने का असफल प्रयास करता है.

फिरदौस की नोटबुक से ही पता चलता है कि एक बुद्धिमान व होनहार विद्यार्थी स्कूल नहीं आ रहा है,तो वह इमरान के घर जा कर नोटबुक में लिखी बातें इमरान की मां से कहकर इमरान के साथ उसकी बहन को भी स्कूल में पढ़ने के लिए ले आता हैं.

उधर डीपीएस स्कूल के व्यवस्थापकों व जुनैद से बच्चों को पढ़ाने के तरीके पर फिरदौस की नोंकझोक चलती रहती है. एक दिन तंग आकर फिरदौस नौकरी छोड़ देती है.

इधर कबीर, इमरान को गणित के गलत सूत्र पढ़ा देता है, जिसके चलते वार्षिक परीक्षा में इमरान फेल हो जाता हैं. इमरान रोते हुए ब्लैकबोर्ड पर गणित के सूत्र को लिखकर कबीर से कहता है कि आपने ही पढ़ाया था तो फिर मैं फेल कैसे हो गया? मैं फेल नही हो सकता. कबीर को अपनी गलती का अहसास होता है. वह सरकारी अफसर के पास जाकर अपनी गलती मानते हुए नौकरी छोड़ देता है. इमरान को पास कर दिया जाता है.

तो दूसरी तरफ शादी के दिन फिरदौस को पता चलता है कि उसके होने वाले पति जुनैद के बच्चे की मां एक अन्य औरत बनने वाली है. फिरदौस शादी तोड़कर पुनः वूलर स्कूल में नौकरी करने पहुंच जाती है, बच्चे खुश हो जाते हैं. फिरदौस अपनी नोटबुक उठाती हैं, तो उसमें खाली पड़े पन्नों में कबीर ने अपनी कहानी लिख रखी है जिसे पढ़कर फिरदौस को भी कबीर से प्यार हो जाता हैं. वह कबीर से मिलने उसके घर पहुंचती हैं. कबीर ही मिलता मगर पता चलता है कबीर के पिता ने ही फिरदौस को गणित पढ़ाया था. फिरदौस के पिताने ही कबीर के कश्मीरी पंडित परिवार को श्रीनगर छोड़ने पर मजबूर किया था. फिरदौस के पिता ने ही कबीर के घर को जलाने का असफल प्रयास किया था.

एक दिन जब इमरान के पिता गुस्से से इमरान को ले जाने आते हैं तभी कबीर वहां पहुंचता हैं और नाटकीय घटनाक्रम के बाद इमरान के पिता इमरान को छोड़कर चले जाते हैं.कबीर व फिरदौस के प्यार को मुकाम मिलता है.

2014 की सफलतम थाई फिल्म ‘‘टीचर्स डायरी’’ की भारतीय करण वाली फिल्म ‘‘नोटबुक’’ कमजोर पटकथा के चलते विषयवस्तु के साथ न्याय करने में पूरी तरह से विफल रहती है. फिल्म कहीं न कहीं वर्तमान सरकार के एजेंडे वाली असफल फिल्म है. फिल्म की कहानी के केंद्र में कश्मीर से भगाए गए कश्मीरी पंडितों की भी बात है.

कश्मीर में फिल्मायी गयी इस फिल्म में प्रेम कहानी ठीक से उभर नहीं पाती है. मगर फिल्म में कश्मीर के वर्तमान हालातों, शिक्षा को लेकर वहां के कट्टर मुस्लिमों की सोच, कश्मीरी पंडितों के पलायन जैसे मुद्दों को भी हलके फुलके ढंग से चित्रित किया गया है. मगर कमजोर पटकथा के चलते फिल्मकार नितिन कक्कड़ पूणरूपेण एक बेहतरीन फिल्म बनाने में असफल रहे हैं. फिल्मकार ने जिस प्रेम कहानी को पेश किया हैं, उससे दर्शक खुद को जोड़ नहीं पाता. सरलतावादी राजनीति के रूखेपन के बीच प्रेम कहानी अपना असर नही डालती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो जहीर इकबाल व प्रनूतन बहल की यह पहली फिल्म है, पर दोनों अपनी अभिनय प्रतिभा की छाप छोड़ने में असफल रहे हैं. फिल्मकार नितिन ने इनकी कमजोरी को छिपाने के लिए ज्यादातर दृश्य लांग शौट यानी कि काफी दूर से ही फिल्माए हैं. दोनों कलाकारों के चेहरे पर आपेक्षित भाव नहीं आते. घाटी के खूबसूरत दृश्यों के बीच दोनों कलाकारों का लकड़ी की तरह सपाट चेहरा पैबंद नजर आता है. फिरदौस द्वारा जुनैद से शादी तोड़कर वहां से निकलने वाले दृश्य में जरुर एक आत्मविश्वास प्रनूतन बहल में नजर आता है. प्रनूतन बहल व जहीर इकबाल से कई गुना बेहतर परफार्मेंस तो बाल कलाकारों की है.

जहां तक गीत संगीत का सवाल है, तो संगीतकार असफल ही रहे हैं. मगर फिल्म के कैमरामैन मनोज कुमार खटोई बधाई के पात्र है जिन्होंने अपने कैमरे से घाटी की सुंदरता को चित्रित कर कई जगह फिल्मकार की मदद की हैं.

एक घंटा 52 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘नोटबुक’’ का निर्माण सलमान खान, मुराद खेतानी व अश्विन वर्दे ने किया है. फिल्म के निर्देशक नितिन कक्कड़, लेखक शरीब हाशमी व पायल असर, पटकथा लेखक दराब फारूकी, संगीतकार विषाल मिश्रा व ज्यूलियस पकम, कैमरामैन मनोज कुमार खटोई तथा कलाकार हैं- जहीर इकबाल ,प्रनूतन बहल व अन्य.

सिंगल मदर बनकर खुश हूं-साक्षी तंवर

धारावाहिक ‘कहानी घर-घर की’ में पार्वती की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री साक्षी तंवर इन दिनों एकता कपूर की वेब सीरीज ‘कर ले तू भी मोहब्बत’ की वजह से चर्चा में हैं. हाल ही में हमने उनसे बातचीत की, पेश है इस इंटरव्यू के कुछ अंश.

सवाल: बहुत दिनों बाद आप और राम कपूर एक बार फिर से काम कर रहे है, इसमें क्या खास है?

ये सही है कि हम दोनों फिर से एक बार काम कर रहे है. ये अच्छी बात है, इस सीरीज के पहले सीजन में दोस्ती, दूसरे सीजन में प्यार और तीसरे में पति-पत्नी में लड़ाई, नोंक-झोंक और नफरत ये सब दिखाई पड़ेगी. अब तक की सारी भूमिकाओं से ये अलग है, जिसे करने में अच्छा लगा.

सवाल: शादी के कुछ सालों बाद रियल लाइफ में भी कुछ पति-पत्नी के संबंधों में खटास आ जाया करती है, आपकी कहानी उन्हें क्या सीख देती है? हालांकि आप शादीशुदा नहीं है, फिर भी विवाह को सालों तक अच्छा बनाये रखने किन चीजो की जरुरत होती है?

ये सही है कि जहां प्यार अधिक होता है वहां तकरार भी होती है. बाहर के लोग अगर आपको कुछ कहे, तो आप ध्यान नहीं देते, लेकिन जिस व्यक्ति से आप प्यार करते है, वही व्यक्ति अगर आपको दुःख दे, तो बहुत तिलमिलाहट होती है और ये कहानी इसके प्रभाव को भी बताती है. इसके अलावा मैंने अपने माता-पिता को देखा है कि उनमें कितना अच्छा सामंजस्य है. मैंने महसूस किया है कि गलत सोच, ईगो आदि से हर चीज गलत होती जाती है, ऐसे में इसे समेटना मुश्किल हो जाता है. जब हम दूसरे का नुकसान करने जाते है, तो सबसे पहले खुद का नुकसान करते है. खुद की अच्छाई और बुराई नहीं देख पाते. दूसरे का नुकसान तो बाद में होता है, अपना नुकसान पहले होता है.

सवाल: आप इस चरित्र से अपने आपको कैसे रिलेट करती है?

मुझसे बहुत अलग है. इस कहानी में मेरा चरित्र किसी बात को अंदर रख लेती है, या उस परिस्थिति से भागने की कोशिश करती है. मैं वैसी नहीं हूं, मुझे अगर किसी से समस्या है तो मैं उससे बात कर लेना उचित समझती हूं. अगर मुझे गुस्सा भी आता है तो थोड़े दिनों तक शांत रहकर फिर उससे बात कर लेती हूं. मुझे कभी भी किसी बात में पहल करने में मुश्किल नहीं होती. बाकी अभिनय है, जिसे मैंने करने की कोशिश की है.

सवाल: आपने एक बच्चे को अडौप्ट किया है, सिंगल मदर बन चुकी हैं, मां बनकर आप कैसा महसूस कर रही है?

हर मां जिस दौर से गुजरती है, मैं भी उसी दौर से गुजर रही हूं. बच्चा हर घर में खुशियां और हलचल लेकर आता है. मेरे घर में भी वैसा ही माहौल बन गया है, जिसे मैं एन्जौय कर रही हूँ. हर पल एक सेलिब्रेशन होता है. हर चीज में अद्भुत अनुभूति हो रही है. मेरे माता-पिता भी इसे एन्जौय कर रहे है.

सवाल: आप अपनी जर्नी को कैसे देखती है और आपमें कितना परिवर्तन हुआ?

कैमरे के सामने मैंने 25 साल से अधिक समय बिताया है, लेकिन जितने भी कामों में मैंने सफलता पायी है, उनमें अधिकतर को मैंने ‘ना’ कही है. मैंने कुछ चुना नहीं है. ये सभी काम मुझ तक आये है. काम ने मुझे चुना. मेरा क्रेडिट ये है कि मैंने अपनी भूमिका को सही तरह से निभाया है. दर्शकों ने मेरे काम को पसंद किया और मुझे काम मिलता गया.

सवाल: आज सभी कलाकारों को काम मिलता है, क्योंकि वेब, टीवी फिल्म आदि सब आ चुके है, इस दौर को आप कैसे लेती हैं?

ये बहुत ही अच्छा दौर है. हर व्यक्ति को अपना काम दर्शक या पाठक तक पहुंचाने का मौका मिल रहा है, फिर चाहे वह लेखक, निर्देशक, कलाकार आदि कुछ भी हो, उसकी चाहत को रंग देने वाला माध्यम यही है. फिल्मों में एक कहानी को बहुत कम समय में कहना पड़ता है, जबकि टीवी में इसका उल्टा होता है. एक चरित्र को इतना खींचा जाता है कि मुख्य कहानी से धारावाहिक भटक जाती है. वेब सीरीज एक बैलेंस्ड माध्यम है, जिसमें आप एक निश्चित दायरे में हर किरदार की बातों को रखते हुए पूरी कहानी कह सकते है.

सवाल: ऐसा माना जा रहा है कि वेब सीरीज में सर्टिफिकेशन नहीं होता, ऐसे में इसमें गाली- गलौज से लेकर सेक्स को पूरी तरह से पेश किया जा रहा है, क्या ये परिवार और अपरिपक्व बच्चों के लिए सही है? इस बारें में आपकी सोच क्या है?

मैंने जो वेब सीरीज की हैं, वे परिवार को ध्यान में रखकर ही बनाये गए है. सेंसरशिप अंदर से ही आनी चाहिए और ये हर कोई कर सकता है,क्योंकि आपके पास ‘ना’ बोलने या न देखने पौवर होता है उसका प्रयोग करें. बच्चों के लिए उनके माता-पिता को ध्यान रखने की जरुरत है कि वे ऐसी चीजे न देखें, क्योंकि औनलाइन पर सेंसर लगाना मुश्किल है.

सवाल: क्या आपके ना कहने का असर आपके कैरियर पर पड़ा?

धारावाहिक ‘कहानी घर घर की’ के बाद मैंने ब्रेक लिया. उस समय कई शो के औफर आये, लेकिन मैंने 8 साल काम किया है इसलिए मैं थोड़ा आराम करना चाहती थी. मैंने कभी नहीं सोचा है कि मैं कम काम कर रही हूँ.  मैंने जितना भी काम किया मेरी जगह दर्शकों के दिल में बन गयी है. इसलिए मुझे कोई असुरक्षा की भावना नहीं है. टीवी पर जो काम किया है, उसके श्रेय को आगे ले जा रही हूं.

सवाल: क्या कोई सामाजिक कार्य आप करती है और किस क्षेत्र में अधिक काम करने की जरुरत है?

मैं सोशल वर्क करती हूं, लेकिन मैं शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक काम करने की सलाह देती हूँ. कई ऐसे शहर या गांव है, जहां शिक्षा की बहुत कमी है. शिक्षा से ही सभी क्षेत्र में उन्नति हो सकती है.

गरमी में इन फलों को खाइए, नहीं होगी पानी की कमी

हमारे शरीर के लिए खाने से अधिक जरूरी पानी होता है. पानी का महत्ता का अंदाजा इस बात से हम लगा सकते हैं कि हमारे शरीर का करीब एक तीहाई हिस्सा पानी से बना है. जैसे ही हमारे शरीर में पानी की कमी होती है, हमारे अंग इससे बुरी तरह से प्रभावित होने लगते हैं.

पानी ना सिर्फ हमारे अंगों का ख्याल रखता है बल्कि ये उन्हें उर्जा देता है और इनकी सफाई करता है. गरमी में हमारे अंगों का खास कर के पानी की जरूरत होती है. आमतौर पर जितनी हमें जरूरत होती है उसका 80 फीसदी हम पीते हैं और बाकी 20 फीसदी पानी को हम अपने सौलिड फूड यानी खानों से मिलता है.

ऐसे में इस बात पर ध्यान देना और जरूरी हो जाता है कि हम गरमी में खा क्.या रहे हैं और उससे हमारे शरीर को कितना पानी मिल रहा है.

इस खबर में हम आपको कुछ खास फलों के बारे में बताने वाले हैं. इनके सेवन से चिलचिलाती धूप में भी शरीर में पानी की कमी नहीं होगी.

तो आइए शुरू करें

पालक

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हरी सब्जियां सेहत के लिए काफी लाभकारी होती हैं. इनमें विटामिन्स और मिनरल्स प्रचूर मात्रा में होते हैं. आपको बता दें कि पालक में करीब 91.4 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा मैग्निशियम और आयरन का ये प्रमुख स्रोत होता है. गरमी में पालक का सेवन स्वास्थ के लिए लाभकारी होता है.

टमाटर

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टमाटर आप किसी भी मौसम में खाएं सेहत के लिए फायदेमंद ही होता है. बहुत सी सब्जियां टमाटर के बिना अधूरी होती हैं. सब्जी, सलाद, सौस, चटनी और भी ना जाने किन चीजों के लिए टमाटर का इस्तेमाल होता है.

अंगूर

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पानी के लिए अंगूर भी एक प्रमुख फल है. अगर आप गरमी में अंगूर खाते हैं हो आपको कम प्याल लगेगी और शरीर में पानी की जरूरत पूरी रहती है. इसमें 91.6 फीसदी पानी होता है. इसके अलावा ग्लूकोज, मैग्नीशियम और साइट्रिक एसिड का ये प्रमुख स्रोत है.

खीरा

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सब्जी, सलाद और रायते में खीरे का प्रयोग धड्डले से होता है. खीरे में कई जरूरी विटामिन्स और मिनरल्स होते हैं. ये शरीर को पोषित रखते हैं. इसके अलावा इनमें पानी की मात्रा अधिक होती है. इसमें लगभग 96.7% पानी होता है इसलिए इसे खाने से आपका शरीर हाइड्रेट रहता है इसलिए गरमी के मौसम में खीरे का खूब सेवन करें. ये आपकी सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है.

इसमें 94.3 हिस्सा पानी का होता है. आपको बता दें कि टमाटर में विटामिन सी और आयरन की मात्रा प्रमुखता से होती है. इसके अलावा टमाटर में एंटी औक्सिडेंट भी पाया जाता है.

तरबूज

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आमतौर पर गरमियों में तरबूज मिलता है. रस से भरे इस लाल फल में पर्याप्त मात्रा में पानी होता है. फल का करीब 92 फीसदी हिस्सा पानी का होता है. इसमें कई ऐसे एंटी औक्सिडेंट्स भी मौजूद होते हैं जो इम्यून सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं और शरीर को स्वस्थ्य रखते हैं.

ग्लैमरस लुक के लिए बनवाना चाहती हैं टैटू तो फौलो करें ये टिप्स

इलाहाबाद की रहने वाली स्मृति सिंह के घर शादी थी. वह बहुत खुश थी. शादी की पार्टी में वह सब से अलग दिखना चाहती थी. अत: उस ने अपनी पूरी बाजू, पीठ के खुले हिस्से पर फ्लौवर और बटरफ्लाई की डिजाइन का टैटू बनवाया. इस में चमक देने के लिए स्टोन और कलर का प्रयोग किया. रात को इस पर जब रोशनी पड़ती है तो वह बौडी के उस खास हिस्से को हाईलाइट कर देता है.

स्मृति जिस ब्यूटीपार्लर में मेकअप कराने जाती थी वहां की ब्यूटी एक्सपर्ट प्रतिभा त्रिपाठी से उस ने अपनी बात कही. प्रतिभा स्मृति के मन की बात को समझ गई. उस ने स्मृति की बाजू और ब्रैस्ट के ऊपर वाले हिस्से पर लिप पैंसिल की सहायता से बटरफ्लाई की आउटलाइन बनाई. इस के बाद ऐक्वा कलर से उस में रंग भर कर आईलैश गम से स्टोन चिपका दिए. कलर भी स्मृति की पोशाक से मैचिंग थे. रंगों में भरे टैटू स्मृति ने जब बाजू और ब्रैस्ट के ऊपर वाले हिस्से पर बनी टैटू डिजाइन को देखा तो खुशी के मारे झूमने लगी. बौडी के इन खुले हिस्सों पर प्रतिभा ने बहुत ही खूबसूरत ढंग से हाथ से टैटू बना दिए थे. प्रतिभा ने बताया कि टैटू को आकर्षक बनाने के लिए रंगीन नगों, कुंदन, ग्लिटर आदि का प्रयोग किया जा सकता है. बहुत सारे लोग बौडी को टैटू और मेहंदी से सजाते हैं.

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ट्रैंडी और स्टाइलिश टैटू को युवा ज्वैलरी की जगह भी खूब प्रयोग कर रहे हैं. टैटू अब बौडी आर्ट का अहम हिस्सा बन गया है. टैटू की दीवानी स्मिता ने शादी की पहली सालगिरह पर ट्रैंडी और ग्लैमरस दिखने के लिए टैटू डिजाइनें बनवाईं. वह कहती है कि आजकल फैशन का जमाना है. हरकोई अलग दिखना चाहता है, जिस के लिए तरहतरह के प्रयोग किए जा रहे हैं.

टैटू बनाने वाली डिजाइनर प्रतिभा त्रिपाठी का कहना है कि टैटू से बौडी को सजाना सब से आसान हो गया है. इसे जरूरत के हिसाब से लगाया और उतारा जा सकता है. यह लड़के और लड़कियों में बराबर लोकप्रिय है. लड़के वाइल्ड लुक वाले टैटू पसंद करते हैं, तो लड़कियां सैक्सी और हौट दिखने के लिए बटरफ्लाई, फ्लौवर, स्टार, लव साइन, स्नेक और फिश जैसी डिजाइनों के टैटू पसंद करती हैं.

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ग्लैमर बनता टैटू क्रेज…

टैटू के सहारे बौडी के खुले हिस्से को ग्लैमरस बनाया जाता है. बौडी को सजाने के लिए बाजार में बने बनाए टैटू भी मिलते हैं. जो लोग खुद को दूसरों से अलग दिखाना चाहते हैं वे अपनी पसंद की डिजाइनों के टैटू भी बनवाते हैं. पार्टी में अलग दिखने की इच्छा रखने वाली महिलाएं अपनी आर्म, लोअर बैक, साइड नैक, ब्रैस्ट के ऊपरी हिस्से, कलाई, बैक शोल्डर और नाभि के पास इन्हें बनवाती हैं.

ब्यूटी और फैशन एक्सपर्ट प्रतिभा त्रिपाठी कहती हैं कि टैटू से बौडी आर्ट कराने से पहले अपनी ड्रैस की मैचिंग जरूर देखनी चाहिए. ड्रैस न इतनी बड़ी होनी चाहिए कि टैटू दिखे ही नहीं और न ही इतनी छोटी कि आप की फूहड़ता झलकने लगे.

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बौलीवुड सेलेब्स का असर…

बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक के कलाकारों ने टैटू के ग्लैमर को खूब बढ़ा दिया है. हौलीवुड हीरोइन एंजेलिना जौली ने अपनी बौडी पर 1 दर्जन टैटू बनवा रखे हैं. ब्रिटनी स्पीयर्स ने अपनी पीठ पर कई टैटू बनवाए हैं. ऐश्वर्या राय, अमृता अरोड़ा, ईशा देओल, संजय दत्त, रितिक रोशन, अजय देवगन और प्रीति भूटानी भी टैटू के दीवाने हैं.

फुटबाल खिलाड़ी बाइचुंग भूटिया और डैविड बेकहम ने भी टैटू की डिजाइनें बनवा रखी हैं. छोटे परदे के कलाकारों में भी टैटू का आकर्षण देखने को मिल रहा है. अपने चाहने वाले को इंप्रैस करने के लिए युवा हाथ, बाजू और ब्रैस्ट पर टैटू की डिजाइनें बनवाने लगे हैं.

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टैंपरेरी टैटू का प्रयोग ज्यादा होता है. ये कम कीमत में बनते हैं और इन्हें हटाना भी आसान होता है. कालेज में पढ़ने वाली पूजा कहती है कि उस की सहेलियां मेहंदी से अपने पेट, नाभि और आर्म पर टैटू बनवाती हैं.

प्रतिभा कहती है कि लड़कियां फ्लौवर डिजाइन को सब से ज्यादा पसंद करती हैं. शर्ट, टीशर्ट और लो वेस्ट जींस पहनने वाली लड़कियां अपनी नाभि पर टैटू लगवाना पसंद करती हैं, जो इन्हें सैक्सी और हौट लुक देता है. शौर्ट स्कर्ट पहनने वाली लड़कियां अपनी जांघों के खुले हिस्सों और टखनों पर टैटू का प्रयोग करना पसंद करती है. कुछ खास मौकों पर पूरी बौडी में भी टैटू बनवाने का चलन महिलाओं में बढ़ता जा रहा है. अगर किसी के शरीर पर कोई दाग है तो टैटू के जरीए उसे भी छिपाया जा सकता है

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