गार्लिक फ्राइड राइस

सामग्री:

–  शिमला मिर्च  (1 मध्‍यम आकार का)

–  कुटी हुई काली मिर्च (1/2 चम्‍मच)

– सोया सौस (1 चम्‍मच)

– वेनिगर  (1/4 चम्‍मच)

– बासमती चावल (1/2 कप)

–  पानी (3 कप)

–  नमक (1/4 चम्‍मच)

– तिल का तेल (1/4 चम्‍मच)

– 9 से 10 ग्राम लहसुन

– बारीक कटे 1 बड़ा प्‍याज

– 1 छोटा गाजर

– 5-6 बींस

– 2 से 3 चम्‍मच कटी स्‍प्रिंग अनियन

बनाने की विधि

– सबसे पहले चावल को धो ले और 30 मिनट तक के लिये पानी में भिगो कर रख दें.

– एक पैन में 3 कप पानी गरम करें.

– जब वह उबलने लगे तब उसमें नमक और थोड़ा सा तेल मिलाएं.

– उसके बाद इसमें राइस डाल कर चलाएं.

– आंच को तेज कर दें और राइस को आधे से ज्‍यादा पका लें.

– उसके बाद चावल को छान लें और उसे हल्‍के से नल के पानी से धो लें.

– फिर राइस को ढंक कर एक किनारे रख दें और ठंडा होने दें.

– एक कढ़ाई में 2 चम्‍मच तेल गरम करें.

– इसमे कटी लहसुन .आंच धीमी करें और पकने दें.

– फिर कढाई में से 1-2 चम्‍मच लहसुन को अलग निकाल लें.

– इस लहसुन को हम आखिर में गार्निश करने के लिये यूज़ करेंगे.

– अब कढाई में बाकी के बचे लहसुन को भूनें और फिर उसमें स्‍प्रिंग अनियन का सफेद भाग मिलाएं और हरा वाला बाद में गार्निश करने के लिये रख दें.

– फिर  बारीक कटी फ्रेंच बींस डाल कर 2 मिनट तक फ्राई करें.

– फिर बाकी की सब्‍जियां मिलाएं, उसके बाद आधा चम्‍मच काली मिर्च पावडर मिलाएं.

– सब्‍जियों को 2 मिनट तक पकाएं, उसके बाद सोया सौस डालें.

– और फिर राइस डाल कर ऊपर से नमक मिलाएं.

– उसके बाद ऊपर से भुनी हुई लहसुन डालें और चम्‍मच से मिलाएं.

– राइस को 1 मिनट तक फ्राई करें, उसके बाद इसमें वेनिगर या फिर नींबू का रस मिलाएं.

– आंच बंद करें और ऊपर से ही पत्‍तेदार प्‍याज डाल कर मिक्‍स करें.

– आपका बर्न गार्लिक राइस तैयार है.

रूढ़िवादी सोच के कारण महिलाएं आधुनिक तौरतरीके नहीं अपना पा रहीं : अनामिका राय सिंह

उत्तर प्रदेश के गोंडा और गाजीपुर जैसे छोटे जिलों में पढ़ाई करने के बाद राजधानी लखनऊ आईं अनामिका राय ने कम समय में ही बिजनैस के क्षेत्र में काम कर के न केवल खुद को साबित किया, बल्कि आज बहुत सारे लोगों को रोजगार भी दे रही हैं. वे कहती हैं कि महिलाओं को अपना पढ़ने का शौक बढ़ाना चाहिए. इसी से तरक्की का रास्ता निकलता है.

पेश हैं, अनामिका से हुई गुफ्तगू के कुछ अंश:

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अपने बारे में विस्तार से बताएं?

मेरे पिता गोंडा जिले की आईटीआई कंपनी में काम करते थे. स्कूल के दिन मेरे वहां बीते. केंद्रीय विद्यालय आईटीआई गोंडा से 12वीं कक्षा पास करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ आ गई. लखनऊ मेरे लिए बड़ा शहर था. लखनऊ विश्वविद्यालय से फूड न्यूट्रिशन में बीएससी करने के बाद ‘एचआर और मार्केटिंग’ में एमबीए किया. इस के बाद शादी हो गई. कुछ समय के बाद मुझे लैक्मे के सैलून की फ्रैंचाइजी लेने का मौका मिला. मुझे लगा कि यह काम मैं कर सकती हूं. अत: मैं ने काम शुरू किया. कामयाबी मिली तो 2 सालों में ही लखनऊ में 3 लैक्मे के सैलून खोल लिए.

पहले लोगों को लगता था कि मैं इस काम को नहीं कर पाऊंगी, क्योंकि कालेज के बाद शादी और शादी के बाद यह बिजनैस. लोग समझते थे कि मुझे कोई अनुभव नहीं है. अपनी मेहनत से सफलता हासिल करने के बाद मुझे खुद पर भरोसा हुआ. फिर समाज के सामने खुद को साबित किया. तब लोगों की आलोचनाएं बंद हुईं. मुझे लगता है कि सफलता ही वह चीज है, जो आलोचनाएं बंद कर सकती है. मुझे ‘यंगैस्ट वूमन ऐंटरप्रन्योर 2017’ और ‘शख्सीयत ए लखनऊ’ जैसे सम्मान भी मिले.

बिजनैस से मिली सफलता के बारे में कुछ बताएं?

एक बार बिजनैस में कदम बढ़ाने के बाद मैं ने ब्यूटी के बाद फैशन के क्षेत्र में काम करना शुरू किया. ‘द इंडियन सिग्नोरा’ नाम से फैशन स्टोर खोला, जिस में हर तरह के लेडीज परिधान उपलब्ध हैं. इस के साथ ही ‘कौफी कोस्टा’ नाम से कैफे का बिजनैस भी शुरू किया. बिजनैस के अलगअलग क्षेत्रों में काम करना अच्छा रहता है ताकि कभी एक सैक्टर किसी कारण से प्रभावित हो तो दूसरे सैक्टर से मदद मिल सके. महिला होने के नाते बिजनैस को संभालना थोड़ा कठिन काम होता है. बिजनैस के लिए समयबेसमय आप को बाहर जाना पड़ता है, तरहतरह के लोगों से मिलना पड़ता है. ज्यादातर काम करने वाले पुरुष ही होते हैं. इस से काम करने में कुछ परेशानियां भी आती हैं. मगर उन का सामना कर के ही आगे बढ़ा जा सकता है.

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अनामिका राय सिंह

व्यवसाय के अलावा और क्या पसंद है?

मेरी रुचि बिजनैस करने में नहीं थी. मुझे किताबें पढ़ने और लिखने का शौक था. स्कूलकालेज के दिनों से मैं लेख, गीत, कविताएं, व्यंग्य, कहानियां लिखती थी. संगीत में भी रुचि रखती थी. इस दिशा में ही अपना कैरियर आगे बढ़ाना चाहती थी. 2015 में मेरा पहला काव्य संग्रह ‘अनामिका’ प्रकाशित हुआ, जिस में दिल को छूने वाली 42 कविताएं प्रस्तुत की गईं. काव्य संग्रह के बाद रियल स्टोरी बेस्ड एक नौवेल लिखने पर काम कर रही हूं. मगर बिजनैस के चलते अब समय नहीं मिल रहा, जिस की वजह से उसे पूरा करने में समय लग रहा है.

क्या अब महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया है?

यह सच है कि महिलाओं की हालत में अब बहुत बदलाव आया है. अब छोटेछोटे शहरों की लड़कियां भी खुद को साबित कर रही हैं. परिवार का भरोसा पहले से अधिक बढ़ रहा है. मगर इस सब के बीच कुछ नई चुनौतियां भी सामने हैं, जिन में महिलाओं की सुरक्षा सब से बड़ा मुद्दा बन गया है. इस पर समाज और कानून को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. महिलाओं में रूढि़वादी सोच भी है जिस के चलते वे आधुनिक सोच के साथ कदम से कदम मिला कर नहीं चल पा रहीं. यह बदलाव महिलाओं को खुद करना है. अब जब वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं, तो उन्हें अपनी हैल्थ, डाइट और फिटनैस पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

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पहले से और ज्यादा खतरनाक हो गए हैं जंक फूड

जंकफूड से होने वाली समस्याओं पर लगातार स्टडीज होती रही हैं. इन स्टडीज से साफ हुआ है कि लोगों की सेहत के लिए जंक फूड बेहद हानिकारक है. पर हम जो खबर ले कर आएं हैं वो इससे भी अधिक गंभीर है. जानकारों की माने तो पिछले तीन दशक में रेस्टोरेंट्स में मिलने वाले जंक फूड्स की क्वालिटी में भारी गिरावट देखी गई है. रेस्ट्रोरेंट्स ने अपने मेन्यू में स्प्राउट् को ऐड किया है पर जंक फूड को बनाने में सोडियम की मात्रा को बढ़ा दिया है. इससे लोगों में मोटापे की शिकायत और बढ़ गई है.

हाल ही में प्रकाशिक एक जर्नल के मुताबिक, पिछले 30 सालों में जंक फूड की क्वालिटी में भारी गिरावट आई है और इससे लोगों की सेहत पर पहले से ज्यादा बुरा असर हो रहा है. शोध में शामिल लोगों की माने तो जंक फूड हमेशा से लोगों की सेहत के लिए हानिकारक रहा है पर बीते तीस सालों में इसकी हालत और खराब हुई है. आलम सये है कि बहुत से लोगों के मौत का कारण बन गया है जंक फूड.

आपको बता दें कि स्टडी में 1986 से ले कर 2016 के बीच में 10 रेस्टोरेंट्स के जंक फूड का अध्ययन किया गया. इसका मुख्य उद्देश्य ये पता करना था कि बदलते वक्त के साथ इसमें क्या बदलाव हो रहे हैं और इससे लोगों की सेहत पर क्या असर हो रहा है.

स्टडी में आए परिणामों के मुताबिक, इन सभी रेस्टोरेंट्स में स्टार्टर, डेजर्ट और अन्य व्यंजनों में 226 प्रतिशत की भारी भरकम बढ़ोतरी हुई है. शोधकर्ताओं को लगता है कि जंक फूड और मोटापे के बीच में गहरा रिश्ता है. उनके मुताबिक, लोगों का जंक फूड की तरफ बढ़ता रुझान उनकी सेहत पर नकारात्मक असर डाल रहा है.

स्टडी में ये बात सामने आई कि रेस्टोरेंट्स ग्राहकों को ज्यादा जंक फूड परोस रहे हैं. इसके चलते हमारी बौडी में सोडियम की मात्रा बढ़ रही है. इससे लोगों की सेहत का खासा नुकसान हो रहा है.

चिकन चाउमीन रेसिपी

सामग्री:

– चाउमीन (200 ग्राम)

– चिकन (200 ग्राम)

– पानी (1 कप)

– शिमला मिर्च (1)

– पत्ता गोभी (1)

– प्याज़ (1)

– काली मिर्च पाउडर (1/4 टी स्पून)

– तेल (2 टी स्पून)

– चिल्ली सास (2 टी स्पून)

– सोया सास (2 टी स्पून)

– सिरका (2 टी स्पून)

– नमक (स्वादानुसार)

– सबसे पहले चिकन को धो लें और अच्छे से साफ करके एक प्लेट में रख दें.

– अब एक बर्तन में पानी ले और गरम करने के लिए गैस पर रख दें.

– जब पानी में उबाल आजाए तो उसमे चाउमीन डालें और कलछी की मदद से चलाते रहे.

– कुछ देर बाद चाउमीन नरम होने लगेंगे गैस को बंद कर दें और छलनी की मदद से पानी और चाउमीन      को अलग कर दें.

– शिमला मिर्च, पत्ता गोभी और प्याज़ को बारीक़ काट कर रख लें.

– अब एक कढ़ाई में तेल डालकर गरम करें.

– गरम तेल में प्याज़ डालकर धीमी आंच पर उसे भूने कुछ देर में प्याज़ भुन जाएगा तो उसमे शिमला       मिर्च और पत्ता गोभी भी डालकर भून लें.

– इस मिश्रण के भुन जाने पर इसमें सिरका, सोया सौस और चिली सौस डालकर मिक्स करे साथ ही थोड़ा     सा नमक भी डाल दें.

अंडे के पकोड़े

सामग्री

– अंडे (4 उबले हुए)

– पानी (1/2 कप)

– हरी मिर्च (2)

– लहसुन पेस्‍ट (1 टी स्पून)

– लाल मिर्च (1 टी स्पून)

– काली मिर्च (1 टी स्पून)

– तेल (2 टी स्पून)

– बेसन (3 टी स्पून)

– नमक (स्वादानुसार)

– सबसे पहले सभी उबले हुए अंडो को ले और उन्हें छील लें.

– अब उन अंडो को बीच से दो भागो में काट लें.

– सभी अंडो के साथ ऐसा ही करे और हरी मिर्च को भी बारीक़ काट कर रख लें.

– अब एक बर्तन ले उसमे बेसन, नमक, लाल मिर्च, काली मिर्च, लहसुन का पेस्ट और थोड़ा सा पानी डालकर एक पेस्ट तैयार कर लें.

– इतना करने के बाद एक कढ़ाई लें उसमे तेल डालकर गैस पर गरम करने के लिए रख दें.

– उबले हुए अंडे के टुकड़े को ले बेसन वाले घोल में डुबोए और कढ़ाई में डालकर धीमी आंच पर उसे हल्का    ब्राउन होने तक तलें.

– जब वह तल जाए तो प्लेट में नैपकीन पेपर लगाए और बने हुए पकोड़े को प्लेट में निकाल लें.

– सभी अंडो को इसी तरह मिश्रण में डुबो कर तल लें.

– कुछ ही देर में आपके स्वादिष्ट और लजीज अंडे पकोड़े बनकर तैयार है इन्हे प्लेट में निकालें और सभी     को सौस या चटनी के साथ सर्वे करें.

अपनाएं ये उपाय ताकि बढ़ती उम्र त्वचा पर न झलके

जैसे जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे त्‍वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती है. इसलिए त्वचा का अभी से ख्‍याल रखना जरूरी है ताकि आगे चल कर आपके चेहरे पर बढ़ती उम्र न झलके. 20 की उम्र के बाद हमारी त्‍वचा में वह कसाव नहीं रह जाता जो पहले हुआ करता था. इसलिए अगर आप 30 के आस पास हैं और अपनी त्‍वचा का बिल्‍कुल भी ख्‍याल नहीं रखती तो सतर्क हो जाएं. अब वह समय आ चुका है कि आप अपनी त्‍वचा की देखभाल करने का समय निकालें. तो आइये जानते हैं बढ़ती उम्र में अपनी त्‍वचा का ख्‍याल कैसे रखा जा सकता है.

अभी से हो जाएं सतर्क

भले ही आप पहले अपनी त्‍वचा की देखभाल ना करती आई हों, लेकिन अब भी देर नहीं हुई है. आपकी त्‍वचा 20 की उम्र से ही मुर्झाने लगती है. आपका आहार, सूरज की धूप, जीन और आपकी लाइफस्‍टाइल त्‍वचा में बदलाव लाने का एक बड़ा कारण है. तो देर ना करें और अभी से ही अपनी त्‍वचा की देखभाल करना शुरु कर दें जिससे आपकी त्‍वचा कोमल और टाइट बन सके.

नरम क्‍लींजर लगाएं

रूखी त्‍वचा के लिये क्रीम युक्‍त और औइली त्‍वचा के औइल फ्री क्‍लींजर अच्‍छा होता है. अगर आपकी त्‍वचा संवेदनशील है तो अपने डाक्‍टर से इस बारे में बात करें. चेहरे को हल्‍के गरम या ठंडे पानी से धोएं. गरम पानी आपके चेहरे को और ज्‍यादा रूखा बना सक‍ता है. चेहरे को रगड़ कर ना पोछे.

चहरे पर मौइस्‍चराइजर लगाएं

यह त्‍वचा को प्रोटेक्‍ट करता है. भले ही आपका चेहरा औइली हो या फिर उस पर पिंपल निकला हो, आप एक अच्‍छा सा औइलफ्री मौइस्‍चराइजर लगा सकती हैं. अगर स्‍किन रूखी है तो दिन में दो बार मौइस्‍चराइजर लगाएं.

रोज लगाएं सनस्‍क्रीन

घर के बाहर और अंदर दोनों ही जगहें सनस्‍क्रीन लगानी चाहिये क्‍योंकि सूरज की किरणे बादलों को चीरती हुई हमारे शरीर पर पड़ती है. आपको एसपीएफ 30 वाली सनस्‍क्रीन लगानी चाहिये. साथ ही अपने होंठो पर भी सनस्‍क्रीन लगाएं.

डेड स्‍किन को स्‍क्रब करें

चेहरे पर ग्‍लो लाने के लिये उस पर नियमित स्‍क्रब करें. ऐसा हफ्ते में 2 बार करें. अगर चहरे पर एक्‍ने या चेहरा संवेदनशील है तो अपने डाक्‍टर से बात करें.

रखें अपनी डाइट का ख्‍याल

आपकी स्‍किन को अगर नियमित रूप से विटामिन सी और ई का डोज दिया जाए तो आपकी स्‍किन और भी ज्‍यादा निखर सकती है. आप इन्‍हें या तो आहार से या फिर क्रीम से पा सकती हैं. विटामिन ए या B3 सूरज की किरणों से होने वाले नुकसान से बचाती है.

सोंच समझ कर ही फेशियल चुनें

क्‍लीजिंग और एक्‍सफोलियेटिंग फेशियल करवाने से चेहरे पर एलर्जी या रिएक्‍शन हो सकता है. अगर आपकी त्‍वचा संवेदनशील है तो सोंच समझ कर ही फेशियल चुनें नहीं तो अच्‍छा है कि आप घर पर ही इसे करें.

क्‍या अभी भी निकलते हैं मुंहासे

अगर आप सोंच रही हैं कि आपके चेहरे पर क्‍यूं मुंहासे और ब्‍लैकहेड्स हो रहे हैं तो इसका कारण हार्मोन, हेयर प्रोडक्‍ट और तनाव भी हो सकता है. इसके लिये अपने डाक्‍टर की सलाह लें.

कैसे पाएं ग्‍लो

स्‍मोकिंग छोड़े, खूब सारे फल, सब्‍जियां, बिना चर्बी का मांस और साबुत अनाज खाएं. रोजाना व्‍यायाम करें, तनाव और तेज धूप से दूर रहें.

अरूणिमा सिन्हा का किरदार निभाएंगी आलिया भट्ट

आलिया भट्ट के सितारे बुलंदियों पर हैं. अब बौलीवुड में उनकी गिनती एक ऐसी उत्कृट अदाकारा के रूप में होने लगी है, जो कि किसी भी संजीदा किरदार को परदे पर पेश कर सकती हैं. इसी के चलते अब उन्हें माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दिव्यांग भारतीय महिला अरूणिमा सिन्हा के जीवन पर बनने जा रही बायोपिक फिल्म में किरदार निभाने के लिए अनुबंधित किया गया है. यह फिल्म एक किताब ‘‘बौर्न अगेन औन द माउंटेनः ए स्टोरी आफ लूजिंग एवरीथिंग एंड फाइंडिंग बैक’’ पर आधारित होगी. इस फिल्म का निर्माण करण जोहर और विवेक रंगाचारी कर रहे हैं.

सूत्रों की माने तो आलिया भट्ट इस किरदार को निभाने से पहले अपना वजन बढ़ाने के साथ साथ दिव्यांग इंसान के साथ एक खास तरह की ट्रेनिंग भी हासिल करेंगी. फिल्म की शूटिंग लखनउ से शुरू होगी.

ज्ञातब्य है कि अरूणिमा मूलतः सिन्हा राष्ट्रीय स्तर की बौलीबाल खिलाड़ी थीं, जो कि चलती ट्रेन में कुछ लुटेरों से लड़ते हुए गिर गयी थीं, जिसमें वह अपना एक पैर गंवा बैठी थीं. पर हार मानने की बजाय वह एक साल के अंदर ही माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बन गयीं.

टेलीविजन बच्चों का दुश्मन

मिश्राजी पत्नी के साथ घर लौटे तो देखा कि उन का छोटा बेटा निशांत हाथ में सौस की टूटी बोतल पकड़े अपने बड़े भाई के कमरे के बाहर गुस्से में तन कर खड़ा है. यह देख कर मिश्रा दंपती हैरत में पड़ गए. उन के बारबार आवाज लगाने पर बड़े बेटे प्रशांत ने दरवाजा खोला. पूछताछ करने पर पता चला कि उन की गैरमौजूदगी में दोनों भाइयों में घमासान हुआ था और निशांत मेज पर रखी सौस की बोतल तोड़ कर प्रशांत को मारने के लिए उस के पीछे दौड़ा था.

एक शाम जब अंकित के मातापिता किसी पार्टी में गए थे तो उस ने टेलीविजन पर एक ऐसे हत्यारे पर बना कार्यक्रम देखा जिस ने उस की उम्र के 9 बच्चों का अपहरण कर उन की हत्या कर दी थी. अंकित बुरी तरह डर गया. अब वह अकेले अपने कमरे में सोने के बजाय अपने मातापिता के साथ सोने की जिद करने लगा. उस ने हकलाना शुरू कर दिया और वह लगभग रोज ही बिस्तर गीला करने लगा.

आज निशांत, प्रशांत और अंकित जैसे न जाने कितने बच्चे हैं जो टेलीविजन पर दिखाई जा रही हिंसा, सेक्स और नशे के दृश्यों को देख कर उन से प्रभावित हो रहे हैं. इस प्रकार के कार्यक्रम बच्चों के संवेदनशील दिमाग पर क्या प्रभाव डालेंगे और आगे चल कर किन मानसिक रोगों का वे शिकार होंगे यह सोचना अब बहुत जरूरी हो गया है.

ज्यादातर मातापिता अपने बच्चों की टेलीविजन देखने की लत से परेशान हैं. आमतौर पर हर परिवार में टेलीविजन पर रोक लगाने के लिए जंग छिड़ती रहती है पर क्या हम सब ऐसा कर पाते हैं.

बच्चों को क्या दोष दें. हम खुद भी टीवी पर दिखाए जा रहे बेसिरपैर के धारावाहिकों को देखने के लिए बेचैन रहते हैं और बातें करते हैं सासबहू के उन पैतरों की जिन का कोई अंत ही नहीं है.

मेरी दिली तमन्ना है कि मैं अपने घर से टेलीविजन को हटा दूं या फिर कम से कम ‘केबल’ का तार तो नोच कर फेंक ही दूं. मेरे जैसे सोचने वाले कई समझदार परिवार और भी हैं, लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते हैं, क्योंकि घर में टेलीविजन का न होना हमारी सामाजिक मर्यादा के खिलाफ है. अगर घर में टीवी नहीं होगा तो बच्चे अपने साथियों के बीच बुद्धू नजर आएंगे क्योंकि वे कार्टून चैनल पर दी जा रही अतिउपयोगी जानकारी से वंचित रह जाएंगे.

यह सही है कि कभीकभार टेलीविजन पर दिखाए जा रहे कुछ कार्यक्रम काफी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होते हैं लेकिन अधिकतर कार्यक्रम नका- रात्मक ही होते हैं. बच्चे उन्हें न ही देखें तो अच्छा है.

अधिक टेलीविजन देखने वाले बच्चे सृज- नात्मक क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं. उन में सहज स्वाभाविक ढंग से कुछ नए के बारे में जानने और कल्पना करने की शक्ति की कमी होती है तथा वे दिमागी कसरत कराने वाली समस्याओं को सुलझाने में आमतौर पर असमर्थ साबित होते हैं.

टेलीविजन खोलते ही दिमाग का दरवाजा बंद हो जाता है और आप दुनिया से बेखबर स्क्रीन पर आंखें गड़ाए घंटों एक से दूसरे चैनल पर भटकते रहते हैं. ज्यादा टीवी देखने वाले बच्चे, जवान व बूढ़े अपनेआप में सिमट जाते हैं.

पिछले कुछ सालों में बच्चों एवं युवाओं में कई मानसिक विकृतियां बढ़ी हैं. इन में से प्रमुख हैं एकाग्रता की कमी, उत्तेजना, नर्वसनेस, घबराहट और असामाजिक व्यवहार आदि. लगातार टीवी देखने से आंखों पर जोर पड़ता है जिस से सिरदर्द एवं माइग्रेन की शिकायत हो सकती है. नींद पूरी न होने से बच्चों में पढ़ाई के प्रति अरुचि बढ़ती है.

आजकल कई मातापिता यह शिकायत ले कर डाक्टरों के पास आते हैं कि उन के बच्चे ने 2 साल का हो जाने के बावजूद बोलना शुरू नहीं किया. चिकित्सकों का कहना है कि देर से बोलने का कारण मातापिता का उन से कम बोलना है. अगर मातापिता दोनों ही कामकाजी हैं और उन का शाम का सारा समय टीवी के सामने गुजरता है तो बच्चे में ‘स्पीच डिले’ होना कोई अचरज की बात नहीं है.

आप यह बात अच्छी तरह समझ लें कि छोटे बच्चे टेलीविजन देख कर भाषा नहीं सीख सकते. ‘स्पीच डिले’ वाले बच्चों के मातापिता को चाहिए कि वे अपने बच्चे से अधिकाधिक बोलें, उस से ‘बातचीत’ का कोई भी मौका हाथ से न जाने दें. रंगीन चित्रों वाली किताबों से उसे कहानियां सुनाएं, दुनिया के बारे में जानकारी दें.

बच्चों पर टेलीविजन के दुष्प्रभाव के बारे में अनेक शोध प्रकाशित हो चुके हैं. टेलीविजन पर दिखाए जा रहे हिंसात्मक कार्यक्रमों और नई पीढ़ी में बढ़ रही उद्दंडता व आक्रामक व्यवहार में सीधा रिश्ता है. टीवी कार्यक्रमों की नकल कर अपराध करने के कई मामले प्रकाश में आए हैं.

दूसरी तरफ कुछ बच्चों को टीवी पर दिखाए जा रहे ‘स्टंट्स’ के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी. शक्तिमान की नकल हो या सुपरमैन की तरह उड़ने की चाह, अकारण कई मासूमों ने छतों से कूद कर मौत को गले लगा लिया.

टेलीविजन एक अति प्रभावशाली माध्यम है जोकि शिक्षित भी करता है और भ्रमित भी. इस के जरिए बच्चे उन बातों पर भी सहज भरोसा कर लेते हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इसलिए टीवी जगत की जिम्मेदारी बनती है कि वह अनावश्यक, उत्तेजक, अतिहिंसक और बच्चों को बरगलाने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाए.

आज हकीकत यह है कि आप को टेलीविजन से समझौता करना ही पड़ेगा क्योंकि यह अब आप के घर से बाहर जाने वाला नहीं है. आप चाहें तो भी इसे अपनी जिंदगी से हटा नहीं सकते परंतु टेलीविजन हम सब की जिंदगी चलाए यह भी जरूरी नहीं.

वजन कम करने के लिए इन चीजों को करें अपनी डाइट में शामिल

कब हमारा वजन बढ़ने लगता है हमें पता नहीं लगता, जब तक एहसास होता है देरी हो चुकी होती है और इसके बाद वजम कम करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि हम अपनी डाइट पर खासा ध्यान दें. वजन कम करने में शरीर के मेटाबौलिज्म की भूमिका अहम होती है. जिन लोगों के शरीर की मेटाबौलिज्म अच्छी होती है उनका वजन जल्दी कम होता है. इसके अलावा वजन कम करने में डाइट का काफी अहम योगदान होता है, इसलिए अपनी डाइट में सही मात्रा में न्यूट्रिएंट्स को शामिल करें.

आमतौर पर लोग वजन कम करने के लिए प्रोटीन का इस्तेमाल करते हैं. प्रोटीन से शरीर का मेटाबौलिज्म मजबूत होता है. पर इस खबर में हम आपको प्रोटीन के अलावा और भी न्यूट्रिएंट्स के बारे में बताएंगे जिनको अपनी डाइट में शामिल कर आप अपना वजन कम कर सकती हैं.

कैल्शियम

हड्डियों और दांतों को मजबूत रखने के साथ साथ कैल्शियम वजन घटाने में भी काफ मददगार होता है. कई स्टडीज में ये बात सामने आई कि कैल्शियमयुक्त डाइट लेने से वजन बढ़ने का खतरा कम रहता है.

फाइबर

वजन कम करने के लिए फाइबर का इस्तेमाल बेहद जरूरी है. फाइबर दो तरह के होते हैं, सौल्यूबल और इनसौल्यूबल, ये दोनों ही सेहत के लिए जरूरी होते हैं. इसके सेवन से हार्मोन्स बैलेंस्ड रहते हैं. फाइबर के डाइजेशन में काफी वक्त लगता है जिसके कारण लंबे समय तक आपको भूख नहीं लगती है. इससे आप अधिक खाना नहीं खाते और आपका वजन कंट्रोल में रहता है.

ओमेगा-3 फैटी एसिड

दिल की सेहत के लिए और स्किन के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिड काफी लाभकारी होता है. इससे भूख कंट्रोल में रहती है. जानकारों की माने तो ओमेगा-3 फैटी एसिड से मेटाबॉलिज्म मजबूत होता है. साथ ही ज्यादा कैलोरी बर्न होती हैं.

पोटैशियम

ये भी बेहद जरूरी न्यूट्रिएंट है. आमतौर पर लोग इसे अहमियत नहीं देते. शरीर के बहुत से टौक्सिंस को बाहर करने में ये बेहद मददगार होता है. इसे अपनी डाइट में सामिल करने से किडनी और दिल ठीक ढंग से काम करते हैं.

महिलाओं के लिए खुद का नाम बनाना हमेशा कठिन होता है : आशिमा शर्मा

‘आशिमा एस कुटोर’ की संस्थापिका और फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा 5 साल से अपना फैशन पोर्टल चला रही हैं. वे 7 साल की उम्र से ही पोर्ट्रेट बनाती और पेंटिंग करती आ रही हैं. कला में दिलचस्पी के चलते कुछ ही सालों में फैशन इंडस्ट्री में अपनी अलग जगह बना ली.

आशिमा ने कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रैंड व अंतर्राष्ट्रीय आर्ट गैलरीज के साथ भी काम किया है. उन्हें लिखने का भी शौक है. वे ‘एशी माइंड सोल’ नाम से वैबसाइट चलाती हैं. उन्हें 2018 में ‘वूमन ऐक्सीलैंस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. 2015 में उन्होंने एलएसीएमए (लैक्मा) लौस एंजिल्स में विश्व में 19वां पद प्राप्त किया. उन्हें 2012 में पर्थ अंतर्राष्ट्रीय आर्ट फैस्टिवल में बैस्ट अंतर्राष्ट्रीय टेलैंट से सम्मानित किया गया.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के अंश:

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आप की नजर में फैशन क्या है?

मेरे लिए फैशन न केवल ट्रैंड्स को फौलो करना है, बल्कि व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के अनुसार आरामदायक ट्रैंड अपनाना भी माने रखता है. फैशन से व्यक्ति को अलग पहचान मिलती है.

फैशन को आत्मविश्वास से कैसे जोड़ा जा सकता है?

फैशन सिर्फ और सिर्फ आत्मविश्वास के बारे में है. आत्मविश्वास के बिना कोई भी पोशाक अच्छी नहीं दिखेगी, क्योंकि अगर पहनने वाला आत्मविश्वास के साथ सामने नहीं आ सकता तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कपड़े कितने अच्छे हों.

भारत में महिलाओं की स्थिति पर क्या कहेंगी?

मुझे यह बात बहुत बुरी लगती है कि आज भी महिलाओं को वस्तु माना जाता है, जबकि लोगों को महिलाओं का सम्मान करना चाहिए. उन का समाज में बहुत बड़ा योगदान रहा है. आज पुरुष और महिलाएं दोनों मिल कर काम कर रहे हैं. महिलाएं अपने काम और प्रोफैशनल जीवन के साथसाथ घर भी संभालती हैं. वे परिवार बनाती हैं और पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर बाहरी दुनिया में भी नाम कमाती हैं, पुरुषों को इस बात का एहसास होना चाहिए.

बतौर स्त्री आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

एक महिला होने के नाते मैं ने हमेशा महसूस किया कि मुझे काम में हमेशा पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करना पड़ता है, क्योंकि महिलाओं के लिए खुद का नाम बनाना हमेशा कठिन होता है. लेकिन सफलता की राह हमेशा उन महिलाओं के लिए आसान होती है, जो चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहती हैं और कड़ी मेहनत करती हैं. एक समय के बाद मेरे मन से भी असुरक्षा के भाव दूर हो गए, क्योंकि मुझे पता था कि मैं अपने प्रयासों को सही दिशा में लगा रही हूं.

क्या आज भी महिलाओं के साथ अत्याचार और भेदभाव होता है?

बिलकुल. खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में देखा गया है कि महिलाओं को अभी भी समान वेतन, सुरक्षित वातावरण, उचित स्वच्छता नहीं मिलती है. उन की अधिकांश बुनियादी जरूरतें बड़ी कठिनाई से पूरी होती हैं. यह एक सचाई है कि भारत की ग्रामीण महिलाएं अभी भी बहुत कुछ झेल रही हैं.

घर वालों की कितनी सपोर्ट मिलती है?

मेरे पिता डा. एम.सी. शर्मा, माता डा. शालिनी शर्मा और भाई मनीष शर्मा सभी मुझे हमेशा सपोर्ट देते हैं. उन्होंने हमेशा मेरी प्रतिभा और कड़ी मेहनत पर विश्वास किया है. उन के समर्थन और प्रोत्साहन के बिना मेरे लिए कैरियर में ऊंचाइयां छूना नामुमकिन था.

ग्लास सीलिंग के बारे में आप की राय?

आज महिलाएं हर वह मुकाम हासिल कर रही हैं जहां वे जाना चाहती हैं. कड़ी मेहनत हमेशा रंग लाती है. सफर मुश्किल जरूर होता है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल नहीं खासकर उन के लिए जो मेहनत करने से बिलकुल नहीं कतराते हैं. ग्लास सीलिंग आज भी बड़ी समस्या है, पर जो हर मुश्किल को झेल आगे बढ़े उसे कामयाबी जरूर हासिल होती है.

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