सौंदर्य निखारें ब्यूटी आयल से

होम ब्यूटी ट्रीटमेंट में अगर आप कुछ खास तेलों को जगह दें, तो सौंदर्य में अपने आप निखार आने लगेगा. इतना ही नहीं आपका ब्यूटी प्रोडक्ट और कौस्मेटिक पर होनेवाला मोटा खर्च बच जाएगा. तेलों में बहुत से ऐसे तत्व होते हैं, जो त्वचा को पौष्टिकता देने और रंग को साफ करने में मदद करते हैं. सिर में लगाने के अलावा तेलों से अपने लिए नेचुरल स्क्रब, बौडी लोशन, आई क्रीम, मेकअप रिमूवर भी बना सकती हैं.

बौडी स्क्रब और नारियल तेल : नारियल तेल में थोड़ी सी चीनी मिला कर नेचुरल फुट स्क्रब बनाएं. इसके इस्तेमाल से मृत कोशिकाएं दूर होंगी और त्वचा चमकदार बनेगी. नारियल तेल को बेस आइल बनाएं और अपनी पसंद का असेंशियल आइल डालें, इसकी महक से मस्तिष्क को ठंडक मिलेगी और थकान दूर होगी.

मेकअप रिमूवर आलिव आइल : दिन में अगर आप मेकअप करती हैं, या शादी, पार्टी में मेकअप लगाना का इस्तेमाल करती हैं, तो शाम को मेकअप उतारना ना भूलें. इसे उतारने के लिए पानी में भिगोयी हुई रुई पर आलिव आइल की कुछ बुंदें डालें और मेकअप साफ करें. अगर मेकअप हेवी है, तो इस प्रक्रिया को 2-3 बार दोहराएं. इस तरीके से वाटरप्रूफ मेकअप भी हटा सकती हैं. इसे बेहद हल्के हाथों से हटाएं. इसके बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. रक्तसंचार बढ़ेगा, बंद पोर्स खुलेंगे और त्वचा की खोयी नमी लौट आएगी. आइली या मुंहासेवाली त्वचा पर इसका प्रयोग ना करें. इससे मुंहासे में संक्रमण होने की समस्या और बढ़ेगी.

बादाम का तेल व अंडर आई क्रीम : आंखों के नीचे काले घेरे और महीन रेखाओं को दूर करने का सबसे आसान और प्रभावी उपाय है बादाम का तेल. रोज रात को सोने से पहले अपनी अनामिका उंगली में एक बूंद बादाम का तेल मलें और आंखों के नीचे लगाएं. कुछ ही हफ्ते में आंखों के नीचे की त्वचा का रंग साफ और त्वचा मुलायम हो जाएगी.

त्वचा और बादाम का तेल : माना जाता है कि त्वचा पर सीधे आइल मसाज नहीं करनी चाहिए. इससे त्वचा की रंगत सांवली पड़ सकती है. लेकिन सभी तेल की मसाज से ऐसा हो, यह जरूरी नहीं. बादाम का तेल लगाने पर रंग निखरता है. इसे सर्कुलर मोशन में तब तक मालिश करें, जब तक यह त्वचा पर पूरी तरह जज्ब(सोख न ले) ना हो जाए. त्वचा की झुर्रियां और बारीक रेखाओं को दूर करने के लिए क्रीम लगाने की जगह बादाम के तेल का प्रयोग कर सकती हैं.

अंधभक्ति से काम नहीं चलेगा

कश्मीर में 40 अर्धसैनिकों की दुखद मृत्यु के बदले आतंकवादियों और उन्हें शह देने वाले पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह की भाषा का उपयोग एक वर्ग कर रहा है, वह स्पष्ट करता है कि जिस महान संस्कृति, सभ्यता, ज्ञान, धैर्य, सदाचार, सत्यवचन का बखान हम हर पल करते हैं, वह कम से कम इस वर्ग में तो नहीं है, जो असल में संस्कृति का स्वयंभू ठेकेदार बना हुआ है.

न केवल पाकिस्तानी सरकार, बल्कि प्रधानमंत्री, पाकिस्तान में खुलेआम घूमते आतंकवादियों के नेताओं को मांबहन की गालियां ट्विटर, व्हाट्सऐप और फेसबुक पर दी जा रही हैं, हर उस भारतीय को भी दी जा रही हैं जो भावनाओं की जगह सोचीसमझी नीति अपनाने की वकालत कर रहा है. यह कट्टर वर्ग न केवल आतंकवादियों के खिलाफ आग उगल रहा है, आतंकवादियों के लपेटे में हर कश्मीरी को भी ले रहा है और लड़कियों तक को नहीं छोड़ रहा.

केवल यह सुझाव देने पर कि पाकिस्तान या आतंकवादियों से समझौतों से भी शांति लाई जा सकती है, यह कट्टर वर्ग उग्र हो उठता है. यह वर्ग भूल रहा है कि इसकी इस कट्टरता के बावजूद इस के पुरखे मुट्ठीभर यूनानियों, हूणों, पार्शियों, मुसलमानों, अफगानों, मुगलों, फ्रैंच, ब्रिटिश, डच से हारते रहे हैं. भारत का इतिहास इन हारों से भरा हुआ है, क्योंकि हम बोलने और गाली देने में तो दक्ष हैं पर कुछ करने में निकम्मे.

आज मोबाइल की सुविधा के कारण कुछ शब्दों में गाली देना इतना आसान हो गया है जितना अपने घर के सामने खड़े हो कर गुजरते राहगीर को देना. ताकत तो वह होती है जब संख्या में कम होते हुए भी हमला करने वालों को हराया जा सके.

मांबहनों की भद्दी गालियां असल में चरित्र की सही पहचान करा रही हैं, हमारा बल नहीं दिखा रहीं. मोबाइल के पीछे छिप कर वार करना पेड़ या शिखंडी के पीछे से तीर मारने की तरह है. पर जो समाज उसे सही और दैविक मानता हो, उस से और क्या अपेक्षा की जा सकती है?

जहां जरूरत है कि पूरा देश आतंकवादियों के हौसले पस्त करे, वे जहां पनप रहे हैं, जहां प्रशिक्षण ले रहे हैं, वहां उन्हें रोकें, उन्हें देश में घुसने न दें. अगर होम ग्रोथ यानी अपने ही देश की पैदावार हों तो या तो उन्हें पकड़ लें या समझा कर राह पर ला सकें.

आतंकवाद बहुत गंभीर समस्या है और हमें उसे रोकने में बहुत चतुराई की जरूरत होगी. अंधभक्ति और गालियों से काम नहीं चलेगा चाहे वह किसी धर्म के प्रति हो या व्यक्ति विशेष के प्रति.

पैसे खर्च करने से पहले इन चीजों के बारे में जरूर सोचें

बिना सोचे पैसे खर्च करना अमीरों की शान होती है लेकिन मध्यमवर्गीय परिवार के लिए तो कम पैसे में जरूरतों को पूरा करते हुए घर चलाना एक बड़ी चुनौती होती है. यही वजह है कि किसी महीने अगर कुछ बड़ी और महंगी खरीदारी करनी होती है तो घर का बजट पटरी से उतर जाता है और पूरे महीने एडजस्ट करके चलना पड़ता है.

कोई बड़ी खरीदारी जरूरी भी हो और आप नहीं चाहती कि इसका घर खर्च पर ज्यादा असर पड़े या फिर भविष्य में इस सामान की वजह से आपको पछताना पड़े, तो अपनी जेब ढीली करने से पहले अपने आप से ये 5 सवाल जरूर पूछें.

क्या ये मेरे बजट में है?

दरअसल कई बार आप लालच, शौक या किसी से बहकावे में आकर बड़ी खरीदारी कर लेती हैं जिसकी वजह से पूरे महीने आपको अपनी छोटी-छोटी जरूरतों का त्याग करना पड़ता है. इसलिए बेहतर है कि ऐसी खरीदारी से पहले अच्छी प्लानिंग करें अगर सामान बजट में हो तभी खरीदें वरना दो-तीन महीने में पैसे इकट्ठे करके सामान खरीदें.

इस सामान की मुझे भविष्य में जरूरत पड़ेगी?

एक बात हमेशा ध्यान रखें कि जो सामान आप खरीदने जा रहे हैं वो ‘वन टाइम यूज’ न हो. अगर भविष्य में भी आपको उसकी जरूरत पड़ने वाली हो तभी खरीदने का फैसला करें. क्योंकि एक-दो बार की जरूरत के लिए तो आप किसी से मांगकर भी सामान अरेंज कर सकते है.

क्या ये चीज टिकाऊ हैं?

किसी भी चीज की गुणवत्ता बहुत महत्व रखती है. सामान की क्वालिटी को परखना भी एक कला है. कुछ लोग ज्यादे पैसे देकर भी अच्छी क्वालिटी के सामान नहीं खरीद पाती और ठग का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में अपने साथ उस सामान के जानकार को साथ ले जाएं या फिर खुद से समझदारी बरतें.

क्या ये इसका वाजिफ मूल्य है?

कई बार ऐसा होता है कि जो सामान आप खरीद कर लाते है वो दूसरी दुकान या वेबसाइट्स पर कम दाम में मिल रही होती है. ऐसे में कुछ भी बड़ा खरीदने से पहले आपको अच्छे से रिसर्च जरूर कर लेनी चाहिए. कई बार तो वेबसाइट्स पर मिल रहे डिस्काउंट्स औफर और कूपन से दाम पर काफी फर्क पड़ जाता है.

इसकी रिटर्न पौलिसी क्या है?

सामान घर लेने जाने की जल्दबाजी में उसकी रिर्टन पौलिसी के बारे में जानकारी लेना न भूलें. इतना ही नहीं सामान की गारंटी और वारंटी के बारे में भी ढंग से पूछताछ कर लेनी चाहिए ताकि अगर सामान वारंटी पीरियड के अंदर खराब होता हैं तो फ्री में उसकी सर्विसिंग या एक्सचेंज कर सकें.

कई ऐसे दुकानदार होते हैं जो चीजे वापस नहीं करते इसलिए इस सब का जायजा खरीदारी के वक्त ही ले लें.

बढ़ती उम्र की महिलाओं की बदलती मानसिकता

कुछ वर्षों में कमला मल्होत्रा की मानसिकता में काफी बदलाव आया है. भीतर ही भीतर एक आक्रोश सा सुलग रहा है. जराजरा सी बात पर झुंझलाने और क्रोध करने लगती हैं. उन की उम्र होगी 60 वर्ष के करीब. बेटी का विवाह हो चुका है, एक बेटा कनाडा में है, दूसरा मुंबई में. दिल्ली में वे अपने अवकाशप्राप्त पति के साथ एक अच्छे व शानदार फ्लैट में रहती हैं. सबकुछ है, पर इस आभास से मुक्ति नहीं है कि ‘मैं अकेली हूं, मेरा कोई नहीं है.’ एक चिड़चिड़ाहट और तनाव उन के चेहरे पर बराबर दिखाई देता है. बढ़ती उम्र की शहरी महिलाओं की अब यही एक आम मानसिकता होती जा रही है. पारिवारिक जीवन में जो बदलाव आ रहा है, उस के लिए वे तैयार नहीं होती हैं. बच्चे हाथ से ऐसे छूट जाते हैं जैसे कटोरी से पारा गिर गया हो. पति हर समय सिर पर सवार सा लगने लगता है. जवानी में जो आशा बनी रहती है कि बच्चे बड़े हो कर हमारी सेवा करेंगे, वह टूट जाती है.

घर में काम भी बहुत कम हो जाता है. एक सूनापन सा बराबर बना रहता है. इस बदलाव से महिलाओं को जो पीड़ा होती है, उस से उन के नजरिए में भी फर्क आता है. वे अपनेआप को दुखियारी और बेचारी समझने लगती हैं. उन का आत्मविश्वास, उन की सहनशीलता खत्म हो जाती है. इस दौरान पति के साथ भी उन का लगाव कम होने लगता है. प्रेम और आकर्षण को बनाए रखने की दिशा में वे कोई पहल नहीं करतीं. तटस्थ और उदासीन हो कर घर के काम करते हुए भावनाओं में डूब जाती हैं.

विशेषज्ञ बताते हैं कि उन की जिंदगी का यही समय होता है उन के लिए सब से अधिक फुरसत का, जिसे वे व्यर्थ की चिंताओं में बिताने में एक अस्वस्थ सुख का अनुभव करती हैं. मनोवैज्ञानिकों की भाषा में इसे ‘स्वपीड़ा का सुख’ कहते हैं. कमला मल्होत्रा का सुखदुख यही है. लगभग इसी उम्र की हैं गायत्री देवी. अपनी संतान को ही सबकुछ मान लेने की गलत मानसिकता पाल कर जानेअनजाने वे पति की अवहेलना करती रही हैं.

20 वर्षों के इस भावनात्मक अंतराल के चलते पतिपत्नी के बीच पूरा संवाद नहीं हो पाता. एक गैप बराबर बना रहता है. पति को शिकायत है कि उन की जरूरतों की गायत्री को परवा नहीं है. गायत्री के अनुसार, वे मुझे पूछते ही कब हैं.

पुरुष बनाम महिला

जाहिर है, यह एक अधेड़ मानसिकता है जिस का शिकार महिलाएं अधिक होती हैं. उन का जीवन कुछ और अधिक सिकुड़ कर आत्मकेंद्रित हो जाता है. खाली समय में कुछ पढ़नेलिखने की आदत भी उन की नहीं होती. पुरुष बाहर की दुनिया से भी कुछ तालमेल रखते हुए जिंदगी की बदली हुई परिस्थिति से समझौता करने का गुर सीख लेते हैं. इस उम्र में जो अडि़यल मानसिकता महिलाओं में पैदा हो जाती है वह पुरुषों में बहुत कम देखी जाती है. महिला मनोविज्ञान के विश्लेषकों ने इस मानसिकता को काफी खतरनाक बताया है. उन का मानना है कि इस से बीमारियां भी पैदा हो सकती हैं, जिन बीमारियों का जिक्र इस संदर्भ में अकसर किया जाता है उन में अवसाद और उच्च रक्तचाप प्रमुख हैं.

इधर स्ट्रोक और दिल का दौरा भी महिलाओं को अधिक पड़ने लगा है. पहले महिलाओं को यह बहुत कम होता था. बहुत से कारणों में एक कारण अब यह भी बताया जा रहा है कि अधेड़ावस्था में उन का अकेलापन बढ़ जाता है. गृहस्थी में कुछ खास करने को नहीं रह जाता तो खाली दिमाग परेशानी का सबब बन जाता है. पुरानी बातों को याद कर दुखी होने की आदत छोड़नी पड़ेगी. मनोचिकित्सकों से बात करने पर पता चलता है कि डिप्रैशन की बीमारी भी बढ़ती उम्र की महिलाओं को ही अधिक होती है. अकसर यह इतनी गंभीर हो जाती है कि मनोचिकित्सक के पास जाना अनिवार्य हो जाता है. वे भी उन्हें यही सलाह देते हैं कि आप अपने को किसी काम में उलझाए रखें. कोई अच्छा शौक पालें, पत्रपत्रिकाएं पढ़ें, बागबानी करें और अपनी सोच को सकारात्मकता की ओर उन्मुख करें.

नकारात्मक विचार देखने में आ रहा है कि महिलाओं को इधर स्ट्रैस व डायबिटीज भी अधिक होने लगी है. कहते हैं, आदमी जब अपने नकारात्मक विचारों को रोक नहीं पाता और यह लंबे समय तक चलता रहे तो उस के शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है. मधुमेह का यह एक मानसिक कारण है. यह बढ़ती उम्र की महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है. इसी बीच अगर आर्थ्राइटिस भी हो गई हो तो कुछ चिकित्सक उसे भी महिलाओं की मानसिक अवस्था से जोड़ देते हैं. इस उम्र में वे अगर जीने का स्वस्थ दृष्टिकोण अपना लें तो अधेड़ होने की बहुत सी कुंठाओं से बच सकती हैं.

आत्महत्या से पीडि़त महिलाओं की संख्या भी इधर बहुत बढ़ी है. वे दूसरों को फलताफूलता देखती हैं तो उन से अपनी तुलना करने की मजबूरी को दबा नहीं पातीं. पड़ोस की मीरा को यह बात रास नहीं आई कि अर्चना ने गाड़ी खरीद ली है. हम अपने एक इस छोटे से सपने को भी पूरा नहीं कर पाए तो हमारे जीवन में रखा ही क्या है. मीरा की उलझनें बढ़ गईं. पति के जीवनभर की बचतपूंजी लगा कर अर्चना की गाड़ी से भी अच्छी गाड़ी खरीदने की लालसा उन के मन में जाग उठी.

बढ़ती उम्र में आप के मन में अगर इस प्रकार की कोई वेदना पैदा हो तो आप जरा शांति से बैठ कर हिसाब लगाएं. आप को तब मालूम होगा कि आप के अधिकतर सपने पूरे हो चुके हैं और जो बाकी हैं उन के पूरे न होने का दुख मात्र एक असुरक्षा की भावना है, जो उम्र के साथ बढ़ जाती है. यहां एक मामूली सी समझ यह रखनी होगी कि आप जब 50-55 वर्ष की होती हैं तो आप का पति 60 पार कर रहा होता है. इस उम्र में उस की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. वह तन और मन की सेहत पर अधिक खर्च करने लगता है, घरेलू चीजों की खरीदारी पर बेकार पैसा गंवाना समझता है. इस से पतिपत्नी के बीच जो विवाद पैदा होता है वह आप दोनों के अडि़यल रुख को बढ़ावा देता है. यह और बात है कि इस का खमियाजा शायद औरतों को ही ज्यादा भुगतना पड़ता है.

बोलचाल की भाषा में जिसे हम अडि़यलपन कहते हैं वह अधेड़ावस्था में अपनी चरमसीमा पर होता है. कुछ लोग इसे सठियाना भी कहते हैं. यह महिलाओं में अधिक होता है या पुरुष में, इस विषय पर कोई रिसर्च शायद न हुई हो पर अनुभव यही बताते हैं कि स्त्रियां इस की शिकार अधिक होती हैं. सासबहू के झगड़ों का एक कारण यह भी है कि सास अड़ जाती है, जबकि ससुर का नजरिया उदारवादी अथवा समझौते वाला होता है. इच्छाओं की पूर्ति का सवाल जिस मानसिकता से पैदा होता है उस में भावुकता का पुट अधिक होता है जबकि वास्तविक समझदारी बहुत कम होती है. कभीकभी छोटीछोटी जरूरतों को भी इतना तूल दे दिया जाता है कि घर में तनाव पैदा हो जाता है. पुताई हो रही है तो दीवार पर कौन सा रंग लगे, इस पर भी बहस हो जाती है, मुंह फूल जाते हैं.

ऐसा नहीं कि अधेड़ उम्र की कठिन मानसिक दशा से उबरने का कोई रास्ता नहीं. इस समस्या से सरोकार रखने वाले बताते हैं कि आप अपने आपसी प्रेम के रैगुलेटर को जरा बढ़ा दें तो मन में रस का संचार होने लगेगा. महिलाओं के पास तो इतने गुण हैं कि उन का इस्तेमाल करें तो वे बढ़ती उम्र की कुंठाओं से बच सकती हैं. स्वयं को कुतरने वाले काल्पनिक विचारों के चूहों से बचने के लिए आप यह सब करें : द्य कोई आर्थिक समस्या नहीं तो फ्री में बच्चों को ट्यूशन दें.

  • शौकिया कुकिंग करें. द्य इस उम्र में कुछ आर्थिक जिम्मेदारी निभाने का भी प्रयास करें.
  • सिलाईकढ़ाई करें.
  • पति की दुकान या औफिस है तो वहां बैठें.
  • सुविधाजनक लगे तो बिजलीपानी और फोन आदि के बिल भी स्वयं औनलाइन जमा करें.
  • पैसा हो तो कंप्यूटर या लैपटौप खरीदें, उस पर टाइप करें, हिसाबकिताब रखें. द्य गाने सुनें, फिल्में देखें.
  • व्हाट्सऐप पर पत्रव्यवहार करें, बधाई और शुभकामनाओं का लेनदेन करें. दो रोटी बना कर खा लेने से आत्मविश्वास नहीं पैदा होगा. घर में बुढ़ाएसठियाए पतिपत्नी की तरह नहीं, 2 प्रेमियों की तरह रहें. अगर स्वयं को बदल नहीं सकते तो कम से कम जिन खुशियों को महसूस कर सकते हैं उन का तो जीभर के अपने जीवन में स्वागत करें. जब हम छोटीछोटी खुशियों का आनंद नहीं लेंगे तो जाहिर है कि बड़ी खुशियां भी हम से मुख मोड़ कर जा सकती हैं.

गर्मियों में इन पौधों से घर को रखें ठंडा ठंडा कूल कूल

जब आपके आसपास का वातावरण गर्मी से तप रहा होता है तब आप अपने घर में कुछ विशेष तरह के पेड़ पौधे लगाकर घर को ठंडा रख सकती हैं. आप घर की बालकनी में या खिड़की के बॉक्स में विशेष तरह के पौधे लगा सकती हैं.

ये पौधे घर की हवा को ताजा रखते हैं, हवा को शुद्ध करते हैं और घर को ठंडा रखते हैं. ऐसे अनेक तरह के पौधे हैं जो हवा से विषारी पदार्थों को दूर करते हैं और गर्मी को भी सोखते हैं. तो यहां हम ऐसे ही पौधों के बारे में बता रहे हैं जो गर्मी को दूर करते हैं और आसपास के वातावरण को ठंडा रखते हैं.

एलोवेरा

यह बहुत ही लाभदायक और रिफ्रेशिंग पौधा है जिसे घर में लगाया जा सकता है. यह न केवल घर के तापमान को कम रखता है बल्कि हवा से नुकसानदायक फॉर्मेंडिहाईड को भी दूर करता है. इसके अलावा आप एलोवेरा से स्वास्थ्य को होने वाले लाभों के बारे में जानती ही हैं.

फर्न

नासा के अनुसार फर्न नमी को बनाये रखने के लिए सबसे उत्तम है. कमरे की हवा को साफ करने और तरोताजा करने के साथ साथ यह गर्मी को भी कम करता है. अपनी बालकनी में फर्न का पौधा रखें. यह बहुत अच्छा दिखता है.

स्नेक प्लांट

यह एक अनोखा पौधा है. अन्य पौधों की तरह ही स्नेक प्लांट भी रात में ऑक्सीजन छोड़ता है और तापमान को कम रखता है. केवल यही नहीं बल्कि यह पौधा विषारी पदार्थों जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड, ट्राईक्लोरोएथिलीन, बेंजीन, टोल्यूनि आदि को भी सोखता है और हवा को शुद्ध बनाता है.

ऐरेका पाम ट्री

यह पौधा प्राकृतिक रूप से नमी को बनाये रखता है जिससे आपका घर ठंडा और आरामदायक लगता है. यह हवा से नुकसानदायक पदार्थों को भी दूर करता है.

गोल्डन पोथोस

आप इसे सिल्वर लाइन या डेविल्स एवी भी कहा जाता है. इसकी सदाबहार पत्तियां आपके कमरे की शोभा बढ़ाती हैं और साथ ही साथ यह हवा से अशुद्धियों को हटाता है और गर्मियों में घर को ठंडा रखता है. इसे रखना आसान होता है और इसे अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती.

फिचुस ट्री

इसे वीपिंग फिग के नाम से भी जाना जाता है. यह कमरे की हवा को साफ करता है और गर्मी को सोख लेता है. इसकी देखभाल करना आसान होता है क्योंकि यह कम प्रकाश और कम पानी में भी रह सकता है. तापमान को कम रखने के साथ साथ यह हवा के प्रदूषण को भी कम करता है.

बेबी रबर प्लांट

जब ऐसे पौधों की बात आती है जो कमरे को ठंडा और तरोताजा रखते हैं और हवा से अशुद्धियों को दूर करते हैं तो इसमें बेबी रबर प्लांट का नाम अवश्य आता है. इसे नियमित तौर पर पानी देने की जरूरत नहीं होती बल्कि इसे अच्छी मिट्टी और फिल्टर्ड लाइट की आवश्यकता होती है.

जब महिला स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती है तो वह सशक्त रहती है : दीपांजलि कनोरिया

दीपांजलि ने कोलंबिया से ग्रैजुएशन कर कौरपोरेट जौब शुरू की. लेकिन एक दिन जब उन्हें पता चला कि भारत में सिर्फ 12% महिलाएं ही पर्सनल हाइजीन प्रोडक्ट्स यूज करती हैं तो उन्होंने तुरंत जौब छोड़ने का निर्णय लिया ताकि वे इस दिशा में कुछ कर पाएं. उन्होंने ऐसे पैड्स बनाए जो पूरी तरह नैचुरल होने के साथसाथ पर्यावरण को भी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते. अब उन का लक्ष्य बस यही है कि महिलाओं को मैंस्ट्रुअल हाइजीन का महत्त्व बता कर प्राकृतिक प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया जाए.

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पेश हैं, दीपांजलि से हुई बातचीत के कुछ अंश:

अपने स्कूल डेज और फैमिली के बारे में कुछ बताएं?

मेरा दिल्ली से गहरा जुड़ाव हो गया है, क्योंकि मैं यहीं जन्मी और पलीबढ़ी हूं. अपनी फैमिली की मुझे हमेशा सपोर्ट रही. परिवार ने भी मुझे हमेशा आगे बढ़ना व मेहनत करना सिखाया. हम 3 भाईबहन हैं. मैं बहुत ज्यादा होशियार तो नहीं हूं, लेकिन जो भी पढ़ा मन से पढ़ा और यह उसी का परिणाम है कि मैं कुछ कर पाई हूं. मैं ने ‘दिल्ली कौन्वैंट स्कूल’ और न्यूयौर्क के ‘बर्नार्ड कालेज औफ कोलंबिया यूनिवर्सिटी’ से पढ़ाई की.

आप ने कब सोचा कि जौब छोड़ कर आप को खुद का कुछ अलग करना चाहिए?

2014 में कोलंबिया से ग्रैजुएशन करने के बाद मैनहट्टन में वित्तीय क्षेत्र में कौरपोरेट जौब पाने के लिए जीतोड़ मेहनत की. मैं ने खुद को उस समय बहुत गौरवान्वित महसूस किया जब ‘अर्नस्ट ऐंड यंग’ ने मुझे अपना भविष्य का वित्तीय विश्लेषक कहा. मैं ने वहां की व्यावसायिक सलाहकार टीम के सदस्य के तौर पर भी कई परियोजनाओं पर काम किया. फिर भी मैं ने खुद को काफी अधूरा महसूस किया, क्योंकि मैं कुछ बदलाव के लिए नया करने की इच्छा रखती थी.

मैं ने अपनी जौब के थोड़े समय के दौरान ही भारत में उत्थान, शिक्षा, नवाचार और विकास के आवश्यक प्रेरणादायक विषयों को अच्छी तरह जाना.

इस दौरान जब मैं ने अरुणाचलम मुरूगनंतम की ट्रेड टौक में चौंकाने वाले आंकड़े देखे तो मैं हैरान रह गई कि भारत में सिर्फ 12% महिलाएं हाइजीन प्रोडक्ट्स जैसे सैनिटरी पैड्स, टैंम्पोन, मैंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करती हैं. यह जान कर मैं ने नौकरी छोड़ दी ताकि मैं भारत में मासिकधर्म स्वच्छता पर कुछ कर पाऊं.

जैविक और प्राकृतिक सैनिटरी पैड्स बनाने के पीछे क्या कारण रहा?

व्यावसायिक तौर पर जो एक साधारण सा सिंथैटिक सैनिटरी पैड होता है उस का90% प्लास्टिक पोलीमर्स, ऐंटीबैक्टीरियल ऐजैंट्स, ब्लीच, परफ्यूम और ढेरों कैमिकल्स से मिल कर बनता है, जो  महिला की योनि की संवेदनशील त्वचा के लिए बहुत ही नुकसानदायक होता है.

भारत में अपने विचार को लाना आसान नहीं है. तो क्या सब आसानी से हो गया या फिर अपने विचार को स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा?

यह सच नहीं है. अगर हम कोशिश करें तो कुछ भी संभव है. इस रास्ते में रुकावटें जरूर हैं, लेकिन यही तो सफर की खूबसूरती है. हम ने रिटेल स्पेस में जगह बनाने व वितरण के लिए संघर्ष किया. अब हमारी कोशिश है कि हम अपने नैटवर्क को भारत के विभिन्न शहरों तक पहुंचाएं ताकि अधिक से अधिक महिलाओं को यह प्रोडक्ट मिल सके.

दीपांजलि के अनुसार महिला सशक्तीकरण की परिभाषा क्या है?

महिलाओं को अपने जीवन का रास्ता चुनने का अधिकार होने के साथसाथ उन्हें घर, औफिस और रिश्तों में जो समानता मिलनी चाहिए मिले. भारत में अनेक बार महिला के मातापिता, भाईबहन, रिश्तेदार उस के जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की कोशिश करते हैं. लेकिन मेरा मानना है जब महिला स्वतंत्र रूप से निर्णय लेती है तो वह सशक्त रहती है.

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टेस्टी पाइनक्रीम शेक

सामग्री

– 4-5 अनन्नास

– 1 कप व्हिप्ड क्रीम

– 1 कप अनन्नास आइसक्रीम

– 1 बड़ा चम्मच टूटीफू्रटी

– 1 बड़ा चम्मच आइसिंग शुगर

– 1 छोटा चम्मच पाइनऐप्पल ऐसेंस

– 1 छोटा चम्मच लाल जैली

– 1 छोटा चम्मच अनार के दाने.

विधि

अनन्नास को मिक्सी में पीस लें. आइसिंग शुगर व पाइनऐप्पल को मिला लें. अब एक गिलास में सब से पहले कुटी आइस डाल कर कुछ जैली डालें. ऊपर से अनन्नास का मिक्सचर डाल कर अनन्नास आइसक्रीम डालें. आइसक्रीम पर टूटीफू्रटी और लाल जैली डालें. फिर व्हिप्ड क्रीम डाल कर अनार के दोनों से सजाएं और ठंडाठंडा सर्व करें.

झट से बनाएं चीज स्किवर्स

सामग्री

– बिस्कुट, टमाटर, चीज, खीरा जरूरतानुसार

– थोड़ी सी पुदीनापत्ती कटी

– कालीमिर्च पाउडर

– कालानमक

– टूथपिक

विधि

टूथपिक में पहले खीरा, फिर टमाटर लगाएं. अब बिस्कुट, फिर चीज. इस के बाद इस क्रम को फिर दोहराएं ताकि देखने और खाने में अच्छा लगे. कालीमिर्च, कालानमक बुरक पुदीनापत्ती डाल कर सर्व करें.

खराब जीवनशैली बन सकती है स्तन कैंसर का कारण

यह ज्ञात हो चुका है कि डीएनए में अचानक से होने वाले परिवर्तनों के कारण सामान्य स्तन कोशिकाओं में कैंसर हो जाता है. यद्यपि इनमें से कुछ परिवर्तन तो माता-पिता से मिलते हैं, लेकिन बाकी ऐसे परिवर्तन जीवन में खुद ही प्राप्त होते हैं. प्रोटोओंकोजीन्स की मदद से जब इन कोशिकाओं में म्यूटेशन या उत्परिवर्तन होता है, तब ये कैंसर कोशिकाएं बेरोकटोक बढ़ती जाती हैं. ऐसे उत्परिवर्तन को ओंकोजीन के रूप में जाना जाता है. एक अनियंत्रित कोशिका वृद्धि कैंसर का कारण बन सकती है.

स्तन कैंसर में इस रोग के ऊतक या टिश्यू स्तन के अंदर विकसित होते हैं. इस रोग के होने के पीछे जो कारक हैं, उनमें प्रमुख हैं- जीन की बनावट, पर्यावरण और दोषपूर्ण जीवनशैली. भारत में महिलाओं में कैंसर के मामलों में 27 प्रतिशत मामले स्तन कैंसर के हैं. इस तरह की परेशानी 30 वर्ष की उम्र के शुरुआती वर्षो में होती है, जो आगे चलकर 50 से 64 वर्ष की उम्र में भी हो सकती है. आंकड़ों के मुताबिक, 28 में से किसी एक महिला को जीवनकाल में कभी न कभी स्तन कैंसर होने का अंदेशा रहता है.

लक्षण

स्तन कैंसर के कुछ लक्षणों में स्तन या बगल में गांठ बन जाना, स्तन के निप्पल से खून आना, स्तन की त्वचा पर नारंगी धब्बे पड़ना, स्तन में दर्द होना, गले या बगल में लिम्फ नोड्स के कारण सूजन होना आदि प्रमुख हैं. जागरूकता की कमी और रोग की पहचान में देरी के चलते उपचार में कठिनाई भी आती है.

स्तन कैंसर से ऐसे करें बचाव

जीवनशैली में भी कुछ बदलाव किए जाएं तो इस रोग की आशंका कम की जा सकती है.

उच्च जोखिम वाली महिलाओं को हर साल एमआरआई और मैमोग्राम कराना चाहिए.

शराब से स्तन कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. यदि आदी हों तो दिन में एक पैग से अधिक न लें, क्योंकि शराब की कम मात्रा से भी खतरा रहता है.

अनुसंधान बताता है कि धूम्रपान और स्तन कैंसर के बीच एक संबंध है. इसलिए, यह आदत छोड़ने में ही भलाई है.

अधिक वजन या मोटापे से स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. रोजाना लगभग 30 मिनट व्यायाम अवश्य करें.

फलों और सब्जियों से समृद्ध, संपूर्ण अनाज और कम वसा वाला आहार लें.

यह प्रतिरक्षा को कमजोर करता है और शरीर के रक्षा तंत्र को बिगाड़ता है. योग अभ्यास, गहरी सांस लेने और व्यायाम करने से लाभ होता है.

स्तनपान कराने से स्तन कैंसर की रोकथाम होती है.

हार्मोन थेरेपी की अवधि तीन से पांच साल तक होने पर स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. सबसे कम खुराक का प्रयोग करें जो आपके लिए प्रभावी है. आप कितना हारमोन लेते हैं इसकी निगरानी डाक्टर खुद करे तो बेहतर होगा.

इससे बचाव के लिए जरूरी है कि 30 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं की स्क्रीनिंग आवश्यक रूप से की जाए. 45 वर्ष से 54 वर्ष की महिलाओं को हर साल एक बार स्क्रीनिंग मैमोग्राम करा लेना चाहिए. 55 वर्ष या अधिक उम्र की महिलाओं को सालाना स्क्रीनिंग करानी चाहिए.

शाही और जायकेदार हैदराबादी ट्रिप

हैदराबाद की सोंधी बिरयानी की ही तरह यहां का इतिहास भी बहुत मजेदार है. निजामों का यह शहर दक्षिण भारत का सब से प्रसिद्ध नगर है. इस के प्रसिद्ध होने की कई वजहें हैं. सब से बड़ी वजह शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर स्थित गोलकोंडा का किला है. गोलकोंडा एक छोटा सा कसबा है. हीरे की खानों और उन में से निकले कोहिनूर और होप जैसे बेशकीमती हीरों के लिए मशहूर गोलकोंडा का अपना अलग ऐतिहासिक महत्त्व भी है.

गोलकोंडा में मौजूद दुर्ग आज भी कुतुबशाही के राजाओं की शानोशौकत की गवाही देते हैं. ग्रेनाइट की पहाडि़यों में 3 मील लंबी और मोटे पत्थरों की बनी मजबूत दीवारों से घिरा 8 दरवाजों वाला यह दुर्ग, अपने प्राचीन गौरव की गाथा सुना, लोगों को अतीत में धकेल देता है.

इस विशाल किले को अकेले देखना बोरियतभरा हो सकता है, मगर एक गाइड की सहायता से इस किले को देखा जाए तो किले के महत्त्वपूर्ण स्थानों व उन से जुड़ी जानकारियों का लुत्फ उठाया जा सकता है. यहां आसानी से मात्र 750 रुपए में अंगरेजी और हिंदी भाषा बोलने वाले गाइड मिल जाते हैं.

गाइड गोलकोंडा किले को दिखाने की शुरुआत किले के सब से रोचक स्थान से करता है. यह स्थान है फतेह दरवाजा. यहां ध्वनिक आभास किया जा सकता है. इस के लिए गाइड जोर से ताली बजा कर दिखाता है, जिस की गूंज किले के हर कोने में सुनाई देती है.

गाइड इस तकनीक से जुड़ी कहानी भी सुनाता है. जिस के अनुसार, कुतुबशाही काल में सैनिक आपातकालीन स्थिति में ताली बजा कर राजा को दुश्मनों के आक्रमण का संदेश देते थे. ताली की गूंज दुर्ग के सब से ऊंचे स्थान पर बने राजा के कक्ष तक सुनाई देती थी.

इस रोचक किस्से को सुनाते हुए गाइड किले के दूसरी ओर बनी रामदास जेल दिखाने ले जाता है. इस जेल का नाम एक कैदी के नाम पर पड़ा है जो कुतुबशाही राज्य के दौरान प्रजा से कर वसूलता था और राजकोष में डाल देता था. मगर धनचोरी करने की वजह से उसे जेल में डाल दिया गया. इस जेल से एक और रोचक तथ्य जुड़ा हुआ है, वह यह है कि इस जेल में बौलीवुड फिल्म ‘तेरे नाम’ की शूटिंग हुई थी. पर्यटक इस तथ्य से खुद को आसानी से जोड़ लेते हैं, इसलिए फतेह दरवाजे के बाद किले का यह स्थान दूसरा सब से लोकप्रिय स्थान है.

इस तरह गाइड की मदद से पूरे किले को 3-4 घंटे में पूरा घूमा जा सकता है. मगर किले की सुंदरता निहारना और इतिहास जानना तब तक अधूरा है जब तक किले में होने वाला लाइट शो न देखा जाए. यह शो कुतुबशाही राजाओं की प्रेमकहानी और उन की वीरता की कहानी सुनाता है, जिसे देखनासुनना बेहद रोचक लगता है. इस शो के साथ ही किले की यात्रा पूरी हो जाती है.

चारमीनार और लाड बाजार चारमीनार को हैदरबाद का दिल कहा जाता है. कुतुबशाही वास्तुकला का अनुपम उदाहरण पेश करती इन मीनारों पर चढ़ कर पूरे हैदराबाद शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है. यह नजारा बेहद अद्भुत लगता है.

इस के अलावा चारमीनार के पश्चिमी ओर हलचल से भरी गलियों के इलाके को लाड बाजार कहा जाता है. यह बाजार नगों से जड़ी चूडि़यों के लिए प्रसिद्ध है. इस के अतिरिक्त यहां मोतियों के हार और मोतियों से बने सामान की दुकानें भी हैं. दिलचस्प बात यह है कि नगों वाली जो चूडि़यां दूसरे शहरों में ज्यादा कीमतों पर मिलती हैं, वही चूडि़यां लाड बाजार में बहुत ही सस्ते दामों में मिल जाती हैं.

मुंह में आ जाएगा पानी हैदराबाद के खाने में मुगलई, तुर्की और अरबी पाकशैली की झलक मिलती है. मगर बिरयानी हैदराबाद की संस्कृति का अटूट हिस्सा है.

सिकंदराबाद रेलवेस्टेशन पर उतरते ही रेलवे के कैफेटेरिया से ले कर पूरे शहर में बिरयानी हर होटल के मेन्यूकार्ड में अव्वल नंबर पर होती है. मगर होटल पैराडाइज की कच्चे गोश्त वाली बिरयानी यहां काफी प्रसिद्ध है. यहां के प्रमुख व्यंजनों में हलीम, पाया और हैदराबादी मुर्ग आदि लाजवाब हैं. हैदराबाद के इतिहास से ले कर पकवान तक पर्यटकों पर इतना गहरा प्रभाव डालते हैं कि इस शहर में बारबार आने का दिल करने लगता है.

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