ये हैं रोमांचित और सस्ते डेस्टिनेशन

आज हम आपको ऐसे टूरिस्ट प्लेस के बारे में बताने जा रहे हैं, जो खूबसूरत होने के साथ-साथ बेहद सस्ते भी हैं. जहां आप कम बजट में यात्रा कर सकती हैं. आइए बताते हैं.

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कसौली

शिमला के पास का कसौली बेहद आकर्षक टूरिस्ट प्लेस है. यह शिमला के नजदीक है और कई मामलों में शिमला से सस्ता भी है. यहां की खूबसूरती किसी मायने में शिमला से कम नहीं है. आप चाहें तो शिमला का टूर करने, वहां टाय ट्रेन की यात्रा करने के बाद कसौली आ सकती हैं.

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उत्तराखंड

उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जहां बेहद सुंदर टूरिस्ट प्लेस तो हैं ही, साथ ही पाकेट फ्रेंडली टूरिस्ट प्लेस भी हैं. यहां आप कम बजट में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर घूम सकती हैं. आइए, उत्तराखंड के उन शहरों के बारे में जानते हैं, जहां कम पैसों में सैर की जा सकती है.

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चमोली

उत्तराखंड का चमोली फूलों की घाटी के रूप में भी प्रसिद्ध है. इस घाटी में 500 से ज्यादा फूलों की विभिन्न प्रजातियां आपको देखने को मिल जाएंगी. यहां का मौसम आमतौर पर सुहावना ही रहता है और आप सर्दियों या गर्मियों में कभी भी यहां घूमने आ सकती हैं. इस सुंदर घाटी को देखने देसी ही नहीं विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में आते हैं. खास बात यह है कि यहां की खूबसूरती आपको बहुत लुभाएगी.

इन बीमारियों के कारण होते हैं चेहरे के ये बदलाव

हमारे शरीर में क्या कमी है, किस चीज की अधिकता है, सेहत संबंधित सारी चीजें हमारे चेहरे पर उभर आती हैं. किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देख कर बताया जा सकता है कि उसे किस तरह की बीमारी है. आपका चेहरा कई तरह की बीमारियों का संकेत देता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि चेहरे पर आने वाले कौन से बदलाव किस बीमारी के लक्षण होते हैं. किसी भी तरह के बदलाव के क्या मायने होते हैं.

चेहरे पर बाल आना

हार्मोन्स का संतुलन बिगड़ने से इस तरह की परेशानियां महिलाओं में देखी जाती है. इससे बहुत परेशान ना हों. डाक्टर को दिखाएं, परामर्श लें. जल्दी आपको राहत मिलेगी.

शरीर पर लाल धब्बों का आना

जब आपके पेट में किसी तरह की परेशानी हो रही है तो शरीर पर लाल बड़े धब्बे उभर आते हैं.

बालों का झड़ना

बालों का झड़ना एक आम सी परेशानी है. पर अगर आपके सिर के बालों के साथ पलकें और आईब्रो भी झड़ रहें हैं तो सावधान हो जाइए. इसे नजरअंदाज ना करें. जानकारों की माने तो ये औटोइम्‍यून बीमारी के कारण होता है.

होंठ का सूखना

अगर आपके शरीर में पानी की कमी रह रही है तो आपके होंठ सूखेंगे. सारे मौसमों में अगर आपके होंठ खुश्क रहते हैं तो आपको डायबिटीज और हाइपोथाइरौडिज्म की भी जांच करा लेनी चाहिए.

चेहरे का पीला पड़ना

जब आपके शरीर में खून की कमी होती है तो आपके चेहरे का रंग बदलता है. चेहरे का पीला होना खून की कमी का सूचक है. अपने खानपान पर ध्यान दें.

खजूर नवाबी कोफ्ते

सामग्री:

– 10 खजूर

– 20 ग्राम खोया

– 50 ग्राम पनीर मसला

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

–  चुटकी भर लाल मिर्च पाउडर

– चुटकी भर गरममसाला

– 100 ब्रैडक्रंब्स

– पर्याप्त तेल फ्राई करने के लिए

– नमक स्वादानुसार.

ग्रेवी की सामग्री

–  2-3 कलियां लहसुन

– 1 छोटा टुकड़ा अदरक

–  2 प्याज

– 30 ग्राम टोमैटो प्यूरी

– 5 काजू

– चुटकी भर इलाइची पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

– चुटकी भर सौंफ पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

– 2 बड़े चम्मच तेल

– 5 ग्राम क्रीम

– 2 तेजपत्ते

– नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि

– खजूर के बीज निकाल लें.

– फिर खोया, नमक, लालमिर्च पाउडर, इलाइची पाउडर और गरममसाले का मिश्रण तैयार करें और     प्रत्येक खजूर में यह मिश्रण भरें.

– अब पनीर को मैश कर उस में नमक, लाल मिर्च पाउडर और थोड़े से ब्रैडक्रंब्स मिला कर गूंथ लें.

– अब एक लोई के बीचोंबीच एक खजूर रख दें.

– खजूर को अच्छी तरह लोई से कवर करें और ब्रैडक्रंब्स में रोल करने के बाद उसे डीप फ्राई करें.

– इस तरह 10 कोफ्ते तल लें.

– अब लहसुन, अदरक, प्याज और काजू का पेस्ट बना लें.

– इस मिश्रण को हलका सुनहरा होने तक तेल में फ्राई करें.

– फिर इस में टोमैटो प्यूरी, धनिया पाउडर, इलाइची पाउडर, सौंफ पाउडर, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, नमक और गरममसाला डालें और फ्राई करें.

– अब इस मिश्रण में थोड़ा पानी डालें और ग्रेवी को उबालें.

– इस में थोड़ी क्रीम डाल कर ग्रेवी में कोफ्ते डालें और परोसें.

व्यंजन सहयोग: रुचिता कपूर जुनेजा 

कई बैंकों में खाते होने के हैं ये नुकसान

कई कारणों से लोगों के कई बैंकों में खाते खुल जाते हैं. कई लोग बिजनस पर्पज या सैलरी अकाउंट की प्राइवेसी बनाए रखने के लिए कई खाते खोल लेते हैं. एक ओर कई बैंकों में खाते के कुछ फायदे हैं वहीं इसके बहुत से नुकसान भी होते हैं. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि कई बैंकों में खाते खोलने के कौन से मुकसान होते हैं.

यूजर नेम और पासवर्ड याद रखना होगा

आपके जितने बैंक खाते होंगे उतने ही क्रेडेंशियल्स होंगे. ऐसे में सबके पिन, युजरनेम, पासवर्ड को याद रखना एक मुश्किल काम है. अगर आप एक भी पासवर्ड भूलते हैं तो आपको काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कई बार गलत पासपृवर्ड डालने से आपका खाता भी बंद हो सकता है.

आयकर की रडार पर  आसकती हैं आप

अगर आप इनकम टैक्स भरती हैं तो आपको सारे खातों की जानकारी आयकर विभाग को देनी होगी. किसी भी खाते की जानकारी ना देने की सूरत में आयकर विभाग से आपको नोटिस भी मिल सकता है.

सबमें रखना होगा मिनिमम बैलेंस

आपके जितने भी बैंक खाते होंगे सबमें मिनिमम बैलेंस रखना आपकी मजबूरी होगी. आपके पैसे बिखरे रहेंगे. आपको बता दें कि हालिया सरकारी निर्देश के बाद सभी बैंक खातों में एक निश्चित न्यूनतम राशि रखना जरूरी है. ऐसा ना करने की सूरत में आपको जूर्माना भरना पड़ सकता है.

डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड का शुल्क

ज्यादा बैंक खाता यानि उतने ही डेबिट और क्रेडिट कार्ड्स. इन सारे कार्ड्स से बैंक चार्जेस वसूलते हैं. बिना किसी कारण आपको ज्यादा चार्जेस देने पड़ेंगे.

ट्रांजेक्शन अलर्ट के चार्जेज

आपको बता दें कि बैंक के ग्राहकों को कई तरह के चार्जेज देने पड़ते हैं. इन चार्जेज में वार्षिक मेनटेंस, मंथली स्टेटमेंट चार्ज, एसएमएस अलर्ट चार्ज आदि शामिल हैं. आपके पास जितने भी खाते हैं उन सभी खातों पर बैंक आपसे ये चार्जेज वसूलते हैं.

लोगों ने मेरे अभिनय का एक नया पक्ष देखा लिया : अली फजल

‘‘थ्री इडियट्स’’ में कैमियो करने के बाद ‘फुकरे, ‘फुकरे रिर्टन, ‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ सहित कई फिल्मों और वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ में अभिनय कर शोहरत बटोर चुके अभिनेता अली फजल इन दिनों तिग्मांशु धूलिया निर्देशित फिल्म ‘‘मिलन टौकिज’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि 15 मार्च को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

फिल्म ‘‘मिलन टौकीज’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

मैंने इस फिल्म में इलहाबाद में रह रहे एक उभरते हुए फिल्म निर्देशक का किरदार निभाया है. जिसकी तमन्ना मुंबई जाकर बौलीवुड में बहुत बड़ा फिल्म निर्देशक बनने की है.

तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में ‘‘मिलन टौकीज’’ करने के अनुभव क्या रहे?

काफी कुछ सीखने को मिला. वह जीनियस हैं. उनके पास कहानियों का जखीरा है. उनका दिमाग बहुत तेज गति से चलता है. वह किसी सिस्टम मे बंधकर काम करने में यकीन नहीं करते. वह तो सेट पर भी स्क्रिप्ट पढ़कर उसके संवाद बदल देते थे. वह स्पाटेनिटी के साथ काम करने में यकीन करते हैं और वह चाहते हैं कि उनका कलाकार भी सेट पर स्पाटेनियस हो. वह ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्हें पहले से प्रिडिक्ट करना मुश्किल है. मुझे उनकी इस खूबी ने काफी कुछ सिखा दिया.

आप फिल्मों के साथ साथ डिजिटल प्लेटफार्म पर भी कार्यरत हैं?

जी हां! मैं हर प्लेटफार्म पर काम करन चाहता हूं. मेरे लिए कंटेंट और पटकथा मायने रखती है. पटकथा पढ़ते समय यदि कहानी मुझे उत्साहित करती है, तो मैं उसे करने के लिए हामी भर देता हूं. सिनेमा के बदलते हुए दौर में फिल्मकार दुविधा में नेजर आ रहे हैं. मेरी हर फिल्म को दर्शक और फिल्म आलोचकों द्वारा सराहा जाता है, मगर इससे फिल्मकारों की सोच नही बदल रही है. मेरी फिल्मों को मिल रही सफलता के बावजूद मेरे पास उतने बेहतरीन किरदार व फिल्म के आफर नही आ रहे हैं, जितने आने चाहिए. पर मैं खुश किस्मत हूं कि मुझे ‘मिर्जापुर’ जैसी वेब सीरीज में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के अवसर मिल रहे हैं. वेब सीरीज विश्व स्तर पर उन दर्शकों तक पहुंच रही है, जिन तक फिल्में भी नहीं पहुंच पा रही हैं. वेब सीरीज में मुझे जिस तरह की लोकप्रियता मिल रही है, उससे फिल्मकार मेरे संबंध में सोचने पर मजबूर हो रहे हैं.

आपकी बढ़ी हुई इस लोकप्रियता की वजह आपकी अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ है या वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ है?

मुझे लगता है कि काफी कुछ वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ का योगदान है. क्योंकि इस वेब सीरीज में गुड्डू के किरदार से मेरी ईमेज बदली है. शायद मैं निर्माता होता, तो गुड्डू के किरदार के लिए अली फजल को न लेता. अब तक अली फजल यानी कि मेरी ईमेज बहुत अलग रही है. अली फजल एक डिसेंट, गउ किस्म का साधारण कलाकार है. जिन लोगों ने फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ देखी है, उन्होंने भी अब्दुल के किरदार में अली फजल को एकदम अलग रूप में देखा है. ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ विश्व स्तर पर, यूरोप व इंग्लैड में बहुत बड़ी सफल व चर्चित फिल्म है, पर भारत में इस फिल्म को सही ढंग से लोगों तक नहीं पहुंचाया गया. तो भारतीय दर्शक ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ से उतना परिचित नही हैं, जिन लोगो ने देखी, उन्हें यह फिल्म और मेरा काम पसंद आया. मगर ‘मिर्जापुर’ में लोगों को मेरा एक नया रूप नजर आया. हम कलाकारों का काम ही है, हर तरह के किरदार को निभाना.

जब आपको वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ का आफर मिला था, तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आया था?

हकीकत यह है कि जब रितेश सिद्धवानी ने मुझे इस सीरीज के लिए बुलाया था, तो मैंने फिल्मों में व्यस्तता का बहाना करके इसे करने से मना कर दिया था. उस वक्त मुझे विलेन मुन्ना का किरदार आफर किया गया था. मेरी समझ में तो गुड्डू का ही किरदार आया था, पर कुछ समय बाद मुझसे गुड्डू के किरदार के लिए संपर्क किया गया, तो मेरे लिए यह एक नई चुनौती थी, मैंने स्वीकार किया. आज खुश हूं कि इससे मुझे एक नई पहचान मिली. रितेश सिद्धवानी ने मुझ पर यकीन किया.

क्या आपने ‘‘मिर्जापुर’’ में गुड्डू का किरदार निभाते हुए ईमेज बदलने का जो रिस्क लिया था, उस पर विचार किया था?

मैंने लाभ हानि के बारे में नहीं सोचा था, पर मुझे पता था कि मैं एक रिस्क उठा रहा हूं. कलाकार के तौर पर मैं सदैव रिस्क उठाना चाहता हूं. मेरे लिए रिस्क यह था कि यह वेब सीरीज है और पूरे चार पांच महिने इसके लिए गए. यानी कि लगातार दो फिल्मों की शूटिंग करना. फिर रोज एक ही तरह के किरदार को लंबे समय तक निभाना, इससे मुझे बोरियत भी होने लगती है. एक मुकाम पर थकावट भी होती है. क्योंकि हमें तो फिल्मों की आदत है. पर पूरी वेब सीरीज की शूटिंग खत्म होने के बाद जिस तरह से रिस्पांस मिला, उससे खुशी हुई. लेकिन बीच में लगा था कि मेरे करियर की गति धीमी हो गयी है.

यदि ‘‘मिर्जापुर’’ वेब सीरीज की बजाय फीचर फिल्म होती, तो?

यह इस बात पर निर्भर करता कि फिल्म कितने बड़े दर्शक वर्ग तक पहुंची. यह वेब सरीज 16 नवंबर 2018 को एक साथ सत्तर देशों में रिलीज हुई. मैं अभी दो तीन देशों में गया, तो वहां के लोग मुझे ‘मिर्जापुर’ के गुड्डू के नाम से पहचान रहे थे.

विदेशों में लोगों ने मिर्जापुर इसलिए भी देखा होगा, क्योंकि वह इससे पहले विक्टोरिया एंड अब्दुलदेखकर आपकी प्रतिभा का अहसास कर चुके थे?

आपने एकदम सही कहा..ऐसा भी हो सकता है. विदेशों में ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ मेरी सबसे बड़ी पहचान है. इंग्लैंड, अमरीका व यूरोप में यह फिल्म ही मेरी असली पहचान है. लेकिन ‘मिर्जापुर’ देखकर सभी को लगा कि उन्होंने अली फजल के अभिनय का एक नया पक्ष देखा लिया.

भारत में ‘‘मिर्जापुर’’ को किस तरह का रिस्पांस मिला?

‘‘मिर्जापुर’’ देखकर पूरा उत्तर भारत पगला गया है. दक्षिण से भी अच्छा रिस्पांस मिला. पर पहले मैं दिल्ली व लखनउ में आराम से बाहर घूमता था. पर अब नहीं घूम पाया. यदि आपकी एक फिल्म बहुत बड़ी हिट हो जाए, तो जो हालात होते हैं, वैसे हालात ‘मिर्जापुर’ के बाद हो गए हैं. लोगों ने ‘मिर्जापुर’ को अपने एंड्रायड मोबाइल फोन या लैपटौप आदि पर भी देखा है. हर जगह अब भीड़ मुझे घेर लेती है. दो बड़ी सफल फिल्में करने के बाद मुझे जो मुकाम मिलता, उस तक इस एक वेब सीरीज ने पहुंचा दिया. यह एक रोचक अनुभव रहा.

पर क्या वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ के हर दृश्य को मोबाइल पर देखकर इंज्वाय किया जा सकता है?

संभव ही नही है. इसे कम से कम टीवी पर या बड़ी स्क्रीन पर देखें, तो ही ज्यादा मजा आएगा. इस दृष्टिकोण से मैं आपसे सहमत हूं कि यदि ‘‘मिर्जापुर’’ फिल्म के रूप में बनती और थिएटर में बड़े स्तर पर रिलीज होती, तो ज्यादा जबरदस्त रिस्पांस मिलता. मगर फिल्म बनाने पर सेंसर बोर्ड के कुछ निर्देषों का पालन करना पड़ता, तो फिर जिस बेल्ट की कहानी है, उस बेल्ट के माहौल को तथ्यपरक ढंग से हम फिल्म में न पेश कर पाते. मिर्जापुर इलाके में लोग आम जीवन जीते हुए गाली देते हैं. वह किसी को गाली गाली देने के लिए नहीं, बल्कि दोस्ती व प्यार में देते हैं. यह सब फिल्म में न दिखा पाते.

वेब सीरीज के चलते कुछ फिल्में अमेजन व नेटफ्लिक्स पर भी जा रही हैं?

जी हां!! मौलिक कंटेंट के रूप में कुछ फिल्में अब डिजिटल प्लेटफार्म पर जा रही हैं. जो फिल्मकार बजट की कमी के चलते मार्केटिंग व फिल्म के रिलीज पर लगने वाला पैसा खर्च नहीं कर पाते हैं, उनके लिए अब नेटफ्लिक्स, अमेजन या ‘जी फाइव’जैसे डिजिटल प्लेटफार्म एक नई आशा की किरण बनकर आए हैं. मैं खुद भी एक दो ओरिजनल कंटेंट वाली फिल्में डिजिटल प्लेटफार्म के लिए करने वाला हूं.

इससे फिल्म के निर्माता का नुकसान नहीं हो पाता. मगर कलाकार के तौर पर ..?

थोड़ा सा अफसोस लगता है कि हमने तो यह सोचकर इस फिल्म के लिए मेहनत की थी कि थिएटर पर रिलीज होगी, पर यह तो डिजिटल प्लेटफार्म पर चली गयी. मगर ‘जी 5’, ‘अमेजन’और ‘नेटफिल्क्स’ की पहुंच काफी अलग है. तो हम दर्शक नहीं खोते हैं, पर थिएटर में फिल्म रिलीज का जो अनुभव होता है, वह नही मिलता. हां! शुरू शुरू में डिजिटल पर फिल्म के रिलीज से कलाकार को फायदा नहीं मिलता.

आपकी फिल्म ‘‘तड़का’’ का क्या हो रहा है?

प्रकाश राज निर्देशित फिल्म ‘‘तड़का’’ 2018 में रिलीज होने वाली थी, मगर शायद अभी यह फिल्म कानूनी पचड़े में फंसी हुई है.

‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ से आपको जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत मिली, उसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई दूसरी फिल्म कर रहे हैं?

काफी फायदा हुआ. मैं दो इंटरनेशनल फिल्में करने वाला हूं, जिनकी शूटिंग बहुत जल्द शुरू होगी. इसमें से एक बायोपिक फिल्म है, जिसमें मैं किसी अन्य देश के नागरिक का किरदार निभा रहा हूं. यह कहानी 2003 के इराक युद्ध पर होगी. अभी इन फिल्मों को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दे सकता. इसके अलावा मैं औस्कर की ज्यूरी का सदस्य भी बन चुका हूं.

कल औस्कर अवार्ड खत्म हुए. मैं इस अवार्ड को देख रहा था, क्योंकि ज्यूरी मेंबर होने की वजह से पहली बार मैंने वोट दिया है. मुझे बहुत खुशी हुई कि इस वर्ष पहली बार भारतीय फिल्म को भी पुरस्कार मिला. यह पुरस्कार गुनीत मोंगा ने ‘‘पीरियड्सः आफ एंड सेंटेंस’’ के लिए जीता है. वह भी इसी वर्ष मेंबर बनी. पहली बार किसी भारतीय फिल्म निर्माता को औस्कर अवार्ड मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि है. मैं बहुत खुश हूं. क्योंकि ग्लोबल स्तर पर हम जो कुछ कर रहे हैं, उसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. मैं अपनी तरफ से भारतीय सिनेमा को विश्व स्तर पर उंचा उठाने के लिए जो कुछ कर सकता हूं, वह कर रहा हूं. मेरे साथ ही कई दूसरे भारतीय कलाकार भी ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं.

आज की तारीख में भारतीय सिनेमा का कंटेंट ग्लोबल हो गया है और लोग इसे देख भी रहे हैं. डिजिटल प्लेटफार्म पर पूरे विश्व के हर देश में ‘मिर्जापुर’ के साथ ही हौलीवुड शो भी देखे जा रहे हैं.

औस्कर की ज्यूरी में 2018 में भारतीय सिनेमा की कई हस्तियों को शामिल किया गया. इस बदलाव की वजह?

भारतीय सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ ही औस्कर में भी अब डायवर्सीफिकेशन हो रहा है. अब भारतीय सिनेमा छोटा नही रहा. अब भारतीय कलाकार इंटरनेशनल सिनेमा में अपना वर्चस्व बढ़ा रहे हैं, तो इसका भी असर पड़ रहा है. अकादमी में आने के बाद समझ में आया कि सिनेमा की अर्काइविंग बहुत जरुरी है. हमारे सिनेमा का कोई अर्काइव ही नही है. सिर्फ ‘पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट’ में ही यह सुविधा है.

मैं और मेरे दोस्त डेविड इस दिशा में एक बहुत बड़ा कदम उठा रहे हैं. वह अमरीका के एले से हैं. हम दोनों ने अपनी कंपनी बनायी है और हम आयकौनिक फिल्मों के प्रिंट इकट्ठा कर उन्हें सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं. यह काफी खर्चीला है. क्योंकि फिल्म के प्रिंट को एक खास तापमान में रखने पर ही उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है. तो हम ऐसा काम कर रहे हैं. फिलहाल हम इन फिल्मों के नाम नहीं बता सकते.

आप व आपके मित्र डेविड फिल्मों के प्रिंट सुरक्षित रखने की इस शुरुआत को किस तरह आगे ले जाने की योजना बनायी है?

आप जानते होंगे कि जब सत्यजीत रे को औनररी औस्कर अवार्ड मिला था? तो औस्कर वालों के पास सत्यजीत रे की एक भी फिल्म दिखाने के लिए नहीं थी. तब डेविड पार्कर ने रित्विक घटक व सत्यजीत रे की फिल्मों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया था. फिलहाल हमने जो कदम उठाया है, उसके लिए हम धन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं.

औस्कर यानी कि अकादमी अवार्ड में अब तक अमरीकन ही हावी रहते थे. पुरस्कार भी अमरीकी  फिल्मों को ही ज्यादा मिलता था?

बदलाव आया है. हमारी फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ तो इंग्लैंड की थी, जिसे पिछले वर्ष कास्ट्यूम एंड मेकअप कैटेगरी में नोमीनेट किया गया था. मुझे इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का रशियन अवार्ड मिला था. हौलीवुड सिनेमा तो अमरीका का ही है. अब हालीवुड सिनेमा भारत आकर बौलीवुड में अवार्ड तो नही ले सकता था. ऐसा ही कुछ औस्कर में हो रहा था. पर इस बार औस्कर में ‘नेटफ्लिक्स’ की फौरेन फिल्म ‘‘रोमा’’ ने सिर्फ फौरेन फिल्म कैटेगरी में नहीं, बल्कि जनरल कैटेगरी में हर क्षेत्र में नोमीनेट हुई और कड़ी टक्कर दी. यह नई बात हुई. इसका मतलब हुआ कि अब औस्कर पूरे विश्व के सिनेमा को पहचानने लगा है.

सफर के दौरान ऐसे रखें अपने सामान को सुरक्षित

चोरी के मामले अकसर सामने आते रहते हैं. कभी बसों व मैट्रो में तो कभी राह चलते. ये चोर इतने शातिर होते हैं कि कैमरों की आंखों में भी धूल झोंक देते हैं. मैट्रो में कैमरे की निगरानी के बावजूद चोर बड़ी सफाई से चोरी कर जाते हैं.

ऐसे ही चोरी का शिकार होते बची काजल शर्मा. दरअसल काजल रोजाना अपने औफिस के लिए मैट्रो का रूट फौलो करती है. काजल का कहना है कि रोजाना की तरह उस दिन भी वह औफिस मैट्रो से जा रही थी. काजल अपने साथ अपना लैपटौप बैग और साथ में एक छोटा हैंडबैग कैरी करती है.

आमतौर पर मौर्निंग में मैट्रो में भीड़ होती है. काजल भी उसी भीड़ का हिस्सा थी. काजल ने लैपटौप बैग कंधे पर लटकाया हुआ था और दूसरा बैग उस के हाथ में था. कानों में ईयरफोन लगाए हुए काजल म्यूजिक में इतनी खोई हुई थी कि मैट्रो के शोर का उस पर कोई असर नहीं था.

उस शोर के बीच कोई काजल के बैग पर नजर रखे था. एकदो बार बैग पर हाथ लगने पर काजल ने पीछे मुड़ कर देखा और भीड में लगने वाली धक्कामुक्की समझ कर नजरअंदाज कर दिया. लेकिन थोड़ी ही देर बाद काजल को महसूस हुआ कि किसी का हाथ था जो धीरेधीरे उस के बैग के अंदर जा रहा था. काजल ने तिरछी नजरों से उस व्यक्ति के हाथ को देख लिया और मौका पाते ही उस का हाथ झट से पकड़ कर चिल्लाने लगी. तभी मैट्रो में मौजूद लोगों ने उस चोर को पीटना शुरू कर दिया और उसे सीआईएसएफ वालों के हवाले कर दिया.

काजल ने तो अपना लैपटौप चोरी होने से बचा लिया लेकिन जरूरी नहीं कि इन शातिर चोरों से हम हमेशा ही बच जाएं. हम चोरों को तो रोक नहीं सकते लेकिन अपने समान को चोरी होने से जरूर बचा सकते हैं. सफर के दौरान अधिकतर चोरियां बैगों से होती हैं.

अब आप के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि बैग तो बैग होते हैं, चोरों से इन बैगों को बचाया कैसे जाए? तो चलिए जानते हैं कुछ सावधानियों के बारे में जो भीड़भाड़ में बैग के अंदर रखे सामान को चोरी होने से बचा सकते हैं.

डोरी वाला बैकपैक

आप के बैकपैक में 2 डोरियां लगी हों.  इस से आप का सामान चोरी होने से बच सकता है. जब आप बैग बंद करेंगे और ये डोरियां आप के बैग की जिप से जुड़ी होंगी तो बैग बंद करने के बाद आप इन डोरियों को अपनी कमर पर बांध सकते हैं. इस से जब भी कोई आप का बैग खोलने की कोशिश करेगा, खोल नहीं पाएगा और आप को पता चल जाएगा कि कोई आप का बैग खोलने की कोशिश कर रहा है.

अलार्म वाला बैकपैक

आप चाहें तो अपने बैग के ऊपर एक ऐसा डिवाइस सैट कर सकते हैं जिस को टच करते ही अलार्म बजना शुरू हो जाए.यदि आप मैट्रो या बस में सफर कर रहे हैं तो आप इस डिवाइस को औन कर सकते हैं ताकि कोई भी आप के बैग की जिप को हाथ लगाए, तो यह अलार्म बजना शुरू हो जाए.

लौक बैकपैक

बैग में लौक लगाने का आइडिया सब को पता होता है, लेकिन बात जब आसपास जाने की होती है तो हम इस आइडिया को नजरअंदाज कर देते हैं.

अगर आप औफिस जा रही हैं और आप के बैग में लैपटौप है या और कोई कीमती सामान, तो आप इस लौक का इस्तेमाल जरूर करें. इस से आप पूरे रास्ते निश्चिंत हो कर जाएंगी और आप का सामान भी सुरक्षित रहेगा.

जब कराने जाएं वैक्सिंग…

पर्सनैलिटी में निखार लाने के लिए वैक्सिंग आवश्यक है. पर कई बार महिलाएं/लड़कियां वैक्सिंग से होने वाले दर्द से डरकर हेयर रिमूवल क्रिम या रेजर का इस्तेमाल कर लेती हैं, जो गलत है. इससे आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचने के साथ ही हेयर ग्रोथ भी बढ़ता है. इसलिए अगर आप वैक्‍सिंग करवाने से डरती हैं तो एक बार दुबारा जरुर सोंच लें.

त्‍वचा काली नहीं पड़ती

एक बार वैक्‍सिंग करवाइये और देखिये कि आपकी स्‍किन का कलर किस प्रकार बदल जाता है. वैक्‍सिंग करवाने से सन टैनिंग हटती है. कई ब्‍यूटीशियन का मानना है कि वैक्‍सिंग करवाने से मृत कोशिकाएं हट जाती हैं जिससे त्‍वचा साफ सुथरी और गोरी दिखाई पड़ने लगती है.

वैक्‍स का सही तरीका चुने

जिन महिलाओं को वैक्‍सिंग करवाने पर दर्द होता है, उन्‍हें चौकलेट वैक्‍सिंग करवाना चाहिये. हांलाकि चौकलेट वैक्‍सिंग थोड़ी महंगी होती है और इसे घर पर किया भी नहीं जा सकता.

दर्द को दूर करें

अगर वैक्‍सिंग से दर्द होता है तो 30-40 मिनट पहले एस्‍पिरिन की गोली खा लें या फिर वैक्‍सिंग के तुरंत बाद आइस क्‍यूब रगड़ लें.

दीक्षा यानी गुरुओं की दुकानदारी

रिटायरमैंट के करीब पहुंचे एक सज्जन से मैं ने पूछा, ‘‘दीक्षा का मतलब क्या है?’’ वे बताने लगे, ‘‘दीक्षा का मतलब, दक्ष,’’ वे आगे बोले, ‘‘कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दीक्षा दी थी.’’

‘‘क्या दीक्षा दी थी?’’ मेरे दोबारा पूछने पर वे कुछ नहीं बोले. जाहिर है, वे अपने गुरु के अंधसमर्थक थे.

इस बारे में महाभारत से स्पष्ट है कि कृष्ण ने छलकपट से कुरुक्षेत्र का युद्ध जीता था. तो क्या उन्होंने अर्जुन को छलकपट की दीक्षा दी? आमतौर पर दीक्षा का मतलब होता है, गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान का सार, जिस पर शिष्य (छात्र) अपने जीवन में अमल कर सफलता की सीढ़ी चढ़ता है. स्कूल की पढ़ाई को तथाकथित गुरु अपर्याप्त शिक्षा मानते हैं. अनपढ़, गंवार गुरु अपने तप से जीवन में ऐसा कौन सा मंत्र प्राप्त करते हैं जो अपने शिष्यों में बांट कर उन का जीवन सुधारने का कार्य करते हैं, जबकि वे खुद असफल, जीवन के संघर्षों से भागने वाले लोग होते हैं.

गुरु के मर जाने के बाद भी दीक्षा का कार्यक्रम चलता है. यह समझ से परे है, क्योंकि गुरु खुद अपना ज्ञान दे तो समझ में आता है पर यह कार्य मरने के बाद उन के कुछ शिष्यों द्वारा चलता रहे, तो यही कहा जा सकता है कि यह गुरु की दुकानदारी है.

दीक्षा देने का तरीका सभी गुरुओं का एक जैसा नहीं होता. कुछ गुरु खास रंगों के वस्त्रों के साथ नहाधो कर ब्रह्ममुहूर्त में दीक्षा देते हैं, तो कुछ कभी भी, किसी भी अवस्था में. दीक्षा के लिए किस गुरु को चुना जाए, यह बुद्धि से ज्यादा गुरु के प्रचार पर निर्भर करता है जिस गुरु का जितना प्रचार होता है उस से दीक्षित होने के लिए लोग उतने ही उतावले होते हैं. इस के अलावा संपर्क भी एक माध्यम है. क्यों? जड़बुद्धि जनता के लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं होता क्योंकि इतना सोचने के लिए उस के पास दिमाग ही नहीं होता. उसे तो बस यह पता हो कि उक्त गुरुजी बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं.

इन गुरुओं से संबंधित अनेक मनगढं़त कहानियां होती हैं जो नए ग्राहक (शिष्य) को फंसाने के लिए सुनाई जाती हैं. एक दीक्षा प्राप्त महिला ने अपने गुरु के बारे में बताया कि एक बार मेरा बेटा मोटरसाइकिल से आ रहा था. उसे अचानक चक्कर आया और वह गिर पड़ा. गिरते ही बेहोश होने की जगह उस ने गुरुमंत्र जपा. तभी गुरु समान सड़क पर पता नहीं कहां से एक रिकशा वाला आ गया, जो मेरे बेटे को उठा कर पास के अस्पताल में ले गया. आमतौर पर उस अस्पताल में औक्सीजन सिलिंडर नहीं होता पर उस रोज था और इस तरह बेटे की जान बच गई. रिकशे वाले की सदाशयता और अस्पताल की सारी मुस्तैदी का के्रडिट गुरुजी ले उड़े.

दूसरी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है : एक शिष्य साइकिल से जा रहा था. अचानक ट्रक ने पीछे से साइकिल में टक्कर मारी तो साइकिल सवार सड़क पर और साइकिल छिटक कर दूर जा पड़ी. सड़क पर गिरते ही उस का एक हाथ ट्रक के अगले पहिए के नीचे आ गया. तभी उस ने गुरुमंत्र जपा. मंत्र जपने के साथ ही उस में पता नहीं कहां से इतनी शक्ति आ गई कि उस ने सिर झटके से हटा लिया. इस तरह उस का सिर पिछले पहिए से कुचलने से बच गया.

समझने वाली बात है कि उस का ध्यान मंत्रजाप पर था या सिर बचाने पर. साफ पता लग रहा है कि सारी घटना में जानबूझ कर मंत्र का तड़का लगाया गया है.

गुरुमंत्र कानों में इस तरह फुसफुसाए जाते हैं ताकि कोई सुन न ले. ठीक पाकिस्तान के आणविक कार्यक्रम की तरह कहीं आतंकवादियों के हाथ न पड़ जाए, वरना महाविनाश निश्चित है. गुरुमंत्र से दीक्षित हो कर वह आदमी उस फार्मूले (मंत्र) को अपने तक ही सीमित रखता है.

दीक्षा मुफ्त में नहीं मिलती. इस के लिए बाकायदा चढ़ावा निश्चित है. ‘माया महा ठगिति हम जानी’, तिस पर गुरु व उन के खासमखास चेले बिना रुपया हाथ में लिए दीक्षा नहीं देते. यहां तक कि मर चुके गुरु के फोटो तक के पैसे शिष्यों से वसूल लिए जाते हैं. एकाधिकार बना रहे तभी कानों में मंत्र फूंकने का काम वह अपने तक ही सीमित रखता है. हां, मरने के बाद गुरु की दुकानदारी चलती रहे, सो अपने किसी प्रिय शिष्य को वह यह कार्य सौंप कर जाता है.

दीक्षा में कुछ नहीं है. कानों में गुरु अपना उपनाम बताता है, जिसे दीक्षित आदमी से हर वक्त जपने को कहा जाता है. यह एक तरह से व्यक्ति पूजा है ताकि कथित भगवानों से ऊपर लोग उसे जानें. तथाकथित गुरु का यह आत्ममोह से ज्यादा कुछ नहीं.

गुरु कितने आध्यात्मिक व ताकतवर हैं, यह सब को मालूम है. सुधांशु महाराज, जयगुरुदेव, कृपालु महाराज, आसाराम बापू, प्रभातरंजन सरकार (आनंदमार्गी) इन सब के क्रियाकलापों से सारा देश परिचित है. इन्होंने समाज को कौन सी सीख दी? क्या मंत्र दिया? उन का गुरुशिष्य के खेल में कितना कल्याण हुआ? यह बताने की जरूरत नहीं. हां, इतना जरूरी है कि दीक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए कमा चुके ये महात्मा खुद आलीशान जीवन जी रहे हैं और दीक्षा लेने वाला शिष्य भूखे पेट इन के नाम का जाप कर इन्हें धन्य कर रहा है.

अपनी गिरफ्तारी पर आसाराम बापू ढिठाई से कहते हैं, ‘‘नरेंद्र मोदी की सत्ता बच न सकेगी.’’ मानो वे कोई अंतर्यामी व सर्वशक्तिमान हैं. उन के गिरफ्तार होते ही प्रलय आ जाएगी. दुनिया तहसनहस हो जाएगी. अपनी दुकानदारी चलाने की नीयत से इन गुरुओं द्वारा, यदि दिवंगत हुए तो शिष्यों द्वारा साल में 1 या 2 बार विभिन्न धार्मिक शहरों में भंडारे का आयोजन होता है. जहां इन के शिष्य जुटते, खातेपीते, सत्संग (चुगलखोरी) करते हैं. कहने को सभी शिष्य आश्रम में गुरुभाई हैं पर जैसे ही भंडारा खत्म होता है फिर से वे जातिपांति, भाषा में बंटे अपने घरों को लौट जाते हैं. सिवा पिकनिक के इन भंडारों से कोई लाभ नहीं होता. भंडारे के लिए धन कहां से आता है? इस के लिए हर शिष्य चंदा देता है. कुछ पैसे वाले व्यापारी तो गुरु महाराज की इच्छा के नाम पर भंडारे का सारा खर्च अपने ऊपर ले लेते हैं. दरअसल, जमाखोरी कर के वे जो पाप की कमाई करते हैं उसे थोड़ा खर्च कर के अपने पाप को धोने की कोशिश करते हैं.

दीक्षित होने के बाद बताया जाता है कि गुरु की तसवीर के सामने बिना होंठ व जबान हिलाए मंत्र (गुरु नाम) का स्मरण करना चाहिए. यह प्रक्रिया दिनरात कभी भी की जा सकती है. सुबह अनिवार्य है. ऐसा कर के शिष्य के ऊपर कभी भी संकट नहीं आ सकता. तो क्या गुरुजी उस आदमी के लिए ‘बुलेटप्रूफ जैकेट’ का काम करते हैं? अगर गुरुजी पर संकट आए तब जैसा आसाराम बापू के साथ हुआ? तब मीडिया को कोसने का मंत्र गला फाड़फाड़ कर बोलने का नियम शायद लागू होता है.

कुल मिला कर दीक्षा वक्त व धन की बरबादी है. जो धर्मभीरु हैं, बेकार हैं व भाग्य के भरोसे रहने वाले हैं वे ही इन गुरुओं के चक्कर में पड़ते हैं. जो गुरु खुद दिग्भ्रमित हो वह क्या लोगों को रास्ता दिखाएगा. दोष कबीर का ही है, न वे कहते, ‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय. बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय.’ न आम लोगों में यह धारणा बनती कि गुरु ही भगवान के पास जाने का रास्ता जानते हैं.

ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में मेल और फीमेल को अलगअलग तरह से ट्रीट किया जाता है :  अनुष्का अरोड़ा

2016 में अनुष्का को यशराज की फिल्म ‘फैन’ में शाहरुख खान के अपोजिट जर्नलिस्ट की भूमिका में देखा गया. उन्हें एशियन मीडिया अवार्ड्स के लिए ‘बैस्ट रेडियो पे्रजैंटर औफ द ईयर’ के तौर पर चौथे साल के लिए चुना गया और तब ‘सनराइज रेडियो’ ने ‘बैस्ट रेडियो स्टेशन औफ द ईयर’ अवार्ड हासिल किया था. अनुष्का को लंदन के ‘हाउस औफ लौर्ड्स’ में एनआरआई इंस्टिट्यूट से एनआरआई मोस्ट प्रिस्टीजियस जर्नलिस्ट के तौर पर ‘प्राइड औफ इंडिया’ अवार्ड दिया गया. इस के अलावा उन्हें इलैक्ट्रौनिक और नए मीडिया में अपने शानदार कार्य के लिए ‘बैस्ट इन मीडिया अवार्ड-2008’ भी मिला.

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पेश हैं, अनुष्का अरोड़ा से हुए सवालजवाब:

इस मुकाम पर किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

मेरे लिए हर दिन एक चुनौती है. मुझे अपने रेडियो शो के लिए काफी रिसर्च और तैयारी की जरूरत होती है. कभीकभी जब 4 घंटे के शो के लिए पर्याप्त कंटैंट उपलब्ध नहीं होता तो मुश्किल पैदा हो जाती है. लेकिन अपने श्रोताओं का मनोरंजन करने के लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती हूं.

ऐंटरटेनमैंट फील्ड में क्या महिलाओं को अभी भी ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ रहा है?

यकीनन ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में ग्लास सीलिंग अभी भी कायम है. मेल और फीमेल को अलगअलग तरह से ट्रीट किया जाता है. ‘मी टू कैंपेन’ उसी का नतीजा है. मैं निश्चित तौर पर उस प्रत्येक महिला के साथ खड़ी हूं जिस का गलत इस्तेमाल हुआ है. ‘मी टू कैंपेन’ ने महिलाओं में जागरूकता पैदा की है. तनुश्री दत्ता ने इस संदर्भ में आवाज उठाने वाली कई महिलाओं को हिम्मत दी और एक नया प्लेटफार्म मुहैया कराया. इसे काफी अच्छा रिस्पौंस भी मिला.

क्या जर्नलिस्ट आर्थिक फायदे और प्रतियोगिता में आगे रहने के चक्कर में अपने बेसिक प्रिंसिपल्स के साथ समझौता करने लगे हैं?

जी हां, ऐसा होने लगा है. लोग समझौते करते हैं, पर मैं ऐसा नहीं करती. ये सब आप की परवरिश, कल्चर और ट्रैडिशन पर निर्भर करता है.

आप को ऐक्ट्रैस, रेडियो जौकी, वीडियो जौकी, ऐंकर और जर्नलिस्ट में से क्या बन कर सब से ज्यादा संतुष्टि मिलती है और क्यों?

मुझे ऐंकर के रूप में सब से ज्यादा मजा आता है, क्योंकि हम लाइव औडियंस के सामने होते हैं. लाइव औडियंस को ऐंटरटेन करना खुद में एक बड़ा चैलेंज होता है जो मुझे बहुत पसंद है.

रेडियो जौकी बनने का खयाल कैसे आया?

ये सब यूनिवर्सिटी में शुरू हुआ. मुझे यह बताया गया था कि यदि मैं रेडियो में जाना चाहती हूं तो मुझे किसी स्थानीय हौस्पिटल में अनुभव हासिल करना होगा. अस्पताल के वार्ड में उन के इनहाउस रेडियो स्टेशन हैं और यह रेडियो कैरियर के लिए एक विशेष आधार माना गया. मैं ने ‘इलिंग हौस्पिटल’ में 2 घंटे का बौलीवुड शो करना शुरू किया. मुझे हौस्पिटल रेडियो अवार्ड्स में बैस्ट रेडियो प्रेजैंटर के लिए नामित किया गया जिस से मेरा भरोसा बढ़ा और फिर धीरेधीरे मैं ने यहां के लोकल रेडियो चैनल्स पर बौलीवुड शो करना शुरू किया.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

पिछले समय की तुलना में आधुनिक समय में महिलाओं ने काफी कुछ हासिल किया है. लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें अभी भी लंबा रास्ता तय करना है. महिलाओं को उन के सामने अपनी प्रतिभा साबित करने की जरूरत है जो उन्हें बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं. भारतीय महिलाओं को सभी सामाजिक पूर्वाग्रहों को ध्यान में रख कर अपने लिए रास्ता तैयार करने की जरूरत है, साथ ही पुरुषों को भी देश की प्रगति में महिलाओं की भागीदारी को अनुमति देने और स्वीकारने की जरूरत है.

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कचकोलार कोफ्ता करी

सामग्री

– 4 कच्चे केले

– 1 आलू

– 1 बड़ा चम्मच बेसन

– 1 हरी मिर्च

– 1 लाल मिर्च

– 1/2 छोटा चम्मच मेथी दाना

– 1 छोटा चम्मच जीरा

– 1 छोटा चम्मच साबूत धनिया

– एक टुकड़ा दालचीनी

– 2 बड़ी इलायची

– 1 छोटी इलायची

– 2 लौंग

– 2 तेजपत्ता

– 3 बड़े चम्मच प्याज कटा हुआ

–  1 चम्मच टमाटर कटी हुई

– 1 छोटा चम्मच अदरक और लहसुन  का पेस्ट

– 2 चम्मच सरसों का तेल

– 1/4 छोटा चम्मच चीनी

– 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर

– तलने के लिए पर्याप्त तेल

– सजाने के लिए धनियापत्ती

– नमक स्वादानुसार.

बनाने की विधि

– एक पैन में लाल मिर्च, जीरा, धनिया, दालचीनी, बड़ी इलायची, छोटी इलायची और लौंग को भून कर पाउडर बना लें.

– कच्चे केले और आलू को उबाल कर मैश कर लें. इस में बेसन, थोड़ा सा सूखा मसाला और नमक मिला कर बौल्स बनाएं.

– एक पैन में तेल गरम कर बौल्स को सुनहरा होने तक फ्राई करें.

– प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन का पेस्ट बनाएं.

– एक पैन में सरसों का तेल गरम कर तेजपत्ता, प्याज, लहसुन का पेस्ट और नमक डाल कर भूनें.

– चीनी, हल्दी और बचा मसाला पाउडर भी डाल कर अच्छी तरह भूनें.

– अब जरूरतानुसार पानी और कोफ्ता बौल्स डाल कर एक उबाल आने के बाद आंच बंद कर दें और धनियापत्ती से गार्निश कर सर्व करें.

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