हाई हील्स : लाएं आपकी पर्सनैलिटी में निखार

हाई हील्स पहनना हर लड़की को पसंद होता है. हाई हील्स से लड़की की बौडी आकर्षक दिखती है साथ ही उनका पर्सनैलिटी में भी निखार आता है. लेकिन दिनभर इसे पहने रहना ना मुमकीन है. पूरे दिन हील्स पहनकर रखा जाए तो शाम आते-आते शामत आनी ही है. इसका दर्द हाई हील्स पहनने वाली लड़कियां अच्छे से समझ सकती हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बताएंगे जिससे अगली बार जब आप हील्स पहनेंगी तो आपको ऐसी तकलीफों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सबसे पहले अपने फुट को पहचानें. हर किसी के फुट अलग तरह के होते हैं. किसी के फ्लैट तो किसी के कर्व्ड फीट होते हैं. ऐसे में सबसे पहले ये पहचाने कि आपके फुट कैसे हैं. उसी के मुताबिक अपने लिए हील्स का चुनाव करें.

हील्स की जब बात हो तो लड़कियों की पहली पसंद पेंसिल हील्स या स्टिलेटो होते हैं, लेकिन अगर आपको हील के साथ-साथ कंफर्ट चाहिए तो आप ब्लौक हील्स का चयन कर सकते हैं. दरअसल ब्लौक हील्स पैरों को ज्यादा स्पोर्ट देती हैं जिस वजह से पैरों पर कम प्रेशर बनता है और दर्द कम होता है.

हील्स खरीदते समय हमेशा ध्यान में रखें कि ऐसी हील का चयन करें जिसमें ज्यादा कवरेज हो. जितना ज्यादा कवरेज होगा वो उतना ही स्पोर्ट देगी और आपको चलने में उतनी ही आसानी होगी और आपको पैरों में दर्द की परेशानी भी नहीं होगी.

प्री ब्राइडल ट्रीटमैंट में बौडी स्पा का कमाल

दुलहन को अपनी शादी में खूबसूरत दिखने के लिए अनेक तैयारियां करनी पड़ती हैं. अगर वह शादी से पहले ही कुछ ब्यूटी ट्रीटमैंट ले ले, तो शादी के दिन उस की खूबसूरती और बढ़ जाती है. प्री ब्राइडल ट्रीटमैंट्स में खास है बौडी स्पा ट्रीटमैंट, जो दुलहन के शरीर को भी खूबसूरत बनाता है.

वीएलसीसी ग्रुप की स्पा टे्रनर व वीआईपी स्पा थेरैपिस्ट केवालिन बुआपेट एन्नी बता रही हैं कि दुलहन की खूबसूरती निखारने के लिए क्या करें, जिस से उस की बौडी में निखार आए.

बौडी स्पा

बौडी की ड्राईनैस को दूर करने के लिए शादी से पहले 2-3 बार बौडी स्पा कर सकती हैं या करा सकती हैं. सब से पहले हनी, आमंड व तिलों का पेस्ट बना लें. फिर कच्चे दूध से बौडी को क्लीन करें और तिल के तेल से 10 मिनट मसाज करें. फिर बौडी को 5 मिनट कवर कर के रखें. 5 मिनट के बाद गरम पानी में तौलिए को भिगो कर हलका निचोड़ कर बौडी को पोंछ कर दोबारा बौडी को कवर कर दें. फिर तैयार आमंड पेस्ट लगा कर 5 मिनट लगा रहने दें. फिर पोंछ कर मौइश्चराइजर लगाएं.

पेट की मसाज

पेट की मसाज के लिए लाइम और जिंजर औयल का इस्तेमाल करें और मसाज हमेशा नीचे से ऊपर की ओर हलके हाथों से ही करें. फिर क्लियरिंग फाइन पेपर 20 मिनट तक पेट पर लगा कर रखें या ज्यादा से ज्यादा 50 मिनट तक. उस से ज्यादा समय तक न लगाएं.

इस के अलावा वीएलसीसी की टमी ट्रैक क्रीम लगा कर 10 से 15 मिनट तक फिर पूरे पेट पर क्लियरिंग फाइन पेपर लपेट दें. यह पेट को गरमी दे कर पेट की चरबी को कम करता है. 20 मिनट के बाद क्लियरिंग पेपर हटा लें. पेट की स्किन सौफ्ट और स्मूद बन जाएगी.

हिंदी की वो 10 फिल्में जिसे हर लड़की को देखनी चाहिए

‘सिनेमा समाज का आईना होता है’ ये एक प्रचलित कहावत है. अधिकतर फिल्मों में हिरोइन का अस्तित्व हीरो की वजह से होता है. यही सच्चाई है हमारे समाज की. पुरुष प्रधान इस समाज में महिलाओं के अस्तित्व को पुरुष ये इतर सोचा नहीं जाता. पर समय के साथ समाज बदला और फिल्में भी बदली. सही मायनो में कहे तो अब फिल्में समाज को राह दिखा रही हैं. समाज और फिल्मों का ये बदला हुआ ट्रेंड आज का नहीं है. इसकी शुरुआत को एक लंबा अरसा हो चुका है.

आज महिलाओं की जो बेहतर स्थिति है उसमें हमारी फिल्मों का भी अहम रोल है. कुछ फिल्मों  के सहारे हम आपको ये बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे फिल्मों के बदलते संदेश, स्वरूप ने महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाया. कैसे दशकों पुरानी फिल्मों के असर को आज समाज के बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है.

तो आइए जाने उन 10 बड़ी फिल्मों के बारे में जिन्होंने महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया ही बदल दिया.

मदर इंडिया

10 must watch movies for girls

आजादी से ठीक 10 साल बाद 1957 में आई इस फिल्म ने देश की दशा को दुनिया के सामने ला दिया. फिल्म को औस्कर में नामांकन मिला. महमूद के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नरगिस, राज कुमार, सुनील दत्त, राजेन्द्र कुमार ने मुख्य किरदार निभाया. पर फिल्म की कहानी नरगिस के इर्दगिर्द घूमती रही.  उनके उस किरदार ने महिला शक्ति को एक अलग ढंग से दुनिया के सामने परोसा. जिस दौर में महिला सशक्तिकरण की बहस तक मुख्यधारा में नहीं थी, उस बीच ऐसी फिल्म का बनना एक दूरदर्शी कदम समझा जा सकता है.

बैंडिट क्वीन

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1994 में शेखर कपूर ने निर्देश में बनी ये फिल्म अपने वक्त की सबसे विवादित फिल्म थी. डाकू फूलन देवी के जीवन पर बनी इस फिल्म ने गरीबी, शोषण, महिलाओं की दयनीय स्थिति, जातिवादी व्यवस्था का भद्दा रूप सबके सामने लाया. फिल्म में फूलन देवी के डाकू वाली छवि से इतर, पितृसत्तात्मक समाज से लड़ाई लड़ने वाली एक लड़ाके के रूप में दिखाया गया. फिल्म ने लंबे समय से चले आ रहे महिला उत्थान,  समाजिक सुधार के बहस को और गर्मा दिया. दुनिया के सामने भारतीय ग्रामीण महिलाओं की एक सच्ची छवि रख दी. फिल्म का जबरदस्त विरोध हुआ.

मैरी कौम

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दुनियाभर में बौक्सिंग में देश का नाम रौशन करने वाली बौक्सर मैरी कौम लड़कियों के लिए किसी रोल मौडल कम नहीं हैं. 2014 में उनके संघर्ष, लड़ाई, मेहनत को बड़े पर्दे पर लाया निर्देशक ओमंग कुमार ने. फिल्म का बौक्स औफिस पर ठीकठाक प्रदर्शन रहा पर इसके संदेश ने महिलाओं की लड़ाई का एक चेहरा समाज के सामने लाया. फिल्म ने दिखाया कि अगर आपके पास जज्बा है, अगर आप जुनूनी हैं तो आपको आपकी मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता. महिला सश्क्तिकरण का मैरी कौम एक बेहतरीन उदाहरण हैं.

राजी

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2018 में आई इस फिल्म को स्पाई और इंटेलिजेंसी वाली फिक्शन फिल्मों से पुरुषों के एकाधिकार को खत्म करने वाली कुछ फिल्मों के तौर पर देखा जा सकता है. फिल्म में आलिया भट्ट के किरदार की खूब तारीफ हुई. फिल्म में विकी कैशल के बावजूद लीड रोल में आलिया रहीं, इसके बाद भी फिल्म को दर्शकों ने पसंद किया. ये दिखाता है कि वक्त बदल रहा है हीरो के बिना भी फिल्मों को स्वीकारा जाता है.

क्वीन

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हाल के कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण के लिए क्वीन से बेहतर कोई फिल्म नहीं बनी. ऐसा बोल कर हम बाकी फिल्मों को नकार नहीं रहे. बल्कि हमारे ये कहने के पीछे एक कारण है जो आगे आपको समझ आएगा.

इस फिल्म में कंगना एक बेहद साधारण सी शहरी लड़की के किरदार में थी. किरदार ऐसा कि एक बड़ी आबादी इसे खुद से जोड़ सके. किसी भी फिल्म के लिए इससे बड़ी बात कुछ नहीं हो सकती कि वो एक बड़ी आबादी से जुड़ जाए. ‘पुरुष के बिना महिला का जीवन संभव नहीं’ इस बात पर एक तंमाचा है ये फिल्म. मिडिल क्लास लड़की जिसकी कोई कहानी नहीं होती, वो भी कैसे अपनी कहानी कह सकती है, इस फिल्म ने बताया. देश में महिला सशक्तिकरण पर बनी फिल्मों की लिस्ट क्वीन के बिना अधूरी है.

वाटर

10 must watch movies for girls

रूढ़ीयां, कुरीतियां, धार्मिक जंजाल, पर एक करारा तमाचा है वाटर. फिल्म को बैन कर दिया गया था. इसका कंटेंट इसना सच्चा था कि समाज इसको अपनाने को तैयार ना हो सका. फिल्म ने दो मुद्दे प्रमुख रहें. एक बाल विवाह और दूसरा विधवाओं का जीवन. कैसे समाजिक कुरीतियां एक विधवा से खुश रहने की सारी वजहों को छीन लेता है, फिल्म में जबरदस्त अंदाज में दिखाया गया है.

पिंक

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मौडर्न लाइफस्टाइल में, खास कर के मेट्रो शहरों में महिलाओं की क्या स्थिति है. फिल्म में दिखाया गया कि कैसे तथाकथित मौडर्न सोसाइटी आज भी महिलाओं को केवल एक भोग की वस्तु के रूप में देखती है. इस फिल्म के माध्यम से महिलाओं के प्रति समाज की नजर, रवैये, धारणाएं, पूर्वानुमान आदि चीजों को एक सलीके से बड़े पर्दे पर उतारा गया.

इंगलिश विंगलिश

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श्रीदेवी की कुछ बेहतरीन फिल्मों में से एक है इंगलिश विंग्लिश. लेट एज अफेयर जैसे महत्वपूर्ण बिंदू को भी फिल्म में जगह दी गई. फिल्म से बच्चों का अपने मां बाप के प्रति नजरिए को भी प्रमुखता से दिखाया गया.

मौम

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श्रीदेवी की फिल्म मौम एक सौतेली बेटी और मां के बीच की कहानी है. अपनी बेटी का रेप हो जाने के बाद कैसे एक मां आरोपी को सजा दिलाने के लिए कुछ भी कर सकती है फिल्म में बखूबी ढंग से दिखाया गया. समाज में महिलाओं के कमजोर छवि को दूर करने में फिल्म अहम योगदान निभाती है.

बेगम जान

10 must watch movies for girls

बेगम जान बंगाली फिल्म ‘राजकहिनी’ का हिंदी रीमेक है. फिल्म में विद्या बालन एक तवाफ के किरदार में हैं. फिल्म में औरतों के आत्मसम्मान की लड़ाई को बेहतरीन अंदाज में दिखाया गया है.

पीरियड्स: एंड औफ सेंटेंस

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इसी साल आई इस डौक्यूमेंट्री फिल्म ने दुनिया को हौरान कर दिया. 26 मिनट की इस डौक्यूमेंट्री ने हरियाणा के एक छोटे से गांव के हालात को पर्दे पर बयां कर औस्कर में ‘बेस्ट डौक्यूमेंट्री औवर्ड’ अपने नाम किया. पीरियड को ले कर लोगों के मन में जो धारणा है उसपर ये फिल्म एक व्यंग है. महिलाओं की सुधरती स्थिति और जागरुकता के तमाम दावों को धता बताते हुए फिल्म ने समाज की नंगी तस्वीर सामने लाई. ये फिल्म भारतीय नहीं है. चूंकि इसकी पृष्ठभूमि भारतीय है, हमने इसे अपनी लिस्ट में जगह दी.

8 मार्च को नहीं मनाया जाता था ये दिन, पढ़ें ये दिलचस्प किस्सा

आज यानि 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस दुनिया भर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. दुनिया भर में महिलाएं एक लंबे वक्त तक शोषित रहीं. एक अरसे तक अपने अधिकारों के लिए उन्हें समाज से लड़ाई लड़नी पड़ी. जिस महिला से समाज का निर्माण हुआ, उसे ही इस समाज में अपनी पहचान, इज्जत पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा. सैकड़ों साल तक चली इस लड़ाई को जब आज हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो बिता वक्त बहुत छोटा दिखता है. पर उस वक्त में लाखों करोड़ों ऐसी अनकही कहानियां उबल रही हैं जिनकी  उष्मा ने आज के समाज को गढ़ा है.

महिलाओं के त्याग, बलिदान और संघर्ष के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है इंटरनेशनल वुमन डे. लंबे समय तक उनकी लड़ाई, त्याग और संघर्ष को याद करते हुए उन्हें समाज में इज्जत, बराबरी और अधिकार दिलाना ही इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है. पर क्या आपको पता है कि ये दिन मनाया क्यों जाता है?

इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि इस दिन की शुरुआत कैसे हुई. क्यों इसे मनाया जाता है.

ऐसे हुई शुरुआत

1908 में अमेरिका में वोटिंग के अधिकार, बेहतर तनख्वाह, काम की नियमित अवधि और पेशेवर तौर पर पुरुषों के बराबर बहुत सी बातों की मांग करते हुए करीब 15,000 महिलाओं ने एक मार्च निकाला था.  इसे न्यू यौर्क में निकाला गया था. इस मार्च को महिलाओं के हक के लिए हुए संघर्ष में एक मील के पत्थर के तौर पर देखा जाता है. अमेरिका के समाज में इस मार्च का काफी गहरा असर हुआ और लोगों में एक चेतना जागी.

इस मार्च के असर को देखते हुए ठीक अगले साल से, यानि 28 फरवरी, 1909 को पहली बार महिला दिवस मनाया गया था. इस दिन को मनाने का आह्वान सोशलिस्ट पार्टी ने किया था. शुरुआत इसकी केवल अमेरिका तक ही थी. पर अगले ही साल यानि 1910 में जर्मनी में वुमन डे का मुद्दा कालरा जेटकिन ने उठाया. कालरा का कहना था कि दुनिया के सभी देशों में महिलाओं के अधिकारों की बात होनी चाहिए और इसके लिए एक दिन तय करना होगा. इस दिन को वो महिलाओं के संघर्ष, उनके बलिदान, उनके शौर्ष के रूप में दुनिया भर में मनाना चाहती थी.

1909 में अमेरिका के न्यू यौर्क में लगी ये चिंगारी अब दुनिया भर में फैलने को तैयार थी. इसका असर ये हुआ कि 19 मार्च 1911 को औस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्विटजरलैंड और डेनमार्क में इस दिन को महिलाओं के सम्माने के तौर पर मनाया गया.

पहले 8 मार्च को नहीं मनाया जाता था अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

जी हां, आपको ये जान कर हैरानी होगी पर ये एक मजेदार तथ्य है. जब इसकी शुरुआत हुई तब, आज की तरह इसे 8 मार्च को नहीं मनाया जाता था. जब सोशलिस्ट पार्टी ने इस दिन का आह्वान किया, तब इसे फरवरी महीने के आखिरी रविवार को मनाया गया था. पर 1913 में इसे 8 मार्च को तय कर दिया गया. आगे चल कर 1975 में संयुक्त राष्ट्र में भी इस दिन को आधिकारिक मान्यता दे दी. इसके बाद इस दिन को दुनिया भर में एक थीम के तौर पर मनाया जाता है.

ऐसे दूर करें स्‍ट्रेच मार्क्स

स्किन के ओवर स्ट्रेच हो जाने पर स्‍ट्रेच मार्क्स की समस्या होती है. ये अक्सर प्रेग्नेंसी, बौडी बिल्डिंग, अधिक वजन बढ़ने और कभी – कभार उम्र बढ़ने के साथ भी आ जाते हैं. अगर आपकी बौडी पर स्‍ट्रेच मार्क्स है तो अब चिंता करने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि आज हम आपको कुछ घरेलू उपचार बताएंगे जिसकी मदद से आप अपनी बौडी पर पड़े भद्दे स्‍ट्रेच मार्क को हल्‍का कर सकती हैं.

कोको बटर

यह एक आजमाया हुआ नुस्‍खा है. कोको बटर को शिया बटर और एक विटामिन ई कैप्‍सूल के साथ मिक्‍स करें. इससे अपने स्‍ट्रेच मार्क वाली जगह की मालिश करें.

जैतून तेल

अपनी त्‍वचा को हर वक्‍त गरम जैतून तेल से आधे घंटे के लिये मालिश करें. ऐसा नहाने से पहले करें.

एलो वेरा जैल

एलो वेरा जैल के रस में विटामिन ई का तेल मिक्‍स करें और रोजाना प्रभावित हिस्‍से पर लगाएं.

बेकिंग सोडा और नींबू का रस

एक चम्‍मच बेकिंग सोडा और थोड़ा सा नींबू का रस मिक्‍स कर के पेस्‍ट बनाएं. इसे प्रभावित जगह पर आधे घंटे के लिये लगाए रखें. फिर इसे साधारण पानी से धो लें. कुछ ही दिनों में आपको असर दिखाई देने लगेगा.

आलू का रस

आलू में स्‍टार्च, विटामिन सी, एंटीऑक्‍सीडेंट आदि अच्‍छी मात्रा में होते हैं. कच्‍चे आलू को घिस कर उसके रस को स्‍ट्रेच मार्क पर लगाएं. आधे घंटे के बाद ठंडे पानी से धो ले.

अंडे

अंडे के सफेद भाग में काफी प्रोटीन होता है जिससे आपकी त्‍वचा लाभ उठा सकती है. इसे त्‍वचा पर लगाने से धीरे धीरे कर के स्‍ट्रेच मार्क गायब हो जाएंगे.

बादाम स्‍क्रब

बादाम के तेल में थोड़ी सी चीनी और नींबू का रस मिक्‍स कर के स्‍क्रब तैयार करें. इस स्‍क्रब से अपनी स्‍ट्रेच मार्क वाली जगह को स्‍क्रब करें. इस स्‍क्रब को हफ्ते में एक बार प्रयोग करें.

ऐसे रखें त्वचा का ख्याल

क्‍या आप जानती हैं कि गर्मियों में आपको अपनी त्‍वचा का कैसे ख्‍याल रखना चाहिये? हम आपको कुछ ऐसे ब्‍यूटी टिप्‍स बताएंगे जो गर्मियों में आपकी त्‍वचा में जान डाल देगें. अगर आपकी स्‍किन औइली है तो आपको ये ब्‍यूटी टिप्‍स जरुर आजमाने चाहिये क्‍योंकि यह पूरी तरह से नेचुरल हैं.

क्‍लीजिंग

गर्मियों में त्‍वचा के पोर्स बंद हो जाते हैं और उसमें पसीने के साथ बहुत सी गंदगी भर जाती है. आप इसे धोने के लिये हलका सा फेस वाश प्रयोग करें. और फेस क्‍लींजर के लिये रोज वाटर, दूध और बेसन का प्रयोग करें.

टोनर

अगर आप टोनर के तौर पर रोजवाटर का प्रयोग करती हैं तो यह त्‍वचा के पीएच को बैलेंस करता है. यह बडे़ पोर्स को बंद करता है और फ्रश लुक देता है. इसे दिन में दो बार प्रयोग करें.

मौइस्‍चराइजर

गर्मियों में बहुत से लोग मौइस्‍चराइजर लगाना पसंद नहीं करते. पर इससे त्‍वचा खराब हो जाती है. आप चाहें तो दूध की मलाई या एलो वेरा जैल भी लगा सकती हैं.

रोज लगाएं सनस्‍क्रीन

रोज औफिस या कौलेज जाने से पहले सनस्‍क्रीन लगाना ना भूलें. इससे त्‍वचा बची रहेगी और चेहरे पर उम्र से पहले झुर्रियां नहीं पड़ेगी.

स्‍क्रब

यह बहुत जरुरी है कि त्‍वचा की समय समय पर स्‍क्रब से सफाई की जाए. जिससे त्‍वचा से तेल, गंदगी और मृत्‍य कोशिकाएं निकल जाएं. आप चाहें तो ओटमील स्‍क्रब प्रयोग करें.

सनग्‍लास पहने

आपको हमेशा यूवी प्रोटेक्‍शन वाले सनग्‍लास पहनने चाहिये. आप थोड़े बड़े आकार के चश्‍मे खरीद सकती हैं जिससे आंखों के नीचे तक का हिस्‍सा ढंका रहे.

खूब सारी सब्‍जियां और फल खाइये

गर्मियों में फेशियल करवाने से अच्‍छा है कि आप खूब सारे फल और सब्‍जियां खाएं. इससे आपको ढेर सारा मिनरल, विटामिन और एंटीऔक्‍सीडेंट मिलेगा जिससे त्‍वचा हमेशा अच्‍छी बनी रहेगी.

खूब सारा तरल पदार्थ पियें

इससे आपकी त्‍वचा हमेशा हाइड्रेट बनी रहेगी और गंदगी भी दूर होगी. आपको दिन में 8 गिलास पानी पीना चाहिये. साथ ही गर्मियों में निकलने वाले मुंहासे भी नहीं होंगे.

हम तो सच ही बोलेंगे…

किरण मजूमदार शा बायोकौन कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर और जानी मानी हस्ती हैं जिन की कही बात दूर तक जाती है और शायद इसीलिए उन्होंने ट्विटर पर अपना अकाउंट बना लिया, जिसे 14 लाख लोग फौलो करते हैं. अपनी सही बात बहुतों तक पहुंचे, इसीलिए उन्होंने नरेंद्र मोदी की ट्रेन-18 जो दिल्ली से उन की संसदीय सीट वाराणसी के बीच चलनी शुरू हुई है और यह दावा किया जा रहा है कि 180 किलोमीटर की स्पीड पर चल रही है, पर एक सादा सा कमैंट कर दिया.

असल में पुलवामा की घटना के दिन ही नरेंद्र मोदी ने इस ट्रेन का उद्घाटन किया था पर यह अगले ही दिन लौटते हुए रास्ते में खराब हो गई. इस पर किरण मजूमदार शा ने पूरी साफगोई के साथ कह डाला कि यह सरकारी इंटैग्रल कोच फैक्टरी की कार्यकुशलता का नमूना है.

बस इतना कहना था कि उन पर सैकड़ों मोदी भक्त बरस पड़े. किसी ने कहा कि किरण शा कांग्रेस से राज्यसभा सीट चाहती हैं, किसी ने उन्हें विजय माल्या सा घोषित कर दिया, तो किसी ने उन्हें शेमलैस कहा, कुछ ने उन की कंपनी बायोकौन को घसीटना शुरू कर दिया, किसी ने उन्हें मानसिक बीमार घोषित कर दिया.

बेचारी किरण शा अपनी सफाई देतेदेते थकने लगीं और अंत में उन्होंने एक नए ट्वीट में माफी भी मांगी पर भगवाई ट्रोलों ने उन्हें फिर भी नहीं छोड़ा और उन के खेद पर और ज्यादा जोर से हमला जारी रखा. उन्हें अरबन नक्सल कहा गया और सलाह दी गई कि अपने काम से काम रखें.

असल में यह आलोचना हुई इसलिए कि यह ट्रेन नरेंद्र मोदी के नाम के साथ जुड़ी है और दूसरों को मांबहन की भद्दी गालियां देने वाले अपने आराध्य से जुड़ी किसी भी बात पर भड़क उठते हैं. वे जानते हैं कि सच को छिपाने का सब से अच्छा तरीका है कि सच बोलने वाले को डांटो, गालियां दो, उस का इतिहास खोलो.

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं यह अकसर झेलती हैं जब वे लोगों के भ्रम तोड़ कर उन्हें सच की तसवीर दिखाने की कोशिश करती हैं पर चूंकि पत्रिकाओं का प्लेटफौर्म ट्विटर की तरह का नहीं है, गालियां पत्रों, फोन वालों तक सीमित रहती हैं और एक गाली देने वाले के साथ दूसरे गाली देने वाले जुड़ नहीं पाते.

किरण मजूमदार शा को समझना चाहिए कि ट्विटर जैसा प्लेटफौर्म लोकतांत्रिक नहीं है. यहां बहस नहीं होती. यहां गालियां दी जाती हैं और एक पूरा वर्ग गालियां देने में ऐक्सपर्ट हो गया है. यहां झूठ का जम कर प्रचार होता है और अगर अपना उल्लू सीधा करने वालों को जरूरत हो तो सैकड़ोंहजारों रीट्वीट एक झूठ के होते हैं और सच बालने वालों की बात दब कर रह जाती है.

लोकतंत्र में हरेक को कहने की छूट है पर यह छूट लोकतंत्र को बल तब ही देती है जब सत्य कहने पर भीड़ न टूटे. हमारा लोकतंत्र और हमारी विचारों की स्वतंत्रता आज उन के हाथों में गिरवी रखी जा चुकी है, जो किसी भी तरह सच को छिपा कर पाखंड और झूठ के सहारे उस समाज को थोपना चाहते हैं, जिस में अंधविश्वास, पूजापाठ, तंत्रमंत्र, अज्ञान, कुतर्क, गंद, गरीबी, वर्णव्यवस्था का भेद, औरतों को पैर की जूती, विधवाओं का सिर मुंडाना, गोत्रों के हिसाब से विवाह आदि कानूनन थोपे जा सकें. किरण मजूमदार शा जैसे साफ शब्दों में सही बात कहने वालों को अंधभक्तों का आक्रमण तो सहना ही होगा.

किरण मजूमदार शा को सलाह तो यही है कि ऐसा प्लेटफौर्म जो बकवास को फिल्टर न कर सके, उन की उपस्थिति के लायक ही नहीं है. उन्हें ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि छोड़ देने चाहिए और कुछ कहना हो तो समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का सहारा लेना चाहिए जहां जिम्मेदार संपादक बैठे होते हैं.

लोग टोकते थे कि मैं आईटी छोड़ कर ब्यूटी इंडस्ट्री में क्यों आई :  अर्पिता दास

अर्पिता दास ब्यूटी प्रोफैशनल हैं. उन्होंने भारत में अपनी ब्यूटी ऐंड वैलनैस कंसल्टिंग कंपनी की शुरुआत की जिस का नाम ‘बिजनैस बाई अर्पिता’ रखा. ब्यूटी ऐंड वैलनैस को बाहर और अंदर से अच्छी तरह जानने के बाद अर्पिता ने महसूस किया कि ब्यूटी प्रोफैशनल्स को बहुत कुछ सीखने और जानने की जरूरत है और इस के लिए एक सही मार्गदर्शक की जरूरत है. इसी मकसद से उन्होंने 3000 से अधिक औपरेटरों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षित किया है. उन्होंने लैक्मे, काया स्किनकेयर और वीएलसीसी जैसे ब्रैंड्स के लिए कौरपोरेट ट्रेनिंग भी दी है.

उन्होंने इंडियन सैलून ऐंड वैलनैस कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत श्रेणी में ‘ऐक्सीलैंस इन ऐस्थैटिक्स कस्टमर सर्विस’ पुरस्कार भी जीता है. हाल ही में ‘बिजनैस बाई अर्पिता’ को ब्यूटी, वैलनैस ऐंड पर्सनल केयर में ‘ऐसोचैम स्टार्टअप औफ द ईयर 2018’ के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.

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पेश हैं, अर्पिता से हुए कुछ सवालजवाब:

इस मुकाम तक पहुंचने के क्रम में किस तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा?

किसी भी मुकाम तक पहुंचने के लिए संघर्ष का सामना तो क रना ही पड़ता है. मुझे भी करना पड़ा. मेरे लिए जरूरी था कि मैं ब्यूटी इंडस्ट्री की सारी जानकारी लूं. मैं कई पार्लर्स में गई. वहां काम करने के आधुनिक तरीके देखे. देखा कि क्याक्या प्रोडक्ट्स यूज होते हैं. जब मैं इस इंडस्ट्री में आई तो मुझे पता चला कि ब्यूटी इंडस्ट्री हरकोई नहीं चुनता, क्योंकि सब को लगता है कि यह काम बहुत छोटा है. वैसे भी मेरी बैकग्राउंड आईटी की रही है. लोग टोकते थे कि मैं आईटी छोड़ कर ब्यूटी इंडस्ट्री में क्यों आ गई. लोगों को यह समझा पाना बहुत कठिन था कि मैं इस इंडस्ट्री को बहुत पसंद करती हूं.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

इस मुद्दे पर काफी कुछ कहा जा सकता है. मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि पहले और आज की महिलाओं में बहुत अंतर है. पिछले 10-15 साल में काफी बदलाव आए हैं. कई संस्थाएं हैं, जिन्होंने महिलाओं की स्थिति को बदलने के लिए हाथ आगे बढ़ाए हैं. आज हर फील्ड में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं. मैं ने महिलाओं को मैट्रो, ट्रक, के्रन चलाते और अपने घर व बच्चों का ध्यान रखते हुए भी देखा है. स्थिति पहले से काफी बेहतर है.

एक महिला के तौर पर आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

हां, महिला होने के नाते कई मौकों पर असुरक्षित महसूस होता है. हमें कहीं जाने के लिए समय देखना पड़ता है. मैं जिस इंडस्ट्री में हूं वहां भी पुरुष मौजूद हैं पर हमें असुरक्षित महसूस नहीं होता. लोगों को लगता है कि महिलाओं में इतनी क्षमता नहीं है कि वे ज्यादा काम कर पाएं और चीजों को बखूबी निभा पाएं.

घर और काम एकसाथ कैसे संभालती हैं?

दोनों चीजों का संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है खासकर एक महिला के तौर पर आप को थोड़ा ज्यादा जिम्मेदार होना पड़ता है. आप को घर के साथसाथ अपने काम को भी संभालना होता है. कई जगह सिर्फ महिलाओं को ही काम करना पड़ता है. यदि आप मां हैं तो आप को अपने बच्चे की ओर ज्यादा ध्यान देना होता है और यदि आप की फैमिली, आप के दोस्त सपोर्टिव हैं तो कोई भी काम आप के लिए मुश्किल भरा नहीं रह जाता. मेरे मांबाप बहुत सपोर्टिव हैं. उन्होंने मुझे किसी भी चीज के लिए नहीं रोका.

क्या आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव होते हैं?

हां, अभी भी महिलाएं खुल कर नहीं जी पाती हैं. कई घटनाएं आए दिन हम सब के सामने आती रहती हैं. इतने कानूनों के बाद भी क्राइम रुक नहीं रहे हैं. मेरे सैंटर में भी जब कोई महिला अपनी कहानी बताती है तो जितना हो सकता है मैं उस की हैल्प करती हूं.

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ये हैं रोमांचित और सस्ते डेस्टिनेशन

आज हम आपको ऐसे टूरिस्ट प्लेस के बारे में बताने जा रहे हैं, जो खूबसूरत होने के साथ-साथ बेहद सस्ते भी हैं. जहां आप कम बजट में यात्रा कर सकती हैं. आइए बताते हैं.

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कसौली

शिमला के पास का कसौली बेहद आकर्षक टूरिस्ट प्लेस है. यह शिमला के नजदीक है और कई मामलों में शिमला से सस्ता भी है. यहां की खूबसूरती किसी मायने में शिमला से कम नहीं है. आप चाहें तो शिमला का टूर करने, वहां टाय ट्रेन की यात्रा करने के बाद कसौली आ सकती हैं.

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उत्तराखंड

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जहां बेहद सुंदर टूरिस्ट प्लेस तो हैं ही, साथ ही पाकेट फ्रेंडली टूरिस्ट प्लेस भी हैं. यहां आप कम बजट में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर घूम सकती हैं. आइए, उत्तराखंड के उन शहरों के बारे में जानते हैं, जहां कम पैसों में सैर की जा सकती है.

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चमोली

उत्तराखंड का चमोली फूलों की घाटी के रूप में भी प्रसिद्ध है. इस घाटी में 500 से ज्यादा फूलों की विभिन्न प्रजातियां आपको देखने को मिल जाएंगी. यहां का मौसम आमतौर पर सुहावना ही रहता है और आप सर्दियों या गर्मियों में कभी भी यहां घूमने आ सकती हैं. इस सुंदर घाटी को देखने देसी ही नहीं विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में आते हैं. खास बात यह है कि यहां की खूबसूरती आपको बहुत लुभाएगी.

इन बीमारियों के कारण होते हैं चेहरे के ये बदलाव

हमारे शरीर में क्या कमी है, किस चीज की अधिकता है, सेहत संबंधित सारी चीजें हमारे चेहरे पर उभर आती हैं. किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देख कर बताया जा सकता है कि उसे किस तरह की बीमारी है. आपका चेहरा कई तरह की बीमारियों का संकेत देता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि चेहरे पर आने वाले कौन से बदलाव किस बीमारी के लक्षण होते हैं. किसी भी तरह के बदलाव के क्या मायने होते हैं.

चेहरे पर बाल आना

हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने से इस तरह की परेशानियां महिलाओं में देखी जाती है. इससे बहुत परेशान ना हों. डाक्टर को दिखाएं, परामर्श लें. जल्दी आपको राहत मिलेगी.

शरीर पर लाल धब्बों का आना

जब आपके पेट में किसी तरह की परेशानी हो रही है तो शरीर पर लाल बड़े धब्बे उभर आते हैं.

बालों का झड़ना

बालों का झड़ना एक आम सी परेशानी है. पर अगर आपके सिर के बालों के साथ पलकें और आईब्रो भी झड़ रहें हैं तो सावधान हो जाइए. इसे नजरअंदाज ना करें. जानकारों की माने तो ये औटोइम्‍यून बीमारी के कारण होता है.

होंठ का सूखना

अगर आपके शरीर में पानी की कमी रह रही है तो आपके होंठ सूखेंगे. सारे मौसमों में अगर आपके होंठ खुश्क रहते हैं तो आपको डायबिटीज और हाइपोथाइरौडिज्म की भी जांच करा लेनी चाहिए.

चेहरे का पीला पड़ना

जब आपके शरीर में खून की कमी होती है तो आपके चेहरे का रंग बदलता है. चेहरे का पीला होना खून की कमी का सूचक है. अपने खानपान पर ध्यान दें.

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